#name Indian: Hindi Bible 01O 1 1 आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की। 01O 1 2 और पृथ्वी बेडौल और सुनसान पड़ी थी; और गहरे जल के ऊपर अन्धियारा था: तथा परमेश्वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डलाता था। 01O 1 3 तब परमेश्वर ने कहा, उजियाला हो: तो उजियाला हो गया। 01O 1 4 और परमेश्वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा है; और परमेश्वर ने उजियाले को अन्धियारे से अलग किया। 01O 1 5 और परमेश्वर ने उजियाले को दिन और अन्धियारे को रात कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पहिला दिन हो गया।। 01O 1 6 फिर परमेश्वर ने कहा, जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो कि जल दो भाग हो जाए। 01O 1 7 तब परमेश्वर ने एक अन्तर करके उसके नीचे के जल और उसके ऊपर के जल को अलग अलग किया; और वैसा ही हो गया। 01O 1 8 और परमेश्वर ने उस अन्तर को आकाश कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार दूसरा दिन हो गया।। 01O 1 9 फिर परमेश्वर ने कहा, आकाश के नीचे का जल एक स्थान में इकट्ठा हो जाए और सूखी भूमि दिखाई दे; और वैसा ही हो गया। 01O 1 10 और परमेश्वर ने सूखी भूमि को पृथ्वी कहा; तथा जो जल इकट्ठा हुआ उसको उस ने समुद्र कहा: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 01O 1 11 फिर परमेश्वर ने कहा, पृथ्वी से हरी घास, तथा बीजवाले छोटे छोटे पेड़, और फलदाई वृक्ष भी जिनके बीज उन्ही में एक एक की जाति के अनुसार होते हैं पृथ्वी पर उगें; और वैसा ही हो गया। 01O 1 12 तो पृथ्वी से हरी घास, और छोटे छोटे पेड़ जिन में अपनी अपनी जाति के अनुसार बीज होता है, और फलदाई वृक्ष जिनके बीज एक एक की जाति के अनुसार उन्ही में होते हैं उगे; और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 01O 1 13 तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार तीसरा दिन हो गया।। 01O 1 14 फिर परमेश्वर ने कहा, दिन को रात से अलग करने के लिये आकाश के अन्तर में ज्योतियां हों; और वे चिन्हों, और नियत समयों, और दिनों, और वर्षों के कारण हों। 01O 1 15 और वे ज्योतियां आकाश के अन्तर में पृथ्वी पर प्रकाश देनेवाली भी ठहरें; और वैसा ही हो गया। 01O 1 16 तब परमेश्वर ने दो बड़ी ज्योतियां बनाईं; उन में से बड़ी ज्योति को दिन पर प्रभुता करने के लिये, और छोटी ज्योति को रात पर प्रभुता करने के लिये बनाया: और तारागण को भी बनाया। 01O 1 17 परमेश्वर ने उनको आकाश के अन्तर में इसलिये रखा कि वे पृथ्वी पर प्रकाश दें, 01O 1 18 तथा दिन और रात पर प्रभुता करें और उजियाले को अन्धियारे से अलग करें: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 01O 1 19 तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार चौथा दिन हो गया।। 01O 1 20 फिर परमेश्वर ने कहा, जल जीवित प्राणियों से बहुत ही भर जाए, और पक्षी पृथ्वी के ऊपर आकाश कें अन्तर में उड़ें। 01O 1 21 ठसलिये परमेश्वर ने जाति जाति के बड़े बड़े जल- जन्तुओं की, और उन सब जीवित प्राणियों की भी सृष्टि की जो चलते फिरते हैं जिन से जल बहुत ही भर गया और एक एक जाति के उड़नेवाले पक्षियों की भी सृष्टि की : और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 01O 1 22 और परमेश्वर ने यह कहके उनको आशीष दी, कि फूलो- फलो, और समुद्र के जल में भर जाओ, और पक्षी पृथ्वी पर बढ़ें। 01O 1 23 तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पांचवां दिन हो गया। 01O 1 24 फिर परमेश्वर ने कहा, पृथ्वी से एक एक जाति के जीवित प्राणी, अर्थात् घरेलू पशु, और रेंगनेवाले जन्तु, और पृथ्वी के वनपशु, जाति जाति के अनुसार उत्पन्न हों; और वैसा ही हो गया। 01O 1 25 सो परमेश्वर ने पृथ्वी के जाति जाति के वनपशुओं को, और जाति जाति के घरेलू पशुओं को, और जाति जाति के भूमि पर सब रेंगनेवाले जन्तुओं को बनाया : और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 01O 1 26 फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्वी पर, और सब रेंगनेवाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें। 01O 1 27 तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके उस ने मनुष्यों की सृष्टि की। 01O 1 28 और परमेश्वर ने उनको आशीष दी : और उन से कहा, फूलो- फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समुद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले सब जन्तुओ पर अधिकार रखो। 01O 1 29 फिर परमेश्वर ने उन से कहा, सुनो, जितने बीजवाले छोटे छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपर हैं और जितने वृक्षों में बीजवाले फल होते हैं, वे सब मैं ने तुम को दिए हैं; वे तुम्हारे भोजन के लिये हैं : 01O 1 30 और जितने पृथ्वी के पशु, और आकाश के पक्षी, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले जन्तु हैं, जिन में जीवन के प्राण हैं, उन सब के खाने के लिये मैं ने सब हरे हरे छोटे पेड़ दिए हैं; और वैसा ही हो गया। 01O 1 31 तब परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार छठवां दिन हो गया।। 01O 2 1 यों आकाश और पृथ्वी और उनकी सारी सेना का बनाना समाप्त हो गया। 01O 2 2 और परमेश्वर ने अपना काम जिसे वह करता था सातवें दिन समाप्त किया। और उस ने अपने किए हुए सारे काम से सातवें दिन विश्राम किया। 01O 2 3 और परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी और पवित्रा ठहराया; क्योंकि उस में उस ने अपनी सृष्टि की रचना के सारे काम से विश्राम लिया। 01O 2 4 आकाश और पृथ्वी की उत्पत्ति का वृत्तान्त यह है कि जब वे उत्पन्न हुए अर्थात् जिस दिन यहोवा परमेश्वर ने पृथ्वी और आकाश को बनाया: 01O 2 5 तब मैदान का कोई पौधा भूमि पर न था, और न मैदान का कोई छोटा पेड़ उगा था, क्योंकि यहोवा परमेश्वर ने पृथ्वी पर जल नहीं बरसाया था, और भूमि पर खेती करने के लिये मनुष्य भी नहीं था; 01O 2 6 तौभी कुहरा पृथ्वी से उठता था जिस से सारी भूमि सिंच जाती थी 01O 2 7 और यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनो में जीवन का श्वास फूंक दिया; और आदम जीवता प्राणी बन गया। 01O 2 8 और यहोवा परमेश्वर ने पूर्व की ओर अदन देश में एक बाटिका लगाई; और वहां आदम को जिसे उस ने रचा था, रख दिया। 01O 2 9 और यहोवा परमेश्वर ने भूमि से सब भांति के वृक्ष, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं उगाए, और बाटिका के बीच में जीवन के वृक्ष को और भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष को भी लगाया। 01O 2 10 और उस बाटिका को सींचने के लिये एक महानदी अदन से निकली और वहां से आगे बहकर चार धारा में हो गई। 01O 2 11 पहिली धारा का नाम पीशोन् है, यह वही है जो हवीला नाम के सारे देश को जहां सोना मिलता है घेरे हुए है। 01O 2 12 उस देश का सोना चोखा होता है, वहां मोती और सुलैमानी पत्थर भी मिलते हैं। 01O 2 13 और दूसरी नदी का नाम गीहोन् है, यह वही है जो कूश के सारे देश को घेरे हुए है। 01O 2 14 और तीसरी नदी का नाम हि :केल् है, यह वही है जो अश्शूर् के पूर्व की ओर बहती है। और चौथी नदी का नाम फरात है। 01O 2 15 जब यहोवा परमेश्वर ने आदम को लेकर अदन की बाटिका में रख दिया, कि वह उस में काम करे और उसकी रक्षा करे, 01O 2 16 तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी, कि तू बाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है: 01O 2 17 पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना : क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्य मर जाएगा।। 01O 2 18 फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं; मै उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊंगा जो उस से मेल खाए। 01O 2 19 और यहोवा परमेश्वर भूमि में से सब जाति के बनैले पशुओं, और आकाश के सब भँाति के पक्षियों को रचकर आदम के पास ले आया कि देखे, कि वह उनका क्या क्या नाम रखता है; और जिस जिस जीवित प्राणी का जो जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया। 01O 2 20 सो आदम ने सब जाति के घरेलू पशुओं, और आकाश के पक्षियों, और सब जाति के बनैले पशुओं के नाम रखे; परन्तु आदम के लिये कोई ऐसा सहायक न मिला जो उस से मेल खा सके। 01O 2 21 तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को भारी नीन्द में डाल दिया, और जब वह सो गया तब उस ने उसकी एक पसुली निकालकर उसकी सन्ती मांस भर दिया। 01O 2 22 और यहोवा परमेश्वर ने उस पसुली को जो उस ने आदम में से निकाली थी, स्त्री बना दिया; और उसको आदम के पास ले आया। 01O 2 23 और आदम ने कहा अब यह मेरी हडि्डयों में की हड्डी और मेरे मांस में का मांस है : सो इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गई है। 01O 2 24 इस कारण पुरूष अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक तन बनें रहेंगे। 01O 2 25 और आदम और उसकी पत्नी दोनों नंगे थे, पर लजाते न थे।। 01O 3 1 यहोवा परमेश्वर ने जितने बनैले पशु बनाए थे, उन सब में सर्प धूर्त था, और उस ने स्त्री से कहा, क्या सच है, कि परमेश्वर ने कहा, कि तुम इस बाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना ? 01O 3 2 स्त्री ने सर्प से कहा, इस बाटिका के वृक्षों के फल हम खा सकते हैं। 01O 3 3 पर जो वृक्ष बाटिका के बीच में है, उसके फल के विषय में परमेश्वर ने कहा है कि न तो तुम उसको खाना और न उसको छूना, नहीं तो मर जाओगे। 01O 3 4 तब सर्प ने स्त्री से कहा, तुम निश्चय न मरोगे, 01O 3 5 वरन परमेश्वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आंखे खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे। 01O 3 6 सो जब स्त्री ने देखा कि उस वृक्ष का फल खाने में अच्छा, और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिये चाहने योग्य भी है, तब उस ने उस में से तोड़कर खाया; और अपने पति को भी दिया, और उस ने भी खाया। 01O 3 7 तब उन दोनों की आंखे खुल गई, और उनको मालूम हुआ कि वे नंगे है; सो उन्हों ने अंजीर के पत्ते जोड़ जोड़ कर लंगोट बना लिये। 01O 3 8 तब यहोवा परमेश्वर जो दिन के ठंडे समय बाटिका में फिरता था उसका शब्द उनको सुनाई दिया। तब आदम और उसकी पत्नी बाटिका के वृक्षों के बीच यहोवा परमेश्वर से छिप गए। 01O 3 9 तब यहोवा परमेश्वर ने पुकारकर आदम से पूछा, तू कहां है? 01O 3 10 उस ने कहा, मैं तेरा शब्द बारी में सुनकर डर गया क्योंकि मैं नंगा था; इसलिये छिप गया। 01O 3 11 उस ने कहा, किस ने तुझे चिताया कि तू नंगा है? जिस वृक्ष का फल खाने को मै ने तुझे बर्जा था, क्या तू ने उसका फल खाया है? 01O 3 12 आदम ने कहा जिस स्त्री को तू ने मेरे संग रहने को दिया है उसी ने उस वृक्ष का फल मुझे दिया, और मै ने खाया। 01O 3 13 तब यहोवा परमेश्वर ने स्त्री से कहा, तू ने यह क्या किया है? स्त्री ने कहा, सर्प ने मुझे बहका दिया तब मै ने खाया। 01O 3 14 तब यहोवा परमेश्वर ने सर्प से कहा, तू ने जो यह किया है इसलिये तू सब घरेलू पशुओं, और सब बनैले पशुओं से अधिक शापित है; तू पेट के बल चला करेगा, और जीवन भर मिट्टी चाटता रहेगा : 01O 3 15 और मै तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करूंगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा। 01O 3 16 फिर स्त्री से उस ने कहा, मै तेरी पीड़ा और तेरे गर्भवती होने के दु:ख को बहुत बढ़ाऊंगा; तू पीड़ित होकर बालक उत्पन्न करेगी; और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा। 01O 3 17 और आदम से उस ने कहा, तू ने जो अपनी पत्नी की बात सुनी, और जिस वृक्ष के फल के विषय मै ने तुझे आज्ञा दी थी कि तू उसे न खाना उसको तू ने खाया है, इसलिये भूमि तेरे कारण शापित है: तू उसकी उपज जीवन भर दु:ख के साथ खाया करेगा : 01O 3 18 और वह तेरे लिये कांटे और ऊंटकटारे उगाएगी, और तू खेत की उपज खाएगा ; 01O 3 19 और अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा; क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है, तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा। 01O 3 20 और आदम ने अपनी पत्नी का नाम हव्वा रखा; क्योंकि जितने मनुष्य जीवित हैं उन सब की आदिमाता वही हुई। 01O 3 21 और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिये चमड़े के अंगरखे बनाकर उनको पहिना दिए। 01O 3 22 फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, मनुष्य भले बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है: इसलिये अब ऐसा न हो, कि वह हाथ बढ़ाकर जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़ के खा ले और सदा जीवित रहे। 01O 3 23 तब यहोवा परमेश्वर ने उसको अदन की बाटिका में से निकाल दिया कि वह उस भूमि पर खेती करे जिस मे से वह बनाया गया था। 01O 3 24 इसलिये आदम को उस ने निकाल दिया और जीवन के वृक्ष के मार्ग का पहरा देने के लिये अदन की बाटिका के पूर्व की ओर करूबों को, और चारों ओर घूमनेवाली ज्वालामय तलवार को भी नियुक्त कर दिया।। 01O 4 1 जब आदम अपनी पत्नी हव्वा के पास गया तब उस ने गर्भवती होकर कैन को जन्म दिया और कहा, मै ने यहोवा की सहायता से एक पुरूष पाया है। 01O 4 2 फिर वह उसके भाई हाबिल को भी जन्मी, और हाबिल तो भेड़- बकरियों का चरवाहा बन गया, परन्तु कैन भूमि की खेती करने वाला किसान बना। 01O 4 3 कुछ दिनों के पश्चात् कैन यहोवा के पास भूमि की उपज में से कुछ भेंट ले आया। 01O 4 4 और हाबिल भी अपनी भेड़- बकरियों के कई एक पहिलौठे बच्चे भेंट चढ़ाने ले आया और उनकी चर्बी भेंट चढ़ाई; तब यहोवा ने हाबिल और उसकी भेंट को तो ग्रहण किया, 01O 4 5 परन्तु कैन और उसकी भेंट को उस ने ग्रहण न किया। तब कैन अति क्रोधित हुआ, और उसके मुंह पर उदासी छा गई। 01O 4 6 तब यहोवा ने कैन से कहा, तू क्यों क्रोधित हुआ ? और तेरे मुंह पर उदासी क्यों छा गई है ? 01O 4 7 यदि तू भला करे, तो क्या तेरी भेंट ग्रहण न की जाएगी ? और यदि तू भला न करे, तो पाप द्वार पर छिपा रहता है, और उसकी लालसा तेरी और होगी, और तू उस पर प्रभुता करेगा। 01O 4 8 तब कैन ने अपने भाई हाबिल से कुछ कहा : और जब वे मैदान में थे, तब कैन ने अपने भाई हाबिल पर चढ़कर उसे घात किया। 01O 4 9 तब यहोवा ने कैन से पूछा, तेरा भाई हाबिल कहां है ? उस ने कहा मालूम नहीं : क्या मै अपने भाई का रखवाला हूं ? 01O 4 10 उस ने कहा, तू ने क्या किया है ? तेरे भाई का लोहू भूमि में से मेरी ओर चिल्लाकर मेरी दोहाई दे रहा है ! 01O 4 11 इसलिये अब भूमि जिस ने तेरे भाई का लोहू तेरे हाथ से पीने के लिये अपना मुंह खोला है, उसकी ओर से तू शापित है। 01O 4 12 चाहे तू भूमि पर खेती करे, तौभी उसकी पूरी उपज फिर तुझे न मिलेगी, और तू पृथ्वी पर बहेतू और भगोड़ा होगा। 01O 4 13 तब कैन ने यहोवा से कहा, मेरा दण्ड सहने से बाहर है। 01O 4 14 देख, तू ने आज के दिन मुझे भूमि पर से निकाला है और मै तेरी दृष्टि की आड़ मे रहूंगा और पृथ्वी पर बहेतू और भगोड़ा रहूंगा; और जो कोई मुझे पाएगा, मुझे घात करेगा। 01O 4 15 इस कारण यहोवा ने उस से कहा, जो कोई कैन को घात करेगा उस से सात गुणा पलटा लिया जाएगा। और यहोवा ने कैन के लिये एक चिन्ह ठहराया ऐसा ने हो कि कोई उसे पाकर मार डाले।। 01O 4 16 तब कैन यहोवा के सम्मुख से निकल गया, और नोद् नाम देश में, जो अदन के पूर्व की ओर है, रहने लगा। 01O 4 17 जब कैन अपनी पत्नी के पास गया जब वह गर्भवती हुई और हनोक को जन्मी, फिर कैन ने एक नगर बसाया और उस नगर का नाम अपने पुत्रा के नाम पर हनोक रखा। 01O 4 18 और हनोक से ईराद उत्पन्न हुआ, और ईराद ने महूयाएल को जन्म दिया, और महूयाएल ने मतूशाएल को, और मतूशाएल ने लेमेक को जन्म दिया। 01O 4 19 और लेमेक ने दो स्त्रियां ब्याह ली : जिन में से एक का नाम आदा, और दूसरी को सिल्ला है। 01O 4 20 और आदा ने याबाल को जन्म दिया। वह तम्बुओं में रहना और जानवरों का पालन इन दोनो रीतियों का उत्पादक हुआ। 01O 4 21 और उसके भाई का नाम यूबाल है : वह वीणा और बांसुरी आदि बाजों के बजाने की सारी रीति का उत्पादक हुआ। 01O 4 22 और सिल्ला ने भी तूबल्कैन नाम एक पुत्रा को जन्म दिया : वह पीतल और लोहे के सब धारवाले हथियारों का गढ़नेवाला हुआ: और तूबल्कैन की बहिन नामा थी। 01O 4 23 और लेमेक ने अपनी पत्नियों से कहा, हे आदा और हे सिल्ला मेरी सुनो; हे लेमेक की पत्नियों, मेरी बात पर कान लगाओ: मैंने एक पुरूष को जो मेरे चोट लगाता था, अर्थात् एक जवान को जो मुझे घायल करता था, घात किया है। 01O 4 24 जब कैन का पलटा सातगुणा लिया जाएगा। तो लेमेक का सतहरगुणा लिया जाएगा। 01O 4 25 और आदम अपनी पत्नी के पास फिर गया; और उस ने एक पुत्रा को जन्म दिया और उसका नाम यह कह के शेत रखा, कि परमेश्वर ने मेरे लिये हाबिल की सन्ती, जिसको कैन ने घात किया, एक और वंश ठहरा दिया है। 01O 4 26 और शेत के भी एक पुत्रा उत्पन्न हुआ; और उस ने उसका नाम एनोश रखा, उसी समय से लोग यहोवा से प्रार्थना करने लगे।। 01O 5 1 आदम की वंशावली यह है। जब परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि की तब अपने ही स्वरूप में उसको बनाया; 01O 5 2 उस ने नर और नारी करके मनुष्यों की सृष्टि की और उन्हें आशीष दी, और उनकी सृष्टि के दिन उनका नाम आदम रखा। 01O 5 3 जब आदम एक सौ तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा उसकी समानता में उस ही के स्वरूप के अनुसार एक पुत्रा उत्पन्न हुआ उसका नाम शेत रखा। 01O 5 4 और शेत के जन्म के पश्चात् आदम आठ सौ वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुईं। 01O 5 5 और आदम की कुल अवस्था नौ सौ तीस वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 01O 5 6 जब शेत एक सौ पांच वर्ष का हुआ, तब उस ने एनोश को जन्म दिया। 01O 5 7 और एनोश के जन्म के पश्चात् शेत आठ सौ सात वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुईं। 01O 5 8 और शेत की कुल अवस्था नौ सौ बारह वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 01O 5 9 जब एनोश नब्बे वर्ष का हुआ, तब उस ने केनान को जन्म दिया। 01O 5 10 और केनान के जन्म के पश्चात् एनोश आठ सौ पन्द्रह वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां हुई। 01O 5 11 और एनोश की कुल अवस्था नौ सौ पांच वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 01O 5 12 जब केनान सत्तर वर्ष का हुआ, तब उस ने महललेल को जन्म दिया। 01O 5 13 और महललेल के जन्म के पश्चात् केनान आठ सौ चालीस वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 01O 5 14 और केनान की कुल अवस्था नौ सौ दस वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 01O 5 15 जब महललेल पैंसठ वर्ष का हुआ, तब उस ने येरेद को जन्म दिया। 01O 5 16 और येरेद के जन्म के पश्चात् महललेल आठ सौ तीस वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 01O 5 17 और महललेल की कुल अवस्था आठ सौ पंचानवे वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 01O 5 18 जब येरेद एक सौ बासठ वर्ष का हुआ, जब उस ने हनोक को जन्म दिया। 01O 5 19 और हनोक के जन्म के पश्चात् येरेद आठ सौ वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 01O 5 20 और येरेद की कुल अवस्था नौ सौ बासठ वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया। 01O 5 21 जब हनोक पैंसठ वर्ष का हुआ, तब उस ने मतूशेलह को जन्म दिया। 01O 5 22 और मतूशेलह के जन्म के पश्चात् हनोक तीन सौ वर्ष तक परमेश्वर के साथ साथ चलता रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 01O 5 23 और हनोक की कुल अवस्था तीन सौ पैंसठ वर्ष की हुई। 01O 5 24 और हनोक परमेश्वर के साथ साथ चलता था; फिर वह लोप हो गया क्योंकि परमेश्वर ने उसे उठा लिया। 01O 5 25 जब मतूशेलह एक सौ सत्तासी वर्ष का हुआ, तब उस ने लेमेक को जन्म दिया। 01O 5 26 और लेमेक के जन्म के पश्चात् मतूशेलह सात सौ बयासी वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 01O 5 27 और मतूशेलह की कुल अवस्था नौ सौ उनहत्तर वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 01O 5 28 जब लेमेक एक सौ बयासी वर्ष का हुआ, तब उस ने एक पुत्रा जन्म दिया। 01O 5 29 और यह कहकर उसका नाम नूह रखा, कि यहोवा ने जो पृथ्वी को शाप दिया है, उसके विषय यह लड़का हमारे काम में, और उस कठिन परिश्रम में जो हम करते हैं, हम को शान्ति देगा। 01O 5 30 और नूह के जन्म के पश्चात् लेमेक पांच सौ पंचानवे वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 01O 5 31 और लेमेक की कुल अवस्था सात सौ सतहत्तर वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 01O 5 32 और नूह पांच सौ वर्ष का हुआ; और नूह ने शेम, और हाम और येपेत को जन्म दिया।। 01O 6 1 फिर जब मनुष्य भूमि के ऊपर बहुत बढ़ने लगे, और उनके बेटियां उत्पन्न हुई, 01O 6 2 तब परमेश्वर के पुत्रों ने मनुष्य की पुत्रियों को देखा, कि वे सुन्दर हैं; सो उन्हों ने जिस जिसको चाहा उन से ब्याह कर लिया। 01O 6 3 और यहोवा ने कहा, मेरा आत्मा मनुष्य से सदा लों विवाद करता न रहेगा, क्योंकि मनुष्य भी शरीर ही है : उसकी आयु एक सौ बीस वर्ष की होगी। 01O 6 4 उन दिनों में पृथ्वी पर दानव रहते थे; और इसके पश्चात् जब परमेश्वर के पुत्रा मनुष्य की पुत्रियों के पास गए तब उनके द्वारा जो सन्तान उत्पन्न हुए, वे पुत्रा शूरवीर होते थे, जिनकी कीर्त्ति प्राचीनकाल से प्रचलित है। 01O 6 5 और यहोवा ने देखा, कि मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है सो निरन्तर बुरा ही होता है। 01O 6 6 और यहोवा पृथ्वी पर मनुष्य को बनाने से पछताया, और वह मन में अति खेदित हुआ। 01O 6 7 तब यहोवा ने सोचा, कि मै मनुष्य को जिसकी मै ने सृष्टि की है पृथ्वी के ऊपर से मिटा दूंगा क्योंकि मैं उनके बनाने से पछताता हूं। 01O 6 8 परन्तु यहोवा के अनुग्रह की दृष्टि नूह पर बनी रही।। 01O 6 9 नूह की वंशावली यह है। नूह धर्मी पुरूष और अपने समय के लोगों में खरा था, और नूह परमेश्वर ही के साथ साथ चलता रहा। 01O 6 10 और नूह से, शेम, और हाम, और येपेत नाम, तीन पुत्रा उत्पन्न हुए। 01O 6 11 उस समय पृथ्वी परमेश्वर की दृष्टि में बिगड़ गई थी, और उपद्रव से भर गई थी। 01O 6 12 और परमेश्वर ने पृथ्वी पर जो दृष्टि की तो क्या देखा, कि वह बिगड़ी हुई है; क्योंकि सब प्राणियों ने पृथ्वी पर अपनी अपनी चाल चलन बिगाड़ ली थी। 01O 6 13 तब परमेश्वर ने नूह से कहा, सब प्राणियों के अन्त करने का प्रश्न मेरे साम्हने आ गया है; क्योंकि उनके कारण पृथ्वी उपद्रव से भर गई है, इसलिये मै उनको पृथ्वी समेत नाश कर डालूंगा। 01O 6 14 इसलिये तू गोपेर वृक्ष की लकड़ी का एक जहाज बना ले, उस में कोठरियां बनाना, और भीतर बाहर उस पर राल लगाना। 01O 6 15 और इस ढंग से उसको बनाना : जहाज की लम्बाई तीन सौ हाथ, चौड़ाई पचास हाथ, और ऊंचाई तीस हाथ की हो। 01O 6 16 जहाज में एक खिड़की बनाना, और इसके एक हाथ ऊपर से उसकी छत बनाना, और जहाज की एक अलंग में एक द्वार रखना, और जहाज में पहिला, दूसरा, तीसरा खण्ड बनाना। 01O 6 17 और सुन, मैं आप पृथ्वी पर जलप्रलय करके सब प्राणियों को, जिन में जीवन की आत्मा है, आकाश के नीचे से नाश करने पर हूं : और सब जो पृथ्वी पर है मर जाएंगे। 01O 6 18 परन्तु तेरे संग मै वाचा बान्धता हूं : इसलिये तू अपने पुत्रों, स्त्री, और बहुओं समेत जहाज में प्रवेश करना। 01O 6 19 और सब जीवित प्राणियों में से, तू एक एक जाति के दो दो, अर्थात् एक नर और एक मादा जहाज में ले जाकर, अपने साथ जीवित रखना। 01O 6 20 एक एक जाति के पक्षी, और एक एक जाति के पशु, और एक एक जाति के भूमि पर रेंगनेवाले, सब में से दो दो तेरे पास आएंगे, कि तू उनको जीवित रखे। 01O 6 21 और भांति भांति का भोज्य पदार्थ जो खाया जाता है, उनको तू लेकर अपने पास इकट्ठा कर रखना सो तेरे और उनके भोजन के लिये होगा। 01O 6 22 परमेश्वर की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया। 01O 7 1 और यहोवा ने नूह से कहा, तू अपने सारे घराने समेत जहाज में जा; क्योंकि मै ने इस समय के लोगों में से केवल तुझी को अपनी दृष्टि में धर्मी देखा है। 01O 7 2 सब जाति के शुद्ध पशुओं में से तो तू सात सात, अर्थात् नर और मादा लेना : पर जो पशु शुद्ध नहीं है, उन में से दो दो लेना, अर्थात् नर और मादा : 01O 7 3 और आकाश के पक्षियों में से भी, सात सात, अर्थात् नर और मादा लेना : कि उनका वंश बचकर सारी पृथ्वी के ऊपर बना रहे। 01O 7 4 क्योंकि अब सात दिन और बीतने पर मैं पृथ्वी पर चालीस दिन और चालीस रात तक जल बरसाता रहूंगा; जितनी वस्तुएं मैं ने बनाईं है सब को भूमि के ऊपर से मिटा दूंगा। 01O 7 5 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया। 01O 7 6 नूह की अवस्था छ: सौ वर्ष की थी, जब जलप्रलय पृथ्वी पर आया। 01O 7 7 नूह अपने पुत्रों, पत्नी और बहुओं समेत, जलप्रलय से बचने के लिये जहाज में गया। 01O 7 8 और शुद्ध, और अशुद्ध दोनो प्रकार के पशुओं में से, पक्षियों, 01O 7 9 और भूमि पर रेंगनेवालों में से भी, दो दो, अर्थात् नर और मादा, जहाज में नूह के पास गए, जिस प्रकार परमेश्वर ने नूह को आज्ञा दी थी। 01O 7 10 सात दिन के उपरान्त प्रलय का जल पृथ्वी पर आने लगा। 01O 7 11 जब नूह की अवस्था के छ: सौवें वर्ष के दूसरे महीने का सत्तरहवां दिन आया; उसी दिन बड़े गहिरे समुद्र के सब सोते फूट निकले और आकाश के झरोखे खुल गए। 01O 7 12 और वर्षा चालीस दिन और चालीस रात निरन्तर पृथ्वी पर होती रही। 01O 7 13 ठीक उसी दिन नूह अपने पुत्रा शेम, हाम, और येपेत, और अपनी पत्नी, और तीनों बहुओं समेत, 01O 7 14 और उनके संग एक एक जाति के सब बनैले पशु, और एक एक जाति के सब घरेलू पशु, और एक एक जाति के सब पृथ्वी पर रेंगनेवाले, और एक एक जाति के सब उड़नेवाले पक्षी, जहाज में गए। 01O 7 15 जितने प्राणियों में जीवन की आत्मा थी उनकी सब जातियों में से दो दो नूह के पास जहाज में गए। 01O 7 16 और जो गए, वह परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार सब जाति के प्राणियों में से नर और मादा गए। तब यहोवा ने उसका द्वार बन्द कर दिया। 01O 7 17 और पृथ्वी पर चालीस दिन तक प्रलय होता रहा; और पानी बहुत बढ़ता ही गया जिस से जहाज ऊपर को उठने लगा, और वह पृथ्वी पर से ऊंचा उठ गया। 01O 7 18 और जल बढ़ते बढ़ते पृथ्वी पर बहुत ही बढ़ गया, और जहाज जल के ऊपर ऊपर तैरता रहा। 01O 7 19 और जल पृथ्वी पर अत्यन्त बढ़ गया, यहां तक कि सारी धरती पर जितने बड़े बड़े पहाड़ थे, सब डूब गए। 01O 7 20 जल तो पन्द्रह हाथ ऊपर बढ़ गया, और पहाड़ भी डूब गए 01O 7 21 और क्या पक्षी, क्या घरेलू पशु, क्या बनैले पशु, और पृथ्वी पर सब चलनेवाले प्राणी, और जितने जन्तु पृथ्वी मे बहुतायत से भर गए थे, वे सब, और सब मनुष्य मर गए। 01O 7 22 जो जो स्थल पर थे उन में से जितनों के नथनों में जीवन का श्वास था, सब मर मिटे। 01O 7 23 और क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या रेंगनेवाले जन्तु, क्या आकाश के पक्षी, जो जो भूमि पर थे, सो सब पृथ्वी पर से मिट गए; केवल नूह, और जितने उसके संग जहाज में थे, वे ही बच गए। 01O 7 24 और जल पृथ्वी पर एक सौ पचास दिन तक प्रबल रहा।। 01O 8 1 और परमेश्वर ने नूह की, और जितने बनैले पशु, और घरेलू पशु उसके संग जहाज में थे, उन सभों की सुधि ली : और परमेश्वर ने पृथ्वी पर पवन बहाई, और जल घटने लगा। 01O 8 2 और गहिरे समुद्र के सोते और आकाश के झरोखे बंद हो गए; और उस से जो वर्षा होती थी सो भी थम गई। 01O 8 3 और एक सौ पचास दिन के पशचात् जल पृथ्वी पर से लगातार घटने लगा। 01O 8 4 सातवें महीने के सत्तरहवें दिन को, जहाज अरारात नाम पहाड़ पर टिक गया। 01O 8 5 और जल दसवें महीने तक घटता चला गया, और दसवें महीने के पहिले दिन को, पहाड़ों की चोटियाँ दिखलाई दीं। 01O 8 6 फिर ऐसा हुआ कि चालीस दिन के पश्चात् नूह ने अपने बनाए हुए जहाज की खिड़की को खोलकर, एक कौआ उड़ा दिया : 01O 8 7 जब तक जल पृथ्वी पर से सूख न गया, तब तक कौआ इधर उधर फिरता रहा। 01O 8 8 फिर उस ने अपने पास से एक कबूतरी को उड़ा दिया, कि देखें कि जल भूमि से घट गया कि नहीं। 01O 8 9 उस कबूतरी को अपने पैर के तले टेकने के लिये कोई आधार ने मिला, सो वह उसके पास जहाज में लौट आई : क्योंकि सारी पृथ्वी के ऊपर जल ही जल छाया था तब उस ने हाथ बढ़ाकर उसे अपने पास जहाज़ में ले लिया। 01O 8 10 तब और सात दिन तक ठहरकर, उस ने उसी कबूतरी को जहाज़ में से फिर उड़ा दिया। 01O 8 11 और कबूतरी सांझ के समय उसके पास आ गई, तो क्या देखा कि उसकी चोंच में जलपाई का एक नया पत्ता है; इस से नूह ने जान लिया, कि जल पृथ्वी पर घट गया है। 01O 8 12 फिर उस ने सात दिन और ठहरकर उसी कबूतरी को उड़ा दिया; और वह उसके पास फिर कभी लौटकर न आई। 01O 8 13 फिर ऐसा हुआ कि छ: सौ एक वर्ष के पहिले महीने के पहिले दिन जल पृथ्वी पर से सूख गया। तब नूह ने जहाज़ की छत खोलकर क्या देखा कि धरती सूख गई है। 01O 8 14 और दूसरे महीने के सताईसवें दिन को पृथ्वी पूरी रीति से सूख गई।। 01O 8 15 तब परमेश्वर ने, नूह से कहा, 01O 8 16 तू अपने पुत्रों, पत्नी, और बहुओं समेत जहाज़ में से निकल आ। 01O 8 17 क्या पक्षी, क्या पशु, क्या सब भांति के रेंगनेवाले जन्तु जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, जितने शरीरधारी जीवजन्तु तेरे संग हैं, उस सब को अपने साथ निकाल ले आ, कि पृथ्वी पर उन से बहुत बच्चे उत्पन्न हों; और वे फूलें- फलें, और पृथ्वी पर फैल जाएं। 01O 8 18 तब नूह, और उसके पुत्रा, और पत्नी, और बहुएं, निकल आईं : 01O 8 19 और सब चौपाए, रेंगनेवाले जन्तु, और पक्षी, और जितने जीवजन्तु पृथ्वी पर चलते फिरते हैं, सो सब जाति जाति करके जहाज़ में से निकल आए। 01O 8 20 तब नूह ने यहोवा के लिये एक वेदी बनाई; और सब शुद्ध पशुओं, और सब शुद्ध पक्षियों में से, कुछ कुछ लेकर वेदी पर होमबलि चढ़ाया। 01O 8 21 इस पर यहोवा ने सुखदायक सुगन्ध पाकर सोचा, कि मनुष्य के कारण मैं फिर कभी भूमि को शाप न दूंगा, यद्यपि मनुष्य के मन में बचपन से जो कुछ उत्पन्न होता है सो बुरा ही होता है; तौभी जैसा मैं ने सब जीवों को अब मारा है, वैसा उनको फिर कभी न मारूंगा। 01O 8 22 अब से जब तक पृथ्वी बनी रहेगी, तब तक बोने और काटने के समय, ठण्ड और तपन, धूपकाल और शीतकाल, दिन और रात, निरन्तर होते चले जाएंगे।। 01O 9 1 फिर परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रों को आशीष दी और उन से कहा कि फूलो- फलो, और बढ़ो, और पृथ्वी में भर जाओ। 01O 9 2 और तुम्हारा डर और भय पृथ्वी के सब पशुओं, और आकाश के सब पक्षियों, और भूमि पर के सब रेंगनेवाले जन्तुओं, और समुद्र की सब मछलियों पर बना रहेगा : वे सब तुम्हारे वश में कर दिए जाते हैं। 01O 9 3 सब चलनेवाले जन्तु तुम्हारा आहार होंगे; जैसा तुम को हरे हरे छोटे पेड़ दिए थे, वैसा ही अब सब कुछ देता हूं। 01O 9 4 पर मांस को प्राण समेत अर्थात् लोहू समेत तुम न खाना। 01O 9 5 और निश्चय मैं तुम्हारा लोहू अर्थात् प्राण का पलटा लूंगा : सब पशुओं, और मनुष्यों, दोनों से मैं उसे लूंगा : मनुष्य के प्राण का पलटा मै एक एक के भाई बन्धु से लूंगा। 01O 9 6 जो कोई मनुष्य का लोहू बहाएगा उसका लोहू मनुष्य ही से बहाया जाएगा क्योंकि परमेश्वर ने मनुष्य को अपने ही स्वरूप के अनुसार बनाया है। 01O 9 7 और तुम तो फूलो- फलो, और बढ़ो, और पृथ्वी में बहुत बच्चे जन्मा के उस में भर जाओ।। 01O 9 8 फिर परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रों से कहा, 01O 9 9 सुनों, मैं तुम्हारे साथ और तुम्हारे पश्चात् जो तुम्हारा वंश होगा, उसके साथ भी वाचा बान्धता हूं। 01O 9 10 और सब जीवित प्राणियों से भी जो तुम्हारे संग है क्या पक्षी क्या घरेलू पशु, क्या पृथ्वी के सब बनैले पशु, पृथ्वी के जितने जीवजन्तु जहाज से निकले हैं; सब के साथ भी मेरी यह वाचा बन्धती है : 01O 9 11 और मै तुम्हारे साथ अपनी इस वाचा को पूरा करूंगा; कि सब प्राणी फिर जलप्रलय से नाश न होंगे : और पृथ्वी के नाश करने के लिये फिर जलप्रलय न होगा। 01O 9 12 फिर परमेश्वर ने कहा, जो वाचा मै तुम्हारे साथ, और जितने जीवित प्राणी तुम्हारे संग हैं उन सब के साथ भी युग युग की पीढ़ियों के लिये बान्धता हूं; उसका यह चिन्ह है : 01O 9 13 कि मैं ने बादल मे अपना धनुष रखा है वह मेरे और पृथ्वी के बीच में वाचा का चिन्ह होगा। 01O 9 14 और जब मैं पृथ्वी पर बादल फैलाऊं जब बादल में धनुष देख पड़ेगा। 01O 9 15 तब मेरी जो वाचा तुम्हारे और सब जीवित शरीरधारी प्राणियों के साथ बान्धी है; उसको मैं स्मरण करूंगा, तब ऐसा जलप्रलय फिर न होगा जिस से सब प्राणियों का विनाश हो। 01O 9 16 बादल में जो धनुष होगा मैं उसे देख के यह सदा की वाचा स्मरण करूंगा जो परमेश्वर के और पृथ्वी पर के सब जीवित शरीरधारी प्राणियों के बीच बन्धी है। 01O 9 17 फिर परमेश्वर ने नूह से कहा जो वाचा मैं ने पृथ्वी भर के सब प्राणियों के साथ बान्धी है, उसका चिन्ह यही है।। 01O 9 18 नूह के जो पुत्रा जहाज़ में से निकले, वे शेम, हाम, और येपेत थे : और हाम तो कनान का पिता हुआ। 01O 9 19 नूह के तीन पुत्रा ये ही हैं, और इनका वंश सारी पृथ्वी पर फैल गया। 01O 9 20 और नूह किसानी करने लगा, और उस ने दाख की बारी लगाई। 01O 9 21 और वह दाखमधु पीकर मतवाला हुआ; और अपने तम्बू के भीतर नंगा हो गया। 01O 9 22 तब कनान के पिता हाम ने, अपने पिता को नंगा देखा, और बाहर आकर अपने दोनों भाइयों को बतला दिया। 01O 9 23 तब शेम और येपेत दोनों ने कपड़ा लेकर अपने कन्धों पर रखा, और पीछे की ओर उलटा चलकर अपने पिता के नंगे तन को ढ़ाप दिया, और वे अपना मुख पीछे किए हुए थे इसलिये उन्हों ने अपने पिता को नंगा न देखा। 01O 9 24 जब नूह का नशा उतर गया, तब उस ने जान लिया कि उसके छोटे पुत्रा ने उस से क्या किया है। 01O 9 25 इसलिये उस ने कहा, कनान शापित हो : वह अपने भाई बन्धुओं के दासों का दास हो। 01O 9 26 फिर उस ने कहा, शेम का परमेश्वर यहोवा धन्य है, और कनान शेम का दास होवे। 01O 9 27 परमेश्वर येपेत के वंश को फैलाए; और वह शेम के तम्बुओं मे बसे, और कनान उसका दास होवे। 01O 9 28 जलप्रलय के पश्चात् नूह साढ़े तीन सौ वर्ष जीवित रहा। 01O 9 29 और नूह की कुल अवस्था साढ़े नौ सौ वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया। 01O 10 1 नूह के पुत्रा जो शेम, हाम और येपेत थे उनके पुत्रा जलप्रलय के पश्चात् उत्पन्न हुए : उनकी वंशावली यह है।। 01O 10 2 येपेत के पुत्रा : गोमेर, मागोग, मादै, यावान, तूबल, मेशेक, और तीरास हुए। 01O 10 3 और गोमेर के पुत्रा : अशकनज, रीपत, और तोगर्मा हुए। 01O 10 4 और यावान के वंश में एलीशा, और तर्शीश, और कित्ती, और दोदानी लोग हुए। 01O 10 5 इनके वंश अन्यजातियों के द्वीपों के देशों में ऐसे बंट गए, कि वे भिन्न भिन्न भाषाओं, कुलों, और जातियों के अनुसार अलग अलग हो गए।। 01O 10 6 फिर हाम के पुत्रा : कूश, और मि , और फूत और कनान हुए। 01O 10 7 और कूश के पुत्रा सबा, हवीला, सबता, रामा, और सबूतका हुए : और रामा के पुत्रा शबा और ददान हुए। 01O 10 8 और कूश के वंश में निम्रोद भी हुआ; पृथ्वी पर पहिला वीर वही हुआ है। 01O 10 9 वही यहोवा की दृष्टि में पराक्रमी शिकार खेलनेवाला ठहरा, इस से यह कहावत चली है; कि निम्रोद के समान यहोवा की दृष्टि में पराक्रमी शिकार खेलनेवाला। 01O 10 10 और उसके राज्य का आरम्भ शिनार देश में बाबुल, अक्कद, और कलने हुआ। 01O 10 11 उस देश से वह निकलकर अश्शूर् को गया, और नीनवे, रहोबोतीर, और कालह को, 01O 10 12 और नीनवे और कालह के बीच रेसेन है, उसे भी बसाया, बड़ा नगर यही है। 01O 10 13 और मि के वंश में लूदी, अनामी, लहाबी, नप्तूही, 01O 10 14 और पत्रुसी, कसलूही, और कप्तोरी लोग हुए, कसलूहियों मे से तो पलिश्ती लोग निकले।। 01O 10 15 फिर कनान के वंश में उसका ज्येष्ठ सीदोन, तब हित्त, 01O 10 16 और यबूसी, एमोरी, गिर्गाशी, 01O 10 17 हिव्वी, अर्की, सीनी, 01O 10 18 अर्वदी, समारी, और हमाती लोग भी हुए : फिर कनानियों के कुल भी फैल गए। 01O 10 19 और कनानियों का सिवाना सीदोन से लेकर गरार के मार्ग से होकर अज्जा तक और फिर सदोम और अमोरा और अदमा और सबोयीम के मार्ग से होकर लाशा तक हुआ। 01O 10 20 हाम के वंश में ये ही हुए; और ये भिन्न भिन्न कुलों, भाषाओं, देशों, और जातियों के अनुसार अलग अलग हो गए।। 01O 10 21 फिर शेम, जो सब एबेरवंशियों का मूलपुरूष हुआ, और जो येपेत का ज्येष्ठ भाई था, उसके भी पुत्रा उत्पन्न हुए। 01O 10 22 शेम के पुत्रा : एलाम, अश्शूर्, अर्पक्षद्, लूद और आराम हुए। 01O 10 23 और आराम के पुत्रा : ऊस, हूल, गेतेर और मश हुए। 01O 10 24 और अर्पक्षद् ने शेलह को, और शेलह ने एबेर को जन्म दिया। 01O 10 25 और एबेर के दो पुत्रा उत्पन्न हुए, एक का नाम पेलेग इस कारण रखा गया कि उसके दिनों में पृथ्वी बंट गई, और उसके भाई का नाम योक्तान है। 01O 10 26 और योक्तान ने अल्मोदाद, शेलेप, हसर्मावेत, येरह, 01O 10 27 यदोरवाम, ऊजाल, दिक्ला, 01O 10 28 ओबाल, अबीमाएल, शबा, 01O 10 29 ओपीर, हवीला, और योबाब को जन्म दिया : ये ही सब योक्तान के पुत्रा हुए। 01O 10 30 इनके रहने का स्थान मेशा से लेकर सपारा जो पूर्व में एक पहाड़ है, उसके मार्ग तक हुआ। 01O 10 31 शेम के पुत्रा ये ही हुए; और ये भिन्न भिन्न कुलों, भाषाओं, देशों और जातियों के अनुसार अलग अलग हो गए।। 01O 10 32 नूह के पुत्रों के घराने ये ही हैं : और उनकी जातियों के अनुसार उनकी वंशावलियां ये ही हैं; और जलप्रलय के पश्चात् पृथ्वी भर की जातियां इन्हीं में से होकर बंट गई।। 01O 11 1 सारी पृथ्वी पर एक ही भाषा, और एक ही बोली थी। 01O 11 2 उस समय लोग पूर्व की और चलते चलते शिनार देश में एक मैदान पाकर उस में बस गए। 01O 11 3 तब वे आपस में कहने लगे, कि आओ; हम ईंटें बना बना के भली भंाति आग में पकाएं, और उन्हों ने पत्थर के स्थान में ईंट से, और चूने के स्थान में मिट्टी के गारे से काम लिया। 01O 11 4 फिर उन्हों ने कहा, आओ, हम एक नगर और एक गुम्मट बना लें, जिसकी चोटी आकाश से बात करे, इस प्रकार से हम अपना नाम करें ऐसा न हो कि हम को सारी पृथ्वी पर फैलना पड़े। 01O 11 5 जब लोग नगर और गुम्मट बनाने लगे; तब इन्हें देखने के लिये यहोवा उतर आया। 01O 11 6 और यहोवा ने कहा, मैं क्या देखता हूं, कि सब एक ही दल के हैं और भाषा भी उन सब की एक ही है, और उन्हों ने ऐसा ही काम भी आरम्भ किया; और अब जितना वे करने का यत्न करेंगे, उस में से कुछ उनके लिये अनहोना न होगा। 01O 11 7 इसलिये आओ, हम उतर के उनकी भाषा में बड़ी गड़बड़ी डालें, कि वे एक दूसरे की बोली को न समझ सकें। 01O 11 8 इस प्रकार यहोवा ने उनको, वहां से सारी पृथ्वी के ऊपर फैला दिया; और उन्हों ने उस नगर का बनाना छोड़ दिया। 01O 11 9 इस कारण उस नगर को नाम बाबुल पड़ा; क्योंकि सारी पृथ्वी की भाषा में जो गड़बड़ी है, सो यहोवा ने वहीं डाली, और वहीं से यहोवा ने मनुष्यों को सारी पृथ्वी के ऊपर फैला दिया।। 01O 11 10 शेम की वंशावली यह है। जल प्रलय के दो वर्ष पश्चात् जब शेम एक सौ वर्ष का हुआ, तब उस ने अर्पक्षद् को जन्म दिया। 01O 11 11 और अर्पक्षद् ने जन्म के पश्चात् शेम पांच सौ वर्ष जीवित रहा; और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 01O 11 12 जब अर्पक्षद् पैंतीस वर्ष का हुआ, तब उस ने शेलह को जन्म दिया। 01O 11 13 और शेलह के जन्म के पश्चात् अर्पक्षद् चार सौ तीन वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 01O 11 14 जब शेलह तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा एबेर को जन्म हुआ। 01O 11 15 और एबेर के जन्म के पश्चात् शेलह चार सौ तीन वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 01O 11 16 जब एबेर चौंतीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा पेलेग का जन्म हुआ। 01O 11 17 और पेलेग के जन्म के पश्चात् एबेर चार सौ तीस वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 01O 11 18 जब पेलेग तीस वर्ष को हुआ, तब उसके द्वारा रू का जन्म हुआ। 01O 11 19 और रू के जन्म के पश्चात् पेलेग दो सौ नौ वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 01O 11 20 जब रू बत्तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा सरूग का जन्म हुआ। 01O 11 21 और सरूग के जन्म के पश्चात् रू दो सौ सात वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 01O 11 22 जब सरूग तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा नाहोर का जन्म हुआ। 01O 11 23 और नाहोर के जन्म के पश्चात् सरूग दो सौ वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 01O 11 24 जब नाहोर उनतीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा तेरह का जन्म हुआ। 01O 11 25 और तेरह के जन्म के पश्चात् नाहोर एक सौ उन्नीस वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 01O 11 26 जब तक तेरह सत्तर वर्ष का हुआ, तब तक उसके द्वारा अब्राम, और नाहोर, और हारान उत्पन्न हुए।। 01O 11 27 तेरह की यह वंशावली है। तेरह ने अब्राम, और नाहोर, और हारान को जन्म दिया; और हारान ने लूत को जन्म दिया। 01O 11 28 और हारान अपने पिता के साम्हने ही, कस्दियों के ऊर नाम नगर में, जो उसकी जन्मभूमि थी, मर गया। 01O 11 29 अब्राम और नाहोर ने स्त्रियां ब्याह लीं : अब्राम की पत्नी का नाम तो सारै, और नाहोर की पत्नी का नाम मिल्का था, यह उस हारान की बेटी थी, जो मिल्का और यिस्का दोनों का पिता था। 01O 11 30 सारै तो बांझ थी; उसके संतान न हुई। 01O 11 31 और तेरह अपना पुत्रा अब्राम, और अपना पोता लूत जो हारान का पुत्रा था, और अपनी बहू सारै, जो उसके पुत्रा अब्राम की पत्नी थी इन सभों को लेकर कस्दियों के ऊर नगर से निकल कनान देश जाने को चला; पर हारान नाम देश में पहुचकर वहीं रहने लगा। 01O 11 32 जब तेरह दो सौ पांच वर्ष का हुआ, तब वह हारान देश में मर गया।। 01O 12 1 यहोवा ने अब्राम से कहा, अपने देश, और अपनी जन्मभूमि, और अपने पिता के घर को छोड़कर उस देश में चला जा जो मैं तुझे दिखाऊंगा। 01O 12 2 और मैं तुझ से एक बड़ी जाति बनाऊंगा, और तुझे आशीष दूंगा, और तेरा नाम बड़ा करूंगा, और तू आशीष का मूल होगा। 01O 12 3 और जो तुझे आशीर्वाद दें, उन्हें मैं आशीष दूंगा; और जो तुझे कोसे, उसे मैं शाप दूंगा; और भूमण्डल के सारे कुल तेरे द्वारा आशीष पाएंगे। 01O 12 4 यहोवा के इस वचन के अनुसार अब्राम चला; और लूत भी उसके संग चला; और जब अब्राम हारान देश से निकला उस समय वह पचहत्तर वर्ष का था। 01O 12 5 सो अब्राम अपनी पत्नी सारै, और अपने भतीजे लूत को, और जो धन उन्हों ने इकट्ठा किया था, और जो प्राणी उन्हों ने हारान में प्राप्त किए थे, सब को लेकर कनान देश में जाने को निकल चला; और वे कनान देश में आ भी गए। 01O 12 6 उस देश के बीच से जाते हुए अब्राम शकेम में, जहां मोरे का बांज वृक्ष है, पंहुचा; उस समय उस देश में कनानी लोग रहते थे। 01O 12 7 तब यहोवा ने अब्राम को दर्शन देकर कहा, यह देश मैं तेरे वंश को दूंगा : और उस ने वहां यहोवा के लिये जिस ने उसे दर्शन दिया था, एक वेदी बनाई। 01O 12 8 फिर वहां से कूच करके, वह उस पहाड़ पर आया, जो बेतेल के पूर्व की ओर है; और अपना तम्बू उस स्थान में खड़ा किया जिसकी पच्छिम की ओर तो बेतेल, और पूर्व की ओर ऐ है; और वहां भी उस ने यहोवा के लिये एक वेदी बनाई : और यहोवा से प्रार्थना की 01O 12 9 और अब्राम कूच करके दक्खिन देश की ओर चला गया।। 01O 12 10 और उस देश में अकाल पड़ा : और अब्राम मि देश को चला गया कि वहां परदेशी होकर रहे -- क्योंकि देश में भयंकर अकाल पड़ा था। 01O 12 11 फिर ऐसा हुआ कि मि के निकट पहुंचकर, उस ने अपनी पत्नी सारै से कहा, सुन, मुझे मालूम है, कि तू एक सुन्दर स्त्री है : 01O 12 12 इस कारण जब मिद्दी तुझे देखेंगे, तब कहेंगे, यह उसकी पत्नी है, सो वे मुझ को तो मार डालेंगे, पर तुझ को जीती रख लेंगे। 01O 12 13 सो यह कहना, कि मैं उसकी बहिन हूं; जिस से तेरे कारण मेरा कल्याण हो और मेरा प्राण तेरे कारण बचे। 01O 12 14 फिर ऐसा हुआ कि जब अब्राम मि में आया, तब मिस्त्रियों ने उसकी पत्नी को देखा कि यह अति सुन्दर है। 01O 12 15 और फिरौन के हाकिमों ने उसको देखकर फिरौन के साम्हने उसकी प्रशंसा की : सो वह स्त्री फिरौन के घर में रखी गई। 01O 12 16 और उस ने उसके कारण अब्राम की भलाई की; सो उसको भेड़- बकरी, गाय- बैल, दास- दासियां, गदहे- गदहियां, और ऊंट मिले। 01O 12 17 तब यहोवा ने फिरौन और उसके घराने पर, अब्राम की पत्नी सारै के कारण बड़ी बड़ी विपत्तियां डालीं। 01O 12 18 सो फिरौन ने अब्राम को बुलवाकर कहा, तू ने मुझ से क्या किया है ? तू ने मुझे क्यों नहीं बताया कि वह तेरी पत्नी है ? 01O 12 19 तू ने क्यों कहा, कि वह तेरी बहिन है ? मैं ने उसे अपनी ही पत्नी बनाने के लिये लिया; परन्तु अब अपनी पत्नी को लेकर यहां से चला जा। 01O 12 20 और फिरौन ने अपने आदमियों को उसके विषय में आज्ञा दी और उन्हों ने उसको और उसकी पत्नी को, सब सम्पत्ति समेत जो उसका था, विदा कर दिया।। 01O 13 1 तब अब्राम अपनी पत्नी, और अपनी सारी सम्पत्ति लेकर, लूत को भी संग लिये हुए, मि को छोड़कर कनान के दक्खिन देश में आया। 01O 13 2 अब्राम भेड़- बकरी, गाय- बैल, और सोने- रूपे का बड़ा धनी था। 01O 13 3 फिर वह दक्खिन देश से चलकर, बेतेल के पास उसी स्थान को पहुंचा, जहां उसका तम्बू पहले पड़ा था, जो बेतेल और ऐ के बीच में है। 01O 13 4 यह स्थान उस वेदी का है, जिसे उस ने पहले बनाई थी, और वहां अब्राम ने फिर यहोवा से प्रार्थना की। 01O 13 5 और लूत के पास भी, जो अब्राम के साथ चलता था, भेड़- बकरी, गाय- बैल, और तम्बू थे। 01O 13 6 सो उस देश में उन दोनों की समाई न हो सकी कि वे इकट्ठे रहें : क्योंकि उनके पास बहुत धन था इसलिये वे इकट्ठे न रह सके। 01O 13 7 सो अब्राम, और लूत की भेड़- बकरी, और गाय- बैल के चरवाहों के बीच में झगड़ा हुआ : और उस समय कनानी, और परिज्जी लोग, उस देश में रहते थे। 01O 13 8 तब अब्राम लूत से कहने लगा, मेरे और तेरे बीच, और मेरे और तेरे चरवाहों के बीच में झगड़ा न होने पाए; क्योंकि हम लोग भाई बन्धु हैं। 01O 13 9 क्या सारा देश तेरे साम्हने नहीं? सो मुझ से अलग हो, यदि तू बाईं ओर जाए तो मैं दहिनी ओर जाऊंगा; और यदि तू दहिनी ओर जाए तो मैं बाईं ओर जाऊंगा। 01O 13 10 तब लूत ने आंख उठाकर, यरदन नदी के पास वाली सारी तराई को देखा, कि वह सब सिंची हुई है। 01O 13 11 जब तक यहोवा ने सदोम और अमोरा को नाश न किया था, तब तक सोअर के मार्ग तक वह तराई यहोवा की बाटिका, और मि देश के समान उपजाऊ थी। 01O 13 12 अब्राम तो कनान देश में रहा, पर लूत उस तराई के नगरों में रहने लगा; और अपना तम्बू सदोम के निकट खड़ा किया। 01O 13 13 सदोम के लोग यहोवा के लेखे में बड़े दुष्ट और पापी थे। 01O 13 14 जब लूत अब्राम से अलग हो गया तब उसके पश्चात् यहोवा ने अब्राम से कहा, आंख उठाकर जिस स्थान पर तू है वहां से उत्तर- दक्खिन, पूर्व- पश्चिम, चारों ओर दृष्टि कर। 01O 13 15 क्योंकि जितनी भूमि तुझे दिखाई देती है, उस सब को मैं तुझे और तेरे वंश को युग युग के लिये दूंगा। 01O 13 16 और मैं तेरे वंश को पृथ्वी की धूल के किनकों की नाई बहुत करूंगा, यहां तक कि जो कोई पृथ्वी की धूल के किनकों को गिन सकेगा वही तेरा वंश भी गिन सकेगा। 01O 13 17 उठ, इस देश की लम्बाई और चौड़ाई में चल फिर; क्योंकि मैं उसे तुझी को दूंगा। 01O 13 18 इसके पशचात् अब्राम अपना तम्बू उखाड़कर, मम्रे के बांजों के बीच जो हेब्रोन में थे जाकर रहने लगा, और वहां भी यहोवा की एक वेदी बनाई।। 01O 14 1 शिनार के राजा अम्रापेल, और एल्लासार के राजा अर्योक, और एलाम के राजा कदोर्लाओमेर, और गोयीम के राजा तिदाल के दिनों में ऐसा हुआ, 01O 14 2 कि उन्हों ने सदोम के राजा बेरा, और अमोरा के राजा बिर्शा, और अदमा के राजा शिनाब, और सबोयीम के राजा शेमेबेर, और बेला जो सोअर भी कहलाता है, इन राजाओं के विरूद्ध युद्ध किया। 01O 14 3 इन पांचों ने सिद्दीम नाम तराई में, जो खारे ताल के पास है, एका किया। 01O 14 4 बारह वर्ष तक तो ये कदोर्लाओमेर के अधीन रहे; पर तेरहवें वर्ष में उसके विरूद्ध उठे। 01O 14 5 सो चौदहवें वर्ष में कदोर्लाओमेर, और उसके संगी राजा आए, और अशतरोत्कनम में रपाइयों को, और हाम में जूजियों को, और शबेकिर्यातैम में एमियों को, 01O 14 6 और सेईर नाम पहाड़ में होरियों को, मारते मारते उस एल्पारान तक जो जंगल के पास है पहुंच गए। 01O 14 7 वहां से वे लौटकर एन्मिशपात को आए, जो कादेश भी कहलाता है, और अमालेकियों के सारे देश को, और उन एमोरियों को भी जीत लिया, जो हससोन्तामार में रहते थे। 01O 14 8 तब सदोम, अमोरा, अदमा, सबोयीम, और बेला, जो सोअर भी कहलाता है, इनके राजा निकले, और सिद्दीम नाम तराई। में, उनके साथ युद्ध के लिये पांति बान्धी। 01O 14 9 अर्थात् एलाम के राजा कदोर्लाओमेर, गोयीम के राजा तिदाल, शिनार के राजा अम्रापेल, और एल्लासार के राजा अर्योक, इन चारों के विरूद्ध उन पांचों ने पांति बान्धी। 01O 14 10 सिद्दीम नाम तराई में जहां लसार मिट्टी के गड़हे ही गड़हे थे; सदोम और अमोरा के राजा भागते भागते उन में गिर पड़े, और जो बचे वे पहाड़ पर भाग गए। 01O 14 11 तब वे सदोम और अमोरा के सारे धन और भोजन वस्तुओं को लूट लाट कर चले गए। 01O 14 12 और अब्राम का भतीजा लूत, जो सदोम में रहता था; उसको भी धन समेत वे लेकर चले गए। 01O 14 13 तब एक जन जो भागकर बच निकला था उस ने जाकर इब्री अब्राम को समाचार दिया; अब्राम तो एमोरी मम्रे, जो एश्कोल और आनेर का भाई था, उसके बांज वृक्षों के बीच में रहता था; और ये लोग अब्राम के संग वाचा बान्धे हुए थे। 01O 14 14 यह सुनकर कि उसका भतीजा बन्धुआई में गया है, अब्राम ने अपने तीन सौ अठारह शिक्षित, युद्ध कौशल में निपुण दासों को लेकर जो उसके कुटुम्ब में उत्पन्न हुए थे, अस्त्रा शस्त्रा धारण करके दान तक उनका पीछा किया। 01O 14 15 और अपने दासों के अलग अलग दल बान्धकर रात को उन पर चढ़ाई करके उनको मार लिया और होबा तक, जो दमिश्क की उत्तर ओर है, उनका पीछा किया। 01O 14 16 और सारे धन को, और अपने भतीजे लूत, और उसके धन को, और स्त्रियों को, और सब बन्धुओं को, लौटा ले आया। 01O 14 17 जब वह कदोर्लाओमेर और उसके साथी राजाओं को जीतकर लौटा आता था तब सदोम का राजा शावे नाम तराई में, जो राजा की भी कहलाती है, उस से भेंट करने के लिये आया। 01O 14 18 जब शालेम का राजा मेल्कीसेदेक, जो परमप्रधान ईश्वर का याजक था, रोटी और दाखमधु ले आया। 01O 14 19 और उस ने अब्राम को यह आशीर्वाद दिया, कि परमप्रधान ईश्वर की ओर से, जो आकाश और पृथ्वी का अधिकारी है, तू धन्य हो। 01O 14 20 और धन्य है परमप्रधान ईश्वर, जिस ने तेरे द्रोहियों को तेरे वश में कर दिया है। तब अब्राम ने उसको सब का दशमांश दिया। 01O 14 21 जब सदोम के राजा ने अब्राम से कहा, प्राणियों को तो मुझे दे, और धन को अपने पास रख। 01O 14 22 अब्राम ने सदोम के राजा ने कहा, परमप्रधान ईश्वर यहोवा, जो आकाश और पृथ्वी का अधिकारी है, 01O 14 23 उसकी मैं यह शपथ खाता हूं, कि जो कुछ तेरा है उस में से न तो मै एक सूत, और न जूती का बन्धन, न कोई और वस्तु लूंगा; कि तू ऐसा न कहने पाए, कि अब्राम मेरे ही कारण धनी हुआ। 01O 14 24 पर जो कुछ इन जवानों ने खा लिया है और उनका भाग जो मेरे साथ गए थे; अर्थात् आनेर, एश्कोल, और मम्रे मैं नहीं लौटाऊंगा वे तो अपना अपना भाग रख लें।। 01O 15 1 इन बातों के पश्चात् यहोवा को यह वचन दर्शन में अब्राम के पास पहुंचा, कि हे अब्राम, मत डर; तेरी ढाल और तेरा अत्यन्त बड़ा फल मैं हूं। 01O 15 2 अब्राम ने कहा, हे प्रभु यहोवा मैं तो निर्वंश हूं, और मेरे घर का वारिस यह दमिश्की एलीएजेर होगा, सो तू मुझे क्या देगा ? 01O 15 3 और अब्राम ने कहा, मुझे तो तू ने वंश नहीं दिया, और क्या देखता हूं, कि मेरे घर में उत्पन्न हुआ एक जन मेरा वारिस होगा। 01O 15 4 तब यहोवा का यह वचन उसके पास पहुंचा, कि यह तेरा वारिस न होगा, तेरा जो निज पुत्रा होगा, वही तेरा वारिस होगा। 01O 15 5 और उस ने उसको बाहर ले जाके कहा, आकाश की ओर दृष्टि करके तारागण को गिन, क्या तू उनको गिन सकता है ? फिर उस ने उस से कहा, तेरा वंश ऐसा ही होगा। 01O 15 6 उस ने यहोवा पर विश्वास किया; और यहोवा ने इस बात को उसके लेखे में धर्म गिना। 01O 15 7 और उस ने उस से कहा मैं वही यहोवा हूं जो तुझे कस्दियों के ऊर नगर से बाहर ले आया, कि तुझ को इस देश का अधिकार दूं। 01O 15 8 उस ने कहा, हे प्रभु यहोवा मैं कैसे जानूं कि मैं इसका अधिकारी हूंगा ? 01O 15 9 यहोवा ने उस से कहा, मेरे लिये तीन वर्ष की एक कलोर, और तीन वर्ष की एक बकरी, और तीन वर्ष का एक मेंढ़ा, और एक पिण्डुक और कबूतर का एक बच्चा ले। 01O 15 10 और इन सभों को लेकर, उस ने बीच में से दो टुकडे कर दिया, और टुकड़ों को आम्हने- साम्हने रखा : पर चिड़ियाओं को उस ने टुकडे न किया। 01O 15 11 और जब मांसाहारी पक्षी लोथों पर झपटे, तब अब्राम ने उन्हें उड़ा दिया। 01O 15 12 जब सूर्य अस्त होने लगा, तब अब्राम को भारी नींद आई; और देखो, अत्यन्त भय और अन्धकार ने उसे छा लिया। 01O 15 13 तब यहोवा ने अब्राम से कहा, यह निश्चय जान कि तेरे वंश पराए देश में परदेशी होकर रहेंगे, और उसके देश के लोगों के दास हो जाएंगे; और वे उनको चार सौ वर्ष लों दु:ख देंगे; 01O 15 14 फिर जिस देश के वे दास होंगे उसको मैं दण्ड दूंगा : और उसके पश्चात् वे बड़ा धन वहां से लेकर निकल आएंगे। 01O 15 15 तू तो अपने पितरों में कुशल के साथ मिल जाएगा; तुझे पूरे बुढ़ापे में मिट्टी दी जाएगी। 01O 15 16 पर वे चौथी पीढ़ी में यहां फिर आएंगे : क्योंकि अब तक एमोरियों का अधर्म पूरा नहीं हुआ। 01O 15 17 और ऐसा हुआ कि जब सूर्य अस्त हो गया और घोर अन्धकार छा गया, तब एक अंगेठी जिस में से धुआं उठता था और एक जलता हुआ पलीता देख पड़ा जो उन टुकड़ों के बीच में से होकर निकल गया। 01O 15 18 उसी दिन यहोवा ने अब्राम के साथ यह वाचा बान्धी, कि मि के महानद से लेकर परात नाम बड़े नद तक जितना देश है, 01O 15 19 अर्थात्, केनियों, कनिज्जियों, कद्मोनियों, 01O 15 20 हित्तियों, परीज्जियों, रपाइयों, 01O 15 21 एमोरियों, कनानियों, गिर्गाशियों और यबूसियों का देश मैं ने तेरे वंश को दिया है।। 01O 16 1 अब्राम की पत्नी सारै के कोई सन्तान न थी : और उसके हाजिरा नाम की एक मिद्दी लौंडी थी। 01O 16 2 सो सारै ने अब्राम से कहा, देख, यहोवा ने तो मेरी कोख बन्द कर रखी है सो मैं तुझ से बिनती करती हूं कि तू मेरी लौंडी के पास जा : सम्भव है कि मेरा घर उसके द्वारा बस जाए। 01O 16 3 सो सारै की यह बात अब्राम ने मान ली। सो जब अब्राम को कनान देश में रहते दस वर्ष बीत चुके तब उसकी स्त्री सारै ने अपनी मिद्दी लौंडी हाजिरा को लेकर अपने पति अब्राम को दिया, कि वह उसकी पत्नी हो। 01O 16 4 और वह हाजिरा के पास गया, और वह गर्भवती हुई और जब उस ने जाना कि वह गर्भवती है तब वह अपनी स्वामिनी को अपनी दृष्टि में तुच्छ समझने लगी। 01O 16 5 तब सारै ने अब्राम से कहा, जो मुझ पर उपद्रव हुआ सो तेरे ही सिर पर हो : मैं ने तो अपनी लौंडी को तेरी पत्नी कर दिया; पर जब उस ने जाना कि वह गर्भवती है, तब वह मुझे तुच्छ समझने लगी, सो यहोवा मेरे और तेरे बीच में न्याय करे। 01O 16 6 अब्राम ने सारै से कहा, देख तेरी लौंडी तेरे वश में है : जैसा तुझे भला लगे वैसा ही उसके साथ कर। सो सारै उसको दु:ख देने लगी और वह उसके साम्हने से भाग गई। 01O 16 7 तब यहोवा के दूत ने उसके जंगल में शूर के मार्ग पर जल के एक सोते के पास पाकर कहा, 01O 16 8 हे सारै की लौंडी हाजिरा, तू कहां से आती और कहां को जाती है ? उस ने कहा, मैं अपनी स्वामिनी सारै के साम्हने से भग आई हूं। 01O 16 9 यहोवा के दूत ने उस से कहा, अपनी स्वामिनी के पास लौट जा और उसके वश में रह। 01O 16 10 और यहोवा के दूत ने उस से कहा, मैं तेरे वंश को बहुत बढ़ाऊंगा, यहां तक कि बहुतायत के कारण उसकी गणना न हो सकेगी। 01O 16 11 और यहोवा के दूत ने उस से कहा, देख तू गर्भवती है, और पुत्रा जनेगी, सो उसका नाम इश्माएल रखना; क्योंकि यहोवा ने तेरे दु:ख का हाल सुन लिया है। 01O 16 12 और वह मनुष्य बनैले गदहे के समान होगा उसका हाथ सबके विरूद्ध उठेगा, और सब के हाथ उसके विरूद्ध उठेंगे; और वह अपने सब भाई बन्धुओं के मध्य में बसा रहेगा। 01O 16 13 तब उस ने यहोवा का नाम जिस ने उस से बातें की थीं, अत्ताएलरोई रखकर कहा कि, कया मैं यहां भी उसको जाते हुए देखने पाई जो मेरा देखनेहारा है ? 01O 16 14 इस कारण उस कुएं का नाम लहैरोई कुआं पड़ा; वह तो कादेश और बेरेद के बीच में है। 01O 16 15 सो हाजिरा अब्राम के द्वारा एक पुत्रा जनी : और अब्राम ने अपने पुत्रा का नाम, जिसे हाजिरा जनी, इश्माएल रखा। 01O 16 16 जब हाजिरा ने अब्राम के द्वारा इश्माएल को जन्म दिया उस समय अब्राम छियासी वर्ष का था। 01O 17 1 जब अब्राम निन्नानवे वर्ष का हो गया, तब यहोवा ने उसको दर्शन देकर कहा मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर हूं; मेरी उपस्थिति में चल और सिद्ध होता जा। 01O 17 2 और मैं तेरे साथ वाचा बान्धूंगा, और तेरे वंश को अत्यन्त ही बढ़ाऊंगा, और तेरे वंश को अत्यन्त ही बढ़ाऊंगा। 01O 17 3 तब अब्राम मुंह के बल गिरा : और परमेश्वर उस से यों बातें कहता गया, 01O 17 4 देख, मेरी वाचा तेरे साथ बन्धी रहेगी, इसलिये तू जातियों के समूह का मूलपिता हो जाएगा। 01O 17 5 सो अब से तेरा नाम अब्राम न रहेगा परन्तु तेरा नाम इब्राहीम होगा क्योंकि मैं ने तुझे जातियों के समूह का मूलपिता ठहरा दिया है। 01O 17 6 और मैं तुझे अत्यन्त ही फुलाऊं फलाऊंगा, और तुझ को जाति जाति का मूल बना दूंगा, और तेरे वंश में राजा उत्पन्न होंगे। 01O 17 7 और मैं तेरे साथ, और तेरे पश्चात् पीढ़ी पीढ़ी तक तेरे वंश के साथ भी इस आशय की युग युग की वाचा बान्धता हूं, कि मैं तेरा और तेरे पश्चात् तेरे वंश का भी परमेश्वर रहूंगा। 01O 17 8 और मैं तुझ को, और तेरे पश्चात् तेरे वंश को भी, यह सारा कनान देश, जिस में तू परदेशी होकर रहता है, इस रीति दूंगा कि वह युग युग उनकी निज भूमि रहेगी, और मैं उनका परमेश्वर रहूंगा। 01O 17 9 फिर परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा, तू भी मेरे साथ बान्धी हुई वाचा का पालन करना; तू और तेरे पश्चात् तेरा वंश भी अपनी अपनी पीढ़ी में उसका पालन करे। 01O 17 10 मेरे साथ बान्धी हुई वाचा, जो तुझे और तेरे पश्चात् तेरे वंश को पालनी पड़ेगी, सो यह है, कि तुम में से एक एक पुरूष का खतना हो। 01O 17 11 तुम अपनी अपनी खलड़ी का खतना करा लेना; जो वाचा मेरे और तुम्हारे बीच में है, उसका यही चिन्ह होगा। 01O 17 12 पीढ़ी पीढ़ी में केवल तेरे वंश ही के लोग नहीं पर जो तेरे घर में उत्पन्न हों, वा परदेशियों को रूपा देकर मोल लिये जाएं, ऐसे सब पुरूष भी जब आठ दिन के हों जाएं, तब उनका खतना किया जाए। 01O 17 13 जो तेरे घर में उत्पन्न हो, अथवा तेरे रूपे से मोल लिया जाए, उसका खतना अवश्य ही किया जाए; सो मेरी वाचा जिसका चिन्ह तुम्हारी देह में होगा वह युग युग रहेगी। 01O 17 14 जो पुरूष खतनारहित रहे, अर्थात् जिसकी खलड़ी का खतना न हो, वह प्राणी अपने लोगों मे से नाश किया जाए, क्योंकि उस ने मेरे साथ बान्धी हुई वाचा को तोड़ दिया।। 01O 17 15 फिर परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा, तेरी जो पत्नी सारै है, उसको तू अब सारै न कहना, उसका नाम सारा होगा। 01O 17 16 और मैं उसको आशीष दूंगा, और तुझ को उसके द्वारा एक पुत्रा दूंगा; और मैं उसको ऐसी आशीष दूंगा, कि वह जाति जाति की मूलमाता हो जाएगी; और उसके वंश में राज्य राज्य के राजा उत्पन्न होंगे। 01O 17 17 तब इब्राहीम मुंह के बल गिर पड़ा और हंसा, और अपने मन ही मन कहने लगा, क्या सौ वर्ष के पुरूष के भी सन्तान होगा और क्या सारा जो नब्बे वर्ष की है पुत्रा जनेगी ? 01O 17 18 और इब्राहीम ने परमेश्वर से कहा, इश्माएल तेरी दृष्टि में बना रहे! यही बहुत है। 01O 17 19 तब परमेश्वर ने कहा, निश्चय तेरी पत्नी सारा के तुझ से एक पुत्रा उत्पन्न होगा; और तू उसका नाम इसहाक रखना : और मैं उसके साथ ऐसी वाचा बान्धूंगा जो उसके पश्चात् उसके वंश के लिये युग युग की वाचा होगी। 01O 17 20 और इश्माएल के विषय में भी मै ने तेरी सुनी है : मैं उसको भी आशीष दूंगा, और उसे फुलाऊं फलाऊंगा और अत्यन्त ही बढ़ा दूंगा; उस से बारह प्रधान उत्पन्न होंगे, और मैं उस से एक बड़ी जाति बनाऊंगा। 01O 17 21 परन्तु मैं अपनी वाचा इसहाक ही के साथ बान्धूंगा जो सारा से अगले वर्ष के इसी नियुक्त समय में उत्पन्न होगा। 01O 17 22 तब परमेश्वर ने इब्राहीम से बातें करनी बन्द कीं और उसके पास से ऊपर चढ़ गया। 01O 17 23 तब इब्राहीम ने अपने पुत्रा इश्माएल को, उसके घर में जितने उत्पन्न हुए थे, और जितने उसके रूपये से मोल लिये गए थे, निदान उसके घर में जितने पुरूष थे, उन सभों को लेके उसी दिन परमेश्वर के वचन के अनुसार उनकी खलड़ी का खतना किया। 01O 17 24 जब इब्राहीम की खलड़ी का खतना हुआ तब वह निन्नानवे वर्ष का था। 01O 17 25 और जब उसके पुत्रा इश्माएल की खलड़ी का खतना हुआ तब वह तेरह वर्ष का था। 01O 17 26 इब्राहीम और उसके पुत्रा इश्माएल दोनों का खतना एक ही दिन हुआ। 01O 17 27 और उसके घर में जितने पुरूष थे जो घर में उत्पन्न हुए, तथा जो परदेशियों के हाथ से मोल लिये गए थे, सब का खतना उसके साथ ही हुआ।। 01O 18 1 इब्राहीम मम्रे के बांजो के बीच कड़ी धूप के समय तम्बू के द्वार पर बैठा हुआ था, तब यहोवा ने उसे दर्शन दिया : 01O 18 2 और उस ने आंख उठाकर दृष्टि की तो क्या देखा, कि तीन पुरूष उसके साम्हने खड़े हैं : जब उस ने उन्हे देखा तब वह उन से भेंट करने के लिये तम्बू के द्वार से दौड़ा, और भूमि पर गिरकर दण्डवत् की और कहने लगा, 01O 18 3 हे प्रभु, यदि मुझ पर तेरी अनुग्रह की दृष्टि है तो मैं बिनती करता हूं, कि अपने दास के पास से चले न जाना। 01O 18 4 मैं थोड़ा सा जल लाता हूं और आप अपने पांव धोकर इस वृक्ष के तले विश्राम करें। 01O 18 5 फिर मैं एक टुकड़ा रोटी ले आऊं और उस से आप अपने जीव को तृप्त करें; तब उसके पश्चात् आगे बढें : क्योंकि आप अपने दास के पास इसी लिये पधारे हैं। उन्हों ने कहा, जैसा तू कहता है वैसा ही कर। 01O 18 6 सो इब्राहीम ने तम्बू में सारा के पास फुर्ती से जाकर कहा, तीन सआ मैदा फुर्ती से गून्ध, और फुलके बना। 01O 18 7 फिर इब्राहीम गाय बैल के झुण्ड में दौड़ा, और एक कोमल और अच्छा बछड़ा लेकर अपने सेवक को दिया, और उसने फुर्ती से उसको पकाया। 01O 18 8 तब उस ने मक्खन, और दूध, और वह बछड़ा, जो उस ने पकवाया था, लेकर उनके आगे परोस दिया; और आप वृक्ष के तले उनके पास खड़ा रहा, और वे खाने लगे। 01O 18 9 उन्हों ने उस से पूछा, तेरी पत्नी सारा कहां है? उस ने कहा, वह तो तम्बू में है। 01O 18 10 उस ने कहा मैं वसन्त ऋतु में निश्चय तेरे पास फिर आऊंगा; और तब तेरी पत्नी सारा के एक पुत्रा उत्पन्न होगा। और सारा तम्बू के द्वार पर जो इब्राहीम के पीछे था सुन रही थी। 01O 18 11 इब्राहीम और सारा दोनो बहुत बूढ़े थे; और सारा का स्त्रीधर्म बन्द हो गया था 01O 18 12 सो सारा मन में हंस कर कहने लगी, मैं तो बूढ़ी हूं, और मेरा पति भी बूढ़ा है, तो क्या मुझे यह सुख होगा? 01O 18 13 तब यहोवा ने इब्राहीम से कहा, सारा यह कहकर कयों हंसी, कि क्या मेरे, जो ऐसी बुढ़िया हो गई हूं, सचमुच एक पुत्रा उत्पन्न होगा? 01O 18 14 क्या यहोवा के लिये कोई काम कठिन है? नियत समय में, अर्थात् वसन्त ऋतु में, मैं तेरे पास फिर आऊंगा, और सारा के पुत्रा उत्पन्न होगा। 01O 18 15 तब सारा डर के मारे यह कहकर मुकर गई, कि मैं नहीं हंसी। उस ने कहा, नहीं; तू हंसी तो थी।। 01O 18 16 फिर वे पुरूष वहां से चलकर, सदोम की ओर ताकने लगे : और इब्राहीम उन्हें विदा करने के लिये उनके संग संग चला। 01O 18 17 तब यहोवा ने कहा, यह जो मैं करता हूं सो क्या इब्राहीम से छिपा रखूं ? 01O 18 18 इब्राहीम से तो निश्चय एक बड़ी और सामर्थी जाति उपजेगी, और पृथ्वी की सारी जातियां उसके द्वारा आशीष पाएंगी। 01O 18 19 क्योंकि मैं जानता हूं, कि वह अपने पुत्रों और परिवार को जो उसके पीछे रह जाएंगे आज्ञा देगा कि वे यहोवा के मार्ग में अटल बने रहें, और धर्म और न्याय करते रहें, इसलिये कि जो कुछ यहोवा ने इब्राहीम के विषय में कहा है उसे पूरा करे। 01O 18 20 क्योंकि मैं जानता हूं, कि वह अपने पुत्रों और परिवार को जो उसके पीछे रह जाएंगे आज्ञा देगा कि वे यहोवा के मार्ग में अटल बने रहें, और धर्म और न्याय करते रहें, इसलिये कि जो कुछ यहोवा ने इब्राहीम के विषय में कहा है उसे पूरा करे। 01O 18 21 इसलिये मैं उतरकर देखूंगा, कि उसकी जैसी चिल्लाहट मेरे कान तक पहुंची है, उन्हों ने ठीक वैसा ही काम किया है कि नहीं : और न किया हो तो मैं उसे जान लूंगा। 01O 18 22 सो वे पुरूष वहां से मुड़ के सदोम की ओर जाने लगे : पर इब्राहीम यहोवा के आगे खड़ा रह गया। 01O 18 23 तब इब्राहीम उसके समीप जाकर कहने लगा, क्या सचमुच दुष्ट के संग धर्मी को भी नाश करेगा ? 01O 18 24 कदाचित् उस नगर में पचास धर्मी हों : तो क्या तू सचमुच उस स्थान को नाश करेगा और उन पचास धर्मियों के कारण जो उस में हो न छोड़ेगा ? 01O 18 25 इस प्रकार का काम करना तुझ से दूर रहे कि दुष्ट के संग धर्मी को भी मार डाले और धर्मी और दुष्ट दोनों की एक ही दशा हो। 01O 18 26 यहोवा ने कहा यदि मुझे सदोम में पचास धर्मी मिलें, तो उनके कारण उस सारे स्थान को छोडूंगा। 01O 18 27 फिर इब्राहीम ने कहा, हे प्रभु, सुन मैं तो मिट्टी और राख हूं; तौभी मैं ने इतनी ढिठाई की कि तुझ से बातें करूं। 01O 18 28 कदाचित् उन पचास धर्मियों मे पांच घट जाए : तो क्या तू पांच ही के घटने के कारण उस सारे नगर का नाश करेगा ? उस ने कहा, यदि मुझे उस में पैंतालीस भी मिलें, तौभी उसका नाश न करूंगा। 01O 18 29 फिर उस ने उस से यह भी कहा, कदाचित् वहां चालीस मिलें। उस ने कहा, तो मैं चालीस के कारण भी ऐसा ने करूंगा। 01O 18 30 फिर उस ने कहा, हे प्रभु, क्रोध न कर, तो मैं कुछ और कहूं : कदाचित् वहां तीस मिलें। उस ने कहा यदि मुझे वहां तीस भी मिलें, तौभी ऐसा न करूंगा। 01O 18 31 फिर उस ने कहा, हे प्रभु, सुन, मैं ने इतनी ढिठाई तो की है कि तुझ से बातें करूं : कदाचित् उस में बीस मिलें। उस ने कहा, मैं बीस के कारण भी उसका नाश न करूंगा। 01O 18 32 फिर उस ने कहा, हे प्रभु, क्रोध न कर, मैं एक ही बार और कहूंगा : कदाचित् उस में दस मिलें। उस ने कहा, तो मैं दस के कारण भी उसका नाश न करूंगा। 01O 18 33 जब यहोवा इब्राहीम से बातें कर चुका, तब चला गया : और इब्राहीम अपने घर को लौट गया।। 01O 19 1 सांझ को वे दो दूत सदोम के पास आए : और लूत सदोम के फाटक के पास बैठा था : सो उनको देखकर वह उन से भेंट करने के लिये उठा; और मुंह के बल झुककर दण्डवत् कर कहा; 01O 19 2 हे मेरे प्रभुओं, अपने दास के घर में पधारिए, और रात भर विश्राम कीजिए, और अपने पांव धोइये, फिर भोर को उठकर अपने मार्ग पर जाइए। उन्हों ने कहा, नहीं; हम चौक ही में रात बिताएंगे। 01O 19 3 और उस ने उन से बहुत बिनती करके उन्हें मनाया; सो वे उसके साथ चलकर उसके घर में आए; और उस ने उनके लिये जेवनार तैयार की, और बिना खमीर की रोटियां बनाकर उनको खिलाई। 01O 19 4 उनके सो जाने के पहिले, उस सदोम नगर के पुरूषों ने, जवानों से लेकर बूढ़ों तक, वरन चारों ओर के सब लोगों ने आकर उस घर को घेर लिया; 01O 19 5 और लूत को पुकारकर कहने लगे, कि जो पुरूष आज रात को तेरे पास आए हैं वे कहां हैं? उनको हमारे पास बाहर ले आ, कि हम उन से भोग करें। 01O 19 6 तब लूत उनके पास द्वार बाहर गया, और किवाड़ को अपने पीछे बन्द करके कहा, 01O 19 7 हे मेरे भाइयों, ऐसी बुराई न करो। 01O 19 8 सुनो, मेरी दो बेटियां हैं जिन्हों ने अब तक पुरूष का मुंह नहीं देखा, इच्छा हो तो मैं उन्हें तुम्हारे पास बाहर ले आऊं, और तुम को जैसा अच्छा लगे वैसा व्यवहार उन से करो : पर इन पुरूषों से कुछ न करो; क्योंकि ये मेरी छत के तले आए हैं। 01O 19 9 उनहों ने कहा, हट जा। फिर वे कहने लगे, तू एक परदेशी होकर यहां रहने के लिये आया पर अब न्यायी भी बन बैठा है : सो अब हम उन से भी अधिक तेरे साथ बुराई करेंगे। और वे पुरूष लूत को बहुत दबाने लगे, और किवाड़ तोड़ने के लिये निकट आए। 01O 19 10 तब उन पाहुनों ने हाथ बढ़ाकर, लूत को अपने पास घर में खींच लिया, और किवाड़ को बन्द कर दिया। 01O 19 11 और उन्हों ने क्या छोटे, क्या बड़े, सब पुरूषों को जो घर के द्वार पर थे अन्धा कर दिया, सो वे द्वार को टटोलते टटोलते थक गए। 01O 19 12 फिर उन पाहुनों ने लूत से पूछा, यहां तेरे और कौन कौन हैं? दामाद, बेटे, बेटियां, वा नगर में तेरा जो कोई हो, उन सभों को लेकर इस स्थान से निकल जा। 01O 19 13 क्योंकि हम यह स्थान नाश करने पर हैं, इसलिये कि उसकी चिल्लाहट यहोवा के सम्मुख बढ़ गई है; और यहोवा ने हमें इसका सत्यनाश करने के लिये भेज दिया है। 01O 19 14 तब लूत ने निकलकर अपने दामादों को, जिनके साथ उसकी बेटियों की सगाई हो गई थी, समझा के कहा, उठो, इस स्थान से निकल चलो : क्योंकि यहोवा इस नगर को नाश किया चाहता है। पर वह अपने दामादों की दृष्टि में ठट्ठा करनेहारा सा जान पड़ा। 01O 19 15 जब पह फटने लगी, तब दूतों ने लूत से फुर्ती कराई और कहा, कि उठ, अपनी पत्नी और दोनो बेटियों को जो यहां हैं ले जा : नहीं तो तू भी इस नगर के अधर्म में भस्म हो जाएगा। 01O 19 16 पर वह विलम्ब करता रहा, इस से उन पुरूषों ने उसका और उसकी पत्नी, और दोनों बेटियों को हाथ पकड़ लिया; क्योंकि यहोवा की दया उस पर थी : और उसको निकालकर नगर के बाहर कर दिया। 01O 19 17 और ऐसा हुआ कि जब उन्हों ने उनको बाहर निकाला, तब उस ने कहा अपना प्राण लेकर भाग जा; पीछे की और न ताकना, और तराई भर में न ठहरना; उस पहाड़ पर भाग जाना, नहीं तो तू भी भस्म हो जाएगा। 01O 19 18 लूत ने उन से कहा, हे प्रभु, ऐसा न कर : 01O 19 19 देख, तेरे दास पर तेरी अनुग्रह की दृष्टि हुई है, और तू ने इस में बड़ी कृपा दिखाई, कि मेरे प्राण को बचाया है; पर मैं पहाड़ पर भाग नहीं सकता, कहीं ऐसा न हो, कि कोई विपत्ति मुझ पर आ पड़े, और मैं मर जाऊं : 01O 19 20 देख, वह नगर ऐसा निकट है कि मैं वहां भाग सकता हूं, और वह छोटा भी है : मुझे वहीं भाग जाने दे, क्या वह छोटा नहीं हैं? और मेरा प्राण बच जाएगा। 01O 19 21 उस ने उस से कहा, देख, मैं ने इस विषय में भी तेरी बिनती अंगीकार की है, कि जिस नगर की चर्चा तू ने की है, उसको मैं नाश न करूंगा। 01O 19 22 फुर्ती से वहां भाग जा; क्योंकि जब तक तू वहां न पहुचे तब तक मैं कुछ न कर सकूंगा। इसी कारण उस नगर का नाम सोअर पड़ा। 01O 19 23 लूत के सोअर के निकट पहुचते ही सूर्य पृथ्वी पर उदय हुआ। 01O 19 24 तब यहोवा ने अपनी ओर से सदोम और अमोरा पर आकाश से गन्धक और आग बरसाई; 01O 19 25 और उन नगरों को और सम्पूर्ण तराई को, और नगरों को और उस सम्पूर्ण तराई को, और नगरों के सब निवासियों को, भूमि की सारी उपज समेत नाश कर दिया। 01O 19 26 लूत की पत्नी ने जो उसके पीछे थी दृष्टि फेर के पीछे की ओर देखा, और वह नमक का खम्भा बन गई। 01O 19 27 भोर को इब्राहीम उठकर उस स्थान को गया, जहां वह यहोवा के सम्मुख खड़ा था; 01O 19 28 और सदोम, और अमोरा, और उस तराई के सारे देश की ओर आंख उठाकर क्या देखा, कि उस देश में से धधकती हुई भट्टी का सा धुआं उठ रहा है। 01O 19 29 और ऐसा हुआ, कि जब परमेश्वर ने उस तराई के नगरों को, जिन में लूत रहता था, उलट पुलट कर नाश किया, तब उस ने इब्राहीम को याद करके लूत को उस घटना से बचा लिया। 01O 19 30 और लूत ने सोअर को छोड़ दिया, और पहाड़ पर अपनी दोनों बेटियों समेत रहने लगा; क्योंकि वह सोअर में रहने से डरता था : इसलिये वह और उसकी दोनों बेटियां वहां एक गुफा में रहने लगे। 01O 19 31 तब बड़ी बेटी ने छोटी से कहा, हमारा पिता बूढ़ा है, और पृथ्वी भर में कोई ऐसा पुरूष नहीं जो संसार की रीति के अनुसार हमारे पास आए : 01O 19 32 सो आ, हम अपने पिता को दाखमधु पिलाकर, उसके साथ सोएं, जिस से कि हम अपने पिता के वंश को बचाए रखें। 01O 19 33 सो उन्हों ने उसी दिन रात के समय अपने पिता को दाखमधु पिलाया, तब बड़ी बेटी जाकर अपने पिता के पास लेट गई; पर उस ने न जाना, कि वह कब लेटी, और कब उठ गई। 01O 19 34 और ऐसा हुआ कि दूसरे दिन बड़ी ने छोटी से कहा, देख, कल रात को मैं अपने पिता के साथ सोई : सो आज भी रात को हम उसको दाखमधु पिलाएं; तब तू जाकर उसके साथ सोना कि हम अपने पिता के द्वारा वंश उत्पन्न करें। 01O 19 35 सो उन्हों ने उस दिन भी रात के समय अपने पिता को दाखमधु पिलाया : और छोटी बेटी जाकर उसके पास लौट गई : पर उसको उसके भी सोने और उठने के समय का ज्ञान न था। 01O 19 36 इस प्रकार से लूत की दोनो बेटियां अपने पिता से गर्भवती हुई। 01O 19 37 और बड़ी एक पुत्रा जनी, और उसका नाम मोआब रखा : वह मोआब नाम जाति का जो आज तक है मूलपिता हुआ। 01O 19 38 और छोटी भी एक पुत्रा जनी, और उसका नाम बेनम्मी रखा; वह अम्मोन् वंशियों का जो आज तक हैं मूलपिता हुआ।। 01O 20 1 फिर इब्राहीम वहां से कूच कर दक्खिन देश में आकर कादेश और शूर के बीच में ठहरा, और गरार में रहने लगा। 01O 20 2 और इब्राहीम अपनी पत्नी सारा के विषय में कहने लगा, कि वह मेरी बहिन है : सो गरार के राजा अबीमेलेक ने दूत भेजकर सारा को बुलवा लिया। 01O 20 3 रात को परमेश्वर ने स्वप्न में अबीमेलेक के पास आकर कहा, सुन, जिस स्त्री को तू ने रख लिया है, उसके कारण तू मर जाएगा, क्योंकि वह सुहागिन है। 01O 20 4 परन्तु अबीमेलेक उसके पास न गया था : सो उस ने कहा, हे प्रभु, क्या तू निर्दोष जाति का भी घात करेगा ? 01O 20 5 क्या उसी ने स्वयं मुझ से नहीं कहा, कि वह मेरी बहिन है ? और उस स्त्री ने भी आप कहा, कि वह मेरा भाई है : मैं ने तो अपने मन की खराई और अपने व्यवहार की सच्चाई से यह काम किया। 01O 20 6 परमेश्वर ने उस से स्वप्न में कहा, हां, मैं भी जानता हूं कि अपने मन की खराई से तू ने यह काम किया है और मैं ने तुझे रोक भी रखा कि तू मेरे विरूद्ध पाप न करे : इसी कारण मैं ने तुझ को उसे छूने नहीं दिया। 01O 20 7 सो अब उस पुरूष की पत्नी को उसे फेर दे; क्योंकि वह नबी है, और तेरे लिये प्रार्थना करेगा, और तू जीता रहेगा : पर यदि तू उसको न फेर दे तो जान रख, कि तू, और तेरे जितने लोग हैं, सब निश्चय मर जाएंगे। 01O 20 8 बिहान को अबीमेलेक ने तड़के उठकर अपने सब कर्मचारियों को बुलवाकर ये सब बातें सुनाई : और वे लोग बहुत डर गए। 01O 20 9 तब अबीमेलेक ने इब्राहीम को बुलवाकर कहा, तू ने हम से यह क्या किया है ? और मैं ने तेरा क्या बिगाड़ा था, कि तू ने मेरे और मेरे राज्य के ऊपर ऐसा बड़ा पाप डाल दिया है ? तू ने मुझ से वह काम किया है जो उचित न था। 01O 20 10 फिर अबीमेलेक ने इब्राहीम से पूछा, तू ने क्या समझकर ऐसा काम किया ? 01O 20 11 इब्राहीम ने कहा, मैं ने यह सोचा था, कि इस स्थान में परमेश्वर का कुछ भी भय न होगा; सो ये लोग मेरी पत्नी के कारण मेरा घात करेंगे। 01O 20 12 और फिर भी सचमुच वह मेरी बहिन है, वह मेरे पिता की बेटी तो है पर मेरी माता की बेटी नहीं; फिर वह मेरी पत्नी हो गई। 01O 20 13 और ऐसा हुआ कि जब परमेश्वर ने मुझे अपने पिता का घर छोड़कर निकलने की आज्ञा दी, तब मैं ने उस से कहा, इतनी कृपा तुझे मुझ पर करनी होगी : कि हम दोनों जहां जहां जाएं वहां वहां तू मेरे विषय में कहना, कि यह मेरा भाई है। 01O 20 14 तब अबीमेलेक ने भेड़- बकरी, गाय- बैल, और दास- दासियां लेकर इब्राहीम को दीं, और उसकी पत्नी सारा को भी उसे फेर दिया। 01O 20 15 और अबीमेलेक ने कहा, देख, मेरा देश तेरे साम्हने है; जहां तुझे भावे वहां रह। 01O 20 16 और सारा से उस ने कहा, देख, मैं ने तेरे भाई को रूपे के एक हजार टुकड़े दिए हैं : देख, तेरे सारे संगियों के साम्हने वही तेरी आंखों का पर्दा बनेगा, और सभों के साम्हने तू ठीक होगी। 01O 20 17 तब इब्राहीम ने यहोवा से प्रार्थना की, और यहोवा ने अबीमेलेक, और उसकी पत्नी, और दासियों को चंगा किया और वे जनने लगीं। 01O 20 18 क्योंकि यहोवा ने इब्राहीम की पत्नी सारा के कारण अबीमेलेक के घर की सब स्त्रियों की कोखों को पूरी रीति से बन्द कर दिया था।। 01O 21 1 सो यहोवा ने जैसा कहा था वैसा ही सारा की सुधि लेके उसके साथ अपने वचन के अनुसार किया। 01O 21 2 सो सारा को इब्राहीम से गर्भवती होकर उसके बुढ़ापे में उसी नियुक्त समय पर जो परमेश्वर ने उस से ठहराया था एक पुत्रा उत्पन्न हुआ। 01O 21 3 और इब्राहीम ने अपने पुत्रा का नाम जो सारा से उत्पन्न हुआ था इसहाक रखा। 01O 21 4 और जब उसका पुत्रा इसहाक आठ दिन का हुआ, तब उस ने परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार उसक खतना किया। 01O 21 5 और जब इब्राहीम का पुत्रा इसहाक उत्पन्न हुआ तब वह एक सौ वर्ष का था। 01O 21 6 और सारा ने कहा, परमेश्वर ने मुझे प्रफुल्लित कर दिया है; इसलिये सब सुननेवाले भी मेरे साथ प्रफुल्लित होंगे। 01O 21 7 फिर उस ने यह भी कहा, कि क्या कोई कभी इब्राहीम से कह सकता था, कि सारा लड़कों को दूध पिलाएगी ? पर देखो, मुझ से उसके बुढ़ापे में एक पुत्रा उत्पन्न हुआ। 01O 21 8 और वह लड़का बढ़ा और उसका दूध छुड़ाया गया : और इसहाक के दूध छुड़ाने के दिन इब्राहीम ने बड़ी जेवनार की। 01O 21 9 तब सारा को मिद्दी हाजिरा का पुत्रा, जो इब्राहीम से उत्पन्न हुआ था, हंसी करता हुआ देख पड़ा। 01O 21 10 सो इस कारण उस ने इब्राहीम से कहा, इस दासी को पुत्रा सहित बरबस निकाल दे : क्योंकि इस दासी का पुत्रा मेरे पुत्रा इसहाक के साथ भागी न होगा। 01O 21 11 यह बात इब्राहीम को अपने पुत्रा के कारण बुरी लगी। 01O 21 12 तब परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा, उस लड़के और अपनी दासी के कारण तुझे बुरा न लगे; जो बात सारा तुझ से कहे, उसे मान, क्योंकि जो तेरा वंश कहलाएगा सो इसहाक ही से चलेगा। 01O 21 13 दासी के पुत्रा से भी मैं एक जाति उत्पन्न करूंगा इसलिये कि वह तेरा वंश है। 01O 21 14 सो इब्राहीम ने बिहान को तड़के उठकर रोटी और पानी से भरी चमड़े की थैली भी हाजिरा को दी, और उसके कन्धे पर रखी, और उसके लड़के को भी उसे देकर उसको विदा किया : सो वह चली गई, और बेर्शेबा के जंगल में भ्रमण करने लगी। 01O 21 15 जब थैली का जल चुक गया, तब उस ने लड़के को एक झाड़ी के नीचे छोड़ दिया। 01O 21 16 और आप उस से तीर भर के टप्पे पर दूर जाकर उसके साम्हने यह सोचकर बैठ गई, कि मुझ को लड़के की मृत्यु देखनी न पड़े। तब वह उसके साम्हने बैठी हुई चिल्ला चिल्ला के रोने लगी। 01O 21 17 और परमेश्वर ने उस लड़के की सुनी; और उसके दूत ने स्वर्ग से हाजिरा को पुकार के कहा, हे हाजिरा तुझे क्या हुआ ? मत डर; क्योंकि जहां तेरा लड़का है वहां से उसकी आवाज परमेश्वर को सुन पड़ी है। 01O 21 18 उठ, अपने लड़के को उठा और अपने हाथ से सम्भाल क्योंकि मैं उसके द्वारा एक बड़ी जाति बनाऊंगा। 01O 21 19 परमेश्वर ने उसकी आंखे खोल दी, और उसको एक कुंआ दिखाई पड़ा; सो उस ने जाकर थैली को जल से भरकर लड़के को पिलाया। 01O 21 20 और परमेश्वर उस लड़के के साथ रहा; और जब वह बड़ा हुआ, तब जंगल में रहते रहते धनुर्धारी बन गया। 01O 21 21 वह तो पारान नाम जंगल में रहा करता था : और उसकी माता ने उसके लिये मि देश से एक स्त्री मंगवाई।। 01O 21 22 उन दिनों में ऐसा हुआ कि अबीमेलेक अपने सेनापति पीकोल को संग लेकर इब्राहीम से कहने लगा, जो कुछ तू करता है उस में परमेश्वर तेरे संग रहता है : 01O 21 23 सो अब मुझ से यहां इस विषय में परमेश्वर की किरिया खा, कि तू न तो मुझ से छल करेगा, और न कभी मेरे वंश से करेगा, परन्तु जैसी करूणा मैं ने तुझ पर की है, वैसी ही तू मुझ पर और इस देश पर भी जिस में तू रहता है करेगा 01O 21 24 इब्राहीम ने कहा, मैं किरिया खाऊंगा। 01O 21 25 और इब्राहीम ने अबीमेलेक को एक कुएं के विषय में, जो अबीमेलेक के दासों ने बरीयाई से ले लिया था, उलाहना दिया। 01O 21 26 तब अबीमेलेक ने कहा, मै नहीं जानता कि किस ने यह काम किया : और तू ने भी मुझे नहीं बताया, और न मै ने आज से पहिले इसके विषय में कुछ सुना। 01O 21 27 तक इब्राहीम ने भेड़- बकरी, और गाय- बैल लेकर अबीमेलेक को दिए; और उन दोनों ने आपस में वाचा बान्धी। 01O 21 28 और इब्राहीम ने भेड़ की सात बच्ची अलग कर रखीं। 01O 21 29 तब अबीमेलेक ने इब्राहीम से पूछा, इन सात बच्चियों का, जो तू ने अलग कर रखी हैं, क्या प्रयोजन है ? 01O 21 30 उस ने कहा, तू इन सात बच्चियों को इस बात की साक्षी जानकर मेरे हाथ से ले, कि मै ने कुंआ खोदा है। 01O 21 31 उन दोनों ने जो उस स्थान में आपस में किरिया खाई, इसी कारण उसका नाम बेर्शेबा पड़ा। 01O 21 32 जब उन्हों ने बेर्शेबा में परस्पर वाचा बान्धी, तब अबीमेलेक, और उसका सेनापति पीकोल उठकर पलिश्तियों के देश में लौट गए। 01O 21 33 और इब्राहीम ने बेर्शेबा में झाऊ का एक वृक्ष लगाया, और वहां यहोवा, जो सनातन ईश्वर है, उस से प्रार्थना की। 01O 21 34 और इब्राहीम पलिश्तियों के देश में बहुत दिनों तक परदेशी होकर रहा।। 01O 22 1 इन बातों के पश्चात् ऐसा हुआ कि परमेश्वर ने, इब्राहीम से यह कहकर उसकी परीक्षा की, कि हे इब्राहीम : उस ने कहा, देख, मैं यहां हूं। 01O 22 2 उस ने कहा, अपने पुत्रा को अर्थात् अपने एकलौते पुत्रा इसहाक को, जिस से तू प्रेम रखता है, संग लेकर मोरिरयाह देश में चला जा, और वहां उसको एक पहाड़ के ऊपर जो मैं तुझे बताऊंगा होमबलि करके चढ़ा। 01O 22 3 सो इब्राहीम बिहान को तड़के उठा और अपने गदहे पर काठी कसकर अपने दो सेवक, और अपने पुत्रा इसहाक को संग लिया, और होमबलि के लिये लकड़ी चीर ली; तब कूच करके उस स्थान की ओर चला, जिसकी चर्चा परमेश्वर ने उस से की थी। 01O 22 4 तीसरे दिन इब्राहीम ने आंखें उठाकर उस स्थान को दूर से देखा। 01O 22 5 और उस ने अपने सेवकों से कहा गदहे के पास यहीं ठहरे रहो; यह लड़का और मैं वहां तक जाकर, और दण्डवत् करके, फिर तुम्हारे पास लौट आऊंगा। 01O 22 6 सो इब्राहीम ने होमबलि की लकड़ी ले अपने पुत्रा इसहाक पर लादी, और आग और छुरी को अपने हाथ में लिया; और वे दोनों एक साथ चल पड़े। 01O 22 7 इसहाक ने अपने पिता इब्राहीम से कहा, हे मेरे पिता; उस ने कहा, हे मेरे पुत्रा, क्या बात है उस ने कहा, देख, आग और लकड़ी तो हैं; पर होमबलि के लिये भेड़ कहां है ? 01O 22 8 इब्राहीम ने कहा, हे मेरे पुत्रा, परमेश्वर होमबलि की भेड़ का उपाय आप ही करेगा। 01O 22 9 सो वे दोनों संग संग आगे चलते गए। और वे उस स्थान को जिसे परमेश्वर ने उसको बताया था पहुंचे; तब इब्राहीम ने वहां वेदी बनाकर लकड़ी को चुन चुनकर रखा, और अपने पुत्रा इसहाक को बान्ध के वेदी पर की लकड़ी के ऊपर रख दिया। 01O 22 10 और इब्राहीम ने हाथ बढ़ाकर छुरी को ले लिया कि अपने पुत्रा को बलि करे। 01O 22 11 तब यहोवा के दूत ने स्वर्ग से उसको पुकार के कहा, हे इब्राहीम, हे इब्राहीम; उस ने कहा, देख, मैं यहां हूं। 01O 22 12 उस ने कहा, उस लड़के पर हाथ मत बढ़ा, और न उस से कुछ कर : क्योंकि तू ने जो मुझ से अपने पुत्रा, वरन अपने एकलौते पुत्रा को भी, नहीं रख छोड़ा; इस से मै अब जान गया कि तू परमेश्वर का भय मानता है। 01O 22 13 तब इब्राहीम ने आंखे उठाई, और क्या देखा, कि उसके पीछे एक मेढ़ा अपने सींगो से एक झाड़ी में बझा हुआ है : सो इब्राहीम ने जाके उस मेंढ़े को लिया, और अपने पुत्रा की सन्ती होमबलि करके चढ़ाया। 01O 22 14 और इब्राहीम ने उस स्थान का नाम यहोवा यिरे रखा : इसके अनुसार आज तक भी कहा जाता है, कि यहोवा के पहाड़ पर उपाय किया जाएगा। 01O 22 15 फिर यहोवा के दूत ने दूसरी बार स्वर्ग से इब्राहीम को पुकार के कहा, 01O 22 16 यहोवा की यह वाणी है, कि मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूं, कि तू ने जो यह काम किया है कि अपने पुत्रा, वरन अपने एकलौते पुत्रा को भी, नहीं रख छोड़ा; 01O 22 17 इस कारण मैं निश्चय तुझे आशीष दूंगा; और निश्चय तेरे वंश को आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बालू के किनकों के समान अनगिनित करूंगा, और तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों का अधिकारी होगा : 01O 22 18 और पृथ्वी की सारी जातियां अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी : क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है। 01O 22 19 तब इब्राहीम अपने सेवकों के पास लौट आया, और वे सब बेर्शेबा को संग संग गए; और इब्राहीम बेर्शेबा में रहता रहा।। 01O 22 20 इन बातों के पश्चात् ऐसा हुआ कि इब्राहीम को यह सन्देश मिला, कि मिल्का के तेरे भाई नाहोर से सन्तान उत्पन्न हुए हैं। 01O 22 21 मिल्का के पुत्रा तो ये हुए, अर्थात् उसका जेठा ऊस, और ऊस का भाई बूज, और कमूएल, जो अराम का पिता हुआ। 01O 22 22 फिर केसेद, हज़ो, पिल्दाश, यिद्लाप, और बतूएल। 01O 22 23 इन आठों को मिल्का इब्राहीम के भाई नाहोर के जन्माए जनी। और बतूएल ने रिबका को उत्पन्न किया। 01O 22 24 फिर नाहोर के रूमा नाम एक रखेली भी थी; जिस से तेबह, गहम, तहश, और माका, उत्पन्न हुए।। 01O 23 1 सारा तो एक सौ सत्ताईस बरस की अवस्था को पहुंची; और जब सारा की इतनी अवस्था हुई; 01O 23 2 तब वह किर्यतर्बा में मर गई। यह तो कनान देश में है, और हेब्रोन भी कहलाता है : सो इब्राहीम सारा के लिये रोने पीटने को वंहा गया। 01O 23 3 तब इब्राहीम अपने मुर्दे के पास से उठकर हित्तियों से कहने लगा, 01O 23 4 मैं तुम्हारे बीच पाहुन और परदेशी हूं : मुझे अपने मध्य में कब्रिस्तान के लिये ऐसी भूमि दो जो मेरी निज की हो जाए, कि मैं अपने मुर्दे को गाड़के अपने आंख की ओट करूं। 01O 23 5 हित्तियों ने इब्राहीम से कहा, 01O 23 6 हे हमारे प्रभु, हमारी सुन : तू तो हमारे बीच में बड़ा प्रधान है : सो हमारी कब्रों में से जिसको तू चाहे उस में अपने मुर्दे को गाड़; हम में से कोई तुझे अपनी कब्र के लेने से न रोकेगा, कि तू अपने मुर्दे को उस में गाड़ने न पाए। 01O 23 7 तब इब्राहीम उठकर खड़ा हुआ, और हित्तियों के सम्मुख, जो उस देश के निवासी थे, दण्डवत करके कहने लगा, 01O 23 8 यदि तुम्हारी यह इच्छा हो कि मैं अपने मुर्दे को गाड़के अपनी आंख की ओट करूं, तो मेरी प्रार्थना है, कि सोहर के पुत्रा एप्रोन से मेरे लिये बिनती करो, 01O 23 9 कि वह अपनी मकपेलावाली गुफा, जो उसकी भूमि की सीमा पर है; उसका पूरा दाम लेकर मुझे दे दे, कि वह तुम्हारे बीच कब्रिस्तान के लिये मेरी निज भूमि हो जाए। 01O 23 10 और एप्रोन तो हित्तियों के बीच वहां बैठा हुआ था। सो जितने हित्ती उसके नगर के फाटक से होकर भीतर जाते थे, उन सभों के साम्हने उस ने इब्राहीम को उत्तर दिया, 01O 23 11 कि हे मेरे प्रभु, ऐसा नहीं, मेरी सुन; वह भूमि मैं तुझे देता हूं, और उस में जो गुफा है, वह भी मैं तुझे देता हूं; अपने जातिभाइयों के सम्मुख मैं उसे तुझ को दिए देता हूं: सो अपने मुर्दे को कब्र में रख। 01O 23 12 तब इब्राहीम ने उस देश के निवासियों के साम्हने दण्डवत की। 01O 23 13 और उनके सुनते हुए एप्रोन से कहा, यदि तू ऐसा चाहे, तो मेरी सुन : उस भूमि का जो दाम हो, वह मैं देना चाहता हूं; उसे मुझ से ले ले, तब मैं अपने मुर्दे को वहां गाडूंगा। 01O 23 14 एप्रोन ने इब्राहीम को यह उत्तर दिया, 01O 23 15 कि, हे मेरे प्रभु, मेरी बात सुन; एक भूमि का दाम तो चार सौ शेकेल रूपा है; पर मेरे और तेरे बीच में यह क्या है ? अपने मुर्दे को कब्र मे रख। 01O 23 16 इब्राहीम न एप्रोन की मानकर उसको उतना रूपा तौल दिया, जितना उस ने हित्तियों के सुनते हुए कहा था, अर्थात् चार सौ ऐसे शेकेल जो व्यापारियों में चलते थे। 01O 23 17 सो एप्रोन की भूमि, जो मम्रे के सम्मुख की मकपेला में थी, वह गुफा समेत, और उन सब वृक्षों समेत भी जो उस में और उसके चारों और सीमा पर थे, 01O 23 18 जितने हित्ती उसके नगर के फाटक से होकर भीतर जाते थे, उन सभों के साम्हने इब्राहीम के अधिकार में पक्की रीति से आ गई। 01O 23 19 इसके पश्चात् इब्राहीम ने अपनी पत्नी सारा को, उस मकपेला वाली भूमि की गुफा में जो मम्रे के अर्थात् हेब्रोन के साम्हने कनान देश में है, मिट्टी दी। 01O 23 20 और वह भूमि गुफा समेत, जो उस में थी, हित्तियों की ओर से कब्रिस्तान के लिये इब्राहीम के अधिकार में पक्की रीति से आ गई। 01O 24 1 इब्राहीम वृद्ध था और उसकी आयु बहुत भी और यहोवा ने सब बातों में उसको आशीष दी थी। 01O 24 2 सो इब्राहीम ने अपने उस दास से, जो उसके घर में पुरनिया और उसकी सारी सम्पत्ति पर अधिकारी था, कहा, अपना हाथ मेरी जांघ के नीचे रख : 01O 24 3 और मुझ से आकाश और पृथ्वी के परमेश्वर यहोवा की इस विषय में शपथ खा, कि तू मेरे पुत्रा के लिये कनानियों की लड़कियों मे से जिनके बीच मैं रहता हूं, किसी को न ले आएगा। 01O 24 4 परन्तु तू मेरे देश में मेरे ही कुटुम्बियों के पास जाकर मेरे पुत्रा इसहाक के लिये एक पत्नी ले आएगा। 01O 24 5 दास ने उस से कहा, कदाचित् वह स्त्री इस देश में मेरे साथ आना न चाहे; तो क्या मुझे तेरे पुत्रा को उस देश में जहां से तू आया है ले जाना पड़ेगा ? 01O 24 6 इब्राहीम ने उस से कहा, चौकस रह, मेरे पुत्रा को वहां कभी न ले जाना। 01O 24 7 स्वर्ग का परमेश्वर यहोवा, जिस ने मुझे मेरे पिता के घर से और मेरी जन्मभूमि से ले आकर मुझ से शपथ खाकर कहा, कि मैं यह देश तेरे वंश को दूंगा; वही अपना दूत तेरे आगे आगे भेजेगा, कि तू मेरे पुत्रा के लिये वहां से एक स्त्री ले आए। 01O 24 8 और यदि वह स्त्री तेरे साथ आना न चाहे तब तो तू मेरी इस शपथ से छूट जाएगा : पर मेरे पुत्रा को वहां न ले जाना। 01O 24 9 तब उस दास ने अपने स्वामी इब्राहीम की जांघ के नीचे अपना हाथ रखकर उस से इसी विषय की शपथ खाई। 01O 24 10 तब वह दास अपने स्वामी के ऊंटो में से दस ऊंट छंाटकर उसके सब उत्तम उत्तम पदार्थों में से कुछ कुछ लेकर चला : और मसोपोटामिया में नाहोर के नगर के पास पहुंचा। 01O 24 11 और उस ने ऊंटों को नगर के बाहर एक कुएं के पास बैठाया, वह संध्या का समय था, जिस समय स्त्रियां जल भरने के लिये निकलती है। 01O 24 12 सो वह कहने लगा, हे मेरे स्वामी इब्राहीम के परमेश्वर, यहोवा, आज मेरे कार्य को सिद्ध कर, और मेरे स्वामी इब्राहीम पर करूणा कर। 01O 24 13 देख मैं जल के इस सोते के पास खड़ा हूं; और नगरवासियों की बेटियों जल भरने के लिये निकली आती हैं : 01O 24 14 सो ऐसा होने दे, कि जिस कन्या से मैं कहूं, कि अपना घड़ा मेरी ओर झुका, कि मैं पीऊं; और वह कहे, कि ले, पी ले, पीछे मैं तेरे ऊंटो को भी पीलाऊंगी : सो वही हो जिसे तू ने अपने दास इसहाक के लिये ठहराया हो; इसी रीति मैं जान लूंगा कि तू ने मेरे स्वामी पर करूणा की है। 01O 24 15 और ऐसा हुआ कि जब वह कह ही रहा था कि रिबका, जो इब्राहीम के भाई नाहोर के जन्माये मिल्का के पुत्रा, बतूएल की बेटी थी, वह कन्धे पर घड़ा लिये हुए आई। 01O 24 16 वह अति सुन्दर, और कुमारी थी, और किसी पुरूष का मुंह न देखा था : वह कुएं में सोते के पास उतर गई, और अपना घड़ा भर के फिर ऊपर आई। 01O 24 17 तब वह दास उस से भेंट करने को दौड़ा, और कहा, अपने घड़े मे से थोड़ा पानी मुझे पिला दे। 01O 24 18 उस ने कहा, हे मेरे प्रभु, ले, पी ले: और उस ने फुर्ती से घड़ा उतारकर हाथ में लिये लिये उसको पिला दिया। 01O 24 19 जब वह उसको पिला चुकी, तक कहा, मैं तेरे ऊंटों के लिये भी तब तक पानी भर भर लाऊंगी, जब तक वे पी न चुकें। 01O 24 20 तब वह फुर्ती से अपने घड़े का जल हौदे में उण्डेलकर फिर कुएं पर भरने को दौड़ गई; और उसके सब ऊंटों के लिये पानी भर दिया। 01O 24 21 और वह पुरूष उसकी ओर चुपचाप अचम्भे के साथ ताकता हुआ यह सोचता था, कि यहोवा ने मेरी यात्रा को सुफल किया है कि नहीं। 01O 24 22 जब ऊंट पी चुके, तब उस पुरूष ने आध तोले सोने का एक नत्थ निकालकर उसको दिया, और दस तोले सोने के कंगन उसके हाथों में पहिना दिए; 01O 24 23 और पूछा, तू किस की बेटी है? यह मुझ को बता दे। क्या तेरे पिता के घर में हमारे टिकने के लिये स्थान है ? 01O 24 24 उस ने उत्तर दिया, मैं तो नाहोर के जन्माए मिल्का के पुत्रा बतूएल की बेटी हूं। 01O 24 25 फिर उस ने उस से कहा, हमारे वहां पुआल और चारा बहुत है, और टिकने के लिये स्थान भी है। 01O 24 26 तब उस पुरूष ने सिर झुकाकर यहोवा को दण्डवत् करके कहा, 01O 24 27 धन्य है मेरे स्वामी इब्राहीम का परमेश्वर यहोवा, कि उस ने अपनी करूणा और सच्चाई को मेरे स्वामी पर से हटा नहीं लिया : यहोवा ने मुझ को ठीक मार्ग पर चलाकर मेरे स्वामी के भाई बन्धुओं के घर पर पहुचा दिया है। 01O 24 28 और उस क्न्या ने दौड़कर अपनी माता के घर में यह सारा वृत्तान्त कह सुनाया। 01O 24 29 तब लाबान जो रिबका का भाई था, सो बाहर कुएं के निकट उस पुरूष के पास दौड़ा गया। 01O 24 30 और ऐसा हुआ कि जब उस ने वह नत्थ और अपनी बहिन रिबका के हाथों में वे कंगन भी देखे, और उसकी यह बात भी सुनी, कि उस पुरूष ने मुझ से ऐसी बातें कहीं; तब वह उस पुरूष के पास गया; और क्या देखा, कि वह सोते के निकट ऊंटों के पास खड़ा है। 01O 24 31 उस ने कहा, हे यहोवा की ओर से धन्य पुरूष भीतर आ : तू क्यों बाहर खड़ा है ? मैं ने घर को, और ऊंटो के लिये भी स्थान तैयार किया है। 01O 24 32 और वह पुरूष घर में गया; और लाबान ने ऊंटों की काठियां खोलकर पुआल और चारा दिया; और उसके, और उसके संगी जनो के पांव धोने को जल दिया। 01O 24 33 तब इब्राहीम के दास के आगे जलपान के लिये कुछ रखा गया : पर उस ने कहा मैं जब तक अपना प्रयोजन न कह दूं, तब तक कुछ न खाऊंगा। लाबान ने कहा, कह दे। 01O 24 34 तक उस ने कहा, मैं तो इब्राहीम का दास हूं। 01O 24 35 और यहोवा ने मेरे स्वामी को बड़ी आशीष दी है; सो वह महान पुरूष हो गया है; और उस ने उसको भेड़- बकरी, गाय- बैल, सोना- रूपा, दास- दासियां, ऊंट और गदहे दिए है। 01O 24 36 और मेरे स्वामी की पत्नी सारा के बुढ़ापे में उस से एक पुत्रा उत्पन्न हुआ है। और उस पुत्रा को इब्राहीम ने अपना सब कुछ दे दिया है। 01O 24 37 और मेरे स्वामी ने मुझे यह शपथ खिलाई, कि मैं उसके पुत्रा के लिये कनानियों की लड़कियों में से जिन के देश में वह रहता है, कोई स्त्री न ले आऊंगा। 01O 24 38 मैं उसके पिता के घर, और कुल के लोगों के पास जाकर उसके पुत्रा के लिये एक स्त्री ले आऊंगा। 01O 24 39 तब मैं ने अपने स्वामी से कहा, कदाचित् वह स्त्री मेरे पीछे न आए। 01O 24 40 तब उस ने मुझ से कहा, यहोवा, जिसके साम्हने मैं चलता आया हूं, वह तेरे संग अपने दूत को भेजकर तेरी यात्रा को सुफल करेगा; सो तू मेरे कुल, और मेरे पिता के घराने में से मेरे पुत्रा के लिये एक स्त्री ले आ सकेगा। 01O 24 41 तू तब ही मेरी इस शपथ से छूटेगा, जब तू मेरे कुल के लोगों के पास पहुंचेगा; अर्थात् यदि वे मुझे कोई स्त्री न दें, तो तू मेरी श्पथ से छूटेगा। 01O 24 42 सो मैं आज उस कुएं के निकट आकर कहने लगा, हे मेरे स्वामी इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा, यदि तू मेरी इस यात्रा को सुफल करता हो : 01O 24 43 तो देख मैं जल के इस कुएं के निकट खड़ा हूं; सो ऐसा हो, कि जो कुमारी जल भरने के लिये निकल आए, और मैं उस से कहूं, अपने घड़े में से मुझे थोड़ा पानी पिला; 01O 24 44 और वह मुझ से कहे, पी ले और मै तेरे ऊंटो के पीने के लिये भी पानी भर दूंगी : वह वही स्त्री हो जिसको तू ने मेरे स्वामी के पुत्रा के लिये ठहराया हो। 01O 24 45 मैं मन ही मन यह कह ही रहा था, कि देख रिबका कन्धे पर घड़ा लिये हुए निकल आई; फिर वह सोते के पास उतरके भरने लगी : और मै ने उस से कहा, मुझे पिला दे। 01O 24 46 और उस ने फुर्ती से अपने घड़े को कन्धे पर से उतारके कहा, ले, पी ले, पीछे मैं तेरे ऊंटों को भी पिलाऊंगी : सो मैं ने पी लिया, और उस ने ऊंटों को भी पिला दिया। 01O 24 47 तब मैं ने उस से पूछा, कि तू किस की बेटी है ? और उस ने कहा, मैं तो नाहोर के जन्माए मिल्का के पुत्रा बतूएल की बेटी हूं : तब मैं ने उसकी नाक में वह नत्थ, और उसके हाथों में वे कंगन पहिना दिए। 01O 24 48 फिर मैं ने सिर झुकाकर यहोवा को दण्डवत् किया, और अपने स्वामी इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा को धन्य कहा, क्योंकि उस ने मुझे ठीक मार्ग से पहुंचाया कि मै अपने स्वामी के पुत्रा के लिये उसकी भतीजी को ले जाऊं। 01O 24 49 सो अब, यदि तू मेरे स्वामी के साथ कृपा और सच्चाई का व्यवहार करना चाहते हो, तो मुझ से कहो : और यदि नहीं चाहते हो, तौभी मुझ से कह दो; ताकि मैं दाहिनी ओर, वा बाईं ओर फिर जाऊं। 01O 24 50 तब लाबान और बतूएल ने उत्तर दिया, यह बात यहोवा की ओर से हुई है : सो हम लोग तुझ से न तो भला कह सकते हैं न बुरा। 01O 24 51 देख, रिबका तेरे साम्हने है, उसको ले जा, और वह यहोवा के वचन के अनुसार, तेरे स्वामी के पुत्रा की पत्नी हो जाए। 01O 24 52 उनका यह वचन सुनकर, इब्राहीम के दास ने भूमि पर गिरके यहोवा को दण्डवत् किया। 01O 24 53 फिर उस दास ने सोने और रूपे के गहने, और वस्त्रा निकालकर रिबका को दिए : और उसके भाई और माता को भी उस ने अनमोल अनमोल वस्तुएं दी। 01O 24 54 तब उस ने अपने संगी जनों समेत भोजन किया, और रात वहीं बिताई : और तड़के उठकर कहा, मुझ को अपने स्वामी के पास जाने के लिये विदा करो। 01O 24 55 रिबका के भाई और माता ने कहा, कन्या को हमारे पास कुछ दिन, अर्थात् कम से कम दस दिन रहने दे; फिर उसके पश्चात् वह चली जाएगी। 01O 24 56 उस ने उन से कहा, यहोवा ने जो मेरी यात्रा को सुफल किया है; सो तुम मुझे मत रोको अब मुझे विदा कर दो, कि मैं अपने स्वामी के पास जाऊं। 01O 24 57 उन्हों ने कहा, हम कन्या को बुलाकर पूछते हैं, और देखेंगे, कि वह क्या कहती है। 01O 24 58 सो उन्हों ने रिबका को बुलाकर उस से पूछा, क्या तू इस मनुष्य के संग जाएगी? उस ने कहा, हां मैं जाऊंगी। 01O 24 59 तब उन्हों ने अपनी बहिन रिबका, और उसकी धाय और इब्राहीम के दास, और उसके साथी सभों को विदा किया। 01O 24 60 और उन्हों ने रिबका को आशीर्वाद देके कहा, हे हमारी बहिन, तू हजारों लाखों की आदिमाता हो, और तेरा वंश अपने बैरियों के नगरों का अधिकारी हो। 01O 24 61 इस पर रिबका अपनी सहेलियों समेत चली; और ऊंट पर चढ़के उस पुरूष के पीछे हो ली : सो वह दास रिबका को साथ लेकर चल दिया। 01O 24 62 इसहाक जो दक्खिन देश में रहता था, सो लहैरोई नाम कुएं से होकर चला आता था। 01O 24 63 और सांझ के समय वह मैदान में ध्यान करने के लिये निकला था : और उस ने आंखे उठाकर क्या देखा, कि ऊंट चले आ रहे हैं। 01O 24 64 और रिबका ने भी आंख उठाकर इसहाक को देखा, और देखते ही ऊंट पर से उतर पड़ी 01O 24 65 तब उस ने दास से पूछा, जो पुरूष मैदान पर हम से मिलने को चला आता है, सो कौन है? दास ने कहा, वह तो मेरा स्वामी है। तब रिबका ने घूंघट लेकर अपने मुंह को ढ़ाप लिया। 01O 24 66 और दास ने इसहाक से अपना सारा वृत्तान्त वर्णन किया। 01O 24 67 तब इसहाक रिबका को अपनी माता सारा के तम्बू में ले आया, और उसको ब्याहकर उस से प्रेम किया : और इसहाक को माता की मृत्यु के पश्चात् शान्ति हुई।। 01O 25 1 तब इब्राहीम ने एक और पत्नी ब्याह ली जिसका नाम कतूरा था। 01O 25 2 और उस से जिम्रान, योक्षान, मदना, मिद्यान, यिशबाक, और शूह उत्पन्न हुए। 01O 25 3 और योक्षान से शबा और ददान उत्पन्न हुए। और ददान के वंश में अश्शूरी, लतूशी, और लुम्मी लोग हुए। 01O 25 4 और मिद्यान के पुत्रा एपा, एपेर, हनोक, अबीदा, और एल्दा हुए, से सब कतूरा के सन्तान हुए। 01O 25 5 इसहाक को तो इब्राहीम ने अपना सब कुछ दिया। 01O 25 6 पर अपनी रखेलियों के पुत्रों को, कुछ कुछ देकर अपने जीते जी अपने पुत्रा इसहाक के पास से पूरब देश में भेज दिया। 01O 25 7 इब्राहीम की सारी अवस्था एक सौ पचहत्तर वर्ष की हुई। 01O 25 8 और इब्राहीम का दीर्घायु होने के कारण अर्थात् पूरे बुढ़ापे की अवस्था में प्राण छूट गया। 01O 25 9 और उसके पुत्रा इसहाक और इश्माएल ने, हित्ती सोहर के पुत्रा एप्रोन की मम्रे के सम्मुखवाली भूमि में, जो मकपेला की गुफा थी, उस में उसको मिट्टी दी गई। 01O 25 10 अर्थात् जो भूमि इब्राहीम ने हित्तियों से मोल ली थी : उसी में इब्राहीम, और उस की पत्नी सारा, दोनों को मिट्टी दी गई। 01O 25 11 इब्राहीम के मरने के पश्चात् परमेश्वर ने उसके पुत्रा इसहाक को जो लहैरोई नाम कुएं के पास रहता था आशीष दी।। 01O 25 12 इब्राहीम का पुत्रा इश्माएल जो सारा की लौंडी हाजिरा मिद्दी से उत्पन्न हुआ था, उसकी यह वंशावली है। 01O 25 13 इश्माएल के पुत्रों के नाम और वंशावली यह है : अर्थात् इश्माएल का जेठा पुत्रा नबायोत, फिर केदार, अद्बेल, मिबसाम, 01O 25 14 मिश्मा, दूमा, मस्सा, 01O 25 15 हदर, तेमा, यतूर, नपीश, और केदमा। 01O 25 16 इश्माएल के पुत्रा ये ही हुए, और इन्हीं के नामों के अनुसार इनके गांवों, और छावनियों के नाम भी पड़े; और ये ही बारह अपने अपने कुल के प्रधान हुए। 01O 25 17 इश्माएल की सारी अवस्था एक सौ सैंतीस वर्ष की हुई : तब उसके प्राण छूट गए, और वह अपने लोगों में जा मिला। 01O 25 18 और उसके वंश हवीला से शूर तक, जो मि के सम्मुख अश्शूर् के मार्ग में है, बस गए। और उनका भाग उनके सब भाईबन्धुओं के सम्मुख पड़ा।। 01O 25 19 इब्राहीम के पुत्रा इसहाक की वंशावली यह है : इब्राहीम से इसहाक उत्पन्न हुआ। 01O 25 20 और इसहाक ने चालीस वर्ष का होकर रिबका को, जो प नराम के वासी, अरामी बतूएल की बेटी, और अरामी लाबान की बहिन भी, ब्याह लिया। 01O 25 21 इसहाक की पत्नी तो बांझ थी, सो उस ने उसके निमित्त यहोवा से बिनती की: और यहोवा ने उसकी बिनती सुनी, सो उसकी पत्नी रिबका गर्भवती हुई। 01O 25 22 और लड़के उसके गर्भ में आपस में लिपटके एक दूसरे को मारने लगे : तब उस ने कहा, मेरी जो ऐसी ही दशा रहेगी तो मैं क्योंकर जीवित रहूंगी? और वह यहोवा की इच्छा पूछने को गई। 01O 25 23 तब यहोवा ने उस से कहा तेरे गर्भ में दो जातियां हैं, और तेरी कोख से निकलते ही दो राज्य के लोग अलग अलग होंगे, और एक राज्य के लोग दूसरे से अधिक सामर्थी होंगे और बड़ा बेटा छोटे के अधीन होगा। 01O 25 24 जब उसके पुत्रा उत्पन्न होने का समय आया, तब क्या प्रगट हुआ, कि उसके गर्भ में जुड़वे बालक है। 01O 25 25 और पहिला जो उत्पन्न हुआ सो लाल निकला, और उसका सारा शरीर कम्बल के समान रोममय था; सो उसका नाम एसाव रखा गया। 01O 25 26 पीछे उसका भाई अपने हाथ से एसाव की एड़ी पकडे हुए उत्पन्न हुआ; और उसका नाम याकूब रखा गया। और जब रिबका ने उनको जन्म दिया तब इसहाक साठ वर्ष का था। 01O 25 27 फिर वे लड़के बढ़ने लगे और एसाव तो वनवासी होकर चतुर शिकार खेलनेवाला हो गया, पर याकूब सीधा मनुष्य था, और तम्बुओं में रहा करता था। 01O 25 28 और इसहाक तो एसाव के अहेर का मांस खाया करता था, इसलिये वह उस से प्रीति रखता था : पर रिबका याकूब से प्रीति रखती थी।। 01O 25 29 याकूब भोजन के लिये कुछ दाल पका रहा था : और एसाव मैदान से थका हुआ आया। 01O 25 30 तब एसाव ने याकूब से कहा, वह जो लाल वस्तु है, उसी लाल वस्तु में से मुझे कुछ खिला, क्योंकि मैं थका हूं। इसी कारण उसका नाम एदोम भी पड़ा। 01O 25 31 याकूब ने कहा, अपना पहिलौठे का अधिकार आज मेरे हाथ बेच दे। 01O 25 32 एसाव ने कहा, देख, मै तो अभी मरने पर हूं : सो पहिलौठे के अधिकार से मेरा क्या लाभ होगा ? 01O 25 33 याकूब ने कहा, मुझ से अभी शपथ खा : सो उस ने उस से शपथ खाई : और अपना पहिलौठे का अधिकार याकूब के हाथ बेच डाला। 01O 25 34 इस पर याकूब ने एसाव को रोटी और पकाई हुई मसूर की दाल दी; और उस ने खाया पिया, तब उठकर चला गया। यों एसाव ने अपना पहिलौठे का अधिकार तुच्छ जाना।। 01O 26 1 और उस देश में अकाल पड़ा, वह उस पहिले अकाल से अलग था जो इब्राहीम के दिनों में पड़ा था। सो इसहाक गरार को पलिश्तियों के राजा अबीमेलेक के पास गया। 01O 26 2 वहां यहोवा ने उसको दर्शन देकर कहा, मि में मत जा; जो देश मैं तुझे बताऊं उसी में रह। 01O 26 3 तू इसी देश में रह, और मैं तेरे संग रहूंगा, और तुझे आशीष दूंगा; और ये सब देश मैं तुझ को, और तेरे वंश को दूंगा; और जो शपथ मैं ने तेरे पिता इब्राहीम से खाई थी, उसे मैं पूरी करूंगा। 01O 26 4 और मैं तेरे वंश को आकाश के तारागण के समान करूंगा। और मैं तेरे वंश को ये सब देश दूंगा, और पृथ्वी की सारी जातियां तेरे वंश के कारण अपने को धन्य मानेंगी। 01O 26 5 क्योंकि इब्राहीम ने मेरी मानी, और जो मैं ने उसे सौंपा था उसको और मेरी आज्ञाओं विधियों, और व्यवस्था का पालन किया। 01O 26 6 सो इसहाक गरार में रह गया। 01O 26 7 जब उस स्थान के लोगों ने उसकी पत्नी के विषय में पूछा, तब उस ने यह सोचकर कि यदि मैं उसको अपनी पत्नी कहूं, तो यहां के लोग रिबका के कारण जो परम सुन्दरी है मुझ को मार डालेंगे, उत्तर दिया, वह तो मेरी बहिन है। 01O 26 8 जब उसको वहां रहते बहुत दिन बीत गए, तब एक दिन पलिश्तियों के राजा अबीमेलेक ने खिड़की में से झांकके क्या देखा, कि इसहाक अपनी पत्नी रिबका के साथ क्रीड़ा कर रहा है। 01O 26 9 तब अबीमेलेक ने इसहाक को बुलवाकर कहा, वह तो निश्चय तेरी पत्नी है; फिर तू ने क्योंकर उसको अपनी बहिन कहा ? इसहाक ने उत्तर दिया, मैं ने सोचा था, कि ऐसा न हो कि उसके कारण मेरी मृत्यु हो। 01O 26 10 अबीमेलेक ने कहा, तू ने हम से यह क्या किया ? ऐसे तो प्रजा में से कोई तेरी पत्नी के साथ सहज से कुकर्म कर सकता, और तू हम को पाप में फंसाता। 01O 26 11 और अबीमेलेक ने अपनी सारी प्रजा को आज्ञा दी, कि जो कोई उस पुरूष को वा उस स्त्री को छूएगा, सो निश्चय मार डाला जाएगा। 01O 26 12 फिर इसहाक ने उस देश में जोता बोया, और उसी वर्ष में सौ गुणा फल पाया : और यहोवा ने उसको आशीष दी। 01O 26 13 और वह बढ़ा और उसकी उन्नति होती चली गई, यहां तक कि वह अति महान पुरूष हो गया। 01O 26 14 जब उसके भेड़- बकरी, गाय- बैल, और बहुत से दास- दासियां हुई, तब पलिश्ती उस से डाह करने लगे। 01O 26 15 सो जितने कुओं को उसके पिता इब्राहीम के दासों ने इब्राहीम के जीते जी खोदा था, उनको पलिश्तियों ने मिट्टी से भर दिया। 01O 26 16 तब अबीमेलेक ने इसहाक से कहा, हमारे पास से चला जा; क्योंकि तू हम से बहुत सामर्थी हो गया है। 01O 26 17 सो इसहाक वहां से चला गया, और गरार के नाले में तम्बू खड़ा करके वहां रहने लगा। 01O 26 18 तब जो कुएं उसके पिता इब्राहीम के दिनों में खोदे गए थे, और इब्राहीम के मरने के पीछे पलिश्तियों ने भर दिए थे, उनको इसहाक ने फिर से खुदवाया; और उनके वे ही नाम रखे, जो उसके पिता ने रखे थे। 01O 26 19 फिर इसहाक के दासों को नाले में खोदते खोदते बहते जल का एक सोता मिला। 01O 26 20 तब गरारी चरवाहों ने इसहाक के चरवाहों से झगड़ा किया, और कहा, कि यह जल हमारा है। सो उस ने उस कुएं का नाम एसेक रखा इसलिये कि वे उस से झगड़े थे। 01O 26 21 फिर उन्हों ने दूसरा कुआं खोदा; और उन्हों ने उसके लिये भी झगड़ा किया, सो उस ने उसका नाम सित्रा रखा। 01O 26 22 तब उस ने वहां से कूच करके एक और कुआं खुदवाया; और उसके लिये उन्हों ने झगड़ा न किया; सो उस ने उसका नाम यह कहकर रहोबोत रखा, कि अब तो यहोवा ने हमारे लिये बहुत स्थान दिया है, और हम इस देश में फूलें- फलेंगे। 01O 26 23 वहां से वह बेर्शेबा को गया। 01O 26 24 और उसी दिन यहोवा ने रात को उसे दर्शन देकर कहा, मैं तेरे पिता इब्राहीम का परमेश्वर हूं; मत डर, क्योंकि मैं तेरे साथ हूं, और अपने दास इब्राहीम के कारण तुझे आशीष दूंगा, और तेरा वंश बढ़ाऊंगा 01O 26 25 तब उस ने वहां एक वेदी बनाई, और यहोवा से प्रार्थना की, और अपना तम्बू वहीं खड़ा किया; और वहां इसहाक के दासों ने एक कुआं खोदा। 01O 26 26 तब अबीमेलेक अपने मित्रा अहुज्जत, और अपने सेनापति पीकोल को संग लेकर, गरार से उसके पास गया। 01O 26 27 इसहाक ने उन से कहा, तुम ने मुझ से बैर करके अपने बीच से निकाल दिया था; सो अब मेरे पास क्यों आए हो ? 01O 26 28 उन्हों ने कहा, हम ने तो प्रत्यक्ष देखा है, कि यहोवा तेरे साथ रहता है : सो हम ने सोचा, कि तू तो यहोवा की ओर से धन्य है, सो हमारे तेरे बीच में शपथ खाई जाए, और हम तुझ से इस विषय की वाचा बन्धाएं; 01O 26 29 कि जैसे हम ने तुझे नहीं छूआ, वरन तेरे साथ निरी भलाई की है, और तुझ को कुशल क्षेम से विदा किया, उसके अनुसार तू भी हम से कोई बुराई न करेगा। 01O 26 30 तब उस ने उनकी जेवनार की, और उन्हों ने खाया पिया। 01O 26 31 बिहान को उन सभों ने तड़के उठकर आपस में शपथ खाई; तब इसहाक ने उनको विदा किया, और वे कुशल क्षेम से उसके पास से चले गए। 01O 26 32 उसी दिन इसहाक के दासों ने आकर अपने उस खोदे हुए कुएं का वृत्तान्त सुना के कहा, कि हम को जल का एक सोता मिला है। 01O 26 33 तब उस ने उसका नाम शिबा रखा : इसी कारण उस नगर का नाम आज तक बेर्शेबा पड़ा है।। 01O 26 34 जब एसाव चालीस वर्ष का हुआ, तब उस ने हित्ती बेरी की बेटी यहूदीत, और हित्ती एलोन की बेटी बाशमत को ब्याह लिया। 01O 26 35 और इन स्त्रियों के कारण इसहाक और रिबका के मन को खेद हुआ।। 01O 27 1 जब इसहाक बूढ़ा हो गया, और उसकी आंखें ऐसी धुंधली पड़ गई, कि उसको सूझता न था, तब उस ने अपने जेठे पुत्रा एसाव को बुलाकर कहा, हे मेरे पुत्रा; उस ने कहा, क्या आज्ञा। 01O 27 2 उस ने कहा, सुन, मैं तो बूढ़ा हो गया हूं, और नहीं जानता कि मेरी मृत्यु का दिन कब होगा : 01O 27 3 सो अब तू अपना तरकश और धनुष आदि हथियार लेकर मैदान में जा, और मेरे लिये हिरन का अहेर कर ले आ। 01O 27 4 तब मेरी रूचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाकर मेरे पास ले आना, कि मै उसे खाकर मरने से पहले तुझे जी भर के आशीर्वाद दूं। 01O 27 5 तब एसाव अहेर करने को मैदान में गया। जब इसहाक एसाव से यह बात कह रहा था, तब रिबका सुन रही थी। 01O 27 6 सो उस ने अपने पुत्रा याकूब से कहा सुन, मैं ने तेरे पिता को तेरे भाई एसाव से यह कहते सुना, 01O 27 7 कि तू मेरे लिये अहेर करके उसका स्वादिष्ट भोजन बना, कि मैं उसे खाकर तुझे यहोवा के आगे मरने से पहिले आशीर्वाद दूं 01O 27 8 सो अब, हे मेरे पुत्रा, मेरी सुन, और यह आज्ञा मान, 01O 27 9 कि बकरियों के पास जाकर बकरियों के दो अच्छे अच्छे बच्चे ले आ; और मैं तेरे पिता के लिये उसकी रूचि के अनुसार उन के मांस का स्वादिष्ट भोजन बनाऊंगी। 01O 27 10 तब तू उसको अपने पिता के पास ले जाना, कि वह उसे खाकर मरने से पहिले तुझ को आशीर्वाद दे। 01O 27 11 याकूब ने अपनी माता रिबका से कहा, सुन, मेरा भाई एसाव तो रोंआर पुरूष है, और मैं रोमहीन पुरूष हूं। 01O 27 12 कदाचित् मेरा पिता मुझे टटोलने लगे, तो मैं उसकी दृष्टि में ठग ठहरूंगा; और आशीष के बदले शाप ही कमाऊंगा। 01O 27 13 उसकी माता ने उस से कहा, हे मेरे, पुत्रा, शाप तुझ पर नहीं मुझी पर पड़े, तू केवल मेरी सुन, और जाकर वे बच्चे मेरे पास ले आ। 01O 27 14 तब याकूब जाकर उनको अपनी माता के पास ले आया, और माता ने उसके पिता की रूचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बना दिया। 01O 27 15 तब रिबका ने अपने पहिलौठे पुत्रा एसाव के सुन्दर वस्त्रा, जो उसके पास घर में थे, लेकर अपने लहुरे पुत्रा याकूब को पहिना दिए। 01O 27 16 और बकरियों के बच्चों की खालों को उसके हाथों में और उसके चिकने गले में लपेट दिया। 01O 27 17 और वह स्वादिष्ट भोजन और अपनी बनाई हुई रोटी भी अपने पुत्रा याकूब के हाथ में दे दी। 01O 27 18 सो वह अपने पिता के पास गया, और कहा, हे मेरे पिता : उस ने कहा क्या बात है ? हे मेरे पुत्रा, तू कौन है ? 01O 27 19 याकूब ने अपने पिता से कहा, मैं तेरा जेठा पुत्रा एसाव हूं। मैं ने तेरी आज्ञा मे अनुसार किया है; सो उठ और बैठकर मेरे अहेर के मांस में से खा, कि तू जी से मुझे आशीर्वाद दे। 01O 27 20 इसहाक ने अपने पुत्रा से कहा, हे मेरे पुत्रा, क्या कारण है कि वह तुझे इतनी जल्दी मिल गया ? उस ने यह उत्तर दिया, कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने उसको मेरे साम्हने कर दिया। 01O 27 21 फिर इसहाक ने याकूब से कहा, हे मेरे पुत्रा, निकट आ, मैं तुझे टटोलकर जानूं, कि तू सचमुच मेरा पुत्रा एसाव है वा नहीं। 01O 27 22 तब याकूब अपने पिता इसहाक के निकट गया, और उस ने उसको टटोलकर कहा, बोल तो याकूब का सा है, पर हाथ एसाव ही के से जान पड़ते हैं। 01O 27 23 और उस ने उसको नहीं चीन्हा, क्योंकि उसके हाथ उसके भाई के से रोंआर थे। 01O 27 24 और उस ने पूछा, क्या तू सचमुच मेरा पुत्रा एसाव है ? उस ने कहा मैं हूं। 01O 27 25 तब उस ने कहा, भोजन को मेरे निकट ले आ, कि मैं, अपने पुत्रा के अहेर के मांस में से खाकर, तुझे जी से आशीर्वाद दूं। तब वह उसको उसके निकट ले आया, और उस ने खाया; और वह उसके पास दाखमधु भी लाया, और उस ने पिया। 01O 27 26 तब उसके पिता इसहाक ने उस से कहा, हे मेरे पुत्रा निकट आकर मुझे चूम। 01O 27 27 उस ने निकट जाकर उसको चूमा। और उस ने उसके वस्त्रों को सुगन्ध पाकर उसको वह आशीर्वाद दिया, कि देख, मेरे पुत्रा का सुगन्ध जो ऐसे खेत का सा है जिस पर यहोवा ने आशीष दी हो : 01O 27 28 सो परमेश्वर तुझे आकाश से ओस, और भूमि की उत्तम से उत्तम उपज, और बहुत सा अनाज और नया दाखमधु दे : 01O 27 29 राज्य राज्य के लोग तेरे अधीन हों, और देश देश के लोग तुझे दण्डवत् करें : तू अपने भाइयों का स्वामी हो, और तेरी माता के पुत्रा तुझे दण्डवत् करें : जो तुझे शाप दें सो आप ही स्रापित हों, और जो तुझे आशीर्वाद दें सो आशीष पाएं।। 01O 27 30 यह आशीर्वाद इसहाक याकूब को दे ही चुका, और याकूब अपने पिता इसहाक के साम्हने से निकला ही था, कि एसाव अहेर लेकर आ पहुंचा। 01O 27 31 तब वह भी स्वादिष्ट भोजन बनाकर अपने पिता के पास ले आया, और उस ने कहा, हे मेरे पिता, उठकर अपने पुत्रा के अहेर का मांस खा, ताकि मुझे जी से आशीर्वाद दे। 01O 27 32 उसके पिता इसहाक ने पूछा, तू कौन है ? उस ने कहा, मैं तेरा जेठा पुत्रा एसाव हूं। 01O 27 33 तब इसहाक ने अत्यन्त थरथर कांपते हुए कहा, फिर वह कौन था जो अहेर करके मेरे पास ले आया था, और मैं ने तेरे आने से पहिले सब में से कुछ कुछ खा लिया और उसको आशीर्वाद दिया ? वरन उसको आशीष लगी भी रहेगी। 01O 27 34 अपने पिता की यह बात सुनते ही एसाव ने अत्यन्त ऊंचे और दु:ख भरे स्वर से चिल्लाकर अपने पिता से कहा, हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे। 01O 27 35 उस ने कहा, तेरा भाई धूर्तता से आया, और तेरे आशीर्वाद को लेके चला गया। 01O 27 36 उस ने कहा, क्या उसका नाम याकूब यथार्थ नहीं रखा गया ? उस ने मुझे दो बार अड़ंगा मारा, मेरा पहिलौठे का अधिकार तो उस ने ले ही लिया था : और अब देख, उस ने मेरा आशीर्वाद भी ले लिया है : फिर उस ने कहा, क्या तू ने मेरे लिये भी कोई आशीर्वाद नहीं सोच रखा है ? 01O 27 37 इसहाक ने एसाव को उत्तर देकर कहा, सुन, मैं ने उसको तेरा स्वामी ठहराया, और उसके सब भाइयों को उसके अधीन कर दिया, और अनाज और नया दाखमधु देकर उसको पुष्ट किया है : सो अब, हे मेरे पुत्रा, मैं तेरे लिये क्या करूं ? 01O 27 38 एसाव ने अपने पिता से कहा हे मेरे पिता, क्या तेरे मन में एक ही आशीर्वाद है ? हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे : यों कहकर एसाव फूट फूटके रोया। 01O 27 39 उसके पिता इसहाक ने उस से कहा, सुन, तेरा निवास उपजाऊ भूमि पर हो, और ऊपर से आकाश की ओस उस पर पड़े।। 01O 27 40 और तू अपनी तलवार के बल से जीवित रहे, और अपने भाई के अधीन तो होए, पर जब तू स्वाधीन हो जाएगा, तब उसके जूए को अपने कन्धे पर से तोड़ फेंके। 01O 27 41 एसाव ने तो याकूब से अपने पिता के दिए हुए आशीर्वाद के कारण बैर रखा; सो उस ने सोचा, कि मेरे पिता के अन्तकाल का दिन निकट है, फिर मैं अपने भाई याकूब को घात करूंगा। 01O 27 42 जब रिबका को अपने पहिलौठे पुत्रा एसाव की ये बातें बताई गई, तब उस ने अपने लहुरे पुत्रा याकूब को बुलाकर कहा, सुन, तेरा भाई एसाव तुझे घात करने के लिये अपने मन को धीरज दे रहा है। 01O 27 43 सो अब, हे मेरे पुत्रा, मेरी सुन, और हारान को मेरे भाई लाबान के पास भाग जा ; 01O 27 44 और थोड़े दिन तक, अर्थात् जब तक तेरे भाई का क्रोध न उतरे तब तक उसी के पास रहना। 01O 27 45 फिर जब तेरे भाई का क्रोध ने उतरे, और जो काम तू ने उस से किया है उसको वह भूल जाए; तब मैं तुझे वहां से बुलवा भेजूंगी : ऐसा क्यों हो कि एक ही दिन में मुझे तुम दोनों से रहित होना पड़े ? 01O 27 46 फिर रिबका ने इसहाक से कहा, हित्ती लड़कियों के कारण मैं अपने प्राण से घिन करती हूं; सो यदि ऐसी हित्ती लड़कियों में से, जैसी इस देश की लड़कियां हैं, याकूब भी एक को कहीं ब्याह ले, तो मेरे जीवन में क्या लाभ होगा? 01O 28 1 तब इसहाक ने याकूब को बुलाकर आशीर्वाद दिया, और आज्ञा दी, कि तू किसी कनानी लड़की को न ब्याह लेना। 01O 28 2 प नराम में अपने नाना बतूएल के घर जाकर वहां अपने मामा लाबान की एक बेटी को ब्याह लेना। 01O 28 3 और सर्वशक्तिमान ईश्वर तुझे आशीष दे, और फुला- फलाकर बढ़ाए, और तू राज्य राज्य की मण्डली का मूल हो। 01O 28 4 और वह तुझे और तेरे वंश को भी इब्राहीम की सी आशीष दे, कि तू यह देश जिस में तू परदेशी होकर रहता है, और जिसे परमेश्वर ने इब्राहीम को दिया था, उसका अधिकारी हो जाए। 01O 28 5 और इसहाक ने याकूब को विदा किया, और वह प नराम को अरामी बतूएल के उस पुत्रा लाबान के पास चला, जो याकूब और एसाव की माता रिबका का भाई था। 01O 28 6 जब इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद देकर प नराम भेज दिया, कि वह वहीं से पत्नी ब्याह लाए, और उसको आशीर्वाद देने के समय यह आज्ञा भी दी, कि तू किसी कनानी लड़की को ब्याह न लेना; 01O 28 7 और याकूब माता पिता की मानकर प नराम को चल दिया; 01O 28 8 तब एसाव यह सब देख के और यह भी सोचकर, कि कनानी लड़कियां मेरे पिता इसहाक को बुरी लगती हैं, 01O 28 9 इब्राहीम के पुत्रा इश्माएल के पास गया, और इश्माएल की बेटी महलत को, जो नबायोत की बहिन भी, ब्याहकर अपनी पत्नियों मे मिला लिया।। 01O 28 10 सो याकूब बेर्शेबा से निकलकर हारान की ओर चला। 01O 28 11 और उस ने किसी स्थान में पहुंचकर रात वहीं बिताने का विचार किया, क्योंकि सूर्य अस्त हो गया था; सो उस ने उस स्थान के पत्थरों में से एक पत्थर ले अपना तकिया बनाकर रखा, और उसी स्थान में सो गया। 01O 28 12 तब उस ने स्वप्न में क्या देखा, कि एक सीढ़ी पृथ्वी पर खड़ी है, और उसका सिरा स्वर्ग तक पहुंचा है : और परमेश्वर के दूत उस पर से चढ़ते उतरते हैं। 01O 28 13 और यहोवा उसके ऊपर खड़ा होकर कहता है, कि मैं यहोवा, तेरे दादा इब्राहीम का परमेश्वर, और इसहाक का भी परमेश्वर हूं : जिस भूमि पर तू पड़ा है, उसे मैं तुझ को और तेरे वंश को दूंगा। 01O 28 14 और तेरा वंश भूमि की धूल के किनकों के समान बहुत होगा, और पच्छिम, पूरब, उत्तर, दक्खिन, चारों ओर फैलता जाएगा : और तेरे और तेरे वंश के द्वारा पृथ्वी के सारे कुल आशीष पाएंगे। 01O 28 15 और सुन, मैं तेरे संग रहूंगा, और जहां कहीं तू जाए वहां तेरी रक्षा करूंगा, और तुझे इस देश में लौटा ले आऊंगा : मैं अपने कहे हुए को जब तक पूरा न कर लूं तब तक तुझ को न छोडूंगा। 01O 28 16 तब याकूब जाग उठा, और कहने लगा; निश्चय इस स्थान में यहोवा है; और मैं इस बात को न जानता था। 01O 28 17 और भय खाकर उस ने कहा, यह स्थान क्या ही भयानक है ! यह तो परमेश्वर के भवन को छोड़ और कुछ नहीं हो सकता; वरन यह स्वर्ग का फाटक ही होगा। 01O 28 18 भोर को याकूब तड़के उठा, और अपने तकिए का पत्थर लेकर उसका खम्भा खड़ा किया, और उसके सिरे पर तेल डाल दिया। 01O 28 19 और उस ने उस स्थान का नाम बेतेल रखा; पर उस नगर का नाम पहिले लूज था। 01O 28 20 और याकूब ने यह मन्नत मानी, कि यदि परमेश्वर मेरे संग रहकर इस यात्रा में मेरी रक्षा करे, और मुझे खाने के लिये रोटी, और पहिनने के लिये कपड़ा दे, 01O 28 21 और मैं अपने पिता के घर में कुशल क्षेम से लौट आऊं : तो यहोवा मेरा परमेश्वर ठहरेगा। 01O 28 22 और यह पत्थर, जिसका मैं ने खम्भा खड़ा किया है, परमेश्वर का भवन ठहरेगा : और जो कुछ तू मुझे दे उसका दशमांश मैं अवश्य ही तुझे दिया करूंगा।। 01O 29 1 फिर याकूब ने अपना मार्ग लिया, और पूर्व्वियों के देश में आया। 01O 29 2 और उस ने दृष्टि करके क्या देखा, कि मैदान में एक कुंआ है, और उसके पास भेड़- बकरियों के तीन झुण्ड बैठे हुए हैं; क्योंकि जो पत्थर उस कुएं के मुंह पर धरा रहता था, जिस में से झुण्डों को जल पिलाया जाता था, वह भारी था। 01O 29 3 और जब सब झुण्ड वहां इकट्ठे हो जाते तब चरवाहे उस पत्थर को कुएं के मुंह पर से लुढ़काकर भेड़- बकरियों को पानी पिलाते, और फिर पत्थर को कुएं के मुंह पर ज्यों का त्यों रख देते थे। 01O 29 4 सो याकूब ने चरवाहों से पूछा, हे मेरे भाइयो, तुम कहां के हो? उन्हों ने कहा, हम हारान के हैं। 01O 29 5 तब उस ने उन से पूछा, क्या तुम नाहोर के पोते लाबान को जानते हो ? उन्हों ने कहा, हां, हम उसे जानते हैं। 01O 29 6 फिर उस ने उन से पूछा, क्या वह कुशल से है ? उन्हों ने कहा, हां, कुशल से तो है और वह देख, उसकी बेटी राहेल भेड़- बकरियों को लिये हुए चली आती है। 01O 29 7 उस ने कहा, देखो, अभी तो दिन बहुत है, पशुओं के इकट्ठे होने का समय नहीं : सो भेड़- बकरियों को जल पिलाकर फिर ले जाकर चराओ। 01O 29 8 उन्हों ने कहा, हम अभी ऐसा नहीं कर सकते, जब सब झुण्ड इकट्ठे होते हैं तब पत्थर कुएं के मुंह से लुढ़काया जाता है, और तब हम भेड़- बकरियों को पानी पिलाते हैं। 01O 29 9 उनकी यह बातचीत हो रही थी, कि राहेल जो पशु चराया करती थी, सो अपने पिता की भेड़- बकरियों को लिये हुए आ गई। 01O 29 10 अपने मामा लाबान की बेटी राहेल को, और उसकी भेड़- बकरियों को भी देखकर याकूब ने निकट जाकर कुएं के मुंह पर से पत्थर को लुढ़काकर अपने मामा लाबान की भेड़- बकरियों को पानी पिलाया। 01O 29 11 तब याकूब ने राहेल को चूमा, और ऊंचे स्वर से रोया। 01O 29 12 और याकूब ने राहेल को बता दिया, कि मैं तेरा फुफेरा भाई हूं, अर्थात् रिबका का पुत्रा हूं : तब उस ने दौड़ के अपने पिता से कह दिया। 01O 29 13 अपने भानजे याकूब को समाचार पाते ही लाबान उस से भेंट करने को दौड़ा, और उसको गले लगाकर चूमा, फिर अपने घर ले आया। और याकूब ने लाबान से अपना सब वृत्तान्त वर्णन किया। 01O 29 14 तब लाबान ने याकूब से कहा, तू तो सचमुच मेरी हड्डी और मांस है। सो याकूब एक महीना भर उसके साथ रहा। 01O 29 15 तब लाबान ने याकूब से कहा, भाईबन्धु होने के कारण तुझ से सेंतमेंत सेवा कराना मुझे उचित नहीं है, सो कह मैं तुझे सेवा के बदले क्या दूं ? 01O 29 16 लाबान के दो बेटियां थी, जिन में से बड़ी का नाम लिआ : और छोटी का राहेल था। 01O 29 17 लिआ : के तो धुन्धली आंखे थी, पर राहेल रूपवती और सुन्दर थी। 01O 29 18 सो याकूब ने, जो राहेल से प्रीति रखता था, कहा, मैं तेरी छोटी बेटी राहेल के लिये सात बरस तेरी सेवा करूंगा। 01O 29 19 लाबान ने कहा, उसे पराए पुरूष को देने से तुझ को देना उत्तम होगा; सो मेरे पास रह। 01O 29 20 सो याकूब ने राहेल के लिये सात बरस सेवा की; और वे उसको राहेल की प्रीति के कारण थोड़े ही दिनों के बराबर जान पड़े। 01O 29 21 तब याकूब ने लाबान से कहा, मेरी पत्नी मुझे दे, और मैं उसके पास जाऊंगा, क्योंकि मेरा समय पूरा हो गया है। 01O 29 22 सो लाबान ने उस स्थान के सब मनुष्यों को बुलाकर इकट्ठा किया, और उनकी जेवनार की। 01O 29 23 सांझ के समय वह अपनी बेटी लिआ : को याकूब के पास ले गया, और वह उसके पास गया। 01O 29 24 और लाबान ने अपनी बेटी लिआ : को उसकी लौंडी होने के लिये अपनी लौंडी जिल्पा दी। 01O 29 25 भोर को मालूम हुआ कि यह तो लिआ है, सो उस ने लाबान से कहा यह तू ने मुझ से क्या किया है ? मैं ने तेरे साथ रहकर जो तेरी सेवा की, सो क्या राहेल के लिये नहीं की ? फिर तू ने मुझ से क्यों ऐसा छल किया है ? 01O 29 26 लाबान ने कहा, हमारे यहां ऐसी रीति नहीं, कि जेठी से पहिले दूसरी का विवाह कर दें। 01O 29 27 इसका सप्ताह तो पूरा कर; फिर दूसरी भी तुझे उस सेवा के लिये मिलेगी जो तू मेरे साथ रहकर और सात वर्ष तक करेगा। 01O 29 28 सो याकूब ने ऐसा ही किया, और लिआ : के सप्ताह को पूरा किया; तब लाबान ने उसे अपनी बेटी राहेल को भी दिया, कि वह उसकी पत्नी हो। 01O 29 29 और लाबान ने अपनी बेटी राहेल की लौंडी होने के लिये अपनी लौंडी बिल्हा को दिया। 01O 29 30 तब याकूब राहेल के पास भी गया, और उसकी प्रीति लिआ: से अधिक उसी पर हुई, और उस ने लाबान के साथ रहकर सात वर्ष और उसकी सेवा की।। 01O 29 31 जब यहोवा ने देखा, कि लिआ: अप्रिय हुई, तब उस ने उसकी कोख खोली, पर राहेल बांझ रही। 01O 29 32 सो लिआ: गर्भवती हुई, और उसके एक पुत्रा उत्पन्न हुआ, और उस ने यह कहकर उसका नाम रूबेन रखा, कि यहोवा ने मेरे दु:ख पर दृष्टि की है : सो अब मेरा पति मुझ से प्रीति रखेगा। 01O 29 33 फिर वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्रा उत्पन्न हुआ; और उस ने यह कहा कि यह सुनके, कि मै अप्रिय हूं यहोवा ने मुझे यह भी पुत्रा दिया : इसलिये उस ने उसका नाम शिमोन रखा। 01O 29 34 फिर वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्रा उत्पन्न हुआ; और उस ने कहा, अब की बार तो मेरा पति मुझ से मिल जाएगा, क्योंकि उस से मेरे तीन पुत्रा उत्पन्न हुए : इसलिये उसका नाम लेवी रखा गया। 01O 29 35 और फिर वह गर्भवती हुई और उसके एक और पुत्रा उत्पन्न हुआ; और उस ने कहा, अब की बार तो मैं यहोवा का धन्यवाद करूंगी, इसलिये उस ने उसका नाम यहूदा रखा; तब उसकी कोख बन्द को गई।। 01O 30 1 जब राहेल ने देखा, कि याकूब के लिये मुझ से कोई सन्तान नहीं होता, तब वह अपनी बहिन से डाह करने लगी : और याकूब से कहा, मुझे भी सन्तान दे, नहीं तो मर जाऊंगी। 01O 30 2 तब याकूब ने राहेल से क्रोधित होकर कहा, क्या मैं परमेश्वर हूं? तेरी कोख तो उसी ने बन्द कर रखी है। 01O 30 3 राहेल ने कहा, अच्छा, मेरी लौंडी बिल्हा हाजिर है: उसी के पास जा, वह मेरे घुटनों पर जनेगी, और उसके द्वारा मेरा भी घर बसेगा। 01O 30 4 तो उस ने उसे अपनी लौंडी बिल्हा को दिया, कि वह उसकी पत्नी हो; और याकूब उसके पास गया। 01O 30 5 और बिल्हा गर्भवती हुई और याकूब से उसके एक पुत्रा उत्पन्न हुआ। 01O 30 6 और राहेल ने कहा, परमेश्वर ने मेरा न्याय चुकाया और मेरी सुनकर मुझे एक पुत्रा दिया : इसलिये उस ने उसका नाम दान रखा। 01O 30 7 और राहेल की लौंडी बिल्हा फिर गर्भवती हुई और याकूब से एक पुत्रा और उत्पन्न हुआ। 01O 30 8 तब राहेल ने कहा, मैं ने अपनी बहिन के साथ बड़े बल से लिपटकर मल्लयुद्ध किया और अब जीत गई : सो उस ने उसका नाम नप्ताली रखा। 01O 30 9 जब लिआ: ने देखा कि मैं जनने से रहित हो गई हूं, तब उस ने अपनी लौंडी जिल्पा को लेकर याकूब की पत्नी होने के लिये दे दिया। 01O 30 10 और लिआ: की लौंडी जिल्पा के भी याकूब से एक पुत्रा उत्पन्न हुआ। 01O 30 11 तब लिआ: ने कहा, अहो भाग्य! सो उस ने उसका नाम गाद रखा। 01O 30 12 फिर लिआ: की लौंडी जिल्पा के याकूब से एक और पुत्रा उत्पन्न हुआ। 01O 30 13 तब लिआ: ने कहा, मै धन्य हूं; निश्चय स्त्रियां मुझे धन्य कहेंगी : सो उस ने उसका नाम आशेर रखा। 01O 30 14 गेहूं की कटनी के दिनों में रूबेन को मैदान में दूदाफल मिले, और वह उनको अपनी माता लिआ: के पास ले गया, तब राहेल ने लिआ: से कहा, अपने पुत्रा के दूदाफलों में से कुछ मुझे दे। 01O 30 15 उस ने उस से कहा, तू ने जो मेरे पति को ले लिया है सो क्या छोटी बात है ? अब क्या तू मेरे पुत्रा के दूदाफल भी लेने चाहती है? राहेल ने कहा, अच्छा, तेरे पुत्रा के दूदाफलों के बदले वह आज रात को तेरे संग सोएगा। 01O 30 16 सो सांझ को जब याकूब मैदान से आ रहा था, तब लिआ: उस से भेंट करने को निकली, और कहा, तुझे मेरे ही पास आना होगा, क्योंकि मै ने अपने पुत्रा के दूदाफल देकर तुझे सचमुच मोल लिया। तब वह उस रात को उसी के संग सोया। 01O 30 17 तब परमेश्वर ने लिआ: की सुनी, सो वह गर्भवती हुई और याकूब से उसके पांचवां पुत्रा उत्पन्न हुआ। 01O 30 18 तब लिआ: ने कहा, में ने जो अपने पति को अपनी लौंडी दी, इसलिये परमेश्वर ने मुझे मेरी मंजूरी दी है : सो उस ने उसका नाम इस्साकार रखा। 01O 30 19 और लिआ: फिर गर्भवती हुई और याकूब से उसके छठवां पुत्रा उत्पन्न हुआ। 01O 30 20 तब लिआ: ने कहा, परमेश्वर ने मुझे अच्छा दान दिया है; अब की बार मेरा पति मेरे संग बना रहेगा, क्योंकि मेरे उस से छ: पुत्रा उत्पन्न चुके हैं : से उस ने उसका नाम जबूलून रखा। 01O 30 21 तत्पश्चात् उसके एक बेटी भी हुई, और उस ने उसका नाम दीना रखा। 01O 30 22 और परमेश्वर ने राहेल की भी सुधि ली, और उसकी सुनकर उसकी कोख खोली। 01O 30 23 सो वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्रा उत्पन्न हुआ; सो उस ने कहा, परमेश्वर ने मेरी नामधराई को दूर कर दिया है। 01O 30 24 सो उस ने यह कहकर उसका नाम यूसुफ रखा, कि परमेश्वर मुझे एक पुत्रा और भी देगा। 01O 30 25 जब राहेल से यूसुफ उत्पन्न हुआ, तब याकूब ने लाबान से कहा, मुझे विदा कर, कि मैं अपने देश और स्थान को जाऊं। 01O 30 26 मेरी स्त्रियां और मेरे लड़के- बाले, जिनके लिये मैं ने तेरी सेवा की है, उन्हें मुझे दे, कि मैं चला जाऊं; तू तो जानता है कि मैं ने तेरी कैसी सेवा की है। 01O 30 27 लाबान ने उस से कहा, यदि तेरी दृष्टि में मैं ने अनुग्रह पाया है, तो रह जा : क्योंकि मैं ने अनुभव से जान लिया है, कि यहोवा ने तेरे कारण से मुझे आशीष दी है। 01O 30 28 फिर उस ने कहा, तू ठीक बता कि मैं तुझ को क्या दूं, और मैं उसे दूंगा। 01O 30 29 उस ने उस से कहा तू जानता है कि मैं ने तेरी कैसी सेवा की, और तेरे पशु मेरे पास किस प्रकार से रहे। 01O 30 30 मेरे अपने से पहिले वे कितने थे, और अब कितने हो गए हैं; और यहोवा ने मेरे आने पर तुझे तो आशीष दी है : पर मैं अपने घर का काम कब करने पाऊंगा? 01O 30 31 उस ने फिर कहा, मैं तुझे क्या दूं? याकूब ने कहा, तू मुझे कुछ न दे; यदि तू मेरे लिये एक काम करे, तो मै फिर तेरी भेड़- बकरियों को चराऊंगा, और उनकी रक्षा करूंगा। 01O 30 32 मैं आज तेरी सब भेड़- बकरियों के बीच होकर निकलूंगा, और जो भेड़ वा बकरी चित्तीवाली वा चित्कबरी हो, और जो भेड़ काली हो, और जो बकरी चित्कबरी वा चित्तीवाली हो, उन्हें मैं अलग कर रखूंगा : और मेरी मजदूरी में वे ही ठहरेंगी। 01O 30 33 और जब आगे को मेरी मजदूरी की चर्चा तेरे साम्हने चले, तब धर्म की यही साक्षी होगी; अर्थात् बकरियों में से जो कोई न चित्तीवाली न चित्कबरी हो, और भेड़ों में से जो कोई काली न हो, सो यदि मेरे पास निकलें, तो चोरी की ठहरेंगी। 01O 30 34 तब लाबान ने कहा, तेरे कहने के अनुसार हो। 01O 30 35 सो उस ने उसी दिन सब धारीवाले और चित्कबरे बकरों, और सब चित्तीवाली और चित्कबरी बकरियों को, अर्थात् जिन में कुछ उजलापन था, उनको और सब काली भेड़ों को भी अलग करके अपने पुत्रों के हाथ सौप दिया। 01O 30 36 और उस ने अपने और याकूब के बीच में तीन दिन के मार्ग का अन्तर ठहराया : सो याकूब लाबान की भेड़- बकरियों को चराने लगा। 01O 30 37 और याकूब ने चनार, और बादाम, और अर्मोन वृक्षों की हरी हरी छड़ियां लेकर, उनके छिलके कहीं कहीं छीलके, उन्हें धारीदार बना दिया, ऐसी कि उन छड़ियों की सफेदी दिखाई देने लगी। 01O 30 38 और तब छीली हुई छड़ियों को भेड़- बकरियों के साम्हने उनके पानी पीने के कठौतों में खड़ा किया; और जब वे पानी पीने के लिये आई तब गाभिन हो गई। 01O 30 39 और छड़ियों के साम्हने गाभिन होकर, भेड़- बकरियां धारीवाले, चित्तीवाले और चित्कबरे बच्चे जनीं। 01O 30 40 तब याकूब ने भेड़ों के बच्चों को अलग अलग किया, और लाबान की भेड़- बकरियों के मुंह को चित्तीवाले और सब काले बच्चों की ओर कर दिया; और अपने झुण्ड़ों को उन से अलग रखा, और लाबान की भेड़- बकरियों से मिलने न दिया। 01O 30 41 और जब जब बलवन्त भेड़- बकरियां गाभिन होती थी, तब तब याकूब उन छड़ियों को कठौतों मे उनके साम्हने रख देता था; जिस से वे छड़ियों को देखती हुई गाभिन हो जाएं। 01O 30 42 पर जब निर्बल भेड़- बकरियां गाभिन होती थी, तब वह उन्हें उनके आगे नहीं रखता था। इस से निर्बल निर्बल लाबान की रही, और बलवन्त बलवन्त याकूब की हो गई। 01O 30 43 सो वह पुरूष अत्यन्त धनाढय हो गया, और उसके बहुत सी भेड़- बकरियां, और लौंडियां और दास और ऊंट और गदहे हो गए।। 01O 31 1 फिर लाबान के पुत्रों की ये बातें याकूब के सुनने में आई, कि याकूब ने हमारे पिता का सब कुछ छीन लिया है, और हमारे पिता के धन के कारण उसकी यह प्रतिष्ठा है। 01O 31 2 और याकूब ने लाबान के मुखड़े पर दृष्टि की और ताड़ लिया, कि वह उसके प्रति पहले के समान नहीं है। 01O 31 3 तब यहोवा ने याकूब से कहा, अपने पितरों के देश और अपनी जन्मभूमि को लौट जा, और मैं तेरे संग रहूंगा। 01O 31 4 तब याकूब ने राहेल और लिआ: को, मैदान में अपनी भेड़- बकरियों के पास, बुलवाकर कहा, 01O 31 5 तुम्हारे पिता के मुखडे से मुझे समझ पड़ता है, कि वह तो मुझे पहिले की नाई अब नहीं देखता; पर मेरे पिता का परमेश्वर मेरे संग है। 01O 31 6 और तुम भी जानती हो, कि मैं ने तुम्हारे पिता की सेवा शक्ति भर की है। 01O 31 7 और तुम्हारे पिता ने मुझ से छल करके मेरी मजदूरी को दस बार बदल दिया; परन्तु परमेश्वर ने उसको मेरी हानि करने नहीं दिया। 01O 31 8 जब उस ने कहा, कि चित्तीवाले बच्चे तेरी मजदूरी ठहरेंगे, तब सब भेड़- बकरियां चित्तीवाले ही जनने लगीं, और जब उस ने कहा, कि धारीवाले बच्चे तेरी मजदूरी ठहरेंगे, तब सब भेड़- बकरियां धारीवाले जनने लगीं। 01O 31 9 इस रीति से परमेश्वर ने तुम्हारे पिता के पशु लेकर मुझ को दे दिए। 01O 31 10 भेड़- बकरियों के गाभिन होने के समय मैं ने स्वप्न में क्या देखा, कि जो बकरे बकरियों पर चढ़ रहे हैं, सो धारीवाले, चित्तीवाले, और धब्बेवाले है। 01O 31 11 और परमेश्वर के दूत ने स्वप्न में मुझ से कहा, हे याकूब : मैं ने कहा, क्या आज्ञा। 01O 31 12 उस ने कहा, आंखे उठाकर उन सब बकरों को, जो बकरियों पर चढ़ रहे हैं, देख, कि वे धारीवाले, चित्तीवाले, और धब्बेवाले हैं; क्योंकि जो कुछ लाबान तुझ से करता है, सो मैं ने देखा है। 01O 31 13 मैं उस बेतेल का ईश्वर हूं, जहां तू ने एक खम्भे पर तेल डाल दिया, और मेरी मन्नत मानी थी : अब चल, इस देश से निकलकर अपनी जन्मभूमि को लौट जा। 01O 31 14 तब राहेल और लिआ : ने उस से कहा, क्या हमारे पिता के घर में अब भी हमारा कुछ भाग वा अंश बचा है? 01O 31 15 क्या हम उसकी दृष्टि में पराये न ठहरीं? देख, उस ने हम को तो बेच डाला, और हमारे रूपे को खा बैठा है। 01O 31 16 सो परमेश्वर ने हमारे पिता का जितना धन ले लिया है, सो हमारा, और हमारे लड़केबालों को है : अब जो कुछ परमेश्वर ने तुझ से कहा सो कर। 01O 31 17 तब याकूब ने अपने लड़केबालों और स्त्रियों को ऊंटों पर चढ़ाया; 01O 31 18 और जितने पशुओं को वह प नराम में इकट्ठा करके धनाढय हो गया था, सब को कनान में अपने पिता इसहाक के पास जाने की मनसा से, साथ ले गया। 01O 31 19 लाबान तो अपनी भेड़ों का ऊन कतरने के लिये चला गया था। और राहेल अपने पिता के गृहदेवताओं को चुरा ले गई। 01O 31 20 सो याकूब लाबान अरामी के पास से चोरी से चला गया, उसको न बताया कि मैं भागा जाता हूं। 01O 31 21 वह अपना सब कुछ लेकर भागा : और महानद के पार उतरकर अपना मुंह गिलाद के पहाड़ी देश की ओर किया।। 01O 31 22 तीसरे दिन लाबान को समाचार मिला, कि याकूब भाग गया है। 01O 31 23 सो उस ने अपने भाइयों को साथ लेकर उसका सात दिन तक पीछा किया, और गिलाद के पहाड़ी देश में उसको जा पकड़ा। 01O 31 24 तब परमेश्वर ने रात के स्वप्न में आरामी लाबान के पास आकर कहा, सावधान रह, तू याकूब से न तो भला कहना और न बुरा। 01O 31 25 और लाबान याकूब के पास पहुंच गया, याकूब तो अपना तम्बू गिलाद नाम पहाड़ी देश में खड़ा किए पड़ा था : और लाबान ने भी अपने भाइयों के साथ अपना तम्बू उसी पहाड़ी देश में खड़ा किया। 01O 31 26 तब लाबान याकूब से कहने लगा, तू ने यह क्या किया, कि मेरे पास से चोरी से चला आया, और मेरी बेटियों को ऐसा ले आया, जैसा कोई तलवार के बल से बन्दी बनाए गए? 01O 31 27 तू क्यों चुपके से भाग आया, और मुझ से बिना कुछ कहे मेरे पास से चोरी से चला आया; नहीं तो मैं तुझे आनन्द के साथ मृदंग और वीणा बजवाते, और गीत गवाते विदा करता ? 01O 31 28 तू ने तो मुझे अपने बेटे बेटियों को चूमने तक न दिया? तू ने मूर्खता की है। 01O 31 29 तुम लोगों की हानि करने की शक्ति मेरे हाथ में तो है; पर तुम्हारे पिता के परमेश्वर ने मुझ से बीती हुई रात में कहा, सावधान रह, याकूब से न तो भला कहना और न बुरा। 01O 31 30 भला अब तू अपने पिता के घर का बड़ा अभिलाषी होकर चला आया तो चला आया, पर मेरे देवताओं को तू क्यों चुरा ले आया है? 01O 31 31 याकूब ने लाबान को उत्तर दिया, मैं यह सोचकर डर गया था : कि कहीं तू अपनी बेटियों को मुझ से छीन न ले। 01O 31 32 जिस किसी के पास तू अपने देवताओं को पाए, सो जीता न बचेगा। मेरे पास तेरा जो कुछ निकले, सो भाई- बन्धुओं के साम्हने पहिचानकर ले ले। क्योंकि याकूब न जानता था कि राहेल गृहदेवताओं को चुरा ले आई है। 01O 31 33 यह सुनकर लाबान, याकूब और लिआ : और दोनों दासियों के तम्बुओं मे गया; और कुछ न मिला। तब लिआ: के तम्बू में से निकलकर राहेल के तम्बू में गया। 01O 31 34 राहेल तो गृहदेवताओं को ऊंट की काठी में रखके उन पर बैठी थी। सो लाबान ने उसके सारे तम्बू में टटोलने पर भी उन्हें न पाया। 01O 31 35 राहेल ने अपने पिता से कहा, हे मेरे प्रभु; इस से अप्रसन्न न हो, कि मैं तेरे साम्हने नहीं उठी; क्योंकि मैं स्त्रीधर्म से हूं। सो उसके ढूंढ़ ढांढ़ करने पर भी गृहदेवता उसको न मिले। 01O 31 36 तब याकूब क्रोधित होकर लाबान से झगड़ने लगा, और कहा, मेरा क्या अपराध है? मेरा क्या पाप है, कि तू ने इतना क्रोधित होकर मेरा पीछा किया है ? 01O 31 37 तू ने जो मेरी सारी सामग्री को टटोलकर देखा, सो तुझ को सारी सामग्री में से क्या मिला? कुछ मिला हो तो उसको यहां अपने और मेरे भाइयों के सामहने रख दे, और वे हम दोनों के बीच न्याय करें। 01O 31 38 इन बीस वर्षों से मै तेरे पास रहा; उन में न तो तेरी भेड़- बकरियों के गर्भ गिरे, और न तेरे मेढ़ों का मांस मै ने कभी खाया। 01O 31 39 जिसे बनैले जन्तुओं ने फाड़ डाला उसको मैं तेरे पास न लाता था, उसकी हानि मैं ही उठाता था; चाहे दिन को चोरी जाता चाहे रात को, तू मुझ ही से उसको ले लेता था। 01O 31 40 मेरी तो यह दशा थी, कि दिन को तो घाम और रात को पाला मुझे खा गया; और नीन्द मेरी आंखों से भाग जाती थी। 01O 31 41 बीस वर्ष तक मैं तेरे घर में रहो; चौदह वर्ष तो मै ने तेरी दोनो बेटियों के लिये, और छ: वर्ष तेरी भेड़- बकरियों के लिये सेवा की : और तू ने मेरी मजदूरी को दस बार बदल डाला। 01O 31 42 मेरे पिता का परमेश्वर अर्थात् इब्राहीम का परमेश्वर, जिसका भय इसहाक भी मानता है, यदि मेरी ओर न होता, तो निश्चय तू अब मुझे छूछे हाथ जाने देता। मेरे दु:ख और मेरे हाथों के परिश्रम को देखकर परमेश्वर ने बीती हुई रात में तुझे दपटा। 01O 31 43 लाबान ले याकूब से कहा, ये बेटियों तो मेरी ही हैं, और ये पुत्रा भी मेरे ही हैं, और ये भेड़- बकरियों भी मेरी ही हैं, और जो कुछ तुझे देख पड़ता है सो सब मेरा ही है : और अब मैं अपनी इन बेटियों वा इनके सन्तान से क्या कर सकता हूं ? 01O 31 44 अब आ मैं और तू दोनों आपस में वाचा बान्धें, और वह मेरे और तेरे बीच साक्षी ठहरी रहे। 01O 31 45 तब याकूब ने एक पत्थर लेकर उसका खम्भा खड़ा किया। 01O 31 46 तब याकूब ने अपने भाई- बन्धुओं से कहा, पत्थर इकट्ठा करो; यह सुनकर उन्हों ने पत्थर इकट्ठा करके एक ढेर लगाया और वहीं ढेर के पास उन्हों ने भोजन किया। 01O 31 47 उस ढेर का नाम लाबान ने तो यज्र सहादुथा, पर याकूब ने जिलियाद रखा। 01O 31 48 लाबान ने कहा, कि यह ढेर आज से मेरे और तेरे बीच साक्षी रहेगा। इस कारण उसका नाम जिलियाद रखा गया, 01O 31 49 और मिजपा भी; क्योंकि उस ने कहा, कि जब हम उस दूसरे से दूर रहें तब यहोवा मेरी और तेरी देखभाल करता रहे। 01O 31 50 यदि तू मेरी बेटियों को दु:ख दे, वा उनके सिवाय और स्त्रियां ब्याह ले, तो हमारे साथ कोई मनुष्य तो न रहेगा; पर देख मेरे तेरे बीच में परमेश्वर साक्षी रहेगा। 01O 31 51 फिर लाबान ने याकूब से कहा, इस ढेर को देख और इस खम्भे को भी देख, जिनको मैं ने अपने और तेरे बीच में खड़ा किया है। 01O 31 52 यह ढेर और यह खम्भा दोनों इस बात के साक्षी रहें, कि हानि करने की मनसा से न तो मैं इस ढेर को लांघकर तेरे पास जाऊंगा, न तू इस ढेर और इस खम्भे को लांघकर मेरे पास आएगा। 01O 31 53 इब्राहीम और नाहोर और उनके पिता; तीनों का जो परमेश्वर है, सो हम दोनो के बीच न्याय करे। तब याकूब ने उसकी शपथ खाई जिसका भय उसका पिता इसहाक मानता था। 01O 31 54 और याकूब ने उस पहाड़ पर मेलबलि चढ़ाया, और अपने भाई- बन्धुओं को भोजन करने के लिये बुलाया, सो उन्हों ने भोजन करके पहाड़ पर रात बिताई। 01O 31 55 बिहान को लाबान तड़के उठा, और अपने बेटे बेटियों को चूमकर और आशीर्वाद देकर चल दिया, और अपने स्थान को लौट गया। 01O 32 1 फिर लाबान के पुत्रों की ये बातें याकूब के सुनने में आई, कि याकूब ने हमारे पिता का सब कुछ छीन लिया है, और हमारे पिता के धन के कारण उसकी यह प्रतिष्ठा है। 01O 32 2 और याकूब ने लाबान के मुखड़े पर दृष्टि की और ताड़ लिया, कि वह उसके प्रति पहले के समान नहीं है। 01O 32 3 तब यहोवा ने याकूब से कहा, अपने पितरों के देश और अपनी जन्मभूमि को लौट जा, और मैं तेरे संग रहूंगा। 01O 32 4 तब याकूब ने राहेल और लिआ: को, मैदान में अपनी भेड़- बकरियों के पास, बुलवाकर कहा, 01O 32 5 तुम्हारे पिता के मुखडे से मुझे समझ पड़ता है, कि वह तो मुझे पहिले की नाई अब नहीं देखता; पर मेरे पिता का परमेश्वर मेरे संग है। 01O 32 6 और तुम भी जानती हो, कि मैं ने तुम्हारे पिता की सेवा शक्ति भर की है। 01O 32 7 और तुम्हारे पिता ने मुझ से छल करके मेरी मजदूरी को दस बार बदल दिया; परन्तु परमेश्वर ने उसको मेरी हानि करने नहीं दिया। 01O 32 8 जब उस ने कहा, कि चित्तीवाले बच्चे तेरी मजदूरी ठहरेंगे, तब सब भेड़- बकरियां चित्तीवाले ही जनने लगीं, और जब उस ने कहा, कि धारीवाले बच्चे तेरी मजदूरी ठहरेंगे, तब सब भेड़- बकरियां धारीवाले जनने लगीं। 01O 32 9 इस रीति से परमेश्वर ने तुम्हारे पिता के पशु लेकर मुझ को दे दिए। 01O 32 10 भेड़- बकरियों के गाभिन होने के समय मैं ने स्वप्न में क्या देखा, कि जो बकरे बकरियों पर चढ़ रहे हैं, सो धारीवाले, चित्तीवाले, और धब्बेवाले है। 01O 32 11 और परमेश्वर के दूत ने स्वप्न में मुझ से कहा, हे याकूब : मैं ने कहा, क्या आज्ञा। 01O 32 12 उस ने कहा, आंखे उठाकर उन सब बकरों को, जो बकरियों पर चढ़ रहे हैं, देख, कि वे धारीवाले, चित्तीवाले, और धब्बेवाले हैं; क्योंकि जो कुछ लाबान तुझ से करता है, सो मैं ने देखा है। 01O 32 13 मैं उस बेतेल का ईश्वर हूं, जहां तू ने एक खम्भे पर तेल डाल दिया, और मेरी मन्नत मानी थी : अब चल, इस देश से निकलकर अपनी जन्मभूमि को लौट जा। 01O 32 14 तब राहेल और लिआ : ने उस से कहा, क्या हमारे पिता के घर में अब भी हमारा कुछ भाग वा अंश बचा है? 01O 32 15 क्या हम उसकी दृष्टि में पराये न ठहरीं? देख, उस ने हम को तो बेच डाला, और हमारे रूपे को खा बैठा है। 01O 32 16 सो परमेश्वर ने हमारे पिता का जितना धन ले लिया है, सो हमारा, और हमारे लड़केबालों को है : अब जो कुछ परमेश्वर ने तुझ से कहा सो कर। 01O 32 17 तब याकूब ने अपने लड़केबालों और स्त्रियों को ऊंटों पर चढ़ाया; 01O 32 18 और जितने पशुओं को वह प नराम में इकट्ठा करके धनाढय हो गया था, सब को कनान में अपने पिता इसहाक के पास जाने की मनसा से, साथ ले गया। 01O 32 19 लाबान तो अपनी भेड़ों का ऊन कतरने के लिये चला गया था। और राहेल अपने पिता के गृहदेवताओं को चुरा ले गई। 01O 32 20 सो याकूब लाबान अरामी के पास से चोरी से चला गया, उसको न बताया कि मैं भागा जाता हूं। 01O 32 21 वह अपना सब कुछ लेकर भागा : और महानद के पार उतरकर अपना मुंह गिलाद के पहाड़ी देश की ओर किया।। 01O 32 22 तीसरे दिन लाबान को समाचार मिला, कि याकूब भाग गया है। 01O 32 23 सो उस ने अपने भाइयों को साथ लेकर उसका सात दिन तक पीछा किया, और गिलाद के पहाड़ी देश में उसको जा पकड़ा। 01O 32 24 तब परमेश्वर ने रात के स्वप्न में आरामी लाबान के पास आकर कहा, सावधान रह, तू याकूब से न तो भला कहना और न बुरा। 01O 32 25 और लाबान याकूब के पास पहुंच गया, याकूब तो अपना तम्बू गिलाद नाम पहाड़ी देश में खड़ा किए पड़ा था : और लाबान ने भी अपने भाइयों के साथ अपना तम्बू उसी पहाड़ी देश में खड़ा किया। 01O 32 26 तब लाबान याकूब से कहने लगा, तू ने यह क्या किया, कि मेरे पास से चोरी से चला आया, और मेरी बेटियों को ऐसा ले आया, जैसा कोई तलवार के बल से बन्दी बनाए गए? 01O 32 27 तू क्यों चुपके से भाग आया, और मुझ से बिना कुछ कहे मेरे पास से चोरी से चला आया; नहीं तो मैं तुझे आनन्द के साथ मृदंग और वीणा बजवाते, और गीत गवाते विदा करता ? 01O 32 28 तू ने तो मुझे अपने बेटे बेटियों को चूमने तक न दिया? तू ने मूर्खता की है। 01O 32 29 तुम लोगों की हानि करने की शक्ति मेरे हाथ में तो है; पर तुम्हारे पिता के परमेश्वर ने मुझ से बीती हुई रात में कहा, सावधान रह, याकूब से न तो भला कहना और न बुरा। 01O 32 30 भला अब तू अपने पिता के घर का बड़ा अभिलाषी होकर चला आया तो चला आया, पर मेरे देवताओं को तू क्यों चुरा ले आया है? 01O 32 31 याकूब ने लाबान को उत्तर दिया, मैं यह सोचकर डर गया था : कि कहीं तू अपनी बेटियों को मुझ से छीन न ले। 01O 32 32 जिस किसी के पास तू अपने देवताओं को पाए, सो जीता न बचेगा। मेरे पास तेरा जो कुछ निकले, सो भाई- बन्धुओं के साम्हने पहिचानकर ले ले। क्योंकि याकूब न जानता था कि राहेल गृहदेवताओं को चुरा ले आई है। 01O 33 1 और याकूब ने आंखें उठाकर यह देखा, कि एसाव चार सौ पुरूष संग लिये हुए चला जाता है। तब उस ने लड़केबालों को अलग अलग बांटकर लिआ, और राहेल, और दोनों लौंडियों को सौप दिया। 01O 33 2 और उस ने सब के आगे लड़कों समेत लौंडियों को उसके पीछे लड़कों समेत लिआ: को, और सब के पीछे राहेल और यूसुफ को रखा, 01O 33 3 और आप उन सब के आगे बढ़ा, और सात बार भूमि पर गिरके दण्डवत् की, और अपने भाई के पास पहुंचा। 01O 33 4 तब एसाव उस से भेंट करने को दौड़ा, और उसको हृदय से लगाकर, गले से लिपटकर चूमा : फिर वे दोनों रो पड़े। 01O 33 5 तब उस ने आंखे उठाकर स्त्रियों और लड़के बालों को देखा; और पूछा, ये जो तेरे साथ हैं सो कौन हैं? उस ने कहा, ये तेरे दास के लड़के हैं, जिन्हें परमेश्वर ने अनुग्रह करके मुझ को दिया है। 01O 33 6 तब लड़कों समेत लौंडियों ने निकट आकर दण्डवत् की। 01O 33 7 फिर लड़कों समेत लिआ: निकट आई, और उन्हों ने भी दण्डवत् की: पीछे यूसुफ और राहेल ने भी निकट आकर दण्डवत् की। 01O 33 8 तब उस ने पूछा, तेरा यह बड़ा दल जो मुझ को मिला, उसका क्या प्रयोजन है? उस ने कहा, यह कि मेरे प्रभु की अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो। 01O 33 9 एसाव ने कहा, हे मेरे भाई, मेरे पास तो बहुत है; जो कुछ तेरा है सो तेरा ही रहे। 01O 33 10 याकूब ने कहा, नहीं नहीं, यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो मेरी भेंट ग्रहण कर : क्योंकि मैं ने तेरा दर्शन पाकर, मानो परमेश्वर का दर्शन पाया है, और तू मुझ से प्रसन्न हुआ है। 01O 33 11 सो यह भेंट, जो तुझे भेजी गई है, ग्रहण कर : क्योंकि परमेश्वर ने मुझ पर अनुग्रह किया है, और मेरे पास बहुत है। 01O 33 12 फिर एसाव ने कहा, आ, हम बढ़ चलें: और मै तेरे आगे आगे चलूंगा। 01O 33 13 याकूब ने कहा, हे मेरे प्रभु, तू जानता ही है कि मेरे साथ सुकुमार लड़के, और दूध देनेहारी भेड़- बकरियां और गायें है; यदि ऐसे पशु एक दिन भी अधिक हांके जाएं, तो सब के सब मर जाएंगे। 01O 33 14 सो मेरा प्रभु अपने दास के आगे बढ़ जाए, और मैं इन पशुओं की गति के अनुसार, जो मेरे आगे है, और लड़केबालों की गति के अनुसार धीरे धीरे चलकर सेईर में अपने प्रभु के पास पहुंचूंगा। 01O 33 15 एसाव ने कहा, तो अपने संगवालों में से मैं कई एक तेरे साथ छोड़ जाऊं। उस ने कहा, यह क्यों? इतना ही बहुत है, कि मेरे प्रभु की अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे। 01O 33 16 तब एसाव ने उसी दिन सेईर जाने को अपना मार्ग लिया। 01O 33 17 और याकूब वहां से कूच करके सुक्कोत को गया, और वहां अपने लिये एक घर, और पशुओं के लिये झोंपड़े बनाए: इसी कारण उस स्थान का नाम सुक्कोत पड़ा।। 01O 33 18 और याकूब जो प नराम से आया था, सो कनान देश के शकेम नगर के पास कुशल क्षेम से पहुंचकर नगर के साम्हने डेरे खड़े किए। 01O 33 19 और भूमि के जिस खण्ड पर उस ने अपना तम्बू खड़ा किया, उसको उस ने शकेम के पिता हमोर के पुत्रों के हाथ से एक सौ कसीतों में मोल लिया। 01O 33 20 और वहां उस ने एक वेदी बनाकर उसका नाम एलेलोहे इस्राएल रखा।। 01O 34 1 और लिआ: की बेटी दीना, जो याकूब से उत्पन्न हुई थी, उस देश की लड़कियों से भेंट करने को निकली। 01O 34 2 तब उस देश के प्रधान हित्ती हमोर के पुत्रा शकेम ने उसे देखा, और उसे ले जाकर उसके साथ कुकर्म करके उसको भ्रष्ट कर डाला। 01O 34 3 तब उसका मन याकूब की बेटी दीना से लग गया, और उस ने उस कन्या से प्रेम की बातें की, और उस से प्रेम करने लगा। 01O 34 4 और शकेम ने अपने पिता हमोर से कहा, मुझे इस लड़की को मेरी पत्नी होने के लिये दिला दे। 01O 34 5 और याकूब ने सुना, कि शकेम ने मेरी बेटी दीना को अशुद्ध कर डाला है , पर उसके पुत्रा उस समय पशुओं के संग मैदान में थे, सो वह उनके आने तक चुप रहा। 01O 34 6 और शकेम का पिता हमोर निकलकर याकूब से बातचीत करने के लिये उसके पास गया। 01O 34 7 और याकूब के पुत्रा सुनते ही मैदान से बहुत उदास और क्रोधित होकर आए: क्योंकि शकेम ने याकूब की बेटी के साथ कुकर्म करके इस्राएल के घराने से मूर्खता का ऐसा काम किया था, जिसका करना अनुचित था। 01O 34 8 हमोर ने उन सब से कहा, मेरे पुत्रा शकेम का मन तुम्हारी बेटी पर बहुत लगा है, सो उसे उसकी पत्नी होने के लिये उसको दे दो। 01O 34 9 और हमारे साथ ब्याह किया करो; अपनी बेटियां हम को दिया करो, और हमारी बेटियों को आप लिया करो। 01O 34 10 और हमारे संग बसे रहो: और यह देश तुम्हारे सामने पड़ा है; इस में रहकर लेनदेन करो, और इसकी भूमि को अपने लिये ले लो। 01O 34 11 और शकेम ने भी दीना के पिता और भाइयों से कहा, यदि मुझ पर तुम लोगों की अनुग्रह की दृष्टि हो, तो जो कुछ तुम मुझ से कहा, सो मैं दूंगा। 01O 34 12 तुम मुझ से कितना ही मूल्य वा बदला क्यों न मांगो, तौभी मैं तुम्हारे कहे के अनुसार दूंगा : परन्तु उस कन्या को पत्नी होने के लिये मुझे दो। 01O 34 13 तब यह सोचकर, कि शकेम ने हमारी बहिन दीना को अशुद्ध किया है, याकूब के पुत्रों ने शकेम और उसके पिता हमोर को छल के साथ यह उत्तर दिया, 01O 34 14 कि हम ऐसा काम नहीं कर सकते, कि किसी खतनारहित पुरूष को अपनी बहिन दें; क्योंकि इस से हमारी नामधराई होगी : 01O 34 15 इस बात पर तो हम तुम्हारी मान लेंगे, कि हमारी नाई तुम में से हर एक पुरूष का खतना किया जाए। 01O 34 16 तब हम अपनी बेटियां तुम्हें ब्याह देंगे, और तुम्हारी बेटियां ब्याह लेंगे, और तुम्हारे संग बसे भी रहेंगे, और हम दोनों एक ही समुदाय के मनुष्य हो जाएंगे। 01O 34 17 पर यदि तुम हमारी बात न मानकर अपना खतना न कराओगे, तो हम अपनी लड़की को लेके यहां से चले जाएंगे। 01O 34 18 उसकी इस बात पर हमोर और उसका पुत्रा शकेम प्रसन्न हुए। 01O 34 19 और वह जवान, जो याकूब की बेटी को बहुत चाहता था, इस काम को करने में उस ने विलम्ब न किया। वह तो अपने पिता के सारे घराने में अधिक प्रतिष्ठित था। 01O 34 20 सो हमोर और उसका पुत्रा शकेम अपने नगर के फाटक के निकट जाकर नगरवासियों को यों समझाने लगे; 01O 34 21 कि वे मनुष्य तो हमारे संग मेल से रहना चाहते हैं; सो उन्हें इस देश में रहके लेनदेन करने दो; देखो, यह देश उनके लिये भी बहुत है; फिर हम लोग उनकी बेटियों को ब्याह लें, और अपनी बेटियों को उन्हें दिया करें। 01O 34 22 वे लोग केवल इस बात पर हमारे संग रहने और एक ही समुदाय के मनुष्य हो जाने को प्रसन्न हैं, कि उनकी नाई हमारे सब पुरूषों का भी खतना किया जाए। 01O 34 23 क्या उनकी भेड़- बकरियां, और गाय- बैल वरन उनके सारे पशु और धन सम्पत्ति हमारी न हो जाएगी? इतना की करें कि हम लोग उनकी बात मान लें, तो वे हमारे संग रहेंगे। 01O 34 24 सो जितने उस नगर के फाटक से निकलते थे, उन सभों ने हमोर की और उसके पुत्रा शकेम की बात मानी; और हर एक पुरूष का खतना किया गया, जितने उस नगर के फाटक से निकलते थे। 01O 34 25 तीसरे दिन, जब वे लोग पीड़ित पड़े थे, तब ऐसा हुआ कि शिमोन और लेवी नाम याकूब के दो पुत्रों ने, जो दीना के भाई थे, अपनी अपनी तलवार ले उस नगर में निधड़क घुसकर सब पुरूषों को घात किया। 01O 34 26 और हमोर और उसके पुत्रा शकेम को उन्हों ने तलवार से मार डाला, और दीना को शकेम के घर से निकाल ले गए। 01O 34 27 और याकूब के पुत्रों ने घात कर डालने पर भी चढ़कर नगर को इसलिये लूट लिया, कि उस में उनकी बहिन अशुद्ध की गई थी। 01O 34 28 उन्हों ने भेड़- बकरी, और गाय- बैल, और गदहे, और नगर और मैदान में जितना धन था ले लिया। 01O 34 29 उस सब को, और उनके बाल- बच्चों, और स्त्रियों को भी हर ले गए, वरन घर घर में जो कुछ था, उसको भी उन्हों ने लूट लिया। 01O 34 30 तब याकूब ने शिमोन और लेवी से कहा, तुम ने जो उस देश के निवासी कनानियों और परिज्जियों के मन में मेरी ओर घृणा उत्पन्न कराई है, इस से तुम ने मुझे संकट में डाला है, क्योंकि मेरे साथ तो थोड़े की लोग हैं, सो अब वे इकट्ठे होकर मुझ पर चढ़ेंगे, और मुझे मार डालेंगे, सो मैं अपने घराने समेत सत्यानाश हो जाऊंगा। 01O 34 31 उन्हों ने कहा, क्या वह हमारी बहिन के साथ वेश्या की नाई बर्ताव करे? 01O 35 1 तब परमेश्वर ने याकूब से कहा, यहां से कूच करके बेतेल को जा, और वहीं रह: और वहां ईश्वर के लिये वेदी बना, जिस ने तुझे उस समय दर्शन दिया, जब तू अपने भाई एसाव के डर से भागा जाता था। 01O 35 2 तब याकूब ने अपने घराने से, और उन सब से भी जो उसके संग थे, कहा, तुम्हारे बीच में जो पराए देवता हैं, उन्हें निकाल फेंको; और अपने अपने को शुद्ध करो, और अपने वस्त्रा बदल डालो; 01O 35 3 और आओ, हम यहां से कूच करके बेतेल को जाएं; वहां मैं ईश्वर के लिये एक वेदी बनाऊंगा, जिस ने संकट के दिन मेरी सुन ली, और जिस मार्ग से मैं चलता था, उस में मेरे संग रहा। 01O 35 4 सो जितने पराए देवता उनके पास थे, और जितने कुण्डल उनके कानों में थे, उन सभों को उन्हों ने याकूब को दिया; और उस ने उनको उस सिन्दूर वृक्ष के नीचे, जो शकेम के पास है, गाड़ दिया। 01O 35 5 तब उन्हों ने कूच किया: और उनके चारों ओर के नगर निवासियों के मन में परमेश्वर की ओर से ऐसा भय समा गया, कि उन्हों ने याकूब के पुत्रों का पीछा न किया। 01O 35 6 सो याकूब उन सब समेत, जो उसके संग थे, कनान देश के लूज नगर को आया। वह नगर बेतेल भी कहलाता है। 01O 35 7 वहां उस ने एक वेदी बनाई, और उस स्थान का नाम एलबेतेल रखा; क्योंकि जब वह अपने भाई के डर से भागा जाता था तब परमेश्वर उस पर वहीं प्रगट हुआ था। 01O 35 8 और रिबका की दूध पिलानेहारी धाय दबोरा मर गई, और बेतेल के नीचे सिन्दूर वृक्ष के तले उसको मिट्टी दी गई, और उस सिन्दूर वृक्ष का नाम अल्लोनबक्कूत रखा गया।। 01O 35 9 फिर याकूब के प नराम से आने के पश्चात् परमेश्वर ने दूसरी बार उसको दर्शन देकर आशीष दी। 01O 35 10 और परमेश्वर ने उस से कहा, अब तक तो तेरा नाम याकूब रहा है; पर आगे को तेरा नाम याकूब न रहेगा, तू इस्राएल कहलाएगा : 01O 35 11 फिर परमेश्वर ने उस से कहा, मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर हूं: तू फूले- फले और बढ़े; और तुझ से एक जाति वरन जातियों की एक मण्डली भी उत्पन्न होगी, और तेरे वंश में राजा उत्पन्न होंगे। 01O 35 12 और जो देश मैं ने इब्राहीम और इसहाक को दिया है, वही देश तुझे देता हूं, और तेरे पीछे तेरे वंश को भी दूंगा। 01O 35 13 तब परमेश्वर उस स्थान में, जहां उस ने याकूब से बातें की, उनके पास से ऊपर चढ़ गया। 01O 35 14 और जिस स्थान में परमेश्वर ने याकूब से बातें की, वहां याकूब ने पत्थर का एक खम्बा खड़ा किया, और उस पर अर्घ देकर तेल डाल दिया। 01O 35 15 और जहां परमेश्वर ने याकूब से बातें की, उस स्थान का नाम उस ने बेतेल रखा। 01O 35 16 फिर उन्हों ने बेतेल से कूच किया; और एप्राता थोड़ी ही दूर रह गया था, कि राहेल को बच्चा जनने की बड़ी पीड़ा आने लगी। 01O 35 17 जब उसको बड़ी बड़ी पीड़ा उठती थी तब धाय ने उस से कहा, मत डर; अब की भी तेरे बेटा ही होगा। 01O 35 18 तब ऐसा हुआ, कि वह मर गई, और प्राण निकलते निकलते उस ने उस बेटे को नाम बेनोनी रखा: पर उसके पिता ने उसका नाम बिन्यामीन रखा। 01O 35 19 यों राहेल मर गई, और एप्राता, अर्थात् बेतलेहेम के मार्ग में, उसको मिट्टी दी गई। 01O 35 20 और याकूब ने उसकी कब्र पर एक खम्भा खड़ा किया: राहेल की कब्र का वही खम्भा आज तक बना है। 01O 35 21 फिर इस्राएल ने कूच किया, और एदेर नाम गुम्मट के आगे बढ़कर अपना तम्बू खड़ा किया। 01O 35 22 जब इस्राएल उस देश में बसा था, तब एक दिन ऐसा हुआ, कि रूबेन ने जाकर अपने पिता की रखेली बिल्हा के साथ कुकर्म किया : और यह बात इस्राएल को मालूम हो गई।। 01O 35 23 याकूब के बारह पुत्रा हुए। उन में से लिआ: के पुत्रा ये थे; अर्थात् याकूब का जेठा, रूबेन, फिर शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, और जबूलून। 01O 35 24 और राहेल के पुत्रा ये थे; अर्थात् यूसुफ, और बिन्यामीन। 01O 35 25 और राहेल की लौन्डी बिल्हा के पुत्रा ये थे; अर्थात् दान, और नप्ताली। 01O 35 26 और लिआ: की लौन्डी जिल्पा के पुत्रा ये थे : अर्थात् गाद, और आशेर; याकूब के ये ही पुत्रा हुए, जो उस से प नराम में उत्पन्न हुए।। 01O 35 27 और याकूब मम्रे में, जो करियतअर्बा, अर्थात् हब्रोन है, जहां इब्राहीम और इसहाक परदेशी होकर रहे थे, अपने पिता इसहाक के पास आया। 01O 35 28 इसहाक की अवस्था एक सौ अस्सी बरस की हुई। 01O 35 29 और इसहाक का प्राण छूट गया, और वह मर गया, और वह बूढ़ा और पूरी आयु का होकर अपने लोगों में जा मिला: और उसके पुत्रा एसाव और याकूब ने उसको मिट्टी दी।। 01O 36 1 एसाव जो एदोम भी कहलाता है, उसकी यह वंशावली है। 01O 36 2 एसाव ने तो कनानी लड़कियां ब्याह लीं; अर्थात् हित्ती एलोन की बेटी आदा को, और अहोलीबामा को जो अना की बेटी, और हिव्वी सिबोन की नतिनी थी। 01O 36 3 फिर उस ने इश्माएल की बेटी बासमत को भी, जो नबायोत की बहिन थी, ब्याह लिया। 01O 36 4 आदा ने तो एसाव के जन्माए एलीपज को, और बासमत ने रूएल को उत्पन्न किया। 01O 36 5 और ओहोलीबामा ने यूश, और यालाम, और कोरह को उत्पन्न किया, एसाव के ये ही पुत्रा कनान देश में उत्पन्न हुए। 01O 36 6 और एसाव अपनी पत्नियों, और बेटे- बेटियों, और घर के सब प्राणियों, और अपनी भेड़- बकरी, और गाय- बैल आदि सब पशुओं, निदान अपनी सारी सम्पत्ति को, जो उस ने कनान देश में संचय की थी, लेकर अपने भाई याकूब के पास से दूसरे देश को चला गया। 01O 36 7 क्योंकि उनकी सम्पत्ति इतनी हो गई थी, कि वे इकट्ठे न रह सके; और पशुओं की बहुतायत के मारे उस देश में, जहां वे परदेशी होकर रहते थे, उनकी समाई न रही। 01O 36 8 एसाव जो एदोम भी कहलाता है : सो सेईर नाम पहाड़ी देश में रहने लगा। 01O 36 9 सेईर नाम पहाड़ी देश में रहनेहारे एदोमियों के मूल पुरूष एसाव की वंशावली यह है : 01O 36 10 एसाव के पुत्रों के नाम ये हैं; अर्थात् एसाव की पत्नी आदा का पुत्रा एलीपज, और उसी एसाव की पत्नी बासमत का पुत्रा रूएल। 01O 36 11 और एलीपज के ये पुत्रा हुए; अर्थात् तेमान, ओमार, सपो, गाताम, और कनज। 01O 36 12 और एसाव के पुत्रा एलीपज के तिम्ना नाम एक सुरैतिन थी, जिस ने एलीपज के जन्माए अमालेक को जन्म दिया : एसाव की पत्नी आदा के वंश में ये ही हुए। 01O 36 13 और रूएल के ये पुत्रा हुए; अर्थात् नहत, जेरह, शम्मा, और मिज्जा : एसाव की पत्नी बासमत के वंश में ये ही हुए। 01O 36 14 और ओहोलीबामा जो एसाव की पत्नी, और सिबोन की नतिनी और अना की बेटी थी, उसके ये पुत्रा हुए : अर्थात् उस ने एसाव के जन्माए यूश, यालाम और कोरह को जन्म दिया। 01O 36 15 एसाववंशियों के अधिपति ये हुए : अर्थात् एसाव के जेठे एलीपज के वंश में से तो तेमान अधिपति, ओमार अधिपति, सपो अधिपति, कनज अधिपति, 01O 36 16 कोरह अधिपति, गाताम अधिपति, अमालेख अधिपति : एलीपज वंशियों मे से, एदोम देश में ये ही अधिपति हुए : और ये ही आदा के वंश में हुए। 01O 36 17 और एसाव के पुत्रा रूएल के वंश में ये हुए; अर्थात् नहत अधिपति, जेरह अधिपति, शम्मा अधिपति, मिज्जा अधिपति: रूएलवंशियों में से, एदोम देश में ये ही अधिपति हुए; और ये ही एसाव की पत्नी बासमत के वंश में हुए। 01O 36 18 और एसाव की पत्नी ओहोलीबामा के वंश में ये हुए; अर्थात् यूश अधिपति, यालाम अधिपति, कोरह अधिपति, अना की बेटी ओहोलीबामा जो एसाव की पत्नी थी उसके वंश में ये ही हुए। 01O 36 19 एसाव जो एदोम भी कहलाता है, उसके वंश ये ही हैं, और उनके अधिपति भी ये ही हुए।। 01O 36 20 सेईर जो होरी नाम जाति का था उसके ये पुत्रा उस देश में पहिले से रहते थे; अर्थात् लोतान, शोबाल, शिबोन, अना, 01O 36 21 दीशोन, एसेर, और दीशान; एदोम देश में सेईर के ये ही होरी जातिवाले अधिपति हुए। 01O 36 22 और लोतान के पुत्रा, होरी, और हेमाम हुए; और लोतान की बहिन तिम्ना थी। 01O 36 23 और शोबाल के ये पुत्रा हुए; अर्थात् आल्वान, मानहत, एबाल, शपो, और ओनाम। 01O 36 24 और सिदोन के ये पुत्रा हुए; अर्थात् अरया, और अना; यह वही अना है जिस को जंगल में अपने पिता सिबोन के गदहों को चराते चराते गरम पानी के झरने मिले। 01O 36 25 और अना के दीशोन नाम पुत्रा हुआ, और उसी अना के ओहोलीबामा नाम बेटी हुई। 01O 36 26 और दीशोन के ये पुत्रा हुए; अर्थात् हेमदान, एश्बान, यित्रान, और करान। 01O 36 27 एसेर के ये पुत्रा हुए; अर्थात् बिल्हान, जावान, और अकान। 01O 36 28 दीशान के ये पुत्रा हुए; अर्थात् ऊस, और अकान। 01O 36 29 होरियों के अधिपति ये हुए; अर्थात् लोतान अधिपति, शोबाल अधिपति, शिबोन अधिपति, अना अधिपति, 01O 36 30 दीशोन अधिपति, एसेर अधिपति, दीशान अधिपति, सेईर देश में होरी जातिवाले ये ही अधिपति हुए। 01O 36 31 फिर जब इस्राएलियों पर किसी राजा ने राज्य न किया था, तब भी एदोम के देश में ये राजा हुए; 01O 36 32 अर्थात् बोर के पुत्रा बेला ने एदोम में राज्य किया, और उसकी राजधानी का नाम दिन्हाबा है। 01O 36 33 बेला के मरने पर, बोस्रानिवासी जेरह का पुत्रा योबाब उसके स्थान पर राजा हुआ। 01O 36 34 और योबाब के मरने पर, तेमानियों के देश का निवासी हूशाम उसके स्थान पर राजा हुआ। 01O 36 35 और हूशाम के मरने पर, बदद का पुत्रा हदद उसके स्थान पर राजा हुआ : यह वही है जिस ने मिद्यानियों को मोआब के देश में मार लिया, और उसकी राजधानी का नाम अबीत है। 01O 36 36 और हदद के मरने पर, म :कावासी सम्ला उसके स्थान पर राजा हुआ। 01O 36 37 फिर सम्ला के मरने पर, शाऊल जो महानद के तटवाले रहोबोत नगर का था, सो उसके स्थान पर राजा हुआ। 01O 36 38 और शाऊल के मरने पर, अकबोर का पुत्रा बाल्हानान उसके स्थान पर राजा हुआ। 01O 36 39 और अकबोर के पुत्रा बाल्हानान के मरने पर, हदर उसके स्थान पर राजा हुआ : और उसकी राजधानी का नाम पाऊ है; और उसकी पत्नी का नाम महेतबेल है, जो मेजाहब की नतिनी और मत्रोद की बेटी थी। 01O 36 40 फिर एसाववंशियों के अधिपतियों के कुलों, और स्थानों के अनुसार उनके नाम ये हैं; अर्थात् तिम्ना अधिपति, अल्बा अधिपति, यतेत अधिपति, 01O 36 41 ओहोलीबामा अधिपति, एला अधिपति, पीनोन अधिपति, 01O 36 42 कनज अधिपति, तेमान अधिपति, मिसबार अधिपति, 01O 36 43 मग्दीएल अधिपति, ईराम अधिपति: एदोमवंशियों ने जो देश अपना कर लिया था, उसके निवासस्थानों में उनके ये ही अधिपति हुए। और एदोमी जाति का मूलपुरूष एसाव है।। 01O 37 1 याकूब तो कनान देश में रहता था, जहां उसका पिता परदेशी होकर रहा था। 01O 37 2 और याकूब के वंश का वृत्तान्त यह है : कि यूसुफ सतरह वर्ष का होकर भाइयों के संग भेड़- बकरियों को चराता था; और वह लड़का अपने पिता की पत्नी बिल्हा, और जिल्पा के पुत्रों के संग रहा करता था : और उनकी बुराईयों का समाचार अपने पिता के पास पहुंचाया करता था : 01O 37 3 और इस्राएल अपने सब पुत्रों से बढ़के यूसुफ से प्रीति रखता था, क्योंकि वह उसके बुढ़ापे का पुत्रा था : और उस ने उसके लिये रंग बिरंगा अंगरखा बनवाया। 01O 37 4 सो जब उसके भाईयों ने देखा, कि हमारा पिता हम सब भाइयों से अधिक उसी से प्रीति रखता है, तब वे उस से बैर करने लगे और उसके साथ ठीक तौर से बात भी नहीं करते थे। 01O 37 5 और यूसुफ ने एक स्वप्न देखा, और अपने भाइयों से उसका वर्णन किया : तब वे उस से और भी द्वेष करने लगे। 01O 37 6 और उस ने उन से कहा, जो स्वप्न मैं ने देखा है, सो सुनो : 01O 37 7 हम लोग खेत में पूले बान्ध रहे हैं, और क्या देखता हूं कि मेरा पूला उठकर सीधा खड़ा हो गया; तब तुम्हारे पूलों ने मेरे पूले को चारों तरफ से घेर लिया और उसे दण्डवत् किया। 01O 37 8 तब उसके भाइयों ने उस से कहा, क्या सचमुच तू हमारे ऊपर राज्य करेगा ? वा सचमुच तू हम पर प्रभुता करेगा ? सो वे उसके स्वप्नों और उसकी बातों के कारण उस से और भी अधिक बैर करने लगे। 01O 37 9 फिर उस ने एक और स्वप्न देखा, और अपने भाइयों से उसका भी यों वर्णन किया, कि सुनो, मैं ने एक और स्वप्न देखा है, कि सूर्य और चन्द्रमा, और ग्यारह तारे मुझे दण्डवत् कर रहे हैं। 01O 37 10 यह स्वप्न उस ने अपने पिता, और भाइयों से वर्णन किया : तब उसके पिता ने उसको दपटके कहा, यह कैसा स्वप्न है जो तू ने देखा है? क्या सचमुच मैं और तेरी माता और तेरे भाई सब जाकर तेरे आगे भूमि पर गिरके दण्डवत् करेंगे? 01O 37 11 उसके भाई तो उससे डाह करते थे; पर उसके पिता ने उसके उस वचन को स्मरण रखा। 01O 37 12 और उसके भाई अपने पिता की भेड़- बकरियों को चराने के लिये शकेम को गए। 01O 37 13 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, तेरे भाई तो शकेम ही में भेड़- बकरी चरा रहें होंगे, सो जा, मैं तुझे उनके पास भेजता हूं। उस ने उस से कहा जो आज्ञा मैं हाजिर हूं। 01O 37 14 उस ने उस से कहा, जा, अपने भाइयों और भेड़- बकरियों का हाल देख आ कि वे कुशल से तो हैं, फिर मेरे पास समाचार ले आ। सो उस ने उसको हेब्रोन की तराई में विदा कर दिया, और वह शकेम में आया। 01O 37 15 और किसी मनुष्य ने उसको मैदान मे इधर उधर भटकते हुए पाकर उस से पूछा, तू क्या ढूंढता है? 01O 37 16 उस ने कहा, मैं तो अपने भाइयों को ढूंढता हूं : कृपा कर मुझे बता, कि वे भेड़- बकरियों को कहां चरा रहे हैं? 01O 37 17 उस मनुष्य ने कहा, वे तो यहां से चले गए हैं : और मैं ने उनको यह कहते सुना, कि आओ, हम दोतान को चलें। सो यूसुफ अपने भाइयों के पास चला, और उन्हें दोतान में पाया। 01O 37 18 और ज्योंही उन्हों ने उसे दूर से आते देखा, तो उसके निकट आने के पहिले ही उसे मार डालने की युक्ति की। 01O 37 19 और वे आपस में कहने लगे, देखो, वह स्वप्न देखनेहारा आ रहा है। 01O 37 20 सो आओ, हम उसको घात करके किसी गड़हे में डाल दें, और यह कह देंगे, कि कोई दुष्ट पशु उसको खा गया। फिर हम देखेंगे कि उसके स्वप्नों का क्या फल होगा। 01O 37 21 यह सुनके रूबेन ने उसको उनके हाथ से बचाने की मनसा से कहा, हम उसको प्राण से तो न मारें। 01O 37 22 फिर रूबेन ने उन से कहा, लोहू मत बहाओ, उसको जंगल के इस गड़हे में डाल दो, और उस पर हाथ मत उठाओ। वह उसको उनके हाथ से छुड़ाकर पिता के पास फिर पहुंचाना चाहता था। 01O 37 23 सो ऐसा हुआ, कि जब यूसुफ अपने भाइयों के पास पहुंचा तब उन्हों ने उसका रंगबिरंगा अंगरखा, जिसे वह पहिने हुए था, उतार लिया। 01O 37 24 और यूसुफ को उठाकर गड़हे में डाल दिया : वह गड़हा तो सूखा था और उस में कुछ जल न था। 01O 37 25 तब वे रोटी खाने को बैठ गए : और आंखे उठाकर क्या देखा, कि इश्माएलियों का एक दल ऊंटो पर सुगन्धद्रव्य, बलसान, और गन्धरस लादे हुए, गिलाद से मि को चला जा रहा है। 01O 37 26 तब यहूदा ने अपने भाइयों से कहा, अपने भाई को घात करने और उसका खून छिपाने से क्या लाभ होगा ? 01O 37 27 आओ, हम उसे इश्माएलियों के हाथ बेच डालें, और अपना हाथ उस पर न उठाएं, क्योंकि वह हमारा भाई और हमारी हड्डी और मांस है, सो उसके भाइयों ने उसकी बात मान ली। तब मिद्यानी व्यापारी उधर से होकर उनके पास पहुंचे : 01O 37 28 सो यूसुफ के भाइयों ने उसको उस गड़हे में से खींचके बाहर निकाला, और इश्माएलियों के हाथ चांदी के बीस टुकड़ों में बेच दिया : और वे यूसुफ को मि में ले गए। 01O 37 29 और रूबेन ने गड़हे पर लौटकर क्या देखा, कि यूसुफ गड़हे में नहीं हैं; सो उस ने अपने वस्त्रा फाड़े। 01O 37 30 और अपने भाइयों के पास लौटकर कहने लगा, कि लड़का तो नहीं हैं; अब मैं किधर जाऊं ? 01O 37 31 और तब उन्हों ने यूसुफ का अंगरखा लिया, और एक बकरे को मारके उसके लोहू में उसे डुबा दिया। 01O 37 32 और उन्हों ने उस रंग बिरंगे अंगरखे को अपने पिता के पास भेजकर कहला दिया; कि यह हम को मिला है, सो देखकर पहिचान ले, कि यह तेरे पुत्रा का अंगरखा है कि नहीं। 01O 37 33 उस ने उसको पहिचान लिया, और कहा, हां यह मेरे ही पुत्रा का अंगरखा है; किसी दुष्ट पशु ने उसको खा लिया है; नि:सन्देह यूसुफ फाड़ डाला गया है। 01O 37 34 तब याकूब ने अपने वस्त्रा फाड़े और कमर में टाट लपेटा, और अपने पुत्रा के लिये बहुत दिनों तक विलाप करता रहा। 01O 37 35 और उसके सब बेटे- बेटियों ने उसको शान्ति देने का यत्न किया; पर उसको शान्ति न मिली; और वह यही कहता रहा, मैं तो विलाप करता हुआ अपने पुत्रा के पास अधोलोक में उतर जाऊंगा। इस प्रकार उसका पिता उसके लिये रोता ही रहा। 01O 37 36 और मिद्यानियों ने यूसुफ को मि में ले जाकर पोतीपर नाम, फिरौन के एक हाकिम, और जल्लादों के प्रधान, के हाथ बेच डाला।। 01O 38 1 उन्हीं दिनों में ऐसा हुआ, कि यहूदा अपने भाईयों के पास से चला गया, और हीरा नाम एक अदुल्लामवासी पुरूष के पास डेरा किया। 01O 38 2 वहां यहूदा ने शूआ नाम एक कनानी पुरूष की बेटी को देखा; और उसको ब्याहकर उसके पास गया। 01O 38 3 वह गर्भवती हुई, और उसके एक पुत्रा उत्पन्न हुआ; और यहूदा ने उसका नाम एर रखा। 01O 38 4 और वह फिर गर्भवती हुई, और उसके एक पुत्रा उत्पन्न हुआ; और उसका नाम ओनान रखा गया। 01O 38 5 फिर उसके एक पुत्रा और उत्पन्न हुआ, और उसका नाम शेला रखा गया : और जिस समय इसका जन्म हुआ उस समय यहूदा कजीब में रहता था। 01O 38 6 और यहूदा ने तामार नाम एक स्त्री से अपने जेठे एर का विवाह कर दिया। 01O 38 7 परन्तु यहूदा का वह जेठा एर यहोवा के लेखे में दुष्ट था, इसलिये यहोवा ने उसको मार डाला। 01O 38 8 तब यहूदा ने ओनान से कहा, अपनी भौजाई के पास जा, और उसके साथ देवर का धर्म पूरा करके अपने भाई के लिये सन्तान उत्पन्न कर। 01O 38 9 ओनान तो जानता था कि सन्तान तो मेरी न ठहरेगी: सो ऐसा हुआ, कि जब वह अपनी भौजाई के पास गया, तब उस ने भूमि पर वीर्य गिराकर नाश किया, जिस से ऐसा न हो कि उसके भाई के नाम से वंश चले। 01O 38 10 यह काम जो उस ने किया उसे यहोवा अप्रसन्न हुआ: और उस ने उसको भी मार डाला। 01O 38 11 तब यहूदा ने इस डर के मारे, कि कहीं ऐसा न हो कि अपने भाइयों की नाई शेला भी मरे, अपनी बहू तामार से कहा, जब तक मेरा पुत्रा शेला सियाना न हो तब तक अपने पिता के घर में विधवा की बैठी रह, सो तामार अपने पिता के घर में जाकर रहने लगी। 01O 38 12 बहुत समय के बीतने पर यहूदा की पत्नी जो शूआ की बेटी थी सो मर गई; फिर यहूदा शोक से छूटकर अपने मित्रा हीरा अदुल्लामवासी समेत अपनी भेड़- बकरियों का ऊन कतराने के लिये तिम्नाथ को गया। 01O 38 13 और तामार को यह समाचार मिला, कि तेरा ससुर अपनी भेड़- बकरियों का ऊन कतराने के लिये तिम्नाथ को जा रहा है। 01O 38 14 तब उस ने यह सोचकर, कि शेला सियाना तो हो गया पर मैं उसकी स्त्री नहीं होने पाई; अपना विधवापन का पहिरावा उतारा, और घूंघट डालकर अपने को ढांप लिया, और एनैम नगर के फाटक के पास, जो तिम्नाथ के मार्ग में है, जा बैठी: 01O 38 15 जब यहूदा ने उसको देखा, उस ने उस को वेश्या समझा; क्योंकि वह अपना मुंह ढ़ापे हुए थी। 01O 38 16 और वह मार्ग से उसकी ओर फिरा और उस से कहने लगा, मुझे अपने पास आने दे, (क्योंकि उसे यह मालूम न था कि वह उसकी बहू है)। और वह कहने लगी, कि यदि मैं तुझे अपने पास आने दूं, तो तू मुझे क्या देगा? 01O 38 17 उस ने कहा, मैं अपनी बकरियों में से बकरी का एक बच्चा तेरे पास भेज दूंगा। 01O 38 18 उस ने पूछा, मैं तेरे पास क्या रेहन रख जाऊं? उस ने कहा, अपनी मुहर, और बाजूबन्द, और अपने हाथ की छड़ी। तब उस ने उसको वे वसतुएं दे दीं, और उसके पास गया, और वह उस से गर्भवती हुई। 01O 38 19 तब वह उठकर चली गई, और अपना घूंघट उतारके अपना विधवापन का पहिरावा फिर पहिन लिया। 01O 38 20 तब यहूदा ने बकरी का बच्चा अपने मित्रा उस अदुल्लामवासी के हाथ भेज दिया, कि वह रेहन रखी हुई वस्तुएं उस स्त्री के हाथ से छुड़ा ले आए; पर वह स्त्री उसको न मिली। 01O 38 21 तब उस ने वहां के लोगों से पूछा, कि वह देवदासी जो एनैम में मार्ग की एक और बैठी थी, कहां है? उन्हों ने कहा, यहां तो कोई देवदासी न थी। 01O 38 22 सो उस ने यहूदा के पास लौटके कहा, मुझे वह नहीं मिली; और उस स्थान के लोगों ने कहा, कि यहां तो कोई देवदासी न थी। 01O 38 23 तब यहूदा ने कहा, अच्छा, वह बन्धक उस के पास रहने दे, नहीं तो हम लोग तुच्छ गिने जाएंगे: देख, मैं ने बकरी का यह बच्चा भेज दिया, पर वह तुझे नहीं मिली। 01O 38 24 और तीन महीने के पीछे यहूदा को यह समाचार मिला, कि तेरी बहू तामार ने व्यभिचार किया है; वरन वह व्यभिचार से गर्भवती भी हो गई है। तब यहूदा ने कहा, उसको बाहर ले आओ, कि वह जलाई जाए। 01O 38 25 जब उसे बाहर निकाल रहे थे, तब उस ने, अपने ससुर के पास यह कहला भेजा, कि जिस पुरूष की ये वस्तुएं हैं, उसी से मैं गर्भवती हूं; फिर उस ने यह भी कहलाया, कि पहिचान तो सही, कि यह मुहर, और वाजूबन्द, और छड़ी किस की है। 01O 38 26 यहूदा ने उन्हें पहिचानकर कहा, वह तो मुझ से कम दोषी है; क्योंकि मैं ने उसे अपने पुत्रा शेला को न ब्याह दिया। और उस ने उस से फिर कभी प्रसंग न किया। 01O 38 27 जब उसके जनने का समय आया, तब यह जान पड़ा कि उसके गर्भ में जुड़वे बच्चे हैं। 01O 38 28 और जब वह जनने लगी तब एक बालक ने अपना हाथ बढ़ाया: और धाय ने लाल सूत लेकर उसके हाथ में यह कहते हुये बान्ध दिया, कि पहिले यही उत्पन्न हुआ। 01O 38 29 जब उस ने हाथ समेट लिया, तब उसका भाई उत्पन्न हो गया: तब उस धाय ने कहा, तू क्यों बरबस निकल आया है ? इसलिये उसका नाम पेरेस रखा गया। 01O 38 30 पीछे उसका भाई जिसके हाथ में लाल सूत बन्धा था उत्पन्न हुआ, और उसका नाम जेरह रखा गया।। 01O 39 1 जब यूसुफ मि में पहुंचाया गया, तब पोतीपर नाम एक मिद्दी, जो फिरौन का हाकिम, और जल्लादों का प्रधान था, उस ने उसको इश्माएलियों के हाथ, से जो उसे वहां ले गए थे, मोल लिया। 01O 39 2 और यूसुफ अपने मिद्दी स्वामी के घर में रहता था, और यहोवा उसके संग था; सो वह भाग्यवान् पुरूष हो गया। 01O 39 3 और यूसुफ के स्वामी ने देखा, कि यहोवा उसके संग रहता है, और जो काम वह करता है उसको यहोवा उसके हाथ से सुफल कर देता है। 01O 39 4 तब उसकी अनुग्रह की दृष्टि उस पर हुई, और वह उसकी सेवा टहल करने के लिये नियुक्त किया गया : फिर उस ने उसको अपने घर का अधिकारी बनाके अपना सब कुछ उसके हाथ में सौप दिया। 01O 39 5 और जब से उस ने उसको अपने घर का और अपनी सारी सम्पत्ति का अधिकारी बनाया, तब से यहोवा यूसुफ के कारण उस मिद्दी के घर पर आशीष देने लगा; और क्या घर में, क्या मैदान में, उसका जो कुछ था, सब पर यहोवा की आशीष होने लगी। 01O 39 6 सो उस ने अपना सब कुछ यूसुफ के हाथ में यहां तक छोड़ दिया: कि अपने खाने की रोटी को छोड़, वह अपनी सम्पत्ति का हाल कुछ न जानता था। और यूसुफ सुन्दर और रूपवान् था। 01O 39 7 इन बातों के पश्चात् ऐसा हुआ, कि उसके स्वामी की पत्नी ने यूसुफ की ओर आंख लगाई; और कहा, मेरे साथ सो। 01O 39 8 पर उस ने अस्वीकार करते हुए अपने स्वामी की पत्नी से कहा, सुन, जो कुछ इस घर में है मेरे हाथ में है; उसे मेरा स्वामी कुछ नहीं जानता, और उस ने अपना सब कुछ मेरे हाथ में सौप दिया है। 01O 39 9 इस घर में मुझ से बड़ा कोई नहीं; और उस ने तुझे छोड़, जो उसकी पत्नी है; मुझ से कुछ नहीं रख छोड़ा; सो भला, मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्वर का अपराधी क्योंकर बनूं ? 01O 39 10 और ऐसा हुआ, कि वह प्रति दिन यूसुफ से बातें करती रही, पर उस ने उसकी न मानी, कि उसके पास लेटे वा उसके संग रहे। 01O 39 11 एक दिन क्या हुआ, कि यूसुफ अपना काम काज करने के लिये घर में गया, और घर के सेवकों में से कोई भी घर के अन्दर न था। 01O 39 12 तब उस स्त्री ने उसका वस्त्रा पकड़कर कहा, मेरे साथ सो, पर वह अपना वस्त्रा उसके हाथ में छोड़कर भागा, और बाहर निकल गया। 01O 39 13 यह देखकर, कि वह अपना वस्त्रा मेरे हाथ में छोड़कर बाहर भाग गया, 01O 39 14 उस स्त्री ने अपने घर के सेवकों को बुलाकर कहा, देखो, वह एक इब्री मनुष्य को हमारा तिरस्कार करने के लिये हमारे पास ले आया है। वह तो मेरे साथ सोने के मतलब से मेरे पास अन्दर आया था और मैं ऊंचे स्वर से चिल्ला उठी। 01O 39 15 और मेरी बड़ी चिल्लाहट सुनकर वह अपना वस्त्रा मेरे पास छोड़कर भागा, और बाहर निकल गया। 01O 39 16 और वह उसका वस्त्रा उसके स्वामी के घर आने तक अपने पास रखे रही। 01O 39 17 तब उस ने उस से इस प्रकार की बातें कहीं, कि वह इब्री दास जिसको तू हमारे पास ले आया है, सो मुझ से हंसी करने के लिये मेरे पास आया था। 01O 39 18 और जब मैं ऊंचे स्वर से चिल्ला उठी, तब वह अपना वस्त्रा मेरे पास छोड़कर बाहर भाग गया। 01O 39 19 अपनी पत्नी की ये बातें सुनकर, कि तेरे दास ने मुझ से ऐसा ऐसा काम किया, यूसुफ के स्वामी का कोप भड़का। 01O 39 20 और यूसुफ के स्वामी ने उसको पकड़कर बन्दीगृह में, जहां राजा के कैदी बन्द थे, डलवा दिया : सो वह उस बन्दीगृह में रहने लगा। 01O 39 21 पर यहोवा यूसुफ के संग संग रहा, और उस पर करूणा की, और बन्दीगृह के दरोगा के अनुग्रह की दृष्टि उस पर हुई। 01O 39 22 सो बन्दीगृह के दरोगा ने उन सब बन्धुओं को, जो कारागार में थे, यूसुफ के हाथ में सौप दिया; और जो जो काम वे वहां करते थे, वह उसी की आज्ञा से होता था। 01O 39 23 बन्दीगृह के दरोगा के वश में जो कुछ था; क्योंकि उस में से उसको कोई भी वस्तु देखनी न पड़ती थी; इसलिये कि यहोवा यूसुफ के साथ था; और जो कुछ वह करता था, यहोवा उसको उस में सफलता देता था। 01O 40 1 इन बातों के पश्चात् ऐसा हुआ, कि मि के राजा के पिलानेहारे और पकानेहारे ने अपने स्वामी का कुछ अपराध किया। 01O 40 2 तब फिरौन ने अपने उन दोनों हाकिमों पर, अर्थात् पिलानेहारे के प्रधान, और पकानेहारों के प्रधान पर क्रोधित होकर 01O 40 3 उन्हें कैद कराके, जल्लादों के प्रधान के घर के उसी बन्दीगृह में, जहां यूसुफ बन्धुआ था, डलवा दिया। 01O 40 4 तब जल्लादों के प्रधान ने उनको यूसुफ के हाथ सौपा, और वह उनकी सेवा टहल करने लगा: सो वे कुछ दिन तक बन्दीगृह में रहे। 01O 40 5 और मि के राजा का पिलानेहारा और पकानेहारा, जो बन्दीगृह में बन्द थे, उन दोनों ने एक ही रात में, अपने अपने होनहार के अनुसार, स्वप्न देखा। 01O 40 6 बिहान को जब यूसुफ उनके पास अन्दर गया, तब उन पर उस ने जो दृष्टि की, तो क्या देखता है, कि वे उदास हैं। 01O 40 7 सो उस ने फिरौन के उन हाकिमों से, जो उसके साथ उसके स्वामी के घर के बन्दीगृह में थे, पूछा, कि आज तुम्हारे मुंह क्यों उदास हैं ? 01O 40 8 उन्हों ने उस से कहा, हम दोनो ने स्वप्न देखा है, और उनके फल का बतानेवाला कोई भी नहीं। यूसुफ ने उन से कहा, क्या स्वप्नों का फल कहना परमेश्वर का काम नहीं है? मुझे अपना अपना स्वप्न बताओ। 01O 40 9 तब पिलानेहारों का प्रधान अपना स्वप्न यूसुफ को यों बताने लगा: कि मैं ने स्वप्न में देखा, कि मेरे साम्हने एक दाखलता है; 01O 40 10 और उस दाखलता में तीन डालियां हैं: और उस में मानो कलियां लगीं हैं, और वे फूलीं और उसके गुच्छों में दाख लगकर पक गई। 01O 40 11 और फिरौन का कटोरा मेरे हाथ में था: सो मै ने उन दाखों को लेकर फिरौन के कटोरे में निचोड़ा और कटोरे को फिरौन के हाथ में दिया। 01O 40 12 यूसुफ ने उस से कहा, इसका फल यह है; कि तीन डालियों का अर्थ तीन दिन है: 01O 40 13 सो अब से तीन दिन के भीतर फिरौन तेरा सिर ऊंचा करेगा, और फिर से तेरे पद पर तुझे नियुक्त करेगा, और तू पहले की नाई फिरौन का पिलानेहारा होकर उसका कटोरा उसके हाथ में फिर दिया करेगा। 01O 40 14 सो जब तेरा भला हो जाए तब मुझे स्मरण करना, और मुझ पर कृपा करके, फिरौन से मेरी चर्चा चलाना, और इस घर से मुझे छुड़वा देना। 01O 40 15 क्योंकि सचमुच इब्रानियों के देश से मुझे चुरा कर ले आए हैं, और यहां भी मै ने कोई ऐसा काम नहीं किया, जिसके कारण मैं इस कारागार में डाला जाऊं। 01O 40 16 यह देखकर, कि उसके स्वप्न का फल अच्छा निकला, पकानेहारों के प्रधान ने यूसुफ से कहा, मैं ने भी स्वप्न देखा है, वह यह है: मै ने देखा, कि मेरे सिर पर सफेद रोटी की तीन टोकरियां है: 01O 40 17 और ऊपर की टोकरी में फिरौन के लिये सब प्रकार की पकी पकाई वस्तुएं हैं; और पक्षी मेरे सिर पर की टोकरी में से उन वस्तुओं को खा रहे हैं। 01O 40 18 यूसुफ ने कहा, इसका फल यह है; कि तीन टोकरियों का अर्थ तीन दिन है। 01O 40 19 सो अब से तीन दिन के भीतर फिरौन तेरा सिर कटवाकर तुझे एक वृक्ष पर टंगवा देगा, और पक्षी तेरे मांस को नोच नोच कर खाएंगे। 01O 40 20 और तीसरे दिन फिरौन का जन्मदिन था, उस ने अपने सब कर्मचारियों की जेवनार की, और उन में से पिलानेहारों के प्रधान, और पकानेहारों के प्रधान दोनों को बन्दीगृह से निकलवाया। 01O 40 21 और पिलानेहारों के प्रधान को तो पिलानेहारे के पद पर फिर से नियुक्त किया, और वह फिरौन के हाथ में कटोरा देने लगा। 01O 40 22 पर पकानेहारों के प्रधान को उस ने टंगवा दिया, जैसा कि यूसुफ ने उनके स्वप्नों का फल उन से कहा था। 01O 40 23 फिर भी पिलानेहारों के प्रधान ने यूसुफ को स्मरण न रखा; परन्तु उसे भूल गया।। 01O 41 1 पूरे दो बरस के बीतने पर फिरौन ने यह स्वप्न देखा, कि वह नील नदी के किनारे पर खड़ा है। 01O 41 2 और उस नदी में से सात सुन्दर और मोटी मोटी गायें निकलकर कछार की घास चरने लगीं। 01O 41 3 और, क्या देखा, कि उनके पीछे और सात गायें, जो कुरूप और दुर्बल हैं, नदी से निकली; और दूसरी गायों के निकट नदी के तट पर जा खड़ी हुई। 01O 41 4 तब ये कुरूप और दुर्बल गायें उन सात सुन्दर और मोटी मोटी गायों को खा गई। तब फिरौन जाग उठा। 01O 41 5 और वह फिर सो गया और दूसरा स्वप्न देखा, कि एक डंठी में से सात मोटी और अच्छी अच्छी बालें निकलीं। 01O 41 6 और, क्या देखा, कि उनके पीछे सात बालें पतली और पुरवाई से मुरझाई हुई निकलीं। 01O 41 7 और इन पतली बालों ने उन सातों मोटी और अन्न से भरी हुई बालों को निगल लिया। तब फिरौन जागा, और उसे मालूम हुआ कि यह स्वप्न ही था। 01O 41 8 भोर को फिरौन का मन व्याकुल हुआ; और उस ने मि के सब ज्योतिषियों, और पण्डितों को बुलवा भेजा; और उनको अपने स्वप्न बताएं; पर उन में से कोई भी उनका फल फिरौन से न कह सहा। 01O 41 9 तब पिलानेहारों का प्रधान फिरौन से बोल उठा, कि मेरे अपराध आज मुझे स्मरण आए: 01O 41 10 जब फिरौन अपने दासों से क्रोधित हुआ था, और मुझे और पकानेहारों के प्रधान को कैद कराके जल्लादों के प्रधान के घर के बन्दीगृह में डाल दिया था; 01O 41 11 तब हम दोनों ने, एक ही रात में, अपने अपने होनहार के अनुसार स्वप्न देखा; 01O 41 12 और वहां हमारे साथ एक इब्री जवान था, जो जल्लादों के प्रधान का दास था; सो हम ने उसको बताया, और उस ने हमारे स्वप्नों का फल हम से कहा, हम में से एक एक के स्वप्न का फल उस ने बता दिया। 01O 41 13 और जैसा जैसा फल उस ने हम से कहा था, वैसा की हुआ भी, अर्थात् मुझ को तो मेरा पद फिर मिला, पर वह फांसी पर लटकाया गया। 01O 41 14 तब फिरौन ने यूसुफ को बुलवा भेजा। और वह झटपट बन्दीगृह से बाहर निकाला गया, और बाल बनवाकर, और वस्त्रा बदलकर फिरौन के साम्हने आया। 01O 41 15 फिरौन ने यूसुफ से कहा, मैं ने एक स्वप्न देखा है, और उसके फल का बतानेवाला कोई भी नहीं; और मैं ने तेरे विषय में सुना है, कि तू स्वप्न सुनते ही उसका फल बता सकता है। 01O 41 16 यूसुफ ने फिरौन से कहा, मै तो कुछ नहीं जानता : परमेश्वर ही फिरौन के लिये शुभ वचन देगा। 01O 41 17 फिर फिरौन यूसुफ से कहने लगा, मै ने अपने स्वप्न में देखा, कि मैं नील नदी के किनारे पर खड़ा हूं 01O 41 18 फिर, क्या देखा, कि नदी में से सात मोटी और सुन्दर सुन्दर गायें निकलकर कछार की घास चरने लगी। 01O 41 19 फिर, क्या देखा, कि उनके पीछे सात और गायें निकली, जो दुबली, और बहुत कुरूप, और दुर्बल हैं; मै ने तो सारे मि देश में ऐसी कुडौल गायें कभी नहीं देखीं। 01O 41 20 और इन दुर्बल और कुडौल गायों ने उन पहली सातों मोटी मोटी गायों को खा लिया। 01O 41 21 और जब वे उनको खा गई तब यह मालूम नहीं होता था कि वे उनको खा गई हैं, क्योंकि वे पहिले की नाई जैसी की तैसी कुडौल रहीं। तब मैं जाग उठा। 01O 41 22 फिर मैं ने दूसरा स्वप्न देखा, कि एक ही डंठी में सात अच्छी अच्छी और अन्न से भरी हुई बालें निकलीं। 01O 41 23 फिर, क्या देखता हूं, कि उनके पीछे और सात बालें छूछी छूछी और पतली और पुरवाई से मुरझाई हुई निकलीं। 01O 41 24 और इन पतली बालों ने उन सात अच्छी अच्छी बालों को निगल लिया। इसे मैं ने ज्योतिषियों को बताया, पर इस का समझनेहारा कोई नहीं मिला। 01O 41 25 तब यूसुफ ने फिरौन से कहा, फिरौन का स्वप्न एक ही है, परमेश्वर जो काम किया चाहता है, उसको उस ने फिरौन को जताया है। 01O 41 26 वे सात अच्छी अच्छी गायें सात वर्ष हैं; और वे सात अच्छी अच्छी बालें भी सात वर्ष हैं; स्वप्न एक ही है। 01O 41 27 फिर उनके पीछे जो दुर्बल और कुडौल गायें निकलीं, और जो सात छूछी और पुरवाई से मुरझाई हुई बालें निकाली, वे अकाल के सात वर्ष होंगे। 01O 41 28 यह वही बात है, जो मैं फिरौन से कह चुका हूं, कि परमेश्वर जो काम किया चाहता है, उसे उस ने फिरौन को दिखाया है। 01O 41 29 सुन, सारे मि देश में सात वर्ष तो बहुतायत की उपज के होंगे। 01O 41 30 उनके पश्चात् सात वर्ष अकाल के आयेंगे, और सारे मि देश में लोग इस सारी उपज को भूल जायेंगे; और अकाल से देश का नाश होगा। 01O 41 31 और सुकाल (बहुतायत की उपज) देश में फिर स्मरण न रहेगा क्योंकि अकाल अत्यन्त भयंकर होगा। 01O 41 32 और फिरौन ने जो यह स्वप्न दो बार देखा है इसका भेद यही है, कि यह बात परमेश्वर की ओर से नियुक्त हो चुकी है, और परमेश्वर इसे शीघ्र ही पूरा करेगा। 01O 41 33 इसलिये अब फिरौन किसी समझदार और बुद्धिमान् पुरूष को ढूंढ़ करके उसे मि देश पर प्रधानमंत्री ठहराए। 01O 41 34 फिरौन यह करे, कि देश पर अधिकारियों को नियुक्त करे, और जब तक सुकाल के सात वर्ष रहें तब तक वह मि देश की उपज का पंचमांश लिया करे। 01O 41 35 और वे इन अच्छे वर्षों में सब प्रकार की भोजनवस्तु इकट्ठा करें, और नगर नगर में भण्डार घर भोजन के लिये फिरौन के वश में करके उसकी रक्षा करें। 01O 41 36 और वह भोजनवस्तु अकाल के उन सात वर्षों के लिये, जो मि देश में आएंगे, देश के भोजन के निमित्त रखी रहे, जिस से देश उस अकाल से स्त्यानाश न हो जाए। 01O 41 37 यह बात फिरौन और उसके सारे कर्मचारियों को अच्छी लगी। 01O 41 38 सो फिरौन ने अपने कर्मचारियों से कहा, कि क्या हम को ऐसा पुरूष जैसा यह है, जिस में परमेश्वर का आत्मा रहता है, मिल सकता है ? 01O 41 39 फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, परमेश्वर ने जो तुझे इतना ज्ञान दिया है, कि तेरे तुल्य कोई समझदार और बुद्धिमान् नहीं; 01O 41 40 इस कारण तू मेरे घर का अधिकारी होगा, और तेरी आज्ञा के अनुसार मेरी सारी प्रजा चलेगी, केवल राजगद्दी के विषय मैं तुझ से बड़ा ठहरूंगा। 01O 41 41 फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, सुन, मैं तुझ को मि के सारे देश के ऊपर अधिकारी ठहरा देता हूं 01O 41 42 तब फिरौन ने अपने हाथ से अंगूठी निकालके यूसुफ के हाथ में पहिना दी; और उसको बढ़िया मलमल के वस्त्रा पहिनवा दिए, और उसके गले में सोने की जंजीर डाल दी; 01O 41 43 और उसको अपने दूसरे रथ पर चढ़वाया; और लोग उसके आगे आगे यह प्रचार करते चले, कि घुटने टेककर दण्डवत करो और उस ने उसको मि के सारे देश के ऊपर प्रधान मंत्री ठहराया। 01O 41 44 फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, फिरौन तो मैं हूं, और सारे मि देश में कोई भी तेरी आज्ञा के बिना हाथ पांव न हिलाएगा। 01O 41 45 और फिरौन ने यूसुफ का नाम सापन त्पानेह रखा। और ओन नगर के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से उसका ब्याह करा दिया। और यूसुफ मि के सारे देश में दौरा करने लगा। 01O 41 46 जब यूसुफ मि के राजा फिरौन के सम्मुख खड़ा हुआ, तब वह तीस वर्ष का था। सो वह फिरौन के सम्मुख से निकलकर मि के सारे देश में दौरा करने लगा। 01O 41 47 सुकाल के सातों वर्षों में भूमि बहुतायत से अन्न उपजाती रही। 01O 41 48 और यूसुफ उन सातों वर्षों में सब प्रकार की भोजनवस्तुएं, जो मि देश में होती थीं, जमा करके नगरों में रखता गया, और हर एक नगर के चारों ओर के खेतों की भोजनवस्तुओं को वह उसी नगर में इकट्ठा करता गया। 01O 41 49 सो यूसुफ ने अन्न को समुद्र की बालू के समान अत्यन्त बहुतायत से राशि राशि करके रखा, यहां तक कि उस ने उनका गिनना छोड़ दिया; क्योंकि वे असंख्य हो गई। 01O 41 50 अकाल के प्रथम वर्ष के आने से पहिले यूसुफ के दो पुत्रा, ओन के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से जन्मे। 01O 41 51 और यूसुफ ने अपने जेठे का नाम यह कहके मनश्शे रखा, कि परमेश्वर ने मुझ से सारा क्लेश, और मेरे पिता का सारा घराना भुला दिया है। 01O 41 52 और दूसरे का नाम उस ने यह कहकर एप्रैम रखा, कि मुझे दु:ख भोगने के देश में परमेश्वर ने फुलाया फलाया है। 01O 41 53 और मि देश के सुकाल के वे सात वर्ष समाप्त हो गए। 01O 41 54 और यूसुफ के कहने के अनुसार सात वर्षों के लिये अकाल आरम्भ हो गया। और सब देशों में अकाल पड़ने लगा; परन्तु सारे मि देश में अन्न था। 01O 41 55 जब मि का सारा देश भूखों मरने लगा; तब प्रजा फिरोन से चिल्ला चिल्लाकर रोटी मांगने लगी : और वह सब मिस्त्रियों से कहा करता था, यूसुफ के पास जाओ: और जो कुछ वह तुम से कहे, वही करो। 01O 41 56 सो जब अकाल सारी पृथ्वी पर फैल गया, और मि देश में काल का भयंकर रूप हो गया, तब यूसुफ सब भण्डारों को खोल खोलके मिस्त्रियों के हाथ अन्न बेचने लगा। 01O 41 57 सो सारी पृथ्वी के लोग मि में अन्न मोल लेने के लिये यूसुफ के पास आने लगे, क्योंकि सारी पृथ्वी पर भयंकर अकाल था। 01O 42 1 पूरे दो बरस के बीतने पर फिरौन ने यह स्वप्न देखा, कि वह नील नदी के किनारे पर खड़ा है। 01O 42 2 और उस नदी में से सात सुन्दर और मोटी मोटी गायें निकलकर कछार की घास चरने लगीं। 01O 42 3 और, क्या देखा, कि उनके पीछे और सात गायें, जो कुरूप और दुर्बल हैं, नदी से निकली; और दूसरी गायों के निकट नदी के तट पर जा खड़ी हुई। 01O 42 4 तब ये कुरूप और दुर्बल गायें उन सात सुन्दर और मोटी मोटी गायों को खा गई। तब फिरौन जाग उठा। 01O 42 5 और वह फिर सो गया और दूसरा स्वप्न देखा, कि एक डंठी में से सात मोटी और अच्छी अच्छी बालें निकलीं। 01O 42 6 और, क्या देखा, कि उनके पीछे सात बालें पतली और पुरवाई से मुरझाई हुई निकलीं। 01O 42 7 और इन पतली बालों ने उन सातों मोटी और अन्न से भरी हुई बालों को निगल लिया। तब फिरौन जागा, और उसे मालूम हुआ कि यह स्वप्न ही था। 01O 42 8 भोर को फिरौन का मन व्याकुल हुआ; और उस ने मि के सब ज्योतिषियों, और पण्डितों को बुलवा भेजा; और उनको अपने स्वप्न बताएं; पर उन में से कोई भी उनका फल फिरौन से न कह सहा। 01O 42 9 तब पिलानेहारों का प्रधान फिरौन से बोल उठा, कि मेरे अपराध आज मुझे स्मरण आए: 01O 42 10 जब फिरौन अपने दासों से क्रोधित हुआ था, और मुझे और पकानेहारों के प्रधान को कैद कराके जल्लादों के प्रधान के घर के बन्दीगृह में डाल दिया था; 01O 42 11 तब हम दोनों ने, एक ही रात में, अपने अपने होनहार के अनुसार स्वप्न देखा; 01O 42 12 और वहां हमारे साथ एक इब्री जवान था, जो जल्लादों के प्रधान का दास था; सो हम ने उसको बताया, और उस ने हमारे स्वप्नों का फल हम से कहा, हम में से एक एक के स्वप्न का फल उस ने बता दिया। 01O 42 13 और जैसा जैसा फल उस ने हम से कहा था, वैसा की हुआ भी, अर्थात् मुझ को तो मेरा पद फिर मिला, पर वह फांसी पर लटकाया गया। 01O 42 14 तब फिरौन ने यूसुफ को बुलवा भेजा। और वह झटपट बन्दीगृह से बाहर निकाला गया, और बाल बनवाकर, और वस्त्रा बदलकर फिरौन के साम्हने आया। 01O 42 15 फिरौन ने यूसुफ से कहा, मैं ने एक स्वप्न देखा है, और उसके फल का बतानेवाला कोई भी नहीं; और मैं ने तेरे विषय में सुना है, कि तू स्वप्न सुनते ही उसका फल बता सकता है। 01O 42 16 यूसुफ ने फिरौन से कहा, मै तो कुछ नहीं जानता : परमेश्वर ही फिरौन के लिये शुभ वचन देगा। 01O 42 17 फिर फिरौन यूसुफ से कहने लगा, मै ने अपने स्वप्न में देखा, कि मैं नील नदी के किनारे पर खड़ा हूं 01O 42 18 फिर, क्या देखा, कि नदी में से सात मोटी और सुन्दर सुन्दर गायें निकलकर कछार की घास चरने लगी। 01O 42 19 फिर, क्या देखा, कि उनके पीछे सात और गायें निकली, जो दुबली, और बहुत कुरूप, और दुर्बल हैं; मै ने तो सारे मि देश में ऐसी कुडौल गायें कभी नहीं देखीं। 01O 42 20 और इन दुर्बल और कुडौल गायों ने उन पहली सातों मोटी मोटी गायों को खा लिया। 01O 42 21 और जब वे उनको खा गई तब यह मालूम नहीं होता था कि वे उनको खा गई हैं, क्योंकि वे पहिले की नाई जैसी की तैसी कुडौल रहीं। तब मैं जाग उठा। 01O 42 22 फिर मैं ने दूसरा स्वप्न देखा, कि एक ही डंठी में सात अच्छी अच्छी और अन्न से भरी हुई बालें निकलीं। 01O 42 23 फिर, क्या देखता हूं, कि उनके पीछे और सात बालें छूछी छूछी और पतली और पुरवाई से मुरझाई हुई निकलीं। 01O 42 24 और इन पतली बालों ने उन सात अच्छी अच्छी बालों को निगल लिया। इसे मैं ने ज्योतिषियों को बताया, पर इस का समझनेहारा कोई नहीं मिला। 01O 42 25 तब यूसुफ ने फिरौन से कहा, फिरौन का स्वप्न एक ही है, परमेश्वर जो काम किया चाहता है, उसको उस ने फिरौन को जताया है। 01O 42 26 वे सात अच्छी अच्छी गायें सात वर्ष हैं; और वे सात अच्छी अच्छी बालें भी सात वर्ष हैं; स्वप्न एक ही है। 01O 42 27 फिर उनके पीछे जो दुर्बल और कुडौल गायें निकलीं, और जो सात छूछी और पुरवाई से मुरझाई हुई बालें निकाली, वे अकाल के सात वर्ष होंगे। 01O 42 28 यह वही बात है, जो मैं फिरौन से कह चुका हूं, कि परमेश्वर जो काम किया चाहता है, उसे उस ने फिरौन को दिखाया है। 01O 42 29 सुन, सारे मि देश में सात वर्ष तो बहुतायत की उपज के होंगे। 01O 42 30 उनके पश्चात् सात वर्ष अकाल के आयेंगे, और सारे मि देश में लोग इस सारी उपज को भूल जायेंगे; और अकाल से देश का नाश होगा। 01O 42 31 और सुकाल (बहुतायत की उपज) देश में फिर स्मरण न रहेगा क्योंकि अकाल अत्यन्त भयंकर होगा। 01O 42 32 और फिरौन ने जो यह स्वप्न दो बार देखा है इसका भेद यही है, कि यह बात परमेश्वर की ओर से नियुक्त हो चुकी है, और परमेश्वर इसे शीघ्र ही पूरा करेगा। 01O 42 33 इसलिये अब फिरौन किसी समझदार और बुद्धिमान् पुरूष को ढूंढ़ करके उसे मि देश पर प्रधानमंत्री ठहराए। 01O 42 34 फिरौन यह करे, कि देश पर अधिकारियों को नियुक्त करे, और जब तक सुकाल के सात वर्ष रहें तब तक वह मि देश की उपज का पंचमांश लिया करे। 01O 42 35 और वे इन अच्छे वर्षों में सब प्रकार की भोजनवस्तु इकट्ठा करें, और नगर नगर में भण्डार घर भोजन के लिये फिरौन के वश में करके उसकी रक्षा करें। 01O 42 36 और वह भोजनवस्तु अकाल के उन सात वर्षों के लिये, जो मि देश में आएंगे, देश के भोजन के निमित्त रखी रहे, जिस से देश उस अकाल से स्त्यानाश न हो जाए। 01O 42 37 यह बात फिरौन और उसके सारे कर्मचारियों को अच्छी लगी। 01O 42 38 सो फिरौन ने अपने कर्मचारियों से कहा, कि क्या हम को ऐसा पुरूष जैसा यह है, जिस में परमेश्वर का आत्मा रहता है, मिल सकता है ? 01O 43 1 और अकाल देश में और भी भयंकर होता गया। 01O 43 2 जब वह अन्न जो वे मि से ले आए थे समाप्त हो गया तब उनके पिता ने उन से कहा, फिर जाकर हमारे लिये थोड़ी सी भोजनवस्तु मोल ले आओ। 01O 43 3 तब यहूदा ने उस से कहा, उस पुरूष ने हम को चितावनी देकर कहा, कि यदि तुम्हारा भाई तुम्हारे संग न आए, तो तुम मेरे सम्मुख न आने पाओगे। 01O 43 4 इसलिये यदि तू हमारे भाई को हमारे संग भेजे, तब तो हम जाकर तेरे लिये भोजनवस्तु मोल ले आएंगे; 01O 43 5 परन्तु यदि तू उसको न भेजे, तो हम न जाएंगे : क्योंकि उस पुरूष ने हम से कहा, कि यदि तुम्हारा भाई तुम्हारे संग न हो, तो तुम मेरे सम्मुख न आने पाओगे। 01O 43 6 तब इस्राएल ने कहा, तुम ने उस पुरूष को यह बताकर कि हमारा एक और भाई है, क्यों मुझ से बुरा बर्ताव किया ? 01O 43 7 उन्हों ने कहा, जब उस पुरूष ने हमारी और हमारे कुटुम्बियों की दशा को इस रीति पूछा, कि क्या तुम्हारा पिता अब तक जीवित है? क्या तुम्हारे कोई और भाई भी है ? तब हम ने इन प्रश्नों के अनुसार उस से वर्णन किया; फिर हम क्या जानते थे कि वह कहेगा, कि अपने भाई को यहां ले आओ। 01O 43 8 फिर यहूदा ने अपने पिता इस्राएल से कहा, उस लड़के को मेरे संग भेज दे, कि हम चले जाएं; इस से हम, और तू, और हमारे बालबच्चे मरने न पाएंगे, वरन जीवित रहेंगे। 01O 43 9 मैं उसका जामिन होता हूं; मेरे ही हाथ से तू उसको फेर लेना: यदि मैं उसको तेरे पास पहुंचाकर साम्हने न खड़ाकर दूं, तब तो मैं सदा के लिये तेरा अपराधी ठहरूंगा। 01O 43 10 यदि हम लोग विलम्ब न करते, तो अब तब दूसरी बार लौट आते। 01O 43 11 तब उनके पिता इस्राएल ने उन से कहा, यदि सचमुच ऐसी ही बात है, तो यह करो; इस देश की उत्तम उत्तम वस्तुओं में से कुछ कुछ अपने बोरों में उस पुरूष के लिये भेंट ले जाओ : जैसे थोड़ा सा बलसान, और थोड़ा सा मधु, और कुछ सुगन्ध द्रव्य, और गन्धरस, पिस्ते, और बादाम। 01O 43 12 फिर अपने अपने साथ दूना रूपया ले जाओ; और जो रूपया तुम्हारे बोरों के मुंह पर रखकर फेर दिया गया था, उसको भी लेते जाओ; कदाचित् यह भूल से हुआ हो। 01O 43 13 और अपने भाई को भी संग लेकर उस पुरूष के पास फिर जाओ, 01O 43 14 और सर्वशक्तिमान ईश्वर उस पुरूष को तुम पर दयालु करेगा, जिस से कि वह तुम्हारे दूसरे भाई को और बिन्यामीन को भी आने दे : और यदि मैं निर्वंश हुआ तो होने दो। 01O 43 15 तब उन मनुष्यों ने वह भेंट, और दूना रूपया, और बिन्यामीन को भी संग लिया, और चल दिए और मि में पहुंचकर यूसुफ के साम्हने खड़े हुए। 01O 43 16 उनके साथ बिन्यामीन को देखकर यूसुफ ने अपने घर के अधिकारी से कहा, उन मनुष्यों को घर में पहुंचा दो, और पशु मारके भोजन तैयार करो; क्योंकि वे लोग दोपहर को मेरे संग भोजन करेंगे। 01O 43 17 तब वह अधिकारी पुरूष यूसुफ के कहने के अनुसार उन पुरूषों को यूसुफ के घर में ले गया। 01O 43 18 जब वे यूसुफ के घर को पहुंचाए गए तब वे आपस में डरकर कहने लगे, कि जो रूपया पहिली बार हमारे बोरों में फेर दिया गया था, उसी के कारण हम भीतर पहुंचाए गए हैं; जिस से कि वह पुरूष हम पर टूट पड़े, और हमें वंश में करके अपने दास बनाए, और हमारे गदहों को भी छीन ले। 01O 43 19 तब वे यूसुफ के घर के अधिकारी के निकट जाकर घर के द्वार पर इस प्रकार कहने लगे, 01O 43 20 कि हे हमारे प्रभु, जब हम पहिली बार अन्न मोल लेने को आए थे, 01O 43 21 तब हम ने सराय में पहुंचकर अपने बोरों को खोला, तो क्या देखा, कि एक एक जन का पूरा पूरा रूपया उसके बोरे के मुंह में रखा है; इसलिये हम उसको अपने साथ फिर लेते आए हैं। 01O 43 22 और दूसरा रूपया भी भोजनवस्तु मोल लेने के लिये लाए हैं; हम नहीं जानते कि हमारा रूपया हमारे बोरों में किस ने रख दिया था। 01O 43 23 उस ने कहा, तुम्हारा कुशल हो, मत डरो: तुम्हारा परमेश्वर, जो तुम्हारे पिता का भी परमेश्वर है, उसी ने तुम को तुम्हारे बोरों में धन दिया होगा, तुम्हारा रूपया तो मुझ को मिल गया था: फिर उस ने शिमोन को निकालकर उनके संग कर दिया। 01O 43 24 तब उस जन ने उन मनुष्यों को यूसुफ के घर में ले जाकर जल दिया, तब उन्हों ने अपने पांवों को धोया; फिर उस ने उनके गदहों के लिये चारा दिया। 01O 43 25 तब यह सुनकर, कि आज हम को यहीं भोजन करना होगा, उन्हों ने यूसुफ के आने के समय तक, अर्थात् दोपहर तक, उस भेंट को इकट्ठा कर रखा। 01O 43 26 जब यूसुफ घर आया तब वे उस भेंट को , जो उनके हाथ में थी, उसके सम्मुख घर में ले गए, और भूमि पर गिरकर उसको दण्डवत् किया। 01O 43 27 उस ने उनका कुशल पूछा, और कहा, क्या तुम्हारा बूढ़ा पिता, जिसकी तुम ने चर्चा की थी, कुशल से है ? क्या वह अब तक जीवित है ? 01O 43 28 उन्हों ने कहा, हां तेरा दास हमारा पिता कुशल से है और अब तक जीवित है; तब उन्हों ने सिर झुकाकर फिर दण्डवत् किया। 01O 43 29 तब उस ने आंखे उठाकर और अपने सगे भाई बिन्यामीन को देखकर पूछा, क्या तुम्हारा वह छोटा भाई, जिसकी चर्चा तुम ने मुझ से की थी, यही है ? फिर उस ने कहा, हे मेरे पुत्रा, परमेश्वर तुझ पर अनुग्रह करे। 01O 43 30 तब अपने भाई के स्नेह से मन भर आने के कारण और यह सोचकर, कि मैं कहां जाकर रोऊं, यूसुफ फुर्ती से अपनी कोठरी में गया, और वहां रो पड़ा। 01O 43 31 फिर अपना मुंह धोकर निकल आया, और अपने को शांत कर कहा, भोजन परोसो। 01O 43 32 तब उन्हों ने उसके लिये तो अलग, और भाइयों के लिये भी अलग, और जो मिद्दी उसके संग खाते थे, उनके लिये भी अलग, भोजन परोसा; इसलिये कि मिद्दी इब्रियों के साथ भोजन नहीं कर सकते, वरन मिद्दी ऐसा करना घृणा समझते थे। 01O 43 33 सो यूसुफ के भाई उसके साम्हने, बड़े बड़े पहिले, और छोटे छोटे पीछे, अपनी अपनी अवस्था के अनुसार, क्रम से बैठाए गए: यह देख वे विस्मित् होकर एक दूसरे की ओर देखने लगे। 01O 43 34 तब यूसुफ अपने साम्हने से भोजन- वस्तुएं उठा उठाके उनके पास भेजने लगा, और बिन्यामीन को अपने भाइयों से पचगुणी अधिक भोजनवस्तु मिली। और उन्हों ने उसके संग मनमाना खाया पिया। 01O 44 1 तब उस ने अपने घर के अधिकारी को आज्ञा दी, कि इन मनुष्यों के बोरों में जितनी भोजनवस्तु समा सके उतनी भर दे, और एक एक जन के रूपये को उसके बोरे के मुंह पर रख दे। 01O 44 2 और मेरा चांदी का कटोरा छोटे के बोरे के मुंह पर उसके अन्न के रूपये के साथ रख दे। यूसुफ की इस आज्ञा के अनुसार उस ने किया। 01O 44 3 बिहान को भोर होते ही वे मनुष्य अपने गदहों समेत विदा किए गए। 01O 44 4 वे नगर से निकले ही थे, और दूर न जाने पाए थे, कि यूसुफ ने अपने घर के अधिकारी से कहा, उन मनुष्यों का पीछा कर, और उनको पाकर उन से कह, कि तुम ने भलाई की सन्ती बुराई क्यों की है? 01O 44 5 क्या यह वह वस्तु नहीं जिस में मेरा स्वामी पीता है, और जिस से वह शकुन भी विचारा करता है ? तुम ने यह जो किया है सो बुरा किया। 01O 44 6 तब उस ने उन्हें जा लिया, और ऐसी ही बातें उन से कहीं। 01O 44 7 उन्हों ने उस से कहा, हे हमारे प्रभु, तू ऐसी बातें क्यों कहता है? ऐसा काम करना तेरे दासों से दूर रहे। 01O 44 8 देख जो रूपया हमारे बोरों के मुंह पर निकला था, जब हम ने उसको कनान देश से ले आकर तुझे फेर दिया, तब, भला, तेरे स्वामी के घर में से हम कोई चांदी वा सोने की वस्तु क्योंकर चुरा सकते हैं ? 01O 44 9 तेरे दासों में से जिस किसी के पास वह निकले, वह मार डाला जाए, और हम भी अपने उस प्रभु के दास जो जाएं। 01O 44 10 उस ने कहा तुम्हारा ही कहना सही, जिसके पास वह निकले सो मेरा दास होगा; और तुम लोग निरपराध ठहरोगे। 01O 44 11 इस पर वे फुर्ती से अपने अपने बोरे को उतार भूमि पर रखकर उन्हें खोलने लगे। 01O 44 12 तब वह ढूंढ़ने लगा, और बडे के बोरे से लेकर छोटे के बोरे तक खोज की : और कटोरा बिन्यामीन के बोरे में मिला। 01O 44 13 तब उन्हों ने अपने अपने वस्त्रा फाड़े, और अपना अपना गदहा लादकर नगर को लौट गए। 01O 44 14 जब यहूदा और उसके भाई यूसुफ के घर पर पहुंचे, और यूसुफ वहीं था, तब वे उसके साम्हने भूमि पर गिरे। 01O 44 15 यूसुफ ने उन से कहा, तुम लोगों ने यह कैसा काम किया है ? क्या तुम न जानते थे, कि मुझ सा मनुष्य शकुन विचार सकता है ? 01O 44 16 यहूदा ने कहा, हम लोग अपने प्रभु से क्या कहें ? हम क्या कहकर अपने को निर्दोषी ठहराएं ? परमेश्वर ने तेरे दासों के अधर्म को पकड़ लिया है : हम, और जिसके पास कटोरा निकला वह भी, हम सब के सब अपने प्रभु के दास ही हैं। 01O 44 17 उस ने कहा, ऐसा करना मुझ से दूर रहे : जिस जन के पास कटोरा निकला है, वही मेरा दास होगा; और तुम लोग अपने पिता के पास कुशल क्षेम से चले जाओ। 01O 44 18 तब यहूदा उसके पास जाकर कहने लगा, हे मेरे प्रभु, तेरे दास को अपने प्रभु से एक बात कहने की आज्ञा हो, और तेरा कोप तेरे दास पर न भड़के; तू तो फिरौन के तुल्य है। 01O 44 19 मेरे प्रभु ने अपने दासों से पूछा था, कि क्या तुम्हारे पिता वा भाई हैं ? 01O 44 20 और हम ने अपने प्रभु से कहा, हां, हमारा बूढ़ा पिता तो है, और उसके बुढ़ापे का एक छोटा सा बालक भी है, परन्तु उसका भाई मर गया है, इसलिये वह अब अपनी माता का अकेला ही रह गया है, और उसका पिता उस से स्नेह रखता है। 01O 44 21 तब तू ने अपने दासों से कहा था, कि उसको मेरे पास ले आओ, जिस से मैं उसको देखूं। 01O 44 22 तब हम ने अपने प्रभु से कहा था, कि वह लड़का अपने पिता को नहीं छोड़ सकता; नहीं तो उसका पिता मर जाएगा। 01O 44 23 और तू ने अपने दासों से कहा, यदि तुम्हारा छोटा भाई तुम्हारे संग न आए, तो तुम मेरे सम्मुख फिर न आने पाओगे। 01O 44 24 सो जब हम अपने पिता तेरे दास के पास गए, तब हम ने उस से अपने प्रभु की बातें कहीं। 01O 44 25 तब हमारे पिता ने कहा, फिर जाकर हमारे लिये थोड़ी सी भोजनवस्तु मोल ले आओ। 01O 44 26 हम ने कहा, हम नहीं जा सकते, हां, यदि हमारा छोटा भाई हमारे संग रहे, तब हम जाएंगे : क्योंकि यदि हमारा छोटा भाई हमारे संग न रहे, तो उस पुरूष के सम्मुख न जाने पाएंगे। 01O 44 27 तब तेरे दास मेरे पिता ने हम से कहा, तुम तो जानते हो कि मेरी स्त्री से दो पुत्रा उत्पन्न हुए। 01O 44 28 और उन में से एक तो मुझे छोड़ ही गया, और मैं ने निश्चय कर लिया, कि वह फाड़ डाला गया होगा ; और तब से मैं उसका मुंह न देख पाया 01O 44 29 01O 44 30 सो यदि तुम इसको भी मेरी आंख की आड़ में ले जाओ, और कोई विपत्ति इस पर पड़े, तो तुम्हारे कारण मैं इस पक्के बाल की अवस्था में दु:ख के साथ अधोलोक में उतर जाऊंगा। 01O 44 31 सो जब मैं अपने पिता तेरे दास के पास पहुंचूं, और यह लड़का संग न रहे, तब, उसका प्राण जो इसी पर अटका रहता है, 01O 44 32 इस कारण, यह देखके कि लड़का नहीं है, वह तुरन्त ही मर जाएगा। तब तेरे दासों के कारण तेरा दास हमारा पिता, जो पक्के बालों की अवस्था का है, शोक के साथ अधोलोक में उतर जाएगा। 01O 44 33 फिर तेरा दास अपने पिता के यहां यह कहके इस लड़के का जामिन हुआ है, कि यदि मैं इसको तेरे पास न पहुंचा दूं, तब तो मैं सदा के लिये तेरा अपराधी ठहरूंगा। 01O 44 34 सो अब तेरा दास इस लड़के की सन्ती अपने प्रभु का दास होकर रहने की आज्ञा पाए, और यह लड़का अपने भाइयों के संग जाने दिया जाए। 01O 44 35 क्योंकि लड़के के बिना संग रहे मैं कयोंकर अपने पिता के पास जा सकूंगा; ऐसा न हो कि मेरे पिता पर जो दु:ख पड़ेगा वह मुझे देखना पड़े।। 01O 45 1 तब यूसुफ उन सब के साम्हने, जो उसके आस पास खड़े थे, अपने को और रोक न सका; और पुकार के कहा, मेरे आस पास से सब लोगों को बाहर कर दो। भाइयों के साम्हने अपने को प्रगट करने के समय यूसुफ के संग और कोई न रहा। 01O 45 2 तब वह चिल्ला चिल्लाकर रोने लगा : और मिस्त्रियों ने सुना, और फिरौन के घर के लोगों को भी इसका समाचार मिला। 01O 45 3 तब यूसुफ अपने भाइयों से कहने लगा, मैं यूसुफ हूं, क्या मेरा पिता अब तब जीवित है ? इसका उत्तर उसके भाई न दे सके; क्योंकि वे उसके साम्हने घबरा गए थे। 01O 45 4 फिर यूसुफ ने अपने भाइयों से कहा, मेरे निकट आओ। यह सुनकर वे निकट गए। फिर उस ने कहा, मैं तुम्हारा भाई यूसुफ हूं, जिसको तुम ने मि आनेहारों के हाथ बेच डाला था। 01O 45 5 अब तुम लोग मत पछताओ, और तुम ने जो मुझे यहां बेच डाला, इस से उदास मत हो; क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हारे प्राणों को बचाने के लिये मुझे आगे से भेज दिया है। 01O 45 6 क्योंकि अब दो वर्ष से इस देश में अकाल है; और अब पांच वर्ष और ऐसे ही होंगे, कि उन में न तो हल चलेगा और न अन्न काटा जाएगा। 01O 45 7 सो परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे आगे इसी लिये भेजा, कि तुम पृथ्वी पर जीवित रहो, और तुम्हारे प्राणों के बचने से तुम्हारा वंश बढ़े। 01O 45 8 इस रीति अब मुझ को यहां पर भेजनेवाले तुम नहीं, परमेश्वर ही ठहरा: और उसी ने मुझे फिरौन का पिता सा, और उसके सारे घर का स्वामी, और सारे मि देश का प्रभु ठहरा दिया है। 01O 45 9 सो शीघ्र मेरे पिता के पास जाकर कहो, तेरा पुत्रा यूसुफ इस प्रकार कहता है, कि परमेश्वर ने मुझे सारे मि का स्वामी ठहराया है; इसलिये तू मेरे पास बिना विलम्ब किए चला आ। 01O 45 10 और तेरा निवास गोशेन देश में होगा, और तू, बेटे, पोतों, भेड़- बकरियों, गाय- बैलों, और अपने सब कुछ समेत मेरे निकट रहेगा। 01O 45 11 और अकाल के जो पांच वर्ष और होंगे, उन में मै वहीं तेरा पालन पोषण करूंगा; ऐसा न हो कि तू, और तेरा घराना, वरन जितने तेरे हैं, सो भूखों मरें। 01O 45 12 और तुम अपनी आंखों से देखते हो, और मेरा भाई बिन्यामीन भी अपनी आंखों से देखता है, कि जो हम से बातें कर रहा है सो यूसुफ है। 01O 45 13 और तुम मेरे सब विभव का, जो मि में है और जो कुछ तुम ने देखा है, उस सब को मेरे पिता से वर्णन करना; और तुरन्त मेरे पिता को यहां ले आना। 01O 45 14 और वह अपने भाई बिन्यामीन के गले से लिपटकर रोया; और बिन्यामीन भी उसके गले से लिपटकर रोया। 01O 45 15 तब वह अपने सब भाइयों को चूमकर उन से मिलकर रोया : और इसके पश्चात् उसके भाई उस से बातें करने लगे।। 01O 45 16 इस बात की चर्चा, कि यूसुफ के भाई आए हैं, फिरौन के भवन तब पंहुच गई, और इस से फिरौन और उसके कर्मचारी प्रसन्न हुए। 01O 45 17 सो फिरौन ने यूसुफ से कहा, अपने भाइयों से कह, कि एक काम करो, अपने पशुओं को लादकर कनान देश में चले जाओ। 01O 45 18 और अपने पिता और अपने अपने घर के लोगों को लेकर मेरे पास आओ; और मि देश में जो कुछ अच्छे से अच्छा है वह मैं तुम्हें दूंगा, और तुम्हें देश के उत्तम से उत्तम पदार्थ खाने को मिलेंगे। 01O 45 19 और तुझे आज्ञा मिली है, तुम एक काम करो, कि मि देश से अपने बालबच्चों और स्त्रियों के लिये गाड़ियों ले जाओ, और अपने पिता को ले आओ। 01O 45 20 और अपनी सामग्री का मोह न करना; क्योंकि सारे मि देश में जो कुछ अच्छे से अच्छा है सो तुम्हारा है। 01O 45 21 और इस्राएल के पुत्रों ने वैसा ही किया। और यूसुफ ने फिरौन की मानके उन्हें गाड़ियों दी, और मार्ग के लिये सीधा भी दिया। 01O 45 22 उन में से एक एक जन को तो उस ने एक एक जोड़ा वस्त्रा भी दिया; और बिन्यामीन को तीन सौ रूपे के टुकडे और पांच जोड़े वस्त्रा दिए। 01O 45 23 और अपने पिता के पास उस ने जो भेजा वह यह है, अर्थात् मि की अच्छी वस्तुओं से लदे हुए दस गदहे, और अन्न और रोटी और उसके पिता के मार्ग के लिये भोजनवस्तु से लदी हुई दस गदहियां। 01O 45 24 और उस ने अपने भाइयों को विदा किया, और वे चल दिए; और उस ने उन से कहा, मार्ग में कहीं झगड़ा न करना। 01O 45 25 मि से चलकर वे कनान देश में अपने पिता याकूब के पास पहुचे। 01O 45 26 और उस से यह वर्णन किया, कि यूसुफ अब तक जीवित है, और सारे मि देश पर प्रभुता वही करता है। पर उस ने उनकी प्रतीति न की, और वह अपने आपे में न रहा। 01O 45 27 तब उन्हों ने अपने पिता याकूब से यूसुफ की सारी बातें, जो उस ने उन से कहीं थी, कह दीं; जब उस ने उन गाड़ियों को देखा, जो यूसुफ ने उसके ले आने के लिये भेजीं थीं, तब उसका चित्त स्थिर हो गया। 01O 45 28 और इस्राएल ने कहा, बस, मेरा पुत्रा यूसुफ अब तक जीवित है : मैं अपनी मृत्यु से पहिले जाकर उसको देखंूगा।। 01O 46 1 तब इस्राएल अपना सब कुछ लेकर कूच करके बेर्शेबा को गया, और वहां अपने पिता इसहाक के परमेश्वर को बलिदान चढ़ाए। 01O 46 2 तब परमेश्वर ने इस्राएल से रात को दर्शन में कहा, हे याकूब हे याकूब। उस ने कहा, क्या आज्ञा। 01O 46 3 उस ने कहा, मैं ईश्वर तेरे पिता का परमेश्वर हूं, तू मि में जाने से मत डर; क्योंकि मैं तुझ से वहां एक बड़ी जाति बनाऊंगा। 01O 46 4 मैं तेरे संग संग मि को चलता हूं; और मैं तुझे वहां से फिर निश्चय ले आऊंगा; और यूसुफ अपना हाथ तेरी आंखों पर लगाएगा। 01O 46 5 तब याकूब बेर्शेबा से चला: और इस्राएल के पुत्रा अपने पिता याकूब, और अपने बाल- बच्चों, और स्त्रियों को उन गाड़ियों पर, जो फिरौन ने उनके ले आने को भेजी थी, चढ़ाकर चल पड़े। 01O 46 6 और वे अपनी भेड़- बकरी, गाय- बैल, और कनान देश में अपने इकट्ठा किए हुए सारे धन को लेकर मि में आए। 01O 46 7 और याकूब अपने बेटे- बेटियों, पोते- पोतियों, निदान अपने वंश भर को अपने संग मि में ले आया।। 01O 46 8 याकूब के साथ जो इस्राएली, अर्थात् उसके बेटे, पोते, आदि मि में आए, उनके नाम ये हैं : याकूब का जेठा तो रूबेन था। 01O 46 9 और रूबेन के पुत्रा, हनोक, पललू, हेद्दॊन, और कर्म्मी थे। 01O 46 10 और शिमोन के पुत्रा, यमूएल, यामीन, ओहद, याकीन, सोहर, और एक कनानी स्त्री से जन्मा हुआ शाऊल भी था। 01O 46 11 और लेवी के पुत्रा, गेर्शोन, कहात, और मरारी थे। 01O 46 12 और यहूदा के एर, ओनान, शेला, पेरेस, और जेरह नाम पुत्रा हुए तो थे; पर एर और ओनान कनान देश में मर गए थे। 01O 46 13 और इस्साकार के पुत्रा, तोला, पुब्बा, योब और शिम्रोन थे। 01O 46 14 और जबूलून के पुत्रा, सेरेद, एलोन, और यहलेल थे। 01O 46 15 लिआ: के पुत्रा, जो याकूब से प नराम में उत्पन्न हुए थे, उनके बेटे पोते ये ही थे, और इन से अधिक उस ने उसके साथ एक बेटी दीना को भी जन्म दिया : यहां तक तो याकूब के सब वंशवाले तैंतीस प्राणी हुए। 01O 46 16 फिर गाद के पुत्रा, सिरयोन, हाग्गी, शूनी, एसबोन, एरी, अरोदी, और अरेली थे। 01O 46 17 और आशेर के पुत्रा, यिम्ना, यिश्वा, यिस्त्री, और बरीआ थे, और उनकी बहिन सेरह थी। और बरीआ के पुत्रा, हेबेर और मल्कीएल थे। 01O 46 18 जिल्पा, जिसे लाबान ने अपनी बेटी लिआ' को दिया था, उसके बेटे पोते आदि ये ही थे; सो उसके द्वारा याकूब के सोलह प्राणी उत्पन्न हुए।। 01O 46 19 फिर याकूब की पत्नी राहेल के पुत्रा यूसुफ और बिन्यामीन थे। 01O 46 20 और मि देश में ओन के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से यूसुफ के ये पुत्रा उत्पन्न हुए, अर्थात् मनश्शे और एप्रैम। 01O 46 21 और बिन्यामीन के पुत्रा, बेला, बेकेर, अश्बेल, गेरा, नामान, एही, रोश, मुप्पीम, हुप्पीम, और आर्द थे। 01O 46 22 राहेल के पुत्रा जो याकूब से उत्पन्न हुए उनके ये ही पुत्रा थे; उसके ये सब बेटे पोते चौदह प्राणी हुए। 01O 46 23 फिर दान का पुत्रा हुशीम था। 01O 46 24 और नप्ताली के पुत्रा, यहसेल, गूनी, सेसेर, और शिल्लेम थे। 01O 46 25 बिल्हा, जिसे लाबान ने अपनी बेटी राहेल को दिया, उस के बेटे पोते ये ही हैं; उसके द्वारा याकूब के वंश में सात प्राणी हुए। 01O 46 26 याकूब के निज वंश के जो प्राणी मि में आए, वे उसकी बहुओं को छोड़ सब मिलकर छियासठ प्राणी हुए। 01O 46 27 और यूसुफ के पुत्रा, जो मि में उस से उत्पन्न हुए, वे दो प्राणी थे : इस प्रकार याकूब के घराने के जो प्राणी मि में आए सो सब मिलकर सत्तर हुए।। 01O 46 28 फिर उस ने यहूदा को अपने आगे यूसुफ के पास भेज दिया, कि वह उसको गोशेन का मार्ग दिखाए; और वे गोशेन देश में आए। 01O 46 29 तब यूसुफ अपना रथ जुतवाकर अपने पिता इस्राएल से भेंट करने के लिये गोशेन देश को गया, और उस से भेंट करके उसके गले से लिपटा हुआ रोता रहा। 01O 46 30 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, मै अब मरने से भी प्रसन्न हूं, क्योंकि तुझे जीवित पाया और तेरा मुंह देख लिया। 01O 46 31 तब यूसुफ ने अपने भाइयों से और अपने पिता के घराने से कहा, मैं जाकर फिरौन को यह समाचार दूंगा, कि मेरे भाई और मेरे पिता के सारे घराने के लोग, जो कनान देश में रहते थे, वे मेरे पास आ गए हैं। 01O 46 32 और वे लोग चरवाहे हैं, क्योंकि वे पशुओं को पालते आए हैं; इसलिये वे अपनी भेड़- बकरी, गाय- बैल, और जो कुछ उनका है, सब ले आए हैं। 01O 46 33 जब फिरौन तुम को बुलाके पूछे, कि तुम्हारा उद्यम क्या है? 01O 46 34 तब यह कहना कि तेरे दास लड़कपन से लेकर आज तक पशुओं को पालते आए हैं, वरन हमारे पुरखा भी ऐसा ही करते थे। इस से तुम गोशेन देश में रहने पाओगे; क्योंकि सब चरवाहों से मिद्दी लोग घृणा करते हैं।। 01O 47 1 तब यूसुफ ने फिरौन के पास जाकर यह समाचार दिया, कि मेरा पिता और मेरे भाई, और उनकी भेड़- बकरियां, गाय- बैल और जो कुछ उनका है, सब कनान देश से आ गया है; और अभी तो वे गोशेन देश में हैं। 01O 47 2 फिर उस ने अपने भाइयों में से पांच जन लेकर फिरौन के साम्हने खड़े कर दिए। 01O 47 3 फिरौन ने उसके भाइयों से पूछा, तुम्हारा उद्यम क्या है ? उन्हों ने फिरौन से कहा, तेरे दास चरवाहे हैं, और हमारे पुरखा भी ऐसे ही रहे। 01O 47 4 फिर उन्हों ने फिरौन से कहा, हम इस देश में परदेशी की भांति रहने के लिये आए हैं; क्योंकि कनान देश में भारी अकाल होने के कारण तेरे दासों को भेड़- बकरियों के लिये चारा न रहा : सो अपने दासों को गोशेन देश में रहने की आज्ञा दे। 01O 47 5 तब फिरौन ने यूसुफ से कहा, तेरा पिता और तेरे भाई तेरे पास आ गए हैं, 01O 47 6 और मि देश तेरे साम्हने पड़ा है; इस देश का जो सब से अच्छा भाग हो, उस में अपने पिता और भाइयों को बसा दे; अर्थात् वे गोशेन ही देश में रहें : और यदि तू जानता हो, कि उन में से परिश्रमी पुरूष हैं, तो उन्हें मेरे पशुओं के अधिकारी ठहरा दे। 01O 47 7 तब यूसुफ ने अपने पिता याकूब को ले आकर फिरौन के सम्मुख खड़ा किया : और याकूब ने फिरौन को आशीर्वाद दिया। 01O 47 8 तब फिरौन ने याकूब से पूछा, तेरी अवस्था कितने दिन की हुई है? 01O 47 9 याकूब ने फिरौन से कहा, मैं तो एक सौ तीस वर्ष परदेशी होकर अपना जीवन बीता चुका हूं; मेरे जीवन के दिन थोड़े और दु:ख से भरे हुए भी थे, और मेरे बापदादे परदेशी होकर जितने दिन तक जीवित रहे उतने दिन का मैं अभी नहीं हुआ। 01O 47 10 और याकूब फिरौन को आशीर्वाद देकर उसके सम्मुख से चला गया। 01O 47 11 तब यूसुफ ने अपने पिता और भाइयों को बसा दिया, और फिरौन की आज्ञा के अनुसार मि देश के अच्छे से अच्छे भाग में, अर्थात् रामसेस नाम देश में, भूमि देकर उनको सौंप दिया। 01O 47 12 और यूसुफ अपने पिता का, और अपने भाइयों का, और पिता के सारे घराने का, एक एक के बालबच्चों के घराने की गिनती के अनुसार, भोजन दिला दिलाकर उनका पालन पोषण करने लगा।। 01O 47 13 और उस सारे देश में खाने को कुछ न रहा; क्योंकि अकाल बहुत भारी था, और अकाल के कारण मि और कनान दोनों देश नाश हो गए। 01O 47 14 और जितना रूपया मि और कनान देश में था, सब को यूसुफ ने उस अन्न की सन्ती जो उनके निवासी मोल लेते थे इकट्ठा करके फिरौन के भवन में पहुंचा दिया। 01O 47 15 जब मि और कनान देश का रूपया चुक गया, तब सब मिद्दी यूसुफ के पास आ आकर कहने लगे, हम को भोजनवस्तु दे, क्या हम रूपये के न रहने से तेरे रहते हुए मर जाएं ? 01O 47 16 यूसुफ ने कहा, यदि रूपये न हों तो अपने पशु दे दो, और मैं उनकी सन्ती तुम्हें खाने को दूंगा। 01O 47 17 तब वे अपने पशु यूसुफ के पास ले आए; और यूसुफ उनको घोड़ों, भेड़- बकरियों, गाय- बैलों और गदहों की सन्ती खाने को देने लगा: उस वर्ष में वह सब जाति के पशुओं की सन्ती भोजन देकर उनका पालन पोषण करता रहा। 01O 47 18 वह वर्ष तो यों कट गया; तब अगले वर्ष में उन्हों ने उसके पास आकर कहा, हम अपने प्रभु से यह बात छिपा न रखेंगे कि हमारा रूपया चुक गया है, और हमारे सब प्रकार के पशु हमारे प्रभु के पास आ चुके हैं; इसलिये अब हमारे प्रभु के साम्हने हमारे शरीर और भूमि छोड़कर और कुछ नहीं रहा। 01O 47 19 हम तेरे देखते क्यों मरें, और हमारी भूमि को भोजन वस्तु की सन्ती मोल ले, कि हम अपनी भूमि समेत फिरौन के दास हों : और हमको बीज दे, कि हम मरने न पाएं, वरन जीवित रहें, और भूमि न उजड़े। 01O 47 20 तब यूसुफ ने मि की सारी भूमि को फिरौन के लिये मोल लिया; क्योंकि उस कठिन अकाल के पड़ने से मिस्त्रियों को अपना अपना खेत बेच डालना पड़ा : इस प्रकार सारी भूमि फिरौन की हो गई। 01O 47 21 और एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक सारे मि देश में जो प्रजा रहती थी, उसको उस ने नगरों में लाकर बसा दिया। 01O 47 22 पर याजकों की भूमि तो उस ने न मोल ली : क्योंकि याजकों के लिये फिरौन की ओर से नित्य भोजन का बन्दोबस्त था, और नित्य जो भोजन फिरौन उनको देता था वही वे खाते थे; इस कारण उनको अपनी भूमि बेचनी न पड़ी। 01O 47 23 तब यूसुफ ने प्रजा के लोगों से कहा, सुनो, मैं ने आज के दिन तुम को और तुम्हारी भूमि को भी फिरौन के लिये मोल लिया है; देखो, तुम्हारे लिये यहां बीज है, इसे भूमि में बोओ। 01O 47 24 और जो कुछ उपजे उसका पंचमांश फिरौन को देना, बाकी चार अंश तुम्हारे रहेंगे, कि तुम उसे अपने खेतों मंे बोओ, और अपने अपने बालबच्चों और घर के और लोगों समेत खाया करो। 01O 47 25 उन्हों ने कहा, तू ने हमको बचा लिया है : हमारे प्रभु के अनुग्रह की दृष्टि हम पर बनी रहे, और हम फिरौन के दास होकर रहेंगे। 01O 47 26 सो यूसुफ ने मि की भूमि के विषय में ऐसा नियम ठहराया, जो आज के दिन तक चला आता है, कि पंचमांश फिरौन को मिला करे; केवल याजकों ही की भूमि फिरौन की नहीं हुई। 01O 47 27 और इस्राएली मि के गोशेन देश में रहने लगे; और वहां की भूमि को अपने वश में कर लिया, और फूले- फले, और अत्यन्त बढ़ गए।। 01O 47 28 मि देश में याकूब सतरह वर्ष जीवित रहा : इस प्रकार याकूब की सारी आयु एक सौ सैंतालीस वर्ष की हुई। 01O 47 29 जब इस्राएल के मरने का दिन निकट आ गया, तब उस ने अपने पुत्रा यूसुफ को बुलवाकर कहा, यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो अपना हाथ मेरी जांघ के तले रखकर शपथ खा, कि मैं तेरे साथ कृपा और सच्चाई का यह काम करूंगा, कि तुझे मि में मिट्टी न दूंगा। 01O 47 30 जब तू अपने बापदादों के संग सो जाएगा, तब मैं तुझे मि से उठा ले जाकर उन्हीं के कबरिस्तान में रखूंगा; तब यूसुफ ने कहा, मैं तेरे वचन के अनुसार करूंगा। 01O 47 31 फिर उस ने कहा, मुझ से शपथ खा : सो उस ने उस से शपथ खाई। तब इस्राएल ने खाट के सिरहाने की ओर सिर झुकाया।। 01O 48 1 इन बातों के पश्चात् किसी ने यूसुफ से कहा, सुन, तेरा पिता बीमार है; तब वह मनश्शे और एप्रैम नाम अपने दोनों पुत्रों को संग लेकर उसके पास चला। 01O 48 2 और किसी ने याकूब को बता दिया, कि तेरा पुत्रा यूसुफ तेरे पास आ रहा है; तब इस्राएल अपने को सम्भालकर खाट पर बैठ गया। 01O 48 3 और याकूब ने यूसुफ से कहा, सर्वशक्तिमान ईश्वर ने कनान देश के लूज नगर के पास मुझे दर्शन देकर आशीष दी, 01O 48 4 और कहा, सुन, मैं तुझे फुला- फलाकर बढ़ाऊंगा, और तुझे राज्य राज्य की मण्डली का मूल बनाऊंगा, और तेरे पश्चात् तेरे वंश को यह देश दे दूंगा, जिस से कि वह सदा तक उनकी निज भूमि बनी रहे। 01O 48 5 और अब तेरे दोनों पुत्रा, जो मि में मेरे आने से पहिले उत्पन्न हुए हैं, वे मेरे ही ठहरेंगे; अर्थात् जिस रीति से रूबेन और शिमोन मेरे हैं, उसी रीति से एप्रैम और मनश्शे भी मेरे ठहरेंगे। 01O 48 6 और उनके पश्चात् जो सन्तान उत्पन्न हो, वह तेरे तो ठहरेंगे; परन्तु बंटवारे के समय वे अपने भाइयों ही के वंश में गिने जाएंगे। 01O 48 7 जब मैं पस्रान से आता था, तब एप्राता पहुंचने से थोड़ी ही दूर पहिले राहेल कनान देश में, मार्ग में, मेरे साम्हने मर गई : और मैं ने उसे वहीं, अर्थात् एप्राता जो बेतलेहम भी कहलाता है, उसी के मार्ग में मिट्टी दी। 01O 48 8 तब इस्राएल को यूसुफ के पुत्रा देख पड़े, और उस ने पूछा, ये कौन हैं ? 01O 48 9 यूसुफ ने अपने पिता से कहा, ये मेरे पुत्रा हैं, जो परमेश्वर ने मुझे यहां दिए हैं : उस ने कहा, उनको मेरे पास ले आ कि मैं उन्हें आशीर्वाद दूं। 01O 48 10 इस्राएल की आंखे बुढ़ापे के कारण धुन्धली हो गई थीं, यहां तक कि उसे कम सूझता था। तब यूसुफ उन्हें उनके पास ले गया ; और उस ने उन्हें चूमकर गले लगा लिया। 01O 48 11 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, मुझे आशा न थी, कि मैं तेरा मुख फिर देखने पाऊंगा : परन्तु देख, परमेश्वर ने मुझे तेरा वंश भी दिखाया है। 01O 48 12 तब यूसुफ ने उन्हें अपने घुटनों के बीच से हटाकर और अपने मुंह के बल भूमि पर गिरके दण्डवत् की। 01O 48 13 तब यूसुफ ने उन दोनों को लेकर, अर्थात् एप्रैम को अपने दहिने हाथ से, कि वह इस्राएल के बाएं हाथ पड़े, और मनश्शे को अपने बाएं हाथ से, कि इस्राएल के दहिने हाथ पड़े, उन्हें उसके पास ले गया। 01O 48 14 तब इस्राएल ने अपना दहिना हाथ बढ़ाकर एप्रैम के सिर पर जो छोटा था, और अपना बायां हाथ बढ़ाकर मनश्शे के सिर पर रख दिया; उस ने तो जान बूझकर ऐसा किया; नहीं तो जेठा मनश्शे ही था। 01O 48 15 फिर उस ने यूसुफ को आशीर्वाद देकर कहा, परमेश्वर जिसके सम्मुख मेरे बापदादे इब्राहीम और इसहाक (अपने को जानकर ) चलते थे वही परमेश्वर मेरे जन्म से लेकर आज के दिन तक मेरा चरवाहा बना है ; 01O 48 16 और वही दूत मुझे सारी बुराई से छुड़ाता आया है, वही अब इन लड़कों को आशीष दे; और ये मेरे और मेरे बापदादे इब्राहीम और इसहाक के कहलाएं; और पृथ्वी में बहुतायत से बढ़ें। 01O 48 17 जब यूसुफ ने देखा, कि मेरे पिता ने अपना दहिना हाथ एप्रैम के सिर पर रखा है, तब यह बात उसको बुरी लगी : सो उस ने अपने पिता का हाथ इस मनसा से पकड़ लिया, कि एप्रैम के सिर पर से उठाकर मनश्शे के सिर पर रख दे। 01O 48 18 और यूसुफ ने अपने पिता से कहा, हे पिता, ऐसा नहीं: क्योंकि जेठा यही है; अपना दहिना हाथ इसके सिर पर रख। 01O 48 19 उसके पिता ने कहा, नहीं, सुन, हे मेरे पुत्रा, मैं इस बात को भली भांति जानता हूं : यद्यपि इस से भी मनुष्यों की एक मण्डली उत्पन्न होगी, और यह भी महान् हो जाएगा, तौभी इसका छोटा भाई इस से अधिक महान हो जाएगा, और उसके वंश से बहुत सी जातियां निकलेंगी। 01O 48 20 फिर उस ने उसी दिन यह कहकर उनको आशीर्वाद दिया, कि इस्राएली लोग तेरा नाम ले लेकर ऐसा आशीर्वाद दिया करेंगे, कि परमेश्वर तुझे एप्रैम और मनश्शे के समान बना दे : और उस ने मनश्शे से पहिले एप्रैम का नाम लिया। 01O 48 21 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, देख, मैं तो मरने पर हूं : परन्तु परमेश्वर तुम लोगों के संग रहेगा, और तुम को तुम्हारे पितरों के देश में फिर पहुंचा देगा। 01O 48 22 और मैं तुझ को तेरे भाइयों से अधिक भूमि का एक भाग देता हूं, जिसको मैं ने एमोरियों के हाथ से अपनी तलवार और धनुष के बल से ले लिया है। 01O 49 1 फिर याकूब ने अपने पुत्रों को यह कहकर बुलाया, कि इकट्ठे हो जाओ, मैं तुम को बताऊंगा, कि अन्त के दिनों में तुम पर क्या क्या बीतेगा। 01O 49 2 हे याकूब के पुत्रों, इकट्ठे होकर सुनो, अपने पिता इस्राएल की ओर कान लगाओ। 01O 49 3 हे रूबेन, तू मेरा जेठा, मेरा बल, और मेरे पौरूष का पहिला फल है; प्रतिष्ठा का उत्तम भाग, और शक्ति का भी उत्तम भाग तू ही है। 01O 49 4 तू जो जल की नाईं उबलनेवाला है, इसलिये औरों से श्रेष्ठ न ठहरेगा; क्योंकि तू अपने पिता की खाट पर चढ़ा, तब तू ने उसको अशुद्ध किया; वह मेरे बिछौने पर चढ़ गया।। 01O 49 5 शिमोन और लेवी तो भाई भाई हैं, उनकी तलवारें उपद्रव के हथियार हैं। 01O 49 6 हे मेरे जीव, उनके मर्म में न पड़, हे मेरी महिमा, उनकी सभा में मत मिल; क्योंकि उन्हों ने कोप से मनुष्यों को घात किया, और अपनी ही इच्छा पर चलकर बैलों की पूंछें काटी हैं।। 01O 49 7 धिक्कार उनके कोप को, जो प्रचण्ड था; और उनके रोष को, जो निर्दय था; मैं उन्हें याकूब में अलग अलग और इस्राएल में तित्तर बित्तर कर दूंगा।। 01O 49 8 हे यहूदा, तेरे भाई तेरा धन्यवाद करेंगे, तेरा हाथ तेरे शत्रुओं की गर्दन पर पड़ेगा; तेरे पिता के पुत्रा तुझे दण्डवत् करेंगे।। 01O 49 9 यहूदा सिंह का डांवरू है। हे मेरे पुत्रा, तू अहेर करके गुफा में गया है : वह सिंह वा सिंहनी की नाई दबकर बैठ गया; फिर कौन उसको छेड़ेगा।। 01O 49 10 जब तक शीलो न आए तब तक न तो यहूदा से राजदण्ड छूटेगा, न उसके वंश से व्यवस्था देनेवाला अलग होगा; और राज्य राज्य के लोग उसके अधीन हो जाएंगे।। 01O 49 11 वह अपने जवान गदहे को दाखलता में, और अपनी गदही के बच्चे को उत्तम जाति की दाखलता में बान्धा करेगा ; उस ने अपने वस्त्रा दाखमधु में, और अपना पहिरावा दाखों के रस में धोया है।। 01O 49 12 उसकी आंखे दाखमधु से चमकीली और उसके दांत दूध से श्वेत होंगे।। 01O 49 13 जबूलून समुद्र के तीर पर निवास करेगा, वह जहाजों के लिये बन्दरगाह का काम देगा, और उसका परला भाग सीदोन के निकट पहुंचेगा 01O 49 14 इस्साकार एक बड़ा और बलवन्त गदहा है, जो पशुओं के बाड़ों के बीच में दबका रहता है।। 01O 49 15 उस ने एक विश्रामस्थान देखकर, कि अच्छा है, और एक देश, कि मनोहर है, अपने कन्धे को बोझ उठाने के लिये झुकाया, और बेगारी में दास का सा काम करने लगा।। 01O 49 16 दान इस्राएल का एक गोत्रा होकर अपने जातिभाइयों का न्याय करेगा।। 01O 49 17 दान मार्ग में का एक सांप, और रास्ते में का एक नाग होगा, जो घोड़े की नली को डंसता है, जिस से उसका सवार पछाड़ खाकर गिर पड़ता है।। 01O 49 18 हे यहोवा, मैं तुझी से उद्धार पाने की बाट जोहता आया हूं।। 01O 49 19 गाद पर एक दल चढ़ाई तो करेगा; पर वह उसी दल के पिछले भाग पर छापा मारेगा।। 01O 49 20 आशेर से जो अन्न उत्पन्न होगा वह उत्तम होगा, और वह राजा के योग्य स्वादिष्ट भोजन दिया करेगा।। 01O 49 21 नप्ताली एक छूटी हुई हरिणी है; वह सुन्दर बातें बोलता है।। 01O 49 22 यूसुफ बलवन्त लता की एक शाखा है, वह सोते के पास लगी हुई फलवन्त लता की एक शाखा है; उसकी डालियां भीत पर से चढ़कर फैल जाती हैं।। 01O 49 23 धनुर्धारियों ने उसको खेदित किया, और उस पर तीर मारे, और उसके पीछे पड़े हैं।। 01O 49 24 पर उसका धनुष दृढ़ रहा, और उसकी बांह और हाथ याकूब के उसी शक्तिमान ईश्वर के हाथों के द्वारा फुर्तीले हुए, जिसके पास से वह चरवाहा आएगा, जो इस्राएल का पत्थर भी ठहरेगा।। 01O 49 25 यह तेरे पिता के उस ईश्वर का काम है, जो तेरी सहायता करेगा, उस सर्वशक्तिमान को जो तुझे ऊपर से आकाश में की आशीषें, और नीचे से गहिरे जल में की आशीषें, और स्तनों, और गर्भ की आशीषें देगा।। 01O 49 26 तेरे पिता के आशीर्वाद मेरे पितरों के आशीर्वाद से अधिक बढ़ गए हैं और सनातन पहाड़ियों की मन- चाही वस्तुओं की नाई बने रहेंगे : वे यूसुफ के सिर पर, जो अपने भाइयों में से न्यारा हुआ, उसी के सिर के मुकुट पर फूले फलेंगे।। 01O 49 27 बिन्यामीन फाड़नेहारा हुण्डार है, सवेरे तो वह अहेर भक्षण करेगा, और सांझ को लूट बांट लेगा।। 01O 49 28 इस्राएल के बारहों गोत्रा ये ही हैं : और उनके पिता ने जिस जिस वचन से उनको आशीर्वाद दिया, सो ये ही हैं; एक एक को उसके आशीर्वाद के अनुसार उस ने आशीर्वाद दिया। 01O 49 29 तब उस ने यह कहकर उनको आज्ञा दी, कि मैं अपने लोगों के साथ मिलने पर हूं : इसलिये मुझे हित्ती एप्रोन की भूमिवाली गुफा में मेरे बापदादों के साथ मिट्टी देना, 01O 49 30 अर्थात् उसी गुफा में जो कनान देश में मम्रे के साम्हनेवाली मकपेला की भूमि में है; उस भूमि को तो इब्राहीम ने हित्ती एप्रोन के हाथ से इसी निमित्त मोल लिया था, कि वह कबरिस्तान के लिये उसकी निज भूमि हो। 01O 49 31 वहां इब्राहीम और उसकी पत्नी सारा को मिट्टी दी गई; और वहीं इसहाक और उसकी पत्नी रिबका को भी मिट्टी दी गई; और वहीं मैं ने लिआ: को भी मिट्टी दी। 01O 49 32 वह भूमि और उस में की गुफा हित्तियों के हाथ से मोल ली गई। 01O 49 33 यह आज्ञा जब याकूब अपने पुत्रों को दे चुका, तब अपने पांव खाट पर समेट प्राण छोड़े, और अपने लोगों में जा मिला। 01O 50 1 तब यूसुफ अपने पिता के मुंह पर गिरकर रोया और उसे चूमा। 01O 50 2 और यूसुफ ने उन वैद्यों को, जो उसके सेवक थे, आज्ञा दी, कि मेरे पिता की लोथ में सुगन्धद्रव्य भरो; तब वैद्यों ने इस्राएल की लोथ में सुगन्धद्रव्य भर दिए। 01O 50 3 और उसके चालीस दिन पूरे हुए। क्योंकि जिनकी लोथ में सुगन्धद्रव्य भरे जाते हैं, उनको इतने ही दिन पूरे लगते हैं : और मिद्दी लोग उसके लिये सत्तर दिन तक विलाप करते रहे।। 01O 50 4 जब उसके विलाप के दिन बीत गए, तब यूसुफ फिरौन के घराने के लोगों से कहने लगा, यदि तुम्हारी अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो तो मेरी यह बिनती फिरौन को सुनाओ, 01O 50 5 कि मेरे पिता ने यह कहकर, कि देख मैं मरने पर हूं, मुझे यह शपथ खिलाई, कि जो कबर तू ने अपने लिये कनान देश में खुदवाई है उसी में मैं तुझे मिट्टी दूंगा इसलिये अब मुझे वहां जाकर अपने पिता को मिट्टी देने की आज्ञा दे, तत्पश्चात् मैं लौट आऊंगा। 01O 50 6 तब फिरौन ने कहा, जाकर अपने पिता की खिलाई हुई शपथ के अनुसार उनको मिट्टी दे। 01O 50 7 सो यूसुफ अपने पिता को मिट्टी देने के लिये चला, और फिरौन के सब कर्मचारी, अर्थात् उसके भवन के पुरनिये, और मि देश के सब पुरनिये उसके संग चले। 01O 50 8 और यूसुफ के घर के सब लोग, और उसके भाई, और उसके पिता के घर के सब लोग भी संग गए; पर वे अपने बालबच्चों, और भेड़- बकरियों, और गाय- बैलों को गोशेन देश में छोड़ गए। 01O 50 9 और उसके संग रथ और सवार गए, सो भीड़ बहुत भारी हो गई। 01O 50 10 जब वे आताद के खलिहान तक, जो यरदन नदी के पार है पहुंचे, तब वहां अत्यन्त भारी विलाप किया, और यूसुफ ने अपने पिता के सात दिन का विलाप कराया। 01O 50 11 आताद के खलिहान में के विलाप को देखकर उस देश के निवासी कनानियों ने कहा, यह तो मिस्त्रियों का कोई भारी विलाप होगा, इसी कारण उस स्थान का नाम आबेलमि ैम पड़ा, और वह यरदन के पार है। 01O 50 12 और इस्राएल के पुत्रों ने उस से वही काम किया जिसकी उस ने उनको आज्ञा दी थी: 01O 50 13 अर्थात् उन्हों ने उसको कनान देश में ले जाकर मकपेला की उस भूमिवाली गुफा में, जो मम्रे के साम्हने हैं, मिट्टी दी; जिसको इब्राहीम ने हित्ती एप्रोन के हाथ से इस निमित्त मोल लिया था, कि वह कबरिस्तान के लिये उसकी निज भूमि हो।। 01O 50 14 अपने पिता को मिट्टी देकर यूसुफ अपने भाइयों और उन सब समेत, जो उसके पिता को मिट्टी देने के लिये उसके संग गए थे, मि में लौट आया। 01O 50 15 जब यूसुफ के भाइयों ने देखा कि हमारा पिता मर गया है, तब कहने लगे, कदाचित् यूसुफ अब हमारे पीछे पडे,़ और जितनी बुराई हम ने उस से की थी सब का पूरा पलटा हम से ले। 01O 50 16 इसलिये उन्हों ने यूसुफ के पास यह कहला भेजा, कि तेरे पिता ने मरने से पहिले हमें यह आज्ञा दी थी, 01O 50 17 कि तुम लोग यूसुफ से इस प्रकार कहना, कि हम बिनती करते हैं, कि तू अपने भाइयों के अपराध और पाप को क्षमा कर; हम ने तुझ से बुराई तो की थी, पर अब अपने पिता के परमेश्वर के दासों का अपराध क्षमा कर। उनकी ये बातें सुनकर यूसुफ रो पड़ा। 01O 50 18 और उसके भाई आप भी जाकर उसके साम्हने गिर पड़े, और कहा, देख, हम तेरे दास हैं। 01O 50 19 यूसुफ ने उन से कहा, मत डरो, क्या मैं परमेश्वर की जगह पर हूं ? 01O 50 20 यद्यपि तुम लोगों ने मेरे लिये बुराई का विचार किया था; परन्तु परमेश्वर ने उसी बात में भलाई का विचार किया, जिस से वह ऐसा करे, जैसा आज के दिन प्रगट है, कि बहुत से लोगों के प्राण बचे हैं। 01O 50 21 सो अब मत डरो : मैं तुम्हारा और तुम्हारे बाल- बच्चों का पालन पोषण करता रहूंगा; इस प्रकार उस ने उनको समझा बुझाकर शान्ति दी।। 01O 50 22 और यूसुफ अपने पिता के घराने समेत मि में रहता रहा, और यूसुफ एक सौ दस वर्ष जीवित रहा। 01O 50 23 और यूसुफ एप्रैम के परपोतों तक देखने पाया : और मनश्शे के पोते, जो माकीर के पुत्रा थे, वे उत्पन्न होकर यूसुफ से गोद में लिए गए। 01O 50 24 और यूसुफ ने अपने भाइयों से कहा मैं तो मरने पर हूं; परन्तु परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा, और तुम्हें इस देश से निकालकर उस देश में पहुंचा देगा, जिसके देने की उस ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से शपथ खाई थी। 01O 50 25 फिर यूसुफ ने इस्राएलियों से यह कहकर, कि परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा, उनको इस विषय की शपथ खिलाई, कि हम तेरी हडि्डयों को वहां से उस देश में ले जाएंगे। 01O 50 26 निदान यूसुफ एक सौ दस वर्ष का होकर मर गया : और उसकी लोथ में सुगन्धद्रव्य भरे गए, और वह लोथ मि में एक सन्दूक में रखी गई।। 02O 1 1 इस्राएल के पुत्रों के नाम, जो अपने अपने घराने को लेकर याकूब के साथ मि देश में आए, ये हैं: 02O 1 2 अर्थात् रूबेन, शिमोन, लेवी, यहूदा, 02O 1 3 इस्साकार, जबूलून, बिन्यामीन, 02O 1 4 दान, नप्ताली, गाद और आशेर। 02O 1 5 और यूसुफ तो मि में पहिले ही आ चुका था। याकूब के निज वंश में जो उत्पन्न हुए वे सब सत्तर प्राणी थे। 02O 1 6 और यूसुफ, और उसके सब भाई , और उस पीढ़ी के सब लोग मर मिटे। 02O 1 7 और इस्राएल की सन्तान फूलने फलने लगी; और वे अत्यन्त सामर्थी बनते चले गए; और इतना बढ़ गए कि कुल देश उन से भर गया।। 02O 1 8 मि में एक नया राजा गद्दी पर बैठा जो यूसुफ को नहीं जानता था। 02O 1 9 और उस ने अपनी प्रजा से कहा, देखो, इस्राएली हम से गिनती और सामर्थ्य में अधिक बढ़ गए हैं। 02O 1 10 इसलिये आओ, हम उनके साथ बुद्धिमानी से बर्ताव करें, कहीं ऐसा न हो कि जब वे बहुत बढ़ जाएं, और यदि संग्राम का समय आ पड़े, तो हमारे बैरियों से मिलकर हम से लड़ें और इस देश से निकल जाएं। 02O 1 11 इसलिये उन्हों ने उन पर बेगारी करानेवालों को नियुक्त किया कि वे उन पर भार डाल डालकर उनको दु:ख दिया करें; तब उन्हों ने फिरौन के लिये पितोम और रामसेस नाम भण्डारवाले नगरों को बनाया। 02O 1 12 पर ज्यों ज्यों वे उनको दु:ख देते गए त्यों त्यों वे बढ़ते और फैलते चले गए; इसलिये वे इस्राएलियों से अत्यन्त डर गए। 02O 1 13 तौभी मिस्त्रियों ने इस्राएलियों से कठोरता के साथ सेवकाई करवाई। 02O 1 14 और उनके जीवन को गारे, ईंट और खेती के भांति भांति के काम की कठिन सेवा से दु:खी कर डाला; जिस किसी काम में वे उन से सेवा करवाते थे उस में वे कठोरता का व्यवहार करते थे। 02O 1 15 शिप्रा और पूआ नाम दो इब्री धाइयों को मि के राजा ने आज्ञा दी, 02O 1 16 कि जब तुम इब्री स्त्रियों को बच्चा उत्पन्न होने के समय जन्मने के पत्थरों पर बैठी देखो, तब यदि बेटा हो, तो उसे मार डालना; और बेटी हो, तो जीवित रहने देना। 02O 1 17 परन्तु वे धाइयां परमेश्वर का भय मानती थीं, इसलिये मि के राजा की आज्ञा न मानकर लड़कों को भी जीवित छोड़ देती थीं। 02O 1 18 तब मि के राजा ने उनको बुलवाकर पूछा, तुम जो लड़कों को जीवित छोड़ देती हो, तो ऐसा क्यों करती हो? 02O 1 19 धाइयों ने फिरौन को उतर दिया, कि इब्री स्त्रियों मिद्दी स्त्रियों के समान नहीं हैं; वे ऐसी फुर्तीली हैं कि धाइयों के पहुंचने से पहिले ही उनको बच्चा उत्पन्न हो जाता है। 02O 1 20 इसलिये परमेश्वर ने धाइयों के साथ भलाई की; और वे लोग बढ़कर बहुत सामर्थी हो गए। 02O 1 21 और धाइयां इसलिये कि वे परमेश्वर का भय मानती थीं उस ने उनके घर बसाए। 02O 1 22 तब फिरौन ने अपनी सारी प्रजा के लोगों को आज्ञा दी, कि इब्रियों के जितने बेटे उत्पन्न हों उन सभों को तुम नील नदी में डाल देना, और सब बेटियों को जीवित रख छोड़ना।। 02O 2 1 लेवी के घराने के एक पुरूष ने एक लेवी वंश की स्त्री को ब्याह लिया। 02O 2 2 और वह स्त्री गर्भवती हुई और उसके एक पुत्रा उत्पन्न हुआ; और यह देखकर कि यह बालक सुन्दर है, उसे तीन महीने तक छिपा रखा। 02O 2 3 और जब वह उसे और छिपा न सकी तब उसके लिये सरकंड़ों की एक टोकरी लेकर, उस में बालक को रखकर नील नदी के तीर पर कांसों के बीच छोड़ आई। 02O 2 4 उस बालक कि बहिन दूर खड़ी रही, कि देखे इसका क्या हाल होगा। 02O 2 5 तब फिरौन की बेटी नहाने के लिये नदी के तीर आई; उसकी सखियां नदी के तीर तीर टहलने लगीं; तब उस ने कांसों के बीच टोकरी को देखकर अपनी दासी को उसे ले आने के लिये भेजा। 02O 2 6 तब उस ने उसे खोलकर देखा, कि एक रोता हुआ बालक है; तब उसे तरस आया और उस ने कहा, यह तो किसी इब्री का बालक होगा। 02O 2 7 तब बालक की बहिन ने फिरौन की बेटी से कहा, क्या मैं जाकर इब्री स्त्रियों में से किसी धाई को तेरे पास बुला ले आऊं जो तेरे लिये बालक को दूध पिलाया करे? 02O 2 8 फिरौन की बेटी ने कहा, जा। तब लड़की जाकर बालक की माता को बुला ले आई। 02O 2 9 फिरौन की बेटी ने उस से कहा, तू इस बालक को ले जाकर मेरे लिये दूध पिलाया कर, और मैं तुझे मजदूरी दूंगी। तब वह स्त्री बालक को ले जाकर दूध पिलाने लगी। 02O 2 10 जब बालक कुछ बड़ा हुआ तब वह उसे फिरौन की बेटी के पास ले गई, और वह उसका बेटा ठहरा; और उस ने यह कहकर उसका नाम मूसा रखा, कि मैं ने इसको जल से निकाल लिया।। 02O 2 11 उन दिनों में ऐसा हुआ कि जब मूसा जवान हुआ, और बाहर अपने भाई बन्धुओं के पास जाकर उनके दु:खों पर दृष्टि करने लगा; तब उस ने देखा, कि कोई मिद्दी जन मेरे एक इब्री भाई को मार रहा है। 02O 2 12 जब उस ने इधर उधर देखा कि कोई नहीं है, तब उस मिद्दी को मार डाला और बालू में छिपा दिया।। 02O 2 13 फिर दूसरे दिन बाहर जाकर उस ने देखा कि दो इब्री पुरूष आपस में मारपीट कर रहे हैं; उस ने अपराधी से कहा, तू अपने भाई को क्यों मारता है ? 02O 2 14 उस ने कहा, किस ने तुझे हम लोगों पर हाकिम और न्यायी ठहराया ? जिस भांति तू ने मिद्दी को घात किया क्या उसी भांति तू मुझे भी घात करना चाहता है ? तब मूसा यह सोचकर डर गया, कि निश्चय वह बात खुल गई है। 02O 2 15 जब फिरौन ने यह बात सुनी तब मूसा को घात करने की युक्ति की। तब मूसा फिरौन के साम्हने से भागा, और मिद्यान देश में जाकर रहने लगा; और वह वहां एक कुएं के पास बैठ गया। 02O 2 16 मिद्यान के याजक की सात बेटियां थी; और वे वहां आकर जल भरने लगीं, कि कठौतों में भरके अपने पिता की भेड़बकरियों को पिलाएं। 02O 2 17 तब चरवाहे आकर उनको हटाने लगे; इस पर मूसा ने खड़ा होकर उनकी सहायता की, और भेड़- बकरियों को पानी पिलाया। 02O 2 18 जब वे अपने पिता रूएल के पास फिर आई, तब उस ने उन से पूछा, क्या कारण है कि आज तुम ऐसी फुर्ती से आई हो ? 02O 2 19 उन्हों ने कहा, एक मिद्दी पुरूष ने हम को चरवाहों के हाथ से छुड़ाया, और हमारे लिये बहुत जल भरके भेड़- बकरियों को पिलाया। 02O 2 20 तब उस ने अपनी बेटियों से कहा, वह पुरूष कहां है ? तुम उसको क्यों छोड़ आई हो ? उसको बुला ले आओ कि वह भोजन करे। 02O 2 21 और मूसा उस पुरूष के साथ रहने को प्रसन्न हुआ; उस ने उसे अपनी बेटी सिप्पोरा को ब्याह दिया। 02O 2 22 और उसके एक पुत्रा उत्पन्न हुआ, तब मूसा ने यह कहकर, कि मैं अन्य देश में परदेशी हूं, उसका नाम गेर्शोम रखा।। 02O 2 23 बहुत दिनों के बीतने पर मि का राजा मर गया। और इस्राएली कठिन सेवा के कारण लम्बी लम्बी सांस लेकर आहें भरने लगे, और पुकार उठे, और उनकी दोहाई जो कठिन सेवा के कारण हुई वह परमेश्वर तक पहुंची। 02O 2 24 और परमेश्वर ने उनका कराहना सुनकर अपनी वाचा को, जो उस ने इब्राहीम, और इसहाक, और याकूब के साथ बान्धी थी, स्मरण किया। 02O 2 25 और परमेश्वर ने इस्राएलियों पर दृष्टि करके उन पर चित्त लगाया।। 02O 3 1 मूसा अपने ससुर यित्रो नाम मिद्यान के याजक की भेड़- बकरियों को चराता था; और वह उन्हें जंगल की परली ओर होरेब नाम परमेश्वर के पर्वत के पास ले गया। 02O 3 2 और परमेश्वर के दूत ने एक कटीली झाड़ी के बीच आग की लौ में उसको दर्शन दिया; और उस ने दृष्टि उठाकर देखा कि झाड़ी जल रही है, पर भस्म नहीं होती। 02O 3 3 तब मूसा ने सोचा, कि मैं उधर फिरके इस बड़े अचम्भे को देखूंगा, कि वह झाड़ी क्यों नहीं जल जाती। 02O 3 4 जब यहोवा ने देखा कि मूसा देखने को मुड़ा चला आता है, तब परमेश्वर ने झाड़ी के बीच से उसको पुकारा, कि हे मूसा, हे मूसा। मूसा ने कहा, क्या आज्ञा। 02O 3 5 उस ने कहा इधर पास मत आ, और अपने पांवों से जूतियों को उतार दे, क्योंकि जिस स्थान पर तू खड़ा है वह पवित्रा भूमि है। 02O 3 6 फिर उस ने कहा, मैं तेरे पिता का परमेश्वर, और इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर हूं। तब मूसा ने जो परमेश्वर की ओर निहारने से डरता था अपना मुंह ढ़ाप लिया। 02O 3 7 फिर यहोवा ने कहा, मैं ने अपनी प्रजा के लोग जो मि में हैं उनके दु:ख को निश्चय देखा है, और उनकी जो चिल्लाहट परिश्रम करानेवालों के कारण होती है उसको भी मैं ने सुना है, और उनकी पीड़ा पर मैं ने चित्त लगाया है ; 02O 3 8 इसलिये अब मैं उतर आया हूं कि उन्हें मिस्त्रियों के वश से छुड़ाऊं, और उस देश से निकालकर एक अच्छे और बड़े देश में जिस में दूध और मधु की धारा बहती है, अर्थात् कनानी, हित्ती, एमोरी, परिज्जी, हिव्वी, और यबूसी लोगों के स्थान में पहुंचाऊं। 02O 3 9 सो अब सुन, इस्राएलियों की चिल्लाहट मुझे सुनाई पड़ी है, और मिस्त्रियों का उन पर अन्धेर करना भी मुझे दिखाई पड़ा है, 02O 3 10 इसलिये आ, मैं तुझे फिरौन के पास भेजता हूं कि तू मेरी इस्राएली प्रजा को मि से निकाल ले आए। 02O 3 11 तब मूसा ने परमेश्वर से कहा, मै कौन हूं जो फिरौन के पास जाऊं, और इस्राएलियों को मि से निकाल ले आऊं ? 02O 3 12 उस ने कहा, निश्चय मैं तेरे संग रहूंगा; और इस बात का कि तेरा भेजनेवाला मैं हूं, तेरे लिये यह चिन्ह होगा कि जब तू उन लोगों को मि से निकाल चुके तब तुम इसी पहाड़ पर परमेश्वर की उपासना करोगे। 02O 3 13 मूसा ने परमेश्वर से कहा, जब मैं इस्राएलियों के पास जाकर उन से यह कहूं, कि तुम्हारे पितरों के परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है, तब यदि वे मुझ से पूछें, कि उसका क्या नाम है? तब मैं उनको क्या बताऊं? 02O 3 14 परमेश्वर ने मूसा से कहा, मैं जो हूं सो हूं। फिर उस ने कहा, तू इस्राएलियों से यह कहना, कि जिसका नाम मैं हूं है उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है। 02O 3 15 फिर परमेश्वर ने मूसा से यह भी कहा, कि तू इस्राएलियों से यह कहना, कि तुम्हारे पितरों का परमेश्वर, अर्थात् इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर, यहोवा उसी ने मुझ को तुम्हारे पास भेजा है। देख सदा तक मेरा नाम यही रहेगा, और पीढ़ी पीढ़ी में मेरा स्मरण इसी से हुआ करेगा। 02O 3 16 इसलिये अब जाकर इस्राएली पुरनियों को इकट्ठा कर, और उन से कह, कि तुम्हारे पितर इब्राहीम, इसहाक, और याकूब के परमेश्वर, यहोवा ने मुझे दर्शन देकर यह कहा है, कि मैं ने तुम पर और तुम से जो बर्ताव मि में किया जाता है उस पर भी चित लगाया है; 02O 3 17 और मैं ने ठान लिया है कि तुम को मि के दुखों में से निकालकर कनानी, हित्ती, एमोरी, परिज्जी हिब्बी, और यबूसी लोगों के देश में ले चलूंगा, जो ऐसा देश है कि जिस में दूध और मधु की धारा बहती है। 02O 3 18 तब वे तेरी मानेंगे; और तू इस्राएली पुरनियों को संग लेकर मि के राजा के पास जाकर उस से यों कहना, कि इब्रियों के परमेश्वर, यहोवा से हम लोगों की भेंट हुई है; इसलिये अब हम को तीन दिन के मार्ग पर जंगल में जाने दे, कि अपने परमेश्वर यहोवा को बलिदान चढ़ाएं। 02O 3 19 मैं जानता हूं कि मि का राजा तुम को जाने न देगा वरन बड़े बल से दबाए जाने पर भी जाने न देगा। 02O 3 20 इसलिये मैं हाथ बढ़ाकर उन सब आश्चर्यकर्मों से जो मि के बीच करूंगा उस देश को मारूंगा; और उसके पश्चात् वह तुम को जाने देगा। 02O 3 21 तब मैं मिस्त्रियों से अपनी इस प्रजा पर अनुग्रह करवाऊंगा; और जब तुम निकलोगे तब छूछे हाथ न निकलोगे। 02O 3 22 वरन तुम्हारी एक एक स्त्री अपनी अपनी पड़ोसिन, और अपने अपने घर की पाहुनी से सोने चांदी के गहने, और वस्त्रा मांग लेगी, और तुम उन्हें अपने बेटों और बेटियों को पहिराना; इस प्रकार तुम मिस्त्रियों को लूटोगे।। 02O 4 1 तब मूसा ने उतर दिया, कि वे मेरी प्रतीति न करेंगे और न मेरी सुनेंगे, वरन कहेंगे, कि यहोवा ने तुझ को दर्शन नहीं दिया। 02O 4 2 यहोवा ने उस से कहा, तेरे हाथ में वह क्या है ? वह बोला, लाठी। 02O 4 3 उस ने कहा, उसे भूमि पर डाल दे; जब उस ने उसे भूमि पर डाला तब वह सर्प बन गई, और मूसा उसके साम्हने से भागा। 02O 4 4 तब यहोवा ने मूसा से कहा, हाथ बढ़ाकर उसकी पूंछ पकड़ ले कि वे लोग प्रतीति करें कि तुम्हारे पितरों के परमेश्वर अर्थात् इब्राहीम के परमेश्वर, इसहाक के परमेश्वर, और याकूब के परमेश्वर, यहोवा ने तुझ को दर्शन दिया है। 02O 4 5 तब उस ने हाथ बढ़ाकर उसको पकड़ा तब वह उसके हाथ में फिर लाठी बन गई। 02O 4 6 फिर यहोवा ने उस से यह भी कहा, कि अपना हाथ छाती पर रखकर ढांप। सो उस ने अपना हाथ छाती पर रखकर ढांप लिया; फिर जब उसे निकाला तब क्या देखा, कि उसका हाथ कोढ़ के कारण हिम के समान श्वेत हो गया है। 02O 4 7 तब उस ने कहा, अपना हाथ छाती पर फिर रखकर ढांप। और उस ने अपना हाथ छाती पर रखकर ढांप लिया; और जब उस ने उसको छाती पर से निकाला तब क्या देखता है, कि वह फिर सारी देह के समान हो गया। 02O 4 8 तब यहोवा ने कहा, यदि वे तेरी बात की प्रतीति न करें, और पहिले चिन्ह को न मानें, तो दूसरे चिन्ह की प्रतीति करेंगे। 02O 4 9 और यदि वे इन दोनों चिन्हों की प्रतीति न करें और तेरी बात को न मानें, तब तू नील नदी से कुछ जल लेकर सूखी भूमि पर डालना; और जो जल तू नदी से निकालेगा वह सूखी भूमि पर लोहू बन जायेगा। 02O 4 10 मूसा ने यहोवा से कहा, हे मेरे प्रभु, मैं बोलने में निपुण नहीं, न तो पहिले था, और न जब से तू अपने दास से बातें करने लगा; मैं तो मुंह और जीभ का भस्रा हूं। 02O 4 11 यहोवा ने उस से कहा, मनुष्य का मुंह किस ने बनाया है ? और मनुष्य को गूंगा, वा बहिरा, वा देखनेवाला, वा अन्धा, मुझ यहोवा को छोड़ कौन बनाता है ? 02O 4 12 अब जा, मैं तेरे मुख के संग होकर जो तुझे कहना होगा वह तुझे सिखलाता जाऊंगा। 02O 4 13 उस ने कहा, हे मेरे प्रभु, जिसको तू चाहे उसी के हाथ से भेज। 02O 4 15 इसलिये तू उसे ये बातें सिखाना; और मैं उसके मुख के संग और तेरे मुख के संग होकर जो कुछ तुम्हे करना होगा वह तुम को सिखलाता जाऊंगा। 02O 4 16 और वह तेरी ओर से लोगों से बातें किया करेगा; वह तेरे लिये मुंह और तू उसके लिये परमेश्वर ठहरेगा। 02O 4 17 और तू इस लाठी को हाथ में लिए जा, और इसी से इन चिन्हों को दिखाना।। 02O 4 18 तब मूसा अपने ससुर यित्रो के पास लौटा और उस से कहा, मुझे विदा कर, कि मैं मि में रहनेवाले अपने भाइयों के पास जाकर देखूं कि वे अब तक जीवित हैं वा नहीं। यित्रो ने कहा, कुशल से जा। 02O 4 19 और यहोवा ने मिद्यान देश में मूसा से कहा, मि को लौट जा; क्योंकि जो मनुष्य तेरे प्राण के प्यासे थे वे सब मर गए हैं 02O 4 20 तब मूसा अपनी पत्नी और बेटों को गदहे पर चढ़ाकर मि देश की ओर परमेश्वर की उस लाठी को हाथ में लिये हुए लौटा। 02O 4 21 और यहोवा ने मूसा से कहा, जब तू मि में पहुंचे तब सावधान हो जाना, और जो चमत्कार मैं ने तेरे वश में किए हैं उन सभों को फिरौन को दिखलाना; परन्तु मै उसके मन को हठीला करूंगा, और वह मेरी प्रजा को जाने न देगा। 02O 4 22 और तू फिरौन से कहना, कि यहोवा यों कहता है, कि इस्राएल मेरा पुत्रा वरन मेरा जेठा है, 02O 4 23 और मैं जो तुझ से कह चुका हूं, कि मेरे पुत्रा को जाने दे कि वह मेरी सेवा करे; और तू ने अब तक उसे जाने नहीं दिया, इस कारण मैं अब तेरे पुत्रा वरन तेरे जेठे को घात करूंगा। 02O 4 24 और ऐसा हुआ कि मार्ग पर सराय में यहोवा ने मूसा से भेंट करके उसे मार डालना चाहा। 02O 4 25 तब सिप्पोरा ने एक तेज चकमक पत्थर लेकर अपने बेटे की खलड़ी को काट डाला, और मूसा के पावों पर यह कहकर फेंक दिया, कि निश्चय तू लोहू बहानेवाला मेरा पति है। 02O 4 26 तब उस ने उसको छोड़ दिया। और उसी समय खतने के कारण वह बोली, तू लोहू बहानेवाला पति है। 02O 4 27 तब यहोवा ने हारून से कहा, मूसा से भेंट करने को जंगल में जा। और वह गया, और परमेश्वर के पर्वत पर उस से मिला और उसको चूमा। 02O 4 28 तब मूसा ने हारून को यह बतलाया कि यहोवा ने क्या क्या बातें कहकर उसको भेजा है, और कौन कौन से चिन्ह दिखलाने की आज्ञा उसे दी है। 02O 4 29 तब मूसा और हारून ने जाकर इस्राएलियों के सब पुरनियों को इकट्ठा किया। 02O 4 30 और जितनी बातें यहोवा ने मूसा से कही थी वह सब हारून ने उन्हें सुनाई, और लोगों के साम्हने वे चिन्ह भी दिखलाए। 02O 4 31 और लोगों ने उनकी प्रतीति की; और यह सुनकर, कि यहोवा ने इस्राएलियों की सुधि ली और उनके दु:खों पर दृष्टि की है, उन्हों ने सिर झुकाकर दण्डवत की।। 02O 5 1 इसके पश्चात् मूसा और हारून ने जाकर फिरौन से कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे, कि वे जंगल में मेरे लिये पर्व्व करें। 02O 5 2 फिरौन ने कहा, यहोवा कौन है, कि मैं उसका वचन मानकर इस्राएलियों को जाने दूं ? मैं यहोवा को नहीं जानता, और मैं इस्राएलियों को नहीं जाने दूंगा। 02O 5 3 उन्हों ने कहा, इब्रियों के परमेश्वर ने हम से भेंट की है; सो हमें जंगल में तीन दिन के मार्ग पर जाने दे, कि अपने परमेश्वर यहोवा के लिये बलिदान करें, ऐसा न हो कि वह हम में मरी फैलाए वा तलवार चलवाए। 02O 5 4 मि के राजा ने उन से कहा, हे मूसा, हे हारून, तुम क्यों लोगों से काम छुड़वाने चाहते हो? तुम जाकर अपने अपने बोझ को उठाओ। 02O 5 5 और फिरोन ने कहा, सुनो, इस देश में वे लोग बहुत हो गए हैं, फिर तुम उनको परिश्रम से विश्राम दिलाना चाहते हो ! 02O 5 6 और फिरौन ने उसी दिन उन परिश्रम करवानेवालों को जो उन लोगों के ऊपर थे, और उनके सरदारों को यह आज्ञा दी, 02O 5 7 कि तुम जो अब तक ईटें बनाने के लिये लोगों को पुआल दिया करते थे सो आगे को न देना; वे आप ही जाकर अपने लिये पुआल इकट्ठा करें। 02O 5 8 तौभी जितनी ईंटें अब तक उन्हें बनानी पड़ती थीं उतनी ही आगे को भी उन से बनवाना, ईंटों की गिनती कुछ भी न घटाना; क्योंकि वे आलसी हैं; इस कारण यह कहकर चिल्लाते हैं, कि हम जाकर अपने परमेश्वर के लिये बलिदान करें। 02O 5 9 उन मनुष्यों से और भी कठिन सेवा करवाई जाए कि वे उस में परिश्रम करते रहें और झूठी बातों पर ध्यान न लगाएं। 02O 5 10 तब लोगों के परिश्रम करानेवालों ने और सरदारों ने बाहर जाकर उन से कहा, फिरौन इस प्रकार कहता है, कि मैं तुम्हें पुआल नहीं दूंगा। 02O 5 11 तुम ही जाकर जहां कहीं पुआल मिले वहां से उसको बटोर कर ले आओ; परन्तु तुम्हारा काम कुछ भी नहीं घटाया जाएगा। 02O 5 12 सो वे लोग सारे मि देश में तित्तर- बित्तर हुए कि पुआल की सन्ती खूंटी बटोरें। 02O 5 13 और परिश्रम करनेवाले यह कह कहकर उन से जल्दी करते रहे, कि जिस प्रकार तुम पुआल पाकर किया करते थे उसी प्रकार अपना प्रतिदिन का काम अब भी पूरा करो। 02O 5 14 और इस्राएलियों में से जिन सरदारों को फिरौन के परिश्रम करानेवालों ने उनका अधिकारी ठहराया था, उन्हों ने मार खाई, और उन से पूछा गया, कि क्या कारण है कि तुम ने अपनी ठहराई हुई ईंटों की गिनती के अनुसार पहिले की नाई कल और आज पूरी नहीं कराई ? 02O 5 15 तब इस्राएलियों के सरदारों ने जाकर फिरौन की दोहाई यह कहकर दी, कि तू अपने दासों से ऐसा बर्ताव क्यों करता है? 02O 5 16 तेरे दासों को पुआल तो दिया ही नहीं जाता और वे हम से कहते रहते हैं, ईंटे बनाओ, ईंटें बनाओ, और तेरे दासों ने भी मार खाई हैं; परन्तु दोष तेरे ही लोगों का है। 02O 5 17 फिरौन ने कहा, तुम आलसी हो, आलसी; इसी कारण कहते हो कि हमे यहोवा के लिये बलिदान करने को जाने दे। 02O 5 18 और जब आकर अपना काम करो; और पुआल तुम को नहीं दिया जाएगा, परन्तु ईटों की गिनती पूरी करनी पड़ेगी। 02O 5 19 जब इस्राएलियों के सरदारों ने यह बात सुनी कि उनकी ईंटों की गिनती न घटेगी, और प्रतिदिन उतना ही काम पूरा करना पड़ेगा, तब वे जान गए कि उनके दुर्भाग्य के दिन आ गए हैं। 02O 5 20 जब वे फिरौन के सम्मुख से बाहर निकल आए तब मूसा और हारून, जो उन से भेंट करने के लिये खड़े थे, उन्हें मिले। 02O 5 21 और उन्हों ने मूसा और हारून से कहा, यहोवा तुम पर दृष्टि करके न्याय करे, क्योंकि तुम ने हम को फिरौन और उसके कर्मचारियों की दृष्टि में घृणित ठहरवाकर हमें घात करने के लिये उनके हाथ में तलवार दे दी है। 02O 5 22 तब मूसा ने यहोवा के पास लौट कर कहा, हे प्रभु, तू ने इस प्रजा के साथ ऐसी बुराई क्यों की? और तू ने मुझे यहां क्यों भेजा ? 02O 5 23 जब से मैं तेरे नाम से फिरौन के पास बातें करने के लिये गया तब से उसने इस प्रजा के साथ बुरा ही व्यवहार किया है, और तू ने अपनी प्रजा का कुछ भी छुटकारा नहीं किया। 02O 6 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, अब तू देखेगा कि मैं फिरौन ने क्या करूंगा; जिस से वह उनको बरबस निकालेगा, वह तो उन्हें अपने देश से बरबस निकाल देगा।। 02O 6 2 और परमेश्वर ने मूसा से कहा, कि मैं यहोवा हूं। 02O 6 3 मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर के नाम से इब्राहीम, इसहाक, और याकूब को दर्शन देता था, परन्तु यहोवा के नाम से मैं उन पर प्रगट न हुआ। 02O 6 4 और मैं ने उनके साथ अपनी वाचा दृढ़ की है, अर्थात् कनान देश जिस में वे परदेशी होकर रहते थे, उसे उन्हें दे दूं। 02O 6 5 और इस्राएली जिन्हें मिद्दी लोग दासत्व में रखते हैं उनका कराहना भी सुनकर मैं ने अपनी वाचा को स्मरण किया है। 02O 6 6 इस कारण तू इस्राएलियों से कह, कि मैं यहोवा हूं, और तुम को मिस्त्रियों के बोझों के नीचे से निकालूंगा, और उनके दासत्व से तुम को छुडाऊंगा, और अपनी भुजा बढ़ाकर और भारी दण्ड देकर तुम्हें छुड़ा लूंगा, 02O 6 8 और जिस देश के देने की शपथ मैं ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से खाई थी उसी में मैं तुम्हें पहुंचाकर उसे तुम्हारा भाग कर दूंगा। मैं तो यहोवा हूं। 02O 6 9 और ये बातें मूसा ने इस्राएलियों को सुनाई; परन्तु उन्हों ने मन की बेचैनी और दासत्व की क्रूरता के कारण उसकी न सुनी।। 02O 6 10 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 02O 6 11 तू जाकर मि के राजा फिरौन से कह, कि इस्राएलियों को अपने देश में से निकल जाने दे। 02O 6 12 और मूसा ने यहोवा से कहा, देख, इस्राएलियों ने मेरी नहीं सुनी; फिर फिरौन मुझ भ : बोलनेवाले की क्योंकर सुनेगा ? 02O 6 13 और यहोवा ने मूसा और हारून को इस्राएलियों और मि के राजा फिरौन के लिये आज्ञा इस अभिप्राय से दी कि वे इस्राएलियों को मि देश से निकाल ले जाएं। 02O 6 14 उनके पितरों के घरानों के मुख्य पुरूष ये हैं : इस्राएल के जेठा रूबेन के पुत्रा : हनोक, पल्लू, हेद्दॊन और कर्म्मी थे; 02O 6 15 और शिमोन के पुत्रा : यमूएल, यामीन, ओहद, याकिन, और सोहर थे, और एक कनानी स्त्री का बेटा शाउल भी था; इन्हीं से शिमोन के कुल निकले। 02O 6 16 और लेवी के पुत्रा जिन से उनकी वंशावली चली है, उनके नाम ये हैं : अर्थात् गेर्शोन, कहात और मरारी, और लेवी को पूरी अवस्था एक सौ सैंतीस वर्ष की हुई। 02O 6 17 गेर्शोन के पुत्रा जिन से उनका कुल चला : लिबनी और शिमी थे। 02O 6 18 और कहात के पुत्रा : अम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल थे, और कहात की पूरी अवस्था एक सौ सैंतीस वर्ष की हुई। 02O 6 19 और मरारी के पुत्रा : महली और मूशी थे। लेवियों के कुल जिन से उनकी वंशावली चली ये ही हैं। 02O 6 20 अम्राम ने अपनी फूफी योकेबेद को ब्याह लिया और उस से हारून और मूसा उत्पन्न हुए, और अम्राम की पूरी अवस्था एक सौ सैंतीस वर्ष की हुई। 02O 6 21 और यिसहार के पुत्रा कोरह, नेपेग और जिक्री थे। 02O 6 22 और उज्जीएल के पुत्रा: मीशाएल, एलसापन और सित्री थे। 02O 6 23 और हारून ने अम्मीनादाब की बेटी, और नहशोन की बहिन एलीशेबा को ब्याह लिया; और उस से नादाब, अबीहू, ऐलाजार और ईतामार उत्पन्न हुए। 02O 6 24 और कोरह के पुत्रा : अस्सीर, एलकाना और अबीआसाप थे; और इन्हीं से कोरहियों के कुल निकले। 02O 6 25 और हारून के पुत्रा एलाजार ने पूतीएल की एक बेटी को ब्याह लिया; और उस से पीनहास उत्पन्न हुआ जिन से उनका कुल चला। लेवियों के पितरों के घरानों के मुख्य पुरूष ये ही हैं। 02O 6 26 हारून और मूसा वे ही हैं जिनको यहोवा ने यह आज्ञा दी, कि इस्राएलियों को दल दल करके उनके जत्थों के अनुसार मि देश से निकाल ले आओ। 02O 6 27 ये वही मूसा और हारून हैं जिन्हों ने मि के राजा फिरौन से कहा, कि हम इस्राएलियों को मि से निकाल ले जाएंगे।। 02O 6 28 जब यहोवा ने मि देश में मूसा से यह बात कही, 02O 6 29 कि मैं तो यहोवा हूं; इसलिये जो कुछ मैं तुम से कहूंगा वह सब मि के राजा फिरौन से कहना। 02O 6 30 और मूसा ने यहोवा को उत्तर दिया, कि मैं तो बोलने में भस्रा हूं; और फिरोन क्योंकर मेरी सुनेगा ? 02O 7 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, सुन, मैं तुझे फिरौन के लिये परमेश्वर सा ठहराता हूं; और तेरा भाई हारून तेरा नबी ठहरेगा। 02O 7 2 जो जो आज्ञा मैं तुझे दूं वही तू कहना, और हारून उसे फिरौन से कहेगा जिस से वह इस्राएलियों को अपने देश से निकल जाने दे। 02O 7 3 और मैं फिरौन के मन को कठोर कर दूंगा, और अपने चिन्ह और चमत्कार मि देश में बहुत से दिखलाऊंगा। 02O 7 4 तौभी फिरौन तुम्हारी न सुनेगा; और मैं मि देश पर अपना हाथ बढ़ाकर मिस्त्रियों को भारी दण्ड देकर अपनी सेना अर्थात् अपनी इस्राएली प्रजा को मि देश से निकाल लूंगा। 02O 7 5 और जब मैं मि पर हाथ बढ़ा कर इस्राएलियों को उनके बीच से निकालूंगा तब मिद्दी जान लेंगे, कि मैं यहोवा हूं। 02O 7 6 तब मूसा और हारून ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार ही किया। 02O 7 7 और जब मूसा और हारून फिरौन से बात करने लगे तब मूसा तो अस्सी वर्ष का था, और हारून तिरासी वर्ष का था।। 02O 7 8 फिर यहोवा ने, मूसा और हारून से इस प्रकार कहा, 02O 7 9 कि जब फिरौन तुम से कहे, कि अपने प्रमाण का कोई चमत्कार दिखाओ, तब तू हारून से कहना, कि अपनी लाठी को लेकर फिरौन के साम्हने डाल दे, कि वह अजगर बन जाए। 02O 7 10 तब मूसा और हारून ने फिरौन के पास जाकर यहोवा की आज्ञा के अनुसार किया; और जब हारून ने अपनी लाठी को फिरौन और उसके कर्मचारियों के साम्हने डाल दिया, तब वह अजगर बन गया। 02O 7 11 तब फिरौन ने पण्डितों और टोनहा करनेवालों को बुलवाया; और मि के जादूगरों ने आकर अपने अपने तंत्रा मंत्रा से वैसा ही किया। 02O 7 12 उन्हों ने भी अपनी अपनी लाठी को डाल दिया, और वे भी अजगर बन गए। पर हारून की लाठी उनकी लाठियों को निगल गई। 02O 7 13 परन्तु फिरौन का मन और हठीला हो गया, और यहोवा के वचन के अनुसार उस ने मूसा और हारून की बातों को नहीं माना।। 02O 7 14 तब यहोवा ने मूसा से कहा, फिरोन का मन कठोर हो गया है और वह इस प्रजा को जाने नहीं देता। 02O 7 15 इसलिये बिहान को फिरौन के पास जा, वह तो जल की ओर बाहर आएगा; और जो लाठी सर्प बन गई थी, उसको हाथ में लिए हुए नील नदी के तट पर उस से भेंट करने के लिये खड़ा रहना। 02O 7 16 और उस से इस प्रकार कहना, कि इब्रियों के परमेश्वर यहोवा ने मुझे यह कहने के लिये तेरे पास भेजा है, कि मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे कि जिस से वे जंगल में मेरी उपासना करें; और अब तक तू ने मेरा कहना नहीं माना। 02O 7 17 यहोवा यों कहता है, इस से तू जान लेगा कि मैं ही परमेश्वर हूं; देख, मै अपने हाथ की लाठी को नील नदी के जल पर मारूंगा, और जल लोहू बन जाएगा, 02O 7 18 और जो मछलियां नील नदी में हैं वे मर जाएंगी, और नील नदी बसाने लगेगी, और नदी का पानी पीने के लिये मिस्त्रियों का जी न चाहेगा। 02O 7 19 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, हारून से कह, कि अपनी लाठी लेकर मि देश में जितना जल है, अर्थात् उसकी नदियां, नहरें, झीलें, और पोखरे, सब के ऊपर अपना हाथ बढ़ा कि उनका जल लोहू बन जाए; और सारे मि देश में काठ और पत्थर दोनों भांति के जलपात्रों में लोहू ही लोहू हो जाएगा। 02O 7 20 तब मूसा और हारून ने यहोवा की आज्ञा ही के अनुसार किया, अर्थात् उस ने लाठी को उठाकर फिरौन और उसके कर्मचारियों के देखते नील नदी के जल पर मारा, और नदी का सब जल लोहू बन गया। 02O 7 21 और नील नदी में जो मछलियां थीं वे मर गई; और नदी से दुर्गन्ध आने लगी, और मिद्दी लोग नदी का पानी न पी सके; और सारे मि देश में लोहू हो गया। 02O 7 22 तब मि के जादूगरों ने भी अपने तंत्रा- मंत्रो से वैसा ही किया; तौभी फिरौन का मन हठीला हो गया, और यहोवा के कहने के अनुसार उस ने मूसा और हारून की न मानी। 02O 7 23 फिरौन ने इस पर भी ध्यान नहीं दिया, और मुंह फेर के अपने घर में चला गया। 02O 7 24 और सब मिद्दी लोग पीने के जल के लिये नील नदी के आस पास खोदने लगे, क्योंकि वे नदी का जल नहीं पी सकते थे। 02O 7 25 और जब यहोवा ने नील नदी को मारा था तब से सात दिन हो चुके थे।। 02O 8 1 और तब यहोवा ने फिर मूसा से कहा, फिरौन के पास जाकर कह, यहोवा तुझ से इस प्रकार कहता है, कि मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे जिस से वे मेरी उपासना करें। 02O 8 2 और यदि उन्हें जाने न देगा तो सुन, मैं मेंढ़क भेजकर तेरे सारे देश को हानि पहुंचानेवाला हूं। 02O 8 3 और नील नदी मेंढ़कों से भर जाएगी, और वे तेरे भवन में, और तेरे बिछौने पर, और तेरे कर्मचारियों के घरों में, और तेरी प्रजा पर, वरन तेरे तन्दूरों और कठौतियों में भी चढ़ जाएंगे। 02O 8 4 और तुझ पर, और तेरी प्रजा, और तेरे कर्मचारियों, सभों पर मेंढ़क चढ़ जाएंगे। 02O 8 5 फिर यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी, कि हारून से कह दे, कि नदियों, नहरों, और झीलों के ऊपर लाठी के साथ अपना हाथ बढ़ाकर मेंढकों को मि देश पर चढ़ा ले आए। 02O 8 6 तब हारून ने मि के जलाशयों के ऊपर अपना हाथ बढ़ाया; और मेंढ़कों ने मि देश पर चढ़कर उसे छा लिया। 02O 8 7 और जादूगर भी अपने तंत्रा- मंत्रों से उसी प्रकार मि देश पर मेंढक चढ़ा ले आए। 02O 8 8 तक फिरौन ने मूसा और हारून को बुलवाकर कहा, यहोवा से बिनती करो कि वह मेंढ़कों को मुझ से और मेरी प्रजा से दूर करे; और मैं इस्राएली लोगों को जाने दूंगा जिस से वे यहोवा के लिये बलिदान करें। 02O 8 9 तब मूसा ने फिरौन से कहा, इतनी बात पर तो मुझ पर तेरा घमंड रहे, अब मैं तेरे, और तेरे कर्मचारियों, और प्रजा के निमित्त कब बिनती करूं, कि यहोवा तेरे पास से और तेरे घरों में से मेंढकों को दूर करे, और वे केवल नील नदी में पाए जाएं ? 02O 8 10 उस ने कहा, कल। उस ने कहा, तेरे वचन के अनुसार होगा, जिस से तुझे यह ज्ञात हो जाए कि हमारे परमेश्वर यहोवा के तुल्य कोई दूसरा नहीं है। 02O 8 11 और मेंढक तेरे पास से, और तेरे घरों में से, और तेरे कर्मचारियों और प्रजा के पास से दूर होकर केवल नील नदी में रहेंगे। 02O 8 12 तब मूसा और हारून फिरौन के पास से निकल गए; और मूसा ने उन मेंढकों के विषय यहोवा की दोहाई दी जो उस ने फिरौन पर भेजे थे। 02O 8 13 और यहोवा ने मूसा के कहने के अनुसार किया; और मेंढक घरों, आंगनों, और खेतों में मर गए। 02O 8 14 और लोगों ने इकट्ठे करके उनके ढेर लगा दिए, और सारा देश दुर्गन्ध से भर गया। 02O 8 15 परन्तु जब फिरोन ने देखा कि अब आराम मिला है तक यहोवा के कहने के अनुसार उस ने फिर अपने मन को कठोर किया, और उनकी न सुनी।। 02O 8 16 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, हारून को आज्ञा दे, कि तू अपनी लाठी बढ़ाकर भूमि की धूल पर मार, जिस से वह मि देश भर में कुटकियां बन जाएं। 02O 8 17 और उन्हों ने वैसा ही किया; अर्थात् हारून ने लाठी को ले हाथ बढ़ाकर भूमि की धूल पर मारा, तब मनुष्य और पशु दोनों पर कुटकियां हो गई वरन सारे मि देश में भूमि की धूल कुटकियां बन गई। 02O 8 18 तब जादूगरों ने चाहा कि अपने तंत्रा मंत्रों के बल से हम भी कुटकियां ले आएं, परन्तु यह उन से न हो सका। और मनुष्यों और पशुओं दोनों पर कुटकियां बनी ही रहीं। 02O 8 19 तब जादूगरों ने फिरौन से कहा, यह तो परमेश्वर के हाथ का काम है। तौभी यहोवा के कहने के अनुसार फिरौन का मन कठोर होता गया, और उस ने मूसा और हारून की बात न मानी।। 02O 8 20 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, बिहान को तड़के उठकर फिरौन के साम्हने खड़ा होना, वह तो जल की ओर आएगा, और उस से कहना, कि यहोवा तुझ से यह कहता है, कि मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे, कि वे मेरी उपासना करें। 02O 8 21 यदि तू मेरी प्रजा को न जाने देगा तो सुन, मैं तुझ पर, और तेरे कर्मचारियों और तेरी प्रजा पर, और तेरे घरों में झुंड के झुंड डांस भेजूंगा; और मिस्त्रियों के घर और उनके रहने की भूमि भी डांसों से भर जाएगी। 02O 8 22 उस दिन मैं गोशेन देश को जिस में मेरी प्रजा रहती है अलग करूंगा, और उस में डांसों के झुंड न होंगे; जिस से तू जान ले कि पृथ्वी के बीच मैं ही यहोवा हूं। 02O 8 23 और मैं अपनी प्रजा और तेरी प्रजा में अन्तर ठहराऊंगा। यह चिन्ह कल होगा। 02O 8 24 और यहोवा ने वैसा ही किया, और फिरौन के भवन, और उसके कर्मचारियों के घरों में, और सारे मि देश में डांसों के झुंड के झुंड भर गए, और डांसों के मारे वह देश नाश हुआ। 02O 8 25 तब फिरौन ने मूसा और हारून को बुलवाकर कहा, तुम जाकर अपने परमेश्वर के लिये इसी देश में बलिदान करो। 02O 8 26 मूसा ने कहा, ऐसा करना उचित नहीं; क्योंकि हम अपने परमेश्वर यहोवा के लिये मिस्त्रियों की घृणित वस्तु बलिदान करेंगें; और यदि हम मिस्त्रियों के देखते उनकी घृणित वस्तु बलिदान करें तो क्या वे हम को पत्थरवाह न करेंगे ? 02O 8 27 हम जंगल में तीन दिन के मार्ग पर जाकर अपने परमेश्वर यहोवा के लिये जैसा वह हम से कहेगा वैसा ही बलिदान करेंगे। 02O 8 28 फिरौन ने कहा, मैं तुम को जंगल में जाने दूंगा कि तुम अपने परमेश्वर यहोवा के लिये जंगल में बलिदान करो; केवल बहुत दूर न जाना, और मेरे लिये बिनती करो। 02O 8 29 तब मूसा ने कहा, सुन, मैं तेरे पास से बाहर जाकर यहोवा से बिनती करूंगा कि डांसों के झुंड तेरे, और तेरे कर्मचारियों, और प्रजा के पास से कल ही दूर हों; पर फिरौन आगे को कपट करके हमें यहोवा के लिये बलिदान करने को जाने देने के लिये नाहीं न करे। 02O 8 30 सो मूसा ने फिरौन के पास से बाहर जाकर यहोवा से बिनती की। 02O 8 31 और यहोवा ने मूसा के कहे के अनुसार डांसों के झुण्डों को फिरौन, और उसके कर्मचारियों, और उसकी प्रजा से दूर किया; यहां तक कि एक भी न रहा। 02O 8 32 तक फिरौन ने इस बार भी अपने मन को सुन्न किया, और उन लोगों को जाने न दिया।। 02O 9 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, फिरोन के पास जाकर कह, कि इब्रियों का परमेश्वर यहोवा तुझ से इस प्रकार कहता है, कि मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे, कि मेरी उपासना करें। 02O 9 2 और यदि तू उन्हें जाने न दे और अब भी पकड़े रहे, 02O 9 3 तो सुन, तेरे जो घोड़े, गदहे, ऊंट, गाय- बैल, भेड़- बकरी आदि पशु मैदान में हैं, उन पर यहोवा का हाथ ऐसा पड़ेगा कि बहुत भारी मरी होगी। 02O 9 4 और यहोवा इस्राएलियों के पशुओं में और मिस्त्रियों के पशुओं में ऐसा अन्तर करेगा, कि जो इस्राएलियों के हैं उन में से कोई भी न मरेगा। 02O 9 5 फिर यहोवा ने यह कहकर एक समय ठहराया, कि मैं यह काम इस देश में कल करूंगा। 02O 9 6 दूसरे दिन यहोवा ने ऐसा ही किया; और मि के तो सब पशु मर गए, परन्तु इस्राएलियों का एक भी पशु न मरा। 02O 9 7 और फिरौन ने लोगों को भेजा, पर इस्राएलियों के पशुओं में से एक भी नहीं मरा था। तौभी फिरौन का मन सुन्न हो गया, और उस ने उन लोगों को जाने न दिया। 02O 9 8 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, कि तुम दोनों भट्टी में से एक एक मुट्ठी राख ले लो, और मूसा उसे फिरौन के साम्हने आकाश की ओर उड़ा दे। 02O 9 9 तब वह सूक्ष्म धूल होकर सारे मि देश में मनुष्यों और पशुओं दोनों पर फफोले और फोड़े बन जाएगी। 02O 9 10 सो वे भट्टी में की राख लेकर फिरौन के साम्हने खड़े हुए, और मूसा ने उसे आकाश की ओर उड़ा दिया, और वह मनुष्यों और पशुओं दोनों पर फफोले और फोड़े बन गई। 02O 9 11 और उन फोड़ों के कारण जादूगर मूसा के साम्हने खड़े न रह सके, क्योंकि वे फोड़े जैसे सब मिस्त्रियों के वैसे ही जादूगरों के भी निकले थे। 02O 9 12 तब यहोवा ने फिरौन के मन को कठोर कर दिया, और जैसा यहोवा ने मूसा से कहा था, उस ने उसकी न सुनी।। 02O 9 13 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, बिहान को तड़के उठकर फिरौन के साम्हने खड़ा हो, और उस से कह इब्रियों का परमेश्वर यहोवा इस प्रकार कहता है, कि मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे, कि वे मेरी उपासना करें। 02O 9 14 नहीं तो अब की बार मैं तुझ पर, और तेरे कर्मचारियों और तेरी प्रजा पर सब प्रकार की विपत्तियां डालूंगा, जिससे तू जान ले कि सारी पृथ्वी पर मेरे तुल्य कोई दूसरा नहीं है। 02O 9 15 मैं ने तो अभी हाथ बढ़ाकर तुझे और तेरी प्रजा को मरी से मारा होता, और तू पृथ्वी पर से सत्यनाश हो गया होता; 02O 9 16 परन्तु सचमुच मैं ने इसी कारण तुझे बनाए रखा है, कि तुझे अपना सामर्थ्य दिखाऊं, और अपना नाम सारी पृथ्वी पर प्रसिद्ध करूं। 02O 9 17 क्या तू अब भी मेरी प्रजा के साम्हने अपने आप को बड़ा समझता है, और उन्हें जाने नहीं देता ? 02O 9 18 सुन, कल मैं इसी समय ऐसे भारी भारी ओले बरसाऊंगा, कि जिन के तुल्य मि की नेव पड़ने के दिन से लेकर अब तक कभी नहीं पड़े। 02O 9 19 सो अब लोगों को भेजकर अपने पशुओं को अपने मैदान में जो कुछ तेरा है सब को फुर्ती से आड़ में छिपा ले; नहीं तो जितने मनुष्य वा पशु मैदान में रहें और घर में इकट्ठे न किए जाएं उन पर ओले गिरेंगे, और वे मर जाएंगे। 02O 9 20 इसलिये फिरौन के कर्मचारियों में से जो लोग यहोवा के वचन का भय मानते थे उन्हों ने तो अपने अपने सेवकों और पशुओं को घर में हाँक दिया। 02O 9 21 पर जिन्हों ने यहोवा के वचन पर मन न लगाया उन्हों ने अपने सेवकों और पशुओं को मैदान में रहने दिया।। 02O 9 22 तक यहोवा ने मूसा से कहा, अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ा, कि सारे मि देश के मनुष्यों पशुओं और खेतों की सारी उपज पर ओले गिरें। 02O 9 23 तब मूसा ने अपनी लाठी को आकाश की ओर उठाया; और यहोवा मेघ गरजाने और ओले बरसाने लगा, और आग पृथ्वी तक आती रही। इस प्रकार यहोवा ने मि देश पर ओले बरसाए। 02O 9 24 जो ओले गिरते थे उनके साथ आग भी मिली हुई थी, और वे ओले इतने भारी थे कि जब से मि देश बसा था तब से मि भर में ऐसे ओले कभी न गिरे थे। 02O 9 25 इसलिये मि भर के खेतों में क्या मनुष्य, क्या पशु, जितने थे सब ओलों से मारे गए, और ओलों से खेत की सारी उपज नष्ट हो गई, और मैदान के सब वृक्ष टूट गए। 02O 9 26 केवल गोशेन देश में जहां इस्राएली बसते थे ओले नहीं गिरे। 02O 9 27 तब फिरौन ने मूसा और हारून को बुलवा भेजा और उन से कहा, कि इस बार मैं ने पाप किया है; यहोवा धर्मी है, और मैं और मेरी प्रजा अधर्मी हैं। 02O 9 28 मेघों का गरजना और ओलों का बरसना तो बहुत हो गया; अब भविष्य में यहोवा से बिनती करो; तब मैं तुम लोगों को जाने दूंगा, और तुम न रोके जाओगे। 02O 9 29 मूसा ने उस से कहा, नगर से निकलते ही मैं यहोवा की ओर हाथ फैलाऊंगा, तब बादल का गरजना बन्द हो जाएगा, और ओले फिर न गिरेंगे, इस से तू जान लेगा कि पृथ्वी यहोवा ही की है। 02O 9 30 तौभी मैं जानता हूं, कि न तो तू और न तेरे कर्मचारी यहोवा परमेश्वर का भय मानेंगे। 02O 9 31 सन और जव तो ओलों से मारे गए, क्योंकि जव की बालें निकल चुकी थीं और सन में फूल लगे हुए थे। 02O 9 32 पर गेहूं और कठिया गेहूं जो बढ़े न थे, इस कारण वे मारे न गए। 02O 9 33 जब मूसा ने फिरौन के पास से नगर के बाहर निकलकर यहोवा की ओर हाथ फैलाए, तब बादल का गरजना और ओलों का बरसना बन्द हुआ, और फिर बहुत मेंह भूमि पर न पड़ा। 02O 9 34 यह देखकर कि मेंह और ओलों और बादल का गरजना बन्द हो गया फिरौन ने अपने कर्मचारियों समेत फिर अपने मन को कठोर करके पाप किया। 02O 9 35 और फिरौन का मन हठीला होता गया, और उस ने इस्राएलियों को जाने न दिया; जैसा कि यहोवा ने मूसा के द्वारा कहलवाया था।। 02O 10 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, फिरोन के पास जा; क्योंकि मैं ही ने उसके और उसके कर्मचारियों के मन को इसलिये कठोर कर दिया है, कि अपने चिन्ह उनके बीच में दिखलाऊं। 02O 10 2 और तुम लोग अपने बेटों और पोतों से इसका वर्णन करो कि यहोवा ने मिस्त्रियों को कैसे ठट्ठों में उड़ाया और अपने क्या क्या चिन्ह उनके बीच प्रगट किए हैं; जिस से तुम यह जान लोगे कि मैं यहोवा हूं। 02O 10 3 तब मूसा और हारून ने फिरौन के पास जाकर कहा, कि इब्रियों का परमेश्वर यहोवा तुझ से इस प्रकार कहता है, कि तू कब तक मेरे साम्हने दीन होने से संकोच करता रहेगा ? मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे, कि वे मेरी उपासना करें। 02O 10 4 यदि तू मेरी प्रजा को जाने न दे तो सुन, कल मैं तेरे देश में टिडि्डयां ले आऊंगा। 02O 10 5 और वे धरती को ऐसा छा लेंगी, कि वह देख न पड़ेगी; और तुम्हारा जो कुछ ओलों से बच रहा है उसको वे चट कर जाएंगी, और तुम्हारे जितने वृक्ष मैदान में लगे हैं उनको भी वे चट कर जाएंगी, 02O 10 6 और वे तेरे और तेरे सारे कर्मचारियों, निदान सारे मिस्त्रियों के घरों में भर जाएंगी; इतनी टिडि्डयां तेरे बापदादों ने वा उनके पुरखाओं ने जब से पृथ्वी पर जन्मे तब से आज तक कभी न देखीं। और वह मुंह फेरकर फिरौन के पास से बाहर गया। 02O 10 7 तब फिरौन के कर्मचारी उस से कहने लगे, वह जन कब तक हमारे लिये फन्दा बना रहेगा ? उन मनुष्यों को जाने दे, कि वे अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करें; क्या तू अब तक नहीं जानता, कि सारा मि नाश हो गया है ? 02O 10 8 तब मूसा और हारून फिरौन के पास फिर बुलवाए गए, और उस ने उन से कहा, चले जाओ, अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करो; परन्तु वे जो जानेवाले हैं, कौन कौन हैं ? 02O 10 9 मूसा ने कहा, हम तो बेटों बेटियों, भेड़- बकरियों, गाय- बैलों समेत वरन बच्चों से बूढ़ों तक सब के सब जाएंगे, क्योंकि हमें यहोवा के लिये पर्ब्ब करना है। 02O 10 10 उस ने इस प्रकार उन से कहा, यहोवा तुम्हारे संग रहे जब कि मैं तुम्हें बच्चों समेत जाने देता हूं; देखो, तुम्हारे आगे को बुराई है। 02O 10 11 नहीं, ऐसा नहीं होने पाएगा; तुम पुरूष ही जाकर यहोवा की उपासना करो, तुम यही तो चाहते थे। और वे फिरौन के सम्मुख से निकाल दिए गए।। 02O 10 12 तब यहोवा ने मूसा से कहा, मि देश के ऊपर अपना हाथ बढ़ा, कि टिडि्डयां मि देश पर चढ़के भूमि का जितना अन्न आदि ओलों से बचा है सब को चट कर जाएं। 02O 10 13 और मूसा ने अपनी लाट्ठी को मि देश के ऊपर बढ़ाया, तब यहोवा ने दिन भर और रात भर देश पर पुरवाई बहाई; और जब भोर हुआ तब उस पुरवाई में टिडि्डयां आईं। 02O 10 14 और टिडि्डयों ने चढ़के मि देश के सारे स्थानों मे बसेरा किया, उनका दल बहुत भारी था, वरन न तो उनसे पहले ऐसी टिडि्डयां आई थी, और न उनके पीछे ऐसी फिर आएंगी। 02O 10 15 वे तो सारी धरती पर छा गई, यहां तक कि देश अन्धेरा हो गया, और उसका सारा अन्न आदि और वृक्षों के सब फल, निदान जो कुछ ओलों से बचा था, सब को उन्हों ने चट कर लिया; यहां तक कि मि देश भर में न तो किसी वृक्ष पर कुछ हरियाली रह गई और न खेत में अनाज रह गया। 02O 10 16 तब फिरौन ने फुर्ती से मूसा और हारून को बुलवाके कहा, मैं ने तो तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का और तुम्हारा भी अपराध किया है। 02O 10 17 इसलिये अब की बार मेरा अपराध क्षमा करो, और अपने परमेश्वर यहोवा से बिनती करो, कि वह केवल मेरे ऊपर से इस मृत्यु को दूर करे। 02O 10 18 तब मूसा ने फिरोन के पास से निकल कर यहोवा से बिनती की। 02O 10 19 तब यहोवा ने बहुत प्रचण्ड पछुवा बहाकर टिडि्डयों को उड़ाकर लाल समुन्द्र में डाल दिया, और मि के किसी स्थान में एक भी टिड्डी न रह गई। 02O 10 20 तौभी यहोवा ने फिरौन के मन को कठोर कर दिया, जिस से उस ने इस्राएलियों को जाने न दिया। 02O 10 21 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ा कि मि देश के ऊपर अन्धकार छा जाए, ऐसा अन्धकार कि टटोला जा सके। 02O 10 22 तब मूसा ने अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ाया, और सारे मि देश में तीन दिन तक घोर अन्धकार छाया रहा। 02O 10 23 तीन दिन तक न तो किसी ने किसी को देखा, और न कोई अपने स्थान से उठा; परन्तु सारे इस्राएलियों के घरों में उजियाला रहा। 02O 10 24 तब फिरौन ने मूसा को बुलवाकर कहा, तुम लोग जाओ, यहोवा की उपासना करो; अपने बालकों को भी संग ले जाओ; केवल अपनी भेड़- बकरी और गाय- बैल को छोड़ जाओ। 02O 10 25 मूसा ने कहा, तुझ को हमारे हाथ मेलबलि और होमबलि के पशु भी देने पड़ेंगे, जिन्हें हम अपने परमेश्वर यहोवा के लिये चढ़ाएं। 02O 10 26 इसलिये हमारे पशु भी हमारे संग जाएंगे, उनका एक खुर तक न रह जाएगा, क्योंकि उन्हीं में से हम को अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना का सामान लेना होगा, और हम जब तक वहां न पहुंचें तब तक नहीं जानते कि क्या क्या लेकर यहोवा की उपासना करनी होगी। 02O 10 27 पर यहोवा ने फिरौन का मन हठीला कर दिया, जिस से उस ने उन्हें जाने न दिया। 02O 10 28 तब फिरौन ने उस से कहा, मेरे साम्हने से चला जा; और सचेत रह; मुझे अपना मुख फिर न दिखाना; क्योंकि जिस दिन तू मुझे मुंह दिखलाए उसी दिन तू मारा जाएगा। 02O 10 29 मूसा ने कहा, कि तू ने ठीक कहा है; मैं तेरे मुंह को फिर कभी न देखूंगा।। 02O 11 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, एक और विपत्ति मैं फिरौन और मि देश पर डालता हूं, उसके पश्चात् वह तुम लोगों को वहां से जाने देगा; और जब वह जाने देगा तब तुम सभों को निश्चय निकाल देगा। 02O 11 2 मेरी प्रजा को मेरी यह आज्ञा सुना, कि एक एक पुरूष अपने अपने पड़ोसी, और एक एक स्त्री अपनी अपनी पड़ोसिन से सोने चांदी के गहने मांग ले। 02O 11 3 तब यहोवा ने मिस्त्रियों को अपनी प्रजा पर दयालु किया। और इससे अधिक वह पुरूष मूसा मि देश में फिरौन के कर्मचारियों और साधारण लोगों की दृष्टि में अति महान था।। 02O 11 4 फिर मूसा ने कहा, यहोवा इस प्रकार कहता है, कि आधी रात के लगभग मैं मि देश के बीच में होकर चलूंगा। 02O 11 5 तब मि में सिंहासन पर विराजने वाले फिरौन से लेकर चक्की पीसनेवाली दासी तक के पहिलौठे; वरन पशुओं तक के सब पहिलौठे मर जाएंगे। 02O 11 6 और सारे मि देश में बड़ा हाहाकार मचेगा, यहां तक कि उसके समान न तो कभी हुआ और न होगा। 02O 11 7 पर इस्राएलियों के विरूद्ध, क्या मनुष्य क्या पशु, किसी पर कोई कुत्ता भी न भोंकेगा; जिस से तुम जान लो कि मिस्त्रियों और इस्राएलियों में मैं यहोवा अन्तर करता हूं। 02O 11 8 तब तेरे ये सब कर्मचारी मेरे पास आ मुझे दण्डवत् करके यह कहेंगे, कि अपने सब अनुचरों समेत निकल जा। और उसके पश्चात् मैं निकल जाऊंगा। यह कह कर मूसा बड़े क्रोध में फिरौन के पास से निकल गया।। 02O 11 9 यहोवा ने मूसा से कह दिया था, कि फिरौन तुम्हारी न सुनेगा; क्योंकि मेरी इच्छा है कि मि देश में बहुत से चमत्कार करूं। 02O 11 10 मूसा और हारून ने फिरौन के साम्हने ये सब चमत्कार किए; पर यहोवा ने फिरौन का मन और कठोर कर दिया, सो उसने इस्राएलियों को अपने देश से जाने न दिया।। 02O 12 1 फिर यहोवा ने मि देश में मूसा और हारून से कहा, 02O 12 2 कि यह महीना तुम लोगों के लिये आरम्भ का ठहरे; अर्थात् वर्ष का पहिला महीना यही ठहरे। 02O 12 3 इस्राएल की सारी मण्डली से इस प्रकार कहो, कि इसी महीने के दसवें दिन को तुम अपने अपने पितरों के घरानों के अनुसार, घराने पीछे एक एक मेम्ना ले रखो। 02O 12 4 और यदि किसी के घराने में एक मेम्ने के खाने के लिये मनुष्य कम हों, तो वह अपने सब से निकट रहनेवाले पड़ोसी के साथ प्राणियों की गिनती के अनुसार एक मेम्ना ले रखे; और तुम हर एक के खाने के अनुसार मेम्ने का हिसाब करना। 02O 12 5 तुम्हारा मेम्ना निर्दौष और पहिले वर्ष का नर हो, और उसे चाहे भेड़ों में से लेना चाहे बकरियों में से। 02O 12 6 और इस महीने के चौदहवें दिन तक उसे रख छोड़ना, और उस दिन गोधूलि के समय इस्राएल की सारी मण्डली के लोग उसे बलि करें। 02O 12 7 तब वे उसके लोहू में से कुछ लेकर जिन घरों में मेम्ने को खाएंगे उनके द्वार के दोनों अलंगों और चौखट के सिरे पर लगाएं। 02O 12 8 और वे उसके मांस को उसी रात आग में भूंजकर अखमीरी रोटी और कड़वे सागपात के साथ खाएं। 02O 12 9 उसको सिर, पैर, और अतड़ियों समेत आग में भूंजकर खाना, कच्चा वा जल में कुछ भी पकाकर न खाना। 02O 12 10 और उस में से कुछ बिहान तक न रहने देना, और यदि कुछ बिहान तक रह भी जाए, तो उसे आग में जला देना। 02O 12 11 और उसके खाने की यह विधि है; कि कमर बान्धे, पांव में जूती पहिने, और हाथ में लाठी लिए हुए उसे फुर्ती से खाना; वह तो यहोवा का पर्ब्ब होगा। 02O 12 12 क्योंकि उस रात को मैं मि देश के बीच में से होकर जाऊंगा, और मि देश के क्या मनुष्य क्या पशु, सब के पहिलौठों को मारूंगा; और मि के सारे देवताओं को भी मैं दण्ड दूंगा; मैं तो यहोवा हूं। 02O 12 13 और जिन घरों में तुम रहोगे उन पर वह लोहू तुम्हारे निमित्त चिन्ह ठहरेगा; अर्थात् मैं उस लोहू को देखकर तुम को छोड़ जाऊंगा, और जब मैं मि देश के लोगों को मारूंगा, तब वह विपत्ति तुम पर न पड़ेगी और तुम नाश न होगे। 02O 12 14 और वह दिन तुम को स्मरण दिलानेवाला ठहरेगा, और तुम उसको यहोवा के लिये पर्ब्ब करके मानना; वह दिन तुम्हारी पीढ़ियों में सदा की विधि जानकर पर्ब्ब माना जाए। 02O 12 15 सात दिन तक अखमीरी रोटी खाया करना, उन में से पहिले ही दिन अपने अपने घर में से खमीर उठा डालना, वरन जो पहिले दिन से लेकर सातवें दिन तक कोई खमीरी वस्तु खाए, वह प्राणी इस्राएलियों में से नाश किया जाए। 02O 12 16 और पहिले दिन एक पवित्रा सभा, और सातवें दिन भी एक पवित्रा सभा करना; उन दोनों दिनों मे कोई काम न किया जाए; केवल जिस प्राणी का जो खाना हो उसके काम करने की आज्ञा है। 02O 12 17 इसलिये तुम बिना खमीर की रोटी का पर्ब्ब मानना, क्योंकि उसी दिन मानो मैं ने तुम को दल दल करके मि देश से निकाला है; इस कारण वह दिन तुम्हारी पीढ़ियों में सदा की विधि जानकर माना जाए। 02O 12 18 पहिले महीने के चौदहवें दिन की सांझ से लेकर इक्कीसवें दिन की सांझ तक तुम अखमीरी रोटी खाया करना। 02O 12 19 सात दिन तक तुम्हारे घरों में कुछ भी खमीर न रहे, वरन जो कोई किसी खमीरी वस्तु को खाए, चाहे वह देशी हो चाहे परदेशी, वह प्राणी इस्राएलियों की मण्डली से नाश किया जाए। 02O 12 20 कोई खमीरी वस्तु न खाना; अपने सब घरों में बिना खमीर की रोटी खाया करना।। 02O 12 21 तब मूसा ने इस्राएल के सब पुरनियों को बुलाकर कहा, तुम अपने अपने कुल के अनुसार एक एक मेम्ना अलग कर रखो, और फसह का पशु बलि करना। 02O 12 22 और उसका लोहू जो तसले में होगा उस में जूफा का एक गुच्छा डुबाकर उसी तसले में के लोहू से द्वार के चौखट के सिरे और दोनों अलंगों पर कुछ लगाना; और भोर तक तुम में से कोई घर से बाहर न निकले। 02O 12 23 क्योंकि यहोवा देश के बीच होकर मिस्त्रियों को मारता जाएगा; इसलिये जहां जहां वह चौखट के सिरे, और दोनों अलंगों पर उस लोहू को देखेगा, वहां वहां वह उस द्वार को छोड़ जाएगा, और नाश करनेवाले को तुम्हारे घरों में मारने के लिये न जाने देगा। 02O 12 24 फिर तुम इस विधि को अपने और अपने वंश के लिये सदा की विधि जानकर माना करो। 02O 12 25 जब तुम उस देश में जिसे यहोवा अपने कहने के अनुसार तुम को देगा प्रवेश करो, तब वह काम किया करना। 02O 12 26 और जब तुम्हारे लड़केबाले तुम से पूछें, कि इस काम से तुम्हारा क्या मतलब है ? 02O 12 27 तब तुम उनको यह उत्तर देना, कि यहोवा ने जो मिस्त्रियों के मारने के समय मि में रहने वाले हम इस्राएलियों के घरों को छोड़कर हमारे घरों को बचाया, इसी कारण उसके फसह का यह बलिदान किया जाता है। तब लोगों ने सिर झुकाकर दण्डवत् की। 02O 12 28 और इस्राएलियों ने जाकर, जो आज्ञा यहोवा ने मूसा और हारून को दी थी, उसी के अनुसार किया।। 02O 12 29 और ऐसा हुआ कि आधी रात को यहोवा ने मि देश में सिंहासन पर विराजनेवाले फिरौन से लेकर गड़हे में पड़े हुए बन्धुए तक सब के पहिलौठों को, वरन पशुओं तक के सब पहिलौठों को मार डाला। 02O 12 30 और फिरौन रात ही को उठ बैठा, और उसके सब कर्मचारी, वरन सारे मिद्दी उठे; और मि में बड़ा हाहाकार मचा, क्योंकि एक भी ऐसा घर न था जिसमें कोई मरा न हो। 02O 12 31 तब फिरौन ने रात ही रात में मूसा और हारून को बुलवाकर कहा, तुम इस्राएलियों समेत मेरी प्रजा के बीच से निकल जाओ; और अपने कहने के अनुसार जाकर यहोवा की उपासना करो। 02O 12 32 अपने कहने के अनुसार अपनी भेड़- बकरियों और गाय- बैलों को साथ ले जाओ; और मुझे आशीर्वाद दे जाओ। 02O 12 33 और मिद्दी जो कहते थे, कि हम तो सब मर मिटे हैं, उन्हों ने इस्राएली लोगों पर दबाव डालकर कहा, कि देश से झटपट निकल जाओ। 02O 12 34 तब उन्हों ने अपने गून्धे गुन्धाए आटे को बिना खमीर दिए ही कठौतियों समेत कपड़ों में बान्धके अपने अपने कन्धे पर डाल लिया। 02O 12 35 और इस्राएलियों ने मूसा के कहने के अनुसार मिस्त्रियों से सोने चांदी के गहने और वस्त्रा मांग लिये। 02O 12 36 और यहोवा ने मिस्त्रियों को अपनी प्रजा के लोगों पर ऐसा दयालु किया, कि उन्हों ने जो जो मांगा वह सब उनको दिया। इस प्रकार इस्राएलियों ने मिस्त्रियों को लूट लिया।। 02O 12 37 तब इस्राएली रामसेस से कूच करके सुक्कोत को चले, और बालबच्चों को छोड़ वे कोई छ: लाख पुरूष प्यादे थे। 02O 12 38 और उनके साथ मिली जुली हुई एक भीड़ गई, और भेड़- बकरी, गाय- बैल, बहुत से पशु भी साथ गए। 02O 12 39 और जो गून्धा आटा वे मि से साथ ले गए उसकी उन्हों ने बिना खमीर दिए रोटियां बनाई; क्योंकि वे मि से ऐसे बरबस निकाले गए, कि उन्हें अवसर भी न मिला की मार्ग में खाने के लिये कुछ पका सकें, इसी कारण वह गून्धा हुआ आटा बिना खमीर का था। 02O 12 40 मि में बसे हुए इस्राएलियों को चार सौ तीस वर्ष बीत गए थे। 02O 12 41 और उन चार सौ तीस वर्षों के बीतने पर, ठीक उसी दिन, यहोवा की सारी सेना मि देश से निकल गई। 02O 12 42 यहोवा इस्राएलियों को मि देश से निकाल लाया, इस कारण वह रात उसके निमित्त मानने के अति योग्य है; यह यहोवा की वही रात है जिसका पीढ़ी पीढ़ी में मानना इस्राएलियों के लिये अति अवश्य है।। 02O 12 43 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, पर्ब्ब की विधि यह है; कि कोई परदेशी उस में से न खाए; 02O 12 44 पर जो किसी का मोल लिया हुआ दास हो, और तुम लोगों ने उसका खतना किया हो, वह तो उस में से खा सकेगा। 02O 12 45 पर परदेशी और मजदूर उस में से न खाएं। 02O 12 46 उसका खाना एक ही घर में हो; अर्थात् तुम उसके मांस में से कुछ घर से बाहर न ले जाना; और बलिपशु की कोई हड्डी न तोड़ना। 02O 12 47 पर्ब्ब को मानना इस्राएल की सारी मण्डली का कर्तव्य कर्म है। 02O 12 48 और यदि कोई परदेशी तुम लोगों के संग रहकर यहोवा के लिये पर्ब्ब को मानना चाहे, तो वह अपने यहां के सब पुरूषों का खतना कराए, तब वह समीप आकर उसको माने; और वह देशी मनुष्य के तुल्य ठहरेगा। पर कोई खतनारहित पुरूष उस में से न खाने पाए। 02O 12 49 उसकी व्यवस्था देशी और तुम्हारे बीच में रहनेवाले परदेशी दोनों के लिये एक ही हो। 02O 12 50 यह आज्ञा जो यहोवा ने मूसा और हारून को दी उसके अनुसार सारे इस्राएलियों ने किया। 02O 12 51 और ठीक उसी दिन यहोवा इस्राएलियों को मि देश से दल दल करके निकाल ले गया।। 02O 13 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 02O 13 2 कि क्या मनुष्य के क्या पशु के, इस्राएलियों में जितने अपनी अपनी मां के जेठे हों, उन्हें मेरे लिये पवित्रा मानना; वह तो मेरा ही है।। 02O 13 3 फिर मूसा ने लोगों से कहा, इस दिन को स्मरण रखो, जिस में तुम लोग दासत्व के घर, अर्थात् मि से निकल आए हो; यहोवा तो तुम को वहां से अपने हाथ के बल से निकाल लाया; इस में खमीरी रोटी न खाई जाए। 02O 13 4 आबीब के महीने में आज के दिन तुम निकले हो। 02O 13 5 इसलिये जब यहोवा तुम को कनानी, हित्ती, एमोरी, हिब्बी, और यबूसी लोगों के देश में पहुचाएगा, जिसे देने की उस ने तुम्हारे पुरखाओं से शपथ खाई थी, और जिस में दूध और मधु की धारा बहती है, तब तुम इसी महीने में पर्ब्ब करना। 02O 13 6 सात दिन तक अखमीरी रोटी खाया करना, और सातवें दिन यहोवा के लिये पर्ब्ब मानना। 02O 13 7 इन सातों दिनों में अखमीरी रोटी खाई जाए; वरन तुम्हारे देश भर में न खमीरी रोटी, न खमीर तुम्हारे पास देखने में आए। 02O 13 8 और उस दिन तुम अपने अपने पुत्रों को यह कहके समझा देना, कि यह तो हम उसी काम के कारण करते हैं, जो यहोवा ने हमारे मि से निकल आने के समय हमारे लिये किया था। 02O 13 9 फिर यह तुम्हारे लिये तुम्हारे हाथ में एक चिन्ह होगा, और तुम्हारी आंखों के साम्हने स्मरण करानेवाली वस्तु ठहरे; जिस से यहोवा की व्यवस्था तुम्हारे मुंह पर रहे : क्योंकि यहोवा ने तुम्हें अपने बलवन्त हाथों से मि से निकाला है। 02O 13 10 इस कारण तुम इस विधि को प्रति वर्ष नियत समय पर माना करना।। 02O 13 11 फिर जब यहोवा उस शपथ के अनुसार, जो उस ने तुम्हारे पुरखाओं से और तुम से भी खाई है, तुम्हे कनानियों के देश में पहुंचाकर उसको तुम्हें दे देगा, 02O 13 12 तब तुम में से जितने अपनी अपनी मां के जेठे हों उनको, और तुम्हारे पशुओं में जो ऐसे हों उनको भी यहोवा के लिये अर्पण करना; सब नर बच्चे तो यहोवा के हैं। 02O 13 13 और गदही के हर एक पहिलौठे की सन्ती मेम्ना देकर उसको छुड़ा लेना, और यदि तुम उसे छुड़ाना न चाहो तो उसका गला तोड़ देना। पर अपने सब पहिलौठे पुत्रों को बदला देकर छुड़ा लेना। 02O 13 14 और आगे के दिनों में जब तुम्हारे पुत्रा तुम से पूछें, कि यह क्या है ? तो उन से कहना, कि यहोवा हम लोगों को दासत्व के घर से, अर्थात् मि देश से अपने हाथों के बल से निकाल लाया है। 02O 13 15 उस समय जब फिरौन ने कठोर होकर हम को जाने देना न चाहा, तब यहोवा ने मि देश में मनुष्य से लेकर पशु तक सब के पहिलौठों को मार डाला। इसी कारण पशुओं में से तो जितने अपनी अपनी मां के पहिलौठे नर हैं, उन्हें हम यहोवा के लिये बलि करते हैं; पर अपने सब जेठे पुत्रों को हम बदला देकर छुड़ा लेते हैं। 02O 13 16 और यह तुम्हारे हाथों पर एक चिन्ह सा और तुम्हारी भौहों के बीच टीका सा ठहरे; क्योंकि यहोवा हम लोगों को मि से अपने हाथों के बल से निकाल लाया है।। 02O 13 17 जब फिरौन ने लोगों को जाने की आज्ञा दे दी, तब यद्यपि पलिश्तियों के देश में होकर जो मार्ग जाता है वह छोटा था; तौभी परमेश्वर यह सोच कर उनको उस मार्ग से नहीं ले गया, कि कहीं ऐसा न हो कि जब ये लोग लड़ाई देखें तब पछताकर मि को लौट आएं। 02O 13 18 इसलिये परमेश्वर उनको चक्कर खिलाकर लाल समुद्र के जंगल के मार्ग से ले चला। और इस्राएली पांति बान्धे हुए मि से निकल गए। 02O 13 19 और मूसा यूसुफ की हडि्डयों को साथ लेता गया; क्योंकि यूसुफ ने इस्राएलियों से यह कहके, कि परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा, उनको इस विषय की दृढ़ शपथ खिलाई थी, कि वे उसकी हडि्डयों को अपने साथ यहां से ले जाएंगे। 02O 13 20 फिर उन्हों ने सुक्कोत से कूच करके जंगल की छोर पर एताम में डेरा किया। 02O 13 21 और यहोवा उन्हें दिन को मार्ग दिखाने के लिये मेघ के खम्भे में, और रात को उजियाला देने के लिये आग के खम्भे में होकर उनके आगे आगे चला करता था, जिससे वे रात और दिन दोनों में चल सकें। 02O 13 22 उस ने न तो बादल के खम्भे को दिन में और न आग के खम्भे को रात में लोगों के आगे से हटाया।। 02O 14 1 यहोवा ने मूसा से कहा, 02O 14 2 इस्राएलियों को आज्ञा दे, कि वे लौटकर मिगदोल और समुद्र के बीच पीहहीरोत के सम्मुख, बालसपोन के साम्हने अपने डेरे खड़े करें, उसी के साम्हने समुद्र के तट पर डेरे खड़े करें। 02O 14 3 तब फिरौन इस्राएलियों के विषय में सोचेगा, कि वे देश के उलझनों में बझे हैं और जंगल में घिर गए हैं। 02O 14 4 तब मैं फिरौन के मन को कठोर कर दूंगा, और वह उनका पीछा करेगा, तब फिरौन और उसकी सारी सेना के द्वारा मेरी महिमा होगी; और मिद्दी जान लेंगे कि मैं यहोवा हूं। और उन्हों ने वैसा ही किया। 02O 14 5 जब मि के राजा को यह समाचार मिला कि वे लोग भाग गए, तब फिरौन और उसके कर्मचारियों का मन उनके विरूद्ध पलट गया, और वे कहने लगे, हम ने यह क्या किया, कि इस्राएलियों को अपनी सेवकाई से छुटकारा देकर जाने दिया ? 02O 14 6 तब उस ने अपना रथ जुतवाया और अपनी सेना को संग लिया। 02O 14 7 उस ने छ: सौ अच्दे से अच्छे रथ वरन मि के सब रथ लिए और उन सभों पर सरदार बैठाए। 02O 14 8 और यहोवा ने मि के राजा फिरौन के मन को कठोर कर दिया। सो उस ने इस्राएलियों का पीछा किया; परन्तु इस्राएली तो बेखटके निकले चले जाते थे। 02O 14 9 पर फिरौन के सब घोड़ों, और रथों, और सवारों समेत मिद्दी सेना ने उनका पीछा करके उन्हें, जो पीहहीरोत के पास, बालसपोन के साम्हने, समुद्र के तीर पर डेरे डाले पड़े थे, जा लिया।। 02O 14 10 जब फिरौन निकट आया, तब इस्राएलियों ने आंखे उठाकर क्या देखा, कि मिद्दी हमारा पीछा किए चले आ रहे हैं; और इस्राएली अत्यन्त डर गए, और चिल्लाकर यहोवा की दोहाई दी। 02O 14 11 और वे मूसा से कहने लगे, क्या मि में कबरें न थीं जो तू हम को वहां से मरने के लिये जंगल में ले आया है ? तू ने हम से यह क्या किया, कि हम को मि से निकाल लाया ? 02O 14 12 क्या हम तुझ से मि में यही बात न कहते रहे, कि हमें रहने दे कि हम मिस्त्रियों की सेवा करें ? हमारे लिये जंगल में मरने से मिस्त्रियों कि सेवा करनी अच्छी थी। 02O 14 13 मूसा ने लोगों से कहा, डरो मत, खड़े खड़े वह उद्धार का काम देखो, जो यहोवा आज तुम्हारे लिये करेगा; क्योंकि जिन मिस्त्रियों को तुम आज देखते हो, उनको फिर कभी न देखोगे। 02O 14 14 यहोवा आप ही तुम्हारे लिये लड़ेगा, इसलिये तुम चुपचाप रहो।। 02O 14 15 तब यहोवा ने मूसा से कहा, तू क्यों मेरी दोहाई दे रहा है? इस्राएलियों को आज्ञा दे कि यहां से कूच करें। 02O 14 16 और तू अपनी लाठी उठाकर अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ा, और वह दो भाग हो जाएगा; तब इस्राएली समुद्र के बीच होकर स्थल ही स्थल पर चले जाएंगे। 02O 14 17 और सुन, मैं आप मिस्त्रियों के मन को कठोर करता हूं, और वे उनका पीछा करके समुद्र में घुस पड़ेंगे, तब फिरौन और उसकी सेना, और रथों, और सवारों के द्वारा मेरी महिमा होगी, तब मिद्दी जान लेंगे कि मैं यहोवा हूं। 02O 14 18 और जब फिरौन, और उसके रथों, और सवारों के द्वारा मेरी महिमा होगी, तब मिद्दी जान लेंगे कि मैं यहोवा हूं। 02O 14 19 तब परमेश्वर का दूत जो इस्राएली सेना के आगे आगे चला करता था जाकर उनके पीछे हो गया; और बादल का खम्भा उनके आगे से हटकर उनके पीछे जा ठहरा। 02O 14 20 इस प्रकार वह मिस्त्रियों की सेना और इस्राएलियों की सेना के बीच में आ गया; और बादल और अन्धकार तो हुआ, तौभी उससे रात को उन्हें प्रकाश मिलता रहा; और वे रात भर एक दूसरे के पास न आए। 02O 14 21 और मूसा ने अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ाया; और यहोवा ने रात भर प्रचण्ड पुरवाई चलाई, और समुद्र को दो भाग करके जल ऐसा हटा दिया, जिससे कि उसके बीच सूखी भूमि हो गई। 02O 14 22 तब इस्राएली समुद्र के बीच स्थल ही स्थल पर होकर चले, और जल उनकी दाहिनी और बाईं ओर दीवार का काम देता था। 02O 14 23 तब मिद्दी, अर्थात् फिरौन के सब घोड़े, रथ, और सवार उनका पीछा किए हुए समुद्र के बीच में चले गए। 02O 14 24 और रात के पिछले पहर में यहोवा ने बादल और आग के खम्भे में से मिस्त्रियों की सेना पर दृष्टि करके उन्हें घबरा दिया। 02O 14 25 और उस ने उनके रथों के पहियों को निकाल डाला, जिससे उनका चलना कठिन हो गया; तब मिद्दी आपस में कहने लगे, आओ, हम इस्राएलियों के साम्हने से भागें; क्योंकि यहोवा उनकी ओर से मिस्त्रियों के विरूद्ध युद्ध कर रहा है।। 02O 14 26 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ा, कि जल मिस्त्रियों, और उनके रथों, और सवारों पर फिर बहने लगे। 02O 14 27 तब मूसा ने अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ाया, और भोर होते होते क्या हुआ, कि समुद्र फिर ज्यों का त्यों अपने बल पर आ गया; और मिद्दी उलटे भागने लगे, परन्तु यहोवा ने उनको समुद्र के बीच ही में झटक दिया। 02O 14 28 और जल के पलटने से, जितने रथ और सवार इस्राएलियों के पीछे समुद्र में आए थे, सो सब वरन फिरौन की सारी सेना उस में डूब गई, और उस में से एक भी न बचा। 02O 14 29 परन्तु इस्राएली समुद्र के बीच स्थल ही स्थल पर होकर चले गए, और जल उनकी दाहिनी और बाईं दोनों ओर दीवार का काम देता था। 02O 14 30 और यहोवा ने उस दिन इस्राएलियों को मिस्त्रियों के वश से इस प्रकार छुड़ाया; और इस्राएलियों ने मिस्त्रियों को समुद्र के तट पर मरे पड़े हुए देखा। 02O 14 31 और यहोवा ने मिस्त्रियों पर जो अपना पराक्रम दिखलाता था, उसको देखकर इस्राएलियों ने यहोवा का भय माना और यहोवा की और उसके दास मूसा की भी प्रतीति की।। 02O 15 1 तब मूसा और इस्राएलियों ने यहोवा के लिये यह गीत गाया। उन्हों ने कहा, मैं यहोवा का गीत गाऊंगा, क्योंकि वह महाप्रतापी ठहरा है; घोड़ों समेत सवारों को उस ने समुद्र में डाल दिया है।। 02O 15 2 यहोवा मेरा बल और भजन का विषय है, और वही मेरा उद्धार भी ठहरा है; मेरा ईश्वर वही है, मैं उसी की स्तुति करूंगा, (मैं उसके लिये निवासस्थान बनाऊंगा ), मेरे पूर्वजों का परमेश्वर वही है, मैं उसको सराहूंगा।। 02O 15 3 यहोवा योद्धा है; उसका नाम यहोवा है।। 02O 15 4 फिरौन के रथों और सेना को उस ने समुद्र में डाल दिया; और उसके उत्तम से उत्तम रथी लाल समुद्र में डूब गए।। 02O 15 5 गहिरे जल ने उन्हें ढांप लिया; वे पत्थर की नाईं गहिरे स्थानों में डूब गए।। 02O 15 6 हे यहोवा, तेरा दहिना हाथ शक्ति में महाप्रतापी हुआ हे यहोवा, तेरा दहिना हाथ शत्रु को चकनाचूर कर देता है।। 02O 15 7 और तू अपने विरोधियों को अपने महाप्रताप से गिरा देता है; तू अपना कोप भड़काता, और वे भूसे की नाईं भस्म हो जाते हैं।। 02O 15 8 और तेरे नथनों की सांस से जल एकत्रा हो गया, धाराएं ढेर की नाईं थम गईं; समुद्र के मध्य में गहिरा जल जम गया।। 02O 15 9 शत्रु ने कहा था, मैं पीछा करूंगा, मैं जा पकडूंगा, मैं लूट के माल को बांट लूंगा, उन से मेरा जी भर जाएगा। मै अपनी तलवार खींचते ही अपने हाथ से उनको नाश कर डालूंगा।। 02O 15 10 तू ने अपने श्वास का पवन चलाया, तब समुद्र ने उनको ढांप लिया; वे महाजलराशि में सीसे की नाई डूब गए।। 02O 15 11 हे यहोवा, देवताओं में तेरे तुल्य कौन है? तू तो पवित्राता के कारण महाप्रतापी, और अपनी स्तुति करने वालों के भय के योग्य, और आश्चर्य कर्म का कर्त्ता है।। 02O 15 12 तू ने अपना दहिना हाथ बढ़ाया, और पृथ्वी ने उनको निगल लिया है।। 02O 15 13 अपनी करूणा से तू ने अपनी छुड़ाई हुई प्रजा की अगुवाई की है, अपने बल से तू उसे अपने पवित्रा निवासस्थान को ले चला है।। 02O 15 14 देश देश के लोग सुनकर कांप उठेंगे; पलिश्तियों के प्राण के लाले पड़ जाएंगे।। 02O 15 15 एदोम के अधिपति व्याकुल होंगे; मोआब के पहलवान थरथरा उठेंगे; सब कनान निवासियों के मन पिघल जाएंगें।। 02O 15 16 उन में डर और घबराहट समा जाएगा; तेरी बांह के प्रताप से वे पत्थर की नाई अबोल होंगे, जब तक, हे यहोवा, तेरी प्रजा के लोग निकल न जाएं, जब तक तेरी प्रजा के लोग जिनको तू ने मोल लिया है पार न निकल जाएं।। 02O 15 17 तू उन्हें पहुचाकर अपने निज भागवाले पहाड़ पर बसाएगा, यह वही स्थान है, हे यहोवा जिसे तू ने अपने निवास के लिये बनाया, और वही पवित्रास्थान है जिसे, हे प्रभु, तू ने आप स्थिर किया है।। 02O 15 18 यहोवा सदा सर्वदा राज्य करता रहेगा।। 02O 15 19 यह गीत गाने का कारण यह है, कि फिरौन के घोड़े रथों और सवारों समेत समुद्र के बीच में चले गए, और यहोवा उनके ऊपर समुद्र का जल लौटा ले आया; परन्तु इस्राएली समुद्र के बीच स्थल ही स्थल पर होकर चले गए। 02O 15 20 और हारून की बहिन मरियम नाम नबिया ने हाथ में डफ लिया; और सब स्त्रियां डफ लिए नाचती हुई उसके पीछे हो लीं। 02O 15 21 और मरियम उनके साथ यह टेक गाती गई कि :- यहोवा का गीत गाओ, क्योंकि वह महाप्रतापी ठहरा है; घोड़ों समेत सवारों को उस ने समुद्र में डाल दिया है।। 02O 15 22 तब मूसा इस्राएलियों को लाल समुद्र से आगे ले गया, और वे शूर नाम जंगल में आए; और जंगल में जाते हुए तीन दिन तक पानी का सोता न मिला। 02O 15 23 फिर मारा नाम एक स्थान पर पहुंचे, वहां का पानी खारा था, उसे वे न पी सके; इस कारण उस स्थान का नाम मारा पड़ा। 02O 15 24 तब वे यह कहकर मूसा के विरूद्ध बकझक करने लगे, कि हम क्या पीएं ? 02O 15 25 तब मूसा ने यहोवा की दोहाई दी, और यहोवा ने उसे एक पौधा बतला दिया, जिसे जब उस ने पानी में डाला, तब वह पानी मीठा हो गया। वहीं यहोवा ने उनके लिये एक विधि और नियम बनाया, और वहीं उस ने यह कहकर उनकी परीक्षा की, 02O 15 26 कि यदि तू अपने परमेश्वर यहोवा का वचन तन मन से सुने, और जो उसकी दृष्टि में ठीक है वही करे, और उसकी सब विधियों को माने, तो जितने रोग मैं ने मिस्त्रियों पर भेजा है उन में से एक भी तुझ पर न भेजूंगा; क्योंकि मैं तुम्हारा चंगा करनेवाला यहोवा हूं।। 02O 15 27 तब वे एलीम को आए, जहां पानी के बारह सोते और सत्तर खजूर के पेड़ थे; और वहां उन्हों ने जल के पास डेरे खड़े किए।। 02O 16 1 फिर एलीम से कूच करके इस्राएलियों की सारी मण्डली, मि देश से निकलने के महीने के दूसरे महीने के पंद्रहवे दिन को, सीन नाम जंगल में, जो एलीम और सीनै पर्वत के बीच में है, आ पहुंची। 02O 16 2 जंगल में इस्राएलियों की सारी मण्डली मूसा और हारून के विरूद्ध बकझक करने लगी। 02O 16 3 और इस्राएली उन से कहने लगे, कि जब हम मि देश में मांस की हांडियों के पास बैठकर मनमाना भोजन खाते थे, तब यदि हम यहोवा के हाथ से मार डाले भी जाते तो उत्तम वही था; पर तुम हम को इस जंगल में इसलिये निकाल ले आए हो कि इस सारे समाज को भूखों मार डालो। 02O 16 4 तब यहोवा ने मूसा से कहा, देखो, मैं तुम लोगों के लिये आकाश से भोजन वस्तु बरसाऊंगा; और ये लोग प्रतिदिन बाहर जाकर प्रतिदिन का भोजन इकट्ठा करेंगे, इस से मैं उनकी परीक्षा करूंगा, कि ये मेरी व्यवस्था पर चलेंगे कि नहीं। 02O 16 5 और ऐसा होगा कि छठवें दिन वह भोजन और दिनों से दूना होगा, इसलिये जो कुछ वे उस दिन बटोरें उसे तैयार कर रखें। 02O 16 6 तब मूसा और हारून ने सारे इस्राएलियों से कहा, सांझ को तुम जान लोगे कि जो तुम को मि देश से निकाल ले आया है वह यहोवा है। 02O 16 7 और भोर को तुम्हें यहोवा का तेज देख पड़ेगा, क्योंकि तुम जो यहोवा पर बुड़बुड़ाते हो उसे वह सुनता है। और हम क्या हैं, कि तुम हम पर बुड़बुड़ाते हो ? 02O 16 8 फिर मूसा ने कहा, यह तब होगा जब यहोवा सांझ को तुम्हें खाने के लिये मांस और भोर को रोटी मनमाने देगा; क्योंकि तुम जो उस पर बुड़बुड़ाते हो उसे वह सुनता है। और हम क्या हैं ? तुम्हारा बुड़बुड़ाना हम पर नहीं यहोवा ही पर होता है। 02O 16 9 फिर मूसा ने हारून से कहा, इस्राएलियों की सारी मण्डली को आज्ञा दे, कि यहोवा के साम्हने वरन उसके समीप आवे, क्योंकि उस ने उनका बुड़बुड़ाना सुना है। 02O 16 10 और ऐसा हुआ कि जब हारून इस्राएलियों की सारी मण्डली से ऐसी ही बातें कर रहा था, कि उन्हों ने जंगल की ओर दृष्टि करके देखा, और उनको यहोवा का तेज बादल में दिखलाई दिया। 02O 16 11 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 02O 16 12 इस्राएलियों का बुड़बुड़ाना मैं ने सुना है; उन से कह दे, कि गोधूलि के समय तुम मांस खाओगे और भोर को तुम रोटी से तृप्त हो जाओगे; और तुम यह जान लोगे कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 02O 16 13 और ऐसा हुआ कि सांझ को बटेरें आकर सारी छावनी पर बैठ गईं; और भोर को छावनी के चारों ओर ओस पड़ी। 02O 16 14 और जब ओस सूख गई तो वे क्या देखते हैं, कि जंगल की भूमि पर छोटे छोटे छिलके छोटाई में पाले के किनकों के समान पड़े हैं। 02O 16 15 यह देखकर इस्राएली, जो न जानते थे कि यह क्या वस्तु है, सो आपस में कहने लगे यह तो मन्ना है। तब मूसा ने उन से कहा, यह तो वही भोजन वस्तु है जिसे यहोवा तुम्हें खाने के लिये देता है। 02O 16 16 जो आज्ञा यहोवा ने दी है वह यह है, कि तुम उस में से अपने अपने खाने के योग्य बटोरा करना, अर्थात् अपने अपने प्राणियों की गिनती के अनुसार, प्रति मनुष्य के पीछे एक एक ओमेर बटोरना; जिसके डेरे में जितने हों वह उन्हीं भर के लिये बटोरा करे। 02O 16 17 और इस्राएलियों ने वैसा ही किया; और किसी ने अधिक, और किसी ने थोड़ा बटोर लिया। 02O 16 18 और जब उन्हों ने उसको ओमेर से नापा, तब जिसके पास अधिक था उसके कुछ अधिक न रह गया, ओर जिसके पास थोड़ा था उसको कुछ घटी न हुई; क्योंकि एक एक मनुष्य ने अपने खाने के योग्य ही बटोर लिया था। 02O 16 19 फिर मूसा ने उन से कहा, कोई इस में से कुछ बिहान तक न रख छोड़े। 02O 16 20 तौभी उन्हों ने मूसा की बात न मानी; इसलिये जब किसी किसी मनुष्य ने उस में से कुछ बिहान तक रख छोड़ा, तो उस में कीड़े पड़ गए और वह बसाने लगा; तब मूसा उन पर क्रोधित हुआ। 02O 16 21 और वे भोर को प्रतिदिन अपने अपने खाने के योग्य बटोर लेते थे, ओर जब धूप कड़ी होती थी, तब वह गल जाता था। 02O 16 22 और ऐसा हुआ कि छठवें दिन उन्हों ने दूना, अर्थात् प्रति मनुष्य के पीछे दो दो ओमेर बटोर लिया, और मण्डली के सब प्रधानों ने आकर मूसा को बता दिया। 02O 16 23 उस ने उन से कहा, यह तो वही बात है जो यहोवा ने कही, क्यांेकि कल परमविश्राम, अर्थात् यहोवा के लिये पवित्रा विश्राम होगा; इसलिये तुम्हें जो तन्दूर में पकाना हो उसे पकाओ, और जो सिझाना हो उसे सिझाओ, और इस में से जितना बचे उसे बिहान के लिये रख छोड़ो। 02O 16 24 जब उन्हों ने उसको मूसा की इस आज्ञा के अनुसार बिहान तक रख छोड़ा, तब न तो वह बसाया, और न उस में कीड़े पड़े। 02O 16 25 तब मूसा ने कहा, आज उसी को खाओ, क्योंकि आज यहोवा का विश्रामदिन है; इसलिये आज तुम को मैदान में न मिलेगा। 02O 16 26 छ: दिन तो तुम उसे बटोरा करोगे; परन्तु सातवां दिन तो विश्राम का दिन है, उस में वह न मिलेगा। 02O 16 27 तौभी लोगों में से कोई कोई सातवें दिन भी बटोरने के लिये बाहर गए, परन्तु उनको कुछ न मिला। 02O 16 28 तब यहोवा ने मूसा से कहा, तुम लोग मेरी आज्ञाओं और व्यवस्था को कब तक नहीं मानोगे ? 02O 16 29 देखो, यहोवा ने जो तुम को विश्राम का दिन दिया है, इसी कारण वह छठवें दिन को दो दिन का भोजन तुम्हें देता है; इसलिये तुम अपने अपने यहां बैठे रहना, सातवें दिन कोई अपने स्थान से बाहर न जाना। 02O 16 30 लोगों ने सातवें दिन विश्राम किया। 02O 16 31 और इस्राएल के घरानेवालों ने उस वस्तु का नाम मन्ना रखा; और वह धनिया के समान श्वेत था, और उसका स्वाद मधु के बने हुए पुए का सा था। 02O 16 32 फिर मूसा ने कहा, यहोवा ने जो आज्ञा दी वह यह है, कि इस में से ओमेर भर अपने वंश की पीढ़ी पीढ़ी के लिये रख छोड़ो, जिससे वे जानें कि यहोवा हमको मि देश से निकालकर जंगल में कैसी रोटी खिलाता था। 02O 16 33 तब मूसा ने हारून से कहा, एक पात्रा लेकर उस में ओमेर भर लेकर उसे यहोवा के आगे धर दे, कि वह तुम्हारी पीढ़ियों के लिये रखा रहे। 02O 16 34 जैसी आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी, उसी के अनुसार हारून ने उसको साक्षी के सन्दूक के आगे धर दिया, कि वह वहीं रखा रहे। 02O 16 35 इस्राएली जब तक बसे हुए देश में न पहुंचे तब तक, अर्थात् चालीस वर्ष तक मन्ना को खाते रहे; वे जब तक कनान देश के सिवाने पर नहीं पहुंचे तब तक मन्ना को खाते रहे। 02O 16 36 एक ओमेर तो एपा का दसवां भाग है। 02O 17 1 फिर इस्राएलियों की सारी मण्डली सीन नाम जंगल से निकल चली, और यहोवा के आज्ञानुसार कूच करके रपीदीम में अपने डेरे खड़े किए; और वहां उन लोगों को पीने का पानी न मिला। 02O 17 2 इसलिये वे मूसा से वादविवाद करके कहने लगे, कि हमें पीने का पानी दे। मूसा ने उन से कहा, तुम मुझ से क्यों वादविवाद करते हो? और यहोवा की परीक्षा क्यों करते हो? 02O 17 3 फिर वहां लोगों को पानी की प्यास लगी तब वे यह कहकर मूसा पर बुड़बुड़ाने लगे, कि तू हमें लड़केबालों और पशुओं समेत प्यासों मार डालने के लिये मि से क्यों ले आया है ? 02O 17 4 तब मूसा ने यहोवा की दोहाई दी, और कहा, इन लोगों से मैं क्या करूं? ये सब मुझे पत्थरवाह करने को तैयार हैं। 02O 17 5 यहोवा ने मूसा से कहा, इस्राएल के वृद्ध लोगों में से कुछ को अपने साथ ले ले; और जिस लाठी से तू ने नील नदी पर मारा था, उसे अपने हाथ में लेकर लोगों के आगे बढ़ चल। 02O 17 6 देख मैं तेरे आगे चलकर होरेब पहाड़ की एक चट्टान पर खड़ा रहूंगा; और तू उस चट्टान पर मारना, तब उस में से पानी निकलेगा जिससे ये लोग पीएं। तब मूसा ने इस्राएल के वृद्ध लोगों के देखते वैसा ही किया। 02O 17 7 और मूसा ने उस स्थान का नाम मस्सा और मरीबा रखा, कयोंकि इस्राएलियों ने वहां वादविवाद किया था, और यहोवा की परीक्षा यह कहकर की, कि क्या यहोवा हमारे बीच है वा नहीं ? 02O 17 8 तब अमालेकी आकर रपीदीम में इस्राएलियों से लड़ने लगे। 02O 17 9 तब मूसा ने यहोशू से कहा, हमारे लिये कई एक पुरूषों को चुनकर छांट ले, ओर बाहर जाकर अमालेकियों से लड़; और मैं कल परमेश्वर की लाठी हाथ में लिये हुए पहाड़ी की चोटी पर खड़ा रहूंगा। 02O 17 10 मूसा की इस आज्ञा के अनुसार यहोशू अमालेकियों से लड़ने लगा; और मूसा, हारून, और हूर पहाड़ी की चोटी पर चढ़ गए। 02O 17 11 और जब तक मूसा अपना हाथ उठाए रहता था तब तक तो इस्राएल प्रबल होता था; परन्तु जब जब वह उसे नीचे करता तब तब अमालेक प्रबल होता था। 02O 17 12 और जब मूसा के हाथ भर गए, तब उन्हों ने एक पत्थर लेकर मूसा के नीचे रख दिया, और वह उस पर बैठ गया, और हारून और हूर एक एक अलंग में उसके हाथों को सम्भाले रहें; और उसके हाथ सूर्यास्त तक स्थिर रहे। 02O 17 13 और यहोशू ने अनुचरों समेत अमालेकियों को तलवार के बल से हरा दिया। 02O 17 14 तब यहोवा ने मूसा से कहा, स्मरणार्थ इस बात को पुस्तक में लिख ले और यहोशू को सुना दे, कि मैं आकाश के नीचे से अमालेक का स्मरण भी पूरी रीति से मिटा डालूंगा। 02O 17 15 तब मूसा ने एक वेदी बनाकर उसका नाम यहोवानिस्सी रखा ; 02O 17 16 और कहा, यहोवा ने शपथ खाई है, कि यहोवा अमालेकियों से पीढ़ियों तक लड़ाई करता रहेगा।। 02O 18 1 और मूसा के ससुर मिस्रान के याजक यित्रो ने यह सुना, कि परमेश्वर ने मूसा और अपनी प्रजा इस्त्राएल के लिये क्या क्या किया है, अर्थात् यह कि किस रीति से यहोवा इस्त्राएलियों को मि से निकाल ले आया। 02O 18 2 तब मूसा के ससुर यित्रो मूसा की पत्नी सिप्पोरा को, जो पहिले नैहर भेज दी गई थी, 02O 18 3 और उसके दोनों बेटों को भी ले आया; इन में से एक का नाम मूसा ने यह कहकर गेर्शोम रखा था, कि मै अन्य देश में परदेशी हुआ हूं। 02O 18 4 और दूसरे का नाम उस ने यह कहकर एलीएजेर रखा, कि मेरे पिता के परमेश्वर ने मेरा सहायक होकर मुझे फिरौन की तलवार से बचाया। 02O 18 5 मूसा की पत्नी और पुत्रों को उसका ससुर यित्रो संग लिए मूसा के पास जंगल के उस सिाान में आया, जहां परमेश्वर के पर्वत के पास उसका डेरा पड़ा था। 02O 18 6 और आकर उस ने मूसा के पास यह कहला भेजा, कि मैं तेरा ससुर यित्रो हूं, और दोनो बेटों समेत तेरी पत्नी को तेरे पास ले आया हूं। 02O 18 7 तब मूसा अपने ससुर से भेंट करने के लिये निकला, और उसको दण्डवत् करके चूमा; और वे परस्पर कुशल क्षेम पूछते हुए डेरे पर आ गए। 02O 18 8 वहां मूसा ने अपने ससुर से वर्णन किया, कि यहोवा ने इस्त्राएलियों के निमित्त फिरौन और मिस्त्रियों से क्या क्या किया, और इस्त्राएलियों ने मार्ग में क्या क्या कष्ट उठाया, फिर यहोवा उन्हें कैसे कैसे छुड़ाता आया है। 02O 18 9 तब यित्रो ने उस समस्त भलाई के कारण जो यहोवा ने इस्त्राएलियों के साथ की थी, कि उन्हें मिस्त्रियों के वश से छुड़ाया था, मग्न होकर कहा, 02O 18 10 धन्य है यहोवा, जिस ने तुम को फिरौन और मिस्त्रियों के वश से छुड़ाया, जिस ने तुम लोगों को मिस्त्रियों की मुट्ठी में से छुड़ाया है। 02O 18 11 अब मैं ने जान लिया है कि यहोवा सब देवताओं से बड़ा है; वरन उस विषय में भी जिस में उन्हों ने इस्त्राएलियों से अभिमान किया था। 02O 18 12 तब मूसा के ससुर यित्रो ने परमेश्वर के लिये होमबलि और मेलबलि चढ़ाए, और हारून इस्त्राएलियों के सब पुरनियों समेत मूसा के ससुर यित्रो के संग परमेश्वर के आगे भोजन करने को आया। 02O 18 13 दूसरे दिन मूसा लोगों का न्याय करने को बैठा, और भोर से सांझ तक लोग मूसा के आसपास खड़े रहे। 02O 18 14 यह देखकर कि मूसा लोगों के लिये क्या क्या करता है, उसके ससुर ने कहा, यह क्या काम है जो तू लोगों के लिये करता है? क्या कारण है कि तू अकेला बैठा रहता है, और लोग भोर से सांझ तक तेरे आसपास खड़े रहते हैं? 02O 18 15 मूसा ने अपने ससुर से कहा, इसका कारण यह है कि लोग मेरे पास परमेश्वर से पूछने आते है। 02O 18 16 जब जब उनका कोई मुक मा होता है तब तब वे मेरे पास आते हैं और मैं उनके बीच न्याय करता, और परमेश्वर की विधि और व्यवस्था उन्हें जताता हूं। 02O 18 17 मूसा के ससुर ने उस से कहा, जो काम तू करता है वह अच्छा नहीं। 02O 18 18 और इस से तू क्या, वरन ये लोग भी जो तेरे संग हैं निश्चय हार जाएंगे, क्योंकि यह काम तेरे लिये बहुत भारी है; तू इसे अकेला नहीं कर सकता। 02O 18 19 इसलिये अब मेरी सुन ले, मैं तुझ को सम्मति देता हूं, और परमेश्वर तेरे संग रहे। तू तो इन लोगों के लिये परमेश्वर के सम्मुख जाया कर, और इनके मुक मों को परमेश्वर के पास तू पहुंचा दिया कर। 02O 18 20 इन्हें विधि और व्यवस्था प्रगट कर करके, जिस मार्ग पर इन्हें चलना, और जो जो काम इन्हें करना हो, वह इनको जता दिया कर। 02O 18 21 फिर तू इन सब लोगों में से ऐसे पुरूषों को छांट ले, जो गुणी, और परमेश्वर का भय मानने वाले, सच्चे, और अन्याय के लाभ से घृणा करने वाले हों; और उनको हजारझार, सौ- सौ, पचास- पचास, और दस- दस मनुष्यों पर प्रधान नियुक्त कर दे। 02O 18 22 और वे सब समय इन लोगों का न्याय किया करें; और सब बड़े बड़े मुक मों को तो तेरे पास ले आया करें, और छोटे छोटे मुक मों का न्याय आप ही किया करें; तब तेरा बोझ हलका होगा, क्योंकि इस बोझ को वे भी तेरे साथ उठाएंगे। 02O 18 23 यदि तू यह उपाय करे, और परमेश्वर तुझ को ऐसी आज्ञा दे, तो तू ठहर सकेगा, और ये सब लोग अपने स्थान को कुशल से पहुंच सकेंगें। 02O 18 24 अपने ससुर की यह बात मान कर मूसा ने उसके सब वचनों के अनुसार किया। 02O 18 25 सो उस ने सब इस्त्राएलियों मे से गुणी- गुणी पुरूष चुनकर उन्हें हजारझार, सौ- सौ, पचास- पचास, दस- दस, लोगों के ऊपर प्रधान ठहराया। 02O 18 26 और वे सब लोगों का न्याय करने लगे; जो मुक मा कठिन होता उसे तो वे मूसा के पास ले आते थे, और सब छोटे मुक मों का न्याय वे आप ही किया करते थे। 02O 18 27 और मूसा ने अपने ससुर को विदा किया, और उस ने अपने देश का मार्ग लिया।। 02O 19 1 इस्त्राएलियों को मि देश से निकले हुए जिस दिन तीन महीने बीत चुके, उसी दिन वे सीनै के जंगल में आए। 02O 19 2 और जब वे रपीदीम से कूच करके सीनै के जंगल में आए, तब उन्हों ने जंगल में डेरे खड़े किए; और वहीं पर्वत के आगे इस्त्राएलियों ने छावनी डाली। 02O 19 3 तब मूसा पर्वत पर परमेश्वर के पास चढ़ गया, और यहोवा ने पर्वत पर से उसको पुकारकर कहा, याकूब के घराने से ऐसा कह, और इस्त्राएलियों को मेरा यह वचन सुना, 02O 19 4 कि तुम ने देखा है कि मै ने मिस्त्रियों से क्या क्या किया; तुम को मानो उकाब पक्षी के पंखों पर चढ़ाकर अपने पास ले आया हूं। 02O 19 5 इसलिये अब यदि तुम निश्चय मेरी मानोगे, और मेरी वाचा का पालन करोगे, तो सब लोगों में से तुम ही मेरा निज धन ठहरोगे; समस्त पृथ्वी तो मेरी है। 02O 19 6 और तुम मेरी दृष्टि में याजकों का राज्य और पवित्रा जाति ठहरोगे। जो बातें तुझे इस्त्राएलियों से कहनी हैं वे ये ही है। 02O 19 7 तब मूसा ने आकर लोगों के पुरनियों को बुलवाया, और ये सब बातें, जिनके कहने की आज्ञा यहोवा ने उसे दी थी, उनको समझा दीं। 02O 19 8 और सब लोग मिलकर बोल उठे, जो कुछ यहोवा ने कहा है वह सब हम नित करेंगे। लोगों की यह बातें मूसा ने यहोवा को सुनाईं। 02O 19 9 तब यहोवा ने मूसा से कहा, सुन, मैं बादल के अंधियारे में होकर तेरे पास आता हूं, इसलिये कि जब मैं तुझ से बातें करूं तब वे लोग सुनें, और सदा तेरी प्रतीति करें। और मूसा ने यहोवा से लोगों की बातों का वर्णन किया। 02O 19 10 तब यहोवा ने मूसा से कहा, लोगों के पास जा और उन्हें आज और कल पवित्रा करना, और वे अपने वस्त्रा धो लें, 02O 19 11 और वे तीसरे दिन तक तैयार हो रहें; क्योंकि तीसरे दिन यहोवा सब लोगों के देखते सीनै पर्वत पर उतर आएगा। 02O 19 12 और तू लोगों के लिये चारों ओर बाड़ा बान्ध देना, और उन से कहना, कि तुम सचेत रहों कि पर्वत पर न चढ़ो और उसके सिवाने को भी न छूओ; और जो कोई पहाड़ को छूए वह निश्चय मार डाला जाए। 02O 19 13 उसको कोई हाथ से तो न छूए, परन्तु वह निश्चय पत्थरवाह किया जाए, वा तीर से छेदा जाए; चाहे पशु हो चाहे मनुष्य, वह जीवित न बचे। जब महाशब्द वाले नरसिंगे का शब्द देर तक सुनाई दे, तब लोग पर्वत के पास आएं। 02O 19 14 तब मूसा ने पर्वत पर से उतरकर लोगों के पास आकर उनको पवित्रा कराया; और उन्हों ने अपने वस्त्रा धो लिए। 02O 19 15 और उस ने लोगों से कहा, तीसरे दिन तक तैयार हो रहो; स्त्री के पास न जाना। 02O 19 16 जब तीसरा दिन आया तब भोर होते बादल गरजने और बिजली चमकने लगी, और पर्वत पर काली घटा छा गई, फिर नरसिंगे का शब्द बड़ा भरी हुआ, और छावनी में जितने लोग थे सब कांप उठे। 02O 19 17 तब मूसा लोगों को परमेश्वर से भेंट करने के लिये छावनी से निकाल ले गया; और वे पर्वत के नीचे खड़े हुए। 02O 19 18 और यहोवा जो आग में होकर सीनै पर्वत पर उतरा था, इस कारण समस्त पर्वत धुएं से भर गया; और उसका धुआं भट्टे का सा उठ रहा था, और समस्त पर्वत बहुत कांप रहा था 02O 19 19 फिर जब नरसिंगे का शब्द बढ़ता और बहुत भारी होता गया, तब मूसा बोला, और परमेश्वर ने वाणी सुनाकर उसको उत्तर दिया। 02O 19 20 और यहोवा सीनै पर्वत की चोटी पर उतरा; और मूसा को पर्वत की चोटी पर बुलाया और मूसा ऊपर चढ़ गया। 02O 19 21 तब यहोवा ने मूसा से कहा, नीचे उतरके लोगों को चितावनी दे, कहीं ऐसा न हो कि वे बाड़ा तोड़के यहोवा के पास देखने को घुसें, और उन में से बहुत नाश हों जाएं। 02O 19 22 और याजक जो यहोवा के समीप आया करते हैं वे भी अपने को पवित्रा करें, कहीं ऐसा न हो कि यहोवा उन पर टूट पड़े। 02O 19 23 मूसा ने यहोवा से कहा, वे लोग सीनै पर्वत पर नहीं चढ़ सकते; तू ने तो आप हम को यह कहकर चिताया, कि पर्वत के चारों और बाड़ा बान्धकर उसे पवित्रा रखो। 02O 19 24 यहोवा ने उस से कहा, उतर तो जा, और हारून समेत ऊपर आ; परन्तु याजक और साधारण लोग कहीं यहोवा के पास बाड़ा तोड़के न चढ़ आएं, कहीं ऐसा न हो कि वह उन पर टूट पड़े। 02O 19 25 ये ही बातें मूसा ने लोगों के पास उतरके उनको सुनाईं।। 02O 20 1 तब परमेश्वर ने ये सब वचन कहे, 02O 20 2 कि मै तेरा परमेश्वर यहोवा हूं, जो तुझे दासत्व के घर अर्थात् मि देश से निकाल लाया है।। 02O 20 3 तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना।। 02O 20 4 तू अपने लिये कोई मूर्ति खोदकर न बनाना, न किसी कि प्रतिमा बनाना, जो आकाश में, वा पृथ्वी पर, वा पृथ्वी के जल में है। 02O 20 5 तू उनको दण्डवत् न करना, और न उनकी उपासना करना; क्योंकि मै तेरा परमेश्वर यहोवा जलन रखने वाला ईश्वर हूं, और जो मुझ से बैर रखते है, उनके बेटों, पोतों, और परपोतों को भी पितरों का दण्ड दिया करता हूं, 02O 20 6 और जो मुझ से प्रेम रखते और मेरी आज्ञाओं को मानते हैं, उन हजारों पर करूणा किया करता हूं।। 02O 20 7 तू अपने परमेश्वर का नाम व्यर्थ न लेना; क्योंकि जो यहोवा का नाम व्यर्थ ले वह उसको निर्दोष न ठहराएगा।। 02O 20 8 तू विश्रामदिन को पवित्रा मानने के लिये स्मरण रखना। 02O 20 9 छ: दिन तो तू परिश्रम करके अपना सब काम काज करना; 02O 20 10 परन्तु सातवां दिन तेरे परमेश्वर यहोवा के लिये विश्रामदिन है। उस में न तो तू किसी भांति का काम काज करना, और न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा दास, न तेरी दासी, न तेरे पशु, न कोई परदेशी जो तेरे फाटकों के भीतर हो। 02O 20 11 क्योंकि छ: दिन में यहोवा ने आकाश, और पृथ्वी, और समुद्र, और जो कुछ उन में है, सब को बनाया, और सातवें दिन विश्राम किया; इस कारण यहोवा ने विश्रामदिन को आशीष दी और उसको पवित्रा ठहराया।। 02O 20 12 तू अपने पिता और अपनी माता का आदर करना, जिस से जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में तू बहुत दिन तक रहने पाए।। 02O 20 13 तू खून न करना।। 02O 20 14 तू व्यभिचार न करना।। 02O 20 15 तू चोरी न करना।। 02O 20 16 तू किसी के विरूद्ध झूठी साक्षी न देना।। 02O 20 17 तू किसी के घर का लालच न करना; न तो किसी की स्त्री का लालच करना, और न किसी के दास- दासी, वा बैल गदहे का, न किसी की किसी वस्तु का लालच करना।। 02O 20 18 और सब लोग गरजने और बिजली और नरसिंगे के शब्द सुनते, और धुआं उठते हुए पर्वत को देखते रहे, और देखके, कांपकर दूर खड़े हो गए; 02O 20 19 और वे मूसा से कहने लगे, तू ही हम से बातें कर, तब तो हम सुन सकेंगे; परन्तु परमेश्वर हम से बातें न करे, ऐसा न हो कि हम मर जाएं। 02O 20 20 मूसा ने लोगों से कहा, डरो मत; क्योंकि परमेश्वर इस निमित्त आया है कि तुम्हारी परीक्षा करे, और उसका भय तुम्हारे मन में बना रहे, कि तुम पाप न करो। 02O 20 21 और वे लोग तो दूर ही खड़े रहे, परन्तु मूसा उस घोर अन्धकार के समीप गया जहां परमेश्वर था।। 02O 20 22 तब यहोवा ने मूसा से कहा, तू इस्त्राएलियों को मेरे ये वचन सुना, कि तुम लोगों ने तो आप ही देखा है कि मै ने तुम्हारे साथ आकाश से बातें की हैं। 02O 20 23 तुम मेरे साथ किसी को सम्मिलित न करना, अर्थात् अपने लिये चान्दी वा सोने से देवताओं को न गढ़ लेना। 02O 20 24 मेरे लिये मिट्टी की एक वेदी बनाना, और अपनी भेड़- बकरियों और गाय- बैलों के होमबलि और मेलबलि को उस पर चढ़ाना; जहां जहां मैं अपने नाम का स्मरण कराऊं वहां वहां मैं आकर तुम्हें आशीष दूंगा। 02O 20 25 और यदि तुम मेरे लिये पत्थरों की वेदी बनाओ, तो तराशे हुए पत्थरों से न बनाना; क्योंकि जहां तुम ने उस पर अपना हथियार लगाया वहां तू उसे अशुद्ध कर देगा। 02O 20 26 और मेरी वेदी पर सीढ़ी से कभी न चढ़ना, कहीं ऐसा न हो कि तेरा तन उस पर नंगा देख पड़े।। 02O 21 1 फिर जो नियम तुझे उनको समझाने हैं वे ये हैं।। 02O 21 2 जब तुम कोई इब्री दास मोल लो, तब वह छ: वर्ष तक सेवा करता रहे, और सातवें वर्ष स्वतंत्रा होकर सेंतमेंत चला जाए। 02O 21 3 यदि वह अकेला आया हो, तो अकेला ही चला जाए; और यदि पत्नी सहित आया हो, तो उसके साथ उसकी पत्नी भी चली जाए। 02O 21 4 यदि उसके स्वामी ने उसको पत्नी दी हो और उस से उसके बेटे वा बेटियां उत्पन्न हुई हों, तो उसकी पत्नी और बालक उसके स्वामी के ही रहें, और वह अकेला चला जाए। 02O 21 5 परन्तु यदि वह दास दृढ़ता से कहे, कि मैं अपने स्वामी, और अपनी पत्नी, और बालकों से प्रेम रखता हूं; इसलिये मैं स्वतंत्रा होकर न चला जाऊंगा; 02O 21 6 तो उसका स्वामी उसको परमेश्वर के पास ले चले; फिर उसको द्वार के किवाड़ वा बाजू के पास ले जाकर उसके कान में सुतारी से छेद करें; तब वह सदा उसकी सेवा करता रहे।। 02O 21 7 यदि कोई अपनी बेटी को दासी होने के लिये बेच डाले, तो वह दासी की नाई बाहर न जाए। 02O 21 8 यदि उसका स्वामी उसको अपनी पत्नी बनाए, और फिर उस से प्रसन्न न रहे, तो वह उसे दाम से छुड़ाई जाने दे; उसका विश्वासघात करने के बाद उसे ऊपरी लोगों के हाथ बेचने का उसको अधिकार न होगा। 02O 21 9 और यदि उस ने उसे अपने बेटे को ब्याह दिया हो, तो उस से बेटी का सा व्यवहार करे। 02O 21 10 चाहे वह दूसरी पत्नी कर ले, तौभी वह उसका भोजन, वस्त्रा, और संगति न घटाए। 02O 21 11 और यदि वह इन तीन बातों में घटी करे, तो वह स्त्री सेंतमेंत बिना दाम चुकाए ही चली जाए।। 02O 21 12 जो किसी मनुष्य को ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो वह भी निश्चय मार डाला जाए। 02O 21 13 यदि वह उसकी घात में न बैठा हो, और परमेश्वर की इच्छा ही से वह उसके हाथ में पड़ गया हो, तो ऐसे मारनेवाले के भागने के निमित्त मैं एक स्थान ठहराऊंगा जहां वह भाग जाए। 02O 21 14 परन्तु यदि कोई ढिठाई से किसी पर चढ़ाई करके उसे छल से घात करे, तो उसको मार ढालने के लिये मेरी वेदी के पास से भी अलग ले जाना।। 02O 21 15 जो अपने पिता वा माता को मारे- पीटे वह निश्चय मार डाला जाए।। 02O 21 16 जो किसी मनुष्य को चुराए, चाहे उसे ले जाकर बेच डाले, चाहे वह उसके पास पाया जाए, तो वह भी निश्चय मार डाला जाए।। 02O 21 17 जो अपने पिता वा माता को श्राप दे वह भी निश्चय मार डाला जाए।। 02O 21 18 यदि मनुष्य झगड़ते हों, और एक दूसरे को पत्थर वा मुक्के से ऐसा मारे कि वह मरे नहीं परन्तु बिछौने पर पड़ा रहे, 02O 21 19 तो जब वह उठकर लाठी के सहारे से बाहर चलने फिरने लगे, तब वह मारनेवाला निर्दोष ठहरे; उस दशा में वह उसके पड़े रहने के समय की हानि तो भर दे, ओर उसको भला चंगा भी करा दे।। 02O 21 20 यदि कोई अपने दास वा दासी को सोंटे से ऐसा मारे कि वह उसके मारने से मर जाए, तब तो उसको निश्चय दण्ड दिया जाए। 02O 21 21 परन्तु यदि वह दो एक दिन जीवित रहे, तो उसके स्वामी को दण्ड न दिया जाए; क्योंकि वह दास उसका धन है।। 02O 21 22 यदि मनुष्य आपस में मारपीट करके किसी गर्भिणी स्त्री को ऐसी चोट पहुचाए, कि उसका गर्भ गिर जाए, परन्तु और कुछ हानि न हो, तो मारनेवाले से उतना दण्ड लिया जाए जितना उस स्त्री का पति पंच की सम्मति से ठहराए। 02O 21 23 परन्तु यदि उसको और कुछ हानि पहुंचे, तो प्राण की सन्ती प्राण का, 02O 21 24 और आंख की सन्ती आंख का, और दांत की सन्ती दांत का, और हाथ की सन्ती हाथ का, और पांव की सन्ती पांव का, 02O 21 25 और दाग की सन्ती दाग का, और घाव की सन्ती घाव का, और मार की सन्ती मार का दण्ड हो।। 02O 21 26 जब कोई अपने दास वा दासी की आंख पर ऐसा मारे कि फूट जाए, तो वह उसकी आंख की सन्ती उसे स्वतंत्रा करके जाने दे। 02O 21 27 और यदि वह अपने दास वा दासी को मारके उसका दांत तोड़ डाले, तो वह उसके दांत की सन्ती उसे स्वतंत्रा करके जाने दे।। 02O 21 28 यदि बैल किसी पुरूष वा स्त्री को ऐसा सींग मारे कि वह मर जाए, तो वह बैल तो निश्चय पत्थरवाह करके मार डाला जाए, और उसका मांस खाया न जाए; परन्तु बैल का स्वामी निर्दोष ठहरे। 02O 21 29 परन्तु यदि उस बैल की पहिले से सींग मारने की बान पड़ी हो, और उसके स्वामी ने जताए जाने पर भी उसको न बान्ध रखा हो, और वह किसी पुरूष वा स्त्री को मार डाले, तब तो वह बैल पत्थरवाह किया जाए, और उसका स्वामी भी मार डाला जाए। 02O 21 30 यदि उस पर छुड़ौती ठहराई जाए, तो प्राण छुड़ाने को जो कुछ उसके लिये ठहराया जाए उसे उतना ही देना पड़ेगा। 02O 21 31 चाहे बैल ने किसी बेटे को, चाहे बेटी को मारा हो, तौभी इसी नियम के अनुसार उसके स्वामी के साथ व्यवहार किया जाए। 02O 21 32 यदि बैल ने किसी दास वा दासी को सींग मारा हो, तो बैल का स्वामी उस दास के स्वामी को तीस शेकेल रूपा दे, और वह बैल पत्थरवाह किया जाए।। 02O 21 33 यदि कोई मनुष्य गड़हा खोलकर वा खोदकर उसको न ढांपे, और उस में किसी का बैल वा गदहा गिर पड़े 02O 21 34 तो जिसका वह गड़हा हो वह उस हानि को भर दे; वह पशु के स्वामी को उसका मोल दे, और लोथ गड़हेवाले की ठहरे।। 02O 21 35 यदि किसी का बैल किसी दूसरे के बैल को ऐसी चोट लगाए, कि वह मर जाए, तो वे दोनो मनुष्य जीते बैल को बेचकर उसका मोल आपस में आधा आधा बांट ले; और लोथ को भी वैसा ही बांटें। 02O 21 36 यदि यह प्रगट हो कि उस बैल की पहिले से सींग मारने की बान पड़ी थी, पर उसके स्वामी ने उसे बान्ध नहीं रखा, तो निश्चय यह बैल की सन्ती बैल भर दे, पर लोथ उसी की ठहरे।। 02O 22 1 यदि कोई मनुष्य बैल, वा भेड़, वा बकरी चुराकर उसका घात करे वा बेच डाले, तो वह बैल की सन्ती पाँच बैल, और भेड़- बकरी की सन्ती चार भेड़- बकरी भर दे। 02O 22 2 यदि चोर सेंध लगाते हुए पकड़ा जाए, और उस पर ऐसी मार पड़े कि वह मर जाए, तो उसके खून का दोष न लगे; 02O 22 3 यदि सूर्य निकल चुके, तो उसके खून का दोष लगे; अवश्य है कि वह हानि को भर दे, और यदि उसके पास कुछ न हो, तो वह चोरी के कारण बेच दिया जाए। 02O 22 4 यदि चुराया हुआ बैल, वा गदहा, वा भेड़ वा बकरी उसके हाथ में जीवित पाई जाए, तो वह उसका दूना भर दे।। 02O 22 5 यदि कोई अपने पशु से किसी का खेत वा दाख की बारी चराए, अर्थात् अपने पशु को ऐसा छोड़ दे कि वह पराए खेत को चर ले, तो वह अपने खेत की और अपनी दाख की बारी की उत्तम से उत्तम उपज में से उस हानि को भर दे।। 02O 22 6 यदि कोई आग जलाए, और वह कांटों में लग जाए और फूलों के ढेर वा अनाज वा खड़ा खेत जल जाए, तो जिस ने आग जलाई हो वह हानि को निश्चय भर दे।। 02O 22 7 यदि कोई दूसरे को रूपए वा सामग्री की धरोहर धरे, और वह उसके घर से चुराई जाए, तो यदि चोर पकड़ा जाए, तो दूना उसी को भर देना पड़ेगा। 02O 22 8 और यदि चोर न पकड़ा जाए, तो घर का स्वामी परमेश्वर के पास लाया जाए, कि निश्चय हो जाय कि उस ने अपने भाई बन्धु की सम्पत्ति पर हाथ लगाया है वा नहीं। 02O 22 9 चाहे बैल, चाहे गदहे, चाहे भेड़ वा बकरी, चाहे वस्त्रा, चाहे किसी प्रकार की ऐसी खोई हुई वस्तु के विषय अपराध क्यों न लगाया जाय, जिसे दो जन अपनी अपनी कहते हों, तो दोनों का मुक मा परमेश्वर के पास आए; और जिसको परमेश्वर दोषी ठहराए वह दूसरे को दूना भर दे।। 02O 22 10 यदि कोई दूसरे को गदहा वा बैल वा भेड़- बकरी वा कोई और पशु रखने के लिये सौपें, और किसी के बिना देखे वह मर जाए, वा चोट खाए, वा हांक दिया जाए, 02O 22 11 तो उन दोनो के बीच यहोवा की शपथ खिलाई जाए कि मैं ने इसकी सम्पत्ति पर हाथ नहीं लगाया; तब सम्पत्ति का स्वामी इसको सच माने, और दूसरे को उसे कुछ भी भर देना न होगा। 02O 22 12 यदि वह सचमुच उसके यहां से चुराया गया हो, तो वह उसके स्वामी को उसे भर दे। 02O 22 13 और यदि वह फाड़ डाला गया हो, तो वह फाड़े हुए को प्रमाण के लिये ले आए, तब उसे उसको भी भर देना न पड़ेगा।। 02O 22 14 फिर यदि कोई दूसरे से पशु मांग लाए, और उसके स्वामी के संग न रहते उसको चोट लगे वा वह मर जाए, तो वह निश्चय उसकी हानि भर दे। 02O 22 15 यदि उसका स्वामी संग हो, तो दूसरे को उसकी हानि भरना न पड़े; और यदि वह भाड़े का हो तो उसकी हानि उसके भाड़े में आ गई।। 02O 22 16 यदि कोई पुरूष किसी कन्या को जिसके ब्याह की बात न लगी हो फुसलाकर उसके संग कुकर्म करे, तो वह निश्चय उसका मोल देके उसे ब्याह ले। 02O 22 17 परन्तु यदि उसका पिता उसे देने को बिल्कुल इनकार करे, तो कुकर्म करनेवाला कन्याओं के मोल की रीति के अनुसार रूपये तौल दे।। 02O 22 18 तू डाइन को जीवित रहने न देना।। 02O 22 19 जो कोई पशुगमन करे वह निश्चय मार डाला जाए।। 02O 22 20 जो कोई यहोवा को छोड़ किसी और देवता के लिये बलि करे वह सत्यनाश किया जाए। 02O 22 21 और परदेशी को न सताना और न उस पर अन्धेर करना क्योंकि मि देश में तुम भी परदेशी थे। 02O 22 22 किसी विधवा वा अनाथ बालक को दु:ख न देना। 02O 22 23 यदि तुम ऐसों को किसी प्रकार का दु:ख दो, और वे कुछ भी मेरी दोहाई दें, तो मैं निश्चय उनकी दोहाई सुनूंगा; 02O 22 24 तब मेरा क्रोध भड़केगा, और मैं तुम को तलवार से मरवाऊंगा, और तुम्हारी पत्नियां विधवा और तुम्हारे बालक अनाथ हो जाएंगे।। 02O 22 25 यदि तू मेरी प्रजा में से किसी दीन को जो तेरे पास रहता हो रूपए का ऋण दे, तो उस से महाजन की नाई ब्याज न लेना। 02O 22 26 यदि तू कभी अपने भाईबन्धु के वस्त्रा को बन्धक करके रख भी ले, तो सूर्य के अस्त होने तक उसको लौटा देना; 02O 22 27 क्योंकि वह उसका एक ही ओढ़ना है, उसकी देह का वही अकेला वस्त्रा होगा फिर वह किसे ओढ़कर सोएगा? तोभी जब वह मेरी दोहाई देगा तब मैं उसकी सुनूंगा, क्योंकि मैं तो करूणामय हूं।। 02O 22 28 परमेश्वर को श्राप न देना, और न अपने लोगों के प्रधान को श्राप देना। 02O 22 29 अपने खेतों की उपज और फलों के रस में से कुछ मुझे देने में विलम्ब न करना। अपने बेटों में से पहिलौठे को मुझे देना। 02O 22 30 वैसे ही अपनी गायों और भेड़- बकरियों के पहिलौठे भी देना; सात दिन तक तो बच्चा अपनी माता के संग रहे, और आठवें दिन तू उसे मुझे दे देना। 02O 22 31 और तुम मेरे लिये पवित्रा मनुष्य बनना; इस कारण जो पशु मैदान में फाड़ा हुआ पड़ा मिले उसका मांस न खाना, उसको कुत्तों के आगे फेंक देना।। 02O 23 1 झूठी बात न फैलाना। अन्यायी साक्षी होकर दुष्ट का साथ न देना। 02O 23 2 बुराई करने के लिये न तो बहुतों के पीछे हो लेना; और न उनके पीछे फिरके मुक में में न्याय बिगाड़ने को साक्षी देना; 02O 23 3 और कंगाल के मुक में में उसका भी पक्ष न करना।। 02O 23 4 यदि तेरे शत्रु का बैल वा गदहा भटकता हुआ तुझे मिले, तो उसे उसके पास अवश्य फेर ले आना। 02O 23 5 फिर यदि तू अपने बैरी के गदहे को बोझ के मारे दबा हुआ देखे, तो चाहे उसको उसके स्वामी के लिये छुड़ाने के लिये तेरा मन न चाहे, तौभी अवश्य स्वामी का साथ देकर उसे छुड़ा लेना।। 02O 23 6 तेरे लोगों में से जो दरिद्र हों उसके मुक मे में न्याय न बिगाड़ना। 02O 23 7 झूठे मुक मे से दूर रहना, और निर्दोष और धर्मी को घात न करना, क्योंकि मैं दुष्ट को निर्दोष न ठहराऊंगा। 02O 23 8 घूस न लेना, क्योंकि घूस देखने वालों को भी अन्धा कर देता, और धर्मियों की बातें पलट देता है। 02O 23 9 परदेशी पर अन्धेर न करना; तुम तो परदेशी के मन की बातें जानते हो, क्योंकि तुम भी मि देश में परदेशी थे।। 02O 23 10 छ: वर्ष तो अपनी भूमि में बोना और उसकी उपज इकट्ठी करना; 02O 23 11 परन्तु सातवें वर्ष में उसको पड़ती रहने देना और वैसा ही छोड़ देना, तो तेरे भाई बन्धुओं में के दरिद्र लोग उस से खाने पाएं, और जो कुछ उन से भी बचे वह बनैले पशुओं के खाने के काम में आए। और अपनी दाख और जलपाई की बारियों को भी ऐसे ही करना। 02O 23 12 छ: दिन तक तो अपना काम काज करना, और सातवें दिन विश्राम करना; कि तेरे बैल और गदहे सुस्ताएं, और तेरी दासियों के बेटे और परदेशी भी अपना जी ठंडा कर सकें। 02O 23 13 और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है उस में सावधान रहना; और दूसरे देवताओं के नाम की चर्चा न करना, वरन वे तुम्हारे मुंह से सुनाई भी न दें। 02O 23 14 प्रति वर्ष तीन बार मेरे लिये पर्ब्ब मानना। 02O 23 15 अखमीरी रोटी का पर्ब्ब मानना; उस में मेरी आज्ञा के अनुसार अबीब महीने के नियत समय पर सात दिन तक अखमीरी रोटी खाया करना, क्योंकि उसी महीने में तुम मि से निकल आए। और मुझ को कोई छूछे हाथ अपना मुंह न दिखाए। 02O 23 16 और जब तेरी बोई हुई खेती की पहिली उपज तैयार हो, तब कटनी का पर्ब्ब मानना। और वर्ष के अन्त में जब तू परिश्रम के फल बटोर के ढेर लगाए, तब बटोरन का पर्ब्ब मानना। 02O 23 17 प्रति वर्ष तीनों बार तेरे सब पुरूष प्रभु यहोवा को अपना मुंह दिखाएं।। 02O 23 18 मेरे बलिपशु का लोहू खमीरी रोटी के संग न चढ़ाना, और न मेरे पर्ब्ब के उत्तम बलिदान में से कुछ बिहान तक रहने देना। 02O 23 19 अपनी भूमि की पहिली उपज का पहिला भाग अपने परमेश्वर यहोवा के भवन में ले आना। बकरी का बच्चा उसकी माता के दूध में न पकाना।। 02O 23 20 सुन, मैं एक दूत तेरे आगे आगे भेजता हूं जो मार्ग में तेरी रक्षा करेगा, और जिस स्थान को मै ने तैयार किया है उस में तुझे पहुंचाएगा। 02O 23 21 उसके साम्हने सावधान रहना, और उसकी मानना, उसका विरोध न करना, क्योंकि वह तुम्हारा अपराध क्षमा न करेगा; इसलिये कि उस में मेरा नाम रहता है। 02O 23 22 और यदि तू सचमुच उसकी माने और जो कुछ मैं कहूं वह करे, तो मै तेरे शत्रुओं का शत्रु और तेरे द्रोहियों का द्रोही बनूंगा। 02O 23 23 इस रीति मेरा दूत तेरे आगे आगे चलकर तुझे एमोरी, हित्ती, परज्जी, कनानी, हिब्बी, और यबूसी लोगों के यहां पहुंचाएगा, और मैं उनको सत्यनाश कर डालूंगा। 02O 23 24 उनके देवताओं को दण्डवत् न करना, और न उनकी उपासना करना, और न उनके से काम करना, वरन उन मूरतों को पूरी रीति से सत्यानाश कर डालना, और उन लोगों की लाटों के टुकडे टुकडे कर देना। 02O 23 25 और तुम अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करना, तब वह तेरे अन्न जल पर आशीष देगा, और तेरे बीच में से रोग दूर करेगा। 02O 23 26 तेरे देश में न तो किसी का गर्भ गिरेगा और न कोई बांझ होगी; और तेरी आयु मैं पूरी करूंगा। 02O 23 27 जितने लोगों के बीच तू जायेगा उन सभों के मन में मै अपना भय पहिले से ऐसा समवा दूंगा कि उनको व्याकुल कर दूंगा, और मैं तुझे सब शत्रुओं की पीठ दिखाऊंगा। 02O 23 28 और मैं तुझ से पहिले बर्रों को भेजूंगा जो हिब्बी, कनानी, और हित्ती लोगों को तेरे साम्हने से भगा के दूर कर देंगी। 02O 23 29 मैं उनको तेरे आगे से एक ही वर्ष में तो न निकाल दूंगा, ऐसा न हो कि देश उजाड़ हो जाए, और बनैले पशु बढ़कर तुझे दु:ख देने लगें। 02O 23 30 जब तक तू फूल फलकर देश को अपने अधिकार में न कर ले तब तक मैं उन्हें तेरे आगे से थोड़ा थोड़ा करके निकालता रहूंगा। 02O 23 31 मैं लाल समुद्र से लेकर पलिश्तियों के समुद्र तक और जंगल से लेकर महानद तक के देश को तेरे वश में कर दूंगा; मैं उस देश के निवासियों को भी तेरे वश में कर दूंगा, और तू उन्हें अपने साम्हने से बरबस निकालेगा। 02O 23 32 तू न तो उन से वाचा बान्धना और न उनके देवताओं से। 02O 23 33 वे तेरे देश में रहने न पाएं, ऐसा न हो कि वे तुझ से मेरे विरूद्ध पाप कराएं; क्योंकि यदि तू उनके देवताओं की उपासना करे, तो यह तेरे लिये फंदा बनेगा।। 02O 24 1 फिर उस ने मूसा से कहा, तू, हारून, नादाब, अबीहू, और इस्त्राएलियों के सत्तर पुरनियों समेत यहोवा के पास ऊपर आकर दूर से दण्डवत् करना। 02O 24 2 और केवल मूसा यहोवा के समीप आए; परन्तु वे समीप न आएं, और दूसरे लोग उसके संग ऊपर न आएं। 02O 24 3 तब मूसा ने लोगों के पास जाकर यहोवा की सब बातें और सब नियम सुना दिए; तब सब लोग एक स्वर से बोल उठे, कि जितनी बातें यहोवा ने कही हैं उन सब बातों को हम मानेंगे। 02O 24 4 तब मूसा ने यहोवा के सब वचन लिख दिए। और बिहान को सवेरे उठकर पर्वत के नीचे एक वेदी और इस्त्राएल के बारहों गोत्रों के अनुसार बारह खम्भे भी बनवाए। 02O 24 5 तब उस ने कई इस्त्राएली जवानों को भेजा, जिन्हों ने यहोवा के लिये होमबलि और बैलों के मेलबलि चढ़ाए। 02O 24 6 और मूसा ने आधा लोहू तो लेकर कटारों में रखा, और आधा वेदी पर छिड़क दिया। 02O 24 7 तब वाचा की पुस्तक को लेकर लोगों को पढ़ सुनाया; उसे सुनकर उन्हों ने कहा, जो कुछ यहोवा ने कहा है उस सब को हम करेंगे, और उसकी आज्ञा मानेंगे। 02O 24 8 तब मूसा ने लोहू को लेकर लोगों पर छिड़क दिया, और उन से कहा, देखो, यह उस वाचा का लोहू है जिसे यहोवा ने इन सब वचनों पर तुम्हारे साथ बान्धी है। 02O 24 9 तब मूसा, हारून, नादाब, अबीहू और इस्त्राएलियों के सत्तर पुरनिए ऊपर गए, 02O 24 10 और इस्त्राएल के परमेश्वर का दर्शन किया; और उसके चरणों के तले नीलमणि का चबूतरा सा कुछ था, जो आकाश के तुल्य ही स्वच्छ था। 02O 24 11 और उस ने इस्त्राएलियों के प्रधानों पर हाथ न बढ़ाया; तब उन्हों ने परमेश्वर का दर्शन किया, और खाया पिया।। 02O 24 12 तब यहोवा ने मूसा से कहा, पहाड़ पर मेरे पास चढ़, और वहां रह; और मै तुझे पत्थर की पटियाएं, और अपनी लिखी हुई व्यवस्था और आज्ञा दूंगा, कि तू उनको सिखाए। 02O 24 13 तब मूसा यहोशू नाम अपने टहलुए समेत परमेश्वर के पर्वत पर चढ़ गया। 02O 24 14 कि जब तक हम तुम्हारे पास फिर न आएं तब तक तुम यहीं हमारी बाट जोहते रहो; और सुनो, हारून और हूर तुम्हारे संग हैं; तो यदि किसी का मुक मा हो तो उन्हीं के पास जाए। 02O 24 15 तब मूसा पर्वत पर चढ़ गया, और बादल ने पर्वत को छा लिया। 02O 24 16 तब यहोवा के तेज ने सीनै पर्वत पर निवास किया, और वह बादल उस पर छ: दिन तक छाया रहा; और सातवें दिन उस ने मूसा को बादल के बीच में से पुकारा। 02O 24 17 और इस्त्राएलियों की दृष्टि में यहोवा का तेज पर्वत की चोटी पर प्रचण्ड आग सा देख पड़ता था। 02O 24 18 तब मूसा बादल के बीच में प्रवेश करके पर्वत पर चढ़ गया। और मूसा पर्वत पर चालीस दिन और चालीस रात रहा।। 02O 25 1 यहोवा ने मूसा से कहा, 02O 25 2 इस्त्राएलियों से यह कहना, कि मेरे लिये भेंट लाएं; जितने अपनी इच्छा से देना चाहें उन्हीं सभों से मेरी भेंट लेना। 02O 25 3 और जिन वस्तुओं की भेंट उन से लेनी हैं वे ये हैं; अर्थात् सोना, चांदी, पीतल, 02O 25 4 नीले, बैंजनी और लाल रंग का कपड़ा, सूक्ष्म सनी का कपड़ा, बकरी का बाल, 02O 25 5 लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ों की खालें, सुइसों की खालें, बबूल की लकड़ी, 02O 25 6 उजियाले के लिये तेल, अभिषेक के तेल के लिये और सुगन्धित धूप के लिये सुगन्ध द्रव्य, 02O 25 7 एपोद और चपरास के लिये सुलैमानी पत्थर, और जड़ने के लिये मणि। 02O 25 8 और वे मेरे लिये एक पवित्रास्थान बनाए, कि मैं उनके बीच निवास करूं। 02O 25 9 जो कुछ मैं तुझे दिखाता हूं, अर्थात् निवासस्थान और उसके सब सामान का नमूना, उसी के अनुसार तुम लोग उसे बनाना।। 02O 25 10 बबूल की लकड़ी का एक सन्दूक बनाया जाए; उसकी लम्बाई अढ़ाई हाथ, और चौड़ाई और ऊंचाई डेढ़ डेढ़ हाथ की हों। 02O 25 11 और उसको चोखे सोने से भीतर और बाहर मढ़वाना, और सन्दूक के ऊपर चारों ओर सोने की बाड़ बनवाना। 02O 25 12 और सोने के चार कड़े ढलवाकर उसके चारों पायों पर, एक अलंग दो कड़े और दूसरी अलंग भी दो कड़े लगवाना। 02O 25 13 फिर बबूल की लकड़ी के डण्डे बनवाना, और उन्हे भी सोने से मढ़वाना। 02O 25 14 और डण्डों को सन्दूक की दोनों अलंगों के कड़ों में डालना जिस से उनके बल सन्दूक उठाया जाए। 02O 25 15 वे डण्डे सन्दूक के कड़ों में लगे रहें; और उस से अलग न किए जाएं। 02O 25 16 और जो साक्षीपत्रा मैं तुझे दूंगा उसे उसी सन्दूक में रखना। 02O 25 17 फिर चोखे सोने का एक प्रायश्चित्त का ढकना बनवाना; उसकी लम्बाई अढ़ाई हाथ, और चौड़ाई डेढ़ हाथ की हो। 02O 25 18 और सोना ढालकर दो करूब बनवाकर प्रायश्चित्त के ढकने के दोनों सिरों पर लगवाना। 02O 25 19 एक करूब तो एक सिरे पर और दूसरा करूब दूसरे सिरे पर लगवाना; और करूबों को और प्रायश्चित्त के ढकने को उसके ही टुकडे से बनाकर उसके दोनो सिरों पर लगवाना। 02O 25 20 और उन करूबों के पंख ऊपर से ऐसे फैले हुए बनें कि प्रायश्चित्त का ढकना उन से ढंपा रहे, और उनके मुख आम्हने- साम्हने और प्रायश्चित्त के ढकने की ओर रहें। 02O 25 21 और प्रायश्चित्त के ढकने को सन्दूक के ऊपर लगवाना; और जो साक्षीपत्रा मैं तुझे दूंगा उसे सन्दूक के भीतर रखना। 02O 25 22 और मैं उसके ऊपर रहकर तुझ से मिला करूंगा; और इस्त्राएलियों के लिये जितनी आज्ञाएं मुझ को तुझे देनी होंगी, उन सभों के विषय मैं प्रायश्चित्त के ढकने के ऊपर से और उन करूबों के बीच में से, जो साक्षीपत्रा के सन्दूक पर होंगे, तुझ से वार्तालाप किया करूंगा।। 02O 25 23 फिर बबूल की लकड़ी की एक मेज बनवाना; उसकी लम्बाई दो हाथ, चौड़ाई एक हाथ, और ऊंचाई डेढ़ हाथ की हो। 02O 25 24 उसे चोखे सोने से मढ़वाना, और उसके चारों ओर सोने की एक बाड़ बनवाना। 02O 25 25 और उसके चारों ओर चार अंगुल चौड़ी एक पटरी बनवाना, और इस पटरी के चारों ओर सोने की एक बाड़ बनवाना। 02O 25 26 और सोने के चार कड़े बनवाकर मेज के उन चारों कोनों में लगवाना जो उसके चारों पायों में होंगे। 02O 25 27 वे कड़े पटरी के पास ही हों, और डण्डों के घरों का काम दें कि मेंज़ उन्हीं के बल उठाई जाए। 02O 25 28 और डण्डों को बबूल की लकड़ी के बनवाकर सोने से मढ़वाना, और मेज़ उन्हीं से उठाई जाए। 02O 25 29 और उसके परात और धूपदान, और चमचे और उंडेलने के कटोरे, सब चोखे सोने के बनवाना। 02O 25 30 और मेज़ पर मेरे आगे भेंट की रोटियां नित्य रखा करना।। 02O 25 31 फिर चोखे सोने की एक दीवट बनवाना। सोना ढलवाकर वह दीवट, पाये और डण्डी सहित बनाया जाए; उसके पुष्पकोष, गांठ और फूल, सब एक ही टुकडे के बनें; 02O 25 32 और उसकी अलंगों से छ: डालियां निकलें, तीन डालियां तो दीवट की एक अलंग से और तीन डालियां उसकी दूसरी अलंग से निकली हुई हों; 02O 25 33 एक एक डाली में बादाम के फूल के समान तीन तीन पुष्पकोष, एक एक गांठ, और एक एक फूल हों; दीवट से निकली हुई छहों डालियों का यही आकार या रूप हो; 02O 25 34 और दीवट की डण्डी में बादाम के फूल के समान चार पुष्पकोष अपनी अपनी गांठ और फूल समेत हों; 02O 25 35 और दीवट से निकली हुई छहों डालियों में से दो दो डालियों के नीचे एक एक गांठ हो, वे दीवट समेत एक ही टुकडे के बने हुए हों। 02O 25 36 उनकी गांठे और डालियां, सब दीवट समेत एक ही टुकडे की हों, चोखा सोना ढलवाकर पूरा दीवट एक ही टुकडे का बनवाना। 02O 25 37 और सात दीपक बनवाना; और दीपक जलाए जाएं कि वे दीवट के साम्हने प्रकाश दें। 02O 25 38 और उसके गुलतराश और गुलदान सब चोखे सोने के हों। 02O 25 39 वह सब इन समस्त सामान समेत किक्कार भर चोखे सोने का बने। 02O 25 40 और सावधान रहकर इन सब वस्तुओं को उस नमूने के समान बनवाना, जो तुझे इस पर्वत पर दिखाया गया है।। 02O 26 1 फिर निवासस्थान के लिये दस परदे बनवाना; इनको बटी हुई सनीवाले और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े का कढ़ाई के काम किए हुए करूबों के साथ बनवाना। 02O 26 2 एक एक परदे की लम्बाई अट्ठाईस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हो; सब परदे एक ही नाप के हों। 02O 26 3 पांच परदे एक दूसरे से जुड़े हुए हों; और फिर जो पांच परदे रहेंगे वे भी एक दूसरे से जुड़े हुए हों। 02O 26 4 और जहां ये दोनों परदे जोड़े जाएं वहां की दोनों छोरों पर नीली नीली फलियां लगवाना। 02O 26 5 दोनों छोरों में पचास पचास फलियां ऐसे लगवाना कि वे आम्हने साम्हने हों। 02O 26 6 और सोने के पचास अंकड़े बनवाना; और परदों के पंचो को अंकड़ों के द्वारा एक दूसरे से ऐसा जुड़वाना कि निवासस्थान मिलकर एक ही हो जाए। 02O 26 7 फिर निवास के ऊपर तम्बू का काम देने के लिये बकरी के बाल के ग्यारह परदे बनवाना। 02O 26 8 एक एक परदे की लम्बाई तीस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हो; ग्यारहों परदे एक ही नाप के हों। 02O 26 9 और पांच परदे अलग और फिर छ: परदे अलग जुड़वाना, और छटवें परदे को तम्बू के साम्हने मोड़ कर दुहरा कर देना। 02O 26 10 और तू पचास अंकउे़ उस परदे की छोर में जो बाहर से मिलाया जाएगा और पचास ही अंकड़े दूसरी ओर के परदे की छोर में जो बाहर से मिलाया जाएगा बनवाना। 02O 26 11 और पीतल के पचास अंकड़े बनाना, और अंकड़ों को फलियों में लगाकर तम्बू को ऐसा जुड़वाना कि वह मिलकर एक ही हो जाए। 02O 26 12 और तम्बू के परदों का लटका हुआ भाग, अर्थात् जो आधा पट रहेगा, वह निवास की पिछली ओर लटका रहे। 02O 26 13 और तम्बू के परदों की लम्बाई मे से हाथ भर इधर, और हाथ भर उधर निवास के ढांकने के लिये उसकी दोनों अलंगों पर लटका हुआ रहे। 02O 26 14 फिर तम्बू के लिये लाल रंग से रंगी हुई मेढों की खालों का एक ओढ़ना और उसके ऊपर सूइसों की खालों का भी एक ओढ़ना बनवाना।। 02O 26 15 फिर निवास को खड़ा करने के लिये बबूल की लकड़ी के तख्ते बनवाना। 02O 26 16 एक एक तख्ते की लम्बाई दस हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ की हो। 02O 26 17 एक एक तख्ते में एक दूसरे से जोड़ी हुई दो दो चूलें हों; निवास के सब तख्तों को इसी भांति से बनवाना। 02O 26 18 और निवास के लिये जो तख्ते तू बनवाएगा उन में से बीस तख्ते तो दक्खिन की ओर के लिये हों; 02O 26 19 और बीसों तख्तों के नीचे चांदी की चालीस कुर्सियां बनवाना, अर्थात् एक एक तख्ते के नीचे उसके चूलों के लिये दो दो कुर्सियां। 02O 26 20 और निवास की दूसरी अलंग, अर्थात् उत्तर की ओर बीस तख्ते बनवाना। 02O 26 21 और उनके लिये चांदी की चालीस कुर्सियां बनवाना, अर्थात् एक एक तख्ते के नीचे दो दो कुर्सियां हों। 02O 26 22 और निवास की पिछली अलंग, अर्थात् एक एक तख्ते के नीचे दो दो कुर्सियां हों। 02O 26 23 और पिछले अलंग में निवास के कोनों के लिये दो तख्ते बनवाना; 02O 26 24 और ये नीचे से दो दो भाग के हों और दोनों भाग ऊपर के सिरे तक एक एक कड़े में मिलाये जाएं; दोनों तख्तों का यही रूप हो; ये तो दोनों कोनों के लिये हों। 02O 26 25 और आठ तख्तें हों, और उनकी चांदी की सोलह कुर्सियां हों; अर्थात् एक एक तख्ते के नीचे दो दो कुर्सियां हों। 02O 26 26 फिर बबूल की लकड़ी के बेंड़े बनवाना, अर्थात् निवास की एक अलंग के तख्तों के लिये पांच, 02O 26 27 और निवास की दूसरी अलंग के तख्तों के लिये पांच बेंडे, और निवास की जो अलंग पश्चिम की ओर पिछले भाग में होगी, उसके लिये पांच बेंड़े बनवाना। 02O 26 28 और बीचवाला बेंड़ा जो तख्तों के मध्य में होगा वह तम्बू के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुंचे। 02O 26 29 फिर तख्तों को सोने से मढ़वाना, और उनके कड़े जो बेंड़ों के घरों का काम देंगे उन्हें भी सोने के बनवाना; और बेड़ों को भी सोने से मढ़वाना। 02O 26 30 और निवास को इस रीति खड़ा करना जैसा इस पर्वत पर तुझे दिखाया गया है।। 02O 26 31 फिर नीले, बैजनी और लाल रंग के और बटी हुई सूक्ष्म सनीवाले कपड़े का एक बीचवाला पर्दा बनवाना; वह कढ़ाई के काम किये हुए करूबों के साथ बने। 02O 26 32 और उसको सोने से मढ़े हुए बबूल के चार ख्म्भों पर लटकाना, इनकी अंकड़ियां सोने की हों, और ये चांदी की चार कुर्सियों पर खड़ी रहें। 02O 26 33 और बीचवाले पर्दे को अंकड़ियों के नीचे लटकाकर, उसकी आड़ में साक्षीपत्रा का सन्दूक भीतर लिवा ले जाना; सो वह बीचवाला पर्दा तुम्हारे लिये पवित्रास्थान को परमपवित्रास्थान से अलग किये रहे। 02O 26 34 फिर परमपवित्रा स्थान में साक्षीपत्रा के सन्दूक के ऊपर प्रायश्चित्त के ढकने को रखना। 02O 26 35 और उस पर्दे के बाहर निवास की उत्तर अलग मेज़ रखना; और उसकी दक्खिन अलंग मेज़ के साम्हने दीवट को रखना। 02O 26 36 फिर तम्बू के द्वार के लिये नीले, बैंजनी और लाल रंग के और बटी हुई सूक्ष्म सनीवाले कपड़े का कढ़ाई का काम किया हुआ एक पर्दा बनवाना। 02O 26 37 और इस पर्दे के लिये बबूल के पांच खम्भे बनवाना, और उनको सोने से मढ़वाना; उनकी कडियां सोने की हो, और उनके लिये पीतल की पांच कुर्सियां ढलवा कर बनवाना।। 02O 27 1 फिर वेदी को बबूल की लकड़ी की, पांच हाथ लम्बी और पांच हाथ चौड़ी बनवाना; वेदी चौकोर हो, और उसकी ऊंचाई तीन हाथ की हो। 02O 27 2 और उसके चारों कोनों पर चार सींग बनवाना; वे उस समेत एक ही टुकडे के हों, और उसे पीतल से मढ़वाना। 02O 27 3 और उसकी राख उठाने के पात्रा, और फावड़ियां, और कटोरे, और कांटे, और अंगीठियां बनवाना; उसका कुल सामान पीतल का बनवाना। 02O 27 4 और उसके पीतल की जाली एक झंझरी बनवाना; और उसके चारों सिरों में पीतल के चार कड़े लगवाना। 02O 27 5 और उस झंझरी को वेदी के चारों ओर की कंगनी के नीचे ऐसे लगवाना, कि वह वेदी की ऊंचाई के मध्य तक पहुंचे। 02O 27 6 और वेदी के लिये बबूल की लकड़ी के डण्डे बनवाना, और उन्हें पीतल से मढ़वाना। 02O 27 7 और डंडे कड़ों में डाले जाएं, कि जब जब वेदी उठाई जाए तब वे उसकी दोनों अलंगों पर रहें। 02O 27 8 वेदी को तख्तों से खोखली बनवाना; जैसी वह इस पर्वत पर तुझे दिखाई गई है वैसी ही बनाई जाए।। 02O 27 9 फिर निवास के आंगन को बनवाना। उसकी दक्खिन अलंग के लिये तो बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े के सब पर्दों को मिलाए कि उसकी लम्बाई सौ हाथ की हो; एक अलंग पर तो इतना ही हो। 02O 27 10 और उनके बीस खम्भे बनें, और इनके लिये पीतल की बीस कुर्सियां बनें, और खम्भों के कुन्डे और उनकी पटि्टयां चांदी की हों। 02O 27 11 और उसी भांति आंगन की उत्तर अलंग की लम्बाई में भी सौ हाथ लम्बे पर्दे हों, और उनके भी बीस खम्भे और इनके लिये भी पीतल के बीस खाने हों; और उन खम्भों के कुन्डे और पटि्टयां चांदी की हों। 02O 27 12 फिर आंगन की चौड़ाई में पच्छिम की ओर पचास हाथ के पर्दे हों, उनके खम्भे दस और खाने भी दस हों। 02O 27 13 और पूरब अलंग पर आंगन की चौड़ाई पचास हाथ की हो। 02O 27 14 और आंगन के द्वार की एक ओर पन्द्रह हाथ के पर्दे हों, और उनके खम्भे तीन और खाने तीन हों। 02O 27 15 और दूसरी ओर भी पन्द्रह हाथ के पर्दे हों, उनके भी खम्भे तीन और खाने तीन हों। 02O 27 16 और आंगन के द्वार के लिये एक पर्दा बनवाना, जो नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े और बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े का कामदार बना हुआ बीस हाथ का हो, उसके खम्भे चार और खाने भी चार हों। 02O 27 17 आंगन की चारों ओर के सब खम्भे चांदी की पटि्टयों से जुड़े हुए हों, उनके कुन्डे चांदी के और खाने पीतल के हों। 02O 27 18 आंगन की लम्बाई सौ हाथ की, और उसकी चौड़ाई बराबर पचास हाथ की और उसकी कनात की ऊंचाई पांच हाथ की हो, उसकी कनात बटी हुई सुक्ष्म सनी के कपड़े की बने, और खम्भों के खाने पीतल के हों। 02O 27 19 निवास के भांति भांति के बर्तन और सब सामान और उसके सब खूंटें और आंगन के भी सब खूंटे पीतल ही के हों।। 02O 27 20 फिर तू इस्त्राएलियों को आज्ञा देना, कि मेरे पास दीवट के लिये कूट के निकाला हुआ जलपाई का निर्मल तेल ले आना, जिस से दीपक नित्य जलता रहे। 02O 27 21 मिलाप के तम्बू में, उस बीचवाले पर्दे से बाहर जो साक्षीपत्रा के आगे होगा, हारून और उसके पुत्रा दीवट सांझ से भोर तक यहोवा के साम्हने सजा कर रखें। यह विधि इस्त्राएलियों की पीढ़ियों के लिये सदैव बनी रहेगी।। 02O 28 1 फिर तू इस्त्राएलियों में से अपने भाई हारून, और नादाब, अबीहू, एलिआज़ार और ईतामार नाम उसके पुत्रों को अपने समीप ले आना कि वे मेरे लिये याजक का काम करें। 02O 28 2 और तू अपने भाई हारून के लिये विभव और शोभा के निमित्त पवित्रा वस्त्रा बनवाना। 02O 28 3 और जितनों के हृदय में बुद्धि है, जिनको मैं ने बुद्धि देनेवाली आत्मा से परिपूर्ण किया है, उनको तू हारून के वस्त्रा बनाने की आज्ञा दे कि वह मेरे निमित्त याजक का काम करने के लिये पवित्रा बनें। 02O 28 4 और जो वस्त्रा उन्हें बनाने होंगे वे ये हैं, अर्थात् सीनाबन्द; और एपोद, और जामा, चार खाने का अंगरखा, पुरोहित का टोप, और कमरबन्द; ये ही पवित्रा वस्त्रा तेरे भाई हारून और उसके पुत्रों के लिये बनाए जाएं कि वे मेरे लिये याजक का काम करें। 02O 28 5 और वे सोने और नीले और बैंजनी और लाल रंग का और सूक्ष्म सनी का कपड़ा लें।। 02O 28 6 और वे एपोद को सोने, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े का और बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े का बनाएं, जो कि निपुण कढ़ाई के काम करनेवाले के हाथ का काम हो। 02O 28 7 और वह इस तरह से जोड़ा जाए कि उसके दोनो कन्धों के सिरे आपस में मिले रहें। 02O 28 8 और एपोद पर जो काढ़ा हुआ पटुका होगा उसकी बनावट उसी के समान हो, और वे दोनों बिना जोड़ के हों, और सोने और नीले, बैंजनी और लाल रंगवाले और बटी हुई सूक्ष्म सनीवाले कपड़े के हों। 02O 28 9 फिर दो सुलैमानी मणि लेकर उन पर इस्त्राएल के पुत्रों के नाम खुदवाना, 02O 28 10 उनके नामों में से छ: तो एक मणि पर, और शेष छ: नाम दूसरे मणि पर, इस्त्राएल के पुत्रों की उत्पत्ति के अनुसार खुदवाना। 02O 28 11 मणि खोदनेवाले के काम से जैसे छापा खोदा जाता है, वैसे ही उन दो मणियों पर इस्त्राएल के पुत्रों के नाम खुदवाना; और उनको सोने के खानों में जड़वा देना। 02O 28 12 और दोनों मणियों को एपोद के कन्धों पर लगवाना, वे इस्त्राएलियों के निमित्त स्मरण दिलवाने वाले मणि ठहरेंगे; अर्थात् हारून उनके नाम यहोवा के आगे अपने दोनों कन्धों पर स्मरण के लिये लगाए रहे।। 02O 28 13 फिर सोने के खाने बनवाना, 02O 28 14 और डोरियों की नाईं गूंथे हुए दो जंजीर चोखे सोने के बनवाना; और गूंथे हुए जंजीरों को उन खानों में जड़वाना। 02O 28 15 फिर न्याय की चपरास को भी कढ़ाई के काम का बनवाना; एपोद की नाईं सोने, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के और बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े की उसे बनवाना। 02O 28 16 वह चौकोर और दोहरी हो, और उसकी लम्बाई और चौड़ाई एक एक बित्ते की हों। 02O 28 17 और उस में चार पांति मणि जड़ाना। पहिली पांति में तो माणिक्य, पद्मराग और लालड़ी हों; 02O 28 18 दूसरी पांति में मरकत, नीलमणि और हीरा; 02O 28 19 तीसरी पांति में लशम, सूर्यकांत और नीलम; 02O 28 20 और चौथी पांति में फीरोजा, सुलैमानी मणि और यशब हों; ये सब सोने के खानों में जड़े जाएं। 02O 28 21 और इस्त्राएल के पुत्रों के जितने नाम हैं उतने मणि हों, अर्थात् उनके नामों की गिनती के अनुसार बारह नाम खुदें, बारहों गोत्रों में से एक एक का नाम एक एक मणि पर ऐसे खुदे जेसे छापा खोदा जाता है। 02O 28 22 फिर चपरास पर डोरियों की नाई। गूंथे हुए चोखे सोने की जंजीर लगवाना; 02O 28 23 और चपरास में सोने की दो कड़ियां लगवाना, और दोनों कड़ियों को चपरास के दोनो सिरों पर लगवाना। 02O 28 24 और सोने के दोनों गूंथे जंजीरों को उन दोनों कड़ियों में जो चपरास के सिरों पर होंगी लगवाना; 02O 28 25 और गूंथे हुए दोनो जंजीरों के दोनों बाकी सिरों को दोनों खानों में जड़वा के एपोद के दोनों कन्धों के बंधनों पर उसके साम्हने लगवाना। 02O 28 26 फिर सोने की दो और कड़ियां बनवाकर चपरास के दोनों सिरों पर, उसकी उस कोर पर जो एपोद की भीतर की ओर होगी लगवाना। 02O 28 27 फिर उनके सिवाय सोने की दो और कड़ियां बनवाकर एपोद के दोनों कन्धों के बंधनों पर, नीचे से उनके साम्हने और उसके जोड़ के पास एपोद के काढ़े हुए पटुके के ऊपर लगवाना। 02O 28 28 और चपरास अपनी कड़ियों के द्वारा एपोद की कड़ियों में नीले फीते से बांधी जाए, इस रीति वह एपोद के काढ़े हुए पटुके पर बनी रहे, और चपरास एपोद पर से अलग न होने पाए। 02O 28 29 और जब जब हारून पवित्रास्थान में प्रवेश करे, तब तब वह न्याय की चपरास पर अपने हृदय के ऊपर इस्त्राएलियों के नामों को लगाए रहे, जिस से यहोवा के साम्हने उनका स्मरण नित्य रहे। 02O 28 30 और तू न्याय की चपरास में ऊरीम और तुम्मीम को रखना, और जब जब हारून यहोवा के साम्हने प्रवेश करे, तब तब वे उसके हृदय के ऊपर हों; इस प्रकार हारून इस्त्राएलियों के न्याय पदार्थ को अपने हृदय के ऊपर यहोवा के साम्हने नित्य लगाए रहे।। 02O 28 31 फिर एपोद के बागे को सम्पूर्ण नीले रंग का बनवाना। 02O 28 32 और उसकी बनावट ऐसी हो कि उसके बीच में सिर डालने के लिये छेद हो, और उस छेद की चारों ओर बखतर के छेद की सी एक बुनी हुई कोर हो, कि वह फटने न पाए। 02O 28 33 और उसके नीचेवाले घेरे में चारों ओर नीेले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े के अनार बनवाना, और उनके बीच बीच चारों ओर सोने की घंटीयां लगवाना, 02O 28 34 अर्थात् एक सोने की घंटी और एक अनार, फिर एक सोने की घंटी और एक अनार, इसी रीति बागे के नीचेवाले घेरे में चारों ओर ऐसा ही हो। 02O 28 35 और हारून एक बागे को सेवा टहल करने के समय पहिना करे, कि जब जब वह पवित्रास्थान के भीतर यहोवा के साम्हने जाए, वा बाहर निकले, तब तब उसका शब्द सुनाई दे, नहीं तो वह मर जाएगा। 02O 28 36 फिर चोखे सोने का एक टीका बनवाना, और जैसे छापे में वैसे ही उस में ये अक्षर खोदें जाएं, अर्थात् यहोवा के लिये पवित्रा। 02O 28 37 और उसे नीले फीते से बांधना; और वह पगड़ी के साम्हने के हिस्से पर रहे। 02O 28 38 और हारून के माथे पर रहे, इसलिये कि इस्त्राएली जो कुछ पवित्रा ठहराएं, अर्थात् जितनी पवित्रा वस्तुएं भेंट में चढ़ावें उन पवित्रा वस्तुओं का दोष हारून उठाए रहे, और वह नित्य उसके माथे पर रहे, जिस से यहोवा उन से प्रसन्न रहे।। 02O 28 39 और अंगरखे को सूक्ष्म सनी के कपड़े का चारखाना बुनवाना, और एक पगड़ी भी सूक्ष्म सनी के कपड़े की बनवाना, और कारचोबी काम किया हुआ एक कमरबन्द भी बनवाना।। 02O 28 40 फिर हारून के पुत्रों के लिये भी अंगरखे और कमरबन्द और टोपियां बनवाना; ये वस्त्रा भी विभव और शोभा के लिये बनें। 02O 28 41 अपने भाई हारून और उसके पुत्रों को ये ही सब वस्त्रा पहिनाकर उनका अभिषेक और संस्कार करना, और उन्हें पवित्रा करना, कि वे मेरे लिये याजक का काम करें। 02O 28 42 और उनके लिये सनी के कपड़े की जांघिया बनवाना जिन से उनका तन ढपा रहे; वे कमर से जांघ तक की हों; 02O 28 43 और जब जब हारून वा उसके पुत्रा मिलापवाले तम्बू में प्रवेश करें, वा पवित्रा स्थान में सेवा टहल करने को वेदी के पास जाएं तब तब वे उन जांघियों को पहिने रहें, न हो कि वे पापी ठहरें और मर जाएं। यह हारून के लिये और उसके बाद उसके वंश के लिये भी सदा की विधि ठहरें।। 02O 29 1 और उन्हें पवित्रा करने को जो काम तुझे उन से करना है, कि वे मेरे लिये याजक का काम करें वह यह है। एक निर्दोष बछड़ा और दो निर्दोष मेंढ़े लेना, 02O 29 2 और अखमीरी रोटी, और तेल से सने हुए मैदे के अखमीरी फुलके, और तेल से चुपड़ी हुई अखमीरी पपड़ियां भी लेना। ये सब गेहूं के मैदे के बनवाना। 02O 29 3 इनको एक टोकरी में रखकर उस टोकरी को उस बछड़े और उन दोनों मेंढ़ो समेत समीप ले आना। 02O 29 4 फिर हारून और उसके पुत्रों को मिलापवाले तम्बू के द्वार के समीप ले आकर जल से नहलाना। 02O 29 5 तब उन वस्त्रों को लेकर हारून को अंगरखा ओर एपोद का बागा पहिनाना, और एपोद और चपरास बान्धना, और एपोद का काढ़ा हुआ पटुका भी बान्धना; 02O 29 6 और उसके सिर पर पगड़ी को रखना, और पगड़ी पर पवित्रा मुकुट को रखना। 02O 29 7 तब अभिषेक का तेल ले उसके सिर पर डालकर उसका अभिषेक करना। 02O 29 8 फिर उसके पुत्रों को समीप ले आकर उनको अंगरखे पहिनाना, 02O 29 9 और उसके अर्थात् हारून और उसके पुत्रों के कमर बान्धना और उनके सिर पर टोपियां रखना; जिस से याजक के पद पर सदा उनका हक रहे। इसी प्रकार हारून और उसके पुत्रों का संस्कार करना। 02O 29 10 और बछड़े को मिलापवाले तम्बू के साम्हने समीप ले आना। और हारून और उसके पुत्रा बछड़े के सिर पर अपने अपने हाथ रखें, 02O 29 11 तब उस बछड़े को यहोवा के सम्मुख मिलापवाले तम्बू के द्वार पर बलिदान करना, 02O 29 12 और बछड़े के लोहू में से कुछ लेकर अपनी उंगली से वेदी के सींगों पर लगाना, और शेष सब लोहू को वेदी के पाए पर उंडेल देना 02O 29 13 और जिस चरबी से अंतड़ियां ढपी रहती हैं, और जो झिल्ली कलेजे के ऊपर होती है, उनको और दोनो गुर्दों को उनके ऊपर की चरबी समेत लेकर सब को वेदी पर जलाना। 02O 29 14 और बछड़े का मांस, और खाल, और गोबर, छावनी से बाहर आग में जला देना; क्योंकि यह पापबलि होगा। 02O 29 15 फिर एक मेढ़ा लेना, और हारून और उसके पुत्रा उसके सिर पर अपने अपने हाथ रखें, 02O 29 16 तब उस मेढ़ें को बलि करना, और उसका लोहू लेकर वेदी पर चारों ओर छिड़कना। 02O 29 17 और उस मेढ़े को टुकडे टुकडे काटना, और उसकी अंतड़ियों और पैरों को धोकर उसके टुकड़ों और सिर के ऊपर रखना, 02O 29 18 तब उस पूरे मेढ़े को वेदी पर जलाना; वह तो यहोवा के लिये होमबलि होगा; वह सुखदायक सुगन्ध और यहोवा के लिये हवन होगा। 02O 29 19 फिर दूसरे मेढ़े को लेना; और हारून और उसके पुत्रा उसके सिर पर अपने अपने हाथ रखें, 02O 29 20 तब उस मेंड़े को बलि करना, और उसके लोहू में से कुछ लेकर हारून और उसके पुत्रों के दहिने कान के सिरे पर, और उनके दहिने हाथ और दहिने पांव के अंगूठों पर लगाना, और लोहू को वेदी पर चारों ओर छिड़क देना। 02O 29 21 फिर वेदी पर के लोहू, और अभिषेक के तेल, इन दोनो में से कुछ कुछ लेकर हारून और उसके वस्त्रों पर, और उसके पुत्रों और उनके वस्त्रों पर भी छिड़क देना; तब वह अपने वस्त्रों समेत और उसके पुत्रा भी अपने अपने वस्त्रों समेत पवित्रा हो जाएंगे। 02O 29 22 तब मेढ़े को संस्कारवाला जानकर उस में से चरबी और मोटी पूंछ को, और जिस चरबी से अंतड़ियां ढपी रहती हैं उसको, और कलेजे पर की झिल्ली को, और चरबी समेत दोनों गुर्दों को, और दहिने पुट्ठे को लेना, 02O 29 23 और अखमीरी रोटी की टोकरी जो यहोवा के आगे धरी होगी उस में से भी एक रोटी, और तेल से सने हुए मैदे का एक फुलका, और एक पपड़ी लेकर, 02O 29 24 इन सब को हारून और उसके पुत्रों के हाथों में रखकर हिलाए जाने की भेंट ठहराके यहोवा के आगे हिलाया जाए। 02O 29 25 तब उन वस्तुओं को उनके हाथों से लेकर होमबलि की वेदी पर जला देना, जिस से वह यहोवा के साम्हने सुखदायक सुगन्ध ठहरे; वह तो यहोवा के लिये हवन होगा। 02O 29 26 फिर हारून के संस्कार को जो मेंढ़ा होगा उसकी छाती को लेकर हिलाए जाने की भेंट के लिये यहोवा के आगे हिलाना; और वह तेरा भाग ठहरेगा। 02O 29 27 और हारून और उसके पुत्रों के संस्कार का जो मेढ़ा होगा, उस में से हिलाए जाने की भेंटवाली छाती जो हिलाई जाएगी, और उठाए जाने का भेंटवाला पुट्ठा जो उठाया जाएगा, इन दोनों को पवित्रा ठहराना। 02O 29 28 और ये सदा की विधि की रीति पर इस्त्राएलियों की ओर से उसका और उसके पुत्रों का भाग ठहरे, कयोंकि ये उठाए जाने की भेंटें ठहरी हैं; और यह इस्त्राएलियों की ओर से उनके मेलबलियों में से यहोवा के लिये उठाऐ जाने की भेंट होगी। 02O 29 29 और हारून के जो पवित्रा वस्त्रा होंगे वह उसके बाद उसके बेटे पोते आदि को मिलते रहें, जिस से उन्हीं को पहिने हुए उनका अभिषेक और संस्कार किया जाए। 02O 29 30 उसके पुत्रों के जो उसके स्थान पर याजक होगा, वह जब पवित्रास्थान में सेवा टहल करने को मिलाप वाले तम्बू में पहिले आए, तब उन वस्त्रों को सात दिन तक पहिने रहें। 02O 29 31 फिर याजक के संस्कार का जो मेढ़ा होगा उसे लेकर उसका मांस किसी पवित्रा स्थान में पकाना; 02O 29 32 तब हारून अपने पुत्रों समेत उस मेढे का मांस और टोकरी की रोटी, दोनों को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर खाए। 02O 29 33 और जिन पदार्थों से उनका संस्कार और उन्हें पवित्रा करने के लिये प्रायश्चित्त किया जाएगा उनको तो वे खाएं, परन्तु पराए कुल का कोई उन्हें न खाने पाए, क्योंकि वे पवित्रा होंगे। 02O 29 34 और यदि संस्कारवाले मांस वा रोटी में से कुछ बिहान तक बचा रहे, तो उस बचे हुए को आग में जलाना, वह खाया न जाए; क्योंकि वह पवित्रा होगा। 02O 29 35 और मैं ने तुझे जो जो आज्ञा दी हैं, उन सभों के अनुसार तू हारून और उसके पुत्रों से करना; और सात दिन तक उनका संस्कार करते रहना, 02O 29 36 अर्थात् पापबलि का एक बछड़ा प्रायश्चित्त के लिये प्रतिदिन चढ़ाना। और वेदी को भी प्रायश्चित्त करने के समय शुद्ध करना, और उसे पवित्रा करने के लिये उसका अभिषेक करना। 02O 29 37 सात दिन तक वेदी के लिये प्रायश्चित्त करके उसे पवित्रा करना, और वेदी परम पवित्रा ठहरेगी; और जो कुछ उस से छू जाएगा वह भी पवित्रा हो जाएगा।। 02O 29 38 जो तुझे वेदी पर नित्य चढ़ाना होगा वह यह है; अर्थात् प्रतिदिन एक एक वर्ष के दो भेड़ी के बच्चे। 02O 29 39 एक भेड़ के बच्चे को तो भोर के समय, और दूसरे भेड़ के बच्चे को गोधूलि के समय चढ़ाना। 02O 29 40 और एक भेड़ के बच्चे के संग हीन की चौथाई कूटके निकाले हुए तेल से सना हुआ एपा का दसवां भाग मैदा, और अर्घ के लिये ही की चौथाई दाखमधु देना। 02O 29 41 और दूसरे भेड़ के बच्चे को गोधूलि के समय चढ़ाना, और उसके साथ भोर की रीति अनुसार अन्नबलि और अर्घ दोनों देना, जिस से वह सुखदायक सुगन्ध और यहोवा के लिये हवन ठहरे। 02O 29 42 तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में यहोवा के आगे मिलापवाले तम्बू के द्वार पर नित्य ऐसा ही होमबलि हुआ करे; यह वह स्थान है जिस में मैं तुम लोगों से इसलिये मिला करूंगा, कि तुझ से बातें करूं। 02O 29 43 और मैं इस्त्राएलियों से वहीं मिला करूंगा, और वह तम्बू मेरे तेज से पवित्रा किया जाएगा। 02O 29 44 और मैं मिलापवाले तम्बू और वेदी को पवित्रा करूंगा, और हारून और उसके पुत्रों को भी पवित्रा करूंगा, कि वे मेरे लिये याजक का काम करें। 02O 29 45 और मैं इस्त्राएलियों के मध्य निवास करूंगा, और उनका परमेश्वर ठहरूंगा। 02O 29 46 तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा उनका परमेश्वर हूं, जो उनको मि देश से इसलिये निकाल ले आया, कि उनके मध्य निवास करूं; मैं ही उनका परमेश्वर यहोवा हूं।। 02O 30 1 फिर धूप जलाने के लिये बबूल की लकड़ी की वेदी बनाना। 02O 30 2 उसकी लम्बाई एक हाथ और चौड़ाई एक हाथ की हो, वह चौकोर हो, और उसकी ऊंचाई दो हाथ की हो, और उसके सींग उसी टुकडे से बनाए जाएं। 02O 30 3 और वेदी के ऊपरवाले पल्ले और चारों ओर की अलंगों और सींगों को चोखे सोने से मढ़ना, और इसकी चारों ओर सोने की एक बाड़ बनाना। 02O 30 4 और इसकी बाड़ के नीचे इसके दानों पल्ले पर सोने के दो दो कड़े बनाकर इसके दोनों ओर लगाना, वे इसके उठाने के डण्डों के खानों का काम देंगे। 02O 30 5 और डण्डों को बबूल की लकड़ी के बनाकर उनको सोने से मढ़ना। 02O 30 6 और तू उसको उस पर्दे के आगे रखना जो साक्षीपत्रा के सन्दूक के साम्हने है, अर्थात् प्रायश्चित्त वाले ढकने के आगे जो साक्षीपत्रा के ऊपर है, वहीं मैं तुझ से मिला करूंगा। 02O 30 7 और उसी वेदी पर हारून सुगन्धित धूप जलाया करे; प्रतिदिन भोर को जब वह दीपक को ठीक करे तब वह धूप को जलाए, 02O 30 8 तब गोधूलि के समय जब हारून दीपकों को जलाए तब धूप जलाया करे, यह धूप यहोवा के साम्हने तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में नित्य जलाया जाए। 02O 30 9 और उस वेदी पर तुम और प्रकार का धूप न जलाना, और न उस पर होमबलि और न अन्नबलि चढ़ाना; और न इस पर अर्घ देना। 02O 30 10 और हारून वर्ष में एक बार इसके सींगों पर प्रायश्चित्त करे; और तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में वर्ष में एक बार प्रायश्चित्त लिया जाए; यह यहोवा के लिये परमपवित्रा है।। 02O 30 11 और तब यहोवा ने मूसा से कहा, 02O 30 12 जब तू इस्त्राएलियों कि गिनती लेने लगे, तब वे गिनने के समय जिनकी गिनती हुई हो अपने अपने प्राणों के लिये यहोवा को प्रायश्चित्त दें, जिस से जब तू उनकी गिनती कर रहा हो उस समय कोई विपत्ति उन पर न आ पड़े। 02O 30 13 जितने लोग गिने जाएं वे पवित्रास्थान के शेकेल के लिये आधा शेकेल दें, यह शेकेल बीस गेरा का होता है, यहोवा की भेंट आधा शेकेल हो। 02O 30 14 बीस वर्ष के वा उस से अधिक अवस्था के जितने गिने जाएं उन में से एक एक जन यहोवा की भेंट दे। 02O 30 15 जब तुम्हारे प्राणों के प्रायश्चित्त के निमित्त यहोवा की भेंट दी जाए, तब न तो धनी लोग आधे शेकेल से अधिक दें, और न कंगाल लोग उस से कम दें। 02O 30 17 और यहोवा ने मूसा से कहा, 02O 30 18 धोने के लिये पीतल की एक हौदी और उसका पाया पीतल का बनाना। और उसके मिलापवाले तम्बू और वेदी के बीच में रखकर उस में जल भर देना; 02O 30 19 और उस में हारून और उसके पुत्रा अपने अपने हाथ पांव धोया करें। 02O 30 20 जब जब वे मिलापवाले तम्बू में प्रवेश करें तब तब वे हाथ पांव जल से धोएं, नहीं तो मर जाएंगे; और जब जब वे वेदी के पास सेवा टहल करने, अर्थात् यहोवा के लिये हव्य जलाने को आएं तब तब वे हाथ पांव धोएं, न हो कि मर जाएं। 02O 30 21 यह हारून और उसके पीढ़ी पीढ़ी के वंश के लिये सदा की विधि ठहरे।। 02O 30 22 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 02O 30 23 तू मुख्य मुख्य सुगन्ध द्रव्य, अर्थात् पवित्रास्थान के शेकेल के अनुसार पांच सौ शेकेल अपने आप निकला हुआ गन्धरस, और उसका आधा, अर्थात् अढ़ाई सौ शेकेल सुगन्धित अगर, 02O 30 24 और पांच सौ शेकेल तज, और एक हीन जलपाई का तेल लेकर 02O 30 25 उन से अभिषेक का पवित्रा तेल, अर्थात् गन्धी की रीति से तैयार किया हुआ सुगन्धित तेल बनवाना; यह अभिषेक का पवित्रा तेल ठहरे। 02O 30 26 और उस से मिलापवाले तम्बू का, और साक्षीपत्रा के सन्दूक का, 02O 30 27 और सारे सामान समेत मेज़ का, और सामान समेत दीवट का, और धूपवेदी का, 02O 30 28 और सारे सामान समेत होमवेदी का, और पाए समेत हौदी का अभिषेक करना। 02O 30 29 और उनको पवित्रा करना, जिस से वे परमपवित्रा ठहरें; और जो कुछ उन से छू जाएगा वह पवित्रा हो जाएगा। 02O 30 30 फिर हारून का उसके पुत्रों के साथ अभिषेक करना, और इस प्रकार उन्हें मेरे लिये याजक का काम करने के लिये पवित्रा करना। 02O 30 31 और इस्त्राएलियों को मेरी यह आज्ञा सुनाना, कि वह तेल तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में मेरे लिये पवित्रा अभिषेक का तेल होगा। 02O 30 32 वह किसी मनुष्य की देह पर न डाला जाए, और मिलावट में उसके समान और कुछ न बनाना; वह तो पवित्रा होगा, वह तुम्हारे लिये पवित्रा होगा। 02O 30 33 जो कोई उसके समान कुछ बनाए, वा जो कोई उस में से कुछ पराए कुलवाले पर लगाए, वह अपने लोगों में से नाश किया जाए।। 02O 30 34 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, बोल, नखी और कुन्दरू, ये सुगन्ध द्रव्य निर्मल लोबान समेत ले लेना, ये सब एक तौल के हों, 02O 30 35 और इनका धूप अर्थात् लोन मिलाकर गन्धी की रीति के अनुसार चोखा और पवित्रा सुगन्ध द्रव्य बनवाना; 02O 30 36 फिर उस में से कुछ पीसकर बुकनी कर डालना, तब उस में से कुछ मिलापवाले तम्बू में साक्षीपत्रा के आगे, जहां पर मैं तुझ से मिला करूंगा वहां रखना; वह तुम्हारे लिये परमपवित्रा होगा। 02O 30 37 और जो धूप तू बनवाएगा, मिलावट में उसके समान तुम लोग अपने लिये और कुछ न बनवाना; वह तुम्हारे आगे यहोवा के लिये पवित्रा होगा। 02O 30 38 जो कोई सूंघने के लिये उसके समान कुछ बनाए वह अपने लोगों में से नाश किया जाए।। 02O 31 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 02O 31 2 सुन, मैं ऊरी के पुत्रा बसलेल को, जो हूर का पोता और यहूदा के गोत्रा का है, नाम लेकर बुलाता हूं। 02O 31 3 और मैं उसको परमेश्वर की आत्मा से जो बुद्धि, प्रवीणता, ज्ञान, और सब प्रकार के कार्यों की समझ देनेवाली आत्मा है परिपूर्ण करता हूं, 02O 31 4 जिस से वह कारीगरी के कार्य बुद्धि से निकाल निकालकर सब भांति की बनावट में, अर्थात् सोने, चांदी, और पीतल में, 02O 31 5 और जड़ने के लिये मणि काटने में, और लकड़ी के खोदने में काम करे। 02O 31 6 और सुन, मैं दान के गोत्रावाले अहीसामाक के पुत्रा ओहोलीआब को उसके संग कर देता हूं; वरन जितने बुद्धिमान है उन सभों के हृदय में मैं बुद्धि देता हूं, जिस से जितनी वस्तुओं की आज्ञा मैं ने तुझे दी है उन सभों को वे बनाएं; 02O 31 7 अर्थात् मिलापवाला तम्बू, और साक्षीपत्रा का सन्दूक, और उस पर का प्रायश्चित्तवाला ढकना, और तम्बू का सारा सामान, 02O 31 8 और सामान सहित मेज़, और सारे सामान समेत चोखे सोने की दीवट, और धूपवेदी, 02O 31 9 और सारे सामान सहित होमवेदी, और पाए समेत हौदी, 02O 31 10 और काढ़े हुए वस्त्रा, और हारून याजक के याजकवाले काम के पवित्रा वस्त्रा, और उसके पुत्रों के वस्त्रा, 02O 31 11 और अभिषेक का तेल, और पवित्रा स्थान के लिये सुगन्धित धूप, इन सभों को वे उन सब आज्ञाओं के अनुसार बनाएं जो मैं ने तुझे दी हैं।। 02O 31 12 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 02O 31 13 तू इस्त्राएलियों से यह भी कहना, कि निश्चय तुम मेरे विश्रामदिनों को मानना, क्योंकि तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में मेरे और तुम लोगों के बीच यह एक चिन्ह ठहरा है, जिस से तुम यह बात जान रखो कि यहोवा हमारा पवित्रा करनेहारा है। 02O 31 14 इस कारण तुम विश्रामदिन को मानना, क्योंकि वह तुम्हारे लिये पवित्रा ठहरा है; जो उसको अपवित्रा करे वह निश्चय मार डाला जाए; जो कोई उस दिन में से कुछ कामकाज करे वह प्राणी अपने लोगों के बीच से नाश किया जाए। 02O 31 15 छ: दिन तो काम काज किया जाए, पर सातवां दिन परमविश्राम का दिन और यहोवा के लिये पवित्रा है; इसलिये जो कोई विश्राम के दिन में कुछ काम काज करे वह निश्चय मार डाला जाए। 02O 31 16 सो इस्त्राएली विश्रामदिन को माना करें, वरन पीढ़ी पीढ़ी में उसको सदा की वाचा का विषय जानकर माना करें। 02O 31 17 वह मेरे और इस्त्राएलियों के बीच सदा एक चिन्ह रहेगा, क्योंकि छ: दिन में यहोवा ने आकाश और पृथ्वी को बनाया, और सातवें दिन विश्राम करके अपना जी ठण्डा किया।। 02O 31 18 जब परमेश्वर मूसा से सीनै पर्वत पर ऐसी बातें कर चुका, तब उस ने उसको अपनी उंगली से लिखी हुई साक्षी देनेवाली पत्थर की दोनों तख्तियां दी।। 02O 32 1 जब लोगों ने देखा कि मूसा को पर्वत से उतरने में विलम्ब हो रहा है, तब वे हारून के पास इकट्ठे होकर कहने लगे, अब हमारे लिये देवता बना, जो हमारे आगे आगे चले; क्योंकि उस पुरूष मूसा को जो हमें मि देश से निकाल ले आया है, हम नहीं जानते कि उसे क्या हुआ? 02O 32 2 हारून ने उन से कहा, तुम्हारी स्त्रियों और बेटे बेटियों के कानों में सोने की जो बालियां है उन्हें तोड़कर उतारो, और मेरे पास ले आओ। 02O 32 3 तब सब लोगों ने उनके कानों से सोने की बालियों को तोड़कर उतारा, और हारून के पास ले आए। 02O 32 4 और हारून ने उन्हें उनके हाथ से लिया, और एक बछड़ा ढालकर बनाया, और टांकी से गढ़ा; तब वे कहने लगे, कि हे इस्त्राएल तेरा परमेश्वर जो तुझे मि देश से छुड़ा लाया है वह यही है। 02O 32 5 यह देखके हारून ने उसके आगे एक वेदी बनवाई; और यह प्रचार किया, कि कल यहोवा के लिये पर्ब्ब होगा। 02O 32 6 और दूसरे दिन लोगों ने तड़के उठकर होमबलि चढ़ाए, और मेलबलि ले आए; फिर बैठकर खाया पिया, और उठकर खेलने लगे।। 02O 32 7 तब यहोवा ने मूसा से कहा, नीचे उतर जा, क्योंकि तेरी प्रजा के लोग, जिन्हें तू मि देश से निकाल ले आया है, सो बिगड़ गए हैं; 02O 32 8 और जिस मार्ग पर चलने की आज्ञा मैं ने उनको दी थी उसको झटपट छोड़कर उन्हों ने एक बछड़ा ढालकर बना लिया, फिर उसको दण्डवत् किया, और उसके लिये बलिदान भी चढ़ाया, और यह कहा है, कि हे इस्त्राएलियों तुम्हारा परमेश्वर जो तुम्हें मि देश से छुड़ा ले आया है वह यही है। 02O 32 9 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, मैं ने इन लोगों को देखा, और सुन, वे हठीले हैं। 02O 32 10 अब मुझे मत रोक, मेरा कोप उन पर भड़क उठा है जिस से मैं उन्हें भस्म करूं; परन्तु तुझ से एक बड़ी जाति उपजाऊंगा। 02O 32 11 तब मूसा अपने परमेश्वर यहोवा को यह कहके मनाने लगा, कि हे यहोवा, तेरा कोप अपनी प्रजा पर क्यों भड़का है, जिसे तू बड़े सामर्थ्य और बलवन्त हाथ के द्वारा मि देश से निकाल लाया है? 02O 32 12 मिद्दी लोग यह क्यों कहने पाए, कि वह उनको बुरे अभिप्राय से, अर्थात् पहाड़ों में घात करके धरती पर से मिटा डालने की मनसा से निकाल ले गया? तू अपने भड़के हुए कोप को शांत कर, और अपनी प्रजा को ऐसी हानि पहुचाने से फिर जा। 02O 32 13 अपने दास इब्राहीम, इसहाक, और याकूब को स्मरण कर, जिन से तू ने अपनी ही किरिया खाकर यह कहा था, कि मै तुम्हारे वंश को आकाश के तारों के तुल्य बहुत करूंगा, और यह सारा देश जिसकी मैं ने चर्चा की है तुम्हारे वंश को दूंगा, कि वह उसके अधिकारी सदैव बने रहें। 02O 32 14 तब यहोवा अपनी प्रजा की हानि करने से जो उन ने कहा था पछताया।। 02O 32 15 तब मूसा फिरकर साक्षी की दानों तख्तियों को हाथ में लिये हुए पहाड़ से उतर गया, उन तख्तियों के तो इधर और उधर दोनों अलंगों पर कुछ लिखा हुआ था। 02O 32 16 और वे तख्तियां परमेश्वर की बनाई हुई थीं, और उन पर जो खोदकर लिखा हुआ था वह परमेश्वर का लिखा हुआ था।। 02O 32 17 जब यहोशू को लोगों के कोलाहल का शब्द सुनाई पड़ा, तब उस ने मूसा से कहा, छावनी से लड़ाई का सा शब्द सुनाई देता है। 02O 32 18 उस ने कहा, वह जो शब्द है वह न तो जीतनेवालों का है, और न हारनेवालों का, मुझे तो गाने का शब्द सुन पड़ता है। 02O 32 19 छावनी के पास आते ही मूसा को वह बछड़ा और नाचना देख पड़ा, तब मूसा का कोप भड़क उठा, और उस ने तख्तियों को अपने हाथों से पर्वत के नीचे पटककर तोड़ डाला। 02O 32 20 तब उस ने उनके बनाए हुए बछड़े को लेकर आग में डालके फूंक दिया। और पीसकर चूर चूर कर डाला, और जल के ऊपर फेंक दिया, और इस्त्राएलियों को उसे पिलवा दिया। 02O 32 21 तब मूसा हारून से कहने लगा, उन लोगों ने तुझ से क्या किया कि तू ने उनको इतने बड़े पाप में फंसाया? 02O 32 22 हारून ने उत्तर दिया, मेरे प्रभु का कोप न भड़के; तू तो उन लोगों को जानता ही है कि वे बुराई में मन लगाए रहते हैं। 02O 32 23 और उन्हों ने मुझ से कहा, कि हमारे लिये देवता बनवा जो हमारे आगे आगे चले; क्योंकि उस पुरूष मूसा को, जो हमें मि देश से छुड़ा लाया है, हम नहीं जानते कि उसे क्या हुआ? 02O 32 24 तब मैं ने उन से कहा, जिस जिसके पास सोने के गहनें हों, वे उनको तोड़कर उतार लाएं; और जब उन्हों ने मुझ को दिया, मैं ने उन्हें आग में डाल दिया, तब यह बछड़ा निकल पड़ा 02O 32 25 हारून ने उन लोगों को ऐसा निरंकुश कर दिया था कि वे अपने विरोधियों के बीच उपहास के योग्य हुए, 02O 32 26 उनको निरंकुश देखकर मूसा ने छावनी के निकास पर खड़े होकर कहा, जो कोई यहोवा की ओर का हो वह मेरे पास आए; तब सारे लेवीय उस के पास इकट्ठे हुए। 02O 32 27 उस ने उन से कहा, इस्त्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि अपनी अपनी जांघ पर तलवार लटका कर छावनी से एक निकास से दूसरे निकास तक घूम घूमकर अपने अपने भाइयों, संगियों, और पड़ोसियों को घात करो। 02O 32 28 मूसा के इस वचन के अनुसार लेवियों ने किया और उस दिन तीन हजार के अटकल लोग मारे गए। 02O 32 29 फिर मूसा ने कहा, आज के दिन यहोवा के लिये अपना याजकपद का संस्कार करो, वरन अपने अपने बेटों और भाइयों के भी विरूद्ध होकर ऐसा करो जिस से वह आज तुम को आशीष दे। 02O 32 30 दूसरे दिन मूसा ने लोगों से कहा, तुम ने बड़ा ही पाप किया है। अब मैं यहोवा के पास चढ़ जाऊंगा; सम्भव है कि मैं तुम्हारे पाप का प्रायश्चित्त कर सकूं। 02O 32 31 तब मूसा यहोवा के पास जाकर कहने लगा, कि हाय, हाय, उन लोगों ने सोने का देवता बनवाकर बड़ा ही पाप किया है। 02O 32 32 तौभी अब तू उनका पाप क्षमा कर नहीं तो अपनी लिखी हुई पुस्तक में से मेरे नाम को काट दे। 02O 32 33 यहोवा ने मूसा से कहा, जिस ने मेरे विरूद्ध पाप किया है उसी का नाम मैं अपनी पुस्तक में से काट दूंगा। 02O 32 34 अब तो तू जाकर उन लोगों को उस स्थान में ले चल जिसकी चर्चा मैं ने तुझ से की थी; देख मेरा दूत तेरे आगे आगे चलेगा। परन्तु जिस दिन मैं दण्ड देने लगूंगा उस दिन उनको इस पाप का भी दण्ड दूंगा। 02O 32 35 और यहोवा ने उन लोगों पर विपत्ति डाली, क्योंकि हारून के बनाए हुए बछड़े को उन्हीं ने बनवाया था। 02O 33 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, तू उन लोगों को जिन्हें मि देश से छुड़ा लाया है संग लेकर उस देश को जा, जिसके विषय मैं ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से शपथ खाकर कहा था, कि मैं उसे तुम्हारे वंश को दूंगा। 02O 33 2 और मैं तेरे आगे आगे एक दूत को भेजूंगा, और कनानी, एमोरी, हित्ती, परिज्जी, हिब्बी, और यबूसी लोगों को बरबस निकाल दूंगा। 02O 33 3 तुम लोग उस देश को जाओ जिस में दूध और मधु की धारा बहती है; परन्तु तुम हठीले हो, इस कारण मैं तुम्हारे बीच में होके न चलूंगा, ऐसा न हो कि मैं मार्ग में तुम्हारा अन्त कर डालूं। 02O 33 4 यह बुरा समाचार सुनकर वे लोग विलाप करने लगे; और कोई अपने गहने पहिने हुए न रहा। 02O 33 5 क्योंकि यहोवा ने मूसा से कह दिया था, कि इस्त्राएलियों को मेरा यह वचन सुना, कि तुम लोग तो हठीले हो; जो मै पल भर के लिये तुम्हारे बीच होकर चलूं, तो तुम्हारा अन्त कर डालूंगा। इसलिये अब अपने अपने गहने अपने अंगों से उतार दो, कि मैं जानूं कि तुम्हारे साथ क्या करना चाहिए। 02O 33 6 तब इस्त्राएली होरेब पर्वत से लेकर आगे को अपने गहने उतारे रहे।। 02O 33 7 मूसा तम्बू को छावनी से बाहर वरन दूर खड़ा कराया करता था, और उसको मिलापवाला तम्बू कहता था। और जो कोई यहोवा को ढूंढ़ता वह उस मिलापवाले तम्बू के पास जो छावनी के बाहर था निकल जाता था। 02O 33 8 और जब जब मूसा तम्बू के पास जाता, तब तब सब लोग उठकर अपने अपने डेरे के द्वार पर खड़े हो जाते, और जब तक मूसा उस तम्बू में प्रवेश न करता था तब तक उसकी ओर ताकते रहते थे। 02O 33 9 और जब मूसा उस तम्बू में प्रवेश करता था, तब बादल का खम्भा उतर के तम्बू के द्वार पर ठहर जाता था, और यहोवा मूसा से बातें करने लगता था। 02O 33 10 और सब लोग जब बादल के खम्भे को तम्बू के द्वार पर ठहरा देखते थे, तब उठकर अपने अपने डेरे के द्वार पर से दण्डवत् करते थे। 02O 33 11 और यहोवा मूसा से इस प्रकार आम्हने- साम्हने बातें करता था, जिस प्रकार कोई अपने भाई से बातें करे। और मूसा तो छावनी में फिर आता था, पर यहोशू नाम एक जवान, जो नून का पुत्रा और मूसा का टहलुआ था, वह तम्बू में से न निकलता था।। 02O 33 12 और मूसा ने यहोवा से कहा, सुन तू मुझ से कहता है, कि इन लोगों को ले चल; परन्तु यह नहीं बताया कि तू मेरे संग किसको भेजेगा। तौभी तू ने कहा है, कि तेरा नाम मेरे चित्त में बसा है, और तुझ पर मेरे अनुग्रह की दृष्टि है। 02O 33 13 और अब यदि मुझ पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि हो, तो मुझे अपनी गति समझा दे, जिस से जब मैं तेरा ज्ञान पाऊं तब तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे। फिर इसकी भी सुधि कर कि यह जाति तेरी प्रजा है। 02O 33 14 यहोवा ने कहा, मैं आप चलूंगा और तुझे विश्राम दूंगा। 02O 33 15 उस ने उस से कहा, यदि तू आप न चले, तो हमें यहां से आगे न ले जा। 02O 33 16 यह कैसे जाना जाए कि तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर और अपनी प्रजा पर है? क्या इस से नहीं कि तू हमारे संग संग चले, जिस से मैं और तेरी प्रजा के लोग पृथ्वी भर के सब लोगों से अलग ठहरें? 02O 33 17 यहोवा ने मूसा से कहा, मैं यह काम भी जिसकी चर्चा तू ने की है करूंगा; कयोंकि मेरे अनुग्रह की दृष्टि तुझ पर है, और तेरा नाम मेरे चित्त में बसा है। 02O 33 18 उस ने कहा मुझे अपना तेज दिखा दे। 02O 33 19 उस ने कहा, मैं तेरे सम्मुख होकर चलते हुए तुझे अपनी सारी भलाई दिखाऊंगा, और तेरे सम्मुख यहोवा नाम का प्रचार करूंगा, और जिस पर मैं अनुग्रह करना चाहूं उसी पर अनुग्रह करूंगा, और जिस पर दया करना चांहू उसी पर दया करूंगा। 02O 33 20 फिर उस ने कहा, तू मेरे मुख का दर्शन नहीं कर सकता; क्योंकि मनुष्य मेरे मुख का दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता। 02O 33 21 फिर यहोवा ने कहा, सुन, मेरे पास एक स्थान है, तू उस चट्टान पर खड़ा हो; 02O 33 22 और जब तक मेरा तेज तेरे साम्हने होके चलता रहे तब तक मै तुझे चट्टान के दरार में रखूंगा, और जब तक मैं तेरे साम्हने होकर न निकल जाऊं तब तक अपने हाथ से तुझे ढांपे रहूंगा; 02O 33 23 फिर मैं अपना हाथ उठा लूंगा, तब तू मेरी पीठ का तो दर्शन पाएगा, परन्तु मेरे मुख का दर्शन नहीं मिलेगा।। 02O 34 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, पहिली तख्तियों के समान पत्थर की दो और तख्तियां गढ़ ले; तब जो वचन उन पहिली तख्तियों पर लिखे थे, जिन्हें तू ने तोड़ डाला, वे ही वचन मैं उन तख्तियों पर भी लिखूंगा। 02O 34 2 और बिहान को तैयार रहना, और भोर को सीनै पर्वत पर चढ़कर उसकी चोटी पर मेरे साम्हने खड़ा होना। 02O 34 3 और तेरे संग कोई न चढ़ पाए, वरन पर्वत भर पर कोई मनुष्य कहीं दिखाई न दे; और न भेड़- बकरी और गाय- बैल भी पर्वत के आगे चरते पाएं। 02O 34 4 तब मूसा ने पहिली तख्तियों के समान दो और तख्तियां गढ़ी; और बिहान को सवेरे उठकर अपने हाथ में पत्थर की वे दोनों तख्तियां लेकर यहोवा की आज्ञा के अनुसार पर्वत पर चढ़ गया। 02O 34 5 तब यहोवा ने बादल में उतरके उसके संग वहां खड़ा होकर यहोवा नाम का प्रचार किया। 02O 34 6 और यहोवा उसके साम्हने होकर यों प्रचार करता हुआ चला, कि यहोवा, यहोवा, ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करूणामय और सत्य, 02O 34 7 हजारों पीढ़ियों तब निरन्तर करूणा करनेवाला, अधर्म और अपराध और पाप का क्षमा करनेवाला है, परन्तु दोषी को वह किसी प्रकार निर्दोष न ठहराएगा, वह पितरों के अधर्म का दण्ड उनके बेटों वरन पोतों और परपोतों को भी देनेवाला है। 02O 34 8 तब मूसा ने फुर्ती कर पृथ्वी की ओर झुककर दण्डवत् की। 02O 34 9 और उस ने कहा, हे प्रभु, यदि तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो तो प्रभु, हम लोगों के बीच में होकर चले, ये लोग हठीले तो हैं, तौभी हमारे अधर्म और पाप को क्षमा कर, और हमें अपना निज भाग मानके ग्रहण कर। 02O 34 10 उस ने कहा, सुन, मैं एक वाचा बान्धता हूं। तेरे सब लोगों के साम्हने मैं ऐसे आश्चर्य कर्म करूंगा जैसा पृथ्वी पर और सब जातियों में कभी नहीं हुए; और वे सारे लोग जिनके बीच तू रहता है यहोवा के कार्य को देखेंगे; क्योंकि जो मैं तुम लोगों से करने पर हूं वह भय योग्य काम है। 02O 34 11 जो आज्ञा मैं आज तुम्हें देता हूं उसे तुम लोग मानना। देखो, मैं तुम्हारे आगे से एमोरी, कनानी, हित्ती, परिज्जी, हिब्बी, और यबूसी लोगों को निकालता हूं। 02O 34 12 इसलिये सावधान रहना कि जिस देश में तू जानेवाला है उसके निवासियों से वाचा न बान्धना; कहीं ऐसा न हो कि वह तेरे लिये फंदा ठहरे। 02O 34 13 वरन उनकी वेदियों को गिरा देना, उनकी लाठों को तोड़ डालना, और उनकी अशेरा नाम मूर्तियों को काट डालना; 02O 34 14 क्योंकि तुम्हें किसी दूसरे को ईश्वर करके दण्डवत् करने की आज्ञा नहीं, क्योंकि यहोवा जिसका नाम जलनशील है, वह जल उठनेवाला ईश्वर है ही, 02O 34 15 ऐसा न हो कि तू उस देश के निवासियों से वाचा बान्धे, और वे अपने देवताओं के पीछे होने का व्यभिचार करें, और उनके लिये बलिदान भी करें, और कोई तुझे नेवता दे और तू भी उसके बलिपशु का प्रसाद खाए, 02O 34 16 और तू उनकी बेटियों को अपने बेटों के लिये लावे, और उनकी बेटियां जो आप अपने देवताओं के पीछे होने का व्यभिचार करती है तेरे बेटों से भी अपने देवताओं के पीछे होने को व्यभिचार करवाएं। 02O 34 17 तुम देवताओं की मूत्तियां ढालकर न बना लेना। 02O 34 18 अखमीरी रोटी का पर्ब्ब मानना। उस में मेरी आज्ञा के अनुसार आबीब महीने के नियत समय पर सात दिन तक अखमीरी रोटी खाया करना; क्योंकि तू मि से आबीब महीने में निकल आया। 02O 34 19 हर एक पहिलौठा मेरा है; और क्या बछड़ा, क्या मेम्ना, तेरे पशुओं में से जो नर पहिलौठे हों वे सब मेरे ही हैं। 02O 34 20 और गदही के पहिलौठे की सन्ती मेम्ना देकर उसको छुड़ाना, यदि तू उसे छुड़ाना न चाहे तो उसकी गर्दन तोड़ देना। परन्तु अपने सब पहिलौठे बेटों को बदला देकर छुड़ाना। मुझे कोई छूछे हाथ अपना मुंह न दिखाए। 02O 34 21 छ: दिन तो परिश्रम करना, परन्तु सातवें दिन विश्राम करना; वरन हल जोतने और लवने के समय में भी विश्राम करना। 02O 34 22 और तू अठवारों का पर्ब्ब मानना जो पहिले लवे हुए गेहूं का पर्ब्ब कहलाता है, और वर्ष के अन्त में बटोरन का भी पर्ब्ब मानना। 02O 34 23 वर्ष में तीन बार तेरे सब पुरूष इस्त्राएल के परमेश्वर प्रभु यहोवा को अपने मुंह दिखाएं। 02O 34 24 मैं तो अन्यजातियों को तेरे आगे से निकालकर तेरे सिवानों को बढ़ाऊंगा; और जब तू अपने परमेश्वर यहोवा को अपना मुंह दिखाने के लिये वर्ष में तीन बार आया करे, तब कोई तेरी भूमि का लालच न करेगा। 02O 34 25 मेरे बलिदान के लोहू को खमीर सहित न चढ़ाना, और न फसह के पर्ब्ब के बलिदान में से कुछ बिहान तक रहने देना। 02O 34 26 अपनी भूमि की पहिली उपज का पहिला भाग अपने परमेश्वर यहोवा के भवन में ले आना। बकरी के बच्चे को उसकी मां के दूध में ने सिझाना। 02O 34 27 और यहोवा ने मूसा से कहा, ये वचन लिख ले; क्योंकि इन्हीं वचनों के अनुसार मैं तेरे और इस्त्राएल के साथ वाचा बान्धता हूं। 02O 34 28 मूसा तो वहां यहोवा के संग चालीस दिन और रात रहा; और तब तक न तो उस ने रोटी खाई और न पानी पिया। और उस ने उन तख्तियों पर वाचा के वचन अर्थात् दस आज्ञाएं लिख दीं।। 02O 34 29 जब मूसा साक्षी की दोनों तख्तियां हाथ में लिये हुए सीनै पर्वत से उतरा आता था तब यहोवा के साथ बातें करने के कारण उसके चेहरे से किरणें निकल रही थी।, परन्तु वह यह नहीं जानता था कि उसके चेहरे से किरणें निकल रही हैं। 02O 34 30 जब हारून और सब इस्त्राएलियों ने मूसा को देखा कि उसके चेहरे से किरणें निकलती हैं, तब वे उसके पास जाने से डर गए। 02O 34 31 तब मूसा ने उनको बुलाया; और हारून मण्डली के सारे प्रधानों समेत उसके पास आया, और मूसा उन से बातें करने लगा। 02O 34 32 इसके बाद सब इस्त्राएली पास आए, और जितनी आज्ञाएं यहोवा ने सीनै पर्वत पर उसके साथ बात करने के समय दी थीं, वे सब उस ने उन्हें बताईं। 02O 34 33 जब तक मूसा उन से बात न कर चुका तब तक अपने मुंह पर ओढ़ना डाले रहा। 02O 34 34 और जब जब मूसा भीतर यहोवा से बात करने को उसके साम्हने जाता तब तब वह उस ओढ़नी को निकलते समय तक उतारे हुए रहता था; फिर बाहर आकर जो जो आज्ञा उसे मिलती उन्हें इस्त्राएलियों से कह देता था। 02O 34 35 सो इस्त्राएली मूसा का चेहरा देखते थे कि उस से किरणें निकलती हैं; और जब तक वह यहोवा से बात करने को भीतर न जाता तब तक वह उस ओढ़नी को डाले रहता था।। 02O 35 1 मूसा ने इस्त्राएलियों की सारी मण्डली इकट्ठी करके उन से कहा, जिन कामों के करने की आज्ञा यहोवा ने दी है वे ये हैं। 02O 35 2 छ: दिन तो काम काज किया जाए, परन्तु सातवां दिन तुम्हारे लिये पवित्रा और यहोवा के लिये परमविश्राम का दिन ठहरे; उस में जो कोई काम काज करे वह मार डाला जाए; 02O 35 3 वरन विश्राम के दिन तुम अपने अपने घरों में आग तक न जलाना।। 02O 35 4 फिर मूसा ने इस्त्राएलियों की सारी मण्डली से कहा, जिस बात की आज्ञा यहोवा ने दी है वह यह है। 02O 35 5 तुम्हारे पास से यहोवा के लिये भेंट ली जाए, अर्थात् जितने अपनी इच्छा से देना चाहें वे यहोवा की भेंट करके ये वस्तुएं ले आएं; अर्थात् सोना, रूपा, पीतल; 02O 35 6 नीले, बैंजनी और लाल रंग का कपड़ा, सूक्ष्म सनी का कपड़ा; बकरी का बाल, 02O 35 7 लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ों की खालें, सुइसों की खालें; बबूल की लकड़ी, 02O 35 8 उजियाला देने के लिये तेल, अभिषेक का तेल, और धूप के लिये सुगन्धद्रव्य, 02O 35 9 फिर एपोद और चपरास के लिये सुलैमानी मणि और जड़ने के लिये मणि। 02O 35 10 और तुम में से जितनों के हृदय में बुद्धि का प्रकाश है वे सब आकर जिस जिस वस्तु की आज्ञा यहोवा ने दी है वे सब बनाएं। 02O 35 11 अर्थात् तम्बू, और ओहार समेत निवास, और उसकी घुंडी, तख्ते, बेंड़े, खम्भे और कुर्सियां; 02O 35 12 फिर डण्डों समेत सन्दूक, और प्रायश्चित्त का ढकना, और बीचवाला पर्दा; 02O 35 13 डण्डों और सब सामान समेत मेज़, और भेंट की रोटियां; 02O 35 14 सामान और दीपकों समेत उजियाला देनेवाला दीवट, और उजियाला देने के लिये तेल; 02O 35 15 डण्डों समेत धूपवेदी, अभिषेक का तेल, सुगन्धित धूप, और निवास के द्वार का पर्दा; 02O 35 16 पीतल की झंझरी, डण्डों आदि सारे सामान समेत होमवेदी, पाए समेत होदी; 02O 35 17 खम्भों और उनकी कुर्सियों समेत आंगन के पर्दे, और आंगन के द्वार के पर्दे; 02O 35 18 निवास और आंगन दोनों के खूंटे, और डोरियां; 02O 35 19 पवित्रास्थान में सेवा टहल करने के लिये काढ़े हुए वस्त्रा, और याजक का काम करने के लिये हारून याजक के पवित्रा वस्त्रा, और उसके पुत्रों के वस्त्रा भी।। 02O 35 20 तब इस्त्राएलियों की सारी मण्डली मूसा के साम्हने से लौट गई। 02O 35 21 और जितनों को उत्साह हुआ, और जितनों के मन में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई थी, वे मिलापवाले तम्बू के काम करने और उसकी सारी सेवकाई और पवित्रा वस्त्रों के बनाने के लिये यहोवा की भेंट ले आने लगे। 02O 35 22 क्या स्त्री, क्या पुरूष, जितनों के मन में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई भी वे सब जुगनू, नथुनी, मुंदरी, और कंगन आदि सोने के गहने ले आने लगे, इस भंाति जितने मनुष्य यहोवा के लिये सोने की भेंट के देनेवाले थे वे सब उनको ले आए। 02O 35 23 और जिस जिस पुरूष के पास नीले, बैंजनी वा लाल रंग का कपड़ा वा सूक्ष्म सनी का कपड़ा, वा बकरी का बाल, वा लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ों की खालें, वा सूइसों की खालें थी वे उन्हें ले आए। 02O 35 24 फिर जितने चांदी, वा पीतल की भेंट के देनेवाले थे वे यहोवा के लिये वैसी भेंट ले आए; और जिस जिसके पास सेवकाई के किसी काम के लिये बबूल की लकड़ी थी वे उसे ले आए। 02O 35 25 और जितनी स्त्रियों के हृदय में बुद्धि का प्रकाश था वे अपने हाथों से सूत कात कातकर नीले, बैंजनी और लाल रंग के, और सूक्ष्म सनी के काते हुए सूत को ले आई। 02O 35 26 और जितनी स्त्रियों के मन में ऐसी बुद्धि का प्रकाश था उन्हो ने बकरी के बाल भी काते। 02O 35 27 और प्रधान लोग एपोद और चपरास के लिये सुलैमानी मणि, और जड़ने के लिये मणि, 02O 35 28 और उजियाला देने और अभिषेक और धूप के सुगन्धद्रव्य और तेल ले आये। 02O 35 29 जिस जिस वस्तु के बनाने की आज्ञा यहोवा ने मूसा के द्वारा दी थी उसके लिये जो कुछ आवश्यक था, उसे वे सब पुरूष और स्त्रियां ले आई, जिनके हृदय में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई थी। इस प्रकार इस्त्राएली यहोवा के लिये अपनी ही इच्छा से भेंट ले आए।। 02O 35 30 तब मूसा ने इस्त्राएलियों से कहा सुनो, यहोवा ने यहूदा के गोत्रावाले बसलेल को, जो ऊरी का पुत्रा और हूर का पोता है, नाम लेकर बुलाया है। 02O 35 31 और उस ने उसको परमेश्वर के आत्मा से ऐसा परिपूर्ण किया हे कि सब प्रकार की बनावट के लिये उसको ऐसी बुद्धि, समझ, और ज्ञान मिला है, 02O 35 32 कि वह कारीगरी की युक्तियां निकालकर सोने, चांदी, और पीतल में, 02O 35 33 और जड़ने के लिये मणि काटने में और लकड़ी के खोदने में, वरन बुद्धि से सब भांति की निकाली हुई बनावट में काम कर सके। 02O 35 34 फिर यहोवा ने उसके मन में और दान के गोत्रावाले अहीसामाक के पुत्रा ओहोलीआब के मन में भी शिक्षा देने की शक्ति दी है। 02O 35 35 इन दोनों के हृदय को यहोवा ने ऐसी बुद्धि से परिपूर्ण किया है, कि वे खोदने और गढ़ने और नीले, बैजनी और लाल रंग के कपड़े, और सूक्ष्म सनी के कपड़े में काढ़ने और बुनने, वरन सब प्रकार की बनावट में, और बुद्धि से काम निकालने में सब भांति के काम करें।। 02O 36 1 और बसलेल और ओहोलीआब और सब बुद्धिमान जिनको यहोवा ने ऐसी बुद्धि और समझ दी हो, कि वे यहोवा की सारी आज्ञाओं के अनुसार पवित्रास्थान की सेवकाई के लिये सब प्रकार का काम करना जानें, वे सब यह काम करें।। 02O 36 2 तब मूसा ने बसलेल और ओहोलीआब और सब बुद्धिमानों को जिनके हृदय में यहोवा ने बुद्धि का प्रकाश दिया था, अर्थात् जिस जिसको पास आकर काम करने का उत्साह हुआ था उन सभों को बुलवाया। 02O 36 3 और इस्त्राएली जो जो भेंट पवित्रास्थान की सेवकाई के काम और उसके बनाने के लिये ले आए थे, उन्हें उन पुरूषों ने मूसा के हाथ से ले लिया। तब भी लोग प्रति भोर को उसके पास भेंट अपनी इच्छा से लाते रहें; 02O 36 4 और जितने बुद्धिमान पवित्रास्थान का काम करते थे वे सब अपना अपना काम छोड़कर मूसा के पास आए, 02O 36 5 और कहने लगे, जिस काम के करने की आज्ञा यहोवा ने दी है उसके लिये जितना चाहिये उससे अधिक वे ले आए हैं। 02O 36 6 तब मूसा ने सारी छावनी में इस आज्ञा का प्रचार करवाया, कि क्या पुरूष, क्या स्त्री, कोई पवित्रास्थान के लिये और भेंट न लाए, इस प्रकार लोग और भेंट लाने से रोके गए। 02O 36 7 क्योंकि सब काम बनाने के लिये जितना सामान आवश्यक था उतना वरन उससे अधिक बनाने वालों के पास आ चुका था।। 02O 36 8 और काम करनेवाले जितने बुद्धिमान थे उन्हों ने निवास के लिये बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े के, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े के दस पटों को काढ़े हुए करूबों सहित बनाया। 02O 36 9 एक एक पट की लम्बाई अट्ठाईस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हुई; सब पट एक ही नाप के बने। 02O 36 10 उस ने पांच पट एक दूसरे से जोड़ दिए, और फिर दूसरे पांच पट भी एक दूसरे से जोड़ दिए। 02O 36 11 और जहां ये पट जोड़े गए वहां की दोनों छोरों पर उस ने पीली नीली फलियां लगाईं। 02O 36 12 उस ने दोनों छोरों में पचास पचास फलियां इस प्रकार लगाई कि वे आम्हने- साम्हने हुई। 02O 36 13 और उस ने सोने की पचास घुंडियां बनाई, और उनके द्वारा पटों को एक दूसरे से ऐसा जोड़ा कि निवास मिलकर एक हो गया। 02O 36 14 फिर निवास के ऊपर के तम्बू के लिये उस ने बकरी के बाल के ग्यारह पट बनाए। 02O 36 15 एक एक पट की लम्बाई तीस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हुई; और ग्यारहों पट एक ही नाप के थे। 02O 36 16 इन में से उस ने पांच पट अलग और छ: पट अलग जोड़ दिए। 02O 36 17 और जहां दोनों जोड़े गए वहां की छोरों में उस ने पचास पचास फलियां लगाईं। 02O 36 18 और उस ने तम्बू के जोड़ने के लिये पीतल की पचास घुंडियां भी बनाई जिस से वह एक हो जाए। 02O 36 19 और उस ने तम्बू के लिये लाल रंग से रंगी हुई मेंढ़ों की खालों का एक ओढ़ना और उसके ऊपर के लिये सूइसों की खालों का भी एक ओढ़ना बनाया। 02O 36 20 फिर उस ने निवास के लिये बबूल की लकड़ी के तख्तों को खड़े रहने के लिये बनाया। 02O 36 21 एक एक तख्ते की लम्बाई दस हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ की हुई। 02O 36 22 एक एक तख्ते में एक दूसरी से जोड़ी हुई दो दो चूलें बनीं, निवास के सब तख्तों के लियें उस ने इसी भंाति बनाईं। 02O 36 23 और उस ने निवास के लिये तख्तों को इस रीति से बनाया, कि दक्खिन की ओर बीस तख्ते लगे। 02O 36 24 और इन बीसों तख्तों के नीचे चांदी की चालीस कुर्सियां, अर्थात् एक एक तख्ते के नीचे उसकी दो चूलों के लिये उस ने दो कुर्सियां बनाईं। 02O 36 25 और निवास की दूसरी अलंग, अर्थात् उत्तर की ओर के लिये भी उस ने बीस तख्ते बनाए। 02O 36 26 और इनके लिये भी उस ने चांदी की चालीस कुर्सियां, अर्थात् एक एक तख्ते के नीचे दो दो कुर्सियां बनाईं। 02O 36 27 और निवास की पिछली अलंग, अर्थात् पश्चिम ओर के लिये उस ने छ: तख्ते बनाए। 02O 36 28 और पिछली अलंग में निवास के कोनों के लिये उस ने दो तख्ते बनाए। 02O 36 29 और वे नीचे से दो दो भाग के बने, और दोनों भाग ऊपर से सिरे तक उन दोनों तख्तों का ढब ऐसा ही बनाया। 02O 36 30 इस प्रकार आठ तख्ते हुए, और उनकी चांदी की सोलह कुर्सियां हुईं, अर्थात् एक एक तख्ते के नीचे दो दो कुर्सियां हुईं। 02O 36 31 फिर उस ने बबूल की लकड़ी के बेंड़े बनाए, अर्थात् निवास की एक अलंग के तख्तों के लिये पांच बेंड़े, 02O 36 32 और निवास की दूसरी अलंग के तख्तों के लिये पांच बेंड़े, और निवास की जो अलंग पश्चिम ओर पिछले भाग में थी उसके लिये भी पांच बेंड़े, बनाए। 02O 36 33 और उस ने बीचवाले बेंड़े को तख्तों के मध्य में तम्बू के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुंचने के लिये बनाया। 02O 36 34 और तख्तों को उस ने सोने से मढ़ा, और बेंड़ों के घर को काम देनेवाले कड़ों को सोने के बनाया, और बेंड़ों को भी सोने से मढ़ा।। 02O 36 35 फिर उस ने नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े का, और बटी हुई सूक्ष्म सनीवाले कपड़े का बीचवाला पर्दा बनाया; वह कढ़ाई के काम किये हुए करूबों के साथ बना। 02O 36 36 और उस ने उसके लिये बबूल के चार खम्भे बनाए, और उनको सोने से मढ़ा; उनकी घुंडियां सोने की बनी, और उस ने उनके लिये चांदी की चार कुर्सियां ढालीं। 02O 36 37 और उस ने तम्बू के द्वार के लिये नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े का, और बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े का कढ़ाई का काम किया हुआ पर्दा बनाया। 02O 36 38 और उस ने घुंडियों समेत उसके पांच खम्भे भी बनाए, और उनके सिरों और जोड़ने की छड़ों को सोने से मढ़ा, और उनकी पांच कुर्सियां पीतल की बनाईं।। 02O 37 1 फिर बसलेल ने बबूल की लकड़ी का सन्दूक बनाया; उसकी लम्बाई अढ़ाई हाथ, चौड़ाई डेढ़ हाथ, और ऊंचाई डेढ़ हाथ की थी। 02O 37 2 और उस ने उसको भीतर बाहर चोखे सोने से मढ़ा, और उसके चारों ओर सोने की बाड़ बनाई। 02O 37 3 और उसके चारों पायों पर लगाने को उस ने सोने के चार कड़े ढ़ाले, दो कड़े एक अलंग और दो कड़े दूसरी अलंग पर लगे। 02O 37 4 फिर उस ने बबूल के डण्डे बनाए, और उन्हें सोने से मढ़ा, 02O 37 5 और उनको सन्दूक की दोनो अलंगों के कड़ों में डाला कि उनके बल सन्दूक उठाया जाए। 02O 37 6 फिर उस ने चोखे सोने के प्रायश्चित्तवाले ढकने को बनाया; उसकी लम्बाई अढ़ाई हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ की थी। 02O 37 7 और उस ने सोना गढ़कर दो करूब प्रायश्चित्त के ढकने के दानों सिरों पर बनाए; 02O 37 8 एक करूब तो एक सिरे पर, और दूसरा करूब दूसरे सिरे पर बना; उस ने उनको प्रायश्चित्त के ढकने के साथ एक ही टुकडे के दोनों सिरों पर बनाया। 02O 37 9 और करूबों के पंख ऊपर से फैले हुए बने, और उन पंखों से प्रायश्चित्त का ढकना ढपा हुआ बना, और उनके मुख आम्हने- साम्हने और प्रायश्चित्त के ढकने की ओर किए हुए बने।। 02O 37 10 फिर उस ने बबूल की लकड़ी की मेज़ को बनाया; उसकी लम्बाई दो हाथ, चौड़ाई एक हाथ, और ऊंचाई डेढ़ हाथ की थी; 02O 37 11 और उस ने उसको चोखे सोने से मढ़ा, और उस में चारों ओर सोने की एक बाड़ बनाई। 02O 37 12 और उस ने उसके लिये चार अंगुल चौड़ी एक पटरी, और इस पटरी के लिये चारों ओर सोने की एक बाड़ बनाई। 02O 37 13 और उस ने मेज़ के लिये सोने के चार कड़े ढालकर उन चारों कोनों में लगाया, जो उसके चारों पायों पर थे। 02O 37 14 वे कड़े पटरी के पास मेज़ उठाने के डण्डों के खानों का काम देने को बने। 02O 37 15 और उस ने मेंज़ उठाने के लिये डण्डों को बबूल की लकड़ी के बनाया, और सोने से मढ़ा। 02O 37 16 और उस ने मेज़ पर का सामान अर्थात् परात, धूपदान, कटोरे, और उंडेलने के बर्तन सब चोखे सोने के बनाए।। 02O 37 17 फिर उस ने चोखा सोना गढ़के पाए और डण्डी समेत दीवट को बनाया; उसके पुष्पकोष, गांठ, और फूल सब एक ही टुकडे के बने। 02O 37 18 और दीवट से निकली हुई छ: डालियां बनीं; तीन डालियां तो उसकी एक अलंग से और तीन डालियां उसकी दूसरी अलंग से निकली हुई बनीं। 02O 37 19 एक एक डाली में बादाम के फूल के सरीखे तीन तीन पुष्पकोष, एक एक गांठ, और एक एक फूल बना; दीवट से निकली हुई, उन छहों डालियों का यही ढब हुआ। 02O 37 20 और दीवट की डण्डी में बादाम के फूल के सामान अपनी अपनी गांठ और फूल समेत चार पुष्पकोष बने। 02O 37 21 और दीवट से निकली हुई छहों डालियों में से दो दो डालियों के नीचे एक एक गांठ दीवट के साथ एक ही टुकडे की बनी। 02O 37 22 गांठे और डालियां सब दीवट के साथ एक ही टुकडे की बनीं; सारा दीवट गढ़े हुए चोखे सोने का और एक ही टुकडे का बना। 02O 37 23 और उस ने दीवट के सातों दीपक, और गुलतराश, और गुलदान, चोखे सोने के बनाए। 02O 37 24 उस ने सारे सामान समेत दीवट को किक्कार भर सोने का बनाया।। 02O 37 25 फिर उस ने बबूल की लकड़ी की धूपवेदी भी बनाई; उसकी लम्बाई एक हाथ और चौड़ाई एक हाथ ही थी; वह चौकोर बनी, और उसकी ऊंचाई एक हाथ की थी; वह चौकोर बनी, और उसकी ऊंचाई दो हाथ की थी; और उसके सींग उसके साथ बिना जोड़ के बने थे 02O 37 26 और ऊपरवाले पल्लों, और चारों ओर की अलंगों, और सींगो समेत उस ने उस वेदी को चोखे सोने से मढ़ा; और उसकी चारों ओर सोने की एक बाड़ बनाई, 02O 37 27 और उस बाड़ के नीचे उसके दोनों पल्लों पर उस ने सोने के दो कड़े बनाए, जो उसके उठाने के डण्डों के खानों का काम दें। 02O 37 28 और डण्डों को उस ने बबूल की लकड़ी का बनाया, और सोने से मढ़ा। 02O 37 29 और उस ने अभिषेक का पवित्रा तेल, और सुगन्धद्रव्य का धूप, गन्धी की रीति के अनुसार बनाया।। 02O 38 1 फिर उस ने बबूल की लकड़ी की होमबलि भी बनाई; उसकी लम्बाई पांच हाथ और चौड़ाई पांच हाथ की थी; इस प्रकार से वह चौकोर बनी, और ऊंचाई तीन हाथ की थी। 02O 38 2 और उस ने उसके चारों कोनों पर उसके चार सींग बनाए, वे उसके साथ बिना जोड़ के बने; और उस ने उसको पीतल से मढ़ा। 02O 38 3 और उस ने वेदी का सारा सामान, अर्थात् उसकी हांड़ियों, फावड़ियों, कटोरों, कांटों, और करछों को बनाया। उसका सारा सामान उस ने पीतल का बनाया। 02O 38 4 और वेदी के लिये उसके चारों ओर की कंगनी के तले उस ने पीतल की जाली की एक झंझरी बनाई, वह नीचे से वेदी की ऊंचाई के मध्य तक पहुंची। 02O 38 5 और उस ने पीतल की झंझरी के चारों कोनों के लिये चार कड़े ढाले, जो डण्डों के खानों का काम दें। 02O 38 6 फिर उस ने डण्डों को बबूल की लकड़ी का बनाया, और पीतल से मढ़ा। 02O 38 7 तब उस ने डण्डों को वेदी की अलंगों के कड़ों में वेदी के उठाने के लिये डाल दिया। वेदी को उस ने तख्तों से खोखली बनाया।। 02O 38 8 और उसे ने हौदी और उसका पाया दोनों पीतल के बनाए, यह मिलापवाले तम्बू के द्वार पर सेवा करनेवाली महिलाओं के दर्पणों के लिये पीतल के बनाए गए।। 02O 38 9 फिर उस ने आंगन बनाया; और दक्खिन अलंग के लिये आंगन के पर्दे बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े के थे, और सब मिलाकर सौ हाथ लम्बे थे; 02O 38 10 उनके लिये बीस खम्भे, और इनकी पीतल की बीस कुर्सियां बनी; और खम्भों की घुंडियां और जोड़ने की छड़ें चांदी की बनीं। 02O 38 11 और उत्तर अलग के लिये बीस खम्भे, और इनकी पीतल की बीस ही कुर्सियां बनीं, और खम्भों की घुंडियां और जोड़ने की छड़ें चांदी की बनी। 02O 38 12 और पश्चिम अलंग के लिये सब पर्दे मिलाकर पचास हाथ के थे; उनके लिये दस खम्भे, और दस ही उनकी कुर्सियां थीं, और खम्भों की घंुडियां और जोड़ने की छड़ें चांदी की थीं। 02O 38 13 और पूरब अलंग में भी वह पचास हाथ के थे। 02O 38 14 आंगन के द्वार के एक ओर के लिये पंद्रह हाथ के पर्दे बने; और उनके लिये तीन खम्भे और तीन कुर्सियां थी। 02O 38 15 और आंगन के द्वार की दूसरी ओर भी वैसा ही बना था; और आंगन के दरवाज़े के इधर और उधर पंद्रह पंद्रह हाथ के पर्दे बने थे; और उनके लिये तीन हीे खम्भे, और तीन ही तीन इनकी कुर्सियां भी थीं। 02O 38 16 आंगन की चारों ओर सब पर्दे सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े के बने हुए थे। 02O 38 17 और खम्भों की कुर्सियां पीतल की, और घुंडियां और छड़े चांदी की बनी, और उनके सिरे चांदी से मढ़े गए, और आंगन के सब खम्भे चांदी के छड़ों से जोड़े गए थे। 02O 38 18 आंगन के द्वार के पर्दे पर बेल बूटे का काम किया हुआ था, और वह नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े का; और सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े के बने थे; और उसकी लम्बाई बीस हाथ की थी, और उसकी ऊंचाई आंगन की कनात की चौड़ाई के सामान पांच हाथ की बनी। 02O 38 19 और उनके लिये चार खम्भे, और खम्भों की चार ही कुर्सियां पीतल की बनीं, उनकी घुंडियां चांदी की बनीं, और उनके सिरे चांदी से मढ़े गए, और उनकी छड़ें चांदी की बनीं। 02O 38 20 और निवास और आंगन की चारों ओर के सब खूंटे पीतल के बने थे।। 02O 38 21 साक्षीपत्रा के निवास का सामान जो लेवियों की सेवकाई के लिये बना; और जिसकी गिनती हारून याजक के पुत्रा ईतामार के द्वारा मूसा के कहने से हुई थी, उसका वर्णन यह है। 02O 38 22 जिस जिस वस्तु के बनाने की आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी उसको यहूदा के गोत्रावाले बसलेल ने, जो हूर का पोता और ऊरी का पुत्रा था, बना दिया। 02O 38 23 और उसके संग दान के गोत्रावाले, अहीसामाक के पुत्रा, ओहोलीआब था, जो खोदने और काढ़नेवाला और नीले, बैंजनी और लाल रंग के और सूक्ष्म सनी के कपड़े में कारचोब करनेवाला निपुण कारीगर था।। 02O 38 24 पवित्रास्थान के सारे काम में जो भेंट का सोना लगा वह उनतीस किक्कार, और पवित्रास्थान के शेकेल के हिसाब से सात सौ तीन शेकेल था। 02O 38 25 और मण्डली के गिने हुए लोगों की भेंट की चांदी सौ किक्कार, और पवित्रास्थान के शेकेल के हिसाब से सत्तरह सौ पचहत्तर शेकेल थी। 02O 38 26 अर्थात् जितने बीस बरस के और उससे अधिक अवस्था के गिने गए थे, वे छ: लाख तीन हज़ार साढ़े पांच सौ पुरूष थे, और एक एक जन की ओर से पवित्रास्थान के शेकेल के अनुसार आधा शेकेल, जो एक बेका होता है मिला। 02O 38 27 और वह सौ किक्कार चांदी पवित्रास्थान और बीचवाले पर्दे दोनों की कुर्सियों के ढालने में लग गई; सौ किक्कार से सौ कुर्सियां बनीं, एक एक कुर्सी एक किक्कार की बनी। 02O 38 28 और सत्तरह सौ पचहत्तर शेकेल जो बच गए उन से खम्भों की चोटियां मढ़ी गईं, और उनकी छड़ें भी बनाई गई। 02O 38 29 और भेंट का पीतल सत्तर किक्कार और दो हज़ार चार सौ शेकेल था; 02O 38 30 उससे मिलापवाले तम्बू के द्वार की कुर्सियां, और पीतल की वेदी, पीतल की झंझरी, और वेदी का सारा सामान; 02O 38 31 और आंगन के चारों ओर की कुर्सियां, और आंगन की चारों ओर के खूंटे भी बनाए गए।। 02O 39 1 फिर उन्हों ने नीले, बैंजनी और लाल रंग के काढ़े हुए कपड़े पवित्रा स्थान की सेवकाई के लिये, और हारून के लिये भी पवित्रा वस्त्रा बनाए; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।। 02O 39 2 और उस ने एपोद को सोने, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े का और सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े का बनाया। 02O 39 3 और उन्हों ने सोना पीट- पीटकर उसके पत्तर बनाए, फिर पत्तरों को काट- काटकर तार बनाए, और तारों को नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े में, और सूक्ष्म सनी के कपड़े में कढ़ाई की बनावट से मिला दिया। 02O 39 4 एपोद के जोड़ने को उन्हों ने उसके कन्धों पर के बन्धन बनाए, वह तो अपने दोनों सिरों से जोड़ा गया। 02O 39 5 और उसके कसने के लिये जो काढ़ा हुआ पटुका उस पर बना, वह उसके साथ बिना जोड़ का, और उसी की बनावट के अनुसार, अर्थात् सोने और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े का, और सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े का बना; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।। 02O 39 6 और उन्हों ने सुलैमानी मणि काटकर उनमें इस्त्राएल के पुत्रों के नाम जैसा छापा खोदा जाता है वैसे ही खोदे, और सोने के खानों में जड़ दिए। 02O 39 7 और उस ने उनको एपोद के कन्धे के बन्धनों पर लगाया, जिस से इस्त्राएलियों के लिये स्मरण कराने वाले मणि ठहरें; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।। 02O 39 8 और उस ने चपरास को एपोद की नाई सोने की, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े की, और सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े में बेल बूटे का काम किया हुआ बनाया। 02O 39 9 चपरास तो चौकोर बनी; और उन्हो ने उसको दोहरा बनाया, और वह दोहरा होकर एक बित्ता लम्बा और एक बित्ता चौड़ा बना। 02O 39 10 और उन्हों ने उस में चार पांति मणि जड़े। पहिली पांति में तो माणिक्य, पद्य्मराग, और लालड़ी जडे गए; 02O 39 11 और दूसरी पांति में मरकत, नीलमणि, और हीरा, 02O 39 12 और तीसरी पांति में लशम, सूर्यकान्त, और नीलम; 02O 39 13 और चौथी पांति में फीरोजा, सुलैमानी मणि, और यशब जड़े; ये सब अलग अलग सोने के खानों में जड़े गए। 02O 39 14 और ये मणि इस्त्राएल के पुत्रों के नाम की गिनती के अनुसार बारह थे; बारहों गोत्रों में से एक एक का नाम जैसा छापा खोदा जाता है वैसा ही खोदा गया। 02O 39 15 और उन्हों ने चपरास पर डोरियों की नाई गूंथे हुए चोखे सोने की जंजीर बनाकर लगाई; 02O 39 16 फिर उन्हों ने सोने के दो खाने, और सोने की दो कड़ियां बनाकर दोनों कड़ियों को चपरास के दोनों सिरों पर लगाया; 02O 39 17 तब उन्हों ने सोने की दोनों गूंथी हुई जंजीरो को चपरास के सिरों पर की दोनों कड़ियों में लगाया। 02O 39 18 और गूंथी हुई दोनों जंजीरों के दोनों बाकी सिरों को उन्हों ने दोनों खानों में जड़के, एपोद के साम्हने दोनों कन्धों के बन्धनों पर लगाया। 02O 39 19 और उन्हों ने सोने की और दो कड़ियां बनाकर चपरास के दोनों सिरों पर उसकी उस कोर पर, जो एपोद की भीतरी भाग में थी, लगाईं। 02O 39 20 और उन्हों ने सोने की दो और कड़ियां भी बनाकर एपोद के दोनों कन्धों के बन्धनों पर नीचे से उसके साम्हने, और जोड़ के पास, एपोद के काढ़े हुए पटुके के ऊपर लगाईं। 02O 39 21 तब उन्हों ने चपरास को उसकी कड़ियों के द्वारा एपोद की कड़ियों में नीले फीते से ऐसा बान्धा, कि वह एपोद के काढ़े हुए पटुके के ऊपर रहे, और चपरास एपोद से अलग न होने पाए; जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।। 02O 39 22 फिर एपोद का बागा सम्पूर्ण नीले रंग का बनाया गया। 02O 39 23 और उसकी बनावट ऐसी हुई कि उसके बीच बखतर के छेद के समान एक छेद बना, और छेद के चारों ओर एक कोर बनी, कि वह फटने न पाए। 02O 39 24 और उन्हों ने उसके नीचेवाले घेरे में नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े के अनार बनाए। 02O 39 25 और उन्हों ने चोखे सोने की घंटियां भी बनाकर बागे के नीचे वाले घेरे के चारों ओर अनारों के बीचों बीच लगाईं; 02O 39 26 अर्थात् बागे के नीचेवाले घेरे की चारों ओर एक सोने की घंटी, और एक अनार लगाया गया कि उन्हें पहिने हुए सेवा टहल करें; जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।। 02O 39 27 फिर उन्हों ने हारून, और उसके पुत्रों के लिये बुनी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े के अंगरखे, 02O 39 28 और सूक्ष्म सनी के कपड़े की पगड़ी, और सूक्ष्म सनी के कपड़े की सुन्दर टोपियां, और सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े की जांघिया, 02O 39 29 और सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े की और नीले, बैंजनी और लाल रंग की कारचोबी काम की हुई पगड़ी; इन सभों को जिस तरह यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी वैसा ही बनाया।। 02O 39 30 फिर उन्हों ने पवित्रा मुकुट की पटरी चोखे सोने की बनाई; और जैसे छापे में वैसे ही उस में ये अक्षर खोदे गए, अर्थात् यहोवा के लिये पवित्रा। 02O 39 31 और उन्हों ने उस में नीला फीता लगाया, जिस से वह ऊपर पगड़ी पर रहे, जिस तरह यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।। 02O 39 32 इस प्रकार मिलापवाले तम्बू के निवास का सब काम समाप्त हुआ, और जिस जिस काम की आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी, इस्त्राएलियों ने उसी के अनुसार किया।। 02O 39 33 तब वे निवास को मूसा के पास ले आए, अर्थात् घंुडियां, तख्ते, बेंड़े, खम्भे, कुर्सियां आदि सारे सामान समेत तम्बू; 02O 39 34 और लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ों की खालों का ओढ़ना, और सूइसों की खालों का ओढ़ना, और बीच का पर्दा; 02O 39 35 डण्डों सहित साक्षीपत्रा का सन्दूक, और प्रायश्चित्त का ढकना; 02O 39 36 सारे सामान समेत मेज़, और भेंट की रोटी; 02O 39 37 सारे सामान सहित दीवट, और उसकी सजावट के दीपक और उजियाला देने के लिये तेल; 02O 39 38 सोने की वेदी, और अभिषेक का तेल, और सुगन्धित धूप, और तम्बू के द्वार का पर्दा; 02O 39 39 पीतल की झंझरी, डण्डों, और सारे सामान समेत पीतल की वेदी; और पाए समेत हौदी; 02O 39 40 खम्भों, और कुर्सियों समेत आंगन के पर्दे, और आंगन के द्वार का पर्दा, और डोरियां, और खूंटे, और मिलापवाले तम्बू के निवास की सेवकाई का सारा सामान; 02O 39 41 पवित्रास्थान में सेवा टहल करने के लिये बेल बूटा काढ़े हुए वस्त्रा, और हारून याजक के पवित्रा वस्त्रा, और उसके पुत्रों के वस्त्रा जिन्हें पहिनकर उन्हें याजक का काम करना था। 02O 39 42 अर्थात् जो जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थीं उन्हीं के अनुसार इस्त्राएलियों ने सब काम किया। 02O 39 43 तब मूसा ने सारे काम का निरीक्षण करके देखा, कि उन्हों ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार सब कुछ किया है। और मूसा ने उनको आशीर्वाद दिया।। 02O 40 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 02O 40 2 पहिले महीने के पहिले दिन को तू मिलापवाले तम्बू के निवास को खड़ा करा देना। 02O 40 3 और उस में साक्षीपत्रा के सन्दूक को रखकर बीचवाले पर्दे की ओट में करा देना। 02O 40 4 और मेज़ को भीतर ले जाकर जो कुछ उस पर सजाना है उसे सजवा देना; 02O 40 5 और साक्षीपत्रा के सन्दूक के साम्हने सोने की वेदी को जो धूप के लिये है उसे रखना, और निवास के द्वार के पर्दे को लगा देना। 02O 40 6 और मिलापवाले तम्बू के निवास के द्वार के साम्हने होमवेदी को रखना। 02O 40 7 और मिलापवाले तम्बू और वेदी के बीच होदी को रखके उस में जल भरना। 02O 40 8 और चारों ओर के आंगन की कनात को खड़ा करना, और उस आंगन के द्वार पर पर्दे को लटका देना। 02O 40 9 और अभिषेक का तेल लेकर निवास को और जो कुछ उस में होगा सब कुछ का अभिषेक करना, और सारे सामान समेत उसको पवित्रा करना; तब वह पवित्रा ठहरेगा। 02O 40 10 और सब सामान समेत होमवेदी का अभिषेक करके उसको पवित्रा करना; तब वह परमपवित्रा ठहरेगी। 02O 40 11 और पाए समेत हौदी का भी अभिषेक करके उसे पवित्रा करना। 02O 40 12 और हारून और उसके पुत्रों को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर ले जाकर जल से नहलाना, 02O 40 13 और हारून को पवित्रा वस्त्रा पहिनाना, और उसका अभिषेक करके उसको पवित्रा करना, कि वह मेरे लिये याजक का काम करे। 02O 40 14 और उसके पुत्रों को ले जाकर अंगरखे पहिनाना, 02O 40 15 और जैसे तू उनके पिता का अभिषेक करे वैसे ही उनका भी अभिषेक करना, कि वे मेरे लिये याजक का काम करें; और उनका अभिषेक उनकी पीढ़ी पीढ़ी के लिये उनके सदा के याजकपद का चिन्ह ठहरेगा। 02O 40 16 और मूसा ने जो जो आज्ञा यहोवा ने उसको दी थी उसी के अनुसार किया।। 02O 40 17 और दूसरे बरस के पहिले महीने के पहिले दिन को निवास खड़ा किया गया। 02O 40 18 और मूसा ने निवास को खड़ा करवाया, और उसकी कुर्सियां धर उसके तख्ते लगाके उन में बेंड़े डाले, और उसके खम्भों को खड़ा किया; 02O 40 19 और उस ने निवास के ऊपर तम्बू को फैलाया, और तम्बू के ऊपर उस ने ओढ़ने को लगाया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। 02O 40 20 और उस ने साक्षीपत्रा को लेकर सन्दूक मे रखा, और सन्दूक में डण्डों को लगाके उसके ऊपर प्रायश्चित्त के ढकने को धर दिया; 02O 40 21 और उस ने सन्दूक को निवास में पहुंचवाया, और बीचवाले पर्दे को लटकवाके साक्षीपत्रा के सन्दूक को उसके अन्दर किया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। 02O 40 22 और उस ने मिलापवाले तम्बू में निवास की उत्तर अलंग पर बीच के पर्दे से बाहर मेज़ को लगवाया, 02O 40 23 और उस पर उन ने यहोवा के सम्मुख रोटी सजाकर रखी; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। 02O 40 24 और उस ने मिलापवाले तम्बू में मेज़ के साम्हने निवास की दक्खिन अलंग पर दीवट को रखा, 02O 40 25 और उस ने दीपकों को यहोवा के सम्मुख जला दिया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। 02O 40 26 और उस ने मिलापवाले तम्बू में बीच के पर्दे के साम्हने सोने की वेदी को रखा, 02O 40 27 और उस ने उस पर सुगन्धित धूप जलाया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। 02O 40 28 और उस ने निवास के द्वार पर पर्दे को लगाया। 02O 40 29 और मिलापवाले तम्बू के निवास के द्वार पर होमबलि और अन्नबलि को चढ़ाया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। 02O 40 30 और उस ने मिलापवाले तम्बू और वेदी के बीच हौदी को रखकर उस में धोने के लिये जल डाला, 02O 40 31 और मूसा और हारून और उसके पुत्रों ने उस में अपने अपने हाथ पांव धोए; 02O 40 32 और जब जब वे मिलापवाले तम्बू में वा वेदी के पास जाते थे तब तब वे हाथ पांव धोते थे; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। 02O 40 33 और उस ने निवास की चारों ओर और वेदी के आसपास आंगन की कनात को खड़ा करवाया, और आंगन के द्वार के पर्दे को लटका दिया। इस प्रकार मूसा ने सब काम को पूरा कर समाप्त किया।। 02O 40 34 तब बादल मिलापवाले तम्बू पर छा गया, और यहोवा का तेज निवासस्थान में भर गया। 02O 40 35 और बादल जो मिलापवाले तम्बू पर ठहर गया, और यहोवा का तेज जो निवासस्थान में भर गया, इस कारण मूसा उस मे प्रवेश न कर सका। 02O 40 36 और इस्त्राएलियों की सारी यात्रा में ऐसा होता था, कि जब जब वह बादल निवास के ऊपर उठ जाता तब तब वे कूच करते थे। 02O 40 37 और यदि वह न उठता, तो जिस दिन तक वह न उठता था उस दिन तक वे कूच नहीं करते थे। 02O 40 38 इस्त्राएल के घराने की सारी यात्रा में दिन को तो यहोवा का बादल निवास पर, और रात को उसी बादल में आग उन सभों को दिखाई दिया करती थी।। 03O 1 1 यहोवा ने मिलापवाले तम्बू में से मूसा को बुलाकर उस से कहा, 03O 1 2 इस्त्राएलियों से कह, कि तुम में से यदि कोई मनुष्य यहोवा के लिये पशु का चढ़ावा चढ़ाए, तो उसका बलिपशु गाय- बैलों वा भेड़- बकरियों में से एक का हो। 03O 1 3 यदि वह गाय बैलों में से होमबलि करे, तो निर्दोष नर मिलापवाले तम्बू के द्वार पर चढ़ाए, कि यहोवा उसे ग्रहण करे। 03O 1 4 और वह अपना हाथ होमबलिपशु के सिर पर रखे, और वह उनके लिये प्रायश्चित्त करने को ग्रहण किया जाएगा। 03O 1 5 तब वह उस बछड़े को यहोवा के साम्हने बलि करे; और हारून के पुत्रा जो याजक हैं वे लोहू को समीप ले जाकर उस वेदी की चारों अलंगों पर छिड़के जो मिलापवाले तम्बू के द्वार पर है। 03O 1 6 फिर वह होमबलिपशु की खाल निकालकर उस पशु को टुकडे टुकडे करे; 03O 1 7 तब हारून याजक के पुत्रा वेदी पर आग रखें, और आग पर लकड़ी सजाकर धरें; 03O 1 8 और हारून के पुत्रा जो याजक हैं वे सिर और चरबी समेत पशु के टुकड़ों को उस लकड़ी पर जो वेदी की आग पर होगी सजाकर धरें; 03O 1 9 और वह उसकी अंतड़ियों और पैरों को जल से धोए। तब याजक सब को वेदी पर जलाए, कि वह होमबलि यहोवा के लिये सुखदायक सुगन्धवाला हवन ठहरे।। 03O 1 10 और यदि वह भेड़ों वा बकरों का होमबलि चढ़ाए, तो निर्दोष नर को चढ़ाए। 03O 1 11 और वह उसको यहोवा के आगे वेदी की उत्तरवाली अलंग पर बलि करे; और हारून के पुत्रा जो याजक हैं वे उसके लोहू को वेदी की चारों अलंगों पर छिड़कें। 03O 1 12 और वह उसको टुकडे टुकडे करे, और सिर और चरबी को अलग करे, और याजक इन सब को उस लकड़ी पर सजाकर धरे जो वेदी की आग पर होगी; 03O 1 13 और वह उसकी अंतड़ियों और पैरों को जल से धोए। और याजक सब को समीप ले जाकर वेदी पर जलाए, कि वह होमबलि और यहोवा के लिये सुगन्धदायक सुगन्धवाला हवन ठहरे।। 03O 1 14 और यदि वह यहोवा के लिये पक्षियों का होमबलि चढ़ाए, तो पंडुको वा कबूतरों को चढ़ावा चढ़ाए। 03O 1 15 याजक उसको वेदी के समीप ले जाकर उसका गला मरोड़ के सिर को धड़ से अलग करे, और वेदी पर जलाए; और उसका सारा लोहू उस वेदी की अलंग पर गिराया जाए; 03O 1 16 और वह उसका ओझर मल सहित निकालकर वेदी की पूरब की ओर से राख डालने के स्थान पर फेंक दे; 03O 1 17 और वह उसको पंखों के बीच से फाड़े, पर अलग अलग न करे। तब याजक उसको वेदी पर उस लकड़ी के ऊपर रखकर जो आग पर होगी जलाए, कि वह होमबलि और यहोवा के लिये सुखदायक सुगन्धवाला हवन ठहरे।। 03O 2 1 और जब कोई यहोवा के लिये अन्नबलि का चढ़ावा चढ़ाना चाहे, तो वह मैदा चढ़ाए; और उस पर तेल डालकर उसके ऊपर लोबान रखे; 03O 2 2 और वह उसको हारून के पुत्रों के पास जो याजक हैं लाए। और अन्नबलि के तेल मिले हुए मैदे में से इस तरह अपनी मुट्ठी भरकर निकाले कि सब लोबान उस में आ जाए; और याजक उन्हें स्मरण दिलानेवाले भाग के लिये वेदी पर जलाए, कि यह यहोवा के लिये सुखदायक सुगन्धित हवन ठहरे। 03O 2 3 और अन्नबलि में से जो बचा रहे सो हारून और उसके पुत्रों का ठहरे; यह यहोवा के हवनों में से परमपवित्रा वस्तु होगी।। 03O 2 4 और जब तू अन्नबलि के लिये तन्दूर में पकाया हुआ चढ़ावा चढ़ाए, तो वह तेल से सने हुए अखमीरी मैदे के फुलकों, वा तेल से चुपड़ी हुई अखमीरी चपातियों का हो। 03O 2 5 और यदि तेरा चढ़ावा तवे पर पकाया हुआ अन्नबलि हो, तो वह तेल से सने हुए अखमीरी मैदे का हो; 03O 2 6 उसको टुकडे टुकडे करके उस पर तेल डालना, तब वह अन्नबलि हो जाएगा। 03O 2 7 और यदि तेरा चढ़ावा कढ़ाही में तला हुआ अन्नबलि हो, तो वह मैदे से तेल में बनाया जाए। 03O 2 8 और जो अन्नबलि इन वस्तुओं में से किसी का बना हो उसे यहोवा के समीप ले जाना; और जब वह याजक के पास लाया जाए, तब याजक उसे वेदी के समीप ले जाए। 03O 2 9 और याजक अन्नबलि में से स्मरण दिलानेवाला भाग निकालकर वेदी पर जलाए, कि वह यहोवा के लिये सुखदायक सुगन्धवाला हवन ठहरे; 03O 2 10 और अन्नबलि में से जो बचा रहे वह हारून और उसके पुत्रों का ठहरे; वह यहोवा के हवनों में परमपवित्रा वस्तु होगी। 03O 2 11 कोई अन्नबलि जिसे तुम यहोवा के लिये चढ़ाओ खमीर मिलाकर बनाया न जाए; तुम कभी हवन में यहोवा के लिये खमीर और मधु न जलाना। 03O 2 12 तुम इनको पहिली उपज का चढ़ावा करके यहोवा के लिये चढ़ाना, पर वे सुखदायक सुगन्ध के लिये वेदी पर चढ़ाए न जाएं। 03O 2 13 फिर अपने सब अन्नबलियों को नमकीन बनाना; और अपना कोई अन्नबलि अपने परमेश्वर के साथ बन्धी हुई वाचा के नमक से रहित होने न देना; अपने सब चढ़ावों के साथ नमक भी चढ़ाना।। 03O 2 14 और यदि तू यहोवा के लिये पहिली उपज का अन्नबलि चढ़ाए, तो अपनी पहिली उपज के अन्नबलि के लिये आग से झुलसाई हुई हरी हरी बालें, अर्थात् हरी हरी बालों को मींजके निकाल लेना, तब अन्न को चढ़ाना। 03O 2 15 और उस में तेल डालना, और उसके ऊपर लोबान रखना; तब वह अन्नबलि हो जाएगा। 03O 2 16 और याजक सींजकर निकाले हुए अन्न को, और तेल को, और सारे लोबान को स्मरण दिलानेवाला भाग करके जला दे; वह यहोवा के लिये हवन ठहरे।। 03O 3 1 और यदि उसका चढ़ावा मेंलबलि का हो, और यदि वह गाय- बैलों मे से किसी को चढ़ाए, तो चाहे वह पशु नर हो या मादा, पर जो निर्दोष हो उसी को वह यहोवा के आगे चढ़ाए। 03O 3 2 और वह अपना हाथ अपने चढ़ावे के पशु के सिर पर रखे और उसको मिलापवाले तम्बू के द्वार पर बलि करे; और हारून के पुत्रा जो याजक है वे उसके लोहू को वेदी की चारों अलंगों पर छिड़कें। 03O 3 3 और वह मेलबलि में से यहोवा के लिये हवन करे, अर्थात् जिस चरबी से अंतड़ियां ढपी रहती हैं, और जो चरबी उन में लिपटी रहती है वह भी, 03O 3 4 और दोनों गुर्दे और उनके ऊपर की चरबी जो कमर के पास रहती है, और गुर्दों समेत कलेजे के ऊपर की झिल्ली, इन सभों को वह अलग करे। 03O 3 5 और हारून के पुत्रा इनको वेदी पर उस होमबलि के ऊपर जलाएं, जो उन लकड़ियों पर होगी जो आग के ऊपर हैं, कि यह यहोवा के लिये सुखदायक सुगन्धवाला हवन ठहरे।। 03O 3 6 और यदि यहोवा के मेलबलि के लिये उसका चढ़ावा भेड़- बकरियों में से हो, तो चाहे वह नर हो या मादा, पर जो निर्दोष हो उसी को वह चढ़ाए। 03O 3 7 यदि वह भेड़ का बच्चा चढ़ाता हो, तो उसको यहोवा के साम्हने चढ़ाए, 03O 3 8 और वह अपने चढ़ावे के पशु के सिर पर हाथ रखे और उसको मिलापवाले तम्बू के आगे बलि करे; और हारून के पुत्रा उसके लोहू को वेदी की चारों अलंगों पर छिड़कें। 03O 3 9 और मेलबलि में से चरबी को यहोवा के लिये हवन करे, अर्थात् उसकी चरबी भरी मोटी पूंछ को वह रीढ़ के पास से अलग करे, और जो चरबी उन में लिपटी रहती है, 03O 3 10 और दोनों गुर्दे, और जो चरबी उनके ऊपर कमर के पास रहती है, और गुर्दों समेत कलेजे के ऊपर की झिल्ली, इन सभों को वह अलग करे। 03O 3 11 और याजक इन्हें वेदी पर जलाए; यह यहोवा के लिये हवन रूपी भोजन ठहरे।। 03O 3 12 और यदि वह बकरा वा बकरी चढ़ाए, तो उसे यहोवा के साम्हने चढ़ाए। 03O 3 13 और वह अपना हाथ उसके सिर पर रखे, और उसको मिलापवाले तम्बू के आगे बलि करे; और हारून के पुत्रा उसके लोहू को वेदी की चारों अलंगों पर छिड़के। 03O 3 14 और वह उस में से अपना चढ़ावा यहोवा के लिये हवन करके चढ़ाए, अर्थात् जिस चरबी से अंतड़ियां ढपी रहती हैं, और जो चरबी उन में लिपटी रहती है वह भी, 03O 3 15 और दोनों गुर्दे और जो चरबी उनके ऊपर कमर के पास रहती है, और गुर्दों समेत कलेजे के ऊपर की झिल्ली, इन सभों को वह अलग करे। 03O 3 16 और याजक इन्हें वेदी पर जलाए; यह तो हवन रूपी भोजन है जो सुखदायक सुगन्ध के लिये होता है; क्योंकि सारी चरबी यहोवा की हैं। 03O 3 17 यह तुम्हारे निवासों में तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी के लिये सदा की विधि ठहरेगी कि तुम चरबी और लोहू कभी न खाओ।। 03O 4 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा 03O 4 2 कि इस्त्राएलियों से यह कह, कि यदि कोई मनुष्य उन कामों में से जिनको यहोवा ने मना किया है किसी काम को भूल से करके पापी हो जाए; 03O 4 3 और यदि अभिषिक्त याजक ऐसा पाप करे, जिस से प्रजा दोषी ठहरे, तो अपने पाप के कारण वह एक निर्दोष बछड़ा यहोवा को पापबलि करके चढ़ाए। 03O 4 4 और वह उस बछड़े को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा के आगे ले जाकर उसके सिर पर हाथ रखे, और उस बछड़े को यहोवा के साम्हने बलि करे। 03O 4 5 और अभिषिक्त याजक बछड़े के लोहू में से कुछ लेकर मिलापवाले तम्बू में ले जाए; 03O 4 6 और याजक अपनी उंगली लोहू मे डुबो डुबोकर और उस में से कुछ लेकर पवित्रास्थान के बीचवाले पर्दे के आगे यहोवा के साम्हने सात बार छिड़के। 03O 4 7 और याजक उस लोहू में से कुछ और लेकर सुगन्धित धूप की वेदी के सींगो पर जो मिलापवाले तम्बू में है यहोवा के साम्हने लगाए; फिर बछड़े के सब लोहू को वेदी के पाए पर जो मिलापवाले तम्बू के द्वार पर है उंडेल दे। 03O 4 8 फिर वह पापबलि के बछड़े की सब चरबी को उस से अलग करे, अर्थात् जिस चरबी से अंतड़ियां ढपी रहती हैं, और जितनी चरबी उन में लिपटी रहती है, 03O 4 9 और दोनों गुर्दे और उनके ऊपर की चरबी जो कमर के पास रहती है, और गुर्दों समेत कलेजे के ऊपर की झिल्ली, इन सभों को वह ऐसे अलग करे, 03O 4 10 जैसे मेलबलिवाले चढ़ावे के बछड़े से अलग किए जाते हैं, और याजक इनको होमबलि की वेदी पर जलाए। 03O 4 11 और उस बछड़े की खाल, पांव, सिर, अंतड़ियां, गोबर, 03O 4 12 और सारा मांस, निदान समूचा बछड़ा छावनी से बाहर शुद्ध स्थान में, जहां राख डाली जाएगी, ले जाकर लकड़ी पर रखकर आग से जलाए; जहां राख डाली जाती है वह वहीं जलाया जाए।। 03O 4 13 और इन बातों में से किसी भी बात के विषय में जो कोई पाप करे, याजक उसका प्रायश्चित्त करे, और तब वह पाप क्षमा किया जाएगा। और इस पापबलि का शेष अन्नबलि के शेष की नाई याजक का ठहरेगा।। 03O 4 14 तो जब उनका किया हुआ पाप प्रगट हो जाए तब मण्डली एक बछड़े को पापबलि करके चढ़ाए। वह उसे मिलापवाले तम्बू के आगे ले जाए, 03O 4 15 और मण्डली के वृद्ध लोग अपने अपने हाथों को यहोवा के आगे बछड़े के सिर पर रखें, और वह बछड़ा यहोवा के साम्हने बलि किया जाए। 03O 4 16 और अभिषिक्त याजक बछड़े के लोहू में से कुछ मिलापवाले तम्बू में ले जाए; 03O 4 17 और याजक अपनी उंगली लोहू में डुबो डुबोकर उसे बीचवाले पर्दे के आगे सात बार यहोवा के साम्हने छिड़के। 03O 4 18 और उसी लोहू में से वेदी के सींगों पर जो यहोवा के आगे मिलापवाले तम्बू में है लगाए; और बचा हुआ सब लोहू होमबलि की वेदी के पाए पर जो मिलापवाले तम्बू के द्वार पर है उंडेल दे। 03O 4 19 और वह बछड़े की कुल चरबी निकालकर वेदी पर जलाए। 03O 4 20 और जैसे पापबलि के बछड़े से किया था वैसे ही इस से भी करे; इस भांति याजक इस्त्राएलियों के लिये प्रायश्चित्त करे, तब उनका पाप क्षमा किया जाएगा। 03O 4 21 और वह बछड़े को छावनी से बाहर ले जाकर उसी भांति जलाए जैसे पहिले बछड़े को जलाया था; यह तो मण्डली के निमित्त पापबलि ठहरेगा।। 03O 4 22 जब कोई प्रधान पुरूष पाप करके, अर्थात् अपने परमेश्वर यहोवा कि किसी आज्ञा के विरूद्ध भूल से कुछ करके दोषी हो जाए, 03O 4 23 और उसका पाप उस पर प्रगट हो जाए, तो वह एक निर्दोष बकरा बलिदान करने के लिये ले आए; 03O 4 24 और बकरे के सिर पर अपना हाथ धरे, और बकरे को उस स्थान पर बलि करे जहां होमबलि पशु यहोवा के आगे बलि किये जाते हैं; यह तो पापबलि ठहरेगा। 03O 4 25 और याजक अपनी उंगली से पापबलि पशु के लोहू में से कुछ लेकर होमबलि की वेदी के सींगों पर लगाए, और उसका लोहू होमबलि की वेदी के पाए पर उंडेल दे। 03O 4 26 और वह उसकी कुल चरबी को मेलबलि की चरबी की नाई वेदी पर जलाए; और याजक उसके पाप के विषय में प्रायश्चित्त करे, तब वह क्षमा किया जाएगा।। 03O 4 27 और यदि साधारण लोगों में से कोई अज्ञानता से पाप करे, अर्थात् कोई ऐसा काम जिसे यहोवा ने माना किया हो करके दोषी हो, और उसका वह पाप उस पर प्रगट हो जाए, 03O 4 28 तो वह उस पाप के कारण एक निर्दोष बकरी बलिदान के लिये ले आए; 03O 4 29 और वह अपना हाथ पापबलि पशु के सिर पर रखे, और होमबलि के स्थान पर पापबलि पशु का बलिदान करे। 03O 4 30 और याजक उसके लोहू में से अपनी उंगली से कुछ लेकर होमबलि की वेदी के सींगों पर लगाए, और उसके सब लोहू को उसी वेदी के पाए पर उंडेल दे। 03O 4 31 और वह उसकी सब चरबी को मेलबलिपशु की चरबी की नाईं अलग करे, तब याजक उसको वेदी पर यहोवा के निमित्त सुखदायक सुगन्ध के लिये जलाए; और इस प्रकार याजक उसके लिये प्रायश्चित्त करे, तब उसे क्षमा मिलेगी।। 03O 4 32 और यदि वह पापबलि के लिये एक भेड़ी का बच्चा ले आए, तो वह निर्दोष मादा हो, 03O 4 33 और वह अपना हाथ पापबलि पशु के सिर पर रखे, और उसको पापबलि के लिये वहीं बलिदान करे जहां होमबलिपशु बलि किया जाता है। 03O 4 34 और याजक अपनी उंगली से पापबलि के लोहू में से कुछ लेकर होमबलि की वेदी के सींगों पर लगाए, और उसके सब लोहू को वेदी के पाए पर उंडेल दे। 03O 4 35 और वह उसकी सब चरबी को मेलबलिवाले भेड़ के बच्चे की चरबी की नाई अलग करे, और याजक उसे वेदी पर यहोवा के हवनों के ऊपर जलाए; और इस प्रकार याजक उसके पाप के लिये प्रायश्चित्त करे, और वह क्षमा किया जाएगा।। 03O 5 1 और यदि कोई साक्षी होकर ऐसा पाप करे कि शपथ खिलाकर पूछने पर भी, कि क्या तू ने यह सुना अथवा जानता है, और वह बात प्रगट न करे, तो उसको अपने अधर्म का भार उठाना पड़ेगा। 03O 5 2 और यदि कोई किसी अशुद्ध वस्तु को अज्ञानता से छू ले, तो चाहे वह अशुद्ध बनैले पशु की, चाहे अशुद्ध रेंगनेवाले जीव- जन्तु की लोथ हो, तो वह अशुद्ध होकर दोषी ठहरेगा। 03O 5 3 और यदि कोई मनुष्य किसी अशुद्ध वस्तु को अज्ञानता से छू ले, चाहे वह अशुद्ध वस्तु किसी भी प्रकार की क्यों न हो जिस से लोग अशुद्ध हो जाते हैं तो जब वह उस बात को जान लेगा तब वह दोषी ठहरेगा। 03O 5 4 और यदि कोई बुरा वा भला करने को बिना सोचे समझे शपथ खाए, चाहे किसी प्रकार की बात वह बिना सोचे विचारे शपथ खाकर कहे, तो ऐसी बात में वह दोषी उस समय ठहरेगा जब उसे मालूम हो जाएगा। 03O 5 5 और जब वह इन बातों में से किसी भी बात में दोषी हो, तब जिस विषय में उस ने पाप किया हो वह उसको मान ले, 03O 5 6 और वह यहोवा के साम्हने अपना दोषबलि ले आए, अर्थात् उस पाप के कारण वह एक भेड़ वा बकरी पापबलि करने के लिये ले आए; तब याजक उस पाप के विषय उसके लिये प्रायश्चित्त करे। 03O 5 7 और यदि उसे भेड़ वा बकरी देने की सामर्थ्य न हो, तो अपने पाप के कारण दो पंडुकी वा कबूतरी के दो बच्चे दोषबलि चढ़ाने के लिये यहोवा के पास ले आए, उन में से एक तो पापबलि के लिये और दूसरा होमबलि के लिये। 03O 5 8 और वह उनको याजक के पास ले आए, और याजक पापबलिवाले को पहिले चढ़ाए, और उसका सिर गले से मरोड़ डाले, पर अलग न करे, 03O 5 9 और वह पापबलिपशु के लोहू में से कुछ वेदी की अलंग पर छिड़के, और जो लोहू शेष रहे वह वेदी के पाए पर गिराया जाए; वह तो पापबलि ठहरेगा। 03O 5 10 और दूसरे पक्षी को वह विधी के अनुसार होमबलि करे, और याजक उसके पाप का प्रायश्चित्त करे, और तब वह क्षमा किया जाएगा।। 03O 5 11 और यदि वह दो पंडुकी वा कबूतरी के दो बच्चे भी न दे सके, तो वह अपने पाप के कारण अपना चढ़ावा एपा का दसवां भाग मैदा पापबलि करके ले आए; 03O 5 12 वह उसको याजक के पास ले जाए, और याजक उस में से अपनी मुट्ठी भर स्मरण दिलानेवाला भाग जानकर वेदी पर यहोवा के हवनों के ऊपर जलाए; वह तो पापबलि ठहरेगा। 03O 5 13 और इन बातों में से किसी भी बात के विषय में जो कोई पाप करे, याजक उसका प्रायश्चित्त करे, और तब वह पाप क्षमा किया जाएगा। और इस पापबलि का शेष अन्नबलि के शेष की नाई याजक का ठहरेगा।। 03O 5 14 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 5 15 यदि कोई यहोवा की पवित्रा की हुई वस्तुओं के विषय में भूल से विश्वासघात करे और पापी ठहरे, तो वह यहोवा के पास एक निर्दोष मेढ़ा दोषबलि के लिये ले आए; उसका दाम पवित्रास्थान के शेकेल के अनुसार उतने ही शेकेल रूपये का हो जितना याजक ठहराए। 03O 5 16 और जिस पवित्रा वस्तु के विषय उस ने पाप किया हो, उस में वह पांचवां भाग और बढ़ाकर याजक को दे; और याजक दोषबलि का मेढ़ा चढ़ाकर उसके लिये प्रायश्चित्त करे, तब उसका पाप क्षमा किया जाएगा।। 03O 5 17 और यदि कोई ऐसा पाप करे, कि उन कामों में से जिन्हें यहोवा ने मना किया है किसी काम को करे, तो चाहे वह उसके अनजाने में हुआ हो, तौभी वह दोषी ठहरेगा, और उसको अपने अधर्म का भार उठाना पड़ेगा। 03O 5 18 इसलिये वह एक निर्दोष मेढ़ा दोषबलि करके याजक के पास ले आए, वह उतने दाम का हो जितना याजक ठहराए, और याजक उसके लिये उसकी उस भूल का जो उस ने अनजाने में की हो प्रायश्चित्त करे, और वह क्षमा किया जाएगा। 03O 5 19 यह दोषबलि ठहरे; क्योंकि वह मनुष्य नि:सन्देह यहोवा के सम्मुख दोषी ठहरेगा।। 03O 6 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 6 2 यदि कोई यहोवा का विश्वासघात करके पापी ठहरे, जैसा कि धरोहर, वा लेनदेन, वा लूट के विषय में अपने भाई से छल करे, वा उस पर अन्धेर करे, 03O 6 3 वा पड़ी हुई वस्तु को पाकर उसके विषय झूठ बोले और झूठी शपथ भी खाए; ऐसी कोई भी बात क्यों न हो जिसे करके मनुष्य पापी ठहरते हैं, 03O 6 4 तो जब वह ऐसा काम करके दोषी हो जाए, तब जो भी वस्तु उस ने लूट, वा अन्धेर करके, वा धरोहर, वा पड़ी पाई हो; 03O 6 5 चाहे कोई वस्तु क्यों न हो जिसके विषय में उस ने झूठी शपथ खाई हो; तो वह उसको पूरा पूरा लौटा दे, और पांचवां भाग भी बढ़ाकर भर दे, जिस दिन यह मालूम हो कि वह दोषी है, उसी दिन वह उस वस्तु को उसके स्वामी को लौटा दे। 03O 6 6 और वह यहोवा के सम्मुख अपना दोषबलि भी ले आए, अर्थात् एक निर्दोष मेढ़ा दोषबलि के लिये याजक के पास ले आए, वह उतने ही दाम का हो जितना याजक ठहराए। 03O 6 7 इस प्रकार याजक उसके लिये यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे, और जिस काम को करके वह दोषी हो गया है उसकी क्षमा उसे मिलेगी।। 03O 6 8 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 6 9 हारून और उसके पुत्रों को आज्ञा देकर यह कह, कि होमबलि की व्यवस्था यह है; अर्थात् होमबलि ईधन के ऊपर रात भर भोर तब वेदी पर पड़ा रहे, और वेदी की अग्नि वेदी पर जलती रहे। 03O 6 10 और याजक अपने सनी के वस्त्रा और अपने तन पर अपनी सनी की जांघिया पहिनकर होमबलि की राख, जो आग के भस्म करने से वेदी पर रह जाए, उसे उठाकर वेदी के पास रखे। 03O 6 11 तब वह अपने वस्त्रा उतारकर दूसरे वस्त्रा पहिनकर राख को छावनी से बाहर किसी शुद्ध स्थान पर ले जाए। 03O 6 12 और वेदी पर अग्नि जलती रहे, और कभी बुझने न पाए; और याजक भोर भोर उस पर लकड़ियां जलाकर होमबलि के टुकड़ों को उसके ऊपर सजाकर धर दे, और उसके ऊपर मेलबलियों की चरबी को जलाया करे। 03O 6 13 वेदी पर आग लगातार जलती रहे; वह कभी बुझने न पाए।। 03O 6 14 अन्नबलि की व्यवस्था इस प्रकार है, कि हारून के पुत्रा उसको वेदी के आगे यहोवा के समीप ले आएं। 03O 6 15 और वह अन्नबलि के तेल मिले हुए मैदे में से मुट्ठी भर और उस पर का सब लोबान उठाकर अन्नबलि के स्मरणार्थ के इस भाग को यहोवा के सम्मुख सुखदायक सुगन्ध के लिये वेदी पर जलाए। 03O 6 16 और उस में से जो शेष रह जाए उसे हारून और उसके पुत्रा खा जाएं; वह बिना खमीर पवित्रा स्थान में खाया जाए, अर्थात् वे मिलापवाले तम्बू के आंगन में उसे खाएं। 03O 6 17 वह खमीर के साथ पकाया न जाए; क्योंकि मैं ने अपने हव्य में से उसको उनका निज भाग होने के लिये उन्हें दिया है; इसलिये जैसा पापबलि और दोषबलि परमपवित्रा है वैसा ही वह भी है। 03O 6 18 हारून के वंश के सब पुरूष उस में से खा सकते हैं तुम्हारी पीढ़ी- पीढ़ी में यहोवा के हवनों में से यह उनका भाग सदैव बना रहेगा; जो कोई उन हवनों को छूए वह पवित्रा ठहरेगा।। 03O 6 19 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 6 20 जिस दिन हारून का अभिषेक हो उस दिन वह अपने पुत्रों के साथ यहोवा को यह चढ़ावा चढ़ाए; अर्थात् एपा का दसवां भाग मैदा नित्य अन्नबलि में चढ़ाए, उस में से आधा भोर को और आधा सन्ध्या के समय चढ़ाए। 03O 6 21 वह तवे पर तेल के साथ पकाया जाए; जब वह तेल से तर हो जाए तब उसे ले आना, इस अन्नबलि के पके हुए टुकडे यहोवा के सुखदायक सुगन्ध के लिये चढ़ाना। 03O 6 22 और उसके पुत्रों में से जो भी उस याजकपद पर अभिषिक्त होगा, वह भी उसी प्रकार का चढ़ावा चढ़ाया करे; यह विधी सदा के लिये है, कि यहोवा के सम्मुख वह सम्पूर्ण चढ़ावा जलाया जाये। 03O 6 23 याजक के सम्पूर्ण अन्नबलि भी सब जलाए जाएं; वह कभी न खाया जाए।। 03O 6 24 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 6 25 हारून और उसके पुत्रों से यह कह, कि पापबलि की व्यवस्था यह है; अर्थात् जिस स्थान में होमबलिपशु वध किया जाता है उसी में पापबलिपशु भी यहोवा के सम्मुख बलि किया जाए; वह परमपवित्रा है। 03O 6 26 और जो याजक पापबलि चढ़ावे वह उसे खाए; वह पवित्रा स्थान में, अर्थात् मिलापवाले तम्बू के आँगन में खाया जाए। 03O 6 27 जो कुछ उसके मांस से छू जाए, वह पवित्रा ठहरेगा; और यदि उसके लोहू के छींटे किसी वस्त्रा पर पड़ जाएं, तो उसे किसी पवित्रास्थान में धो देना। 03O 6 28 और वह मिट्टी का पात्रा जिस में वह पकाया गया हो तोड़ दिया जाए; यदि वह पीतल के पात्रा में सिझाया गया हो, तो वह मांजा जाए, और जल से धो लिया जाए। 03O 6 29 और याजकों में से सब पुरूष उसे खा सकते हैं; 03O 6 30 पर जिस पापबलिपशु के लोहू में से कुछ भी खून मिलापवाले तम्बू के भीतर पवित्रास्थान में प्रायश्चित्त करने को पहुंचाया जाए तब तो उसका मांस कभी न खाया जाए; वह आग में जला दिया जाए।। 03O 7 1 फिर दोषबलि की व्यवस्था यह है। वह परमपवित्रा है; 03O 7 2 जिस स्थान पर होमबलिपशु का वध करते हैं उसी स्थान पर दोषबलिपशु का भी बलि करें, और उसके लोहू को याजक वेदी पर चारों ओर छिड़के। 03O 7 3 और वह उस में की सब चरबी को चढ़ाए, अर्थात् उसकी मोटी पूंछ को, और जिस चरबी से अंतड़ियां ढपी रहती हैं वह भी, 03O 7 4 और दोनों गुर्दे और जो चरबी उनके ऊपर और कमर के पास रहती है, और गुर्दों समेत कलेजे के ऊपर की झिल्ली; इन सभों को वह अलग करे; 03O 7 5 और याजक इन्हें वेदी पर यहोवा के लिये हवन करे; तब वह दोषबलि होगा। 03O 7 6 याजकों में के सब पुरूष उस में से खा सकते हैं; वह किसी पवित्रास्थान में खाया जाए; क्योंकि वह परमपवित्रा है। 03O 7 7 जैसा पापबलि है वैसा ही दोषबलि भी है, उन दोनों की एक ही व्यवस्था है; जो याजक उन बलियों को चढ़ा के प्रायश्चित्त करे वही उन वस्तुओं को ले ले। 03O 7 8 और जो याजक किसी के लिये होमबलि को चढ़ाए उस होमबलिपशु की खाल को वही याजक ले ले। 03O 7 9 और तंदूर में, वा कढ़ाही में, वा तवे पर पके हुए सब अन्नबलि उसी याजक की होंगी जो उन्हें चढ़ाता है। 03O 7 10 और सब अन्नबलि, जो चाहे तेल से सने हुए हों चाहे रूखे हों, वे हारून के सब पुत्रों को एक समान मिले।। 03O 7 11 और मेलबलि की जिसे कोई यहोवा के लिये चढ़ाए व्यवस्था यह है। 03O 7 12 यदि वह उसे धन्यवाद के लिये चढ़ाए, तो धन्यवाद- बलि के साथ तेल से सने हुए अखमीरी फुलके, और तेल से चुपड़ी हुई अखमीरी फुलके, और तेल से चुपड़ी हुई अखमीरी रोटियां, और तेल से सने हुए मैदे के फुलके तेल से तर चढ़ाए। 03O 7 13 और वह अपने धन्यवादवाले मेलबलि के साथ अखमीरी रोटियां, और तेल से सने हुए मैदे के फुलके तेल से तर चढ़ाए। 03O 7 14 और ऐसे एक एक चढ़ावे में से वह एक एक रोटी यहोवा को उठाने की भेंट करके चढ़ाए; वह मेलबलि के लोहू के छिड़कनेवाले याजक की होगी। 03O 7 15 और उस धन्यवादवाले मेलबलि का मांस बलिदान चढ़ाने के दिन ही खाया जाए; उस में से कुछ भी भोर तक शेष न रह जाए। 03O 7 16 पर यदि उसके बलिदान का चढ़ावा मन्नत का वा स्वेच्छा का हो, तो उस बलिदान को जिस दिन वह चढ़ाया जाए उसी दिन वह खाया जाए, और उस में से जो शेष रह जाए वह दूसरे दिन भी खाया जाए। 03O 7 17 परन्तु जो कुछ बलिदान के मांस में से तीसरे दिन तक रह जाए वह आग में जला दिया जाए। 03O 7 18 और उसके मेलबलि के मांस में से यदि कुछ भी तीसरे दिन खाया जाए, तो वह ग्रहण न किया जाएगा, और न पुन में गिना जाएगा; वह घृणित कर्म समझा जाएगा, और जो कोई उस में से खाए उसका अधर्म उसी के सिर पर पड़ेगा। 03O 7 19 फिर जो मांस किसी अशुद्ध वस्तु से छू जाए वह न खाया जाए; वह आग में जला दिया जाए। फिर मेलबलि का मांस जितने शुद्ध हों वे ही खाएं, 03O 7 20 परन्तु जो अशुद्ध होकर यहोवा के मेलबलि के मांस में से कुछ खाए वह अपने लोगों में से नाश किया जाए। 03O 7 21 और यदि कोई किसी अशुद्ध वस्तु को छूकर यहोवा के मेलबलिपशु के मांस में से खाए, तो वह भी अपने लोगों में से नाश किया जाए, चाहे वह मनुष्य की कोई अशुद्ध वस्तु वा अशुद्ध पशु वा कोई भी अशुद्ध और घृणित वस्तु हो।। 03O 7 22 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 7 23 इस्त्राएलियों से इस प्रकार कह, कि तुम लोग न तो बैल की कुछ चरबी खाना और न भेड़ वा बकरी की। 03O 7 24 और जो पशु स्वयं मर जाए, और जो दूसरे पशु से फाड़ा जाए, उसकी चरबी और और काम में लाना, परन्तु उसे किसी प्रकार से खाना नहीं। 03O 7 25 जो कोई ऐसे पशु की चरबी खाएगा जिस में से लोग कुछ यहोवा के लिये हवन करके चढ़ाया करते हैं वह खानेवाला अपने लोगों में से नाश किया जाएगा। 03O 7 26 ओर तुम अपने घर में किसी भांति का लोहू, चाहे पक्षी का चाहे पशु का हो, न खाना। 03O 7 27 हर एक प्राणी जो किसी भांति का लोहू खाएगा वह अपने लोगों में से नाश किया जाएगा।। 03O 7 28 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 7 29 इस्त्राएलियों से इस प्रकार कह, कि जो यहोवा के लिये मेलबलि चढ़ाए वह उसी मेलबलि में से यहोवा के पास भेंट ले आए; 03O 7 30 वह अपने ही हाथों से यहोवा के हव्य को, अर्थात् छाती हिलाने की भेंट करके यहोवा के साम्हने हिलाई जाए। 03O 7 31 और याजक चरबी को तो वेदी पर जलाए, परन्तु छाती हारून और उसके पुत्रों की होगी। 03O 7 32 फिर तुम अपने मेलबलियों में से दहिनी जांघ को भी उठाने की भेंट करके याजक को देना; 03O 7 33 हारून के पुत्रों में से जो मेलबलि के लोहू और चरबी को चढ़ाए दहिनी जांघ उसी को भाग होगा। 03O 7 34 क्योंकि इस्त्राएलियों के मेलबलियों में से हिलाने की भेंट की छाती और उठाने की भेंट की जांघ को लेकर मैं ने याजक हारून और उसके पुत्रों को दिया है, कि यह सर्वदा इस्त्राएलियों की ओर से उनका हक बना रहे।। 03O 7 35 जिस दिन हारून और उसके पुत्रा यहोवा के समीप याजक पद के लिये आए गए उसी दिन यहोवा के हव्यों में से उनका यही अभिषिक्त भाग ठहराया गया; 03O 7 36 अर्थात् जिस दिन यहोवा ने उसका अभिषेक किया उसी दिन उस ने आज्ञा दी कि उनको इस्त्राएलियों की ओर से ये ही भाग नित मिला करें; उनकी पीढ़ी पीढ़ी के लिये उनका यही हक ठहराया गया। 03O 7 37 होमबलि, अन्नबलि, पापबलि, दोषबलि, याजकों के संस्कार बलि, और मेलबलि की व्यवस्था यही है; 03O 7 38 जब यहोवा ने सीनै पर्वत के पास के जंगल में मूसा को आज्ञा दी कि इस्त्राएली मेरे लिये क्या क्या चढ़ावे चढ़ाएं, तब उस ने उनको यही व्यवस्था दी थी।। 03O 8 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 8 2 तू हारून और उसके पुत्रों के वस्त्रों, और अभिषेक के तेल, और पापबलि के बछड़े, और दोनों मेढ़ों, और अखमीरी रोटी की टोकरी को 03O 8 3 मिलापवाले तम्बू के द्वार पर ले आ, और वहीं सारी मण्डली को इकट्ठा कर। 03O 8 4 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने किया; और मण्डली मिलापवाले तम्बू के द्वार पर इकट्ठी हुई। 03O 8 5 तब मूसा ने मण्डली से कहा, जो काम करने की आज्ञा यहोवा ने दी है वह यह है। 03O 8 6 फिर मूसा ने हारून और उसके पुत्रों को समीप ले जाकर जल से नहलाया। 03O 8 7 तब उस ने उनको अंगरखा पहिनाया, और कटिबन्द लपेटकर बागा पहिना दिया, और एपोद लगाकर एपोद के काढ़े हुए पटुके से एपोद को बान्धकर कस दिया। 03O 8 8 और उस ने उनके चपरास लगाकर चमरास में ऊरीम और तुम्मीम रख दिए। 03O 8 9 तब उस ने उसके सिर पर पगड़ी बान्धकर पगड़ी के साम्हने पर सोने के टीके को, अर्थात् पवित्रा मुकुट को लगाया, जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। 03O 8 10 तब मूसा ने अभिषेक का तेल लेकर निवास का और जो कुछ उस में था उन सब को भी अभिषेक करके उन्हें पवित्रा किया। 03O 8 11 और उस तेल में से कुछ उस ने वेदी पर सात बार छिड़का, और कुल सामान समेत वेदी का और पाए समेत हौदी का अभिषेक करके उन्हें पवित्रा किया। 03O 8 12 और उस ने अभिषेक के तेल में से कुछ हारून के सिर पर डालकर उसका अभिषेक करके उसे पवित्रा किया। 03O 8 13 फिर मूसा ने हारून के पुत्रों को समीप ले आकर, अंगरखे पहिनाकर, फेटे बान्ध के उनके सिर पर टोपी रख दी, जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। 03O 8 14 तब वह पापबलि के बछड़े को समीप ले गया; और हारून और उसके पुत्रों ने अपने अपने हाथ पापबलि के बछड़े के सिर पर रखें 03O 8 15 तब वह बलि किया गया, और मूसा ने लोहू को लेकर उंगली से वेदी के चारों सींगों पर लगाकर पवित्रा किया, और लोहू को वेदी के पाए पर उंडेल दिया, और उसके लिये प्रायश्चित्त करके उसको पवित्रा किया। 03O 8 16 और मूसा ने अंतड़ियों पर की सब चरबी, और कलेजे पर की झिल्ली, और चरबी समेत दोनों गुर्दों को लेकर वेदी पर जलाया। 03O 8 17 ओर बछड़े में से जो कुछ शेष रह गया उसको, अर्थात् गोबर समेत उसकी खाल और मांस को उस ने छावनी से बाहर आग में जलाया, जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। 03O 8 18 फिर वह होमबलि के मेढ़े को समीप ले गया, और हारून और उसके पुत्रों ने अपने अपने हाथ मेंढ़े के सिर पर रखे। 03O 8 19 तब वह बलि किया गया, और मूसा ने उसका लोहू वेदी पर चारों ओर छिड़का। 03O 8 20 किया गया, और मूसा ने सिर ओर चरबी समेत टुकड़ों को जलाया। 03O 8 21 तब अंतड़ियां और पांव जल से धोये गए, और मूसा ने पूरे मेढ़े को वेदी पर जलाया, और वह सुखदायक सुगन्ध देने के लिये होमबलि और यहोवा के लिये हव्य हो गया, जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। 03O 8 22 फिर वह दूसरे मेढ़े को जो संस्कार का मेढ़ा था समीप ले गया, और हारून और उसके पुत्रों ने अपने अपने हाथ मेढ़े के सिर पर रखे। 03O 8 23 तब वह बलि किया गया, और मूसा ने उसके लोहू में से कुछ लेकर हारून के दहिने कान के सिरे पर और उसके दहिने हाथ और दहिने पांव के अंगूठों पर लगाया। 03O 8 24 और वह हारून के पुत्रों को समीप ले गया, और लोहू में से कुछ एक एक के दहिने कान के सिरे पर और दहिने हाथ ओर दहिने पांव के अंगूठों पर लगाया; और मूसा ने लोहू को वेदी पर चारों ओर छिड़का। 03O 8 25 और उस ने चरबी, और मोटी पूंछ, ओर अंतड़ियों पर की सब चरबी, और कलेजे पर की झिल्ली समेत दोनों गुर्दे, और दहिनी जांघ, ये सब लेकर अलग रखे; 03O 8 26 ओर अखमीरी रोटी की टोकरी जो यहोवा के आगे रखी गई थी उस में से एक रोटी, और तेल से सने हुए मैदे का एक फुलका, और एक रोटी लेकर चरबी और दहिनी जांघ पर रख दी; 03O 8 27 और ये सब वस्तुएं हारून और उसके पुत्रों के हाथों पर धर दी गई, और हिलाने की भेंट के लिये यहोवा के साम्हने हिलाई गई। 03O 8 28 और मूसा ने उन्हें फिर उनके हाथों पर से लेकर उन्हें वेदी पर होमबलि के ऊपर जलाया, यह सुखदायक सुगन्ध देने के लिये संस्कार की भेंट और यहोवा के लिये हव्य था। 03O 8 29 तब मूसा ने छाती को लेकर हिलाने की भेंट के लिये यहोवा के आगे हिलाया; और संस्कार के मेढ़ें में से मूसा का भाग यही हुआ जैसा यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। 03O 8 30 और मूसा ने अभिषेक के तेल ओर वेदी पर के लोहू, दोनों में से कुछ लेकर हारून और उसके वस्त्रों पर, और उसके पुत्रों और उनके वस्त्रों पर भी छिड़का; और उस ने वस्त्रों समेत हारून को ओर वस्त्रों समेत उसके पुत्रों को भी पवित्रा किया। 03O 8 31 और मूसा ने हारून और उसके पुत्रों से कहा, मांस को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर पकाओ, और उस रोटी को जो संस्कार की टोकरी में है वहीं खाओ, जैसा मैं ने आज्ञा दी है, कि हारून और उसके पुत्रा उसे खाएं। 03O 8 32 और मांस और रोटी में से जो शेष रह जाए उसे आग में जला देना। 03O 8 33 और जब तक तुम्हारे संस्कार के दिन पूरे न हों तब तक, अर्थात् सात दिन तक मिलापवाले तम्बू के द्वार के बाहर न जाना, क्योंकि वह सात दिन तक तुम्हारा संस्कार करता रहेगा। 03O 8 34 जिस प्रकार आज किया गया है वैसा ही करने की आज्ञा यहोवा ने दी है, जिस से तुम्हारा प्रायश्चित्त किया जाए। 03O 8 35 इसलिये तुम मिलापवाले तम्बू के द्वार पर सात दिन तक दिन रात ठहरे रहना, और यहोवा की आज्ञा को मानना, ताकि तुम मर न जाओ; क्योंकि ऐसी की आज्ञा मुझे दी गई है। 03O 8 36 तब यहोवा की इन्हीं सब आज्ञाओं के अनुसार जो उस ने मूसा के द्वारा दी थीं हारून ओर उसके पुत्रों ने उनका पालन किया।। 03O 9 1 आठवें दिन मूसा ने हारून और उसके पुत्रों को और इस्त्राएली पुरनियों को बुलवाकर हारून से कहा, 03O 9 2 पापबलि के लिये एक निर्दोष बछड़ा, और होमबलि के लिये एक निर्दोष मेढ़ा लेकर यहोवा के साम्हने भेंट चढ़ा। 03O 9 3 और इस्त्राएलियों से यह कह, कि तुम पापबलि के लिये एक बकरा, और होमबलि के लिये एक बछड़ा और एक भेड़ को बच्चा लो, जो एक वर्ष के हों और निर्दोष हों, 03O 9 4 और मेलबलि के लिये यहोवा के सम्मुख चढ़ाने के लिये एक बैल और एक मेढ़ा, और तेल से सने हुए मैदे का एक अन्नबलि भी ले लो; क्योंकि आज यहोवा तुम को दर्शन देगा। 03O 9 5 और जिस जिस वस्तु की आज्ञा मूसा ने दी उन सब को वे मिलापवाले तम्बू के आगे ले आए; और सारी मण्डली समीप जाकर यहोवा के साम्हने खड़ी हुई। 03O 9 6 तब मूसा ने कहा, यह वह काम है जिसके करने के लिये यहोवा ने आज्ञा दी है कि तुम उसे करो; और यहोवा की महिमा का तेज तुम को दिखाई पड़ेगा। 03O 9 7 और मूसा ने हारून से कहा, यहोवा की आज्ञा के अनुसार वेदी के समीप जाकर अपने पापबलि और होमबलि को चढ़ाकर उनके लिये प्रायश्चित्त कर। 03O 9 8 इसलिये हारून ने वेदी के समीप जाकर अपने पापबलि के बछड़े को बलिदान किया। 03O 9 9 और हारून के पुत्रा लोहू को उसके पास ले गए, तब उस ने अपनी उंगली को लोहू में डुबाकर वेदी के सींगों पर लोहू को लगाया, और शेष लोहू को वेदी के पाए पर उंडेल दिया; 03O 9 10 और पापबलि में की चरबी और गुर्दों और कलेजे पर की झिल्ली को उस ने वेदी पर जलाया, जैसा यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। 03O 9 11 और मांस और खाल को उस ने छावनी से बाहर आग में जलाया। 03O 9 12 तब होमबलिपशु को बलिदान किया; और हारून के पुत्रों ने लोहू को उसके हाथ में दिया, और उस ने उसको वेदी पर चारों ओर छिड़क दिया। 03O 9 13 तब उन्हों ने होमबलिपशु का टुकड़ा टुकड़ा करके सिर सहित उसके हाथ में दे दिया और उस ने उनको वेदी पर जला दिया। 03O 9 14 और उस ने अंतड़ियों और पांवों को धोकर वेदी पर होमबलि के ऊपर जलाया। 03O 9 15 और उस ने लोगों के चढ़ावे को आगे लेकर और उस पापबलि के बकरे को जो उनके लिये था लेकर उसका बलिदान किया, और पहिले के समान उसे भी पापबलि करके चढ़ाया। 03O 9 16 और उस ने होमबलि को भी समीप ले जाकर विधि के अनुसार चढ़ाया। 03O 9 17 और अन्नबलि को भी समीप ले जाकर उस में से मुट्ठी भर वेदी पर जलाया, यह भोर के होमबलि के अलावा चढ़ाया गया। 03O 9 18 और बैल और मेढ़ा, अर्थात् जो मेलबलिपशु जनता के लिये थे वे भी बलि किये गए; और हारून के पुत्रों ने लोहू को उसके हाथ में दिया, और उस ने उसको वेदी पर चारों ओर छिड़क दिया; 03O 9 19 और उन्हों ने बैल की चरबी को, और मेढ़े में से मोटी पूंछ को, और जिस चरबी से अतड़ियां ढपी रहती हैं उसको, ओर गुर्दों सहित कलेजे पर की झिल्ली को भी उसके हाथ में दिया; 03O 9 20 और उन्हों ने चरबी को छातियों पर रखा; और उस ने वह चरबी वेदी पर जलाई, 03O 9 21 परन्तु छातियों और दहिनी जांघ को हारून ने मूसा की आज्ञा के अनुसार हिलाने की भेंट के लिये यहोवा के साम्हने हिलाया। 03O 9 22 तब हारून ने लोगों की ओर हाथ बढ़ाकर उनहें आशीर्वाद दिया; और पापबलि, होमबलि, और मेलबलियों को चढ़ाकर वह नीचे उतर आया। 03O 9 23 तब मूसा और हारून मिलापवाले तम्बू में गए, और निकलकर लोगों को आशीर्वाद दिया; तब यहोवा का तेज सारी जनता को दिखाई दिया। 03O 9 24 और यहोवा के साम्हने से आग निकलकर चरबी सहित होमबलि को वेदी पर भस्म कर दिया; इसे देखकर जनता ने जय जयकार का नारा मारा, और अपने अपने मुंह के बल गिरकर दण्डवत किया।। 03O 10 1 तब नादाब और अबीहू नामक हारून के दो पुत्रों ने अपना अपना धूपदान लिया, और उन में आग भरी, और उस में धूप डालकर उस ऊपरी आग की जिसकी आज्ञा यहोवा ने नहीं दी थी यहोवा के सम्मुख आरती दी। 03O 10 2 तब यहोवा के सम्मुख से आग निकलकर उन दोनों को भस्म कर दिया, और वे यहोवा के साम्हने मर गए। 03O 10 3 तब मूसा ने हारून से कहा, यह वही बात है जिसे यहोवा ने कहा था, कि जो मेरे समीप आए अवश्य है कि वह मुझे पवित्रा जाने, और सारी जनता के साम्हने मेरी महिमा करे। और हारून चुप रहा। 03O 10 4 तब मूसा ने मीशाएल और एलसाफान को जो हारून के चाचा उज्जीएल के पुत्रा थे बुलाकर कहा, निकट आओ, और अपने भतीजों को पवित्रास्थान के आगे से उठाकर छावनी के बाहर ले जाओ। 03O 10 5 मूसा की इस आज्ञा के अनुसार वे निकट जाकर उनको अंगरखों सहित उठाकर छावनी के बाहर ले गए। 03O 10 6 तब मूसा ने हारून से और उसके पुत्रा एलीआजर और ईतामार से कहा, तुम लोग अपने सिरों के बाल मत बिखराओ, और न अपने वस्त्रों को फाड़ो, ऐसा न हो कि तुम भी मर जाओ, और सारी मण्डली पर उसका क्रोध भड़क उठे; परन्तु वह इस्त्राएल के कुल घराने के लोग जो तुम्हारे भाईबन्धु हैं यहोवा की लगाई हुई आग पर विलाप करें। 03O 10 7 और तुम लोग मिलापवाले तम्बू के द्वार के बाहर न जाना, ऐसा न हो कि तुम मर जाओ; क्योंकि यहोवा के अभिषेक का तेल तुम पर लगा हुआ है। मूसा के इस वचन के अनुसार उन्हों ने किया।। 03O 10 8 फिर यहोवा ने हारून से कहा, 03O 10 9 कि जब जब तू वा तेरे पुत्रा मिलापवाले तम्बू में आएं तब तब तुम में से कोई न तो दाखमधु पिए हो न और किसी प्रकार का मद्य, कहीं ऐसा न हो कि तुम मर जाओ; तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में यह विधि प्रचलित रहे, 03O 10 10 जिस से तुम पवित्रा और अपवित्रा में, और शुद्ध और अशुद्ध में अन्तर कर सको; 03O 10 11 और इस्त्राएलियों को उन सब विधियों को सिखा सको जिसे यहोवा ने मूसा के द्वारा उनको सुनवा दी हैं।। 03O 10 12 फिर मूसा ने हारून से और उसके बचे हुए दोनों पुत्रा ईतामार और एलीआजर से भी कहा, यहोवा के हव्य में से जो अन्नबलि बचा है उसे लेकर वेदी के पास बिना खमीर खाओ, क्योंकि वह परमपवित्रा है; 03O 10 13 और तुम उसे किसी पवित्रास्थान में खाओ, वह तो यहोवा के हव्य में से तेरा और तेरे पुत्रों का हक है; क्योंकि मै ने ऐसी ही आज्ञा पाई है। 03O 10 14 और हिलाई हुई भेंट की छाती और उठाई हुई भेंट की जांघ को तुम लोग, अर्थात् तू और बेटे- बेटियां सब किसी शुद्ध स्थान में खाओ; क्योंकि वे इस्त्राएलियों के मेलबलियों में से तुझे और तेरे लड़केबालों की हक ठहरा दी गई हैं। 03O 10 15 चरबी के हव्यों समेत जो उठाई हुई जांघ और हिलाई हुई छाती यहोवा के साम्हने हिलाने के लिये आया करेंगी, ये भाग यहोवा की आज्ञा के अनुसार सर्वदा की विधी की व्यवस्था से तेरे और तेरे लड़केबालों के लिये हैं।। 03O 10 16 फिर मूसा ने पापबलि के बकरे की जो ढूंढ़- ढांढ़ की, तो क्या पाया, कि वह जलाया गया है, सो एलीआज़र और ईतामार जो हारून के पुत्रा बचे थे उन से वह क्रोध में आकर करने लगा, 03O 10 17 कि पापबलि जो परमपवित्रा है और जिसे यहोवा ने तुम्हे इसलिये दिया है कि तुम मण्डली के अधर्म का भार अपने पर उठाकर उनके लिये यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करो, तुम ने उसका मांस पवित्रास्थान में क्यों नहीं खाया? 03O 10 18 देखो, उसका लोहू पवित्रास्थान के भीतर तो लाया ही नहीं गया, नि:सन्देह उचित था कि तुम मेरी आज्ञा के अनुसार उसके मांस को पवित्रास्थान में खाते। 03O 10 19 इसका उत्तर हारून ने मूसा को इस प्रकार दिया, कि देख, आज ही उन्हों ने अपने पापबलि और होमबलि को यहोवा के साम्हने चढ़ाया; फिर मुझ पर ऐसी विपत्तियां आ पड़ी हैं ! इसलिये यदि मैं आज पापबलि का मांस खाता तो क्या यह बात यहोवा के सम्मुख भली होती? 03O 10 20 जब मूसा ने यह सुना तब उसे संतोष हुआ।। 03O 11 1 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 03O 11 2 इस्त्राएलियों से कहो, कि जितने पशु पृथ्वी पर हैं उन सभों में से तुम इन जीवधारियों का मांस खा सकते हो। 03O 11 3 पशुओं में से जितने चिरे वा फटे खुर के होते हैं और पागुर करते हैं उन्हें खा सकते हो। 03O 11 4 परन्तु पागुर करनेवाले वा फटे खुरवालों में से इन पशुओं को न खाना, अर्थात् ऊंट, जो पागुर तो करता है परन्तु चिरे खुर का नहीं होता, इसलिये वह तुम्हारे लिये अशुद्ध ठहरा है। 03O 11 5 और शापान, जो पागुर तो करता है परन्तु चिरे खुर का नहीं होता, वह भी तुम्हारे लिये अशुद्ध है। 03O 11 6 और खरहा, जो पागुर तो करता है परन्तु चिरे खुर का नहीं होता, इसलिये वह भी तुम्हारे लिये अशुद्ध है। 03O 11 7 और सूअर, जो चिरे अर्थात् फटे खुर का होता तो है परन्तु पागुर नहीं करता, इसलिये वह तुम्हारे लिये अशुद्ध है। 03O 11 8 इनके मांस में से कुछ न खाना, और इनकी लोथ को छूना भी नहीं; ये तो तुम्हारे लिये अशुद्ध है।। 03O 11 9 फिर जितने जलजन्तु हैं उन में से तुम इन्हें खा सकते हों, अर्थात् समुद्र वा नदियों के जलजन्तुओं में से जितनों के पंख और चोंयेटे होते हैं उन्हें खा सकते हो। 03O 11 10 और जलचरी प्राणियों में से जितने जीवधारी बिना पंख और चोंयेटे के समुद्र वा नदियों में रहते हैं वे सब तुम्हारे लिये घृणित हैं। 03O 11 11 वे तुम्हारे लिये घृणित ठहरें; तुम उनके मांस में से कुछ न खाना, और उनकी लोथों को अशुद्ध जानना। 03O 11 12 जल में जिस किसी जन्तु के पंख और चोंयेटे नहीं होते वह तुम्हारे लिये अशुद्ध है।। 03O 11 13 फिर पक्षियों में से इनको अशुद्ध जानना, ये अशुद्ध होने के कारण खाए न जाएं, अर्थात् उकाब, हड़फोड़, कुरर, 03O 11 14 शाही, और भांति भांति की चील, 03O 11 15 और भांति भांति के सब काग, 03O 11 16 शुतुर्मुर्ग, तखमास, जलकुक्कुट, और भांति भांति के बाज, 03O 11 17 हवासिल, हाड़गील, उल्लू, 03O 11 18 राजहँस, धनेश, गिद्ध, 03O 11 19 लगलग, भांति भांति के बगुले, टिटीहरी और चमगीदड़।। 03O 11 20 जितने पंखवाले चार पांवों के बल चरते हैं वे सब तुम्हारे लिये अशुद्ध हैं। 03O 11 21 पर रेंगनेवाले और पंखवाले जो चार पांवों के बल चलते हैं, जिनके भूमि पर कूदने फांदने को टांगे होती हैं उनको तो खा सकते हो। 03O 11 22 वे ये हैं, अर्थात् भांति भांति की टिड्डी, भांति भांति के फनगे, भांति भांति के हर्गोल, और भांति भांति के हागाब। 03O 11 23 परन्तु और सब रेंगनेवाले पंखवाले जो चार पांववाले होते हैं वे तुम्हारे लिये अशुद्ध हैं।। 03O 11 24 और इनके कारण तुम अशुद्ध ठहरोगे; जिस किसी से इनकी लोथ छू जाए वह सांझ तक अशुद्ध ठहरे। 03O 11 25 और जो कोई इनकी लोथ में का कुछ भी उठाए वह अपने वस्त्रा धोए और सांझ तक अशुद्ध रहे। 03O 11 26 फिर जितने पशु चिरे खुर के होते है। परन्तु न तो बिलकुल फटे खुर और पागुर करनेवाले हैं वे तुम्हारे लिये अशुद्ध हैं; जो कोई उन्हें छूए वह अशुद्ध हैं; जो कोई उन्हें छूए वह अशुद्ध ठहरेगा। 03O 11 27 और चार पांव के बल चलनेवालों में से जितने पंजों के बल चलते हैं वे सब तुम्हारे लिये अशुद्ध हैं; जो कोई उनकी लोथ छूए वह सांझ तक अशुद्ध रहे। 03O 11 28 और जो कोई उनकी लोथ उठाए वह अपने वस्त्रा धोए और सांझ तक अशुद्ध रहे; क्योंकि वे तुम्हारे लिये अशुद्ध हैं।। 03O 11 29 और जो पृथ्वी पर रेंगते हैं उन में से ये रेंगनेवाले तुम्हारे लिये अशुद्ध हैं, अर्थात् नेवला, चूहा, और भांति भांति के गोह, 03O 11 30 और छिपकली, मगर, टिकटिक, सांडा, और गिरगिटान। 03O 11 31 सब रेंगनेवालों में से ये ही तुम्हारे लिये अशुद्ध हैं; जो कोई इनकी लोथ छूए वह सांझ तक अशुद्ध रहे। 03O 11 32 और इन में से किसी की लोथ जिस किसी वस्तु पर पड़ जाए वह भी अशुद्ध ठहरे, चाहे वह काठ का कोई पात्रा हो, चाहे वस्त्रा, चाहे खाल, चाहे बोरा, चाहे किसी काम का कैसा ही पात्रादि क्यों न हो; वह जल में डाला जाए, और सांझ तक अशुद्ध रहे, तब शुद्ध समझा जाए। 03O 11 33 और यदि मिट्टी का कोई पात्रा हो जिस में इन जन्तुओं में से कोई पड़े, तो उस पात्रा में जो कुछ हो वह अशुद्ध ठहरे, और पात्रा को तुम तोड़ डालना। 03O 11 34 उस में जो खाने के योग्य भोजन हो, जिस में पानी का छुआव हों वह सब अशुद्ध ठहरे; फिर यदि ऐसे पात्रा में पीने के लिये कुछ हो तो वह भी अशुद्ध ठहरे। 03O 11 35 और यदि इनकी लोथ में का कुछ तंदूर वा चूल्हे पर पड़े तो वह भी अशुद्ध ठहरे, और तोड़ डाला जाए; क्योंकि वह अशुद्ध हो जाएगा, वह तुम्हारे लिये भी अशुद्ध ठहरे। 03O 11 36 परन्तु सोता वा तालाब जिस में जल इकट्ठा हो वह तो शुद्ध ही रहे; परन्तु जो कोई इनकी लोथ को छूए वह अशुद्ध ठहरे। 03O 11 37 और यदि इनकी लोथ में का कुछ किसी प्रकार के बीज पर जो बोने के लिये हो पड़े, तो वह बीज शुद्ध रहे; 03O 11 38 पर यदि बीज पर जल डाला गया हो और पीछे लोथ में का कुछ उस पर पड़ जाए, तो वह तुम्हारे लिये अशुद्ध ठहरे।। 03O 11 39 फिर जिन पशुओं के खाने की आज्ञा तुम को दी गई है यदि उन में से कोई पशु मरे, तो जो कोई उसकी लोथ छूए वह सांझ तक अशुद्ध रहे। 03O 11 40 और उसकी लोथ में से जो कोई कुछ खाए वह अपने वस्त्रा धोए और सांझ तक अशुद्ध रहे; और जो कोई उसकी लोथ उठाए वह भी अपने वस्त्रा धोए और सांझ तक अशुद्ध रहे। 03O 11 41 और सब प्रकार के पृथ्वी पर रेंगनेवाले जन्तु घिनौने हैं; वे खाए न जाएं। 03O 11 42 पृथ्वी पर सब रेंगनेवालों में से जितने पेट वा चार पांवों के बल चलते हैं, वा अधिक पांववाले होते हैं, उन्हें तुम न खाना; क्योंकि वे घिनौने हैं। 03O 11 43 तुम किसी प्रकार के रेंगनेवाले जन्तु के द्वारा अपने आप को घिनौना न करना; और न उनके द्वारा अपने को अशुद्ध करके अपवित्रा ठहराना। 03O 11 44 क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं; इस प्रकार के रेंगनेवाले जन्तु के द्वारा जो पृथ्वी पर चलता है अपने आप को अशुद्ध न करना। 03O 11 45 क्योंकि मैं वह यहोवा हूं जो तुम्हें मि देश से इसलिये निकाल ले आया हूं कि तुम्हारा परमेश्वर ठहरूं; इसलिये तुम पवित्रा बनो, क्योंकि मैं पवित्रा हूं।। 03O 11 46 पशुओं, पक्षियों, और सब जलचरी प्राणियों, और पृथ्वी पर सब रेंगनेवाले प्राणियों के विषय में यही व्यवस्था है, 03O 11 47 कि शुद्ध अशुद्ध और भक्षय और अभक्षय जीवधारियों में भेद किया जाए।। 03O 12 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 12 2 इस्त्राएलियों से कह, कि जो स्त्री गर्भिणी हो और उसके लड़का हो, तो वह सात दिन तक अशुद्ध रहेगी; जिस प्रकार वह ऋतुमती होकर अशुद्ध रहा करती। 03O 12 3 और आठवें दिन लड़के का खतना किया जाए। 03O 12 4 फिर वह स्त्री अपने शुद्ध करनेवाले रूधिर में तेंतीस दिन रहे; और जब तक उसके शुद्ध हो जाने के दिन पूरे न हों तब तक वह न तो किसी पवित्रा वस्तु को छुए, और न पवित्रास्थान में प्रवेश करे। 03O 12 5 और यदि उसके लड़की पैदा हो, तो उसको ऋतुमती की सी अशुद्धता चौदह दिन की लगे; और फिर छियासठ दिन तक अपने शुद्ध करनेवाले रूधिर में रहे। 03O 12 6 और जब उसके शुद्ध हो जाने के दिन पूरे हों, तब चाहे उसके बेटा हुआ हो चाहे बेटी, वह होमबलि के लिये एक वर्ष का भेड़ी का बच्चा, और पापबलि के लिये कबूतरी का एक बच्चा वा पंडुकी मिलापवाले तम्बू के द्वार पर याजक के पास लाए। 03O 12 7 तब याजक उसको यहोवा के साम्हने भेंट चढ़ाके उसके लिये प्रायश्चित्त करे; और वह अपने रूधिर के बहने की अशुद्धता से छूटकर शुद्ध ठहरेगी। जिस स्त्री के लड़का वा लड़की उत्पन्न हो उसके लिये यही व्यवस्था है। 03O 12 8 और यदि उसके पास भेड़ वा बकरी देने की पूंजी न हो, तो दो पंडुकी वा कबूतरी के दो बच्चे, एक तो होमबलि और दूसरा पापबलि के लिये दे; और याजक उसके लिये प्रायश्चित्त करे, तब वह शुद्ध ठहरेगी।। 03O 13 1 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 03O 13 2 जब किसी मनुष्य के शरीर के चर्म में सूजन वा पपड़ी वा फूल हो, और इस से उसके चर्म में कोढ़ की व्याधि सा कुछ देख पड़े, तो उसे हारून याजक के पास या उसके पुत्रा जो याजक हैं उन में से किसी के पास ले जाएं। 03O 13 3 जब याजक उसके चर्म की व्याधि को देखे, और यदि उस व्याधि के स्थान के रोएं उजले हो गए हों और व्याधि चर्म से गहरी देख पड़े, तो वह जान ले कि कोढ़ की व्याधि है; और याजक उस मनुष्य को देखकर उसको अशुद्ध ठहराए। 03O 13 4 और यदि वह फूल उसके चर्म में उजला तो हो, परन्तु चर्म से गहरा न देख पड़े, और न वहां के रोएं उजले हो गए हों, तो याजक उनको सात दिन तक बन्दकर रखे; 03O 13 5 और सातवें दिन याजक उसको देखे, और यदि वह व्याधि जैसी की तैसी बनी रहे और उसके चर्म में न फैली हो, तो याजक उसको और भी सात दिन तक बन्दकर रखे; 03O 13 6 और सातवें दिन याजक उसको फिर देखे, और यदि देख पड़े कि व्याधि की चमक कम है और व्याधि चर्म पर फैली न हो, तो याजक उसको शुद्ध ठहराए; क्योंकि उसके तो चर्म में पपड़ी है; और वह अपने वस्त्रा धोकर शुद्ध हो जाए। 03O 13 7 और यदि याजक की उस जांच के पश्चात् जिस में वह शुद्ध ठहराया गया था, वह पपड़ी उसके चर्म पर बहुत फैल जाए, तो वह फिर याजक को दिखाया जाए; 03O 13 8 और यदि याजक को देख पड़े कि पपड़ी चर्म में फैल गई है, तो वह उसको अशुद्ध ठहराए; क्योंकि वह कोढ़ ही है।। 03O 13 9 यदि कोढ़ की सी व्याधि किसी मनुष्य के हो, तो वह याजक के पास पहुचाया जाए; 03O 13 10 और याजक उसको देखे, और यदि वह सूजन उसके चर्म में उजली हो, और उसके कारण रोएं भी उजले हो गए हों, और उस सूजन में बिना चर्म का मांस हो, 03O 13 11 तो याजक जाने कि उसके चर्म में पुराना कोढ़ है, इसलिये वह उसको अशुद्ध ठहराए; और बन्द न रखे, क्योंकि वह तो अशुद्ध है। 03O 13 12 और यदि कोढ़ किसी के चर्म में फूटकर यहां तक फैल जाए, कि जहां कहीं याजक देखें व्याधित के सिर से पैर के तलवे तक कोढ़ ने सारे चर्म को छा लिया हो, 03O 13 13 जो याजक ध्यान से देखे, और यदि कोढ़ ने उसके सारे शरीर को छा लिया हो, तो वह उस व्याधित को शुद्ध ठहराए; और उसका शरीर जो बिलकुल उजला हो गया है वह शुद्ध ही ठहरे। 03O 13 14 पर जब उस में चर्महीन मांस देख पड़े, तब तो वह अशुद्ध ठहरे। 03O 13 15 और याजक चर्महीन मांस को देखकर उसको अशुद्ध ठहराए; कयोंकि वैसा चर्महीन मांस अशुद्ध ही होता है; वह कोढ़ है। 03O 13 16 पर यदि वह चर्महीन मांस फिर उजला हो जाए, तो वह मनुष्य याजक के पास जाए, 03O 13 17 और याजक उसको देखे, और यदि वह व्याधि फिर से उजली हो गई हो, तो याजक व्याधित को शुद्ध जाने; वह शुद्ध है।। 03O 13 18 फिर यदि किसी के चर्म में फोड़ा होकर चंगा हो गया हो, 03O 13 19 और फोड़े के स्थान में उजली सी सूजन वा लाली लिये हुए उजला फूल हो, तो वह याजक को दिखाया जाए। 03O 13 20 और याजक उस सूजन को देखे, और यदि वह चर्म से गहिरा देख पड़े, और उसके रोएं भी उजले हो गए हों, तो याजक यह जानकर उस मनुष्य को अशुद्ध ठहराए; क्योंकि वह कोढ़ की व्याधि है जो फोड़े में से फूटकर निकली है। 03O 13 21 और यदि याजक देखे कि उस में उजले रोएं नहीं हैं, और वह चर्म से गहिरी नहीं, और उसकी चमक कम हुई है, तो याजक उस मनुष्य को सात दिन तक बन्द कर रखे। 03O 13 22 और यदि वह व्याधि उस समय तक चर्म में सचमुच फैल जाए, तो याजक उस मनुष्य को अशुद्ध ठहराए; क्योंकि वह कोढ़ की व्याधि है। 03O 13 23 परन्तु यदि वह फूल न फैले और अपने स्थान ही पर बना रहे, तो वह फोड़े को दाग है; याजक उस मनुष्य को शुद्ध ठहराए।। 03O 13 24 फिर यदि किसी के चर्म में जलने का घाव हो, और उस जलने के घाव में चर्महीन फूल लाली लिये हुए उजला वा उजला ही हो जाए, 03O 13 25 तो याजक उसको देखे, और यदि उस फूल में के रोएं उजले हो गए हों और वह चर्म से गहिरा देख पड़े, तो वह कोढ़ है; जो उस जलने के दाग में से फूट निकला है; याजक उस मनुष्य को अशुद्ध ठहराए; क्योंकि उस में कोढ़ की व्याधि है। 03O 13 26 और यदि याजक देखे, कि फूल में उजले रोएं नहीं और न वह चर्म से कुछ गहिरा है, और उसकी चमक कम हुई है, तो वह उसको सात दिन तक बन्द कर रखे, 03O 13 27 और सातवें दिन याजक उसको देखे, और यदि वह चर्म में फैल गई हो, तो वह उस मनुष्य को अशुद्ध ठहराए; क्योंकि उसको कोढ़ की व्याधि है। 03O 13 28 परन्तु यदि वह फूल चर्म में नहीं फैला और अपने स्थान ही पर जहां का तहां ही बना हो, और उसकी चमक कम हुई हो, तो वह जल जाने के कारण सूजा हुआ है, याजक उस मनुष्य को शुद्ध ठहराए; क्योंकि वह दाग जल जाने के कारण से है।। 03O 13 29 फिर यदि किसी पुरूष वा स्त्री के सिर पर, वा पुरूष की डाढ़ी में व्याधि हो, 03O 13 30 तो याजक व्याधि को देखे, और यदि वह चर्म से गहिरी देख पड़े, और उस में भूरे भूरे पतले बाल हों, तो याजक उस मनुष्य को अशुद्ध ठहराए; वह व्याधि सेंहुआं, अर्थात् सिर वा डाढ़ी का कोढ़ है। 03O 13 31 और यदि याजक सेंहुएं की व्याधि को देखे, कि वह चर्म से गहिरी नहीं है और उस में काले काले बाल नहीं हैं, तो वह सेंहुएं के व्याधित को सात दिन तक बन्द कर रखे, 03O 13 32 और सातवें दिन याजक व्याधि को देखे, तब यदि वह सेंहुआं फैला न हो, और उस में भूरे भूरे बाल न हों, और सेंहुआं चर्म से गहिरा न देख पड़े, 03O 13 33 तो यह मनुष्य मूंड़ा जाए, परन्तु जहां सेंहुआं हो वहां न मूंड़ा जाए; और याजक उस सेंहुएंवाले को और भी सात दिन तक बन्द करे; 03O 13 34 और सातवें दिन याजक सेहुएं को देखे, और यदि वह सेंहुआं चर्म में फैला न हो और चर्म से गहिरा न देख पड़े, तो याजक उस मनुष्य को शुद्ध ठहराए; और वह अपने वस्त्रा धोके शुद्ध ठहरे। 03O 13 35 और यदि उसके शुद्ध ठहरने के पश्चात् सेंहुआं चर्म में कुछ भी फैले, 03O 13 36 तो याजक उसको देखे, और यदि वह चर्म में फैला हो, तो याजक यह भूरे बाल न ढूंढ़े, क्योंकि मनुष्य अशुद्ध है। 03O 13 37 परन्तु यदि उसकी दृष्टि में वह सेंहुआं जैसे का तैसा बना हो, और उस में काले काले बाल जमे हों, तो वह जाने की सेंहुआं चंगा हो गया है, और वह मनुष्य शुद्ध है; याजक उसको शुद्ध ही ठहराए।। 03O 13 38 फिर यदि किसी पुरूष वा स्त्री के चर्म में उजले फूल हों, 03O 13 39 तो याजक देखे, और यदि उसके चर्म में वे फूल कम उजले हों, तो वह जाने कि उसको चर्म में निकली हुई चाईं ही है; वह मनुष्य शुद्ध ठहरे।। 03O 13 40 फिर जिसके सिर के बाल झड़ गए हों, तो जानना कि वह चन्दुला तो है परन्तु शुद्ध है। 03O 13 41 और जिसके सिर के आगे के बाल झड़ गए हों, तो वह माथे का चन्दुला तो है परन्तु शुद्ध है। 03O 13 42 परन्तु यदि चन्दुले सिर पर वा चन्दुले माथे पर लाली लिये हुए उजली व्याधि हो, तो जानना कि वह उसके चन्दुले सिर पर वा चन्दुले माथे पर निकला हुआ कोढ़ है। 03O 13 43 इसलिये याजक उसको देखे, और यदि व्याधि की सूजन उसके चन्दुले सिर वा चन्दुले माथे पर ऐसी लाली लिये हुए उजली हो जैसा चर्म के कोढ़ में होता है, 03O 13 44 तो वह मनुष्य कोढ़ी है और अशुद्ध है; और याजक उसको अवश्य अशुद्ध ठहराए; क्योंकि वह व्याधि उसके सिर पर है।। 03O 13 45 और जिस में वह व्याधि हो उस कोढ़ी के वस्त्रा फटे और सिर के बाल बिखरे रहें, और वह अपने ऊपरवाले होंठ को ढांपे हुए अशुद्ध, अशुद्ध पुकारा करे। 03O 13 46 जितने दिन तक वह व्याधि उस में रहे उतने दिन तक वह तो अशुद्ध रहेगा; और वह अशुद्ध ठहरा रहे; इसलिये वह अकेला रहा करे, उसका निवास स्थान छावनी के बाहर हो।। 03O 13 47 फिर जिस वस्त्रा में कोढ़ की व्याधि हो, चाहे वह वस्त्रा ऊन का हो चाहे सनी का, 03O 13 48 वह व्याधि चाहे उस सनी वा ऊन के वस्त्रा के ताने में हो चाहे बाने में, वा वह व्याधि चमड़े में वा चमड़े की किसी वस्तु में हो, 03O 13 49 यदि वह व्याधि किसी वस्त्रा के चाहे ताने में चाहे बाने में, वा चमड़े में वा चमड़े की किसी वस्तु में हरी हो वा लाल सी हो, तो जानना कि वह कोढ़ की व्याधि है और वह याजक को दिखाई जाए। 03O 13 50 और याजक व्याधि को देखे, और व्याधिवाली वस्तु को सात दिन के लिये बन्द करे; 03O 13 51 और सातवें दिन वह उस व्याधि को देखे, और यदि वह वस्त्रा के चाहे ताने में चाहे बाने में, वा चमड़े में वा चमड़े की बनी हुई किसी वस्तु में फैल गई हो, तो जानना कि व्याधि गलित कोढ़ है, इसलिये वह वस्तु, चाहे कैसे ही काम में क्यों न आती हो, तौभी अशुद्ध ठहरेगी। 03O 13 52 वह उस वस्त्रा को जिसके ताने वा बाने में वह व्याधि हो, चाहे वह ऊन का हो चाहे सनी का, वा चमड़े की वस्तु हो, उसको जला दे, वह व्याधि गलित कोढ़ की है; वह वस्तु आग में जलाई जाए। 03O 13 53 और यदि याजक देखे कि वह व्याधि उस वस्त्रा के ताने वा बाने में, वा चमड़े की उस वस्तु में नहीं फैली, 03O 13 54 तो जिस वस्तु में व्याधि हो उसके धोने की आज्ञा दे, तक उसे और भी सात दिन तक बन्द कर रखे; 03O 13 55 और उसके धोने के बाद याजक उसको देखे, और यदि व्याधि का न तो रंग बदला हो, और न व्याधि फैली हो, तो जानना कि वह अशुद्ध है; उसे आग में जलाना, क्योंकि चाहे वह व्याधि भीतर चाहे ऊपरी हो तौभी वह खा जाने वाली व्याधि है। 03O 13 56 और यदि याजक देखे, कि उसके धोने के पश्चात् व्याधि की चमक कम हो गई, तो वह उसको वस्त्रा के चाहे ताने चाहे बाने में से, वा चमड़े में से फाड़के निकाले; 03O 13 57 और यदि वह व्याधि तब भी उस वस्त्रा के ताने वा बाने में, वा चमड़े की उस वस्तु में देख पड़े, तो जानना कि वह फूट के निकली हुई व्याधि है; और जिस में वह व्याधि हो उसे आग में जलाना। 03O 13 58 और यदि उस वस्त्रा से जिसके ताने वा बाने में व्याधि हो, वा चमड़े की जो वस्तु हो उस से जब धोई जाए और व्याधि जाती रही, तो वह दूसरी बार धुल कर शुद्ध ठहरे। 03O 13 59 ऊन वा सनी के वस्त्रा में के ताने वा बाने में, वा चमड़े की किसी वस्तु में जो कोढ़ की व्याधि हो उसके शुद्ध और अशुद्ध ठहराने की यही व्यवस्था है।। 03O 14 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 14 2 कोढ़ी के शुद्ध ठहराने की व्यवस्था यह है, कि वह याजक के पास पहुंचाया जाए। 03O 14 3 और याजक छावनी के बाहर जाए, और याजक उस कोढ़ी को देखे, और यदि उसके कोढ़ की व्याधि चंगी हुई हो, 03O 14 4 तो याजक आज्ञा दे कि शुद्ध ठहराने वाले के लिये दो शुद्ध और जीवित पक्षी, देवदारू की लकड़ी, और लाल रंग का कपड़ा और जूफा ये सब लिये जाएं; 03O 14 5 और याजक आज्ञा दे कि एक पक्षी बहते हुए जल के ऊपर मिट्टी के पात्रा में बलि किया जाए। 03O 14 6 तब वह जीवित पक्षी को देवदारू की लकड़ी और लाल रंग के कपड़े और जूफा इन सभों को लेकर एक संग उस पक्षी के लोहू में जो बहते हुए जल के ऊपर बलि किया गया है डुबा दे; 03O 14 7 और कोढ़ से शुद्ध ठहरनेवाले पर सात बार छिड़ककर उसको शुद्ध ठहराए, तब उस जीवित पक्षी को मैदान में छोड़ दे। 03O 14 8 और शुद्ध ठहरनेवाला अपने वस्त्रों को धोए, और सब बाल मुंड़वाकर जल से स्नान करे, तब वह शुद्ध ठहरेगा; और उसके बाद वह छावनी में आने पाए, परन्तु सात दिन तक अपने डेरे से बाहर ही रहे। 03O 14 9 और सातवें दिन वह सिर, डाढ़ी और भौहों के सब बाल मुंड़ाए, और सब अंग मुण्डन कराए, और अपने वस्त्रों को धोए, और जल से स्नान करे, तब वह शुद्ध ठहरेगा। 03O 14 10 और आठवें दिन वह दो निर्दोष भेड़ के बच्चे, और अन्नबलि के लिये तेल से सना हुआ एपा का तीन दहाई अंश मैदा, और लोज भर तेल लाए। 03O 14 11 और शुद्ध ठहरानेवाला याजक इन वस्तुओं समेत उस शुद्ध होनेवाले मनुष्य को यहोवा के सम्मुख मिलापवाले तम्बू के द्वार पर खड़ा करे। 03O 14 12 तब याजक एक भेड़ का बच्चा लेकर दोषबलि के लिये उसे और उस लोज भर तेल को समीप लाए, और इन दोनो को हिलाने की भेंट के लिये यहोवा के साम्हने हिलाए; 03O 14 13 तब याजक एक भेड़ के बच्चे को उसी स्थान में जहां वह पापबलि और होमबलि पशुओं का बलिदान किया करेगा, अर्थात् पवित्रास्थान में बलिदान करे; क्योंकि जैसा पापबलि याजक का निज भाग होगा वैसा ही दोषबलि भी उसी का निज भाग ठहरेगा; वह परमपवित्रा है। 03O 14 14 तब याजक दोषबलि के लोहू में से कुछ लेकर शुद्ध ठहरनेवाले के दहिने कान के सिरे पर, और उसके दहिने हाथ और दहिने पांव के अंगूठों पर लगाए। 03O 14 15 और याजक उस लोज भर तेल में से कुछ लेकर अपने बाएं हाथ की हथेली पर डाले, 03O 14 16 और याजक अपने दहिने हाथ की उंगली को अपने बाईं हथेली पर के तेल में डुबाकर उस तेल में से कुछ अपनी उंगली से यहोवा के सम्मुख सात बार छिड़के। 03O 14 17 और जो तेल उसकी हथेली पर रह जाएगा याजक उस में से कुछ शुद्ध होनेवाले के दहिने कान के सिरे पर, और उसके दहिने हाथ और दहिने पांव के अंगूठों पर दोषबलि के लोहू के ऊपर लगाएं; 03O 14 18 और जो तेल याजक की हथेली पर रह जाए उसको वह शुद्ध होनेवाले के सिर पर डाल दे। और याजक उसके लिये यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे। 03O 14 19 और याजक पापबलि को भी चढ़ाकर उसके लिये जो अपनी अशुद्धता से शुद्ध होनेवाला हो प्रायश्चित्त करे; और उसके बाद होमबलि पशु का बलिदान करके: 03O 14 20 अन्नबलि समेत वेदी पर चढ़ाए: और याजक उसके लिये प्रायश्चित्त करे, और वह शुद्ध ठहरेगा।। 03O 14 21 परन्तु यदि वह दरिद्र हो और इतना लाने के लिये उसके पास पूंजी न हो, तो वह अपना प्रायश्चित्त करवाने के निमित्त, हिलाने के लिये भेड़ का बच्चा दोषबलि के लिये, और तेल से सना हुआ एपा का दसवां अंश मैदा अन्नबलि करके, और लोज भर तेल लाए; 03O 14 22 और दो पंडुक, वा कबूतरी के दो बच्चे लाए, जो वह ला सके; और इन में से एक तो पापबलि के लिये और दूसरा होमबलि के लिये हो। 03O 14 23 और आठवें दिन वह इन सभों को अपने शुद्ध ठहरने के लिये मिलापवाले तम्बू के द्वार पर, यहोवा के सम्मुख, याजक के पास ले आए; 03O 14 24 तब याजक उस लोज भर तेल और दोष बलिवाले भेड़ के बच्चे को लेकर हिलाने की भेंट के लिये यहोवा के साम्हने हिलाए। 03O 14 25 फिर दोषबलि के भेड़ के बच्चे का बलिदान किया जाए; और याजक उसके लोहू में से कुछ लेकर शुद्ध ठहरनेवाले के दहिने कान के सिरे पर, और उसके दहिने हाथ और दहिने पांव के अंगूठों पर लगाए। 03O 14 26 फिर याजक उस तेल में से कुछ अपने बाएं हाथ की हथेली पर डालकर, 03O 14 27 अपने दहिने हाथ की उंगली से अपनी बाईं हथेली पर के तेल मे से कुछ यहोवा के सम्मुख सात बार छिड़के; 03O 14 28 फिर याजक अपनी हथेली पर के तेल में से कुछ शुद्ध ठहरनेवाले के दहिने कान के सिरे पर, और उसके दहिने हाथ और दहिने पांव के अंगूठों पर दोषबलि के लोहू के स्थान पर, लगाए। 03O 14 29 और जो तेल याजक की हथेली पर रह जाए उसे वह शुद्ध ठहरनेवाले के लिये यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करने को उसके सिर पर डाल दे। 03O 14 30 तब वह पंडुकों वा कबूतरी के बच्चों में से जो वह ला सका हो एक को चढ़ाए, 03O 14 31 अर्थात् जो पक्षी वह ला सका हो, उन में से वह एक को पापबलि के लिये और अन्नबलि समेत दूसरे को होमबलि के लिये चढ़ाए; इस रीति से याजक शुद्ध ठहरनेवाले के लिये यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे। 03O 14 32 जिसे कोढ़ की व्याधि हुई हो, और उसके इतनी पूंजी न हो कि वह शुद्ध ठहरने की सामग्री को ला सके, तो उसके लिये यही व्यवस्था है।। 03O 14 33 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 03O 14 34 जब तुम लोग कनान देश में पहुंचो, जिसे मैं तुम्हारी निज भूमि होने के लिये तुम्हें देता हूं, उस समय यदि मैं कोढ़ की व्याधि तुम्हारे अधिकार के किसी घर में दिखाऊं, 03O 14 35 तो जिसका वह घर हो वह आकर याजक को बता दे, कि मुझे ऐसा देख पड़ता है कि घर में मानों कोई व्याधि है। 03O 14 36 तब याजक आज्ञा दे, कि उस घर में व्याधि देखने के लिये मेरे जाने से पहिले उसे खाली करो, कहीं ऐसा न हो कि जो कुछ घर में हो वह सब अशुद्ध ठहरे; और पीछे याजक घर देखने को भीतर जाए। 03O 14 37 तब वह उस व्याधि को देखे; और यदि वह व्याधि घर की दीवारों पर हरी हरी वा लाल लाल मानों खुदी हुई लकीरों के रूप में हो, और ये लकीरें दीवार में गहिरी देख पड़ती हों, 03O 14 38 तो याजक घर से बाहर द्वार पर जाकर घर को सात दिन तक बन्द कर रखे। 03O 14 39 और सातवें दिन याजक आकर देखे; और यदि वह व्याधि घर की दीवारों पर फैल गई हो, 03O 14 40 तो याजक आज्ञा दे, कि जिन पत्थरों को व्याधि है उन्हें निकाल कर नगर से बाहर किसी अशुद्ध स्थान में फेंक दें; 03O 14 41 और वह घर के भीतर ही भीतर चारों ओर खुरचवाए, और वह खुरचन की मिट्टी नगर से बाहर किसी अशुद्ध स्थान में डाली जाए; 03O 14 42 और उन पत्थरों के स्थान में और दूसरे पत्थर लेकर लगाएं और याजक ताजा गारा लेकर घर की जुड़ाई करे। 03O 14 43 और यदि पत्थरों के निकाले जाने और घर के खुरचे और लेसे जाने के बाद वह व्याधि फिर घर में फूट निकले, 03O 14 44 तो याजक आकर देखे; और यदि वह व्याधि घर में फैल गई हो, तो वह जान ले कि घर में गलित कोढ़ है; वह अशुद्ध है। 03O 14 45 और वह सब गारे समेत पत्थर, लकड़ी और घर को खुदवाकर गिरा दे; और उन सब वस्तुओं को उठवाकर नगर से बाहर किसी अशुद्ध स्थान पर फिंकवा दे। 03O 14 46 और जब तक वह घर बन्द रहे तब तक यदि कोई उस में जाए तो वह सांझ तक अशुद्ध रहे; 03O 14 47 और जो कोई उस घर में सोए वह अपने वस्त्रों को धोए; और जो कोई उस घर में खाना खाए वह भी अपने वस्त्रों को धोए। 03O 14 48 और यदि याजक आकर देखे कि जब से घर लेसा गया है तब से उस में व्याधि नहीं फैली है, तो यह जानकर कि वह व्याधि दूर हो गई है, घर को शुद्ध ठहराए। 03O 14 49 और उस घर को पवित्रा करने के लिये दो पक्षी, देवदारू की लकड़ी, लाल रंग का कपड़ा और जूफा लिवा लाए, 03O 14 50 और एक पक्षी बहते हुए जल के ऊपर मिट्टी के पात्रा में बलिदान करे, 03O 14 51 तब वह देवदारू की लकड़ी लाल रंग के कपड़े और जूफा और जीवित पक्षी इन सभों को लेकर बलिदान किए हुए पक्षी के लोहू में और बहते हुए जल में डूबा दे, और उस घर पर सात बार छिड़के। 03O 14 52 और वह पक्षी के लोहू, और बहते हुए जल, और जूफा और लाल रंग के कपड़े के द्वारा घर को पवित्रा करे; 03O 14 53 तब वह जीवित पक्षी को नगर से बाहर मैदान में छोड़ दे; इसी रीति से वह घर के लिये प्रायश्चित्त करे, तब वह शुद्ध ठहरेगा। 03O 14 54 सब भांति के कोढ़ की व्याधि, और सेहुएं, 03O 14 55 और वस्त्रा, और घर के कोढ़, 03O 14 56 और सूजन, और पपड़ी, और फूल के विषय में, 03O 14 57 शुद्ध और अशुद्ध ठहराने की शिक्षा की व्यवस्था यही है। सब प्रकार के कोढ़ की व्यवस्था यही है।। 03O 15 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 15 2 कि इस्त्राएलियों से कहो, कि जिस जिस पुरूष के प्रमेह हो, तो वह प्रमेह के कारण से अशुद्ध ठहरे। 03O 15 3 और चाहे बहता रहे, चाहे बहना बन्द भी हो, तौभी उसकी अशुद्धता बनी रहेगी। 03O 15 4 जिसके प्रमेह हो वह जिस जिस बिछौने पर लेटे वह अशुद्ध ठहरे, और जिस जिस वस्तु पर वह बैठे वह भी अशुद्ध ठहरे। 03O 15 5 और जो कोई उसके बिछौने को छूए वह अपने वस्त्रों को धोकर जल से स्नान करे, और सांझ तक अशुद्ध ठहरा रहे। 03O 15 6 और जिसके प्रमेह हो और वह जिस वस्तु पर बैठा हो, उस पर जो कोई बैठे वह अपने वस्त्रों को धोकर जल से स्नान करे, और सांझ तक अशुद्ध ठहरा रहे। 03O 15 7 और जिसके प्रमेह हो उस से जो कोई छू जाए वह अपने वस्त्रों को धोकर जल से स्नान करे और सांझ तक अशुद्ध रहे। 03O 15 8 और जिसके प्रमेह हो यदि वह किसी शुद्ध मनुष्य पर थूके, तो वह अपने वस्त्रों को धोकर जल से स्नान करे, और सांझ तक अशुद्ध रहे। 03O 15 9 और जिसके प्रमेह हो वह सवारी की जिस वस्तु पर बैठे वह अशुद्ध ठहरे। 03O 15 10 और जो कोई किसी वस्तु को जो उसके नीचे रही हो छूए वह अपने वस्त्रों को धोकर जल से स्नान करे, और सांझ तक अशुद्ध रहे। 03O 15 11 और जिसके प्रमेह हो वह जिस किसी को बिना हाथ धोए छूए वह अपने वस्त्रों को धोकर जल से स्नान करे, और सांझ तक अशुद्ध रहे। 03O 15 12 और जिसके प्रमेह हो वह मिट्टी के जिस किसी पात्रा को छूए वह तोड़ डाला जाए, और काठ के सब प्रकार के पात्रा जल से धोए जाएं। 03O 15 13 फिर जिसके प्रमेह हो वह जब अपने रोग से चंगा हो जाए, तब से शुद्ध ठहरने के सात दिन गिन ले, और उनके बीतने पर अपने वस्त्रों को धोकर बहते हुए जल से स्नान करे; तब वह शुद्ध ठहरेगा। 03O 15 14 और आठवें दिन वह दो पंडुक वा कबूतरी के दो बच्चे लेकर मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा के सम्मुख जाकर उन्हें याजक को दे। 03O 15 15 तब याजक उन में से एक को पापबलि; और दूसरे को होमबलि के लिये भेंट चढ़ाए; और याजक उसके लिये उसके प्रमेह के कारण यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे।। 03O 15 16 फिर यदि किसी पुरूष का वीरर्य स्खलित हो जाए, तो वह अपने सारे शरीर को जल से धोए, और सांझ तक अशुद्ध रहे। 03O 15 17 और जिस किसी वस्त्रा वा चमड़े पर वह वीरर्य पड़े वह जल से धोया जाए, और सांझ तक अशुद्ध रहे। 03O 15 18 और जब कोई पुरूष स्त्री से प्रसंग करे, तो वे दोनो जल से स्नान करें, और सांझ तक अशुद्ध रहें।। 03O 15 19 फिर जब कोई स्त्री ऋतुमती रहे, तो वह सात दिन तक अशुद्ध ठहरी रहे, और जो कोई उसको छूए वह सांझ तक अशुद्ध रहे। 03O 15 20 और जब तक वह अशुद्ध रहे तब तक जिस जिस वस्तु पर वह लेटे, और जिस जिस वस्तु पर वह बैठे वे सब अशुद्ध ठहरें। 03O 15 21 और जो कोई उसके बिछौने को छूए वह अपने वस्त्रा धोकर जल से स्नान करे, और सांझ तक अशुद्ध रहे। 03O 15 22 और जो कोई किसी वस्तु को छूए जिस पर वह बैठी हो वह अपने वस्त्रा धोकर जल से स्नान करे, और सांझ तक अशुद्ध रहे। 03O 15 23 और यदि बिछौने वा और किसी वस्तु पर जिस पर वह बैठी हो छूने के समय उसका रूधिर लगा हो, तो छूनेहारा सांझ तक अशुद्ध रहे। 03O 15 24 और यदि कोई पुरूष उस से प्रसंग करे, और उसका रूधिर उसके लग जाए, तो वह पुरूष सात दिन तक अशुद्ध रहे, और जिस जिस बिछौने पर वह लेटे वे सब अशुद्ध ठहरें।। 03O 15 25 फिर यदि किसी स्त्री के अपने मासिक धर्म के नियुक्त समय से अधिक दिन तक रूधिर बहता रहे, वा उस नियुक्त समय से अधिक समय तक ऋतुमती रहे, तो जब तक वह ऐसी दशा में रहे तब तक वह अशुद्ध ठहरी रहे। 03O 15 26 उसके ऋतुमती रहने के सब दिनों में जिस जिस बिछौने पर वह लेटे वे सब उसके मासिक धर्म के बिछौने के समान ठहरें; और जिस जिस वस्तु पर वह बैठे वे भी उसके ऋतुमती रहे के दिनों की नाई अशुद्ध ठहरें। 03O 15 27 और जो कोई उन वस्तुओं को छुए वह अशुद्ध ठहरे, इसलिये वह अपने वस्त्रों को धोकर जल से स्नान करे, और सांझ तक अशुद्ध रहे। 03O 15 28 और जब वह स्त्री अपने ऋतुमती से शुद्ध हो जाए, तब से वह सात दिन गिन ले, और उन दिनों के बीतने पर वह शुद्ध ठहरे। 03O 15 29 फिर आठवें दिन वह दो पंडुक या कबूतरी के दो बच्चे लेकर मिलापवाले तम्बू के द्वार पर याजक के पास जाए। 03O 15 30 तब याजक एक को पापबलि और दूसरे को होमबलि के लिये चढ़ाए; और याजक उसके लिये उसके मासिक धर्म की अशुद्धता के कारण यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे।। 03O 15 31 इस प्रकार से तुम इस्त्राएलियों को उनकी अशुद्धता से न्यारे रखा करो, कहीं ऐसा न हो कि वे यहोवा के निवास को जो उनके बीच में है अशुद्ध करके अपनी अशुद्धता में फंसे हुए मर जाएं।। 03O 15 32 जिसके प्रमेह हो और जो पुरूष वीरर्य स्खलित होने से अशुद्ध हो; 03O 15 33 और जो स्त्री ऋतुमती हो; और क्या पुरूष क्या स्त्री, जिस किसी के धातुरोग हो, और जो पुरूष अशुद्ध स्त्री के प्रसंग करे, इन सभों के लिये यही व्यवस्था है।। 03O 16 1 जब हारून के दो पुत्रा यहोवा के साम्हने समीप जाकर मर गए, उसके बाद यहोवा ने मूसा से बातें की; 03O 16 2 और यहोवा ने मूसा से कहा, अपने भाई हारून से कह, कि सन्दूक के ऊपर के प्रायश्चित्तवाले ढ़कने के आगे, बीचवाले पर्दे के अन्दर, पवित्रास्थान में हर समय न प्रवेश करे, नहीं तो मर जाएगा; क्योंकि मैं प्रायश्चित्तवाले ढ़कने के ऊपर बादल में दिखाई दूंगा। 03O 16 3 और जब हारून पवित्रास्थान में प्रवेश करे तब इस रीति से प्रवेश करे, अर्थात् पापबलि के लिये एक बछड़े को और होमबलि के लिये एक मेढ़े को लेकर आए। 03O 16 4 वह सनी के कपड़े का पवित्रा अंगरखा, और अपने तन पर सनी के कपड़े की जांघिया पहिने हुए, और सनी के कपड़े का कटिबन्द, और सनी के कपड़े की पगड़ी बांधे हुए प्रवेश करे; ये पवित्रा स्थान हैं, और वह जल से स्नान करके इन्हें पहिने। 03O 16 5 फिर वह इस्त्राएलियों की मण्डली के पास से पापबलि के लिये दो बकरे और होमबलि के लिये एक मेढ़ा ले। 03O 16 6 और हारून उस पापबलि के बछड़े को जो उसी के लिये होगा चढ़ाकर अपने और अपने घराने के लिये प्रायश्चित्त करे। 03O 16 7 और उन दोनों बकरों को लेकर मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा के साम्हने खड़ा करे; 03O 16 8 और हारून दोनों बकरों पर चिटि्ठयां डाले, एक चिट्ठी यहोवा के लिये और दूसरी अजाजेल के लिये हो। 03O 16 9 और जिस बकरे पर यहोवा के नाम की चिट्ठी निकले उसको हारून पापबलि के लिये चढ़ाए; 03O 16 10 परन्तु जिस बकरे पर अजाजेल के लिये चिट्ठी निकले वह यहोवा के साम्हने जीवता खड़ा किया जाए कि उस से प्रायश्चित्त किया जाए, और वह अजाजेल के लिये जंगल में छोड़ा जाए। 03O 16 11 और हारून उस पापबलि के बछड़े को जो उसी के लिये होगा समीप ले आए, और उसको बलिदान करके अपने और अपने घराने के लिये प्रायश्चित्त करे। 03O 16 12 और जो वेदी यहोवा के सम्मुख है उस पर के जलते हुए कोयलों से भरे हुए धूपदान को लेकर, और अपनी दोनों मुटि्ठयों को फूटे हुए सुगन्धित धूप से भरकर, बीचवाले पर्दे के भीतर ले आकर 03O 16 13 उस धूप को यहोवा के सम्मुख आग में डाले, जिस से धूप का धुआं साक्षीपत्रा के ऊपर के प्रायश्चित्त के ढकने के ऊपर छा जाए, नहीं तो वह मर जाएगा; 03O 16 14 तब वह बछड़े के लोहू में से कुछ लेकर पूरब की ओर प्रायश्चित्त के ढकने के ऊपर अपनी उंगली से छिड़के, और फिर उस लोहू में से कुछ उंगली के द्वारा उस ढकने के साम्हने भी सात बार छिड़क दे। 03O 16 15 फिर वह उस पापबलि के बकरे को जो साधारण जनता के लिये होगा बलिदान करके उसके लोहू को बीचवाले पर्दे के भीतर ले आए, और जिस प्रकार बछड़े के लोहू से उस ने किया था ठीक वैसा ही वह बकरे के लोहू से भी करे, अर्थात् उसको प्रायश्चित्त के ढकने के ऊपर और उसके साम्हने छिड़के। 03O 16 16 और वह इस्त्राएलियों की भांति भांति की अशुद्धता, और अपराधों, और उनके सब पापों के कारण पवित्रास्थान के लिये प्रायश्चित्त करे; और मिलापवाला तम्बू जो उनके संग उनकी भांति भांति की अशुद्धता के बीच रहता है उसके लिये भी वह वैसा ही करे। 03O 16 17 और जब हारून प्रायश्चित्त करने के लिये पवित्रास्थान में प्रवेश करे, तब से जब तक वह अपने और अपने घराने और इस्त्राएल की सारी मण्डली के लिये प्रायश्चित्त करके बाहर न निकले तब तक कोई मनुष्य मिलापवाले तम्बू में न रहे। 03O 16 18 फिर वह निकलकर उस वेदी के पास जो यहोवा के साम्हने है जाए और उसके लिये प्रायश्चित्त करे, अर्थात् बछड़े के लोहू और बकरे के लोहू दोनों में से कुछ लेकर उस वेदी के चारों कोनों के सींगो पर लगाए। 03O 16 19 और उस लोहू में से कुछ अपनी उंगली के द्वारा सात बार उस पर छिड़ककर उसे इस्त्राएलियों की भांति भांति की अशुद्धता छुड़ाकर शुद्ध और पवित्रा करे। 03O 16 20 और जब वह पवित्रास्थान और मिलापवाले तम्बू और वेदी के लिये प्रायश्चित्त कर चुके, तब जीवित बकरे को आगे ले आए; 03O 16 21 और हारून अपने दोनों हाथों को जीवित बकरे पर रखकर इस्त्राएलियों के सब अधर्म के कामों, और उनके सब अपराधों, निदान उनके सारे पापों को अंगीकार करे, और उनको बकरे के सिर पर धरकर उसको किसी मनुष्य के हाथ जो इस काम के लिये तैयार हो जंगल में भेजके छुड़वा दे। 03O 16 22 और वह बकरा उनके सब अधर्म के कामों को अपने ऊपर लादे हुए किसी निराले देश में उठा ले जाएगा; इसलिये वह मनुष्य उस बकरे को जंगल मे छोड़े दे। 03O 16 23 तब हारून मिलापवाले तम्बू में आए, और जिस सनी के वस्त्रों को पहिने हुए उस ने पवित्रास्थान में प्रवेश किया था उन्हें उतारकर वहीं पर रख दे। 03O 16 24 फिर वह किसी पवित्रा स्थान में जल से स्नान कर अपने निज वस्त्रा पहिन ले, और बाहर जाकर अपने होमबलि और साधारण जनता के होमबलि को चढ़ाकर अपने और जनता के लिये प्रायश्चित्त करे। 03O 16 25 और पापबलि की चरबी को वह वेदी पर जलाए। 03O 16 26 और जो मनुष्य बकरे को अजाजेल के लिये छोड़कर आए वह भी अपने वस्त्रों को धोए, और जल से स्नान करे, और तब वह छावनी में प्रवेश करे। 03O 16 27 और पापबलि का बछड़ा और पापबलि का बकरा भी जिनका लोहू पवित्रास्थान में प्रायश्चित्त करने के लिये पहुंचाया जाए वे दोनों छावनी से बाहर पहुंचाए जाएं; और उनका चमड़ा, मांस, और गोबर आग में जला दिया जाए। 03O 16 28 और जो उनको जलाए वह अपने वस्त्रों को धोए, और जल से स्नान करे, और इसके बाद वह छावनी में प्रवेश करने पाए।। 03O 16 29 और तुम लोगों के लिये यह सदा की विधि होगी कि सातवें महीने के दसवें दिन को तुम अपने अपने जीव को दु:ख देना, और उस दिन कोई, चाहे वह तुम्हारे निज देश को हो चाहे तुम्हारे बीच रहने वाला कोई परदेशी हो, कोई भी किसी प्रकार का काम काज न करे; 03O 16 30 क्योंकि उस दिन तुम्हें शुद्ध करने के लिये तुम्हारे निमित्त प्रायश्चित्त किया जाएगा; और तुम अपने सब पापों से यहोवा के सम्मुख पवित्रा ठहरोगे। 03O 16 31 यह तुम्हारे लिये परमविश्राम का दिन ठहरे, और तुम उस दिन अपने अपने जीव को दु:ख देना; यह सदा की विधि है। 03O 16 32 और जिसका अपने पिता के स्थान पर याजक पद के लिये अभिषेक और संस्कार किया जाए वह याजक प्रायश्चित्त किया करे, अर्थात् वह सनी के पवित्रा वस्त्रों को पहिनकर, 03O 16 33 पवित्रास्थान, और मिलापवाले तम्बू, और वेदी के लिये प्रायश्चित्त करे; और याजकों के और मण्डली के सब लोगों के लिये भी प्रायश्चित्त करे। 03O 16 34 और यह तुम्हारे लिये सदा की विधि होगी, कि इस्त्राएलियों के लिये प्रतिवर्ष एक बार तुम्हारे सारे पापों के लिये प्रायश्चित्त किया जाए। यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार जो उस ने मूसा को दी थी हारून ने किया।। 03O 17 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 17 2 हारून और उसके पुत्रों से और कुल इस्त्राएलियों से कह, कि यहोवा ने यह आज्ञा दी है, 03O 17 3 कि इस्त्राएल के घराने में से कोई मनुष्य हो जो बैल वा भेड़ के बच्चे, वा बकरी को, चाहे छावनी में चाहे छावनी से बाहर घात करके 03O 17 4 मिलापवाले तम्बू के द्वार पर, यहोवा के निवास के साम्हने यहोवा को चढ़ाने के निमित्त न ले जाए, तो उस मनुष्य को लोहू बहाने का दोष लगेगा; और वह मनुष्य जो लोहू बहाने वाला ठहरेगा, वह अपने लोगों के बीच से नाश किया जाए। 03O 17 5 इस विधि का यह कारण है कि इस्त्राएली अपने बलिदान जिनको वह खुले मैदान में वध करते हैं, वे उन्हें मिलापवाले तम्बू के द्वार पर याजक के पास, यहोवा के लिये ले जाकर उसी के लिये मेलबलि करके बलिदान किया करें; 03O 17 6 और याजक लोहू को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा की वेदी के ऊपर छिड़के, और चरबी को उसके सुखदायक सुगन्ध के लिये जलाए। 03O 17 7 और वे जो बकरों के पूजक होकर व्यभिचार करते हैं, वे फिर अपने बलिपशुओं को उनके लिये बलिदान न करें। तुम्हारी पीढ़ियों के लिये यह सदा की विधि होगी।। 03O 17 8 और तू उन से कह, कि इस्त्राएल के घराने के लोगों में से वा उनके बीच रहनेहारे परदेशियों में से कोई मनुष्य क्यों न हो जो होमबलि वा मेलबलि चढ़ाए, 03O 17 9 और उसको मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा के लिये चढ़ाने को न ले आए; वह मनुष्य अपने लोगों में से नाश किया जाए।। 03O 17 10 फिर इस्त्राएल के घराने के लोगों में से वा उनके बीच रहनेवाले परदेशियों में से कोई मनुष्य क्यों न हो जो किसी प्रकार का लोहू खाए, मैं उस लोहू खानेवाले के विमुख होकर उसको उसके लोगों के बीच में से नाश कर डालूंगा। 03O 17 11 क्योंकि शरीर का प्राण लोहू में रहता है; और उसको मैं ने तुम लोगों को वेदी पर चढ़ाने के लिये दिया है, कि तुम्हारे प्राणों के लिये प्रायश्चित्त किया जाए; क्योंकि प्राण के कारण लोहू ही से प्रायश्चित्त होता है। 03O 17 12 इस कारण मैं इस्त्राएलियों से कहता हूं, कि तुम में से कोई प्राणी लोहू न खाए, और जो परदेशी तुम्हारे बीच रहता हो वह भी लोहू कभी न खाए।। 03O 17 13 और इस्त्राएलियों में से वा उनके बीच रहनेवाले परदेशियों में से कोई मनुष्य क्यों न हो जो अहेर करके खाने के योग्य पशु वा पक्षी को पकड़े, वह उसके लोहू को उंडेलकर धूलि से ढंाप दे। 03O 17 14 क्योंकि शरीर का प्राण जो है वह उसका लोहू ही है जो उसके प्राण के साथ एक है; इसी लिये मैं इस्त्राएलियों से कहता हूं, कि किसी प्रकार के प्राणी के लोहू को तुम न खाना, क्योंकि सब प्राणियों का प्राण उनका लोहू ही है; जो कोई उसको खाए वह नाश किया जाएगा। 03O 17 15 और चाहे वह देशी हो वा परदेशी हो, जो कोई किसी लोथ वा फाड़े हुए पशु का मांस खाए वह अपने वस्त्रों को धोकर जल से स्नान करे, और सांझ तक अशुद्ध रहे; तब वह शुद्ध होगा। 03O 17 16 और यदि वह उनको न धोए और न स्नान करे, तो उसको अपने अधर्म का भार स्वयं उठाना पड़ेगा।। 03O 18 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 18 2 इस्त्राएलियों से कह, कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 03O 18 3 तुम मि देश के कामों के अनुसार जिस में तुम रहते थे न करना; और कनान देश के कामों के अनुसार भी जहां मैं तुम्हें ले चलता हूं न करना; और न उन देशों की विधियों पर चलना। 03O 18 4 मेरे ही नियमों को मानना, और मेरी ही विधियों को मानते हुए उन पर चलना। मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 03O 18 5 इसलिये तुम मेरे नियमों और मेरी विधियों को निरन्तर मानना; जो मनुष्य उनको माने वह उनके कारण जीवित रहेगा। मैं यहोवा हूं। 03O 18 6 तुम में से कोई अपनी किसी निकट कुटुम्बिन का तन उघाड़ने को उसके पास न जाए। मैं यहोवा हूं। 03O 18 7 अपनी माता का तन जो तुम्हारे पिता का तन है न उघाड़ना; वह तो तुम्हारी माता है, इसलिये तुम उसका तन न उघाड़ना। 03O 18 8 अपनी सौतेली माता का भी तन न उघाड़ना; वह तो तुम्हारे पिता ही का तन है। 03O 18 9 अपनी बहिन चाहे सगी हो चाहे सौतेली हो, चाहे वह घर में उत्पन्न हुई हो चाहे बाहर, उसका तन न उघाड़ना। 03O 18 10 अपनी पोती वा अपनी नतिनी का तन न उघाड़ना, उनकी देह तो मानो तुम्हारी ही है। 03O 18 11 तुम्हारी सोतेली बहिन जो तुम्हारे पिता से उत्पन्न हुई, वह तुम्हारी बहिन है, इस कारण उसका तन न उघाड़ना। 03O 18 12 अपनी फूफी का तन न उघाड़ना; वह तो तुम्हारे पिता की निकट कुटुम्बिन है। 03O 18 13 अपनी मौसी का तन न उघाड़ना; क्योंकि वह तुम्हारी माता की निकट कुटुम्बिन है। 03O 18 14 अपने चाचा का तन न उघाड़ना, अर्थात् उसकी स्त्री के पास न जाना; वह तो तुम्हारी चाची है। 03O 18 15 अपनी बहू का तन न उघाड़ना वह तो तुम्हारे बेटे की स्त्री है, इस कारण तुम उसका तन न उघाड़ना। 03O 18 16 अपनी भौजी का तन न उघाड़ना; वह तो तुम्हारे भाई ही का तन है। 03O 18 17 किसी स्त्री और उसकी बेटी दोनों का तन न उघाड़ना, और उसकी पोती को वा उसकी नतिनी को अपनी स्त्री करके उसका तन न उघाड़ना; वे तो निकट कुटुम्बिन है; ऐसा करना महापाप है। 03O 18 18 और अपनी स्त्री की बहिन को भी अपनी स्त्री करके उसकी सौत न करना, कि पहली के जीवित रहते हुए उसका तन भी उघाड़े। 03O 18 19 फिर जब तक कोई स्त्री अपने ऋतु के कारण अशुद्ध रहे तब तक उसके पास उसका तन उघाड़ने को न जाना। 03O 18 20 फिर अपने भाई बन्धु की स्त्री से कुकर्म करके अशुद्ध न हो जाना। 03O 18 21 और अपने सन्तान में से किसी को मोलेक के लिये होम करके न चढ़ाना, और न अपने परमेश्वर के नाम को अपवित्रा ठहराना; मैं यहोवा हूं। 03O 18 22 स्त्रीगमन की रीति पुरूषगमन न करना; वह तो घिनौना काम है। 03O 18 23 किसी जाति के पशु के साथ पशुगमन करके अशुद्ध न हो जाना, और न कोई स्त्री पशु के साम्हने इसलिये खड़ी हो कि उसके संग कुकर्म करे; यह तो उल्टी बात है।। 03O 18 24 ऐसा ऐसा कोई भी काम करके अशुद्ध न हो जाना, क्योंकि जिन जातियों को मैं तुम्हारे आगे से निकालने पर हूं वे ऐसे ऐसे काम करके अशुद्ध हो गई है; 03O 18 25 और उनका देश भी अशुद्ध हो गया है, इस कारण मैं उस पर उसके अधर्म का दण्ड देता हूं, और वह देश अपने निवासियों को उगल देता है। 03O 18 26 इस कारण तुम लोग मेरी विधियों और नियमों को निरन्तर मानना, और चाहे देशी चाहे तुम्हारे बीच रहनेवाला परदेशी हो तुम में से कोई भी ऐसा घिनौना काम न करे; 03O 18 27 क्योंकि ऐसे सब घिनौने कामों को उस देश के मनुष्य तो तुम से पहिले उस में रहते थे वे करते आए हैं, इसी से वह देश अशुद्ध हो गया है। 03O 18 28 अब ऐसा न हो कि जिस रीति से जो जाति तुम से पहिले उस देश में रहती थी उसको उस ने उगल दिया, उसी रीति जब तुम उसको अशुद्ध करो, तो वह तुम को भी उगल दे। 03O 18 29 जितने ऐसा कोई घिनौना काम करें वे सब प्राणी अपने लोगों में से नाश किए जाएं। 03O 19 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 19 2 इस्त्राएलियों की सारी मण्डली से कह, कि तुम पवित्रा बने रहो; क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा पवित्रा हूं। 03O 19 3 तुम अपनी अपनी माता और अपने अपने पिता का भय मानना, और मेरे विश्राम दिनों को मानना; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 03O 19 4 तुम मूरतों की ओर न फिरना, और देवताओं की प्रतिमाएं ढालकर न बना लेना; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 03O 19 5 जब तुम यहोवा के लिये मेलबलि करो, तब ऐसा बलिदान करना जिससे मैं तुम से प्रसन्न हो जाऊं। 03O 19 6 उसका मांस बलिदान के दिन और दूसरे दिन खाया जाए, परन्तु तीसरे दिन तक जो रह जाए वह आग में जला दिया जाए। 03O 19 7 और यदि उस में से कुछ भी तीसरे दिन खाया जाए, तो यह घृणित ठहरेगा, और ग्रहण न किया जाएगा। 03O 19 8 और उसका खानेवाला यहोवा के पवित्रा पदार्थ को अपवित्रा ठहराता है, इसलिये उसको अपने अधर्म का भार स्वयं उठाना पड़ेगा; और वह प्राणी अपने लोगों में से नाश किया जाएगा।। 03O 19 9 फिर जब तुम अपने देश के खेत काटो तब अपने खेत के कोने कोने तक पूरा न काटना, और काटे हुए खेत की गिरी पड़ी बालों को न चुनना। 03O 19 10 और अपनी दाख की बारी का दाना दाना न तोड़ लेना, और अपनी दाख की बारी के झंड़े हुए अंगूरों को न बटोरना; उन्हें दीन और परदेशी लोगों के लिये छोड़ देना; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 03O 19 11 तुम चोरी न करना, और एक दूसरे से न तो कपट करना, और न झूठ बोलना। 03O 19 12 तुम मेरे नाम की झूठी शपथ खाके अपने परमेश्वर का नाम अपवित्रा न ठहराना; मैं यहोवा हूं। 03O 19 13 एक दूसरे पर अन्धेर न करना, और न एक दूसरे को लूट लेना। और मजदूर की मजदूरी तेरे पास सारी रात बिहान तक न रहने पाएं। 03O 19 14 बहिरे को शाप न देना, और न अन्धे के आगे ठोकर रखना; और अपने परमेश्वर का भय मानना; मैं यहोवा हूं। 03O 19 15 न्याय में कुटिलता न करना; और न तो कंगाल का पक्ष करना और न बड़े मनुष्यों का मुंह देखा विचार करना; उस दूसरे का न्याय धर्म से करना। 03O 19 16 लूतरा बनके अपने लोगों में न फिरा करना, और एक दूसरे के लोहू बहाने की युक्तियां न बान्धना; मैं यहोवा हूं। 03O 19 17 अपने मन में एक दूसरे के प्रति बैर न रखना; अपने पड़ोसी को अवश्य डांटना नहीं, तो उसके पाप का भार तुझ को उठाना पड़ेगा। 03O 19 18 पलटा न लेना, और न अपने जाति भाइयों से बैर रखना, परन्तु एक दूसरे से अपने समान प्रेम रखना; मैं यहोवा हूं। 03O 19 19 तुम मेरी विधियों को निरन्तर मानना। अपने पशुओं को भिन्न जाति के पशुओं से मेल न खाने देना; अपने खेत में दो प्रकार के बीज इकट्ठे न बोना; और सनी और ऊन की मिलावट से बना हुआ वस्त्रा न पहिनना। 03O 19 20 फिर कोई स्त्री दासी हो, और उसकी मंगनी किसी पुरूष से हुई हो, परन्तु वह न तो दास से और न सेंतमेंत स्वाधीन की गई हो; उस से यदि कोई कुकर्म करे, तो उन दोनों को दण्ड तो मिले, पर उस स्त्री के स्वाधीन न होने के कारण वे दोनों मार न डाले जाएं। 03O 19 21 पर वह पुरूष मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा के पास एक मेढ़ा दोषबलि के लिये ले आए। 03O 19 22 और याजक उसके किये हुए पाप के कारण दोषबलि के मेढ़े के द्वारा उसके लिये यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे; तब उसका किया हुआ पाप क्षमा किया जाएगा। 03O 19 23 फिर जब तुम कनान देश में पंहुचकर किसी प्रकार के फल के वृक्ष लगाओ, तो उनके फल तीन वर्ष तक तुम्हारे लिये मानों खतनारहित ठहरें रहें; इसलिये उन में से कुछ न खाया जाए। 03O 19 24 और चौथे वर्ष में उनके सब फल यहोवा की स्तुति करने के लिये पवित्रा ठहरें। 03O 19 25 तब पांचवें वर्ष में तुम उनके फल खाना, इसलिये कि उन से तुम को बहुत फल मिलें; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 03O 19 26 तुम लोहू लगा हुआ कुछ मांस न खाना। और न टोना करना, और न शुभ वा अशुभ मुहूर्तों को मानना। 03O 19 27 अपने सिर में घेरा रखकर न मुंड़ाना, और न अपने गाल के बालों को मुंड़ाना। 03O 19 28 मुर्दों के कारण अपने शरीर को बिलकुल न चीरना, और न उस में छाप लगाना; मैं यहोवा हूं। 03O 19 29 अपनी बेटियों को वेश्या बनाकर अपवित्रा न करना, ऐसा न हो कि देश वेश्यागमन के कारण महापाप से भर जाए। 03O 19 30 मेरे विश्रामदिन को माना करना, और मेरे पवित्रास्थान का भय निरन्तर मानना; मैं यहोवा हूं। 03O 19 31 ओझाओं और भूत साधने वालों की ओर न फिरना, और ऐसों को खोज करके उनके कारण अशुद्ध न हो जाना; मै तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 03O 19 32 पक्के बालवाले के साम्हने उठ खड़े होना, और बूढ़े का आदरमान करना, और अपने परमेश्वर का भय निरन्तर मानना; मैं यहोवा हूं। 03O 19 33 और यदि कोई परदेशी तुम्हारे देश में तुम्हारे संग रहे, तो उसको दु:ख न देना। 03O 19 34 जो परदेशी तुम्हारे संग रहे वह तुम्हारे लिये देशी के समान हो, और उस से अपने ही समान प्रेम रखना; क्योंकि तुम भी मि देश में परदेशी थे; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 03O 19 35 तुम न्याय में, और परिमाण में, और तौल में, और नाप में कुटिलता न करना। 03O 19 36 सच्चा तराजू, धर्म के बटखरे, सच्चा एपा, और धर्म का हीन तुम्हारे पास रहें; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं जो तुम को मि देश से निकाल ले आया। 03O 19 37 इसलिये तुम मेरी सब विधियों और सब नियमों को मानते हुए निरन्तर पालन करो; मैं यहोवा हूं।। 03O 20 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 20 2 इस्त्राएलियों से कह, कि इस्त्राएलियों में से, वा इस्त्राएलियों के बीच रहनेवाले परदेशियों में से, कोई क्यों न हो जो अपनी कोई सन्तान मोलेक को बलिदान करे वह निश्चय मार डाला जाए; और जनता उसको पत्थरवाह करे। 03O 20 3 और मैं भी उस मनुष्य के विरूद्ध होकर उसको उसके लोगों में से इस कारण नाश करूंगा, कि उस ने अपनी सन्तान मोलेक को देकर मेरे पवित्रास्थान को अशुद्ध किया, और मेरे पवित्रा नाम को अपवित्रा ठहराया। 03O 20 4 और यदि कोई अपनी सन्तान मोलेक को बलिदान करे, और जनता उसके विषय में आनाकानी करे, और उसको मार न डाले, 03O 20 5 तब तो मैं स्वयं उस मनुष्य और उसके घराने के विरूद्ध होकर उसको और जितने उसके पीछे होकर मोलेक के साथ व्यभिचार करें उन सभों को भी उनके लोगों के बीच में से नाश करूंगा। 03O 20 6 फिर जो प्राणी ओझाओं वा भूतसाधनेवालों की ओर फिरके, और उनके पीछे होकर व्यभिचारी बने, तब मैं उस प्राणी के विरूद्ध होकर उसको उसके लोगों के बीच में से नाश कर दूंगा। 03O 20 7 इसलिये तुम अपने आप को पवित्रा करो; और पवित्रा बने रहो; क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 03O 20 8 और तुम मेरी विधियों को मानना, और उनका पालन भी करना; क्योंकि मैं तुम्हारा पवित्रा करनेवाला यहोवा हूं। 03O 20 9 कोई क्यों न हो जो अपने पिता वा माता को शाप दे वह निश्चय मार डाला जाए; उस ने अपने पिता वा माता को शाप दिया है, इस कारण उसका खून उसी के सिर पर पड़ेगा। 03O 20 10 फिर यदि कोई पराई स्त्री के साथ व्यभिचार करे, तो जिस ने किसी दूसरे की स्त्री के साथ व्यभिचार किया हो तो वह व्यभिचारी और वह व्यभिचारिणी दोनों निश्चय मार डाले जाएं। 03O 20 11 और यदि कोई अपनी सौतेली माता के साथ सोए, वह जो अपने पिता ही का तन उघाड़नेवाला ठहरेगा; सो इसलिये वे दोनों निश्चय मार डाले जाएं, उनका खून उन्हीं के सिर पर पड़ेगा। 03O 20 12 और यदि कोई अपनी पतोहू के साथ सोए, तो वे दोनों निश्चय मार डाले जाएं; क्योंकि वे उलटा काम करनेवाले ठहरेंगे, और उनका खून उन्हीं के सिर पर पड़ेगा। 03O 20 13 और यदि कोई जिस रीति स्त्री से उसी रीति पुरूष से प्रसंग करे, तो वे दोनों घिनौना काम करनेवाले ठहरेंगे; इस कारण वे निश्चय मार डाले जाएं, उनका खून उन्हीं के सिर पर पड़ेगा। 03O 20 14 और यदि कोई अपनी पत्नी और अपनी सांस दोनों को रखे, तो यह महापाप है; इसलिये वह पुरूष और वे स्त्रियां तीनों के तीनों आग में जलाए जाएं, जिस से तुम्हारे बीच महापाप न हो। 03O 20 15 फिर यदि कोई पुरूष पशुगामी हो, तो पुरूष और पशु दोनों निश्चय मार डाले जाएं। 03O 20 16 और यदि कोई स्त्री पशु के पास जाकर उसके संग कुकर्म करे, तो तू उस स्त्री और पशु दोनों को घात करना; वे निश्चय मार डाले जाएं, उनका खून उन्हीं के सिर पर पड़ेगा। 03O 20 17 और यदि कोई अपनी बहिन का, चाहे उसकी संगी बहिन हो चाहे सौतेली, उसका नग्न तन देखे, तो वह निन्दित बात है, वे दोनों अपने जाति भाइयों की आंखों के साम्हने नाश किए जाएं; क्योंकि जो अपनी बहिन का तन उघाड़नेवाला ठहरेगा उसे अपने अधर्म का भार स्वयं उठाना पड़ेगा। 03O 20 18 फिर यदि कोई पुरूष किसी ऋतुमती स्त्री के संग सोकर उसका तन उघाड़े, तो वह पुरूष उसके रूधिर के सोते का उघाड़नेवाला ठहरेगा, और वह स्त्री अपने रूधिर के सोते की उघाड़नेवाली ठहरेगी; इस कारण दोनों अपने लोगों के बीच से नाश किए जाएं। 03O 20 19 और अपनी मौसी वा फूफी का तन न उघाड़ना, क्योंकि जो उसे उघाड़े वह अपनी निकट कुटुम्बिन को नंगा करता है; इसलिये इन दोनों को अपने अधर्म का भार उठाना पड़ेगा। 03O 20 20 और यदि कोई अपनी चाची के संग सोए, तो वह अपने चाचा का तन उघाड़ने वाला ठहरेगा; इसलिये वे दोनों अपने पाप का भार को उठाए हुए निर्वंश मर जाएंगे। 03O 20 21 और यदि कोई भौजी वा भयाहू को अपनी पत्नी बनाए, तो इसे घिनौना काम जानना; और वह अपने भाई का तन उघाड़नेवाला ठहरेगा, इस कारण वे दोनों निर्वंश रहेंगे। 03O 20 22 तुम मेरी सब विधियों और मेरे सब नियमों को समझ के साथ मानना; जिससे यह न हो कि जिस देश में मैं तुम्हें लिये जा रहा हूं वह तुम को उगल देवे। 03O 20 23 और जिस जाति के लोगों को मैं तुम्हारे आगे से निकालता हूं उनकी रीति रस्म पर न चलना; क्योंकि उन लोगों ने जो ये सब कुकर्म किए हैं, इसी कारण मुझे उन से घृणा हो गई है। 03O 20 24 और मैं तुम लोगों से कहता हूं, कि तुम तो उनकी भूमि के अधिकारी होगे, और मैं इस देश को जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं तुम्हारे अधिकार में कर दूंगा; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं जिस ने तुम को देशों के लोगों से अलग किया है। 03O 20 25 इस कारण तुम शुद्ध और अशुद्ध पशुओं में, और शुद्ध और अशुद्ध पक्षियों में भेद करना; और कोई पशु वा पक्षी वा किसी प्रकार का भूमि पर रेंगनेवाला जीवजन्तु क्यों न हो, जिसको मैं ने तुम्हारे लिये अशुद्ध ठहराकर वर्जित किया है, उस से अपने आप को अशुद्ध न करना। 03O 20 26 और तुम मेरे लिये पवित्रा बने रहना; क्योंकि मैं यहोवा स्वयं पवित्रा हूं, और मैं ने तुम को और देशों के लोगों से इसलिये अलग किया है कि तुम निरन्तर मेरे ही बने रहो।। 03O 20 27 यदि कोई पुरूष वा स्त्री ओझाई वा भूत की साधना करे, तो वह निश्चय मार डाला जाए; ऐसों का पत्थरवाह किया जाए, उनका खून उन्हीं के सिर पर पड़ेगा।। 03O 21 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, हारून के पुत्रा जो याजक है उन से कह, कि तुम्हारे लोगों में से कोई भी मरे, तो उसके कारण तुम में से कोई अपने को अशुद्ध न करे; 03O 21 2 अपने निकट कुटुम्बियों, अर्थात् अपनी माता, वा पिता, वा बेटे, वा बेटी, वा भाई के लिये, 03O 21 3 वा अपनी कुंवारी बहिन जिसका विवाह न हुआ हो जिनका समीपी सम्बन्ध है; उनके लिये वह अपने को अशुद्ध कर सकता है। 03O 21 4 पर याजक होने के नाते से वह अपने लोगों में प्रधान है, इसलिये वह अपने को ऐसा अशुद्ध न करे कि अपवित्रा हो जाए। 03O 21 5 वे न तो अपने सिर मुंड़ाएं, और न अपने गाल के बालों को मुंड़ाएं, और न अपने शरीर चीरें। 03O 21 6 वे अपने परमेश्वर के लिये पवित्रा बने रहें, और अपने परमेश्वर का नाम अपवित्रा न करें; क्योंकि वे यहोवा के हव्य को जो उनके परमेश्वर का भोजन है चढ़ाया करते हैं; इस कारण वे पवित्रा बने रहें। 03O 21 7 वे वेश्या वा भ्रष्टा को ब्याह न लें; और न त्यागी हुई को ब्याह लें; क्योंकि याजक अपने परमेश्वर के लिये पवित्रा होता है। 03O 21 8 इसलिये तू याजक को पवित्रा जानना, क्योंकि वह तुम्हारे परमेश्वर का भोजन चढ़ाया करता है; इसलिये वह तेरी दृष्टि में पवित्रा ठहरे; क्योंकि मैं यहोवा, जो तुम को पवित्रा करता हूं, पवित्रा हूं। 03O 21 9 और यदि याजक की बेटी वेश्या बनकर अपने आप को अपवित्रा करे, तो वह अपने पिता को अपवित्रा ठहराती है; वह आग में जलाई जाए।। 03O 21 10 और जो अपने भाइयों में महायाजक हो, जिसके सिर पर अभिषेक का तेल डाला गया हो, और जिसका पवित्रा वस्त्रों को पहिनने के लिये संस्कार हुआ हो, वह अपने सिर के बाल बिखरने न दे, और अपने वस्त्रा फाड़े; 03O 21 11 और न वह किसी लोथ के पास जाए, और न अपने पिता वा माता के कारण अपने को अशुद्ध करे; 03O 21 12 और वह पवित्रास्थान से बाहर भी न निकले, और न अपने परमेश्वर के पवित्रास्थान को अपवित्रा ठहराए; क्योंकि वह अपने परमेश्वर के अभिषेक का तेलरूपी मुकुट धारण किए हुए है; मैं यहोवा हूं। 03O 21 13 और वह कुंवारी ही स्त्री को ब्याहे। 03O 21 14 जो विधवा, वा त्यागी हुई, वा भ्रष्ट, वा वेश्या हो, ऐसी किसी को वह न ब्याहे, वह अपने ही लोगों के बीच में की किसी कुंवारी कन्या को ब्याहे; 03O 21 15 और वह अपने वीरर्य को अपने लोगों में अपवित्रा न करे; क्योंकि मैं उसका पवित्रा करनेवाला यहोवा हूं। 03O 21 16 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 21 17 हारून से कह, कि तेरे वंश की पीढ़ी पीढ़ी में जिस किसी के कोई भी दोष हों वह अपने परमेश्वर का भोजन चढ़ाने के लिये समीप न आए। 03O 21 18 कोई क्यों न हो जिस में दोष हो वह समीप न आए, चाहे वह अन्धा हो, चाहे लंगड़ा, चाहे नकचपटा हो, चाहे उसके कुछ अधिक अंग हो, 03O 21 19 वा उसका पांव, वा हाथ टूटा हो, 03O 21 20 वा वह कुबड़ा, वा बौना हो, वा उसकी आंख में दोष हो, वा उस मनुष्य के चाईं वा खजुली हो, वा उसके अंड पिचके हों; 03O 21 21 हारून याजक के वंश में से जिस किसी में कोई भी दोष हो वह यहोवा के हव्य चढ़ाने के लिये समीप न आए; वह जो दोषयुक्त है कभी भी अपने परमेश्वर का भोजन चढ़ाने के लिये समीप न आए। 03O 21 22 वह अपने परमेश्वर के पवित्रा और परमपवित्रा दोनों प्रकार के भोजन को खाए, 03O 21 23 परन्तु उसके दोष के कारण वह न तो बीचवाले पर्दे के भीतर आए और न वेदी के समीप, जिस से ऐसा न हो कि वह मेरे पवित्रास्थानों को अपवित्रा करे; क्योंकि मैं उनका पवित्रा करनेवाला यहोवा हूं। 03O 21 24 इसलिये मूसा ने हारून और उसके पुत्रों को तथा कुल इस्त्राएलियों को यह बातें कह सुनाईं।। 03O 22 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 22 2 हारून और उसके पुत्रों से कह, कि इस्त्राएलियों की पवित्रा की हुई वस्तुओं से जिनको वे मेरे लिये पवित्रा करते हैं न्यारे रहें, और मेरे पवित्रा नाम को अपवित्रा न करें, मैं यहोवा हूं। 03O 22 3 और उन से कह, कि तुम्हारी पीढ़ी- पीढ़ी में तुम्हारे सारे वंश में से जो कोई अपनी अशुद्धता की दशा में उन पवित्रा की हुई वस्तुओं के पास जाए, जिन्हें इस्त्राएली यहोवा के लिये पवित्रा करते हैं, वह प्राणी मेरे साम्हने से नाश किया जाएगा; मैं यहोवा हूं। 03O 22 4 हारून के वंश में से कोई क्यों न हो जो कोढ़ी हो, वा उसके प्रमेह हो, वह मनुष्य जब तक शुद्ध न हो जाए तब तक पवित्रा की हुई वस्तुओं में से कुछ न खाए। और जो लोथ के कारण अशुद्ध हुआ हो, वा वीरर्य स्खलित हुआ हो, ऐसे मनुष्य को जो कोई छूए, 03O 22 5 और जो कोई किसी ऐसे रेंगनेहारे जन्तु को छूए जिस से लोग अशुद्ध हो सकते हैं, वा किसी ऐसे मनुष्य को छूए जिस में किसी प्रकार की अशुद्धता हो जो उसको भी लग सकती है। 03O 22 6 तो वह प्राणी जो इन में से किसी को छूए सांझ तक अशुद्ध ठहरा रहे, और जब तक जल से स्नान न कर ले तब तक पवित्रा वस्तुओं में से कुछ न खाए। 03O 22 7 तब सूर्य अस्त होने पर वह शुद्ध ठहरेगा; और तब वह पवित्रा वस्तुओं में से खा सकेगा, क्योंकि उसका भोजन वही है। 03O 22 8 जो जानवर आप से मरा हो वा पशु से फाड़ा गया हो उसे खाकर वह अपने आप को अशुद्ध न करे; मैं यहोवा हूं। 03O 22 9 इसलिये याजक लोग मेरी सौपी हुई वस्तुओं की रक्षा करें, ऐसा न हो कि वे उनको अपवित्रा करके पाप का भार उठाएं, और इसके कारण मर भी जाएं; मैं उनका पवित्रा करनेवाला यहोवा हूं। 03O 22 10 पराए कुल का जन किसी पवित्रा वस्तु को न खाने पाए, चाहे वह याजक का पाहुन हो वा मजदूर हो, तौभी वह कोई पवित्रा वस्तु न खाए। 03O 22 11 यदि याजक किसी प्राणी को रूपया देकर मोल ले, तो वह प्राणी उस में से खा सकता है; और जो याजक के घर में उत्पन्न हुए हों वे भी उसके भोजन में से खाएं। 03O 22 12 और यदि याजक की बेटी पराए कुल के किसी पुरूष से ब्याही गई हो, तो वह भेंट की हुई पवित्रा वस्तुओं में से न खाए। 03O 22 13 यदि याजक की बेटी विधवा वा त्यागी हुई हो, और उसकी सन्तान न हो, और वह अपनी बाल्यावस्था की रीति के अनुसार अपने पिता के घर में रहती हो, तो वह अपने पिता के भोजन में से खाए; पर पराए कुल का कोई उस में से न खाने पाए। 03O 22 14 और यदि कोई मनुष्य किसी पवित्रा वस्तु में से कुछ भूल से खा जाए, तो वह उसका पांचवां भाग बढ़ाकर उसे याजक को भर दे। 03O 22 15 और वे इस्त्राएलियों की पवित्रा की हुई वस्तुओं को, जिन्हें वे यहोवा के लिये चढ़ाएं, अपवित्रा न करें। 03O 22 16 वे उनको अपनी पवित्रा वस्तुओं में से खिलाकर उन से अपराध का दोष न उठवाएं; मैं उनका पवित्रा करनेवाला यहोवा हूं।। 03O 22 17 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 22 18 हारून और उसके पुत्रों से और इस्त्राएल के घराने वा इस्त्राएलियों में रहनेवाले परदेशियों में से कोई क्यों न हो जो मन्नत वा स्वेच्छाबलि करने के लिये यहोवा को कोई होमबलि चढ़ाए, 03O 22 19 तो अपने निमित्त ग्रहणयोग्य ठहरने के लिये बैलों वा भेड़ों वा बकरियों में से निर्दोष नर चढ़ाया जाए। 03O 22 20 जिस में कोई भी दोष हो उसे न चढ़ाना; क्योंकि वह तुम्हारे निमित्त ग्रहणयोग्य न ठहरेगा। 03O 22 21 और जो कोई बैलों वा भेड़- बकरियों में से विशेष वस्तु संकल्प करने के लिये वा स्वेच्छाबलि के लिये यहोवा को मेलबलि चढ़ाए, तो ग्रहण होने के लिये अवश्य है कि वह निर्दोष हो, उस में कोई भी दोष न हो। 03O 22 22 जो अन्धा वा अंग का टूटा वा लूला हो, वा उस में रसौली वा खौरा वा खुजली हो, ऐसों को यहोवा के लिये न चढ़ाना, उनको वेदी पर यहोवा के लिये हव्य न चढ़ाना। 03O 22 23 जिस किसी बैल वा भेड़ वा बकरे का कोई अंग अधिक वा कम हो उसको स्वेच्छाबलि कि लिये चढ़ा सकते हो, परन्तु मन्नत पूरी करने के लिये वह ग्रहण न होगा। 03O 22 24 जिसके अंड दबे वा कुचले वा टूटे वा कट गए हों उसको यहोवा के लिये न चढ़ाना, और अपने देश में भी ऐसा काम न करना। 03O 22 25 फिर इन में से किसी को तुम अपने परमेश्वर का भोजन जानकर किसी परदेशी से लेकर न चढ़ाओ; क्योंकि उन में उनका बिगाड़ वर्तमान है, उन में दोष है, इसलिये वे तुम्हारे निमित्त ग्रहण न होंगे।। 03O 22 26 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 22 27 जब बछड़ा वा भेड़ वा बकरी का बच्चा उत्पन्न हो, तो वह सात दिन तक अपनी मां के साथ रहे; फिर आठवें दिन से आगे को वह यहोवा के हव्यवाह चढ़ावे के लिये ग्रहणयोग्य ठहरेगा। 03O 22 28 चाहे गाय, चाहे भेड़ी वा बकरी हो, उसको और उसके बच्चे को एक ही दिन में बलि न करना। 03O 22 29 और जब तुम यहोवा के लिये धन्यवाद का मेलबलि चढ़ाओ, तो उसे इसी प्रकार से करना जिस से वह ग्रहणयोग्य ठहरे।। 03O 22 30 वह उसी दिन खाया जाए, उस में से कुछ भी बिहान तक रहने न पाए; मैं यहोवा हूं। 03O 22 31 और तुम मेरी आज्ञाओं को मानना और उनका पालन करना; मैं यहोवा हूं। 03O 22 32 और मेरे पवित्रा नाम को अपवित्रा न ठहराना, क्योंकि मैं इस्त्राएलियों के बीच अवश्य ही पवित्रा माना जाऊंगा; मैं तुम्हारा पवित्रा करनेवाला यहोवा हूं। 03O 22 33 जो तुम को मि देश से निकाल लाया हूं जिस से तुम्हारा परमेश्वर बना रहूं; मैं यहोवा हूं।। 03O 23 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 23 2 इस्त्राएलियों से कह, कि यहोवा के पर्ब्ब जिनका तुम को पवित्रा सभा एकत्रित करने के लिये नियत समय पर प्रचार करना होगा, मेरे वे पर्ब्ब ये हैं। 03O 23 3 छ: दिन कामकाज किया जाए, पर सातवां दिन परमविश्राम का और पवित्रा सभा का दिन है; उस में किसी प्रकार का कामकाज न किया जाए; वह तुम्हारे सब घरों में यहोवा का विश्राम दिन ठहरे।। 03O 23 4 फिर यहोवा के पर्ब्ब जिन में से एक एक के ठहराये हुए समय में तुम्हें पवित्रा सभा करने के लिये प्रचार करना होगा वे ये हैं। 03O 23 5 पहिले महीने के चौदहवें दिन को गोधूलि के समय यहोवा का फसह हुआ करे। 03O 23 6 और उसी महीने के पंद्रहवें दिन को यहोवा के लिये अखमीरी रोटी का पर्ब्ब हुआ करे; उस में तुम सात दिन तक अखमीरी रोटी खाया करना। 03O 23 7 उन में से पहिले दिन तुम्हारी पवित्रा सभा हो; और उस दिन परिश्रम का कोई काम न करना। 03O 23 8 और सातों दिन तुम यहोवा को हव्य चढ़ाया करना; और सातवें दिन पवित्रा सभा हो; उस दिन परिश्रम का कोई काम न करना।। 03O 23 9 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 23 10 इस्त्राएलियों से कह, कि जब तुम उस देश में प्रवेश करो जिसे यहोवा तुम्हें देता है और उस में के खेत काटो, तब अपने अपने पक्के खेत की पहिली उपज का पूला याजक के पास ले आया करना; 03O 23 11 और वह उस पूले को यहोवा के साम्हने हिलाए, कि वह तुम्हारे निमित्त ग्रहण किया जाए; वह उसे विश्रामदिन के दूसरे दिन हिलाए। 03O 23 12 और जिस दिन तुम पूले को हिलवाओ उसी दिन एक वर्ष का निर्दोष भेड़ का बच्चा यहोवा के लिये होमबलि चढ़ाना। 03O 23 13 और उसके साथ का अन्नबलि एपा के दो दसवें अंश तेल से सने हुए मैदे का हो वह सुखदायक सुगन्ध के लिये यहोवा का हव्य हो; और उसके साथ का अर्ध हीन भर की चौथाई दाखमधु हो। 03O 23 14 और जब तक तुम इस चढ़ावे को अपने परमेश्वर के पास न ले जाओ, उस दिन तक नये खेत में से न तो रोटी खाना और न भुना हुआ अन्न और न हरी बालें; यह तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में तुम्हारे सारे घरानों में सदा की विधि ठहरे।। 03O 23 15 फिर उस विश्रामदिन के दूसरे दिन से, अर्थात् जिस दिन तुम हिलाई जानेवाली भेंट के पूले को लाओगे, उस दिन से पूरे सात विश्रामदिन गिन लेना; 03O 23 16 सातवें विश्रामदिन के दूसरे दिन तक पचास दिन गिनना, और पचासवें दिन यहोवा के लिये नया अन्नबलि चढ़ाना। 03O 23 17 तुम अपने घरों में से एपा के दो दसवें अंश मैदे की दो रोटियां हिलाने की भेंट के लिये ले आना; वे खमीर के साथ पकाई जाएं, और यहोवा के लिये पहिली उपज ठहरें। 03O 23 18 और उस रोटी के संग एक एक वर्ष के सात निर्दोष भेड़ के बच्चे, और एक बछड़ा, और दो मेढ़े चढ़ाना; वे अपने अपने साथ के अन्नबलि और अर्ध समेत यहोवा के लिये होमबलि के समान चढ़ाए जाएं, अर्थात् वे यहोवा के लिये सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य ठहरें। 03O 23 19 फिर पापबलि के लिये एक बकरा, और मेलबलि के लिये एक एक वर्ष के दो भेड़ के बच्चे चढ़ाना। 03O 23 20 तब याजक उनको पहिली उपज की रोटी समेत यहोवा के साम्हने हिलाने की भेंट के लिये हिलाए, और इन रोटियों के संग वे दो भेड़ के बच्चे भी हिलाए जाएं; वे यहोवा के लिये पवित्रा, और याजक का भाग ठहरें। 03O 23 21 और तुम उस दिन यह प्रचार करना, कि आज हमारी एक पवित्रा सभा होगी; और परिश्रम का कोई काम न करना; यह तुम्हारे सारे घरानों में तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में सदा की विधि ठहरे।। 03O 23 23 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 23 24 इस्त्राएलियों से कह, कि सातवें महीने के पहिले दिन को तुम्हारे लिये परमविश्राम हो; उस में स्मरण दिलाने के लिये नरसिंगे फूंके जाएं, और एक पवित्रा सभा इकट्ठी हो। 03O 23 25 उस दिन तुम परिश्रम का कोई काम न करना, और यहोवा के लिये एक हव्य चढ़ाना।। 03O 23 26 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 23 27 उसी सातवें महीने का दसवां दिन प्रायश्चित्त का दिन माना जाए; वह तुम्हारी पवित्रा सभा का दिन होगा, और उस में तुम अपने अपने जीव को दु:ख देना और यहोवा का हव्य चढ़ाना। 03O 23 28 उस दिन तुम किसी प्रकार का कामकाज न करना; क्योंकि वह प्रायश्चित्त का दिन नियुक्त किया गया है जिस में तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के साम्हने तुम्हारे लिये प्रायश्चित्त किया जाएगा। 03O 23 29 इसलिये जो प्राणी उस दिन दु:ख न सहे वह अपने लोगों में से नाश किया जाएगा। 03O 23 30 और जो प्राणी उस दिन किसी प्रकार का कामकाज करे उस प्राणी को मैं उसके लोगों के बीच में से नाश कर डालूंगा। 03O 23 31 तुम किसी प्रकार का कामकाज न करना; यह तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में तुम्हारे घराने में सदा की विधी ठहरे। 03O 23 32 वह दिन तुम्हारे लिये परमविश्राम का हो, उस में तुम अपने अपने जीव को दु:ख देना; और उस महीने के नवें दिन की सांझ से लेकर दूसरी सांझ तक अपना विश्रामदिन माना करना।। 03O 23 33 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 23 34 इस्त्राएलियों से कह, कि उसी सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन से सात दिन तक यहोवा के लिये झोंपड़ियों का पर्ब्ब रहा करे। 03O 23 35 पहिले दिन पवित्रा सभा हो; उस में परिश्रम का कोई काम न करना। 03O 23 36 सातों दिन यहोवा के लिये हव्य चढ़ाया करना, फिर आठवें दिन तुम्हारी पवित्रा सभा हो, और यहोवा के लिये हव्य चढ़ाना; वह महासभा का दिन है, और उस में परिश्रम का कोई काम न करना।। 03O 23 37 यहोवा के नियत पर्ब्ब ये ही हैं, इन में तुम यहोवा को हव्य चढ़ाना, अर्थात् होमबलि, अन्नबलि, मेलबलि, और अर्घ, प्रत्येक अपने अपने नियत समय पर चढ़ाया जाए और पवित्रा सभा का प्रचार करना। 03O 23 38 इन सभों से अधिक यहोवा के विश्रामदिनों को मानना, और अपनी भेंटों, और सब मन्नतों, और स्वेच्छाबलियों को जो यहोवा को अर्पण करोगे चढ़ाया करना।। 03O 23 39 फिर सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन को, जब तुम देश की उपज को इकट्ठा कर चुको, तब सात दिन तक यहोवा का पर्ब्ब मानना; पहिले दिन परमविश्राम हो, और आठवें दिन परमविश्राम हो। 03O 23 40 और पहिले दिन तुम अच्छे अच्छे वृक्षों की उपज, और खजूर के पत्ते, और घने वृक्षों की डालियां, और नालों में के मजनू को लेकर अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने सात दिन तक आनन्द करना। 03O 23 41 और प्रतिवर्ष सात दिन तक यहोवा के लिये पर्ब्ब माना करना; यह तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में सदा की विधि ठहरे, कि सातवें महीने में यह पर्ब्ब माना जाए। 03O 23 42 सात दिन तक तुम झोंपड़ियों में रहा करना, अर्थात् जितने जन्म के इस्त्राएली हैं वे सब के सब झोंपड़ियों में रहें, 03O 23 43 इसलिये कि तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी के लोग जान रखें, कि जब यहोवा हम इस्त्राएलियों को मि देश से निकाल कर ला रहा था तब उस ने उनको झोंपड़ियों में टिकाया था; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 03O 23 44 और मूसा ने इस्त्राएलियों को यहोवा के पर्ब्ब के नियत समय कह सुनाए।। 03O 24 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 24 2 इस्त्राएलियों को यह आज्ञा दे, कि मेरे पास उजियाला देने के लिये कूट के निकाला हुआ जलपाई का निर्मल तेल ले आना, कि दीपक नित्य जलता रहे। 03O 24 3 हारून उसको, बीचवाले तम्बू में, साक्षीपत्रा के बीचवाले पर्दे से बाहर, यहोवा के साम्हने नित्य सांझ से भोर तक सजाकर रखे; यह तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी के लिये सदा की विधि ठहरे। 03O 24 4 वह दीपकों के स्वच्छ दीवट पर यहोवा के साम्हने नित्य सजाया करे।। 03O 24 5 और तू मैदा लेकर बारह रोटियां पकवाना, प्रत्येक रोटी में एपा का दो दसवां अंश मैदा हो। 03O 24 6 तब उनकी दो पांति करके, एक एक पांति में छ: छ: रोटियां, स्वच्छ मेज पर यहोवा के साम्हने धरना। 03O 24 7 और एक एक पांति पर चोखा लोबान रखना, कि वह रोटी पर स्मरण दिलानेवाला वस्तु और यहोवा के लिये हव्य हो। 03O 24 8 प्रति विश्रामदिन को वह उसे नित्य यहोवा के सम्मुख क्रम से रखा करे, यह सदा की वाचा की रीति इस्त्राएलियों की ओर से हुआ करे। 03O 24 9 और वह हारून और उसके पुत्रों की होंगी, और वे उसको किसी पवित्रा स्थान में खाएं, क्योंकि वह यहोवा के हव्यों में से सदा की विधि के अनुसार हारून के लिये परमपवित्रा वस्तु ठहरी है।। 03O 24 10 उन दिनों में किसी इस्त्राएली स्त्री का बेटा, जिसका पिता मिद्दी पुरूष था, इस्त्राएलियों के बीच चला गया; और वह इस्त्राएली स्त्री का बेटा और एक इस्त्राएली पुरूष छावनी के बीच आपस में मारपीट करने लगे, 03O 24 11 और वह इस्त्राएली स्त्री का बेटा यहोवा के नाम की निन्दा करके शाप देने लगा। यह सुनकर लोग उसको मूसा के पास ले गए। उसकी माता का नाम शलोमीत था, जो दान के गोत्रा के दिब्री की बेटी थी। 03O 24 12 उन्हों ने उसको हवालात में बन्द किया, जिस से यहोवा की आज्ञा से इस बात पर विचार किया जाए।। 03O 24 13 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 24 14 तुम लोग उस शाप देने वाले को छावनी से बाहर लिवा ले जाओ; और जितनों ने वह निन्दा सुनी हो वे सब अपने अपने हाथ उसके सिर पर टेकें, तब सारी मण्डली के लोग उसको पत्थरवाह करें। 03O 24 15 और तू इस्त्राएलियों से कह, कि कोई क्यों न हो जो अपने परमेश्वर को शाप दे उसे अपने पाप का भार उठाना पड़ेगा। 03O 24 16 यहोवा के नाम की निन्दा करनेवाला निश्चय मार डाला जाए; सारी मण्डली के लोग निश्चय उसको पत्थरवाह करें; चाहे देशी हो चाहे परदेशी, यदि कोई उस नाम की निन्दा करें तो वह मार डाला जाए। 03O 24 17 फिर जो कोई किसी मनुष्य को प्राण से मारे वह निश्चय मार डाला जाए। 03O 24 18 और जो कोई किसी घरेलू पशु को प्राण से मारे वह उसे भर दे, अर्थात् प्राणी की सन्ती प्राणी दे। 03O 24 19 फिर यदि कोई किसी दूसरे को चोट पहुंचाए, तो जैसा उस ने किया हो वैसा ही उसके साथ भी किया जाए, 03O 24 20 अर्थात् अंग भंग करने की सन्ती अंग भंग किया जाए, आंख की सन्ती आंख, दांत की सन्ती दांत, जैसी चोट जिस ने किसी को पहुंचाई हो वैसी ही उसको भी पहुंचाई जाए। 03O 24 21 और पशु का मार डालनेवाला उसको भर दे, परन्तु मनुष्य का मार डालनेवाला मार डाला जाए। 03O 24 22 तुम्हारा नियम एक ही हो, जैसा देशी के लिये वैसा ही परदेशी के लिये भी हो; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 03O 24 23 और मूसा ने इस्त्राएलियों को यही समझाया; तब उन्हों ने उस शाप देनेवाले को छावनी से बाहर ले जाकर उसको पत्थरवाह किया। और इस्त्राएलियों ने वैसा ही किया जैसा यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।। 03O 25 1 फिर यहोवा ने सीनै पर्वत के पास मूसा से कहा, 03O 25 2 इस्त्राएलियों से कह, कि जब तुम उस देश में प्रवेश करो जो मैं तुम्हें देता हूं, तब भूमि को यहोवा के लिये विश्राम मिला करे। 03O 25 3 छ: वर्ष तो अपना अपना खेत बोया करना, और छहों वर्ष अपनी अपनी दाख की बारी छांट छांटकर देश की उपज इकट्ठी किया करना; 03O 25 4 परन्तु सातवें वर्ष भूमि को यहोवा के लिये परमविश्रामकाल मिला करे; उस में न तो अपना खेत बोना और न अपनी दाख की बारी छांटना। 03O 25 5 जो कुछ काटे हुए खेत में अपने आप से उगे उसे न काटना, और अपनी बिन छांटी हुई दाखलता की दाखों को न तोड़ना; क्योंकि वह भूमि के लिये परमविश्राम का वर्ष होगा। 03O 25 6 और भूमि के विश्रामकाल ही की उपज से तुम को, और तुम्हारे दास- दासी को, और तुम्हारे साथ रहनेवाले मजदूरों और परदेशियों को भी भोजन मिलेगा; 03O 25 7 और तुम्हारे पशुओं का और देश में जितने जीवजन्तु हों उनका भी भोजन भूमि की सब उपज से होगा।। 03O 25 8 और सात विश्रामवर्ष, अर्थात् सातगुना सात वर्ष गिन लेना, सातों विश्रामवर्षों का यह समय उनचास वर्ष होगा। 03O 25 9 तब सातवें महीने के दसवें दिन को, अर्थात् प्रायश्चित्त के दिन, जय जयकार के महाशब्द का नरसिंगा अपने सारे देश में सब कहीं फुंकवाना। 03O 25 10 और उस पचासवें वर्ष को पवित्रा करके मानना, और देश के सारे निवासियों के लिये छुटकारे का प्रचार करना; वह वर्ष तुम्हारे यहां जुबली कहलाए; उस में तुम अपनी अपनी निज भूमि और अपने अपने घराने में लौटने पाओगे। 03O 25 11 तुम्हारे यहां वह पचासवां वर्ष जुबली का वर्ष कहलाए; उस में तुम न बोना, और जो अपने आप ऊगे उसे भी न काटना, और न बिन छांटी हुई दाखलता की दाखों को तोड़ना। 03O 25 12 क्योंकि वह जो जुबली का वर्ष होगा; वह तुम्हारे लिये पवित्रा होगा; तुम उसकी उपज खेत ही में से ले लेके खाना। 03O 25 13 इस जुबली के वर्ष में तुम अपनी अपनी निज भूमि को लौटने पाओगे। 03O 25 14 और यदि तुम अपने भाईबन्धु के हाथ कुछ बेचो वा अपने भाईबन्धु से कुछ मोल लो, तो तुम एक दूसरे पर अन्धेर न करना। 03O 25 15 जुबली के पीछे जितने वर्ष बीते हों उनकी गिनती के अनुसार दाम ठहराके एक दूसरे से मोल लेना, और शेष वर्षों की उपज के अनुसार वह तेरे हाथ बेचे। 03O 25 16 जितने वर्ष और रहें उतना ही दाम बढ़ाना, और जितने वर्ष कम रहें उतना ही दाम घटाना, क्योंकि वर्ष की उपज जितनी हों उतनी ही वह तेरे हाथ बेचेगा। 03O 25 17 और तुम अपने अपने भाईबन्धु पर अन्धेर न करना; अपने परमेश्वर का भय मानना; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 03O 25 18 इसलिये तुम मेरी विधियों को मानना, और मेरे नियमों पर समझ बूझकर चलना; क्योंकि ऐसा करने से तुम उस देश में निडर बसे रहोगे। 03O 25 19 और भूमि अपनी उपज उपजाया करेगी, और तुम पेट भर खाया करोगे, और उस देश में निडर बसे रहोगे। 03O 25 20 और यदि तुम कहो, कि सातवें वर्ष में हम क्या खाएंगे, न तो हम बोएंगे न अपने खेत की उपज इकट्ठी करेंगे? 03O 25 21 तो जानो कि मैं तुम को छठवें वर्ष में ऐसी आशीष दूंगा, कि भूमि की उपज तीन वर्ष तक काम आएगी। 03O 25 22 तुम आठवें वर्ष में बोओगे, और पुरानी उपज में से खाते रहोगे, और नवें वर्ष की उपज में से खाते रहोगे। 03O 25 23 भूमि सदा के लिये तो बेची न जाए, क्योंकि भूमि मेरी है; और उस में तुम परदेशी और बाहरी होगे। 03O 25 24 लेकिन तुम अपने भाग के सारे देश में भूमि को छुड़ा लेने देना।। 03O 25 25 यदि तेरा कोई भाईबन्धु कंगाल होकर अपनी निज भूमि में से कुछ बेच डाले, तो उसके कुटुम्बियों में से जो सब से निकट हो वह आकर अपने भाईबन्धु के बेचे हुए भाग को छुड़ा ले। 03O 25 26 और यदि किसी मनुष्य के लिये कोई छुड़ानेवाला न हो, और उसके पास इतना धन हो कि आप ही अपने भाग को छुड़ा ले सके, 03O 25 27 तो वह उसके बिकने के समय से वर्षों की गिनती करके शेष वर्षों की उपज का दाम उसको जिस ने उसे मोल लिया हो फेर दे; तब वह अपनी निज भूमि का अधिकारी हो जाए। 03O 25 28 परन्तु यदि उसके इतनी पूंजी न हो कि उसे फिर अपनी कर सके, तो उसकी बेची हुई भूमि जुबली के वर्ष तक मोल लेनेवालों के हाथ में रहे; और जुबली के वर्ष में छूट जाए तब वह मनुष्य अपनी निज भूमि का फिर अधिकारी हो जाए।। 03O 25 29 फिर यदि कोई मनुष्य शहरपनाह वाले नगर में बसने का घर बेचे, तो वह बेचने के बाद वर्ष भर के अन्दर उसे छुड़ा सकेगा, अर्थात् पूरे वर्ष भर उस मनुष्य को छुड़ाने का अधिकार रहेगा। 03O 25 30 परन्तु यदि वह वर्ष भर में न छुड़ाए, तो वह घर पर शहरपनाहवाले नगर में हो मोल लेनेवाले का बना रहे, और पीढ़ी- पीढ़ी में उसी मे वंश का बना रहे; और जुबली के वर्ष में भी न छूटे। 03O 25 31 परन्तु बिना शहरपनाह के गांवों के घर तो देश के खेतों के समान गिने जाएं; उनका छुड़ाना भी हो सकेगा, और वे जुबली के वर्ष में छूट जाएं। 03O 25 32 और लेवियों के निज भाग के नगरों के जो घर हों उनको लेवीय जब चाहें तब छुड़ाएं। 03O 25 33 और यदि कोई लेवीय अपना भाग न छुड़ाए, तो वह बेचा हुआ घर जो उसके भाग के नगर में हो जुबली के वर्ष में छूट जाए; क्योंकि इस्त्राएलियों के बीच लेवियों का भाग उनके नगरों में वे घर ही हैं। 03O 25 34 और उनके नगरों की चारों ओर की चराई की भूमि बेची न जाए; क्योंकि वह उनका सदा का भाग होगा।। 03O 25 35 फिर यदि तेरा कोई भाईबन्धु कंगाल हो जाए, और उसकी दशा तेरे साम्हने तरस योग्य हो जाए, तो तू उसको संभालना; वह परदेशी वा यात्री की नाई तेरे संग रहे। 03O 25 36 उस से ब्याज वा बढ़ती न लेना; अपने परमेश्वर का भय मानना; जिस से तेरा भाईबन्धु तेरे संग जीवन निर्वाह कर सके। 03O 25 37 उसको ब्याज पर रूपया न देना, और न उसको भोजनवस्तु लाभ के लालच से देना। 03O 25 38 मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं; मैं तुम्हें कनान देश देने के लिये और तुम्हारा परमेश्वर ठहरने की मनसा से तुम को मि देश से निकाल लाया हूं।। 03O 25 39 फिर यदि तेरा कोई भाईबन्धु तेरे साम्हने कंगाल होकर अपने आप को तेरे हाथ बेच डाले, तो उस से दास के समान सेवा न करवाना। 03O 25 40 वह तेरे संग मजदूर वा यात्री की नाई रहे, और जुबली के वर्ष तक तेरे संग रहकर सेवा करता रहे; 03O 25 41 तब वह बालबच्चों समेत तेरे पास से निकल जाए, और अपने कुटुम्ब में और अपने पितरों की निज भूमि में लौट जाए। 03O 25 42 क्योंकि वे मेरे ही दास हैं, जिनको मैं मि देश से निकाल लाया हूं; इसलिये वे दास की रीति से न बेचे जाएं। 03O 25 43 उस पर कठोरता से अधिकार न करना; अपने परमेश्वर का भय मानते रहना। 03O 25 44 तेरे जो दास- दासियां हों वे तुम्हारी चारों ओर की जातियों में से हों, और दास और दासियां उन्हीं में से मोल लेना। 03O 25 45 और जो यात्री लोग तुम्हारे बीच में परदेशी होकर रहेंगे, उन में से और उनके घरानों में से भी जो तुमहारे आस पास हों, और जो तुम्हारे देश में उत्पन्न हुए हों, उन में से तुम दास और दासी मोल लो; और वे तुम्हारा भाग ठहरें। 03O 25 46 और तुम अपने पुत्रों को भी जो तुम्हारे बाद होंगे उनके अधिकारी कर सकोगे, और वे उनका भाग ठहरें; उन में से तुम सदा अपने लिये दास लिया करना, परन्तु तुम्हारे भाईबन्धु जो इस्त्राएली हों उन पर अपना अधिकार कठोरता से न जताना।। 03O 25 47 फिर यदि तेरे साम्हने कोई परदेशी वा यात्री धनी हो जाए, और उसके साम्हने तेरा भाई कंगाल होकर अपने आप को तेरे साम्हने उस परदेशी वा यात्री वा उसके वंश के हाथ बेच डाले, 03O 25 48 तो उसके बिक जाने के बाद वह फिर छुड़ाया जा सकता है; उसके भाइयों में से कोई उसको छुड़ा सकता है, 03O 25 49 वा उसका चाचा, वा चचेरा भाई, तथा उसके कुल का कोई भी निकट कुटुम्बी उसको छुड़ा सकता है; वा यदि वह धनी हो जाए, तो वह आप ही अपने को छुड़ा सकता है। 03O 25 50 वह अपने मोल लेनेवाले के साथ अपने बिकने के वर्ष से जुबली के वर्ष तक हिसाब करे, और उसके बिकने का दाम वर्षों की गिनती के अनुसार हो, अर्थात् वह दाम मजदूर के दिवसों के समान उसके साथ होगा। 03O 25 51 यदि जुबली के बहुत वर्ष रह जाएं, तो जितने रूपयों से वह मोल लिया गया हो उन में से वह अपने छुड़ाने का दाम उतने वर्षों के अनुसार फेर दे। 03O 25 52 और यदि जुबली के वर्ष के थोड़े वर्ष रह गए हों, तौभी वह अपने स्वामी के साथ हिसाब करके अपने छुड़ाने का दाम उतने ही वर्षों के अनुसार फेर दे। 03O 25 53 वह अपने स्वामी के संग उस मजदूर के सामान रहे जिसकी वार्षिक मजदूरी ठहराई जाती हो; और उसका स्वामी उस पर तेरे साम्हने कठोरता से अधिकार न जताने पाए। 03O 25 54 और यदि वह इन रीतियों से छुड़ाया न जाए, तो वह जुबली के वर्ष में अपने बाल- बच्चों समेत छूट जाए। 03O 25 55 क्योंकि इस्त्राएली मेरे ही दास हैं; वे मि देश से मेरे ही निकाले हुए दास हैं; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।। 03O 26 1 तुम अपने लिये मूरतें न बनाना, और न कोई खुदी हुई मूर्ति वा लाट अपने लिये खड़ी करना, और न अपने देश में दण्डवत् करने के लिये नक्काशीदार पत्थर स्थापन करना; क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 03O 26 2 तुम मेरे विश्रामदिनों का पालन करना और मेरे पवित्रास्थान का भय मानना; मैं यहोवा हूं।। 03O 26 3 यदि तुम मेरी विधियों पर चलो और मेरी आज्ञाओं को मानकर उनका पालन करो, 03O 26 4 तो मैं तुम्हारे लिये समय समय पर मेंह बरसाऊंगा, तथा भूमि अपनी उपज उपजाएगी, और मैदान के वृक्ष अपने अपने फल दिया करेंगे; 03O 26 5 यहां तक कि तुम दाख तोड़ने के समय भी दावनी करते रहोगे, और बोने के समय भी भर पेट दाख तोड़ते रहोगे, और तुम मनमानी रोटी खाया करोगे, और अपने देश में निश्चिन्त बसे रहोगे। 03O 26 6 और मैं तुम्हारे देश में सुख चैन दूंगा, और तुम सोओगे और तुम्हारा कोई डरानेवाला न हो; और मैं उस देश में दुष्ट जन्तुओं को न रहने दूंगा, और तलवार तुम्हारे देश में न चलेगी। 03O 26 7 और तुम अपने शत्रुओं को मार भगा दोगे, और वे तुम्हारी तलवार से मारे जाएंगे। 03O 26 8 और तुम में से पांच मनुष्य सौ को और सौ मनुष्य दस हजार को खदेड़ेंगे; और तुम्हारे शत्रु तलवार से तुम्हारे आगे आगे मारे जाएंगे; 03O 26 9 और मैं तुम्हारी ओर कृपा दृष्टि रखूंगा और तुम को फलवन्त करूंगा और बढ़ाऊंगा, और तुम्हारे संग अपनी वाचा को पूर्ण करूंगा। 03O 26 10 और तुम रखे हुए पुराने अनाज को खाओगे, और नये के रहते भी पुराने को निकालोगे। 03O 26 11 और मैं तुम्हारे बीच अपना निवासस्थान बनाए रखूंगा, और मेरा जी तुम से घृणा नहीं करेगा। 03O 26 12 और मैं तुम्हारे मध्य चला फिरा करूंगा, और तुम्हारा परमेश्वर बना रहूंगा, और तुम मेरी प्रजा बने रहोगे। 03O 26 13 मैं तो तुम्हारा वह परमेश्वर यहोवा हूं, जो तुम को मि देश से इसलिये निकाल ले आया कि तुम मिस्त्रियों के दास न बने रहो; और मैं ने तुम्हारे जूए को तोड़ डाला है, और तुम को सीधा खड़ा करके चलाया है।। 03O 26 14 यदि तुम मेरी न सुनोगे, और इन सब आज्ञाओं को न मानोगे, 03O 26 15 और मेरी विधियों को निकम्मा जानोगे, और तुम्हारी आत्मा मेरे निर्णयों से घृणा करे, और तुम मेरी सब आज्ञाओं का पालन न करोगे, वरन मेरी वाचा को तोड़ोगे, 03O 26 16 तो मैं तुम से यह करूंगा; अर्थात् मैं तुम को बेचैन करूंगा, और क्षयरोग और ज्वर से पीड़ित करूंगा, और इनके कारण तुम्हारी आंखे धुंधली हो जाएंगी, और तुम्हारा मन अति उदास होगा। और तुम्हारा बीच बोना व्यर्थ होगा, क्योंकि तुम्हारे शत्रु उसकी उपज खा लेंगे; 03O 26 17 और मैं भी तुम्हारे विरूद्ध हो जाऊंगा, और तुम अपने शत्रुओं से हार जाओगे; और तुम्हारे बैरी तुम्हारे ऊपर अधिकार करेंगे, और जब कोई तुम को खदेड़ता भी न होगा तब भी तुम भागोगे। 03O 26 18 और यदि तुम इन बातों के उपरान्त भी मेरी न सुनो, तो मैं तुम्हारे पापों के कारण तुम्हें सातगुणी ताड़ना और दूंगा, 03O 26 19 और मैं तुम्हारे बल का घमण्ड तोड़ डालूंगा, और तुम्हारे लिये आकाश को मानो लोहे का और भूमि को मानो पीतल की बना दूंगा; 03O 26 20 और तुम्हारा बल अकारथ गंवाया जाएगा, क्योंकि तुम्हारी भूमि अपनी उपज न उपजाएगी, और मैदान के वृक्ष अपने फल न देंगे। 03O 26 21 और यदि तुम मेरे विरूद्ध चलते ही रहो, और मेरा कहना न मानों, तो मैं तुम्हारे पापों के अनुसार तुम्हारे ऊपर और सातगुणा संकट डालूंगा। 03O 26 22 और मैं तुम्हारे बीच बन पशु भेजूंगा, जो तुम को निर्वंश करेंगे, और तुम्हारे घरेलू पशुओं को नाशकर डालेंगे, और तुम्हारी गिनती घटाएंगे, जिस से तुम्हारी सड़के सूनी पड़ जाएंगी। 03O 26 23 फिर यदि तुम इन बातों पर भी मेरी ताड़ना से न सुधरो, और मेरे विरूद्ध चलते ही रहो, 03O 26 24 तो मैं भी तुम्हारे विरूद्ध चलूंगा, और तुम्हारे पापों के कारण मैं आप ही तुम को सातगुणा मारूंगा। 03O 26 25 तो मैं तुम पर एक ऐसी तलवार चलवाऊंगा, जो वाचा तोड़ने का पूरा पूरा पलटा लेगी; और जब तुम अपने नगरों में जा जाकर इकट्ठे होगे तब मैं तुम्हारे बीच मरी फैलाऊंगा, और तुम अपने शत्रुओं के वश में सौंप दिए जाओगे। 03O 26 26 और जब मैं तुम्हारे लिये अन्न के आधार को दूर कर डालूंगा, तब दस स्त्रियां तुम्हारी रोटी एक ही तंदूर में पकाकर तौल तौलकर बांट देंगी; और तुम खाकर भी तृप्त न होगे।। 03O 26 27 फिर यदि तुम इसके उपरान्त भी मेरी न सुनोगे, और मेरे विरूद्ध चलते ही रहोगे, 03O 26 28 तो मैं अपने न्याय में तुम्हारे विरूद्ध चलूंगा, और तुम्हारे पापों के कारण तुम को सातगुणी ताड़ना और भी दूंगा। 03O 26 29 और तुम को अपने बेटों और बेटियों का मांस खाना पड़ेगा। 03O 26 30 और मैं तुम्हारे पूजा के ऊंचे स्थानों को ढा दूंगा, और तुम्हारे सूर्य की प्रतिमाएं तोड़ डालूंगा, और तुम्हारी लोथों को तुम्हारी तोड़ी हुई मूरतों पर फूंक दूंगा; और मेरी आत्मा को तुम से घृणा हो जाएगी। 03O 26 31 और मैं तुम्हारे नगरों को उजाड़ दूंगा, और तुम्हारे पवित्रा स्थानों को उजाड़ दूंगा, और तुम्हारा सुखदायक सुगन्ध ग्रहण न करूंगा। 03O 26 32 और मैं तुम्हारे देश को सूना कर दूंगा, और तुम्हारे शत्रु जो उस में रहते हैं वे इन बातों के कारण चकित होंगे। 03O 26 33 और मैं तुम को जाति जाति के बीच तित्तर- बित्तर करूंगा, और तुम्हारे पीछे पीछे तलवार खीचें रहूंगा; और तुम्हारा देश सुना हो जाएगा, और तुम्हारे नगर उजाड़ हो जाएंगे। 03O 26 34 तब जितने दिन वह देश सूना पड़ा रहेगा और तुम अपने शत्रुओं के देश में रहोगे उतने दिन वह अपने विश्रामकालों को मानता रहेगा। 03O 26 35 और जितने दिन वह सूना पड़ा रहेगा उतने दिन उसको विश्राम रहेगा, अर्थात् जो विश्राम उसको तुम्हारे वहां बसे रहने के समय तुम्हारे विश्रामकालों में न मिला होगा वह उसको तब मिलेगा। 03O 26 36 और तुम में से जो बच रहेंगे और अपने शत्रुओं के देश में होंगे उनके हृदय में मै कायरता उपजाऊंगा; और वे पत्ते के खड़कने से भी भाग जाएंगे, और वे ऐसे भागेंगे जैसे कोई तलवार से भागे, और किसी के बिना पीछा किए भी वे गिर गिर पड़ेंगे। 03O 26 37 और जब कोई पीछा करनेवाला न हो तब भी मानों तलवार के भय से वे एक दूसरे से ठोकर खाकर गिरते जाएंगे, और तुम को अपने शत्रुओं के साम्हने ठहरने की कुछ शक्ति न होगी। 03O 26 38 तब तुम जाति जाति के बीच पहुंचकर नाश हो जाओगे, और तुम्हारे शत्रुओं की भूमि तुम को खा जाएगी। 03O 26 39 और तुम में से जो बचे रहेंगे वे अपने शत्रुओं के देशों में अपने अधर्म के कारण गल जाएंगे; और अपने पुरखाओं के अधर्म के कामों के कारण भी वे उन्हीं की नाई गल जाएंगे। 03O 26 40 तब वे अपने और अपने पितरों के अधर्म को मान लेंगे, अर्थात् उस विश्वासघात को जो वे मेरा करेंगे, और यह भी मान लेंगे, कि हम यहोवा के विरूद्ध चले थे, 03O 26 41 इसी कारण वह हमारे विरूद्ध होकर हमें शत्रुओं के देश में ले आया है। यदि उस समय उनका खतनारहित हृदय दब जाएगा और वे उस समय अपने अधर्म के दण्ड को अंगीकार करेगें; 03O 26 42 तब जो वाचा मैं ने याकूब के संग बान्धी थी उसको मैं स्मरण करूंगा, और जो वाचा मैं ने इसहाक से और जो वाचा मैं ने इब्राहीम से बान्धी थी उनको भी स्मरण करूंगा, और इस देश को भी मैं स्मरण करूंगा। 03O 26 43 और वह देश उन से रहित होकर सूना पड़ा रहेगा, और उनके बिना सूना रहकर भी अपने विश्रामकालों को मानता रहेगा; और वे लोग अपने अधर्म के दण्ड को अंगीकार करेगें, इसी कारण से कि उन्हों ने मेरी आज्ञाओं का उलंघन किया था, और उनकी आत्माओं को मेरी विधियों से घृणा थी। 03O 26 44 इतने पर भी जब वे अपने शत्रुओं के देश में होंगे, तब मैं उनको इस प्रकार नहीं छोडूंगा, और न उन से ऐसी घृणा करूंगा कि उनका सर्वनाश कर डालूं और अपनी उस वाचा को तोड़ दूं जो मैं ने उन से बान्धी है; क्योंकि मैं उनका परमेश्वर यहोवा हूं; 03O 26 45 परन्तु मैं उनके भलाई के लिये उनके पितरों से बान्धी हुई वाचा को स्मरण करूंगा, जिन्हें मै अन्यजातियों की आंखों के साम्हने मि देश से निकालकर लाया कि मैं उनका परमेश्वर ठहरूं; मैं यहोवा हूं।। 03O 26 46 जो जो विधियां और नियम और व्यवस्था यहोवा ने अपनी ओर से इस्त्राएलियों के लिये सीनै पर्वत पर मूसा के द्वारा ठहराई थीं वे ये ही हैं।। 03O 27 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 03O 27 2 इस्त्राएलियों से यह कह, कि जब कोई विशेष संकल्प माने, तो संकल्प किए हुए प्राणी तेरे ठहराने के अनुसार यहोवा के होंगे; 03O 27 3 इसलिये यदि वह बीस वर्ष वा उस से अधिक और साठ वर्ष से कम अवस्था का पुरूष हो, तो उसके लिये पवित्रास्थान के शेकेल के अनुसार पचास शेकेल का रूपया ठहरे। 03O 27 4 और यदि वह स्त्री हो, तो तीस शेकेल ठहरे। 03O 27 5 फिर यदि उसकी अवस्था पांच वर्ष वा उससे अधिक और बीस वर्ष से कम की हो, तो लड़के के लिये तो बीस शेकेल, और लड़की के लिये दस शेकेल ठहरे। 03O 27 6 और यदि उसकी अवस्था एक महीने वा उस से अधिक और पांच वर्ष से कम की हो, तो लड़के के लिये तो पांच, और लड़की के लिये तीन शेकेल ठहरें। 03O 27 7 फिर यदि उसकी अवस्था साठ वर्ष की वा उस से अधिक हो, और वह पुरूष हो तो उसके लिये पंद्रह शेकेल, और स्त्री हो तो दस शेकेल ठहरे। 03O 27 9 फिर जिन पशुओं में से लोग यहोवा को चढ़ावा चढ़ाते है, यदि ऐसों में से कोई संकल्प किया जाए, तो जो पशु कोई यहोवा को दे वह पवित्रा ठहरेगा। 03O 27 10 वह उसे किसी प्रकार से न बदले, न तो वह बुरे की सन्ती अच्छा, और न अच्छे की सन्ती बुरा दे; और यदि वह उस पशु की सन्ती दूसरा पशु दे, तो वह और उसका बदला दोनों पवित्रा ठहरेंगे। 03O 27 11 और जिन पशुओं में से लोग यहोवा के लिये चढ़ावा नहीं चढ़ाते ऐसों में से यदि वह हो, तो वह उसको याजक के साम्हने खड़ा कर दे, 03O 27 12 तक याजक पशु के गुण अवगुण दोनों विचारकर उसका मोल ठहराए; और जितना याजक ठहराए उसका मोल उतना ही ठहरे। 03O 27 13 और यदि संकल्प करनेवाला उसे किसी प्रकार से छुड़ाना चाहे, तो जो मोल याजक ने ठहराया हो उस में उसका पांचवां भाग और बढ़ाकर दे।। 03O 27 14 फिर यदि कोई अपना घर यहोवा के लिये पवित्रा ठहराकर संकल्प करे, तो याजक उसके गुण- अवगुण दोनों विचारकर उसका मोल ठहराए; और जितना याजक ठहराए उसका मोल उतना ही ठहरे। 03O 27 15 और यदि घर का पवित्रा करनेवाला उसे छुड़ाना चाहे, तो जितना रूपया याजक ने उसका मोल ठहराया हो उस में वह पांचवां भाग और बढ़ाकर दे, तब वह घर उसी का रहेगा।। 03O 27 16 फिर यदि कोई अपनी निज भूमि का कोई भाग यहोवा के लिये पवित्रा ठहराना चाहे, तो उसका मोल इसके अनुसार ठहरे, कि उस में कितना बीज पड़ेगा; जितना भूमि में होमेर भर जौ पड़े उतनी का मोल पचास शेकेल ठहरे। 03O 27 17 यदि वह अपना खेत जुबली के वर्ष ही में पवित्रा ठहराए, तो उसका दाम तेरे ठहराने के अनुसार ठहरे; 03O 27 18 और यदि वह अपना खेत जुबली के वर्ष के बाद पवित्रा ठहराए, तो जितने वर्ष दूसरे जुबली के वर्ष के बाकी रहें उन्हीं के अनुसार याजक उसके लिये रूपये का हिसाब करे, तब जितना हिसाब में आए उतना याजक के ठहराने से कम हो। 03O 27 19 और यदि खेत को पवित्रा ठहरानेवाला उसे छुड़ाना चाहे, तो जो दाम याजक ने ठहराया हो उस में वह पांचवां भाग और बढ़ाकर दे, तब खेत उसी का रहेगा। 03O 27 20 और यदि वह खेत को छुड़ाना न चाहे, वा उस ने उसको दूसरे के हाथ बेचा हो, तो खेत आगे को कभी न छुड़ाया जाए; 03O 27 21 परन्तु जब वह खेत जुबली के वर्ष में छूटे, तब पूरी रीति से अर्पण किए हुए खेत की नाई यहोवा के लिये पवित्रा ठहरे, अर्थात् वह याजक ही की निज भूमि हो जाए। 03O 27 22 फिर यदि कोई अपना मोल लिया हुआ खेत, जो उसकी निज भूमि के खेतों में का न हो, यहोवा के लिये पवित्रा ठहराए, 03O 27 23 तो याजक जुबली के वर्ष तक का हिसाब करके उस मनुष्य के लिये जितना ठहराए उतना ही वह यहोवा के लिये पवित्रा जानकर उसी दिन दे दे। 03O 27 24 और जुबली के वर्ष में वह खेत उसी के अधिकार में जिस से वह मोल लिया गया हो फिर आ जाए, अर्थात् जिसकी वह निज भूमि हो उसी की फिर हो जाए। 03O 27 25 और जिस जिस वस्तु का मोल याजक ठहराए उसका मोल पवित्रास्थान ही के शेकेल के हिसाब से ठहरे: शेकेल बीस गेरा का ठहरे।। 03O 27 26 पर घरेलू पशुओं का पहिलौठा, जो यहोवा का पहिलौठा ठहरा है, उसको तो कोई पवित्रा न ठहराए; चाहे वह बछड़ा हो, चाहे भेड़ वा बकरी का बच्चा, वह यहोवा ही का है। 03O 27 27 परन्तु यदि वह अशुद्ध पशु का हो, तो उसका पवित्रा ठहरानेवाला उसको याजक के ठहराए हुए मोल के अनुसार उसका पांचवां भाग और बढ़ाकर छुड़ा सकता है; और यदि वह न छुड़ाया जाए, तो याजक के ठहराए हुए मोल पर बेच दिया जाए।। 03O 27 28 परन्तु अपनी सारी वस्तुओं में से जो कुछ कोई यहोवा के लिये अर्पण करे, चाहे मनुष्य हो चाहे पशु, चाहे उसकी निज भूमि का खेत हो, ऐसी कोई अर्पण की हुई वस्तु न तो बेची जाए और न छुड़ाई जाए; जो कुछ अर्पण किया जाए वह यहोवा के लिये परमपवित्रा ठहरे। 03O 27 29 मनुष्यों में से जो कोई अर्पण किया जाए, वह छुड़ाया न जाए; निश्चय वह मार डाला जाए।। 03O 27 30 फिर भूमि की उपज का सारा दशमांश, चाहे वह भूमि का बीज हो चाहे वृक्ष का फल, वह यहोवा ही का है; वह यहोवा के लिये पवित्रा ठहरे। 03O 27 31 यदि कोई अपने दशमांश में से कुछ छुड़ाना चाहे, तो पांचवां भाग बढ़ाकर उसको छुड़ाए। 03O 27 32 और गाय- बैल और भेड़- बकरियां, निदान जो जो पशु गिनने के लिये लाठी के तले निकल जानेवाले हैं उनका दशमांश, अर्थात् दस दस पीछे एक एक पशु यहोवा के लिये पवित्रा ठहरे। 03O 27 33 कोई उसके गुण अवगुण न विचारे, और न उसको बदले; और यदि कोई उसको बदल भी ले, तो वह और उसका बदला दोनों पवित्रा ठहरें; और वह कभी छुड़ाया न जाए।। 03O 27 34 जो आज्ञाएं यहोवा ने इस्त्राएलियों के लिये सीनै पर्वत पर मूसा को दी थी वे ये ही हैं।। 04O 1 1 इस्त्राएलियों के मि देश से निकल जाने के दूसरे वर्ष के दूसरे महीने के पहिले दिन को, यहोवा ने सीनै के जंगल में मिलापवाले तम्बू में, मूसा से कहा, 04O 1 2 इस्त्राएलियों की सारी मण्डली के कुलों और पितरों के घरानों के अनुसार, एक एक पुरूष की गिनती नाम ले लेकर करना; 04O 1 3 जितने इस्त्राएली बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्था के हों, और जो युद्ध करने के योग्य हों, उन सभों को उनके दलों के अनुसार तू और हारून गिन ले। 04O 1 4 और तुम्हारे साथ एक एक गोत्रा का एक एक पुरूष भी हो जो अपने पितरों के घराने का मुख्य पुरूष हो। 04O 1 5 तुम्हारे उन साथियों के नाम ये हैं, अर्थात् रूबेन के गोत्रा में से शदेऊर का पुत्रा एलीसूर; 04O 1 6 शिमोन के गोत्रा में से सूरीश ै का पुत्रा शलूमीएल; 04O 1 7 यहूदा के गोत्रा में से अम्मीनादाब का पुत्रा नहशोन; 04O 1 8 इस्साकार के गोत्रा में से सूआ का पुत्रा नतनेल; 04O 1 9 जबूलून के गोत्रा में से हेलोन का पुत्रा एलीआब; 04O 1 10 यूसुफवंशियों में से ये हैं, अर्थात् एर्पैम के गोत्रा में से अम्मीहूद का पुत्रा एलीशामा, ओर मनश्शे के गोत्रा में से पदासूर का पुत्रा गम्लीएल; 04O 1 11 बिन्यामीन के गोत्रा में से गिदोनी का पुत्रा अबीदान; 04O 1 12 दान के गोत्रा में से अम्मीश ै का पुत्रा अहीऐजेर; 04O 1 13 आशेर के गोत्रा में से ओक्रान का पुत्रा पगीएल; 04O 1 14 गाद के गोत्रा में से दूएल का पुत्रा एल्यासाप; 04O 1 15 नप्ताली के गोत्रा में से एनाम का पुत्रा अहीरा। 04O 1 16 मण्डली में से जो पुरूष अपने अपने पितरों के गोत्रों के प्रधान होकर बुलाए गए वे ये ही हैं, और ये इस्त्राएलियों के हजारों में मुख्य पुरूष थे। 04O 1 17 और जिन पुरूषों के नाम ऊपर लिखे हैं उनको साथ लेकर, 04O 1 18 मूसा और हारून ने दूसरे महीने के पहिले दिन सारी मण्डली इकट्ठी की, तब इस्त्राएलियों ने अपने अपने कुल और अपने अपने पितरों के घराने के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्थावालों के नामों की गिनती करवा के अपनी अपनी वंशावली लिखवाई; 04O 1 19 जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को जो आज्ञा दी थी उसी के अनुसार उस ने सीनै के जंगल में उनकी गणना की।। 04O 1 20 और इस्त्राएल के पहिलौठे रूबेन के वंश ने जितने पुरूष अपने कुल और अपने पितरों के घराने के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्था के थे और युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने अपने नाम से गिने गए: 04O 1 21 और रूबेन के गोत्रा के गिने हुए पुरूष साढ़े छियालीस हजार थे।। 04O 1 22 और शिमोन के वंश के लोग जितने पुरूष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्था के थे, और जो युद्ध करने के योग्य थे वे सब अपने अपने नाम से गिने गए: 04O 1 23 और शिमोन के गोत्रा के गिने हुए पुरूष उनसठ हजार तीन सौ थे।। 04O 1 24 और गाद के वंश के जितने पुरूष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्था के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने अपने नाम से गिने गए: 04O 1 25 और गाद के गोत्रा के गिने हुए पुरूष पैंतालीस हजार साढ़े छ: सौ थे।। 04O 1 26 और यहूदा के वंश के जितने पुरूष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्था के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने अपने नाम से गिने गए: 04O 1 27 और यहूदा के गोत्रा के गिने हुए पुरूष चौहत्तर हजार छ: सौ थे।। 04O 1 28 और इस्साकार के वंश के जितने पुरूष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्था के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने अपने नाम से गिने गए: 04O 1 29 और इस्साकार के गोत्रा के गिने हुए पुरूष चौवन हजार चार सौ थे।। 04O 1 30 और जबूलून वे वंश के जितने पुरूष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्था के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने अपने नाम से गिने गए: 04O 1 31 और जबूलून के गोत्रा के गिने हुए पुरूष सत्तावन हजार चार सौ थे।। 04O 1 32 और यूसुफ के वंश में से एप्रैम के वंश के जितने पुरूष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्था के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने अपने नाम से गिने गए: 04O 1 33 और एप्रैम गोत्रा के गिने हुए पुरूष साढ़े चालीस हजार थे।। 04O 1 34 और मनश्शे के वंश के जितने पुरूष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्था के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने अपने नाम से गिने गए: 04O 1 35 और मनश्शे के गोत्रा के गिने हुए पुरूष बत्तीस हजार दो सौ थे।। 04O 1 36 और बिन्यामीन के वंश के जितने पुरूष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्था के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने अपने नाम से गिने गए: 04O 1 37 और बिन्यामीन के गोत्रा के गिने हुए पुरूष पैंतीस हजार चार सौ थे।। 04O 1 38 और दान के वंश के जितने पुरूष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्था के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे अपने अपने नाम से गिने गए: 04O 1 39 और दान के गोत्रा के गिने हुए पुरूष बासठ हजार सात सौ थे।। 04O 1 40 और आशेर के वंश के जितने पुरूष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष वा उससे अधिक अवस्था के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने अपने नाम से गिने गए: 04O 1 41 और आशेर के गोत्रा के गिने हुए पुरूष साढ़े एकतालीस हजार थे।। 04O 1 42 और नप्ताली के वंश के जितने पुरूष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्था के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने अपने नाम से गिने गए: 04O 1 43 और नप्ताली के गोत्रा के गिने हुए पुरूष तिरपन हजार चार सौ थे।। 04O 1 44 इस प्रकार मूसा और हारून और इस्त्राएल के बारह प्रधानों ने, जो अपने अपने पितरों के घराने के प्रधान थे, उन सभों को गिन लिया और उनकी गिनती यही थी। 04O 1 45 सो जितने इस्त्राएली बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्था के होने के कारण युद्ध करने के योग्य थे वे अपने पितरों के घरानों के अनुसार गिने गए, 04O 1 46 और वे सब गिने हुए पुरूष मिलाकर छ: लाख तीन हजार साढ़े पांच सौ थे।। 04O 1 47 इन में लेवीय अपने पितरों के गोत्रा के अनुसार नहीं गिने गए। 04O 1 48 क्योंकि यहोवा ने मूसा से कहा था, 04O 1 49 कि लेवीय गोत्रा की गिनती इस्त्राएलियों के संग न करना; 04O 1 50 परन्तु तू लेवियों को साक्षी के तम्बू पर, और उसके कुल सामान पर, निदान जो कुछ उस से सम्बन्ध रखता है उस पर अधिकारी नियुक्त करना; और कुल सामान सहित निवास को वे ही उठाया करें, और वे ही उस में सेवा टहल भी किया करें, और तम्बू के आसपास वे ही अपने डेरे डाला करें। 04O 1 51 और जब जब निवास का कूच हो तब तब लेवीय उसको गिरा दें, और जब जब निवास को खड़ा करना हो तब तब लेवीय उसको खड़ा किया करें; और यदि कोई दूसरा समीप आए तो वह मार डाला जाए। 04O 1 52 और इस्त्राएली अपना अपना डेरा अपनी अपनी छावनी में और अपने अपने झण्डे के पास खड़ा किया करें; 04O 1 53 पर लेवीय अपने डेरे साक्षी के तम्बू ही की चारों ओर खड़े किया करें, कहीं ऐसा न हो कि इस्त्राएलियों की मण्डली पर कोप भड़के; और लेवीय साक्षी के तम्बू की रक्षा किया करें। 04O 1 54 जो आज्ञाएं यहोवा ने मूसा को दी थीं इस्त्राएलियों ने उन्हीं के अनुसार किया।। 04O 2 1 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 04O 2 2 इस्त्राएली मिलापवाले तम्बू की चारों ओर और उसके साम्हने अपने अपने झण्डे और अपने अपने पितरों के घराने के निशान के समीप अपने डेरे खड़े करें। 04O 2 3 और जो अपने पूर्व दिशा की ओर जहां सूर्योदय होता है अपने अपने दलों के अनुसार डेरे खड़े किया करें वे ही यहूदा की छावनीवाले झण्उे के लोग होंगे, और उनका प्रधान अम्मीनादाब का पुत्रा नहशोन होगा, 04O 2 4 और उनके दल के गिने हुए पुरूष चौहत्तर हजार छ: सौ हैं। 04O 2 5 उनके समीप जो डेरे खड़े किया करें वे इस्साकार के गोत्रा के हों, और उनका प्रधान सूआर का पुत्रा नतनेल होगा, 04O 2 6 और उनके दल के गिने हुए पुरूष चौवन हजार चार सौ हैं। 04O 2 7 इनके पास जबूलून के गोत्रावाले रहेंगे, और उनका प्रधान हेलोन का पुत्रा एलीआब होगा, 04O 2 8 और उनके दल के गिने हुए पुरूष सत्तावन हजार चार सौ हैं। 04O 2 9 इस रीति से यहूदा की छावनी में जितने अपने अपने दलों के अनुसार गिने गए वे सब मिलकर एक लाख छियासी हजार चार सौ हैं। पहिले ये ही कूच किया करें।। 04O 2 10 दक्खिन अलंग पर रूबेन की छावनी के झण्डे के लोग अपने अपने दलों के अनुसार रहें, और उनका प्रधान शदेऊर का पुत्रा एलीसूर होगा, 04O 2 11 और उनके दल के गिने हुए पुरूष साढ़े छियालीस हजार हैं। 04O 2 12 उनके पास जो डेरे खड़े किया करें वे शिमोन के गोत्रा के होंगे, और उनका प्रधान सूरीश ै का पुत्रा शलूमीएल होगा, 04O 2 13 और उनके दल के गिने हुए पुरूष उनसठ हजार तीन सौ हैं। 04O 2 14 फिर गाद के गोत्रा के रहें, और उनका प्रधान रूएल का पुत्रा एल्यासाप होगा, 04O 2 15 और उनके दल के गिने हुए पुरूष पैंतालीस हजार साढ़े छ: सौ हैं। 04O 2 16 रूबेन की छावनी में जितने अपने अपने दलों के अनुसार गिने गए वे सब मिलकर डेढ़ लाख एक हजार साढ़े चार सौ हैं। दूसरा कूच इनका हो। 04O 2 17 उनके पीछे और सब छावनियों के बीचोंबीच लेवियों की छावनी समेत मिलापवाले तम्बू का कूच हुआ करे; जिस क्रम से वे डेरे खड़े करें उसी क्रम से वे अपने अपने स्थान पर अपने अपने झण्डे के पास पास चलें।। 04O 2 18 पच्छिम अलंग पर एप्रैम की छावनी के झण्डे के लोग अपने अपने दलों के अनुसार रहें, और उनका प्रधान अम्मीहूद का पुत्रा एलीशामा होगा, 04O 2 19 और उनके दल के गिने हुए पुरूष साढ़े चालीस हजार हैं। 04O 2 20 उनके समीप मनश्शे के गोत्रा के रहें, और उनका प्रधान पदासूर का पुत्रा गम्लीएल होगा, 04O 2 21 और उनके दल के गिने हुए पुरूष बत्तीस हजार दो सौ हैं। 04O 2 22 फिर बिन्यामीन के गोत्रा में रहें, और उनका प्रधान गिदोनी का पुत्रा अबीदान होगा, 04O 2 23 और उनके दल के गिने हुए पुरूष पैंतीस हजार चार सौ हैं। 04O 2 24 एप्रैम की छावनी में जितने अपने अपने दलों के अनुसार गिने गए वे सब मिलकर एक लाख आठ हजार एक सौ पुरूष हैं। तीसरा कूच इनका हो। 04O 2 25 उत्तर अलंग पर दान की छावनी के झण्डे के लोग अपने अपने दलों के अनुसार रहें, और उनका प्रधान अम्मीश ै का पुत्रा अहीऐजेर होगा, 04O 2 26 और उनके दल के गिने हुए पुरूष बासठ हजार सात सौ हैं। 04O 2 27 और उनके पास जो डेरे खड़े करें वे आशेर के गोत्रा के रहें, और उनका प्रधान ओक्रान का पुत्रा पगीएल होगा, 04O 2 28 और उनके दल के गिने हुए पुरूष साढ़े इकतालीस हजार हैं। 04O 2 29 फिर नप्ताली के गोत्रा के रहें, और उनका प्रधान एनान का पुत्रा अहीरा होगा, 04O 2 30 और उनके दल के गिने हुए पुरूष तिरपन हजार चार सौ हैं। 04O 2 31 और दान की छावनी में जितने गिने गए वे सब मिलकर डेढ़ लाख सात हजार छ: सौ हैं। ये अपने अपने झण्डे के पास पास होकर सब से पीछे कूच करें। 04O 2 32 इस्त्राएलियों में से जो अपने अपने पितरों के घराने के अनुसार गिने गए वे ये ही हैं; और सब छावनियों के जितने पुरूष अपने अपने दलों के अनुसार गिने गए वे सब मिलकर छ: लाख तीन हजार साढ़े पांच सौ थे। 04O 2 33 परन्तु यहोवा ने मूसा को जो आज्ञा दी भी उसके अनुसार लेवीय तो इस्त्राएलियों में गिने नहीं गए। 04O 2 34 और जो जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी इस्त्राएली उन आज्ञाओं के अनुसार अपने अपने कुल और अपने अपने पितरों के घरानों के अनुसार, अपने अपने झण्डे के पास डेरे खड़े करते और कूच भी करते थे।। 04O 3 1 जिस समय यहोवा ने सीनै पर्वत के पास मूसा से बातें की उस समय हारून और मूसा की यह वंशावली थी। 04O 3 2 हारून के पुत्रों के नाम ये हैं: नादाब जो उसका जेठा था, और अबीहू, एलीआजार और ईतामार; 04O 3 3 हारून के पुत्रा, जो अभिषिक्त याजक थे, और उनका संस्कार याजक का काम करने के लिये हुआ था उनके नाम ये ही हैं। 04O 3 4 नादाब और अबीहू जिस समय सीनै के जंगल में यहोवा के सम्मुख ऊपरी आग ले गए उसी समय यहोवा के साम्हने मर गए थे; और वे पुत्राहीन भी थे। एलीआजर और ईतामार अपने पिता हारून के साम्हने याजक का काम करते रहे।। 04O 3 5 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 3 6 लेवी गोत्रावालों को समीप ले आकर हारून याजक के साम्हने खड़ा कर, कि वे उसकी सेवा टहल करें। 04O 3 7 और जो कुछ उसकी ओर से और सारी मण्डली की ओर से उन्हें सौंपा जाए उसकी रक्षा वे मिलापवाले तम्बू के सामहने करें, इस प्रकार वे तम्बू की सेवा करें; 04O 3 8 वे मिलापवाले तम्बू के कुल सामान की और इस्त्राएलियों की सौंपी हुई वस्तुओं की भी रक्षा करें, इस प्रकार वे तम्बू की सेवा करें। 04O 3 9 और तू लेवियों को हारून और उसके पुत्रों को सौंप दे; और वे इस्त्राएलियों की ओर से हारून को सम्पूर्ण रीति से अर्पण किए हुए हों। 04O 3 10 और हारून और उसके पुत्रों को याजक के पद पर नियुक्त कर, और वे अपने याजकपद की रक्षा किया करें; और यदि अन्य मनुष्य समीप आए, तो वह मार डाला जाए।। 04O 3 11 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 3 12 सुन इस्त्राएली स्त्रियों के सब पहिलौठों की सन्ती मैं इस्त्राएलियों में से लेवियों को ले लेता हूं; सो लेवीय मेरे ही हों। 04O 3 13 सब पहिलौठे मेरे हैं; क्योंकि जिस दिन मैं ने मि देश में के सब पहिलौठों को मारा, उसी दिन मैं ने क्या मनुष्य क्या पशु इस्त्राएलियों के सब पहिलौठों को अपने लिये पवित्रा ठहराया; इसलिये वे मेरे ही ठहरेंगे; मैं यहोवा हूं।। 04O 3 14 फिर यहोवा ने सीनै के जंगल में मूसा से कहा, 04O 3 15 लेवियों में से जितने पुरूष एक महीने वा उस से अधिक अवस्था के हों उनको उनके पितरों के घरानों और उनके कुलों के अनुसार गिन ले। 04O 3 16 यह आज्ञा पाकर मूसा ने यहोवा के कहे के अनुसार उनको गिन लिया। 04O 3 17 लेवी के पुत्रों के नाम ये हैं, अर्थात् गेर्शोन, कहात, और मरारी। 04O 3 18 और गेर्शोन के पुत्रा जिन से उसके कुल चले उनके नाम ये हैं, अर्थात् लिब्नी और शिमी। 04O 3 19 कहात के पुत्रा जिन से उसके कुल चले उनके नाम ये हैं, अर्थात् अम्राम, यिसहार, हेब्रोन, और उज्जीएल। 04O 3 20 और मरारी के पुत्रा जिन से उसके कुल चले उनके नाम ये हैं, अर्थात् महली और मूशी। ये लेवियों के कुल अपने पितरों के घरानों के अनुसार हैं।। 04O 3 21 गेर्शोन से लिब्नियों और शिमियों के कुल चले; गेर्शोनवंशियों के कुल ये ही हैं। 04O 3 22 इन में से जितने पुरूषों की अवस्था एक महीने की वा उस से अधिक थी, उन सभों की गिनती साढ़े सात हजार थी। 04O 3 23 गेर्शोनवाले कुल निवास के पीछे पच्छिम की ओर अपने डेरे डाला करें; 04O 3 24 और गेर्शोनियों के मूलपुरूष से घराने का प्रधान लाएल का पुत्रा एल्यासाप हो। 04O 3 25 और मिलापवाले तम्बू की जो वस्तुएं गेर्शोनवंशियों को सौंपी जाएं वे ये हों, अर्थात् निवास और तम्बू, और उसका ओहार, और मिलापवाले तम्बू से द्वार का पर्दा, 04O 3 26 और जो आंगन निवास और वेदी की चारों ओर है उसके पर्दे, और उसके द्वार का पर्दा, और सब डोरियां जो उस में काम आती हैं।। 04O 3 27 फिर कहात से अम्रामियों, यिसहारियों, हेब्रोनियों, और उज्जीएलियों के कुल चले; कहातियों के कुल ये ही हैं। 04O 3 28 उन में से जितने पुरूषों की अवस्था एक महीने की वा उस से अधिक थी उनकी गिनती आठ हजार छ: सौ थी। वे पवित्रा स्थान की रक्षा के उत्तरदायी थे। 04O 3 29 कहातियों के कुल निवास की उस अलंग पर अपने डेरे डाला करें जो दक्खिन की ओर है; 04O 3 30 और कहातवाले कुलों से मूलपुरूष के घराने का प्रधान उज्जीएल का पुत्रा एलीसापान हो। 04O 3 31 और जो वस्तुएं उनको सौंपी जाएं वे सन्दूक, मेज़, दीवट, वेदियां, और पवित्रास्थान का वह सामान जिस से सेवा टहल होती है, और पर्दा; निदान पवित्रास्थान में काम में आनेवाला सारा सामान हो। 04O 3 32 और लेवियों के प्रधानों का प्रधान हारून याजक का पुत्रा एलीआजार हो, और जो लोग पवित्रास्थान की सौंपी हुई वस्तुओं की रक्षा करेंगे उन पर वही मुखिया ठहरे।। 04O 3 33 फिर मरारी से महलियों और मूशियों के कुल चले; मरारी के कुल ये ही हैं। 04O 3 34 इन में से जितने पुरूषों की अवस्था एक महीने की वा उस से अधिक थी उन सभों की गिनती छ: हजार दो सौ थी। 04O 3 35 और मरारी के कुलों के मूलपुरूष के घराने का प्रधान अबीहैल का पुत्रा सूरीएल हो; ये लोग निवास के उत्तर की ओर अपने डेरे खड़े करें। 04O 3 36 और जो वस्तुएं मरारीवंशियों को सौंपी जाएं कि वे उनकी रक्षा करें, वे निवास के तख्ते, बेंड़े, खम्भे, कुर्सियां, और सारा सामान; निदान जो कुछ उसके बरतने में काम आए; 04O 3 37 और चारों ओर के आंगन के खम्भे, और उनकी कुर्सियां, खूंटे और डोरियां हों। 04O 3 38 और जो मिलापवाले तम्बू के साम्हने, अर्थात् निवास के साम्हने, पूरब की ओर जहां से सूर्योदय होता है, अपने डेरे डाला करें, वे मूसा और हारून और उसके पुत्रों के डेरे हों, और पवित्रास्थान की रखवाली इस्त्राएलियों के बदले वे ही किया करें, और दूसरा जो कोई उसके समीप आए वह मार डाला जाए। 04O 3 39 यहोवा की इस आज्ञा को पाकर एक महीने की वा उस से अधिक अवस्थावाले जितने लेवीय पुरूषों को मूसा और हारून ने उनके कुलों के अनुसार गिन लिया, वे सब के सब बाईस हजार थे।। 04O 3 40 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, इस्त्राएलियों के जितने पहिलौठे पुरूषों की अवस्था एक महीने की वा उस से अधिक है, उन सभों को नाम ले लेकर गिन ले। 04O 3 41 और मेरे लिये इस्त्राएलियों के सब पहिलौठों की सन्ती लेवियों को, और इस्त्राएलियों के पशुओं के सब पहिलौठों की सन्ती लेवियों के पशुओं को ले; मैं यहोवा हूं। 04O 3 42 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने इस्त्राएलियों के सब पहिलौठों को गिन लिया। 04O 3 43 और सब पहिलौठे पुरूष जिनकी अवस्था एक महीने की वा उस से अधिक थी, उनके नामों की गिनती बाईस हजार दो सौ तिहत्तर थी।। 04O 3 44 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 3 45 इस्त्राएलियों के सब पहिलौठों की सन्ती लेवियों को, और उनके पशुओं की सन्ती लेवियों के पशुओं को ले; और लेवीय मेरे ही हों; मैं यहोवा हूं। 04O 3 46 और इस्त्राएलियों के पहिलौठों मे से जो दो सौ तिहत्तर गिनती में लेवियों से अधिक हैं, उनके छुड़ाने के लिये, 04O 3 47 पुरूष पीछे पांच शेकेल ले; वे पवित्रास्थान के शेकेल के हिसाब से हों, अर्थात् बीस गेरा का शेकेल हो। 04O 3 48 और जो रूपया उन अधिक पहिलौठों की छुडौती का होगा उसे हारून और उसके पुत्रों को दे देना। 04O 3 49 और जो इस्त्राएली पहिलौठे लेवियों के द्वारा छुड़ाए हुओं से अधिक थे उनके हाथ से मूसा ने छुड़ौती का रूपया लिया। 04O 3 50 और एक हजार तीन सौ पैंसठ शैकेल रूपया पवित्रास्थान के शेकेल के हिसाब से वसूल हुआ। 04O 3 51 और यहोवा की आज्ञा के अनुसार मूसा ने छुड़ाए हुओं का रूपया हारून और उसके पुत्रों को दे दिया।। 04O 4 1 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 04O 4 2 लेवियों में से कहातियों की, उनके कुलों और पितरों के घरानों के अनुसार, गिनती करो, 04O 4 3 अर्थात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्थावालों की सेना में, जितने मिलापवाले तम्बू में कामकाज करने को भरती हैं। 04O 4 4 और मिलापवाले तम्बू में परमपवित्रा वस्तुओं के विषय कहातियों का यह काम होगा, 04O 4 5 अर्थात् जब जब छावनी का कूच हो तब तब हारून और उसके पुत्रा भीतर आकर, बीचवाले पर्दे को उतार के उस से साक्षीपत्रा के सन्दूक को ढंाप दें; 04O 4 6 तब वे उस पर सूइसों की खालों का ओहार डालें, और उसके ऊपर सम्पूर्ण नीले रंग का कपड़ा डालें, और सन्दूक में डण्डों को लगाएं। 04O 4 7 फिर भेंटवाली रोटी की मेज़ पर नीला कपड़ा बिछाकर उस पर परातों, धूपदानों, करवों, और उंडेलने के कटोरों को रखें; और नित्य की रोटी भी उस पर हो; 04O 4 8 तब वे उन पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उसको सुइसों की खालों के ओहार से ढ़ापे, और मेज़ के डण्डों को लगा दें। 04O 4 9 फिर वे नीले रंग का कपड़ा लेकर दीपकों, गलतराशों, और गुलदानों समेत उजियाला देनेवाले दीवट को, और उसके सब तेल के पात्रों को जिन से उसकी सेवा टहल होती है ढांपे; 04O 4 10 तब वे सारे सामान समेत दीवट को सूइसों की खालों के ओहार के भीतर रखकर डण्डे पर धर दें। 04O 4 11 फिर वे सोने की वेदी पर एक नीला कपड़ा बिछाकर उसको सूइसों की खालों के ओहार के भीतर रखकर डण्डे पर धर दें। 04O 4 12 तब वे सेवा टहल के सारे सामान को लेकर, जिस से पवित्रास्थान में सेवा टहल होली है, नीले कपड़े के भीतर रखकर सूइसों की खालों के ओहार से ढांपे, और डण्डे पर धर दें। 04O 4 13 फिर वे वेदी पर से सब राख उठाकर वेदी पर बैंजनी रंग का कपड़ा बिछाएं; 04O 4 14 तब जिस सामान से वेदी पर की सेवा टहल होती है वह सब, अर्थात् उसके करछे, कांटे, फावड़ियां, और कटोरे आदि, वेदी का सारा सामान उस पर रखें; और उसके ऊपर सूइसों की खालों का ओहार बिछाकर वेदी में डण्डों को लगाएं। 04O 4 15 और जब हारून और उसके पुत्रा छावनी के कूच के समय पवित्रास्थान और उसके सारे सामान को ढंाप चुकें, तब उसके बाद कहाती उसके उठाने के लिये आएं, पर किसी पवित्रा वस्तु को न छुएं, कहीं ऐसा न हो कि मर जाएं। कहातियों के उठाने के लिये मिलापवाले तम्बू की ये ही वस्तुएं हैं। 04O 4 16 और जो वस्तुएं हारून याजक के पुत्रा एलीजार को रक्षा के लिये सौंपी जाएं वे ये हैं, अर्थात् उजियाला देने के लिये तेल, और सुगन्धित धूप, और नित्य अन्नबलि, और अभिषेक का तेल, और सारे निवास, और उस में की सब वस्तुएं, और पवित्रास्थान और उसके कुल समान।। 04O 4 17 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 04O 4 18 कहातियों के कुलों के गोत्रियों को लेवियों में से नाश न होने देना; 04O 4 19 उसके साथ ऐसा करो, कि जब वे परमपवित्रा वस्तुओं के समीप आएं तब न मरें परन्तु जीवित रहें; अर्थात् हारून और उसके पुत्रा भीतर आकर एक एक के लिये उसकी सेवकाई और उसका भार ठहरा दें, 04O 4 20 और वे पवित्रा वस्तुओं के देखने को क्षण भर के लिये भी भीतर आने न पाएं, कहीं ऐसा न हो कि मर जाएं।। 04O 4 21 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 4 22 गेर्शोनियों की भी गिनती उनके पितरों के घरानों और कुलों के अनुसार कर; 04O 4 23 तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्थावाले, जितने मिलापवाले तम्बू में सेवा करने को सेना में भरती हों उन सभों को गिन ले। 04O 4 24 सेवा करने और भार उठाने में गेर्शोनियों के कुलवालों की यह सेवकाई हो; 04O 4 25 अर्थात् वे निवास के पटों, और मिलापवाले तम्बू और उसके ओहार, और इसके ऊपरवाले सूइसों की खालों के ओहार, और मिलापवाले तम्बू के द्वार के पर्दे, 04O 4 26 और निवास, और वेदी की चारों ओर के आंगन के पर्दों, और आंगन के द्वार के पर्दे, और उनकी डोरियों, और उन में बरतने के सारे सामान, इन सभों को वे उठाया करें; और इन वस्तुओं से जितना काम होता है वह सब भी उनकी सेवकाई में आए। 04O 4 27 और गेर्शोनियों के वंश की सारी सेवकाई हारून और उसके पुत्रों के कहने से हुआ करे, अर्थात् जो कुछ उनको उठाना, और जो जो सेवकाई उनको करनी हो, उनका सारा भार तुम ही उन्हें सौपा करो। 04O 4 28 मिलापवाले तम्बू में गेर्शोनियों के कुलों की यही सेवकाई ठहरे; और उन पर हारून याजक का पुत्रा ईतामार अधिकार रखे।। 04O 4 29 फिर मरारियों को भी तू उनके कुलों और पितरों के घरानों के अनुसार गिन लें; 04O 4 30 तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्थावाले, जितने मिलापवाले तम्बू की सेवा करने को सेना में भरती हों, उन सभों को गिन ले। 04O 4 31 और मिलापवाले तम्बू में की जिन वस्तुओं के उठाने की सेवकाई उनको मिले वे ये हों, अर्थात् निवास के तख्ते, बेड़े, खम्भे, और कुर्सियां, 04O 4 32 और चारों ओर आंगन के खम्भे, और इनकी कुर्सियां, खूंटे, डोरियां, और भांति भांति के बरतने का सारा सामान; और जो जो सामान ढ़ोने के लिये उनको सौपा जाए उस में से एक एक वस्तु का नाम लेकर तुम गिन दो। 04O 4 33 मरारियों के कुलों की सारी सेवकाई जो उन्हें मिलापवाले तम्बू के विषय करनी होगी वह यही है; वह हारून याजक के पुत्रा ईतामार के अधिकार में रहे।। 04O 4 34 तब मूसा और हारून और मण्डली के प्रधानों ने कहातियों के वंश को, उनके कुलों और पितरों के घरानों के अनुसार, 04O 4 35 तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष की अवस्था के, जितने मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने को सेना में भरती हुए थे, उन सभों को गिन लिया; 04O 4 36 और जो अपने अपने कुल के अनुसार गिने गए वे दो हजार साढ़े सात सौ थे। 04O 4 37 कहातियों के कुलों में से जितने मिलापवाले तम्बू में सेवा करने वाले गिने गए वे इतने ही थे; जो आज्ञा यहोवा ने मूसा के द्वारा दी थी उसी के अनुसार मूसा और हारून ने इनको गिन लिया।। 04O 4 38 और गेर्शोनियों में से जो अपने कुलों और पितरों के घरानों के अनुसार गिने गए, 04O 4 39 अर्थात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्था के, जो मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने को सेना में भरती हुए थे, 04O 4 40 उनकी गिनती उनके कुलों और पितरों के घरानों के अनुसार दो हजार छ: सौ तीस थी। 04O 4 41 गेर्शोनियों के कुलों में से जितने मिलापवाले तम्बू में सेवा करनेवाले गिने गए वे इतने ही थे; यहोवा की आज्ञा के अनुसार मूसा और हारून ने इनको गिन लिया।। 04O 4 42 फिर मरारियों के कुलों में से जो अपने कुलों और पितरों के घरानों के अनुसार गिने गए, 04O 4 43 अर्थात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्था के, जो मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने को सेना में भरती हुए थे, 04O 4 44 उनकी गिनती उनके कुलों के अनुसार तीन हजार दो सौ थी। 04O 4 45 मरारियों के कुलों में से जिनको मूसा और हारून ने, यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार जो मूसा के द्वारा मिली थी, गिन लिया वे इतने ही थे।। 04O 4 46 लेवियों में से जिनको मूसा और हारून और इस्त्राएली प्रधानों ने उनके कुलों और पितरों के घरानों के अनुसार गिन लिया, 04O 4 47 अर्थात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्थावाले, जितने मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने का बोझ उठाने का काम करने को हाजिर होने वाले थे, 04O 4 48 उन सभों की गिनती आठ हजार पांच सौ अस्सी थी। 04O 4 49 ये अपनी अपनी सेवा और बोझ ढ़ोने के अनुसार यहोवा के कहने पर गए। जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी उसी के अनुसार वे गिने गए।। 04O 5 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 5 2 इस्त्राएलियों को आज्ञा दे, कि वे सब कोढ़ियों को, और जितनों के प्रमेह हो, और जितने लोथ के कारण अशुद्ध हों, उन सभों को छावनी से निकाल दें; 04O 5 3 ऐसों को चाहे पुरूष हों चाहे स्त्री छावनी से निकालकर बाहर कर दें; कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी छावनी, जिसके बीच मैं निवास करता हूं, उनके कारण अशुद्ध हो जाए। 04O 5 4 और इस्त्राएलियों ने वैसा ही किया, अर्थात् ऐसे लोगों को छावनी से निकालकर बाहर कर दिया; जैसा यहोवा ने मूसा से कहा था इस्त्राएलियों ने वैसा ही किया।। 04O 5 5 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 5 6 इस्त्राएलियों से कह, कि जब कोई पुरूष वा स्त्री ऐसा कोई पाप करके जो लोग किया करते हैं यहोवा को विश्वासघात करे, और वह प्राणी दोषी हो, 04O 5 7 तब वह अपना किया हुआ पाप मान ले; और पूरे मूल में पांचवां अंश बढ़ाकर अपने दोष के बदले में उसी को दे, जिसके विषय दोषी हुआ हो। 04O 5 8 परन्तु यदि उस मनुष्य का कोई कुटुम्बी न हो जिसे दोष का बदला भर दिया जाए, तो उस दोष का जो बदला यहोवा को भर दिया जाए वह याजक का हो, और वह उस प्रायश्चित्तवाले मेढ़े से अधिक हो जिस से उसके लिये प्रायश्चित्त किया जाए। 04O 5 9 और जितनी पवित्रा की हुई वस्तुएं इस्त्राएली उठाई हुई भेंट करके याजक के पास लाएं, वे उसी की हों; 04O 5 10 सब मनुष्यों की पवित्रा की हुई वस्तुएं उसी की ठहरें; कोई जो कुछ याजक को दे वह उसका ठहरे।। 04O 5 11 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 5 12 इस्त्राएलियों से कह, कि यदि किसी मनुष्य की स्त्री कुचाल चलकर उसका विश्वासघात करे, 04O 5 13 और कोई पुरूष उसके साथ कुकर्म करे, परन्तु यह बात उसके पति से छिपी हो और खुली न हो, और वह अशुद्ध हो गई, परन्तु न तो उसके विरूद्ध कोई साक्षी हो, और न कुकर्म करते पकड़ी गई हो; 04O 5 14 और उसके पति के मन में जलन उत्पन्न हो, अर्थात् वह अपने स्त्री पर जलने लगे और वह अशुद्ध हुई हो; वा उसके मन में जलन उत्पन्न हो, अर्थात् वह अपनी स्त्री पर जलने लगे परन्तु वह अशुद्ध न हुई हो; 04O 5 15 तो वह पुरूष अपनी स्त्री को याजक के पास ले जाए, और उसके लिये एपा का दसवां अंश जव का मैदा चढ़ावा करके ले आए; परन्तु उस पर तेल न डाले, न लोबान रखे, क्योंकि वह जलनवाला और स्मरण दिलानेवाला, अर्थात् अधर्म का स्मरण करानेवाला अन्नबलि होगा। 04O 5 16 तब याजक उस स्त्री को समीप ले जाकर यहोवा के साम्हने खड़ी करे; 04O 5 17 और याजक मिट्टी के पात्रा में पवित्रा जल ले, और निवासस्थान की भूमि पर की धूलि में से कुछ लेकर उस जल में डाल दे। 04O 5 18 तब याजक उस स्त्री को यहोवा के साम्हने खड़ी करके उसके सिर के बाल बिखराए, और स्मरण दिलानेवाले अन्नबलि को जो जलनवाला है उसके हाथों पर धर दे। और अपने हाथ में याजक कडुवा जल लिये रहे जो शाप लगाने का कारण होगा। 04O 5 19 तब याजक स्त्री को शपथ धरवाकर कहे, कि यदि किसी पुरूष ने तुझ से कुकर्म न किया हो, और तू पति को छोड़ दूसरे की ओर फिरके अशुद्ध न हो गई हो, तो तू इस कडुवे जल के गुण से जो शाप का कारण होता है बची रहे। 04O 5 20 पर यदि तू अपने पति को छोड़ दूसरे की ओर फिरके अशुद्ध हुई हो, और तेरे पति को छोड़ किसी दूसरे पुरूष ने तुझ से प्रसंग किया हो, 04O 5 21 (और याजक उसे शाप देनेवाली शपथ धराकर कहे,) यहोवा तेरी जांघ सड़ाए और तेरा पेट फुलाए, और लोग तेरा नाम लेकर शाप और धिक्कार दिया करें; 04O 5 22 अर्थात् वह जल जो शाप का कारण होता है तेरी अंतड़ियों में जाकर तेरे पेट को फुलाए, और तेरी जांघ को सड़ा दे। तब वह स्त्री कहे, आमीन, आमीन। 04O 5 23 तब याजक शाप के ये शब्द पुस्तक में लिखकर उस कडुवे जल से मिटाके, 04O 5 24 उस स्त्री को वह कडुवा जल पिलाए जो शाप का कारण होगा उस स्त्री के पेट में जाकर कडुवा हो जाएगा। 04O 5 25 और याजक स्त्री के हाथ में से जलनवाले अन्नबलि को लेकर यहोवा के आगे हिलाकर वेदी के समीप पहुंचाए; 04O 5 26 और याजक उस अन्नबलि में से उसका स्मरण दिलानेवाला भाग, अर्थात् मुट्ठी भर लेकर वेदी पर जलाए, और उसके बाद स्त्री को वह जल पिलाए। 04O 5 27 और जब वह उसे वह जल पिला चुके, तब यदि वह अशुद्ध हुई हो और अपने पति का विश्वासघात किया हो, तो वह जल जो शाप का कारण होता है उस स्त्री के पेट में जाकर कडुवा हो जाएगा, और उसका पेट फूलेगा, और उसकी जांघ सड़ जाएगी, और उस स्त्री का नाम उसके लोगों के बीच स्रापित होगा। 04O 5 28 पर यदि वह स्त्री अशुद्ध न हुई हो और शुद्ध ही हो, तो वह निर्दोष ठहरेगी और गर्भिणी हो सकेगी। 04O 5 29 जलन की व्यवस्था यही है, चाहे कोई स्त्री अपने पति को छोड़ दूसरे की ओर फिरके अशुद्ध हो, 04O 5 30 चाहे पुरूष के मन में जलन उत्पन्न हो और वह अपनी स्त्री पर जलने लगे; तो वह उसको यहोवा के सम्मुख खड़ी कर दे, और याजक उस पर यह सारी व्यवस्था पूरी करे। 04O 5 31 तब पुरूष अधर्म से बचा रहेगा, और स्त्री अपने अधर्म का बोझ आप उठाएगी।। 04O 6 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 6 2 इस्त्राएलियों से कह, कि जब कोई पुरूष वा स्त्री नाज़ीर की मन्नत, अर्थात् अपने को यहोवा के लिये न्यारा करने की विशेष मन्नत माने, 04O 6 3 तब वह दाखमधु आदि मदिरा से न्यारा रहे; वह न दाखमधु का, न और मदिरा का सिरका पीए, और न दाख का कुछ रस भी पीए, वरन दाख न खाए, चाहे हरी हो चाहे सूखी। 04O 6 4 जितने दिन यह न्यारा रहे उतने दिन तक वह बीज से ले छिलके तक, जो कुछ दाखलता से उत्पन्न होता है, उस में से कुछ न खाए। 04O 6 5 फिर जितने दिन उस ने न्यारे रहने की मन्नत मानी हो उतने दिन तक वह अपने सिर पर छुरा न फिराए; और जब तक वे दिन पूरे न हों जिन में वह यहोवा के लिये न्यारा रहे तब तक वह पवित्रा ठहरेगा, और अपने सिर के बालों को बढ़ाए रहे। 04O 6 6 जितने दिन वह यहोवा के लिये न्यारा रहे उतने दिन तक किसी लोथ के पास न जाए। 04O 6 7 चाहे उसका पिता, वा माता, वा भाई, वा बहिन भी मरे, तौभी वह उनके कारण अशुद्ध न हो; क्योंकि अपने परमेश्वर के लिये न्यारा रहने का चिन्ह उसके सिर पर होगा। 04O 6 8 अपने न्यारे रहने के सारे दिनों में वह यहोवा के लिये पवित्रा ठहरा रहे। 04O 6 9 और यदि कोई उसके पास अचानक मर जाए, और उसके न्यारे रहने का जो चिन्ह उसके सिर पर होगा वह अशुद्ध हो जाए, तो वह शुद्ध होने के दिन, अर्थात् सातवें दिन अपने सिर मुंड़ाए। 04O 6 10 और आठवें दिन वह दो पंडुक वा कबूतरी के दो बच्चे मिलापवाले तम्बू के द्वार पर याजक के पास ले जाए, 04O 6 11 और याजक एक को पापबलि, और दूसरे को होमबलि करके उसके लिये प्रायश्चित्त करे, क्योंकि वह लोथ के कारण पापी ठहरा है। और याजक उसी दिन उसका सिर फिर पवित्रा करे, 04O 6 12 और वह अपने न्यारे रहने के दिनों को फिर यहोवा के लिये न्यारे ठहराए, और एक वर्ष का एक भेड़ का बच्चा दोषबलि करके ले आए; और जो दिन इस से पहिले बीत गए हों वे व्यर्थ गिने जाए, क्योंकि उसके न्यारे रहने का चिन्ह अशुद्ध हो गया।। 04O 6 13 फिर जब नाज़ीर के न्यारे रहने के दिन पूरे हों, उस समय के लिये उसकी यह व्यवस्था है; अर्थात् वह मिलापवाले तम्बू के द्वार पर पहुंचाया जाए, 04O 6 14 और वह यहोवा के लिये होमबलि करके एक वर्ष का एक निर्दोष भेड़ का बच्चा पापबलि करके, और एक वर्ष की एक निर्दोष भेड़ की बच्ची, और मेलबलि के लिये एक निर्दोष मेढ़ा, 04O 6 15 और अखमीरी रोटियों की एक टोकरी, अर्थात् तेल से सने हुए मैदे के फुलके, और तेल से चुपड़ी हुई अखमीरी पपड़ियां, और उन बलियों के अन्नबलि और अर्घ; ये सब चढ़ावे समीप ले जाए। 04O 6 16 इन सब को याजक यहोवा के साम्हने पहुंचाकर उसके पापबलि और होमबलि को चढ़ाए, 04O 6 17 और अखमीरी रोटी की टोकरी समेत मेढ़े को यहोवा के लिये मेलबलि करके, और उस मेलबलि के अन्नबलि और अर्घ को भी चढ़ाए। 04O 6 18 तब नाज़ीर अपने न्यारे रहने के चिन्हवाले सिर को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर मुण्डाकर अपने बालों को उस आग पर डाल दे जो मेलबलि के नीचे होगी। 04O 6 19 फिर जब नाज़ीर अपने न्यारे रहने के चिन्हवाले सिर को मुण्डा चुके तब याजक मेढ़े को पकाया हुआ कन्धा, और टोकरी में से एक अखमीरी रोटी, और एक अखमीरी पपड़ी लेकर नाज़ीर के हाथों पर धर दे, 04O 6 20 और याजक इनको हिलाने की भेंट करके यहोवा के साम्हने हिलाए; हिलाई हुई छाती और उठाई हुई जांघ समेत ये भी याजक के लिये पवित्रा ठहरें; इसके बाद वह नाज़ीर दाखमधु पी सकेगा। 04O 6 21 नाज़ीर की मन्नत की, और जो चढ़ावा उसको अपने न्यारे होने के कारण यहोवा के लिये चढ़ाना होगा उसकी भी यही व्यवस्था है। जो चढ़ावा वह अपनी पूंजी के अनुसार चढ़ा सके, उस से अधिक जैसी मन्नत उस ने मानी हो, वैसे ही अपने न्यारे रहने की व्यवस्था के अनुसार उसे करना होगा।। 04O 6 22 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 6 23 हारून और उसके पुत्रों से कह, कि तुम इस्त्राएलियों को इन वचनों से आशीर्वाद दिया करना कि, 04O 6 24 यहोवा तुझे आशीष दे और तेरी रक्षा करे: 04O 6 25 यहोवा तुझ पर अपने मुख का प्रकाश चमकाए, और तुझ पर अनुग्रह करे: 04O 6 26 यहोवा अपना मुख तेरी ओर करे, और तुझे शांति दे। 04O 6 27 इस रीति से मेरे नाम को इस्त्राएलियों पर रखें, और मैं उन्हें आशीष दिया करूंगा।। 04O 7 1 फिर जब मूसा ने निवास को खड़ा किया, और सारे सामान समेत उसका अभिषेक करके उसको पवित्रा किया, और सारे सामान समेत वेदी का भी अभिषेक करके उसे पवित्रा किया, 04O 7 2 तब इस्त्राएल के प्रधान जो अपने अपने पितरों के घरानों के मुख्य पुरूष, और गोत्रों के भी प्रधान होकर गिनती लेने के काम पर नियुक्त थे, 04O 7 3 वे यहोवा के साम्हने भेंट ले आए, और उनकी भेंट छ: छाई हुई गाड़ियां और बारह बैल थे, अर्थात् दो दो प्रधान की ओर से एक एक गाड़ी, और एक एक प्रधान की ओर से एक एक बैल; इन्हें वे निवास के साम्हने यहोवा के समीप ले गए। 04O 7 4 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 7 5 उन वस्तुओं को तू उन से ले ले, कि मिलापवाले तम्बू के बरतन में काम आएं, सो तू उन्हें लेवियों के एक एक कुल की विशेष सेवकाई के अनुसार उनको बांट दे। 04O 7 6 सो मूसा ने वे सब गाड़ियां और बैल लेकर लेवियों को दे दिये। 04O 7 7 गेर्शोनियों को उनकी सेवकाई के अनुसार उस ने दो गाड़ियां और चार बैल दिए; 04O 7 8 और मरारियों को उनकी सेवकाई के अनुसार उस ने चार गाड़ियां और आठ बैल दिए; ये सब हारून याजक के पुत्रा ईतामार के अधिकार में किए गए। 04O 7 9 और कहातियों को उस ने कुछ न दिया, क्योंकि उनके लिये पवित्रा वस्तुओं की यह सेवकाई थी कि वह उसे अपने कन्धों पर उठा लिया करें।। 04O 7 10 फिर जब वेदी का अभिषेक हुआ तब प्रधान उसके संस्कार की भेंट वेदी के आगे समीप ले जाने लगे। 04O 7 11 तब यहोवा ने मूसा से कहा, वेदी के संस्कार के लिये प्रधान लोग अपनी अपनी भेंट अपने अपने नियत दिन पर चढ़ाएं।। 04O 7 12 सो जो पुरूष पहिले दिन अपनी भेंट ले गया वह यहूदा गोत्रावाले अम्मीनादाब का पुत्रा महशोन था; 04O 7 13 उसकी भेंट यह थी, अर्थात् पवित्रास्थानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 04O 7 14 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 04O 7 15 होमबलि के लिये एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 04O 7 16 पापबलि के लिये एक बकरा; 04O 7 17 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। अम्मीनादाब के पुत्रा महशोन की यही भेंट थी।। 04O 7 18 और दूसरे दिन इस्साकार का प्रधान सूआर का पुत्रा नतनेल भेंट ले आया; 04O 7 19 वह यह थी, अर्थात् पवित्रास्थानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 04O 7 20 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 04O 7 21 होमबलि के लिये एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 04O 7 22 पापबलि के लिये एक बकरा; 04O 7 23 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। सूआर के पुत्रा नतनेल की यहीं भेंट थी।। 04O 7 24 और तीसरे दिन जबूलूनियों का प्रधान हेलोन का पुत्रा एलीआब यह भेंट ले आया, 04O 7 25 अर्थात् पवित्रास्थानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 04O 7 26 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 04O 7 27 होमबलि के लिये एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 04O 7 28 पापबलि के लिये एक बकरा; 04O 7 29 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। हेलोन के पुत्रा एलीआब की यहीं भेंट थी।। 04O 7 30 और चौथे दिन रूबेनियों का प्रधान शदेऊर का पुत्रा एलीसूर यह भेंट ले आया, 04O 7 31 अर्थात् पवित्रास्थानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 04O 7 32 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 04O 7 33 होमबलि के लिये एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 04O 7 34 पापबलि के लिये एक बकरा; 04O 7 35 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। शदेऊर के पुत्रा एलीसूर की यहीं भेंट थी।। 04O 7 36 और पांचवें दिन शिमोनियों का प्रधान सूरीश ै का पुत्रा शलूमीएल यह भेंट ले आया, 04O 7 37 अर्थात् पवित्रास्थानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 04O 7 38 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 04O 7 39 होमबलि के लिये एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 04O 7 40 पापबलि के लिये एक बकरा; 04O 7 41 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पांच मेढ़े, और पंाच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। सूरीश ै के पुत्रा शलूमीएल की यही भेंट थी।। 04O 7 42 और छठवें दिन गादियों का प्रधान दूएल का पुत्रा एल्यासाप यह भेंट ले आया, 04O 7 43 अर्थात् पवित्रास्थानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 04O 7 44 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 04O 7 45 होमबलि के लिये एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 04O 7 46 पापबलि के लिये एक बकरा; 04O 7 47 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। दूएल के पुत्रा एल्यासाप की यहीं भेंट थी।। 04O 7 48 और सातवें दिन एप्रैमियों का प्रधान अम्मीहूद का पुत्रा एलीशामा यह भेंट ले आया, 04O 7 49 अर्थात् पवित्रास्थानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 04O 7 50 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 04O 7 51 होमबलि के लिये एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 04O 7 52 पापबलि के लिये एक बकरा; 04O 7 53 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। अम्मीहूद के पुत्रा एलीशामा की यहीं भेंट थी।। 04O 7 54 और आठवें दिन मनश्शेइयों का प्रधान पदासूर का पुत्रा गम्लीएल यह भेंट ले आया, 04O 7 55 अर्थात् पवित्रास्थान के शेकेल के हिसाब से एक सो तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 04O 7 56 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 04O 7 57 होमबलि के लिये एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 04O 7 58 पापबलि के लिये एक बकरा; 04O 7 59 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेडी के बच्चे। पदासूर के पुत्रा गम्लीएल की यहीं भेंट थी।। 04O 7 60 और नवें दिन बिन्यामीनियों का प्रधान गिदोनी का पुत्रा अबीदान यह भेंट ले आया, 04O 7 61 अर्थात् पवित्रास्थान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 04O 7 62 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 04O 7 63 होमबलि के लिये एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 04O 7 64 पापबलि के लिये एक बकरा; 04O 7 65 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। गिदोनी के पुत्रा अबीदान की यही भेंट थी।। 04O 7 66 और दसवें दिन दानियों का प्रधान अम्मीश ै का पुत्रा अखीआज़र यह भेंट ले आया, 04O 7 67 अर्थात् पवित्रास्थान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 04O 7 68 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 04O 7 69 होमबलि के लिये बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 04O 7 70 पापबलि के लिये एक बकरा; 04O 7 71 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। अम्मीश ै के पुत्रा अखीआज़र की यही भेंट थी।। 04O 7 72 और ग्यारहवें दिन आशेरियों का प्रधान ओक्रान का पुत्रा पजीएल यह भेंट ले आया। 04O 7 73 अर्थात् पवित्रास्थान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 04O 7 74 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का धूपदान; 04O 7 75 होमबलि के लिये एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 04O 7 76 पापबलि के लिये एक बकरा; 04O 7 77 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। ओक्रान के पुत्रा पजीएल की यहीं भेंट थी।। 04O 7 78 और बारहवें दिन नप्तालियों का प्रधान एनान का पुत्रा अहीरा यह भेंट ले आया, 04O 7 79 अर्थात् पवित्रास्थान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 04O 7 80 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 04O 7 81 होमबलि के लिये एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 04O 7 82 पापबलि के लिये एक बकरा; 04O 7 83 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। एनान के पुत्रा अहीरा की यही भेंट थी।। 04O 7 84 वेदी के अभिषेक के समय इस्त्राएल के प्रधानों की ओर से उसके संस्कार की भेंट यही हुई, अर्थात् चांदी के बारह परात, चांदी के बारह कटोरे, और सोने के बारह धूपदान। 04O 7 85 एक एक चांदी का परात एक सौ तीस शेकेल का, और एक एक चांदी का कटोरा सत्तर शेकेल का था; और पवित्रास्थान के शेकेल के हिसाब से ये सब चांदी के पात्रा दो हजार चार सौ शेकेल के थे। 04O 7 86 फिर धूप से भरे हुए सोने के बारह धूपदान जो पवित्रास्थान के शेकेल के हिसाब से दस दस शेकेल के थे, वे सब धूपदान एक सौ बीस शेकेल सोने के थे। 04O 7 87 फिर होमबलि के लिये सब मिलाकर बारह बछड़े, बारह मेढ़े, और एक एक वर्ष के बारह भेड़ी के बच्चे, अपने अपने अन्नबलि सहित थे; फिर पापबलि के सब बकरे बारह थे; 04O 7 88 और मेलबलि के लिये सब मिला कर चौबीस बैल, और साठ मेढ़े, और साठ बकरे, और एक एक वर्ष के साठ भेड़ी के बच्चे थे। वेदी के अभिषेक होने के बाद उसके संस्कार की भेंट यही हुई। 04O 7 89 और जब मूसा यहोवा से बातें करने को मिलापवाले तम्बू में गया, तब उस ने प्रायश्चित्त के ढकने पर से, जो साक्षीपत्रा के सन्दूक के ऊपर था, दोनों करूबों के मध्य में से उसकी आवाज सुनी जो उस से बातें कर रहा था; और उस ने ( यहोवा ) उस से बातें की।। 04O 8 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 8 2 हारून को समझाकर यह कह, कि जब जब तू दीपकों को बारे तब तब सातों दीपक का प्रकाश दीवट के साम्हने हो। 04O 8 3 निदान हारून ने वैसा ही किया, अर्थात् जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी उसी के अनुसार उस ने दीपकों को बारा, कि वे दीवट के साम्हने उजियाला दे। 04O 8 4 और दीवट की बनावट यह थी, अर्थात् यह पाए से लेकर फूलों तक गढ़े हुए सोने का बनाया गया था; जो नमूना यहोवा ने मूसा को दिखलाया था उसी के अनुसार उस ने दीवट को बनाया।। 04O 8 5 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 8 6 इस्त्राएलियों के मध्य में से लेवियों को अलग लेकर शुद्ध कर। 04O 8 7 उन्हें शुद्ध करने के लिये तू ऐसा कर, कि पावन करने वाला जल उन पर छिड़क दे, फिर वे सर्वांग मुण्डन कराएं, और वस्त्रा धोएं, और वे अपने को स्वचछ करें। 04O 8 8 तब वे तेल से सने हुए मैदे के अन्नबलि समेत एक बछड़ा ले लें, और तू पापबलि के लिये एक दूसरा बछड़ा लेना। 04O 8 9 और तू लेवियों को मिलापवाले तम्बू के साम्हने समीप पहुंचाना, और इस्त्राएलियों की सारी मण्डली को इकट्ठा करना। 04O 8 10 तब तू लेवियों को यहोवा के आगे समीप ले आना, और इस्त्राएली अपने अपने हाथ उन पर रखें, 04O 8 11 तब हारून लेवियों को यहोवा के साम्हने इस्त्राएलियों की ओर से हिलाई हुई भेंट करके अर्पण करे, कि वे यहोवा की सेवा करनेवाले ठहरें। 04O 8 12 और लेवीय अपने अपने हाथ उन बछड़ों के सिरों पर रखें; तब तू लेवियों के लिये प्रायश्चित्त करने को एक बछड़ा पापबलि और दूसरा होमबलि करके यहोवा के लिये चढ़ाना। 04O 8 13 और लेवियों को हारून और उसके पुत्रों के सम्मुख खड़ा करना, और उनको हिलाने की भेंट के लिये यहोवा को अपर्ण करना। 04O 8 14 और उन्हें इस्त्राएलियों में से अलग करना, सो वे मेरे ही ठहरेंगे। 04O 8 15 और जब तू लेवियों को शुद्ध करके हिलाई हुई भेंट के लिये अर्पण कर चुके, उसके बाद वे मिलापवाले तम्बू सम्बन्धी सेवा टहल करने के लिये अन्दर आया करें। 04O 8 16 क्योंकि वे इस्त्राएलियों मे से मुझे पूरी रीति से अर्पण किए हुए हैं; मै ने उनको सब इस्त्राएलियों में से एक एक स्त्री के पहिलौठे की सन्ती अपना कर लिया है। 04O 8 17 इस्त्राएलियों के पहिलौठे, चाहे मनुष्य के हों चाहे पशु के, सब मेरे हैं; क्योंकि मैं ने उन्हें उस समय अपने लिये पवित्रा ठहराया जब मैं ने मि देश के सब पहिलौठों को मार डाला। 04O 8 18 और मैं ने इस्त्राएलियों के सब पहिलौठों के बदले लेवियों को लिया है। 04O 8 19 उन्हे लेकर मै ने हारून और उसके पुत्रों को इस्त्राएलियों में से दान करके दे दिया है, कि वे मिलापवाले तम्बू में इस्त्राएलियों के निमित्त सेवकाई और प्रायश्चित्त किया करें, कहीं ऐसा न हो कि जब इस्त्राएली पवित्रास्थान के समीप आएं तब उन पर कोई महाविपत्ति आ पड़े। 04O 8 20 लेवियों के विषय यहोवा की यह आज्ञा पाकर मूसा और हारून और इस्त्राएलियों की सारी मण्डली ने उनके साथ ठीक वैसा ही किया। 04O 8 21 लेवियों ने तो अपने को पाप से पावन किया, और अपने वस्त्रों को धो डाला; और हारून ने उन्हें यहोवा के साम्हने हिलाई हुई भेंट के निमित्त अर्पण किया, और उन्हें शुद्ध करने को उनके लिये प्राशिचाय्त्त भी किया। 04O 8 22 और उसके बाद लेवीय हारून और उसके पुत्रों के साम्हने मिलापवाले तम्बू में अपनी अपनी सेवकाई करने को गए; और जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को लेवियों के विषय में दी थी उसी के अनुसार वे उन से व्यवहार करने लगे।। 04O 8 23 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 8 24 जो लेवियों को करना है वह यह है, कि पच्चाीस वर्ष की अवस्था से लेकर उस से अधिक आयु में वे मिलापवाले तम्बू सम्बन्धी काम करने के लिये भीतर उपस्थित हुआ करें; 04O 8 25 और जब पचास वर्ष के हों तो फिर उस सेवा के लिये न आए और न काम करें; 04O 8 26 परन्तु वे अपने भाई बन्धुओं के साथ मिलापवाले तम्बू के पास रक्षा का काम किया करें, और किसी प्रकार की सेवकाई न करें। लेवियों को जो जो काम सौंपे जाएं उनके विषय तू उन से ऐसा ही करना।। 04O 9 1 इस्त्राएलियों के मि देश से निकलने के दूसरे वर्ष के पहिले महीने में यहोवा ने सीनै के जंगल में मूसा से कहा, 04O 9 2 इस्त्राएली फसह नाम पर्ब्ब को उसके नियत समय पर माना करें। 04O 9 3 अर्थात् इसी महीने के चौदहवें दिन को गोधूलि के समय तुम लोग उसे सब विधियों और नियमों के अनुसार मानना। 04O 9 4 तब मूसा ने इस्त्राएलियों से फसह मानने के लिये कह दिया। 04O 9 5 और उन्हों ने पहले महीने के चौदहवें दिन को गोधूलि के समय सीनै के जंगल में फसह को माना; और जो जो आज्ञाएं यहोवा ने मूसा को दी थीं उन्हीं के अनुसार इस्त्राएलियों ने किया। 04O 9 6 परन्तु कितने लोग किसी मनुष्य की लोथ के द्वारा अशुद्ध होने के कारण उस दिन फसह को न मान सके; वे उसी दिन मूसा और हारून के समीप जाकर मूसा से कहने लगे, 04O 9 7 हम लोग एक मनुष्य की लोथ के कारण अशुद्ध हैं; परन्तु हम क्यों रूके रहें, और इस्त्राएलियों के संग यहोवा का चढ़ावा नियत समय पर क्यों न चढ़ाएं? 04O 9 8 मूसा ने उन से कहा, ठहरे रहो, मै सुन लूं कि यहोवा तुम्हारे विषय में क्या आज्ञा देता है। 04O 9 9 यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 9 10 इस्त्राएलियों से कह, कि चाहे तुम लोग चाहे तुम्हारे वंश में से कोई भी किसी लोथ के कारण अशुद्ध हो, वा दूर की यात्रा पर हो, तौभी वह यहोवा के लिये फसह को माने। 04O 9 11 वे उसे दूसरे महीने के चौदहवें दिन को गोधूलि के समय मानें; और फसह के बलिपशु के मांस को अखमीरी रोटी और कडुए सागपात के साथ खाएं। 04O 9 12 और उस में से कुछ भी बिहान तक न रख छोड़े, और न उसकी कोई हड्डी तोड़े; वे उस पर्ब्ब को फसह की सारी विधियों के अनुसार मानें। 04O 9 13 परन्तु जो मनुष्य शुद्ध हो और यात्रा पर न हो, परन्तु फसह के पर्ब्ब को न माने, वह प्राणी अपने लोगों में से नाश किया जाए, उस मनुष्य को यहोवा का चढ़ावा नियत समय पर न ले आने के कारण अपने पाप का बोझ उठाना पड़ेगा। 04O 9 14 और यदि कोई परदेशी तुम्हारे साथ रहकर चाहे कि यहोवा के लिये फसह माने, तो वह उसी विधि और नियम के अनुसार उसको माने; देशी और परदेशी दोनों के लिये तुम्हारी एक ही विधि हो।। 04O 9 15 जिस दिन निवास जो साक्षी का तम्बू भी कहलाता है खड़ा किया गया, उस दिन बादल उस पर छा गया; और सन्ध्या को वह निवास पर आग सा दिखाई दिया और भोर तक दिखाई देता रहा। 04O 9 16 और नित्य ऐसा ही हुआ करता था; अर्थात् दिन को बादल छाया रहता, और रात को आग दिखाई देती थी। 04O 9 17 और जब जब वह बादल तम्बू पर से उठ जाता तब इस्त्राएली प्रस्थान करते थे; और जिस स्थान पर बादल ठहर जाता वहीं इस्त्राएली अपने डेरे खड़े करते थे। 04O 9 18 यहोवा की आज्ञा से इस्त्राएली कूच करते थे, और यहोवा ही की आज्ञा से वे डेरे खड़े भी करते थे; और जितने दिन तक वह बादल निवास पर ठहरा रहता उतने दिन तक वे डेरे डाले पड़े रहते थे। 04O 9 19 और जब जब बादल बहुत दिन निवास पर छाया रहता तब इस्त्राएली यहोवा की आज्ञा मानते, और प्रस्थान नहीं करते थे। 04O 9 20 और कभी कभी वह बादल थोड़े ही दिन तक निवास पर रहता, और तब भी वे यहोवा की आज्ञा से डेरे डाले पड़े रहते थे और फिर यहोवा की आज्ञा ही से प्रस्थान करते थे। 04O 9 21 और कभी कभी बादल केवल सन्ध्या से भोर तक रहता; और जब वह भोर को उठ जाता था तब वे प्रस्थान करते थे, और यदि वह रात दिन बराबर रहता तो जब बादल उठ जाता तब ही वे प्रस्थान करते थे। 04O 9 22 वह बादल चाहे दो दिन, चाहे एक महीना, चाहे वर्ष भर, जब तक निवास पर ठहरा रहता तब तक इस्त्राएली अपने डेरों में रहते और प्रस्थान नहीं करते थे; परन्तु जब वह उठ जाता तब वे प्रस्थान करते थे। 04O 9 23 यहोवा की आज्ञा से वे अपने डेरें खड़े करते, और यहोवा ही की आज्ञा से वे प्रस्थान करते थे; जो आज्ञा यहोवा मूसा के द्वारा देता था उसको वे माना करते थे।। 04O 10 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 10 2 चांदी की दो तुरहियां गढ़के बनाई जाएं; तू उनको मण्डली के बुलाने, और छावनियों के प्रस्थान करने में काम में लाना। 04O 10 3 और जब वे दोनों फंूकी जाएं, तब सारी मण्डली मिलापवाले तम्बू के द्वार पर तेरे पास इकट्ठी हो जाए। 04O 10 4 और यदि एक ही तुरही फूंकी जाए, तो प्रधान लोग जो इस्त्राएल के हजारों के मुख्य पुरूष हैं तेरे पास इकट्ठे हो जाएं। 04O 10 5 जब तुम लोग सांस बान्धकर फूंको, तो पूरब दिशा की छावनियों का प्रस्थान हो। 04O 10 6 और जब तुम दूसरी बेर सांस बान्धकर फूंको, तब दक्खिन दिशा की छावनियों का प्रस्थान हो। उनके प्रस्थान करने के लिये वे सांस बान्धकर फूंकें। 04O 10 7 और जब लोगों को इकट्ठा करके सभा करनी हो तब भी फूंकना परन्तु सांस बान्धकर नहीं। 04O 10 8 और हारून के पुत्रा जो याजक हैं वे उन तुरहियों को फूंका करें। यह बात तुम्हारी पीढ़ी- पीढ़ी के लिये सर्वदा की विधि रहे। 04O 10 9 और जब तुम अपने देश में किसी सतानेवाले बैरी से लड़ने को निकलो, तब तुरहियों को सांस बान्धकर फूंकना, तब तुम्हारे परमेश्वर यहोवा को तुम्हारा स्मरण आएगा, और तुम अपने शत्रुओं से बचाए जाओगे। 04O 10 10 और अपने आनन्द के दिन में, और अपने नियत पर्ब्बों में, और महीनों के आदि में, अपने होमबलियों और मेलबलियों के साथ उन तुरहियों को फूंकना; इस से तुम्हारे परमेश्वर को तुम्हारा स्मरण आएगा; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।। 04O 10 11 और दूसरे वर्ष के दूसरे महीने के बीसवें दिन को बादल साक्षी के निवास पर से उठ गया, 04O 10 12 तब इस्त्राएली सीनै के जंगल में से निकलकर प्रस्थान करके निकले; और बादल पारान नाम जंगल में ठहर गया। 04O 10 13 उनका प्रस्थान यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार जो उस ने मूसा को दी थी आरम्भ हुआ। 04O 10 14 और सब से पहले तो यहूदियों की छावनी के झंडे का प्रस्थान हुआ, और वे दल बान्धकर चले; और उन का सेनापति अम्मीनादाब का पुत्रा नहशोन था। 04O 10 15 और इस्साकारियों के गोत्रा का सेनापति सूआर का पुत्रा नतनेल था। 04O 10 16 और जबूलूनियों के गोत्रा का सेनापति हेलोन का पुत्रा एलीआब था। 04O 10 17 तब निवास उतारा गया, और गेर्शोनियों और मरारियों ने जो निवास को उठाते थे प्रस्थान किया। 04O 10 18 फिर रूबेन की छावनी झंडे का कूच हुआ, और वे भी दल बनाकर चले; और उनका सेनापति शदेऊर का पुत्रा एलीशूर था। 04O 10 19 और शिमोनियों के गोत्रा का सेनापति सूरीश ै का पुत्रा शलूमीएल था। 04O 10 20 और गादियों के गोत्रा का सेनापति दूएल का पुत्रा एल्यासाप था। 04O 10 21 तब कहातियों ने पवित्रा वस्तुओं को उठाए हुए प्रस्थान किया, और उनके पहुंचने तक गेर्शोनियों और मरारियों ने निवास को खड़ा कर दिया। 04O 10 22 फिर एप्रैमियों की छावनी के झंडे का कूच हुआ, और वे भी दल बनाकर चले; और उनका सेनापति अम्मीहूद का पुत्रा एलीशामा था। 04O 10 23 और मनश्शेइयों के गोत्रा को सेनापति पदासूर का पुत्रा गम्लीएल था। 04O 10 24 और बिन्यामीनियों के गोत्रा का सेनापति गिदोनी का पुत्रा अबीदान था। 04O 10 25 फिर दानियों की छावनी जो सब छावनियों के पीछे थी, उसके झंडे का प्रस्थान हुआ, और वे भी दल बना कर चले; और उनका सेनापति अम्मीश ै का पुत्रा अखीआज़र था। 04O 10 26 और आशेरियों के गोत्रा का सेनापति ओक्रान का पुत्रा पजीएल था। 04O 10 27 और नप्तालियों के गोत्रा का सेनापति एनान का पुत्रा अहीरा था। 04O 10 28 इस्त्राएली इसी प्रकार अपने अपने दलों के अनुसार प्रस्थान करते, और आगे बढ़ा करते थे। 04O 10 29 और मूसा ने अपने ससुर रूएल मिद्यानी के पुत्रा होबाब से कहा, हम लोग उस स्थान की यात्रा करते हैं जिसके विषय में यहोवा ने कहा है, कि मैं उसे तुम को दूंगा; सो तू भी हमारे संग चल, और हम तेरी भलाई करेंगे; क्योंकि यहोवा ने इस्त्राएल के विषय में भला ही कहा है। 04O 10 30 होबाब ने उसे उत्तर दिया, कि मैं नहीं जाऊंगा; मैं अपने देश और कुटुम्बियों में लौट जाऊंगा। 04O 10 31 फिर मूसा ने कहा, हम को न छोड़, क्योंकि जंगल में कहां कहां डेरा खड़ा करना चाहिये, यह तुझे ही मालूम है, तू हमारे लिये आंखों का काम देना। 04O 10 32 और यदि तू हमारे संग चले, तो निश्चय जो भलाई यहोवा हम से करेगा उसी के अनुसार हम भी तुझ से वैसा ही करेंगे।। 04O 10 33 फिर इस्त्राएलियों ने यहोवा के पर्वत से प्रस्थान करके तीन दिन की यात्रा की; और उन तीनों दिनों के मार्ग में यहोवा की वाचा का सन्दूक उनके लिये विश्राम का स्थान ढूंढ़ता हुआ उनके आगे आगे चलता रहा। 04O 10 34 और जब वे छावनी के स्थान से प्रस्थान करते थे तब दिन भर यहोवा का बादल उनके ऊपर छाया रहता था। 04O 10 35 और जब जब सन्दूक का प्रस्थान होता था तब तब मूसा यह कहा करता था, कि हे यहोवा, उठ, और तेरे शत्रु तित्तर बित्तर हो जाएं, और तेरे बैरी तेरे साम्हने से भाग जाएं। 04O 10 36 और जब जब वह ठहर जाता था तब तब मूसा कहा करता था, कि हे यहोवा, हजारोंझार इस्त्राएलियों में लौटकर आ जा।। 04O 11 1 फिर वे लोग बुड़बुड़ाने और यहोवा के सुनते बुरा कहने लगे; निदान यहोवा ने सुना, और उसका कोप भड़क उठा, और यहोवा की आग उनके मध्य जल उठी, और छावनी के एक किनारे से भस्म करने लगी। 04O 11 2 तब मूसा के पास आकर चिल्लाए; और मूसा ने यहोवा से प्रार्थना की, तब वह आग बुझ गई, 04O 11 3 और उस स्थान का नाम तबेरा पड़ा, क्योंकि यहोवा की आग उन में जल उठी थी।। 04O 11 4 फिर जो मिली- जुली भीड़ उनके साथ थी वह कामुकता करने लगी; और इस्त्राएली भी फिर रोने और कहने लगे, कि हमें मांस खाने को कौन देगा। 04O 11 5 हमें वे मछलियां स्मरण हैं जो हम मि में सेंतमेंत खाया करते थे, और वे खीरे, और खरबूजे, और गन्दने, और प्याज, और लहसुन भी; 04O 11 6 परन्तु अब हमारा जी घबरा गया है, यहां पर इस मन्ना को छोड़ और कुछ भी देख नहीं पड़ता। 04O 11 7 मन्ना तो धनिये के समान था, और उसका रंग रूप मोती का सा था। 04O 11 8 लोग इधर उधर जाकर उसे बटोरते, और चक्की में पीसते वा ओखली में कूटते थे, फिर तसले में पकाते, और उसके फुलके बनाते थे; और उसका स्वाद तेल में बने हुए पुए का सा था। 04O 11 9 और रात को छावनी में ओस पड़ती थी तब उसके साथ मन्ना भी गिरता था। 04O 11 10 और मूसा ने सब घरानों के आदमियों को अपने अपने डेरे के द्वार पर रोते सुना; और यहोवा का कोप अत्यन्त भड़का, और मूसा को भी बुरा मालूम हुआ। 04O 11 11 तब मूसा ने यहोवा से कहा, तू अपने दास से यह बुरा व्यवहार क्यों करता है? और क्या कारण है कि मैं ने तेरी दृष्टि में अनुग्रह नहीं पाया, कि तू ने इन सब लोगों का भार मुझ पर डाला है? 04O 11 12 क्या ये सब लोग मेरे ही कोख में पड़े थे? क्या मैं ही ने उनको उत्पन्न किया, जो तू मुझ से कहता है, कि जैसे पिता दूध पीते बालक को अपनी गोद में उठाए उठाए फिरता है, वैसे ही मैं इन लोगों को अपनी गोद में उठाकर उस देश में ले जाऊं, जिसके देने की शपथ तू ने उनके पूर्वजों से खाई है? 04O 11 13 मुझे इतना मांस कहां से मिले कि इन सब लोगों को दूं? ये तो यह कह कहकर मेरे पास रो रहे हैं, कि तू हमे मांस खाने को दे। 04O 11 14 मैं अकेला इन सब लोगों का भार नहीं सम्भाल सकता, कयोंकि यह मेरी शक्ति के बाहर है। 04O 11 15 और जो तुझे मेरे साथ यही व्यवहार करना है, तो मुझ पर तेरा इतना अनुग्रह हो, कि तू मेरे प्राण एकदम ले ले, जिस से मैं अपनी दुर्दशा न देखने पाऊं।। 04O 11 16 यहोवा ने मूसा से कहा, इस्त्राएली पुरनियों में से सत्तर ऐसे पुरूष मेरे पास इकट्ठे कर, जिनको तू जानता है कि वे प्रजा के पुरनिये और उनके सरदार है कि वे प्रजा के पुरनिये और उनके सरदार हैं; और मिलापवाले तम्बू के पास ले आ, कि वे तेरे साथ यहां खड़े हों। 04O 11 17 तब मैं उतरकर तुझ से वहां बातें करूंगा; और जो आत्मा तुझ में है उस में से कुछ लेकर उन में समवाऊंगा; और वे इन लोगों का भार तेरे संग उठाए रहेंगे, और तुझे उसको अकेले उठाना न पड़ेगा। 04O 11 18 और लोगों से कह, कल के लिये अपने को पवित्रा करो, तब तुम्हें मांस खाने को मिलेगा; क्योंकि तुम यहोवा के सुनते हुए यह कह कहकर रोए हो, कि हमें मांस खाने को कौन देगा? हम मि ही में भले थे। सो यहोवा तुम को मांस खाने को देगा, और तुम खाना। 04O 11 19 फिर तुम एक दिन, वा दो, वा पांच, वा दस, वा बीस दिन ही नहीं, 04O 11 20 परन्तु महीने भर उसे खाते रहोगे, जब तक वह तुम्हारे नथनों से निकलने न लगे और तुम को उस से घृणा न हो जाए, कयोंकि तुम लोगों ने यहोवा को जो तुम्हारे मध्य में है तुच्छ जाना है, और उसके साम्हने यह कहकर रोए हो, कि हम मि से क्यों निकल आए? 04O 11 21 फिर मूसा ने कहा, जिन लोगों के बीच मैं हूं उन में से छ: लाख तो प्यादे ही हैं; और तू ने कहा है, कि मैं उन्हें इतना मांस दूंगा, कि वे महीने भर उसे खाते ही रहेंगे। 04O 11 22 क्या वे सब भेड़- बकरी गाय- बैल उनके लिये मारे जाए, कि उनको मांस मिले? वा क्या समुद्र की सब मछलियां उनके लिये इकट्ठी की जाएं, कि उनको मांस मिले? 04O 11 23 यहोवा ने मूसा से कहा, क्या यहोवा का हाथ छोटा हो गया है? अब तू देखेगा, कि मेरा वचन जो मैं ने तुझ से कहा है वह पूरा होता है कि नहीं। 04O 11 24 तब मूसा ने बाहर जाकर प्रजा के लोगों को यहोवा की बातें कह सुनाई; और उनके पुरनियों में से सत्तर पुरूष इकट्ठे करके तम्बू के चारों ओर खड़े किए। 04O 11 25 तब यहोवा बादल में होकर उतरा और उस ने मूसा से बातें की, और जो आत्मा उस में थी उस में से लेकर उन सत्तर पुरनियों में समवा दिया; और जब वह आत्मा उन में आई तब वे नबूवत करने लगे। परन्तु फिर और कभी न की। 04O 11 26 परन्तु दो मनुष्य छावनी में रह गए थे, जिस में से एक का नाम एलदाद और दूसरे का मेदाद था, उन में भी आत्मा आई; ये भी उन्हीं में से थे जिनके नाम लिख लिये गये थे, पर तम्बू के पास न गए थे, और वे छावनी ही में नबूवत करने लगे। 04O 11 27 तब किसी जवान ने दौड़ कर मूसा को बतलाया, कि एलदाद और मेदाद छावनी में नबूवत कर रहे हैं। 04O 11 28 तब नून का पुत्रा यहोशू, जो मूसा का टहलुआ और उसके चुने हुए वीरों में से था, उस ने मूसा से कहा, हे मेरे स्वामी मूसा, उनको रोक दे। 04O 11 29 मूसा ने उन से कहा, क्या तू मेरे कारण जलता है? भला होता कि यहोवा की सारी प्रजा के लोग नबी होते, और यहोवा अपना आत्मा उन सभों में समवा देता! 04O 11 30 तब फिर मूसा इस्त्राएल के पुरनियों समेत छावनी में चला गया। 04O 11 31 तब यहोवा की ओर से एक बड़ी आंधी आई, और वह समुद्र से बटेरें उड़ाके छावनी पर और उसके चारों ओर इतनी ले आईं, कि वे इधर उधर एक दिन के मार्ग तक भूमि पर दो हाथ के लगभग ऊंचे तक छा गए। 04O 11 32 और लोगों ने उठकर उस दिन भर और रात भर, और दूसरे दिन भी दिन भर बटेरों को बटोरते रहे; जिस ने कम से कम बटोरा उस ने दस होमेर बटोरा; और उन्हों ने उन्हें छावनी के चारों ओर फैला दिया। 04O 11 33 मांस उनके मुंह ही में था, और वे उसे खाने न पाए थे, कि यहोवा का कोप उन पर भड़क उठा, और उस ने उनको बहुत बड़ी मार से मारा। 04O 11 34 और उस स्थान का नाम किब्रोथत्तावा पड़ा, क्योंकि जिन लोगों ने कामुकता की थी उनको वहां मिट्टी दी गई। 04O 11 35 फिर इस्त्राएली किब्रोथत्तावा से प्रस्थान करके हसेरोत में पहुंचे, और वहीं रहे।। 04O 12 1 मूसा ने तो एक कूशी स्त्री के साथ ब्याह कर लिया था। सो मरियम और हारून उसकी उस ब्याहिता कूशी स्त्री के कारण उसकी निन्दा करने लगे; 04O 12 2 उन्हों ने कहा, क्या यहोवा ने केवल मूसा ही के साथ बातें की हैं? क्या उस ने हम से भी बातें नहीं कीं? उनकी यह बात यहोवा ने सुनी। 04O 12 3 मूसा तो पृथ्वी भर के रहने वाले मनुष्यों से बहुत अधिक नम्र स्वभाव का था। 04O 12 4 सो यहोवा ने एकाएक मूसा और हारून और मरियम से कहा, तुम तीनों मिलापवाले तम्बू के पास निकल आओ। तब वे तीनों निकल आए। 04O 12 5 तब यहोवा ने बादल के खम्भे में उतरकर तम्बू के द्वार पर खड़ा होकर हारून और मरियम को बुलाया; सो वे दोनों उसके पास निकल आए। 04O 12 6 तब यहोवा ने कहा, मेरी बातें सुनो: यदि तुम में कोई नबी हो, तो उस पर मैं यहोवा दर्शन के द्वारा अपने आप को प्रगट करूंगा, वा स्वप्न में उस से बातें करूंगा। 04O 12 7 परन्तु मेरा दास मूसा ऐसा नहीं है; वह तो मेरे सब घरानों मे विश्वास योग्य है। 04O 12 8 उस से मैं गुप्त रीति से नहीं, परन्तु आम्हने साम्हने और प्रत्यक्ष होकर बातें करता हूं; और वह यहोवा का स्वरूप निहारने पाता है। सो तुम मेरे दास मूसा की निन्दा करते हुए क्यों नहीं डरे? 04O 12 9 तब यहोवा का कोप उन पर भड़का, और वह चला गया; 04O 12 10 तब वह बादल तम्बू के ऊपर से उठ गया, और मरियम कोढ़ से हिम के समान श्वेत हो गई। और हारून ने मरियम की ओर दृष्टि की, और देखा, कि वह कोढ़िन हो गई है। 04O 12 11 तब हारून मूसा से कहने लगा, हे मेरे प्रभु, हम दोनों ने जो मूर्खता की वरन पाप भी किया, यह पाप हम पर न लगने दे। 04O 12 12 और मरियम को उस मरे हुए के समान न रहने दे, जिसकी देह अपनी मां के पेट से निकलते ही अधगली हो। 04O 12 13 सो मूसा ने यह कहकर यहोवा की दोहाई दी, हे ईश्वर, कृपा कर, और उसको चंगा कर। 04O 12 14 यहोवा ने मूसा से कहा, यदि उसका पिता उसके मुंह पर थूका ही होता, तो क्या सात दिन तक वह लज्जित न रहती? सो वह सात दिन तक छावनी से बाहर बन्द रहे, उसके बाद वह फिर भीतर आने पाए। 04O 12 15 सो मरियम सात दिन तक छावनी से बाहर बन्द रही, और जब तक मरियम फिर आने न पाई तब तक लोगों ने प्रस्थान न किया। 04O 12 16 उसके बाद उन्हों ने हसेरोत से प्रस्थान करके पारान नाम जंगल में अपने डेरे खड़े किए।। 04O 13 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 13 2 कनान देश जिसे मैं इस्त्राएलियों को देता हूं उसका भेद लेने के लिये पुरूषों को भेज; वे उनके पितरों के प्रति गोत्रा का एक प्रधान पुरूष हों। 04O 13 3 यहोवा से यह आज्ञा पाकर मूसा ने ऐसे पुरूषों को पारान जंगल से भेज दिया, जो सब के सब इस्त्राएलियों के प्रधान थे। 04O 13 4 उनके नाम ये हैं, अर्थात् रूबेन के गोत्रा में से जककूर का पुत्रा शम्मू; 04O 13 5 शिमोन के गोत्रा में से होरी का पुत्रा शापात; 04O 13 6 यहूदा के गोत्रा में से यपुन्ने का पुत्रा कालेब; 04O 13 7 इस्साकार के गोत्रा में से योसेप का पुत्रा यिगाल; 04O 13 8 एप्रैम के गोत्रा में से नून का पुत्रा होशे; 04O 13 9 बिन्यामीन के गोत्रा में से रापू का पुत्रा पलती; 04O 13 10 जबूलून के गोत्रा में से सोदी का पुत्रा गद्दीएल; 04O 13 11 यूसुफ वंशियों में, मनश्शे के गोत्रा में से सूसी का पुत्रा गद्दी; 04O 13 12 दान के गोत्रा में से गमल्ली का पुत्रा अम्मीएल; 04O 13 13 आशेर के गोत्रा में से मीकाएल का पुत्रा सतूर; 04O 13 14 नप्ताली के गोत्रा में से वोप्सी का पुत्रा नहूबी; 04O 13 15 गाद के गोत्रा में से माकी का पुत्रा गूएल। 04O 13 16 जिन पुरूषों को मूसा ने देश का भेद लेने के लिये भेजा था उनके नाम ये ही हैं। और नून के पुत्रा होशे का नाम उस ने यहोशू रखा। 04O 13 17 उन को कनान देश के भेद लेने को भेजते समय मूसा ने कहा, इधर से, अर्थात् दक्षिण देश होकर जाओ, 04O 13 18 और पहाड़ी देश में जाकर उस देश को देख लो कि कैसा है, और उस में बसे हुए लोगों को भी देखो कि वे बलवान् हैं वा निर्बल, थोड़े हैं वा बहुत, 04O 13 19 और जिस देश में वे बसे हुए हैं सो कैसा है, अच्छा वा बुरा, और वे कैसी कैसी बस्तियों में बसे हुए हैं, और तम्बुओं में रहते हैं वा गढ़ वा किलों में रहते हैं, 04O 13 20 और वह देश कैसा है, उपजाऊ है वा बंजर है, और उस में वृक्ष हैं वा नहीं। और तुम हियाव बान्धे चलो, और उस देश की उपज में से कुछ लेते भी आना। वह समय पहली पक्की दाखों का था। 04O 13 21 सो वे चल दिए, और सीन नाम जंगल से ले रहोब तक, जो हमात के मार्ग में है, सारे देश को देखभालकर उसका भेद लिया। 04O 13 22 सो वे दक्षिण देश होकर चले, और हेब्रोन तक गए; वहां अहीमन, शेशै, और तल्मै नाम अनाकवंशी रहते थे। हेब्रोन तो मि के सोअन से सात वर्ष पहिले बसाया गया था। 04O 13 23 तब वे एशकोल नाम नाले तक गए, और वहां से एक डाली दाखों के गुच्छे समेत तोड़ ली, और दो मनुष्य उस एक लाठी पर लटकाए हुए उठा ले चले गए; और वे अनारों और अंजीरों में से भी कुछ कुछ ले आए। 04O 13 24 इस्त्राएली वहां से जो दाखों का गुच्छा तोड़ ले आए थे, इस कारण उस स्थान का नाम एशकोल नाला रखा गया। 04O 13 25 चालीस दिन के बाद वे उस देश का भेद लेकर लौट आए। 04O 13 26 और पारान जंगल के कादेश नाम स्थान में मूसा और हारून और इस्त्राएलियों की सारी मण्डली के पास पहुंचे; और उनको और सारी मण्डली को संदेशा दिया, और उस देश के फल उनको दिखाए। 04O 13 27 उन्हों ने मूसा से यह कहकर वर्णन किया, कि जिस देश में तू ने हम को भेजा था उस में हम गए; उस में सचमुच दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, और उसकी उपज में से यही है। 04O 13 28 परन्तु उस देश के निवासी बलवान् हैं, और उसके नगर गढ़वाले हैं और बहुत बड़े हैं; और फिर हम ने वहां अनाकवंशियों को भी देखा। 04O 13 29 दक्षिण देश में तो अमालेकी बसे हुए हैं; और पहाड़ी देश में हित्ती, यबूसी, और एमोरी रहते हैं; और समुद्र के किनारे किनारे और यरदन नदी के तट पर कनानी बसे हुए हैं। 04O 13 30 पर कालेब ने मूसा के साम्हने प्रजा के लोगों को चुप कराने की मनसा से कहा, हम अभी चढ़के उस देश को अपना कर लें; क्योंकि नि:सन्देह हम में ऐसा करने की शक्ति है। 04O 13 31 पर जो पुरूष उसके संग गए थे उन्हों ने कहा, उन लोगों पर चढ़ने की शक्ति हम में नहीं है; क्योंकि वे हम से बलवान् हैं। 04O 13 32 और उन्हों ने इस्त्राएलियों के साम्हने उस देश की जिसका भेद उन्हों ने लिया था यह कहकर निन्दा भी की, कि वह देश जिसका भेद लेने को हम गये थे ऐसा है, जो अपने निवासियों को निगल जाता है; और जितने पुरूष हम ने उस में देखे वे सब के सब बड़े डील डौल के हैं। 04O 13 33 फिर हम ने वहां नपीलों को, अर्थात् नपीली जातिवाले अनाकवंशियों को देखा; और हम अपनी दृष्टि में तो उनके साम्हने टिड्डे के सामान दिखाई पड़ते थे, और ऐसे ही उनकी दृष्टि में मालूम पड़ते थे।। 04O 14 1 तब सारी मण्डली चिल्ला उठी; और रात भर वे लोग रोते ही रहे। 04O 14 2 और सब इस्त्राएली मूसा और हारून पर बुड़बुड़ाने लगे; और सारी मण्डली उस ने कहने लगी, कि भला होता कि हम मि ही में मर जाते! वा इस जंगल ही में मर जाते! 04O 14 3 और यहोवा हम को उस देश में ले जाकर क्यों तलवार से मरवाना चाहता है? हमारी स्त्रियां और बालबच्चे तो लूट में चलें जाएंगे; क्या हमारे लिये अच्छा नहीं कि हम मि देश को लौट जाएं? 04O 14 4 फिर वे आपस में कहने लगे, आओ, हम किसी को अपना प्रधान बना लें, और मि को लौट चलें। 04O 14 5 तब मूसा और हारून इस्त्राएलियों की सारी मण्डली के साम्हने मुंह के बल गिरे। 04O 14 6 और नून का पुत्रा यहोशू और यपुन्ने का पुत्रा कालिब, जो देश के भेद लेनेवालों में से थे, अपने अपने वस्त्रा फाड़कर, 04O 14 7 इस्त्राएलियों की सारी मण्डली से कहने लगे, कि जिस देश का भेद लेने को हम इधर उधर घूम कर आए हैं, वह अत्यन्त उत्तम देश है। 04O 14 8 यदि यहोवा हम से प्रसन्न हो, तो हम को उस देश में, जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, पहुंचाकर उसे हमे दे देगा। 04O 14 9 केवल इतना करो कि तुम यहोवा के विरूद्ध बलवा न करो; और न तो उस देश के लोगों से डरो, क्योंकि वे हमारी रोटी ठहरेंगे; छाया उनके ऊपर से हट गई है, और यहोवा हमारे संग है; उन से न डरो। 04O 14 10 तब सारी मण्डली चिल्ला उठी, कि इनको पत्थरवाह करो। तब यहोवा का तेज सब इस्त्राएलियों पर प्रकाशमान हुआ।। 04O 14 11 तब यहोवा ने मूसा से कहा, वे लोग कब तक मेरा तिरस्कार करते रहेंगे? और मेरे सब आश्चर्यकर्म देखने पर भी कब तक मुझ पर विश्वास न करेंगे? 04O 14 12 मैं उन्हें मरी से मारूंगा, और उनके निज भाग से उन्हें निकाल दूंगा, और तुझ से एक जाति उपजाऊंगा जो उन से बड़ी और बलवन्त होगी। 04O 14 13 मूसा ने यहोवा से कहा, तब तो मिद्दी जिनके मध्य में से तू अपनी सामर्थ्य दिखाकर उन लोगों को निकाल ले आया है यह सुनेंगे, 04O 14 14 और इस देश के निवासियों से कहेंगे। उन्हों ने तो यह सुना है, कि तू जो यहोवा है इन लोगों के मध्य में रहता है; और प्रत्यक्ष दिखाई देता है, और तेरा बादल उनके ऊपर ठहरा रहता है, और तू दिन को बादल के खम्भे में, और रात को अग्नि के खम्भे में होकर इनके आगे आगे चला करता है। 04O 14 15 इसलिये यदि तू इन लोगों को एक ही बार मे मार डाले, तो जिन जातियों ने तेरी कीर्त्ति सुनी है वे कहेंगी, 04O 14 16 कि यहोवा उन लोगों को उस देश में जिसे उस ने उन्हें देने की शपथ खाई थी पहुंचा न सका, इस कारण उस ने उन्हें जंगल में घात कर डाला है। 04O 14 17 सो अब प्रभु की सामर्थ्य की महिमा तेरे इस कहने के अनुसार हो, 04O 14 18 कि यहोवा कोप करने में धीरजवन्त और अति करूणामय है, और अधर्म और अपराध का क्षमा करनेवाला है, परन्तु वह दोषी को किसी प्रकार से निर्दोष न ठहराएगा, और पूर्वजों के अधर्म का दण्ड उनके बेटों, और पोतों, और परपोतों को देता है। 04O 14 19 अब इन लोगों के अधर्म को अपनी बड़ी करूणा के अनुसार, और जैसे तू मि से लेकर यहां तक क्षमा करता रहा है वैसे ही अब भी क्षमा कर दे। 04O 14 20 यहोवा ने कहा, तेरी बिनती के अनुसार मैं क्षमा करता हूं; 04O 14 21 परन्तु मेरे जीवन की शपथ सचमुच सारी पृथ्वी यहोवा की महिमा से परिपूर्ण हो जाएगी; 04O 14 22 उन सब लोगों ने जिन्हों ने मेरी महिमा मि देश में और जंगल में देखी, और मेरे किए हुए आश्चर्यकर्मों को देखने पर भी दस बार मेरी परीक्षा की, और मेरी बातें नहीं मानी, 04O 14 23 इसलिये जिस देश के विषय मैं ने उनके पूर्वजों से शपथ खाई, उसको वे कभी देखने न पाएंगे; अर्थात् जितनों ने मेरा अपमान किया है उन में से कोई भी उसे देखने न पाएगा। 04O 14 24 परन्तु इस कारण से कि मेरे दास कालिब के साथ और ही आत्मा है, और उस ने पूरी रीति से मेरा अनुकरण किया है, मैं उसको उस देश में जिस में वह हो आया है पहुंचाऊंगा, और उसका वंश उस देश का अधिकारी होगा। 04O 14 25 अमालेकी और कनानी लोग तराई में रहते हैं, सो कल तुम घूमकर प्रस्थान करो, और लाल समुद्र के मार्ग से जंगल में जाओ।। 04O 14 26 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 04O 14 27 यह बुरी मण्डली मुझ पर बुड़बुड़ाती रहती है, उसको मैं कब तक सहता रहूं? इस्त्राएली जो मुझ पर बुड़बुड़ाते रहते हैं, उनका यह बुड़बुड़ाना मैं ने तो सुना है। 04O 14 28 सो उन से कह, कि यहोवा की यह वाणी है, कि मेरे जीवन की शपथ जो बातें तुम ने मेरे सुनते कही हैं, नि:सन्देह मैं उसी के अनुसार तुम्हारे साथ व्यवहार करूंगा। 04O 14 29 तुम्हारी लोथें इसी जंगल में पड़ी रहेंगी; और तुम सब में से बीस वर्ष की वा उस से अधिक अवस्था के जितने गिने गए थे, और मुझ पर बुड़बुड़ाते थे, 04O 14 30 उस में से यपुन्ने के पुत्रा कालिब और नून के पुत्रा यहोशू को छोड़ कोई भी उस देश में न जाने पाएगा, जिसके विषय मैं ने शपथ खाई है कि तुम को उस में बसाऊंगा। 04O 14 31 परन्तु तुम्हारे बालबच्चे जिनके विषय तुम ने कहा है, कि ये लूट में चले जाएंगे, उनको मैं उस देश में पहुंचा दूंगा; और वे उस देश को जान लेंगे जिस को तुम ने तुच्छ जाना है। 04O 14 32 परन्तु तुम लोगों की लोथें इसी जंगल में पड़ी रहेंगी। 04O 14 33 और जब तक तुम्हारी लोथें जंगल में न गल जाएं तक तक, अर्थात् चालीस वर्ष तक, तुम्हारे बालबच्चे जंगल में तुम्हारे व्यभिचार का फल भोगते हुए चरवाही करते रहेंगे। 04O 14 34 जितने दिन तुम उस देश का भेद लेते रहे, अर्थात् चालीस दिन उनकी गिनती के अनुसार, दिन पीछे उस वर्ष, अर्थात् चालीस वर्ष तक तुम अपने अधर्म का दण्ड उठाए रहोगे, तब तुम जान लोगे कि मेरा विरोध क्या है। 04O 14 35 मैं यहोवा यह कह चुका हूं, कि इस बुरी मण्डली के लोग जो मेरे विरूद्ध इकट्ठे हुए हैं उसी जंगल में मर मिटेंगे; और नि:सन्देह ऐसा ही करूंगा भी। 04O 14 36 तब जिन पुरूषों को मूसा ने उस देश के भेद लेने के लिये भेजा था, और उन्हों ने लौटकर उस देश की नामधराई करके सारी मण्डली को कुड़कुड़ाने के लिये उभारा था, 04O 14 37 उस देश की वे नामधराई करनेवाले पुरूष यहोवा के मारने से उसके साम्हने मर गये। 04O 14 38 परन्तु देश के भेद लेनेवाले पुरूषों में से नून का पुत्रा यहोशू और यपुन्ने का पुत्रा कालिब दोनों जीवित रहे। 04O 14 39 तब मूसा ने ये बातें सब इस्त्राएलियों को कह सुनाई और वे बहुत विलाप करने लगे। 04O 14 40 और वे बिहान को सवेरे उठकर यह कहते हुए पहाड़ की चोटी पर चढ़ने लगे, कि हम ने पाप किया है; परन्तु अब तैयार हैं, और उस स्थान को जाएंगे जिसके विषय यहोवा ने वचन दिया था। 04O 14 41 तब मूसा ने कहा, तुम यहोवा की आज्ञा का उल्लंघन क्यों करते हो? यह सुफल न होगा। 04O 14 42 यहोवा तुम्हारे मध्य में नहीं है, मत चढ़ो, नहीं तो शत्रुओं से हार जाओगे। 04O 14 43 वहां तुम्हारे आगे अमालेकी और कनानी लोग हैं, सो तुम तलवार से मारे जाओगे; तुम यहोवा को छोड़कर फिर गए हो, इसलिये वह तुम्हारे संग नहीं रहेगा। 04O 14 44 परन्तु वे ढिठाई करके पहाड़ की चोटी पर चढ़ गए, परन्तु यहोवा की वाचा का सन्दूक, और मूसा, छावनी से न हटे। 04O 14 45 अब अमालेकी और कनानी जो उस पहाड़ पर रहते थे उन पर चढ़ आए, और होर्मा तक उनको मारते चले आए।। 04O 15 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 15 2 इस्त्राएलियों से कह, कि जब तुम अपने निवास के देश में पहुंचों, जो मैं तुम्हे देता हूं, 04O 15 3 और यहोवा के लिये क्या होमबलि, क्या मेलबलि, कोई हव्य चढ़ावो, चाहे वह विशेष मन्नत पूरी करने का हो चाहे स्वेच्छाबलि का हो, चाहे तुम्हारे नियत समयों में का हो, या वह चाहे गाय- बैल चाहे भेड़- बकरियों में का हो, जिस से यहोवा के लिये सुखदायक सुगन्ध हो; 04O 15 4 तब उस होमबलि वा मेलबलि के संग भेड़ के बच्चे पीछे यहोवा के लिये चौथाई हिन तेल से सना हुआ एपा का दसवां अंश मैदा अन्नबलि करके चढ़ाना, 04O 15 5 और चौथाई हिन दाखमधु अर्घ करके देना। 04O 15 6 और मेढ़े पीछे तिहाई हिन तेल से सना हुआ एपा का दो दसवां अंश मैदा अन्नबलि करके चढ़ाना; 04O 15 7 और उसका अर्घ यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला तिहाई दिन दाखमधु देना। 04O 15 8 और जब तू यहोवा को होमबलि वा किसी विशेष मन्नत पूरी करने के लिये बलि वा मेलबलि करके बछड़ा चढ़ाए, 04O 15 9 तब बछड़े का चढ़ानेवाला उसके संग आध हिन तेल से सना हुआ एपा का तीन दसवां अंश मैदा अन्नबलि करके चढ़ाए। 04O 15 10 और उसका अर्घ आध हिन दाखमधु चढ़ाए, वह यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य होगा। 04O 15 11 एक एक बछड़े, वा मेढ़े, वा भेड़ के बच्चे, वा बकरी के बच्चे के साथ इसी रीति चढ़ावा चढ़ाया जाए। 04O 15 12 तुम्हारे बलिपशुओं की जितनी गिनती हो, उसी गिनती के अनुसार एक एक के साथ ऐसा ही किया करना। 04O 15 13 जितने देशी हों वे यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य चढ़ाते समय ये काम इसी रीति से किया करें। 04O 15 14 और यदि कोई परदेशी तुम्हारे संग रहता हो, वा तुम्हारी किसी पीढ़ी में तुम्हारे बीच कोई रहनेवाला हो, और वह यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य चढ़ाना चाहे, तो जिस प्रकार तुम करोगे उसी प्रकार वह भी करे। 04O 15 15 मण्डली के लिये, अर्थात् तुम्हारे और तुम्हारे संग रहनेवाले परदेशी दोनों के लिये एक ही विधि हो; तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में यह सदा की विधि ठहरे, कि जैसे तुम हो वैसे ही परदेशी भी यहोवा के लिये ठहरता है। 04O 15 16 तुम्हारे और तुम्हारे संग रहनेवाले परदेशियों के लिये एक ही व्यवस्था और एक ही नियम है।। 04O 15 17 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 15 18 इस्त्राएलियों को मेरा यह वचन सुना, कि जब तुम उस देश में पहुंचो जहां मैं तुम को लिये जाता हूं, 04O 15 19 और उस देश की उपज का अन्न खाओ, तब यहोवा के लिये उठाई हुई भेंट चढ़ाया करो। 04O 15 20 अपने पहिले गूंधे हुए आटे की एक पपड़ी उठाई हुई भेंट करके यहोवा के लिये चढ़ाना; जैसे तुम खलिहान में से उठाई हुई भेंट चढ़ाओगे वैसे ही उसको भी उठाया करना। 04O 15 21 अपनी पीढ़ी पीढ़ी में अपने पहिले गूंधे हुए आटे में से यहोवा को उठाई हुई भेंट दिया करना।। 04O 15 22 फिर जब तुम इन सब आज्ञाओं में से जिन्हें यहोवा ने मूसा को दिया है किसी का उल्लंघन भूल से करो, 04O 15 23 अर्थात् जिस दिन से यहोवा आज्ञा देने लगा, और आगे की तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में उस दिन से उस ने जितनी आज्ञाएं मूसा के द्वारा दी हैं, 04O 15 24 उस में यदि भूल से किया हुआ पाप मण्डली के बिना जाने हुआ हो, तो सारी मण्डली यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला होमबलि करके एक बछड़ा, और उसके संग नियम के अनुसार उसका अन्नबलि और अर्घ चढ़ाए, और पापबलि करके एक बकरा चढ़ाए। 04O 15 25 जब याजक इस्त्राएलियों की सारी मण्डली के लिये प्रायश्चित्त करे, और उनकी क्षमा की जाएगी; क्योंकि उनका पाप भूल से हुआ, और उन्हों ने अपनी भूल के लिये अपना चढ़ावा, अर्थात् यहोवा के लिये हव्य और अपना पापबलि उसके साम्हने चढ़ाया। 04O 15 26 सो इस्त्राएलियों की सारी मण्डली का, और उसके बीच रहनेवाले परदेशी का भी, वह पाप क्षमा किया जाएगा, क्योंकि वह सब लोगों के अनजान में हुआ। 04O 15 27 फिर यदि कोई प्राणी भूल से पाप करे, तो वह एक वर्ष की एक बकरी पापबलि करके चढ़ाए। 04O 15 28 और याजक भूल से पाप करनेवाले प्राणी के लिये यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे; सो इस प्रायश्चित्त के कारण उसका वह पाप क्षमा किया जाएगा। 04O 15 29 जो कोई भूल से कुछ करे, चाहे वह परदेशी होकर रहता हो, सब के लिये तुम्हारी एक ही व्यवस्था हो। 04O 15 30 परन्तु क्या देशी क्या परदेशी, जो प्राणी ढिठाई से कुछ करे, वह यहोवा का अनादर करनेवाला ठहरेगा, और वह प्राणी अपने लोगों में से नाश किया जाए। 04O 15 31 वह जो यहोवा का वचन तुच्छ जानता है, और उसकी आज्ञा का टालनेवाला है, इसलिये वह प्राणी निश्चय नाश किया जाए; उसका अधर्म उसी के सिर पड़ेगा।। 04O 15 32 जब इस्त्राएली जंगल में रहते थे, उन दिनों एक मनुष्य विश्राम के दिन लकड़ी बीनता हुआ मिला। 04O 15 33 और जिनको वह लकड़ी बीनता हुआ मिला, वे उसको मूसा और हारून, और सारी मण्डली के पास ले गए। 04O 15 34 उन्हों ने उसको हवालात में रखा, क्योंकि ऐसे मनुष्य से क्या करना चाहिये वह प्रकट नहीं किया गया था। 04O 15 35 तब यहोवा ने मूसा से कहा, वह मनुष्य निश्चय मार डाला जाए; सारी मण्डली के लोग छावनी के बाहर उस पर पत्थरवाह करें। 04O 15 36 सो जैसा यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी उसी के अनुसार सारी मण्डली के लोगों ने उसको छावनी से बाहर ले जाकर पत्थरवाह किया, और वह मर गया। 04O 15 37 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 15 38 इस्त्राएलियों से कह, कि अपनी पीढ़ी पीढ़ी में अपने वस्त्रों के कोर पर झालर लगाया करना, और एक एक कोर की झालर पर एक नीला फीता लगाया करना; 04O 15 39 और वह तुम्हारे लिये ऐसी झालर ठहरे, जिस से जब जब तुम उसे देखो तब तब यहोवा की सारी आज्ञाएं तुम हो स्मरण आ जाएं; और तुम उनका पालन करो, और तुम अपने अपने मन और अपनी अपनी दृष्टि के वश में होकर व्यभिचार न करते फिरो जैसे करते आए हो। 04O 15 40 परन्तु तुम यहोवा की सब आज्ञाओं को स्मरण करके उनका पालन करो, और अपने परमेश्वर के लिये पवित्रा बनो। 04O 15 41 मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर हूं, जो तुम्हे मि देश से निकाल ले आया कि तुम्हारा परमेश्वर ठहरूं; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।। 04O 16 1 कोरह जो लेवी का परपोता, कहात का पोता, और यिसहार का पुत्रा था, वह एलीआब के पुत्रा दातान और अबीराम, और पेलेत के पुत्रा ओन, 04O 16 2 इन तीनों रूबेनियों से मिलकर मण्डली के अढ़ाई सौ प्रधान, जो सभासद और नामी थे, उनको संग लिया; 04O 16 3 और वे मूसा और हारून के विरूद्ध उठ खड़े हुए, और उन से कहने लगे, तुम ने बहुत किया, अब बस करो; क्योंकि सारी मण्डली का एक एक मनुष्य पवित्रा है, और यहोवा उनके मध्य में रहता है; इसलिये तुम यहोवा की मण्डली में ऊंचे पदवाले क्यों बन बैठे हो? 04O 16 4 यह सुनकर मूसा अपने मुंह के बल गिरा; 04O 16 5 फिर उस ने कोरह और उसकी सारी मण्डली से कहा, कि बिहान को यहोवा दिखला देगा कि उसका कौन है, और पवित्रा कौन है, और उसको अपने समीप बुला लेगा; जिसको वह आप चुन लेगा उसी को अपने समीप बुला भी लेगा। 04O 16 6 इसलिये, हे कोरह, तुम अपनी सारी मण्डली समेत यह करो, अर्थात् अपना अपना धूपदान ठीक करो; 04O 16 7 और कल उन में आग रखकर यहोवा के साम्हने धूप देना, तब जिसको यहोवा चुन ले वही पवित्रा ठहरेगा। हे लेवियों, तुम भी बड़ी बड़ी बातें करते हो, अब बस करो। 04O 16 8 फिर मूसा ने कोरह से कहा, हे लेवियों, सुनो, 04O 16 9 क्या यह तुम्हें छोटी बात जान पड़ती है, कि इस्त्राएल के परमेश्वर ने तुम को इस्त्राएल की मण्डली से अलग करके अपने निवास की सेवकाई करने, और मण्डली के साम्हने खड़े होकर उसकी भी सेवा टहल करने के लिये अपने समीप बुला लिया है; 04O 16 10 और तुझे और तेरे सब लेवी भाइयों को भी अपने समीप बुला लिया है? फिर भी तुम याजक पद के भी खोजी हो? 04O 16 11 और इसी कारण तू ने अपनी सारी मण्डली को यहोवा के विरूद्ध इकट्ठी किया है; हारून कौन है कि तुम उस पर बुड़बुड़ाते हो? 04O 16 12 फिर मूसा ने एलीआब के पुत्रा दातान और अबीराम को बुलवा भेजा; और उन्हों ने कहा, हम तेरे पास नहीं आएंगे। 04O 16 13 क्या यह एक छोटी बात है, कि तू हम को ऐसे देश से जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती है इसलिये निकाल लाया है, कि हमें जंगल में मार डाले, फिर क्या तू हमारे ऊपर प्रधान भी बनकर अधिकार जताता है? 04O 16 14 फिर तू हमें ऐसे देश में जहां दूध और मधु की धाराएं बहती हैं नहीं पहुंचाया, और न हमें खेतों और दाख की बारियों के अधिकारी किया। क्या तू इन लोगों की आंखों में धूलि डालेगा? हम तो नहीं आएंगे। 04O 16 15 तब मूसा का कोप बहुत भड़क उठा, और उस ने यहोवा से कहा, उन लोगों की भेंट की ओर दृष्टि न कर। मैं ने तो उन से एक गदहा भी नहीं लिया, और न उन में से किसी की हानि की है। 04O 16 16 तब मूसा ने कोरह से कहा, कल तू अपनी सारी मण्डली को साथ लेकर हारून के साथ यहोवा के साम्हने हाजिर होना; 04O 16 17 और तुम सब अपना अपना धूपदान लेकर उन में धूप देना, फिर अपना अपना धूपदान जो सब समेत अढ़ाई सौ होंगे यहोवा के साम्हने ले जाना; विशेष करके तू और हारून अपना अपना धूपदान ले जाना। 04O 16 18 सो उन्हों ने अपना अपना धूपदान लेकर और उन में आग रखकर उन पर धूप डाला; और मूसा और हारून के साथ मिलापवाले तम्बू के द्वार पर खड़े हुए। 04O 16 19 और कोरह ने सारी मण्डली को उनके विरूद्ध मिलापवाले तम्बू के द्वार पर इकट्ठा कर लिया। तब यहोवा का तेज सारी मण्डली को दिखाई दिया।। 04O 16 20 तब यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 04O 16 21 उस मण्डली के बीच में से अलग हो जाओ। कि मैं उन्हें पल भर में भस्म कर डालूं। 04O 16 22 तब वे मुंह के बल गिरके कहने लगे, हे ईश्वर, हे सब प्राणियों के आत्माओं के परमेश्वर, क्या एक पुरूष के पाप के कारण तेरा क्रोध सारी मण्डली पर होगा? 04O 16 23 यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 16 24 मण्डली के लोगों से कह, कि कोरह, दातान, और अबीराम के तम्बुओं के आसपास से हट जाओ। 04O 16 25 तब मूसा उठकर दातान और अबीराम के पास गया; और इस्त्राएलियों के वृद्ध लोग उसके पीछे पीछे गए। 04O 16 26 और उस ने मण्डली के लोगों से कहा, तुम उन दुष्ट मनुष्यों के डेरों के पास से हट जाओ, और उनकी कोई वस्तु न छूओ, कहीं ऐसा न हो कि तुम भी उनके सब पापों में फंसकर मिट जाओ। 04O 16 27 यह सुन वे कोरह, दातान, और अबीराम के तम्बुओं के आसपास से हट गए; परन्तु दातान और अबीराम निकलकर अपनी पत्नियों, बेंटों, और बालबच्चों समेत अपने अपने डेरे के द्वार पर खड़े हुए। 04O 16 28 तब मूसा ने कहा, इस से तुम जान लोगे कि यहोवा ने मुझे भेजा है कि यह सब काम करूं, क्योंकि मैं ने अपनी इच्छा से कुछ नहीं किया। 04O 16 29 यदि उन मनुष्यों की मृत्यु और सब मनुष्यों के समान हो, और उनका दण्ड सब मनुष्यों के समान हो, तब जानों कि मैं यहोवा का भेजा हुआ नहीं हूं। 04O 16 30 परन्तु यदि यहोवा अपनी अनोखी शक्ति प्रकट करे, और पृथ्वी अपना मुंह पसारकर उनको, और उनका सब कुछ निगल जाए, और वे जीते जी अधोलोक में जा पड़ें, तो तुम समझ लो कि इन मनुष्यों ने यहोवा का अपमान किया है। 04O 16 31 वह ये सब बातें कह ही चुका था, कि भूमि उन लोगों के पांव के नीचे फट गई; 04O 16 32 और पृथ्वी ने अपना मुंह खोल दिया और उनका और उनका घरद्वार का सामान, और कोरह के सब मनुष्यों और उनकी सारी सम्पत्ति को भी निगल लिया। 04O 16 33 और वे और उनका सारा घरबार जीवित ही अधोलोक में जा पड़े; और पृथ्वी ने उनको ढंाप लिया, और वे मण्डली के बीच में से नष्ट हो गए। 04O 16 34 और जितने इस्त्राएली उनके चारों ओर थे वे उनका चिल्लाना सुन यह कहते हुए भागे, कि कहीं पृथ्वी हम को भी निगल न ले! 04O 16 35 तब यहोवा के पास से आग निकली, और उन अढ़ाई सौ धूप चढ़ानेवालों को भस्म कर डाला।। 04O 16 36 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 16 37 हारून याजक के पुत्रा एलीआजार से कह, कि उन धूपदानों को आग में से उठा ले; और आग के अंगारों को उधर ही छितरा दे, क्योंकि वे पवित्रा हैं। 04O 16 38 जिन्हों ने पाप करके अपने ही प्राणों की हानि की है, उनके धूपदानों के पत्तर पीट पीटकर बनाए जाएं जिस से कि वह वेदी के मढ़ने के काम आवे; क्योंकि उन्हों ने यहोवा के साम्हने रखा था; इस से वे पवित्रा हैं। इस प्रकार वह इस्त्राएलियों के लिये एक निशान ठहरेगा। 04O 16 39 सो एलीआजर याजक ने उन पीतल के धूपदानों को, जिन में उन जले हुए मनुष्यों ने धूप चढ़ाया था, लेकर उनके पत्तर पीटकर वेदी के मढ़ने के लिये बनवा दिए, 04O 16 40 कि इस्त्राएलियों को इस बात का स्मरण रहे कि कोई दूसरा, जो हारून के वंश का न हो, यहोवा के साम्हने धूप चढ़ाने को समीप न जाए, ऐसा न हो कि वह भी कोरह और उसकी मण्डली के समान नष्ट हो जाए, जैसे कि यहोवा ने मूसा के द्वारा उसको आज्ञा दी थी।। 04O 16 41 दूसरे दिन इस्त्राएलियों की सारी मण्डली यह कहकर मूसा और हारून पर बुड़बुड़ाने लगी, कि यहोवा की प्रजा को तुम ने मार डाला है। 04O 16 42 और जब मण्डली के लोग मूसा और हारून के विरूद्ध इकट्ठे हो रहे थे, तब उन्हों ने मिलापवाले तम्बू की ओर दृष्टि की; और देखा, कि बादल ने उसे छा लिया है, और यहोवा का तेज दिखाई दे रहा है। 04O 16 43 तब मूसा और हारून मिलापवाले तम्बू के साम्हने आए, 04O 16 44 तब यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 04O 16 45 तुम उस मण्डली के लोगों के बीच से हट जाओ, कि मैं उन्हें पल भर में भस्म कर डालूं। तब वे मुंह के बल गिरे। 04O 16 46 और मूसा ने हारून से कहा, धूपदान को लेकर उस में वेदी पर से आग रखकर उस पर धूप डाल, मण्डली के पास फुरती से जाकर उसके लिये प्रायश्चित्त कर; क्योंकि यहोवा का कोप अत्यन्त भड़का है, और मरी फैलने लगी है। 04O 16 47 मूसा की आज्ञा के अनुसार हारून धूपदान लेकर मण्डली के बीच में दौड़ा गया; और यह देखकर कि लोगों में मरी फैलने लगी है, उस ने धूप जलाकर लोगों के लिये प्रायश्चित्त किया। 04O 16 48 और वह मुर्दों और जीवित के मध्य में खड़ा हुआ; तब मरी थम गई। 04O 16 49 और जो कोरह के संग भागी होकर मर गए थे, उन्हें छोड़ जो लोग इस मरी से मर गए वे चौदह हजार सात सौ थे। 04O 16 50 तब हारून मिलापवाले तम्बू के द्वार पर मूसा के पास लौट गया, और मरी थम गई।। 04O 17 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 17 2 इस्त्राएलियों से बातें करके उन के पूर्वजों के घरानों के अनुसार, उनके सब प्रधानों के पास से एक एक छड़ी ले; और उन बारह छड़ियों में से एक एक पर एक एक के मूल पुरूष का नाम लिख, 04O 17 3 और लेवियों की छड़ी पर हारून का नाम लिख। क्योंकि इस्त्राएलियों के पूर्वजों के घरानों के एक एक मुख्य पुरूष की एक एक छड़ी होगी। 04O 17 4 और उन छड़ियों को मिलापवाले तम्बू में साक्षीपत्रा के आगे, जहां मैं तुम लोगों से मिला करता हूं, रख दे। 04O 17 5 और जिस पुरूष को मैं चुनूंगा उसकी छड़ी में कलियां फूट निकलेंगी; और इस्त्राएली जो तुम पर बुड़बुड़ाते रहते हैं, वह बुड़बुड़ाना मैं अपने ऊपर से दूर करूंगा। 04O 17 6 सो मूसा ने इस्त्राएलियों से यह बात कही; और उनके सब प्रधानों ने अपने अपने लिये, अपने अपने पूर्वजों के घरानों के अनुसार, एक एक छड़ी उसे दी, सो बारह छड़ियां हुई; और उन की छड़ियों में हारून की भी छड़ी थी। 04O 17 7 उन छड़ियों को मूसा ने साक्षीपत्रा के तम्बू में यहोवा के साम्हने रख दिया। 04O 17 9 सो मूसा उन सब छड़ियों को यहोवा के साम्हने से निकालकर सब इस्त्राएलियों के पास ले गया; और उन्हों ने अपनी अपनी छड़ी पहिचानकर ले ली। 04O 17 10 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, हारून की छड़ी को साक्षीपत्रा के साम्हने फिर धर दे, कि यह उन दंगा करनेवालो के लिये एक निशान बनकर रखी रहे, कि तू उनका बुड़बुड़ाना जो मेरे विरूद्ध होता रहता है भविष्य में रोक रखे, ऐसा न हो कि वे मर जाएं। 04O 17 11 और मूसा ने यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार ही किया।। 04O 17 12 तब इस्त्राएली मूसा से कहने लगे, देख, हमारे प्राण निकला चाहते हैं, हम नष्ट हुए, हम सब के सब नष्ट हुए जाते हैं। 04O 17 13 जो कोई यहोवा के निवास के समीप जाता है वह मारा जाता है। तो क्या हम सब के सब मर ही जाएंगे।। 04O 18 1 फिर यहोवा ने हारून से कहा, कि पवित्रास्थान के अधर्म का भार तुझ पर, और तेरे पुत्रों और तेरे पिता के घराने पर होगा; और तुम्हारा याजक कर्म के अधर्म का भार भी तेरे पुत्रों पर होगा। 04O 18 2 और लेवी का गोत्रा, अर्थात् तेरे मूलपुरूष के गोत्रावाले जो तेरे भाई हैं, उनको भी अपने साथ ले आया कर, और वे तुझ से मिल जाएं, और तेरी सेवा टहल किया करें, परन्तु साक्षीपत्रा के तम्बू के साम्हने तू और तेरे पुत्रा ही आया करें। 04O 18 3 जो तुझे सौंपा गया है उसकी और सारे तम्बू की भी वे रक्षा किया करें; परन्तु पवित्रास्थान के पात्रों के और वेदी के समीप न आएं, ऐसा न हो कि वे और तुम लोग भी मर जाओ। 04O 18 4 सो वे तुझ से मिल जाएं, और मिलापवाले तम्बू की सारी सेवकाई की वस्तुओं की रक्षा किया करें; परन्तु जो तेरे कुल का न हो वह तुम लोगों के समीप न आने पाए। 04O 18 5 और पवित्रास्थान और वेदी की रखवाली तुम ही किया करो, जिस से इस्त्राएलियों पर फिर कोप न भड़के। 04O 18 6 परन्तु मैं ने आप तुम्हारे लेवी भाइयों को इस्त्राएलियों के बीच से अलग कर लिया है, और वे मिलापवाले तम्बू की सेवा करने के लिये तुम को और यहोवा को सौंप दिये गए हैं। 04O 18 7 पर वेदी की और बीचवाले पर्दे के भीतर की बातों की सेवकाई के लिये तू और तेरे पुत्रा अपने याजकपद की रक्षा करना, और तुम ही सेवा किया करना; क्योंकि मैं तुम्हें याजकपद की सेवकाई दान करता हूं; और जो तेरे कुल का न हो वह यदि समीप आए तो मार डाला जाए।। 04O 18 8 फिर यहोवा ने हारून से कहा, सुन, मै आप तुझ को उठाई हुई भेंट सौंप देता हूं, अर्थात् इस्त्राएलियों की पवित्रा की हुई वस्तुएं; जितनी हों उन्हें मैं तेरा अभिषेक वाला भाग ठहराकर तुझे और तेरे पुत्रों को सदा का हक करके दे देता हूं। 04O 18 9 जो परमपवित्रा वस्तुएं आग में होम न ही जाएंगी वे तेरी ही ठहरें, अर्थात् इस्त्राएलियों के सब चढ़ावों में से उनके सब अन्नबलि, सब पापबलि, और सब दोषबलि, जो वे मुझ को दें, वह तेरे और तेरे पुत्रों के लिये परमपवित्रा ठहरें। 04O 18 10 उनको परमपवित्रा वस्तु जानकर खाया करना; उनको हर एक पुरूष खा सकता है; वे तेरे लिये पवित्रा हैं। 04O 18 11 फिर ये वस्तुएं भी तेरी ठहरें, अर्थात् जितनी भेंट इस्त्राएली हिलाने के लिये दें, उनको मैं तुझे और तेरे बेटे- बेटियों को सदा का हक करके दे देता हूं; तेरे घराने में जितने शुद्ध हों वह उन्हें खा सकेंगे। 04O 18 12 फिर उत्तम से उत्तम नया दाखमधु, और गेहूं, अर्थात् इनकी पहली उपज जो वे यहोवा को दें, वह मैं तुझ को देता हूं। 04O 18 13 उनके देश के सब प्रकार की पहली उपज, जो वे यहोवा के लिये ले आएं, वह तेरी ही ठहरे; तेरे घराने में जितने शुद्ध हों वे उन्हें खा सकेंगें। 04O 18 14 इस्त्राएलियों में जो कुछ अर्पण किया जाए वह भी तेरा ही ठहरे। 04O 18 15 सब प्राणियों में से जितने अपनी अपनी मां के पहिलौठे हों, जिन्हें लोग यहोवा के लिये चढ़ाएं, चाहे मनुष्य के चाहे पशु के पहिलौठे हों, वे सब तेरे ही ठहरें; परन्तु मनुष्यों और अशुद्ध पशुओं के पहिलौठों को दाम लेकर छोड़ देना। 04O 18 16 और जिन्हें छुड़ाना हो, जब वे महीने भर के हों तब उनके लिये अपने ठहराए हुए मोल के अनुसार, अर्थात् पवित्रास्थान के बीस गेरा के शेकेल के हिसाब से पांच शेकेल लेके उन्हें छोड़ना। 04O 18 17 पर गाय, वा भेड़ी, वा बकरी के पहिलौठे को न छोड़ना; वे तो पवित्रा हैं। उनके लोहू को वेदी पर छिड़क देना, और उनकी चरबी को हव्य करके जलाना, जिस से यहोवा के लिये सुखदायक सुगन्ध हो; 04O 18 18 परन्तु उनका मांस तेरा ठहरे, और हिलाई हुई छाती, और दहिनी जांघ भी तेरा ही ठहरे। 04O 18 19 पवित्रा वस्तुओं की जितनी भेंटें इस्त्राएली यहोवा को दें, उन सभों को मैं तुझे और तेरे बेटे- बेटियों को सदा का हक करके दे देता हूं: यह तो तेरे और तेरे वंश के लिये यहोवा की सदा के लिये नमक की अटल वाचा है। 04O 18 20 फिर यहोवा ने हारून से कहा, इस्त्राएलियों के देश में तेरा कोई भाग न होगा, और न उनके बीच तेरा कोई अंश होगा; उनके बीच तेरा भाग और तेरा अंश मैं ही हूं।। 04O 18 21 फिर मिलापवाले तम्बू की जो सेवा लेवी करते हैं उसके बदले मैं उनको इस्त्राएलियों का सब दशमांश उनका निज भाग कर देता हूं। 04O 18 22 और भविष्य में इस्त्राएली मिलापवाले तम्बू के समीप न आएं, ऐसा न हो कि उनके सिर पर पाप लगे, और वे मर जाएं। 04O 18 23 परन्तु लेवी मिलापवाले तम्बू की सेवा किया करें, और उनके अधर्म का भार वे ही उठाया करें; यह तुम्हारी पीढ़ीयों में सदा की विधि ठहरे; और इस्त्राएलियों के बीच उनका कोई निज भाग न होगा। 04O 18 24 क्योंकि इस्त्राएली जो दशमांश यहोवा को उठाई हुई भेंट करके देंगे, उसे मैं लेवियों को निज भाग करके देता हूं, इसीलिये मैं ने उनके विषय में कहा है, कि इस्त्राएलियों के बीच कोई भाग उनको न मिले। 04O 18 25 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 18 26 तू लेवियों से कह, कि जब जब तुम इस्त्राएलियों के हाथ से वह दशमांश लो जिसे यहोवा तुम को तुम्हारा निज भाग करके उन से दिलाता है, तब तब उस में से यहोवा के लिये एक उठाई हुई भेंट करके दशमांश का दशमांश देना। 04O 18 27 और तुम्हारी उठाई हुई भेंट तुम्हारे हित के लिये ऐसी गिनी जाएगी जैसा खलिहान में का अन्न, वा रसकुण्ड में का दाखरस गिना जाता है। 04O 18 28 इस रीति तुम भी अपने सब दशमांशों में से, जो इस्त्राएलियों की ओर से पाओगे, यहोवा को एक उठाई हुई भेंट देना; और यहोवा की यह उठाई हुई भेंट हारून याजक को दिया करना। 04O 18 29 जितने दान तुम पाओ उन में से हर एक का उत्तम से उत्तम भाग, जो पवित्रा ठहरा है, सो उसे यहोवा के लिये उठाई हुई भेंट करके पूरी पूरी देना। 04O 18 30 इसलिये तू लेवियों से कह, कि जब तुम उस में का उत्तम से उत्तम भाग उठाकर दो, तब यह तुम्हारे लिये खलिहान में के अन्न, और रसकुण्ड के रस के तुल्य गिना जाएगा; 04O 18 31 और उसको तुम अपने घरानों समेत सब स्थानों में खा सकते हो, क्योंकि मिलापवाले तम्बू की जो सेवा तुम करोगे उसका बदला यही ठहरा है। 04O 18 32 और जब तुम उसका उत्तम से उत्तम भाग उठाकर दो तब उसके कारण तुम को पाप न लगेगा। परन्तु इस्त्राएलियों की पवित्रा की हुई वस्तुओं को अपवित्रा न करना, ऐसा न हो कि तुम मर जाओ।। 04O 19 1 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 04O 19 2 व्यवस्था की जिस विधि की आज्ञा यहोवा देता है वह यह है; कि तू इस्त्राएलियों से कह, कि मेरे पास एक लाल निर्दोष बछिया ले आओ, जिस में कोई भी दोष न हो, और जिस पर जूआ कभी न रखा गया हो। 04O 19 3 तब एलीआजर याजक को दो, और वह उसे छावनी से बाहर ले जाए, और कोई उसको उसके सम्हने बलिदान करे; 04O 19 4 तब एलीआजर याजक अपनी उंगली से उसका कुछ लोहू लेकर मिलापवाले तम्बू के साम्हने की ओर सात बार छिड़क दे। 04O 19 5 तब कोई उस बछिया को खाल, मांस, लोहू, और गोबर समेत उसके साम्हने जलाए; 04O 19 6 और याजक देवदारू की लकड़ी, जूफा, और लाल रंग का कपड़ा लेकर उस आग में जिस में बछिया जलती हो डाल दे। 04O 19 7 तब वह अपने वस्त्रा धोए और स्नान करे, इसके बाद छावनी में तो आए, परन्तु सांझ तक अशुद्ध रहे। 04O 19 8 और जो मनुष्य उसको जलाए वह भी जल से अपने वस्त्रा धोए और स्नान करे, और सांझ तक अशुद्ध रहे। 04O 19 9 फिर कोई शुद्ध पुरूष उस बछिया की राख बटोरकर छावनी के बाहर किसी शुद्ध स्थान में रख छोड़े; और वह राख इस्त्राएलियों की मण्डली के लिये अशुद्धता से छुड़ानेवाले जल के लिये रखी रहे; वह तो पापबलि है। 04O 19 10 और जो मनुष्य बछिया की राख बटोरे वह अपने वस्त्रा धोए, और सांझ तक अशुद्ध रहे। और यह इस्त्राएलियों के लिये, और उनके बीच रहनेवाले परदेशियों के लिये भी सदा की विधि ठहरे। 04O 19 11 जो किसी मनुष्य की लोथ छूए वह सात दिन तक अशुद्ध रहे; 04O 19 12 ऐसा मनुष्य तीसरे दिन उस जल से पाप छुड़ाकर अपने को पावन करे, और सातवें दिन शुद्ध ठहरे; परन्तु यदि वह तीसरे दिन आप को पाप छुड़ाकर पावन न करे, तो सातवें दिन शुद्ध ठहरेगा। 04O 19 13 जो कोई किसी मनुष्य की लोथ छूकर पाप छुड़ाकर अपने को पावन न करे, वह यहोवा के निवासस्थान का अशुद्ध करनेवाला ठहरेगा, और वह प्राणी इस्त्राएल में से नाश किया जाए; अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल उस पर न छिड़का गया, इस कारण वह अशुद्ध ठहरेगा, उसकी अशुद्धता उस में बची रहेगी। 04O 19 14 यदि कोई मनुष्य डेरे में मर जाए तो व्यवस्था यह यह है, कि जितने उस डेरे में रहें, वा उस में जाएं, वे सब सात दिन तक अशुद्ध रहें। 04O 19 15 और हर एक खुला हुआ पात्रा, जिस पर कोई ढकना लगा न हो, वह अशुद्ध ठहरे। 04O 19 16 और जो कोई मैदान में तलवार से मारे हुए को, वा अपनी मृत्यु से मरे हुए को, वा मनुष्य की हड्डी को, वा किसी कब्र को छूए, तो सात दिन तक अशुद्ध रहे। 04O 19 17 अशुद्ध मनुष्य के लिये जलाए हुए पापबलि की राख में से कुछ लेकर पात्रा में डालकर उस पर सोते का जल डाला जाए; 04O 19 18 तब कोई शुद्ध मनुष्य जूफा लेकर उस जल में डुबाकर जल को उस डेरे पर, और जितने पात्रा और मनुष्य उस में हों, उन पर छिड़के, और हड्डी के, वा मारे हुए के, वा अपनी मृत्यु से मरे हुए के, वा कब्र के छूनेवाले पर छिड़क दे; 04O 19 19 वह शुद्ध पुरूष तीसरे दिन और सातवें दिन उस अशुद्ध मनुष्य पर छिड़के; और सातवें दिन वह उसके पाप छुड़ाकर उसको पावन करे, तब वह अपने वस्त्रों को धोकर और जल से स्नान करके सांझ को शुद्ध ठहरे। 04O 19 20 और जो कोई अशुद्ध होकर अपने पाप छुड़ाकर अपने को पावन न कराए, वह प्राणी यहोवा के पवित्रा स्थान का अशुद्ध करनेवाला ठहरेगा, इस कारण वह मण्डली के बीच में से नाश किया जाए; अशुद्धता से छुडानेवाला जल उस पर न छिड़का गया, इस कारण से वह अशुद्ध ठहरेगा। 04O 19 21 और यह उनके लिये सदा की विधि ठहरे। जो अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल छिड़के वह अपने वस्त्रों को धोए; और जिस जन से अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल छू जाए वह भी सांझ तक अशुद्ध रहे। 04O 19 22 और जो कुछ वह अशुद्ध मनुष्य छूए वह भी अशुद्ध ठहरे; और जो प्राणी उस वस्तु को छूए वह भी सांझ तक अशुद्ध रहे।। 04O 20 1 पहिले महीने में सारी इस्त्राएली मण्डली के लोग सीनै नाम जंगल में आ गए, और कादेश में रहने लगे; और वहां मरियम मर गई, और वहीं उसको मिट्टी दी गई। 04O 20 2 वहां मण्डली के लोगों के लिये पानी न मिला; सो वे मूसा और हारून के विरूद्ध इकट्ठे हुए। 04O 20 3 और लोग यह कहकर मूसा से झगड़ने लगे, कि भला होता कि हम उस समय ही मर गए होते जब हमारे भाई यहोवा के साम्हने मर गए! 04O 20 4 और तुम यहोवा की मण्डली को इस जंगल में क्यों ले आए हो, कि हम अपने पशुओं समेत यहां मर जाए? 04O 20 5 और तुम ने हम को मि से क्यों निकालकर इस बुरे स्थान में पहुंचाया है? यहां तो बीच, वा अंजीर, वा दाखलता, वा अनार, कुछ नहीं है, यहां तक कि पीने को कुछ पानी भी नहीं है। 04O 20 6 तब मूसा और हारून मण्डली के साम्हने से मिलापवाले तम्बू के द्वार पर जाकर अपने मुंह के बल गिरे। और यहोवा का तेज उनको दिखाई दिया। 04O 20 7 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 20 8 उस लाठी को ले, और तू अपने भाई हारून समेत मण्डली को इकट्ठा करके उनके देखते उस चट्टान से बातें कर, तब वह अपना जल देगी; इस प्रकार से तू चट्टान में से उनके लिये जल निकाल कर मण्डली के लोगों और उनके पशुओं को पिला। 04O 20 9 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने उसके साम्हने से लाठी को ले लिया। 04O 20 10 और मूसा और हारून ने मण्डली को उस चट्टान के साम्हने इकट्ठा किया, तब मूसा ने उस से कह, हे दंगा करनेवालो, सुनो; क्या हम को इस चट्टान में से तुम्हारे लिये जल निकालना होगा? 04O 20 11 तब मूसा ने हाथ उठाकर लाठी चट्टान पर दो बार मारी; और उस में से बहुत पानी फूट निकला, और मण्डली के लोग अपने पशुओं समेत पीने लगे। 04O 20 12 परन्तु मूसा और हारून से यहोवा ने कहा, तुम ने जो मुझ पर विश्वास नहीं किया, और मुझे इस्त्राएलियों की दृष्टि में पवित्रा नहीं ठहराया, इसलिये तुम इस मण्डली को उस देश में पहुंचाने न पाओगे जिसे मैं ने उन्हें दिया है। 04O 20 13 उस सोते का नाम मरीबा पड़ा, क्योंकि इस्त्राएलियों ने यहोवा से झगड़ा किया था, और वह उनके बीच पवित्रा ठहराया गया।। 04O 20 14 फिर मूसा ने कादेश से एदोम के राजा के पास दूत भेजे, कि तेरा भाई इस्त्राएल यों कहता है, कि हम पर जो जो क्लेश पड़े हैं वह तू जानता होगा; 04O 20 15 अर्थात् यह कि हमारे पुरखा मि में गए थे, और हम मि में बहुत दिन रहे; और मिस्त्रियों ने हमारे पुरखाओं के साथ और हमारे साथ भी बुरा बर्ताव किया; 04O 20 16 परन्तु जब हम ने यहोवा की दोहाई दी तब उस ने हमारी सुनी, और एक दूत को भेजकर हमें मि से निकाल ले आया है; सो अब हम कादेश नगर में हैं जो तेरे सिवाने ही पर है। 04O 20 17 सो हमें अपने देश में से होकर जाने दे। हम किसी खेत वा दाख की बारी से होकर न चलेंगे, और कूओं का पानी न पीएंगे; सड़क- सड़क होकर चले जाएंगे, और जब तक तेरे देश से बाहर न हो जाएं, तब तक न दहिने न बाएं मुड़ेंगे। 04O 20 18 परन्तु एदोमियों ने उसके पास कहला भेजा, कि तू मेरे देश में से होकर मत जा, नहीं तो मैं तलवार लिये हुए तेरा साम्हना करने को निकलूंगा। 04O 20 19 इस्त्राएलियों ने उसके पास फिर कहला भेजा, कि हम सड़क ही सड़क चलेंगे, और यदि हम और हमारे पशु तेरा पानी पीएं, तो उसका दाम देंगे, हम को और कुछ नहीं, केवल पांव पांव चलकर निकल जाने दे। 04O 20 20 परन्तु उस ने कहा, तू आने न पाएगा। और एदोम बड़ी सेना लेकर भुजबल से उसका साम्हना करने को निकल आया। 04O 20 21 इस प्रकार एदोम ने इस्त्राएल को अपने देश के भीतर से होकर जाने देने से इन्कार किया; इसलिये इस्त्राएल उसकी ओर से मुड़ गए।। 04O 20 22 तब इस्त्राएलियों की सारी मण्डली कादेश से कूच करके होर नाम पहाड़ के पास आ गई। 04O 20 23 और एदोम देश के सिवाने पर होर पहाड़ में यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 04O 20 24 हारून अपने लोगों मे जा मिलेगा; क्योंकि तुम दोनो ने जो मरीबा नाम सोते पर मेरा कहना छोड़कर मुझ से बलवा किया है, इस कारण वह उस देश में जाने न पाएगा जिसे मैं ने इस्त्राएलियों को दिया है। 04O 20 25 सो तू हारून और उसके पुत्रा एलीआजर को होर पहाड़ पर ले चल; 04O 20 26 और हारून के वस्त्रा उतारके उसके पुत्रा एलीआजर को पहिना; तब हारून वहीं मरकर अपने लोगों मे जा मिलेगा। 04O 20 27 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने किया; वे सारी मण्डली के देखते होर पहाड़ पर चढ़ गए। 04O 20 28 तब मूसा ने हारून के वस्त्रा उतारके उसके पुत्रा एलीआजर को पहिनाए और हारून वहीं पहाड़ की चोटी पर मर गया। तब मूसा और एलीआजर पहाड़ पर से उतर आए। 04O 20 29 और जब इस्त्राएल की सारी मण्डली ने देखा कि हारून का प्राण छूट गया है, तब इस्त्राएल के सब घराने के लोग उसके लिये तीस दिन तक रोते रहे।। 04O 21 1 तब अराद का कनानी राजा, जो दक्खिन देश में रहता था, यह सुनकर, कि जिस मार्ग से वे भेदिये आए थे उसी मार्ग से अब इस्त्राएली आ रहे हैं, इस्त्राएल से लड़ा, और उन में से कितनों को बन्धुआ कर लिया। 04O 21 2 तब इस्त्राएलियों ने यहोवा से यह कहकर मन्नत मानी, कि यदि तू सचमुच उन लोगों को हमारे वश में कर दे, तो हम उनके नगरों को सत्यनाश कर देंगे। 04O 21 3 इस्त्राएल की यह बात सुनकर यहोवा ने कनानियों को उनके वश में कर दिया; सो उन्हों ने उनके नगरों समेत उनको भी सत्यानाश किया; इस से उस स्थान का नाम होर्मा रखा गया।। 04O 21 4 फिर उन्हों ने होर पहाड़ से कूच करके लाल समुद्र का मार्ग लिया, कि एदोम देश से बाहर बाहर घूमकर जाएं; और लोगों का मन मार्ग के कारण बहुत व्याकुल हो गया। 04O 21 5 सो वे परमेश्वर के विरूद्ध बात करने लगे, और मूसा से कहा, तुम लोग हम को मि से जंगल में मरने के लिये क्यों ले आए हो? यहां न तो रोटी है, और न पानी, और हमारे प्राण इस निकम्मी रोटी से दुखित हैं। 04O 21 6 सो यहोवा ने उन लोगों में तेज विषवाले सांप भेजे, जो उनको डसने लगे, और बहुत से इस्त्राएली मर गए। 04O 21 7 तब लोग मूसा के पास जाकर कहने लगे, हम ने पाप किया है, कि हम ने यहोवा के और तेरे विरूद्ध बातें की हैं; यहोवा से प्रार्थना कर, कि वह सांपों को हम से दूर करे। तब मूसा ने उनके लिये प्रार्थना की। 04O 21 8 यहोवा ने मूसा से कहा एक तेज विषवाले सांप की प्रतिमा बनवाकर खम्भे पर लटका; तब जो सांप से डसा हुआ उसको देख ले वह जीवित बचेगा। 04O 21 9 सो मूसा ने पीतल को एक सांप बनवाकर खम्भे पर लटकाया; तब सांप के डसे हुओं में से जिस जिस ने उस पीतल के सांप को देखा वह जीवित बच गया। 04O 21 10 फिर इस्त्राएलियों ने कूच करके ओबोत में डेरे डाले। 04O 21 11 और ओबोत से कूच करके अबारीम नाम डीहों में डेरे डाले, जो पूरब की ओर मोआब के साम्हने के जंगल में है। 04O 21 12 वंहा से कूच करके उन्हों ने जेरेद नाम नाले में डेरे डाले। 04O 21 13 वहां से कूच करके उन्हों ने अर्नोन नदी, जो जंगल में बहती और एमोरियों के देश से निकलती है, उसकी परली ओर डेरे खड़े किए; क्योंकि अर्नोन मोआबियों और एमोरियों के बीच होकर मोआब देश का सिवाना ठहरा है। 04O 21 14 इस कारण यहोवा के संग्राम नाम पुस्तक में इस प्रकार लिखा है, कि सूपा में बाहेब, और अर्नोन के नाले, 04O 21 15 और उन नालों की ढलान जो आर नाम नगर की ओर है, और जो मोआब के सिवाने पर है। 04O 21 16 फिर वहां से कूच करके वे बैर तक गए; वहां वही कूआं है जिसके विषय में यहोवा ने मूसा से कहा था, कि उन लोगों को इकट्ठा कर, और मैं उन्हे पानी दूंगा।। 04O 21 17 उस समय इस्त्राएल ने यह गीत गया, कि हे कूएं, उबल आ, उस कूएं के विषय में गाओ! 04O 21 18 जिसको हाकिमों ने खोदा, और इस्त्राएल के रईसों ने अपने सोंटों और लाठियों से खोद लिया।। 04O 21 19 फिर वे जंगल से मत्ताना को, और मत्ताना से नहलीएल को, और नहलीएल से बामोत को, 04O 21 20 और बामोत से कूच करके उस तराई तक जो मोआब के मैदान में है, और पिसगा के उस सिरे तक भी जो यशीमोन की ओर झुका है पहुंच गए।। 04O 21 21 तब इस्त्राएल ने एमोरियों के राजा सीहोन के पास दूतों से यह कहला भेजा, 04O 21 22 कि हमें अपने देश में होकर जाने दे; हम मुड़कर किसी खेत वा दाख की बारी में तो न जाएंगे; न किसी कूएं का पानी पीएंगे; और जब तक तेरे देश से बाहर न हो जाएं तब तक सड़क ही से चले जाएंगे। 04O 21 23 तौभी सीहोन ने इस्त्राएल को अपने देश से होकर जाने न दिया; वरन अपनी सारी सेना को इकट्ठा करके इस्त्राएल का साम्हना करने को जंगल में निकल आया, और यहस को आकर उन से लड़ा। 04O 21 24 तब इस्त्राएलियों ने उस को तलवार से मार लिया, और अर्नोन से यब्बोक नदी तक, जो अम्मोनियों का सिवाना था, उसके देश के अधिकारी हो गए; अम्मोनियों का सिवाना तो दृढ़ था। 04O 21 25 सो इस्त्राएल ने एमोरियों के सब नगरों को ले लिया, और उन में, अर्थात् हेशबोन और उसके आस पास के नगरों में रहने लगे। 04O 21 26 हेशबोन एमोरियों के राजा सीहोन का नगर था; उस ने मोआब के अगले राजा से लड़के उसका सारा देश अर्नोन तक उसके हाथ से छीन लिया था। 04O 21 27 इस कारण गूढ़ बात के कहनेवाले कहते हैं, कि हेशबोन में आओ, सीहोन का नगर बसे, और दृढ़ किया जाए। 04O 21 28 क्योंकि हेशबोन से आग, अर्थात् सीहोन के नगर से लौ निकली; जिस से मोआब देश का आर नगर, और अर्नोन के ऊंचे स्थानों के स्वामी भस्म हुए। 04O 21 29 हे मोआब, तुझ पर हाय! कमोश देवता की प्रजा नाश हुई, उस ने अपने बेटों को भगेडू, और अपनी बेटियों को एमोरी राजा सीहोन की दासी कर दिया। 04O 21 30 हम ने उन्हें गिरा दिया है, हेशबोन दीबोन तक नष्ट हो गया है, और हम ने नोपह और मेदबा तक भी उजाड़ दिया है।। 04O 21 31 सो इस्त्राएल एमोरियों के देश में रहने लगा। 04O 21 32 तब मूसा ने याजेर नगर का भेद लेने को भेजा; और उन्हों ने उसके गांवों को लिया, और वहां के एमोरियों को उस देश से निकाल दिया। 04O 21 33 तब वे मुड़के बाशान के मार्ग से जाने लगे; और बाशान के राजा ओग न उनका साम्हना किया, अर्थात् लड़ने को अपनी सारी सेना समेत एद्रेई में निकल आया। 04O 21 34 तब यहोवा ने मूसा से कहा, उस से मत डर; क्योंकि मैं उसको सारी सेना और देश समेत तेरे हाथ में कर देता हूं; और जैसा तू ने एमोरियों के राजा हेशबोनवासी सीहोन के साथ किया है, वैसा ही उसके साथ भी करना। 04O 21 35 तब उन्हों ने उसको, और उसके पुत्रों और सारी प्रजा को यहां तक मारा कि उसका कोई भी न बचा; और वे उसके देश के अधिकारी को गए। 04O 22 1 तब इस्त्राएलियों ने कूच करके यरीहो के पास यरदन नदी के इस पार मोआब के अराबा में डेरे खड़े किए।। 04O 22 2 और सिप्पोर के पुत्रा बालाक ने देखा कि इस्त्राएल ने एमोरियों से क्या क्या किया है। 04O 22 3 इसलिये मोआब यह जानकर, कि इस्त्राएली बहुत हैं, उन लोगों से अत्यन्त डर गया; यहां तक कि मोआब इस्त्राएलियों के कारण अत्यन्त व्याकुल हुआ। 04O 22 4 तब मोआबियों ने मिद्यानी पुरनियों से कहा, अब वह दल हमारे चारों ओर के सब लोगों को चट कर जाएगा, जिस तरह बैल खेत की हरी घास को चट कर जाता है। उस समय सिप्पोर का पुत्रा बालाक मोआब का राजा था; 04O 22 5 और इस ने पतोर नगर को, जो महानद के तट पर बोर के पुत्रा बिलाम के जातिभाइयों की भूमि थी, वहां बिलाम के पास दूत भेजे, कि वे यह कहकर उसे बुला लाएं, कि सुन एक दल मि से निकल आया है, और भूमि उन से ढक गई है, और अब वे मेरे साम्हने ही आकर बस गए हैं। 04O 22 6 इसलिये आ, और उन लोगों को मेरे निमित्त शाप दे, क्योंकि वे मुझ से अधिक बलवन्त हैं, तब सम्भव है कि हम उन पर जयवन्त हों, और हम सब इनको अपने देश से मारकर निकाल दें; क्योंकि यह तो मैं जानता हूं कि जिसको तू आशीर्वाद देता है वह धन्य होता है, और जिसको तू शाप देता है वह स्रापित होता है। 04O 22 7 तब मोआबी और मिद्यानी पुरनिये भावी कहने की दक्षिणा लेकर चले, और बिलाम के पास पहुंचकर बालाक की बातें कह सुनाईं। 04O 22 8 उस ने उन से कहा, आज रात को यहां टिको, और जो बात यहोवा मुझ से कहेगा, उसी के अनुसार मैं तुम को उत्तर दूंगा; तब मोआब के हाकिम बिलाम के यहां ठहर गए। 04O 22 9 तब परमेश्वर ने बिलाम के पास आकर पूछा, कि तेरे यहां ये पुरूष कौन हैं? 04O 22 10 बिलाम ने परमेश्वर से कहा सिप्पोर के पुत्रा मोआब के राजा बालाक ने मेरे पास यह कहला भेजा है, 04O 22 11 कि सुन, जो दल मि से निकल आया है उस से भूमि ढंप गई है; इसलिये आकर मेरे लिये उन्हें शाप दे; सम्भव है कि मैं उनसे लड़कर उनको बरबस निकाल सकूंगा। 04O 22 12 परमेश्वर ने बिलाम से कहा, तू इनके संग मत जा; उन लोगों को शाप मत दे, क्योंकि वे आशीष के भागी हो चुके हैं। 04O 22 13 भोर को बिलाम ने उठकर बालाक के हाकिमों से कहा, तुम अपने देश को चले जाओ; क्योंकि यहोवा मुझे तुम्हारे साथ जाने की आज्ञा नहीं देता। 04O 22 14 तब मोआबी हाकिम चले गए और बालाक के पास जाकर कहा, कि बिलाम ने हमारे साथ आने से नाह किया है। 04O 22 15 इस पर बालाक ने फिर और हाकिम भेजे, जो पहिलों से प्रतिष्ठित और गिनती में भी अधिक थे। 04O 22 16 उन्हों ने बिलाम के पास आकर कहा, कि सिप्पोर का पुत्रा बालाक यों कहता है, कि मेरे पास आने से किसी कारण नाह न कर; 04O 22 17 क्योंकि मैं निश्चय तेरी बड़ी प्रतिष्ठा करूंगा, और जो कुछ तू मुझ से कहे वही मैं करूंगा; इसलिये आ, और उन लोगों को मेरे निमित्त शाप दे। 04O 22 18 बिलाम ने बालाक के कर्मचारियों को उत्तर दिया, कि चाहे बालाक अपने घर को सोने चांदी से भरकर मुझे दे दे, तौभी मैं अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा को पलट नहीं सकता, कि उसे घटाकर वा बढ़ाकर मानूं। 04O 22 19 इसलिये अब तुम लोग आज रात को यहीं टिके रहो, ताकि मैं जान लूं, कि यहोवा मुझ से और क्या कहता है। 04O 22 20 और परमेश्वर ने रात को बिलाम के पास आकर कहा, यदि वे पुरूष तुझे बुलाने आए हैं, तो तू उठकर उनके संग जा; परन्तु जो बात मैं तुझ से कहूं उसी के अनुसार करना। 04O 22 21 तब बिलाम भोर को उठा, और अपनी गदही पर काठी बान्धकर मोआबी हाकिमों के संग चल पड़ा। 04O 22 22 और उसके जाने के कारण परमेश्वर का कोप भड़क उठा, और यहोवा का दूत उसका विरोध करने के लिये मार्ग रोककर खड़ा हो गया। वह तो अपनी गदही पर सवार होकर जा रहा था, और उसके संग उसके दो सेवक भी थे। 04O 22 23 और उस गदही को यहोवा का दूत हाथ में नंगी तलवार लिये हुए मार्ग में खड़ा दिखाई पड़ा; तब गदही मार्ग छोड़कर खेत में चली गई; तब बिलाम ने गदही को मारा, कि वह मार्ग पर फिर आ जाए। 04O 22 24 तब यहोवा का दूत दाख की बारियों के बीच की गली में, जिसके दोनों ओर बारी की दीवार थी, खड़ा हुआ। 04O 22 25 यहोवा के दूत को देखकर गदही दीवार से ऐसी सट गई, कि बिलाम का पांव दीवार से दब गया; तब उस ने उसको फिर मारा। 04O 22 26 तब यहोवा का दूत आगे बढ़कर एक सकेत स्थान पर खड़ा हुआ, जहां न तो दहिनी ओर हटने की जगह थी और न बाईं ओर। 04O 22 27 वहां यहोवा के दूत को देखकर गदही बिलाम को लिये दिये बैठ गई; फिर तो बिलाम का कोप भड़क उठा, और उस ने गदही को लाठी से मारा। 04O 22 28 तब यहोवा ने गदही का मुंह खोल दिया, और वह बिलाम से कहने लगी, मैं ने तेरा क्या किया है, कि तू ने मुझे तीन बार मारा? 04O 22 29 बिलाम ने गदही से कहा, यह कि तू ने मुझ से नटखटी की। यदि मेरे हाथ में तलवार होती तो मैं तुझे अभी मार डालता। 04O 22 30 गदही ने बिलाम से कहा क्या मैं तेरी वही गदही नहीं जिस पर तू जन्म से आज तक चढ़ता आया है? क्या मैं तुझ से कभी ऐसा करती थी? वह बोला, नहीं। 04O 22 31 तब यहोवा ने बिलाम की आंखे खोलीं, और उसको यहोवा का दूत हाथ में नंगी तलवार लिये हुए मार्ग में खड़ा दिखाई पड़ा; तब वह झुक गया, और मुंह के बल गिरके दण्डवत की। 04O 22 32 यहोवा के दूत ने उस से कहा, तू ने अपनी गदही को तीन बार क्यों मारा? सुन, तेरा विरोध करने को मैं ही आया हूं, इसलिये कि तू मेरे साम्हने उलटी चाल चलता है; 04O 22 33 और यह गदही मुझे देखकर मेरे साम्हने से तीन बार हट गई। जो वह मेरे साम्हने से हट न जाती, तो नि:सन्देह मैं अब तक तुझ को मार ही डालता, परन्तु उसको जीवित छोड़ देता। 04O 22 34 तब बिलाम ने यहोवा के दूत से कहा, मैं ने पाप किया है; मैं नहीं जानता था कि तू मेरा साम्हना करने को मार्ग में खड़ा है। इसलिये अब यदि तुझे बुरा लगता है, तो मैं लौट जाता हूं। 04O 22 35 यहोवा के दूत ने बिलाम से कहा, इन पुरूषों के संग तू चला जा; परन्तु केवल वही बात कहना जो मैं तुझ से कहूंगा। तब बिलाम बालाक के हाकिमों के संग चला गया। 04O 22 36 यह सुनकर, कि बिलाम आ रहा है, बालाक उस से भेंट करने के लिये मोआब के उस नगर तक जो उस देश के अर्नोनवाले सिवाने पर है गया। 04O 22 37 बालाक ने बिलाम से कहा, क्या मैं ने बड़ी आशा से तुझे नहीं बुलवा भेजा था? फिर तू मेरे पास क्यों नहीं चला आया? क्या मैं इस योग्य नहीं कि सचमुच तेरी उचित प्रतिष्ठा कर सकता? 04O 22 38 बिलाम ने बालाक से कहा, देख मैं तेरे पास आया तो हूं! परन्तु अब क्या मैं कुछ कर सकता हूं? जो बात परमेश्वर मेरे मुंह में डालेगा वही बात मैं कहूंगा। 04O 22 39 तब बिलाम बालाक के संग संग चला, और वे किर्यथूसोत तक आए। 04O 22 40 और बालाक ने बैल और भेड़- बकरियों को बलि किया, और बिलाम और उसके साथ के हाकिमों के पास भेजा। 04O 22 41 बिहान को बालाक बिलाम को बालू के ऊंचे स्थानों पर चढ़ा ले गया, और वहां से उसको सब इस्त्राएली लोग दिखाई पड़े।। 04O 23 1 तब बिलाम ने बालाक से कहा, यहां पर मेरे लिये सात वेदियां बनवा, और इसी स्थान पर सात बछड़े और सात मेढ़े तैयार कर। 04O 23 2 तब बालाक ने बिलाम के कहने के अनुसार किया; और बालाक और बिलाम ने मिलकर प्रत्येक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया। 04O 23 3 फिर बिलाम ने बालाक से कहा, तू अपने होमबलि के पास खड़ा रह, और मैं जाता हूं; सम्भव है कि यहोवा मुझ से भेंट करने को आए; और जो कुछ वह मुझ पर प्रकाश करेगा वही मैं तुझ को बताऊंगा। तब वह एक मुण्डे पहाड़ पर गया। 04O 23 4 और परमेश्वर बिलाम से मिला; और बिलाम ने उस से कहा, मैं ने सात वेदियां तैयार की हैं, और प्रत्येक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया है। 04O 23 5 यहोवा ने बिलाम के मुंह में एक बाल डालीं, और कहा, बालाक के पास लौट जो, और यों कहना। 04O 23 6 और वह उसके पास लौटकर आ गया, और क्या देखता है, कि वह सारे मोआबी हाकिमों समेत अपने होमबलि के पास खड़ा है। 04O 23 7 तब बिलाम ने अपनी गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, बालाक ने मुझे आराम से, अर्थात् मोआब के राजा ने मुझे पूरब के पहाड़ों से बुलवा भेजा: आ, मेरे लिये याकूब को शाप दे, आ, इस्त्राएल को धमकी दे! 04O 23 8 परन्तु जिन्हें ईश्वर ने नहीं शाप दिया उन्हें मैं क्यों शाप दूं? और जिन्हें यहोवा ने धमकी नहीं दी उन्हें मैं कैसे धमकी दूं? 04O 23 9 चट्टानों की चोटी पर से वे मुझे दिखाई पड़ते हैं, पहाड़ियों पर से मैं उनको देखता हूं; वह ऐसी जाति है जो अकेली बसी रहेगी, और अन्यजातियों से अलग गिनी जाएगी! 04O 23 10 याकूब के धूलि के किनके को कौन गिन सकता है, वा इस्त्राएल की चौथाई की गिनती कौन ले सकता है? सौभाग्य यदि मेरी मृत्यु धर्मियों की सी, और मेरा अन्त भी उन्हीं के समान हो! 04O 23 11 तब बालाक ने बिलाम से कहा, तू ने मुझ से क्या किया है? 04O 23 12 उस ने कहा, जो बात यहोवा ने मुझे सिखलाई क्या मुझे उसी को सावधानी से बोलना न चाहिये? 04O 23 13 बालाक ने उस से कहा, मेरे संग दूसरे स्थान पर चल, जहां से वे तुझे दिखाई देंगे; तू उन सभों को तो नहीं, केवल बाहरवालों को देख सकेगा; वहां से उन्हें मेरे लिये शाप दे। 04O 23 14 तब वह उसको सोपीम नाम मैदान में पिसगा के सिरे पर ले गया, और वहां सात वेदियां बनवाकर प्रत्येक पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया। 04O 23 15 तब बिलाम ने बालाक से कहा, अपने होमबलि के पास यहीं खड़ा रह, और मैं उधर जाकर यहोवा से भेंट करूं। 04O 23 16 और यहोवा ने बिलाम से भेंट की, और उस ने उसके मुंह में एक बात डाली, और कहा, कि बालाक के पास लौट जा, और यों कहना। 04O 23 17 और वह उसके पास गया, और क्या देखता है, कि वह मोआबी हाकिमों समेत अपने होमबलि के पास खड़ा है। और बालाक ने पूछा, कि यहोवा ने क्या कहा है? 04O 23 18 तब बिलाम ने अपनी गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, हे बालाक, मन लगाकर सुन, हे सिप्पोर के पुत्रा, मेरी बात पर कान लगा: 04O 23 19 ईश्वर मनुष्य नहीं, कि झूठ बोले, और न वह आदमी है, कि अपनी इच्छा बदले। क्या जो कुछ उस ने कहा उसे न करे? क्या वह वचन देकर उस पूरा न करे? 04O 23 20 देख, आशीर्वाद ही देने की आज्ञा मैं ने पाई है: वह आशीष दे चुका है, और मैं उसे नहीं पलट सकता। 04O 23 21 उस ने याकूब में अनर्थ नहीं पाया; और न इस्त्राएल में अन्याय देखा है। उसका परमेश्वर यहोवा उसके संग है, और उन में राजा की सी ललकार होती है। 04O 23 22 उनको मि में से ईश्वर ही निकाले लिये आ रहा है, वह तो बैनेले सांड के समान बल रखता है। 04O 23 23 निश्चय कोई मंत्रा याकूब पर नहीं चल सकता, और इस्त्राएल पर भावी कहना कोई अर्थ नहीं रखता; परन्तु याकूब और इस्त्राएल के विषय अब यह कहा जाएगा, कि ईश्वर ने क्या ही विचित्रा काम किया है! 04O 23 24 सुन, वह दल सिंहनी की नाई उठेगा, और सिंह की नाई खड़ा होगा; वह जब तक अहेर को न खा ले, और मरे हुओं के लोहू को न पी ले, तब तक न लेटेगा।। 04O 23 25 तब बालाक ने बिलाम से कहा, उनको न तो शाप देना, और न आशीष देना। 04O 23 26 बिलाम ने बालाक से कहा, क्या मैं ने तुझ से नहीं कहा, कि जो कुछ यहोवा मुझ से कहेगा, वही मुझे करना पड़ेगा? 04O 23 27 बालाक ने बिलाम से कहा चल, मैं तुझ को एक और स्थान पर ले चलता हूं; सम्भव है कि परमेश्वर की इच्छा हो कि तू वहां से उन्हें मेरे लिये शाप दे। 04O 23 28 तब बालाक बिलाम को पोर के सिरे पर, जहां से यशीमोन देश दिखाई देता है, ले गया। 04O 23 29 और बिलाम ने बालाक से कहा, यहां पर मेरे लिये सात वेदियां बनवा, और यहां सात बछड़े और सात मेढ़े तैयार कर। 04O 23 30 बिलाम के कहने के अनुसार बालाक ने प्रत्येक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया।। 04O 24 1 यह देखकर, कि यहोवा इस्त्राएल को आशीष ही दिलाना चाहता है, बिलाम पहिले की नाई शकुन देखने को न गया, परन्तु अपना मुंह जंगल की ओर कर लिया। 04O 24 2 और बिलाम ने आंखे उठाई, और इस्त्राएलियों को अपने गोत्रा गोत्रा के अनुसार बसे हुए देखा। और परमेश्वर का आत्मा उस पर उतरा। 04O 24 3 तब उसने अपनी गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, कि बोर के पुत्रा बिलाम की यह वाणी है, जिस पुरूष की आंखें बन्द थीं उसी की यह वाणी है, 04O 24 4 ईश्वर के वचनों का सुननेवाला, जो दण्डवत में पड़ा हुआ खुली हुई आंखों से सर्वशक्तिमान का दर्शन पाता है, उसी की यह वाणी है: कि 04O 24 5 हे याकूब, तेरे डेरे, और हे इस्त्राएल, तेरे निवासस्थान क्या ही मनभावने हैं! 04O 24 6 वे तो नालों वा घाटियों की नाई, और नदी के तट की वाटिकाओं के समान ऐसे फैले हुए हैं, जैसे कि यहोवा के लगाए हुए अगर के वृक्ष, और जल के निकट के देवदारू। 04O 24 7 और उसके डोलों से जल उमण्डा करेगा, और उसका बीच बहुतेरे जलभरे खेतों में पडेग़ा, और उसका राजा अगाग से भी महान होगा, और उसका राज्य बढ़ता ही जाएगा। 04O 24 8 उसको मि में से ईश्वर की निकाले लिये आ रहा है; वह तो बनैले सांड़ के सामान बल रखता है, जाति जाति के लोग जो उसके द्रोही है उनको वह खा जायेगा, और उनकी हडि्डयों को टुकडे टुकडे करेगा, और अपने तीरों से उनको बेधेगा। 04O 24 9 वह दबका बैठा है, वह सिंह वा सिंहनी की नाई लेट गया है; अब उसको कौन छेड़े? जो कोई तुझे आशीर्वाद दे सो आशीष पाए, और जो कोई तुझे शाप दे वह स्रापित हो।। 04O 24 10 तब बालाक का कोप बिलाम पर भड़क उठा; और उस ने हाथ पर हाथ पटककर बिलाम से कहा, मैं ने तुझे अपने शत्रुओं के शाप देने के लिये बुलवाया, परन्तु तू ने तीन बार उन्हें आशीर्वाद ही आशीर्वाद दिया है। 04O 24 11 इसलिये अब तू अपने स्थान पर भाग जा; मैं ने तो सोचा था कि तेरी बड़ी प्रतिष्ठा करूंगा, परन्तु अब यहोवा ने तुझे प्रतिष्ठा पाने से रोक रखा है। 04O 24 12 बिलाम ने बालाक से कहा, जो दूत तू ने मेरे पास भेजे थे, क्या मैं ने उन से भी न कहा था, 04O 24 13 कि चाहे बालाक अपने घर को सोने चांदी से भरकर मुझे दे, तौभी मैं यहोवा की आज्ञा तोड़कर अपने मन से न तो भला कर सकता हूं और न बुरा; जो कुछ यहोवा कहेगा वही मैं कहूंगा? 04O 24 14 अब सुन, मैं अपने लोगों के पास लौट कर जाता हूं; परन्तु पहिले मैं तुझे चिता देता हूं कि अन्त के दिनों में वे लोग तेरी प्रजा से क्या क्या करेंगे। 04O 24 15 फिर वह अपनी गूढ़ बात आरम्भ करके कहने लगा, कि बोर के पुत्रा बिलाम की यह वाणी है, जिस पुरूष की आंखे बन्द थी उसी की यह वाणी है, 04O 24 16 ईश्वर के वचनों का सुननेवाला, और परमप्रधान के ज्ञान का जाननेवाला, जो दण्डवत् में पड़ा हुआ खुली हुई आंखों से सर्वशक्तिमान का दर्शन पाता है, उसी की यह वाणी है: कि 04O 24 17 मै उसको देखूंगा तो सही, परन्तु अभी नहीं; मैं उसको निहारूंगा तो सही, परन्तु समीप होके नहीं: याकूब में से एक तारा उदय होगा, और इस्त्राएल में से एक राज दण्ड उठेगा; जो मोआब की अलंगों को चूर कर देगा, जो सब दंगा करनेवालों को गिरा देगा। 04O 24 18 तब एदोम और सेईर भी, जो उसके शत्रु हैं, दोनों उसके वश में पड़ेंगे, और इस्त्राएल वीरता दिखाता जाएगा। 04O 24 19 और याकूब ही में से एक अधिपति आवेगा जो प्रभुता करेगा, और नगर में से बचे हुओं को भी सत्यानाश करेगा।। 04O 24 20 फिर उस ने अमालेक पर दृष्टि करके अपनी गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, अमालेक अन्यजातियों में श्रेष्ठ तो था, परन्तु उसका अन्त विनाश ही है।। 04O 24 21 फिर उस ने केनियों पर दृष्टि करके अपनी गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, तेरा निवासस्थान अति दृढ़ तो है, और तेरा बसेरा चट्टान पर तो है; 04O 24 22 तौभी केन उजड़ जाएगा। और अन्त में अश्शूर् तुझे बन्धुआई में ले आएगा।। 04O 24 23 फिर उस ने अपनी गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, हाय जब ईश्वर यह करेगा तब कौन जीवित बचेगा? 04O 24 24 तौभी कित्तियों के पास से जहाजवाले आकर अश्शूर् को और एबेर को भी दु:ख देंगे; और अन्त में उसका भी विनाश हो जाएगा।। 04O 24 25 तब बिलाम चल दिया, और अपने स्थान पर लौट गया; और बालाक ने भी अपना मार्ग लिया।। 04O 25 1 इस्त्राएली शित्तीम में रहते थे, और लोग मोआबी लड़कियों के संग कुकर्म करने लगे। 04O 25 2 और जब उन स्त्रीयों ने उन लोगों को अपने देवताओं के यज्ञों में नेवता दिया, तब वे लोग खाकर उनके देवताओं को दण्डवत् करने लगे। 04O 25 3 यों इस्त्राएली बालपोर देवता को पूजने लगे। तब यहोवा का कोप इस्त्राएल पर भड़क उठा; 04O 25 4 और यहोवा ने मूसा से कहा, प्रजा के सब प्रधानों को पकड़कर यहोवा के लिये धूप में लटका दे, जिस से मेरा भड़का हुआ कोप इस्त्राएल के ऊपर से दूर हो जाए। 04O 25 5 तब मूसा ने इस्त्राएली न्यायियों से कहा, तुम्हारे जो जो आदमी बालपोर के संग मिल गए हैं उन्हें घात करो।। 04O 25 6 और जब इस्त्राएलियों की सारी मण्डली मिलापवाले तम्बू के द्वार पर रो रही थी, तो एक इस्त्राएली पुरूष मूसा और सब लोगों की आंखों के सामने एक मिद्यानी स्त्री को अपने साथ अपने भाइयों के पास ले आया। 04O 25 7 इसे देखकर एलीआजर का पुत्रा पीनहास, जो हारून याजक का पोता था, उस ने मण्डली में से उठकर हाथ में एक बरछी ली, 04O 25 8 और उस इस्त्राएली पुरूष के डेरे में जाने के बाद वह भी भीतर गया, और उस पुरूष और उस स्त्री दोनों के पेट में बरछी बेध दी। इस पर इस्त्राएलियों में जो मरी फैल गई थी वह थम गई। 04O 25 9 और मरी से चौबीस हजार मनुष्य मर गए।। 04O 25 10 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 25 11 हारून याजक का पोता एलीआजर का पुत्रा पीनहास, जिसे इस्त्राएलियों के बीच मेरी सी जलन उठी, उस ने मेरी जलजलाहट को उन पर से यहां तक दूर किया है, कि मैं ने जलकर उनका अन्त नहीं कर डाला। 04O 25 12 इसलिये तू कह दे, कि मैं उस से शांति की वाचा बान्धता हूं; 04O 25 13 और वह उसके लिये, और उसके बाद उसके वंश के लिये, सदा के याजकपद की वाचा होगी, क्योंकि उसे अपने परमेश्वर के लिये जलन उठी, और उस ने इस्त्राएलियों के लिये प्रायश्चित्त किया। 04O 25 14 जो इस्त्राएली पुरूष मिद्यानी स्त्री के संग मारा गया, उसका नाम जिम्री था, वह साल का पुत्रा और शिमोनियों में से अपने पितरों के घराने का प्रधान था। 04O 25 15 और जो मिद्यानी स्त्री मारी गई उसका नाम कोजबी था, वह सूर की बेटी थी, जो मिद्यानी पितरों के एक घराने के लोगों का प्रधान था।। 04O 25 16 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 25 17 मिद्यानियों को सता, और उन्हें मार; 04O 25 18 क्योंकि पोर के विषय और कोजबी के विषय वे तुम को छल करके सताते हैं। कोजबी तो एक मिद्यानी प्रधान की बेटी और मिद्यानियों की जाति बहिन थी, और मरी के दिन में पोर के मामले में मारी गई।। 04O 26 1 फिर यहोवा ने मूसा और एलीआजर नाम हारून याजक के पुत्रा से कहा, 04O 26 2 इस्त्राएलियों की सारी मण्डली में जितने बीस वर्ष के, वा उस से अधिक अवस्था के होने से इस्त्राएलियों के बीच युद्ध करने के योग्य हैं, उनके पितरों के घरानों के अनुसार उन सभों की गिनती करो। 04O 26 3 सो मूसा और एलीआजर याजक ने यरीहो के पास यरदन नदी के तीर पर मोआब के अराबा में उन से समझाके कहा, 04O 26 4 बीस वर्ष के और उस से अधिक अवस्था के लोगों की गिनती लो, जैसे कि यहोवा ने मूसा और इस्त्राएलियों को मि देश से निकले आने के समय आज्ञा दी थी।। 04O 26 5 रूबेन जो इस्त्राएल का जेठा था; उसके ये पुत्रा थे; अर्थात् हनोक, जिस से हनोकियों का कुल चला; और पल्लू, जिस से पल्लूइयों का कुल चला; 04O 26 6 हेद्दॊन, जिस से हेद्दॊनियों का कुल चला; और कर्मी, जिस से कर्मियों का कुल चला। 04O 26 7 रूबेनवाले कुल ये ही थे; और इन में से जो गिने गए वे तैतालीस हजार सात सौ तीस पुरूष थे। 04O 26 8 और पल्लू का पुत्रा एलीआब था। 04O 26 9 और पल्लू का पुत्रा नमूएल, दातान, और अबीराम थे। ये वही दातान और अबीराम हैं जो सभासद थे; और जिस समय कोरह की मण्डली ने यहोवा से झगड़ा किया था, उस समय उस मण्डली में मिलकर वे भी मूसा और हारून से झगड़े थे; 04O 26 10 और जब उन अढ़ाई सौ मनुष्यों के आग में भस्म हो जाने से वह मण्डली मिट गई, उसी समय पृथ्वी ने मुंह खोलकर कोरह समेत इनको भी निगल लिया; और वे एक दृष्टान्त ठहरे। 04O 26 11 परन्तु कोरह के पुत्रा तो नहीं मरे थे। 04O 26 12 शिमोन के पुत्रा जिन से उनके कुल निकले वे ये थे; अर्थात् नमूएल, जिस से नमूएलियों का कुल चला; और यामीन, जिस से यामीनियों का कुल चला; 04O 26 13 और जेरह, जिस से जेरहियों का कुल चला; और शाऊल, जिस से शाऊलियों का कुल चला। 04O 26 14 शिमोनवाले कुल ये ही थे; इन में से बाईस हजार दो सौ पुरूष गिने गए।। 04O 26 15 और गाद के पुत्रा जिस से उनके कुल निकले वे ये थे; अर्थात् सपोन, जिस से सपोनियों का कुल चला; और हाग्गी, जिस से हाग्गियों का कुल चला; और शूनी, जिस से शूनियों का कुल चला; और ओजनी, जिस से ओजनियों का कुल चला; 04O 26 16 और एरी, जिस से एरियों का कुल चला; और अरोद, जिस से अरोदियों का कुल चला; 04O 26 17 और अरेली, जिस से अरेलियों का कुल चला। 04O 26 18 गाद के वंश के कुल ये ही थे; इन में से साढ़े चालीस हजार पुरूष गिने गए।। 04O 26 19 और यहूदा के एक और ओनान नाम पुत्रा तो हुए, परन्तु वे कनान देश में मर गए। 04O 26 20 और यहूदा के जिन पुत्रों से उनके कुल निकले वे ये थे; अर्थात् शेला, जिस से शेलियों का कुल चला; और पेरेस जिस से पेरेसियों का कुल चला; और जेरह, जिस से जेरहियों का कुल चला। 04O 26 21 और पेरेस के पुत्रा ये थे; अर्थात् हेद्दॊन, जिस से हेद्दॊनियों का कुल चला; और हामूल, जिस से हामूलियों का कुल चला। 04O 26 22 यहूदियों के कुल ये ही थे; इन में से साढ़े छिहत्तर हजार पुरूष गिने गए।। 04O 26 23 और इस्साकार के पुत्रा जिन से उनके कुल निकले वे ये थे; अर्थात् तोला, जिस से तोलियों का कुल चला; और पुव्वा, जिस से पुव्वियों का कुल चला; 04O 26 24 और याशूब, जिस से याशूबियों का कुल चला; और शिम्रोन, जिस से शिम्रोनियों का कुल चला। 04O 26 25 इस्साकारियों के कुल ये ही थे; इन में से चौसठ हजार तीन सौ पुरूष गिने गए।। 04O 26 26 और जबूलून के पुत्रा जिन से उनके कुल निकले वे ये थे; अर्थात् सेरेद जिस से सेरेदियों का कुल चला; और एलोन, जिस से एलोनियों का कुल चला; और यहलेल, जिस से यहलेलियों का कुल चला। 04O 26 27 जबूलूनियों के कुल ये ही थे; इन में से साढ़े साठ हजार पुरूष गिने गए।। 04O 26 28 और यूसुफ के पुत्रा जिस से उनके कुल निकले वे मनश्शे और एप्रैम थे। 04O 26 29 मनश्शे के पुत्रा ये थे; अर्थात् माकीर, जिस से माकीरियों का कुल चला; और माकीर से गिलाद उत्पन्न हुआ; और गिलाद से गिलादियों का कुल चला। 04O 26 30 गिलाद के तो पुत्रा ये थे; अर्थात् ईएजेर, जिस से ईएजेरियों का कुल चला; 04O 26 31 और हेलेक, जिस से हेलेकियों का कुल चला और अस्त्रीएल, जिस से अस्त्रीएलियों का कुल चला; और शेकेम, जिस से शेकेमियों का कुल चला; और शमीदा, जिस से शमीदियों का कुल चला; 04O 26 32 और हेपेर, जिस से हेपेरियों का कुल चला; 04O 26 33 और हेपेर के पुत्रा सलोफाद के बेटे नहीं, केवल बेटियां हुई; इन बेटियों के नाम महला, नोआ, होग्ला, मिल्का, और तिर्सा हैं। 04O 26 34 मनश्शेवाले कुल ये ही थे; और इन में से जो गिने गए वे बावन हजार सात सौ पुरूष थे।। 04O 26 35 और एप्रैम के पुत्रा जिन से उनके कुल निकले वे ये थे; अर्थात् शूतेलह, जिस से शूतेलहियों का कुल चला; और बेकेर, जिस से बेकेरियों का कुल चला; और तहन जिस से तहनियों का कुल चला। 04O 26 36 और शूतेलह के यह पुत्रा हुआ; अर्थात् एरान, जिस से एरानियों का कुल चला। 04O 26 37 एप्रैमियों के कुल ये ही थे; इन में से साढ़े बत्तीस हजार पुरूष गिने गए। अपने कुलों के अनुसार यूसुफ के वंश के लोग ये ही थे।। 04O 26 38 और बिन्यामीन के पुत्रा जिन से उनके कुल निकले वे ये थे; अर्थात् बेला जिस से लेवियों का कुल चला; और अशबेल, जिस से अशबेलियों का कुल चला; और अहीराम, जिस से अहीरामियों का कुल चला; 04O 26 39 और शपूपास, जिस से शपूपामियों का कुल चला; और हूपाम, जिस से हूपामियों का कुल चला। 04O 26 40 और बेला के पुत्रा अर्द और नामान थे; और अर्द से तो अर्दियों को कुल, और नामान से नामानियों का कुल चला। 04O 26 41 अपने कुलों के अनुसार बिन्यामीनी ये ही थे; और इन में से जो गिने गए वे पैंतालीस हजार छ: सौ पुरूष थे।। 04O 26 42 और दान का पुत्रा जिस से उनका कुल निकला यह था; अर्थात् शूहाम, जिस से शूहामियों का कुल चला। और दान का कुल यही था। 04O 26 43 और शूहामियों में से जो गिने गए उनके कुल में चौसठ हजार चार सौ पुरूष थे।। 04O 26 44 और आशेर के पुत्रा जिस से उनके कुल निकले वे ये थे; अर्थात् यिम्ना, जिस से यिम्नियों का कुल चला; यिश्री, जिस से यिश्रियों का कुल चला; और बरीआ, जिस से बरीइयों का कुल चला। 04O 26 45 फिर बरीआ के ये पुत्रा हुए; अर्थात् हेबेर, जिस से हेबेरियों का कुल चला; और मल्कीएल, जिस से मल्कीएलियों का कुल चला। 04O 26 46 और आशेर की बेटी का नाम सेरह है। 04O 26 47 आशेरियों के कुल ये ही थे; इन में से तिर्पन हजार चार सौ पुरूष गिने गए।। 04O 26 48 और नप्ताली के पुत्रा जिस से उनके कुल निकले वे ये थे; अर्थात् यहसेल, जिस से यहसेलियों का कुल चला; और गूनी, जिस से गूनियों का कुल चला; 04O 26 49 येसेर, जिस से येसेरियों का कुल चला; और शिल्लेम, जिस से शिल्लेमियों का कुल चला। 04O 26 50 अपने कुलों के अनुसार नप्ताली के कुल ये ही थे; और इन में से जो गिने गए वे पैंतालीस हजार चार सौ पुरूष थे।। 04O 26 51 सब इस्त्राएलियों में से जो गिने गए थे वे ये ही थे; अर्थात् छ: लाख एक हजार सात सौ तीस पुरूष थे।। 04O 26 52 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 26 53 इनको, इनकी गिनती के अनुसार, वह भूमि इनका भाग होने के लिये बांट दी जाए। 04O 26 54 अर्थात् जिस कुल से अधिक हों उनको अधिक भाग, और जिस में कम हों उनको कम भाग देना; प्रत्येक गोत्रा को उसका भाग उसके गिने हुए लोगों के अनुसार दिया जाए। 04O 26 55 तौभी देश चिट्ठी डालकर बांटा जाए; इस्त्राएलियों के पितरों के एक एक गोत्रा का नाम, जैसे जैसे निकले वैसे वैसे वे अपना अपना भाग पाएं। 04O 26 56 चाहे बहुतों का भाग हो चाहे थोड़ों का हो, जो जो भाग बांटे जाएं वह चिट्ठी डालकर बांटे जाए।। 04O 26 57 फिर लेवियों में से जो अपने कुलों के अनुसार गिने गए वे ये हैं; अर्थात् गेर्शोनियों से निकला हुआ गेर्शोनियों का कुल; कहात से निकला हुआ कहातियों का कुल; और मरारी से निकला हुआ मरारियों का कुल। 04O 26 58 लेवियों के कुल ये हैं; अर्थात् लिब्नियों का, हेब्रानियों का, महलियों का, मूशियों का, और कोरहियों का कुल। और कहात से अम्राम उत्पन्न हुआ। 04O 26 59 और अम्राम की पत्नी का नाम योकेबेद है, वह लेवी के वंश की थी जो लेवी के वंश में मि देश में उत्पन्न हुई थी; और वह अम्राम से हारून और मूसा और उनकी बहिन मरियम को भी जनी। 04O 26 60 और हारून से नादाब, अबीहू, एलीआजर, और ईतामार उत्पन्न हुए। 04O 26 61 नादाब और अबीहू तो उस समय मर गए थे, जब वे यहोवा के साम्हने ऊपरी आग ले गए थे। 04O 26 62 सब लेवियों में से जो गिने गये, अर्थात् जितने पुरूष एक महीने के वा उस से अधिक अवस्था के थे, वे तेईस हजार थे; वे इस्त्राएलियों के बीच इसलिये नहीं गिने गए, क्योंकि उनको देश का कोई भाग नहीं दिया गया था।। 04O 26 63 मूसा और एलीआजर याजक जिन्हों ने मोआब के अराबा में यरीहो के पास की यरदन नदी के तट पर इस्त्राएलियों को गिन लिया, उनके गिने हुए लोग इतने ही थे। 04O 26 64 परन्तु जिन इस्त्राएलियों को मूसा और हारून याजक ने सीनै के जंगल में गिना था, उन में से एक पुरूष इस समय के गिने हुओं में न था। 04O 26 65 क्योंकि यहोवा ने उनके विषय कहा था, कि वे निश्चय जंगल में मर जाएंगे, इसलिये यपुन्ने के पुत्रा कालेब और नून के पुत्रा यहोशू को छोड़, उन में से एक भी पुरूष नहीं बचा।। 04O 27 1 तब यूसुफ के पुत्रा मनश्शे के वंश के कुलों में से सलोफाद, जो हेपेर का पुत्रा, और गिलाद का पोता, और मनश्शे के पुत्रा माकीर का परपोता था, उसकी बेटियां जिनके नाम महला, नोवा, होग्ला, मिलका, और तिर्सा हैं वे पास आईं। 04O 27 2 और वे मूसा और एलीआजर याजक और प्रधानों और सारी मण्डली के साम्हने मिलापवाले तम्बू के द्वार पर खड़ी होकर कहने लगीं, 04O 27 3 हमारा पिता जंगल में मर गया; परन्तु वह उस मण्डली में का न था जो कोरह की मण्डली के संग होकर यहोवा के विरूद्ध इकट्ठी हुई थी, वह अपने ही पाप के कारण मरा; और उसके कोई पुत्रा न था। 04O 27 4 तो हमारे पिता का नाम उसके कुल में से पुत्रा न होने के कारण क्यों मिट जाए? हमारे चाचाओं के बीच हमें भी कुछ भूमि निज भाग करके दे। 04O 27 5 उनकी यह बिनती मूसा ने यहोवा को सुनाई। 04O 27 6 यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 27 7 सलोफाद की बेटियां ठीक कहती हैं; इसलिये तू उनके चाचाओं के बीच उनको भी अवश्य ही कुछ भूमि निज भाग करके दे, अर्थात् उनके पिता का भाग उनके हाथ सौंप दे। 04O 27 8 और इस्त्राएलियों से यह कह, कि यदि कोई मनुष्य निपुत्रा मर जाए, तो उसका भाग उसकी बेटी के हाथ सौंपना। 04O 27 9 और यदि उसके कोई बेटी भी न हो, तो उसका भाग उसके भाइयों को देना। 04O 27 10 और यदि उसके भाई भी न हों, तो उसका भाग चाचाओं को देना। 04O 27 11 और यदि उसके चाचा भी न हों, तो उसके कुल में से उसका जो कुटुम्बी सब से समीप हो उसको उसका भाग देना, कि वह उसका अधिकारी हो। इस्त्राएलियों के लिये यह न्याय की विधि ठहरेगी, जैसे कि यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी।। 04O 27 12 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, इस अबारीम नाम पर्वत के ऊपर चढ़के उस देश को देख ले जिसे मैं ने इस्त्राएलियों को दिया है। 04O 27 13 और जब तू उसको देख लेगा, तब अपने भाई हारून की नाई तू भी अपने लोगों मे जा मिलेगा, 04O 27 14 क्योंकि सीन नाम जंगल में तुम दोनों ने मण्डली के झगड़ने के समय मेरी आज्ञा को तोड़कर मुझ से बलवा किया, और मुझे सोते के पास उनकी दृष्टि में पवित्रा नहीं ठहराया। ( यह मरीबा नाम सोता है जो सीन नाम जंगल के कादेश में है ) 04O 27 15 मूसा ने यहोवा से कहा, 04O 27 16 यहोवा, जो सारे प्राणियों की आत्माओं का परमेश्वर है, वह इस मण्डली के लोगों के ऊपर किसी पुरूष को नियुक्त कर दे, 04O 27 17 जो उसके साम्हने आया जाया करे, और उनका निकालने और पैठानेवाला हो; जिस से यहोवा की मण्डली बिना चरवाहे की भेड़ बकरियों के समान न रहे। 04O 27 18 यहोवा ने मूसा से कहा, तू नून के पुत्रा यहोशू को लेकर उस पर हाथ रख; वह तो ऐसा पुरूष है जिस में मेरा आत्मा बसा है; 04O 27 19 और उसको एलीआजर याजक के और सारी मण्डली के साम्हने खड़ा करके उनके साम्हने उसे आज्ञा दे। 04O 27 20 और अपनी महिमा में से कुछ उसे दे, जिस से इस्त्राएलियों की सारी मण्डली उसकी माना करे। 04O 27 21 और वह एलीआजर याजक के साम्हने खड़ा हुआ करे, और एलीआजर उसके लिये यहोवा से ऊरीम की आज्ञा पूछा करे; और वह इस्त्राएलियों की सारी मण्डली समेत उसके कहने से जाया करे, और उसी के कहने से लौट भी आया करे। 04O 27 22 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने यहोशू को लेकर, एलीआजर याजक और सारी मण्डली के साम्हने खड़ा करके, 04O 27 23 उस पर हाथ रखे, और उसको आज्ञा दी जैसे कि यहोवा ने मूसा के द्वारा कहा था।। 04O 28 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 28 2 इस्त्राएलियों को यह आज्ञा सुना कि मेरा चढ़ावा, अर्थात् मुझे सुखदायक सुगन्ध देनेवाला मेरा हव्यरूपी भोजन, तुम लोग मेरे लिये उनके नियत समयों पर चढ़ाने के लिये स्मरण रखना। 04O 28 3 और तू उन से कह, कि जो जो तुम्हें यहोवा के लिये चढ़ाना होगा वे ये हैं; अर्थात् नित्य होमबलि के लिये एक एक वर्ष के दो निर्दोष भेड़ी के बच्चे प्रतिदिन चढ़ाया करे। 04O 28 4 एक बच्चे को भोर को और दूसरे को गोधूलि के समय चढ़ाना; 04O 28 5 और भेड़ के बच्चे के पीछे एक चौथाई हीन कूटके निकाले हुए तेल से सने हुए एपा के दसवें अंश मैदे का अन्नबलि चढ़ाना। 04O 28 6 यह नित्य होमबलि है, जो सीनै पर्वत पर यहोवा का सुखदायक सुगन्धवाला हव्य होने के लिये ठहराया गया। 04O 28 7 और उसका अर्घ प्रति एक भेड़ के बच्चे के संग एक चौथाई हीन हो; मदिरा का यह अर्घ यहोवा के लिये पवित्रास्थान में देना। 04O 28 8 और दूसरे बच्चे को गोधूलि के समय चढ़ाना; अन्नबलि और अर्घ समेत भोर के होमबलि की नाई उसे यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य करके चढ़ाना।। 04O 28 9 फिर विश्रामदिन को दो निर्दोष भेड़ के एक साल के नर बच्चे, और अन्नबलि के लिये तेल से सना हुआ एपा का दो दसवां अंश मैदा अर्घ समेत चढ़ाना। 04O 28 10 नित्य होमबलि और उसके अर्घ के अलावा प्रत्येक विश्रामदिन का यही होमबलि ठहरा है।। 04O 28 11 फिर अपने महीनों के आरम्भ में प्रतिमास यहोवा के लिये होमबलि चढ़ाना; अर्थात् दो बछड़े, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के निर्दोष भेड़ के सात बच्चे; 04O 28 12 और बछड़े पीछे तेल से सना हुआ एपा का तीन दसवां अंश मैदा, और उस एक मेढ़े के साथ तेल से सना हुआ एपा का दो दसवां अंश मैदा; 04O 28 13 और प्रत्येक भेड़ के बच्चे के पीछे तेल से सना हुआ एपा का दसवां अंश मैदा, उन सभों को अन्नबलि करके चढ़ाना; वह सुखदायक सुगन्ध देने के लिये होमबलि और यहोवा के लिये हव्य ठहरेगा। 04O 28 14 और उनके साथ ये अर्घ हों; अर्थात् बछड़े पीछे आध हीन, मेढ़े के साथ तिहाई हीन, और भेड़ के बच्चे पीछे चौथाई हीन दाखमधु दिया जाए; वर्ष के सब महीनों में से प्रति एक महीने का यही होमबलि ठहरे। 04O 28 15 और एक बकरा पापबलि करके यहोवा के लिये चढ़ाया जाए; यह नित्य होमबलि और उसके अर्घ के अलावा चढ़ाया जाए।। 04O 28 16 फिर पहिले महीने के चौदहवें दिन को यहोवा का फसह हुआ करे। 04O 28 17 और उसी महीने के पन्द्रहवें दिन को पर्ब्ब लगा करे; सात दिन तक अखमीरी रोटी खाई जाए। 04O 28 18 पहिले दिन पवित्रा सभा हो; और उस दिन परिश्रम का कोई काम न किया जाए; 04O 28 19 उस में तुम यहोवा के लिये हव्य, अर्थात् होमबलि चढ़ाना; सो दो बछड़े, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के सात भेड़ के बच्चे हों; ये सब निर्दोष हों; 04O 28 20 और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; बछड़े पीछे एपा का तीन दसवां अंश और मेढ़े के सात एपा का दो दसवां अंश मैदा हो। 04O 28 21 और सातों भेड़ के बच्चों में से प्रति एक बच्चे पीछे एपा का दसवां अंश चढ़ाना। 04O 28 22 और एक बकरा भी पापबलि करके चढ़ाना, जिस से तुम्हारे लिये प्रायश्चित्त हो। 04O 28 23 भोर का होमबलि जो नित्य होमबलि ठहरा है, उसके अलावा इनको चढ़ाना। 04O 28 24 इस रीति से तुम उन सातों दिनों में भी हव्य का भोजन चढ़ाना, जो यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देने के लिये हो; यह नित्य होमबलि और उसके अर्घ के अलावा चढ़ाया जाए। 04O 28 25 और सातवें दिन भी तुम्हारी पवित्रा सभा हो; और उस दिन परिश्रम का कोई काम न करना।। 04O 28 26 फिर पहिली उपज के दिन में, जब तुम अपने अठवारे नाम पर्ब्ब में यहोवा के लिये नया अन्नबलि चढ़ाओगे, तब भी तुम्हारी पवित्रा सभा हो; और परिश्रम का कोई काम न करना। 04O 28 27 और एक होमबलि चढ़ाना, जिस से यहोवा के लिये सुखदायक सुगन्ध हो; अर्थात् दो बछड़े, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के सात भेड़ के बच्चे; 04O 28 28 और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्थात् बछड़े पीछे एपा का तीन दसवां अंश, और मेढ़े के संग एपा का दो दसवां अंश, 04O 28 29 और सातों भेड़ के बच्चों में से एक एक बच्चे के पीछे एपा का दसवां अंश मैदा चढ़ाना। 04O 28 30 और एक बकरा भी चढ़ाना, जिस से तुम्हारे लिये प्रायश्चित्त हो। 04O 28 31 ये सब निर्दोष हों; और नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा इसको भी चढ़ाना।। 04O 29 1 फिर सातवें महीने के पहिले दिन को तुम्हारी पवित्रा सभा हो; उस में परिश्रम का कोई काम न करना। वह तुम्हारे लिये जयजयकार का नरसिंगा फूंकने का दिन ठहरा है; 04O 29 2 तुम होमबलि चढ़ाना, जिस से यहोवा के लिये सुखदायक सुगन्ध हो; अर्थात् बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के सात निर्दोष भेड़ के बच्चे; 04O 29 3 और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्थात् बछड़े के साथ एपा का दो दसवां अंश, 04O 29 4 और सातों भेड़ के बच्चों में से एक एक बच्चे पीछे एपा का दसवां अंश मैदा चढ़ाना। 04O 29 5 और एक बकरा भी पापबलि करके चढ़ाना, जिस से तुम्हारे लिये प्रायश्चित्त हो। 04O 29 6 इन सभों से अधिक नए चांद का होमबलि और उसका अन्नबलि, और नित्य होमबलि और उसका अन्नबलि, और उन सभों के अर्घ भी उनके नियम के अनुसार सुखदायक सुगन्ध देने के लिये यहोवा के हव्य करके चढ़ाना।। 04O 29 7 फिर उसी सातवें महीने के दसवें दिन को तुम्हारी पवित्रा सभा हो; तुम अपने अपने प्राण को दु:ख देना, और किसी प्रकार का कामकाज न करना; 04O 29 8 और यहोवा के लिये सुखदायक सुगन्ध देने को होमबलि; अर्थात् एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के सात भेड़ के बच्चे चढ़ाना; फिर ये सब निर्दोष हों; 04O 29 9 और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्थात् बछड़े के साथ एपा का तीन दसवां अंश, और मेढ़े के साथ एपा का दो दसवां अंश, 04O 29 10 और सातों भेड़ के बच्चों में से एक एक बच्चे के पीछे एपा का दसवां अंश मैदा चढ़ाना। 04O 29 11 और पापबलि के लिये एक बकरा भी चढ़ाना; ये सब प्रायश्चित्त के पापबलि और नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि के, और उन सभों के अर्धो के अलावा चढ़ाया जाए।। 04O 29 12 फिर सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन को तुम्हारी पवित्रा सभा हो; और उस में परिश्रम का कोई काम न करना, और सात दिन तक यहोवा के लिये पर्ब्ब मानना; 04O 29 13 तुम होमबलि यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देने के लिये हव्य करके चढ़ाना; अर्थात् तेरह बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह भेड़ के बच्चे; ये सब निर्दोष हों; 04O 29 14 और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्थात् तेरहों बछड़ों में से एक एक बछड़े के पीछे एपा का तीन दसवां अंश, और दोनों मेढ़ों में से एक एक मेढ़े के पीछे एपा का दो दसवां अंश, 04O 29 15 और चौदहों भेड़ के बच्चों में से एक एक बच्चे के पीछे एपा का दसवां अंश मैदा चढ़ाना। 04O 29 16 और पापबलि के लिये एक बकरा चढ़ाना; ये नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।। 04O 29 17 फिर दूसरे दिन बारह बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना; 04O 29 18 और बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चों के साथ उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना।। 04O 29 19 और पापबलि के लिये एक बकरा भी चढ़ाना; ये नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।। 04O 29 20 फिर तीसरे दिन ग्यारह बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना; 04O 29 21 और बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चों के साथ उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना। 04O 29 22 और पापबलि के लिये एक बकरा भी चढ़ाना; ये नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।। 04O 29 23 और फिर चौथे दिन दस बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना; 04O 29 24 बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चों के साथ उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना। 04O 29 25 और पापबलि के लिये एक बकरा भी चढ़ाना; ये नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।। 04O 29 26 फिर पांचवें दिन नौ बछड़े, दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना; 04O 29 27 और बछड़ों, मेढ़ों, और भेड़ के बच्चों के साथ उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना। 04O 29 28 और पापबलि के लिये एक बकरा भी चढ़ाना; ये नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।। 04O 29 29 फिर छठवें दिन आठ बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना; 04O 29 30 और बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चों के साथ उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार चढ़ाना। 04O 29 31 और पापबलि के लिये एक बकरा भी चढ़ाना; ये नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।। 04O 29 32 फिर सातवें दिन सात बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना। 04O 29 33 और बछड़ों और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चों के साथ उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार चढ़ाना। 04O 29 34 और पापबलि के लिये एक बकरा भी चढ़ाना; ये नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।। 04O 29 35 फिर आठवें दिन तुम्हारी एक महासभा हो; उस में परिश्रम का कोई काम न करना, 04O 29 36 और उस में होमबलि यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देने के लिये हव्य करके चढ़ाना; वह एक बछड़े, और एक मेढ़े, और एक एक वर्ष के सात निर्दोंष भेड़ के बच्चों का हो; 04O 29 37 बछड़े, और मेढ़े, और भेड़ के बच्चों के साथ उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना। 04O 29 38 और पापबलि के लिये एक बकरा भी चढ़ाना; ये नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।। 04O 29 39 अपनी मन्नतों और स्वेच्छाबलियों के अलावा, अपने अपने नियत समयों में, ये ही होमबलि, अन्नबलि, अर्घ, और मेलबलि, यहोवा के लिये चढ़ाना। 04O 29 40 यह सारी आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी जो उस ने इस्त्राएलियों को सुनाई।। 04O 30 1 फिर मूसा ने इस्त्राएली गोत्रों के मुख्य मुख्य पुरूषों से कहा, यहोवा ने यह आज्ञा दी है, 04O 30 2 कि जब कोई पुरूष यहोवा की मन्नत माने, वा अपने आप को वाचा से बान्धने के लिये शपथ खाए, तो वह अपना वचन न टाले; जो कुछ उसके मुंह से निकला हो उसके अनुसार वह करे। 04O 30 3 और जब कोई स्त्री अपनी कुंवारी अवस्था में, अपने पिता के घर से रहते हुए, यहोवा की मन्नत माने, वा अपने को वाचा से बान्धे, 04O 30 4 तो यदि उसका पिता उसकी मन्नत वा उसका वह वचन सुनकर, जिस से उसने अपने आप को बान्धा हो, उस से कुछ न कहे; तब तो उसकी सब मन्नतें स्थिर बनी रहें, और कोई बन्धन क्यों न हो, जिस से उस ने अपने आप को बान्धा हो, वह भी स्थिर रहे। 04O 30 5 परन्तु यदि उसका पिता उसकी सुनकर उसी दिन उसको बरजे, तो उसकी मन्नतें वा और प्रकार के बन्धन, जिन से उस ने अपने आप को बान्धा हो, उन में से एक भी स्थिर न रहे, और यहोवा यह जान कर, कि उस स्त्री के पिता ने उसे मना कर दिया है, उसका यह पाप क्षमा करेगा। 04O 30 6 फिर यदि वह पति के अधीन हो और मन्नत माने, वा बिना सोच विचार किए ऐसा कुछ कहे जिस से वह बन्धन में पड़े, 04O 30 7 और यदि उसका पति सुनकर उस दिन उससे कुछ न कहे; तब तो उसकी मन्नतें स्थिर रहें, और जिन बन्धनों से उस ने अपने आप को बान्धा हो वह भी स्थिर रहें। 04O 30 8 परन्तु यदि उसका पति सुनकर उसी दिन उसे मना कर दे, तो जो मन्नत उस ने मानी है, और जो बात बिना सोच विचार किए कहने से उस ने अपने आप को वाचा से बान्धा हो, वह टूट जाएगी; और यहोवा उस स्त्री का पाप क्षमा करेगा। 04O 30 9 फिर विधवा वा त्यागी हुई स्त्री की मन्नत, वा किसी प्रकार की वाचा का बन्धन क्यों न हो, जिस से उस ने अपने आप को बान्धा हो, तो वह स्थिर ही रहे। 04O 30 10 फिर यदि कोई स्त्री अपने पति के घर में रहते मन्नत माने, वा शपथ खाकर अपने आप को बान्धे, 04O 30 11 और उसका पति सुनकर कुछ न कहे, और न उसे मना करे; तब तो उसकी सब मन्नतें स्थिर बनी रहें, और हर एक बन्धन क्यों न हो, जिस से उस ने अपने आप को बान्धा हो, वह स्थिर रहे। 04O 30 12 परन्तु यदि उसका पति उसकी मन्नत आदि सुनकर उसी दिन पूरी रीति से तोड़ दे, तो उसकी मन्नतें आदि, जो कुछ उसके मुंह से अपने बन्धन के विषय निकला हो, उस में से एक बात भी स्थिर न रहे; उसके पति ने सब तोड़ दिया है; इसलिये यहोवा उस स्त्री का वह पाप क्षमा करेगा। 04O 30 13 कोई भी मन्नत वा शपथ क्यों न हो, जिस से उस स्त्री ने अपने जीव को दु:ख देने की वाचा बान्धी हो, उसको उसका पति चाहे तो दृढ़ करे, और चाहे तो तोड़े; 04O 30 14 अर्थात् यदि उसका पति दिन प्रति दिन उस से कुछ भी न कहे, तो वह उसको सब मन्नतें आदि बन्धनों को जिस से वह बन्धी हो दृढ़ कर देता है; उस ने उनको दृढ़ किया है, क्योंकि सुनने के दिन उस ने कुछ नहीं कहा। 04O 30 15 और यदि वह उन्हें सुनकर पीछे तोड़ दे, तो अपनी स्त्री के अधर्म का भार वही उठाएगा। 04O 30 16 पति पत्नी के बीच, और पिता और उसके घर मे रहती हुई कुंवारी बेटी के बीच, जिन विधियों की आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी वे ये ही हैं।। 04O 31 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 31 2 मिद्यानियों से इस्त्राएलियों का पलटा ले; बाद को तू अपने लोगों में जा मिलेगा। 04O 31 3 तब मूसा ने लोगों से कहा, अपने में से पुरूषों को युद्ध के लिये हथियार बन्धाओ, कि वे मिद्यानियों पर चढ़के उन से यहोवा का पलटा ले। 04O 31 4 इस्त्राएल के सब गोत्रों में से प्रत्येक गोत्रा के एक एक हजार पुरूषों को युद्ध करने के लिये भेजो। 04O 31 5 तब इस्त्राएल के सब गोत्रों में से प्रत्येक गोत्रा के एक एक हजार पुरूष चुने गये, अर्थात् युद्ध के लिये हथियार- बन्द बारह हजार पुरूष। 04O 31 6 प्रत्येक गोत्रा में से उन हजार हजार पुरूषों को, और एलीआजर याजक के पुत्रा पीनहास को, मूसा ने युद्ध करने के लिये भेजा, और उसके हाथ में पवित्रास्थान के पात्रा और वे तुरहियां थीं जो सांस बान्ध बान्ध कर फूंकी जाती थीं। 04O 31 7 और जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी, उसके अनुसार उन्हों ने मिद्यानियों से युद्ध करके सब पुरूषों को घात किया। 04O 31 8 और दूसरे जूझे हुओं को छोड़ उन्हों ने एवी, रेकेम, सूर, हूर, और रेबा नाम मिद्यान के पांचों राजाओं को घात किया; और बोर के पुत्रा बिलाम को भी उन्हों ने तलवार से घात किया। 04O 31 9 और इस्त्राएलियों ने मिद्यानी स्त्रियों को बालबच्चों समेत बन्धुआई में कर लिया; और उनके गाय- बैल, भेड़- बकरी, और उनकी सारी सम्पत्ति को लूट लिया। 04O 31 10 और उनके निवास के सब नगरों, और सब छावनियों को फूंक दिया; 04O 31 11 तब वे, क्या मनुष्य क्या पशु, सब बन्धुओं और सारी लूट- पाट को लेकर 04O 31 12 यरीहो के पास की यरदन नदी के तीर पर, मोआब के अराबा में, छावनी के निकट, मूसा और एलीआजर याजक और इस्त्राएलियों की मण्डली के पास आए।। 04O 31 13 तब मूसा और एलीआजर याजक और मण्डली के सब प्रधान छावनी के बाहर उनका स्वागत करने को निकले। 04O 31 14 और मूसा सहस्त्रापति- शतपति आदि, सेनापतियों से, जो युद्ध करके लौटे आते थे क्रोधित होकर कहने लगा, 04O 31 15 क्या तुम ने सब स्त्रियों को जीवित छोड़ दिया? 04O 31 16 देखे, बिलाम की सम्मति से, पोर के विषय में इस्त्राएलियों से यहोवा का विश्वासघात इन्हीं ने कराया, और यहोवा की मण्डली में मरी फैली। 04O 31 17 सो अब बालबच्चों में से हर एक लड़के को, और जितनी स्त्रियों ने पुरूष का मुंह देखा हो उन सभों को घात करो। 04O 31 18 परन्तु जितनी लड़कियों ने पुरूष का मुंह न देखा हो उन सभों को तुम अपने लिये जीवित रखो। 04O 31 19 और तुम लोग सात दिन तक छावनी के बाहर रहो, और तुम में से जितनों ने किसी प्राणी को घात किया, और जितनों ने किसी मरे हुए को छूआ हो, वे सब अपने अपने बन्धुओं समेत तीसरे और सातवें दिनों में अपने अपने को पाप छुड़ाकर पावन करें। 04O 31 20 और सब वस्त्रों, और चमड़े की बनी हुई सब वस्तुओं, और बकरी के बालों की और लकड़ी की बनी हुई सब वस्तुओं को पावन कर लो। 04O 31 21 तब एलीआजर याजक ने सेना के उन पुरूषों से जो युद्ध करने गए थे कहा, व्यवस्था की जिस विधि की आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी है वह यह है, 04O 31 22 कि सोना, चांदी, पीतल, लोहा, रांगा, और सीसा, 04O 31 23 जो कुछ आग में ठहर सके उसको आग में डालो, तब वह शुद्ध ठहरेगा; तौभी वह अशुद्धता छुड़ानेवाले जल के द्वारा पावन किया जाए; परन्तु जो कुछ आग में न ठहर सके उसे जल में डुबाओ। 04O 31 24 और सातवें दिन अपने वस्त्रों को धोना, तब तुम शुद्ध ठहरोगे; और तब छावनी में आना।। 04O 31 25 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 31 26 एलीआजर याजक और मण्डली के पितरों के घरानों के मुख्य मुख्य पुरूषों को साथ लेकर तू लूट के मनुष्यों और पशुओं की गिनती कर; 04O 31 27 तब उनको आधा आधा करके एक भाग उन सिपाहियों को जो युद्ध करने को गए थे, और दूसरा भाग मण्डली को दे। 04O 31 28 फिर जो सिपाही युद्ध करने को गए थे, उनके आधे में से यहोवा के लिये, क्या मनुष्य, क्या गाय- बैल, क्या गदहे, क्या भेड़- बकरियां 04O 31 29 पांच सौ के पीछे एक को मानकर ले ले; और यहोवा की भेंट करके एलीआजर याजक को दे दे। 04O 31 30 फिर इस्त्राएलियों के आधे में से, क्या मनुष्य, क्या गाय- बैल, क्या गदहे, क्या भेड़- बकरियां, क्या किसी प्रकार का पशु हो, पचास के पीछे एक लेकर यहोवा के निवास की रखवाली करनेवाले लेवियों को दे। 04O 31 31 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार जो उस ने मूसा को दी मूसा और एलीआजर याजक ने किया। 04O 31 32 और जो वस्तुएं सेना के पुरूषों ने अपने अपने लिये लूट ली थीं उन से अधिक की लूट यह थी; अर्थात् छ: लाख पचहत्तर हजार भेड़- बकरियां, 04O 31 33 बहत्तर हजार गाय बैल, 04O 31 34 इकसठ हजार गदहे, 04O 31 35 और मनुष्यों में से जिन स्त्रियों ने पुरूष का मुंह नहीं देखा था वह सब बत्तीस हजार थीं। 04O 31 36 और इसका आधा, अर्थात् उनका भाग जो युद्ध करने को गए थे, उस में भेड़बकरियां तीन लाख साढ़े सैंतीस हजार, 04O 31 37 जिस में से पौने सात सौ भेड़- बकरियां यहोवा का कर ठहरीं। 04O 31 38 और गाय- बैल छत्तीस हजार, जिन में से बहत्तर यहोवा का कर ठहरे। 04O 31 39 और गदहे साढ़े तीस हजार, जिन में से इकसठ यहोवा का कर ठहरे। 04O 31 40 और मनुष्य सोलह हजार जिन में से बत्तीस प्राणी यहोवा का कर ठहरे। 04O 31 41 इस कर को जो यहोवा की भेंट थी मूसा ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार एलीआजर याजक को दिया। 04O 31 42 और इस्त्राएलियों की मण्डली का आधा 04O 31 43 तीन लाख साढ़े सैंतिस हजार भेड़- बकरियां 04O 31 44 छत्तीस हजार गाय- बैल, 04O 31 45 साढ़े तीस हजार गदहे, 04O 31 46 और सोलह हजार मनुष्य हुए। 04O 31 47 इस आधे में से, जिसे मूसा ने युद्ध करनेवाले पुरूषों के पास से अलग किया था, यहोवा की आज्ञा के अनुसार मूसा ने, क्या मनुष्य क्या पशु, पचास पीछे एक लेकर यहोवा के निवास की रखवाली करनेवाले लेवियों को दिया। 04O 31 48 तब सहस्त्रापति- शतपति आदि, जो सरदार सेना के हजारों के ऊपर नियुक्त थे, वे मूसा के पास आकर कहने लगे, 04O 31 49 जो सिपाही हमारे अधीन थे उनकी तेरे दासों ने गिनती ली, और उन में से एक भी नहीं घटा। 04O 31 50 इसलिये पायजेब, कड़े, मुंदरियां, बालियां, बाजूबन्द, सोने के जो गहने, जिस ने पाया है, उनको हम यहोवा के साम्हने अपने प्राणों के निमित्त प्रायश्चित्त करने को यहोवा की भेंट करके ले आए हैं। 04O 31 51 तब मूसा और एलीआजर याजक ने उन से वे सब सोने के नक्काशीदार गहने ले लिए। 04O 31 52 और सहस्त्रापतियों और शतपतियों ने जो भेंट का सोना यहोवा की भेंट करके दिया वह सब का सब सोलह हजार साढ़े सात सौ शेकेल का था। 04O 31 53 ( योद्धाओं ने तो अपने अपने लिये लूट ले ली थी। ) 04O 31 54 यह सोना मूसा और एलीआजर याजक ने सहस्त्रापतियों और शतपतियों से लेकर मिलापवाले तम्बू में पहुंचा दिया, कि इस्त्राएलियों के लिये यहोवा के साम्हने स्म्रण दिलानेवाली वस्तु ठहरे।। 04O 32 1 रूबेनियों और गादियों के पास बहुत जानवर थे। जब उन्हों ने याजेर और गिलाद देशों को देखकर विचार किया, कि वह ढ़ोरों के योग्य देश है, 04O 32 2 तब मूसा और एलीआजर याजक और मण्डली के प्रधानों के पास जाकर कहने लगे, 04O 32 3 अतारोत, दीबोन, याजेर, निम्रा, हेशबोन, एलाले, सबाम, नबो, और बोन नगरों का देश 04O 32 4 जिस पर यहोवा ने इस्त्राएल की मण्डली को विजय दिलवाई है, वह ढोरों के योग्य है; और तेरे दासों के पास ढोर हैं। 04O 32 5 फिर उन्हों ने कहा, यदि तेरा अनुग्रह तेरे दासों पर हो, तो यह देश तेरे दासों को मिले कि उनकी निज भूमि हो; हमें यरदन पार न ले चल। 04O 32 6 मूसा ने गादियों और रूबेनियों से कहा, जब तुम्हारे भाई युद्ध करने को जाएंगे तब क्या तुम यहां बैठे रहोगे? 04O 32 7 और इस्त्राएलियों से भी उस पार के देश जाने के विषय जो यहोवा ने उन्हें दिया है तुम क्यों अस्वीकार करवाते हो? 04O 32 8 जब मैं ने तुम्हारे बापदादों को कादेशबर्ने से कनान देश देखने के लिये भेजा, तब उन्हों ने भी ऐसा ही किया था। 04O 32 9 अर्थात् जब उन्हों ने एशकोल नाम नाले तक पहुंचकर देश को देखा, तब इस्त्राएलियों से उस देश के विषय जो यहोवा ने उन्हें दिया था अस्वीकार करा दिया। 04O 32 10 इसलिये उस समय यहोवा ने कोप करके यह शपथ खाई कि, 04O 32 11 नि:सन्देह जो मनुष्य मि से निकल आए हैं उन में से, जितने बीस वर्ष के वा उस से अधिक अवस्था के हैं, वे उस देश को देखने न पाएंगे, जिसके देने की शपथ मैं ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से खाई है, क्योंकि वे मेरे पीछे पूरी रीति से नहीं हो लिये; 04O 32 12 परन्तु यपुन्ने कनजी का पुत्रा कालेब, और नून का पुत्रा यहोशू, ये दोनों जो मेरे पीछे पूरी रीति से हो लिये हैं ये तो उसे देखने पाएंगे। 04O 32 13 सो यहोवा का कोप इस्त्राएलियों पर भड़का, और जब तक उस पीढ़ी के सब लोगों का अन्त न हुआ, जिन्हों ने यहोवा के प्रति बुरा किया था, तब तक अर्थात् चालीस वर्ष तक वह जंगल में मारे मारे फिराता रहा। 04O 32 14 और सुनो, तुम लोग उन पापियों के बच्चे होकर इसी लिये अपने बाप- दादों के स्थान पर प्रकट हुए हो, कि इस्त्राएल के विरूद्ध यहोवा से भड़के हुए कोप को और भड़काओ! 04O 32 15 यदि तुम उसके पीछे चलने से फिर जाओ, तो वह फिर हम सभों को जंगल में छोड़ देगा; इस प्रकार तुम इन सारे लोगों का नाश कराओगे। 04O 32 16 तब उन्हों ने मूसा के और निकट आकर कहा, हम अपने ढ़ोरों के लिये यहीं भेड़शाले बनाएंगे, और अपने बालबच्चों के लिये यहीं नगर बसाएंगे, 04O 32 17 परन्तु आप इस्त्राएलियों के आगे आगे हथियार बन्द तब तक चलेंगे, जब तक उनको उनके स्थान में न पहुंचा दे; परन्तु हमारे बालबच्चे इस देश के निवासियों के डर से गढ़वाले नगरों में रहेंगे। 04O 32 18 परन्तु जब तक इस्त्राएली अपने अपने भाग के अधिकारी न हों तब तक हम अपने घरों को न लौटेंगे। 04O 32 19 हम उनके साथ यरदन पार वा कहीं आगे अपना भाग न लेंगे, क्योंकि हमारा भाग यरदन के इसी पार पूरब की ओर मिला है। 04O 32 20 तब मूसा ने उन से कहा, यदि तुम ऐसा करो, अर्थात् यदि तुम यहोवा के आगे आगे युद्ध करने को हथियार बान्धो। 04O 32 21 और हर एक हथियार- बन्द यरदन के पार तब तक चले, जब तक यहोवा अपने आगे से अपने शत्रुओं को न निकाले 04O 32 22 और देश यहोवा के वश में न आए; तो उसके पीछे तुम यहां लौटोगे, और यहोवा के और इस्त्राएल के विषय निर्दोष ठहरोगे; और यह देश यहोवा के प्रति तुम्हारी निज भूमि ठहरेगा। 04O 32 23 और यदि तुम ऐसा न करो, तो यहोवा के विरूद्ध पापी ठहरोगे; और जान रखो कि तुम को तुम्हारा पाप लगेगा। 04O 32 24 तुम अपने बालबच्चों के लिये नगर बसाओ, और अपनी भेड़- बकरियों के लिये भेड़शाले बनाओ; और जो तुम्हारे मुंह से निकला है वही करो। 04O 32 25 तब गादियों और रूबेनियों ने मूसा से कहा, अपने प्रभु की आज्ञा के अनुसार तेरे दास करेंगे। 04O 32 26 हमारे बालबच्चे, स्त्रियां, भेड़- बकरी आदि, सब पशु तो यहीं गिलाद के नगरों में रहेंगे; 04O 32 27 परन्तु अपने प्रभु के कहे के अनुसार तेरे दास सब के सब युद्ध के लिये हथियार- बन्द यहोवा के आगे आगे लड़ने को पार जाएंगे। 04O 32 28 तब मूसा ने उनके विषय में एलीआजर याजक, और नून के पुत्रा यहोशू, और इस्त्राएलियों के गोत्रों के पितरों के घरानों के मुख्य मुख्य पुरूषों को यह आज्ञा दी, 04O 32 29 कि यदि सब गादी और रूबेनी पुरूष युद्ध के लिये हथियार- बन्द तुम्हारे संग यरदन पार जाएं, और देश तुम्हारे वश में आ जाए, तो गिलाद देश उनकी निज भूमि होने को उन्हें देना। 04O 32 30 परन्तु यदि वे तुम्हारे संग हथियार- बन्द पार न जाएं, तो उनकी निज भूमि तुम्हारे बीच कनान देश में ठहरे। 04O 32 31 तब गादी और रूबेनी बोल उठे, यहोवा ने जैसा तेरे दासों से कहलाया है वैसा ही हम करेंगे। 04O 32 32 हम हथियार- बन्द यहोवा के आगे आगे उस पार कनान देश में जाएंगे, परन्तु हमारी निज भूमि यरदन के इसी पार रहे।। 04O 32 33 तब मूसा ने गादियों और रूबेनियों को, और यूसुफ के पुत्रा मनश्शे के आधे गोत्रियों को एमोरियों के राजा सीहोन और बाशान के राजा ओग, दोनों के राज्यों का देश, नगरों, और उनके आसपास की भूमि समेत दे दिया। 04O 32 34 तब गादियों ने दीबोन, अतारोत, अरोएर, 04O 32 35 अत्राौत, शोपान, याजेर, योगबहा, 04O 32 36 बेतनिम्रा, और बेथारान नाम नगरों को दृढ़ किया, और उन में भेड़- बकरियों के लिये भेड़शाले बनाए। 04O 32 37 और रूबेनियों ने हेशबोन, एलाले, और किर्यातैम को, 04O 32 38 फिर नबो और बालमोन के नाम बदलकर उनको, और सिबमा को दृढ़ किया; और उन्हों ने अपने दृढ़ किए हुए नगरों के और और नाम रखे। 04O 32 39 और मनश्शे के पुत्रा माकीर के वंशवालों ने गिलाद देश में जाकर उसे ले लिया, और जो एमोरी उस में रहते थे उनको निकाल दिया। 04O 32 40 तब मूसा ने मनश्शे के पुत्रा माकीर के वंश को गिलाद दे दिया, और वे उस में रहने लगे। 04O 32 41 और मनश्शेई याईर ने जाकर गिलाद की कितनी बस्तियां ले लीं, और उनके नाम हव्वोत्याईर रखे। 04O 32 42 और नोबह ने जाकर गांवों समेत कनात को ले लिया, और उसका नाम अपने नाम पर नोबह रखा।। 04O 33 1 जब से इस्त्राएली मूसा और हारून की अगुवाई से दल बान्धकर मि देश से निकले, तब से उनके ये पड़ाव हुए। 04O 33 2 मूसा ने यहोवा से आज्ञा पाकर उनके कूच उनके पड़ावों के अनुसार लिख दिए; और वे ये हैं। 04O 33 3 पहिले महीने के पन्द्रहवें दिन को उन्हों ने रामसेस से कूच किया; फसह के दूसरे दिन इस्त्राएली सब मिस्त्रियों के देखते बेखटके निकल गए, 04O 33 4 जब कि मिद्दी अपने सब पहिलौठों को मिट्टी दे रहे थे जिन्हें यहोवा ने मारा था; और उस ने उनके देवताओं को भी दण्ड दिया था। 04O 33 5 इस्त्राएलियों ने रामसेस से कूच करे सुक्कोत में डेरे डाले। 04O 33 6 और सुक्कोत से कूच करके एताम में, जो जंगल के छोर पर हैं, डेरे डाले। 04O 33 7 और एताम से कूच करके वे पीहहीरोत को मुड़ गए, जो बालसपोन के साम्हने है; और मिगदोल के साम्हने डेरे खड़े किए। 04O 33 8 तब वे पीहहीरोत के साम्हने से कूच कर समुद्र के बीच होकर जंगल में गए, और एताम नाम जंगल में तीन दिन का मार्ग चलकर मारा में डेरे डाले। 04O 33 9 फिर मारा से कूच करके वे एलीम को गए, और एलीम में जल के बारह सोते और सत्तर खजूर के वृक्ष मिले, और उन्हों ने वहां डेरे खड़े किए। 04O 33 10 तब उन्हों ने एलीम से कूच करे लाल समुद्र के तीर पर डेरे खड़े किए। 04O 33 11 और लाल समुद्र से कूच करके सीन नाम जंगल में डेरे खड़े किए। 04O 33 12 फिर सीन नाम जंगल से कूच करके उन्हों ने दोपका में डेरा किया। 04O 33 13 और दोपका से कूच करके आलूश में डेरा किया। 04O 33 14 और आलूश से कूच करके रपीदीम में डेरा किया, और वहां उन लोगों को पीने का पानी न मिला। 04O 33 15 फिर उन्हों ने रपीदीम से कूच करके सीनै के जंगल में डेरे डाले। 04O 33 16 और सीनै के जंगल से कूच करके किब्रोथत्तावा में डेरा किया। 04O 33 17 और किब्रोथत्तावा से कूच करे हसेरोत में डेरे डाले। 04O 33 18 और हसेरोत से कूच करके रित्मा में डेरे डाले। 04O 33 19 फिर उन्हों ने रित्मा से कूच करके रिम्मोनपेरेस में डेरे खड़े किए। 04O 33 20 और रिम्मोनपेरेस से कूच करके लिब्ना में डेरे खड़े किए। 04O 33 21 और लिब्ना से कूच करके रिस्सा में डेरे खड़े किए। 04O 33 22 और रिस्सा से कूच करके कहेलाता में डेरा किया। 04O 33 23 और कहेलाता से कूच करके शेपेर पर्वत के पास डेरा किया। 04O 33 24 फिर उन्हों ने शेपेर पर्वत से कूच करके हरादा में डेरा किया। 04O 33 25 और हरादा से कूच करके मखेलोत में डेरा किया। 04O 33 26 और मखेलोत से कूच करके तहत में डेरे खड़े किए। 04O 33 27 और तहत से कूच करके तेरह में डेरे डाले। 04O 33 28 और तेरह से कूच करके मित्का में डेरे डाले। 04O 33 29 फिर मित्का से कूच करके उन्हों ने हशमोना में डेरे डाले। 04O 33 30 और हशमोना से कूच करके मोसेरोत मे डेरे खड़े किए। 04O 33 31 और मोसेरोत से कूच करके याकानियों के बीच डेरा किया। 04O 33 32 और याकानियों के बीच से कूच करके होर्हग्गिदगाद में डेरा किया। 04O 33 33 और होर्हग्गिदगाद से कूच करके योतबाता में डेरा किया। 04O 33 34 और योतबाता से कूच करके अब्रोना में डेरे खड़े किए। 04O 33 35 और अब्रोना से कूच करके एस्योनगेबेर में डेरे खड़े किए। 04O 33 36 और एस्योनगेबेर के कूच करके उन्हों ने सीन नाम जंगल के कादेश में डेरा किया। 04O 33 37 फिर कादेश से कूच करके होर पर्वत के पास, जो एदोम देश के सिवाने पर है, डेरे डाले। 04O 33 38 वहां इस्त्राएलियों के मि देश से निकलने के चालीसवें वर्ष के पांचवें महीने के पहिले दिन को हारून याजक यहोवा की आज्ञा पाकर होर पर्वत पर चढ़ा, और वहां मर गया। 04O 33 39 और जब हारून होर पर्वत पर मर गया तब वह एक सौ तेईस वर्ष का था। 04O 33 40 और अरात का कनानी राजा, जो कनान देश के दक्खिन भाग में रहता था, उस ने इस्त्राएलियों के आने का समाचार पाया। 04O 33 41 तब इस्त्राएलियों ने होर पर्वत से कूच करके सलमोना में डेरे डाले। 04O 33 42 और सलमोना से कूच करके पूनोन में डेरे डाले। 04O 33 43 और पूनोन से कूच करके ओबोस में डेरे डाले। 04O 33 44 और ओबोस से कूच करके अबारीम नाम डीहों में जो मोआब के सिवाने पर हैं, डेरे डाले। 04O 33 45 तब उन डीहों से कूच करके उन्हों ने दीबोनगाद में डेरा किया। 04O 33 46 और दीबोनगाद से कूच करके अल्मोनदिबलातैम से कूच करके उन्हों ने अबारीम नाम पहाड़ों मे नबो के साम्हने डेरा किया। 04O 33 47 और अल्मोनदिबलातैम से कूच करके उन्हों ने अबारीम नाम पहाड़ों में नबो के साम्हने डेरा किया। 04O 33 48 फिर अबारीम पहाड़ों से कूच करके मोआब के अराबा में, यरीहो के पास यरदन नदी के तट पर डेरा किया। 04O 33 49 और वे मोआब के अराबा में वेत्यशीमोत से लेकर आबेलशित्तीम तक यरदन के तीर तीर डेरे डाले।। 04O 33 50 फिर मोआब के अराबा में, यरीहो के पास की यरदन नदी के तट पर, यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 33 51 इस्त्राएलियों को समझाकर कह, जब तुम यरदन पार होकर कनान देश में पहुंचो 04O 33 52 तब उस देश के निवासियों को उनके देश से निकाल देना; और उनके सब नक्काशे पत्थरों को और ढली हुई मूर्तियों को नाश करना, और उनके सब पूजा के ऊंचे स्थानों को ढा देना। 04O 33 53 और उस देश को अपने अधिकार में लेकर उस में निवास करना, क्योंकि मैं ने वह देश तुम्हीं को दिया है कि तुम उसके अधिकारी हो। 04O 33 54 और तुम उस देश को चिट्ठी डालकर अपने कुलों के अनुसार बांट लेना; अर्थात् जो कुल अधिकवाले हैं उन्हें अधिक, और जो थोड़ेवाले हैं उनको थोड़ा भाग देना; जिस कुल की चिट्ठी जिस स्थान के लिये निकले वही उसका भाग ठहरे; अपने पितरों के गोत्रों के अनुसार अपना अपना भाग लेना। 04O 33 55 परन्तु यदि तुम उस देश के निवासियों को अपने आगे से न निकालोगे, तो उन में से जिनको तुम उस में रहने दोगे वे मानो तुम्हारी आंखों में कांटे और तुम्हारे पांजरों में कीलें ठहरेंगे, और वे उस देश में जहां तुम बसोगे तुम्हें संकट में डालेंगे। 04O 33 56 और उन से जैसा बर्ताव करने की मनसा मैं ने की है वैसा ही तुम से करूंगा। 04O 34 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 34 2 इस्त्राएलियों को यह आज्ञा दे, कि जो देश तुम्हारा भाग होगा वह तो चारों ओर से सिवाने तक का कनान देश है, इसलिये जब तुम कनान देश मे पहुंचों, 04O 34 3 तब तुम्हारा दक्खिनी प्रान्त सीन नाम जंगल से ले एदोम देश के किनारे किनारे होता हुआ चला जाए, और तुम्हारा दक्खिनी सिवाना खारे ताल के सिरे पर आरम्भ होकर पश्चिम की ओर चले; 04O 34 4 वहां से तुम्हारा सिवाना अक्रब्बीम नाम चढ़ाई की दक्खिन की ओर पहुंचकर मुड़े, और सीन तक आए, और कादेशबर्ने की दक्खिन की ओर निकले, और हसरस्रार तक बढ़के अस्मोन तक पहुंचे; 04O 34 5 फिर वह सिवाना अस्मोन से घूमकर मि के नाले तक पहुंचे, और उसका अन्त समुद्र का तट ठहरे। 04O 34 6 फिर पच्छिमी सिवाना महासमुद्र हो; तुम्हारा पच्छिमी सिवाना यही ठहरे। 04O 34 7 और तुम्हारा उत्तरीय सिवाना यह हो, अर्थात् तुम महासमुद्र से ले होर पर्वत तक सिवाना बन्धाना; 04O 34 8 और होर पर्वत से हामात की घाटी तक सिवाना बान्धना, और वह सदाद पर निकले; 04O 34 9 फिर वह सिवाना जिप्रोन तक पहुंचे, और हसरेनान पर निकले; तुम्हारा उत्तरीय सिवाना यही ठहरे। 04O 34 10 फिर अपना पूरबी सिवाना हसरेनान से शपाम तक बान्धना; 04O 34 11 और वह सिवाना शपाम से रिबला तक, जो ऐन की पूर्व की ओर है, नीचे को उतरते उतरते किन्नेरेत नाम ताल के पूर्व से लग जाए; 04O 34 12 और वह सिवाना यरदन तक उतरके खारे ताल के तट पर निकले। तुम्हारे देश के चारों सिवाने ये ही ठहरें। 04O 34 13 तब मूसा ने इस्त्राएलियों से फिर कहा, जिस देश के तुम चिट्ठी डालकर अधिकारी होगे, और यहोवा ने उसे साढ़े नौ गोत्रा के लोगों को देने की आज्ञा दी है, वह यही है; 04O 34 14 परन्तु रूबेनियों और गादियों के गोत्रा तो अपने अपने पितरों के कुलों के अनुसार अपना अपना भाग पा चुके हैं, और मनश्शे के आधे गोत्रा के लोग भी अपना भाग पा चुके हैं; 04O 34 15 अर्थात् उन अढ़ाई गोत्रों के लोग यरीहो के पास की यरदन के पार पूर्व दिशा में, जहां सूर्योदय होता है, अपना अपना भाग पा चुके हैं।। 04O 34 16 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 34 17 कि जो पुरूष तुम लोगों के लिये उस देश को बांटेंगे उनके नाम ये हैं; अर्थात् एलीआजर याजक और नून का पुत्रा यहोशू। 04O 34 18 और देश को बांटने के लिये एक एक गोत्रा का एक एक प्रधान ठहराना। 04O 34 19 और इन पुरूषों के नाम ये हैं; अर्थात् यहूदागोत्री यपुन्ने का पुत्रा कालेब, 04O 34 20 शिमोनगोत्री अम्मीहूद का पुत्रा शमुएल, 04O 34 21 बिन्यामीनगोत्री किसलोन का पुत्रा एलीदाद, 04O 34 22 दानियों के गोत्रा का प्रधान योग्ली का पुत्रा बुक्की, 04O 34 23 यूसुफियों में से मनश्शेइयों के गोत्रा का प्रधान एपोद का पुत्रा हन्नीएल, 04O 34 24 और एप्रैमियों के गोत्रा का प्रधान शिम्तान का पुत्रा कमूएल, 04O 34 25 जबूलूनियों के गोत्रा का प्रधान पर्नाक का पुत्रा एलीसापान, 04O 34 26 इस्साकारियों के गोत्रा का प्रधान अज्जान का पुत्रा पलतीएल, 04O 34 27 आशेरियों के गोत्रा का प्रधान शलोमी का पुत्रा अहीहूद, 04O 34 28 और नप्तालियों के गोत्रा का प्रधान अम्मीहूद का पुत्रा पदहेल। 04O 34 29 जिन पुरूषों को यहोवा ने कनान देश को इस्त्राएलियों के लिये बांटने की आज्ञा दी वे ये ही हैं।। 04O 35 1 फिर यहोवा ने, मोआब के अराबा में, यरीहो के पास की यरदन नदी के तट पर मूसा से कहा, 04O 35 2 इस्त्राएलियों को आज्ञा दे, कि तुम अपने अपने निज भाग की भूमि में से लेवियों को रहने के लिये नगर देना; और नगरों के चारों ओर की चराइयां भी उनको देना। 04O 35 3 नगर तो उनके रहने के लिये, और चराइयां उनके गाय- बैल और भेड़- बकरी आदि, उनके सब पशुओं के लिये होंगी। 04O 35 4 और नगरों की चराइयां, जिन्हें तुम लेवियों को दोगे, वह एक एक नगर की शहरपनाह से बाहर चारों ओर एक एक हजार हाथ तक की हों। 04O 35 5 और नगर के बाहर पूर्व, दक्खिन, पच्छिम, और उत्तर अलंग, दो दो हजार हाथ इस रीति से नापना कि नगर बीचोंबीच हो; लेवियों के एक एक नगर की चराई इतनी ही भूमि की हो। 04O 35 6 और जो नगर तुम लेवियों को दोगे उन में से छ: शरणनगर हों, जिन्हें तुम को खूनी के भागने के लिये ठहराना होगा, और उन से अधिक बयालीस नगर और भी देना। 04O 35 7 जितने नगर तुम लेवियों को दोगे वे सब अड़तालीस हों, और उनके साथ चराइयां देना। 04O 35 8 और जो नगर तुम इस्त्राएलियों की निज भूमि में से दो, वे जिनके बहुत नगर हों उन से थोड़े लेकर देना; सब अपने अपने नगरों में से लेवियों को अपने ही अपने भाग के अनुसार दें।। 04O 35 9 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 04O 35 10 इस्त्राएलियों से कह, कि जब तुम यरदन पार होकर कनान देश में पहुंचो, 04O 35 11 तक ऐसे नगर ठहराना जो तुम्हारे लिये शरणनगर हों, कि जो कोई किसी को भूल से मारके खूनी ठहरा हो वह वहां भाग जाए। 04O 35 12 वे नगर तुम्हारे निमित्त पलटा लेनेवाले से शरण लेने के काम आएंगे, कि जब तक खूनी न्याय के लिये मण्डली के साम्हने खड़ा न हो तब तक वह न मार डाला जाए। 04O 35 13 और शरण के जो नगर तुम दोगे वे छ: हों। 04O 35 14 तीन नगर तो यरदन के इस पार, और तीन कनान देश में देना; शरणनगर इतने ही रहें। 04O 35 15 ये छहों नगर इस्त्राएलियों के और उनके बीच रहनेवाले परदेशियों के लिये भी शरणस्थान ठहरें, कि जो कोई किसी को भूल से मार डाले वह वहीं भाग जाए। 04O 35 16 परन्तु यदि कोई किसी को लोहे के किसी हथियार से ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो वह खूनी ठहरेगा; और वह खूनी अवश्य मार डाला जाए। 04O 35 17 और यदि कोई ऐसा पत्थर हाथ में लेकर, जिस से कोई मर सकता है, किसी को मारे, और वह मर जाए, तो वह भी खूनी ठहरेगा; और वह खूनी अवश्य मार डाला जाए। 04O 35 18 वा कोई हाथ में ऐसी लकड़ी लेकर, जिस से कोई मर सकता है, किसी को मारे, और वह मर जाए, तो वह भी खूनी ठहरेगा; और वह खूनी अवश्य मार डाला जाए। 04O 35 19 लोहू का पलटा लेनेवाला आप की उस खूनी को मार डाले; जब भी वह मिले तब ही वह उसे मार डाले। 04O 35 20 और यदि कोई किसी को बैर से ढकेल दे, वा घात लगाकर कुछ उस पर ऐसे फेंक दे कि वह मर जाए, 04O 35 21 वा शत्रुता से उसको अपने हाथ से ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो जिस ने मारा हो वह अवश्य मार डाला जाए; वह खूनी ठहरेगा; लोहू का पलटा लेनेवाला जब भी वह खूनी उसे मिल जाए तब ही उसको मार डाले। 04O 35 22 परन्तु यदि कोई किसी को बिना सोचे, और बिना शत्रुता रखे ढकेल दे, वा बिना घात लगाए उस पर कुछ फेंक दे, 04O 35 23 वा ऐसा कोई पत्थर लेकर, जिस से कोई मर सकता है, दूसरे को बिना देखे उस पर फेंक दे, और वह मर जाए, परन्तु वह न उसका शत्रु हो, और न उसकी हानि का खोजी रहा हो; 04O 35 24 तो मण्डली मारनेवाले और लोहू का पलटा लेनेवाले के बीच इन नियमों के अनुसार न्याय करे; 04O 35 25 और मण्डली उस खूनी को लोहू के पलटा लेनेवाले के हाथ से बचाकर उस शरणनगर में जहां वह पहिले भाग गया हो लौटा दे, और जब तक पवित्रा तेल से अभिषेक किया हुआ महायाजक न मर जाए तब तक वह वहीं रहे। 04O 35 26 परन्तु यदि वह खूनी उस शरणस्थान के सिवाने से जिस में वह भाग गया हो बाहर निकलकर और कहीं जाए, 04O 35 27 और लोहू का पलटा लेनेवाला उसको शरणस्थान के सिवाने के बाहर कहीं पाकर मार डाले, तो वह लोहू बहाने का दोषी न ठहरे। 04O 35 28 क्योंकि खूनी को महायाजक की मृत्यु तक शरणस्थान में रहना चाहिये; और महायाजक के मरने के पश्चात् वह अपनी निज भूमि को लौट सकेगा। 04O 35 29 तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में तुम्हारे सब रहने के स्थानों में न्याय की यह विधि होगी। 04O 35 30 और जो कोई किसी मनुष्य को मार डाले वह साक्षियों के कहने पर मार डाला जाए, परन्तु एक ही साक्षी की साक्षी से कोई न मार डाला जाए। 04O 35 31 और जो खूनी प्राणदण्ड के योग्य ठहरे उस से प्राणदण्ड के बदले में जुरमाना न लेना; वह अवश्य मार डाला जाए। 04O 35 32 और जो किसी शरणस्थान में भागा हो उसके लिये भी इस मतलब से जुरमाना न लेना, कि वह याजक के मरने से पहिले फिर अपने देश मे रहने को लौटने पाएं। 04O 35 33 इसलिये जिस देश में तुम रहोगे उसको अशुद्ध न करना; खून से तो देश अशुद्ध हो जाता है, और जिस देश में जब खून किया जाए तब केवल खूनी के लोहू बहाने ही से उस देश का प्रायश्चित्त हो सकता है। 04O 35 34 जिस देश में तुम निवास करोगे उसके बीच मै रहूंगा, उसको अशुद्ध न करना; मैं यहोवा तो इस्त्राएलियों के बीच रहता हूं।। 04O 36 1 फिर यूसुफियों के कुलों में से गिलाद, जो माकीर का पुत्रा और मनश्शे का पोता था, उसके वंश के कुल के पितरों के घरानों के मुख्य मुख्य पुरूष मूसा के समीप जाकर उस प्रधानों के साम्हने, जो इस्त्राएलियों के पितरों के घरानों के मुख्य पुरूष थे, कहने लगे, 04O 36 2 यहोवा ने हमारे प्रभु को आज्ञा दी थी, कि इस्त्राएलियों को चिट्ठी डालकर देश बांट देना; और फिर यहोवा की यह भी आज्ञा हमारे प्रभु को मिली, कि हमारे सगोत्री सलोफाद का भाग उसकी बेटियों को देना। 04O 36 3 तो यदि वे इस्त्राएलियों के और किसी गोत्रा के पुरूषों से ब्याही जाएं, तो उनका भाग हमारे पितरों के भाग से छूट जाएगा, और जिस गोत्रा में से ब्याही जाएं उसी गोत्रा के भाग में मिल जाएगा; तब हमारा भाग घट जाएगा। 04O 36 4 और जब इस्त्राएलियों की जुबली होगी, तब जिस गोत्रा में वे ब्याही जाएं उसके भाग में उनका भाग पक्की रीति से मिल जाएगा; और वह हमारे पितरों के गोत्रा के भाग से सदा के लिये छूट जाएगा। 04O 36 5 तब यहोवा से आज्ञा पाकर मूसा ने इस्त्राएलियों से कहा, यूसुफियों के गोत्री ठीक कहते हैं। 04O 36 6 सलोफाद की बेटियों के विषय में यहोवा ने यह आज्ञा दी है, कि जो वर जिसकी दृष्टि में अच्छा लगे वह उसी से ब्याही जाए; परन्तु वे अपने मूलपुरूष ही के गोत्रा के कुल में ब्याही जाएं। 04O 36 7 और इस्त्राएलियों के किसी गोत्रा का भाग दूसरे के गोत्रा के भाग में ने मिलने पाए; इस्त्राएली अपने अपने मूलपुरूष के गोत्रा के भाग पर बने रहें। 04O 36 8 और इस्त्राएलियों के किसी गोत्रा में किसी की बेटी हो जो भाग पानेवाली हो, वह अपने ही मूलपुरूष के गोत्रा के किसी पुरूष से ब्याही जाए, इसलिये कि इस्त्राएली अपने अपने मूलपुरूष के भाग के अधिकारी रहें। 04O 36 9 किसी गोत्रा का भाग दूसरे गोत्रा के भाग में मिलने न पाएं; इस्त्राएलियों के एक एक गोत्रा के लोग अपने अपने भाग पर बने रहें। 04O 36 10 यहोवा की आज्ञा के अनुसार जो उस ने मूसा को दी सलोफाद की बेटियों ने किया। 04O 36 11 अर्थात् महला, तिर्सा, होग्ला, मिलका, और नोआ, जो सलोफाद की बेटियां थी, उन्हों ने अपने चचेरे भाइयों से ब्याह किया। 04O 36 12 वे यूसुफ के पुत्रा मनश्शे के वंश के कुलों में ब्याही गई, और उनका भाग उनके मूलपुरूष के कुल के गोत्रा के अधिकार में बना रहा।। 04O 36 13 जो आज्ञाएं और नियम यहोवा ने मोआब के अराबा में यरीहो के पास की यरदन नदी के तीर पर मूसा के द्वारा इस्त्राएलियों को दिए वे ये ही हैं।। 05O 1 1 जो बातें मूसा ने यरदन के पार जंगल में, अर्थात् सूप के सामने के अराबा में, और पारान और तोपेल के बीच, और लाबान हसरोत और दीजाहाब में, सारे इस्त्राएलियों से कहीं वे ये हैं। 05O 1 2 होरेब से कादेशबर्ने तक सेइर पहाड़ का मार्ग ग्यारह दिन का हैं। 05O 1 3 चालीसवें वर्ष के ग्यारहवें महीने के पहिले दिन को जो कुछ यहोवा ने मूसा को इस्त्राएलियों से कहने की आज्ञा दी थी, उसके अनुसार मूसा उन से ये बातें कहने लगा। 05O 1 4 अर्थात् जब मूसा ने ऐमोरियों के राजा हेशबोनवासी सीहोन और बाशान के राजा अशतारोतवासी ओग को एद्रेई में मार डाला, 05O 1 5 उसके बाद यरदन के पार मोआब देश में वह व्यवस्था का विवरण यों करने लगा, 05O 1 6 कि हमारे परमेश्वर यहोवा ने होरेब के पास हम से कहा था, कि तुम लोगों को इस पहाड़ के पास रहते हुए बहुत दिन हो गए हैं; 05O 1 7 इसलिये अब यहॉ से कूच करो, और एमोरियों के पहाड़ी देश को, और क्या अराबा में, क्या पहाड़ों में, क्या नीचे के देश में, क्या दक्खिन देश में, क्या समुद्र के तीर पर, जितने लोग एमोरियों के पास रहते हैं उनके देश को, अर्थात् लबानोन पर्वत तक और परात नाम महानद तक रहनेवाले कनानियों के देश को भी चले जाओ। 05O 1 8 सुनो, मैं उस देश को तुम्हारे साम्हने किऐ देता हॅू; जिस देश के विषय यहोवा ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब, तुम्हारे पितरों से शपथ खाकर कहा था, कि मैं इसे तुम को और तुम्हारे बाद तुम्हारे वंश को दूंगा, उसको अब जाकर अपने अधिकार में कर लो। 05O 1 9 फिर उसी समय मैं ने तुम से कहा, कि मैं तुम्हारा भार अकेला नहीं सह सकता; 05O 1 10 क्योंकि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को यहॉ तक बढ़ाया है, कि तुम गिनती में आज आकाश के तारों के समान हो गये हो। 05O 1 11 तुम्हारे पितरों का परमेश्वर तुम को हजारगुणा और भी बढ़ाए, और अपने वचन के अनुसार तुम को आशीष भी देता रहे। 05O 1 12 परन्तु तुम्हारे जंजाल, और भार, और झगड़े रगड़े को मैं अकेला कहॉ तक सह सकता हॅू। 05O 1 13 सो तुम अपने एक एक गोत्रा में से बुद्धिमान और समझदार और प्रसिद्ध पुरूष चुन लो, और मैं उन्हें तुम पर मुखिया ठहराऊॅगा। 05O 1 14 इसके उत्तर में तुम ने मुझ से कहा, जो कुछ तू हम से कहता है उसका करना अच्छा है। 05O 1 15 इसलिये मैं ने तुम्हारे गोत्रों के मुख्य पुरूषों को जो बुद्धिमान और प्रसिद्ध पुरूष थे चुनकर तुम पर मुखिया नियुक्त किया, अर्थात् हजार हजार, सौ सौ, पचास पचास, और दस दस के ऊपर प्रधान और तुम्हारे गोत्रों के सरदार भी नियुक्त किए। 05O 1 16 और उस समय मैं ने तुम्हारे न्यायियों को आज्ञा दी, कि तुम अपने भाइयों के मुक मे सुना करो, और उनके बीच और उनके पड़ोसियों और परदेशियों के बीच भी धर्म से न्याय किया करो। 05O 1 17 न्याय करते समय किसी का पक्ष न करना; जैसे बड़े की वैसे ही छोटे मनुष्य की भी सुनना; किसी का मुॅह देखकर न डरना, क्योंकि न्याय परमेश्वर का काम है; और जो मुक मा तुम्हारे लिये कठिन हो, वह मेरे पास ले आना, और मैं उसे सुनूंगा। 05O 1 18 और मैं ने उसी समय तुम्हारे सारे कर्त्तव्य कर्म तुम को बता दिए।। 05O 1 19 और हम होरेब से कूच करके अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार उस सारे बड़े और भयानक जंगल में होकर चले, जिसे तुम ने एमोरियों के पहाड़ी देश के मार्ग में देखा, और हम कादेशबर्ने तक आए। 05O 1 20 वहाँ मैं ने तुम से कहा, तुम एमोरियों के पहाड़ी देश तक आ गए हो जिसको हमारा परमेश्वर यहोवा हमें देता है। 05O 1 21 देखो, उस देश को तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे साम्हने किए देता है, इसलिऐ अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा के वचन के अनुसार उस पर चढ़ो, और उसे अपने अधिकार में ले लो; न तो तुम डरो और न तुम्हारा मन कच्चा हो। 05O 1 22 और तुम सब मेरे पास आकर कहने लगे, हम अपने आगे पुरूषों को भेज देंगे, जो उस देश का पता लगाकर हम को यह सन्देश दें, कि कौन सा मार्ग होकर चलना होगा और किस किस नगर में प्रवेश करना पड़ेगा? 05O 1 23 इस बात से प्रसन्न होकर मैं ने तुम में से बारह पुरूष, अर्थात् गोत्रा पीछे एक पुरूष चुन लिया; 05O 1 24 और वे पहाड़ पर चढ़ गए, और एशकोल नाम नाले को पहुँचकर उस देश का भेद लिया। 05O 1 25 और उस देश के फलों में से कुछ हाथ में लेकर हमारे पास आए, और हम को यह सन्देश दिया, कि जो देश हमारा परमेश्वर यहोवा हमें देता है वह अच्छा है। 05O 1 26 तौभी तुम ने वहाँ जाने से नाह किया, किन्तु अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के विरूद्ध होकर 05O 1 27 अपने अपने डेरे में यह कहकर कुड़कुड़ाने लगे, कि यहोवा हम से बैर रखता है, इस कारण हम को मि देश से निकाल ले आया है, कि हम को एमोरियों के वश में करके सत्यनाश कर डाले। 05O 1 28 हम किधर जाएँ? हमारे भाइयोें ने यह कहके हमारे मन को कच्चा कर दिया है, कि वहाँ के लोग हम से बड़े और लम्बे हैं; और वहाँ के नगर बड़े बड़े हैं, और उनकी शहरपनाह आकाश से बातें करती हैं; और हम ने वहाँ अनाकवंशियों को भी देखा है। 05O 1 29 मैं ने तुम से कहा, उनके कारण त्रास मत खाओ और न डरो। 05O 1 30 तुम्हारा परमेश्वर यहोवा जो तुम्हारे आगे आगे चलता है वह आप तुम्हारी ओर से लड़ेगा, जैसे कि उस ने मिस्र में तुम्हारे देखते तुम्हारे लिये किया; 05O 1 31 फिर तुम ने जंगल में भी देखा, कि जिस रीति कोई पुरूष अपने लड़के को उठाए चलता है, उसी रीति हमारा परमेश्वर यहोवा हम को इस स्थान पर पहुँचने तक, उस सारे मार्ग में जिस से हम आए हैं, उठाये रहा। 05O 1 32 इस बात पर भी तुम ने अपने उस परमेश्वर यहोवा पर विश्वास नहीं किया, 05O 1 33 जो तुम्हारे आगे आगे इसलिये चलता रहा, कि डेरे डालने का स्थान तुम्हारे लिये ढूंढ़े, और रात को आग में और दिन को बादल में प्रगट होकर चला, ताकि तुम को वह मार्ग दिखाए जिस से तुम चलो। 05O 1 34 परन्तु तुम्हारी वे बातें सुनकर यहोवा का कोप भड़क उठा, और उस ने यह शपथ खाई, 05O 1 35 कि निश्चय इस बुरी पीढ़ी के मनुष्यों में से एक भी उस अच्छे देश को देखने न पाऐगा, जिसे मैं ने उनके पितरों को देने की शपथ खाई थी। 05O 1 36 यपुन्ने का पुत्रा कालेब ही उसे देखने पाऐगा, और जिस भूमि पर उसके पाँव पड़े हैं उसे मैं उसको और उसके वंश को भी दूंगा; क्योंकि वह मेरे पीछे पूरी रीति से हो लिया है। 05O 1 37 और मुझ पर भी यहोवा तुम्हारे कारण क्रोधित हुआ, और यह कहा, कि तू भी वहाँ जाने न पाएगा; 05O 1 38 नून का पुत्रा यहोशू जो तेरे साम्हने खड़ा रहता है, वह तो वहाँ जाने पाएगा; सो तू उसको हियाव दे, क्योंकि उस देश को इस्राएलियों के अधिकार में वही कर देगा। 05O 1 39 फिर तुम्हारे बालबच्चे जिनके विषय में तुम कहते हो, कि ये लूट में चले जाएंगे, और तुम्हारे जो लड़केबाले अभी भले बुरे का भेद नहीं जानते, वे वहाँ प्रवेश करेंगे, और उनको मैं वह देश दूँगा, और वे उसके अधिकारी होंगे। 05O 1 40 परन्तु तुम लोग घूमकर कूच करो, और लाल समुद्र के मार्ग से जंगल की ओर जाओ। 05O 1 41 तब तुम ने मुझ से कहा, हम ने यहोवा के विरूद्व पाप किया हैं; अब हम अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार चढ़ाई करेंगे और लड़ेंगे। तब तुम अपने अपने हथियार बान्धकर पहाड़ पर बिना सोचे समझे चढ़ने को तैयार हो गए। 05O 1 42 तब यहोवा ने मुझ से कहा, उन से कह दे, कि तुम मत चढ़ो, और न लड़ो; क्योंकि मैं तुम्हारे मध्य में नहीं हँू; कहीं ऐसा न हो कि तुम अपने शत्रुओं से हार जाओ। 05O 1 43 यह बात मैं ने तुम से कह दी, परन्तु तुम ने न मानी; किन्तु ढ़िठाई से यहोवा की आज्ञा का उल्लंघन करके पहाड़ पर चढ़ गए। 05O 1 44 तब उस पहाड़ के निवासी एमोरियों ने तुम्हारा साम्हना करने को निकलकर मधुमक्खियों की नाई तुम्हारा पीछा किया, और सेईर देश के होर्मा तक तुम्हें मारते मारते चले आए। 05O 1 45 तब तुम लौटकर यहोवा के साम्हने रोने लगे; परन्तु यहोवा ने तुम्हारी न सुनी, न तुम्हारी बातों पर कान लगाया। 05O 1 46 और तुम कादेश में बहुत दिनों तक पड़े रहे, यहाँ तक कि एक जुग हो गया।। 05O 2 1 तब उस आज्ञा के अनुसार, जो यहोवा ने मुझ को दी थी, हम ने घूमकर कूच किया, और लाल समुद्र के मार्ग के जंगल की ओर चले; और बहुत दिन तक सेईर पहाड़ के बाहर बाहर चलते रहे। 05O 2 2 तब यहोवा ने मुझ से कहा, 05O 2 3 तुम लोगों को इस पहाड़ के बाहर बाहर चलते हुए बहुत दिन बीत गए, अब घूमकर उत्तर की ओर चलो। 05O 2 4 और तू प्रजा के लोगों को मेरी यह आज्ञा सुना, कि तुम सेईर के निवासी अपने भाई एसावियों के सिवाने के पास होकर जाने पर हो; और वे तुम से डर जाएँगे। इसलिये तुम बहुत चौकस रहो; 05O 2 5 उन्हें न छेड़ना; क्योंकि उनके देश में से मैं तुम्हें पाँव धरने का ठौर तक न दूँगा, इस कारण कि मैं ने सेईर पर्वत एसावियों के अधिकार में कर दिया हैं। 05O 2 6 तुम उन से भोजन रूपये से मोल लेकर खा सकोगे, और रूपया देकर कुंओं से पानी भरके पी सकोगे। 05O 2 7 क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे हाथों के सब कामों के विषय तुम्हें आशीष देता आया है; इस भारी जंगल में तुम्हारा चलना फिरना वह जानता हैं; इन चालीस वर्षो में तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे संग संग रहा है; और तुम को कुछ घटी नहीं हुई। 05O 2 8 यों हम सेईर निवासी और अपने भाई एसावियों के पास से होकर, अराबा के मार्ग, और एलत और एस्योनगेबेर को पीछे छोड़कर चलें।। फिर हम मुड़कर मोआब के जंगल के मार्ग से होकर चले। 05O 2 9 और यहोवा ने मुझ से कहा, मोआबियों को न सताना और न लड़ाई छेड़ना, क्योंकि मैं उनके देश में से कुछ भी तेरे अधिकार में न कर दूँगा क्योंकि मैं ने आर को लूतियों के अधिकार में किया है। 05O 2 10 (अगले दिनों में वहाँ एमी लोग बसे हुए थे, जो अनाकियों के समान बलवन्त और लम्बे लम्बे और गिनती में बहुत थे; 05O 2 11 और अनाकियों की नाई वे भी रपाई गिने जाते थे, परन्तु मोआबी उन्हें एमी कहते हैं। 05O 2 12 और अगले दिनों में सेईर में होरी लोग बसे हुए थे, परन्तु एसावियों ने उनको उस देश से निकाल दिया, और अपने साम्हने से नाश करके उनके स्थान पर आप बस गए; जैसे कि इस्राएलियों ने यहोवा के दिये हुए अपने अधिकार के देश में किया।) 05O 2 13 अब तुम लोग कूच करके जेरेद नदी के पार जाओ; तब हम जेरेद नदी के पार आए। 05O 2 14 और हमारे कादेशबर्ने को छोड़ने से लेकर जेरेद नदीे पार होने तक अड़तीस वर्ष बीत गए, उस बीच में यहोवा की शपथ के अनुसार उस पीढ़ी के सब योद्धा छावनी में से नाश हो गए। 05O 2 15 और जब तक वे नाश न हुए तब तक यहोवा का हाथ उन्हें छावनी में से मिटा डालने के लिये उनके विरूद्ध बढ़ा ही रहा 05O 2 16 जब सब योद्धा मरते मरते लोगों के बीच में से नाश हो गए, 05O 2 17 तब यहोवा ने मुझ से कहा, 05O 2 18 अब मोआब के सिवाने, अर्थात आर को पार कर; 05O 2 19 और जब तू अम्मोनियों के साम्हने जाकर उनके निकट पहुँचे, तब उनको न सताना और न छेड़ना, क्योंकि मैं अम्मोनियों के देश में से कुछ भी तेरे अधिकार में न करूँगा, क्योंकि मैं ने उसे लूसियों के अधिकार में कर दिया है। 05O 2 20 (वह देश भी रपाइयों का गिना जाता था, क्योंकि अगले दिनों में रपाई, जिन्हें अम्मोनी जमजुम्मी कहते थे, वे वहाँ रहते थे; 05O 2 21 वे भी अनाकियों के समान बलवान और लम्बे लम्बे और गिनती में बहुत थे; परन्तु यहोवा ने उनको अम्मोनियों के साम्हने से नाश कर डाला, और उन्हों ने उनको उस देश से निकाल दिया, और उनके स्थान पर आप रहने लगे; 05O 2 22 जैसे कि उस ने सेईर के निवासी एसावियों के साम्हने से होरियों को नाश किया, और उन्हों ने उनको उस देश से निकाल दिया, और आज तक उनके स्थान पर वे आप निवास करते हैं। 05O 2 23 वैसा ही अव्वियों को, जो अज्जा नगर तक गाँवों में बसे हुए थे, उनको कप्तोरियों ने जो कप्तोर से निकले थे नाश किया, और उनके स्थान पर आप रहने लगे।) 05O 2 24 अब तुम लोग उठकर कूच करो, और अर्नोन के नाले के पार चलो; सुन, मैं देश समेत हेशबोन के राजा एमोरी सीहोन को तेरे हाथ में कर देता हूँ; इसलिये उस देश को अपने अधिकार में लेना आरम्भ करो, और उस राजा से युद्ध छेड़ दो। 05O 2 25 और जितने लोग धरती पर रहते हैं उन सभों के मन में मैं आज ही के दिन से तेरे कारण डर और थरथराहट समवाने लगूंगा; वे तेरा समाचार पाकर तेरे डर के मारे कांपेंगे और पीड़ित होंगे।। 05O 2 26 और मैं ने कदेमोत नाम जंगल से हेशबोन के राजा सीहोन के पास मेल की ये बातें कहने को दूत भेजे, 05O 2 27 कि मुझे अपने देश में से होकर जाने दे; मैं राजपथ पर चला जाऊँगा, और दहिने और बांए हाथ न मुड़ूँगा। 05O 2 28 तू रूपया लेकर मेरे हाथ भोजनवस्तु देना कि मैं खाऊं, और पानी भी रूपया लेकर मुझ को देना कि मैं पीऊं; केवल मुझे पांव पांव चले जाने दे, 05O 2 29 जैसा सेईर के निवासी एसावियों ने और आर के निवासी मोआबियों ने मुझ से किया, वैसा ही तू भी मुझ से कर, इस रीति मैं यरदन पार होकर उस देश में पहुंचूंगा जो हमारा परमेश्वर यहोवा हमें देता है। 05O 2 30 परन्तु हेशबोन के राजा सीहोन ने हम को अपने देश में से होकर चलने न दिया; क्योंकि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने उसका चित्त कठोर और उसका मन हठीला कर दिया था, इसलिये कि उसको तुम्हारे हाथ में कर दे, जैसा कि आज प्रकट है। 05O 2 31 और यहोवा ने मुझ से कहा, सुन, मैं देश समेत सीहोन को तेरे वश में कर देने पर हूँ; उस देश को अपने अधिकार में लेना आरम्भ कर। 05O 2 32 तब सीहोन अपनी सारी सेना समेत निकल आया, और हमारा साम्हना करके युद्ध करने को यहस तक चढ़ा आया। 05O 2 33 और हमारे परमेश्वर यहोवा ने उसको हमारे द्वारा हरा दिया, और हम ने उसको पुत्रों और सारी सेना समेत मार डाला। 05O 2 34 और उसी समय हम ने उसके सारे नगर ले लिए, और एक एक बसे हुए नगर का स्त्रियों और बालबच्चों समेत यहाँ तक सत्यनाश किया कि कोई न छूटा; 05O 2 35 परन्तु पशुओं को हम ने अपना कर लिया, और उन नगरों की लूट भी हम ने ले ली जिनको हम ने जीत लिया था। 05O 2 36 अर्नोन के नाले के छोरवाले अरोएर नगर से लेकर, गिलाद तक कोई नगर ऐसा ऊँचा न रहा जो हमारे साम्हने ठहर सकता था; क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा ने सभों को हमारे वश में कर दिया। 05O 2 37 परन्तु हम अम्मोनियों के देश के निकट, वरन यब्बोक नदी के उस पार जितना देश है, और पहाड़ी देश के नगर जहाँ जहाँ जाने से हमारे परमेश्वर यहोवा ने हम को मना किया था, वहाँ हम नहीं गए। 05O 3 1 तब हम मुड़कर बाशान के मार्ग से चढ़ चले; और बाशान का ओग नाम राजा अपनी सारी सेना समेत हमारा साम्हना करने को निकल आया, कि एद्रेई में युद्ध करे। 05O 3 2 तब यहोवा ने मुझ से कहा, उस से मत डर; क्योंकि मैं उसको सारी सेना और देश समेत तेरे हाथ में किए देता हूँ; और जैसा तू ने हेशबोन के निवासी एमोरियों के राजा सीहोन से किया है वैसा ही उस से भी करना। 05O 3 3 सो इस प्रकार हमारे परमेश्वर यहोवा ने सारी सेना समेत बाशान के राजा ओग को भी हमारे हाथ में कर दिया; और हम उसको यहाँ तक मारते रहे कि उन में से कोई भी न बच पाया। 05O 3 4 उसी समय हम ने उनके सारे नगरों को ले लिया, कोई ऐसा नगर न रह गया जिसे हम ने उस से न ले लिया हो, इस रीति अर्गोब का सारा देश, जो बाशान में ओग के राज्य में था और उस में साठ नगर थे, वह हमारे वश में आ गया। 05O 3 5 ये सब नगर गढ़वाले थे, और उनके ऊंची ऊंची शहरपनाह, और फाटक, और बेड़े थे, और इनको छोड़ बिना शहरपनाह के भी बहुत से नगर थे। 05O 3 6 और जैसा हम ने हेशबोन के राजा सीहोन के नगरों से किया था वैसा ही हम ने इन नगरों से भी किया, अर्थात सब बसे हुए नगरों को स्त्रियों और बालबच्चों समेत सत्यानाश कर डाला। 05O 3 7 परन्तु सब घरेलू पशु और नगरों की लूट हम ने अपनी कर ली। 05O 3 8 यों हम ने उस समय यरदन के इस पार रहनेवाले एमोरियों के दोनों राजाओं के हाथ से अर्नोन के नाले से लेकर हेर्मोन पर्वत तक का देश ले लिया। 05O 3 9 (हेर्मोन को सीदोनी लोग सिर्योन, और एमोरी लोग सनीर कहते हैं।) 05O 3 10 समथर देश के सब नगर, और सारा गिलाद, और सल्का, और एर्देई तक जो ओग के राज्य के नगर थे, सारा बाशान हमारे वश में आ गया। 05O 3 11 जो रपाई रह गए थे, उन में से केवल बाशान का राजा ओग रह गया था, उसकी चारपाई जो लोहे की है वह तो अम्मोनियों के रब्बा नगर में पड़ी है, साधारण पुरूष के हाथ के हिसाब से उसकी लम्बाई नौ हाथ की और चौड़ाई चार हाथ की है। 05O 3 12 जो देश हम ने उस समय अपने अधिकार में ले लिया वह यह है, अर्थात अर्नोन के नाले के किनारेवाले अरोएर नगर से ले सब नगरों समेत गिलाद के पहाड़ी देश का आधा भाग, जिसे मैं ने रूबेनियों और गादियों को दे दिया, 05O 3 13 और गिलाद का बचा हुआ भाग, और सारा बाशान, अर्थात अर्गोब का सारा देश जो ओग के राज्य में था, इन्हें मैं ने मनश्शे के आधे गोत्रा को दे दिया। (सारा बाशान तो रपाइयों का देश कहलाता है। 05O 3 14 और मनश्शेई याईर ने गशूरियों और माकावासियों के सिवानों तक अर्गोब का सारा देश ले लिया, और बाशान के नगरों का नाम अपने नाम पर हब्बोत्याईर रखा, और वही नाम आज तक बना है।) 05O 3 15 और मैं ने गिलाद देश माकीर को दे दिया, 05O 3 16 और रूबेनियों और गादियों को मैं ने गिलाद से ले अर्नोन के नाले तक का देश दे दिया, अर्थात उस नाले का बीच उनका सिवाना ठहराया, और यब्बोक नदी तक जो अम्मोनियों का सिवाना है; 05O 3 17 और किन्नेरेत से ले पिसगा की सलामी के नीचे के अराबा के ताल तक, जो खारा ताल भी कहलाता है, अराबा और यरदन की पूर्व की ओर का सारा देश भी मैं ने उन्हीं को दे दिया।। 05O 3 18 और उस समय मैं ने तुम्हें यह आज्ञा दी, कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें यह देश दिया है कि उसे अपने अधिकार में रखो; तुम सब योद्धा हथियारबन्द होकर अपने भाई इस्राएलियों के आगे आगे पार चलो। 05O 3 19 परन्तु तुम्हारी स्त्रियाँ, और बालबच्चे, और पशु, जिन्हें मैं जानता हूँ कि बहुत से हैं, वह सब तुम्हारे नगरों में जो मैं ने तुम्हें दिए हैं रह जाएँ। 05O 3 20 और जब यहोवा तुम्हारे भाइयों को वैसा विश्राम दे जैसा कि उस ने तुम को दिया है, और वे उस देश के अधिकारी हो जाएँ जो तुम्हारा परमेश्वर यहोवा उन्हें यरदन पार देता है; तब तुम भी अपने अपने अधिकार की भूमि पर जो मैं ने तुम्हें दी है लौटोगे। 05O 3 21 फिर मैं ने उसी समय यहोशू से चिताकर कहा, तू ने अपनी आँखो से देखा है कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने इन दोनों राजाओं से क्या क्या किया है; वैसा ही यहोवा उन सब राज्यों से करेगा जिन में तू पार होकर जाएगा। 05O 3 22 उन से न डरना; क्योंकि जो तुम्हारी ओर से लड़नेवाला है वह तुम्हारा परमेश्वर यहोवा है।। 05O 3 23 उसी समय मैं ने यहोवा से गिड़गिड़ाकर बिनती की, कि हे प्रभु यहोवा, 05O 3 24 तू अपने दास को अपनी महिमा और बलवन्त हाथ दिखाने लगा है; स्वर्ग में और पृथ्वी पर ऐसा कौन देवता है जो तेरे से काम और पराक्रम के कर्म कर सके? 05O 3 25 इसलिये मुझे पार जाने दे कि यरदन पारके उस उत्तम देश को, अर्थात उस उत्तम पहाड़ और लबानोन को भी देखने पाऊँ। 05O 3 26 परन्तु यहोवा तुम्हारे कारण मुझ से रूष्ट हो गया, और मेरी न सुनी; किन्तु यहोवा ने मुझ से कहा, बस कर; इस विषय में फिर कभी मुझ से बातें न करना। 05O 3 27 पिसगा पहाड़ की चोटी पर चढ़ जा, और पूर्व, पच्छिम, उत्तर, दक्खिन, चारों ओर दृष्टि करके उस देश को देख ले; क्योंकि तू इस यरदन के पार जाने न पाएगा। 05O 3 28 और यहोशू को आज्ञा दे, और उसे ढाढ़स देकर दृढ़ कर; क्योंकि इन लोगों के आगे आगे वही पार जाऐगा, और जो देश तू देखेगा उसको वही उनका निज भाग करा देगा। 05O 3 29 तब हम बेतपोर के साम्हने की तराई में ठहरे रहे।। 05O 4 1 अब, हे इस्राएल, जो जो विधि और नियम मैं तुम्हें सिखाना चाहता हूं उन्हें सुन लो, और उन पर चलो; जिस से तुम जीवित रहो, और जो देश तुम्हारे पितरों का परमेश्वर यहोवा तुम्हें देता है उस में जाकर उसके अधिकारी हो जाओ। 05O 4 2 जो आज्ञा मैं तुम को सुनाता हूं उस में न तो कुछ बढ़ाना, और न कुछ घटाना; तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की जो जो आज्ञा मैं तुम्हें सुनाता हूं उन्हें तुम मानना। 05O 4 3 तुम ने तो अपनी आंखों से देखा है कि बालपोर के कारण यहोवा ने क्या क्या किया; अर्थात् जितने मनुष्य बालपोर के पीछे हो लिये थे उन सभों को तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हारे बीच में से सत्यानाश कर डाला; 05O 4 4 परन्तु तुम जो अपने परमेश्वर यहोवा के साथ लिपटे रहे हो सब के सब आज तक जीवित हो। 05O 4 5 सुनो, मैं ने तो अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार तुम्हें विधि और नियम सिखाए हैं, कि जिस देश के अधिकारी होने जाते हो उस में तुम उनके अनुसार चलो। 05O 4 6 सो तुम उनको धारण करना और मानना; क्योंकि और देशों के लोगों के साम्हने तुम्हारी बुद्धि और समझ इसी से प्रगट होगी, अर्थात् वे इन सब विधियों को सुनकर कहेंगे, कि निश्चय यह बड़ी जाति बुद्धिमान और समझदार है। 05O 4 7 देखो, कौन ऐसी बड़ी जाति है जिसका देवता उसके ऐसे समीप रहता हो जैसा हमारा परमेश्वर यहोवा, जब कि हम उस को पुकारते हैं? 05O 4 8 फिर कौन ऐसी बड़ी जाति है जिसके पास ऐसी धर्ममय विधि और नियम हों, जैसी कि यह सारी व्यवस्था जिसे मैं आज तुम्हारे साम्हने रखता हूं? 05O 4 9 यह अत्यन्त आवश्यक है कि तुम अपने विषय में सचेत रहो, और अपने मन की बड़ी चौकसी करो, कहीं ऐसा न हो कि जो जो बातें तुम ने अपनी आंखों से देखीं उनको भूल जाओ, और वह जीवन भर के लिये तुम्हारे मन से जाती रहे; किन्तु तुम उन्हें अपने बेटों पोतों को सिखाना। 05O 4 10 विशेष करके उस दिन की बातें जिस में तुम होरेब के पास अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने खड़े थे, जब यहोवा ने मुझ से कहा था, कि उन लोगों को मेरे पास इकट्ठा कर कि मैं उन्हें अपने वचन सुनाऊं, जिस से वे सीखें, ताकि जितने दिन वे पृथ्वी पर जीवित रहें उतने दिन मेरा भय मानते रहें, और अपने लड़के बालों को भी यही सिखाएं। 05O 4 11 तब तुम समीप जाकर उस पर्वत के नीचे खड़े हुए, और वह पहाड़ आग से धधक रहा था, और उसकी लौ आकाश तक पहुंचती थी, और उसके चारों ओर अन्धियारा, और बादल, और घोर अन्धकार छाया हुआ था। 05O 4 12 तक यहोवा ने उस आग के बीच में से तुम से बातें की; बातों का शब्द तो तुम को सुनाई पड़ा, परन्तु कोई रूप न देखा; केवल शब्द ही शब्द सुन पड़ा। 05O 4 13 और उस ने तुम को अपनी वाचा के दसों वचन बताकर उनके मानने की आज्ञा दी; और उन्हें पत्थर की दो पटियाओं पर लिख दिया। 05O 4 14 और मुझ को यहोवा ने उसी समय तुम्हें विधि और नियम सिखाने की आज्ञा दी, इसलिये कि जिस देश के अधिकारी होने को तुम पार जाने पर हो उस में तुम उनको माना करो। 05O 4 15 इसलिये तुम अपने विषय में बहुत सावधान रहना। क्योंकि जब यहोवा ने तुम से होरेब पर्वत पर आग के बीच में से बातें की तब तुम को कोई रूप न देख पड़ा, 05O 4 16 कहीं ऐसा न हो कि तुम बिगड़कर चाहे पुरूष चाहे स्त्री के, 05O 4 17 चाहे पृथ्वी पर चलनेवाले किसी पशु, चाहे आकाश में उड़नेवाले किसी पक्षी के, 05O 4 18 चाहे भूमि पर रेंगनेवाले किसी जन्तु, चाहे पृथ्वी के जल में रहनेवाली किसी मछली के रूप की कोई मूर्त्ति खोदकर बना लो, 05O 4 19 वा जब तुम आकाश की ओर आंखे उठाकर, सूर्य, चंद्रमा, और तारों को, अर्थात् आकाश का सारा तारागण देखो, तब बहककर उन्हें दण्डवत् करके उनकी सेवा करने लगो जिनको तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने धरती पर के सब देशवालों के लिये रखा है। 05O 4 20 और तुम को यहोवा लोहे के भट्ठे के सरीखे मि देश से निकाल ले आया है, इसलिये कि तुम उसकी प्रजारूपी निज भाग ठहरो, जैसा आज प्रगट है। 05O 4 21 फिर तुम्हारे कारण यहोवा ने मुझ से क्रोध करके यह शपथ खाई, कि तू यरदन पार जाने न पाएगा, और जो उत्तम देश इस्राएलियों का परमेश्वर यहोवा उन्हें उनका निज भाग करके देता है उस में तू प्रवेश करने न पाएगा। 05O 4 22 किन्तु मुझे इसी देश में मरना है, मैं तो यरदन पार नहीं जा सकता; परन्तु तुम पार जाकर उस उत्तम देश के अधिकारी हो जाओगे। 05O 4 23 इसलिये अपने विषय में तुम सावधान रहो, कहीं ऐसा न हो कि तुम उस वाचा को भूलकर, जो तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम से बान्धी है, किसी और वस्तु की मूर्त्ति खोदकर बनाओ, जिसे तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को मना किया है। 05O 4 24 क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा भस्म करनेवाली आग है; वह जल उठनेवाला परमेश्वर है।। 05O 4 25 यदि उस देश में रहते रहते बहुत दिन बीत जाने पर, और अपने बेटे- पोते उत्पन्न होने पर, तुम बिगड़कर किसी वस्तु के रूप की मूर्ति खोदकर बनाओ, और इस रीति से अपने परमेश्वर यहोवा के प्रति बुराई करके उसे अप्रसन्न कर दो, 05O 4 26 तो मैं आज आकाश और पृथ्वी को तुम्हारे विरूद्ध साक्षी करके कहता हूं, कि जिस देश के अधिकारी होने के लिये तुम यरदन पार जाने पर हो उस में तुम जल्दी बिल्कुल नाश हो जाओगे; और बहुत दिन रहने न पाओगे, किन्तु पूरी रीति से नष्ट हो जाओगे। 05O 4 27 और यहोवा तुम को देश देश के लोगों में तितर बितर करेगा, और जिन जातियों के बीच यहोवा तुम को पहुंचाएगा उन में तुम थोड़े ही से रह जाओगे। 05O 4 28 और वहां तुम मनुष्य के बनाए हुए लकड़ी और पत्थर के देवताओं की सेवा करोगे, जो न देखते, और न सुनते, और न खाते, और न सूंघते हैं। 05O 4 29 परन्तु वहां भी यदि तुम अपने परमेश्वर यहोवा को ढूंढ़ोगे, तो वह तुम को मिल जाएगा, शर्त यह है कि तुम अपने पूरे मन से और अपने सारे प्राण से उसे ढूंढ़ो। 05O 4 30 अन्त के दिनों में जब तुम संकट में पड़ो, और ये सब विपत्तियां तुम पर आ पड़ेंगी, तब तुम अपने परमेश्वर यहोवा की ओर फिरो और उसकी मानना; 05O 4 31 क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा दयालु ईश्वर है, वह तुम को न तो छोड़ेगा और न नष्ट करेगा, और जो वाचा उस ने तेरे पितरों से शपथ खाकर बान्धी है उसको नहीं भूलेगा। 05O 4 32 और जब से परमेश्वर ने मनुष्य हो उत्पन्न करके पृथ्वी पर रखा तब से लेकर तू अपने उत्पन्न होने के दिन तक की बातें पूछ, और आकाश के एक छोर से दूसरे छोर तक की बातें पूछ, क्या ऐसाी बड़ी बात कभी हुई वा सुनने में आई है? 05O 4 33 क्या कोई जाति कभी परमेश्वर की वाणी आग के बीच में से आती हुई सुनकर जीवित रही, जैसे कि तू ने सुनी है? 05O 4 34 फिर क्या परमेश्वर ने और किसी जाति को दूसरी जाति के बीच में निकालने को कमर बान्धकर परीक्षा, और चिन्ह, और चमत्कार, और युद्ध, और बली हाथ, और बढ़ाई हुई भुजा से ऐसे बड़े भयानक काम किए, जैसे तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने मि में तुम्हारे देखते किए? 05O 4 35 यह सब तुझ को दिखाया गया, इसलिये कि तू जान रखे कि यहोवा ही परमेश्वर है; उसको छोड़ और कोई है ही नहीं। 05O 4 36 आकाश में से उस ने तुझे अपनी वाणी सुनाई कि तुझे शिक्षा दे; और पृथ्वी पर उस ने तुझे अपनी बड़ी आग दिखाई, और उसके वचन आग के बीच में से आते हुए तुझे सुन पड़े। 05O 4 37 और उस ने जो तेरे पितरों से प्रेम रखा, इस कारण उनके पीछे उनके वंश को चुन लिया, और प्रत्यक्ष होकर तुझे अपने बड़े सामर्थ्य के द्वारा मि से इसलिये निकाल लाया, 05O 4 38 कि तुझ से बड़ी और सामर्थी जातियों को तेरे आगे से निकालकर तुझे उनके देश में पहुंचाए, और उसे तेरा निज भाग कर दे, जैसा आज के दिन दिखाई पड़ता है; 05O 4 39 सो आज जान ले, और अपने मन में सोच भी रख, कि ऊपर आकाश में और नीचे पृथ्वी पर यहोवा ही परमेश्वर है; और कोई दूसरा नहीं। 05O 4 40 और तू उसकी विधियों और आज्ञाओं को जो मैं आज तुझे सुनाता हूं मानना, इसलिये कि तेरा और तेरे पीछे तेरे वंश का भी भला हो, और जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में तेरे दिन बहुत वरन सदा के लिये हों। 05O 4 41 तब मूसा ने यरदन के पार पूर्व की ओर तीन नगर अलग किए, 05O 4 42 इसलिये कि जो कोई बिना जाने और बिना पहले से बैर रखे अपने किसी भाई को मार डाले, वह उन में से किसी नगर में भाग जाए, और भागकर जीवित रहे: 05O 4 43 अर्थात् रूबेनियों का बेसेर नगर जो जंगल के समथर देश में है, और गादियों के गिलाद का रामोत, और मनश्शेइयों के बाशान का गोलान। 05O 4 44 फिर जो व्यवस्था मूसा ने इस्राएलियों को दी वह यह है; 05O 4 45 ये ही वे चितौनियां और नियम हैं जिन्हें मूसा ने इस्राएलियों को उस समय कह सुनाया जब वे मि से निकले थे, 05O 4 46 अर्थात् यरदन के पार बेतपोर के साम्हने की तराई में, एमोरियों के राजा हेशबोनवासी सीहोन के देश में, जिस राजा को उन्हों ने मि से निकलने के पीछे मारा। 05O 4 47 और उन्हों ने उसके देश को, और बाशान के राजा ओग के देश को, अपने वश में कर लिया; यरदन के पार सूर्योदय की ओर रहनेवाले एमोरियों के राजाओं के ये देश थे। 05O 4 48 यह देश अर्नोन के नाले के छोरवाले अरोएर से लेकर सीओन, जो हेर्मोन भी कहलाता है, 05O 4 49 उस पर्वत तक का सारा देश, और पिसगा की सलामी के नीचे के अराबा के ताल तक, यरदन पार पूर्व की ओर का सारा अराबा है। 05O 5 1 मूसा ने सारे इस्राएलियों को बुलवाकर कहा, हे इस्राएलियों, जो जो विधि और नियम मैं आज तुम्हें सुनाता हूं वे सुनो, इसलिये कि उन्हें सीखकर मानने में चौकसी करो। 05O 5 2 हमारे परमेश्वर याहोवा ने तो होरेब पर हम से वाचा बान्धी। 05O 5 3 इस वाचा को यहोवा ने हमारे पितरों से नहीं, हम ही से बान्धा, जो यहां आज के दिन जीवित हैं। 05O 5 4 यहोवा ने उस पर्वत पर आग के बीच में से तुम लोगों से आम्हने साम्हने बातें की; 05O 5 5 उस आग के डर के मारे तुम पर्वत पर न चढ़े, इसलिये मैं यहोवा के और तुम्हारे बीच उसका वचन तुम्हें बताने को खड़ा रहा। तब उस ने कहा, 05O 5 6 तेरा परमेश्वर यहोवा, जो तुझे दासत्व के घर आर्थात् मि देश में से निकाल लाया है, वह मैं हूं। 05O 5 7 मुझे छोड़ दूसरों को परमेश्वर करके न मानना।। 05O 5 8 तु अपने लिये कोई मूर्ति खोदकर न बनाना, न किसी की प्रतिमा बनाना जो आकाश में, वा पृथ्वी के जल में है; 05O 5 9 तू उनको दण्डवत् न करना और न उनकी उपासना करना; क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर यहोवा जलन रखनेवाला ईश्वर हूं, और जो मुझ से बैर रखते हैं उनके बेटों, पोतों, और परपोतों को पितरों का दण्ड दिया करता हूं, 05O 5 10 और जो मुझ से प्रेम रखते और मेरी आज्ञाओं को मानते हैं उन हजारों पर करूणा किया करता हूं। 05O 5 11 तू अपने परमेश्वर यहोवा का नाम व्यर्थ न लेना; क्योंकि जो यहोवा का नाम व्यर्थ ले वह उनको निर्दोष न ठहराएगा।। 05O 5 12 तू विश्रामदिन को मानकर पवित्रा रखना, जैसे तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे आज्ञा दी। 05O 5 13 छ: दिन तो परिश्रम करके अपना सारा कामकाज करना; 05O 5 14 परन्तु सातवां दिन तेरे परमेश्वर यहोवा के लिये विश्रामदिन है; उस में न तू किसी भांति का कामकाज करना, न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा दास, न तेरी दासी, न तेरा बैल, न तेरा गदहा, न तेरा कोई पशु, न कोई परदेशी भी जो तेरे फाटकों के भीतर हो; जिस से तेरा दास और तेरी दासी भी तेरी नाई विश्राम करे। 05O 5 15 और इस बात को स्मरण रखना कि मि देश में तू आप दास था, और वहां से तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा के द्वारा निकाल लाया; इस कारण तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे विश्रामदिन मानने की आज्ञा देता है।। 05O 5 16 अपने पिता और अपनी माता का आदर करना, जैसे कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे आज्ञा दी है; जिस से जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में तू बहुत दिन तक रहते पाए, और तेरा भला हो।। 05O 5 17 तू हत्या न करना।। 05O 5 18 तू व्यभिचार न करना।। 05O 5 19 तू चोरी न करना।। 05O 5 20 तू किसी के विरूद्ध झूठी साक्षी न देना।। 05O 5 21 तू न किसी की पत्नी का लालच करना, और न किसी के घर का लालच करना, न उसके खेत का, न उसके दास का, न उसकी दासी का, न उसके बैल वा गदहे का, न उसकी किसी और वस्तु का लालच करना।। 05O 5 22 यही वचन यहोवा ने उस पर्वत पर आग, और बादल, और घोर अन्धकार के बीच में से तुम्हारी सारी मण्डली से पुकारकर कहा; और इस से अधिक और कुछ न कहा। और उन्हें उस ने पत्थर की दो पटियाओं पर लिखकर मुझे दे दिया। 05O 5 23 जब पर्वत आग से दहक रहा था, और तुम ने उस शब्द को अन्धियारे के बीच में से आते सुना, तब तुम और तुम्हारे गोत्रों के सब मुख्य मुख्य पुरूष और तुम्हारे पुरनिए मेरे पास आए; 05O 5 24 और तुम कहने लगे, कि हमारे परमेश्वर यहोवा ने हम को अपना तेज और महीमा दिखाई है, और हम ने उसका शब्द आग के बीच में से आते हुए सुना; आज हम ने देख लिया कि यद्यपि परमेश्वर मनुष्य से बातें करता है तौभी मनुष्य जीवित रहता है। 05O 5 25 अब हम क्यों मर जाएं? क्योंकि ऐसी बड़ी आग से हम भस्म हो जाएंगे; और यदि हम अपने परमेश्वर यहोवा का शब्द फिर सुनें, तब तो मर ही जाएंगे। 05O 5 26 क्योंकि सारे प्राणियों में से कौन ऐसा है जो हमारी नाई जीवित और अग्नि के बीच में से बोलते हुए परमेश्वर का शब्द सुनकर जीवित बचा रहे? 05O 5 27 इसलिये तू समीप जा, और जो कुछ हमारा परमेश्वर यहोवा कहे उसे सुन ले; फिर जो कुछ हमारा परमेश्वर यहोवा कहे उसे हम से कहना; और हम उसे सुनेंगे और उसे मानेंगे। 05O 5 28 जब तुम मुझ से ये बातें कह रहे थे तब यहोवा ने तुम्हारी बातें सुनीं; तब उस ने मुझ से कहा, कि इन लोगों ने जो जो बातें तुझ से कही हैं मैं ने सुनी हैं; इन्हों ने जो कुछ कहा वह ठीक ही कहा। 05O 5 29 भला होता कि उनका मन सदैव ऐसा ही बना रहे, कि वे मेरा भय मानते हुए मेरी सब आज्ञाओं पर चलते रहें, जिस से उनकी और उनके वंश की सदैव भलाई होती रहे! 05O 5 30 इसलिये तू जाकर उन से कह दे, कि अपने अपने डेरों को लौट जाओ। 05O 5 31 परन्तु तू यहीं मेरे पास खड़ा रह, और मैं वे सारी आज्ञाएं और विधियां और नियम जिन्हें तुझे उनको सिखाना होगा तुझ से कहूंगा, जिस से वे उन्हें उस देश में जिसका अधिकार मैं उन्हें देने पर हूं मानें। 05O 5 32 इसलिये तुम अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार करने में चौकसी करना; न तो दहिने मुड़ना और न बांए। 05O 5 33 जिस मार्ग में चलने की आज्ञा तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को दी है उस सारे मार्ग पर चलते रहो, कि तुम जीवित रहो, और तुम्हारा भला हो, और जिस देश के तुम अधिकारी होगे उस में तुम बहुत दिनों के लिये बने रहो।। 05O 6 1 यह वह आज्ञा, और वे विधियां और नियम हैं जो तुम्हें सिखाने की तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने आज्ञा दी है, कि तुम उन्हें उस देश में मानो जिसके अधिकारी होने को पार जाने पर हो; 05O 6 2 और तू और तेरा बेटा और तेरा पोता यहोवा का भय मानते हुए उसकी उन सब विधियों और आज्ञाओं पर, जो मैं तुझे सुनाता हूं, अपने जीवन भर चलते रहें, जिस से तू बहुत दिन तक बना रहे। 05O 6 3 हे इस्राएल, सुन, और ऐसा ही करने की चौकसी कर; इसलिये कि तेरा भला हो, और तेरे पितरों के परमेश्वर यहोवा के वचन के अनुसार उस देश में जहां दूध और मधु की धाराएं बहती हैं तुम बहुत हो जाओ। 05O 6 4 हे इस्राएल, सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है; 05O 6 5 तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन, और सारे जीव, और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना। 05O 6 6 और ये आज्ञाएं जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं वे तेरे मन में बनी रहें; 05O 6 7 और तू इन्हें अपने बालबच्चों को समझाकर सिखाया करना, और घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते, इनकी चर्चा किया करना। 05O 6 8 और इन्हें अपने हाथ पर चिन्हानी करके बान्धना, और ये तेरी आंखों के बीच टीके का काम दें। 05O 6 9 और इन्हें अपने अपने घर के चौखट की बाजुओं और अपने फाटकों पर लिखना।। 05O 6 10 और जब तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे उस देश में पहुंचाए जिसके विषय में उस ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब नाम, तेरे पूर्वजों से तुझे देने की शपथ खाई, और जब वह तुझ को बड़े बड़े और अच्छे नगर, जो तू ने नहीं बनाए, 05O 6 11 और अच्छे अच्छे पदार्थों से भरे हुए घर, जो तू ने नहीं भरे, और खुदे हुए कुंए, जो तू ने नहीं खोदे, और दाख की बारियां और जलपाई के वक्षृ, जो तू ने नहीं लगाए, ये सब वस्तुएं जब वह दे, और तू खाके तृप्त हो, 05O 6 12 तब सावधान रहना, कहीं ऐसा न हो कि तू यहोवा को भूल जाए, जो तुझे दासत्व के घर अर्थात् मि देश से निकाल लाया है। 05O 6 13 अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानना; उसी की सेवा करना, और उसी के नाम की शपथ खाना। 05O 6 14 तुम पराए देवताओं के, अर्थात् अपने चारों ओर के देशों के लोगों के देवताओं के पीछे न हो लेना; 05O 6 15 क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा जो तेरे बीच में है वह जल उठनेवाला ईश्वर है; कहीं ऐसा न हो कि तेरे परमेश्वर यहोवा का कोप तुझ पर भड़के, और वह तुझ को पृथ्वी पर से नष्ट कर डाले।। 05O 6 16 तुम अपने परमेश्वर यहोवा की परीक्षा न करना, जैसे कि तुम ने मस्सा में उसकी परीक्षा की थी। 05O 6 17 अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं, चितौनियों, और विधियों को, जो उस ने तुझ को दी हैं, सावधानी से मानना। 05O 6 18 और जो काम यहोवा की दृष्टि में ठीक और सुहावना है वही किया करना, जिस से कि तेरा भला हो, और जिस उत्तम देश के विषय में यहोवा ने तेरे पूर्वजों से शपथ खाई उस में तू प्रवेश करके उसका अधिकारी हो जाए, 05O 6 19 कि तेरे सब शत्रु तेरे साम्हने से दूर कर दिए जाएं, जैसा कि यहोवा ने कहा था।। 05O 6 20 फिर आगे को जब तेरा लड़का तुझ से पूछे, कि ये चितौनियां और विधि और नियम, जिनके मानने की आज्ञा हमारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को दी है, इनका प्रयोजन क्या है? 05O 6 21 तब अपने लड़के से कहना, कि जब हम मि में फिरौन के दास थे, तब यहोवा बलवन्त हाथ से हम को मि में से निकाल ले आया; 05O 6 22 और यहोवा ने हमारे देखते मि में फिरौन और उसके सारे घराने को दु:ख देनेवाले बड़े बड़े चिन्ह और चमत्कार दिखाए; 05O 6 23 और हम को वह वहां से निकाल लाया, इसलिये कि हमें इस देश में पहुंचाकर, जिसके विषय में उस ने हमारे पूर्वजों से शपथ खाई थी, इसको हमें सौंप दे। 05O 6 24 और यहोवा ने हमें ये सब विधियां पालने की आज्ञा दी, इसलिये कि हम अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानें, और इस रीति सदैव हमारा भला हो, और वह हम को जीवित रखे, जैसा कि आज के दिन है। 05O 6 25 और यदि हम अपने परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में उसकी आज्ञा के अनुसार इन सारे नियमों को मानने में चौकसी करें, तो वह हमारे लिये धर्म ठहरेगा।। 05O 7 1 फिर जब तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे उस देश में जिसके अधिकारी होने को तू जाने पर है पहुंचाए, और तेरे साम्हने से हित्ती, गिर्गाशी, एमोरी, कनानी, परिज्जी, हिव्वी, और यबूसी नाम, बहुत सी जातियों को अर्थात् तुम से बड़ी और सामर्थी सातों जातियों को निकाल दे, 05O 7 2 और तेरा परमेश्वर यहोवा उन्हें तेरे द्वारा हरा दे, और तू उन पर जय प्राप्त कर ले; तब उन्हें पूरी रीति से नष्ट कर डालना; उन से न वाचा बान्धना, और न उन पर दया करना। 05O 7 3 और न उन से ब्याह शादी करना, न तो उनकी बेटी को अपने बेटे के लिये ब्याह लेना। 05O 7 4 क्योंकि वे तेरे बेटे को मेरे पीछे चलने से बहकाएंगी, और दूसरे देवताओं की उपासना करवाएंगी; और इस कारण यहोवा का कोप तुम पर भड़क उठेगा, और वह तुझ को शीघ्र सत्यानाश कर डालेगा। 05O 7 5 उन लोगों से ऐसा बर्ताव करना, कि उनकी वेदियों को ढा देना, उनकी लाठों को तोड़ डालना, उनकी अशेरा नाम मूर्त्तियों को काट काटकर गिरा देना, और उनकी खुदी हुई मूत्तियों को आग में जला देना। 05O 7 6 क्योंकि तू अपने परमेश्वर यहोवा की पवित्रा प्रजा है; यहोवा ने पृथ्वी भर के सब देशों के लोगों में से तुझ को चुन लिया है कि तू उसकी प्रजा और निज धन ठहरे। 05O 7 7 यहोवा ने जो तुम से स्नेह करके तुम को चुन लिया, इसका कारण यह नहीं था कि तुम गिनती में और सब देशों के लोगों से अधिक थे, किन्तु तुम तो सब देशों के लोगों से गिनती में थोड़े थे; 05O 7 8 यहोवा ने जो तुम को बलवन्त हाथ के द्वारा दासत्व के घर में से, और मि के राजा फिरौन के हाथ से छुड़ाकर निकाल लाया, इसका यही करण है कि वह तुम से प्रेम रखता है, और उस शपथ को भी पूरी करना चाहता है जो उस ने तुम्हारे पूर्वजों से खाई थी। 05O 7 9 इसलिये जान रख कि तेरा परमेश्वर यहोवा ही परमेश्वर है, वह विश्वासयोग्य ईश्वर है; और जो उस से प्रेम रखते और उसकी आज्ञाएं मानते हैं उनके साथ वह हजार पीढ़ी तक अपनी वाचा पालता, और उन पर करूणा करता रहता है; 05O 7 10 और जो उस से बैर रखते हैं वह उनके देखते उन से बदला लेकर नष्ट कर डालता है; अपने बैरी के विषय में विलम्ब न करेगा, उसके देखते ही उस से बदला लेगा। 05O 7 11 इसलिये इन आज्ञाओं, विधियों, और नियमों को, जो मैं आज तुझे चिताता हूं, मानने में चौकसी करना।। 05O 7 12 और तुम जो इन नियमों को सुनकर मानोगे और इन पर चलोगे, तो तेरा परमेश्र यहोवा भी करूणामय वाचा को पालेगा जिसे उस ने तेरे पूर्वजों से शपथ खाकर बान्धी थी; 05O 7 13 और वह तुझ से प्रेम रखेगा, और तुझे आशीष देगा, और गिनती में बढ़ाएगा; और जो देश उस ने तेरे पूर्वजों से शपथ खाकर तुझे देने को कहा है उस में वह तेरी सन्तान पर, और अन्न, नये दाखमधु, और टटके तेल आदि, भूमि की उपज पर आशीष दिया करेगा, और तेरी गाय- बैल और भेड़- बकरियों की बढ़ती करेगा। 05O 7 14 तू सब देशों के लोगों से अधिक धन्य होगा; तेरे बीच में न पुरूष न स्त्री निर्वंश होगी, और तेरे पशुओं में भी ऐसा कोई न होगा। 05O 7 15 और यहोवा तुझ से सब प्रकार के रोग दूर करेगा; और मि की बुरी बुरी व्याधियां जिन्हें तू जानता है उन में से किसी को भी तुझे लगने न देगा, ये सब तेरे बैरियों ही को लगेंगे। 05O 7 16 और देश देश के जितने लोगों को तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे वश में कर देगा, तू उन सभों को सत्यानाश करना; उन पर तरस की दृष्टि न करना, और न उनके देवताओं की उपासना करना, नहीं तो तू फन्दे में फंस जाएगा। 05O 7 17 यदि तू अपने मन में सोचे, कि वे जातियां जो मुझ से अधिक हैं; तो मैं उनको क्योंकर देश से निकाल सकूंगा? 05O 7 18 तौभी उन से न डरना, जो कुछ तेरे परमेश्वर यहोवा ने फिरौन से और सारे मि से किया उसे भली भांति स्मरण रखना। 05O 7 19 जो बड़े बड़े परीक्षा के काम तू ने अपनी आंखों से देखे, और जिन चिन्हों, और चमत्कारों, और जिस बलवन्त हाथ, और बढ़ाई हुई भुजा के द्वारा तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को निकाल लाया, उनके अनुसार तेरा परमेश्वर यहोवा उन सब लोगों से भी जिन से तू डरता है करेगा। 05O 7 20 इस से अधिक तेरा परमेश्वर यहोवा उनके बीच बर्रे भी भेजेगा, यहां तक कि उन में से जो बचकर छिप जाएंगे वे भी तेरे साम्हने से नाश हो जाएंगे। 05O 7 21 उस से भय न खाना; क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे बीच में है, और वह महान् और भय योग्य ईश्वर है। 05O 7 22 तेरा परमेश्वर यहोवा उन जातियों को तेरे आगे से धीरे धीरे निकाल देगा; तो तू एक दम से उनका अन्त न कर सकेगा, नहीं तो बनैले पशु बढ़कर तेरी हानि करेंगे। 05O 7 23 तौभी तेरा परमेश्वर यहोवा उनको तुझ से हरवा देगा, और जब तक वे सत्यानाश न हो जाएं तब तक उनको अति व्याकुल करता रहेगा। 05O 7 24 और वह उनके राजाओं को तेरे हाथ में करेगा, और तू उनका भी नाम धरती पर से मिटा डालेगा; उन में से कोई भी तेरे साम्हने खड़ा न रह सकेगा, और अन्त में तू उन्हें सत्यानाश कर डालेगा। 05O 7 25 उनके देवताओं की खुदी हुई मूर्त्तियां तुम आग में जला देना; जो चांदी वा सोना उन पर मढ़ा हो उसका लालच करके न ले लेना, नहीं तो तू उसके कारण फन्दे में फंसेगा; क्योंकि ऐसी वस्तुएं तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में घृणित हैं। 05O 7 26 और कोई घृणित वस्तु अपने घर में न ले आना, नहीं तो तू भी उसके समान नष्ट हो जाने की वस्तु ठहरेगा; उसे सत्यानाश की वस्तु जानकर उस से घृणा करना और उसे कदापि न चाहना; क्योंकि वह अशुद्ध वस्तु है। 05O 8 1 जो जो आज्ञा मैं आज तुझे सुनाता हूं उन सभों पर चलने की चौकसी करना, इसलिये कि तुम जीवित रहो और बढ़ते रहो, और जिस देश के विषय में यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजों से शपथ खाई है उस में जाकर उसके अधिकारी हो जाओ। 05O 8 2 और स्मरण रख कि तेरा परमेश्वर यहोवा उन चालीस वर्षों में तुझे सारे जंगल के मार्ग में से इसलिये ले आया है, कि वह तुझे नम्र बनाए, और तेरी परीक्षा करके यह जान ले कि तेरे मन में क्या क्या है, और कि तू उसकी आज्ञाओं का पालन करेगा वा नहीं। 05O 8 3 उस ने तुझ को नम्र बनाया, और भूखा भी होने दिया, फिर वह मन्ना, जिसे न तू और न तेरे पुरखा ही जानते थे, वही तुझ को खिलाया; इसलिये कि वह तुझ को सिखाए कि मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं जीवित रहता, परन्तु जो जो वचन यहोवा के मुंह से निकलते हैं उन ही से वह जीवित रहता है। 05O 8 4 इन चालीस वर्षों में तेरे वस्त्रा पुराने न हुए, और तेरे तन से भी नहीं गिरे, और न तेरे पांव फूले। 05O 8 5 फिर अपने मन में यह तो विचार कर, कि जैसा कोई अपने बेटे को ताड़ना देता है वैसे ही तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को ताड़ना देता है। 05O 8 6 इसलिये अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं का पालन करते हुए उसके मार्गों पर चलना, और उसका भय मानते रहना। 05O 8 7 क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे एक उत्तम देश में लिये जा रहा है, जो जल की नदियों का, और तराइयों और पहाड़ों से निकले हुए गहिरे गहिरे सोतों का देश है। 05O 8 8 फिर वह गेहूं, जौ, दाखलताओं, अंजीरों, और अनरों का देश है; और तेलवाली जलपाई और मधु का भी देश है। 05O 8 9 उस देश में अन्न की महंगी न होगी, और न उस में तुझे किसी पदार्थ की घटी होगी; वहां के पत्थर लोहे के हैं, और वहां के पहाड़ों में से तू तांबा खोदकर निकाल सकेगा। 05O 8 10 और तू पेट भर खाएगा, और उस उत्तम देश के कारण जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देगा उसका धन्य मानेगा। 05O 8 11 इसलिये सावधान रहना, कहीं ऐसा न हो कि अपने परमेश्वर यहोवा को भूलकर उसकी जो जो आज्ञा, नियम, और विधि, मैं आज तुझे सुनाता हूं उनका मानना छोड़ दे; 05O 8 12 ऐसा न हो कि जब तू खाकर तृप्त हो, और अच्छे अच्छे घर बनाकर उन में रहने लगे, 05O 8 13 और तेरी गाय- बैलों और भेड़- बकरियों की बढ़ती हो, और तेरा सोना, चांदी, और तेरा सब प्रकार का धन बढ़ जाए, 05O 8 14 तब तेरे मन में अहंकार समा जाए, और तू अपने परमेश्वर यहोवा को भूल जाए, जो तुझ को दासत्व के घर अर्थात् मि देश से निकाल लाया है, 05O 8 15 और उस बड़े और भयानक जंगल में से ले आया है, जहां तेज विषवाले सर्प और बिच्छू हैं, और जलरहित सूखे देश में उस ने तेरे लिये चकमक की चट्ठान से जल निकाला, 05O 8 16 और तुझे जंगल में मन्ना खिलाया, जिसे तुम्हारे पुरखा जानते भी न थे, इसलिये कि वह तुझे नम्र बनाए, और तेरी परीक्षा करके अन्त में तेरा भला ही करे। 05O 8 17 और कहीं ऐसा न हो कि तू सोचने लगे, कि यह सम्पत्ति मेरे ही सामर्थ्य और मेरे ही भुजबल से मुझे प्राप्त हुई। 05O 8 18 परन्तु तू अपने परमेश्वर यहोवा को स्मरण रखना, क्योंकि वही है जो तुझे सम्पति प्राप्त करने का सामर्थ्य इसलिये देता है, कि जो वाचा उस ने तेेरे पूर्वजों से शपथ खाकर बान्धी थी उसको पूरा करे, जैसा आज प्रगट है। 05O 8 19 यदि तू अपने परमेश्वर यहोवा को भूलकर दूसरे देवताओं के पीछे हो लेगा, और उसकी उपासना और उनको दण्डवत् करेगा, तो मैं आज तुम को चिता देता हूं कि तुम नि:सन्देह नष्ट हो जाओगे। 05O 8 20 जिन जातियों को यहोवा तुम्हारे सम्मुख से नष्ट करने पर है, उन्ही की नाई तुम भी अपने परमेश्वर यहोवा का वचन न मानने के कारण नष्ट हो जाओगे। 05O 9 1 हे इस्राएल, सुन, आज तू यरदन पार इसलिये जानेवाला है, कि ऐसी जातियों को जो तुझ से बड़ी और सामर्थी हैं, और ऐसे बड़े नगरों को जिनकी श्हरपनाह आकाश से बातें करती हैं, अपने अधिकार में ले ले। 05O 9 2 उन में बड़े बड़े और लम्बे लम्बे लोग, अर्थात् अनाकवंशी रहते हैं, जिनका हाल तू जानता है, और उनके विषय में तू ने यह सुना है, कि अनाकवशियों के साम्हने कौन ठहर सकता है? 05O 9 3 इसलिये आज तू यह जान ले, कि जो तेरे आगे भस्म करनेवाली आग की नाई पार जानेवाला है वह तेरा परमेश्वर यहोवा है; और वह उनका सत्यानाश करेगा, और वह उनको तेरे साम्हने दबा देगा; और तू यहोवा के वचन के अनुसार उनको उस देश से निकालकर शीघ्र ही नष्ट कर डालेगा। 05O 9 4 जब तेरा परमेश्वर यहोवा उन्हें तेरे साम्हने से निकाल चुके तब यह न सोचना, कि यहोवा तेरे धर्म के कारण तुझे इस देश का अधिकारी होने को ले आया है, किन्तु उन जातियों की दुष्टता ही के कारण यहोवा उनको तेरे साम्हने से निकालता है। 05O 9 5 तू जो उनके देश का अधिकारी होने के लिये जा रहा है, इसका कारण तेरा धर्म वा मन की सीधाई नहीं है; तेरा परमेश्वर यहोवा जो उन जातियों को तेरे साम्हने से निकालता है, उसका कारण उनकी दुष्टता है, और यह भी कि जो वचन उस ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब, तेरे पूर्वजों को शपथ खाकर दिया था, उसको वह पूरा करना चाहता है। 05O 9 6 इसलिये यह जान ले कि तेरा परमेश्वर यहोवा, जो तुझे वह अच्छा देश देता है कि तू उसका अधिकारी हो, उसे वह तेरे धर्म के कारण नहीं दे रहा है; क्योंकि तू तो एक हठीली जाति है। 05O 9 7 इस बात का स्मरण रख और कभी भी न भूलना, कि जंगल में तू ने किस किस रीति से अपने परमेश्वर यहोवा को क्रोधित किया; और जिस देश से तू मि देश से निकला है जब तक तुम इस स्थान पर न पहंुचे तब तक तुम यहोवा से बलवा ही बलवा करते आए हो। 05O 9 8 फिर होरेब के पास भी तुम ने यहोवा को क्रोधित किया, और वह क्रोधित होकर तुम्हें नष्ट करना चाहता था। 05O 9 9 जब मैं उस वाचा के पत्थर की पटियाओं को जो यहोवा ने तुम से बान्धी थी लेने के लिये पर्वत के ऊपर चढ़ गया, तब चालीस दिन और चालीस रात पर्वत ही के ऊपर रहा; और मैं ने न तो रोटी खाई न पानी पिया। 05O 9 10 और यहोवा ने मुझे अपने ही हाथ की लिखी हुई पत्थर की दोनों पटियाओं को सौंप दिया, और वे ही वचन जिन्हें यहोवा ने पर्वत के ऊपर आग के मध्य में से सभा के दिन तुम से कहे थे वे सब उन पर लिखे हुए थे। 05O 9 11 और चालीस दिन और चालीस रात के बीत जाने पर यहोवा ने पत्थर की वे दो वाचा की पटियाएं मुझे दे दीं। 05O 9 12 और यहोवा ने मुझ से कहा, उठ, यहां से झटपट नीचे जा; क्योंकि तेरी प्रजा के लोग जिनको तू मि से निकालकर ले आया है वे बिगड़ गए हैं; जिस मार्ग पर चलने की आज्ञा मैं ने उन्हें दी थी उसको उन्हों ने झटपट छोड़ दिया है; अर्थात् उन्हों ने तुरन्त अपने लिये एक मूर्त्ति ढालकर बना ली है। 05O 9 13 फिर यहोवा ने मुझ से यह भी कहा, कि मैं ने उन लोगो को देख लिया, वे हठीली जाति के लोग हैं; 05O 9 14 इसलिये अब मुझे तू मत रोक, ताकि मैं उन्हें नष्ट कर डालूं, और धरती के ऊपर से उनका नाम वा चिन्ह तक मिटा डालूं, और मैं उन से बढ़कर एक बड़ी और सामर्थी जाति तुझी से उत्पन्न करूंगा। 05O 9 15 तब मैं उलटे पैर पर्वत से नीचे उतर चला, और मेरे दोनों हाथों में वाचा की दोनों पटियाएं थीं। 05O 9 16 और मैं ने देखा कि तुम ने अपने परमेश्वर यहोवा के विरूद्ध महापाप किया; और अपने लिये एक बछड़ा ढालकर बना लिया है, और तुरन्त उस मार्ग से जिस पर चलने की आज्ञा यहोवा ने तुम को दी थी उसको तुम ने तज दिया। 05O 9 17 तब मैं ने उन दोनों पटियाओं को अपने दोनो हाथों से लेकर फेंक दिया, और तुम्हारी आंखों के साम्हने उनको तोड़ डाला। 05O 9 18 तब तुम्हारे उस महापाप के कारण जिसे करके तुम ने यहोवा की दृष्टि में बुराई की, और उसे रीस दिलाई थी, मैं यहोवा के साम्हने मुंह के बल गिर पड़ा, और पहिले की नाई, अर्थात् चालीस दिन और चालीस रात तक, न तो रोटी खाई और न पानी पिया। 05O 9 19 मैं तो यहोवा के उस कोप और जल- जलाहट से डर रहा था, क्योंकि वह तुम से अप्रसन्न होकर तुम्हें सत्यानाश करने को था। परन्तु यहोवा ने उस बार भी मेरी सुन ली। 05O 9 20 और यहोवा हारून से इतना क्रोधित हुआ कि उसे भी सत्यानाश करना चाहा; परन्तु उसी समय मैं ने हारून के लिये भी प्रार्थना की। 05O 9 21 और मैं ने वह बछड़ा जिसे बनाकर तुम पापी हो गए थे लेकर, आग में डालकर फूंक दिया; और फिर उसे पीस पीसकर ऐसा चूर चूरकर डाला कि वह धूल की नाई जीर्ण हो गया; और उसकी उस राख को उस नदी में फेंक दिया जो पर्वत से निकलकर नीचे बहती थी। 05O 9 22 फिर तबेरा, और मस्सा, और किब्रोतहत्तावा में भी तुम ने यहोवा को रीस दिलाई थी। 05O 9 23 फिर जब यहोवा ने तुम को कोदशबर्ने से यह कहकर भेजा, कि जाकर उस देश के जिसे मैं ने तुम्हें दिया है अधिकारी हो जाओ, तब भी तुम ने अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के विरूद्ध बलवा किया, और न तो उसका विश्वास किया, और न उसकी बात मानी। 05O 9 24 जिस दिन से मैं तुम्हें जानता हूं उस दिन से तुम यहोवा से बलवा ही करते आए हो। 05O 9 25 मैं यहोवा के साम्हने चालीस दिन और चालीस रात मुंह के बल पड़ा रहा, क्योंकि यहोवा ने कह दिया था, कि वह तुम को सत्यानाश करेगा। 05O 9 26 और मैं ने यहोवा से यह प्रार्थना की, कि हे प्रभु यहोवा, अपना प्रजारूपी निज भाग, जिनको तू ने अपने महान् प्रताप से छुड़ा लिया है, और जिनको तू ने अपने बलवन्त हाथ से मि से निकाल लिया है, उन्हें नष्ट न कर। 05O 9 27 अपने दास इब्राहीम, इसहाक, और याकूब को स्मरण कर; और इन लोगों की कठोरता, और दुष्टता, और पाप पर दृष्टि न कर, 05O 9 28 जिस से ऐसा न हो कि जिस देश से तू हम को निकालकर ले आया है, वहां से लोग कहने लगें, कि यहोवा उन्हें उस देश में जिसके देश का वचन उनको दिया था नहीं पहुंचा सका, और उन से बैर भी रखता था, इसी कारण उस ने उन्हें जंगल में निकालकर मार डाला है। 05O 9 29 ये लोग तेरी प्रजा और निज भाग हैं, जिनको तू ने अपने बड़े सामर्थ्य और बलवन्त भुजा के द्वारा निकाल ले आया है।। 05O 10 1 उस समय यहोवा ने मुझ से कहा, पहिली पटियाओं के समान पत्थर की दो और पटियाएं गढ़ ले, और उन्हें लेकर मेरे पास पर्वत के ऊपर आ जा, और लकड़ी का एक सन्दूक भी बनवा ले। 05O 10 2 और मैं उन पटियाओं पर वे ही वचन लिखूंगा, जो उन पहिली पटियाओं पर थे, जिन्हें तू ने तोड़ डाला, और तू उन्हें उस सन्दूक में रखना। 05O 10 3 तब मैं ने बबूल की लकड़ी का एक सन्दूक बनवाया, और पहिली पटियाओं के समान पत्थर की दो और पटियाएं गढ़ीं, तब उन्हें हाथों में लिये हुए पर्वत पर चढ़ गया। 05O 10 4 और जो दस वचन यहोवा ने सभा के दिन पर्वत पर अग्नि के मध्य में से तुम से कहे थे, वे ही उस ने पहिलों के समान उन पटियाओं पर लिखे; और उनको मुझे सौंप दिया। 05O 10 5 तब मै पर्वत से नीचे उतर आया, और पटियाओं को अपने बनवाए हुए सन्दूक में धर दिया; और यहोवा की आज्ञा के अनुसार वे वहीं रखीं हुई हैं। 05O 10 6 तब इस्राएली याकानियों के कुओं से कूच करके मोसेरा तक आए। वहां हारून मर गया, और उसको वहीं मिट्टी दी गई; और उसका पुत्रा एलीआजर उसके स्थान पर याजक का काम करने लगा। 05O 10 7 वे वहां से कूच करके गुदगोदा को, और गुदगोदा से योतबाता को चले, इस देश में जल की नदियां हैं। 05O 10 8 उस समय यहोवा ने लेवी गोत्रा को इसलिये अलग किया कि वे यहोवा की वाचा का सन्दूक उठाया करें, और यहोवा के सम्मुख खड़े होकर उसकी सेवाटहल किया करें, और उसके नाम से आशीर्वाद दिया करें, जिस प्रकार कि आज के दिन तक होता आ रहा है। 05O 10 9 इस कारण लेवियों को अपने भाईयों के साथ कोई निज अंश वा भाग नहीं मिला; यहोवा ही उनका निज भाग है, जैसे कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने उन से कहा था। 05O 10 10 मैं तो पहिले की नाई उस पर्वत पर चालीस दिन और चालीस रात ठहरा रहा, और उस बार भी यहोवा ने मेरी सुनी, और तुझे नाश करने की मनसा छोड़ दी। 05O 10 11 फिर यहोवा ने मुझ से कहा, उठ, और तू इन लोगों की अगुवाई कर, ताकि जिस देश के देने को मैं ने उनके पूर्वजों से शपथ खाकर कहा था उस में वे जाकर उसको अपने अधिकार में कर लें।। 05O 10 12 और अब, हे इस्राएल, तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ से इसके सिवाय और क्या चाहता है, कि तू अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानें, और उसके सारे मार्गों पर चले, उस से प्रेम रखे, और अपने पूरे मन और अपने सारे प्राण से उसकी सेवा करे, 05O 10 13 और यहोवा की जो जो आज्ञा और विधि मैं आज तुझे सुनाता हूं उनको ग्रहण करे, जिस से तेरा भला हो? 05O 10 14 सुन, स्वर्ग और सब से ऊंचा स्वर्ग भी, और पृथ्वी और उस में जो कुछ है, वह सब तेरे परमेश्वर यहोवा ही का है; 05O 10 15 तौभी यहोवा ने तेरे पूर्वजों से स्नेह और प्रेम रखा, और उनके बाद तुम लोगों को जो उनकी सन्तान हो सर्व देशों के लोगों के मध्य में से चुन लिया, जैसा कि आज के दिन प्रगट है। 05O 10 16 इसलिये अपने अपने हृदय का खतना करो, और आगे को हठीले न रहो। 05O 10 17 क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा वही ईश्वरों का परमेश्वर और प्रभुओं का प्रभु है, वह महान् पराक्रमी और भय योग्य ईश्वर है, जो किसी का पक्ष नहीं करता और न घूस लेता है। 05O 10 18 वह अनाथों और विधवा का न्याय चुकाता, और परदेशियों से ऐसा प्रेम करता है कि उन्हें भोजन और वस्त्रा देता है। 05O 10 19 इसलिये तुम भी परदेशियों से प्रेम भाव रखना; क्योंकि तुम भी मि देश में परेदशी थे। 05O 10 20 अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानना; उसी की सेवा करना और उसी से लिपटे रहना, और उसी के नाम की शपथ खाना। 05O 10 21 वही तुम्हारी स्तुति के योग्य है; और वही तेरा परमेश्वर है, जिस ने तेरे साथ वे बड़े महत्व के और भयानक काम किए हैं, जिन्हें तू ने अपनी आंखों से देखा है। 05O 10 22 तेरे पुरखा जब मि में गए तब सत्तर ही मनुष्य थे; परन्तु अब तेरे परमेश्वर यहोवा ने तेरी गिनती आकाश के तारों के समान बहुत कर दिया है।। 05O 11 1 इसलिये तू अपने परमेश्वर यहोवा से अत्यन्त प्रेम रखना, और जो कुछ उस ने तुझे सौंपा है उसका, अर्थात् उसी विधियों, नियमों, और आज्ञाओं का नित्य पालन करना। 05O 11 2 और तुम आज यह सोच समझ लो (क्योंकि मैं तो तुम्हारे बाल- बच्चों से नहीं कहता,) जिन्हों ने न तो कुछ देखा और न जाना है कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने क्या क्या ताड़ना की, और कैसी महिमा, और बलवन्त हाथ, और बढ़ाई हुई भुजा दिखाई, 05O 11 3 और मि में वहां के राजा फिरौन को कैसे कैसे चिन्ह दिखाए, और उसके सारे देश में कैसे कैसे चमत्कार के काम किए; 05O 11 4 और उस ने मि की सेना के घोड़ों और रथों से क्या किया, अर्थात् जब वे तुम्हारा पीछा कर रहे थे तब उस ने उनको लाल समुद्र में डुबोकर किस प्रकार नष्ट कर डाला, कि आज तक उनका पता नहीं; 05O 11 5 और तुम्हारे इस स्थान में पहुंचने तक उस ने जंगल में तुम से क्या क्या किया; 05O 11 6 औैर उस ने रूबेनी एलीआब के पुत्रा दातान और अबीराम से क्या क्या किया; अर्थात् पृथ्वी ने अपना मुंह पसारके उनको घरानों, और डेरों, और सब अनुचरों समेत सब इस्राएलियों के देखते देखते कैसे निगल लिया; 05O 11 7 परन्तु यहोवा के इन सब बड़े बड़े कामों को तुम ने अपनी आंखों से देखा है। 05O 11 8 इस कारण जितनी आज्ञाएं मैं आज तुम्हें सुनाता हूं उन सभों को माना करना, इसलिये कि तुम सामर्थी होकर उस देश में जिसके अधिकारी होने के लिये तुम पार जा रहे हो प्रवेश करके उसके अधिकारी हो जाओ, 05O 11 9 और उस देश में बहुत दिन रहने पाओ, जिसे तुम्हें और तुम्हारे वंश को देने की शपथ यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजों से खाईं थी, और उस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं। 05O 11 10 देखो, जिस देश के अधिकारी होने को तुम जा रहे हो वह मि देश के समान नहीं है, जहां से निकलकर आए हो, जहां तुम बीज बोते थे और हरे साग के खेत की रीति के अनुसार अपने पांव की नलियां बनाकर सींचते थे; 05O 11 11 परन्तु जिस देश के अधिकारी होने को तुम पार जाने पर हो वह पहाड़ों और तराईयों का देश है, और आकाश की वर्षा के जल से सिंचता है; 05O 11 12 वह ऐसा देश है जिसकी तेरे परमेश्वर यहोवा को सुधि रहती है; और वर्ष के आदि से लेकर अन्त तक तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि उस पर निरन्तर लगी रहती है।। 05O 11 13 और यदि तुम मेरी आज्ञाओं को जो आज मैं तुम्हें सुनाता हूं ध्यान से सुनकर, अपने सम्पूर्ण मन और सारे प्राण के साथ, अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखो और उसकी सेवा करते रहो, 05O 11 14 तो मैं तुम्हारे देश में बरसात के आदि और अन्त दोनों समयों की वर्षा को अपने अपने समय पर बरसाऊंगा, जिस से तू अपना अन्न, नया दाखमधु, और टटका तेल संचय कर सकेगा। 05O 11 15 और मै तेरे पशुओं के लिये तेरे मैदान में घास उपजाऊंगा, और तू पेट भर खाएगा और सन्तुष्ट रहेगा। 05O 11 16 इसलिये अपने विषय में सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन धोखा खाएं, और तुम बहककर दूसरे देवताओं की पूजा करने लगो और उनको दण्डवत् करने लगो, 05O 11 17 और यहोवा का कोप तुम पर भड़के, और वह आकाश की वर्षा बन्द कर दे, और भूमि अपनी उपज न दे, और तुम उस उत्तम देश में से जो यहोवा तुम्हें देता है शीघ्र नष्ट हो जाओ। 05O 11 18 इसलिये तुम मेरे ये वचन अपने अपने मन और प्राण में धारण किए रहना, और चिन्हानी के लिये अपने हाथों पर बान्धना, और वे तुम्हारी आंखों के मध्य में टीके का काम दें। 05O 11 19 और तुम घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते- उठते इनकी चर्चा करके अपने लड़केबालों को सिखाया करना। 05O 11 20 और इन्हें अपने अपने घर के चौखट के बाजुओं और अपने फाटकों के ऊपर लिखना; 05O 11 21 इसलिये कि जिस देश के विषय में यहोवा ने तेरे पूर्वजों से शपथ खाकर कहा था, कि मैं उसे तुम्हें दूंगा, उस में तुम्हारे और तुम्हारे लड़केबालों की दीर्घायु हो, और जब तक पृथ्वी के ऊपर का आकाश बना रहे तब तक वे भी बने रहें। 05O 11 22 इसलिये यदि तुम इन सब आज्ञाओं के मानने में जो मैं तुम्हें सुनाता हूं पूरी चौकसी करके अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखो, और उसके सब मार्गों पर चलो, और उस से लिपटे रहो, 05O 11 23 तो यहोवा उन सब जातियों को तुम्हारे आगे से निकाल डालेगा, और तुम अपने से बड़ी और सामर्थी जातियों के अधिकारी हो जाओगे। 05O 11 24 जिस जिस स्थान पर तुम्हारे पांव के तलवे पडें वे सब तुम्हारे ही हो जाएंगे, अर्थात् जंगल से लबानोन तक, और परात नाम महानद से लेकर पश्चिम के समुद्र तक तुम्हारा सिवाना होगा। 05O 11 25 तुम्हारे साम्हने कोई भी खड़ा न रह सकेगा; क्योंकि जितनी भूमि पर तुम्हारे पांव पडेंगे उस सब पर रहनेवालों के मन में तुम्हारा परमेश्वर यहोवा अपने वचन के अनुसार तुम्हारे कारण उन में डर और थरथराहट उत्पन्न कर देगा। 05O 11 26 सुनो, मैं आज के दिन तुम्हारे आगे आशीष और शाप दोनों रख देता हूं। 05O 11 27 अर्थात् यदि तुम अपने परमेश्वर यहोवा की इन आज्ञाओं को जो मैं आज तुम्हे सुनाता हूं मानो, तो तुम पर आशीष होगी, 05O 11 28 और यदि तुम अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं को नहीं मानोगे, और जिस मार्ग की आज्ञा मैं आज सुनाता हूं उसे तजकर दूसरे देवताओं के पीछे हो लोगे जिन्हें तुम नहीं जानते हो, तो तुम पर शाप पडेग़ा। 05O 11 29 और जब तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को उस देश में पहुंचाए जिसके अधिकारी होने को तू जाने पर है, तब आशीष गरीज्जीम पर्वत पर से और शाप एबाल पर्वत पर से सुनाना। 05O 11 30 क्या वे यरदन के पार, सूर्य के अस्त होने की ओर, अराबा के निवासी कनानियों के देश में, गिल्गाल के साम्हने, मोरे के बांज वृक्षों के पास नहीं है? 05O 11 31 तुम तो यरदन पार इसी लिये जाने पर हो, कि जो देश तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हें देता है उसके अधिकारी होकर उस में निवास करोगे; 05O 11 32 इसलिये जितनी विधियां और नियम मैं आज तुम को सुनाता हूं उन सभों के मानने में चौकसी करना।। 05O 12 1 जो देश तुम्हारे पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें अधिकार में लेने को दिया है, उस में जब तक तुम भूमि पर जीवित रहो तब तक इन विधियों और नियमों के मानने में चौकसी करना। 05O 12 2 जिन जातियों के तुम अधिकारी होगे उनके लोग ऊंचे ऊंचे पहाड़ों वा टीलों पर, वा किसी भांति के हरे वृक्ष के तले, जितने स्थानों में अपने देवताओं की उपासना करते हैं, उन सभों को तुम पूरी रीति से नष्ट कर डालना; 05O 12 3 उनकी वेदियों को ढा देना, उनकी लाठों को तोड़ डालना, उनकी अशेरा नाम मूर्त्तियों को आग में जला देना, और उनके देवताओं की खुदी हुई मूर्त्तियों को काटकर गिरा देना, कि उस देश में से उनके नाम तक मिट जाएं। 05O 12 4 फिर जैसा वे करते हैं, तुम अपने परमेश्वर यहोवा के लिये वैसा न करना। 05O 12 5 किन्तु जो स्थान तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे सब गोत्रों में से चुन लेगा, कि वहां अपना नाम बनाए रखे, उसके उसी निवासस्थान के पास जाया करना; 05O 12 6 और वहीं तुम अपने होमबलि, और मेलबलि, और दंशमांश, और उठाई हुई भेंट, और मन्नत की वस्तुएं, और स्वेच्छाबलि, और गाय- बैलों और भेड़- बकरियों के पहिलौठे ले जाया करना; 05O 12 7 और वहीं तुम अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने भोजन करना, और अपने अपने घराने समेत उन सब कामों पर, जिन में तुम ने हाथ लगाया हो, और जिन पर तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की आशीष मिली हो, आनन्द करना। 05O 12 8 जैसे हम आजकल यहां जो काम जिसको भाता है वही करते हैं वैसा तुम न करना; 05O 12 9 जो विश्रामस्थान तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे भाग में देता है वहां तुम अब तक तो नहीं पहुंचे। 05O 12 10 परन्तु जब तुम यरदन पार जाकर उस देश में जिसके भागी तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हें करता है बस जाओ, और वह तुम्हारे चारों ओर के सब शत्रुओं से तुम्हें विश्राम दे, 05O 12 11 और तुम निडर रहने पाओ, तब जो स्थान तुम्हारा परमेश्वर यहोवा अपने नाम का निवास ठहराने के लिये चुन ले उसी में तुम अपने होमबलि, और मेलबलि, और दशमांश, और उठाई हुईं भेंटें, और मन्नतों की सब उत्तम उत्तम वस्तुएं जो तुम यहोवा के लिये संकल्प करोगे, निदान जितनी वस्तुओं की आज्ञा मैं तुम को सुनाता हूं उन सभों को वहीं ले जाया करना। 05O 12 12 और वहां तुम अपने अपने बेटे बेटियों और दास दासियों सहित अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने आनन्द करना, और जो लेवीय तुम्हारे फाटकों में रहे वह भी आनन्द करे, क्योंकि उसका तुम्हारे संग कोई निज भाग वा अंश न होगा। 05O 12 13 और सावधान रहना कि तू अपने होमबलियों को हर एक स्थान पर जो देखने में आए न चढ़ाना; 05O 12 14 परन्तु जो स्थान तेरे किसी गोत्रा में यहोवा चुन ले वहीं अपने होमबलियों को चढ़ाया करना, और जिस जिस काम की आज्ञा मैं तुझ को सुनाता हूं उसको वहीं करना। 05O 12 15 परन्तु तू अपने सब फाटकों के भीतर अपने जी की इच्छा और अपने परमेश्वर यहोवा की दी हुई आशीष के अनुसार पशु मारके खा सकेगा, शुद्व और अशुद्व मनुष्य दोनों खा सकेंगे, जैसे कि चिकारे और हरिण का मांस। 05O 12 16 परन्तु उसका लोहू न खाना; उसे जल की नाई भूमि पर उंडेल देना। 05O 12 17 फिर अपने अन्न, वा नये दाखमधु, वा टटके तेल का दशमांश, और अपने गाय- बैलों वा भेड़- बकरियों के पहिलौठे, और अपनी मन्नतों की कोई वस्तु, और अपने स्वेच्छाबलि, और उठाई हुई भेंटें अपने सब फाटकों के भीतर न खाना; 05O 12 18 उन्हें अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने उसी स्थान पर जिसको वह चुने अपने बेटे बेटियों और दास दासियों के, और जो लेवीय तेरे फाटकों के भीतर रहेंगे उनके साथ खाना, और तू अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने अपने सब कामों पर जिन में हाथ लगाया हो आनन्द करना। 05O 12 19 और सावधान रह कि जब तक तू भूमि पर जीवित रहे तब तक लेवियों को न छोड़ना।। 05O 12 20 जब तेरा परमेश्वर यहोवा अपने वचन के अनुसार तेरा देश बढ़ाए, और तेरा जी मांस खाना चाहे, और तू सोचने लगे, कि मैं मांस खाऊंगा, तब जो मांस तेरा जी चाहे वही खा सकेगा। 05O 12 21 जो स्थान तेरा परमेश्वर यहोवा अपना नाम बनाए रखने के लिये चुन ले वह यदि तुझ से बहुत दूर हो, तो जो गाय- बैल भेड़- बकरी यहोवा ने तुझे दी हों, उन में से जो कुछ तेरा जी चाहे, उसे मेरी आज्ञा के अनुसार मारके अपने फाटकों के भीतर खा सकेगा। 05O 12 22 जैसे चिकारे और हरिण का मांस खाया जाता है वैसे ही उनको भी खा सकेगा, शुद्व और अशुद्व दोनो प्रकार के मनुष्य उनका मांस खा सकेंगे। 05O 12 23 परन्तु उनका लोहू किसी भांति न खाना; क्योंकि लोहू जो है वह प्राण ही है, और तू मांस के साथ प्राण कभी भी न खाना। 05O 12 24 उसको न खाना; उसे जल की नाईं भूमि पर उंडेल देना। 05O 12 25 तू उसे न खाना; इसलिये कि वह काम करने से जो यहोवा की दृष्टि में ठीक हैं तेरा और तेरे बाद तेरे वंश का भी भला हो। 05O 12 26 परन्तु जब तू कोई वस्तु पवित्रा करे, वा मन्नत माने, तो ऐसी वस्तुएं लेकर उस स्थान को जाना जिसको यहोवा चुन लेगा, 05O 12 27 और वहां अपने होमबलियों के मांस और लोहू दोनों को अपने परमेश्वर यहोवा की वेदी पर चढ़ाना, और मेलबलियों का लोहू उसकी वेदी पर उंडेलकर उनका मांस खाना। 05O 12 28 इन बातों को जिनकी आज्ञा मैं तुझे सुनाता हूं चित्त लगाकर सुन, कि जब तू वह काम करे जो तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में भला और ठीक है, तब तेरा और तेरे बाद तेरे वंश का भी सदा भला होता रहे। 05O 12 29 जब तेरा परमेश्वर यहोवा उन जातियों को जिनका अधिकारी होने को तू जा रहा है तेरे आगे से नष्ट करे, और तू उनका अधिकारी होकर उनके देश में बस जाए, 05O 12 30 तब सावधान रहना, कहीं ऐसा न हो कि उनके सत्यनाश होने के बाद तू भी उनकी नाई फंस जाए, अर्थात् यह कहकर उनके देवताओं के सम्बन्ध में यह पूछपाछ न करना, कि उन जातियों के लोग अपने देवताओं की उपासना किस रीति करते थे? मैं भी वैसी ही करूंगा। 05O 12 31 तू अपने परमेश्वर यहोवा से ऐसा व्यवहार न करना; क्योंकि जितने प्रकार के कामों से यहोवा घृणा करता है और बैर- भाव रखता है, उन सभों को उन्हों ने अपने देवताओं के लिये किया है, यहां तक कि अपने बेटे बेटियों को भी वे अपने देवताओं के लिये अग्नि में डालकर जला देते हैं।। 05O 12 32 जितनी बातों की मैं तुम को आज्ञा देता हूं उनको चौकस होकर माना करना; और न तो कुछ उन में बढ़ाना और न उन में से कुछ घटाना।। 05O 13 1 यदि तेरे बीच कोई भविष्यद्वक्ता वा स्वप्न देखनेवाला प्रगट होकर तुझे कोई चिन्ह वा चमत्कार दिखाए, 05O 13 2 और जिस चिन्ह वा चमत्कार को प्रमाण ठहराकर वह तुझ से कहे, कि आओ हम पराए देवताओं के अनुयायी होकर, जिनसे तुम अब तक अनजान रहे, उनकी पूजा करें, 05O 13 3 तब तुम उस भविष्यद्वक्ता वा स्वप्न देखने वाले के वचन पर कभी कान न धरना; क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारी परीक्षा लेगा, जिस से यह जान ले, कि ये मुझ से अपने सारे मन और सारे प्राण के साथ प्रेम रखते हैं वा नहीं? 05O 13 4 तुम अपने परमेश्वर यहोवा के पीछे चलना, और उसका भय मानना, और उसकी आज्ञाओं पर चलना, और उसका वचन मानना, और उसकी सेवा करना, और उसी से लिपटे रहना। 05O 13 5 और ऐसा भविष्यद्वक्ता वा स्वप्न देखनेवाला जो तुम को तुम्हारे परमेश्वर यहोवा से फेरके, जिस ने तुम को मि देश से निकाला और दासत्व के घर से छुडाया है, तेरे उसी परमेश्वर यहोवा के मार्ग से बहकाने की बात कहनेवाला ठहरेगा, इस कारण वह मार डाला जाए। इस रीति से तू अपने बीच में से ऐसी बुराई को दूर कर देना।। 05O 13 6 यदि तेरा सगा भाई, वा बेटा, वा बेटी, वा तेरी अर्द्धांगिन, वा प्राण प्रिय तेरा कोई मित्रा निराले में तुझ को यह कहकर फुसलाने लगे, कि आओ हम दूसरे देवताओं की उपासना वा पूजा करें, जिन्हें न तो तू न तेरे पुरखा जानते थे, 05O 13 7 चाहे वे तुम्हारे निकट रहनेवाले आस पास के लोगों के, चाहे पृथ्वी के एक छोर से लेके दूसरे छोर तक दूर दूर के रहनेवालों के देवता हों, 05O 13 8 तो तू उसकी न मानना, और न तो उसकी बात सुनना, और न उस पर तरस खाना, और न कोमलता दिखाना, और न उसको छिपा रखना; 05O 13 9 उसको अवश्य घात करना; उसके घात करने में पहिले तेरा हाथ उठे, पीछे सब लोगों के हाथ उठे। 05O 13 10 उस पर ऐसा पत्थरवाह करना कि वह मर जाए, क्योंकि उस ने तुझ को तेरे उस परमेश्वर यहोवा से, जो तुझ को दासत्व के घर अर्थात् मि देश से निकाल लाया है, बहकाने का यत्न किया है। 05O 13 11 और सब इस्राएली सुनकर भय खाएंगे, और ऐसा बुरा काम फिर तेरे बीच न करेंगे।। 05O 13 12 यदि तेरे किसी नगर के विषय में, जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे रहने के लिये देता है, ऐसी बात तेरे सुनने में आए, 05O 13 13 कि कितने अधम पुरूषों ने तेरे ही बीच में से निकलकर अपने नगर के निवासियों को यह कहकर बहका दिया है, कि आओ हम और देवताओं की जिन से अब तक अनजान रहे उपासना करें, 05O 13 14 तो पूछपाछ करना, और खोजना, और भलीं भांति पता लगाना; और यदि यह बात सच हो, और कुछ भी सन्देह न रहे कि तेरे बीच ऐसा घिनौना काम किया जाता है, 05O 13 15 तो अवश्य उस नगर के निवासियों को तलवार से मान डालना, और पशु आदि उस सब समेत जो उस में हो उसको तलवार से सत्यानाश करना। 05O 13 16 और उस में की सारी लूट चौक के बीच इकट्ठी करके उस नगर को लूट समेत अपने परमेश्वर यहोवा के लिये मानो सर्व्वांग होम करके जलाना; और वह सदा के लिये डीह रहे, वह फिर बसाया न जाए। 05O 13 17 और कोई सत्यानाश की वस्तु तेरे हाथ न लगने पाए; जिस से यहोवा अपने भड़के हुए कोप से शान्त होकर जैसा उस ने तेरे पूर्वजों से शपथ खाई थी वैसा ही तुझ से दया का व्यवहार करे, और दया करके तुझ को गिनती में बढ़ाए। 05O 13 18 यह तब होगा जब तू अपने परमेश्वर यहोवा की जितनी आज्ञाएं मैं आज तुझे सुनाता हूं उन सभों को मानेगा, और जो तेरा परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में ठीक है वही करेगा।। 05O 14 1 तुम अपने परमेश्वर यहोवा के पुत्रा हो; इसलिये मरे हुओं के कारण न तो अपना शरीर चीरना, और न भौहों के बाल मुंडाना। 05O 14 2 क्योंकि तू अपने परमेश्वर यहोवा के लिये एक पवित्रा समाज है, और यहोवा ने तुझ को पृथ्वी भर के समस्त देशों के लोगों में से अपनी निज सम्पति होने के लिये चुन लिया है। 05O 14 3 तू कोई घिनौनी वस्तु न खाना। 05O 14 4 जो पशु तुम खा सकते हो वे ये हैं, अर्थात् गाय- बैल, भेड़- बकरी, 05O 14 5 हरिण, चिकारा, यखमूर, बनैली बकरी, साबर, नीलगाय, और बैनेली भेड़। 05O 14 6 निदान पशुओं में से जितने पशु चिरे वा फटे खुरवाले और पागुर करनेवाले होते हैं उनका मांस तुम खा सकते हो। 05O 14 7 परन्तु पागुर करनेवाले वा चिरे खुरवालों में से इन पशुओं को, अर्थात् ऊंट, खरहा, और शापान को न खाना, क्योंकि ये पागुर तो करते हैं परन्तु चिरे खुर के नही होते, इस कारण वे तुम्हारे लिये अशुद्ध हैं। 05O 14 8 फिर सूअर, जो चिरे खुर का होता है परन्तु पागुर नहीं करता, इस कारण वह तुम्हारे लिये अशुद्ध है। तुम न तो इनका मांस खाना, और न इनकी लोथ छूना।। 05O 14 9 फिर जितने जलजन्तु हैं उन में से तुम इन्हें खा सकते हो, अर्थात् जितनों के पंख और छिलके होते हैं। 05O 14 10 परन्तु जितने बिना पंख और छिलके के होते हैं उन्हें तुम न खाना; क्योंकि वे तुम्हारे लिये अशुद्ध हैं।। 05O 14 11 सब शुद्ध पक्षियों का मांस तो तुम खा सकते हो। 05O 14 12 परन्तु इनका मांस न खाना, अर्थात् उकाब, हड़फोड़, कुरर; 05O 14 13 गरूड़, चील और भांति भांति के शाही; 05O 14 14 और भांति भांति के सब काग; 05O 14 15 शुतर्मुर्ग, तहमास, जलकुक्कट, और भांति भांति के बाज; 05O 14 16 छोटा और बड़ा दोनों जाति का उल्लू, और घुग्घू; 05O 14 17 धनेश, गिद्ध, हाड़गील; 05O 14 18 सारस, भांति भांति के बगुले, नौवा, और चमगीदड़। 05O 14 19 और जितने रेंगनेवाले पखेरू हैं वे सब तुम्हारे लिये अशुद्ध हैं; वे खाए न जाएं। 05O 14 20 परन्तु सब शुद्ध पंखवालों का मांस तुम खा सकते हो।। 05O 14 21 जो अपनी मृत्यु से मर जाए उसे तुम न खाना; उसे अपने फाटकों के भीतर किसी परेदशी को खाने के लिये दे सकते हो, वा किसी पराए के हाथ बेच सकते हो; परन्तु तू तो अपने परमेश्वर यहोवा के लिये पवित्रा समाज है। बकरी का बच्चा उसकी माता के दूध में न पकाना।। 05O 14 22 बीज की सारी उपज में से जो प्रतिवर्ष खेत में उपजे उसका दंशमांश अवश्य अलग करके रखना। 05O 14 23 और जिस स्थान को तेरा परमेश्वर यहोवा अपने नाम का निवास ठहराने के लिये चुन ले उस में अपने अन्न, और नये दाखमधु, और टटके तेल का दशमांश, और अपने गाय- बैलों और भेड़- बकरियों के पहिलौठे अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने खाया करना; जिस से तुम उसका भय नित्य मानना सीखोगे। 05O 14 24 परन्तु यदि वह स्थान जिस को तेरा परमेश्वर यहोवा अपना नाम बानाए रखने के लिये चुन लेगा बहुत दूर हो, और इस कारण वहां की यात्रा तेरे लिये इतनी लम्बी हो कि तू अपने परमेश्वर यहोवा की आशीष से मिली हुई वस्तुएं वहां न ले जा सके, 05O 14 25 तो उसे बेचके, रूपये को बान्ध, हाथ में लिये हुए उस स्थान पर जाना जो तेरा परमेश्वर यहोवा चुन लेगा, 05O 14 26 और वहां गाय- बैल, वा भेड़- बकरी, वा दाखमधु, वा मदिरा, वा किसी भांति की वस्तु क्यों न हो, जो तेरा जी चाहे, उसे उसी रूपये से मोल लेकर अपने घराने समेत अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने खाकर आनन्द करना। 05O 14 27 और अपने फाटकों के भीतर के लेवीय को न छोड़ना, क्योंकि तेरे साथ उसका कोई भाग वा अंश न होगा।। 05O 14 28 तीन तीन वर्ष के बीतने पर तीसरे वर्ष की उपज का सारा दशंमांश निकालकर अपने फाटकों के भीतर इकट्ठा कर रखना; 05O 14 29 तब लेवीय जिसका तेरे संग कोई निज भाग वा अंश न होगा वह, और जो परदेशी, और अनाथ, और विधवांए तेरे फाटकों के भीतर हों, वे भी आकर पेट भर खाएं; जिस से तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे सब कामों में तुझे आशीष दे।। 05O 15 1 सात सात वर्ष बीतने पर तुम छुटकारा दिया करना, 05O 15 2 अर्थात् जिस किसी ऋण देनेवाले ने अपने पड़ोसी को कुछ उधार दिया हो, तो वह उसे छोड़ दे; और अपने पड़ोसी वा भाई से उसको बरबस न भरवा ले, क्योंकि यहोवा के नाम से इस छुटकारे का प्रचार हुआ है। 05O 15 3 परदेशी मनुष्य से तू उसे बरबस भरवा सकता है, परन्तु जो कुछ तेरे भाई के पास तेरा हो उसको तू बिना भरवाए छोड़ देना। 05O 15 4 तेरे बीच कोई दरिद्र न रहेगा, क्योंकि जिस देश को तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा भाग करके तुझे देता है, कि तू उसका अधिकारी हो, उस में वह तुझे बहुत ही आशीष देगा। 05O 15 5 इतना अवश्य है कि तू अपने परमेश्वर यहोवा की बात चित्त लगाकर सुने, और इन सारी आज्ञाओं के मानने में जो मैं आज तुझे सुनाता हूं चौकसी करे। 05O 15 6 तब तेरा परमेश्वर यहोवा अपने वचन के अनुसार तुझे आशीष देगा, परन्तु तुझे उधार लेना न पड़ेगा; और तू बहुत जातियों पर प्रभुता करेगा, परन्तु वे तेरे ऊपर प्रभुता न करने पाएंगी।। 05O 15 7 जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उसके किसी फाटक के भीतर यदि तेरे भाइयों में से कोई तेरे पास द्ररिद्र हो, तो अपने उस दरिद्र भाई के लिये न तो अपना हृदय कठोर करना, और न अपनी मुट्ठी कड़ी करना; 05O 15 8 जिस वस्तु की घटी उसको हो, उसका जितना प्रयोजन हो उतना अवश्य अपना हाथ ढीला करके उसको उधार देना। 05O 15 9 सचेत रह कि तेरे मन में ऐसी अधम चिन्ता न समाए, कि सातवां वर्ष जो छुटकारे का वर्ष है वह निकट है, और अपनी दृष्टि तू अपने उस दरिद्र भाई की ओर से क्रूर करके उसे कुछ न दे, तो यह तेरे लिये पाप ठहरेगा। 05O 15 10 तू उसको अवश्य देना, और उसे देते समय तेरे मन को बुरा न लगे; क्योकि इसी बात के कारण तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे सब कामों में जिन में तू अपना हाथ लगाएगा तुझे आशीष देगा। 05O 15 11 तेरे देश में दरिद्र तो सदा पाए जाएंगे, इसलिये मैं तुझे यह आज्ञा देता हूं कि तू अपने देश में अपने दीन- दरिद्र भाइयों को अपना हाथ ढीला करके अवश्य दान देना।। 05O 15 12 यदि तेरा कोई भाईबन्धु, अर्थात् कोई इब्री वा इब्रिन, तेरे हाथ बिके, और वह छ: वर्ष तेरी सेवा कर चुके, तो सातवे वर्ष उसको अपने पास से स्वतंत्रा करके जाने देना। 05O 15 13 और जब तू उसको स्वतंत्रा करके अपने पास से जाने दे तब उसे छूछे हाथ न जाने देना; 05O 15 14 वरन अपनी भेड़- बकरियों, और खलिहान, और दाखमधु के कुण्ड में से बहुतायत से देना; तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे जैसी आशीष दी हो उसी के अनुसार उसे देना। 05O 15 15 और इस बात को स्मरण रखना कि तू भी मि देश में दास था, और तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे छुड़ा लिया; इस कारण मैं आज तुझे यह आज्ञा सुनाता हूं। 05O 15 16 और यदि वह तुझ से ओर तेरे घराने से प्रेम रखता है, और तेरे संग आनन्द से रहता हो, और इस कारण तुझ से कहने लगे, कि मैं तेरे पास से न जाऊंगा; 05O 15 17 तो सुतारी लेकर उसका कान किवाड़ पर लगाकर छेदना, तब वह सदा तेरा दास बना रहेगा। और अपनी दासी से भी ऐसा ही करना। 05O 15 18 जब तू उसको अपने पास से स्वतंत्रा करके जाने दे, तब उसे छोड़ देना तुझ को कठिन न जान पड़े; क्योंकि उस ने छ: वर्ष दो मजदूरों के बराबर तेरी सेवा की है। और तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे सारे कामों में तुझ को आशीष देगा।। 05O 15 19 तेरी गायों और भेड़- बकरियों के जितने पहिलौठे नर हों उन सभों को अपने परमेश्वर यहोवा के लिये पवित्रा रखना; अपनी गायों के पहिलौठों से कोई काम न लेना, और न अपनी भेड़- बकरियों के पहिलौठों का ऊन कतरना। 05O 15 20 उस स्थान पर जो तेरा परमेश्वर यहोवा चुन लेगा तू यहोवा के साम्हने अपने अपने धराने समेत प्रति वर्ष उसका मांस खाना। 05O 15 21 परन्तु यदि उस में किसी प्रकार का दोष हो, अर्थात् वह लंगड़ा वा अन्धा हो, वा उस में किसी और ही प्रकार की बुराई का दोष हो, तो उसे अपने परमेश्वर यहोवा के लिये बलि न करना। 05O 15 22 उसको अपने फाटकों के भीतर खाना; शुद्ध और अशुद्ध दोनों प्रकार के मनुष्य जैसे चिकारे और हरिण का मांस खाते हैं वैसे ही उसका भी खा सकेंगे। 05O 15 23 परन्तु उसका लोहू न खाना; उसे जल की नाई भूमि पर उंडेल देना।। 05O 16 1 आबीब के महीने को स्मरण करके अपने परमेश्वर यहोवा के लिय फसह का पर्व्व मानना; क्योंकि आबीब महीने में तेरा परमेश्वर यहोवा रात को तुझे मि से निकाल लाया। 05O 16 2 इसलिये जो स्थान यहोवा अपने नाम का निवास ठहराने को चुन लेगा, वही अपने परमेश्वर यहोवा के लिये भेड़- बकरियों और गाय- बैल फसह करके बलि करना। 05O 16 3 उसके संग कोई खमीरी वस्तु न खाना; सात दिन तक अखमीरी रोटी जो दु:ख की रोटी है खाया करना; क्योंकि तू मि देश से उतावली करके निकला था; इसी रीति से तुझ को मि देश से निकलने का दिन जीवन भर स्मरण रहेगा। 05O 16 4 सात दिन तक तेरे सारे देश में तेरे पास कहीं खमीर देखने में भी न आए; और जो पशु तू पहिले दिन की संध्या को बलि करे उसके मांस में से कुछ बिहान तक रहने न पाए। 05O 16 5 फसह को अपने किसी फाटक के भीतर, जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे दे बलि न करना। 05O 16 6 जो स्थान तेरा परमेश्वर यहोवा अपने नाम का निवास करने के लिये चुन ले केवल वहीं, वर्ष के उसी समय जिस में तू मि से निकला था, अर्थात् सूरज डूबने पर संध्याकाल को, फसह का पशुबलि करना। 05O 16 7 तब उसका मांस उसी स्थान में जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा चुन ले भूंजकर खाना; फिर बिहान को उठकर अपने अपने डेरे को लौट जाना। 05O 16 8 छ: दिन तक अखीमीरी रोटी खाया करना; और सातवें दिन तेरे परमेश्वर यहोवा के लिये महासभा हो; उस दिन किसी प्रकार का कामकाज न किया जाए।। 05O 16 9 फिर जब तू खेत में हंसुआ लगाने लगे, तब से आरम्भ करके सात अठवारे गिनना। 05O 16 10 तब अपने परमेश्वर यहोवा की आशीष के अनुसार उसके लिये स्वेच्छा बलि देकर अठवारों नाम पर्व्व मानना; 05O 16 11 और उस स्थान में जो तेरा परमेश्वर यहोवा अपने नाम का निवास करने को चुन ले अपने अपने बेटे- बेटियों, दास- दासियों समेत तू और तेरे फाटकों के भीतर जो लेवीय हों, और जो जो परदेशी, और अनाथ, और विधवाएं तेरे बीच में हों, वे सब के सब अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने आनन्द करें। 05O 16 12 और स्मरण रखना कि तू भी मि में दास था; इसलिये इन विधियों के पालन करने में चौकसी करना।। 05O 16 13 तू जब अपने खलिहान और दाखमधु के कुण्ड में से सब कुछ इकट्ठा कर चुके, तब झोपड़ियों का पर्व्व सात दिन मानते रहना; 05O 16 14 और अपने इस पर्व्व में अपने अपने बेटे बेटियों, दास- दासियों समेत तू और जो लेवीय, और परदेशी, और अनाथ, और विधवाएं तेरे फाटकों के भीतर हों वे भी आनन्द करें। 05O 16 15 जो स्थान यहोवा चुन ले उस में तु अपने परमेश्वर यहोवा के लिये सात दिन तक पर्व्व मानते रहना; क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा तेरी सारी बढ़ती में और तेरे सब कामों में तुझ को आशीष देगा; तू आनन्द ही करना। 05O 16 16 ुवर्ष में तीन बार, अर्थात् अखमीरी रोटी के पर्व्व, और अठवारों के पर्व्व, और झोपड़ियों के पर्व्व, इन तीनों पर्व्व में तुम्हारे सब पुरूष अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने उस स्थान में जो वह चुन लेगा जाएं। और देखो, छूछे हाथ यहोवा के साम्हने कोई न जाए; 05O 16 17 सब पुरूष अपनी अपनी पूंजी, और उस आशीष के अनुसार जो तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझ को दी हो, दिया करें।। 05O 16 18 तू अपने एक एक गोत्रा में से, अपने सब फाटकों के भीतर जिन्हें तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को देता है न्यायी और सरदार नियुक्त कर लेना, जो लोगों का न्याय धर्म से किया करें। 05O 16 19 तुम न्याय न बिगाड़ना; तू न तो पक्षपात करना; और न तो घूस लेना, क्योंकि घूस बुद्धिमान की आंखें अन्धी कर देती है, और धर्मियों की बातें पलट देती है। 05O 16 20 जो कुछ नितान्त ठीक है उसी का पीछा पकड़े रहना, जिस से तू जीवित रहे, और जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उसका अधिकारी बना रहे।। 05O 16 21 तू अपने परमेश्वर यहोवा की जो वेदी बनाऐगा उसके पास किसी प्रकार की लकड़ी की बनी हुई अशेरा का स्थापन न करना। 05O 16 22 और न कोई लाठ खड़ी करना, क्योंकि उस से तेरा परमेश्वर यहोवा घृणा करता है।। 05O 17 1 तू अपने परमेश्वर यहोवा के लिये कोई बैल वा भेड़- बकरी बलि न करना जिस में दोष वा किसी प्रकार की खोट हो; क्योंकि ऐसा करना तेरे परमेश्वर यहोवा के समीप घृणित है।। 05O 17 2 जो बस्तियां तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, यदि उन में से किसी में कोई पुरूष वा स्त्री ऐसी पाई जाए, जिस ने तेरे परमेश्वर यहोवा की वाचा तोड़कर ऐसा काम किया हो, जो उसकी दृष्टि में बुरा है, 05O 17 3 अर्थात् मेरी आज्ञा का उल्लंघन करके पराए देवताओं की, वा सूर्य, वा चंद्रमा, वा आकाश के गण में से किसी की उपासना की हो, वा उसको दण्डवत किया हो, 05O 17 4 और यह बात तुझे बतलाई जाए और तेरे सुनने में आए; तब भली भांति पूछपाछ करना, और यदि यह बात सच ठहरे कि इस्राएल में ऐसा घृणित कर्म किया गया है, 05O 17 5 तो जिस पुरूष वा स्त्री ने ऐसा बुरा काम किया हो, उस पुरूष वा स्त्री को बाहर अपने फाटकों पर ले जाकर ऐसा पत्थरवाह करना कि वह मर जाए। 05O 17 6 जो प्राणदण्ड के योग्य ठहरे वह एक ही की साक्षी से न मार डाला जाए, किन्तु दो वा तीन मनुष्यों की साक्षी से मार डाला जाए। 05O 17 7 उसके मार डालने के लिये सब से पहिले साक्षियों के हाथ, और उनके बाद और सब लोगों के हाथ उस पर उठें। इसी रीति से ऐसी बुराई को अपने मध्य से दूर करना।। 05O 17 8 यदि तेरी बस्तियों के भीतर कोई झगड़े की बात हो, अर्थात् आपस के खून, वा विवाद, वा मारपीट का कोई मुक मा उठे, और उसका न्याय करना तेरे लिये कठिन जान पड़े, तो उस स्थान को जाकर जो तेरा परमेश्वर यहोवा चुन लेगा; 05O 17 9 लेवीय याजकों के पास और उन दिनो के न्यायियों के पास जाकर पूछताछ करना, कि वे तुम को न्याय की बातें बतलाएं। 05O 17 10 और न्याय की जैसी बात उस स्थान के लोग जो यहोवा चुन लेगा तुझे बता दें, उसी के अनुसार करना; और जो व्यवस्था वे तुझे दें उसी के अनुसार चलने में चौकसी करना; 05O 17 11 व्यवस्था की जो बात वे तुझे बताएं, और न्याय की जो बात वे तुझ से कहें, उसी के अनुसार करना; जो बात वे तुझ को बाताएं उस से दहिने वा बाएं न मुड़ना। 05O 17 12 और जो मनुष्य अभिमान करके उस याजक की, जो वहां तेरे परमेश्वर यहोवा की सेवा टहल करने को उपस्थित रहेगा, न माने, वा उस न्यायी की न सुने, तो वह मनुष्य मार डाला जाए; इस प्रकार तू इस्राएल में से ऐसी बुराई को दूर कर देना। 05O 17 13 इस से सब लोग सुनकर डर जाएंगे, और फिर अभिमान नहीं करेंगे।। 05O 17 14 जब तू उस देश में पहुंचे जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, और उसका अधिकारी हो, और उन में बसकर कहने लगे, कि चारों ओर की सब जातियों की नाई मैं भी अपने ऊपर राजा ठहराऊंगा; 05O 17 15 तब जिसको तेरा परमेश्वर यहोवा चुन ले अवश्य उसी को राजा ठहराना। अपने भाइयों ही में से किसी को अपने ऊपर राजा ठहराना; किसी परदेशी को जो तेरा भाई न हो तू अपने ऊपर अधिकारी नहीं ठहरा सकता। 05O 17 16 और वह बहुत घोड़े न रखे, और न इस मनसा से अपनी प्रजा के लोगों को मि में भेजे कि उसके पास बहुत से घोड़े हो जाएं, क्योंकि यहोवा ने तुम से कहा है, कि तुम उस मार्ग से फिर कभी न लौटना। 05O 17 17 और वह बहुत स्त्रियां भी न रखे, ऐसा न हो कि उसका मन यहोवा की ओर से पलट जाए; और न वह अपना सोना रूपा बहुत बढ़ाए। 05O 17 18 और जब वह राजगद्दी पर विराजमान हो, तब इसी व्यवस्था की पुस्तक, जो लेवीय याजकों के पास रहेगी, उसकी एक नकल अपने लिये कर ले। 05O 17 19 और वह उसे अपने पास रखे, और अपने जीवन भर उसको पढ़ा करे, जिस से वह अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानना, और इस व्यवस्था और इन विधियों की सारी बातों के मानने में चौकसी करना सीखे; 05O 17 20 जिस से वह अपने मन में घमण्ड करके अपने भाइयों को तुच्छ न जाने, और इन आज्ञाओं से न तो दहिने मुड़े और न बाएं; जिस से कि वह और उसके वंश के लोग इस्राएलियों के मध्य बहुत दिनों तक राज्य करते रहें।। 05O 18 1 लेवीय याजकों का, वरन सारे लेवीय गोत्रियों का, इस्राएलियों के संग कोई भाग वा अंश न हो; उनका भोजन हव्य और यहोवा का दिया हुआ भाग हो। 05O 18 2 उनका अपने भाइयों के बीच कोई भाग न हो; क्योंकि अपने वचन के अनुसार यहोवा उनका निज भाग ठहरा है। 05O 18 3 और चाहे गाय- बैल चाहे भेड़- बकरी का मेलबलि हो, उसके करनेवाले लोगों की ओर से याजकों का हक यह हो, कि वे उसका कन्धा और दोनों गाल और झोझ याजक को दें। 05O 18 4 तू उसका अपनी पहिली उपज का अन्न, नया दाखमधु, और टटका तेल, और अपनी भेंड़ों का वह ऊन देना जो पहिली बार कतरा गया हो। 05O 18 5 क्योंकि तेरे परमेश्वर यहोवा ने तेरे सब गोत्रियों में से उसी को चुन लिया है, कि वह और उसके वंश सदा उसके नाम से सेवा टहल करने को उपस्थित हुआ करें।। 05O 18 6 फिर यदि कोई लेवीय इस्राएल की बस्तियों में से किसी से, जहां वह परदेशी की नाई रहता हो, अपने मन की बड़ी अभिलाषा से उस स्थान पर जाए जिसे यहोवा चुन लेगा, 05O 18 7 तो अपने सब लेवीय भाइयोें की नाईं, जो वहां अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने उपस्थित होंगे, वह भी उसके नाम से सेवा टहल करे। 05O 18 8 और अपने पूर्वजों के भाग की मोल को छोड़ उसको भोजन का भाग भी उनके समान मिला करे।। 05O 18 9 जब तू उस देश में पहुंचे जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, तब वहां की जातियों के अनुसार घिनौना काम करने को न सीखना। 05O 18 10 तुझ में कोई ऐसा न हो जो अपने बेटे वा बेटी को आग में होम करके चढ़ानेवाला, वा भावी कहनेवाला, वा शुभ अशुभ मुहूर्तों का माननेवाला, वा टोन्हा, वा तान्त्रिक, 05O 18 11 वा बाजीगर, वा ओझों से पूछनेवाला, वा भूत साधनेवाला, वा भूतों का जगानेवाला हो। 05O 18 12 क्योंकि जितने ऐसे ऐसे काम करते हैं वे सब यहोवा के सम्मुख घृणित हैं; और इन्हीं घृणित कामों के कारण तेरा परमेश्वर यहोवा उनको तेरे साम्हने से निकालने पर है। 05O 18 13 तू अपने परमेश्वर यहोवा के सम्मुख सिद्ध बना रहना। 05O 18 14 वे जातियां जिनका अधिकारी तू होने पर है शुभ- अशुभ मुहूर्तों के माननेवालों और भावी कहनेवालों की सुना करती है; परन्तु तुझ को तेरे परमेश्वर यहोवा ने ऐसा करने नहीं दिया। 05O 18 15 तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे मध्य से, अर्थात् तेरे भाइयों में से मेरे समान एक नबी को उत्पन्न करेगा; तू उसी की सुनना; 05O 18 16 यह तेरी उस बिनती के अनुसार होगा, जो तू ने होरेब पहाड़ के पास सभा के दिन अपने परमेश्वर यहोवा से की थी, कि मुझे न तो अपने परमेश्वर यहोवा का शब्द फिर सुनना, और न वह बड़ी आग फिर देखनी पड़े, कहीं ऐसा न हो कि मर जाऊं। 05O 18 17 तब यहोवा ने मुझ से कहा, कि वे जो कुछ कहते हैं सो ठीक कहते हैं। 05O 18 18 सो मैं उनके लिये उनके भाइयों के बीच में से तेरे समान एक नबी को उत्पन्न करूंगा; और अपना वचन उसके मुंह में डालूंगा; और जिस जिस बात की मैं उसे आज्ञा दूंगा वही वह उनको कह सुनाएगा। 05O 18 19 और जो मनुष्य मेरे वह वचन जो वह मेरे नाम से कहेगा ग्रहण न करेगा, तो मैं उसका हिसाब उस से लूंगा। 05O 18 20 परन्तु जो नबी अभिमान करके मेरे नाम से कोई ऐसा वचन कहे जिसकी आज्ञा मैं ने उसे न दी हो, वा पराए देवताओं के नाम से कुछ कहे, वह नबी मार डाला जाए। 05O 18 21 और यदि तू अपने मन में कहे, कि जो वचन यहोवा ने नहीं कहा उसको हम किस रीति से पहिचानें? 05O 18 22 तो पहिचान यह है कि जब कोई नबी यहोवा के नाम से कुछ कहे; तब यदि वह वचन न घटे और पूरा न हो जाए, तो वह वचन यहोवा का कहा हुआ नहीं; परन्तु उस नबी ने वह बात अभियान करके कही है, तू उस से भय न खाना।। 05O 19 1 जब तेरा परमेश्वर यहोवा उन जातियों को नाश करे जिनका देश वह तुझे देता है, और तू उनके देश का अधिकारी हो के उनके नगरों और घरों में रहने लगे, 05O 19 2 तब अपने देश के बीच जिसका अधिकारी तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे कर देता है तीन नगर अपने लिये अलग कर देना। 05O 19 3 और तू अपने लिये मार्ग भी तैयार करना, और अपने देश के जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे सौंप देता है तीन भाग करना, ताकि हर एक खूनी वहीं भाग जाए। 05O 19 4 और जो खूनी वहां भागकर अपने प्राण को बचाए, वह इस प्रकार का हो; अर्थात् वह किसी से बिना पहिले बैर रखे वा उसको बिना जाने बूझे मार डाला हो 05O 19 6 ऐसा न हो कि मार्ग की लम्बाई के कारण खून का पलटा लेनेवाला अपने क्रोध के ज्वलन में उसका पीछा करके उसको जा पकड़े, और मार डाले, यद्यपि वह प्राणदण्ड के योग्य नहीं, क्योंकि उस से बैर नहीं रखता था। 05O 19 7 इसलिये मैं तुझे यह आज्ञा देता हूं, कि अपने लिये तीन नगर अलग कर रखना। 05O 19 8 और यदि तेरा परमेश्वर यहोवा उस शपथ के अनुसार जो उस ने तेरे पूर्वजों से खाई थी तेरे सिवानों को बढ़ाकर वह सारा देश तुझे दे, जिसके देने का वचन उस ने तेरे पूर्वजों को दिया था 05O 19 9 यदि तू इन सब आज्ञाओं के मानने में जिन्हें मैं आज तुझ को सुनाता हूं चौकसी करे, और अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखे और सदा उसके मार्गों पर चलता रहे तो इन तीन नगरों से अधिक और भी तीन नगर अलग कर देना, 05O 19 10 इसलिये कि तेरे उस देश में जो तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा निज भाग करके देता है किसी निर्दोष का खून न बहाया जाए, और उसका दोष तुझ पर न लगे। 05O 19 11 परन्तु यदि कोई किसी से बैर रखकर उसकी घात में लगे, और उस पर लपककर उसे ऐसा मारे कि वह मर जाए, और फिर उन नगरों में से किसी में भाग जाए, 05O 19 12 तो उसके नगर के पुरनिये किसी को भेजकर उसको वहां से मंगाकर खून के पलटा लेनेवाले के हाथ में सौंप दे, कि वह मार डाला जाए। 05O 19 13 उस पर तरस न खाना, परन्तु निर्दोष के खून का दोष इस्राएल से दूर करना, जिस से तुम्हारा भला हों।। 05O 19 14 जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को देता है, उसका जो भाग तुझे मिलेगा, उस में किसी का सिवाना जिसे अगले लोगों ने ठहराया हो न हटाना।। 05O 19 15 किसी मनुष्य के विरूद्ध किसी प्रकार के अधर्म वा पाप के विषय में, चाहे उसका पाप कैसा ही क्यो न हो, एक ही जन की साक्षी न सुनना, परन्तु दो वा तीन साक्षीयों के कहने से बात पक्की ठहरे। 05O 19 16 यदि कोई झूठी साक्षी देनेवाला किसी के विरूद्ध याहोवा से फिर जाने की साक्षी देने को खड़ा हो, 05O 19 17 तो वे दोनों मनुष्य, जिनके बीच ऐसा मुक मा उठा हो, यहोवा के सम्मुख, अर्थात् उन दिनों के याजकों और न्यायियों के साम्हने खड़े किए जाएं; 05O 19 18 तब न्यायी भली भांति पूछपाछ करें, और यदि यह निर्णय पाए कि वह झूठा साक्षी है, और अपने भाई के विरूद्ध झूठी साक्षी दी है 05O 19 19 तो अपने भाई की जैसी भी हानि करवाने की युक्ति उस ने की हो वैसी ही तुम भी उसकी करना; इसी रीति से अपने बीच में से ऐसी बुराई को दूर करना। 05O 19 20 और दूसरे लोग सुनकर डरेंगे, और आगे को तेरे बीच फिर ऐसा बुरा काम नहीं करेंगे। 05O 19 21 और तू बिलकुल तरस न खाना; प्राण की सन्ती प्राण का, आंख की सन्ती आंख का, दांत की सन्ती दांत का, हाथ की सन्ती हाथ का, पांव की सन्ती पांव का दण्ड देना।। 05O 20 1 जब तू अपने शत्रुओं से युद्ध करने को जाए, और घोड़े, रथ, और अपने से अधिक सेना को देखे, तब उन से न डरना; तेरा परमेश्वर यहोवा जो तुझ को मि देश से निकाल ले आया है वह तेरे संग है। 05O 20 2 और जब तुम युद्ध करने को शत्रुओं के निकट जाओ, तब याजक सेना के पास आकर कहे, 05O 20 3 हे इस्राएलियों सुनो, आज तुम अपने शत्रुओं से युद्ध करने को निकट आए हो; तुम्हारा मन कच्चा न हो; तुम मत डरो, और न थरथराओ, और न उनके साम्हने भय खाओ; 05O 20 4 क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे शत्रुओं से युद्ध करने और तुम्हें बचाने के लिये तुम्हारे संग चलता है। 05O 20 5 फिर सरदार सिपाहियों से यह कहें, कि तुम में से कौन है जिस ने नया घर बनाया हो और उसका समर्पण न किया हो? तो वह अपने घर को लौट जाए और दूसरा मनुष्य उसका समर्पण करे। 05O 20 6 और कौन है जिस ने दाख की बारी लगाई हो, परन्तु उसके फल न खाए हों? वह भी अपने घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि वह संग्राम में मारा जाए, और दूसरा मनुष्य उसके फल खाए। 05O 20 7 फिर कौन है जिस ने किसी स्त्री से ब्याह की बात लगाई हो, परन्तु उसको ब्याह न लाया हो? वह भी अपने घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि वह युद्ध में मारा जाए, और दूसरा मनुष्य उस से ब्याह कर ले। 05O 20 8 इसके अलावा सरदार सिपाहियों से यह भी कहें, कि कौन कौन मनुष्य है जो डरपोेक और कच्चे मन का है, वह भी अपने घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि उसकी देखा देखी उसके भाइयों का भी हियाव टूट जाए। 05O 20 9 और जब प्रधान सिपाहियों से यह कह चुकें, तब उन पर प्रधानता करने के लिये सेनापतियों को नियुक्त करें।। 05O 20 10 जब तू किसी नगर से युद्ध करने को उनके निकट जाए, तब पहिले उस से सन्धि करने का समाचार दे। 05O 20 11 और यदि वह सन्धि करना अंगीकार करे और तेरे लिये अपने फाटक खोल दे, तब जितने उस में हों वे सब तेरे अधीन होकर तेरे लिये बेगार करनेवाले ठहरें। 05O 20 12 परन्तु यदि वे तुझ से सन्धि न करें, परन्तु तुझ से लड़ना चाहें, तो तू उस नगर को घेर लेना; 05O 20 13 और जब तेरा परमेश्वर यहोवा उसे तेरे हाथ में सौंप दे तब उस में के सब पुरूषों को तलवार से मार डालना। 05O 20 14 परन्तु स्त्रियां और बालबच्चे, और पशु आदि जितनी लूट उस नगर में हो उसे अपने लिये रख लेना; और तेरे शत्रुओं की लूट जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे दे उसे काम में लाना। 05O 20 15 इस प्रकार उन नगरों से करना जो तुझ से बहुत दूर हैं, और इन जातियों के नगर नहीं हैं। 05O 20 16 परन्तु जो नगर इन लोगों के हैं, जिनका अधिकारी तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को ठहराने पर है, उन में से किसी प्राणी को जीवित न रख छोड़ना, 05O 20 17 परन्तु उनको अवश्य सत्यानाश करना, अर्थात् हित्तियों, एमोरियों, कनानियों, परिज्जियों, हिव्वियों, और यबूसियों को, जैसे कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे आज्ञा दी है; 05O 20 18 ऐसा न हो कि जितने घिनौने काम वे अपने देवताओं की सेवा में करते आए हैं वैसा ही करना तुम्हें भी सिखाएं, और तुम अपने परमेश्वर यहोवा के विरूद्ध पाप करने लगो।। 05O 20 19 जब तू युद्ध करते हुए किसी नगर को जीतने के लिये उसे बहुत दिनों तक घेरे रहे, तब उसके वृक्षों पर कुल्हाड़ी चलाकर उन्हें नाश न करना, क्योंकि उनके फल तेरे खाने के काम आएंगे, इसलिये उन्हें न काटना। क्या मैदान के वृक्ष भी मनुष्य हैं कि तू उनको भी घेर रखे? 05O 20 20 परन्तु जिन वृक्षों के विषय में तू यह जान ले कि इनके फल खाने के नहीं हैं, तो उनको काटकर नाश करना, और उस नगर के विरूद्ध उस समय तक कोट बान्धे रहना जब तक वह तेरे वश में न आ जाए।। 05O 21 1 यदि उस देश के मैदान में जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है किसी मारे हुए की लोथ पड़ी हुई मिले, और उसको किस ने मार डाला है यह जान न पड़े, 05O 21 2 तो तेरे सियाने लोग और न्यायी निकलकर उस लोथ के चारों ओर के एक एक नगर की दूरी को नापें; 05O 21 3 तब जो नगर उस लोथ के सब से निकट ठहरे, उसके सियाने लोग एक ऐसी कलोर ले रखें, जिस से कुछ काम न लिया गया हो, और जिस पर जूआ कभी न रखा गया हो। 05O 21 4 तब उस नगर के सियाने लोग उस कलोर को एक बारहमासी नदी की ऐसी तराई में जो न जोती और न बोई गई हो ले जाएं, और उसी तराई में उस कलोर का गला तोड़ दें। 05O 21 5 और लेवीय याजक भी निकट आएं, क्योंकि तेरे परमेश्वर यहोवा ने उनको चुन लिया है कि उसकी सेवा टहल करें और उसके नाम से आशीर्वाद दिया करें, और उनके कहने के अनुसार हर एक झगड़े और मारपीट के मुक मे का निर्णय हो। 05O 21 6 फिर जो नगर उस लोथ के सब से निकट ठहरे, उसके सब सियाने लोग उस कलोर के ऊपर जिसका गला तराई में तोड़ा गया हो अपने अपने हाथ धोकर कहें, 05O 21 7 यह खून हम से नहीं किया गया, और न यह हमारी आंखों का देखा हुआ काम है। 05O 21 8 इसलिये, हे यहोवा, अपनी छुड़ाई हुई इस्राएली प्रजा का पाप ढांपकर निर्दोष खून का पाप अपनी इस्राएल प्रजा के सिर पर से उतार। तब उस खून का दोष उनको क्षमा कर दिया जाएगा। 05O 21 9 यों वह काम करके जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है तू निर्दोष के खून का दोष अपने मध्य में से दूर करना।। 05O 21 10 जब तू अपने शत्रुओं से युद्ध करने को जाए, और तेरा परमेश्वर यहोवा उन्हें तेरे हाथ में कर दे, और तू उन्हें बन्धुआ कर ले, 05O 21 11 तब यदि तू बन्धुओं में किसी सुन्दर स्त्री को देखकर उस पर मोहित हो जाए, और उस से ब्याह कर लेना चाहे, 05O 21 12 तो उसे अपने घर के भीतर ले आना, और वह अपना सिर मुंड़ाए, नाखून कटाए, 05O 21 13 और अपने बन्धुआई के वस्त्रा उतारके तेरे घर में महीने भर रहकर अपने माता पिता के लिये विलाप करती रहे; उसके बाद तू उसके पास जाना, और तू उसका पति और वह तेरी पत्नी बने। 05O 21 14 फिर यदि वह तुझ को अच्छी न लगे, तो जहां वह जाना चाहे वहां उसे जाने देना; उसको रूपया लेकर कहीं न बेचना, और तू ने जो उसकी पत- पानी ली, इस कारण उस से दासी का सा ब्यवहार न करना।। 05O 21 15 यदि किसी पुरूष की दो पत्नियां हों, और उसे एक प्रिय और दूसरी अप्रिय हो, और प्रिया और अप्रिया दोनों स्त्रियां बेटे जने, परन्तु जेठा अप्रिया का हो, 05O 21 16 तो जब वह अपने पुत्रों को सम्पत्ति का बटवारा करे, तब यदि अप्रिया का बेटा जो सचमुच जेठा है यदि जीवित हो, तो वह प्रिया के बेटे को जेठांस न दे सकेगा; 05O 21 17 वह यह जानकर कि अप्रिया का बेटा मेरे पौरूष का पहिला फल है, और जेठे का अधिकार उसी का है, उसी को अपनी सारी सम्पत्ति में से दो भाग देकर जेठांसी माने।। 05O 21 18 यदि किसी के हठीला और दंगैत बेटा हो, जो अपने माता- पिता की बात न माने, किन्तु ताड़ना देने पर भी उनकी न सुने, 05O 21 19 तो उसके माता- पिता उसे पकड़कर अपने नगर से बाहर फाटक के निकट नगर के सियानों के पास ले जाएं, 05O 21 20 और वे नगर के सियानों से कहें, कि हमारा यह बेटा हठीला और दंगैत है, यह हमारी नहीं सुनता; यह उड़ाऊ और पियक्कड़ है। 05O 21 21 तब उस नगर के सब पुरूष उसको पत्थरवाह करके मार डाले, यों तू अपने मध्य में से ऐसी बुराई को दूर करना, तब सारे इस्राएली सुनकर भय खाएंगे। 05O 21 22 फिर यदि किसी से प्राणदण्ड के योग्य कोई पाप हुआ हो जिस से वह मार डाला जाए, और तू उसकी लोथ को वृक्ष पर लटका दे, 05O 21 23 तो वह लोथ रात को वृक्ष पर टंगी न रहे, अवश्य उसी दिन उसे मिट्टी देना, क्योंकि जो लटकाया गया हो वह परमेश्वर की ओर से शापित ठहरता है; इसलिये जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा भाग करके देता है उसकी भूमि को अशुद्ध न करना।। 05O 22 1 तू अपने भाई के गाय- बैल वा भेड़- बकरी को भटकी हुई देखकर अनदेखी न करना, उसको अवश्य उसके पास पहुंचा देना। 05O 22 2 परन्तु यदि तेरा वह भाई निकट न रहता हो, वा तू उसे न जानता हो, तो उस पशु को अपने घर के भीतर ले आना, और जब तक तेरा वह भाई उसको न ढूंढ़े तब तक वह तेरे पास रहे; और जब वह उसे ढूंढ़े तब उसको दे देना। 05O 22 3 और उसके गदहे वा वस्त्रा के विषय, वरन उसकी कोई वस्तु क्यों न हो, जो उस से खो गई हो और तुझ को मिले, उसके विषय में भी ऐसा ही करना; तू देखी- अनदेखी न करना।। 05O 22 4 तू अपने भाई के गदहे वा बैल को मार्ग पर गिरा हुआ देखकर अनदेखी न करना; उसके उठाने में अवश्य उसकी सहायता करना।। 05O 22 5 कोई स्त्री पुरूष का पहिरावा न पहिने, और न कोई पुरूष स्त्री का पहिरावा पहिने; क्योंकि ऐसे कामों के सब करनेवाले तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में घृणित हैं।। 05O 22 6 यदि वृक्ष वा भूमि पर तेरे साम्हने मार्ग में किसी चिड़िया का घोंसला मिले, चाहे उस में बच्चे हों चाहे अण्डे, और उन बच्चों वा अण्डों पर उनकी मां बैठी हुई हो, तो बच्चों समेत मां को न लेना; 05O 22 7 बच्चों को अपने लिये ले तो ले, परन्तु मां को अवश्य छोड़ देना; इसलिये कि तेरा भला हो, और तेरी आयु के दिन बहुत हों।। 05O 22 8 जब तू नया घर बनाए तब उसकी छत पर आड़ के लिये मुण्डेर बनाना, ऐसा न हो कि कोई छत पर से गिर पड़े, और तू अपने घराने पर खून का दोष लगाए। 05O 22 9 अपनी दाख की बारी में दो प्रकार के बीज न बोना, ऐसा न हो कि उसकी सारी उपज, अर्थात् तेरा बोया हुआ बीज और दाख की बारी की उपज दोनों अपवित्रा ठहरें। 05O 22 10 बैल और गदहा दोनों संग जोतकर हल न चलाना। 05O 22 11 ऊन और सनी की मिलावट से बना हुआ वस्त्रा न पहिनना।। 05O 22 12 अपने ओढ़ने के चारों ओर की कोर पर झालर लगाया करना।। 05O 22 13 यदि कोई पुरूष किसी स्त्री को ब्याहे, और उसके पास जाने के समय वह उसको अप्रिय लगे, 05O 22 14 और वह उस स्त्री की नामधराई करे, और यह कहकर उस पर कुकर्म का दोष लगाए, कि इस स्त्री को मैं ने ब्याहा, और जब उस से संगति की तब उस में कुंवारी अवस्था के लक्षण न पाए, 05O 22 15 तो उस कन्या के माता- पिता उसके कुंवारीपन के चिन्ह लेकर नगर के वृद्ध लोगों के पास फाटक के बाहर जाएं; 05O 22 16 और उस कन्या का पिता वृद्ध लोगों से कहे, मैं ने अपनी बेटी इस पुरूष को ब्याह दी, और वह उसको अप्रिय लगती है; 05O 22 17 और वह तो यह कहकर उस पर कुकर्म का दोष लगाता है, कि मैं ने तेरी बेटी में कुंवारीपन के लक्षण नहीं पाए। परन्तु मेरी बेटी के कुंवारीपन के चिन्ह ये हैं। तब उसके माता- पिता नगर के वृद्ध लोगों के साम्हने उस च र को फैलाएं। 05O 22 18 तब नगर के सियाने लोग उस पुरूष को पकड़कर ताड़ना दें; 05O 22 19 और उस पर सौ शेकेल रूपे का दण्ड भी लगाकर उस कन्या के पिता को दें, इसलिये कि उस ने एक इस्राएली कन्या की नामधराई की है; और वह उसी की पत्नी बनी रहे, और वह जीवन भर उस स्त्री को त्यागने न पाए। 05O 22 20 परन्तु यदि उस कन्या के कुंवारीपन के चिन्ह पाए न जाएं, और उस पुरूष की बात सच ठहरे, 05O 22 21 तो वे उस कन्या को उसके पिता के घर के द्वार पर ले जाएं, और उस नगर के पुरूष उसको पत्थरवाह करके मार डालें; उस ने तो अपने पिता के घर में वेश्या का काम करके बुराई की है; यों तू अपने मध्य में से ऐसी बुराई को दूर करना।। 05O 22 22 यदि कोई पुरूष दूसरे पुरूष की ब्याही हुई स्त्री के संग सोता हुआ पकड़ा जाए, तो जो पुरूष उस स्त्री के संग सोया हो वह और वह स्त्री दोनों मार डालें जाएं; इस प्रकार तू ऐसी बुराई को इस्राएल में से दूर करना।। 05O 22 23 यदि किसी कुंवारी कन्या के ब्याह की बात लगी हो, और कोई दूसरा पुरूष उसे नगर में पाकर उस से कुकर्म करे, 05O 22 24 तो तुम उन दोनों को उस नगर के फाटक के बाहर ले जाकर उनको पत्थरवाह करके मार डालना, उस कन्या को तो इसलिये कि वह नगर में रहते हुए भी नहीं चिल्लाई, और उस पुरूष को इस कारण कि उस ने पड़ोसी की स्त्री की पत- पानी ली है; इस प्रकार तू अपने मध्य में से ऐसी बुराई को दूर करना।। 05O 22 25 परन्तु यदि कोई पुरूष किसी कन्या को जिसके ब्याह की बात लगी हो मैदान में पाकर बरबस उस से कुकर्म करे, तो केवल वह पुरूष मार डाला जाए, जिस ने उस से कुकर्म किया हो। 05O 22 26 और उस कन्या से कुछ न करना; उस कन्या का पाप प्राणदण्ड के योग्य नहीं, क्योंकि जैसे कोई अपने पड़ोसी पर चढ़ाई करके उसे मार डाले, वैसी ही यह बात भी ठहरेगी; 05O 22 27 कि उस पुरूष ने उस कन्या को मैदान में पाया, और वह चिल्लाई को सही, परन्तु उसको कोई बचानेवाला न मिला। 05O 22 28 यदि किसी पुरूष को कोई कुंवारी कन्या मिले जिसके ब्याह की बात न लगी हो, और वह उसे पकड़कर उसके साथ कुकर्म करे, और वे पकड़े जाएं, 05O 22 29 तो जिस पुरूष ने उस से कुकर्म किया हो वह उस कन्या के पिता को पचास शेकेल रूपा दे, और वह उसी की पत्नी हो, उस ने उस की पत- पानी ली; इस कारण वह जीवन भर उसे न त्यागने पाए।। 05O 22 30 कोई अपनी सौतेली माता को अपनी स्त्री न बनाए, वह अपने पिता का ओढ़ना न उघारे।। 05O 23 1 जिसके अण्ड कुचले गए वा लिंग काट डाला गया हो वह यहोवा की सभा में न आने पाए।। 05O 23 2 कोई कुकर्म से जन्मा हुआ यहोवा की सभा में न आने पाए; किन्तु दस पीढ़ी तक उसके वंश का कोई यहोवा की सभा में न आने पाए।। 05O 23 3 कोई अम्मोनी वा मोआबी यहोवा की सभा में न आने पाए; उनकी दसवीं पीढ़ी तक का कोई यहोवा की सभा में कभी न आने पाए; 05O 23 4 इस कारण से कि जब तुम मि से निकलकर आते थे तब उन्हों ने अन्न जल लेकर मार्ग में तुम से भेंट नहीं की, और यह भी कि उन्हों ने अरम्नहरैम देश के पतोर नगरवाले बोर के पुत्रा बिलाम को तुझे शाप देने के लिये दक्षिणा दी। 05O 23 5 परन्तु तेरे परमेश्वर यहोवा ने तेरे निमित्त उसके शाप को आशीष से पलट दिया, इसलिये कि तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ से प्रेम रखता था। 05O 23 6 तू जीवन भर उनका कुशल और भलाई कभी न चाहना। 05O 23 7 किसी एदोमी से घृणा न करना, क्योंकि वह तेरा भाई है; किसी मिद्दी से भी घृणा न करना, क्योंकि उसके देश में तू परदेशी होकर रहा था। 05O 23 8 उनके जो परपोते उत्पन्न हों वे यहोवा की सभा में न आने पाएं। 05O 23 9 जब तू शत्रुओं से लड़ने को जाकर छावनी डाले, तब सब प्रकार की बुरी बातों से बचा रहना। 05O 23 10 यदि तेरे बीच कोई पुरूष उस अशुद्धता से जो रात्रि को आप से आप हुआ करती है अशुद्ध हुआ हो, तो वह छावनी से बाहर जाए, और छावनी के भीतर न आए; 05O 23 11 परन्तु संध्या से कुछ पहिले वह स्नान करे, और जब सूर्य डूब जाए तब छावनी में आए। 05O 23 12 छावनी के बाहर तेरे दिशा फिरने का एक स्थान हुआ करे, और वहीं दिशा फिरने को जाया करना; 05O 23 13 और तेरे पास के हथियारों में एक खनती भी रहे; और जब तू दिशा फिरने को बैठे, तब उस से खोदकर अपने मल को ढांप देना। 05O 23 14 क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को बचाने और तेरे शत्रुओं को तुझ से हरवाने को तेरी छावनी के मध्य घूमता रहेगा, इसलिये तेरी छावनी पवित्रा रहनी चाहिये, ऐसा न हो कि वह तेरे मध्य में कोई अशुद्ध वस्तु देखकर तुझ से फिर जाए।। 05O 23 15 जो दास अपने स्वामी के पास से भागकर तेरी शरण ले उसको उसके स्वामी के हाथ न पकड़ा देना; 05O 23 16 वह तेरे बीच जो नगर उसे अच्छा लगे उसी में तेरे संग रहने पाए; और तू उस पर अन्धेर न करना।। 05O 23 17 इस्राएली स्त्रियों में से कोई देवदासी न हो, और न इस्राएलियों में से कोई पुरूष ऐसा बुरा काम करनेवाला हो। 05O 23 18 तू वेश्यापन की कमाई वा कुत्ते की कमाई किसी मन्नत को पूरी करने के लिये अपने परमेश्वर यहोवा के घर में न लाना; क्योंकि तेरे परमेश्वर यहोवा के समीप ये दोनों की दोनों कमाई घृणित कर्म है।। 05O 23 19 अपने किसी भाई को ब्याज पर ऋण न देना, चाहे रूपया हो, चाहे भोजन- वस्तु हो, चाहे कोई वस्तु हो जो ब्याज पर दी जाति है, उसे ब्याज न देना। 05O 23 20 तू परदेशी को ब्याज पर ऋण तो दे, परन्तु अपने किसी भाई से ऐसा न करना, ताकि जिस देश का अधिकारी होने को तू जा रहा है, वहां जिस जिस काम में अपना हाथ लगाए, उन सभों को तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे आशीष दे।। 05O 23 21 जब तू अपने परमेश्वर यहोवा के लिये मन्नत माने, तो उसके पूरी करने में विलम्ब न करना; क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा उसे निश्चय तुझ से ले लेगा, और विलम्ब करने से तू पापी ठहरेगा। 05O 23 22 परन्तु यदि तू मन्नत न माने, तो तेरा कोई पाप नहीं। 05O 23 23 जो कुछ तेरे मुंह से निकले उसके पूरा करने में चौकसी करना; तू अपने मुंह से वचन देकर अपनी इच्छा से अपने परमेश्वर यहोवा की जैसी मन्नत माने, वैसा ही स्वतंत्राता पूर्वक उसे पूरा करना। 05O 23 24 जब तू किसी दूसरे की दाख की बारी में जाए, तब पेट भर मनमाने दाख खा तो खा, परन्तु अपने पात्रा में कुछ न रखना। 05O 23 25 और जब तू किसी दूसरे के खड़े खेत में जाए, तब तू हाथ से बालें तोड़ सकता है, परन्तु किसी दूसरे के खड़े खेत पर हंसुआ न लगाना।। 05O 24 1 यदि कोई पुरूष किसी स्त्री को ब्याह ले, और उसके बाद उसमें लज्जा की बात पाकर उस से अप्रसन्न हो, तो वह उसके लिये त्यागपत्रा लिखकर और उसके हाथ में देकर उसको अपने घर से निकाल दे। 05O 24 2 और जब वह उसके घर से निकल जाए, तब दूसरे पुरूष की हो सकती है। 05O 24 3 परन्तु यदि वह उस दूसरे पुरूष को भी अप्रिय लगे, और वह उसके लिये त्यागपत्रा लिखकर उसके हाथ में देकर उसे अपने घर से निकाल दे, वा वह दूसरा पुरूष जिस ने उसको अपनी स्त्री कर लिया हो मर जाए, 05O 24 4 तो उसका पहिला पति, जिस ने उसको निकाल दिया हो, उसके अशुद्ध होने के बाद उसे अपनी पत्नी न बनाने पाए क्योंकि यह यहोवा के सम्मुख घृणित बात है। इस प्रकार तू उस देश को जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा भाग करके तुझे देता है पापी न बनाना।। 05O 24 5 जो पुरूष हाल का ब्याहा हुआ हो, वह सेना के साथ न जाए और न किसी काम का भार उस पर डाला जाए; वह वर्ष भर अपने घर में स्वतंत्राता से रहकर अपनी ब्याही हुई स्त्री को प्रसन्न करता रहे। 05O 24 6 कोई मनुष्य चक्की को वा उसके ऊपर के पाट को बन्धक न रखे; क्योंकि वह तो मानों प्राण ही को बन्धक रखना है।। 05O 24 7 यदि कोई अपने किसी इस्राएली भाई को दास बनाने वा बेच डालने की मनसा से चुराता हुआ पकड़ा जाए, तो ऐसा चोर मार डाला जाए; ऐसी बुराई को अपने मध्य में से दूर करना।। 05O 24 8 कोढ़ की ब्याधि के विषय में चौकस रहना, और जो कुछ लेवीय याजक तुम्हें सिखाएं उसी के अनुसार यत्न से करने में चौकसी करना; जैसी आज्ञा मैं ने उनको दी है वैसा करने में चौकसी करना। 05O 24 9 स्मरण रख कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने, जब तुम मि से निकलकर आ रहे थे, तब मार्ग में मरियम से क्या किया। 05O 24 10 जब तू अपने किसी भाई को कुछ उधार दे, तब बन्धक की वस्तु लेने के लिये उसके घर के भीतर न घुसना। 05O 24 11 तू बाहर खड़ा रहना, और जिसको तू उधार दे वही बन्धक की वस्तु को तेरे पास बाहर ले आए। 05O 24 12 और यदि वह मनुष्य कंगाल हो, तो उसका बन्धक अपने पास रखे हुए न सोना; 05O 24 13 सूर्य अस्त होते होते उसे वह बन्धक अवश्य फेर देना, इसलिये कि वह अपना ओढ़ना ओढ़कर सो सके और तुझे आशीर्वाद दे; और यह तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में धर्म का काम ठहरेगा।। 05O 24 14 कोई मजदूर जो दीन और कंगाल हो, चाहे वह तेरे भाइयों में से हो चाहे तेरे देश के फाटकों के भीतर रहनेवाले परदेशियों में से हो, उस पर अन्धेर न करना; 05O 24 15 यह जानकर, कि वह दीन है और उसका मन मजदूरी में लगा रहता है, मजदूरी करने ही के दिन सूर्यास्त से पहिले तू उसकी मजदूरी देना; ऐसा न हो कि वह तेरे कारण यहोवा की दोहाई दे, और तू पापी ठहरे।। 05O 24 16 पुत्रा के कारण पिता न मार डाला जाए, और न पिता के कारण पुत्रा मार डाला जाए; जिस ने पाप किया हो वही उस पाप के कारण मार डाला जाए।। 05O 24 17 किसी परेदशी मनुष्य वा अनाथ बालक का न्याय न बिगाड़ना, और न किसी विधवा के कपड़े को बन्धक रखना; 05O 24 18 और इस को स्मरण रखना कि तू मि में दास था, और तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे वहां से छुड़ा लाया है; इस कारण मैं तुझे यह आज्ञा देता हूं।। 05O 24 19 जब तू अपने पक्के खेत को काटे, और एक पूला खेत में भूल से छूट जाए, तो उसे लेने को फिर न लौट जाना; वह परदेशी, अनाथ, और विधवा के लिये पड़ा रहे; इसलिये कि परमेश्वर यहोवा तेरे सब कामों में तुझ को आशीष दे। 05O 24 20 जब तू अपने जलपाई के वृक्ष को झाड़े, तब डालियों को दूसरी बार न झाड़ना; वह परदेशी, अनाथ, और विधवा के लिये रह जाए। 05O 24 21 जब तू अपनी दाख की बारी के फल तोड़े, तो उसका दाना दाना न तोड़ लेना; वह परदेशी, अनाथ और विधवा के लिये रह जाए। 05O 24 22 और इसको स्मरण रखना कि तू मि देश में दास था; इस कारण मैं तुझे यह आज्ञा देता हूं।। 05O 25 1 यदि मनुष्यों के बीच कोई झगड़ा हो, और वे न्याय करवाने के लिये न्यायियों के पास जाएं, और वे उनका न्याय करें, तो निर्दोष को निर्दोष और दोषी को दोषी ठहराएं। 05O 25 2 और यदि दोषी मार खाने के योग्य ठहरे, तो न्यायी उसको गिरवाकर अपने साम्हने जैसा उसका दोष हो उसके अनुसार कोड़े गिनकर लगवाए। 05O 25 3 वह उसे चालीस कोड़े तक लगवा सकता है, इस से अधिक नहीं लगवा सकता; ऐसा न हो कि इस से अधिक बहुत मार खिलवाने से तेरा भाई तेरी दृष्टि में तुच्छ ठहरे।। 05O 25 4 दांवते समय चलते हुए बैल का मुंह न बान्धना। 05O 25 5 जब कोई भाई संग रहते हों, और उन में से एक निपुत्रा मर जाए, तो उसकी स्त्री का ब्याह परगोत्री से न किया जाए; उसके पति का भाई उसके पास जाकर उसे अपनी पत्नी कर ले, और उस से पति के भाई का धर्म पालन करे। 05O 25 6 और जो पहिला बेटा उस स्त्री से उत्पन्न हो वह उस मरे हुए भाई के नाम का ठहरे, जिस से कि उसका नाम इस्राएल में से मिट न जाए। 05O 25 7 यदि उस स्त्री के पति के भाई को उसे ब्याहना न भाए, तो वह स्त्री नगर के फाटक पर वृद्ध लोगों के पास जाकर कहे, कि मेरे पति के भाई ने अपने भाई का नाम इस्त्राएल में बनाए रखने से नकार दिया है, और मुझ से पति के भाई का धर्म पालन करना नहीं चाहता। 05O 25 8 तब उस नगर के वृद्ध उस पुरूष को बुलवाकर उसे समझाएं; और यदि वह अपनी बात पर अड़ा रहे, और कहे, कि मुझे इसको ब्याहना नहीं भावता, 05O 25 9 तो उसके भाई की पत्नी उन वृद्ध लोगों के साम्हने उसके पास जाकर उसके पांव से जूती उतारे, और उसके मूंह पर थूक दे; और कहे, जो पुरूष अपने भाई के वंश को चलाना न चाहे उस से इसी प्रकार व्यवहार किया जाएगा। 05O 25 10 तब इस्राएल में उस पुरूष का यह नाम पड़ेगा, अर्थात् जूती उतारे हुए पुरूष का घराना।। 05O 25 11 यदि दो पुरूष आपस में मारपीट करते हों, और उन में से एक की पत्नी अपने पति को मारनेवाले के हाथ से छुड़ाने के लिये पास जाए, और अपना हाथ बढ़ाकर उसके गुप्त अंग को पकड़े, 05O 25 12 तो उस स्त्री का हाथ काट डालना; उस पर तरस न खाना।। 05O 25 13 अपनी थैली में भांति भांति के अर्थात् घटती- बढ़ती बटखरे न रखना। 05O 25 14 अपने घर में भांति भांति के, अर्थात् घटती- बढती नपुए न रखना। 05O 25 15 तेरे बटखरे और नपुए पूरे पूरे और धर्म के हों; इसलिये कि जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में तेरी आयु बहुत हो। 05O 25 16 क्योंकि ऐसे कामों में जितने कुटिलता करते हैं वे सब तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में घृणित हैं।। 05O 25 17 स्मरण रख कि जब तू मि से निकलकर आ रहा था तब अमालेक ने तुझ से मार्ग में क्या किया, 05O 25 18 अर्थात् उनको परमेश्वर का भय न था; इस कारण उस ने जब तू मार्ग में थका मांदा था, तब तुझ पर चढ़ाई करके जितने निर्बल होने के कारण सब से पीछे थे उन सभों को मारा। 05O 25 19 इसलिये जब तेरा परमेश्वर यहोवा उस देश में, जो वह तेरा भाग करके तेरे अधिकार में कर देता है, तुझे चारों ओर के सब शत्रुओं से विश्राम दे, तब अमालेक का नाम धरती पर से मिटा डालना; और तुम इस बात को न भूलना।। 05O 26 1 फिर जब तू उस देश में जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा निज भाग करके तुझे देता है पहुंचे, और उसका अधिकारी होकर उन में बस जाए, 05O 26 2 तब जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, उसकी भूमि की भांति भांति की जो पहिली उपज तू अपने घर लाएगा, उस में से कुछ टोकरी में लेकर उस स्थान पर जाना, जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा अपने नाम का निवास करने को चुन ले। 05O 26 3 और उन दिनों के याजक के पास जाकर यह कहना, कि मैं आज तेरे परमेश्वर यहोवा के साम्हने निवेदन करता हूं, कि यहोवा ने हम लोगों को जिस देश के देने की हमारे पूर्वजों से शपथ खाई थी उस में मैं आ गया हूं। 05O 26 4 तब याजक तेरे हाथ से वह टोकरी लेकर तेरे परमेश्वर यहोवा की वेदी के साम्हने धर दे। 05O 26 5 तब तू अपने परमेश्वर यहोवा से इस प्रकार कहना, कि मेरा मूलपुरूष एक अरामी मनुष्य था जो मरने पर था; और वह अपने छोटे से परिवार समेत मि को गया, और वहां परदेशी होकर रहा; और वहंा उस से एक बड़ी, और सामर्थी, और बहुत मनुष्यों से भरी हुई जाति उत्पन्न हुई। 05O 26 6 और मिस्त्रियों ने हम लोगों से बुरा बर्ताव किया, और हमें दु:ख दिया, और हम से कठिन सेवा लीं। 05O 26 7 परन्तु हम ने अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा की दोहाई दी, और यहोवा ने हमारी सुनकर हमारे दुख- श्रम और अन्धेर पर दृष्टि की; 05O 26 8 और यहोवा ने बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा से अति भयानक चिन्ह और चमत्कार दिखलाकर हम को मि से निकाल लाया; 05O 26 9 और हमें इस स्थान पर पहुंचाकर यह देश जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं हमें दे दिया है। 05O 26 10 अब हे यहोवा, देख, जो भूमि तू ने मुझे दी है उसकी पहली उपज मैं तेरे पास ले आया हूं। 05O 26 11 तब तू उसे अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने रखना; और यहोवा को दण्डवत करना; 05O 26 12 और जितने अच्छे पदार्थ तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे और तेरे घराने को दे, उनके कारण तू लेवीयों और अपने मध्य में रहनेवाले परदेशियों सहित आनन्द करना।। 05O 26 13 और तू अपने परमेश्वर यहोवा से कहना, कि मैं ने तेरी सब आज्ञाओं के अनुसार पवित्रा ठहराई हुई वस्तुओं को अपने घर से निकाला, और लेवीय, परदेशी, अनाथ, और विधवा को दे दिया है; तेरी किसी आज्ञा को मैं ने न तो टाला है, और न भूला है। 05O 26 14 उन वस्तुओं में से मैं ने शोक के समय नहीं खाया, और न उन में से कोई वस्तु अशुद्धता की दशा में घर से निकाली, और न कुछ शोक करनेवालों को दिया; मैं ने अपने परमेश्वर यहोवा की सुन ली, मैं ने तेरी सब आज्ञाओं के अनुसार किया है। 05O 26 15 तू स्वर्ग में से जो तेरा पवित्रा धाम है दृष्टि करके अपनी प्रजा इस्राएल को आशीष दे, और इस दूध और मधु की धाराओं के देश की भूमि पर आशीष दे, जिसे तू ने हमारे पूर्वजों से खाई हुई शपथ के अनुसार हमें दिया है। 05O 26 16 आज के दिन तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को इन्हीं विधियों और नियमों के मानने की आज्ञा देता है; इसलिये अपने सारे मन और सारे प्राण से इनके मानने में चौकसी करना। 05O 26 17 तू ने तो आज यहोवा को अपना परमेश्वर मानकर यह वचन दिया है, कि मैं तेरे बनाए हुए मार्गों पर चलूंगा, और तेरी विधियों, आज्ञाओं, और नियमों को माना करूंगा, और तेरी सुना करूंगा। 05O 26 18 और यहोवा ने भी आज तुझ को अपने वचन के अनुसार अपना प्रजारूपी निज धन सम्पत्ति माना है, कि तू उसकी सब आज्ञाओं को माना करे, 05O 26 19 और कि वह अपनी बनाई हुई सब जातियों से अधिक प्रशंसा, नाम, और शोभा के विषय में तुझ को प्रतिष्ठित करे, और तू उसके वचन के अनुसार अपने परमेश्वर यहोवा की पवित्रा प्रजा बना रहे। 05O 27 1 फिर इस्राएल के वृद्ध लोगों समेत मूसा ने प्रजा के लोगों को यह आज्ञा दी, कि जितनी आज्ञाएं मैं आज तुम्हें सुनाता हूं उन सब को मानना। 05O 27 2 और जब तुम यरदन पार होके उस देश में पहुंचो, जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, तब बड़े बड़े पत्थर खड़े कर लेना, और उन पर चूना पोतना; 05O 27 3 और पार होने के बाद उन पर इस व्यवस्था के सारे वचनों को लिखना, इसलिये कि जो देश तेरे पूर्वजों का परमेश्वर यहोवा अपने वचन के अनुसार तुझे देता है, और जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, उस देश में तू जाने पाए। 05O 27 4 फिर जिन पत्थरों के विषय में मैं ने आज आज्ञा दी है, उन्हें तुम यरदन के पार होकर एबाल पहाड़ पर खड़ा करना, और उन पर चूना पोतना। 05O 27 5 और वहीं अपने परमेश्वर यहोवा के लिये पत्थरों की एक वेदी बनाना, उन पर कोई औजार न चलाना। 05O 27 6 अपने परमेश्वर यहोवा की वेदी अनगढ़े पत्थरों की बनाकर उन पर उसके लिये होमबलि चढ़ाना; 05O 27 7 और वहीं मेलबलि भी चढ़ाकर भोजन करना, और अपने परमेश्वर यहोवा के सम्मुख आनन्द करना। 05O 27 8 और उन पत्थरों पर इस व्यवस्था के सब वचनों को शुद्ध रीति से लिख देना।। 05O 27 9 फिर मूसा और लेवीय याजकों ने सब इस्राएलियों से यह भी कहा, कि हे इस्राएल, चुप रहकर सुन; आज के दिन तू अपने परमेश्वर यहोवा की प्रजा हो गया है। 05O 27 10 इसलिये अपने परमेश्वर यहोवा की बात मानना, और उसकी जो जो आज्ञा और विधि मैं आज तुझे सुनाता हूं उनका पालन करना। 05O 27 11 फिर उसी दिन मूसा ने प्रजा के लोगों को यह आज्ञा दी, 05O 27 12 कि जब तुम यरदन पार हो जाओ तब शिमौन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, युसुफ, और बिन्यामीन, ये गिरिज्जीम पहाड़ पर खडे होकर आशीर्वाद सुनाएं। 05O 27 13 और रूबेन, गाद, आशेर, जबूलून, दान, और नप्ताली, ये एबाल पहाड़ पर खड़े होके शाप सुनाएं। 05O 27 14 तब लेवीय लोग सब इस्राएली पुरूषों से पुकारके कहें, 05O 27 15 कि शापित हो वह मनुष्य जो कोई मूर्त्ति कारीगर से खुदवाकर वा ढलवाकर निराले स्थान में स्थापन करे, क्योंकि इस से यहोवा को घृणा लगती है। तब सब लोग कहें, आमीन।। 05O 27 16 शापित हो वह जो अपने पिता वा माता को तुच्छ जाने। तब सब लोग कहें, आमीन।। 05O 27 17 शापित हो वह जो किसी दूसरे के सिवाने को हटाए। तब सब लोग कहें, आमीन।। 05O 27 18 शापित हो वह जो अन्धे को मार्ग से भटका दे। तब सब लोग कहें, आमीन।। 05O 27 19 शापित हो वह जो परेदशी, अनाथ, वा विधवा का न्याय बिगाड़े। तब सब लोग कहें आमीन।। 05O 27 20 शापित हो वह जो अपनी सौतेली माता से कुकर्म करे, क्योंकि वह अपने पिता का ओढ़ना उघारता है। तब सब लोग कहें, आमीन।। 05O 27 21 शापित हो वह जो किसी प्रकार के पशु से कुकर्म करे। तब सब लोग कहें, आमीन।। 05O 27 22 शापित हो वह जो अपनी बहिन, चाहे सगी हो चाहे सौतेली, उस से कुकर्म करे। तब सब लोग कहें, आमीन।। 05O 27 23 शापित हो वह जो अपनी सास के संग कुकर्म करे। तब सब लोग कहें, आमीन।। 05O 27 24 शापित हो वह जो किसी को छिपकर मारे। तब सब लोग कहें, आमीन।। 05O 27 25 शापित हो वह जो निर्दोष जन के मार डालने के लिये धन ले। तब सब लोग कहें, आमीन।। 05O 27 26 शापित हो वह जो इस व्यवस्था के वचनों को मानकर पूरा न करे। तब सब लोग कहें, आमीन।। 05O 28 1 यदि तू अपने परमेश्वर यहोवा की सब आज्ञाएं, जो मैं आज तुझे सुनाता हूं, चौकसी से पूरी करने का चित्त लगाकर उसकी सुने, तो वह तुझे पृथ्वी की सब जातियों में श्रेष्ठ करेगा। 05O 28 2 फिर अपने परमेश्वर यहोवा की सुनने के कारण ये सब आर्शीवाद तुझ पर पूरे होंगे। 05O 28 3 धन्य हो तू नगर में, धन्य हो तू खेत में। 05O 28 4 धन्य हो तेरी सन्तान, और तेरी भूमि की उपज, और गाय और भेड़- बकरी आदि पशुओं के बच्चे। 05O 28 5 धन्य हो तेरी टोकरी और तेरी कठौती। 05O 28 6 धन्य हो तू भीतर आते समय, और धन्य हो तू बाहर जाते समय। 05O 28 7 यहोवा ऐसा करेगा कि तेरे शत्रु जो तुझ पर चढ़ाई करेंगे वे तुझ से हार जाएंगे; वे एक मार्ग से तुझ पर चढ़ाई करेंगे, परन्तु तेरे साम्हने से सात मार्ग से होकर भाग जाएंगे। 05O 28 8 तेरे खत्तों पर और जितने कामों में तू हाथ लगाएगा उन सभों पर यहोवा आशीष देगा; इसलिये जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में वह तुझे आशीष देगा। 05O 28 9 यदि तू अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं को मानते हुए उसके मार्गों पर चले, तो वह अपनी शपथ के अनुसार तुझै अपनी पवित्रा प्रजा करके स्थिर रखेगा। 05O 28 10 और पृथ्वी के देश देश के सब लोग यह देखकर, कि तू यहोवा का कहलाता है, तुझ से डर जाएंगे। 05O 28 11 और जिस देश के विषय यहोवा ने तेरे पूर्वजों से शपथ खाकर तुझे देने को कहा, था उस में वह तेरी सन्तान की, और भूमि की उपज की, और पशुओं की बढ़ती करके तेरी भलाई करेगा। 05O 28 12 यहोवा तेरे लिये अपने आकाशरूपी उत्तम भण्डार को खोलकर तेरी भूमि पर समय पर मेंह बरसाया करेगा, और तेरे सारे कामों पर आशीष देगा; और तू बहुतेरी जातियों को उधार देगा, परन्तु किसी से तुझे उधार लेना न पड़ेगा। 05O 28 13 और यहोवा तुझ को पुंछ नहीं, किन्तु सिर ही ठहराएगा, और तू नीचे नहीं, परन्तु ऊपर ही रहेगा; यदि परमेश्वर यहोवा की आज्ञाएं जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं, तू उनके मानने में मन लगाकर चौकसी करे; 05O 28 14 और जिन वचनों की मैं आज तुझे आज्ञा देता हूं उन में से किसी से दहिने वा बाएं मुड़के पराये देवताओं के पीछे न हो ले, और न उनकी सेवा करे।। 05O 28 15 परन्तु यदि तू अपने परमेश्वर यहोवा की बात न सुने, और उसकी सारी आज्ञाओं और विधियों के पालने में जो मैं आज सुनाता हूं चौकसी नहीं करेगा, तो ये सब शाप तुझ पर आ पड़ेंगे। 05O 28 16 अर्थात् शापित हो तू नगर में, शापित हो तू खेत में। 05O 28 17 शापित हो तेरी टोकरी और तेरी कठौती। 05O 28 18 शापित हो तेरी सन्तान, और भूमि की उपज, और गायों और भेड़- बकरियों के बच्चे। 05O 28 19 शापित हो तू भीतर आते समय, और शापित हो तू बाहर जाते समय। 05O 28 20 फिर जिस जिस काम में तू हाथ लगाए, उस में यहोवा तब तक तुझ को शाप देता, और भयातुरं करता, और धमकी देता रहेगा, जब तक तू मिट न जाए, और शीघ्र नष्ट न हो जाए; यह इस कारण होगा कि तू यहोवा को त्यागकर दुष्ट काम करेगा। 05O 28 21 और यहोवा ऐसा करेगा कि मरी तुझ में फैलकर उस समय तक लगी रहेगी, जब तक जिस भूमि के अधिकारी होने के लिये तू जा रहा है उस से तेरा अन्त न हो जाए। 05O 28 22 यहोवा तुझ को क्षयरोग से, और ज्वर, और दाह, और बड़ी जलन से, और तलवार से, और झुलस, और गेरूई से मारेगा; और ये उस समय तक तेरा पीछा किये रहेंगे, तब तक तू सत्यानाश न हो जाए। 05O 28 23 और तेरे सिर के ऊपर आकाश पीतल का, और तेरे पांव के तले भूमि लोहे की हो जाएगी। 05O 28 24 यहोवा तेरे देश में पानी के बदले बालू और धूलि बरसाएगा; वह आकाश से तुझ पर यहां तक बरसेगी कि तू सत्यानाश हो जाएगा। 05O 28 25 यहोवा तुझ को शत्रुओं से हरवाएगा; और तू एक मार्ग से उनका साम्हना करने को जाएगा, परन्तु सात मार्ग से होकर उनके साम्हने से भाग जाएगा; और पृथ्वी के सब राज्यों में मारा मारा फिरेगा। 05O 28 26 और तेरी लोथ आकाश के भांति भांति के पक्षियों, और धरती के पशुओं का आहार होगी; और उनका कोई हाँकनेवाला न होगा। 05O 28 27 यहोवा तुझ को मि के से फोड़े, और बवासीर, और दाद, और खुजली से ऐसा पीड़ित करेगा, कि तू चंगा न हो सकेगा। 05O 28 28 यहोवा तुझे पागल और अन्धा कर देगा, और तेरे मन को अत्यन्त घबरा देगा; 05O 28 29 और जैसे अन्धा अन्धियारे में टटोलता है वैसे ही तू दिन दुपहरी में टटोलता फिरेगा, और तेरे काम काज सुफल न होंगे; और तू सदैव केवल अन्धेर सहता और लुटता ही रहेगा, और तेरा कोई छुड़ानेवाला न होगा। 05O 28 30 तू स्त्री से ब्याह की बात लगाएगा, परन्तु दूसरा पुरूष उसको भ्रष्ट करेगा; घर तू बनाएगा, परन्तु उस में बसने न पाएगा; दाख की बारी तू लगाएगा, परन्तु उसके फल खाने न पाएगा। 05O 28 31 तेरा बैल तेरी आंखों के साम्हने मारा जाएगा, और तू उसका मांस खाने न पाएगा; तेरा गदहा तेरी आंख के साम्हने लूट में चला जाएगा, और तुझे फिर न मिलेगा; तेरी भेड़- बकरियां तेरे शत्रुओं के हाथ लग जाएंगी, और तेरी ओर से उनका कोई छुडानेवाला न होगा। 05O 28 32 तेरे बेटे- बेटियां दूसरे देश के लोगों के हाथ लग जाएंगे, और उनके लिये चाव से देखते देखते तेरी आंखे रह जाएंगी; और तेरा कुछ बस न चलेगा। 05O 28 33 तेरी भूमि की उपज और तेरी सारी कमाई एक अनजाने देश के लोगे खा जाएंगे; और सर्वदा तू केवल अन्धेर सहता और पीसा जाता रहेगा; 05O 28 34 यहां तक कि तू उन बातों के कारण जो अपनी आंखों से देखेगा पागल हो जाएगा। 05O 28 35 यहोवा तेरे घुटनों और टांगों में, वरन नख से शिख तक भी असाध्य फोड़े निकालकर तुझ को पीड़ित करेगा। 05O 28 36 यहोवा तुझ को उस राजा समेत, जिस को तू अपने ऊपर ठहराएगा, तेरी और तेरे पूर्वजों से अनजानी एक जाति के बीच पहुंचाएगा; और उसके मध्य में रहकर तू काठ और पत्थर के दूसरे देवताओं की उपासना और पूजा करेगा। 05O 28 37 और उन सब जातियों में जिनके मध्य में यहोवा तुझ को पहुंचाएगा, वहां के लोगों के लिये तू चकित होने का, और दृष्टान्त और शाप का कारण समझा जाएगा। 05O 28 38 तू खेत में बीज तो बहुत सा ले जाएगा, परन्तु उपज थोड़ी ही बटोरेगा; क्योंकि टिडि्डयां उसे खा जाएंगी। 05O 28 39 तू दाख की बारियां लगाकर उन मे काम तो करेगा, परन्तु उनकी दाख का मधु पीने न पाएगा, वरन फल भी तोड़ने न पाएगा; क्योंकि कीड़े उनको खा जाएंगे। 05O 28 40 तेरे सारे देश में जलपाई के वृक्ष तो होंगे, परन्तु उनका तेल तू अपने शरीर में लगाने न पाएगा; क्योंकि वे झड़ जाएंगे। 05O 28 41 तेरे बेटे- बेटियां तो उत्पन्न होंगे, परन्तु तेरे रहेंगे नहीं; क्योंकि वे बन्धुवाई में चले जाएंगे। 05O 28 42 तेरे सब वृक्ष और तेरी भूमि की उपज टिडि्डयां खा जाएंगी। 05O 28 43 जो परदेशी तेरे मध्य में रहेगा वह तुझ से बढ़ता जाएगा; और तू आप घटता चला जाएगा। 05O 28 44 वह तुझ को उधार देगा, परन्तु तू उसको उधार न दे सकेगा; वह तो सिर और तू पूंछ ठहरेगा। 05O 28 45 तू जो अपने परमेश्वर यहोवा की दी हुई आज्ञाओं और विधियों के मानने को उसकी न सुनेगा, इस कारण ये सब शाप तुझ पर आ पड़ेंगे, और तेरे पीछे पड़े रहेंगे, और तुझ को पकड़ेंगे, और अन्त में तू नष्ट हो जाएगा। 05O 28 46 और वे तुझ पर और तेरे वंश पर सदा के लिये बने रहकर चिन्ह और चमत्कार ठहरेंगे; 05O 28 47 तू जो सब पदार्थ की बहुतायत होने पर भी आनन्द और प्रसन्नता के साथ अपने परमेश्वर यहोवा की सेवा नहीं करेगा, 05O 28 48 इस कारण तुझ को भूखा, प्यासा, नंगा, और सब पदार्थों से रहित होकर अपने उन शत्रुओं की सेवा करनी पड़ेगी जिन्हें यहोवा तेरे विरूद्ध भेजेगा; और जब तक तू नष्ट न हो जाए तब तक वह तेरी गर्दन पर लेहे का जूआ डाल रखेगा। 05O 28 49 यहोवा तेरे विरूद्ध दूर से, वरन पृथ्वी के छोर से वेग उड़नेवाले उकाब सी एक जाति को चढ़ा लाएगा जिसकी भाषा को तू न समझेगा; 05O 28 50 उस जाति के लोगों का व्यवहार क्रूर होगा, वे न तो बूढ़ों का मुंह देखकर आदर करेंगे, और न बालकों पर दया करेंगे; 05O 28 51 और वे तेरे पशुओं के बच्चे और भूमि की उपज यहां तक खा जांएगे कि तू नष्ट हो जाएगा; और वे तेरे लिये न अन्न, और न नया दाखमधु, और न टटका तेल, और न बछड़े, न मेम्ने छोड़ेंगे, यहां तक कि तू नाश हो जाएगा। 05O 28 52 और वे तेरे परमेश्वर यहोवा के दिये हुए सारे देश के सब फाटकों के भीतर तुझे घेर रखेंगे; वे तेरे सब फाटकों के भीतर तुझे उस समय तक घेरेंगे, जब तक तेरे सारे देश में तेरी ऊंची ऊंची और दृढ़ शहरपनाहें जिन पर तू भरोसा करेगा गिर न जाएं। 05O 28 53 तब घिर जाने और उस सकेती के समय जिस में तेरे शत्रु तुझ को डालेंगे, तू अपने निज जन्माए बेटे- बेटियों का मांस जिन्हें तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को देगा खाएगा। 05O 28 54 और तुझ में जो पुरूष कोमल और अति सुकुमार हो वह भी अपने भाई, और अपनी प्राणप्यारी, और अपने बचे हुए बालकों को क्रूर दृष्टि से देखेगा; 05O 28 55 और वह उन में से किसी को भी अपने बालकों के मांस में से जो वह आप खाएगा कुछ न देगा, क्योंकि घिर जाने और उस सकेती में, जिस में तेरे शत्रु तेरे सारे फाटकों के भीतर तुझे घेर डालेंगे, उसके पास कुछ न रहेगा। 05O 28 56 और तुझ में जो स्त्री यहां तक कोमल और सुकुमार हो कि सुकुमारपन के और कोमलता के मारे भूमि पर पांव धरते भी डरती हो, वह भी अपने प्राणप्रिय पति, और बेटे, और बेटी को, 05O 28 57 अपनी खेरी, वरन अपने जने हुए बच्चों को क्रूर दृष्टि से देखेगी, क्योंकि घिर जाने और सकेती के समय जिस में तेरे शत्रु तुझे तेरे फाटकों के भीतर घेरकर रखेंगे, वह सब वस्तुओं की घटी के मारे उन्हें छिप के खाएगी। 05O 28 58 यदि तू इन व्यवस्था के सारे वचनों के पालने में, जो इस पुस्तक में लिखें है, चौकसी करके उस आदरनीय और भययोग्य नाम का, जो यहोवा तेरे परमेश्वर का है भय न माने, 05O 28 59 तो यहोवा तुझ को और तेरे वंश को अनोखे अनोखे दण्ड देगा, वे दुष्ट और बहुत दिन रहनेवाले रोग और भारी भारी दण्ड होंगे। 05O 28 60 और वह मि के उन सब रोगों को फिर तेरे ऊपर लगा देगा, जिन से तू भय खाता था; और वे तुझ में लगे रहेंगे। 05O 28 61 और जितने रोग आदि दण्ड इस व्यवस्था की पुस्तक में नहीं लिखे हैं, उन सभों को भी यहोवा तुझ को यहां तक लगा देगा, कि तू सत्यानाश हो जाएगा। 05O 28 62 और तू जो अपने परमेश्वर यहोवा की न मानेगा, इस कारण आकाश के तारों के समान अनगिनित होने की सन्ती तुझ में से थोड़े ही मनुष्य रह जाएंगे। 05O 28 63 और जैसे अब यहोवा की तुम्हारी भलाई और बढ़ती करने से हर्ष होता है, वैसे ही तब उसको तुम्हें नाश वरन सत्यानाश करने से हर्ष होगा; और जिस भूमि के अधिकारी होने को तुम जा रहे हो उस पर से तुम उखाड़े जाओगे। 05O 28 64 और यहोवा तुझ को पृथ्वी के इस छोर से लेकर उस छोर तक के सब देशों के लोगों में तित्तर बित्तर करेगा; और वहां रहकर तू अपने और अपने पुरखाओं के अनजाने काठ और पत्थर के दूसरे देवताओं की उपासना करेगा। 05O 28 65 और उन जातियों में तू कभी चैन न पाएगा, और न तेरे पांव को ठिकाना मिलेगा; क्योंकि वहां यहोवा ऐसा करेगा कि तेरा हृदय कांपता रहेगा, और तेरी आंखे धुंधली पड़ जाएगीं, और तेरा मन कलपता रहेगा; 05O 28 66 और तुझ को जीवन का नित्य सन्देह रहेगा; और तू दिन रात थरथराता रहेगा, और तेरे जीवन का कुछ भरोसा न रहेगा। 05O 28 67 तेरे मन में जो भय बना रहेगा, उसके कारण तू भोर को आह मारके कहेगा, कि सांझ कब होगी! और सांझ को आह मारके कहेगा, कि भोर कब होगा। 05O 28 68 और यहोवा तुझ को नावों पर चढ़ाकर मि में उस मार्ग से लौटा देगा, जिसके विषय में मैं ने तुझ से कहा था, कि वह फिर तेरे देखने में न आएगा; और वहंा तुम अपने शत्रुओं के हाथ दास- दासी होने के लिये बिकाऊ तो रहोगे, परन्तु तुम्हारा कोई ग्राहक न होगा।। 05O 29 1 इस्त्राएलियों से जिस वाचा के बान्धने की आज्ञा यहोवा ने मूसा को मोआब के देश में दी उसके ये ही वचन हैं, और जो वाचा उस ने उन से होरेब पहाड़ पर बान्धी थी यह उस से अलग है। 05O 29 2 फिर मूसा ने सब इस्त्राएलियों को बुलाकर कहा, जो कुछ यहोवा ने मि देश में तुम्हारे देखते फिरौन और उसके सब कर्मचारियों, और उसके सारे देश से किया वह तुम ने देखा है; 05O 29 3 वे बड़े बड़े परीक्षा के काम, और चिन्ह, और बड़े बड़े चमत्कार तेरी आंखों के साम्हने हुए; 05O 29 4 परन्तु यहोवा ने आज तक तुम को न तो समझने की बुद्धि, और न देखने की आंखें, और न सुनने के कान दिए हैं। 05O 29 5 मैं तो तुम को जंगल में चालीस वर्ष लिए फिरा; और न तुम्हारे तन पर वस्त्रा पुराने हुए, और न तेरी जूतियां तेरे पैरों में पुरानी हुई; 05O 29 6 रोटी जो तुम नहीं खाने पाए, और दाखमधु और मदिरा जो तुम नहीं पीने पाए, वह इसलिये हुआ कि तुम जानो कि मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर हूं। 05O 29 7 और जब तुम इस स्थान पर आए, तब हेशबोन का राजा सीहोन और बाशान का राजा ओग, ये दोनो युद्ध के लिये हमारा साम्हना करने को निकल आए, और हम ने उनको जीतकर उनका देश ले लिया; 05O 29 8 और रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्रा के लोगों को निज भाग करके दे दिया। 05O 29 9 इसलिये इस वाचा की बातों का पालन करो, ताकि जो कुछ करो वह सुफल हो।। 05O 29 10 आज क्या वृद्ध लोग, क्या सरदार, तुम्हारे मुख्य मुख्य पुरूष, क्या गोत्रा गोत्रा के तुम सब इस्राएली पुरूष, 05O 29 11 क्या तुम्हारे बालबच्चे और स्त्रियां, क्या लकड़हारे, क्या पनभरे, क्या तेरी छावनी में रहनेवाले परदेशी, तुम सब के सब अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने इसलिये खड़े हुए हो, 05O 29 12 कि जो वाचा तेरा परमेश्वर यहोवा आज तुझ से बान्धता है, और जो शपथ वह आज तुझ को खिलाता है, उस में तू साझी हो जाए; 05O 29 13 इसलिये कि उस वचन के अनुसार जो उसने तुझ को दिया, और उस शपथ के अनुसार जो उसने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब, तेरे पूर्वजों से खाई थी, वह आज तुझ को अपनी प्रजा ठहराए, और आप तेरा परमेश्वर ठहरे। 05O 29 14 फिर मैं इस वाचा और इस शपथ में केवल तुम को नहीं, 05O 29 15 परन्तु उनको भी, जो आज हमारे संग यहां हमारे परमेश्वर यहोवा के साम्हने खड़े हैं, और जो आज यहां हमारे संग नहीं हैं, साझी करता हूं। 05O 29 16 तुम जानते हो कि जब हम मि देश में रहते थे, और जब मार्ग में की जातियों के बीचों बीच होकर आ रहे थे, 05O 29 17 तब तुम ने उनकी कैसी कैसी घिनौनी वस्तुएं, और काठ, पत्थर, चांदी, सोने की कैसी मूरतें देखीं। 05O 29 18 इसलिये ऐसा न हो, कि तुम लोगों में ऐसा कोई पुरूष, वा स्त्री, वा कुल, वा गोत्रा के लोग हों जिनका मन आज हमारे परमेश्वर यहोवा से फिर जाए, और वे जाकर उन जातियों के देवताओं की उपासना करें; फिर ऐसा न हो कि तुम्हारे मध्य ऐसी कोई जड़ हो, जिस से विष वा कडुआ बीज उगा हो, 05O 29 19 और ऐसा मनुष्य इस शाप के वचन सुनकर अपने को आशीर्वाद के योग्य माने, और यह सोचे कि चाहे मैं अपने मन के हठ पर चलूं, और तृप्त होकर प्यास को मिटा डालूं, तौभी मेरा कुशल होगा। 05O 29 20 यहोवा उसका पाप क्षमा नहीं करेगा, वरन यहोवा के कोप और जलन का धुंआ उसको छा लेगा, और जितने शाप इस पुस्तक में लिखें हैं वे सब उस पर आ पड़ेंगे, और यहोवा उसका नाम धरती पर से मिटा देगा। 05O 29 21 और व्यवस्था की इस पुस्तक में जिस वाचा की चर्चा है उसके सब शापों के अनुसार यहोवा उसको इस्राएल के सब गोत्रों में से हानि के लिये अलग करेगा। 05O 29 22 और आनेवाली पीढ़ियों में तुम्हारे वंश के लोग जो तुम्हारे बाद उत्पन्न होंगे, और परेदेशी मनुष्य भी जो दूर देश से आएंगे, वे उस देश की विपत्तियों और उस में यहोवा के फैलाए हुए रोग देखकर, 05O 29 23 और यह भी देखकर कि इसकी सब भूमि गन्धक और लोन से भर गई है, और यहां तक जल गई है कि इस में न कुछ बोया जाता, और न कुछ जम सकता, और न घास उगती है, वरन सदोम और अमोरा, अदमा और सबोयीम के समान हो गया है जिन्हें यहोवा ने अपने कोप और जलजलाहट में उलट दिया था; 05O 29 24 और सब जातियों के लोग पूछेंगे, कि यहोवा ने इस देश से ऐसा क्यों किया? और इस बड़े कोप के भड़कने का क्या कारण है? 05O 29 25 तब लोग यह उत्तर देंगे, कि उनके पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा ने जो वाचा उनके साथ मि देश से निकालने के समय बान्धी थी उसको उन्हों ने तोड़ा है। 05O 29 26 और पराए देवताओं की उपासना की है जिन्हें वे पहिले नहीं जानते थे, और यहोवा ने उनको नहीं दिया था; 05O 29 27 इसलिये यहोवा का कोप इस देश पर भड़क उठा है, कि पुस्तक मे लिखे हुए सब शाप इस पर आ पडें; 05O 29 28 और यहोवा ने कोप, और जलजलाहट, और बड़ा ही क्रोध करके उन्हें उनके देश में से उखाड़ कर दूसरे देश में फेंक दिया, जैसा कि आज प्रगट है।। 05O 29 29 गुप्त बातें हमारे परमेश्वर यहोवा के वश में हैं; परन्तु जो प्रगट की गई हैं वे सदा के लिये हमारे और हमारे वंश में रहेंगी, इसलिये कि इस व्यवस्था की सब बातें पूरी ही जाएं।। 05O 30 1 फिर जब आशीष और शाप की ये सब बातें जो मैं ने तुझ को कह सुनाई हैं तुझ पर घटें, और तू उन सब जातियों के मध्य में रहकर, जहां तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को बरबस पहुंचाएगा, इन बातों को स्मरण करे, 05O 30 2 और अपनी सन्तान सहित अपने सारे मन और सारे प्राण से अपने परमेश्वर यहोवा की ओर फिरकर उसके पास लौट आए, और इन सब आज्ञाओं के अनुसार जो मैं आज तुझे सुनाता हूं उसकी बातें माने; 05O 30 3 तब तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को बन्धुआई से लौटा ले आएगा, और तुझ पर दया करके उन सब देशों के लोगों में से जिनके मध्य में वह तुझ को तित्तर बित्तर कर देगा फिर इकट्ठा करेगा। 05O 30 4 चाहे धरती के छोर तक तेरा बरबस पहुंचाया जाना हो, तौभी तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को वहां से ले आकर इकट्ठा करेगा। 05O 30 5 और तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे उसी देश में पहुंचाएगा जिसके तेरे पुरखा अधिकारी हुए थे, और तू फिर उसका अधिकारी होगा; और वह तेरी भलाई करेगा, और तुझ को तेरे पुरखाओं से भी गिनती में अधिक बढ़ाएगा। 05O 30 6 और तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे और तेरे वंश के मन का खतना करेगा, कि तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन और सारे प्राण के साथ प्रेम करे, जिस से तू जीवित रहे। 05O 30 7 और तेरा परमेश्वर यहोवा ये सब शाप की बातें तेरे शत्रुओं पर जो तुझ से बैर करके तेरे पीछे पड़ेंगे भेजेगा। 05O 30 8 और तू फिरेगा और यहोवा की सुनेगा, और इन सब आज्ञाओं को मानेगा जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं। 05O 30 9 और यहोवा तेरी भलाई के लिये तेरे सब कामों में, और तेरी सन्तान, और पशुओं के बच्चों, और भूमि की उपज में तेरी बढ़ती करेगा; क्योंकि यहोवा फिर तेरे ऊपर भलाई के लिये वैसा ही आनन्द करेगा, जैसा उस ने तेरे पूर्वजों के ऊपर किया था; 05O 30 10 क्योंकि तू अपने परमेश्वर यहोवा की सुनकर उसकी आज्ञाओं और विधियों को जो इस व्यवस्था की पुस्तक में लिखी हैं माना करेगा, और अपने परमेश्वर यहोवा की ओर अपने सारे मन और सारे प्राण से मन फिराएगा।। 05O 30 11 देखो, यह जो आज्ञा मैं आज तुझे सुनाता हूं, वह न तो तेरे लिये अनोखी, और न दूर है। 05O 30 12 और न तो यह आकाश में है, कि तू कहे, कि कौन हमारे लिये आकाश में चढ़कर उसे हमारे पास ले आए, और हम को सुनाए कि हम उसे मानें? 05O 30 13 और न यह समुद्र पार है, कि तू कहे, कौन हमारे लिये समुद्र पार जाए, और उसे हमारे पास ले आए, और हम को सुनाए कि हम उसे मानें? 05O 30 14 परन्तु यह वचन तेरे बहुत निकट, वरन तेरे मुंह और मन ही में है ताकि तू इस पर चले।। 05O 30 15 सुन, आज मैं ने तुझ को जीवन और मरण, हानि और लाभ दिखाया है। 05O 30 16 क्योंकि मैं आज तुझे आज्ञा देता हूं, कि अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करना, और उसके मार्गों पर चलना, और उसकी आज्ञाओं, विधियों, और नियमों को मानना, जिस से तू जीवित रहे, और बढ़ता जाए, और तेरा परमेश्वर यहोवा उस देश में जिसका अधिकारी होने को तू जा रहा है, तुझे आशीष दे। 05O 30 17 परन्तु यदि तेरा मन भटक जाए, और तू न सुने, और भटककर पराए देवताओं को दण्डवत करे और उनकी उपासना करने लगे, 05O 30 18 तो मैं तुम्हें आज यह चितौनी दिए देता हूं कि तुम नि:सन्देह नष्ट हो जाओगे; और जिस देश का अधिकारी होने के लिये तू यरदन पार जा रहा है, उस देश में तुम बहुत दिनों के लिये रहने न पाओगे। 05O 30 19 मैं आज आकाश और पृथ्वी दोनों को तुम्हारे साम्हने इस बात की साक्षी बनाता हूं, कि मैं ने जीवन और मरण, आशीष और शाप को तुम्हारे आगे रखा है; इसलिये तू जीवन ही को अपना ले, कि तू और तेरा वंश दोनों जीवित रहें; 05O 30 20 इसलिये अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो, और उसकी बात मानों, और उस से लिपटे रहो; क्योंकि तेरा जीवन और दीर्घ जीवन यही है, और ऐसा करने से जिस देश को यहोवा ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब, तेरे पूर्वजों को देने की शपथ खाई थी उस देश में तू बसा रहेगा।। 05O 31 1 और मूसा ने जाकर यह बातें सब इ एलियों को सुनाईं। 05O 31 2 और उस ने उन से यह भी कहा, कि आज मैं एक सौ बीच वर्ष का हूं; और अब मैं चल फिर नहीं सकता; क्योंकि यहोवा ने मुझ से कहा है, कि तू इस यरदन पार नहीं जाने पाएगा। 05O 31 3 तेरे आगे पार जानेवाला तेरा परमेश्वर यहोवा ही है; वह उन जातियों को तेरे साम्हने से नष्ट करेगा, और तू उनके देश का अधिकारी होगा; और यहोवा के वचन के अनुसार यहोशू तेरे आगे आगे पार जाएगा। 05O 31 4 और जिस प्रकार यहोवा ने एमोरियों के राजा सीहोन और ओग और उनके देश को नष्ट किया है, उसी प्रकार वह उन सब जातियों से भी करेगा। 05O 31 5 और जब यहोवा उनको तुम से हरवा देगा, तब तुम उन सारी आज्ञाओं के अनुसार उन से करना जो मैं ने तुम को सुनाई हैं। 05O 31 6 तू हियाव बान्ध और दृढ़ हो, उन से न डर और न भयभीत हो; क्योंकि तेरे संग चलनेवाला तेरा परमेश्वर यहोवा है; वह तुझ को धोखा न देगा और न छोड़ेगा। 05O 31 7 तब मूसा ने यहोशू को बुलाकर सब इस्राएलियों के सम्मुख कहा, कि तू हियाव बान्ध और दृढ़ हो जा; क्योंकि इन लोगों के संग उस देश में जिसे यहोवा ने इनके पूर्वजों से शपथ खाकर देने को कहा था तू जाएगा; और तू इनको उसका अधिकारी कर देगा। 05O 31 8 और तेरे आगे आगे चलनेवाला यहोवा है; वह तेरे संग रहेगा, और न तो तुझे धोखा देगा और न छोड़ देगा; इसलिये मत डर और तेरा मन कच्चा न हो।। 05O 31 9 फिर मूसा ने यही व्यवस्था लिखकर लेवीय याजकों को, जो यहोवा की वाचा के सन्दूक उठानेवाले थे, और इस्राएल के सब वृद्ध लोगों को सौंप दी। 05O 31 10 तब मूसा ने उनको आज्ञा दी, कि सात सात वर्ष के बीतने पर, अर्थात् उगाही न होने के वर्ष के झोपड़ीवाले पर्व्व में, 05O 31 11 जब सब इस्राएली तेरे परमेश्वर यहोवा के उस स्थान पर जिसे वह चुन लेगा आकर इकट्ठे हों, तब यह व्यवस्था सब इस्राएलियों को पढ़कर सुनाना। 05O 31 12 क्या पुरूष, क्या स्त्री, क्या बालक, क्या तुम्हारे फाटकों के भीतर के परदेशी, सब लोगों को इकट्ठा करना कि वे सुनकर सीखें, और तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का भय मानकर, इस व्यवस्था के सारे वचनों के पालन करने में चौकसी करें, 05O 31 13 और उनके लड़केबाले जिन्हों ने ये बातें नहीं सुनीं वे भी सुनकर सींखें, कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का भय उस समय तक मानते रहें, जब तक तुम उस देश में जीवित रहो जिसके अधिकारी होने को तुम यरदन पार जा रहे हो।। 05O 31 14 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, तेरे मरने का दिन निकट है; तू यहोशू को बुलवा, और तुम दोनों मिलापवाले तम्बू में आकर उपस्थित हो कि मैं उसको आज्ञा दूं। तब मूसा और यहोशू जाकर मिलापवाले तम्बू में उपस्थित हुए। 05O 31 15 तब यहोवा ने उस तम्बू में बादल के खम्भे में होकर दर्शन दिया; और बादल का खम्भा तम्बू के द्वार पर ठहर गया। 05O 31 16 तब यहोवा ने मूसा से कहा, तू तो अपने पुरखाओं के संग सो जाने पर है; और ये लागे उठकर उस देश के पराये देवताओं के पीछे जिनके मध्य वे जाकर रहेंगे व्यभिचारी हो जाएंगे, और मुझे त्यागकर उस वाचा को जो मैं ने उन से बान्धी है तोडेंगे। 05O 31 17 उस समय मेरा कोप इन पर भड़केगा, और मैं भी इन्हें त्यागकर इन से अपना मुंह छिपा लूंगा, और ये आहार हो जाएंगे; और बहुत सी विपत्तियां और क्लेश इन पर आ पड़ेंगे, यहां तक कि ये उस समय कहेंगे, क्या ये विपत्तियां हम पर इस कारण तो नहीं आ पड़ीं, क्योंकि हमारा परमेश्वर हमारे मध्य में नहीं रहा? 05O 31 18 उस समय मैं उन सब बुराइयों के कारण जो ये पराये देवताओं की ओर फिरकर करेंगे नि:सन्देह उन से अपना मुंह छिपा लूंगा। 05O 31 19 सो अब तुम यह गीत लिख लो, और तू उसे इस्राएलियों को सिखाकर कंठ करा देना, इसलिये कि यह गीत उनके विरूद्ध मेरा साक्षी ठहरे। 05O 31 20 जब मैं इनको उस देश में पहुंचाऊंगा जिसे देने की मैं ने इनके पूर्वजों से शपथ खाईं थी, और जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, और खाते- खाते इनका पेट भर जाए, और ये हृष्ट- पुष्ट हो जाएंगे; तब ये पराये देवताओं की ओर फिरकर उनकी उपासना करने लगेंगे, और मेरा तिरस्कार करके मेरी वाचा को तोड़ देंगे। 05O 31 21 वरन अभी भी जब मैं इन्हें इस देश में जिसके विषय मैं ने शपथ खाई है पहुंचा नहीं चुका, मुझे मालूम है, कि ये क्या क्या कल्पना कर रहे हैं; इसलिये जब बहुत सी विपत्तियां और क्लेश इन पर आ पड़ेंगे, तब यह गीत इन पर साक्षी देगा, क्योंकि इनकी सन्तान इसको कभी भी नहीं भूलेगी। 05O 31 22 तब मूसा ने उसी दिन यह गीत लिखकर इस्राएलियों को सिखाया। 05O 31 23 और उस ने नून के पुत्रा यहोशू को यह आज्ञा दी, कि हियाव बान्ध और दृढ़ हो; क्योंकि इस्राएलियों को उस देश में जिसे उन्हें देने को मैं ने उन से शपथ खाई है तू पहुंचाएगा; और मैं आप तेरे संग रहूंगा।। 05O 31 24 जब मूसा इस व्यवस्था के वचन को आदि से अन्त तक पुस्तक में लिख चुका, 05O 31 25 तब उस ने यहोवा के सन्दूक उठानेवाले लेवियों को आज्ञा दी, 05O 31 26 कि व्यवस्था की इस पुस्तक को लेकर अपने परमेश्वर यहोवा की वाचा के सन्दूक के पास रख दो, कि यह वहां तुझ पर साक्षी देती रहे। 05O 31 27 क्योंकि तेरा बलवा और हठ मुझे मालूम है; देखो, मेरे जीवित और संग रहते हुए भी तुम यहोवा से बलवा करते आए हो; फिर मेरे मरने के बाद भी क्यों न करोगे! 05O 31 28 तुम अपने गोत्रों के सब वृद्ध लोगों को और अपने सरदारों को मेरे पास इकट्ठा करो, कि मैं उनको ये वचन सुनाकर उनके विरूद्ध आकाश और पृथ्वी दोनों को साक्षी बनाऊं। 05O 31 29 क्योंकि मुझे मालूम है कि मेरी मृत्यु के बाद तुम बिलकुल बिगड़ जाओगे, और जिस मार्ग में चलने की आज्ञा मैं ने तुम को सुनाई है उसको भी तुम छोड़ दोगे; और अन्त के दिनों में जब तुम वह काम करके जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, अपनी बनाई हुई वस्तुओं की पूजा करके उसको रिस दिलाओगे, तब तुम पर विपत्ति आ पड़ेगी।। 05O 31 30 तब मूसा ने इस्राएल की सारी सभा को इस गीत के वचन आदि से अन्त तक कह सुनाए: 05O 32 1 हे आकाश, कान लगा, कि मैं बोलूं; और हे पृथ्वी, मेरे मुंह की बातें सुन।। 05O 32 2 मेरा उपदेश मेंह की नाईं बरसेगा और मेरी बातें ओस की नाईं टपकेंगी, जैसे कि हरी घास पर झीसी, और पौधों पर झड़ियां।। 05O 32 3 मैं तो याहोवा नाम का प्रचार करूंगा। तुम अपने परमेश्वर की महिमा को मानो! 05O 32 4 वह चट्टान है, उसका काम खरा है; और उसकी सारी गति न्याय की है। वह सच्चा ईश्वर है, उस में कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है।। 05O 32 5 परन्तु इसी जाति के लोग टेढ़े और तिर्छे हैं; ये बिगड़ गए, ये उसके पुत्रा नहीं; यह उनका कलंक है।। 05O 32 6 हे मूढ़ और निर्बुद्धि लोगों, क्या तुम यहोवा को यह बदला देते हो? क्या वह तेरा पिता नहीं है, जिस ने तुम को मोल लिया है? उस ने तुम को बनाया और स्थिर भी किया है।। 05O 32 7 प्राचीनकाल के दिनों को स्मरण करो, पीढ़ी पीढ़ी के वर्षों को विचारो; अपने बाप से पूछो, और वह तुम को बताएगा; अपने वृद्ध लोगों से प्रश्न करो, और वे तुझ से कह देंगे।। 05O 32 8 जब परमप्रधान ने एक एक जाति को निज निज भाग बांट दिया, और आदमियों को अलग अलग बसाया, तब उस ने देश देश के लोगों के सिवाने इस्राएलियों की गिनती के अनुसार ठहराए।। 05O 32 9 क्योंकि यहोवा का अंश उसकी प्रजा है; याकूब उसका नपा हुआ निज भाग है।। 05O 32 10 उस ने उसको जंगल में, और सुनसान और गरजनेवालों से भरी हुई मरूभूमि में पाया; उस ने उसके चंहु ओर रहकर उसकी रक्षा की, और अपनी आंख की पुतली की नाई उसकी सुधि रखी।। 05O 32 11 जैसे उकाब अपने घोंसले को हिला हिलाकर अपने बच्चों के ऊपर ऊपर मण्डलाता है, वैसे ही उस ने अपने पंख फैलाकर उसको अपने परों पर उठा लिया।। 05O 32 12 यहोवा अकेला ही उसकी अगुवाई करता रहा, और उसके संग कोई पराया देवता न था।। 05O 32 13 उस ने उसको पृथ्वी के ऊंचे ऊंचे स्थानों पर सवार कराया, और उसको खेतों की उपज खिलाई; उस ने उसे चट्टान में से मधु और चकमक की चट्ठान में से तेल चुसाया।। 05O 32 14 गायों का दही, और भेड़- बकरियों का दूध, मेम्नों की चर्बी, बकरे और बाशान की जाति के मेढ़े, और गेहूं का उत्तम से उत्तम आटा भी; और तू दाखरस का मधु पिया करता था।। 05O 32 15 परन्तु यशूरून मोटा होकर लात मारने लगा; तू मोटा और हृष्ट- पुष्ट हो गया, और चर्बी से छा गया है; तब उस ने अपने सृजनहार ईश्वर को तज दिया, और अपने उद्धारमूल चट्टान को तुच्छ जाना।। 05O 32 16 उन्हों ने पराए देवताओं को मानकर उस में जलन उपजाई; और घृणित कर्म करके उसको रिस दिलाई ।। 05O 32 17 उन्हों ने पिशाचों के लिये जो ईश्वर न थे बलि चढ़ाए, और उनके लिये वे अनजाने देवता थे, वे तो नये नये देवता थे जो थोड़े ही दिन से प्रकट हुए थे, और जिन से उनके पुरखा कभी डरे नहीं। 05O 32 18 जिस चट्टान से तू उत्पन्न हुआ उसको तू भूल गया, और ईश्वर जिस से तेरी उत्पत्ति हुई उसको भी तू भूल गया है।। 05O 32 19 इन बातों को देखकर यहोवा ने उन्हें तुच्छ जाना, क्योंकि उसके बेटे- बेटियों ने उसे रिस दिलाई थी।। 05O 32 20 तब उस ने कहा, मैं उन से अपना मुख छिपा लूंगा, और देखूंगा कि उनका अन्त कैसा होगा, क्योंकि इस जाति के लोग बहुत टेढ़े हैं और धोखा देनेवाले पुत्रा हैं। 05O 32 21 उन्हों ने ऐसी वस्तु मानकर जो ईश्वर नहीं हैं, मुझ में जलन उत्पन्न की; और अपनी व्यर्थ वस्तुओं के द्वारा मुझे रिस दिलाई। इसलिये मैं भी उनके द्वारा जो मेरी प्रजा नहीं हैं उनके मन में जलन उत्पन्न करूंगा; और एक मूढ़ जाति के द्वारा उन्हें रिस दिलाऊंगा।। 05O 32 22 क्योंकि मेरे कोप की आग भड़क उठी है, जो पाताल की तह तक जलती जाएगी, और पृथ्वी अपनी उपज समेत भस्म हो जाएगी, और पहाड़ों की नेवों में भी आग लगा देगी।। 05O 32 23 मैं उन पर विपत्ति पर विपत्ति भेजूंगा; और उन पर मैं अपने सब तीरों को छोडूंगा।। 05O 32 24 वे भूख से दुबले हो जाएंगे, और अंगारों से और कठिन महारोगों से ग्रसित हो जाएंगे; और मैं उन पर पशुओं के दांत लगवाऊंगा, और धूलि पर रेंगनेवाले सर्पों का विष छोड़ दूंगा।। 05O 32 25 बाहर वे तलवार से मरेंगे, और कोठरियों के भीतर भय से; क्या कुंवारे और कुंवारियां, क्या दूध पीता हुआ बच्चा क्या पक्के बालवाले, सब इसी प्रकार बरबाद होंगे। 05O 32 26 मैं ने कहा था, कि मैं उनको दूर दूर से तित्तर- बित्तर करूंगा, और मनुष्यों में से उनका स्मरण तक मिटा डालूंगा; 05O 32 27 परन्तु मुझे शत्रुओं की छेड़ छाड़ का डर था, ऐसा न हो कि द्रोही इसको उलटा समझकर यह कहने लगें, कि हम अपने ही बाहुबल से प्रबल हुए, और यह सब यहोवा से नहीं हुआ।। 05O 32 28 यह जाति युक्तहीन तो है, और इन में समझ है ही नहीं।। 05O 32 29 भला होता कि ये बुद्धिमान होते, कि इसको समझ लेते, और अपने अन्त का विचार करते! 05O 32 30 यदि उनकी चट्टान ही उनको न बेच देती, और यहोवा उनको औरों के हाथ में न कर देता; तो यह क्योंकर हो सकता कि उनके हजार का पीछा एक मनुष्य करता, और उनके दस हजार को दो मनुष्य भगा देते? 05O 32 31 क्योंकि जैसी हमारी चट्टान है वैसी उनकी चट्टान नहीं है, चाहे हमारे शत्रु ही क्यों न न्यायी हों।। 05O 32 32 क्योंकि उनकी दाखलता सदोम की दाखलता से निकली, और अमोरा की दाख की बारियों में की है; उनकी दाख विषभरी और उनके गुच्छे कड़वे हैं; 05O 32 33 उनका दाखमधु सांपों का सा विष और काले नागों का सा हलाहल है।। 05O 32 34 क्या यह बात मेरे मन में संचित, और मेरे भण्डारों में मुहरबन्द नहीं है? 05O 32 35 पलटा लेना और बदला देना मेरा ही काम है, यह उनके पांव फिसलने के समय प्रगट होगा; क्योंकि उनकी विपत्ति का दिन निकट है, और जो दुख उन पर पड़नेवाले है वे शीघ्र आ रहे हैं।। 05O 32 36 क्योंकि जब यहोवा देखेगा कि मेरी प्रजा की शक्ति जाती रही, और क्या बन्धुआ और क्या स्वाधीन, उन में कोई बचा नहीं रहा, तब यहोवा अपने लोगों का न्याय करेगा, और अपने दासों के विषय में तरस खाएगा।। 05O 32 37 तब वह कहेगा, उनके देवता कहां हैं, अर्थात वह चट्टान कहां जिस पर उनका भरोसा था, 05O 32 38 जो उनके बलिदानों की चर्बी खाते, और उनके तपावनों का दाखमधु पीते थे? वे ही उठकर तुम्हारी सहायता करें, और तुम्हारी आड़ हों! 05O 32 39 इसलिये अब तुम देख लो कि मैं ही वह हूं, और मेरे संग कोई देवता नहीं; मैं ही मार डालता, और मैं जिलाता भी हूं; मैं ही घायल करता, और मैं ही चंगा भी करता हूं; और मेरे हाथ से कोई नहीं छुड़ा सकता।। 05O 32 40 क्योंकि मैं अपना हाथ स्वर्ग की ओर उठाकर कहता हूं, क्योंकि मैं अनन्त काल के लिये जीवित हूं, 05O 32 41 सो यदि मैं बिजली की तलवार पर सान धरकर झलकाऊं, और न्याय को अपने हाथ में ले लूं, तो अपने द्रोहियों से बदला लूंगा, और अपने बैरियों को बदला दूंगा।। 05O 32 42 मैं अपने तीरों को लोहू से मतवाला करूंगा, और मेरी तलवार मांस खाएगी वह लोहू, मारे हुओं और बन्धुओं का, और वह मांस, शत्रुओं के प्रधानों के शीश का होगा।। 05O 32 43 हे अन्यजातियों, उसकी प्रजा के साथ आनन्द मनाओ; क्योंकि वह अपने दासों के लोहू का पलटा लेगा, और अपने द्रोहियों को बदला देगा, और अपने देश और अपनी प्रजा के पाप के लिये प्रायश्चित देगा। 05O 32 44 इस गीत के सब वचन मूसा ने नून के पुत्रा होशे समेत आकर लोगों को सुनाए। 05O 32 45 जब मूसा ये सब वचन सब इस्राएलियों से कह चुका, 05O 32 46 तब उस ने उन से कहा कि जितनी बातें मैं आज तुम से चिताकर कहता हूं उन सब पर अपना अपाना मन लगाओ, और उनके अर्थात् इस व्यवस्था की सारी बातों के मानने में चौकसी करने की आज्ञा अपने लड़केबालों को दो। 05O 32 47 क्योंकि यह तुम्हारे लिये व्यर्थ काम नहीं, परन्तु तुम्हारा जीवन ही है, और ऐसा करने से उस देश में तुम्हारी आयु के दिन बहुत होंगे, जिसके अधिकारी होने को तुम यरदन पार जा रहे हो।। 05O 32 48 फिर उसी दिन यहोवा ने मूसा से कहा, 05O 32 49 उस अबारीम पहाड़ की नबो नाम चोटी पर, जो मोआब देश में यरीहो के साम्हने है, चढ़कर कनान देश जिसे मैं इस्राएलियों की निज भूमि कर देता हूं उसको देख ले। 05O 32 50 तब जैसा तेरा भाई हारून होर पहाड़ पर मरकर अपने लोगों में मिल गया, वैसा ही तू इस पहाड़ पर चढ़कर मर जाएगा, और अपने लोगों में मिल जाएगा। 05O 32 51 इसका कारण यह है, कि सीन जंगल में, कादेश के मरीबा नाम सोते पर, तुम दोनों ने मेरा अपराध किया, क्योंकि तुम ने इस्राएलियों के मध्य में मुझे पवित्रा न ठहराया। 05O 32 52 इसलिये वह देश जो मैं इस्राएलियों को देता हूं, तू अपने साम्हने देख लेगा, परन्तु वहां जाने न पाएगा।। 05O 33 1 जो आशीर्वाद परमेश्वर के जन मूसा ने अपनी मृत्यु से पहिले इस्राएलियों को दिया वह यह है।। 05O 33 2 उस ने कहा, यहोवा सीनै से आया, और सेईर से उनके लिये उदय हुआ; उस ने पारान पर्वत पर से अपना तेज दिखाया, और लाखों पवित्रों के मध्य में से आया, उसके दहिने हाथ से उनके लिये ज्वालामय विधियां निकलीं।। 05O 33 3 वह निश्चय देश देश के लोगों से प्रेम करता है; उसके सब पवित्रा लोग तेरे हाथ में हैं: वे तेरे पांवों के पास बैठे रहते हैं, 05O 33 4 मूसा ने हमें व्यवस्था दी, और याकूब की मण्डली का निज भाग ठहरी।। 05O 33 5 जब प्रजा के मुख्य मुख्य पुरूष, और इस्राएल के गोत्री एक संग होकर एकत्रित हुए, तब वह यशूरून में राजा ठहरा।। 05O 33 6 रूबेन न मरे, वरन जीवित रहे, तौभी उसके यहां के मनुष्य थोड़े हों।। 05O 33 7 और यहूदा पर यह आशीर्वाद हुआ जो मूसा ने कहा, हे यहोवा तू यहूदा की सुन, और उसे उसके लोगों के पास पहुंचा। वह अपने लिये आप अपने हाथों से लड़ा, और तू ही उसके द्रोहियों के विरूद्ध उसका सहायक हो।। 05O 33 8 फिर लेवी के विषय में उस ने कहा, तेरे तुम्मीम और ऊरीम तेरे भक्त के पास हैं, जिसको तू ने मस्सा में परख लिया, और जिसके साथ मरीबा नाम सोते पर तेरा वादविवाद हुआ; 05O 33 9 उस ने तो अपने माता पिता के विषय में कहा, कि मैं उनको नहीं जानता; और न तो उस ने अपने भाइयों को अपना माना, और न अपने पुत्रों को पहिचाना। क्योंकि उन्हों ने तेरी बातें मानी, और वे तेरी वाचा का पालन करते हैं।। 05O 33 10 वे याकूब को तेरे नियम, और इस्राएल को तेरी व्यवस्था सिखाएंगे; और तेरे आगे धूप और तेरी वेदी पर सर्वांग पशु को होमबलि करेंगे।। 05O 33 11 हे यहोवा, उसकी सम्पत्ति पर आशीष दे, और उसके हाथों की सेवा को ग्रहण कर; उसके विरोधियों और बैरियों की कमर पर ऐसा मार, कि वे फिर न उठ सकें।। 05O 33 12 फिर उस ने बिन्यामीन के विषय में कहा, यहोवा का वह प्रिय जन, उसके पास निडर वास करेगा; और वह दिन भर उस पर छाया करेगा, और वह उसके कन्धों के बीच रहा करता है।। 05O 33 13 फिर यूसुफ के विषय में उस ने कहा; इसका देश यहोवा से आशीष पाए अर्थात् आकाश के अनमोल पदार्थ और ओस, और वह गहिरा जल जो नीचे है, 05O 33 14 और सूर्य के पकाए हुए अनमोल फल, और जो अनमोल पदार्थ चंद्रमा के उगाए उगते हैं, 05O 33 15 और प्राचीन पहाड़ों के उत्तम पदार्थ, और सनातन पहाड़ियों के अनमोल पदार्थ, 05O 33 16 और पृथ्वी और जो अनमोल पदार्थ उस में भरे हैं, और जो झाड़ी में रहता था उसकी प्रसन्नता। इन सभों के विषय में यूसुफ के सिर पर, अर्थात् उसी के सिर के चांद पर जो अपने भाइयों से न्यारा हुआ था आशीष ही आशीष फले।। 05O 33 17 वह प्रतापी है, मानो गया का पहिलौठा है, और उसके सींग बनैले बैल के से हैं; उन से वह देश देश के लोगों को, वरन पृथ्वी के छोर तक के सब मनुष्यों को ढकेलेगा; वे एप्रैम के लाखों लाख, और मनश्शे के हजारों हजार हैं।। 05O 33 18 फिर जबूलून के विषय में उस ने कहा, हे जबूलून, तू बाहर निकलते समय, और हे इस्साकार, तू अपने डेरों में आनन्द करे।। 05O 33 19 वे देश देश के लोगों को पहाड़ पर बुलाएंगे; वे वहां धर्मयज्ञ करेंगे; क्योंकि वे समुद्र का धन, और बालू के छिपे हुए अनमोल पदार्थ से लाभ उठाएंगे।। 05O 33 20 फिर गाद के विषय में उस ने कहा, धन्य वह है जो गाद को बढ़ाता है! गाद तो सिंहनी के समान रहता है, और बांह को, वरन सिर के चांद तक को फाड़ डालता है।। 05O 33 21 और उस ने पहिला अंश तो अपने लिये चुन लिया, क्योंकि वहां रईस के योग्य भाग रखा हुआ था; तब उस ने प्रजा के मुख्य मुख्य पुरूषों के संग आकर यहोवा का ठहराया हुआ धर्म, और इस्राएल के साथ होकर उसके नियम का प्रतिपालन किया।। 05O 33 22 फिर दान के विषय में उस ने कहा, दान तो बाशान से कूदनेवाला सिंह का बच्चा है।। 05O 33 23 फिर नप्ताली के विषय में उस ने कहा, हे नप्ताली, तू जो यहोवा की प्रसन्नता से तृप्त, और उसकी आशीष से भरपूर है, तू पच्छिम और दक्खिन के देश का अधिकारी हो।। 05O 33 24 फिर आशेर के विषय में उस ने कहा, आशेर पुत्रों के विषय में आशीष पाए; वह अपने भाइयों में प्रिय रहे, और अपना पांव तेल में डुबोए।। 05O 33 25 तेरे जूते लोहे और पीतल के होंगे, और जैसे तेरे दिन वैसी ही तेरी शक्ति हो।। 05O 33 26 हे यशूरून, ईश्वर के तुल्य और कोई नहीं है, वह तेरी सहायता करने को आकाश पर, और अपना प्रताप दिखाता हुआ आकाशमण्डल पर सवार होकर चलता है।। 05O 33 27 अनादि परमेश्वर तेरा गृहधाम है, और नीचे सनातन भुजाएं हैं। वह शत्रुओं को तेरे साम्हने से निकाल देता, और कहता है, उनको सत्यानाश कर दे।। 05O 33 28 और इस्राएल निडर बसा रहता है, अन्न और नये दाखमधु के देश में याकूब का सोता अकेला ही रहता है; और उसके ऊपर के आकाश से ओस पड़ा करती है।। 05O 33 29 हे इस्राएल, तू क्या ही धन्य है! हे यहोवा से उद्धार पाई हुई प्रजा, तेरे तुल्य कौन है? वह तो तेरी सहायता के लिये ढाल, और तेरे प्रताप के लिये तलवार है; तेरे शत्रु तुझे सराहेंगे, और तू उनके ऊंचे स्थानों को रौंदेगा।। 05O 34 1 फिर मूसा मोआब के अराबा से नबो पहाड़ पर, जो पिसगा की एक चोटी और यरीहो के साम्हने है, चढ़ गया; और यहोवा ने उसको दान तक का गिलाद नाम सारा देश, 05O 34 2 और नप्ताली का सारा देश, और एप्रैम और मनश्शे का देश, और पच्छिम के समुद्र तक का यहूदा का सारा देश, 05O 34 3 और दक्खिन देश, और सोअर तक की यरीहो नाम खजूरवाले नगर की तराई, यह सब दिखाया। 05O 34 4 तब याहोवा ने उस से कहा, जिस देश के विषय में मैं ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से शपथ खाकर कहा था, कि मैं इसे तेरे वंश को दूंगा वह यही है। मैं ने इसको तुझे साक्षात दिखला दिया है, परन्तु तू पार होकर वहां जाने न पाएगा। 05O 34 5 तब यहोवा के कहने के अनुसार उसका दास मूसा वहीं मोआब देश में मर गया, 05O 34 6 और उस ने उसे मोआब के देश में बेतपोर के साम्हने एक तराई में मिट्टी दी; और आज के दिन तक कोई नहीं जानता कि उसकी कब्र कहां है। 05O 34 7 मूसा अपनी मृत्यु के समय एक सौ बीस वर्ष का था; परन्तु न तो उसकी आंखें धुंधली पड़ीं, और न उसका पौरूष घटा था। 05O 34 8 और इस्राएली मोआब के अराबा में मूसा के लिये तीस दिन तक रोते रहे; तक मूसा के लिये रोने और विलाप करने के दिन पूरे हुए। 05O 34 9 और नून का पुत्रा यहोशू बुद्धिमानी की आत्मा से परिपूर्ण था, क्योंकि मूसा ने अपने हाथ उस पर रखे थे; और इस्राएली उस आज्ञा के अनुसार जो याहोवा ने मूसा को दी थी उसकी मानते रहे। 05O 34 10 और मूसा के तुल्य इस्राएल में ऐसा कोई नबी नहीं उठा, जिस से यहोवा ने आम्हने- साम्हने बातें कीं, 05O 34 11 और उसको यहोवा ने फिरौन और उसके सब कर्मचारियों के साम्हने, और उसके सारे देश में, सब चिन्ह और चमत्कार करने को भेजा था, 05O 34 12 और उस ने सारे इस्राएलियों की दृष्टि में बलवन्त हाथ और बड़े भय के काम कर दिखाए।। 06O 1 1 यहोवा के दास मूसा की मृत्यु के बाद यहोवा ने उसके सेवक यहोशू से जो नून का पुत्रा था कहा, 06O 1 2 मेरा दास मूसा मर गया है; सो अब तू उठ, कमर बान्ध, और इस सारी प्रजा समेत यरदन पार होकर उस देश को जा जिसे मैं उनको अर्थात् इस्राएलियों को देता हूं। 06O 1 3 उस वचन के अनुसार जो मैं ने मूसा से कहा, अर्थात् जिस जिस स्थान पर तुम पांव धरोगे वह सब मैं तुम्हे दे देता हूं। 06O 1 4 जंगल और उस लबानोन से लेकर परात महानद तक, और सूर्यास्त की ओर महासमुद्र तक हित्तियों का सारा देश तुम्हारा भाग ठहरेगा। 06O 1 5 तेरे जीवन भर कोई तेरे साम्हने ठहर न सकेगा; जैसे मैं मूसा के संग रहा वैसे ही तेरे संग भी रहूंगा; और न तो मैं तुझे धोखा दूंगा, और न तुझ को छोडूंगा। 06O 1 6 इसलिये हियाव बान्धकर दृढ़ हो जा; क्योंकि जिस देश के देने की शपथ मैं ने इन लोगों के पूर्वजों से खाई थी उसका अधिकारी तू इन्हें करेगा। 06O 1 7 इतना हो कि तू हियाव बान्धकर और बहुत दृढ़ होकर जो व्यवस्था मेरे दास मूसा ने तुझे दी है उन सब के अनुसार करने में चौकसी करना; और उस से न तो दहिने मुड़ना और न बांए, तब जहां जहां तू जाएगा वहां वहां तेरा काम सुफल होगा। 06O 1 8 व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए, इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, इसलिये कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे; क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सुफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा। 06O 1 9 क्या मैं ने तुझे आज्ञा नहीं दी? हियाव बान्धकर दृढ़ हो जा; भय न खा, और तेरा मन कच्चा न हो; क्योंकि जहां जहां तू जाएगा वहां वहां तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे संग रहेगा।। 06O 1 10 तब यहोशू ने प्रजा के सरदारों को यह आज्ञा दी, 06O 1 11 कि छावनी में इधर उधर जाकर प्रजा के लोगों को यह आज्ञा दो, कि अपने अपने लिये भोजन तैयार कर रखो; क्योंकि तीन दिन के भीतर तुम को इस यरदन के पार उतरकर उस देश को अपने अधिकार में लेने के लिये जाना है जिसे तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे अधिकार में देनेवाला है।। 06O 1 12 फिर यहोशू ने रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्रा के लोगों से कहा, 06O 1 13 जो बात यहोवा के दास मूसा ने तुम से कही थीं, कि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हें विश्राम देता है, और यही देश तुम्हें देगा, उसकी सुधि करो। 06O 1 14 तुम्हारी स्त्रियां, बालबच्चे, और पशु तो इस देश में रहें जो मूसा ने तुम्हें यरदन के इसी पार दिया, परन्तु तुम जो शूरवीर हो पांति बान्धे हुए अपने भांइयों के आगे आगे पार उतर चलो, और उनकी सहायता करो; 06O 1 15 और जब यहोवा उनको ऐसा विश्राम देगा जैसा वह तुम्हें दे चुका है, और वे भी तुम्हारे परमशॆवर यहोवा के दिए हुए देश के अधिकारी हो जाएंगे; तब तुम अपने अधिकार के देश में, जो यहोवा के दास मूसा ने यरदन के इस पार सूर्योदय की ओर तुम्हें दिया है, लौटकर इसके अधिकारी होगे। 06O 1 16 तब उन्हों ने यहोशू को उत्तर दिया, कि जो कुछ तू ने हमें करने की आज्ञा दी है वह हम करेंगे, और जहां कहीं तू हमें भेजे वहां हम जाएंगे। 06O 1 17 जैसे हम सब बातों में मूसा की मानते थे वैसे ही तेरी भी माना करेंगे; इतना हो कि तेरा परमेश्वर यहोवा जैसा मूसा के संग रहता था वैसे ही तेरे संग भी रहे। 06O 1 18 कोई क्यों न हो जो तेरे विरूद्ध बलवा करे, और जितनी आज्ञाएं तू दे उनको न माने, तो वह मार डाला जाएगा। परन्तु तू दृढ़ और हियाव बान्धे रह।। 06O 2 1 तब नून के पुत्रा यहोशू ने दो भेदियों को शित्तीम से चुपके से भेज दिया, और उन से कहा, जाकर उस देश और यरीहो को देखो। तुरन्त वे चल दिए, और राहाब नाम किसी वेश्या के घर में जाकर सो गए। 06O 2 2 तब किसी ने यरीहो के राजा से कहा, कि आज की रात कई एक इस्राएली हमारे देश का भेद लेने को यहां आए हुए हैं। 06O 2 3 तब यरीहो के राजा ने राहाब के पास यों कहला भेजा, कि जो पुरूष तेरे यहां आए हैं उन्हें बाहर ले आ; क्योंकि वे सारे देश का भेद लेने को आए हैं। 06O 2 4 उस स्त्री ने दोनों पुरूषों को छिपा रखा; और इस प्रकार कहा, कि मेरे पास कई पुरूष आए तो थे, परन्तु मैं नहीं जानती कि वे कहां के थे; 06O 2 5 और जब अन्धेरा हुआ, और फाटक बन्द होने लगा, तब वे निकल गए; मुझे मालूम नहीं कि वे कहां गए; तुम फुर्ती करके उनका पीछा करो तो उन्हें जा पकड़ोगे। 06O 2 6 उस ने उनको घर की छत पर चढ़ाकर सनई की लकड़ियों के नीचे छिपा दिया था जो उस ने छत पर सजा कर रखी थी। 06O 2 7 वे पुरूष तो यरदन का मार्ग ले उनकी खोज में घाट तक चले गए; और ज्यों ही उनको खोजनेवाले फाटक से निकले त्यों ही फाटक बन्द किया गया। 06O 2 8 और ये लेटने न पाए थे कि वह स्त्री छत पर इनके पास जाकर 06O 2 9 इन पुरूषों से कहने लगी, मुझे तो निश्चय है कि यहोवा ने तुम लोगों को यह देश दिया है, और तुम्हारा भय हम लोगों के मन में समाया है, और इस देश के सब निवासी तुम्हारे कारण घबरा रहे हैं। 06O 2 10 क्योंकि हम ने सुना है कि यहोवा ने तुम्हारे मि से निकलने के समय तुम्हारे साम्हने लाल समुद्र का जल सुखा दिया। और तुम लोगों ने सीहोन और ओग नाम यरदन पार रहनेवाले एमोरियों के दोनों राजाओं को सत्यानाश कर डाला है। 06O 2 11 और यह सुनते ही हमारा मन पिघल गया, और तुम्हारे कारण किसी के जी में जी न रहा; क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा ऊपर के आकाश का और नीचे की पृथ्वी का परमेश्वर है। 06O 2 12 अब मैं ने जो तुम पर दया की है, इसलिये मुझ से यहोवा की शपथ खाओ कि तुम भी मेरे पिता के घराने पर दया करोगे, और इसकी सच्ची चिन्हानी मुझे दो, 06O 2 13 कि तुम मेरे माता.पिता, भाइयों और बहिनों को, और जो कुछ उनका है उन सभों को भी जीवित रख छोड़ो, और हम सभों का प्राण मरने से बचाओगे। 06O 2 14 तब उन पुरूषों ने उस से कहा, यदि तू हमारी यह बात किसी पर प्रगट न करे, तो तुम्हारे प्राण के बदले हमारा प्राण जाए; और जब यहोवा हम को यह देश देगा, तब हम तेरे साथ कृपा और सच्चाई से बर्ताव करेंगे। 06O 2 15 तब राहाब जिसका घर शहरपनाह पर बना था, और वह वहीं रहती थीं, उस ने उनको खिड़की से रस्सी के बल उतारके नगर के बाहर कर दिया। 06O 2 16 और उस ने उन से कहा, पहाड़ को चले जाओ, ऐसा न हो कि खोजनेवाले तुम को पाएं; इसलिये जब तक तुम्हारे खोजनेवाले लौट न आएं तब तक, अर्थात् तीन दिन वहीं छिपे रहता, उसके बाद अपना मार्ग लेना। 06O 2 17 उन्हों ने उस से कहा, जो शपथ तू ने हम को खिलाई है उसके विषय में हम तो निर्दोष रहेंगे। 06O 2 18 तुम, जब हम लोग इस देश में आएंगे, तब जिस खिड़की से तू ने हम को उतारा है उस में यही लाल रंग के सूत की डोरी बान्ध देना; और अपने माता पिता, भाइयों, वरन अपने पिता के घराने को इसी घर में अपने पास इकट्ठा कर रखना। 06O 2 19 तब जो कोई तेरे घर के द्वार से बाहर निकले, उसके खून का दोष उसी के सिर पड़ेगा, और हम निर्दोष ठहरेंगे: परन्तु यदि तेरे संग घर में रहते हुए किसी पर किसी का हाथ पड़े, तो उसके खून का दोष हमारे सिर पर पड़ेगा। 06O 2 20 फिर यदि तू हमारी यह बात किसी पर प्रगट करे, तो जो शपथ तू ने हम को खिलाई है उस से हम निर्बन्ध ठहरेंगे। 06O 2 21 उस ने कहा, तुम्हारे वचनों के अनुसार हो। तब उस ने उनको विदा किया, और वे चले गए; और उस ने लाल रंग की डोरी को खिड़की में बान्ध दिया। 06O 2 22 और वे जाकर पहाड़ तक पहुंचे, और वहां खोजनेवालों के लौटने तक, अर्थात् तीन दिन तक रहे; और खोजनेवाले उनको सारे मार्ग में ढूंढ़ते रहे और कहीं न पाया। 06O 2 23 तब वे दोनों पुरूष पहाड़ से उतरे, और पार जाकर नून के पुत्रा यहोशू के पास पहुंचकर जो कुछ उन पर बीता था उसका वर्णन किया। 06O 2 24 और उन्हों ने यहोशू से कहा, निसन्देह यहोवा ने वह सारा देश हमारे हाथ में कर दिया है; फिर इसके सिवाय उसके सारे निवासी हमारे कारण घबरा रहे हैं।। 06O 3 1 बिहान को यहोशू सबेरे उठा, और सब इस्राएलियों को साथ ले शित्तीम से कूच कर यरदन के किनारे आया; और वे पार उतरने से पहिले वहीं टिक गए। 06O 3 2 और तीन दिन के बाद सरदारों ने छावनी के बीच जाकर 06O 3 3 प्रजा के लोगों को यह आज्ञा दी, कि जब तुम को अपने परमेश्वर यहोवा की वाचा का सन्दूक और उसे उठाए हुए लेवीय याजक भी देख पड़ें, तब अपने स्थान से कूच करके उसके पीछे पीछे चलना, 06O 3 4 परन्तु उसके और तुम्हारे बीच में दो हजार हाथ के अटकल अन्तर रहे; तुम सन्दूक के निकट न जाना। ताकि तुम देख सको, कि किस मार्ग से तुम को चलना है, क्योंकि अब तक तुम इस मार्ग पर होकर नहीं चले। 06O 3 5 फिर यहोशू ने प्रजा के लोगों से कहा, तुम अपने आप को पवित्रा करो; क्योंकि कल के दिन यहोवा तुम्हारे मध्य में आश्चर्यकर्म करेगा। 06O 3 6 तब यहोशू ने याजकों से कहा, वाचा का सन्दूक उठाकर प्रजा के आगे आगे चलो। तब वे वाचा का सन्दूक उठाकर आगे आगे चले। 06O 3 7 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, आज के दिन से मैं सब इस्राएलियों के सम्मुख तेरी प्रशंसा करना आरम्भ करूंगा, जिस से वे जान लें कि जैसे मैं मूसा के संग रहता था वैसे ही मैं तेरे संग भी हूं। 06O 3 8 और तू वाचा के सन्दूक के उठानेवाले याजकों को यह आज्ञा दे, कि जब तुम यरदन के जल के किनारे पहुंचो, तब यरदन में खड़े रहना।। 06O 3 9 तब यहोशू ने इस्राएलियों से कहा, कि पास आकर अपने परमेश्वर यहोवा के वचन सुनो। 06O 3 10 और यहोशू कहने लगा, कि इस से तुम जान लोगे कि जीवित ईश्वर तुम्हारे मध्य में है, और वह तुम्हारे सामहने से नि:सन्देह कनानियों, हित्तियों, हिव्वियों, परिज्जियों, गिर्गाशियों, एमोरियों, और यबूसियों को उनके देश में से निकाल देगा। 06O 3 11 सुनो, पृथ्वी भर के प्रभु की वाचा का सन्दूक तुम्हारे आगे आगे यरदन में जाने पर है। 06O 3 12 इसलिये अब इस्राएल के गात्रों में से बारह पुरूषों को चुन लो, वे एक एक गोत्रा में से एक पुरूष हो। 06O 3 13 और जिस समय पृथ्वी भर के प्रभु यहोवा की वाचा का सन्दूक उठानेवाले याजकों के पांव यरदन के जल में पड़ेंगे, उस समय यरदन का ऊपर से बहता हुआ जल थम जाएगा, और ढेर होकर ठहरा रहेगा। 06O 3 14 सो जब प्रजा के लोगों ने अपने डेरों से यरदन पार जाने को कूच किया, और याजक वाचा का सन्दूक उठाए हुए प्रजा के आगे आगे चले, 06O 3 15 और सन्दूक के उठानेवाले यरदन पर पहुंचे, और सन्दूक के उठानेवाले याजकों के पांव यरदन के तीर के जल में डूब गए (यरदन का जल तो कटनी के समय के सब दिन कड़ारों के ऊपर ऊपर बहा करता है), 06O 3 16 तब जो जल ऊपर की ओर से बहा आता था वह बहुत दूर, अर्थात् आदाम नगर के पास जो सारतान के निकट है रूककर एक ढेर हो गया, और दीवार सा उठा रहा, और जो जल अराबा का ताल, जो खारा ताल भी कहलाता है, उसकी ओर बहा जाता था, वह पूरी रीति से सूख गया; और प्रजा के लाग यरीहो के साम्हने पार उतर गए। 06O 3 17 और याजक यहोवा की वाचा का सन्दूक उठाए हुए यरदन के बीचों बीच पहुंचकर स्थल पर स्थिर खड़े रहे, और सब इस्राएली स्थल ही स्थल पार उतरते रहे, निदान उस सारी जाति के लोग यरदन पार हो गए।। 06O 4 1 जब उस सारी जाति के लोग यरदन के पार उतर चुके, तब यहोवा ने यहोशू से कहा, 06O 4 2 प्रजा में से बारह पुरूष, अर्थात्गोत्रा पीछे एक एक पुरूष को चुनकर यह आज्ञा दे, 06O 4 3 कि तुम यरदन के बीच में, जहां याजकों ने पांव धरे थे वहां से बारह पत्थर उठाकर अपने साथ पाल ले चलो, और जहां आज की रात पड़ाव होगा वहीं उनको रख देना। 06O 4 4 तब यहोशू ने उन बारह पुरूषों को, जिन्हें उस ने इस्राएलियों के प्रत्येक गोत्रा में से छांटकर ठहरा रखा था, 06O 4 5 बुलवाकर कहा, तुम अपने परमेश्वर यहोवा के सन्दूक के आगे यरदन के बीच में जाकर इस्राएलियों के गोत्रों की गिनती के अनुसार एक एक पत्थर उठाकर अपने अपने कन्धे पर रखो, 06O 4 6 जिस से यह तुम लोगों के बीच चिन्हानी ठहरे, और आगे को जब तुम्हारे बेटे यह पूछें, कि इन पत्थरों का क्या मतलब है? 06O 4 7 तब तुम उन्हें उत्तर दो, कि यरदन का जल यहोवा की वाचा के सन्दूक के साम्हने से दो भाग हो गया था; क्योंकि जब वह यरदन पार आ रहा था, तब यरदन का जल दो भाग हो गया। सो वे पत्थर इस्राएल को सदा के लिये स्मरण दिलानेवाले ठहरेंगे। 06O 4 8 यहोशू की इस आज्ञा कें अनुसार इ एलियों ने किया, जैसा यहोवा ने यहोशू से कहा था वैसा ही उन्हों ने इस्राएलियों ने किया, जैसा यहोवा ने यहोशू से कहा था वैसा ही उन्हों ने इस्राएली गोत्रों की गिनती के अनुसार बारह पत्थर यरदन के बीच में से उठा लिए; और उनको अपने साथ ले जाकर पड़ाव में रख दिया। 06O 4 9 और यरदन के बीच जहां याजक वाचा के सन्दूक को उठाए हुए अपने पांव धरे थे वहां यहोशू ने बारह पत्थर खड़े कराए; वे आज तक वहीं पाए जाते हैं। 06O 4 10 और याजक सन्दूक उठाए हुए उस समय तक यरदन के बीच खड़े रहे जब तक वे सब बातें पूरी न हो चुकीं, जिन्हें यहोवा ने यहोशू को लोगों से कहने की आज्ञा दी थी। तब सब लोग फुर्ती से पार उतर गए; 06O 4 11 और जब सब लोग पार उतर चुके, तब याजक और यहोवा का सन्दूक भी उनके देखते पार हुए। 06O 4 12 और रूबेनी, गादी, और मनश्शे के आधे गोत्रा के लोग मूसा के कहने के अनुसार इस्राएलियों के आगे पांति बान्धे हुए पार गए; 06O 4 13 अर्थात् कोई चालीस हजार पुरूष युद्ध के हथियार बान्धे हुए संग्राम करने के लिये यहोवा के साम्हने पार उतरकर यरीहो के पास के अराबा में पहुंचे। 06O 4 14 उस दिन यहोवा ने सब इस्राएलियोंके साम्हने यहोशू की महिमा बढ़ाई; और जैसे वे मूसा का भय मानते थे वैसे ही यहोशू का भी भय उसके जीवन भर मानते रहे।। 06O 4 15 और यहोवा ने यहोशू से कहा, 06O 4 16 कि साक्षी का सन्दूक उठानेवाले याजकों को आज्ञा दे कि यरदन में से निकल आएं। 06O 4 17 तो यहोशू ने याजकों को आज्ञा दी, कि यरदन में से निकल आओ। 06O 4 18 और ज्यों ही यहोवा की वाचा का सन्दूक उठानेवाले याजक यरदन के बीच में से निकल आए, और उनके पांव स्थल पर पड़े, त्यों ही यरदन का जल अपने स्थान पर आया, और पहिले की नाईं कड़ारो के ऊपर फिर बहने लगा। 06O 4 19 पहिले महिने के दसवें दिन को प्रजा के लोगों ने यरदन में से निकलकर यरीहो के पूर्वी सिवाने पर गिलगाल में अपने डेरे डाले। 06O 4 20 और जो बारह पत्थर यरदन में से निकाले गए थे, उनको यहोशू ने गिलगाल में खड़े किए। 06O 4 21 तब उस ने इस्राएलियों से कहा, आगे को जब तुम्हारे लड़केबाले अपने अपने पिता से यह पूछें, कि इन पत्थरों का क्या मतलब है? 06O 4 22 तब तुम यह कहकर उनको बताना, कि इस्राएली यरदन के पार स्थल ही स्थल चले आए थे। 06O 4 23 क्योंकि जैसे तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने लाल समुद्र को हमारे पार हो जाने तक हमारे साम्हने से हटाकर सुखा रखा था, वैसे ही उस ने यरदन का भी जल तुम्हारे पार हो जाने तक तुम्हारे साम्हने से हटाकर सुखा रखा; 06O 4 24 इसलिये कि पृथ्वी के सब देशों के लोग जान लें कि यहोवा का हाथ बलवन्त है; और तुम सर्वदा अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानते रहो।। 06O 5 1 जब यरदन के पच्छिम की ओर रहनेवाले एमोरियों के सब राजाओं ने, और समुद्र के पास रहनेवाले कनानियों के सब राजाओं ने यह सुना, कि यहोवा ने इस्राएलियों के पार होने तक उनके साम्हने से यरदन का जल हटाकर सुखा रखा है, तब इस्राएलियों के डर के मारे उनका मन घबरा गया, और उनके जी में जी न रहा।। 06O 5 2 उस समय यहोवा ने यहोशू से कहा, चकमक की छुरियां बनवाकर दूसरी बार इस्राएलियों का खतना करा दें। 06O 5 3 तब यहोशू ने चकमक की छुरियां बनवाकर खलड़ियां नाम टीले पर इस्राएलियों का खतना कराया। 06O 5 4 और यहोशू ने जो खतना कराया, इसका कारण यह है, कि जितने युद्ध के योग्य पुरूष मि से निकले थे वे सब मि से निकलने पर जंगल के मार्ग में मर गए थे। 06O 5 5 जो पुरूष मि से निकले थे उन सब का तो खतना हो चुका था, परन्तु जितने उनके मि से निकलने पर जंगल के मार्ग में उत्पन्न हुए उन में से किसी का खतना न हुआ था। 06O 5 6 क्योंकि इस्राएली तो चालीस वर्ष तक जंगल में फिरते रहे, जब तक उस सारी जाति के लोग, अर्थात् जितने युद्ध के योग्य लोग मि से निकले थे वे नाश न हो गए, क्योंकि उन्हों ने यहोवा की न मानी थी; सो यहोवा ने शपथ खाकर उन से कहा था, कि जो देश मैं ने तुम्हारे पूर्वजों से शपथ खाकर तुम्हें देने को कहा था, और उस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, वह देश मैं तुम को नहीं दिखाने का। 06O 5 7 तो उन लोगों के पुत्रा जिन को यहोवा ने उनके स्थान पर उत्पन्न किया था, उनका खतना यहोशू से कराया, क्योंकि मार्ग में उनके खतना न होने के कारण वे खतनारहित थे। 06O 5 8 और जब उस सारी जाति के लोगों का खतना हो चुका, तब वे चंगे हो जाने तक अपने अपने स्थान पर छावनी में रहे। 06O 5 9 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, तुम्हारी नामधराई जो मिस्त्रियों में हुई है उसे मैं ने आज दूर की है। इस कारण उस स्थान का नाम आज के दिन तक गिलगाल पड़ा है।। 06O 5 10 सो इस्राएली गिलगाल में डेरे डाले हुए रहे, और उन्हों ने यरीहो के पास के अराबा में पूर्णमासी की सन्ध्या के समय फसह माना। 06O 5 11 और फसह के दूसरे दिन वे उस देश की उपज में से अखमीरी रोटी और उसी दिन से भुना हुआ दाना भी खाने लगे। 06O 5 12 और जिस दिन वे उस देश की उपज में से खाने लगे, उसी दिन बिहान को मन्ना बन्द हो गया; और इस्राएलियों को आगे फिर कभी मन्ना न मिला, परन्तु उस वर्ष उन्हों ने कनान देश की उपज में से खाई।। 06O 5 13 जब यहोशू यरीहो के पास था तब उस ने अपनी आंखें उठाई, और क्या देखा, कि हाथ में नंगी तलवार लिये हुए एक पुरूष साम्हने खड़ा है; और यहोशू ने उसके पास जाकर पूछा, क्या तू हमारी ओर का है, वा हमारे बैरियों की ओर का? 06O 5 14 उस ने उत्तर दिया, कि नहीं; मैं यहोवा की सेना का प्रधान होकर अभी आया हूं। तब यहोशू ने पृथ्वी पर मुंह के बल गिरकर दण्डवत् किया, और उस से कहा, अपने दास के लिये मेरे प्रभु की क्या आज्ञा है? 06O 5 15 यहोवा की सेना के प्रधान ने यहोशू से कहा, अपनी जूती पांव से उतार डाल, क्योंकि जिस स्थान पर तू खड़ा है वह पवित्रा है। तब यहोशू ने वैसा ही किया।। 06O 6 1 और यरीहो के सब फाटक इस्राएलियों के डर के मारे लगातार बन्द रहे, और कोई बाहर भीतर आने जाने नहीं पाता था। 06O 6 2 फिर यहोवा ने यहोशू से कहा, सुन, मैं यरीहो को उसके राजा और शूरवीरों समेत तेरे वश में कर देता हूं। 06O 6 3 सो तुम में जितने योद्धा हैं नगर को घेर लें, और उस नगर के चारों ओर एक बार घूम आएं। 06O 6 4 और छ: दिन तक ऐसा ही किया करना। 06O 6 5 और जब वे जुबली के नरसिंगे देर तक फूंकते रहें, तब सब लोग नरसिंगे का शब्द सुनते ही बड़ी ध्वनि से जयजयकार करें; तब नगर की शहरपनाह नेव से गिर जाएगी, और सब लोग अपने अपने साम्हने चढ़ जाएं। 06O 6 6 सो नून के पुत्रा यहोशू ने याजकों को बुलवाकर कहा, वाचा के सन्दूक को उठा लो, और सात याजक यहोवा के सन्दूक के आगे आगे जुबली के सात नरसिंगे लिए चलें। 06O 6 7 फिर उस ने लोगों से कहा, आगे बढ़कर नगर के चारों और घूम आओ; और हथियारबन्द पुरूष यहोवा के सन्दूक के आगे आगे चलें। 06O 6 8 और जब यहोशू ये बातें लोगों से कह चुका, तो वे सात याजक जो यहोवा के साम्हने सात नरसिंगे लिये हुए थे नरसिंगे फूंकते हुए चले, और यहोवा की वाचा का सन्दूक उनके पीछे पीछे चला। 06O 6 9 और हथियारबन्द पुरूष नरसिंगे फूंकनेवाले याजकों के आगे आगे चले, और पीछे वाले सन्दूक के पीछे पीछे चले, और याजक नरसिंगे फूंकते हुए चले। 06O 6 10 और यहोशू ने लोगों को आज्ञा दी, कि जब तक मैं तुम्हें जयजयकार करने की आज्ञा न दूं, तब तक जयजयकार न करो, और न तुम्हारा कोई शब्द सुनने में आए, न कोई बात तुम्हारे मुंह से निकलने पाए; आज्ञा पाते ही जयजयकार करना। 06O 6 11 उस ने यहोवा के सन्दूक को एक बार नगर के चारों ओर घुमवाया; तब वे छावनी में आए, और रात वहीं काटी।। 06O 6 12 बिहान को यहोशू सबेरे उठा, और याजकों ने यहोवा का सन्दूक उठा लिया। 06O 6 13 और उन सात याजकों ने जुबली के सात नरसिंगे लिए और यहोवा के सन्दूक के आगे आगे फूंकते हुए चले; और उनके आगे हथियारबन्द पुरूष चले, और पीछेवाले यहोवा के सन्दूक के पीछे पीछे चले, और याजक नरसिंगे फूंकते चले गए। 06O 6 14 इस प्रकार वे दूसरे दिन भी एक बार नगर के चारों ओर घूमकर छावनी में लौट आए। और इसी प्रकार उन्हों ने छ: दिन तक किया। 06O 6 15 फिर सातवें दिन वे भोर को बड़े तड़के उठकर उसी रीति से नगर के चारों ओर सात बार घूम आए; केवल उसी दिन वे सात बार घूमे। 06O 6 16 तब सातवीं बार जब याजक नरसिंगे फूंकते थे, तब यहोशू ने लोगों से कहा, जयजयकार करो; क्योंकि यहोवा ने यह नगर तुम्हें दे दिया है। 06O 6 17 और नगर और जो कुछ उस में है यहोवा के लिये अर्पण की वस्तु ठहरेगी; केवल राहाब वेश्या और जितने उसके घर में हों वे जीवित छोड़े जाएंगे, क्योंकि उस ने हमारे भेजे हुए दूतों को छिपा रखा था। 06O 6 18 और तुम अर्पण की हुई वस्तुओं से सावधानी से अपने आप को अलग रखो, ऐसा न हो कि अर्पण की वस्तु ठहराकर पीछे उसी अर्पण की वस्तु में से कुछ ले लो, और इस प्रकार इस्राएली छावनी को भ्रष्ट करके उसे कष्ट में डाल दो। 06O 6 19 सब चांदी, सोना, और जो पात्रा पीतल और लोहे के हैं, वे यहोवा के लिये पवित्रा हैं, और उसी के भण्डार में रखे जाएं। 06O 6 20 तब लोगों ने जयजयकार किया, और याजक नरसिंगे फूंकते रहे। और जब लोगों ने नरसिंगे का शब्द सुना तो फिर बड़ी ही ध्वनि से उन्हों ने जयजयकार किया, तब शहरपनाह नवे से गिर पड़ी, और लोग अपने अपने साम्हने से उस नगर में चढ़ गए, और नगर को ले लिया। 06O 6 21 और क्या पुरूष, क्या स्त्री, क्या जवान, क्या बूढ़े, वरन बैल, भेड़- बकरी, गदहे, और जितने नगर में थे, उन सभों को उन्हों ने अर्पण की वस्तु जानकर तलवार से मार डाला। 06O 6 22 तब यहोशू ने उन दोनों पुरूषों से जो उस देश का भेद लेने गए थे कहा, अपनी शपथ के अनुसार उस वेश्या के घर में जाकर उसको और जो उसके पास हों उन्हें भी निकाल ले आओ। 06O 6 23 तब वे दोनों जवान भेदिए भीतर जाकर राहाब को, और उसके माता- पिता, भाइयों, और सब को जो उसके यहां रहते थे, वरन उसके सब कुटुम्बियों को निकाल लाए, और इस्राएल की छावनी से बाहर बैठा दिया। 06O 6 24 तब उन्हों ने नगर को, और जो कुछ उस में था, सब को आग लगाकर फूंक दिया; केवल चांदी, सोना, और जो पात्रा पीतल और लोहे के थे, उनको उन्हों ने यहोवा के भवन के भण्डार में रख दिया। 06O 6 25 और यहोशू ने राहाब वेश्या और उसके पिता के घराने को, वरन उसके सब लोगों को जीवित छोड़ दिया; और आज तक उसका वंश इस्राएलियों के बीच में रहता है, क्योंकि जो दूत यहोशू ने यरीहो के भेद लेने को भेजे थे उनको उस ने छिपा रखा था। 06O 6 26 फिर उसी समय यहोशू ने इस्राएलियों के सम्मुख शपथ रखी, और कहा, कि जो मनुष्य उठकर इस नगर यरीहो को फिर से बनाए वह यहोवा की ओर से शापित हो। जब वह उसकी नेव डालेगा तब तो उसका जेठा पुत्रा मरेगा, और जब वह उसके फाटक लगावाएगा तब उसका छोटा पुत्रा मर जाएगा। 06O 6 27 और यहोवा यहोशू के संग रहा; और यहोशू की कीर्ति उस सारे देश में फैल गई।। 06O 7 1 परन्तु इस्राएलियों ने अर्पण की वस्तु के विषय में विश्वासघात किया; अर्थात् यहूदा के गोत्रा का आकान, जो जेरहवंशी जब्दी का पोता और कर्म्मी का पुत्रा था, उस ने अर्पण की वस्तुओं में से कुछ ले लिया; इस कारण यहोवा का कोप इस्राएलियों पर भड़क उठा।। 06O 7 2 और यहोशू ने यरीहो से ऐ नाम नगर के पास, जो बेतावेन से लगा हुआ बेतेल की पूर्व की ओर है, कितने पुरूषों को यह कहकर भेजा, कि जाकर देश का भेद ले आओ। और उन पुरूषों ने जाकर ऐ का भेद लिया। 06O 7 3 और उन्हों ने यहोशू के पास लौटकर कहा, सब लोग वहां न जाएं, कोई दो वा तीन हजार पुरूष जाकर ऐ को जीत सकते हैं; सब लोगों को वहां जाने का कष्ट न दे, क्योंकि वे लोग थोड़े ही हैं। 06O 7 4 इसलिये कोई तीन हजार पुरूष वहां गए; परन्तु ऐ के रहनेवालों के साम्हने से भाग आए, 06O 7 5 तब ऐ के रहनेवालों ने उन में से कोई छत्तीस पुरूष मार डाले, और अपने फाटक से शबारीम तक उनका पीछा करके उतराई में उनको मारते गए। तब लोगों का मन पिघलकर जल सा बन गया। 06O 7 6 तब यहोशू ने अपने वस्त्रा फाड़े, और वह और इस्राएली वृद्ध लोग यहोवा के सन्दूक के साम्हने मुंह के बल गिरकर पृथ्वी पर सांझ तक पड़े रहे; और उन्हों ने अपने अपने सिर पर धूल डाली। 06O 7 7 और यहोशू ने कहा, हाय, प्रभु यहोवा, तू अपनी इस प्रजा को यरदन पार क्यों ले आया? क्या हमें एमोरियों के वश में करके नष्ट करने के लिये ले आया है? भला होता कि हम संतोष करके यरदन के उस पार रह जाते। 06O 7 8 हाय, प्रभु मैं क्या कहूं, जब इस्राएलियों ने अपने शत्रुओं को पीठ दिखाई है! 06O 7 9 क्योंकि कनानी वरन इस देश के सब निवासी यह सुनकर हम को घेर लेंगे, और हमारा नाम पृथ्वी पर से मिटा डालेंगे; फिर तू अपने बड़े नाम के लिये क्या करेगा? 06O 7 10 यहोवा ने यहोशू से कहा, उठ, खड़ा हो जा, तू क्यों इस भांति मुंह के बल पृथ्वी पर पड़ा है? 06O 7 11 इस्राएलियों ने पाप किया है; और जो वाचा मैं ने उन से अपने साथ बन्धाई थी उसको उन्हों ने तोड़ दिया है, उन्हों ने अर्पण की वस्तुओं में से ले लिया, वरन चोरी भी की, और छल करके उसको अपने सामान में रख लिया है। 06O 7 12 इस कारण इस्राएली अपने शत्रुओं के साम्हने खड़े नहीं रह सकते; वे अपने शत्रुओं को पीठ दिखाते हैं, इसलिये कि वे आप अर्पण की वस्तु बन गए हैं। और यदि तुम अपने मध्य में से अर्पण की वस्तु को सत्यानाश न कर डालोगे, तो मैं आगे को तुम्हारे संग नहीं रहूंगा। 06O 7 13 उठ, प्रजा के लोगों को पवित्रा कर, उन से कह; कि बिहान तक अपने अपने को पवित्रा कर रखो; क्योंकि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यह कहता है, कि हे इस्राएल, तेरे मध्य में अर्पण की वस्तु है; इसलिये जब तक तू अर्पण की वस्तु को अपने मध्य में से दूर न करे तब तक तू अपने शत्रुओं के साम्हने खड़ा न रह सकेगा। 06O 7 14 इसलिये बिहान को तुम गोत्रा गोत्रा के अनुसार समीप खड़े किए जाओगे; और जिस गोत्रा को यहोवा पकड़े वह एक एक कुल करके पास आए; और जिस कुल को यहोवा पकड़े सो घराना घराना करके पास आए; फिर जिस घराने को यहोवा पकड़े वह एक एक पुरूष करके पास आए। 06O 7 15 तब जो पुरूष अर्पण की वस्तु रखे हुए पकड़ा जाएगा, वह और जो कुछ उसका हो सब आग में डालकर जला दिया जाए; क्योंकि उस ने यहोवा की वाचा को तोड़ा है, और इस्राएल में अनुचित कर्म किया है।। 06O 7 16 बिहान को यहोशू सवेरे उठकर इस्राएलियों को गोत्रा गोत्रा करके समीप लिवा ले गया, और यहूदा का गोत्रा पकड़ा गया; 06O 7 17 तब उस ने यहूदा के परिवार को समीप किया, और जेरहवंशियों का कुल पकड़ा गया; फिर जेरहवंशियों के घराने के एक एक पुरूष को समीप लाया, और जब्दी पकडा गया; 06O 7 18 तब उस ने उसके घराने के एक एक पुरूष को समीप खड़ा किया, और यहूदा गोत्रा का आकान, जो जेरहवंशी जब्दी का पोता और कर्म्मी का पुत्रा था, पकड़ा गया। 06O 7 19 तब यहोशू आकान से कहने लगा, हे मेरे बेटे, इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का आदर कर, और उसके आगे अंगीकार कर; और जो कुछ तू ने किया है वह मुझ को बता दे, और मुझ से कुछ मत छिपा। 06O 7 20 और आकान ने यहोशू को उत्तर दिया, कि सचमुच मैं ने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के विरूद्ध पाप किया है, और इस प्रकार मैं ने किया है, 06O 7 21 कि जब मुझे लूट में शिनार देश का एक सुन्दर ओढ़ना, और दो सौ शेकेल चांदी, और पचास शेकेल सोने की एक ईट देख पड़ी, तब मैं ने उनका लालच करके उन्हें रख लिया; वे मेरे डेरे के भीतर भूमि में गड़े हैं, और सब के नीचे चांदी है। 06O 7 22 तब यहोशू ने दूत भेजे, और वे उस डेरे में दौड़े गए; और क्या देखा, कि वे वस्तुएं उसके डेरे में गड़ी हैं, और सब के नीचे चांदी है। 06O 7 23 उनको उन्हों ने डेरे में से निकालकर यहोशू और सब इस्राएलियों के पास लाकर यहोवा के साम्हने रख दिया। 06O 7 24 तब सब इस्राएलियों समेत यहोशू जेरहवंशी आकान को, और उस चांदी और ओढ़ने और सोने की ईंट को, और उसके बेटे- बेटियों को, और उसके बैलों, गदहों और भेड़- बकरियों को, और उसके डेरे को, निदान जो कुछ उसका था उन सब को आकोर नाम तराई में ले गया। 06O 7 25 तब यहोशू ने उस से कहा, तू ने हमें क्यों कष्ट दिया है? आज के दिन यहोवा तुझी को कष्ट देगा। तब सब इस्राएलियों ने उसको पत्थरवाह किया; और उनको आग में डालकर जलाया, और उनके ऊपर पत्थर डाल दिए। 06O 7 26 और उन्हों ने उसके ऊपर पत्थरों का बड़ा ढेर लगा दिया जो आज तक बना है; तब यहोवा का भड़का हुआ कोप शान्त हो गया। इस कारण उस स्थान का नाम आज तक आकोर तराई पड़ा है।। 06O 8 1 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, मत डर, और तेरा मन कच्चा न हो; कमर बान्धकर सब योद्धाओं को साथ ले, और ऐ पर चढ़ाई कर; सुन, मैं ने ऐ के राजा को उसकी प्रजा और उसके नगर और देश समेत तेरे वश में किया है। 06O 8 2 और जैसा तू ने यरीहो और उसके राजा से किया वैसा ही ऐ और उसके राजा के साथ भी करना; केवल तुम पशुओं समेत उसकी लूट तो अपने लिये ले सकोगे; इसलिये उस नगर के पीछे की ओर अपने पुरूष घात में लगा दो। 06O 8 3 सो यहोशू ने सब योद्धाओं समेत ऐ पर चढ़ाई करने की तैयारी की; और यहोशू ने तीस हजार पुरूषों को जो शूरवीर थे चुनकर रात ही को आज्ञा देकर भेजा। 06O 8 4 और उनको यह आज्ञा दी, कि सुनो, तुम उस नगर के पीछे की ओर घात लगाए बैठे रहना; नगर से बहुत दूर न जाना, और सब के सब तैयार रहना; 06O 8 5 और मैं अपने सब साथियों समेत उस नगर के निकट जाऊंगा। और जब वे पहिले की नाईं हमारा साम्हना करने को निकलें, तब हम उनके आगे से भागेंगे; 06O 8 6 तब वे यह सोचकर, कि वे पहिले की भांति हमारे साम्हने से भागे जाते हैं, हमारा पीछा करेंगे; इस प्रकार हम उनके साम्हने से भागकर उन्हें नगर से दूर निकाल ले जाएंगे; 06O 8 7 तब तुम घात में से उठकर नगर को अपना कर लेना; क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा उसको तुम्हारे हाथ में कर देगा। 06O 8 8 और जब नगर को ले लो, तब उस में आग लगाकर फूंक देना, यहोवा की आज्ञा के अनुसार ही काम करना; सुनो, मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है। 06O 8 9 तब यहोशू ने उनको भेज दिया; और वे घात में बैठने को चले गए, और बेतेल और ऐ के मध्य में और ऐ की पश्चिम की ओर बैठे रहे; परन्तु यहोशू उस रात को लोगों के बीच टिका रहा।। 06O 8 10 बिहान को यहोशू सवेरे उठा, ओर लोगों की गिनती लेकर इस्राएली वृद्ध लोगों समेत लोगों के आगे आगे ऐ की ओर चला। 06O 8 11 और उसके संग के सब योद्धा चढ़ गए, और ऐ नगर के निकट पहुंचकर उसके साम्हने उत्तर की ओर डेरे डाल दिए, और उनके और ऐ के बीच एक तराई थी। 06O 8 12 तब उस ने कोई पांच हजार पुरूष चुनकर बेतेल और ऐ के मध्यस्त नगर की पश्चिम की ओर उनको घात में बैठा दिया। 06O 8 13 और जब लोगों ने नगर की उत्तर ओर की सारी सेना को और उसकी पश्चिम ओर घात में बैठे हुओं को भी ठिकाने पर कर दिया, तब यहोशू उसी रात तराई के बीच गया। 06O 8 14 जब ऐ के राजा ने यह देखा, तब वे फुर्ती करके सवेरे उठे, और राजा अपनी सारी प्रजा को लेकर इस्राएलियों के साम्हने उन से लड़ने को निकलकर ठहराए हुए स्थान पर जो अराबा के साम्हने है पहुंचा; और वह नहीं जानता था कि नगर की पिछली और लोग घात लगाए बैठे हैं। 06O 8 15 तब यहोशू और सब इस्राएली उन से मानो हार मानकर जंगल का मार्ग लेकर भाग निकले। 06O 8 16 तब नगर के सब लोग इस्राएलियों का पीछा करने को पुकार पुकार के बुलाए गए; और वे यहोशू का पीछा करते हुए नगर से दूर निकल गए। 06O 8 17 और न ऐ में और ने बेतेल में कोई पुरूष रह गया, जो इस्राएलियों का पीछा करने को न गया हो; और उन्हों ने नगर को खुला हुआ छोड़कर इस्राएलियों का पीछा किया। 06O 8 18 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, अपने हाथ का बर्छा ऐ की ओर बढ़ा; क्योंकि मैं उसे तेरे हाथ में दे दूंगा। और यहोशू ने अपने हाथ के बर्छे को नगर की ओर बढ़ाया। 06O 8 19 उसके हाथ बढ़ाते ही जो लोग घात में बैठे थे वे झटपट अपने स्थान से उठे, और दौड़कर नगर में प्रवेश किया और उसको ले लिया; और झटपट उस में आग लगा दी। 06O 8 20 जब ऐ के पुरूषों ने पीछे की ओर फिरकर दृष्टि की, तो क्या देखा, कि नगर का धूआं आकाश की ओर उठ रहा है; और उन में न तो इधर भागने की शक्ति रही, और न उधर, और जो लोग जंगल की ओर भागे जाते थे वे फिरकर अपने खदेड़नेवालों पर टूट पड़े। 06O 8 21 जब यहोशू और सब इस्राएलियों ने देखा कि घातियों ने नगर को ले लिया, और उसका धूंआ उठ रहा है, तब घूमकर ऐ के पुरूषों को मारने लगे। 06O 8 22 और उनका साम्हना करने को दूसरे भी नगर से निकल आए; सो वे इस्राएलियों के बीच में पड़ गए, कुछ इस्राएली तो उनके आगे, और कुछ उनके पीछे थे; सो उन्हों ने उनको यहां तक मार डाला कि उन में से न तो कोई बचने और न भागने पाया। 06O 8 23 और ऐ के राजा को वे जीवित पकड़कर यहोशू के पास ले आए। 06O 8 24 और जब इस्राएली ऐ के सब निवासियों को मैदान में, अर्थात् उस जंगल में जहां उन्हों ने उनका पीछा किया था घात कर चुके, और वे सब के सब तलवार से मारे गए यहां तक कि उनका अन्त ही हो गया, तब सब इस्राएलियों ने ऐ को लौटकर उसे भी तलवार से मारा। 06O 8 25 और स्त्री पुरूष, सब मिलाकर जो उस दिन मारे गए वे बारह हजार थे, और ऐ के सब पुरूष इतने ही थे। 06O 8 26 क्योंकि जब तक यहोशू ने ऐ के सब निवासियों को सत्यानाश न कर डाला तब तब उस ने अपना हाथ, जिस से बर्छा बढ़ाया था, फिर न खींचा। 06O 8 27 यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार जो उस ने यहोशू को दी थी इस्राएलियों ने पशु आदि नगर की लूट अपनी कर ली। 06O 8 28 तब यहोशू ने ऐ को फूंकवा दिया, और उसे सदा के लिये खंडहर कर दिया : वह आज तक उजाड़ पड़ा है। 06O 8 29 और ऐ के राजा को उस ने सांझ तक वृक्ष पर लटका रखा; और सूर्य डूबते डूबते यहोशू की आज्ञा से उसकी लोथ वृष पर से उतारकर नगर के फाटक के साम्हने डाल दी गई, और उस पर पत्थरों का बढ़ा ढेर लगा दिया, जो आज तक बना है।। 06O 8 30 तब यहोशू ने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के लिये एबाल पर्वत पर एक वेदी बनवाई, 06O 8 31 जैसा यहोवा के दास मूसा ने इस्राएलियों को आज्ञा दी थी, और जैसा मूसा की व्यवस्था की पुस्तक में लिखा है, उस ने समूचे पत्थरों की एक वेदी बनवाई जिस पर औजार नहीं चलाया गया था। और उस पर उन्हों ने यहोवा के लिये होम- बलि चढ़ाए, और मेलबलि किए। 06O 8 32 उसी स्थान पर यहोशू ने इस्राएलियों के साम्हने उन पत्थरों के ऊपर मूसा की व्यवस्था, जो उस ने लिखी थी, उसकी नकल कराई। 06O 8 33 और वे, क्या देशी क्या परदेशी, सारे इस्राएली अपने वृद्ध लोगों, सरदारों, और न्यायियों समेत यहोवा की वाचा का सन्दूक उठानेवाले लेवीय याजकों के साम्हने उस सन्दूक के इधर उधर खड़े हुए, अर्थात् आधे लोग तो गिरिज्जीम पर्वत के, और आधे एबाल पर्वत के साम्हने खड़े हुए, जैसा कि यहोवा के दास मूसा ने पहिले आज्ञा दी थी, कि इस्राएली प्रजा को आर्शीवाद दिए जाएं। 06O 8 34 उसके बाद उस ने आशीष और शाप की व्यवस्था के सारे वचन, जैसे जैसे व्यवस्था की पुस्तक में लिखे हुए हैं, वैसे वैसे पढ़ पढ़कर सुना दिए। 06O 8 35 जितनी बातों की मूसा ने आज्ञा दी थी, उन में से कोई ऐसी बात नहीं रह गई जो यहोशू ने इस्राएली की सारी सभा, और स्त्रियों, और बाल- बच्चों, और उनके साथ रहनेवाले परदेशी लोगों के साम्हने भी पढ़कर न सुनाई।। 06O 9 1 यह सुनकर हित्ती, एमोरी, कनानी, परिज्जी, हिव्वी, और यबूसी, जितने राजा यरदन के इस पार पहाड़ी देश में और नीचे के देश में, और लबानोन के साम्हने के महानगर के तट पर रहते थे, 06O 9 2 वे एक मन होकर यहोशू और इस्राएलियों से लड़ने को इकट्ठे हुए।। 06O 9 3 जब गिबोन के निवासियों ने सुना कि यहोशू ने यरीहो और ऐ से क्या क्या किया है, 06O 9 4 तब उन्हों ने छल किया, और राजदूतों का भेष बनाकर अपने गदहों पर पुराने बोरे, और पुराने फटे, और जोड़े हुए मदिरा के कुप्पे लादकर 06O 9 5 अपने पांवों में पुरानी गांठी हुई जूतियां, और तन पर पुराने वस्त्रा पहिने, और अपने भोजन के लिये सूखी और फफूंदी लगी हुई रोटी ले ली। 06O 9 6 तब वे गिलगाल की छावनी में यहोशू के पास जाकर उस से और इस्राएली पुरूषों से कहने लगे, हम दूर देश सें आए हैं; इसलिये अब तुम हम से वाचा बान्धो। 06O 9 7 इस्राएली पुरूषों ने उन हिव्वियों से कहा, क्या जाने तुम हमारे मध्य में ही रहते हो; फिर हम तुम से वाचा कैसे बान्धे? 06O 9 8 उन्हों ने यहोशू से कहा, हम तेरे दास हैं। तब यहोशू ने उन से कहा, तुम कौन हो? और कहां से आए हो? 06O 9 9 उन्हों ने उस से कहा, तेरे दास बहुत दूर के देश से तेरे परमेश्वर यहोवा का नाम सुनकर आए हैं; क्योंकि हम ने यह सब सुना है, अर्थात् उसकी कीर्ति और जो कुछ उस ने मि में किया, 06O 9 10 और जो कुछ उस ने एमोरियों के दोनों राजाओं से किया जो यरदन के उस पार रहते थे, अर्थात् हेश्बोन के राजा सीहोन से, और बाशान के राजा ओग से जो अश्तारोत में था। 06O 9 11 इसलिये हमारे यहां के वृद्धलोगों ने और हमारे देश के सब निवासियों ने हम से कहा, कि मार्ग के लिये अपने साथ भोजनवस्तु लेकर उन से मिलने को जाओ, और उन से कहना, कि हम तुम्हारे दास हैं; इसलिये अब तुम हम से वाचा बान्धो। 06O 9 12 जिस दिन हम तुम्हारे पास चलने को निकले उस दिन तो हम ने अपने अपने घर से यह रोटी गरम और ताजी ली थी; परन्तु अब देखो, यह सूख गई है और इस में फफूंदी लग गई है। 06O 9 13 फिर ये जो मदिरा के कुप्पे हम ने भर लिये थे, तब तो नये थे, परन्तु देखो अब ये फट गए हैं; और हमारे ये वस्त्रा और जूतियां बड़ी लम्बी यात्रा के कारण पुरानी हो गई हैं। 06O 9 14 तब उन पुरूषों ने यहोवा से बिना सलाह लिये उनके भोजन में से कुछ ग्रहण किया। 06O 9 15 तब यहोशू ने उन से मेल करके उन से यह वाचा बान्धी, कि तुम को जीवित छोड़ेंगे; और मण्डली के प्रधानों ने उन से शपथ खाई। 06O 9 16 और उनके साथ वाचा बान्धने के तीन दिन के बाद उनको यह समाचार मिला; कि वे हमारे पड़ोस के रहनेवाले लोग हैं, और हमारे ही मध्य में बसे हैं। 06O 9 17 तब इस्राएली कूच करके तीसरे दिन उनके नगरों को जिनके नाम गिबोन, कपीरा, बेरोत, और किर्यत्यारीम है पहुंच गए, 06O 9 18 और इस्राएलियों ने उनको न मारा, क्योंकि मण्डली के प्रधानों ने उनके संग इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की शपथ खाई थी। तब सारी मण्डली के लोग प्रधानों के विरूद्ध कुड़कुड़ाने लगे। 06O 9 19 तब सब प्रधानों ने सारी मण्डली से कहा, हम ने उन से इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की शपथ खाई है, इसलिये अब उनको छू नहीं सकते। 06O 9 20 हम उन से यही करेंगे, कि उस शपथ के अनुसार हम उनको जीवित छोड़ देंगे, नहीं तो हमारी खाई हुई शपथ के कारण हम पर क्रोध पड़ेगां 06O 9 21 फिर प्रधानों ने उन से कहा, वे जीवित छोड़े जाएं। सो प्रधानों के इस वचन के अनुसार वे सारी मण्डली के लिये लकड़हारे और पानी भरनेवाले बने। 06O 9 22 फिर यहोशू ने उनको बुलवाकर कहा, तुम तो हमारे ही बीच में रहते हो, फिर तुम ने हम से यह कहकर क्यों छल किया है, कि हम तुम से बहुत दूर रहते हैं? 06O 9 23 इसलिये अब तुम शापित हो, और तुम में से ऐसा कोई न रहेगा जो दास, अर्थात् मेरे परमेश्वर के भवन के लिये लकड़हारा और पानी भरनेवाला न हो। 06O 9 24 उन्हों ने यहोशू को उत्तर दिया, तेरे दासों को यह निश्चय बतलाया गया था, कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने अपने दास मूसा को आज्ञा दी थी कि तुम को वह सारा देश दे, और उसके सारे निवासियों को तुम्हारे साम्हने से सर्वनाश करे; इसलिये हम लोगों को तुम्हारे कारण से अपने प्राणों के लाले पड़ गए, इसलिये हम ने ऐसा काम किया । 06O 9 25 और अब हम तेरे वश में हैं, जैसा बर्ताव तुझे भला लगे और ठीक जान पड़े, वैसा ही व्यवहार हमारे साथ कर। 06O 9 26 तब उस ने उन से वैसा ही किया, और उन्हें इस्राएलियों के हाथ से ऐसा बचाया, कि वे उन्हें घात करने न पाए। 06O 9 27 परन्तु यहोशू ने उसी दिन उनको मण्डली के लिये, और जो स्थान यहोवा चुन ले उसमें उसकी वेदी के लिये, लकड़हारे और पानी भरनेवाले नियुक्त कर दिया, जैसा आज तक है।। 06O 10 1 जब यरूशलेम के राजा अदोनीसेदेक ने सुना कि यहोशू ने ऐ को ले लिया, और उसको सत्यानाश कर डाला है, और जैसा उस ने यरीहो और उसके राजा से किया है, और यह भी सुना कि गिबोन के निवासियों ने इस्राएलियों से मेल किया, और उनके बीच रहने लगे हैं, 06O 10 2 तब वे निपट डर गए, क्योंकि गिबोन बड़ा नगर वरन राजनगर के तुल्य और ऐ से बड़ा था, और उसके सब निवासी शूरवीर थे। 06O 10 3 इसलिये यरूशलेम के राजा अदोनीसेदेक ने हेब्रोन के राजा होहाम, यर्मूत के राजा पिराम, लाकीश के राजा यापी, और एग्लोन के राजा दबीर के पास यह कहला भेजा, 06O 10 4 कि मेरे पास आकर मेरी सहायता करो, और चलो हम गिबोन को मारें; क्योंकि उस ने यहोशू और इस्राएलियों से मेल कर लिया है। 06O 10 5 इसलिये यरूशलेम, हेब्रोन, यर्मूत, लाकीश, और एग्लोन के पांचों एमोरी राजाओं ने अपनी अपनी सारी सेना इकट्ठी करके चढ़ाई कर दी, और गिबोन के साम्हने डेरे डालकर उस से युद्ध छेड़ दिया। 06O 10 6 तक गिबोन के निवासियों ने गिलगाल की छावनी में यहोशू के पास यों कहला भेजा, कि अपने दासों की ओर से तू अपना हाथ न हटाना; शीघ्र हमारे पास आकर हमें बचा ले, और हमारी सहायता कर; क्योंकि पहाड़ पर रहनेवाले एमोरियों के सब राजा हमारे विरूद्ध इकट्ठे हए हैं। 06O 10 7 तब यहोशू सारे योद्धाओं और सब शूरवीरों को संग लेकर गिलगाल से चल पड़ा। 06O 10 8 और यहोवा ने यहोशू से कहा, उन से मत डर, क्योंकि मैं ने उनको तेरे हाथ में कर दिया है; उन में से एक पुरूष भी तेरे साम्हने टिक न सकेगा। 06O 10 9 तब यहोशू रातोरात गिलगाल से जाकर एकाएक उन पर टूट पड़ा। 06O 10 10 तब यहोवा ने ऐसा किया कि वे इस्राएलियों से घबरा गए, और इस्राएलियों ने गिबोन के पास उनका बड़ा संहार किया, और बेथोरान के चढ़ाव पर उनका पीछा करके अजेका और मक्केदा तक उनको मारते गए। 06O 10 11 फिर जब वे इस्राएलियों के साम्हने से भागकर बेथोरोन की उतराई पर आए, तब अजेका पहुंचने तक यहोवा ने आकाश से बड़े बड़े पत्थर उन पर बरसाए, और वे मर गए; जो ओलों से मारे गए उनकी गिनती इस्राएलियों की तलवार से मारे हुओं से अधिक थी।। 06O 10 12 और उस समय, अर्थात् जिस दिन यहोवा ने एमोरियों को इस्राएलियों के वश में कर दिया, उस दिन यहोशू ने यहोवा से इस्राएलियों के देखते इस प्रकार कहा, हे सूर्य, तू गिबोन पर, और हे चन्द्रमा, तू अरयालोन की तराई के ऊपर थमा रह।। 06O 10 13 और सूर्य उस समय तक थमा रहा; और चन्द्रमा उस समय तक ठहरा रहा, जब तक उस जाति के लोगों ने अपने शत्रुओं से पलटा न लिया।। क्या यह बात याशार नाम पुस्तक में नहीं लिखी है कि सूर्य आकाशमण्डल के बीचोबीच ठहरा रहा, और लगभग चार पहर तक न डूबा? 06O 10 14 न तो उस से पहिले कोई ऐसा दिन हुआ और न उसके बाद, जिस में यहोवा ने किसी पुरूष की सुनी हो; क्योंकि यहोवा तो इस्राएल की ओर से लड़ता था।। 06O 10 15 तब यहोशू सारे इस्राएलियों समेत गिलगाल की छावनी को लौट गया।। 06O 10 16 और वे पांचों राजा भागकर मक्केदा के पास की गुफा में जा छिपे। 06O 10 17 तब यहोशू को यह समाचार मिला, कि पांचों राजा मक्केदा के पास की गुफा में छिपे हुए हमें मिले हैं। 06O 10 18 यहोशू ने कहा, गुफा के मुंह पर बड़े बड़े पत्थर लुढ़काकर उनकी देख भाल के लिये मनुष्यों को उसके पास बैठा दो; 06O 10 19 परन्तु तुम मत ठहरो, अपने शत्रुओं का पीछा करके उन में से जो जो पिछड़ गए हैं उनको मार डालो, उन्हें अपने अपने नगर में प्रवेश करने का अवसर न दो; क्योकि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने उनको तुम्हारे हाथ में कर दिया है। 06O 10 20 जब यहोशू और इस्राएली उनका संहार करके नाश कर चुके, और उन में से जो बच गए वे अपने अपने गढ़वाले नगर में घुस गए, 06O 10 21 तब सब लोग मक्केदा की छावनी को यहोशू के पास कुशल- क्षेम से लौट आए; और इस्राएलियों के विरूद्ध किसी ने जीभ तक न हिलाई। 06O 10 22 तब यहोशू ने आज्ञा दी, कि गुफा का मुंह खोलकर उन पांचों राजाओं को मेरे पास निकाल ले आओ। 06O 10 23 उन्हों ने ऐसा ही किया, और यरूशलेम, हेब्रोन, यर्मूत, लाकीश, और एग्लोन के उन पांचों राजओं को गुफा में से उसके पास निकाल ले आए। 06O 10 24 जब वे उन राजाओं को यहोशू के पास निकाल ले आए, तब यहोशू ने इस्राएल के सब पुरूषों को बुलाकर अपने साथ चलनेवाले योद्धाओं के प्रधानों से कहा, निकट आकर अपने अपने पांव इन राजाओं की गर्दनों पर रखो। और उन्हों ने निकट जाकर अपने अपने पांव उनकी गर्दनों पर रखे। 06O 10 25 तब यहोशू ने उन से कहा, डरो मत, और न तुम्हारा मन कच्चा हो; हियाव बान्धकर दृढ़ हो; क्योंकि यहोवा तुम्हारे सब शत्रुओं से जिन से तुम लड़नेवाले हो ऐसा ही करेगा। 06O 10 26 इस के बाद यहोशू ने उनको मरवा डाला, और पांच वृक्षों पर लटका दिया। और वे सांझ तक उन वृक्षों पर लटके रहे। 06O 10 27 सूर्य डूबते डूबते यहोशू से आज्ञा पाकर लोगों ने उन्हें उन वृक्षों पर से उतारके उसी गुफा में जहां वे छिप गए थे डाल दिया, और उस गुफा के मुंह पर बड़े बड़े पत्थर धर दिए, वे आज तक वहीं धरे हुए हैं।। 06O 10 28 उसी दिन यहोशू ने मक्केदा को ले लिया, और उसको तलवार से मारा, और उसके राजा को सत्यानाश किया; और जितने प्राणी उस में थे उन सभों में से किसी को जीवित न छोड़ा; और जैसा उस ने यरीहो के राजा के साथ किया था वैसा ही मक्केदा के राजा से भी किया।। 06O 10 29 तब यहोशू सब इस्राएलियों समेत मक्केदा से चलकर लिब्ना को गया, और लिब्ना से लड़ा। 06O 10 30 और यहोवा ने उस को भी राजा समेत इस्राएलियों के हाथ मे कर दिया; और यहोशू ने उसको और उस में के सब प्राणियों को तलवार से मारा; और उस में से किसी को भी जीवित न छोड़ा; और उसके राजा से वैसा ही किया जैसा उस ने यरीहो के राजा के साथ किया था।। 06O 10 31 फिर यहोशू सब इस्राएलियों समेत लिब्ना से चलकर लाकीश को गया, और उसके विरूद्ध छावनी डालकर लड़ा; 06O 10 32 और यहोवा ने लाकीश को इस्राएल के हाथ में कर दिया, और दूसरे दिन उस ने उसको जीत लिया; और जैसा उस ने लिब्ना के सब प्राणियों को तलवार से मारा था वैसा ही उस ने लाकीश से भी किया। 06O 10 33 तब गेजेर का राजा होराम लाकीश की सहायता करने को चढ़ आया; और यहोशू ने प्रजा समेत उसको भी ऐसा मारा कि उसके लिये किसी को जीवित न छोड़ा।। 06O 10 34 फिर यहोशू ने सब इस्राएलियों समेत लाकीश से चलकर एग्लोन को गया; और उसके विरूद्ध छावनी डालकर युद्ध करने लगा; 06O 10 35 और उसी दिन उन्हों ने उसको ले लिया, और उसको तलवार से मारा; और उसी दिन जैसा उस ने लाकीश के सब प्राणियों को सत्यानाश कर डाला था वैसा ही उस ने एग्लोन से भी किया।। 06O 10 36 फिर यहोशू सब इस्राएलियों समेत एग्लोन से चलकर हेब्रोन को गया, और उस से लड़ने लगा; 06O 10 37 और उन्हों ने उसे ले लिया, और उसको और उसके राजा और सब गावों को और उन में के सब प्राणियों को तलवार से मारा; जैसा यहोशू ने एग्लोन से किया था वैसा ही उस ने हेब्रोन में भी किसी को जीवित न छोड़ा; उस ने उसको और उस में के सब प्राणियों को सत्यानाश कर डाला।। 06O 10 38 तब यहोशू सब इस्राएलियों समेत घूमकर दबीर को गया, और उस से लड़ने लगा; 06O 10 39 और राजा समेत उसे और उसके सब गांवों को ले लिया; और उन्हों ने उनको तलवार से घात किया, और जितने प्राणी उन में थे सब को सत्यानाश कर डाला; किसी को जीवित न छोड़ा, जैसा यहोशू ने हेब्रोन और लिब्ना और उसके राजा से किया था वैसा ही उस ने दबीर और उसके राजा से भी किया।। 06O 10 40 इसी प्रकार यहोशू ने उस सारे देश को, अर्थात्पहाड़ी देश, दक्खिन देश, नीचे के देश, और ढालू देश को, उनके सब राजाओं समेत मारा; और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार किसी को जीवित न छोड़ा, वरन जितने प्राणी थे सभों को सत्यानाश कर डाला। 06O 10 41 और यहोशू ने कादेशबर्ने से ले अज्जा तक, और गिबोन तक के सारे गोशेन देश के लोगों को मारा। 06O 10 42 इन सब राजाओं को उनके देशों समेत यहोशू ने एक ही समय में ले लिया, क्योंकि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा इस्राएलियों की ओर से लड़ता था। 06O 10 43 तब यहोशू सब इस्राएलियों समेत गिलगाल की छावनी में लौट आया।। 06O 11 1 यह सुनकर हासोर के राजा याबीन ने मादोन के राजा योबाब, और शिम्रोन और अक्षाप के राजाओं को, 06O 11 2 और जो जो राजा उत्तर की ओर पहाड़ी देश में, और किन्नेरेत की दक्खिन के अराबा में, और नीचे के देश में, और पच्छिम की ओर दोर के ऊंचे देश में रहते थे, उनको, 06O 11 3 और पूरब पच्छिम दोनों ओर के रहनेवाले कनानियों, और एमोरियों, हित्तियों, परिज्जियों, और पहाड़ी यबूसियों, और मिस्पा देश में हेर्मोन पहाड़ के नीचे रहनेवाले हिव्वियों को बुलवा भेजा। 06O 11 4 और वे अपनी अपनी सेना समेत, जो समुद्र के किनारे बालू के किनकों के समान बहुत थीं, मिलकर निकल आए, और उनके साथ बहुत ही घोड़े और रथ भी थे। 06O 11 5 तब ये सब राजा सम्मति करके इकट्ठे हुए, और इस्राएलियों से लड़ने को मेरोम नाम ताल के पास आकर एक संग छावनी डाली। 06O 11 6 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, उन से मत डर, क्योंकि कल इसी समय मैं उन सभों केा इस्राएलियों के वश करके मरवा डालूंगा; तब तू उनके घोड़ों के सुम की नस कटवाना, और उनके रथ भस्म कर देना। 06O 11 7 और यहोशू सब योद्धाओं समेत मेरोम नाम ताल के पास अचानक पहुंचकर उन पर टूट पड़ा। 06O 11 8 और यहोवा ने उनको इस्राएलियों के हाथ में कर दिया, इसलिये उन्हों ने उन्हें मार लिया, और बड़े नगर सीदोन और मि पोतमैत तक, और पूर्व की ओर मिस्पे के मैदान तक उनका पीछा किया; और उनको मारा, और उन में से किसी को जीवित न छोड़ा। 06O 11 9 तब यहोशू ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार उन से किया, अर्थात् उनके घोड़ों के सुम की नस कटवाई, और उनके रथ आग में जलाकर भस्म कर दिए।। 06O 11 10 उस समय यहोशू ने घूमकर हासोर को जो पहिले उन सब राज्यों में मुख्य नगर था ले लिया, और उसके राजा को तलवार से मार डाला। 06O 11 11 और जितने प्राणी उस में थे उन सभों को उन्हों ने तलवार से मारकर सत्यानाश किया; और किसी प्राणी को जीवित न छोड़ा, और हासोर को यहोशू ने आग लगाकर फुंकवा दिया। 06O 11 12 और उन सब नगरों को उनके सब राजाओं समेत यहोशू ने ले लिया, और यहोवा के दास मूसा की आज्ञा के अनुसार उनको तलवार से घात करके सत्यानाश किया। 06O 11 13 परन्तु हासोर को छोड़कर, जिसे यहोशू ने फुंकवा दिया, इस्राएल ने और किसी नगर को जो अपने टीले पर बसा था नहीं जलायां 06O 11 14 और इन नगरों के पशु और इनकी सारी लूट को इस्राएलियों ने अपना कर लिया; परन्तु मनुष्यों को उन्हों ने तलवार से मार डाला, यहां तक उनको सत्यानाश कर डाला कि एक भी प्राणी को जीवित नहीं छोड़ा गया। 06O 11 15 जो आज्ञा यहोवा ने अपने दास मूसा को दी थी उसी के अनुसार मूसा ने यहोशू को आज्ञा दी थी, और ठीक वैसा ही यहोशू ने किया भी; जो जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी उन में से यहोशू ने कोई भी पूरी किए बिना न छोड़ी।। 06O 11 16 तब यहोशू ने उस सारे देश को, अर्थात् पहाड़ी देश, और सारे दक्खिनी देश, और कुल गोशेन देश, और नीचे के देश, अराबा, और इस्राएल के पहाड़ी देश, और उसके नीचे वाले देश को, 06O 11 17 हालाक नाम पहाड़ से ले, जो सेईर की चढ़ाई पर है, बालगाद तक, जो लबानोन के मैदान में हेर्मोन पर्वत के नीचे है, जितने देश हैं उन सब को जीत लिया और उन देशों के सारे राजाओं को पकड़कर मार डाला। 06O 11 18 उन सब राजाओं से युद्ध करते करते यहोशू को बहुत दिन लग गए। 06O 11 19 गिबोन के निवासी हिव्वियों को छोड़ और किसी नगर के लोगों ने इस्राएलियों से मेल न किया; और सब नगरों को उन्हों ने लड़ लड़कर जीत लिया। 06O 11 20 क्योंकि यहोवा की जो मनसा थी, कि अपनी उस आज्ञा के अनुसार जो उस ने मूसा को दी थी उन पर कुछ भी दया न करे; वरन सत्यानाश कर डाले, इस कारण उस ने उनके मन ऐसे कठोर कर दिए, कि उन्हों ने इस्राएलियों का साम्हना करके उन से युद्ध किया।। 06O 11 21 उस समय यहोशू ने पहाड़ी देश में आकर हेब्रोन, दबीर, अनाब, वरन यहूदा और इस्राएल दोनों के सारे पहाड़ी देश में रहनेवाले अनाकियों को नाश किया; यहोशू ने नगरों समेत उन्हें सत्यानाश कर डाला। 06O 11 22 इस्राएलियों के देश में कोई अनाकी न रह गया; केवल अज्जा, गत, और अशदोद में कोई कोई रह गए। 06O 11 23 जैसा यहोवा ने मूसा से कहा था, वैसा ही यहोशू ने वह सारा देश ले लिया; और उसे इस्राएल के गोत्रों और कुलों के अनुसार बांट करके उन्हें दे दिया। और देश को लड़ाई से शान्ति मिली।। 06O 12 1 यरदन पार सूर्योदय की ओर, अर्थात् अर्नोन नाले से लेकर हेर्मोन पर्वत तक के देश, और सारे पूर्वी अराबा के जिन राजाओं को इस्राएलियों ने मारकर उनके देश को अपने अधिकार में कर लिया था ये हैं; 06O 12 2 एमोरियों का हेशबोनवासी राजा सीहोन, जो अर्नोन नाले के किनारे के अरोएर से लेकर, और उसी नाले के बीच के नगर को छोड़कर यब्बोक नदी तक, जो अम्मोनियों का सिवाना है, आधे गिलाद पर, 06O 12 3 और किन्नेरेत नाम ताल से लेकर बेत्यशीमोत से होकर अराबा के ताल तक, जो खारा ताल भी कहलाता है, पूर्व की ओर के अराबा, और दक्खिन की ओर पिसगा की सलामी के नीचे नीचे के देश पर प्रभुता रखता था। 06O 12 4 फिर बचे हुए रपाइयों में से बाशान के राजा ओग का देश था, जो अशतारोत और एेंर्द्रई में रहा करता था, 06O 12 5 और हेर्मोन पर्वत सलका, और गशूरियों, और माकियों के सिवाने तक कुल बाशान में, और हेशबोन के राजा सीहोन के सिवाने तक आधे गिलाद में भी प्रभुता करता था। 06O 12 6 इस्राएलियों और यहोवा के दास मूसा ने इनको मार लिया; और यहोवा के दास मूसा ने उनका देश रूबेनियों और गादियों और मनश्शे के आधे गोत्रा के लोगों को दे दिया।। 06O 12 7 और यरदन के पश्चिम की ओर, लबानोन के मैदान में के बालगात से लेकर सेईर की चढ़ाई के हालाक पहाड़ तक के देश के जिन राजाओं को यहोशू और इस्राएलियों ने मारकर उनका देश इस्राएलियों के गोत्रों और कुलों के अनुसार भाग करके दे दिया था वे ये हैं, 06O 12 8 हित्ती, और एमोरी, और कनानी, और परिज्जी, और हिव्वी, और यबूसी, जो पहाड़ी देश में, और नीचे के देश में, और अराबा में, और ढालू देश में और जंगल में, और दक्खिनी देश में रहते थे। 06O 12 9 एक, यरीहो का राजा; एक, बेतेल के पास के ऐ का राजा; 06O 12 10 एक, यरूशलेम का राजा; एक, हेब्रोन का राजा; 06O 12 11 एक, यर्मूत का राजा; एक, लाकीश का राजा; 06O 12 12 एक, एग्लोन का राजा; एक, गेजेर का राजा; 06O 12 13 एक, दबीर का राजा; एक, गेदेर का राजा; 06O 12 14 एक, होर्मा का राजा; एक, अराद का राजा; 06O 12 15 एक, लिब्ना का राजा; एक, अदुल्लाम का राजा; 06O 12 16 एक, मक्केदा का राजा; एक, बेतेल का राजा; 06O 12 17 एक, तप्पूह का राजा; एक, हेपेर का राजा; 06O 12 18 एक, अपेक का राजा; एक, लश्शारोन का राजा; 06O 12 19 एक, मदोन का राजा; एक, हासोर का राजा; 06O 12 20 एक, शिम्रोन्मरोन का राजा; एक, अक्षाप का राजा; 06O 12 21 एक, तानाक का राजा; एक, मगिद्दॊ का राजा; 06O 12 22 एक, केदेश का राजा; एक, कर्मैल में के योकनाम का राजा; 06O 12 23 एक, दोर नाम ऊंचे देश में के दोर का राजा; एक, गिलगाल में के गोयीम का राजा; 06O 12 24 और एक, तिर्सा का राजा; इस प्रकार सब राजा इकतीस हुए।। 06O 13 1 यहोशू बूढ़ा और बहुत उम्र का हो गया; और यहोवा ने उस से कहा, तू बूढ़ा और बहुत उम्र का हो गया है, और बहुत देश रह गए हैं, जो इस्राएल के अधिकार में अभी तक नहीं आए। 06O 13 2 ये देश रह गए हैं, अर्थात् पलिश्तियों का सारा प्रान्त, और सारे गशूरी 06O 13 3 (मि के आगे शीहोर से लेकर उत्तर की ओर एक्रोन के सिवाने तक जो कनानियों का भाग गिना जाता है; और पलििितशयों के पांचों सरदार, अर्थात् अज्जा, अशदोद, अशकलोन, गत, और एक्रोन के लोग), और दक्खिनी ओर अव्वी भी, 06O 13 4 फिर अपेक और एमोरियों के सिवाने तक कनानियो का सारा देश और सीदोनियों का मारा नाम देश, 06O 13 5 फिर गवालियों का देश, और सूर्योदय की ओर हेर्मोन पर्वत के नीचे के बालगाद से लेकर हमात की घाटी तक सारा लबानोन, 06O 13 6 फिर लबानोन से लेकर मि पोतमैम तक सीदोनियों के पहाड़ी देश के निवासी। इनको मैं इस्राएलियों के साम्हने से निकाल दूंगा; इतना हो कि तू मेरी आज्ञा के अनुसार चिट्ठी डाल डालकर उनका देश इस्राएल को बांट दे। 06O 13 7 इसलिये तू अब इस देश को नवों गोत्रों और मनश्शे के आधे गोत्रा को उनका भाग होने के लिये बांट दे।। 06O 13 8 इसके साथ रूबेनियों और गादियों को तो वह भाग मिल चुका था, जिसे मूसा ने उन्हें यरदन के पूर्व की ओर दिया था, क्योंकि यहोवा के दास मूसा ने उन्हीं को दिया था, 06O 13 9 अर्थात् अर्नोन नाम नाले के किनारे के अरोएक से लेकर, और उसी नाले के बीच के नगर को छोड़कर दीबोन तक मेदवा के पास का सारा चौरस देश; 06O 13 10 और अम्मोनियों के सिवाने तक हेशबोत में विराजनेवाले एमोरियों के राजा सीहोन के सारे नगर; 06O 13 11 और गिलाद देश, और गशूरियों और माकावासियों का सिवाना, और सारा हेर्मोन पर्वत, और सल्का तक कुल बाशान, 06O 13 12 फिर आशतारोत और एद्रेई में विराजनेवाले उस ओग का सारा राज्य जो रपइशें में से अकेला बच गया था; क्योंकि इन्ही को मूसा ने मारकर उनकी प्रजा को उस देश से निकाल दिया था। 06O 13 13 परन्तु इस्राएलियों ने गशूरियों और माकियों को उनके देश से न निकाला; इसलिये गशूरी और माकी इस्राएलियों के मध्य में आज तक रहते हैं। 06O 13 14 और लेवी के गोत्रियों को उस ने कोई भाग न दिया; क्योंकि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के वचन के अनुसार उसी के हव्य उनके लिये भाग ठहरे हैं। 06O 13 15 मूसा ने रूबेन के गोत्रा को उनके कुलों के अनुसार दिया, 06O 13 16 अर्थात् अर्नोन नाम नाले के किनारे के अरोएर से लेकर और उसी नाले के बीच के नगर को छोड़कर मेदबा के पास का सारा चौरस देश; 06O 13 17 फिर चौरस देश में का हेशबोन और उसके सब गांव; फिर दीबोन, बामोतबाल, बेतबाल्मोन, 06O 13 18 यहसा, कदेमोत, मेपात, 06O 13 19 किर्यातैम, सिबमा, और तराई में के पहाड़ पर बसा हुआ सेरेथश्शहर, 06O 13 20 बेंतपोर, पिसगा की सलामी और बेत्यशीमोत, 06O 13 21 निदान चौरस देश में बसे हुए हेशबोन में विराजनेवाले एमोरियों के उस राजा सीहोन के राज्य के कुल नगर जिन्हें मूसा ने मार लिया था। मूसा ने एवी, रेकेम, सूर, हूर, और रेबा नाम मिस्रान के प्रधानों को भी मार डाला था जो सीहोन के ठहराए हुए हाकिम और उसी देश के निवासी थे। 06O 13 22 और इस्राएलियों ने उनके और मारे हुओं के साथ बोर के पुत्रा भावी कहनेवाले बिलाम को भी तलवार से मार डाला। 06O 13 23 और रूबेनियों का सिवाना यरदन का तीर ठहरा। रूबेनियों का भाग उनके कुलों के अनुसार नगरों और गांवों समेत यही ठहरा।। 06O 13 24 फिर मूसा ने गाद के गोत्रियों को भी कुलों के अनुसार उनका निज भाग करके बांट दिया। 06O 13 25 तब यह ठहरा, अर्थात् याजेर आदि गिलाद के सारे नगर, और रब्बा के साम्हने के अरोएर तक अम्मोनियों का आधा देश, 06O 13 26 और हेशबोन से रामतमिस्पे और बतोनीम तक, और महनैम से दबीर के सिवाने तक, 06O 13 27 और तराई में बेथारम, बेनिम्रा, सुक्कोत, और सापोन, और हेश्बोन के राजा सीहोन के राज्य के बचे हुए भाग, और किन्नेरेत नाम ताल के सिरे तक, यरदन के पूर्व की ओर का वह देश जिसका सिवाना यरदन है। 06O 13 28 गादियों का भाग उनके कुलों के अनुसार नगरों और गांवों समेत यही ठहरा।। 06O 13 29 फिर मूसा ने मनश्शे के आधे गोत्रियों को भी उनका निज भाग कर दिया; वह मनश्शेइयों के आधे गोत्रा का निज भाग उनके कुलों के अनुसार ठहरा। 06O 13 30 वह यह है, अर्थात् महनैम से लेकर बाशान के राजा ओग के राज्य का सब देश, और बाशान में बसी हुई याईर की साठों बस्तियां, 06O 13 31 और गिलाद का आधा भाग, और अश्तारोत, और एद्रेई, जो बाशान में ओग के राज्य के नगर थे, ये मनश्शे के पुत्रा माकीर के वंश का, अर्थात् माकीर के आधे वंश का निज भाग कुलों के अनुसार ठहरे।। 06O 13 32 जो भाग मूसा ने मोआब के अराबा में यरीहो के पास के यरदन के पूर्व की ओर बांट दिए वे ये ही हैं। 06O 13 33 परन्तु लेवी के गोत्रा को मूसा ने कोई भाग न दिया; इस्राएल का परमेश्वर यहोवा ही अपने वचन के अनुसार उनका भाग ठहरा।। 06O 14 1 जो जो भाग इस्राएलियों ने कनान देश में पाए, उन्हें एलीआजर याजक, और नून के पुत्रा यहोशू, और इस्राएली गोत्रों के पूर्वजों के घरानों के मुख्य मुख्य पुरूषों ने उनको दिया वे ये हैं। 06O 14 2 जो आज्ञा यहोवा ने मूसा के द्वारा साढ़े नौ गोत्रों के लिये दी थी, उसके अनुसार उनके भाग चिट्ठी डाल डालकर दिए गए। 06O 14 3 मूसा ने तो अढ़ाई गोत्रों के भाग यरदन पार दिए थे; परन्तु लेवियों को उसने उनके बीच कोई भाग न दिया था। 06O 14 4 यूसुफ के वंश के तो दो गोत्रा हो गए थे, अर्थात् मनश्शे और एप्रैम; और उस देश में लेवियों को कुछ भाग न दिया गया, केवल रहने के नगर, और पशु आदि धन रखने को और चराइयां उनको मिलीं। 06O 14 5 जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी उसके अनुसार इस्राएलियों ने किया; और उन्हों ने देश को बांट लिया।। 06O 14 6 तब यहूदी यहोशू के पास गिलगाल में आए; और कनजी यपुन्ने के पुत्रा कालेब ने उस से कहा, तू जानता होगा कि यहोवा ने कादेशबर्ने में परमेश्वर के जन मूसा से मेरे और तेरे विषय में क्या कहा था। 06O 14 7 जब यहोवा के दास मूसा ने मुझे इस देश का भेद लेने के लिये कादेशबर्ने से भेजा था तब मैं चालीस वर्ष का था; और मैं सच्चे मन से उसके पास सन्देश ले आया। 06O 14 8 और मेरे साथी जो मेरे संग गए थे उन्हों ने तो प्रजा के लोगों को निराश कर दिया, परन्तु मैं ने अपने परमेश्वर यहोवा की पूरी रीति से बात मानी। 06O 14 9 तब उस दिन मूसा ने शपथ खाकर मुझ से कहा, तू ने पूरी रीति से मेरे परमेश्वर यहोवा की बातों का अनुकरण किया है, इस कारण नि:सन्देह जिस भूमि पर तू अपने पांव धर आया है वह सदा के लिये तेरा और तेरे वंश का भाग होगी। 06O 14 10 और अब देख, जब से यहोवा ने मूसा से यह वचन कहा था तब से पैतालीस वर्ष हो चुके हैं, जिन में इस्राएली जंगल में घूमते फिरते रहे; उन में यहोवा ने अपने कहने के अनुसार मुझे जीवित रखा है; और अब मैं पचासी वर्ष का हूं। 06O 14 11 जितना बल मूसा के भेजने के दिन मुझ में था उतना बल अभी तक मुझ में है; युद्ध करने, वा भीतर बाहर आने जाने के लिये जितनी उस समय मुझ मे सामर्थ्य थी उतनी ही अब भी मुझ में सामर्थ्य है। 06O 14 12 इसलिये अब वह पहाड़ी मुझे दे जिसकी चर्चा यहोवा ने उस दिन की थी; तू ने तो उस दिन सुना होगा कि उस में अनाकवंशी रहते हैं, और बड़े बड़े गढ़वाले नगर भी हैं; परन्तु क्या जाने सम्भव है कि यहोवा मेरे संग रहे, और उसके कहने के अनुसार मैं उन्हें उनके देश से निकाल दूं। 06O 14 13 तब यहोशू ने उसको आशीर्वाद दिया; और हेब्रोन को यपुन्ने के पुत्रा कालेब का भाग कर दिया। 06O 14 14 इस कारण हेब्रोन कनजी यपुन्ने के पुत्रा कालेब का भाग आज तक बना है, क्योंकि वह इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का पूरी रीति से अनुगामी था। 06O 14 15 पहिले समय में तो हेब्रोन का नाम किर्यतर्बा था; वह अर्बा अनाकियों में सब से बड़ा पुरूष था। और उस देश को लड़ाई से शान्ति मिली।। 06O 15 1 यहूदियों के गोत्रा का भाग उनके कुलों के अनुसार चिट्ठी डालने से एदोम के सिवाने तक, और दक्खिन की ओर सीन के जंगल तक जो दक्खिनी सिवाने पर है ठहरा। 06O 15 2 उनके भाग का दक्खिनी सिवाना खारे ताल के उस सिरेवाले कोल से आरम्भ हुआ जो दक्खिन की ओर बढ़ा है; 06O 15 3 और वह अक्रब्बीम नाम चढ़ाई की दक्खिनी ओर से निकलकर सीन होते हुए कादेशबर्ने के दक्खिन की ओर को चढ़ गया, फिर हेद्दॊन के पास हो अस्रार को चढ़कर कर्काआ की ओर मुड़ गया, 06O 15 4 वहां से अम्मोन होते हुए वह मि के नाले पर निकला, और उस सिवाने का अन्त समुद्र हुआ। तुम्हारा दक्खिनी सिवाना यही होगा। 06O 15 5 फिर पूर्वी सिवाना यरदन के मुहाने तक खारा ताल ही ठहरा, और उत्तर दिशा का सिवाना यरदन के मुहाने के पास के ताल के कोल से आरम्भ करके, 06O 15 6 बेथोग्ला को चढ़ते हुए बेतराबा की उत्तर की ओर होकर रूबेनी बोहनवाले नाम पत्थर तक चढ़ गया; 06O 15 7 और वही सिवाना आकोर नाम तराई से दबीर की ओर चढ़ गया, और उत्तर होते हुए गिलगाल की ओर झुका जो नाले की दक्खिन ओर की अदुम्मीम की चढ़ाई के साम्हने है; वहां से वह एनशेमेश नाम सोते के पास पहुंचकर एनरोगेल पर निकला; 06O 15 8 फिर वही सिवाना हिन्नोम के पुत्रा की तराई से होकर यबूस (जो यरूशलेम कहलाता है) उसकी दक्खिन अलंग से बढ़ते हुए उस पहाड़ की चोटी पर पहुंचा, जो पश्चिम की ओर हिन्नोम की तराई के साम्हने और रपाईम की तराई के उत्तरवाले सिरे पर है; 06O 15 9 फिर वही सिवाना उस पहाड़ की चोटी से नेप्तोह नाम सोते को चला गया, और एप्रोन पहाड़ के नगरों पर निकला; फिर वहां से बाला को ( जो किर्यत्यारीम भी कहलाता है) पहुंचा; 06O 15 10 फिर वह बाला से पश्चिम की ओर मुड़कर सेईर पहाड़ तक पहुंचा, और यारीम पहाड़ (जो कसालोन भी कहलाता है) उस की उत्तरवाली अलंग से होकर बेतशेमेश को उतर गया, और वहां से तिम्ना पर निकला; 06O 15 11 वहां से वह सिवाना एक्रोन की उत्तरी अलंग के पास होते हुए शिक्करोन गया, और बाला पहाड़ होकर यब्नेल पर निकला; और उस सिवाने का अन्त समुद्र का तट हुआ। 06O 15 12 और पश्चिम का सिवाना महासमुद्र का तीर ठहरा। यहूदियों को जो भाग उनके कुलों के अनुसार मिला उसकी चारों ओर का सिवाना यही हुआ।। 06O 15 13 और यपुन्ने के पुत्रा कालेब को उसने यहोवा की आज्ञा के अनुसार यहूदियों के बीच भाग दिया, अर्थात् किर्यतर्बा जो हेब्रोन भी कहलाता है (वह अर्बा अनाक का पिता था)। 06O 15 14 और कालेब ने वहां से शेशै, अहीमन, और तल्मै नाम, अनाक के तीनों पुत्रों को निकाल दिया। 06O 15 15 फिर वहां से वह दबीर के निवासियों पर चढ़ गया; पूर्वकाल में तो दबीर का नाम किर्यत्सेपेर था। 06O 15 16 और कालेब ने कहा, जो किर्यत्सेपेर को मारकर ले ले उसे मैं अपनी बेटी अकसा को ब्याह दूंगा। 06O 15 17 तब कालेब के भाई ओत्नीएल कनजी ने उसे ले लिया; और उस ने उसे अपनी बेटी अकसा को ब्याह दिया। 06O 15 18 और जब वह उसके पास आई, तब उस ने उसको पिता से कुछ भूमि मांगने को उभारा, फिर वह अपने गदहे पर से उतर पड़ी, और कालेब ने उस से पूछा, तू क्या चाहती है? 06O 15 19 वह बोली, मुझे आशीर्वाद दे; तू ने मुझे दक्खिन देश में की कुछ भूमि तो दी है, मुझे जल के सोते भी दे। तब उस ने ऊपर के सोते, नीचे के सोते, दोनों उसे दिए।। 06O 15 20 यहूदियों के गोत्रा का भाग तो उनके कुलों के अनुसार यही ठहरा।। 06O 15 21 और यहूदियों के गोत्रा के किनारे- वाले नगर दक्खिन देश में एदोम के सिवाने की ओर ये हैं, अर्थात् कबसेल, एदेर, यागूर, 06O 15 22 कीना, दीमोना, अदादा, 06O 15 23 केदेश, हासोर, यित्नान, 06O 15 24 जीप, तेलेम, बालोत, 06O 15 25 हासोर्हदत्ता, करिरयोथेद्दॊन, (जो हासोर भी कहलाता है), 06O 15 26 और अमाम, शमा, मोलादा, 06O 15 27 हसर्गस्रा, हेशमोन, बेत्पालेत, 06O 15 28 हसर्शूआल, बेर्शेबा, बिज्योत्या, 06O 15 29 बाला, इरयीम, एसेम, 06O 15 30 एलतोलद, कसील, होर्मा, 06O 15 31 सिकलग, मदमन्ना, सनसन्ना, 06O 15 32 लबाओत, शिल्हीम, ऐन, और रिम्मोन; ये सब नगर उन्तीस हैं, और इनके गांव भी हैं।। 06O 15 33 और नीचे के देश में ये हैं; अर्थात् एशताओल सोरा, अशना, 06O 15 34 जानोह, एनगन्नीम, तप्पूह, एनाम, 06O 15 35 यर्मूत, अदुल्लाम, सोको, अजेका, 06O 15 36 शारैम, अदीतैम, गदेरा, और गदेरोतैम; ये सब चौदह नगर हैं, और इनके गांव भी हैं।। 06O 15 37 फिर सनान, हदाशा, मिगदलगाद, 06O 15 38 दिलान, मिस्पे, योक्तेल, 06O 15 39 लाकीश, बोस्कत, एग्लोन, 06O 15 40 कब्बोन, लहमास, कितलीश, 06O 15 41 गदेरोत, बेतदागोन, नामा, और मक्केदा; ये सोलह नगर हैं, और इनके गांव भी हैं।। 06O 15 42 फिर लिब्ना, ऐतेर, आशान, 06O 15 43 यिप्ताह, अशना, नसीब, 06O 15 44 कीला, अकजीब और मारेशा; ये नौ नगर हैं, और इनके गांव भी हैं। 06O 15 45 फिर नगरों और गांवों समेत एक्रोन, 06O 15 46 और एक्रोन से लेकर समुद्र तक, अपने अपने गांवों समेत जितने नगर अशदोद की अलंग पर हैं।। 06O 15 47 फिर अपने अपने नगरों और गावों समेत अशदोद, और अज्जा, वरन मि के नाले तक और महासमुद्र के तीर तक जितने नगर हैं।। 06O 15 48 और पहाड़ी देश में ये हैं; अर्थात् शामीर, यत्तीर, सोको, 06O 15 49 दन्ना, किर्यत्सन्ना (जो दबीर भी कहलाता है), 06O 15 50 अनाब, एशतमो, आनीम, 06O 15 51 गोशेन, होलोन, और गीलो; ये ग्यारह नगर हैं, और इनके गांव भी हैं।। 06O 15 52 फिर अराब, दूमा, एशान, 06O 15 53 यानीम, बेत्तप्पूह, अपेका, 06O 15 54 हुमता, किर्यतर्बा (जो हेब्रोन भी कहलाता है, और सीओर;) ये नौ नगर हैं, और इनके गांव भी हैं।। 06O 15 55 फिर माओन, कर्मेल, जीप, यूता, 06O 15 56 मिज्रेल, योकदाम, जानोह, 06O 15 57 कैन, गिबा, और तिम्ना; ये दस नगर हैं, और इनके गांव भी हैं।। 06O 15 58 फिर हलहूल, बेतसूर, गदोर, 06O 15 59 मरात, बेतनोत, और एलतकोन; ये छ: नगर हैं, और इनके गांव भी हैं।। 06O 15 60 फिर किर्यतबाल (जो किर्यत्बारीम भी कहलाता है), और रब्बा; ये दो नगर हैं, और इनके गांव भी हैं।। 06O 15 61 और जंगल में ये नगर हैं, अर्थात् बेतराबा, मिद्दीन, सकाका; 06O 15 62 निबशान, लोनवाला नगर, और एनगदी, ये छ: नगर हैं, और इनके गांव भी हैं।। 06O 15 63 यरूशलेम के निवासी यबूसियों को यहूदी न निकाल सके; इसलिये आज के दिन तक यबूसी यहूदियों के संग यरूशलेम में रहते हैं।। 06O 16 1 फिर यूसुफ की सन्तान का भाग चिट्ठी डालने से ठहराया गया, उनका सिवाना यरीहो के पास की यरदन नदी से, अर्थात् पूर्ब की ओर यरीहो के जल से आरम्भ होकर उस पहाड़ी देश से होते हुए, जो जंगल में हैं, बेतेल को पहुंचा; 06O 16 2 वहां से वह लूज तक पहुंचा, और एरेकियों के सिवाने होते हुए अतारोत पर जा निकला; 06O 16 3 और पश्चिम की ओर यपलेतियों के सिवाने से उतरकर फिर नीचेवाले बेथोरोन के सिवाने से होकर गेजेर को पहुंचा, और समुद्र पर निकला। 06O 16 4 तब मनश्शे और एप्रैम नाम यूसुफ के दोनों पुत्रों की सन्तान ने अपना अपना भाग लिया। 06O 16 5 एप्रैमियों का सिवाना उनके कुलों के अनुसार यह ठहरा; अर्थात् उनके भाग का सिवाना पूर्व से आरम्भ होकर अत्रोतदार से होते हुए ऊपर वाले बेथोरोन तक पहुंचा; 06O 16 6 और उत्तरी सिवाना पश्चिम की ओर के मिकमतात से आरम्भ होकर पूर्व की ओर मुड़कर तानतशीलो को पहुंचा, और उसके पास से होते हुए यानोह तक पहुंचा; 06O 16 7 फिर यानोह से वह अतारोत और नारा को उतरता हुआ यरीहो के पास होकर यरदन पर निकला। 06O 16 8 फिर वही सिवाना तप्पूह से निकलकर, और पश्चिम की ओर जाकर, काना के नाले तक होकर समुद्र पर निकला। एप्रैमियों के गोत्रा का भाग उनके कुलों के अनुसार यही ठहरा। 06O 16 9 और मनश्शेइयों के भाग के बीच भी कई एक नगर अपने अपने गांवों समेत एप्रैमियों के लिये अलग किये गए। 06O 16 10 परन्तु जो कनानी गेजेर में बसे थे उनको एप्रैमियों ने वहां से नहीं निकाला; इसलिये वे कनानी उनके बीच आज के दिन तक बसे हैं, और बेगारी में दास के समान काम करते हैं।। 06O 17 1 फिर यूसुफ के जेठे मनश्शे के गोत्रा का भाग चिट्ठी डालने से यह ठहरा। मनश्शे का जेठा पुत्रा गिलाद का पिता माकीर योद्धा था, इस कारण उसके वंश को गिलाद और बाशान मिला। 06O 17 2 इसलिये यह भाग दूसरे मनश्शेइशें के लिये उनके कुलों के अनुसार ठहरा, अर्थात् अबीएजेर, हेलेक, असीएल, शेकेम, हेपेर, और शमीदा; जो अपने अपने कुलों के अनुसार यूसुफ के पुत्रा मनश्शे के वंश में के पुरूष थे, उनके अलग अलग वंशों के लिये ठहरा। 06O 17 3 परन्तु हेपेर जो गिलाद का पुत्रा, माकीर का पोता, और मनश्शे का परपोता था, उसके पुत्रा सलोफाद के बेटे नहीं, बेटियां ही हुईं; और उनके नाम महला, नोआ, होग्ला, मिलका, और तिर्सा हैं। 06O 17 4 तब वे एलीआज़र याजक, नून के पुत्रा यहोशू, और प्रधानों के पास जाकर कहने लगीं, यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी, कि वह हम को हमारे भाइयों के बीच भाग दे। तो यहोशू ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार उन्हें उनके चाचाओं के बीच भाग दिया। 06O 17 5 तब मनश्शे को, यरदन पार गिलाद देश और बाशान को छोड़, दस भाग मिले; 06O 17 6 क्योंकि मनश्शेइयों के बीच में मनश्शेई स्त्रियों को भी भाग मिला। और दूसरे मनश्शेइयों को गिलाद देश मिला। 06O 17 7 और मनश्शे का सिवाना आशेर से लेकर मिकमतात तक पहुंचा, जो शकेम के साम्हने है; फिर वह दक्खिन की ओर बढ़कर एनतप्पूह के निवासियों तक पहुंचा। 06O 17 8 तप्पूह की भूमि तो मनश्शे को मिली, परन्तु तप्पूह नगर जो मनश्शे के सिवाने पर बसा है वह एप्रैमियों का ठहरा। 06O 17 9 फिर वहां से वह सिवाना काना के नाले तक उतरके उसके दक्खिन की ओर तक पहुंच गया; ये नगर य पि मनश्शे के सिवाने पर बसा है वह एप्रैमियों का ठहरा। 06O 17 10 दक्खिन की ओर का देश तो एप्रैम को और उत्तर की ओर का मनश्शे को मिला, और उसका सिवाना समुद्र ठहरा; और वे उत्तर की ओर आशेर से और पूर्व की ओर इस्साकर से जा मिले। 06O 17 11 और मनश्शे की, इस्साकार और आशेर अपने अपने नगरों समेत बेतशान, यिबलाम, और अपने नगरों समेत तानाक कि निवासी, और अपने नगरों समेत मगिद्दॊ के निवासी, ये तीनों जो ऊंचे स्थानों पर बसे हैं मिले। 06O 17 12 परन्तु मनश्शेई उन नगरों के निवासियों को उन में से नहीं निकाल सके; इसलिये वे कनानी उस देश में बरियाई से बसे ही रहे। 06O 17 13 तौभी जब इस्राएली सामर्थी हो गए, तब कनानियों से बेगारी तो कराने लगे, परन्तु उनको पूरी रीति से निकाल बाहर न किया।। 06O 17 14 यूसुफ की सन्तान यहोशू से कहने लगी, हम तो गिनती में बहुत हैं, क्योंकि अब तक यहोवा हमें आशीष ही देता आया है, फिर तू ने हमारे भाग के लिये चिट्ठी डालकर क्यों एक ही अंश दिया है? 06O 17 15 यहोशू ने उन से कहा, यदि तुम गिनती में बहुत हो, और एप्रैम का पहाड़ी देश तुम्हारे लिये छोटा हो, तो परिज्जयों और रपाइयों का देश जो जंगल है उसमें जाकर पेड़ों को काट डालो। 06O 17 16 यूसुफ की सन्तान ने कहा, वह पहाड़ी देश हमारे लिये छोटा है; और क्या बेतसान और उसके नगरों में रहनेवाले, क्या यिज्रेल की तराई में रहेनवाले, जितने कनानी नीचे के देश में रहते हैं, उन सभों के पास लोहे के रथ हैं। 06O 17 17 फिर यहोशू ने, क्या एप्रैमी क्या मनश्शेई, अर्थात् यूसुफ के सारे घराने से कहा, हां तुम लोग तो गिनती में बहुत हो, और तुम्हारी बड़ी सामर्थ भी है, इसलिये तुम को केवल एक ही भाग न मिलेगा; 06O 17 18 पहाड़ी देश भी तुम्हारा हो जाएगा; क्योंकि वह जंगल तो है, परन्तु उसके पेड़ काट डालो, तब उसके आस पास का देश भी तुम्हारा हो जाएगा; क्योंकि चाहे कनानी सामर्थी हों, और उनके पास लोहे के रथ भी हों, तौभी तुम उन्हें वहां से निकाल सकोगे।। 06O 18 1 फिर इस्राएलियों को सारी मण्डली ने शीलो में इकट्ठी होकर वहां मिलापवाले तम्बू को खड़ा किया; क्योंकि देश उनके वश में आ गया था। 06O 18 2 और इस्राएलियों में से सात गोत्रों के लोग अपना अपना भाग बिना पाये रह गए थे। 06O 18 3 तब यहोशू ने इस्राएलियों से कहा, जो देश तुम्हारे पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें दिया है, उसे अपने अधिकार में कर लेने में तुम कब तक ढिलाई करते रहोगे? 06O 18 4 अब प्रति गोत्रा के पीछे तीन मनुष्य ठहरा लो, और मैं उन्हें इसलिये भेजूंगा कि वे चलकर देश में घूमें फिरें, और अपने अपने गोत्रा के भाग के प्रयोजन के अनुसार उसका हाल लिख लिखकर मेरे पास लौट आएं। 06O 18 5 और वे देश के सात भाग लिखें, यहूदी तो दक्खिन की ओर अपने भाग में, और यूसुफ के घराने के लोग उत्तर की ओर अपने भाग में रहें। 06O 18 6 और तुम देश के सात भाग लिखकर मेरे पास ले आओ; और मैं यहां तुम्हारे लिये अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने चिट्ठी डालूंगा। 06O 18 7 और लेवियों का तुम्हारे मध्य में कोई भाग न होगा, क्योंकि यहोवा का दिया हुआ याजकपद ही उनका भाग है; और गाद, रूबेन, और मनश्शे के आधे गोत्रा के लोग यरदन के पूर्व की ओर यहोवा के दास मूसा का दिया हुआ अपना अपना भाग पा चुके हैं। 06O 18 8 तो वे पुरूष उठकर चल दिए; और जो उस देश का हाल लिखने को चले उन्हें यहोशू ने यह आज्ञा दी, कि जाकर देश में घूमो फिरो, और उसका हाल लिखकर मेरे पास लौट आओ; और मैं यहां शिलों में यहोवा के साम्हने तुम्हारे लिये चिट्ठी डालूंगा। 06O 18 9 तब वे पुरूष चल दिए, और उस देश में घूमें, और उसके नगरों के सात भाग करके उनका हाल पुस्तक में लिखकर शीलो की छावनी में यहोशू के पास आए। 06O 18 10 तब यहोशू ने शीलों में यहोवा के साम्हने उनके लिये चिटि्ठयां डालीं; और वहीं यहोशू ने इस्राएलियों को उनके भागों के अनुसार देश बांट दिया।। 06O 18 11 और बिन्यामीनियों के गोत्रा की चिट्ठी उनके कुलों के अनुसार निकली, और उनका भाग यहूदियों और यूसुफियों के बीच में पड़ा। 06O 18 12 और उनका उत्तरी सिवाना यरदन से आरम्भ हुआ, और यरीहो की उत्तर अलंग से चढ़ते हुए पश्चिम की ओर पहाड़ी देश में होकर बेतावेन के जंगल में निकला; 06O 18 13 वहां से वह लूज को पहुंचा (जो बेतेल भी कहलाता है), और लूज की दक्खिन अलंग से होते हुए निचले बेथोरोन की दक्खिन ओर के पहाड़ के पास हो अत्रोतस्रार को उतर गया। 06O 18 14 फिर पश्चिमी सिवाना मुड़के बेथोरोन के साम्हने और उसकी दक्खिन ओर के पहाड़ से होते हुए किर्यतबाल नाम यहूदियों के एक नगर पर निकला (जो किर्यत्यारीम भी कहलाता है); पश्चिम का सिवाना यही ठहरा। 06O 18 15 फिर दक्खिन अलंग का सिवाना पश्चिम से आरम्भ होकर किर्यत्यारीम के सिरे से निकलकर नेप्तोह के सोते पर पहुंचा; 06O 18 16 और उस पहाड़ के सिरे पर उतरा, जो हिन्नोम के पुत्रा की तराई के साम्हने और रपाईम नाम तराई की उत्तर ओर है; वहां से वह हिन्नोम की तराई में, अर्थात् यबूस की दक्खिन अलंग होकर एनरोगेल को उतरा; 06O 18 17 वहां से वह उत्तर की ओर मुड़कर एनशेमेश को निकलकर उस गलीलोत की ओर गया, जो अदुम्मीम की चढ़ाई के साम्हने है, फिर वहां से वह रूबेन के पुत्रा बोहन के पत्थर तक उतर गया; 06O 18 18 वहां से वह उत्तर की ओर जाकर अराबा के साम्हने के पहाड़ की अलंग से होते हुए अराबा को उतरा; 06O 18 19 वहां से वह सिवाना बेथोग्ला की उत्तर अलंग से जाकर खारे ताल की उत्तर ओर के कोल में यरदन के मुहाने पर निकला; दक्खिन का सिवाना यही ठहरा। 06O 18 20 और पूर्व की ओर का सिवाना यरदन ही ठहरा। बिन्यामीनियों का भाग, चारों ओर के सिवानों सहित, उनके कुलों के अनुसार, यही ठहरा। 06O 18 21 और बिन्यामीनियों के गोत्रा को उनके कुलों के अनुसार ये नगर मिले, अर्थात् यरीहो, बेथोग्ला, एमेक्कसीस, 06O 18 22 बेतराबा, समारैम, बेतेल, 06O 18 23 अव्वीम, पारा, ओप्रा, 06O 18 24 कपरम्मोनी, ओप्नी और गेबा; ये बारह नगर और इनके गांव मिले। 06O 18 25 फिर गिबोन, रामा, बेरोत, 06O 18 26 मिस्पे, कपीरा, मोसा, 06O 18 27 रेकेम, यिर्पेल, तरला, 06O 18 28 सेला, एलेप, यबूस (जो यरूशलेम भी कहलाता है), गिबल और किर्यत; ये चौदह नगर और इनके गांव उन्हें मिले। बिन्यामीनियों का भाग उनके कुलों के अनुसार यही ठहरा।। 06O 19 1 दूसरी चिट्ठी शमौन के नाम पर, अर्थात् शिमोनियों के कुलों के अनुसार उनके गोत्रा के नाम पर निकली; और उनका भाग यहूदियों के भाग के बीच में ठहरा। 06O 19 2 उनके भाग में ये नगर हैं, अर्थात् बेर्शेबा, शेबा, मोलादा, 06O 19 3 हसर्शूआल, बाला, एसेम, 06O 19 4 एलतोलद, बतूल, होर्मा, 06O 19 5 बेतलबाओत, और शारूहेन; ये तेरह नगर और इनके गांव उन्हें मिले। 06O 19 6 बेतलबाओत, और शारूहेन; ये तेरह नगर और इनके गांव उन्हें मिले। 06O 19 7 फिर ऐन, रिम्मोन, ऐतेर, और आशान, ये चार नगर गांवों समेत; 06O 19 8 और बालत्बेर जो दिक्खन देश का रामा भी कहलाता है, वहां तक इन नगरों के चारों ओर के सब गांव भी उन्हें मिले। शिमानियों के गोत्रा का भाग उनके कुलों के अनुसार यही ठहरा। 06O 19 9 शिमोनियों का भाग तो यहूदियों के अंश में से दिया गया; क्योंकि यहूदियों का भाग उनके लिये बहुत था, इस कारण शिमोनियों का भाग उन्हीं के भाग के बीच ठहरा।। 06O 19 10 तीसरी चिट्ठी जबूलूनियों के कुलों के अनुसार उनके नाम पर निकली। और उनके भाग का सिवाना सारीद तक पहुंचा; 06O 19 11 और उनका सिवाना पश्चिम की ओर मरला को चढ़कर दब्बेशेत को पहुंचा; और योकनाम के साम्हने के नाले तक पहुंच गया; 06O 19 12 फिर सारीद से वह सूर्योदय की ओर मुड़कर किसलोत्ताबोर के सिवाने तक पंहुचा, और वहां से बढ़ते बढ़ते दाबरत में निकला, और यापी की ओर जा निकला; 06O 19 13 वहां से वह पूर्व की ओर आगे बढ़कर गथेपेर और इत्कासीन को गया, और उस रिम्मोन में निकला जो नेआ तक फैला हुआ है; 06O 19 14 वहां से वह सिवाना उसके उत्तर की ओर से मुड़कर हन्नातोन पर पहुंचा, और यिप्तहेल की तराई में जा निकला; 06O 19 15 कत्तात, नहलाल, शिभ्रोन, यिदला, और बेतलेहम; ये बारह नगर उनके गांवों समेत उसी भाग के ठहरे। 06O 19 16 जबूलूनियों का भाग उनके कुलों के अनुसार यही ठहरा; और उस में अपने अपने गांवों समेत ये ही नगर हैं।। 06O 19 17 चौथी चिट्ठी इस्साकारियों के कुलों के अनुसार उनके नाम पर निकली। 06O 19 18 और उनका सिवाना यिज्रेल, कसुल्लोत, शूनेम 06O 19 19 हपारैम, शीओन, अनाहरत, 06O 19 20 रब्बीत, किश्योत, एबेस, 06O 19 21 रेमेत, एनगन्नीम, एनहस्रा, और बेत्पस्सेस तक पहुंचा। 06O 19 22 फिर वह सिवाना ताबोर- शहसूमा और बेतशेमेश तक पहुंचा, और उनका सिवाना यरदन नदी पर जा निकला; इस प्रकार उनको सोलह नगर अपने अपने गांवों समेत मिले। 06O 19 23 कुलों के अनुसार इस्साकारियों के गोत्रा का भाग नगरों और गांवों समेत यही ठहरा।। 06O 19 24 पांचवीं चिट्ठी आशेरियों के गोत्रा के कुलों के अनुसार उनके नाम पर निकली। 06O 19 25 उनके सिवाने में हेल्कत, हली, बेतेन, अक्षाप, 06O 19 26 अलाम्मेल्लेक, अमाद, और मिशाल थे; और वह पश्चिम की ओर कार्म्मेल तक और शाहोर्लिब्नात तक पहुंचा; 06O 19 27 फिर वह सूर्योदय की ओर मुड़कर बेतदागोन को गया, और जबलून के भाग तक, और यिप्तहेल की तराई में उत्तर की ओर होकर बेतेमेक और नीएल तक पहुंचा और उत्तर की ओर जाकर काबूल पर निकला, 06O 19 28 और वह एब्रोन, रहोब, हम्मोन, और काना से होकर बड़े सीदोन को पहुंचा; 06O 19 29 वहां से वह सिवाना मुड़कर रामा से होते हुए सोन नाम गढ़वाले नगर तक चला गया; फिर सिवाना होसा की ओर मुड़कर और अकजीब के पास के देश में होकर समुद्र पर निकला, 06O 19 30 06O 19 31 उम्मा, अपेक, और रहोब भी उनके भाग में ठहरे; इस प्रकार बाईस नगर अपने अपने गांवों समेत उनको मिले। 06O 19 32 कुलों के अनुसार आशेरियों के गोत्रा का भाग नगरों और गांवों समेत यही ठहरा।। 06O 19 33 छठवीं चिट्ठी नप्तालियों के कुलों के अनुसार उनके नाम पर निकली। 06O 19 34 और उनका सिवाना हेलेप से, और सानन्नीम में के बांज वृक्ष से, अदामीनेकेब और यब्नेल से होकर, और लक्कूम को जाकर यरदन पर निकला; 06O 19 35 वहां से वह सिवाना पश्चिम की ओर मुड़कर अजनोत्ताबोर को गया, और वहां से हुक्कोक को गया, और दक्खिन, और जबूलून के भाग तक, और पश्चिम की ओर आशेर के भाग तक, और सूर्योदय की ओर यहूदा के भाग के पास की यरदन नदी पर पहुंचा। 06O 19 36 और उनके गढ़वाले नगर ये हैं, अर्थात् सिद्दीम, सेर, हम्मत, रक्कत, किन्नेरेत, 06O 19 37 अदामा, रामा, हासोर, 06O 19 38 केदेश, एद्रेई, एन्हासेर, 06O 19 39 यिरोन, मिगदलेल, होरेम, बेतनात, और बेतशेमेश; ये उन्नीस नगर गांवों समेत उनको मिले। 06O 19 40 कुलों के अुनसार नप्तालियों के गोत्रा का भाग नगरों और उनके गांवों समेत यही ठहरा।। 06O 19 41 सातवीं चिट्ठी कुलों के अनुसार दानियों के गोत्रा के नाम पर निकली। 06O 19 42 और उनके भाग के सिवाने में सोरा, एशताओल, ईरशमेश, 06O 19 43 शालब्बीन, अरयालोन, यितला, 06O 19 44 एलोन, तिम्ना, एक्रोन, 06O 19 45 एलतके, गिब्बतोन, बालात, 06O 19 46 यहूद, बनेबराक, गत्रिम्मोन, 06O 19 47 मेयर्कोन, और रक्कोन ठहरे, और यापो के साम्हने का सिवाना भी उनका था। 06O 19 48 और दानियों का भाग इस से अधिक हो गया, अर्थात् दानी लेशेम पर चढ़कर उस से लड़े, और उसे लेकर तलवार से मार डाला, और उसको अपने अधिकार में करके उस में बस गए, और अपने मूलपुरूष के नाम पर लेशेम का नाम दान रखा। 06O 19 49 कुलों के अुनसार दानियों के गोत्रा का भाग नगरों और गांवों समेत यही ठहरा।। 06O 19 50 जब देश का बांटा जाना सिवानों के अनुसार निपट गया, तब इस्राएलियों ने नून के पुत्रा यहोशू को भी अपने बीच में एक भाग दिया। 06O 19 51 यहोवा के कहने के अनुसार उन्हों ने उसको उसका मांगा हुआ नगर दिया, यह एप्रैम के पहाड़ी देश में का विम्नत्सेरह है; और वह उस नगर को बसाकर उस में रहने लगा।। 06O 19 52 जो जो भाग एलीआजर याजक, और नून के पुत्रा यहोशू, और इस्राएलियों के गोत्रों के घरानों के पूर्वजों के मुख्य मुख्य पुरूषों ने शीलो में, मिलापवाले तम्बू के द्वार पर, यहोवा के साम्हने चिट्ठी डाल डालके बांट दिए वे ये ही हैं। निदान उन्हों ने देश विभाजन का काम निपटा दिया।। 06O 20 1 फिर यहोवा ने यहोशू से कहा, 06O 20 2 इस्राएलियों से यह कह, कि मैं ने मूसा के द्वारा तुम से शरण नगरों की जो चर्चा की थी उसके अनुसार उनको ठहरा लो, 06O 20 3 जिस से जो कोई भूल से बिना जाने किसी को मार डाले, वह उन में से किसी में भाग जाए; इसलिये वे नगर खून के पलटा लेनेवाले से बचने के लिये तुम्हारे शरणस्थान ठहरें। 06O 20 4 वह उन नगरों में से किसी को भाग जाए, और उस नगर के फाटक में से खड़ा होकर उसके पुरनियों को अपना मुक मा कह सुनाए; और वे उसको अपने नगर में अपने पास टिका लें, और उसे कोई स्थान दें, जिस में वह उनके साथ रहे। 06O 20 5 और यदि खून का पलटा लेनेवाला उसका पीछा करे, तो वे यह जानकर कि उस ने अपने पड़ोसी को बिना जाने, और पहिले उस से बिना बैर रखे मारा, उस खूनी को उसके हाथ में न दें। 06O 20 7 और उन्हों ने नप्ताली के पहाड़ी देश में गलील के केदेश को, और एप्रैम के पहाड़ी देश में शकेम को, और यहूदा के पहाड़ी देश में किरर्यतर्बा को, (जो हेब्रोन भी कहलाता है) पवित्रा ठहराया। 06O 20 8 और यरीहो के पास के यरदन के पूर्व की ओर उन्हों ने रूबेन के गोत्रा के भाग में बसेरे को, जो जंगल में चौरस भूमि पर बसा हुआ है, और गाद के गोत्रा के भाग में गिलाद के रमोत को, और मनश्शे के गोत्रा के भाग में बाशान के गालान को ठहराया। 06O 20 9 सारे इस्राएलियों के लिये, और उन के बीच रहनेवाले परदेशियों के लिये भी, जो नगर इस मनसा से ठहराए गए कि जो कोई किसी प्राणी को भूल से मार डाले वह उन में से किसी में भाग जाए, और जब तक न्याय के लिये मण्डली के साम्हने खड़ा न हो, तब तक खून का पलटा लेनेवाला उसे मार डालने न पाए, वे यह ही हैं।। 06O 21 1 तब लेवियों के पूर्वजों के घरानों के मुख्य मुख्य पुरूष एलीआज़र याजक, और नून के पुत्रा यहोशू, और इस्राएली गोत्रों के पूर्वजों के घरानों के मुख्य मुख्य पुरूषों के पास आकर 06O 21 2 कनान देश के शीलो नगर में कहने लगे, यहोवा ने मूसा से हमें बसने के लिये नगर, और हमारे पशुओं के लिये उन्हीं नगरों की चराईयां भी देने की आज्ञा दिलाई थी। 06O 21 3 तब इस्राएलियों ने यहोवा के कहने के अनुसार अपने अपने भाग में से लेवियों को चराईयों समेत ये नगर दिए।। 06O 21 4 और कहतियों के कुलों के नाम पर चिट्ठी निकली। इसलिये लेवियों में से हारून याजक के वंश को यहूदी, शिमोन, और बिन्यामीन के गोत्रों के भागों में से तेरह नगर मिले।। 06O 21 5 और बाकी कहातियों को एप्रैम के गोत्रा के कुलों, और दान के गोत्रा, और मनश्शे के आधे गोत्रा के भागों में से चिट्ठी डाल डालकर दस नगर दिए गए।। 06O 21 6 और गेर्शोनियों को इस्साकार के गोत्रा के कुलों, और आशेर, और नप्ताली के गोत्रों के भागों में से, और मनश्शे के उस आधे गोत्रा के भागों में से भी जो बाशान में था चिट्ठी डाल डालकर तेरह नगर दिए गए।। 06O 21 7 और कुलों के अनुसार मरारियों को रूबेन, गाद, और जबूलून के गोत्रों के भागों में से बारह नगर दिए गए।। 06O 21 8 जो आज्ञा यहोवा ने मूसा से दिलाई भी उसके अनुसार इस्राएलियों ने लेवियों को चराइयों समेत ये नगर चिट्ठी डाल डालकर दिए। 06O 21 9 उन्हों ने यहूदियों और शिमोनियों के गोत्रों के भागों में से ये नगर जिनके नाम लिखे हैं दिए; 06O 21 10 ये नगर लेवीय कहाती कुलों में से हारून के वंश के लिये थे; क्योंकि पहिली चिट्ठी उन्हीं के नाम पर निकली थी। 06O 21 11 अर्थात् उन्हों ने उन को यहूदा के पहाड़ी देश में चारों ओर की चराइयों समेत किर्यतर्बा नगर दे दिया, जो अनाक के पिता अर्बा के नाम पर कहलाया और हेब्रोन भी कहलाता है। 06O 21 12 परन्तु उस नगर के खेत और उसके गांव उन्हों ने यपुन्ने के पुत्रा कालेब को उसकी निज भूमि करके दे दिए।। 06O 21 13 तब उन्हों ने हारून याजक के वंश को चराइयों समेत खूनी के शरण नगर हेब्रोन, और अपनी अपनी चराइयों समेत लिब्ना, 06O 21 14 यत्तीर, एशतमो, 06O 21 15 होलोन, दबीर, ऐन, 06O 21 16 युत्ता और बेतशेमेश दिए; इस प्रकार उन दोनों गोत्रों के भागों में से नौ नगर दिए गए। 06O 21 17 और बिन्यामीन के गोत्रा के भाग में से अपनी अपनी चराइयों समेत ये चार नगर दिए गए, अर्थात्गिबोन, गेबा, 06O 21 18 अनातोत और अल्मोन 06O 21 19 इस प्रकार हारूनवंशी याजकों को तेरह नगर और उनकी चराईयां मिली।। 06O 21 20 फिर बाकी कहाती लेवियों के कुलों के भाग के नगर चिट्ठी डाल डालकर एप्रैम के गोत्रा के भाग में से दिए गए। 06O 21 21 अर्थात् उनको चराइयों समेत एप्रैम के पहाड़ी देश में खूनी शरण लेने का शकेम नगर दिया गया, फिर अपनी अपनी चराइयों समेत गेजेर, 06O 21 22 किबसैम, और बेथोरोन; ये चार नगर दिए गए। 06O 21 23 और दान के गोत्रा के भाग में से अपनी अपनी चराइयों समेत, एलतके, गिब्बतोन, 06O 21 24 अरयालोन, और गत्रिम्मोन; ये चार नगर दिए गए। 06O 21 25 और मनश्शे के आधे गोत्रा के भाग में से अपनी अपनी चराइयों समेत तानाक और गत्रिम्मोन; ये दो नगर दिए गए। 06O 21 26 इस प्रकार बाकी कहातियों के कुलों के सब नगर चराइयों समेत दस ठहरे।। 06O 21 27 फिर लेवियों के कुलों में के गेर्शोनियों को मनश्शे के आधे गोत्रा के भाग में से अपनी अपनी चराइयों समेत खूनी के शरण नगर बाशान का गोलान और बेशतरा; ये दो नगर दिए गए। 06O 21 28 और इस्साकार के गोत्रा के भाग में से अपनी अपनी चराइयों समेत किश्योन, दाबरत, 06O 21 29 यर्मूत, और एनगन्नीम; ये चार नगर दिए गए। 06O 21 30 और आशेर के गोत्रा के भाग में से अपनी अपनी चराइयों समेत मिशाल, अब्दोन, 06O 21 31 हेल्कात, और रहोब; ये चार नगर दिए गए। 06O 21 32 और नप्ताली के गोत्रा के भाग में से अपनी अपनी चराइयों समेत खूनी के शरण नगर गलील का केदेश, फिर हम्मोतदोर, और कर्तान; ये तीन नगर दिए गए। 06O 21 33 गेर्शोनियों के कुलों के अनुसार उनके सब नगर अपनी अपनी चराइयों समेत तेरह ठहरे।। 06O 21 34 फिर बाकी लेवियों, अर्थात् मरारियों के कुलों को जबूलून के गोत्रा के भाग में से अपनी अपनी चराइयों समेत योक्नाम, कर्ता, 06O 21 35 दिम्ना, और नहलाल; ये चार नगर दिए गए। 06O 21 36 और रूबेन के गोत्रा के भाग में से अपनी अपनी चराइयों समेत बेसेर, यहसा, 06O 21 37 केदेमोत, और मेपात; ये चार नगर दिए गए। 06O 21 38 और गाद के गोत्रा के भाग में से अपनी अपनी चराइयों समेत खूनी के शरण नगर गिलाद में का रामोत, फिर महनैम, 06O 21 39 हेशबोन, और याजेर, जो सब मिलाकर चार नगर हैं दिए गए। 06O 21 40 लेवियों के बाकी कुलों अर्थात् मरारियों के कुलों के अनुसार उनके सब नगर ये ही ठहरे, इस प्रकार उनको बारह नगर चिट्ठी डाल डालकर दिए गए।। 06O 21 41 इस्राएलियों की निज भूमि के बीच लेवियों के सब नगर अपनी अपनी चराइयों समेत अड़तालीस ठहरे। 06O 21 42 ये सब नगर अपने अपने चारों ओर की चराइयों के साथ ठहरे; इन सब नगरों की यही दशा थी।। 06O 21 43 इस प्रकार यहोवा ने इस्राएलियों को वह सारा देश दिया, जिसे उस ने उनके पूर्वजों से शपथ खाकर देने को कहा था; और वे उसके अधिकारी होकर उस में बस गए। 06O 21 44 और यहोवा ने उन सब बातों के अनुसार, जो उस ने उनके पूर्वजों से शपथ खाकर कही थीं, उन्हें चारों ओर से विश्राम दिया; और उनके शत्रुओं में से कोई भी उनके साम्हने टिक न सका; यहोवा ने उन सभों को उनके वश में कर दिया। 06O 21 45 जितनी भलाई की बातें यहोवा ने इस्राएल के घराने से कही थीं उन में से कोई भी न छूटी; सब की सब पूरी हुई।। 06O 22 1 उस समय यहोशू ने रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्रियों को बुलवाकर कहा, 06O 22 2 जो जो आज्ञा यहोवा के दास मूसा ने तुम्हें दी थीं वे सब तुम ने मानी हैं, और जो जो आज्ञा मैं ने तुम्हें दी हैं उन सभों को भी तुम ने माना है; 06O 22 3 तुम ने अपने भाइयों को इस मु त में आज के दिन तक नहीं छोड़ा, परन्तु अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा तुम ने चौकसी से मानी है। 06O 22 4 और अब तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हारे भाइयों को अपने वचन के अनुसार विश्राम दिया है; इसलिये अब तुम लौटकर अपने अपने डेरों को, और अपनी अपनी निज भूमि में, जिसे यहोवा के दास मूसा ने यरदन पार तुम्हें दिया है चले जाओ। 06O 22 5 केवल इस बात की पूरी चौकसी करना कि जो जो आज्ञा और व्यवस्था यहोवा के दास मूसा ने तुम को दी है उसको मानकर अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखो, उसके सारे मार्गों पर चलो, उसकी आज्ञाएं मानों, उसकी भंक्ति मे लौलीन रहो, और अपने सारे मन और सारे प्राण से उसकी सेवा करो। 06O 22 6 तब यहोशू ने उन्हें आशीर्वाद देकर विदा किया; और वे अपने अपने डेरे को चले गए।। 06O 22 7 मनश्शे के आधे गोत्रियों को मूसा ने बासान में भाग दिया था; परन्तु दूसरे आधे गोत्रा को यहोशू ने उनके भाइयों के बीच यरदन के पश्चिम की ओर भाग दिया। उनको जब यहोशू ने विदा किया कि अपने अपने डेरे को जाएं, 06O 22 8 तब उनको भी आशीर्वाद देकर कहा, बहुत से पशु, और चांदी, सोना, पीतल, लोहा, और बहुत से वस्त्रा और बहुत धन- सम्पित लिए हुए अपने अपने डेरे को लौट आओ; और अपने शत्रुओं की लूट की सम्पत्ति को अपने भाइयों के संग बांट लेना।। 06O 22 9 तब रूबेनी, गादी, और मनश्शे के आधे गोत्री इस्राएलियों के पास से, अर्थात् कनान देश के शीलो नगर से, अपनी गिलाद नाम निज भूमि में, जो मूसा से दिलाई हुई, यहोवा की आज्ञा के अनुसार उनकी निज भूमि हो गई थी, जाने की मनसा से लौट गए। 06O 22 10 और जब रूबेनी, गादी, और मनश्शे के आधे गोत्री यरदन की उस तराई में पहुंचे जो कनान देश में है, तब उन्हों ने वहां देखने के योग्य एक बड़ी वेदी बनाई। 06O 22 11 और इसका समाचार इस्राएलियों के सुनने में आया, कि रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्रियों ने कनान देश के साम्हने यरदन की तराई में, अर्थात् उसके उस पार जो इस्राएलियों का है, एक वेदी बनाई है। 06O 22 12 जब इस्राएलियों ने यह सुना, तब इस्राएलियों की सारी मण्डली उन से लड़ने के लिये चढ़ाई करने को शीलो में इकट्ठी हुई।। 06O 22 13 तब इस्राएलियों ने रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्रियों के पास गिलाद देश में एलीआज़र याजक के पुत्रा पीनहास को, 06O 22 14 और उसके संग दस प्रधानों को, अर्थात् इस्राएल के एक एक गोत्रा में से पूर्वजों के घरानों के एक एक प्रधान को भेजा, और वे इस्राएल के हजारों में अपने अपने पूर्वजों के घरानों के मुख्य पुरूष थे। 06O 22 15 वे गिलाद देश में रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्रियों के पास जाकर कहने लगे, 06O 22 16 यहोवा की सारी मण्डली यह कहती है, कि तुम ने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का यह कैसा विश्वासघात किया; आज जो तुम ने एक वेदी बना ली है, इस में तुम ने उसके पीछे चलना छोड़कर उसके विरूद्ध आज बलवा किया है? 06O 22 17 सुनो, पोर के विषय का अधर्म हमारे लिये कुछ कम था, य पि यहोवा की मण्डली को भारी दण्ड मिला तौभी आज के दिन तक हम उस अधर्म से शुद्ध नहीं हुए; क्या वह तुम्हारी दृष्टि में एक छोटी बात है, 06O 22 18 कि आज तुम यहोवा को त्यागकर उसके पीछे चलना छोड़ देते हो? क्या तुम यहोवा से फिर जाते हो, और कल वह इस्राएल की सारी मण्डली पर क्रोधित होगा। 06O 22 19 परन्तु यदि तुम्हारी निज भूमि अशुद्ध हो, तो पार आकर यहोवा की निज भूमि में, जहां यहोवा का निवास रहता है, हम लोगों के बीच में अपनी अपनी निज भूमि कर लो; परन्तु हमारे परमेश्वर यहोवा की बेदी को छोड़ और कोई वेदी बनाकर न तो यहोवा से बलवा करो, और न हम से। 06O 22 20 देखो, जब जेरह के पुत्रा आकान ने अर्पण की हुई वस्तु के विषय में विश्वासघात किया, तब क्या यहोवा का कोप इस्राएल की पूरी मण्डली पर न भड़का? और उस पुरूष के अधर्म का प्राणदण्ड अकेले उसी को न मिला।। 06O 22 21 तब रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्रियों ने इस्राएल के हजारों के मुख्य पुरूषों को यह उत्तर दिया, 06O 22 22 कि यहोवा जो ईश्वरों का परमेश्वर है, ईश्वरों का परमेश्वर यहोवा इसको जानता है, और इस्राएली भी इसे जान लेंगे, कि यदि यहोवा से फिरके वा उसका विश्वासघात करके हम ने यह काम किया हो, तो तू आज हम को जीवित न छोड़, 06O 22 23 यदि आज के दिन हम ने वेदी को इसलिये बनाया हो कि यहोवा के पीछे चलना छोड़ दें, वा इसलिये कि उस पर होमबलि, अन्नबलि, वा मेलबलि चढ़ाएं, तो यहोवा आप इसका हिसाब ले; 06O 22 24 परन्तु हम ने इसी विचार और मनसा से यह किया है कि कहीं भविष्य में तुम्हारी सन्तान हमारी सन्तान से यह न कहने लगे, कि तुम को इस्राएल के परमेश्वर यहोवा से क्या काम? 06O 22 25 क्योंकि, हे रूबेनियों, हे गादियों, यहोवा ने जो हमारे और तुम्हारे बीच में यरदन को ह ठहरा दिया है, इसलिये यहोवा में तुम्हारा कोई भाग नहीं है। ऐसा कहकर तुम्हारी सन्तान हमारी सन्तान में से यहोवा का भय छुड़ा देगी। 06O 22 26 इसीलिये हम ने कहा, आओ, हम अपने लिये एक वेदी बना लें, वह होमबलि वा मेलबलि के लिये नहीं, 06O 22 27 परन्तु इसलिये कि हमारे और तुम्हारे, और हमारे बाद हमारे और तुम्हारे वंश के बीच में साक्षी का काम दे; इसलिये कि हम होमबलि, मेलबलि, और बलिदान चढ़ाकर यहोवा के सम्मुख उसकी उपासना करें; और भविष्य में तुम्हारी सन्तान हमारी सन्तान से यह न कहने पाए, कि यहोवा में तुम्हारा कोई भाग नहीं। 06O 22 28 इसलिये हम ने कहा, कि जब वे लोग भविष्य में हम से वा हमारे वंश से यों कहने लेगें, तब हम उन से कहेंगे, कि यहोवा के वेदी के नमूने पर बनी हुई इस वेदी को देखो, जिसे हमारे पुरखाओं ने होमबलि वा मेलबलि के लिये नहीं बनाया; परन्तु इसलिये बनाया था कि हमारे और तुम्हारे बीच में साक्षी का काम दे। 06O 22 29 यह हम से दूर रहे कि यहोवा से फिरकर आज उसके पीछे चलना छोड़ दें, और अपने परमेश्वर यहोवा की उस वेदी को छोड़कर जो उसके निवास के साम्हने है होमबलि, और अन्नबलि, वा मेलबलि के लिये दूसरी वेदी बनाएं।। 06O 22 30 रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्रियों की इन बातों को सुनकर पीनहास याजक और उसके संग मण्डली के प्रधान, जो इस्राएल के हजारों के मुख्य पुरूष थे, वे अति प्रसन्न हुए। 06O 22 31 और एलीआजर याजक के पुत्रा पीनहास ने रूबेनियों, गादियों, और मनश्शेइयों से कहा, तुम ने जो यहोवा का ऐसा विश्वासघात नहीं किया, इस से आज हम ने यह जान लिया कि यहोवा हमारे बीच में है: और तुम लोगों ने इस्राएलियों को यहोवा के हाथ से बचाया है। 06O 22 32 तब एलीआज़र याजक का पुत्रा पीनहास प्रधानों समेत रूबेनियों और गादियों के पास से गिलाद होते हुए कनान देश में इस्राएलियों के पास लौट गया: और यह वृतान्त उनको कह सुनाया। 06O 22 33 तब इस्राएली प्रसन्न हुए; और परमेश्वर को धन्य कहा, और रूबेनियों और गादियों से लड़ने और उनके रहने का देश उजाड़ने के लिये चढ़ाई करने की चर्चा फिर न की। 06O 22 34 और रूबेनियों और गादियों ने यह कहकर, कि यह वेदी हमारे और उनके मध्य में इस बात का साक्षी ठहरी है, कि यहोवा ही परमेश्वर है: उस वेदी का नाम एद रखा।। 06O 23 1 इसके बहुत दिनों के बाद, जब यहोवा ने इस्राएलियों को उनके चारों ओर के शत्रुओं से विश्राम दिया, और यहोशू बूढ़ा और बहुत आयु का हो गया, 06O 23 2 तब यहोशू सब इस्राएलियों को, अर्थात् पुरनियों, मुख्य पुरूषों, न्यायियों, और सरदारों को बुलवाकर कहने लगा, मैं तो अब बूढ़ा और बहुत आयु का हो गया हूं; 06O 23 3 और तुम ने देखा कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हारे निमित्त इन सब जातियों से क्या क्या किया है, क्योंकि जो तुम्हारी ओर लड़ता आया है वह तुम्हारा परमेश्वर यहोवा है। 06O 23 4 देखो, मैं ने इन बची हुई जातियों को चिट्ठी डाल डालकर तुम्हारे गोत्रों का भाग कर दिया है; और यरदन से लेकर सूर्यास्त की ओर के बड़े समुद्र तक रहनेवाली उन सब जातियों को भी ऐसा ही दिया है, जिनको मैं ने काट डाला है। 06O 23 5 और तुम्हारा परमेश्वर यहोवा उनको तुम्हारे साम्हने से उनके देश से निकाल देगा; और तुम अपने परमेश्वर यहोवा के वचन के अनुसार उनके देश के अधिकारी हो जाओगे। 06O 23 6 इसलिये बहुत हियाव बान्धकर, जो कुछ मूसा की व्यवस्था की पुस्तक में लिखा है उसके पूरा करने में चौकसी करना, उस से न तो दाहिने मुड़ना और न बाएं। 06O 23 7 ये जो जातियां तुम्हारे बीच रह गई हैं इनके बीच न जाना, और न इनके देवताओं के नामों की चर्चा करना, और न उनकी शपथ खिलाना, और न उनकी उपासना करना, और न उनको दण्डवत् करना, 06O 23 8 परन्तु जैसे आज के दिन तक तुम अपने परमेश्वर यहोवा की भक्ति में लवलीन रहते हो, वैसे ही रहा करना। 06O 23 9 यहोवा ने तुम्हारे साम्हने से बड़ी बड़ी और बलवन्त जतियां निकाली हैं; और तुम्हारे साम्हने आज के दिन तक कोई ठहर नहीं सका। 06O 23 10 तुम में से एक मनुष्य हजार मनुष्यों को भगाएगा, क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा अपने वचन के अनुसार तुम्हारी ओर से लड़ता है। 06O 23 11 इसलिये अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखने की पूरी चौकसी करना। 06O 23 12 क्योंकि यदि तुम किसी रीति यहोवा से फिरकर इन जातियों के बाकी लोगों से मिलने लगो जो तुम्हारे बीच बचे हुए रहते थें, और इन से ब्याह शादी करके इनके साथ समधियाना रिश्ता जोड़ो, 06O 23 13 तो निश्चय जान लो कि आगे को तुम्हारा परमेश्वर यहोवा इन जातियों को तुम्हारे सामहने से नहीं निकालेगा; और ये तुम्हारे लिये जाल और फंदे, और तुम्हारे पांजरों के लिये कोड़े, और तुम्हारी आंखों में कांटे ठहरेगी, और अन्त में तुम इस अच्छी भूमि पर से जो तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें दी है नष्ट हो जाओगे। 06O 23 14 सुनो, मैं तो अब सब संसारियों की गति पर जानेवाला हूं, और तुम सब अपने अपने हृदय और मन में जानते हो, कि जितनी भलाई की बातें हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमारे विषय में कहीं उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही। 06O 23 15 तो जैसे तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की कही हुई सब भलाई की बातें तुम पर घटी है, वैसे ही यहोवा विपत्ति की सब बातें भी तुम पर घटाते घटाते तुम को इस अच्छी भूमि के ऊपर से, जिसे तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें दिया है, सत्यानाश कर डालेगा। 06O 23 16 जब तुम उस वाचा को, जिसे तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को आज्ञा देकर अपने साथ बन्घाया है, उल्लंघन करके पराये देवताओं की उपासना और उनको दण्डवत् करने लगो, तब यहोवा का कोप तुम पर भड़केगा, और तुम इस अच्छे देश में से जिसे उस ने तुम को दिया है शीघ्र नाश जो जाओगे।। 06O 24 1 फिर यहोशू ने इस्राएल के सब गोत्रों को शकेम में इकट्ठा किया, और इस्राएल के वृद्ध लोगों, और मुख्य पुरूषों, और न्यायियों, और सरदारों को बुलवाया; और वे परमेश्वर के साम्हने उपस्थित हुए। 06O 24 2 तब यहोशू ने उन सब लोगों से कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा इस प्रकार कहता है, कि प्राचीन काल में इब्राहीम और नाहोर का पिता तेरह आदि, तुम्हारे पुरखा परात महानद के उस पार रहते हुए दूसरे देवताओं की उपासना करते थे। 06O 24 3 और मैं ने तुम्हारे मूलपुरूष इब्राहीम को महानद के उस पार से ले आकर कनान देश के सब स्थानों में फिराया, और उसका वंश बढ़ाया। और उसे इसहाक को दिया; 06O 24 4 फिर मैं ने इसहाक को याकूब और एसाव दिया। और एसाव को मैं ने सेईर नाम पहाड़ी देश दिया कि वह उसका अधिकारी हो, परन्तु याकूब बेटों- पोतों समेत मि को गया। 06O 24 5 फिर मैं ने मूसा और हारून को भेजकर उन सब कामों के द्वारा जो मैं ने मि में किए उस देश को मारा; और उसके बाद तुम को निकाल लाया। 06O 24 6 और मैं तुम्हारे पुरखाओं को मि में से निकाल लाया, और तुम समुद्र के पास पहुंचे; और मिस्त्रियों ने रथ और सवारों को संग लेकर लाल समुद्र तक तुम्हारा पीछा किया। 06O 24 7 और जब तुम ने यहोवा की दोहाई दी तब उस ने तुम्हारे और मिस्त्रियों के बीच में अन्धियारा कर दिया, और उन पर समुद्र को बहाकर उनको डुबा दिया; और जो कुछ मैं ने मि में किया उसे तुम लोगों ने अपनी आंखों से देखा; फिर तुम बहुत दिन तक जंगल में रहे। 06O 24 8 तब मैं तुम को उन एमोरियों के देश में ले आया, जो यरदन के उस पार बसे थे; और वे तुम से लड़े और मैं ने उन्हें तुम्हारे वश में कर दिया, और तुम उनके देश के अधिकारी हो गए, और मैं ने उनको तुम्हारे साम्हने से सत्यानाश कर डाला। 06O 24 9 फिर मोआब के राजा सिप्पोर का पुत्रा बालाक उठकर इस्राएल से लड़ा; और तुम्हें शाप देने के लिये बोर के पुत्रा बिलाम को बुलवा भेजा, 06O 24 10 परन्तु मैं ने बिलाम की सुनने के लिये नाहीं की; वह तुम को आशीष ही आशीष देता गया; इस प्रकार मैं ने तुम को उसके हाथ से बचाया। 06O 24 11 तब तुम यरदन पार होकर यरीहो के पास आए, और जब यरीहो के लोग, और एमोरी, परिज्जी, कनानी, हित्ती, गिर्गाशी, हिब्बी, और यबूसी तुम से लड़े, तब मैं ने उन्हें तुम्हारे वश में कर दिया। 06O 24 12 और मैं ने तुम्हारे आगे बर्रों को भेजा, और उन्हों ने एमोरियों के दोनों राजाओं को तुम्हारे साम्हने से भगा दिया; देखो, यह तुम्हारी तलवार वा धनुष का काम नहीं हुआ। 06O 24 13 फिर मैं ने तुम्हें ऐसा देश दिया जिस में तुम ने परिश्रम न किया था, और ऐसे नगर भी दिए हैं जिन्हें तुम ने न बसाया था, और तुम उन में बसे हो; और जिन दाख और जलपाई के बगीचों के फल तुम खाते हो उन्हें तुम ने नहीं लगाया था। 06O 24 14 इसलिये अब यहोवा का भय मानकर उसकी सेवा खराई और सच्चाई से करो; और जिन देवताओं की सेवा तुम्हारे पुरखा महानद के उस पार और मि में करते थे, उन्हें दूर करके यहोवा की सेवा करो। 06O 24 15 और यदि यहोवा की सेवा करनी तुम्हें बुरी लगे, तो आज चुन लो कि तुम किस की सेवा करोगे, चाहे उन देवताओं की जिनकी सेवा तुम्हारे पुरखा महानद के उस पार करते थे, और चाहे एमोरियों के देवताओं की सेवा करो जिनके देश में तुम रहते हो; परन्तु मैं तो अपने घराने समेत यहोवा की सेवा नित करूंगा। 06O 24 16 तब लोगों ने उत्तर दिया, यहोवा को त्यागकर दूसरे देवताओं की सेवा करनी हम से दूर रहे; 06O 24 17 क्योंकि हमारा परमेश्वर यहोवा वही है जो हम को और हमारे पुरखाओं को दासत्व के घर, अर्थात् मि देश से निकाल ले आया, और हमारे देखते बड़े बड़े आश्चर्य कर्म किए, और जिस मार्ग पर और जितनी जातियों के मध्य में से हम चले आते थे उन में हमारी रक्षा की; 06O 24 18 और हमारे साम्हने से इस देश में रहनेवाली एमोरी आदि सब जातियों को निकाल दिया है; इसलिये हम भी यहोवा की सेवा करेंगे, क्योंकि हमारा परमेश्वर वही है। 06O 24 19 यहोशू ने लोगों से कहा, तुम से यहोवा की सेवा नहीं हो सकती; क्योंकि वह पवित्रा परमेश्वर है; वह जलन रखनेवाला ईश्वर है; वह तुम्हारे अपराध और पाप क्षमा न करेगा। 06O 24 20 यदि तुम यहोवा को त्यागकर पराए देवताओं की सेवा करने लगोगे, तो य पि वह तुम्हारा भला करता आया है तौभी वह फिरकर तुम्हारी हानि करेगा और तुम्हारा अन्त भी कर डालेगा। 06O 24 21 लोगों ने यहोशू से कहा, नहीं; हम यहोवा ही की सेवा करेंगे। 06O 24 22 यहोशू ने लोगों से कहा, तुम आप ही अपने साक्षी हो कि तुम ने यहोवा की सेवा करनी अंगीकार कर ली है। उन्हों ने कहा, हां, हम साक्षी हैं। 06O 24 23 यहोशू ने कहा, अपने बीच पराए देवताओं को दूर करके अपना अपना मन इस्राएल के परमेश्वर की ओर लगाओ। 06O 24 24 लोगों ने यहोशू से कहा, हम तो अपने परमेश्वर यहोवा ही की सेवा करेंगे, और उसी की बात मानेंगे। 06O 24 25 तब यहोशू ने उसी दिन उन लोगों से वाचा बन्धाई, और शकेम में उनके लिये विधि और नियम ठहराया।। 06O 24 26 यह सारा वृत्तान्त यहोशू ने परमेश्वर की व्यवस्था की पुस्तक में लिख दिया; और एक बड़ा पत्थर चुनकर वहां उस बांजवृक्ष के तले खड़ा किया, जो यहोवा के पवित्रा स्थान में था। 06O 24 27 तब यहोशू ने सब लोगों से कहा, सुनो, यह पत्थर हम लोगों का साक्षी रहेगा, क्योंकि जितने वचन यहोवा ने हम से कहें हैं उन्हें इस ने सुना है; इसलिये यह तुम्हारा साक्षी रहेगा, ऐसा न हो कि तुम अपने परमेश्वर से मुकर जाओ। 06O 24 28 तब यहोशू ने लोगों को अपने अपने निज भाग पर जाने के लिये विदा किया।। 06O 24 29 इन बातों के बाद यहोवा का दास, नून का पुत्रा यहोशू, एक सौ दस वर्ष का होकर मर गया। 06O 24 30 और उसको तिम्नत्सेरह में, जो एप्रैम के पहाड़ी देश में गाश नाम पहाड़ की उत्तर अलंग पर है, उसी के भाग में मिट्टी दी गई। 06O 24 31 और यहोशू के जीवन भर, और जो वृद्ध लोग यहोशू के मरने के बाद जीवित रहे और जानते थे कि यहोवा ने इस्राएल के लिये कैसे कैसे काम किए थे, उनके भी जीवन भर इस्राएली यहोवा ही की सेवा करते रहे। 06O 24 32 फिर यूसुफ की हडि्डयां जिन्हें इस्राएली मि से ले आए थे वे शकेम की भूमि के उस भाग में गाड़ी गईं, जिसे याकूब ने शकेम के पिता हामोर से एक सौ चांदी के सिक्कों में मोल लिया था; इसलिये वह यूसुफ की सन्तान का निज भाग हो गया। 06O 24 33 और हारून का पुत्रा एलीआज़र भी मर गया; और उसको एप्रैम के पहाड़ी देश में उस पहाड़ी पर मिट्टी दी गई, जो उसके पुत्रा पीनहास के नाम पर गिबत्पीनहास कहलाती है और उसको दे दी गई थी।। 07O 1 1 यहोशू के मरने के बाद इस्राएलियों ने यहोवा से पूछा, कि कनानियों के विरूद्ध लड़ने को हमारी ओर से पहिले कौन चढ़ाई करेगा? 07O 1 2 यहोवा ने उत्तर दिया, यहूदा चढ़ाई करेगा; सुनो, मैं ने इस देश को उसके हाथ में दे दिया है। 07O 1 3 तब यहूदा ने अपने भाई शिमोन से कहा, मेरे संग मेरे भाग में आ, कि हम कनानियों से लड़ें; और मैं भी तेरे भाग में जाऊंगा। सो शिमोन उसके संग चला। 07O 1 4 और यहूदा ने चढ़ाई की, और यहोवा ने कनानियों और परिज्जियों को उसके हाथ में कर दिया; तब उन्हों ने बेजेक में उन में से दस हजार पुरूष मार डाले। 07O 1 5 और बेजेक में अदोनीबेजेक को पाकर वे उस से लड़े, और कनानियों और परिज्जियों को मार डाला। 07O 1 6 परन्तु अदोनीबेजेक भागा; तब उन्हों ने उसका पीछा करके उसे पकड़ लिया, और उसके हाथ पांव के अंगूठे काट डाले। 07O 1 7 तब अदोनीबेजेक ने कहा, हाथ पांव के अंगूठे काटे हुए सत्तर राजा मेरी मेज के नीचे टुकड़े बीनते थे; जैसा मैं ने किया था, वैसा ही बदला परमेश्वर ने मुझे दिया है। तब वे उसे यरूशलेम को ले गए और वहां वह मर गया।। 07O 1 8 और यहूदियों ने यरूशलेम से लड़कर उसे ले लिया, और तलवार से उसके निवासियों को मार डाला, और नगर को फूंक दिया। 07O 1 9 और तब यहूदी पहाड़ी देश और दक्खिन देश, और नीचे के देश में रहनेवाले कनानियों से लड़ने को गए। 07O 1 10 और यहूदा ने उन कनानियों पर चढ़ाई की जो हेब्रोन में रहते थे (हेब्रोन का नाम तो पूर्वकाल में किर्यतर्बा था); और उन्हों ने शेशै, अहीमन, और तल्मै को मार डाला। 07O 1 11 वहां से उस ने जाकर दबीर के निवासियों पर चढ़ाई की। (दबीर का नाम तो पूर्वकाल में किर्यत्सेपेर था।) 07O 1 12 तब कालेब ने कहा, जो किर्यत्सेपेर को मारके ले ले उसे मैं अपनी बेटी अकसा को ब्याह दूंगा। 07O 1 13 इस पर कालेब के छोटे भाई कनजी ओत्नीएल ने उसे ले लिया; और उस ने उसे अपनी बेटी अकसा को ब्याह दिया। 07O 1 14 और जब वह ओत्नीएल के पास आई, तब उस ने उसको अपने पिता से कुछ भूमि मांगने को उभारा; फिर वह अपने गदहे पर से उतरी, तब कालेब ने उस से पूछा, तू क्या चाहती है? 07O 1 15 वह उस से बोली मुझे आशीर्वाद दे; तू ने मुझे दक्खिन देश तो दिया है, तो जल के सोते भी दे। इस प्रकार कालेब ने उसको ऊपर और नीचे के दोनों सोते दे दिए।। 07O 1 16 और मूसा के साले, एक केनी मनुष्य के सन्तान, यहूदी के संग खजूर वाले नगर से यहूदा के जंगल में गए जो अराद के दक्खिन की ओर है, और जाकर इस्राएल लोगों के साथ रहने लगे। 07O 1 17 फिर यहूदा ने अपने भाई शिमोन के संग जाकर सपत में रहनेवाले कनानियों को मार लिया, और उस नगर को सत्यानाश कर डाला। इसलिये उस नगर का नाम होर्मा पड़ा। 07O 1 18 और यहूदा ने चारों ओर की भूमि समेत अज्जा, अशकलोन, और एक्रोन को ले लिया। 07O 1 19 और यहोवा यहूदा के साथ रहा, इसलिये उस ने पहाड़ी देश के निवासियों को निकाल दिया; परन्तु तराई के निवासियों के पास लोहे के रथ थे, इसलिये वह उन्हें न निकाल सका। 07O 1 20 और उन्हों ने मूसा के कहने के अनुसार हेब्रोन कालेब को दे दिया: और उस ने वहां से अनाक के तीनों पुत्रों को निकाल दिया। 07O 1 21 और यरूशलेम में रहनेवाले यबूसियों को बिन्यामीनियों ने न निकाला; इसलिये यबूसी आज के दिन तक यरूशलेम में बिन्यामीनियों के संग रहते हैं।। 07O 1 22 फिर यूसुफ के घराने ने बेतेल पर चढ़ाई की; और यहोवा उनके संग था। 07O 1 23 और यूसुफ के घराने ने बेतेल का भेद लेने को लोग भेजे। (और उस नगर का नाम पूर्वकाल में लूज था।) 07O 1 24 और पहरूओं ने एक मनुष्य को उस नगर से निकलते हुए देखा, और उस से कहा, नगर में जाने का मार्ग हमें दिखा, और हम तुझ पर दया करेंगे। 07O 1 25 जब उस ने उन्हें नगर में जाने का मार्ग दिखाया, तब उन्हों ने नगर को तो तलवार से मारा, परन्तु उस मनुष्य को सारे घराने समेत छोड़ दिया। 07O 1 26 उस मनुष्य ने हित्तियों के देश में जाकर एक नगर बसाया, और उसका नाम लूज रखा; और आज के दिन तक उसका नाम वही है।। 07O 1 27 मनश्शे ने अपने अपने गांवों समेत बेतशान, तानाक, दोर, यिबलाम, और मगिद्दॊं के निवासियों को न निकाला; इस प्रकार कनानी उस देश में बसे ही रहे। 07O 1 28 परन्तु जब इस्राएली सामर्थी हुए, तब उन्हों ने कनानियों से बेगारी ली, परन्तु उन्हें पूरी रीति से न निकाला।। 07O 1 29 और एप्रैम ने गेजेर में रहनेवाले कनानियों को न निकाला; इसलिये कनानी गेजेर में उनके बीच में बसे रहे।। 07O 1 30 जबलून ने कित्रोन और नहलोल के निवासियों को न निकाला; इसलिये कनानी उनके बीच में बसे रहे, और उनके वश में हो गए।। 07O 1 31 आशेर ने अक्को, सीदोन, अहलाब, अकजीब, हेलवा, अपीक, और रहोब के निवासियों के बीच में बस गए; क्योंकि उन्हों ने उनको न निकाला था।। 07O 1 32 इसलिये आशेरी लोग देश के निवासी कनानियों के बीच में बस गए; क्योंकि उन्हों ने उनको न निकाला था।। 07O 1 33 नप्ताली ने बेतशेमेश और बेतनात के निवासियों को न निकाला, परन्तु देश के निवासी कनानियों के बीच में बस गए; तौभी बेतशेमेश और बेतनात के लोग उनके वश में हो गए।। 07O 1 34 और एमोरियों ने दानियों को पहाड़ी देश में भगा दिया, और तराई में आने न दिया; 07O 1 35 इसलिये एमोरी हेरेस नाम पहाड़, अरयलोन और शालबीम में बसे ही रहे, तौभी यूसुफ का घराना यहां तक प्रबल हो गया कि वे उनके वश में हो गए। 07O 1 36 और एमोरियों के देश का सिवाना अक्रब्बीम नाम पर्वत की चढ़ाई से आरम्भ करके ऊपर की ओर था।। 07O 2 1 और यहोवा का दूत गिलगाल से बोकीम को जाकर कहने लगा, कि मैं ने तुम को मि से ले आकर इस देश में पहुंचाया है, जिसके विषय में मैं ने तुम्हारे पुरखाओं से शपथ खाई थी। और मैं ने कहा था, कि जो वाचा मैं ने तुम से बान्धी है, उसे मैं कभी न तोडूंगा; 07O 2 2 इसलिये तुम इस देश के निवासियों से वाचा न बान्धना; तुम उनकी वेदियों को ढा देना। परन्तु तुम ने मेरी बात नहीं मानी। तुम ने ऐसा क्यों किया है? 07O 2 3 इसलिये मैं कहता हूं, कि मैं उन लोगों को तुम्हारे साम्हने से न निकालूंगा; और वे तुम्हारे पांजर में कांटे, और उनके देवता तुम्हारे लिये फंदे ठहरेंगे। 07O 2 4 जब यहोवा के दूत ने सारे इस्राएलियों से ये बातें कहीं, तब वे लोग चिल्ला चिल्लाकर रोने लगे। 07O 2 5 और उन्हों ने उस स्थान का नाम बोकीम रखा। और वहां उन्हों ने यहोवा के लिये बलि चढ़ाया।। 07O 2 6 जब यहोशू ने लोगों को विदा किया था, तब इस्राएली देश को अपने अधिकार में कर लेने के लिये अपने अपने निज भाग पर गए। 07O 2 7 और यहोशू के जीवन भर, और उन वृद्ध लोगों के जीवन भर जो यहोशू के मरने के बाद जीवित रहे और देख चुके थे कि यहोवा ने इस्राएल के लिये कैसे कैसे बड़े काम किए हैं, इस्राएली लोग यहोवा की सेवा करते रहे। 07O 2 8 निदान यहोवा का दास नून का पुत्रा यहोशू एक सौ दस वर्ष का होकर मर गया। 07O 2 9 और उसको तिम्नथेरेस में जो एप्रैम के पहाड़ी देश में गाश नाम पहाड़ की उत्तर अलंग पर है, उसी के भाग में मिट्टी दी गई। 07O 2 10 और उस पीढ़ी के सब लोग भी अपने अपने पितरों में मिल गए; तब उसके बाद जो दूसरी पीढ़ी हुई उसके लोग न तो यहोवा को जानते थे और न उस काम को जो उस ने इस्राएल के लिये किया था।। 07O 2 11 इसलिये इस्राएली वह करने लगे जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, और बाल नाम देवताओं की उपासना करने लगे; 07O 2 12 वे अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा को, जो उन्हें मि देश से निकाल लाया था, त्यागकर पराये देवताओं की उपासना करने लगे, और उन्हें दण्डवत् किया; और यहोवा को रिस दिलाई। 07O 2 13 वे यहोवा को त्याग कर के बाल देवताओं और अशतोरेत देवियों की उपासना करने लगे। 07O 2 14 इसलिये यहोवा का कोप इस्राएलियों पर भड़क उठा, और उस ने उनको लुटेरों के हाथ में कर दिया जो उन्हें लूटने लगे; और उस ने उनको चारों ओर के शत्रुओं के आधीन कर दिया; और वे फिर अपने शत्रुओं के साम्हने ठहर न सके। 07O 2 15 जहां कहीं वे बाहर जाते वहां यहोवा का हाथ उनकी बुराई में लगा रहता था, जैसे यहोवा ने उन से कहा था, वरन यहोवा ने शपथ खाई थी; इस प्रकार से बड़े संकट में पड़ गए। 07O 2 16 तौभी यहोवा उनके लिये न्यायी ठहराता था जो उन्हें लूटनेवाले के हाथ से छुड़ाते थे। 07O 2 17 परन्तु वे अपने न्यायियों की भी नहीं मानते थे; वरन व्यभिचारिन की नाईं पराये देवताओं के पीछे चलते और उन्हें दण्डवत् करते थे; उनके पूर्वज जो यहोवा की आज्ञाएं मानते थे, उनकी उस लीक को उन्हों ने शीघ्र ही छोड़ दिया? और उनके अनुसार न किया। 07O 2 18 और जब जब यहोवा उनके लिये न्यायी को ठहराता तब तब वह उस न्यायी के संग रहकर उसके जीवन भर उन्हें शत्रुओं के हाथ से छुड़ाता था; क्योंकि यहोवा उनका कराहना जो अन्धेर और उपद्रव करनेवालों के कारण होता था सुनकर दु:खी था। 07O 2 19 परन्तु जब न्यायी मर जाता, तब वे फिर पराये देवताओं के पीछे चलकर उनकी उपासना करते, और उन्हें दण्डवत् करके अपने पुरखाओं से अधिक बिगड़ जाते थे; और अपने बुरे कामों और हठीली चाल को नहीं छोड़ते थे। 07O 2 20 इसलिये यहोवा का कोप इस्राएल पर भड़क उठा; और उस ने कहा, इस जाति ने उस वाचा को जो मैं ने उनके पूर्वजों से बान्धी थी तोड़ दिया, और मेरी बात नहीं मानी, 07O 2 21 इस कारण जिन जातियों को यहोशू मरते समय छोड़ गया है उन में से मैं अब किसी को उनके साम्हने से न निकालूंगा; 07O 2 22 जिस से उनके द्वारा मैं इस्राएलियों की परीक्षा करूं, कि जैसे उनके पूर्वज मेरे मार्ग पर चलते थे वैसे ही ये भी चलेंगे कि नहीं। 07O 2 23 इसलिये यहोवा ने उन जातियों को एकाएक न निकाला, वरन रहने दिया, और उस ने उन्हें यहोशू के हाथ में भी उनको न सौंपा था।। 07O 3 1 इस्राएलियों में से जितने कनान में की लड़ाईयों में भागी न हुए थे, उन्हें परखने के लिये यहोवा ने इन जातियों को देश में इसलिये रहने दिया; 07O 3 2 कि पीढ़ी पीढ़ी के इस्राएलियों में से जो लड़ाई को पहिले न जानते थे वे सीखें, और जान लें, 07O 3 3 अर्थात् पांचो सरदारों समेत पलिश्तियों, और सब कनानियों, और सीदोनियों, और बालहेर्मोन नाम पहाड़ से लेकर हमात की तराई तक लबानोन पर्वत में रहनेवाले हिव्वियों को। 07O 3 4 ये इसलिये रहने पाए कि उनके द्वारा इस्राएलियों की बात में परीक्षा हो, कि जो आज्ञाएं यहोवा ने मूसा के द्वारा उनके पूर्वजों को दिलाई थीं, उन्हें वे मानेंगे वा नहीं। 07O 3 5 इसलिये इस्राएली कनानियों, हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, हिव्वियों, और यबूसियों के बीच में बस गए; 07O 3 6 तब वे उनकी बेटियां ब्याह में लेने लगे, और अपनी बेटियां उनके बेटों को ब्याह मे देने लगे; और उनके देवताओं की भी उपासना करने लगे।। 07O 3 7 इस प्रकार इस्राएलियों ने यहोवा की दृष्टि में बुरा किया, और अपने परमेश्वर यहोवा को भूलकर बाल नाम देवताओं और अशेरा नाम देवियों की उपासना करने लग गए। 07O 3 8 तब यहोवा का क्रोध इस्राएलियों पर भड़का, और उस ने उनको अरम्नहरैम के राजा कूशत्रिशातैम के अधीन कर दिया; सो इस्राएली आठ वर्ष तक कूशत्रिशातैम के अधीन में रहे। 07O 3 9 तब इस्राएलियों ने यहोवा की दोहाई दी, और उसने इस्राएलियों के लिये कालेब के छोटे भाई ओत्नीएल नाम एक कनजी छुड़ानेवाले को ठहराया, और उस ने उनको छुड़ाया। 07O 3 10 उस में यहोवा का आत्मा समाया, और वह इस्राएलियों का न्यायी बन गया, और लड़ने को निकला, और यहोवा ने अराम के राजा कूशत्रिशातैम को उसके हाथ में कर दिया; और वह कूशत्रिशातैम पर जयवन्त हुआ। 07O 3 11 तब चालीस वर्ष तक देश में शान्ति बनी रही। और उन्हीं दिनों में कन्जी ओत्नीएल मर गया।। 07O 3 12 तब इस्राएलियों ने फिर यहोवा की दृष्टि में बुरा किया; और यहोवा ने मोआब के राजा एग्लोन को इस्राएल पर प्रबल किया, क्योंकि उन्हों ने यहोवा की दृष्टि में बुरा किया था। 07O 3 13 इसलिये उस ने अम्मोनियों और अमालेकियों को अपने पास इकट्ठा किया, और जाकर इस्राएल को मार लिया; और खजूरवाले नगर को अपने वश में कर लिया। 07O 3 14 तब इस्राएली अठारह वर्ष तक मोआब के राजा एग्लोन के अधीन में रहे। 07O 3 15 फिर इस्राएलियों ने यहोवा की दोहाई दी, और उस ने गेरा के पुत्रा एहूद नाम एक बिन्यामीनी को उनका छुड़ानेवाला ठहराया; वह बैहत्था था। इस्राएलियों ने उसी के हाथ से मोआब के राजा एग्लोन के पास कुछ भेंट भेजी। 07O 3 16 एहूद ने हाथ भर लम्बी एक दोधारी तलवार बनवाई थी, और उसको अपने वस्त्रा के नीचे दाहिनी जांघ पर लटका लिया। 07O 3 17 तब वह उस भेंट को मोआब के राजा एग्लोन के पास जो बड़ा मोटा पुरूष था ले गया। 07O 3 18 जब वह भेंट को दे चुका, तब भेंट के लानेवाले को विदा किया। 07O 3 19 परन्तु वह आप गिलगाल के निकट की खुदी हुई मूरतों के पास लौट गया, और एग्लोन के पास कहला भेजा, कि हे राजा, मुझे तुझ से एक भेद की बात कहनी है। तब राजा ने कहा, थोड़ी देर के लिये बाहर जाओ। तब जितने लोग उसके पास उपस्थित थे वे सब बाहर चले गए। 07O 3 20 तब एहूद उसके पास गया; वह तो अपनी एक हवादार अटारी में अकेला बैठा था। एहूद ने कहा, परमेश्वर की ओर से मुझे तुझ से एक बात कहनी है। तब वह गद्दी पर से उठ खड़ा हुआ। 07O 3 21 इतने में एहूद ने अपना बायां हाथ बढ़ाकर अपनी दाहिनी जांघ पर से तलवार खींचकर उसकी तोंद में घुसेड़ दी; 07O 3 22 और फल के पीछे मूठ भी पैठ गई, ओर फल चर्बी में धंसा रहा, क्योंकि उस ने तलवार को उसकी तोंद में से न निकाला; वरन वह उसके आरपार निकल गई। 07O 3 23 तब एहूद छज्जे से निकलकर बाहर गया, और अटारी के किवाड़ खींचकर उसको बन्द करके ताला लगा दिया। 07O 3 24 उसके निकल जाते ही राजा के दास आए, तो क्या देखते हैं, कि अटारी के किवाड़ों में ताला लगा है; इस कारण वे बोले, कि निश्चय वह हवादार कोठरी में लघुशंका करता होगा। 07O 3 25 वे बाट जोहते जोहते लज्जित हो गए; तब यह देखकर कि वह अटारी के किवाड़ नहीं खोलता, उन्हों ने कुंजी लेकर किवाड़ खोले तो क्या देखा, कि उनका स्वामी भूमि पर मरा पड़ा है। 07O 3 26 जब तक वे सोच विचार कर ही रहे थे तब तक एहूद भाग निकला, और खूदी हुई मूरतों की परली ओर होकर सेइरे में जाकर शरण ली। 07O 3 27 वहां पहुंचकर उस ने एप्रैम के पहाड़ी देश में नरसिंगा फूंका; तब इस्राएली उसके संग होकर पहाड़ी देश से उसके पीछे पीछे नीचे गए। 07O 3 28 और उस ने उन से कहा, मेरे पीछे पीछे चले आओ; क्योंकि यहोवा ने तुम्हारे मोआबी शत्रुओं को तुम्हारे हाथ में कर दिया है। तब उन्हों ने उसके पीछे पीछे जाके यरदन के घाटों को जो मोआब देश की ओर है ले लिया, और किसी को उतरने न दिया। 07O 3 29 उस समय उन्हों ने कोई दस हजार मोआबियों को मार डाला; वे सब के सब हृष्ट पुष्ट और शूरवीर थे, परन्तु उन में से एक भी न बचा। 07O 3 30 इस प्रकार उस समय मोआब इस्राएल के हाथ के तले दब गया। तब अस्सी वर्ष तक देश में शान्ति बनी रही।। 07O 3 31 उसके बाद अनात का पुत्रा शमगर हुआ, उस ने छ: सौ पलिश्ती पुरूषों को बैल के पैने से मार डाला; इस कारण वह भी इस्राएल का छुड़ानेवाला हुआ।। 07O 4 1 जब एहूद मर गया तब इस्राएलियों ने फिर यहोवा की दृष्टि में बुरा किया। 07O 4 2 इसलिये यहोवा ने उनको हासोर में विराजनेवाले कनान के राजा याबीन के अधीन में कर दिया, जिसका सेनापति सीसरा था, जो अन्यजातियों की हरोशेत का निवासी था। 07O 4 3 तब इस्राएलियों ने यहोवा की दोहाई दी; क्योंकि सीसरा के पास लोहे के नौ सौ रथ थे, और वह इस्राएलियों पर बीस वर्ष तक बड़ा अन्धेर करता रहा। 07O 4 4 उस समय लप्पीदोत की स्त्री दबोरा जो नबिया थी इस्राएलियों का न्याय करती थी। 07O 4 5 वह एप्रैम के पहाड़ी देश में रामा और बेतेल के बीच में दबोरा के खजूर के तले बैठा करती थी, और इस्राएली उसके पास न्याय के लिये जाया करते थे। 07O 4 6 उस ने अबीनोअम के पुत्रा बाराक को केदेश नप्ताली में से बुलाकर कहा, क्या इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने यह आज्ञा नहीं दी, कि तू जाकर ताबोर पहाड़ पर चढ़ और नप्तालियों और जबूलूनियों में के दस हजार पुरूषों को संग ले जा? 07O 4 7 तब मैं याबीन के सेनापति सीसरा के रथों और भीड़भाड़ समेत कीशोन नदी तक तेरी ओर खींच ले आऊंगा; और उसको तेरे हाथ में कर दूंगा। 07O 4 8 बाराक ने उस से कहा, यदि तू मेरे संग चलेगी तो मैं जाऊंगा, नहीं तो न जाऊंगा। 07O 4 9 उस ने कहा, नि:सन्देह मैं तेरे संग चलूंगी; तौभी यह यात्रा से तेरी तो कुछ बढ़ाई न होगी, क्योंकि यहोवा सीसरा को एक स्त्री के अधीन कर देगा। तब दबोरा उठकर बाराक के संग केदेश को गई। 07O 4 10 तब बाराक ने जबूलून और नप्ताली के लोगों को केदेश में बुलवा लिया; और उसके पीछे दस हजार पुरूष चढ़ गए; और दबोरा उसके संग चढ़ गई। 07O 4 11 हेबेर नाम केनी ने उन केनियों में से, जो मूसा के साले होबाब के वंश के थे, अपने को अलग करके केदेश के पास के सानन्नीम के बांजवृक्ष तक जाकर अपना डेरा वहीं डाला थ। 07O 4 12 जब सीसरा को यह समाचार मिला कि अबीनोअम का पुत्रा बाराक ताबोर पहाड़ पर चढ़ गया है, 07O 4 13 तब सीसरा ने अपने सब रथ, जो लोहे के नौ सौ रथ थे, और अपने संग की सारी सेना को अन्यजातियों के हरोशेत के कीशोन नदी पर बुलवाया। 07O 4 14 तब दबोरा ने बाराक से कहा, उठ! क्योंकि आज वह दिन है जिस में यहोवा सीसरा को तेरे हाथ में कर देगा। क्या यहोवा तेरे आगे नहीं निकला है? इस पर बाराक और उसके पीछे पीछे दस हजार पुरूष ताबोर पहाड़ से उतर पड़े। 07O 4 15 तब यहोवा ने सारे रथों वरन सारी सेना समेत सीसरा को तलवार से बाराक के साम्हने घबरा दिया; और सीसरा रथ पर से उतरके पांव पांव भाग चला। 07O 4 16 और बाराक ने अन्यजातियों के हरोशेत तक रथों और सेना का पीछा किया, और तलवार से सीसरा की सारी सेना नष्ट की गई; और एक भी मनुष्य न बचा।। 07O 4 17 परन्तु सीसरा पांव पांव हेबेर केनी की स्त्री याएल के डेरे को भाग गया; क्योंकि हासोर के राजा याबीन और हेबेर केनी में मेल था। 07O 4 18 तब याएल सीसरा की भेंट के लिये निकलकर उस से कहने लगी, हे मेरे प्रभु, आ, मेरे पास आ, और न डर। तब वह उसके पास डेरे में गया, और उस ने उसके ऊपर कम्बल डाल दिया। 07O 4 19 तब सीसरा ने उस से कहा, मुझे प्यास लगी है, मुझे थोड़ा पानी पिला। तब उस ने दूध की कुप्पी खोलकर उसे दूध पिलाया, और उसको ओढ़ा दिया। 07O 4 20 तब उस ने उस से कहा, डेरे के द्वार पर खड़ी रह, और यदि कोई आकर तुझ से पूछे, कि यहां कोई पुरूष है? तब कहना, कोई भी नहीं। 07O 4 21 इसके बाद हेबेर की स्त्री याएल ने डेरे की एक खूंटी ली, और अपने हाथ में एक हथौड़ा भी लिया, और दबे पांव उसके पास जाकर खूंटी को उसकी कलपटी में ऐसा ठोक दिया कि खूंटी पार होकर भूमि में धंस गई; वह तो थका था ही इसलिये गहरी नींद में सो रहा था। सो वह मर गया। 07O 4 22 जब बाराक सीसरा का पीछा करता हुआ आया, तब याएल उस से भेंट करने के लिये निकली, और कहा, इधर आ, जिसका तू खोजी है उसको मैं तुझे दिखाऊंगी। तब उस ने उसके साथ जाकर क्या देखा; कि सीसरा मरा पड़ा है, और वह खूंटी उसकी कनपटी में गड़ी है। 07O 4 23 इस प्रकार परमेश्वर ने उस दिन कनान के राजा याबीन को इस्राएलियों के साम्हने नीचा दिखाया। 07O 4 24 और इस्राएली कनान के राजा याबीन पर प्रबल होते गए, यहां तक कि उन्हों ने कनान के राजा याबीन को नष्ट कर डाला।। 07O 5 1 उसी दिन दबोरा और अबीनोअम के पुत्रा बाराक ने यह गीत गाया, 07O 5 2 कि इस्राएल के अगुवों ने जो अगुवाई की और प्रजा जो अपनी ही इच्छा से भरती हुई, इसके लिये यहोवा को धन्य कहो! 07O 5 3 हे राजाओ, सुनो; हे अधिपतियों कान लगाओ, मैं आप यहोवा के लिये गीत गाऊंगी; इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का मैं भजन करूंगी।। 07O 5 4 हे यहोवा, जब तू सेईर से निकल चला, जब तू ने एदोम के देश से प्रस्थान किया, तब पृथ्वी डोल उठी, और आकाश टूट पड़ा, बादल से भी जल बरसने लगा।। 07O 5 5 यहोवा के प्रताप से पहाड़, इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के प्रताप से वह सीनै पिघलकर बहने लगा। 07O 5 6 अनात के पुत्रा शमगर के दिनों में, और याएल के दिनों में सड़कें सूनी पड़ी थीं, और बटोही पगदंडियों से चलते थे।। 07O 5 7 जब तक मैं दबोरा न उठी, जब तक मैं इस्राएल में माता होकर न उठी, तब तक गांव सूने पड़े थे।। 07O 5 8 नये नये देवता माने गए, उस समय फाटकों में लड़ाई होती थी। क्या चालीस हजार इस्राएलियों में भी ढ़ाल वा बर्छी कहीं देखने में आती थी? 07O 5 9 मेरा मन इस्राएल के हाकिमों की ओर लगा है, जो प्रजा के बीच में अपनी ही इच्छा से भरती हुए। यहोवा को धन्य कहो।। 07O 5 10 हे उजली गदहियों पर चढ़नेवालो, हे फर्शों पर विराजनेवालो, ध्यान रखो।। 07O 5 11 परघटों के आस पास धनुर्धारियों की बात के कारण, वहां वे यहोवा के धर्ममय कामों का, इस्राएल के लिये उसके धर्ममय कामों का बखान करेंगे। उस समय यहोवा की प्रजा के लोग फाटकों के पस गए।। 07O 5 12 जाग, जाग, हे दबोरा! जाग, जाग, गीत सुना! हे बाराक, उठ, हे अबीनोअम के पुत्रा, अपने बन्धुओं को बन्धुआई में ले चल। 07O 5 13 उस समय थोड़े से रईस प्रजा समेत उतर पड़े; यहोवा शूरवीरों के विरूद्ध मेरे हित उतर आया। 07O 5 14 एप्रैम में से वे आए जिसकी जड़ अमालेक में है; हे बिन्यामीन, तेरे पीछे तेरे दलों में, माकीर में से हाकिम, और जबूलून में से सेनापति दण्ड लिए हुए उतरे; 07O 5 15 और इस्साकार के हाकिम दबोरा के संग हुए, जैसा इस्साकार वैसा ही बाराक भी था; उसके पीछे लगे हुए वे तराई में झपटकर गए। रूबेन की नदियों के पास बड़े बड़े काम मन में ठाने गए।। 07O 5 16 तू चरवाहों का सीटी बजाना सुनने को भेड़शालों के बीच क्यों बैठा रहा? रूबेन की नदियों के पास बड़े बड़े काम सोचे गए।। 07O 5 17 गिलाद यरदन पार रह गया; और दान क्यों जहाजों में रह गया? आशेर समुद्र के तीर पर बैठा रहा, और उसकी खाड़ियों के पास रह गया।। 07O 5 18 जबलून अपने प्राण पर खेलनेवाले लोग ठहरे; नप्ताली भी देश के ऊंचे ऊंचे स्थानों पर वैसा ही ठहरा। 07O 5 19 राजा आकर लड़े, उस समय कनान के राजा मगिद्दॊ के सोतों के पास तानाक में लड़े; पर रूपयों का कुछ लाभ न पाया।। 07O 5 20 आकाश की ओर से भी लड़ाई हुई; वरन ताराओं ने अपने अपने मण्डल से सीसरा से लड़ाई की।। 07O 5 21 कीशोन नदी ने उनको बहा दिया, अर्थात् वही प्राचीन नदी जो कीशोन नदी है। हे मन, हियाव बान्धे आगे बढ़।। 07O 5 22 उस समय घोड़े के खुरों से टाप का शब्द होने लगा, उनके बलिष्ट घोड़ों के कूदने से यह हूआ।। 07O 5 23 यहोवा का दूत कहता है, कि मेरोज को शाप दो, उसके निवासियों को भारी शाप दो, क्योंकि वे यहोवा की सहायता करने को, शूरवीरों के विरूद्ध यहोवा की सहायता करने को न आए।। 07O 5 24 सब स्त्रियों में से केनी हेबेर की स्त्री याएल धन्य ठहरेगी; डेरों में से रहनेवाली सब स्त्रियों में वह धन्य ठहरेगी।। 07O 5 25 सीसरा ने पानी मांगा, उस ने दूध दिया, रईसों के योग्य बर्तन में वह मक्खन ले आई।। 07O 5 26 उस ने अपना हाथ खूंटी की ओर अपना दहिना हाथ बढ़ई के हथौड़े की ओर बढ़ाया; और हथौड़े से सीसरा को मारा, उसके सिर को फोड़ डाला, और उसकी कनपटी को आरपार छेद दिया।। 07O 5 27 उस स्त्री के पांवो पर वह झुका, वह गिरा, वह पड़ा रहा; उस स्त्री के पांवो पर वह झुका, वह गिरा; जहां झुका, वहीं मरा पड़ा रहा।। 07O 5 28 खिड़की में से एक स्त्री झांककर चिल्लाई, सीसरा की माता ने झिलमिली की ओट से पुकारा, कि उसके रथ के आने में इतनी देर क्यों लगी? उसके रथों के पहियों को अबेर क्यों हुई है? 07O 5 29 उसी बुद्धिमान प्रतिष्ठित स्त्रियों ने उसे उत्तर दिया, वरन उस ने अपने आप को इस प्रकार उत्तर दिया, 07O 5 30 कि क्या उन्हों ने लूट पाकर बांट नहीं ली? क्या एक एक पुरूष को एक एक वरन दो दो कुंवारियां; और सीसरा को रंगे हुए वस्त्रा की लूट, वरन बूटे काढ़े हुए रंगीले वस्त्रा की लूट, और लूटे हुओं के गले में दोनों ओर बूटे काढ़े हुए रंगीले वस्त्रा नहीं मिले? 07O 5 31 हे यहोवा, तेरे सब शत्रु ऐसे ही नाश हो जाएं! परन्तु उसके प्रेमी लोग प्रताप के साथ उदय होते हुए सूर्य के समान तेजोमय हों।। फिर देश में चालीस वर्ष तक शान्ति रही।। 07O 6 1 तब इस्राएलियों ने यहोवा की दृष्टि में बुरा किया, इसलिये यहोवा ने उन्हें मिद्यानियों के वश में सात वर्ष कर रखा। 07O 6 2 और मिद्यानी इस्राएलियों पर प्रबल हो गए। मिद्यानियों के डर के मारे इस्राएलियों ने पहाड़ों के गहिरे खड्डों, और गुफाओं, और किलों को अपने निवास बना लिए। 07O 6 3 और जब जब इस्राएली बीज बोते तब तब मिद्यानी और अमालेकी और पूर्वी लोग उनके विरूद्ध चढ़ाई करके 07O 6 4 अज्जा तक छावनी डाल डालकर भूमि की उपज नाश कर डालते थे, और इस्राएलियों के लिये न तो कुछ भोजनवस्तु, और न भेड़- बकरी, और न गाय- बैल, और न गदहा छोड़ते थे। 07O 6 5 क्योंकि वे अपने पशुओं और डोरों को लिए हुए चढ़ाई करते, और टिडि्डयों के दल के समान बहुत आते थे; और उनके ऊंट भी अनगिनत होते थे; और वे देश को उजाड़ने के लिये उस में आया करते थे। 07O 6 6 और मिद्यानियों के कारण इस्राएली बड़ी दुर्दशा में पड़ गए; तब इस्राएलियों ने यहोवा की दोहाई दी।। 07O 6 7 जब इस्राएलियों ने मिद्यानियों के कारण यहोवा की दोहाई दी, 07O 6 8 तब यहोवा ने इस्राएलियों के पास एक नबी को भेजा, जिस ने उन से कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि मैं तुम को मि में से ले आया, और दासत्व के घर से निकाल ले आया; 07O 6 9 और मैं ने तुम को मिस्त्रियों के हाथ से, वरन जितने तुम पर अन्धेर करते थे उन सभों के हाथ से छुड़ाया, और उनको तुम्हारे साम्हने से बरबस निकालकर उनका देश तुम्हें दे दिया; 07O 6 10 और मैं ने तुम से कहा, कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं; एमोरी लोग जिनके देश में तुम रहते हो उनके देवताओं का भय न मानना। परन्तु तुम ने मेरा कहना नहीं माना।। 07O 6 11 फिर यहोवा का दूत आकर उस बांजवृक्ष के तले बैठ गया, जो ओप्रा में अबीएजेरी योआश का था, और उसका पुत्रा गिदोन एक दाखरस के कुण्ड में गेहूं इसलिये झाड़ रहा था कि उसे मिद्यानियों से छिपा रखे। 07O 6 12 उसको यहोवा के दूत ने दर्शन देकर कहा, हे शूरवीर सूरमा, यहोवा तेरे संग है। 07O 6 13 गिदोन ने उस से कहा, हे मेरे प्रभु, बिनती सुन, यदि यहोवा हमारे संग होता, तो हम पर यह सब विपत्ति क्यों पड़ती? और जितने आश्चर्यकर्मों का वर्णन हमारे पुरखा यह कहकर करते थे, कि क्या यहोवा हम को मि से छुड़ा नहीं लाया, वे कहां रहे? अब तो यहोवा ने हम को त्याग दिया, और मिद्यानियों के हाथ कर दिया है। 07O 6 14 तब यहोवा ने उस पर दृष्टि करके कहा, अपनी इसी शक्ति पर जा और तू इस्राएलियों को मिद्यानियों के हाथ से छुड़ाएगा; क्या मैं ने तुझे नहीं भेजा? 07O 6 15 उस ने कहा, हे मेरे प्रभु, बिनती सुन, मैं इस्राएल को क्योंकर छुड़ाऊ? देख, मेरा कुल मनश्शे में सब से कंगाल है, फिर मैं अपने पिता के घराने में सब से छोटा हूं। 07O 6 16 यहोवा ने उस से कहा, निश्चय मैं तेरे संग रहूंगा; सो तू मिद्यानियों को ऐसा मार लेगा जैसा एक मनुष्य को। 07O 6 17 गिदोन ने उस से कहा, यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो मुझे इसका कोई चिन्ह दिखा कि तू ही मुझ से बातें कर रहा है। 07O 6 18 जब तक मैं तेरे पास फिर आकर अपनी भेंट निकालकर तेरे साम्हने न रखूं, तब तक तू यहां से न जा। उस ने कहा, मैं तेरे लौटने तक ठहरा रहूंगा। 07O 6 19 तब गिदोन ने जाकर बकरी का एक बच्चा और एक एपा मैदे की अखमीरी रोटियां तैयार कीं; तब मांस को टोकरी में, और जूस को तसले में रखकर बांजवृक्ष के तले उसके पास ले जाकर दिया। 07O 6 20 परमेश्वर के दूत ने उस से कहा, मांस और अखमीरी रोटियों को लेकर इस चट्टान पर रख दे, और जूस को उण्डेल दे। उस ने ऐसा ही किया। 07O 6 21 तब यहोवा के दूत ने अपने हाथ की लाठी को बढ़ाकर मांस और अखमीरी रोटियों को छूआ; और चट्टान से आग निकली जिस से मांस और अखमीरी रोटियां भस्म हो गई; तब यहोवा का दूत उसकी दृष्टि से अन्तरध्यान हो गया। 07O 6 22 जब गिदोन ने जान लिया कि वह यहोवा का दूत था, तब गिदोन कहने लगा, हाय, प्रभु यहोवा! मैं ने तो यहोवा के दूत को साक्षात देखा है। 07O 6 23 यहोवा ने उस से कहा, तुझे शान्ति मिले; मत डर, तू न मरेगा। 07O 6 24 तब गिदोन ने वहां यहोवा की एक वेदी बनाकर उसका नाम यहोवा शालोम रखा। वह आज के दिन तक अबीएजेरियों के ओप्रा में बनी है। 07O 6 25 फिर उसी रात को यहोवा ने गिदोन से कहा, अपने पिता का जवान बैल, अर्थात् दूसरा सात वर्ष का बैल ले, और बाल की जो वेदी तेरे पिता की है उसे गिरा दे, और जो अशेरा देवी उसके पास है उसे काट डाल; 07O 6 26 और उस दृढ़ स्थान की चोटी पर ठहराई हुई रीति से अपने परमेश्वर यहोवा की एक वेदी बना; तब उस दूसरे बैल को ले, और उस अशेरा की लकड़ी जो तू काट डालेगा जलाकर होमबलि चढ़ा। 07O 6 27 तब गिदोन ने अपने संग दस दासों को लेकर यहोवा के वचन के अनुसार किया; परन्तु अपने पिता के घराने और नगर के लोगों के डर के मारे वह काम दिन को न कर सका, इसलिये रात में किया। 07O 6 28 बिहान को नगर के लोग सवेरे उठकर क्या देखते हैं, कि बाल की वेदी गिरी पड़ी है, और उसके पास की अशेरा कटी पड़ी है, और दूसरा बैल बनाई हुई वेदी पर चढ़ाया हुआ है। 07O 6 29 तब वे आपस में कहने लगे, यह काम किस ने किया? और पूछपाछ और ढूंढ़- ढांढ़ करके वे कहने लगे, कि यह योआश के पुत्रा गिदोन का काम है। 07O 6 30 तब नगर के मनुष्यों ने योआश से कहा, अपने पुत्रा को बाहर ले आ, कि मार डाला जाए, क्योंकि उस ने बाल की वेदी को गिरा दिया है, और उसके पास की अशेरा को भी काट डाला है। 07O 6 31 योआश ने उन सभों से जो उसके साम्हने खड़े हुए थे कहा, क्या तुम बाल के लिये वाद विवाद करोगे? क्या तुम उसे बचाओगे? जो कोई उसके लिये वाद विवाद करे वह मार डाला जाएगा। बिहान तक ठहरे रहो; तब तक यदि वह परमेश्वर हो, तो जिस ने उसकी वेदी गिराई है उस से वह आप ही अपना वाद विवाद करे। 07O 6 32 इसलिये उस दिन गिदोन का नाम यह कहकर यरूब्बाल रखा गया, कि इस ने जो बाल की वेदी गिराई है तो इस पर बाल आप वाद विवाद कर ले।। 07O 6 33 इसके बाद सब मिद्यानी और अमालेकी और पूर्वी इकट्ठे हुए, और पार आकर यिज्रेल की तराई में डेरे डाले। 07O 6 34 तब यहोवा का आत्मा गिदोन में समाया; और उस ने नरसिंगा फूंका, तब अबीएजेरी उसकी सुनने के लिये इकट्ठे हुए। 07O 6 35 फिर उस ने कुल मनश्शे के पास अपने दूत भेजे; और वे भी उसके समीप इकट्ठे हुए। और उस ने आशेर, जबूलून, और नप्ताली के पास भी दूत भेजे; तब वे भी उस से मिलने को चले आए। 07O 6 36 तब गिदोन ने परमेश्वर से कहा, यदि तू अपने वचन के अनुसार इस्राएल को मेरे द्वारा छुड़ाएगा, 07O 6 37 तो सुन, मैं एक भेड़ी की ऊन खलिहान में रखूंगा, और यदि ओस केवल उस ऊन पर पड़े, और उसे छोड़ सारी भूमि सूखी रह जाए, तो मैं जान लूंगा कि तू अपने वचन के अनुसार इस्राएल को मेरे द्वारा छुड़ाएगा। 07O 6 38 और ऐसा ही हुआ। इसलिये जब उस ने बिहान को सबेरे उठकर उस ऊन को दबाकर उस में से ओस निचोड़ी, तब एक कटोरा भर गया। 07O 6 39 फिर गिदोन ने परमेश्वर से कहा, यदि मैं एक बार फिर कहूं, तो तेरा क्रोध मुझ पर न भड़के; मैं इस ऊन से एक बार और भी तेरी परीक्षा करूं, अर्थात् केवल ऊन ही सूखी रहे, और सारी भूमि पर ओस पड़े। 07O 6 40 इस रात को परमशॆवर ने ऐसा ही किया; अर्थात् केवल ऊन ही सूखी रह गई, और सारी भूमि पर ओस पड़ी।। 07O 7 1 तब गिदोन जो यरूब्बाल भी कहलाता है और सब लोग जो उसके संग थे सवेरे उठे, और हरोद नाम सोते के पास अपने डेरे खड़े किए; और मिद्यानियों की छावनी उनकी उत्तरी ओर मोरे नाम पहाड़ी के पास तराई में पड़ी थी।। 07O 7 2 तब यहोवा ने गिदोन से कहा, जो लोग तेरे संग हैं वे इतने हैं कि मैं मिद्यानियों को उनके हाथ नहीं कर सकता, नहीं तो इस्राएल यह कहकर मेरे विरूद्ध अपनी बड़ाई मारने लगे, कि हम अपने ही भुजबल के द्वारा बचे हैं। 07O 7 3 इसलिये तू जाकर लोगों में यह प्रचार करके सुना दे, कि जो कोई डर के मारे थरथराता हो, वह गिलाद पहाड़ से लौटकर चला जाए। तब बाईस हजार लोग लौट गए, और केवल दस हजार रह गए। 07O 7 4 फिर यहोवा ने गिदोन से कहा, अब भी लोग अधिक हैं; उन्हें सोते के पास नीचे ले चल, वहां मैं उन्हें तेरे लिये परखूंगा; और जिस जिसके विषय में मैं तुझ से कहूं, कि यह तेरे संग चले, वह तो तेरे संग चले; और जिस जिसके विषय मे मैं कहूं, कि यह तेरे संग न जाए, वह न जाए। 07O 7 5 तब वह उनको सोते के पास नीचे ले गया; वहां यहोवा ने गिदोन से कहा, जितने कुत्ते की नाई जीभ से पानी चपड़ चपड़ करके पीएं उनको अलग रख; और वैसा ही उन्हें भी जो घुटने टेककर पीएं। 07O 7 6 जिन्हों ने मुंह में हाथ लगा चपड़ चपड़ करके पानी पिया उनकी तो गिनती तीन सौ ठहरी; और बाकी सब लोगों ने घुटने टेककर पानी पिया। 07O 7 7 तब यहोवा ने गिदोन से कहा, इन तीन सौ चपड़ चपड़ करके पीनेवालों के द्वारा मैं तुम को छुड़ाऊंगा, और मिद्यानियों को तेरे हाथ में कर दूंगा; और सब लोग अपने अपने स्थान को लौट जाए। 07O 7 8 तब उन लोगों ने हाथ में सीधा और अपने अपने नरसिंगे लिए; और उस ने इस्राएल के सब पुरूषों को अपने अपने डेरे की ओर भेज दिया, परन्तु उन तीन सौ पुरूषों को अपने पास रख छोड़ा; और मिद्यान की छावनी उसके नीचे तराई में पड़ी थी।। 07O 7 9 उसी रात को यहोवा ने उस से कहा, उठ, छावनी पर चढ़ाई कर; क्योंकि मैं उसे तेरे हाथ कर देता हूं। 07O 7 10 परन्तु यदि तू चढ़ाई करते डरता हो, तो अपने सेवक फूरा को संग लेकर छावनी के पास जाकर सुन, 07O 7 11 कि वे क्या कह रहे है; उसके बाद तुझे उस छावनी पर चढ़ाई करने का हियाव होगा। तब वह अपने सेवक फूरा को संग ले उन हथियार- बन्दों के पास जो छावनी की छोर पर थे उतर गया। 07O 7 12 मिद्यानी और अमालेकी और सब पूर्वी लोग तो टिडि्डयों के समान बहुत से तराई में फैले पड़े थे; और उनके ऊंट समुद्रतीर के बालू के किनकों के समान गिनती से बाहर थे। 07O 7 13 जब गिदोन वहां आया, तब एक जन अपने किसी संगी से अपना स्वप्न यों कह रहा था, कि सुन, मैं ने स्वप्न में क्या देखा है कि जौ की एक रोटी लुढ़कते लुढ़कते मिद्यान की छावनी में आई, और डेरे को ऐसा टक्कर मारा कि वह गिर गया, और उसको ऐसा उलट दिया, कि डेरा गिरा पड़ा रहा। 07O 7 14 उसके संगी ने उत्तर दिया, यह योआश के पुत्रा गिदोन नाम एक इस्राएली पुरूष की तलवार को छोड़ कुछ नहीं है; उसी के हाथ में परमेश्वर ने मिद्यान को सारी छावनी समेत कर दिया है।। 07O 7 15 उस स्वप्न का वर्णन और फल सुनकर गिदोन ने दण्डवत् की; और इस्राएल की छावनी में लौटकर कहा, उठो, यहोवा ने मिद्यानी सेना को तुम्हारे वश में कर दिया है। 07O 7 16 तब उस ने उन तीन सौ पुरूषों के तीन झुण्ड किए, और एक एक पुरूष के हाथ में एक नरसिंगा और खाली घड़ा दिया, और घड़ों के भीतर एक मशाल थी। 07O 7 17 फिर उस ने उन से कहा, मुझे देखो, और वैसा ही करो; सुनो, जब मैं उस छावनी की छोर पर पहुंचूं, तब जैसा मैं करूं वैसा ही तुम भी करना। 07O 7 18 अर्थात् जब मैं और मेरे सब संगी नरसिंगा फूंकें तब तुम भी छावनी की चारों ओर नरसिंगे फूंकना, और ललकारना, कि यहोवा की और गिदोन की तलवार।। 07O 7 19 बीचवाले पहर के आदि में ज्योंही पहरूओं की बदली हो गई थी त्योहीं गिदोन अपने संग के सौ पुरूषों समेत छावनी की छोर पर गया; और नरसिंगे को फूंक दिया और अपने हाथ के घड़ों को तोड़ डाला। 07O 7 20 तब तीनों झुण्डों ने नरसिंगों को फूंका और घड़ों को तोड़ डाला; और अपने अपने बाएं हाथ में मशाल और दहिने हाथ में फूंकने को नरसिंगा लिए हुए चिल्ला उठे, यहोवा की तलवार और गिदोन की तलवार। 07O 7 21 तब वे छावनी के चारों ओर अपने अपने स्थान पर खड़े रहे, और सब सेना के लोग दौड़ने लगे; और उन्हों ने चिल्ला चिल्लाकर उन्हें भगा दिया। 07O 7 22 और उन्हों ने तीन सौ नरसिंगों को फूंका, और यहोवा ने एक एक पुरूष की तलवार उसके संगी पर और सब सेना पर चलवाई; तो सेना के लोग सरेरा की ओर बेतशित्ता तब और तब्बात के पास के आबेलमहोला तक भाग गए। 07O 7 23 तब इस्राएली पुरूष नप्ताली और आशेर और मनश्शे के सारे देश से इकट्ठे होकर मिद्यानियों के पीछे पड़े। 07O 7 24 और गिदोन ने एप्रैम के सब पहाड़ी देश में यह कहने को दूत भेज दिए, कि मिद्यानियों से मुठभेड़ करने को चले आओ, और यरदन नदी के घाटों को बेतबारा तक उन से पहिले अपने वश में कर लो। तब सब एप्रैमी पुरूषों ने इकट्ठे होकर यरदन नदी को बेतबारा तक अपने वश में कर लिया। 07O 7 25 और उन्हों ने ओरेब और जेब नाम मिद्यान के दो हाकिमों को पकड़ा; और ओरेब को ओरेब नाम चट्टान पर, और जेब को जेब नाम दाखरस के कुण्ड पर घात किया; और वे मिद्यानियों के पीछे पड़े; और ओरेब और जेब के सिर यरदन के पार गिदोन के पास ले गए।। 07O 8 1 तब एप्रैमी पुरूषों ने गिदाने से कहा, तू ने हमारे साथ ऐसा बर्ताव क्यों किया है, कि जब तू मिद्यान से लड़ने को चला तब हम को नहीं बुलवाया? सो उन्हों ने उस से बड़ा झगड़ा किया। 07O 8 2 उस ने उन से कहा, मैं ने तुम्हारे समान भला अब किया ही क्या है? क्या एप्रैम की छोड़ी हुई दाख भी अबीएजेर की सब फसल से अच्छी नहीं है? 07O 8 3 तुम्हारे ही हाथों में परमेश्वर ने ओरब और जेब नाम मिद्यान के हाकिमों को कर दिया; तब तुम्हारे बराबर मैं कर ही क्या सका? जब उस ने यह बात कही, तब उनका जी उसकी ओर से ठंड़ा हो गया।। 07O 8 4 तब गिदोन और उसके संग तीनों सौ पुरूष, जो थके मान्दे थे तौभी खदेड़ते ही रहे थे, यरदन के तीर आकर पार हो गए। 07O 8 5 तब उस ने सुक्कोत के लोगों से कहा, मेरे पीछे इन आनेवालों को रोटियां दो, क्योंकि ये थके मान्दे हैं; और मैं मिद्यान के जेबह और सल्मुन्ना नाम राजाओं का पीछा कर रहा हूं। 07O 8 6 सुक्कोत के हाकिमों ने उत्तर दिया, क्या जेबह और सल्मुन्ना तेरे हाथ में पड़ चुके हैं, कि हम तेरी सेना को रोटी दे? 07O 8 7 गिदोन ने कहा, जब यहोवा जेबह और सल्मुन्ना को मेरे हाथ में कर देगा, तब मैं इस बात के कारण तुम को जंगल के कटीले और बिच्छू पेड़ों से नुचवाऊंगा। 07O 8 8 वहां से वह पनूएल को गया, और वहां के लोगों से ऐसी ही बात कही; और पनूएल के लोगों ने सुक्कोत के लोगों का सा उत्तर दिया। 07O 8 9 उस ने पनूएल के लोगों से कहा, जब मैं कुशल से लौट आऊंगा, तब इस गुम्मट को ढा दूंगा।। 07O 8 10 जेबह और सल्मुन्ना तो कर्कोर में थे, और उनके साथ कोई पन्द्रह हजार पुरूषों की सेना थी, क्योंकि पूर्वियों की सारी सेना में से उतने ही रह गए थे; जो मारे गए थे वे एक लाख बीस हजार हथियारबन्द थे। 07O 8 11 तब गिदोन ने नोबह और योग्बहा के पूर्व की ओर डेरों में रहनेवालों के मार्ग में चढ़कर उस सेना को जो निडर पड़ी थी मार लिया। 07O 8 12 और जब जेबह और सल्मुन्ना को पकड़ लिया, और सारी सेना को भगा दिया। 07O 8 13 और योआश का पुत्रा गिदोन हेरेस नाम चढ़ाई पर से लड़ाई से लौटा। 07O 8 14 और सुक्कोत के एक जवान पुरूष को पकड़कर उस से पूछा, और उस ने सुक्कोत के सतहत्तरों हाकिमों और वृद्ध लोगों के पते लिखवाये। 07O 8 15 तब वह सुक्कोत के मनुष्यों के पास जाकर कहने लगा, जेबह और सल्मुन्ना को देखा, जिनके विषय में तुम ने यह कहकर मुझे चिढ़ाया था, कि क्या जेबह और सल्मुन्ना अभी तेरे हाथ में हैं, कि हम तेरे थके मान्दे जनों को रोटी दें? 07O 8 16 तब उस ने उस नगर के वृद्ध लोगों को पकड़ा, और जंगल के कटीले और बिच्छू पेड़ लेकर सुक्कोत के पुरूषों को कुछ सिखाया। 07O 8 17 और उस ने पनूएल के गुम्मट को ढा दिया, और उस नगर के मनुष्यों को घात किया। 07O 8 18 फिर उस ने जेबह और सल्मुन्ना से पूछा, जो मनुष्य तुम ने ताबोर पर घात किए थे वे कैसे थे? उन्हों ने उत्तर दिया, जैसा तू वैसे ही वे भी थे अर्थात् एक एक का रूप राजकुमार का सा था। 07O 8 19 उस ने कहा, वे तो मेरे भाई, वरन मेरे सहोदर भाई थे; यहोवा के जीवन की शपथ, यदि तुम ने उनको जीवित छोड़ा होता, तो मैं तुम को घान न करता। 07O 8 20 तब उस ने अपने जेठे पुत्रा यतेरे से कहा, उठकर इन्हें घात कर। परन्तु जवान ने अपनी तलवार न खींची, क्योंकि वह उस समय तक लड़का ही था, इसलिये वह डर गया। 07O 8 21 तब जेबह और सल्मुन्ना ने कहा, तू उठकर हम पर प्रहार कर; क्योंकि जैसा पुरूष हो, वैसा ही उसका पौरूष भी होगा। तब गिदोन ने उठकर जेबह और सल्मुन्ना को घात किया; और उनके ऊंटों के गलों के चन्द्रहारों को ले लिया।। 07O 8 22 तब इस्राएल के पुरूषों ने गिदोन से कहा, तू हमारे ऊपर प्रभुता कर, तू और तेरा पुत्रा और पोता भी प्रभुता करे; क्योंकि तू ने हम को मिद्यान के हाथ से छुड़ाया है। 07O 8 23 गिदोन ने उन से कहा, मैं तुम्हारे ऊपर प्रभुता न करूंगा, और न मेरा पुत्रा तुम्हारे ऊपर प्रभुता करेगा; यहोवा ही तुम पर प्रभुता करेगा। 07O 8 24 फिर गिदोन ने उन से कहा, मैं तुम से कुछ मांगता हूं; अर्थात् तुम मुझ को अपनी अपनी लूट में की बालियां दो। (वे तो इशमाएली थे, इस कारण उनकी बालियां सोने की थीं।) उन्हों ने कहा, निश्चय हम देंगे। 07O 8 25 तब उन्हों ने कपड़ा बिछाकर उस में अपनी अपनी लूट में से निकालकर बालियां डाल दीं। 07O 8 26 जो सोने की बालियां उस ने मांग लीं उनका तौल एक हजार सात सौ शेकेल हुआ; और उनको छोड़ चन्द्रहार, झुमके, और बैंगनी रंग के वस्त्रा जो मिद्यानियों के राजा पहिने थे, और उनके ऊंटों के गलों की जंजीर। 07O 8 27 उनका गिदोन ने एक एपोद बनवाकर अपने ओप्रा नाम नगर में रखा; और सब इस्राएल वहां व्यभिचारिणी की नाईं उसके पीछे हो लिया, और वह गिदोन और उसके घराने के लिये फन्दा ठहरा। 07O 8 28 इस प्रकार मिद्यान इस्रालियों से दब गया, और फिर सिर न उठाया। और गिदोन के जीवन भर अर्थात् चालीस वर्ष तक देश चैन से रहा। 07O 8 29 योआश का पुत्रा यरूब्बाल तो जाकर अपने घर में रहने लगा। 07O 8 30 और गिदोन के सत्तर बेटे उत्पन्न हुए, क्योंकि उसके बहुत स्त्रियां थीं। 07O 8 31 और उसकी जो एक रखेली शकेम में रहती थी उसके एक पुत्रा उत्पन्न हुआ, और गिदोन ने उसका नाम अबीमेलेक रखा। 07O 8 32 निदान योआश का पुत्रा गिदोन पूरे बुढ़ापे में मर गया, और अबीएजेरियों के ओप्रा नाम गांव में उसके पिता योआश की कबर में उसको मिट्टी दी गई।। 07O 8 33 गिदोन के मरते ही इस्राएली फिर गए, और व्यभिचारिणी की नाईं बाल देवताओं के पीछे हो लिए, और बालबरीत को अपना देवता मान लिया। 07O 8 34 और इस्राएलियों ने अपने परमेश्वर यहोवा को, जिस ने उनको चारों ओर के सब शत्रुओं के हाथ से छुड़ाया था, स्मरण न रखा; 07O 8 35 और न उन्हों ने यरूब्बाल अर्थात् गिदोन की उस सारी भलाई के अनुसार जो उस ने इस्राएलियों के साथ की थी उसके घराने को प्रीति दिखाई।। 07O 9 1 यरूब्बाल का पुत्रा अबीमेलेक शकेम को अपने मामाओं के पास जाकर उन से और अपने नाना के सब घराने से यों कहने लगा, 07O 9 2 शकेम के सब मनुष्यों से यह पूछो, कि तुम्हारे लिये क्या भला है? क्या यह कि यरूब्बाल के सत्तर पुत्रा तुम पर प्रभुता करें? वा यह कि एक ही पुरूष तुम पर प्रभुता करे? और यह भी स्मरण रखो कि मैं तुम्हारा हाड़ मांस हूं। 07O 9 3 तब उसके मामाओं ने शकेम के सब मनुष्यों से ऐसी ही बातें कहीं; और उन्हों ने यह सोचकर कि अबीमेलेक तो हमारा भाई है अपना मन उसके पीछे लगा दिया। 07O 9 4 तब उन्हों ने बालबरीत के मन्दिर में से सत्तर टुकड़े रूपे उसको दिए, और उन्हें लगाकर अबीमेलेक ने नीच और लुच्चे जन रख लिए, जो उसके पीछे हो लिए। 07O 9 5 तब उस ने ओप्रा में अपने पिता के घर जाके अपने भाइयों को जो यरूब्बाल के सत्तर पुत्रा थे एक ही पत्थर पर घात किया; परन्तु यरूब्बाल का योताम नाम लहुरा पुत्रा छिपकर बच गया।। 07O 9 6 तब शकेम के सब मनुष्यों और बेतमिल्लो के सब लोगों ने इकट्ठे होकर शकेम के खम्भे से पासवाले बांजवृक्ष के पास अबीमेलेक को राजा बनाया। 07O 9 7 इसका समाचार सुनकर योताम गरिज्जीम पहाड़ की चोटी पर जाकर खड़ा हुआ, और ऊंचे स्वर से पुकारा के कहने लगा, हे शकेम के मनुष्यों, मेरी सुनो, इसलिये कि परमेश्वर तुम्हारी सुनें। 07O 9 8 किसी युग में वृक्ष किसी का अभिषेक करके अपने ऊपर राजा ठहराने को चले; तब उन्हों ने जलपाई के वृक्ष से कहा, तू हम पर राज्य कर। 07O 9 9 तब जलपाई के वृक्ष ने कहा, क्या मैं अपनी उस चिकनाहट को छोड़कर, जिस से लोग परमेश्वर और मनुष्य दोनों का आदर मान करते हैं, वृक्षों का अधिकारी होकर इधर उधर डोलने को चलूं? 07O 9 10 तब वृक्षों ने अंजीर के वृक्ष से कहा, तू आकर हम पर राज्य कर। 07O 9 11 अंजीर के वृक्ष ने उन से कहा, क्या मैं अपने मीठेपन और अपने अच्छे अच्छे फलों को छोड़ वृक्षों का अधिकारी होकर इधर उधर डोलने को चलूं? 07O 9 12 फिर वृक्षों ने दाखलता से कहा, तू आकर हम पर राज्य कर। 07O 9 13 दाखलता ने उन से कहा, क्या मैं अपने नये मधु को छोड़, जिस से परमेश्वर और मनुष्य दोनों को आनन्द होता है, वृक्षों की अधिकारिणी होकर इधर उधर डोलने को चलूं? 07O 9 14 तब सब वृक्षों ने झड़बेरी से कहा, तू आकर हम पर राज्य कर। 07O 9 15 झड़बेरी ने उन वृक्षों से कहा, यदि तुम अपने ऊपर राजा होने को मेरा अभिषेक सच्चाई से करते हो, तो आकर मेरी छांह में शरण लो; और नहीं तो, झड़बेरी से आग निकलेगी जिस से लबानोन के देवदारू भी भस्म हो जाएंगे। 07O 9 16 इसलिये अब यदि तुम ने सच्चाई और खराई से अबीमेलेक को राजा बनाया है, और यरूब्बाल और उसके घराने से भलाई की, और उस ने उसके काम के योग्य बर्ताव किया हो, तो भला। 07O 9 17 (मेरा पिता तो तुम्हारे निमित्त लड़ा, और अपने प्राण पर खेलकर तुम को मिद्यानियों के हाथ से छुड़ाया; 07O 9 18 परन्तु तुम ने आज मेरे पिता के घराने के विरूद्ध उठकर बलवा किया, और उसके सत्तर पुत्रा एक ही पत्थर पर घात किए, और उसकी लौंड़ी के पुत्रा अबीमेलेक को इसलिये शकेम के मनुष्यों के ऊपर राजा बनाया है कि वह तुम्हारा भाई है); 07O 9 19 इसलिये यदि तुम लोगों ने आज के दिन यरूब्बाल और उसके घराने से सच्चाई और खराई से बर्ताव किया हो, तो अबीमेलेक के कारण आनन्द करो, और वह भी तुम्हारे कारण आनन्द करे; 07O 9 20 और नहीं, तो अबीमेलेक से ऐसी आग निकले जिस से शकेम के मनुष्य और बेतमिल्लो भस्म हो जाएं: शकेम के मनुष्यों और बेतमिल्लो से ऐसी आग निकले जिस से अबीमेलेक भस्म हो जाए। 07O 9 21 तब योताम भागा, और अपने भाई अबीमेलेक के डर के मारे बेर को जाकर वहां रहने लगा।। 07O 9 22 और अबीमेलेक इस्राएल के ऊपर तीन वर्ष हाकिम रहा। 07O 9 23 तब परमेश्वर ने अबीमेलेक और शकेम के मनुष्यों के बीच एक बुरी आत्मा भेज दी; सो शकेम के मनुष्य अबीमेलेक का विश्वासघात करने लगे; 07O 9 24 जिस से यरूब्बाल के सत्तर पुत्रों पर किए हुए उपद्रव का फल भोगा जाए, और उनका कुल उनके घात करनेवाले उनके भाई अबीमेलेक के सिर पर, और उसके अपने भाइयों के घात करने में उसकी सहायता करनेवाले शकेम के मनुष्यों के सिर पर भी हो। 07O 9 25 तब शकेम के मनुष्यों ने पहाड़ों की चोटियों पर उसके लिये घातकों को बैठाया, जो उस मार्ग से सब आने जानेवालों को लूटते थे; और इसका समाचार अबीमेलेक को मिला।। 07O 9 26 तब एबेद का पुत्रा गाल अपने भाइयों समेत शकेम में आया; और शकेम के मनुष्यों ने उसका भरोसा किया। 07O 9 27 और उन्हों ने मैदान में जाकर अपनी अपनी दाख की बारियों के फल तोड़े और उनका रस रौन्दा, और स्तुति का बलिदान कर अपने देवता के मन्दिर में जाकर खाने पीने और अबीमेलेक को कोसने लगे। 07O 9 28 तब एबेद के पुत्रा गाल ने कहा, अबीमेलेक कौन है? शकेम कौन है कि हम उसके अधीन रहें? क्या वह यरूब्बाल का पुत्रा नहीं? शकेम के पिता हमोर के लोगों के तो अधीन हो, परन्तु हमे उसके अधीन क्यों रहें? 07O 9 29 और यह प्रजा मेरे वश में होती हो क्या ही भला होता! तब तो मैं अबीमेलेक को दूर करता। फिर उस ने अबीमेलेक से कहा, अपनी सेना की गिनती बढ़ाकर निकल आ। 07O 9 30 एबेद के पुत्रा गाल की वे बातें सुनकर नगर के हाकिम जबूल का क्रोध भड़क उठा। 07O 9 31 और उस ने अबीमेलेक के पास छिपके दूतों से कहला भेजा, कि एबेद का पुत्रा गाल और उसके भाई शकेम में आके नगरवालों को तेरा विरोध करने को उसका रहे हैं। 07O 9 32 इसलिये तू अपने संगवालों समेत रात को उठकर मैदान में घात लगा। 07O 9 33 फिर बिहान को सवेरे सूर्य के निकलते ही उठकर इस नगर पर चढ़ाई करना; और जब वह अपने संगवालों समेत तेरा साम्हना करने को निकले तब जो तुझ से बन पड़े वही उस से करना।। 07O 9 34 तब अबीमेलेक और उसके संग के सब लोग रात को उठ चार झुण्ड बान्धकर शकेम के विरूद्ध घात में बैठ गए। 07O 9 35 और एबेद का पुत्रा गाल बाहर जाकर नगर के फाटक में खड़ा हुआ; तब अबीमेलेक और उसके संगी घात छोड़कर उठ खड़े हुए। 07O 9 36 उन लोगों को देखकर गाल जबूल से कहने लगा, देख, पहाड़ों की चोटियों पर से लोग उतरे आते हैं! जबूल ने उस से कहा, वह तो पहाड़ों ही छाया है जो तुझे मनुष्यों के समान देख पड़ती है। 07O 9 37 गाल ने फिर कहा, देख, लोग देश के बीचोंबीच होकर उतरे आते हैं, और एक झुण्ड मोननीम नाम बांज वृक्ष के मार्ग से चला आता है। 07O 9 38 जबूल ने उस से कहा, तेरी यह बात कहां रही, कि अबीमेलेक कौन है कि हम उसके अधीन रहें? ये तो वे ही लोग हैं जिनको तू ने निकम्मा जाना था; इसलिये अब निकलकर उन से लड़। 07O 9 39 तब गाल शकेम के पुरूषों का अगुवा हो बाहर निकलकर अबीमेलेक से लड़ा। 07O 9 40 और अबीमेलेक ने उसको खदेड़ा, और अबीमेलेक के साम्हने से भागा; और नगर के फाटक तक पहुंचते पहुंचते बहुतेरे घायल होकर गिर पड़े। 07O 9 41 तब अबीमेलेक अरूमा में रहने लगा; और जबूल ने गाल और उसके भाइयों को निकाल दिया, और शकेम में रहने न दिया। 07O 9 42 दूसरे दिन लोग मैदान में निकल गए; और यह अबीमेलेक को बताया गया। 07O 9 43 और उस ने अपनी सेना के तीन दल बान्धकर मैदान में घात लगाई; और जब देखा कि लोग नगर से निकले आते हैं तब उन पर चढ़ाई करके उन्हें मार लिया। 07O 9 44 अबीमेलेक अपने संग के दलों समेत आगे दौड़कर नगर के फाटक पर खड़ा हो गया, और दो दलों ने उन सब लोगों पर धावा करके जो मैदान में थे उन्हें मार डाला। 07O 9 45 उसी दिन अबीमेलेक ने नगर से दिन भर लड़कर उसको ले दिया, और उसके लोगों को घात करके नगर को ढा दिया, और उस पर नमक छिड़कवा दिया।। 07O 9 46 यह सुनकर शकेम के गुम्मट के सब रहनेवाले एलबरीत के मन्दिर के गढ़ में जा घुसे। 07O 9 47 जब अबीमेलेक को यह समाचार मिला कि शकेम के गुम्मट के सब मनुष्य इकट्ठे हुए हैं, 07O 9 48 तब वह अपने सब संगियों समेत सलमोन नाम पहाड़ पर चढ़ गया; और हाथ में कुल्हाड़ी ले पेड़ों में से एक डाली काटी, ओर उसे उठाकर अपने कन्धे पर रख ली। और अपने संगवालों से कहा कि जैसा तुम ने मुझे करते देखा वैसा ही तुम भी झटपट करो। 07O 9 49 तब उन सब लोगों ने भी एक एक डाली काट ली, और अबीमेलेक के पीछे हो उनको गढ़ पर डालकर गढ़ में आग लगाई; तब शकेम के गुम्मट के सब स्त्री पुरूष जो अटकल एक हजार थे मर गए।। 07O 9 50 तब अबीमेलेक ने तेबेस को जाकर उसके साम्हने डेरे खड़े करके उस को ले लिया। 07O 9 51 परन्तु एक नगर के बीच एक दृढ़ गुम्मट था, सो क्या स्त्री पुरूष, नगर के सब लोग भागकर उस में घुसे; और उसे बन्द करके गुम्मट की छत पर चढ़ गए। 07O 9 52 तब अबीमेलेक गुम्मट के निकट जाकर उसके विरूद्ध लड़ने लगा, और गुम्मट के द्वार तक गया कि उस में आग लगाए। 07O 9 53 तब किसी स्त्री ने चक्की के ऊपर का पाट अबीमेलेक के सिर पर डाल दिया, और उसकी खोपड़ी फट गई। 07O 9 54 तब उस ने झट अपने हथियारों के ढोनेवाले जवान को बुलाकर कहा, अपनी तलवार खींचकर मुझे मार डाल, ऐसा न हो कि लोग मेरे विषय में कहने पाएं, कि उसको एक स्त्री ने घात किया। तब उसके जवान ने तलवार भोंक दी, और वह मर गया। 07O 9 55 यह देखकर कि अबीमेलेक मर गया है इस्राएली अपने अपने स्थान को चले गए। 07O 9 56 इस प्रकार जो दुष्ट काम अबीमेलेक ने अपने सत्तर भाइयों को घात करके अपने पिता के साथ किया था, उसको परमेश्वर ने उसके सिर पर लौटा दिया; 07O 9 57 और शकेम के पुरूषों के भी सब दुष्ट काम परमेश्वर ने उनके सिर पर लौटा दिए, और यरूब्बाल के पुत्रा योताम का शाप उन पर घट गया।। 07O 10 1 अबीमेलेक के बाद इस्राएल के छुड़ाने के लिये तोला नाम एक इस्साकारी उठा, वह दोदो का पोता और पूआ का पुत्रा था; और एप्रैम के पहाड़ी देश के शामीर नगर में रहता था। 07O 10 2 वह तेईस वर्ष तक इस्राएल का न्याय करता रहा। तब मर गया, और उसको शामीर में मिट्टी दी गई।। 07O 10 3 उसके बाद गिलादी याईर उठा, वह बाईस वर्ष तक इस्राएल का न्याय करता रहा। 07O 10 4 और उसके तीस पुत्रा थे जो गदहियों के तीस बच्चों पर सवार हुआ करते थे; और उनके तीस नगर भी थे जो गिलाद देश में हैं, और आज तक हब्बोत्याईर कहलाते हैं। 07O 10 5 और याईर मर गया, और उसको कामोन में मिट्टी दी गई।। 07O 10 6 तब इस्राएलियों ने फिर यहोवा की दृष्टि में बुरा किया, अर्थात् बाल देवताओं और अश्तोरेत देवियों और आराम, सीदोन, मोआब, अम्मोनियों, और पलिश्तियों के देवताओं की उपासना करने लगे; और यहोवा को त्याग दिया, और उसकी उपासना न की। 07O 10 7 तब यहोवा का क्रोध इस्राएल पर भड़का, और उस ने उन्हें पलिश्तियों और अम्मोनियों के अधीन कर दिया, 07O 10 8 और उस वर्ष ये इस्राएलियों को सताते और पीसते रहे। वरन यरदन पार एमोरियों के देश गिलाद में रहनेवाले सब इस्राएलियों पर अठारह वर्ष तक अन्धेर करते रहे। 07O 10 9 अम्मोनी यहूदा और बिन्यामीन से और एप्रैम के घराने से लड़ने को यरदन पार जाते थे, यहां तक कि इस्राएल बड़े संकट में पड़ गया। 07O 10 10 तब इस्राएलियों ने यह कहकर यहोवा की दोहाई दी, कि हम ने जो अपने परमेश्वर को त्यागकर बाल देवताओं की उपासना की है, यह हम ने तेरे विरूद्ध महा पाप किया है। 07O 10 11 यहोवा ने इस्राएलियों से कहा, क्या मैं ने तुम को मिस्त्रियों, एमोरियों, अम्मोनियों, और पलिश्तियों के हाथ से न छुड़ाया था? 07O 10 12 फिर जब सीदोनी, और अमालेकी, और माओनी लोगों ने तुम पर अन्धेर किया; और तुम ने मेरी दोहाई दी, तब मैं ने तुम को उनके हाथ से भी न छुड़ाया? 07O 10 13 तौभी तुम ने मुझे त्यागकर पराये देवताओं की उपासना की है; इसलिये मैं फिर तुम को न छुड़ाऊंगा। 07O 10 14 जाओ, अपने माने हुए देवताओं की दोहाई दो; तुम्हारे संकट के समय वे ही तुम्हें छुड़ाएं। 07O 10 15 इस्राएलियों ने यहोवा से कहा, हम ने पाप किया है; इसलिये जो कुछ तेरी दृष्टि में भला हो वही हम से कर; परन्तु अभी हमें छुड़ा। 07O 10 16 तब वे पराए देवताओं को अपने मध्य में से दूर करके यहोवा की उपासना करने लगे; और वह इस्राएलियों के कष्ट के कारण खेदित हुआ।। 07O 10 17 तब अम्मोनियों ने इकट्ठे होकर गिलाद में अपने डेरे डाले; और इस्राएलियों ने भी इकट्ठे होकर मिस्पा में अपने डेरे डाले। 07O 10 18 तब गिलाद के हाकिम एक दूसरे से कहने लगे, कौन पुरूष अम्मोनियों से संग्राम आरम्भ करेगा? वही गिलाद के सब निवासियों का प्रधान ठहरेगा।। 07O 11 1 यिप्तह नाम गिलादी बड़ा शूरवीर था, और वह वेश्या का बेटा था; और गिलाद से यिप्तह उत्पन्न हुआ था। 07O 11 2 गिलाद की स्त्री के भी बेटे उत्पन्न हुए; और जब वे बड़े हो गए तब यिप्तह को यह कहकर निकाल दिया, कि तू तो पराई स्त्री का बेटा है; इस कारण हमारे पिता के घराने में कोई भाग न पाएगा। 07O 11 3 तब यिप्तह अपने भाइयों के पास से भागकर तोब देश में रहने लगा; और यिप्तह के पास लुच्चे मनुष्य इकट्ठे हो गए; और उसके संग फिरने लगे।। 07O 11 4 और कुछ दिनों के बाद अम्मोनी इस्राएल से लड़ने लगे। 07O 11 5 जब अम्मोनी इस्राएल से लड़ते थे, तब गिलाद के वृद्ध लोग यिप्तह को तोब देश से ले आने को गए; 07O 11 6 और यिप्तह से कहा, चलकर हमारा प्रधान हो जा, कि हम अम्मोनियों से लड़ सकें। 07O 11 7 यिप्तह ने गिलाद के वृद्ध लोगों से कहा, क्या तुम ने मुझ से बैर करके मुझे मेरे पिता के घर से निकाल न दिया था? फिर अब संकट में पड़कर मेरे पास क्यों आए हो? 07O 11 8 गिलाद के वृद्ध लोगों ने यिप्तह से कहा, इस कारण हम अब तेरी ओर फिरे हैं, कि तू हमारे संग चलकर अम्मोनियों से लड़े; तब तू हमारी ओर से गिलाद के सब निवासियों का प्रधान ठहरेगा। 07O 11 9 यिप्तह ने गिलाद के वृद्ध लोगों से पूछा, यदि तुम मुझे अम्मोनियों से लड़ने को फिर मेरे घर ले चलो, और यहोवा उन्हें मेरे हाथ कर दे, तो क्या मैं तुम्हारा प्रधान ठहरूंगा? 07O 11 10 गिलाद के वृद्ध लोगों ने यिप्तह से कहा, निश्चय हम तेरी इस बाते के अनुसार करेंगे; यहोवा हमारे और तेरे बीच में इन वचनों का सुननेवाला है। 07O 11 11 तब यिप्तह गिलाद के वृद्ध लोगों के संग चला, और लोगों ने उसको अपने ऊपर मुखिया और प्रधान ठहराया; और यिप्तह ने अपनी सब बातें मिस्पा में यहोवा के सम्मुख कह सुनाई।। 07O 11 12 तब यिप्तह ने अम्मोनियों के राजा के पास दूतों से यह कहला भेजा, कि तुझे मुझ से क्या काम, कि तू मेरे देश में लड़ने को आया है? 07O 11 13 अम्मोनियों के राजा ने यिप्तह के दूतों से कहा, कारण यह है, कि जब इस्राएली मि से आए, तब अर्नोन से यब्बोक और यरदन तक जो मेरा देश था उसको उन्हों ने छीन लिया; इसलिये अब उसको बिना झगड़ा किए फेर दे। 07O 11 14 तब यिप्तह ने फिर अम्मोनियों के राजा के पास यह कहने को दूत भेजे, 07O 11 15 कि यिप्तह तुझ से यों कहता है, कि इस्राएल ने न तो मोआब का देश ले लिया और न अम्मोनियों का, 07O 11 16 वरन जब वे मि से निकले, और इस्राएली जंगल में होते हुए लाल समुद्र तक चले, और कादेश को आए, 07O 11 17 तब इस्राएल ने एदोम के राजा के पास दूतों से यह कहला भेजा, कि मुझे अपने देश में होकर जाने दे; और एदोम के राजा ने उनकी न मानी। इसी रीति उस ने मोआब के राजा से भी कहला भेजा, और उस ने भी न माना। इसलिये इस्राएल कादेश में रह गया। 07O 11 18 तब उस ने जंगल में चलते चलते एदोम और मोआब दोनों देशों के बाहर बाहर घूमकर मोआब देश की पूर्व ओर से आकर अर्नोन के इसी पार अपने डेरे डाले; और मोआब के सिवाने के भीतर न गया, क्योंकि मोआब का सिवाना अर्नोन था। 07O 11 19 फिर इस्राएल ने एमोरियों के राजा सीहोन के पास जो हेश्बोन का राजा था दूतों से यह कहला भेजा, कि हमें अपने देश में से होकर हमारे स्थान को जाने दे। 07O 11 20 परन्तु सीहोन ने इस्राएल का इतना विश्वास न किया कि उसे अपने देश में से होकर जाने देता; वरन अपनी सारी प्रजा को इकट्ठी कर अपने डेरे यहस में खड़े करके इस्राएल से लड़ा। 07O 11 21 और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने सीहोन को सारी प्रजा समेत इस्राएल के हाथ में कर दिया, और उन्हों ने उनको मार लिया; इसलिये इस्राएल उस देश के निवासी एमोरियों के सारे देश का अधिकारी हो गया। 07O 11 22 अर्थात् वह अनौन से यब्बोक तक और जंगल से ले यरदन तक एमोरियों के सारे देश का अधिकारी हो गया। 07O 11 23 इसलिये अब इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने अपनी इस्राएली प्रजा के साम्हने से एमोरियों को उनके देश से निकाल दिया है; फिर क्या तू उसका अधिकारी होने पाएगा? 07O 11 24 क्या तू उसका अधिकारी न होगा, जिसका तेरा कमोश देवता तुझे अधिकारी कर दे? इसी प्रकार से जिन लोगों को हमारा परमेश्वर यहोवा हमारे साम्हने से निकाले, उनके देश के अधिकारी हम होंगे। 07O 11 25 फिर क्या तू मोआब के राजा सिप्पोर के पुत्रा बालाक से कुछ अच्छा है? क्या उस ने कभी इस्राएलियों से कुछ भी झगड़ा किया? क्या वह उन से कभी लड़ा? 07O 11 26 जब कि इस्राएल हेश्बोन और उसके गावों में, और अरोएल और उसके गावों में, और अर्नोन के किनारे के सब नगरों में तीन सौ वर्ष से बसा है, तो इतने दिनों में तुम लोगों ने उसको क्यों नहीं छुड़ा लिया? 07O 11 27 मैं ने तेरा अपराध नहीं किया; तू ही मुझ से युद्ध छेड़कर बुरा व्यवहार करता है; इसलिये यहोवा जो न्यायी है, वह इस्राएलियों और अम्मोनियों के बीच में आज न्याय करे। 07O 11 28 तौभी अम्मोनियों के राजा ने यिप्तह की ये बातें न मानीं जिनको उस ने कहला भेजा था।। 07O 11 29 तब यहोवा का आत्मा यिप्तह में समा गया, और वह गिलाद और मनश्शे से होकर गिलाद के मिस्पे में आया, और गिलाद के मिस्पे से होकर अम्मोनियों की ओर चला। 07O 11 30 और यिप्तह ने यह कहकर यहोवा की मन्नत मानी, कि यदि तू नि:सन्देह अम्मोनियों को मेरे हाथ में कर दे, 07O 11 31 तो जब मैं कुशल के साथ अम्मोनियों के पास से लौट आऊं तब जो कोई मेरे भेंट के लिये मेरे घर के द्वार से निकले वह यहोवा का ठहरेगा, और मैं उसे होमबलि करके चढ़ाऊंगा। 07O 11 32 तब यिप्तह अम्मोनियों से लड़ने को उनकी ओर गया; और यहोवा ने उनको उसके हाथ में कर दिया। 07O 11 33 और वह अरोएर से ले मिन्नीत तक, जो बीस नगर हैं, वरन आबेलकरामीम तक जीतते जीतते उन्हें बहुत बड़ी मार से मारता गया। और अम्मोनी इस्राएलियों से हार गए।। 07O 11 34 जब यिप्तह मिस्पा को अपने घर आया, तब उसकी बेटी डफ बजाती और नाचती हुई उसकी भेंट के लिये निकल आई; वह उसकी एकलौती थी; उसको छोड़ उसके न तो कोई बेटा था और कोई न बेटी। 07O 11 35 उसको देखते ही उस ने अपने कपड़े फाड़कर कहा, हाय, मेरी बेटी! तू ने कमर तोड़ दी, और तू भी मेरे कष्ट देनेवालों में हो गई है; क्योंकि मैं :ने यहोवा को वचन दिया है, और उसे टाल नहीं सकता। 07O 11 36 उस ने उस से कहा, हे मेरे पिता, तू ने जो यहोवा को वचन दिया है, तो जो बात तेरे मुंह से निकली है उसी के अनुसार मुझ से बर्ताव कर, क्योंकि यहोवा ने तेरे अम्मोनी शत्रुओं से तेरा पलटा लिया है। 07O 11 37 फिर उस ने अपने पिता से कहा, मेरे लिये यह किया जाए, कि दो महीने तक मुझे छोड़े रह, कि मैं अपनी सहेलियों सहित जाकर पहाड़ों पर फिरती हुई अपनी कुंवारीपन पर रोती रहूं। 07O 11 38 उस ने कहा, जा। तब उस ने उसे दो महिने की छुट्टी दी; इसलिये वह अपनी सहेलियों सहित चली गई, और पहाड़ों पर अपनी कुंवारीपन पर रोती रही। 07O 11 39 दो महीने के बीतने पर वह अपने पिता के पास लौट आई, और उस ने उसके विषय में अपनी मानी हुइ मन्नत को पूरी किया। और उस कन्या ने पुरूष का मुंह कभी न देखा था। इसलिये इस्राएलियों में यह रीति चली 07O 11 40 कि इस्राएली स्त्रियां प्रतिवर्ष यिप्तह गिलादी की बेटी का यश गाने को वर्ष में चार दिन तक जाया करती थीं।। 07O 12 1 तब एप्रैमी पुरूष इकट्ठे होकर सापोन को जाकर यिप्तह से कहने लगे, कि जब तू अम्मोनियों से लड़ने को गया तब हमें संग चलने को क्यों नहीं बुलवाया? हम तेरा घर तुझ समेत जला देंगे। 07O 12 2 यिप्तह ने उन से कहा, मेरा और मेरे लोगों का अम्मोनियों से बड़ा झगड़ा हुआ था; और जब मैं ने तुम से सहायता मांगी, तब तुम ने मुझे उनके हाथ से नहीं बचाया। 07O 12 3 तब यह देखकर कि तुम मुझे नहीं बचाते मैं अपने प्राणों को हथेली पर रखकर अम्मोनियों के विरूद्ध चला, और यहोवा ने उनको मेरे हाथ में कर दिया; फिर तुम अब मुझ से लड़ने को क्यों चढ़ आए हो? 07O 12 5 और गिलादियों ने यरदन का घाट उन से पहिले अपने वश में कर लिया। और जब कोई एप्रैमी भगोड़ा कहता, कि मुझे पार जाने दो, तब गिलाद के पुरूष उस से पूछते थे, क्या तू एप्रैमी है? और यदि वह कहता नहीं, 07O 12 6 तो वह उस से कहते, अच्छा, शिब्बोलेत कह, और वह कहता सिब्बोलेत, क्योंकि उस से वह ठीक बोला नहीं जाता थ; तब वे उसको पकड़कर यरदन के घाट पर मार डालते थे। इस प्राकर उस समय बयालीस हजार एप्रैमी मारे गए।। 07O 12 7 यिप्तह छ: वर्ष तक इस्राएल का न्याय करता रहा। तब यिप्तह गिलादी मर गया, और उसको गिलाद के किसी नगर में मिट्टी दी गई।। 07O 12 8 उसके बाद बेतलेहेम का निवासी इबसान इस्राएल का न्याय करने लगा। 07O 12 9 और उसके तीस बेटे हुए; और उस ने अपनी तीस बेटियां बाहर ब्याह दीं, और बाहर से अपने बेटों का ब्याह करके तीस बहू ले आया। और वह इस्राएल का न्याय सात वर्ष तक करता रहा। 07O 12 10 तब इबसान मर गया, और उसको बेतलेहेम में मिट्टी दी गई।। 07O 12 11 उसके बाद जबूलूनी एलोन इस्राएल का न्याय करने लगा; और वह इस्राएल का न्याय दस वर्ष तक करता रहा। 07O 12 12 तब एलोन जबूलूनी मर गया, और उसको जबूलून के देश के अरयालोन में मिट्टी दी गई।। 07O 12 13 उसके बाद हिल्लेल का पुत्रा पिरातोनी अब्दोन इस्राएल का न्याय करने लगा। 07O 12 14 और उसके चालीस बेटे और तीस पोते हुए, जो गदहियों के सत्तर बच्चों पर सवार हुआ करते थे। वह आठ वर्ष तक इस्राएल का न्याय करता रहा। 07O 12 15 तब हिल्लेल का पुत्रा पिरातोनी अब्दोन मर गया, और उसको एप्रैम के देश के पिरातोन में, जो अमालेकियों के पहाड़ी देश में है, मिट्टी दी गई।। 07O 13 1 और इस्राएलियों ने फिर यहोवा की दृष्टि में बुरा किया; इसलिये यहोवा ने उनको पलिश्तियों के वश में चालीस वर्ष के लिये रखा।। 07O 13 2 दानियों के कुल का सोरावासी मानोह नाम एक पुरूष था, जिसकी पत्नी के बांझ होने के कारण कोई पुत्रा न था। 07O 13 3 इस स्त्री को यहोवा के दूत ने दर्शन देकर कहा, सुन, बांझ होने के कारण तेरे बच्चा नहीं; परन्तु अब तू गर्भवती होगी और तेरे बेटा होगा। 07O 13 4 इसलिये अब सावधान रह, कि न तो तू दाखमधु वा और किसी भांति की मदिरा पीए, और न कोई अशुद्ध वस्तु खाए, 07O 13 5 क्योंकि तू गर्भवती होगी और तेरे एक बेटा उत्पन्न होगा। और उसके सिर पर छूरा न फिरे, क्योंकि वह जन्म ही से परमेश्वर का नाजीर रहेगा; और इस्राएलियों को पलिश्तियों के हाथ से छुड़ाने में वहीं हाथ लगाएगा। 07O 13 6 उस स्त्री ने अपने पति के पास जाकर कहा, परमेश्वर का एक जन मेरे पास आया था जिसका रूप परमेश्वर के दूत का सा अति भययोग्य था; और मैं ने उस से न पूछा कि तू कहां का है? और न उस ने मुझे अपना नाम बताया; 07O 13 7 परन्तु उस ने मुझ से कहा, सुन तू गर्भवती होगी और तेरे एक बेटा होगा; इसलिये अब न तो दाखमधु वा और किसी भांति की मदिरा पीना, और न कोई अशुद्ध वस्तु खाना, क्योंकि वह लड़का जन्म से मरण के दिन तक परमेश्वर का नाजीर रहेगा। 07O 13 8 तब मानोह ने यहोवा से यह बिनती की, कि हे प्रभु, बिनती सुन, परमेश्वर का वह जन जिसे तू ने भेजा था फिर हमारे पास आए, और हमें सिखलाए कि जो बालक उत्पन्न होनेवाला है उस से हम क्या क्या करें। 07O 13 9 मानोह की यह बात परमेश्वर ने सुन ली, इसलिये जब वह स्त्री मैदान में बैठी थी, और उसका पति मानोह उसके संग न था, तब परमेश्वर का वही दूत उसके पास आया। 07O 13 10 तब उस स्त्री ने झट दौड़कर अपने पति को यह समाचार दिया, कि जो पुरूष उस दिन मेरे पास आया था उसी ने मुझे दर्शन दिया है। 07O 13 11 यह सुनते ही मानोह उठकर अपनी पत्नी के पीछे चला, और उस पुरूष के पास आकर पूछा, कि क्या तू वही पुरूष है जिसने इस स्त्री से बातें की थीं? उस ने कहा, मैं वही हूं। 07O 13 12 मानोह ने कहा, जब तेरे वचन पूरे हो जाएं तो, उस बालक का कैसा ढंग और उसका क्या काम होगा? 07O 13 13 यहोवा के दूत ने मानोह से कहा, जितनी वस्तुओं की चर्चा मैं ने इस स्त्री से की थी उन सब से यह परे रहे। 07O 13 14 यह कोई वस्तु जो दाखलता से उत्पन्न होती है न खाए, और न दाखमधु वा और किसी भंाति की मदिरा पीए, और न कोई अशुद्ध वस्तु खाए; जो जो आज्ञा मैं ने इसको दी थी उसी को माने। 07O 13 15 मानोह ने यहोवा के दूत से कहा, हम तुझ को रोक लें, कि तेरे लिये बकरी का एक बच्चा पकाकर तैयार करें। 07O 13 16 यहोवा के दूत ने मानोह से कहा, चाहे तू मुझे रोक रखे, परन्तु मैं तेरे भोजन में से कुछ न खाऊंगा; और यदि तू होमबलि करना चाहे तो यहोवा ही के लिये कर। (मानोह तो न जानता था, कि यह यहोवा का दूत है।) 07O 13 17 मानोह ने यहोवा के दूत से कहा, अपना नाम बता, इसलिये कि जब तेरी बातें पूरी हों तब हम तेरा आदरमान कर सकें। 07O 13 18 यहोवा के दूत ने उस से कहा, मेरा नाम तो अद्भुत है, इसलिये तू उसे क्यों पूछता है? 07O 13 19 तब मानोह ने अन्नबलि समेत बकरी का एक बच्चा लेकर चट्टान पर यहोवा के लिये चढ़ाया तब उस दूत ने मानोह और उसकी पत्नी के देखते देखते एक अद्भुत काम किया। 07O 13 20 अर्थात् जब लौ उस वेदी पर से आकाश की ओर उठ रही थी, तब यहोवा का दूत उस वेदी की लौ में होकर मानोह और उसकी पत्नी के देखते देखते चढ़ गया; तब वे भूमि पर मुंह के बल गिरे। 07O 13 21 परन्तु यहोवा के दूत ने मानोह और उसकी पत्नी को फिर कभी दर्शन न दिया। तब मानोह ने जान लिया कि वह यहोवा का दूत था। 07O 13 22 तब मानोह ने अपनी पत्नी से कहा, हम निश्चय मर जाएंगे, क्योंकि हम ने परमेश्वर का दर्शन पाया है। 07O 13 23 उसकी पत्नी ने उस से कहा, यदि यहोवा हमें मार डालना चाहता, तो हमारे हाथ से होमबलि और अन्नबलि ग्रहण न करता, और न वह ऐसी सब बातें हम को दिखाता, और न वह इस समय हमें ऐसी बातें सुनाता। 07O 13 24 और उस स्त्री के एक बेटा उत्पन्न हुआ, और उसका नाम शिमशोन रखा; और वह बालक बढ़ता गया, और यहोवा उसको आशीष देता रहा। 07O 13 25 और यहोवा का आत्मा सोरा और एशताओल के बीच महनदान में उसको उभारने लगा।। 07O 14 1 शिमशोन तिम्ना को गया, और तिम्ना में एक पलिश्तिी स्त्री को देखा। 07O 14 2 तब उस ने जाकर अपने माता पिता से कहा, तिम्ना में मैं ने एक पलिश्तिी स्त्री को देखा है, सो अब तुम उस से मेरा ब्याह करा दो। 07O 14 3 उसके माता पिता ने उस से कहा, क्या तेरे धाइयों की बेटियों में, वा हमारे सब लोगों में कोई स्त्री नहीं है, कि तू खतनाहीन पलिश्तियों में से स्त्री ब्याहने चाहता है? शिमशोन ने अपने पिता से कहा, उसी से मेरा ब्याह करा दे; क्योंकि मुझे वही अच्छी लगती है। 07O 14 4 उसके माता पिता न जानते थे कि यह बात यहोवा की ओर से होती है, कि वह पलिश्तियों के विरूद्ध दांव ढूंढता है। उस समय तो पलिश्ती इस्राएल पर प्रभुता करते थे।। 07O 14 5 तब शिमशोन अपने माता पिता को संग ले तिम्ना को चलकर तिम्ना की दाख की बारी के पास पहुंचा, वहां उसके साम्हने एक जवान सिंह गरजने लगा। 07O 14 6 तब यहोवा का आत्मा उस पर बल से उतरा, और यद्यपि उसके हाथ में कुछ न था, तौभी उस ने उसको ऐसा फाड़ डाला जैसा कोई बकरी का बच्चा फाड़े। अपना यह काम उसने अपने पिता वा माता को न बतलाया। 07O 14 7 तब उस ने जाकर उस स्त्री से बातचीत की; और वह शिमशोन को अच्छी लगी। 07O 14 8 कुछ दिनों के बीतने पर वह उसे लाने को लौट चला; और उस सिंह की लोथ देखने के लिये मार्ग से मुड़ गया? तो क्या देखा कि सिंह की लोथ में मधुमक्खियों का एक झुण्ड और मधु भी है। 07O 14 9 तब वह उस में से कुछ हाथ में लेकर खाते खाते अपने माता पिता के पास गया, और उनको यह बिना बताए, कि मैं ने इसको सिंह की लोथ में से निकाला है, कुछ दिया, और उन्हों ने भी उसे खाया। 07O 14 10 तब उसका पिता उस स्त्री के यहां गया, और शिमशोन न जवानों की रीति के अनुसार वहां जेवनार की। 07O 14 11 उसको देखकर वे उसके संग रहने के लिये तीस संगियों को ले आए। 07O 14 12 शिमशोन ने उस ने कहा, मैं तुम से एक पहेली कहता हूं; यदि तुम इस जेवनार के सातों दिनों के भीतर उसे बूझकर अर्थ बता दो, तो मैं तुम को तीस कुरते और तीस जोड़े कपड़े दूंगा; 07O 14 13 और यदि तुम उसे न बता सको, तो तुम को मुझे तीस कुर्ते और तीस जोड़े कपड़े देने पड़ेंगे। उन्हों ने उस से कहा, अपनी पहेली कह, कि हम उसे सुनें। 07O 14 14 उस ने उन से कहा, खानेवाले में से खाना, और बलवन्त में से मीठी वस्तु निकली। इस पहेली का अर्थ वे तीन दिन के भीतर न बता सके। 07O 14 15 सातवें दिन उन्हों ने शिमशोन की पत्नी से कहा, अपने पति को फुसला कि वह हमें पहेली का अर्थ बताए, नहीं तो हम तुझे तेरे पिता के घर समेत आग में जलाएंगे। क्या तुम लोगों ने हमारा धन लेने के लिये हमारा नेवता किया है? क्या यही बात नहीं है? 07O 14 16 तब शिमशोन की पत्नी यह कहकर उसके साम्हने रोने लगी, कि तू तो मुझ से प्रेम नहीं, बैर ही रखता है; कि तू ने एक पहेली मेरी जाति के लोगों से तो कही है, परन्तु मुझ को उसका अर्थ भी नहीं बताया। उस ने कहा, मैं ने उसे अपनी माता वा पिता को भी नहीं बताया, फिर क्या मैं तुझ को बता दूं? 07O 14 17 और जेवनार के सातों दिनों में वह स्त्री उसके साम्हने रोती रही; और सातवें दिन जब उस ने उसको बहुत तंग किया; तब उस ने उसको पहेली का अर्थ बता दिया। तब उस ने उसे अपनी जाति के लोगों को बता दिया। 07O 14 18 तब सातवें दिन सूर्य डूबने न पाया कि उस नगर के मनुष्यों ने शिमशोन से कहा, मधु से अधिक क्या मीठा? और सिंह से अधिक क्या बलवन्त है? उस ने उन से कहा, यदि तुम मेरी कलोर को हल में न जोतते, तो मेरी पहेली को कभी न बूझते।। 07O 14 19 तब यहोवा का आत्मा उस पर बल से उतरा, और उस ने अश्कलोन को जाकर वहां के तीस पूरूषों को मार डाला, और उनका धन लूटकर तीस जोड़े कपड़ों को पहेली के बतानेवालों को दे दिया। तब उसका क्रोध भड़का, और वह अपने पिता के घर गया। 07O 14 20 और शिमशोन की पत्नी उसके एक संगी को जिस से उस ने मित्रा का सा बर्ताव किया था ब्याह दी गई।। 07O 15 1 परन्तु कुछ दिनों बाद, गेहूं की कटनी के दिनों में, शिमशोन ने बकरी का एक बच्चा लेकर अपनी ससुराल में जाकर कहा, मैं अपनी पत्नी के पास कोठरी में जाऊंगा। परन्तु उसके ससुर ने उसे भीतर जाने से रोका। 07O 15 2 और उसके ससुर ने कहा, मैं सचमुच यह जानता था कि तू उस से बैर ही रखता है, इसलिये मैं ने उसे तेरे संगी को ब्याह दिया। क्या उसकी छोटी बहिन उस से सुन्दर नहीं है? उसके बदले उसी को ब्याह ले। 07O 15 3 शिमशोन ने उन लोगों से कहा, अब चाहे मैं पलिश्तियों की हानि भी करूं, तौभी उनके विषय में निर्दोष ही ठहरूंगा। 07O 15 4 तब शिमशोन ने जाकर तीन सौ लोमड़ियां पकड़ीं, और मशाल लेकर दो दो लोमड़ियों की पूंछ एक साथ बान्धी, और उनके बीच एक एक मशाल बान्धा। 07O 15 5 तब मशालों में आग लगाकर उस ने लोमड़ियों को पलिश्तियों के खड़े खेतों में छोड़ दिया; और पूलियों के ढेर वरन खड़े खेत और जलपाई की बारियां भी जल गईं। 07O 15 6 तब पलिश्ती पूछने लगे, यह किस ने किया है? लोगों ने कहा, उस तिम्नी के दामाद शिमशोन ने यह इसलिये किया, कि उसके ससुर ने उसकी पत्नी उसे संगी को ब्याह दी। तब पलिश्तियों ने जाकर उस पत्नी और उसके पिता दोनों को आग में जला दिया। 07O 15 7 शिमशोन ने उन से कहा, तुम जो ऐसा काम करते हो, इसलिये मैं तुम से पलटा लेकर ही चुप रहूंगा। 07O 15 8 तब उस ने उनको अति निठुरता के साथ बड़ी मार से मार डाला; तब जाकर एताम नाम चट्टान की एक दरार में रहने लगा।। 07O 15 9 तब पलिश्तियों ने चढ़ाई करके यहूदा देश में डेरे खड़े किए, और लही में फैल गए। 07O 15 10 तब यहूदी मनुष्यों ने उन से पूछा, तुम हम पर क्यों चढ़ाई करते हो? उन्हों ने उत्तर दिया, शिमशोन को बान्धने के लिये चढ़ाई करते हैं, कि जैसे उस ने हम से किया वैसे ही हम भी उस से करें। 07O 15 11 तब तीन हजार यहूदी पुरूष ऐताम नाम चट्टान की दरार में जाकर शिमशोन से कहने लगे, क्या तू नहीं जानता कि पलिश्ती हम पर प्रभुता करते हैं? फिर तू ने हम से ऐसा क्यों किया है? उस ने उन से कहा, जैसा उन्हों ने मुझ से किया था, वैसा ही मैं ने भी उन से किया है। 07O 15 12 उन्हों ने उस से कहा, हम तुझे बान्धकर पलिश्तियों के हाथ में कर देने के लिये आए हैं। शिमशोन ने उन से कहा, मुझ से यह शपथ खाओ कि तुम मुझ पर प्रहार न करोगे। 07O 15 13 उन्हों ने कहा, ऐसा न होगा; हम तुझे कसकर उनके हाथ में कर देंगे; परन्तु तुझे किसी रीति मान न डालेंगे। तब वे उसको दो नई रस्सियों से बान्धकर उस चट्टान पर ले गए। 07O 15 14 वह लही तक आ गया था, कि पलिश्ती उसको देखकर ललकारने लगे; तब यहोवा का आत्मा उस पर बल से उतरा, और उसकी बांहों की रस्सियां आग में जले हुए सन के समान हो गईं, और उसके हाथों के बन्धन मानों गलकर टूट पड़े। 07O 15 15 तब उसको गदहे के जबड़े की एक नई हड्डी मिली, और उस ने हाथ बढ़ा उसे लेकर एक हजार पुरूषों को मार डाला। 07O 15 16 तब शिमशोन ने कहा, गदहे के जबड़े की हड्डी से ढेर के ढेर लग गए, गदहे के जबड़े की हड्डी ही से मैं ने हजार पुरूषों को मार डाला।। 07O 15 17 जब वह ऐसा कह चुका, तब उस ने जबड़े की हड्डी फेंक दी और उस स्थान का नाम रामत- लही रखा गया। 07O 15 18 तब उसको बड़ी प्यास लगी, और उस ने यहोवा को पुकार के कहा तू ने अपने दास से यह बड़ा छुटकारा कराया है; फिर क्या मैं अब प्यासों मरके उन खतनाहीन लोगों के हाथ में पडूं? 07O 15 19 तब परमेश्वर ने लही में ओखली सा गढ़हा कर दिया, और उस में से पानी निकलने लगा; और जब शिमशोन ने पीया, तब उसके जी में जी आया, और वह फिर ताजा दम हो गया। इस कारण उस सोते का नाम एनहक्कोरे रखा गया, वह आज के दिन तक लही में हैं। 07O 15 20 शिमशोन तो पलिश्तियों के दिनों में बीस वर्ष तक इस्राएल का न्याय करता रहा।। 07O 16 1 तब शिमशोन अज्जा को गया, और वहां एक वेश्या को देखकर उसके पास गया। 07O 16 2 जब अज्जियों को इसका समाचार मिला कि शिमशोन यहां आया है, तब उन्हों ने उसको घेर लिया, और रात भर नगर के फाटक पर उसकी घात में लगे रहे; और यह कहकर रात भर चुपचाप रहे, कि बिहान को भोर होते ही हम उसको घात करेंगे। 07O 16 3 परन्तु शिमशोन आधी रात तक पड़ा रह कर, आधी रात को उठकर, उस ने नगर के फाटक के दोनों पल्लों और दोनो बाजुओं को पकड़कर बेंड़ों समेत उखाड़ लिया, और अपने कन्घों पर रखकर उन्हें उस पहाड़ की चोटी पर ले गया, जो हेब्रोन के साम्हने है।। 07O 16 4 इसके बाद वह सोरेक नाम नाले में रहनेवाली दलीला नाम एक स्त्री से प्रीति करने लगा। 07O 16 5 तब पलिश्तियों के सरदारों ने उस स्त्री के पास जाके कहा, तू उसको फुसलाकर बूझ ले कि उसके महाबल का भेद क्या है, और कौन उपाय करके हम उस पर ऐसे प्रबल हों, कि उसे बान्धकर दबा रखें; तब हम तुझे ग्यारह ग्यारह सौ टुकड़े चान्दी देंगे। 07O 16 6 तब दलीला ने शिमशोन से कहा, मुझे बता दे कि तेरे बड़े बल का भेद क्या है, और किसी रीति से कोई तुझे बान्धकर दबा रख सके। 07O 16 7 शिमशोन ने उस से कहा, यदि मैं सात ऐसी नई नई तातों से बान्धा जाऊं जो सुखाई न गई हों, तो मेरा बल घट जायेगा, और मैं साधारण मनुष्य सा हो जाऊंगा। 07O 16 8 तब पलिश्तियों के सरदार दलीला के पास ऐसी नई नई सात तातें ले गए जो सुखाई न गई थीं, और उन से उस ने शिमशोन को बान्धा। 07O 16 9 उसके पास तो कुछ मनुष्य कोठरी में घात लगाए बैठे थे। तब उस ने उस से कहा, हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में हैं! तब उस ने तांतों को ऐसा तोड़ा जैसा सन का सूत आग में छूते ही टूट जाता है। और उसके बल का भेद न खुला। 07O 16 10 तब दलीला ने शिमशोन से कहा, सुन, तू ने तो मुझ से छल किया, और झूठ कहा है; अब मुझे बता दे कि तू किस वस्तु से बन्ध सकता है। 07O 16 11 उस ने उस से कहा, यदि मैं ऐसी नई नई रस्सियों से जो किसी काम में न आई हों कसकर बान्धा जाऊं, तो मेरा बल घट जाएगा, और मैं साधारण मनुष्य के समान हो जाऊंगा। 07O 16 12 तब दलीला ने नई नई रस्सियां लेकर और उसको बान्धकर कहा, हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में हैं! कितने मनुष्य तो उस कोठरी में धात लगाए हुए थे। तब उस ने उनको सूत की नाईं अपनी भुजाओं पर से तोड़ डाला। 07O 16 13 तब दलीला ने शिमशोन से कहा, अब तक तू मुझ से छल करता, और झूठ बोलता आया है; अब मुझे बता दे कि तू काहे से बन्ध सकता है? उस ने कहा यदि तू मेरे सिर की सातों लटें ताने में बुने तो बन्ध सकूंगा। 07O 16 14 सो उस ने उसे खूंटी से जकड़ा। तब उस से कहा, हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में हैं! तब वह नींद से चौंक उठा, और खूंटी को धरन में से उखाड़कर उसे ताने समेत ले गया। 07O 16 15 तब दलीला ने उस से कहा, तेरा मन तो मुझ से नहीं लगा, फिर तू क्यों कहता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूं? तू ने ये तीनों बार मुझ से छल किया, और मुझे नहीं बताया कि तेरे बड़े बल का भेद क्या है। 07O 16 16 सो जब उस ने हर दिन बातें करते करते उसको तंग किया, और यहां तक हठ किया, कि उसके नाकों में दम आ गया, 07O 16 17 तब उस ने अपने मन का सारा भेद खोलकर उस से कहा, मेरे सिर पर छुरा कभी नहीं फिरा, क्योंकि मैं मां के पेट ही से परमेश्वर का नाजीर हूं, यदि मैं मूड़ा जाऊं, तो मेरा बल इतना घट जाएगा, कि मैं साधारण मनुष्य सा हो जाऊंगा। 07O 16 18 यह देखकर, कि उस ने अपने मन का सारा भेद मुझ से कह दिया है, दलीला ने पलिश्तियों के सरदारों के पास कहला भेजा, कि अब की बार फिर आओ, क्योंकि उस ने अपने मन का सब भेद मुझे बता दिया है। तब पलिश्तियों के सरदार हाथ में रूपया लिए हुए उसके पास गए। 07O 16 19 तब उस ने उसको अपने घुटनों पर सुला रखा; और एक मनुष्य बुलवाकर उसके सिर की सातों लटें मुण्डवा डालीं। और वह उसको दबाने लगी, और वह निर्बल हो गया। 07O 16 20 तब उस ने कहा, हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में हैं! तब वह चौंककर सोचने लगा, कि मैं पहिले की नाईं बाहर जाकर झटकूंगा। वह तो न जानता था, कि यहोवा उसके पास से चला गया है। 07O 16 21 तब पलिश्तियों ने उसको पकड़कर उसकी आंखें फोड़ डालीं, और उसे अज्जा को ले जाके पीतल की बेड़ियों से जकड़ दिया; और वह बन्दीगृह में चक्की पीसने लगा। 07O 16 22 उसके सिर के बाल मुण्ड जाने के बाद फिर बढ़ने लगे।। 07O 16 23 तब पलिश्तियों के सरदार अपने दागोन नाम देवता के लिये बड़ा यज्ञ, और आनन्द करने को यह कहकर इकट्ठे हुए, कि हमारे देवता ने हमारे शत्रु शिमशोन को हमारे हाथ में कर दिया है। 07O 16 24 और जब लोगों ने उसे देखा, तब यह कहकर अपने देवता की स्तुति की, कि हमारे देवता ने हमारे शत्रु और हमारे देश के नाश करनेवाले को, जिस ने हम में से बहुतों को मार भी डाला, हमारे हाथ में कर दिया है। 07O 16 25 जब उनका मन मगन हो गया, तब उन्हों ने कहा, शिमशोन को बुलवा लो, कि वह हमारे लिये तमाशा करे। इसलिये शिमशोन बन्दीगृह में से बुलवाया गया, और उनके लिये तमाशा करने लगा, और खम्भों के बीच खड़ा कर दिया गया। 07O 16 26 तब शिमशोन ने उस लड़के से जो उसका हाथ पकड़े था कहा, मुझे उन खम्भों को जिन से घर सम्भला हुआ है छूने दे, कि मैं उस पर टेक लगाऊं। 07O 16 27 वह घर तो स्त्री पुरूषों से भरा हुआ था; पलिश्तियों के सब सरदार भी वहां थे, और छत पर कोई तीन हजार सत्री पुरूष थे, जो शिमशोन को तमाशा करते हुए देख रहे थे। 07O 16 28 तब शिमशोन ने यह कहकर यहोवा की दोहाई दी, कि हे प्रभु यहोवा, मेरी सुधि ले; हे परमेश्वर, अब की बार मुझे बल दे, कि मैं पलिश्तियों से अपनी दोनों आंखों का एक ही पलटा लूं। 07O 16 29 तब शिमशोन ने उन दोनों बीचवाले खम्भों को जिन से घर सम्भला हुआ था पकड़कर एक पर तो दाहिने हाथ से और दूसरे पर बाएं हाथ से बल लगा दिया। 07O 16 30 और शिमशोन ने कहा, पलिश्तियों के संग मेरा प्राण भी जाए। और वह अपना सारा बल लगाकर झुका; तब वह घर सब सरदारों और उस में से सारे लोगों पर गिर पड़ा। सो जिनको उस ने मरते समय मार डाला वे उन से भी अधिक थे जिन्हें उस ने अपने जीवन में मार डाला था। 07O 16 31 तब उसके भाई और उसके पिता के सारे घराने के लोग आए, और उसे उठाकर ले गए, और सोरा और एशताओल के मध्य अपने पिता मानोह की कबर में मिट्टी दी। उसने इस्राएल का न्याय बीस वर्ष तक किया था। 07O 17 1 एप्रैम के पहाड़ी देश में मीका नाम एक पुरूष था। 07O 17 2 उस ने अपनी माता से कहा, जो ग्यारह सौ टुकड़े चान्दी तुझ से ले लिए गए थे, जिनके विषय में तू ने मेरे सुनते भी शाप दिया था, वे मेरे पास हैं; मैं ने ही उनको ले लिया था। उसकी माता ने कहा, मेरे बेटे पर यहोवा की ओर से आशीष होए। 07O 17 3 जब उस ने वे ग्यारह सौ टुकड़े चान्दी अपनी माता को फेर दिए; तब माता ने कहा, मैं अपनी ओर से अपने बेटे के लिये यह रूपया यहोवा को निश्चय अर्पण करती हूं ताकि उस से एक मूरत खोदकर, और दूसरी ढालकर बनाई जाए, सो अब मैं उसे तुझ को फेर देती हूं। 07O 17 4 जब उस ने वह रूपया अपनी माता को फेर दिया, तब माता ने दो सौ टुकड़े ढलवैयों को दिए, और उस ने उन से एक मूर्त्ति खोदकर, और दूसरी ढालकर बनाई; और वे मीका के घर में रहीं। 07O 17 5 मीका के पास एक देवस्थान था, तब उस ने एक एपोद, और कई एक गृहदेवता बनवाए; और अपने एक बेटे का संस्कार करके उसे अपना पुरोहित ठहरा लियां 07O 17 6 उन दिनों में इस्राएलियों का कोई राजा न था; जिसको जो ठीक सूझ पड़ता था वही वह करता था।। 07O 17 7 यहूदा के कुल का एक जवान लेवीय यहूदा के बेतलेहेम में परदेशी होकर रहता था। 07O 17 8 वह यहूदा के बेतलेहेम नगर से इसिलिये निकला, कि जहां कहीं स्थान मिले वहां जा रहे। चलते चलते वह एप्रैम के पहाड़ी देश में मीका के घर पर आ निकला। 07O 17 9 मीका ने उस से पूछा, तू कहां से आता है? उस ने कहा, मैं तो यहूदा के बेतलेहेम से आया हुआ एक लेवीय हूं, और इसलिये चला जाता हूं, कि जहां कहीं ठिकाना मुझे मिले वहीं रहूं। 07O 17 10 मीका ने उस से कहा, मेरे संग रहकर मेरे लिये पिता और पुरोहित बन, और मैं तुझे प्रति वर्ष दस टुकड़े रूपे, और एक जोडा कपड़ा, और भोजनवस्तु दिया करूंगा; तब वह लेवीय भीतर गया। 07O 17 11 और वह लेवीय उस पुरूष के संग रहने को प्रसन्न हुआ; और वह जवान उसके साथ बेटा सा बना रहा। 07O 17 12 तब मीका ने उस लेवीय का संस्कार किया, और वह जवान उसका पुरोहित होकर मीका के घर में रहने लगा। 07O 17 13 और मीका सोचता था, कि अब मैं जानता हूं कि यहोवा मेरा भला करेगा, क्योंकि मैं ने एक लेवीय को अपना पुरोहित कर रखा है।। 07O 18 1 उन दिनों में इस्राएलियों का कोई राजा न था। और उन्हीं दिनों में दानियों के गोत्रा के लोग रहने के लिये कोई भाग ढूंढ़ रहे थे; क्योंकि इस्राएली गोत्रों के बीच उनका भाग उस समय तक न मिला था। 07O 18 2 तब दानियों ने अपने सब कुल में से पांच शूरवीरों को सोरा और एशताओल से देश का भेद लेने और उस में देख भाल करने के लिये यह कहकर भेज दिया, कि जाकर देश में देख भाल करो। इसलिये वे एप्रैम के पहाड़ी देश में मीका के घर तक जाकर वहां टिक गए। 07O 18 3 जब वे मीका के घर के पास आए, तब उस जवान लेवीय का बोल पहचाना; इसलिये वहां मुड़कर उस से पूछा, तुझे यहां कौन ले आया? और तू यहां क्या करता है? और यहां तेरे पास क्या है? 07O 18 4 उस ने उन से कहा, मीका ने मुझ से ऐसा ऐसा व्यवहार किया है, और मुझे नौकर रखा है, और मैं उसका पुरोहित हो गया हूं। 07O 18 5 उन्हों ने उस से कहा, परमेश्वर से सलाह ले, कि हम जान लें कि जो यात्रा हम करते हैं वह सफल होगी वा नहीं। 07O 18 6 पुरोहित ने उन से कहा, कुशल से चले जाओ। जो यात्रा तुम करते हो वह ठीक यहोवा के साम्हने है। 07O 18 7 तब वे पांच मनुष्य चल निकले, और लैश को जाकर वहां के लोगों को देखा कि सीदोनियों की नाईं निडर, बेखटके, और शान्ति से रहते हैं; और इस देश का कोई अधिकारी नहीं है, जो उन्हें किसी काम में रोके, और ये सीदोनियों से दूर रहते हैं, और दूसरे मनुष्यों से कुछ व्यवहार नहीं रखते। 07O 18 8 तब वे सोरा और एश्ताओल को अपने भाइयों के पास गए, और उनके भाइयों ने उन से पूछा, तुम क्या समाचार ले आए हो? 07O 18 9 उन्हों ने कहा, आओ, हम उन लोगों पर चढ़ाई करें; क्योंकि हम ने उस देश को देखा कि वह बहुत अच्छा है। तुम क्यों चुपचाप रहते हो? वहां चलकर उस देश को अपने वंश में कर लेने में आलस न करो। 07O 18 10 वहां पहुंचकर तुम निडर रहते हुए लोगों को, और लम्बा चौड़ा देश पाओगे; और परमेश्वर ने उसे तुम्हारे हाथ में दे दिया है। वह ऐसा स्थान है जिस में पृथ्वी भर के किसी पदार्थ की घटी नहीं है।। 07O 18 11 तब वहां से अर्थात् सोरा और एशताओल से दानियों के कुल के छ: सौ पुरूषों ने युद्ध के हथियार बान्धकर प्रस्थान किया। 07O 18 12 उन्होंने जाकर यहूदा देश के किरर्यत्यारीम नगर में डेरे खड़े किए। इस कारण उस स्थान का नाम महनेदान आज तक पड़ा है, वह तो किरर्यत्यारीम के पश्चिम की ओर है। 07O 18 13 वहां से वे आगे बढ़कर एप्रैम के पहाड़ी देश में मीका के घर के पास आए। 07O 18 15 वे उधर मुड़कर उस जवान लेवीय के घर गए, जो मीका का घर था, और उसका कुशल क्षेम पूछा। 07O 18 16 और वे छ: सौ दानी पुरूष फाटक में हथियार बान्धे हुए खड़े रहे। 07O 18 17 और जो पांच मनुष्य देश का भेद लेने गए थे, उन्हों ने वहां घुसकर उस खुदी हुई मूरत, और एपोद, और गृहदेवताओं, और ढली हुई मूरत को ले लिया, और वह पुरोहित फाटक में उन हथियार बान्धे हुए छ: सौ पुरूषों के संग खड़ा था। 07O 18 18 जब वे पांच मनुष्य मीका के घर में घुसकर खुदी हुई मूरत, एपोद, गृहदेवता, और ढली हुई मूरत को ले आए थे, तब पुरोहित ने उन से पूछा, यह तुम क्या करते हो? 07O 18 19 उन्हों ने उस से कहा, चुप रह, अपने मुंह को हाथ से बन्दकर, और हम लोगों के संग चलकर, हमारे लिये पिता और पुरोहित बन। तेरे लिये क्या अच्छा है? यह, कि एक ही मनुष्य के घराने का पुरोहित हो, वा यह, कि इस्राएलियों के एक गोत्रा और कुल का पुरोहित हो? 07O 18 20 तब पुरोहित प्रसन्न हुआ, सो वह एपोद, गृहदेवता, और खुदी हुई मूरत को लेकर उन लोगों के संग चला गया। 07O 18 21 तब वे मुड़े, और बालबच्चों, पशुओं, और सामान को अपने आगे करके चल दिए। 07O 18 22 जब वे मीका के घर से दूर निकल गए थे, तब जो मनुष्य मीका के घर के पासवाले घरों में रहते थे उन्हों ने इकट्ठे होकर दानियों को जा लिया। 07O 18 23 और दानियों को पुकारा, तब उन्हों ने मुंह फेर के मीका से कहा, तुझे क्या हुआ कि तू इतना बड़ा दल लिए आता है? 07O 18 24 उस ने कहा, तुम तो मेरे बनवाए हुए देवताओं और पुरोहित को ले चले हो; फिर मेरे पास क्या रह गया? तो तुम मुझ से क्यों पूछते हो? कि तुझे क्या हुआ है? 07O 18 25 दानियों ने उस से कहा, तेरा बोल हम लोगों में सुनाई न दे, कहीं ऐसा न हो कि क्रोधी जन तुम लोगों पर प्रहार करें? और तू अपना और अपने घर के लोगों के भी प्राण को खो दे। 07O 18 26 तब दानियों ने अपना मार्ग लिया; और मीका यह देखकर कि वे मुझ से अधिक बलवन्त हैं फिरके अपने घर लौट गया। 07O 18 27 और वे मीका के बनवाए हुए पदार्थों और उसके पुरोहित को साथ ले लैश के पास आए, जिसके लोग शान्ति से और बिना खटके रहते थे, और उन्हों ने उनको तलवार से मार डाला, और नगर को आग लगाकर फूंक दिया। 07O 18 28 और कोई बचानेवाला न था, क्योंकि वह सीदोन से दूर था, और वे और मनुष्यों से कुछ व्यवहार न रखते थे। और वह बेत्राहोब की तराई में था। तब उन्हों ने नगर को दृढ़ किया, और उस में रहने लगे। 07O 18 29 और उन्हों ने उस नगर का नाम इस्राएल के एक पुत्रा अपने मूलपुरूष दान के नाम पर दान रखा; परन्तु पहिले तो उस नगर का नाम लैश था। 07O 18 30 तब दानियों ने उस खुदी हुई मूरत को खड़ा कर लिया; और देश की बन्धुआई के समय वह योनातान जो गेर्शोम का पुत्रा और मूसा का पोता था, वह और उसके वंश के लोग दान गोत्रा के पुरोहित बने रहे। 07O 18 31 और जब तक परमेश्वर का भवन शीलो में बना रहा, तब तक वे मीका की खुदवाई हुई मूरत को स्थापित किए रहे।। 07O 19 1 उन दिनों में जब इस्राएलियों का कोई राजा न था, तब एक लेवीय पुरूष एप्रैम के पहाड़ी देश की परली ओर परदेशी होकर रहता था, जिस ने यहूदा के बेतलेहेम में की एक सुरैतिन रख ली थी। 07O 19 2 उसकी सुरैतिन व्यभिचार करके यहूदा के बेतलेहेम को अपने पिता के घर चली गई, और चार महीने वहीं रही। 07O 19 3 तब उसका पति अपने साथ एक सेवक और दो गदहे लेकर चला, और उसके यहां गया, कि उसे समझा बुझाकर ले आए। वह उसे अपने पिता के घर ले गई, और उस जवान स्त्री का पिता उसे देखकर उसकी भेंट से आनन्दित हुआ। 07O 19 4 तब उसके ससुर अर्थात् उस स्त्री के पिता ने बिनती करके उसे रोक लिया, और वह तीन दिन तक उसके पास रहा; सो वे वहां खाते पिते टिके रहे। 07O 19 5 चौथे दिन जब वे भोर को सबेरे उठे, और वह चलने को हुआ; तब स्त्री के पिता ने अपने दामाद से कहा, एक टुकड़ा रोटी खाकर अपना जी ठण्डा कर, तब तुम लोग चले जाना। 07O 19 6 तब उन दोनों ने बैठकर संग संग खाया पिया; फिर स्त्री के पिता ने उस पुरूष से कहा, और एक रात टिके रहने को प्रसन्न हो और आनन्द कर। 07O 19 7 वह पुरूष विदा होने को उठा, परन्तु उसके सुसर ने बिनती करके उसे दबाया, इसलिये उस ने फिर उसके यहां रात बिताई। 07O 19 8 पांचवें दिन भोर को वह तो विदा होने को सवेरे उठा; परन्तु स्त्री के पिता ने कहा, अपना जी ठण्डा कर, और तुम दोनों दिन ढलने तक रूके रहो। तब उन दोनों ने रोटी खाई। 07O 19 9 जब वह पुरूष अपनी सुरैतिन और सेवक समेत विदा होने को उठा, तब उसके ससुर अर्थात् स्त्री के पिता ने उस से कहा, देख दिन तो ढला चला है, और सांझ होने पर है; इसलिये तुम लोग रात भर टिके रहो। देख, दिन तो डूबने पर है; सो यहीं आनन्द करता हुआ रात बिता, और बिहान को सवेरे उठकर अपना मार्ग लेना, और अपने डेरे को चले जाना। 07O 19 10 परन्तु उस पुरूष ने उस रात को टिकना न चाहा, इसलिये वह उठकर विदा हुआ, और काठी बान्धे हुए दो गदहे और अपनी सुरैतिन संग लिए हुए यबूस के साम्हने तक (जो यरूशलेम कहलाता है) पहुंचा। 07O 19 11 वे यबूस के पास थे, और दिन बहुत ढल गया था, कि सेवक ने अपने स्वामी से कहा, आ, हम यबूसियों के इस नगर में मुड़कर टिकें। 07O 19 12 उसके स्वामी ने उस से कहा, हम पराए नगर में जहां कोई इस्राएली नहीं रहता, न उतरेंगे; गिबा तक बढ़ जाएंगे। 07O 19 13 फिर उस ने अपने सेवक से कहा, आ, हम उधर के स्थानों में से किसी के पास जाएं, हम गिबा वा रामा में रात बिताएं। 07O 19 14 और वे आगे की ओर चले; और उनके बिन्यामीन के गिबा के निकट पहुंचते पहुंचते सूर्य अस्त हो गया, 07O 19 15 इसलिये वे गिबा में टिकने के लिये उसकी ओर मुड़ गए। और वह भीतर जाकर उस नगर के चौक में बैठ गया, क्योंकि किसी ने उनको अपने घर में न टिकाया। 07O 19 16 तब एक बूढ़ा अपने खेत के काम को निपटाकर सांझ को चला आया; वह तो एप्रैम के पहाड़ी देश का था, और गिबा में परदेशी होकर रहता था; परन्तु उस स्थान के लोग बिन्यामीनी थे। 07O 19 17 उस ने आंखें उठाकर उस यात्री को नगर के चौक में बैठे देखा; और उस बूढ़े ने पूछा, तू किधर जाता, और कहां से आता है? 07O 19 18 उस ने उस से कहा, हम लोग तो यहूदा के बेतलेहम से आकर एप्रैम के पहाड़ी देश की परली ओर जाते हैं, मैं तो वहीं का हूं; और यहूदा के बेतलेहेम तक गया था, और यहोवा के भवन को जाता हूं, परन्तु कोई मुझे अपने घर में नहीं टिकाता। 07O 19 19 हमारे पास तो गदहों के लिये पुआल और चारा भी है, और मेरे और तेरी इस दासी और इस जवान के लिये भी जो तेरे दासों के संग है रोटी और दाखमधु भी है; हमें किसी वस्तु की घटी नहीं है। 07O 19 20 बूढ़े ने कहा, तेरा कल्याण हो; तेरे प्रयोजन की सब वस्तुएं मेरे सिर हों; परन्तु रात को चौक में न बिता। 07O 19 21 तब वह उसको अपने घर ले चला, और गदहों को चारा दिया; तब वे पांव धोकर खाने पीने लगे। 07O 19 22 वे आनन्द कर रहे थे, कि नगर के लुच्चों ने घर को घेर लिया, और द्वार को खटखटा- खटखटाकर घर के उस बूढ़े स्वामी से कहने लगे, जो पुरूष तेरे घर में आया, उसे बाहर ले आ, कि हम उस से भोग करें। 07O 19 23 घर का स्वामी उनके पास बाहर जाकर उन से कहने लगा, नहीं, नहीं, हे मेरे भाइयों, ऐसी बुराई न करो; यह पुरूष जो मेरे घर पर आया है, इस से ऐसी मूढ़ता का काम मत करो। 07O 19 24 देखा, यहां मेरी कुंवारी बेटी है, और इस पुरूष की सुरैतिन भी है; उनको मैं बाहर ले आऊंगा। और उनका पत- पानी लो तो लो, और उन से तो जो चाहो सो करो; परन्तु इस पुरूष से ऐसी मूढ़ता का काम मत करो। 07O 19 25 परन्तु उन मनुष्यों ने उसकी न मानी। तब उस पुरूष ने अपनी सुरैतिन को पकड़कर उनके पास बाहर कर दिया; और उन्हों ने उस से कुकर्म किया, और रात भर क्या भोर तक उस से लीला क्रीड़ा करते रहे। और पह फटते ही उसे छोड़ दिया। 07O 19 26 तब वह स्त्री पह फटते हुए जाके उस मनुष्य के घर के द्वार पर जिस में उसका पति था गिर गई, और उजियाले के होने तक वहीं पड़ी रही। 07O 19 27 सवेरे जब उसका पति उठ, घर का द्वार खोल, अपना मार्ग लेने को बाहर गया, तो क्या देखा, कि मेरी सुरैतिन घर के द्वार के पास डेवढ़ी पर हाथ फैलाए हुए पड़ी है। 07O 19 28 उस ने उस से कहा, उठ हम चलें। जब कोई न बोला, तब वह उसको गदहे पर लादकर अपने स्थान को गया। 07O 19 29 जब वह अपने घर पहुंचा, तब छूरी ले सुरैतिन को अंग अंग करके काटा; और उसे बारह टुकड़े करके इस्राएल के देश में भेज दिया। 07O 19 30 जितनों ने उसे देखा, वे सब आपस में कहने लगे, इस्राएलियों के मि देश मे चले आने के समय से लेकर आज के दिन तक ऐसा कुछ कभी नहीं हुआ, और न देखा गया; सो इसको सोचकर सम्मति करो, और बताओ।। 07O 20 1 तब दान से लेकर बर्शेबा तक के सब इस्राएली और गिलाद के लोग भी निकले, और उनकी मण्डली एक मत होकर मिस्पा में यहोवा के पास इकट्ठी हुई। 07O 20 2 और सारी प्रजा के प्रधान लोग, वरन सब इस्राएली गोत्रों के लोग जो चार लाख तलवार चलाने वाले प्यादे थे, परमेश्वर की प्रजा की सभा में उपस्थित हुए। 07O 20 3 (बिन्यामीनियों ने तो सुना कि इस्राएली मिस्मा को आए हैं।) और इस्राएली पूछने लगे, हम से कहो, यह बुराई कैसे हुई? 07O 20 4 उस मार डाली हुई स्त्री के लेवीय पति ने उत्तर दिया, मैं अपनी सुरैतिन समेत बिन्यामीन के गिबा में टिकने को गया था। 07O 20 5 तब गिबा के पुरूषों ने मुझ पर चढ़ाई की, और रात के समय घर को घेरके मुझे घात करना चाहा; और मेरी सुरैतिन से इतना कुकर्म किया कि वह मर गई। 07O 20 6 तब मैं ने अपनी सुरैतिन को लेकर टुकड़े टुकड़े किया, और इस्राएलियों के भाग के सारे देश में भेज दिया, उन्हों ने तो इस्राएल में महापाप और मूढ़ता का काम किया है। 07O 20 7 सुनो, हे इस्राएलियों, सब के सब देखो, और यहीं अपनी सम्मति दो। 07O 20 8 तब सब लोग एक मन हो, उठकर कहने लगे, न तो हम में से कोई अपने डेरे जाएगा, और न कोई अपने घर की ओर मुड़ेगा। 07O 20 9 परन्तु अब हम गिबा से यह करेंगे, अर्थात् हम चिट्ठी डाल डालकर उस पर चढ़ाई करेंगे, 07O 20 10 और हम सब इस्राएली गोत्रों में सौ पुरूषों में से दस, और हजार पुरूषों में से एक सौ, और दस हजार में से एक हजार पुरूषों को ठहराएं, कि वे सेना के लिये भोजनवस्तु पहुंचाएं; इसलिये कि हम बिन्यामीन के गिबा में पहुंचकर उसको उस मूढ़ता का पूरा फल भुगता सकें जो उन्हों ने इस्राएल में की है। 07O 20 11 तब सब इस्राएली पुरूष उस नगर के विरूद्ध एक पुरूष की नाईं जुटे हुए इकट्ठे हो गए।। 07O 20 12 और इस्राएली गोत्रियों में कितने मनुष्य यह पूछने को भेजे, कि यह क्या बुराई है जो तुम लोगों में की गई है? 07O 20 13 अब उन गिबावासी लुच्चों को हमारे हाथ कर दो, कि हम उनको जान से मार के इस्राएल में से बुराई नाश करें। परन्तु बिन्यामीनियों ने अपने भाई इस्राएलियों की मानने से इन्कार किया। 07O 20 14 और बिन्यामीनी अपने अपने नगर में से आकर गिबा में इसलिये इकट्ठे हुए, कि इस्राएलियों से लड़ने को निकलें। 07O 20 15 और उसी दिन गिबावासी पुरूषों को छोड़, जिनकी गिनती सात सौ चुने हुए पुरूष ठहरी, और और नगरों से आए हुए तलवार चलानेवाले बिन्यामीनियों की गिनती छब्बीस हजार पुरूष ठहरी। 07O 20 16 इन सब लोगों में से सात सौ बैंहत्थे चुने हुए पुरूष थे, जो सब के सब ऐसे थे कि गोफन से पत्थर मारने में बाल भर भी न चूकते थे। 07O 20 17 और बिन्यामीनियों को छोड़ इस्राएली पुरूष चार लाख तलवार चलानेवाले थे; ये सब के सब योद्धा थे।। 07O 20 18 सब इस्राएली उठकर बेतेल को गए, और यह कहकर परमेश्वर से सलाह ली, और इस्राएलियों ने पूछा, कि हम में से कौन बिन्यामीनियों से लड़ने को पहिले चढ़ाई करे? यहोवा ने कहा, यहूदा पहिले चढ़ाई करे। 07O 20 19 तब इस्राएलियों ने बिहान को उठकर गिबा के साम्हने डेरे डाले। 07O 20 20 और इस्राएली पुरूष बिन्यामीनियों से लड़ने को निकल गए; और इस्राएली पुरूषों ने उस से लड़ने को गिबा के विरूद्ध पांति बान्धी। 07O 20 21 तब बिन्यामीनियों ने गिबा से निकल उसी दिन बाईस हजार इस्राएली पुरूषों को मारके मिट्टी में मिला दिया। 07O 20 22 तौभी इस्राएली पुरूष लोगों ने हियाव बान्धकर उसी स्थान में जहां उन्हों ने पहिले दिन पांति बान्धी थी, फिर पांती बान्धी। 07O 20 23 और इस्राएली जाकर सांझ तक यहोवा के साम्हने राते रहे; और यह कहकर यहोवा से पूछा, कि क्या हम अपने भाई बिन्यामीनियों से लड़ने को फिर पास जाएं? यहोवा ने कहा, हां, उन पर चढ़ाई करो। 07O 20 24 तब दूसरे दिन इस्राएली बिन्यामीनियों के निकट पहुंचे। 07O 20 25 तब बिन्यामीनियों ने दूसरे दिन उनका साम्हना करने को गिबा से निकलकर फिर अठारह हजार इस्राएली पुरूषों को मारके, जो सब के सब तलवार चलानेवाले थे, मिट्टी में मिला दिया। 07O 20 26 तब सब इस्राएली, वरन सब लोग बेतेल को गए; और रोते हुए यहोवा के साम्हने बैठे रहे, और उस दिन सांझ तक उपवास किए रहे, और यहोवा को होमबलि और मेलबलि चढ़ाए। 07O 20 27 और इस्राएलियों ने यहोवा से सलाह ली (उस समय तो परमेश्वर का वाचा का सन्दूक वहीं था, 07O 20 28 और पीनहास, जो हारून का पोता, और एलीआजर का पुत्रा था उन दिनों में उसके साम्हने हाजिर रहा करता था।) उन्हों ने पूछा, क्या मैं एक और बार अपने भाई बिन्यामीनियों से लड़ने को निकल जाऊं, वा उनको छोड़ूं? यहोवा ने कहा, चढ़ाई कर; क्योंकि कल मैं उनको तेरे हाथ में कर दूंगा। 07O 20 29 तब इस्राएलियों ने गिबा के चारों ओर लोगों को धात में बैठाया। 07O 20 30 तीसरे दिन इस्राएलियों ने बिन्यामीनियों पर फिर चढ़ाई की, और पहिले की नाईं गिबा के विरूद्ध पांति बान्धी। 07O 20 31 तब बिन्यामीनी उन लोगों का साम्हना करने को निकले, और नगर के पास से खींचे गए; और जो दो सड़क, एक बेतेल को और दूसरी गिबा को गई है, उन में लोगों को पहिले की नाईं मारने लगे, और मैदान में कोई तीस इस्राएली मारे गए। 07O 20 32 बिन्यामीनी कहने लगे, वे पहिले की नाईं हम से मारे जाते हैं। परन्तु इस्राएलियों ने कहा, हम भागकर उनको नगर में से सड़कों में खींच ले आएं। 07O 20 33 तब सब इस्राएली पुरूषों ने अपने स्थान में उठकर बालतामार में पांति बान्धी; और घात में बैठे हुए इस्राएली अपने स्थान से, अर्थात् मारेगेवा से अचानक निकले। 07O 20 34 तब सब इस्राएलियों में से छांटे हुए दास हजार पुरूष गिबा के साम्हने आए, और घोर लड़ाई होने लगी; परन्तु वे न जानते थे कि हम पर विपत्ति अभी पड़ा चाहती है। 07O 20 35 तब यहोवा ने बिन्यामीनियों को इस्राएल से हरवा दिया, और उस दिन इस्राएलियों ने पचीस हजार एक सौ बिन्यामीनी पुरूषों को नाश किया, जो सब के सब तलवार चलानेवाले थे।। 07O 20 36 तब बिन्यामीनियों ने देखा कि हम हार गए। और इस्राएली पुरूष उन घातकों पर भरोसा करके जिन्हें उन्हों ने गिबा के साथ बैठाया था बिन्यामीनियों के साम्हने से चले गए। 07O 20 37 परन्तु घातक लोग फुर्ती करके गिबा पर झपट गए; और घातकों ने आगे बढ़कर कुल नगर को तलवार से मारा। 07O 20 38 इस्राएली पुरूषों और घातकों के बीच तो यह चिन्ह ठहराया गया था, कि वे नगर में से बहुत बड़ा धूएं का खम्भा उठाएं। 07O 20 39 इस्राएली पुरूष तो लड़ाई में हटने लगे, और बिन्यामीनियों ने यह कहकर कि निश्चय वे पहिली लड़ाई की नाई हम से हारे जाते हैं, इस्राएलियों को मार डालने लगे, और तीस एक पुरूषों को घात किया। 07O 20 40 परन्तु जब वह धूएं का खम्भा नगर में से उठने लगा, तब बिन्यामीनियों ने अपने पीछे जो दृष्टि की तो क्या देखा, कि नगर का नगर धूंआ होकर आकाश की ओर उड़ रहा है। 07O 20 41 तब इस्राएली पुरूष घूमे, और बिन्यामीनी पुरूष यह देखकर घबरा गए, कि हम पर विपत्ति आ पड़ी है। 07O 20 42 इसलिये उन्हों ने इस्राएली पुरूषों को पीठ दिखाकर जंगल का मार्ग लिया; परन्तु लड़ाई उन से होती ही रह, और जो और नगरों में से आए थे उनको इस्राएली रास्ते में नाश करते गए। 07O 20 43 उन्हों ने बिन्यामीनियों को घेर लिया, और उन्हें खदेड़ा, वे मनूहा में वरन गिबा के पूर्व की ओर तक उन्हें लताड़ते गए। 07O 20 44 और बिन्यामीनियों में से अठारह हजार पुरूष जो सब के सब शूरवीर थे मारे गए। 07O 20 45 तब वे घूमकर जंगल में की रिम्मोन नाम चट्टान की ओर तो भाग गए; परन्तु इस्राएलियों ने उन से पांच हजार को बीनकर सड़कों में मार डाला; फिर गिदोम तक उनके पीछे पड़के उन में से दो हजार पुरूष मार डाले। 07O 20 46 तब बिन्यामीनियों में से जो उस दिन मारे गए वे पचीस हजार तलवार चलानेवाले पुरूष थे, और ये सब शूरवीर थे। 07O 20 47 परन्तु छ: सौ पुरूष घूमकर जंगल की ओर भागे, और रिम्मोन नाम चट्टान में पहुंच गए, और चार महीने वहीं रहे। 07O 20 48 तब इस्राएली पुरूष लौटकर बिन्यामिनियों पर लपके और नगरों में क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या जो कुछ मिला, सब को तलवार से नाश कर डाला। और जितने नगर उन्हें मिले उन सभों को आग लगाकर फूंक दिया।। 07O 21 1 इस्राएली पुरूषों ने तो मिस्पा में शपथ खाकर कहा था, कि हम में कोई अपनी बेटी किसी बिन्यामीनी को न ब्याह देगा। 07O 21 2 वे बेतेल को जाकर सांझ तक परमेश्वर के साम्हने बैठे रहे, और फूट फूटकर बहुत रोते रहे। 07O 21 3 और कहते थे, हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा, इस्राएल में ऐसा क्यों होने पाया, कि आज इस्राएल में एक गोत्रा की घटी हुई है? 07O 21 4 फिर दूसरे दिन उन्हों ने सवेरे उठ वहां वेदी बनाकर होमबलि और मेलबलि चढ़ाए। 07O 21 5 तब इस्राएली पूछने लगे, इस्राएल के सारे गोत्रों में से कौन है जो यहोवा के पास सभा में न आया था? उन्हों ने तो भारी शपथ खाकर कहा था, कि जो कोई मिस्पा को यहोवा के पास न आए वह निश्चय मार डाला जाएगा। 07O 21 6 तब इस्राएली अपने भाई बिन्यामीन के विषय में यह कहकर पछताने लगे, कि आज इस्राएल में से एक गोत्रा कट गया है। 07O 21 7 हम ने जो यहोवा की शपथ खाकर कहा है, कि हम उन्हें अपनी किसी बेटी को न ब्याह देंगे, इसलिये बचे हुओं को स्त्रियां मिलने के लिये क्या करें? 07O 21 8 जब उन्हों ने यह पूछा, कि इस्राएल के गोत्रों में से कौन है जो मिस्पा को यहोवा के पास न आया था? तब यह मालूम हुआ, कि गिलादी यावेश से कोई छावनी में सभा को न आया था। 07O 21 9 अर्थात् जब लोगों की गिनती की गई, तब यह जाना गया कि गिलादी यावेश के निवासियों में से कोई यहां नहीं है। 07O 21 10 इसलिये मण्डली ने बारह हजार शूरवीरों को वहां यह आज्ञा देकर भेज दिया, कि तुम जाकर स्त्रियों और बालबच्चों समेत गिलादी यावेश को तलवार से नाश करो। 07O 21 11 और तुम्हें जो करना होगा वह यह है, कि सब पुरूषों को और जितनी स्त्रियों ने पुरूष का मुंह देखा हो उनको सत्यानाश कर डालना। 07O 21 12 और उन्हें गिलादी यावेश के निवासियों में से चार सौ जवान कुमारियां मिलीं जिन्हों ने पुरूष का मुंह नहीं देखा था; और उन्हें वे शीलो को जो कनान देश में है छावनी में ले आए।। 07O 21 13 तब सारी मण्डली ने उन बिन्यामीनियों के पास जो रिम्मोन नाम चट्टान पर थे कहला भेजा, और उन से संधि का प्रचार कराया। 07O 21 14 तब बिन्यामीन उसी समय लौट गए; और उनको वे स्त्रियां दी गईं जो गिलादी यावेश की स्त्रियों में से जीवित छोड़ी गईं थीं; तौभी वे उनके लिये थोड़ी थीं। 07O 21 15 तब लोग बिन्यामीन के विषय फिर यह कहके पछताये, कि यहोवा ने इस्राएल के गोत्रों में घटी की है। 07O 21 16 तब मण्डली के वृद्ध गोत्रों ने कहा, कि बिन्यामीनी स्त्रियां जो नाश हुई हैं, तो बचे हुए पुरूषों के लिये स्त्री पाने का हम क्या उपाय करें? 07O 21 17 फिर उन्हों ने कहा, बचे हुए बिन्यामीनियों के लिये कोई भाग चाहिये, ऐसा न हो कि इस्राएल में से एक गोत्रा मिट जाए। 07O 21 18 परन्तु हम तो अपनी किसी बेटी को उन्हें ब्याह नहीं दे सकते, क्योंकि इस्राएलियों ने यह कहकर शपथ खाई है कि शापित हो वह जो किसी बिन्यामीनी को अपनी लड़की ब्याह दे। 07O 21 19 फिर उन्हों ने कहा, सुनो, शीलो जो बेतेल की उत्तर ओर, और उस सड़क की पूर्व ओर है जो बेतेल से शकेन को चली गई है, और लाबोना की दक्खिन ओर है, उस में प्रति वर्ष यहोवा का एक पर्व माना जाता है। 07O 21 20 इसलिये उन्हों ने बिन्यामीनियों को यह आज्ञा दी, कि तुम जाकर दाख की बारियों के बीच घात लगाए बैठे रहो, 07O 21 21 और देखते रहो; और यदि शीलो की लड़कियां नाचने को निकलें, तो तुम दाख की बारियों से निकलकर शीलो की लड़कियों में से अपनी अपनी स्त्री को पकड़कर बिन्यामीन के देश को चले जाना। 07O 21 22 और जब उनके पिता वा भाई हमारे पास झगड़ने को आएंगे, तब हम उन से कहेंगे, कि अनुग्रह करके उनको हमें दे दो, क्योंकि लड़ाई के समय हम ने उन में से एक एक के लिये स्त्री नहीं बचाई; और तुम लोगों ने तो उनको ब्याह नहीं दिया, नहीं तो तुम अब दोषी ठहरते। 07O 21 23 तब बिन्यामीनियों ने ऐसा ही किया, अर्थात् उन्हों ने अपनी गिनती के अनुसार उन नाचनेवालियों में से पकड़कर स्त्रियां ले लीं; तब अपने भाग को लौट गए, और नगरों को बसाकर उन में रहने लगे। 07O 21 24 उसी समय इस्राएली वहां से चलकर अपने अपने गोत्रा और अपने अपने घराने को गए, और वहां से वे अपने अपने निज भाग को गए। 07O 21 25 उन दिनों में इस्राएलियों का कोई राजा न था; जिसको जो ठीक सूझ पड़ता था वही वह करता था।। 08O 1 1 जिन दिनों में न्यायी लोग न्याय करते थे उन दिनों में देश में अकाल पड़ा, तब यहूदा के बेतलेहेम का एक पुरूष अपनी स्त्री और दोनो पुत्रों को संग लेकर मोआब के देश में परदेशी होकर रहने के लिये चला। 08O 1 2 उस पुरूष का नाम एलीमेलेक, और उसकी पत्नि का नाम नाओमी, और उसके दो बेटों के नाम महलोन और किल्योन थे; ये एप्राती अर्थात् यहूदा के बेतलेहेम के रहनेवाले थे। और मोआब के देश में आकर वहां रहे। 08O 1 3 और नाओमी का पति एलीमेलेक मर गया, और नाओमी और उसके दोनो पुत्रा रह गए। 08O 1 4 और इन्हों ने एक एक मोआबिन ब्याह ली; एक स्त्री का नाम ओर्पा और दूसरी का नाम रूत था। फिर वे वहां कोई दस वर्ष रहे। 08O 1 5 जब महलोन और किल्योन दोनों मर गए, तब नाआमी अपने दोनों पुत्रों और पति से रहित हो गई। 08O 1 6 तब वह मोआब के देश में यह सुनकर, कि यहोवा ने अपनी प्रजा के लोगों की सुधि लेके उन्हें भोजनवस्तु दी है, उस देश से अपनी दोनों बहुओं समेत लौट जाने को चली। 08O 1 7 तब वह अपनी दोनों बहुओं समेत उस स्थान से जहां रहती थीं निकलीं, और उन्होने यहूदा देश को लौट जाने का मार्ग लिया। 08O 1 8 तब नाओमी ने अपनी दोनो बहुओं से कहा, तुम अपने अपने मैके लौट जाओ। और जैसे तुम ने उन से जो मर गए हैं और मुझ से भी प्रीति की है, वैसे ही यहोवा तुम्हारे ऊपर कृपा करे। 08O 1 9 यहोवा ऐसा करे कि तुम फिर पति करके उनके घरों में विश्राम पाओ। तब उस ने उन को चूमा, और वे चिल्ला चिल्लाकर रोने लगीं, 08O 1 10 और उस से कहा, निश्चय हम तेरे संग तेेरे लोगों के पास चलेंगी। 08O 1 11 नाओमी ने कहा, हे मेरी बेटियों, लौट जाओ, तुम क्यों मेरे संग चलोगी? क्या मेरी कोख में और पुत्रा हैं जो तुम्हारे पति हों? 08O 1 12 हे मेरी बेटियों, लौटकर चली जाओ, क्योंकि मैं पति करने को बूढ़ी हूं। और चाहे मैं कहती भी, कि मुझे आशा है, और आज की रात मेरे पति होता भी, और मेरे पुत्रा भी होते, 08O 1 13 तौभी क्या तुम उनके सयाने होने तक आशा लगाए ठहरी रहतीं? और उनके निमित्त पति करने से रूकी रहतीं? हे मेरी बेटियों, ऐसा न हो, क्योंकि मेरा दु:ख तुम्हारे दु:ख से बहुत बढ़कर है; देखो, यहोवा का हाथ मेरे विरूद्ध उठा है। 08O 1 14 तब वे फिर से उठीं; और ओर्पा ने तो अपनी सास को चूमा, परन्तु रूत उस से अलग न हुई। 08O 1 15 तब उस ने कहा, देख, तेरी जिठानी तो अपने लोगों और अपने देवता के पास लौट गई है; इसलिए तू अपनी जिठानी के पीछे लौट जा। 08O 1 16 रूत बोली, तू मुझ से यह बिनती न कर, कि मुझे त्याग वा छोड़कर लौट जा; क्योंकि जिधर तू जाए उधर मैं भी जाऊंगी; जहां तू टिके वहां मैं भी टिकूंगी; तेरे लोग मेरे लोग होंगे, और तेरा परमेश्वर मेरा परमेश्वर होगा; 08O 1 17 जहां तू मरेगी वहां मैं भी मरूंगी, और वहीं मुझे मिट्टी दी जाएगी। यदि मृत्यु छोड़ और किसी कारण मैं तुझ से अलग होऊं, तो यहोवा मुझ से वैसा ही वरन उस से भी अधिक करे। 08O 1 18 जब उस ने यह देखा कि वह मेरे संग चलने को स्थिर है, तब उस ने उस से और बात न कही। 08O 1 19 सो वे दोनों चल निकलीं और बेतलेहेम को पहुंची। और उनके बेतलेहेम में पहुंचने पर कुल नगर मे उनके कारण धूम मची; और स्त्रियां कहने लगीं, क्या यह नाओमी है? 08O 1 20 उस ने उन से कहा, मुझे नाओमी न कहो, मुझे मारा कहो, क्योंकि सर्वशक्तिमान् ने मुझ को बड़ा दु:ख दिया है। 08O 1 21 मैं भरी पूरी चली गई थी, परन्तु यहोवा ने मुझे छूछी करके लौटाया है। सो जब कि यहोवा ही ने मेरे विरूद्ध साक्षी दी, और सर्वशक्तिमान ने मुझे दु:ख दिया है, फिर तुम मुझे क्यों नाओमी कहती हो? 08O 1 22 इस प्रकार नाओमी अपनी मोआबिन बहू रूत के साथ लौटी, जो मोआब के देश से आई थी। और वे जो कटने के आरम्भ के समय बेतलेहेम में पहुंची।। 08O 2 1 नाओमी के पति एलीमेलेक के कुल में उसका एक बड़ा धनी कुटुम्बी था, जिसका नाम बोअज था। 08O 2 2 और मोआबिन रूत ने नाओमी से कहा, मुझे किसी खेत में जाने दे, कि जो मुझ पर अनुग्रह की दृष्टि करे, उसके पीछे पीछे मैं सिला बीनती जाऊं। उस ने कहा, चली जा, बेटी। 08O 2 3 सो वह जाकर एक खेत में लवनेवालों के पीछे बीनने लगी, और जिस खेत में वह संयोग से गई थी वह एलीमेलेक के कुटुम्बी बोअज का था। 08O 2 4 और बोअज बेतलेहेम से आकर लवनेवालों से कहने लगा, यहोवा तुम्हारे संग रहे, और वे उस से बोले, यहोवा तुझे आशीष दे। 08O 2 5 तब बोअज ने अपने उस सेवक से जो लवनेवालों के ऊपर ठहराया गया था पूछा, वह किस की कन्या है। 08O 2 6 जो सेवक लवनेवालों के ऊपर ठहराया गया था उस ने उत्तर दिया, वह मोआबिन कन्या है, जो नाओमी के संग मोआब देश से लौट आई है। 08O 2 7 उस ने कहा था, मुझे लवनेवालों के पीछे पीछे पूलों के बीच बीनने और बालें बटोरने दे। तो वह आई, और भोर से अब तक यहीं है, केवल थोड़ी देर तक घर में रही थी। 08O 2 8 तब बोअज ने रूत से कहा, हे मेरी बेटी, क्या तू सुनती है? किसी दूसरे के खेत में बीनने को न जाना, मेरी ही दासियों के संग यहीं रहना। 08O 2 9 जिस खेत को वे लवतीं हों उसी पर तेरा ध्यान बन्धा रहे, और उन्हीं के पीछे पीछे चला करना। क्या मैं ने जवानों को आज्ञा नहीं दी, कि तुझ से न बोलें? और जब जब तुझे प्यास लगे, तब तब तू बरतनों के पास जाकर जवानों का भरा हुआ पानी पीना। 08O 2 10 तब वह भूमि तक झुककर मुंह के बल गिरी, और उस से कहने लगी, क्या कारण है कि तू ने मुझ परदेशिन पर अनुग्रह की दृष्टि करके मेरी सुधि ली है? 08O 2 11 बोअज ने उत्तर दिया, जो कुछ तू ने पति मरने के पीछे अपनी सास से किया है, और तू किस रीति अपने माता पिता और जन्मभूमि को छोड़कर ऐसे लोगों में आई है जिनको पहिले तू ने जानती थी, यह सब मुझे विस्तार के साथ बताया गया है। 08O 2 12 यहोवा तेरी करनी का फल दे, और इस्राएल का परमेश्वर यहोवा जिसके पंखों के तले तू शरण लेने आई है तुझे पूरा बदला दें 08O 2 13 उस ने कहा, हे मेरे प्रभु, तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे, क्योंकि यद्यपि मैं तेरी दासियों में से किसी के भी बराबर नहीं हूं, तौभी तू ने अपनी दासी के मन में पैठनेवाली बातें कहकर मुझे शान्ति दी है। 08O 2 14 फिर खाने के समय बोअज ने उस से कहा, यहीं आकर रोटी खा, और अपना कौर सिरके में बोर। तो वह लवनेवालों के पास बैठ गई; और उस ने उसको भुनी हुई बालें दी; और वह खाकर तृप्त हुई, वरन कुछ बचा भी रखा। 08O 2 15 जब वह बीनने को उठी, तब बोअज ने अपने जवानों को आज्ञा दी, कि उसको पूलों के बीच बीच में भी बीनने दो, और दोष मत लगाओ। 08O 2 16 वरन मुट्ठी भर जाने पर कुछ कुछ निकाल कर गिरा भी दिया करो, और उसके बीनने के लिये छोड़ दो, और उसे घुड़को मत। 08O 2 17 सो वह सांझ तक खेत में बीनती रही; तब जो कुछ बीन चुकी उसे फटका, और वह कोई एपा भर जौ निकला। 08O 2 18 तब वह उसे उठाकर नगर में गई, और उसकी सास ने उसका बीना हुआ देखा, और जो कुछ उस ने तृप्त होकर बचाया था उसको उस ने निकालकर अपनी सास को दिया। 08O 2 19 उसकी सास ने उस से पूछा, आज तू कहां बीनती, और कहां काम करती थी? धन्य वह हो जिस ने तेरी सुधि ली है। तब उस ने अपनी सास को बता दिया, कि मैं ने किस के पास काम किया, और कहा, कि जिस पुरूष के पास मैं ने आज काम किया उसका नाम बोअज है। 08O 2 20 नाओमी ने अपनी बहू से कहा, वह यहोवा की ओर से आशीष पाए, क्योंकि उस ने न तो जीवित पर से और न मरे हुओं पर से अपनी करूणा हटाई! फिर नाओमी ने उस से कहा, वह पुरूष तो हमारा कुटुम्बी है, वरन उन में से है जिनको हमारी भूमि छुड़ाने का अधिकार है। 08O 2 21 फिर रूत मोआबिन बोली, उस ने मुझ से यह भी कहा, कि जब तक मेरे सेवक मेरी कटनी पूरी न कर चुकें तब तक उन्हीं के संग संग लगी रह। 08O 2 22 नाओमी ने अपनी बहु रूत से कहा, मेरी बेटी यह अच्छा भी है, कि तू उसी की दासियों के साथ साथ जाया करे, और वे तुझ को दूसरे के खेत में न मिलें। 08O 2 23 इसलिये रूत जौ और गेहूं दोनों की कटनी के अन्त तक बीनने के लिये बोअज की दासियों के साथ साथ लगी रही; और अपनी सास के यहां रहती थी।। 08O 3 1 उसकी सास नाओमी ने उस से कहा, हे मेरी बेटी, क्या मैं तेरे लिये ठांव न ढूंढूं कि तेरा भला हो? 08O 3 2 अब जिसकी दासियों के पास तू थी, क्या वह बोअज हमारा कुटुम्बी नहीं है? वह तो आज रात को खलिहान में जौ फटकेगा। 08O 3 3 तू स्नान कर तेल लगा, वस्त्रा पहिनकर खलिहान को जा; परन्तु जब तक वह पुरूष खा पी न चुके तब तक अपने को उस पर प्रगट न करना। 08O 3 4 और जब वह लेट जाए, तब तू उस के लेटने के स्थान को देख लेना; फिर भीतर जा उसके पांव उघारके लेट जाना; तब वही तुझे बताएगा कि तुझे क्या करना चाहिये। 08O 3 5 08O 3 6 उस ने उस से कहा, जो कुछ तू कहती है वह सब मैं करूंगी। 08O 3 7 तब वह खलिहान को गई और अपनी सास की आज्ञा के अनुसार ही किया। 08O 3 8 जब बोअज खा पी चुका, और उसका मन आनन्दित हुआ, तब जाकर राशि के एक सिरे पर लेट गया। तब वह चुपचाप गई, और उसके पांव उघार के लेट गई। 08O 3 9 आधी रात को वह पुरूष चौंक पड़ा, और आगे की ओर झुककर क्या पाया, कि मेरे पांवों के पास कोई स्त्री लेटी है। 08O 3 10 उस ने पूछा, तू कौन है? तब वह बोली, मैं तो तेरी दासी रूत हूं; तू अपनी दासी को अपनी च र ओढ़ा दे, क्योंकि तू हमारी भूमि छुड़ानेवाला कुटुम्बी है। 08O 3 11 उस ने कहा, हे बेटी, यहोवा की ओर से तुझ पर आशीष हो; क्योंकि तू ने अपनी पिछली प्रीति पहिली से अधिक दिखाई, क्योंकि तू, क्या धनी, क्या कंगाल, किसी जवान के पीछे नहीं लगी। 08O 3 12 इसलिये अब, हे मेरी बेटी, मत डर, जो कुछ तू कहेगी मैं तुझ से करूंगा; क्योंकि मेरे नगर के सब लोग जानते हैं कि तू भली स्त्री है। 08O 3 13 और अब सच तो है कि मैं छुड़ानेवाला कुटुम्बी हूं, तौभी एक और है जिसे मुझ से पहिले ही छुड़ाने का अधिकार है। 08O 3 14 सो रात भर ठहरी रह, और सबेरे यदि वह तेरे लिये छुड़ानेवाले का काम करना चाहे; तो अच्छा, वही ऐसा करे; परन्तु यदि वह तेरे लिये छुड़ानेवाले का काम करने को प्रसन्न न हो, तो यहोवा के जीवन की शपथ मैं ही वह काम करूंगा। भोर तक लेटी रह। 08O 3 15 तब वह उसके पांवों के पास भोर तक लेटी रही, और उस से पहिले कि कोई दूसरे को चीन्ह सके वह उठी; और बोअज ने कहा, कोई जानने न पाए कि खलिहान में कोई स्त्री आई थी। 08O 3 16 तब बोअज ने कहा, जो च र तू ओढ़े है उसे फैलाकर थाम्भ ले। और जब उस ने उसे थाम्भा तब उस ने छ: नपुए जौ नापकर उसको उठा दिया; फिर वह नगर में चली गई। 08O 3 17 जब रूत अपनी सास के पास आई तब उस ने पूछा, हे बेटी, क्या हुआ? तब जो कुछ उस पुरूष ने उस से किया था वह सब उस ने उसे कह सुनाया। 08O 3 18 फिर उस ने कहा, यह छ: नपुए जौ उस ने यह कहकर मुझे दिया, कि अपनी सास के पास छूछे हाथ मत जा। 08O 3 19 उस ने कहा, हे मेरी बेटी, जब तक तू न जाने कि इस बात का कैसा फल निकलेगा, तब तक चुपचाप बैठी रह, क्योंकि आज उस पुरूष को यह काम बिना निपटाए चैन न पड़ेगा।। 08O 4 1 तब बोअज फाटक के पास जाकर बैठ गया; और जिस छुड़ानेवाले कुटुम्बी की चर्चा बोअज ने की थी, वह भी आ गया। तब बोअज ने कहा, हे फुलाने, इघर आकर यहीं बैठ जा; तो वह उधर जाकर बैठ गया। 08O 4 2 तब उस ने नगर के दस वृद्ध लोगों को बुलाकर कहा, यहीं बैठ जाओ; वे भी बैठ गए। 08O 4 3 तब वह छुड़ानेवाले कुटुम्बी से कहने लगा, नाओमी जो मोआब देश से लौट आई है वह हमारे भाई एलीमेलेक की एक टुकड़ा भूमि बेचना चाहती है। 08O 4 4 इसलिये मैं ने सोचा कि यह बात तुझ को जताकर कहूंगा, कि तू उसको इन बैठे हुओं के साम्हने और मेरे लोगों के इन वृद्ध लोगों के साम्हने मोल ले। और यदि तू उसको छुड़ाना चाहे, तो छुड़ा; और यदि तू छुड़ाना न चाहे, तो मुझे ऐसा ही बता दे, कि मैं समझ लूं; क्योंकि तुझे छोड़ उसके छुड़ाने का अधिकार और किसी को नहीं है, और तेरे बाद मैं हूं। उस ने कहा, मैं उसे छुड़ाऊंगा। 08O 4 5 फिर बोअज ने कहा, जब तू उस भूमि को नाओमी के हाथ से मोल ले, तब उसे रूत मोआबिन के हाथ से भी जो मरे हुए की स्त्री है इस मनसा से मोल लेना पड़ेगा, कि मरे हुए का नाम उसके भाग में स्थिर कर दे। 08O 4 6 उस छुड़ानेवाले कुटुम्बी ने कहा, मैं उसको छुड़ा नहीं सकता, ऐसा न हो कि मेरा निज भाग बिगड़ जाए। इसलिये मेरा छुड़ाने का अधिकार तू ले ले, क्योंकि मुझ से वह छुड़ाया नहीं जाता। 08O 4 7 अगले समय में इस्राएल में छुड़ाने के बदलने के विषय में सब पक्का करने के लिये यह व्यवहार था, कि मनुष्य अपनी जूती उतार के दूसरे को देता था। इस्राएल में गवाही इसी रीति होती थी। 08O 4 8 इसलिये उस छुड़ानेवाले कुटुम्बी ने बोअज से यह कहकर; कि तू उसे मोल ले, अपनी जूती उतारी। 08O 4 9 तब बोअज ने वृद्ध लोगों और सब लोगों से कहा, तुम आज इस बात के साक्षी हो कि जो कुछ एलीमेलेक का और जो कुछ किल्योन और महलोन का था, वह सब मैं नाओमी के हाथ से मोल लेता हूं। 08O 4 10 फिर महलोन की स्त्री रूत मोआबिन को भी मैं अपनी पत्नी करने के लिये इस मनसा से मोल लेता हूं, कि मरे हुए का नाम उसके निज भाग पर स्थिर करूं, कहीं ऐसा न हो कि मरे हुए का नाम उसके भाइयों में से और उसके स्थान के फाटक से मिट जाए; तुम लोग आज साक्षी ठहरे हो। 08O 4 11 तब फाटक के पास जितने लोग थे उन्हों ने और वृद्ध लोगों ने कहा, हम साक्षी हैं। यह जो स्त्री तेरे घर में आती है उसको यहोवा इस्राएल के घराने की दो उपजानेवाली राहेल और लिआ: के समान करे। और तू एप्राता में वीरता करे, और बेतलेहेम में तेरा बड़ा नाम हो; 08O 4 12 और जो सन्तान यहोवा इस जवान स्त्री के द्वारा तुझे दे उसके कारण से तेरा घराना पेरेस का सा हो जाए, जो तामार से यहूदा के द्वारा उत्पन्न हुआ। 08O 4 13 तब बोअज ने रूत को ब्याह लिया, और वह उसकी पत्नी हो गई; और जब वह उसके पास गया तब यहोवा की दया से उस को गर्भ रहा, और उसके एक बेटा उत्पन्न हुआ। 08O 4 14 तब स्त्रियों ने नाओमी से कहा, यहोवा धन्य है, जिस ने तुझे आज छुड़ानेवाले कुटुम्बी के बिना नहीं छोड़ा; इस्राएल में इसका बड़ा नाम हो। 08O 4 15 और यह तेरे जी में जी ले आनेवाला और तेरा बुढ़ापे में पालनेवाला हो, क्योंकि तेरी बहू जो तुझ से प्रेम रखती और सात बेटों से भी तेरे लिये श्रेष्ठ है उसी का यह बेटा है। 08O 4 16 फिर नाओमी उस बच्चे को अपनी गोद में रखकर उसकी धाई का काम करने लगी। 08O 4 17 और उसकी पड़ोसिनों ने यह कहकर, कि नाओमी के एक बेटा उत्पन्न हुआ है, लड़के का नाम ओबेद रखा। यिशै का पिता और दाऊद का दादा वही हुआ।। 08O 4 18 पेरेस की यह वंशावली है, अर्थात् पेरेस से हेब्रोन, 08O 4 19 और हेब्रोन से राम, और राम से अम्मीनादाब, 08O 4 20 और अम्मीनादाब से नहशोन, और नहशोन से सल्मोन 08O 4 21 और सल्मोन से बोअज, और बोअज से ओबेद, 08O 4 22 और ओबेद से यिशै, और यिशै से दाऊद उत्पन्न हुआ।। 09O 1 1 एप्रैम के पहाड़ी देश के रामतैम सोपीम नाम नगर का निवासी एल्काना नाम पुरूष था, वह एप्रेमी था, और सूप के पुत्रा तोहू का परपोता, एलीहू का पोता, और यरोहाम का पुत्रा था। 09O 1 2 और उसके दो पत्नियां थीं; एक का तो नाम हन्ना और दूसरी का पनिन्ना था। और पनिन्ना के तो बालक हुए, परन्तु हन्ना के कोई बालक न हुआ। 09O 1 3 वह पुरूष प्रति वर्ष अपने नगर से सेनाओं के यहोवा को दण्डवत् करने और मेलबलि चढ़ाने के लिये शीलो में जाता था; और वहां होप्नी और पीनहास नाम एली के दोनों पुत्रा रहते थे, जो यहोवा के याजक थे। 09O 1 4 और जब जब एल्काना मेलबलि चढ़ाता था तब तब वह अपनी पत्नी पनिन्ना को और उसके सब बेटे- बेटियों को दान दिया करता था; 09O 1 5 परन्तु हन्ना को वह दूना दान दिया करता था, क्योंकि वह हन्ना से प्रीति रखता था; तौभी यहोवा ने उसकी कोख बन्द कर रखी थी। 09O 1 6 परन्तु उसकी सौत इस कारण से, कि यहोवा ने उसकी कोख बन्द कर रखी थी, उसे अत्यन्त चिढ़ाकर कुढ़ाती रहती थीं। 09O 1 7 और वह तो प्रति वर्ष ऐसा ही करता था; और जब हन्ना यहोवा के भवन को जाती थी तब पनिन्ना उसको चिढ़ाती थी। इसलिये वह रोती और खाना न खाती थी। 09O 1 8 इसलिये उसके पति एल्काना ने उस से कहा, हे हन्ना, तू क्यों रोती है? और खाना क्यों नहीं खाती? और मेरा मन क्यों उदास है? क्या तेरे लिये मैं दस बेटों से भी अच्छा नहीं हूं? 09O 1 9 तब शीलो में खाने और पीने के बाद हन्ना उठी। और यहोवा के मन्दिर के चौखट के एक अलंग के पास एली याजक कुर्सी पर बैठा हुआ था। 09O 1 10 और यह मन में व्याकुल होकर यहोवा से प्रार्थना करने और बिलख बिलखकर रोने लगी। 09O 1 11 और उस ने यह मन्नत मानी, कि हे सेनाओं के यहोवा, यदि तू अपनी दासी के दु:ख पर सचमुच दृष्टि करे, और मेरी सुधि ले, और अपनी दासी को भूल न जाए, और अपनी दासी को पुत्रा दे, तो मैं उसे उसके जीवन भर के लिये यहोवा को अर्पण करूंगी, और उसके सिर पर छुरा फिरने न पाएगा। 09O 1 12 जब वह यहोवा के साम्हने ऐसी प्रार्थना कर रही थी, तब एली उसके मुंह की ओर ताक रहा था। 09O 1 13 हन्ना मन ही मन कह रही थी; उसके होंठ तो हिलते थे परन्तु उसका शब्द न सुन पड़ता था; इसलिये एली ने समझा कि वह नशे में है। 09O 1 14 तब एली ने उस से कहा, तू कब तक नशे में रहेगी? अपना नशा उतार। 09O 1 15 हन्ना ने कहा, नहीं, हे मेरे प्रभु, मैं तो दु:खिया हूं; मैं ने न तो दाखमधु पिया है और न मदिरा, मैं ने अपने मन की बात खोलकर यहोवा से कही है। 09O 1 16 अपनी दासी को ओछी स्त्री न जान जो कुछ मैं ने अब तक कहा है, वह बहुत ही शोकित होने और चिढ़ाई जाने के कारण कहा है। 09O 1 17 एली ने कहा, कुशल से चली जा; इस्राएल का परमेश्वर तुझे मन चाहा वर दे। 09O 1 18 उसे ने कहा, तेरी दासी तेरी दृष्टि में अनुग्रह पाए। तब वह स्त्री चली गई और खाना खाया, और उसका मुंह फिर उदास न रहा। 09O 1 19 बिहान को वे सवेरे उठ यहोवा को दण्डवत् करके रामा में अपने घर लौट गए। और एलकाना अपनी स्त्री हन्ना के पास गया, और यहोवा ने उसकी सुधि ली; 09O 1 20 तब हन्ना गर्भवती हुई और समय पर उसके एक पुत्रा हुआ, और उसका नाम शमूएल रखा, क्योंकि वह कहने लगी, मैं ने यहोवा से मांगकर इसे पाया है। 09O 1 21 फिर एल्काना अपने पूरे घराने समेत यहोवा के साम्हने प्रति वर्ष की मेलबलि चढ़ाने और अपनी मन्नत पूरी करने के लिये गया। 09O 1 22 परन्तु हन्ना अपने पति से यह कहकर घर में रह गई, कि जब बालक का दूध छूट जाएगा तब मैं उसको ले जाऊंगी, कि वह यहोवा को मुंह दिखाए, और वहां सदा बना रहे। 09O 1 23 उसके पति एलकाना ने उस से कहा, जो तुझे भला लगे वही कर, जब तक तू उसका दूध न छुड़ाए तब तक यहीं ठहरी रह; केवल इतना हो कि यहोवा अपना वचन पूरा करे। इसलिये वह स्त्री वहीं घर पर रह गई और अपने पुत्रा के दूध छुटने के समय तक उसको पिलाती रही। 09O 1 24 जब उस ने उसका दूध छुड़ाया तब वह उसको संग ले गई, और तीन बछड़े, और एपा भर आटा, और कुप्पी भर दाखमधु भी ले गई, और उस लड़के को शीलो में यहोवा के भवन में पहुंचा दिया; उस समय वह लड़का ही था। 09O 1 25 और उन्हों ने बछड़ा बलि करके बालक को एली के पास पहुंचा दिया। 09O 1 26 तब हन्ना ने कहा, हे मेरे प्रभु, तेरे जीवन की शपथ, हे मेरे प्रभु, मैं वही स्त्री हूं जो तेरे पास यहीं खड़ी होकर यहोवा से प्रार्थना करती थी। 09O 1 27 यह वही बालक है जिसके लिये मैं ने प्रार्थना की थी; और यहोवा ने मुझे मुंह मांगा वर दिया है। 09O 1 28 इसी लिये मैं भी उसे यहोवा को अर्पण कर देती हूं; कि यह अपने जीवन भर यहोवा ही का बना रहे। तब उस ने वहीं यहोवा को दण्डवत् किया।। 09O 2 1 और हन्ना ने प्रार्थना करके कहा, मेरा मन यहोवा के कारण मगन है; मेरा सींग यहोवा के कारण ऊंचा, हुआ है। मेरा मुंह मेरे शत्रुओं के विरूद्ध खुल गया, क्योंकि मैं तेरे किए हुए उद्धार से आनन्दित हूं। 09O 2 2 यहोवा के तुल्य कोई पवित्रा नहीं, क्योंकि तुझ को छोड़ और कोई है ही नहीं; और हमारे परमेश्वर के समान कोई चट्टान नहीं है।। 09O 2 3 फूलकर अहंकार की ओर बातें मत करो, और अन्धेर की बातें तुम्हारे मुंह से न निकलें; क्योंकि यहोवा ज्ञानी ईश्वर है, और कामों को तौलनेवाला है।। 09O 2 4 शूरवीरों के धनुष टूट गए, और ठोकर खानेवालों की कटि में बल का फेंटा कसा गया।। 09O 2 5 जो पेट भरते थे उन्हें रोटी के लिये मजदूरी करनी पड़ी, जो भूखे थे वे फिर ऐसे न रहे। वरन जो बांझ थी उसके सात हुए, और अनेक बालकों की माता घुलती जाती है। 09O 2 6 यहोवा मारता है और जिलाता भी है; वही अधोलोक में उतारता और उस से निकालता भी है।। 09O 2 7 यहोवा निर्धन करता है और धनी भी बनाता है, वही नीचा करता और ऊंचा भी करता है। 09O 2 8 वह कंगाल को धूलि में से उठाता; और दरिद्र को घूरे में से निकाल खड़ा करता है, ताकि उनको अधिपतियों के संग बिठाए, और महिमायुक्त सिंहासन के अधिकारी बनाए। क्योंकि पृथ्वी के खम्भे यहोवा के हैं, और उस ने उन पर जगत को धरा है। 09O 2 9 वह अपने भक्तों के पावों को सम्भाले रहेगा, परन्तु दुष्ट अन्धियारे में चुपचाप पड़े रहेंगे; क्योंकि कोई मनुष्य अपने बल के कारण प्रबल न होगा।। 09O 2 10 जो यहोवा से झगड़ते हैं वे चकनाचूर होंगे; वह उनके विरूद्ध आकाश में गरजेगा। यहोवा पृथ्वी की छोर तक न्याय करेगा; और अपने राजा को बल देगा, और अपने अभिषिक्त के सींग को ऊंचा करेगा।। 09O 2 11 तब एल्काना रामा को अपने घर चला गया। और वह बालक एली याजक के साम्हने यहोवा की सेवा टहल करने लगा।। 09O 2 12 एली के पुत्रा तो लुच्चे थे; उन्हों ने यहोवा को न पहिचाना। 09O 2 13 और याजकों की रीति लोगों के साथ यह थी, कि जब कोई मनुष्य मेलबलि चढ़ाता था तब याजक का सेवक मांस पकाने के समय एक त्रिशूली कांटा हाथ में लिये हुए आकर, 09O 2 14 उसे कड़ाही, वा हांडी, वा हंडे, वा तसले के भीतर डालता था; और जितना मांस कांटे में लग जाता था उतना याजक आप लेता था। यों ही वे शीलो में सारे इस्राएलियों से किया करते थे जो वहां आते थे। 09O 2 15 और चर्बी जलाने से पहिले भी याजक का सेवक आकर मेलबलि चढ़ानेवाले से कहता था, कि कबाब के लिये याजक को मांस दे; वह तुझ से पका हुआ नहीं, कच्चा ही मांस लेगा। 09O 2 16 और जब कोई उस से कहता, कि निश्चय चर्बी अभी जलाई जाएगी, तब जितना तेरा जी चाहे उतना ले लेना, तब वह कहता था, नहीं, अभी दे; नहीं तो मैं छीन लूंगा। 09O 2 17 इसलिये उन जवानों का पाप यहोवा की दृष्टि में बहुत भारी हुआ; क्योंकि वे मनुष्य यहोवा की भेंट का तिरस्कार करते थे।। 09O 2 18 परन्तु शमूएल जो बालक था सनी का एपोद पहिने हुए यहोवा के साम्हने सेवा टहल किया करता था। 09O 2 19 और उसकी माता प्रति वर्ष उसके लिये एक छोटा सा बागा बनाकर जब अपने पति के संग प्रति वर्ष की मेलबलि चढ़ाने आती थी तब बागे को उसके पास लाया करती थी। 09O 2 20 और एली ने एल्काना और उसकी पत्नी को आशीर्वाद देकर कहा, यहोवा इस अर्पण किए हुए बालक की सन्ती जो उसको अर्पण किया गया है तुझ को इस पत्नी के वंश दे; तब वे अपने यहां चले गए। 09O 2 21 और यहोवा ने हन्ना की सुधि ली, और वह गर्भवती हुई ओर उसके तीन बेटे और दो बेटियां उत्पन्न हुई। और शमूएल बालक यहोवा के संग रहता हुआ बढ़ता गया। 09O 2 22 और एली तो अति बूढ़ा हो गया था, और उस ने सुना कि मेरे पुत्रा सारे इस्राएल से कैसा कैसा व्यवहार करते हैं, वरन मिलापवाले तम्बू के द्वार पर सेवा करनेवाली स्त्रियों के संग कुकर्म भी करते हैं। 09O 2 23 तब उस ने उन से कहा, तुम ऐसे ऐसे काम क्यों करते हो? मैं तो इन सब लोगों से तुम्हारे कुकर्मों की चर्चा सुना करता हूं। 09O 2 24 हे मेरे बेटों, ऐसा न करो, क्योंकि जो समाचार मेरे सुनने में आता है वह अच्छा नहीं; तुम तो यहोवा की प्रजा से अपराध कराते हो। 09O 2 25 यदि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य का अपराध करे, तब तो परमेश्वर उसका न्याय करेगा; परन्तु यदि कोई मनुष्य यहोवा के विरूद्ध पाप करे, तो उसके लिये कौन बिनती करेगा? तौभी उन्हों ने अपने पिता की बात न मानी; क्योंकि यहोवा की इच्छा उन्हें मार डालने की थी। 09O 2 26 परन्तु शमूएल बालक बढ़ता गया और यहोवा और मनुष्य दोनो उस से प्रसन्न रहते थे।। 09O 2 27 और परमेश्वर का एक जन एली के पास जाकर उस से कहने लगा, यहोवा यों कहता है, कि जब तेरे मूलपुरूष का घराना मि में फिरौन के घराने के वश में था, तब क्या मैं उस पर निश्चय प्रगट न हुआ था? 09O 2 28 और क्या मैं ने उसे इस्राएल के सब गोत्रों में से इसलिये चुन नहीं लिया था, कि मेरा याजक होकर मेरी वेदी के ऊपर चढ़ावे चढ़ाए, और धूप जलाए, और मेरे साम्हने एपोद पहिना करे? और क्या मैं ने तेरे मूलपुरूष के घराने को इस्राएलियों के कुल हव्य न दिए थे? 09O 2 29 इसलिये मेरे मेलबलि और अन्नबलि जिनको मैं ने अपने धाम में चढ़ाने की आज्ञा दी है, उन्हें तुम लोग क्यों पांव तले रौंदते हो? और तू क्यों अपने पुत्रों का आदर मेरे आदर से अधिक करता है, कि तुम लोग मेरी इस्राएली प्रजा की अच्छी से अच्छी भेंटें खा खाके मोटे हो जाओ? 09O 2 30 इसलिये इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, कि मैं ने कहा तो था, कि तेरा घराना और तेरे मूलपुरूष का घराना मेरे साम्हने सदैव चला करेगा; परन्तु अब यहोवा की वाणी यह है, कि यह बात मुझ से दूर हो; क्योंकि जो मेरा आदर करें मैं उनका आदर करूंगा, और जो मुझे तुच्छ जानें वे छोटे समझे जाएंगे। 09O 2 31 सुन, वे दिन आते हैं, कि मैं तेरा भुजबल और तेरे मूलपुरूष के घराने का भुजबल ऐसा तोड़ डालूंगा, कि तेरे घराने में कोई बूढ़ा होने न पाएगा। 09O 2 32 इस्राएल का कितना ही कल्याण क्यों न हो, तौभी तुझे मेरे धाम का दु:ख देख पड़ेगा, और तेरे घराने में कोई कभी बूढ़ा न होने पाएगा। 09O 2 33 मैं तेरे कुल के सब किसी से तो अपनी वेदी की सेवा न छीनूंगा, परन्तु तौभी तेरी आंखें देखती रह जाएंगी, और तेरा मन शोकित होगा, और तेरे घर की बढ़ती सब अपनी पूरी जवानी ही में मर मिटेंगें। 09O 2 34 और मेरी इस बात का चिन्ह वह विपत्ति होगी जो होप्नी और पीनहास नाम तेरे दोनों पुत्रों पर पड़ेगी; अर्थात् वे दोनो के दोनों एक ही दिन मर जाएंगे। 09O 2 35 और मैं अपने लिये एक विश्वासयोग्य याजक ठहराऊंगा, जो मेरे हृदय और मन की इच्छा के अनुसार किया करेगा, और मैं उसका घर बसाऊंगा और स्थिर करूंगा, और वह मेरे अभिषिक्त के आगे सब दिन चला फिरा करेगा। 09O 2 36 और ऐसा होगा कि जो कोई तेरे घराने में बचा रहेगा वह उसी के पास जाकर एक छोटे से टुकड़े चान्दी के वा एक रोटी के लिये दण्डवत् करके कहेगा, याजक के किसी काम में मुझे लगा, जिस से मुझे एक टुकड़ा रोटी मिले।। 09O 3 1 और वह बालक शमूएल एली के साम्हने यहोवा की सेवा टहल करता था। और उन दिनों में यहोवा का वचन दुर्लभ था; और दर्शन कम मिलता था। 09O 3 2 और उस समय ऐसा हुआ कि (एली की आंखे तो धुंघली होने लगी थीं और उसे न सूझ पड़ता था) जब वह अपने स्थान में लेटा हुआ था, 09O 3 3 और परमेश्वर का दीपक अब तक बुझा नहीं था, और शमूएल यहेवा के मन्दिर में जंहा परमेश्वर का सन्दूक था लेटा था; 09O 3 4 तब यहोवा ने शमूएल को पुकारा; और उस ने कहा, क्या आज्ञा! 09O 3 5 तब उस ने एली के पास दौड़कर कहा, क्या आज्ञा, तू ने तो मुझे पुकारा है। वह बोला, मैं ने नहीं पुकारा; फिर जा लेट रह। तो वह जाकर लेट गया। 09O 3 6 तब यहोवा ने फिर पुकार के कहा, हे शमूएल! शमूएल उठकर एली के पास गया, और कहा, क्या आज्ञा, तू ने तो मुझे पुकारा है। उस ने कहा, हे मेरे बेटे, मैं ने नहीं पुकारा; फिर जा लेट रह। 09O 3 7 उस समय तक तो शमूएल यहोवा को नहीं पहचानता था, और न तो यहोवा का वचन ही उस पर प्रगट हुआ था। 09O 3 8 फिर तीसरी बार यहोवा ने शमूएल को पुकारा। और वह उठके एली के पास गया, और कहा, क्या आज्ञा, तू ने तो मुझे पुकारा है। तब एली ने समझ लिया कि इस बालक को यहोवा ने पुकारा है। 09O 3 9 इसलिये एली ने शमूएल से कहा, जा लेट रहे; और यदि वह तुझे फिर पुकारे, तो तू कहना, कि हे यहोवा, कह, क्योंकि तेरा दास सुन रहा है तब शमूएल अपने स्थान पर जाकर लेट गया। 09O 3 10 तब यहोवा आ खड़ा हुआ, और पहिले की नाईं पुकारा, शमूएल! शमूएल! शमूएल ने कहा, कह, क्योंकि तेरा दास सुन रहा है। 09O 3 11 यहोवा ने शमूएल से कहा, सुन, मैं इस्राएल में एक काम करने पर हूं, जिससे सब सुननेवालों पर बड़ा सन्नाटा छा जाएगा। 09O 3 12 उस दिन मैं एली के विरूद्ध वह सब कुछ पूरा करूंगा जो मैं ने उसके घराने के विषय में कहा, उसे आरम्भ से अन्त तक पूरा करूंगा। 09O 3 13 क्योंकि मैं तो उसको यह कहकर जता चुका हूं, कि मैं उस अधर्म का दण्ड जिसे वह जानता है सदा के लिये उसके घर का न्याय करूंगा, क्योंकि उसके पुत्रा आप शापित हुए हैं, और उस ने उन्हें नहीं रोका। 09O 3 14 इस कारण मैं ने एली के घराने के विषय यह शपथ खाई, कि एली के घराने के अधर्म का प्रायश्चित न तो मेलबलि से कभी होगा, और न अन्नबलि से। 09O 3 15 और शमूएल भोर तक लेटा रहा; तब उस ने यहोवा के भवन के किवाड़ों को खोला। और शमूएल एली को उस दर्शन की बातें बतानें से डरा। 09O 3 16 तब एली ने शमूएल को पुकारकर कहा, हे मेरे बेटे, शमूएल! वह बोला, क्या आज्ञा। 09O 3 17 तब उस ने पूछा, वह कौन सी बात है जो यहोवा ने तुझ से कही है? उसे मुझ से न छिपा। जो कुछ उस ने तुझ से कहा हो यदि तू उस में से कुछ भी मुझ से छिपाए, तो परमेश्वर तुझ से वैसा ही वरन उस से भी अधिक करे। 09O 3 18 तब शमूएल ने उसको रत्ती रत्ती बातें कह सुनाईं, और कुछ भी न छिपा रखा। वह बोला, वह तो यहोवा है; जो कुछ वह भला जाने वही करें। 09O 3 19 और शमूएल बड़ा होता गया, और यहोवा उसके संग रहा, और उस ने उसकी कोई भी बात निष्फल होने नहीं दी। 09O 3 20 और दान से बेर्शेबा तक के रहनेवाले सारे इस्राएलियों ने जान लिया कि शमूएल यहोवा का नबी होने के लिये नियुक्त किया गया है। 09O 3 21 और यहोवा ने शीलो में फिर दर्शन दिया, क्योंकि यहोवा ने अपने आप को शीलो में शमूएल पर अपने वचन के द्वारा प्रगट किया।। 09O 4 1 और शमूएल का वचन सारे इस्राएल के पास पहुंचा। और इस्राएली पलिश्तियों से युद्ध करने को निकले; और उन्हों ने तो एबेनेजेर के आस- पास छावनी डाली, और पलिश्तियों ने अपेक में छावनी डाली। 09O 4 2 तब पलिश्तियों ने इस्राएल के विरूद्ध पांति बान्धी, और जब घमासान युद्ध होने लगा तब इस्राएली पलिश्तियों से हार एग, और उन्हों ने कोई चार हजार इस्राएली सेना के पुरूषों को मैदान ही में मार डाला। 09O 4 3 और जब वे लोग छावनी में लौट आए, तब इस्राएल के वृद्ध लोग कहने लगे, कि यहोवा ने आज हमें पलिश्तियों से क्यों हरवा दिया है? आओ, हम यहोवा की वाचा का सन्दूक शीलो से मांग ले आएं, कि वह हमारे बीच में आकर हमें शत्रुओं के हाथ से बचाए। 09O 4 4 तब उन लोगों ने शीलों में भेजकर वहां से करूबों के ऊपर विराजनेवाले सेनाओं के यहोवा की वाचा का सन्दूक मंगा लिया; और परमेश्वर की वाचा के सन्दूक के साथ एली के दोनों पुत्रा, होप्नी और पिनहास भी वहां थे। 09O 4 5 जब यहोवा की वाचा का सन्दूक छावनी में पहुंचा, तब सारे इस्राएली इतने बल से ललकार उठे, कि भूमि गूंज उठी। 09O 4 6 इस ललकार का शब्द सुनकर पलिश्तियों ने पूछा, इब्रियों की छावनी में ऐसी बड़ी ललकार का क्या कारण है? तब उन्हों ने जान लिया, कि यहोवा का सन्दूक छावनी में आया है। 09O 4 7 तब पलिश्ती डरकर कहने लगे, उस छावनी में परमेश्वर आ गया है। फिर उन्हों ने कहा, हाय! हम पर ऐसी बात पहिले नहीं हुई थी। 09O 4 8 हाय! ऐसे महाप्रतापी देवताओं के हाथ से हम को कौन बचाएगा? ये तो वे ही देवता हैं जिन्हों ने मिस्त्रियों पर जंगल में सब प्रकार की विपत्तियां डाली थीं। 09O 4 9 हे पलिश्तियों, तुम हियाव बान्धो, और पुरूषार्थ जगाओ, कहीं ऐसा न हो कि जैसे इब्री तुम्हारे अधीन हो गए वैसे तुम भी उनके अधीन हो जाओ; पुरूषार्थ करके संग्राम करो। 09O 4 10 तब पलिश्ती लड़ाई के मैदान में टूट पड़े, और इस्राएली हारकर अपने अपने डेरे को भागने लगे; और ऐसा अत्यन्त संहार हुआ, कि तीस हजार इस्राएली पैदल खेत आए। 09O 4 11 और परमेश्वर का सन्दूक छीन लिया गया; और एली के दोनो पुत्रा, होप्नी और पीनहास, भी मारे गए। 09O 4 12 तब एक बिन्यामीनी मनुष्य ने सेना में से दौड़कर उसी दिन अपने वस्त्रा फाड़े और सिर पर मिट्टी डाले हुए शीलो में पहुंचा। 09O 4 13 वह जब पहुंचा उस समय एली, जिसका मन परमेश्वर के सन्दूक की चिन्ता से थरथरा रहा था, वह मार्ग के किनारे कुर्सी पर बैठा बाट जोह रहा था। और ज्योंही उस मनुष्य ने नगर में पहुंचकर वह समाचार दिया त्योंही सारा नगर चिल्ला उठा। 09O 4 14 चिल्लाने का शब्द सुनकर एली ने पूछा, ऐसे हुल्लड़ और हाहाकार मचने का क्या कारण है? और उस मनुष्य ने झट जाकर एली को पूरा हाल सुनाया। 09O 4 15 एल तो अट्ठानवे वर्ष का था, और उसकी आंखें धुन्धली पड़ गई थीं, और उसे कुछ सूझता न था। 09O 4 16 उस मनुष्य ने एली से कहा, मैं वही हूं जो सेना में से आया हूं; और मैं सेना से आज ही भाग आया। वह बोला, हे मेरे बेटे, क्या समाचार है? 09O 4 17 उस समाचार देनेवाले ने उत्तर दिया, कि इस्राएली पलिश्तियों के साम्हने से भाग गए हैं, और लोगों का बड़ा भयानक संहार भी हुआ है, और तेरे दोनों पुत्रा होप्नी और पीनहास भी मारे गए, और परमेश्वर का सन्दूक भी छीन लिया गया है। 09O 4 18 ज्योंही उस ने परमेश्वर के सन्दूक का नाम लिया त्योंही एली फाटक के पास कुर्सी पर से पछाड़ खाकर गिर पड़ा; और बूढ़े और भारी होने के कारण उसकी गर्दन टूट गई, और वह मर गया। उस ने तो इस्राएलियों का न्याय चालीस वर्ष तक किया था। 09O 4 19 उसकी बहू पीनहास की स्त्री गर्भवती थी, और उसका समय समीप था। और जब उस ने परमेश्वर के सन्दूक के छीन लिए जाने, और अपने ससुर और पति के मरने का समाचार सुना, तब उसको जच्चा का दर्द उठा, और वह दुहर गई, और उसके एक पुत्रा उत्पन्न हुआ। 09O 4 20 उसके मरते मरते उन स्त्रियों ने जो उसके आस पास खड़ी थीं उस से कहा, मत डर, क्योंकि तेरे प्रत्रा उत्पन्न हुआ है। परन्तु उस ने कुद उत्तर न दिया, और न कुछ ध्यान दिया। 09O 4 21 और परमेश्वर के सन्दूक के छीन लिए जाने और अपने ससुर और पति के कारण उस ने यह कहकर उस बालक का नाम ईकाबोद रखा, कि इस्राएल में से महिमा उठ गई! 09O 4 22 फिर उस ने कहा, इस्राएल में से महिमा उठ गई है, क्योंकि परमेश्वर का सन्दूक छीन लिया गया है।। 09O 5 1 और पलिश्तियों ने परमेश्वर का सन्दूक एबनेजेर से उठाकर अशदोद में पहुंचा दिया; 09O 5 2 फिर पलिश्तियों ने परमेश्वर के सन्दूक को उठाकर दागोन के मन्दिर में पहुंचाकर दागोन के पास धर दिया। 09O 5 3 बिहान को अशदोदियों ने तड़के उठकर क्या देखा, कि दागोन यहोवा के सन्दूक के साम्हने औंधे मूंह भूमि पर गिरा पड़ा है। तब उन्हों ने दागोन को उठाकर उसी के स्थान पर फिर खड़ा किया। 09O 5 4 फिर बिहान को जब वे तड़के उठे, तब क्या देखा, कि दागोन यहोवा के सन्दूक के साम्हने औंधे मुंह भूमि पर गिरा पड़ा है; और दागोन का सिर और दोनो हथेलियां डेवढ़ी पर कटी हुई पड़ी हैं; निदान दागोन का केवल धड़ समूचा रह गया। 09O 5 5 इस कारण आज के दिन तक भी दागोन के पुजारी और जितने दागोन के मन्दिर में जाते हैं, वे अशदोद में दागोन कीे डेवढ़ी पर पांव नहीं धरते।। 09O 5 6 तब यहोवा का हाथ अशदोदियों के ऊपर भारी पड़ा, और वह उन्हें नाश करने लगा; और उस ने अशदोद और उसके आस पास के लोगों के गिलटियां निकालीं। 09O 5 7 यह हाल देखकर अशदोद के लोगों ने कहा, इस्राएल के देवता का सन्दूक हमारे मध्य रहने नहीं पाएगा; क्योंकि उसका हाथ हम पर और हमारे देवता दागोन पर कठोरता के साथ पड़ा है। 09O 5 8 तब उन्हों ने पलिश्तियों के सब सरदारों को बुलवा भेजा, और उन से पूछा, हम इस्राएल के देवता के सन्दूक से क्या करें? वे बोले, इस्राएल के परमेश्वर के सन्दूक को घूमाकर गत में पहुंचाया जाए। तो उन्हों ने इस्राएल के परमेश्वर के सन्दूक को घुमाकर गत में पहुंचा दिया। 09O 5 9 जब वे उसको घुमाकर वहां पहुंचे, तो यूं हुआ कि यहोवा का हाथ उस नगर के विरूद्ध ऐसा उठा कि उस में अत्यन्त हलचल मच गई; ओर उस ने छोटे से बड़े तब उस नगर के सब लोगों को मारा, और उनके गिलटियां निकलने लगीं। 09O 5 10 तब उन्हों ने परमेश्वर का सन्दूक एक्रोन को भेजा और ज्योंही परमेश्वर का सन्दूक एक्रोन में पहुंचा त्योंही एक्रोनी यह कहकर चिल्लाने लगे, कि इस्राएल के देवता का सन्दूक घुमाकर हमारे पास इसलिये पहुंचाया गया है, कि हम और हमारे लोगों को मरवा डाले। 09O 5 11 तब उन्हों ने पलिश्तियों के सब सरदारों को इकट्ठा किया, और उन से कहा, इस्राएल के देवता के सन्दूक को निकाल दो, कि वह अपेन स्थान पर लौट जाए, और हम को और हमारे लोगों को मार डालने न पाए। उस समस्त नगर में तो मृत्यु के भय की हलचल मच रही थी, और परमेश्वर का हाथ वहां बहुत भारी पड़ा था। 09O 5 12 और जो मनुष्य न मरे वे भी गिलटियों के मारे पड़े रहे; और नगर की चिल्लाहट आकाश तक पहुंची।। 09O 6 1 यहोवा का सन्दूक पलिश्तियों के देश में सात महीने तक रहा। 09O 6 2 तब पलिश्तियों ने याजकों और भावी करनेवालों को बुलाकर पूछा, कि यहोवा के सन्दूक से हम क्या करें? हमें बताओं की क्या प्रायश्चित देकर हम उसे उसके स्थान पर भेजें? 09O 6 3 वे बोले, यदि तुम इस्राएल के देवता का सन्दूक वहां भेजा, जो उसे वैसे ही न भेजना; उसकी हानि भरने के लिये अवश्य ही दोषबलि देना। तब तुम चंगे हो जाओगे, और तुम जान लोगों कि उसका हाथ तुम पर से क्यों नहीं उठाया गया। 09O 6 4 उन्हों ने पूछा, हम उसकी हानि भरने के लिये कोन सा दोषबलि दें? वे बोले, पलिश्ती सरदारों की गिनती के अनुसार सोने की पांच गिलटियां, और सोने के पांच चूहे; क्योंकि तुम सब और तुम्हारे सरदार दोनों एक ही रोग से ग्रसित हो। 09O 6 5 तो तुम अपनी गिलटियों और अपने देश के नाश करनेवाले चूहों की भी मूरतें बनाकर इस्राएल के देवता की महिमा मानो; सम्भव है वह अपना हाथ तुम पर से और तुम्हारे देवताओं और देश पर से उठा ले। 09O 6 6 तुम अपने मन क्यों ऐसे हठीले करते हो जैसे मिस्त्रियों और फिरौन ने अपने मन हठीले कर दिए थे? जब उस ने उनके मध्य में अचम्भित काम किए, तब क्या उन्हों ने उन लोगों को जाने न दिया, और क्या वे चले न गए? 09O 6 7 सो अब तुम एक नई गाड़ी बनाओ, और ऐसी दो दुधार गायें लो जो सुए तले न आई हों, और उन गायों को उस गाड़ी में जोतकर उनके बच्चों को उनके पास से लेकर घर को लौटा दो। 09O 6 8 तब यहोवा का सन्दूक लेकर उस गाड़ी पर धर दो, और साने की जो वस्तुएं तुम उसकी हाति भरने के लिये दोषबलि की रीति से दोगे उन्हें दूसरे सन्दूक में घर के उसके पास रख दो। फिर उसे रवाना कर दो कि चली जाए। 09O 6 9 और देखते रहना; यदि वह अपने देश के मार्ग से होकर बेतशेमेश को चले, तो जानो कि हमारी यह बड़ी हानि उसी की ओर से हुई: और यदि नहीं, तो हम को निश्चय होगा कि यह मार हम पर उसकी ओर से नहीं, परन्तु संयोग ही से हुई। 09O 6 10 उन मनुष्यों ने वैसा ही किया; अर्थात् दो दुधार गायें लेकर उस गाड़ी में जोतीं, और उनके बच्चों को घर में बन्द कर दिया। 09O 6 11 और यहोवा का सन्दूक, और दूसरा सन्दूक, और सोने के चूहों और अपनी गिलटियों की मूरतों को गाड़ी पर रख दिया। 09O 6 12 तब गायों ने बेतशमेश को सीधा मार्ग लिया; वे सड़क ही सड़क बम्बाती हुई चली गई, और न दहिने मुड़ी और न बायें; और पलिश्तियों के सरदार उनके पीछे पीछे बेतशेमेश के सिवाने तक गए। 09O 6 13 और बेतशेमेश के लोग तराई में गेहूं काट रहे थे; और जब उन्हों ने आंखें उठाकर सन्दूक को देखा, तब उसके देखने से आनन्दित हुए। 09O 6 14 और गाड़ी यहोशू नाम एक बेतशेमेशी के खेत में जाकर वहां ठहर गई, जहां एक बड़ा पत्थर था। तब उन्हों ने गाड़ी की लकड़ी को चीरा और गायों को होमबलि करके यहोवा के लिये चढ़ाया। 09O 6 15 और लेवीयों ने यहोवा के सन्दूक को उस सन्दूक के समेत जो साथ था, जिस में सोने की वस्तुएं थी, उतारके उस बड़े पत्थर पर धर दिया; और बेतशेमेश के लोगों ने उसी दिन यहोवा के लिये होमबलि और मेलबलि चढ़ाए। 09O 6 16 यह देखकर पलिश्तियों के पांचों सरदार उसी दिन एक्रोन को लौट गए।। 09O 6 17 सोने की गिलटियां जो पलिश्तियों ने यहोवा की हाति भरने के लिये दोषबलि करके दे दी थी उन में से एक तो अशदोद की ओर से, एक अज्जा, एक अश्कलोन, एक गत, और एक एक्रोन की ओर से दी गई थी। 09O 6 18 और वह सोने के चूहे, क्या शहरपनाहवाले नगर, क्या बिना शहरपनाह के गांव, वरन जिस बड़े पत्थर पर यहोवा का सन्दूक धरा गया था वहां पलिश्तियों के पांचों सरदारों के अधिकार तक की सब बस्तियों की गिनती के अनुसार दिए गए। वह पत्थर तो आज तक बेतशेमेशी यहोशू के खेत में है। 09O 6 19 फिर इस कारण से कि बेतशेमेश के लोगों ने यहोवा के सन्दूक के भीतर झांका था उस ने उन में से सत्तर मनुष्य, और फिर पचास हजार मनुष्य मार डाले; और वहां के लोगों ने इसलिये विलाप किया कि यहोवा ने लोगों का बड़ा ही संहार किया था। 09O 6 20 तब बेतशेमेश के लोग कहने लगे, इस पवित्रा परमेश्वर यहोवा के साम्हने कौन खड़ा रह सकता है? और वह हमारे पास से किस के पास चला जाए? 09O 6 21 तब उन्हों ने किर्यत्यारीम के निवासियों के पास यों कहने को दूत भेजे, कि पलिश्तियों ने यहोवा का सन्दूक लौटा दिया है; इसलिये तुम आकर उसे अपने यहां ले जाओ।। 09O 7 1 तब किर्यत्यारीम के लोगों ने जाकर यहोवा के सन्दूक को उठाया, और अबीनादाब के घर में जो टीले पर बना था रखा, और यहोवा के सन्दूक की रक्षा करने के लिये अबीनादाब के पुत्रा एलीआजार को पवित्रा किया।। 09O 7 2 किर्यत्यारीम में रहते रहते सन्दूक को बहुत दिन हुए, अर्थात् बीस वर्ष बीत गए, और इस्राएल का सारा घराना विलाप करता हुआ यहोवा के पीछे चलने लगा। 09O 7 3 तब शमूएल ने इस्राएल के सारे घराने से कहा, यदि तुम अपने पूर्ण मन से यहोवा की ओर फिरे हो, तो पराए देवताओं और अश्तोरेत देवियों को अपने बीच में से दूर करो, और यहोवा की ओर अपना मन लगाकर केवल उसी की उपासना करो, तब वह तुम्हें पलिश्तियों के हाथ से छुड़ाएगा। 09O 7 4 तब इस्राएलियों ने बाल देवताओं और अशतोरेत देवियों को दूर किया, और केवल यहोवा ही की उपासना करने लगे।। 09O 7 5 फिर शमूएल ने कहा, सब इस्राएलियों को मिस्पा में इकट्ठा करो, और मैं तुम्हारे लिये यहोवा से प्रार्थना करूंगा। 09O 7 6 तब वे मिस्पा में इकट्ठे हुए, और जल भरके यहोवा के साम्हने उंडेल दिया, और उस दिन उपवास किया, और वहां कहने लगे, कि हम ने यहोवा के विरूद्ध पाप किया है। और शमूएल ने मिस्पा में इस्राएलियों का न्याय किया। 09O 7 7 जब पलिश्तियों ने सुना कि इस्राएली मिस्पा में इकट्ठे हुए हैं, तब उनके सरदारों ने इस्राएलियों पर चढ़ाई की। यह सुनकर इस्राएली पलिश्तियों से भयभीत हुए। 09O 7 8 और इस्राएलियों ने शमूएल से कहा, हमारे लिये हमारे परमेश्वर यहोवा की दोहाई देना न छोड़, जिस से वह हम को पलिश्तियों के हाथ से बचाए। 09O 7 9 तब शमूएल ने एक दूधपिउवा मेम्ना ले सर्वांग होमबलि करके यहोवा को चढ़ाया; और शमूएल ने इस्राएलियों के लिये यहोवा की दोहाई दी, और यहोवा ने उसकी सुन ली। 09O 7 10 और जिस समय शमूएल होमबलि हो चढ़ा रहा था उस समय पलिश्ती इस्राएलियों के संग युद्ध करने के लिये निकट आ गए, तब उसी दिन यहोवा ने पलिश्तियों के ऊपर बादल को बड़े कड़क के साथ गरजाकर उन्हें घबरा दिया; और वे इस्राएलियों से हार गए। 09O 7 11 तब इस्राएली पुरूषों ने मिस्पा से निकलकर पलिश्तियों को खदेड़ा, और उन्हें बेतकर के नीचे तक मारते चले गए। 09O 7 12 तब शमूएल ने एक पत्थर लेकर मिस्पा और शेन के बीच में खड़ा किया, और यह कहकर उसका नाम एबेनेजेर रखा, कि यहां तक यहोवा ने हमारी सहायता की है। 09O 7 13 तब पलिश्ती दब गए, और इस्राएलियों के देश में फिर न आए, और शमूएल के जीवन भर यहोवा का हाथ पलिश्तियों के विरूद्ध बना रहा। 09O 7 14 और एक्रोन और गत तक जितने नगर पलिश्तियों ने इस्राएलियों के हाथ से छीन लिए थे, वे फिर इस्राएलियों के वश में आ गए; और उनका देश भी इस्राएलियों ने पलिश्तियों के हाथ से छुड़ाया। और इस्राएलियों और एमोरियों के बीच भी सन्धि हो गई। 09O 7 15 और शमूएल जीवन भर इस्राएलियों का न्याय करता रहा। 09O 7 16 वह प्रति वर्ष बेतेल और गिलगाल और मिस्पा में घूम- घूमकर उन सब स्थानों में इस्राएलियों का न्याय करता था। 09O 7 17 तब वह रामा में जहां उसका घर था लौट आया, और वहां भी इस्राएलियों का न्याय करता था, और वहां उस ने यहोवा के लिये एक वेदी बनाई।। 09O 8 1 जब शमूएल बूढ़ा हुआ, तब उस ने अपने पुत्रों को इस्राएलियों पर न्यायी ठहराया। 09O 8 2 उसके जेठे पुत्रा का नाम योएल, और दूसरे का नाम अबिरयाह था; ये बेर्शेबा में न्याय करते थे। 09O 8 3 परन्तु उसके पुत्रा उसकी राह पर न चले, अर्थात् लालच में आकर घूस लेते और न्याय बिगाड़ते थे।। 09O 8 4 तब सब इस्राएली वृद्ध लोग इकट्ठे होकर रामा में शमूएल के पास जाकर 09O 8 5 उस से कहने लगे, सुन, तू तो अब बूढ़ा हो गया, और तेरे पुत्रा तेरी राह पर नहीं चलते; अब हम पर न्याय करने के लिये सब जातियों की रीति के अनुसार हमारे लिये एक राजा नियुक्त कर दे। 09O 8 6 परन्तु जो बात उन्हों ने कही, कि हम पर न्याय करने के लिये हमारे ऊपर राजा नियुक्त कर दे, यह बात शमूएल को बुरी लगी। और शमूएल ने यहोवा से प्रार्थना की। 09O 8 7 और यहोवा ने शमूएल से कहा, वे लोग जो कुछ तुझ से कहें उसे मान ले; क्योंकि उन्हों ने तुझ को नहीं परन्तु मुझी को निकम्मा जाना है, कि मैं उनका राजा न रहूं। 09O 8 8 जैसे जैसे काम वे उस दिन से, जब से मैं उन्हें मि से निकाल लाया, आज के दिन तक करते आए हैं, कि मुझ को त्यागकर पराए, देवताओं की उपासना करते आए हैं, वैसे ही वे तुझ से भी करते हैं। 09O 8 9 इसलिये अब तू उनकी बात मान; तौभी तू गम्भीरता से उनको भली भांति समझा दे, और उनको बतला भी दे कि जो राजा उन पर राज्य करेगा उसका व्यवहार किस प्रकार होगा।। 09O 8 10 और शमूएल ने उन लोगों को जो उस से राजा चाहते थे यहोवा की सब बातें कह सुनाईं। 09O 8 11 और उस ने कहा जो राजा तुम पर राज्य करेगा उसकी यह चाल होगी, अर्थात् वह तुम्हारे पुत्रों को लेकर अपने रथों और घोड़ों के काम पर नौकर रखेगा, और वे उसके रथों के आगे आगे दौड़ा करेंगे; 09O 8 12 फिर वह उनको हजार हजार और पचास पचास के ऊपर प्रधान बनाएगा, और कितनों से वह अपने हल जुतवाएगा, और अपने खेत कटवाएगा, और अपने लिये युद्ध के हथियार और रथों के साज बनवाएगा। 09O 8 13 फिर वह तुम्हारी बेटियों को लेकर उन से सुगन्धद्रव्य और रसोई और रोटियां बनवाएगा। 09O 8 14 फिर वह तुम्हारे खेतों और दाख और जलपाई की बारियों में से जो अच्छी से अच्छी होंगे उन्हें ले लेकर अपने कर्मचारियों को देगा। 09O 8 15 फिर वह तुम्हारे बीच और दाख की बारियों को दसवां अंश ले लेकर अपने हाकिमों और कर्मचारियों को देगा। 09O 8 16 फिर वह तुम्हारे दास- दासियों को, और तुम्हारे अच्छे से अच्छे जवानों को, और तुम्हारे गदहों को भी लेकर अपने काम में लगाएगा। 09O 8 17 वह तुम्हारी भेड़- बकरियों का भी दसवां अंश लेगा; निदान तुम लोग उस के दास बन जाओगे। 09O 8 18 और उस दिन तुम अपने उस चुने हुए राजा के कारण दोहाई दोगे, परन्तु यहोवा उस समय तुम्हारी न सुनेगा। 09O 8 19 तौभी उन लोगों ने शमूएल की बात न सुनी; और कहने लगे, नहीं! हम निश्चय अपने लिये राजा चाहते हैं, 09O 8 20 जिस से हम भी और सब जातियों के समान हो जाएं, और हमारा राजा हमारा न्याय करे, और हमारे आगे आगे चलकर हमारी ओर से युद्ध किया करे। 09O 8 21 लोगों की ये सब बातें सुनकर शमूएल ने यहोवा के कानों तक पहुंचाया। 09O 8 22 यहोवा ने शमूएल से कहा, उनकी बात मानकर उनके लिये राजा ठहरा दे। तब शमूएल ने इस्राएली मनुष्यों से कहा, तुम अब अपने अपने नगर को चले जाओ।। 09O 9 1 बिन्यामीन के गोत्रा में कीश नाम का एक पुरूष था, जो अपीह के पुत्रा बकोरत का परपोता, और सरोर का पोता, और अबीएल का पुत्रा था; वह एक बिन्यामीनी पुरूष का पुत्रा और बड़ा शक्तिशाली सूरमा था। 09O 9 2 उसके शाऊल नाम एक जवान पुत्रा था, जो सुन्दर था, और इस्राएलियों में कोई उस से बढ़कर सुन्दर न था; वह इतना लम्बा था कि दूसरे लोग उसके कान्धे ही तक आते थे। 09O 9 3 जब शाऊल के पिता कीश की गदहियां खो गईं, तब कीश ने अपने पुत्रा शाऊल से कहा, एक सेवक को अपने साथ ले जा और गदहियों को ढूंढ ला। 09O 9 4 तब वह एप्रैम के पहाड़ी देश और शलीशा देश होते हुए गया, परन्तु उन्हें न पाया। तब वे शालीम नाम देश भी होकर गए, और वहां भी न पाया। फिर बिन्यामीन के देश में गए, परन्तु गदहियां न मिलीं। 09O 9 5 जब वे सूफ नाम देश में आए, तब शाऊल ने अपने साथ के सेवक से कहा, आ, हम लौट चलें, ऐसा न हो कि मेरा पिता गदहियों की चिन्ता छोड़कर हमारी चिन्ता करने लगे। 09O 9 6 उस ने उस से कहा, सुन, इस नगर में परमेश्वर का एक जन है जिसका बड़ा आदरमान होता है; और जो कुछ वह कहता है वह बिना पूरा हुए नहीं रहता। अब हम उधर चलें, सम्भव है वह हम को हमार मार्ग बताए कि किधर जाएं। 09O 9 7 शाऊल ने अपने सेवक से कहा, सुन, यदि हम उस पुरूष के पास चलें तो उसके लिये क्या ले चलें? देख, हमारी थैलियों में की रोटी चुक गई है और भेंट के योग्य कोई वस्तु है ही नहीं, जो हम परमेश्वर के उस जन को दें। हमारे पास क्या है? 09O 9 8 सेवक ने फिर शाऊल से कहा, कि मेरे पास तो एके शेकेल चान्दी की चौथाई है, वही मैं परमेश्वर के जन को दूंगा, कि वह हम को बताए कि किधर जाएं। 09O 9 9 पूर्वकाल में तो इस्राएल में जब कोई ऐसा कहता था, कि चलो, हम दर्शी के पास चलें; क्योंकि जो आज कल नबी कहलाता है वह पूर्वकाल में दर्शी कहलाता था। 09O 9 10 तब शाऊल ने अपने सेवक से कहा, तू ने भला कहा है; हम चलें। सो वे उस नगर को चले जहां परमेश्वर का जन था। 09O 9 11 उस नगर की चढ़ाई पर चढ़ते समय उन्हें कई एक लड़कियां मिलीं जो पानी भरने को निकली थीं; उन्हों ने उन से पूछा, क्या दर्शी यहां है? 09O 9 12 उन्हों ने उत्तर दिया, कि है; देखो, वह तुम्हारे आगे है। अब फुर्ती करो; आज ऊंचे स्थान पर लोगों का यज्ञ है, इसलिये वह आज नगर में आया हुआ है। 09O 9 13 ज्योंही तुम नगर में पहुंचो त्योंही वह तुम को ऊंचे स्थान पर खाना खाने को जाने से पहिले मिलेगा; क्योंकि जब तक वह न पहुंचे तब तक लोग भोजन करेंगे, इसलिये कि यज्ञ के विषय में वही धन्यवाद करता; तब उसके पीछे ही न्योतहरी भोजन करते हैं। इसलिये तुम अभी चढ़ जाओ, इसी समय वह तुम्हें मिलेगा। 09O 9 14 वे नगर में चढ़ गए और ज्योंही नगर के भीतर पहुंचे त्योंही शमूएल ऊंचे स्थान पर चढ़ने की मनसा से उनके साम्हने आ रहा था।। 09O 9 15 शाऊल के आने से एक दिन पहिले यहोवा ने शमूएल को यह चिता रखा था, 09O 9 16 कि कल इसी समय मैं तेरे पास बिन्यामीन के देश से एक पुरूश को भेजूंगा, उसी को तू मेरी इस्राएली प्रजा के ऊपर प्रधान होने के लिये अभिषेक करता। और वह मेरी प्रजा को पलिश्तियों के हाथ से छुड़ाएगा; क्योंकि मैं ने अपनी प्रजा पर कृपा दृष्टि की है, इसलिये कि उनकी चिल्लाहट मेरे पास पंहुची है। 09O 9 17 फिर जब शमूएल को शाऊल देख पड़ा, तब यहोवा ने उस से कहा, जिस पुरूष की चर्चा मैं ने तु से की थी वह यही है; मेरी प्रजा पर यही अधिकार करेगा। 09O 9 18 तब शाऊल फाटक में शमूएल के निकट जाकर कहने लगा, मुझे बता कि दर्शी का घर कहां है? 09O 9 19 उस ने कहा, दर्शी तो मैं हूं; मेरे आगे आगे ऊंचे स्थान पर चढ़ जा, क्योंकि आज के दिन तुम मेरे साथ भोरन खाओगे, और बिहान को जो कुछ तेरे मन में हो सब कुछ मैं तुझे बताकर विदा करूंगा। 09O 9 20 और तेरी गदहियां जो तीन दिन तुए खो गई थीं उनकी कुछ भी चिन्ता न कर, क्योंकि वे मिल गईं। और इस्राएल में जो कुछ मनभाऊ है वह किस का है? क्या वह तेरा और तेरे पिता के सारे घराने का नहीं है? 09O 9 21 शाऊल ने उत्तर देकर कहा, क्या मैं बिन्यामीनी, अर्थात् सब इस्राएली गोत्रों में से छोटे गोत्रा का नहीं हूं? और क्या मेरा कुल बिन्यामीनी के गोत्रा के सारे कुलों में से छोटा नहीं है? इसलिये तू मुझ से ऐसी बातें क्यों कहता है? 09O 9 22 तब शमूएल ने शाऊल और उसके सेवक को कोठरी में पहुंचाकर न्योताहारी, जो लगभग तीस जन थे, उनके साथ मुख्य स्थान पर बैठा दिया। 09O 9 23 फिर शमूएल ने रसोइये से कहा, जो टुकड़ा मैं ने तुझे देकर, अपने पास रख छोड़ने को कहा था, उसे ले आ। 09O 9 24 तो रसोइये ने जांघ को मांस समेत उठाकर शाऊल के आगे धर दिया; तब शमूएल ने कहा, जो रखा गया था उसे देख, और अपने साम्हने धरके खा; क्योंकि वह तेरे लिये इसी नियत समय तक, जिसकी चर्चा करके मैं ने लोगों को न्योता दिया, रखा हुआ है। और शाऊल ने उस दिन शमूएल के साथ भोजन किया। 09O 9 25 तब वे ऊंचे स्थान से उतरकर नगर में आए, और उस ने घर की छत पर शाऊल से बातें कीं। 09O 9 26 बिहान को वे तड़के उठे, और पह फटते फटते शमूएल ने शाऊल को छत पर बुलाकर कहा, उठ, मैं तुम को विदा करूंगा। तब शाऊल उठा, और वह और शमूएल दोनों बाहर निकल गए। 09O 9 27 और नगर के सिरे की उतराई पर चलते चलते शमूएल ने शाऊल से कहा, अपने सेवक को हम से आगे बढ़ने की आज्ञा दे, (वह आगे बढ़ गया,) परन्तु तू अभी खड़ा रह कि मैं तुझे परमेश्वर का वचन सुनाऊं।। 09O 10 1 तब शमूएल ने एक कुप्पी तेल लेकर उसके सिर पर उंडेला, और उसे चूमकर कहा, क्या इसका कारण यह नहीं कि यहोवा ने अपने निज भाग के ऊपर प्रधान होने को तेरा अभिषेक किया है? 09O 10 2 आज जब तू मेरे पास से चला जाएगा, तब राहेल की कब्र के पास जो बिन्यामीन के देश के सिवाने पर सेलसह में है दो जन तुझे मिलेंगे, और कहेंगे, कि जिन गदिहियों को तू ढूंढने गया था वे मिल हैं; और सुन, तेरा पिता गदहियों की चिन्ता छोड़कर तुम्हारे कारण कुढ़ता हुआ कहता है, कि मैं अपने पुत्रा के लिये क्या करूं? 09O 10 3 फिर वहां से आगे बढ़कर जब तू ताबोर के बांजवृक्ष के पास पहुंचेगा, तब वहां तीन जन परमेश्वर के पास बेतेल को जाते हुए तुझे मिलेंगे, जिन में से एक तो बकरी के तीन बच्चे, और दूसरा तीन रोटी, और तीसरा एक कुप्पी दाखमधु लिए हुए होगा। 09O 10 4 और वे तेरा कुशल पूछेंगे, और तुझे दो रोटी देंगे, और तू उन्हें उनके हाथ से ले लेना। 09O 10 5 तब तू परमेश्वर के पहाड़ पर पहुंचेगा जहां पलिश्तियों की चौकी है; और जब तू वहां नगर में प्रवेश करे, तब नबियों का एक दल ऊंचे स्थान से उतरता हुआ तुझे मिलेगा; और उनके आगे सितार, डफ, बांसुली, और वीणा होंगे; और वे नबूवत करते होंगे। 09O 10 6 तब यहोवा का आत्मा तुझ पर बल से उतरेगा, और तू उनके साथ होकर नबूवत करने लगेगा, और तू परिवर्तित होकर और ही मनुष्य हो जाएगा। 09O 10 7 और जब ये चिन्ह तुझे देख पड़ेंगे, तब जो काम करने का अवसर तुझे मिले उस में लग जाना; क्योंकि परमेश्वर तेरे संग रहेगा। 09O 10 8 और तू मुझ से पहिले गिलगाल को जाना; और मैं होमबलि और मेलबलि चढ़ाने के लिये तेरे पास आऊंगा। तू सात दिन तक मेरी बाट जोहते रहना, तब मैं तेरे पास पहुंचकर तुझे बताऊंगा कि तुझ को क्या क्या करना है। 09O 10 9 ज्योंही उस ने शमूएल के पास से जाने को पीठ फेरी त्योंही परमेश्वर ने उसके मन को परिवर्तन किया; और वे सब चिन्ह उसी दिन प्रगट हुए।। 09O 10 10 जब वे उधर उस पहाड़ के पास आए, तब नबियों का एक दल उसको मिला; और परमेश्वर का आत्मा उस पर बल से उतरा, और वह उसके बीच में नबूवत करने लगा। 09O 10 11 जब उन सभों ने जो उसे पहिले से जानते थे यह देखा कि वह नबियों के बीच में नबूवत कर रहा है, तब आपस में कहने लगे, कि कीश के पुत्रा को यह क्या हुआ? क्या शाऊल भी नबियों में का है? 09O 10 12 वहां के एक मनुष्य ने उत्तर दिया, भला, उनका बाप कौन है? इस पर यह कहावत चलने लगी, कि क्या शाऊल भी नबियों में का है? 09O 10 13 जब वह नबूवत कर चुका, तब ऊंचे स्थान पर चढ़ गया।। 09O 10 14 तब शाऊल के चचा ने उस से और उसके सेवक से पूछा, कि तुम कहां गए थे? उस ने कहा, हम तो गदहियों को ढूंढ़ने गए थे; और जब हम ने देखा कि वे कहीं नहीं मिलतीं, तब शमूएल के पास गए। 09O 10 15 शाऊल के चचा ने कहा, मुझे बतला दे कि शमूएल ने तुम से क्या कहा। 09O 10 16 शाऊल ने अपने चचा से कहा, कि उस ने हमें निश्चय करके बतया कि गदहियां मिल गईं। परन्तु जो बात शमूएल ने राज्य के विषय में कही थी वह उस ने उसको न बताई।। 09O 10 17 तब शमूएल ने प्रजा के लोगों को मिस्पा में यहोवा के पास बुलवाया; 09O 10 18 तब उस ने इस्राएलियों से कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि मैं तो इस्राएल को मि देश से निकाल लाया, और तुम को मिस्त्रियों के हाथ से, और न सब राज्यों के हाथ से जो तुम पर अन्धेर करते थे छुड़ाया है। 09O 10 19 परन्तु तुम ने आज अपने परमेश्वर को जो सब विपत्तियों और कष्टों से तुम्हारा छुड़ानेवाला है तुच्छ जाना; और उस से कहा है, कि हम पर राजा नियुक्त कर दे। इसलिये अब तुम गोत्रा गोत्रा और हजार हजार करके यहोवा के साम्हने खड़े हो जाओ। 09O 10 20 तब शमूएल सारे इस्राएली गोत्रियों को समीप लाया, और चिट्ठी बिन्यामीन के नाम पर निकली। 09O 10 21 तब वह बिन्यामीन के गोत्रा के कुल कुल करके समीप लाया, और चिट्ठी मत्री के कुल के नाम पर निकली; फिर चिट्ठी कीश के पुत्रा शाऊल के नाम पर निकली। और जब वह ढूंढ़ा गया, तब न मिला। 09O 10 22 तब उन्हों ने फिर यहोवा से पूछा, क्या यहां कोई और आनेवाला है? यहोवा ने कहा, हां, सुनो, वह सामान के बीच में छिपा हुआ है। 09O 10 23 तब वे दौड़कर उसे वहां से लाए; और वह लोगों के बीच में खड़ा हुआ, और वह कान्धे से सिर तक सब लोगों से लम्बा था। 09O 10 24 शमूएल ने सब लोगों से कहा, क्या तुम ने यहोवा के चुने हुए को देखा है कि सारे लोगों में कोई उसके बराबर नहीं? तब सक लोग ललकारके बोल उठे, राजा चिरंजीव रहे।। 09O 10 25 तब शमूएल ने लोगों से राजनीति का वर्णन किया, और उसे पुस्तक में लिखकर यहोवा के आगे रख दिया। और शमूएल ने सब लोगों को अपने अपने घर जान को विदा किया। 09O 10 26 और शाऊल गिबा को अपने घर चला गया, और उसके साथ एक दल भी गया जिनके मन को परमेश्वर ने उभारा था। 09O 10 27 परन्तु कई लुच्चे लोगों ने कहा, यह जन हमारा क्या उद्धार करेगा? और उन्हों ने उसको तुच्छ जाना, और उसके पास भेंट न लाए। तौभी वह सुनी अनसुनी करके चुप रहा।। 09O 11 1 तब अम्मोनी नाहाश ने चढ़ाई करके गिलाद के याबेस के विरूद्ध छावनी डाली; और याबेश के सब पुरूषों ने नाहाश से कहा, हम से वाचा बान्ध, और हम तेरी अधीनता मना लेंगे। 09O 11 2 अम्मोनी नाहाश ने उन से कहा, मैं तुम से वाचा इस शर्त पर बान्धूंगा, कि मैं तुम सभों की दाहिनी आंखें फोड़कर इसे सारे इस्राएल की नामधराई का कारण कर दूं। 09O 11 3 याबेश के वृद्ध लोगों ने उस से कहा, हमें सात दिन का अवकाश दे तब तक हम इस्राएल के सारे देश में दूत भेजेंगे। और यदि हम को कोई बचाने वाला न मिलेगा, तो हम तेरे ही पास निकल आएेंगे। 09O 11 4 दूतों ने शाऊलवाले गिबा में आकर लोगों को यह सन्देश सुनाया, और सब लोग चिल्ला चिल्लाकर रोने लगे। 09O 11 5 और शाऊल बैलों के पीछे पीछे मैदान से चला आता था; और शाऊल ने पूछा, लोगों को क्या हुआ कि वे रोते हैं? उन्हों ने याबेश के लोगों का सन्देश उसे सुनाया। 09O 11 6 यह सन्देश सुनते ही शाऊल पर परमेश्वर का आत्मा बल से उतरा, और उसका कोप बहुत भड़क उठा। 09O 11 7 और उस ने एक जोड़ी बैल लेकर उसके टुकड़े टुकड़े काटे, और यह कहकर दूतों के हाथ से इस्राएल के सारे देश में कहला भेजा, कि जो कोई आकर शाऊल और शमूएल के पीछे न हो लेगा उसके बैलों से ऐसा ही किया जाएगा। तब यहोवा का भय लोगों में ऐसा समाया कि वे एक मन होकर निकल आए। 09O 11 8 तब उस ने उन्हें बेजेक में गिन लिया, और इस्राएलियों के तीन लाख, और यहूदियों के तीस हजार ठहरे। 09O 11 9 और उन्हों ने उन दूतों से जो आए थे कहा, तुम गिलाद में के याबेश के लोगों से यों कहो, कि कल धूप तेज होने की घड़ी तक तुम छुटकारा पाओगे। तब दूतों ने जाकर याबेश के लोगों को सन्देश दिया, और वे आनन्दित हुए। 09O 11 10 तब याबेश के लोगों ने कहा, कल हम तुम्हारे पास निकल आएंगे, और जो कुछ तुम को अच्छा लगे वही हम से करना। 09O 11 11 दूसरे दिन शाऊल ने लोगों के तीन दल किए; और उन्हों ने रात के पिछले पहर में छावनी के बीच में आकर अम्मोनियों को मारा; और घाम के कड़े होने के समय तक ऐसे मारते रहे कि जो बच निकले वह यहां तक तितर बितर हुए कि दो जन भी एक संग कहीं न रहे। 09O 11 12 तब लोग शमूएल से कहने लगे, जिन मनुष्यों ने कहा था, कि क्या शाऊल हम पर राज्य करेगा? उनको लाओ कि हम उन्हें मार डालें। 09O 11 13 शाऊल ने कहा, आज के दिन कोई मार डाला न जाएगा; क्योंकि आज यहोवा ने इस्राएलियों को छुटकारा दिया है।। 09O 11 14 तब शमूएल ने इस्राएलियों से कहा, आओ, हम गिलगाल को चलें, और वहां राज्य को नये सिरे से स्थापित करें। 09O 11 15 तब सब लोग गिलगाल को चले, और वहां उन्हों ने गिलगाल में यहोवा के साम्हने शाऊल को राजा बनाया; और वहीं उन्हों ने यहोवा को मेलबलि चढ़ाए; और वहीं शाऊल और सब इस्राएली लोगों ने अत्यन्त आनन्द मनाया।। 09O 12 1 तब शमूएल ने सारे इस्राएलियों से कहा, सुनो, जो कुछ तुम ने मुझ से कहा था उसे मानकर मैं ने एक राजा तुम्हारे ऊपर ठहराया है। 09O 12 2 और अब देखो, वह राजा तुम्हारे आगे आगे चलता है; और अब मैं बूढ़ा हूं, और मेरे बाल उजले हो गए हैं, और मेरे पुत्रा तुम्हारे पास हैं; और मैं लड़कपन से लेकर आज तक तुम्हारे साम्हने काम करता रहा हूं। 09O 12 3 मैं उपस्थित हूं; इसलिये तुम यहोवा के साम्हने, और उसके अभिषिक्त के सामने मुझ पर साक्षी दो, कि मैं ने किस का बैल ले लिया? वा किस का गदहा ले लियेा? वा किस पर अन्धेर किया? वा किस को पीसा? वा किस के हाथ से अपनी आंखें बन्द करने के लिये घूस लिया? बताओ, और मैं वह तुम को फेर दूंगा? 09O 12 4 वे बोले, तू ने न तो हम पर अन्धेर किया, न हमें पीसा, और न किसी के हाथ से कुछ लिया है। 09O 12 5 उस ने उन से कहा, आज के दिन यहोवा तुम्हारा साक्षी, और उसका अभिषिक्त इस बात का साक्षी है, कि मेरे यहां कुद नहीं निकला। वे बोले, हां, वह साक्षी है। 09O 12 6 फिर शमूएल लोगों से कहने लगा, जो मूसा और हारून को ठहराकर तुम्हारे पूर्वजों को मि देश से निकाल लाया वह यहोवा ही है। 09O 12 7 इसलिये अब तुम खड़े रहो, और मैं यहोवा के साम्हने उसके सब धर्म के कामों के विषय में, जिन्हें उस ने तुम्हारे साथ और तुम्हारे पूर्वजों के साथ किया है, तुम्हारे साथ विचार करूंगा। 09O 12 8 याकूब मि में गया, और तुम्हारे पूर्वजों ने यहोवा की दोहाई दी; तब यहोवा ने मूसा और हारून को भेजा, और उन्हों ने तुम्हारे पूर्वजों को मि से निकाला, और इस स्थान में बसाया। 09O 12 9 फिर जब वे अपने परमेश्वर यहोवा को भूल गए, तब उस ने उन्हें हासोर के सेनापति सीसरा, और पलिश्तियों और मोआब के राजा के अधीन कर दिया; और वे उन से लड़े। 09O 12 10 तब उन्हों ने यहोवा की दोहाई देकर कहा, हम ने यहोवा को त्यागकर और बाल देवताओं और अशतोरेत देवियों की उपासना करके महा पाप किया है; परन्तु अब तू हम को हमारे शत्रुओं के हाथ से छुड़ा तो हम तेरी उपासना करेंगे। 09O 12 11 इसलिये यहोवा ने यरूब्बाल, बदान, यिप्तह, और शमूएल को भेजकर तुम को तुम्हारे चारों ओर के शत्रुओं के हाथ से छुड़ाया; और तुम निडर रहने लगे। 09O 12 12 और जब तुम ने देखा कि अम्मोनियों का राजा नाहाश हम पर चढ़ाई करता है, तब यद्यपि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारा राजा था तौभी तुम ने मुझ से कहा, नहीं, हम पर एक राजा राज्य करेगा। 09O 12 13 अब उस राजा को देखो जिसे तुम ने चुन लिया, और जिसके लिये तुम ने प्रार्थना की थी; देखो, यहोवा ने ऐ राजा तुम्हारे ऊपर नियुक्त कर दिया है। 09O 12 14 यदि तुम यहोवा का भय मानते, उसकी उपासना करते, और उसकी बात सुनते रहो, और यहोवा की आज्ञा को टालकर उस से बलवा न करो, और तुम और वह जो तुम पर राजा हुआ है दोनो अपने परमेश्वर यहोवा के पीछे पीछे चलनेवाले बने रहो, तब तो भला होगा; 09O 12 15 परन्तु यदि तुम यहोवा की बात न मानो, और यहोवा की आज्ञा को टालकर उस से बलवा करो, तो यहोवा का हाथ जैसे तुम्हारे पुरखाओं के विरूद्ध हुआ वैसे ही तुम्हारे भी विरूद्ध उठेगा। 09O 12 16 इसलिये अब तुम खड़े रहो, और इस बड़े काम को देखो जिसे यहोवा तुम्हारे आंखों के साम्हने करने पर है। 09O 12 17 आज क्या गेहूं की कटनी नहीं हो रही? मैं यहोवा को पुकारूंगा, और वह मेघ गरजाएगा और मेंह बरसाएगा; तब तुम जान लोगे, और देख भी लोगे, कि तुम ने राजा मांगकर यहोवा की दृष्टि में बहुत बड़ी बुराई की है। 09O 12 18 तब शमूएल ने यहोवा का पुकारा, और यहोवा ने उसी दिन मेघ गरजाया और मेंह बरसाया; और सब लोग यहोवा से और शमूएल से अत्यन्त डर गए। 09O 12 19 और सब लोगों ने शमूएल से कहा, अपने दासों के निमित्त अपने परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना कर, कि हम मर न जाएं; क्योंकि हम ने अपने सारे पापों से बढ़कर यह बुराई की है कि राजा मांगा है। 09O 12 20 शमूएल ने लोगों से कहा, डरो मत; तुम ने यह सब बुराई तो की है, परन्तु अब यहोवा के पीछे चलने से फिर मत मुड़ना; परन्तु अपने सम्पूर्ण मन से उस की उपासना करना; 09O 12 21 और मत मुड़ना; नहीं तो ऐसी व्यर्थ वस्तुओं के पीछे चलने लगोगे जिन से न कुछ लाभ पहुंचेगा, और न कुछ छुटकारा हो सकता है, क्योंकि वे सब व्यर्थ ही हैं। 09O 12 22 यहोवा तो अपने बड़े नाम के कारण अपनी प्रजा को न तजेगा, क्योंकि यहोवा ने तुम्हे अपनी ही इच्छा से अपनी प्रजा बनाया है। 09O 12 23 फिर यह मुझ से दूर हो कि मैं तुम्हारे लिये प्रार्थना करना छोड़कर यहोवा के विरूद्ध पापी ठहरूं; मैं तो तुम्हें अच्छा और सीधा मार्ग दिखाता रहूंगा। 09O 12 24 केवल इतना हो कि तुम लोग यहोवा का भय मानो, और सच्चाई से अपने सम्पूर्ण मान के साथ उसकी उपासना करो; क्योंकि यह तो सोचो कि उस ने तुम्हारे लिये कैसे बड़े बड़े काम किए हैं। 09O 12 25 परन्तु यदि तुम बुराई करते ही रहोगे, तो तुम और तुम्हारा राजा दोनों के दोनों मिट जाओगे। 09O 13 1 शाऊल तीस वर्ष का होकर राज्य करने लगा, और उस ने इस्राएलियों पर दो वर्ष तक राज्य किया। 09O 13 2 फिर शाऊल ने इस्राएलियों में से तीन हजार पुरूषों को अपने लिये चुन लिया; और उन में से दो हजार शाऊल के साथ मिकमाश में और बेतेल के पहाड़ पर रहे, और एक हजार योनातान के साथ बिन्यामीन के गिबा में रहे; और दूसरे सब लोगों को उस ने अपने अपने डेरे में जाने को विदा किया। 09O 13 3 तब योनातान ने पलिश्तियों की उस चौकी को जो गिबा में भी मार लिया; और इसका समाचार पलिश्तियों के कानों में पड़ा। तब शाऊल ने सारे देश में नरसिंगा फुंकवाकर यह कहला भेजा, कि इब्री लोग सुनें। 09O 13 4 और सब इस्राएलियों ने यह समाचार सुना कि शाऊल ने पलिश्तियों की चौकी को मारा है, और यह भी कि पलिश्ती इस्राएल से घृणा करने लगे हैं। तब लोग शाऊल के पीछे चलकर गिलगाल में इकट्ठे हो गए।। 09O 13 5 और पलिश्ती इस्राएल से युद्ध करने के लिये इकट्ठे हो गए, अर्थात् तीस हजार रथ, और छ: हजार सवार, और समुद्र के तीर की बालू के किनकों के समान बहुत से लोग इकट्ठे हुए; और बेतावेन के पूर्व की ओर जाकर मिकमाश में छावनी डाली। 09O 13 6 जब इस्राएली पुरूषों ने देखा कि हम सकेती में पड़े हैं (और सचमुच लोग संकट में पड़े थे), तब वे लोग गुफाओं, झाड़ियों, चट्टानों, गढ़ियों, और गढ़हों में जा छिपे। 09O 13 7 और कितने इब्री यरदन पार होकर गाद और गिलाद के देशों में चले गए; परन्तु शाऊल गिलगाल ही में रहा, और सब लोग थरथराते हुए उसके पीछे हो लिए।। 09O 13 8 वह शमूएल के ठहराए हुए समय, अर्थात् सात दिन तक बाट जोहता रहा; परन्तु शमूएल गिलगाल में न आया, और लोग उसके पास से इधर उधर होने लगे। 09O 13 9 तब शाऊल ने कहा, होमबलि और मेलबलि मेरे पास लाओ। तब उस ने होमबलि को चढ़ाया। 09O 13 10 ज्योंही वह होमबलि को चढ़ा चुका, तो क्श्या देखता है कि शमूएल आ पहुंचा; और शाऊल उस से मिलने और नमस्कार करने को निकला। 09O 13 11 शमूएल ने पूछा, तू ने क्या किया? शाऊल ने कहा, जब मैं ने देखा कि लोग मेरे पास से इधर उधर हो चले हैं, और तू ठहराए हुए :दनों के भीतर नहीं आया, और पलिश्ती मिकपाश में इकट्ठे हुए हैं, 09O 13 12 तब मैं ने सोचा कि पलिश्ती गिलगाल में मुझ पर अभी आ पड़ेंगे, और मैं ने यहोवा से बिनती भी नहीं की है; सो मैं ने अपनी इच्छा न रहते भी होमबलि चढ़ाया। 09O 13 13 शमूएल ने शाऊल से कहा, तू ने मूर्खता का काम किया है; तू ने अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा को नहीं माना; नहीं तो यहोवा तेरा राज्य इस्राएलियों के ऊपर सदा स्थिर रखता। 09O 13 14 परन्तु अब तेरा राज्य बना न रहेगा; यहोवा ने अपने लिये एक ऐसे पुरूष को ढूंढ़ लिया है जो उसके मन के अनुसार है; और यहोवा ने उसी को अपनी प्रजा पर प्रधान होने को ठहराया है, क्योंकि तू ने यहोवा की आज्ञा को नहीं माना।। 09O 13 15 तब शमूएल चल निकला, और गिलगाल से बिन्यामीन के गिबा को गया। और शाऊल ने अपने साथ के लोगों को गिनकर कोई छ: सौ पाए। 09O 13 16 और शाऊल और उसका पुत्रा योनातान और जो लोग उनके साथ थे वे बिन्यामीन के गिबा में रहे; और पलिश्ती मिकमाश में डेरे डाले पड़े रहे। 09O 13 17 और पलिश्तियों की छावनी से नाश करनेवाले तीन दल बान्धकर निकल; एक दल ने शूआल नाम देश की ओर फिर के ओप्रा का मार्ग लिया, 09O 13 18 एक और दल ने मुझकर बेथोरोन का मार्ग लिया, और एक और दल ने मुड़कर उस देश का मार्ग लिया जो सबोईम नाम तराई की ओर जंगल की तरफ है।। 09O 13 19 और इस्राएल के पूरे देश में लोहार कहीं नहीं मिलता था, क्योंकि पलिश्तियों ने कहा था, कि इब्री तलवार वा भाला बनाने न पांए; 09O 13 20 इसलिये सब इस्राएली अपने अपने हल की फली, और भाले, और कुल्हाड़ी, और हंसुआ तेज करने के लिये पलिश्तियों के पास जाते थे; 09O 13 21 परन्तु उनके हंसुओं, फालों, खेती के त्रिशूलों, और कुल्हाड़ियों की धारें, और पैनों की नोकें ठीक करने के लिये वे रेती रखते थे। 09O 13 22 सो युद्ध के दिन शाऊल और योनातान के साथियों में से किसी के पास न तो तलवार थी और न भाला, वे केवल शाऊल और उसके पुत्रा योनातान के पास रहे। 09O 13 23 और पलिश्तियों की चौकी के सिपाही निकलकर मिकमाश की घाटी को गए।। 09O 14 1 एक दिन शाऊल के पुत्रा योनातान ने अपने पिता से बिना कुछ कहे अपने हथियार ढोनेवाले जवान से कहा, आ, हम उधर पलिश्तियों की चौकी के पास चलें। 09O 14 2 शाऊल तो गिबा के सिरे पर मिग्रोन में के अनार के पेड़ के तले टिका हुआ था, और उसके संग के लोग कोई छ: सौ थे; 09O 14 3 और एली जो शीलों में यहोवा का याजक था, उसके पुत्रा पिनहास का पोता, और ईकाबोद के भाई, अहीतूब का पुत्रा अहिरयाह भी एपोद पहिने हुए संग था। परन्तु उन लोगों को मालूम न था कि योनातान चला गया है। 09O 14 4 उन घाटियों के बीच में, जिन से होकर योनातान पलिश्तियों की चौकी को जाना चाहता था, दोनों अलंगों पर एक एक नोकीली चट्टान थी; एक चट्टान का नाम तो बोसेस, और दूसरी का नाम सेने था। 09O 14 5 एक चट्टान तो उत्तर की ओर मिकमाश के साम्हने, और दूसरी दक्खिन की ओर गेबा के साम्हने खड़ी है। 09O 14 6 तब योनातान ने अपने हथियार ढोनेवाले जवान से कहा, आ, हम उन खतनारहित लोगों की चौकी के पास जाएं; क्या जाने यहोवा हमारी सहायता करे; क्योंकि यहोवा को कुछ रोक नहीं, कि चाहे तो बहुत लोगों के द्वारा चाहे थोड़े लोगों के द्वारा छुटकारा दे। 09O 14 7 उसके हथियार ढोनेवाले ने उस से कहा, जो कुछ तेरे मन में हो वही कर; उधर चल, मैं तेरी इच्छा के अनुसार तेरे संग रहूंगा। 09O 14 8 योनातान ने कहा, सुन, हम उन मनुष्यों के पास जाकर अपने को उन्हें दिखाएं। 09O 14 9 यदि वे हम से यों कहें, हमारे आने तक ठहरे रहो, तब तो हम उसी स्थान पर खड़े रहें, और उनके पास न चढ़ें। 09O 14 10 परन्तु यदि वे यह कहें, कि हमारे पास चढ़ आओ, तो हम यह जानकर चढ़ें, कि यहोवा उन्हें हमारे साथ कर देगा। हमारे लिये यही चिन्ह हो। 09O 14 11 तब उन दोनों ने अपने को पलिश्तियों की चौकी पर प्रगट किया, तब पलिश्ती कहने लगे, देखो, इब्री लोग उन बिलों में से जहां वे छिप रहे थे निकले आते हैं। 09O 14 12 फिर चौकी के लोगों ने योनातान और उसके हथियार ढोनवाले से पुकार के कहा, हमारे पास चढ़ आओ, तब हम तुम को कुछ सिखाएंगे। तब योनातान ने अपने हथियार ढोनवाले से कहा मेरे पीछे पीछे चढ़ आ; क्योंकि यहोवा उन्हें इस्राएलियों के हाथ में कर देगा। 09O 14 13 और योनातान अपने हाथों और पावों के बल चढ़ गया, और उसका हथियार ढोनेवाला भी उसके पीछे पीछे चढ़ गया। और पलिश्ती योनातान के साम्हने गिरते गए, और उसका हथियार ढोनेवाला उसके पीछे पीछे उन्हें मारता गया। 09O 14 14 यह पहिला संहार जो योनातान और उसके हथियार ढोनेवाल से हुआ, उस में आधे बीघे भूमि में बीस एक पुरूष मारे गए। 09O 14 15 और छावनी में, और मैदान पर, और उन सब लोगों में थरथराहट हुई; और चौकीवाले और नाश करनेवाले भी थरथराने लगे; और भुईंडोल भी हुआ; और अत्यन्त बड़ी थरथराहट हुई। 09O 14 16 और बिन्यामीन के गिबा में शाऊल के पहरूओं ने दृष्टि करके देखा कि वह भीड़ घटती जाती है, और वे लोग इधर उधर चले जाते हैं।। 09O 14 17 तब शाऊल ने अपने साथ के लोगों से कहा, अपनी गिनती करके देखो कि हमारे पास से कौन चला गया है। उन्हों ने गिनकर देखा, कि योनातान और उसका हथियार ढोनेवाला यहां नहीं है। 09O 14 18 तब शाऊल ने अहिरयाह से कहा, परमेश्वर का सन्दूक इस्राएलियों के साथ था। 09O 14 19 शाऊल याजक से बातें कर रहा था, कि पलिश्तियों की छावनी में हुल्लड़ अधिक होता गया; तब शाऊल ने याजक से कहा, अपना हाथ खींच। 09O 14 20 तब शाऊल और उसके संग के सब लोग इकट्ठे होकर लड़ाई में गए; वहां उन्हों ने क्या देखा, कि एक एक पुरूष की तलवार अपने अपने साथी पर चल रही है, और बहुत कोलाहल मच रहा है। 09O 14 21 और जो इब्री पहिले की नाईं पलिश्तियों की ओर के थे, और उनके साथ चारों ओर से छावनी में गए थे, वे भी शाऊल और योनातान के संग के इस्राएलियों में मिल गए। 09O 14 22 और जितने इस्राएली पुरूष एप्रैम के पहाड़ी देश में छिप गए थे, वे भी यह सुनकर कि पलिश्ती भागे जाते हैं, लड़ाई में आ उनका पीछा करने में लग गए। 09O 14 23 तब यहोवा ने उस दिन इस्राएलियों को छुटकार दिया; और लड़नेवाले बेतावेन की परली ओर तक चले गए। 09O 14 24 परन्तु इस्राएली पुरूष उस दिन तंग हुए, क्योंकि शाऊल ने उन लोगों को शपथ धराकर कहा, शापित हो वह, जो सांझ से पहिले कुछ खाए; इसी रीति मैं अपने शत्रुओं से पलटा ले सकूंगा। तब उन लोगों में से किसी ने कुछ भी भोजन न किया। 09O 14 25 और सब लोग किसी वन में पहुंचे, जहां भूमि पर मधु पड़ा हुआ था। 09O 14 26 जब लोग वन में आए तब क्या देखा, कि मधु टपक रहा है, तौभी शपथ के डर के मारे कोई अपना हाथ अपने मुंह तक न ले गया। 09O 14 27 परन्तु योनातान ने अपने पिता को लोगों को शपथ धराते न सुना था, इसलिये उस ने अपने हाथ की छड़ी की नोक बढ़ाकर मधु के छत्ते में डुबाया, और अपना हाथों अपने मुंह तक लगाया; तब उसकी आंखों में ज्योति आई। 09O 14 28 तब लोगों में से एक मनुष्य ने कहा, तेरे पिता ने लोगों को दृढ़ता से शपथ धरा के कहा, शापित हो वह, जो आज कुछ खाए। और लोग थके मांदे थे। 09O 14 29 योनातान ने कहा, मेरे पिता ने लोगों को कष्ट दिया है; देखो, मैं ने इस मधु को थोड़ा सा चखा, और मुझे आंखों से कैसा सूझने लगा। 09O 14 30 यदि आज लोग अपने शत्रुओं की लूट से जिसे उन्हों ने पाया मनमाना खाते, तो कितना अच्छा होता; अभी तो बहुत पलिश्ती मारे नहीं गए। 09O 14 31 उस दिन वे मिकमाश से लेकर अरयालोन तक पलिश्तियों को मारते गए; और लोग बहुत ही थक गए। 09O 14 32 सो वे लूट पर टूटे, और भेड़- बकरी, और गाय- बैल, और बछड़े लेकर भूमि पर मारके उनका मांस लोहू समेत खाने लगे। 09O 14 33 जब इसका समाचार शाऊल को मिला, कि लोग लोहू समेत मांस खाकर यहोवा के विरूद्ध पाप करते हैं। तब उस ने उन से कहा; तुम ने तो विश्वासघात किया है; अभी एक बड़ा पत्थर मेरे पास लुढ़का दो। 09O 14 34 फिर शाऊल ने कहा, लोगों के बीच में इधर उधर फिरके उन से कहो, कि अपना अपना बैल और भेड़ शाऊल के पास ले जाओ, और वहीं बलि करके खाओ; और लोहू समेत खाकर यहोवा के विरूद्ध पाप न करो। तब सब लोगों ने उसी रात अपना अपना बैल ले जाकर वहीं बलि किया। 09O 14 35 तब शाऊल ने यहोवा के लिये एक वेदी बनवाई; वह तो पहिली वेदी है जो उस ने यहोवा के लिये बनवाई।। 09O 14 36 फिर शाऊल ने कहा, हम इसी राज को पलिश्तियों का पीछा करके उन्हें भोर तक लूटते रहें; और उन में से एक मनुष्य को भी जीवित न छोड़ें। उन्हों ने कहा, जो कुछ तुझे अच्छा लगे वही कर। परन्तु याजक ने कहा, हम इधर परमेश्वर के समीप आएं। 09O 14 37 तब शाऊल ने परमेश्वर से पुछवाया, कि क्या मैं पलिश्तियों का पीछा करूं? क्या तू उन्हें इस्राएल के हाथ में कर देगा? परन्तु उसे उस दिन कुछ उत्तर न मिला। 09O 14 38 तब शाऊल ने कहा, हे प्रजा के मुख्य लोगों, इधर आकर बूझो; और देखो कि आज पाप किस प्रकार से हुआ है। 09O 14 39 क्योंकि इस्राएल के छुड़ानेवाले यहोवा के जीवन की शपथ, यदि वह पाप मेरे पुत्रा योनातान से हुआ हो, तौभी निश्चय वह मार डाला जाएगा। परन्तु लोगों में से किसी ने उसे उत्तर न दिया। 09O 14 40 तब उस ने सारे इस्राएलियों से कहा, तुम एक ओर हो, और मैं और मेरा पुत्रा योनातान दूसरी और होंगे। लोगों ने शाऊल से कहा, जो कुछ तुझे अच्छा लगे वही कर। 09O 14 41 तब शाऊल ने यहोवा से कहा, हे इस्राएल के परमेश्वर, सत्य बात बता। तब चिट्ठी योनातान और शाऊल के नाम पर निकली, और प्रजा बच गई। 09O 14 42 फिर शाऊल ने कहा, मेरे और मेरे पुत्रा योनातान के नाम पर चिट्ठी डालो। तब चिट्ठी योनातान के नाम पर निकली। 09O 14 43 तब शाऊल ने योनातान से कहा, मुझे बता, कि तू ने क्या किया है। योनातान ने बताया, और उस से कहा, मैं ने अपने हाथ की छड़ी की नोक से थोड़ा सा मधु चख तो लिया है; और देख, मुझे मरना है। 09O 14 44 शाऊल ने कहा, परमेश्वर ऐसा ही करे, वरन इस से भी अधिक करे; हे योनातान, तू निश्चय मारा जाएगा। 09O 14 45 परन्तु लोगों ने शाऊल से कहा, क्या योनातान मारा जाए, जिस ने इस्राएलियों का ऐसा बड़ा छुटकारा किया है? ऐसा न होगा! यहोवा के जीवन की शपथ, उसके सिर का एक बाल भी भूमि पर गिरने न पाएगा; क्योंकि आज के दिन उस ने परमेश्वर के साथ होकर काम किया है। तब प्रजा के लोगों ने योनातान को बचा लिया, और वह मारा न गया। 09O 14 46 तब शाऊल पलिश्तियों का पीछा छोड़कर लौट गया; और पलिश्ती भी अपने स्थान को चले गए।। 09O 14 47 जब शाऊल इस्राएलियों के राज्य में स्थिर हो गया, तब वह मोआबी, अम्मोनी, एदोमी, और पलिश्ती, अपने चारों ओर के सब शत्रुओं से, और सोबा के राजाओं से लड़ा; और जहां जहां वह जाता वहां जय पाता था। 09O 14 48 फिर उस ने वीरता करके अमालेकियों को जीता, और इस्राएलियों को लूटनेवालों के हाथ से छुड़ाया।। 09O 14 49 शाऊल के पुत्रा योनातान, यिशबी, और मलकीश थे; और उसकी दो बेटियों के नाम ये थे, बड़ी का नाम तो मेरब और छोटी का नाम मीकल था। 09O 14 50 और शाऊल की स्त्री का नाम अहीनोअम था जो अहीमास की बेटी थी। और उसके प्रधान सेनापति का नाम अब्नेर था जो शाऊल के चचा नेर का पुत्रा था। 09O 14 51 और शाऊल का पिता कीश था, और अब्नेर का पिता नेर अबीएल का पुत्रा था। 09O 14 52 और शाऊल जीवन भर पलिश्तियों से संग्राम करता रहा; जब जब शाऊल को कोई वीर वा अच्छा योद्धा दिखाई पड़ा तब तब उस ने उसे अपने पास रख लिया।। 09O 15 1 शमूएल ने शाऊल से कहा, यहोवा ने अपनी प्रजा इस्राएल पर राज्य करने के लिये तेरा अभिषेक करने को मुझे भेजा था; इसलिये अब यहोवा की बातें सुन ले। 09O 15 2 सेनाओं का यहोवा यों कहता है, कि मुझे चेत आता है कि अमालेकियों ने इस्राएलियों से क्या किया; और जब इस्राएली मि से आ रहे थे, तब उन्हों ने मार्ग में उनका साम्हना किया। 09O 15 3 इसलिये अब तू जाकर अमालेकियों को मार, और जो कुछ उनका है उसे बिना कोमलता किए सत्यानाश कर; क्या पुरूष, क्या स्त्री, क्या बच्चा, क्या दूधपिउवा, क्या गाय- बैल, क्या भेड़- बकरी, क्या ऊंट, क्या गदहा, सब को मार डाल।। 09O 15 4 तब शाऊल ने लोगों को बुलाकर इकट्ठा किया, और उन्हें तलाईम में गिना, और वे दो लाख प्यादे, और दस हजार यहूदी पुरूष भी थे। 09O 15 5 तब शाऊल ने अमालेक नगर के पास जाकर एक नाले में घातकों को बिठाया। 09O 15 6 और शाऊल ने केनियों से कहा, कि वहां से हटो, अमालेकियों के मध्य में से निकल जाओ कहीं ऐसा न हो कि मैं उनके साथ तुम्हारा भी अन्त कर डालूं; क्योंकि तुम ने सब इस्राएलियों पर उनके मि से आते समय प्रीति दिखाई थी। और केनी अमालेकियों के मध्य में से निकल गए। 09O 15 7 तब शाऊल ने हवीला से लेकर शूर तक जो मि के साम्हने है अमालेकियों को मारा। 09O 15 8 और उनके राजा अगाग को जीवित पकड़ा, और उसकी सब प्रजा को तलवार से सत्यानाश कर डाला। 09O 15 9 परन्तु अगाग पर, और अच्छी से अच्छी भेड़- बकरियों, गाय- बैलों, मोटे पशुओं, और मेम्नों, और जो कुछ अच्छा था, उन पर शाऊल और उसकी प्रजा ने कोमलता की, और उन्हें सत्यानाश करना न चाहा; परन्तु जो कुछ तुच्छ और निकम्मा था उसको उन्हों ने सत्यानाश किया।। 09O 15 10 तब यहोवा का यह वचन शमूएल के पास पहुंचा, 09O 15 11 कि मैं शाऊल को राजा बना के पछताता हूं; क्योंकि उस ने मेरे पीछे चलना छोड़ दिया, और मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं किया। तब शमूएल का क्रोध भड़का; और वह रात भर यहोवा की दोहाई देता रहा। 09O 15 12 बिहान को जब शमूएल शाऊल से भेंट करने के लिये सवेरे उठा; तब शमूएल को यह बताया गया, कि शाऊल कर्म्मेल को आया था, और अपने लिये एक निशानी खड़ी की, और घूमकर गिलगाल को चला गया है। 09O 15 13 तब शमूएल शाऊल के पास गया, और शाऊल ने उस से कहा, तुझे यहोवा की ओर से आशीष मिले; मैं ने यहोवा की आज्ञा पूरी की है। 09O 15 14 शमूएल ने कहा, फिर भेड़- बकरियों का यह मिमियाना, और गय- बैलों का यह बंबाना जो मुझे सुनाई देता है, यह क्यों हो रहा है? 09O 15 15 शाऊल ने कहा, वे तो अमालेकियों के यहां से आए हैं; अर्थात् प्रजा के लोगों ने अच्छी से अच्छी भेड़- बकरियों और गाय- बैलों को तेरे परमेश्वर यहोवा के लिये बलि करने को छोड़ दिया है; और बाकी सब को तो हम ने सत्यानाश कर दिया है। 09O 15 16 तब शमूएल ने शाऊल से कहा, ठहर जा! और जो बात यहोवा ने आज रात को मुझ से कही है वह मैं तुझ को बताता हूं। उस ने कहा, कह दे। 09O 15 17 शमूएल ने कहा, जब तू अपनी दृष्टि में छोटा था, तब क्या तू इस्राएली गोत्रियों का प्रधान न हो गया, और क्या यहोवा ने इस्राएल पर राज्य करने को तेरा अभिषेक नहीं किया? 09O 15 18 और यहोवा ने तुझे यात्रा करने की आज्ञा दी, और कहा, जाकर उन पापी अमालेकियों को सत्यानाश कर, और जब तक वे मिट न जाएं, तब तक उन से लड़ता रह। 09O 15 19 फिर तू ने किस लिये यहोवा की वह बात टालकर लूट पर टूट के वह काम किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है? 09O 15 20 शाऊल ने शमूएल से कहा, नि:सन्देह मैं ने यहोवा की बात मानकर जिधर यहोवा ने मुझे भेजा उधर चला, और अमालेकियों को सत्यानाश किया है। 09O 15 21 परन्तु प्रजा के लोग लूट में से भेड़- बकरियों, और गाय- बैलों, अर्थात् सत्यानाश होने की उत्तम उत्तम वस्तुओं को गिलगाल में तेरे परमेश्वर यहोवा के लिये बलि चढ़ाने को ले आए हैं। 09O 15 22 शमूएल ने कहा, क्या यहोवा होमबलियों, और मेलबलियों से उतना प्रसन्न होता है, जितना कि अपनी बात के माने जाने से प्रसन्न होता है? सुन मानना तो बलि चढ़ाने और कान लगाना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है। 09O 15 23 देख बलवा करना और भावी कहनेवालों से पूछना एक ही समान पाप है, और हठ करना मूरतों और गृहदेवताओं की पूजा के तुल्य है। तू ने जो यहोवा की बात को तुच्छ जाना, इसलिये उस ने तुझे राजा होने के लिये तुच्छ जाना है। 09O 15 24 शाऊल ने शमूएल से कहा, मैं ने पाप किया है; मैं ने तो अपनी प्रजा के लोगों का भय मानकर और उनकी बात सुनकर यहोवा की आज्ञा और तेरी बातों का उल्लंघन किया है। 09O 15 25 परन्तु अब मेरे पाप को क्षमा कर, और मेरे साथ लौट आ, कि मैं यहोवा को दण्डवत् करूं। 09O 15 26 शमूएल ने शाऊल से कहा, मैं तेरे साथ न लौटूंगा; क्योंकि तू ने यहोवा की बात को तुच्छ जाना है, और यहोवा ने तुझे इस्राएल का राजा होने के लिये तुच्छ जाना है। 09O 15 27 तब शमूएल जाने के लिये घूमा, और शाऊल ने उसके बागे की छोर को पकड़ा, और वह फट गया। 09O 15 28 तब शमूएल ने उस से कहा आज यहोवा ने इस्राएल के राज्य को फाड़कर तुझ से छीन लिया, और तेरे एक पड़ोसी को जो तुझ से अच्छा है दे दिया है। 09O 15 29 और जो इस्राएल का बलमूल है वह न तो झूठ बोलता और न पछताता है; क्योंकि वह मनुष्य नहीं है, कि पछताए। 09O 15 30 उस ने कहा, मैं ने पाप तो किया है; तौभी मेरी प्रजा के पुरनियों और इस्राएल के साम्हने मेरा आदर कर, और मेरे साथ लौट, कि मैं तेरे परमेश्वर यहोवा को दण्डवत करूं। 09O 15 31 तब शमूएल लौटकर शाऊल के पीछे गया; और शाऊल ने यहोवा का दण्डवत् की। 09O 15 32 तब शमूएल ने कहा, अमालेकियों के राजा आगाग को मेरे पास ले आओ। तब आगाग आनन्द के साथ यह कहता हुआ उसके पास गया, कि निश्चय मृत्यु का दु:ख जाता रहा। 09O 15 33 शमूएल ने कहा, जैसे स्त्रियां तेरी तलवार से निर्वंश हुई हैं, वैसे ही तेरी माता स्त्रियों में निर्वंश होगी। तब शमूएल ने आगाग को गिलगाल में यहोवा के साम्हने टुकड़े टुकड़े किया।। 09O 15 34 तब शमूएल रामा को चला गया; और शाऊल अपने नगर गिबा को अपने घर गया। 09O 15 35 और शमूएल ने अपने जीवन भर शाऊल से फिर भेंट न की, क्योंकि शमूएल शाऊल के लिये विलाप करता रहा। और यहोवा शाऊल को इस्राएल का राजा बनाकर पछताता था।। 09O 16 1 और यहोवा ने शमूएल से कहा, मैं ने शाऊल को इस्राएल पर राज्य करने के लिये तुच्छ जाना है, तू कब तक उसके विषय विलाप करता रहेगा? अपने सींग में तेल भर के चल; मैं तुझ को बेतलेहेमी यिशै के पास भेजता हूं, क्योंकि मैं ने उसके पुत्रों में से एक को राजा होने के लिये चुना है। 09O 16 2 शमूएल बोला, मैं क्योंकर जा सकता हूं? यदि शाऊल सुन लेगा, तो मुझे घात करेगा। यहोवा ने कहा, एक बछिया साथ ले जाकर कहना, कि मैं यहोवा के लिये यज्ञ करने को आया हूं। 09O 16 3 और यज्ञ पर यिशै को न्योता देता, तब मैं तुझे जता दूंगा कि तुझ को क्या करना है; और जिसको मैं तुझे बताऊं उसी को मेरी ओर से अभिषेक करना। 09O 16 4 तब शमूएल ने यहोवा के कहने के अनुसार किया, और बेतलहेम को गया। उस नगर के पुरनिये थरथराते हुए उस से मिलने को गए, और कहने लगे, क्या तू मित्राभाव से आया है कि नहीं? 09O 16 5 उस ने कहा, हां, मित्राभाव से आया हूं; म्ें यहोवा के लिये यज्ञ करने को आया हूं; तुम अपने अपने को पवित्रा करके मेरे साथ यज्ञ में आओ। तब उस ने यिशै और उसके पुत्रों को पवित्रा करके यज्ञ में आने का न्योता दिया। 09O 16 6 जब वे आए, तब उस ने एलीआब पर दृष्टि करके सोचा, कि निश्चय जो यहोवा के साम्हने है वही उसका अभिषिक्त होगा। 09O 16 7 परन्तु यहोवा ने शमूएल से कहा, न तो उसके रूप पर दृष्टि कर, और न उसके डील की ऊंचाई पर, क्योंकि मैं ने उसे अयोग्य जाना है; क्योंकि यहोवा का देखना मनुष्य का सा नहीं है; मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है। 09O 16 8 तब यिशै ने अबीनादाब को बुलाकर शमूएल के साम्हने भेजा। और उस से कहा, यहोवा ने इसको भी नहीं चुना। 09O 16 9 फिर यिशै ने शम्मा को साम्हने भेजा। और उस ने कहा, यहोवा ने इसको भी नहीं चुना। 09O 16 10 योंही यिशै ने अपने सात पुत्रों को शमूएल के साम्हने भेजा। और शमूएल यिशै से कहता गया, यहोवा ने इन्हें नहीं चुना। 09O 16 11 तब शमूएल ने यिशै से कहा, क्या सब लड़के आ गए? वह बोला, नहीं, लहुरा तो रह गया, और वह भेड़- बकरियों को चरा रहा है। शमूएल ने यिशै से कहा, उसे बुलवा भेज; क्योंकि जब तक वह यहां न आए तब तक हम खाने को न बैठेंगे। 09O 16 12 तब वह उसे बुलाकर भीतर ले आया। उसके तो लाली झलकती थी, और उसकी आंखें सुन्दर, और उसका रूप सुडौल था। तब यहोवा ने कहा, उठकर इस का अभिषेक कर: यही है। 09O 16 13 तब शमूएल ने अपना तेल का सींग लेकर उसके भाइयों के मध्य में उसका अभिषेक किया; और उस दिन से लेकर भविष्य को यहोवा का आत्मा दाऊद पर बल से उतरता रहा। तब शमूएल उठकर रामा को चला गया।। 09O 16 14 और यहोवा का आत्मा शाऊल पर से उठ गया, और यहोवा की ओर से एक दुष्ट आत्मा उसे घबराने लगा। 09O 16 15 और शाऊल के कर्मचारियों ने उस से कहा, सुन, परमेश्वर की ओर से एक दुष्ट आत्मा तुझे घबराता है। 09O 16 16 हमारा प्रभु अपने कर्मचारियों को जो उपस्थित हैं आज्ञा दे, कि वे किसी अच्छे वीणा बजानेवाले को ढूंढ़ ले आएं; और जब जब परमेश्वर की ओर से दुष्ट आत्मा तुझ पर चढ़े, तब तब वह अपने हाथ से बजाए, और तू अच्छा हो जाए। 09O 16 17 शाऊल ने अपने कर्मचारियों से कहा, अच्छा, एक उत्तम बजवैया देखो, और उसे मेरे पास लाओ। 09O 16 18 तब एक जवान ने उत्तर देके कहा, सुन, मैं ने बेतलहमी यिशै के एक पुत्रा को देखा जो वीणा बजाना जानता है, और वह वीर योद्धा भी है, और बात करने में बुद्धिमान और रूपवान भी है; और यहोवा उसके साथ रहता है। 09O 16 19 तब शाऊल ने दूतों के हाथ यिशै के पास कहला भेजा, कि अपने पुत्रा दाऊद को जो भेड़- बकरियों के साथ रहता है मेरे पास भेज दे। 09O 16 20 तब यिशै ने रोटी से लदा हुआ एक गदहा, और कुप्पा भर दाखमधु, और बकरी का एक बच्चा लेकर अपने पुत्रा दाऊद के हाथ से शाऊल के पास भेज दिया। 09O 16 21 और दाऊद शाऊल के पास जाकर उसके साम्हने उपस्थित रहने लगा। और शाऊल उस से बहुत प्रीति करने लगा, और वह उसका हथियार ढोनेवाला हो गया। 09O 16 22 तब शाऊल ने यिशै के पास कहला भेजा, कि दाऊद को मेरे साम्हने उपस्थित रहने दे, क्योंकि मैं उस से बहुत प्रसन्न हूं। 09O 16 23 और जब जब परमेश्वर की ओर से वह आत्मा शाऊल पर चढ़ता था, तब तब दाऊद वीणा लेकर बजाता; और शाऊल चैन पाकर अच्छा हो जाता था, और वह दुष्ट आत्मा उस में से हट जाता था।। 09O 17 1 अब पलिश्तियों ने युद्ध के लिये अपनी सेनाओं को इकट्ठा किया; और यहूदा देश के सोको में एक साथ होकर सोको और अजेका के बीच एपेसदम्मीम में डेरे डाले। 09O 17 2 और शाऊल और इस्राएली पुरूषों ने भी इकट्ठे होकर एला नाम तराई में डेरे डाले, और युद्ध के लिये पलिश्तियों के विरूद्ध पांती बान्धी। 09O 17 3 पलिश्ती तो एक ओर के पहाड़ पर और इस्राएली दूसरी ओर के पहाड़ पर और इस्राएली दूसरी ओर के पहाड़ पर खड़े रहे; और दोनों के बीच तराई थी। 09O 17 4 तब पलिश्तियों की छावनी में से एक वीर गोलियत नाम निकला, जो गत नगर का था, और उसके डील की लम्बाई छ: हाथ एक बित्ता थी। 09O 17 5 उसके सिर पर पीतल का टोप था; और वह एक पत्तर का झिलम पहिने हुए था, जिसका तौल पांच हजार शेकेल पीतल का था। 09O 17 6 उसकी टांगों पर पीतल के कवच थे, और उस से कन्धों के बीच बरछी बन्धी थी। 09O 17 7 उसके भाले की छड़ जुलाहे के डोंगी के समान थी, और उस भाले का फल छ: सौ शेकेल लोहे का था, और बड़ी ढाल लिए हुए एक जन उसके आगे आगे चलता था 09O 17 8 वह खड़ा होकर इस्राएली पांतियों को ललकार के बोला, तुम ने यहां आकर लड़ाई के लिये क्यों पांति बान्धी है? क्या मैं पलिश्ती नहीं हूं, और तुम शाऊल के अधीन नहीं हो? अपने में से एक पुरूष चुना, कि वह मेरे पास उत्तर आए। 09O 17 9 यदि वह मुझ से लड़कर मुझे मार सके, तब तो हम तुम्हारे अधीन हो जाएंगे; परन्तु यदि मैं उस पर प्रबल होकर मांरू, तो तुम को हमारे अधीन होकर हमारी सेवा करनी पड़ेगी। 09O 17 10 फिर वह पलिश्ती बोला, मैं आज के दिन इस्राएली पांतियों को ललकारता हूं, किसी पुरूष को मेरे पास भेजो, कि हम एक दूसरे से लड़ें। 09O 17 11 उस पलिश्ती की इन बातों को सुनकर शाऊल और समस्त इस्राएलियों का मन कच्च हो गया, और वे अत्यन्त डर गए।। 09O 17 12 दाऊद तो यहूदा के बेतलेहेम के उस एप्राती पुरूष को पुत्रा था, जिसका नाम यिशै था, और उसके आठ पुत्रा थे और वह पुरूष शाऊल के दिनों में बूढ़ा और निर्बल हो गया था। 09O 17 13 यिशै के तीन बड़े पुत्रा शाऊल के पीछे होकर लड़ने को गए थे; और उसके तीन पुत्रों के नाम जो लड़ने को गए थे ये थे, अर्थात् ज्येश्ठ का नाम एलीआब, दूसरे का अबीनादाब, और तीसरे का शम्मा था। 09O 17 14 और सब से छोटा दाऊद था; और तीनों बड़े पुत्रा शाऊल के पीछे होकर गए थे, 09O 17 15 और दाऊद बेतलहेम में अपने पिता की भेड़ बकरियां चराने को शाऊल के पास से आया जाया करता था।। 09O 17 16 वह पलिश्ती तो चालीस दिन तक सवेरे और सांझ को निकट आकर खड़ा हुआ करता था। 09O 17 17 और यिशै ने अपने पुत्रा दाऊद से कहा, यह एपा भर चबैना, और ये दस रोटियां लेकर छावनी में अपने भाइयों के पास दौड़ जा; 09O 17 18 और पनीर की ये दस टिकियां उनके सह पति के लिये ले जा। और अपने भाइयों का कुशल देखकर उन की कोई चिन्हानी ले आना। 09O 17 19 शाऊल, और वे भाई, और समस्त इस्राएली पुरूष एला नाम तराई में पिशितलयों से लड़ रहे थे। 09O 17 20 और दाऊद बिहान को सबेरे उठ, भेड़ बकरियों को किसी रखवाले के हाथ में छोड़कर, उन वस्तुओं को लेकर चला; और जब सेना रणभूमि को जा रही, और संग्राम के लिये ललकार रही थी, उसी समय वह गाड़ियों के पड़ाव पर पहुंचा। 09O 17 21 तब इस्राएलियों और पलिश्तियों ने अपनी अपनी सेना आम्हने साम्हने करके पांति बांन्धी। 09O 17 22 औ दाऊद अपनी समग्री सामान के रखवाले के हाथ में छोड़कर रणभूमि को दौड़ा, और अपने भाइयों के पास जाकर उनका कुशल क्षेम पूछा। 09O 17 23 वह उनके साथ बातें कर ही रहा था, कि पलिश्तियों की पांतियों में से वह वीर, अर्थात् गतवासी गालियत नाम वह पलिश्ती योद्धा चढ़ आया, और पहिले की सी बातें कहने लगा। और दाऊद ने उन्हें सुना। 09O 17 24 उस पुरूष को देखकर सब इस्राएली अत्यन्त भय खाकर उसके साम्हने से भागे। 09O 17 25 फिर इस्राएली पुरूष कहने लगे, क्या तुम ने उस पुरूष को देखा है जो चढ़ा आ रहा है? निश्चय वह इस्राएलियों को ललकारने को चढ़ा आता है; और जो कोई उसे मार डालेगा उसको राजा बहुत धन देगा, और अपनी बेटी ब्याह देगा, और उसके पिता के घराने को इस्राएल में स्वतन्त्रा कर देगा। 09O 17 26 तब दाऊद ने उन पुरूषों से जो उसके आस पास खड़े थे पूछा, कि जो उस पलिश्ती को मारके इस्राएलियों की नामधराई दूर करेगा उसके लिये क्या किया जाएगा? वह खतनारहित पलिश्ती तो क्या है कि जीवित परमेश्वर की सेना को ललकारे? 09O 17 27 तब लोगों ने उस से वही बातें कहीं, अर्थात् यह, कि जो कोई उसे मारेगा उस से ऐसा ऐसा किया जाएगा। 09O 17 28 जब दाऊद उन मनुष्यों से बातें कर रहा था, तब उसका बड़ा भाई एलीआब सुन रहा था; और एलीआब दाऊद से बहुत क्रोधित होकर कहने लगा, तू यहां क्या आया है? और जंगल में उन थोड़ी सी भेड़ बकरियों को तू किस के पास छोड़ आया है? तेरा अभिमान और तेरे मन की बुराई मुझे मालूम है; तू तो लड़ाई देखने के लिये यहां आया है। 09O 17 29 दाऊद ने कहा, मैं ने अब क्या किया है, वह तो निरी बात थी? 09O 17 30 तब उस ने उसके पास से मुंह फेरके दूसरे के सम्मुख होकर वैसी ही बात कही; और लोगों ने उसे पहिले की नाई उत्तर दिया। 09O 17 31 जब दाऊद की बातों की चर्चा हुई, तब शाऊल को भी सुनाई गई; औश्र उस ने उसे बुलवा भेजा। 09O 17 32 तब दाऊद ने शाऊल से कहा, किसी मनुष्य का मन उसके कारण कच्चा न हो; तेरा दास जाकर उस पलिश्ती से लड़ेगा। 09O 17 33 शाऊल ने दाऊद से कहा, तू जाकर उस पलिश्ती के विरूद्ध नहीं युद्ध कर सकता; क्योंकि तू तो लड़का ही है, और वह लड़कपन ही से योद्धा है। 09O 17 34 दाऊद ने शाऊल से कहा, तेरा दास अपने पिता की भेड़ बकरियां चराता था; और जब कोई सिंह वा भालू झुंड में से मेम्ना उठा ले गया, 09O 17 35 तब मैं ने उसका पीछा करके उसे मारा, और मेम्ने को उसके मुंह से छुड़ाया; और जब उस ने मुझ पर चढ़ाई की, तब मैं ने उसके केश को पकड़कर उसे मार डाला। 09O 17 36 तेरे दास ने सिंह और भालू दोनों को मार डाला; और वह खतनारहित पलिश्ती उनके समान हो जाएगा, क्योंकि उस ने जीवित परमेश्वर की सेना को ललकारा है। 09O 17 37 फिर दाऊद ने कहा, यहोवा जिस ने मुझ सिंह और भालू दोनों के पंजे से बचाया है, वह मुझे उस पलिश्ती के हाथ से भी बचाएगा। शाऊल ने दाऊद से कहा, जा, यहोवा तेरे साथ रहे। 09O 17 38 तब शाऊल ने अपने वस्त्रा दाऊद को पहिनाए, और पीतल का टोप उसके सिर पर रख दिया, और झिलम उसको पहिनाया। 09O 17 39 और दाऊद ने उसकी तलवार वस्त्रा के ऊपर कसी, और चलने का यत्न किया; उस ने तो उनको न परखा था। इसलिये दाऊद ने शाऊल से कहा, इन्हें पहिने हुए मुझ से चला नहीं जाता, क्योंकि मैं ने नहीं परखा। और दाऊद ने उन्हें उतार दिया। 09O 17 40 तब उस ने अपनी लाठी हाथ में ले नाले में से पांच चिकने पत्थर छांटकर अपनी चरवाही की थैली, अर्थात् अपने झोले में रखे; और अपना गोफन हाथ में लेकर पलिश्ती के निकट चला। 09O 17 41 और पलिश्ती चलते चलते दाऊद के निकट पहुंचने लगा, और जो जन उसकी बड़ी ढाल लिए था वह उसके आगे आगे चला। 09O 17 42 जब पलिश्ती ने दृष्टि करके दाऊद को देखा, तब उसे तुच्छ जाना; क्योंकि वह लड़का ही था, और उसके मुख पर लाली झलकती थी, औश्र वह सुन्दर था। 09O 17 43 तब पलिश्ती ने दाऊद से कहा, क्या मैं कुत्ता हूं, कि तू लाठी लेकर मेरे पास आता है? तब पलिश्ती अपने देवताओं के नाम लेकर दाऊद को कोसने लगा। 09O 17 44 फिर पलिश्ती ने दाऊद से कहा, मेरे पास आ, मैं तेरा मांस आकाश के पक्षियों और बनपशुओं को दे दूंगा। 09O 17 45 दाऊद ने पलिश्ती से कहा, तू तो तलवार और भाला और सांग लिए हुए मेरे पास आता है; परन्तु मैं सेनाओं के यहोवा के नाम से तेरे पास आता हूं, जो इस्राएली सेना का परमेश्वर है, और उसी को तू ने ललकारा है। 09O 17 46 आज के दिन यहोवा तुझ को मेरे हाथ में कर देगा, और मैं तुझ को मारूंगा, और तेरा सिर तेरे धड़ से अलग करूंगा; और मैं आज के दिन पलिश्ती सेना की लोथें आकाश के पक्षियों और पृथ्वी के जीव जन्तुओं को दे दूंगा; तब समस्त पृथ्वी के लोग जान लेंगे कि इस्राएल में एक परमेश्वर है। 09O 17 47 और यह समस्त मण्डली जान लेगी की यहोवा तलवार वा भाले के द्वारा जयवन्त नहीं करता, इसलिये कि संग्राम तो यहोवा का है, और वही तुम्हें हमारे हाथ में कर देगा। 09O 17 48 जब पलिश्ती उठकर दाऊद का साम्हना करने के लिये निकट आया, तब दाऊद सना की ओर पलिश्ती का साम्हना करने के लिये फुर्ती से दौड़ा। 09O 17 49 फिर दाऊद ने अपनी थैली में हाथ डालकर उस में से एक पत्थर निकाला, और उसे गोफन में रखकर पलिश्ती के माथे पर ऐसा मारा कि पत्थर उसके माथे के भीतर घुस गया, और वह भूमि पर मुंह के बल गिर पड़ा। 09O 17 50 यों दाऊद ने पलिश्ती पर गोफन और एक ही पत्थर के द्वारा प्रबल होकर उसे मार डाला; परन्तु दाऊद के हाथ में तलवार न थी। 09O 17 51 तब दाऊद दौड़कर पलिश्ती के ऊपर खड़ा हुआ, और उसकी तलवार पकड़कर मियान से खींची, और उसको घात किया, और उसका सिर उसी तलवार से काट डाला। यह देखकर कि हमारा वीर मर गया पलिश्ती भाग गए। 09O 17 52 इस पर इस्राएली और यहूद पुरूष ललकार उठे, और गत और एक्रोन से फाटकों तक पलिश्तियों का पीछा करते गए, और घायल पलिश्ती शारैम के मार्ग में और गत और एक्रोन तक गिरते गए। 09O 17 53 तब इस्राएली पलिश्तियों का पीछा छोड़कर लौट आए, और उनके डेरों को लूट लिया। 09O 17 54 और दाऊद पलिश्ती का सिर यरूशलेम में ले गया; और उसके हथियार अपने डेरे में धर लिए।। 09O 17 55 जब शाऊल ने दाऊद को उस पलिश्ती का साम्हना करने के लिये जाते देखा, तब उस ने अपने सेनापति अब्नेर से पूछा, हे अब्नेर, वह जवान किस का पुत्रा है? अब्नेर ने कहा, हे राजा, तेरे जीवन की शपथ, मैं नहीं जानता। 09O 17 56 राजा ने कहा, तू पूछ ले कि वह जवान किस का पुत्रा है। 09O 17 57 जब दाऊद पलिश्ती को मारकर लौटा, तब अब्नेर ने उसे पलिश्ती का सिर हाथ में लिए हुए शाऊल के साम्हने पहुंचाया। 09O 17 58 शाऊल ने उस से पूछा, हे जवान, तू किस का पुत्रा है? दाऊद ने कहा, मैं तो तेरे दास बेतलेहेमी यिशै का पुत्रा हूं।। 09O 18 1 जब वह शाऊल से बातें कर चुका, तब योनातान का मन दाऊद पर ऐसा लग गया, कि योनातान उसे अपने प्राण के बराबर प्यार करने लगा। 09O 18 2 और उस दिन से शाऊल ने उसे अपने पास रखा, और पिता के घर को फिर लौटने न दिया। 09O 18 3 ब योनातान ने दाऊद से वाचा बान्धी, क्योंकि वह उसको अपने प्राण के बराबर प्यार करता था। 09O 18 4 और योनातान ने अपना बागा जो वह स्वयं पहिने था उतारकर अपने वस्त्रा समेत दाऊद को दे दिया, वरन अपनी तलवार और धनुष और कटिबन्ध भी उसको दे दिए। 09O 18 5 और जहां कहीं शाऊल दाऊद को भेजता था वहां वह जाकर बुद्धिमानी के साथ काम करता था; और शाऊल ने उसे योद्धाओं का प्रधान नियुक्त किया। और समस्त प्रजा के लोग और शाऊल के कर्मचारी उस से प्रसन्न थे।। 09O 18 6 जब दाऊद उस पलिश्ती को मारकर लौटा आता था, और वे सब लोग भी आ रहे थे, तब सब इस्राएली नगरों से स्त्रियों ने निकलकर डफ और तिकोने बाजे लिए हुए, आनन्द के साथ गाती और नाचती हुई, शाऊल राजा के स्वागत में निकलीं। 09O 18 7 और वे स्त्रियां नाचती हुइ एक दूसरी के साथ यह गाती गईं, कि शाऊल ने तो हजारों को, परन्तु दाऊद ने लाखों को मारा है।। 09O 18 8 तब शाऊल अति क्रोधित हुआ, और यह बात उसको बुरी लगी; और वह कहने लगा, उन्हों ने दाऊद के लिये तो लाखों और मेरे लिये हजारों को ठहराया; इसलिये अब राज्य को छोड़ उसको अब क्या मिलना बाकी है? 09O 18 9 तब उस दिन से भविष्य में शाऊल दाऊद की ताक में लगा रहा।। 09O 18 10 दूसरे दिन परमेश्वर की ओर से ऐ दृष्ट आत्मा शाऊल पर बल से उतरा, और वह अपने घर के भीतर नबूवत करने लगा; दाऊद प्रति दिवस की नाईं अपने हाथ से बजा रहा था। और शाऊल अपने हाथ में अपना भाला लिए हुए था; 09O 18 11 तब शाऊल ने यह सोचकर, कि मैं ऐसा मारूंगा कि भाला दाऊद को बेधकर भीत में धंस जाए, भाले को चलाया, परन्तु दाऊद उसके साम्हने से दो बार हट गया। 09O 18 12 और शाऊल दाऊद से डरा करता था, क्योंकि यहोवा दाऊद के साथ था और शाऊल के पास से अलग हो गया था। 09O 18 13 शाऊल ने उसको अपने पास से अलग करके सह पति किया, और वह प्रजा के साम्हने आया जाया करता था। 09O 18 14 और दाऊद अपनी समस्त चाल में बुद्धिमानी दिखाता था; और यहोवा उसके साथ साथ था। 09O 18 15 और जब शाऊल ने देखा कि वह बहुत बुद्धिमान है, तब वह उस से डर गया। 09O 18 16 परन्तु इस्राएल और यहूदा के समस्त लोग दाऊद से प्रेम रखते थे; क्योंकि वह उनके देखते आया जाया करता था।। 09O 18 17 और शाऊल ने यह सोचकर, कि मेरा हाथ नहीं, वरन पलिश्तियों ही का हाथ दाऊद पर पड़े, उस से कहा, सुन, मैं अपनी बड़ी बेटी मेरब को तुझे ब्याह दूंगा; इतना कर, कि तू मेरे लिये वीरता के साथ यहोवा की ओर से युद्ध कर। 09O 18 18 दाऊद ने शाऊल से कहा, मैं क्या हूं, और मेरा जीवन क्या है, और इस्राएल में मेरे पिता का कुल क्या है, कि मैं राजा का दामाद हो जाऊं? 09O 18 19 जब समय आ गया कि शाऊल की बेटी मेरब दाऊद से ब्याही जाए, तब वह महोलाई अद्रीएल से ब्याही गई। 09O 18 20 और शाऊल की बेटी मीकल दाऊद से प्रीति रखने लगी; और जब इस बात का समाचार शाऊल को मिला, तब वह प्रसन्न हुआ। 09O 18 21 शाऊल तो सोचता था, कि वह उसके लिये फन्दा हो, और पिशितलयों का हाथ उस पर पड़े। और शाऊल ने दाऊद से कहा, अब की बार तो तू अवश्य ही मेरा दामाद हो जाएगा। 09O 18 22 फिर शाऊल ने अपने कर्मचारियों को आज्ञा दी, कि दाऊद से छिपकर ऐसी बातें करो, कि सुन, राजा तुझ से प्रसन्न है, और उसके सब कर्मचारी भी तुझ से प्रेम रखते हैं; इसलिये अब तू राजा का दामाद हो जा। 09O 18 23 तब शाऊल के कर्मचारियों ने दाऊद से ऐसी ही बातें कहीं। परन्तु दाऊद ने कहा, मैं तो निर्धन और तुच्छ मनुष्य हूं, फिर क्या तुम्हारी दृष्टि में राजा का दामाद होना छोटी बात है? 09O 18 24 जब शाऊल के कर्मचारियों ने उसे बताया, कि दाऊद ने ऐसी ऐसी बातें कहीं। 09O 18 25 तब शाऊल ने कहा, तुम दाऊद से यों कहो, कि राजा कन्या का मोल तो कुछ नहीं चाहता, केवल पलिश्तियों की एक सौ खलड़ियां चाहता है, कि वह अपने शत्रुओं से पलटा ले। शाऊल की मनसा यह थी, कि पलिश्तियों से दाऊद को मरवा डाले। 09O 18 26 जब उसके कर्मचारियों ने दाऊद से यह बातें बताईं, तब वह राजा का दामाद होने को प्रसन्न हुआ। जब ब्याह के दिन कुछ रह गए, 09O 18 27 तब दाऊद अपने जनों को संग लेकर चला, और पलिश्तियों के दो सौ पुरूषों को मारा; तब दाऊद उनकी खलड़ियों को ले आया, और वे राजा को गिन गिन कर दी गईं, इसलिये कि वह राजा का दामाद हो जाए। और शाऊल ने अपनी बेटी मीकल को उसे ब्याह दिया। 09O 18 28 जब शाऊल ने देखा, और निश्चय किया कि यहोवा दाऊद के साथ है, और मेरी बेटी मीकल उस से प्रेम रखती है, 09O 18 29 तब शाऊल दाऊद से और भी डर गया। और शाऊल सदा के लिये दाऊद का बैरी बन गया।। 09O 18 30 फिर पलिश्तियों के प्रधान निकल आए, और जब जब वे निकल आए तब तब दाऊद ने शाऊल के और सब कर्मचारियों से अधिक बुद्धिमानी दिखाई; इस से उसका नाम बहुत बड़ा हो गया।। 09O 19 1 और शाऊल ने अपने पुत्रा योनातन और अपने सब कर्मचारियों से दाऊद को मार डालने की चर्चा की। परन्तु शाऊल का पुत्रा योनातन दाऊद से बहुत प्रसन्न था। 09O 19 2 और योनातन ने दाऊद को बताया, कि मेरा पिता तुझे मरवा डालना चाहता है; इसलिये तू बिहान को सावधान रहना, और किसी गुप्त स्थान में बैठा हुआ छिपा रहना; 09O 19 3 और मैं मैदान में जहां तू होगा वहां जाकर अपने पिता के पास खड़ा होकर उस से तेरी चर्चा करूंगा; और यदि मुझे कुछ मालूम हो तो तुझे बताऊंगा। 09O 19 4 और योनातन ने अपने पिता शाऊल से दाऊद की प्रशंसा करके उस से कहा, कि हे राजा, अपने दास दाऊद का अपराधी न हो; क्योंकि उस ने तेरा कुछ अपराध नहीं किया, वरन उसके सब काम तेरे बहुत हित के हैं; 09O 19 5 उस ने अपने प्राण पर खेलकर उस पलिश्ती को मार डाला, और यहोवा ने समस्त इस्राएलियों की बड़ी जय कराई। इसे देखकर तू आनन्दित हुआ था; और तू दाऊद को अकारण मारकर निर्दोष के खून का पापी क्यों बने? 09O 19 6 तब शाऊल ने योनातन की बात मानकर यह शपथ खाई, कि यहोवा के जीवन की शपथ, दाऊद मार डाला न जाएगा। 09O 19 7 तब योनातन ने दाऊद को बुलाकर ये समस्त बातें उसको बताई। फिर योनातन दाऊद को शाऊल के पास ले गया, और वह पहिले की नाईं उसके साम्हने रहने लगा।। 09O 19 8 तब फिर लड़ाई होने लगी; और दाऊद जाकर पलिश्तियों से लड़ा, और उन्हें बड़ी मार से मारा, और वे उसके साम्हने से भाग गए। 09O 19 9 और जब शाऊल हाथ में भाला लिए हुए घर में बैठा था; और दाऊद हाथ से बजा रहा िाा, तब यहोवा की ओर से एक दुष्ट आत्मा शाऊल पर चढ़ा। 09O 19 10 और शाऊल ने चाहा, कि दाऊद को ऐसा मारे कि भाला उसे बेधते हुए भीत में धंस जाए; परन्तु दाऊद शाऊल के साम्हने से ऐसा हट गया कि भाला जाकर भीत ही में धंस गया। और दाऊद भागा, और उस रात को बच गया। 09O 19 11 और शाऊल ने दाऊद के घर पर दूत इसलिये भेजे कि वे उसकी घात में रहें, और बिहान को उसे मार डालें, तब दाऊद की स्त्री मीकल ने उसे यह कहकर जताया, कि यदि तू इस रात को अपना प्राण न बचाए, तो बिहान को मारा जाएगा। 09O 19 12 तब मीकल ने दाऊद को खिड़की से उतार दिया; और वह भाग कर बच निकला। 09O 19 13 तब मीकल ने गृहदेवताओं को ले चारपाई पर लिटाया, और बकरियों के रोएं की तकिया उसके सिरहाने पर रखकर उन को वस्त्रा ओढ़ा दिए। 09O 19 14 जब शाऊल ने दाऊद को पकड़ लाने के लिये दूत भेजे, तब वह बोली, वह तो बीमार है। 09O 19 15 तब शाऊल ने दूतों को दाऊद के देखने के लिये भेजा, और कहा, उसे चारपाई समेत मेरे पास लाओ कि मैं उसे मार डालूं। 09O 19 16 जब दूत भीतर गए, तब क्या देखते हैं कि चारपाई पर गृहदेवता पड़े हैं, और सिरहाने पर बकरियों के रोएं की तकिया है। 09O 19 17 सो शाऊल ने मीकल से कहा, तू ने मुझे ऐसा धोखा क्यों दिया? तू ने मेरे शत्रु को ऐसा क्यों जाने दिया कि वह बच निकला है? मीकल ने शाऊल से कहा, उस ने मुझ से कहा, कि मुझे जाने दे; मैं तुझे क्यों मार डालूं।। 09O 19 18 और दाऊद भागकर बच निकला, और रामा में शमूएल के पास पहुंचकर जो कुछ शाऊल ने उस से किया था सब उसे कह सुनाया। तब वह और शमूएल जाकर नबायोत में रहने लगे। 09O 19 19 जब शाऊल ने दाऊद के पकड़ लाने के लिये दूत भेजे; और जब शाऊल के दूतों ने नबियों के दल को नबूवत करते हुए देखा, तब परमेश्वर का आत्मा उन पर चढ़ा, और वे भी नबूवत करने लगे। 09O 19 20 तब शाऊल ने दाऊद के पकड़ लाने के लिये दूत भेजे; और जब शाऊल के दूतों ने नबियों के दल को नबूवत करते हुए, और शमूएल को उनकी प्रधानता करते हुए देखा, तब परमेश्वर का आत्मा उन पर चढ़ा, और वे भी नबूवत करने लगे। 09O 19 21 इसका समाचार पाकर शाऊल ने और दूत भेजे, और वे भी नबूवत करने लगे। फिर शाऊल ने तीसरी बार दूत भेजे, और वे भी नबूवत करने लगे। 09O 19 22 तब वह आप ही राता को चला, और उस बड़े गड़हे पर जो सेकू में है पहुंचकर पूछने लगा, कि शमूएल और दाऊद कहां है? किसी ने कहा, वे तो रामा के नबायोत में हैं। 09O 19 23 तब वह उधर, अर्थात् रामा के नबायोत को चला; और परमेश्वर का आत्मा उस पर भी चढ़ा, और वह रामा के नबायोत को पहुंचने तक नबूवत करता हुआ चला गया। 09O 19 24 और उस ने भी अपने वस्त्रा उतारे, और शमूएल के साम्हने नबूवत करने लगा, और भूमि पर गिरकर दिन और रात नंगा पड़ा रहा। इस कारण से यह कहावत चली, कि क्या शाऊल भी नबियों में से है? 09O 20 1 फिर दाऊद रामा के नबायोत से भागा, और योनातन के पास जाकर कहने लगा, मैं ने क्या किया है? मुझ से क्या पाप हुआ? मैं ने तेरे पिता की दृष्टि में ऐसा कौन सा अपराध किया है, कि वह मेरे प्राण की खोज में रहता है? 09O 20 2 उस ने उस से कहा, ऐसी बात नहीं है; तू मारा न जाएगा। सुन, मेरा पिता मुझ को बिना जताए न तो कोई बड़ा काम करता है और न कोई छोटा; फिर वह ऐसी बात को मुझ से क्यों छिपाएगा? ऐसी कोई बात नहीं है। 09O 20 3 फिर दाऊद ने शपथ खाकर कहा, तेरा पिता निश्चय जानता है कि तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर है; और वह सोचता होगा, कि योनातन इस बात को न जानने पाए, ऐसा न हो कि वह खेदित हो जाए। परन्तु यहोवा के जीवन की शपथ और तेरे जीवन की शपथ, नि:सन्देह, मेरे और मृत्यु के बीच डग ही भर का अन्तर है। 09O 20 4 योनातान ने दाऊद से कहा, जो कुछ तेरा जी चाहे वही मैं तेरे लिये करूंगा। 09O 20 5 दाऊद ने योनातान से कहा, सुन कल नया चाँद होगा, और मुझे उचित है कि राजा के साथ बैठकर भोजन करूं; परन्तु तू मुझे विदा कर, और मैं परसों सांझ तक मैदान में छिपा रहूंगा। 09O 20 6 यदि तेरा पिता मेरी कुछ चिन्ता करे, तो कहना, कि दाऊद ने अपने नगर बेतलेहेम को शीघ्र जाने के लिये मुझ से बिनती करके छुट्टी मांगी है; क्योंकि वहां उसके समस्त कुल के लिये वार्षिक यज्ञ है। 09O 20 7 यदि वह यों कहे, कि अच्छा! तब तो तेरे दास के लिये कुशल होगा; परन्तु यदि उसका कोप बहुत भड़क उठे, तो जान लेना कि उस ने बुराई ठानी है। 09O 20 8 और तू अपने दास से कृपा का व्यवहार करना, क्योंकि तू ने यहोवा की शपथ खिलाकर अपने दास को अपने साथ वाचा बन्धाई है। परन्तु यदि मुझ से कुछ अपराध हुआ हो, तो तू आप मुझे मार डाल; तू मुझे अपने पिता के पास क्यों पहुंचाए? 09O 20 9 योनातन ने कहा, ऐसी बात कभी न होगी! यदि मैं निश्चय जानता कि मेरे पिता ने तुझ से बुराई करनी ठानी है, तो क्या मैं तुझ को न बताता? 09O 20 10 दाऊद ने योनातन से कहा, यदि तेरा पिता तुझ को कठोर उत्तर दे, तो कौन मुझे बताएगा? 09O 20 11 योनातन ने दाऊद से कहा, चल हम मैदान को निकल जाएं। और वे दोनो मैदान की ओर चले गए।। 09O 20 12 तब योनातन दाऊद से कहने लगा; इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की शपथ, जब मैं कल वा परसों इसी समय अपने पिता का भेद पांऊ, तब यदि दाऊद की भलाई देखूं, तो क्या मैं उसी समय तेरे पास दूत भेजकर तुझे न बताऊंगा? 09O 20 13 यदि मेरे पिता का मन तेरी बुराई करने का हो, और मैं तुझ पर यह प्रगट करके तुझे विदा न करूँ कि तू कुशल के साथ चला जाए, तो यहोवा योनातन से ऐसा ही वरन इस से भी अधिक करे। और यहोवा तेरे साथ वैसा ही रहे जैसा वह मेरे पिता के साथ रहा। 09O 20 14 और न केवल जब तक मैं जीवित रहूं, तब तक मुझ पर यहोवा की सी कृपा ऐसा करना, कि मैं न मरूं; 09O 20 15 परन्तु मेरे घराने पर से भी अपनी कृपादृष्टि कभी न हटाना! वरन जब यहोवा दाऊद के हर एक शत्रु को पृथ्वी पर से नाश कर चुकेगा, तब भी ऐसा न करना। 09O 20 16 इस प्रकार योनातन ने दाऊद के घराने से यह कहकर वाचा बन्धाई, कि यहोवा दाऊद के शत्रुओं से पलटा ले। 09O 20 17 और योनातन दाऊद से प्रेम रखता था, और उस ने उसको फिर शपथ खिलाई; क्योंकि वह उस ने अपने प्राण के बारबर प्रेम रखता था। 09O 20 18 तब योनातन ने उस से कहा, कल नया चाँद होगा; और तेरी चिन्ता की जाएगी, क्योंकि तेरी कुर्सी खाली रहेगी। 09O 20 19 और तू तीन दिन के बीतने पर तुरन्त आना, और उस स्थान पर जाकर जहां तू उस काम के दिन छिपा था, अर्थात् एजेल नाम पत्थर के पास रहना। 09O 20 20 तब मैं उसकी अलंग, मानो अपने किसी ठहराए हुए चिन्ह पर तीन तीर चलाऊंगा। 09O 20 21 फिर मैं अपने टहलुए छोकरे को यह कहकर भेजूंगा, कि जाकर तीरों को ढूंढ ले आ। यदि मैं उस छोकरे से साफ साफ कहूं, कि देख तीर इधर तेरी इस अलंग पर हैं, तो तू उसे ले आ, क्योंकि यहोवा के जीवन की शपथ, तेरे लिये कुशल को छोड़ और कुछ न होगा। 09O 20 22 परन्तु यदि मैं छोकरे से यों कहूं, कि सुन, तीर उधर तेरे उस अलंग पर है, तो तू चला जाना, क्योंकि यहोवा ने तुझे विदा किया है। 09O 20 23 और उस बात के विषय जिसकी चर्चा मैं ने और तू ने आपस में की है, यहोवा मेरे और तेरे मध्य में सदा रहे।। 09O 20 24 इसलिये दाऊद मैदान में जा छिपा; और जब नया चाँद हुआ, तक राजा भोजन करने को बैठा। 09O 20 25 राजा तो पहिले की नाईं अपने उस आसन पर बैठा जो भीत के पास था; और योनातन खड़ा हुआ, और अब्नेर शाऊल के निकट बैठा, परन्तु दाऊद का स्थान खाली रहा। 09O 20 26 उस दिन तो शाऊल यह सोचकर चुप रहा, कि इसका कोई न कोई कारण होगा; वह अशुद्ध होगा, नि:सन्देह शुद्ध न होगा। 09O 20 27 फिर नये चाँद के दूसरे दिन को दाऊद का स्थान खाली रहा। और शाऊल ने अपने पुत्रा योनातन से पूछा, क्या कारण है कि यिशै का पुत्रा न तो कल भोजन पर आया था, और न आज ही आया है? 09O 20 28 योनातन ने शाऊल से कहा, दाऊद ने बेतलेहेम जाने के लिये मुझ से बिनती करके छुट्टी मांगी; 09O 20 29 और कहा, मुझे जाने दे; क्योंकि उस नगर में हमारे कुल का यज्ञ है, और मेरे भाई ने मुझ को वहां उपस्थित होने की आज्ञा दी है। और अब यदि मुझ पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि हो, तो मुझे जाने दे कि मैं अपने भाइयों से भेंट कर आऊं। इसी कारण वह राजा की मेज पर नहीं आया। 09O 20 30 तब शाऊल का कोप योनातन पर भड़क उठा, और उस ने उस से कहा, हे कुटिला राजद्रोही के पुत्रा, क्या मैं नहीं जानता कि तेरा मन तो यिशै के पुत्रा पर लगा है? इसी से तेरी आशा का टूटना और तेरी माता का अनादर ही होगा। 09O 20 31 क्योंकि जब तक यिशै का पुत्रा भूमि पर जीवित रहेगा, तब तक न तो तू और न तेरा राज्य स्थिर रहेगा। इसलिये अभी भेजकर उसे मेरे पास ला, क्योंकि निश्चय वह मार डाला जाएगा। 09O 20 32 योनातन ने अपने पिता शाऊल को उत्तर देकर उस से कहा, वह क्यों मारा जाए? उस ने क्या किया है? 09O 20 33 तब शाऊल ने उसको मारने के लिये उस पर भाला चलाया; इससे योनातन ने जान लिया, कि मेरे पिता ने दाऊद को मार डालना ठान लिया है। 09O 20 34 तब योनातन क्रोध से जलता हुआ मेज पर से उठ गया, और महीने के दूसरे दिन को भोजन न किया, क्योंकि वह बहुत खेदित था, इसलिये कि उसके पिता ने दाऊद का अनादर किया था।। 09O 20 35 बिहान को योनातन एक छोटा लड़का संग लिए हुए मैदान में दाऊद के साथ ठहराए हुए स्थान को गया। 09O 20 36 तब उस ने अपने छोकरे से कहा, दौड़कर जो जो तीर मैं चलाऊं उन्हें ढूंढ़ ले आ। छोकरा दौड़ता ही था, कि उस ने एक तीर उसके परे चलाया। 09O 20 37 जब छोकरा योनातन के चलाए तीर के स्थान पर पहुंचा, तब योनातन ने उसके पीछे से पुकारके कहा, तीर तो तेरी परली ओर है। 09O 20 38 फिर योनातन ने छोकरे के पीछे से पुकारकर कहा, बड़ी फुर्ती कर, ठहर मत। और योनातन ने छोकरे के पीछे से पुकारके कहा, बड़ी फुर्ती कर, ठहर मत! और योनातन का छोकरा तीरों को बटोरके अपने स्वामी के पास ल आया। 09O 20 39 इसका भेद छोकरा तो कुछ न जानता था; केवल योनातन और दाऊद इस बात को जानते थे। 09O 20 40 और योनातन ने अपने हथियार अपने छोकरे को देकर कहा, जा, इन्हें नगर को पहुंचा। 09O 20 42 तब योनातन ने दाऊद से कहा, कुशल से चला जा; क्योंकि हम दोनों ने एक दूसरे से यह कहके यहोवा के नाम की शपथ खाई है, कि यहोवा मेरे और तेरे मध्य, और मेरे और तेरे वंश के मध्य में सदा रहे। तब वह उठकर चला गया; और योनातन नगर में गया।। 09O 21 1 और दाऊद नोब को अहीमेलेक याजक के पास आया; और अहीमेलेक दाऊद से भेंट करने को थरथराता हुआ निकला, और उस से पूछा, क्या कारण है कि तू अकेला है, और तेरे साथ कोई नहीं? 09O 21 2 दाऊद ने अहीमेलेक याजक से कहा, राजा ने मुझे एक काम करने की आज्ञा देकर मुझ से कहा, जिस काम को मैं तुझे भेजता, और जो आज्ञा मैं तुझे देता हूं, वह किसी पर प्रकट न होने पाए; और मैं ने जवानों को फलाने स्थान पर जाने को समझाया है। 09O 21 3 अब तेरे हाथ में क्या है? पांच रोटी, वा जो कुछ मिले उसे मेरे हाथ में दे। 09O 21 4 याजक ने दाऊद से कहा, मेरे पास साधारण रोटी तो कुछ नहीं है, केवल पवित्रा रोटी है; इतना हो कि वे जवान स्त्रियों से अलग रहे हों। 09O 21 5 दाऊद ने याजक को उत्तर देकर उस से कहा, सच है कि हम तीन दिन से स्त्रियों से अलग हैं; फिर जब मैं निकल आया, तब तो जवानों के बर्तन पवित्रा थे; यद्यपि यात्रा साधारण है तो आज उनके बर्तन अवश्य ही पवित्रा होंगे। 09O 21 6 तब याजक ने उसको पवित्रा रोटी दी; क्योंकि दूसरी रोटी वहां न थी, केवल भेंट की रोटी थी जो यहोवा के सम्मुख से उठाई गई थी, कि उसके उठा लेने के दिन गरम रोटी रखी जाए। 09O 21 7 उसी दिन वहां दोएग नाम शाऊल का एक कर्मचारी यहोवा के आगे रूका हुआ था; वह एदोमी और शाऊल के चरवाहों का मुखिया था। 09O 21 8 फिर दाऊद ने अहीमेलेक से पूछा, क्या यहां तेरे पास कोई भाला व तलवार नहीं है? क्योंकि मुझे राजा के काम की ऐसी जल्दी थी कि मैं न तो तलवार साथ लाया हूं, और न अपना कोई हथियार ही लाया। 09O 21 9 याजक ने कहा, हां, पलिश्ती गोलियत जिसे तू ने एला तराई में घात किया उसकी तलवार कपड़े में लपेआी हुई एपोद के पीदे धरी है; यदि तू उसे लेना चाहे, तो ले ले, उसे छोड़ और कोई यहां नहीं है। दाऊद बोला, उसके तुल्य कोई नहीं; वही मुझे दे।। 09O 21 10 तब दाऊद चला, और उसी दिन शाऊल के डर के मारे भागकर गत के राजा आकीश के पास गया। 09O 21 11 और आकीश के कर्मचारियों ने आकीश से कहा, क्या वह उस देश का राजा दाऊद नहीं है? क्या लोगों ने उसी के विषय नाचते नाचते एक दूसरे के साथ यह गाना न गया था, कि शाऊल ने हजारों को, और दाऊद ने लाखों को मारा है? 09O 21 12 दाऊद ने ये बातें अपने मन में रखीं, और गत के राजा आकीश से अत्यन्त डर गया। 09O 21 13 तब वह उनके साम्हने दूसरी चाल चली, और उनके हाथ में पड़कर बौड़हा, अर्थात पागल बन गया; और फाटक के किवाडों पर लकीरें खींचते, और अपनी लार अपनी दाढ़ी पर बहाने लगा। 09O 21 14 तब आकीश ने अपने कर्मचारियों से कहा, देखो, वह जन तो बावला है; तुम उसे मेरे पास क्यों लाए हो? 09O 21 15 क्या मेरे पास बावलों की कुछ घटी है, कि तुम उसको मेरे साम्हने बावलापन करने के लिये लाए हो? क्या ऐसा जन मेरे भवन में आने पाएगा? 09O 22 1 और दाऊद वहां से चला, और अदुल्लाम की गुफा में पहुंचकर बच गया; और यह सुनकर उसके भाईं, वरन उसके पिता का समस्त घराना वहां उसके पास गया। 09O 22 2 और जितने संकट में पड़े थे, और जितने ऋणी थे, और जितने उदास थे, वे एक उसके पास इकट्ठे हुए; और हव उनका प्रधान हुआ। और कोई चार सौ पुरूष उसके साथ हो गए।। 09O 22 3 वहां से दाऊद ने मोआब के मिसपे को जाकर मोआब के राजा से कहा, मेरे पिता को अपने पास तब तक आकर रहने दो, जब तक कि मैं न जानूं कि परमेश्वर मेरे लिये क्या करेगा। 09O 22 4 और वह उनको मोआब के राजा के सम्मुख ले गया, और जब तक दाऊद उस गढ़ में रहा, तब तक वे उसके पास रहे। 09O 22 5 फिर गाद नाम एक नबी ने दाऊद से कहा, इस गढ़ में मत रह; चल, यहूदा के देश में जा। और दाऊद चलकर हेरेत के बन में गया।। 09O 22 6 तब शाऊल ने सुना कि दाऊद और उसके संगियों का पता लग गया हैं उस समय शाऊल गिबा के ऊंचे स्थान पर, एक झाऊ के पेड़ के तले, हाथ में अपना भाला लिए हुए बैठा था, और उसके कर्मचारी उसके आसपास खड़े थे। 09O 22 7 तब शाऊल अपने कर्मचारियों से जो उसके आसपास खड़े थे कहने लगा, हे बिन्यामीनियों, सुनो; क्या यिशै का पुत्रा तुम सभों को खेत और दाख की बारियां देगा? क्या वह तुम सभों को सह पति और शतपति करेगा? 09O 22 8 तुम सभों ने मेरे विरूद्ध क्यों राजद्रोह की गोष्ठी की है? और जब मेरे पुत्रा ने यिशै के पुत्रा से वाचा बान्धी, तब किसी ने मुझ पर प्रगट नहीं किया; और तुम में से किसी ने मेरे लिये शोकित होकर मुझ पर प्रगट नहीं किया, कि मेरे पुत्रा ने मेरे कर्मचारी को मेरे विरूद्ध ऐसा घात लगाने को उभारा है, जैसा आज के दिन है। 09O 22 9 तब एदोमी दोएग ने, जो शाऊल के सेवकों के ऊपर ठहराया गया था, उत्तर देकर कहा, मैं ने तो यिशै के पुत्रा को नोब में अहीतूब के पुत्रा अहीमेलेक के पास आते देखा, 09O 22 10 और उस ने उसके लिये यहोवा से पूछा, और उसे भोजन वस्तु दी, और पलिश्ती गोलियत की तलवार भी दी। 09O 22 11 और राजा ने अहीतूब के पुत्रा अहीमेलेक याजक को और उसके पिता के समस्त घराने को, बुलवा भेजा; और जब वे सब के सब शाऊल राज के पास आए, 09O 22 12 तब शाऊल ने कहा, हे अहीतूब के पुत्रा, सुन, वह बोला, हे प्रभु, क्या आज्ञा? 09O 22 13 शाऊल ने उस से पुछा, क्या कारण है कि तू और यिशै के पुत्रा दोनों ने मेरे विरूद्ध राजद्रोह की गोष्ठी की है? तू ने उसे रोटी और तलवार दी, और उसके लिये परमेश्वर से पूछा भी, जिस से वह मेरे विरूद्ध उठे, और ऐसा घात लगाए जैसा आज के दिन है? 09O 22 14 अहीमेलेक ने राजा को उत्तर देकर कहा, तेरे समस्त कर्मचारियों में दाऊद के तुल्य विश्वासयोग्य कौन है? वह तो राजा का दामाद है, और तेरी राजसभा में उपस्थित हुआ करत, और तेरे परिवार में प्रतिष्ठित है। 09O 22 15 क्या मैं ने आज ही उसके लिये परमेश्वर से पूछना आरम्भ किया है? वह मुझ से दूर रहे! राजा न तो अपने दास पर ऐसा कोई दोष लगाए, न मेरे पिता के समस्त घराने पर, क्योंकि तेरा दास इन सब बखेड़ों के विषय कुछ भी नहीं जानता। 09O 22 16 राजा ने कहा, हे अहीमेलेक, तू और तेरे पिता का समस्त घराना निश्चय मार डाला जाएगा। 09O 22 17 फिर राजा ने उन पहरूओं से जो उसके आसपास खड़े थे आज्ञा दी, कि मुड़ो और यहोवा के याजकों को मार डालो; क्योंकि उन्हों ने भी दाऊद की सहायता की है, और उसका भागना जानने पर भी मुझ पर प्रगट नहीं किया। परन्तु राजा के सेवक यहोवा के याजकों को मारने के लिये हाथ बढ़ाना न चाहते थे। 09O 22 18 तब राजा ने दोएग से कहा, तू मुड़कर याजकों को मार डाल। तब एदोमी दोएग ने मुड़कर याजकों को मारा, और उस दिन सनीवाला एपोद पहिने हुए पचासी पुरूषों को घात किया। 09O 22 19 और याजकों के नगर नोब को उस ने स्त्रियों- पुरूषों, और बालबच्चों, और दूधपिउवों, और बैलों, गदहों, और भेड़- बकरियों समेत तलवार से मारा। 09O 22 20 परन्तु अहीतूब के पुत्रा अहीमेलेक का एब्यातार नाम एक पुत्रा बच निकला, और दाऊद के पास भाग गया। 09O 22 21 तब एब्यातार ने दाऊद को बताया, कि शाऊल ने यहोवा के याजकों को बध किया है। 09O 22 22 और दाऊद ने एब्यातार से कहा, जिस दिन एदोमी दोएग वहां था, उसी दिन मैं ने जान लिया, कि वह निश्चय शाऊल को बताएगा। तेरे पिता के समस्त घराने के मारे जाने का कारण मैं ही हुआ। 09O 22 23 इसलिये तू मेरे साथ निडर रह; जो मेरे प्राण का ग्राहक है वही तेरे प्राण का भी ग्राहक है; परन्तु मेरे साथ रहने से तेरी रक्षा होगी।। 09O 23 1 और दाऊद को यह समाचार मिला कि पलिश्ती लोग कीला नगर से युद्ध कर रहे हैं, और खलिहानों को लूट रहे हैं। 09O 23 2 तब दाऊद ने यहोवा से पूछा, कि क्या मैं जाकर पलिश्तियों को मारूं? यहोवा ने दाऊद से कहा, जा, और पलिश्तियों को मार के कीला को बचा। 09O 23 3 परन्तु दाऊद के जनों ने उस से कहा, हम तो इस यहूदा देश में भी डरते रहते हैं, यदि हम कीला जाकर पलिश्तियों की सेना का साम्हना करें, तो क्या बहुत अधिक डर में न पड़ेंगे? 09O 23 4 तब दाऊद ने यहोवा से फिर पूछा, और यहोवा ने उसे उत्तर देकर कहा, कमर बान्धकर कीला को जा; क्योंकि मैं पलिश्तियों को तेरे हाथ में कर दूंगा। 09O 23 5 इसलिये दाऊद अपने जनों को संग लेकर कीला को गया, और पलिश्तियों से लड़कर उनके पशुओं को हांक लाया, और उन्हें बड़ी मार से मारा। यों दाऊद ने कीला के निवासियों को बचाया। 09O 23 6 जब अहीमेलेक का पुत्रा एब्यातार दाऊद के पास कीला को भाग गया था, तब हाथ में एपोद लिए हुए गया था।। 09O 23 7 तब शाऊल को यह समाचार मिला कि दाऊद कीला को गया है। और शाऊल ने कहा, परमेश्वर ने उसे मेरे हाथ में कर दिया है; वह तो फाटक और बेंड़ेवले नगर में घुसकर बन्द हो गया है। 09O 23 8 तब शाऊल ने अपनी सारी सेना को लड़ाई के लिये बुलवाया, कि कीला को जाकर दाऊद और उसके जनों को घेर ले। 09O 23 9 तब दाऊद ने जान लिया कि शाऊल मेरी हानि कि युक्ति कर रहा है; इसलिये उस ने एब्यातार याजक से कहा, एपोद को निकट ले आ। 09O 23 10 तब दाऊद ने कहा, हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा, तेरे दास ने निश्चय सुना है कि शाऊल मेरे कारण कीला नगर नाश करने को आना चाहता है। 09O 23 11 क्या कीला के लोग मुझे उसके वश में कर देंगे? क्या जैसे तेरे दास ने सुना है, वैसे ही शाऊल आएगा? हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा, अपने दास को यह बता। यहोवा ने कहा, हां, वह आएगा। 09O 23 12 फिर दाऊद ने पूछा, क्या कीला के लोग मुझे और मेरे जनों को शाऊल के वश में कर देंगे? यहोवा ने कहा, हां, वे कर देंगे। 09O 23 13 तब दाऊद और उसके जन जो कोई छ: सौ थे कीला से निकल गए, और इधर उधर जहां कहीं जा सके वहां गए। और जब शाऊल को यह बताया गया कि दाऊद कीला से निकला भाग है, तब उस ने वहां जाने की मनसा छोड़ दी।। 09O 23 14 जब दाऊद जो जंगल के गढ़ों में रहने लगा, और पहाड़ी देश के जीप नाम जंगल में रहा। और शाऊल उसे प्रति दिन ढूंढ़ता रहा, परन्तु परमेश्वर ने उसे उसके हाथ में न पड़ने दिया। 09O 23 15 और दाऊद ने जान लिया कि शाऊल मेरे प्राण की खोज में निकला है। और दाऊद जीप नाम जंगल के होरेश नाम स्थान में था; 09O 23 16 कि शाऊल का पुत्रा योनातन उठकर उसके पास होरेश में गया, और परमेश्वर की चर्चा करके उसको ढाढ़स दिलाया। 09O 23 17 उस ने उस से कहा, मत डर; क्योंकि तू मेरे पिता शाऊल के हाथ में न पड़ेगा; और तू ही इस्राएल का राजा होगा, और मैं तेरे नीचे हूंगा; और इस बात को मेरा पिता शाऊल भी जानता है। 09O 23 18 तब उन दोनों ने यहोवा की शपथ खाकर आपस में वाचा बान्धी; तब दाऊद होरेश में रह गया, और योनातन अपने घर चला गया। 09O 23 19 तब जीपी लोग गिबा में शाऊल के पास जाकर कहने लगे, दाऊद तो हमारे पास होरेश के गढ़ों में, अर्थात् उस हकीला नाम पहाड़ी पर छिपा रहता है, जो यशीमोन के दक्खिन की ओर है। 09O 23 20 इसलिये अब, हे राजा, तेरी जो इच्छा आने की है, तो आ; और उसको राजा के हाथ में पकड़वा देना हमारा काम होगा। 09O 23 21 शाऊल ने कहा, यहोवा की आशीष तुम पर हो, क्योंकि तुम ने मुझ पर दया की है। 09O 23 22 तुम चलकर और भी निश्चय कर लो; और देख भालकर जान लो, और उसके अड्डे का पता लगा लो, और बूझो कि उसको वहां किसने देखा है; क्योंकि किसी ने मुझ से कहा है, कि वह बड़ी चतुराई से काम करता है। 09O 23 23 इसलिये जहां कहीं वह छिपा करता है उन सब स्थानों को देख देखकर पहिचानो, तब निश्चय करके मेरे पास लौट आना। और मैं तुम्हारे साथ चलूंगा, और यदि वह उस देश में कहीं भी हो, तो मैं उसे यहूदा के हजारों में से ढूंढ़ निकालूंगा। 09O 23 24 तब वे चलकर शाऊल से पहिले जीप को गए। परन्तु दाऊद अपने जनों समेत माओन नाम जंगल में चला गया था, जो अराबा में यशीमोन के दक्खिन की ओर है। 09O 23 25 तब शाऊल अपने जनों को साथ लेकर उसकी खोज में गया। इसका समाचार पाकर दाऊद पर्वत पर से उतरके माओन जंगल में रहने लगा। यह सुन शाऊल ने माओन जंगल में दाऊद का पीछा किया। 09O 23 26 शाऊल तो पहाड़ की एक ओर, और दाऊद अपेन जनों समेत पहाड़ की दूसरी ओर जा रहा था; और दाऊद शाऊल के डर के मारे जल्दी जा रहा था, और शाऊल अपने जनों समेत दाऊद और उसके जनों को पकड़ने के लिये घेरा बनाना चाहता था, 09O 23 27 कि एक दूत ने शाऊल के पास आकर कहा, फुर्ती से चला आ; क्योंकि पलिश्तियों ने देश पर चढ़ाई की है। 09O 23 28 यह सुन शाऊल दाऊद का पीछा छोड़कर पलिश्तियों का साम्हना करने को चला; इस कारण उस स्थान का नाम सेलाहम्महलकोत पड़ा। 09O 23 29 वहां से दाऊद चढ़कर एनगदी के गढ़ों में रहने लगा।। 09O 24 1 जब शाऊल पलिश्तियों का पीछा करके लौटा, तब उसको यह समाचार मिला, कि दाऊद एनगदी के जंगल में है। 09O 24 2 तब शाऊल समस्त इस्राएलियों में से तीन हजार को छांटकर दाऊद और उसके जनों को बनैले बकरों की चट्टानों पर खोजने गया। 09O 24 3 जब वह मार्ग पर के भेड़शालों के पास पहुंचा जहां एक गुफा थी, तब शाऊल दिशा फिरने को उसके भीतर गया। और उसी गुफा के कोनों में दाऊद और उसके जन बैठे हुए थे। 09O 24 4 तब दाऊद के जनों ने उस से कहा, सुन, आज वही दिन है जिसके विषय यहोवा ने तुझ से कहा था, कि मैं तेरे शत्रु को तेरे हाथ में सौंप दूंगा, कि तू उस से मनमाना बर्ताव कर ले। तब दाऊद ने उठकर शाऊल के बागे की छोर को छिपकर काट लिया। 09O 24 5 इसके पीछे दाऊद शाऊल के बागे की छोर काटने से पछताया। 09O 24 6 और अपने जनों से कहने लगा, यहोवा न करे कि मैं अपने प्रभु से जो यहोवा का अभिषिक्त है ऐसा काम करूं, कि उस पर हाथ चलाऊं, क्योंकि वह यहोवा का अभिषिक्त है। 09O 24 7 ऐसी बातें कहकर दाऊद ने अपने जनों को घुड़की लगाई और उन्हें शाऊल की हानि करने को उठने न दिया। फिर शाऊल उठकर गुफा से निकला और अपना मार्ग लिया। 09O 24 8 उसके पीछे दाऊद भी उठकर गुफा से निकला और शाऊल को पीछे से पुकार के बोला, हे मेरे प्रभु, हे राजा। जब शाऊल ने फिर के देखा, तब दाऊद ने भूमि की ओर सिर झुकाकर दण्डवत् की। 09O 24 9 और दाऊद ने शाऊल से कहा, जो मनुष्य कहते हैं, कि दाऊद तेरी हानि चाहता है उनकी तू क्यों सुनता है? 09O 24 10 देख, आज तू ने अपनी आंखों से देखा है कि यहोवा ने आज गुफा में तुझे मेरे हाथ सौंप दिया था; और किसी किसी ने तो मुझ से तुझे मारने को कहा था, परन्तु मुझे तुझ पर तरस आया; और मैं ने कहा, मैं अपने प्रभु पर हाथ न चलाऊंगा; क्योंकि वह यहोवा का अभिषिक्त है। 09O 24 11 फिर, हे मेरे पिता, देख, अपने बागे की छोर मेरे हाथ में देख; मैं ने तेरे बागे की छोर तो काट ली, परन्तु तुझे घात न किया; इस से निश्चय करके जान ले, कि मेरे मन में कोई बुराई वा अपराध का सोच नहीं है। और मैं ने तेरा कुछ अपराध नहीं किया, परन्तु तू मेरे प्राण लेने को मानो उसका अहेर करता रहता है। 09O 24 12 यहोवा मेरा और तेरा न्याय करे, और यहोवा तुझ से मेरा पलटा ले; परन्तु मेरा हाथ तुझ पर न उठेगा। 09O 24 13 प्राचीनों के नीति वचन के अनुसार दुष्टता दुष्टों से होती है; परन्तु मेरा हाथ तुझ पर न उठेगा। 09O 24 14 इस्राएल का राजा किस का पीछा करने को निकला है? और किस के पीछे पड़ा है? एक मरे कुत्ते के पीछे! एक पिस्सू के पीछे! 09O 24 15 इसलिये यहोवा न्यायी होकर मेरा तेरा विचार करे, और विचार करके मेरा मुक मा लड़े, और न्याय करके मुझे तेरे हाथ से बचाए। 09O 24 16 दाऊद शाऊल से ये बातें कही चुका था, कि शाऊल ने कहा, हे मेरे बेटे दाऊद, क्या यह तेरा बोल है? तब शाऊल चिल्लाकर रोने लगा। 09O 24 17 फिर उस ने दाऊद से कहा, तू मुझ से अधिक धर्मी है; तू ने तो मेरे साथ भलाई की है, परन्तु मैं ने तेरे साथ बुराई की। 09O 24 18 और तू ने आज यह प्रगट किया है, कि तू ने मेरे साथ भलाई की है, कि जब यहोवा ने मुझे तेरे हाथ में कर दिया, तब तू ने मुझे घात न किया। 09O 24 19 भला! क्या कोई मनुष्य अपने शत्रु को पाकर कुशल से जाने देता है? इसलिये जो तू ने आज मेरे साथ किया है, इसका अच्छा बदला यहोवा तुझे दे। 09O 24 20 और अब, मुझे मालूम हुआ है कि तू निश्चय राजा को जाएगा, और इस्राएल का राज्य तेरे हाथ में स्थिर होगा। 09O 24 21 अब मुझ से यहोवा की शपथ खा, कि मैं तेरे वंश को तेरे पीछे नाश न करूंगा, और तेरे पिता के घराने में से तेरा नाम मिटा न डालूंगा। 09O 24 22 तब दाऊद ने शाऊल से ऐसी ही शपथ खाई। तब शाऊल अपने घर चला गया; और दाऊद अपने जनों समेत गढ़ों में चला गया। 09O 25 1 और शमूएल मर गया; और समस्त इस्राएलियों ने इकट्ठे होकर उसके लिये छाती पीटी, और उसके घर ही में जो रामा में था उसको मिट्टी दी। तब दाऊद उठकर पारान जंगल को चला गया।। 09O 25 2 माओन में एक पुरूष रहता था जिसका माल कर्मेल में था। और वह पुरूष बहुत बड़ा था, और उसके तीन हजार भेड़ें, और एक हजार बकरियों थीं; और वह अपनी भेड़ों का ऊन कतर रहा था। 09O 25 3 उस पुरूष का नाम नाबाल, और उसकी पत्नी का नाम अबीगैल था। स्त्री तो बुद्धिमान और रूपवती थी, परन्तु पुरूष कठोर, और बुरे बुरे काम करनेवाला था; वह तो कालेबवंशी था। 09O 25 4 जब दाऊद ने जंगल में समाचार पाया, कि नाबाल अपनी भेड़ों का ऊन कतर रहा है; 09O 25 5 तब दाऊद ने दस जवानों को वहां भेज दिया, ओर दाऊद ने उन जवानों से कहा, कि कर्मेल में नाबाल के पास जाकर मेरी ओर से उसका कुशलक्षेम पूछो। 09O 25 6 और उस से यों कहो, कि तू चिरंजीव रहे, तेरा कल्याण हो, और तेरा घराना कल्याण से रहे, और जो कुछ तेरा है वह कल्याण से रहे। 09O 25 7 मैं ने सुना है, कि जो तू ऊन कतर रहा है; तेरे चरवाहे हम लोगों के पास रहे, और न तो हम ने उनकी कुछ हानि की, और न उनका कुछ खोया गया। 09O 25 8 अपने जवानों से यह बात पूछ ले, और वे तुझ का बताएंगे। सो इन जवानों पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि हो; हम तो आनन्द के समय में आए हैं, इसलिये जो कुछ तेरे हाथ लगे वह अपने दासों और अपने बेटे दाऊद को दे। 09O 25 9 ऐसी ऐसी बातें दाऊद के जवान जाकर उसके नाम से नाबाल को सुनाकर चुप रहे। 09O 25 10 नाबाल ने दाऊद के जनों को उत्तर देकर उन से कहा, दाऊद कौन है? यिशै का पुत्रा कौन है? आज कल बहुत से दास अपने अपने स्वामी के पास से भाग जाते हैं। 09O 25 11 क्या मैं अपनी रोटी- पानी और जो पशु मैं ने अपने कतरनेवालों के लिये मारे हैं लेकर ऐसे लोगों को दे दूं, जिनको मैं नहीं जानता कि कहां के हैं? 09O 25 12 तब दाऊद के जवानों ने लौटकर अपना मार्ग लिया, और लौटकर उसको से सब बातें ज्यों की त्यों सुना दीं। 09O 25 13 तब दाऊद ने अपने जनों से कहा, अपनी अपनी तलवार बान्ध लो। तब उन्हों ने अपनी अपनी तलवार बान्ध ली; और दाऊद ने भी अपनी तलवार बान्घ ली; और कोई चार सौ पुरूष दाऊद के पीछे पीछे चले, और दो सौ समान के पास रह गए। 09O 25 14 परन्तु एक सेवक ने नाबाल की पत्नी अबीगैल को बताया, कि दाऊद ने जंगल से हमारे स्वामी को आशीर्वाद देने के लिये दूत भेजे थे; और उस ने उन्हें ललकारा दिया। 09O 25 15 परन्तु वे मनुष्य हम से बहुत अच्छा बर्ताव रखते थे, और जब तक हम मैदान में रहते हुए उनके पास आया जाया करते थे, तब तक न तो हमारी कुछ हानि हुई, और न हमारा कुछ खोया गया; 09O 25 16 जब तक हम उन के साथ भेड़- बकरियां चराते रहे, तब तक वे रात दिन हमारी आड़ बने रहे। 09O 25 17 इसलिये अब सोच विचार कर कि क्या करना चाहिए; क्योंकि उन्हों ने हमारे स्वामी की ओर उसके समस्त घराने की हानि ठानी होगी, वह तो ऐसा दुष्ट है कि उस से कोई बोल भी नहीं सकता। 09O 25 18 अब अबीगैल ने फुर्ती से दो सौ रोटी, और दो कुप्पी दाखमधु, और पांच भेड़ियों का मांस, और पांच सआ भूना हुआ अनाज, और एक सौ गुच्छे किशमिश, और अंजीरों की दो सौ टिकियां लेकर गदहों पर लदवाई। 09O 25 19 और उस ने अपने जवानों से कहा, तुम मेरे आगे आगे चलो, मैं तुम्हारे पीछे पीछे आती हूं; परनतु उस ने अपने पति नाबाल से कुछ न कहा। 09O 25 20 वह गदहे पर चढ़ी हुई पहाड़ की आड़ में उतरी जाती थी, और दाऊद अपने जनों समेत उसके सामहने उतरा आता था; और वह उनको मिली। 09O 25 21 दाऊद ने तो सोचा था, कि मैं ने जो जंगल में उसके सब माल की ऐसी रक्षा की कि उसका कुछ भी न खोया, यह नि:सन्देह व्यर्थ हुआ; क्योंकि उस ने भलाई के बदले मुझ से बुराई ही की है। 09O 25 22 यदि बिहान को उजियाला होने तक उस जन के समस्त लोगों में से एक लड़के को भी मैं जीवित छोड़ूं, तो परमेश्वर मेरे सब शत्रुओं से ऐसा ही, वरन इस से भी अधिक करे। 09O 25 23 दाऊद को देख अबीगैल फुर्ती करके गदहे पर से उतर पड़ी, और दाऊद के सम्मुख मुंह के बल भूमि पर गिरकर दण्डवत् की। 09O 25 24 फिर वह उसके पांव पर गिरके कहने लगी, हे मेरे प्रभु, यह अपराण मेरे ही सिर पर हो; तेरी दासी तुझ से कुछ कहना चाहती है, और तू अपनी दासी की बातों को सुन ले। 09O 25 25 मेरा प्रभु उस दुष्ट नाबाल पर चित्त न लगाए; क्योंकि जैसा उसका नाम है वैसा ही वह आप है; उसका नाम तो नाबाल है, और सचमुच उस में मूढ़ता पाई जाती है; परन्तु मुझ तेरी दासी ने अपने प्रभु के जवानों को जिन्हें तू ने भेजा था न देखा था। 09O 25 26 और अब, हे मेरे प्रभु, यहोवा के जीवन की शपथ और तेरे जीवन की शपथ, कि यहोवा ने जो तुझे खून से और अपने हाथ के द्वारा अपना पलटा लेने से रोक रखा है, इसलिये अब तेरे शत्रु और मेरे प्रभु की हाति के चाहनेवाले नाबाल ही के समान ठहरें। 09O 25 27 और अब यह भेंट जो तेरी दासी अपने प्रभु के पास लाई है, उन जवानों को दी जाए जो मेरे प्रभु के साथ चालते हैं। 09O 25 28 अपनी दासी का अपराध क्षमा कर; क्योंकि यहोवा निश्चय मेरे प्रभु का घर बसाएगा और स्थिर करेगा, इसलिये कि मेरा प्रभु यहोवा की ओर से लड़ता है; और जन्म भर तुझ में कोई बुराई नहीं पाई जाएगी। 09O 25 29 और यद्यपि एक मनुष्य तेरा पीछा करनेऔर तेरे प्राण का ग्राहक होने को उठा है, तौभी मेरे प्रभु का प्राण तेरे परमेश्वर यहोवा की जीवनरूपी गठरी में बन्धा रहेगा, और तेरे शत्रुओं के प्राणों को वह मानो गोफन में रखकर फेंक देगा। 09O 25 30 इसलिये जब यहोवा मेरे प्रभु के लिये यह समस्त भलाई करेगा जो उस ने तेरे विषय में कही है, और तुझे इस्राएल पर प्रधान करके ठहराएगा, 09O 25 31 तब तुझे इस कारण पछताना न होगा, वा मेरे प्रभु का हृदय पीड़ित न होगा कि तू ने अकारण खून किया, और मेरे प्रभु ने अपना पलटा आप लिया है। फिर जब यहोवा मेरे प्रभु से भलाई करे तब अपनी दासी को स्मरण करना। 09O 25 32 दाऊद ने अबीगैल से कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा धन्य है, जिस ने आज के दिन मुझ से भेंट करने केलिये तुझे भेजा है। 09O 25 33 और तेरा विवेक धन्य है, और तू आप भी धन्य है, कि तू ने मुझे आज के दिन खून करने और अपना पलटा आप लेने से रोक लिया है। 09O 25 34 क्योंकि सचमुच इस्राएल का परमेश्वर यहोवा, जिस ने मुझे तेरी हानि करने से रोका है, उसके जीवन की शपथ, यदि तू फुर्ती करके मुंझ से भेंट करने को न आती, तो नि:सन्देह बिहान को उजियाला होने तक नाबाल का कोई लड़का भी न बचता। 09O 25 35 तब दाऊद ने उसे ग्रहण किया जो वह उसके लिये लाई थी; फिर उस से उस ने कहा, अपने घर कुशल से जा; सुन, मैं ने तेरी बात मानी है और तेरी बिनती ग्रहण कर ली है। 09O 25 36 तब अबीगैल नाबाल के पास लौट गई; और क्या देखती है, कि वह घर में राजा की सी जेवनार कर रहा है। और नाबाल का मन मगन है, और वह नशे में अति चूर हो गया है; इसलियेउस ने भोर के उजियालेहाने से पहिले उस से कुछ भी न कहा। 09O 25 37 बिहान को जब नाबाल का नशा उतर गया, तब उसकी पत्नी ने उसे कुल हाल सुना दिया, तब उसके मन का हियाव जाता रहा, और वह पत्थर सा सुन्न हो गया। 09O 25 38 और दस दिन के पश्चात् यहोवा ने नाबाल को ऐसा मारा, कि वह मर गया। 09O 25 39 नाबाल के मरने का हाल सुनकर दाऊद ने कहा, धन्य है यहोवा जिस ने नाबाल के साथ मेरी नामधराई का मुक मा लड़कर अपने दास को बुराई से रोक रखा; और यहोवा ने नाबाल की बुराईको उसी के सिर पर लाद दिया है। तब दाऊद ने लोगों को अबीगैल के पास इसलिये भेजा कि वे उस से उसकी पत्नी होने की बातचीत करें। 09O 25 40 तो जब दाऊद के सेवक कर्मेल को अबीगैल के पास पहुंचे, तब उस से कहने लगे, कि दाऊद ने हमें तेरे पास इसलिये भेजा है कि तू उसकी पत्नी बने। 09O 25 41 तब वह उठी, और मुंह के बल भूमि पर गिर दण्डवत् करके कहा, तेरी दासी अपने प्रभु के सेवकों के चरण धोने के लिये लौंडी बने। 09O 25 42 तब अबीगैल फुर्ती से उठी, और गदहे पर चढ़ी, और उसकी पांच सहेलियां उसके पीछे पीछे हो ली; और वह दाऊद के दूतों के पीछे पीछे गई; और उसकी पत्नी हो गई। 09O 25 43 और दाऊद ने चिज्रैल नगर की अहिनोअम को भी ब्याह लिया, तो वे दोनों उसकी पत्नियां हुई। 09O 25 44 परन्तुशाऊल ने अपनी बेटी दाऊद की पत्नी मीकल को लैश के पुत्रा गल्लीमवासी पलती को दे दिया था।। 09O 26 1 फिर जीपी लोग गिबा में शाऊल के पास जाकर कहने लगे, क्या दाऊद उस हकीला नाम पहाड़ी पर जो यशीमोन के साम्हने है छिपा नहीं रहता? 09O 26 2 तब शाऊल उठकर इस्राएल केतीन हजार छांटे हुए योद्धा संग लिए हुए गया कि दाऊद को जीप के जंगल में खोजे। 09O 26 3 और शाऊल ने अपनी छावनी मार्ग के पास हकीला नाम पहाड़ी पर जो यशीमोन के साम्हने है डाली। परन्तु दाऊद जंगल में रहा; और उस ने जान लिया, कि शाऊल मेरा पीछा करने केा जंगल में आया है; 09O 26 4 तब दाऊद ने भेदियों को भेजकर निश्चय कर लिया कि शाऊल सचमुच आ गया है। 09O 26 5 तब शाऊल उठकर उस स्थान पर गया जहां शाऊल पड़ा था; और दाऊद ने उस स्थान को देखा जहां शाऊल अपने सेनापति नेर के पुत्रा अब्नेर समेत पड़ा था, और उसके लोग उसके चारों ओर डेरे डाले हुए थे। 09O 26 6 तब दाऊद ने हित्ती अहीमेलेक और जरूयाह के पुत्रा योआब के भाई अबीशै से कहा, मेरे साथ उस छावनी में शाऊल के पास कौन चलेगा? अबीशै ने कहा, तेरे साथ मैं चलूंगा। 09O 26 7 सो दाऊद और अबीशै रातों रात उन लोगों के पास गए, और क्या देचाते हैं, कि शाऊल गाड़ियों की आड़ में पड़ा सो रहा है, और उसका भाला उसके सिरहाने भूमि में गड़ा है; और अब्नेर और योद्धा लोग उसके चारों ओर पड़े हुए हैं। 09O 26 8 तब अबीशै ने दाऊद से कहा, परमेश्वर ने आज तेरे शत्रु को तेरे हाथ में कर दिया है; इसलिये अब मैं उसकेा एक बार ऐसा मारूं कि भाला उसे बेधता हुआ भूमि में धंस जाए, और मुझ को उसे दूसरी बार मारना न पड़ेगा। 09O 26 9 दाऊद ने अबीशै से कहा, उसे नाश न कर; क्योंकि यहोवा के अभिषिक्त पर हाथ चलाकर कौन निर्दोष ठहर सकता है। 09O 26 10 फिर दाऊद ने कहा, यहोवा के जीवन की शपथ यहोवा ही उसको मारेगा; वा वह अपनी मृत्यु से मरेगा; वा वह लड़ाई में जाकर मर जाएगा। 09O 26 11 यहावेा न करे कि मैं अपना हाथ यहोवा के अभिषिक्त पर बढ़ाऊ; अब उसके सिरहाने से भाला और पानी की झारी उठा ले, और हम यहां से चले जाएं। 09O 26 12 तब दाऊद ने भाले और पानी की झारी को शाऊल के सिरहाने से उठा लिया; और वे चले गए। और किसी ने इसे न देखा, और न जाना, और न कोई जागा; क्योंकि वे सब इस कारण सोए हुए थे, कि यहोवा की ओर से उन में भारी नींद समा गई थी। 09O 26 13 तब दाऊइ परली ओर जाकर दूर के पहाड़ की चोटी पर खड़ा हुआ, और दोनों केबीच बड़ा अन्तर था; 09O 26 14 और दाऊद ने उन लोगों को, और नेर के पुत्रा अब्नेर कोपुकार के कहा, हे अब्नेरए क्या तू नहीं सुनता? अब्नेर ने उत्तर देकर कहा, तू कौन है जो राजा को पुकारता है? 09O 26 15 दाऊद ने अब्नेर से कहा, क्या तू पुरूष नहीं है? इस्राएल में तेरे तुल्य कौन है? तू ने अपने स्वामी राजा की चौकसी क्यों नहीं की? एक जन तो तेरे स्वामी राजा को नाश करने घुसा था 09O 26 16 जो काम तू ने किया है वह अच्छा नहीं। यहोवा के जीवन की शपथ तुम लोग मारे जाने के योग्य हो, क्योंकि तुम ने अपने स्वामी, यहोवा के अभिषिक्त की चौकसी नहीं की। और अब देख, राजा का भाला और पानी की घरी जो उसके सिरहान थी वे कहां हैं, 09O 26 17 तब शाऊल ने दाऊद का बोल पहिचानकर कहा, हे मेरे बेटे दाऊद, क्या यह तेरा बोल है, दाऊद ने कहा, हां, मेरे प्रभु राजा, मेरा ही बोल है। 09O 26 18 फिर उस ने कहा, मेरा प्रभु अपने दास का पीछा क्यों करता है? मैं ने क्या किया है? और मुझ से कौन सी बुराई हुई है? 09O 26 19 अब मेरा प्रभु राजा, अपने दास की बातें सुन ले। यदि यहोवा नेतुझे मेरे विरूद्ध उसकाया हो, तब तो वह भेंट ग्रहण करे; परन्तु यदि आदमियों ने ऐसा किया हो, तो वे यहोवा की ओर से शापित हों, क्योंकि उन्हों ने अब मुझे निकाल दिया हैकि मैं यहोवा के निज भाग में न रहूं, और उन्हों ने कहा है, कि जा पराए देवताओं की उपासना कर। 09O 26 20 इसलिये अब मेरा लोहू यहोवा की आखों की ओट में भूमि पर न बहने पाए; इस्राएल का राजा तो एक पिस्सू ढूंढ़ने आया है, जैसा कि कोई पहाड़ों पर तीतर का अहेर करे। 09O 26 21 शाऊल ने कहा, मैं ने पाप किया है, हे मेरे बेटे दाऊद लौट आ; मेरा प्राण आज के दिन तेरी दृष्टि में अनमोल ठहरा, इस कारण मैं फिर तेरी कुछ हानि न करूंगा; सुन, मैं ने मूर्खता की, और मुझ से बड़ी भूल हुई है। 09O 26 22 दाऊद ने उत्तर देकर कहा, हे राजा, भाले को देख, कोई जवान इधर आकर इसे ले जाए। 09O 26 23 यहोवा एक एक को अपने अपने धर्म और सच्चाई का फल देगा; देख, आज यहोवा ने तुझ को मेरे हाथ में कर दिया था, परन्तु मैं ने यहोवा के अभिषिक्त पर अपना हाथ बढ़ाना उचित न समझा। 09O 26 24 इसलिये जैसे तेरे प्राण आज मेरी दृष्टि में प्रिय ठहरे, वैसे ही मेरे प्राण भी यहोवा की दृष्टि में प्रिय ठहरे, और वह मुझे समस्त विपत्तियों से छुड़ाए। 09O 26 25 शाऊल ने दाऊद से कहा, हे मेरे बेटे दाऊद तू धन्य है! तू बड़े बड़े काम करेगा और तेरे काम सुफल होंगे। तब दाऊद ने अपना मार्ग लिया, और शाऊल भी अपने स्थान को लौट गया।। 09O 27 1 और दाऊद सोचने लगा, अब मैं किसी न किसी दिन शाऊल के हाथ से नाश हो जाऊंगा; अब मेरे लिये उत्तम यह है कि मैं पलिश्तियों के देश में भाग जाऊं; तब शाऊल मेरे विषय निराश होगा, और मुझे इस्राएल के देश के किसी भाग में फिर न ढूढ़ेगा, यों मैं उसके हाथ से बच निकलूंगा। 09O 27 2 तब दाऊद अपने छ: सौ संगी पुरूषों को लेकर चला गया, और गत के राजा माओक के पुत्रा आकीश के पास गया। 09O 27 3 और दाऊद और उसके जन अपने अपने परिवार समेत गत में आकीश के पास रहने लगे। दाऊद तो अपनी दो स्त्रियों के साथ, अर्थात् यिज्रेली अहीनोअब, और नाबाल की स्त्री कर्मेली अबीगैल के साथ रहा। 09O 27 4 जब शाऊल को यह समाचार मिला कि दाऊद गत को भाग गया है, तब उस ने उसे फिर कभी न ढूंढ़ा 09O 27 5 दाऊद ने आकीश से कहा, यदि मुझ पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि हो, तो देश की किसी बस्ती में मुझे स्थान दिला दे जहां मैं रहूं; तेरा दास तेरे साथ राजधनी में क्यों रहे? 09O 27 6 जब आकीश ने उसे उसी दिन सिकलग बस्ती दी; इस कारण से सिकलग आज के दिन तक यहूदा के राजाओं का बना है।। 09O 27 7 पलिश्तियों के देश में रहते रहते दाऊद को एक वर्ष चार महीने बीत गए। 09O 27 8 और दाऊद ने अपने जनों समेत जाकर गशूरियों, गिर्जियों, और अमालेकियों पर चढ़ाई की; ये जातियां तो प्राचीन काल से उस देश में रहती थीं जो शूर के मार्ग में मि देश तक है। 09O 27 9 दाऊद ने उस देश को नाश किया, और स्त्री पुरूष किसी को जीवित न छोड़ा, और भेड़- बकरी, गाय- बैल, गदहे, ऊंट, और वस्त्रा लेकर लौटा, और आकीश के पास गया। 09O 27 10 आकीश ने पूछा, आज तुम ने चढ़ाई तोनहीं की? दाऊद ने कहा, हां, यहूदा यरहमेलियों और केनियों की दक्खिन दिशा में। 09O 27 11 दाऊद ने स्त्री पुरूष किसी को जीवित न छोड़ा कि उन्हें गत में पहुंचाए; उस ने सोचा था, कि ऐसा न हो कि वे हमारा काम बताकर यह कहें, कि दाऊद ने ऐसा ऐसा किया है। वरन जब से वह पलिश्तियों के देश में रहता है, तब से उसका काम ऐसा ही है। 09O 27 12 तब आकीश ने दाऊद की बात सच मानकर कहा, यह अपने इस्राएली लागों की दृष्टि में अति घृणित हुआ है; इसलिये यह सदा के लिये मेरा दास बना रहेगा।। 09O 28 1 उन दिनों में पलिश्तियों ने इस्राएल से लड़ने के लिये अपनी सेना इकट्ठी की। और आकीश ने दाऊद से कहा, निश्चय जान कि तुझे अपने जनों समेत मेरे साथ सेना में जाना होगा। 09O 28 2 दाऊद ने आकीश से कहा, इस कारण तू जान लेगा कि तेरा दास क्या करेगा। आकीश ने दाऊद से कहा, इस कारण मैं तुझे अपने सिर का रक्षक सदा के लिये ठहराऊंगा।। 09O 28 3 शमूएल तो मर गया था, और समस्त इस्राएलियों ने उसके विषय छाती पीटी, और उसको उसके नगर रामा में मिट्टी दी थी। और शाऊल ने ओझों और भूतसिद्धि करनेवालों को देश से निकाल दिया था।। 09O 28 4 जब पलिश्ती इकट्ठे हुए और शूनेम में छावनी डाली, तो शाऊल ने सब इस्राएलियों को इकट्ठा किया, और उन्हों ने गिलबो में छावनी डाली। 09O 28 5 पलिश्तियों की सेना को देखकर शाऊल डर गया, और उसका मन अत्यन्त भयभीत हो कांप उठा। 09O 28 6 और जब शाऊल ने यहोवा से पूछा, तब यहोवा ने न तो स्वप्न के द्वारा उस उत्तर दिया, और न ऊरीम के द्वारा, और न भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा। 09O 28 7 तब शाऊल ने अपने कर्मचारियों से कहा, मेरे लिये किसी भूतसिद्धि करनेवाली को ढूंढो, कि मैं उसके पास जाकर उस से पूछूं। उसके कर्मचारियों ने उस से कहा, एन्दोर में एक भूतसिद्धि करनेवाली रहती है। 09O 28 8 तब शाऊल ने अपना भेष बदला, और दूसरे कपड़े पहिनकर, दो मनुष्य संग लेकर, रातोंरात चलकर उस स्त्री के पास गया; और कहा, अपने सिद्धि भूत से मेरे लिये भावी कहलवा, और जिसका नाम मैं लूंगा उसे बुलवा दे। 09O 28 9 स्त्री ने उस से कहा, तू जानता है कि शाऊल ने क्या किया है, कि उस ने ओझों और भूतसिद्धि करनेवालों को देश से नाश किया है। फिर तू मेरे प्राण के लिये क्यों फंदा लगाता है कि मुझे मरवा डाले। 09O 28 10 शाऊल ने यहोवा की शपथ खाकर उस से कहा, यहोवा के जीवन की शपथ, इस बात के कारण तुझे दण्ड न मिलेगा। 09O 28 11 स्त्री ने पूछा, मैं तेरे लिये किस को बुलाऊ? उस ने कहा, शमूएल को मेरे लिये बुला। 09O 28 12 जब स्त्री ने शमूएल को देखा, तब ऊंचे शब्द से चिल्लाई; और शाऊल से कहा, तू ने मुझे क्यों धोखा दिया? तू तो शाऊल है। 09O 28 13 राजा ने उस सेकहा, मत डर; तुझे क्या देख पड़ता है? स्त्री ने शाऊल से कहा, मुझे एक देवता पृथ्वी में से चढ़ता हुआ दिखाई पड़ता है। 09O 28 14 उस ने उस से पूछा उस का कैसा रूप ह? उस ने कहा, एक बूढ़ा पुरूष बागा ओढ़े हुए चढ़ा आता है। तब शाऊल ने निश्चय जानकर कि वह शमूएल है, औंधे मुंह भूमि पर गिरके दण्डवत् किया। 09O 28 15 शमूएल ने शाऊल से पूछा, तू ने मुझे ऊपर बुलवाकर क्यों सताया है? शाऊल ने कहा, मैं बड़े संकट में पड़ा हूं; क्योंकि पलिश्ती मेरे साथ लड़ रहे हैं और परमेश्वर ने मुझे छोड़ दिया, और अब मुझे न तो भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा उत्तर देता है, और न स्वपनों के; इसलिये मैं ने तुझे बुलाया कि तू मुझे जता दे कि मैं क्या करूं। 09O 28 16 शमूएल ने कहा, जब यहोवा तुझे छोड़कर तेरा शत्रु बन गया, तब तू मुझ से क्यों पूछता है? 09O 28 17 यहोवा ने तो जैसे मुझ से कहलावाया था वैसा ही उस ने व्यवहार किया है; अर्थात् उस ने तेरे हाथ से राज्य छीनकर तेरे पड़ोसी दाऊद को दे दिया है। 09O 28 18 तू ने जो यहोवा की बात न मानी, और न अमालेकियों को उसके भड़के हुए कोप के अनुसा दण्ड दिया था, इस कारण यहोवा ने तुझ से आज ऐसा बर्ताव किया। 09O 28 19 फिर यहोवा तुझ समेत इस्राएलियों को पलिश्तियों के हाथ में कर देगा; और तू अपने बेटों समेत कल मेरे साथ होगा; और इस्राएली सेना को भी यहोवा पलिश्तियों के हाथ में कर देगा। 09O 28 20 तब शाऊल तुरन्त मुंह के बल भूमि पर गिर पड़ा, और शमूएल की बातों के कारण अत्यन्त डर गया; उस ने पूरे दिन और रात भोजन न किया था, इस से उस में बल कुछ भी न रहा। 09O 28 21 तब वह स्त्री शाऊल के पास गई, और उसको अति व्याकुल देखकर उस से कहा, सुन, तेरी दासी ने तो तेरी बात मानी; और मैं ने अपने प्राण पर खेलकर तेरे वचनों को सुन लिया जो तू ने मुझ से कहा। 09O 28 22 तोअब तू भी अपनी दासी की बात मान; और मैं तेरे साम्हने एक टुकड़ा रोटी रखूं; तू उसे खा, कि जब तू अपना मार्ग ले तब तुझे बल आ जाए। 09O 28 23 उस ने इनकार करके कहा, मैं न खाऊंगा। परन्तु उसके सेवकों और स्त्री ने मिलकर यहां तक उसे दबाया कि वह उनकी बात मानकर, भूमि पर से उठकर खाट पर बैठ गया। 09O 28 24 स्त्री के घर में तो एक तैयार किया हुआ बछड़ा था, उस ने फुर्ती करके उसे मारा, फिर आटा लेकर गूंधा, और अखमीरी रोटी बनाकर 09O 28 25 शाऊल और उसके सेवकों के आगे लाई; और उन्हों ने खाया। तब वे उठकर उसी रात चले गए।। 09O 29 1 पलिश्तियों ने अपनी समस्त सेना को अपेक में इकट्ठा किया; और इस्राएली यिज्रेल के निकट के सोते के पास डेरे डाले हुए थे। 09O 29 2 तब पलिश्तियों के सरदार अपने अपने सैकड़ों और हजारों समेत आगे बढ़ गए, और सेना के पीछे पीछे आकीश के साथ दाऊद भी अपने जनों समेत बढ़ गया। 09O 29 3 तब पलिश्ती हाकिमों ने पूछा, इन इब्रियों का यहां क्या काम है? आकीश ने पलिश्ती सरदारों से कहा, क्या वह इस्राएल के राजा शाऊल का कर्मचारी दाऊद नहीं है, जो क्या जाने कितने दिनों से वरन वर्षो से मेरे साथ रहता है, और जब से वह भाग आया, तब से आज तक मैने उस में कोई दोष नहीं पाया। 09O 29 4 तब पलिश्ती हाकिम उस से क्रोधित हुए; और उस से कहा, उस पुरूष को लौटा दे, कि वह उस स्थान पर जाए जो तू ने उसके लिये ठहराया है; वह हमारे संग लड़ाई में न आने पाएगा, कहीं ऐसा न हो कि वह लड़ाई में हमारा विराधी बन जाए। फिर वह अपने स्वामी से किस रीति से मेल करे? क्या लोगों के सिर कटवाकर न करेगा? 09O 29 5 क्या यह वही दाऊद नहीं है, जिसके विषय में लोग नाचते और गाते हुए एक दूसरे से कहते थे, कि शाऊल ने हजारों को , पर दाऊद ने लाखों को मारा है? 09O 29 6 तब आकीश ने दाऊद को बुलाकर उस से कहा, यहोवा के जीवन की शपथ तू तो सीधा है, और सेना में तेरा मेरे संग आना जाना भी मुझे भावता है; क्योंकि जब से तू मेरे पास आया तब से लेकर आज तक मैं ने तो तुझ में कोई बुराई नहीं पाई। तौभी सरदार लोग तुझे नहीं चाहते। 09O 29 7 इसलिये अब तू कुशल से लौट जा; ऐसा न हो कि पलिश्ती सरदार तुझ से अप्रसन्न हों। 09O 29 8 दाऊद ने आकीश से कहा, मैं ने क्या किया है? और जब से मैं तेरे साम्हने आया तब से आज तक तू ने अपने दास में क्या पाया है कि अपने प्रभु राजा के शत्रुओं से लड़ने न पाऊं? 09O 29 9 आकीश ने दाऊद को उत्तर देकर कहा, हां, यह मुझे मालूम है, तू मेरी दृष्टि में तो परमेश्वर के दूत के समान अच्छा लगता है; तौभी पलिश्ती हाकिमों ने कहा है, कि वह हमारे संग लड़ाई में ने जाने पाएगा। 09O 29 10 इसलिये अब तू अपने प्रभु के सेवकों को लेकर जो तेरे साथ आए हैं बिहान को तड़के उठना; और तुम बिहान को लड़के उठकर उजियाला होते ही चले जाना। 09O 29 11 इसलिये बिहान को दाऊद अपने जनों समेत तड़के उठकर पलिश्तियों के देश को लौअ गया। और पलिश्ती यिज्रेल को चढ़ गए।। 09O 30 1 तीसरे दिन जब दाऊद अपने जनों समेत सिकलग पहुंचा, तब उन्हों ने क्या देखा, कि अमालेकियों ने दक्खिन देश और सिकलग पर चढ़ाई की। और सिकलग को मार के फूंक दिया, 09O 30 2 और उस में की स्त्री आदि छोटे बड़े जितने थे, सब को बन्धुआई में ले गए; उन्हों ने किसी को मार तो नहीं डाला, परन्तु सभों को लेकर अपना मार्ग लिया। 09O 30 3 इसलिये जब दाऊद अपने जनों समेत उस नगर में पहुंचा, तब नगर तो जला पड़ा था, और स्त्रियां और बेटे- बेछियां बन्धुआई में चली गई थीं। 09O 30 4 तब दाऊद और वे लोग जो उसके साथ थे चिल्लाकर इतना रोए, कि फिर उन में रोने की शक्ति न रही। 09O 30 5 और दाऊद की दो स्त्रियां, यिज्रेली अहीनोअम, और कर्मैली नाबाल की स्त्री अबीगैल, बन्धुआई में गई थीं। 09O 30 6 और दाऊद बड़े संकट में पड़ा; क्योंकि लोग अपने बेटे- बेटियों के कारण बहुत शोकित होकर उस पर पत्थरवाह करने की चर्चा कर रहे थे। परन्तु दाऊद ने अपने परमेश्वर यहोवा को स्मरण करके हियाव बान्धा।। 09O 30 7 तब दाऊद ने अहीमेलेक के पुत्रा एब्यातार याजक से कहा, एपोद को मेरे पास ला। तब एब्यातार एपोद को दाऊद के पास ले आया। 09O 30 8 और दाऊद ने यहोवा से पूछा, क्या मैं इस दल का पीछा करूं? क्या उसको जा पकडूंगा? उस ने उस से कहा, पीछा कर; क्योंकि तू निश्चय उसको पकड़ेगा, और निसन्देह सब कुछ छुड़ा लाएगा; 09O 30 9 तब दाऊद अपनेछ: सौ साथी जनों को लेकर बसोर नाम नाले तक पहुंचा; वहां कुछ लोग छोड़े जाकर रह गए। 09O 30 10 दाऊद तो चार सौ पुरूषों समेत पीछा किए चला गया; परन्तु दौसौ जो ऐसे थक गए थे, कि बसोर नाले के पार न जा सके वहीं रहे। 09O 30 11 उनको एक मिद्दी पुरूष मैदान में मिला, उन्हों ने उसे दाऊद के पास ले जाकर रोटी दी; और उस ने उसे खाया, तब उसे पानी पिलाया, 09O 30 12 फिर उन्हों ने उसको अंजीर की टिकिया का एक टुकड़ा और दो गुच्छे किशमिश दिए। और जब उस ने खाया, तब उसके जी में जी आया; उस ने तीन दिन और तीन रात से न तो रोटी खाई थी और न पानी पिया था। 09O 30 13 तब दाऊद ने उस से पूछा, तू किस का जन है? और कहां का है? उस ने कहा, मैं तो मिद्दी जवान और एक अमालेकी मनुष्य का दास हूँ; और तीन दिन हुए कि मैं बीमार पड़ा, और मेरा स्वामी मुझे छोड़ गया। 09O 30 14 हम लोगों ने करेतियों की दक्खिन दिशा में, और यहूदा के देश में, और कालेब की दक्खिन दिशा में चढाई की; और सिकलग को आग लगाकर फूंक दिया था। 09O 30 15 दाऊद ने उस से पूछा, क्या तू मुझे उस दल के पास पहुंचा देगा? उस ने कहा, मुझ से परमेश्वर की यह शपथ खा, कि मैं तुझे न तो प्राण से मारूंगा, और न तेरे स्वामी के हाथ कर दूंगा, तब मैं तुझे उस दल के पास पहुंचा दूंगा। 09O 30 16 जब उस ने उसे पहुंचाया, तब देखने में आया कि वे सब भूमि पर छिटके हुए खाते पीते, और उस बडी लूट के कारण, जो वे पलिश्तियों के देश और यहूदा देश से लाए थे, नाच रहे हैं। 09O 30 17 इसलिये दाऊद उन्हें रात के पहिले पहर से लेकर दूसरे दिन की सांझ तक मारता रहा; यहां तक कि चार सौ जवान को छोड़, जो ऊंटों पर चढ़कर भाग गए, उन में से एक भी मनुष्य न बचा। 09O 30 18 और जो कुछ अमालेकी ले गए थे वह सब दाऊद ने छुड़ाया; और दाऊद ने आपनी दोनों स्त्रियों को भी छुडा लिया। झ् 09O 30 19 वरन उनके क्या छो़टे, क्या बडे,़क्या बेटे, क्या बेटियां, क्या लूट का माल, सब कुछ जो अमालेकी ले गए थे, उस में से कोई वस्तु न रही जो उनको न मिली हो; क्योंकि दाऊद सब का सब लौटा लाया। 09O 30 20 और दाऊद ने सब भेड़ बकरियां, और गाय बैल भी लूट लिए; और इन्हें लोग यह कहते हुए अपने जानवरों के आगे हांकते गए, कि यह दाऊद की लूट है। 09O 30 21 तब दाऊद उन दो सौ पुरूषों के पास आया, जो ऐसे थक गए थे कि दाऊद के पीछे पीछे न जा सके थे, और बसोर नाले के पास छोड़ दिए गए थे; और वे दाऊद से और उसके संग के लोगों से मिलने को चले; और दाऊद ने उनके पास पहुंचकर उनका कुशल क्षेम पूछा। 09O 30 22 तब उन लोगों में से जो दाऊद के संग गए थे सब दुष्ट और ओछे लोगों ने कहा, ये लोग हमारे साथ नही चले थे, इस कारण हम उन्हें अपने छुडाए हुए लूट के माल में से कुछ न देंगे, केवल एक एक मनुष्य को उसकी स्त्री और बाल बच्चे देंगे, कि वे उन्हें लेकर चले जाएं। 09O 30 23 परन्तु दाऊद ने कहा, हे मेरे भाइयो, तुम उस माल के साथ एसा न करने पाओगे जिसे यहोवा ने हमें दिया है; और उसने हमारी रक्षा की, और उस दल को जिस ने हमारे ऊपर चढाई की थी हमारे हाथ में कर दिया है। 09O 30 24 और इस विषय में तुम्हारी कौन सुनेगा? लड़ाई में जानेवाले का जैसा भाग हो, सामान के पास बैठे हए का भी वैसा ही भाग होगा; दोनों एक ही समान भाग पाएंगे। 09O 30 25 और दाऊद ने इस्राएलियों के लिये ऐसी ही विधि और नियम ठहराया, और वह उस दिन से लेकर आगे को वरन आज लों बना है। 09O 30 26 सिकलग में पहुंचकर दाऊद ने यहूदी पुरनियों के पास जो उसके मित्रा थे लूट के माल में से कुछ कुछ भेजा, और यह कहलाया, कि यहोवा के शत्रुओं से ली हुई लूट में से तुम्हारे लिये यह भेंट है। 09O 30 27 अर्थात्बेतेल के दक्खिन देश के रामोत,यत्तीर, 09O 30 28 अरोएर, सिपमोत, एश्तमो, 09O 30 29 राकाल, यरहमेलियों के नगरों, केनियों के नगरों, 09O 30 30 होर्मा, कोराशान, अताक, 09O 30 31 हेब्रोन आदि जितने स्थानों में दाऊद अपने जनों समेत फिरा करता था, उन सब के पुरनियों के पास उसने कुछ कुछ भेजा। 09O 31 1 पलिश्ती तो इस्राएलियों से लड़े; और इस्राएली पुरूष पलिश्तियों के साम्हने से भागे, और गिलबो नाम पहाड़ पर मारे गए। 09O 31 2 और पलिश्ती शाऊल और उसके पुत्रों के पीछे लगे रहे; और पलिश्तियों ने शाऊल के पुत्रा योनातन, अबीनादाब, और मल्कीश को मार डाला। 09O 31 3 और शाऊल के साथ धमासान युठ्ठ हो रहा था, और धनुर्धारियों ने उसे जा लिया, और वह उनके कारण अत्यन्त व्याकुल हो गया। 09O 31 4 तब शाऊल ने अपने हथियार ढोनेवाले से कहा, अपनी तलवार खींचकर मुझे झोंक दे, एसा न हो कि वे खतनारहित लोग आकर मुुझे झोंक दें, और मेरी ठट्टा करें। परन्तु अके हथियार ढोनेवाले ने अत्यन्त भय खाकर ऐसा करने से इन्कार किया। तब शाऊल अपनी तलवार खड़ी करके उस पर गिर पड़ा। 09O 31 5 यह देखकर कि शाऊल मर गया, उसका हथियार ढोनेवाला भी अपनी तलवार पर आप गिरकर उसके साथ मर गया। 09O 31 6 यों शाऊल, और उसके तीनों पुत्रा, और उसका हथियार ढोनेवाला, और उसके समस्त जन उसी दिन एक संग मर गए। 09O 31 7 यह देखकर कि इस्राएली पुरूष भाग गए, और शाऊल और उसके पुत्रा मर गए, उस तराई की परली ओर वाले औ यरदन के पार रहनेवाले भी इस्राएली मनुष्य अपने अपने नगरों को छोड़कर भाग गए; और पलिश्ती आकर उन में रहने लगे। 09O 31 8 दूसरे दिन जब पलिश्ती मारे हुओं के माल को लूटने आए, तब उनके शाऊल और उसके तीनों पुत्रा गिलबो पहाड़ पर पड़े हाए मिले। 09O 31 9 तब उन्हों ने शाऊल का सिर काटा, और हथियार लूट लिए, और पलिश्तियों के देश के सब स्थानों में दूतों को इसलिये भेजा, कि उनके देवालयों और साघारण लोगों में यह शुभ समाचार देते जाएं। 09O 31 10 तब उन्हों ने उसके हथियार तो आश्तोरेत नाम देवियों के मन्दिर में रखे, और उसकी लोथ बेतशान की शहरपनाह में जड़दी। 09O 31 11 जब गिलादवाले याबेश के निवासियों ने सुना कि पलिश्तियों ने शाऊल से क्या क्या किया है, 09O 31 12 तब सब शूरवीर चले, और रातोंरात जाकर शाऊल और उसके पुत्रों की लोथें बेतशान की शहरपनाह पर से याबेश में ले आए, और वहों फूंक दीं 09O 31 13 तब उन्हों ने उनकी हडि्डयां लेकर याबेश के झाऊ के पेड़ के नीचे गाड़ दीं, और सात दिन तक उपवास किया। 10O 1 1 शाऊल के मरने के बाद, जब दाऊद अमालेकियों को मारकर लौटा, और दाऊद को सिकलग में रहते हुए दो दिन हो गए, 10O 1 2 तब तीसरे दिन ऐसा हुआ कि छावनी में से शाऊल के पास से एक पुरूष कपड़े फाड़े सिर पर धूली डाले हुए आया। और जब वह दाऊद के पास पहुंचा, तब भूमि पर गिरा और दणडवत् किया। 10O 1 3 दाऊद ने उस से पूछा, तू कहां से आया है? उस ने उस से कहा, मैं इस्राएली छावनी में से बचकर आया हूं। 10O 1 4 दाऊद ने उस से पूछा, वहां क्या बात हुई? मुझे बता। उस ने कहा, यह, कि लोग रणभूमि छोड़कर भाग गए, और बहुत लोग मारे गए; और शाऊल और उसका पुत्रा योनातन भी मारे गए हैं। 10O 1 5 दाऊद ने उस समाचार देनेवाले जवान से पूछा, कि तू कैसे जानता है कि शाऊल और उसका पुत्रा योनातन मर गए? 10O 1 6 समाचार देनेवाले जवान ने कहा, संयोग से मैं गिलबो पहाड़ पर था; तो क्या देखा, कि शाऊल अपने भाले की टेक लगाए हुए है; फिर मैं ने यह भी देखा कि उसका पीछा किए हुए रथ और सवार बड़े वेग से दौड़े आ रहे हैं। 10O 1 7 उस ने पीछे फिरकर मुझे देखा, और मुझे पुकारा। मैं ने कहा,क्या आज्ञा? 10O 1 8 उस ने मुझ से पूछा, तू कौन है? मैं ने उस से कहा, मैं तो अमालेकी हूँ। 10O 1 9 उस ने मुझ से कहा, मेरे पास खड़ा होकर मुझे मार डाल; क्योंकि मेरा सिर तो घुमा जाता है, परन्तु प्राण नही निकलता। 10O 1 10 तब मैं ने यह निश्चय जान लिया, कि वह गिर जाने के पहचात् नहीं बच सकता, उसके पास खड़े होकर उसे मार डाला; और मैं उसके सिर का मुकुट और उसके हाथ का कंगन लेकर यहां अपने प्रभु के पास आया हूँ। 10O 1 11 तब दाऊद ने अपने कपडे पकड़कर फाड़े; और जितने पुरूष उसके संग थे उन्हों ने भी वैसा ही किया; 10O 1 12 और वे शाऊल, और उसके पुत्रा योनातन, और यहोवा की प्रजा, और इस्राएल के घराने के लिये छाती पीटने और रोने लगे, और सांझ तक कुछ न खाया, इस कारण कि वे तलवार से मारे गए थे। 10O 1 13 फिर दाऊद ने उस समाचार देनेवाले जवान से पूछा, तू कहां का है? उस ने कहा, मैं तो परदेशी का बेटा अर्थात् अमालेकी हूँ। 10O 1 14 दाऊद ने उस से कहा, तू यहोवा के अभिषिक्त को नाश करने के लिये हाथ बढ़ाने से क्यों नहीं डरा? 10O 1 15 तब दाऊद ने एक जवान को बुलाकर कहा, निकट जाकर उस पर प्रहार कर। तब उस ने उसे ऐसा मारा कि वह मर गया। 10O 1 16 और दाऊद ने उस से कहा, तेरा खून तेरे ही सिर पर पड़े; क्योंकि तू ने यह कहकर कि मैं ही ने यहोवा के अभिषिक्त को मार डाला, अपने मुंह से अपने ही विरूद्ध साक्षी दी है। 10O 1 17 (शाऊल और योनातन के लिये दाऊद का बनाया हुआ विलापगीत ) तब दाऊद ने शाऊल और उसके पुत्रा योनातन के विषय यह विलापगीत बनाया, 10O 1 18 और यहूदियों को यह धनुष नाम गीत सिखाने की आज्ञा दी; यह याशार नाम पुस्तक में लिखा हुआ है; 10O 1 19 हे इस्राएल, तेरा शिरोमणि तेरे ऊंचे स्थान पर मारा गया। हाय, शूरवीर क्योंकर गिर पड़े हैं! 10O 1 20 गत में यह न बताओ, और न अश्कलोन की सड़कों में प्रचार करना; न हो कि पलिश्ती स्त्रियां आनन्दित हों, न हो कि खतनारहित लोगों की बेटियां गर्व करने लगें। 10O 1 21 हे गिलबो पहाड़ो, तुम पर न ओस पड़े, और न वर्षा हो, और न भेंट के योग्य उपजवाले खेत पाए जाएं! क्योंकि वहां शूरवीरों की ढालें अशुठ्ठ हो गई। और शाऊल की ढाल बिना तेल लगाए रह गई। 10O 1 22 जूझे हुओं के लोहू बहाने से, और शूरवीरों की चर्बी खाने से, योनातन का धनुष लौट न जाता था, और न शाऊल की तलवार छूछी फिर आती थी। 10O 1 23 शाऊल और योनातन जीवनकाल में तो प्रिय और मनभाऊ थे, और अपनी मृत्यु के समय अलग न हुए; वे उकाब से भी वेग चलनेवाले, और सिंह से भी अधिक पराक्रमी थ्ो़। 10O 1 24 हे इस्राएली स्त्रियो, शाऊल के लिये रोओ, वह तो तुम्हें लाल रंग के वस्त्र पहिनाकर सुख देता, और तुम्हारे वस्त्रों के ऊपर सोने के गहने पहिनाता था। 10O 1 25 हाय, युद्ध के बीच शूरवीर कैसे काम आए ! हे योनातन, हे ऊंचे स्थानों पर जूझे हुए, 10O 1 26 हे मेरे भाई योनातन, मैं तेरे कारण दु:खित हूँ; तू मुझे बहुत मनभाऊ जान पड़ता था; तेरा प्रेम मुझ पर अद्भुत, वरन स्त्रियों के प्रेम से भी बढ़कर था। 10O 1 27 हाय, शूरवीर क्योंकर गिर गए, और युद्ध के हथियार कैसे नाश हो गए हैं ! 10O 2 1 इसके बाद दाऊद ने यहोवा से पूछा, कि क्या मैं यहूदा के किसी नगर में जाऊं? यहोवा ने उस से कहा, हां, जा। दाऊद ने फिर पूछा़, किस नगर में जाऊं? उस ने कहा, हेब्रोन में। 10O 2 2 तब दाऊद यिज्रेली अहीनोअम, और कमेंली नाबाल की स्त्री अबीगैल नाम, अपनी दोनों पत्नियों समेत वहाँ गया। 10O 2 3 और दाऊद अपने साथियों को भी एक एक के घराने समेत वहां ले गया; और वे हेब्रोन के गांवों में रहने लगे। 10O 2 4 और यहूदी लोग गए, और वहां दाऊद का अभिषेक किया कि वह यहूदा के घराने का राजा हो। 10O 2 5 और दाऊद को यह समाचार मिला, कि जिन्हों ने शाऊल को मिट्टी दी वे गिलाद के याबेश नगर के लोग हैं। तब दाऊद ने दूतों से गिलाद के याबेश के लोगों के पास यह कहला भेजा, कि यहोवा की आशिष तुम पर हो, क्योंकि तुम ने अपने प्रभु शाऊल पर यह कृपा करके उसको मिट्टी दी। 10O 2 6 इसलिये अब यहोवा तुम से कृपा और सच्चाई का बर्त्ताव करे; और मैं भी तुम्हारी इस भलाई का बदला तुम को दूंगा, क्योंकि तुम ने यह काम किया है। 10O 2 7 और अब हियाव बान्धो, और पुरूषार्थ करो; क्योंकि तुम्हारा प्रभु शाऊल मर गया, और यहूदा के घराने ने अपने ऊपर राजा होने को मेरा अभिष्ेाक किया है। 10O 2 8 परन्तु नेर का पुत्रा अब्नेर जो शाऊल का प्रधान सेनापति था, उस ने शाऊल के पुत्रा ईशबोशेत को संग ले पार जाकर महनैम में पहुंचाया; 10O 2 9 और उसे गिलाद अशूरियों के देश यिज्रेल, एप्रैम, बिन्यामीन, वरन समस्त इस्राएल के देश पर राजा नियुक्त किया। 10O 2 10 शाऊल का पुत्रा ईशबोशेत चालीस वर्ष का था जब वह इस्राएल पर राज्य करने लगा, और दो वर्ष तक राज्य करता रहा। परन्तु यहूदा का घराना दाऊद के पक्ष में रहा। 10O 2 11 और दाऊद के हेब्रोन में यहूदा के घराने पर राज्य करने का समय साढे सात वर्ष था। 10O 2 12 और नेर का पुत्रा अब्नेर, और शाऊल के पुत्रा ईशबोशेत के जन, महनैम से गिबोन को आए। 10O 2 13 तब सरूयाह का पुत्रा योआब, और दाऊद के जन, हेब्रोन से निकलकर उन से गिबोन के पोखरे के पास मिले; और दोनों दल उस पोखरे की एक एक ओर बैठ गए। 10O 2 14 तब अब्नेर ने योआब से कहा, जवान लोग उठकर हमारे साम्हने खेलें। योआब ने कहा, वे उठें। 10O 2 15 तब वे उठे, और बिन्यामीन, अर्थात् शाऊल के पुत्रा ईशबोशेत के पक्ष के लिये बारह जन गिनकर निकले, और दाऊद के जनों में से भी बारह निकले। 10O 2 16 और उन्हों ने एक दूसरे का सिर पकड़कर अपनी अपनी तलवार एक दूसरे के पांजर में भोंक दी; और वे एक ही संग मरे। इस से उस स्थान का नाम हेल्कथस्सूरीम पड़ा, वह गिबोन में है। 10O 2 17 और उस दिन बड़ा घोर से युद्ध हुआ; और अब्नेर और इस्राएल के पुरूष दाऊद के जनों से हार गए। 10O 2 18 वहां तो योआब, अबीशै, और असाहेल नाम सरूयाह के तीनों पुत्रा थे। और असाहेल बनैले चिकारे के समान वेग दौड़नेवाला़ था। 10O 2 19 तब असाहेल अब्नेर का पीछा करने लगा, और उसका पीछा करते हुए न तो दाहिनी ओर मुड़ा न बाई ओर। 10O 2 20 अब्नेर ने पीछे फिरके पूछा, क्या तू असाहेल है? उस ने कहा, हां मैं वही हूँ। 10O 2 21 अब्नेर ने उस से कहा, चाहे दाहिनी, चाहे बाई ओर मुड़, किसी जवान को पकड़कर उसका बकतर ले ले। परन्तु असाहेल ने उसका पीछा न छोड़ा। 10O 2 22 अब्नेर ने असाहेल से फिर कहा, मेरा पीछा छोड़ दे; मुझ को क्यों तुझे मारके मिट्टी में मिला देना पड़े? ऐसा करके मैं तेरे भाई योआब को अपना मुख कैसे दिखाऊंगा? 10O 2 23 तौभी उस ने हट जाने को नकारा; तब अब्नेर ने अपने भाले की पिछाड़ी उसके पेट में ऐसे मारी, कि भाला आरपार होकर पीछे निकला; और वह वहीं गिरके मर गया। और जितने लोग उस स्थान पर आए जहां असाहेल गिरके मर गया, वहां वे सब खढ़े रहे। 10O 2 24 परन्तु योआब और अबीशै अब्नेर का पीछा करते रहे; और सूर्य डूबते डूबते वे अम्मा नाम उस पहाड़ी तक पहुंचे, जो गिबोन के जंगल के मार्ग में गीह के साम्हने है। 10O 2 25 और बिन्यामीनी अबब्नेर के पीछे होकर एक दल हो गए, और एक पहाड़ी की चोटी पर खड़े हुए। 10O 2 26 तब अब्नेर योआब को पुकारके कहने लगा, क्या तलवार सदा मारती रहे? क्या तू नहीं जानता कि इसका फल दु:खदाई होगा? तू कब तक अपने लोगों को आज्ञा न देगा, कि अपने भाइयों का पीछा छोड़कर लौटो? 10O 2 27 योआब ने कहा, परमेश्वर के जीवन की शपथ, कि यदि तू न बोला होता, तो निेसन्देह लोग सवेरे ही चले जाते, और अपने अपने भाई का पीछा न करते। 10O 2 28 तब योआब ने नरसिंगा फूंका; और सब लोग ठहर गए, और फिर इस्राएलियों का पीछा न किया, और लड़ाई फिर न की। 10O 2 29 और अब्नेर अपने जनों समेत उसी दिन रातोंरात अराबा से होकर गया; और यरदन के पार हो समस्त बित्रोन देश में होकर महनैम में पहुंचा। 10O 2 30 और योआब अब्नेर का पीछा छोड़कर लौटा; और जब उस ने सब लोगों को इकट्टा किया, तब क्या देखा, कि दाऊद के जनों में से उन्नीस पुरूष और असाहेल भी नहीं हैं। 10O 2 31 परन्तु दाऊद के जनों ने बिन्यामीनियों और अब्नेर के जनों को ऐसा मारा कि उन में से तीन सौ साठ जन मर गए। 10O 2 32 और उन्हों ने असाहेल को उठाकर उसके पिता के क़ब्रिस्तान में, जो बेतलेहेम में था, मिट्टी दी। तब योआब अपने जनों समेत रात भर चलकर पह फटते हेब्रोन में पहुंचा। 10O 3 1 शाऊल के घराने और दाऊद के घराने के मध्य बहुत दिन तक लड़ाई होती रही; परन्तु दाऊद प्रबल होता गया, और शाऊल का घराना निर्बल पड़ता गया। 10O 3 2 और हेब्रोन में दाऊद के पुत्रा उत्पन्न हुए; उसका जेठा बेटा अम्नोन था, जो यिज्रेली अहीनोअम से उत्पन्न हुआ था; 10O 3 3 और उसका दूसरा किलाव था, जिसकी मां कर्मेंली नाबाल की स्त्री अबीगैल थी; तीसरा अबशालोम, जो गशूर के राजा तल्मै की बेटी माका से उत्पन्न हुआ था; 10O 3 4 चौथा अदोनिरयाह, जो हग्गीत से उत्पन्न हुआ था; पांचवां शपत्याह, जिसकी मां अबीतल थी; 10O 3 5 छठवां यित्राम, जो ऐग्ला नाम दाऊद की स्त्री से उत्पन्न हुआ। हेब्रोन में दाऊद से ये ही सन्तान उत्पन्न हुए। 10O 3 6 जब शाऊल और दाऊद दोनों के घरानों के मध्य लड़ाई हो रही थी, तब अब्नेर शाऊल के घराने की सहायता में बल बढ़ाता गया। 10O 3 7 शाऊल की एक रखेली थी जिसका नाम रिस्पा था, वह अरया की बेटी थी; और ईशबोशेत ने अब्नेर से पूछा, तू मेरे पिता की रखेली के पास क्यों गया? 10O 3 8 ईशबोशेत की बातों के कारण अब्नेर अति क्रोधित होकर कहने लगा, क्या मैं यहूदा के कुत्ते का सिर हूँ? आज तक मैं तेरे पिता शाऊल के घराने और उसके भाइयों और मित्रों को प्रीति दिखाता आया हूँ, और तुझे दाऊद के हाथ पड़ने नहीं दिया; फिर तू अब मुझ पर उस स्त्री के विषय में दोष लगाता है? 10O 3 9 यदि मैं दाऊद के साथ ईश्वर की शपथ के अनुसार बर्ताव न करूं, तो परमेशवर अब्नेर से वैसा ही, वरन उस से भी अधिक करे; 10O 3 10 अर्थात् मैं राज्य को शाऊल के घराने से छीनूंगा, और दाऊद की राजगद्दी दान से लेकर बेर्शेंबा तक इस्राएल और यहूदा के ऊपर स्थिर करूंगा। 10O 3 11 और वह अब्नेर को कोई उत्तर न दे सका, इसलिये कि वह उस से डरता था। 10O 3 12 तब अब्नेर ने उसके नाम से दाऊद के पास दूतों से कहला भेजा, कि देश किस का है? और यह भी कहला भेजा, कि तू मेरे साध वाचा बान्ध, और मैं तेरी सहायता करूंगा कि समस्त इस्राएल के मन तेरी ओर फेर दूं। 10O 3 13 दाऊद ने कहा, भला, मैं तेरे साथ वाचा तो बान्धूंगा परन्तु एक बात मैं तुझ से चाहता हूँ; कि जब तू मुझ से भेंट करने आए, तब यदि तू पहिले शाऊल की बेटी मीकल को न ले आए, तो मुझ से भेंट न होगी। 10O 3 14 फिर दाऊद ने शाऊल के पुत्रा ईशबोशेत के पास दूतों से यह कहला भेजा, कि मेरी पत्नी मीकल, जिसे मैं ने एक सौ पलिश्तियों की खलड़ियां देकर अपनी कर लिया था, उसको मुझे दे दे। 10O 3 15 तब ईशबोशेत ने लोगों को भेजकर उसे लैश के पुत्रा पलतीएल के पास से छीन लिया। 10O 3 16 और उसका पति उसके साथ चला, और बहूरीम तक उसके पीछे रोता हुआ चला गया। तब अब्नेर ने उस से कहा, लौट जा; और वह लौट गया। 10O 3 17 और अब्नेर ने इस्राएल के पुरनियों के संग इस प्रकार की बातचीत की, कि पहिले तो तुम लोग चाहते थे कि दाऊद हमारे ऊपर राजा हो। 10O 3 18 अब वैसा करो; क्योंकि यहोवा ने दाऊद के विषय में यह कहा है, कि अपने दास दाऊद के द्वारा मैं अपनी प्रजा इस्राएल को पलिश्तियों, वरन उनके सब शत्रुओं के हाथ से छुड़ाऊंगा। 10O 3 19 फिर अब्नेर ने बिन्यामीन से भी बातें कीं; तब अब्नेर हेब्रोन को चला गया, कि इस्राएल और बिन्यामीन के समस्त घराने को जो कुछ अच्छा लगा, वह दाऊद को सुनाए। 10O 3 20 तब अब्नेर बीस पुरूष संग लेकर हेब्रोन में आया, और दाऊद ने उसके और उसके संगी पुरूषों के लिये जेवनार की। 10O 3 21 तब अब्नेर ने दाऊद से कहा, मैं उठकर जाऊंगा, और अपने प्रभु राजा के पास सब इस्राएल को इकट्ठा करूंगा, कि वे तेरे साथ वाचा बान्धें, और तू अपनी इच्छा के अनुसार राज्य कर सके। तब दाऊद ने अब्नेर को विदा किया, और वह कुशल से चला गया। 10O 3 22 तब दाऊद के कई एक जन योआब समेत कहीं चढ़ाई करके बहुत सी लूट लिये हुए आ गए। और अब्नेर दाऊद के पास हेब्रोन में न था, क्यों कि उस ने उसको विदा कर दिया था, और वह कुशल से चला गया था। 10O 3 23 जब योआब और उसके साथ की समस्त सेना आई, तब लागों ने योबाब को बताया, कि नेर का पुत्रा अब्नेर राजा के पास आया था, और उस ने उसको बिदा कर दिया, और वह कुशल से चला गया। 10O 3 24 तब योआब ने राजा के पास जाकर कहा, तू ने यह क्या किया है? अब्नेर जो तेरे पास आया था, तो क्या कारण है कि तू ने उसको जाने दिया, और वह चला गया है? 10O 3 25 तू नेर के पुत्रा अब्नेर को जानता होगा कि वह तुझे धोखा देने, और तेरे आने जाने, और कुल काम का भेद लेने आया था। 10O 3 26 योआब ने दाऊद के पास से निकलकर दाऊद के अनजाने अब्नेर के पीछे दूत भेजे, और वे उसको सीरा नाम कुण्ड से लौटा ले आए। 10O 3 27 जब अब्नेर हेब्रोन को लौट आया, तब योआब उस से एकान्त में बातें करने के लिये उसको फाटक के भीतर अलग ले गया, और वहां अपने भाई असाहेल के खून के पलटे में उसके पेट में ऐसा मारा कि वह मर गया। 10O 3 28 इसके बाद जब दाऊद ने यह सुना, तो कहा, नेर के पुत्रा अब्नेर के खून के विषय में अपनी प्रजा समेत यहोवा की दृष्टि में सदैव निर्दोष रहूंगा। 10O 3 29 वह योआब और उसके पिता के समस्त घराने को लगे; और योआब के वंश में कोई न कोई प्रमेह का रोगी, और कोढ़ी, और बैसाखी का लगानेवाला, और तलवार से खेत आनेवाला, और भूखें मरनेवाला सदा होता रहे। 10O 3 30 योआब और उसके भाई अबीशै ने अब्नेर को इस कारण घात किया, कि उस ने उनके भाई असाहेल को गिबोन में लड़ाई के समय मार डाला था। 10O 3 31 तब दाऊद ने योआब और अपने सब संगी लागों से कहा, अपने वस्त्रा फाड़ो, और कमर में टाट बान्धकर अब्नेर के आगे आगे चलो। और दाऊद राजा स्वयं अथ के पीछे पीछे चला। 10O 3 32 अब्नेर को हेब्रोन में मिट्टी दी गई; और राजा अब्नेर की कब्र के पास फूट फूटकर रोया; और सब लोग भी रोए।़ 10O 3 33 तब दाऊद ने अब्नेर के विषय यह विलापगीत बनाया कि, क्या उचित था कि अब्नेर मूूढ़ की नाई मरे? 10O 3 34 न तो तेरे हाथ बान्धे गए, और न तेरे पांवों में बेड़ियां डाली गई; जैसे कोई कुटिल मनुष्यों से मारा जाए, वैसे ही तू मारा गया। 10O 3 35 तब सब लोग उसके विषय फिर रो उठे। तब सब लोग कुछ दिन रहते दाऊद को रोटी खिलाने आए; परन्तु दाऊद ने शपथ खाकर कहा, यदि मैं सूर्य के अस्त होने से पहिले रोटी वा और कोई वस्तु खाऊं, तो परमेश्वर मुझ से ऐसा ही, वरन इस से भी अधिक करे। 10O 3 36 और सब लोगों ने इस पर विचार किया और इस से प्रसन्न हुए, वैसे ही जो कुछ राजा करता था उस से सब लोग प्रसन्न होते थे। 10O 3 37 तब उन सब लोगों ने, वरन समस्त इस्राएल ने भी, उसी दिन जान लिया कि नेर के पुत्रा अब्नेर का घात किया जाना राजा की और से नही हुआ। 10O 3 38 और राजा ने अपने कर्मचारियों से कहा, क्या तुम लोग नहीं जानते कि इस्राएल में आज के दिन एक प्रधान और प्रतापी मनुष्य मरा है? 10O 3 39 और यद्यपि मैं अभिषिक्त राजा हूँ तौभी आज निर्बल हूँ; और वे सरूयाह के पुत्रा मुझ से अधिक प्रचण्ड हैं। परन्तु यहोवा बुराई करनेवाले को उसकी बुराई के अनुसार ही पलटा दे। 10O 4 1 जब शाऊल के पुत्रा ने सुना, कि अब्नेर हेब्रोन में मारा गया, तब उसके हाथ ढीले पड़ गए, और सब इस्राएली भी घबरा गए। 10O 4 2 शाऊल के पुत्रा के दो जन थे जो दलों के प्रधान थे; एक का नाम बाना, और दूसरे का नाम रेकाब था, ये दोनों बेरोतवासी बिन्यामीनी रिम्मोन के पुत्रा थे, ( क्योंकि बेरोत भी बिन्यामीन के भाग में गिना जाता है; 10O 4 3 और बेरोती लोग गितैम को भाग गए, और आज के दिन तक वहीं परदेशी होकर रहते हैं।) 10O 4 4 शाऊल के पुत्रा योनातन के एक लगड़ा बेटा था। जब यिज्रेल से शाऊल और योनातन का समाचार आया तब वह पांच वर्ष का था; उस समय उसकी धाई उसे उठाकर भागी; और उसके उतावली से भागने के कारण वह गिरके लंगड़ा हो गया। और उसका नाम मपीबोशेत था। 10O 4 5 उस बेरोती रिम्मोन के पुत्रा रेकाब और बाना कड़े घाम के समय ईशबोशेत के घर में जब वह दोपहर को विश्राम कर रहा था आए। 10O 4 6 और गेहूं ले जाने के बहाने मे घर में घुस गए; और उसके पेट में मारा; तब रेकाब और उसका भाई बाना भाग निकले। 10O 4 7 जब वे घर में घुसे, और वह सोने की कोठरी में चारपाई पर सोता था, तब अन्हों ने उसे मार डाला, और उसका सिर काट लिया, और उसका सिर लेकर रातोंरात अराबा के मार्ग से चले। 10O 4 8 और वे ईशबोशेत का सिर हेब्रोन में दाऊद के पास ले जाकर राजा से कहने लगे, देख, शाऊल जो तेरा शत्रु और तेरे प्राणों का ग्राहक था, उसके पुत्रा ईशबोशेत का यह सिर है; तो आज के दिन यहोवा ने शाऊल और उसके वंश से मेरे प्रभु राजा का पलटा लिया है। 10O 4 9 दाऊद ने बेरोती रिम्मोन के पुत्रा रेकाब और उसके भाई बाना को उत्तर देकर उन से कहा, यहोवा जो मेरे प्राण को सब विपत्तियों से छुड़ाता आया है, उसके जीवन की शपथ, 10O 4 10 जब किसी ने यह जानकर, कि मैं शुभ समाचार देता हूं, सिकलग में मुझ को शाऊल के मरने का समाचार दिया, तब मैं ने उसको पकड़कर घात कराया; अर्थात् उसको समाचार का यही बदला मिला। 10O 4 11 फिर जब दुष्ट मनुष्यों ने एक निर्दोष मनुष्य को उसी के घर में, वरन उसकी चारपाई ही पर घात किया, तो मैं अब अवश्य ही उसके खून का पलटा तुम से लूंगा, और तुम्हें धरती पर से नष्ट कर डालूंगा। 10O 4 12 तब दाऊद ने जवानों को आज्ञा दी, और उन्हों ने उनको घात करके उनके हाथ पांव काट दिए, और उनकी लोथों को हेब्रोन के पोखरे के पास टांग दिया। तब ईशबोशेत के सिर को उठाकर हेब्रोन में अब्नेर की कब्र में गाड़ दिया। 10O 5 1 ( दाऊद के यरूशलेम में राज्य करने का आरम्भ ) तब इस्राएल के सब गोत्रा दाऊद के पास हेब्रोन में आकर कहने लगे, सुन, हम लोग और तू एक ही हाड़ मांस हैं। 10O 5 2 फिर भूतकाल में जब शाऊल हमारा राजा था, तब भी इस्राएल का अगुवा तू ही था; और यहोवा ने तुझ से कहा, कि मेरी प्रजा इस्राएल का चरवाहा, और इस्राएल का प्रधान तू ही होगा। 10O 5 3 सो सब इस्राएली पुरनिये हेब्रोन में राजा के पास आए; और दाऊद राजा ने उनके साथ हेब्रोन में यहोवा के साम्हने वाचा बान्धी, और उन्हों ने इस्राएल का राजा होने के लिये दाऊद का अभिषेक किया। 10O 5 4 दाऊद तीस वर्ष का होकर राज्य करने लगा, और चालीस वर्ष तक राज्य करता रहा। 10O 5 5 साढ़े सात वर्ष तक तो उस ने हेब्रोन में यहूदा पर राज्य किया, और तैंतीस वर्ष तक यरूशलेम में समस्त इस्राएल और यहूदा पर राज्य किया। 10O 5 6 तब राजा ने अपने जनों को साथ लिए हुए यरूशलेम को जाकर यबूसियों पर चढ़ाई की, जो उस देश के निवासी थे। उन्हों ने यह समझकर, कि दाऊद यहां पैठ न सकेगा, उस से कहा, जब तक तू अन्धें और लंगड़ों को दूर न करे, तब तक यहां पैठने न पाएगा। 10O 5 7 तौभी दाऊद ने सिरयोन नाम गढ़ को ले लिया, वही दाऊदपुर भी कहलाता है। 10O 5 8 उस दिन दाऊद ने कहा, जो कोई यबूसियों को मारना चाहे, उसे चाहिये कि नाले से होकर चढ़े, और अन्धे और लंगड़े जिन से दाऊद मन से घिन करता है उन्हें मारे। इस से यह कहावत चली, कि अन्धे और लगड़े भवन में आने न पाएंगे। 10O 5 9 और दाऊद उस गढ़ में रहने लगा, और उसका नाम दाऊदपुर रखा। और दाऊद ने चारों ओर मिल्लो से लेकर भीतर की ओर शहरपनाह बनवाई। 10O 5 10 और दाऊद की बड़ाई अधिक होती गई, और सेनाओं का परमेश्वर यहोवा उसके संग रहता था। 10O 5 11 और सोर के राजा हीराम ने दाऊद के पास दूत, और देवदारू की लकड़ी, और बढ़ई, और राजमिस्त्री भेजे, और उन्हों ने दाऊद के लिये एक भवन बनाया। 10O 5 12 और दाऊद को निश्चय हो गया कि यहोवा ने मुझे इस्राएल का राजा करके स्थिर किया, और अपनी इस्राएली प्रजा के निमित्त मेरा राज्य बढ़ाया है। 10O 5 13 जब दाऊद हेब्रोन से आया तब उसके बाद उस ने यरूशलेम की और और रखेलियां रख लीं, और पत्नियां बना लीं; और उसके और बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 10O 5 14 उसके जो सन्तान यरूशलेम में उत्पन्न हुए, उनके ये नाम हैं, अर्थात् शम्मू, शोबाब, नातान, सुलैमान, 10O 5 15 यिभार, एलोशू, नेपेग, यापी, 10O 5 16 एलीशामा, एल्यादा, और एलोपेलेत। 10O 5 17 जब पलिश्तियों ने यह सुना कि इस्राएल का राजा होने के लिये दाऊद का अभिषेक हुआ, तब सब पलिश्ती दाऊद की खोज में निकले; यह सुनकर दाऊद गढ़ में चला गया। 10O 5 18 तब पलिश्ती आकर रपाईम नाम तराई में फैल गए। 10O 5 19 तब दाऊद ने यहावा से पूछा, क्या मैं पलिश्तियों पर चढ़ाई करूं? क्या तू उन्हें मेरे हाथ कर देगा? यहोवा ने दाऊद से कहा, चढ़ाई कर; क्योंकि मैं निश्चय पलिश्तियों को तेेरे हाथ कर दूंगा। 10O 5 20 तब दाऊद बालपरासीम को गया, और दाऊद ने उन्हें वहीं मारा; तब उस ने कहा, यहोवा मेरे साम्हने होकर मेरे शत्रुओं पर जल की धारा की नाई टूट पड़ा है। 10O 5 21 वहां उन्हों ने अपनी मूरतों को छोड़ दिया, और दाऊद और उसके जन उन्हें उठा ले गए। 10O 5 22 फिर दूसरी बार पलिश्ती चढ़ाई करके रपाईम नाम तराई में फैल गए। 10O 5 23 जब दाऊद ने यहोवा से पूछा, तब उस ने कहा, चढ़ाई न कर; उनके पीछे से घूमकर तूत वृक्षों के साम्हने से उन पर छापा मार। 10O 5 24 और जब तूत वृक्षों की फुनगियों में से सेना के चलने की सी आहट तुझे सुनाई पड़े, तब यह जानकर फुर्ती करना, कि यहोवा पलिश्तियों की सेना को मारने को मेरे आगे अभी पधारा है। 10O 5 25 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार दाऊद गेबा से लेकर गेजेर तक पलिश्तियों को मारता गया। 10O 6 1 ( पवित्रा सन्दूक का यरूशलेम में पहुंचाया जाना ) फिर दाऊद ने एक और बार इस्राएल में से सब बड़े वीरों को, जो तीस हजार थे, इकट्ठा किया। 10O 6 2 तब दाऊद और जितने लोग उसके संग थे, वे सब उठकर यहूदा के बाले नाम स्थान से चले, कि परमेश्वर का वह सन्दूक ले आएं, जो करूबों पर विराजनेवाले सेनाओं के यहोवा का कहलाता है। 10O 6 3 तब उन्हों ने परमेश्वर का सन्दूक एक नई गाड़ी पर चढ़ाकर टीले पर रहनेवाले अबीनादाब के घर से निकाला; और अबीनादाब के उज्जा और अहह्यो नाम दो पुत्रा उस नई गाड़ी को हांकने लगे। 10O 6 4 और उन्हों ने उसको परमेश्वर के सन्दूक समेत टीले पर रहनेवाले अबीनादाब के घर से बाहर निकाला; और अहह्यो सन्दूक के आगे आगे चला। 10O 6 5 और दाऊद और इस्राएल का समस्त घराना यहोवा के आगे सनौवर की लकड़ी के बने हुए सब प्रकार के बाजे और वीणा, सारंगियां, डफ, डमरू, झांझ बजाते रहे। 10O 6 6 जब वे नाकोन के खलिहान तक आए, तब उज्जा ने अपना हाथ परमेश्वर के सन्दूक की ओर बढ़ाकर उसे थाम लिया, क्योंकि बैलों ने ठोकर खाई। 10O 6 7 तब यहोवा का कोप उज्जा पर भड़क उठा; और परमेश्वर ने उसके दोेष के कारण उसको वहां ऐसा मारा, कि वह वहां परमेश्वर के सन्दूक के पास मर गया। 10O 6 8 तब दाऊद अप्रसन्न हुआ, इसलिये कि यहोवा उज्जा पर टूट पड़ा था; और उस ने उस स्थान का नाम पेरेसुज्जा रखा, यह नाम आज के दिन तक वर्तमान है। 10O 6 9 और उस दिन दाऊद यहोवा से डरकर कहने लगा, यहोवा का सन्दूक मेरे यहां क्योंकर आए? 10O 6 10 इसलिये दाऊद ने यहोवा के सन्दूक को अपने यहां दाऊदपुर में पहुंचाना न चाहा; परन्तु गतवासी ओबेदेदोम के यहां पहुंचाया। 10O 6 11 और यहोवा का सन्दूक गती ओबेदेदोम के घर में तीन महीने रहा; और यहोवा ने ओबेदेदोम और उसके समस्त घराने को आशिष दी। 10O 6 12 तब दाऊद राजा को यह बताया गया, कि यहोवा ने ओबेदेदोम के घराने पर, और जो कुछ उसका है, उस पर भी परमेश्वर के सन्दूक के कारण आशिष दी है। तब दाऊद ने जाकर परमेश्वर के सन्दूक को ओबेदेदोम के घर से दाऊदपुर में आनन्द के साथ पहूंचा दिया। 10O 6 13 जब यहोवा के सन्दूक के उठानेवाले छे कदम चल चुके, तब दाऊद ने एक बैल और एक पाला पोसा हुआ बछड़ा बलि कराया। 10O 6 14 और दाऊद सनी का एपोद कमर में कसे हुए यहोवा के सम्मुख तन मन से नाचता रहा। 10O 6 15 यों दाऊद और इस्राएल का समस्त घराना यहोवा के सन्दूक को जय जयकार करते और नरसिंगा फूंकते हुए ले चला। 10O 6 16 जब यहोवा का सन्दूक दाऊदपुर में आ रहा था, तब शाऊल की बेटी मीकल ने खिड़की में से झांककर दाऊद राजा को यहोवा के सम्मुख नाचते कूदते देखा, और उसे मन ही मन तुच्छ जाना। 10O 6 17 और लोग यहोवा का सन्दूक भीतर ले आए, और उसके स्थान में, अर्थात् उस तम्बू में रखा, जो दाऊद ने उसके लिये खड़ा कराया था; और दाऊद ने यहोवा के सम्मुख होमबलि और मेलबलि चढ़ाए। 10O 6 18 जब दाऊद होमबलि और मेलबलि चढ़ा चुका, तब उस ने सेनाओं के यहोवा के नाम से प्रजा को आशीर्वाद दिया। 10O 6 19 तब उस ने समस्त प्रजा को, अर्थात्, क्या स्त्री क्या पुरूष, समस्त इस्राएली भीड़ के लोगों को एक एक रोटी, और एक एक टुकड़ा मांस, और किशमिश की एक एक टिकिया बंटवा दी। तब प्रजा के सब लोग अपने अपने घर चले गए। 10O 6 20 तब दाऊद अपने घराने को आशीर्वाद देने के लिये लौटा। और शाऊल की बेटी मीकल दाऊद से मिलने को निकली, और कहने लगी, आज इस्राएल का राजा जब अपना शरीर अपने कर्मचारियों की लौंडियों के साम्हने ऐसा उघाड़े हुए था, जैसा कोई निकम्मा अपना तन उघाढ़े रहता है, तब क्या ही प्रतापी देख पड़ता था ! 10O 6 21 दाऊद ने मीकल से कहा, यहोवा, जिस ने तेरे पिता और उसके समस्त घराने की सन्ती मुझ को चुनकर अपनी प्रजा इस्राएल का प्रधान होने को ठहरा दिया है, उसके सम्मुख मैं ने ऐसा खेला-- और मैं यहोवा के सम्मुख इसी प्रकार खेला करूंगा। 10O 6 22 और इस से भी मैं अधिक तुच्छ बनूंगा, और अपने लेखे नीच ठहरूंगा; और जिन लौंडियों की तू ने चर्चा की वे भी मेरा आदरमान करेंगी। 10O 6 23 और शाऊल की बेटी मीकल के मरने के दिन तक उसके कोई सन्तान न हुआ। 10O 7 1 जब राजा अपने भवन में रहता था, और यहोवा ने उसको उसके चारों ओर के सब शत्रुऔं से विश्राम दिया था, 10O 7 2 तब राजा नातान नाम भविष्यद्वक्ता से कहने लगा, देख, मैं तो देवदारू के बने हुए घर में रहता हूँ, परन्तु परमेश्वर का सन्दूक तम्बू में रहता है। 10O 7 3 नातान ने राजा से कहा, जो कुछ तेरे मन में हो उसे कर; क्योंकि यहोवा तेरे संग है। 10O 7 4 उसी दिन रात को यहोवा का यह वचन नातान के पास पहुंचा, 10O 7 5 कि जाकर मेरे दास दाऊद से कह, यहोवा सों कहता है, कि क्या तू मेरे निवास के लिये घर बनवाएगा? 10O 7 6 जिस दिन से मैं इस्रालिएयों को मिस्र से निकाल लाया आज के दिन तक मैं कभी घर में नहीं रहा, तम्बू के निवास में आया जाया करता हूँ। 10O 7 7 जहां जहां मैं समस्त इस्राएलियों के बीच फिरता थि, क्या मैं ने कहीं इस्राएल के किसी गोत्रा से, जिसे मैं ने अपनी प्रजा इस्राएल की चरवाही करने को ठहराया हो, ऐसी बात कभी कही, कि तुम ने मेरे लिऐ देवदारू का घर क्यों नहीं बनवाया? 10O 7 8 इसलिये अब तू मेरे दास दाऊद से ऐसा कह, कि सेनाओं का यहोवा यों कहता है, कि मैं ने तो तुझे भेड़शाला से, और भ्ेाड़- बकरिसों के पीछे पीछे फिरने से, इस मनसा से बुला लिया कि तू मेरी प्रजा इस्राएल का प्रधान हो जाए। 10O 7 9 और जहां कहीं तू आया गया, वहां वहां मैं तेरे संग रहा, और तेरे समस्त शत्रुओं को तेरे साम्हने से नाश किया है; फिर मैं तेरे नाम को पृथ्वी पर के बड़े बड़े लोगों के नामों के समान महान कर दूंगा। 10O 7 10 और मैं अपनी प्रजा इस्राएल के लिये एक स्थान ठहराऊंगा, और उसको स्थिर करूंगा, कि वह अपने ही स्थान में बसी रहेेगी, और कभी चलायमान न होगी; और कुटिल लोग उसे फिर दु:ख न देने पाएंगे, जैसे कि पहिले दिनों में करते थे, 10O 7 11 वरन उस समय से भी जब मैं अपनी प्रजा इस्राएल के ऊपर न्यायी ठहराता था; और मैं तुझे तेरे समस्त शत्रुओं से विश्राम दूंगा। और यहोवा तुझे यह भी बताता है कि यहोवा तेरा घर बनाए रखेगा। 10O 7 12 जब तेरी आयु पूरी हो जाएगी, और तू अपने पुरखाओं के संग सो जाएगा, तब मैं तेरे निज वंश को तेरे पीछे खड़ा करंके उसके राज्य को स्थिर करूंगा। 10O 7 13 मेरे नाम का घर वही बनवाएगा, और मैं उसकी राजगद्दी को सदैव स्थिर रखूंगा। 10O 7 14 मैं उसका पिता ठहरूंगा, और वह मेरा पुत्रा ठहरेगा। यदि वह अधर्म करे, तो मैं उसे मनुष्यों के योग्य दण्ड से, और आदमियों के योग्य मार से ताड़ना दूंगा। 10O 7 15 परन्तु मेरी करूणा उस पर से ऐसे न हटेगी, जैसे मैं ने शाऊल पर से हटाकर उसको तेरे आगे से दूर किया। 10O 7 16 वरन तेरा घराना और तेरा राज्य मेरे साम्हने सदा अटल बना रहेगा; तेरी गद्दी सदैव बनी रहेगी। 10O 7 17 इन सब बातों और इस दर्शन के अनुसार नातान ने दाऊद को समझा दिया। 10O 7 18 तब दाऊद राजा भीतर जाकर यहोवा के सम्मुख बैठा, और कहने लगा, हे प्रभु यहोवा, क्या कहूं, और मेरा घराना क्या है, कि तू ने मुझे यहां तक पहुंचा दिया है? 10O 7 19 परन्तु तौभी, हे प्रभु यहोवा, यह तेरी दृष्टी में छोटी सी बात हुई; क्योंकि तु ने अपने दास के घराने के विषय आगे के बहुत दिनों तक की चर्चा की है, और हे प्रभु यहोवा, यह तो मनुष्य का नियम है ! 10O 7 20 दाऊद तुझ से और क्या कह सकता है? हे प्रभु यहावा, तू तो अपने दास को जानता है ! 10O 7 21 तू ने अपने वचन के निमित्त, और अपने ही मन के अनुसार, यह सब बड़ा काम किया है, कि तेरा दास उसको जान ले। 10O 7 22 इस कारण, हे यहोवा परमेश्वर, तू महान् है; क्योंकि जो कुछ हम ने अपने कानों से सुना है, उसके अनुसार तेरे तुल्य कोई नहीं, और न तुझे छोड़ कोई और परमेश्वर है। 10O 7 23 फिर तेरी प्रजा इस्राएल के भी तुल्य कौन है? यह तो पृथ्वी भर में एक ही जाति है जिसे परमेश्वर ने जाकर अपनी निज प्रजा करने को छुड़ाया, इसलिये कि वह अपना नाम करे, ( और तुम्हारे लिये बड़े बड़े काम करे ) और तू अपनी प्रजा के साम्हने, जिसे तू ने मिस्री आदि जाति जाति के लोगों और उनके देवताओं से छूड़ा लिया, अपने देश के लिये भयानक काम करे। 10O 7 24 और तू ने अपनी प्रजा इस्राएल को अपनी सदा की प्रजा होने के लिये ठहराया; और हे यहोवा, तू आप उसका परमेश्वर है। 10O 7 25 अब हे यहोवा परमेश्वर, तू ने जो वचन अपने दास के और उसके घराने के विषय दिया है, उसे सदा के लिये स्थिर कर, और अपने कहने के अनूसार ही कर; 10O 7 26 और यह कर कि लोग तेरे नाम की महिमा सदा किया करें, कि सेनाओं का यहोवा इस्राएल के ऊपर परमेश्वर है; और तेरे दास दाऊद का घराना तेरे साम्हने अटल रहे। 10O 7 27 क्योंकि, हे सेनाओं के यहोवा, हे इस्राएल के परमेश्वर, तू ने यह कहकर अपने दास पर प्रगट किया है, कि मैं तेरा घर बनाए रखूंगा; इस कारण तेरे दास को तुझ से यह प्रार्थना करने का हियाव हुआ है। 10O 7 28 और अब हे प्रभु यहोवा, तू ही परमेश्वर है, और तेरे वचन सत्य हैं, और तू ने अपने दास को यह भलाई करने का वचन दिया है; 10O 7 29 तो अब प्रसन्न होकर अपने दास के घराने पर ऐसी आशीष दे, कि वह तेरे सम्मुख सदैव बना रहे; क्योंकि, हे प्रभु यहोवा, तू ने ऐसा ही कहा है, और तेरे दास का घराना तुझ से आशीष पाकर सदैव धन्य रहे। 10O 8 1 इसके बाद दाऊद ने पलिश्तियों को जीतकर अपने अधीन कर लिया, और दाऊद ने पलिश्तियों की राजधानी की प्रभुता उनके हाथ से छीन ली। 10O 8 2 फिर उस ने मोआबियों को भी जीता, और इनको भूमि पर लिटाकर डोरी से मापा; तब दो डोरी से लोगों को मापकर घात किया, और डोरी भर के लोगों को जीवित छोड़ दिया। तब मोआबी दाऊद के अधीन होकर भेंट ले आने लगे। 10O 8 3 फिर जब सोबा का राजा रहोब का पुत्रा हददेजेर महानद के पास अपना राज्य फिर ज्यों का त्यों करने को जा रहा था, तब दाऊद ने उसको जीत लिया। 10O 8 4 और दाऊद ने उस से एक हजार सात सौ सवार, और बीस हजार प्यादे छी़न लिए; और सब रथवाले घोड़ों के सुम की नस कटवाई, परन्तु एक सौ रथवाले घोड़े बचा रखे। 10O 8 5 और जब दमिश्क के अरामी सोबा के राजा हददेजेर की सहायता करने को आए, तब दाऊद ने आरामियों में से बाईस हज़ार पुरूष मारे। 10O 8 6 तब दाऊद ने दमिश्क में अराम के सिपाहियों की चौकियां बैठाई; इस प्रकार अरामी दाऊद के अधीन होकर भेंट ले आने लगे। और जहां जहां दाऊद जाता था वहां वहां यहोवा उसको जयवन्त करता था। 10O 8 7 और हददेजेर के कर्मचारियों के पास सोने की जो ढालें थीं उन्हें दाऊद लेकर यरूशलेम को आया। 10O 8 8 और बेतह और बरौतै नाम हददेजेर के नगरों से दाऊद राजा बहुत सा पीतल ले आया। 10O 8 9 और जब हमात के राजा तोई ने सुना कि दाऊद ने हददेजेर की समस्त सेना को जीत लिया है, 10O 8 10 तब तोई ने योराम नाम अपने पुत्रा को दाऊद राजा के पास उसका कुशल क्षेम पूछने, और उसे इसलिये बधाई देने को भेजा, कि उस ने हददेजेर से लड़ कर उसको जीत लिया था; क्योंकि हददेजेर तोई से लड़ा करता था। और योराम चांदी, सोने और पीतल के पात्रा लिए हुए आया। 10O 8 11 इनको दाऊद राजा ने यहोवा के लिये पवित्रा करके रखा; और वैसा ही अपने जीती हुई सब जातियों के सोने चांदी से भी किया, 10O 8 12 अर्थात् अरामियों, मोआबियों, अम्मानियों, पलिश्तियों, और अमालेकियों के सोने चांदी को, और रहोब के पुत्रा सोबा के राजा हददेजेर की लूट को भी रखा। 10O 8 13 और जब दाऊद लोमवाली तराई में अठारह हजार अरामियों को मारके लौट आया, तब उसका बड़ा नाम हो गया। 10O 8 14 फिर उस ने एदोम में सिपाहियों की चौकियां बैठाई; पूरे एदोम में उस ने सिपाहियों की चौकियां। बैठाई, और सब एदोमी दाऊद के अधीन होे गए। और दाऊद जहां जहां जाता था वहां वहां यहोवा उसको जयवन्त करता था। 10O 8 15 ( दाऊद के कर्मचारियों की नामावली ) दाऊद तो समस्त इस्राएल पर राज्य करता था, और दाऊद अपनी समस्त प्रजा के साथ न्याय और धर्म के काम करता था। 10O 8 16 और प्रधान सेनापति सरूयाह का पुत्रा योआब था; इतिहास का लिखनेवाला अहीलूद का पुत्रा यहोशापात था; 10O 8 17 प्रधान याजक अहीतूब का पुत्रा सादोक और एब्यातर का पुत्रा अहीमेलेक थे; मंत्री सरायाह था; 10O 8 18 करेतियो और पलेतियों का प्रधान यहोयादा का पुत्रा बनायाह था; और दाऊद के पुत्रा भी मंत्री थे। 10O 9 1 दाऊद ने पूछा, क्या शाऊल के घराने में से कोई अब तक बचा है, जिसको मैं योनातन के कारण प्रीति दिखाऊं? 10O 9 2 शाऊल के घराने का सीबा नाम एक कर्मचारी था, वह दाऊद के पास बुलाया गया; और जब राजा ने उस से पूछा, क्या तू सीबा है? तब उस ने कहा, हां, तेरा दास वही है। 10O 9 3 राजा ने पूछा, क्या शाऊल के घराने में से कोई अब तक बचा है, जिसको मैं परमेश्वर की सी प्रीति दिखाऊं? सीबा ने राजा से कहा, हां, योनातन का एक बेटा तो है, जो लंगड़ा है। 10O 9 4 राजा ने उस से पूछा, वह कहां है? सीबा ने राजा से कहा, वह तो लोदबार नगर में, अम्मीएल के पुत्रा माकीर के घर में रहता है। 10O 9 5 तब राजा दाऊद ने दूत भेजकर उसको लोदबार से, अम्मीएल के पुत्रा माकीर के घर से बुलवा लिया। 10O 9 6 जब मपीबोशेत, जो योनातन का पुत्रा और शाऊल का पोता था, दाऊद के पास आया, तब मुह के बल गिरके दणडवत् किया। दाऊद ने कहा, हे मपीबोशेत ! उस ने कहा, तेरे दास को क्या आज्ञा? 10O 9 7 दाऊद ने उस से कहा, मत डर; तेरे पिता योनातन के कारण मैं निश्चय तुझ को प्रीति दिखाऊंगा, और तेरे दादा शाऊल की सारी भूूमि तुझे फेर दूंगा; और तू मेरी मेज पर नित्य भोजन किया कर। 10O 9 8 उस ने दणडवत् करके कहा, तेरा दास क्या है, कि तू मुझे ऐसे मरे कुत्ते की ओर दृष्टि करे? 10O 9 9 तब राजा ने शाऊल के कर्मचारी सीबा को बुलवाकर उस से कहा, जो कुछ शाऊल और उसके समस्त घराने का था वह मैं ने तेरे स्वामी के पोते को दे दिया है। 10O 9 10 अब से तू अपने बेटों और सेवकों समेत उसकी भूमि पर खेती करके उसकी उपज ले आया करना, कि तेरे स्वामी के पोते को भोजन मिला करे; परन्तु तेरे स्वामी का पोता मपीबोशेत मेरी मेज पर नित्य भोजन किया करेगा। और सीबा के तो पन्द्रह पुत्रा और बीस सेवक थे। 10O 9 11 सीबा ने राजा से कहा, मेरा प्रभु राजा अपने दास को जो जो आज्ञा दे, उन सभों के अनुसार तेरा दास करेगा। दाऊद ने कहा, मपीबोशेत राजकुमारों की नाई मेरी मेज पर भोजन किया करे। 10O 9 12 मपीबोशेत के भी मीका नाम एक छोटा बेटा था। और सीबा के घर में जितने रहते थे वे सब मपीबोशेत की सेवा करते थे। 10O 9 13 और मपीबोशेत यरूशलेम में रहता था; क्योंकि वह राजा की मेज पर नित्य भोजन किया करता था। और वह दोनों पांवों का पंगुला था। 10O 10 1 इसके बाद अम्मोनियों का राजा मर गया, और उसका हानून नाम पुत्रा उसके स्थान पर राजा हुआ। 10O 10 2 तब दाऊद ने यह सोचा, कि जैसे हानून के पिता नाहाश ने मुझ को प्रीति दिखाई थी, वैसे ही मैं भी हानून को प्रीति दिखाऊंगा। तब दाऊद ने अपने कई कर्मचारियों को उसके पास उसके पिता के विषय शान्ति देने के लिये भ्ेज दिया। और दाऊद के कर्मचारी अम्मोनियों के देश में आए। 10O 10 3 परन्तु अम्मोनियों के हाकिम अपने स्वामी हानून से कहने लगे, दाऊद ने जो तेरे पास शान्ति देनेवाले भेजे हैं, वह क्या तेरी समझ में तेरे पिता का आदर करने की मनसा मे भेजे हैं? क्या दाऊद ने अपने कर्मचारियों को तेरे पास इसी मनसा मे नहीं भेजा कि इस नगर में ढूंढ़ ढांढ़ करके और इसका भेद लेकर इसको उलट दें? 10O 10 4 इसलिये हानून ने दाऊद के कर्मचारियों को पकडा, और उनकी आधी- आधी डाढ़ी मुड़वाकर और आधे वस्त्रा, अर्थात् नितम्ब तक कटवाकर, उनको जाने दिया। 10O 10 5 इसका समाचार पाकर दाऊद ने लोगों को उन से मिलने के लिये भेजा, क्योंकि वे बहुत लजाते थे। और राजा ने यह कहा, कि जब तक तुम्हारी डाढ़ियां बढ़ न जाएं तब तक यरीहो में ठहरे रहो, तब लौट आना। 10O 10 6 जब अम्मानियों ने देखा कि हम से दाऊद अप्रसन्न हैं, तब अम्मोनियों ने बेत्राहोब और सोबा के बीस हजार अरामी प्यादों को, और हजार पुरूषों समेत माका के राजा को, और बारह हज़ार तोबी पुरूषों को, वेतन पर बुलवाया। 10O 10 7 यह सुनकर दाऊद ने योआब और शूरवीरों की समस्त सेना को भेजा। 10O 10 8 तब अम्मोनी निकले और फाटक ही के पास पांती बान्धी; और सोबा और रहोब के अरामी और तोब और माका के पूरूष उन से न्यारे मैदान में थे। 10O 10 9 यह देखकर कि आगे पीछे दोनों ओर हमारे विरूद्व पांति बन्धी है, योआब ने सब बड़े बढ़े इस्राएली वीरों में से बहुतों को छांटकर अरामियों के साम्हने उनकी पांति बन्धाई, 10O 10 10 और और लोगों को अपने भाई अबीशै के हाथ सौंप दिया, और उस ने अम्मोनियों के साम्हने उनकी पांति बन्धाई। 10O 10 11 फिर उस ने कहा, यदि अरामी मुझ पर प्रबल होने लगें, तो तू मेरी सहायता करना; और यदि अम्मोनी तुझ पर प्रबल होने लगोंगे, तो मैं आकर तेरी सहायता करूंगा। 10O 10 12 तू हियाब बान्ध, और हम अपने लोगों और अपने परमेश्वर के नगरों के निमित्त पुरूषार्थ करें; और यहोवा जैसा उसको अच्छा लगे वैसा करे। 10O 10 13 तब योआब और जो लोग उसके साथ थे अरामियों से युद्व करने को निकट गए; और वे उसके साम्हने से भागे। 10O 10 14 यह देखकर कि अरामी भाग गए हैं अम्मोनी भी अबीशै के साम्हने से भागकर नगर के भीतर घुसे। तब योआब अम्मोनियों के पास से लौटकर यरूशलेम को आया। 10O 10 15 फिर यह देखकर कि हम इस्राएलियों से हार गए अरामी इकट्ठे हुए। 10O 10 16 और हददेजेर ने दूत भेजकर महानद के पार के अरामियों को बुलवाया; और वे हददेजेर के सेनापति शोवक को अपना प्रधान बनाकर हेलाम को आए। 10O 10 17 इसका समाचार पाकर दाऊद ने समस्त इस्राएलियों को इकट्ठा किया, और यरदन के पार होकर हेलाम में पहुंचा। तब अराम दाऊद के विरूद्ध पांति बान्धकर उस से लड़ा। 10O 10 18 परन्तु अरामी इस्राएलियों से भागे, और दाऊद ने अरामियों में से सात सौ रथियों और चालीय हजार सवारों को मार डाला, और उनके सेनापति हाोबक को ऐसा घायल किया कि वह वहीं मर गया। 10O 10 19 यह देखकर कि हम इस्राएल से हार गए हैं, जितने राजा हददेजेर के अधीन थे उन सभों ने इस्राएल के साथ संधि की, और उसके अधीन हो गए। और अरामी अम्मोनियों की और सहायता करने से डर गए। 10O 11 1 फिर जिस समय राजा लोग युठ्ठ करने को निकला करते हैं, उस समय, अर्थात् वर्ष के आरम्भ में दाऊद ने योआब को, और उसके संग अपने सेवकों और समस्त इस्राएलियों को भेजा; और उन्हों ने अम्मोनियों को नाश किया, और रब्बा नगर को घेर लिया। परन्तु दाऊद सरूशलेम में रह गया। 10O 11 2 सांझ के समय दाऊद पलंग पर से उठकर राजभवन की छत पर टहल रहा था, और छत पर से उसको एक स्त्री, जो अति सुन्दर थी, नहाती हुई देख पड़ी। 10O 11 3 जब दाऊद ने भेजकर उस स्त्री को पुछवाया, तब किसी ने कहा, क्या यह एलीआम की बेटी, और हित्तद्दी ऊरिरयाह की पत्नी बतशेबा नहीं है? 10O 11 4 तब दाऊद ने दूत भेजकर उसे बुलवा लिया; और वह दाऊद के पास आई, और वह उसके साथ सोया। ( वह तो ऋतु से शुठ्ठ हो गई थी ) तब वह अपने घर लौट गई। 10O 11 5 और वह स्त्री गर्भवती हुई, तब दाऊद के पास कहला भेजा, कि मुझे गर्भ है। 10O 11 6 तब दाऊद ने योआब के पास कहला भेजा, कि हित्ती ऊरिरयाह को मेरे पास भेज, तब योआब ने ऊरिरयाह को दाऊद के पास भेज दिया। 10O 11 7 जब ऊरिरयाह उसके पास आया, तब दाऊद ने उस से योआब और सेना का कुशल क्षेम और युठ्ठ का हाल पूछा। 10O 11 8 तब दाऊद ने ऊरिरयाह से कहा, अपने घर जाकर अपने पांव धो। और ऊरिरयाह राजभवन से निकला, और उसके पीछे राजा के पास से कुछ इनाम भेजा गया। 10O 11 9 परन्तु ऊरिरयाह अपते स्वामी के सब सेवकों के संग राजभवन के द्वार में लेट गया, और अपने घर न गया। 10O 11 10 जब दाऊद को यह समाचार मिला, कि ऊरिरयाह अपने घर नहीं गया, तब दाऊद ने ऊरिरयाह से कहा, क्या तू यात्रा करके नहीं आया? तो अपने घर क्यों नहीं गया? 10O 11 11 ऊरिरयाह ने दाऊद से कहा, जब सनदूक और इस्राएल और यहूदा झोपड़ियों में रहते हैं, और मेरा स्वामी योआब और मेरे स्वामी के सेवक खुले मैदान पर डेरे डाले हुए हैं, तो क्या मैं घर जाकर खाऊं, पीऊं, और अपनी पत्नी के साथ सोऊं? तेरे जीवन की शपथ, और तेरे प्राण की शपथ, कि मैं ऐसा काम नहीं करने का। 10O 11 12 दाऊद ने ऊरिरयाह से कहा, आज यहीं रह, और कल मैं तुझे विदा करूंगा। इसलिये ऊरिरयाह उस दिन और दूसरे दिन भी यरूशलेम में रहा। 10O 11 13 तब दाऊद ने उसे नेवता दिया, और उस ने उसके साम्हने खाया पिया, और उसी ने उसे मतवाला किया; और सांझ काो वह अपने स्वामी के सेवकों के संग अपनी चारपाई पर सोने को निकला, परन्तु अपने घर न गया। 10O 11 14 बिहान को दाऊद ने योआब के नाम पर एक चिट्ठी लिखकर ऊरिरयाह के हाथ से भेजदी। 10O 11 15 उस चिट्ठी में यह लिखा था, कि सब से घोर युद्ध के साम्हने ऊरिरयाह को रखना, तब उसे छोडकर लौट आबो, कि वह घायल हो कर मर जाए। 10O 11 16 और योआब ने नगर को अच्छी रीति से देख भालकर जिस स्थान में वह जानता था कि वीर हैं, उसी में ऊरिरयाह को ठहरा दिया। 10O 11 17 तब नगर के पुरूषों ने निकलकर योआब से युद्ध किया, और लागों में से, अर्थात् दाऊद के सेवकों में से कितने खेत आए; और उन में हित्ती ऊरिरयह भी मर गया। 10O 11 18 तब योआब ने भेजकर दाऊद को युद्ध का पूरा हाल बताया; 10O 11 19 और दूत को आज्ञा दी, कि जब तू युद्धका पूरा हाल राजा को बता चुके, 10O 11 20 तब यदि राजा जलकर कहने लगे, कि तुम लाग लड़ने को नगर के ऐसे निकट क्यों गए? क्या तुम न जानते थे कि वे शहरपनाह पर से तीर छोड़ेंगे? 10O 11 21 यरूब्बेशेत के पुत्रा अबीमेलेक को किसने मार डाला? क्या एक स्त्री ने शहरपनाह पर से चक्की का उपरला पाट उस पर ऐसा न डाला कि वह तेबेस में मर गया? फिर तुम हाहरपनाह के एसे निकट क्यों गए? तो तू यों कहना, कि तेरा दास ऊरिरयाह हित्ती भी मर गया। 10O 11 22 तब दूत चल दिया, और जाकर दाऊद से योआब की सब बातें चर्णन कीं। 10O 11 23 दूत ने दाऊद से कहा, कि वे लोग हम पर प्रबल होकर मैदान में हमारे पास निकल आए, फिर हम ने उन्हें फाटक तक खदेड़ा। 10O 11 24 तब धनुर्धारियों ने शहरपनाह पर से तेरे जनों पर तीर छोड़े; और राजा के कितने जन मर गए, और तेरा दास ऊरिरयाह हित्ती भी मर गया। 10O 11 25 दाऊद ने दूत से कहा, योआब से यों कहना, कि इस बात के कारण उदास न हो, क्योंकि तलवार जैसे इसको वैसे उसको नाश करती है; तो तू नगर के विरूद्ध अधिक दृढ़ता से लड़कर उसे उलट दे। और तू उसे हियाव बन्धा। 10O 11 26 जब ऊरिरयाह की स्त्री ने सुना कि मेरा पति मर गया, तब वह अपने पति के लिये रोने पीटते लगी। 10O 11 27 और जब उसके विलाप के दिन बीत चुके, तब दाऊद ने उसे बुलवाकर अपने घर में रख लिया, और वह उसकी पत्नी हो गई, और उसके पुत्रा उत्पन्न हुआ। परन्तु उस काम से जो दाऊद ने किया था यहोवा क्रोधित हुआ। 10O 12 1 तब यहोवा ने दाऊद के पास नातान को भेजा, और वह उसके पास जाकर कहने लगा, एक नगर में दो मनुष्य रहते थे, जिन में से एक धनी और एक निर्धन था। 10O 12 2 धनी के पास तो बहुत सी भेड़- बकरियां और गाय बैल थे; 10O 12 3 परन्तु निर्धन के पास भेड़ की एक छोटी बच्ची को छोड़ और कुछ भी न था, और उसको उस ने मोल लेकर जिलाया था। और वह उसके यहां उसके बालबच्चों के साथ ही बढ़ी थी; वह उसके टुकड़े में से खाती, और उसके कटोरे में से पीती, और उसकी गोद मे सोती थी, और वह उसकी बेटी के समान थी। 10O 12 4 और धनी के पास एक बटोही आया, और उस ने उस बटोही के लिये, जो उसके पास आया था, भोजत बनवाने को अपनी भेड़- बकरियों वा गाय बैलों में से कुछ न लिया, परन्तु उस निर्धन मनुष्य की भेड़ की बच्ची लेकर उस जन के लिये, जो उसके पास आया था, भोजन बनवाया। 10O 12 5 तब दाऊद का कोप उस मनुष्य पर बहुत भड़का; और उस ने नातान से कहा, यहोवा के जीवन की शपथ, जिस मनुष्य ने ऐसा काम किया वह प्राण दणड के योग्य है; 10O 12 6 और उसको वह भेड़ की बच्ची का औगुणा भर देना होगा, क्योंकि उस ने ऐसा काम किया, और कुछ दया नहीं की। 10O 12 7 तब नातान ने दाऊद से कहा, तू ही वह मनुष्य है। इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि मैं ने तेरा अभिशेक कराके तुझे इस्राएल का राजा ठहराया, और मैं ते तुझे शाऊल के हाथ से बचाया; 10O 12 8 फिर मैं ने तेरे स्वामी का भवन तुझे दिया, और तेरे स्वामी की पत्नियां तेरे भाग के लिये दीं; और मैं ने इस्राएल और सहूदा का घराना तुझे दिया था; और यदि यह थोड़ा था, तो मैं तुझे और भी बहुत कुछ देनेवाला था। 10O 12 9 तू ने यहोवा की आज्ञा तुच्छ जानकर क्यों वह काम किया, जो उसकी दृष्टि में बुरा है? हित्ती ऊरिरयाह को तू ने तलवार से घात किया, और उसकी पत्नी को अपनी कर लिया है, और ऊरिरयाह को अम्मोनियों की तलवार से मरवा डाला है। 10O 12 10 इसलिये अब तलवार तेरे घर से कभी दूर न होगी, क्योंकि तू ने मुझे तुच्छ जानकर हित्ती ऊरिरयाह की पत्नी को अपनी पत्नी कर लिया है। 10O 12 11 यहोवा यों कहता है, कि सुन, मैं तेरे घर में से विपत्ति उठाकर तुझ पर डालूंगा; और तेरी पत्नियों को तेरे साम्हने लेकर दूसरे को दूंगा, और वह दिन दुपहरी में तेरी पत्नियों से कुकर्म करेगा। 10O 12 12 तू ने तो वह काम छिपाकर किया; पर मैं यह काम सब इस्राएलियों के साम्हने दिन दुपहरी कराऊंगा। 10O 12 13 तब दाऊद ने नातान से कहा, मैं ने यहोवा के विरूद्ध पाप किया है। नातान ने दाऊद से कहा, यहोवा ने तेरे पाप को दूर किया है।; तू न मरेगा। 10O 12 14 तौभी तू ने जो इस काम के द्वारा यहोवा के शत्रुओं को तिरस्कार करने का बड़ा अवसर दिया है, इस कारण तेरा जो बेटा उत्पन्न हुआ है वह अवश्य ही मरेगा। 10O 12 15 तब नातान अपने घर चला गया। और जो बच्चा ऊरिरयाह की पत्नी से दाऊद के द्वारा उत्पन्न था, वह यहोवा का मारा बहुत रोगी हो गया। 10O 12 16 और दाऊद उस लड़के के लिये परमेश्वर से बिनती करने लगा; और उपवास किया, और भीतर जाकर रात भर भूमि पर पड़ा रहा। 10O 12 17 तब उसके घराने के पुरनिये उठकर उसे भूमि पर से उठाने के लिये उसके पास गए; परन्तु उस ने न चाहा, और उनके संग रोठी न खाई। 10O 12 18 सातवें दिन बच्चा मर गया, और दाऊद के कर्मचारी उसको बच्चे के मरने का समाचार देने से डरे; उन्हों ने तो कहा था, कि जब तक बच्चा जीवित रहा, तब तक उस ने हमारे बमझाने पर मन न लगाया; यदि हम उसको बच्चे के मर जाने का हाल सुनाएं तो वह बहुत ही अधिक दु:खी होगा। 10O 12 19 अपने कर्मचारियों को आपस में फुसफुसाते देखकर दाऊद ने जान लिया कि बच्चा मर गया; तो दाऊद ने अपने कर्मचारियों से पूछा, क्या बच्चा मर गया? उन्हों ने कहा, हां, मर गया है। 10O 12 20 तब दाऊद भूमि पर से उठा, और नहाकर तेल लगाया, और वस्त्रा बदला; तब यहोवा के भवन में जाकर दणडवत् की; फिर अपने भवन में आया; और उसकी आज्ञा पर रोटी उसको परोसी गई, और उस ने भोजन किया। 10O 12 21 तब उसके कर्मचारियों ने उस से पूछा, तू ने यह क्या काम किया है? जब तक बच्चा जीवित रहा, तब तक तू उपवास करता हुआ रोता रहा; परन्तु ज्योंही बच्चा मर गया, त्योंही तू उठकर भोजन करने लगा। 10O 12 22 उस ने उत्तर दिया, कि जब तक बच्चा जीवित रहा तब तक तो मैं यह सोचकर उपवास करता और रोता रहा, कि क्या जाने यहोवा माुझ पर ऐसा अनुग्रह करे कि बच्चा जीवित रहे। 10O 12 23 परन्तु अब वह मर गया, फिर मैं उपवास क्यों करूं? क्या मैं उसे लौटा ला सकता हूं? मैं तो उसके पास जाऊंगा, परन्तु वह मेरे पास लौट न आएगा। 10O 12 24 तब दाऊद ने अपनी पत्नी बतशेबा को शान्ति दी, और वह उसके पास गया; और असके एक पुत्रा उत्पन्न हुआ, और उस ने उसका नाम सुलैमान रखा। और वह सहोवा का प्रिय हुआ। 10O 12 25 और उस ने नातान भविष्यद्वक्ता के द्वारा सन्देश भेज दिया; और उस ने यहोवा के कारण उसका नाम यदीद्याह रखा। 10O 12 26 और योआब ने अम्मोनियों के रब्बा नगर से लड़कर राजनगर को ले लिया। 10O 12 27 तब योआब ने दूतों से दाऊद के पास यह कहला भेजा, कि मैं रब्बा से लड़ा और जलवाले नगर को ले लिया है। 10O 12 28 सो अब रहे हुए लोगों को इकट्ठा करके नगर के विरूद्ध छावनी डालकर उसे भी ले ले; ऐसा न हो कि मैं उसे ले लूं, और वह मेरे नाम पर कहलाए। 10O 12 29 तब दाऊद सब लोगों को इकट्ठा करके रब्बा को गया, और उस से युठ्ठ करके उसे ले लिया। 10O 12 30 तब उस ने उनके राजा का मुकुट, जो तौल में किक्कार भर सोने का था, और उस में मणि जड़े थे, उसको उसके सिर पर से उतारा, और वह दाऊद के सिर पर रखा गया। फिर उस ने उस नगर की बहुत ही लूट पाई। 10O 12 31 और उस ने उसके रहनेवालों को निकालकर आरो से दो दो टुकड़े कराया, और लोहे के हेंगे उन पर फिरवाए, और लोहे की कुल्हाड़ियों से उन्हें कटवाया, और ईट के पजावे में से चलवाया; और अम्मोनियों के सब नगरों से भी उस ने ऐसा ही किया। तब दाऊद समस्त लोगों समेत यरूशलेम को लौट आया। 10O 13 1 इसके बाद तामार नाम एक सुन्दरी जो दाऊद के पुत्रा अबशालोम की बहिन थी, उस पर दाऊद का पुत्रा अम्नोन मोहित हुआ। 10O 13 2 और अम्नोन अपनी बहिन तामार के कारण ऐसा विकल हो गया कि बीमार पड़ गया; क्योंकि वह कुमारी थी, और उसके साथ कुछ करना अम्नोन को कठिन जान पड़ता था। 10O 13 3 अम्नोन के योनादाब नाम एक मित्रा था, जो दाऊद के भाई शिमा का बेटा था; और वह बड़ा चतुर था। 10O 13 4 और उस ने अम्नोन से कहा, हे राजकुमार, क्या कारण है कि तू प्रति दिन ऐसा दुबला होता जाता है क्या तू मुझे न बताएगा? अम्नोन ने उस से कहा, मैं तो अपने भाई अबशालोम की बहिन तामार पर मोहित हूं। 10O 13 5 योनादाब ने उस से कहा, अपने पलंग पर लेटकर बीमार बन जा; और जब तेरा पिता तुझे देखने को आए, तब उस से कहना, मेरी बहिन तामार आकर मुझे रोटी खिलाए, और भोजन को मेरे साम्हने बनाए, कि मैं उसको देखकर उसके हाथ से खाऊं। 10O 13 6 और अम्नोन लेटकर बीमार बना; और जब राजा उसे देखने आया, तब अम्नोन ने राजा से कहा, मेरी बहिन तामार आकर मेरे देखते दो पूरी बनाए, कि मैं उसके हाथ से खाऊं। 10O 13 7 और दाऊद ने अपने घर तामार के पास यह कहला भेजा, कि अपने भाई अम्नोन के घर जाकर उसके लिये भोजन बना। 10O 13 8 तब तामार अपने भाई अम्नोन के घर गई, और वह पड़ा हुआ था। तब उस ने आटा लेकर गूंधा, और उसके देखते पूरियां। पकाई। 10O 13 9 तब उस ने थाल लेकर उनको उसके लिये परोसा, परन्तु उस ने खाने से इनकार किया। तब अम्नोन ने कहा, मेरे आस पास से सब लोगों को निकाल दो, तब सब लोग उसके पास से निकल गए। 10O 13 10 तब अम्नोन ने तामार से कहा, भोजत को कोठरी में ले आ, कि मैं तेरे हाथ से खाऊं। तो तामार अपनी बनाई हुई पूरियों को उठाकर अपने भाई अम्नोन के पास कोठरी में ले गई। 10O 13 11 जब वह उनको उसके खाने के लिये निकट ले गई, तब उस ने उसे पकड़कर कहा, हे मेरी बहिन, आ, मुझ से मिल। 10O 13 12 उस ने कहा, हे मेरे भाई, ऐसा नहीं, मुझे भ्रष्ट न कर; क्योंकि इस्राएल में ऐसा काम होना नहीं चाहिये; ऐसी मूढ़ता का काम न कर। 10O 13 13 और फिर मैं अपनी नामधराई लिये हुए कहां जाऊंगी? और तू इस्राएलियों में एक मूढ़ गिना जाएगा। तू राजा से बातचीत कर, वह मुझ को तुझे ब्याह देने के लिये मना न करेगा। 10O 13 14 परन्तु उस ने उसकी न सुनी; और उस से बलवान होने के कारण उसके साथ कुकर्म करके उसे भ्रष्ट किया। 10O 13 15 तब अम्नोन उस से अत्यन्त बैर रखने लगा; यहां तक कि यह बैर उसके पहिले मोह से बढ़कर हुआ। तब अम्नोन ने उस से कहा, उठकर चली जा। 10O 13 16 उस ने कहा, ऐसा नहीं, क्योंकि यह बढ़ा उपद्रव, अर्थात् मुझे निकाल देना उस पहिले से बढ़कर है जो तू ने मुझ से किया है। परन्तु उस ने उसकी न सुनी। 10O 13 17 तब उस ने अपने टहलुए जवान को बुलाकर कहा, इस स्त्री को मेरे पास से बाहर निकाल दे, और उसके पीछे किवाड़ में चिटकनी लगा दे। 10O 13 18 वह तो रंगबिरंगी कुत पहिने थी; क्योंकि जो राजकुमारियां कुंवारी रहती थीं वे ऐसे ही वस्त्रा पहिनती थीं। सो अम्नोन के टहलुए ने उसे बाहर निकालकर उसके पीछे किवाड़ में चिटकनी लगा दी। 10O 13 19 तब तामार ने अपने सिर पर राख डाली, और अपनी रंगबिरंगी कुत को फाढ़ डाला; और सिर पर हाथ रखे चिल्लाती हुई चली गई। 10O 13 20 उसके भाई अबशालोम ने उस से पूछा, क्या तेरा भाई अम्नोन तेरे साथ रहा है? परन्तु अब, हे मेरी बहिन, चुप रह, वह तो तेरा भाई है; इस बात की चिन्ता न कर। तब तामार अपने भाई अबशालोम के घर में मन मारे बैठी रही। 10O 13 21 जब ये सब बातें दाऊद राजा के कान में पडीं, तब वह बहुत झुंझला उठा। 10O 13 22 और अबशालोम ने अम्नोन से भला- बुरा कुछ न कहा, क्योंकि अम्नोन ने उसकी बहिन तामार को भ्रष्ट किया था, इस कारण अबशालोम उस से घृणा रखता था। 10O 13 23 दो पर्ष के बाद अबशालोम ने एप्रैम के निकट के बाल्हासोर में अपनी भेड़ोंका ऊन कतरवाया और अबशालोम ने सब राजकुमारों को नेवता दिया। 10O 13 24 वह राजा के पास जाकर कहनलगा, बिनती यह है, कि तेरे दास की भेड़ों का ऊन कतरा जाता है, इसलिये राजा अपने कर्मचारियो समेत अपने दास के संग चले। 10O 13 25 राजा ने अबशालोम से कहा, हे मेरे बेटे, ऐसा नहीं; हम सब न चलेंगे, ऐसा न हो कि तुझे अधिक कष्ट हो। तब अबशालोम ने उसे बिनती करके दबाया, परन्तु उस ने जाने से इनकार किया, तौभी उसे आशीर्वाद दिया। 10O 13 26 तब अबशालोम ने कहा, यदि तू नहीं तो मेरे भाई अम्नोन को हमारे संग जाने दे। राजा ने उस से पूछा, वह तेरे संग क्यों चले? 10O 13 27 परन्तु अबशालोम ने उसे ऐसा दबाया कि उस ने अम्नोन और सब राजकुमारों को उसके साथ जाने दिया। 10O 13 28 औा अबशालोम ने अपने सेवको को आज्ञा दी, कि सावधान रहो और जब अम्नोन दाखमधु पीकर नशे में आ जाए, और मैं तुम से कहूं, अम्नोन को मार डालना। क्या इस आज्ञा का देनेवाला मैं नहीं हूं? हियाव बान्धकर पुरूषार्थ करना। 10O 13 29 तो अबशालोम के सेवकों ने अम्नोन के साथ अबशालोम की आज्ञा के अनुसार किया। तब सब राजकुमार उठ खड़े हुए, और अपने अपने खच्चर पर चढ़कर भाग गए। 10O 13 30 वे मार्ग ही में थे, कि दाऊद को यह समाचार मिला कि अबशालोम ने सब राजकुमारों को मार डाला, और उन में से एक भी नहीं बचा। 10O 13 31 तब दाऊद ने उठकर अपने वस्त्रा फाड़े, और भूमि पर गिर पड़ा, और उसके सब कर्मचारी वस्त्रा फाड़े हुए उसके पास खड़े रहे। 10O 13 32 तब दाऊद के भाई शिमा के पुत्रा यानादाब ने कहा, मेरा प्रभु यह न समझे कि सब जवान, अर्थात् राजकुमार मार डाले गए हैं, केवल अम्नोन मारा गया है; क्योंकि जिस दिन उस ने अबशालोम की बहिन तामार को भ्रष्ट किया, उसी दिन से अबशालोम की आज्ञा से ऐसी ही बात ठनी थी। 10O 13 33 इसलिये अब मेरा प्रभु राजा अपने मन में यह समझकर कि सब राजकुमार मर गए उदास न हो; क्योंकि केवल अम्नोन ही मर गया है। 10O 13 34 इतने में अबशालोम भाग गया। और जो जवान पहरा देता थ उस ने आंखें उठाकर देखा, कि पीछे की ओर से पहाड़ के पास के मार्ग से बहुत लोग चले आ रहे हैं। 10O 13 35 तब योनादाब ने राजा से कहा, देख, राजकुमार तो आ गए हैं; जैसा तेरे दास ने कहा था वैसा ही हुआ। 10O 13 36 वह कह ही चुका था, कि राजकुमार पहुंच गए, और चिल्ला चिल्लाकर रोने लगे; और राजा भी अपने सब कर्मचारियों समेत बिलख बिलख कर रोने लगा। 10O 13 37 अबशालोम तो भागकर गशूर के राजा अम्मीहूर के पुत्रा तल्मै के पास गया। और दाऊद अपने पुत्रा के लिये दिन दिन विलाप करता रहा। 10O 13 38 जब अबशालोम भागकर गशूर को गया, तब पहां तीन पर्ष तक रहा। 10O 13 39 और दाऊद के मन में अबशालोम के पास जाने की बड़ी लालसा रही; क्योंकि अम्नोन जो मर गया था, इस कारण उस ने उसके विषय में शान्ति पाई। 10O 14 1 और सरूयाह का पुत्रा योआब ताड़ गया कि राजा का मन अबशालोम की ओर लगा है। 10O 14 2 इसलिये योआब ने तको नगर में दूत भेजकर वहां से एक बुध्दिमान स्त्री को बुलवाया, और उस से कहा, शोक करनेवाली बन, अर्थात् शोक का पहिरावा पहिन, और तेल न लगा; परन्तु ऐसी स्त्री बन जो बहुत दिन से मुए के लिये विलाप करती रही हो। 10O 14 3 तब राजा के पास जाकर ऐसी ऐसी बातें कहना। और योआब ने उसको जो कुछ कहना था वह सिखा दिया। 10O 14 4 जब वह तकोइन राजा से बातें करने लगी, तब मुंह के बल भूमि पर गिर दणडवत् करके कहने लगी, राजा की दोहाई 10O 14 5 राजा ने उस से पूछा, तुझे क्या चाहिये? उस ने कहा, सचमुच मेरा पति मर गया, और मैं विधवा हो गई। 10O 14 6 और तेरी दासी के दो बेटे थे, और उन दोनों ने मैदान में मार पीट की; और उनको छुड़ानेवाला कोई न था, इसलिए एक ने दूसरे को ऐसा मारा कि वह मर गया। 10O 14 8 राजा ने स्त्री से कहा, अपते घर जा, और मैं तेरे विषय आज्ञा दूंगा। 10O 14 9 तकोइन ने राजा से कहा, हे मेरे प्रभु, हे राजा, दोष मुझी को और मेरे पिता के घराने ही को लगे; और राजा अपनी गद्दी समेत निदष ठहरे। 10O 14 10 राजा ने कहा, जो कोई तुझ से कुछ बोले उसको मेरे पास ला, तब वह फिर तुझे छूने न पाएगा। 10O 14 11 उस ने कहा, राजा अपने परमेश्वर यहोवा को स्मरण करे, कि खून का पलटा लेनेवाला औैर नाश करने न पाए, और मेरे बेटे का नाश न होने पाए। उस ने कहा, यहोवा के जीवन की शपथ, तेरे बेटे का एक बाल भी भूमि पर गिरने न पाएगा। 10O 14 12 स्त्री बोली, तेरी दासी अपने प्रभु राजा से एक बात कहने पाए। 10O 14 13 उस ने कहा, कहे जा। स्त्री कहने लगी, फिर तू ने परमेश्वर की प्रजा की हानि के लिये ऐसी ही युक्ति क्यों की है? राजा ने जो यह वचन कहा है, इस से वह दोषी सा ठहरता है, क्योंकि राजा अपने निकाले हुए को लौटा नहीं लाता। 10O 14 14 हम को तो मरना ही है, और भूमि पर गिरे हुए जल के समान ठहरेंगे, जो फिर उठाया नहीं जाता; तौभी परमेश्वर प्राण नहीं लेता, वरन ऐसी युकित करता है कि निकाला हुआ उसके पास से निकाला हुआ न रहे। 10O 14 15 और अब मैं जो अपने प्रभु राजा से यह बात कहने को आई हूं, इसका कारण यह है, कि लोगों ने मुझे डरा दिया था; इसलिये तेरी दासी ने सोचा, कि मैं राजा से बोलूंगी, कदाचित राजा अपनी दासी की बिनती को पूरी करे। 10O 14 16 निेसन्देह राजा सुनकर अवश्य अपनी दासी को उस मनुष्य के हाथ से बचाएगा जो पाझे और मेरे बेटे दोनों को परमेश्वर के भाग में से नाश करना चाहता है। 10O 14 17 सो तेरी दासी ने सोचा, कि मेरे प्रभु राजा के वचन से शान्ति मिले; क्योंकि मेरा प्रभु राजा परमेश्वर के किसी दूत की नाई भले- बुरे में भेद कर सकता है; इसलिये तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे संग रहे। 10O 14 18 राजा ने उत्तर देकर उस स्त्री से कहा, जो बात मैं तुझ से पूछता हूं उसे मुझ से न छिपा। स्त्री ने कहा, मेरा प्रभु राजा कहे जाए। 10O 14 19 राजा ने पूछा, इस बात में क्या योआब तेरा संगी है? स्त्री ने उत्तर देकर कहा, हे मेरे प्रभुु, हे राजा, तेरे प्राण की शपथ, जो कुछ मेरे प्रभु राजा ने कहा है, उस से कोई न दाहिनी ओर मुड़ सकता है और न बाई। तेरे दास योआब ही ने मुझे आज्ञा दी, और ये सब बातें उसी ने तेरी दासी को सिखाई है। 10O 14 20 तेरे दास योआब ने यह काम इसलिये किया कि बात का रंग बदले। और मेरा प्रभु परमेश्वर के एक दूत के तुल्य बुध्दिमान है, यहां तक कि धरती पर जो कुछ होता है उन सब को वह जानता है। 10O 14 21 तब राजा ने योआब से कहा, सुन, मैं ने यह बात मानी है; तू जाकर अबशालोम जवान को लौटा ला। 10O 14 22 तब योआब ने भूमि पर मुंह के बल गिर दणडवत् कर राजा को आशीर्वाद दिया; और योआब कहने लगा, हे मेरे प्रभु, हे राजा, आज तेरा दास जान गया कि मुझ पर तेरी अनग्रह की दृष्टि है, क्योंकि राजा ने अपने दास की बिनती सुनी है। 10O 14 23 और योआब उठकर गशूर को गया, और अबशालोम को यरूशलेम ले आया। 10O 14 24 तब राजा ने कहा, वह अपने घर जाकर रहे; और मेरा दर्शन न पाए। तब अबशालोम अपने घर जा रहा, और राजा का दर्शन न पाया। 10O 14 25 समस्त इस्राएल में सुन्दरता के कारण बहुत प्रशंसा योग्य अबशालोम के तुल्य और कोई न था; वरन उस में नख से सिख तक कुछ दोष न था। 10O 14 26 और वह वर्ष के अन्त में अपना सिर मुंढ़वाता था ( उसके बाल उसको भारी जान पड़ते थे, इस कारण वह उसे मुंड़ाता था ); और जब जब वह उसे मुंड़ाता तब तब अपने सिर के बाल तौलकर राजा के तौल के अनुसार दो सौ शेकेल भर पाता था। 10O 14 27 और अबशालोम के तीन बेटे, और तामार नाम एक बेटी उत्पन्न हुई थी; और यह रूपवती स्त्री थी। 10O 14 28 और अबशालोम राजा का दर्शन बिना पाए यरूशलेम में दो वर्ष रहा। 10O 14 29 तब अबशालोम ने योआब को बुलवा भेजा कि उसे राजा के पास भेजे; परन्तु योआब ने उसके पास आने से इनकार किया। और उस ने उसे दूसरी बार बुलवा भेजा, परन्तु तब भी उस ने आने से इनकार किया। 10O 14 30 तब उस ने अपने सेवकों से कहा, सुनो, योआब का एक खेत मेरी भूमि के निकट है, और उस में उसका जव खड़ा है; तुम जाकर उस में आग लगाओ। और अबशालोम के सेवकों ने उस खेत में आग लगा दी। 10O 14 31 तब योआब उठा, और अबशालोम के घर में उसके पास जाकर उस से पूछने लगा, तेरे सेवकों ने मेरे खेत में क्यों आग लगाई है? 10O 14 32 अबशालोम ने योआब से कहा, मैं ने तो तेरे पास यह कहला भेजा था, कि यहां आना कि मैं तुझे राजा के पास यह कहने को भेजूं, कि मैं गशूर से क्यों आया? मैं अब तक वहां रहता तो अच्छा होता। इसलिये अब राजा मुझे दर्शन दे; और यदि मैं दोषी हूं, तो वह मुझे मार डाले। 10O 14 33 तो योआब ने राजा के पास जाकर उसको यह बात सुनाई; और राजा ने अबशालोम को बुलवाया। और वह उसके पास गया, और उसके सम्मुख भूमि पर मुंह के बल गिरके दणडवत् की; और राजा ने अबशालोम को चूमा। 10O 15 1 इसके बाद अबशालोम ने रथ और घोड़े, और अपते आगे आगे दौड़नेवाले पचास मनुष्य रख लिए। 10O 15 2 और अबशालोम सवेरे उठकर फाटक के मार्ग के पास ख्ड़ा हाआ करता था; और जब जब कोई मु ई राजा के पास न्याय के लिये आता, तब तब अबशालोम उसको पुकारके पूछता था, तू किय नगर से आता है? 10O 15 3 और वह कहता था, कि तेरा दास इस्राएल के फुलाने गोत्रा का है। तब अबशालोम उस से कहता था, कि सुन, तेरा पक्ष तो ठीक और न्याय का है; परन्तु राजा की ओर से तेरी युननेवाला कोई नहीं है। 10O 15 4 फिर अबशालोम यह भी कहा करता था, कि भला होता कि मैं इस देश में न्यायी ठहराया जाता ! कि जितने मुक मावाले होते वे सब मेरे ही पास आते, और मैं उनका न्याय चुकाता। 10O 15 5 फिर जब कोई उसे दणडवत् करने को निकट आता, तब वह हाथ बढ़ाकर उसको पकड़के चूम लेता था। 10O 15 6 और जितने इस्राएली राजा के पास अपना मुक मा तै करने को आते उन सभों से अबशालोम ऐसा ही व्यवहार किया करता था; इस प्रकार अबशालोम ने इस्राएली मनुष्यों के मन को हर लिया। 10O 15 7 चार वर्ष के बीतने पर अबशालोम ने राजा से कहा, मुझे हेब्रोन जाकर अपनी उस मन्नत को पूरी करने दे, जो मैं ने यहोवा की मानी है। 10O 15 8 तेरा दास तो जब आराम के गशूर में रहता था, तब यह कहकर यहोवा की मन्नत मानी, कि यदि यहोवा मुझे सचमुच यरूशलेम को लौटा ले जाए, तो मैं यहोवा की उपासना करूंगा। 10O 15 9 राजा ने उस से कहा, कुशल क्षेम से जा। और वह चलकर हेब्रोन को गया। 10O 15 10 तब अबशालोम ने इस्राएल के समस्त गोत्रों में यह कहने के लिये भेदिए भेजे, कि जग नरसिंगे का शब्द तुम को सुन पड़े, तब कहना, कि अबशालोम हेब्रोन में राजा हुआ ! 10O 15 11 और अबशालोम के संग दो सौ नेवतहारी यरूशलेम से गए; वे सीधे मन से उसका भेद बिना जाने गए। 10O 15 12 फिर जब अबशालोम का यज्ञ हुआ, तब उस ने गीलोवासी अहीतोपेल को, जो दाऊद का मंत्री था, बुलवा भेजा कि वह अपने नगर गीलो से आए। और राजद्रोह की गोष्ठी ने बल पकड़ा, क्योंकि अबशालोम के पक्ष के लोग बराबर बढ़ते गए। 10O 15 13 तब किसी ने दाऊद के पास जाकर यह समाचार दिया, कि इस्राएली मनुष्यों के मन अबशालोम की ओर हो गए हैं। 10O 15 14 तब दाऊद ने अपने सब कर्मचारियों से जो यरूशलेम में उसके संग थे कहा, आओ, हम भाग चलें; नहीं तो हम में से कोर्ह भी अबशालोम से न बचेगा; इसलिये फुत करते चले चलो, ऐसा न हो कि वह फुत करके हमें आ घेरे, और हमारी हानि करे, और इस नगर को तलवार से मार ले। 10O 15 15 राजा के कर्मचारियों ने उस से कहा, जैसा हमारे प्रभु राजा को अच्छा जान पडे, वैसा ही करने के लिये तेरे दास तैयार हैं। 10O 15 16 तब राजा निकल गया, और उसके पीछे उसका समस्त घराना निकला। और राजा दस रखेलियों को भवन की चौकसी करने के लिये छोड़ गया। 10O 15 17 और राजा निकल गया, और उसके पीछे सब लोग निकले; और वे बेतमेर्हक में ठहर गए। 10O 15 18 और उसके सब कर्मचारी उसके पास से होकर आगे गए; और सब करेती, और सब पलेती, और सब गती, अर्थात् जो छे सौ पुरूष गत से उसके पीछे हो लिए थे वे सब राजा के साम्हने से होकर आगे चले। 10O 15 19 तब राजा ने गती इत्तै से पूछा, हमारे संग तू क्यों चलता है? लौटकर राजा के पास रह; क्योंकि तू परदेशी और अपने देश से दूर है, इसलिये अपने स्थान को लौट जा। 10O 15 20 तू तो कल ही आया है, क्या मैं आज तुझे अपने साथ मारा मारा फिराऊं? मैं तो जहां जा समूंगा वहां जाऊंगा। तू लौट जा, और अपने भाइयों को भी लौटा दे; ईश्चर की करूणा और यच्चाई तेरे संग रहे। 10O 15 21 इत्तै ने राजा को उत्तर देकर कहा, यहोवा के जीवन की शपथ, और मेरे प्रभु राजा के जीवन की शपथ, जिस किसी स्थान में मेरा प्रभु राजा रहेगा, चाहे मरने के लिये हो चाहे जीवित रहने के लिये, उसी स्थान में तेरा दास भी रहेगा। 10O 15 22 तब दाऊद ने इत्तै से कहा, पार चल। सो गती इत्तै अपने समस्त जनों और अपने साथ के सब बाल- बच्चों समेत पार हो गया। 10O 15 23 सब रहनेवाले चिल्ला चिल्लाकर रोए; और सब लोग पार हुए, और राजा भी किद्रोन नाम नाले के पार हुआ, और सब लोग नाले के पार जंगल के मार्ग की ओर पार होकर चल पड़े। 10O 15 24 तब क्या देखने में आया, कि सादोक भी और उसके संग सब लेवीय परमेश्वर की वाचा का सन्दूक उठाए हुए हैं; और उन्हों ने परमेश्वर के सन्दूक को धर दिया, तब एब्यातार चढ़ा, और जब तक सब लोग नगर से न निकले तब तक वहीं रहा। 10O 15 25 तब राजा ने सादोक से कहा, परमेश्वर के सन्दूक को नगर में लौटा ले जा। यदि यहोवा के अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो, तो वह मुझे लौटाकर उसको और अपने वासस्थान को भी दिखाएगा; 10O 15 26 परन्तु यदि वह मुझ से ऐसा कहे, कि मैं तुझ से प्रसन्न नहीं, तौभी मैं हाजिर हूं, जैसा उसको भाए वैसा ही वह मेरे साथ बर्त्ताव करे। 10O 15 27 फिर राजा ने सादोक याजक से कहा, क्या तू दश नहीं है? सो कुशल क्षेम से नगर में लौट जा, और तेरा पुत्रा अहीमास, और एब्यातार का पुत्रा योनातन, दोनों तुम्हारे संग लौटें। 10O 15 28 सुनो, मैं जंगल के घाट के पास तब तक ठहरा रहूंगा, जब तक तुम लोगों से मुझे हाल का समाचार न मिले। 10O 15 29 तब सादोक और एब्यातार ने परमेश्वर के सन्दूक को यरूशलेम में लौटा दिया; और आप वही रहे। 10O 15 30 तब दाऊद जलपाइसों के पहाड़ की चढ़ाई पर सिर ढांपे, नंगे पांव, रोता हुआ चढ़ने लगा; और जितने लोग उसके संग थे, वे भी सिर ढांपे रोते हुए चढ़ गए। 10O 15 31 तब दाऊद को यह समाचार मिला, कि अबशालोम के संगी राजद्रोहियों के साथ अहीतोपेल है। दाऊद ने कहा, हे यहोवा, अहीतोपेल की सम्मति को मूर्खता बना दे। 10O 15 32 जब दाऊद चोटी तक पहुंचा, जहां परमेश्वर को दणडवत् किया करते थे, तब एरेकी हूशै अंगरखा फाड़े, सिर पर मिट्टी डाले हुए उस से मिलने को आया। 10O 15 33 दाऊद ने उस से कहा, यदि तू मेरे संग आगे जाए, तब तो मेरे लिये भार ठहरेगा। 10O 15 34 परन्तु यदि तू नगर को लौटकर अबशालोम से कहने लगे, हे राजा, मैं तेरा कर्मचारी हूंगा; जैसा मैं बहुत दिन तेरे पिता का कर्मचारी रहा, वैसा ही अब तेरा रहूंगा, तो तू मेरे हित के लिये अहीतोपेल की सम्मति को निष्फल कर सकेगा। 10O 15 35 और क्या वहां तेरे संग सादोक और एब्यातार याजक न रहेंगे? इसलिये राजभवन में से जो हाल तुझे सुन पड़े, उसे सादोक और एब्यातार याजकों को बताया करना। 10O 15 36 उनके साथ तो उनके दो पुत्रा, अर्थात् सादोक का पुत्रा अहीमास, और एब्यातार का पुत्रा योनातन, वहां रहेंगे; तो जो समाचार तुम लोगों को मिले उसे मेरे पास उन्हीं के हाथ भेजा करना। 10O 15 37 और दाऊद का मित्रा, हूशै, नगर को गया, और अबशालोम भी यरूशलेम में पहुंच गया। 10O 16 1 दाऊद चोटी पर से थोड़ी दूर बढ़ गया था, कि मपीबोशेत का कर्मचारी मीबा एक जोड़ी, जीन बान्धे हुए गदहों पर दो सौ रोटी, किशमिश की एक सौ टिकिया, धूपकाल के फल की एक सौ टिकिया, और कुप्पी भर दाखमधु, लादे हुए उस से आ मिला। 10O 16 2 राजा ने सीबा से पूछा, इन से तेरा क्या प्रयोजन है? सीबा ने कहा, गदहे तो राजा के घराने की सवारी के लिये हैं, और रोटी और धूपकाल के फल जवानों के खाने के लिये हैं, और दाखमधु इसलिये है कि जो कोई जंगल में थक जाए वह उसे पीए। 10O 16 3 राजा ने पूछा, फिर तेरे स्वामी का बेटा कहां है? सीबा ने राजा से कहा, वह तो यह कहकर यरूशलेम में रह गया, कि अब इस्राएल का घराना मुझे मेरे पिता का राज्य फेर देगा। 10O 16 4 राजा ने सीबा से कहा, जो कुछ मपीबोशेत का था वह सब तुझे मिल गया। सीबा ने कहा, प्रणाम; हे मेरे प्रभु, हे राजा, मुझ पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि बनी रहे। 10O 16 5 जब दाऊद राजा बहूरीम तक पहुंचा, तब शाऊल का एक कुटुम्बी वहां से निकला, वह गेरा का पुत्रा शिमी नाम का था; और वह कोसता हुआ चला आया। 10O 16 6 और दाऊद पर, और दाऊद राजा के सब कर्मचारियों पर पत्थर फेंकने लगा; और शूरवीरों समेत सब लोग उसकी दाहिनी बाई दोनों ओर थे। 10O 16 7 और शिमी कोसता हुआ यों बकता गया, कि दूर हो खूनी, दूर हो ओछे, निकल जा, निकल जा ! 10O 16 8 यहोवा ने तुझ से शाऊल के घराने के खून का पूरा पलटा लिया है, जिसके स्थान पर तू राजा बना है; यहोवा ने राज्य को तेरे पुत्रा अबशालोम के हाथ कर दिया है। और इसलिये कि तू खूनी है, तू अपनी बुराई में आप फंस गया। 10O 16 9 तब सरूयाह के पुत्रा अबीशै ने राजा से कहा, यह मरा हुआ कुत्ता मेरे प्रभु राजा को क्यों शाप देने पाए? मुझे उधर जाकर उसका सिर काटने दे। 10O 16 10 राजा ने कहा, सरूयाह के बेटो, मुझे तुम से क्या काम? वह जो कोसता है, और यहोवा ने जो उस से कहा है, कि दाऊद को शाप दे, तो उस से कौन पूछ सकता, कि तू ने ऐसा क्यों किया? 10O 16 11 फिर दाऊद ने अबीशै और अपने सब कर्मचारियों से कहा, जब मेरा निज पुत्रा भी मेरे प्राण का खोजी है, तो यह बिन्यामीनी अब ऐसा क्यों न करें? उसको रहने दो, और शाप देने दो; क्योंकि यहोवा ने उस से कहा है। 10O 16 12 कदाचित् यहोवा इस उपद्रव पर, जो मुझ पर हो रहा है, दृष्टि करके आज के शाप की सन्ती मुझे भला बदला दे। 10O 16 13 तब दाऊद अपने जनों समेत अपना मार्ग चला गया, और शिमी उसके साम्हने के पहाड़ की अलंग पर से शाप देता, और उस पर पत्थर और धूलि फेंकता हुआ चला गया। 10O 16 14 निदान राजा अपने संग के सब लोगों समेत अपने ठिकाने पर थका हुआ पहुंचा; और वहां विश्राम किया। 10O 16 15 अबशालोम सब इस्राएली लोगों समेत यरूशलेम को आया, और उसके संग अहीतोपेल भी आया। 10O 16 16 जब दाऊद का मित्रा एरेकी हूशै अबशालोम के पास पहुंचा, तब हूशै ने अबशालोम से कहा, राजा चिरंजीव रहे ! राजा चिरंजीव रहे ! 10O 16 17 अबशालोम ने उस से कहा, क्या यह तेरी प्रीति है जो तू अपने मित्रा से रखता है? तू अपने मित्रा के संग क्यों नहीं गया? 10O 16 18 हूशै ने अबशालोम से कहा, ऐसा नही; जिसको यहोवा और वे लोग, क्या वरन सब इस्राएली लोग चाहें, उसी का मैं हूं, और उसी के संग मैं रहूंगा। 10O 16 19 और फिर मैं किसकी सेवा करूं? क्या उसके पुत्रा के साम्हने रहकर सेवा न करूं? जैसा मैं तेरे पिता के साम्हने रहकर सेवा करता था, वैसा ही तेरे साम्हने रहकर सेवा करूंगा। 10O 16 20 तब अबशालोम ने अहीतोपेल से कहा, तुम लोग अपनी सम्मति दो, कि क्या करना चाहिये? 10O 16 21 अहीतोपेल ने अबशालोम से कहा, जिन रखेलियों को तेरा पिता भवन की चौकसी करने को छोड़ गया, उनके पास तू जा; और जब सब इस्राएली यह सुनेंगे, कि अबशालोम का पिता उस से घिन करता है, तब तेरे सब संगी हियाव बान्धेंगे। 10O 16 22 सो उसकेलिये भवन की छत के ऊपर एक तम्बू खड़ा किया गया, और अबशालोम समरूत इस्राएल के देखते अपने पिता की रखेलियों के पास गया। 10O 16 23 उन दिनों जो सम्मति अहीतोपेल देता था, वह ऐसी होती थी कि मानो कोई परमेश्वर का वचन पूछलेता हो; अहीतोपेल चाहे दाऊद को चाहे अबशलोम को, जो जो सम्मति देता वह ऐसी ही होती थी। 10O 17 1 फिर अहीतोपेल ने अबशालोम से कहा, मुझे बारह हजार पुरूष छांटने दे, और मैं उठकर आज ही रात को दाऊद का पीछा करूंगा। 10O 17 2 और जब वह थकित और निर्बल होगा, तब मैं उसे पकड़ूंगा, और डराऊंगा; और जितने लोग उसके साथ हैं सब भागेंगे। और मैं राजा ही को मारूंगा, 10O 17 3 और मैं सब लोगों को तेरे पास लौटा लाऊंगा; जिस मनुष्य का तू खोजी है उसके मिलने मे समस्त प्रजा का मिलना हो जाएगा, और समस्त प्रजा कुशल क्षेम से रहेगी। 10O 17 4 यह बात अबशालोम और सब इस्राएली पुरनियों को उचित मालूम पड़ी। 10O 17 5 फिर अबशालोम ने कहा, एरेकी हूशै को भी बुला ला, और जो वह कहेगा हम उसे भी सुनें। 10O 17 6 जब हूशै अबशालोम के पास आया, तब अबशालोम ने उस से कहा, अहीतोपेल ने तो इस प्रकार की बात कही है; क्या हम उसकी बात मानें कि नही? सदि नही, तो तू कह दे। 10O 17 7 हूशै ने अबशालोम से कहा, जो सम्मति अहीतोपेल ने इस बार दी वह अच्छी नहीं। 10O 17 8 फिर हूशै ने कहा, तू तो अपने पिता और उसके जनों को जानता है कि वे शूरवीर हैं, और बच्चा छीनी हुई रीछनी के समान फ्रोधित होंगे। और तेरा पिता योठ्ठा है; और और लोगो के साथ रात नहीं बिताता। 10O 17 9 इस समय तो वह किसी गढ़हे, वा किसी दूसरे स्थान में छिपा होगा। जब इन में से पहिले पहिले कोई कोई मारे जाएं, तब इसके सब सुननेवाले कहने लगेंगे, कि अबशालोम के पक्षवाले हार गए। 10O 17 10 तब वीर का हृदय, जो सिंह का सा होता है, उसका भी हियाव छूट जाएगा, समस्त इस्राएल तो जानता है कि तेरा पिता वीर है, और उसके संगी बड़े योठ्ठा हैं। 10O 17 11 इसलिये मेरी सम्मति यह है कि दान से लेकर बेर्शेबा तक रहनेवाले समस्त इस्राएली तेरे पास समुद्रतीर की बालू के किनकों के समान अकट्ठे किए जाए, और तू आप ही युठ्ठ को जाए। 10O 17 12 और जब हम उसको किसी न किसी स्थान में जहां वह मिले जा पकड़ेंगे, तब जैसे ओस भूमि पर गिरती है वैसे ही हम उस पर टूट पड़ेंगे; तब न तो वह बचेगा, और न उसके संगियों में से कोई बचेगा। 10O 17 13 और यदि वह किसी नगर में घुसा हो, तो सब इस्राएली उस नगर के पास रस्सियां ले आएंगे, और हम उसे नाले में खींचेंगे, यहां तक कि उसका एक छोटा सा पत्थर भी न रह जाएगा। 10O 17 14 तब अबशालोम और सब इस्राएली पुरूषों ने कहा, एरेकी हूशै की बम्मति अहीतोपेल की सम्मति से उम्तम है। सहोवा ने तो अहीतोपेल की अच्छी सम्मति को निष्फल करने के लिये ठाना था, कि यह अबशालोम ही पर विपत्ति डाले। 10O 17 15 तब हूशै ने सादोक और एब्यातार याजकों से कहा, अहीतोपेल ने तो अबशालोम और इस्राएली पुरनियों को इस इस प्रकार की सम्मति दी; और मैं ने इस इस प्रकार की सम्मति दी है। 10O 17 16 इसलिये अब फुत कर दाऊद के पास कहला भेजो, कि आज रात जंगली घाट के पास न ठहरना, अवश्य पार ही हो जाना; ऐसा न हो कि राजा और जितने लोग उसके संग हों, सब नाश हो जाएं। 10O 17 17 योनातन और अहीमाय एनरोगेल के पास ठहरे रहे; और एक लौंडी जाकर उन्हें सन्देशा दे आती थी, और वे जाकर राजा दाऊद को सन्देशा देते थे; क्योंकि वे किसी के देखते नगर में नही जा सकते थे। 10O 17 18 एक छोकरे ने तो उन्हें देखकर अबशालोम को बताया; परन्तु वे दोनों फुत से चले गए, और एक बहरीमवासी मनुष्य के घर पहुंचकर जिसके आंगन में कुंआ था उस में उतर गए। 10O 17 19 तब उसकी स्त्री ने कपड़ा लेकर कुंए के मुंह पर बिछाया, और उसके ऊपर दलर हुआ अन्न फैला दिया; इसलिये कुछ मालूम न पड़ा। 10O 17 20 तब अबशालोम के सेवक उस घर में उस स्त्री के पास जाकर कहने लगे, अहीमास और योनातन कहां हैं? स्त्री ने उन से कहा, वे तो उस छोटी नदी के पार गए। तब उन्हों ने उन्हें ढूंढा, और न पाकर यरूशलेम को लौटे। 10O 17 21 जब वे चले गए, तब ये कुंए में से निकले, और जाकर दाऊद राजा को समाचार दिया; और दाऊद से कहा, तुम लोग चलो, फुत करके नदी के पार हो जाओ; क्योंकि अहीतोपेल ने तुम्हारी हानि की ऐसी ऐसी सम्मति दी है। 10O 17 22 तब दाऊद अपने सब संगियों समेत उठकर यरदन पार हो गया; और पह फटने तक उन में से एक भी न रह गया जो यरदन के पार न हो गया हो। 10O 17 23 जब अहीतोपेल ने देखा कि मेरी सम्मति के अनुसार काम नहीं हुआ, तब उस ने अपने गदहे पर काठी कसी, और अपने नगर में जाकर अपने घर में गया। और अपने घराने के विषय जो जो आज्ञा देनी थी वह देकर अपने को फांसी लगा ली; और वह मर गया, और उसके पिता के कब्रिस्तान में उसे मिट्टी दे दी गई। 10O 17 24 दाऊद तो महनैम में पहुंचा। और अबशालोम सब इस्राएली पुरूषों समेत यरदन के पार गया। 10O 17 25 और अबशालोम ने अमासा को योआब के स्थान पर प्रधान सेनापति ठहराया। यह अमासा एक पुरूष का पुत्रा था जिसका नाम इस्राएली यित्रो था, और वह योआब की माता, सरूयाह की बहिन, अबीगल नाम नाहाश की बेटी के संग सोया था। 10O 17 26 और इस्राएलियों ने और अबशालोम ने गिलाद देश में छावनी डाली। 10O 17 27 जब दाऊद महनैम में आया, तब अम्मोनियों के रब्बा के निवासी नाहाश का पुत्रा शोबी, और लोदबरवासी अम्मीएल का पुत्रा माकीर, और रोगलीमवासी गिलादी बर्जिल्लै, 10O 17 28 चारपाइयां, तसले मिट्टी के बर्तन, गेहूं, जव, मैदा, लोबिया, मसूर, चबेना, 10O 17 29 मधु, मक्खन, भेड़बकरियां, और गाय के दही का पनीर, दाऊद और उसके संगियों के खाने को यह सोचकर ले आए, कि जंगल में वे लोग भूखे प्यासे और थके मांदे होंगे। 10O 18 1 तब दाऊद ने अपने संग के लोगों की गिनती ली, और उन पर सहस्त्रापति और शतपति ठहराए। 10O 18 2 फिर दाऊद ने लोगों की एक तिहाई तो योआब के, और एक तिहाई सरूयाह के पुत्रा योआब के भाई अबीशै के, और एक तिहाई गती इत्तेै के, अधिकार में करके युठ्ठ में भेज दिया। और राजा ने लोगों से कहा, मैं भी अवश्य तुम्हारे साथ चलूंगा। 10O 18 3 लोगोें ने कहा, तू जाने न पाएगा। क्योंकि चाहे हम भाग जाएं, तौभी वे हमारी चिन्ता न करेंगे; वरन चाहे हम में से आधे मारे भी जाएं, तौभी वे हमारी चिन्ता न करेंगे। क्योंकि हमारे सरीखे दस हज़ार पुरूष हैं; इसलिये अच्छा यह है कि तू नगर में से हमारी सहायता करने को तैयार रहे। 10O 18 4 राजा ने उन से कहा, जो कुछ तुम्हें भाए वही मैं करूंगा। और राजा ॅफाटक की एक ओर खड़ा रहा, और सब लोग सौ सौ, और हज़ार, हज़ार करके निकलने लगे। 10O 18 5 और राजा ने योआब, अबीशै, और इत्ते को आज्ञा दी, कि मेरे निमित्त उस जवान, अर्थात् अबशालोम से कोमलता करना। यह आज्ञा राजा ने अबशालोम के विषय सब प्रधानों को सब लोगों के सुनते दी। 10O 18 6 सो लोग इस्राएल का साम्हला करने को मैदान में निकले; और एप्रैम नाम वन में युठ्ठ हुआ। 10O 18 7 वहां इस्राएली लोग दाऊद के जनों से हार गए, और उस दिन ऐसा बड़ा संहार हुआ कि बीस हजार खेत आए। 10O 18 8 और युठ्ठ उस समस्त देश में फैल गया; और उस दिन जितने लोग तलवार से मारे गए, उन से भी अधिक वन के कारण मर गए। 10O 18 9 संयोग से अबशालोम और दाऊद के जनों की भेंट हो गई। अबशालोम तो एक खच्चर पर चढ़ा हुआ जा रहा था, कि ख्च्चर एक बड़े बांज वृक्ष की घनी डालियों के नीचे से गया, और उसका सिर उस बांज वृक्ष में अटक गया, और वह अधर में लटका रह गया, और उसका ख्च्चर निकल गया। 10O 18 10 इसको देखकर किसी मनुष्य ने योआब को बताया, कि मैं ने अबशालोम को बांज वृक्ष में टंगा हुआ देखा। 10O 18 11 योआब ने बतानेवाले से कहा, तू ने यह देखा ! फिर क्यों उसे वहीं मारके भूमि पर न गिरा दिया? तो मैं तुझे दस तुकड़े चांदी और एक कटिबन्द देता। 10O 18 12 उस मनुष्य ने योआब से कहा, चाहे मेरे हाथ में हज़ार टुकड़े चांदी तौलकर दिए जाऐ, तौभी राजकुमार के विरूद्ध हाथ न बढ़ाऊंगा; क्योंकि हम लोगों के सुनते राजा ने तुझे और अबीशै और इत्तै को यह आज्ञा दी, कि तुम में से कोई क्यों न हो उस जवान अर्थात् अबशालोम को न छूए। 10O 18 13 यदि मैं धोखा देकर उसका प्राण लेता, तो तू आप मेरा विरोधी हो जाता, क्योंकि राजा से कोई बात छिपी नहीं रहती। 10O 18 14 योआब ने कहा, मैं तेरे संग योंही ठहरा नहीं रह सकता ! सो उस ने तीन लकड़ी हाथ में लेकर अबशालोम के हृदय में, जो बांज वृक्ष में जीवति लटका था, छेद डाला। 10O 18 15 तब योआब के दस हथियार ढोनेवाले जवानों ने अबशालोम को घेरके ऐसा मारा कि वह मर गया। 10O 18 16 फिर योआब ने नरसिंगा फूंका, और लोग इण््राएल का पीछा करने से लौटे; क्योंकि योआब प्रजा को बचाना चाहता था। 10O 18 17 तब लोगों ने अबशालोम को उतारके उस वन के एक बड़े गड़हे में डाल दिया, और उस पर पत्थरों का एक बहुत बड़ा ढेर लगा दिया; और सब इस्राएली अपते अपने डेरे को भाग गए। 10O 18 18 अपने जीते जी अबशालोम ने यह सोचकर कि मेरे नाम का स्मरण करानेवाला कोई पुत्रा मेरे नहीं है, अपने लिये वह लाठ खड़ी कराई थी जो राजा की तराई में है; और लाठ का अपना ही नाम रखा, जो आज के दिन तक अबशालोम की लाठ कहलाती है। 10O 18 19 और सादोक के पुत्रा अहीमास ने कहा, मुझे दौड़कर राजा को यह समाचार देने दे, कि यहोवा ने न्याय करके तुझे तेरे शत्रुओं के हाथ से बचाया है। 10O 18 20 योआब ने उस से कहा, तू आज के दिन समाचार न दे; दूसरे दिन समाचार देने पाएगा, परन्तु आज समाचार न दे, इसलिये कि राजकुमार मर गया है। 10O 18 21 तब योआब ने एक कूशी से कहा जो कुछ तू ने देखा है वह जाकर राजा को बता दे। तो वह कूशी योआब को दणडवत् करके दौड़ गया। 10O 18 22 फिर सादोक के पुत्रा अहीमास ने दूसरी बार योआब से कहा, जो हो सो हो, परन्तु मुझे भी कूशी के पीछे दौड़ जाने दे। योआब ने कहा, हे मेरे बेटे, तेरे समाचार का कुछ बदला न मिलेगा, फिर तू क्यों दौड़ जाना चाहता है? 10O 18 23 उस ने यह कहा, जो हो सो हो, परन्तु मुझे दौड़ जाने दे। उसने उस से कहा, दौड़। तब अहीमास दौड़ा, और तराई से होकर कूशी के आगे बढ़ गया। 10O 18 24 दाऊद तो दो फाटकों के बीच बैठा था, कि पहरूआ जो फाटक की छत से होकर शहरपनाह पर चढ़ गया था, उस ने आंखें उठाकर क्या देखा, कि एक मनुष्य अकेला दौड़ा आता है। 10O 18 25 जब पहरूए ने पुकारके राजा को यह बता दिया, तब राजा ने कहा, यदि अकेला आता हो, तो सन्देशा लाता होगा। वह दौड़ते दौड़ते निकल आया। 10O 18 26 फिर पहरूए ने एक और मनुष्य को दौड़ते हुए देख फाटक के रखवाले को पुकारके कहा, सुन, एक और मनुष्य अकेला दौड़ा आता है। राजा ने कहा, वह भी सन्देशा लाता होगा। 10O 18 27 पहरूए ने कहा, पुझे तो ऐसा देख पड़ता है कि पहले का दौड़ना सादोक के पुत्रा अहीमास का सा है। राजा ने कहा, वह तो भला मनुष्य है, तो भला सन्देश लाता होगा। 10O 18 28 तब अहीमास ने पुकारके राजा से कहा, कल्याण। फिर उस ने भूमि पर मुंह के बल गिर राजा को दणडवत् करके कहा, तेरा परमेश्वर यहोवा धन्य है, जिस ने मेरे प्रभु राजा के विरूद्ध हाथ उठानेवाले मनुष्यों को तेरे वश में कर दिया है ! 10O 18 29 राजा ने पूछा, क्या उस जवान अबशालोम का कल्याण है? अहीमास ने कहा, जब योआब ने राजा के कर्मचारी को और तेरे दास को भेज दिया, तब मुझे बड़ी भीड़ देख पड़ी, परन्तु मालूम न हुआ कि क्या हुआ था। 10O 18 30 राजा ने कहा; हटकर यहीं खड़ा रह। और वह हटकर खड़ा रहा। 10O 18 31 तब कूशी भी आ गया; और कूशी कहने लगा, मेरे प्रभु राजा के लिये समाचार है। यहोवा ने आज न्याय करके तुझे उन सभों के हाथ से बचाया है जो तेरे विरूद्ध उठे थे। 10O 18 32 राजा ने कूशी से पूछा, क्या वह जवान अर्थात् अबशालोम कल्याण से है? कूशी ने कहा, मेरे प्रभु राजा के शत्रु, और जितने तेरी हानि के लिये उठे हैं, उनकी दशा उस जवान की सी हो। 10O 18 33 तब राजा बहुत घबराया, और फाटक के ऊपर की अटारी पर रोता हुआ चढ़ने लगा; और चलते चलते यों कहता गया, कि हाय मेरे बेटे अबशालोम ! मेरे बेटेे, हाय ! मेरे बेटे अबशालोम ! भला होता कि मैं आप तेरी सन्ती मरता, हाय ! अबशालोम ! मेरे बेटे, मेरे बेटे !! 10O 19 1 तब योआब को यह समाचार मिला, कि राजा अबशालोम के लिये रो रहा है और विलाप कर रहा है। 10O 19 2 इसलिये उस दिन का विजय सब लोगों की समझ में विलाप ही का कारण बन गया; क्योंकि लोगों ने उस दिन सुना, कि राजा अपने बेटे के लिये खेदित है। 10O 19 3 और उस दिन लोग ऐसा मुंह चुराकर नगर में घुसे, जैसा लोग युठ्ठ से भाग आने से लज्जित होकर मुंह चुराते हैं। 10O 19 4 और राजा मुंह ढांपे हुए चिल्ला चिल्लाकर पुकारता रहा, कि हाय मेरे बेटे अबशालोम ! हाय अबशालोम, मेरे बेटे, मेरे बेटे ! 10O 19 5 तब योआब घर में राजा के पास जाकर कहने लगा, तेरे कर्मचारियों ने आज के दिन तेरा, और तेरे बेटे- बेटियों का और तेरी पत्नियों और रखेलियों का प्राण तो बचाया है, परन्तु तू ते आज के दिन उन सभों का मुंह काला किया है; 10O 19 6 इसलिये कि तू अपने बैरियों से प्रेम और अपने प्रेमियों से बैर रखता है। तू ने आज यह प्रगट किया कि तुझे हाकिमों और कर्मचारियों की कुछ चिन्ता नहीं; वरन मैं ने आज जान लिया, कि यदि हम सब आज मारे जाते और अबशालोम जीवित रहता, तो तू बहुत प्रसन्न होता। 10O 19 7 इसलिये अब उठकर बाहर जा, और अपने कर्मचारियों को शान्ति दे; तहीं तो मैं यहोवा की शपथ खाकर कहता हूँ, कि यदि तू बाहर न जाएगा, तो आज रात को एक मनुष्य भी तेरे संग न रहेगा; और तेरे बचपन से लेकर अब तक जितनी विपत्तियां तुझ पर पड़ी हैं उन सब से यह विपत्ति बड़ी होगी। 10O 19 8 तब राजा उठकर फाटक में जा बैठा। और जब सब लोगों को यह बताया गया, कि राजा फाटक में बैठा है; तब सब लोग राजा के साम्हने आए। और इस्राएली अपने अपने डेरे को भाग गए थे। 10O 19 9 और इस्राएल के सब गोत्रों में सब लोग आपस में यह कहकर ढगड़ते थे, कि राजा ने हमें हमारे शत्रुओं के हाथ से बचाया था, और पलिश्तियों के हाथ से उसी ने हमें छुड़ाया; परन्तु अब वह अबशालोम के डर के मारे देश छोड़कर भाग गया। 10O 19 10 और अबशालोम जिसको हम ने अपना राजा होने को अभिषेक किया था, वह युठ्ठ में मर गया है। तो अब तुम क्यों चुप रहते? और जाजा को लौटा ले अपने की चर्चा क्यों नहीं करते? 10O 19 11 तब राजा दाऊद ने सादोक और एब्यातार याजकों के पास कहला भेजा, कि यहूदी पुरनियों से कहो, कि तुम लोग राजा को भवन पहुंचाने के लिये सब से पीछे क्यों होते हो जब कि समस्त इस्राएल की बातचीत राजा के सुनने में आई है, कि उसको भवन में पहुंचाए? 10O 19 12 तुम लोग तो मेरे भाई, वरन मेरी ही हड्डी और मांस हो; तो तुम राजा को लौटाने में सब के पीछे क्यों होते हो? 10O 19 13 फिर अमासा से यह कहो, कि क्या तू मेरी हड्डी और मांस नहीं है? और यदि तू योआब के स्थान पर सदा के लिये सेनापति न ठहरे, तो परमेश्वर मुझ से वैसा ही वरन उस से भी अधिक करे। 10O 19 14 इस प्रकार उस ने सब यहूदी पुरूषों के मन ऐसे अपनी ओर खींच लिया कि मानों एक ही पुरूष था; और उन्हों ने राजा के पास कहला भेजा, कि तू अपने सब कर्पचारियों को संग लेकर लौट आ। 10O 19 15 तब राजा लौटकर यरदन तक आ गया; और यहूदी लोग गिलगाल तक गए कि उस से मिलकर उसे यरदन पार ले आए। 10O 19 16 यहूदियों के संग गेरा का पुत्रा बिन्यामीनी शिमी भी जो बहूरीमी था फुत करके राजा दाऊद से भेंट करने को गया; 10O 19 17 उसके संग हज़ार बिन्यामीनी पुरूष थे। और शाऊल के घराने का कर्मचारी सीबा अपने पन्द्रह पुत्रों और बीस दासों समेत था, और वे राजा के साम्हने यरदन के पार पांव पैदल उतर गए। 10O 19 18 और एक बेड़ा राजा के परिवार को पार ले आने, और जिस काम में वह उसे लगाने चाहे उसी में लगने के लिये पार गया। और जब राजा यरदन पार जाने पर था, तब गेरा का पुत्रा शिमी उसके पावों पर गिरके, 10O 19 19 राजा से कहने लगा, मेरा प्रभु मेरे दोष का लेखा न करे, और जिस दिन मेरा प्रभु राजा यरूशलेम को छोड़ आया, उस दिन तेरे दास ने जो कुटिल काम किया, उसे ऐसा स्मरण न कर कि राजा उसे अपने ध्यान में रखे। 10O 19 20 क्योंकि तेरा दास जानता है कि मैं ने पाप किया; देख, आज अपने प्रभु राजा से भेंट करने के लिये यूसुफ के समस्त घ्राने में से मैं ही पहिला आया हूँ। 10O 19 21 तब सरूयाह के पुत्रा अबीशै ने कहा, शिमी ने जो यहोवा के अभिषिक्त को शाप दिया था, इस कारण क्या उसको वध करना न चाहिये? 10O 19 22 दाऊद ने कहा, हे सरूयाह के बेटों, मुझे तुम से क्या काम, कि तुम आज मेरे विरोधी ठहरे हो? आज क्या इस्राएल में किसी को प्राण दणड मिलेगा? क्या मैं नहीं जानता कि आज मैं इस्राएल का राजा हुआ हूँ? 10O 19 23 फिर राजा ने शिमी से कहा, तुझे प्राण दणड न मिलेगा। और राजा ने उस से शपथ भी खाई। 10O 19 24 तब शाऊल का पोता मपीबोशेत राजा से भेंट करने को आया; उस ने राजा के चले जाने के दिन से उसके कुशल क्षेम से फिर आने के दिन तक न अपने पावों के नाखून काटे, और न अपनी दाढी बनवाई, और न अपने कपड़े धुलवाए थे। 10O 19 25 तो जब यरूशलेमी राजा से मिलने को गए, तब राजा ने उस से पूछा, हे मपीबोशेत, तू मेरे संग क्यों नहीं गया था? 10O 19 26 उस ने कहा, हे मेरे प्रभु, हे राजा, मेरे कर्मचारी ने मुझे धोखा दिया था; तेरा दास जो पंगु है; इसलिये तेरे दास ने सोचा, कि मैं गदहे पर काठी कसवाकर उस पर चढ़ राजा के साथ चला जाऊंगा। 10O 19 27 और मेरे कर्मचारी ने मेरे प्रभु राजा के साम्हने मेरी चुगली खाई। परन्तु मेरा प्रभु राजा परमेश्वर के दूत के समान है; और जो कुछ तुझे भाए वही कर। 10O 19 28 मेरे पिता का समस्त घराना तेरी ओर से प्राण दणड के योग्य था; परन्तु तू ने अपने दास को अपनी मेज पर खानेवालों में गिना है। मुझे क्या हक है कि मैं राजा की ओर दोहाई दूं? 10O 19 29 राजा ने उस से कहा, तू अपनी बात की चर्चा क्सों करता रहता है? मेरी आज्ञा यह है, कि उस भूमि को तुम और सीबा दोनों आपस में बांट लो। 10O 19 30 मपीबोशेत ने राजा से कहा, मेरे प्रभु राजा जो कुशल क्षेम से अपने घर आया है, इसलिये सीबा ही सब कुछ ले ले। 10O 19 31 तब गिलादी बर्जिल्लै रोगलीम से आया, और राजा के साथ यरदन पार गया, कि उसको यरदन के पार पहुंचाए। 10O 19 32 बर्जिल्लै तो वृठ्ठ पुरूष था, अर्थात् अस्सी पर्ष की आयु का था जब तक राजा महनैम में रहता था तब तक वह उसका पालन पोषण करता रहा; क्योंकि वह बहुत धनी था। 10O 19 33 तब राजा ने बर्जिल्लै से कहा, मेरे संग पार चल, और मैं तुझे यरूशलेम में अपने पास रखकर तेरा पालन पोषण करूंगा। 10O 19 34 बर्जिल्लै ने राजा से कहा, मुझे कितने दिन जीवित रहना है, कि मैं राजा के संग यरूशलेंम को जाऊं? 10O 19 35 आज मैं अस्सी वर्ष का हूँ; क्या मैं भले- बुरे का विवेक कर सकता हूँ? क्या तेरा दास जो कुछ खाता पीता है उसका स्वाद पहिचान सकता है? क्या मुझे गवैरयों वा गायिकाओं का शब्द अब सुन पड़ता है? तेरा दास अब अपने प्रभु राजा के लिये क्यों बोझ का कारण हो? 10O 19 36 तेरे दास राजा के संग यरदन पार ही तक जाएगा। राजा इसका ऐसा बड़ा बदला मुझे क्यों दे? 10O 19 37 अपने दास को लौटने दे, कि मैं अपने ही नगर में अपने माता पिता के कब्रिस्तान के पास मरूं। परन्तु तेरा दास किम्हाम उपस्थित है; मेरे प्रभु राजा के संग वह पार जाए; और जैसा तुझे भाए वैया ही उस से व्यवहार करना। 10O 19 38 राजा ने कहा, हां, किम्हान मेरे संग पार चलेगा, और जैसा तुझे भाए वैसा ही मैं उस से व्यवहार करूंगा वरन जो कुछ तू मुझ से चाहेगा वह मैं तेरे लिये करूंगा। 10O 19 39 तब सब लोग यरदन पार गए, और राजा भी पार हुआ; तब राजा ने बर्जिल्लै को चूमकर आशीर्वाद दिया, और वह अपने स्थान को लौट गया। 10O 19 40 तब राजा गिल्गाल की ओर पार गया, और उसके संग किम्हाम पार हुआ; और सब सहूदी लोगों ने और आधे इस्राएली लोगों ने राजा को पार पहुंचाया। 10O 19 41 तब सब इस्राएली पुरूष राजा के पास आए, और राजा से कहने लगे, क्या कारण है कि हमारे यहूदी भाई तुझे चोरी से ले आए, और परिवार समेत राजा को और उसके सब जनों को भी यरदन पार ले आए हैं? 10O 19 42 सब यहूदी पुरूषों ने इस्राएली पुरूषों को उत्तर दिया, कि कारण यह है कि राजा हमारे गोत्रा का है। तो तुम लोग इस बात से क्यों रूठ गए हो? क्या हम ने राजा का दिया हुआ कुछ खाया है? वा उस ने हमें कुछ दान दिया है? 10O 19 43 इस्राएली पुरूषों ने यहूदी पुरूषों को उत्तर दिया, राजा में दस अंश हमारे हैं; और दाऊद में हमारा भाग तुम्हारे भाग से बड़ा है। तो फिर तुम ने हमें क्यों तुच्छ जाना? क्या अपने राजा के लौटा ले आने की चर्चा पहिले हम ही ने न की थी? और यहूदी पुरूषों ने इस्राएली पुरूषों से अधिक कड़ी बातें कहीं। 10O 20 1 वहां संयोग से शेबा नाम एक बिन्यामीनी था, वह ओछा पुरूष बिक्री का पुत्रा था; वह नरसिंगा फूंककर कहने लगा, दाऊद में हमारा कुछ अंश नहीं, और न यिशै के पुत्रा में हमारा कोई भाग है; हे इस्राएलियो, अपने अपने डेरे को चले जाओ ! 10O 20 2 इसलिये सब इस्राएली पुरूष दाऊद के पीछे चलना छोड़कर बिक्री के पुत्रा शेबा के पीछे हो लिए; परन्तु सब यहूदी पुरूष यरदन से यरूशलेम तक अपने राजा के संग लगे रहे। 10O 20 3 तब दाऊद यरूशलेम को अपने भवन में आया; और राजा ने उन दस रखेलियों को, जिन्हें वह भवन की चौकसी करने को छोड़ गया था, अलग एक घर में रखा, और उनका पालन पोषण करता रहा, परन्तु उन से सहवास न किया। इसलिये वे अपनी अपनी मृत्यु के दिन तक विधवापन की सी दशा में जीवित ही बन्द रही। 10O 20 4 तब राजा ने अमासा से कहा, यहूदी पुरूषों को तीन दिन के भीतर मेरे पास बुला ला, और तू भी यहां उपस्थित रहना। 10O 20 5 तब अमासा यहूदियों को बुलाने गया; परन्तु उसके ठहराए हुए समय से अधिक रह गया। 10O 20 6 तब दाऊद ने अबीशै से कहा, अब बिक्री का पुत्रा शेबा अबशालोम से भी हमारी अधिक हानि करेगा; इसलिये तू अपने प्रभु के लोगों को लेकर उसका पीछा कर, ऐसा न हो कि वह गढ़वाले नगर पाकर हमारी दृष्टि से छिप जाए। 10O 20 7 तब योआब के जन, और करेती और पलेती लोग, और सब शूरवीर उसके पीछे हो लिए; और बिक्री के पुत्रा शेबा का पीछा़ करने को यरूशलेम से निकले। 10O 20 8 वे गिबोन में उस भारी पत्थर के पास पहुंचे ही थे, कि अमासा उन से आ मिला। योआब तो योठ्ठा का वस्त्रा फेटे से कसे हुए था, और उस फेटे में एक तलवार उसकी कमर पर अपनी म्यान में बन्धी हुई थी; और जब वह चला, तब वह निकलकर गिर पड़ी। 10O 20 9 तो योआब ने अमासा से पूछा, हे मेरे भाई, क्या तू कुशल से है? तब योआब ने अपना दाहिना हाथ बढ़ाकर अमासा को चूमने के लिये उसकी दाढ़ी पकड़ी। 10O 20 10 परन्तु अमासा ने उस तलवार की कुछ चिन्ता न की जो याआब के हाथ में थी; और उस ने उसे अमासा के पेट में भोंक दी, जिस से उसकी अन्तड़ियां निकलकर धरती पर गिर पड़ी, और उस ने उसको दूसरी बार न मारा; और वह मर गया। तब योआब और उसका भाई अबीशै बिक्री के पुत्रा शेबा का पीछा करने को चले। 10O 20 11 और उसके पास याआब का एक जवान खड़ा होकर कहने लगा, जो कोई योआब के पक्ष और दाऊद की ओर का हो वह योआब के पीछे हो ले। 10O 20 12 अमासा तो सड़क के मध्य अपने लोहू में लोट रहा था। तो जब उस मनुष्य ने देखा कि सब लोग खड़े हो गए हैं, तब अमासा को सड़क पर से मैदान में उठा ले गया, और जब देखा कि जितने उसके पास आते हैं वे खड़े हो जाते हैं, तब उस ने उसके ऊपर एक कपड़ा डाल दिया। 10O 20 13 उसके सड़क पर से सरकाए जाने पर, सब लोग बिक्री के पुत्रा शेबा का पीछा़ करने को योआब के पीछे़ हो लिए। 10O 20 14 और वह सब इस्राएली गोत्रों में होकर आबेल और बेतमाका और बेरियों के देश तक पहुंचा; और वे भी इकट्ठे होकर उसके पीछे़ हो लिए। 10O 20 15 तब उन्हों ने उसको बेतमाका के आबेल में घेर लिया; और नगर के साम्हने ऐसा दमदमा बान्धा कि वह शहरपनाह से सट गया; और योआब के संग के सब लोग शहरपनाह को गिराने के लिये धक्का देने लगे। 10O 20 16 तब एक बुध्दिमान रूत्री ने नगर में से पुकारा, सुनो ! सुनो ! योआब से कहो, कि यहां आए, ताकि मैं उस से कुछ बातें करूं। 10O 20 17 जब योआब उसके निकट गया, तब स्त्री ने पूछा़, क्या तू योआब है? उस ने कहा, हां, मैं वही हूँ। फिर उस ने उस से कहा, अपनी दासी के वचन सुन। उस ने कहा, मैं तो सुन रहा हूँ। 10O 20 18 वह कहने लगी, प्राचीनकाल में तो लोग कहा करते थे, कि आबेल में पूछा़ जाए; और इस रीति झगड़े को निपटा देते थे। 10O 20 19 मैं तो मेलमिलापवाले और विश्वासयोग्य इस्राएलियों में से हूँ; परन्तु तू एक प्रधन नगर नाश करने का यत्न करता है; तू यहोवा के भाग को क्यों निगल जाएगा? 10O 20 20 योआब ने उत्तर देकर कहा, यह मुझ से दूर हो, दूर, कि मैं निगल जाऊं वा नाश करूं ! 10O 20 21 बात ऐसी नहीं है। शेबा नाम एप्रैम के पहाड़ी देश का एक पुरूष जो बिक्री का पुत्रा है, उस ने दाऊद राजा के विरूद्ध हाथ उठााया है; तो तुम लोग केवल उसी को सौंप दो, तब मैं नगर को छो़ड़कर चला जाऊंगा। स्त्री ने योआब से कहा, उसका सिर शहरपनाह पर से तेरे पास फेंक दिया जाएगा। 10O 20 22 तब स्त्री अपनी बुध्दिमानी से सब लोगों के पास गई। तब उन्हों ने बिक्री के पुत्रा शेबा का सिर काटकर योआब के पास फेंक दिया। तब योआब ने नरसिंगा फूंका, और सब लोग नगर के पास से अलग अलग होकर अपने अपने डेरे को गए। और योआब यरूशलेम को राजा के पास लौट गया। 10O 20 23 योआब तो समस्त इस्राएली सेना के ऊपर प्रधान रहा; और यहोयादा का मुत्रा बनायाह करेतियों और पलेतियों के ऊपर था; 10O 20 24 और अदोराम बेगारों के ऊपर था; और अहीलूद का पुत्रा यहोशापात इतिहास का लेखक था; 10O 20 25 और शया मंत्री था; और सादोक और एब्यातार याजक थे; 10O 20 26 और याईरी ईरा भी दाऊद का एक मंत्री था। 10O 21 1 दाऊद के दिनों में लगातार तीन बरस तक अकाल पड़ा; तो दाऊद ने यहोवा से प्रार्थना की। यहोवा ने कहा, यह शाऊल और उसके खूनी घराने के कारण हुआ, क्योंकि उस ने गिबोनियों को मरवा डाला था। 10O 21 2 तब राजा ने गिबोनियो को बुलाकर उन से बातें कीं। गिबोनी लोग तो इस्राएलियों में से नहीं थे, वे बचे हुए एमोरियो में से थे; और इस्राएलियों ने उनके साथ शपथ खाई थी, परन्तु शाऊल को जो इस्राएलियों और यहूदियों के दिये जलन हुई थी, इस से उस ने उन्हें मार डासने के लिये यत्न किया था। 10O 21 3 तब दाऊद ने गिबोनियों से पूछा, मैं तुम्हारे लिये क्या करूं? और क्या करके ऐसा प्रायश्चित करूं, कि तुम यहोवा के निज भाग को आशीर्वाद दे सको? 10O 21 4 गिबोनियों ने उस से कहा, हमारे और शाऊल वा उसके घराने के मध्य रूपये पैसे का कुछ झगड़ा नहीं; और न हमारा काम है कि किसी इस्राएली को मार डालें। उस ने कहा, जो कुछ तुम कहो, वही मैं तुम्हारे लिये करूंगा। 10O 21 5 उन्हों ने राजा से कहा, जिस पुरूष ने हम को नाश कर दिया, और हमारे विरूद्ध ऐसी युक्ति दी कि हम ऐसे सत्यानाश हो जाएं, कि इस्राएल के देश में आगे को न रह सकें, 10O 21 6 उसके वंश के सात जन हमें सौंप दिए जाएं, और हम उन्हें यहोवा के लिये यहोवा के चुने हुए शाऊल की गिबा नाम बस्ती में फांसी देंगे। राजा ने कहा, मैं उनको सौंप दूंगा। 10O 21 7 परन्तु दाऊद ने और शाऊल के पुत्रा योनातन ने आपस में यहोवा की शपथ खाई थी, इस कारण राजा ने योनातन के पुत्रा मपीबोशेत को जो शाऊल का पोता था बचा रखा। 10O 21 8 परन्तु अम नी और मपीबोशेत नाम, अरया की बेटी रिस्पा के दोनों पुत्रा जो शाऊल से उत्पन्न हुए थे; और हााऊल की बेटी मीकल के पांचों बेटे, जो वह महोलवासी बर्जिल्लै के पुत्रा अद्रीएल की ओर से थे, इनको राजा ने पकड़वाकर 10O 21 9 गिबोनियों के हाथ सौंप दिया, और उन्हों ने उन्हें पहाड़ पर यहोवा के साम्हने फांसी दी, और सातों एक साथ नाश हुए। उनका मार डाला जाना तो कटनी के पहिले दिनों में, अर्थात् जब की कटनी के आरम्भ में हुआ। 10O 21 10 तब अरया की बेटी रिस्पा ने टाट लेकर, कटनी के आरम्भ से लेकर जब तक आकाश से उन पर अत्यन्त वृष्टि न पड़ी, तब तक चट्टान पर उसे अपने नीचे बिछाये रही; और न तो दिन में आकाश के पक्षियों को, और न रात में बनैले पशुओं को उन्हें छूने दिया। 10O 21 11 जब अरया की बीटी शाऊल की रखेली रिस्पा के इस काम का समाचार आऊद को मिला, 10O 21 12 तब दाऊद ने जाकर शाऊल और उसके पुत्रा योनातन की हडि्डयों को गिलादी याबेश के लोगों से ले लिया, जिन्हों ने उन्हें बेतशान के उस चौक से चुरा लिया था, जहां पलिश्तियों ने उन्हें उस दिन टांगा था, जब उन्हों ने शाऊल को गिल्बो पहाड़ पर मार डाला था; 10O 21 13 तो वह वहां से शाऊल और उसके पुत्रा योनातन की हडि्डयों को ले आया; और फांयी पाए हुओं की हडि्डयां भी इकट्ठी की गई। 10O 21 14 और शाऊल और उसके पुत्रा योनातन की हडि्डयां बिन्यामीन के देश के जेला में शाऊल के पिता कीश के क़ब्रिस्तान गाड़ी गई; और दाऊद की सब आज्ञाओं के अनुसार काम हुआ। और उसके बाद परमेश्वर ने देश के लिये प्रार्थ्ना सुन ली। 10O 21 15 पलिश्तियों ने दस्राएल से फिर युठ्ठ किया, और दाऊद अपने जनों समेत जाकर पलिश्तियों से लड़ने लगा; परन्तु दाऊद थक गया। 10O 21 16 तब यिशबोबनोब, जो रपाई के वंश का था, और उसके भाले का फल तौल में तीन सौ शेकेल पीतल का था, और वह नई तलवार बान्धे हुए था, उस ने दाऊद को मारने को ठाना। 10O 21 17 परन्तु सरूयाह के पुत्रा अबीशै ने दाऊद की सहायता करके उस पलिश्ती को एसा मारा कि वह मर गया। तब दाऊद के जनों ने शपथ खाकर उस से कहा, तू फिर हमारे संग युठ्ठ को जाने न पाएगा, ऐसा न हो कि तेरे मरने से इस्राएल का दिय बुझ जाए। 10O 21 18 इसके बाद पलिश्तियों के साथ गोब में फिर युठ्ठ हुआ; उस समय हूशाई सिब्बकै ने रपाईवंशी सप को मारा। 10O 21 19 और गोब में पलिश्तियों के साथ फिर युठ्ठ हुआ; उस में बेतलेहेम वासी यारयोरगीम के पुत्रा एल्हनान ने गती गोल्यत को मार डाला, जिसके बछें की छड़ जोलाहे की डोंगी के समान थी। 10O 21 20 फिर गत में भी युठ्ठ हुआ, और वहां एक बड़ी डील का रपाईवंशी पुरूष था, जिसके एक एक हाथ पांव में, छे छे उंगली, अर्थात् गिनती में चौबीस उंगलियां थीं। 10O 21 21 जब उस ने इस्राएल को ललकारा, तब दाऊद के भाई शिमा के पुत्रा यहोनातान ने उसे मारा। 10O 21 22 ये ही चार गत में उस रपाई से उत्पन्न हुए थे; और वे दाऊद और उसके जनों से मार डाले गए। 10O 22 1 और जिस समय यहोवा ने दाऊद को उसके सब शत्रुओं और शाऊल के हाथ से बचाया था, तब उस ने यहोवा के लिये इस गीत के वचन गाए; 10O 22 2 उस ने कहा, यहोवा मेरी चट्टान, और मेरा गढ़, मेरा छुड़ानेवाला, 10O 22 3 मेरा चट्टानरूपी परमेश्वर है, जिसका मैं शरणागत हूँ, मेरी ढाल, मेरा बचानेवाला सींग, मेरा ऊंचा गढ़, और मेरा शरणस्थान है, हे मेरे उठ्ठार कर्त्ता, तू उपद्रव से मेरा उठ्ठार किया करता है। 10O 22 4 मैं यहोवा को जो स्तुति के योग्य है पुकारूंगा, और अपने शत्रुओं से बचाया जाऊंगा। 10O 22 5 मृत्यु के तरंगों ने तो मेरे चारों ओर घेरा डाला, नास्तिकपन की धाराओं ने मुझ को घबड़ा दिया था; 10O 22 6 अधोलोक की रस्सियां मेरे चारों ओर थीं, मृत्यु के फन्दे मेरे साम्हने थे। 10O 22 7 अपने संकट में मैं ने यहोवा को पुकारा; और अपने परमेश्वर के सम्मुख चिल्लाया। औंर उस ने मेरी बात को अपने मन्दिर में से सुन लिया, और मेरी दोहाई उसके कानों में पहुंची। 10O 22 8 तब पृथ्वी हिल गई और डोल उठी; और आकाश की नेवें कांपकर बहुत ही हिल गई, क्योंकि वह अति क्रोधित हुआ था। 10O 22 9 उसके नथनों से धुंआ निकला, और उसके मुंह से आग निकलकर भस्म करने लगी; जिस से कोयले दहक उठे। 10O 22 10 और वह स्वर्ग को झुकाकर नीचे उतर आया; और उसके पांवों के तले घोर अंधकार छाया था। 10O 22 11 और वह करूब पर सवार होकर उड़ा, और पवन के पंखों पर चढ़कर दिखाई दिया। 10O 22 12 और उस ने अपने चारों ओर के अंधियारे को, मेघों के समूह, और आकाश की काली घटाओं को अपना मणडप बनाया। 10O 22 13 उसके सम्मुख की झलक तो उसके आगे आगे थी, आग के कोयले दहक उठे। 10O 22 14 यहोवा आकाश में से गरजा, और परमप्रधान ने अपनी वाणी सुनाई। 10O 22 15 उस ने तीर चला चलाकर मेरे शत्रुओं को तितर बितर कर दिया, और बिजली गिरा गिराकर उसको परास्त कर दिया। 10O 22 16 तब समुद्र की थाह दिखाई देने लगी, और जगत की नेवें खुल गई, यह तो यहोवा की डांट से, और उसके नथनों की सांस की झोंक से हुआ। 10O 22 17 उस ने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थांम लिया, और मुझे गहरे जल में से खींचकर बाहर निकाला। 10O 22 18 उस ने मुझे मेरे बलवन्त शत्रु से, और मेरे बैरियों से, जो मुझ से अधिक सामथ थे, मुझे छुड़ा लिया। 10O 22 19 उन्हों ने मेरी विपत्ति के दिन मेरा साम्हना तो किया; परन्तु यहोवा मेरा आश्रय था। 10O 22 20 और उस ने मुझे निकालकर चौड़े़ स्थान में पहुंचाया; उस ने मुझ को छुड़ाया, क्योंकि वह मुझ से प्रसन्न था। 10O 22 21 यहोवा ने मुझ से मेरे धर्म के अनुसार व्यवहार किया; मेरे कामों की शुठ्ठता के अनुसार उस ने मुझे बदला दिया। 10O 22 22 क्योंकि मैं यहोवा के माग पर चलता रहा, और अपने परमेश्वर से मुंह मोड़कर दुष्ट न बना। 10O 22 23 उसके सब नियम तो मेरे साम्हने बने रहे, और मैं उसकी विधियों से हट न गया। 10O 22 24 और मैं उसके साथ खरा बना रहा, और अधर्म से अपने को बचाए रहा, जिस में मेरे फंसने का डर था। 10O 22 25 इसलिये यहोवा ने मुझे मेरे धर्म के अनुसार बदला दिया, मेरी उस शुठ्ठता के अनुसार जिसे वह देखता था। 10O 22 26 दयावन्त के साथ तू अपने को दयावन्त दिखाता; खरे पुरूष के साथ तू अपने को खरा दिखाता है; 10O 22 27 शुठ्ठ के साथ तू अपने को शुठ्ठ दिखाता; और टेढ़े के साथ तू तिरछा बनता है। 10O 22 28 और दीन लोगों को तो तू बचाता है, परन्तु अभिमानियों पर दृष्टि करके उन्हें नीचा करता है। 10O 22 29 हे यहोवा, तू ही मेरा दीपक है, और यहोवा मेरे अन्धियारे को दूर करके उजियाला कर देता है। 10O 22 30 तेरी सहायता से मैं दल पर धावा करता, अपने परमेश्वर की सहायता से मैं शहरपनाह को फांद जाता हूँ। 10O 22 31 ईश्वर की गति खरी है; यहोवा का वचन ताया हुआ है; वह अपने सब शरणागतों की ढाल है। 10O 22 32 यहोवा को छोड़ क्या कोई ईश्वर है? हमारे परमेश्वर को छोड़ क्या और कोई चट्टान है? 10O 22 33 यह वही ईश्वर है, जो मेरा अति दृढ़ क़िला है, वह खरे मनुष्य को अपने मार्ग में लिए चलता है। 10O 22 34 वह मेरे पैरों को हरिणियों के से बना देता है, और मुझे ऊंचे स्थानों पर खड़ा करता है। 10O 22 35 वह मेरे हाथों को युठ्ठ करना सिखाता है, यहां तक कि मेरी बांहें पीतल के धनुष को झुका देती हैं। 10O 22 36 और तू ने मुझ को अपने उठ्ठार की ढाल दी है, और तेरी नम्रता मुझे बढ़ाती है। 10O 22 37 तू मेरे पैऱों के लिये स्थान चौड़ा करता है, और मेरे पैर नहीं फिसले। 10O 22 38 मैं ने अपने शत्रुओं का पीछा करके उन्हें सत्यानाश कर दिया, और जब तक उनका अन्त न किया तब तक न लौटा। 10O 22 39 और मैं ने उनका अन्त किया; और उन्हें ऐसा छेद डाला है कि वे उठ नहीं सकते; वरन वे तो मेरे पांवों के नीचे गिरे पड़े हैं। 10O 22 40 और तू ने युठ्ठ के लिये मेरी कमर बलवन्त की; और मेरे विरोधियों को मेरे ही साम्हने परास्त कर दिया। 10O 22 41 और तू ने मेरे शत्रुओं की पीठ मुझे दिखाई, ताकि मैं अपने बैरियों को काट डालूं। 10O 22 42 उन्हों ने बाट तो जोही, परन्तु कोई बचानेवाला न मिला; उन्हों ने यहोवा की भी बाट जोही, परन्तु उस ने उनको कोई उत्तर न दिया। 10O 22 43 तब मैं ने उनको कूट कूटकर भूमि की धूलि के समान कर दिया, मैं ने उन्हें सड़कों और गली कूचों की कीचड़ के समान पटककर चारों ओर फैला दिया। 10O 22 44 फिर तू ने मुुझे प्रजा के झगड़ों से छुड़ाकर अन्य जातियों का प्रधान होने के लिये मेरी रक्षा की; जिन लोगों को मैं न जानता था वे भी मेरे आधीन हो जाएंगे। 10O 22 45 परदेशी मेरी चापलूसी करेंगे; वे मेरा नाम सुनते ही मेरे वश में आएंगे। 10O 22 46 परदेशी मुर्झाएंगे, और अपने कोठों में से थरथराते हुए निकलेंगे। 10O 22 47 यहोवा जीवित है; मेरी चट्टान धन्य है, और परमेश्वर जो मेरे उठ्ठार की चट्टान है, उसकी महिमा हो। 10O 22 48 धन्य है मेरा पलटा लेनेवाला ईश्वर, जो देश देश के लोगों को मेरे वश में कर देता है, 10O 22 49 और मुझे मेरे शत्रुओं के बीच से निकालता है; हां, तू मुझे मेरे विरोधियों से ऊंचा करता है, और उपद्रवी पुरूष से बचाता है। 10O 22 50 इस कारण, हे यहोवा, मैं जाति जाति के साम्हने तेरा धन्यवाद करूंगा, और तेरे नाम का भजन गाऊंगा। 10O 22 51 वह अपने ठहराए हुए राजा का बड़ा उठ्ठार करता है, वह अपने अभिषिक्त दाऊद, और उसके वंश पर युगानुयुग करूणा करता रहेगा। 10O 23 1 दाऊद के अन्तिम वचन ये हैंे यिशै के पुत्रा की यह वाणी है, उस पुरूष की वाणी है जो ऊंचे पर खड़ा किया गया, और याकूब के परमेश्वर का अभिषिक्त, और इस्राएल का मधुर भजन गानेवाला हैे 10O 23 2 यहोवा का आत्मा मुझ में होकर बोला, और उसी का वचन मेरे मुंह में आया। 10O 23 3 इस्राएल के परमेश्वर ने कहा है, इस्राएल की चट्टान ने मुझ से बातें की है, कि मनुष्यों में प्रभुता करनेवाला एक धम होगा, जो परमेश्वर का भय मानता हुआ प्रभुता करेगा, 10O 23 4 वह मानो भोर का प्रकाश होगा जब सूर्य निकलता है, ऐसा भोर जिस में बादल न हों, जैसा वर्षा के बाद निर्मल प्रकाश के कारण भूमि से हरी हरी घास उगती है। 10O 23 5 क्या मेरा घराना ईश्वर की दृष्टि में ऐसा नहीं है? उस ने तो मेरे साथ सदा की एक ऐसी वाचा बान्धी है, जो सब बातों में ठीक की हुई और अटल भी है। क्योंकि चाहे वह उसको प्रगट न करे, तौभी मेरा पूर्ण उठ्ठार और पूर्ण अभिलाषा का विषय वही है। 10O 23 6 परन्तु ओछे लोग सब के सब निकम्मी झाड़ियों के समान हैं जो हाथ से पकड़ी नहीं जातीं; 10O 23 7 और जो पुरूष उनको छूए उसे लोहे और भाले की छड़ से सुसज्जित होना चाहिये। इसलिये वे अपने ही स्थान में आग से भस्म कर दिए जाएंगे। 10O 23 8 दाऊद के शूरवीरों के नाम ये हैंे अर्थात् तहकमोनी योश्शेब्यश्शेबेत, जो सरदारों में मुख्य था; वह एस्नी अदीनो भी कहलाता था; जिस ने एक ही समय में आठ सौ पुरूष मार डाले। 10O 23 9 उसके बाद अहोही दोदै का पुत्रा एलीआज़र था। वह उस समय दाऊद के संग के तीनों वीरों में से था, जब कि उन्हों ने युठ्ठ के लिये एकत्रित हुए पलिश्तियों को ललकारा, और इस्राएली पुरूष चले गए थे। 10O 23 10 वह कमर बान्धकर पलिश्तियों को तब तक मारता रहा जब तक उसका हाथ थक न गया, और तलवार हाथ से चिपट न गई; और उस दिन यहोवा ने बड़ी विजय कराई; और जो लोग उसके पीछे हो लिए वे केवल लूटने ही के लिये उसके पीछे हो लिए। 10O 23 11 उसके बाद आगे नाम एक पहाड़ी का पुत्रा शम्मा था। पलिश्तियों ने इकट्ठे होकर एक स्थान में दल बान्धा, जहां मसूर का एक खेत था; और लोग उनके डर के मारे भागे। 10O 23 12 तब उस ने खेत के मध्य में खड़े होकर उसे बचाया, और पलिश्तियों को मार लिया; और यहोवा ने बड़ी विजय दिलाई। 10O 23 13 फिर तीसों मुख्य सरदारों में से तीन जन कटनी के दिनों में दाऊद के पास अदुल्लाम नाम गुफ़ा में आए, और पलिश्तियों का दल रपाईम नाम तराई में छावनी किए हुए था। 10O 23 14 उस समय दाऊद गढ़ में था; और उस समय पलिश्तियों की चौकी बेतलेहेम में थी। 10O 23 15 तब दाऊद ने बड़ी अभिलाषा के साथ कहा, कौन मुझे बेतलेहेम के फाटक के पास के कुएं का पानी पिलाएगा? 10O 23 16 तो वे तीनों वीर पलिश्तियों की छावनी में टूट पड़े, और बेतलेहेम के फाटक के कुंए से पानी भरके दाऊद के पास ले आए। परन्तु उस ने पीने से इनकार किया, और यहोवा के साम्हने अर्ध करके उणडेला, 10O 23 17 और कहा, हे यहोवा, मुझ से ऐसा काम दूर रहे। क्या मैं उन मनुष्यों का लोहू पीऊं जो अपने प्राणों पर खेलकर गए थे? इसलिये उस ने उस पानी को पीने से इनकार किया। इन तीन वीरों ने तो ये ही काम किए। 10O 23 18 और अबीशै जो सरूयाह के पुत्रा योआब का भाई था, वह तीनों से मुख्य था। उस ने अपना भाला चलाकर तीन सौ को मार डाला, और तीनों में नामी हो गया। 10O 23 19 क्या वह तीनों से अधिक प्रतिष्ठित न था? और इसी से वह उनका प्रधान हो गया; परन्तु मुख्य तीनों के पद को न पहुंचा। 10O 23 20 फिर यहोयादा का पुत्रा बनायाह था, जो कबसेलवासी एक बड़े काम करनेवाले वीर का पुत्रा था; उस ने सिंह सरीखे दो मोआबियों को मार डाला। और बर्फ के समय उस ने एक गड़हे में उतरके एक सिंह को मार डाला। 10O 23 21 फिर उस ने एक रूपवान् मिस्री पुरूष को मार डाला। मिस्री तो हाथ में भाला लिए हुए था; परन्तु बनायाह एक लाठी ही लिए हुए उसके पास गया, और मिस्री के हाथ से भाला को छीनकर उसी के भाले से उसे घात किया। 10O 23 22 ऐसे ऐसे काम करके यहोयादा का पुत्रा बनायाह उन तीनों वीरों में नामी हो गया। 10O 23 23 वह तीसों से अधिक प्रतिष्ठित तो था, परन्तु मुख्य तीनों के पद को न पहुंचा। उसको दाऊद ने अपनी निज सभा का सभासद नियुक्त किया। 10O 23 24 फिर तीसों में योआब का भाई असाहेल; बेतलेहेमी दोदो का पुत्रा एल्हानान, 10O 23 25 हेरोदी शम्मा, और एलीका, पेलेती हेलेस, 10O 23 26 तकोई इक्केश का पुत्रा ईरा, 10O 23 27 अनातोती अबीएज़ेर, हूशाई मबुन्ने, 10O 23 28 अहोही सल्मोन, नतोपाही महरै, 10O 23 29 एक और नतोपाही बाना का पुत्रा हेलेब, बिन्यामीनियों के गिबा नगर के रीबै का पुत्रा हुत्तै, 10O 23 30 पिरातोनी, बनायाह, गाश के नालों के पास रहनेवाला हि ै, 10O 23 31 अराबा का अबीअल्बोन, बहूरीमी अजमावेत, 10O 23 32 शालबोनी एल्यहबा, याशेन के वंश में से योनातन, 10O 23 33 पहाड़ी शम्मा, अरारी शारार का पुत्रा अहीआम, 10O 23 34 अहसबै का पुत्रा एलीपेलेत्त माका देश का, गीलोई अहीतोपेल का पुत्रा एलीआम, 10O 23 35 कम्मेंली हेस्रो, अराबी पारै 10O 23 36 सोबाई नातान का पुत्रा यिगाल, गादी बानी, 10O 23 37 अम्मोनी सेलेक, बेरोती नहरै को सरूयाह के पुत्रा योआब का हथियार ढोनेवाला था, 10O 23 38 येतेरी ईरा, और गारेब, 10O 23 39 और हित्ती ऊरिरयाह थो सब मिलाकर सैैंतीस थे। 10O 24 1 और यहोवा का कोप इस्राएलियों पर फिर भड़का, और उस ने दाऊद को इनकी हानि के लिये यह कहकर उभारा, कि इस्राएल और यहूदा की गिनती ले। 10O 24 2 सो राजा ने योआब सेनापति से जो उसके पास था कहा, तू दान से बेश् बा तक रहनेवाले सब इस्राएली गोत्रों में इधर उधर घूम, और तुम लोग प्रजा की गिनती लो, ताकि मैं जान लूं कि प्रजा की कितनी गिनती है। 10O 24 3 योआब ने राजा से कहा, प्रजा के लोग कितने ही क्यों न हों, तेरा परमेश्वर यहोवा उनको सौगुणा बढ़ा दे, और मेरा प्रभु राजा इसे अपनी आंखों से देखने भी पाए; परन्तु, हे मेरे प्रभु, हे राजा, यह बात तू क्यों चाहता है? 10O 24 4 तौभी राजा की आज्ञा योआब और सेनापतियों पर प्रबल हुई। सो योआब और सेनापति राजा के सम्मुख से इस्राएली प्रजा की गिनती लेने को निकल गए। 10O 24 5 उन्हों ने यरदन पार जाकर अरोएर नगर की दाहिनी ओर डेरे खड़े किए, जो गाद के नाले के मध्य में और याजेर की ओर है। 10O 24 6 तब वे गिलाद में और तहतीम्होदशी नाम देश में गए, फिर दान्यान को गए, और चक्कर लगाकर सीदोन में पहुंचे; 10O 24 7 तब वे सोर नाम दृढ़ गढ़, और हिब्बियों और कनानियों के सब नगरों में गए; और उन्हों ने यहूदा देश की दक्खिन दिशा में बेशेंबा में दौरा निपटाया। 10O 24 8 और सब देश में इधर उधर घूम घूमकर वे नौ महीने और बीस दिन के बीतने पर यरूशलेम को आए। 10O 24 9 तब योआब ने प्रजा की गिनती का जोड़ राजा को सुनाया; और तलवार चलानेवाले योठ्ठा इस्राएल के तो आठ लाख, और यहूदा के पांच नाख निकले। 10O 24 10 प्रजा की गणना करने के बाद दाऊद का मन व्याकुल हुआ। और दाऊद ने यहोवा से कहा, यह काम जो मैं ने किया वह महापाप है। तो अब, हे यहोवा, अपने दास का अधर्म दूर कर; क्योंकि मुझ से बड़ी मूर्खता हुई है। 10O 24 11 बिहान को जब दाऊद उठा, तब यहोवा का यह वचन गाद नाम नबी के पास जो दाऊद का दश था पहुंचा, 10O 24 12 कि जाकर दाऊद से कह, कि यहोवा यों कहता है, कि मैं तुझ को तीन विपत्तियां दिखाता हूँ; उन में से एक को चुन ले, कि मैं उसे तुझ पर डालूं। 10O 24 13 सो गाद ने दाऊद के पास जाकर इसका समाचार दिया, और उस से पूछा, क्या तेरे देश में सात वर्ष का अकाल पड़े? वा तीन महीने तक तेरे शत्रु तेरा पीछा करते रहें और तू उन से भागता रहे? वा तेरे देश में तीन दिन तक मरी फैली रहे? अब सोच विचार कर, कि मैं अपने भेजनेवाले को क्या उत्तर दूं। 10O 24 14 दाऊद ने गाद से कहा, मै बड़े संकट में हूँ; हम यहोवा के हाथ में पड़ें, क्योंकि उसकी दया बड़ी है; परन्तु मनुष्य के हाथ में मैं न पडूंगा। 10O 24 15 तब यहोवा इस्राएलियों में बिहान से ले ठहराए हुए समय तक मरी फैलाए रहा; और दान से लेकर बेश् बा तक रहनेवाली प्रजा में से सत्तर हज़ार पुरूष मर गए। 10O 24 16 परन्तु जब दूत ने यरूशलेम का नाश करने को उस पर अपना हाथ बढ़ाया, तब यहोवा वह विपत्ति डालकर शोकित हुआ, और प्रजा के नाश करनेवाले दूत से कहा, बस कर; अब अपना हाथ खींच। और यहोवा का दूत उस समय अरौना नाम एक यबूसी के खलिहान के पास था। 10O 24 17 तो जब प्रजा का नाश करनेवाला दूत दाऊद को दिखाई पड़ा, तब उस ने यहोवा से कहा, देख, पाप तो मैं ही ने किया, और कुटिलता मैं ही ने की है; परन्तु इन भेड़ों ने क्या किया है? सो तेरा हाथ मेरे और मेरे पिता के घराने के विरूद्ध हो। 10O 24 18 उसी दिन गाद ने दाऊद के पास आकर उस से कहा, जाकर अरौना यबूसी के खलिहान में यहोवा की एक वेदी बनवा। 10O 24 19 सो दाऊद यहोवा की आज्ञा के अनुसार गाद का वह वचन मानकर वहां गया। 10O 24 20 जब अरौना ने दृष्टि कर दाऊद को कर्मचारियो समेत अपनी ओर आते देखा, तब अरौना ने निकलकर भूमि पर मुह के बल गिर राजा को दणडवत् की। 10O 24 21 और अरौना ने कहा, मेरा प्रभु राजा अपने दास के पास क्यों पधारा है? आऊद ने कहा, तुझ से यह खलिहान मोल लेने आया हूँ, कि यहोवा की एक बेदी बनवाऊं, इसलिये कि यह व्याधि प्रजा पर से दूर की जाए। 10O 24 22 अरौनर ने दाऊद से कहा, मेरा प्रभु राजा जो कुछ उसे अच्छा लगे सो लेकर चढ़ाए; देख, होमबलि के लिये तो बैल हैं, और दांचने के हथियार, और बैलों का सामान ईधन का काम देंगे। 10O 24 23 यह सब अरौना ने राजा को दे दिया। फिर अरौना ने राजा से कहा, तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ से प्रसन्न होए। 10O 24 24 राजा ने अरौना से कहा, ऐसा नहीं, मै ये वस्तुएं तुझ से अवश्य दाम देकर लूंगा; मैं अपने परमेश्वर यहोवा को सेंतमेंत के होमबलि नहीं चढ़ाने का। सो दाऊद ने खलिहान और बैलों को चांदी के पचास शेकेल पें मोल लिया। 10O 24 25 और दाऊद ने वहां यहोवा की एक बेदी बनवाकर होमबलि और मेलबलि चढ़ाए। और यहोवा ने देश के निमित्त बिनती सुन ली, तब वह व्याधि इस्राएल पर से दूर हो गई। 11O 1 1 दाऊद राजा बूढ़ा वरन बहुत पुरनिया हुआ; और यद्यपि उसको कपड़े ओढ़ाये जाते थे, तौभी वह गर्म न होता था। 11O 1 2 सो उसके कर्मचारियों ने उस से कहा, हमारे प्रभु राजा के लिये कोई जवान कुंवारी ढूंढ़ी जाए, जो राजा के सम्मुख रहकर उसकी सेवा किया करे और तेरे पास लेटा करे, कि हमारे प्रभु राजा को गम पहुंचे। 11O 1 3 तब उन्हों ने समस्त इस्राएली देश में सुन्दर कुंवारी ढूंढ़ते ढूंढ़ते अबीशग नाम एक शूनेमिन को पाया, और राजा के पास ले आए। 11O 1 4 वह कन्या बहुत ही सुन्दर थी; और वह राजा की दासी होकर उसकी सेवा करती रही; परन्तु राजा उस से सहबास न हुआ। 11O 1 5 तब हग्गीत का पुत्रा अदोनिरयाह सिर ऊंचा करके कहने लगा कि मैं राजा हूंगा; सो उस ने रथ और सवार और अपने आगे आगे दौड़ने को पचास पुरूष रख लिए। 11O 1 6 उसके पिता ने तो जन्म से लेकर उसे कभी यह कहकर उदास न किया था कि तू ने ऐसा क्यों किया। वह बहुत रूपवान था, और अबशालोम के पीछे उसका जन्म हुआ था। 11O 1 7 और उस ने सरूयाह के पुत्रा योआब से और एब्यातार याजक से बातचीत की, और उन्हों ने उसके पीछे होकर उसकी सहायता की। 11O 1 8 परन्तु सादोक याजक यहोयादा का पुत्रा बनायाह, नातान नबी, शिमी रेई, और दाऊद के शूरवीरों ने अदोनिरयाह का साथ न दिया। 11O 1 9 और अदोनिरयाह ने जोहेलेत नाम पत्थ्र के पास जो एनरोगेल के निकट है, भेड़- बैल और तैयार किए हुए पशू बलि किए, और अपने भाई सब राजकुमारों को, और राजा के सब यहूदी कर्मचारियों को बुला लिया। 11O 1 10 परन्तु नातान नबी, और बनायाह और शूरवीरों को और अपने भाई सुलैमान को उस ने न बुलाया। 11O 1 11 तब नातान ने सुलैमान की माता बतशेबा से कहा, क्या तू ने सुना है कि हग्गीत का पुत्रा अदोनिरयाह राजा बन बैठा है और हमारा प्रभु दाऊद हसे नहीं जानता? 11O 1 12 इसलिये अब आ, मैं तुझे ऐसी सम्मति देता हूँ, जिस से तू अपना और अपने पुत्रा सुलैमान का प्राण बचाए। 11O 1 13 तू दाऊद राजा के पास जाकर, उस से यों पूछ, कि हे मेरे प्रभु ! हे राजा ! क्या तू ने शपथ खाकर अपनी दासी से नहीं कहा, कि तेरा पुत्रा सुलैमान मेरे पीछे राजा होगा, और वह मेरी राजगद्दी पर विराजेगा? फिर अदोनिरयाह क्यों राजा बन बैठा है? 11O 1 14 और जब तू वहां राजा से ऐसी बातें करती रहेगी, तब मैं तेरे पीछे आकर, तेरी बातों को पुष्ट करूंगा। 11O 1 15 तब बतशेबा राजा के पास कोठरी में गई; राजा तो बहुत बूढ़ा था, और उसकी सेवा टहल शूनेमिन अबीशग करती थी। 11O 1 16 और बतशेबा ने झुककर राजा को दणडवत् की, और राजा ने पूछा, तू क्या चाहती है? 11O 1 17 उस ने उत्तर दिया, हे मेरे प्रभु, तू ने तो अपने परमेश्वर यहोवा की शपथ खाकर अपनी दासी से कहा था कि तेरा पुत्रा सुलैमान मेरे पीछे राजा होगा और वह मेरी गद्दी पर विराजेगा। 11O 1 18 अब देख अदोनिरयाह राजा बन बैठा है, और अब तक मेरा प्रभु राजा इसे नहीं जानता। 11O 1 19 और उस ने बहुत से बैल तैयार किए, पशु और भेड़ें बलि कीं, और सब राजकुमारों की और एब्यातार याजक और योआब सेनापति को बुलाया है, परन्तु तेरे दास सुलैमान को नहीं बुलाया। 11O 1 20 और हे मेरे प्रभु ! जे राजा ! सब इसाएली तुझे ताक रहे हैं कि तू उन से कहे, कि हमारे प्रभु राजा की गद्दी पर उसके पीछे कौन बैठेगा। 11O 1 21 नहीं तो जब हमारा प्रभु राजा, अपने पुरखाओं के संग सोएगा, तब मैं और मेरा पुत्रा सुलैमान दोनों अपराधी गिने जाएंगे। 11O 1 22 यों बतशेबा राजा से बातें कर ही रही थी, कि नातान नबी भी आ गया। 11O 1 23 और राजा से कहा गया कि नातान नबी हाज़िर है; तब वह राजा के सम्मुख आया, और मुह के बल गिरकर राजा को दणडवत् की। 11O 1 24 और नातान कहने लगा, हे मेरे पभु, हे राजा ! क्या तू ने कहा है, कि अदोनिरयाह मेरे पीछे राजा होगा और वह मेरी गद्दी पर विराजेगा? 11O 1 25 देख उस ने आज नीचे जाकर बहुत से बैल, तैयार किए हुए पशु और भेड़ें बलि की हैं, और सब राजकुमारों और सेनापतियों को और एब्यातार याजक को भी बुलालिया है; और वे उसके सम्मुख खाते पीते हुए कह रहे हैं कि अदोनिरयाह राजा जीवित रहे। 11O 1 26 परन्तु मुझ तेरे दास को, और सादोक याजक और यहोयादा के पुत्रा बनायाह, और तेरे दास सुलैमान को उस ने नहीं बुलाया। 11O 1 27 क्या यह मेरे प्रभु राजा की ओर से हुआ? तू ने तो अपने दास को यह नहीं जताया है, कि प्रभु राजा की गद्दी पर कौन उसके पीछे विराजेगा। 11O 1 28 दाऊद राजा ने कहा, बतशेबा को मेरे पास बुला लाओ। तब वह राजा के पास आकर उसके साम्हने खड़ी हुई। 11O 1 29 राजा ने शपथ खाकर कहा, यहोवा जो मेरा प्राण सब जोखिमों से बचाता आया है, 11O 1 30 उसके जीवन की शपथ, जैसा मैं ने तुझ से इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की शपथ खाकर कहा था, कि तेरा पुत्रा सुलैमान मेरे पीछे राजा होगा, और वह मेरे बदले मेरी गद्दी पर विराजेगा, वैसा ही मैं निश्चय आज के दिन करूंगा। 11O 1 31 तब बतशेबा ने भूमि पर मुंह के बल गिर राजा को दणडवत् करके कहा, मेरा प्रभु राजा दाऊद सदा तक जीवित रहे ! 11O 1 32 तब दाऊद राजा ने कहा, मेरे पास सादोक याजक नातान नबी, अहोयादा के पुत्रा बनायाह को बुला लाओ। सो वे राजा के साम्हने आए। 11O 1 33 राजा ने उन से कहा, अपने प्रभु के कर्मचारियो को साथ लेकर मेरे पुत्रा सुलैमान को मेरे निज खच्चर पर चढ़ाओ; और गीहोन को ले जाओ; 11O 1 34 और वहां सादोक याजक और नातान नबी इस्राएल का राजा होने को उसका अभिषेक करें; तुब तुम सब नरसिंगा फूंककर कहना, राजा सुलैमान जीवित रहे। 11O 1 35 और तुम उसके पीछे पीछे इधर आना, और वह अकर मेरे सिंहासन पर विराजे, क्योंकि मेरे बदले में वही राजा होगा; और उसी को मैं ने इस्राएल और यहूदा का प्रधान होने को ठहराया है। 11O 1 36 तब यहोयादा के पुत्रा बनायाह ने कहा, आमीन ! मेरे प्रभु राजा का परमेश्वर यहोवा भी ऐसा ही कहे। 11O 1 37 जिस रीति यहोवा मेरे प्रभु राजा के संग रहा, उसी रीति वह सुलैमान के भी संग रहे, और उसका राज्य मेरे प्रभु दाऊद राजा के राज्य से भी अधिक बढ़ाए। 11O 1 38 तब सादोक याजक और नातान नबी और यहोयादा का पुत्रा बनायाह करेतियों और पलेतियों को संग लिए हुए नीचे गए, और सुलैमान को राजा दाऊद के खच्चर पर चढ़ाकर गीहोन को ले चले। 11O 1 39 तब सादोक याजक ने यहोवा के तम्बू में से तेल भरा हुआ सींग निकाला, और सुलैमान का राज्याभिषेक किया। और वे नरसिंगे फूंकने लगे; और सब लोग बोल उठे, राजा सुलैमान जीविन रहे। 11O 1 40 तब सब लोग उसके पीछे पीछे बांसुली बजाते और इतना बड़ा आनन्द करते हुए ऊपर गए, कि उनकी ध्वनि से पृथ्वी डोल उठी। 11O 1 41 जब अदोनिरयाह और उसके सब नेवतहरी खा चुके थे, तब यह ध्वनि उनको सुनाई पड़ी। और योआब ने नरसिंगे का शब्द सुनकर पूछा, नगर में हलचल और चिल्लाहट का शब्द क्यों हो रहा है? 11O 1 42 वह यह कहता ही था, कि एब्यातार याजक का पुत्रा योनातन आया और अदोनिरयाह ने उस से कहा, भीतर आ; तू तो भला मनुष्य है, और भला समाचार भी लाया होगा। 11O 1 43 योनातन ने अदोनिरयाह से कहा, सचमुच हमारे प्रभु राजा दाऊद ने सुलैमान को राजा बना दिया। 11O 1 44 और राजा ने सादोक याजक, नातान नबी और यहोयादा के पुत्रा बनायाह और करेतियों और पलेतियों को उसके संग भेज दिया, और उन्हों ने उसको राजा के खच्चर पर चढ़ाया है। 11O 1 45 और सादोक याजक, और नातान नबी ने गीहोन में उसका राज्याभिषेक किया है; और वे वहां से ऐसा आनन्द करते हुए ऊपर गए हैं कि नगर में हलचल मच गई, और जो शब्द तुम को सुनाई पड़ रहा है वही है। 11O 1 46 सुलैमान राजगद्दी पर विराज भी रहा है। 11O 1 47 फिर राजा के कर्मचारी हमारे प्रभु दाऊद राजा को यह कहकर धन्य कहने आए, कि तेरा परमेश्वर, सुलैमान का नाम, तेरे नाम से भी महान करे, और उसका राज्य तेरे राज्य से भी अधिक बढ़ाए; और राजा ने अपने पलंग पर दणडवत् की। 11O 1 48 फिर राजा ने यह भी कहा, कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा धन्य है, जिस ने आज मेरे देखते एक को मेरी गद्दी पर विराजमान किया है। 11O 1 49 तब जितने नेवतहरी अदोनिरयाह के संग थे वे सब थरथरा गए, और उठकर अपना अपना मार्ग लिया। 11O 1 50 और अदोनिरयाह सुलैमान से डर कर अठा, और जाकर वेदी के सींगों को पकड़ लिया। 11O 1 51 तब सुलैमान को यह समाचार मिला कि अदोनिरयाह सुलैमान राजा से ऐसा डर गया है कि उस ने वेदी के सींगों को यह कहकर पकड़ लिया है, कि आज राजा सुलैमान शपथ खाए कि अपने दास को तलवार से न मार डालेगा। 11O 1 52 सुलैमान ने कहा, यदि वह भलमनसी दिखाए तो उसका एक बाल भी भूमि पर गिरने न पाएगा, परन्तु यदि उस में दुष्टता पाई जाए, तो वह मारा जाएगा। 11O 1 53 तब राजा सुलैमान ने लोगों को भेज दिया जो उसको वेदी के पास से उतार ले आए तब उस ने आकर राजा सुलैमान को दणडवत् की और सुलैेमान ने उस से कहा, अपने घर चला जा। 11O 2 1 जब दाऊद के मरने का समय निकट आया, तब उस ने अपने पुत्रा सुलैमान से कहा, 11O 2 2 कि मैं लोक की रीति पर कूच करनेवाला हूँ इसलिये तू हियाब बांधकर पुरूषार्थ दिखा। 11O 2 3 और जो कुछ तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे सौंपा है, उसकी रक्षा करके उसके माग पर चला करना और जैसा मूसा की व्यवस्था में लिखा है, वैसा ही उसकी विधियों तथा आज्ञाओं, और नियमों, और चितौनियों का पालन करते रहना; जिस से जो कुछ तू करे और जहां कहीं तू जाए, उस में तू सफल होए; 11O 2 4 और यहोवा अपना वह वचन पूरा करे जो उस ने मेरे विषय में कहा था, कि यदि तेरी सन्तान अपनी चाल के विषय में ऐसे सावधान रहें, कि अपने सम्पूर्ण हृदय और सम्पूर्ण प्राण से सच्चाई के साथ नित मेरे सम्मुख चलते रहें तब तो इस्राएल की राजगद्दी पर विराजनेवाले की, तेरे कुल परिवार में घटी कभी न होगी। 11O 2 5 फिर तू स्वयं जानता है, कि सरूयाह के पुत्रा योआब ने मुझ से क्या क्या किया ! अर्थात् उस ने नेर के पुत्रा अब्नेर, और येतेर के पुत्रा अमासा, इस्राएल के इन दो सेनापतियों से क्या क्या किया। उस ने उन दोनों को घात किया, और मेल के सपय युठ्ठ का लोहू बहाकर उस से अपनी कमर का कमरबन्द और अपने पावों की जूतियां भिगो दीं। 11O 2 6 इसलिये तू अपनी बुध्दि से काम लेना और उस पक्के बालवाले को अधोलोक में शांति से उतरने न देना। 11O 2 7 फिर गिलादी बर्जिल्लै के पुत्रों पर कृपा रखना, और वे तेरी मेज पर खानेवालों में रहें, क्योंकि जब मैं तेरे भाई अबशालोम के साम्हने से भागा जा रहा था, तब उन्हों ने मेरे पास आकर वैसा ही किया था। 11O 2 8 फिर सुन, तेरे पास बिन्यामीनी गेरा का पुत्रा बहूरीमी शिमी रहता है, जिस दिन मैं महनैम को जाता था उस दिन उस ने मुझे कड़ाई से शाप दिया था पर जब वह मेरी भेंट के लिये यरदन को आया, तब मैं ने उस से यहोवा की यह शपथ खाई, कि मैं तुझे तलवार से न मार डालूंगा। 11O 2 9 परन्तु अब तू इसे निदष न ठहराना, तू तो बुध्दिमान पुरूष है; तुझे मालूम होगा कि उसके साथ क्या करना चाहिये, और उस पक्के बालवाले का लोहू बहाकर उसे अधोलोक में उतार देना। 11O 2 10 तब दाऊद अपने पुरखाओं के संग सो गया और दाऊदमुर में उसे मिट्टी दी गई। 11O 2 11 दाऊद ने इस्राएल पर चालीस वर्ष राज्य किया, सात वर्ष तो उस ने हब्रोन में और तैंतीस वर्ष यरूशलेम में राज्य किया था। 11O 2 12 तब सुलैमान अपने पिता दाऊद की गद्दी पर विराजमान हुआ और उसका राज्य बहुत दृढ़ हुआ। 11O 2 13 और हग्गीत का पुत्रा अदोनिरयाह, सुलैमान की माता बतशेबा के पास आया, और बतशेबा ने पूछा, क्या तू मित्राभाव से आता है? 11O 2 14 उस ने उत्तर दिया, हां, मित्राभाव से ! फिर वह कहने लगा, मुझे तुझ से एक बात कहनी है। उस ने कहा, कह ! 11O 2 15 उस ने कहा, तुझे तो मालूम है कि राज्य मेरा हो गया था, और समस्त इस्राएली मेरी ओर मुंह किए थे, कि मैं राज्य करूं; परन्तु अब राज्य पलटकर मेरे भाई का हो गया है, क्योंकि वह यहोवा की ओर से उसको मिला है। 11O 2 16 इसलिये अब मैं तुझ से एक बात मांगता हूँ, मुझ से नाही न करना उस ने कहा, कहे जा। 11O 2 17 उस ने कहा, राजा सुलैमान तुझ से नाही न करेगा; इसलिये उस से कह, कि वह मुझे शूनेमिन अबीशग को ब्याह दे। 11O 2 18 बतशेबा ने कहा, अच्छा, मैं तेरे लिये राजा से कहूंगी। 11O 2 19 तब बतशेबा अदोनिरयाह के लिये राजा सुलैमान से बातचीत करने को उसके पास गई, और राजा उसकी भेंट के लिये उठा, और उसे दणडवत् करके अपने सिंहासन पर बैठ गयो फिर राजा ने अपनी माता के लिये एक सिंहासन रख दिया, और वह उसकी दाहिनी ओर बैठ गई। 11O 2 20 तब वह कहने लगी, मैं तुझ से एक छोटा सा वरदान मांगती हूँ इसलिये पुझ से नाही न करना, राजा ने कहा, हे माता मांग; मैं तुझ से नाही न करूंगा। 11O 2 21 उस ने कहा, वह शूनेमिन अबीशग तेरे भाई अदोनिरयाह को ब्याह दी जाए। 11O 2 22 राजा सुलैमान ने अपनी माता को उत्तर दिया, तू अदोनिरयाह के लिये शूनेमिन अबीशग ही को क्यो मांगती है? उसके लिये राज्य भी मांग, क्योंकि वह तो मेरा बड़ा भाई है, और उसी के लिये क्या ! एब्यातार याजक और सरूयाह के पुत्रा योआब के लिये भी मांग। 11O 2 23 और राजा सुलैमान ने यहोवा की शपथ खाकर कहा, यदि अदोनिरयाह ने यह बात अपने प्राण पर खेलकर न कही हो तो परमेश्वर मुझ से वैसा ही क्या वरन उस से भी अधिक करे। 11O 2 24 अब यहोवा जिस ने पुझे स्थिर किया, और मेरे पिता दाऊद की राजगद्दी पर विराजमान किया है और अपने वचन के अनुसार मेरे घर बसाया है, उसके जीपन की शपथ आज ही अदोनिरयाह मार डाला जाएगा। 11O 2 25 और राजा सुलैमान ने यहोयादा के पुत्रा बनायाह को भेज दिया और उस ने जाकर, उसको ऐसा मारा कि वह मर गया। 11O 2 26 और एब्यातार याजक से राजा ने कहा, अनातोत में अपनी भूमि को जा; क्योंकि तू भी प्राणदणड के योग्य है। आज के दिन तो मैं तुझे न मार डालूंगा, क्योंकि तू मेरे पिता दाऊद के साम्हने प्रभु यहोवा का सन्दूक उठाया करता था; और उन सब दु:खों में जो मेरे पिता पर पड़े थे तू भी दु:खी था। 11O 2 27 और सुलैमान ने एब्यातार को यहोवा के याजक होने के पद से उतार दिया, इसलिये कि जो वचन यहोवा ने एली के वंश के विषय में शीलो में कहा था, वह पूरा हो जाए। 11O 2 28 इसका समाचार योआब तक पहुंचा; योआब अबशालोम के पीछे तो नहीं हो लिया था, परन्तु अदोनिरयाह के पीछे हो लिया था। तब योआब यहोवा के तम्बू को भाग गया, और वेदी के सींगों को पकड़ लिया। 11O 2 29 जब राजा सुलैमान को यह समाचार मिला, कि योआब यहोवा के तम्बू को भाग गया है, और वह वेदी के पास है, तब सुलैमान ने यहोयादा के पुत्रा बनायाह को यह कहकर भेज दिया, कि तू जाकर उसे मार डाल। 11O 2 30 तब बनायाह ने यहोवा के तम्बू के पास जाकर उससे कहा, राजा की यह आज्ञा है, कि निकल आ। उस ने कहा, नहीं, मैं यहीं मर जाऊंगा। तब बनायाह ने लौटकर यह सन्देश राजा को दिया कि योआब ने मुझे यह उत्तर दिया। 11O 2 31 राजा ने उस से कहा, उसके कहने के अनुसार उसको मार डाल, और उसे मिट्टी दे; ऐसा करके निदषों का जो खून योआब ने किया है, उसका दोष तू मुझ पर से और मेरे पिता के घराने पर से दूर करेगा। 11O 2 32 और यहोवा उसके सिर वह खून लौटा देगा क्योंकि उस ने मेरे पिता दाऊद के बिना जाने अपने से अधिक धम और भले दो पुरूषों पर, अर्थात् इस्राएल के प्रधान सेनापति नेर के पुत्रा अब्नेर और यहूदा के प्रधान सेनापति येतेर के पुत्रा अमासा पर टूटकर उनको तलवार से मार डाला था। 11O 2 33 यों योआब के सिर पर और उसकी सन्तान के सिर पर खून सदा तक रहेगा, परन्तु दाऊद और उसके वंश और उसके घराने और उसके राज्य पर यहोवा की ओर से शांति सदैव तक रहेगी। 11O 2 34 तब यहोयादा के पुत्रा बनायाह ने जाकर योआब को मार डाला; और उसको जंगल में उसी के घर में मिट्टी दी गई। 11O 2 35 तब राजा ने उसके स्थान पर यहोयादा के पुत्रा बनायाह को प्रधान सेनापति ठहराया; और एब्यातार के स्थान पर सादोक याजक को ठहराया। 11O 2 36 और राजा ने शिमी को बुलवा भेजा, और उस से कहा, तू यरूशलेम में अपना एक घर बनाकर वहीं रहनो और नगर से बाहर कहीं न जाना। 11O 2 37 तू निश्चय जान रख कि जिस दिन तू निकलकर किद्रोन नाले के पार उतरे, उसी दिन तू निेसन्देह मार डाला जाएगा, और तेरा लोहू तेरे ही सिर पर पड़ेगा। 11O 2 38 शिमी ने राजा से कहा, बात अच्छी है; जैसा मेरे प्रभु राजा ने कहा है, वैसा ही तेरा दास करेगा। तब शिमी बहुत दिन यरूशलेम में रहा। 11O 2 39 परन्तु तीन वर्ष के व्यतीत होने पर शिमी के दो दास, गत नगर के राजा माका के पुत्रा आकीश के पास भाग गए, और शिमी को यह समाचार मिला, कि तेरे दास गत में हैं। 11O 2 40 तब शिमी उठकर अपने गदहे पर काठी कसकर, अपने दास को ढूंढ़ने के लिये गत को आकीश के पास गया, और अपने दासों को गत से ले आया। 11O 2 41 जब सुलैमान राजा को इसका समाचार मिला, कि शिमी यरूशलेम से गत को गया, और फिर लौट आया है, 11O 2 42 तब उस ने शिमी को बुलवा भेजा, और उस से कहा, क्या मैं ने तुझे यहोवा की शपथ न खिलाई थी? और तुझ से चिताकर न कहा था, कि यह निश्चय जान रख कि जिस दिन तू निकलकर कहीं चला जाए, उसी दिन तू निेसन्देह मार डाला जाएगा? और क्या तू ने मुझ से न कहा था, कि जो बात मैं ने सुनी, वह अच्छी है? 11O 2 43 फिर तू ने यहोवा की शपथ और मेरी दृढ़ आज्ञा क्यों नहीं मानी? 11O 2 44 और राजा ने शिमी से कहा, कि तू आप ही अपने मन में उस सब दुष्टता को जानता है, जो तू ने मेरे पिता दाऊद से की थी? इसलिये यहोवा तेरे सिर पर तेरी दुष्टता लौटा देगा। 11O 2 45 परन्तु राजा सुलैमान धन्य रहेगा, और दाऊद का राज्य यहोवा के साम्हने सदैव दृढ़ रहेगा। 11O 2 46 तब राजा ने यहोयादा के पुत्रा बनायाह को आज्ञा दी, और उस ने बाहर जाकर, उसको ऐसा मारा कि वह भी मर गया। और सुलैमान के हाथ मे राज्य दृढ़ हो गया। 11O 3 1 फिर राजा सुलैमान मिस्र के राजा फ़िरौन की बेटी को ब्याह कर उसका दामाद बन गया, और उसको दाऊदपुर में लाकर जब नक अपना भवन और यहोवा का भवन और यरूशलेम के चारों ओर की शहरपनाह न बनवा चुका, तब तक उसको वहीं रखा। 11O 3 2 क्योंकि प्रजा के लोग तो ऊंचे स्थानों पर बलि चढ़ाते थे और उन दिनों तक यहोवा के नाम का कोई भपन नहीं बना था। 11O 3 3 सुलैमान यहोवा से प्रेम रखता था और अपने पिता दाऊद की विधियों पर चलता तो रहा, परन्तु वह ऊंचे स्थानों पर भी बलि चढ़ाया और धूप जलाया करता था। 11O 3 4 और राजा गिबोन को बलि चढ़ाने गया, क्योंकि मुख्य ऊंचा स्थान वही था, तब वहां की वेदी पर सुलैमान ने एक हज़ार होमबलि चढ़ाए। 11O 3 5 गिबोन में यहोवा ने रात को स्वप्न के द्वारा सुलैमान को दर्शन देकर कहा, जो कुछ तू चाहे कि मैं तुझे दूं, वह मांग। 11O 3 6 सुलैमान ने कहा, तू अपने दास मेरे पिता दाऊद पर बड़ी करूणा करता रहा, क्योंकि वह अपने को तेरे सम्मुख जानकर तेरे साथ सच्चाई और धर्म और मनकी सीधाई से चलता रहा; और तू ने यहां तक उस पर करूणा की थी कि उसे उसकी गद्दी पर बिराजनेवाला एक पुत्रा दिया है, जैसा कि आज वर्तमान है। 11O 3 7 और अब हे मेरे परमेश्वर यहोवा ! तूने अपने दास को मेरे पिता दाऊद के स्थान पर राजा किया है, परन्तु मैं छोटा लड़का सा हूँ जो भीतर बाहर आना जाना नहीं जानता। 11O 3 8 फिर तेरा दास तेरी चुनी हुई प्रजा के बहुत से लोगों के मध्य में है, जिनकी गिनती बहुतायत के मारे नहीं हो सकती। 11O 3 9 तू अपने दास को अपनी प्रजा का न्याय करने के लिये समझने की ऐसी शक्ति दे, कि मैं भले बुरे को परख सकूं; क्योंकि कौन ऐसा है कि तेरी इतनी बड़ी प्रजा का न्याय कर सके? 11O 3 10 इस बात से प्रभु प्रसन्न हुआ, कि सुलैमान ने ऐसा वरदान मांगा है। 11O 3 11 तब परमेश्वर ने उस से कहा, इसलिये कि तू ने यह वरदान मांगा है, और न तो दीर्धयु और न धन और न अपने शत्रुओं का नाश मांगा है, परन्तु सपझने के विवेक का वरदान मांगा है इसलिये सुन, 11O 3 12 मैं तेरे वचन के अनुसार करता हूँ, तुझे बुध्दि और विवेक से भरा मन देता हूँ, यहा तक कि तेरे समान न तो तुझ से पहिले कोई कभी हुआ, और न बाद में कोई कभी होगा। 11O 3 13 फिर जो तू ने नहीं मांगा, अर्थात् धन और महिमा, वह भी मैं तुझे यहां तक देता हूँ, कि तेरे जीवन भर कोई राजा तेरे तुल्य न होगा। 11O 3 14 फिर यदि तू अपने पिता दाऊद की नाई मेरे माग में चलता हुआ, मेरी विधियों और आज्ञाओं को मानता रहेगा तो मैं तेरी आयु को बढ़ाऊंगा। 11O 3 15 तब सुलैमान जाग उठा; और देखा कि यह स्वप्न था; फिर वह यरूशलेम को गया, और यहोवा की वाचा के सन्दूक के साम्हने खड़ा होकर, होमबलि और मेलबलि चढ़ाए, और अपने सब कर्मचारियों के लिये जेवनार की। 11O 3 16 उस समय दो वेश्याएं राजा के पास आकर उसके सम्मुख खड़ी हुई। 11O 3 17 उन में से एक स्त्री कहने लगी, हे मेरे प्रभु ! मैं और यह स्त्री दोनों एक ही घर में रहती हैं; और इसके संग घर में रहते हुए मेरे एक बच्चा हुआ। 11O 3 18 फिर मेरे ज़च्चा के तीन दिन के बाद ऐसा हुआ कि यह स्त्री भी जच्चा हो गई; हम तो संग ही संग थीं, हम दोनों को छोड़कर घर में और कोई भी न था। 11O 3 19 और रात में इस स्त्री का बालक इसके नीचे दबकर मर गया। 11O 3 20 तब इस ने आधी रात को उठकर, जब तेरी दासी सो ही रही थी, तब मेरा लड़का मेरे पास से लेकर अपनी छाती में रखा, और अपना मरा हुआ बालक मेरी छाती में लिटा दिया। 11O 3 21 भोर को जब मैं अपना बालक दूध पिलाने को उठी, तब उसे मरा हुआ पाया; परन्तु भोर को मैं ने ध्यान से यह देखा, कि वह मेरा पुत्रा नही है। 11O 3 22 तब दूसरी स्त्री ने कहा, नहीं जीवित पुत्रा मेरा है, और मरा पुत्रा तेरा है। परन्तु वह कहती रही, नहीं मरा हुआ तेरा पुत्रा है और जीवित मेरा पुत्रा है, यों वे राजा के साम्हने बातें करती रही। 11O 3 23 राजा ने कहा, एक तो कहती है जो जीवित है, वही मेरा पुत्रा है, और मरा हुआ तेरा पुत्रा है; और दूसरी कहती है, नहीं, जो मरा है वही तेरा पुत्रा है, और जो जीवित है, वह मेरा पुत्रा है। 11O 3 24 फिर राजा ने कहा, मेरे पास तलवार ले आओ; सो एक तलवार राजा के साम्हने लाई गई। 11O 3 25 तब राजा बोला, जीविते बालक को दो टुकड़े करके आधा इसको और आधा उसको दो। 11O 3 26 तब जीवित बालक की माता का मन अपने बेटे के स्नेह से भर आया, और उस ने राजा से कहा, हे मेरे प्रभु ! जीवित बालक उसी को दे; परन्तु उसको किसी भांति न मार। दूसरी स्त्री ने कहा, वह न तो मेरा हो और न तेरा, वह दो टुकड़े किया जाए। 11O 3 27 तब राजा ने कहा, पहिली को जीवित बालक दो; किसी भांति उसको न पारो; क्योंकि उसकी माता वही है। 11O 3 28 जो न्याय राजा ने चुकाया था, उसका समाचार समस्त इस्राएल को मिला, और उन्हों ने राजा का भय माना, क्योंकि उन्हों ने यह देखा, कि उसके मन में न्याय करने के लिये परमेश्वर की बुध्दि है। 11O 4 1 राजा सुलैमान तो समस्त इस्राएल के ऊपर राजा नियुक्त हुआ था। 11O 4 2 और उसके हाकिम ये थे, अर्थात् सादोक का पुत्रा अजर्याह याजक, और शीशा के पुत्रा एलीहोरोप और अहिरयाह व्रधान मन्त्री थे। 11O 4 3 अहीलूद का पुत्रा यहोशापात, इतिहास का लेखक था। 11O 4 4 फिर यहोयादा का पुत्रा बनायाह प्रधान सेनापति था, और सादोक और एब्यातार याजक थे ! 11O 4 5 और नातान का पुत्रा अजर्याह भणडारियों के ऊपर था, और नातान का पुत्रा जाबूद याजक, और राजा का मित्रा भी था। 11O 4 6 और अहीशार राजपरिवार के ऊपर था, और अब्दा का पुत्रा अदोनीराम बेगारों के ऊपर मुखिया था। 11O 4 7 और सुलैमान के बारह भणडारी थे, जो समस्त इस्राएलियों के अधिकारी होकर राजा और उसके घराने के लिये भोजन का प्रबन्ध करते थे। एक एक पुरूष प्रति वर्ष अपने अपने नियुक्त महीने में प्रबन्ध करता था। 11O 4 8 और उनके नाम ये थे, अर्थात् एप्रैम के पहाड़ी अेश में बेन्हूर। 11O 4 9 और माकस, शाल्बीम बेतशेमेश और एलोनबेथानान में बेन्देकेर था। 11O 4 10 अरूब्बोत में बेन्हेसेद जिसके अधिकार में सौको और हेपेर का समस्त देश था। 11O 4 11 दोर के समस्त ऊंचे देश में बेनबीनादाब जिसकी स्त्री सुलैमान की बेटी नापत थी। 11O 4 12 और अहीलूद का पुत्रा बाना जिसके अधिकार में तानाक, मगिद्दॊ और बेतशान का वह सब देश था, जो सारतान के पास और यिज्रेल के नीचे और प्रेतशान से ले आबेलमहोला तक अर्थात् योकमाम की परली ओर तक है। 11O 4 13 और गिला के रामोत में बेनगेबेर था, जिसके अधिकार में मनश्शेई याईर के गिलाद के गांव थे, अर्थात् इसी के अधिकार में बाशान के अग ब का देश था, जिस में शहरपनाह और पीतल के बेड़ेवाले साठ बड़े बड़े नगर िो। 11O 4 14 और इस्रा के पुत्रा अहीनादाब के हाथ में महनैम था। 11O 4 15 नप्ताली में अहीमास था, जिस ने सुलैमान की बासमत नाम बेटी को ब्याह लिया था। 11O 4 16 और आशेर और आलोत में हूशै का पुत्रा बाना, 11O 4 17 इस्साकार में पारूह का पुत्रा यहोशापात, 11O 4 18 और बिन्यामीन में एला का पुत्रा शिमी था। 11O 4 19 ऊरी का पुत्रा गेबेर गिलाद में अर्थात् एमोरियों के राजा सीहान और बाशान के राजा ओग के देश में था, इस समस्त देश में वही भणडारी था। 11O 4 20 यहूदा और इस्राएल के लोग बहुत थे, वे समुद्र के तीर पर की बालू के किनकों के समान बहुत थे, और खाते- पीते और आनन्द करते रहे। 11O 4 21 सुलैमान तो महानद से लेकर पलिश्तियों के देश, और मिस्र के सिवाने तक के सब राज्यों के ऊपर प्रभुता करता था और अनके लोग सुलैमान के जीवत भर भेंट लाते, और उसके अधीन रहते थे। 11O 4 22 और सुलैमान की एक दिन की रसोई में इतना उठता था, अर्थात् तीस कोर मैदा, 11O 4 23 साठ कोर आटा, दस तैयार किए हुए बैल और चराइयों में से बीस बैल और सौ भेड़- बकरी और इनको छोड़ 11O 4 24 हरिन, चिकारे, यखमूर और तैयार किए हुए पक्षी क्योंकि महानद के इस पार के समस्त देश पर अर्थात् तिप्सह से लेकर अज्जा तक जितने राजा थे, उन सभों पर सुलैमान प्रभुता करता, और अपने चारों ओर के सब रहनेवालों से मेल रखता था। 11O 4 25 और दान से बेश् बा तक के सब यहूदी और इस्राएली अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष तले सुलैमान के जीवन भर निडर रहते थे। 11O 4 26 फिर उसके रथ के घोड़ों के लिये सुलैमान के चालीस हज़ार थान थे, और उसके बारह हज़ार सवार थे। 11O 4 27 11O 4 28 और वे भणडारी अपने अपने महीने में राजा सुलैमान के लिये और जितने उसकी मेज़ पर आते थे, उन सभों के लिये भोजन का प्रबन्ध करते थे, किसी वस्तु की घटी होने नहीं पाती थी। 11O 4 29 और घोड़ों और वेग चलनेवाले घोड़ों के लिये जव और पुआल जहां प्रयोजन पड़ता था वहां आज्ञा के अनुसार एक एक जन पहुंचाया करता था। 11O 4 30 और परमेश्वर ने सुलैमान को बुध्दि दी, और उसकी समझ बहुत ही बढ़ाई, और उसके हृदय में समुद्र तट की बरलू के किनकों के तुल्य अनगिनित गुण दिए। 11O 4 31 और सुलैमान की बुध्दि पूर्व देश के सब निवासियों और मिस्रियों की भी बुध्दि से बढ़कर बुध्दि थी। 11O 4 32 वह तो और सब मनुष्यों से वरन एतान, एज्रेही और हेमान, और माहोल के पुत्रा कलकोल, और दर्दा से भी अधिक बुध्दिमान थो और उसकी कीर्त्ति चारों ओर की सब जातियों में फैल गई। 11O 4 33 उस ने तीन हज़ार नीतिवचन कहे, और उसके एक हज़ार पांच गीत भी है। 11O 4 34 फिर उस ने लबानोन के देवदारूओं से लेकर भीत में से उगते हु जूफा तक के सब पेड़ों की चर्चा और पशुओं पक्षियों और रेंगनेवाले जन्तुओं और मछलियों की चर्चा की। 11O 4 35 और देश देश के लोग पृथ्वी के सब राजाओं की ओर से जिन्हों ने सुलैमान की बुध्दि की कीर्त्ति सुनी थी, उसकी बुध्दि की बातें सुनने को आया करते थे। 11O 5 1 और सोर नगर के हीराम राजा ने अपने दूत सुलैमान के पास भेजे, क्योंकि उस ने सुना था, कि वह अभिषिक्त होकर अपने पिता के स्थान पर राजा हुआ है : और दाऊद के जीवन भर हीराम उसका मित्रा बना रहा। 11O 5 2 और सुलैमान ने हीराम के पास यों कहला भेजा, कि नुझे मालूम है, 11O 5 3 कि मेरा पिता दाऊद अपने परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन इसलिये न बनवा सका कि वह चारों ओर लड़ाइयों में तब तक बझा रहा, जब नक यहोवा ने उसके शत्रुओं को उसके पांव तल न कर दिया। 11O 5 4 परन्तु अब मेरे परमेश्वर यहोवा ने मुझे चारों ओर से विश्राम दिया है और न तो कोई विरोधी है, और न कुछ विपत्ति देख पड़ती है। 11O 5 5 मैं ने अपने परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनवाने को ठाना है अर्थात् उस बान के अनुसार जो यहोवा ने मेरे पिता दाऊद से कही थी; कि तेरा पुत्रा जिसे मैं तेरे स्थान में गद्दी पर बैठाऊंगा, वही मेरे नाम का भवन बनवाएगा। 11O 5 6 इसलिये अब तू मेरे लिये लबानोन पर से देवदारू काटने की आज्ञा दे, और मेरे दास तेरे दासों के संग रहेंगे, और जो कुछ मज़दूरी तू ठहराए, वही मैं तुझे तेरे दासों के लिये दूंगा, तुझे मालूम तो है, कि सीदोनियों के बराबर लमड़ी काटने का भेद हम लोगों में से कोई भी नहीं जानता। 11O 5 7 सुलैमान की ये बातें सुनकर, हीराम बहुत आनन्दित हुआ, और कहा, आज यहोवा धन्य है, जिस ने दाऊद को उस बड़ी जाति पर राज्य करने के लिये एक बुध्दिमान पुत्रा दिया है। 11O 5 8 तब हीराम ने सुलैपान के पास यों कहला भेजा कि जो तू ने मेरे पास कहला भेजा है वह मेरी समझ में आ गया, देवदारू और सनोवर की लकड़ी के विषय जो कुछ तू चाहे, वही मैं करूंगा। 11O 5 9 मेरे दास लकड़ी को लबानोन से समुद्र तक पहुंचाएंगे, फिर मैं उनके बेड़े बनवाकर, जो स्थान तू मेरे लिये ठहराए, वहीं पर समुद्र के मार्ग से उनको पहुंचवा अूंगा : वहां मैं उनको खोलकर डलवा दूंगा, और तू उन्हें ले लेना : और तू मेरे परिवार के लिये भोजन देकर, मेरी भी इच्छा पूरी करना। 11O 5 10 इस प्रकार हीराम सुलैमान की इच्छा के अनुसार उसको देवदारू और सनोवर की लकड़ी देने लगा। 11O 5 11 और सुलैमान ने हीराम के परिवार के खाने के लिये उसे बीस हज़ार कोर गेहूं और बीस कोर पेरा हुआ तेल दिया; इस प्रकार सुलैमान हीराम को प्रति वर्ष दिया करता था। 11O 5 12 और यहोवा ने सुलैमान को अपने वचन के अनुसार बुध्दि दी, और हीराम और सुलैमान के बीच मेल बना रहा वरन उन दोनों ने आपस में वाचा भी बान्ध ली। 11O 5 13 और राजा सुलैमान ने पूरे इस्राएल में से तीन हज़ार पुरूष बेगार लगाए, 11O 5 14 और उन्हें लबानोन पहाड़ पर पारी पारी करके, महीने महीने दस हज़ार भेज दिया करता था और एक महीना तो वे लबानोन पर, और दो महीने घर पर रहा करते थे; और बेगारियों के ऊपर अदोनीराम ठहराया गया। 11O 5 15 और सुलैमान के सत्तर हज़ार बोझ ढोनेवाले और पहाड़ पर अस्सी हज़ार वृक्ष काटनेवाले और पत्थर निकालनेवाले थे। 11O 5 16 11O 5 17 इनको छोड़ सुलैमान के तीन हज़ार तीन सौ मुखिये थे, जो काम करनेवालों के ऊपर थे। 11O 5 18 फिर राजा की आज्ञा से बड़े बड़े अनमोल पत्थर इसलिये खोदकर निकाले गए कि भवन की नेव, गढ़े हुए पत्थरों से डाली जाए। 11O 5 19 और सुलैमान के कारीगरों और हीराम के कारीगरों और गबालियों ने उनको गढ़ा, और भवन के बनाने के लिये लकड़ी और पत्थ्र तैयार किए। 11O 6 1 इस्राएलियों के मिस्र देश से निकलने के चार सौ अस्सीवें वर्ष के बाद जो सुलैमान के इस्राएल पर राज्य करने का चौथा वर्ष था, उसके जीव नाम दूसरे महीने में वह यहोवा का भवन बनाने लगा। 11O 6 2 और जो भवन राजा सुलैमान ने यहोवा के लिये बनाया उसकी लम्बाई साठ हाथ, चौड़ाई बीस हाथ और ऊंचाई तीस हाथ की थी। 11O 6 3 और भवन के मन्दिर के साम्हने के ओसारे की लम्बाई बीस हाथ की थी, अर्थात् भवन की चौड़ाई के बराबर थी, और ओसारे की चौड़ाई जो भवन के साम्हने थी, वह दस हाथ की थी। 11O 6 4 फिर उस ने भवन में स्थिर झिलमिलीदार खिड़कियां बनाई। 11O 6 5 और उस ने भवन के आसपास की भीतों से सटे हुए अर्थात् मन्दिर और दर्शन- स्थान दोनों भीतों के आसपास उस ने मंजिलें और कोठरियां बनाई। 11O 6 6 सब से नीचेवाली मंजिल की चौड़ाई पांच हाथ, और बीचवाली की छ : हाथ, और ऊपरवाली की सात हाथ की थी, क्योंकि उस ने भवन के आसपास भीत को बाहर की ओर कुस दार बनाया था इसलिये कि कड़ियां भवन की भीतों को पकड़े हुए न हों। 11O 6 7 और बनते समय भपन ऐसे पत्थरों का बनाया गया, जो वहां ले आने से पहिले गढ़कर ठीक किए गए थे, और भवन के बनते समय हथैड़े वसूली वा और किसी प्रकार के लोहे के औजार का शब्द कभी सुनाई नहीं पड़ा। 11O 6 8 बाहर की बीचवाली कोठरियों का द्वार भवन की दाहिनी अलंग में था, और लोग चक्करदार सीढ़ियों पर होकर बीचवाली कोठरियों में जाते, और उन से ऊपरवाली कोठरियों पर जाया करते थे। 11O 6 9 उस ने भवन को बनाकर पूरा किया, और उसकी छत देवदारू की कड़ियों और तख्तों से बनी थी। 11O 6 10 और पूरे भवन से लगी हुई जो मंज़िलें उस ने बनाई वह पांच हाथ ऊंची थीं, और वे देवदारू की कड़िय़ों के द्वारा भवन से मिलाई गई थीं। 11O 6 11 तब यहोवा का यह वचन सुलैमान के पास पहुंचा, कि यह भवन जो नू बना रहा है, 11O 6 12 यदि तू मेरी विधियों पर चलेगा, और मेरे नियमों को मानेगा, और मेरी सब आज्ञाओं पर चलता हुआ उनका पालन करता रहेगा, तो जो वचन मैं ने तेरे विषय में तेरे पिता दाऊद को दिया था उसको मैं पूरा करूंगा। 11O 6 13 और मैं इस्राएलियों के मध्य में निवास करूंगा, और अपनी इस्राएली प्रजा को न तजूंगा। 11O 6 14 सो सुलैमान ने भवन को बनाकर पूरा किया। 11O 6 15 और उस ने भवन की भीतों पर भीतरवार देवदारू की तख्ताबंदी की; और भवन के फ़र्श से छत तक भीतों में भीतरवार लकड़ी की तख्ताबंदी की, और भवन के फ़र्श को उस ने सनोवर के तख्तों से बनाया। 11O 6 16 और भवन की पिछली अलंग में भी उस ने बीस हाथ की दूरी पर फ़र्श से ले भीतों के ऊपर तक देवदारू की तख्ताबंदी की; इस प्रकार उस ने परमपवित्रा स्थान के लिये भवन की एक भीतरी कोठरी बनाई। 11O 6 17 उसके साम्हने का भवन अर्थात् मन्दिर की लम्बाई चालीस हाथ की थी। 11O 6 18 और भवन की भीतों पर भीतरवार देवदारू की लकड़ी की तख्ताबंदी थी, और उस में इत्द्रायन और खिले हुए फूल खुदे थे, सब देवदारू ही था : पत्भर कुछ नहीं दिखाई पड़ता था। 11O 6 19 भवन के भीतर उस ते एक दर्शन स्थान यहोवा की वाचा का सन्दूक रखने के लिये तैयार किया। 11O 6 20 और उस दर्शन- स्थान की लम्बाई चौड़ाई और ऊंचाई बीस बीस हाथ की थी; और उस ने उस पर चोखा सोना मढ़वाया और वेदी की तख्ताबंदी देवदारू से की। 11O 6 21 फिर सुलैमान ने भवन को भीतर भीतर चोखे सोने से मढ़वाया, और दर्शन- स्थान के साम्हने सोने की सांकलें लगाई; और उसको भी सोने से मढ़वाया। 11O 6 22 और उस ने पूरे भवन को सोने से मढ़वाकर उसका पूरा काम निपटा दिया। और दर्शन- स्थान की पूरी वेदी को भी उस ने सोने से मढ़वाया। 11O 6 23 दर्शन- स्थान में उस ने दस दस हाथ ऊंचे जलपाई की लकड़ी के दो करूब बना रखे। 11O 6 24 एक करूब का एक पंख पांच हाथ का था, और उसका दूसरा पंख भी पांच हाथ का था, एक पंख के सिरे से, दूसरे पंख के सिरे तक दस हाथ थे। 11O 6 25 और दूसरा करूब भी दस हाथ का था; दोनों करूब एक ही नाप और एक ही आकार के थे। 11O 6 26 एक करूब की ऊंचाई दस हाथ की, और दूसरे की भी इतनी ही थी। 11O 6 27 और उस ने करूबों को भीतरवाले स्थान में धरवा दिया; और करूबों के पंख ऐसे फैले थे, कि एक करूब का एक पंख, एक भीत से, और दूसरे का दूसरा पंख, दूसरी भीत से लगा हुआ था, फिर उनके दूसरे दो पंख भवन के मध्य में एक दूसरे से लगे हुए थे। 11O 6 28 और करूबों को उस ने सोने से मढ़वाया। 11O 6 29 और उस ने भवन की भीतों में बाहर और भीतर चारों ओर करूब, खजूर और खिले हुए फूल खुदवाए। 11O 6 30 और भवन के भीतर और बाहरवाले फर्श उस ने सोने से मढ़वाए। 11O 6 31 और दर्शन- स्थान के द्वार पर उस ने जलपाई की लकड़ी के किवाड़ लगाए और चौखट के सिरहाने और बाजुओं की का पांचवां भाग थी। 11O 6 32 दोनों किवाड़ जलपाई की लकड़ी के थे, और उस ने उन में करूब, खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए और सोने से मढ़ा और करूबों और खजूरों के ऊपर सोना मढ़वा दिया गया। 11O 6 33 असी की रीति उस ने मन्दिर के द्वार के लिये भी जलपाई की लकड़ी के चौखट के बाजू बनाए और वह भवन की चौड़ाई की चौथाई थी। 11O 6 34 दोनों किवाड़ सनोवर की लकड़ी के थे, जिन में से एक किवाड़ के दो पल्ले थे; और दूसरे किवाड़ के दो पल्ले थे जो पलटकर दुहर जाते थे। 11O 6 35 और उन पर भी उस ने करूब और खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए और खुदे हुए काम पर उस ने सोना मढ़वाया। 11O 6 36 और उस ने भीतरवाले आंगन के घेरे को गढ़े हुए पत्थरों के तीन र :, और एक परत देवदारू की कड़ियां लगा कर बनाया। 11O 6 37 चौथे वर्ष के जीव नाम महीने में यहोवा के भवन की नेव डाली गई। 11O 6 38 और ग्यारहवें वर्ष के बूल नाम आठवें महीने में, वह भवन उस सब समेत जो उस में उचित समझा गया बन चुका : इस रीति सुलैमान को उसके बनाने में सात वर्ष लगे। 11O 7 1 और सुलैमान ने अपने महल को बनाया, और उसके पूरा करने में तेरह वर्ष लगे। 11O 7 2 और उस ने लबानोनी वन नाम महल बनाया जिसकी लम्बाई सौ हाथ, चौड़ाई पचास हाथ और ऊंचाई तीस हाथ की थी; वह तो देवदारू के खम्भों की चार पांति पर बना और खम्भों पर देवदारू की कड़ियां धरी गई। 11O 7 3 और खम्भों के ऊपर देवदारू की छतवाली पैंतालीस कोठरियां अर्थात् एक एक महल में पन्द्रह कोठरियां बनीं। 11O 7 4 तीनों महलों में कड़ियां धरी गई, और तीनों में खिड़कियां आम्हने साम्हने बनीं। 11O 7 5 और सब द्वार और बाजुओं की कड़ियां भी चौकोर थी, और तीनों महलों में खिड़कियां आम्हने साम्हने बनीं। 11O 7 6 और उस ने एक खम्भेवाला ओसारा भी बनाया जिसकी लम्बाई पचास हाथ और चौड़ाई तीस हाथ की थी, और इन खम्भों के साम्हने एक खम्भेवाला ओसारा और उसके साम्हने डेवढ़ी बनाई। 11O 7 7 फिर उस ने न्याय के सिंहासन के लिये भी एक ओसारा बनाया, जो न्याय का ओसारा कहलाया; और उस में ऐक फ़र्श से दूसरे फ़र्श तक देवदारू की तख्ताबन्दी थी। 11O 7 8 और उसी के रहने का भवन जो उस ओसारे के भीतर के एक और आंगन में बना, वह भी उसी ढब से बना। फिर उसी ओसारे के ढब से सुलैमान ने फ़िरौन की बेटी के लिये जिसको उस ने ब्याह लिया था, एक और भवन बनाया। 11O 7 9 ये सब घर बाहर भीतर तेव से मुंढेर तक ऐसे अनमोल और गढ़े हुए पत्थरों के बने जो नापकर, और आरों से चीरकर तैयार किये गए थे और बाहर के आंगन से ले बड़े आंगन तक लगाए गए। 11O 7 10 उसकी नेव तो बड़े मोल के बड़े बड़े अर्थात् दस दस और आठ आठ हाथ के पत्थरों की डाली गई थी। 11O 7 11 और ऊपर भी बड़े मोल के पत्थर थे, जो नाप से गढ़े हुए थे, और देवदारू की लकड़ी भी थी। 11O 7 12 और बड़े आंगन के चारों ओर के घेरे में गढ़े हुए पत्थ्रों के तीन र :, और देवदारू की कड़ियों का एक परत था, जैसे कि यहोवा के भवन के भीतरवाले आंगन और भवन के ओसारे में लगे थे। 11O 7 13 फिर राजा सुलैमान ने सोर से हीराम को बुलवा भेजा। 11O 7 14 वह नप्ताली के गोत्रा की किसी विधवा का बेटा था, और उसका पिता एक सोरवासी ठठेरा था, और वह पीतल की सब प्रकार की कािगीरी में पूरी बुध्दि, निमुणता और समझ रखता था। सो वह राजा सुलैमान के पास आकर उसका सब काम करने लगा। 11O 7 15 उस ने पीतल ढालकर अठारह अठाही हाथ ऊंचे दो खम्भे बनाए, और एक एक का घेरा बारह हाथ के सूत का था। 11O 7 16 और उस ने खम्भों के सिरों पर लगाने को पीतल ढालकर दो कंगनी बनाई; एक एक कंगनी की ऊंचाई, पांच पांच हाथ की थी। 11O 7 17 और खम्भों के सिरों पर की कंगनियों के लिये चारखाने की सात सात जालियां, और सांकलों की सात सात झालरें बनीं। 11O 7 18 और उस ने खम्भों को भी इस प्रकार बनाया; कि खम्भों के सिरों पर की एक एक कंगनी के ढांपने को चारों अोर जालियों की एक एक पांति पर अनारों की दो पांतियां हों। 11O 7 19 और जो कंगनियां ओसारों में खम्भो के सिरों पर बनीं, उन में चार चार हाथ ऊंचे सोसन के फूल बने हुए थे। 11O 7 20 और एक एक खम्भे के सिरे पर, उस गोलाई के पास जो जाली से लगी थी, एक और कंगनी बनी, और एक एक कंगनी पर जो अनार चारों ओर पांति पांति करके बने थे वह दो सौ थे। 11O 7 21 उन खम्भों को उस ने मन्दिर के ओसारे के पास खड़ा किया, और दाहिनी ओर के खम्भे को खड़ा करके उसका नाम याकीन रखा; फिर बाई ओर के खम्भे को क्षड़ा करके उसका नाम बोआज़ रखा। 11O 7 22 और खम्भों के सिरों पर सोसन के फूल का काम बना था खम्भों का काम इसी रीति हुआ। 11O 7 23 फिर उस ने एक ढाला हुआ एक बड़ा हौज़ बनाया, जो एक छोर से दूसरी छोर तक दस हाथ चौड़ा था, उसका आकार गोल था, और उसकी ऊंचाई पांच हाथ की थी, और उसके चारों ओर का घेरा तीस हाथ के सूत के बराबर था। 11O 7 24 और उसके चारों ओर मोहड़े के नीचे एक एक हाथ में दस दस इन्द्रायन बने, जो हौज को घेरे थीं; जब वह ढाला गया; तब ये इन्द्रायन भी दो पांति करके ढाले गए। 11O 7 25 और वह बारह बने हुए बैलों पर रखा गया जिन में से तीन उत्तर, तीन पश्चिम, तीन दक्खिन, और तीन पूर्व की ओर मुंह किए हुए थे; और उन ही के ऊपर हौज था, और उन सभों का पिछला अंग भीतर की ओर था। 11O 7 26 और उसका दल चौबा भर का था, और उसका मोहड़ा कटोरे के मोहड़े की नाई सोसन के फूलो के काम से बना था, और उस में दो हज़ार बत की समाई थी। 11O 7 27 फिर उस ने पीतल के दस पाये बनाए, एक एक पाये की लम्बाई चार हाथ, चौड़ाई भी चार हाथ और ऊंचाई तीन हाथ की थी। 11O 7 28 उन पायों की बनावट इस प्रकार थी; अनके पटरियां थीं, और पटरियों के बीचों बीच जोड़ भी थे। 11O 7 29 और जोड़ों के बीचों बीच की पटरियों पर सिंह, बैल, और करूब बने थे और जोड़ों के ऊपर भी एक एक और पाया बना और सिंहों और बैलों के नीचे लटकते हुए हार बने थे। 11O 7 30 और एक एक पाये के लिये पीतल के चार पहिये और पीतल की धुरियां बनी; और एक एक के चारों कोनों से लगे हुए कंधे भी ढालकर बनाए गए जो हौदी के नीचे तक पहुंचते थे, और एक एक कंधे के पास हार बने हुए थे। 11O 7 31 औा हौदी का मोहड़ा जो पाये की कंगनी के भीतर और ऊपर भी था वह एक हाथ ऊंचा था, और पाये का मोहड़ा जिसकी चौड़ाई डेढ़ हाथ की थी, वह पाये की बनावट के समान गोल बना; और पाये के उसी मोहड़े पर भी कुछ खुदा हुआ काम था और उनकी पटरियां गोल नहीं, चौकोर थीं। 11O 7 32 और चारों पहिये, पटरियो के नीचे थे, और एक एक पाये के पहियों में धुरियां भी थीं; और एक एक पहिये की ऊंचाई डेढ़ हाथ की थी। 11O 7 33 पहियों की बनावट, रथ के पहिये की सी थी, और उनकी धुरियां, पुटि्ठयां, आरे, और नाभें सब ढाली हुर्अ थीं। 11O 7 34 और एक एक पाये के चारों कोनों पर चार कंधे थे, और कंधे और पाये दोनों एक ही टुकड़े के बने थे। 11O 7 35 और एक एक पाये के सिरे पर आध हाथ ऊंची चारों ओर गोलाई थी, और पाये के सिरे पर की टेकें और पटरियां पाये से जुड़े हुए एक ही टुकड़े के बने थे। 11O 7 36 और टेकों के पाटों और पटरियों पर जितनी जगह जिस पर थी, उस में उस ने करूब, और सिंह, और खजूर के वृक्ष खोद कर भर दिये, और चारों ओर हार भी बनाए। 11O 7 37 इसी प्रकार से उस ने दसों पायों को बनाया; सभों का एक ही सांचा और एक ही नाप, और एक ही आकार था। 11O 7 38 और उस ने पीतल की दस हौदी बनाई। एक एक हौदी में चालीस चालीस बत की समाई थी; और एक एक, चार चार हाथ चौड़ी थी, और दसों पायों में से एक एक पर, एक एक हौदी थी। 11O 7 39 और उस ने पांच हौदी षवन की दक्खिन की ओर, और पांच उसकी उत्तर की ओर रख दीं; और हौज़ को भवन की दाहिनी ओर अर्थात् पूर्व की ओर, और दक्खिन के साम्हने धर दिया। 11O 7 40 और हीराम ने हौदियों, फावड़ियों, और कटोरों को भी बनाया। सो हीराम ने राजा सुलैमान के लिये यहोवा के भवन में जितना काम करना था, वह सब निपटा दिया, 11O 7 41 अर्थात् दो खम्भे, और उन कंगनियों की गोलाइयां जो दोनों खम्भों के सिरे पर थीं, और दोनों खम्भों के सिरों पर की गोलाइयों के ढांपने को दो दो जालियां, और दोनों जालियों के लिय चार चार सौ अनार, 11O 7 42 अर्थात् खम्भों के सिरों पर जो गोलाइयां थीं, उनके ढांपने के लिये अर्थात् एक एक जाली के लिये अनारों की दो दो पांति; 11O 7 43 दस पाये और इन पर की दस हौदी, 11O 7 44 एक हौज़ और उसके नीचे के बारह बैल, और हंडे, फावड़ियां, 11O 7 45 और कटोरे बने। ये सब पात्रा जिन्हें हीराम ने यहोवा के भवन के निमित्त राजा सुलैमान के लिये बनाया, वह झलकाये हुए पीतल के बने। 11O 7 46 राजा ने उनको यरदन की तराई में अर्थात् सुक्कोत और सारतान के मध्य की चिकनी मिट्टवाली भूमि में ढाला। 11O 7 47 और सुलैमान ने सब पात्रों को बहुत अधिक होने के कारण बिना तौले छोड़ दिया, पीतल के तौल का वज़न मालूम न हो सका। 11O 7 48 यहोवा के भवन के जितने पात्रा थे सुलैमान ने सब बनाए, अर्थात् सोने की वेदी, और सोने की वह मेज़ जिस पर भेंट की रोटी रखी जाती थी, 11O 7 49 और चोखे सोने की दीवटें जो भीतरी कोठरी के आगे पांच तो दक्खिन की ओर, और पांच उत्तर की ओर रखी गई; और सोने के फूल, 11O 7 50 दीपक और चिमटे, और चोखे सोने के तसले, कैंचियां, कटोरे, धूपदान, और करछे और भीतरवाला भवन जो परमपवित्रा स्थान कहलाता है, और भवन जो मन्दिर कहलाता है, दोनों के किवाड़ों के लिये सोने के कब्जे बने। 11O 7 51 निदान जो जो काम राजा सुलैमान ने यहोवा के भवन के लिये किया, वह सब पूरा किया गया। तब सुलैमान ने अपने पिता दाऊद के पवित्रा किए हुए सोने चांदी और पात्रों को भीतर पहुंचा कर यहोवा के भवन के भणडारों में रख दिया। 11O 8 1 तब सुलैमान ने इस्राएली पुरनियों को और गोत्रों के सब मुख्य पुरूष जो इस्राएलियों के पूर्वजों के घरानों के प्रधान थे,उनको भी यरूशलेम में अपने पास इस मनसा से इकट्ठा किया, कि वे यहोवा की वाचा का सन्दूक दाऊदपुर अर्थात् सियोन से ऊपर ले आएं। 11O 8 2 सो सब इस्राएली पुरूष एतानीम नाम सातवें महीने कें पर्व के समय राजा सुलैमान के पास इकट्ठे हुए। 11O 8 3 जब सब इस्राएली पुरनिये आए, तब याजकों ने सन्दूक को उठा लिया। 11O 8 4 और यहोवा का सन्दूक, और मिलाप का तम्बू, और जितने पवित्रा पात्रा उस तम्बू में थे, उन सभों याजक और लेबीय लोग ऊपर ले गए। 11O 8 5 और राजा सुलैमान और समस्त इस्राएली मंडली, जो उसके पास इट्ठी हुई थी, वे रूब सन्दूक के साम्हने इतनी भेड़ और बैल बलि कर रहे थे, जिनकी गिनती किसी रीति से नहीं हो सकती थी। 11O 8 6 तब याजकों ने यहोवा की वाचा का सन्दूक उसके स्थान को अर्थात् भवन के दर्शन- स्थान में, जो परमपवित्रा स्थान है, पहुंचाकर करूबों के पंखों के तले रख दिया। 11O 8 7 करूब तो सन्दूक के स्थान के ऊपर पंख ऐसे फैलाए हुए थे, कि वे ऊपर से सन्दूक और उसके डंडों को ढांके थे। 11O 8 8 डंडे तो ऐसे लम्बे थे, कि उनके सिरे उस पवित्रा स्थान से जो दर्शन- स्थान के साम्हने था दिखाई पड़ते थे परन्तु बाहर से वे दिखाई नहीं पड़ते थे। वे आज के दिन तक यहीं वतमपान हैं। 11O 8 9 सन्दूक में कुछ नहीं था, उन दो पटरियों को छोड़ जो मूसा ने होरेब में उसके भीतर उस समय रखीं, जब यहोवा ने इस्राएलियों के मिस्र से निकलने पर उनके साथ वाचा बान्धी थी। 11O 8 10 जब याजक पवित्रास्थान से निकले, तब यहोवा के भवन में बादल भर आया। 11O 8 11 और बादल के कारण याजक सेवा टहल करने को खड़े न रह सके, क्योंकि यहोवा का तेज यहोवा के भवन में भर गया था। 11O 8 12 तब सुलैमान कहने लगा, यहोवा ने कहा था, कि मैं घोर अंधकार में वास किए रहूंगा। 11O 8 13 सचमुच मैं ने तेरे लिये एक वासस्थान, वरन ऐसा दृढ़ स्थान बनाया है, जिस में तू युगानुयुग बना रहे। 11O 8 14 और राजा ने इस्राएल की पूरी सभा की ओर मुंह फेरकर उसको आशीर्वाद दिया; और पूरी सभा खड़ी रही। 11O 8 15 और उस ने कहा, धन्य है इस्राएल का परमेश्वर यहोवा ! जिस ने अपने मुंह से मेरे पिता दाऊद को यह वचन दिया था, और अपने हाथ से उसे पूरा किया है, 11O 8 16 कि जिस दिन से मैं अपनी प्रजा इस्राएल को मिस्र से निकाल लाया, तब से मैं ने किसी इस्राएली गोत्रा का कोई नगर नहीं चुना, जिस में मेरे नाम के निवास के लिये भवन बनाया जाए; परन्तु मैं ने दाऊद को चुन लिया, कि वह मेरी प्रजा इस्राएल का अधिकारी हो। 11O 8 17 मेरे पिता दाऊद की यह मनसा तो थी कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनाए। 11O 8 18 परन्तु यहोवा ने मेरे पिता दाऊद से कहा, यह जो तेरी मनसा है, कि यहोवा के नाम का एक भवन बनाए, ऐसी मनसा करके तू ने भला तो किया; 11O 8 19 तौभी तू उस भवन को न बनाएगा; तेरा जो निज पुत्रा होगा, वही मेरे नाम का भवन बनाएगा। 11O 8 20 यह जो वचन यहोवा ने कहा था, उसे उस ने पूरा भी किया है, और मैं अपने पिता दाऊद के स्थान पर उठकर, यहोवा के वचन के अनुसार इस्राएल की गद्दी पर विराजमान हूँ, और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम से इस भवन को बनाया है। 11O 8 21 और इस में मैं ने एक स्थान उस सन्दूक के लिये ठहराया है, जिस में यहोवा की वह वाचा है, जो उस ने हमारे पुरखाओं को मिस्र देश से निकालने के समय उन से बान्धी थी। 11O 8 22 तब सुलैमान इस्राएल की पूरी सभा के देखते यहोवा की वेदी के साम्हने खड़ा हुआ, और अपने हाथ स्वर्ग की ओर फैलाकर कहा, हे यहोवा ! 11O 8 23 हे इस्राएल के परमेश्वर ! तेरे समान न तो ऊपर स्वर्ग में, और न नीचे पृथ्वी पर कोई ईश्वर है : तेरे जो दास अपने सम्पूर्ण मन से अपने को तेरे सम्मुख जानकर चलते हैं, उनके लिये तू अपनी वाचा मूरी करता, और करूणा करता रहता है। 11O 8 24 जो वचन तू ने मेरे पिता दाऊद को दिया था, उसका तू ने पालन किया है, जैसा तू ने अपने मुंह से कहा था, वैसा ही अपने हाथ से उसको पूरा किया है, जैसा आज है। 11O 8 25 इसलिये अब हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ! इस वचन को भी पूरा कर, जो तू ने अपने दास मेरे पिता दाऊद को दिया था, कि तेरे कुल में, मेरे साम्हने इस्राएल की गद्दी पर विराजनेवाले सदैव बने रहेंगे : इतना हो कि जैसे तू स्वयं मुझे सम्मुख जानकर चलता रहा, वैसे ही तेरे वंश के लोग अपनी चालचलन में ऐसी ही वौकसी करें। 11O 8 26 इसलिये अब हे इस्राएल के परमेश्वर अपना जो वचन तू ने अपने दास मेरे पिता दाऊद को दिया था उसे सच्चा सिठ्ठ कर। 11O 8 27 क्या परमेश्वर सचमुच पृथ्वी पर वास करेगा, स्वर्ग में वरन सब से ऊंचे स्वर्ग में भी तू नहीं समाता, फिर मेरे बनाए हुए इस भवन में क्योंकर समाएगा। 11O 8 28 तौभी हे मेरे परमेश्वर यहोवा ! अपने दास की प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट की ओर कान लगाकर, मेरी चिल्लाहट और यह प्रार्थना सुन ! जो मैं आज तेरे साम्हने कर रहा हूँ्र; 11O 8 29 कि तेरी आंख इस भवन की ओर अर्थात् इसी स्थान की ओर जिसके विषय तू ने कहा है, कि मेरा नाम वहां रहेगा, रात दिन खुली रहें : और जो प्रार्थना तेरा दास इस स्थान की ओर करे, उसे तू सुन ले। 11O 8 30 और तू अपने दास, और अपनी प्रजा इस्राएल की प्रार्थना जिसको वे इस स्थान की ओर गिड़गिड़ा के करें उसे सुनना, वरद स्वर्ग। में से जो तेरा निवासस्थान है सुन लेना, और सुनकर क्षमा करना। 11O 8 31 जब कोई किसी दूसरे का अपराध करे, और उसको शपथ खिलाई जाए, और वह आकर इस भवन में तेरी वेदी के साम्हने शपथ खाए, 11O 8 32 तब तू स्वर्ग में सुन कर, अर्थात् अपने दासों का न्याय करके दुष्ट को दुष्ट ठहरा और उसकी चाल उसी के सिर लौटा दे, और निदष को निदष ठहराकर, उसके धर्म के अनुसार उसको फल देना। 11O 8 33 फिर जब नेरी प्रजा इस्राएल तेरे विरूद्ध पाप करने के कारण अपने शत्रुओं से हार जाए, और तेरी ओर फिरकर तेरा नाम ले और इस भवन में तुझ से गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करे, 11O 8 34 तब तू स्वर्ग में से सुनकर अपनी प्रजा इस्राएल का पाप क्षमा करना : और उन्हें इस देश में लौटा ले आना, जो तू ने उनके पुरूखाओं को दिया था। 11O 8 35 जब वे तेरे विरूद्ध पाप करें, और इस कारण आकाश बन्द हो जाए, कि वर्षा न होए, ऐसे समय यदि वे इस स्थान की ओर प्रार्थना करके तेरे नाम को मानें जब तू उन्हें दु:ख देता है, और अपने पाप से फिरें, तो तू स्वर्ग में से सुनकर क्षमा करना, 11O 8 36 और अपने दासों, अपनी प्रजा इस्राएल के पाप को क्ष्मा करना; तू जो उनको वह भला मार्ग दिखाता है, जिस पर उन्हें चलना चाहिये, इसलिये अपने इस देश पर, जो तू ने अपनी प्रजा का भाग कर दिया है, पानी बरसा देना। 11O 8 37 जब इस देश में काल वा मरी वा झुलस हो वा गेरूई वा टिडि्डयां वा कीड़े लगें वा उनके शत्रु उनके देश के फाटकों में उन्हें घेर रखें, अथवा कोई विपत्ति वा रोग क्यों न हों, 11O 8 38 तब यदि कोई मनुष्य वा तेरी प्रजा इस्राएल अपने अपने मन का दु:ख जान लें, और गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करके अपने हाथ इस भवन की ओर फैलाएं; 11O 8 39 तो तू अपने स्वग य निवासस्थान में से सुनकर क्षमा करूना, और ऐसा करना, कि एक एक के मन को जानकर उसकी समस्त चाल के अनुसार उसको फल देना : तू ही तो सब आदमियों के मन के भेदों का जानने वाला है। 11O 8 40 तब वे जितने दिन इस देश में रहें, जो तू ने उनके पुरखाओं को दिया था, उतने दिन तक तेरा भय मानते रहें। 11O 8 41 फिर परदेशी भी जो तेरी प्रजा इस्राएल का न हो, जब वह तेरा नाम सुनकर, दूर देश से आए, 11O 8 42 वह तो तेरे बड़े ताम और बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा का समाचार पाए; इसलिये जब ऐसा कोई आकर इस भवन की ओर प्रार्थना करें, 11O 8 43 तब तू अपने स्वग य निवासस्थान में से सुन, और जिस बात के लिये ऐसा परदेशी तुझे पुकारे, उसी के अनुसार व्यवहार करना जिस से पृथ्वी के सब देशों के लोग तेरा नाम जानकर तेरी प्रजा इस्राएल की नाई तेरा भय मानें, और निश्चय जानें, कि यह भवन जिसे मैं ने बनाया है, वह तेरा ही कहलाता है। 11O 8 44 जब तेरी प्रजा के लोग जहां कहीं तू उन्हें भेजे, वहां अपने शत्रुओं से लड़ाई करने को निकल जाएं, और इस नगर की ओर जिसे तू ने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैं ने तेरे नाम पर बनाया है, यहोवा से प्रार्थना करें, 11O 8 45 तब तू स्वर्ग में से उनकी प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनकर उनका न्याय कर। 11O 8 46 निष्पाप तो कोई मनुष्य नहीं है : यदि ये भी तेरे विरूद्ध पाप करें, और तू उन पर कोप करके उन्हें श.ाुओं के हाथ कर दे, और वे उनको बन्धुआ करके अपने देश को चाहे वह दूर हो, चाहे निकट ले जवएं, 11O 8 47 तो यदि वे बन्धुआई के देश में सोच विचार करें, और फिरकर अपने बन्धुआ करनेवालों के देश में तुझ से गिड़गिड़ाकर कहें कि हम ने पाप किया, और कुटिलता ओर दुष्टता की है; 11O 8 48 और यदि वे अपने उन शत्रुओं के देश में जो उन्हें बन्धुआ करके ले गए हों, अपने सम्पूर्ण मन और सम्पूर्ण प्राण से तेरी ओर फिरें और अपने इस देश की ओर जो तू ने उनके पुरूखाओं को दिया था, और इस नगर की ओर जिसे तू ने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैं ने तेरे नाम का बनाया है, तुझ से प्रार्थना करें, 11O 8 49 तो तू अपने स्वग य निवासस्थान में से उनकी प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनना; और उनका न्याय करना, 11O 8 50 और जो पाप तेरी प्रजा के लोग तेरे विरूद्ध करेंगे, और जितने अपराध वे तेरे विरूद्ध करेंगे, सब को क्षमा करके, उनके बन्धुआ करनेवालों के मन में ऐसी दया उपजाना कि वे उन पर दया करें। 11O 8 51 क्योंकि वे तो तेरी प्रजा और तेरा निज भाग हैं जिन्हें तू लोहे के भट्ठे के मध्य में से अर्थात् मिस्र से निकाल लाया है। 11O 8 52 इसलिये तेरी आंखें तेरे दाय की गिड़गिड़ाहट और तेरी प्रजा इस्राएल की गिड़गिड़ाहट की ओर ऐसी खुली रहें, कि जब जब वे तुझे पुकारें, तब तब तू उनकी सुन ले; 11O 8 53 क्योंकि हे प्रभु यहोवा अपने उस वचन के अनुसार, जो तू ने हमारे पुरखाओं को मिस्र से निकालने के समय अपने दास मूसा के द्वारा दिया था, तू ने इन लोगों को अपना निज भाग होने के लिये पृथ्वी की सब जातियों से अलग किया है। 11O 8 54 जब सुलैमान यहोवा से यह सब प्रार्थना गिड़गिड़ाहट के साथ कर चुका, तब वह जो घुटने टेके और आकाश की ओर हाथ फैलाए हुए था, सो यहोवा की वेदी के साम्हने से उठा, 11O 8 55 और खड़ा हो, समस्त इस्राएली सभा को ऊंचे स्वर से यह कहकर आशीर्वाद दिया, कि धन्य है यहोवा, 11O 8 56 जिस ने ठीक अपने कथन के अनुसार अपनी प्रजा इस्राएल को विश्राम दिया है, जितनी भलाई की बातें उसने अपने दास मूसा के द्वारा कही थीं,उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही। 11O 8 57 हमारा परमेश्वर यहोवा जैसे हमारे पुरखाओं के संग रहता था, वैसे ही हमारे संग भी रहे, वह हम को त्याग न दे और न हम को छोड़ दे। 11O 8 58 वह हमारे मन अपनी ओर ऐसा फिराए रखे, कि हम उसके सब माग पर चला करें, और उसकी आज्ञाएं और विधियां और नियम जिन्हें उसने हमारे पुरखाओं को दिया था, नित माना करें। 11O 8 59 और मेरी ये बातें जिनकी मैं ने यहोवा के साम्हने बिनती की है, वह दिन और रात हमारे परमेश्वर यहोवा के मन में बनी रहें, और जैसा दिन दिन प्रयोजन हो वैसा ही वह अपने दास का और अपनी प्रजा इस्राएल का भी न्याय किया करे, 11O 8 60 और इस से पृथ्वी की सब जातियां यह जान लें, कि यहोवा ही परमेश्वर है; और कोई दूसरा नहीं। 11O 8 61 तो तुम्हारा मन हमारे परमेश्वर यहोवा की ओर ऐसी पूरी रीति से लगा रहे, कि आज की नाई उसकी विधियों पर चलते और उसकी आज्ञाएं मानते रहो। 11O 8 62 तब राजा समस्त इस्राएल समेत यहोवा के सम्मुख मेलबलि चढ़ाने लगा। 11O 8 63 और जो पशु सुलैमान ने मेलबलि में यहोवा को चढ़ाए, सो बाईस हजार बैल और एक लाख बीस हजार भेड़ें थीं। इस रीति राजा ने सब इस्राएलियों समेत यहोवा के भवन की प्रतिष्ठा की। 11O 8 64 उस दिन राजा ने यहोवा के भवन के साम्हनेवाले आंगन के मध्य भी एक स्थान पवित्रा किया और होमबलि, और अन्नबलि और मेलबलियों की चरबी वहीं चढ़ाई; क्योंकि जो पीतल की वेदी यहोवा के साम्हने थी, वह उनके लिये छोटी थी। 11O 8 65 और सुलैमान ने और उसके संग समस्त इस्राएल की एक बड़ी सभा ने जो हमात की घाटी से लेकर मिस्र के नाले तक के सब देशों से इट्ठी हुई थी, दो सप्ताह तक अर्थात् चौदह दिन तक हमारे परमेश्वर यहोवा के साम्हने पर्व को माना। फिर आठवें दिन उस ने प्रजा के लोगों को विदा किया। 11O 8 66 और वे राजा को धन्य, धन्य, कहकर उस सब भलाई के कारण जो यहोवा ने अपने दास दाऊद और अपनी प्रजा इस्राएल से की थी, आनन्दित और मगन होकर अपने अपने डेरे को चले गए। 11O 9 1 जब सुलैमान यहोवा के भवन और राजभवन को बना चुका, और जो कुछ उस ने करना चाहा था, उसे कर चुका, 11O 9 2 तब यहोवा ने जैसे गिबोन में उसको दर्शन दिया था, वैसे ही दूसरी बार भी उसे दर्शन दिया। 11O 9 3 और यहोवा ने उस से कहा, जो प्रार्थना गिड़गिड़ाहट के साथ तू ने मुझ से की है, उसको मैं ने सुना है, यह जो भवन तू ने बनाया है, उस में मैं ने अपना नाम सदा के लिये रखकर उसे पवित्रा किया है; और मेरी आंखें और मेरा मन नित्य वहीं लगे रहेंगे। 11O 9 4 और यादे तू अपने पिता दाऊद की नाई मन की खराई और सिधाई से अपने को मेरे साम्हने जानकर चलता रहे, और मेरी सब अपज्ञाओं के अनुसार किया करे, और मेरी विधियों और नियमों को मानता रहे, तो मैं तेरा राज्य इस्राएल के ऊपर सदा के लिये स्थ्रि करूंगा; 11O 9 5 जैसे कि मैं ने तेरे पिता दाऊद को वचन दिया था, कि तेरे कुल में इस्राएल की गद्दी पर विराजनेवाले सदा बने रहेंगे। 11O 9 6 परन्तु यदि तुम लोग वा तुम्हारे वंश के लोग मेरे पीछे चलना छोड़ दें; और मेरी उन आज्ञाओं और विधियों को जो मैं ने तुम को दी हैं, न मानें, और जाकर पराये देवताओं की उपासना करे और उन्हें दणडवत करने लगें, 11O 9 7 तो मैं इस्राएल को इस देश में से जो मैं ने उनको दिया है, काट डालूंगा और इस भवन को जो मैं ने अपने नाम के लिये पवित्रा किया है, अपनी दृष्टि से उतार दूंगा; और सब देशों के लोगों में इस्राएल की उपमा दी जायेगी और उसका दृष्टान्त चलेगा। 11O 9 8 और यह भवन जो ऊंचे पर रहेगा, तो जो कोई इसके पास होकर चलेगा, वह चकित होगा, और ताली बजाएगा और वे पूछेंगे, कि यहोवा ने इस देश और इस भवन के साथ क्यों ऐसा किया है; 11O 9 9 तब लोग कहेंगे, कि उन्हों ने अपने परमेश्वर यहोवा को जो उनके पुरखाओं को मिस्र देश से निकाल लाया था। तजकर पराये देवताओं को पकड़ लिया, और उनको दणडवत की और उनकी उपासना की इस कारण यहोवा ने यह सब विपत्ति उन पर डाल दी। 11O 9 10 सुलैमान को तो यहोवा के भवन और राजभवन दोनों के बनाने में बीस वर्ष लग गए। 11O 9 11 तब सुलैमान ने सोर के राजा हीराम को जिस ने उसके मनमाने देवदारू और सनोवर की लकड़ी और सोना दिया था, गलील देश के बीस नगर दिए। 11O 9 12 जब हीराम ने सोर से जाकर उन नगरों को देखा, जो सुलैमान ने उसको दिए थे, तब वे उसको अच्छे न लगे। 11O 9 13 तब उस ने कहा, हे मेरे भाई, ये नगर क्या तू ने मुझे दिए हैं? और उस ने उनका नाम कबूल देश रखा। 11O 9 14 और यही नाम आज के दिन तक पड़ा है। फिर हीराम ने राजा के पास साठ किक्कार सोना भेज दिया। 11O 9 15 राजा सुलैमान ने लोगों को जो बेगारी में रखा, इसका प्रयोजन यह था, कि यहोवा का और अपना भवन बनाए, और मिल्लो और यरूशलेम की शहरपनाह और हासोर, मगिद्दॊ और गेजेर नगरों को दृढ़ करे। 11O 9 16 गेजेर पर तो मिस्र के राजा फ़िरौन ने चढ़ाई करके उसे ले लिया और आग लगाकर फूंक दिया, और उस नगर में रहनेवाले कनानियों को मार डालकर, उसे अपनी बेटी सुलैमान की रानी का निज भाग करके दिया था, 11O 9 17 सो सुलैमान ने गेजेर और नीचेवाले बथोरेन, 11O 9 18 बालात और तामार को जो जंगल में हैं, दृढ़ किया, ये तो देश में हैं। 11O 9 19 फिर सुलैमान के जितने भणडार के नगर थे, और उसके रथों और सवारों के नगर, उनको वरन जो कुछ सुलैमान ने यरूशलेम, लबानोन और अपने राज्य के सब देशों में बनाना चाहा, उन सब को उस ने दृढ़ किया। 11O 9 20 एमोरी, हित्ती, परिज्जी, हिब्बी और यबूसी जो रह गए थे, जो इस्राएलियों में के न थे, 11O 9 21 उनके वंश जो उनके बाद देश में रह गए, और उनको इस्राएली सत्यानाश न कर सके, उनको तो सुलैमान ने दास कर के बेगारी में रखा, और आज तक उनको वही दशा है। 11O 9 22 परन्तु इस्राएलियों में से सुलैमान ने किसी को दास न बनाया; वे तो योठ्ठा और उसके कर्मचारी, उसके हाकिम, उसके सरदार, और उसके रथों, और सवारों के प्रधान हुए। 11O 9 23 जो मुख्य हाकिम सुलैमान के कामों के ऊपर ठहर के काम करनेवालों पर प्रभुता करते थे, ये पांच सौ पचास थे। 11O 9 24 जब फ़िरौन की बेटी दाऊदपुर में से अपने उस भवन को आ गई, जो उस ने उसके लिये बनाया था तब उस ने मिल्लो को बनाया। 11O 9 25 और सुलैमान उस वेदी पर जो उस ने यहोवा के लिये बनाई थी, प्रति वर्ष में तीन बार होमबलि और मेलबलि चढ़ाया करता था और साथ ही उस वेदी पर जो यहोवा के सम्मुख थी, धूप जलाया करता था, इस प्रकार उस ने उस भवन को तैयार कर दिया। 11O 9 26 फिर राजा सुलैमान ने एस्योनगेबेर में जो एदोम देश मे लाल समुद्र के तीर एलोत के पास है, जहाज बनाए। 11O 9 27 और जहाजों में हीराम ने अपने अधिकार के मल्लाहों को, जो समुद्र से जानकारी रखते थे, सुलैमान के सेवकों के संग भेज दिया। 11O 9 28 उन्हों ने ओपोर को जाकर वहां से चार सौ बीस किक्कार सोना, राजा सुलैमान को लाकर दिया। 11O 10 1 जब शीबा की रानी ने यहोवा के नाम के विषय सुलैमान की की त्त सुनी, तब वह कठिन कठिन प्रश्नों से उसकी परीक्षा करने को चल पड़ी। 11O 10 2 वह तो बहुत भारी दल, और मसालों, और बहुत सोने, और मणि से लदे ऊंट साथ लिये हुए यरूशलेम को आई; और सुलैमान के पास पहुंचकर अपने मन की सब बातों के विषय में उस से बातें करने लगी। 11O 10 3 सुलैमान ने उसके सब प्रश्नों का उत्तर दिया, कोई बात राजा की बुध्दि से ऐसी बाहर न रही कि वह उसको न बता सका। 11O 10 4 जब शीबा की रानी ने सुलैमान की सब बुध्दिमानी और उसका बनाया हुआ भवन, और उसकी मेज पर का भोजन देखा, 11O 10 5 और उसके कर्मचारी किस रीति बैठते, और उसके टहंलुए किस रीति खड़े रहते, और कैसे कैसे कपड़े पहिने रहते हैं, और उसके पिलानेवाले कैसे हैं, और वह कैसी चढ़ाई है, जिस से वह यहोवा के भवन को जाया करता है, यह सब जब उस ने देखा, तब वह चकित हो गई। 11O 10 6 तब उस ने राजा से कहा, तेरे कामों और बुध्दिमानी की जो की त्त मैं ने अपने देश में सुनी थी वह सच ही है। 11O 10 7 परन्तु जब तक मैं ने आप ही आकर अपनी आंखों से यह न देखा, तब तक मैं ने उन बातों की प्रतीत न की, परन्तु इसका आधा भी मुझे न बताया गया था; तेरी बुध्दिमानी और कल्याण उस की त्त से भी बढ़कर है, जो मैं ने सुनी थी। 11O 10 8 धन्य हैं तेरे जन ! धन्य हैं तेरे ये सेवक ! जो नित्य तेरे सम्मुख उपस्थित रहकर तेरी बुध्दि की बातें सुनते हैं। 11O 10 9 धन्य है तेरा परमेश्वर यहोवा ! जो तुझ से ऐसा प्रसन्न हुआ कि तुझे इस्राएल की राजगद्दी पर विराजमान किया : यहोवा इस्राएल से सदा प्रेम रखता है, इस कारण उस ने तुझे न्याय और धर्म करने को राजा बना दिया है। 11O 10 10 और उस ने राजा को एक सौ बीस किक्कार सोना, बहुत सा सुगन्ध द्ररय, और मणि दिया; जितना सुगन्ध द्ररय शीबा की रानी ने राजा सुलैमान को दिया, उतना फिर कभी नहीं आया। 11O 10 11 फिर हीराम के जहाज भी जो ओपीर से सोना लाते थे, वह बहुत सी चन्दन की लकड़ी और मणि भी लाए। 11O 10 12 और राजा ने चन्दन की लकड़ी से यहोवा के भवन और राजभवन के लिये जंगले और गवैयों के लिये वीणा और सारंगियां बनवाई ; ऐसी चन्दन की लकड़ी आज तक फिर नहीं आई, और न दिखाई पड़ी है। 11O 10 13 और शीबा की रानी ने जो कुछ चाहा, वही राजा सुलैमान ने उसकी इच्छा के अनुसार उसको दिया, फिर राजा सुलैमान ने उसको अपनी उदारता से बहुत कुछ दिया, तब वह अपने जनों समेत अपने देश को लौट गई। 11O 10 14 जो सोना प्रति वर्ष सुलैमान के पास पहुंचा करता था, उसका तौल छेसौ छियासठ किक्कार था। 11O 10 15 इस से अधिक सौदागरों से, और रयोपारियों के लेन देन से, और दोगली जातियों के सब राजाओं, और अपने देश के गवर्नरो से भी बहुत कुछ मिलता था। 11O 10 16 और राजा सुलैमान ने सोना गढ़बाकर दो सौ बड़ी बड़ी ढालें बनवाई; एक एक ढाल में छे छे सौ शेकेल सोना लगा। 11O 10 17 फिर उस ने सोना गढ़वाकर तीन सौ छोटी ढालें भी बनवाई; एक एक छोटी ढाल में, तीन माने सोना लगा; और राजा ने उनको लबानोनी वन नाम भवन में रखवा दिया। 11O 10 18 और राजा ने हाथीदांत का एक बड़ा सिंहासन बनवाया, और उत्तम कुन्दन से मढ़वाया। 11O 10 19 उस सिंहासन में छे सीढ़ियां थीं; और सिंहासन का सिरहाना पिछाड़ी की ओर गोल था, और बैठने के स्थान की दोनों अलग टेक लगी थीं, और दोनों टेकों के पास एक एक सिंह खड़ा हुआ बना था। 11O 10 20 और छहों सीढ़ियों की दोनों अलंग एक एक सिंह खड़ा हुआ बना था, कुल बारह हुए। किसी राज्य में ऐसा कभी नहीं बना; 11O 10 21 और राजा सुलैमान के पीने के सब पात्रा सोने के बने थे, और लबानोनी बन नाम भवन के सब पात्रा भी चोखे सोने के थे, चांदी का कोई भी न था। सुलैमान के दिनों में उसका कुछ लेखा न था। 11O 10 22 क्योंकि समुद्र पर हीराम के जहाजों के साथ राजा भी तश श के जहाज़ रखता था, ओर तीन तीन वर्ष पर तश श के जहाज़ सोना, चांदी, हाथीदांत, बन्दर और मयूर ले आते थे। 11O 10 23 इस प्रकार राजा सुलैमान, धन और बुध्दि में पृथ्वी के सब राजाओं से बढ़कर हो गया। 11O 10 24 और समस्त पृथ्वी के लोग उसकी बुध्दि की बातें सुनने को जो परमेश्वर ने मन में उत्पन्न की थीं, सुलैमान का दर्शन पाना चाहते थे। 11O 10 25 और वे प्रति वर्ष अपनी अपनी भेंट, अर्थात् चांदी और सोने के पात्रा, वस्त्रा, शस्त्रा, सुगन्ध द्ररय, घोड़े, और खच्चर ले आते थे। 11O 10 26 और सुलैमान ने रथ और सवार इकट्ठे कर लिए, तो उसके चौदह सौ रथ, और बारह हजार सवार हुए, और उनको उस ने रथों के नगरों में, और यरूशलेम में राजा के पास ठहरा रखा। 11O 10 27 और राजा ने बहुतायत के कारण, यरूशलेम में चांदी को तो ऐसा कर दिया जैसे पत्थर और देवदारू को जैसे नीचे के देश के गूलर। 11O 10 28 और जो घोड़े सुलैमान रखता था, वे मिस्र से आते थे, और राजा के व्योपारी उन्हें झुणड झुणड करके ठहराए हुए दाम पर लिया करते थे। 11O 10 29 एक रथ तो छे सौ शेकेल चांदी पर, और एक घोड़ा डेढ़ सौ शेकेल पर, मिस्र से आता था, और इसी दाम पर वे हित्तियों और अराम के सब राजाओं के लिये भी व्योपारियों के द्वारा आते थे। 11O 11 1 परन्तु राजा सुलैमान फ़िरौन की बेटी, और बहुतेरी और पराये स्त्रियों से, जो मोआबी, अम्मोनी, एदोमी, सीदोती, और हित्ती थीं, प्रीति करने लगा। 11O 11 2 वे उन जातियों की थीं, जिनके विषय में यहोवा ने इस्राएलियों से कहा था, कि तुम उनके मध्य में न जाना, और न वे तुम्हारे मध्य में आने पाएं, वे तुम्हारा मन अपने देवताओं की ओर निेसन्देह फेरेंगी; उन्हीं की प्रीति में सुलैमान लिप्त हो गया। 11O 11 3 और उसके सात सौ रानियां, और तीन सौ रखेलियां हो गई थीं और उसकी इन स्त्रियों ने उसका मन बहका दिया। 11O 11 4 सो जब सुलैमान बूढ़ा हुआ, तब उसकी स्त्रियों ने उसका मन पराये देवताओं की ओर बहका दिया, और उसका मन अपने पिता दाऊद की नाई अपने परमेश्वर यहोवा पर पूरी रीति से लगा न रहा। 11O 11 5 सुलैमान तो सीदोनियों की अशतोरेत नाम देवी, और अम्मोनियों के मिल्कोम नाम घृणित देवता के पीछे चला। 11O 11 6 और सुलैमान ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, और यहोवा के पीछे अपने पिता दाऊद की नाई पूरी रीति से न चला। 11O 11 7 उन दिनों सुलैमान ने यरूशलेम के साम्हने के पहाड़ पर मोआबियों के कमोश नाम घृणित देवता के लिये और अम्मोनियों के मोलेक नाम घृणित देवता के लिये एक एक ऊंचा स्थान बनाया। 11O 11 8 और अपनी सब पराये स्त्रियों के लिये भी जो अपने अपने देवताओं को धूप जलातीं और बलिदान करती थीं, उस ने ऐसा ही किया। 11O 11 9 तब यहोवा ने सुलैमान पर क्रोध किया, क्योंकि उसका मन इस्राएल के परमेश्वर यहोवा से फिर गया था जिस ने दो बार उसको दर्शन दिया था। 11O 11 10 और उस ने इसी बात के विषय में आज्ञा दी थी, कि पराये देवताओं के पीछे न हो लेना, तौभी उस ने यहोवा की आज्ञा न मानी। 11O 11 11 और यहोवा ने सुलैमान से कहा, तुझ से जो ऐसा काम हुआ है, और मेरी बन्धाई हुई वाचा और दी हुई वीधि तू ने पूरी नहीं की, इस कारण मैं जाज्य को निश्चय तूझ से छीनकर तेरे एक कर्मचारी को दे दूंगा। 11O 11 12 तौभी तेरे पिता दाऊद के कारण तेरे दिनो में तो ऐसा न करूंगा; परन्तु तेरे पुत्रा के हाथ से राज्य छीन लूंगा। 11O 11 13 फिर भी मैं पूर्ण राज्य तो न छीन लूंगा, परन्तु अपने दास दाऊद के कारण, और अपने चुने हुए यरूशलेम के कारण, मैं तेरे पुत्रा के हाथ में एक गोत्रा छोड़ दूंगा। 11O 11 14 सो यहोवा ने एदोमी हदद को जो एदोमी राजवंश का था, सुलैमान का शत्रु बना दिया। 11O 11 15 क्योंकि जब दाऊद एदोम में था, और योआब सेनापति मारे हुओं को मिट्ट देने गया, 11O 11 16 ( योआब तो समस्त इस्राएल समेत वहां छे महीने रहा, जब तक कि उस ने एदोम के सब मुरूषों को नाश न कर दियाि) 11O 11 17 तब हदद जो छोटा लड़का था, अपने पिता के कई एक एदोमी सेवकों के संग मिस्र को जाने की मनसा से भागा। 11O 11 18 और वे मिद्यान से होकर परान को आए, और परान में से कई पुरूषों को संग लेकर मिस्र में फ़िरौन राजा के पास गए, और फ़िरौन ने उसको घर दिया, और उसको भोजन मिलने की आज्ञा दी और कुछ भूमि भी दी। 11O 11 19 और हदद पर फ़िरौन की बड़े अनुग्रह की दृष्टि हुई, और उस ने उसको अपनी साली अर्थात् तहपनेस रानी की बहिन ब्याह दी। 11O 11 20 और तहपनेस की बहिन से गनूबत उत्पन्न हुआ और इसका दूध तहपनेस ने फ़िरौन के भवन में छुड़ाया; तब बनूबत फ़िरौन के भवन में उसी के पुत्रों के साथ रहता था। 11O 11 21 जब हदद ने मिस्र में रहते यह सुना, कि दाऊद अपने पुरखाओं के संग सो गया, और योआब सेनापति भी मर गया है, तब उस ने फ़िरौन से कहा, मुझे आज्ञा दे कि मैं अपने देश को जाऊं ! 11O 11 22 फ़िरौन ने उस से कहा, क्यों? मेरे यहां तुझे क्या घटी हुई कि तू अपने देश को जला जाना चाहता है? उस ने उत्तर दिया, कुछ नहीं हुई, तौभी मुझे अपश्य जाने दे। 11O 11 23 फिर परमेश्वर ने उसका एक और शत्रु कर दिया, अर्थात् एल्यादा के पुत्रा रजोन को, वह तो अपने स्वामी सोबा के राजा हददेजेर के पास से भागा था; 11O 11 24 और जब दाऊद ने सोबा के जनों को घात किया, तब रजोन अपने पास कई पुरूषों को इकट्ठे करके, एक दल का प्रधान हो गया, और वह दमिश्क को जाकर वहीं रहने और राज्य करने लगा। 11O 11 25 और उस हानि को छोड़ जो हदद ने की, रजोन भी, सुलैमान के जीवन भर अस्राएल का शत्रु बना रहा; और वह इस्राएल से घृणा रखता हुआ अराम पर राज्य करता था 11O 11 26 फिर नबात का और सरूआह नाम एक विधवा का पुत्रा यारोबाम नाम एक एप्रैमी सरेदाबासी जो सुलैमान का कर्मचारी था, उस ने भी राजा के विरूद्ध सिर उठाया। 11O 11 27 उसका राजा के विरूद्ध सिर अठाने का यह कारण हुआ, कि सुलैमान मिल्लो को बना रहा था ओर अपने पिता दाऊद के नगर के दरार बन्द कर रहा था। 11O 11 28 यारोबाम बड़ा हाूरवीर था, और जब सुलैमान ने जवान को देखा, कि यह परिश्रमी ह; तब उस ने उसको यूसुफ के घराने के सब काम पर मुखिया ठहराया। 11O 11 29 उन्हीं दिनों में यारोबाम यरूशलेम से निकलकर जा रहा था, कि शीलोबासी अहिरयाह नबी, नई च र ओढ़े हुए मार्ग पर उस से मिला; और केवल वे ही दोनों मैदान में थे। 11O 11 30 अपैर अहिरयाह ने अपनी उस नई च र को ले लिया, और उसे फाड़कर बारह टुकड़े कर दिए। 11O 11 31 तब उस ने यारोबाम से कहा, दस टुकड़े ले ले; क्योंकि, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि सुन, मैं राज्य को सुलैमान के हाथ से छीन कर दस गोत्रा तेरे हाथ में कर दूंगा। 11O 11 32 परन्तु मेरे दास दाऊद के कारण और यरूशलेम के कारण जो मैं ने इस्राएल के सब गोत्रों में से चुना है, उसका एक गोत्रा बना रहेगा। 11O 11 33 इसका कारण यह है कि उन्हों ने मुझे त्याग कर सीदोनियों की देवी अश्तोरेत और मोआबियों के देवता कमोश, और अम्मोनियों के देवता मिल्कोम को दणडवत की, और मेरे माग पर नहीं चले : और जो मेरी दृष्टि में ठीक है, वह नहीं किया, और मेरी वेधियों और नियमों को नहीं माना जैसा कि उसके पिता दाऊद ने किया। 11O 11 34 तौभी मैं उसके हाथ से पूर्ण राज्य न ले लूंगा, परन्तु मेरा चुना हुआ दास दाऊद जो मेरी आज्ञाएं और विधियां मानता रहा, उसके कारण मैं उसको जीवन भर प्रधान ठहराए रखूंगा। 11O 11 35 परन्तु उसके पुत्रा के हाथ से मैं राज्य अर्थात् दस गोत्रा लेकर तुझे दे दूंगा। 11O 11 36 और उसके पुत्रा को मैं एक गोत्रा दूंगा, इसलिये कि यरूश्सलेम अर्थात् उस नगर में जिसे अपना नाम रखने को मैं ने चुना है, मेरे दास दाऊद का दीपक मेरे साम्हने सदैव बना रहे। 11O 11 37 परन्तु तुझे मैं ठहरा लूंगा, और तू अपनी इच्छा भर इस्राएल पर राज्य करेगा। 11O 11 38 और यदि तू मेरे दास दाऊद की नाई मेरी सब आज्ञाएं, और मेरे माग पर चले, और जो काम मेरी दृष्टि में ठीक है, वही करे, और मेरी विधियां और आाएं मानता रहे, तो मैं तेरे संग रहूंगा, और जिस तनह मैं ने दाऊद का घराना बनाए रखा है, वैसे ही तेरा भी घराना बनाए रखूंगा, और तेरे हाथ इस्राएल को दूंगा। 11O 11 39 इस पाप के कारण मैं दाऊद के वंश को दु:ख दूंगा, तौभी सदा तक नहीं। 11O 11 40 और सुलैमान ने यारोबाम को मार डालना चाहा, परन्तु यारोबाम मिस्र के राजा शीशक के पास भाग गया, और सुलैमान के मरने नक वहीं रहा। 11O 11 41 सुलैमान की और सब बातें और उसके सब काम और उसकी बुध्दिमानी का वर्णन, क्या सुलैमान के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 11O 11 42 सुलैमान को यरूशलेम में सब इस्राएल पर राज्य करते हुए चालीस वर्ष बीते। 11O 11 43 और सुलैमान अपने पुरखाओं के संग सोया, और उसको उसके पिता दाऊद के नगर में मिट्टी दी गई, और उसका पुत्रा रहूबियाम उसके स्थान पर राजा हुआ। 11O 12 1 रहूबियाम तो शकेम को गया, क्योंकि सब इस्राएली उसको राजा बनाने के लिये वहीं गए थे। 11O 12 2 और जब नबात के पुत्रा यारोबाम ने यह सुना, ( जो अब तक मिस्र में रहता था, थ्योंकि यारोबाम सुलैमान राजा के डर के मारे भगकर मिस्र में रहता था। 11O 12 3 सो उन लोगों ने उसको बुलवा भेजा ) तब यारोबाम और इस्राएल की समस्त सभा रहूबियाम के पास जाकर यों कहने लगी, 11O 12 4 कि तेरे पिता ने तो हम लोगों पर भारी जूआ डाल रखा था, तो अब तू अपने पिता की कठिन सेवा को, और उस भारी जूए को, जो उस ने हम पर डाल रखा है, कुछ हलका कर; तब हम तेरे अधीन रहेंगे। 11O 12 5 उस ने कहा, उभी तो जाओ, और तीन दिन के बाद मेरे पास फिर आना। तब वे चले गए। 11O 12 6 तब राजा रहूबियाम ने उन बूढ़ों से जो उसके पिता सुलैमान के जीवन भर उसके साम्हने उपस्थित रहा करते थे सम्मति ली, कि इस प्रजा को कैसा उत्तर देना उचित है, इस में तुम क्या सम्मति देते हो? 11O 12 7 उन्हों ने उसको यह उत्तर दिया, कि यदि तू अभी प्रजा के लोगों का दास बनकर उनके अधीन हो और उन से मधुर बातें कहे, तो वे सदैव तेरे अधीन बने रहेंगे। 11O 12 8 रहूबियाम ने उस सम्मति को छोड़ दिया, जो बूढ़ों ने उसको दी थी,और उन जवानों से सम्मति ली, जो उसके संग बड़े हुए थे, और उसके सम्मुख उपस्थित रहा करते थे। 11O 12 9 उन से उस ने पूछा, मैं प्रजा के लोगों को कैसा उत्तर दूं? उस में तुम क्या सम्मति देते हो? उन्हो ने तो मुझ से कहा है, कि जो जूआ तेरे पिता ने हम पर डाल रखा है, उसे तू हलका कर। 11O 12 10 जवानों ने जो उसके संग बड़े हुए थे उसको यह उत्तर दिया, कि उन लोगों ने तुझ से कहा है, कि तेरे पिता ने हमारा जूआ भारी किया था, परन्तु तू उसे हमारे लिऐ हलका कर; तू उन से यों कहना, कि मेरी छिंगुलिया मेरे पिता की कमर से भी मोटी है। 11O 12 11 मेरे पिता ने तुम पर जो भारी जूआ रखा था, उसे मैं और भी भारी करूंगा; मेरा पिता तो तुम को कोड़ों से ताड़ना देता था, परन्तु मैं बिच्छुओं से दूंगा। 11O 12 12 तीसरे दिन, जैसे राजा ने ठहराया था, कि तीसरे दिन मेरे पास फिर आना, वैसे ही यारोबाम और समस्त प्रजागण रहूबियाम के पास उपस्थित हुए। 11O 12 13 तब राजा ने प्रजा से कड़ी बातें कीं, 11O 12 14 और बूढ़ों की दी हुई सम्मति छोड़कर, जवानों की सम्मति के अनुसार उन से कहा, कि मेरे पिता ने तो तुम्हारा जूआ भारी कर दिया, परन्तु मैं उसे और भी भारी कर दूंगा : मेरे पिता ने तो कोड़ों से तुम को ताड़ना दी, परन्तु मैं तुम को बिच्छुओं से ताड़ना दूंगा। 11O 12 15 सो राजा ने प्रजा की बान नहीं मानी, इसका कारण यह है, कि जो वचन यहोवा ने शीलोवासी अहिरयाह के द्वारा नबात के पुत्रा यारोबाम से कहा था, उसको पूरा करने के लिये उस ने ऐसा ही ठहराया था। 11O 12 16 जब सब इस्राएल ने देखा कि राजा हमारी नहीं सुनता, तब वे बोले, कि दाऊद के साथ हमारा क्या अंश? हमारा तो यिशै के पुत्रा में कोई भाग नहीं ! हे इस्राएल अपने अपने डेरे को चले जाओ : अब हे दाऊद, अपने ही घराने की चिन्ता कर। 11O 12 17 सो इस्राएल अपने अपने डेरे को चले गए। केवल जितने इस्राएली यहूदा के नगरों में बसे हुए थे उन पर रहूबियाम राज्य करता रहा। 11O 12 18 तब राजा रहूबियाम ने अदोराम को जो सब बेगारों पर अधिकारी था, भेज दिया, और सब इस्राएलियों ने असको पत्थ्रवाह किया, और वह मर गया : तब रहूबियाम फुत से अपने रथ पर चढ़कर यरूशलेम को भाग गया। 11O 12 19 और इस्राएल दाऊद के घराने से फिर गया, और आज तक फिरा जुआ है। 11O 12 20 यह सुनकर कि यारोबाम लौट आया है, समस्त इस्राएल ने उसको मणडली में बुलवा भेजकर, पूर्ण इस्राएल के ऊपर राजा नियुक्त किया, और यहूदा के गोत्रा को छोड़कर दाऊद के घाराने से कोई मिला न रहा। 11O 12 21 जब रइूबियाम यरूशलेम को आया, तब उस ने यहूदा के पूर्ण घराने को, और बिन्यामीन के गोत्रा को, जो मिलकर एक लाख अस्सी हजार अच्छे योठ्ठा थे, इकट्ठा किया, कि वे इस्राएल के घराने के साथ लड़कर सुलैमान के पुत्रा रहूबियाम के वश में फिर राज्य कर दें। 11O 12 22 तब परमेश्वन का यह वचन परमेश्वर के जन शमायाह के पास पहुंचा कि यहूदा के राजा सुलैमान के पु,ा रहूबियाम से, 11O 12 23 और यहूदा और बिन्यामीन के सब घराने से, और सब लोगों से कह, यहोवा यों कहता है, 11O 12 24 कि अपने भाई इस्राएलियों पर चढ़ाई करके युठ्ठ न करो; तुम अपने अपने घर लौट जाओ, क्योंकि यह बात मेरी ही ओर से हुई है। यहोवा का यह वचन मानकर उन्हों ने उसके अनुसार लौट जाने को अपना अपना मार्ग लिया। 11O 12 25 तब यारोबाम एप्रैम के पहाड़ी देश के शकेम नगर को दृढ़ करके उस में रहने लगा; फिर वहांसे निकलकर पनूएल को भी दृढ़ किया। 11O 12 26 तब यारोबाम सोचने लगा, कि अब राज्य दाऊद के घराने का हो जाएगा। 11O 12 27 यदि प्रजा के लोग यरूशलेम में बलि करने को जाएं, तो उनका मन अपने स्वामी यहूदा के राजा रहूगियाम की ओर फिरेगा, और वे मुझे घात करके यहूदा के राजा रहूबियाम के हो जाएंगे। 11O 12 28 तो राजा ने सम्मति लेकर सोने के दो बछड़े बनाए और लोगों से कहा, यरूशलेम को जाना तुम्हारी शक्ति से बाहर है इसलिये हे इस्राएल अपने देवताओं को देखो, जो नुम्हें मिस्र देश से दिकाल लाए हैं। 11O 12 29 तो उस ने एक बछड़े को बेतेल, और दूसरे को दान में स्थपित किया। 11O 12 30 और यह बात पाप का कारण हुई; क्योंकि लोग उस एक के साम्हने दणडवत करने को दान तक जाने लगे। 11O 12 31 और उस ने ऊंचे स्थानों के भवन बनाए, और सब प्रकार के लोगों में से जो लेवीवंशी न थे, याजक ठहराए। 11O 12 32 फिर यारोबाम ने आठवें महीने के पन्द्रहवें दिन यहूदा के पर्व के समान एक पर्व इहरा दिया, और वेदी पर बलि चढ़ाने लगा; इस रीति उस ने बेतेल में अपने बनाए हुए बछड़ों के लिये वेदी पर, बलि किया, और अपने बनाए हुए ऊंचे स्थनों के याजकों को बेतेल में ठहरा दिया। 11O 12 33 और जिस महीने की उस ने अपने मन में कल्पना की थी अर्थात् आठवें महीने के पन्द्रहवें दिन को वह बेतेल में अपनी बनाई हुई वेदी के पास चढ़ गया। उस ने इस्राएलियों के लिये एक पर्ब्व ठहरा दिया, और धूप जलाने को वेदी के पास चढ़ गया। 11O 13 1 तब यहोवा से वचन पाकर परमेश्वर का बक जन यहूदा से बेतेल को आया, और यारोबाम धूप जलाने के लिये वेदी के पास खड़ा था। 11O 13 2 उस जन ने यहोवा से वचन पाकर वेदी के विरूद्ध यों पुकारा, कि वेदी, हे वेदी ! यहोवा यों कहता है, कि सुन, दाऊद के कुल में योशिरयाह नाम एक लड़का उत्पन्न होगा, वह उन ऊंचे स्थनों के याजकों को जो तुझ पर धूप जलाते हैं, तुझ पर बलि कर देगा; और तुझ पर पनुष्यों की हडि्डयां जलाई जाएंगी। 11O 13 3 और उस ने, उसी दिन यह कहकर उस बात का एक चिहृ भी बताया, कि यह वचन जो यहोवा ने कहा है, इसका चिहृ यह है कि यह वेदी फट जाएगी, और इस पर की राख गिर जाएगी। 11O 13 4 तब ऐसा हुआ कि परमेश्वर के जन का यह वचन सुनकर जो उस ने बेतेल के विरूद्ध पुकार कर कहा, यारोबाम ने वेदी के पास से हाथ बढ़ाकर कहा, उसको पाड़ लो : तब उसका हाथ जो उसकी ओर बढ़ाया गया था, सूख गया और वह उसे अपनी ओर खींच न सका। 11O 13 5 और वेदी फट गई, और उस पर की राख गिर गई; सो वह चिहृ पूरा हुआ, जो परमेश्वर के जन ने यहोवा से वचन पाकर कहा था। 11O 13 6 तब राजा ने परमेश्वर के जन से कहा, अपने परमेश्वर यहोवा को मना और मेरे लिये प्रार्थना कर, कि मेरा हाथ ज्यों का त्यो हो जाए : तब परमेश्वर के जन ने यहोवा को मनाया और राजा का हाथ फिर ज्यों का त्यों हो गया। 11O 13 7 तब राजा ने परमेश्वर के जन से कहा, मेरे संग घर चलकर अपना प्राण ठंडा कर, और मैं तुझे दान भी दूंगा। 11O 13 8 परमेश्वर के जन ने राजा से कहा, चाहे नू मुझे अपना आधा घर भी दे, तौभी तेरे घर न चलूंगा; और इस स्थन में मैं न तो रोटी खाऊंगा और न पानी पीऊंगा। 11O 13 9 क्योंकि यहोवा के वचन के द्वारा मुझे यों आज्ञा मिली है, कि न तो रोटी खाना, और न पानी पीना, और न उस मार्ग से लौटना जिस से तू जाएगा। 11O 13 10 इसलिये वह उस मार्ग से जिसे बेतेल को गया था न लौटकर, दूसरे मार्ग से चला गया। 11O 13 11 बेतेल में एक बूढ़ा नबी रहता था, और उसके एक बेटे ने आकर उस से उन सब कामों का वर्णन किया जो परमेश्वर के जन ने उस दिन बेतेल में किए थे; और जो बातें उस ने राजा से कही थीं, उनको भी उस ने अपने पिता से कह सुनाया। 11O 13 12 उसके बेटों ने तो यह देखा था, कि परमेश्वर का वह जन जो यहूदा से आया था, किस मार्ग से चला गया, सो उनके पिता ने उन से पूछा, वह किस मार्ग से चला गया? 11O 13 13 और उस ने अपने बेटों से कहा, मेरे लिये गदहे पर काठी बान्धो्र; तब अन्हों ने गदहे पर काठी बान्धी, और वह उस पर चढ़ा, 11O 13 14 और परमेश्वर के जन के पीछे जाकर उसे एक बांजवृक्ष के तले बैठा हुआ पाया; और उस से मूछा, परमेश्वर का जो जन यहूदा से आया था, क्या तू वही है? 11O 13 15 उस ने कहा हां, वही हूँूू। उस ने उस से कहा, मेरे संग घर चलकर भोजन कर। 11O 13 16 उस ने उस से कहा, मैं न तो तेरे संग लौट सकता, और न तेरे संग घर में जा सकता हूँ और न मैं इस स्थान में तेरे संग रोटी खाऊंगा, वा पानी पीऊंगा। 11O 13 17 क्योंकि यहोवा के वचन के द्वारा मुझे यह आज्ञा मिली है, कि वहां न तो रोटी खाना और न पानी पीना, और जिस मार्ग से तू जाएगा उस से न लौटना। 11O 13 18 उस ने कहा, जैसा तू नबी है वैसा ही मैं भी नबी हूँ; और मुझ से एक दूत ने यहोवा से वचन पाकर कहा, कि उस पुरूष को अपने संग अपने घर लौटा ले आ, कि वह रोटी खाए, और पानी पीए। यह उस ने उस से झूठ कहा। 11O 13 19 अतएव वह उसके संग लौट गया और उसके घर में रोटी खाई और मानी पीया। 11O 13 20 और जब वे मेज पर बैठे ही थे, कि यहोवा का वचन उस नबी के पास पहुंचा, जो दूसरे को लौटा ले आया था। 11O 13 21 और उस ने परमेश्वर के उस जन को जो यहूदा से आया था, पुकार के कहा, यहोवा यों कहता है इसलिये कि तू ने यहोवा का वचन न माना, और जो आज्ञा तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे दी थी उसे भी नहीं माना; 11O 13 22 परन्तु जिस स्थान के विषय उस ने तुझ से कहा था, कि उस में न तो रोटी खाना और न पानी पीना, उसी में तू ने लौट कर रोटी खाई, और पानी भी पिया है इस कारण तूझे अपने पुरखाओं के कब्रिस्तान में मिट्टी नहीं दी जाएगी। 11O 13 23 जब यह खा पी चुका, तब उस ने परमेश्वर के उस जन के लिये जिसको वह लौटा ले आया था गदहे पर काठी बन्धाई। 11O 13 24 जब वह मार्ग में चल रहा था, तो एक सिंह उसे मिला, और उसको मार डाला, और उसकी लोथ मार्ग पर पड़ी रही, और गदहा उसके पास खड़ा रहा और सिंह भी लोथ के पास खड़ा रहा। 11O 13 25 जो लोग उधर से चले आ रहे थे उन्हों ने यह देख कर कि मार्ग पर एक लोथ पड़ी है, और उसके पास सिंह खड़ा है, उस नगर में जाकर जहां वह बूढ़ा नबी रहता था यह समाचार सुनाया। 11O 13 26 यह सुनकर उस नबी ने जो उसको मार्ग पर से लौटा ले आया था, कहा, परमेश्वर का वही जन होगा, जिस ने यहोवा के वचन के विरूद्ध किया था, इस कारण यहोवा ने उसको सिंह के पंजे में पड़ने दिया; और यहोवा के उस वचन के अनुसार जो उस ने उस से कहा था, सिंह ने उसे फाड़कर मार डाला होगा। 11O 13 27 तब उस ने अपने बेटों से कहा, मेरे लिये गदहे पर काठी बान्धो; जब उन्हों ने काठी बान्धी, 11O 13 28 तब उस ने जाकर उस जन की लोथ मार्ग पर पड़ी हुई, और गदहे, और सिंह दोनों को लोथ के पास खड़े हुए पाया, और यह भी कि सिंह ने न तो लौथ को खाया, और न बदहे को फाड़ा है। 11O 13 29 तब उस बूढ़े नबी ने परमेश्वर के जन की लोथ उठाकर गदहे पर लाद ली, और उसके लिये छाती पीटने लगा, और उसे मिट्टी देने को अपने नगर में लौटा ले गया। 11O 13 30 और उस ने उसकी लोथ को अपने कब्रिस्तान में रखा, और लोग हाय, मेरे भाई ! यह कहकर छाती पीटने लगे। 11O 13 31 फिर उसे मिट्टी देकर उस ने अपने बेटों से कहा, जब मैं मर जाऊंगा तब मुझे इसी कब्रिस्तान में रखना, जिस में परमेश्वर का यह जन रखा गया है, और मेरी हडि्डयां उसी की हडि्डयों के पास धर देना। 11O 13 32 क्योंकि जो वचन उस ने यहोवा से पाकर बेतेल की वेदी और शोंमरोन के नगरों के सब ऊंचे स्थानों के भवनों के विरूद्ध पुकार के कहा है, वह निश्चय पूरा हो जाएगा। 11O 13 33 इसके बाद यारोबाम अपनी बुरी चाल से न फिरा। उस ने फिर सब प्रकार के लोगो में से ऊंचे स्थानों के याजक बनाए, वरन जो कोई चाहता था, उसका संस्कार करके, वह उसको ऊंचे स्थानों का याजक होने को ठहरा देता था। 11O 13 34 और यह बात यारोबाम के घराने का पाप ठहरी, इस कारण उसका विनाश हुआ, और वह धरती पर से नाश किया गया। 11O 14 1 उस समय यारोबाम का बेटा अबिरयाह रोगी हुआ। 11O 14 2 तब यारोबाम ने अपनी स्त्री से कहा, ऐसा भेष बना कि कोई तुझे पहिचान न सके कि यह यारोबाम की स्त्री है, और शीलो को चली जा, वहां तो अहिरयाह नबी रहता है जिस ने मुझ से कहा था कि तू इस प्रजा का राजा हो जाएगा। 11O 14 3 उसके पास तू दस रोटी, और पपड़ियां और एक कुप्पी मधु लिये हुए जा, और वह तुझे बताएगा कि लड़के को क्या होगा। 11O 14 4 यारोबाम की स्त्री ने वैसा ही किया, और चलकर हाीलो को पहुंची और अहिरयाह के घर पर आई : अहिरयाह को तो कुछ सूझ न पड़ता था, क्योंकि बुढ़ापे के कारण उसकी आंखें धुन्धली पड़ गई थीं। 11O 14 5 और यहोवा ने अहिरयाह से कहा, सुन यारोबाम की स्त्री तुझ से अपने बेटे के विषय में जो रोगी है कुछ पूछने को आती है, तू उस से ये ये बातें कहना; वह तो आकर अपने को दूसरी औरत बनाएगी। 11O 14 6 जब अहिरयाह ने द्वार में आते हुए उसके पांव की आहट सुनी तब कहा, हे यारोबाम की स्त्री ! भीतर आ; तू अपने को क्यों दूसरी स्त्री बनाती है? मुझे तेरे लिये भारी सन्देश मिला है। 11O 14 7 तू जाकर यारोबाम से कह कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा तुझ से यों कहता है, कि मैं ने तो तुझ को प्रजा में से बढ़ाकर अपनी प्रजा इस्राएल पर प्रधान किया, 11O 14 8 और दाऊद के घराने से राज्य छीनकर तुझ को दिया, परन्तु तू मेरे दास दाऊद के समान न हुआ जो मेरी आज्ञाओं को मानता, और अपने पूर्ण मन से मेरे पीछे पीछे चलता, और केवल वही करता था जो मेरी दृष्टि में ठीक है। 11O 14 9 तू ने उन सभों से बढ़कर जो तुझ से पहिले थे बुराई, की है, और जाकर पराये देवता की उपासना की और मूरतें ढालकर बनाई, जिस से मुझे क्रोधित कर दिया और मुझे तो पीठ के पीछे फेंक दिया है। 11O 14 10 इस कारण मैं यारोबाम के घराने पर विपत्ति डालूंगा, वरन मैं यारोबाम के कुल में से हर एक लड़के को ओर क्या बन्धुए, क्या स्वाधीन इस्राएल के मध्य हर बक रहनेवाले को भी नष्ट कर डालूंगा : और जैसा कोई गोबर को तब तक उठाता रहता है जब तक वह सब उठा तहीं लिया जाता, वैसे ही मैं यारोबाम के घराने की सफाई कर दूंगा। 11O 14 11 यारोबाम के घराने का जो कोई नगर में मर जाए, उसको कुत्ते खाएंगे; और जो मैदान में मरे, उसको आकाश के पक्षी खा जाएंगे; क्योंकि यहोवा ने यह कहा है ! 11O 14 12 11O 14 13 इसलिये तू उठ और अपने घर जा, और नगर के भीतर तेरे पांव पड़ते ही वह बालक तर जाएगा। 11O 14 14 उसे तो समस्त इस्राएली छाती पीटकर मिट्टी देंगे; यारोबाम के सन्तानों में से केवल उसी को कबर मिलेगी, क्योंकि यारोबाम के घराने में से उसी में कुछ पाया जाता है जो यहोवा इस्राएल के प्रभु की दष्टि में भला है। 11O 14 15 फिर यहोवा इस्राएल के लिये एक ऐसा राजा खड़ा करेगा जो उसी दिन यारोबाम के घराने को नाश कर डालेगा, परन्तु कब? 11O 14 16 यह अभी होगा। क्योंकि यहोवा इस्राएल को ऐसा मारेगा, जैसा जल की धारा से नरकट हिलाया जाता है, और वह उनको इस अच्छी भूमि में से जो उस ने उनके पुरखाओं को दी थी उखाड़कर महानद के पार तित्तर- बित्तर करेगा; क्योंकि उन्हों ने अशेरा ताम मूरतें अपने लिये बनाकर यहोवा को क्रोध दिलाया है। 11O 14 17 और उन पापों के कारण जो यारोबाम ने किए और इस्राएल से कराए थे, यहोवा इस्राएल को त्याग देगा। 11O 14 18 तब यारोबाम की स्त्री बिदा होकर चली और तिरज़ा को आई, और वह भवन की डेवढ़ी पर जैसे ही पहुंची कि वह बालक मर गया। 11O 14 19 तब यहोवा के वचन के अनुसार जो उस ने अपने दास अहिरयाह नबी से कहलाया था, समस्त इस्राएल ने उसको मिट्टी देकर उसके लिये शोक मनाया। 11O 14 20 यारोबाम के और काम अर्थात् उस ने कैसा कैसा युठ्ठ किया, और कैसा राज्य किया, यह सब इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखा है। 11O 14 21 यारोबाम बाईस वर्ष तक राज्य करके अपने पुरखाओं के साथ सो गया और नादाब नाम उसका पुत्रा उसके स्थान पर राजा हुआ। 11O 14 22 और सुलैमान का पुत्रा रहूबियाम यहूदा में राज्य करने लगा। रहूबियाम इकतालीस वर्ष का होकर राज्य करने लगा; और यरूशलेम जिसको यहोवा ने सारे इस्राएली गोत्रों में से अपना नाम रखने के लिये चुन लिया था, उस नगर में वह सत्राह वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम नामा था जो अम्मोनी स्त्री थी। 11O 14 23 और यहूदी लोग वह करने लगे जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, और अपने पुरखाओं से भी अधिक पाप काके उसकी जलन भड़काई। 11O 14 24 उन्हों ने तो सब ऊंचे टीलों पर, और सब हरे वृक्षों के तले, ऊंचे स्थान, और लाठें, और अशेरा नाम मूरतें बना लीं । 11O 14 25 और उनके देश में पुरूषगामी भी थे; निदान वे उन जातियों के से सब घिनौने काम करते थे जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियों के साम्हने से निकाल दिया था। 11O 14 26 राजा सहूबियाम के पांचवें वर्ष में मिस्र का राजा शीशक, यरूशलेम पर चढ़ाई करके, 11O 14 27 यहोवा के भवन की अनमोल वस्तुएं और राजभवन की अनमोल वस्तुएं, सब की सब उठा ले गया; और सोने की जो ढालें सुलैमान ने बनाई थीं सब को वह ले गया। 11O 14 28 इसलिये राजा रहूबियाम ने उनके बदले पीतल की ढालें बनवाई और उन्हें पहरूओं के प्रधानों के हाथ सौंप दिया जो राजभवन के द्वार की रखवाली करते थे। 11O 14 29 और जब जब राजा यहोवा के भवन में जाता था तब तब पहरूए उन्हें उठा ले चलते, और फिर अपनी कोठरी में लौटाकर रख देते थे। 11O 14 30 रहूबियाम के और सब काम जो उस ने किए वह क्या यहूदा के राजाओ के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 11O 14 31 रहूबियाम और यारोबाम में तो सदा लड़ाई होती रही। 11O 14 32 और रहूबियाम जिसकी माता नामा नाम एक अम्मोनिन थी, अपने पुरखाओं के साथ सो गया; और उन्हीं के पास दाऊदपुर में उसको मिट्टी दी गई : और उसका पुत्रा अबिरयाम उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 11O 15 1 नाबात के पुत्रा यारोबाम के राज्य के अठारहवें वर्ष में अबिरयाम यहूदा पर राज्य करने लगा। 11O 15 2 और वह तीन वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम माका था जो अबशालोम की पुत्री थी : 11O 15 3 वह वैसे ही पापों की लीक पर चलता रहा जैसे उसके पिता ने उस से पहिले किए थे और उसका मन अपने परमेश्वर यहोवा की ओर अपने परदादा दाऊद की नाई पूरी रीति से सिठ्ठ न था; 11O 15 4 तौभी दाऊद के कारण उसके परमेश्वर यहोवा ने यरूशलेम में उसे एक दीपक दिया अर्थात् उसके पुत्रा को उसके बाद ठहराया और यरूशलेम को बनाए रखा। 11O 15 5 क्योंकि दाऊद वह किया करता था जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था और हित्ती ऊरिरयाह की बात के सिवाय और किसी बात में यहोवा की किसी आज्ञा से जीवन भर कभी न मुड़ा। 11O 15 6 रहूबियाम के जीवन भर तो उसके और यारोबाम के बीच लड़ाई होती रही। 11O 15 7 अबिरयाम के और सब काम जो उस ने किए, क्या वे यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? और अबिरयाम की यारोबाम के साथ लड़ाई होती रही। 11O 15 8 निदान अबिरयाम अपने पुरखाओं के संग सोया, और उसको दाऊदपुर में मिट्टी दी गई, और उसका पुत्रा आसा उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 11O 15 9 इस्राएल के राजा यारोबाम के बीसवें वर्ष में आसा यहूदा पर राज्य करने लगा; 11O 15 10 और यरूशलेम में इकतालीस वर्ष तक राज्य करता रहा, और उसकी माता अबिशालोम की पुत्री माका थी। 11O 15 11 और आसा ने अपने मूलपुरूष दाऊद की नाई वही किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था। 11O 15 12 उस ने तो पुरूषगामियों को देश से निकाल दिया, और जितनी मूरतें उसके पुरखाओं ने बनाई थी उन सभों को उस ने दूर कर दिया। 11O 15 13 वरन उसकी माता माका जिस ने अशेरा के लिये एक घिनौनी मूरत बनाई थी उसको उस ने राजमाता के पद से उतार दिया, और आसा ने उसकी मूरत को काट डाला और किद्रोन के नाले में फूंक दिया। 11O 15 14 परन्तु ऊंचे स्थान तो ढाए न गए; तौभी आसा का मन जीवन भर यहोवा की ओर पूरी रीति से लगा रहा। 11O 15 15 और जो सोना चांदी और पात्रा उसके पिता ने अर्पण किए थे, और जो उसने स्वयं अर्पण किए थे, उन सभों को उस ने यहोवा के भवन में पहुंचा दिया। 11O 15 16 और आसा और इस्राएल के राजा बाशा के बीच उनके जीवन भर युठ्ठ होता रहा 11O 15 17 और इस्राएल के राजा बाशा ने यहूदा पर चढ़ाई की, और रामा को इसलिये दृढ़ किया कि कोई यहूदा के राजा आसा के पास आने जाने न पाए। 11O 15 18 तब आसा ने जितना सोना चांदी यहोवा के भवन और राजभवन के भणडारों में रह गया था उस सब को निकाल अपने कर्मचारियों के हाथ सोंपकर, दमिश्कवासी अराम के राजा बेन्हदद के पास जो हेज्योन का पोता और तब्रिम्मोन का पुत्रा था भेजकर यह कहा, कि जैसा मेरे और तेरे पिता के मध्य में वैसा ही मेरे और तेरे मध्य भी वाचा बान्धी जाए : 11O 15 19 देख, मैं तेरे पास चांदी सोने की भेंट भेजता हूँ, इसलिये आ, इस्राएल के राजा बाशा के साथ की अपनी वाचा को टाल दे, कि वह मेरे पास से चला जाए। 11O 15 20 राजा आसा की यह बात मानकर बेन्हदद ने अपने दलों के प्रधानों से इस्राएली नगरों पर चढ़ाई करवाकर इरयोन, दान, आबेल्वेत्माका और समस्त किन्नेरेत को और नप्ताली के समस्त देश को पूरा जीत लिया। 11O 15 21 यह सुनकर बाशा ने रामा को दृढ़ करना छोड़ दिया, और तिर्सा में रहने लगा। 11O 15 22 तब राजा आसा ने सारे यहूदा में प्रचार करवाया और कोई अनसुना न रहा, तब वे रामा के पत्थ्रों और लकड़ी को जिन से बासा उसे दृढ़ करता था उठा ले गए, और उन से राजा आसा ने बिन्यामीन के गेबा और मिस्पा को दृढ़ किया। 11O 15 23 आसा के और काम और उसकी वीरता और जो कुछ उस ने किया, और जो नगर उस ने दृढ़ किए, यह सब क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 11O 15 24 परन्तु उसके बुढ़ापे में तो उसे पांवों का रोग लग गया। निदान आसा अपने पुरखाओं के संग सो गया, और उसे उसके मूलपुरूष दाऊद के नगर में उन्हीं के पास पिट्टी दी गई और उसका पुत्रा यहोशापात उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 11O 15 25 यहूदा के राजा आसा के दूसरे वर्ष में यारोबाम का पुत्रा नादाब इस्राएल पर राज्य करने लगा; और दो वर्ष तक राज्य करता रहा। 11O 15 26 उस ने वह काम किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था और अपने पिता के मार्ग पर वही पाप करता हुआ चलता रहा जो उस ने इस्राएल से करवाया था। 11O 15 27 नादाब सब इस्राएल समेत पलिश्तियों के देश के गिब्बतोन नगर को घेरे था। और उस्साकार के गोत्रा के अहिरयाह के पुत्रा बाशा ने उसके विरूद्ध राजद्रोह की गोष्ठी करके गिब्बतोन के पास उसको मार डाला। 11O 15 28 और यहूदा के राजा आसा के तीसरे वर्ष में बाशा ने नादाब को मार डाला, और उसके स्थान पर राजा बन गया। 11O 15 29 राजा होते ही बाशा ने यारोबाम के समस्त घराने को मार डाला; उस ने यारोबाम के वंश को यहां तक नष्ट किया कि एक भी जीवित न रहा। यह सब यहोवा के उस वचन के अनुसार हुआ जो उस ने अपने दास शीलोवासी अहिरयाह से कहवाया था। 11O 15 30 यह इस कारण हुआ कि यारोबाम ने स्वयं पाप किए, और इस्राएल से भी करवाए थे, और उस ने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा को क्रोधित किया था। 11O 15 31 नादाब के और सब काम जो उस ने किए, वह क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक पें नहीं लिखे हैं? 11O 15 32 आसा और इस्राएल के राजा बाशा के मध्य में तो उनके जीवन भर युठ्ठ होता रहा। 11O 15 33 यहूदा के राजा आसा के तीसरे वर्ष में अहिरयाह का पुत्रा बाशा, तिर्सा में समस्त इस्राएल पर राज्य करने लगा, और चौबीस वर्ष तक राज्य करता रहा। 11O 15 34 और उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था, और यारोबाम के मार्ग पर वही पाप करता रहा जिसे उस ने हस्राएल से करवाया था। 11O 16 1 तब परमेश्वर का सन्दूक ले आकर उस तम्हू में रखा गया जो दाऊद ने उसके लिये खड़ा कराया था; और परमेश्वर के साम्हने होमबलि और मेलबलि चढ़ाए गए। 11O 16 2 जब दाऊद होमबलि और मेलबलि चढ़ा जूका, तब उस ने यहोवा के नाम से प्रजा को आशीर्वाद दिया। 11O 16 3 और उस ने क्या पुरूष, क्या स्त्री, सब इस्राएलियों को एक एक रोटी और एक एक टुकड़ा मांस और किशमिश की एक एक टिकिया बंटवा दी। 11O 16 4 तब उस ने कई लेवियों को इसलिये ठहरा दिया, कि यहोवा के सत्दूक के साम्हने सेवा टहल किया करें, और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की चर्चा और उसका धन्यवाद और स्तुति किया करें। 11O 16 5 उनका मुखिया तो आसाप था, और उसके नीचे जकर्याह था, फिर यीएल, शमीरामोत, यहीएल, मत्तित्याह, एलीआब बनायाह, ओबेदेदोम और यीएल थे; ये तो सारंगियां और वीणाएं लिये हुए थे, और आसाप झांझ पर राग बजाता था। 11O 16 6 और बनायाह और यहजीएल नाम याजक परमेश्वर की वाचा के सन्दूक के साम्हने नित्य तुरहियां बजाने के लिए नियुक्त किए गए। 11O 16 7 तब उसी दिन दाऊद ने यहोवा का धन्यवाद करने का काम आसाम और उसके भाइयों को सौंप दिया। 11O 16 8 यहोवा का धन्यवाद करो, उस से प्रार्थना करो; देश देश में उसके कामों का प्रचार करो। 11O 16 9 उसका गीत गाओ, उसका भजन करो, उसके सब आश्चर्य- कम का ध्यान करो। 11O 16 10 उसके पवित्रा नाम पर घपंड करो; यहोवा के खोजियों का हृदय आनन्दित हो। 11O 16 11 यहोवा और उसकी सामर्थ की खोज करो; उसके दर्शन के लिए लगातार खोज करो। 11O 16 12 उसेक किए हुए आर्श्ख्यकर्म, उसके चमत्कार और न्यायवचन स्मरण करो। 11O 16 13 हे उसके दास इस्राएल के वंश, हे याकूब की सन्तान तुम जो उसके चुने हुए हो ! 11O 16 14 वही हमारा परमेश्वर यहोवा है, उसके न्याय के काम पृथ्वी भर में होते हैं। 11O 16 15 उसकी वाचा को सदा स्मरण रखो, यह वही वचन है जो उस ने हजार पीढ़ियों के लिये ठहरा दिया। 11O 16 16 वह वाचा उस ने इब्राहीम के साथ बान्धी, और उसी के विषय उस ने इसहाक से शपथ खाई, 11O 16 17 और उसी को उस ने याकूब के लिये विधि करके और इस्राएल के लिये सदा की वाचा बान्धकर यह कहकर दृढ़ किया, कि 11O 16 18 मैं कनान देश तुझी को दूंगा, वह बांट में तुम्हारा निज भाग होगा। 11O 16 19 उस समय तो तुम गिनती में थोड़े थे, वरन बहुत ही थोड़े और उस देश में परदेशी थे। 11O 16 20 और वे एक जाति से दूसरी जाति में, और एक जाज्य से दूसरे में फिरते तो रहे, 11O 16 21 परन्तु उस ने किसी पनुष्य को उन पर अन्धेर करने न दिया; और वह राजाओं को उनके निमित्त यह धमकी देता था, कि 11O 16 22 मेरे अभिषिक्तों को मत छुओ, और न मेरे नबियों की हानि करो। 11O 16 23 हे समस्त पृथ्वी के लोगो यहोवा का गीत गाओ। प्रतिदिन उसके किए हुए उठ्ठार का शुभ समाचार सुनाते रहो। 11O 16 24 अन्यजातियों में उसकी महिमा का, और देश देश के लोगों में उसके आश्चर्य- कम का वर्णन करो। 11O 16 25 क्योंकि यहोवा महान और स्तुति के अति योग्य है, वह तो सब देवताओं से अधिक भययोग्य है। 11O 16 26 क्योंकि देश देश के सब देवता मूर्तियां ही हैं; परन्तु यहोवा ही ने स्वर्ग को बनाया है। 11O 16 27 उसके चारों ओर विभव और ऐश्वर्य है; उसके स्थान में सामर्थ और आनन्द है। 11O 16 28 हे देश देश के कुलो, यहोवा का गुणानुवाद करो, यहोवा की महिमा और सामर्थ को मानो। 11O 16 29 यहोवा के नाम की महिमा ऐसी मानो जो उसके नाम के योग्य है। भेंट लेकर उसके सम्मुख आओ, पवित्राता से शोभायमान होकर यहोवा को दणडवत करो। 11O 16 30 हे सारी पृथ्वी के लोगो उसके साम्हने थरथराओ ! जगत ऐसा स्थिर है, कि वह टलने का नहीं। 11O 16 31 आकाश आनन्द करे और पृथ्वी मगन हो, और जाति जाति में लोग कहें, कि यहोवा राजा 11O 16 32 हुआ है। समुद्र और उस में की सब वस्तुएं गरज उठें, मैदान और जो कुछ उस में है सो प्रफुल्लित हों। 11O 16 33 उसी समय वन के वृक्ष यहोवा के साम्हने जयजयकार करें, क्योंकि वह पृथ्वी का न्याय करने को आनेवाला है। 11O 16 34 यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; उसकी करूणा सदा की है। 11O 17 1 और तिशबी एलिरयाह जो गिलाद के पर :सियों में से था उस ने अहाब से कहा, इस्राएल का परमेश्वा यहोवा जिसके सम्मुख मैं उपस्थ्ति रहता हूँ, उसके जीवन की शपथ इन वष में मेरे बिना कहे, न तो मेंह बरसेगा, और न ओस पड़ेगी। 11O 17 2 तब यहोवा का यह वचन उसके पास पहुंचा, 11O 17 3 कि यहां से चलकर पूरब ओर मुख करके करीत नाम नाले पें जो यरदन के साम्हने है छिप जा। 11O 17 4 उसी नाले का पानी तू पिया कर, और मैं ने कौवों को आज्ञा दी है कि वे तूझे वहां खिलाएं। 11O 17 5 यहोवा का यह वचन मानकर वह यरदन के साम्हने के करीत नाम नाले में जाकर छिपा रहा। 11O 17 6 और सबेरे और सांझ को कौवे उसके पास रोटी और मांस लाया करते थे और वह नाले का पानी पिया करता था। 11O 17 7 कुछ दिनों के बाद उस देश में वर्षा न होने के कारण नाला सूख गया। 11O 17 8 तब यहोवा का यह वचन उसके पास पहुंचा, 11O 17 9 कि चलकर सीदोन के सारपत नगर में जाकर वहीं रह : सुन, मैं ने वहां की एक विधवा को तेरे खिलाने की आज्ञा दी है। 11O 17 10 सो वह वहां से चल दिया, और सारपत को गया; नगर के फाटक के पास पहुंचकर उस ने क्या देखा कि, एक विधवा लकड़ी बीन रही है, उसको बुलाकर उस ने कहा, किसी पात्रा में मेरे पीने को थोड़ा पानी ले आ। 11O 17 11 जब वह लेने जा रही थी, तो उस ने उसे पुकार के कहा अपने हाथ में एक टुकड़ा रोटी भी मेरे पास लेती आ। 11O 17 12 उस ने कहा, तेरे परमेश्वर यहोवा के जीवन की शपथ मेरे पास एक भी रोटी नहीं है केवल घड़े में मुट्ठी भर मैदा और कुप्पी में थोड़ा सा तेल है, और मैं दो एक लकड़ी बीनकर लिए जाती हूँ कि अपने और अपने बेटे के लिये उसे पकाऊं, और हम उसे खाएं, फिर मर जाएं। 11O 17 13 एलिरयाह ने उस से कहा, मत डर; जाकर अपनी बात के अनुसार कर, परन्तु पहिले मेरे लिये एक छोटी सी रोटी बनाकर मेरे पास ले आ, फिर इसके बाद अपने और अपने बेटे के लिये बनाना। 11O 17 14 क्योंकि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि जब तक यहोवा भूमि पर मेंह न बरसाएगा तब तक न तो उस घड़े का मैदा चुकेगा, और न उस कुप्पी का तेल घटेगा। 11O 17 15 तब वह चली गई, और एलिरयाह के वचन के अनुसार किया, तब से वह और स्त्री और उसका घराना बहुत दिन तक खाते रहे। 11O 17 16 यहोवा के उस वचन के अनुसार जो उस ने एलिरयाह के द्वारा कहा था, न तो उस घड़े का मैदा चुका, और न उस कुप्पी का तेल घट गया। 11O 17 17 इन बातों के बाद उस स्त्री का बेटा जो घर की स्वामिनी थी, रोगी हुआ, और उसका रोग यहां तक बढ़ा कि उसका सांस लेना बन्द हो गया। 11O 17 18 तब वह एलिरयाह से कहने लगी, हे परमेश्वर के जन ! मेरा तुझ से क्या काम? क्या तू इसलिये मेरे यहां आया है कि मेरे बेटे की मृत्यु का कारण हो और मेरे पाप का स्मरण दिलाए ? 11O 17 19 उस ने उस से कहा अपना बेटा मुझे दे; तब वह उसे उसकी गोद से लेकर उस अटारी पर ले गया जहां वह स्वयं रहता था, और अपनी खाट पर लिटा दिया। 11O 17 20 तब उस ने यहोवा को पुकारकर कहा, हे मेरे परमेश्वर यहोवा ! क्या तू इस विधवा का बेटा मार डालकर जिसके यहां मैं टिका हूं, इस पर भी विपत्ति ले आया है? 11O 17 21 तब वह बालक पर तीन बार पसर गया और यहोवा को पुकारकर कहा, हे मेरे परमेश्वर यहोवा ! इस बालक का प्राण इस में फिर डाल दे। 11O 17 22 एलिरयाह की यह बात यहोवा ने सुन ली, और बालक का प्राण उस में फिर आ गया और वह जी उठा। 11O 17 23 तब एलिरयाह बालक को अटारी पर से नीचे घर में ले गया, और एलिरयाह ने यह कहकर उसकी माता के हाथ में सौंप दिया, कि देख तेरा बेटा जीवित है। 11O 17 24 स्त्री ने एलिरयाह से कहा, अब मुझे निश्चय हो गया है कि तू परमेश्वर का जन है, और यहोवा का जो वचन तेरे मुंह से निकलता है, वह सच होता है। 11O 18 1 बहुत दिनों के बाद, तीसरे वर्ष में यहोवा का यह वचन एलिरयाह के पास पहुंचा, कि जाकर अपने अपप को अहाब को दिखा, और मैं भूमि पर मेंह बरसा दूंगा। 11O 18 2 तब एलिरयाह अपने आप को अहाब को दिखाने गया। उस समय शोमरोन में अकाल भारी था। 11O 18 3 इसलिये अहाब ने ओबद्याह को जो उसके घराने का दीवान था बुलवाया। 11O 18 4 ओबद्याह तो यहोवा का भय यहां तक मानता था कि जब ईज़ेबेल यहोवा के नबियों को नाश करती थी, तब ओबद्याह ने एक सौ नबियों को लेकर पचास- पचास करके गुफाओं में छिपा रखा; और अन्न जल देकर उनका पालन- पोषण करता रहा। 11O 18 5 और अहाब ने ओबद्याह से कहा, कि देश में जल के सब सोतों और सब नदियों के पास जा, कदाचित इतनी घास मिले कि हम घेड़ों और खच्चरों को जीवित बचा सकें, 11O 18 6 और हमारे सब पशु न मर जाएं। और उन्हों ने आपस में देश बांटा कि उस में होकर चलें; एक ओर अहाब और दूसरी ओर ओबद्याह चला। 11O 18 7 ओबद्याह मार्ग में था, कि एलिरयाह उसको मिला; उसे चरन्ह कर वह मुंह के बल गिरा, और कहा, हे मेरे प्रभु एलिरयह, क्या तू है? 11O 18 8 उस ने कहा हां मैं ही हूँ : जाकर अपने स्वामी से कह, कि एलिरयाह मिला है। 11O 18 9 उस ने कहा, मैं ने ऐसा क्या पाप किया है कि तू मुझे मरवा डालने के लिये अहाब के हाथ करना चाहता है? 11O 18 10 तेरे परमेश्वर यहोवा के जीवन की शपथ कोई ऐसी जाति वा राज्य नहीं, जिस में मेरे स्वामी ने तुझे ढूंढ़ने को न भेजा हो, और जब उन लोगों ने कहा, कि वह यहां नहीं है, तब उस ने उस राज्य वा जाति को इसकी शपथ खिलाई कि एलिरयाह नहीं मिला। 11O 18 11 और अब तू कहता है कि जाकर अपने स्वामी से कह, कि एलिरयाह मिला ! 11O 18 12 फिर ज्यों ही मैं तेरे पास से चला जाऊंगा, त्यों ही यहोवा का आत्मा तुझे न जाने कहां उठा ले जाएगा, सो जब मैं जाकर अहाब को बताऊंगा, और तू उसे न मिलेगा, तब वह मुझे मार डालेगा : परन्तु मैं तेरा दास अपने लड़कपन से यहोवा का भय मानता आया हूँ ! 11O 18 13 क्या मेरे प्रभु को यह नहीं बताया गया, कि जब ईज़ेबेल यहोवा के नबियों को घात करती थी तब मैं ने क्या किया? कि यहोवा के नबियों में से एक सौ लेकर पचाय- पचाय करके गुफाओं में छिपा रखा, और उन्हें अन्न जल देकर पालता रहा। 11O 18 14 फिर अब तू कहता है, जाकर अपने स्वामी से कह, कि एलिरयाह मिला है ! तब वह मुझे घात करेगा। 11O 18 15 एलिरयाह ने कहा, सेनाओं का यहोवा जिसके साम्हने मैं रहता हूँ, उसके जीवन की शपथ आज मैं अपने अप को उसे दिखाऊंगा। 11O 18 16 तब ओबद्याह अहाब से मिलने गया, और उसको बता दिया, सो अहाब एलिरयाह से मिलने चला। 11O 18 17 एलिरयाह को देखते ही अहाब ने कहा, हे इस्राएल के सतानेवाले क्या तू ही है? 11O 18 18 उस ने कहा, मैं ने इस्राएल को कष्ट नहीं दिया, परन्तु तू ही ने और तेरे पिता के घराने ने दिया है; क्योंकि तुम यहोवा की आज्ञाओ को टालकर बाल देवताओं की उपासना करने लगे। 11O 18 19 अब दूत भेजकर सारे इस्राएल को और बाल के साढ़े चार सौ नबियों और अशेरा के चार सौ नबियों को जो ईज़ेबेल की मेज पर खाते हैं, मेरे पास कर्म्मेल पर्वत पर इकट्ठा कर ले। 11O 18 20 तब अहाब ने सारे इस्राएलियों को बुला भेजा और नबियों को कर्म्मेल पर्वत पर इकट्ठा किया। 11O 18 21 और एलिरयाह सब लोगों के पास आकर कहने लगा, तुम कब तक दो विचारों में लटके रहोगे, यदि यहोवा परमेश्वर हो, तो उसके पीछे हो लेओे; और यदि बाल हो, तो उसके पीछे हो लेओ। लोगों ने उसके उत्तर में एक भी बात न कही। 11O 18 22 तब एलिरयाह ने लोगों से कहा, यहोवा के नबियों में से केवल मैं ही रह गया हूँ; और बाल के नबी साढ़े चार सौ मनुष्य हैं। 11O 18 23 इसलिये दो बछड़े लाकर हमें दिए जाएं, और वे एक अपने लिये चुनकर उसे टुकड़े टुकड़े काटकर लकड़ी पर रख दें, और कुछ आग न लगाएं; और मैं दूसरे बछड़े को तैयार करके लकड़ी पर रखूंगा, और कुछ आग न लगाऊंगा। 11O 18 24 तब तुम तो अपने दवता से प्रार्थना करना, और मैं यहोवा से प्रार्थना करूंगा, और जो आग गिराकर उत्तर दे वही परमेश्वर ठहरे। तब सब लोग बोल उठे, अच्छी बात। 11O 18 25 और एलिरयाह ने बाल के नबियों से कहा, पहिले तुम एक बछड़ा चुनकर तैयार कर लो, क्योंकि तुम तो बहुत हो; तब अपने देवता से प्रार्थना करना, परन्तु आग न लगाना। 11O 18 26 तब उन्हों ने उस बछड़े को जो उन्हें दिया गया था लेकर तैयार किया, और भोर से लेकर दोपहर तक वह यह कहकर बाल से प्रार्थना करते रहे, कि हे बाल हमारी सुन, हे बाल हमारी सुन ! परन्तु न कोई शब्द और न कोई उत्तर देनेवाला हुआ। तब वे अपनी बनाई हुई वेदी पर उछलने कूदने लगे। 11O 18 27 दोपहर को एलिरयाह ने यह कहकर उनका ठट्ठा किया, कि ऊंचे शब्द से पुकारो, वह तो देवता है; वह तो ध्यान लगाए होगा, वा कहीं गया होगा वा यात्रा में होगा, वा हो सकता है कि सोता हो और उसे जगाना चाहिए। 11O 18 28 और उन्हों ने बड़े शब्द से पुकार पुकार के अपनी रीति के अनुसार छुरियों और बर्छियों से अपने अपने को यहां तक घायल किया कि लोहू लुहान हो गए। 11O 18 29 वे दोपहर भर ही क्या, वरन भेंट चढ़ाने के समय तक नबूवत करते रहे, परन्तु कोई शब्द सुन न पड़ा; और न तो किसी ने उत्तर दिया और न कान लगाया। 11O 18 30 तब एलिरयाह ने सब लोगों से कहा, मेरे निकट आओ; और सब लोग उसके निकट आए। तब उस ने यहोवा की वेदी की जो गिराई गई थी मरम्मत की। 11O 18 31 फिर एलिरयाह ने याकूब के पुत्रों की गिनती के अनुसार जिसके पास यहोवा का यह पचन आया था, 11O 18 32 कि तेरा नाम इस्राएल होगा, बारह पत्थ्र छांटे, और उन पत्थरों से यहोवा के नाम की एक वेदी बनाई; और उसके चारों ओर इतना बड़ा एक गड़हा खोद दिया, कि उस में दो सआ बीज समा सके। 11O 18 33 तब उस ने वेदी पर लकड़ी को सजाया, और बछड़े को टुकड़े टुकड़े काटकर लकड़ी पर धर दिया, और कहा, चार घड़े पानी भर के होमबलि, पशु और लकड़ी पर उणडेल दो। 11O 18 34 तब उस ने कहा, दूसरी बार वैसा ही करो; तब लोगों ने दूसरी बार वैसा ही किया। फिर उस ने कहा, तीसरी बार करो; तब लोगों ने तीसरी बार भी वैसा ही किया। 11O 18 35 और जल वेदी के चारों ओर बह गया, और गड़हे को भी उस ने जल से भर दिया। 11O 18 36 फिर भेंट चढ़ाने के समय एलिरयाह नबी समीप जाकर कहने लगा, हे इब्राहीम, इसहाक और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ! आज यह प्रगट कर कि इस्राएल में तू ही परमेश्वर है, और मैं तेरा दास हूँ, और मैं ने ये सब काम तझ से वचन पाकर किए हैं। 11O 18 37 हे यहावा ! मेरी सुन, मेरी सुन, कि ये लोग जान लें कि हे यहोवा, तू ही परमेश्वर है, और तू ही उनका मन लौटा लेता है। 11O 18 38 तब यहोवा की आग आकाश से प्रगट हुई और होमबलि को लकड़ी और पत्थ्रों और धूलि समेत भस्म कर दिया, और गड़हे में का जल भी सुखा दिया। 11O 18 39 यह देख सब लोग मुंह के बल गिरकर बोल उठे, यहोवा ही परमेश्वर है, यहोवा ही परमेश्वर है; 11O 18 40 एलिरयाह ने उन से कहा, बाल के नबियों को पकड़ लो, उन में से एक भी छूटते न पाए; तब उन्हों ने उनको पकड़ लिया, और एलिरयाह ने उन्हें नीचे किशोन के नाले में ले जाकर मार डाला। 11O 18 41 फिर एलिरयाह ने अहाब से कहा, उठकर खा पी, क्योंकि भारी वर्षा की सनसनाहट सुन पडती है। 11O 18 42 तब अहाब खाने पीने चला गया, और एलिरयाह कर्म्मेल की चोटी पर चढ़ गया, और भूमि पर गिर कर अपना मुंह घुटनों के बीच किया। 11O 18 43 और उस ने अपने सेवक से कहा, चढ़कर समुद्र की ओर दृष्टि कर देख, तब उस ने चढ़कर देखा और लौटकर कहा, कुछ नहीं दीखता। एलिरयाह ने कहा, फिर सात बार जा। 11O 18 44 सातवीं बार उस ने कहा, देख समुद्र में से मनुष्य का हाथ सा एक छोटा आदल उठ रहा है। एलिरयाह ने कहा, अहाब के पास जाकर कह, कि रथ जुतवा कर नीचे जा, कहीं ऐसा न हो कि नू वर्षा के कारण रूक जाए। 11O 18 45 थोड़ी ही देर में आकाश वायु से उड़ाई हुई घटाओं, और आन्धी से काला हो गया और भरी वर्षा होने लगी; और अहाब सवार होकर यिज्रेल को चला। 11O 18 46 तब यहोवा की शक्ति एलिरयाह पर ऐसी हुई; कि वह कमर बान्धकर अहाब के आगे आगे यिज्रेल तक दौड़ता चला गया। 11O 19 1 तब अहाब ने ईज़ेबेल को एलिरयाह के सब काम विस्तार से बताए कि उस ने सब नबियों को तलवार से किस प्रकार मार डाला। 11O 19 2 तब ईज़ेबेल ने एलिरयाह के पास एक दूत के द्वारा कहला भेजा, कि यदि मैं कल इसी समय तक तेरा प्राण उनका सा न कर डालूं तो देवता मेरे साथ वैसा ही वरन उस से भी अधिक करें। 11O 19 3 यह देख एलिरयाह अपना प्राण लेकर भागा, और यहूदा के बेश् बा को पहुंचकर अपने सेवक को वहीं छोड़ दिया। 11O 19 4 और आप जंगल में एक दिन के मार्ग पर जाकर एक झाऊ के पेड़ के तले बैठ गया, वहां उस ने यह कह कर अपनी मृत्यु मांगी कि हे यहोवा बस है, अब मेरा प्राण ले ले, क्योंकि मैं अपने पुरखाओं से अच्छा नहीं हूँ। 11O 19 5 चह झाऊ के पेड़ तले लेटकर सो गया और देखो एक दूत ने उसे छूकर कहा, उठकर खा। 11O 19 6 उस ने दृष्टि करके क्या देखा कि मेरे सिरहाने पत्थरों पर पको ऊई एक रोटी, और एक सुराही पानी धरा है; तब उस ने खाया और पिया और फिर लेट गया। 11O 19 7 दूसरी बार यहोवा का दूत आया और उसे छूकर कहा, उठकर खा, क्योंकि तुझे बहुत भारी यात्रा करनी है। 11O 19 8 तब उस ने उठकर खाया पिया; और उसी भोजन से बल पाकर चालीस दिन रात चलते चलते परमेश्वर के पर्वत होरेब को पहुंचा। 11O 19 9 वहां वह एक गुफा में जाकर टिका और यहोवा का यह वचन उसके पास पहुंचा, कि हे एलिरयाह तेरा यहां क्या काम? 11O 19 10 उन ने उत्तर दिया सेनाओं के परमेश्वर यहोवा के निमित्त मुझे बड़ी जलन हुई है, क्योकि इस्राएलियों ने तेरी वाचा आल दी, तेरी बेदियों को गिरा दिया, और तेरे नबियों को तलवार से घात किया है, और मैं ही अकेला रह गया हूँ; और वे मेरे प्राणों के भी खोजी हैं। 11O 19 11 उस ने कहा, निकलकर यहोवा के सम्मुख पर्वत पर खड़ा हो। और यहोवा पास से होकर चला, और यहोवा के साम्हने एक बड़ी प्रचणड आन्धी से पहाड़ फटने और चट्टानें टूटने लगीं, तौभी यहोवा उस आन्धी में न था; फिर आन्धी के बाद भूंईडोल हूआ, तौभी यहोवा उस भूंईडोल में न था। 11O 19 12 फिर भूंईडोल के बाद आग दिखाई दी, तौभी यहोवा उस आग में न था; फिर आग के बाद एक दबा हुआ धीमा शब्द सुनाई दिया। 11O 19 13 यह सुनते ही एलिरयाह ने अपना मुंह च र से ढांपा, और बाहर जाकर गुफा के द्वार पर खड़ा हुआ। फिर एक शब्द उसे सुनाई दिया, कि हे एलिरयाह तेरा यहां क्या काम? 11O 19 14 उस ने कहा, मुझे सेनाऔं के परमेश्वर यहोवा के निमित्त बड़ी जलन हुई, क्योंकि इस्राएलियों ने तेरी वाचा टाल दी, और तेरी वेदियों को गिरा दिया है और तेरे नबियों को तलवार से घात किया है; और मैं ही अकेला रह गया हूँ; और वे मेरे प्राणों के भी खोजी हैं। 11O 19 15 यहोवा ने उस से कहा, लौटकर दमिश्क के जंगल को जा, और वहां पहुंचकर अराम का राजा होने के लिये हजाएल का, 11O 19 16 और इस्राएल का राजा होने को निमशी के पोते येहू का, और अपने स्थान पर नबी होने के लिये आबेलमहोला के शापात के पुत्रा एलीशा का अभिषेक करना। 11O 19 17 और हजाएल की तलवार से जो कोई बच जाए उसको येहू मार डालेगा; और जो कोई येहू की तलवार से बच जाए उसको एलीशा मार डालेगा। 11O 19 18 तौभी मैं सात हजार इस्राएलियों को बचा रखूंगा। ये तो वे सब हैं, जिन्हों ने न तो बाल के आगे घुटने टेके, और न मुंह से उसे चूमा है। 11O 19 19 तब वह वहां से चल दिया, और शापात का पुत्रा एलीशा उसे मिला जो बारह जोड़ी बैल अपने आगे किए हुए आप बारहवीं के साथ होकर हल जोत रहा थ। उसके पास जाकर एलिरयाह ने अपनी च र उस पर डाल दी। 11O 19 20 तब वह बैलों को छोड़कर एलिरयाह के पीछे दौड़ा, और कहने लगा, मुझे अपने माता- पिता को चूमने दे, तब मैं तेरे पीछे चलूंगा। उस ने कहा, लौट जा, मैं ने तुझ से क्या किया है? 11O 19 21 तब वह उसके पीछे से लौट गया, और एक जोड़ी बैल लेकर बलि किए, और बैलों का सामान जलाकर उनका मांस पका के अपने लोगों को दे दिया, और उन्हों ने खाया; तब वह कमर बान्धकर एलिरयाह के पीछे चला, और उसकी सेवा टहल करने लगा। 11O 20 1 और अराम के राजा बेन्हदद ने अपनी सारी सेना इकट्ठी की, और उसके साथ बत्तीस राजा और घोड़े और रथ थे; उन्हें संग लेकर उस ने शोमरोन पर चढ़ाई की, और उसे घेर के उसके विरूद्ध लड़ा। 11O 20 2 और उस ने नगर में इस्राएल के राजा अहाब के पास दूतों को यह कहने के लिये भेजा, कि बेन्हदद तुझ से यों कहता है, 11O 20 3 कि तेरा चान्दी सोना मेरा है, और तेरी स्त्रियों और लड़केबालों में जो जो उत्तम हैं वह भी सब मेरे हैं। 11O 20 4 इस्राएल के राजा ने उसके पास कहला भेजा, हे मेरे प्रभु ! हे राजा ! तेरे वचन के अनुसार मैं और मेरा जो कुछ है, सब तेरा है। 11O 20 5 उन्हीं दूतों ने फिर आकर कहा बेन्हदद तुझ से यों कहता है, कि मैं ने तेरे पास यह कहला भेजा था कि तुझे अपनी चान्दी सोना और स्त्रियां और बालक भी मुझे देने पड़ेंगे। 11O 20 6 परन्तु कल इसी समय मैं अपने कर्मचारियों को तेरे पास भेजूंगा और वे तेरे और तेरे कर्मचारियों के धरों में ढूंढ़- ढांढ़ करेंगे, और तेरी जो जो मनभावनी वस्तुएं निकालें उन्हें वे अपने अपने हाथ में लेकर आएंगे। 11O 20 7 तब इस्राएल के राजा ने अपने देश के सब पुरनियों को बुलवाकर कहा, सोच विचार करो, कि वह मनुष्य हमारी हानि ही का अभिलाषी है; उस ने मुझ से मेरी स्त्रियां, बालक, चान्दी सोना मंगा भेजा है, और मैं ने इन्कार न किया। 11O 20 8 तब सब पुरनियों ने और सब साधारण लोगों ने उस से कहा, उसकी न सुनना; और न मानना। 11O 20 9 तब राजा ने बेन्हदद के दूतों से कहा, मेरे प्रभु राजा से मेरी ओर से कहो, जो कुुछ तू ने पहिले अपने दास से चाहा था वह तो मैं करूंगा, परन्तु यह मुझ से न होगा। तब बेन्हदद के दूतों ने जाकर उसे यह उत्तर सुना दिया। 11O 20 10 11O 20 11 तब बेन्हदद ने अहाब के पास कहला भेजा, यदि शोमरोन में इतनी धूलि निकले कि मेरे सब पीछे चलनेहारों की मुट्ठी भर कर अट जाए तो देवता मेरे साथ ऐसा ही वरन इस से भी अधिक करें। 11O 20 12 इस्राएल के राजा ने उत्तर देकर कहा, उस से कहो, कि जो हथियार बान्धता हो वह उसकी नाई न फूले जो उन्हें उतारता हो। 11O 20 13 यह वचन सुनते ही वह जो और राजाओं समेत डेरों में पी रहा था, उस ने अपने कर्मचारियों से कहा, पांति बान्धो, तब उन्हों ने नगर के विरूद्ध पांति बान्धी। 11O 20 14 तब एक नबी ते इस्राएल के राजा अहाब के पास जाकर कहा, यहोवा तुझ से यों कहता है, यह बड़ी भीड़ जो तू ने देखी है, उस सब को मैं आज तेरे हाथ में कर दूंगा, इस से तू जान लेगा, कि मैं यहोवा हूँ। 11O 20 15 अहाब ने पूछा, किस के द्वारा? उस ने कहा यहोवा यों कहता है, कि प्रदेशों के हाकिमों के सेवकों के द्वारा ! फिर उस ने पूछा, युठ्ठ को कौन आरम्भ करे? उस ने उत्तर दिया, तू ही। 11O 20 16 तब उस ने प्रदेशों के हाकिमों के सेवकों की गिनती ली, और वे दो सौ बत्तीस निकले; और उनके बाद उस ने सब इस्राएली लोगों की गिनती ली, और वे सात हजार निकले। 11O 20 17 ये दोपहर को निकल गए, उस समय बेन्हदद अपने सहायक बत्तीसों राजाओं समेत डेरों में दारू पीकर मतवाला हो रहा था। 11O 20 18 प्रदेशों के हाकिमों के सेवक पहिले निकले। तब बेन्हदद ने दूत भेजे, और उन्हों ने उस से कहा, शोमरोन से कुछ मनुष्य निकले आते हैं। 11O 20 19 उस ने कहा, चाहे वे मेल करने को निकले हों, चाहे लड़ने को, तौभी उन्हें जीवित ही पकड़ लाओ। 11O 20 20 तब प्रदेशों के हाकिमों के सेवक और उनके पीछे की सेना के सिपाही नगर से निकले। 11O 20 21 तौर वे अपने अपने साम्हने के पुरूष को पारने लगे; और अरामी भागे, और इस्राएल ने उनका पीछा किया, और अराम का राजा बेन्हदद, सवारों के संग घोड़े पर चढ़ा, और भागकर बच गया। 11O 20 22 तब इस्राएल के राजा ने भी निकलकर घोड़ों और रथों को मारा, और अरामियों को बड़ी मार से मारा। 11O 20 23 तब उस नबी ने इस्राएल के राजा के पास जाकर कहा, जाकर लड़ाई के लिये अपने को दृढ़ कर, और सचेत होकर सोच, कि क्या करना है, क्योंकि नये वर्ष के लगते ही अराम का राजा फिर तुझ पर चढ़ाई करेगा। 11O 20 24 तब अराम के राजा के कर्मचारियों ने उस से कहा, उन लोगों का देवता पहाड़ी देवता है, इस कारण वे हम पर प्रबल हुए; इसलिये हम उन से चौरस भूमि पर लड़ें तो निश्चय हम उन पर प्रबल हो जाएंगे। 11O 20 25 और यह भी काम कर, अर्थात् सब राजाओं का पद ले ले, और उनके स्थान पर सेनापतियों को ठहरा दे। 11O 20 26 फिर एक और सेना जो तेरी उस सेना के बराबर हो जो नष्ट हो गई है, घोड़े के बदले घोड़ा, और रथ के बदले रथ, अपने लिये गिन ले; तब हम चौरस भूमि पर उन से लड़ें, और निश्चय उन पर प्रबल हो जाएंगे। उनकी यह सम्मति मानकर बेन्हदद ने वैसा ही किया। 11O 20 27 और नये वर्ष के लगते ही बेन्हदद ने अरामियों को इकट्ठा किया, और इस्राएल से लड़ने के लिये अपेक को गया। 11O 20 28 और इस्राएली भी इकट्ठे किए गए, और उनके भोजन की तैयारी हुई; तब वे उनका साम्हना करने को गए, और इस्राएली उनके साम्हने डेरे डालकर बकरियों के दो छोटे झुणड से देख पड़े, परन्तु अरामियों से देश भर गया। 11O 20 29 तब परमेश्वर के उसी जन ने इस्राएल के राजा के पास जाकर कहा, यहोवा यों कहता है, अरामियों ने यह कहा है, कि यहोवा पहाड़ी देवता है, परन्तु नीची भूमि का नहीं है; इस कारण मैं उस बड़ी भीड़ को तेरे हाथ में कर दूंगा, तब तुम्हें बोध हो जाएगा कि मैं यहोवा हूँ। 11O 20 30 और वे सात दिन आम्हने साम्हने डेरे डाले पड़े रहे; तब सातवें दिन युठ्ठ छिड़ गया; और एक दिन में इस्राएलियों ने एक लाख अरामी पियादे मार डाले। 11O 20 31 जो बच गए, वह अपेक को भागकर नगर में घुसे, और वहां उन बचे हुए लोगों में से सत्ताईस हजार पुरूष श्हरपनाह की दीवाल के गिरने से दब कर मर गए। बेन्हदद भी भाग गया और नगर की एक भीतरी कोठरी में गया। 11O 20 32 तब उसके कर्मचारियों ने उस से कहा, सुन, हम ने तो सुना है, कि इस्राएल के घराने के राजा दयालु राजा होते हैं, इसदिये हमें कमर में टाट और सिर पर रस्सियां बान्धे हुए इस्राएल के राजा के पास जाने दे, सम्भव है कि वह तेरा प्राण बचा ले। 11O 20 33 तब वे कमर में टाट और सिर पर रस्सियां बान्ध कर इस्राएल के राजा के पास जाकर कहने लगे, तेरा दास बेन्हदद तुझ से कहता है, कृपा कर के मुझे जीवित रहने दे। राजा ने उत्तर दिया, क्या वह अब तक जीवित है? वह तो मेरा भाई है। 11O 20 34 उन लोगों ने इसे शुभ शकुन जानकर, फुत से बूझ लेने का यत्न किया कि यह उसके मन की बात है कि नहीं, और कहा, हां तेरा भाई बेन्हदद। राजा ने कहा, जाकर उसको ले आओ। तब बेन्हदद उसके पास निकल आया, और उस ने उसे अपने रथ पर चढ़ा लिया। 11O 20 35 तब बेन्हदद ने उस से कहा, जो नगर मेरे पीता ने तेरे पिता से ले लिए थे, उनको मैं फेर दूंगा; और जैसे मेरे पिता ने शोमरोन में अपने लिये सड़कें बनवाई, वैसे ही तू दमिश्क में सड़कें बनवाना। अहाब ने कहा, मैं इसी वाचा पर तुझे छोड़ देता हूँ, तब उस ने बेन्हदद से वाचा बान्धकर, उसे स्वतन्त्रा कर दिया। 11O 20 36 इसके बाद नबियों के चेलों में से एक जन ने यहोवा से वचन पाकर अपने संगी से कहा, मुझे मार, जब उस मनुष्य ने उसे मारने से इनकार किया, 11O 20 37 तब उस ने उस से कहा, तू ने यहोवा का वचन नहीं माना, इस कारण सुन, ज्योंही तू मेरे पास से चला जाएगा, त्योंही सिंह से मार डाला जाएगा। तब ज्योंही वह उसके पास से चला गया, ज्योंही उसे एक सिंह मिला, और उसको मार डाला। 11O 20 38 फिर उसको दूसरा मनुष्य मिला, और उस से भी उस ने कहा, मुझे मार। और उस ने उसको ऐसा मारा कि वह घायल हुआ। 11O 20 39 तब वह नबी चला गया, और आंखों को पगड़ी से ढांपकर राजा की बाट जोहता हुआ मार्ग पर खड़ा रहा। 11O 20 40 जब राजा पास होकर जा रहा था, तब उस ने उसकी दोहाई देकर कहा, कि जब तेरा दास युठ्ठ क्षेत्रा में गया था तब कोइ मनुष्य मेरी ओर मुड़कर किसी मनुष्य को मेरे पास ले आया, और मुझ से कहा, इस पतुष्य की चौकसी कर; यदि यह किसी रीति छूट जाए, तो उसके प्राण के बदले तुझे अपना प्राण देना होगा; नहीं तो किक्कार भर चान्दी देना पड़ेगा। 11O 20 41 उसके बाद तेरा दास इधर उधर काम में फंस गया, फिर वह न मिला। इस्राएल के राजा ने उस से कहा, तेरा ऐसा ही न्याय होगा; तू ने आप अपना न्याय किया है। 11O 20 42 नबी ने झट अपनी आंखों से पगड़ी उठाई, तब इस्राएल के राजा ने उसे पहिचान लिया, कि वह कोई नबी है। 11O 20 43 तब उस ने राजा से कहा, यहोवा तुझ से यों कहता है, इसलिये कि तू ने अपने हाथ से ऐसे ऐक मनुष्य को जाने दिया, जिसे मैं ने सत्यानाश हो जाने को ठहराया था, तुझे उसके प्राण की सन्ती अपना प्राण और उसकी प्रजा की सन्ती, अपनी प्रजा देनी पड़ेगी। 11O 20 44 तब इस्राएल का राजा उदास और अप्रसन्न होकर घर की ओर जला, और शोमरोन को आया। 11O 21 1 नाबोत नाम एक यिज्रेली की एक दाख की बारी शोमरोन के राजा अहाब के राजमन्दिर के पास यिज्रेल में थी। 11O 21 2 इन बातों के बाद आीाब ने नाबोत से कहा, तेरी दाख की बारी मेरे घर के पास है, तू उसे मुझे दे कि मैं उस में साग पात की बारी लगाऊं; और मैं उसके बदले तुझे उस से अच्छी एक बाटिका दूंगा, नहीं तो तेरी इच्छा हो तो मैं तुझे उसका मूल्य दे दूंगा। 11O 21 3 नाबोत ने यहाब से कहा, यहोवा न करे कि मैं अपने पुरखाओं का निज भाग तुझे दूं ! 11O 21 4 यिज्रेली नाबोत के इस वचन के कारण कि मैं तुझे अपने पुरखाओं का निज भाग न दूंगा, अहाब उदास और अप्रसन्न होकर अपते घर गया, और बिछौने पर लेट गया और मुंह फेर लिया, और कुछ भेजन न किया। 11O 21 5 तब उसकी पत्नी ईज़ेबेल ने उसके पास आकर पूछा, तेरा मन क्यों ऐसा उदास है कि तू कुछ भोजन नहीं करता? 11O 21 6 उस ने कहा, कारण यह है, कि मैं ने यिज्रेली नाबोत से कहा कि रूपया लेकर मुझे अपनी दाख की बारी दे, नहीं तो यदि नू चाहे तो मैं उसकी सन्ती दूसरी दाख की बारी दूंगा; और उसने कहा, मैं अपनी दाख की बारी तुझे न दूंगा। 11O 21 7 उसकी पत्नी ईज़ेबेल ने उस से कहा, क्या तू इस्राएल पर राज्य करता है कि नहीं? उठकर भोजन कर; और तेरा मन आनन्दित हो; यिज्रेली नाबोत की दाख की बारी मैं तुझे दिलवा दूंगी। 11O 21 8 तब उस ने अहाब के नाम से चिट्ठी लिखकर उसकी अंगूठी की छाप लगाकर, उन पुरनियों और रईसों के पास भेज दी जो उसी नगर में नाबोत के पड़ोस में रहते थे। 11O 21 9 उस चिट्ठी में उस ने यों लिखा, कि उपवास का प्रचार करो, और नाबोत को लोगों के साम्हने ऊंचे स्थान पर बैठाना। 11O 21 10 तब दो नीच जनों को उसके साम्हने बैठाना जो साक्षी देकर उस से कहें, तू ने परमेश्वर और राजा दोनों की निन्दा की। नब नुम लोग उसे बाहर ले जाकर उसको पत्थरवाह करना, कि वह मर जाए। 11O 21 11 ईज़ेबेल की चिट्ठी में की आज्ञा के अनुसार नगर में रहनेवाले पुरनियों और रईसों ने उपवास का प्रचार किया, 11O 21 12 और नाबोत को लोगों के साम्हने ऊंचे स्थान पर बैठाया। 11O 21 13 तब दो नीच जन आकर उसके सम्मुख बैठ गए; और उन नीच जनों ने लोगों लोगों के साम्हने नाबोत के विम्ठ्ठ यह साक्षी दी, कि नाबोत ने परमेश्वर और राजा दोनों की निन्दा की। इस पर उन्हों ने उसे नगर से बाहर ले जाकर उसको पत्थरवाह किया, और वह मर गया। 11O 21 14 तब उन्हों ने ईज़ेबेल के पास यह कहला भेजा कि नाबोत पत्थरवाह करके मार डाला गया है। 11O 21 15 यह सुनते ही कि नाबोत पत्थरवाह करके मारडाला गया है, ईज़ेबेल ने अहाब से कहा, उठकर यिज्रेली नाबोत की दाख की बारी को जिसे उस ने तुझे रूपया लेकर देने से भी इनकार किया था अपने अधिकार में ले, क्योंकि नाबोत जीवित नहीं परन्तु वह मर गया है। 11O 21 16 यिज्रेली नाबोत की मृत्यु का समाचार पाते ही अहाब उसकी दाख की बारी अपने अधिकार में लेने के लिये वहां जाने को उठ खड़ा हुआ। 11O 21 17 तब यहोवा का यह वचन निशबी एलिरयह के पास पहुंचा, कि चल, 11O 21 18 शोमरोन में रहनेवाले इस्राएल के राजा अहाब से मिलने को जा; वह तो नाबोत की दाख की बारी में है, उसे अपने अधिकार में लेने को वह वहां गया है। 11O 21 19 और उस से यह कहना, कि यहोवा यों कहता है, कि क्या तू ने घात किया, और अधिकारी भी बन बैटा? फिर तू उस से यह भी कहना, कि यहोवा यों कहता है, कि जिस स्थान पर कुत्तों ने नाबोत का लोहू चाटा, उसी स्थान पर कुत्ते तेरा भी लोहू चाटेंगे। 11O 21 20 एलिरयाह को देखकर अहाब ने कहा, हे मेरे शत्रु ! क्या तू ने मेरा पता लगाया है? उस ने कहा हां, लगाया तो है; और इसका कारण यह है, कि जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, उसे करने के लिये तू ने अपने को बेच डाला है। 11O 21 21 मैं तुझ पर ऐसी विपत्ति डालूंगा, कि तुझे पूरी रीति से मिटा डालूंगा; और अहाब के घर के एक एक लड़के को और क्या बन्धुए, क्या स्वाधीन इस्राएल में हर एक रहनेवाले को भी नाश कर डालूंगा। 11O 21 22 और मैं तेरा घराना नबात के पुत्रा यारोबाम, और अहिरयाह के पुत्रा बाशा का सा कर दूंगा; इसलिये कि तू ने मुझे क्रोधित किया है, और इस्राएल से पाप करवाया है। 11O 21 23 और ईज़ेबेल के विषय में यहोवा यह कहता है, कि यिज्रेल के किले के पास कुत्ते ईज़ेबेल को खा डालेंगे। 11O 21 24 अहाब का जो काई नगर में मर जाएगा उसको कुत्ते खा लेंगे; और जो कोई मैदान में मर जाएगा उसको आकाश के पक्षी खा जाएंगे। 11O 21 25 सचमुच अहाब के तुल्य और कोई न था जिसने अपनी पत्नी ईज़ेबेल के उसकाने पर वह काम करने को जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, अपने को बेच डाला था। 11O 21 26 वह तो उन एमोरियों की नाई जिनको यहोवा ने इस्राएलियों के साम्हने से देश से निकाला था बहुत ही घिनौने काम करता था, अर्थात् मूरतों की उपासना करने लगा था। 11O 21 27 एलिरयाह के ये वचन सुनकर अहाब ने अपने वस्त्रा फाड़े, और अपनी देह पर टाट लपेटकर उपवास करने और टाट ही ओढ़े पड़ा रहने लगा, और दबे पांवों चलने लगा। 11O 21 28 और यहोवा का यह वचन तिशबी एलिरयाह के पास पहुंचा, 11O 21 29 कि क्या तू ने देखा है कि अहाब मेरे साम्हने नम्र बन गया है? इस कारण कि वह मेरे साम्हने नम्र बन गया है मैं वह विपत्ति उसके जीते जी उस पर न डालूंगा परन्तू उसके पुत्रा के दिनों में मैं उसके घराने पर वह पिपत्ति भेजूंगा। 11O 22 1 और तीन वर्ष तक अरामी और इस्राएली बिना युठ्ठ रहे। 11O 22 2 तीसरे वर्ष में यहूदा का राजा यहोशापात इस्राएल के राजा के पास गया। 11O 22 3 तब इस्राएल के राजा ने अपने कर्मचारियों से कहा, क्या तुम को मालूम है, कि गिलाद का रामोत हमारा है? फिर हम क्यों चुपचाप रहते और उसे अराम के राजा के हाथ से क्यों नहीं छीन लेते हैं? 11O 22 4 और उस ने यहोशापात से पूछा, क्या तू मेरे संग गिलाद के रामोत से लड़ने के लिये जाएगा? यहोशापात ने इस्राएल के राजा को उत्तर दिया, जैसा तू है वैसा मैं भी हूँ। जैसी तेरी प्रजा है वैसी ही मेरी भी प्रजा है, और जैसे तेरे घोड़े हैं वैसे ही मेरे भी घोड़े हैं। 11O 22 5 फिर यहोशापात ने इस्राएल के राजा से कहा, 11O 22 6 कि आज यहोवा की इच्छा मालूम कर ले, नब इस्राएल के राजा ने नबियों को जो कोई चार सौ पुरूष थे इकट्ठा करके उन से पूछा, क्या मैं गिलाद के रामोत से युठ्ठ करने के लिये चढ़ाई करूं, वा रूका रहूं? उन्हों ने उत्तर दिया, चढ़ाई कर : क्योंकि प्रभु उसको राजा के हाथ में कर देगा। 11O 22 7 परन्तु यहोशापात ने पूछा, क्या यहां यहोवा का और भी कोई नबी नहीं है जिस से हम पूछ लें? 11O 22 8 इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, हां, यिम्ला का पुत्रा मीकायाह एक पुरूष और है जिसके द्वारा हम यहोेवा से पूछ सकते हैं? परन्तु मैं उस से घृणा रखता हूँ, क्योंकि वह मेरे विष्य कल्याण की नहीं वरन हानि ही की भविष्यद्वाणी करता है। 11O 22 9 यहोशापात ने कहा, राजा ऐसा न कहे। तब दस्राएल के राजा ने एक हाकिम को बुलवा कर कहा, यिम्ला के पुत्रा मीकायाह को फुत से ले आ। 11O 22 10 इस्राएल का राजा और यहूदा का राजा यहोशापात, अपने अपने राजवस्त्रा पहिने हुए शोमरोन के फाटक में एक खुले स्थान में अपने अपने सिंहासन पर विराजमान थे और सब भविष्यद्वक्ता उनके सम्मुख भविष्यद्वाणी कर रहे थे। 11O 22 11 तब कनाना के पुत्रा सिदकिरयाह ने लोहे के सींग बनाकर कहा, यहोवा यों कहता है, कि इन से तू अरामियों को मारते मारते नाश कर डालेगा। 11O 22 12 और सब नबियों ने इसी आशय की भविष्यद्वाणी करके कहा, गिलाद के रामोत पर चढ़ाई कर और तू कृतार्थ हो; क्योंकि यहोवा उसे राजा के हाथ में कर देगा। 11O 22 13 और जो दूत मीकायाह को बुलाने गया था उस ने उस से कहा, सुन, भविष्यद्वक्ता एक ही मुंह से राजा के विषय शुभ वचन कहते हैं तो तेरी बातें उनकी सी हों; तू भी शुभ वचन कहना। 11O 22 14 मीकायाह ने कहा, यहोवा के जीवन की शपथ जो कुछ यहोवा मुझ से कहे, वही मैं कहूंगा। 11O 22 15 जब वह राजा के पास आया, तब राजा ने उस से पूछा, हे मीकायाह ! क्या हम गिलाद के रामोत से युठ्ठ करने के लिये चढ़ाई करें वा रूके रहें? उस ने उसको उत्तर दिया हां, चढ़ाई कर और तू कृतार्थ हो; और यहोवा उसको राजा के हाथ में कर दे। 11O 22 16 राजा ने उस से कहा, मुझे कितनी बार तुझे शपथ धराकर चिताना होगा, कि तू यहोवा का स्मरण करके मुझ से सच ही कह। 11O 22 17 मीकायाह ने कहा मुझे समस्त इस्राएल बिना चरपाहे की भेड़बकरियों की नाई पहाड़ों पर; तित्तर बित्तर देख पड़ा, और यहोवा का यह वचन आया, कि वे तो अनाथ हैं; अतएव वे अपते अपने घर कुशल क्षेम से लौट जाएं। 11O 22 18 तब इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, क्या मैं ने तुझ से न कहा था, कि वह मेरे विषय कल्याण की नहीं हानि ही की भविष्यद्वाणी करेगा। 11O 22 19 मीकायाह ने कहा इस कारण तू यहोवा का यह वचन सुन ! मुझे सिंहासन पर विराजमान यहोवा और उसके पास दाहिने बांयें खड़ी इई स्वर्ग की समस्त सेना दिखाई दी है। 11O 22 20 तब यहोवा ने पूछा, अहाब को कौन ऐसा बहकाएगा, कि वह गिलाद के रामो पर चढ़ाई करके खेत आए तब किसी ते कुछ, और किसी ने कुछ कहा। 11O 22 21 निदान एक आत्मा पास आकर यहोव के सम्मुख खड़ी हुई, और कहने लगी, मैं उसको वहकाऊंगी : यहोवा ने पूछा, किस उपाय से? 11O 22 22 उस ने कहा, मैं जाकर उसके सब भविष्यद्वक्ताओं में पैठकर उन से झूठ बुलवाऊंगी। यहोवा ने कहा, तेरा उसको बहकाना सुफल होगा, जाकर ऐसा ही कर। 11O 22 23 तो अब सुन यहोवा ने तेरे इन सब भविष्यद्वक्ताओं के मुंह में एक झूठ बोलनेवाली आत्मा पैठाई है, और यहोवा ने तेरे विष्य हानि की बात कही है। 11O 22 24 तब कनाना के पुत्रा सिदकिज्याह ने मीकायाह के निकट जा, उसके गाल पर थपेड़ा मार कर पूछा, यहोवा का आन्मा मुझे छोड़कर तूझ से बातें करने को किधर गया? 11O 22 25 मीकायाह ने कहा, जिस दिन तू छिपने के लिये कोठरी से कोठरी में भगेगा, तब तूझे बोधा होगा। 11O 22 26 तब इस्राएल के राजा ने कहा, मीकायाह को नगर के हाकिम आमोन और योआश राजकुमार के पास ले जा; 11O 22 27 और उन से कह, राजा यों कहता है, कि इसको बन्दीगृह में डालो, और जब तक मैं कुशल से न आऊं, तब तक इसे दु:ख की रोटी और पानी दिया करो। 11O 22 28 और मीकायाह ने कहा, यदि तू कभी कुशल से लौटे, तो जान कि यहोवा ने मेरे द्वारा नहीं कहा। फिर उस ने कहा, हे लोगो तुम सब के सब सुन लो। 11O 22 29 तब इस्राएल के राजा और यहूदा के राजा यहोशापात दोनों ने गिलाद के रामोत पर चढ़ाई की। 11O 22 30 और इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, मैं तो भेष बदलकर युठ्ठ क्षेत्रा में जाऊंगा, परन्तु तू अपने ही वस्त्रा पहिने रहना। तब इस्राएल का राजा भेष बदलकर युठ्ठ क्षेत्रा में गया। 11O 22 31 और अराम के राजा ने तो अपने रथों के बत्तीसों प्रधानों को आज्ञा दी थी, कि न तो छोटे से लड़ो और न बड़े से, केवल इस्राएल के राजा से यूठ्ठ करो। 11O 22 32 तो जब रथों के प्रधानों ने यहोशापात को देखा, तब कहा, निश्चय इस्राएल का राजा वही है। और वे उसी से युठ्ठ करने को मुड़े; तब यहोशपात चिल्ला उठा। 11O 22 33 यह देखाकर कि वह इस्राएल का राजा नहीं है, रथों के प्रधान उसका पीछा छोड़कर लौट गए। 11O 22 34 तब किसी ने अटकल से एक तीर चलाया और वह इस्राएल के राजा के झिलम और निचले वस्त्रा के बीच छेदकर लगा; तब उसने अपने सारथी से कहा, मैं घायल हो गया हूँ इसलिये बागडोर फेर कर मुझे सेना में से बाहर निकाल ले चल। 11O 22 35 और उस दिन युठ्ठ बढ़त़ा गया और राजा अपने रथ में औरों के सहारे अरामियों के सम्मुख खड़ा रहा, और सांझ को मर गया; और उसके घाव का लोहू बहकर रथ के पौदान में भर गया। 11O 22 36 सूर्य डूबते हुए सेना में यह पुकार हुई, कि हर एक अपने नगर और अपने देश को लौट जाए। 11O 22 37 जब राजा मर गया, तब शोमरोन को पहुंचाया गया और शोमरोन में उसे मिट्टी दी गई। 11O 22 38 और यहोवा के वचन के अनुसार जब उसका रथ शोमरोन के पोखरे में धोया गया, तब कुत्तों ने उसका लोहू चाट लिया, और वेश्याएं यहीं स्नान करती थीं। 11O 22 39 अहाब के और सब काम जो उस ने किए, और हाथीदांत का जो भवन उस ने बनाया, और जो जो नगर उस ने बसाए थे, यह सब क्या इस्राएली राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 11O 22 40 निदान अहाब अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसका पुत्रा अहज्याह उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 11O 22 41 इस्राएल के राजा अहाब के चौथे वर्ष में आसा का पुत्रा यहोशापात यहूदा पर राज्य करने लगा। 11O 22 42 जब यहोशापात राज्य करने लगा, तब वह पैंतीस वर्ष का था। और पचीस पर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम अजूबा था, जो शिल्ही की बेटी थी। 11O 22 43 और उसकी चाल सब प्रकार से उसके पिता आसा की सी थी, अर्थात जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है वही वह करता रहा, और उस से कुछ न मुड़ा। तौभी ऊंचे स्थान ढाए न गए, प्रजा के लोग ऊंचे स्थानों पर उस समय भी बलि किया करते थे और धूप भी जलाया करते थे। 11O 22 44 यहोशापात ने इस्राएल के राजा से मेल किया। 11O 22 45 और यहोशापात के काम और जो वीरता उस ने दिखाई, और उस ने जो जो लड़ाइयां कीं, यह सब क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 11O 22 46 पुरूषगामियों में से जो उसके पिता आसा के दिनों में रह गए थे, उनको उस ने देश में से नाश किया। 11O 22 47 उस समय एदाम में कोई राजा न था; एक नायब राजकाज का काम करता था। 11O 22 48 फिर यहोशापात ने तश श के जहाज सोना लाने के लिये ओपीर जाने को बनवा लिए, परन्तु वे एश्योनगेबेर में टूट गए, असलिये वहां न जा सके। 11O 22 49 तब अहाब के पुत्रा अहज्याह ने यहोशापात से कहा, मेरे जहाजियों को अपने जहाजियों के संग, जहाजों में जाने दे, परन्तु यहोशापात ने इनकार किया। 11O 22 50 निदान यहोशापात अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसको उसके पुरखाओं के साथ उसके मूलपुरूष दाऊद के नबर में मिट्टी दी गई। और उसका पुत्रा यहोराम उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 11O 22 51 यहूदा के राजा यहोशापत के सत्राहवें वर्ष में अहाब का पुत्रा अहज्याह शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने लगा और दो वर्ष तक इस्राएल पर राज्य करता रहा। 11O 22 52 और उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था। और उसकी चाज उसके माता पिता, और नबात के पुत्रा यारोबाम की सी थी जिस ने इस्राएल से पाप करवाया था। 11O 22 53 जैसे उसका पिता बाल की उपासने और उसे दणडवत करने से इस्राएल के परमेश्वर यहोवा को क्रोधित करता रहा वैसे ही अहज्याह भी करता रहा। 12O 1 1 अहाब के मरने के बाद मोआब इस्राएल के विरूद्ध हो गया। 12O 1 2 और अहज्याह एक झिलमिलीदार खिड़की में से, जो शोमरोन में उसकी अटारी में थी, गिर पड़ा, और बीमार हो गया। तब उस ने दूतों को यह कहकर भेजा, कि तुम जाकर एक्रोन के बालजबूब नाम देवता से यह पूछ आओ, कि क्या मैं इस बीमारी से बचूंगा कि नहीं? 12O 1 3 तब यहोवा के दूत ने तिशबी एलिरयाह से कहा, उठकर शोमरोन के राजा के दूतों से मिलने को जा, और उन से कह, क्या इस्राएल में कोई परमेश्वर नहीं जो तुम एक्रोन के बालजबूब देवता से पूछने जाते हो? 12O 1 4 इसलिये अब यहोवा तुझ से यों कहता है, कि जिस पलंग पर तू पड़ा है, उस पर से कभी न उठेगा, परन्तु मर ही जाएगा। तब एलिरयाह चला गया। 12O 1 5 जब अहज्याह के दूत उसके पास लौट आए, तब उस ने उन से पूछा, तुम क्यों लौट आए हो? 12O 1 6 उन्हों ने उस से कहा, कि एक मनुष्य हम से मिलने को आया, और कहा, कि जिस राजा ने तुम को भेजा उसके पास लौटकर कहो, यहोवा यों कहता है, कि क्या इस्राएल में कोई परमेश्वर नहीं जो तू एक्रोन के बालजबूब देवता से पूछने को भेजता है? इस कारण जिस पलंग पर तू पड़ा है, उस पर से कभी न उठेगा, परन्तु मर ही जाएगा। 12O 1 7 उस ने उन से पूछा, जो मनुष्य तुम से मिलने को आया, और तुम से ये बातें कहीं, उसका कैसा रंग- रूप था? 12O 1 8 उन्हों ने उसको उत्तर दिया, वह तो रोंआर मनुष्य था और अपनी कमर में चमड़े का फेंटा बान्धे हुए था। उस ने कहा, वह तिशबी एलिरयाह होगा। 12O 1 9 तब उस ने उसके पास पचास सिपाहियों के एक प्रधान को उसके पचासों सिपाहियों समेत भेजा। प्रधान ने उसके पास जाकर क्या देखा कि वह पहाड़ की चोटी पर बैठा है। और उस ने उस से कहा, हे परमेश्वर के भक्त राजा ने कहा है, कि तू उतर आ। 12O 1 10 एलिरयाह ने उस पचास सिपाहियों के प्रधान से कहा, यदि मैं परमेश्वर का भक्त हूँ तो आकाश से आग गिरकर तुझे तेरे पचासों समेत भस्म कर डाले। तब आकाश से आग उतरी और उसे उसके पचासों समेत भस्म कर दिया। 12O 1 11 फिर राजा ने उसके पास पचास सिपाहियों के एक और प्रधान को, पचासों सिपाहियों समेत भेज दिया। प्रधान ने उस से कहा हे परमेश्वर के भक्त राजा ने कहा है, कि फुत से तू उतर आ। 12O 1 12 एलिरयाह ने उत्तर देकर उन से कहा, यदि मैं परमेश्वर का भक्त हूँ तो आकाश से आग गिरकर तुझे, तेरे पचासों समेत भस्म कर डाले; तब आकाश से परमेश्वर की आग उतरी और उसे उसके पचासों समेत भस्म कर दिया। 12O 1 13 फिर राजा ने तीसरी बार पचास सिपाहियों के एक और प्रधान को, पचासों सिपाहियों समेत भेज दिया, और पचास का वह तीसरा प्रधान चढ़कर, एलिरयाह के साम्हने घुटनों के बल गिरा, और गिड़गिड़ा कर उस से कहने लगा, हे परमेश्वर के भक्त मेरा प्राण और तेरे इन पचास दासों के प्राण तेरी दृष्टि में अनमोल ठहरें। 12O 1 14 पचास पचास सिपाहियों के जो दो प्रधान अपने अपने पचासों समेत पहिले आए थे, उनको तो आग ने आकाश से गिरकर भस्म कर डाला, परन्तु अब मेरा प्राण तेरी दृष्टि में अनमोल ठहरे। 12O 1 15 तब यहोवा के दूत ने उलिरयाह से कहा, उसके संग नीचे जा, उस से पत डर। तब एलिरयाह उठकर उसके संग राजा के पास नीचे गया। 12O 1 16 और उस से कहा, यहोवा यों कहता है, कि तू ने तो एक्रोन के बालजबूब देवता से पूछने को दूत भेजे थे तो क्या इस्राएल में कोई परमेश्वर नहीं कि जिस से तू पूछ सके? इस कारण तू जिस पलंग पर पड़ा है, उस पर से कभी न उठेगा, परन्तु मर ही जाएगा। 12O 1 17 यहोवा के इस वचन के अनुसार जो एलिरयाह ने कहा था, वह मर गया। और उसके सन्तान न होने के कारण यहोराम उसके स्थान पर यहूदा के राजा यहोशापात के पुत्रा यहोराम के दूसरे वर्ष में राज्य करने लगा। 12O 1 18 अहज्याह के और काम जो उस ने किए वह क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 12O 2 1 जब यहोवा एलिरयाह को बवंडर के द्वारा स्वर्ग में उठा लेने को था, तब एलिरयाह और एलीशा दोनों संग संग गिलगाल से चले। 12O 2 2 एलिरयाह ने एलीशा से कहा, यहोवा मुझे बेतेल तक भेजता है इसलिये तू यहीं ठहरा रह। एलीशा ने कहा, यहोवा के और तेरे जीवन की शपथ मैं तुझे नहीं छोड़ने का; इसलिये वे बेतेल को चले गए। 12O 2 3 और बेतेलवासी भविष्यद्वक्ताओं के चेले एलीशा के पास आकर कहने लगे, क्या तुझे मालूम है कि आज यहोवा तेरे स्वामी को तेरे ऊपर से उठा लेने पर है? उस ने कहा, हां, मुझे भी यह मालूम है, तुम चुप रहो। 12O 2 4 और एलिरयाह ने उस से कहा, हे एलीशा, यहोवा मुझे यरीहो को भेजता है; इसलिये तू यहीं ठहरा रह : उस ने कहा, यहोवा के और तेरे जीवन की शपथ मैं तुझे नहीं छोड़ने का; सो वे यरीहो को आए। 12O 2 5 और यरीहोवासी भविष्यद्वक्ताओं के चेले एलीशा के पास आकर कहने लगे, क्या तुझे मालूम है कि आज यहोवा तेरे स्वामी को तेरे ऊपर से उठा लेने पर है? उस ने उत्तर दिया, हां मुझे भी मालूम है, तुम चुप रहो। 12O 2 6 फिर एलिरयाह ने उस से कहा, यहोवा मुझे यरदन तक भेजता है, सो तू यहीं ठहरा रह; उस ने कहा, यहोवा के और तेरे जीवन की शपथ मैं तुझे नहीं छोड़नेका; सो वे दोनों आगे चने। 12O 2 7 और भविष्यद्वक्ताओं के चेलों में से पचास जन जाकर उनके साम्हने दूर खड़े हुए, और वे दोनों यरदन के तीर खड़े हुए। 12O 2 8 तब एलिरयाह ने अपनी च र पकड़कर एेंठ ली, और जल पर मारा, तब वह इधर उधर दो भाग हो गया; और वे दोनों स्थल ही स्थल पार उतर गए। 12O 2 9 उनके पार पहुंचने पर एलिरयाह ने एलीशा से कहा, उस से पहिले कि मैं तेरे पास से उठा लिये जाऊं जो कुछ तू चाहे कि मैं तेरे लिये करूं वह मांग; एलीशा ने कहा, तुझ में जो आत्मा है, उसका दूना भाग मुझे मिल जाए। 12O 2 10 एलिरयाह ने कहा, तू ने कठिन बात मांगी है, तौभी यदि तू मुझे उठा लिये जाने के बाद देखने पाए तो तेरे लिये ऐसा ही होगा; नहीं तो न होगा। 12O 2 11 वे चलते चलते बातें कर रहे थे, कि अचानक एक अग्नि मय रथ और अग्निमय धोड़ों ने उनको अलग अलग किया, और एलिरयाह बवंडर में होकर स्वर्ग पर चढ़ गया। 12O 2 12 और उसे एलीशा देखता और मुकारता रहा, हंाय मेरे पिता ! हाय मेरे पिता ! हाय इस्राएल के रथ और सवारो ! जब वह उसको फिर देख न पड़ा, तब उस ने अपते वस्त्रा पाड़े और फाड़कर दो भाग कर दिए। 12O 2 13 फिर उस ने एलिरयाह की च र उठाई जो उस पर से गिरी थी, और वह लौट गया, और यरदन के तीर पर खड़ा हुआ। 12O 2 14 और उस ने एलिरयाह की वह च र जो उस पर से गिरी थी, पकड़ कर जल पर मारी और कहा, एलिरयाह का परमेश्वर यहोवा कहां है? जब उस ने जल पर मारा, तब वह इधर उधर दो भाग हो गया और एलीशा पार हो गया। 12O 2 15 उसे देखकर भविष्यद्वक्ताओं के चेले जो यरीहो में उसके साम्हने थे, कहने लगे, एलिरयाह में जो आत्मा थी, वही एलीशा पर ठहर गई है; सो वे उस से मिलने को आए और उसके साम्हने भूमि तक झुककर दणडवत की। 12O 2 16 तब उन्हों ने उस से कहा, सुन, तेरे दासों के पास पचास बलवान पुरूष हैं, वे जाकर तेरे स्वामी को ढूढें, सम्भव है कि क्या जाने यहोवा के आत्मा ने उसको उठाकर किसीं पहाड़ पर वा किसी तराई में डाल दिया हो; उस ने कहा, मत भेजो। 12O 2 17 जब उन्हों ने उसको यहां तक दबाया कि वह लज्जित हो गया, तब उस ने कहा, भेज दो; सो उन्हों ने पचास पुरूष भेज दिए, और वे उसे तीन दिन तक ढूंढ़ते रहे परन्तु न पाया। 12O 2 18 उस समय तक वह यरीहो में ठहरा रहा, सो जब वे उसके पास लौट आए, तब उस ने उन से कहा, क्या मैं ने तुम से न कहा था, कि मत जाओ? 12O 2 19 उस नगर के निवासियों ने एलीशा से कहा, देख, यह नगर मनभावने स्थान पर बसा है, जैसा मेरा प्रभु देखता है परन्तु पानी बुरा है; और भूमि गर्भ गिरानेवाली है। 12O 2 20 उस ने कहा, एक नये प्याले में नमक डालकर मेरे पास ले आओ; वे उसे उसके पास ले आए। 12O 2 21 तब वह जल के सोते के पास निकल गया, और उस में नमक डालकर कहा, यहोवा यों कहता है, कि मैं यह पानी ठीक कर देता हूँ, जिस से वह फिर कभी मृत्यु वा गर्भ गिरने का कारण न होगा। 12O 2 22 एलीशा के इस वचन के अनुसार पानी ठीक हो गया, और आज तक ऐसा ही है। 12O 2 23 वहां से वह बेतेल को चला, और मार्ग की चढ़ाई में चल रहा था कि नगर से छोटे लड़के निकलकर उसका ठट्ठा करके कहने लगे, हे चन्दुए चढ़ जा, हे चन्दुए चढ़ जा। 12O 2 24 तब उस ने पीछे की ओर फिर कर उन पर दृष्टि की और यहोवा के नाम से उनको शाप दिया, तब जंगल में से दो रीछिनियों ने निकलकर उन में से बयालीस लड़के फाड़ डाले। 12O 2 25 वहां से वह कर्म्मेल को गया, और फिर वहां से शोमरोन को लौट गया। 12O 3 1 यहूदा के राजा यहोशापात के अठारहवें वर्ष में अहाब का पुत्रा यहोराम शिमरोन में राज्य करने लगा, और बारह पर्ष तक राज्य करता रहा। 12O 3 2 उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है नौभी उस ने अपने माता- पिता के बराबर नहीं किया वरन अपने पिता की बनवाई हुई बाल की लाठ को दूर किया। 12O 3 3 तौभी वह नबात के पुत्रा यारोबाम के ऐसे पापों में जैसे उस ने इस्राएल से भी कराए लिपटा रहा और उन से न फिरा। 12O 3 4 मोआब का राजा मेशा बहुत सी भेड़- बकरियां रखता था, और इस्राएल के राजा को एक लाख बच्चे और एक लाख मेढ़ों का ऊन कर की रीति से दिया करता था। 12O 3 5 जब अहाब मर गया, तब मोआब के राजा ने इस्राएल के राजा से बलवा किया। 12O 3 6 उस समय राजा यहोराम ने शोमरोन से निकलकर सारे इस्राएल की गिनती ली। 12O 3 7 और उस ने जाकर यहूदा के राजा यहोशापात के पास यों कहला भेजा, कि मोआब के राजा ने मुझ से बलवा किया है, क्या तू मेरे संग मोआब से लड़ने को चलेगा? उस ने कहा, हां मैं चलूंगा, जैसा तू वैसा मैं, जैसी तेरी प्रजा वैसी मेरी प्रजा, और जैसे तेरे धोड़े वैसे मेरे भी घोड़े हैं। 12O 3 8 फिर उस ने पूछा, हम किस मार्ग से जाएं? उस ने उत्तर दिया, एदोम के जंगल से होकर। 12O 3 9 तब इस्राएल का राजा, और यहूदा का राजा, और एदोम का राजा चले और जब सात दिन तक धूमकर चल चुके, तब सेना और उसके पीछे पीछे चलनेवाले पशुओं के लिये कुछ पानी न मिला। 12O 3 10 और इस्राएल के राजा ने कहा, हाय ! यहोवा ने इन तीन राजाओं को इसलिये इकट्ठा किया, कि उनको मोआब के हाथ में कर दे। 12O 3 11 परन्तु सहोशापात ने कहा, क्या यहां यहोवा का कोई नबी नहीं है, जिसके द्वारा हम यहोवा से पूछें़? इस्राएल के राजा के किसी कर्मचारी ने उत्तर देकर कहा, हां, शापात का पुत्रा एलीशा जो एलिरयाह के हाथों को धुलाया करता था वह तो यहां है। 12O 3 12 तब यहोशापात ने कहा, उसके पास यहोवा का वचन पहुंचा करता है। तब इस्राएल का राजा और यहोशापात और एदोम का राजा उसके पास गए। 12O 3 13 तब एलीशा ने इस्राएल के राजा से कहा, मेरा तुझ से क्या काम है? अपने पिता के भविष्यद्वक्ताओं और अपनी माता के नबियों के पास जा। इस्राएल के राजा ने उस से कहा, ऐसा न कह, क्योंकि यहोवा ने इन तीनों राजाओं को इसलिये इकट्ठा किया, कि इनको मोआब के हाथ में कर दे। 12O 3 14 एलीशा ने कहा, सेनाओं का यहोवा जिसके सम्मुख मैं उपस्थित रहा करता हूँ, उसके जीवन की शपथ यदि मैं यहूदा के राजा यहोशापात का आदर मान न करता, तो मैं न तो तेरी ओर मुह करता और न तुझ पर दृष्टि करता । 12O 3 15 अब कोई बजवैरया मेरे पास ले आओ। जब बजवैरया बजाने लगा, तब यहोवा की शक्ति एलीशा पर इई। 12O 3 16 और उस ने कहा, इस नाले में तुम लोग इतना खोदो, कि इस में गड़हे ही गड़हे हो जाएं। 12O 3 17 क्योंकि यहोवा यों कहता है, कि तुम्हारे साम्हने न तो वायु चलेगी, और न वर्षा होगी; तौभी यह नाला पानी से भर जाएगा; और अपते गाय बैलों और पशुओं समेत तुम पीने पाओगे। 12O 3 18 और इसको हलकी सी बात जानकर यहोवा मोआब को भी तुम्हारे हाथ में कर देगा। 12O 3 19 तब तुम सब गढ़वाले और उत्तम नगरों को नाश करना, और सब अच्छे वृक्षों को काट डालना, और जल के सब खेतों को भर देना, और सब अच्छे खेतों में पत्थर फेंककर उन्हें बिगाड़ देना। 12O 3 20 विहान को अन्नबलि चढ़ाने के समय एदोम की ओर से जल बह आया, और देश जल से भर गया। 12O 3 21 यह सुनकर कि राजाओं ने हम से युठ्ठ करते के लिये चढ़ाई की है, जितने मोआबियों की अवस्था हथियार बान्धने योग्य थी, वे सब बुलाकर इकट्ठे किए गए, और सिवाने पर खड़े हुए। 12O 3 22 बिहान को जब वे उठे उस समय सूर्य की किरणों उस जल पर ऐसी पड़ीं कि वह मोआबियों की परली ओर से लोहू सा लाल दिखाई पड़ा। 12O 3 23 तो वे कहने लगे वह तो लोहू होगा, निेसन्देह वे राजा एक दूसरे को मारकर नाश हो गए हैं, इसलिये अब हे मोआबियो लूट लेने को जाओ; 12O 3 24 और जब वे इस्राएल की छावनी के पास आए ही थे, कि इस्राएली उठकर मोआबियों को मारने लगे और वे उनके साम्हने से भाग गए; और वे मोआब को मारते मारते उनके देश में पहुंच गए। 12O 3 25 और उन्हों ने नगरों को ढा दिया, और सब अच्छे खेतों में एक एक पुरूष ने अपना अपना मत्थर डाल कर उन्हों भर दिया; और जल के सब सोतों को भर दिया; और सब अच्छे अच्छे वृक्षों को काट डाला, यहां तक कि कीर्हरेशेत के पत्थ्र तो रह गए, परन्तु उसको भी चारों ओर गोफन चलानेवालों ने जाकर मारा। 12O 3 26 यह देखकर कि हम युठ्ठ में हार चले, मोआब के राजा ने सात सौ तलवार रखनेवाले पुरूष संग लेकर एदोम के राजा तक पांति चीरकर पहुंचने का यत्न किया परन्तु पहुंच न सका। 12O 3 27 तब उस ने अपने जेठे पुत्रा को जो उसके स्थान में राज्य करनेवाला था पकड़कर शहरपनाह पर होमबलि चढ़ाया। इस कारण इस्राएल पर बड़ा ही क़्रोध हुआ, सो वे उसे छोड़कर अपने देश को लौट गए। 12O 4 1 भविष्यद्वक्ताओं के चेलों की पत्नियों में से एक स्त्री ने एलीशा की दोहाई देकर कहा, तेरा दास मेरा पति मर गया, और तू जानता है कि वह यहोवा का भय पाननेवाला था, और जिसका वह कर्जदार था वह आया है कि मेरे दोनों पुत्रों को अपने दाय बनाने के लिये ले जाए। 12O 4 2 एलीशा ने उस से पूछा, मैं तेरे लिये क्या करूं? मुझ से कह, कि तेरे घर में क्या है? उस ने कहा, तेरी दासी के घर में एक हांड़ी तेल को छोड़ और कुछ तहीं है। 12O 4 3 उस ने कहा, तू बाहर जाकर अपनी सब पड़ोसिनों से खाली बरतन मांग ले आ, और थोड़े बरतन न लाना। 12O 4 4 फिर तू अपने बेटों समेत अपने घर में जा, और द्वार बन्द करकें उन सब बरतनों में तेल उणडेल देना, और जो भर जाए उन्हें अलग रखना। 12O 4 5 तब वह उसके पास से चली गई, और अपने बेटों समेत अपने घर जाकर द्वार बन्द किया; तब वे तो उसके पास बरतन लाते गए और वह उणडेलती गई। 12O 4 6 जब बरतन भर गए, तब उस ने अपने बेटे से कहा, मेरे पास एक और भी ले आ, उस ने उस से कहा, और बरतन तो नहीं रहा। तब तेल थम गया। 12O 4 7 तब उस ने जाकर परमेश्वर के भक्त को यह बता दिया। ओर उस ने कहा, जा तेल बेचकर ऋण भर दे; और जो रह जाए, उस से तू अपने पुत्रों सहित अपना निर्वाह करना। 12O 4 8 फिर एक दिन की बात है कि एलीशा शूनेम को गया, जहां एक कुलीन स्त्री थी, और उस ने उसे रोटी खाने के लिये बिनती करके विवश किया। और जब जब वह उधर से जाता, तब तब वह वहां रोटी खाने को उतरता था। 12O 4 9 और उस स्त्री ने अपने पति से कहा, सुन यह जो बार बार हमारे यहां से होकर जाया करता है वह मुझे परमेश्वर का कोई पवित्रा भक्त जान पड़ता है। 12O 4 10 तो हम भीत पर एक छोटी उपरौठी कोठरी बनाएं, और उस में उसके लिये एक खाट, एक मेज, एक कुस और एक दीवट रखें, कि जब जब वह हमारे यहां आए, तब तब उसी में टिका करे। 12O 4 11 एक दिन की बात है, कि वह वहां जाकर उस उपरौठी कोठरी में टिका और उसी में लेट गया। 12O 4 12 और उस ने अपने सेवक गेहजी से कहा, उस शुनेमिन को बुला ले। उसके बुलाने से वह उसके साम्हने खड़ी हुई। 12O 4 13 तब उस ने गेहजी से कहा, इस से कह, कि तू ने हमारे लिये ऐसी बड़ी चिन्ता की है, तो तेरे लिये क्या किया जाए? क्या तेरी चर्चा राजा, वा प्रधान सेनापति से की जाए? उस ने उत्तर दिया मैं तो अपने ही लोगों में रहती हूँ। 12O 4 14 फिर उस ने कहा, तो इसके लिये क्या किया जाए? गेहजी ने उत्तर दिया, निश्चय उसके कोई लड़का नहीं, और उसका पति बूढ़ा है। 12O 4 15 उस ने कहा, उसको बुला ले। और जब उस ने उसे बुलाया, तब वह द्वार में खड़ी हुई। 12O 4 16 तब उस ने कहा, बसन्त ऋतु में दिन पूरे होने पर तू एक बेटा छाती से लगाएगी। स्त्री ने कहा, हे मेरे प्रभु ! हे परमेश्वर के भक्त ऐसा नहीं, अपनी दासी को धोखा न दे। 12O 4 17 और स्त्री को गर्भ रहा, और वसन्त ऋतु का जो समय एलीशा ने उस से कहा था, उसी समय जब दिन पूरे हुए, तब उसके पुत्रा उत्पन्न हुआ। 12O 4 18 और जब लड़का बड़ा हो गया, तब एक दिन वह अपने पिता के पास लवनेवालों के निकट निकल गया। 12O 4 19 और उस ने अपने पिता से कहा, आह ! मेरा सिर, आह ! मेरा सिर। तब पिता ने अपने सेवक से कहा, इसको इसकी माता के पास ले जा। 12O 4 20 वह उसे उठाकर उसकी माता के पास ले गया, फिर वह दोपहर तक उसके घुटनों पर बैठा रहा, तब मर गया। 12O 4 21 तब उस ने चढ़कर उसको परमेश्वर के भक्त की खाट पर लिटा दिया, और निकलकर किवाड़ बन्द किया, तब उतर गई। 12O 4 22 और उस ने अपने पति से पुकारकर कहा, मेरे पास एक सेवक और एक गदही तुरन्त भेज दे कि मैं परमेश्वर के भक्त के यहां झट पट हो आऊं। 12O 4 23 उस ने कहा, आज तू उसके यहां क्यों जाएगी? आज न तो नये चांद का, और न विश्राम का दिन है; उस ने कहा, कल्याण होगा। 12O 4 24 तब उस स्त्री ने गदही पर काठी बान्ध कर अपने सेवक से कहा, हांके चल; और मेरे कहे बिना हांकने में ढिलाई न करना। 12O 4 25 तो वह चलते चलते कर्मेल पर्वत को परमेश्वर के भक्त के निकट पहुंची। उसे दूर से देखकर परमेश्वर के भक्त ने अपने सेवक गेहजी से कहा, देख, उधर तो वह शूनेमिन है। 12O 4 26 अब उस से मिलने को दौड़ जा, और उस से पूछ, कि तू कुशल से है? तेरा पति भी कुशल से है? और लड़का भी कुशल से है? पूछने पर स्त्री ने उत्तर दिया, हां, कुशल से हैं। 12O 4 27 वह पहाड़ पर परमेश्वर के भक्त के पास पहुंची, और उसके पांव पकड़ने लगी, तब गेहजी उसके पास गया, कि उसे धक्का देकर हटाए, परन्तु परमेश्वर के भक्त ने कहा, उसे छोड़ दे, उसका मन रयाकुल है; परन्तु यहोवा ने मुझ को नहीं बताया, छिपा ही रखा है। 12O 4 28 तब वह कहने लगी, क्या मैं ने अपने प्रभु से पुत्रा का वर मांगा था? क्या मैं ने न कहा था मुझे धोखा न दे? 12O 4 29 तब एलीशा ने गेहजी से कहा, अपनी कमर बान्ध, और मेरी छड़ी हाथ में लेकर चला जा, मार्ग में यदि कोई तुझे मिले तो उसका कुशल न पूछना, और कोई तेरा कुशल पूछे, तो उसको उत्तर न देना, और मेरी यह छड़ी उस लड़के के मुंह पर धर देना। 12O 4 30 तब लड़के की मां ने एलीशा से कहा, यहोवा के और तेरे जीवन की शपथ मैं तुझे न छोड़ूंगी। तो वह उठकर उसके पीछे पीछे चला। 12O 4 31 उन से पहिले पहुंचकर गेहजी ने छड़ी को उस लड़के के मुंह पर रखा, परन्तु कोई शब्द न सुन पड़ा, और न उस ने कान लगाया, तब वह एलीशा से मिलने को लौट आया, और उसको बतलादिया दिया, कि लड़का नहीं जागा। 12O 4 32 जब एलीशा घर में आया, तब क्या देखा, कि लड़का मरा हुआ उसकी खाट पर पड़ा है। 12O 4 33 तब उस ने अकेला भीतर जाकर किवाड़ बन्द किया, और यहोवा से प्रार्थना की। 12O 4 34 तब वह चढ़कर लड़के पर इस रीति से लेट गया कि अपना मुंह उसके मुंह से और अपनी आंखें उसकी आंखों से और अपने हाथ उसके हाथों से मिला दिये और वह लड़के पर पसर गया, तब लड़के की देह गर्म होने लगी। 12O 4 35 और वह उसे छोड़कर घर में इधर उधर टहलने लगा, और फिर चढ़कर लड़के पर पसर गया; तब लड़के ने सात बार छींका, और अपनी आंखें खोलीं। 12O 4 36 तब एलीशा ने गेहजी को बुलाकर कहा, शूनेमिन को बुला ले। जब उसके बुलाने से वह उसके पास आई, तब उस ने कहा, अपने बेटे को उठा ले। 12O 4 37 वह भीतर बई, और उसके पावों पर गिर भूमि तक झुककर दणडवत किया; फिर अपने बेटे को उठाकर निकल गई। 12O 4 38 तब एलीशा गिलगाल को लौट गया। उस समय देश में अकाल था, और भविष्यद्वक्ताओं के चेले उसके साम्हने बैटे हुए थे, और उस ने अपने सेवक से कहा, हण्डा चढ़ाकर भविष्यद्वक्ताओं के चेलों के लिये कुछ पका। 12O 4 39 तब कोई मैदान में साग तोड़ने गया, और कोई जंगली लता पाकर अपनी अंकवार भर इन्द्रायण तोड़ ले आया, और फांक फांक करके पकने के लिये हण्डे में डाल दिया, और वे उसको न पहिचानते थे। 12O 4 40 तब उन्हों ने उन मनुष्यों के खाने के लिये हण्डे में से परोसा। खाते समय वे चिल्लाकर बोल उठे, हे परमेश्वर के भक्त हण्डे में माहुर है, और वे उस में से खा न सके। 12O 4 41 तब एलीशा ने कहा, अच्छा, कुछ मैदा ले आओ, तब उस ने उसे हण्डे में डाल कर कहा, उन लोगों के खाने के लिये परोस दे, फिर हण्डे में कुछ हानि की वस्तु न रही। 12O 4 42 और कोई पतुष्य बालशालीशा से , पहिले उपजे हुए जव की बीस रोटियां, और अपनी बोरी में हरी बालें परमेश्वर के भक्त के पास ले आया; तो एलीशा ने कहा, उन लोगों को खाने के लिये दे। 12O 4 43 उसके टहलुए ने कहा, क्या मैं सौ मनुष्यों के साम्हने इतना ही रख दूं? उस ने कहा, लोगों को दे दे कि खएं, क्योंकि यहोवा यों कहता है, उनके खाने के बाद कुछ बच भी जाएगा। 12O 4 44 तब उस ने उनके आगे धर दिया, और यहोवा के वचन के अनुसार उनके खाने के बाद कुछ बच भी गया। 12O 5 1 अराम के राजा का नामान नाम सेनापति अपने स्वामी की दृष्टि में बड़ा और प्रतिष्ठित पुम्ष था, क्योंकि यहोवा ने उसके द्वारा अरामियों को विजयी किया था, और यह शूरवीर था, परन्तु कोढ़ी था। 12O 5 2 अरामी लोेग दल बान्धकर इस्राएल के देश में जाकर वहां से एक छोटी लड़की बन्धुवाई में ले आए थे और वह नामान की पत्नी की सेवा करती थी। 12O 5 3 उस ने अपनी स्वामिन से कहा, जो मेरा स्वामी शोमरोन के भविष्यद्वक्ता के पास होता, तो क्या ही अच्छा होता ! क्योंकि वह उसको कोढ़ से चंगा कर देता। 12O 5 4 तो किसी ने उसके प्रभु के पास जाकर कह दिया, कि इस्राएली लड़की इस प्रकार कहती है। 12O 5 5 अराम के राजा ने कहा, तू जा, मैं इस्राएल के राजा के पास एक पत्रा भेजूंगा; तब वह दस किक्कार चान्दी और छेहजार टुकड़े सोना, और दस जोड़े कपड़े साथ लेकर रवाना हो गया। 12O 5 6 और वह इस्राएल के राजा के पास वह पत्रा ले गया जिस में यह लिखा था, कि जब यह पत्रा तुझे मिले, तब जानना कि मैं ने नामान नाम अपने एक कर्मचारी को तेरे पास इसलिये भेजा है, कि तू उसका कोढ़ दूर कर दे। 12O 5 7 इस पत्रा के पढ़ने पर इस्राएल का राजा अपने वस्त्रा फाड़कर बोला, क्या मैं मारनेवाला और जिलानेवाला परमेश्वर हूँ कि उस पुरूष ने मेरे पास किसी को इसलिये भेजा है कि मैं उसका कोढ दूर करूं? सोच विचार तो करो, वह मुझ से झगड़े का कारण ढूंढ़ता होगा। 12O 5 8 यह सुनकर कि इस्राएल के राजा ने अपने वस्त्रा फाड़े हैं, परमेश्वर के भक्त एलीशा ने राजा के पास कहला भेजा, तू ने क्यों अपने वस्त्रा फाड़ेे हैं? वह मेरे पास आए, तब जान लेगा, कि इस्राएल में भविष्यद्वक्ता तो है। 12O 5 9 तब नामान धोड़ों और रथों समेत एलीशा के द्वार पर आकर खड़ा हुआ। 12O 5 10 तब एलीशा ने एक दूत से उसके पास यह कहला भेजा, कि तू जाकर यरदन में सात बार डुबकी मार, तब तेरा शरीर ज्यों का त्यों हो जाएगा, और तू शुठ्ठ होगा। 12O 5 11 परन्तु नामान क्रोधित हो यह कहता हुआ चला गया, कि मैं ने तो सोचा था, कि अवश्य वह मेरे पास बाहर आएगा, और खड़ा होकर अपने परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना करके कोढ़ के स्थान पर अपना हाथ फेरकर कोढ़ को दूर करेगा ! 12O 5 12 क्या दमिश्क की अबाना और पर्पर नदियां इस्राएल के सब जलाशयों से अत्तम नहीं हैं? क्या मैं उन में स्नान करके शुठ्ठ नहीं हो सकता हूँ? इसलिये वह जलजलाहट से भरा हुआ लौटकर चला गया। 12O 5 13 तब उसके सेवक पास आकर कहने लगे, हे हमारे पिता यदि भविष्यद्वक्ता तुझे कोई भारी काम करने की आज्ञा देता, तो क्या तू उसे न करता? फिर जब वह कहता है, कि स्नान करके शुठ्ठ हो जा, तो कितना अधिक इसे मानना चाहिये। 12O 5 14 तब उस ने परमेश्वर के भक्त के वचन के अनुसार यरदन को जाकर उस में सात बार डुबकी मारी, और उसका शरीर छोटे लड़के का सा हो गया; और वह शुठ्ठ हो गया। 12O 5 15 तब वह अपने सब दल बल समेत परमेश्वर के भक्त के यहां लौट आया, और उसके सम्मुख खड़ा होकर कहने लगा सुन, अब मैं ने जान लिया है, कि समस्त पृथ्वी में इस्राएल को छोड़ और कहीं परमेश्वर नहीं है। इसलिये अब अपने दास की भेंट ग्रहण कर। 12O 5 16 एलीशा ने कहा, यहोवा जिसके सम्मुख मैं उपस्थित रहता हूँ उसके जीवन की शपथ मैं कुछ भेंट न लूंगा, और जब उस ने उसको बहुत विवश किया कि भेंट को ग्रहण करे, तब भी वह इनकार ही करता रहा। 12O 5 17 तब नामान ने कहा, अच्छा, तो तेरे दास को दो खच्चर मिट्टी मिले, क्योंकि आगे को तेरा दास यहोवा को छोड़ और किसी ईश्वर को होमबलि वा मेलबलि न चढ़ाएगा। 12O 5 18 एक बात तो यहोवा तेरे दास के लिये क्षमा करे, कि जब मेरा स्वामी रिम्मोन के भवन में दणडवत करने को जाए, और वह मेरे हाथ का सहारा ले, और यों मुझे भी रिम्मोन के भवन में दणडवत करनी पड़े, तब यहोवा तेरे दास का यह काम क्षमा करे कि मैं रिम्मोन के भवन में दणडवत करूं। 12O 5 19 उस ने उस से कहा, कुशल से बिदा हो। 12O 5 20 वह उसके यहां से थोड़ी दूर जला गया था, कि परमेश्वर के भक्त एलीशा का सेवक गेहजी सोचने लगा, कि मेरे स्वामी ने तो उस अरामी नामान को ऐसा ही छोड़ दिया है कि जो वह ले आया था उसको उस ने न लिया, परन्तु यहोवा के जीवन की शपथ मैं उसके पीछे दौड़कर उस से कुछ न कुछ ले लूंगा। 12O 5 21 तब गेहजी नामान के पीछे दौड़ा, और नामान किसी को अपने पीछे दौड़ता हूआ देखकर, उस से मिलने को रथ से उतर पड़ा, और पूछा, सब कुशल क्षेम तो है? 12O 5 22 उस ने कहा, हां, सब कुशल है; परन्तु मेरे स्वामी ने मुझे यह कहने को भेजा है, कि एप्रैम के पहाड़ी देश से भविष्यद्वक्ताओं के चेलों में से दो जवान मेरे यहां अभी आए हैं, इसदिये उनके लिये एक किक्कार चान्दी और दो जोड़े वस्त्रा दे। 12O 5 23 नामान ने कहा, दो किक्कार लेने को प्रसन्न हो, तब उस ने उस से बहुत बिनती करके दो किक्कार खन्दी अलग थैलियों में बान्धकर, दो जोड़े वस्त्रा समेत अपने दो सेवकों पर लाद दिया, और वे उन्हें उसके आगे आगे ले चले। 12O 5 24 जब वह टीले के पास पहुंचा, तब उस ने उन वस्तुओं को उन से लेकर घर में रख दिया, और उन मनुष्यों को बिदा किया, और वे चले गए। 12O 5 25 और वह भीतर जाकर, अपने स्वामी के साम्हने खड़ा हुआ। एलीशा ने उस से पूछा, हे गेहजी तू कहां से आता है? उस ने कहा, तेरा दास तो कहीं नहीं गया, 12O 5 26 उस ने उस से कहा, जब वह पुरूष इधर मुंह फेरकर तुझ से मिलने को अपने रथ पर से उतरा, तब वह पूरा हाल मुझे मालूम था; क्या यह समय चान्दी वा वस्त्रा वा जलपाई वा दाख की बारियां, भेड़- बकरियां, गायबैल और दास- दासी लेने का है? 12O 5 27 इस कारण से नामान का कोढ़ तुझे और तेरे वंश को सदा लगा रहेगा। तब वह हिम सा श्वेत कोढ़ी होकर उसके साम्हने से चला गया। 12O 6 1 और भिवष्यद्वक्ताओं के चेलों में से किसी ने एलीशा से कहा, यह स्थान जिस में हम तेरे साम्हने रहते हैं, वह हमारे लिये सकेत है। 12O 6 2 इसलिये हम यरदन तक जाएं, और वहां से एक एक बल्ली लेकर, यहां अपने रहने के लिये एक स्थान बना लें; उस ने कहा, अच्छा जाओ। 12O 6 3 तब किसी ने कहा, अपने दासों के संग चलने को प्रसन्न हो, उस ने कहा, चलता हूँ। 12O 6 4 तो वह उनके संग चला और वे यरदन के तीर पहुंचकर लकड़ी काटने लगे। 12O 6 5 परन्तु जब एक जन बल्ली काट रहा था, तो कुल्हाड़ी बेंट से निकलकर जल में गिर गई; सो वह चिल्लाकर कहने लगा, हाय ! मेरे प्रभु, वह तो मंगनी की थी। 12O 6 6 परमेश्वर के भक्त ने पूछा, वह कहां गिरी? जब उस ने स्थान दिखाया, तब उस ने एक लकड़ी काटकर वहां डाल दी, और वह लाहा पानी पर तैरने लगा। 12O 6 7 उस ने कहा, उसे उठा ले, तब उस ने हाथ बढ़ाकर उसे ले लिया। 12O 6 8 ओैर अराम का जाजा इस्राएल से युठ्ठ कर रहा था, और सम्मति करके अपने कर्मचारियों से कहा, कि अमुक स्थान पर मेरी छावनी होगी। 12O 6 9 तब परमेश्वर के भक्त ने इस्राएल के राजा के पास कहला भेजा, कि चौकसी कर और अमुक स्थान से होकर न जाना क्योंकि वहां अरामी चढ़ाई करनेवाले हैं। 12O 6 10 तब इस्राएल के राजा ने उस स्थान को, जिसकी चर्चा करके परमेश्वर के भक्त ने उसे चिताया था, भेजकर, अपनी रक्षा की; और उस प्रकार एक दो बार नहीं वरन बहुत बार हुआ। 12O 6 11 इस कारण अराम के राजा का मन बहुत घबरा गया; सो उस ने अपने कर्मचारियों को बुलाकर उन से पूछा, क्या तुम मुझे न बताओगे कि हम लोगों में से कौन इस्राएल के राजा की ओर का है? उसके एक कर्मचारी ने कहा, हे मेरे प्रभु ! हे राजा ! ऐसा नहीं, 12O 6 12 एलीशा जो इस्राएल में भविष्यद्वक्ता है, वह इस्राएल के राजा को वे बातें भी बताया करता है, जो तू शयन की कोठरी में बोलता है। 12O 6 13 राजा ने कहा, जाकर देखो कि वह कहां है, तब मैं भेजकर उसे पहड़वा मंगाऊंगा। और उसको यह समाचार मिला कि वह दोतान में है। 12O 6 14 तब उस ने वहां घोड़ों और रथों समेत एक भारी दल भेजा, और उन्हों ने रात को आकर नगर को घेर लिया। 12O 6 15 भोर को परमेश्वर के भक्त का टहलुआ उठा और निकलकर क्या देखता है कि घोड़ों और रथों समेत एक दल नगर को घेरे हुए पड़ा है। और उसके सेवक ने उस से कहा, हाय ! मेरे स्वामी, हम क्या करें? 12O 6 16 उस ने कहा, मत डर; क्योंकि जो हमारी ओर हैं, वह उन से अधिक हैं, जो उनकी ओर हैं। 12O 6 17 तब एलीशा ने यह प्रार्थना की, हे यहोवा, इसकी आंखें खोल दे कि यह देख सके। तब यहोवा ने सेवक की आंखें खोल दीं, और जब वह देख सका, तब क्या देखा, कि एलीशा के चारों ओर का पहाड़ अग्निमय घोड़ों और रथों से भरा हुआ है। 12O 6 18 जब अरामी उसके पास आए, तब एलीशा ने यहोवा से प्रार्थना की कि इस दल को अन्धा कर डाल। एलीशा के इस वचन के अनुसार उस ने उन्हें अन्धा कर दिया। 12O 6 19 तब एलीशा ने उन से कहा, यह तो मार्ग नहीं है, और न यह नगर है, मेरे पीछे हो लो; मैं तुम्हें उस पनुष्य के पास जिसे तुम ढूंढ़ रहे हो पहुंचाऊंगा। तब उस ने उन्हें शोमरोन को पहुंचा दिया। 12O 6 20 जब वे शोमरोन में आ गए, तब एलीशा ने कहा, हे यहोवा, इन लोगों की आंखें खोल कि देख सकें। तब यहोवा ने उनकी आंखें खोलीं, और जब वे देखने लगे तब क्या देखा कि हम शोमरोन के मध्य में हैं। 12O 6 21 उनको देखकर इस्राएल के राजा ने एलीशा से कहा, हे मेरे पिता, क्या मैं इनको मार लूं? मैं उनको मार लूं? 12O 6 22 उस ने उत्तर दिया, मत मार। क्या तू उनको मार दिया करता है, जिनको तू तलवार और धनुष से बन्धुआ बना लेता है? तू उनको अन्न जल दे, कि खा पीकर अपने स्वामी के पास चले जाएं। 12O 6 23 तब उस ने उनके लिये बड़ी जेवनार की, और जब वे खा पी चुके, तब उस ने उन्हें बिदा किया, और वे अपने स्वामी के पास चले गए। इसके बाद अराम के दल इस्राएल के देश में फिर न आए। 12O 6 24 परन्तु इसके बाद अराम के राजा बेंन्हदद ने अपनी समस्त सेना इकट्ठी करके, शोमरोन पर चढ़ाई कर दी और उसको घेर लिया। 12O 6 25 तब शोमरोन में बड़ा अकाल पड़ा और वह ऐसा घिरा रहा, कि अन्त में एक गदहे का सिर चान्दी के अस्सी टुकड़ों में और कब की चौथाई भर कबूतर की बीट पांच टुकड़े चान्दी तक बिकने लगी। 12O 6 26 और इस्राएल का राजा शहरपनाह पर टहल रहा था, कि एक स्त्री ने पुकार के उस से कहा, हे प्रभु, हे राजा, बचा। 12O 6 27 उस ने कहा, यदि यहोवा तुझे न बचाए, तो मैं कहां से तुझे बचाऊं? क्या खलिहान में से, वा दाखरस के कुण्ड में से? 12O 6 28 फिर राजा ने उस से पूछा, तुझे क्या हुआ? उस ने उत्तर दिया, इस स्त्री ने मुझ से कहा था, मुझे अपना बेटा दे, कि हम आज उसे खा लें, फिर कल मैं अपना बेटा दूंगी, और हम उसे भी खाएंगी। 12O 6 29 तब मेरे बेटे को पकाकर हम ने खा लिया, फिर दूसरे दिन जब मैं ने इस से कहा कि अपना बेटा दे कि हम उसे खा लें, तब इस ने अपने बेटे को छिपा रखा। 12O 6 30 उस स्त्री की ये बातें सुनते ही, राजा ने अपने वस्त्रा फाड़े ( वह तो शहरपनाह पर टहल रहा था ), जब लोगों ने देखा, तब उनको यह देख पड़ा कि वह भीतर अपनी देह पर टाट पहिने है। 12O 6 31 तब वह बोल उठा, यदि मैं शापात के वुत्रा एलीशा का सिर आज उसके घड़ पर रहने दूं, तो परमेश्वर मेरे साथ ऐसा ही वरन इस से भी अधिक करे। 12O 6 32 एलीशा अपने घर में बैठा हुआ था, और पुरनिये भी उसके संग बैठे थे। सो जब राजा ने अपने पास से एब जन भेजा, तब उस दूत के पहुंचने से पहिले उस ने पुरनियों से कहा, देखो, इस खूनी के बेटे ने किसी को मेरा सिर काटते को भेजा है; इसलिये जब वह दूत आए, तब किवाड़ बन्द करके रोके रहना। क्या उसके स्वामी के पांव की आहट उसके पीछे नहीं सुन पड़ती? 12O 6 33 वह उन से यों बातें कर ही रहा था कि दूत उसके पास आ पहुंचा। और राजा कहने लगा, यह विपत्ति यहोवा की ओर से है, अब मैं आगे को यहोवा की बाट क्यों जोहता रहूं? 12O 7 1 तब एलीशा ने कहा, यहोवा का वचन सुनो, यहोवा यों कहता है, कि कल इसी समय शोमरोन के फाटक में सआ भर मैदा एक शेकेल में और दो सआ जव भी एक शेकेल में बिकेगा। 12O 7 2 तब उस सरदार ने जिसके हाथ पर राजा तकिया करता थ, परमेश्वर के भक्त को उत्तर देकर कहा, सुन, चाहे यहोवा आकाश के झरोखे खोले, तौभी क्या ऐसी बात हो सकेगी? उस ने कहा, सुन, तू यह अपनी आंखों से तो देखेगा, परन्तु उस अन्न में से कुछ खाने न पाएगा। 12O 7 3 और चार कोढ़ी फाटक के बाहर थे; वे आपस में कहने लगे, हम क्यों यहां बैठे बैठे मर जाएं? 12O 7 4 यदि हम कहें, कि नगर में जाएं, तो वहां मर जाएंगे; क्योंकि वहां मंहगी पड़ी है, और जो हम यहीं बैठे रहें, तौभी मर ही जाएंगे। तो आओ हम अराम की सेना में पकड़े जाएं; यदि वे हम को जिलाए रखें तो हम जीवित रहेंगे, और यदि वे हम को मार डालें, तौभी हम को मरना ही है। 12O 7 5 तब वे सांझ को अराम की छावनी में जाने को चले, और अराम की छावनी की छोर पर पहुंचकर क्या देखा, कि वहां कोई नहीं है। 12O 7 6 क्योंकि प्रभु ने अराम की सेना को रथों और घोड़ों की और भारी सेना की सी आहट सुनाई थी, और वे आपस में कहने लगे थे कि, सुनो, इस्राएल के राजा ने हित्ती और मिस्री राजाओं को बेतन पर बुलवाया है कि हम पर चढ़ाई करें। 12O 7 7 इसलिये वे सांझ को उठकर ऐसे भाग गए, कि अपने डेरे, घोड़े, गदहे, और छावनी जैसी की तैसी छोड़- छाड़ अपना अपना प्राण लेकर भाग गए। 12O 7 8 तो जब वे कोढ़ी छावनी की छोर के डेरों के पास पहुंचे, तब एक डेरे में घुसकर खाया पिया, और उस में से चान्दी, सोना और वस्त्रा ले जाकर छिपा रखा; फिर लौटकर दूसरे डेरे में घुस गए और उस में से भी ले जाकर छिपा रखा। 12O 7 9 तब वे आपस में कहने लगे, जो हम कर रहे हैं वह अच्छा काम नहीं है, यह आनन्द के समाचार का दिन है, परन्तु हम किसी को नहीं बताते। जो हम पह फटने तक ठहरे रहें तो हम को दणड मिलेगा; सो अब आओ हम राजा के घराने के पास जाकर यह बात बतला दें। 12O 7 10 तब वे चले और नगर के चौकीदारों को बुलाकर बताया, कि हम जो अराम की छावनी में गए, तो क्या देखा, कि वहां कोई नहीं है, और मनुष्य की कुछ आहट नहीं है, केवल बन्धे हूए घोड़े और गदहे हैं, और डेरे जैसे के तैसे हैं। 12O 7 11 तब चौकीदारों ने पुकार के राजभवन के भीतर समाचार दिया। 12O 7 12 और राजा रात ही को उठा, और अपने कर्मचारियों से कहा, मैं तुम्हें बताता हूँ कि अरामियों ने हम से क्या किया है? वे जानते हैं, कि हम लोग भूखे हैं इस कारण वे छावनी में से मैदान में छिपने को यह कहकर गए हैं, कि जब वे नगर से निकलेंगे, तब हम उनको जीवित ही पकड़कर नगर में घुसने पाएंगे। 12O 7 13 परन्तु राजा के किसी कर्मचारी ने उत्तर देकर कहा, कि जो घोड़े तगर में बच रहे हैं उन में से लोग पांच घोड़े लें, और उनको भेजकर हम हाल जान लें। ( वे तो इस्राएल की सब भीड़ के समान हैं जो नगर में रह गए हैं वरन इस्राएल की जो भीड़ मर मिट गई है वे उसी के समान हैं। ) 12O 7 14 सो उन्हों ने दो रथ और उनके घोड़े लिये, और राजा ने उनको अराम की सेेना के पीछे भेजा; और कहा, जाओे, देखो। 12O 7 15 तब वे यरदन तक उनके पीछे चले गए, और क्या देखा, कि पूरा मार्ग वस्त्रों और पात्रों से भरा पड़ा है, जिन्हें अरामियों ने उतावली के मारे फेंक दिया था; तब दूत लौट आए, और राजा से यह कह सुनाया। 12O 7 16 तब लोगों ने निकलकर अराम के डेरों को लूट लिया; और यहोवा के वचन के अनुसार एक सआ मैदा एक शेकेल में, और दो सआ जव एक शेकेल में बिकने लगा। 12O 7 17 और राजा ने उस सरदार को जिसके हाथ पर वह तकिया करता था फाटक का अधिकारी ठहराया; तब वह फाटक में लोगों के पावों के नीचे दबकर मर गया। यह परमेश्वर के भक्त के उस वचन के अनुसार हुआ जो उस ने राजा से उसके यहां आने के यमय कहा था। 12O 7 18 परमेश्वर के भक्त ने जैसा राजा से यह कहा था, कि कल इसी समय शोमरोन के फाटक में दो सआ जव एक शेकेल में, और एक सआ मैदा एक शेकेल में बिकेगा, वैसा ही हुआ। 12O 7 19 और उस सरदार ने परमेश्वर के भक्त को, उत्तर देकर कहा था, कि सुन चाहे यहोवा आकाश में झरोखे खोले तौभी क्या ऐसी बात हो सकेगी? और उस ने कहा था, सुन, तू यह अपनी आंखों से तो देखेगा, परन्तु उस अन्न में से खाने न पाएगा। 12O 7 20 सो उसके साथ ठीक वैसा ही हुआ, अतएव वह फाटक में लोगों के पांवों के नीचे दबकर मर गया। 12O 8 1 जिस स्त्री के बेटे को एलीशा ने जिलाया था, उस से उस ने कहा था कि अपने घराने समेत यहां से जाकर जहां कहीं तू रह सके वहां रह; क्योंकि यहोवा की इच्छा है कि अकाल पड़े, और वह इस देश में सात वर्ष तक बना रहेगा। 12O 8 2 परमेश्वर के भक्त के इस वचन के अनुसार वह स्त्री अपने घराने समेत पलिश्तियों के देश में जाकर सात वर्ष रही। 12O 8 3 सात वर्ष के बीतने पर वह पलिश्तियों के देश से लौट आई, और अपने घर और भूमि के लिये दोहाई देने को राजा के पास गई। 12O 8 4 राजा परमेश्वर के भक्त के सेवक गेहजी से बातें कर रहा था, और उस ने कहा कि जो बड़े बड़े काम एलीशा ने किये हैं उनहें मुझ से वर्णन कर। 12O 8 5 जब वह राजा से यह वर्णन कर ही रहा था कि एलीशा ने एक मुर्दे को जिलाया, तब जिस स्त्री के बेटे को उस ने जिलाया था वही आकर अपने घर और भूमि के लिये दोहाई देने लगी। तब गेहजी ने कहा, हे मेरे प्रभु ! हे राजा ! यह वही स्त्री है और यही उसका बेटा है जिसे एलीशा ने जिलाया था। 12O 8 6 जब राजा ने स्त्री से मूछा, तब उस ने उस से सब कह दिया। तब राजा ने एक हाकिम को यह कहकर उसके साथ कर दिया कि लो कुछ इसका था वरन जब से इस ने देश को छोड़ दिया तब से इसके खेत की जितनी आमदनी अब तक हुई हो सब इसे फेर दे। 12O 8 7 और एलीशा दमिशक को गया। और जब अराम के राजा बेन्हदद को जो रोगी था यह समाचार मिला, कि परमेश्वर का भक्त यहां भी आया है, 12O 8 8 तब उस ने हजाएल से कहा, भेंट लेकर परमेश्वर के भक्त से मिलने को जा, और उसके द्वारा यहोवा से यह पूछ, कि क्या बेन्हदद जो रोगी है वह बचेगा कि नहीं? 12O 8 9 तब हजाएल भेंट के लिये दमिश्क की सब उत्तम उत्तम वस्तुओं से चालीस ऊंट लदवाकर, उस से मिलने को चला, और उसके सम्मुख खड़ा होकर कहने लगा, तेरे पुत्रा अराम के राजा बेन्हदद ने मुझे तुझ से यह पूछने को भेजा है, कि क्या मैं जो रोगी हूँ तो बचूंगा कि नहीं? 12O 8 10 एलीशा ने उस से कहा, जाकर कह, तू निश्चय बच सकता, तौभी यहोवा ने मुझ पर प्रगट किया है, कि तू निेसन्देह मर जाएगा। 12O 8 11 और वह उसकी ओर टकटकी बान्ध कर देखता रहा, यहां तक कि वह लज्जित हुआ। और परमेश्वर का भक्त रोने लगा। 12O 8 12 तब हजाएल ने पूछा, मेरा प्रभु क्यों रोता है? उस ने उत्तर दिया, इसलिये कि मुझे मालूम है कि नू इस्राएलियों पर क्या क्या उपद्रव करेगा; उनके गढ़वाले तगरों को तू फूंक देगा; उनके जवानों को तू तलवार से घात करेगा, उनके बालबच्चों को तू पटक देगा, और उनकी गर्भवती स्त्रियों को तू चीर डालेगा। 12O 8 13 हजाएल ने कहा, तेरा दास जो कुत्ते सरीखा है, वह क्या है कि ऐसा बड़ा काम करे? एलीशा ने कहा, यहोवा ने मुझ पर यह प्रगट किया है कि तू अराम का राजा हो जाएगा। 12O 8 14 तब वह एलीशा से बिदा होकर अपने स्वामी के पास गया, और उस ने उस से पूछा, एलीशा ने तुझ से क्या कहा? उस ने उत्तर दिया, उस ने मुझ से कहा कि बेन्हदद निेसन्देह बचेगा। 12O 8 15 दूसरे दिन उस ने राजाई को लेकर जल से भिगो दिया, और उसको उसके मुंह पर ऐसा ओढ़ा दिया कि वह मर गया। तब हजाएल उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 12O 8 16 इस्राएल के राजा अहाब के पुत्रा योराम के पांचवें वर्ष में, जब यहूदा का राजा यहोशापात जीवित था, तब यहोशापात का पुत्रा यहोराम यहूदा पर राज्य करने लगा। 12O 8 17 जब वह राजा हुआ, तब बत्तीस वर्ष का था, और आठ वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। 12O 8 18 वह इस्राएल के राजाओं की सी चाल चला, जैसे अहाब का घराना चलता था, क्योंकि उसकी स्त्री अहाब की बेटी थी; और वह उस काम को करता था जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 12O 8 19 तौभी यहोवा ने यहूदा को नाश करना न चाहा, यह उसके दास दाऊद के कारण हुआ, क्योंकि उस ने उसको वचन दिया था, कि तेरे वंश के निमित्त मैं सदा तेरे लिये एक दीपक जलता हुआ रखूंगा। 12O 8 20 उसके दिनों में एदोम ने यहूदा की अधीनता छोड़कर अपना एक राजा बना लिया। 12O 8 21 तब योराम अपने सब रथ साथ लिये हुए साईर को गया, ओर रात को उठकर उन एदोमियों को जो उसे घेरे हुए थे, और रथों के प्रधानों को भी मारा; और लोग अपने अपने डेरे को भाग गए। 12O 8 22 यों एदोम यहूदा के वश से छूट गया, और आज तक वैसा ही है। उस समय लिब्ना ने भी यहूदा की अधीनता छोड़ दी। 12O 8 23 योराम के और सब काम और जो कुछ उस ने किया, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 12O 8 24 निदान योराम अपने पुरखाओं के संग सो गया और उनके बीच दाऊदपुर में उसे मिट्टी दी गई; और उसका पुत्रा अहज्जाह उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 12O 8 25 अहाब के पुत्रा इस्राएल के राजा योराम के बारहवें वर्ष में यहूदा के राजा यहोराम का पुत्रा अहज्याह राज्य करने लगा। 12O 8 26 जब अहज्याह राजा बना, तब बाईस वर्ष का था, और यरूशलेम में एक ही वर्ष राज्य किया। और उसकी माता का नाम अतल्याह था, जो इस्राएल के राजा ओम्री की पोती थी। 12O 8 27 वह अहाब के घराने की सी चाल चला, और अहाब के घराने की नाई वह काम करता था, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, क्योंकि वह अहाब के घराने का दामाद था। 12O 8 28 और वह अहाब के पुत्रा योराम के संग गिलाद के रामोत में अराम के राजा हजाएल से लड़ने को गया, और अरामियों ने योराम को घायल किया। 12O 8 29 सो राजा योराम इसलिये लौट गया, कि यिज्रैल में उन घावों का इलाज कराए, जो उसको अरामियों के हाथ से उस समय लगे, जब वह हजाएल के साथ लड़ रहा था। और अहाब का पुत्रा योराम तो यिज्रैल में रोगी रहा, इस कारण यहूदा के राजा यहोराम का पुत्रा अहजयाह उसको देखने गया। 12O 9 1 तब एलीशा भविष्यद्वक्ता ने भविष्यद्वक्ताओं के चेलों में से एक को बुलाकर उस से कहा, कमर बान्ध, और हाथ में तेल की यह कुप्पी लेकर गिलाद के रामोत को जा। 12O 9 2 और वहां पहूंचकर येहू को जो यहोशापात का पुत्रा और निमशी का पोता है, ढूंढ़ लेना; तब भीतर जा, उसकी खड़ा कराकर उसके भइयों से अलग एक भीतरी कोठरी में ले जाना। 12O 9 3 तब तेल की यह कुप्पी लेकर तेल को उसके सिर पर यह कह कर डालना, यहोवा यों कहता है, कि मैं इस्राएल का राजा होने के लिये तेरा अभिषेक कर देता हूँ। तब द्वार खोलकर भागना, विलम्ह न करना। 12O 9 4 तब वह जवान भविष्यद्वक्ता गिलाद के रामोत को गया। 12O 9 5 वहां पहुंचकर उस ने क्या देखा, कि सेनापति बैठे हए हैं; तब उस ने कहा, हे सेनापति, मुझे तुझ से कुछ कहना है। येहू ने पूछा, हम सभों में किस से ? उस ने कहा हे सेनापति, तुझी से ! 12O 9 6 तब वह उठकर घर में गया; और उस ने यह कहकर उसके सिर पर तेल डाला कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, मैं अपनी प्रजा इस्राएल पर राजा होने के लिये तेरा अभिषेक कर देता हूँ। 12O 9 7 तो तू अपने स्वामी अहाब के घराने को मार डालना, जिस से मुझे अपने दास भविष्यद्वक्ताओं के वरन अपने सब दासों के खून का जो ईज़ेबेल ने बहाया, पलटा मिले। 12O 9 8 क्योंकि अहाब का समस्त घराना नाश हो जाएगा, और मैं अहाब के वंश के हर बक लड़के को और इस्राएल में के क्या बन्धुए, क्या स्वाधीन, हर एक को नाश कर डालूंगा। 12O 9 9 और मैं अहाब का घराना नबात के पुत्रा यारोबाम का सा, और अहिरयाह के पुत्रा बाशा का सा कर दूंगा। 12O 9 10 और ईज़ेबेल को यिज्रैल की भ्ूिम में कुत्ते खाएंगे, और उसको मिट्टी देनेवाला कोई न होगा। तब वह द्वार खोलकर भाग गया। 12O 9 11 तब येहू अपने स्वामी के कर्मचारियों के पास निकल आया, और एक ने उस से पूछा, क्या कुशल है, वह बावला क्यों तेरे पास आया था? उस ने उन से कहा, तुम को मालूम होगा कि वह कौन है और उस से क्या बातचीत हुई। 12O 9 12 उन्हों ने कहा झूठ है, हमें बता दे। उस ने कहा, उस ने मुझ से कहा तो बहुत, परन्तु मतलब यह है कि यहोवा यों कहता है कि मैं इस्राएल का राजा होने के लिये तेरा अभिषेक कर देता हूँ। 12O 9 13 तब उन्हों ने झट अपना अपना वस्त्रा उतार कर उसके तीचे सीढ़ी ही पर बिछाया, और नरसिंगे फूंककर कहने लगे, येहू राजा है। 12O 9 14 यों येहू जो निमशी का पोता और यहोशापात का पुत्रा था, उस ने योराम से राजद्रोह की गोष्ठी की। ( योराम तो सब इस्राएल समेत अराम के राजा हजाएल के कराण गिलाद के रामोत की रक्षा कर रहा था; 12O 9 15 परन्तु राजा योराम आप अपने घाव का जो अराम के राजा हजाएल से युठ्ठ करने के समय उसको अरामियों से लगे थे, उनका इलाज कराने के लिये यिज्रैल को लौठ गया था। ) तब येहू ने कहा, यदि तुम्हारा ऐसा मन हो, तो इस नगर में से कोई निकल कर यिज्रैल में सुनाने को न जाने पाए। 12O 9 16 तब येहू रथ पर चढ़कर, यिज्रैल को चला जहां योराम पड़ा हुआ था; और यहूदा का राजा अहज्याह योराम के देखने को वहां आया था। 12O 9 17 यिज्रैल के गुम्मट पर, जो पहरूआ खड़ा था, उस ने येहू के संग आते हुए दल को देखकर कहा, मुझे एक दल दीखता है; योराम ने कहा, एक सवार को बुलाकर उन लोगों से मिलने को भेज और वह उन से पूछे, क्या कुशल है? 12O 9 18 तब बक सवार उस से मिलने को गया, और उस से कहा, राजा पूछता है, क्या कुशल है? येहू ने कहा, कुशल से तेरा क्या काम? हटकर मेरे पीछे चल। तब पहरूए ने कहा, वह दूत उनके पास पहुंचा तो था, परन्तु लौटकर नहीं आया। 12O 9 19 तब उसने दूसरा सवार भेजा, और उस ने उनके पास पहुंचकर कहा, राजा पूछता है, क्या कुशल है? येहू ने कहा, कुशल से तेरा क्या काम? हटकर मेरे पीछे चल। 12O 9 20 तब पहरूए ने कहा, वह भी उनके पास पहुंचा तो था, परन्तु लौटकर नहीं आया। हांकना निमशी के पोते येहू का सा है; वह तो बौड़हे की नाई हांकता है। 12O 9 21 योराम ने कहा, मेरा रथ जुतवा। जब उसका रथ जुत गया, तब इस्राएल का राजा योराम और यहूदा का राजा अहज्याह, दोनो अपने अपने रथ पर चढ़कर निकल गए, और येहू से मिलने को बाहर जाकर यिज्रैल नाबोत की भूमि में उस से भेंट की। 12O 9 22 येहू को देखते ही योराम ने पूछा, हे येहू क्या कुशल है, येहू ने उत्तर दिया, जब तक तेरी माता ईज़ेबेल छिनालपन और टोना करती रहे, तब तक कुशल कहां? 12O 9 23 तब याराम रास फेर के, और अहज्याह से यह कहकर कि हे अहज्याह विश्वासघात है, भाग चल। 12O 9 24 तब येहू ने धनुष को कान तक खींचकर योराम के पखौड़ों के बीच ऐसा तीर मारा, कि वह उसका हृदय फोड़कर निकल गया, और वह अपने रथ में झुककर गिर पड़ा। 12O 9 25 तब येहू ने बिदकर नाम अपने एक सरदार से कहा, उसे उठाकर यिज्रैली नाबोत की भूमि में फेंक दे; स्मरण तो कर, कि जब मैं और तू, हम दोनो एक संग सवार होकर उसके पिता अहाब के पीछे पीछे चल रहे थे तब यहोवा ने उस से यह भरी वचन कहवाया था, कि यहोवा की यह वाणी है, 12O 9 26 कि नाबोत और उसके पुत्रों का जो खून हुआ, उसे मैं ने देखा है, और यहोवा की यह वाण्एी है, कि मैं उसी भूमि में तुझे बदला दूंगा। तो अब यहोवा के उस वचन के अनुसार इसे उठाकर उसी भूमि में फेंक दे। 12O 9 27 यह देखकर यहूदा का राजा अहज्याह बारी के भवन के मार्ग से भाग चला। और येहू ने उसका पीछा करके कहा, उसे भी रथ ही पर मारो; तो वह भी यिबलाम के पास की गूर की चढ़ाई पर मारा गया, और मगिद्दॊ तक भगकर मर गया। 12O 9 28 तब उसके कर्मचारियों ने उसे रथ पर यरूशलेम को पहुंचाकर दाऊदपुर में उसके पुरखाओं के बीच मिट्टी दी। 12O 9 29 अहज्याह तो अहाब के पुत्रा योराम के ग्यारहवें वर्ष में यहूदा पर राज्य करने लगा था। 12O 9 30 जब येहू यिज्रैल को आया, तब ईज़ेबेल यह सुन अपनी आंखों में सुर्मा लगा, अपना सिर संवारकर, खिड़की में से झांकने लगी। 12O 9 31 जब येहू फाटक में होकर आ रहा था तब उस ने कहा, हे अपने स्वामी के घात करने वाले जिम्री, क्या कुशल है? 12O 9 32 तब उस ने खिड़की की ओर मुंह उठाकर पूछा, मेरी ओर कौन है? कौन? इस पर दो तीन खोजों ने उसकी ओर झांका। 12O 9 33 तब उस ने कहा, उसे नीचे गिरा दो। सो उन्हों ने उसको नीचे गिरा दिया, और उसके लोहू के कुछ छींटे भीत पर और कुछ घोड़ों पर पड़े, और उन्हों ने उसको पांव से लताड़ दिया। 12O 9 34 तब वह भीतर जाकर खाने पीने लगा; और कहा, जाओ उस स्रापित स्त्री को देख लो, और उसे मिट्टी दो; वह तो राजा की बेटी है। 12O 9 35 जब वे उसे मिट्टी देने गए, तब उसकी खोपड़ी पांवों और हथेलियों को छोड़कर उसका और कुछ न पाया। 12O 9 36 सो उन्हों ने लौटकर उस से कह दिया; तब उस ने कहा, यह यहोवा का वह वचन है, जो उस ने अपने दास तिशबी एलिरयाह से कहलवाया था, कि ईज़ेबेल का मांस यिज्रैल की भूमि में कुत्तों से खाया जाएगा। 12O 9 37 और ईज़ेबेल की लोथ यिज्रैल की भूमि पर खाद की नाई पड़ी रहेगी, यहां तक कि कोई न कहेगा, यह ईज़ेबेल है। 12O 10 1 अहाब के तो सत्तर बेटे, पोते, शोमरोन में रहते थे। सो येहू ने शोमरोन में उन पुरनियों के पास, और जो यिज्रैल के हाकिम थे, और जो अहाब के लड़केवालों के पालनेवाले थे, उनके पास पत्रा लिखकर भेजे, 12O 10 2 कि तुम्हारे स्वामी के बेटे, पोते तो तुम्हारे पास रहते हैं, और तुम्हारे रथ, और धेड़े भी हैं, और तुम्हारे एक गढ़वाला नगर, और हथियार भी हैं; तो इस पत्रा के हाथ लगते ही, 12O 10 3 अपने स्वामी के बेटों में से जो सब से अच्छा और योग्य हो, उसको छांटकर, उसके पिता की गद्दी पर बैठाओ, और अपने स्वामी के घराने के लिये लड़ो। 12O 10 4 परंतु वे निपट डर गए, और कहने लगे, उसके साम्हने दो राजा भी ठहर न सके, फिर हम कहां ठहर सकेंगे? 12O 10 5 तब जो राज घराने के काम पर था, और जो नगर के ऊपर था, उन्हों ने और पुरनियों और लड़केबालों के पालनेवालों ने येहू के पास यों कहला भेजा, कि हम तेरे दास हैं, जो कुछ तू हम से कहे, उसे हम करेंगे; हम किसी को राजा न बनाएंगे, जो तुझे भाए वहीं कर। 12O 10 6 तब उस ने दूसरा पत्रा लिखकर उनके पास भेजा, कि यदि तुम मेरी ओर के हो और मेरी मानो, तो अपने स्वामी के बेटों पोतों के सिर कटवाकर कल इसी समय तक मेरे पास यिज्रैल में हाजिर होना। राजपुत्रा तो जो सत्तर मतुष्य थे, वे उस नगर के रईसों के पास पलते थे। 12O 10 7 यह पत्रा उनके हाथ लगते ही, उन्हों ने उन सत्तरों राजपुत्रों को पकड़कर मार डाला, और उनके सिर टोकरियों में रखकर यिज्रैल को उसके पास भेज दिए। 12O 10 8 और एक दूत ने उसके पास जाकर बता दिया, कि राजकुमारों के सिर आगए हैं। तब उस ने कहा, उन्हें फाटक में दो ढेर करके बिहान तक रखो। 12O 10 9 बिहान को उस ने बाहर जा खड़े होकर सब लोगों से कहा, तुम तो निदष हो, मैं ने अपने स्वामी से राजद्रोह की गोष्ठी करके उसे घात किया, परन्तु इन सभों को किस ने मार डाला? 12O 10 10 अब जान लो कि जो वचन यहोवा ने अपने दास एलिरयाह के द्वारा कहा था, उसे उस ने पूरा किया है; जो वचन यहोवा ने अहाब के घराने के विषय कहा, उस में से एक भी बात बिना पूरी हुए न रहेगी। 12O 10 11 तब अहाब के घराने के जितने लोग यिज्रैल में रह गए, उन सभों को और उसके जितने प्रधान पुरूष और मित्रा और याजक थे, उन सभों को येहू ने मार डाला, यहां तक कि उस ने किसी को जीवित न छोड़ा। 12O 10 12 तब वह वहां से चलकर शोमरोन को गया। और मार्ग में चरवाहों के ऊन कतरने के स्थान पर पहुंचा ही था, 12O 10 13 कि यहूदा के राजा अहरयाह के भई येहू से मिले और जब उस ने पूछा, तुम कौन हो? तब उन्हों ने उत्तर दिया, हम अहज्याह के भाई हैं, और राजमुत्रों और राजमाता के बेटों का कुशलक्षेम पूछने को जाते हैं। 12O 10 14 तब उस ने कहा, इन्हें जीवित पकड़ो। सो उन्हों ने उनको जो बयालीस पुरूष थे, जीवित पकड़ा, और ऊन कतरते के स्थान की बाबली पर मार डाला, उस ने उन में से किसी को न छोड़ा। 12O 10 15 जब वह वहां से चला, तब रेकाब का पुत्रा यहोनादाब साम्हने से आता हुआ उसको मिला। उसका कशल उस ने पूछकर कहा, मेरा मन तो तेरी ओर निष्कपट है सो क्या तेरा मन भी वैसा ही है? यहोनादाब ने कहा, हां, ऐसा ही है। फिर उस ने कहा, ऐसा हो, तो अपना हाथ मुझे दे। उस ने अपना हाथ उसे दिया, और वह यह कहकर उसे अपने पास रथ पर चढ़ाने लगा, 12O 10 16 कि मेरे संग चल। और देख, कि मुझे यहोवा के निमित्त कैसी जलन रहती है। तब वह उसके रथ पर चढ़ा दिया गया। 12O 10 17 शोमरोन को पहुंचकर उस ने यहोवा के उस वचन के अनुसार जो उस ने एलिरयाह से कहा था, अहाब के जितने शोमरोन में बचे रहे, उन सभों को मार के विनाश किया। 12O 10 18 तब येहू ने सब लोगों को इकट्ठा करके कहा, अहाब ने तो बाल की थोड़ी ही उपासना की थी, अब येहू उसकी अपासना बढ़के करेगा। 12O 10 19 इसलिये अब बाल के सब नबियों, सब उपासकों और सब याजकों को मेरे पास बुला लाओ, उन में से कोई भी न रह जाए; क्योंकि बाल के लिये मेरा एक बड़ा यज्ञ होनेवाला है; जो कोई न आए वह जीवित न बचेगा। येहू ने यह काम कमट करके बाल के सब उपासकों को नाश करने के लिये किया। 12O 10 20 तब येहू ने कहा, बाल की एक पवित्रा महासभा का प्रचार करो। और लोगों ने प्रचार किया। 12O 10 21 और येहू ने सारे इस्राएल में दूत भेजे; तब वाल के सब उपासक आए, यहां तक कि ऐसा कोई न रह गया जो न आया हो। और वे बाल के भवन में इतने आए, कि वह एक सिरे से दूसरे सिरे तक भर गया। 12O 10 22 तब उस ने उस मनुष्य से जो वस्त्रा के घर का अधिकारी था, कहा, बाल के सब उपासकों के लिये वस्त्रा निकाल ले आ; सो वह उनके लिये वस्त्रा निकाल ले आया। 12O 10 23 तब येहू रेकाब के पुत्रा यहोनादाब को संग लेकर बाल के भपन में गया, और बाल के उपासकों से कहा, ढूंढ़कर देखो, कि यहां तुम्हारे संग यहोवा का कोई उपासक तो नहीं है, केवल बाल ही के उपासक हैं। 12O 10 24 तब वे मेलबलि और होमबलि चढ़ाने को भीतर गए। येहू ने तो अस्सी पुरूष बाहर ठहरा कर उन से कहा था, यदि उन मनुष्यों में से जिन्हें मैं तुम्हारे हाथ कर दूं, कोर्ठ भी बचने पाए, तो जो उसे जाने देगा उसका प्राण, उसके प्राण की सन्ती जाएगा। 12O 10 25 फिर जब होमबलि चढ़ चुका, तब संहू ने पहरूओं और सरदारों से कहा, भीतर जाकर उन्हें मार डालो; कोई निकलने न पाए। तब उन्हों ने उन्हें तलवार से मारा और पहरूए और सरदार उनको बाहर फेंककर बाल के भवन के नगर को गए। 12O 10 26 और उन्हों ने बाल के भवन में की लाठें निकालकर फूंक दीं। 12O 10 27 और बाल की लाठ को उन्हों ने तोड़ डाला; और बाल के भवन को ढाकर पायखाना बना दिया; और वह आज तक ऐसा ही है। 12O 10 28 यों येहू ने बाल को इस्राएल में से नाश करके दूर किया। 12O 10 29 ैतौभी नबात के पुत्रा यारोबाम, जिस ने इस्राएल से पाप कराया था, उसके पापों के अनुसार करने, अर्थात् बेतेल और दान में के सोने के बछड़ों की पूजा, उस से येहू अलग न हुआ। 12O 10 30 और यहोवा ने येहू से कहा, इसलिये कि नू ने वह किया, जो मेरी दृष्टि में ठीक है, और अहाब के घराने से मेरी इच्छा के अनुसार बर्ताव किया है, तेरे परपोते के पुत्रा तक तेरी सन्तान इस्राएल की गद्दी पर बिराजती रहेगी। 12O 10 31 परन्तु येहू ने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की रयवस्था पर पूर्ण मन से चलने की चौकसी न की, वरन यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया था, उसके पापों के अनुसार करने से वह अलग न हुआ। 12O 10 32 उन दिनों यहोवा इस्राएल को घटाने लगा, इसलिये हजाएल ने इस्राएल के उन सारे देशों में उनको मारा : 12O 10 33 यरदन से पूरब की ओर गिलाद का सारा देश, और गादी और रूबेनी और मनश्शेई का देश अर्थात् अरोएर से लेकर जो अन न की तराई के पास है, गिलाद और बाशान तक। 12O 10 34 येहू के और सब काम और जो कुछ उस ने किया, और उसकी पूर्र्ण वीरता, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 12O 10 35 12O 10 36 निदान येहू अपने पुरखाओं के संग सो गया, और शोमरोन में उसको मिट्टी दी गई, और उसका पुत्रा यहोआहाज उसके स्थान पर राजा बन गया। 12O 10 37 येहू के शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने का समय तो अट्ठाईस वर्ष का था। 12O 11 1 जब अहज्याह की माता अतल्याह ने देखा, कि मेरा पुत्रा मर गया, तब उस ने पूरे राजवंश को नाश कर डाला। 12O 11 2 परन्तु यहोशेबा जो राजा योराम की बेटी, और अहज्याह की बहिन थी, उस ने अहज्याह के पुत्रा योआश को घात होनेवाले राजकुमारों के बीच में से चुराकर धाई समेत बिछौने रखने की कोठरी में छिपा दिया। और उन्हों ने उसे अतल्याह से ऐसा छिपा रखा, कि वह मारा न गया। 12O 11 3 और वह उसके पास यहोवा के भवन में छेवर्ष छिपा रहा, और अतल्याह देश पर राज्य करती रही। 12O 11 4 सातवें वर्ष में यहोयादा ने जल्लादों और पहरूओं के शतपतियों को बुला भेजा, और उनको यहोवा के भवन में अपने पास ले आया; और उन से वाचा बान्धी और यहोवा के भवन में उनको शपथ खिलाकर, उनको राजपुत्रा दिखाया। 12O 11 5 और उस ने उन्हें आज्ञा दी, कि एक काम करो : अर्थात् तुम में से एक तिहाई लोग जो विश्रामदिन को आनेवाले हों, वह राजभवन के पहरे की चौकसी करें। 12O 11 6 और एक तिहाई लोग सूर नाम फाटक में ठहरे रहें, और एक तिहाई लोग पहरूओं के पीछे के फाटक में रहें; यों तुम भवन की चौकसी करके लोगों को रोके रहना। 12O 11 7 और तुम्हारे दो दल अर्थात् जितने विश्राम दिन को बाहर जानेवाले हों वह राजा के आसपास होकर यहोवा के भवन की चौकसी करें। 12O 11 8 और तुम अपने अपने हाथ में हथियार लिये हुए राजा के चारों ओर रहना, और जो कोई पांतियों के भीतर घुसना चाहे वह मार डाला जाए, और तुम राजा के आते- जाते समय उसके संग रहना। 12O 11 9 यहायादा याजक की इन सब आज्ञाओं के अनुसार शतपतियों ने किया। वे विश्रामदिन को आनेवाले और जानेवाले दोनों दलों के अपने अपने जनों को संग लेकर यहोयादा याजक के पास गए। 12O 11 10 तब याजक ने शतपतियों को राजा दाऊद के बर्छे, और ढालें जो यहोवा के भवन में थीं दे दीं। 12O 11 11 इसलिये वे पहरूए अपने अपने हाथ में हथियार लिए हुए भवन के दक्खिनी कोने से लेकर उत्तरी कोने तक वेदी और भवन के पास राजा के चारों ओर उसकी आड़ करके खड़े हुए। 12O 11 12 तब उस ने राजकुमार को बाहर लाकर उसके सिर पर मुकुट, और साक्षीपत्रा धर दिया; तब लोगों ने उसका अभिषेक करके उसको राजा बनाया; फिर ताली बजा बजाकर बोल उठे, राजा जीवित रहे । 12O 11 13 जब अतल्याह को पहरूओं और लोगों का हलचल सुन पड़ा, तब वह उनके पास यहोवा के भवन में गई। 12O 11 14 और उस ने क्या देखा कि राजा रीति के अनुसार खम्भे के पास खड़ा है, और राजा के पास प्रधान और तुरही बजानेवाले खड़े हैं। और लोग आनन्द करते और तुरहियां बजा रहे हैं। तब अतल्याह अपने वस्त्रा फाड़कर राजद्रोह.. राजद्रोह यों पुकारने लगी। 12O 11 15 तब यहोयादा याजक ने दल के अधिकारी शतपतियों को आज्ञा दी कि उसे अपनी पांतियों के बीच से निकाल ले जाओ; और जो कोई उसके पीछे चले उसे तलवार से मार डालो। क्योंकि याजक ने कहा, कि वह यहोवा के भवन में न मार डाली जाए। 12O 11 16 इसलिये उन्हों ने दोनों ओर से उसको जगह दी, और वह उस मार्ग के बीच से चली गई, जिस से घोड़े राजभवन में जाया करते थे; और वहां वह मार डाली गई। 12O 11 17 तब यहोयादा ने यहोवा के, और राजा- प्रजा के बीच यहोवा की प्रजा होने की वाचा बन्धाई, और उस ने राजा और प्रजा के मध्य भी वाचा बन्धाई। 12O 11 18 तब सब लोगों ने बाल के भवन को जाकर ढा दिया, और उसकी वेदियां और मूरतें भली भंति तोड़ दीं; और मतान नाम बाल के याजक को वेदियों के साम्हने ही घात किया। और याजक ने यहोवा के भवन पर अधिकारी ठहरा दिए। 12O 11 19 तब वह शतपतियों, जल्लादों और पहरूओं और सब लोगों को साथ लेकर राजा को यहोवा के भवन से नीचे ले गया, और पहरूओं के फाटक के मार्ग से राजभवन को पहुंचा दिया। और राजा राजगद्दी पर विराजमान हुआ। 12O 11 20 तब सब लोग आनन्दित हुए, और नगर में शान्ति हुई। अतल्याह तो राजभवन के पास तलवार से मार डाली गई थी। 12O 11 21 जब योआश राजा हुआ, उस समय वह सात पर्ष का था। 12O 12 1 येहू के सातवें वर्ष में योआश राज्य करने लगा, और यरूशलेम में चालीस वर्ष तक राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम सिब्या था जो बेश् बा की थी। 12O 12 2 और जब तक यहोयादा याजक योआश को शिक्षा देता रहा, तब तक वह वही काम करता रहा जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है। 12O 12 3 तौभी ऊंचे स्थान गिराए न गए; प्रजा के लोग तब भी ऊंचे स्थान पर बलि चढ़ाते और धूप जलाते रहे। 12O 12 4 और योआश ने याजकों से कहा, पवित्रा की हुई वस्तुओं का जितना रूपया यहोवा के भवन में पहुंचाया जाए, अर्थात् गिने हुए लोगों का रूपया और जितने रूपये के जो कोई योग्य ठहराया जाए, और जितना रूपया जिसकी इच्छा यहोवा के भवन में ले आने की हो, 12O 12 5 इन सब को याजक लोग अपनी जान पहचान के लोगों से लिया करें और भवन में जो कुछ टूटा फूटा हो उसको सुधार दें। 12O 12 6 तौभी याजकों ने भवन में जो टूटा फूटा था, उसे योआश राजा के तेईसवें वर्ष तक नहीं सुधारा था। 12O 12 7 इसलिये राजा योआश ने यहोयादा याजक, और और याजकों को बुलवाकर पूछा, भवन में जो कुछ टूटा फूटा है, उसे तुम क्यों नहीं सुधारते? अब से अपनी जान पहचान के लोगों से और रूपया न लेना, और जो तुम्हें मिले, उसे भवन के सुधारने के लिये दे देना। 12O 12 8 तब याजकों ने मानलिया कि न तो हम प्रजा से और रूपया लें और न भवन को सुधारें। 12O 12 9 तब यहोयादा याजक ने एक सन्दूक ले, असके ढकने में छेद करके उसको यहोवा के भवन में आनेवालों के दाहिने हाथ पर वेदी के पास धर दिया; और द्वार की रखवाली करनेवाले याजक उस में वह सब रूपया डालते लगे जो यहोवा के भवन में लाया जाता था। 12O 12 10 जब उन्हों ने देखा, कि सन्दूक में बहुत रूपया है, तब राजा के प्रधान और महायाजक ने आकर उसे थैलियों में बान्ध दिया, और यहोवा के भवन में पाए हुए रूपये को गिन लिया। 12O 12 11 तब उन्हों ने उस तौले हुए रूपये को उन काम करानेवालों के हाथ में दिया, जो यहोवा के भवन में अधिकारी थे; और इन्हों ने उसे यहोवा के भवन के बनानेवाले बढ़इयों, राजों, और संगतराशों को दिये। 12O 12 12 और लकड़ी और गढ़े हुए पत्थर मोल लेने में, वरन जो कुछ भवन के टूटे फूटे की मरम्मत में खर्च होता था, उस में लगाया। 12O 12 13 मरन्तु जो रूपया यहोवा के भवन में आता था, उस से चान्दी के तसले, चिमटे, कटोरे, तुरहियां आदि सोने वा चान्दी के किसी प्रकार के पात्रा न बने। 12O 12 14 परन्तु वह काम करनेवाले को दिया गया, और उन्हों ने उसे लेकर यहोवा के भवन की मरम्मत की। 12O 12 15 और जिनके हाथ में काम करनेवालों को देने के लिये रूपया दिया जाता था, उन से कुछ हिसाब न लिया जाता था, क्योंकि वे सच्चाई से काम करते थे। 12O 12 16 जो रूपया दोषबलियों और पापबलियों के लिये दिया जाता था, यह तो यहोवा के भवन में न लगाया गया, वह याजकों को मिलता था। 12O 12 17 तब अराम के राजा हजाएल ने गत नगर पर चढ़ाई की, और उस से लड़ाई करके उसे ले लिया। तब उस ने यरूशलेम पर भी चढ़ाई करने को अपना मुंह किया। 12O 12 18 तब यहूदा के राजा योआश ने उन सब पवित्रा वस्तुओं को जिन्हें उसके पुरखा यहोशापात यहोराम और अहज्याह नाम यहूदा के राजाओं ने पवित्रा किया था, और अपनी पवित्रा की हुई वस्तुओं को भी और जितना सोना यहोवा के भवन के भणडारों में और राजभवन में मिला, उस सब को लेकर अराम के राजा हजाएल के पास भेज दिया; और वह यरूशलेम के पास से चला गया। 12O 12 19 योआश के और सब काम जो उस ने किया, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 12O 12 20 योआश के कर्मचारियों ने राजद्रोह की गोष्ठी करके, उसको मिल्लो के भवन में जो सिल्ला की उतराई पर था, मार डाला। 12O 12 21 अर्थात् शिमात का पुत्रा योजाकार और शोमेर का पुत्रा यहोजाबाद, जो उसके कर्मचारी थे, उन्हों ने उसे ऐसा मारा, कि वह मर गया। तब उसे उसके पुरखाओं के बीच दाऊदपुर में मिट्टी दी, और उसका पुत्रा अमस्याह उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 12O 13 1 अहज्याह के पुत्रा यहूदा के राजा योआश के तेईसवें वर्ष में यंहू का मुत्रा यहोआहाज शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने लगा, और सत्राह वर्ष तक राज्य करता रहा। 12O 13 2 और उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था अर्थात् नबात के पुत्रा यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया था, उसके पापों के अनुसार वह करता रहा, और उनको छोड़ न दिया। 12O 13 3 इसलिये यहोवा का क्रोध इस्राएलियों के विरूद्ध भड़क उठा, और उस ने उनको अराम के राजा हजाएल, और उसके पुत्रा बेन्हदद के अधीन कर दिया। 12O 13 4 तब यहोआहाज यहोवा के साम्हने गिड़गिड़ाया और यहोवा ने उसकी सुन ली; क्योंकि उस ने इस्राएल पर अन्धेर देखा कि अराम का राजा उन पर कैसा अन्धेर करता था। 12O 13 5 इसलिये यहोवा ने इस्राएल को एक छुड़ानेवाला दिया और वे अराम के वश से छूट गए; और इस्राएली अगले दिनों की नाई फिर अपने अपने डेरे में रहने लगे। 12O 13 6 तौभी वे ऐसे पापों से न फिरे, जैसे यारोबाम के घराने ने किया, और जिनके अनुसार उस ने इस्राएल से पाप कराए थे : परन्तु उन में चलते रहे, और शोमरोन में अशेरा भी खड़ी रही। 12O 13 7 अराम के राजा ने तो यहोआहाज की सेना में से केवल पचास सवार, दस रथ, और दस हजार प्यादे छोड़ दिए थे; क्योंकि उस ने उनको नाश किया, और रौंद रौंदकर के धूलि में मिला दिया था। 12O 13 8 यहोआहाज के और सब काम जो उस ने किए, और उसकी वीरता, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 12O 13 9 निदान यहोआहाज अपने पुरखाओं के संग सो गया और शोमरोन में उसे मिद्दी दी बई; और उसका पुत्रा योआश उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 12O 13 10 यहूदा के राजा योआश के राज्य के सैंतीसवें वर्ष में यहोआहाज का पुत्रा यहोआश शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करते लगा, और सोलह वर्ष तक राज्य करता रहा। 12O 13 11 और उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था, अर्थात् नबात का पुत्रा यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया था, उसके पापो के अनुसार वह करता रहा, और उन से अलग न हुआ। 12O 13 12 योआश के और सब काम जो उस ने किए, और ख्सि वीरता से वह सहूदा के राजा अमस्याह से लड़ा, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 12O 13 13 निदान योआश अपने पुरखाओं के संग सो गया और यारोबाम उसकी गद्दी पर विराजमान हुआ; और योआश को शोमरोन में इय्राएल के राजाओं के बीच मिट्टी दी गई। 12O 13 14 और एलीशा को वह रोग लग गया जिस से वह मरने पर था, तब इस्राएल का राजा योआश उसके पास गया, और उसके ऊपर रोकर कहने लगा, हाय मेरे पिता ! हाय मेरे पिता ! हाय इस्राएल के रथ और सवारो ! एलीश ने उस से कहा, धनुष और तीर ले आ। 12O 13 15 वह उसके पास धनुष और तीर ले आया। 12O 13 16 तब उस ने इस्राएल के राजा से कहा, धनुष पर अपना हाथ लगा। जब उस ने अपना हाथ लगाया, तब एलीशा ने अपने हाथ राजा के हाथों पर धर दिए। 12O 13 17 तब उस ने कहा, पूर्व की खिड़की खोल। जब उस ने उसे खोल दिया, तब एलीशा ने कहा, तीर छोड़ दे; उस ने तीर छोड़ा। और एलीशा ने कहा, यह तीर यहोवा की ओर से छुटकारे अर्थात् अराम से छुटकारे का चिहृ है, इसलिये तू अपेक में अराम को यहां तक मार लेगा कि उनका अन्त कर डालेगा। 12O 13 18 फिर उस ने कहा, तीरों को ले; और जब उस ने उन्हें लिया, तब उस ने इस्राएल के राजा से कहा, भूमि पर मार; तब वह तीन बार मार कर ठहर गया। 12O 13 19 और परमेश्वर के जन ने उस पर क्रोधित होकर कहा, तुझे तो पांच छे बार मारना चाहिये था। ऐसा करते से तो तू अराम को यहां तक मारता कि उनका अन्त कर डालता, परन्तु अब तू उन्हें तीन ही बार मारेगा। 12O 13 20 तब एलीशा मर गया, और उसे मिट्टी दी गई। एक वर्ष के बाद मोआब के दल देश में आए। 12O 13 21 लोग किसी मनुष्य को मिट्ठी दे रहे थे, कि एक दल उन्हें देख पड़ा तब उन्हों ने उस लोथ को एलीशा की कबर में डाल दिया, और एलीशा की हडि्ढयों के छूते ही वह जी उठा, और अपने पावों के बल खड़ा हो गया। 12O 13 22 यहोआहाज के जीवन भर अराम का राजा हजाएल इस्राएल पर अन्धेर ही करता रहा। 12O 13 23 परन्तु यहोवा ने उन पर अनुग्रह किया, और उन पर दया करके अपनी उस वाचा के कारण जो उस ने इब्राहीम, इसहाक और याकूब से बान्धी थी, उन पर कृपा दृष्टि की, और न तो उन्हें नाश किया, और न अपने साम्हने से निकाल दिया। 12O 13 24 तब अराम का राजा हजाएल मर गया, और उसका पुत्रा बेन्हदद उसके स्थान पर राजा बन गया। 12O 13 25 और यहोआहाज के पुत्रा यहोआश ने हजाएल के पुत्रा बेन्हदद के हाथ से वे नगर फिर ले लिए, जिन्हें उस ने युठ्ठ करके उसके पिता यहोआहाज के हाथ से छीन लिया था। योआश ने उसको तीन बार जीतकर इस्राएल के नगर फिर ले लिए। 12O 14 1 इस्राएल के राजा यहोआहाज के पुत्रा सोआश के दूसरे वर्ष में यहूदा के राजा योआश का मुत्रा असस्याह राजा हुआ। 12O 14 2 जब वह राज्य करने लगा। तब वह पचीस वर्ष का था, और यरूशलेम में उनतीस वर्ष राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम यहोअद्दीन था, जो यरूशलेम की थी। 12O 14 3 उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था तौभी अपने मूल पुरूष दाऊद की नाई न किया; उस ने ठीक अपने पिता योआश के से काम किए। 12O 14 4 उसके दिनों में ऊंचे स्थान गिराए न गए; लोग तब भी उन पर बलि चढ़ाते, और धूप जलाते रहे। 12O 14 5 जब राज्य उसके हाथ में स्थिर हो गया, तब उस ने अपने उन कर्मचारियों को मार डाला, जिन्हों ने उसके पिता राजा को मार डाला था। 12O 14 6 परन्तु उन खूनियों के लड़केवालों को उस ने न मार डाला, क्योंकि यहोवा की यह आज्ञा मूसा की रयवस्था की पुस्तक में लिखी है, कि पुत्रा के कारण पिता न मार डाला जाए, और पिता के कारण पुत्रा न मार डाला जाए : जिस ने पाप किया हो, वही उस पाप के कारण मार डाला जाए। 12O 14 7 उसी अमस्याह ने लोन की तराई में दस हजार एदोमी पुरूष मार डाले, और सेला नगर से युठ्ठ करके उसे ले लिया, और उसका नाम योक्तेल रखा, और वह नाम आज तक चलता है। 12O 14 8 तब अमस्याह ने इस्राएल के राजा योआश के पास जो येहू का पोता और यहोआहाज का पुत्रा था दूतों से कहला भेजा, कि आ हम एक दूसरे का साम्हना करें। 12O 14 9 इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह के पास यों कहला भेजा, कि लबानोन पर की एक झड़बेरी ने लबानोन के एक देवदारू के पास कहला भेजा, कि अपनी बेटी मेरे बेटे को ब्याह दे; इतने में लबानोन में का एक बनपशु पास से चला गया और उस झड़बेरी को रौंद डाला। 12O 14 10 तू ने एदोमियों को जीता तो है इसलिये तू फूल उठा है। उसी पर बड़ाई पारता हुआ घर रह जा; तू अपनी हानि के लिये यहां क्यों हाथ उठाता है, जिस से तू क्या वरन यहूदा भी तीचा खाएगा ? 12O 14 11 परन्तु अमस्साह ने न माना। तब इस्राएल के राजा योआश ने चढाई की, और उस ने और यहूदा के राजा अमस्याह ने यहूदा देश के बेतशेमेश में एक दूसरे का सामहना किया। 12O 14 12 और यहूदा इस्राएल से हार गया, और एक एक अपने अपने डेरे को भागा। 12O 14 13 तब इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह को जो अहज्याह का पोता, और योआश का पुत्रा था, बेतशेमेश में पकड़ लिया, और यरूशलेम को गया, और यरूशलेम की शहरपनाह में से बप्रैमी फाटक से कोनेवाले फाटक तक चार सौ हाथ गिरा दिए। 12O 14 14 और जितना सोना, चान्दी और जितने पात्रा यहोवा के भवन में और राजभवन के भणडारों में मिले, उन सब को और बन्धक लोगों को भी लेकर वह शोमरोन को लौट गया। 12O 14 15 योआश के और काम जो उस ने किए, ओर उसकी वीरता और उस ने किस रीति यहूदा के राजा अमस्याह से युठ्ठ किया, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 12O 14 16 निदान योआश अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसे इस्राएल के राजाओं के बीच शोमरोन में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्रा यारोबाम उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 12O 14 17 यहोआहाज के पुत्रा इस्राएल के राजा यहोआश के मरने के बाद योआश का पुत्रा यहूदा का राजा अमस्याह पन्द्रह वर्ष जीवित रहा। 12O 14 18 अमस्याह के और काम क्या यहूदा के रजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 12O 14 19 जब यरूशलेम में उसके विरूद्ध राजद्रोह की गोष्ठी की गई, तब वह लाकीश को भाग गया। सो उन्हों ने लाकीश तक उसका पीछा करके उसको वहां मार डाला। 12O 14 20 तब वह घोड़ों पर रखकर यरूशलेम में पहुंचाया गया, और वहां उसके पुरखाओं के बीच उसको दाऊदपुर में मिट्टी दी गई। 12O 14 21 तब सररी यहूदी प्रजा ने अजर्याह को लेकर, जो सोलह वर्ष का था, उसके पिता अमस्याह के स्थान पर राजा नियुक्त कर दिया। 12O 14 22 जब राजा अमस्याह अपने पुरखाओं के संग सो गया, उसके बाद अजर्याह ने एलत को दृढ़ करके यहूदा के वश में फिर कर लिया। 12O 14 23 यहूदा के राजा योआश के पुत्रा अमस्याह के राज्य के पन्द्रहवें वर्ष में इस्राएल के राजा योआश का पुत्रा यारोबाम शोमरोन में राज्य करने लगा, और एकतालीस वर्ष राज्य करता रहा। 12O 14 24 उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था; अर्थात् नबात के पुत्रा यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया था, उसके पापों के अनुसार वह करता रहा, और उन से वह अलग न हुआ। 12O 14 25 उस ने इस्राएल का सिवाना हमात की घाटी से ले अराबा के ताल तक ज्यों का त्यों कर दिया, जैसा कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने अमित्तै के पुत्रा अपने दास गथेपेरवासी योना भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था। 12O 14 26 क्योंकि यहोवा ने इस्राएल का दु:ख देखा कि बहुत ही कठिन है, वरन क्या बन्धुआ क्या स्वाधीन कोई भी बचा न रहा, और न इस्राएल के लिये कोई सहायक था। 12O 14 27 यहोवा ने नहीं कहा था, कि मैं इस्राएल का नाम घरती पर से मिटा डालूंगा। सो उस ने योआश के पुत्रा यारोबाम के द्वारा उनको छूटकारा दिया। 12O 14 28 यारोबाम के और सब काम जो उस ने किए, और कैसे पराक्रम के साथ उस ने युठ्ठ किया, और दमिश्क और हमात को जो पहले यहूदा के राज्य में थे इस्राएल के वश में फिर मिला लिया, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 12O 14 29 निदान यारोबाम अपने पुरखाओं के संग जो इस्राएल के राजा थे सो गया, और उसका पुत्रा जकर्याह उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 12O 15 1 इस्राएल के राजा यारोबाम के सताईसवें वर्ष में यहूदा के राजा अमस्याह का पुत्रा अजर्याह राजा हुआ। 12O 15 2 जब वह राज्य करने लगा, तब सोलह वर्ष का था, और यरूशलेम में बावन वर्ष राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम यकोल्याह था, जो यरूशलेम की थी। 12O 15 3 जैसे उसका पिता अमस्याह किया करता था जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था, वैसे ही वह भी करता था। 12O 15 4 तौभी ऊंचे स्थान गिराए न गए; प्रजा के लोग उस समय भी उन पर बलि चढ़ाते, और धूप जलाते रहे। 12O 15 5 और यहोवा ने उस राजा को ऐसा मारा, कि वह मरने के दिन तक कोढ़ी रहा, और अलग एक घर में रहता था। और योताम नाम राजपुत्रा उसके घराने के काम पर अधिकारी होकर देश के लोगों का न्याय करता था। 12O 15 6 अजर्याह के और सब काम जो उस ने किए, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में तहीं लिखे हैं? 12O 15 7 निदान अजर्याह अपने पुरखाओं के संग सो गया और असको दाऊदपुुर में उसके पुरखाओं के बीच मिट्टी दी गई, और उसका पुत्रा योताम उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 12O 15 8 यहूदा के राजा अजर्याह के अड़तीसवें वर्ष में यारोबाम का पुत्रा जकर्याह इस्राएल पर शोमरोन में राज्य करने लगा, और छे महीने राज्य किया। 12O 15 9 उस ने अपने पुरखाओं की नाई वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, अर्थात् नबात के पुत्रा यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया थ, उसके पापों के अनुसार वह करता रहा, और उन से वह अलग न हुआ। 12O 15 10 और याबेश के पुत्रा शल्लूम ने उस से राजद्रोह की गोष्ठी करके उसको प्रजा के साम्हने मारा, और उसका घात करके उसके स्थान पर राजा हुआ। 12O 15 11 जकर्याह के और काम इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 12O 15 12 यों यहोवा का वह वचन पूरा हुआ, जो उस ने येहू से कहा था, कि तेरे परपोते के पुत्रा तक तेरी सन्तान इस्राएल की गद्दी पर बैठती जाएगी। और वैसा ही हुआ। 12O 15 13 यहूदा के राजा उज्जिरयाह के उनतालीसवें वर्ष में याबेश का पुत्रा शल्लूम राज्य करने लगा, और महीने भर शोमरोन में राज्य करता रहा। 12O 15 14 क्योंकि गादी के पुत्रा मनहेम ने, तिर्सा से शोमरोन को जाकर याबेश के पुत्रा शल्लूम को वहीं मारा, और उसे घात करके उसके स्थान पर राजा हुआ। 12O 15 15 शल्लूम के और काम और उस ने राजद्रोह की जो गोष्ठी की, यह सब इस्राएल के राजाओं के इतिहास की मुस्तक में लिखा है। 12O 15 16 तब मनहेम ने तिर्सा से जाकर, सब निवासियों और आस पास के देश समेत तिप्सह को इस कारण मार लिया, कि तिप्सहियों ने उसके लिये फाटक न खेले थे, इस कारण उस ने उन्हें मार लिया, और उस में जितनी गर्भवती स्त्रियां थीं, उस सभों को चीर डाला। 12O 15 17 यहूदा के राजा अजर्याह के उनतालीसवें वर्ष में गादी का पुत्रा मनहेम इस्राएल पर राज्य करने लगा, और दस वर्ष शोमरोन में राज्य करता रहा। 12O 15 18 उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था, अर्थात् नबात के पुत्रा यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया था, उसके पापों के अनुसार वह करता रहा, और उन से वह जीवन भर अलग न हुआ। 12O 15 19 अश्शूर के राजा पूल ने देश पर चढ़ाई की, और मनहेम ने उसको हजार किक्कार चान्दी इस इच्छा से दी, कि वह उसका यहायक होकर राज्य को उसके हाथ में स्थिर रखे। 12O 15 20 यह चान्दी अश्शूर के राजा को देने के लिये मनहेम ने बड़े बड़े धनवान इस्राएलियों से ले ली, एक एक पुरूष को पचास पचास शेकेल चान्दी देनी पड़ी; तब अश्शूर का राजा देश को छोड़कर लौट गया। 12O 15 21 मनहेम के और काम जो उस ने किए, वे सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 12O 15 22 निदान मनहेम अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसका पुत्रा मकहयाह उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 12O 15 23 यहूदा के राजा अजर्याह के पचासवें वर्ष में मनहेम का पुत्रा पकहयाह शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने लगा, और दो वर्ष तक राज्य करता रहा। 12O 15 24 उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था, अर्थात् नबात के पुत्रा यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप रिाया था, उसके पापों के अनुसार वह करता रहा, और उन से वह अलग न हुआ। 12O 15 25 उसके सरदार रमल्याह के पुत्रा पेकह ने उस से राजद्रोह की गोष्ठी करके, शोमरोन के राजभवन के गुम्मट में उसको और उसके संग अग ब और अर्ये को मारा; और पेकह के संग पचास गिलादी पुरूष थे, और वह उसका घात करके उसके स्थान पर राजा बन गया। 12O 15 26 पकहयाह के और सब काम जो उस ने किए, वह इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 12O 15 27 यहूदा के राजा अजर्याह के बावनवें वर्ष में रमल्याह का पुत्रा पेकह शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने लगा, और बीस वर्ष तक राज्य करता रहा। 12O 15 28 उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था, अर्थात् नबात के पुत्रा यारोबाम, जिस ने इस्राऐल से पाप कराया था, उसके पापों के अनुसार वह करता रहा, और उन से वह अलग न हुआ। 12O 15 29 इस्राएल के राजा पेकह के दिनों में अश्शूर के राजा तिग्लत्पिलेसेर ने आकर इरयोन, अबेल्बेत्माका, यानोह, केदेश और हासोर नाम नगरों को और गिलाद और गालील, वरन नप्ताली के पूरे देश को भी ले लिया, और उनके लोगों को बन्धुआ करके अश्शूर को ले गया। 12O 15 30 उजिरयाह के पुत्रा योताम के बीसवें वर्ष में एला के पुत्रा होशे ने रमल्याह के पुत्रा पेकह से राजद्रोह की गोष्ठी करके उसे मारा, और उसे घात करके उसके स्थान पर राजा बन गया। 12O 15 31 पेकह के और सब काम जो उस ने किए वह इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 12O 15 32 रमल्याह के पुत्रा इस्राएल के राजा पेकह के दूसरे वर्ष में यहूदा के जाजा उजिरयाह का पुत्रा योताम राजा हुआ। 12O 15 33 जब वह राज्य करने लगा, तब पचीस वर्ष का था, और यरूशलेम में सोलह वर्ष तक राज्य करता रहा। और उसकी पाता का नाम यरूशा था जो सादोक की बेटी थी। 12O 15 34 उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था, अर्थात् जैसा उसके पिता उजिरयाह ने किया था, ठीक वैसा ही उस ने भी किया। 12O 15 35 तौभी ऊंचे स्थान गिराए न गए, प्रजा के लोग उन पर उस समय भी बलि चढाते और धूम जलाते रहे। यहोवा के भवन के ऊंचे फाटक को इसी ने बनाया था। 12O 15 36 योताम के और सब काम जो उस ने किए, वे क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 12O 15 37 उन दिनों में यहोवा अराम के राजा रसीन को, और रमल्याह के पुत्रा पेकह को, यहूदा के विरूद्ध भेजने लगा। 12O 15 38 निदान योताम अपने पुरखाओं के संग सो गया और अपने मुलपुरूष दाऊद के नगर में अपने पुरखाओं के बीच उसको मिट्टी दी गई, और उसका पुत्रा आहाज उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 12O 16 1 रमल्याह के पुत्रा पेकह के सत्राहवें वर्ष में यहूदा के राजा योताम का पुत्रा आहाज राज्य करने लगा। 12O 16 2 जब आहाज राज्य करने लगा, तब वह बीस पर्ष का था, और सोलह वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उस ने अपने मूलपुरूष दाऊद का सा काम नहीं किया, जो उसके परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में ठीक था। 12O 16 3 परन्तु वह इस्राएल के राजाओं की सी चाल चला, वरन उन जातियों के घिनौने कामों के अनुसार, जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियों के साम्हने से देश से निकाल दिया था, उस ने अपने बेटे को भी आग में होम कर दिया। 12O 16 4 और ऊंचे स्थानों पर, और पहाड़ियों पर, और सब हरे वृक्षों के तले, वह बलि चढ़ाया और धूम जलाया करता था। 12O 16 5 तब अराम के राजा रसीन, और रमल्याह के पुत्रा इस्राएल के राजा पेकह ने लड़ने के लिये यरूशलेम पर चढ़ाई की, और उन्हों ने आहाज को घेर लिया, परन्तु युठ्ठ करके उन से कुछ बन न पड़ा। 12O 16 6 उस समय अराम के राजा रसीन ने, एलत को अराम के वश में करके, यहूदियों को वहां से निकाल दिया; तब अरामी लोग एलत को गए, और आज के दिन तक वहां रहते हैं। 12O 16 7 और आहाज ने दूत भेजकर अश्शूर के राजा तिग्लत्पिलेसेर के पास कहला भेजा कि मुझे अपना दास, वरन बेटा जानकर चढ़ाई कर, और मुझे अराम के राजा और इस्राएल के राजा के हाथ से बचा जो मेरे विरूद्ध उठे हैं। 12O 16 8 और आहाज ने यहोवा के भवन में और राजभवन के भणडारों में जितना सोना- चान्दी मिला उसे अश्शूर के राजा के पास भेंट करके भेज दिया। 12O 16 9 उसकी मानकर अश्शूर के राजा ने दमिश्क पर चढ़ाई की, और उसे लेकर उसके लोगों को बन्धुआ करके, कीर को ले गया, और रसीन को मार डाला। 12O 16 10 तब राजा आहाज अश्शूर के राजा तिग्लत्पिलेसेर से भेंट करने के लिये दमिश्क को गया, और वहां की वेदी देखकर उसकी सब बनावट के अनुसार उसका नकशा ऊरिरयाह याजक के पास नमूना करके भेज दिया। 12O 16 11 और ठीक इसी नमूने के अनुसार जिसे राजा आहाज ने दमिश्क से भेजा था, ऊरिरयाह याजक ने राजा आहाज के दमिश्क से आने तक एक वेदी बना दी। 12O 16 12 जब राजा दमिश्क से आया तब उस ने उस वेदी को देखा, और उसके निकट जाकर उस पर बलि चढ़ाए। 12O 16 13 उसी वेदी पर उस ने अपना होमबलि और अन्नबलि जलौया, और अर्ध दिया और मेलबलियों का लोहू छिड़क दिया। 12O 16 14 और पीतल की जो वेदी यहोवा के साम्हने रहती थी उसको उस ने भवन के साम्हने से अर्थात् अपनी वेदी और यहोवा के भवन के बीच से हटाकर, उस वेदी की उतर ओर रख दिया। 12O 16 15 तब राजा आहाज ने ऊरिरयाह याजक को यह आज्ञा दी, कि भोर के होपबलि और सांझ के अन्नबलि, राजा के होमबलि और उसके अन्नबलि, और सब साधारण लोगों के होमबलि और अर्ध बड़ी वेदी पर चढ़ाया कर, और होमबलियों और मेलबलियों का सब लोहू उस पर छिड़क; और पीतल की वेदी के विषय मैं विचार करूंगा। 12O 16 16 राजा आहाज की इस आज्ञा के अनुसार ऊरिरयाह याजक ने किया। 12O 16 17 फिर राजा आहाज ने कुर्सियों की पटरियों को काट डाला, और हौदियों को उन पर से उतार दिया, और बड़े हौद को उन पीतल के बैलों पर से जो उसके तले थे उतारकर, पत्थरों के फर्श पर धर दिया। 12O 16 18 और विश्राम के दिन के लिये जो छाया हुआ स्थान भवन में बना था, और राजा के बाहर के प्रवेश करने का फाटक, उनको उस ने अश्शूर के राजा के कारण यहोवा के भवन से अलग कर दिया। 12O 16 19 आहाज के और काम जो उस ने किए, वे क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 12O 16 20 निदान आहाज अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसे उसके पुरखाओं के बीच दाऊदपुर में मिट्टी दी गई, और उसका पुत्रा हिजकिरयाह उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 12O 17 1 यहूदा के राजा आहाज के बारहवें वर्ष में एला का पुत्रा होशे शोमरोन में, इस्राएल पर राज्य करने लगा, और नौ वर्ष तक राज्य करता रहा। 12O 17 2 उस ने वही किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था, परन्तु इस्राएल के उन राजाओं के बराबर नहीं जो उस से पहिले थे। 12O 17 3 उस पर अश्शूर के राजा शल्मनेसेर ने चढ़ाई की, और होशे उसके अधीन होकर, उसको भेंट देने लगा। 12O 17 4 परन्तु अश्शूर के राजा ने होशे को राजद्रोह की गोष्ठी करनेवाला जान लिया, क्योंकि उस ने "सो" नाम मिस्र के राजा के पास दूत भेजे, और अश्शूर के राजा के पास सालियाना भेंट भेजनी छोड़ दी; इस कारण अश्शूर के राजा ने उसको बन्द किया, और बेड़ी डालकर बन्दीगृह में डाल दिया। 12O 17 5 तब अश्शूर के राजा ने पूरे देश पर चढ़ाई की, और शोमरोन को जाकर तीन वर्ष तक उसे घेरे रहा। 12O 17 6 होशे के नौवें वर्ष में अश्शूर के राजा ने शोमरोन को ले लिया, और इस्राएल को अश्शूर में ले जाकर, हलह में और गोजान की नदी हाबोर के पास और मादियों के नगरों में बसाया। 12O 17 7 इसका यह कारण है, कि यद्यपि इस्राएलियों का परमेश्वर यहोवा उनको मिस्र के राजा फ़िरौन के हाथ से छुड़ाकर मिस्र देश से निकाल लाया था, तौभी उन्हों ने उसके विरूद्ध पाप किया, और पराये देवताओं का भय माना। 12O 17 8 और जिन जातियों को यहोवा ने इस्राएलियों के साम्हने से देश से तिकाला था, उनकी रीति पर, और अपने राजाओं की चलाई हुई रीतियों पर चलते थे। 12O 17 9 और इस्राएलियों ने कपठ करके अपने परमेश्वर यहोवा के विरूद्ध अनुचित काम किए, अर्थात पहरूओं के गुम्मट से लेकर गढ़वाले नगर तक अपनी सारी बस्तियों में ऊंचे स्थान बना लिए; 12O 17 10 और सब ऊंची पहाड़ियों पर, और सब हरे वुक्षों के तले लाठें और अशेरा खड़े कर लिए। 12O 17 11 और ऐसे ऊंचे स्थानों में उन जातियों की नाई जिनको यहोवा ने उनके साम्हने से निकाल दिया था, धूप जलाया, और यहोवा को क्रोध दिलाने के योग्य बुरे काम किए। 12O 17 12 और मूरतों की उपासना की, जिसके विषय यहोवा ने उन से कहा था कि तुम यह काम न करना। 12O 17 13 तौभी यहोवा ने सब भविष्यद्वक्ताओं और सब दर्शियों के द्वारा इस्राएल और यहूदा को यह कह कर चिताया था, कि अपनी बुरी चाल छोड़कर उस सारी रयवस्था के अनुसार जो मैं ने तुम्हारे पुरखाओं को दी थी, और अपने दास भविष्यद्वक्ताओं के हाथ तूम्हारे पास पहुंचाई है, मेरी आज्ञाओं और विधियों को माना करो। 12O 17 14 परन्तु उन्हों ने न माना, वरन अपने उन पुरखाओं की नाई, जिन्हों ने अपने परमेश्वर यहोवा का विश्वास न किया था, वे भी हठीले बन गए। 12O 17 15 और वे उसकी विधियों और अपने पुरखाओं के साथ उसकी वाचा, और जो चितौनियां उस ने उन्हें दी थीं, उनको तुच्छ जानकर, निकम्मी बातों के पीछे हो लिए; जिस से वे आप निकम्मे हो गए, और अपने चारों ओर की उन जातियों के पीछे भी हो लिए जिनके विषय यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी थी कि उनके से काम न करना। 12O 17 16 वरन उन्हों ने अपने परमेश्वर यहोवा की सब आज्ञाओं को त्याग दिया, और दो बछड़ों की मूरतें ढालकर बनाई, और अशेरा भी बनाई; और आकाश के सारे गणों को दणडवत की, और बाल की उपासना की। 12O 17 17 और अपने बेटे- बेटियों को आग में होम करके चढाया; और भावी कहनेवालों से पूछने, और टोना करने लगे; और जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था जिस से वह क्रोधित भी होता है, उसके करने को अपनी इच्छा से बिक गए। 12O 17 18 इस कारण यहोवा इस्राएल से अति क्रोधित हुआ, और उन्हें अपने साम्हने से दूर कर दिया; यहूदा का गोत्रा छोड़ और कोई बचा न रहा। 12O 17 19 यहूदा ने भी अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाएं न मानीं, वरन जो विधियां इस्राएल ने चलाई थीं, उन पर चलने लगे। 12O 17 20 तब यहोवा ने इस्राएल की सारी सन्तान को छोड़ कर, उनको दु:ख दिया, और लूटनेवालों के हाथ कर दिया, और अन्त में उन्हें अपने साम्हने से निकाल दिया। 12O 17 21 उस ने इस्राएल को तो दाऊद के घराने के हाथ से छीन लिया, और उन्हों ने नबात के पुत्रा यारोबाम को अपना राजा बनाया; और यारोबाम ने इस्राएल को यहोवा के पीछे चलने से दूर खींचकर उन से बड़ा पाप कराया। 12O 17 22 सो जैसे पाप यारोबाम ने किए थे, वैसे ही पाप इस्राएली भी करते रहे, और उन से अलग न हुए। 12O 17 23 अन्त में यहोवा ने इस्राएल को अपने साम्हने से दूर कर दिया, जैसे कि उस ने अपने सब दास भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा था। इस प्रकार इस्राएल अपने देश से निकालकर अश्शूर को पहंचाया गया, जहां वह आज के दिन तक रहता है। 12O 17 24 और अश्शूर के राजा ने बाबेल, कूता, अब्वा हमात और सपवैंम नगरों से लोगों को लाकर, इस्राएलियों के स्थान पर शोमरोेन के नगरों में बसाया; सो वे शोमरोन के अधिकारी होकर उसके नगरों में रहने लगे। 12O 17 25 जब वे वहां पहिले पहिले रहने लगे, तब यहोवा का भय न मानते थे, इस कारण यहोवा ने उनके बीच सिंह भेजे, जो उनको मार डालने लगे। 12O 17 26 इस कारण उन्हों ने अश्शूर के राजा के पास कहला भेजा कि जो जातियां तू ने उनके देशों से निकालकर शोमरोन के नगरों में बसा दी हैं, वे उस देश के देवता की रीति नहीं जानतीं, उस से उस ने उसके मध्य सिंह भेजे हैं जो उनको इसलिये मार डालते हैं कि वे उस देश के देवता की रीति नहीं जानते। 12O 17 27 तब अश्शूर के राजा ने आज्ञा दी, कि जिन याजकों को तुम उस देश से ले आए, उन में से एक को वहां पहुंचा दो; और वह वहां जाकर रहे, और वह उनको उस देश के देवता की रीति सिखाए। 12O 17 28 तब जो याजक शोमरोन से निकाले गए थे, उन में से एक जाकर बेतेल में रहने लगा, और उनको सिखाने लगा कि यहोवा का भय किस रीति से मानना चाहिये। 12O 17 29 तौभी एक एक जाति के लोगों ने अपने अपने निज देवता बनाकर, अपने अपने बसाए हुए नगर में उन ऊंचे स्थानों के भवनों में रखा जो शोमरोनियों ने बसाए थे। 12O 17 30 बाबेल के मनुष्यों ने तो सुक्कोतबनोत को, कूत के पनुष्यों ने नेर्गल को, हमात के मनुष्यों ने अशीमा को, 12O 17 31 और अब्वियों ने निभज, और तर्त्ताक को स्थापित किया; और सपवमी लोग अपने बेटों को अद्रम्मेलेक और अनम्मेलेक नाम सपवैंम के देवताओं के लिये होम करके चढ़ाने लगे। 12O 17 32 यों वे यहावा का भय मानते तो थे, परन्तु सब प्रकार के लोगों में से ऊंचे स्थानों के याजक भी ठहरा देते थे, जो ऊंचे स्थानों के भवनों में उनके लिये बलि करते थे। 12O 17 33 वे यहोवा का भय मानते तो थे, परन्तु उन जातियों की रीति पर, जिनके बीच से वे निकाले गए थे, अपने अपने देवताओं की भी उपासना करते रहे। 12O 17 34 आज के दिन तक वे अपनी पहिली रीतियों पर चलते हैं, वे यहोवा का भय नहीं मानते। 12O 17 35 न तो उपनी विधियों और नियमों पर और न उस रयवस्था और आज्ञा के अनुसार चलते हैं, जो यहोवा ने याकूब की सन्तान को दी थी, जिसका नाम उस ने इस्राएल रखा था। उन से यहोवा ने बाचा बान्धकर उन्हें यह आज्ञा दी थी, कि तुम पाराये देवताओं का भय न मानना और न उन्हें दणडवत करना और न उनकी उपासना करना और न उनको बलि चढ़ाना। 12O 17 36 परन्तु यहोवा जो तुम को बड़े बल और बढ़ाई हुई भुजा के द्वारा मिय्र देश से निकाल ले आया, तुम उसी का भय मानना, उसी को दणडवत करना और उसी को बलि चढ़ाना। 12O 17 37 और उस ने जो जो विधियां और नियम और जो रयवस्था और आज्ञाएं तुम्हारे लिये लिखीं, उन्हें तुम सदा चौकसी से मानते रहो; और पराये देवताओं का भय न मानना। 12O 17 38 और जो वाचा मैं ने तुम्हारे साथ बान्धी है, उसे न भूलना और पराये देवताओं का भय न मानना। 12O 17 39 केवल अपने परमेश्वर यहोवा का भय पानना, वही तुम को तुम्हारे सब शत्रुओं के हाथ से बचाएगा। 12O 17 40 तौभी उन्हों ने न माना, परन्तु वे अपनी पहिली रीति के अनुसार करते रहे। 12O 17 41 अतएव वे जातियां यहोवा का भय मानती तो थीं, परन्तु अपनी खुदी हुई मूरतों की उपासना भी करती रहीं, और जैसे वे करते थे वैसे ही उनके बेटे पोते भी आज के दिन तक करते हैं। 12O 18 1 एला के पुत्रा इस्राएल के राजा होशे के तीसरे वर्ष में यहूदा के राजा आहाज का पुत्रा हिजकिरयाह राजा हुआ। 12O 18 2 जब वह राज्य करने लगा तब पच्चीस वर्ष का था, और उनतीस वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम अबी था, जो जकर्याह की बेटी थी। 12O 18 3 जैसे उसके मूलपुरूष दाऊद ने किया था जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है वैसा ही उस ने भी किया। 12O 18 4 उस ने ऊंचे स्थान गिरा दिए, लाठों को तोड़ दिया, अशेरा को काट डाला। और पीतल का जो सांप मूसा ने बनाया था, उसको उस ने इस कारण चूर चूर कर दिया, कि उन दिनों तक इस्राएली उसके लिये धूप जलाते थे; और उस ने उसका नाम नहुशतान रखा। 12O 18 5 वह इस्राएल के परमेश्वर यहोवा पर भरोसा रखता था, और उसके बाद यहूदा के सब राजाओं में कोई उसके बराबर न हुआ, और न उस से पहिले भी ऐसा कोई हुआ था। 12O 18 6 और वह यहोवा से लिपटा रहा और उसके पीछे चलना न छोड़ा; और जो आज्ञाएं यहोवा ने मूसा को दी थीं, उनका वह पालन करता रहा। 12O 18 7 इसलिये यहोवा उसके संग रहा; और जहां कहीं वह जाता था, वहां उसका काम सफल होता था। और उस ने अश्शूर के राजा से बलवा करके, उसकी अधीनता छोड़ दी। 12O 18 8 उस ने पलिश्तियों को गाज्ज़ा और उसके सिवानों तक, पहरूओं के गुम्मट और गढ़वाले नगर तक मारा। 12O 18 9 राजा हिजकिरयाह के चौथे वर्ष में जो एला के पुत्रा इस्राएल के राजा होशे का सातवां वर्ष था, अश्शूर के राजा शल्मनेसेर ने शोमरोन पर चढ़ाई करके उसे घेर लिया। 12O 18 10 और तीन वर्ष के बीतने पर उन्हों ने उसको ले लिया। इस प्रकार हिजकिरयाह के छठवें वर्ष में जो इस्राएल के राजा होशे का नौवां वर्ष था, शोमरोन ले लिया गया। 12O 18 11 तब अश्शूर का राजा इस्राएल को बन्धुआ करके अश्शूर में ले गया, और हलह में ओर गोजान की नदी हाबोर के पास और मादियों के नगरों में उसे बसा दिया। 12O 18 12 इसका कारण यह था, कि उन्हों ने अपने परमेश्वर यहोवा की बात न मानी, वरन उसकी वाचा को तोड़ा, और जितनी आज्ञाएं यहोवा के दास मूसा ने दी थीं, उनको टाल दिया और न उनको सुना और न उनके अनुसार किया। 12O 18 13 हिजकिरयाह राजा के चौदहवें वर्ष में अश्शूर के राजा सन्हेरीब ने यहूदा के सब गढ़वाले नगरों पर चढ़ाई करके उनको ले लिया। 12O 18 14 तब यहूदा के राजा हिजकिरयाह ने अश्शूर के राजा के पास लाकीश को कहला भेजा, कि मुझ से अपराध हुआ, मेरे पास से लौट जा; और जो भर तू मुझ पर डालेगा उसको मैं उठाऊंगा। तो अश्शूर के राज ने यहूदा के राजा हिजकिरयाह के लिये तीन सौ किक्कार चान्दी और तीस किक्कार लोना ठहरा दिया। 12O 18 15 तब जितनी चान्दी यहोवा के भवन और राजभवन के भणडारों में मिली, उस सब को हिजकिरयाह ने उसे दे दिया। 12O 18 16 उस समय हिजकिरयाह ने यहोवा के मन्दिर के किवाड़ों से और उन खम्भों से भी जिन पर यहूदा के राजा हिजकिरयाह ने सोना मढ़ा था, सोने को छीलकर अश्शूर के राजा को दे दिया। 12O 18 17 तौभी अश्शूर के राजा ने तर्त्तान, रबसारीस और रबशाके को बड़ी सेना देकर, लाकीश से यरूशलेम के पास हिजकिरयाह राजा के विरूद्ध भेज दिया। सो वे यरूशलेम को गए और वहां पहुंचकर ऊपर के पोखरे की नाली के पास धेबियों के खेत की सड़क पर जाकर खड़े हुए। 12O 18 18 और जब उन्हों ने राजा को पुकारा, तब हिलकिरयाह का पुत्रा एल्याकीम जो राजघराने के काम पर था, और शेब्ना जो मन्त्री था और आसाप का पुत्रा योआह जो इतिहास का लिखनेवाला था, ये तीनों उनके पास बाहर निकल गए। 12O 18 19 रबशाके ने उन से कहा, हिजकिरयाह से कहो, कि महाराजाधिराज अर्थात् अश्शूर का राजा यों कहता है, कि तू किस पर भरोसा करता है? 12O 18 20 तू जो कहता है, कि मेरे यहां युठ्ठ के लिये युक्ति और पराक्रम है, सो तो केवल बात ही बात है। तू किस पर भरोसा रखता है कि तू ने मुझ से बलवा किया है? 12O 18 21 सुन, तू तो उस कुचले हुए नरकट अर्थात् मिस्र पर भरोसा रखता है, उस पर यदि कोई टेक लगाए, तो वह उसके हाथ में चुभकर छेदेगा। मिस्र का राजा फ़िरौन अपने सब भरोसा रखनेवालों के लिये ऐसा ही है। 12O 18 22 फिर यदि तुम मुझ से कहो, कि हमारा भरोसा अपने परमेश्वर यहोवा पर है, तो क्या यह वही नहीं है जिसके ऊंचे स्थानों और वेदियों को हिजकिरयाह ने दूर करके यहूदा और यरूशलेम से कहा, कि तुम इसी वेदी के साम्हने जो यरूशलेम में है दणडवत करना? 12O 18 23 तो अब मेरे स्वामी अश्शूर के राजा के पास मुछ बन्धक रख, तब मैं तुझे दो हाजार घोड़े दूंगा, क्या तू उन पर सवार चढ़ा सकेगा कि नहीं? 12O 18 24 फिर तू मेरे स्वामी के छोटे से छोटे कर्मचारी का भी कहा न मान कर क्यों रथों और सवारों के लिये मिस्र पर भरोसा रखता है? 12O 18 25 क्या मैं ने यहोवा के बिना कहे, इस स्थान को उजाड़ने के लिये चढ़ाई की है? यहोवा ने मुझ से कहा है, कि उस देश पर चढ़ाई करके उसे उजाड़ दे। 12O 18 26 तब हिलकिरयाह के पुत्रा एल्याकीम और शेब्ना योआह ने रबशाके से कहा, अपने दासों से अरामी भाषा में बातें कर, क्योंकि हम उसे समझते हैं; और हम से यहूदी भाषा में शहरपनाह पर बैठे हुए लोगों के सुनते बातें न कर। 12O 18 27 रबशाके ने उन से कहा, क्या मेरे स्वामी ने मुझे तुम्हारे स्वामी ही के, वा तुम्हारे ही पास ये बातें कहने को भेजा है? क्या उस ने मुझे उन लोगों के पास नहीं भेजा, जो शहरपनाह पर बैठे हैं, ताकि नुम्हारे संग उनको भी अपनी बिष्ठा खाना और अपना मूत्रा पीना पड़े? 12O 18 28 तब रबशाके ने खड़े हो, यहूदी भाषा में ऊंचे शब्द से कहा, महाराजाधिराज अर्थत् अश्शूर के राजा की बात सुनो। 12O 18 29 राजा यों कहता है, कि हिजकिरयाह तुम को भुलाने न पाए, क्योंकि वह तुम्हें मेरे हाथ से बचा न सकेगा। 12O 18 30 और वह तुम से यह कहकर यहोवा पर भरोसा कराने न पाए, कि यहोवा निश्चय हम को बचाएगा और यह नगर अश्शूर के राजा के वश में न पड़ेगा। 12O 18 31 हिजकिरयाह की मत सुनो। अश्शूर का राजा कहता है कि भेंट भेजकर मुझे प्रसन्न करो और मेरे पास निकल आओ, और प्रत्येक अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष के फल खाता और अपने अपने कुण्ड का पानी पीता रहे। 12O 18 32 तब मैं आकर तुम को ऐसे देश में ले जाऊंगा, जो तुम्हारे देश के समान अनाज और नये दाखमधु का देश, रोटी और दाख्बारियों का देश, जलपाइयों और मधु का देश है, वहां तुम मरोगे नहीं, जीवित रहोगे; तो जब हिजकिरयाह यह कहकर तुम को बहकाए, कि यहोवा हम को बचाएगा, तब उसकी न सुनना। 12O 18 33 क्या और जातियों के देवताओं ने अपने अपने देश को अश्शूर के राजा के हाथ से कभी बचाया है? 12O 18 34 हमात और अर्पाद के देवता कहां रहे? सपवैंम, हेना और इरवा के देवता कहां रहे? क्या उन्हों ने शोमरोन को मेरे हाथ से बचाया है, 12O 18 35 देश देश के सब देवताओं में से ऐसा कौन है, जिस ने अपने देश को मेरे हाथ से बचाया हो? फिर क्या यहोवा यरूशलेम को मेरे हाथ से बचाएगा। 12O 18 36 परन्तु सब लोग चुप रहे और उसके उत्तर में एक बात भी न कही, क्योंकि राजा की ऐसी आज्ञा थी, कि उसको उत्तर न देना। 12O 18 37 तब हिलकिरयाह का पुत्रा एल्याकीम जो राजघराने के काम पर था, और शेब्ना जो मन्त्री था, और आसाप का पुत्रा योआह जो इतिहास का लिखनेवाला था, अपने वस्त्रा फाड़े हुए, हिजकिरयाह के पास जाकर रबशाके की बातें कह सुनाई। 12O 19 1 जब हिजकिरयाह राजा ने यह सुना, तब वह अपने वस्त्रा फाड़, टाट ओढ़कर यहोवा के भपन में गया। 12O 19 2 और उस ने एल्याकीम को जो राजघराने के काम पर था, और शेब्ना मन्त्री को, और याजकों के पुरनियों को, जो सब टाट ओढ़े हुए थे, आमोस के पुत्रा यशायाह भविष्यद्वक्ता के पास भेज दिया। 12O 19 3 उन्हों ने उस से कहा, हिजकिरयाह यों कहता है, आज का दिन संकट, और उलहने, और निन्दा का दिन है; बच्चे जन्मने पर हुए पर जच्चा को जन्म देने का बल न रहा। 12O 19 4 कदाचित तेरा परमेश्वर यहोवा रबशाके की सब बातें सुने, जिसे उसके स्वामी अश्शूर के राजा ने जीवते परमेश्वर की निन्दा करने को भेजा है, और जो बातें तेरे परमेश्वर यहावा ने सुनी हैं उन्हें डपटे; इसलिये तू इन बचे हुओं के लिये जो रह गए हैं प्रार्थना कर। 12O 19 5 जब हिजकिरयाह राजा के कर्मचारी यशायाह के पास आए, 12O 19 6 तब यशायाह ने उन से कहा, अपने स्वामी से कहो, यहेवा यों कहता है, कि जो वचन तू ने सुने हैं, जिनके द्वारा अश्शूर के राजा के जनों ने मेरी निन्दा की है, उनके कारण मत डर। 12O 19 7 सुन, मैं उसके मन में प्रेरणा करूंगा, कि वह कुछ समाचार सुनकर अपने देश को लौट जाए, और मैं उसको उसी के देश में तलवार से मरवा डालूंगा। 12O 19 8 तब रबशाके ने लौटकर अश्शूर के राजा को लिब्ना नगर से युठ्ठ करते पाया, क्योंकि उस ने सुना था कि वह लाकीश के पास से उठ गया है। 12O 19 9 और जब उस ने कूश के राजा तिर्हाका के विष्य यह सुना, कि वह मुझ से लड़ने को निकला है, तब उस ने हिजकिरयाह के पास दूतों को यह कह कर भेजा, 12O 19 10 तुम यहूदा के राजा हिजकिरयाह से यों कहना : तेरा परमेश्वर जिसका तू भरोसा करता है, यह कहकर तुझे धोखा न देने पाए, कि यरूशलेम अश्शूर के राजा के वश में न पड़ेगा। 12O 19 11 देख, तू ने तो सुना है अश्शूर के राजाओं ने सब देशों से कैसा रयवहार किया है उन्हें सत्यानाश कर दिया है। फिर क्या तू बचेगा? 12O 19 12 गोजान और हारान और रेसेप और तलस्सार में रहनेवाले एदेनी, जिन जातियोें को मेरे पुरखाओं ने नाश किया, क्या उन में से किसी जाति के देवताओं ने उसको बचा लिया? 12O 19 13 हमात का राजा, और अर्पाद का राजा, और समवैंम नगर का राजा, और हेना और इरवा के राजा ये सब कहां रहे? इस पत्री को हिजकिरयाह ने दूतों के हाथ से लेकर पढ़ा। 12O 19 14 तब यहोवा के भवन में जाकर उसको यहोवा के साम्हने फैला दिया। 12O 19 15 और यहोवा से यह प्रार्थना की, कि हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ! हे करूबों पर विराजनेवालेे ! पृथ्वी के सब राज्यों के ऊपर केवल तू ही परमेश्वर है। आकाश और पृथ्वी को तू ही ने बनाया है। 12O 19 16 हे यहोवा ! कान लगाकर सुन, हे यहोवा आंख खोलकर देख, और सन्हेरीब के वचनोें को सुन ले, जो उस ने जीवते परमेश्वर की निन्दा करने को कहला भेजे हैं। 12O 19 17 हे यहोवा, सच तो है, कि अश्शूर के राजाओं ने जातियों को और उनके देशों को उजाड़ा है। 12O 19 18 और उनके देवताओं को आग में झेंका है, क्योंकि वे ईश्वर न थे; वे मनुष्यों के बनाए हुए काठ और पत्थर ही के थे; इस कारण वे उनको नाश कर सके। 12O 19 19 इसलिये अब हे हमारे परमेश्वर यहोवा तू हमें उसके हाथ से बचा, कि पृथ्वी के राज्य राज्य के लोग जान लें कि केवल तू ही यहोवा है। 12O 19 20 तब आमोस के पुत्रा यशायाह ने हिजकिरयाह के पास यह कहला भेजा, कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि जो प्रार्थना तू ने अश्शूर के राजा सन्हेरीब के विषय मुझ से की, उसे मैं ने सुना है। 12O 19 21 उसके विषय में यहोवा ने यह वचन कहा है, कि सिरयोन की कुमारी कन्या तुझे तुच्छ जानती और तुझे ठट्ठों में उड़ाती है, यरूशलेम की पुत्री, तुझ पर सिर हिलाती है। 12O 19 22 तू ने जो नामधराई और निन्दा की है, वह किसकी की है? और तू ने जो बड़ा बोल बोला और घमणड किया है वह किसके विरूद्ध किया है? इस्राएल के पवित्रा के विरूद्ध तू ने किया है ! 12O 19 23 अपने दूतों के द्वारा तू ने प्रभु की निन्दा करके कहा है, कि वहुत से रथ लेकर मैं पर्वतों की चोटियों पर, वरन लबानोन के बीच तक चढ़ आया हूँ, और मैं उसके ऊंचे ऊंचे देवदारूओं और अच्छे अच्छे सनोवरों को काट डालूंगा; और उस में जो सब से ऊंचा टिकने का स्थान होगा उस में और उसके वन की फलदाई बारियों में प्रवेश करूंगा। 12O 19 24 मैं ने तो खुदवाकर परदेश का पानी पिया; और मिस्र की नहरों में पांव धरते ही उन्हें सुखा डालूंगा। 12O 19 25 क्या तू ने नहीं सुना, कि प्राचीनकाल से मैं ने यही ठहराया? और अगले दिनों से इसकी तैयारी की थी, उन्हें अब मैं ने पूरा भी किया है, कि तू गढ़वाले नगरों को खणडहर ही खणडहर कर दे, 12O 19 26 इसी कारण उनके रहनेवालों का बल घट गया; वे विस्मित और लज्जित हुए; वे मैदान के छोटे छोटे पेड़ों और हरी घास और छत पर की घास, और ऐसे अनाज के समान हो गए, जो बढ़ने से पहिले सूख जाता है। 12O 19 27 मैं तो तेरा बैठा रहना, और कूच करना, और लौट आना जानता हूँ, और यह भी कि तू मुझ पर अपना क्रोध भड़काता है। 12O 19 28 इस कारण कि तू मुझ पर अपना क्रोध भड़काता और तेरे अभिमान की बातें मेरे कानों में पड़ी हैं; मैं तेरी नाक में अपनी नकेल डालकर और तेरे मुंह में अपना लगाम लगाकर, जिस मार्ग से तू आया है, उसी से तुझे लोटा दूंगा। 12O 19 29 और तेरे लिये यह चिन्ह होगा, कि इस वर्ष तो तुम उसे खाओगे जो आप से आप उगे, और दूसरे वर्ष उसे जो उत्पन्न हो वह खाओगे; और तीसरे वर्ष बीज बोने और उसे लवने पाओगे, और दाख की बारियां लगाने और उनका फल खाने पाओगे। 12O 19 30 और यहूदा के घराने के बचे हुए लोग फिर जड़ पकड़ेंगे, और फलेंगे भी। 12O 19 31 क्योंकि यरूशलेम में से बचे हुए और सिरयोन पर्वत के भागे हुए लोग निकलेंगे। यहोवा यह काम अपनी जलन के कारण करेगा। 12O 19 32 इसलिये यहोवा अश्शूर के राजा के विषय में यों कहता है कि वह इस नगर में प्रवेश करने, वरन इस पर एक तीर भी मारने न पाएगा, और न वह ढाल लेकर इसके साम्हने आने, वा इसके विरूद्ध दमदमा बनाने पाएगा। 12O 19 33 जिस मार्ग से वह आया, उसी से वह लौट भी जाएगा, और इस नगर में प्रवेश न करने पाएगा, यहोवा की यही वाणी है। 12O 19 34 और मैं अपने निमित्त और अपने दास दाऊद के निमित्त इस नगर की रक्षा करके इसे बचाऊंगा। 12O 19 35 उसी रात में क्या हुआ, कि यहोवा के दूत ने निकलकर अश्शूरियों की छावनी में एक लाख पचासी हजार पुरूषों को मारा, और भोर को जब लोग सबेरे उठे, तब देखा, कि लोथ ही लोथ पड़ी है। 12O 19 36 तब अश्शूर का राजा सन्हेरीब चल दिया, और लौटकर नीनवे में रहने लगा। 12O 19 37 वहां वह अपने देवता निस्रोक के मन्दिर में दणडवत कर रहा था, कि अदेम्मेलेक और सरेसेर ने उसको तलवार से मारा, और अरारात देश में भाग गए। और उसी का पुत्रा एसर्हद्दॊन उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 12O 20 1 उन दिनों में हिजकिरयाह ऐसा रोगी हुआ कि मरते पर था, और आमोस के पुत्रा यशायाह भविष्यद्वक्ता ने उसके पास जाकर कहा, यहोवा यों कहता है, कि अपने घराने के विषय जो आज्ञा देनी हो वह दे; क्योंकि तू नहीं बचेगा, मर जाएगा। 12O 20 2 तब उस ने भीत की ओर मुंह फेर, यहोवा से प्रार्थना करके कहा, हे यहोवा ! 12O 20 3 मैं बिन्ती करता हूँ, स्मरण कर, कि मैं सच्चाई और खरे मन से अपने को तेरे सम्मुख जानकर चलता आया हूँ; और जो तुझे अच्छा तगता है वही मैं करता आया हूँ। तब हिजकिरयाह बिलक बिलक कर रोया। 12O 20 4 और ऐसा हुआ कि यशायाह नगर के बीच तक जाने भी न पाया था कि यहोवा का यह वचन उसके पास पहुंचा, 12O 20 5 कि लौटकर मेरी प्रजा के प्रधान हिजकिरयाह से कह, कि तेरे मूलपुरूष दाऊद का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि मैं ने तेरी प्रार्थना सुनी और तेरे आंसू देखे हैं; देख, मैं तुझे चंगा करता हूँ; परसों तू यहोवा के भवन में जा सकेगा। 12O 20 6 और मैं तेरी आयू पन्द्रह वर्ष और बढ़ा दूंगा। और अश्शूर के राजा के हाथ से तुझे और इस नगर को बचाऊंगा, और मैं अपने निमित्त और अपने दास दाऊद के निमित्त इस नगर की रक्षा करूंगा। 12O 20 7 तब यशायाह ने कहा, अंजीरों की एक टिकिया लो। जब उन्हों ने उसे लेकर फोड़े पर बान्धा, तब वह चंगा हो गया। 12O 20 8 हिजकिरयाह ने यशायाह से पूछा, यहोवा जो मुझे चंगा करेगा और मैं परसों यहोवा के भवन को जा सकूंगा, इसका क्या चिन्ह होगा? 12O 20 9 यशायाह ने कहा, यहोवा जो अपने कहे हुए वचन को पूरा करेगा, इस बात का यहोवा की ओर से तेरे लिये यह चिन्ह होगा, कि धूपघड़ी की छाया दस अंश आगे बढ़ जाएगी, व दस अंश घट जाएगी। 12O 20 10 हिजकिरयाह ने कहा, छाया का दस अंश आगे ण्ढ़ना तो हलकी बात है, इसलिए ऐसा हो कि छाया दस अंश पीछे लौट जाए। 12O 20 11 तब यशायाह भविष्यद्वक्ता ने यहोवा को पुकारा, और आहाज की घूपघड़ी की छाया, जो दस अंश ढल चुकी थी, यहोवा ने उसको पीछे की ओर लौटा दिया। 12O 20 12 उस समय बलदान का पुत्रा बरोदकबलदान जो बाबेल का राजा था, उस ने हिजकिरयाह के रोगी होने की चर्चा सुनकर, उसके पास पत्री और भेंट भेजी। 12O 20 13 उनके लानेवालों की मानकर हिजकिरयाह ने उनको अपने अनमोल पदाथ का सब भणडार, और चान्दी और सोना और सुगन्ध द्ररय और उत्तम तेल और अपने हथियारों का पूरा घर और अपने भणडारों में जो जो वस्तुएं थीं, वे सब दिखाई; हिजकिरयाह के भवन और राज्य भर में कोई ऐसी वस्तु न रही, जो उस ने उन्हें न दिख्खाई हो। 12O 20 14 तब यशायाह भविष्यद्वक्ता ने हिजकिरयाह राजा के पास जाकर पुछा, वे मनुष्य क्या कह गए? और कहां से तेरे पास आए थे? हिजकिरयाह ने कहा, वे तो दूर देश से अर्थात् बाबेल से आए थे। 12O 20 15 फिर उस ने पूछा, तेरे भवन में उन्हों ने क्या क्या देखा है? हिजकिरयाह ने कहा, जो कुछ मेरे भवन में है, वह सब उन्हों ने देखा। मेरे भणडारों में कोई ऐसी वस्तु नहीं, जो मैं ने उन्हें न दिखाई हो। 12O 20 16 यशायाह ने हिजकिरयाह से कहा, यहोवा का वचन सुन ले। 12O 20 17 ऐसे दिन आनेवाले है, जिन में जो कुछ तेरे भवन में हैं, और जो कुछ तेरे मुरखाओं का रखा हुआ आज के दिन तक भणडारों में है वह सब बाबेल को उठ जाएगा; यहोवा यह कहता है, कि कोई वस्तु न बचेगी। 12O 20 18 और जो पुत्रा तेरे वंश में उत्पन्न हों, उन में से भी कितनों को वे बन्धुआई में ले जाएंगे; और वे खोजे बनकर बाबेल के राजभवन में रहेंगे। 12O 20 19 हिजकिरयाह ने यशायाह से कहा, यहोवा का वचन जो तू ने कहा है, वह भला ही है, फिर उस ने कहा, क्या मेरे दिनों में शांति और सच्चाई बनी न रहेंगी? 12O 20 20 हिजकिरयाह के और सब काम और उसकी सारी वीरता और किस रीति उस ने एक पोखरा और नाली खुदवाकर नगर में पानी पहुंचा दिया, यह सग क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 12O 20 21 निदान हिजकिरयाह अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसका पुत्रा मनश्शे उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 12O 21 1 जब मनश्शे राज्य करने लगा, तब वह बारह वर्ष का था, और यरूशलेम में पचपन वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम हेेप्सीबा था। 12O 21 2 उस ने उन जातियों के घिनौने कामों के अनुसार, जिनको यहोवा ने इस्राएलियों के साम्हने देश से निकाल दिया था, वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था। 12O 21 3 उस ने उन ऊंचे स्थानों को जिनको उसके पिता हिजकिरयाह ने नाश किया था, फिर बनाया, और इस्राएल के राजा अहाब की नाई बाल के लिये वेदियां और एक अशेरा बनवाई, और आकाश के कुल गण को दणडवत और उनकी उपासना करता रहा। 12O 21 4 और उस ने यहोवा के उस भवन में वेदियां बनाई जिसके विषय यहोवा ने कहा था, कि यरूशलेम में मैं अपना नाम रखूंगा। 12O 21 5 वरन यहोवा के भवन के दोनों आंगनों में भी उस ने आकाश के कुल गण के लिये वेदियां बनाई। 12O 21 6 फिर उस ने अपने बेटे को आग में होम करके चढ़ाया; और शुभअशुभ मुहुत्तको मानता, और टोना करता, और ओझों और भूत सिध्दिवालों से रयवहार करता था; वरन उस ने ऐसे बहुत से काम किए जो यहोवा की दृष्टि में बुरे हैं, और जिन से वह क्रोधित होता है। 12O 21 7 और अशेरा की जो मूरत उस ने खुदवाई, उसको उस ने उस भवन में स्थापित किया, जिसके विषय यहोवा ने दाऊद और उसके पुत्रा सुलैमान से कहा था, कि इस भवन में और यरूशलेम में, जिसको मैं ने इस्राएल के सब गोत्रों में से चुन लिया है, मैं सदैव अपना नाम रखूंगा। 12O 21 8 और यदि वे मेरी सब आज्ञाओं के और मेरे दास मूसा की दी हुई पूरी रयवस्था के अनुसार करने की चौकसी करें, तो मैं ऐसा न करूंगा कि जो देश मैं ने इस्राएल के पुरखओं को दिया था, उस से वे फिर निकलकर मारे मारे फिरें। 12O 21 9 परन्तु उन्हों ने न माना, बरन मनश्शे ने उनको यहां तक भटका दिया कि उन्हों ने उन जातियों से भी बढ़कर बुराई की जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियों के साम्हने से विनाश किया था। 12O 21 10 इसलिये यहोवा ने अपने दास भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा, 12O 21 11 कि यहूदा के राजा मनश्शे ने जो ये घृणित काम किए, और जितनी बुराइयां एमोरियों ने जो उस से पहिले थे की थीं, उन से भी अधिक बुराइयां कीं; और यहूदियों से अपनी बनाई हुई मूरतों की पूजा करवा के उन्हें पाप में फंसाया है। 12O 21 12 इस कारण इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है कि सुनो, मैं यरूशलेम और यहूदा पर ऐसी विपत्ति डालना चाहता हूँ कि जो कोई उसका समाचार सुनेगा वह बड़े सन्नाटे में आ जाएगा। 12O 21 13 और जो मापने की डोरी मैं ने शोमरोन पर डाली है और जो साहुल मैं ने अहाब के घराने पर लटकाया है वही यरूशलेम पर डालूंगा। और मैं यरूशलेम को ऐसा पोछूंगा जैसे कोई थाली को पोंछता है और उसे पोंछकर उलट देता है। 12O 21 14 और मैं अपने निज भाग के बचे हुओं को त्यागकर शत्रुओं के हाथ कर दूंगा और वे अपने सब शत्रुओं के लिए लूट और धन बन जाएंगे। 12O 21 15 इसका कारण यह है, कि जब से उनके पुरखा मिस्र से निकले तब से आज के दिन तक वे वह काम करके जो मेरी दृष्टि में बुरा है, मुझे रिस दिलाते आ रहे हैं। 12O 21 16 मनश्शे ने तो न केवल वह काम कराके यहूदियों से पाप कराया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, वरन निदषों का खून बहुत बहाया, यहां तक कि उस ने यरूशलेम को एक सिरे से दूसरे सिरे तक खून से भर दिया। 12O 21 17 मनश्शे के और सब काम जो उस ने किए, और जो पाप उस ने किए, वह सब क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 12O 21 18 निदान मनश्शे अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसे उसके भवन की बारी में जो उज्जर की बारी कहलाती थी मिट्टी दी गई; और उसका पुत्रा आमोन उसके स्थान पर राजा हुआ। 12O 21 19 जब आमोन राज्य करने लगा, तब वह बाईस पर्ष का था, और यरूशलेम में दो वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम मशुल्लेमेत था जो योत्बावासी हारूम की बेटी थी। 12O 21 20 और उस ने अपने पिता मनश्शे की नाई वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 12O 21 21 और वह अपने पिता के समान पूरी चाल चला, और जिन मूरतों की उपासना उसका पिता करता था, उनकी वह भी उपासना करता, और उन्हें दणडवत करता था। 12O 21 22 और उस ने अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया, और यहोवा के मार्ग पर न चला। 12O 21 23 और आमोन के कर्मचारियों ने द्रोह की गोष्ठी करके राजा को उसी के भवन में मार डाला। 12O 21 24 तब साधारण लोगों ने उन सभों को मार डाला, जिन्हों ने राजा आमोन से द्रोह की गोष्ठी की थी, और लोगों ने उसके पुत्रा योशिरयाह को उसके स्थान पर राजा किया। 12O 21 25 आमोन के और काम जो उस ने किए, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं। 12O 21 26 उसे भी उज्जर की बारी में उसकी निज कबर में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्रा योशिरयाह उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 12O 22 1 जब योशिरयाह राज्य करने लगा, तब वह आठ वर्ष का था, और यरूशलेम में एकतीस वर्ष तक राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम यदीदा था जो बोस्कतवासी अदाया की बेटी थी। 12O 22 2 उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है और जिस मार्ग पर उसका मूलपुरूष दाऊद चला ठीक उसी पर वह भी चला, और उस से न तो दाहिनी ओर और न बाई ओर मुड़ा। 12O 22 3 अपने राज्य के अठारहवें वर्ष में राजा योशिरयाह ने असल्याह के पुत्रा शापान मंत्री को जो मशुल्लाम का पोता था, यहोवा के भवन में यह कहकर भेजा, कि हिलकिरयाह महायाजक के पास जाकर कह, 12O 22 4 कि जो चान्दी यहोवा के भवन में लाई गई है, और द्वारपालों ने प्रजा से इकट्ठी की है, 12O 22 5 उसको जोड़कर, उन काम करानेवालों को सौंप दे, जो यहोवा के भवन के काम पर मुखिये हैं; फिर वे उसको यहोवा के भवन में काम करनेवाले कारीगरों को दें, इसलिये कि उस में जो कुछ टूटा फूटा हो उसकी वे मरम्मत करें। 12O 22 6 अर्थात् बढ़इयों, राजों और संगतराशों को दें, और भवन की मरम्मत के लिये लकड़ी और गढ़े हुए पत्थर मोल लेने में लगाएं। 12O 22 7 परन्तु जिनके हाथ में वह चान्दी सौंपी गई, उन से हिसाब न लिया गया, क्योंकि वे सच्चाई से काम करते थे। 12O 22 8 और हिलकिरयाह महायाजक ने शापान मंत्री से कहा, मुझे यहोवा के भवन में रयवस्था की पुस्तक मिली है; तब हिलकिरयाह ने शापान को वह पुस्तक दी, और वह उसे पढ़ने लगा। 12O 22 9 तब शापान मंत्री ने राजा के पास लौटकर यह सन्देश दिया, कि जो चानदी भवन में मिली, उसे तेरे कर्मचारियो ने थैलियों में डाल कर, उनको सौंप दिया जो यहोवा के भवन में काम करानेवाले हैं। 12O 22 10 फिर शपान मंत्री ने राजा को यह भी बता दिया, कि हिलकिरयाह याजक ने उसे एक पुस्तक दी है। तब शपान उसे राजा को पढ़कर सुनाने लगा। 12O 22 11 रयवस्था की उस पुस्तक की बातें सुनकर राजा ने अपने वस्त्रा फाड़े। 12O 22 12 फिर उस ने हिलकिरयाह याजक, शापान के पुत्रा अहीकाम, मीकायाह के पुत्रा अकबोर, शापान मंत्री और असाया ताम अपने एक कर्मचारी को आज्ञा दी, 12O 22 13 कि यह पुस्तक जो मिली है, उसकी बातों के विष्य तुम जाकर मेरी ओर प्रजा की और सब सहूदियों की ओर से यहोवा से पूछो, क्योंकि यहोवा की बड़ी ही जलजलाहट हम पर इस कारण भड़की है, कि हमारे पुरखाओं ने इस पुस्तक की बातें न मानी कि कुछ हमारे लिये लिखा है, उसके अनुसार करते। 12O 22 14 हिलकिरयाह याजक और अहीकाम, अकबोर, शापान और असाया ने हुल्दा नबिया के पास जाकर उस से बातें की, वह उस शल्लूम की पत्नी थी जो तिकवा का पुत्रा और हर्हस का पोता और वस्त्रों का रखवाला था, ( और वह स्त्री यरूशलेम के नये टोले में रहती थी ) । 12O 22 15 उस ने उन से कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि जिस पुरूष ने तुम को मेरे पास भेजा, उस से यह कहो, 12O 22 16 यहोवा यों कहता है, कि सुन, जिस पुस्तक को यहूदा के राजा ने पढ़ा है, उसकी सब बातों के अनुसार मैं इस स्थान और इसके निवासियों पर विपत्ति डाला चाहता हूँ।ं 12O 22 17 उन लोगों ने मुझे त्याग कर पराये देवताओं के लिये धूप जलाया और अपनी बनाई हुई सब वस्तुओं के द्वारा मुझे क्रोध दिलाया है, इस कारण मेरी जलजलाहट इस स्थान पर भड़केगी और फिर शांत न होगी। 12O 22 18 परन्तु यहूदा का राजा जिस ने तुम्हें यहोवा से पूछने को भेजा है उस से तुम यों कहो, कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा कहता है। 12O 22 19 इसलिये कि तू वे बातें सुनकर दीन हुआ, और मेरी वे बातें सुनकर कि इस स्थान और इसके निवासियों को देखकर लोग चकित होंगे, और शप दिया करेंगे, तू ने यहोवा के साम्हने अपना सिर नवाया, और अपने वस्त्रा फाड़कर मेरे साम्हने रोया है, इस कारण मैं ने तेरी सुनी है, यहोवा की यही वाणी है। 12O 22 20 इसलिये देख, मैं ऐसा करूंगा, कि तू अपने पुरखाओं के संग मिल जाएगा, और तू शांति से अपनी कबर को पहुंचाया जाएगा, और जो विपत्ति मैं इस स्थान पर डाला चाहता हूँ, उस में से तुझे अपनी ओखों से कुछ भी देखना न पड़ेगा। तब उन्हों ने लौटकर राजा को यही सन्देश दिया। 12O 23 1 राजा ने यहूदा और यरूशलेम के सब पुरनियों को अपने पास इकट्ठा बुलवाया। 12O 23 2 और राजा, यहूदा के सब लोगों और यरूशलेम के सब निवासियों और याजकों और नबियों वरन छोटे बड़े सारी प्रजा के लोगों को संग लेकर यहोवा के भवन में गया। तब उस ने जो वाचा की मुस्तक यहोवा के भवन में मिली थी, उसकी सब बातें उनको पढ़कर सुनाई। 12O 23 3 तब राजा ने खम्भे के पास खड़ा होकर यहोवा से इस आशय की वाचा बान्धी, कि मैं यहोवा के पीछे पीछे चलूंगा, और अपने सारे मन और सारे प्राण से उसकी आज्ञाएं, चितौनियां और विधियों का नित पालन किया करूंगा? और इस वाचा की बातों को जो इस पुस्तक में लिखी है पूरी करूंगा। और सब प्रजा वाचा में सम्भागी हुई। 12O 23 4 तब राजा ने हिलकिरयाह महायाजक और उसके नीचे के याजकों और द्वारपालों को आज्ञा दी कि जितने पात्रा बाल और अशेरा और आकाश के सब गण के लिये बने हैं, उन सभों को यहोवा के मन्दिर में से निकाल ले आओ। तब उस ने उनको यरूशलेम के बाहर किद्रोन के खेतों में फूंककर उनकी राख बेतेल को पहुंचा दी। 12O 23 5 और जिन पुजारियों को यहूदा के राजाओं ने यहूदा के नगरों के ऊंचे स्थानों में और यरूशलेम के आस पास के स्थानों में धूप जलाने के लिये ठहराया था, उनको और जो बाल और सूर्य- चन्द्रमा, राशिचक्र और आकाश के कुल गण को धूप जलाते थे, उनको भी राजा ने दूर कर दिया। 12O 23 6 और वह अशेरा को यहोवा के भवन में से निकालकर यरूशलेम के बाहर किद्रोन नाले में लिवाले गया और वहीं उसको फूंक दिया, और पीसकर बुकनी कर दिया। तब वह बुकनी साधारण लोगों की कबरों पर फेंक दी। 12O 23 7 फिर पुरूषगामियों के घर जो यहोवा के भवन में थे, जहां स्त्रियां अशेरा के लिये पर्दे बुना करती थीं, उनको उस ने ढा दिया। 12O 23 8 और उस ने यहूदा के सब नगरों से याजकों को बुलवाकर गेबा से बेश् बा तक के उन ऊंचे स्थानों को, जहां उन याजकों ने धूप जलाया था, अशुठ्ठ कर दिया; और फाटकों के ऊंचे स्थान अर्थात् जो स्थान नगर के यहोशू नाम हाकिम के फाटक पर थे, और नगर के फाटक के भीतर जानेवाले की बाई ओर थे, उनको उस ने ढा दिया। 12O 23 9 तौभी ऊंचे स्थानों के याजक यरूशलेम में यहोवा की बेदी के पास न आए, वे अखमीरी रोटी अपने भइयों के साथ खाते थे। 12O 23 10 फिर उस ने तोपेत को जो हिन्नोमवंशियों की तराई में था, अशुठ्ठ कर दिया, ताकि कोई अपने बेठे वा बेटी को मोलोक के लिये आग में होम करके न चढ़ाए। 12O 23 11 और जो घोड़े यहूदा के राजाओं ने सूर्य को अर्पण करके, यहोवा के भवन के द्वार पर नतन्मेलेक नाम खोजे की बाहर की कोठरी में रखे थे, उनको उस ने दूर किया, और सूर्य के रथों को आग में फूंक दिया। 12O 23 12 और आहाज की अटारी की छत पर जो वेदियां यहूदा के राजाओं की बनाई हुई थीं, और जो वेदियां मनश्शे ने यहोवा के भवन के दोनों आंगनों में बनाई थीं, उनको राजा ने ढाकर पीस डाला और उनकी बुकनी किद्रोन नाले में फेंक दी। 12O 23 13 और जो ऊंचे स्थान इस्राएल के राजा सुलैमान ने यरूशलेम की पूर्व ओर और विकारी नाम पहाड़ी की दक्खिन अलंग, अश्तोरेत नाम सीदोनियों की घिनौनी देवी, और कमोश नाम मोआबियों के घिनौने देवता, और मिल्कोम नाम अम्मोनियों के घिनौने देवता के लिये बनवाए थे, उनको राजा ने अशुठ्ठ कर दिया। 12O 23 14 और उस ने लाठों को तोड़ दिया और अशेरों को काट डाला, और उनके स्थान मनुष्यों की हडि्डयों से भर दिए। 12O 23 15 फिर बेतेल में जो वेदी थी, और जो ऊंचा स्थान नबात के पुत्रा यारोबाम ने बनाया था, जिस ने इस्राएल से पाप कराया था, उस वेदी और उस ऊंचे स्थान को उस ने ढा दिया, और ऊंचे स्थान को फूंककर बुकनी कर दिया और अशेरा को फूंक दिया। 12O 23 16 और योशिरयाह ने फिर कर वहां के पहाड़ की कबरों को देखा, और लोगों को भेजकर उन कबरों से हडि्डयां निकलवा दीं और वेदी पर जलवाकर उसको अशुठ्ठ किया। यह यहोवा के उस वचन के अनुसार हुआ, जो परमेश्वर के उस भक्त ने पुकारकर कहा था जिस ने इन्हीं बातों की चर्चा की थी। 12O 23 17 तब उस ने पूछा, जो खम्भा मुझे दिखाई पड़ता है, वह क्या है? तब नगर के लोगों ने उस से कहा, वह परमेश्वर के उस भक्त जन की कबर है, जिस ने यहूदा से आकर इसी काम की चर्चा पुकारकर की जो तू ने बेतेल की वेदी से किया है। 12O 23 18 तब उस ने कहा, उसको छोड़ दो; उसकी हडि्डयों को कोई न हटाए। तब उन्हों ने उसकी हडि्डयां उस नबी की हडि्डयों के संग जो शोमरोन से आया था, रहने दी। 12O 23 19 फिर ऊंचे स्थान के जितने भपन शोमरोन के नगरों में थे, जिनको इस्राएल के राजाओं ने बनाकर यहोवा को रिस दिलाई थी, उन सभों को योशिरयाह ने गिरा दिया; और जैसा जैसा उस ने बेतेल में किया था, वैसा वैसा उन से भी किया। 12O 23 20 और उन ऊंचे स्थानों के जितने याजक वहां थे उन सभों को उस ने उन्ही वेदियों पर बलि किया और उन पर मनुष्यों की हडि्डयां जलाकर यरूशलेम को लौट गया। 12O 23 21 और राजा ने सारी प्रजा के लोगों को आज्ञा दी, कि इस वाचा की पुस्तक में जो कुछ लिखा है, उसके अनुसार अपने परमेश्वर यहोवा के लिये फसह का पर्व मानो। 12O 23 22 निश्चय ऐसा फसह न तो न्यायियों के दिनों में माना गया था जो इस्राएल का न्याय करते थे, और न इस्राएल वा यहूदा के राजाओं के दिनों में माना गया था। 12O 23 23 राजा योशिरयाह के अठारहवें वर्ष में यहोवा के लिये यरूशलेम में यह फसह माना गया। 12O 23 24 फिर ओझे, भूतसिध्दिवाले, गृहदेवता, मूरतें और जितनी घिनौनी वस्तुएं यहूद देश और यरूशलेम में जहां कहीं दिखाई पड़ीं, उन सभों को योशिरयाह ने उस मनसा से नाश किया, कि रयवस्था की जो बातें उस पुस्तक में लिखी थीं जो हिलकिरयाह याजक को यहोवा के भवन में मिली थी, उनको वह पूरी करे। 12O 23 25 और उसके तुल्य न तो उस से पहिले कोई ऐसा राजा हुआ और न उसके बाद ऐसा कोई राजा उठा, जो मूसा की पूरी रयवस्था के अनुसार अपने पूर्ण मन और मूर्ण प्राण और पूर्ण शक्ति से यहोवा की ओर फिरा हो। 12O 23 26 तौभी यहोवा का भड़का हुआ बड़ा कोप शान्त न हुआ, जो इस कारण से यहूदा पर भड़का था, कि मनश्शे ने यहोवा को क्रोध पर क्रोध दिलाया था। 12O 23 27 और यहोवा ने कहा था जेसे मैं ने इस्राएल को अपने साम्हने से दूर किया, वैसे ही सहूदा को भी दूर करूंगा; और इस यरूशलेम नगर से जिसे मैं ने चुना और इस भवन से जिसके विषय मैं ने कहा, कि यह मेरे नाम का निवास होगा, मैं हाथ उठाऊंगा। 12O 23 28 योशिरयाह के और सब काम जो उस ने किए, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 12O 23 29 उसके दिनों में फ़िरौन- नको नाम मिस्र का राजा अश्शूर के राजा के विरूद्ध परात महानद तक गया तो योशिरयाह राजा भी उसका साम्हना करने को गया, और उस ने उसको देखते ही मगिद्दॊ में मार डाला। 12O 23 30 तब उसके कर्मचारियों ने उसकी लोथ एक रथ पर रख मगिद्दॊ से ले जाकर यरूशलेम को पहुंचाई और उसकी निज कबर में रख दी। तब साधारण लोगों ने योशिरयाह के पुत्रा यहोआहाज को लेकर उसका अभिषेक करके, उसके पिता के स्थान पर राजा नियुक्त किया। 12O 23 31 जब यहोआहाज राज्य करने लगा, तब वह तेइ्रर्स वर्ष का था, और तीन महीने तक यरूशलेम में राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम हमूतल था, जो लिब्नावासी यिर्मयाह की बेटी थी। 12O 23 32 उस ने इीक अपने पुरखाओं की नाई वही किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 12O 23 33 उसको फ़िरौन- नको ने हमात देश के रिबला नगर में बान्ध रखा, ताकि वह यरूशलेम में राज्य न करने पाए, फिर उस ने देश पर सौ किक्कार चान्दी और किक्कार भर सोना जुरमाना किया। 12O 23 34 तब फिरौन- नको ने योशिरयाह के पुत्रा एल्याकीम को उसके पिता योशिरयाह के स्थान पर राजा नियुक्त किया, और उसका नाम बदलकर यहोयाकीम रखा; और यहोआहाज को ले गया। सो यहोआहाज मिस्र में जाकर वहीं मर गया। 12O 23 35 यहोयाकीम ने फ़िरौन को वह चान्दी और सोना तो दिया परन्तु देश पर इसलिये कर लगाया कि फ़िरौन की अज्ञा के अनुसार उसे दे सके, अर्थात् देश के सब लोगों से जितना जिस पर लगान लगा, उतनी चान्दी और सोना उस से फ़िरौन- नको को देने के लिये ले लिया। 12O 23 36 जब सहोयाकीम राज्य करने लगा, तब वह पचीस पर्ष का था, और ग्यारह वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम जबीदा था जो रूमावासी अदायाह की बेटी थी। 12O 23 37 उस ने ठीक अपने पुरखाओं की नाई वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 12O 24 1 उसके दिनों में बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने चढाई की और यहोयाकीम तीन वर्ष तक उसके अधीन रहा; तब उस ने फिर कर उस से बलवा किया। 12O 24 2 तब यहावा ने उसके विरूद्ध और यहूदा को नाश करने के लिये कसदियों, अरामियों, मोआबियों और अम्मोनियों के दल भेजे, यह यहोवा के उस वचन के अनुसार हुआ, जो उस ने अपने दास भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा था। 12O 24 3 निेसन्देह यह यहूदा पर यहोवा की आज्ञा से हुआ, ताकि वह उनको अपने साम्हने से दूर करे। यह मनश्शे के सब पापों के कारण हुआ। 12O 24 4 और निदषों के उस खून के कारण जो उस ने किया था; क्योंकि उस ने यरूशलेम को निदषों के खून से भर दिया था, जिसको यहोवा ने क्षमा करना न चाहा। 12O 24 5 यहोयाकीम के और सब काम जो उस ने किए, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 12O 24 6 निदान यहोयाकीम अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसका पुत्रा यहोयाकीन उसके स्थान पर राजा हुआ। 12O 24 7 और मिस्र का राजा अपने देश से बाहर फिर कभी न आया, क्योंकि बाबेल के राजा ने मिस्र के नाले से लेकर परात महानद तक जितना देश मिस्र के राजा का था, सब को अपने वश में कर लिया था। 12O 24 8 जब यहोयाकीन राज्य करने लगा, तब वह अठारह वर्ष का था, और तीन महीने तक यरूशलेम में राज्य करता रहा; और उसकी माता का नम तहुश्ता था, जो यरूशलेम के एलनातान की बेटी थी। 12O 24 9 उस ने ठीक अपने पिता की नाई वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 12O 24 10 उसके दिनों में बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर के कर्मचारियों ने यरूशलेम पर चढ़ाई करके नगर को घेर लिया। 12O 24 11 और जब बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर के कर्मचारी नगर को घेरे हुए थे, तब वह आप वहां आ गया। 12O 24 12 और यहूदा का राजा यहोयाकीन अपनी माता और कर्मचारियों, हाकिमों और खोजों को संग लेकर बाबेल के राजा के पास गया, और बाबेल के राजा ने अपने राज्य के आठवें वर्ष मे उनको पकड़ लिया। 12O 24 13 तब उस ने यहोवा के भवन में और राजभवन में रखा हुआ पूरा धन वहां से निकाल लिया और सोने के जो पात्रा इस्राएल के राजा सुलैमान ने बनाकर यहोवा के मन्दिर में रखे थे, उन सभों को उस ने टुकड़े टुकड़े कर डाला, जैसा कि यहोवा ने कहा था। 12O 24 14 फिर वह पूरे यरूशलेम को अर्थात् सब हाकिमों और सब धनवानों को जो मिलकर दस हजार थे, और सब कारीगरों और लोहारों को बन्धुआ करके ले गया, यहां तक कि साधारण लोगों में से कंगालों को छोड़ और कोई न रह गया। 12O 24 15 और वह यहोयाकीन को बाबेल में ले गया और उसकी माता और स्त्रियों और खोजों को और देश के बड़े लोगों को वह बन्धुआ करके यरूशलेम से बाबेल को ले गया। 12O 24 16 और सब धनवान जो सात हजार थे, और कारीगर और लोहार जो मिलकर एक हजार थे, और वे सब वीर और युठ्ठ के योग्य थे, उन्हें बाबेल का राजा बन्धुआ करके बाबेल को ले गया। 12O 24 17 और बाबेल के राजा ने उसके स्थान पर उसके चाचा मत्तन्याह को राजा नियुक्त किया और उसका नाम बदलकर सिदकिरयाह रखा। 12O 24 18 जब सिदकिरयाह राज्य करने लगा, तब वह इक्कीस वर्ष का था, और यरूशलेम में ग्यारह वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम हमूतल था, जो लिब्नावासी यिर्मयाह की बेटी थी। 12O 24 19 उस ने ठीक यहोयाकीम की लीक पर चलकर वही किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 12O 24 20 क्योंकि यहोवा के कोप के कारण यरूशलेम और यहूदा को ऐसी दशा हुई, कि अन्त में उस ने उनको अपने साम्हने से दूर किया। 12O 25 1 और सिदकिरयाह ने बाबेल के राजा से बलवा किया। उसके राज्य के नौवें वर्ष के दसवें महीने के दसवें दिन को बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने अपनी पूरी सेना लेकर यरूशलेम पर चढ़ाई की, और उसके पास छावनी करके उसके चारों ओर कोट बनाए। 12O 25 2 और नगर सिदकिरयाह राजा के ग्यारहवें वर्ष तक घिरा हुआ रहा। 12O 25 3 चौथे महीने के नौवें दिन से नगर में महंगी यहां तक बढ़ गई, कि देश के लोगों के लिये कुछ खाने को न रहा। 12O 25 4 तब नगर की शहरपनाह में दरार की गई, और दोनों भीतों के बीच जो फाटक राजा की बारी के निकट था उस मार्ग से सब योठ्ठा रात ही रात निकल भागे। कसदी तो नगर को घेरे हुए थे, परन्तु राजा ने अराबा का मार्ग लिया। 12O 25 5 तब कसदियों की सेना ने राजा का पीछा किया, और उसको यरीहो के पास के अराबा में जा लिया, और उसकी पूरी सेना उसके पास से तितर बितर हो गई। 12O 25 6 तब वे राजा को पकड़कर रिबला में बाबेल के राजा के पास ले गए, और उसे दणड की आज्ञा दी गई। 12O 25 7 और उन्हों ने सिदकिरयाह के पुत्रों को उसके साम्हने घात किया और सिदकिरयाह की आंखें फोड़ डालीं और उसे पीतल की बेड़ियों से जकड़कर बाबेल को ले गए। 12O 25 8 बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर के उन्नीसवें वर्ष के पांचवें महीने के सातवें दिन को जल्लादों का प्रधान नबूजरदान जो बाबेल के राजा का एक कर्मचारी थ, यरूशलेम में आया। 12O 25 9 और उस ने यहोवा के भवन और राजभवन और यरूशलेम के सब घरों को अर्थात् हर एक बड़े घर को आग लगाकर फूंक दिया। 12O 25 10 और यरूशलेम के चारों ओर की सब शहरपनाह को कसदियो की पूरी सेना ने जो जल्लादों के प्रधान के संग थी ढा दिया। 12O 25 11 और जो लोग नगर में रह गए थे, और जो लोग बाबेल के राजा के पास भाग गए थे, और साधारण लोग जो रह गए थे, इन सभें को जल्लादों का प्रधान नबूजरदान बन्धुआ करके ले गया। 12O 25 12 परन्तु जल्लादों के प्रधान ने देश के कंगालों में से कितनों को दाख की बारियों की सेवा और काश्तकारी करने को छोड़ दिया। 12O 25 13 और यहोवा के भ्वन में जो पीतल के खम्भे थे और कुर्सियां और पीतल का हौद जो यहोवा के भवन में था, इनको कसदी तोड़कर उनका पीतल बाबेल को ले गए। 12O 25 14 और हण्डियों, फावड़ियों, चिमटों, धूपदानों और पीतल के सब पात्राों को जिन से सेवा टहल होती थी, वे ले गए। 12O 25 15 और करछे और कटोरियां जो सोने की थीं, और जो कुछ चान्दी का था, वह सब सोना, चान्दी, जल्लादों का प्रधान ले गया। 12O 25 16 दोनों खम्भे, एक हौद और जो कुर्सियां सुलैमान ने यहोवा के भवन के लिये बनाए थे, इन सब वस्तुओं का पीतल तौल से बाहर था। 12O 25 17 एक एक खम्भे की ऊंचाई अठारह अठारह हाथ की थी और एक एक खम्भे के ऊपर तीन तीन हाथ ऊंची पीतल की एक एक कंगनी थी, और एक एक कंगनी पर चारों ओर जो जाली और अनार बने थे, वे सब पीतल के थे। 12O 25 18 और जल्लादों के प्रधान ने सरायाह महायाजक और उसके नीचे के याजक सपन्याह और तीनों द्वारपालों को पकड़ लिया। 12O 25 19 और नगर में से उस ने एक हाकिम को पकड़ा जो योद्वाओं के ऊपर था, और जो पुरूष राजा के सम्मुख रहा करते थे, उन में से पांच जन जो नगर में मिले, और सेनापति का मुन्शी जो लोगों को सेना में भरती किया करता था; और लोगों में से साठ पुरूष जो नगर में मिले। 12O 25 20 इनको जल्लादों का प्रधान नबूजरदान पकड़कर रिबला के राजा के पास ले गया। 12O 25 21 तब बाबेल के राजा ने उन्हें हमात देश के रिबला में ऐसा मारा कि वे मर गए। यों यहूदी बन्धुआ बनके अपने देश से तिकाल दिए गए। 12O 25 22 और जो लोग यहूदा देश में रह गए, जिनको बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने छोड़ दिया, उन पर उस ने अहीकाम के पुत्रा गदल्याह को जो शापान का पोता था अधिकारी ठहराया। 12O 25 23 जब दलों के सब प्रधानों ने अर्थात् नतन्याह के पुत्रा इश्माएल कारेहू के पुत्रा योहानान, नतोपाई, तन्हूमेत के पुत्रा सरायाह और किसी माकाई के पुत्रा याजन्याह ने और उनके जनों ने यह सुना, कि बाबेल के राजा ने गदल्याह को अधिकारी ठहराया है, तब वे अपने अपने जनों समेत मिस्पा में गदल्याह के पास आए। 12O 25 24 और गदल्याह ने उन से और उनके जनों से शपथ खाकर कहा, कसदियों के सिपाहियों से न डरो, देश में रहते हुए बाबेल के राजा के अधीन रहो, तब नुम्हारा भला होगा। 12O 25 25 परन्तु सातवें महीने में नतन्याह का पुत्रा इश्माएल, जो एलीशामा का पोता और राजवंश का था, उस ने दस जन संग ले गदल्याह के पास जाकर उसे ऐसा मारा कि वह मर गया, और जो यहूदी और कसदी उसके संग मिस्पा में रहते थे, उनको भी मार डाला। 12O 25 26 तब क्या छोटे क्या बड़े सारी प्रजा के लोग और दलों के प्रधान कसदियों के डर के मारे उठकर मिस्र में जाकर रहने लगे। 12O 25 27 फिर यहूदा के राजा यहोयाकीन की बन्धुआई के तैंतीसवें वर्ष में अर्थात् जिस वर्ष में बाबेल का राजा एवील्मरोदक राजगद्दी पर विराजमान हुआ, उसी के बारहवें महीने के सत्ताईसवें दिन को उस ने यहूदा के राजा यहोयाकीन को बन्दीगृह से निकालकर बड़ा पद दिया। 12O 25 28 और उस से मधुर मधुर वचन कहकर जो राजा उसके संग बाबेल में बन्धुए थे उनके सिंहासनों से उसके सिंहासन को अधिक ऊंचा किया, 12O 25 29 और उसके बन्दीगृह के वस्त्रा बदल दिए और उस ने जीवन भर नित्य राजा के सम्मुख भोजन किया। 12O 25 30 और प्रतिदिन के खर्च के लिये राजा के यहां से नित्य का क्षर्च ठहराया गया जो उसके जीवन भर लगातार उसे मिलता रहा। 13O 1 1 आदम, शॆत, एनोश; 13O 1 2 केनान, महललेल, येरेद; 13O 1 3 हनोक, मतूशेलह, लेमेक; 13O 1 4 नूह, शेम, हाम और येपेत । 13O 1 5 येपेत के पुत्रा : गोमेर, मागोग, मादै, सावान, तूबल, मेशेक और तीरास हैं। 13O 1 6 और गोमेर के पुत्रा : अशकनज, दीपत और तोगर्मा हैं। 13O 1 7 और यावान के पुत्रा : एलीशा, तश श, और कित्ती और रोदानी लोग हैं। 13O 1 8 हाम के पुत्रा : कुश, मिस्र, पूत और कनान हैं। 13O 1 9 और कूश के पुत्रा : सबा, हबीला, सबाता, रामा और सब्तका हैं; और रामा के पुत्रा : शबा और ददान हैं। 13O 1 10 और कूश से निम्रोद उत्पन्न हुआ; मृथ्वी पर पहिला वीर वही हुआ। 13O 1 11 और मिस्र से लूदी, अनामी, लहावी, नप्तही। 13O 1 12 पत्रूसी, कसलूही ( वहां से पलिश्ती निकले ) और कप्तोरी उत्पन्न हुए। 13O 1 13 कनान से उसका जेठा सीदोन और हित्त। 13O 1 14 और यबूसी, एमोरी, गिर्गाशी। 13O 1 15 हिरवी, अक ,सीनी। 13O 1 16 अर्वदी, समारी और हमाती उत्पन्न हुए। 13O 1 17 शेम के पुत्रा : एलाम, अश्शूर, अर्पक्षद, लूद, अराम, ऊस, हूल, गेतेर और मेशेक हैं। 13O 1 18 और अर्पक्षद से शेलह और शेलह से एबेर उत्पन्न हुआ। 13O 1 19 और एबेर के दो पुत्रा उत्पन्न हुए : एक का नाम पेलेग इस कारण रखा गया कि उसके दिनों में पृथ्वी बांटी गई; और उसके भाई का नाम योक्तान था। 13O 1 20 और योक्तान से अल्मोदाद, शुलेप, हसर्मावेत, येरह। 13O 1 21 हदोराम, ऊजाल, दिक्ला। 13O 1 22 एबाल, अबीमाएल, शबा, 13O 1 23 ओपीर, हवीला और सोबाब उत्पन्न हुए; ये ही सब योक्तान के पुत्रा हैं। 13O 1 24 शेम, अर्पक्षद, शेलह। 13O 1 25 एबेर, पेलेग, रू। 13O 1 26 सरूग, नाहोर, तेरह, 13O 1 27 अब्राम, वही इब्राहीम भी कहलाता है। 13O 1 28 इब्राहीम के पुत्रा इसहाक और इश्माएल हैं। 13O 1 29 इनकी वंशावलियां ये हैं। इश्माएल का जेठा नवायोत, फिर केदार, अदवेल, मिबसाम। 13O 1 30 मिश्मा, दूमा, मस्सा, हदद, तेमा। 13O 1 31 यतूर, नापीश, केदमा। ये इश्माएल के पुत्रा हुए। 13O 1 32 फिर कतूरा जो इब्राहीम की रखेली थी, उसके ये पुत्रा उत्पन्न हुए, अर्थात् उस से जिम्रान, योक्षान, मदान, मिद्यान, यिशबाक और शूह उत्पन्न हुए। योक्षान के पुत्रा : शबा और ददात। 13O 1 33 और मिद्यान के पुत्रा : एपा, एपेर, हनोक, अबीदा और एलदा, ये सब कतूरा के पुत्रा हैं। 13O 1 34 इब्राहीम से इसहाक उत्पन्न हुआ। इसहाक के पुत्रा : एसाव और इस्राएल। 13O 1 35 एसाव के पुत्रा : एलीपज, रूएल, यूश, यालाम और कोरह हैं। 13O 1 36 एलीपज के ये पुत्रा हैं : तेमान, ओमार, सपी, गाताम, कनज, तिम्ना और अपालेक। 13O 1 37 रूएल के पुत्रा : नहत, जेरह, शम्मा और मिज्जा। 13O 1 38 फिर सेईर के पुत्रा : लोतान, शोबाल, सिबोेन, अना, दीशोन, एसेर और दीशान हैं। 13O 1 39 और लोतान के पुत्रा : होरी और होमाम, और लोतान की बहिन तिम्ना थीं। 13O 1 40 शोबाल के पुत्रा : अल्यान, मानहत, एबाल, शषी और ओनाम। 13O 1 41 और सिबोन के पुत्रा : अरया, और अना। अना का पुत्रा : दीशोन। और दीशोन के पुत्रा : हम्रान, एशबान, यित्रान और करान। 13O 1 42 एसेर के पुत्रा बिल्हान, जाचान और याकान। और दीशान के पुत्रा : ऊस और अरान हैं। 13O 1 43 जब किसी राजा ने इस्राएलियों पर राज्य न किया था, तब एदोम के देश में ये राजा हुए : अर्थात् बोर का पुत्रा बेला और उसकी राजधानी का नाम दिन्हाबा था। 13O 1 44 बेला के मरने पर, बोस्राई जेरह का पुत्रा योबाब, उसके स्थान पर राजा हुआ। 13O 1 45 और योबाब के मरने पर, तेमानियों के देश का हूशाम उसके स्थान पर राजा हुआ। 13O 1 46 फिर हूशाम के मरने पर, बदद का पुत्रा हदद, उसके स्थान पर राजा हुआ : यह वही है, जिस ने मिद्यानियों को मोआब के देश में मार लिया; और उसकी राजधानी का नाम अबीत था। 13O 1 47 और हदद के मरने पर, मस्रेकाई सम्ला उसके स्थान पर राजा हुआ। 13O 1 48 फिर सम्ला के मरने पर शाऊल, जो महानद के तट पर के रहोबोत नगर का था, वह उसके स्थान पर राजा हुआ। 13O 1 49 और शाऊल के मरने पर अकबोर का पुत्रा बाल्हानान उसके स्थान पर राजा हुआ। 13O 1 50 और बल्हानान के मरने पर, हदद उसके स्थान पर राजा हुआ; और उसकी राजधानी का नाम पाई था। और उसकी पत्नी का नाम महेतबेल था जो मेज़ाहाब की नातिनी और मत्रोद की बेटी थी। और हदद मर गया। 13O 1 51 फिर एदोम के अधिपति ये थे : अर्थात् अधिपति तिम्ना, अधिपति अल्या, अधिपति यतेत, अधिपति ओहोलीवामा, 13O 1 52 अधिपति एला, अधिपति पीनोन, अधिपति कनज, 13O 1 53 अधिपति तेमान, अधिपति मिबसार, अधिपति मग्दीएल, अधिपति ईराम। 13O 1 54 एदोम के ये अधिपति हुए। 13O 2 1 इस्राएल के ये पुत्रा हुए; रूबेन, शिमोन, लेवी, सहूदा, इस्साकार, जबूलून, दान। 13O 2 2 यूसुफ, बिन्यामीन, नन्ताली, गाद और आशेर। 13O 2 3 यहूदा के ये पुत्रा हुए : एर, ओनान और शेला, उसके ये तीनों पुत्रा, बतशू नाम एक कनानी स्त्री से उत्पन्न हुए। और यहूदा का जेठा एर, यहोवा की दृष्टि में बुरा था, इस कारण उस ने उसको मार डाला। 13O 2 4 यहूदा की बहू तामार से पेरेस और जेरह उत्पन्न हुए। यहूदा के सब पुत्रा पांच हुए। 13O 2 5 मेरेस के पुत्रा : हेस्रोन और हामूल। 13O 2 6 और जेरेह के पुत्रा : जिम्री, एतान, हेमान, कलकोल और दारा सब मिलकर पांच। 13O 2 7 फिर कम का पुत्रा : आकार जो अर्पण की हुई पस्तु के विषय में विश्वासघात करके इस्राएलियों का कष्ट देनेवाला हुआ। 13O 2 8 और एतान का पुत्रा : अजर्याह। 13O 2 9 हेस्रोन के जो पुत्रा उत्पन्न हुए : यरह्येल, राम और कलूबै। 13O 2 10 और राम से अम्मीनादाब और अम्मीनादाब से नहशोन उत्पन्न हुआ जो यहूदियों का प्रधान बना। 13O 2 11 और नहशोन से सल्मा और सल्मा से बोअज, 13O 2 12 और बोअज से ओबेद और ओबेद से यिशै उत्पन्न हुआ। 13O 2 13 और यिशै से उसका जेठा एलीआब और दूसरा अबीनादाब तीसरा शिमा। 13O 2 14 चौथा नतनेल और पांचवां रद्दै छठा ओसेम और सातवां दाऊद उत्पन्न हुआ। 13O 2 15 इनकी बहिनें सरूयाह ओर अबीगैल थीं। 13O 2 16 और सरूयाह के पुत्रा अबीशै, योआब और असाहेल ये तीन थे। 13O 2 17 और अबीगैल से अमासा उत्पन्न हुआ, और अमासा का पिता इश्माएली येतेर था। 13O 2 18 हेस्रोन के पुत्रा कालेब के अजूबा नाम एक स्त्री से, और यरीओत से, बेटे उत्पन्न हुए; और इसके पुत्रा ये हूए अर्थात् येशेर, शेबाब और अद न। 13O 2 19 जब अजूबा मर गई, सब कालेब ने एप्रात को ब्याह लिया; और जिससे हूर उत्पन्न हुआ। 13O 2 20 और हूर से ऊरी और ऊरी से बसलेल उत्पन्न हुआ। 13O 2 21 इसके बाद हेस्रोन गिलाद के पिता माकीर की बेटी के पास गया, जिसे उस ने तब ब्याह लिया, जब वह साठ वर्ष का था; और उस से सगूब उत्पन्न हुआ। 13O 2 22 और सगूब से याईर जन्मा, जिसके गिलाद देश में तेईस नगर थे। 13O 2 23 और गशूर और अराम ने याईर की बस्तियों को और गांवों समेत कनत को, उन से ले लिया; ये सब नगर मिलकर साठ थे। ये सब गिलाद के पिता माकीर के पुत्रा हुए। 13O 2 24 और जब हेस्रोन कालेबेप्राता में मर गया, तब उसकी अबिरयाह नाम स्त्री से अशहूर उत्पन्न हुआ जो तको का पिता हुआ। 13O 2 25 और हेस्रोन के जेठे यरह्येल के ये पुत्रा हुए : अर्थात् राम जो उसका जेठा था; और बूना, ओरेन, ओसेम और यहिरयाह। 13O 2 26 और यरह्येल की एक और पत्नी थी, जिसका नाम अतारा था; वह ओनाम की माता थी। 13O 2 27 और यरह्येल के जेठे राम के ये पुत्रा हुए, अर्थात् मास, यामीन और एकेर। 13O 2 28 और ओनाम के पुत्रा शम्मै और यादा हुए। और शम्मै के पुत्रा नादाब और अबीशूर हुए। 13O 2 29 और अबीशूर की पत्नी का नाम अबीहैल था, और उस से अहबान और मोलीद उत्पन्न हुए। 13O 2 30 और नादाब के पुत्रा सेलेद और अत्पैम हुए; सेलेद तो निेसन्तान मर गया। और अत्तैम का पुत्रा यिशी। 13O 2 31 और यिशी का पुत्रा शेशान और शेशान का पुत्रा : अहलै। 13O 2 32 फिर शम्मै के भाई यादा के पुत्रा : येतेर और योनातान हुए; येतेर तो निेसन्तान मर गया। 13O 2 33 यानातान के पुत्रा पेलेत और जाजा; यरह्येल के पुत्रा ये हुए। 13O 2 34 शेशान के तो बेटा न हुआ, केवल बेटियां हुई। शेशान के पास यर्हा नाम एक मिस्री दास था। 13O 2 35 और शेशान ने उसको अपनी बेटी ब्याह दी, और उस से अत्तै उत्पन्न हुआ। 13O 2 36 और अत्तै से नातान, नातान से जाबाद। 13O 2 37 जाबाद से एपलाल, एपलाल से ओबेद। 13O 2 38 ओबेद से येहू, येहू से अजर्याह। 13O 2 39 अजर्याह से हेलैस, हेलैस से एलासा। 13O 2 40 एलासा से सिस्मै, सिस्मै से शल्लूम। 13O 2 41 शल्लूम से यकम्याह और यकम्याह से एलीशामा उत्पन्न हुए। 13O 2 42 फिर यरह्येल के भाई कालेब के ये पुत्रा हुए : अर्थात् उसका जेठा मेशा जो जीप का पिता हुआ। और मारेशा का पुत्रा हेब्रोन भी उसी के वंश में हुआ। 13O 2 43 और हेब्रोन के पुत्रा कोरह, तप्पूह, रेकेम और शेमा। 13O 2 44 और शेमा से योर्काम का पिता रहम और रेकेम से शम्मै उत्पन्न हुआ था। 13O 2 45 और शम्मै का पुत्रा माओन हुआ; और माओन बेत्सूर का पिता हुआ। 13O 2 46 फिर एपा जो कालेब की रखेली थी, उस से हारान, मोसा और गाजेज उत्पन्न हुए; और हारान से गाजेज उत्पन्न हुआ। 13O 2 47 फिर याहदै के पुत्रा रेगेम, योताम, गेशान, पेलेत, एपा और शाप। 13O 2 48 और माका जो कालेब की रखेली थी, उस से शेबेर और तिर्हाना उत्पन्न हुए। 13O 2 49 फिर उस से मदमन्ना का पिता शाप और मकबेना और गिबा का पिता शबा उत्पन्न हुए। और कालेब की बेटी अकसा थी। कालेब के पुत्रा यें हुए। 13O 2 50 एप्राता के जेठे हूर का पुत्रा किर्यत्यारीम का पिता शोबाल। 13O 2 51 बेतलेहेम का पिता सल्मा और बेतगादेर का पिता हारेप। 13O 2 52 और किर्यत्यारीम के पिता शोबाल के वंश में हारोए आधे मनुहोतवासी, 13O 2 53 और किर्यत्यारीम के कुल अर्थात् यित्री, पूती, शूमाती और मिश्राई और इन से सोराई और एश्ताओली निकले। 13O 2 54 फिर सल्मा के वंश में बेतलेहेम और नतोपाई, अत्रोतबेत्योआब और आधे मानहती, सोरी। 13O 2 55 फिर याबेस में रहनेवाले लेखकों के कुल अर्थात् तिराती, शिमाती और सूकाती हुए। ये रेकाब के घराने के मूलपुरूष हम्मन के वंशवाले केनी हैं। 13O 3 1 दाऊद के पुत्रा जो हेब्रोन में उस से उत्पन्न हुए वे ये हैं : जेठा अम्नोन जो यिज्रेली अहीनोआम से, दूसरा दानिरयेल जो कर्मेली अबीगैल से उत्पन्न हुआ। 13O 3 2 तीसरा अबशालोम जो गशूर के राजा तल्मै की बेटी माका का मुत्रा था, चौथा ओदानिरयाह जो हरगीत का पुत्रा था। 13O 3 3 पांचवां शपत्याह जो अबीतल से, और छठवां यित्राम जो उसकी स्त्री एग्ला से उत्पन्न हुआ। 13O 3 4 दाऊद से हेब्रोन में छे पुत्रा उत्पन्न हुए, और वहां उस ने साढ़े सात वर्ष राज्य किया; और यरूशलेम में तैंतीस वर्ष राज्य किया। 13O 3 5 और यरूशलेम में उसके ये पुत्रा उत्पन्न हुए अर्थात् शिमा, शोबाब, तातान और सुलैमान, ये चारो अम्मीएल की बेटी बतशू से उत्पन्न हुए। 13O 3 6 और यिभार, एलीशामा एलीपेलेत। 13O 3 7 नेगाह, नेपेग, यापी। 13O 3 8 एलीशामा, एल्यादा और एलीमेलेत, ये नौ पुत्रा थे, ये सब दाऊद के पुत्रा थे। 13O 3 9 और इनको छोड़ रखेलियों के भी पुत्रा थे, और इनकी बहिन तामार थी। 13O 3 10 फिर सुलैमान का पुत्रा रहबाम उत्पन्न हुआ; रहबाम का अबिरयाह का आसा, आसा का यहोशापात। 13O 3 11 यहोशपात का योराम, योराम का अहज्याह, अहज्याह का योआश। 13O 3 12 योआश का अमस्याह, अमस्याह का अजर्याह, अजर्याह का योताम। 13O 3 13 योताम का आहाज, आहाज का हिजकिरयाह, हिजकिरयाह का मनश्शे। 13O 3 14 मनश्शे का आमोन, और आमोन का योशिरयाह पुत्रा हुआ। 13O 3 15 और योशिरयाह के पुत्रा उसका जेइ योहानान, दूसरा यहोयाकीम; तीसरा सिदकिरयाह, चौथा शल्लूम। 13O 3 16 और यहोयाकीम का पुत्रा यकोन्याह, इसका पुत्रा सिदकिरयाह। 13O 3 17 ओर यकोन्याह का पुत्रा अस्सीर, उसका पुत्रा शालतीएल। 13O 3 18 और मल्कीराम, पदायाह, शेनस्सर, यकम्याह, होशामा और नदब्याह। 13O 3 19 और पदायाह के पुत्रा जरूब्बाबेल और शिमी हुए; और जरूब्बाबेल के पुत्रा मशुल्लाम और हनन्याह, जिनकी बहीन शलोमीत थी। 13O 3 20 और हशूबा, ओहेल, बेरेक्याह, हसद्याह और यूशमेसेद, पांच। 13O 3 21 और हनन्याह के पुत्रा पलत्याह और यशायाह। और रपायाह के पुत्रा अर्नान के पुत्रा ओबद्याह के पुत्रा और शकन्याह के पुत्रा। 13O 3 22 और तकन्याह का पुत्रा शमायाह। और शमायाह के पुत्रा हत्तूश और यिगाल, बारीह, नार्याह और शपात, छे । 13O 3 23 और नार्याह के पुत्रा एल्योएनै, हिजकिरयाह और अज्रीकाम, तीन। 13O 3 24 और एल्योएनै के पुत्रा होदब्याह, एल्याशीब, पलायाह, अककूब, योहानान, दलायाह और अनानी, सात। 13O 4 1 यहूदा के पुत्रा : पेरेस, हेस्रोन, कम , हूर और शोबाल। 13O 4 2 और शोबाल के पुत्रा : रायाह से यहत और यहत से अहूमै और लहद उत्पन्न हुए, ये सोराई कुल हैं। 13O 4 3 और एताम के पिता के ये पुत्रा हुए : अर्थात् यिज्रेल, यिश्मा और यिद्वाश, जिनकी बहिन का नाम हस्सलेलपोनी था। 13O 4 4 और गदोर का पिता पनूएल, और रूशा का पिता एजेर। ये एप्राता के जेठे हूर के सन्तान हैं, जो बेतलेहेम का पिता हुआ। 13O 4 5 और तको के पिता अशहूर के हेबा और नारा नाम दो स्त्रियां थीं। 13O 4 6 और नारा से अहुज्जाम, हेपेर, तेमनी और हाहशतारी उत्पन्न हुए, नारा के ये ही पुत्रा, हुए। 13O 4 7 और हेला के पुत्रा, सेरेत, यिसहर और एम्नान। 13O 4 8 फिर कोस से आनूब और सोबेवा उत्पन्न हुए और उसेक वंश में हारून के पुत्रा अहर्हेल के कुल भी उत्पन्न हुए। 13O 4 9 और याबेस अपने भइयों से अधिक प्रतिष्ठित हुआ, और उसकी माता ने यह कहकर उसका नाम याबेस रखा, कि मैं ने इसे पीड़ित होकर उत्पन्न किया। 13O 4 10 और याबेस ने इस्राएल के परमेश्वर को यह कहकर पुकारा, कि भला होता, कि तू मुझे सचमुच आशीष देता, और मेरा देश बढाता, और तेरा हाथ मेरे साथ रहता, और तू मुझे बुराई से ऐसा बचा रखता कि मैं उस से पीड़ित त होता ! और जो कुछ उस ने मांगा, वह परमेश्वर ने उसे दिया। 13O 4 11 फिर शूहा के भाई कलूब से एशतोन का पिता महीर उत्पन्न हुआ। 13O 4 12 और एशतोन के वंश में रामा का घराना, और पासेह और ईर्नाहाश का पिता तहिन्ना उत्पन्न हुए, रेका के लोग ये ही हैं। 13O 4 13 और कनज के पुत्रा, ओत्नीएल और सरायाह, और ओत्नीएल का पुत्रा हतत। 13O 4 14 मोनोतै से ओप्रा और सरायाह से योआब जो गेहराशीम का पिता हुआ; वे कारीगर थे। 13O 4 15 और यपुन्ने के पुत्रा कालेब के पुत्रा एला और नाम, और एला के पुत्रा कनज। 13O 4 16 और यहल्लेल के पुत्रा, जीप, जीपा, तीरया और असरेल। 13O 4 17 और एज्रा के पुत्रा येतेर, मेरेद, एपेर और यालोन, और उसकी स्त्री से मिरर्याम, शम्मै और एशतमो का पिता यिशबह उत्पन्न हुए। 13O 4 18 और उसकी यहूदिन स्त्री से गदोर का पिता येरेद, सोको के पिता हेबेर और जानोह के पिता यकूतीएल उत्पन्न हुए, ये फ़िरोन की बेटी बित्या के पुत्रा थे जिसे मेरेद ने ब्याह लिया था। 13O 4 19 और होदिरयाह की स्त्री जो नहम की बहिन थी, उसके पुत्रा कीला का पिता एक गेरेमी और एशतमो का पिता एक माकाई। 13O 4 20 और शीमोन के पुत्रा अम्नोन, रिन्ना, बेन्हानान और तोलोन और यिशी के पुत्रा जोहेत और बेनजोहेत। 13O 4 21 यहूदा के पुत्रा शेला के पुत्रा लेका का पिता एर, मारेशा का पिता लादा और अशबे के घराने के कुल जिस में सन के कपड़े का काम होता था। 13O 4 22 और योकीम और कोजेबा के मनुष्य और योआश और साराप जो मोआब में प्रभुता करते थे और याशूब, लेहेम इनका वृत्तान्त प्राचीन है। 13O 4 23 ये कुम्हार थे, और नताईम और गदेरा में रहते थे जहां वे राजा का कामकाज करते हुए उसके पास रहते थे। 13O 4 24 शिमोन के पुत्रा नमूएल, यामीन, यारीब, जेरह और शाऊल। 13O 4 25 और शाऊल का पुत्रा शल्लूम, शल्लूम का पुत्रा मिबसाम और मिबसाम का मिश्मा हुआ। 13O 4 26 और मिश्मा का पुत्रा हम्मूएल, उसका पुत्रा जक्कूर, और उसका पुत्रा शिमी। 13O 4 27 शिमी के सोलह बेटे और छे बेटियां हुई परन्तु उसके भाइयों के बहुत बेटे न हुए; और उनका सारा कुल यहूदियों के बराबर न बढ़ा। 13O 4 28 वे बेर्शबा, मोलादा, हसर्शूआल। 13O 4 29 बिल्हा, एसेम, तोलाद। 13O 4 30 बतूएल, होर्मा, सिल्कग, 13O 4 31 बेतमर्काबोत, हसर्सूसीम, बेतबिरी और शारैम में बस गए; दाऊद के राजय के समय तक उनके ये ही नगर रहे। 13O 4 32 और उनके गांव एताम, ऐन, रिम्मोन, तोकेन और आशान नाम पांच नगर। 13O 4 33 और बाल तक जितने गांव इन नगरों के आसपास थे, उनके बसने के स्थान ये ही थे, और यह उनकी वंशावली हैं। 13O 4 34 फिर मशोबाब और यम्लेक और अपस्याह का पुत्रा योशा। 13O 4 35 और योएल और योशिब्याह का पुत्रा येहू, जो सरायाह का पोता, और असीएल का परमोता था। 13O 4 36 और एल्योएनै और याकोबा, यशोहायाह और असायाह और अदीएल और यसीमीएल और बनायाह। 13O 4 37 और शिपी का पुत्रा जीजा जो अल्लोन का पुत्रा, यह यदायाह का पुत्रा, यह शिम्री का पुत्रा, यह शमायाह का पुत्रा था। 13O 4 38 ये जिनके नाम लिखें हुए हैं, अपने अपने कुल में प्रधान थे; और उनके पितरों के घराने बहुत बढ़ गए। 13O 4 39 ये अपनी भेड़- बकरियों के लिये चराई ढूंढ़ने को गदोर की घाटी की तराई की पूर्व ओर तक गए। 13O 4 40 और उनको उत्तम से उत्तम चराई मिली, और देश लम्बा- चौड़ा, चैत और शांति का था; क्योंकि वहां के पहिले रहनेवाले हाम के वंश के थे। 13O 4 41 और जिनके नाम ऊपर लिखे हैं, उन्हों ने यहूदा के राजा हिजकिरयाह के दिनों में वहां आकर जो मूनी वहां मिले, उनको डेरों समेत मारकर ऐसा सत्यानाश कर डाला कि आह तक उनका पता नहीं है, और वे उनके स्थान में रहने लगे, क्योंकि वहां उनकी भेड़- बकरियों के लिये चराई थीं। 13O 4 42 और उन में से अर्थात् शिमोनियों में से पाच सौ पुरूष अपने ऊपर पलत्याह, नार्याह, रपायाह और उज्जीएल नाम यिशी के पुत्रों को अपने प्रधान ठहराया; 13O 4 43 तब वे सेईद पहाड़ को गए, और जो अमेलेकी बचकर रह गए थे उनको मारा, और आज के दिन तब वहां रहते हैं। 13O 5 1 इस्राएल का जेठा तो रूबेन था, परन्तु उस ने जो अपने पिता के बिछौने को अशुद्व किया, इस कारण जेठे का अधिकार इस्राएल के पुत्रा यूसुफ के पुत्रों को दिया गया। वंशावली जेठे के अधिकार के अनुसार नहीं ठहरी। 13O 5 2 क्योकि यहूदा अपने भइयों पर प्रबल हो गया, और प्रधान उसके वंश से हुआ परन्तु जेठे का अधिकार यूसुफ का था। 13O 5 3 इस्राएल के जेठे पुत्रा रूबेन के पुत्रा ये हुए, अर्थात् हनोक, पल्लू, हेस्रोन और कम । 13O 5 4 और योएल के पुत्रा शमायाह, शमायाह का गोग, गोग का शिमी। 13O 5 5 शिमी का मीका, मीका का रायाह, रायाह का बाल। 13O 5 6 और बाल का पुत्रा बेरा, इसको अश्शूर का राजा तिलगतपिलनेसेर बन्धुआई में ले गया; और वह रूबेनियो का प्रधान था। 13O 5 7 और उसके भाइयों की चंशवली के लिखते यमय वे अपने अपने कुल के अनुसार ये ठहरे, अर्थात् मुख्य तो यीएल, फिर जकर्याह। 13O 5 8 और अजाज का पुत्रा बेला जो शेमा का पोता और योएल का परपोता था, वह अरोएर में और नबो और बाल्मोन तक रहता था। 13O 5 9 और पूर्व ओर वह उस जंगल के सिवाने तक रहा जो परात महानद तक महुंचाता है, क्योंकि उनके पशु गिलाद देश में बढ़ गए थे। 13O 5 10 और शऊल के दिनों में उन्हों ने हग्रियों से युठ्ठ किया, और हग्री उनके हाथ से मारे गए; तब वे गिलाद की सारी पूरबी अलंग में अपने डेरों में रहने लगे। 13O 5 11 गादी उनके साम्हने सल्का तक बाशान देश में रहते थे। 13O 5 12 अर्थात् मुख्य तो योएल और दूसरा शापाम फिर यानै और शापात, ये बाशान में रहते थे। 13O 5 13 और उनके भाई अपने अपने पितरों के घरानों के अनुसार मीकाएल, मशुल्लाम, शेबा, योरै, याकान, जी और एबेर, सात थे। 13O 5 14 ये अबीहैल के पुत्रा थे, जो हूरी का पुत्रा था, यह योराह का पुत्रा, यह गिलाद का पुत्रा, यह मिकाएल का पुत्रा, यह यशीशै का पुत्रा, यह यहदो का पुत्रा, यह बूज का पुत्रा था। 13O 5 15 इनके पितरों के घरानों का मुख्य पूरूष अब्दीएल का पुत्रा, और गूनी का पोता अही था। 13O 5 16 ये लोग बाशान में, गिलाद और उसके गांवों में, और शारोन की सब चराइयों में उसकी परली ओर तक रहते थे। 13O 5 17 इन सभों की वंशावली यहूदा के राजा योनातन के दिनों और इस्राएल के राजा यारोबाम के दिनों में लिखी गई। 13O 5 18 रूबेनियों, गादियों और मनश्शें के आधे गोत्रा के योठ्ठा जो ढाल बान्धने, तलवार चलाने, और धनुष के तीर छोड़ने के योग्य और युठ्ठ करना सीखे हुए थे, वे चौवालीस हजार सात सौ साठ थे, जो युठ्ठ में जाने के योग्य थे। 13O 5 19 इन्हों ने हग्रियों और यतूर नापीश और नोदाब से युठ्ठ किया था। 13O 5 20 उनके विरूद्ध इनको सहायता मिली, और अग्री उन सब समेत जो उनके साथ थे उनके हाथ में कर दिए गए, क्योंकि युठ्ठ में इन्हों ने परमेश्वर की दोहाई दी थी और उस ने उनकी बिनती इस कारण सुनी, कि इन्हों ने उस पर भरोसा रखा था। 13O 5 21 और इन्हों ने उनके पशु हर लिए, अर्थात् ऊंट तो पचास हजार, भेड़- बकरी अढ़ाई लाख, गदहे दो हजार, और मनुष्य एक लाख बन्धुए करके ले गए। 13O 5 22 और बहुत से मरे पड़े थे क्योंकि वह लड़ाई परमेश्वर की ओर से हुई। और ये उनके स्थान में बन्शुआई के समय तक बसे रहे। 13O 5 23 फिर मनश्शे के आधे गोत्रा की सन्तान उस देश में बसे, और वे बाशान से ले बाल्हेम न, और सनीर और हेम न पर्वत तक फैल गए। 13O 5 24 और उनके पितरों के घरानों के मुख्य पुरूष ये थे, अर्थात् एपेर, यिशी, एलीएल, अज्रीएल, यिर्मयाह, होदरयाह और यहदीएल, ये बड़े वीर और नामी और अपने पितरों के घरानों के मुख्य पुरूष थे। 13O 5 25 और उन्हों ने अपने पितरों के परमेश्वर से विश्वासघात किया, और उस देश के लोग जिनको परमेश्वर ने उनके साम्हने से विनाश किया था, उनके देवताओं के पीछे रयभिचारिन की नाई हो लिए। 13O 5 26 इसलिये इस्राएल के परमेश्वर ने अश्शूर के राजा पूल और अश्शूर के राजा तिलगत्पिलनेसेर का मन उभारा, और इन्हों ने उन्हें अर्थात् रूबेनियों, गादियों और मनश्शे के आधे गोत्रा के लोगों को बन्धुआ करके हलह, हाबोर और हारा और गोजान नदी के पास पहुंचा दिया; और वे आज के दिन तक वहीं रहते हैं। 13O 6 1 लेवी के पुत्रा गेश न, कहात और मरारी। 13O 6 2 और कहात के पुत्रा, अम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल। 13O 6 3 और अम्राम की सन्तान हारून, मूसा और मरियंम, और हारून के पुत्रा, नादाब, अबीहू, एलीआज़र और ईतामार। 13O 6 4 एलीआज़र से पीनहास, पीनहास से अबीशू। 13O 6 5 अबीशू से बुक्की, बुक्की से उज्जी। 13O 6 6 उज्जी से जरह्माह, जरह्माह से मरायोत। 13O 6 7 मरायोत से अमर्याह, अमर्याह से अहीतूब। 13O 6 8 अहीतूब से सादोक, सादोक से अहीमास। 13O 6 9 अहीमास से अजर्याह, अजर्याह से योहानान। 13O 6 10 और योहानान से अजर्याह, उत्पन्न हुआ ( जो सुलैमान के यरूशलेम में बनाए हुए भवन में याजक का काम करता था ) 13O 6 11 फिर अजर्याह से अमर्याह, अमर्याह से यहीतूब। 13O 6 12 यहीतूब से सादोक, सादोक से शल्लूम। 13O 6 13 शल्लूम से हिलकिरयाह, हिलकिरयाह से अजर्याह। 13O 6 14 अजर्याह से सरायाह, और सरायाह से यहोसादाक उत्पन्न हुआ। 13O 6 15 और जब यहोवा, यहूदा और यरूशलेम को नबूकदनेस्सर के द्वारा बन्धुआ करके ले गया, तब यहोसादाक भी बन्धुआ होकर गया। 13O 6 16 लेवी के पुत्रा गेश म, कहात और मरारी। 13O 6 17 और गेश म के पुत्रों के नाम ये थे, अर्थात् लिब्नी और शिमी। 13O 6 18 और कहात के पुत्रा अम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल। 13O 6 19 और मरारी के पुत्रा महली और मूशी और अपने अपने पितरों के घरानों के अनुसार लेवियों के कुल ये हुए। 13O 6 20 अर्थात्, गेश न का पुत्रा लिब्नी हुआ, लिब्नी का यहत, यहत का जिम्मा। 13O 6 21 जिम्मा का योआह, योआह का इद्दॊ, इद्दॊ का जेरह, और जेरह का पुत्रा यातरै हुआ। 13O 6 22 फिर कहात का पुत्रा अम्मीनादाब हुआ, अम्मीनादाब का कोरह, कोरह का अस्सीर। 13O 6 23 अस्सीर का एल्काना, एल्काना का एब्यासाप, एब्यासाप का अस्सीर। 13O 6 24 अस्सीर का तहत, तहत का ऊरीएल, ऊरीएल का उज्जिरयाह और उज्जिरयाह का पुत्रा शाऊल हुआ। 13O 6 25 फिर एल्काना के पुत्रा अमासै और अहीमोत। 13O 6 26 एल्काना का पुत्रा सोपै, सोपै का नहत। 13O 6 27 नहत का एलीआब, एलीआब का यरोहाम, और यरोहाम का पुत्रा एल्काना हुआ। 13O 6 28 और शमूएल के पुत्रा, उसका जेठा योएल और दूसरा अबिरयाह हुआ। 13O 6 29 फिर मरारी का पुत्रा महली, महली का लिब्नी, लिब्नी का शिमी, शिमी का उज्जा। 13O 6 30 उज्जा का शिमा; शिमा का हग्गिरयाह और हग्गिरयाह का पुत्रा असायाह हुआ। 13O 6 31 फिर जिनको दाऊद ने सन्दूक के ठिकाना पाने के बाद यहोवा के भवन में गाने के अधिकारी ठहरा दियया वे ये हैं। 13O 6 32 जब तब सुलैमान यरूशलेम में यहोवा के भवन को बनवा न चुका, तब तक वे मिलापवाले तम्बू के निवास के साम्हने गाने के द्वारा सेवा करते थे; और इस सेवा में नियम के अनुसार उपस्थित हुआ करते थे। 13O 6 33 जो अपने अपने पुत्रों समेत उपस्थित हुआ करते थे वे ये हैं, अर्थात् कहातियों में से हेमान गवैया जो योएल का पुत्रा था, और योएल शमुएल का। 13O 6 34 शमूएल एल्काना का, एल्काना यरोहाम का, यरोहाम एलीएल का, एलीएल तोह का। 13O 6 35 तोह सूप का, सूप एल्काना का, एल्काना महत का, महत अमासै का। 13O 6 36 अमासै एल्काना का, एल्काना योएल का, योएल अजर्याह का, अजर्याह सपन्याह का। 13O 6 37 समन्याह तहत का, तहत अस्सीर का, अस्सीर एब्यासाप का, एटयासाप कोरह का। 13O 6 38 कोरह यिसहार का, यिसहार कहात का, कहात लेवी का और लेवी इस्राएल का पुत्रा था। 13O 6 39 और उसका भाई असाप जो उसके दाहिने खड़ा हुआ करता था वह बेरेक्याह का पुत्रा था, और बेरेक्याह शिमा का। 13O 6 40 शिमा मीकाएल का, मीकाएल बासेयाह का, बासेयाह मल्मिरयाह का। 13O 6 41 मल्किरयाह एत्नी का, एत्नी जेरह का, जेरह अदायाह का। 13O 6 42 अदायाह एतान का, एतान जिम्मा का, जिम्मा शिमी का। 13O 6 43 शिमी यहत का, यहत गेश म का, गेश म लेवी का पुत्रा था। 13O 6 44 और बाई ओर उनके भाई मरारी खड़े होते थे, अर्थात् एताव जो कीशी का पुत्रा था, और कीशी अब्दी का, अब्दी मल्लूक का। 13O 6 45 मल्लूक हशब्याह का, हशब्याह अमस्याह का, अमस्याह हिलकिरयाह का। 13O 6 46 हिलकिरयाह अमसी का, अमसी बानी का, बानी शेमेर का। 13O 6 47 शेमेर महली का, महली मूशी का, मूशी मरारी का, और मरारी लेवी का पुत्रा था। 13O 6 48 और इनके भाई जो लेवीय थे वह परमेश्वर के भवन के निवास की सब प्रकार की सेवा के लिये अर्पण किए हुए थे। 13O 6 49 परन्तु हारून और उसके पुत्रा होपबलि की वेदी, और धूप की वेदी दोनों पर बलिदान चढ़ाते, और परम पवित्रास्थान का सब काम करते, और इस्राएलियों के लिये प्रायश्चित करते थे, जैसे कि परमेश्वर के दास मूसा ने आज्ञाएं दी थीं। 13O 6 50 और हारून के वंश में ये हुए, अर्थात् उसका पुत्रा एलीआजर हुआ, और एलीआजर का पीनहास, पीनहास का अबीशू। 13O 6 51 अबीशू का बुक्की, बुक्की का उज्जी, उज्जी का जरह्माह। 13O 6 52 जरह्माह का मरायोत, मरायोत का अमर्याह, अमर्याह का अहीतूब। 13O 6 53 अहीतूब का सादोक और सादोक का अहीमास पुत्रा हुआ। 13O 6 54 और उनके भागों में उनकी छावनियों के अनुसार उनकी बस्तियां ये हैं, अर्थात् कहात के कुलों में से पहिली चिट्ठी जो हारून की सन्तान के नाम पर निकली। 13O 6 55 अर्थात् चारों ओर की चराइयों समेत यहूदा देश का हेब्रोन उन्हें मिला। 13O 6 56 परन्तु उस नगर के खेत और गांव यपुन्ने के पुत्रा कालेब को दिए गए। 13O 6 57 और हारून की सन्तान को शरणनगर हेब्रोन, और चराइयों समेत लिब्ना, 13O 6 58 और यत्तीर और अपनी अपनी चराइयों समेत एशतमो। हीलेन, दबीर। 13O 6 59 आशान और बेतशेमेश। 13O 6 60 और बिन्यामीन के गोत्रा में से अपनी अपनी चराइयों समेत गेबा, अल्लेमेत और अनातोत दिए गए। उनके घरानों के सब नगर तेरह थे। 13O 6 61 और शेष कहातियों के गोत्रा के कुल, अर्थात् मनश्शे के आधे गोत्रा में से चिट्ठी डालकर दस नगर दिए गए। 13O 6 62 और गेश मियों के कुलों के अनुसार उन्हें इस्साकार, आशेर और नप्ताली के गोत्रा, और बाशान में रहनेवाले मनश्शे के गोत्रा में से तेरह नगर मिले। 13O 6 63 मरारियों के कुलों के अनुसार उन्हें रूबेन, गाद और जबूलून के गोत्रों में से चिट्ठी डालकर बारह नगर दिए गए। 13O 6 64 और इस्राएलियों ने लेवियों को ये नगर चराइयों समेत दिए। 13O 6 65 और उन्हों ने यहूदियों, शिमोनियों और बिन्यामीनियों के गोत्रों में से वे नगर दिए, जिनके नाम ऊपर दिए गए हैं। 13O 6 66 और कहातियों के कई कुलों को उनके भाग के नगर एप्रैम के गोत्रा में से मिले। 13O 6 67 सो उनको अपनी अपनी चराइयों समेत एप्रैम के पहाड़ी देश का शकेम जो शरण नगर था, फिर गेजेर। 13O 6 68 योकमाम, बेथेरोन। 13O 6 69 अरयालोन और गत्रिम्मोन। 13O 6 70 और मनश्शे के आधे गोत्रा में से अपनी अपनी चराइयों समेत आनेर और बिलाम शेष कहातियों के कुल को मिले। 13O 6 71 फिर गेश मियों को मनश्शे के आधे गोत्रा के कुल में से तो अपनी अपनी चराइयों समेत बाशान का गोलान और अशतारोत। 13O 6 72 और इस्साकार के गोत्रा में से अपनी अपनी चराइयों समेत केदेश, दाबरात। 13O 6 73 रामोत और आनेम, 13O 6 74 और आशेर के गोत्रा में से अपनी अपनी चराइयों समेत माशाल, अब्दोन। 13O 6 75 हूकोक और रहोब। 13O 6 76 और नप्ताली के गोत्रा में से अपनी अपनी चराइयों समेत गालील का केदेश हम्मोन और किर्यातैम मिले। 13O 6 77 फिर शेष लेवियों अर्थात् मरारियों को जबूलून के गोत्रा में से तो अपनी अपनी चराइयों समेत शिम्मोन और ताबोर। 13O 6 78 और यरीहो के पास की यरदन नदी की पूर्व और रूबेन के गोत्रा में से तो अपनी अपनी चराइयों समेत जंगल का बेसेर, यहसा। 13O 6 79 कदेमोत और मेपाता। 13O 6 80 और गाद के गोत्रा में से अपनी अपनी चराइयों समेत गिलाद का रामोत महनैम, 13O 6 81 हेशोबोन और याजेर दिए गए। 13O 7 1 इस्साकार के पुत्रा तोला, पूआ, याशूब और शिम्रोन, चार थे। 13O 7 2 और तोला के पुत्रा उज्जी, रपायाह, यरीएल, यहमै, यिबसाम और शमूएल, ये अपते अपते पितरों के घरानों अर्थात् तोला की सन्तान के मुख्य पुरूष और बड़े वीर थे, और दाऊद के दिनों में उनके वंश की गिनती बाईस हजार छे सौ थी। 13O 7 3 और उज्जी का पुत्रा यिज्रह्माह, और यिज्रह्माह के पुत्रा मीकाएल, ओबद्याह, योएल और यिश्शिरयह पांच थे; ये सब मुख्य पुरूष थे। 13O 7 4 और उनके साथ उनकी वंशावलियों और पितरों के घरानों के अनुसार सेना के दलों के छत्तीस हजार योठ्ठा थे; क्योंकि उनके बहुत स्त्रियां और पुत्रा थे। 13O 7 5 और उनके भाई जो इस्साकार के सब कुलों में से थे, वे सत्तासी हजार बड़े वीर थे, जो अपनी अपनी वंशावली के अनुसार गिने गए। 13O 7 6 बिन्यामीन के पुत्रा बेला, बेकेर और यदीएल ये तीन थे। 13O 7 7 बेला के पुत्रा : एसबोन, उज्जी, उज्जीएल, यरीमोत और ईरी ये पांच थे। ये अपने अपने पितरों के घरातों के मुख्य पुरूष और बड़े वीर थे, और अपनी अपनी वंशाबली के अनुसार उनकी गिनती बाईस हजार चौंतीस थी। 13O 7 8 और बेकेर के पुत्रा : जमीरा, योआश, बलीएजेर, एल्योएनै, ओम्री, यरेमोत, अबिरयाह, अनातोत और आलेमेत ये सब बेकेर के पुत्रा थे। 13O 7 9 ये जो अपने अपने पितरों के घरानों के मुख्य पुरूष और बड़े वीर थे, इनके वंश की गिनती अपनी अपनी वंशावली के अनुसार बीस हजार दो सौ थी। 13O 7 10 और यदीएल का पुत्रा बिल्हान, और बिल्हान के पुत्रा, यूश, बिन्यामीन, एहूद, कनाना, जेतान, तश श और अहीशहर थे। 13O 7 11 ये सब जो यदीएल की सन्तान और अपने अपने पितरों के घरानों में मुख्य पुरूष और बड़े वीर थे, इनके वंश से सेना में युठ्ठ करने के याग्य सत्राह हजार दो सौ पुरूष थे। 13O 7 12 और ईर के पुत्रा शुप्पीम और हुप्पीम और अहेर के पुत्रा हूशी थे। 13O 7 13 नप्ताली के पुत्रा, एहसीएल, गूनी, येसेर और शल्लूम थे, ये बिल्हा के पोते थे। 13O 7 14 मनश्शे के पुत्रा, अस्रीएल जो उसकी अरामी रखेली स्त्री से उत्पन्न हुआ था; और उस अरामी स्त्री ने गिलाद के पिता माकीर को भी जन्म दिया। 13O 7 15 और माकीर ( जसकी बहिन का नाम माका था ) उस ने हुप्पीम और शुप्पीम के लिये स्त्रियां ब्याह लीं, और दूसरे का नाम सलोफाद था, और सलोफाद के बेटियां हुई। 13O 7 16 फिर माकीर की स्त्री माका के एक पुत्रा उत्पन्न हुआ और उसका नाम पेरेश रखा; और उसके भाई का नाम शेरेश था; और इसके पुत्रा ऊलाम और राकेम थे। 13O 7 17 और ऊलाम का पुत्रा बदान। ये गिलाद की सन्तान थे जो माकीर का पुत्रा और मनश्शे का पोता था। 13O 7 18 फिर उसकी बहिन हम्मोलेकेत ने ईशहोद, अबीएजेर और महला को जन्म दिया। 13O 7 19 और शमीदा के पुत्रा अह्मान, शेकेम, लिखी और अनीआम थे। 13O 7 20 और एप्रैम के पुत्रा शूतेलह और शूतेलह का बेरेद, बेरेद का तहत, तहत का एलादा, एलादा का तहत। 13O 7 21 तहत का जाबाद और जाबाद का पुत्रा शूतेलह हुआ, और येजेर और एलाद भी जिन्हें गत के मनुष्यों ने जो उस देश में उत्पन्न हुए थे इसलिये घात किया, कि वे उनके पशु हर लेने को उतर आए थे। 13O 7 22 सो उनका पिता एप्रैम उनके लिये बहुत दिन शोक करता रहा, और उसके भाई उसे शांति देने को आए। 13O 7 23 और वह अपनी पत्नी के पास गया, और उस ने गर्भवती होकर एक पुत्रा को जन्म दिया और बप्रैम ने उसका नाम इस कारण बरीआ रखा, कि उसके घराने में विपत्ति पड़ी थी। 13O 7 24 (और उसकी पुत्री शेरा थी, जिस ने निचले और ऊपरवाले दोनों बेथोरान नाम नगरों को और उज्जेनशेरा को दृढ कराया। ) 13O 7 25 और उसका पुत्रा रेपा था, और रेशेप भी, और उसका पुत्रा तेलह, तेलह का तहन, तहन का लादान, 13O 7 26 लादान का अम्मीहूद, अम्मीहूद का एलीशामा। 13O 7 27 एलीशमा का नून, और नून का पुत्रा यहोशू था। 13O 7 28 और उनकी निज भूमि और बस्तियां गांवों समेत बेतेल और पूर्व की ओर नारान और पश्चिम की ओर गांवों समेत गेजेर, फिर गांवों समेत शकेम, और गांवों समेत अज्जा थीं। 13O 7 29 और मनश्शेइयों के सिवाने के पास अपने अपने गांवों समेत बेतशान, तानाक, मगिद्दॊ और दोर। इन में इस्राएल के पुत्रा युसुफ की सन्तान के लोग रहते थे। 13O 7 30 आशेर के पुत्रा, यिम्ना, यिश्वा, यिश्वी और बरीआ, और उनकी बहिन सेरह हुई। 13O 7 31 और बरीआ के पुत्रा, हेबेर और मल्कीएल और यह बिज त का पिता हुआ। 13O 7 32 और हेबेर ने यपलेत, शोमेर, होताम और उनकी बहिन शूआ को जन्म दिया। 13O 7 33 और यपलेत के पुत्रा पासक बिम्हाल और अश्वात। यपलेत के ये ही पुत्रा थे। 13O 7 34 और शेमेर के पुत्रा, अही, रोहगा, यहुब्बा और अराम थे। 13O 7 35 और उसके भाई हेलेम के पुत्रा सोपह, यिम्ना, शेलेश और आमाल थे। 13O 7 36 और सोपह के पुत्रा, सूह, हर्नेपेर, शूआल, वेरी, इम्रा। 13O 7 37 बेसेर, होद, शम्मा, शिलसा, यित्रान और बेरा थे।। 13O 7 38 और येतेर के पुत्रा, यपुन्ने, पिस्पा और अरा। 13O 7 39 और उल्ला के पुत्रा, आरह, हन्नीएल और रिस्या। 13O 7 40 ये सब आशेर के वुश में हुए, और अपने अपने पितरों के घरानों में मुख्य पुरूष और बड़े से बड़े वीर थे और प्रधानों में मुख्य थे। और ये जो अपनी अपनी वंशावली के अनुसार सेना में युठ्ठ करने के लिये गिने गए, इनकी गिनती छब्बीस हजार थी। 13O 8 1 बिन्यामीन से उसका जेठा बेला, दूसरा अशबेल, तीसरा अहृह, 13O 8 2 चौथा नोहा और पांचवां रापा उत्पन्न हुआ। 13O 8 3 और बेला के पुत्रा, अस्रार, गेरा, अबीहूद। 13O 8 4 अबीशू, नामान, अहोह, 13O 8 5 गेरा, शपूपान और हूराम थे। 13O 8 6 और एहूद के पुत्रा ये हुए ( गेबा के निवासियों के पितरों के घरानों में मुख्य पुरूष ये थे, जिन्हें बन्धुआई में मानहत को ले गए थे ) । 13O 8 7 और नामान, अहिरयाह और गेरा ( इन्हें भी बन्धुआ करके मानहत को ले गए थे ), और उस ने उज्जा और अहिलूद को जन्म दिया। 13O 8 8 और शहरैम से हशीम और बारा नाम अपनी स्त्रियों को छोड़ देने के बाद मोआब देश में लड़के उत्पन्न हुए। 13O 8 9 और उसकी अपनी स्त्री होदेश से योआब, सिब्या, मेशा, मल्काम, यूस, सोक्या, 13O 8 10 और मिर्मा उत्पन्न हुए उसके ये पुत्रा अपने अपने पितरों के घरानों में मुख्य पुरूष थे। 13O 8 11 और हूशीम से अबीतूब और एल्पाल का जन्म हुआ। 13O 8 12 एल्पाल के पुत्रा एबेर, मिशाम और शेमेर, इसी ने ओनो और गांवों समेत लोद को बसाया। 13O 8 13 फिर वरीआ और शेमा जो अरयालोन के निवासियों के पितरों के घरानों में मुख्य पुरूष थे, और जिन्हों ने गत के निवासियों को भगा दिया। 13O 8 14 और अह्मो, हासक, यरमोत। 13O 8 15 जबद्याह, अराद, एदेर। 13O 8 16 मीकाएल, यिस्पा, योहा, जो बीआ के पुत्रा थे। 13O 8 17 जबद्याह, मशुल्लाम, हिजकी, हेबर। 13O 8 18 यिशमरै, यिजलीआ, योबाब, जो एल्पाल के पुत्रा थे। 13O 8 19 और याकीम, जिक्री, जब्दी। 13O 8 20 एलीएनै, सिल्लतै, एलीएल। 13O 8 21 अदायाह, बरायाह और शिम्रात जो शिमी के पुत्रा थे। 13O 8 22 और यिशपान, यबेर, एलीएल। 13O 8 23 अब्दोन, जिक्री,हानान। 13O 8 24 हनन्याह, एलाम, अन्तोतिरयाह। 13O 8 25 यिपदयाह और पनूएल जो शाशक के पुत्रा थे। 13O 8 26 और शमशरै, शहर्याह, अतल्याह। 13O 8 27 योरेश्याह, एलिरयाह और जिक्र जो यरोहाम के पुत्रा थे। 13O 8 28 ये अपनी अपनी पीढ़ी में अपने अपने पितरों के घरानों में मुख्य पुरूष और प्रधान थे, ये यरूशलेम में रहते थे। 13O 8 29 और गिबोन में गिबोन का पिता रहता था, जिसकी पत्नी का ताम माका था। 13O 8 30 और उसका जेठा पुत्रा अब्दोन था, फिर शूर, कीश, बाल, नादाब। 13O 8 31 गदोर; अह्मो और जेकेर हुए। 13O 8 32 और मिकोत से शिमा उत्पन्न हुआ। और ये भी अपने भइयों के साम्हने यरूशलेम में रहते थे, अपने भाइयों ही के साथ। 13O 8 33 और नेर से कीश उत्पन्न हुआ, कीश से शाऊल, और शाऊल से योनातान, मलकीश, अबीनादाब, और एशबाल उत्पन्न हुआ। 13O 8 34 और योनातन का पुत्रा मरीब्बाल हुआ, और मरीब्बाल से मीका उत्पन्न हुआ। 13O 8 35 और मीका के पुत्रा पीतोन, मेलेक, तारे और आहाज। 13O 8 36 और आहाज से यहोअस्रा उत्पन्न हुआ। और यहोअस्रा से आलेमेत, अजमावेत और जिम्री; और जिम्री से मोसा। 13O 8 37 मोसा से बिना उत्पन्न हुआ। और इसका पुत्रा रापा हुआ, रापा का एलासा और एलासा का पुत्रा आसेल हुआ। 13O 8 38 और आसेल के छे पुत्रा हुए जिनके ये नाम थे, अर्थात् अज्रीकाम, बोकरू, यिश्माएल, शार्याह, ओबद्याह, और हानान। ये ही सब आसेल के पुत्रा थे। 13O 8 39 ओर उसके भाई एशेक के ये पुत्रा हुए, अर्थात् उसका जेठा ऊलाम, दूसरा यूशा, तीसरा एलीपेलेत। 13O 8 40 और ऊलाम के पुत्रा शूरवीर और धनुर्धारी हुए, और उनके बहुत बेटे- पोते अर्थात् डेढ़ सौ हुए। ये ही सब बिन्यामीन के वंश के थे। 13O 9 1 इस प्रकार सब इस्राएली अपनी अपनी वंशावली के अनुसार, जो इस्राएल के राजाओं के वृत्तान्त की पुस्तक में लिखी हैं, गिने गए। और यहूदी अपने विश्वासघात के कारण बन्धुआई में बाबुल को पहुंचाए गए। 13O 9 2 जो लोग अपनी अपनी निज भूमि अर्थात् अपने नगरों में रहते थे, वह इस्राएली, याजक, लेवीय और नतीन थे। 13O 9 3 और यरूशलेम में कुछ यहूदी; कुछ बिन्यामीन, और कुछ एप्रैमी, और मनश्शेई, रहते थे : 13O 9 4 अर्थात् यहूदा के पुत्रा पेरेस के वंश में से अम्मीहूद का पुत्रा ऊतै, जो ओम्री का पुत्रा, और इम्री का पोता, और बानी का परपोता था। 13O 9 5 और शीलोइयों में से उसका जेठा पुत्रा असायाह और उसके पुत्रा। 13O 9 6 और जेरह के वंश में से यूएल, और इनके भई, ये छे सौ नब्बे हुए। 13O 9 7 फिर बिन्यामीन के वंश में से सल्लू जो मशुल्लाम का पुत्रा, होदरयाह का पोता, और हस्सनूआ का परपोता था। 13O 9 8 और यिब्रिरयाह जो यरोहाम का पुत्रा था, एला जो उज्जी का पुत्रा, और मिक्री का पोता था, और मशुल्लाम जो शपत्याह का पुत्रा, रूएल का पोता, और यिब्निरयाह का परपोता था; 13O 9 9 और इनके भाई जो अपनी अपनी वंशावली के अनुसार मिलकर नौ सौ छप्पन। ये सब पुरूष अपने अपने पितरों के घरानों के अनुसार पितरों के घरानों में मुख्य थे। 13O 9 10 और याजकों में से यदायाह, यहोयारीब और याकीन, 13O 9 11 और अजर्याह जो परमेश्वर के भवन का प्रधान और हिलकिरयाह का पुत्रा था, यह पशुल्लाम का पुत्रा, यह सादोक का पुत्रा, यह मरायोत का पुत्रा, यह अहीतूब का पुत्रा था। 13O 9 12 और अदायाह जो यरोहाम का पुत्रा था, यह पशहूर का पुत्रा, यह मल्कियाह का पुत्रा, यह मासै का पुत्रा, यह अदोएल का पुत्रा, यह जेरा का पुत्रा, यह पशुल्लाम का पुत्रा, यह मशिल्लीत का पुत्रा, यह इम्मेर का पुत्रा था। 13O 9 13 और उनके भाई थे, जो अपने अपने पितरों के घरानों में सत्राह सौ साठ मुख्य पुरूष थे, वे परमेश्वर के भवन की सेवा के काम में बहुत निपुण पुरूष थे। 13O 9 14 फिर लेवियों में से मरारी के वंश में से शमायाह जो हश्शूव का पुत्रा, अज्रीकाम का पोता, और हशरयाह का परपोता था। 13O 9 15 और बकबक्कर, हेरेश और गालाल और आसाप के वंश में से मत्तन्याह जो मीका का पुत्रा, और जिक्री का पोता था। 13O 9 16 और ओबद्याह जो शमायाह का पुत्रा, गालाल का पोता और यदूतून का परपोता था, और बेरेक्याह जो आसा का पुत्रा, और एल्काना का पोता था, जो नतोपाइयों के गांवों में रहता था। 13O 9 17 ओर द्वारपालों में से अपने अपने भइयों सहित शल्लूम, अक्कूब, तल्मोन और अहीमान, उन में से मुख्य तो शल्लूम था। 13O 9 18 और वह अब तक पूर्व ओर राजा के फाटक के पास द्वारपाली करता था। लेवियों की छावनी के द्वारपाल ये ही थे। 13O 9 19 और शल्लूम जो कोरे का पुत्रा, एब्यासाप का पोता, और कोरह का परपोता था, और उसके भाई जो उसके मूलपुरूष के घराने के अर्थात् कोरही थे, वह इस काम के अधिकारी थे, कि वे तम्बू के द्वारपाल हों। उनके पुरखा तो यहोवा की छावनी के अधिकारी, और पैठाव के रवावाले थे। 13O 9 20 और अगले समय में एलीआज़र का पुत्रा पीनहास जिसके संग यहोवा रहता था वह उनका प्रधान था। 13O 9 21 मेशेलेम्याह का पुत्रा जकर्याह मिलापवाले तम्बू का द्वारपाल था। 13O 9 22 ये सब जो द्वारपाल होने को चुने गए, वह दो सौ बारह थे। ये जिनके पुरखाओं को दाऊद और शमूएल दश ने विश्वासयोग्य जानकर ठहराया था, वह अपने अपने गांव में अपनी अपनी वंशावली के अनुसार गिने गए। 13O 9 23 सो वे और उनकी सन्तान यहोवा के भवन अर्थात् तम्बू के भवन के फाटकों का अधिकार बारी बारी रखते थे। 13O 9 24 द्वारपाल पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्खिन, चारों दिशा की ओर चौकी देते थे। 13O 9 25 ओर उनके भाई जो गांवों में रहते थे, उनको सात सात दिन के बाद बारी बारी से उनके संग रहने के लिये आना पड़ता था। 13O 9 26 क्योंकि चारों प्रधान द्वारपाल जो लेवीय थे, वे विश्वासयोग्य जानकर परमेश्वर के भवन की कोठरियों और भण्डारों के अधिकारी ठहराए गए थे। 13O 9 27 और वे परमेश्वर के भवन के आसपास इसलिये रात बिताते थे, कि उसकी रक्षा उन्हें सौंपी गई थी, और भोर- भोर को उसे खोलना उन्हीं का काम था। 13O 9 28 और उन में से कुछ उपासना के पात्रों के अधिकारी थे, क्योंकि ये गिनकर भीतर पहुंचाए, और गिनकर बाहर तिकाले भी जाते थे। 13O 9 29 और उन में से कुछ सामान के, और पवित्रास्थान के पात्रों के, और मैदे, दाखमधु, तेल, लोबान और सुगन्धद्ररयों के अधिकारी ठहराए गए थे। 13O 9 30 और याजकों के पुत्रों में से कुछ सुगन्धद्ररयों में गंधी का काम करते थे। 13O 9 31 और मतित्याह नाम एक लेवीय जो कोरही शल्लूम का जेठा था उसे बिश्वासयोग्य जानकर तवों पर बनाई हुई वस्तुओं का अधिकारी नियुक्त किया था। 13O 9 32 और उसके भइयों अर्थात कहातियों में से कुछ तो भंटवाली रोटी के अधिकारी थे, कि हर एक विश्रामदिन को उसे तैयार किया करें। 13O 9 33 और ये गवैये थे जो लेवीय पितरों के घरानों में मुख्य थे, और कोठरियों में रहते, और और काम से छूटे थे; क्योंकि वे रात- दिन अपने काम में लगे रहते थे। 13O 9 34 ये ही अपनी अपनी पीढ़ी में लेवियों के पितरों के घरानों में मुख्य पुरूष थे, ये यरूशलेम में रहते थे। 13O 9 35 और गिबोन में गिबोन का पिता यीएल रहता था, जिसकी पत्नी का नाम माका थ। 13O 9 36 उसका जेठा पुत्रा अब्दोन हुआ, फिर सुर, कीश, बाल, नेर, नादाब। 13O 9 37 गदोर, अह्मो, जकर्याह और मिल्कोत। 13O 9 38 और मिल्कोत से शिमाम उत्पन्न हुआ और ये भी अपने भइयों के साम्हने अपने भइयों के संग यरूशलेम में रहते थे। 13O 9 39 और नेर से कीश, कीश से शाऊल, और शाऊल से योनातान, मल्कीश, अबीनादाब और एशबाल उत्पन्न हुए। 13O 9 40 और योनातान का पुत्रा मरीब्बाल हुआ, और मरीब्बाल से मीका उत्पन्न हुआ। 13O 9 41 और मीका के पुत्रा पीतोन, मेलेक, तह्रे और अहाज थे। 13O 9 42 और अहाज से यारा और यारा से आलेमेत, अजमावेत और जिम्री, और जिम्री से मोसा। 13O 9 43 और मोसा से बिना उत्पन्न हुआ और बिना का पुत्रा रपायाह हुआ, रपायाह का एलासा, और एलासा का पुत्रा आसेल हुआ। 13O 9 44 और आसेल के छे पुत्रा हुए जिनके ये नाम थे, अर्थात् अज्रीकाम, बोकरू, यिश्माएल, शार्याह, ओबद्याह और हतान; आसेल के ये ही पुत्रा हुए। 13O 10 1 पलिश्ती इस्राएलियों से लड़े; और इस्राएली पलिश्तियों के साम्हने से भागे, और गिलबो नाम पहाड़ पर मारे गए। 13O 10 2 और पलिश्ती शाऊल और उसके पुत्रों के पीछे लगे रहे, और पलिश्तियों ने शाऊल के पुत्रा योनातान, अबीनादाब और मल्कीशू को मार डाला। 13O 10 3 और शाऊल के साथ धमासान युठ्ठ होता रहा और धनुर्धारियों ने उसे जा लिया, और वह उनके कारण रयाकुल हो गया। 13O 10 4 तब शाऊल ने अपने हथियार ढोनेवाले से कहा, अपनी तलवार खींचकर मुझे झोंक दे, कहीं ऐसा न हो कि वे खतनारहित लोग आकर मेरी ठट्ठा करें, परन्तु उसके हथियार ढोनेवाले ने भयभीत होकर ऐसा करने से इनकार किया, तब शाऊल अपनी तलवार खड़ी करके उस पर गिर पड़ा। 13O 10 5 यह देखकर कि शाऊल मर गया है उसका हथियार ढोनेपसल भी अपनी तलवार पर आप गिरकर मर गया। 13O 10 6 यों शाऊल और उसके तीनों पुत्रा, और उसके घराने के सब लोग एक संग मर गए। 13O 10 7 यह देखकर कि वे भाग गए, और शाऊल और उसके पुत्रा मर गए, उस तराई में रहनेवाले सब इस्राएली मनुष्य अपने अपने नगर को छोड़कर भाग गए; और पलिश्ती आकर उन में रहने लगे। 13O 10 8 दूसरे दिन जब पलिश्ती मारे हुओं के माल को लूटने आए, तब उनको शाऊल और उसके पुत्रा गिलबो पहाड़ पर पड़े हुए मिले। 13O 10 9 तब उन्हों ने उसके वस्त्रों को उतार उसका सिर और हथियार ले लिया और पलिश्तियों के देश के सब स्थानों में दूतों को इसलिये भेजा कि उनके देवताओं और साधारण लोगों में यह शुभ समाचार देते जाएं। 13O 10 10 तब उन्हों ने उसके हथियार अपने देवालय में रखे, और उसकी खोपड़ी को दागोन के मन्दिर में लटका दिया। 13O 10 11 जब गिलाद के याबेश के सब लोगों ने सुना कि पलिश्तियों ने शाऊल से क्या क्या किया है। 13O 10 12 तब सब शूरवीर चले और शाऊल और उसके पुत्रों की लोथें उठाकर याबेश में ले आए, और उनकी हडि्डयों को याबेश में एक बांज वृक्ष के तले गाड़ दिया और सात दिन तक अनशन किया। 13O 10 13 यों शाऊल उस विश्वासघात के कारण मर गया, जो उस ने यहोवा से किया था; क्योंकि उस ने यहोवा का वचन टाल दिया था, फिर उस ने भूतसिध्दि करनेवाली से पूछकर सम्मति ली थी। 13O 10 14 उस ने यहोवा से न पूछा था, इसलिये यहोवा ने उसे मारकर राज्य को यिशै के पुत्रा दाऊद को दे दिया। 13O 11 1 तब सब इस्राएली दाऊद के पास हेब्रोन में इकट्ठे होकर कहने लगे, सुन, हम लोग और तू एक ही हड्डी और मांस हैं। 13O 11 2 अगले दिनों में जब शाऊल राजा था, तब भी इस्राएलियों का अगुआ तू ही था, और तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझ से कहा, कि मेरी प्रजा इस्राएल का चरवाहा, और मेरी प्रजा इस्राएल का प्रधान, तू ही होगा। 13O 11 3 इसलिये सब इस्राएली पुरनिये हेब्रोन में राजा के पास अए, और दाऊद ने उनके साथ हेब्रोन में यहोवा के साम्हने वाचा बान्धी; और उन्हों ने यहोवा के वचन के अनुसार, जो उस ने शमूएल से कहा था, इस्राएल का राजा होने के लिये दाऊद का अभिषेक किया। 13O 11 4 तब सब इस्राएलियों समेत दाऊद यरूशलेम गया, जो यबूस भी कहलाता था, और वहां यबूसी नाम उस देश के निवासी रहते थे। 13O 11 5 तब यबूस के निवासियों ने दाऊद से कहा, तू यहां आने नहीं पाएगा। तौभी दाऊद ने सिरयोन नाम गढ़ को ले लिया, वही दाऊदपुर भी कहलाता है। 13O 11 6 और दाऊद ने कहा, जो कोई यबूसियों को सब से पहिले मारेगा, वह मुख्य सेनापति होगा, तब सरूयाह का पुत्रा योआब सब से पहिले चढ़ गया, और सेनापति बन गया। 13O 11 7 और दाऊद उस गढ़ में रहने लगा, इसलिये उसका नाम दाऊदपुर पड़ा। 13O 11 8 और उस ने नगर के चारों ओर, अर्थात् मिल्लो से लेकर चारों ओर शहरपनाश् बनवाई, और योआब ने शेष नगर के खष्डहरों को फिर बसाया। 13O 11 9 और दाऊद की प्रतिष्ठा अधिक बढ़ती गई और सेनाओं का यहोवा उसके संग था। 13O 11 10 यहोवा ने इस्राएल के विष्य जो वचन कहा था, उसके अनुसार दाऊद के जिन शूरवीरों ने सब इस्राएलियों समेत उसके राज्य में उसके पक्ष में होकर, उसे राजा बनाने को ज़ोर दिया, उन में से मुख्य पुरूष ये हैं। 13O 11 11 दाऊद के शूरवीरों की नामावली यह है, अर्थात् किसी हक्मोनी का पुत्रा याशोबाम जो तीसों में मुखय थ, उस ने तीन सै पुरूषों पर भाला चला कर, उन्हें एक ही समय में मार डाला। 13O 11 12 उसके बाद अहोही दोदो का पुत्रा एलीआज़र जो तीनों महान वीरों में से एक था। 13O 11 13 वह पसदम्मीम में जहां जव का एक खेत था, दाऊद के संग रहा जब पलिश्ती वहां युठ्ठ करने को इट्ठे हुए थे, और लोग पलिश्तियों के साम्हने से भाग गए। 13O 11 14 तब उन्हों ने उस खेत के बीच में खड़े होकर उसकी रक्षा की, और पलिश्तियों को मारा, और यहोवा ने उनका बड़ा उठ्ठार किया। 13O 11 15 और तीसों मुख्य पुरूषों में से तीन दाऊद के पास चट्टान को, अर्थात् अदुल्लाम नाम गुफा में गए, और पलिश्तियों की छावन रपाईम नाम तराई में पड़ी इई थी। 13O 11 16 उस समय दाऊद गढ़ में था, और उस समय पलिश्तियों की एक चौकी बेतलेहेम में थी। 13O 11 17 तब दाऊद ने बड़ी अभिलाषा के साथ कहा, कौन मुझे बेतलेहेम के फाटक के पास के कुएं का पानी पिलाएगा। 13O 11 18 तब वे तीनों जन पलिश्तियों की छावनी में टूट पड़े और बेतलेहेम के फाटक के कुएं से पानी भरकर दाऊद के पास ले आए; परन्तु दाऊद ने पीने से इनकार किया और यहोवा के साम्हने अर्ध करके उण्डेला। 13O 11 19 और उस ने कहा, मेरा परमेश्वर मुझ से ऐसा करना दूर रखे; क्या मैं इन मनुष्यों का लोहू पीऊं जिन्हों ने अपने प्राणों पर खेला है? ये तो अपने प्राण पर खेलकर उसे ले आए हैं। इसलिये उस ने वह पानी पीने से इनकार किया। इन तीन वीरों ने ये ही काम किए। 13O 11 20 और अबीशै जो योआब का भाई था, वह तीनों में मुख्य था। और उस ने अपना भाला चलाकर तीन सौ को मार डाला और तीनों में नामी हो गया। 13O 11 21 दूसरी श्रेणी के तीनों में वह अधिक प्रतिष्ठित था, और उनका प्रधान हो गया, परन्तु मुख्य तीनों का पद को न पहुंचा। 13O 11 22 यहोयादा का पुत्रा बनायाह था, जो कबजेल के एक वीर का पुत्रा था, जिस ने बड़े बड़े काम किए थे, उस ने सिंह समान दो मोआबियों को मार डाला, और हिमऋतु में उस ने एक गड़हे में उतर के एक सिंह को मार डाला। 13O 11 23 फिर उस ने एक डीलवाले अर्थात् पांच हाथ लम्बे मिस्री पुरूष को मार डाला, वह मिस्री हाथ में जुलाहों का ढेका का एक भाला लिए हुए था, परन्तु बनायाह एक लाठी ही लिए हुए उसके पास गया, और मिस्री के हाथ से भाले को छीनकर उसी के भाले से उसे घात किया। 13O 11 24 ऐसे ऐसे काम करके यहोयादा का पुत्रा बनायाह उन तीनों वीरों मे नामी हो गया। 13O 11 25 वह तो तीसों से अधिक प्रतिष्ठित था, परन्तु मुख्य तीनों के पद को न पहुंचा। उसको दाऊद ने अपनी निज सभा में सभासद किया। 13O 11 26 फिर दलों के वीर ये थे, अर्थात् योआब का भाई असाहेल, बेतलेहेमी दोदो का पुत्रा एल्हानान। 13O 11 27 हरोरी शम्मोत, पलोनी हेलेस। 13O 11 28 तकोई इक्केश का पुत्रा ईरा, अनातोती अबीएजेर। 13O 11 29 सिब्बके होसाती, अहोही ईलै। 13O 11 30 महरै नतोपाई, एक और नतोपाई बाना का पुत्रा हेलेद। 13O 11 31 बिन्यामीनियों के गिबा नगरवासी रीबै का पुत्रा इतै, पिरातोनी बनायाह। 13O 11 32 गाशके नालों के पास रहनेवाला हूरै, अराबावासी अबीएल। 13O 11 33 बहूरीमी अजमावेत, शल्बोनी एल्यहबा। 13O 11 34 गीजोई हाशेम के पुत्रा, फिर हरारी शागे का पुत्रा योनातान। 13O 11 35 हरारी सकार का पुत्रा अहीआम, ऊर का पुत्रा एलीपाल। 13O 11 36 मकेराई हेपेर, पलोनी अहिरयाह। 13O 11 37 कर्मेली हेस्रो, एज्बै का पुत्रा नारै। 13O 11 38 नातान का भाई योएल, हग्री का पुत्रा मिभार। 13O 11 39 मम्मोनी सेलेक, बेरोती नहरै जो सरूयाह के पुत्रा योआब का हथियार ढोनेवाला था। 13O 11 40 येतेरी ईरा और गारेब। 13O 11 41 हित्ती ऊरिरयाह, अहलै का पुत्रा जाबाद। 13O 11 42 तीस पुरूषों समेत रूबेनी शीजा का पुत्रा अदीना जो रूबेनियों का मुखिया था। 13O 11 43 माका का पुत्रा हानान, मेतेनी योशापात। 13O 11 44 अशतारोती उज्जिरयाह, अरोएरी होताम के पुत्रा शामा और यीएल। 13O 11 45 शिम्री का पुत्रा यदीएल और उसका भाई तीसी, योहा। 13O 11 46 महवीमी एलीएल, एलनाम के पुत्रा यरीबै और योशरयाह, 13O 11 47 मोआबी यित्मा, एलीएल, ओबेद और मसोबाई यासीएल। 13O 12 1 जब दाऊद सिकलग में कीश के पुत्रा शाऊल के डर के मारे छिपा रहता था, तब ये उसके पास वहां आए, और ये उन वीरों में से थे जो युठ्ठ में उसके सहायक थे। 13O 12 2 ये धनुर्धारी थे, जो दाहिने- बायें, दोनों हाथों से गोफन के पत्थर और धनुष के तीर चला सकते थे; और ये शाऊल के भाइयों में से बिन्यामीनी थे। 13O 12 3 मुख्य तो अहीएजेर और दूसरा योआश था जो गिबावासी शमाआ का पुत्रा था; फिर अजमावेत के पुत्रा यजीएल और पेलेत, फिर बराका और अनातोती येहू। 13O 12 4 और गिबोनी यिशमायाह जो तीसों में से एक वीर और उनके ऊपर भी था; फिर यिर्मयाह, यहजीएल, योहानान, गदेरावासी योजाबाद। 13O 12 5 एलूजै, यरीमोत, बाल्याह, शमर्याह, हारूपी शपत्याह। 13O 12 6 एल्काना, यिशिरयाह, अजरेल, योएजेर, याशोबाम, जो सब कोरहवंशी थे। 13O 12 7 और गदोरवासी यरोहाम के पुत्रा योएला और जबद्याह। 13O 12 8 फिर जब दाऊद जंबल के गढ़ में रहता था, तब ये गादी जो शूरवीर थे, और युठ्ठ विद्या सीखे हुए और ढाल और भाला काम में लानेवाले थे, और उनके मुह सिंह के से और वे पहाड़ी मृग के समान वेग से दौड़नेवाले थे, ये और गादियों से अलग होकर उसके पास आए। 13O 12 9 अर्थात् मुख्य तो एजेर, दूसरा ओबद्याह, तीसरा एलीआब। 13O 12 10 चौथा मिश्मन्ना, पांचपां यिर्मयाह। 13O 12 11 छठा अत्तै, सातवां एलीएल। 13O 12 12 आठवां योहानान, नौवां एलजाबाद। 13O 12 13 दसवां यिर्मयाह और ग्यारहवां मकबन्नै था। 13O 12 14 ये गादी मुख्य योठ्ठा थे, उन में से जो सब से छोटा था वह तो एक सौ के ऊपर, और जो सब से बड़ा था, वह हजार के ऊपर था। 13O 12 15 ये ही वे हैं, जो पहिले महीने में जब यरदन नदी सब कड़ाड़ों के ऊपर ऊपर बहती थी, तब उसके पार उतरे; और पूर्व और पश्चिम दानों ओर के सब तराई के रहनेवालों को भगा दिया। 13O 12 16 और कई एक बिन्यामीनी और यहूदी भी दाऊद के पास गढ़ में आए। 13O 12 17 उन से मिलने को दाऊद निकला और उन से कहा, यदि तुम मेरे पास मित्राभाव से मेरी सहायता करने को आए हो, तब तो मेरा मन तुम से लगा रहेगा; परन्तु जो तुम मुझे धोखा देकर मेरे शत्रुओं के हाथ पकड़वाने आए हो, तो हमारे पितरों का परमेश्वर इस पर दृष्टि करके डांटे, क्योंकि मेरे हाथ से कोई उपद्रव नहीं हुआ। 13O 12 18 अब आत्मा अमासै में समाया, जो तीसों वीरों में मुख्य था, और उस ने कहा, हे दाऊद ! हम तेरे हैं; हे यिशै के पुत्रा ! हम तेरी ओर के हैं, तेरा कुशल ही कुशल हो और तेरे सहायकों का कुशल हो, क्योंकि तेरा परमेश्वर तेरी सहायता किया करता है। इसलिये दाऊद ने उनको रख लिया, और अपने दल के मुखिये ठहरा दिए। 13O 12 19 फिर कुछ मनश्शेई भी उस समय दाऊद के पास भाग गए, जब वह पलिश्तियों के साथ होकर शाऊल से लड़ने को गया, परन्तु उसकी कुछ सहायता न की, क्योंकि पलिश्तियों के सरदारों ने सम्मति लेने पर वह कहकर उसे बिदा किया, कि वह हमारे सिर कटवाकर अपने स्वामी शाऊल से फिर मिल जाएगा। 13O 12 20 जब वह सिक्लग को जा रहा था, तब ये मनश्शेई उसके पास भाग गए; अर्थात् अदना, योजाबाद, यदीएल, मीकाएल, योजाबाद, एलीहू और सिल्लतै जो मनश्शे के हजारों के मुखिये थे। 13O 12 21 इन्हों ने लुटेरों के दल के विरूद्ध दाऊद की सहायता की, क्योंकि ये सब शूरवीर थे, और सेना के प्रधान भी बन गए। 13O 12 22 वरन प्रतिदिन लोग दाऊद की सहायता करने को उसके पास आते रहे, यहां तक कि परमेश्वर की सेना के समान एक बड़ी सेना बन गई। 13O 12 23 फिर लोग लड़ने के लिये हथियार बान्धे हुए होब्रोन में दाऊद के पास इसलिये आए कि यहोवा के वचन के अनुसार शाऊल का राज्य उसके हाथ में कर दें : उनके मुखियों की गिनती यह है। 13O 12 24 यहूदा के ढाल और भाला लिए हुए छे हजार आठ सौ हथियारबन्ध लड़ने को बाए। 13O 12 25 शिमोनी सात हजार एक सौ तैयार शूरवीर लड़ने को आए। 13O 12 26 लेवीय चार हजार छे सौ आए। 13O 12 27 और हारून के घराने का प्रधान यहोयादा था, और उसके साथ तीन हजार सात सौ आए। 13O 12 28 और सादोक नाम एक जवान वीर भी आया, और उसके पिता के घराने के बाईस प्रधान आए। 13O 12 29 और शाऊल के भाई बिन्यामीनियों में से तीन हजार आए, क्योंकि उस समय तक आधे बिन्यामीनियों से अधिक शाऊल के घराने का पक्ष करते रहे। 13O 12 30 फिर एप्रैमियों में से बड़े वीर और अपने अपने पितरों के घरानों में नामी पुरूष बीस हजार आठ सौ आए। 13O 12 31 और मनश्शे के आधे गोत्रा में से दाऊद को राजा बनाने के लिये अठारह हजार आए, जिनके नाम बताए गए थे। 13O 12 32 और इस्साकारियों में से जो समय को पहचानते थे, कि इस्राएल को क्या करना उचित है, उनके प्रधान दो सौ थे; और उनके सब भाई उनकी आज्ञा में रहते थे। 13O 12 33 फिर जबूलून में से युठ्ठ के सब प्रकार के हथियार लिए हुए लड़ने को पांति बान्धनेवाले योठ्ठा पचास हजार आए, वे पांति बान्ध्नेवाले थे : और चंचल न थे। 13O 12 34 फिर नप्ताली में से प्रधान तो एक हजार, और उनके संग ढाल और भाला लिए सैंतीस हजार आए। 13O 12 35 और दानियों में से लड़ने के लिये पांति बान्धनेवाले अठाईस हजार छे सौ आए। 13O 12 36 और आशेर में से लड़ने को पांति बान्धनेवाले चालीस हजार योठ्ठा आए। 13O 12 37 और यरदन पार रहनेवाले रूबेनी, गादी और मनश्शे के आधे गोत्रियों में से युठ्ठ के सब प्रकार के हथियार लिए हुए एक लाख बीस हजार आए। 13O 12 38 ये सब युठ्ठ के लिये पांति बान्धनेवाले दाऊद को सारे इस्राएल का राजा बनाने के लिये हेब्रोन में सच्चे मन से आए, और और सब इस्राएली भी दाऊद को राजा बनाने के लिये सहमत थे। 13O 12 39 और वे वहां तीन दिन दाऊद के संग खाते पीते रहे, क्योंकि उनक भाइयों ने उनके लिये तैयारी की थी। 13O 12 40 और जो उनके निकट वरन इस्साकार, जबूलून और नप्ताली तक रहते थे, वे भी गदहों, ऊंटों, खच्चरों और बैलों पर मैदा, अंजीरों और किशमिश की टिकियां, दाखमधु और तेल आदि भोजनवस्तु लादकर लाए, और बैल और भेड़- बकरियां बहुतायत से लाए; क्योंकि इस्राएल में आनन्द मनाया जारहा था। 13O 13 1 और दाऊद ने सहस्त्रापतियों, शतपतियों और सब प्रधानों से सम्मति ली। 13O 13 2 तब दाऊद ने इस्राएल की सारी मण्डली से कहा, यदि यह तुम को अच्छा लगे और हमारे परमेश्वर की इच्छा हो, तो इस्राएल के सब देशों में जो हमारे भाई रह गए हैं और उनके साथ जो याजक और लेवीय अपने अपने चराईवाले नगरों में रहते हैं, उनके पास भी यह कहला भेजें कि हमारे पास इकट्ठे हो जाओ। 13O 13 3 और हम अपने परमेश्वर के सन्दमक को अपने यहां ले आएं; क्योंकि शाऊल के दिनों में हम उसके समीप नहीं जाते थे। 13O 13 4 और समस्त मण्डली ने कहा, हम ऐसा ही करेंगे, क्योंकि यह बात उन सब लोगों की दृष्टि में उचित मालूम हुई। 13O 13 5 तब दाऊद ने मिस्र के शीहोर से ले हमात की घाटी तब के सब इस्राएलियों को इसलिये इकट्ठा किया, कि परमेश्वर के सन्दूक को किर्यत्यारीम से ले आए। 13O 13 6 तब दाऊद सब इस्राएलियों को संग लेकर बाला को गया, जो किर्यत्यारीम भी कहलाता और यहूदा के भाग में था, कि परमेश्वर यहोवा का सन्दूक वहां से ले आए; वह तो करूबों पर विराजनेवाला है, और उसका नाम भी यही लिया जाता है। 13O 13 7 तब उन्हों ने परमेश्वर का सन्दूक एक नई गाड़ी पर चढ़ाकर, अबीनादाब के घर से निकाला, और उज्जा और अह्मो उस गाड़ी को हांकने लगे। 13O 13 8 और दाऊद और सारे इस्राएली परमेश्वर के साम्हने तन मन से गीत गाते और बीणा, सारंगी, डफ, झांझ और तुरहियां बजाते थे। 13O 13 9 जब वे कीदोन के खलिहान तक आए, तब उज्जा ने अपना हाथ सन्दूक थामने को बढ़ाया, क्योंकि बैलों ने ठोकर खाई थी। 13O 13 10 तब यहोवा का कोप उज्जा पर भड़क उठा; और उस ने उस को मारा क्योंकि उस ने सन्दूक पर हाथ लगाया था; वह वहीं परमेश्वर के साम्हने मर गया। 13O 13 11 तब दाऊद अप्रसन्न हुआ, इसलिये कि यहोवा उज्जा पर टूट पड़ा था; और उस ने उस स्थान का नाम पेरेसुज्जा रखा, यह नाम आज तक बना है। 13O 13 12 और उस दिन दाऊद परमेश्वर से डरकर कहने लगा, मैं परमेश्वर के सन्दूक को अपने यहां कैसे ले आऊं? 13O 13 13 तब दाऊद ने सन्दूक को अपने यहां दाऊदपुर में न लाया, परन्तु ओबेदेदोम नाम गती के यहां ले गया। 13O 13 14 और परमेश्वर का सन्दूक ओबेदेदोम के यहां उसके घराने के पास तीन महीने तक रहा, और यहोवा ने ओबेदेदोम के घराने पर और जो कुछ उसका था उस पर भी आशीष दी। 13O 14 1 और सोर के राजा हीराम ने दाऊद के पास दूत भेजे, और उसका भवन बनाने को देवदारू की लकड़ी और राज और बढ़ई भेजे। 13O 14 2 और दाऊद को निश्चय हो गया कि यहोवा ने मुझे इस्राएल का राजा करके स्थिर किया, क्योंकि उसकी प्रजा इस्राएल के निमित्त उसका राज्य अत्यन्त बढ़ गया था। 13O 14 3 और यरूशलेम में दाऊद ने और स्त्रियां ब्याह लीं, और उन से और बेटे- बेटियां उत्पन्न हुई। 13O 14 4 उसके जो सन्तान यरूशलेम में उत्पन्न हुए, उनके नाम ये हैं : अर्थात् शम्मू,शोबाब, नातान, सुलैमान; 13O 14 5 यिभार, एलीशू, एलपेलेत; 13O 14 6 नोगह, नेपेग, यापी, एलीशामा, 13O 14 7 बेल्यादा और एलीपेलेद। 13O 14 8 जब पलिश्तियों ने सुना कि पूरे इस्राएल का राजा होने के लिये दाऊद का अभिषेक हुआ, तब सब पलिश्तियों ने दाऊद की खोज में चढ़ाई की; यह सुनकर दाऊद उनका साम्हना करने को निकल गया। 13O 14 9 और पलिश्ती आए और रपाईम नाम तराई में धावा मारा। 13O 14 10 तब दाऊद ने परमेश्वर से पूछा, क्या मैं पलिश्तियों पर चढ़ाई करूं? और कया तू उन्हें मेरे हाथ में कर देगा? यहोवा ने उस से कहा, चढ़ाई कर, क्योंकि मैं उन्हें तेरे हाथ में कर दूंगा। 13O 14 11 इसलिये जब वे बालपरासीम को आए, तब दाऊद ने उन को वहीं मार लिया; तब दाऊद ने कहा, परमेश्वर मेरे द्वारा मेरे शत्रुओं पर जल की धारा की नाई टूट पड़ा है। इस कारण उस स्थान का नाम बालपरासीम रखा गया। 13O 14 12 वहां वे अपने देवताओं को छोड़ गए, और दाऊद को आज्ञा से वे आग लगाकर फूंक दिए गए। 13O 14 13 फिर दूसरी बार पलिश्तियों ने उसी तीई में धावा मारा। 13O 14 14 तब दाऊद ने परमेश्वर से फिर पूछा, और परमेश्वर ने उस से कहा, उनका पीछा मत कर; उन से मुड़कर तूत के वृक्षों के साम्हने से उन पर छापा मार। 13O 14 15 और जब तूत के वृक्षों की फुनगियों में से सेना के चलने की सी आहट तुझे सुन पड़े, तब यह जानकर युठ्ठ करने को निकल जाना कि परमेश्वर पलिश्तियों की सेना को मारने के लिये तेरे आगे जा रहा है। 13O 14 16 परमेश्वर की इस आज्ञा के अनुसार दाऊद ने किया, और इस्राएलियों ने पलिश्तियों की सेना को गिबोन से लेकर गेजेर तक मार लिया। 13O 14 17 तब दाऊद की कीर्त्ति सब देशों में फैल गई, और यहोवा ने सब जातियों के मन में उसका भय भर दिया। 13O 15 1 तब दाऊद ने दाऊदपुर में भवन बनवाए, और परमेश्वर के सन्दूक के लिये एक स्थान तैयार करके एक तम्बू खड़ा किया। 13O 15 2 तब दाऊद ने कहा, लेवियों को छोड़ और किसी को परमेश्वर का सन्दूक उठाना नहीं चाहिये, क्योंकि यहोवा ने उनको इसी लिये चुना है कि वे परमेश्वर का सन्दूक उठाएं और उसकी सेवा टहल सदा किया करें। 13O 15 3 तब दाऊद ने सब इस्राएलियों को यरूशलेम में इसलिये इट्ठा किया कि यहोवा का सन्दूक उस स्थान पर पहुंचाएं, जिसे उस ने उसके लिये तैयार किया था। 13O 15 4 इसलिये दाऊद ने हारून के सन्तानों और लेवियों को इकट्ठा किया : 13O 15 5 अर्थात् कहातियों में से ऊरीएल नाम प्रधान को और उसके एक सौ बीस भाइयों को; 13O 15 6 मरारियों में से असायाह नाम प्रधान को और उसके दो सौ बीस भाइयों को; 13O 15 7 गेश मियों में से योएल नाम प्रधान को और उसके एक सौ तीस भाइयों को; 13O 15 8 एलीसापानियों में से शमायाह नाम प्रधान को और उसके दो सौ भाइयों को; 13O 15 9 हेब्रोनियों में से एलीएल नाम प्रधान को और उसके अस्सी भाइयों को; 13O 15 10 और उज्जीएलियों में से अम्मीनादाब नाम प्रधान को और उसके एक सौ बारह भाइयों को। 13O 15 11 तब दाऊद ने सादोक और एब्यातार नाम याजकों को, और ऊरीएल, असायाह, योएल, शमायाह, एलीएल और अम्मीनादाब नाम लेवियों को बुलवाकर उन से कहा, 13O 15 12 तुम तो लेवीय पितरों के घरानों में मुख्य पुरूष हो; इसलिये अपने भाइयों समेत अपने अपने को पवित्रा करो, कि तुम इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का सन्दूक उस स्थान पर पहुंचा सको जिसको मैं ने उसके लिये तैयार किया है। 13O 15 13 क्योंकि पहिली बार तुम ने उसको न उठाया इस कारण हमारा परमेश्वर यहोवा हम पर टूट पड़ा, क्योंकि हम उसकी खोज में नियम के अनुसार न लगे थे। 13O 15 14 तब याजकों और लेवियों ने अपने अपने को पवित्रा किया, कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का सन्दूक ले जा सकें। 13O 15 15 तब उस आज्ञा के अनुसार जो मूसा ने यहोवा का वचन सुनकर दी थी, लेवियों ने सन्दूक को डंडों के बल अपने कंधों पर उठा लिया। 13O 15 16 और दाऊद ने प्रधान लेवियों को आज्ञा दी, कि अपने भाई गवैयों को बाजे अर्थात् सारंगी, वीणा और झांझ देकर बजाने और आनन्द के साथ ऊंचे स्वर से गाने के लिये नियुक्त करें। 13O 15 17 तब लेवियों ने योएल के पुत्रा हेमान को, और उसके भाइयों में से बेरेक्याह के पुत्रा आसाप को, और अपने भाई मरारियों में से कूशायाह के पुत्रा एतान को ठहराया। 13O 15 18 और उनके साथ उन्हों ने दूसरे पद के अपने भाइयों को अर्थात् जकर्याह, बेन, याजीएल, शमीरामोत, यहीएल, उन्नी, एलीआब, बनायाह, मासेयाह, मत्तित्याह, एलीपलेह, मिकनेयाह, और ओबेदेदोम और पीएल को जो द्वारपाल थे ठहराया। 13O 15 19 यों हेमान, आसाप और एतान नाम के गवैये तो पीतल की झांझ बजा बजाकर राग चलाने को; 13O 15 20 और जकर्याह, अजीएल, शमीरामोत, यहीएल, उन्नी, एलीआब, मासेयाह, और बनायाह, अलामोत, नाम राग में सारंगी बजाने को; 13O 15 21 और मत्तित्याह, एलीपलेह, मिकनेयाह ओबेदेदोम, यीएल और अजज्याह वीणा खर्ज में छेड़ने को ठहराए गए। 13O 15 22 और राग उठाने का अधिकारी कनन्याह नाम लेवियों का प्रधान था, वह राग उठाने के विषय शिक्षा देता था, क्योंकि वह निपुण था। 13O 15 23 और बेरेक्याह और एलकाना सन्दूक के द्वारपाल थे। 13O 15 24 और शबन्याह, योशापात, नतनेल, अमासै, जकर्याह, बनायाह और एलीएजेर नाम याजक परमेश्वर के सन्दूक के आगे आगे तुरहियां बजाते हुए चले, और ओबेदेदोम और यहिरयाह उसके द्वारपाल थे। 13O 15 25 और दाऊद और इस्राएलियों के पुरनिये और सहस्त्रापति सब मिलकर यहोवा की वाचा का सन्दूक ओबेदेदोम के घर से आनन्द के साथ ले आने के लिए गए। 13O 15 26 जब परमेश्वर ने लेवियों की सहायता की जो यहोवा की वाचा का सन्दूक उठानेवाले थे, तब उन्हों ने सात बैल और सात मेढ़े बलि किए। 13O 15 27 दाऊद, और यहोवा की वाचा का सन्दूक उठानेवाले सब लेवीय और गानेवाले और गानेवालों के साथ राग उठानेवाले का प्रधान कनन्याह, ये सब तो सन के कपड़े के बागे पहिने थे, और दाऊद सन के कपड़े का एपोद पहिने था। 13O 15 28 इस प्रकार सब इस्राएली यहोवा की वाचा के सन्दूक को जयजयकार करते, और नरसिंगे, तुरहियां और झांझ बजाते और सारंगियां और वीणा बजाते हुए ले चले। 13O 15 29 जब यहोवा की वाचा का सन्दूक दाऊदपुर में पहुंचा तब शाऊल की बेटी मीकल ने खिड़की में से झांककर दाऊद राजा को कूदते और खेलते हुए देखा, और उसे मन ही मन तूच्छ जाना। 13O 16 1 तब परमेश्वर का सन्दूक ले आकर उस तम्हू में रखा गया जो दाऊद ने उसके लिये खड़ा कराया था; और परमेश्वर के साम्हने होमबलि और मेलबलि चढ़ाए गए। 13O 16 2 जब दाऊद होमबलि और मेलबलि चढ़ा जूका, तब उस ने यहोवा के नाम से प्रजा को आशीर्वाद दिया। 13O 16 3 और उस ने क्या पुरूष, क्या स्त्री, सब इस्राएलियों को एक एक रोटी और एक एक टुकड़ा मांस और किशमिश की एक एक टिकिया बंटवा दी। 13O 16 4 तब उस ने कई लेवियों को इसलिये ठहरा दिया, कि यहोवा के सत्दूक के साम्हने सेवा टहल किया करें, और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की चर्चा और उसका धन्यवाद और स्तुति किया करें। 13O 16 5 उनका मुखिया तो आसाप था, और उसके नीचे जकर्याह था, फिर यीएल, शमीरामोत, यहीएल, मत्तित्याह, एलीआब बनायाह, ओबेदेदोम और यीएल थे; ये तो सारंगियां और वीणाएं लिये हुए थे, और आसाप झांझ पर राग बजाता था। 13O 16 6 और बनायाह और यहजीएल नाम याजक परमेश्वर की वाचा के सन्दूक के साम्हने नित्य तुरहियां बजाने के लिए नियुक्त किए गए। 13O 16 7 तब उसी दिन दाऊद ने यहोवा का धन्यवाद करने का काम आसाम और उसके भाइयों को सौंप दिया। 13O 16 8 यहोवा का धन्यवाद करो, उस से प्रार्थना करो; देश देश में उसके कामों का प्रचार करो। 13O 16 9 उसका गीत गाओ, उसका भजन करो, उसके सब आश्चर्य- कम का ध्यान करो। 13O 16 10 उसके पवित्रा नाम पर घपंड करो; यहोवा के खोजियों का हृदय आनन्दित हो। 13O 16 11 यहोवा और उसकी सामर्थ की खोज करो; उसके दर्शन के लिए लगातार खोज करो। 13O 16 12 उसेक किए हुए आर्श्ख्यकर्म, उसके चमत्कार और न्यायवचन स्मरण करो। 13O 16 13 हे उसके दास इस्राएल के वंश, हे याकूब की सन्तान तुम जो उसके चुने हुए हो ! 13O 16 14 वही हमारा परमेश्वर यहोवा है, उसके न्याय के काम पृथ्वी भर में होते हैं। 13O 16 15 उसकी वाचा को सदा स्मरण रखो, यह वही वचन है जो उस ने हजार पीढ़ियों के लिये ठहरा दिया। 13O 16 16 वह वाचा उस ने इब्राहीम के साथ बान्धी, और उसी के विषय उस ने इसहाक से शपथ खाई, 13O 16 17 और उसी को उस ने याकूब के लिये विधि करके और इस्राएल के लिये सदा की वाचा बान्धकर यह कहकर दृढ़ किया, कि 13O 16 18 मैं कनान देश तुझी को दूंगा, वह बांट में तुम्हारा निज भाग होगा। 13O 16 19 उस समय तो तुम गिनती में थोड़े थे, वरन बहुत ही थोड़े और उस देश में परदेशी थे। 13O 16 20 और वे एक जाति से दूसरी जाति में, और एक जाज्य से दूसरे में फिरते तो रहे, 13O 16 21 परन्तु उस ने किसी पनुष्य को उन पर अन्धेर करने न दिया; और वह राजाओं को उनके निमित्त यह धमकी देता था, कि 13O 16 22 मेरे अभिषिक्तों को मत छुओ, और न मेरे नबियों की हानि करो। 13O 16 23 हे समस्त पृथ्वी के लोगो यहोवा का गीत गाओ। प्रतिदिन उसके किए हुए उठ्ठार का शुभ समाचार सुनाते रहो। 13O 16 24 अन्यजातियों में उसकी महिमा का, और देश देश के लोगों में उसके आश्चर्य- कम का वर्णन करो। 13O 16 25 क्योंकि यहोवा महान और स्तुति के अति योग्य है, वह तो सब देवताओं से अधिक भययोग्य है। 13O 16 26 क्योंकि देश देश के सब देवता मूर्तियां ही हैं; परन्तु यहोवा ही ने स्वर्ग को बनाया है। 13O 16 27 उसके चारों ओर विभव और ऐश्वर्य है; उसके स्थान में सामर्थ और आनन्द है। 13O 16 28 हे देश देश के कुलो, यहोवा का गुणानुवाद करो, यहोवा की महिमा और सामर्थ को मानो। 13O 16 29 यहोवा के नाम की महिमा ऐसी मानो जो उसके नाम के योग्य है। भेंट लेकर उसके सम्मुख आओ, पवित्राता से शोभायमान होकर यहोवा को दणडवत करो। 13O 16 30 हे सारी पृथ्वी के लोगो उसके साम्हने थरथराओ ! जगत ऐसा स्थिर है, कि वह टलने का नहीं। 13O 16 31 आकाश आनन्द करे और पृथ्वी मगन हो, और जाति जाति में लोग कहें, कि यहोवा राजा 13O 16 32 हुआ है। समुद्र और उस में की सब वस्तुएं गरज उठें, मैदान और जो कुछ उस में है सो प्रफुल्लित हों। 13O 16 33 उसी समय वन के वृक्ष यहोवा के साम्हने जयजयकार करें, क्योंकि वह पृथ्वी का न्याय करने को आनेवाला है। 13O 16 34 यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; उसकी करूणा सदा की है। 13O 16 35 और यह कहो, कि हे हमारे उठ्ठार करनेवाले परमेश्वर हमारा उठ्ठार कर, और हम को इकट्ठा करके अन्यजातियों से छुड़ा, कि हम तेरे पवित्रा नाम का धन्यवाद करें, और तेरी स्तुति करते हुए तेरे विषय बड़ाई करें। 13O 16 36 अनादिकाल से अनन्तकाल तक इस्राएल का परमेश्वर यहोवा धन्य है। तब सब प्रजा ने आमीन कहा : और यहोवा की स्तुति की। 13O 16 37 तब उस ने वहां अर्थात् यहोवा की वाचा के सन्दूक के साम्हने आसाप और उसके भाइयों को छोड़ दिया, कि प्रतिदिन के प्रयोजन के अनुसार वे सन्दूक के साम्हने नित्य सेवा टहल किया करें ! 13O 16 38 और अड़सठ भाइयों समेत ओबेदेदोम को, और द्वारपालों के लिये यदूतून के पुत्रा ओबेदेदोम और होसा को छोड़ दिया। 13O 16 39 फिर उस ने सादोक याजक और उसके भाई याजकों को यहोवा के निवास के साम्हने, जो गिबोन के ऊंचे स्थान में था, ठहरा दिया, 13O 16 40 कि वे नित्य सवेरे और सांझ को होमबलि की वेदी पर यहोवा को होमबलि चढ़ाया करें, और उन सब के अनुसार किया करें, जो यहोवा की रयवस्था में लिखा है, जिसे उस ने इस्राएल को दिया था। 13O 16 41 और उनके संग उस ने हेमान और यदूतून और दूसरों को भी जो नाम लेकर चुने गए थे ठहरा दिया, कि यहोवा की सदा की करूणा के कारण उसका धन्यवाद करें। 13O 16 42 और उनके संग उस ने हेमान और यदूतून को बजानेवालों के लिये तुरहियां और झांझें और परमेश्वर के गीत गाने के लिये बाजे दिए, और यदूतून के बेटों को फाटक की रखवाली करने को ठहरा दिया। 13O 16 43 निदान प्रजा के सब लोग अपने अपने घर चले गए, और दाऊद अपने घराने को आशीर्वाद देने लौट गया। 13O 17 1 जब दाऊद अपने भवन में रहने लगा, तब दाऊद ने नातान नबी से कहा, देख, मैं तो देवदारू के बने हुए घर में रहता हूँ, परन्तु यहोवा की वाचा का सन्दूक तम्बू में रहता है। 13O 17 2 नातान ने दाऊद से कहा, जो कुछ तेरे मन में हो उसे कर, क्योंकि परमेश्वर तेरे संग है। 13O 17 3 उसी दिन रात को परमेश्वर का यह वचन नातान के पास पहुंचा, जाकर मेरे दास दाऊद से कह, 13O 17 4 यहोवा यों कहता है, कि मेरे निवास के लिये तू घर बनवाने न पाएगा। 13O 17 5 क्योंकि जिस दिन से मैं इस्राएलियों को मिस्र से ले आया, आज के दिन तक मैं कभी घर में नहीं रहा; परन्तु एक तम्बू से दूसरे तम्बू को ओर एक निवास से दूसरे निवास को आया जाया करता हूँ। 13O 17 6 जहां जहां मैं ने सब इस्राएलियों के बीच आना जाना किया, क्या मैं ने इस्राएल के न्यायियों में से जिनको मैं ने अपनी प्रजा की चरवाही करने को ठहराया था, किसी से ऐसी बात कभी कहीं, कि तुम लोगों ने मेरे लिये देवदारू का घर क्यों नहीं बनवाया? 13O 17 7 सो अब तू मेरे दास दाऊद से ऐसा कह, कि सेनाओं का यहोवा यों कहता है, कि मैं ने तो तुझ को भेड़शाला से और भेड़- बारियों के पीछे पीछे फिरने से इस मनसा से बुला लिया, कि तू मेरी प्रजा इस्राएल का प्रधान हो जाए; 13O 17 8 और जहां कहीं तू आया और गया, वहां मैं तेरे संग रहा, और तेरे सब शत्रुओं को तेरे साम्हने से नष्ट किया है। अब मैं तेरे नाम को पृथ्वी के बड़े बड़े लोगों के नामो के समान बड़ा कर दूंगा। 13O 17 10 उस समय भी जब मैं अपनी प्रजा इस्राएल के ऊपर न्यायी ठहराता था; सो मैं तेरे सब शत्रुओं को दबा दूंगा। फिर मैं तुझे यह भी बताता हूँ, कि यहोवा तेरा घर बनाये रखेगा। 13O 17 11 जब तेरी आयु पूरी हो जायेगी और तुझे अपने पितरों के संग जाना पड़ेगा, तब मैं तेरे बाद तेरे वंश को जो तेरे पुत्रों में से होगा, खड़ा करके उसके राज्य को स्थिर करूंगा। 13O 17 12 मेरे लिए एक घर वही बनाएगा, और मैं उसकी राजगद्दी को सदैव स्थिर रखूंगा। 13O 17 13 मैं उसका पिता ठहरूंगा और वह मेरा पुत्रा ठहरेगा; और जैसे मैं ने अपनी करूणा उस पर से जो तुझ से पहिले था हटाई, वैसे मैं उस पर से न हटाऊंगा, 13O 17 14 वरन मैं उसको अपने घर और अपने राज्य में सदैव स्थिर यखूंगा और उसकी राजगद्दी सदैव अटल रहेगी। 13O 17 15 इन सब बातों और इस दर्शन के अनुसार नातान ने दाऊद को समझा दिया। 13O 17 16 तब दाऊद राजा भीतर जाकर यहोवा के सम्मुख बैठा, और कहने लगा, हे यहोवा परमेश्वर ! मैं क्या हूँ? और मेरा घराना क्या है? कि तू ने मुझे यहां तक पहुंचाया है? 13O 17 17 और हे परमेश्वर ! यह तेरी दृष्टि में छोटी सी बात हुई, क्योंकि तू ने अपने दास के घराने के विषय भविष्य के बहुत दिनों तक की चर्चा की है, और हे यहोवा परमेश्वर ! तू ने मुझे ऊंचे पद का मतुष्य सा जाना है। 13O 17 18 जो महिमा तेरे दास पर दिखाई गई है, उसके विषय दाऊद तुझ से और क्या कह सकता है? तू तो अपने दास को जानता है। 13O 17 19 हे यहोवा ! तू ने अपने दास के निमित्त और अपने मन के अनुसार यह बड़ा काम किया है, कि तेरा दास उसको जान ले। 13O 17 20 हे यहोवा ! जो कुछ हम ने अपने कानों से सुना है, उसके अनुसार तेरे तुल्य कोई नहीं, और न तुझे छोड़ और कोई परमेश्वर है। 13O 17 21 फिर तेरी प्रजा इस्राएल के भी तुल्य कौन है? वह तो पृथ्वी भर में एक ही जाति है, उसे परमेश्वर ने जाकर अपनी निज प्रजा करने को छुड़ाया, इसलिये कि तू बड़े और डरावने काम करके अपना नाम करे, और अपनी प्रजा के साम्हने से जो तू ने मिस्र से छुड़ा ली थी, जाति जाति के लोगों को निकाल दे। 13O 17 22 क्योंकि तू ने अपनी प्रजा इस्राएल को अपनी सदा की प्रजा होने के लिये ठहराया, और हे यहोवा ! तू आप उसका परमेश्वर ठहरा। 13O 17 23 इसलिये, अब हे यहोवा, तू ने जो वचन अपने दास के और उसके घराने के विषय दिया है, वह सदैव अटल रहे, और अपने वचन के अनुसार ही कर। 13O 17 24 और तेरा नाम सदैव अटल रहे, और यह कहकर तेरी बड़ाई सदा की जाए, कि सेनाओं का यहोवा इस्राएल का परमेश्वर है, वरन वह इस्राएल ही के लिये परमेश्वर है, और तेरा दास दाऊद का घराना तेरे साम्हने स्थिर रहे। 13O 17 25 क्योंकि हे मेरे परमेश्वर, तू ने यह कहकर अपने दास पर प्रगट किया है कि मैं तेरा घर बनाए रखूंगा, इस कारण तेरे दास को तेरे सम्मुख प्रार्थना करने का हियाब हुआ है। 13O 17 26 और अब हे यहोवा तू ही परमेश्वर है, और तू ने अपने दास को यह भलाई करने का वचन दिया है। 13O 17 27 और अब तू ने प्रसन्न होकर, अपने दास के घराने पर ऐसी आशीष दी है, कि वह तेरे सम्मुख सदैव बना रहे, क्योंकि हे यहोवा, तू आशीष दे चुका है, इसलिये वह सदैव आशीषित बना रहे। 13O 18 1 इसके बाद दाऊद ने पलिश्तियों को जीतकर अपने अधीन कर लिया, और गांवों समेत गत नगर को पलिश्तियों के हाथ से छीन लिया। 13O 18 2 फिर उस ने मोआबियों का भी जीत लिया, और मोआबी दाऊद के अधीन होकर भेंट लाने लगे। 13O 18 3 फिर जब सोबा का राजा हदरेजेर परात महानद के पास अपने राज्य स्थिर करने को जा रहा था, तब दाऊद ने उसको हमात के पास जीत लिया। 13O 18 4 और दाऊद ने उससे एक हजार रथ, सात हजार सवार, और बीस हजार पियादे हर लिए, और दाऊद ने सब रथवाले घेड़ों के सुम की नस कटवाई, परन्तु एक सौ रथवाले धेड़े बचा रखे। 13O 18 5 और जब दमिश्क के अरामी, सोबा के राजा हदरेजेर की सहायता करने को आए, तब दाऊद ने अरामियों में से बाईस हजार पुरूष मारे। 13O 18 6 तब दाऊद ने दमिष्क के अराम में सिपाहियों की चौकियां बैठाई; सो अरामी दाऊद के अधीन होकर भेंट ले आने लगे। और जहां जहां दाऊद जाता, वहां वहां यहोवा उसको जय दिलाता था। 13O 18 7 और हदरेजेर के कर्मचारियों के पास सोने की जो ढालें थीं, उन्हें दाऊद लेकर यरूशलेम को आया। 13O 18 8 और हदरेजेर के तिभत और कून नाम नगरों से दाऊद बहुत सा पीतल ले आया; और उसी से सुलेमान ने पीतल के हौद और खम्भों और पीतल के पात्रों को बनवाया। 13O 18 9 जब हमात के राजा तोऊ ने सुना, कि दाऊद ने सोबा के राजा हदरेजेर की समस्त सेना को जीत लिया है, 13O 18 10 तब उस ने हदोराम नाम अपने पुत्रा को दाऊद राजा के पास उसका कुशल क्षेम पूछने और उसे बधाई देने को भेजा, इसलिये कि उस ने हदरेजेर से लड़कर उसे जीत लिया था; ( क्योंकि हदरेजेर तोऊ से लड़ा करता था ) और हदोराम सोने चांदी और पीतल के सब प्रकार के पात्रा लिये हुए आया। 13O 18 11 इनको दाऊद राजा ने यहोवा के लिये पवित्रा करके रखा, और वैसा ही उस सोने- चांदी से भी किया जिसे सब जातियो से, अर्थात् एदोमियों मोआबियों, अम्मोनियों, पलिश्तियों, और अमालेकियों से प्राप्त किया था। 13O 18 12 फिर यरूयाह के पुत्रा अबीशै ने लान की तराई में अठारह हजार एदोमियों को मार लिया। 13O 18 13 तब उस ने एदोम में सिपाहियों की चौकियां बैठाई; और सब एदोमी दाऊद के अधीन हो गए। और दाऊद जहां जहां जाता था वहां वहां यहोवा उसको जय दिलाता था। 13O 18 14 दाऊद तो सारे इस्राएल पर राज्य करता था, और वह अपनी सब प्रजा के साथ न्याय और धर्म के काम करता था। 13O 18 15 और प्रधान सेनापति सरूयाह का पुत्रा योआब था; इतिहास का लिखनेवाला अहीलूद का पुत्रा यहोशापात था। 13O 18 16 प्रधान याजक, अहीतूब का पुत्रा सादोक और एब्यातार का पुत्रा अबीमेलेक थे; मंत्री शबशा था। 13O 18 17 करेतियों और पलेतियों का प्रधान यहोयादा का पुत्रा बनायाह था; और दाऊद के पुत्रा राजा के पास मुखिये होकर रहते थे। 13O 19 1 इसके बाद अम्मोनियों का राजा नाहाश मर गया, और उसका पुत्रा उसके स्थान पर राजा हुआ। 13O 19 2 तब दाऊद ने यह सोचा, कि हानून के पिता नाहाश ने जो मुझ पर प्रीति दिखाई थी, इसलिये मैं भी उस पर प्रीति दिखाऊंगा। तब दाऊद ने उसके पिता के विषय शांति देने के लिये दूत भेजे। और दाऊद के कर्पचारी अम्मोनियों के देश में हानून के पास उसे शांति देने को आए। 13O 19 3 परन्तु अम्मोनियों के हाकिम हानून से कहने लगे, दाऊद ने जो तेरे पास शांति देनेवाले भेजे हैं, वह क्या तेरी समझ में तेरे पिता का आदर करने की मनसा से भेजे हैं? क्या उसके कर्मचारी इसी मनसा से तेरे पास नहीं आए, कि ढूंढ़- ढांढ़ करें और नष्ट करें, और देश का भेद लें? 13O 19 4 तब हानून ने दाऊद के कर्मचारियों को पकड़ा, और उनके बाल मुड़वाए, और आधे वस्त्रा अर्थात् नितम्ब तक कटवाकर उनको जाने दिया। 13O 19 5 तब कितनों ने जाकर दाऊद को बता दिया, कि उन पुरूषों के साथ कैसा बर्ताव किया गया, सो उस ने लोगों को उन से मिलने के लिये भेजा क्योंकि वे पुरूष बहुत लजाते थे। और राजा ने कहा, जब तक तुम्हारी दाढ़ियां बढ़ न जाएं, तब तक यरीहो में ठहरे रहो, और बाद को लौट आना। 13O 19 6 जब अम्मोनियों ने देखा, कि हम दाऊद को घिनौने लगते हैं, तब हानून और अम्मोनियों ने एक हजार किक्कार चांदी, अरम्नहरैम और अरम्माका और सोबा को भेजी, कि रथ और सवार किराये पर बुलाएं। 13O 19 7 सो उन्हों ने बत्तीस हजार रथ, और माका के राजा और उसकी सेना को किराये पर बुलाया, और इन्हों ने आकर मेदबा के साम्हने, अपने डेरे खड़े किए। और अम्मोनी अपने अपने नगर में से इकट्ठे होकर लड़ने को आए। 13O 19 8 यह सुनकर दाऊद ने योआब और शूरवीरों की पूरी सेना को भेजा। 13O 19 9 तब अम्मोनी निकले और नगर के फाटक के पास पांति बान्धी, और जो राजा आए थे, वे उन से अलग मैदान में थे। 13O 19 10 यह देखकर कि आगे पीछे दोनों ओर हमारे विरूद्ध पांति बन्धी हैं, योआब ने सब बड़े बड़े इस्राएली वीरों में से किततों को छांटकर अरामियों के साम्हने उनकी पांति बन्धाई; 13O 19 11 और शेष लोगों को अपने भाई अबीशै के हाथ सौंप दिया, और उन्हों ने अम्मोनियों के साम्हने पांति बान्धी। 13O 19 12 और उस ने कहा, यदि अरामी मुझ पर प्रबल होने लगें, तो तू मेरी सहायता करना; और यदि अम्मोनी तुझ पर प्रबल होने लगें, तो मैं तेरी सहायता करूंगा। 13O 19 13 तू हियाब बान्ध और हम सब अपने लोगों और अपने परमेश्वर के नगरों के निमित्त पुरूषार्थ करें; और यहोवा जैसा उसको अच्छा लगे, वैसा ही करेगा। 13O 19 14 तब योआब और जो लोग उसके साथ थे, अरामियों से युठ्ठ करने को उनके साम्हने गए, और वे उसके साम्हने से भागे। 13O 19 15 यह देखकर कि अरामी भाग गए हैं, अम्मोनी भी उसके भाई अबीशै के साम्हने से भागकर नगर के भीतर घुसे। तब योआब यरूशलेम को लौट आया। 13O 19 16 फिर यह देखकर कि वे इस्राएलियों से हार गए हैं अरामियों ने दूत भेजकर महानद के पार के अरामियों को बुलवाया, और हदरेजेर के सेनापति शोपक को अपना प्रधान बनाया। 13O 19 17 इसका समाचार पाकर दाऊद ने सब इस्राएलियों को इकट्ठा किया, और यरदन पार होकर उन पर चढ़ाई की और उनके विरूद्ध पांति बन्धाई, तब वे उस से लड़ने लगे। 13O 19 18 परन्तु अरामी इस्राएलियों से भागे, और दाऊद ने उन में से सात हजार रथियों और चालीस हजार प्यादों को मार डाला, और शोपक सेनापति को भी मार डाला। 13O 19 19 यह देखकर कि वे इस्राएलियों से हार गए हैं, हदरेजेर के कर्मचारियों ने दाऊद से संधि की और उसके अधीन हो गए; और अरामियों ने अम्मोनियों की सहायता फिर करनी न चाही। 13O 20 1 फिर नये वर्ष के आरम्भ में जब राजा लोग युठ्ठ करने को निकला करते हैं, तब योआब ने भारी सेना संग ले जाकर अम्मोनियों का देश उजाड़ दिया और आकर रब्बा को घेर लिया; परन्तु दाऊद यरूशलेम में रह गया; और योआब ने रब्बा को जीतकर ढा दिया। 13O 20 2 तब दाऊद ने उनके राजा का मुकुट उसके सिर से उतारकर क्या देखा, कि उसका तौल किक्कार भर सोने का है, और उस में मणि भी जड़े थे; और वह दाऊद के सिर पर रखा गया। फिर उस ने उस नगर से बहुत सामान लूट में पाया। 13O 20 3 और उस ने उसके रहनेवालों को निकालकर आरों और लोहे के हेंगों और कुल्हाड़ियों से कटवाया; और अम्मोनियों के सब नगरों के साथ भी दाऊद ने वैसा ही किया। तब दाऊद सब लोगों समेत यरूशलेम को लौट गया। 13O 20 4 इसके बाद गेजेर में पलिश्तियों के साथ युठ्ठ हुआ; उस समय हूशाई सिब्बकै ने सिप्पै को, जो रापा की सन्तान था, मार डाला; और वे दब गए। 13O 20 5 और पलिश्तियों के साथ फिर युठ्ठ हुआ; उस में याईर के पुत्रा एल्हानान ने गती गोल्यत के भाई लहमी को मार डाला, जिसके बर्छे की छड़, जुलाहे की डोंगी के समान थी। 13O 20 6 फिर गत में भी युठ्ठ हुआ, और वहां एक बड़े डील का पुरूष था, जो रापा की सन्तान था, और उसके एक एक हाथ पांव में छे छे उंगलियां अर्थात् सब मिलाकर चौबीस उंगलियां थीं। 13O 20 7 जब उस ने इस्राएलियों को ललकारा, तब दाऊद के भाई शिमा के पुत्रा योनातान ने उसको मारा। 13O 20 8 ये ही गत में रापा से उत्पन्न हुए थे, और वे दाऊद और उसके सेवकों के हाथ से मार डाले गए। 13O 21 1 और शैतान ने इस्राएल के विरूद्ध उठकर, दाऊद को उसकाया कि इस्राएलियों की गिनती ले। 13O 21 2 तब दाऊद ने योआब और प्रजा के हाकिमों से कहा, तुम जाकर बर्शेबा से ले दान तक के इस्राएल की गिनती लेकर मुझे बताओ, कि मैं जान लूं कि वे कितने हैं। 13O 21 3 योआब ने कहा, यहोवा की प्रजा के कितने ही क्यों न हों, वह उनको सौ गुना बढ़ा दे; परन्तु हे मेरे प्रभु ! हे राजा ! क्या वे सब राजा के अधीन नहीं हैं? मेरा प्रभु ऐसी बात क्यों चाहता है? वह इस्राएल पर दोष लगने का कारण क्यों बने? 13O 21 4 तौभी राजा की आज्ञा योआब पर प्रबल हुई। तब योआब विदा होकर सारे इस्राएल में धूमकर यरूशलेम को लौट आया। 13O 21 5 तब योआब ने प्रजा की गिनती का जोड़, दाऊद को सुनाया और सब तलवारिये पुरूष इस्राएल के तो ग्यारह लाख, और यहूदा के चार लाख सत्तर हजार ठहरे। 13O 21 6 परन्तु उन में योआब ने लेवी और बिन्यामीन को न गिना, क्योंकि वह राजा की आज्ञा से घुणा करता था 13O 21 7 और यह बात परमेश्वर को बुरी लगी, इसलिये उस ने इस्राएल को मारा। 13O 21 8 और दाऊद ने परमेश्वर से कहा, यह काम जो मैं ने किया, वह महापाप है। परन्तु अब अपने दास का अधर्म दूर कर; मुझ से तो बड़ी मूर्खता हुई है। 13O 21 9 तब यहोवा ने दाऊद के दश गाद से कहा, 13O 21 10 जाकर दाऊद से कह, कि यहोवा यों कहता है, कि मैं तुझ को तीन विपत्तियां दिखाता हूँ, उन में से एक को चुन ले, कि मैं उसे तुझ पर डालूं। 13O 21 11 तब गाद ने दाऊद के पास जाकर उस से कहा, यहोवा यों कहता है, कि जिसको तू चाहे उसे चुन ले : 13O 21 12 या तो तीन वर्ष का काल पड़े; वा तीन महीने तक तेरे विरोधी तुझे नाश करते रहें, और तेरे शत्रुऔं की तलवार तुझ पर चलती रहे; वा तीन दिन तक यहोवा की तलवार चले, अर्थात् मरी देश में फैले और यहोवा का दूत इस्राएली देश में चारों ओर विनाश करता रहे। अब सोच, कि मैं अपने भेजनेवाले को क्या उत्तर दूं। 13O 21 13 दाऊद ने गाद से कहा, मैं बड़े संकट में पड़ा हूँ; मैं यहोवा के हाथ में पड़ूं, क्योंकि उसकी दया बहुत बड़ी है; परन्तु मनुष्य के हाथ में मुझे पड़ना न पड़े। 13O 21 14 तब यहोवा ने इस्राएल में मरी फैलाई, और इस्राएल में सत्तर हजार पुरूष मर मिटे। 13O 21 15 फिर परमेश्वर ने एक दूत यरूशलेम को भी उसे नाश करने को भेजा; और वह नाश करने ही पर था, कि यहोवा दु:ख देने से खेदित हुआ, और नाश करनेवाले दूत से कहा, बस कर; अब अपना हाथ खींच ले। और यहोवा का दूत यबूसी ओर्नान के खलिहान के पास खड़ा था। 13O 21 16 और दाऊद ने आंखें उठाकर देखा, कि यहोवा का दूत हाथ में खींची हुई और यरूशलेम के ऊपर बढ़ाई हुई एक तलवार लिये हुए आकाश के बीच खड़ा है, तब दाऊद और पुरनिये टाट पहिने हुए मुंह के बल गिरे। 13O 21 17 तब दाऊद ने परमेश्वर से कहा, जिस ने प्रजा की गिनती लेने की आज्ञा दी थी, वह क्या मैं नहीं हूँ? हां, जिस ने पाप किया और बहुत बुराई की है, वह तो मैं ही हूँ। परन्तु इन भेड़- बकरियों ने क्या किया है? इसलिये हे मेरे परमेश्वर यहोवा ! तेरा हाथ मेरे पिता के घराने के विरूद्ध हो, परन्तु तेरी प्रजा के विरूद्ध न हो, कि वे मारे जाएं। 13O 21 18 तब यहोवा के दूत ने गाद को दाऊद से यह कहने की आज्ञा दी, कि दाऊद चढ़कर यबूसी ओर्नान के खलिहान में यहोवा की एक वेदी बनाए। 13O 21 19 गाद के इस वचन के अनुसार जो उस ने यहोवा के नाम से कहा था, दाऊद चढ़ गया। 13O 21 20 तब ओर्नान ने पीछे फिर के दूत को देखा, और उसके चारों बेटे जो उसके संग थे छिप गए, ओर्नान तो गेहूं दांवता था। 13O 21 21 जब दाऊद ओर्नान के पास आया, तब ओर्नान ने दृष्टि करके दाऊद को देखा और खलिहान से बाहर जाकर भूमि तक झुककर दाऊद को दणडवत किया। 13O 21 22 तब दाऊद ने ओर्नान से कहा, उस खलिहान का स्थान मुझे दे दे, कि मैं उस पर यहोवा को एक वेदी बनाऊं, उसका पूरा दाम लेकर उसे पुझ को दे, कि यह विपित्त प्रजा पर से दूर की जाए। 13O 21 23 ओर्नान ने दाऊद से कहा, इसे ले ले, और मेरे प्रभु राजा को जो कुछ भाए वह वही करे; सुन, मैं तुझे होमबलि के लिये बैल और ईधन के लिये दांबने के हथियार और अन्नबलि के लिये गेहूं, यह सब मैं देता हूँ। 13O 21 24 राजा दाऊद ने ओर्नान से कहा, सो नहीं, मैं अवश्य इसका पूरा दाम ही देकर इसे मोल लूंगा; जो तेरा है, उसे मैं यहोवा के लिये नहीं लूंगा, और न सेंतमेंत का होमबलि चढ़ाऊंगा। 13O 21 25 तब दाऊद ने उस स्थान के लिये ओर्नान को छे सौ शेकेल सोना तौलकर दिया। 13O 21 26 तब दाऊद ने वहां यहोवा की एक वेदी बनाई और होमबलि और मेलबलि चढ़ाकर यहोवा से प्रार्थना की, और उस ने होपबलि की वेदी पर स्वर्ग से आग गिराकर उसकी सुन ली। 13O 21 27 तब यहोवा ने दूत को आज्ञा दी; और उस ने अपनी तलवार फिर म्यान में कर ली। 13O 21 28 यह देखकर कि यहोवा ने यबूसी ओर्नान के खलिहान में मेरी सुन ली है, दाऊद ने उसी समय वहां बलिदान किया। 13O 21 29 यहोवा का निवास जो मूसा ने जंगल में बनाया था, और होमबलि की वेदी, ये दोनों उस समय गिबोन के ऊंचे स्थान पर थे। 13O 21 30 परन्तु दाऊद परमेश्वर के पास उसके साम्हने न जा सका, क्योंकि वह यहोवा के दूत की तलवार से डर गया था। 13O 22 1 तब दाऊद कहने लगा, यहोवा परमेश्वर का भवन यही है, और इस्राएल के लिये होमबलि की वेदी यही है। 13O 22 2 तब दाऊद ने इस्राएल के देश में जो परदेशी थे उनको इकट्ठा करने की आज्ञा दी, और परमेश्वर का भवन बनाने को पत्थर गढ़ने के लिये राज ठहरा दिए। 13O 22 3 फिर दाऊद ने फाटकों के किवाड़ों की कीलों और जोड़ों के लिये बहुत सा लोहा, और तौल से बाहर बहुत पीतल, 13O 22 4 और गिनती से बाहर देवदार के पेड़ इकट्ठे किए; क्योंकि सीदोन और सोर के लोग दाऊद के पास बहुत से देवदार के पेड़ लाए थे। 13O 22 5 और दाऊद ने कहा, मेरा पुत्रा सुलैमान सुकुमार और लड़का है, और जो भवन यहोवा के लिये बनाना है, उसे अत्यन्त तेजोमय और सब देशों में प्रसिठ्ठ और शोभायमान होना चाहिये; इसलिये मैं उसके लिये तैयारी करूंगा। सो दाऊद ने मरने से पहिले बहुत तैयारी की। 13O 22 6 फिर उस ने अपने पुत्रा सुलैमान को बुलाकर इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के लिये भवन बनाने की आज्ञा दी। 13O 22 7 दाऊद ने अपने पुत्रा सुलैमान से कहा, मेरी मनसा तो थी, कि अपने परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनाऊं। 13O 22 8 परन्तु यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा, कि तू ने लोहू बहुत बहाया और बढ़े बड़े युठ्ठ किए हैं, सो तू मेरे नाम का भवन न बनाने पाएगा, क्योंकि तू ने भूमि पर मेरी दृष्टि में बहुत लोहू बहाया है। 13O 22 9 देख, तुझ से एक पुत्रा उत्पन्न होगा, जो शान्त पुरूष होगा; और मैं उसको चारों ओर के शत्रुऔं से शान्ति दूंगा; उसका नाम तो सुलैमान होगा, और उसके दिनों में मैं इस्राएल को शान्ति और चैन दूंगा। 13O 22 10 वही मेरे नाम का भवन बनाएगा। और वही मेरा पुत्रा ठहरेगा और मैं उसका पिता ठहरूंगा, और उसकी राजगद्दी को मैं इस्राएल के ऊपर सदा के लिये स्थिर रखूंगा। 13O 22 11 अब हे मेरे पुत्रा, यहोवा तेरे संग रहे, और तू कृतार्थ होकर उस वचन के अनुसार जो तेरे परमेश्वर यहोवा ने तेरे विषय कहा है, उसका भवन बनाना। 13O 22 12 अब यहोवा तुझे बुध्दि और समझ दे और इस्राएल का अधिकारी ठहरा दे, और तू अपने परमेश्वर यहोवा की रयवस्था को मानता रहे। 13O 22 13 तू तब ही कृतार्थ होगा जब उन विधियों और नियमों पर चलने की चौकसी करेगा, जिनकी आज्ञा यहोवा ने इस्राएल के लिये मूसा को दी थी। हियाब बान्ध और दृढ़ हो। मत डर; और तेरा मन कच्चा न हो। 13O 22 14 सुन, मैं ने अपने क्लेश के समय यहोवा के भवन के लिये एक लाख किक्कार सोना, और दस लाख किक्कार चान्दी, और पीतल और लोहा इतना इकट्ठा किया है, कि बहुतायत के कारण तौल से बाहर है; और लकड़ी और पत्थर मैं ने इकट्ठे किए हैं, और तू उनको बढ़ा सकेगा। 13O 22 15 और तेरे पास बहुत कारीगर हैं, अर्थात् पत्थर और लकड़ी के काटने और गढ़नेवाले वरन सब भांति के काम के लिये सब प्रकार के प्रवीण पुरूष हैं। 13O 22 16 सोना, चान्दी, पीतल और लोहे की तो कुछ गिनती नहीं है, सो तू उस काम में लग जा ! यहोवा तेरे संग नित रहे। 13O 22 17 फिर दाऊद ने इस्राएल के सब हाकिमों को अपने पुत्रा सुलैमान की सहायता करने की आज्ञाा यह कहकर दी, 13O 22 18 कि क्या तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे संग नहीं है? क्या उस ने नुम्हें चारों ओर से विश्राम नहीं दिया? उस ने तो देश के निवासियों को मेरे वश में कर दिया है; और देश यहोवा और उसकी प्रजा के साम्हने दबा हुआ है। 13O 22 19 सब तन मन से अपने परमेश्वर यहोवा के पास जाया करो, और जी लगाकर यहोवा परमेश्वर का पवित्रास्थान बनाना, कि तुम यहोवा की वाचा का सन्दूक और परमेश्वर के पवित्रा पात्रा उस भवन में लाओ जो यहोवा के नाम का बननेवाला है। 13O 23 1 दाऊद तो बूढ़ा वरन बहुत बूढा हो गया था, इसलिये उस ने अपने पुत्रा सुलैमान को इसगाएल पर राजा नियुक्त कर दिया। 13O 23 2 तब उस ने इस्राएल के सब हाकिमों और याजकों और लेमियों को इकट्ठा किया। 13O 23 3 और जितने लेवीय तीस वर्ष के और उस से अधिक अवस्था के थे, वे गिने एए, और एक एक पुरूष के गिनने से उनकी गिनती अड़तीस हजार हुई। 13O 23 4 इन में से चौबीस हजार तो यहोवा के भवन का काम चलाने के लिये नियुक्त हुए, और छे हजार सरदार और न्यायी। 13O 23 5 और चार हजार द्वारपाल नियुक्त हुए, और चार हजार उन बाजों से यहोवा की स्तुति करने के लिये ठहराए गए जो दाऊद ने स्तुति करने के लिये बनाए थे। 13O 23 6 फिर दाऊद ने उनको गेश न, कहात और मरारी नाम लेवी के पुत्रों के अनुसार दलों में अलग अलग कर दिया। 13O 23 7 गेश नियों में से तो लादान और शिमी थे। 13O 23 8 और लादान के पुत्रा : सरदार यहीएल, फिर जेताम और योएल ये तीन थे। 13O 23 9 और शिमी के पुत्रा : शलेमीत, हजीएल और हारान से तीन थे। लादान के कुल के पूर्वजों के घरानों के मुख्य पुरूष ये ही थे। 13O 23 10 फिर शिमी के पुत्रा : यहत, जीना, यूश, और वरीआ के पुत्रा शिमी यही चार थे। 13O 23 11 यहत मुख्य था, और जीजा दूसरा; यूश और बरीआ के वहुत बेटे न हुए, इस कारण वे सब मिलकर पितरों का एक ही घराना ठहरे। 13O 23 12 कहात के पुत्रा : अम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल चार। अम्राम के पुत्रा : हारून और मूसा। 13O 23 13 हारून तो इसलिये अलग किया गया, कि वह और उसके सन्तान सदा परमपवित्रा वस्तुओं को पवित्रा ठहराएं, और सदा यहोवा के सम्मुख धूप जलाया करें और उसकी सेवा टहल करें, और उसके नाम से आशीर्वाद दिया करें। 13O 23 14 परन्तु परमेश्वर के भक्त मूसा के पुत्रों के नाम लेवी के गोत्रा के बीच गिने गए। 13O 23 15 मूसा के पुत्रा, गेश म और एलीएजेर। 13O 23 16 और गेश म का पुत्रा शबूएल मुख्य था। 13O 23 17 और एलीएजेर के पुत्रा : रहब्याह मुख्य; और एलीएजेर के और कोई पुत्रा न हुआ, परन्तु रहब्याह के बहुत से बेटे हुए। 13O 23 18 यिसहार के पुत्रों में से शलोमीत मुख्य ठहरा। 13O 23 19 हेब्रोन के पुत्रा : यरीरयाह मुख्य, दूसरा अमर्याह, तीसरा यहजीएल, और चौथा यकमाम था। 13O 23 20 उज्जीएल के पुत्रों में से मुख्य तो मीका और दूसरा यिश्शिरयाह था। 13O 23 21 मरारी के पुत्रा : महली और मूशी। महली के पुत्रा : एलीआजर और कीश थे। 13O 23 22 एलीआजर पुत्राहीन मर गया, उसके केवल बेटियां हुई; सो कीश के पुत्रों ने जो उनके भाई थे उन्हें ब्याह लिया। 13O 23 23 मूशी के पुत्रा : महली; एदोर और यरेमोत यह तीन थे। 13O 23 24 लेवीय पितरों के घरानों के मुख्य पुरूष ये ही थे, ये नाम ले लेकर, एक एक पुरूष करके गिने गए, और बीस वर्ष की वा उस से अधिक अवस्था के थे और यहोवा के भवन में सेवा टहल करते थे। 13O 23 25 क्योंकि दाऊद ने कहा, इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने अपनी प्रजा को विश्राम दिया है, और वह तो यरूशलेम में सदा के लिये बस गया है। 13O 23 26 और लेवियों को निवास और उस की उपासना का सामान फिर उठाना न पड़ेगा । 13O 23 27 क्योंकि दाऊद की पिछली आज्ञाओं के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्था के लेवीय गिने गए। 13O 23 28 क्योंकि उनका काम तो हारून की सन्तान की सेवा टहल करना था, अर्थात यह कि वे आंगनों और कोठरियों में, और सब पवित्रा वस्तुओं के शुठ्ठ करने में और परमेश्वर के भवन की उपासना के सब कामों में सेवा टहल करें। 13O 23 29 और भेंट की रोटी का, अन्नबलियों के मैदे का, और अखमीरी पपड़ियों का, और तवे पर बनाए हुए और सने हुए का, और मापने और तौलने के सब प्रकार का काम करें। 13O 23 30 और प्रति भोर और प्रति सांझ को यहोवा का धन्यवाद और उसकी स्तुति करने के लिये खड़े रहा करें। 13O 23 31 और विश्रामदिनों और नये चान्द के दिनों, और नियत परव में गिनती के नियम के अनुसार नित्य यहोवा के सब होपबलियों को बढ़ाएं। 13O 23 32 और यहोवा के भवन की उपासना के विषय मिलापवाले नम्बू और पवित्रास्थान की रक्षा करें, और अपने भाई हारूनियों के सौंपे हुए काम को चौकसी से करें। 13O 24 1 फिर हारून की सन्तान के दल ये थे। हारून के पुत्रा तो नादाब, अबीहू, एलीआजर और ईतामार थे। 13O 24 2 परन्तु नादाब और अबीहू अपने पिता के साम्हने पुत्राहीन मर गए, इस लिये याजक का काम एलीआजर और ईतामार करते थे। 13O 24 3 और दाऊद ने एलीआजर के वंश के सादोक और ईतामार के वंश के अहांमेलेक की सहायता से उनको अपनी अपनी सेवा के अनुसार दल दल करके बांट दिया। 13O 24 4 और एलीआजर के वंश के मुख्य पुरूष, ईतामार के वंश के मुख्य पुरूषों से अधिक थे, और वे यों बांटे गए अर्थात् एलीआजर के वंश के पितरों के घरानों के सोलह, और ईतामार के वंश के पितरों के घरानों के आठ मुख्य पुरूष थे। 13O 24 5 तब वे चिट्ठी डालकर बराबर बराबर बांटे गए, क्योंकि एलीआजर और ईतामार दोनों के वंशों में पवित्रास्थान के हाकिम और परमेश्वर के हाकिम नियुक्त हुए थे। 13O 24 6 और नतनेल के पुत्रा शमायाह ने जो लेवीय था, उनके नाम राजा और हाकिमों और सादोक याजक, और एब्यातार के पुत्रा अहीमेलेक और याजकों और लेवियों के पितरों के घरानों के मुख्य पुरूषोंके साम्हने लिखे; अर्थात् पितरों का एक घराना तो एलीआजर के वंश में से और एक ईतामार के वंश में से लिया गया। 13O 24 7 पहिली चिट्ठी तो यहोयारीब के, और दूसरी यदायाह, 13O 24 8 तीसरी हारीम के, चौथी सोरीम के, 13O 24 9 13O 24 10 पांचवीं मल्किरयाह के, छठवीं मिरयामीन के, 13O 24 11 सातवीं हक्कोस के, आठवीं अबिरयाह के, 13O 24 12 नौवीं येहाू के, दसवीं शकन्याह के, 13O 24 13 ग्यारहवीं एल्याशीब के, बारहवीं याकीम के, 13O 24 14 तेरहवीं हुप्पा के, चौदहवीं येसेबाब के, 13O 24 15 पन्द्रहवीं बिल्गा के, लोलहवीं इम्मेर के, 13O 24 16 सतरहवीं हेजीर के, अठारहवीं हप्पित्सेस के, 13O 24 17 उन्नीसवीं पतह्माह के, बीसवीं यहेजकेल के, 13O 24 18 इक्कीसवीं याकीन के, बाईसवीं गामूल के, 13O 24 19 तेईसवीं दलायाह के, और चौबीसवीं साज्याह के नाम पर निकलीं। 13O 24 20 उनकी सेवकाई के लिये उनका यही नियम ठहराया गया कि वे अपने उस नियम के अनुसार जो इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार उनके मूलपुरूष हारून ने चलाया था, यहोवा के भवन में जाया करें। 13O 24 21 बचे हुए लेवियों में से अम्राम के वंश में से शूबाएल, शूबाएल के वंश में से येहदयाह। 13O 24 22 बचा रहब्याह, सोरहब्याह, के वंश में से यिश्शिरयाह मुख्य था। 13O 24 23 इसहारियों में से शलोमोत और हालोमोत के वंश में से यहत। 13O 24 24 और हेब्रोन के वंश में से मुख्य तो यरिरयाह, दूसरा अमर्याह, तीसरा यहजीएल, और चौथा यकमाम। 13O 24 25 उज्जीएल के वंश में से मीका और मीका के वंश में से शामीर। 13O 24 26 मीका का भाई यिश्शिरयाह, यिश्शिरयाह के वंश में से जकर्याह। 13O 24 27 मरारी के पुत्रा महली और मूशी और याजिरयाह का पुत्रा बिनो था। 13O 24 28 मरारी के पुत्रा : याजिरयाह से बिनो और शोहम, जक्कू और इब्री थे। 13O 24 29 महली से, एलीआजर जिसके कोई पुत्रा न था। 13O 24 30 कीश से कीश के वंश में यरह्मोल। 13O 24 31 और मूशी के पुत्रा, महली, एदेर और यरीमोत। अपने अपने पितरो के घरानों के अनुसार ये ही लेवीय सन्तान के थे। 13O 24 32 इन्हों ने भी अपने भाई हारून की सन्तानों की नाई दाऊद राजा और सादोक और अहीमेलेक और याजकों और लेवियों के पितरों के घरानों के मुख्य पुरूषों के साम्हने चिटि्ठयां डालीं, अर्थात् मुख्य पुरूष के पितरों का घराना उसके छोटे भाई के पितरों के घराने के बराबर ठहरा। 13O 25 1 फिर दाऊद और सेनापतियों ने आसाप, हेमान और यदूतून के कितने पुत्रों को सेवकाई के लिये अलग किया कि वे वीणा, सारंगी और झांझ बजा बजाकर नबूवत करें। और इस सेवकाई के काम करनेवाले मनुष्यों की गिनती यह थी : 13O 25 2 अर्थात् आसाप के पुत्रों में से तो जक्कूर, योसेप, नतन्याह और अशरेला, आसाप के ये पुत्रा आसाप ही की आज्ञा में थे, जो राजा की आज्ञा के अनुसार नबूवत करता था। 13O 25 3 फिर यदूतून के पुत्रों में से गदल्याह, सरीयशायाह, हसब्याह, मत्तित्याह, ये ही छे अपने पिता यदूतून की आज्ञा में होकर जो यहोवा का धन्यवाद और स्तुति कर करके नबूवत करता था, वीणा बजाते थे। 13O 25 4 और हेमान के पुत्रों में से, मुक्किरयाह, मत्तन्याह, लज्जीएल, शबूएल, यरीमोत, हनन्याह, हनानी, एलीआता, गि लती, रोममतीएजेर, योशबकाशा, मल्लोती, होतीर और महजीओत। 13O 25 5 परमेश्वर की प्रतिज्ञानुकूल जो उसका नाम बढ़ाने की थी, ये सब हेमान के पुत्रा थे जो राजा का दश था; क्योंकि परमेश्वर ने हेमान को चौदह बेटे और तीन बेटियां दीं थीं। 13O 25 6 ये सब यहोवा के भवन में गाने के लिये अपने अपने पिता के अधीन रहकर, परमेश्वर के भवन, की सेवकाई में झांझ, सारंगी और वीणा बजाते थे। और आसाप, यदूतून और हेमान राजा के अधीन रहते थे। 13O 25 7 इन सभों की गिनती भाइयों समेत जो यहोवा के गीत सीखे हुए और सब प्रकार से निपुण थे, दो सौ अठासी थी। 13O 25 8 और उन्हों ने क्या बड़ा, क्या छोटा, क्या गुरू, क्या चेला, अपनी अपनी बारी के लिये चिट्ठी डाली। 13O 25 9 और पहिली चिट्ठी आसाप के बेटों में से योसेप के नाम पर निकली, दूसरी गदल्याह के नाम पर निकली जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 10 तीसरी जक्कूर के नाम पर निकली जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 11 चौथी यिस्री के नाम पर निकली जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 12 पांचवीं नतन्याह के नाम पर निकली जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 13 छठीं बुक्किरयाह के नाम पर निकली जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 14 सातवीं यसरेला के नाम पर निकली जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 15 आठवीं यशायाह के नाम पर निकली जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 16 नौवीं मतन्याह के नाम पर निकली, जिसके पुत्रा और भाई समेत बारह थे। 13O 25 17 दसवीं शिमी के नाम पर निकली जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 18 ग्यारहवीं अजरेल के नाम पर निकली जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 19 बारहवीं हशब्याह के नाम पर निकली, जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 20 13O 25 21 तेरहवी शूबाएल के नाम पर निकली, जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 22 चौदहवीं मत्तिरयाह के नाम पर निकली जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 23 पन्द्रहवीं यरेमोत के नाम पर निकली जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 24 सोलहवीं हनन्याह के नाम पर निकली, जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 25 सत्राहवीं योशबकाशा के नाम पर निकली जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 26 अठारहवीं हरानी के नाम पर निकली जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 27 उन्नीसवीं मल्लोती के नाम पर निकली, जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 28 बीसवीं इलिरयाता के नाम पर निकली जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 29 इक्कीसवीं होतीर के नाम पर निकली जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 30 बाईसवीं गि लती के नाम पर तिकली जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 31 तेईसवीं महजीओत के नाम पर निकली जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 25 32 और चौबीसवीं चिट्ठी रोममतीएजेर के नाम पर निकली जिसके पुत्रा और भाई उस समेत बारह थे। 13O 26 1 फिर द्वारपालों के दल ये थे : कोरहियों में से तो मशेलेम्याह, जो कोरे का पुत्रा और आसाप के सन्तानों मेंसे था। 13O 26 2 और मशेलेम्याह के पुत्रा हुए, अर्थात् उसका जेठा जकर्याह दूसरा यदीएल, तीसरा जवद्याह, 13O 26 3 चौथा यतीएल, पांचवां एलाम, छठवां यहोहानान और सातवां एल्यहोएनै। 13O 26 4 फिर ओबेदेदोम के भी पुत्रा हुए, उसका जेठा शमायाह, दूसरा यहोजाबाद, तीसरा योआह, चौथा साकार, पांचवां नतनेल, 13O 26 5 छठवां अम्मीएल, सातवां इस्साकार और आठवां पुल्लतै, क्योंकि परमेश्वर ने उसे आशीष दी थी। 13O 26 6 और उसके पुत्रा शमायाह के भी पुत्रा उत्पन्न हुए, जो शूरवीर होने के कारण अपने पिता के घराने पर प्रभुता करते थे। 13O 26 7 शमायाह के पुत्रा ये थे, अर्थात् ओती, रपाएल, ओबेद, एलजाबाद और उनके भाई एलीहू और समक्याह बलवान पुरूष थे। 13O 26 8 ये सब आबेदेदोम की सन्तान में से थे, वे और उनके पुत्रा और भाई इस सेवकाई के लिये बलवान और शक्तिमान थे; ये ओबेदेदोमी बासठ थे। 13O 26 9 और मशेलेम्याह के पुत्रा और भाई अठारह थे, जो बलवान थे। 13O 26 10 फिर मरारी के वंश में से होसा के भी पुत्रा थे, अर्थात् मुख्य तो शिम्री ( जिसको जेठा न होने पर भी उसके पिता ने मुख्य ठहराया ), 13O 26 11 दूसरा हिल्किरयाह, तीसरा तबल्याह और चौथा जकर्याह था; होसा के सब पुत्रा और भाई मिलकर तेरह थे। 13O 26 12 द्वारपालों के दल इन मुख्य पुरूषों के थे, ये अपने भाइयों के बराबर ही यहोवा के भवन में सेवा टहल करते थे। 13O 26 13 इन्हों ने क्या छोटे, क्या बड़े, अपने अपने पितरों के घरानों के अनुसार एक एक फाटक के लिये चिट्ठी डाली। 13O 26 14 पूर्व की ओर की चिट्ठी शेलेम्याह के नाम पर निकली। तब उन्हों ने उसके पुत्रा जकर्याह के नाम की चिट्ठी डाली ( वह बुध्दिमान मंत्री था ) और चिट्ठी उत्तर की ओर के लिये निकली। 13O 26 15 दक्खिन की ओर के लिये ओबोदेदोम के नाम पर चिट्ठी निकली, और उसके बेटों के नाम पर खजाने की कोठरी के लिये। 13O 26 16 फिर शुप्पीम और होसा के नामों की चिट्ठी पश्चिम की ओर के लिये निकली, कि वे शल्लेकेत नाम फाटक के पास चढ़ाई की सड़क पर आम्हने साम्हने चौकीदारी किया करें। 13O 26 17 पूर्व ओर जो छे लेवीय थे, उत्तर की ओर प्रतिदिन चार, दक्खिन की ओर प्रतिदिन चार, और खजाने की कोठरी के पास दो ठहरे। 13O 26 18 पश्चिम ओर के पर्बार नाम स्थान पर ऊंची सड़क के पास तो चार और पर्बार के पास दो रहे। 13O 26 19 ये द्वारपालों के दल थे, जिन में से कितने तो कोरह के थे और कितने मरारी के वंश के थे। 13O 26 20 फिर लेवियों में से अहिरयाह परमेश्वर के भवन और पवित्रा की हुई वस्तुओं, दोनों के भण्डारों का अधिकारी नियुक्त हुआ। 13O 26 21 ये लादान की सन्तान के थे, अर्थात् गेर्शेनियों की सन्तान जो लादान के कुल के थे, अर्थात् लादान और गेर्शेनी के पितरों के घरानों के मुख्य पुरूष थे, अर्थात् यहोएली । 13O 26 22 यहोएली के पुत्रा ये थे, अर्थात् जेताम और उसका भाई योएल जो यहोवा के भवन के खजाने के अधिकारी थे। 13O 26 23 अम्रामियों, यिसहारियों, हेब्रोनियों और उज्जीएलियों में से। 13O 26 24 और शबूएल जो मूसा के पुत्रा गेर्शेम के वंश का था, वह खजानों का मुख्य अधिकारी था। 13O 26 25 और उसके भाइयों का वृत्तान्त यह है : एलीआजर के कुल में उसका पुत्रा रहब्याह, रहब्याह का पुत्रा यशायाह, यशायाह का पुत्रा योराम, योराम का पुत्रा जिक्री, और जिक्री का पुत्रा शलोमोत था। 13O 26 26 यही शलोमोत अपने भाइयों समेत उन सब पवित्रा की हुई पस्तुओं के भण्डारों का अधिकारी था, जो राजा दाऊद और पितरों के घरानों के मुख्य मुख्य पुरूषों और सहस्रपतियों और शतपतियों और मुख्य सेनापतियों ने पवित्रा की थीं। 13O 26 27 जो लूट लड़ाइयों में मिलती थी, उस में से उन्हों ने यहोवा का भवन दृढ़ करने के लिये कुछ पवित्रा किया। 13O 26 28 वरन जितना शमूएल दश , कीश के पुत्रा शाऊल, नेर के पुत्रा अब्नेर, और सरूयाह के पुत्रा योआब ने पवित्रा किया था, और जो कुछ जिस किसी ने पवित्रा कर रखा था, वह सब शलोमोत और उसके भाइयों के अधिकार में था। 13O 26 29 यिसहारियों में से कनन्याह और उसके पुत्रा, इस्राएल के देश का काम अर्थात् सरदार और न्यायी का काम करने के लिये नियुक्त हुए। 13O 26 30 और हेब्रोनियों में से हशरयाह और उसके भाई जो सत्राह सौ बलवान पुरूष थे, वे यहोवा के सब काम और राजा की सेवा के विषय यरदन की पश्चिम ओर रहनेवाले इस्राएलियों के अणिकारी ठहरे। 13O 26 31 हेब्रोनियों में से यरिरयाह मुख्य था, अर्थात् हेब्रोनियों की पीढ़ी पीढ़ी के पितरों के घरानों के अनुसार दाऊद के राज्य के चालीसवें वर्ष में वे ढूंढ़े गए, और उन में से कई शूरवीर गिलाद के याजेर में मिले। 13O 26 32 और उसके भाई जो वीर थे, पितरों के घरानों के दो हाजार सात सौ मुख्य पुरूष थे, इनको दाऊद राजा ने परमेश्वर के सब विषयों और राजा के विषय में रूबेनियों, गादियों और मनश्शेके आधे गोत्रा का अधिकारी ठहराया। 13O 27 1 इस्राएलियो की गिनती, अर्थात् मितरों के घरानों के मुख्य मुख्य पुरूषों और यहस्रपतियों और शतपतियों और उनके सरदारों की गिनती जो वर्ष भर के महीने महीने उपस्थित होने और छुट्टी पानेवाले दलों के सब विषयों में राजा की सेवा टहल करते थे, एक एक दल में चौबीस हजार थे। 13O 27 2 पहिले महीने के लिये पहिले दल का अधिकारी जब्दीएल का पुत्रा याशोबाम नियुक्त हुआ; और उसके दल में चौबीस हजार थे। 13O 27 3 वह पेरेस के वंश का था और पहिले महीने में सब सेनापतियों का अधिकारी था। 13O 27 4 और दूसरे महीने के दल का अधिकारी दोदै नाम एक अहोही था, और उसके दल का प्रधान मिक्लोत था, और उसके दल में चौबीस हजार थे। 13O 27 5 तीसरे महीने के लिये तीसरा सेनापति यहोयादा याजक का पुत्रा बनायाह था और उसके दल में चौबीस हजार थे। 13O 27 6 यह वही बनायाह है, जो तीसों शूरों में वीर, और तीसों में श्रेष्ठ भी था; और उसके दल में उसका पुत्रा अम्मीजाबाद था। 13O 27 7 चौथे महीने के लिये चौथा सेनापति योआब का भाई असाहेल था, और उसके बाद उसका पुत्रा जबद्याह था और उसके दल में चौबीस हजार थे। 13O 27 8 पांचवें महीने के लिये पांचवां सेनापति यिज्राही शम्हूत था और उसके दल में चौबीस हजार थे। 13O 27 9 छठवें महीने के लिये छठवां सेनापति तकोई इक्केश का पुत्रा ईरा था और उसके दल में चौबीस हजार थे। 13O 27 10 सातवें महीने के लिये सातवां सेनापति एप्रैम के वंश का हेलेस पलोनी था और उसके दल में चौबीस हजार थे। 13O 27 11 आठवें महीने के लिये आठवां सेनापति जेरह के वंश में से हूशाई सिब्बकै था और उसके दल में चौबीस हजार थे। 13O 27 12 नौवें महीने के लिये नौवां सेनापति बिन्यामीनी अबीएजेर अनातोतवासी था और उसके दल में चौबीस हजार थे। 13O 27 13 दसवें महीने के लिये दसवां सेनापति जेरही महरै नतोपावासी था और उसके दल में चौबीस हजार थे। 13O 27 14 ग्यारहवें महीने के लिये ग्यारहवां सेनापति एप्रैम के वंश का बनायाह पिरातोनवासी था और उसके दल में चौबीस हजार थे। 13O 27 15 बारहवें महीने के लिये बारहवां सेनापति ओत्नीएल के वंश का हेल्दै नतोपावासी था और उसके दल में चौबीस हजार थे। 13O 27 16 फिर इस्राएली गोत्रों के ये अधिकारी थे : अर्थात् रूबेनियों का प्रधान जिक्री का पुत्रा एलीआज़र; शिमोनियों से माका का पुत्रा शपत्याह। 13O 27 17 लेवी से कमूएल का पुत्रा हशब्याह; हारून की सन्तान का सादोक। 13O 27 18 यहूदा का एलीहू नाम दाऊद का एक भाई, इस्साकार से मीकाएल का पुत्रा ओम्नी। 13O 27 19 जबूलून से ओबद्याह का पुत्रा यिशमायाह, नप्ताली से अज्रीएल का पुत्रा यरीमोत। 13O 27 20 एप्रैम से अजज्याह का पुत्रा होशे, मनश्शे से आधे गोत्रा का, फ़दायाह का पुत्रा योएल। 13O 27 21 गिलाद में आधे गोत्रा मनश्शे से जकर्याह का पुत्रा इद्दॊ़, बिन्यामीन से अब्नेर का पुत्रा यासीएल, 13O 27 22 और दान से यारोहाम का पुत्रा अजरेल, ठहरा। ये ही इस्राएल के गोत्रों के हाकिम थे। 13O 27 23 परन्तु दाऊद ने उनकी गिनती बीस वर्ष की अवस्था के तीचे न की, क्योंकि यहोवा ने इस्राएल की गिनती आकाश के तारों के बराबर बढ़ाने के लिये कहा था। 13O 27 24 सरूयाह का पुत्रा योआब गिनती लेने लगा, पर निपटा न सका क्योंकि ईश्वर का क्रोध इस्राएल पर भड़का, और यह गिनती राजा दाऊद के इतिहास में नहीं लिखी गई। 13O 27 25 फिर अदीएल का पुत्रा अजमावेत राज भण्डारों का अधिकारी था, और देहात और नगरों और गांवों और गढ़ों के भण्डारों का अणिकारी उज्जिरयाह का पुत्रा यहोनातान था। 13O 27 26 और जो भूमि को जोतकर बोकर खेती करते थे, उनका अधिकारी कलूब का पुत्रा एज्री था। 13O 27 27 और दाख की बारियों का अधिकारी रामाई शिमी और दाख की बारियों की उपज जो दाखमधु के भण्डारों में रखने के लिये थी, उसका अधिकारी शापामी जब्दी था। 13O 27 28 ओर नीचे के देश के जलपाई और गूलर के वृक्षों का अधिकारी गदेरी बाल्हानान था और तेल के भण्डारों का अधिकारी योआश था। 13O 27 29 और शारोन में चरनेवाले गाय- बैलों का अधिकारी शारोनी शित्रौ था और तराइयों के गाय- बैलों का अधिकारी अदलै का पुत्रा शापात था। 13O 27 30 और ऊंटों का अधिकारी इश्माएली ओबील और गदहियों का अधिकारी मेरोनोतवासी येहदयाह। 13O 27 31 और भैड़- बकरियों का अधिकारी हग्री याजीज था। ये ही सब राजा दाऊद के धन सम्मत्ति के अधिकारी थे। 13O 27 32 और दाऊद का भतीजा योनातान एक समझदार मंत्री और शास्त्री था, और किसी हक्मोनी का पुत्रा एहीएल राजपुत्रों के संग रहा करता था। 13O 27 33 और अहीतोपेल राजा का मंत्री था, और एरेकी हूशै राजा का मित्रा था। 13O 27 34 और यहीतोपेल के बाद बनायाह का पुत्रा यहोयादा और एरयातार मंत्री ठहराए गए। और राजा का प्रधान सेनापति योआब था। 13O 28 1 और दाऊद ने इस्राएल के सब हाकिमों को अर्थात् गोत्रों के हाकिमों और राजा की सेवा टहल करनेवाले दलों के हाकिमों को और सहस्रपतियों और शतपतियों और राजा और उसके पुत्रों के पशु आदि सब धन सम्पत्ति के अधिकारियों, सरदारों और वीरों और सब शूरवीरों को यरूशलेम में बुलवाया। 13O 28 2 तब दाऊद राजा खड़ा होकर कहने लगा, हे मेरे भाइयों ! और हे मेरी प्रजा के लोगो ! मेरी सुनो, मेरी मनसा तो थी कि यहोवा की वाचा के सन्दूक के लिये और हम लोगों के परमेश्वर के चरणों की पीढ़ी के लिये विश्राम का एक भवन बनाऊं, और मैं ने उसके बनाने की तैयारी की थी। 13O 28 3 परन्तु परमेश्वर ने मुझ से कहा, तू मेरे नाम का भवन बनाने न पाएगा, क्योंकि तू युठ्ठ करनेवाला है और तू ने लोहू बहाया है। 13O 28 4 तौभी इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने मेरे पिता के सारे घराने में से मुझी को चुन लिया, कि इस्राएल का राजा सदा बना रहूं : अर्थात् उस ने यहूदा को प्रधान होने के लिये और यहूदा के घराने में से मेरे पिता के घराने को चुन लिया और मेरे पिता के पुत्रों में से वह मुझी को सारे इस्राएल का राजा बनाने के लिये प्रसन्न हुआ। 13O 28 5 और मेरे सब पुत्रों में से ( यहोवा ने तो मुझे बहुत पुत्रा दिए हैं ) उस ने मेरे पुत्रा सुलैमान को चुन लिया है, कि वह इस्राएल के ऊपर यहोवा के राज्य की गद्दी पर विराजे। 13O 28 6 और उस ने मुझ से कहा, कि तेरा पुत्रा सुलैमान ही मेरे भवन और आंगनों को बनाएगा, क्योंकि मैं ने उसको चुन लिया है कि मेरा पुत्रा ठहरे, और मैं उसका पिता ठहरूंगा। 13O 28 7 और सदि वह मेरी आज्ञाओं और नियमों के मानने में आज कल की नाई दृढ़ रहे, तो मैं उसका राज्य सदा स्थिर रखूंगा। 13O 28 8 इसलिये अब इस्राएल के देखते अर्थात्यहोवा की मण्डली के देखते, और अपने परमेश्वर के साम्हने, अपने परमेश्वर यहोवा की सब आज्ञाओं को मानो और उन पर ध्यान करते रहो; ताकि तुम इस अच्छे देश के अधिकारी बने रहो, और इसे अपने बाद अपने वंश का सदा का भाग होने के लिये छोड़ जाओ। 13O 28 9 और हे मेरे पुत्रा सुलैमान ! तू अपने पिता के परमेश्वर का ज्ञान रख, और खरे मन और प्रसन्न जीव से उसकी सेवा करता रह; क्योंकि यहोवा मन को जांचता और विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है उसे समझता है। यदि तू उसकी खोज में रहे, तो वह तुझ को मिलेगा; परन्तु यदि तू उसको त्याग दे तो वह सदा के लिये तुझ को छोड़ देगा। 13O 28 10 अब चौकस रह, यहोवा ने तुझे एक ऐसा भवन बनाने को चुन लिया है, जो पवित्रास्थान ठहरेगा, हियाव बान्धकर इस काम में लग जा। 13O 28 11 तब दाऊद ने अपने पुत्रा सुलैमान को मन्दिर के ओसारे, कोठरियों, भण्डारों अटारियों, भीतरी कोठरियों, और प्रायश्चित के ढकने से स्थान का नमूना, 13O 28 12 और यहोवा के भवन के आंगनों और चारों ओर की कोठरियों, और परमेश्वर के भवन के भण्डारों और ववित्रा की हुई वस्तुओं के भण्डारों के, जो जो नमूने ईश्वर के आत्मा की प्रेरणा से उसको मिले थे, वे सब दे दिए। 13O 28 13 फिर याजकों और लेबियों के दलों, और यहोवा के भवन की सेवा के सब कामों, और यहोवा के भवन की सेवा के सब सामान, 13O 28 14 अर्थात्सब प्रकार की सेवा के लिये सोने के पात्रों के निमित्त सोना तौलकर, और सब प्रकार की सेवा के लिये चान्दी के पात्रों के निमित्त चान्दी तौलकर, 13O 28 15 और सोने की दीवटों के लिये, और उनके दीपकों के लिये प्रति एक एक दीवट, और उसके दीपकों का सोना तौलकर और चान्दी के दीवटों के लिये एक एक दीवट, और उसके दीपक की चान्दी, प्रति एक एक दीवट के काम के अनुसार तौलकर, 13O 28 16 ओर भेंट की रोटी की मेजों के लिये एक एक मेज का सोना तौलकर, और जान्दी की मेजों के लिये चान्दी, 13O 28 17 और चोखे सोने के कांटों, कटोरों और प्यालों और सोने की कटोरियों के लिये एक एक कटोरी का सोना तौलकर, और चान्दी की कटोरियों के लिये एक एक कटोरी की चान्दी तौलकर, 13O 28 18 और धूप की वेदी के लिये तपाया हुआ सोना तौलकर, और रथ अर्थत् यहोवा की वाचा का सन्दूक ढांकनेवाले और पंख फैलाए हुए करूबों के नमूने के लिये सोना दे दिया। 13O 28 19 मैं ने यहोवा की शक्ति से जो मुझ को मिली, यह सब कुछ बझकर लिख दिया है। 13O 28 20 फिर दाऊद ने अपने पुत्रा सुलैमान से कहा, हियाव बान्ध और दृढ़ होकर इस काम में लग जा। मत डर, और तेरा मन कच्चा न हो, क्योंकि यहोवा परमेश्वर जो मेरा परमेश्वर है, वह तेरे संग है; और जब तक यहोवा के भवन में जितना काम करना हो वह न हो चुके, तब तक वह न तो तुझे धोखा देगा और न तुझे त्यागेगा। 13O 28 21 और देख परमेश्वर के भवन के सब काम के लिये जाजकों और लेवियों के दल ठहराए गए हैं, और सब प्रकार की सेवा के लिये सब प्रकार के काम प्रसन्नता से करनेवाले बुध्दिमान पुरूष भी तेरा साथ देंगे; और हाकिम और सारी प्रजा के लोग भी जो कुछ तू कहेगा वही करेंगे। 13O 29 1 फिर राजा दाऊद ने सारी सभा से कहा, मेरा पुत्रा सुलैमान सुकुमार लड़का है, और केवल उसी को परमेश्वर ने चुना है; काम तो भारी है, क्योंकि यह भवन मनुष्य के लिये नहीं, यहोवा परमेश्वर के लिये बनेगा। 13O 29 2 मैं ने तो अपनी शक्ति भर, अपने परमेश्वर के भवन के निमित्त सोने की वस्तुओं के लिये सोना, चान्दी की वस्तुओं के लिये चानी, पीतल की वस्तुओं के लिये पीतल, लोहे की वस्तुओं के लिये लोहा, और लकड़ी की वस्तुओं के लिये लकड़ी, और सुलैमानी पत्थर, और जड़ने के योग्य मणि, और पच्ची के काम के लिये रड़ग रड़ग के नग, और सब भांति के मणि और बहुत संगमर्मर इकट्ठा किया है। 13O 29 3 फिर मेरा मन अपने परमेश्वर के भवन में लगा है, इस कारण जो कुछ मैं ने पवित्रा भवन के लिये इकट्ठा किया है, उस सब से अधिक मैं अपना निज धन भी जो सोना चान्दी के रूप में मेरे पास है, अपने परमेश्वर के भवन के लिये दे देता हूँ। 13O 29 4 अर्थात् तीन हजार किक्कार ओपीर का सोना, और सात हजार किक्कार तपाई हुई चान्दी, जिस से कोठरियों की भीतें मढ़ी जाएं। 13O 29 5 और सोने की वस्तुओं के लिये सोना, और चान्दी की वस्तुओं के लिये चान्दी, और कारीगरों से बनानेवाले सब प्रकार के काम के लिये मैं उसे देता हूँ। और कौन अपनी इच्छा से यहोवा के लिये अपने को अर्पण कर देता है? 13O 29 6 तब पितरों के घरानों के प्रधानों और इस्राएल के गोत्रों के हाकिमों और सहस्रपतियों और शतपतियों और राजा के काम के अधिकारियोें ने अपनी अपनी इच्छा से, 13O 29 7 परमेश्वर के भवन के काम के लिये पांच हजार किक्कार और दस हजार दर्कनोन सोना, दस हजार किक्कार चान्दी, अठारह हजार किक्कार पीतल, और एक लाख किक्कार लोहा दे दिया। 13O 29 8 और जिनके पास मणि थे, उन्हों ने उन्हें यहोवा के भवन के खजाने के लिये गेश नी यहीएल के हाथा में दे दिया। 13O 29 9 तब प्रजा के लोग आनन्दित हुए, क्योंकि हाकिमों ने प्रसन्न होकर खरे मन और अपनी अपनी इच्छा से यहोवा के लिये भेंट दी थी; और दाऊद राजा बहुत ही आनन्दित हुआ। 13O 29 10 तब दाऊद ने सारी सभा के सम्मुख यहोवा का धन्यवाद किया, और दाऊद ने कहा, हे यहोवा ! हे हमारे मूल पुरूष इस्राएल के परमेश्वर ! अनादिकाल से अनन्तकाल तक तू धन्य है। 13O 29 11 हे यहोवा ! महिमा, पराक्रम, शोभा, सामर्थ्य और विभव, तेरा ही है; क्योंकि अकाश और पृथ्वी में जो कुछ है, वह तेरा ही है; हे यहोवा ! राज्य तेरा है, और तू सभों के ऊपर मुख्य और महान ठहरा है। 13O 29 12 धन और महिमा तेरी ओर से मिलती हैं, और तू सभों के ऊपर प्रभुता करता है। सामर्थ्य और पराक्रम तेरे ही हाथ में हैं, और सब लोगों को बढ़ाना इौर बल देना तेरे हाथ में है। 13O 29 13 इसलिये अब हे हमारे परमेश्वर ! हम तेरा ध्न्यवाद और तेरे महिमायुक्त नाम की स्तुति करते हैं। 13O 29 14 मैं क्या हूँ? और मेरी प्रजा क्या है? कि हम को इस रीति से अपनी इच्छा से तुझे भेंट देने की शक्ति मिले? तुझी से तो सब कुछ मिलता है, और हम ने तेरे हाथ से पाकर तुझे दिया है। 13O 29 15 तेरी दृष्टि में हम तो अपने सब पुरखाओं की नाई पराए और परदेशी हैं; पृथ्वी पर हमारे दिन छाया की नाई बीते जाते हैं, और हमारा कुछ ठिकाना नहीं। 13O 29 16 हे हमारे परमेश्वर यहोवा ! वह जो बड़ा संचय हम ने तेरे पवित्रा नाम का एक भवन बनाने के लिये किया है, वह तेरे ही हाथ से हमे मिला था, और सब तेरा ही है। 13O 29 17 और हे मेरे परमेश्वर ! मैं जानता हूँ कि तू मन को जांचता है और सिधाई से प्रसन्न रहता है; मैं ने तो यह सब कुछ मन की सिधाई और अपनी इच्छा से दिया है; और अब मैं ने आनन्द से देखा है, कि तेरी प्रजा के लोग जो यहां उपस्थित हैं, वह अपनी इच्छा से तेरे लिये भेंट देते हैं। 13O 29 18 हे यहोवा ! हे हमारे पुरखा इब्राहीम, इसहाक और इस्राएल के परमेश्वर ! अपनी प्रजा के मन के विचारों में यह बात बनाए रख और उनके मन अपनी ओर लगाए रख। 13O 29 19 और मेरे पुत्रा सुलैमान का मन ऐसा खरा कर दे कि वह तेरी आज्ञाओं चितौनियों और विधियों को मानता रहे और यह सब कुछ करे, और उस भवन को बनाए, जिसकी तैयारी मैं ने की है। 13O 29 21 और दूसरे दिन उन्हों ने यहोवा के लिये बलिदान किए, अर्थात् अध समेत एक हजार बैल, एक हजार मेढ़े और एक हजार भेड़ के बच्चे होमबलि करके चढ़ाए, और सब इस्राएल के लिये बहुत से मेलबलि चढ़ाए। उसी दिन यहोवा के साम्हने उन्हों ने बड़े आनन्द से खाया और पिया। 13O 29 22 फिर उन्हों ने दाऊद के पुत्रा सुलैमान को दूसरी बार राजा ठहराकर यहोवा की ओर से प्रधान होने के लिये उसका और याजक होने के लिये सादोक का अभिषेक किया। 13O 29 23 तब सुलैमान अपने पिता दाऊद के स्थान पर राजा होकर यहोवा के सिंहासन पर विराजने लगा और भाग्यवान हुआ, और इस्राएल उसके अधीन हुआ। 13O 29 24 13O 29 25 और सब हाकिमों और शूरवीरों और राजा दाऊद के सब पुत्रों ने सुलैमान राजा की अधीनता अंगीकार की। 13O 29 26 और यहोवा ने सुलैमान को सब इस्राएल के देखते बहुत बढ़ाया, और उसे ऐसा राजकीय ऐश्वर्य दिया, जैसा उस से पहिले इस्राएल के किसी राजा का न हुआ था। 13O 29 27 इस प्रकार यिहौ के पुत्रा दाऊद ने सारे इस्राएल के ऊपर राज्य किया। 13O 29 28 और उसके इस्राएल पर राज्य करने का समय चालीस वर्ष का था; उस ने सात वर्ष तो हेब्रोन में और तैंतीस वर्ष यरूशलेम में राज्य किया। 13O 29 29 और वह पूरे बूढ़ापे की अवस्था में दीर्घायु होकर और धन और विभव, मनमाना भोगकर मर गया; और उसका पुत्रा सुलैमान उसके स्थान पर राजा हुआ। 13O 29 30 आदि से अन्त तक राजा दाऊद के सब कामों का वृत्तान्त, 13O 29 31 और उसके सब राज्य और पराक्रम का, और उस पर और इस्राएल पर, वरन देश देश के सब राज्यों पर जो कुछ बीता, इसका भी वृत्तान्त शमूएल दश और नातान नबी और गाद दश की पुस्तकों में लिखा हुआ है। 14O 1 1 दाऊद का पुत्रा सुलैमान राज्य में स्थिर हो गया, और उसका परमेश्वर यहोवा उसके संग रहा और उसको बहुत ही बढ़ाया। 14O 1 2 और सुलैमान ने सारे इस्राएल से, अर्थात् सहस्रपतियों, शतपतियों, न्यायियों और इस्राएल के सब रईसों से जो पितरों के घरानों के मुख्य मुख्य पुरूष थे, बातें कीं। 14O 1 3 और सुलैमान पूरी मण्डली समेत गिबोन के ऊंचे स्थान पर गया, क्योंकि परमेश्वर का मिलापवाला तम्बू, जिसे यहोवा के दास मूसा ने जंगल में बनाया था, वह वहीं पर था। 14O 1 4 परन्तु परमेश्वर के सन्दूक को दाऊद किर्यत्यारीम से उस स्थान पर ले आया था जिसे उस ने उसके लिये तैयार किया था, उस ने तो उसके लिये यरूशलेम में एक तम्बू खड़ा कराया था। 14O 1 5 और पीतल की जो वेदी ऊरी के पुत्रा बसलेल ने, जो हूर का पोता था, बनाई थी, वह गिबोन में यहोवा के निवास के साम्हने थी। इसलिये सुलैमान मण्डली समेत उसके पास गया। 14O 1 6 और सुलैमान ने वहीं उस पीतल की वेदी के पास जाकर, जो यहोवा के साम्हने मिलापवाले तम्बू के पास थी, उस पर एक हजार होमबलि चड़ाए। 14O 1 7 उसी दिन रात को परमेश्वर ने सुलैमान को दर्शन देकर उस से कहा, जो कुछ तू चाहे कि मैं तुझे दूं, वह मांग। 14O 1 8 सुलैमान ने परमेश्वर से कहा, तू मेरे पिता दाऊद पर बड़ी करूणा करता रहा और मुझ को उसके स्थान पर राजा बनाया है। 14O 1 9 अब हे यहोवा परमेश्वर ! जो बचन तू ने मेरे पिता दाऊद को दिया था, वह पूरा हो; तू ने तो मुझे ऐसी प्रजा का राजा बनाया है जो भूमि की धूलि के किनकों के समान बहुत है। 14O 1 10 अब मुझे ऐसी बुध्दि और ज्ञान दे, कि मैं इस प्रजा के साम्हने अन्दर- बाहर आना- जाना कर सकूं, क्योंकि कौन ऐसा है कि तेरी इतनी बड़ी प्रजा का न्याय कर सके? 14O 1 11 परमेश्वर ने सुलैमान से कहा, तेरी जो ऐसी ही मनसा हुई, अर्थात तू ने न तो धन सम्पत्ति मांगी है, न ऐश्वर्य्और न अपने बैरियों का प्राण और न अपनी दीर्घायु मांगी, केवल बुध्दि और ज्ञान का वर मांगा है, जिस से तू मेरी प्रजा का जिसके ऊपर मैं ने तुझे राजा नियुक्त किया है, न्याय कर सके, 14O 1 12 इस कारण बुध्दि और ज्ञान तुझे दिया जाता है। और मैं तुझे इतना धन सम्पत्ति और ऐश्वर्य दूंगा, जितना न तो तुझ से पहिले किसी राजा को, मिला और न तेरे बाद किसी राजा को मिलेगा। 14O 1 13 तब सुलैमान गिबोन के ऊंचे स्थान से, अर्थात् मिलापवाले तम्बू के साम्हने से यरूशलेम को आया और वहां इस्राएल पर राज्य करने लगा। 14O 1 14 फिर सुलैमान ने रथ और सवार इकट्ठे कर लिये; और उसके चौदह सौ रथ और बारह हजार सवार थे, और उनको उस ने रथों के नगरों में, और यरूशलेम में राजा के पास ठहरा रखा। 14O 1 15 और राजा ने ऐसा किया, कि यरूशलेम में सोने- चान्दी का मूल्य बहुतायत के कारण पत्थरों का सा, और देवदारों का मूल्य नीचे के देश के गूलरों का सा बना दिया। 14O 1 16 और जो घोड़े सुलैमान रखता था, वे मिस्र से आते थे, और राजा के रयापारी उन्हें झुणड के झुणड ठहराए हुए दाम पर लिया करते थे। 14O 1 17 एक रथ तो छे सौ शेकेल चान्दी पर, और एक घोड़ा डेढ़ सौ शेकेल पर मिस्र से आता था; और इसी दाम पर वे हित्तियों के सब राजाओं और अराम के राजाओं के लिये उन्हीं के द्वारा लाया करते थे। 14O 2 1 और सुलैमान ने यहोवा के नाम का एक भवन और अपना राजभवन बनाने का विचार किया। 14O 2 2 इसलिए सुलैमान ने सत्तर हजार बोझिये और अस्सी हजार पहाड़ से पत्थर काटनेवाले और वृक्ष काटनेवाले, और इन पर तीन हजार छे सौ मुखिये गिनती करके ठहराए। 14O 2 3 तब सुलैमान ने सोर के राजा हूराम के पास कहला भेजा, कि जैसा तू ने मेरे पिता दाऊद से बर्त्ताव किया, अर्थात् उसके रहने का भवन बनाने को देवदार भेजे थे, पैसा ही अब मुझ से भी बर्त्ताव कर। 14O 2 4 देख, मैं अपने परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनाने पर हूँ, कि उसे उसके लिये पवित्रा करूं और उसके सम्मुख सुगन्धित धूम जलाऊं, और नित्य भेंट की रोटी उस में रखी जाए; और प्रतिदिन सबेरे और सांझ को, और विश्राम और नये चांद के दिनों में और हमारे परमेश्वर यहोवा के सब नियत पब्ब में होमबलि चढ़ाया जाए। इस्राएल के लिये ऐसी ही सदा की विधि है। 14O 2 5 और जो भवन मैं बनाने पर हूं, वह महान होगा; क्योंकि हमारा परमेश्वर सब देवताओं में महान है। 14O 2 6 परन्तु किस की इतनी शक्ति है, कि उसके लिये भवन बनाए, वह तो स्वर्ग में वरन सब से ऊंचे स्वर्ग में भी नहीं समाता? मैं क्या हूँ कि उसके साम्हने धूप जलाने को छोड़ और किसी मनसा से उसका भवन बनाऊं? 14O 2 7 सो अब तू मेरे पास एक ऐसा मनुष्य भेज दे, जो सोने, चान्दी, पीतल, लोहे और बैंजनी, लाल और नीले कपड़े की कारीगरी में निपुण हो और नक्काशी भी जानता हो, कि वह मेरे पिता दाऊद के ठहराए हुए निपुण पनुष्यों के साथ होकर जो मेरे पास यहूदा और यरूशलेम में रहते हैं, काम करे। 14O 2 8 फिर लबानोन से मेरे पास देवदार, सनोवर और चंदन की लकड़ी भेजना, क्योंकि मैं जानता हूँ कि तेरे दास लबानोन में वृक्ष काटना जानते हैं, और तेरे दासों के संग मेरे दास भी रहकर, 14O 2 9 मेरे लिये बहुत सी लकड़ी तैयार करेंगे, क्योंकि जो भवन मैं बनाना चाहता हूँ, वह बड़ा और अचम्भे के योग्य होगा। 14O 2 10 और तेरे दास जो लकड़ी काटेंगे, उनको मैं बीस हजार कोर कूटा हुआ गंहूं, बीस हजार कोर जव, बीस हजार बत दाखमधु और बीस हजार बत तेल दूंगा। 14O 2 11 तब सोर के राजा हूराम ने चिट्ठी लिखकर सुलैमान के पास भेजी, कि यहोवा अपनी प्रजा से प्रेम रखता है, इस से उस ने तुझे उनका राजा कर दिया। 14O 2 12 फिर हूराम ने यह भी लिखा कि धन्य है इस्राएल का परमेश्वर यहोवा, जो आकाश और पृथ्वी का सृजनहार है, और उस ने दाऊद राजा को एक बुध्दिमान, चतुर और समझदार पुत्रा दिया है, ताकि वह यहोवा का एक भवन और अपना राजभवन भी बनाए। 14O 2 13 इसलिये अब मैं एक बुध्दिमान और समझदार पुरूष को, अर्थात् हूराम- अबी को भेजता हूँ, 14O 2 14 जो एक दानी स्त्री का बेटा है, और उसका पिता सोर का था। और वह सोने, चान्दी, पीतल, लोहे, पत्थर, लकड़ी, बैंजनी और नीले और लाल और सूक्ष्म सन के कपड़े का काम, और सब प्रकार की नक्काशी को जानता और सब भांति की कारीगरी बना सकता है : सो तेरे चतुर मनुष्याों के संग, और मेरे प्रभु तेरे पिता दाऊद के चतुर मनुष्यों के संग, उसको भी काम मिले। 14O 2 15 और मेरे प्रभु ने जो गेहूं, जव, तेल और दाखमधु भेजने की चर्चा की है, उसे अपने दासों के पास भ्जिवा दे। 14O 2 16 और हम लोग जितनी लकड़ी का तुझे प्रयोजन हो उतनी लबानोन पर से काटेंगे, और बेड़े बनवाकर समुद्र के मार्ग से जापा को पहुचाएंगे, और तू उसे यरूशलेम को ले जाना। 14O 2 17 तब सुलैमान ने इस्राएली देश के सब परदेशियों की गिनती ली, यह उस गिनती के बाद हुई जो उसके पिता दाऊद ने ली थी; और वे डेढ़ लाख तीन हजार छे सौ पुरूष निकले। 14O 2 18 उन में से उस ने सत्तर हजार बोझिये, अस्सी हजार पहाड़ पर पत्थर काटनेवाले और वृक्ष काटनेवाले और तीन हजार छे सौ उन लोगों से काम करानेवाले मुखिये नियुक्त किए। 14O 3 1 तब सुलैमान ने यरूशलेम में मोरिरयाह नाम पहाड़ पर उसी स्थान में यहोवा का भवन बनाना आरम्भ किया, जिसे उसके पिता दाऊद ने दर्शन पाकर यबूसी ओर्नान के खलिहान में तैयार किया था : 14O 3 2 उस ने अपने राज्य के चौथे वर्ष के दूसरे महीने के, दूसरे दिन को बनाना आरम्भ किया। 14O 3 3 परमेश्वर का जो भवन सुलैमान ने बनाया, उसका यह ढव है, अर्थात् उसकी लम्बाई तो प्राचीन काल की नाप के अनुसार साठ हाथ, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ् की थी। 14O 3 4 और भवन के साम्हने के ओसारे की लम्बाई तो भवन की चौड़ाई के बराबर बीस हाथ की; और उसकी ऊंचाई एक सौ बीस हाथ की थी। सुलैमान ने उसको भीतर चोखे सोने से मढ़वाया। 14O 3 5 और भवन के बड़े भाग की छत उस ने सनोवर की लकड़ी से पटवाई, और उसको अच्छे सोने से मढ़वाया, और उस पर खजूर के वृक्ष की और सांकलों की नक्काशी कराई। 14O 3 6 फिर शोभा देने के लिये उस ने भवन में मणि जड़वाए। और यह सोना पवैंम का था। 14O 3 7 और उस ने भवन को, अर्थात् उसकी कड़ियों, डेवढ़ियों, भीतों और किवाडों को सोने से मढ़वाया, और भीतों पर करूब खुदवाए। 14O 3 8 फिर उस ने भवन के परमपवित्रा स्थान को बनाया; उसकी लम्बाई तो भवन की चौड़ाई के बराबर बीस हाथ की थी, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ की थी; और उस ने उसे छे सौ किक्कार चोखे सोने से मढ़वाया। 14O 3 9 और सोने की कीलों का तौल पचास शेकेल था। और उस ने अटारियों को भी सोने से मढ़वाया। 14O 3 10 फिर भवन के परमपवित्रा स्थान में उसने नक्काशी के काम के दो करूब बनवाए और वे सोने से मढ़वाए गए। 14O 3 11 करूबों के पंख तो सब मिलकर बीस हाथ लम्बे थे, अर्थात् एक करूब का एक पंख पांच हाथ का और भवन की भीत तक पहुंचा हुआ था; और उसका दूसरा पंख पांच हाथ का था और दूसरे करूब के पंख से मिला हुआ था। 14O 3 12 और दूसरे करूब का भी एक पंख पांच हाथ का और भवन की दूसरी भीत तक पहुंचा था, और दूसरा पंख पांच हाथ का और पहिले करूब के पंख से सटा हुआ था। 14O 3 13 इन करूबों के पंख बीस हाथ फैले हुए थे; और वे अपने अपने पांवों के बल खड़े थे, और अपना अपना मुख भीतर की ओर किए हुए थे। 14O 3 14 फिर उस ने बीचवाले पर्दे को नीले, बैंजनी और लाल रंग के सन के कपड़े का बनवाया, और उस पर करूब कढ़वाए। 14O 3 15 और भवन के साम्हने उस ने पैंतीस पैंतीस हाथ ऊंचे दो खम्भे बनवाए, और जो कंगनी एक एक के ऊपर थी वह पांच पांच हाथ की थी। 14O 3 16 फिर उस ने भीतरी कोठरी में सांकलें बनवाकर खम्भों के ऊपर लगाई, और एक सौ अनार भी बनाकर सांकलों पर लटकाए। 14O 3 17 उस ने इन ख्म्भों को मन्दिर के साम्हने, एक तो उसकी दाहिनी ओर और दूसरा बाई ओर खड़ा कराया; और दाहिने खम्भे का नाम याकीन और बायें खम्भे का नाम बोअज़ रखा। 14O 4 1 फिर उस ने पीतल की एक वेदी बनाई, उसकी लम्बाई और चौड़ाई बीस बीस हाथ की और ऊंचाई दस हाथ की थी। 14O 4 2 फिर उस ने एक ढाला हुआ हौद बनवाया; जो छोर से छोर तक दस हाथ तक चौड़ा था, उसका आकार गोल था, और उसकी ऊंचाई पांच हाथ की थी, और उसके चारों ओर का घेर तीस हाथ के नाप का था। 14O 4 3 और उसके तले, उसके चारों ओर, एक एक हाथ में दस दस बैलों की प्रतिमाएं बनी थीं, जो हौद को घेरे थीं; जब वह ढाला गया, तब ये बैल भी दो पांति करके ढाले गए। 14O 4 4 और वह बारह बने हुए बैलों पर धरा गया, जिन में से तीन उत्तर, तीन पश्चिम, तीन दक्खिन और तीन पूर्व की ओर मुंह किए हुए थे; और इनके ऊपर हौद घरा था, और उन सभों के पिछले अंग भीतरी भाग में पड़ते थे। 14O 4 5 और हौद की मोटाई चौवा भर की थी, और उसका मोहड़ा कटोरे के मोहड़े की नाई, सोसन के फूलों के काम से बना था, और उस में तीन हजार बत भरकर समाता था। 14O 4 6 फिर उस ने धोने के लिये दस हौदी बनवाकर, पांच दाहिनी और पांच बाई ओर रख दीं। उन में होमबलि की वस्तुएं धोई जाती थीं, परन्तु याजकों के धोने के लिलये बड़ा हौद था। 14O 4 7 फिर उस ने सोने की दस दीवट विधि के अनुसार बनवाई, और पांच दाहिनी ओर और पांच बाई ओर मन्दिर में रखवा दीं। 14O 4 8 फिर उस ने दस मेज बनवाकर पांच दाहिनी ओर और पाच बाई ओर मन्दिर में रखवा दीं। और उस ने सोने के एक सौ कटोरे बनवाए। 14O 4 9 फिर उस ने याजकों के आंगन और बड़े आंगन को बनवाया, और इस आंगन में फाटक बनवाकर उनके किवाड़ों पर पीतल मढ़वाया। 14O 4 10 और उस ने हौद को भवन की दाहिनी ओर अर्थात् पूर्व और दक्खिन के कोने की ओर रखवा दिया। 14O 4 11 और हूराम ने हण्डों, फावड़ियों, और कटोरों को बनाया। और हूराम ने राजा सुलैमान के लिये परमेश्वर के भवन में जो काम करना था उसे निपटा दिया : 14O 4 12 अर्थात् दो खम्भे और गोलों समेत वे कंगनियां जो खम्भों के सिरों पर थीं, और खम्भों के सिरों पर के गोलों को ढांपने के लिए जालियों की दो दो पांति; 14O 4 13 और दोनों जालियों के लिये चार सौ अनार और जो गोले खम्भों के सिरों पर थे, उनको ढांपनेवाली एक एक जाली के लिये अनारों की दो दो पांति बनाई। 14O 4 14 फिर उस न कुर्सियां और कुर्सियों पर की हौदियां, 14O 4 15 और उनके नीचे के बारह बैल बनाए। 14O 4 16 फिर हूराम- अबी ने हण्डों, फावड़ियों, कांटों और इनके सब सामान को यहोवा के भवन के लिये राजा सुलैमान की आज्ञा से झलकाए हुए पीतल के बनवाए। 14O 4 17 राजा ने उसको यरदन की तराई में अर्थात् सुक्कोत और सारतान के बीच की चिकनी मिट्टीवाली भूमि में ढलवाया। 14O 4 18 सुलैमान ने ये सब पात्रा बहुत बनवाए, यहां तक कि पीतल के तौल का हिसाब न था। 14O 4 19 और सुलैमान ने परमेश्वर के भवन के सब पात्रा, सोने की वेदी, और वे मेज जिन पर भेंट की रोटी रखी जाती थीं, 14O 4 20 और दीपकों समेत चोखे सोने की दीवटें, जो विधि के अनुसार भीतरी कोठरी के साम्हने जला करतीं थीं। 14O 4 21 और सोने बरन निरे सोने के फूल, दीपक और चिमटे; 14O 4 22 और चोखे सोने की कैंचियां, कटोरे, धूपदान और करछे बनवाए। फिर भवन के द्वार और परम पवित्रा स्थान के भीतरी किवाड़ और भवन अर्थात् मन्दिर के किवाड़ सोने के बने। 14O 5 1 इस प्रकार सुलैमान ने यहोवा के भवन के लिये जो जो काम बनवाया वह सब निपट गया। तब सुलैमान ने अपने पिता दाऊद के पवित्रा किए हुए सोने, चान्दी और सब पात्रों को भीतर पहुंचाकर परमेश्वर के भवन के भएडारों में रखवा दिया। 14O 5 2 तब सुलैमान ने इस्राएल के पुरनियों को और गोत्रों के सब मुखय पुरूष, जो इस्राएलियों के पितरों के घरानों के प्रधान थे, उनको भी यरूशलेम में इस मनसा से इकट्ठा किया, कि वे यहोवा की वाचा का सन्दूक दाऊदपुर से अर्थात् सिरयोन से ऊपर लिवा ले आएं। 14O 5 3 सब इस्राएली पुरूष सातवें महीने के पर्व के समय राजा के पास इकट्ठे हुए। 14O 5 4 जब इस्राएल के सब पुरनिये आए, तब लेवियों ने सन्दूक को उठा लिया। 14O 5 5 और लेवीय याजक सन्दूक और मिलाप का तम्बू और जितने पवित्रा पात्रा उस तम्बू में थे उन सभों को ऊपर ले गए। 14O 5 6 और राजा सुलैमान और सब इस्राएली मण्डली के लोग जो उसके पास इकट्ठे हुए थे, उन्हों ने सन्दूक के साम्हने इतनी भेड़ और बैल बलि किए, जिनकी गिनती और हिसाब बहुतायत के कारण न हो सकती थी। 14O 5 7 तब याजकों ने यहोवा की वाचा का सनदूक उसके स्थान में, अर्थात् भवन की भीतरी कोठरी में जो परमपवित्रा स्थान है, पहंचाकर, करूबों के पंखों के तले रख दिया। 14O 5 8 सन्दूक के स्थान के ऊपर करूब तो पंख फैलाए हुए थे, जिससे वे ऊपर से सन्दूक और उसके डणडों को ढांपे थे। 14O 5 9 डणडे तो इतने लम्बे थे, कि उनके सिरे सन्दूक से निकले हुए भीतरी कोठरी के साम्हने देख पड़ते थे, परन्तु बाहर से वे दिखई न पड़ते थे। वे आज के दिन तक वहीं हैं। 14O 5 10 सन्दूक में पत्थ्र की उन दो पटियाओं को छोड़ कुछ न था, जिन्हें मूसा ने होरेब में उसके भीतर उस समय रखा, जब यहोवा ने इस्राएलियों के मिस्र से निकलने के बाद उनके साथ वाचा बान्धी थी। 14O 5 11 जब याजक पवित्रास्थान से निकले ( जितने याजक उपस्थित थे, उन सभों ने तो अपने अपने को पवित्रा किया था, और अलग अलग दलों में होकर सेवा न करते थे; 14O 5 12 और जितने लेवीय गवैये थे, वे सब के सब अर्थात् मुत्रों और भइयों समेत आसाप, हेमान और यदूतून सन के वस्त्रा पहिने झांझ, सारंगियां और वीणाएं लिये हुए, वेदी के पूर्व अलंग में खड़े थे, और उनके साथ एक सौ बीस याजक तुरहियां बजा रहे थे।) 14O 5 13 तो जब तुरहियां बजानेवाले और गानेवाले एक स्वर से यहोवा की स्तुति और धन्यवाद करने लगे, और तुरहियां, झांझ आदि बाजे बजाते हुए यहोवा की यह स्तुति ऊंचे शब्द से करने लगे, कि वह भला है और उसकी करूणा सदा की है, तब यहोवा के भवन मे बादल छा गया, 14O 5 14 और बादल के कारण याजक लोग सेवा- टहल करने को खड़े न रह सके, क्योंकि यहोवा का तेज परमेश्वर के भवन में भर गया था। 14O 6 1 तब सुलैमान कहने लगा, यहोवा ने कहा था, कि मैं घोर अंधकार मैं वास किए रहूंगा। 14O 6 2 परन्तु मैं ने तेरे लिये एक वासस्थान वरन ऐसा दृढ़ स्थान बनाया है, जिस में तू युग युग रहे। 14O 6 3 और राजा ने इस्राएल की पूरी सभा की ओर मुंह फेरकर उसको आशीर्वाद दिया, और इस्राएल की पूरी सभा खड़ी रही। 14O 6 4 और उस ने कहा, धन्य है इस्राएल का परमेश्वर यहोवा, जिस ने अपने मुंह से मेरे पिता दाऊद को यह वचन दिया था, और अपने हाथों से इसे पूरा किया है, 14O 6 5 कि जिस दिन से मैं अपनी प्रजा को मिस्र देश से निकाल लाया, तब से मैं ने न तो इस्राएल के किसी गोत्रा का कोई नगर चुना जिस में मेरे नाम के निवास के लिये भवन बनाया जाए, और न कोई मनुष्य चुना कि वह मेरी प्रजा इस्राएल पर प्रधान हो। 14O 6 6 परन्तु मैं ने यरूशलेम को इसलिये चुना है, कि मेरा नाम वहां हो, और दाऊद को चुन लिया है कि वह मेरी प्रजा इस्राएल पर प्रधान हो। 14O 6 7 मेरे पिता दाऊद की यह मनसा थी कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनवाए। 14O 6 8 परन्तु यहोवा ने मेरे पिता दाऊद से कहा, तेरी जो मनसा है कि यहोवा के नाम का एक भवन बनाए, ऐसी मनसा करके नू ने भला तो किया; 14O 6 9 तौभी तू उस भवन को बनाने न पाएगा : तेरा जो निज पुत्रा होगा, वही मेरे नाम का भवन बनाएगा। 14O 6 10 14O 6 11 यह वचन जो यहोवा ने कहा था, उसे उस ने पूरा भी किया है; ओर मैं अपने पिता दाऊद के स्थान पर उठकर यहोवा के वचन के अनुसार इस्राएल की गद्दी पर विराजमान हूँ, और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम के इस भवन को बनाया है। 14O 6 12 और इस में मैं ने उस सन्दूक को रख दिया है, जिस में यहोवा की वह वाचा है, जो उस ने इस्राएलियों से बान्धी थी। 14O 6 13 तब वह इस्राएल की सारी सभा के देखते यहोवा की वेदी के साम्हने खड़ा हुआ और अपने हाथ फैलाए। 14O 6 14 सुलैमान ने पांच हाथ लम्बी, पांच हाथ चौड़ी और तीन हाथ ऊंची पीतल की एक चौकी बनाकर आंगन के बीच रखवाई थी; उसी पर खड़े होकर उस ने सारे इस्राएल की सभा के सामने घुटने टेककर स्वर्ग की ओर हाथ फैलाए हुए कहा, 14O 6 15 हे यहोवा, हे इस्राएल के परमेश्वर, तेरे समान न तो स्वर्ग में और न पृथ्वी पर कोई ईश्वर है : तेरे जो दास अपने सारे मन से अपने को तेरे सम्मुख जानकर जलते हैं, उनके लिये तू अपनी वाचा पूरी करता और करूणा करता रहता है। 14O 6 16 तू ने जो वचन मेरे पिता दाऊद को दिया था, उसका तू ने पालन किया है; जैसा तू ने अपने मुंह से कहा था, वैसा ही अपने हाथ से उसको हमारी आंखों के साम्हने पूरा भी किया है। 14O 6 17 इसलिये अब हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा इस वचन को भी मूरा कर, जो तू ने अपने दास मेरे पिता दाऊद को दिया था, कि तेरे कुल में मेरे साम्हने इस्राएल की गद्दी पर विराजनेवाले सदा बने रहेंगे, यह हो कि जैसे तू अपने को मेरे सम्मुख जानकर चलता रहा, वैसे ही तेरे वंश के लोग अपनी चाल चलन में ऐसी चौकसी करें, कि मेरी रयवस्था पर चलें। 14O 6 18 अब हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा जो वचन तू ने अपने दास दाऊद को दिया थ, वह सव्चा किया जाए। 14O 6 19 परन्तु क्या परमेश्वर सचमुच मनुष्यों के संग पुथ्वी पर वास करेगा? स्वर्ग में वरन सब से ऊंचे स्वर्ग में भी तू नहीं समाता, फिर मेरे बनाए हुए इस भवन में तू क्योंकर समाएगा? 14O 6 20 तौभी हे मेरे परमेश्वर यहोवा, अपने दास की प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट की ओर ध्यान दे और मेरी पुकार और यह प्रार्थना सुन, जो मैं तेरे साम्हने कर रहा हूँ। 14O 6 21 वह यह है कि तेरी आंखें इस भवन की ओर, अर्थत् इसी स्थान की ओर जिसके विषय में तू ने कहा है कि मैं उस में अपना नाम रखूंगा, रात दिन खुली रहें, और जो प्रार्थना तेरा दास इस स्थान की ओर करे, उसे तू सुन ले। 14O 6 22 और अपने दास, और अपनी प्रजा इस्राएल की प्रार्थना जिसको वे इस स्थान की ओर मुंह किए हुए गिड़गिड़ाकर करें, उसे सुन लेना; स्वर्ग में से जो तेरा निवासस्थान है, सुन लेना; और सुनकर क्षमा करना। 14O 6 23 जब कोई किसी दूसरे का अपराध करे और उसको शपथ खिलाई जाए, और वह आकर इस भवन में तेरी वेदी के साम्हने शपथ खाए, 14O 6 24 तब तू स्वर्ग में से सुनना और मानना, और अपने दासों का न्याय करके दुष्ट को बदला देना, और उसकी चाल उसी के सिर लैटा देना, और निदष को निदष ठहराकर, उसके धर्म के अनुसार उसको फल देना। 14O 6 25 फिर यदि तेरी प्रजा इस्राएल तेरे विरूद्ध पाप करने के कारण अपने शत्रुओं से हार जाएं, और तेरी ओर फिरका तेरा नाम मानें, और इस भवन में तुझ से प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट करें, 14O 6 26 तो तू स्वर्ग में से सुनना; और अपनी प्रजा इस्राएल का पाप क्षमा करना, और उन्हें इस देश में लौटा ले आना जिसे तू ने उनको और उनके पुरखाओं को दिया है। 14O 6 28 तो तू स्वर्ग में से सुनना, और अपने दासों और अपनी प्रजा इस्राएल के पाप को क्षमा करना; तू जो उनको वह भला मार्ग दिखाता है जिस पर उन्हें चलना चाहिये, इसलिये अपने इस देश पर जिसे तू ने अपनी प्रजा का भाग करके दिया है, पानी बरसा देना। 14O 6 29 जब इस देश में काल वा मरी वा झुलस हो वा गेरूई वा टिडि्डयां वा कीड़े लगें, वा उनके शत्रु उनके देश के फाटकों में उन्हें घेर रखें, वा कोई विपत्ति वा रोग हो; 14O 6 30 तब यदि कोई मनुष्य वा तेरी सारी प्रजा इस्राएल जो अपना अपना दु:ख और अपना अपना खेद जान कर और गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करके अपने हाथ इस भवन की ओर फैलाए; 14O 6 31 जो तू अपने स्वग य निवासस्थान से सुनकर क्षमा करना, और एक एक के मन की जानकर उसकी चाल के अनुसार उसे फल देना; (तू ही तो आदमियों के मन का जाननेवाला है); 14O 6 32 कि वे जितने दिन इस देश में रहें, जिसे तू ने उनके पुरखाओं को दिया था, उतने दिन तक तेरा भय मानते हुए तेरे माग पर चनते रहें। 14O 6 33 फिर परदेशी भी जो तेरी प्रजा इस्राएल का न हो, जब वह तेरे बड़े नाम और बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा के कारण दूर देश से आए, और आकर इस भवन की ओर मुंह किए हुए प्रार्थना करे, 14O 6 34 तब तू अपने स्वग य निवासस्थान में से सुने, और जिस बात के लिये ऐसा परदेशी तुझे पुकारे, उसके अनुसार करना; जिस से पुथ्वी के सब देशों के लोग तेरा नाम जानकर, तेरी प्रजा इस्राएल की नाई तेरा भय मानें; और निश्चय करें, कि यह भवन जो मैं ने बनाया है, वह तेरा ही कहलाता हैं। 14O 6 35 जब तेरी प्रजा के लोग जहां कहीं तू उन्हें भेजे वहां अपने शत्रुओं से लड़ाई करने को निकल जाएं, और इस नगर की ओर जिसे तू ने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैं ने तेरे नाम का बनाया है, मुंह किए हुए तुझ से प्रार्थना करें, 14O 6 36 तब तू स्वर्ग में से उनकी प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनना, और उनका न्याय करना। 14O 6 37 निष्पाप तो कोई मनुष्य नहीं है, यदि वे भी तेरे विरूद्ध पाप करें और तू उन पर कोप करके उन्हें शत्रुओं के हाथ कर दे, और वे उन्हेें बन्धुआ करके किसी देश को, चाहे वह दूर हो, चाहे निकट, ले जाएं, 14O 6 38 तो यदि वे बन्धुआई के देश में सोच विचर करें, और फिरकर अपनी बन्धुआई करनेवालों के देश में तुझ से गिड़गिड़ाकर कहें, कि हम ने पाप किया, और कुटिलता और दूष्टता की है; 14O 6 39 सो यदि वे अपनी बन्धुआई के देश में जहां वे उन्हें बन्धुआ करके ले गए हों अपने पूरे मन और सारे जीव से तेरी ओर फिरें, और अपने इस देश की ओर जो तू ने उनके पुरखाओं को दिया था, और इस नगर की ओर जिसे तू ने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैं ने तेरे नाम का बनाया है, मुंह किए हुए तुझ से प्रार्थना करें, 14O 6 40 तो तू अपने स्वग य निवासस्थान में से उनकी प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनना, और उनका न्याय करना और जो पाप तेरी प्रजा के लोग तेरे विरूद्ध करें, उन्हें क्षमा करना। 14O 6 41 और हे मेरे परमेश्वर ! जो प्रार्थना इस स्थान में की जाए उसकी ओर अपनी आंखें खोले रह और अपने कान लगाए रख। 14O 6 42 अब हे यहोवा परमेश्वर, उठकर अपने सामर्थ्य के सन्दूक समेत अपने विश्रामस्थान में आ, हे यहोवा परमेश्वर तेरे याजक उठ्ठाररूपी वस्त्रा पहिने रहें, और तेरे भक्त लोग भलाई के कारण आनन्द करते रहें। 14O 6 43 हे यहोवा परमेश्वर, अपने अभिशिक्त की प्रार्थना को अनसुनी न कर, तू अपने दास दाऊद पर की गई करूणा के काम स्मरण रख। 14O 7 1 जब सुलैमान यह प्रार्थना काजुका, तब स्वर्ग से आग ने गिरकर होमबलियों तथा और बलियों को भस्म किया, और यहोवा का तेज भवन में भर गया। 14O 7 2 और याजक यहोवा के भवन में प्रवेश न कर सके, क्योंकि यहोवा का तेज यहोवा के भवन में भर गया था। 14O 7 3 और जब आग गिरी और यहोवा का तेज भवन पर छा गया, तब सब इस्राएली देखते रहे, और फर्श पर झुककर अपना अपना मुंह भूमि की ओर किए हुए दणडवत किया, और यों कहकर यहोवा का धन्यवाद किया कि, वह भला है, उसकी करूणा सदा की है। 14O 7 4 तब सब प्रजा समेत राजा ने यहोवा को बलि चढ़ाई। 14O 7 5 और राजा सुलैमान ने बाईस हजार बैल और एक लाख बीस हजार भेड़ - बकरियां चढ़ाई। यों पूरी प्रजा समेत राजा ने यहोवा के भवन की प्रतिष्ठा की। 14O 7 6 और याजक अपना अपना कार्य करने को खड़े रहे, और लेवीय भी यहोवा के गीत के गाने के लिये बाजे लिये हूए खड़े थे, जिन्हें दाऊद राजा ने यहोवा की सदा की करूणा के कारण उसका धन्यवाद करने को बनाकर उनके द्वारा स्तुति कराई थी; और इनके साम्हने याजक लोग तुरहियां बजाते रहे; और सब इस्राएली क्षड़े रहे। 14O 7 7 फिर सुलैमान ने यहोवा के भवन के साम्हने आंगन के बीच एक स्थान ववित्रा करके होमबलि और मेलबलियों की चब वहीं चढ़ाई, क्योंकि सुलैमान की बनाई इई पीतल की बेदी होमबलि और अन्नबलि और चब के लिये छोटी थी। 14O 7 8 उसी समय सुलैमान ने और उसके संग हमात की घाटी से लेकर मिस्र के नाले तक के सारे इस्राएल की एक बहुत बड़ी सभा ने सात दिन तक पर्व को माना। 14O 7 9 और आठवें दिन को उन्हों ने महासभा की, उन्हों ने वेदी की प्रतिष्ठा सात दिन की; और पव को भी सात दिन माना। 14O 7 10 निदान सातवें महीने के तेइसवें दिन को उस ने प्रजा के लोगों को विदा किया, कि वे अपने अपने डेरे को जाएं, और वे उस भलाई के कारण जो यहोवा ने दाऊद और सुलैमान और अपनी प्रजा इस्राएल पर की थी आनन्दित थे। 14O 7 11 यों सुलैमान यहोवा के भवन और राजभवन को बना चुका, और यहोवा के भवन में और अपने भवन में जो कुछ उस ने बनाना चाहा, उस में उसका मनोरथ पूरा हुआ। 14O 7 12 तब यहोवा ने रात में उसको दर्शन देकर उस से कहा, मैं ने तेरी प्रार्थाना सुनी और इस स्थान को यज्ञ के भवन के लिये अपनाया है। 14O 7 13 यदि मैं आकाश को ऐसा बन्द करूं, कि वर्षा न हो, वा टिडियों को देश उजाड़ने की आज्ञा दूं, वा अपनी प्रजा में मरी फैलाऊं, 14O 7 14 तब यदि मेरी प्रजा के लोग जो मेरे कहलाते हैं, दीन होकर प्रार्थना करें और मेरे दर्शन के खोजी होकर अपनी बुरी चाल से फिरें, तो मैं स्वर्ग में से सुनकर उनका पाप क्षमा करूंगा और उनके देश को ज्यों का त्यों कर दूंगा। 14O 7 15 अब से जो प्रार्थना इस स्थान में की जाएगी, उस पर मेरी आंखें खुली और मेरे कान लगे रहेंगे। 14O 7 16 और अब मैं ने इस भवन को अपनाया और पवित्रा किया है कि मेरा नाम सदा के लिये इस में बना रहे; मेरी आंखें और मेरा मन दोनों नित्य यहीं लगे रहेंगे। 14O 7 17 और यदि तू अपने पिता दाऊद की नाई अपने को मेरे सम्मुख जानकर चलता रहे और मेरी सब आज्ञाओं के अनुसार किया करे, और मेरी विधियों और नियमों को मानता रहे, 14O 7 18 तो मैं तेरी राजगद्दी को स्थिर रखूंगा; जैसे कि मैं ने तेरे पिता दाऊद के साथ वाचा बान्धी थी, कि तेरे कुल में इस्राएल पर प्रभुता करनेवाला सदा बना रहेगा। 14O 7 19 परन्तु यदि तुम लोग फिरो, और मेरी विधियों और आज्ञाओं को जो मैं ने तुम को दी हैं त्यागो, और जाकर पराये देवताओं की उपासना करो और उन्हें दणडवत करो, 14O 7 20 तो मैं उनको अपने देश में से जो मैं ने उनको दिया है, जड़ से उखाडूंगा; और इस भवन को जो मैं ने अपने नाम के लिये पवित्रा किया है, अपनी दृष्टि से दूर करूंगा; और ऐसा करूंगा कि देश देश के लोगों के बीच उसकी उपमा और नामधराई चलेगी। 14O 7 21 और यह भवन जो इतना विशाल है, उसके पास से आने जानेवाले चकित होकर पूछेंगे कि यहोवा ने इस देश और इस भवन से ऐसा क्यों किया है। 14O 7 22 तब लोग कहेंगे, कि उन लोगों ने अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा को जो उनको मिस्र देश से निकाल लाया था, त्यागकर पराये देवताओं को ग्रहण किया, और उन्हें दझाडवत की और उनकी उपासना की, इस कारण उस ने यह सब विपत्ति उन पर डाली है। 14O 8 1 सुलैमान को यहोवा के भवन और अपने भवन के बनाने में बीस वर्ष लगे। 14O 8 2 तब जो नगर हूराम ने सुलैमान को दिए थे, उन्हें सुलैमान ने दृढ़ करके उन में इस्राएलियों को बसाया। 14O 8 3 तब सुलैमान सोबा के हमात को जाकर, उस पर जयवन्त हुआ। 14O 8 4 और उस ने तदमोर को जो जंगल में है, और हमात के सब भणडार नगरों को दृढ़ किया। 14O 8 5 फिर उस ने ऊपरवाले और नीचेवाले दोनों बेथोरोन को शहरपनाह और फाटकों और बेड़ों से दृढ़ किया। 14O 8 6 और उस ने बालात को और सुलैमान के जितने भणडार नगर थे और उसके रथों और सवारों के जितने नगर थे उनको, और जो कुछ सुलैमान ने यरूशलेम, लबानोन और अपने राज्य के सब देश में बनाना चाहा, उन सब को बनाया। 14O 8 7 हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, हिरिवयों और यबूसियों के बचे हुए लोग जो इस्राएल के न थे, 14O 8 8 उनके वंश जो उनके बाद देश में रह गए, और जिनका इस्राएलियों ने अन्त न किया था, उन में से तो कितनों को सुलैमान ने बेगार में रखा और आज तक उनकी वही दशा है। 14O 8 9 परन्तु इस्राएलियों में से सुलैमान ने अपने काम के लिये किसी को दास न बनाया, वे तो योठ्ठा और उसके हाकिम, उसके सरदार और उसके रथें और सवारों के प्रधान हुए। 14O 8 10 और सुलैमान के सरदारों के प्रधान जो प्रजा के लोगों पर प्रभुता करनेवाले थे, वे अढ़ाई सौ थे। 14O 8 11 फिर सुलैमान फ़िरौन की बेटी को दाऊदपुर में से उस भवन में ले आया जो उस ने उसके लिये बनाया था, क्योंकि उस ने कहा, कि जिस जिस स्थान में यहोवा का सन्दूक आया है, वह पवित्रा है, इसलिये मेरी रानी इस्राएल के राजा दाऊद के भवन में न रहने पाएगी। 14O 8 12 तब सुलैमान ने यहोवा की उस वेदी पर जो उस ने ओसारे के आगे बनाई थी, यहोवा को होमबलि चढ़ाई। 14O 8 13 वह मूसा की आज्ञा के और दिन दिन के प्रयोजन के अनुसार, अर्थात् विश्राम और नये चांद और प्रति वर्ष तीन बार ठहराए हुए पव अर्थात् अखमीरी रोटी के परर्व, और अठवारों के परर्व, और झोपड़ियों के परर्व में बलि चढ़ाया करता था। 14O 8 14 और उस ने अपने पिता दाऊद के नियम के अनुसार याजकों की सेवकाई के लिये उनके दल ठहराए, और लेवियों को उनके कामों पर ठहराया, कि हर एक दिन के प्रयोजन के अनुसार वे यहोवा की स्तुति और याजकों के साम्हने सेवा- टहल किया करें, और एक एक फाटक के पास द्वारपालों को दल दल करके ठहरा दिया; क्योंकि परमेश्वर के भक्त दाऊद ने ऐसी आज्ञा दी थी। 14O 8 15 और राजा ने भणडारों या किसी और बात में याजकों और लेवियों के लिये जो जो आज्ञा दी थी, उन्होंने न टाला। 14O 8 16 और सुलैमान का सब काम जो उस ने यहोवा के भ्वन की नेव डालने से लेकर उसके पूरा करने तक किया वह ठीक हुआ। निदान यहोवा का भवन पूरा हुआ। 14O 8 17 तब सुलैमान एस्योनगेबेर और एलोत को गया, जो एदोम के देश में समुद्र के तीर पर हैं। 14O 8 18 और हूराम ने उसके पास अपने जहाजियों के द्वारा जहाज और समुद्र के जानकार मल्लाह भेज दिए, और उन्हों ने सुलैमान के जहाजियों के संग ओपीर को जाकर वहां से साढ़े चार सौ किक्कार सोना राजा सुलैमान को ला दिया। 14O 9 1 जब शीबा की रानी ने सुलैमान की कीर्त्ति सुनी, तब वह कठिन कठिन प्रश्नों से उसकी परीक्षा करने के लिये यरूशलेम को चली । वह बहुत भारी दल और मसालों और बहुत सोने और मणि से लदे ऊंट साथ लिये हुए आई, और सुलैमान के पास पहुंचकर उससे अपने मन की सब बातों के विषय बातें कीं। 14O 9 2 सुलैमान ने उसके सब प्रश्नों का उत्तर दिया, कोई बात सुलैमान की बुध्दि से ऐसी बाहर न रही कि वह उसे न बता सके। 14O 9 3 जब शीबा की रानी ने सुलैमान की बुध्दिमानी और उसका बनाया हुआ भवन 14O 9 4 और उसकी मेज पर का भोजन देखा, और उसके कर्मचारी किस रीति बैठते और उसके ठहलुए किस रीति खड़े रहते और कैसे कैसे कपड़े पहिने रहते हैं, और उसके पिलानेवाले कैसे हैं, और वे कैसे कपड़े पहिने हैं, और वह कैसी चढ़ाई है जिस से वह यहोवा के भवन को जाया करता है, जब उस ने यह सब देखा, तब वह चकित हो गई। 14O 9 5 तब उस ने राजा से कहा, मैं ने तेरे कामों और बुध्दिमानी की जो कीर्त्ति अपने देश में सुनी वह सच ही है। 14O 9 6 परन्तु जब तक मैं ने आप ही आकर अपनी आंखों से यह न देखा, तब तक मैं ने उनकी प्रतीति न की; परन्तु तेरी बुध्दि की आधी बड़ाई भी मुझे न बताई गई थी; तू उस कीर्त्ति से बढ़कर है जो मैं ने सुनी थी। 14O 9 7 धन्य हैं तेरे जन, धन्य हैं तेरे ये सेवक, जो नित्य तेरे सम्मुख उपस्थित रहकर तेरी बुध्दि की बातें सुनते हैं। 14O 9 8 धन्य है तेरा परमेश्वर यहोवा, जो तुझ से ऐसा प्रसन्न हुआ, कि तुझे अपनी राजगद्दी पर इसलिये विराजमान किया कि तू अपने परमेश्वर यहोवा की ओर से राज्य करे; तेरा परमेश्वर जो इस्राएल से प्रेम करके उन्हें सदा के लिये स्थ्रि करना जाहता थ, उसी कारण उस ने तुझे न्याय और धर्म करने को उनका राजा बना दिया। 14O 9 9 और उस ने राजा को एक सौ बीस किक्कार सोना, बहुत सा सुगन्ध द्ररय, और मणि दिए; जैसे सुगन्धद्ररय शीबा की रानी ने राजा सुलैमान को दिए, वैसे देखने में नहीं आए। 14O 9 10 फिर हूराम और सुलैमान दोनों के जहाजी जो ओषीर से सोना लाते थे, वे चन्दन की लकड़ी और मणि भी लाते थे। 14O 9 11 और राजा ने चन्दन की लकड़ी से यहोवा के भवन और राजभवन के लिये चबूतरे और गवैयों के लिये वीणाएं और सारंगियां बनवाई; ऐसी वस्तुएं उस से पहिले यहूदा देश में न देख पड़ी थीं 14O 9 12 और शीबा की रानी ने जो कुछ चाहा वही राजा सुलैमान ने उसको उसकी इच्छा के अनुसार दिया; यह उस से अधिक था, जो वह राजा के पास ले आई थी। तब वह अपने जनों समेत अपने देश को लौट गई। 14O 9 13 जो सोना प्रति वर्ष सुलैमान के पास पहुचा करता था, उसका तौल छे सौ छियासठ किक्कार था। 14O 9 14 यह उस से अधिक था जो सौदागर और रयापारी लाते थे; और अरब देश के सब राजा और देश के अधिपति भी सुलैमान के पास सोना चान्दी लाते थे। 14O 9 15 और राजा सुलैमान ने सोना गढ़ाकर दो सौ बड़ी बड़ी ढालें बनवाई; एक एक ढाल में छेछेसौ शेकेल गढ़ा हुआ सोना लगा। 14O 9 16 फिर उस ने सोना गढ़ाकर तीन सौ छोटी ढालें और भी बनवाई; एक एक छोटी ढाल मे तीन सौ शेकेल सोना लगा, और राजा ने उनको लबानोनी बन नामक भवन में रखा दिया। 14O 9 17 और राजा ने हाथीदांत का एक बड़ा सिंहासन बनाया और चोखे सोने से मढ़ाया। 14O 9 18 उस सिंहासन में छे सीढियां और सोने का एक पावदान था; ये सब सिंहासन से जुड़े थे, और बैठने के स्थान की दोनोें अलंग टेक लगी थी और दोनों टेकों के पास एक एक सिंह खड़ा हुआ बना था। 14O 9 19 और छहों सीढ़ियों की दोनों अलंग में एक एक सिंह खड़ा हुअ बना था, वे सब बारह हुए। किसी राज्य में ऐसा कभी न बना। 14O 9 20 और रजा सुलैमान के पीने के सब पात्रा सोने के थे, और लबानोनी बन नामक भवन के सब पात्रा भी चोखे सोने के थे; सुलैमान के दिनों में चान्दी का कुछ हिसाब न था। 14O 9 21 क्योंकि हूराम के जहाजियों के संग राजा के तश श को जानेवाले जहाज थे, और तीन तीन वर्ष के बाद वे तश श के जहाज सोना, चान्दी, हाथीदांत, बन्दर और मोर ले आते थे। 14O 9 22 यों राजा सुलैमान धन और बुध्दि में पृथ्वी के सब राजाओं से बढ़कर हो गया। 14O 9 23 और पृथ्वी के सब राजा सुलैमान की उस बुध्दि की बातें सुनने को जो परमेश्वर ने उसके मन में उपजाई थीं उसका दर्शन करना चाहते थे। 14O 9 24 और वे प्रति वर्ष अपनी अपनी भेंट अर्थात् चान्दी और सोने के पात्रा, वस्त्रा- शस्त्रा, सुगन्धद्ररय, घोड़े और खच्चर ले आते थे। 14O 9 25 और अपने घेड़ों और रथों के लिये सुलैमान के चार हजार थान और बारह हजार सवार भी थे, जिनको उस ने रथों के नगरों में और यरूशलेम में राजा के पास ठहरा रखा। 14O 9 26 और वह महानद से ले पलिश्तियों के देश और मिस्र के सिवाने तक के सब राजाओं पर प्रभुता करता था। 14O 9 27 और राजा ने ऐसा किया, कि बहुतायत के कारण यरूशलेम में चान्दी का मूल्य पत्थरों का और देवदार का मूल्य नीचे के देश के गूलरों का सा हो गया। 14O 9 28 और लोग मिस्र से और और सब देशों से सुलैमान के लिये घोड़े लाते थे। 14O 9 29 आदि से अन्त तक सुलैमान के और सब काम क्या नातान नबी की पुस्तक में, और शीलोवासी अहिरयाह की तबूवत की पुस्तक में, और नबात के पुत्रा यारोबाम के विषय इद्दॊ दश के दर्शन की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 14O 9 30 सुलैमान ने यरूशलेम में सारे इस्राएल पर चालीस वर्ष तक राज्य किया। 14O 9 31 और सुलैमान अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसको उसके पिता दाऊद के नगर में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्रा रहूबियाम उसके स्थान पर राजा हुआ। 14O 10 1 रहूबियाम शकेम को गया, क्योंकि सारे इस्राएली उसको राजा बनाने के लिये वहीं गए थे। 14O 10 2 और नबात के पुत्रा यारोबाम ने यह सुना (वह तो मिस्र में रहता था, जहां वह सुलैमान राजा के डर के मारे भाग गया था), और यारोबाम मिस्र से लौट आया। 14O 10 3 तब उन्हों ने उसको बुलवप भेजा; सो यारोबाम और सब इस्राएली आकर रहूबियाम से कहने लगे, 14O 10 4 तेरे पिता ने तो हम लोगों पर भारी जूआ डाल रखा था, इसलिये अब तू अपने पिता की कठिन सेवा को और उस भारी जूए को जिसे उस ने हम पर डाल रखा है कुछ हलका कर, तब हम तेरे अधीन रहेंगे। 14O 10 5 उस ने उन से कहा, तीन दिन के उपरान्त मेरे पास फिर आना, तो वे चले गए। 14O 10 6 तब राजा रहूबियाम ने उन बूढ़ों से जो उसके पिता सुलैमान के जीवन भर उसके साम्हने अपस्थ्ति रहा करते थे, यह कहकर सम्मति ली, कि इस प्रजा को कैसा उत्तर देना उचित है, इस में तुम क्या सम्मति देते हो? 14O 10 7 उन्हों ने उसको यह उत्तर दिया, कि यदि तू इस प्रजा के लोगों से अच्छा बर्त्ताव करके उन्हें प्रसन्न करे और उन से मधुर बातें कहे, तो वे सदा तेरे अधीन बने रहेंगे। 14O 10 8 परन्तु उस ने उस सम्मति को जो बूढ़ों ने उसको दी थी छोड़ दिया और उन जवानों से सम्मति ली, जो उसके संग बड़े हुए थे और उसके सम्मुख उपस्थित रहा करते थे। 14O 10 9 उन से उस ने पूछा, मैं प्रजा के लोगों को कैसा उत्तर दूं, इस में तुम क्या सम्मति देते हो? उन्हों ने तो मुझ से कहा है, कि जो जूआ तेरे पिता ने हम पर डाल रखा है, उसे तू हलका कर। 14O 10 10 जवानों ने जो उस के संग बड़े हुए थे उसको यह उत्तर दिया, कि उन लागों ने तुझ से कहा है, कि तेरे पिता ने हमारा जूआ भारी किया था, परन्तु उसे हमारे लिये हलका कर; तू उन से यों कहना, कि मेरी छिंगुलिया मेरे पिता की कटि से भी मोटी ठहरेगी। 14O 10 11 मेरे मिता ने तुम पर जो भारी जूआ रखा था, उसे मैं और भी भारी करूंगा; मेरा पिता तो तूम को कोड़ों से ताड़ना देता था, परन्तु मैं बिच्छुओं से दूंगा। 14O 10 12 तीसरे दिन जैसे राजा ने ठहराया था, कि तीसरे दिन मेरे पास फिर आना, वैसे ही यारोबाम और सारी प्रजा रहूबियाम के पास उपस्थित हुई। 14O 10 13 तब राजा ने उस से कड़ी बातें कीं, और रहूबियाम राजा ने बूढ़ों की दी हुई सम्मति छोड़कर 14O 10 14 जवानों की सम्मति के अनुसार उन से कहा, मेरे पिता ने तो तुम्हारा जूआ भारी कर दिया, परन्तु मैं उसे और भी कठिन कर दूंगा; मेरे पिता ने तो तुम को कोड़ों से ताड़ना दी, परन्तु मैं बिच्छुओं से ताड़ना दूंगा। 14O 10 15 इस प्रकार राजा ने प्रजा की बिनती न मानी; इसका कारण यह है, कि जो वचन यहोवा ने शीलोवासी अहिरयाह के द्वारा नबात के पुत्रा यारोबाम से कहा था, उसको पूरा करने के लिये परमेश्वर ने ऐसा ही ठहराया था। 14O 10 16 जब सब इस्राएलियों ने देखा कि राजा हमारी नहीं सुनता, तब वे बोले कि दाऊद के साथ हमारा क्या अंश? हमारा तो यिशै के पुत्रा में कोई भाग नहीं है। हे इस्राएलियो, अपने अपने डेरे को चले जाओ। अब हे दाऊद, अपने ही घराने की चिन्ता कर। 14O 10 17 तब सब इस्राएली अपने डेरे को चले गए। केवल जितने इस्राएली यहूदा के नगरों में बसे हुए थे, उन्हीं पर रहूबियाम राज्य करता रहा। 14O 10 18 तब राजा रहूबियाम ने हदोराम को जो सब बेगारों पर अधिकारी था भेज दिया, और इस्राएलियों ने उसको पत्थ्रवाह किया और वह मर गया। तब रहूबियाम फुत से अपने रथ पर चढ़कर, यरूशलेम को भाग गया। 14O 10 19 यों इस्राएल दाऊद के घराने से फिर गया और आज तक फिरा हुआ है। 14O 11 1 जब रहूबियाम यरूशलेम को आया, तब उस ने यहूदा और बिन्यामीन के घराने को जो मिलकर एक लाख अस्सी हजार अच्छे योठ्ठा थे इकट्ठा किया, कि इस्राएल के साथ युठ्ठ करें जिस से राज्य रहूबियाम के वश में फिर आ जाए। 14O 11 2 तब यहोवा का यह वचन परमेश्वर के भक्त शमायाह के पास पहुंचा, 14O 11 3 कि यहूदा के राजा सुलैमान के पुत्रा रहूबियाम से और यहूदा और बिन्यामीन के सब इस्राएलियों से कह, 14O 11 4 यहोवा यों कहता है, कि अपने भाइयों पर चढ़ाई करके युठ्ठ न करो। तुम अपने अपने घर लौट जाओ, क्योंकि यह बात मेरी ही ओर से हुई है। यहोवा के ये वचन मानकर, वे यारोबाम पर बिना चढ़ाई किए लौट गए। 14O 11 5 सो रहूबियाम यरूशलेम में रहने लगा, और यहूदा में बचाव के लिये ये नगर दृढ़ किए, 14O 11 6 अर्थात् बेतलेहेम, एताम, तकोआ, 14O 11 7 बेत्सूर, सोको, अदुल्लाम। 14O 11 8 गत, मारेशा, जीप। 14O 11 9 अदोरैम, लाकीश, अजेका। 14O 11 10 सोरा, अरयालोत और हेब्रोन जो यहूदा और बिन्यामीन में हैं, दृढ़ किया। 14O 11 11 और उस ने दृढ़ नगरों को और भी दृढ़ करके उन में प्रधान ठहराए, और भोजन वस्तु और तेल और दाखमधु के भणडार रखवा दिए। 14O 11 12 फिर एक एक नगर में उस ने ढालें और भाले रखवाकर उनको अत्यन्त दृढ़ कर दिया। यहूदा और बिन्यामीन तो उसके थे। 14O 11 13 और सारे इस्राएल के याजक और लेवीय भी अपने सब देश से उठकर उसके पास गए। 14O 11 14 यों लेवीय अपनी चराइयों और निज भूमि छोड़कर, यहूदा और यरूशलेम में आए, क्योंकि यारोबाम और उसके पुत्रों ने उनको निकाल दिया था कि वे यहोवा के लिये याजक का काम न करें। 14O 11 15 और उस ने ऊंचे स्थानों और बकरों और अपने बनाए हुए बछड़ों के लिये, अपनी ओर से याजक ठहरा लिए। 14O 11 16 और लेवियों के बाद इस्राएल के सब गोत्रों में से जितने मन लगाकर इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के खोजी थे वे अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा को बलि चढ़ाने के लिये यरूशलेम को आए। 14O 11 17 और उन्हों ने यहूदा का राज्य स्थिर किया और सुलैमान के पुत्रा रहूबियाम को तीन वर्ष तक दृढ़ कराया, क्योंकि तीन वर्ष तक वे दाऊद और सुलैमान की लीक पर चलते रहे। 14O 11 18 और रहूबियाम ने एक स्त्री को ब्याह लिया, अर्थात् महलत को जिसका पिता दाऊद का पुत्रा यरीमोत और माता यिशै के पुत्रा एलीआब की बेटी अबीहैल थी। 14O 11 19 14O 11 20 और उस से यूश, शमर्याह और जाहम नाम पुत्रा उत्पन्न हुए। 14O 11 21 और उसके बाद उस ने अबशलोम की बेटी माका को ब्याह लिया, और उस से अबिरयाह, अत्ते, जीजा और शलोमीत उत्पन्न हुए। 14O 11 22 रहूबियाम ने अठारह रानियां ब्याह लीं और साठ रखेलियां रखीं, और उसके अठाईस बेटे और साठ बेटियां उत्पन्न हुई। अबशलोम की नतिनी माका से वह अपनी सब रानियों और रखेलियों से अधिक प्रेम रखता था; 14O 11 23 सो रहूबियाम ने माका के बेटे अबिरयाह को मुख्य और सब भाइयों में प्रधान इस मनसा से ठहरा दिया, कि उसे राजा बनाए। 14O 11 24 और वह समझ बूझकर काम करता था, और उस ने अपने सब पुत्रों को अलग अलग करके यहूदा और बिन्यामीन के सब दाशों के सब गढ़वाले नगरों में ठहरा दिया; और उन्हें भोजन वस्तु बहुतायत से दी, और उनके लिये बहुत सी स्त्रियां ढूंढ़ी। 14O 12 1 परन्तु जब रहूबियाम का राज्य दृढ़ हो गया, और वह आप स्थिर हो गया, तब उस ने और उसके साथ सारे इस्राएल ने यहोवा की रयवस्था को त्याग दिया। 14O 12 2 उन्हों ने जो यहोवा से विश्वासघात किया, उस कारण राजा रहूबियाम के पांचपें वर्ष में मिस्र के राजा शीशक ने, 14O 12 3 बारह सौ रथ और साठ हजार सवार लिये हुए यरूशलेम पर चढ़ाई की, और जो लोग उसके संग मिस्र से आए, अर्थात् लूबी, सुक्किरयी, कूशी, ये अनगिनत थे। 14O 12 4 और उस ने यहूदा के गढ़वाले नगरों को ले लिया, और यरूशलेम तक आया। 14O 12 5 तब शमायाह नबी रहूबियाम और यहूदा के हाकिमों के पास जो शीशक के डर के मारे यरूशलेम में इट्ठे हुए थे, आकर कहने लगा, यहोवा यों कहता है, कि तुम ने मुझ को छोड़ दिया है, इसलिये मैं ने तुम को छोड़कर शीशक के हाथ में कर दिया है। 14O 12 6 तब इस्राएल के हाकिम और राजा दीन हो गए, और कहा, यहोवा धम है। 14O 12 7 जब यहोवा ने देखा कि वे दीन हुए हैं, तब यहोवा का यह वचन शमायाह के पास पहुंचा कि वे दीन हो गए हैं, मैं उनको नष्ट न करूंगा; मैं उनका कुछ बचाव करूंगा, और मेरी जलजलाहट शीशक के द्वारा यरूशलेम पर न भड़केगी। 14O 12 8 तौभी वे उसके अधीन तो रहेंगे, ताकि वे मेरी और देश देश के राज्यों की भी सेवा जान लें। 14O 12 9 तब मिस्र का राजा शीशक यरूशलेम पर चढ़ाई करके यहोवा के भवन की अनमोल वस्तुएं और राजभवन की अनमोल वस्तुएं उठा ले गया। वह सब कुछ उठा ले गया, और सोने की जो फरियां सुलैमान ने बनाई थीं, उनको भी वह ले गया। 14O 12 10 तब राजा रहूबियाम ने उनके बदले पीतल की ढालें बनावाई और उन्हें पहरूओं के प्रधानों के हाथ सौंप दिया, जो राजभवन के द्वार की रखवाली करते थे। 14O 12 11 और जब जब राजा यहोवा के भवन में जाता, तब तब पहरूए आकर उन्हें उठा ले चलते, और फिर पहरूओं की कोठरी में लौटाकर रख देते थे। 14O 12 12 जब रहूबियाम दीन हुआ, तब यहोवा का क्रोध उस पर से उतर गया, और उस ने उसका पूरा विनाश न किया; और यहूदा में अच्छे गुण भी थे। 14O 12 13 सो राजा रहूबियाम यरूशलेम में दृढ़ होकर राज्य करता रहा। जब रहूबियाम राज्य करने लगा, तब एकनालीस वर्ष की आयु का था, और यरूशलेम में अर्थात् उस नगर में, जिसे यहोवा ने अपना नाम बनाए रखने के लिये इस्राएल के सारे गोत्रा में से चुन लिया था, सत्राह वर्ष तक राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम नामा था, जो अम्मोनी स्त्री थी। 14O 12 14 उस ने वह कर्म किया जो बुरा है, अर्थात् उस ने अपने मन को यहोवा की खोज में न लगाया। 14O 12 15 आदि से अन्त तक रहूबियाम के काम क्या शमायाह नबी और इद्दॊ दश की पुस्तकों में वंशावलियों की रीति पर नहीं लिखे हैं? रहूबियाम और यारोबाम के बीच तो लड़ाई सदा होती रही। 14O 12 16 और रहूबियाम अपने पुरखाओं के संग सो गया और दाऊदपुर में उसको मिट्टी दी गई। और उसका पुत्रा अबिरयाह उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 14O 13 1 यारोबाम के अठारहवें वर्ष में अबिरयाह यहूदा पर राज्य करने लगा। 14O 13 2 वह तीन वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा, और उसकी माता का नाम मीकायाह था; जो गिबावासी ऊरीएल की बेटी थी। और अबिरयाह और यारोबाम के बीच में लड़ाई हई। 14O 13 3 अबिरयाह ने तो बड़े योठ्ठाओं का दल, अर्थात् चार लाख छंटे हुए पुरूष लेकर लड़ने के लिये पांति बन्धाई, और यारोबाम ने आठ लाख छंटे हुए पुरूष जो एड़े शूरवीर थे, लेकर उसके विरूद्ध पांति बन्धाई। 14O 13 4 तब अबिरयाह समारैम नाम पहाड़ पर, जो एप्रैम के पहाड़ी देश में है, खड़ा होकर कहने लगा, हे यारोबाम, हे सब इस्राएलियो, मेरी सुनो। 14O 13 5 क्या तुम को न जानना चाहिए, कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने लोनवाली वाचा बान्धकर दाऊद को और उसके वंश को इस्राएल का राज्य सदा के लिये दे दिया है। 14O 13 6 तौभी नबात का पुत्रा यारोबाम जो दाऊद के पुत्रा सुलैमान का कर्मचारी था, वह अपने स्वामी के विरूद्ध उठा है। 14O 13 7 और उसके पास हलके और ओछे मनुष्य इकट्ठा हो गए हैं और जब सुलैमान का पुत्रा रहूबियाम लड़का और अल्हड़ मन का था और उनका साम्हना न कर सकता था, तब वे उसके विरूद्ध सामथ हो गए। 14O 13 8 और अब तुम सोचते हो कि हम यहोवा के राज्य का साम्हना करेंगे, जो दाऊद की सन्तान के हाथ में है, क्योंकि तुम सब मिलकर बड़ा समाज बन गए हो और तुम्हारे पास वे सोने के बछड़े भी हैं जिन्हें यारोबाम ने तुम्हारे देवता होने के लिये बनवाया। 14O 13 9 क्या तुम ने यहोवा के याजकों को, अर्थात् हारून की सन्तान और लेवियों को निकालकर देश देश के लोगों की नाई याजक नियुक्त नहीं कर लिए? जो कोई एक बछड़ा और सात मेढ़े अपना संस्कार कराने को ले आता, तो उनका याजक हो जाता है जो ईश्वर नहीं है। 14O 13 10 परन्तु हम लोगों का परमेश्वर यहोवा है और हम ने उसको नहीं त्यागा, और हमारे पास यहोवा की सेवा टहल करनेवाले याजक हारून की सन्तान और अपने अपने काम में लगे हुए लेवीय हैं। 14O 13 11 और वे नित्य सवेरे और सांझ को यहोवा के लिये होमबलि और सुगन्धद्ररय का धूप जलाते हैं, और शूठ्ठ मेज पर भेंट की रोटी सजाते और सोने की दीवट और उसके दीपक सांझ- सांझ को जलाते हैं; हम तो अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं को मानते रहते हैं, परन्तु तुम ने उसको त्याग दिया है। 14O 13 12 और देखो, हमारे संग हमारा प्रधान परमेश्वर है, और उसके याजक तुम्हारे विरूद्ध सांस वान्धकर फूंकने को तुरहियां लिये हुए भी हमारे साथ हैं। हे इस्राएलियो अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा से मत लड़ो, क्योंकि तुम कृतार्थ न होगे। 14O 13 13 परन्तु यारोबाम ने घातकों को उनके पीछे भेज दिया, वे तो यहूदा के साम्हने थे, और घातक उनके पीछे थे। 14O 13 14 और जब यहूदियों ने पीछे को मुंह फेरा, तो देखा कि हमारे आगे और पीछे दोनों ओर से लड़ाई होनेवाली है; तब उन्हों ने यहोवा की दोहाई दी, और याजक तुरहियों को फूंकने लगे। 14O 13 15 तब यहूदी पुरूषों ने जय जयकार किया, और जब यहूदी पुरूषों ने जय जयकार किया, तब परमेश्वर ने अबिरयाह और यहूदा के साम्हने, यारोबाम और सारे इस्राएलियों को मारा। 14O 13 16 और इस्राएली यहूदा के साम्हने से भागे, और परमेश्वर ने उन्हें उनके हाथ में कर दिया। 14O 13 17 और अबिरयाह और उसकी प्रजा ने उन्हें बड़ी मार से मारा, यहां तक कि इस्राएल में से पांच लाख छंटे हुए पुरूष मारे गए। 14O 13 18 उस समय तो इस्राएली दब गए, और यहूदी इस कारण प्रबल हुए कि उन्हों ने अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा पर भरोसा रखा था। 14O 13 19 तब अबिरयाह ने यारोबाम का पीछा करके उस से बेतेल, यशाना और एप्रोन नगरों और उनके गांवों को ले लिया। 14O 13 20 और अबिरयाह के जीवन भर यारोबाम फिर सामथ् न हुआ; निदान यहोवा ने उसको ऐसा मारा कि वह मर गया। 14O 13 21 परन्तु अबिरयाह और भी सामथ हो गया और चौदह स्त्रियां ब्याह लीं जिन से बाइस बेटे और सोलह बेटियां उत्पन्न हुई। 14O 13 22 और अबिरयाह के काम और उसकी चाल चलन, और उसके वचन, इद्दॊ नबी की कथा में लिखे हैं। 14O 14 1 निदान अबिरयाह अपने पुरखाओं के संग सो गया, और उसको दाऊदपुर में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्रा आसा उसके स्थान पर राज्य करने लगा। इसके दिनों में दस वर्ष तक देश में चैन रहा। 14O 14 2 और आसा ने वही किया जो उसके परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में अच्छा और ठीक था। 14O 14 3 उस ने तो पराई वेदियों को और ऊंचे स्थानों को दूर किया, और लाठों को तुड़वा डाला, और अशेरा नाम मूरतों को तोड़ डाला। 14O 14 4 और यहूदियों को आज्ञा दी कि अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा की खोज करें और रयवस्था और आज्ञा को मानों। 14O 14 5 और उस ने ऊंचे स्थानों और सूर्य की प्रतिमाओं को यहूदा के सब नगरों में से दूर किया, और उसके साम्हने राज्य में चैन रहा। 14O 14 6 और उस ने यहूदा में गढ़वाले नगर बसाए, क्योंकि देश में चैन रहा। और उन बरसों में उसे किसी से लड़ाई न करनी पड़ी क्योंकि यहोवा ने उसे विश्राम दिया था। 14O 14 7 उस ने यहूदियों से कहा, आओ हम इन नगरों को बसाएं और उनके चारों ओर शहरपनाह, गढ़ और फाटकों के पल्ले और बेड़े बनाएं; देश अब तक हमारे साम्हने पड़ा है, क्योंकि हम ने, अपने परमेश्वर यहोवा की खोज की है हमने उसकी खोज की और उस ने हमको चारों ओर से विश्राम दिया है। तब उन्हों ने उन नगरों को बसाया और कृतार्थ हुए। 14O 14 8 फिर आसा के पास ढाल और बछ रखनेवालों की एक सेना थी, अर्थात् यहूदा में से तो तीन लाख पुरूष और बिन्यामीन में से फरी रखनेवाले और धनुर्धारी दो लाख अस्सी हजार ये सब शूरवीर थे। 14O 14 9 और उनके विरूद्ध दस लाख पुरूषों की सेना और तीन सौ रथ लिये हुए जेरह नाम एक कूशी निकला और मारेशा तक आ गया। 14O 14 10 तब आसा उसका साम्हना करने को चला और मारेशा के निकट सापता नाम तराई में युठ्ठ की पांति बान्धी गई। 14O 14 11 तब आसा ने अपने परमेश्वर यहोवा की यों दोहाई दी, कि हे यहोवा ! जैसे तू सामथ की सहायता कर सकता है, वैसे ही शक्तिहीन की भी; हे हमारे परमेश्वर यहोवा ! हमारी सहायता कर, क्योंकि हमारा भरोसा तुझी पर है और तेरे नाम का भरोसा करके हम इस भीड़ के विरूद्ध आए हैं। हे यहोवा, तू हमारा परमेश्वर है; मनुष्य तुझ पर प्रबल न होने पाएगा। 14O 14 12 तब यहोवा ने कूशियों को आसा और यहूदियों के साम्हने मारा और कूशी भाग गए। 14O 14 13 और आसा और उसके संग के लोगों ने उनका पीछा गरार तक किया, और इतने कूशी मारे गए, कि वे फिर सिर न उठा सके क्योंकि वे यहोवा और उसकी सेना से हार गए, और यहूदी बहुत सा लूट ले गए। 14O 14 14 और उन्हों ने गरार के आस पास के सब नगरों को मार लिया, क्योंकि यहोवा का भय उनके रहनेवालों के मन में समा गया और उन्हों ने उन नगरों को लूट लिया, क्योंकि उन में बहुत सा धन था। 14O 14 15 फिर पशु- शालाओं को जीतकर बहुत सी भेड़- बकरियां और ऊंट लूटकर यरूशलेम को लौटे। 14O 15 1 तब परमेश्वर का आत्मा ओदेद के पुत्रा अजर्याह में समा गया, 14O 15 2 और वह आसा से भेंट करने निकला, और उस से कहा, हे आसा, और हे सारे यहूदा और बिन्यामीन मेरी सुनो, जब तक तुम यहोवा के संग रहोगे तब तक वह तुम्हारे संग रहेगा; और यदि तुम उसकी खोज में लगे रहो, तब तो वह तुम से मिला करेगा, परन्तु यदि तुम उसको त्याग दोगे तो वह भी तुम को त्याग देगा। 14O 15 3 बहुत दिन इस्राएल बिना सत्य परमेश्वर के और बिना सिखानेवाले याजक के और बिना ब्यवस्था के रहा। 14O 15 4 परन्तु जब जब वे संकट में पड़कर इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की ओर फिरे और उसको ढूंढ़ा, तब तब वह उनको मिला। 14O 15 5 उस समय न तो जानेवाले को कुछ शांति होती थी, और न आनेवाले को, वरन सारे देश के सब निवासियों में बड़ा ही कोलाहल होता था। 14O 15 6 और जाति से जाति और तगर से नगर चूर किए जाते थे, क्योंकि परमेश्वर नाना प्रकार का कष्ट देकर उन्हें घबरा देता था। 14O 15 7 परन्तु तुम लोग हियाब बान्धोे और तुम्हारे हाथ ढीले न पड़ें, क्योंकि तुम्हारे काम का बदला मिलेगा। 14O 15 8 जब आसा ने ये वचन और ओदेद नबी की नबूवत सुनी, तब उस ने हियाब बान्धकर यहूदा और बिन्यामीन के सारे देश में से, और उन नगरों में से भी जो उस ने एप्रैम के पहाड़ी देश में ले लिये थे, सब घिनौनी वस्तुएं दूर कीं, और यहोवा की जो वेदी यहोवा के ओसारे के साम्हने थी, उसको नये सिरे से बनाया। 14O 15 9 और उस ने सारे यहूदा और बिन्यामीन को, और एप्रैम, मनश्शे और शिमोन में से जो लोग उसके संग रहते थे, उनको इकट्ठा किया, क्योंकि वे यह देखकर कि उसका परमेश्वर यहोवा उसके संग रहता है, इस्राएल में से उसके पास बहुत से चले आए थे। 14O 15 10 आसा के राज्य के पन्द्रहवें वर्ष के तीसरे महीने में वे यरूशलेम में इट्ठे हुए। 14O 15 11 और उसी समय उन्हों ने उस लूट में से जो वे ले आए थे, सात सौ बैल और सात हजार भेड़- बकरियां, यहोवा को बलि करके चढ़ाई। 14O 15 12 और उन्हों ने वाचा बान्धी कि हम अपने पूरे मन और सारे जीव से अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा की खोज करेंगे। 14O 15 13 और क्या बड़ा, क्या छोटा, क्या स्त्री, क्या पुरूष, जो कोई इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की खोज न करे, वह मार डाला जाएगा। 14O 15 14 और उन्हों ने जय जयकार के साथ तुरहियां और नरसिंगे बजाते हुए ऊंचे शब्द से यहोवा की शपथ खाई। 14O 15 15 और यह शपथ खाकर सब यहूदी आनन्दित हुए, क्योंकि उन्हों ने अपने सारे मन से शपथा खाई और बडी अभिलाषा से उसको ढूंढ़ा और वह उनको मिला, और यहोवा ने चारों ओर से उन्हें विश्राम दिया। 14O 15 16 बरन आसा राजा की माता माका जिस ने अशेरा के पास रखने के लिए एक घिनौनी मूरत बनाई, उसको उस ने राजमाता के पद से उतार दिया, और आसा ने उसकी मूरत काटकर पीस डाली और किद्रोन नाले में फूंक दी। 14O 15 17 ऊंचे स्थान तो इस्राएलियों में से न ढाए गए, तौभी आसा का मन जीवन भर तिष्कपट रहा। 14O 15 18 और उस ने जो सोना चान्दी, और पात्रा उसके पिता ने अर्पण किए थे, और जो उस ने आप अर्पण किए थे, उनको परमेश्वर के भवन में पहंचा दिया। 14O 15 19 और राजा आसा के राज्य के पैंतीसवें वर्ष तक फिर लड़ाई न हुई। 14O 16 1 आसा के राज्य के छत्तीसवें वर्ष में इस्राएल के राजा बाशा ने यहूदा पर चढ़ाई की और रामा को इसलिये दृढ़ किया, कि यहूदा के राजा आसा के पास कोई आने जाने न पाए। 14O 16 2 तब आस ने यहोवा के भवन और राजभवन के भणडारों में से चान्दी- सोना निकाल दमिश्कवासी अराम के राजा बेन्हदद के पास दूत भेजकर यह कहा, 14O 16 3 कि जैसे मेरे- तेरे पिता के बीच वैसे ही मेरे- तेरे बीच भी वाचा बन्धे; देख मैं तेरे पास चान्दी- सोना भेजता हूं, इसलिये आ, इस्राएल के राजा बाशा के साथ की अपनी वाचा को तोड़ दे, ताकि वह मुझ से दूर हो। 14O 16 4 बेन्हदद ने राजा आसा की यह बात मानकर, अपने दलों के प्रधानों से इस्राएली नगरों पर चढ़ाई करवाकर इरयोन, दान, आबेल्मैम और नप्ताली के सब भणडारवाले नगरों को जीत लिया। 14O 16 5 यह सुनकर बाशा ने रामा को दृढ़ करना छोड़ दिया, और अपना वह काम बन्द करा दिया। 14O 16 6 तब राजा आसा ने पूरे यहूदा देश को साथ लिया और रामा के पत्थरों और लकड़ी को, जिन से बासा काम करता था, उठा ले गया, और उन से उस ने गेवा, और मिस्पा को दृढ़ किया। 14O 16 7 उस समय हनानी दश यहूदा के राजा आसा के पास जाकर कहने लगा, तू ने जो अपने परमेश्वर यहोवा पर भरोसा नही रखा वरन अराम के राजा ही पर भरोसा रखा है, इस कारण अराम के राजा की सेना तेरे हाथ से बच गई है। 14O 16 8 क्या कूशियों और लूबियों की सेना बड़ी न थी, और क्या उस में बहुत ही रथ, और सवार न थे? तौभी तू ने यहोवा पर भरोसा रखा था, इस कारण उस ने उनको तेरे हाथ में कर दिया। 14O 16 9 देख, यहोवा की दृष्टि सारी पृथ्वी पर इसलिये फिरती रहती है कि जिनका मन उसकी ओर निष्कमट रहता है, उनकी सहायता में वह अपना सामर्थ दिखाए। तूने यह काम मूर्खता से किया है, इसलिये अब से तू लड़ाइयों मे फंसा रहेगा। 14O 16 10 तब आसा दश पर क्रोधित हुआ और उसे काठ में ठोंकवा दिया, क्योंकि वहउसकी ऐसी बात के कारण उस पर क्रोधित था। और उसी समय से आसा प्रजा के कुछ लोगों को पीसने भी लगा। 14O 16 11 आदि से लेकर अन्त तक आसा के काम यहूदा औ इस्राएल के राजाओं के वृत्तान्त में लिखे हैं। 14O 16 12 अपने राज्य के उनतीसवें वर्ष में आसा को पांव का रोग हुआ, और वह रोग अत्यन्त बढ़ गया, तौभी उस ने रोगी होकर यहोवा की नहीं वैद्यों ही की शरण ली। 14O 16 13 निदान आसा अपने राज्य के एकतालीसवें वर्ष में मरके अपने पुरखाओं के साथ सो गया। 14O 16 14 तब उसको उसी की कब्र में जो उस ने दाऊदपुर में खुदवा ली थी, मिट्टी दी गई; और वह सुगन्धद्ररयों और गंधी के काम के भांति भांति के मसालों से भरे हुए एक बिछौने पर लिटा दिया गया, और बहुत सा सुगन्धद्ररय उसके लिये जलाया गया। 14O 17 1 और उसका पुत्रा यहोशापात उसके स्थान पर राज्य करने लगा, और इस्राएल के विरूद्ध अपना बल बढ़ाया। 14O 17 2 और उस ने यहूदा के सब गढ़वाले नगरों में सिपाहियों के दल ठहरा दिए, और यहूदा के देश में और एप्रैम के उन नगरों में भी जो उसके पिता आसा ने ले लिये थे, सिपाहियों की चौकियां बैठा दीं। 14O 17 3 और यहोवा यहोशापात के संग रहा, क्योंकि वह अपने मूलपुरूष दाऊद की प्राचीन चाल सी चाल चला और बाल देवताओं की खोज में न लगा। 14O 17 4 वरन वह अपने पिता के परमेश्वर की खोज में लगा रहता था और उसी की आज्ञाओं पर चलता था, और इस्राएल के से काम नहीं करता था। 14O 17 5 इस कारए यहोवा ने रज्य को उसके हाथ में दृढ़ किया, और सारे यहूदी उसके पास भेंट लाया करते थे, और उसके पास बहुत धन और उसका विभव बढ़ गया। 14O 17 6 और यहोवा के माग पर चलते चलते उसका मन मगन हो गया; फिर उस ने यहूदा से ऊंचे स्थान और अशेरा नाम मूरतें दूर कर दीं। 14O 17 7 और उस ने अपने राज्य के तीसरे वर्ष में बेन्हैल, ओबद्याह, जकर्याह, नतनेल और मीकायाह नामक अपने हाकिमों को यहूदा के नगरों में शिक्षा देने को भेज दिया। 14O 17 8 और उनके साथ शमायाह, नतन्याह, जबद्याह, असाहेल, शमीरामोत, यहोनातान, अदोनिरयाह, तोबिरयाह और तोबदोनिरयाह, नाम लेवीय और उनके संग एलीशामा और यहोराम नामक याजक थे। 14O 17 9 सो उन्हों ने यहोवा की रयवस्था की पुस्तक अपने साथ लिये हुए यहूदा में शिक्षा दी, वरन वे यहूदा के सब नगरों में प्रजा को सिखाते हुए घूमे। 14O 17 10 और यहूदा के आस पास के देशों के राज्य राज्य में यहोवा का ऐसा डर समा गया, कि उन्हों ने यहोशापात से युठ्ठ न किया। 14O 17 11 वरन किनते पलिश्ती यहोशपात के पास भेंट और कर समझकर चान्दी लाए; और अरबी लोग भी सात हजार सात सौ मेढ़े और सात हजार सात सौ बकरे ले आए। 14O 17 12 और यहोशापात बहुत ही बढ़ता गया और उस ने यहूदा में किले और भण्डार के नगर तैयार किए। 14O 17 13 और यहूदा के नगरों में उसका बहुत काम होता था, और यरूशलेम में उसके योठ्ठा अर्थात् शूरवीर रहते थे। 14O 17 14 और इनके पितरों के घरानों के अनुसार इनकी यह गिनती थी, अर्थात् यहूदी सहस्रपति तो ये थे, प्रधान अदना जिसके साथ तीन लाख शूरवीर थे, 14O 17 15 और उसके बाद प्रधान यहोहानान जिसके साथ दो लाख अस्सी हजार पुरूष थे। 14O 17 16 और इसके बाद जिक्री का पुत्रा अमस्याह, जिस ने अपने को अपनी ही इच्छा से यहोवा को अर्पण किया था, उसके साथ दो लाख शूरवीर थे। 14O 17 17 फिर बिन्यामीन में से एल्यादा नामक एक शूरवीर जिसके साथ ढाल रखनेवाले दो लाख धनुर्धारी थे। 14O 17 18 और उसके नीचे यहोजाबाद जिसके साथ युठ्ठ के हथियार बान्धे हुए एक लाख अस्सी हजार पुरूष थे। 14O 17 19 वे ये हैं, जो राजा की सेवा में लवलीन थे। और ये उन से अलग थे जिन्हें राजा ने सारे यहूदा के गढ़वाले नगरों में ठहरा दिया। 14O 18 1 यहोशपात बड़ा धनवान और ऐश्वरर्यवान हो गया; और उस ने अहाब के साथ समधियाना किया। 14O 18 2 कुछ वर्ष के बाद वह शोमरोन में अहाब के पास गया, तब अहाब ने उसके और उसके संगियों के लिये बहुत सी भेड़- बकरियां और गाय- बैल काटकर, उसे गिलाद के रामोत पर चढ़ाई करने को उसकाया। 14O 18 3 और इस्राएल के राजा अहाब ने यहूदा के राजा यहोशापात से कहा, क्या तू मेरे साथ गिलाद के रामोत पर चढ़ाई करेगा? उस ने उसे उत्तर दिया, जैसा तू वैसा मैं भी हूँ, और जैसी तेरी प्रजा, वैसी मेरी भी प्रजा है। हम लोग युठ्ठ में तेरा साथ देंगे। 14O 18 4 फिर यहोशापात ते इस्राएल के राजा से कहा, आज यहोवा की आज्ञा ले। 14O 18 5 तब इस्राएल के राजा ने नबियों को जो चार सौ पुरूष थे, इकट्ठा करके उन से पूछा, क्या हम गिलाद के रामोत पर युठ्ठ करने को चढ़ाई करें, अथवा मैं रूका रहूं? उन्हों ने उत्तर दिया चढ़ाई कर, क्योंकि परमेश्वर उसको राजा के हाथ कर देगा। 14O 18 6 परन्तु यहोशापात ने पूछा, क्या यहों यहोवा का और भी कोई नबी नहीं है जिस से हम पूछ लें? 14O 18 7 इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, हां, एक पुरूष और है, जिसके द्वारा हम यहोवा से पूछ सकते हैं; परन्तु मैं उस से घृणा करता हूँ; क्योंकि वह मेरे विष्य कभी कल्याण की नहीं, सदा हानि ही की नबूवत करता है। वह यिम्ला का पुत्रा मीकायाह है। यहोशापात ने कहा, राजा ऐसा न कहे। 14O 18 8 तब इस्राएल के राजा ने एक हाकिम को बुलवाकर कहा, यिम्ला के पुत्रा मीकायाह को फुत से ले आ। 14O 18 9 इस्राएल का राजा और यहूदा का राजा यहोशापात अपने अपने राजवस्त्रा पहिने हुए, अपने अपने सिंहासन पर बैठे हुए थे; वे शोमरोन के फाटक में एक खुले स्थान में बैठे थे और सब नबी उनके साम्हने नबूवत कर रहे थे। 14O 18 10 तब कनाना के पुत्रा सिदकिरयाह ने लोहे के सींग बनवाकर कहा, यहोवा यों कहता है, कि इन से तू अरामियों को मारते मारते नाश कर डालेगा। 14O 18 11 और सब नबियों ने इसी आशय की नबूवत करके कहा, कि गिलाद के रामोत पर चढ़ाई कर और तू कृतार्थ होवे; क्योंकि यहोवा उसे राजा के हाथ कर देगा। 14O 18 12 14O 18 13 और जो दूत मीकायाह को बुलाने गया था, उस ने उस से कहा, सुन, नबी लोग एक ही मुंह से राजा के विषय हाुभ वचन कहते हैं; सो तेरी बात उनकी सी हो, तू भी शुभ वचन कहना। 14O 18 14 मीकायाह ने कहा, यहोवा के जीवन की सौंह, जो कुछ मेरा परमेश्वर कहे वही मैं भी कहूंगा। 14O 18 15 जब वह राजा के पास आया, तब राजा ने उस से पूछा, हे मीकायाह, क्या हम गिलाद के रामोत पर युठ्ठ करने को चढ़ाई करें अथवा मैं रूका रहूं? उस ने कहा, हां, तुम लोग चढ़ाई करो, और कृतार्थ होओ; और वे तुम्हारे हाथ में कर दिए जाएंगे। 14O 18 16 राजा ने उस से कहा, मुझे कितनी बार तुझे शपथ धराकर चिताना होगा, कि तू यहोवा का स्मरण करके मुझ से सच ही कह। 14O 18 17 मीकायाह ने कहा, मुझे सारा इस्राएल बिना चरवाहे की भेंड़- बकरियों की नाई पहाड़ों पर तितर बितर दिखाई पड़ा, और यहोवा का वचन आया कि वे तो अनाथ हैं, इसलिये हर एक अपने अपने घर कुशल क्षेम से लौट जाएं। 14O 18 18 तब इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, क्या मैं ने तुझ से न कहा था, कि वह मेरे विषय कल्याण की नहीं, हानि ही की नबूवत करेगा? 14O 18 19 मीकायाह ने कहा, इस कारण तुम लोग यहोवा का यह वचन सुनो : मुझे सिंहासन पर विराजमान यहोवा और उसके दाहिने बाएं खड़ी हुई स्वर्ग की सारी सेना दिखाई पड़ी। 14O 18 20 तब यहोवा ने पूछा, इस्राएल के राजा अहाब को कौन ऐसा बहकाएगा, कि वह गिलाद के रामोत पर चढ़ाई करके खेत आए, तब किसी ने कुछ और किसी ने कुछ कहा। 14O 18 21 निदान एक आत्मा पास आकर यहोवा के सम्मुख खड़ी हुई, और कहने लगी, मैं उसको बहकाऊंगी। 14O 18 22 यहोवा ने पूछा, किस उपाय से? उस ने कहा, मैं जाकर उसके सब नबियों में पैठ के उन से झूठ बुलवाऊंगी। यहोवा ने कहा, तेरा उसको बहकाना सफल होगा, जाकर ऐसा ही कर। 14O 18 23 इसलिये तुन अब यहोवा ने तेरे इन नबियों के मुंह में एक झूठ बोलनेवाली आत्मा पैठाई है, और यहोवा ने तेरे विषय हानि की बात कही है। 14O 18 24 तब कनाना के पुत्रा सिदकिरयाह ने निकट जा, मीकायाह के गाल पर थप्पड़ मारकर पूछा, यहोवा का आत्मा मुझे छोड़कर तुझ से बातें करने को किधर गया। 14O 18 25 उस ने कहा, जिस दिन तू छिपने के लिये कोठरी से कोठरी में भागेगा, तब जान लेगा। 14O 18 26 इस पर इस्राएल के राजा ने कहा, कि मीकायाह को नगर के हाकिम आमोन और राजकुमार योआश के पास लौटाकर, 14O 18 27 उन से कहो, राजा यों कहता है, कि इसको बन्दीगृह में डालो, और जब तक मैं कुशल से न आऊं, तब तक इसे दु:ख की रोटी और पानी दिया करो। 14O 18 28 तब मीकायाह ने कहा, यदि तू कभी कुशल से लौटे, तो जान, कि यहोवा ने मेरे द्वारा नहीं कहा। फिर उस ने कहा, हे लोगो, तुम सब के सब सुनं लो। 14O 18 29 तब इस्राएल के राजा और यहूदा के राजा यहोशापात दोनों ने गिलाद के रामोत पर चढ़ाई की। 14O 18 30 और इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, मैं तो भेष बदलकर युठ्ठ में जाऊंगा, परन्तु तू अपने ही वस्त्रा पहिने रह। इस्राएल के राजा ने भेष बदला और वे दोनों युठ्ठ में गए। 14O 18 31 अराम के राजा ने तो अपने रथों के प्रधानों को आज्ञा दी थी, कि न तो छोटे से लड़ो और न बड़े से, केवल इस्राएल के राजा से लड़ो। 14O 18 32 सो जब रथों के प्रधानों ने यहोशापात को देखा, तब कहा इस्राएल का राजा वही है, और वे उसी से लड़ने को मुड़े। इस पर यहोशापात चिल्ला उठा, तब यहोवा ने उसकी सहायता की। और परमेश्वर ने उनको उसके पास से फिर जाने की प्रेरणा की। 14O 18 33 सो यह देखकर कि वह इस्राएल का राजा नही है, रथों के प्रधान उसका पीछा छोड़ के लौट गए। 14O 18 34 तब किसी ने अटकल से एक तीर चलाया, और वह इस्राएल के राजा के झिलम और निचले वस्त्रा के बीच छेदकर लगा; तब उस ने अपने सारथी से कहा, मैं घायल हुआ, इसलिये लगाम फेरके मुझे सेना में से बाहर ले चल। 14O 18 35 और उस दिन युठ्ठ बढ़ता गया और इस्राएल का राजा अपने रथ में अरामियों के सम्मुख सांझ तक खड़ा रहा, परन्तु सूर्य अस्त होते- होते वह मर गया। 14O 19 1 और यहूदा का राजा यहोशापात यरूशलेम को अपने भवन में कुशल से लौट गया। 14O 19 2 तब हनानी नाम दश का पुत्रा येहू यहोशापात राजा से भेंट करने को निकला और उस से कहने लगा, क्या दुष्टों की सहायता करनी और यहोवा के बैरियों से प्रेम रखना चाहिये? इस काम के कारण यहोवा की ओर से तुझ पर क्रोध भड़का है। 14O 19 3 तौभी तुझ में कुछ अच्छी बातें पाई जाती हैं। तू ने तो देश में से अशेरों को नाश किया और उपने मन को परमेश्वर की खोज में लगाया है। 14O 19 4 यहोशापात यरूशलेम में रहता था, और उस ने बेर्शेबा से लेकर बप्रैम के पहाड़ी देश तक अपनी प्रजा में फिर दौरा करके, उनको उनके पितरों के परमेश्वर यहोवा की ओर फेर दिया। 14O 19 5 फिर उस ने यहूदा के एक एक गढ़वाले नगर में न्यायी ठहराया। 14O 19 6 और उस ने न्यायियों से कहा, सोचो कि क्या करते हो, क्योंकि तुम जो न्याय करोगे, वह मनुष्य के लिये नहीं, यहोवा के लिये करोगे; और वह न्याय करते समय तुम्हारे साथ रहेगा। 14O 19 7 अब यहोवा का भय तुम में बना रहे; चौकसी से काम करना, क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा में कुछ कुटिलता नहीं है, और न वह किसी का पक्ष करता और न घूस लेता है। 14O 19 8 और यरूशलेम में भी यहोशापात ने लेवियों और याजकों और इस्राएल के पितरों के घरानों के कुछ मुख्य पुरूषों को यहोवा की ओर से न्याय करने और मुक मों को जांचने के लिये ठहराया। 14O 19 9 और वे यरूशलेम को लौटे। और उस ने उनको आज्ञा दी, कि यहोवा का भय मानकर, सच्चाई और निष्कपट मन से ऐसा करना। 14O 19 10 तुम्हारे भाई जो अपने अपने नगर में रहते हैं, उन में से जिसका कोई मुक मा तुम्हारे साम्हने आए, चाहे वह खून का हो, चाहे रयवस्था, अथवा किसी आज्ञा या विधि वा नियम के विषय हो, उनको चिता देना, कि यहोवा के विषय दोषी न होओ। बेसा न हो कि तुम पर और तुम्हारे भाइयों पर उसका क्रोध भड़के। ऐसा करो तो तुम दोषी न ठहरोगे। 14O 19 11 और देखो, यहोवा के विष्य के सब मुक मों में तो अमर्याह महायाजक और राजा के विषय के सब मुक मों में यहूदा के घराने का प्रधान इश्माएल का पुत्रा जबद्याह तुम्हारे ऊपर अधिकारी है; और लेवीय तुम्हारे साम्हने सरदारों का काम करेंगे। इसलिये हियाब बान्धकर काम करो और भले मनुष्य के साथ यहोवा रहेगा। 14O 20 1 इसके बाद मोआबियों और अम्मोनियों ने और उनके साथ कई मूनियों ने युठ्ठ करने के लिये यहोशापात पर चढ़ाई की। 14O 20 2 तब लोगों ने आकर यहोशापात को बता दिया, कि ताल के पार से एदोम देश की ओर से एक बड़ी भीड़ तुझ पर चढ़ाई कर रही है; और देख, वह हसासोन्तामार तक जो एनगदी भी कहलाता है, पहुंच गई है। 14O 20 3 तब यहोशपात डर गया और यहोवा की खोज में लग गया, और पूरे यहूदा में उपवास का प्रचार करवाया। 14O 20 4 सो यहूदी यहोवा से सहायता मांगने के लिये इकट्ठे हुए, वरन वे यहूदा के सब नगरों से यहोवा से भेंट करते को आए। 14O 20 5 तब यहोशपात यहोवा के भवन में नये आंगन के साम्हने यहूदियों और यरूशलेमियों की मण्डली में खड़ा होकर 14O 20 6 यह कहने लगा, कि हे हमारे पितरों के परमेश्वर यहोवा ! क्या तू स्वर्ग में परमेश्वर नहीं है? और क्या तू जाति जाति के सब राज्यों के ऊपर प्रभुता नहीं करता? और क्या तेरे हाथ में ऐसा बल और पराक्रम नहीं है कि तेरा साम्हना कोई नहीं कर सकता? 14O 20 7 हे हमारे परमेश्वर ! क्या तू ने इस देश के निवासियों को अपनी प्रजा इस्राएल के साम्हने से निकालकर इन्हें अपने मित्रा इब्राहीम के वंश को सदा के लिये नहीं दे दिया? 14O 20 8 वे इस में बस गए और इस में तेरे नाम का एक पवित्रास्थान बनाकर कहा, 14O 20 9 कि यदि तलवार या मरी अथवा अकाल वा और कोई विपत्ति हम पर पड़े, तौभी हम इसी भवन के साम्हने और तेरे साम्हने (तेरा नाम तो इस भवन में बसा है) खड़े होकर, अपने क्लेश के कारण तेरी दोहाई देंगे और तू सुनकर बचाएगा। 14O 20 10 और अब अम्मोनी और मोआबी और सेईर के पहाड़ी देश के लोग जिन पर तू ने इस्राएल को मिस्र देश से आते समय चढ़ाई करने न दिया, और वे उनकी ओर से मुड़ गए और उनको विनाश न किया, 14O 20 11 देख, वे ही लोग तेरे दिए हुए अधिकार के इस देश में से जिसका अधिकार तू ने हमें दिया है, हम को निकालकर कैसा बदला हमें दे रहे हैं। 14O 20 12 हे हमारे परमेश्वर, क्या तू उनका न्याय न करेगा? यह जो बड़ी भीड़ हम पर चढ़ाई कर रही है, उसके साम्हने हमारा तो बस नहीं चलता और हमें हुछ सूझता नहीं कि क्या करना चाहिये? परन्तु हमारी आंखें तेरी ओर लगी हैं। 14O 20 13 और सब यहूदी अपने अपने बालबच्चों, स्त्रीयों और पुत्रों समेत यहोवा के सम्मुख खड़े रहे। 14O 20 14 तब आसाप के वंश में से यहजीएल नाम एक लेवीय जो जकर्याह का पुत्रा और बनायाह का पोता और मत्तन्याह के पुत्रा यीएल का परपोता था, उस में मण्डली के बीच यहोवा का आत्मा समाया। 14O 20 15 और वह कहने लगा, हे सब यहूदियो, हे यरूशलेम के रहनेवालो, हे राजा यहोशापात, तुम सब ध्यान दो; यहोवा तुम से यों कहता है, तुम इस बड़ी भीड़ से मत डरो और तुम्हारा मन कच्चा न हो; क्योंकि युठ्ठ तुम्हारा नहीं, परमेश्वर का है। 14O 20 16 कल उनका साम्हना करने को जाना। देखो वे सीस की चढ़ाई पर चढ़े आते हैं और यरूएल नाम जंगल के साम्हने नाले के सिरे पर तुम्हें मिलेंगे। 14O 20 17 इस लड़ा़ई में तुम्हें लड़ना न होगा; हे यहूदा, और हे यरूशलेम, ठहरे रहना, और खड़े रहकर यहोवा की ओर से अपना बचाव देखना। मत डरो, और तुम्हारा मन कच्चा न हो; कल उनका साम्हना करने को चलना और यहोवा तुम्हारे साथ रहेगा। 14O 20 18 तब यहोशापात भूमि की ओर मुंह करके भुका और सब यहूदियों और यरूशलेम के निवासियों ने यहोवा के साम्हने गिरके यहोवा को दण्डवत किया। 14O 20 19 और कहातियों और कोरहियों में से कुछ लेवीय खड़े होकर इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की स्तुति अत्यन्त ऊंचे स्वर से करने लगे। 14O 20 20 बिहान को वे सबेरे उठकर तकोआ के जंगल की ओर निकल गए; और चलते समय यहोशापात ने खड़े होकर कहा, हे यहूदियो, हे यरूशलेम के निवासियो, मेरी सुनो, अपने परमेश्वर यहोवा पर विश्वास रखो, तब तुम स्थिर रहोगे; उसके नबियों की प्रतीत करो, तब तुम कृतार्थ हो जाओगे। 14O 20 21 तब उस ने प्रजा के साथ सम्मति करके कितनों को ठहराया, जो कि पवित्राता से शोभायमान होकर हथियारबन्दों के आगे आगे चलते हुए यहोवा के गीत गाएं, और यह कहते हुए उसकी स्तुति करें, कि यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि उसकी करूणा सदा की है। 14O 20 22 जिस समय वे गाकर स्तुति करने लगे, उसी समय यहोवा ने अम्मोनियों मोआबियों और सेईर के पहाड़ी देश के लोगों पर जो यहूदा के विरूद्ध आ रहे थे, घातकों को बैठा दिया और वे मारे गए। 14O 20 23 क्योंकि अम्मोनियों और मोआबियों ने सेईर के पहाड़ी देश के निवासियों को डराने और सत्यानाश करने के लिये उन पर चढ़ाई की, और जब वे सेईर के पहाड़ी देश के निवासियों का अन्त कर चुके, तब उन सभों ने एक दूसरे के नाश करने में हाथ लगाया। 14O 20 24 सो जब यहूदियों ने जंगल की चौकी पर पहुंचकर उस भीड़ की ओर दृष्टि की, तब क्या देख कि वे भूमि पर पड़ी हुई लोथ हैं; और कोई नहीं बचा। 14O 20 25 तब यहोशापात और उसकी प्रजा लूट लेने को गए और लोथों के बीचा बहुत सी सम्मत्ति और मनभावने गहने मिले; उन्हों ने इतने गहने उतार लिये कि उनको न ले जा सके, वरन लूट इतनी मिली, कि बटोरते बटोरते तीन दिन बीत गए। 14O 20 26 चौथे दिन वे बराका नाम तराई में इकट्ठे हुए और वहां यहोवा का धन्यवाद किया; इस कारण उस स्थान का नाम बराका की तीई पड़ा, जो आज तक है। 14O 20 27 तब वे, अर्थात् यहूदा और यरूशलेम नगर के सब पुरूष और उनके आगे आगे यहोशापात, आनन्द के साथ यरूशलेम लौटे क्योंकि यहोवा ने उन्हें शत्रुओं पर आनन्दित किया था। 14O 20 28 सो वे सारंगियां, वीणाएं और तुरहियां बजाते हुए यरूशलेम में यहोवा के भवन को आए। 14O 20 29 और जब देश देश के सब राज्यों के लोगों ने सुना कि इस्राएल के शत्रुओं से यहोवा लड़ा, तब उनके मन में परमेश्वर का डर समा गया। 14O 20 30 और यहोशापात के राज्य को चैन मिला, क्योंकि उसके परमेश्वर ने उसको चारों ओर से विश्राम दिया। 14O 20 31 यों यहोशापात ने यहूदा पर राज्य किया। जब वह राज्य करने लगा तब वह पैंतीस वर्ष का था, और पच्चीस वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम अजूबा था, जो शिल्ही की बेटी थी। 14O 20 32 और वह अपने पिता आसा की लीक पर चला ओर उस से न मुड़ा, अर्थात् जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है वही वह करता रहा। 14O 20 33 तौभी ऊंचे स्थान ढाए न गए, वरन अब तक प्रजा के लोगों ने अपना मन अपने पितरों के परमेश्वर की ओर न लगाया था। 14O 20 34 और आदि से अन्त तक यहोशापात के और काम, हनानी के पुत्रा येहू के विषय उस वृत्तान्त में लिखे हैं, जो इस्राएल के राजाओं के वृत्तान्त में पाया जाता हैं। 14O 20 35 इसके बाद यहूद के राजा यहोशापात ने इस्राएल का राजा अहज्याह से जो बड़ी दुष्टता करता था, मेल किया। 14O 20 36 अर्थात् उस ने उसके साथ इसलिये मेल किया कि तश श जाने को जहाज बनवाए, और उन्हों ने ऐसे जहाज एस्योनगेबेर में बनवाए। 14O 20 37 तब दोदावाह के पुत्रा मारेशावासी एलीआजर ने यहोशापात के विरूद्ध यह नबूवत कही, कि तू ने जो अहज्याह से मेल किया, इस कारण यहोवा तेरी बनवाई हुई वस्तुओं को तोड़ डालेगा। सो जहरज टूट गए और तश श को न जा सके। 14O 21 1 निदान यहोशापात अपने पुरखाओं के संग सो गया, और उसको उसके पुरखाओं के बीच दाऊदपुर में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्रा यहोराम उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 14O 21 2 इसके भाई जो यहोशापात के पुत्रा थे, ये थे, अर्थात् अजर्याह, यहीएल, जकर्याह, अजर्याह, मीकाएल और शपत्याह; ये सब इस्राएल के राजा यहोशापात के पुत्रा थे। 14O 21 3 और उनके पिता ने उन्हे चान्दी सोना और अनमोल वस्तुएं और बड़े बड़े दान और यहूदा में गढ़वाले नगर दिए थे, परन्तु यहोराम को उस ने राज्य दे दिया, क्योंकि वह जेठा था। 14O 21 4 जब यहोराम अपने पिता के राज्य पर नियुक्त हुआ और बलवन्त भी हो गया, तब उसने अपने सब भाइयों को और इस्राएल के कुछ हाकिमों को भी तलवार से घात किया। 14O 21 5 जब यहोराम राजा हुआ, तब वह बत्तीस वर्ष का था, और वह आठ वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। 14O 21 6 वह इस्राएल के राजाओं की सी चाल चला, जैसे अहाब का घराना चलता था, क्योंकि उसकी पत्नी अहाब की बेटी थी। और वह उस काम को करता था, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 14O 21 7 तौभी यहोवा ने दाऊद के घराने को नाश करना न चाहा, यह उस वाचा के कारण था, जो उसने दाऊद से बान्धी थी। और उस वचन के अनुसार था, जो उस ने उसको दिया था, कि में ऐसा करूंगा कि तेरा और तेरे वंश का दीपक कभी न बुझेगा। 14O 21 8 उसके दिनों में एदोम ने यहूदा की अधीनता छोड़कर अपने ऊपर एक राजा बना लिया। 14O 21 9 सो यहोराम अपने हाकिमों और अपने सब रथों को साथ लेकर उधर गया, और रथों के प्रधानों को मारा। 14O 21 10 यों एदोम यहूदा के वश से छूट गया और आज तक वैसा ही है। उसी समय लिब्ना ने भी उसकी अधीनता छोड़ दी, यह इस कारण हुआ, कि उस ने अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया था। 14O 21 11 और उस ने यहूदा के पहाड़ों पर ऊंचे स्थान बनाए और यरूशलेम के निवासियों से रयभिचार कराया, और यहूदा को बहका दिया। 14O 21 12 तब एलिरयाह नबी का एक पत्रा उसके पास आया, कि तेरे मूलपुरूष दाऊद का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि तू जो न तो अपने पिता यहोशापात की लीक पर चला है और न यहूदा के राजा आसा की लीक पर, 14O 21 13 वरन इस्राएल के राजाओं की लीक पर चला है, और अहाब के घराने की नाई यहूलियों और यरूशलेम के निवासियों से रयभिचार कराया है और अपने पिता के घराने में से अपने भाइयों को जो तुझ से अच्छे थे, घात किया है, 14O 21 14 इस कारण यहोवा तेरी प्रजा, पुत्रों, स्त्रियों और सारी सम्मत्ति को बड़ी मार से मारेगा। 14O 21 15 और तू अंतड़ियों के रोग से बहुत पीड़ित हो जाएगा, यहां तक कि उस रोग के कारण तेरी अंतड़ियां प्रतिदिन निकलती जाएंगी। 14O 21 16 और यहोवा ने पलिश्तियों को और कूशियों के पास रहनेवाले अरबियों को, यहोराम के विरूद्ध उभारा। 14O 21 17 और वे यहूदा पर चढ़ाई करके उस पर टूट पड़े, और राजभवन में जितनी सम्पत्ति मिली, उस सब को और राजा के पुत्रों और स्त्रियों को भी ले गए, यहां तक कि उसके लहुरे बेटे यहोआहाज को छोड़, उसके पास कोई भी पुत्रा न रहा। 14O 21 18 इन सब के बाद यहोवा ने उसे अंतड़ियों के असाध्यरोग से पीड़ित कर दिया। 14O 21 19 और कुछ समय के बाद अर्थात् दो वर्ष के अन्त में उस रोग के कारण उसकी अंतड़ियां निकल पड़ीं, ओर वह अत्यन्त पीड़ित होकर मर गया। और उसकी प्रजा ने जैसे उसके पुरखाओं के लिये सुगन्धद्ररय जलाया था, वैसा उसके लिये कुछ न जलाया। 14O 21 20 वह जब रज्य करने लगा, तब बत्तीस वर्ष का था, और यरूशलेम में आठ वर्ष तक राज्य करता रहा; और सब को अप्रिय होकर जाता रहा। और उसको दाऊदपुर में मिट्टी दी गई, परन्तु राजाओं के कब्रिस्तान में नहीं। 14O 22 1 तब यरूशलेम के निवासियों ने उसके लहुरे पुत्रा अहज्याह को उसके स्थान पर राजा बनाया; क्योंकि जो दल अरबियों के संग छावनी में आया था, उस ने उसके सब बड़े बड़े बेटों को घात किया था सो यहूदा के राजा यहोराम का पुत्रा अहज्याह राजा हुआ। 14O 22 2 जब अहज्याह राजा हुआ, तब वह बयालीस वर्ष का था, और यरूशलेम में बक ही वर्ष राज्य किया, और उसकी माता का ताम अतल्याह था, जो ओम्री की पोती थी। 14O 22 3 वह अहाब के घराने की सी चाल चला, क्योंकि उसकी माता उसे दुष्टता करने की सम्मति देती थी। 14O 22 4 और वह अहाब के घराने की नाई वह काम करता था जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, क्योंकि उसके पिता की मृत्यु के बाद वे उसको ऐसी सम्मति देते थे, जिस से उसका विनाश हुआ। 14O 22 5 और वह उनकी सम्मति के अनुसार चलता था, और इस्राएल के राजा अहाब के पुत्रा यहोराम के संग गिलाद के रामोत में अराम के राजा हजाएल से लड़ने को गया और अरामियों ने यहोराम को घायल किया। 14O 22 6 सो राजा यहोराम इसलिये लौट गया कि यिज्रेल में उन घावों का इताज कराए जो उसको अरामियों के हाथ से उस समय लगे थे जब वह हजाएल के साथ लड़ रहा था। और अहाब का पुत्रा यहोराम जो यिज्रेल में रोगी था, इस कारण से यहूदा के राजा यहोराम का पुत्रा अहज्याह उसको देखने गया। 14O 22 7 और अहज्याह का विनाश यहोवा की ओर से हुआ, क्योंकि वह यहोराम के पास गया था। और जब वह वहां पहुंचा, तब यहोराम के संग निमशी के पुत्रा येहू का साम्हना करने को निकल गया, जिसका अभिषेक यहोवा ने इसलिये कराया था कि वह अहाब के घराने को नाश करे। 14O 22 8 और जब येहू अहाब के घराने को दणड दे रहा था, तब उसको यहूदा के हाकिम और अहज्याह के भतीजे जो अहज्याह के टहलुए थे, मिले, और उस ने उनको घात किया। 14O 22 9 तब उस ने अहज्याह को ढूंढ़ा। वह शोमरोन में छिपा था, सो लोगों ने उसको पकड़ लिया और येहू के पास पहुंचाकर उसको मार डाला। तब यह कहकर उसको मिट्टी दी, कि यह यहोशपात का पोता है, जो अपने पूरे मन से यहोवा की खोज करता था। और अहज्याह के घराने में राज्य करने के योग्य कोई न रहा। 14O 22 10 जब अहज्याह की माता अतल्याह ने देख कि मेरा पुत्रा मर गया, तब उस ने उठकर यहूदा के घराने के सारे राजवंश को नाश किया। 14O 22 11 परन्तु यहोशवत जो राजा की बेटी थी, उस ने अहज्याह के पुत्रा योआश को घात होनेवाले राजकुमारों के बीच से चुराकर धाई समेत बिछौने रखने की कोठरी में छिपा दिया। इस प्रकार राजा यहोराम की बेटी यहोशवत जो यहोयादा याजक की स्त्री और अहज्याह की बहिन थी, उस ने योआश को अतल्याह से ऐसा छिपा रखा कि वह उसे मार डालने न पाई। 14O 22 12 और वह उसके पास परमेश्वर के भवन में छे वर्ष छिपा रहा, इतने दिनों तक अतल्याह देश पर राज्य करती रही। 14O 23 1 सातवें वर्ष में यहोयादा ने हियाब बान्धकर यरोहाम के पुत्रा अजर्याह, यहोहानान के पुत्रा इश्वाएल, ओबेद के पुत्रा अजर्याह, अदायाह के पुत्रा मासेयाह और जिक्री के पुत्रा बलीशपात, इन शतपतियों से वाचा बान्धी। 14O 23 2 तब वे यहूदा में घूमकर यहूदा के सब नगरों में से लेवियों को और इस्राएल के पितरों के घरानों के मुख्य मुख्य पुरूषों को इकट्ठा करके यरूशलेम को ले आए। 14O 23 3 और उस सारी मएडली ने परमेश्वर के भवन में राजा के साथ वाचा बान्धी, और यहोयादा ने उन से कहा, सुनो, यह राजकुमार राज्य करेगा जैसे कि यहोवा ने दाऊद के वंश के विषय कहा है। 14O 23 4 तो तुम एक काम करो, अर्थात् तुम याजकों और लेवियों की एक तिहाई लोग जो विश्रामदिन को आनेवाले हो, वे द्वारपाली करें, 14O 23 5 और एक तिहाई लोग राजभवन में रहें और एक तिहाई लोग नेव के फाटक के पास रहें; और सब लोग यहोवा के भवन के आंगनों में रहें। 14O 23 6 परन्तु याजकों और सेवा टहल करनेवाले लेवियों को छोड़ और कोई यहोवा के भवन के भीतर न आने पाए; वे तो भीतर आएं, क्योंकि वे पवित्रा हैं परन्तु सब लोग यहोवा के भवन की चौकसी करें। 14O 23 7 और लेवीय लोग अपने अपने हाथ में हथियार लिये हुए राजा के चारों ओर रहें और जो कोई भवन के भीतर घुसे, वह मार डाला जाए। और तुम राजा के आते जाते उसके साथ रहना। 14O 23 8 यहोयादा याजक की इन सब आज्ञाओं के अनुसार लेवियों और सब यहूदियों ने किया। उन्हों ने विश्रामदिन को आनेवाले और विश्रामदिन को जानेवाले दोनों दलों के, अपने अपने जनों को अपने साथ कर लिया, क्योंकि यहोयादा याजक ने किसी दल के लेवियों को विदा न किया थ। 14O 23 9 तब यहोयादा याजक ने शतपतियों को राजा दाऊद के बर्छे और भाले और ढालें जो परमेश्वर के भवन में थीं, दे दीं। 14O 23 10 फिर उस ने उन सब लोगों को अपने अपने हाथ में हथियार लिये हुए भवन के दक्खिनी कोने से लेकर, उत्तरी कोने तक वेदी और भवन के पास राजा के चारों ओर उसकी आड़ करके खड़ा कर दिया। 14O 23 11 तब उन्हों ने राजकुमार को बाहर ला, उसके सिर पर मुकुट रखा और साक्षीपत्रा देकर उसे राजा बनाया; और यहोयादा और उसके पुत्रों ने उसका अभिषेक किया, और लोग बोल उठे, राजा जीवित रहे। 14O 23 12 जब अतल्याह को उन लोगों का हल्ला, जो दौड़ते और राजा को सराहते थे सुन पड़ा, तब वह लोगों के पास यहोवा के भवन में गई। 14O 23 13 और उस ने क्या देखा, कि राजा द्वार के निकट खम्भे के पास खड़ा है और राजा के पास प्रधान और तुरही बजानेवाले खड़े हैं, और सब लोग आनन्द कर रहे हैं और तुरहियां बजा रहे हैं और गाने बजानेवाले बाजे बजाते और स्तुति करते हैं। तब अतल्याह अपने वस्त्रा फाड़कर पुकारने लगी, राजद्रोह, राजद्रोह ! 14O 23 14 तब यहोयादा याजक ने दल के अधिकारी शतपतियों को बाहर लाकर उन से कहा, कि उसे अपनी पांतियों के बीच से निकाल ले जाओ; और जो कोई उसके पीछे चले, वह तलवार से मार डाला जाए। याजक ने कहा, कि उसे यहोवा के भवन में न मार डालो। 14O 23 15 तब उन्हों ने दोनों ओर से उसको जगह दी, और वह राजभवन के घोड़ाफाटक के द्वार तक गई, और वहां उन्हों ने उसको मार डाला। 14O 23 16 तब यहोयादा ने अपने और सारी प्रजा के और राजा के बीच यहोवा की प्रजा होने की वाचा बन्धवाई। 14O 23 17 तब सब लोगों ने बाल के भवन को जाकर ढा दिया; और उसकी वेदियों और मूरतों को टुकड़े टुकड़े किया, और मत्तान नाम बाल के याजक को वेदियों के साम्हने ही घात किया। 14O 23 18 तब यहोयादा ने यहोवा के भवन की सेवा के लिये उन लेवीय याजकों को ठहरा दिया, जिन्हें दाऊद ने यहोवा के भवन पर दल दल करके इसलिये ठहराया था, कि जैसे मूसा की रयवस्था में लिखा है, वैसे ही वे यहोवा को होमबलि चढ़ाया करें, और दाऊद की चलाई हुई विधि के अनुसार आनन्द करें और गाएं। 14O 23 19 और उस ने यहोवा के भवन के फाटकों पर द्वारपालों को इसलिये खड़ा किया, कि जो किसी रीति से अशुठ्ठ हो, वह भीतर जाने न पाए। 14O 23 20 और वह शतपतियों और रईसों और प्रजा पर प्रभुता करनेवालों और देश के सब लोगों को साथ करके राजा को यहोवा के भवन से नीचे ले गया और ऊंचे फाटक से होकर राजभवन में आया, और राजा को राजगद्दी पर बैठाया। 14O 23 21 तब सब लोग आनन्दित हुए और नगर में शान्ति हुई। अतल्याह तो तलवार से मार ही डाली गई थी। 14O 24 1 जब योआश राजा हुआ, तब वह सात वर्ष का था, और यरूशलेम में चालीस वर्ष तक राज्य करता रहा; उसकी माता का नाम सिब्या था, जो बेर्शेबा की थी। 14O 24 2 और जब तक यहोयादा याजक जीवित रहा, तब तक योआश वह काम करता रहा जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है। 14O 24 3 और यहसेयादा ने उसके दो ब्याह कराए और उस से बेटे- बेटियां उत्पन्न हुई। 14O 24 4 इसके बाद योआश के मन में यहोवा के भवन की मरम्मत करने की मनसा उपजी। 14O 24 5 तब उस ने याजकों और लेवियों को इकट्ठा करके कहा, प्रति वर्ष यहूदा के नगरों में जा जाकर सब इस्राएलियों से रूपये लिया करो जिस से तुम्हारे परमेश्वर के भवन की मरम्मत हो; देखो इसकाम में फुत करो। तौभी लेवियों ने कुछ फुत न की। 14O 24 6 तब राजा ने यहोयादा महायाजक को बुलवा कर पूछा, क्या कारण है कि तू ने लेवियों को दृढ़ आज्ञा नहीं दी कि वे यहूदा और यरूशलेम से उस चन्दे के रूपए ले आएं जिसका नियम यहोवा के दास मूसा और इस्राएल की मण्डली ने साक्षीपत्रा के तम्बू के निमित्त चलाया था। 14O 24 7 उस दुष्ट स्त्री अतल्याह के बेटों ने तो परमेश्वर के भवन को तोड़ दिया और यहोवा के भवन की सब पवित्रा की हुई वस्तुएं बाल देवताओं को दे दी थीं। 14O 24 8 और राजा ने एक सन्दूक बनाने की आज्ञा दी और वह यहोवा के भवन के फाटक के पास बाहर रखा गया। 14O 24 9 तब यहूदा और यरूशलेम में यह प्रचार किया गया कि जिस चन्दे का नियम परमेश्वर के दास मूसा ने जंगल में इस्राएल में चलाया था, उसके रूपए यहोवा के निमित्त ले आओ। 14O 24 10 तो सब हाकिम और प्रजा के सब लोग आनन्दित हो रूपए लाकर जब तक चन्दा पूरा न हुआ तब तक सन्दूक में डालते गए। 14O 24 11 और जब जब वह सन्दूक लेवियों के हाथ से राजा के प्रधानों के पास पहुंचाया जाता और यह जान पड़ता था कि उस में रूपए बहुत हैं, तब तब राजा के प्रधान और महायाजक का नाइब आकर सन्दूक को खाली करते और तब उसे फिर उसके स्थान पर रख देते थे। उन्हों ने प्रतिदिन ऐसा किया और बहुत रूपए इट्ठा किए। 14O 24 12 तब राजा और यहोयादा ने वह रूपए यहोवा के भवन में काम करनेवालों को दे दिए, और उन्हों ने राजों और बढ़इयों को यहोवा के भवन के सुधारने के लिये, और लोहारों और ठठेरों को यहोवा के भवन की मरम्मत करने के लिये मजदूरी पर रखा। 14O 24 13 और कारीगर काम करते गए और काम पूरा होता गया और उन्हों ने परमेश्वर का भवन जैसा का तैसा बनाकर दृढ़ कर दिया। 14O 24 14 जब उन्हों ने वह काम निपटा दिया, तब वे शेष रूपए राजा और यहोयादा के पास ले गए, और उन से यहोवा के भवन के लिये पात्रा बनाए गए, अर्थात् सेवा टहल करने और होमबलि चढ़ाने के पात्रा और धूपदान आदि सोने चान्दी के पात्रा। और जब तक यहोयादा जीवित रहा, तब तक यहोवा के भवन में होमबलि नित्य चढ़ाए जाते थे। 14O 24 15 परन्तु यहोयादा बूढ़ा हो गया और दीर्घायु होकर मर गया। जब वह मर गया तब एक सौ तीस वर्ष का था। 14O 24 16 और दाऊदपुर में राजाओं के बीच उसको मिट्टी दी गई, क्योंकि उस ने इस्राएल में और परमेश्वर के और उसके भवन के विषय में भला किया था। 14O 24 17 यहोयादा के मरने के बाद यहूदा के हाकिमों ने राजा के पास जाकर उसे दणडवत की, और राजा ने उनकी मानी। 14O 24 18 तब वे अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा का भवन छोड़कर अशेरों और मूरतों की उपासना करने लगे। सो उनके ऐसे दोषी होने के कारण परमेश्वर का क्रोध यहूदा और यरूशलेम पर भड़का। 14O 24 19 तौभी उस ने उनके पास नबी भेजे कि उनको यहोवा के पास फेर लाएं; और इन्हों ने उन्हें चिता दिया, परन्तु उन्हों ने कान न लगाया। 14O 24 20 और परमेश्वर का आत्मा यहोयादा याजक के पुत्रा जकर्याह में समा गया, और वह ऊंचे स्थन पर खड़ा होकर लोगों से कहने लगा, परमेश्वर यों कहता है, कि तुम यहोवा की आज्ञाओं को क्यों टालते हो? ऐसा करके तुम भाग्यवान नहीं हो सकते, देखो, तुम ने तो यहोवा को त्याग दिया है, इस कारण उस ने भी तुम को त्याग दिया। 14O 24 21 तब लोगों ने उस से द्रोह की गोष्ठी करके, राजा की आज्ञा से यहोवा के भवन के आंगन में उसको पत्थरवाह किया। 14O 24 22 यों राजा योआश ने वह प्रीति भूलकर जो यहोयादा ने उस से की थी, उसके पुत्रा को घात किया। और मरते समय उस ने कहा यहोवा इस पर दृष्टि करके इसका लेखा ले। 14O 24 23 तये वर्ष के लगते अरामियों की सेना ने उस पर चढ़ाई की, और यहूदा ओर यरूशलेम आकर प्रजा में से सब हाकिमों को नाश किया और उनका सब धन लूटकर दमिश्क के राजा के पास भेजा। 14O 24 24 अरामियों की सेना थेड़े ही पुरूषों की तो आई, पन्तु यहोवा ने एक बहुत बड़ी सेना उनके हाथ कर दी, क्योंकि उन्हों ने अपने पितरो के परमेश्वा को त्याग दिया थ। और योआश को भी उन्हों ने दणड दिया। 14O 24 25 और जब वे उसे बहुत ही रोगी छोड़ गए, तब उसके कर्मचारियों ने यहोयादा याजक के पुत्रों के खून के कारण उस से द्रोह की गोष्ठी करके, उसे उसके बिछौने पर ही ऐसा मारा, कि वह मर गया; और उन्हों ने उसको दाऊद पुर में मिट्टी दी, परन्तु राजाओं के कब्रिस्तान में नहीं। 14O 24 26 जिन्हों ने उस से राजद्रोह की गोष्ठी की, वे ये थे, अर्थात् अम्मोनिन, शिमात का पुत्रा जाबाद और शिम्रित, मोआबिन का पुत्रा यहोजाबाद। 14O 24 27 उसके बेटों के विषय और उसके विरूद्ध, जो बड़े दणड की तबूवत हुई, उसके और परमेश्वर के भवन के बनने के विषय ये सब बातें राजाओं के वृत्तान्त की पुस्तक में लिखी हैं। और उसका पुत्रा अमस्याह उसके स्थान पर राजा हुआ। 14O 25 1 जब अमस्याह राज्य करने लगा तब वह वचीस वर्ष का था, और यरूशलेम में उनतीस वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम यहोअस्रान था, जो यरूशलेम की थी। 14O 25 2 उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है, परन्तु खरे मन से न किया। 14O 25 3 जब राज्य उसके हाथ में स्थिर हो गया, तब उस ने अपने उन कर्मचारियों को मार डाला जिन्हों ने उसके पिता राजा को मार डाला था। 14O 25 4 परन्तु उस ने उनके लड़केवालों को न मारा क्योंकि उस ने यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार किया, जो मूसा की रयवस्था की पुस्तक में लिखी है, कि पुत्रा के कारण पिता न मार डाला जाए, और न पिता के कारण पुत्रा मार डाला जाए, जिस ने पाप किया हो वही उस पाप के कारण मार डाला जाए। 14O 25 5 और अमस्याह ने यहूदा को वरन सारे यहूदियों और बिन्यामीनियों को इकट्ठा करके उनको, पितरों के घरानों के अनुसार सहस्रपतियों और शतपतियों के अधिकार में ठहराया; और उन में से जितनों की अवस्था बीस वर्ष की अथवा उस से अधिक थी, उनकी गिनती करके तीन लाख भाला चलानेवाले और ढाल उठानेवाले बड़े बड़े योठ्ठा पाए। 14O 25 6 फिर उस ने एक लाख इस्राएली शूरवीरों को भी एक सौ किक्कार चान्दी देकर बुलवा रखा। 14O 25 7 परन्तु परमेश्वर के एक जन ने उसके पास आकर कहा, हे राजा इस्राएल की सेना तेरे साथ जाने न पाए; क्योंकि यहोवा इस्राएल अर्थात् एप्रैम की कुल सन्तान के संग नहीं रहता। 14O 25 8 यदि तू जाकर पुरूषार्थ करे; और युठ्ठ के लिये हियाव वान्धे, तौभी परमेश्वर तुझे शत्रुओं के साम्हने गिराएगा, क्योंकि सहायता करने और गिरा देने दोनों में परमेश्वर सामथ है। 14O 25 9 अमस्याह ने परमेश्वर के भक्त से पूछा, फिर जो सौ किक्कार चान्दी मैं इस्राएली दल को दे चुका हूँ, उसके विषय क्या करूं? परमेश्वर के भक्त ने उत्तर दिया, यहोवा तुझे इस से भी बहुत अधिक दे सकता है। 14O 25 10 तब अमस्याह ने उन्हें अर्थात् उस दल को जो एप्रैम की ओर से उसके पास आया था, अलग कर दिया, कि वे अपने स्थान को लौट जाएं। तब उनका क्रोध यहूदियो पर बहुत भड़क उठा, और वे अत्यन्त क्रोधित होकर अपने स्थान को लौट गए। 14O 25 11 परन्तु अमस्याह हियाब बान्धकर अपने लोगों को ले चला, और लोन की तराई में जाकर, दस हजार सेईरियों को मार डाला। 14O 25 12 और यहूलियों ने दस हजार को बन्धुआ करके चट्टान की चोटी पर ले गये, और चट्टान की चोटी पर से गिरा दिया, सो वे सब चूर चूर हो गए। 14O 25 13 परन्तु उस दल के पुरूष जिसे अमस्याह ने लौटा दिया कि वे उसके साथ युठ्ठ करने को न जाएं, शेमरोन से बेथेरोन तक यहूदा के सब नगरों पर टूट पड़े, और उनके तीन हजार निवासी मार डाले और बहुत लूट ले ली। 14O 25 14 जब अमस्याह एदोनियों का संहार करके लौट आया, तब उस ने सेईरियों के देवताओं को ले आकर अपने देवता करके खड़ा किया, और उन्हीं के साम्हने दणडवत करने, और उन्हीं के लिये धूप जलाने लगा। 14O 25 15 तब यहोवा का क्रोध अमस्याह पर भड़क उठा और उस ने उसके पास एक नबी भेजा जिस ने उस से कहा, जो देवता अपने लोगों को तेरे हाथ से बचा न सके, उनकी खोज में तू क्यों लगा है? 14O 25 16 वह उस से कह ही रहा था कि उस ने उस से पूछा, क्या हम ने तुझे राजमन्त्री ठहरा दिया है? चुप रह ! क्या तू मार खाना चाहता है? तब वह नबी यह कहकर चुप हो गया, कि मुझे मालूम है कि परमेश्वर ने तुझे नाश करने को ठाना है, क्योंकि तू ने ऐसा किया है और मेरी सम्मति नहीं मानी। 14O 25 17 तब यहूदा के राजा अमस्याह ने सम्मति लेकर, इस्राएल के राजा योआश के पास, जो येहू का पोता और यहोआहाज का पुत्रा था, यों कहला भेजा, कि आ हम एक दूसरे का साम्हना करें। 14O 25 18 इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह के पास यों कहला भेजा, कि लबानोन पर की एक झड़बेरी ने लबानोन के एक देवदार के पास कहला भेजा, कि अपनी बेटी मेरे बेटे को ब्याह दे; इतने में लबानोन का कोई वन पशु पास से चला गया और उस झड़बेरी को दौंद डाला। 14O 25 19 तू कहता है, कि मैं ने एदोमियों को जीत लिया है; इस कारण तू फूल उठा और बड़ाई मारता है ! अपने घर में रह जा; तू अपनी हानि के लिये यहां क्यों हाथ डालता है, इस से तू क्या, वरन यहूदा भी नीचा खाएगा। 14O 25 20 परन्तु अमस्याह ने न माना। यह तो परमेश्वर की ओर से हुआ, कि वह उन्हें उनके शत्रुओं के हाथ कर दे, क्योंकि वे एदोम के देवताओं की खोज में लग गए थे। 14O 25 21 तब इस्राएल के राजा योआश ने चढ़ाई की और उस ने और यहूदा के राजा अमस्याह ने यहूदा देश के बेतशेमेश में एक दूसरे का साम्हना किया। 14O 25 22 और यहूदा इस्राएल से हार गया, और हर एक अपने अपने डेरे को भागा। 14O 25 23 तब इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह को, जो यहोआहाज का पोता और योआश का पुत्रा था, बेतशेमेश में पकड़ा और यरूशलेम को ले गया और यरूशलेम की शहरपनाह में से बप्रैमी फाटक से कोनेवाले फाटक तक चार सौ हाथ गिरा दिए। 14O 25 24 और जितना सोना चान्दी और जितने पात्रा परमेश्वर के भवन में ओबेदेदोम के पास मिले, और राजभवन मे जितना खजाना था, उस सब को और बन्धक लोगों को भी लेकर वह शोमरोन को लोट गया। 14O 25 25 यहोआहाज के पुत्रा इस्राएल के राजा योआश के मरने के बाद योआश का पुत्रा यहूदा का राजा अमस्याह पन्द्रह वर्ष तक जीवित रहा। 14O 25 26 आदि से अन्त तक अमस्याह के और काम, क्या यहूदा और इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 14O 25 27 जिस समय अपस्याह यहोवा के पीछे चलना छोड़कर फिर गया था उस समय से यरूशलेम में उसके विरूद्ध द्रोह की गोष्ठी होने लगी, और वह लाकीश को भाग गया। सो दूतों ने लाकीश तक उसका पीछा कर के, उसको वहीं मार डाला। 14O 25 28 तब वह घोड़ों पर रखकर पहुंचाया गया और उसे उसके पुरखाओं के बीच यहूदा के नगर में मिट्टी दी गई। 14O 26 1 तब सब यहूदी प्रजा ने उज्जिरयाह को लेकर जो सोलह वर्ष का था, उसके पिता अमस्याह के स्थान पर राजा बनाया। 14O 26 2 जब राजा अमस्याह अपने पुरखाओं के संग सो गया तब उज्जिरयाह ने एलोत नगर को दृढ़ कर के यहूदा में फिर मिला लिया। 14O 26 3 जब उज्जिरयाह राज्य करने लगा, तब वह सोलह वर्ष का था। और यरूशलेम में बावन वर्ष तक राज्य करता रहा, और उसकी माता का नाम यकील्याह था, जो यरूशलेम की थी। 14O 26 4 जैसे उसका पिता अमस्याह, किया करता था वैसा ही उसने भी किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था। 14O 26 5 और जकर्याह के दिनों में जो परमेश्वर के दर्शन के विषय समझ रखता था, वह परमेश्वर की खोज में लगा रहता था; और जब तक वह यहोवा की खोज में लगा रहा, तब तक परमेश्वर उसको भाग्यवान किए रहा। 14O 26 6 तब उस ने जाकर पलिश्तियों से युठ्ठ किया, और गत, यब्ने और अशदोद की शहरपनाहें गिरा दीं, और अशदोद के आसपास और पलिश्तियों के बीच में नगर बसाए। 14O 26 7 और परमेश्वर ने पलिश्तियों और गूर्बालवासी, अरबियों और मूनियों के विरूद्ध उसकी सहायता की। 14O 26 8 और अम्मोनी उज्जिरयाह को भेंट देने लगे, वरन उसकी कीर्त्ति मिस्र के सिवाने तक भी फैल गई, क्योंकि वह अत्यन्त सामथ हो गया था। 14O 26 9 फिर उज्जिरयाह ने यरूशलेम में कोने के फाटक और तराई के फाटक और शहरपनाह के मोड़ पर गुम्मट बनवाकर दृढ़ किए। 14O 26 10 और उसके बहुत जानवर थे इसलिये उस ने जंगल में और नीचे के देश और चौरस देश में गुम्मट बनवाए और बहुत से हौद खुदवाए, और पहाड़ों पर और कर्म्मेल में उसके किसान और दाख की बारियों के माली थे, क्योंकि वह खेती किसानी करनेवाला था। 14O 26 11 फिर उज्जिरयाह के योठ्ठाओं की एक सेना थी जिनकी गिनती यीएल मुंशी और मासेयाह सरदार, हनन्याह नामक राजा के एक हाकिम की आज्ञा से करते थे, और उसके अनुसार वह दल बान्धकर लड़ने को जाती थी। 14O 26 12 पितरों के घरानों के मुख्य मुख्य पुरूष जो शूरवीर थे, उनकी पूरी गिनती दो हजार छे सौ थी। 14O 26 13 और उनके अधिकार में तीन लाख साढ़े सात हजार की एक बड़ी बड़ी सेना थी, जो शत्रुओं के विरूद्ध राजा की सहायता करने को बड़े बल से युठ्ठ करनेवाले थे। 14O 26 14 इनके लिये अर्थात् पूरी सेना के लिये उज्जिरयाह ने ढालें, भाले, टोप, झिलम, धनुष और गोफन के पत्थर तैयार किए। 14O 26 15 फिर उस ने यरूशलेम में गुम्मटों और कंगूरों पर रखने को चतुर पुरूषों के निकाले हुए यन्त्रा भी बनवाए जिनके द्वारा तीर और बड़े बड़े पत्थर फेंके जाते थे। और उसकी कीर्त्ति दूर दूर तक फैल गई, क्योंकि उसे अदभुत यहायता यहां तक मिली कि वह सामथ हो गया। 14O 26 16 परन्तु जब वह सामथ हो गया, तब उसका मन फूल उठा; और उस ने बिगड़कर अपने परमेश्वर यहोवा का विश्वासघात किया, अर्थात् वह धूप की वेदी पर धूम जलाने को यहोवा के मन्दिर में घुस गया। 14O 26 17 और अजर्याह याजक उसके बाद भीतर गया, और उसके संग यहोवा के अस्सी याजक भी जो वीर थे गए। 14O 26 18 और उन्हों ने उज्जिरयाह राजा का साम्हना करके उस से कहा, हे उज्जिरयाह यहोवा के लिये धूप जलाना तेरा काम नहीं, हारून की सन्तान अर्थात् उन याजकों ही का काम है, जो धूप जलाने को पवित्रा किए गए हैं। तू पवित्रास्थान से निकल जा; तू ने विश्वासघात किया है, यहोवा परमेश्वर की ओर से यह तेरी महिमा का कारण न होगा। 14O 26 19 तब उज्जिरयाह धूप जलाने को धूपदान हाथ में लिये हुए झुंझला उठा। और वह याजकों पर झुंझला रहा था, कि याजकों के देखते देखते यहोवा के भवन में धूप की वेदी के पास ही उसके माथे पर कोढ़ प्रगट हुआ। 14O 26 20 और अजर्याह महायाजक और सब याजकों ने उस पर दृष्टि की, और क्या देखा कि उसके माथे पर कोढ़ निकला है ! तब उत्हों ने उसको वहां से झटपट निकाल दिया, वरन यह जानकर कि यहोवा ने मुझे कोढ़ी कर दिया है, उस ने आप बाहर जाने को उतावली की। 14O 26 21 और उज्जिरयाह राजा मरने के दिन तक कोढ़ी रहा, और कोढ़ के कारण अलग एक घर में रहता था, वह तो यहोवा के भवन में जाने न पाता था। और उसका पुत्रा योताम राजघराने के काम पर नियुक्त किया गया और वह लोगों का न्याय भी करता था। 14O 26 22 आदि से अन्त तक उज्जिरयाह के और कामों का वर्णन तो आमोस के पुत्रा यशायाह नबी ने लिखा है। 14O 26 23 निदान उज्जिरयाह अपने पुरखाओं के संग सो गया, और उसको उसके पुरखाओं के निकट राजाओं के मिट्टी देने के खेत में मिट्टी दी गई क्योंकि उन्हों ने कहा, कि वह कोढ़ी है। और उसका पुत्रा योताम उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 14O 27 1 जब योताम राज्य करने लगा तब वह पचीस वर्ष का था, और यरूशलेम में सोलह वर्ष तक राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम यरूशा था, जो सादोक की बेठी थी। 14O 27 2 उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है, अर्थात् जैसा उसके पिता उज्जिरयाह ने किया था, ठीक वैसा ही उस ने भी किया : तौभी वह यहोवा के मन्दिर में न घुसा। और प्रजा के लोग तब भी बिगड़ी चाल चलते थे। 14O 27 3 उसी ने यहोवा के भवन के ऊपरवाले फाटक को बनाया, और ओपेल की शहरपनाह पर बहुत कुछ बनवाया। 14O 27 4 फिर उस ने यहूदा के पहाड़ी देश में कई नगर दृढ़ किए, और जंगलों में गढ़ और गुम्मट बनाए। 14O 27 5 और वह अम्मोनियों के राजा से युठ्ठ करके उन पर प्रबल हो गया। उसी वर्ष अम्मोनियों ने उसको सौ किक्कार चांदी, और दस दस हजार कोर गेहूं और जव दिया। और फिर दूसरे और तीसरे वर्ष में भी उन्हों ने उसे उतना ही दिया। 14O 27 6 यों योताम सामथ हो गया, क्योंकि वह अपने आप को अपने परमेश्वर यहोवा के सम्मुख जानकर सीधी चाल चलता था। 14O 27 7 योताम के और काम और उसके सब युठ्ठ और उसकी चाल चलन, इन सब बातों का वर्णन इस्राएल और यहूदा के राजाओं के इतिहास में लिखा है। 14O 27 8 जब वह राजा हुआ, तब पचीस वर्ष का था; और वह यरूशलेम में सोलह वर्ष तक राज्य करता रहा। 14O 27 9 निदान योताम अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसे दाऊदपुर में मिट्टी दी गई। और उसका पुत्रा आहाज उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 14O 28 1 जब आहाज राज्य करने लगा तब वह बीस वर्ष का था, और सोलह वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और अपने मूलपुरूष दाऊद के समान काम नहीं किया, जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था, 14O 28 2 परन्तु वह इस्राएल के राजाओं की सी चाल चला, और बाल देवताओं की मूर्तियां ढलवाकर बनाई; 14O 28 3 और हिन्नोम के बेटे की तराई में धूूप जलाया, और उन जातियों के घिनौने कामों के अनुसार जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियों के साम्हने से देश से निकाल दिया था, अपने लड़केबालों को आग में होम कर दिया। 14O 28 4 और ऊंचे स्थानों पर, और पहाड़ियों पर, और सब हरे वृक्षों के तले वह बलि चढ़ाया और धूम जलाया करता था। 14O 28 5 इसलिये उसके परमेश्वर यहोवा ने उसको अरामियों के राजा के हाथ कर दिया, और वे उसको जीतकर, उसके बहुत से लोगों को बन्धुआ बनाके दमिश्क को ले गए। और वह इस्राएल के राजा के वश में कर दिया गया, जिस ने उसे बड़ी मार से मारा। 14O 28 6 और रमल्याह के पुत्रा पेकह ने, यहूदा में एक ही दिन में एक लाख बीस हजार लोगों को जो सब के सब वीर थे, घात किया, क्योंकि उन्हों ने अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया था। 14O 28 7 और जिक्री नामक एक एप्रैमी वीर ने मासेयाह नामक एक राजपुत्रा को, और राजभवन के प्रधान अज्रीकाम को, और एलकाना को, जो राजा का मंत्री था, मार डाला। 14O 28 8 और इस्राएली अपने भाइयों में से त्रियों, बेटों और बेटियों को मिलाकर दो लाख लोगों को बन्धुआ बनाके, और उनकी बहुत लूट भी छीनकर शोमरोन की ओर ले चले। 14O 28 9 परन्तु वहां ओदेद नामक यहोवा का एक नबी था; वह शोमरोन को आनेवाली सेना से मिलकर उन से कहने लगा, सुनो, तुम्हारे पितरों के परमेश्वर यहोवा ने यहूदियों पर झुंझलाकर उनको तुम्हारे हाथ कर दिया है, और तुम ने उनको ऐसा क्रोध करके घात किया जिसकी चिल्लाहट स्वर्ग को पहुंच गई है। 14O 28 10 और अब तुम ने ठाना है कि यहूदियों और यरूशलेमियों को अपने दास- दासी बनाकर दबाए रखो। क्या तुम भी अपने परमेश्वर यहोवा के यहां दाषी नहीं हो? 14O 28 11 इसलिये अब मेरी सुनो और इन बन्धुओं को जिन्हें तुम अपने भाइयों में से बन्धुआ बनाके ले आए हो, लौटा दो, यहोवा का क्रोध तो तुम पर भड़का है। 14O 28 12 तब एप्रैमियों के कितने मुख्य पुरूष अर्थात् योहानान का पुत्रा अजर्याह, मशिल्लेमोत का पुत्रा बेरेक्याह, शल्लूम का पुत्रा यहिजकिरयाह, और हदलै का पुत्रा अमासा, लड़ाई से आनेवालों का साम्हना करके, उन से कहने लगे। 14O 28 13 तुम इन बन्धुओं को यहां मत लाओ; क्योंकि तुम ने वह बात ठानी है जिसके कारण हम यहोवा के यहां दोषी हो जाएंगे, और उस से हमारा पाप और दोष बढ़ जाएगा, हमारा दोष तो बड़ा है और इस्राएल पर बहुत क्रोध भड़का है। 14O 28 14 तब उन हथियार बन्धों ने बन्धुओं और लूट को हाकिमों और सारी सभा के साम्हने छोड़ दिया। 14O 28 15 तब जिन पुरूषों के नाम ऊपर लिखे हैं, उन्हों ने उठकर बन्धुओं को ले लिया, और लूट में से सब नंगे लोगों को कपड़े, और जूतियां पहिनाई; और खाना खिलाया, और पानी पिलाया, और तेल मला; और तब निर्बल लोगों को गदहों पर चढ़ाकर, यरीहो को जो खजूर का नगर कहलाता है, उनके भाइयों के पास पहुंचा दिया। तब वे शोमरोन को लौट आए। 14O 28 16 उस समय राजा आहाज ने अश्शूर के राजाओं के पास दूत भेजकर सहायता मांगी। 14O 28 17 क्योंकि एदोमियों ने यहूदा में आकर उसको मारा, और बन्धुओं को ले गए थे। 14O 28 18 और पलिश्तयों ने नीचे के देश और यहूदा के दक्खिन देश के नगरों पर चढ़ाई करके, बेतशेमेश, अरयालोन और गदेरोत को, और अपने अपने गांवों समेत सोको, तिम्ना, और गिमजो को ले लिया; और उन में रहने लगे थे। 14O 28 19 यों यहोवा ने इस्राएल के राजा आहाज के कारण यहूदा को दबा दिया, क्योंकि वह निरंकुश होकर चला, और यहोवा से बड़ा विश्वासघात किया। 14O 28 20 तब अश्शूर का राजा तिलगतपिलनेसेर उसके विरूद्ध आया, और उसको कष्ट दिया; दृढ़ नहीं किया। 14O 28 21 आहाज ने तो यहोवा के भवन और राजभवन और हाकिमों के घरों में से धन निकालकर अश्शूर के राजा को दिया, परन्तु इससे उसकी कुछ सहायता न हुई। 14O 28 22 और क्लेश के समय राजा आहाज ने यहोवा से और भी विश्वासघात किया। 14O 28 23 और उस ने दमिश्क के देवताओं के लिये जिन्हों ने उसको मारा था, बलि चढ़ाया; क्योंकि उस ने यह सोचा, कि आरामी राजाओं के देवताओं ने उनकी यहायता की, तो मैं उनके लिये बलि चढ़ाऊंगा कि वे मेरी सहायता करें। परन्तु वे उसके और सारे इस्राएल के पतन का कारण हुए। 14O 28 24 फिर आहाज ने परमेश्वर के भवन के पात्रा बटोरकर तुड़वा डाले, और यहोवा के भवन के द्वारों को बन्द कर दिया; और यरूशलेम के सब कोनों में वेदियां बनाई। 14O 28 25 और यहूदा के एक एक नगर में उस ने पराये देवताओं को धूप जलाने के लिये ऊंचे स्थान बनाए, और अपने मितरों के परमेश्वर यहोवा को रिस दिलाई। 14O 28 26 और उसके और कामों, और आदि से अन्त तक उसकी पूरी चाल चलन का वर्णन यहूदा और इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखा है। 14O 28 27 निदान आहाज अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसको यरूशलेम नगर में मिट्टी दी गई, परन्तु वह इस्राएल के राजाओं के कब्रिस्तान में पहुंचाया न गया। और उसका पुत्रा हिजकिरयाह उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 14O 29 1 जब हिजकिरयाह राज्य करने लगा तब वह पचीस वर्ष का था, और उनतीस वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उसकी माता का ताम अबिरयाह था, जो जकर्याह की बेटी थी। 14O 29 2 जैसे उसके मूलपुरूष दाऊद ने किया था अर्थात् जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था वैसा ही उस ने भी किया। 14O 29 3 अपने राज्य के पहिले वर्ष के पहिले महीने में उस ने यहोवा के भवन के द्वार खुलवा दिए, और उनकी मरम्मत भी कराई। 14O 29 4 तब उस ने याजकों और लेवियों को ले आकर पूर्व के चौक में इकट्ठा किया। 14O 29 5 और उन से कहने लगा, हे लेवियो मेरी सुनो ! अब अपने अपने को पवित्रा करो, और अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा के भवन को पवित्रा करो, और पवित्रास्थान में से मैल निकालो। 14O 29 6 देखो हमारे पुरखाओं ने विश्वासघात करके वह कर्म किया था, जो हमारे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में बुरा है और उसको तज करके यहोवा के निवास से मुंह फेरकर उसको पीठ दिखाई थी। 14O 29 7 फिर उन्हों ने ओसारे के द्वार बन्द किए, और दीपकों को बुझा दिया था; और पवित्रा स्थान में इस्राएल के परमेश्वर के लिये न तो धूप जलाया और न होमबलि चढ़ाया था। 14O 29 8 इसलिये यहोवा का क्रोध यहूदा और यरूशलेम पर भड़का है, और उस ने ऐसा किया, कि वे मारे मारे फिरें और चकित होने और ताली बजाने का कारण हो जाएं, जैसे कि तुम अपनी आंखों से देख रहे हो। 14O 29 9 देखो, अस कारण हमारे बाप तलवार से मारे गए, और हमारे बेटे- बेटियां और स्त्रियां बन्धुआई में चली गई हैं। 14O 29 10 अब मेरे मन ने यह निर्णय किया है कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा से वाचा बान्धूं, इसलिये कि उसका भड़का हुआ क्रोध हम पर से दूर हो जाए। 14O 29 11 हे मेरे बेटो, ढिलाई न करो देखो, यहोवा ने अपने सम्मुख खड़े रहने, और अपनी सेवा टहल करने, और अपने टहलुए और धूप जलानेवाले का काम करने के लिये तुम्हीं को चुन लिया है। 14O 29 12 तब लेवीय उठ खड़े हुए, अर्थात् कहातियों में से अमासै का पुत्रा महत, और अजर्याह का पुत्रा योएल, और मरारियों में से अब्दी का पुत्रा कीश, और यहल्लेलेल का पुत्रा अजर्याह, और गेश नियों में से जिम्मा का पुत्रा योआह, और योआह का पुत्रा एदेन। 14O 29 13 और एलीसापान की सन्तान में से शिम्री, और यूएल और आसाप की सन्तान में से जकर्याह और मत्तन्याह। 14O 29 14 और हेमान की सन्तान में से यहूएल और शिमी, और यदूतून की सन्तान में से शमायाह और उज्जीएल। 14O 29 15 इन्हों ने अपने भाइयों को इकट्ठा किया और अपने अपने को पवित्रा करके राजा की उस आज्ञा के अनुसार जो उस ने यहोवा से वचन पाकर दी थी, यहोवा के भवन के शुठ्ठ करने के लिये भीतर गए। 14O 29 16 तब याजक यहोवा के भवन के भीतरी भाग को शुठ्ठ करने के लिये उस में जाकर यहोवा के मन्दिर में जितनी अशुठ्ठ वस्तुएं मिीं उन सब को निकालकर यहोवा के भवन के आंगन में ले गए, और लेवियों ने उन्हें उठाकर बाहर किद्रोन के नाले में पहुंचा दिया। 14O 29 17 पहिले महीने के पहिले दिन को उन्हों ने पवित्रा करने का काम आरम्भ किया, और उसी महीने के आठवें दिन को वे यहोवा के ओसारे तक आ गए। इस प्रकार उन्हों ने यहोवा के भवन को आठ दिन में पवित्रा किया, और पहिले महीने के सोलहवें दिन को उन्हों ने उस काम को पूरा किया। 14O 29 18 तब उन्हों ने राजा हिजकिरयाह के पास भीतर जाकर कहा, हम यहोवा के पूरे भवन को और पात्रों समेत होमबलि की वेदी और भेंट की रोटी की मेज को भी शुठ्ठ कर चुके। 14O 29 19 और जितने पात्रा राजा आहाज ने अपने राज्य में विश्वासघात करके फेंक दिए थे, उनको भी हम ने ठीक करके पवित्रा किया है; और वे यहोवा की वेदी के साम्हने रखे हुए हैं। 14O 29 20 तब राजा हिजकिरयाह सबेरे उठकर नगर के हाकिमों को इकट्ठा करके, यहोवा के भवन को गया। 14O 29 21 तब वे राज्य और पवित्रास्थान और यहूदा के निमित्त सात बछड़े, सात मेढ़े, सात भेड़ के बच्चे, और पापबलि के लिये सात बकरे ले आए, और उस ने हारून की सन्तान के लेवियों को आज्ञा दी कि इन सब को यहोवा की वेदी पर चढ़ाएं। 14O 29 22 तब उन्हों ने बछड़े बलि किए, और याजकों ने उनका लोहू लेकर वेदी पर छिड़क दिया; तब उन्हों ने मेढ़े बलि किए, और उनका लोहू भी वेदी पर छिड़क दिया। और भेड़ के बच्चे बलि किए, और उनका भी लोहू वेदी पर छिडक दिया। 14O 29 23 तब वे पापबलि के बकरों को राजा और मण्डली के समीप ले आए और उन पर अपने अपने हाथ रखे। 14O 29 24 तब याजकों ने उनको बलि करके, उनका लोहू वेदी पर छिड़क कर पापबलि किया, जिस से सारे इस्राएल के लिये प्रायश्चित्त किया जाए। क्योंकि राजा ने सारे इस्राएल के लिये होमबलि और पापबलि किए जाने की आज्ञा दी थी। 14O 29 25 फिर उस ने दाऊद और राजा के दश गाद, और नातान नबी की आज्ञा के अनुसार जो यहोवा की ओर से उसके नबियों के द्वारा आई थी, झांझ, सारंगियां और वीणाएं लिए हुए लेवियों को यहोवा के भवन में खड़ा किया। 14O 29 26 तब लेवीय दाऊद के चलाए बाजे लिए हुए, और याजक तुरहियां लिए हुए खड़े हुए। 14O 29 27 तब हिजकिरयाह ने वेदी पर होमबलि चढ़ाने की आज्ञा दी, और जब होमबलि चढ़ने लगी, तब यहोवा का गीत आरम्भ हुआ, और तुरहियां और इस्राएल के राजा दाऊद के बाजे बजने लगे। 14O 29 28 और मण्डली के सब लोग दणडवत करते और गानेवाले गाते और तुरही फूंकनेवाले फूंकते रहे; यह सब तब तक होेता रहा, जब तक होमबलि चढ़ न चुकी। 14O 29 29 और जब बलि चढ़ चुकी, तब राजा और जितने उसके संग वहां थे, उन सभों ने सिर झुकाकर दणडवत किया। 14O 29 30 और राजा हिजकिरयाह और हाकिमों ने लेवियों को आज्ञा दी, कि दाऊद और आसाप दश के भजन गाकर यहोवा की स्तुति करें। और उन्हों ने आनन्द के साथ स्तुति की और सिर नवाकर दणडवत किया। 14O 29 31 तब हिजकिरयाह कहने लगा, अब तुम ने यहोवा के निमित्त अपना अर्पण किया है; इसलिये समीप आकर यहोवा के भवन में मेलबलि और धन्यवादबलि पहुंचाओ। तब मण्डली के लोगों ने मेलबलि और धन्यवादबलि पहुंचा दिए, और जितने अपनी इच्छा से देना चाहते थे उन्हों ने भी होमबलि पहुंचाए। 14O 29 32 जो होमबलि पशु मण्डली के लाग ले आए, उनकी गिनती यह थी; सत्तर बैल, एक सौ मेढ़े, और दो सौ भेड़ के बच्चे; ये सब यहोवा के निमित्त होमबलि के काम में आए। 14O 29 33 और पवित्रा किए हुए पशु, छे सौ बैल और तीन हजार भेड़- बकरियां थी। 14O 29 34 परन्तु याजक ऐसे थेड़े थे, कि वे सब होमबलि पशुओं की खालें न उतार सके, तब उनके भाई लेवीय उस समय तक उनकी सहायता करते रहे जब तक वह काम निपट न गया, और याजकों ने अपने को पवित्रा न किया; क्योंकि लेवीय अपने को पवित्रा करने के लिये पवित्रा याजकों से अधिक सीधे मन के थे। 14O 29 35 और फिर होमबलि पशु बहुत थे, और मेलबलि पशुओं की चब भी बहुत थी, और एक एक होमबलि के साथ अर्ध भी देना पड़ा। यों यहोवा के भवन में की उपासना ठीक की गई। 14O 29 36 तब हिजकिरयाह और सारी प्रजा के लोग उस काम के कारण आनन्दित हुए, जो यहोवा ने अपनी प्रजा के लिये तैयार किया था; क्योंकि वह काम एकाएक हो गया था। 14O 30 1 फिर हिजकिरयाह ने सारे इस्राएल और यहूदा में कहला भेजा, और एप्रैम और मनश्शे के पास इस आशय के पत्रा लिख भेजे, कि तुम यरूशलेम को यहोवा के भवन में इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के लिये फसह मनाने को आओ। 14O 30 2 राजा और उसके हाकिमों और यरूशलेम की मणडली ने सम्मति की थी कि फसह को दूसरे महीने में मनाएं। 14O 30 3 वे उसे उस समय इस कारण न मना सकते थे, क्योंकि थोड़े ही याजकों ने अपने अपने को पवित्रा किया था, और प्रजा के लोग यरूशलेम में इकट्ठे न हुए थे। 14O 30 4 और यह बात राजा और सारी मणडली को अच्छी लगी। 14O 30 5 तब उन्हों ने यह ठहरा दिया, कि बेर्शेबा से लेकर दान के सारे इस्राएलियों में यह प्रचार किया जाय, कि यरूशलेम में इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के लिये फसह मनाने को चले आओ; क्योंकि उन्हों ने इतनी बड़ी संख्या में उसको इस प्रकार न मनाया था जैसा कि लिखा है। 14O 30 6 इसलिये हरकारे राजा और उसके हाकिमों से चिटि्ठयां लेकर, राजा की आज्ञा के अनुसार सारे इस्राएल और यहूदा में घूमे, और यह कहते गए, कि हे इस्राएलियो ! इब्राहीम, इसहाक और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की ओर फिरो, कि वह अश्शूर के राजाओं के हाथ से बचे हुए तुम लोगो की ओर फिरे। 14O 30 7 और अपने पुरखाओं और भाइयों के समान मत बनो, जिन्हों ने अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा से विश्वासघात किया था, और उस ने उन्हें चकित होने का कारण कर दिया, जैसा कि तुम स्वयं देख रहे हो। 14O 30 8 अब अपने पुरखाओं की नाई हठ न करो, वरन यहोवा के अधीन होकर उसके उस पवित्रास्थान में आओ जिसे उस ने सदा के लिये पवित्रा किया है, और अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करो, कि उसका भड़का हुआ क्रोध तुम पर से दूर हो जाए। 14O 30 9 यदि तुम यहोवा की ओर फिरोगे तो जो तुम्हारे भाइयों और लड़केबालों को बन्धुआ बनाके ले गए हैं, वे उन पर दया करेंगे, और वे इस देश में लौट सकेंगे क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा अनुग्रहकारी और दयालु है, और यदि तुम उसकी ओर फिरोगे तो वह अपना मुंह तुम से न मोड़ेगा। 14O 30 10 इस प्रकार हरकारे एप्रैम और मनश्शे के देशें में नगर नगर होते हुए जबूलून तक गए; परन्तु उन्हों ने उनकी हंसी की, और उन्हें ठट्ठों में उड़ाया। 14O 30 11 तौभी आशेर, मनश्शे और जबूलून में से कुछ लोग दीन होकर यरूशलेम को आए। 14O 30 12 और यहूदा में भी परमेश्वर की ऐसी शक्ति हुई, कि वे एक मन होकर, जो आज्ञा राजा और हाकिमों ने यहोवा के वचन के अनुसार दी थी, उसे मानने को तैयार हुए। 14O 30 13 इस प्रकार अधिक लोग यरूशलेम में इसलिये इकट्ठे हुए, कि दूसरे महीने में अखमीरी रोटी का पर्व्व मानें। और बहुत बड़ी सभा इकट्ठी हो गई। 14O 30 14 और उन्हों ने उठकर, यरूशलेम की वेदियों और धूम जलाने के सब स्थानों को उठाकर किद्रोन नाले में फेंक दिया। 14O 30 15 तब दूसरे महीने के चौदहवें दिन को उन्हों ने फसह के पशु बलि किए तब याजक और लेवीय लज्जित हुए और अपने को पवित्रा करके होमबलियों को यहोवा के भवन में ले आए। 14O 30 16 और वे अपने नियम के अनुसार, अर्थात् परमेश्वर के जन मूसा की व्यवस्था के अनुसार, अपने अपने स्थान पर खड़े हुए, और याजकों ने रक्त को लेवियों के हाथ से लेकर छिड़क दिया। 14O 30 17 क्योंकि सभा में बहुते ऐसे थे जिन्हों ने अपने को पवित्रा न किया था; इसलिये सब अशुठ्ठ लोगों के फसह के पशुओं को बलि करने का अधिकार लेवियों को दिया गया, कि उनको यहोवा के लिये पवित्रा करें। 14O 30 18 बहुत से लोगों ने अर्थात् एप्रैम, मनश्शे, इस्साकार और जबूलून में से बहुतों ने अपने को शुठ्ठ नहीं किया था, तौभी वे फसह के पशु का मांस लिखी हुई विधि के विरूद्ध खाते थे। क्योंकी हिजकिरयाह ने उनके लिये यह प्रार्थना की थी, कि यहोवा जो भला है, वह उन सभों के पाप ढांप दे; 14O 30 19 जो परमेश्वर की अर्थात् अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा की खोज में मन लगाए हुए हैं, चाहे वे पवित्रास्थान की विधि के अनुसार शुठ्ठ न भी हों। 14O 30 20 और यहोवा ने हिजकिरयाह की यह प्रार्थन सुनकर लोगों को चंगा किया। 14O 30 21 और जो इस्राएली यरूशलेम में उपस्थित थे, वे सात दिन तक अखमीरी रोटी का पर्व्व बड़े आनन्द से मनाते रहे; और प्रतिदिन लेवीय और याजक ऊंचे शब्द के बाजे यहोवा के लिये बजाकर यहोवा की स्तुति करते रहे। 14O 30 22 और जितने लेवीय यहोवा का भजन बुध्दिमानी के साथ करते थे, उनको हिजकिरयाह ने शान्ति के वचन कहे। इस प्रकार वे मेलबलि चढ़ाकर और अपने पुर्वजों के परमेश्वर यहोवा के सम्मुख पापांगीकार करते रहे और उस नियत पर्व्व के सातों दिन तक खाते रहे। 14O 30 23 तब सारी सभा ने सम्मति की कि हम और सात दिन वर्व मानेंगे; सोे उन्हों ने और सात दिन आनन्द से पर्व्व मनाया। 14O 30 24 क्योंकि यहूदा के राजा हिजकिरयाह ने सभा को एक हजार बछड़े और सात हजार भेड़- बकरियां दे दीं, और हाकिमों ने सभा को एक हजार बछड़े और दस हजार भेड़- बकरियां दीं, और बहुत से याजकों ने अपने को पवित्रा किया। 14O 30 25 तब याजकों और लेवियों समेत यहूदा की सारी सभा, और इस्राएल से आए हुओं की सभा, और इस्राएल के देश से आए हुए, और यहूदा में रहनेवाले परदेशी, इन सभों ने आनन्द किया। 14O 30 26 सो यरूशलेम में बड़ा आनन्द हुआ, क्योंकि दाऊद के पुत्रा इस्राएल के राजा सुलैमान के दिनों से ऐसी बात यरूशलेम में न हुई थी। 14O 30 27 अन्त में लेवीय याजकों ने खड़े होकर प्रजा को आशीर्वाद दिया, और उनकी सुनी गई, और उनकी प्रार्थना उसके पपित्रा धाम तक अर्थात् स्वर्ग तक पहुंची। 14O 31 1 जब यह सब हो चुका, तब जितने इस्राएली अपस्थित थे, उन सभों ने यहूदा के नगरों में जाकर, सारे यहूदा और बिन्यामीन और एप्रेम और मनश्शे में कि लाठों को तोड़ दिया, अशेरों को काट डाला, और ऊंचे स्थानों और वेदियों को गिरा दिया; और उन्हों ने उन सब का अन्त कर दिया। तब सब इस्राएली अपने अपने नगर को लौटकर, अपनी अपनी निज भूमि में पहुंचे। 14O 31 2 और हिजकिरयाह ने याजकों के दलों को और लेवियों को वरन याजकों और लेवियों दोनों को, प्रति दल के अनुसार और एक एक मतुष्य को उसकी सेवकाई के अनुसार इसलिये ठहरा दिया, कि वे यहोवा की छावनी के द्वारों के भीतर होमबलि, मेलबलि, सेवा टहल, धन्यवाद और स्तुति किया करें। 14O 31 3 फिर उस ने अपनी सम्पत्ति में से राजभाषा को होमबलियों के लिये ठहरा दिया; अर्थत् सबेरे और सांझ की होमबलि और विश्राम और नये चांद के दिनों और नियत समयों की होमबलि के लिये जैसा कि यहोवा की व्यवस्था में लिखा है। 14O 31 4 और उस ने यरूशलेम में रहनेवालों को याजकों और लेवियों को उनका भाग देने की आज्ञा दी, ताकि वे यहोवा की व्यवस्था के काम मन लगाकर कर सकें। 14O 31 5 यह आज्ञा सुनते ही इस्राएली अन्न, नया दाखमधु, टटका तेल, मधु आदि खेती की सब भांति की पहिली उपज बहुतायत से देने, और सब वस्तुओं का दशमांश अधिक मात्रा में लाने लगे। 14O 31 6 और जो इस्राएली और यहूदी, यहूदा के नगरों में रहते थे, वे भी बैलों और भेड़- बकरियों का दशमांश, और उन पवित्रा वस्तुओं का दशमांश, जो उनके परमेश्वर यहोवा के निमित्त पवित्रा की गई थीं, लाकर ढेर ढेर करके रखने लगे। 14O 31 7 इस प्रकार ढेर का लगाना उन्हों ने तीसरे महीने में आरम्भ किया और सातवें महीने में पूरा किया। 14O 31 8 जब हिजकिरयाह और हाकिमों ने आकर उन ढेरों को देखा, तब यहोवा को और उसकी प्रजा इस्राएल को धन्य धन्य कहा। 14O 31 9 तब हिजकिरयाह ने याजकों और लेवियों से उन ढेरों के विषय पूछा। 14O 31 10 और अजर्याह महायाजक ने जो सादोक के घराने का था, उस से कहा, जब से लोग यहोवा के भवन में उठाई हुई भेंटें लाने लगे हैं, तब से हम लोग पेट भर खाने को पाते हैं, वरन बहुत बचा भी करता है; क्योंकि यहोवा ने अपनी प्रजा को आशीष दी है, और जो शेष रह गया है, उसी का यह बड़ा ढेर है। 14O 31 11 तब हिजकिरयाह ने यहोवा के भवन में कोठरियां तैयार करने की आज्ञा दी, और वे तैयार की गई। 14O 31 12 तब लोगों ने उठाई हुई भेंटें, दशमांश और पवित्रा की हुई वस्तुएं, सच्चाई से पहुंचाई और उनके मुख्य अधिकारी तो कोनन्याह नाम एक लेवीय और इसरा उसका भाई शिमी नायब था। 14O 31 13 और कोनन्याह और उसके भाई शिमी के नीचे, हिजकिरयाह राजा और परमेश्वर के भवन के प्रधान अजर्याह दोनों की आज्ञा से अहीएल, अजज्याह, नहत, असाहेल, यरीमेत, योजाबाद, एलीएल, यिस्मक्याह, महत और बनायाह अधिकारी थे। 14O 31 14 और परमेश्वर के लिये स्वेच्छाबलियों का अधिकारी यिम्ना लेवीय का पुत्रा कोरे था, जो पूर्व फाटक का द्वारापाल था, कि वह यहोवा की उठाई हुई भेंटें, और परमपवित्रा वस्तुएं बांटा करे। 14O 31 15 और उसके अधिकार में एदेन, मिन्यामीन, येशू, शमायाह, अमर्याह और शकन्याह याजकों के नगरों में रहते थे, कि वे क्या बड़े, क्या छोटे, अपने भाइयों को उनके दलों के अनुसार सच्चाई से दिया करें, 14O 31 16 और उनके अलावा उनको भी दें, जो पुरूषों की वंशावली के अनुसार गिने जाकर तीन वर्ष की अवस्था के वा उस से अधिक आयु के थे, और अपने अपने दल के अनुसार अपनी अपनी सेवकाई निबाहने को दिन दिन के काम के अनुसार यहोवा के भवन में जाया करते थे। 14O 31 17 और उन याजकों को भी दें, जिनकी वंशावली उनके पितरों के घरानों के अनुसार की गई, और उन लेवियों को भी जो बीस वर्ष की अवस्था से ले आगे को अपने अपने दल के अनुसार, अपने अपने काम निबाहते थे। 14O 31 18 और सारी सभा में उनके बालबच्चों, स्त्रियों, बेटों और बेटियों को भी दें, जिनकी वंशवली थी, क्योंकि वे सच्चाई से अपने को पवित्रा करते थे। 14O 31 19 फिर हारून की सन्तान के याजकों को भी जो अपने अपने नगरों के चराईवाले मैदान में रहते थे, देने के लिये वे पुरूष नियुक्त किए गए थे जिनके नाम ऊपर लिखे हुए थे कि वे याजकों के सब पुरूषों और उन सब लेवियों को भी उनका भाग दिया करें जिनकी वंशावली थी। 14O 31 20 और सारे यहूदा में भी हिजकिरयाह ने ऐसा ही प्रबन्ध किया, और जो कुछ उसके परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में भला ओर ठीक और सच्चाई का था, उसे वह करता था। 14O 31 21 और जो जो काम उस ने परमेश्वर के भवन की उपासना और व्यवस्था और आज्ञा के विषय अपने परमेश्वर की खोज में किया, वह उस ने अपना सारा मन लगाकर किया और उस में कृतार्थ भी हुआ। 14O 32 1 इन बातों और ऐसे प्रबन्ध के बाद अश्शूर का राजा सन्हेरीब ने आकर यहूदा में प्रवेश कर ओर गढ़वाले नगरों के विरूद्ध डेरे डालकर उनको अपने लाभ के लिये लेना चाहा। 14O 32 2 यह देखकर कि सन्हेरीब निकट आया है और यरूशलेम से लड़ने की मनसा करता है, 14O 32 3 हिजकिरयाह ने अपने हाकिमों और वीरों के साथ यह सम्मति की, कि नगर के बाहर के सोतों को पठवा दें; और उन्हों ने उसकी सहायता की। 14O 32 4 इस पर बहुत से लोग इकट्ठे हुए, और यह कहकर, कि अश्शूर के राजा क्यों यहां आएं, और आकर बहुत पानी पाएं, उन्होंने सब सोतों को पाट दिया और उस नदी को सुखा दिया जो देश के मध्य होकर बहती थी। 14O 32 5 फिर हिजकिरयाह ने हियाव बान्धकर शहरपनाह जहां कहीं टूटी थी, वहां वहां उसको बनवाया, और उसे गुम्मटों के बराबर ऊंचा किया और बाहर एक और शहरपनाह बनवाई, और दाऊदपुर में मिल्लो को दृढ़ किया। और बहुत से तीर और ढालें भी बनवाई। 14O 32 6 तब उस ने प्रजा के ऊपर सेनापति नियुक्त किए और उनको नगर के फाटक के चौक में इकट्ठा किया, और यह कहकर उनको धीरज दिया, 14O 32 7 कि हियाव बान्धो और दृढ हो तुम न तो अश्शूर के राजा से डरो और न उसके संग की सारी भीड़ से, और न तुम्हारा मन कच्चा हो; क्योंकि जो हमारे साथ है, वह उसके संगियों से बड़ा है। 14O 32 8 अर्थात् उसका सहारा तो मतुष्य ही है परन्तु हमारे साथ, हमारी सहायता और हमारी ओर से युठ्ठ करने को हमारा परमेश्वर यहोवा है। इसलिये प्रजा के लोग यहूदा के राजा हिजकिरयाह की बातों पर भरोसा किए रहे। 14O 32 9 इसके बाद अश्शूर का राजा सन्हेरीब जो सारी सेना समेत लाकीश के साम्हने पड़ा था, उस ने अपने कर्मचारियों को यरूशलेम में यहूदा के राजा हिजकिरयाह और उन सब यहूदियों से जो यरूशलेम में थे यों कहने के लिये भेजा, 14O 32 10 कि अश्शूर का राजा सन्हेरीब कहता है, कि तुम्हें किस का भरोसा है जिससे कि तुम घेरे हुए यरूशलेम में बैठे हो? 14O 32 11 क्या हिजकिरयाह तुम से यह कहकर कि हमारा परमेश्वर यहोवा हम को अश्शूर के राजा के पंजे से बचाएगा तुम्हें नहीं भरमाता है कि तुम को भूखों प्यासों मारे? 14O 32 12 क्या उसी हिजकिरयाह ने उसके ऊंचे स्थान और वेदियो दूर करके यहूदा और यरूशलेम को आज्ञा नहीं दी, कि तुम एक ही वेदी के साम्हने दणडवत करना और उसी पर धूप जलाना? 14O 32 13 क्या तुम को मालूम नहीं, कि मैं ने और मेरे पुरखाओं ने देश देश के सब लोगों से क्या क्या किया है? क्या उन देशें की जातियों के देवता किसी भी उपाय से अपने देश को मेरे हाथ से बचा सके? 14O 32 14 जितनी जातियों का मेरे पुरखाओं ने सत्यानाश किया है उनके सब देवताओं में से ऐसा कौन था जो अपनी प्रजा को मेरे हाथ से बचा सका हो? फिर तुम्हारा देवता तुम को मेरे हाथ से कैसे बचा सकेगा? 14O 32 15 अब हिजकिरयाह तुम को इस रीति भुलाने अथवा बहकाने न पाए, और तुम उसकी प्रतीति न करो, क्योंकि किसी जाति या राज्य का कोई देवता अपनी प्रजा को न तो मेरे हाथ से और न मेरे पुरखाओं के हाथ से बचा सका। यह निश्चय है कि तुम्हारा देवता तुम को मेरे हाथ से नहीं बचा सकेगा। 14O 32 16 इस से भी अधिक उसके कर्मचारियों ने यहोवा परमेश्वर की, और उसके दास हिजकिरयाह की निन्दा की। 14O 32 17 फिर उस ने ऐसा एक पत्रा भेजा, जिस में इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की निन्दा की ये बातें लिखी थीं, कि जैसे देश देश की जातियों के देवताओं ने अपनी अपनी प्रजा को मेरे हाथ से नहीं बचाया वैसे ही हिजकिरयाह का देवता भी अपनी प्रजा को मेरे हाथ से नहीं बचा सकेगा। 14O 32 18 और उन्हों ने ऊंचे शब्द से उन यरूशलेमियों को जो शहरपनाह पर बैठे थे, यहूदी बोली में पुकारा, कि उनको डराकर घबराहट में डाल दें जिस से नगर को ले लें। 14O 32 19 और उन्हों ने यरूशलेम के परमेश्वर की ऐसी चर्चा की, कि मानो पृथ्वी के देश देश के लोगों के देवताओं के बराबर हो, जो मनुष्यों के बनाए हुए हैं। 14O 32 20 तब इन घटनाओं के कारण राजा हिजकिरयाह और आमोस के पुत्रा यशायाह नबी दोनों ने प्रार्थना की और स्वर्ग की ओर दोहाई दी। 14O 32 21 तब यहोवा ने एक दूत भेज दिया, जिस ने अश्शूर के राजा की छावनी में सब शूरवीरों, प्रधानों और सेनापतियों को नाश किया। और वह लज्जित होकर, आने देश को लौट गया। और जब वह अपने देवता के भवन में था, तब उसके निज पुत्रों ने वहीं उसे तलवार से मार डाला। 14O 32 22 यों यहोवा ने हिजकिरयाह और यरूशलेम के निवासियों को अश्शूर के राजा सन्हेरीब और अपने सब शत्रुओं के हाथ से बचाया, और चारों ओर उनकी अगुवाई की। 14O 32 23 और बहुत लोग यरूशलेम को यहोवा के लिये भेंट और यहूदा के राजा हिजकिरयाह के लिये अनमोल वस्तुएं ले आने लगे, और उस समय से वह सब जातियों की दृष्टि में महान ठहरा। 14O 32 24 उन दिनों हिजकिरयाह ऐसा रोगी हुआ, कि वह मरा चाहता था, तब उस ने यहोवा से प्रार्थना की; और उस ने उस से बातें करके उसके लिये एक चमत्कार दिखाया। 14O 32 25 परन्तु हिजकिरयाह ने उस उपकार का बदला न दिया, क्योंकि उसका मन फूल उठा था। इस कारण उसका कोप उस पर और यहूदा और यरूशलेम पर भड़का। 14O 32 26 तब हिजकिरयाह यरूशलेम के निवासियों समेत अपने मन के फूलने के कारण दीन हो गया, इसलिये यहोवा का क्रोध उन पर हिजकिरयाह के दिनों में न भड़का। 14O 32 27 और हिजकिरयाह को बहुत ही धन और विभव मिला; और उस ने चान्दी, सोने, मणियों, सुगन्धद्रव्य, ढालों और सब प्रकार के मनभावने पात्रों के लिये भणडार बनवाए। 14O 32 28 फिर उस ने अन्न, नया दाखमधु, और टटका लेल के लिये भणडार, और सब भांति के पशुओं के लिये थान, और भेड़- बकरियों के लिये भेड़शालाएं बनवाई। 14O 32 29 और उस ने नगर बसाए, और बहुत ही भेड़- बकरियों और गाय- बैलों की सम्पत्ति इकट्ठा कर ली, क्योंकि परमेश्वर ने उसे बहुत ही धन दिया था। 14O 32 30 उसी हिजकिरयाह ने गीहोन नाम नदी के ऊपर के सोते को पाटकर उस नदी को नीचे की ओर दाऊदपुर की पच्छिम अलंग को सीधा पहुंचाया, और हिजकिरयाह अपने सब कामों में कृतार्थ होता था। 14O 32 31 तौभी जब बाबेल के हाकिमों ने उसके पास उसके देश में किए हुए चमत्कार के विषय पूछने को दूत भेजे तब परमेश्वर ने उसको इसलिये छोड़ दिया, कि उसको परख कर उसके मन का सारा भेद जान ले। 14O 32 32 हिजकिरयाह के और काम, ओर उसके भक्ति के काम आमोस के पुत्रा यशायाह नबी के दर्शन नाम पुस्तक में, और यहूदा और इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 14O 32 33 अन्त में हिजकिरयाह अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसको दाऊद की सन्तान के कब्रिस्तान की चढाई पर मिट्टी दी गई, और सब यहूदियों और यरूशलेम के निवासियों ने उसकी मृत्यु पर उसका आदरमान किया। और उसका पुत्रा मनश्शे उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 14O 33 1 जब मनश्शे राज्य करने लगा तब वह बारह वर्ष का था, और यरूशलेम में पचपन वर्ष तक राज्य करता रहा। 14O 33 2 उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था, अर्थात् उन जातियों के घिनौने कामों के अनुसार जिनको यहोवा ने इस्राएलियों के साम्हने से देश से तिकाल दिया था। 14O 33 3 उस ने उन ऊंचे स्थानों को जिन्हें उसके पिता हिजकिरयाह ने तोड़ दिया था, फिर बनाया, और बाल नाम देवताओं के लिये वेदियां ओर अशेरा नाम मूरतें बनाई, और आकाश के सारे गण को दणडवत करता, और उनकी उपासना करता रहा। 14O 33 4 और उस ने यहोवा के उस भवन मे वेदियां बनाई जिसके विषय यहोवा ने कहा था कि यरूशलेम में मेरा नाम सदा बना रहेगा। 14O 33 5 वरन यहोवा के भवन के दोनों आंगनों में भी उस ने आकाश के सारे गण के लिये वेदियां बनाई। 14O 33 6 फिर उस ने हिन्नोम के बेटे की तराई में अपने लड़केबालों को होम करके चढ़ाया, और शुभ- अशुभ मुहूत को मानता, और टोना और तंत्रा- मंत्रा करता, और ओझों और भूतसिध्दिवालों से व्यवहार करता था। वरन उस ने ऐसे बहुत से काम किए, जो यहोवा की दृष्टि में बुरे हैं और जिन से वह अप्रसन्न होता है। 14O 33 7 और उस ने अपनी खुदवाई हुई मूर्त्ति परमेश्वर के उस भवन में स्थापन की जिसके विषय परमेश्वर ने दाऊद और उसके पुत्रा सुलैमान से कहा था, कि इस भवन में, और यरूशलेम में, जिसको मैं ने इस्राएल के सब गोत्रों में से चुन लिया है मैं आना नाम सर्वदा रखूंगा, 14O 33 8 और मैं ऐसा न करूंगा कि जो देश मैं ने तुम्हारे पुरखाओं को दिया था, उस में से इस्राएल फिर मारा मारा फिरे; इतना अवश्य हो कि वे मेरी सब आज्ञाओं को अर्थात् मूसा की दी हुई सारी व्यवस्था और विधियों और नियमों को पालन करने की चौकसी करें। 14O 33 9 और मनश्शे ने यहूदा और यरूशलेम के निवासियों को यहां तक भटका दिया कि उन्हों ने उन जातियों से भी बढ़कर बुराई की, जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियों के साम्हने से विनाश किया था। 14O 33 10 और यहोवा ने मनश्शे और उसकी प्रजा से बातें कीं, परन्तु उन्हों ने कुछ ध्यान नहीं दिया। 14O 33 11 तब यहोवा ने उन पर अश्शूर के सेनापतियों से चढ़ाई कराई, और ये मनश्शे को नकेल डालकर, और पीतल की बेड़ियां जकड़कर, उसे बाबेल को ले गए। 14O 33 12 तब संकट में पड़कर वह अपने परमेश्वर यहोवा को मानने लगा, और अपने पूर्वजों के परमेश्वर के साम्हने बहुत दीन हुआ, और उस से प्रार्थना की। 14O 33 13 तब उस ने प्रसन्न होकर उसकी बिनती सुनी, और उसको यरूशलेम में पहुंचाकर उसका राज्य लौटा दिया। तब मनश्शे को निश्चय हो गया कि यहोवा ही परमेश्वर है। 14O 33 14 इसके बाद उस ने दाऊदमुर से बाहर गीहोन के पश्चिम की ओर नाले में मच्छली फाटक तक एक शहरपनाह बनवाई, फिर ओपेल को घेरकर बहुत ऊंचा कर दिया; और यहूदा के सब गढ़वाले नगरों में सेनापति ठहरा दिए। 14O 33 15 फिर उस ने पराये देवताओं को और यहोवा के भवन में की मूर्त्ति को, और जितनी वेदियां उस ने यहोवा के भवन के पर्वत पर, और यरूशलेम में बनवाई थीं, उन सब को दूर करके नगर से बाहर फेंकवा दिया। 14O 33 16 तब उस ने यहोवा की वेदी की मरम्मत की, और उस पर मेलबलि और धन्यवादबलि चढ़ाने लगा, और यहूदियों को इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की उपासना करते की आज्ञा दी। 14O 33 17 तौभी प्रजा के लोग ऊंचे स्थानों पर बलिदान करते रहे, परन्तु केवल अपने परमेश्वर यहोवा के लिये। 14O 33 18 मनश्शे के ओर काम, और उस ने जो प्रार्थना अपने परमेश्वर से की, और उन दर्शियों के वचन जो इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम से उस से बातें करते थे, यह सब इस्राएल के राजाओं के इतिहास में लिखा हुआ है। 14O 33 19 और उसकी प्रार्थना और वह कैसे सुनी गई, और उसका सारा पाप और विश्वासघात और उस ने दीन होने से पहिले कहां कहां ऊंचे स्थान बनवाए, और अशेरा नाम और खुदी हुई मूर्त्तियां खड़ी कराई, यह सब होशे के वचनों में जिखा है। 14O 33 20 निदान मनश्शे अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसे उसी के घर में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्रा आमोन उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 14O 33 21 जब आमोन राज्य करने लगा, तब वह बाईस वर्ष का था, और यरूशलेम में दो वर्ष तक राज्य करता रहा। 14O 33 22 और उस ने अपने पिता मनश्शे की नाई वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। और जितनी मूर्त्तियां उसके पिता मनश्शे ने खोदकर बनवाई थीं, वह भी उन सभों के साम्हने बलिदान करता और उन सभों की उपासना भी करता था। 14O 33 23 और जैसे उसका पिता मनश्शे यहोवा के साम्हने दीन हुआ, वैसे वह दीन न हुआ, वरन आमोन अधिक दोषी होता गया। 14O 33 24 और उसके कर्मचारियों ने द्रोह की गोष्ठी करके, उसको उसी के भवन में मार डाला। 14O 33 25 तब साधारण लोगों ने उन सभों को मार डाला, जिन्हों ने राजा आमोन से द्रोह की गोष्ठी की थी; और लोगों ने उसके पुत्रा योशिरयाह को उसके स्थान पर राजा बनाया। 14O 34 1 जब योशिरयाह राज्य करने लगा तब वह आठ वर्ष का था, और यरूशलेम में इकतीस वर्ष तक राज्य करता रहा। 14O 34 2 उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है, और जिन माग पर उसका मूलपुरूष दाऊद चलता रहा, उन्हीं पर वह भी चला करता था और उस से न तो दाहिनी ओर मूड़ा, और न बाईं ओर। 14O 34 3 वह लड़का ही था, अर्थात उसको गद्दी पर बैठे आठ वर्ष पूरे भी न हुए थे कि अपने मूलमुरूष दाऊद के परमेश्वर की खोज करने लगा, और बारहवें वर्ष में वह ऊंचे स्थानों और अशॆरा नाम मूरतों को और खुदी और ढली हुई मूरतों को दूर करके, यहूदा और यरूशलेम को शुठ्ठ करने लगा। 14O 34 4 और बालदेवताओं की वेदियां उसके साम्हने तोड़ डाली गई, और सूर्य की प्रतिमायें जो उनके ऊपर ऊंचे पर थी, उस ने काट डालीं, और अशेरा नाम, और खुदी और ढली हुई मूरतों को उस ने तोड़कर पीस डाला, और उनकी बुकनी उन लोगों की कबरों पर छितरा दी, जो उनको बलि चढ़ाते थे। 14O 34 5 और पुजारियों की हडि्डयां उस ने उन्हीं की वेदियों पर जलाई। यों उस ने यहूदा और यरूशलेम को शुठ्ठ किया। 14O 34 6 फिर मनश्शे, एप्रैम और शिमोन के बरन नप्ताली तक के नगरों के खणडहरों में, उस ने वेदियों को तोड़ डाला, 14O 34 7 और अशेरा नाम और खुदी हुई मूरतों को पीसकर बुकनी कर डाला, और इस्राएल के सारे देश की सूर्य की सब प्रतिमाओं को काटकर यरूशलेम को लौट गया। 14O 34 8 फिर अपने राज्य के अठारहवें वर्ष में जब वह देश और भवन दोनों को शुठ्ठ कर चुका, तब उस ने असल्याह के पुत्रा शापान और नगर के हाकिम मासेयाह और योआहाज के पुत्रा इतिहास के लेखक योआह को अपने परमेश्वर यहोवा के भवन की मरम्मत कराने के लिये भेज दिया। 14O 34 9 सो उन्हों ने हिल्किरयाह महायाजक के पास जाकर जो रूपया परमेश्वर के भवन में लाया गया था, अर्थात् जो लेवीय दरबानों ने मनश्शियों, एप्रैमियों और सब बचे हुए इस्राएलियों से और सब यहूदियों और बिन्यामीनियों से और यरूशलेम के निवासियों के हाथ से लेकर इकट्ठा किया था, उसको सौंप दिया। 14O 34 10 अर्थात् उन्हों ने उसे उन काम करनेवालों के हाथ सौंप दिया जो यहोवा के भवन के काम पर मुखिये थे, और यहोवा के भवन के उन काम करनेवालों ने उसे भवन में जो कुछ टूटा फूटा था, उसकी मरम्मत करने में लगाया। 14O 34 11 अर्थात् उन्हों ने उसे बढ़इयों और राजों को दिया कि वे गढ़े हुए पत्थर और जोड़ों के लिये लकड़ी मोल लें, और उन घरों को पाटें जो यहूदा के राजाओं ने नाश कर दिए थे। 14O 34 12 और वे मनुष्य सच्चाई से काम करते थे, और उनके अधिकारी मरारीय, यहत और ओबद्याह, लेवीय और कहाती, जकर्याह और मशुल्लाम काम चलानेवाले और गाने- बजाने का भेद सब जाननेवाले लेवीय भी थे। 14O 34 13 फिर वे बोझियों के अधिकारी थे और भांति भांति की सेवकाई और काम चलानेवाले थे, और कुछ लेवीय मुंशी सरदार और दरबान थे। 14O 34 14 जब वे उस रूपये को जो यहोवा के भवन में पहुंचाया गया था, निकाल रहे थे, तब हिल्किरयाह याजक को मूसा के द्वारा दी हुई यहोवा की व्यवस्था की पुस्तक मिली। 14O 34 15 तब हिल्किरयाह ने शापान मंत्री से कहा, मुझे यहोवा के भवन में व्यवस्था की पुस्तक मिली है; तब हिल्किरयाह ने शापान को वह पुस्तक दी। 14O 34 16 तब शापान उस पुस्तक को राजा के पास ले गया, और यह सन्देश दिया, कि जो जो काम तेरे कर्मचारियों को सौंपा गया था उसे वे कर रहे हैं। 14O 34 17 और जो रूपया यहोवा के भवन में मिला, उसको उन्हों ने उणडेलकर मुखियों और कारीगरों के हाथों में सौंप दिया है। 14O 34 18 फिर शापान मंत्री ने राजा को यह भी बता दिया कि हिल्किरयाह याजक ने मुझे एक पुस्तक दी है तब शपान ने उस में से राजा को पढ़कर सुनाया। 14O 34 19 व्यवस्था की वे बातें सुनकर राजा ने अपने वस्त्रा फाढ़े। 14O 34 20 फिर राजा ने हिल्किरयाह शापान के पुत्रा अहीकाम, मीका के पुत्रा अब्दोन, शापान मंत्री और असायाह नाम अपने कर्मचारी को आज्ञा दी, 14O 34 21 कि तुम जाकर मेरी ओर से और इस्राएल और यहूदा में रहनेवालों की ओर से इस पाई हुई पुस्तक के वचनों के विष्य यहोवा से पूछो; क्योंकि यहोवा की बड़ी ही जलजलाहट हम पर इसलिये भड़की है कि हमारे पुरखाओं ने यहोवा का वचन नहीं माना, और इस पुस्तक में लिखी हुई सब आज्ञाओं का पालन नहीं किया। 14O 34 22 तब हिल्करयाह ने राजा के और और दूतों समेत हुल्दा नबिया के पास जाकर उस से उसी बात के अनुसार बातें की, वह तो उस शल्लूम की स्त्री थी जो तोखत का पुत्रा और हस्रा का पोता और वस्त्रालय का रखवाला था : और वह स्त्री यरूशलेम के नये टोले में रहती थी। 14O 34 23 उस ने उन से कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि जिस पुरूष ने तुम को मेरे पास भेजा, उस से यह कहो, 14O 34 24 कि यहोवा यों कहता है, कि सुन, मैं इस स्थान और इस के निवासियों पर विपत्ति डालकर यहूदा के राजा के साम्हने जो पुस्तक पढ़ी गई, उस में जितने शाप लिखे हैं उन सभों को पूरा करूंगा। 14O 34 25 उन लोगों ने मुझे त्यागकर पराये देवताओं के लिये धूप जलाया है और अपनी बनाई हुई सब वस्तुओं के द्वारा मुझे रिस दिलाई है, इस कारण मेरी जलजलाहट इस स्थान पर भड़क उठी है, और शान्त न होगी। 14O 34 26 परन्तु यहूदा का राजा जिस ने तुम्हें यहोवा के पूछने को भेज दिया है उस से तुम यों कहो, कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, 14O 34 27 कि इसलिये कि तू वे बातें सुनकर दीन हुआ, और परमेश्वर के साम्हने अपना सिर नवाया, और उसकी बातें सुनकर जो उसने इस स्थान और इस के निवासियों के विरूद्ध कहीं, तू ने मेरे साम्हने अपना सिर नवाया, और वस्त्रा फाड़कर मेरे साम्हने रोया है, इस कारण मैं ने तेरी सुनी है; यहोवा की यही बाणी है। 14O 34 28 सुन, मैं तुझे तेरे पुरखाओं के संग ऐसा मिलाऊंगा कि तू शांति से अपनी कब्र को पहुंचाया जायगा; और जो विपत्ति मैं इस स्थान पर, और इसके निवासियों पर डालना चाहता हूँ, उस में से तुझे अपनी आंखों से कुछ भी देखना न पड़ेगा। तब उन लोगों ने लौटकर राजा को यही सन्देश दिया। 14O 34 29 तब राजा ने सहूदा और यरूशलेम के सब पुरनियों को इकट्ठे होने को बचलवा भेजा। 14O 34 30 और राजा यहूदा के सब लोगों और यरूशलेम के सब निवासियों और याजकों और लेवियों वरन छोटे बड़े सारी प्रजा के लोगों को संग लेकर यहोवा के भवन को गया; तब उस न जो वाचा की पुस्तक यहोवा के भवन में मिली थी उस में की सारी बातें उनको पढ़कर सुनाई। 14O 34 31 तब राजा ने अपने स्थान पर खड़ा होकर, यहोवा से इस आशय की वाचा बान्धी कि मैं यहोवा के पीछे पीछे चलूंगा, और अपने पूर्ण मन और पूर्ण जीव से उसकी आज्ञाएं, चितौनियों और विधियों का पालन करूंगा, और इन वाचा की बातों को जो इस पुस्तक में लिखी हैं, पूरी करूंगा। 14O 34 32 और उस ने उन सभों से जो यरूशलेम में और बिन्यामीन में थे वैसी ही वाचा बन्धाई। और यरूशलेम के निवासी, परमेश्वर जो उनके पितरों का परमेश्वर था, उसकी वाचा के अनुसार करने लगे। 14O 34 33 और योशिरयाह ने इस्राएलियों के सब देशों में से सब घिनौनी वस्तुओं को दूर करके जितने इस्राएल में मिले, उन सभों से उपासना कराई; अर्थात् उनके परमेश्वर सहोवा की उपासना कराई। और उसके जीवन भर उन्हों ने अपने पूवजों के परमेश्वर यहोवा के पीछे चलना न छोड़ा। 14O 35 1 और योशिरयाह ने यरूशलेम में यहोवा के लिये फसह पर्व माना और पहिले महीने के चौदहवें दिन को फसह का पशु बलि किया गया। 14O 35 2 और उस ने याजकों को अपने अपने काम में ठहराया, और यहोवा के भवन में की सेवा करने को उनका हियाब बन्धाया। 14O 35 3 फिर लेवीय जो सब इस्राएल लियों को सिखाते और यहोवा के लिये पवित्रा ठहरे थे, उन से उस ने कहा, तुम पवित्रा सन्दूक को उस भवन में रखो जो दाऊद के पुत्रा इस्राएल के राजा सुलैमान ने बनवाया था; अब तुम को कन्धों पर बोझ उठाना न होगा। अब अपने परमेश्वर यहोवा की और उसकी प्रजा इस्राएल की सेवा करो। 14O 35 4 और इस्राएल के राजा दाऊद और उसके पुत्रा सुलैमान दोनों की लिखी हुई विधियों के अनुसार, अपने अपने पितरों के अनुसार, अपने अपने दल में तैयार रहो। 14O 35 5 और तुम्हारे भाई लोगों के पितरों के घरानों के भागों के अनुसार पवित्रास्थान में खड़े रहो, अर्थात् उनके एक भाग के लिये लेवियों के एक एक पितर के घराने का एक भाग हो। 14O 35 6 और फसह के पशुओं को बलि करो, और अपने अपने को पवित्रा करके अपने भाइयों के लिये तैयारी करो कि वे यहोवा के उस वचन के अनुसार कर सकें, जो उस ने मूसा के द्वारा कहा था। 14O 35 7 फिर योशिरयाह ने सब लोगों को जो वहां उपस्थित थे, तीस हजार भेड़ों और बकरियों के बच्चे और तीन हजार बैल दिए थे; ये सब फसह के बलिदानों के लिये राजा की सम्पत्ति में से दिए गए थे। 14O 35 8 और उसके हाकिमों ने प्रजा के लोगों, याजकों और लेवियों को स्वेच्छा - बलियों के लिये पशु दिए। और हिल्किरयाह, जकर्याह और यहीएल नाम परमेश्वर के भवन के प्रधानों ने याजकों को दो हजार छेसौ भेड -़ बकरियां। और तीन सौ बैल फसह के बलिदानों के लिए दिए। 14O 35 9 और कोनन्याह ने और शमायाह और नतनेल जो उसके भाई थे, और हसब्याह, यीएल और योजाबाद नामक लेवियों के प्रधानों ने लेवियों को पांच हजार भेड़- बकरियां, और पांच सौ बैल फसह के बलिदानों के लिये दिए। 14O 35 10 इस प्रकार उपासना की तैयारी हो गई, और राजा की आज्ञा के अनुसार याजक अपने अपने स्थान पर, और लेवीय अपने अपने दल में खड़े हुऐ। 14O 35 11 तब फसह के पशु बलि किए गए, और याजक बलि करनेवालों के हाथ से लोहू को लेकर छिड़क देते और लेवीय उनकी खाल उतारते गए। 14O 35 12 तब उन्हों ने होमबलि के पशु इसलिये अलग किए कि उन्हें लोगों के पितरों के घरानों के भागों के अनुसार दें, कि वे उन्हें यहोवा के लिये चढ़वा दें जैसा कि मूसा की पुस्तक में लिखा है; और बैलों को भी उन्हों ने वैसा ही किया। 14O 35 13 तब उन्हों ने फसह के पशुओं का मांस विधि के अनुसार आग में भूंजा, और पवित्रा वस्तुएं, हंडियों और हंडों और थालियों में सिझा कर फूत से लोगों को पहुंचा दिया। 14O 35 14 तब उन्हों ने अपने लिये और याजकों के लिये तैयारी की, क्योंकि हारून की सन्तान के याजक होमबलि के पशु और चरबी रात तक चढ़ाते रहे, इस कारण लेवियों ने अपने लिये और हारून की सन्तान के याजकों के लिये तैयारी की। 14O 35 15 और आसाप के वंश के गवैये, दाऊद, आसाप, हेमान और राजा के दश यदूतून की आज्ञा के अनुसार अपने अपने स्थान पर रहे, और द्वारपाल एक एक फाटक पर रहे। उन्हें अपना अपना काम छोड़ना न पड़ा, क्योंकि उनके भई लेवियों ने उनके लिये तैयारी की। 14O 35 16 यों उसी दिन राजा योशिरयाह की आज्ञा के अनुसार फसह मनाने और यहोवा की बेदी पर होमबलि चढ़ाने के लिये यहोवा की सारी अपासना की तैयारी की गई। 14O 35 17 जो इस्राएली वहां उपस्थित थे उन्हों ने फसह को उसी समय और अखमीरी रोटी के पर्व को सात दिन तक माना। 14O 35 18 इस फसह के बराबर शमूएल नबी के दिनों से इस्राएल में कोई फसह मनाया न गया था, और न इस्राएल के किसी राजा ने ऐसा मनाया, जैसा योशिरयाह और याजकों, लेवियों और जितने यहूदी और इस्राएली उपस्थित थे, उनहों ने और यरूशलेम के निवासियों ने मनाया। 14O 35 19 यह फसह योशिरयाह के राज्य के अठारहवें वर्ष में मनाया गया। 14O 35 20 इसके बाद जब योशिरयाह भवन को तैयार कर चुका, तब मिस्र के राजा नको ने परात के पास के कुर्कमीश नगर से लड़ने को चढ़ाई की और योशिरयाह उसका साम्हना करने को गया। 14O 35 21 परन्तु उस ने उसके पास दूतों से कहला भेजा, कि हे यहूदा के राजा मेरा तुझ से क्या काम ! आज मैं तुझ पर नहीं उसी कुल पर चढ़ाई कर रहा हूँ, जिसके साथ मैं युठ्ठ करता हूँ; फिर परमेश्वर ने मुझ से फुत करने को कहा है। इसलिये परमेश्वर जो मेरे संग है, उससे अलग रह, कहीं ऐसा न हो कि वह तुझे नाश करे। 14O 35 22 परन्तु योशिरयाह ने उस से मुंह न मोड़ा, वरन उस से लड़ने के लिये भेष बदला, और नको के उन वचनों को न माना जो उस ने परमेश्वर की ओर से कहे थे, और मगिद्दॊ की तराई में उस से युठ्ठ करने को गया। 14O 35 23 तब धनुर्धारियों ने राजा योशिरयाह की ओर तीर छोड़े; और राजा ने अपने सेवकों से कहा, मैं तो बहुत घायल हुआ, इसलिये मुझे यहां से ले जाओ। 14O 35 24 तब उसके सेवकों ने उसको रथ पर से उतार कर उसके दूसरे रथ पर चढ़ाया, और यरूशलेम ले गये। और वह मर गया और उसके पुरखाओं के कब्रिस्तान में उसको मिट्टी दी गई। और यहूदियों और यरूशलेमियों ने योशिरयाह के लिए विलाप किया। 14O 35 25 और यिर्मयाह ने योशिरयाह के लिये विलाप का गीत बनाया और सब गानेवाले और गानेवालियां अपने विलाप के गीतों में योशिरयाह की चर्चा आज तक करती हैं। और इनका गाना इस्राएल में एक विधि के तुल्य ठहराया गया और ये बातें विलापगीतों में लिखी हुई हैं। 14O 35 26 योशिरयाह के और काम और भक्ति के जो काम उस ने उसी के अनुसार किए जो यहोवा की व्यवस्था में लिखा हुआ है। 14O 35 27 और आदि से अन्त तक उसके सब काम इस्राएल और यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हुए हैं। 14O 36 1 तब देश के लोगों ने योशिरयाह के पुत्रा यहोआहाज को लेकर उसके पिता के स्थान पर यरूशलेम में राजा बनाया। 14O 36 2 जब यहोआहाज राज्य करने लगा, तब वह तेईस वर्ष का था, और तीन महीने तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। 14O 36 3 तब मिस्र के राजा ने उसको यरूशलेम में राजगद्दी से उनार दिया, और देश पर सौ किक्कार चान्दी और किक्कार भर लोना जुरमाने में दणड लगाया। 14O 36 4 तब मिस्र के राजा ने उसके भाई एल्याकीम को यहूदा और यरूशलेम का राजा बनाया और उसका नाम बदलकर यहोयाकीम रखा। और नको उसके भाई यहोआहाज को मिस्र में ले गया। 14O 36 5 जब यहोयाकीम राज्य करने लगा, तब वह पचीस वर्ष का था, और ग्यारह वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उस ने वह काम किया, जो उसके परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 14O 36 6 उस पर बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने चढ़ाई की, और बाबेल ले जाने के लिये उसको बेड़ियां पहना दीं। 14O 36 7 फिर नबूकदनेस्सर ने यहोवा के भवन के कुछ पात्रा बाबेल ले जाकर, अपने मन्दिर में जो बाबेल में था, रख दिए। 14O 36 8 यहोयाकीम के और काम और उस ने जो जो घिनौने काम किए, और उस में जो जो बिराइयां पाई गई, वह इस्राएल और यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखी हैं। और उसका पुत्रा यहोयाकीन उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 14O 36 9 जब यहोयाकीन राज्य करने लगा, तब वह आठ वर्ष का था, और तीन महीने और दस दिन तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उस ने वह किया, जो परमेश्वर यहोवा की दुष्टि में बुरा है। 14O 36 10 नये वर्ष के लगते ही नबूकदनेस्सर ने लोगों को भेजकर, उसे और यहोवा के भवन के मनभावने पात्रों को बाबेल में मंगवा लिया, और उसके भाई सिदकिरयाह को यहूदा और यरूशलेम पर राजा नियुक्त किया। 14O 36 11 जब सिदकिरयाह राज्य करने लगा, तब वह इक्कीस वर्ष का था, और यरूशलेम में ग्यारह वर्ष तक राज्य करता रहा। 14O 36 12 और उस ने वही किया, जो उसके परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में बुरा है। यद्यापि यिर्मयाह नबी यहोवा की ओर से बातें कहता था, तौभी वह उसके साम्हने दीन न हुआ। 14O 36 13 फिर नबूकदनेस्सर जिस ने उसे परमेश्वर की शपथ खिलाई थी, उस से उस ने बलवा किया, और उस ने हठ किया और अपना मन कठोर किया, कि वह इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की ओर न फिरे। 14O 36 14 वरन सब प्रधान याजकों ने और लोगों ने भी अन्य जातियों के से घिनौने काम करके बहुत बड़ा विश्वासघात किया, और यहोवा के भवन को जो उस ने यरूशलेम में पवित्रा किया था, अशुठ्ठ कर डाला। 14O 36 15 और उनके पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा ने बड़ा यत्न करके अपने दूतों से उनके पास कहला भेजा, क्योंकि वह अपनी प्रजा और अपने धाम पर तरस खाता था; 14O 36 16 परन्तु वे परमेश्वर के दूतों को ठट्ठों में उड़ाते, उसके वचनों को तुच्छ जानते, और उसके नबियों की हंसी करते थे। निदान यहोवा अपनी प्रजा पर ऐसा झुंझला उठा, कि बचने का कोई उपाय न रहा। 14O 36 17 तब उस ने उन पर कसदियों के राजा से चढ़ाई करवाई, और इस ने उनके जवानों को उनके पवित्रा भवन ही में तलवार से मार डाला। और क्या जवान, क्या कुंवारी, क्या बूढ़े, क्या पक्के बालवाले, किसी पर भी कोमलता न की; यहोवा ने सभों को उसके हाथ में कर दिया। 14O 36 18 और क्या छोटे, क्या बड़े, परमेश्वर के भवन के सब पात्रा और यहोवा के भवन, और राजा, और उसके हाकिमों के खजाने, इन सभों को वह बाबेल में ले गया। 14O 36 19 और कसदियो ने परमेश्वर का भवन फूंक दिया, और यरूशलेम की शहरपनाह को तोड़ ड़ाला, और आग लगा कर उसके सब भवनों को जलाया, और उस में का सारा बहुमूल्य सामान नष्ट कर दिया। 14O 36 20 और जो तलवार से बच गए, उन्हें वह बाबेल को ले गया, और फारस के राज्य के प्रबल होने तक वे उसके और उसके बेटों- पोतों के आधीन रहे। 14O 36 21 यह सब इसलिये हुआ कि यहोवा का जो वचन यिर्मयाह के मुंह से निकला था, वह पूरा हो, कि देश अपने विश्राम कालों में मुख भोगता रहे। इसलिये जब तक वह सूना पड़ा रहा तब तक अर्थात् सत्तर वर्ष के पूरे होने तक उसको विश्राम मिला। 14O 36 22 फारस के राजा कूस्रू के पहिले वर्ष में यहोवा ने उसके मन को उभारा कि जो वचन यिर्मयाह के मुंह से निकला था, वह पूरा हो। इसलिये उस ने अपने समस्त राज्य में यह प्रचार करवाया, और इस आशय की चिटि्ठयां लिखवाई, 14O 36 23 कि फारस का राजा कू्रस्रू कहता है, कि स्वर्ग के परमेश्वर यहोवा ने पृथ्वी भर का राज्य मुझे दिया है, और उसी ने मुझे आज्ञा दी है कि यरूशलेम जो यहूदा में है उस में मेरा एक भवन बनवा; इसलिये हे उसकी प्रजा के सब लोगो, तुम में से जो कोई चाहे कि उसका परमेश्वर यहोवा उसके साथ रहे, तो वह वहां रवाना हो जाए। 15O 1 1 फारस के राजा कु ू के पहिले वर्ष में यहोवा ने फारस के राजा कु ू का मन उभारा कि यहोवा का जो वचन यिर्मयाह के मुंह से निकला था वह पूरा हो जाए, इसलिये उस ने अपने समस्त राज्य में यह प्रचार करवाया और लिखवा भी दिया: 15O 1 2 कि फारस का राजा कु ू यों कहता है : कि स्वर्ग के परमेश्वर यहोवा ने पृथ्वी भर का राज्य मुझे दिया है, और उस ने मुझे आज्ञा दी, कि यहूदा के यरूशलेम में मेरा एक भवन बनवा। 15O 1 3 उसकी समस्त प्रजा के लोगों में से तुम्हारे मध्य जो कोई हो, उसका परमेश्वर उसके साथ रहे, और वह यहूदा के यरूशलेम को जाकर इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का भवन बनाए - जो यरूशलेम में है वही परमेश्वर है। 15O 1 4 और जो कोई किसी स्थान में रह गया हो, जहां वह रहता हो, उस स्थान के मनुष्य चान्दी, सोना, धन और पशु देकर उसकी सहायता करें और इस से अधिक परमेश्वर के यरूशलेम के भवन के लिये अपनी अपनी इच्छा से भी भेंट चढ़ाएं।। 15O 1 5 तब यहूदा और बिन्यामीन के जितने पितरों के घरानों के मुख्य पुरूषों और याजकों ओर लेवियों का मन परमेश्वर ने उभारा था कि जाकर यरूशलेम में यहोवा के भवन को बनाएं, वे सब उठ खड़े हुए; 15O 1 6 और उनके आसपास सब रहनेवालों ने चान्दी के पात्रा, सोना, धन, पशु और अनमोल वस्तुएं देकर, उनकी सहायता की; यह उन सब से अधिक था, जो लोगों ने अपनी अपनी इच्छा से दिया। 15O 1 7 फिर यहोवा ने भवन के जो पात्रा नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम से निकालकर अपने देवता के भवन में रखे थे, 15O 1 8 उनको कु ू राजा ने, मिथूदान खजांची से निकलवा कर, यहूदियों के शेशबस्सर नाम प्रधान को गिनकर सौंप दिया। 15O 1 9 उनकी गिनती यह थी, अर्थात् सोने के तीस और चान्दी के एक हजार परात और उनतीस छुरी, 15O 1 10 सोने के तीस और मघ्यम प्रकार के चान्दी के चार सौ दस कटोरे तथा और प्रकार के पात्रा एक हजार। 15O 1 11 सोने चान्दी के पात्रा सब मिलकर पांच हजार चार सौ थे। इन सभों को शेशबस्सर उस समय ले आया जब बन्धुए बाबेल से यरूशलेम को आए।। 15O 2 1 जिनको बाबेल का राजा नबूकदनेस्सर बाबेल को बन्धुआ करके ले गया िाा, उन में से प्रान्त के जो लोग बन्धुआई से छूटकर यरूशलेम और यहूदा को अपने अपने नगर में लौटे वे ये हैं। 15O 2 2 ये जरूब्बाबेल, येशू, नहेम्याह, सरायाह, रेलायाह, मौर्दकै, बिलशान, मिस्पार, बिगवै, रहूम और बाना के साथ आए। इस्राएली प्रजा के मनुष्यों की गिनती यह है, अर्थात् 15O 2 3 परोश की सन्तान दो हजार एक सौ बहत्तर, 15O 2 4 शपत्याह की सन्तान तीन सौ बहत्तर, 15O 2 5 आरह की सन्तान सात सौ पछहत्तर, 15O 2 6 पहत्मोआब की सन्तान येशू और योआब की सन्तान में से दो हजार आठ सौ बारह, 15O 2 7 एलाम की सन्तान बारह सौ चौवन, 15O 2 8 जत्तू की सन्तान नौ सौ पैंतालीस, 15O 2 9 जक्कै की सन्तान सात सौ पैंतालीस, 15O 2 10 बानी की सन्तान छ: सौ बयालीस 15O 2 11 बेबै की सन्तान छ: सौ तेईस, 15O 2 12 अजगाद की सन्तान बारह सौ बाईस, 15O 2 13 अदोनीकाम की सन्तान छ: सौ छियासठ, 15O 2 14 बिग्वै की सन्तान दो हजार छप्पन, 15O 2 15 आदीन की सन्तान चार सौ चौवन, 15O 2 16 यहिजकिरयाह की सन्तान आतेर की सन्तान में से अट्ठानवे, 15O 2 17 बेसै की सन्तान तीन सौ तेईस, 15O 2 18 योरा के लोग एक सौ बारह, 15O 2 19 हाशूम के लोग दो सौ तेईस, 15O 2 20 गिब्बार के लोग पंचानवे, 15O 2 21 बेतलेेहेम के लोग एक सौ तेईस, 15O 2 22 नतोपा के मनुष्य छप्पन; 15O 2 23 अनातोत के मनुष्य एक सौ अट्ठाईस, 15O 2 24 अज्मावेत के लोग बयालीस, 15O 2 25 किर्यतारीम कपीरा और बेरोत के लोग सात सौ तैतालीस, 15O 2 26 रामा और गेबा के लोग छ: सौ इक्कीस, 15O 2 27 मिकमास के मनुष्य एक सौ बाईस, 15O 2 28 बेतेल और ऐ के मनुष्य दो सौ तेईस, 15O 2 29 नबो के लोग बावन, 15O 2 30 मग्बीस की सन्तान एक सौ छप्पन, 15O 2 31 दूसरे एलाम की सन्तान बारह सौ चौवन, 15O 2 32 हारीम की सन्तान तीन सौ बीस, 15O 2 33 लोद, हादीद और ओनो के लोग सात सौ पचीस, 15O 2 34 यरीहो के लोग तीन सौ पैतालीस, 15O 2 35 सना के लोग तीन हजार छ: सौ तीस।। 15O 2 36 फिर याजकों अर्थात् येशू के घराने में से यदायाह की सन्तान नौ सौ तिहत्तर, 15O 2 37 इम्मेर की सन्तान एक हजार बावन, 15O 2 38 पशहूर की सन्तान बारह सौ सैंतालीस, 15O 2 39 हारीम की सन्तान एक हजार सतरह। 15O 2 40 फिर लेवीय, अर्थात् येशू की सन्तान और कदमिएल की सन्तान होदब्याह की सन्तान में से चौहत्तर। 15O 2 41 फिर गवैयों में से आसाप की सन्तान एक सौ अट्ठाईस। 15O 2 42 फिर दरबानों की सन्तान, शल्लूम की सन्तान, आतेर की सन्तान, तल्मोन की सन्तान, अक्कूब की सन्तान, हतीता की सन्तान, और शोबै की सन्तान, ये सब मिलकर एक सौ उनतालीस हुए। 15O 2 43 फिर नतीन की सन्तान, सीहा की सन्तान, हसूपा की सन्तान, तब्बाओत की सन्तान। 15O 2 44 केरोस की सन्तान, सीअहा की सन्तान, पादोन की सन्तान, 15O 2 45 लवाना की सन्तान, हगबा की सन्तान, अक्कूब की सन्तान, 15O 2 46 हागाब की सन्तान, शमलै की सन्तान, हानान की सन्तान, 15O 2 47 गि ल की सन्तान, गहर की सन्तान, रायाह की सन्तान, 15O 2 48 रसीन की सन्तान, नकोदा की सन्तान, गज्जाम की सन्तान, 15O 2 49 उज्जा की सन्तान, पासेह की सन्तान, बेसै की सन्तान, 15O 2 50 अस्ना की सन्तान, मूनीम की सन्तान, नपीसीम की सन्तान, 15O 2 51 बकबूक की सन्तान, हकूपा की सन्तान, हर्हूर की सन्तान। 15O 2 52 बसलूत की सन्तान, महीदा की सन्तान, हर्शा की सन्तान, 15O 2 53 बर्कोस की सन्तान, सीसरा की सन्तान, तेमह की सन्तान, 15O 2 54 नसीह की सन्तान, और हतीपा की सन्तान।। 15O 2 55 फिर सुलैमान के दासों की सन्तान, सोतै की सन्तान, हस्सोपेरेत की सन्तान, परूदा की सन्तान, 15O 2 56 याला की सन्तान, दर्कोन की सन्तान, गि :ल की सन्तान, 15O 2 57 शपत्याह की सन्तान, हत्तील की सन्तान, पोकरेतसबायीम की सन्तान, और आमी की सन्तान। 15O 2 58 सब नतीन और सुलैमान के दासों की सन्तान, तीन सौ बानवे थे।। 15O 2 59 फिर जो तेल्मेलह, तेलहर्शा, करूब, अस्रान और इम्मेर से आए, परन्तु वे अपने अपने पितरों के घराने और वंशावली न बता सके कि वे इस्राएल के हैं, वे ये हैं: 15O 2 60 अर्थात् दलायाह की सन्तान, तोबिरयाह की सन्तान और नकोदा की सन्तान, जो मिलकर छ: सौ बावन थे। 15O 2 61 और याजकों की सन्तान में से हबायाह की सन्तान, हक्कोस की सन्तान और बर्जिल्लै की सन्तान, जिस ने गिलादी बर्जिल्ले की एक बेटी को ब्याह लिया और उसी का नाम रख लिया था। 15O 2 62 इन सभों ने अपनी अपनी वंशावली का पत्रा औरों की वंशावली की पोथियों में ढूंढ़ा, परन्तु वे न मिले, इसलिये वे अशुद्ध ठहराकर याजकपद से निकाले गए। 15O 2 63 और अधिपति ने उन से कहा, कि जब तक ऊरीम और तुम्मीम धारण करनेवाला कोई याजक न हो, तब तक कोई परमपवित्रा वस्तु खाने न पाए।। 15O 2 64 समस्त मण्डली मिलकर बयालीस हजार तीन सौ साठ की थी। 15O 2 65 इनको छोड़ इनके सात हजार तीन सौ सैंतीस दास- दासियां और दो सौ गानवाले और गानेवालियां थीं। 15O 2 66 उन के घोड़े सात सौ छत्तीस, खच्चर दो सौ पैंतालीस, ऊंट चार सौ पैंतीस, 15O 2 67 और गदहे छ: हजार सात सौ बीस थे। 15O 2 68 और पितरों के घरानों के कुछ मुख्य मुख्य पुरूषों ने जब यहोवा के भसन को जो यरूशलेम में है, आए, तब परमेश्वर के भवन को उसी के स्थान पर खड़ा करने के लिये अपनी अपनी इच्छा से कुछ दिया। 15O 2 69 उन्हों ने अपनी अपनी पूंजी के अनुसार इकसठ हजार दर्कमोन सोना और पांच हजार माने चान्दी और याजकों के योग्य एक सौ अंगरखे अपनी अपनी इच्छा से उस काम के खजाने में दे दिए। 15O 2 70 तब याजक और लेवीय और लोगों में से कुछ और गवैये और द्वारपाल और नतीन लोग अपने नगर में और सब इस्राएली अपने अपने नगर में फिर बस गए।। 15O 3 1 जब सातवां महीना आया, और इस्राएली अपने अपने नगर में बस गए, तो लोग यरूशलेम में एक मन होकर इकट्ठे हुए। 15O 3 2 तब योसादाक के पुत्रा येशू ने अपने भाई याजकों समेत और शालतीएल के पुत्रा जरूब्बाबेल ने अपने भाइयों समेत कमर बान्धकर इस्राएल के परमेश्वर की वेदी को बनाया कि उस पर होमबलि चढ़ाएं, जैसे कि परमेश्वर के भक्त मूसा की व्यवस्था में लिखा है। 15O 3 3 तब उन्हों ने वेदी को उसके स्थान पर खड़ा किया क्योंकि उन्हें उस ओर के देशों के लोगों का भय रहा, और वे उस पर यहोवा के लिये होमबलि अर्थात् प्रतिदिन सबेरे और सांझ के होमबलि चढ़ाने लगे। 15O 3 4 और उन्हों ने झोपड़ियों के पर्व को माना, जैसे कि लिखा है, और प्रतिदिन के होमबलि एक एक दिन की गिनती और नियम के अनुसार चढ़ाए। 15O 3 5 और उसके बाद नित्य होमबलि और नये नये चान्द और यहोवा के पवित्रा किए हुए सब नियत पव के बलि और अपनी अपनी इच्छा से यहोवा के लिये सब स्वेच्छाबलि हर एक के लिये बलि चढ़ाए। 15O 3 6 सातवें महीने के पहिले दिन से वे यहोवा को होमबलि चढ़ाने लगे। परन्तु यहोवा के मन्दिर की नेव तब तक न डाली गई थी। 15O 3 7 तब उन्हों ने पत्थ्र गढ़नेवालों और कारीगरों को रूपया, और सीदोनी और सोरी लोगों को खने- पीने की वस्तुएं और तेल दिया, कि वे फारस के राजा कुस्रू के पत्रा के अनुसार देवदार की लकड़ी लबानोन से जापा के पास के समुद्र में पहुंचाएं। 15O 3 8 उनके परमेश्वर के भवन में, जो यरूशलेम में है, अपने के दूसरे वर्ष के दूसरे महीने में, शालतीएल के पुत्रा जरूब्बाबेल ने और योसादाक के पुत्रा येशू ने और उनके और भाइयों ने जो याजक और लेवीय थे, और जितने बन्धुआई से यरूशलेम में आए थे उन्हों ने भी काम को आरम्भ किया, और बीस वर्ष अथवा उससे अधिक अवस्था के लेवियों को यहोवा के भवन का काम चलाने के लिये नियुक्त किया। 15O 3 9 तो सेशू और उसके बेटे और भाई और कदमीएल और उसके बेटे, जो यहूदा की सन्तान थे, और हेनादाद कीं सन्तान और उनके बेटे परमेश्वर के भवन में कारीगरों का काम चलाने को खड़े हुए। 15O 3 10 और जब राजों ने यहोवा के मन्दिर की नेव डाली तब अपने वस्त्रा पहिने हुए, और तुरहियां लिये हुए याजक, और झांझ लिये हुए आसाप के वंश के लेवीय इसलिये नियुक्त किए गए कि इस्राएलियों के राजा दाऊद की चलाई हुई रीति के अनुसार यहोवा की स्तुति करें। 15O 3 11 सो वे यह गा गाकर यहोवा की स्तुति और धन्यवाद करने लगे, कि वह भला है, और उसकी करूणा इस्राएल पर सदैव बनी है। और जब वे यहोवा की स्तुति करने लगे तब सब लोगों ने यह जानकर कि यहोवा के भवन की नेब अब पड़ रही है, ऊंचे शब्द से जय जयकार किया। 15O 3 12 परन्तु बहुतेरे याजक और लेवीय और पूर्वजों के घरानों के मुख्य पुरूष, अर्थात् वे बूढ़े जिन्हों ने पहिला भवन देखा था, जब इस भवन की नेव उनकी आंखों के साम्हने पड़ी तब फूट फूटकर रोने लगे, और बहुतेरे आनन्द के मारे ऊंचे शब्द से जय जयकार कर रहे थे। 15O 3 13 इसलिये लोग, आनन्द के जय जयकार का शब्द, लोगों के रोने के शब्द से अलग पहिचान न सके, क्योंकि लोग ऊंचे शब्द से जय जयकार कर रहे थे, और वह शब्द दूर तक सुनाई देता था। 15O 4 1 जब यहूदा और बिन्यामीन के शत्रुओं ने यह सुना कि बन्धुआई से छूटे हुए लोग इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के लिये मन्दिर बना रहे हैं, 15O 4 2 तब वे जरूब्बाबेल और पूर्वजों के घरानों के मुख्य मुख्य पुरूषों के पास आकर उन से कहने लगे, हमें भी अपने संग बनाने दो; क्योंकि तुम्हारी नाई हम भी तुम्हारे परमेश्वर की खोज में लगे हुए हैं, और अश्शूर का राजा एसर्हद्दॊन जिस ने हमें यहां पहुंचाया, उसके दिनों से हम उसी को बलि चढ़ाते भी हैं। 15O 4 3 जरूब्बाबेल, येशू और इस्राएल के पितरों के घरानों के मुख्य पुरूषों ने उन से कहा, हमारे परमेश्वर के लिये भवन बनाने में तुम को हम से कुछ काम नहीं; हम ही लोग एक संग मिलकर फारस के राजा कुस्रू की आज्ञा के अनुसार इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के लिये उसे बनाएंगे। 15O 4 4 तब उस देश के लोग यहूदियों के हाथ ढीला करने और उन्हें डराकर मन्दिर बनाने में रूकावट डालने लगे। 15O 4 5 और फारस के राजा कुस्रू के जीवन भर वरन फारस के राजा द्वारा के राज्य के समय तक उनके मनोरथ को निष्फल करने के लिये वकीलों को रूपया देते रहे। 15O 4 6 श्रायर्ष के राज्य के पहिले दिनों में उन्हों ने यहूदा और यरूशलेम के निवासियों का दोषपत्रा उसे लिख भेजा। 15O 4 7 फिर अर्तश्रत्रा के दिनों में बिशलाम, मिथदात और ताबेल ने और उसके सहचरियों ने फारस के राजा अर्तश्रत्रा को चिट्ठी लिखी, और चिट्ठी अरामी अश्ररों और अरामी भाषा में लिखी गई। 15O 4 8 अर्थात् रहूम राजमंत्री और शिलशै मंत्री ने यरूशलेम के विरूद्ध राजा अर्तश्रत्रा को इस आशय की चिट्ठी लिखी। 15O 4 9 उस समय रहूम राजमंत्री और शिमशै मंत्री और उनके और सहचरियों ने , अर्थात् दीनी, अपर्सतकी, तर्पली, अफ़ारसी, एरेकी, बाबेली, शूशनी, देहवी, एलामी, 15O 4 10 आदि जातियों ने जिन्हें महान और प्रधान ओस्नप्पर ने पार ले आकर शोमरोन नगर में और महानद के इस पार के शेष देश में बसाया था, एक चिट्ठी लिखी। 15O 4 11 जो चिट्ठी उन्हों ने अर्तश्रत्रा राजा को लिखी, उसकी यह नकल है--- तेरे दास जो महानद के पार के मनुष्य हैं, इत्यादि। 15O 4 12 राजा को यह विदित हो, कि जो यहूदी तेरे पास से चले आए, वे हमारे पास यरूशलेम को पहुंचे हैं। वे उस दंगैत और घिनौने नगर को बसा रहे हैं; वरन उसकी शहरपनाह को खड़ा कर चुके हैं और उसकी नेव को जोड़ चुके हैं। 15O 4 13 अब राजा को विदित हो कि यदि वह नगर बस गया और उसकी शहरपनाह बन चुकी, तब तो वे लोग कर, चुंगी और राहदारी फिर न देंगे, और अन्त में राजाओं की हानि होगी। 15O 4 14 हम लोग तो राजमन्दिर का नमक खाते हैं और उचित नहीं कि राजा का अनादर हमारे देखते हो, इस कारण हम यह चिट्ठी भेजकर राजा को चिता देते हैं। 15O 4 15 तेरे पुरखाओं के इतिहास की पुस्तक में खोज की जाए; तब इतिहास की पुस्तक में तू यह पाकर जान लेगा कि वह नगर बलवा करनेवाला और राजाओं और प्रान्तों की हानि करनेवाला है, और प्राचीन काल से उस में बलवा मचता आया है। और इसी कारण वह नगर नष्ट भी किया गया था। 15O 4 16 हम राजा को निश्चय करा देते हैं कि यदि वह नगर बसाया जाए और उसकी शहरपनाह बन चुके, तब इसके कारण महानद के इस पार तेरा कोई भाग न रह जाएगा। 15O 4 17 तब राजा ने रहूम राजमंत्री और शिमशै मंत्री और शोमरोन और महानद के इस पार रहनेवाले उनके और सहचरियों के पास यह उत्तर भेजा, कुशल, इत्यादि। 15O 4 18 जो चिट्ठी तुम लोगों ने हमारे पास भेजी वह मेरे साम्हने पढ़ कर साफ साफ सुनाई गई। 15O 4 19 और मेरी आज्ञा से खोज किये जाने पर जान पड़ा है, कि वह नगर प्राचीनकाल से राजाओं के विरूद्ध सिर उठाता आया है और उसमें दंगा और बलवा होता आया है। 15O 4 20 यरूशलेम के सामथ राजा भी हुए जो महानद के पार से समस्त देश पर राज्य करते थे, और कर, चुंगी और राहदारी उनको दी जाती थी। 15O 4 21 इसलिये अब इस आज्ञा का प्रचार कर कि वे मनुष्य रोके जाएं और जब तक मेरी ओर से आज्ञा न मिले, तब तक वह नगर बनाया न जाए। 15O 4 22 और चौकस रहो, कि इस बात में ढीले न होना; राजाओं की हानि करनेवाली वह बुराई क्यों बढ़ने पाए? 15O 4 23 जब राजा अर्तश्रत्रा की यह चिट्ठी रहूम और शिमशै मंत्री और उनके सहचरियों को पढ़कर सुनाई गई, तब वे उतावली करके यरूशलेम को यहूदियों के पास गए और भुजबल और बरियाई से उनको रोक दिया। 15O 4 24 तब परमेश्वर के भवन का काम जो यरूशलेम में है, रूक गया; और फारस के राजा दारा के राज्य के दूसरे वर्ष तक रूका रहा। 15O 5 1 तब हाग्गै नामक नबी और इद्दॊ का पोता जकर्याह यहूदा और यरूशलेम के यहूदियों से नबूवत करने लगे, उन्हों ने इस्राएल के परमेश्वर के नाम से उन से नबूवत की। 15O 5 2 तब शालतीएल का पुत्रा जरूब्बाबेल और योसादाक का पुत्रा येशू, कमर बान्धकर परमेश्वर के भवन को जो यरूशलेम में है बनाने लगे; और परमेश्वर के वे नबी उनका साथ देते रहे। 15O 5 3 उसी समय महानद के इस पार का तत्तनै नाम अधिपति और शतब जनै अपने सहचरियों समेत उनके पास जाकर यों पूछने लगे, कि इस भवन के बनाने और इस शहरपनाह के खड़े करने की किस ने तुम को आज्ञा दी है? 15O 5 4 तब हम लोगों से यह कहा, कि इस भवन के बनानेवालों के क्या क्या नाम हैं? 15O 5 5 परन्तु यहूदियों के पुरनियों के परमेश्वर की दृष्टि उन पर रही, इसलिये जब तक इस बात की चर्चा दारा से न की गई और इसके विषय चिट्ठी के द्वारा उत्तर न मिला, तब तक उन्हों ने इनको न रोका। 15O 5 6 जो चिट्ठी महानद के इस पार के अधिपति तत्तनै और शतब जनै और महानद के इस पार के उनके सहचरी अपार्सकियों ने राजा दाना के पास भेजी उसकी नकल यह है; 15O 5 7 उन्हों ने उसको एक चिट्ठी लिखी, जिस में यह लिखा था : कि राजा दारा का कुशल क्षेम सब प्रकार से हो। 15O 5 8 राजा को विदित हो, कि हम लोग यहूदा नाम प्रान्त में महान परमेश्वर के भवन के पास गए थे, वह बड़े बड़े पत्थ्रों से बन रहा है, और उसकी भीतों में कड़ियां जुड़ रही हैं; और यह काम उन लोगों से फुत के साथ हो रहा है, और सुफल भी होता जाता है। 15O 5 9 इसलिये हम ने उन पुरनियों से यों पूछा, कि यह भवन बनवाने, और यह शहरपनाह खड़ी करने की आज्ञा किस ने तुम्हें दी? 15O 5 10 और हम ने उनके नाम भी पूछे, कि हम उनके मुख्य पुरूषों के नाम लिखकर तुझ को जता सकें। 15O 5 11 और उन्हों ने हमें यों उत्तर दिया, कि हम तो शकाश और पृथ्वी के परमेश्वर के दास हैं, और जिस भवन को बहुत वर्ष हुए इस्राएलियों के एक बड़े राजा ने बनाकर तैयार किया था, उसी को हम बना रहे हैं। 15O 5 12 जब हमारे पुरखाओं ने स्वर्ग के परमेश्वर को रिस दिलाई थी, तब उस ने उन्हें बाबेल के कसदी राजा नबूकदनेस्सर के हाथ में कर दिया था, और उस ने इस भवन को नाश किया और लोगों को बन्धुआ करके बाबेल को ले गया। 15O 5 13 परन्तु बाबेल के राजा कुस्रू के पहिले वर्ष में उसी कुस्रू राजा ने परमेश्वर के इस भवन के बनाने की आज्ञा दी 15O 5 14 और परमेश्वर के भवन के जो सोने और चान्दी के पात्रा नबूकदनेस्सर यरूशलेम के मन्दिर में से निकलवाकर बाबेल के मन्दिर में ले गया था, उनको राजा कुस्रू ने बाबेल के मन्दिर में से निकलवाकर शेशबस्सर नामक एक पुरूष को जिसे उस ने अधिपति ठहरा दिया था, सौंप दिया। 15O 5 15 और उस ने उससे कहा, ये पात्रा ले जाकर यरूशलेम के मन्दिर में रख, और परमेश्वर का वह भवन अपने स्थान पर बनाया जाए। 15O 5 16 तब उसी शेशबस्सर ने आकर परमेश्वर के भवन की जो यरूशलेम में है नेव डाली; और तब से अब तक यह बन रहा है, परन्तु अब तक नहीं बन पाया। 15O 5 17 अब यदि राजा को अच्छा लगे तो बाबेल के राजभणडार में इस बात की खोज की जाए, कि राजा कुस्रू ने सचमुच परमेश्वर के भवन के जो यरूशलेम में है बनवाने की आज्ञा दी थी, या नहीं। तब राजा इस विषय में अपनी इच्छा हम को बताए। 15O 6 1 तब राजा दारा की आज्ञा से बाबेल के पुस्तकालय में जहां खजाना भी रहता था, खोज की गई। 15O 6 2 और मादे नाम प्रान्त के अहमता नगर के राजगढ़ में एक पुस्तक मिली, जिस में यह वृत्तान्त लिखा था : 15O 6 3 कि राजा कुस्रू के पहिले वर्ष में उसी कुस्रू राजा ने यह आज्ञा दी, कि परमेश्वर के भवन के विष्य जो यरूशलेम में है, अर्थात् वह भवन जिस में बलिदान किए जाते थे, वह बनाया जाए और उसकी नेव दृढ़ता से डाली जाए, उसकी ऊंचाई और चौड़ाई साठ साठ हाथ की हों; 15O 6 4 उस में तीन र : भारी भारी पत्थ्रों के हों, और एक परत नई लकड़ी का हो; और इनकी लागत राजभवन में से दी जाए। 15O 6 5 और परमेश्वर के भवन के जो सोने ओर चान्दी के पात्रा नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम के मन्दिर में से निकलवाकर बाबेल को पहुंचा दिए थे वह लौटाकर यरूशलेम के मन्दिर में अपने अपने स्थान पर पहुंचाए जाएं, और तू उन्हें परमेश्वर के भवन में रख देना। 15O 6 6 अब हे महानद के पार के अधिपति तत्तनै ! हे शतब जनै ! तुम अपने सहचरी महानद के पार के अपार्सकियों समेत वहां से अलग रहो; 15O 6 7 परमेश्वर के उस भवन के काम को रहने दो; यहूदियों का अधिपति और यहूदियों के पुरनिये परमेश्वर के उस भवन को उसी के स्थान पर बनाएं। 15O 6 8 वरन मैं आज्ञा देता हूं कि तुम्हें यहूदियों के उन पुरनियों से ऐसा बर्ताव करना होगा, कि परमेश्वर का वह भवन बनाया जाए; अर्थात् राजा के धन में से, महानद के पार के कर में से, उन पुरूषों का फुत के साथ खर्चा दिया जाए; ऐसा न हो कि उनको रूकना पड़े। 15O 6 9 और क्या बछड़े ! क्या मेढ़े ! क्या मेम्ने ! स्वर्ग के परमेश्वर के होमबलियों के लिये जिस जिस वस्तु का उन्हें प्रयोजन हो, और जितना गेहूं, नमक, दाखमधु और तेल यरूशलेम के याजक कहें, वह सब उन्हें बिना भूल चूक प्रतिदिन दिया जाए, 15O 6 10 इसलिये कि वे स्वर्ग के परमेश्वर को सुखदायक सुगन्धवाले बलि चढ़ाकर, राजा और राजकुमारों के दीर्धायु के लिये प्रार्थना किया करें। 15O 6 11 फिर मैं ने आज्ञा दी है, कि जो कोई यह आज्ञा टाले, उसके घर में से कड़ी निकाली जाए, और उस पर वह स्वयं चढ़ाकर जकड़ा जाए, और उसका घर इस अपराध के कारण घूरा बनाया जाए। 15O 6 12 और परमेश्वर जिस ने वहां अपने नाम का निवास ठहराया है, वह क्या राजा क्या प्रजा, उन सभों को जो यह आज्ञा टालने और परमेश्वर के भवन को जो यरूशलेम में है नाश करने के लिये हाथ बढ़ाएं, नष्ट करें। मुझ दारा ने यह आज्ञा दी है फुत से ऐसा ही करना। 15O 6 13 तब महानद के इस पार के अधिपति तत्तनै और शतब जनै और उनके सहचरियों ने दारा राजा के चिट्ठी भेजने के कारण, उसी के अनुसार फुत से काम किया। 15O 6 14 तब यहूदी पुरनिये, हाग्गै नबी और इद्दॊ के पोते जकर्याह के नबूवत करने से मन्दिर को बनाते रहे, और कृतार्थ भी हुए। ओर इस्राएल के परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार और फारस के राजा कुस्रू, दारा और अर्तक्षत्रा की आज्ञाओं के अनुसार बनाते बनाते उसे पूरा कर लिया। 15O 6 15 इस प्रकार वह भवन राजा दारा के राज्य के छठवें वर्ष में अदार महीने के तीसरे दिन को बनकर समाप्त हुआ। 15O 6 16 इस्राएली, अर्थात् याजक लेवीय और और जितने बन्धुआई से आए थे उन्हों ने परमेश्वर के उस भवन की प्रतिष्ठा उत्सव के साथ की। 15O 6 17 और उस भवन की प्रतिष्ठा में उन्हों ने एक सौ बैल और दो सौ मेढ़े और चार सौ मेम्ने और फिर सब इस्राएल के निमित्त पापबलि करके इस्राएल के गोत्रों की गिनती के अनुसार बारह बकरे चढ़ाए। 15O 6 18 तब जैसे मूसा की पुस्तक में लिखा है, वैसे ही उन्हों ने परमेश्वर की आराधना के लिये जो यरूशलेम में है, बारी बारी से शजकों और दल दल के लेवियों को नियुक्त कर दिया। 15O 6 19 फिर पहिले महीने के चौदहवें दिन को बन्धुआई से आए हुए लोगों ने फसह माना। 15O 6 20 क्योंकि याजकों और लेवियों ने एक मन होकर, अपने अपने को शुठ्ठ किया था; इसलिये वे सब के सब शुठ्ठ थे। और उन्हों ने बन्धुआई से आए हुए सब लोगों और अपने भाई याजकों के लिये और अपने अपने लिये फसह के पशु बलि किए। 15O 6 21 तब बन्धुआई से लौटे हुए इस्राएली और जितने और देश की अन्य जातियों की अशुठ्ठता से इसलिये अलग हो गए थे कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की खोज करें, उन सभों ने भोजन किया। 15O 6 22 और अखमीरी रोटी का वर्व सात दिन तक आनन्द के साथ मनाते रहे; क्योंकि यहोवा ने उन्हें आनन्दित किया था, और अश्शूर के राजा का मन उनकी ओर ऐसा फेर दिया कि वह परमेश्वर अर्थात् इस्राएल के परमेश्वर के भवन के काम में उनकी सहायता करे। 15O 7 1 इन बातों के बाद अर्थात् फारस के राजा अर्तक्षत्रा के दिनों में, एज्रा बाबेल से यरूशलेम को गया। वह सरायाह का पुत्रा था। और सरायाह अजर्याह का पुत्रा था, अजर्याह हिल्किरयाह का, 15O 7 2 हिल्किरयाह शल्लूम का, शल्लूम सादोक का, शदोक 15O 7 3 अहीतूब का, अहीतूब अमर्याह का, अमर्याह अजर्याह का, अजर्याह मरायोत का, 15O 7 4 मरायोत जरह्माह का, जरह्माह उज्जी का, उज्जी बुक्की का, 15O 7 5 बुक्की अबीशू का, अबीशू पीनहास का, पीनहास एलीआज़र का और एलीआज़र हारून महायाजक का पुत्रा था। 15O 7 6 यही एज्रा मूसा की व्यवस्था के विष्य जिसे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने दी थी, निपुण शास्त्री था। और उसके परमेश्वर यहोवा की कृपादृष्टि जो उस पर रही, इसके कारण राजा ने उसका मुंह मांगा वर दे दिया। 15O 7 7 और कितने इस्राएली, और याजक लेवीय, गवैये, और द्वारपाल और नतीन के कुछ लोग अर्तक्षत्रा राजा के सातवें वर्ष में यरूशलेम को ले गए। 15O 7 8 और वह राजा के सातवें वर्ष के पांचवें महीने में यरूशलेम को पहुंचा। 15O 7 9 पहिले महीने के पहिले दिन को वह बाबेल से चल दिया, और उसके परमेश्वर की कृपादृष्टि उस पर रही, इस कारए पांचवें महीने के पहिले दिन वह यरूशलेम को पहुंचा। 15O 7 10 क्योंकि एज्रा ने यहोवा की व्यवस्था का अर्थ बूझ लेने, और उसके अनुसार चलने, और इस्राएल में विधि और नियम सिखाने के लिये अपना मन लगाया था। 15O 7 11 जो चिट्ठी राजा अर्तक्षख ने एज्रा याजक और शास्त्री को दी थी जो यहोवा की आज्ञाओं के वचनों का, और उसकी इस्राएलियों में चलाई हुई विधियों का शास्त्री था, उसकी तकल यह है; 15O 7 12 अर्थात्, एज्रा याजक जो स्वर्ग के परमेश्वर की व्यवस्था का पूर्ण शास्त्री है, उसको अर्तक्षत्रा महाराजाधिराज की ओर से, इत्यादि। 15O 7 13 मैं यह आज्ञा देता हूँ, कि मेरे राज्य में जितने इस्राएली और उनके याजक और लेवीय अपनी इच्छा से यरूशलेम जाना चाहें, वे तेरे साथ जाने पाएं। 15O 7 14 तू तो राजा और उसके सातों मंत्रियों की ओर से इसलिये भेजा जाता है, कि अपने परमेश्वर की व्यवस्था के विषय जो तेरे पास है, यहूदा और यरूशलेम की दशा बूझ ले, 15O 7 15 और जो चान्दी- सोना, राजा और उसके मत्रियों ने इस्राएल के परमेश्वर को जिसका निवास यरूशलेम में है, अपनी इच्छा से दिया है, 15O 7 16 और जितना चान्दी- सोना कुल बाबेल प्रान्त में तुझे मिलेगा, और जो कुछ लोग और याजक अपनी इच्छा से अपने परमेश्वर के भवन के लिये जो यरूशलेम में हैं देंगे, उसको ले जाए। 15O 7 17 इस कारण तू उस रूपये से फुत के साथ बैल, मेढ़े और मेम्ने उनके योग्य अन्नबलि और अर्ध की वस्तुओं समेत मोल लेना और उस वेदी पर चढ़ाना, जो तुम्हारे परमेश्वर के यरूशलेमवाले भवन में है। 15O 7 18 और जो चान्दी- सोना बचा रहे, उस से जो कुछ तुझे और तेरे भाइयों को उचित जान पड़े, वही अपने परमेश्वर की इच्छा के अनुसार करना। 15O 7 19 और तेरे परमेश्वर के भवन की उपासना के लिये जो पात्रा तुझे सौपे जातो हैं, उन्हें यरूशलेम के परमेश्वर के साम्हने दे देना। 15O 7 20 और इन से अधिक जो कुछ तुझे अपने परमेश्वर के भवन के लिये आवश्यक जानकर देना पड़े, वह राजखजाने में से दे देना। 15O 7 21 मैं अर्तक्षत्रा राजा यह आज्ञा देता हूँ, कि तुम महानद के पार के सब खजांचियों से जो कुछ बज्रा याजक, जो स्वर्ग के परमेश्वर की व्यवस्था का शास्त्री है, तुम लोगों से चाहे, वह फुत के साथ किया जाए। 15O 7 22 अर्थत् सौ किक्कार तक चान्दी, सौ कोर तक गेहूं, सौ बत तक दाखमधु, सौ बत तक तेल और नमक जितना चाहिये उतना दिया जाए। 15O 7 23 जो जो आज्ञा स्वर्ग के परमेश्वर की ओर से मिले, ठीक उसी के अनुसार स्वर्ग के परमेश्वर के भवन के लिये किया जाय, राजा और राजकुमारों के राज्य पर परमेश्वर का क्रोध क्यों भड़कने पाए। 15O 7 24 फिर हम तुम को चिता देते हैं, कि परमेश्वर के उस भवन के किसी याजक, लेवीय, गवैये, द्वारपाल, नतीन या और किसी सेवक से कर, चुंगी, अथवा राहदारी लेने की आज्ञा नहीं है। 15O 7 25 फिर हे एज्रा ! तेरे परमेश्वर से मिली हुई बुध्दि के अनुसार जो तुझ में है, न्यायियों और विचार करनेवालों को नियुक्त कर जो महानद के पार रहनेवाले उन सब लोगों में जो तेरे परमेश्वर की व्यवस्था जानते हों न्याय किया करें; और जो जो उन्हें न जानते हों, उनको तुम सिखाया करो। 15O 7 26 और जो कोई तेरे परमेश्वर की व्यवस्था और राजा की व्यवस्था न माने, उसको फुत से दणड दिया जाए, चाहे प्राणदणड, चाहे देशनिकाला, चाहे माल जप्त किया जाना, चाहे केद करना। 15O 7 27 धन्य है हमारे पितरों का परमेश्वर यहोवा, जिस ने ऐसी मनसा राजा के मन में उत्पन्न की है, कि यहोवा के यरूशलेम के भवन को संवारे, 15O 7 28 और मूझ पर राजा और उसके मंत्रियों और राजा के सब बड़े हाकिमों को दयालु किया। मेरे परमेश्वर यहोवा की कृपादृष्टि जो मुझ पर हुई, इसके अनुसार मॅं ने हियाव बान्धा, और इस्राएल में से मुख्य पुरूषों को इकट्ठा किया, कि वे मेरे संग चलें। 15O 8 1 उनके पूर्वजों के घरानों के मुख्य मुख्य पुरूष ये हैं, और जो लोग राजा अर्तक्षत्रा के राज्य में बाबेल से मेरे संग यरूशलेम को गए उनकी वंशावली यह है : 15O 8 2 अर्थात् पीनहास के वंश में से गेश म, ईतामार के वंश में से दानिरयेल, दाऊद के वंश में से हत्तूस। 15O 8 3 शकन्याह के वंश के परोश के गोत्रा में से जकर्याह, जिसके संग डेढ़ सौ पुरूषें की वंशावली हुई। 15O 8 4 पहत्मोआब के वंश में से जरह्माह का पुत्रा एल्यहोएनै, जिसके संग दो सौ पुरूष थे। 15O 8 5 शकन्याह के वंश में से यहजीएल का पुत्रा, जिसके संग तीन सौ पुरूष थे। 15O 8 6 आदीन के वंश में से योनातान का पुत्रा एबेद, जिसके संग पचास पुरूष थे। 15O 8 7 एलाम के वंश में से अतल्याह का पुत्रा यशायाह, जिसके संग सत्तर पुरूष थे। 15O 8 8 शपत्याह के वंश में से मीकाएल का पुत्रा जबद्याह, जिसके संग अस्सी पुरूष थे। 15O 8 9 योआब के वंश में से यहीएल का पुत्रा ओबद्याह, जिसके संग दो सौ अठारह पुरूष थे। 15O 8 10 शलोमीत के वंश में से योसिब्याह का पुत्रा, जिसके संग एक सौ साठ पुरूष थे। 15O 8 11 बेबै के वंश में से बेबै का पुत्रा जकर्याह, जिसके संग अट्ठाईस पुरूष थे। 15O 8 12 अजगाद के वंश में से हक्कातान का पुत्रा योहानान, जिसके संग एक सौ दस पुरूष थे। 15O 8 13 अदोनीकाम के वंश में से जो पीछे गएं उनके ये नाम हैं : अर्थात् एलीपेलेत, यीएल, और समायाह, और उनके संग साठ पुरूष थे। 15O 8 14 और बिगवै के वंश में से ऊतै और जब्बूद थे, और उनके संग सत्तर पुरूष थे। 15O 8 15 इनको मैं ने उस नदी के पास जो अहवा की ओर बहती है इकट्ठा कर लिया, और वहां हम लोग तीन दिन डेरे डाले रहे, और मैं ने वहां लोगों और याजकों को देख लिया परन्तु किसी लेवीय को न पाया। 15O 8 16 मैं ने एलीएजेर, अरीएल, शमायाह, एलनातान, यारीब, एलनातान, नातान, जकर्याह और मशूल्लाम को जो मुख्य पुरूष थे, और योयारीब और एलनातान को जो बुध्दिमान थे 15O 8 17 बुलवाकर, इद्दॊ के पास जो कासिप्या नाम स्थान का प्रधान था, भेज दिया; और उनको समझा दिया, कि कासिप्या स्थान में इद्दॊ और उसके भाई नतीन लोगों से क्या क्या कहना, कि वे हमारे पास हमारे परमेश्वर के भवन के लिये सेवा टहल करनेवालों को ले आएं। 15O 8 18 और हमारे परमेश्वर की कृपादृष्टि जो हम पर हुई इसके अनुसार वे हमारे पास ईश्शेकेल के जो इस्राएल के परपोता और लेवी के पोता महली के वंश में से था, और शेरेब्याह को, और उसके पुत्रों और भाइयों को, अर्थात् अठारह जनों को; 15O 8 19 और हशब्याह को, और उसके संग मरारी के वंश में से यशायाह को, और उसके पुत्रों और भाइयों को, अर्थात् बीस जनों को; 15O 8 20 और नतीन लोगों में से जिन्हें दाऊद और हाकिमों ने लेवियों की सेवा करने को ठहराया था दो सौ बीस नतिनों को ले आए। इन सभों के नाम लिखे हुए थे। 15O 8 21 तब मैं ने वहां अर्थात् अहवा नदी के तीर पर उपवास का प्रचार इस आशय से किया, कि हम परमेश्वर के साम्हने दीन हों; और उस से अपने और अपने बालबच्चों और अपनी समस्त सम्पत्ति के लिये सरल यात्रा मांगें। 15O 8 22 क्योंकि मैं मार्ग के शत्रुओं से वचने के लिये सिपाहियों का दल और सवार राजा से मांगने से लजाता थ, क्योंकि हम राजा से यह कह चुके थे कि हमारा परमेश्वर अपने सब खोजियों पर, भलाई के लिये कृपादृष्टि रखता है और जो उसे त्याग देते हैं, उसका बल और कोप उनके विरूद्ध है। 15O 8 23 इसी विषय पर हम ने उपवास करके अपने परमेश्वर से प्रार्थना की, और उस ने हमारी सुनी। 15O 8 24 तब मैं ने मुख्य याजकों में से बारह पुरूषों को, अर्थात् शेरेब्याह, हशब्याह और इनके दस भाइयों को अलग करके, जो चान्दी, सोना और पात्रा, 15O 8 25 राजा और उसके मंत्रियों और उसके हाकिमों और जितने इस्राएली अपस्थित थे उन्हों ने हमारे परमेश्वर के भवन के लिये भेंट दिए थे, उन्हों तौलकर उनको दिया। 15O 8 26 अर्थात् मैं ने उनके हाथ में साढ़े छे सौ किक्कार चान्दी, सौ किक्कार चान्दी के पात्रा, 15O 8 27 सौ किक्कार सोना, हाजार दर्कमोन के सोने के बीस कटोरे, और सोने सरीखे अनमोल चोखे चमकनेवाले पीतल के दो पात्रा लौलकर दे दिये। 15O 8 28 और मैं ने उन से कहा, तुम तो यहोवा के लिये पवित्रा हो, और ये पात्रा भी पवित्रा हैं; और यह चान्दी और सोना भेंट का है, जो तुम्हारे पितरों के परमेश्वर यहोवा के लिये प्रसन्नता से दी गई। 15O 8 29 इसलिये जागते रहो, और जब तक तुम इन्हें यरूशलेम में प्रधान याजकों और लेवियों और इस्राएल के पितरों के घरानों के प्रधानों के साम्हने यहोवा के भवन की कोठरियों में तौलकर न दो, तब तक इनकी रक्षा करते रहो। 15O 8 30 तब याजकों और लेवियों ने चान्दी, सोने और पात्रों को तौलकर ले लिया कि उन्हें यरूशलेम को हमारे परमेश्वर के भवन में पहुंचाएं। 15O 8 31 पहिले महीने के बारहवें दिन को हम ने अहवा नदी से कूच करके यरूशलेम का मार्ग लिया, और हमारे परमेश्वर की कृपादृष्टि हम पर रही; और उस ने हम को शत्रुओं और मार्ग पर घात लगानेवालों के हाथ से बचाया। 15O 8 32 निदान हम यरूशलेम को पहुंचे और वहां तीन दिन रहे। 15O 8 33 फिर चौथे दिन वह वान्दी- सोना और पात्रा हमारे परमेश्वर के भवन में ऊरीयाह के पुत्रा मरेमोत याजक के हाथ में तौलकर दिए गए। और उसके संग पीनहास का पुत्रा एलीआजर था, और उनके साथ येहाू का पुत्रा योजाबाद लेवीय और बिल्नूई का पुत्रा नोअद्याह लेवीय थे। 15O 8 34 वे सब वस्तुएं गिनी और तौली गई, और उनका तौल उसी समय लिखा गया। 15O 8 35 जो बन्धुआई से आए थे, उन्हों ने इस्राएल के परमेश्वर के लिये होमबलि चढ़ाए; अर्थात् समस्त इस्राएल के निमित्त बारह बछड़े, छियानवे मेढ़े और सतहत्तर मेम्ने और पापबलि के लिये बारह बकरे; यह सब यहोवा के लिये होमबलि था। 15O 8 36 तब उन्हों ने राजा की आज्ञाएं महानद के इस पार के अधिकारियों और अधिपतियों को दी; और उन्हों ने इस्राएली लोगों और परमेश्वर के भवन के काम में सहायता की। 15O 9 1 तब ये काम हो चुके, तब हाकिम मेरे पास आकर कहने लगे, न तो इस्राएली लोग, न याजक, न लेवीय इस ओर के देशों के लोगों से अलग हुए; वरन उनके से, अर्थात् कनानियों, हित्तियों, परिज्जियों, यबूसियों, अम्मोनियों, मोआबियों, मिस्रियों और एमोरियों के से घिनौने काम करते हैं। 15O 9 2 क्योंकि उन्हों ने उनकी बेटियों में से अपने और अपने बेटों के लिये स्त्रियां कर ली हैं; और पवित्रा वंश इस ओर के देशों के लोगों में मिल गया है। वरन हाकिम और सरदार इस विश्वासघात में मुख्य हुए हैं। 15O 9 3 यह बात सुनकर मैं ने अपने वस्त्रा और बागे को फाड़ा, और अपने सिर और दाढ़ी के बाल नोचे, और विस्मित होकर बैठा रहा। 15O 9 4 तब जितने लोग इस्राएल के परमेश्वर के वचन सुनकर बन्धुआई से आए हुए लोगों के विश्वासघात के कारण थरथराते थे, सब मेरे पास इकट्ठे हुए, और मैं सांझ की भेंट के समय तक विस्मित होकर बैठा रहा। 15O 9 5 परन्तु सांझ की भेंट के समय मैं वस्त्रा और बागा फाड़े हुए उपवास की दशा में उठा, फिर घुटनों के बल झुका, और अपने हाथ अपने परमेश्वर यहोवा की ओर फैलाकर कहा, 15O 9 6 हे मेरे परमेश्वर ! मुझे तेरी ओर अपना मुंह उठाते लाज आती है, और हे मेरे परमेश्वर ! मेरा मुंह काला है; क्योंकि हम लोगों के अधर्म के काम हमारे सिर पर बढ़ गए हैं, और हमारा दोष बढते आकाश तक पहुंचा है 15O 9 7 अपने पुरखाओं के दिनों से लेकर आज के दिन तक हम बड़े दोषी हैं, और अपने अधर्म के कामों के कारण हम अपने राजाओं और याजकों समेत देश देश के राजाओं के हाथ में किए गए कि तलवार, बन्धुआई, लूटे जाने, और मुंह काला हो जाने की विपत्तियों में पड़ें जैसे कि आज हमारी दशा है। 15O 9 8 और अब थोड़े दिन से हमारे परमेश्वर यहोवा का अनुग्रह हम पर हुआ है, कि हम में से कोई कोई बच निकले, और हम को उसके पवित्रा स्थान में एक खूंटी मिले, और हमारा परमेश्वर हमारी आंखों में जयोति आने दे, और दासत्व में हम को कुछ विश्रान्ति मिले। 15O 9 9 हम दास तो हैं ही, परन्तु हमारे दासत्व में हमारे परमेश्वर ने हम को नहीं छोड़ दिया, बरन फारस के राजाओं को हम पर ऐसे कृपालु किया, कि हम नया जीवन पाकर अपने परमेश्वर के भवन को उठाने, और इसके खंडहरों को सुधारने पाए, और हमें यहूदा और यरूशलेम में आड़ मिली। 15O 9 10 और अब हे हमारे परमेश्वर इसके बाद हम क्या कहें, यही कि हम ने तेरी उन आज्ञाओं को तोड़ दिया है, 15O 9 11 जो तू ने यह कहकर अपने दास नबियों के द्वारा दीं, कि जिस देश के अधिकारी होने को तुम जाने पर हो, वह तो देश देश के लोगों की अशुठ्ठता के कारण और उनके घिनौने कामों के कारण अशुठ्ठ देश है, अन्हों ने उसे एक सिवाने से दूसरे सिवाने तक अपनी अशुठ्ठता से भर दिया है। 15O 9 12 इसलिये अब तू न तो अपनी बेठियां उनके बेटों को ब्याह देना और न उनकी बेटियों से अपने बेटों का ब्याह करना, और न कभी उनका कुशल क्षेेम चाहना, इसलिये कि तुम बलवान बनो और उस देश के अच्छे अच्छे पदार्थ खाने पाओ, और उसे ऐसा छोड़ जाओ, कि वह तुम्हारे वंश के अधिकार में सदैव बना रहे। 15O 9 13 और उस सब के बाद जो हमारे बुरे कामों और बड़े दोष के कारण हम पर बीता है, जब कि हे हमारे परमेश्वर तू ने हमारे अधर्म के बराबर हमें दणड नहीं दिया, वरन हम में से कितनों को बचा रखा है, 15O 9 14 तो क्या हम तेरी आज्ञाओं को फिर से उल्लंघन करके इन घिनौने काम करनेवाले लोगों से समधियाना का सम्बन्ध करें? क्या तू हम पर यहां तक कोप न करेगा लिस से हम मिट जाएं और न तो कोई बचे और न कोई रह जाए? 15O 9 15 हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ! तू तो धम है, हम बचकर मुक्त हुए हैं जैसे कि आज वर्तमान हैं। देख, हम तेरे साम्हने दोषी हैं, इस कारण कोई तेरे साम्हने खड़ा नहीं रह सकता। 15O 10 1 जब एज्रा परमेश्वर के भवन के साम्हने पड़ा, रोता हुआ प्रार्थना और पाप का अंगीकार कर रहा था, तब इस्राएल में से पुरूषों, स्त्रियों और लड़केवालों की एक बहुत बड़ी मणडली उसके पास इकट्ठी हुई; और लोग बिलक बिलक कर रो रहे थे। 15O 10 2 तब यहीएल का पुत्रा शकन्याह जो एलाम के वुश में का था, एज्रा से कहने लगा, हम लोगों ने इस देश के लोगों में से अन्यजाति स्त्रियां ब्याह कर अपने परमेश्वर का विश्वासघात तो किया है, परन्तु इस दशा में भी इस्राएल के लिये आश है। 15O 10 3 अब हम अपने परमेश्वर से यह वाचा बान्धें, कि हम अपने प्रभुकी सम्मति और अपने परमेश्वर की आज्ञा सुनकर थरथरानेवालों की सम्मति के अनुसार ऐसी सब स्त्रियों को और उनके लड़केवालों को दूर करें; और व्यवस्था के अनुसार काम किया जाए। 15O 10 4 तू उठ, क्योंकि यह काम तेरा ही है, और हम तेरे साथ है; इसलिये हियाव बान्धकर इस काम में लग जा। 15O 10 5 तब एज्रा उठा, और याजकों, लेवियों और सब इस्राएलियों के प्रधानों को यह शपथ खिलाई कि हम इसी वचन के अनुसार करेंगे; और उन्हों ने वैसी ही शपथ खाई। 15O 10 6 तब बज्रा परमेश्वर के भवन के साम्हने से उठा, और एल्याशीब के पुत्रा योहानान की कोठरी में गया, और वहां पहुंचकर न तो रोटी खाई, न पानी पिया, क्योंकि वह बन्धुआई में से निकल आए हुओं के विश्वासघात के कारण शोक करता रहा। 15O 10 7 तब उन्हों ने यहूदा और यरूशलेम में रहनेवाले बन्धुआई में से आए हुए सब लोगों में यह प्रचार कराया, कि तुम यरूशलेम में इट्ठे हो; 15O 10 8 और जो कोई हाकिमों और पुरनियों की सम्मति न मानेगा और तीन दिन के भीतर न आए तो उसकी समस्त धन- सम्पत्ति नष्ट की जाएगी और वह आप बन्धुआई से आए हुओं की सभा से अलग किया जाएगा। 15O 10 9 तब यहूदा और बिन्यामीन के सब मनुष्य तीन दिन के भीतर यरूशलेम में इकट्ठे हुए; यह नौवें महीने के बीसवें दिन में हुआ; और सब लोग परमेश्वर के भवन के चौक में उस विषय के कारण और झड़ी के मारे कांपते हुए बैठे रहे। 15O 10 10 तब एज्रा याजक खड़ा होकर उन से कहने लगा, तुम लोगों ने विश्वासघात करके अन्यजाति- स्त्रियां ब्याह लीं, और इस से इस्राएल का दोष बढ़ गया है। 15O 10 11 सो अब अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा के साम्हने अपना पाप मान लो, और उसकी इच्छा पूरी करो, और इस देश के लोगों से और अन्यजातिस्त्रियों से न्यारे हो जाओ। 15O 10 12 तब पूरी मणडली के लोगों ने ऊंचे शब्द से कहा, जैसा तू ने कहा है, वैसा ही हमें करना उचित है। 15O 10 13 परन्तु लोग बहुत हैं, और झड़ी का समय है, और हम बाहर खड़े नहीं रह सकते, और यह दो एक दिन का काम नहीं है, क्योंकि हम ने इस बात में बड़ा अपराध किया है। 15O 10 14 समस्त मणडली की ओर से हमारे हाकिम नियुक्त किए जाएं; और जब तक हमारे परमेश्वर का भड़का हुआ कोप हम से दूर न हो, और यह काम निपट न जाए, तब तक हमारे नगरों के जितने निवासियों ने अन्यजाति- स्त्रियां ब्याह ली हों, वे नियत समयों पर आया करें, और उनके संग एक नगर के पुरनिये और न्यायी आएं। 15O 10 15 इसके विरूद्ध केवल असाहेल के पुत्रा योनातान और तिकवा के पुत्रा यहजयाह खड़े हुए, और मशुल्लाम और शब्बतै लेवियों ने उनकी सहायता की। 15O 10 16 परन्तु बन्धुआई से आए हुए लोगों ने वैसा ही किया। तब एज्रा याजक और पितरों के घरानों के कितने मुख्य पुरूष अपने अपने पितरों के घराने के अनुसार अपने सब नाम लिखाकर अलग किए गए, और दसवें महीने के पहिले दिन को इस बात की तहकीकात के लिये बैठे। 15O 10 17 और पहिले महीने के पहिले दिन तक उन्हों ने उन सब पुरूषों की बात निपटा दी, जिन्हों ने अन्यजाति- स्त्रियों को ब्याह लिया था। 15O 10 18 और याजकों की सन्तान में से; ये जन पाए गए जिन्हों ने अन्यजाति- स्त्रियों को ब्याह लिया था, अर्थात् येशू के पुत्रा, योसादाक के पुत्रा, और उसके भाई मासेयाह, एलीआज़र, यारीब और गदल्याह। 15O 10 19 इन्हों ने हाथ मारकर वचन दिया, कि हम अपनी स्त्रियों को निकाल देंगे, और उन्हों ने दोषी ठहरकर, अपने अपने दोष के कारण एक एक मेढ़ा बलि किया। 15O 10 20 और इम्मेर की सन्तान में से; हनानी और जबद्याह, 15O 10 21 और हारीम की सन्तान में से; मासेयाह, एलीयाह, शमायाह, यहीएल और उज्जियाह। 15O 10 22 और पशहूर की सन्तान में से; उल्योएनै, मासेयाह, इशमाएल, नतनेल, योजाबाद और एलासा। 15O 10 23 फिर लेवियों में से; योजाबाद, शिमी, केलायाह जो कलीता कहलाता है, पतह्माह, यहूदा और एलीआज़र। 15O 10 24 और गवैयों में से; एल्याशीव और द्वारपालों में से शल्लूम, तेलेम और ऊरी। 15O 10 25 और इस्राएल में से; परोश की सन्तान में रम्याह, यिज्जियाह, मल्कियाह, मियामीन, एलीआज़र, मल्कियाह और बनायाह। 15O 10 26 और एलाम की सन्तान में से; मत्तन्याह, जकर्याह, यहीएल अब्दी, यरेमोत और एलियाह। 15O 10 27 और जतू की सन्तान में से; एल्योएनै, एल्याशीब, सत्तन्याह, यरेमोत, जाबाद और अजीजा। 15O 10 28 और बेबै की सन्तान में से; यहोहानान, हनन्याह, जब्बै और अतलै। 15O 10 29 और बानी की सन्तान में से; मशुल्लाम, मल्लूक, अदायाह, याशूब, शाल और यरामोत। 15O 10 30 और पहतमोआब की सन्तान में से; अदना, कलाल, बनायाह, मासेयाह, मत्तन्याह, बसलेल, बिन्नूई और मनश्शे। 15O 10 31 और हारीम की सन्तान में से; एलीआज़र, यिश्शियाह, मल्कियाह, शमायाह, शिमोन; 15O 10 32 बिन्यामीन, मल्लूक और शमर्याह। 15O 10 33 और हाशूम की सन्तान में से; मत्तनै, मत्तत्ता, जाबाद, एलीपेलेत, यरेमै, मनश्शे और शिमी। 15O 10 34 और बानी की सन्तान में से; मादै, अम्राम, ऊएल; 15O 10 35 बनायाह, बेदयाह, कलूही; 15O 10 36 बन्याह, मरेमोत, एल्याशीब; 15O 10 37 मत्तन्याह, मत्तनै, यासू; 15O 10 38 वानी, विन्नूई, शिमी; 15O 10 39 शेलेम्याह, नातान, अदायाह; 15O 10 40 मक्नदबै, शाशै, शारै; 15O 10 41 अजरेल, शेलेम्याह, शेमर्याह; 15O 10 42 शल्लूम, अमर्याह और योसेफ। 15O 10 43 और नबो की सन्तान में से; यीएल, मत्तिन्याह, जाबाद, जबीना, यद्दॊ, योएल और बनायाह। 15O 10 44 इन सभों ने अन्यजाति- स्त्रियां ब्याह ली थीं, और कितनों की स्त्रियों से लड़के भी उत्पन्न हुए थे। 16O 1 1 हकल्याह के पुत्रा नहेमायाह के वचन। बीसवें वर्ष के किसलवे नाम महीने में, जब मैं शूशन नाम राजगढ़ में रहता था, 16O 1 2 तब हनानी नाम मेरा एक भाई और यहूदा से आए हुए कई एक पुरूष आए; तब मैं ने उन से उन बचे हुए यहूदियों के विषय जो बन्धुआई से छूट गए थे, और यरूशलेम के विष्य में पूछा। 16O 1 3 उन्हों ने मुझ से कहा, जो बचे हुए लोग बन्धुआई से छूटकर उस प्रान्त में रहते हैं, वे बड़ी दुर्दशा में पड़े हैं, और उनकी निन्दा होती है; क्योंकि यरूशलेम की शहरपनाह टूटी हुई, और उसके फाटक जले हुए हैं। 16O 1 4 ये बातें सुनते ही मैं बैठकर रोने लगा और कितने दिन तक विलाप करता; और स्वर्ग के परमेश्वर के सम्मुख उपवास करता और यह कहकर प्रार्थना करता रहा। 16O 1 5 हे स्वर्ग के परमेश्वर यहोवा, हे महान और भययोग्य ईश्वर ! तू जो अपने प्रेम रखनेवाले और आज्ञा माननेवाले के विष्य अपनी वाचा पालता और उन पर करूणा करता है; 16O 1 6 तू कान लगाए और आंखें खोले रह, कि जो प्रार्थना मैं तेरा दास इस समय तेरे दास इस्राएलियों के लिये दिन रात करता रहता हूँ, उसे तू सुन ले। मैं इस्राएलियों के पापों को जो हम लोगों ने तेरे विरूद्ध किए हैं, मान लेता हूँ। मैं और मेरे पिता के घराने दोनों ने पाप किया है। 16O 1 7 हम ने तेरे साम्हने बहुत बुराई की है, और जो आज्ञाएं, विधियां और नियम तू ने अपने दास मूसा को दिए थे, उनको हम ने नहीं माना। 16O 1 8 उस वचन की सुधि ले, जो तू ने अपने दास मूसा से कहा था, कि यदि तुम लोग विश्वासघात करो, तो मैं तुम को देश देश के लोगों में तितर बितर करूंगा। 16O 1 9 परन्तु यदि तुम मेरी ओर फिरो, और मेरी आज्ञाएं मानो, और उन पर चलो, तो चाहे तुम में से निकाले हुए लोग आकाश की छोर में भी हों, तौभी मैं उनको वहां से इकट्ठा करके उस स्थान में पहुंचाऊंगा, जिसे मैं ने अपने नाम के निवास के लिये चुन लिया है। 16O 1 10 अब वे तेरे दास और तेरी प्रजा के लोग हैं जिनको तू ने अपनी बड़ी सामर्थ और बलवन्त हाथ के द्वारा छुड़ा लिया है। 16O 1 11 हे प्रभु बिनती यह है, कि तू अपने दास की प्रार्थना पर, और अपने उन दासों की प्रार्थना पर, जो तेरे नाम का भय मानना चाहते हैं, कान लगा, और आज अपने दास का काम सुफल कर, और उस पुरूष को उस पर दयालु कर। (मैं तो राजा का पियाऊ था।) 16O 2 1 अर्तक्षत्रा राजा के बीसवें वर्ष के नीसान नाम महीने में, जब उसके साम्हने दाखमधु था, तब मैं ने दाखमधु उठाकर राजा को दिया। इस से पहिले मैं उसके साम्हने कभी उदास न हुआ था। 16O 2 2 तब राजा ने मुझ से पूछा, तू तो रेगी नहीं है, फिर तेरा मुंह क्यों उतरा है? यह तो मन ही की उदासी होगी। 16O 2 3 तब मैं अत्यन्त डर गया। और राजा से कहा, राजा सदा जीवित रहे ! जब वह नगर जिस में मेरे पुरखाओं की कबरें हैं, उजाड़ पड़ा है और उसके फाटक जले हुए हैं, तो मेरा मुंह क्यों न उतरे? 16O 2 4 राजा ने मुझ से पूछा, फिर तू क्या मांगता है? तब मैं ने स्वर्ग के परमेश्वर से प्रार्थना करके, राजा से कहा; 16O 2 5 यदि राजा को भाए, और तू अपने दास से प्रसन्न हो, तो मुझे यहूदा और मेरे पुरखाओं की कबरों के नगर को भेज, ताकि मैं उसे बनाऊं। 16O 2 6 तब राजा ने जिसके पास रानी भी बैठी थी, मुझ से पूछा, तू कितने दिन तक यात्रा में रहेगा? और कब लैटेगा? सो राजा मुझे भेजने को प्रसन्न हुआ; और मैं ने उसके लिये एक समय नियुक्त किया। 16O 2 7 फिर मैं ने राजा से कहा, यदि राजा को भाए, तो महानद के पार के अधिपतियों के लिये इस आशय की चिटि्ठयां मुझे दी जाएं कि जब तक मैं यहूदा को न महुंचूं, तब तक वे मुझे अपने अपने देश में से होकर जाने दें। 16O 2 8 और सरकारी जंगल के रखवाले आसाप के लिये भी इस आशय की चिट्ठी मुझे दी जाए ताकि वह मुझे भवन से लगे हुए राजगढ़ की कड़ियों के लिये, और शहरपनाह के, और उस घर के लिये, जिस में मैं जाकर रहूंगा, लकड़ी दे। मेरे परमेश्वर की कृपादृष्टि मुझ पर थी, इसलिये राजा ने यह बिनती ग्रहण किया। 16O 2 9 तब मैं ने महानद के पार के अधिपतियों के पास जाकर उन्हें राजा की चिटि्ठयां दीं। िााज ने मेरे संग सेनापति और सवार भी भेजे थे। 16O 2 10 यह सुनकर कि एक मनुष्य इस्राएलियों के कल्याण का उपाय करने को आया है, होरोनी सम्बल्लत और तोबियाह नाम कर्मचारी जो अम्मोनी था, उन दोनों को बहुत बुरा लगा। 16O 2 11 जब मैं यरूशलेम पहुंच गया, तब वहां तीन दिन रहा। 16O 2 12 तब मैं थोड़े पुरूषोें को लेकर रात को उठा; मैं ने किसी को नहीं बताया कि मेरे परमेश्वर ने यरूशलेम के हित के लिये मेरे मन में क्या उपजाया था। और अपनी सवारी के पशु को छोड़ कोई पशु मेरे संग न था। 16O 2 13 मैं रात को तराई के फाटक में होकर निकला और अजगर के सोते की ओर, और कूड़ाफाटक के पास गया, और यरूशलेम की टूटी पड़ी हुई शहरपनाह और जले फाटकों को देखा। 16O 2 14 तब मैं आगे बढ़कर सोते के फाटक और राजा के कुणड के पास गया; परन्तु मेरी सवारी के पशु के लिये आगे जाने को स्थान न था। 16O 2 15 तब मैं रात ही रात नाले से होकर शहरपनाह को देखता हुआ चढ़ गया; फिर घूमकर तीई के फाटक से भीतर आया, और इस प्रकार लौट आया। 16O 2 16 और हाकिम न जानते थे कि मैं कहां गया और क्या करता था; वरन मैं ने तब तक न तो यहूदियों को कुछ बताया था और न याजकों और न रईसों और न हाकिमों और न दूसरे काम करनेवालों को। 16O 2 17 तब मैं ने उन से कहा, तुम तो आप देखते हो कि हम कैसी दुर्दशा में हैं, कि यरूशलेम उजाड़ पड़ा है और उसके फाटक जले हुए हैं। तो आओ, हम यरूशलेम की शहरपनाह को बनाएं, कि भविष्य में हमारी नामधराई न रहे। 16O 2 18 फिर मैं ने उनको बतलाया, कि मेरे परमेश्वर की कृपादृष्टि मुझ पर कैसी हुई और राजा ने मुझ से क्या क्या बातें कही थीं। तब उन्हों ने कहा, आओ हम कमर बान्धकर बनाने लगें। और उन्हों ने इस भले काम को करने के लिये हियाव बान्ध लिया। 16O 2 19 यह सुनकर होरोनी सम्बल्लत और तोबियाह नाम कर्मचारी जो अम्मोनी था, और गेशेम नाम एक अरबी, हमेेें ठट्ठों में उड़ाने लगे; और हमें तुच्छ जानकर कहन लगे, यह तुम क्या काम करते हो। 16O 2 20 क्या तुम राजा के विरूद्ध बलवा करोगे? तब मैं ने उनको उत्तर देकर उन से कहा, स्वर्ग का परमेश्वर हमारा काम सुफल करेगा, इसलिये हम उसके दास कमर बान्धकर बनाएंगे; परन्तु यरूशलेम में तुम्हारा न तो कोई भाग, न हक्क, न स्मारक है। 16O 3 1 तब एल्याशीब महायाजक ने अपने भाई याजकों समेत कमर बान्धकर भेड़फाटक को बनाया। उन्हों ने उसकी प्रतिष्ठा की, और उसके पल्लों को भी लगाया; और हम्मेआ नाम गुम्मट तक वरन हननेल के गुम्मट के पास तक उन्हों ने शहरपनाह की प्रतिष्ठा की। 16O 3 2 उस से आगे यरीहो के मनुष्यों ने बनाया। और इन से आगे इम्री के पुत्रा जक्कूर ने बनाया । 16O 3 3 फिर मछलीफाटक को हस्सना के बेटों ने बनाया; उन्हों ने उसकी कड़ियां लगाई, और उसके पल्ले, ताले और बेंड़े लगाए। 16O 3 4 और उन से आगे मरेमोत ने जो हक्कोस का पोता और ऊरियाह का पुत्रा था, मरम्मत की। और इन से आगे मशुल्लाम ने जो मशेजबेल का पोता, और बरेक्याह का पुत्रा था, मरम्मत की। और इस से आगे बाना के पुत्रा सादोक ने मरम्मत की। 16O 3 5 और इन से आगे तकोइयों ने मरम्मत की; परन्तु उनके रईसों ने अपने प्रभु की सेवा का जूआ अपनी गर्दन पर न लिया। 16O 3 6 फिर पुराने फाटक की मरम्मत पासेह के पुत्रा योयादा और बसोदयाह के पुत्रा मशुल्लाम ने की; उन्हों ने उसकी कड़ियां लगाई, और उसके पल्ले, ताले और बेंड़े लगाए। 16O 3 7 और उन से आगे गिबोनी मलत्याह और मेरोनोती यादोन ने और गिबोन और मिस्पा के मनुष्यों ने महानद के पार के अधिपति के सिंहासन की ओर से मरम्मत की। 16O 3 8 उन से आगे हर्हयाह के पुत्रा उजीएल ने और और सुनारों ने मरम्मत की। और इस से आगे हनन्याह ने, जो गन्धियों के समाज का था, मरम्मत की; और उन्हों ने चौड़ी शहरपनाह तक यरूशलेम को दृढ़ किया। 16O 3 9 और उन से आगे हूर के पुत्रा रपायाह ने, जो यरूशलेम के आधे जिले का हाकिम था, मरम्मत की। 16O 3 10 और उन से आगे हरूमप के पुत्रा यदायाह ने अपने ही घर के साम्हने मरम्मत की; और इस से आगे हशब्नयाह के पुत्रा हत्तूश ने मरम्मत की। 16O 3 11 हारीम के पुत्रा मल्कियाह और पहत्तोआब के पुत्रा हश्शूब ने एक और भाग की, और भट्टों के गुम्मट की मरम्मत की। 16O 3 12 इस से आगे यरूशलेम के आधे जिले के हाकिम हल्लोहेश के पुत्रा शल्लूम ने अपनी बेटियों समेत मरम्मत की। 16O 3 13 तराई के फाटक की मरम्मत हानून और जानोह के निवासियों ने की; उन्हों ने उसको बनाया, और उसके ताले, बेंड़े और पल्ले लगाए, और हजार हाथ की शहरपनाह को भी अर्थात् कूड़ाफाटक तक बनाया। 16O 3 14 और कूड़ाफाटक की मरम्मत रेकाब के पुत्रा मल्कियाह ने की, जो बेथक्केरेम के जिले का हाकिम था; उसी ने उसको बनाया, और उसके ताले, बेंड़े और पल्ले लगाए। 16O 3 15 और सोताफाटक की मरम्मत कोल्होजे के पुत्रा शल्लूम ने की, जो मिस्पा के जिले का हाकिम था; उसी ने उसको बनाया और पाटा, और उसके ताले, बेंड़े और पल्ले लगाए; और उसी ने राजा की बारी के पास के शेलह नाम कुणड की शहरपनाह को भी दाऊदपुर से उतरनेवाली सीढ़ी तक बनाया। 16O 3 16 उसके बाद अज अजबूक के पुत्रा नहेमायाह ने जो बेतसूर के आधे जिले का हाकिम था, दाऊद के कब्रिस्तान के साम्हने तक और बनाए हुए पोखरे तक, वरन वीरों के घर तक भी मरम्मत की। 16O 3 17 इसके बाद बानी के पुत्रा रहूम ने कितने लेवियों समेत मरम्मत की। इस से आगे कीला के आधे जिले के हाकिम हशब्याह ने अपने जिले की ओर से मरम्मत की। 16O 3 18 उसके बाद उनके भाइयों समेत कीला के आधे जिले के हाकिम हेनादाद के पुत्रा बव्वै ने मरम्मत की। 16O 3 19 उस से आगे एक और भाग की मरम्मत जो शहरपनाह के मोड़ के पास शस्त्रों के घर की चढ़ाई के साम्हने है, येशु के पुत्रा एज़ेर ने की, जो मिस्पा का हाकिम था। 16O 3 20 फिर एक और भाग की अर्थात् उसी मोड़ से ले एल्याशीब महायाजक के घर के द्वार तक की मरम्मत जब्बै के पुत्रा बारूक ने तन मन से की। 16O 3 21 इसके बाद एक और भाग की अर्थात् एल्याशीब के घर के द्वार से ले उसी घर के सिरे तक की मरम्मत, मरेमोत ने की, जो हक्कोस का पोता और ऊरियाह का पुत्रा था। 16O 3 22 उसके बाद उन याजकों ने मरम्मत की जो तराई के मनुष्य थे। 16O 3 23 उनके बाद बिन्यामीन और हश्शूब ने अपने घर के साम्हने मरम्मत की; और इनके पीछे अजर्याह ने जो मासेयाह का पुत्रा और अनन्याह का पोता था अपने घर के पास मरम्मत की। 16O 3 24 तब एक और भाग की, अर्थात् अजर्याह के घर से लेकर शहरपनाह के मोड़ तक वरन उसके कोने तक की मरम्मत हेनादाद के पुत्रा बिन्नूई ने की। 16O 3 25 फिर उसी मोड़ के साम्हने जो ऊंचा गुम्मट राजभवन से बाहर निकला हुआ बन्दीगृह के आंगन के पास है, उसके साम्हने ऊजै के पुत्रा पालाल ने मरम्मत की। इसके बाद परोश के पुत्रा पदायाह ने मरम्मत की। 16O 3 26 नतीन लोग तो ओपेल में पूरब की ओर जलफाटक के साम्हने तक और बाहर निकले हुए गुम्मट तक रहते थे। 16O 3 27 पदायाह के बाद तकोइयों ने एक और भाग की मरम्मत की, जो बाहर तिकले हुए बड़े गुम्मट के साम्हने और ओबेल की शहरपनाह तक है। 16O 3 28 फिर घोड़ाफाटक के ऊपर याजकों ने अपने अपने घर के साम्हने मरम्मत की। 16O 3 29 इनके बाद इम्मेर के पुत्रा सादोक ने अपने घर के साम्हने मरम्मत की; और तब पूरवी फाटक के रखवाले शकन्याह के पुत्रा समयाह ने मरम्मत की। 16O 3 30 इसके बाद शेलेम्याह के पुत्रा हनन्याह और सालाप के छठवें पुत्रा हानून ने एक और भाग की मरम्मत की। तब बेरेक्याह के पुत्रा मशुल्लाम ने अपनी कोठरी के साम्हने मरम्मत की। 16O 3 31 उसके बाद मल्कियाह ने जो सुनार था नतिनों और व्यापारियों के स्थान तक ठहराए हुए स्थान के फाटक के साम्हने और कोने के कोठे तक मरम्मत की। 16O 3 32 और कोनेवाले कोठे से लेकर भेड़फाटक तक सुनारों और व्यापारियों ने मरम्मत की। 16O 4 1 जब सम्बल्लत ने सुना कि यहूदी लोग शहरपनाह को बना रहे हैं, तब उस ने बुरा माना, और बहुत रिसियाकर यहूदियों को ठट्ठों में उड़ाने लगा। 16O 4 2 वह अपने भाइयों के और शोमरोन की सेना के साम्हने यों कहने लगा, वे निर्बल यहूदी क्या किया चाहते हैं? क्या वे वह काम अपने बल से करेंगे? क्या वे अपना स्थान दृढ़ करेंगे? क्या वे यज्ञ करेंगे? क्या वे आज ही सब काम निपटा डालेंगे? क्या वे मिट्टीके ढेरों में के जले हुए पत्थ्रों को फिर नये सिरे से बनाएंगे? 16O 4 3 उसके पास तो अम्मोनी तोबियाह था, और वह कहने लगा, जो कुछ वे बना रहे हैं, यदि कोई गीदड़ भी उस पर चढ़े, तो वह उनकी बनाई हुई पत्थर की शहरपनाह को तोड़ देगा। 16O 4 4 हे हमारे परमेश्वर सुन ले, कि हमारा अपमान हो रहा है; और उनका किया हुआ अपमान उन्हीं के सिर पर लौटा दे, और उन्हें बन्धुआई के देश में लुटवा दे। 16O 4 5 और उनका अधर्म तू न ढांप, और न उनका पाप तेरे सम्मुख से मिटाया जाए; क्योंकि उन्हों ने तुझे शहरपनाह बनानेवालों के साम्हने क्रोध दिलाया है। 16O 4 6 और हम लोगों ने शहरपनाह को बनाया; और सारी शहरपनाह आधी ऊंचाई तक जुड़ गई। क्योंकि लोगों का मन उस काम में नित लगा रहा। 16O 4 7 जब सम्बल्लत और तोबियाह और अरबियों, अम्मोनियों और अशदोदियों ने सुना, कि यरूशलेम की शहरपनाह की मरम्मत होती जाती है, और उस में के नाके बन्द होने लगे हैं, तब उन्हों ने बहुत ही बुरा माना; 16O 4 8 और सभों ने एक मन से गोष्ठी की, कि जाकर यरूशलेम से लड़ें, और उस में गड़बड़ी डालें। 16O 4 9 परन्तु हम लोगों ने अपने परमेश्वर से प्रार्थना की, और उनके डर के मारे उनके विरूद्ध दिन रात के पहरूए ठहरा दिए। 16O 4 10 और यहूदी कहने लगे, ढोनेवालों का बल घट गया, और मिट्टी बहुत पड़ी है, इसलिये शहरपनाह हम से नहीं बन सकती। 16O 4 11 और हमारे शत्रु कहने लगे, कि जब तक हम उनके बीच में न महुंचे, और उन्हें घात करके वह काम बन्द न करें, तब तक उनको न कुछ मालूम होगा, और न कुछ दिखाई पड़ेगा। 16O 4 12 फिर जो यहूदी उनके आस पास रहते थे, उन्हों ने सब स्थानों से दस बार आ आकर, हम लोगों से कहा, तुम को हमारे पास लौट आना चाहिये। 16O 4 13 इस कारण मैं ने लोगों को तलवारें, बर्छियां और धनुष देकर शहरपनाह के पीछे सब से नीचे के खुले स्थानों में घराने घराने के अनुसार बैठा दिया। 16O 4 14 तब मैं देखकर उठा, और रईसों और हाकिमों और और सब लोगों से कहा, उन से मत डरो; प्रभु जो महान और भययोग्य है, उसी को स्मरण करके, अपने भाइयों, बेटों, बेटियों, स्त्रियों और घरों के लिये युठ्ठ करना। 16O 4 15 जब हमारे शत्रुओं ने सुना, कि यह बात हम को मालूम हो गई है और परमेश्वर ने उनकी युक्ति निष्फल की है, तब हम सब के सब शहरपनाह के पास अपने अपने काम पर लौट गए। 16O 4 16 और उस दिन से मेरे आधे सेवक तो उस काम मे लगे रहे और आधे बर्छियों, तलवारों, धनुषों और झिलमों को धारण किए रहते थे; और यहूदा के सारे धराने के पीछे हाकिम रहा करते थे। 16O 4 17 शहरपनाह के बनानेवाले और बोझ के ढोनेवाले दोनों भार उठाते थे, अर्थत् एक हाथ से काम करते थे और दूसरे हाथ से हथियार पकड़े रहते थे। 16O 4 18 और राज अपनी अपनी जांघ पर तलवार लटकाए हुए बनाते थे। और नरसिंगे का फूंकनेवाला मेरे पास रहता था। 16O 4 19 इसलिये मैं ने रईसों, हाकिमों और सब लोगों से कहा, काम तो बड़ा और फैला हुआ है, और हम लोग शहरपनाह पर अलग अलग एक दूसरे से दूर रहते हैं। 16O 4 20 इसलिये जिधर से नरसिंगा तुम्हें सुनाई दे, उधर ही हमारे पास इकट्ठे हो जाना। हमारा परमेश्वर हमारी ओर से लड़ेगा। 16O 4 21 यों हम काम में लगे रहे, और उन में आधे, पौ फटने से तारों के निकलने तक बर्छियां लिये रहते थे। 16O 4 22 फिर उसी समय मैं ने लोगों से यह भी कहा, कि एक एक मनुष्य अपने दास समेत यरूशलेम के भीतर रात बिताया करे, कि वे रात को तो हमारी रखवाली करें, और दिन को काम में लगे रहें। 16O 4 23 और न तो मैं अपने कपड़े उतारता था, और न मेरे भाई, न मेरे सेवक, न वे पहरूए जो मेरे अनुचर थे, अपने कपड़े उतारते थे; सब कोई पानी के पास हथियार लिये हुए जागते थे। 16O 5 1 तब लोग और उनकी स्त्रियों की ओर से उनके भाई यहूदियों के किरूठ्ठ बड़ी चिल्लाहट मची। 16O 5 2 कितने तो कहते थे, हम अपने बेटे- बेटियों समेत बहुत प्राणी हैं, इसलिये हमें अन्न मिलना चाहिये कि उसे खाकर जीवित रहें। 16O 5 3 और कितने कहते थे, कि हम अपने अपने खेतों, दाख की बारियों और घरों को महंगी के कारण बन्धक रखते हैं, कि हमें अन्न मिले। 16O 5 4 फिर कितने यह कहते थे, कि हम ने राजा के कर के लिये अपने अपने खेतों और दाख की बारियों पर रूपया उधार लिया। 16O 5 5 परन्तु हमारा और हमारे भाइयों का शरीर और हमारे और उनके लड़केबाले एक ही समान हैं, तौभी हम अपने बेटे- बेटियों को दास बनाते हैं; वरन हमारी कोई कोई बेटी दासी भी हो चुकी हैं; और हमारा कुछ बस नहीं जलता, क्योंकि हमारे खेत और दाख की बारियां औरों के हाथ पड़ी हैं। 16O 5 6 यह चिल्लाहट ओर ये बातें सुनकर मैं बहुत क्रोधित हुआ। 16O 5 7 तब अपने मन में सोच विचार करके मैं ने रईसों और हाकिमों को घुड़ककर कहा, तुम अपने अपने भाई से ब्याज लेते हो। तब मैं ने उनके विरूद्ध एक बड़ी सभा की। 16O 5 8 और मैं ने उन से कहा, हम लोगों ने तो अपनी शक्ति भर अपने यहूदी भाइयों को जो अन्यजातियों के हाथ बिक गए थे, दाम देकर छुड़ाया है, फिर क्या तुम अपने भाइयों को बेचोगे? क्या वे हमारे हाथ बिकेंगे? तब वे चुप रहे और कुछ न कह सके। 16O 5 9 फिर मैं कहता गया, जो काम तुम करते हो वह अच्छा नहीं है; क्या तुम को इस कारण हमारे परमेश्वर का भय मानकर चलना न चाहिये कि हमारे शत्रु जो अन्यजाति हैं, वे हमारी नामधराई न करें? 16O 5 10 मैं भी और मेरे भाई और सेवक उनको रूपया और अनाज उधार देते हैं, परन्तु हम इसका ब्याज छोड़ दें। 16O 5 11 आज ही अनको उनके खेत, और दाख, और जलपाई की बारियां, और घर फेर दो; और जो रूपया, अन्न, नया दाखमधु, और टटका तेल तुम उन से ले लेते हो, उसका सौवां भाग फेर दो? 16O 5 12 अन्हों ने कहा, हम उन्हें फेर देंगे, और उन से कुछ न लेंगे; जैसा तू कहता है, वैसा ही हम करेंगे। तब मैं ने याजकों को बुलाकर उन लोगों को यह शपथ खिलाई, कि वे इसी वचन के अनुसार करेंगे। 16O 5 13 फिर मैं ने अपने कपड़े की छोर झाड़कर कहा, इसी रीति से जो कोई इस वचन को पूरा न करे, उसको परमेश्वर झाड़कर, उसका घर और कमाई उस से छुड़ाए, और इसी रीति से वह झाड़ा जाए, और छूछा हो जाए। तब सारी सभा ने कहा, आमेन ! और यहोवा की स्तुति की। और लोगों ने इस वचन के अनुसार काम किया। 16O 5 14 फिर जब से मैं यहूदा देश में उनका अधिपति ठहराया गया, अर्थात् राजा अर्तक्षत्रा के बीसवें वर्ष से ले उसके बत्तीसवें वर्ष तक, अर्थात् बारह वर्ष तक मैं और मेरे भाई अधिपति के हक का भोजन खाते रहे। 16O 5 15 परन्तु पहिले अधिपति जो मुझ से आगे थे, वह प्रजा पर भार डालते थे, और उन से रोटी, और दाखमधु, और इस से अधिक चालीस शेकेल चान्दी लेते थे, वरन उनके सेवक भी प्रजा के ऊपर अधिकार जताते थे; परन्तु मैं ऐसा नहीं करता था, क्योंकि मैं यहोवा का भय मानता था। 16O 5 16 फिर मैं शहरपनाह के काम में लिपटा रहा, और हम लोगों ने कुछ भूमि मोल न ली; और मेरे सब सेवक काम करने के लिये वहां इकट्ठे रहते थे। 16O 5 17 फिर मेरी मेज पर खानेवाले एक सौ पचास यहूदी और हाकिम और वे भी थे, जो चारों ओर की अन्यजातियों में से हमारे पास आए थे। 16O 5 18 और जो प्रतिदिन के लिये तैयार किया जाता था वह एक बैल, छे अच्छी अच्छी भेड़ें व बकरियां थीं, और मेरे लिये चिड़ियें भी तैयार की जाती थीं; दस दस दिन के बाद भांति भांति का बहुत दाखमधु भी तैयार किया जाता था; परन्तु तौभी मैं ने अधिपति के हक का भोज नहीं लिया, 16O 5 19 क्योंकि काम का भार प्रजा पर भारी था। हे मेरे परमेश्वर ! जो कुछ मैं ने इस प्रजा के लिये किया है, उसे तू मेरे हित के लिये स्मरण रख। 16O 6 1 जब सम्बल्लत, तोबियाह और अरबी गेशेम और हमारे और शत्रुओं को यह समाचार मिला, कि मैं शहरपनाह को बनवा चुका; और यद्यपि उस समय तक भी मैं फाटकों में पल्ले न लगा चुका था, तौभी शहरपनाह में कोई दरार न रह गया था। 16O 6 2 तब सम्बल्लत और गेशेम ने मेरे पास यों कहला भेजा, कि आ, हम ओनो के मैदान के किसी गांव में एक दूसरे से भेंट करें। परन्तु वे मेरी हानि करने की इच्छा करते थे। 16O 6 3 परन्तु मैं ने उनके पास दूतों से कहला भेजा, कि मैं तो भारी काम में लगा हूँ, वहां नहीं जा सकता; मेरे इसे छोड़कर तुम्हारे पास जाने से वह काम क्यों बन्द रहे? 16O 6 4 फिर उन्हों ने चार बार मेरे पास वैसी ही बात कहला भेजी, और मैं ने उनको वैसा ही उत्तर दिया। 16O 6 5 तब पांचवी बार सम्बल्लत ने अपने सेवक को खुली हुई चिट्ठी देकर मेरे पास भेजा, 16O 6 6 जिस में यों लिखा था, कि जाति जाति के लोगों में यह कहा जाता है, और गेशेम भी यही बात कहता है, कि तुम्हारी और यहूदियों की मनसा बलवा करने की है, और इस कारण तू उस शहरपनाह को बनवाता है; और तू इन बातों के अनुसार उनका राजा बनना चाहता है। 16O 6 7 और तू ने यरूशलेम में नबी ठहराए हैं, जो यह कहकर तेरे विषय प्रचार करें, कि यहूदियों में एक राजा है। अब ऐसा ही समाचार राजा को दिया जाएगा। इसलिये अब आ, हम एक साथ सम्मति करें। 16O 6 8 तब मैं ने उसके पास कहला भेजा कि जैसा तू कहता है, वैसा तो कुछ भी नहीं हुआ, तू ये बातें अपने मन से गढ़ता है। 16O 6 9 वे सब लोग यह सोचकर हमें डराना चाहते थे, कि उनके हाथ ढीले पड़ें, और काम बन्द हो जाए। परन्तु अब हे परमेश्वर तू मुझे हियाव दे। 16O 6 10 और मैं शमायाह के घर में गया, जो दलायाह का पुत्रा और महेतबेल का पोता था, वह तो बन्द घर में था; उस ने कहा, आ, हम परमेश्वर के भवन अर्थात् मन्दिर के भीतर आपस में भेंट करें, और मन्दिर के द्वार बन्द करें; क्योंकि वे लोग तुझे घात करने आएंगे, रात ही को वे तुझे घात करने आएंगे। 16O 6 11 परन्तु मैं ने कहा, क्या मुझ ऐसा मनुष्य भागे? और तुझ ऐसा कौन है जो अपना प्राण बचाने को मन्दिर में घुसे? मैं नहीं जाने का। 16O 6 12 फिर मैं ने जान लिया कि वह परमेश्वर का भेजा नहीं है परन्तु उस ने हर बात ईश्वर का वचन कहकर मेरी हानि के लिये कही, क्योंकि तोबियाह और सम्बल्लत ने उसे रूपया दे रखा था। 16O 6 13 उन्हों ने उसे इस कारण रूपया दे रखा था कि मैं डर जाऊं, और वैसा ही काम करके पापी ठहरूं, और उनको अपवाद लगाने का अवसर मिले और वे मेरी नामधराई कर सकें। 16O 6 14 हे मेरे रपरमेश्वर ! तोबियाह, सम्बल्लत, और नोअद्याह, नबिया और और तितने नबी मुझे डराना चाहते थे, उन सब के ऐसे ऐसे कामों की सुधि रख। 16O 6 15 एलूल महीने के पचीसवें दिन को अर्थात् बावन दिन के भीतर शहरपनाह बन चुकी। 16O 6 16 जब हमारे सब शत्रुओं ने यह सुना, तब हमारे चारों ओर रहनेवाले सब अन्यजाति डर गए, और बहुत लज्जित हुए; क्योंकि उन्हों ने जान लिया कि यह काम हमारे परमेश्वर की ओर से हुआ। 16O 6 17 उन दिनों में भी यहूदी रईसों और तोबियाह के बीच चिट्ठ बहुत आया जाया करती थी। 16O 6 18 क्योंकि वह आरह के पुत्रा शकम्याह का दामाद था, और उसके पुत्रा यहोहानान ने बेरेक्याह के पुत्रा मशुल्लाम की बेटी की ब्याह लिया था; इस कारण बहुत से यहूदी उसका पक्ष करने की शपथ खाए हुए थे। 16O 6 19 और वे मेरे सुनते उसके भले कामों की चर्चा किया करते, और मेरी बातें भी उसको सुनाया करते थे। और तोबियाह मुझे डराने के लिये चिटि्ठयां भेजा करता था। 16O 7 1 जब शहरपनाह बन गई, और मैं ने उसके फाटक खड़े किए, और द्वारपाल, और गवैये, और लेवीय लोग ठहराये गए, 16O 7 2 तब मैं ने अपने भाई हनानी और राजगढ़ के हाकिम हनन्याह को यरूशलेम का अधिकारी ठहराया, क्योंकि यह सच्चा पुरूष और बहुतेरों से अधिक परमेश्वर का भय माननेवाला था। 16O 7 3 और मैं ने उन से कहा, जब तक घाम कड़ा न हो, तब तक यरूशलेम के फाटक न खोले जाएं और जब पहरूए पहरा देते रहें, तब ही फाटक बन्द किए जाएं और बेड़े लगाए जाएं। फिर यरूशलेम के निवासियों में से तू रखवाले ठहरा जो अपना अपना पहरा अपने अपने घर के साम्हने दिया करें। 16O 7 4 नगर तो लम्बा चौड़ा था, परन्तु उस में लोग थोड़े थे, और घर नहीं बने थे। 16O 7 5 तब मेरे परमेश्वर ने मेरे मन में यह उपजाया कि रईसों, हाकिमों और प्रजा के लोगों को इसलिये इकट्ठे करूं, कि वे अपनी अपनी वंशावली के अनुसार गिने जाएं। और मुझे पहिले पहिल यरूशलेम को आए हुओं का वंशावलीपत्रा मिला, और उस में मैं ने यों लिख हुआ पायो 16O 7 6 जिनको बाबेल का राजा, नबूकदनेस्सर बन्धुआ करके ले गया था, उन में से प्रान्त के जो लोग बन्धुआई से छूटकर, यरूशलेम और यहूदा के अपने अपने नगर को आए। 16O 7 7 वे जरूब्बाबेल, येशू, नहेमायाह, अजर्याह, राम्याह, नहमानी, मोर्दकै, बिलशान, मिस्पेरेत, विग्वै, नहूम और बाना के संग आए। 16O 7 8 इस्राएली प्रजा के लोगों की गिनती यह है : अर्थात् परोश की सन्तान दो हजार एक सौ बहत्तर, 16O 7 9 सपत्याह की सन्तान तीन सौ बहत्तर, आह की सन्तान छे सौ बावन। 16O 7 10 पहत्मोआब की सन्तान याने येशू और योआब की सन्तान, 16O 7 11 दो हजार आठ सौ अठारह। 16O 7 12 एलाम की सन्तान बारह सौ चौवन, 16O 7 13 जत्तू की सन्तान आठ सौ पैंतालीस। 16O 7 14 जवकै की सन्तान सात सौ साठ। 16O 7 15 बिन्नूई की सन्तान छेसौ अड़तालीस। 16O 7 16 बेबै की सन्तान छेसौ अट्ठाईस। 16O 7 17 अजगाद की सन्तान दो हजार तीन सौ बाईस। 16O 7 18 अदोनीकाम की सन्तान छेसौ सड़सठ। 16O 7 19 बिग्बै की सन्तान दो हजार सड़सठ। 16O 7 20 आदीन की सन्तान छेसौ पचपन। 16O 7 21 हिचकिरयाह की सन्तान आतेर के वंश में से अट्ठानवे। 16O 7 22 हाशम की सन्तान तीन सौ अट्ठाईस। 16O 7 23 बैसै की सन्तान तीन सौ चौबीस। 16O 7 24 हारीप की सन्तान एक सौ बारह। 16O 7 25 गिबोन के लोग पचानवे। 16O 7 26 बेतलेहेम और नतोपा के मनुष्य एक सौ अट्ठासी। 16O 7 27 अनातोत के मनुष्य एक सौ अट्ठाईस। 16O 7 28 बेेतजमावत के मनुष्य बयालीस। 16O 7 29 किर्यत्यारीम, कपीर, और बेरोत के मनुष्य सात सौ तैंतालीस। 16O 7 30 रामा और गेबा के मनुष्य छेसौ इक्कीस। 16O 7 31 मिकपास के मनुष्य एक सौ बाईस। 16O 7 32 बेतेल और ऐ के मनुष्य एक सौ तेईस। 16O 7 33 दूसरे नबो के मनुष्य बावन। 16O 7 34 दूसरे एलाम की सन्तान बारह सौ चौवन। 16O 7 35 हारीम की सन्तान तीन सौ बीस। 16O 7 36 यरीहो के लोग तीन सौ पैंतालीस। 16O 7 37 लोद हादीद और ओनों के लोग सात सौ इक्कीस। 16O 7 38 सना के लोग तीन हजार नौ सौ तीस। 16O 7 39 फिर याजक अर्थात् येशू के घराने में से यदायाह की सन्तान नौ सौ तिहत्तर। 16O 7 40 इम्मेर की सन्तान एक हजार बावन। 16O 7 41 पशहूर की सन्तान बारह सौ सैंतालीस। 16O 7 42 हारीम की सन्तान एक हजार सत्राह। 16O 7 43 फिर लेवीय ये थे अर्थात् होदवा के दंश में से कदमीएल की सन्तान येशू की सन्तान चौहत्तर। 16O 7 44 फिर गवैये ये थे अर्थात् आसाप की सन्तान एक सौ अड़तालीस। 16O 7 45 फिर द्वारपाल ये थे अर्थात् शल्लूम की सन्तान, आतेर की सन्तान, तल्मोन की सन्तान, अक्कूब की सन्तान, हतीता की सन्तान, और शोबै की सन्तान, जो सब मिलकर एक सौ अड़तीस हुए। 16O 7 46 फिर नतीन अर्थत् सीहा की सन्तान, हसूपा की सन्तान, तब्बाओत की सन्तान, 16O 7 47 केरोस की सन्तान, सीआ की सन्तान, पादोन की सन्तान, 16O 7 48 लबाना की सन्तान, हगावा की सन्तान, शल्मै की सन्तान। 16O 7 49 हानान की सन्तान, गि :ल की सन्तान, गहर की सन्तान, 16O 7 50 राया की सन्तान, रसीन की सन्तान, नकोदा की सन्तान, 16O 7 51 गज्जाम की सन्तान, उज्जा की सन्तान, पासेह की सन्तान, 16O 7 52 बेसै की सन्तान, मूनीम की सन्तान, नमूशस की सन्तान, 16O 7 53 बकबूक की सन्तान, हकूपा की सन्तान, हर्हूर की सन्तान, 16O 7 54 बसलीत की सन्तान, महीदा की सन्तान, हर्शा की सन्तान, 16O 7 55 बक स की सन्तान, सीसरा की सन्तान, तेमेह की सन्तान, 16O 7 56 नसीह की सन्तान, और हतीपा की सन्तान। 16O 7 57 फिर सुलैमान के दासों की सन्तान, अर्थात् सोतै की सन्तान, सोपेरेत की सन्तान, परीदा की सन्तान, 16O 7 58 याला की सन्तान, दक न की सन्तान, गि :ल की सन्तान, 16O 7 59 शपत्याह की सन्तान, हत्तील की सन्तान, पोकेरेत सवायीम की सन्तान, और आमोन की सन्तान। 16O 7 60 नतीन और सुलैमान के दासों की सन्तान मिलकर तीन सौ बानवे थे। 16O 7 61 और ये वे हैं, जो तेलमेलह, तेलहर्शा, करूब, अद्दॊन, और इम्मेर से यरूशलेम को गए, परन्तु अपने अपने पितरों के घराने और वंशावली न बता सके, कि इस्राएल के हैं, वा नहीं : 16O 7 62 अर्थात् दलायाह की सन्तान, तोबिरयाह की सन्तान, और दकोदा की सन्तान, जो सब मिलकर छे सौ बयालीस थे। 16O 7 63 और याजकों में से होबायाह की सन्तान, हक्कोस की सन्तान, और बर्जिल्लै की सन्तान, जिस ने गिलादी बर्जिल्लै की बेटियों में से एक को ब्याह लिया, और उन्हीं का नाम रख लिया था। 16O 7 64 इन्हों ने अपना अपना वंशावलीपत्रा और और वंशावलीपत्रों में दूंढ़ा, परन्तु न पाया, इसलिये वे अशुठ्ठ ठहरकर याजकपद से निकालेगए। 16O 7 65 और अधिपति ने उन से कहा, कि जब तक ऊरीम और तुम्मीम धारण करनेवाला कोई याजक न उठे, तब तक तुम कोई परमपवित्रा वस्तु खाने न पाओगे। 16O 7 66 पूरी मणडली के लोग मिलकर बयालीस हजार तीन सौ साठ ठहरे। 16O 7 67 इनको छोड़ उनके सात हजार तीन सौ सैंतीस दास- दासियां, और दो सौ पैंतालीस गानेवाले और गानेवालियां थीं। 16O 7 68 उनके घोड़े सात सौ छत्तीस, ख्च्चर दो सौ पैंतालीस, 16O 7 69 ऊंट चार सौ पैंतीस और गदहे छे हजार सात सौ बीस थे। 16O 7 70 और पितरों के घरानों के कई एक मुख्य पुरूषों ने काम के लिये दिया। अधिपति ने तो चन्दे में हजार दर्कमोन सोना, पचास कटोरे और पांच सौ तीस याजकों के अंगरखे दिए। 16O 7 71 और पितरों के घरानों के कई मुख्य मुख्य पुरूषों ने उस काम के चन्दे में बीस हजार दर्कमोन सोना और दो हजार दो सौ माने चान्दी दी। 16O 7 72 और शेष प्रजा ने जो दिया, वह बीस हजार दर्कमोन सोना, दो हजार माने चान्दी और सड़सठ याजकों के अंगरखे हुए। 16O 7 73 इस प्रकार याजक, लेवीय, द्वारपाल, गवैये, प्रजा के कुछ लोग और नतीन और सब इस्राएली अपने अपने नगर में बस गए। 16O 8 1 जब सातवां महीना निकट आया, उस समय सब इस्राएली अपने अपने नगर में थे। तब उन सब लोगों ने एक मन होकर, जलफाटक के साम्हने के चौक में इकट्ठे होकर, बज्रा शास्त्री से कहा, कि मूसा की जो व्यवस्था यहोवा ने इस्राएल को दी थी, उसकी पुस्तक ले आ। 16O 8 2 तब एज्रा याजक सातवें महीने के पहिले दिन को क्या स्त्री, क्या पुरूष, जितने सुनकर समझ सकते थे, उन सभों के साम्हने व्यवस्था को ले आया। 16O 8 3 और वह उसकी बातें भोर से दो पहर तक उस चौक के साम्हने जो जलफाटक के साम्हने था, क्या स्त्री, क्या पुरूष और सब समझने वालों को पढ़कर सुनाता रहा; और लोग व्यवस्था की पुस्तक पर कान लगाए रहे। 16O 8 4 एज्रा शास्त्री, काठ के एक मचान पर जो इसी काम के लिये बना था, ख्ड़ा हो गयां; और उसकी दाहिनी अलंग मत्तित्याह, शेमा, अनायाह, ऊरिरयाह, हिल्किरयाह और मासेयाह; और बाई अलंग, पदायाह, मीशाएल, मल्किरयाह, हाशूम, हश्बस्राना,जकर्याह और मशुल्लाम खड़े हुए। 16O 8 5 तब एज्रा ने जो सब लोगों से ऊंचे पर था, सभों के देखते उस पुस्तक को खोल दिया; और जब उस ने उसको खोला, तब सब लोग उठ खाड़े हुए। 16O 8 6 तब एज्रा ने महान परमेश्वर यहोवा को धन्य कहा; और सब लोगों ने अपने अपने हाथ उठाकर आमेन, आमेन, कहा; और सिर झुकाकर अपना अपना माथा भूमि पर टेक कर यहोवा को दणडवत किया। 16O 8 7 और येशू, बानी, शेरेब्याह, यामीन, अक्कूब, शब्बतै, होदिरयाह, मासेयाह, कलीता, अजर्याह, योजाबाद, हानान और पलायाह नाम लेवीय, लोगों को व्यवस्था समझाते गए, और लोग अपने अपने स्थान पर खड़े रहे। 16O 8 8 और उन्हों ने परमेश्वर की व्यवस्था की पुस्तक से पढ़कर अर्थ समझा दिया; और लोगों ने पाठ को समझ लिया। 16O 8 9 तब नहेमायाह जो अधिपति था, और एज्रा जो याजक और शास्त्री था, और जो लेवीय लोगों को समझा रहे थे, उन्हों ने सब लोगों से कहा, आज का दिन तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के लिये पवित्रा है; इसलिये विलाप न करो और न रोओ। क्योंकि सब लोग व्यवस्था के वचन सुनकर रोते रहे। 16O 8 10 फिर उस ने उन से कहा, कि जाकर चिकना चिकना भोजन करो और मीठा मीठा रस पियो, और जिनके लिये कुछ तैयार नहीं हुआ उनके पास बैना भेजो; क्योंकि आज का दिन हमारे प्रभु के लिये पवित्रा है; और उदास मत रहो, क्योंकि यहोवा का आनन्द तुम्हारा दृढ़ गढ़ है। 16O 8 11 यों लेवियों ने सब लोगों को यह कहकर चुप करा दिया, कि चुप रहो क्योंकि आज का दिन पवित्रा है; और उदास मत रहो। 16O 8 12 तब सब लोग खाने, पीने, बैना भेजने और बड़ा आनन्द मनाने को चले गए, क्योंकि जो वचन उनको समझाए गए थे, उन्हें वे समझ गए थे। 16O 8 13 और दूसरे दिन को भी समस्त प्रजा के पितरों के घराने के मुख्य मुख्य पुरूष और याजक और लेवीय लोग, एज्रा शास्त्री के पास व्यवस्था के वचन ध्यान से सुनने के लिये इकट्टे हुए। 16O 8 14 और उन्हें व्यवस्था में यह लिखा हुआ मिला, कि यहोवा ने मूसा से यह आज्ञा दिलाई थी, कि इस्राएली सातवें महीने के पर्व के समय झोपड़ियों में रहा करें, 16O 8 15 और अपने सब नगरों और यरूशलेम में यह सुनाया और प्रचार किया जाए, कि पहाड़ पर जाकर जलपाई, तैलवृक्ष, मेंहदी, खजूर और घने घने वृक्षों की डालियां ले आकर झोपड़ियां बनाओे, जैसे कि लिखा है। 16O 8 16 सो सब लोग बाहर जाकर डालियां ले आए, और अपने अपने घर की छत पर, और अपने आंगनों में, और परमेश्वर के भवन के आंगनों में, और जलफाटक के चौक में, और एप्रैम के फाटक के चौक में, झोंपड़ियां बना लीं। 16O 8 17 वरन सब मणडली के लोग जितने बन्धुआई से छूटकर लौट आए थे, झोंपड़ियां बना कर उन में टिके। नून के पुत्रा यहोशू के दिनों से लेकर उस दिन तक इस्राएलियों ने ऐसा नहीं किया था। और उस समय बहुत बड़ा आनन्द हुआ। 16O 8 18 फिर पहीले दिन से पिछले दिन तक एज्रा ने प्रतिदिन परमेश्वर की व्यवस्था की पुस्तक में से पढ़ पढ़कर सुनाया। यों वे सात दिन तक पर्व को मानते रहे, और साठवें दिन नियम के अनुसार महासभा हुई। 16O 9 1 फिर उसी महीने के चौबीसवें दिन को इस्राएली उपवास का टाट पहिने और सिर पर धूल डाले हुए, इकट्ठे हो गए। 16O 9 2 तब इस्राएल के वंश के लोग सब अन्यजाति लोगों से अलग हो गए, और खड़े होकर, अपने अपने पापों और अपने पुरखाओं के अधर्म के कामों को मान लिया। 16O 9 3 तब उन्हों ने अपने अपने स्थान पर खड़े होकर दिन के एक पहर तक अपने परमेश्वर यहोवा की व्यवस्था की पुस्तक पढ़ते, और एक और पहर अपने पापों को मानते, और अपने परमेश्वर यहोवा को दणडवत करते रहे। 16O 9 4 और येशू, बानी, कदमीएल, शबन्याह, बुन्नी, शेरेब्याह, बानी और कनानी ने लेवियों की सीढ़ी पर खड़े होकर ऊंचे स्वर से अपने परमेश्वर यहोवा की दोहाई दी। 16O 9 5 फिर येशू, कदमीएल, बानी, हशब्नयाह, शेरेब्याह, होदिरयाह, शबन्याह, और पतह्माह नाम लेवियों ने कहा, खड़े हो; अपने परमेश्वर यहोवा को अनादिकाल से अनन्तकाल तक धन्य कहो। तेरा महिमायुक्त नाम धन्य कहा जाए, जो सब धन्यवाद और स्तुति से परे है। 16O 9 6 तू ही अकेला यहोवा है; स्वर्ग वरन सब से ऊंचे स्वर्ग और उसके सब गण, और पृथ्वी और जो कुछ उस में है, और समुद्र और जो कुछ उस में है, सभों को तू ही ने बनाया, और सभों की रक्षा तू ही करता है; और स्वर्ग की समस्त सेना तुझी को दणडवत करती हैं। 16O 9 7 हे यहोवा ! तू वही परमेश्वर है, जो अब्राहाम को चुनकर कसदियों के ऊर नगर में से निकाल लाया, और उसका नाम इब्राहीम रखा; 16O 9 8 और उसके मन को अपने साथ सच्चा पाकर, उस से वाचा बान्धी, कि मैं तेरे वंश को कनानियों, हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, यबूसियों, और गिर्गाशियों का देश दूंगा; और तू ने अपना वह वचन पूरा भी किया, क्योंकि तू धम है। 16O 9 9 फिर तू ने मिस्र में हमारे पुरखाओं के दु:ख पर दृष्टि की; और लाल समुद्र के तट पर उनकी दोहाई सुनी। 16O 9 10 और फ़िरौन और उसके सब कर्मचारी वरन उसके देश के सब लोगों को दणड देने के लिये चिन्ह और चमत्कार दिखाए; क्योंकि तू जानता था कि वे उन से अभिमान करते हैं; और तू ने अपना ऐसा बड़ा नाम किया, जैसा आज तक वर्तमान है। 16O 9 11 और तू ने उनके आगे समुद्र को ऐसा दो भाग किया, कि वे समुद्र के बीच स्थल ही स्थल चलकर पार हो गए; और जो उनके पीछे पड़े थे, उनको तू ने गहिरे स्थानों में ऐसा डाल दिया, जैसा पत्थ्र महाजलराशि में डाला जाए। 16O 9 12 फिर तू ने दिन को बादल के खम्भे में होकर और रात को आग के खम्भे में होकर उनकी अगुआई की, कि जिस मार्ग पर उन्हें चलना था, उस में उनको उजियाला मिले। 16O 9 13 फिर तू ने सीनै पर्वत पर उतरकर आकाश में से उनके साथ बातें की, और उनको सीधे नियम, सच्ची व्यवस्था, और अच्छी विधियां, और आज्ञाएं दीं। 16O 9 14 और उन्हें अपने पवित्रा विश्राम दिन का ज्ञान दिया, और अपने दास मूसा के द्वारा आज्ञाएं और विधियां और व्यवस्था दीं। 16O 9 15 और उनकी भूख मिटाने को आकाश से उन्हें भोजन दिया और उनकी प्यास बुझाने को चट्टान में से उनके लिये पानी निकाला, और उन्हें आज्ञा दी कि जिस देश को तुम्हें देने की मैं ने शपथ खाई है उसके अधिकारी होने को तुम उस में जाओ। 16O 9 16 परन्तु उन्हों ने और हमारे पुरखाओं ने अभिमान किया, और हठीले बने और तेरी आज्ञाएं न मानी; 16O 9 17 और आज्ञा मनने से इनकार किया, और जो आश्चर्यकर्म तू ने उनके बीच किए थे, उनका स्मरण न किया, वरन हठ करके यहां तक बलवा करनेवाले बने, कि एक प्रधान ठहराया, कि अपने दासत्व की दशा में लौटे। परन्तु तू क्षमा करनेवाला अनुग्रहकारी और दयालु, विलम्ब से कोप करनेवाला, और अतिकरूणामय ईश्वर है, तू ने उनको न त्यागा। 16O 9 18 वरन जब दन्हों ने बछड़ा ढालकर कहा, कि तुम्हारा परमेश्वर जो तुम्हें मिस्र देश से छुड़ा लाया है, वह यही है, और तेरा बहुत तिरस्कार किया, 16O 9 19 तब भी तू जो अति दयालु है, उनको जंगल में न त्यागा; न तो दिन को अगुआई करनेवाला बादल का खम्भा उन पर से हटा, और न रात को उजियाला देनेवाला और उनका मार्ग दिखानेवाला आग का खम्भा। 16O 9 20 वरन तू ने उन्हें समझाने के लिये अपने आत्मा को जो भला है दिया, और अपना मान्ना उन्हें खिलाना न छोड़ा, और उनकी प्यास बुझाने को पानी देता रहा। 16O 9 21 चालीस वर्ष तक तू जंगल में उनका ऐसा पालन पोषण करता रहा, कि उनको कुछ घटी न हुई; न तो उनके वस्त्रा पुराने हुए और न उनके पांव में सूजन हुई। 16O 9 22 फिर तू ने राज्य राज्य और देश देश के लोगों को उनके वश में कर दिया, और दिशा दिशा में उनको बांट दिया; यों वे हेशबोन के राजा सीहोन और बाशान के राजा ओग दोनों के देशों के अधिकारी हो गए। 16O 9 23 फिर तू ने उनकी सन्तान को आकाश के तारों के समान बढ़ाकर उन्हें उस देश में पहुंचा दिया, जिसके विषय तू ने उनके पूर्वजों से कहा था; कि वे उस में जाकर उसके अधिकारी हो जाएंगे। 16O 9 24 सो यह सन्तान जाकर उसकी अधिकारिन हो गई, और तू ने उनके द्वारा देश के निवासी कनानियों को दबाया, और राजाओं और देश के लोगों समेत उनको, उनके हाथ में कर दिया, कि वे उन से जो चाहें सो करें। 16O 9 25 और उन्हों ने गढ़वाले नगर और उपजाऊ भूमि ले ली, और सब भांति की अच्छी वस्तुओं से भरे हुए घरों के, और खुदे हुए हौदों के, और दाख और जलपाई बारियों के, और खाने के फलवाले बहुत से वृक्षों के अधिकारी हो गए; वे उसे खा खाकर तृप्त हुए, और हृष्ट- पुष्ट हो गए, और तेरी बड़ी भलाई के कारण सुख भोगते रहे। 16O 9 26 परन्तु वे तुझ से फिरकर बलवा करनेवाले बन गए और तेरी व्यवस्था को त्याग दिया, और तेरे जो नबी तेरी ओर उन्हें फेरने के लिये उनको चिताते रहे उनको उन्हों ने घात किया, और तेरा बहुत तिरस्कार किया। 16O 9 27 इस कारण तू ने उनको उनके शत्रुओं के हाथ में कर दिया, और उन्हों ने उनको संकट में डाल दिया; तौभी जब जब वे संकट में पड़कर तेरी दोहाई देते रहे तब तब तू स्वर्ग से उनकी सुनता रहा; और तू जो अतिदयालु है, इसलिये उनके छुड़ानेवाले को भेजता रहा जो उनको शत्रुओं के हाथ से छुड़ाते थे। 16O 9 28 परन्तु जब जब उनको चैन मिला, तब तब वे फिर तेरे साम्हने बुराई करते थे, इस कारण तू उनको शत्रुओं के हाथ में कर देता था, और वे उन पर प्रभुता करते थे; तौभी जब वे फिरकर तेरी दोहाई देते, तब तू स्वर्ग से उनकी सुनता और तू जो दयालु है, इसलिये बार बार उनको छुड़ाता, 16O 9 29 और उनको जिताता था कि उनको फिर अपनी व्यवस्था के अधीन कर दे। परन्तु वे अभिमान करते रहे और तेरी आज्ञाएं नहीं मानते थे, और तेरे नियम, जिनको यदि मनुष्य माने, तो उनके कारण जीवित रहे, उनके विरूद्ध पाप करते, और हठ करके अपना कन्धा हटाते और न सुनते थे। 16O 9 30 तू तो बहुत वर्ष तक उनकी सहता रहा, और अपने आत्मा से नबियों के द्वारा उन्हें चिताता रहा, परन्तु वे कान नहीं लगाते थे, इसलिये तू ने उन्हें देश देश के लोगों के हाथ में कर दिया। 16O 9 31 तौभी तू ने जो अतिदयालु है, उनका अन्त नहीं कर डाला और न उनको त्याग दिया, क्योंकि तू अनुग्रहकारी और दयालु ईश्वर है। 16O 9 32 अब तो हे हमारे परमेश्वर ! हे महान पराक्रमी और भययोग्य ईश्वर ! जो अपनी वाचा पालता और करूणा करता रहा है, जो बड़ा कष्ट, अश्शूर के राजाओं के दिनों से ले आज के दिन तक हमें और हमारे राजाओं, हाकिमों, याजकों, नबियों, पुरखाओं, वरन तेरी समस्त प्रजा को भोगना पड़ा है, वह तेरी दृष्टि में थोड़ा न ठहरे। 16O 9 33 तौभी जो कुछ हम पर बीता है उसके विष्य तू तो धम है; तू ने तो सच्चाई से काम किया है, परन्तु हम ने दुष्टता की है। 16O 9 34 और हमारे राजाओं और हाकिमों, याजकों और पुरखाओं ने, न तो तेरी व्यवस्था को माना है और न तेरी आज्ञाओं और चितौनियों की ओर ध्यान दिया है जिन से तू ने उनको चिताया था। 16O 9 35 उन्हों ने अपने राज्य में, और उस बड़े कल्याण के समय जो तू ने उन्हें दिया था, और इस लम्बे चौड़े और उपजाऊ देश में तेरी सेवा नहीं की; और न अपने बुरे कामों से पश्चाताप किया। 16O 9 36 देख, हम आज कल दास हैं; जो देश तू ने हमारे पितरों को दिया था कि उसकी उत्तम उपज खाएं, इसी में हम दास हैं। 16O 9 37 इसकी उपज से उन राजाओं को जिन्हें तू ने हमारे पापों के कारण हमारे ऊपर ठहराया है, बहुत धन मिलता है; और वे हमारे शरीरों और हमारे पशुओं पर अपनी अपनी इच्छा के अनुसार प्रभुता जताते हैं, इसलिये हम बड़े संकट में पड़े हैं। 16O 9 38 इस सब के कारण, हम सच्चई के साथ वाचा बान्धते, और लिख भी देते हैं, और हमारे हाकिम, लेवीय और याजक उस पर छाप लगाते हैं। 16O 10 1 जिन्हों ने छाप लगाई वे ये हैं, अर्थात् हकल्याह का पुत्रा नहेमायाह जो अधिपति था, और सिदकिरयाह; 16O 10 2 मरायाह, अजर्याह, यिर्मयाह; 16O 10 3 पशहूर, अमर्याह, मल्किरयाह; 16O 10 4 हतूश, शबन्याह, मल्लूक; 16O 10 5 हारीम, मरेयोत, ओबद्याह; 16O 10 6 दानिरयेल, गिन्नतोन, बारूक; 16O 10 7 मशुल्लाम, अबिरयाह, मिरयामीन; 16O 10 8 माज्याह, बिलगै और शमायाह; ये ही तो याजक थे। 16O 10 9 और लेवी ये थे : आजन्याह का पुत्रा येशू, हेनादाद की सन्तान में से बिन्नई और कदमीएल; 16O 10 10 और उनके भाई शबन्याह, होदिरयाह, कलीता, पलायाह, हानान; 16O 10 11 मीका, रहोब, हशब्याह; 16O 10 12 जक्कूर, शेरेब्याह, शबन्याह। 16O 10 13 होदिरयाह, बानी और बनीन; 16O 10 14 फिर प्रजा के प्रधान ये थे : परोश, पहत्मोआब, एलाम, जत्तू, बानी; 16O 10 15 बुनी, अजगाद, बेबै; 16O 10 16 अदोनिरयाह, बिग्वै, आदीन; 16O 10 17 आतेर, हिजकिरयाह, मज्जूर; 16O 10 18 होदिरयाह, हाशूम, बेसै; 16O 10 19 हारीफ, अनातोत, नोबै; 16O 10 20 मग्पीआश, मशुल्लाम, हेजीर; 16O 10 21 मशेजबेल, सादोक, य ू; 16O 10 22 पलत्याह, हानान, अनायाह; 16O 10 23 होशे, हनन्याह, हश्शूब; 16O 10 24 हल्लोहेश, पिल्हा, शोबेक; 16O 10 25 रहूम, हशब्ना, माशेयाह; 16O 10 26 अहिरयाह, हानान, आनान; 16O 10 27 मल्लूक, हारीम और बाना। 16O 10 28 शेष लोग अर्थात् याजक, लेवीय, द्वारपाल, गवैये और नतीन लोग, निदान जितने परमेश्वर की व्यवस्था मानने के लिये देश देश के लोगों से अलग हुए थे, उन सभें ने अपनी स्त्रियों और उन बेटें- बेटियों समेत जो समझनेवाले थे, 16O 10 29 अपने भाई रईसों से मिलकर शपथ खाई, कि हम परमेश्वर की उस व्यवस्था पर चलेंगे जो उसके दास मूसा के द्वारा दी गई है, और अपने प्रभु यहोवा की सब आज्ञाएं, नियम और विधियां मानने में चौकसी करेंगे। 16O 10 30 और हम न तो अपनी बेटियां इस देश के लोगों को ब्याह देंगे, और न अपने बेटों के लिये उनकी बेटियां ब्याह लेंगे। 16O 10 31 और जब इस देश के लोग विश्रामदिन को अन्न वा और बिकाऊ वस्तुएं बेचने को ले आयेंगे तब हम उन से न तो विश्रामदिन को न किसी पवित्रा दिन को कुछ लेंगे; और सातवें वर्ष में भूमि पड़ी रहने देंगे, और अपने अपनेणि की वसूली छोड़ देंगे। 16O 10 32 फिर हम लोगों ने ऐसा नियम बान्ध लिया जिस से हम को अपने परमेश्वर के भवन की उपासना के लिये एक एक तिहाई शेकेल देना पड़ेगो 16O 10 33 अर्थात् भेंट की रोटी और नित्य अन्नबलि और नित्य होमबलि के लिये, और विश्रामदिनों और नये चान्द और नियत पब्ब के बलिदानों और और पवित्रा भेंटों और इस्राएल के प्रायश्चित्त के निमित्त पाप बलियों के लिये, निदान अपने परमेश्वर के भवन के सारे काम के लिये। 16O 10 34 फिर क्या याजक, क्या लेवीय, क्या साधारण लोग, हम सभों ने इस बात के ठहराने के लिये चिटि्ठयां डालीं, कि अपने पितरों के घरानों के अनुसार प्रति वर्ष में ठहराए हुए समयों पर लकड़ी की भेंट व्यवस्था में लिखी हुई बात के अनुसार हम अपने परमेश्वर यहोवा की वेदी पर जलाने के लिये अपने परमेश्वर के भवन में लाया करेंगे। 16O 10 35 और अपनी अपनी भूमि की पहिली उपज और सब भांति के वृक्षों के पहिले फल प्रति वर्ष यहोवा के भवन में ले आएंगे। 16O 10 36 और व्यवस्था में लिखी हुई बात के अनुसार, अपने अपने पहिलौठे बेटों और पशुओं, अर्थात् पहिलौठे बछड़ों और मेम्नों को अपने परमेश्वर के भवन में उन याजकों के पास लाया करेंगे, जो हमारे परमेश्वर के भवन में सेवा टहल करते हैं। 16O 10 37 और अपना पहिला गूंधा हुआ आटा, और उठाई हुई भेंटे, और सब प्रकार के वृक्षों के फल, और नया दाखमधु, और टटका तेल, अपने परमेश्वर के भवन की कोठरियों में याजकों के पास, और अपनी अपनी भूमि की उपज का दशमांश लेवियों के पास लाया करेंगे; क्योंकि वे लेवीय हैं, जो हमारी खेती के सब नगरों में दशमांश लेते हैं। 16O 10 38 और जब जब लेवीय दशमांश लें, तब तब उनके संग हारून की सन्तान का कोई याजक रहा करे; और लेवीय दशमांशों का दशमांश हमारे परमेश्वर के भवन की कोठरियों में अर्थात् भणडार में पहुंचाया करेंगे। 16O 10 39 क्योंकि जिन कोठरियों में पवित्रा स्थान के पात्रा और सेवा टहल करनेवाले याजक और द्वारपाल और गवैये रहते हैं, उन में इस्राएली और लेवीय, अनाज, नये दाखपधु, और टटके तेल की उठाई हुई भेंटे पहुंचाएंगे। निदान हम अपने परमेश्वर के भवन को न छोड़ेंगे। 16O 11 1 प्रजा के हाकिम तो यरूशलेम में रहते थे, और शेष लोगों ने यह ठहराने के लिये चिटि्ठयां डालीं, कि दस में से एक मनुष्य यरूशलेम में, जो पवित्रा नगर है, बस जाएं; और नौ मनुष्य और और नगरों में बसें। 16O 11 2 और जिन्हों ने अपनी ही इच्छा से यरूशलेम में वास करना चाहा उन सभों को लोगों ने आशिर्वाद दिया। 16O 11 3 उस प्रान्त के मुख्य मुख्य पुरूष जो यरूशलेम में रहते थे, वे ये हैं; (परन्तु यहूदा के नगरों में एक एक मनुष्य अपनी निज भूमि में रहता था; अर्थात् इस्राएली, याजक, लेवीय, नतीन और सुलैमान के दासों के सन्तान ) 16O 11 4 यरूशलेम में तो कुछ यहूदी और बिन्यामीनी रहते थे। यहूदियों में से तो येरेस के वंश का अतायाह जो अज्जिरयाह का पुत्रा था, यह जकर्याह का पुत्रा, यह अमर्याह का पुत्रा, यह शपत्याह का पुत्रा, यह महललेल का पुत्रा था। 16O 11 5 और मासेयाह जो बारूक का पुत्रा था, यह कोलहोजे का पुत्रा, यह हजायाह का पुत्रा, यह अदायाह का पुत्रा, यह योयारीब का पुत्रा, यह जकर्याह का पुत्रा, यह और यह शीलोई का पुत्रा था। 16O 11 6 पेरेस के वंश के जो यरूशलेम में रहते थे, वह सब मिलाकर चार सौ अड़सठ शूरवीर थे। 16O 11 7 और बिन्यामीनियों में से सल्लू जो मशुल्लाम का पुत्रा था, यह योएद का पुत्रा, यह पदायाह का पुत्रा था, यह कोलायाह का पुत्रा यह मासेयाह का पुत्रा, यह इतीएह का पुत्रा, यह यशायाह का पुत्रा था। 16O 11 8 और उसके बाद गब्यै सल्लै जिनके साथ नौ सौ अट्ठाईस पुरूष थे। 16O 11 9 इनका रखवाल जिक्री का पुत्रा योएल था, और हस्सनूआ का पुत्रा यहूदा नगर के प्रधान का नायब था। 16O 11 10 फिर याजकों में से योयारीब का पुत्रा यदायाह और याकीन। 16O 11 11 और सरायाह जो परमेश्वर के भवन का प्रधान और हिल्किरयाह का पुत्रा था, यह मशुल्लाम का पुत्रा, यह सादोक का पुत्रा, यह मरायोत का पुत्रा, यह अहीतूब का पुत्रा था। 16O 11 12 और इनके आठ सौ बाईस भाई जो उस भवन का काम करते थे; और अदायाह, जो यरोहाम का पुत्रा था, यह पलल्याह का वुत्रा, यह अम्सी का पुत्रा, यह जकर्याह का पुत्रा, यह पशहूर का पुत्रा, यह मल्किरयाह का पुत्रा था। 16O 11 13 और इसके दो सौ बयालीस भाई जो पितरों के घरानों के प्रधान थे; और अमशै जो अजरेल का पुत्रा था, यह अहजै का पुत्रा, यह मशिल्लेमोत का पुत्रा, यह इम्मेर का पुत्रा था। 16O 11 14 और इनके एक सौ अट्ठाईस शूरवीर भाई थे और इनका रखवाल हग्गदोलीम का पुत्रा जब्दीएल था। 16O 11 15 फिर लेवियों में से शमायाह जो हश्शूब का पुत्रा था, यह अज्रीकाम का पुत्रा, यह हुशब्याह का पुत्रा, यह बुन्नी का पुत्रा था। 16O 11 16 ओर शब्बत और योजाबाद मुख्य लेवियों में से परमेश्वर के भवन के बाहरी काम पर ठहरे थे। 16O 11 17 और मत्तन्याह जो मीका का पुत्रा और जब्दी का पोता, और आसाप का परपोता था; वह प्रार्थना में धन्यवाद करनेवालों का मुखिया था, और बकबुक्याह अपने भाइयों में दूसरा पद रखता था; और अब्दा जो शम्मू का पुत्रा, और गालाल का पोता, और यदूतून का परपोता था। 16O 11 18 जो लेवीय पवित्रा नगर में रहते थे, वह सब मिलाकर दो सौ चौरासी थे। 16O 11 19 और अक्कूब और तल्मोन नाम द्वारपाल और उनके भाई जो फाटकों के रखवाले थे, एक सौ बहत्तर थे। 16O 11 20 और शेष इस्राएली याजक और लेवीय, यहूदा के सब नगरों में अपने अपने भाग पर रहते थे। 16O 11 21 और नतीन लोग ओपेल में रहते; और नतिनों के ऊपर सीहा, और गिश्पा ठहराए गए थे। 16O 11 22 और जो लेवीय यरूशलेम में रहकर परमेश्वर के भवन के काम में लगे रहते थे, उनका मुखिया आसाप के वंश के गवैयों में का उज्जी था, जो बानी का पुत्रा था, यह हशब्याह का पुत्रा, यह मत्तन्याह का पुत्रा और यह हशब्याह का पुत्रा था। 16O 11 23 क्योंकि उनके विषय राजा की आज्ञा थी, और गवैयों के प्रतिदिन के प्रयोजन के अनुसार ठीक प्रबन्ध था। 16O 11 24 और प्रजा के सब काम के लिये मशेजबेल का पुत्रा पतह्माह जो यहूदा के पुत्रा जेरह के वंश में था, वह राजा के पास रहता था। 16O 11 25 बच गए गांव और उनके खेत, सो कुछ यहूदी किर्यतर्बा, और उनके गांव में, कुछ दीबोन, और उसके गांवों में, कुछ यकब्सेल और उसके गांवों में रहते थे। 16O 11 26 फिर येशू, मोलादा, बेत्पेलेत; 16O 11 27 हमर्शूआल, और बेर्शेबा और और उसके गांवों में; 16O 11 28 और सिकलग और मकोना और उनके गांवों में; 16O 11 29 एन्निम्मोन, सोरा, यर्मूत, 16O 11 30 जानोह और अदूल्लाम और उनके गांवों में, लाकीश, और उसके खेतों में अजेका, और उसके गांवों में वे बेर्शेबा से ले हिन्नोम की तराई तक डेरे डाले हुए रहते थे। 16O 11 31 और बिन्यामीनी गेबा से लेकर मिकमश, अरया और बेतेल और उसके गांवों में; 16O 11 32 अनातोत, नोब, अनन्याह, 16O 11 33 हासोर, रामा, गित्तैम, 16O 11 34 हादीद, सबोईम, नबल्लत, 16O 11 35 लोद, ओनो और कारीगरों की तराई तक रहते थे। 16O 11 36 और कितने लेवियों के दल यहूदा और बिन्यामीन के प्रान्तों में बस गए। 16O 12 1 जो याजक और लेवीय शालतीएल के पुत्रा जरूब्बाबेल और येशू के संग यरूशलेम को गए थे, वे ये थे : अर्थात् सरायाह, यिर्मयाह, एज्रा, 16O 12 2 अमर्याह, मल्लूक, हत्तूश, 16O 12 3 शकन्याह, रहूम, मरेमोत, 16O 12 4 इद्दॊ, गिन्नतोई, अबिरयाह, 16O 12 5 मीरयामीन, माद्याह, बिलगा, 16O 12 6 शमायाह, योआरीब, यदायाह, 16O 12 7 सल्लू, आमोक, हिल्किरयाह और यदायाह। येशू के दिनों में याजकों और उनके भाइयों के मुख्य मुख्य पुरूष, ये ही थे। 16O 12 8 फिर ये लेवीय गए : अर्थात् येशू, बिन्नूई, कदमीएल, शेरेब्याह, यहूदा और वह मत्तन्याह जो अपने भाइयों समेत धन्यवाद के काम पर ठहराया गया था। 16O 12 9 और उनके भाई बकबुक्याह और उन्नो उनके साम्हने अपनी अपनी सेवकाई में लगे रहते थे। 16O 12 10 और येशू से योयाकीम उत्पन्न हुआ और योयाकीम से एल्याशीब और एल्याशीब से योयादा, 16O 12 11 और योयादा से योनातान और योनातान से य उत्पन्न हुआ। 16O 12 12 और योयाकीम के दिनों में ये याजक अपने अपने पितरों के घराने के मुख्य पुरूष थे, अर्थात् शरायाह का तो मरायाह; यिर्मयाह का हनन्याह। 16O 12 13 एज्रा का मशुल्लाम; अमर्याह का यहोहानान। 16O 12 14 मल्लूकी का योनातान; शबन्याह का योसेप। 16O 12 15 हारीम का अदना; मरायोत का हेलकै। 16O 12 16 इद्दॊ का जकर्याह; गिन्नतोन का मशुल्लाम। 16O 12 17 अबिरयाह का जिक्री; मिन्यामीन के मोअद्याह का पिलतै। 16O 12 18 बिलगा का शम्मू; शामायह का यहोनातान। 16O 12 19 योयारीब का मत्तनै; यदायाह का उज्जी। 16O 12 20 सल्लै का कल्लै; आमोक का एबेर। 16O 12 21 हिल्किरयाह का हशब्याह; और यदायाह का नतनेल। 16O 12 22 एल्याशीब, योयादा, योहानान और य के दिनों में लेवीय पितरों के घरानों के मुख्य पुरूषों के नाम लिखे जाते थे, और दारा फारसी के राज्य में याजकों के भी नाम लिखे जाते थे। 16O 12 23 जो लेवीय पितरों के घरानों के मुख्य पुरूष थे, उनके नाम एल्याशीब के पुत्रा योहानान के दिनों तक इतिहास की पुस्तक में लिखे जाते थे। 16O 12 24 और लेवियों के मुख्य पुरूष ये थे : अर्थात् हसब्याह, शेरेब्याह और कदमीएल का पुत्रा येशू; और उनके साम्हने उनके भाई परमेश्वर के भक्त दाऊद की आज्ञा के अनुसार आम्हने- साम्हने स्तुति और धन्यवाद करने पर नियुक्त थे। 16O 12 25 मत्तन्याह, बकबुक्याह, ओबद्याह, मशुल्लाम, तल्मोन और अक्कूब फाटकों के पास के भणडारों का पहरा देनेवाले द्वारपाल थे। 16O 12 26 योयाकीम के दिनों में जो योसादाक का पोता और येशू का पुत्रा था, और नहेमायाह अधिपति और एज्रा याजक और शास्त्री के दिनों में ये ही थे। 16O 12 27 और यरूशलेम की शहरपनाह की प्रतिष्ठा के समय लेवीय अपने सब स्थानों में ढूंढ़े गए, कि यरूशलेम को पहुंचाए जाएं, जिस से आनन्द और धन्यवाद करके और झांझ, सारंगी और वीणा बजाकर, और गाकर उसकी प्रतिष्ठा करें। 16O 12 28 तो गवैयों के सन्तान यरूशलेम के चारों ओर के देश से और नतोपातियों के गांवों से, 16O 12 29 और बेतगिलगाल से, और गेबा और अज्माबेत के खेतों से इकट्ठे हुए; क्योंकि गवैयों ने यरूशलेम के आस- पास गांव बसा लिये थे। 16O 12 30 तब याहकों और लेवियों ने अपने अपने को शुठ्ठ किया; और उन्हों ने प्रजा को, और फाटकों और शहरपनाह को भी शुठ्ठ किया। 16O 12 31 तब मैं ने यहूदी हाकिमों को शहरपनाह पर चढ़ाकर दो बड़े दल ठहराए, जो धन्यवाद करते हुए धूमधाम के साथ चलते थे। इनमें से एक दल तो दक्खिन ओर, अर्थात् कूड़ाफाटक की ओर शहरपनाह के ऊपर ऊपर से चला; 16O 12 32 और उसके पीछे पीछे ये चले, अर्थात् होशयाह और यहूदा के आधे हाकिम, 16O 12 33 और अजर्याह, एज्रा, मशुल्लाम, 16O 12 34 यहूदा, बिन्यामीन, शमायाह, और यिर्मयाह, 16O 12 35 और याजकों के कितने पुत्रा तुरहियां लिये हुए : अर्थात् जकर्याह जो योहानान का पुत्रा था, यह शमायाह का पुत्रा, यह मत्तन्याह का पुत्रा, यह मीकायाह का पुत्रा, यह जक्कूर का पुत्रा, यह आसाप का पुत्रा था। 16O 12 36 और उसके भाई शमायाह, अजरेल, मिललै, गिललै, माऐ, नतनेल, यहूदा और हनानी परमेश्वर के भक्त दाऊद के बाजे लिये हुए थे; और उनके आगे आगे एज्रा शास्त्री चला। 16O 12 37 ये सेताफाटक से हो सीधे दाऊदपुर की सीढ़ी पर चढ़, शहरपनाह की ऊंचाई पर से चलकर, दाऊद के भवन के ऊपर से होकर, पूरब की ओर जलफाटक तक पहुंचे। 16O 12 38 और धन्यवाद करने और धूमधाम से चलनेवालों का दूसरा दल, और उनके पीछे पीछे मैं, और आधे लोग उन से मिलने को शहरपनाह के ऊपर ऊपर से भट्ठों के गुम्मट के पास से चौड़ी शहरपनाह तक। 16O 12 39 और एप्रैम के फाटक और पुराने फाटक, और मछलीफाटक, और हननेल के गुम्मट, और हम्मेआ नाम गुम्मट के पास से होकर भेड़ फाटक तक चले, और पहरूओं के फाटक के पास खड़े हो गए। 16O 12 40 तब धन्यवाद करने वालों के दोनों दल और मैं और मेरे साथ आधे हाकिम परमेश्वर के भवन में खड़े हो गए। 16O 12 41 और एल्याकीम, मासेयाह, मिन्यामीन, मीकायाह, एल्योएनै, जकर्याह और हनन्याह नाम याजक तुरहियां लिये हुए थे। 16O 12 42 और मासेयाह, शमायाह, एलीआजर, उज्जी, यहोहानान, मल्किरयाह, एलाम, ओर एजेर (खड़े हुए थे) और गवैये जिनका मुखिया यिज्रह्माह था, वह ऊंचे स्वर से गाते बजाते रहे। 16O 12 43 उसी दिन लोगों ने बड़े बड़े मेलबलि चढ़ाए, और आनन्द लिया; क्योंकि परमेश्वर ने उनको बहुत ही आनन्दित किया था; स्त्रियों ने और बालबच्चों ने भी आनन्द किया। और यरूशलेम के आनन्द की ध्वनि दूर दूर तक फैल गई। 16O 12 44 उसी दिन खज़ानों के, उठाई हुई भेंटों के, पहिली पहिली उपज के, और दशमांशों की कोठरियों के अधिकारी ठहराए गए, कि उन में नगर नगर के खेतों के अनुसार उन वस्तुओं को जमा करें, जो व्यवस्था के अनुसार याजकों और लेवियों के भाग में की थी; क्योंकि यहूदी उपस्थ्ति याजकों और लेवियों के कारण आनन्दित थे। 16O 12 45 इसलिये वे अपने परमेश्वर के काम और शुठ्ठता के विषय चौकसी करते रहे; और गवैये ओर द्वारपाल भी दाऊद और उसके पुत्रा सुलैमान की आज्ञा के अनुसार वैसा ही करते रहे। 16O 12 46 प्राचीनकाल, अर्थात् दाऊद और आसाप के दिनों में तो गवैयों के प्रधान थे, और परमेश्वर की स्तुति और धन्यवाद के गीत गाए जाते थे। 16O 12 47 और जरूब्बाबेल और नहेमायाह के दिनों में सारे इस्राएली, गवैयों और द्वारपालों के प्रतिदिन का भाग देते रहे; और वे लेवियों के अंश पवित्रा करके देते थे; और लेवीय हारून की सन्तान के अंश पवित्रा करके देते थे। 16O 13 1 उसी दिन मूसा की पुस्तक लोगों को पढ़कर सुनाई गई; और उस में यह लिखा हुआ मिला, कि कोई अम्मोनी वा मोआबी परमेश्वर की सभा में कभी न आने पाए; 16O 13 2 क्योंकि उन्हों ने अन्न जल लेकर इस्राएलियों से भेंट नहीं की, वरन बिलाम को उन्हें शाप देने के लिये दक्षिणा देकर बुलवाया था-- तौभी हमारे परमेश्वर ने उस शाप को आशीष से बदल दिया। 16O 13 3 यह व्यवस्था सुनकर, उन्हों ने इस्राएल में से मिली जुली भीड़ को अलग अलग कर दिया। 16O 13 4 इस से पहिले एल्याशीब याजक जो हमारे परमेश्वर के भवन की कोठरियों का अधिकारी और तोबिरयाह का सम्बन्धी था। 16O 13 5 उस ने तोबिरयाह के लिये एक बड़ी कोठरी तैयार की थी जिस में पहिले अन्नबलि का सामान और लोबान और पात्रा और अनाज, नये दाखमधु और टटके तेल के दशमांश, जिन्हें लेवियों, गवैयों और द्वारपालों को देने की आज्ञा थी, रखी हुई थी; और याजकों के लिये उठाई हुई भेंट भी रखी जाती थीं। 16O 13 6 परन्तु मैं इस समय यरूशलेम में नहीं था, क्योंकि बाबेल के राजा अर्तक्षत्रा के बत्तीसवें वर्ष में मैं राजा के पास चला गया। फिर कितने दिनों के बाद राजा से छुट्टी मांगी, 16O 13 7 और मैं यरूशलेम को आया, तब मैं ने जान लिया, कि एल्याशीब ने तोबिरयाह के लिये परमेश्वर के भवन के आंगनों में एक कोठरी तैयार कर, क्या ही बुराई की है। 16O 13 8 इसे मैं ने बहुत बुरा माना, और तोबिरयाह का सारा घरेलू सामान उस कोठरी में से फेंक दिया। 16O 13 9 तब मेरी आज्ञा से वे कोठरियां शुठ्ठ की गई, और मैं ने परमेश्वर के भवन के पात्रा और अन्नबलि का सामान और लोबान उन में फिर से रखवा दिया। 16O 13 10 फिर मुझे मालूम हुआ कि लेवियों का भाग उन्हें नहीं दिया गया है; और इस कारण काम करनेवाले लेवीय और गवैये अपने अपने खेत को भाग गए हैं। 16O 13 11 तब मैं ने हाकिमों को डांटकर कहा, परमेश्वर का भवन क्यों त्यागा गया है? फिर मैं ने उनको इकट्ठा करके, एक एक को उसके स्थान पर नियुक्त किया। 16O 13 12 तब से सब यहूदी अनाज, नये दाखमधु और टटके तेल के दशमांश भणडारों में लाने लगे। 16O 13 13 और मैं ने भणडारों के अधिकारी शेलेम्याह याजक और सादोक मुंशी को, और लेवियों में से पदायाह को, और उनके नीचे हानान को, जो मत्तन्याह का पोता और जक्कूर का पुत्रा था, नियुक्त किया; वे तो विश्वासयोग्य गिने जाते थे, और अपने भाइयों के मय बांटना उनका काम था। 16O 13 14 हे मेरे परमेश्वर ! मेरा यह काम मेरे हित के लिये स्मरण रख, और जो जो सुकर्म मैं ने अपने परमेश्वर के भवन और उस में की आराधना के विषय किए हैं उन्हे मिटा न डाल। 16O 13 15 उन्हीं दिनों में मैं ने यहूदा में कितनों को देखा जो विश्रामदिन को हैदों में दाख रौंदते, और पूलियों को ले आते, और गदहों पर लादते थे; वैसे ही वे दाखमधु, दाख, अंजीर और भांति भांति के बोझ विश्रामदिन को यरूशलेम में लाते थे; तब जिस दिन वे भोजनवस्तु बेचते थे, उसी दिन मैं ने उनको चिता दिया। 16O 13 16 फिर उस में सोरी लोग रहकर मछली और भांति भांति का सौदा ले आकर, यहूदियों के हाथ यरूशलेम में विश्रामदिन को बेचा करते थे। 16O 13 17 तब मैं ने यहूदा के रईसों को डांटकर कहा, तुम लोग यह क्या बुराई करते हो, जो विश्रामदिन को अपवित्रा करते हो? 16O 13 18 क्या तुम्हारे पुरखा ऐसा नहीं करते थे? और क्या हमारे परमेश्वर ने यह सब विपत्ति हम पर और इस नगर पर न डाली? तौभी तुम विश्रामदिन को अपवित्रा करने से इस्राएल पर परमेश्वर का क्रोध और भी भड़काते जाते हो। 16O 13 19 सो जब विश्रामवार के पहिले दिन को यरूशलेम के फाटकों के आस- पास अन्ध्ेरा होने लगा, तब मैं ने आज्ञा दी, कि उनके पल्ले बन्द किए जाएं, और यह भी आज्ञा दी, कि वे विश्रामवार के पूरे होने तक खोले न जाएं। तब मैं ने अपने कितने सेवकों को फाटकों का अधिकारी ठहरा दिया, कि विश्रामवार को कोई बोझ भीतर आने न पाए। 16O 13 20 इसलिये व्योपारी और भांति भांति के सौदे के बेचनेवाले यरूशलेम के बाहर दो एक बेर टिके। 16O 13 21 तब मैं ने उनको चिताकर कहा, तुम लोग शहरपनाह के साम्हने क्यों टिकते हो? यदि तुम फिर ऐसा करोगे तो मैं तुम पर हाथ बढ़ाऊंगा। इसलिये उस समय से वे फिर विश्रामबार को नहीं आए। 16O 13 22 तब मैं ने लेवियों को आज्ञा दी, कि अपने अपने को शुठ्ठ करके फाटकों की रखवाली करने के लिये आया करो, ताकि विश्रामदिन पवित्रा माना जाए। हे मेरे परमेश्वर ! मेरे हित के लिये यह भी स्मरण रख और अपनी बड़ी करूणा के अनुसार मुझ पर तरस खा। 16O 13 23 फिर उन्हीं दिनों में मुझ को ऐसे यहूदी दिखाई पड़े, जिन्हों ने अशदोदी, अम्मोनी और मोआबी स्त्रियां ब्याह ली थीं। 16O 13 24 और उनके लड़केबालों की आधी बोली अशदोदी थी, और वे यहूदी बोली न बोल सकते थे, दोनों जाति की बोली बोलते थे। 16O 13 25 तब मैं ने उनको डांटा और कोसा, और उन में से कितनों को पिटवा दिया और उनके बाल नुचवाए; और उनको परमेश्वर की यह शपथ खिलाई, कि हम अपनी बेटियां उनके बेटों के साथ ब्याह में न देंगे और न अपने लिये वा अपने बेटों के लिये उनकी बेेटियां ब्याह में लेंगे। 16O 13 26 क्या इस्राएल का राजा सुलैमान इसी प्रकार के पाप में न फंसा थ? बहुतेरी जातियों में उसके तुल्य कोई राजा नहीं हुआ, और वह अपने परमेश्वर का प्रिय भी था, और परमेश्वर ने उसे सारे इस्राएल के ऊपर राजा नियुक्त किया; परन्तु उसको भी अन्यजाति स्त्रियों ने पाप में फंसाया। 16O 13 27 तो क्या हम तुम्हारी सुनकर, ऐसी बड़ी बुराई करें कि अन्यजाति की स्त्रियां ब्याह कर अपने परमेश्वर के विरूद्ध पाप करें? 16O 13 28 और एल्याशीब महायाजक के पुत्रा योयादा का एक पुत्रा, होरोनी सम्बल्लत का दामाद था, इसलिये मैं ने उसको अपने पास से भगा दिया। 16O 13 29 हे मेरे परमेश्वर उनकी हानि के लिये याजकपद और याजकों ओर लेवियों की वाचा का तोड़ा जाना स्मरण रख। 16O 13 30 इस प्रकार मैं ने उनको सब अन्यजातियों से शुठ्ठ किया, और एक एक याजक और लेवीय की बारी और काम ठहरा दिया। 16O 13 31 फिर मैं ने लकड़ी की भेंट ले आने के विशेष समय ठहरा दिए, और पहिली पहिली उपज के देने का प्रबन्ध भी किया। हे मेरे परमेश्वर ! मेरे हित के लिये मुझे स्मरण कर। 17O 1 1 क्षयर्ष नाम राजा के दिनों में ये बातें हुई :यह वही क्षयर्ष है, जो एक सौ सताईस प्रान्तों पर, अर्थात् हिन्दुस्तान से लेकर कूश देश तक राज्य करता था। 17O 1 2 उन्हीं दिनों में जब क्षयर्ष राजा अपनी उस राजगद्दी पर विराजमान था जो शूशन नाम राजगढ़ में थी। 17O 1 3 वहां उस ने अपने राज्य के तीसरे वर्ष में अपने सब हाकिमों और कर्मचारियों की जेवनार की। फ़ारस और मादै के सेनापति और प्रान्त- प्रान्त के प्रधान और हाकिम उसके सम्मुख आ गए। 17O 1 4 और वह उन्हें बहुत दिन वरन एक सौ अस्सी दिन तक अपने राजविभव का धन और अपने माहात्म्य के अनमोल पदार्थ दिखाता रहा। 17O 1 5 इतने दिनों के बीतने पर राजा ने क्या छोटे क्य बड़े उन सभों की भी जो शूशन नाम राजगढ़ में इकट्ठे हुए थे, राजभवन की बारी के आंगन में सात दिन तक जेवनार की। 17O 1 6 वहां के पर्दे श्वेत और नीले सूत के थे, और सन और बैंजनी रंग की डोरियों से चान्दी के छल्लों में, संगमर्मर के खम्भों से लगे हुए थे; और वहां की चौकियां सोने- चान्दी की थीं; और लाल और श्वेत और पीले और काले संगमर्मर के बने हुए फ़र्श पर धरी हुई थीं। 17O 1 7 उस जेवनार में राजा के योग्य दाखमधु भिन्न भिन्न रूप के सोने के पात्रों में डालकर राजा की उदारता से बहुतायत के साथ पिलाया जाता था। 17O 1 8 पीना तो नियम के अनुसार होता था, किसी को बरबस नहीं पिलाया जाता था; क्योंकि राजा ने तो अपने भवन के सब भणडारियों को आज्ञा दी थी, कि जो पाहुन जैसा चाहे उसके साथ वैसा ही बर्ताव करना। 17O 1 9 रानी बशती ने भी राजा क्षयर्ष के भवन में स्त्रियों की जेवनार की। 17O 1 10 सातवें दिन, जब राजा का मन दाखमधु में मग्न था, तब उस ने महूमान, बिजता, हब ना, बिगता, अबगता, जेतेर और कर्कस नाम सातों खेजों को जो क्षयर्ष राजा के सम्मुख सेवा टहल किया करते थे, आज्ञा दी, 17O 1 11 कि रानी वशती को राजमुकुट धारण किए हुए राजा के सम्मुख ले आओ; जिस से कि देश देश के लोगों और हाकिमों पर उसकी सुन्दरता प्रगट हो जाए; क्योंकि वह देखने में सुन्दर थी। 17O 1 12 खोजों के द्वारा राजा की यह आज्ञा पाकर रानी वशती ने आने से इनकार किया। इस पर राजा बड़े क्रोध से जलने लगा। 17O 1 13 तब राजा ने समय समय का भेद जाननेवाले पणिडतों से पुछा (राजा तो नीति और न्याय के सब ज्ञानियों से ऐसा ही किया करता था। 17O 1 14 और उसके पास कर्शना, शेतार, अदमाता, तश श, मेरेस, मर्सना, और ममूकान नाम फ़ारस, और मादै के सातों खेजे थे, जो राजा का दर्शन करते, और राज्य में मुख्य मुख्य पदों पर नियुक्त किए गए थे। ) 17O 1 15 राजा ने पूछा कि रानी वशती ने राजा क्षयर्ष की खोजों द्वारा दिलाई हुई आज्ञा का उलंघन किया, तो नीति के अनुसार उसके साथ क्या किया जाए? 17O 1 16 तब ममूकान ने राजा और हाकिमों की उपस्थिति में उत्तर दिया, रानी वशती ने जो अनुचित काम किया है, वह न केवल राजा से परन्तु सब हाकिमों से और उन सब देशों के लोगों से भी जो राजा क्षयर्ष के सब प्रान्तों में रहते हैं। 17O 1 17 क्योंकि रानी के इस काम की चर्चा सब स्त्रियों में होगी और जब यह कहा जाएगा, कि राजा क्षयर्ष ने रानी वशती को अपने साम्हने ले आने की आज्ञा दी परन्तु वह न आई, तब वे भी अपने अपने पति को तुच्छ जानने लगेंगी। 17O 1 18 और आज के दिन फ़ारसी और मादी हाकिमों की स्त्रियां जिन्हों ने रानी की यह बात सुनी है तो वे भी राजा के सब हाकिमों से ऐसा ही कहने लगेंगी; इस प्रकार बहुत ही घृणा और क्रोध उत्पन्न होगा। 17O 1 19 यदि राजा को स्वीकार हो, तो यह आज्ञा निकाले, और फार्सियों और मादियों के कानून में लिखी भी जाए, जिस से कभी बदल न सके, कि रानी वशती राजा क्षयर्ष के सम्मुख फिर कभी आने न पाए, और राजा पटरानी का पद किसी दूसरी को दे दे जो उस से अच्छी हो। 17O 1 20 और जब राजा की यह आज्ञा उसके सारे राज्य में सुनाई जाएगी, तब सब पत्नियां छोटे, बड़े, अपने अपने पति का आदरमान करती रहेंगी। 17O 1 21 यह बात राजा और हाकिमों को पसन्द आई और राजा ने ममूकान की सम्मति मान ली और अपने राज्य में, 17O 1 22 अर्थत् प्रत्येक प्रान्त के अक्षरों में और प्रत्येक जाति की भाषा में चिटि्ठयां भेजीं, कि सब पुरूष अपने अपने घर में अधिकार चलाएं, और अपनी जाति की भाषा बोला करें। 17O 2 1 इन बातों के बाद जब राजा क्षयर्ष की जलजलाहट ठंडी हो गई, तब उस ने रानी वशती की, और जो काम उस ने किया था, और जो उसके विषय में आज्ञा निकली थी उसकी भी सुधि ली। 17O 2 2 तब राजा के सेवक जो उसके टहलुए थे, कहने लगे, राजा के लिये सुन्दर तथा युवती कुंवारियां ढूंढी जाएं। 17O 2 3 और राजा ने अपने राज्य के सब प्रान्तों में लोगों को इसलिये नियुक्त किया कि वे सब सुन्दर युवती कुंवारियों को शूशन गढ़ के रनवास में इकट्ठा करें और स्त्रियों के रखवाले हेगे को जो राजा का खोजा था सौप दें; और शुठ्ठ करने के योग्य वस्तुएं उन्हें दी जाएं। 17O 2 4 तब उन में से जो कुंवारी राजा की दृष्टि में उत्तम ठहरे, वह रानी वशती के स्थान पर पटरानी बनाई जाए। यह बात राजा को पसन्द आई और उस ने ऐसा ही किया। 17O 2 5 शूशन गढ़ में मोर्दकै नाम एक यहूदी रहता था, जो कीश नाम के एक बिन्यामीनी का परपोता, शिमी का पोता, और याईर का पुत्रा था। 17O 2 6 वह उन बन्धुओं के साथ यरूशलेम से बन्धुआई में गया था, जिन्हें बाबेल का राजा नबूकदनेस्सर, यहूदा के राजा यकोन्याह के संग बन्धुआ करके ले गया था। 17O 2 7 उस ने हदस्सा नाम अपनी चचेरी बहिन को, जो एस्तेर भी कहलाती थी, पाला- पोसा था; क्योंकि उसके माता- मिता कोई न थे, और वह लड़की सुन्दर और रूपवती थी, और जब उसके माता- पिता मर गए, तब मोर्दकै ने उसको अपनी बेटी करके पाला। 17O 2 8 जब राजा की आज्ञा और नियम सुनाए गए, और बहुत सी युवती स्त्रियां, शूशन गढ़ में हेगे के अधिकार में इकट्ठी की गई, तब एस्तेर भी राजभवन में स्त्रियों के रखवाले हेगे के अधिकार में सौंपी गई। 17O 2 9 और वह युवती स्त्री उसकी दृष्टि में अच्छी लगी; और वह उस से प्रसन्न हुआ, तब उस ने बिना विलम्ब उसे राजभवन में से शुठ्ठ करने की वस्तुएं, और उसका भोजन, और उसके लिये चुनी हुई सात सहेलियां भी दीं, और उसको और उसकी सहेलियों को रनवास में सब से अच्छा रहने का स्थान दिया। 17O 2 10 एस्तेर ने न अपनी जाति बताई थी, न अपना कुल; क्योंकि मोर्दकै ने उसको आज्ञा दी थी, कि उसे न बताना। 17O 2 11 मोर्दकै तो प्रतिदिन रनवास के आंगन के साम्हने टहलता था ताकि जाने की एस्तेर कैसी है और उसके साथ क्या होगा? 17O 2 12 जब एक एक कन्या की बारी हुई, कि वह क्षयर्ष राजा के पास जाए, ( और यह उस समय हुअ जब उसके साथ स्त्रियों के लिये ठहराए हुए नियम के अनुसार बारह माह तक व्यवहार किया गया था; अर्थात् उनके शुठ्ठ करने के दिन इस रीति से बीत गए, कि छे माह तक गन्धरस का तेल लगाया जाता था, और छे माह तक सुगन्धदव्य, और स्त्रियों के शुठ्ठ करने का और और सामान लगाया जाता था ) । 17O 2 13 इस प्रकार से वह कन्या जब राजा के पास जाती थी, तब जो कुछ वह चाहती कि रनवास से राजभवन में ले जाए, वह उसको दिया जाता था। 17O 2 14 सांझ को तो वह जाती थी और बिहान को वह लौटकर रनवास के दूसरे घर में जाकर रखेलियों के रखवाले राजा के खोजे शाशगज के अधिकार में हो जाती थी, और राजा के पास फिर नहीं जाती थी। और यदि राजा उस से प्रसन्न हो जाता था, तब वह नाम लेकर बुलाई जाती थी। 17O 2 15 जब मोर्दकै के चाचा अबीहैल की बेटी एस्तेर, जिसको मोर्दकै ने बेटी मानकर रखा था, उसकी बारी आई कि राजा के पास जाए, तब जो कुछ स्त्रियों के रखवाले राजा के खोजे हेगे ने उसके लिये ठहराया था, उस से अधिक उस ने और कुछ न मांगा। और जितनों ने एस्तेर को देखा, वे सब उस से प्रसन्न हुए। 17O 2 16 यों एस्तेर राजभवन में राजा क्षयर्ष के पास उसके राज्य के सातवें वर्ष के तेबेत नाम दसवें महीने में पहुंचाई गई। 17O 2 17 और राजा ने एस्तेर को और सब स्त्रियों से अधिक प्यार किया, और और सब कुंवारियों से अधिक उसके अनुग्रह और कृपा की दृष्टि उसी पर हुई, इस कारण उस ने उसके सिर पर राजमुकुट रखा और उसको वशती के स्थान पर रानी बनाया। 17O 2 18 तब राजा ने अपने सब हाकिमों और कर्मचारियों की बड़ी जेवनार करके, उसे एस्तेर की जेवनार कहा; और प्रान्तों में छुट्टी दिलाई, और अपनी उदारता के योग्य इनाम भी बांटे। 17O 2 19 जब कुंवारियां दूसरी बार इकट्ठी की गई, तब मोर्दकै राजभवन के फाटक में बैठा था। 17O 2 20 और एस्तेर ने अपनी जाति और कुल का पता नहीं दिया था, क्योंकि मोर्दकै ने उसको ऐसी आज्ञा दी थी कि न बताए; और एस्तेर मोर्दकै की बात ऐसी मानती थी जैसे कि उसके यहां अपने पालन पोषण के समय मानती थी। 17O 2 21 उन्हीं दिनों में जब मोर्दकै राजा के राजभवन के फाटक में बैठा करता था, तब राजा के खोजे जो द्वारपाल भी थे, उन में से बिकतान और तेरेश नाम दो जनों ने राजा क्षयर्ष से रूठकर उस पर हाथ चलाने की युक्ति की। 17O 2 22 यह बात मोर्दकै को मालूम हुई, और उस ने एस्तेर रानी को यह बात बताई, और एस्तेर ने मोर्दकै का नाम लेकर राजा को चितौनी दी। 17O 2 23 तब जांच पड़ताल होने पर यह बात सच निकली और वे दोनों वृक्ष पर लटका दिए गए, और यह वृत्तान्त राजा के साम्हने इतिहास की पुस्तक में लिख लिया गया। 17O 3 1 इन बातों के बाद राजा क्षयर्ष ने अगामी हम्मदाता के पुत्रा हामान को उन्च पद दिया, और उसको महत्व देकर उसके लिये उसके साथी हाकिमों के सिंहासनों से ऊंचा सिंहासन ठहराया। 17O 3 2 और राजा के सब कर्मचारी जो राजभवन के फाटक में रहा करते थे, वे हामान के साम्हने झुककर दणडवत किया करते थे क्योंकि राजा ने उसके विषय ऐसी ही आज्ञा दी थी; परन्तु मोर्दकै न तो झुकता था और न उसको दणडवत करता था। 17O 3 3 तब राजा के कर्मचारी जो राजभवन के फाटक में रहा करते थे, उन्हों ने मोर्दकै से पूछा, 17O 3 4 तू राजा की आज्ञा क्यों उलंघन करता है? जब वे उस से प्रतिदिन ऐसा ही कहते रहे, और उस ने उनकी एक न मानी, तब उन्हों ने यह देखने की इच्छा से कि मोर्दकै की यह बात चलेगी कि नहीं, हामान को बता दिया; उस ने तो उनको बता दिया था कि मैं यहूदी हूँ। 17O 3 5 जब हामान ने देखा, कि मोर्दकै नहीं झुकता, और न मुझ को दणडवत करता है, तब हामान बहुत ही क्रोधित हुआ। 17O 3 6 उस ने केवल मोर्दकै पर हाथ चलाना अपनी मर्यादा के नीचे जाना। क्योंकि उन्हों ने हामान को यह बता दिया था, कि मोर्दकै किस जाति का है, इसलिये हामान ने क्षयर्ष के साम्राज्य में रहनेवाले सारे यहूदियों को भी मोर्दकै की जाति जानकर, विनाश कर डालने की युक्ति निकाली। 17O 3 7 राजा क्षयर्ष के बारहवें वर्ष के नीसान नाम पहिले महीने में, हामान ने अदार नाम बारहवें महीने तक के एक एक दिन और एक एक महीने के लिये "पूर" अर्थात् चिट्ठी अपने साम्हने डलवाई। 17O 3 8 और हामान ने राजा क्षयर्ष से कहा, तेरे राज्य के सब प्रान्तों में रहनेवाले देश देश के लोगों के मध्य में तितर बितर और छिटकी हुई एक जाति है, जिसके नियम और सब लोगों के नियमों से भिन्न हैं; और वे राजा के कानून पर नहीं चलते, इसलिये उन्हें रहने देना राजा को लाभदायक नहीं है। 17O 3 9 यदि राजा को स्वीकार हो तो उन्हें नष्ट करने की आज्ञा लिखी जाए, और मैं राज के भणडारियों के हाथ में राजभणडार में पहुंचाने के लिलये, दस हजार किक्कार चान्दी दूंगा। 17O 3 10 तब राजा ने अपनी अंगूठी अपने हाथ से उतारकर अगागी हम्मदाता के पुत्रा हामान को, जो यहूदियों का वैरी था दे दी। 17O 3 11 और राजा ने हामान से कहा, वह चान्दी तुझे दी गई है, और वे लोग भी, ताकि तू उन से जैसा तेरा जी चाहे वैसा ही व्यवहार करे। 17O 3 12 यों उसी पहिले महीने के तेरहवें दिन को राजा के लेखक बुलाए गए, और हामान की आज्ञा के अनुसार राजा के सब अधिपतियों, और सब प्रान्तों के प्रधानों, और देश देश के लोगों के हाकिमों के लिये चिटि्ठयां, एक एक प्रान्त के अक्षरों में, और एक एक देश के लोगों की भाषा में राजा क्षयर्ष के नाम से लिखी गई; और उन में राजा की अंगूठी की छाप लगाई गई। 17O 3 13 और राज्य के सब प्रान्तों में इस आशय की चिटि्ठयां हर डाकियों के द्वारा भेजी गई कि एक ही दिन में, अर्थात् अदार नाम बारहवें महीने के तेरहवें दिन को, क्या जवान, क्या बूढ़ा, क्या स्त्री, क्या बालक, सब यहूदी विध्वंसघात और नाश किए जाएं; और उनकी धन सम्मत्ति लूट ली जाए। 17O 3 14 उस आज्ञा के लेख की नकलें सब प्रान्तों में खुली हुई भेजी गई कि सब देशों के लोग उस दिन के लिये तैयार हो जाएं। 17O 3 15 यह आज्ञा शूशन गढ़ में दी गई, और डाकिए राजा की आज्ञा से तुरन्त निकल गए। और राजा और हामान तो जेवनार में बैठ गए; परन्तु शूशन नगर में घबराहट फैल गई। 17O 4 1 जब मोर्दकै ने जान लिया कि क्या क्या किया गया है तब मोर्दकै वस्त्रा फाड़, टाट पहिन, राख डालकर, नगर के मध्य जाकर ऊंचे और दुखभरे शब्द से चिल्लाने लगा; 17O 4 2 और वह राजभवन के फाटक के साम्हने पहुंचा, परन्तु टाट पहिने हुए राजभवन के फाटक के भीतर तो किसी के जाने की आज्ञा न थी। 17O 4 3 और एक एक प्रान्त में, जहां जहां राजा की आज्ञा और नियम पहुंचा, वहां वहां यहूदी बड़ा विलाप करने और उपवास करने और रोने पीटने लगे; वरन बहुतेरे टाट पहिने और राख डाले हुए पड़े रहे। 17O 4 4 और एस्तेर रानी की सहेलियों और खोजों ने जाकर उसको बता दिया, तब रानी शोक से भर गई; और मोर्दकै के पास वस्त्रा भेजकर यह कहलाया कि टाट उतारकर इन्हें पहिन ले, परन्तु उस ने उन्हें न लिया। 17O 4 5 तब एस्तेर ने राजा के खोजों में से हताक को जिसे राजा ने उसके पास रहने को ठहराया था, बुलवाकर आज्ञा दी, कि मोर्दकै के पास जाकर मालूम कर ले, कि क्या बात है और इसका क्या कारण है। 17O 4 6 तब हताक नगर के उस चौक में, जो राजभवन के फाटक के साम्हने था, मोर्दकै के पास निकल गया। 17O 4 7 मोर्दकै ने उसको सब कुछ बता दिया कि मेरे ऊपर क्या क्या बीता है, और हामान ने यहूदियों के नाश करने की अनुमति पाने के लिये राजभणडार में कितनी चान्दी भर देने का वचन दिया है, यह भी ठीक ठीक बतला दिया। 17O 4 8 फिर यहूदियों को विनाश करने की जो आज्ञा शूशन में दी गई थी, उसकी एक नकल भी उस ने हताक के हाथ में, एस्तेर को दिखाने के लिये दी, और उसे सब हाल बताने, और यह आज्ञा देने को कहा, कि भीतर राजा के पास जाकर अपने लोगों के लिये गिड़गिड़ाकर बिनती करे। 17O 4 9 तब हताक ने एस्तेर के पास जाकर मोर्दकै की बातें कह सुनाई। 17O 4 10 तब एस्तेर ने हताक को मोर्दकै से यह कहने की आज्ञा दी, 17O 4 11 कि राजा के सब कर्मचारियों, वरन राजा के प्रान्तों के सब लोगों को भी मालूम है, कि क्या पुरूष क्या स्त्री कोई क्यों न हो, जो आज्ञा बिना पाए भीतरी आंगन में राजा के पास जाएगा उसके मार डालने ही की आज्ञा है; केवल जिसकी ओर राजा सोने का राजदणड बढ़ाए वही बचता है। परन्तु मैं अब तीस दिन से राजा के पास नहीं बुलाई गई हूँ। 17O 4 12 एस्तेर की ये बातें मोर्दकै को सुनाई गई। 17O 4 13 तब मोर्दकै ने एस्तेर के पास यह कहला भेजा, कि तू मन ही मन यह विचार न कर, कि मैं ही राजभवन में रहने के कारण और सब यहूदियों में से बची रहूंगी। 17O 4 14 क्योंकि जो तू इस समय चुपचाप रहे, तो और किसी न किसी उपाय से यहूदियों का छुटकारा और उठ्ठार हो जाएगा, परन्तु तू अपने पिता के घराने समेत नाश होगी। फिर क्या जाने तुझे ऐसे ही कठिन समय के लिये राजपद मिल गया हो? 17O 4 15 तब एस्तेर ने मोर्दकै के पास यह कहला भेजा, 17O 4 16 कि तू जाकर शूशन के सब यहूदियों को इकट्ठा कर, और तुम सब मिलकर मेरे निमित्त उपवास करो, तीन दिन रात न तो कुछ खाओ, और न कुछ पीओ। और मैं भी अपनी सहेलियों सहित उसी रीति उपवास करूंगी। और ऐसी ही दशा में मैं नियम के विरूद्ध राजा के पास भीतर जाऊंगी; और यदि नाश हो गई तो हो गई। 17O 4 17 तब मोर्दकै चला गया और एस्तेर की आज्ञा के अनुसार ही उस ने किया। 17O 5 1 तीसरे दिन एस्तेर अपने राजकीय वस्त्रा पहिनकर राजभवन के भीतरी आंगन में जाकर, राजभवन के साम्हने खड़ी हो गई। राजा तो राजभवन में राजगद्दी पर भवन के द्वार के साम्हने विराजमान था; 17O 5 2 और जब राजा ने एस्तेर रानी को आंगन में खड़ी हुइ्रर् देखा, तब उस से प्रसन्न होकर सोने का राजदणड जो उसके हाथ में था उसकी ओर बढ़ाया। तब एस्तेर ने निकट जाकर राजदणड की लोक छुई। 17O 5 3 तब राजा ने उस से पूछा, हे एसतेर रानी, तुझे क्या चाहिये? और तू क्य मांगती है? मांग और तुझे आधा राज्य तक दिया जाएगा। 17O 5 4 एस्तेर ने कहा, यदि राजा को स्वीकार हो, तो आज हामान को साथ लेकर उस जेवनार में आए, जो मैं ने राजा के लिये तैयार की है। 17O 5 5 तब राजा ने आज्ञा दी कि हामान को तुरन्त ले आओ, कि एस्तेर का निमंत्राण ग्रहण किया जाए। सो राजा और हामान एस्तेर की तैयार की हुई जेवनार में आए। 17O 5 6 जेवनार के समय जब दाखमधु पिया जाता था, तब राजा ने एस्तेर से कहा, तेरा क्या निवेदन है? वह पूरा किया जाएगा। और तू क्या मांगती है? मांग, ओर आधा राज्य तक तुझे दिया जाएगा। 17O 5 7 एस्तेर ने उत्तर दिया, मेरा निवेदन और जो मैं मांगती हूँ वह यह है, 17O 5 8 कि यदि राजा मुझ पर प्रसन्न है और मेरा निवेदन सुनना और जो वरदान मैं मांगूं वही देना राजा को स्वीकार हो, तो राजा और हामान कल उस जेवनार में आएं जिसे मैं उनके लिये करूंगी, और कल मैं राजा के इस वचन के अनुसार करूंगी। 17O 5 9 उस दिन हामान आनन्दित ओर मन में प्रसन्न होकर बाहर गया। परन्तु जब उस ने मोर्दकै को राजभवन के फाटक में देखा, कि वह उसके साम्हने न तो खड़ा हुआ, और न हटा, तब वह मोर्दकै के विरूद्ध क्रोध से भर गया। 17O 5 10 तौभी वह अपने को रोककर अपने घर गया; और अपने मित्रों और अपनी स्त्री जेरेश को बुलवा भेजा। 17O 5 11 तब हामान ने, उन से अपने धन का विभव, और अपने लड़के- बालों की बढ़ती और राजा ने उसको कैसे कैसे बढ़ाया, और और सब हाकिमों और अपने और सब कर्मचारियों से ऊंचा पद दिया था, इन सब का वर्णन किया। 17O 5 12 हामान ने यह भी कहा, कि एस्तेर रानी ने भी मुझे छोड़ और किसी को राजा के संग, अपनी की हुई जेवनार में आने न दिया; और कल के लिये भी राजा के संग उस ने मुझी को नेवता दिया है। 17O 5 13 तौभी जब जब मुझे वह यहूदी मोर्दकै राजभवन के फाटक में बैठा हुआ दिखाई पड़ता है, तब तब यह सब मेरी दृष्टि में व्यर्थ है। 17O 5 14 उसकी पत्नी जेरेश और उसके सब मित्रों ने उस से कहा, पचास हाथ ऊंचा फांसी का एक खम्भा, बनाया जाए, और बिहान को राजा से कहना, कि उस पर मोर्दकै लटका दिया जाए; तब राजा के संग आनन्द से जेवनार में जाना। इस बात से प्रसन्न होकर हामान ने बैसा ही फांसी का एक खम्भा बनवाया। 17O 6 1 उस रात राजा को नींद नहीं आई, इसलिये उसकी आज्ञा से इतिहास की पुस्तक लाई गई, और पढ़कर राजा को सुनाई गई। 17O 6 2 और यह लिखा हुआ मिला, कि जब राजा क्षयर्ष के हाकिम जो द्वारपाल भी थे, उन में से बिगताना और तेरेश नाम दो जनों ने उस पर हाथ चलाने की युक्ति की थी उसे मोर्दकै ने प्रगट किया था। 17O 6 3 तब राजा ने पूछा, इसके बदले मोर्दकै की क्या प्रतिष्ठा और बड़ाई की गई? राजा के जो सेवक उसकी सेवा टहल कर रहे थे, उन्हों ने उसको उत्तर दिया, उसके लिये कुछ भी नहीं किया गया। 17O 6 4 राजा ने पूछा, आंगन में कौन है? उसी समय तो हामान राजा के भवन से बाहरी आंगन में इस मनसा से आया था, कि जो खम्भा उस ने मोर्दकै के लिये तैयार कराया था, उस पर उसको लटका देने की चर्चा राजा से करे। 17O 6 5 तब राजा के सेवकों ने उस से कहा, आंगन में तो हामान खड़ा है। राजा ने कहा, उसे भीतर बुलवा लाओ। 17O 6 6 जब हामान भीतर आया, तब राजा ने उस से पूछा, जिस मनुष्य की प्रतिष्ठा राजा करना चाहता हो तो उसके लिये क्या करना उचित होगा? हामान ने यह सोचकर, कि मुझ से अधिक राजा किस की प्रतिष्ठा करना चाहता होगा? 17O 6 7 राजा को उत्तर दिया, जिस मनुष्य की प्रतिष्ठा राजा करना चाहे, 17O 6 8 तो उसके लिये राजकीय वस्त्रा लाया जाए, जो राजा पहिनता है, और एक घेड़ा भी, जिस पर राजा सवार होता है, ओर उसके सिर पर जो राजकीय मुकुट धरा जाता है वह भी लाया जाए। 17O 6 9 फिर वह वस्त्रा, और वह घेड़ा राजा के किसी बड़े हाकिम को सौंपा जाए, और जिसकी प्रतिष्ठा राजा करना चाहता हो, उसको वह वस्त्रा पहिनाया जाए, और उस घोड़े पर सवार करके, नगर के चौक में उसे फिराया जाए; और उसके आगे आगे यह प्रचार किया जाए, कि जिसकी प्रतिष्ठा राजा करना चाहता है, उसके साथ ऐसा ही किया जाएगा। 17O 6 10 राजा ने हामान से कहा, फुत करके अपने कहने के अनुसार उस वस्त्रा और उस घोड़े को लेकर, उस यहूदी मोर्दकै से जो राजभवन के फाटक में बैठा करता है, वैसा ही कर। जैसा तू ने कहा है उस में कुछ भी कमी होने न पाए। 17O 6 11 तब हामान ने उस वस्त्रा, और उस घोड़े को लेकर, मोर्दकै को पहिनाया, और उसे घोड़े पर चढ़ाकर, नगर के चौक में इस प्रकार पुकारता हुआ घुमाया कि जिसकी प्रतिष्ठा राजा करना चाहता है उसके साथ ऐसा ही किया जाएगा। 17O 6 12 तब मोर्दकै तो राजभवन के फाटक में लौट गया परन्तु हामान शोक करता हुआ और सिर ढांपे हुए झट अपने घर को गया। 17O 6 13 और हामान ने अपनी पत्ती जेरेश और अपने सब मित्रों से सब कुछ जो उस पर बीता था वर्णन किया। 17O 6 14 तब उसके बुध्दिमान मित्रों और उसकेी पत्नी जेरेश ने उस से कहा, मोर्दकै जिसे तू नीचा दिखना चाहता है, यदि वह यहूदियों के वंश में का है, तो तू उस पर प्रबल न होने पाएगा उस से पूरी रीति नीचा ही खएगा। वे उस से बातें कर ही रहे थे, कि राजा के खोजे आकर, हामान को एस्तेर की की हुई जेवनार में फुत से लिवा ले गए। 17O 7 1 सो राजा और हामान एस्तेर रानी की जेवनार में आगए। 17O 7 2 और राजा ने दूसरे दिन दाखमधु पीते- पीते एस्तेर से फिर पूछा, हे एस्तेर रानी ! तेरा क्या निवेदन है? वह पूरा किया जाएगा। और तू क्या मांगती है? मांग, और आधा राज्य तक तुझे दिया जाएगा। 17O 7 3 एस्तेर रानी ने उत्तर दिया, हे राजा ! यदि तू मुझ पर प्रसन्न है, और राजा को यह स्वीकार हो, तो मेरे निवेदन से मुझे, और मेरे मांगने से मेरे लोगों को प्राणदान मिले। 17O 7 4 क्योंकि मैं और मेरी जाति के लोग बेच डाले गए हैं, और हम सब विध्वंसघात और नाश किए जानेवाले हैं। यदि हम केवल दास- दासी हो जाने के लिये बेच डाले जाते, तो मैं चुप रहती; चाहे उस दशा में भी वह विरोधी राजा की हानि भर न सकता। 17O 7 5 तब राजा क्षयर्ष ने एस्तेर रानी से पूछा, वह कौन है? और कहां है जिस ने ऐसा करने की मनसा की है? 17O 7 6 एस्तेर ने उत्तर दिया है कि वह विरोधी और शत्रु यही दुष्ट हामान है। तब हामान राजा- रानी के साम्हते भयभीत हो गया। 17O 7 7 राजा तो जलजलाहट में आ, मधु पीने से उठकर, राजभवन की बारी में निकल गया; और हामान यह देखकर कि राजा ने मेरी हानि ठानी होगी, एस्तेर रानी से प्राणदान मांगने को खड़ा हुआ। 17O 7 8 जब राजा राजभवन की बारी से दाखमधु पीने के स्थान में लौट आया तब क्या देखा, कि हामान उसी चौकी पर जिस पर एस्तेर बैठी है पड़ा है; और राजा ने कहा, क्या यह घर ही में मेरे साम्हने ही रानी से बरबस करना चाहता है? राजा के मुंह से यह वचन निकला ही था, कि सेवकों ने हामान का मुंह ढांप दिया। 17O 7 9 तब राजा के साम्हने उपस्थ्ति रहनेवाले खोजों में से हव ना नाम एक ने राजा से कहा, हामान को यहां पचास हाथ ऊंचा फांसी का एक खम्भा खड़ा है, जो उस ने मोर्दकै के लिये बनवाया है, जिस ने राजा के हित की बात कही थी। राजा ने कहा, उसको उसी पर लटका दो। 17O 7 10 तब हामान उसी खम्भे पर जो उस ने मोर्दकै के लिये तैयार कराया था, लटका दिया गया। इस पर राजा की जलजलाहट ठंडी हो गई। 17O 8 1 उसी दिन राजा क्षयर्ष ने यहूदियों के विरोधी हामान का घरबार एस्तेर रानी को दे दिया। और मोर्दकै राजा के साम्हने आया, क्योंकि एस्तेर ने राजा को बताया था, कि उस से उसका क्या नाता था 17O 8 2 तब राजा ने अपनी वह अंगूठी जो उस ने हामान से ले ली थी, उतार कर, मोर्दकै को दे दी। और एसतेर ने मोर्दकै को हामान के घरबार पर अधिकारी नियुक्त कर दिया। 17O 8 3 फिर एस्तेर दूसरी बार राजा से बोली; और उसके पांव पर गिर, आंसू बहा बहाकर उस से गिड़गिड़ाकर बिन्ती की, कि अगागी हामान की बुराई और यहूदियों की हानि की उसकी युक्ति निष्फल की जाए। 17O 8 4 तब राजा ने एस्तेर की ओर सोने का राजदणड बढ़ाया। 17O 8 5 तब एस्तेर उठकर राजा के साम्हने खड़ी हुई; और कहने लगी कि यदि राजा को स्वीकार हो और वह मुझ से प्रसन्न है और यह बात उसको ठीक जान पड़े, और मैं भी उसको अच्छी लगती हूँ, तो जो चिटि्ठयां हम्मदाता अगागी के पुत्रा हामान ने राजा के सब प्रान्तों के यहूदियों को नाश करने की युक्ति करके लिखाई थीं, उनको पलटने के लिये लिखा जाए। 17O 8 6 क्योंकि मैं अपने जाति के लोगों पर पड़नेवाली उस विपत्ति को किस रीति से देख सकूंगी? और मैं अपने भाइयों के विनाश को क्योंकर देख सकूंगी? 17O 8 7 तब राजा क्षयर्ष ने एस्तेर रानी से और मोर्दकै यहूदी से कहा, मैं हामान का घरबार तो एस्तेर को दे चुका हूँ, और वह फांसी के खम्भे पर लटका दिया गया है, इसलिये कि उस ने यहूदियों पर हाथ बढ़ाया था। 17O 8 8 सो तुम अपनी समझ के अनुसार राजा के नाम से यहूदियों के नाम पर लिखो, और राजा की अंगूठी की छाप भी लगाओ; क्योंकि जो चिट्ठी राजा के नाम से लिखी जाए, और उस पर उसकी अंगूठी की छाप लगाई जाए, उसको कोई भी पलट नहीं सकता। 17O 8 9 सो उसी समय अर्थात् सीवान नाम तीसरे महीने के तेईसवें दिन को राजा के लेखक बुलवाए गए और जिस जिस बात की आज्ञा मोर्दकै ने उन्हें दी थी उसे यहूदियों और अधिपतियों और हिन्दुस्तान से लेकर कूश तक, जो एक सौ सत्ताईस प्रान्त हैं, उन सभों के अधिपतियों और हाकिमों को एक एक प्रान्त के अक्षरों में और एक एक देश के लोगों की भाषा में, और यहूदियों को उनके अक्षरों और भाषा में लिखी गई। 17O 8 10 मोर्दकै ने राजा क्षयर्ष के नाम से चिटि्ठयां लिखाकर, और उन पर राजा की अंगूठी की छाप लगाकर, वेग चलनेवाले सरकारी घोड़ों, खच्चरों और सांड़नियों की डाक लगाकर, हरकारों के हाथ भेज दीं। 17O 8 11 इन चिटि्ठयों में सब नगरों के यहूदियों को राजा की ओर से अनुमति दी गई, कि वे इकट्ठे हों और अपना अपना प्राण बचाने के लिये तैयार होकर, जिस जाति वा प्रान्त से लोग अन्याय करके उनको वा उनकी स्त्रियों और बालबच्चों को दु:ख देना चाहें, उनको विध्वंसघात और नाश करें, और उनकी धन सम्मत्ति लूट लें। 17O 8 12 और यह राजा क्षयर्ष के सब प्रान्तों में एक ही दिन में किया जाए, अर्थात् अदार नाम बारहवें महीने के तेरहवें दिन को। 17O 8 13 इस आज्ञा के लेख की नकलें, समस्त प्रान्तों में सब देशें के लोगों के पास खुली हुई भेजी गई; ताकि यहूदी उस दिन अपने शत्रुओं से पलटा लेने को तैयार रहें। 17O 8 14 सो हरकारे वेग चलनेवाले सरकारी घोड़ों पर सवार होकर, राजा की आज्ञा से फुत करके जल्दी चले गए, और यह आज्ञा शूशन राजगढ़ में दी गई थी। 17O 8 15 तब मोर्दकै नीले और श्वेत रंग के राजकीय वस्त्रा पहिने और सिर पर सोने का बड़ा मुमुट धरे हुए और सूक्ष्मसन और बैंजनी रंग का बागा पहिने हुए, राजा के सम्मुख से निकला, और शूशन नगर के लोग आनन्द के मारे ललकार उठे। 17O 8 16 और यहूदियों को आनन्द और हर्ष हुआ और उनकी बड़ी प्रतिष्ठा हुई। 17O 8 17 और जिस जिस प्रान्त, और जिस जिस नगर में, जहां कहीं राजा की आज्ञा और नियम पहुंचे, वहां वहां यहूदियों को आनन्द और हर्ष हुआ, और उन्हों ने जेवनार करके उस दिन को खुशी का दिन माना। और उस देश के लोगों में से बहुत लोग यहूदी बन गए, क्योंकि उनके मन में यहूदियों का डर समा गया था। 17O 9 1 अदार नाम बारहवें महीने के तेरहवें दिन को, जिस दिन राजा की आज्ञा और नियम पूरे होने को थे, और यहूदियों के शत्रु उन पर प्रबल होने की आशा रखते थे, परन्तु इसके उलटे यहूदी अपने वैरियों पर प्रबल हुए, उस दिन, 17O 9 2 यहूदी लोग राजा क्षयर्ष के सब प्रान्तों में अपने अपने नगर में इकट्ठे हुए, कि जो उनकी हानि करने का यत्न करे, उन पर हाथ चलाए। और कोई उनका साम्हना न कर सका, क्योंकि उनका भय देश देश के सब लोगों के मन में समा गया था। 17O 9 3 वरन प्रान्तों के सब हाकिमों और अधिपतियों और प्रधानों और राजा के कर्मचारियों ने यहूदियों की सहायता की, क्योंकि उनके मन में मोर्दकै का भय समा गया था। 17O 9 4 मोर्दकै तो राजा के यहां बहुत प्रतिष्ठित था, और उसकी कीर्त्ति सब प्रान्तों में फैल गई; वरन उस पुरूष मोर्दकै की महिमा बढ़ती चली गई। 17O 9 5 और यहूदियों ने अपने सब शत्रुओं को तलवार से मारकर और घात करके नाश कर डाला, और अपने वैरियों से अपनी इच्छा के अनुसार बर्ताव किया। 17O 9 6 और शूशन राजगढ़ में यहूदियों ने पांच सौ मनुष्यों को घात करके नाश किया। 17O 9 7 और उन्हों ने पर्शन्दाता, दल्पोन, अस्पाता, 17O 9 8 पोराता, अदल्या, अरीदाता, 17O 9 9 पर्मशता, अरीसै, अरीदै और वैजाता, 17O 9 10 अर्थात् हम्मदाता के पुत्रा यहूदियों के विरोधी हामान के दसों पुत्रों को भी घात किया; परन्तु उनके धन को न लूटा। 17O 9 11 उसी दिन शूशन राजगढ़ में घात किए हुओं की गिनती राजा को सुनाई गई। 17O 9 12 तब राजा ने एस्तेर रानी से कहा, यहूदियों ने शूशन राजगढ़ ही में पांच सौ मनुष्य और हामान के दसों पुत्रों को भी घात करके नाश किया है; फिर राज्य के और और प्रान्तों में उन्हों ने न जाने क्या क्या किया होगा ! अब इस से अधिक तेरा निवेदन क्या है? वह भी पूरा किया जाएगा। और तू क्या मांगती है? वह भी तुझे दिया जाएगा। 17O 9 13 एस्तेर ने कहा, यदि राजा को स्वीकार हो तो शूशन के यहूदियों को आज की नाई कल भी करने की आज्ञा दी जाए, और हामान के दसों पुत्रा फांसी के खम्भें पर लटकाए जाएं। 17O 9 14 राजा ने कहा, ऐसा किया जाए; यह आज्ञा शूशन में दी गई, और हामान के दसों पुत्रा लटकाए गए। 17O 9 15 और शूशन के यहूदियों ने अदार महीने के चौदहवें दिन को भी इकट्ठे होकर शूशन में तीन सौ पुरूषों को घात किया, परन्तु धन को न लूटा। 17O 9 16 राज्य के और और प्रान्तों के यहूदी इकट्ठे होकर अपना अपना प्राण बचाने के लिये खड़े हुए, और अपने वैरियों में से पचहत्तर हजार मनुष्यों को घात करके अपने शत्रुओं से विश्राम पाया; परन्तु धन को न लूटा। 17O 9 17 यह अदार महीने के तेरहवें दिन को किया गया, और चौदहवें दिन को उन्हों ने विश्राम करके जेवनार की और आनन्द का दिन ठहराया। 17O 9 18 परन्तु शूशन के यहूदी अदार महीने के तेरहवें दिन को, और उसी महीने के चौदहवें दिन को इकट्ठे हुए, और उसी महीने के पन्द्रहवें दिन को उन्हों ने विश्राम करके जेवनार का और आनन्द का दिन ठहराया। 17O 9 19 इस कारण देहाती यहूदी जो बिना शहरपनाह की बस्तियों में रहते हैं, वे अदार महीने के चौदहवें दिन को आनन्द ओर जेवनार और खुशी और आपस में बैना भेजने का दिन नियुक्त करके मानते हैं। 17O 9 20 इन बातों का वृत्तान्त लिखकर, मोर्दकै ने राजा क्षयर्ष के सब प्रान्तों में, क्या निकट क्या दूर रहनेवाले सारे यहूदियों के पास चिटि्ठयां भेजीं, 17O 9 21 और यह आज्ञा दी, कि अदार महीने के चौदहवें और उसी महीने के पन्द्रहवें दिन को प्रति वर्ष माना करें। 17O 9 22 जिन में यहूदियों ने अपने शत्रुओं से विश्राम पाया, और यह महीना जिस में शोक आनन्द से, और विलाप खुशी से बदला गया; (माना करें) और उनको जेवनार और आनन्द और एक दूसरे के पास बैना भेजने ओर कंगालों को दान देने के दिन मानें। 17O 9 23 और यहूदियों ने जैसा आरम्भ किया था, और जैसा मोर्दकै ने उन्हें लिखा, वैसा ही करने का निश्चय कर लिया। 17O 9 24 क्योंकि हम्मदाता अगागी का पुत्रा हामान जो सब यहूदियों का विरोधी था, उस ने यहूदियों के नाश करने की युक्ति की, और उन्हें मिटा डालने और नाश करने के लिये पूर अर्थात् चिट्ठी डाली थी। 17O 9 25 परन्तु जब राजा ने यह जान लिया, तब उस ने आज्ञा दी और लिखवाई कि जो दुष्ट युक्ति हामान ने यहूदियों के विरूद्ध की थी वह उसी के सिर पर पलट आए, तब वह और उसके पुत्रा फांसी के क्षम्भों पर लटकाए गए। 17O 9 26 इस कारण उन दिनों का नाम पूर शब्द से पूरीम रखा गया। इस चिट्ठी की सब बातों के कारण, और जो कुछ उन्हों ने इस विषय में देखा और जो कुछ उन पर बीता था, उसके कारण भी 17O 9 27 यहूदियों ने अपने अपने लिये और अपनी सन्तान के लिये, और उन सभों के लिये भी जो उन में मिल गए थे यह अटल प्रण किया, कि उस लेख के अनुसार प्रति वर्ष उसके ठहराए हुए समय में वे ये दो दिन मानें। 17O 9 28 और पीढ़ी पीढ़ी, कुल कुल, प्रान्त प्रान्त, नगर नगर में ये दिन स्मरण किए और माने जाएंगे। और पूरीम नाम के दिन यहूदियों में कभी न मिटेंगे और उनका स्मरण उनके वंश से जाता न रहेगा। 17O 9 29 फिर अबीहैल की बेटी एस्तेर रानी, और मोर्दकै यहूदी ने, पूरीम के विषय यह दूसरी चिट्ठी बड़े अधिकार के साथ लिखी। 17O 9 30 इसकी नकलें मोर्दकै ने क्षयर्ष के राज्य के, एक सौ सत्ताईसों प्रान्तों के सब यहूदियों के पास शान्ति देनेवाली और सच्ची बातों के साथ इस आशय से भेजीं, 17O 9 31 कि पूरीम के उन दिनों के विशेष ठहराए हुए समयों में मोर्दकै यहूदी और एस्तेर रानी की आज्ञा के अनुसार, और जो यहूदियों ने अपने और अपनी सन्तान के लिये ठान लिया था, उसके अनुसार भी उपवास और विलाप किए जाएं। 17O 9 32 और पूरीम के विष्य का यह नियम एस्तेर की आज्ञा से भी स्थिर किया गया, और उनकी चर्चा पुस्तक में लिखी गई। 17O 10 1 और राजा क्षयर्ष ने देश और समुद्र के टापू दोनों पर कर लगाया। 17O 10 2 और उसके माहात्म्य और पराक्रम के कामों, और मोर्दकै की उस बड़ाई का पूरा ब्योरा, जो राजा ने उसकी की थी, क्या वह मादै और फारस के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 17O 10 3 निदान यहूदी मोर्दकै, क्षयर्ष राजा ही के नीचे था, और यहूदियों की दृष्टि में बड़ा था, और उसके सब भाई उस से प्रसन्न थे, क्योंकि वह अपने लोगों की भलाई की खोज में रहा करता था और अपने सब लोगों से शान्ति की बातें कहा करता था। 18O 1 1 ऊज़ देश में अरयूब नाम एक पुरूष था; वह खरा और सीधा था और परमेश्वर का भय मानता और बुराई से परे रहता था। 18O 1 2 उसके सात बेटे और तीन बेटियां उत्पन्न हुई। 18O 1 3 फिर उसके सात हजार भेड़- बकरियां, तीन हजार ऊंट, पांच सौ जोड़ी बैल, और पांच सौ गदहियां, और बहुत ही दास- दासियां थीं; वरन उसके इतनी सम्पत्ति थी, कि पूरबियों में वह सब से बड़ा था। 18O 1 4 उसके बेटे उपने अपने दिन पर एक दूसरे के घर में खाने- पीने को जाया करते थे; और अपनी तीनों बहिनों को अपने संग खाने- पीने के लिये बुलवा भेजते थे। 18O 1 5 और जब जब जेवनार के दिन पूरे हो जाते, तब तब अरयूब उन्हें बुलवाकर पवित्रा करता, और बड़ी भोर उठकर उनकी गिनती के अनुसार होमबलि चढ़ाता था; क्योंकि अरयूब सोचता था, कि कदाचित् मेरे लड़कों ने पाप करके परमेश्वर को छोड़ दिया हो। इसी रीति अरयूब सदैव किया करता था। 18O 1 6 एक दिन यहोवा परमेश्वर के पुत्रा उसके साम्हने उपस्थित हुए, और उनके बीच शैतान भी आया। 18O 1 7 यहोवा ने शैतान से पूछा, तू कहां से आता है? शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, कि पृथ्वी पर इधर- उधर घूमते- फिरते और डोलते- डालते आया हूँ। 18O 1 8 यहोवा ने शैतान से पूछा, क्या तू ने मेरे दास अरयूब पर ध्यान दिया है? क्योंकि उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है। 18O 1 9 शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, क्या अरयूब परमेश्वर का भय बिना लाभ के मानता है? 18O 1 10 क्या तू ने उसकी, और उसके घर की, और जो कुछ उसका है उसके चारों ओर बाड़ा नहीं बान्धा? तू ने तो उसके काम पर आशीष दी है, और उसकी सम्पत्ति देश भर में फैल गई है। 18O 1 11 परन्तु अब अपना हाथ बढ़ाकर जो कुछ उसका है, उसे छू; तब वह तेरे मुंह पर तेरी निन्दा करेगा। 18O 1 12 यहोवा ने शैतान से कहा, सुन, जो कुछ उसका है, वह सब तेरे हाथ में है; केवल उसके शरीर पर हाथ न लगाना। तब शैतान यहोवा के साम्हने से चला गया। 18O 1 13 एक दिन अरयूब के बेटे- बेटियां बड़े भाई के घर में खाते और दाखमधु पी रहे थे; 18O 1 14 तब एक दूत अरयूब के पास आकर कहने लगा, हम तो बैलों से हल जोत रहे थे, और गदहियां उनके पास चर रही थी, 18O 1 15 कि शबा के लोग धावा करके उनको ले गए, और तलवार से तेरे सेवकों को मार डाला; और मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देने को आया हूँ। 18O 1 16 वह अभी यह कह ही रहा था कि दूसरा भी आकर कहने लगा, कि परमेश्वर की आग आकाश से गिरी और उस से भेड़- बकरियां और सेवक जलकर भस्म हो गए; और मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देने को आया हूँ। 18O 1 17 वह अभी यह कह ही रहा था, कि एक और भी आकर कहने लगा, कि कसदी लोग तीन गोल बान्धकर ऊंटों पर धावा करके उन्हें ले गए, और तलवार से तेरे सेवकों को मार डाला; और मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देने को आया हूँ। 18O 1 18 वह अभी यह कह ही रहा था, कि एक और भी आकर कहने लगा, तेरे बेट- बेटियां बड़े भाई के घर में खाते और दाखमधु पीते थे, 18O 1 19 कि जंगल की ओर से बड़ी प्रचणड वायु चली, और घर के चारों कोनों को ऐसा झोंका मारा, कि वह जवानों पर गिर पड़ा और वे मर गए; और मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देने को आया हूँ। 18O 1 20 तब अरयूब उठा, और बागा फाड़, सिर मुंड़ाकर भूमि पर गिरा और दणडवत् करके कहा, 18O 1 21 मैं अपनी मां के पेट से नंगा निकला और वहीं नंगा लौट जाऊंगा; यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है। 18O 1 22 इन सब बातों में भी अरयूब ने न तो पाप किया, और न परमेश्वर पर मूर्खता से दोष लगाया। 18O 2 1 फिर एक और दिन यहोवा परमेश्वर के पुत्रा उसके साम्हने उपस्थित हुए, और उनके बीच शैतान भी उसके साम्हने उपस्थित हुआ। 18O 2 2 यहोवा ने शैतान से पूछा, तू कहां से आता है? शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, कि इधर- उधर घूमते- फिरते और डोलते- डालते आया हूँ। 18O 2 3 यहोवा ने शैतान से पूछा, क्या तू ने मेरे दास अरयूब पर ध्यान दिया है कि पृथ्वी पर उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है? और यद्यापि तू ने मुझे उसको बिना कारण सत्यानाश करते को उभारा, तौभी वह अब तक अपनी खराई पर बना है। 18O 2 4 शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, खाल के बदले खाल, परन्तु प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है। 18O 2 5 सो केवल अपना हाथ बढ़ाकर उसकी हडि्डयां और मांस छू, तब वह तेरे मुंह पर तेरी निन्दा करेगा। 18O 2 6 यहोवा ने शैतान से कहा, सुन, वह तेरे हाथ में है, केवल उसका प्राण छोड़ देना। 18O 2 7 तब शैतान यहोवा के साम्हने से निकला, और अरयूब को पांव के तलवे से ले सिर की चोटी तक बड़े बड़े फोड़ों से पीड़ित किया। 18O 2 8 तब अरयूब खुजलाने के लिये एक ठीकरा लेकर राख पर बैठ गया। 18O 2 9 तब उसकी स्त्री उस से कहने लगी, क्या तू अब भी अपनी खराई पर बना है? परमेश्वर की निन्दा कर, और चाहे मर जाए तो मर जा। 18O 2 10 उस ने उस से कहा, तू एक मूढ़ स्त्री की सी बातें करती है, क्या हम जो परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, दु:ख न लें? इन सब बातों में भी अरयूब ने अपने मुंह से कोई पाप नहीं किया। 18O 2 11 जब तेमानी एलीपज, और शूही बिलदद, और नामाती सोपर, अरयूब के इन तीन मित्रों ने इस सब विपत्ति का समाचार पाया जो उस पर पड़ी थीं, तब वे आपस में यह ठानकर कि हम अरयूब के पास जाकर उसके संग विलाप करेंगे, और उसको शान्ति देंगे, अपने अपने यहां से उसके पास चले। 18O 2 12 जब उन्हों ने दूर से आंख उठाकर अरयूब को देखा और उसे न चीन्ह सके, तब चिल्लाकर रो उठे; और अपना अपना बागा फाड़ा, और आकाश की ओर धूलि उड़ाकर अपने अपने सिर पर डाली। 18O 2 13 तब वे सात दिन और सात रात उसके संग भूमि पर बैठे रहे, परन्तु उसका दु:ख बहुत ही बड़ा जान कर किसी ने उस से एक भी बात न कही। 18O 3 1 इसके बाद अरयूब मुंह खोलकर अपने जन्मदिन को धिम्मारने 18O 3 2 और कहने लगा, 18O 3 3 वह दिन जल जाए जिस में मैं उत्पन्न हुआ, और वह रात भी जिस में कहा गया, कि बेटे का गर्भ रहा। 18O 3 4 वह दिन अन्धियारा हो जाए ! ऊपर से ईश्वर उसकी सुधि न ले, और न उस में प्रकाश होए। 18O 3 5 अन्धियारा और मृत्यु की छाया उस पर रहे। बादल उस पर छाए रहें; और दिन को अन्धेरा कर देनेवाली चीजों उसे डराएं। 18O 3 6 घोर अन्धकार उस रात को पकड़े; वर्ष के दिनों के बीच वह आनन्द न करने पाए, और न महीनों में उसकी गिनती की जाए। 18O 3 7 सुनो, वह रात बांझ हो जाए; उस में गाने का शब्द न सुन पड़े 18O 3 8 जो लोग किसी दिन को धिक्कारते हैं, और लिब्यातान को छेड़ने में निपुण हैं, उसे ध्क्किारें। 18O 3 9 उसकी संध्या के तारे प्रकाश न दें; वह उजियाले की बाट जोहे पर वह उसे न मिले, वह भोर की पलकों को भी देखने न पाए; 18O 3 10 क्योंकि उस ने मेरी माता की कोख को बन्द न किया और कष्ट को मेरी दृष्टि से न छिपाया। 18O 3 11 मैं गर्भ ही में क्यों न मर गया? मैं पेट से निकलते ही मेरा प्राण क्यों न छूटा? 18O 3 12 मैं घुटनों पर क्यों लिया गया? मैं छातियों को क्यों पीने पाया? 18O 3 13 ऐसा न होता तो मैं चुपचाप पड़ा रहता, मैं सोता रहता और विश्राम करता, 18O 3 14 और मैं पृथ्वी के उन राजाओं और मन्त्रियों के साथ होता जिन्हों ने अपने लिये सुनसान स्थान बनवा लिए, 18O 3 15 वा मैं उन राजकुमारों के साथ होता जिनके पास सोना था जिन्हों ने अपने घरों को चान्दी से भर लिया था; 18O 3 16 वा मैं असमय गिरे हुए गर्भ की नाई हुआ होता, वा ऐसे बच्चों के समान होता जिन्हों ने उजियाले को कभी देखा ही न हो। 18O 3 17 उस दशा में दुष्ट लोग फिर दु:ख नहीं देते, और थके मांदे विश्राम पाते हैं। 18O 3 18 उस में बन्धुए एक संग सुख से रहते हैं; और परिश्रम करानेवाले का शब्द नहीं सुनते। 18O 3 19 उस में छोटे बड़े सब रहते हैं, और दास अपने स्वामी से स्वतन्त्रा रहता है। 18O 3 20 दु:खियों को उजियाला, और उदास मनवालों को जीवन क्यों दिया जाता है? 18O 3 21 वे मृत्यु की बाट जोहते हैं पर वह आती नहीं; और गड़े हुए धन से अधिक उसकी खोज करते हैं; 18O 3 22 वे क़ब्र को पहुंचकर आनन्दित और अत्यन्त मगन होते हैं। 18O 3 23 उजियाला उस पुरूष की क्यों मिलता है जिसका मार्ग छिपा है, जिसके चारों ओर ईश्वर ने घेरा बान्ध दिया है? 18O 3 24 मुझे तो रोटी खाने की सन्ती लम्बी लम्बी सांसें आती हैं, और मेरा विलाप धारा की नाई बहता रहता है। 18O 3 25 क्योंकि जिस डरावनी बात से मैं डरता हूँ, वही मुझ पर आ पड़ती है, और जिस बात से मैं भय खाता हूँ वही मुझ पर आ जाती है। 18O 3 26 मुझे न तो चैन, न शान्ति, न विश्राम मिलता है; परन्तु दु:ख ही आता है। 18O 4 1 तब तेमानी एलीपज ने कहा, 18O 4 2 यदि कोई तुझ से कुछ कहने लगे, तो क्या तुझे बुरा लगेगा? परन्तु बोले बिना कौन रह सकता है? 18O 4 3 सुन, तू ने बहुतों को शिक्षा दी है, और निर्बल लोगों को बलवन्त किया है। 18O 4 4 गिरते हुओं को तू ने अपनी बातों से सम्भाल लिया, और लड़खड़ाते हुए लोगों को तू ने बलवन्त किया। 18O 4 5 परन्तु अब विपत्ति तो तुझी पर आ पड़ी, और तू निराश हुआ जाता है; उस ने तुझे छुआ और तू घबरा उठा। 18O 4 6 क्या परमेश्वर का भय ही तेरा आसरा नहीं? और क्या तेरी चालचलन जो खरी है तेरी आशा नहीं? 18O 4 7 क्या तुझे मालूम है कि कोई निदष भी कभी नाश हुआ है? या कहीं सज्जन भी काट डाले गए? 18O 4 8 मेरे देखने में तो जो पाप को जोतते और दु:ख बोते हैं, वही उसको काटते हैं। 18O 4 9 वे तो ईश्वर की श्वास से नाश होते, और उसके क्रोध के झोके से भस्म होते हैं। 18O 4 10 सिंह का गरजना और हिंसक सिंह का दहाड़ना बन्द हो आता है। और जवान सिंहों के दांत तोड़े जाते हैं। 18O 4 11 शिकार न पाकर बूढ़ा सिंह मर जाता है, और सिंहनी के वच्चे तितर बितर हो जाते हैं। 18O 4 12 एक बात चुपके से मेरे पास पहुंचाई गई, और उसकी कुछ भनक मेरे कान में पड़ी। 18O 4 13 रात के स्वप्नों की चिन्ताओं के बीच जब मनुष्य गहरी निद्रा में रहते हैं, 18O 4 14 मुझे ऐसी यरथराहट और कंपकंपी लगी कि मेरी सब हडि्डयां तक हिल उठीं। 18O 4 15 तब एक आत्मा मेरे साम्हने से होकर चली; और मेरी देह के रोएं खड़े हो गए। 18O 4 16 वह चुपचाप ठहर गई और मैं उसकी आकृति को पहिचान न सका। परन्तु मेरी आंखों के साम्हने कोई रूप था; पहिले सन्नाटा छाया रहा, फिर मुझे एक शब्द सुन पड़ा, 18O 4 17 क्या नाशमान मनुष्य ईश्वर से अधिक न्यायी होगा? क्या मनुष्य अपने सृजनहार से अधिक पवित्रा हो सकता है? 18O 4 18 देख, वह अपने सेवकों पर भरोसा नहीं रखता, और अपने स्वर्गदूतों को मूर्ख ठहराता है; 18O 4 19 फिर जो मिट्टी के घरों में रहते हैं, और जिनकी नेव मिट्टी में डाली गई है, और जो पतंगे की नाई पिस जाते हैं, उनकी क्या गणना। 18O 4 20 वे भोर से सांझ तक नाश किए जाते हैं, वे सदा के लिये मिट जाते हैं, और कोई उनका विचार भी नहीं करता। 18O 4 21 क्या उनके डेरे की डोरी उनके अन्दर ही अन्दर नहीं कट जाती? वे बिना बुध्दि के ही मर जाते हैं ! 18O 5 1 पुकार कर देख; क्या कोई है जो तुझे उत्तर देगा? और पवित्रों में से तू किस की ओर फिरेगा? 18O 5 2 क्योंकि मूढ़ तो खेद करते करते नाश हो जाता है, और भोला जलते जलते मर मिटता है। 18O 5 3 मैं ने मूढ़ को जड़ माड़ते देखा है; परन्तु अचानक मैं ने उसके वासस्थान को धिक्कारा। 18O 5 4 उसके लड़केबाले उठ्ठार से दूर हैं, और वे फाटक में पीसे जाते हैं, और कोई नहीं है जो उन्हें छुड़ाए। 18O 5 5 उसके खेत की उपज भूखे लोग खा लेते हैं, वरन कटीली बाड़ में से भी निकाल लेते हैं; और प्यासा उनके धन के लिये फन्दा लगाता है। 18O 5 6 क्योंकि विपत्ति धूल से उत्पन्न नहीं होती, और न कष्ट भूमि में से उगता है; 18O 5 7 परन्तु जैसे चिंगारियां ऊपर ही ऊपर को उड़ जाती हैं,वैसे ही मनुष्य कष्ट ही भोगने के लिये उत्पन्न हुआ है। 18O 5 8 परन्तु मैं तो ईश्वर ही को खोजता रहूंगा और अपना मुक़ मा परमेश्वर पर छोड़ दूंगा। 18O 5 9 वह तो एसे बड़े काम करता है जिनकी थाह नहीं लगती, और इतने आश्चर्यकर्म करता है, जो गिने नहीं जाते। 18O 5 10 वही पृथ्वी के ऊपर वर्षा करता, और खेतों पर जल बरसाता है। 18O 5 11 इसी रीति वह नम्र लोगों को ऊंचे स्थान पर बिठाता है, और शोक का पहिरावा पहिने हुए लोग ऊंचे पर पहुचकर बचते हैं। 18O 5 12 वह तो धूर्त्त लोगों की कल्पनाएं व्यर्थ कर देता है, और उनके हाथों से कुछ भी बन नहीं पड़ता। 18O 5 13 वह बुध्दिमानों को उनकी धूर्त्तता ही में फंसाता है; और कुटिल लोगों की युक्ति दूर की जाती है। 18O 5 14 उन पर दिन को अन्धेरा छा जाता है, और दिन दुपहरी में वे रात की नाई टटोलते फिरते हैं। 18O 5 15 परन्तु वह दरिद्रों को उनके वचनरूपी तलवार से और बलवानों के हाथ से बचाता है। 18O 5 16 इसलिये कंगालों को आशा होती है, और कुटिल मनुष्यों का मुंह बन्द हो जाता है। 18O 5 17 देख, क्या ही धन्य वह मनुष्य, जिसको ईश्वर ताड़ना देता है; इसलिये तू सर्वशक्तिमान की ताड़ना को तुच्छ मत जान। 18O 5 18 क्योंकि वही घायल करता, और वही पट्टी भी बान्धता है; वही मारता है, और वही अपने हाथों से चंगा भी करता है। 18O 5 19 वह तुझे छेविपत्तियों से छुड़ाएगा; वरन सात से भी तेरी कुछ हानि न होने पाएगी। 18O 5 20 अकाल में वह तुझे मुत्यु से, और युठ्ठ में तलवार की धार से बचा लेगा। 18O 5 21 तू वचनरूपी कोड़े से बचा रहेगा और जब विनाश आए, तब भी तुझे भय न होगा। 18O 5 22 तू उजाड़ और अकाल के दिनों में हँसमुख रहेगा, और तुझे बनैले जन्तुओं से डर न लगेगा। 18O 5 23 वरन मैदान के पत्थर भी तुझ से वाचा बान्धे रहेंगे, और वनपशु तुझ से मेल रखेंगे। 18O 5 24 और तुझे निश्चय होगा, कि तेरा डेरा कुशल से है, और जब तू अपने निवास में देखेे तब कोई वस्तु खेई न होगी। 18O 5 25 तुझे यह भी निश्चित होगा, कि मेरे बहुत वंश होंगे। और मेरे सन्तान पृथ्वी की घास के तुल्य बहुत होंगे। 18O 5 26 जैसे पूलियों का ढेर समय पर खलिहान में रखा जाता है, वैसे ही तू पूरी अवस्था का होकर क़ब्र को पहुंचेगा। 18O 5 27 देख, हम ने खोज खोजकर ऐसा ही पाया है; इसे तू सुन, और अपने लाभ के लिये ध्यान में रख। 18O 6 1 फिर अरयूब ने कहा, 18O 6 2 भला होता कि मेरा खेद तौला जाता, और मेरी सारी विपत्ति तुला में धरी जाती ! 18O 6 3 क्योंकि वह समुद्र की बालू से भी भारी ठहरती; इसी कारण मेरी बातें उतावली से हूई हैं। 18O 6 4 क्योंकि सर्वशक्तिमान के तीर मेरे अन्दर चुभे हैं; और उनका विष मेरी आत्मा में वैठ गया है ;ईश्वर की भयंकर बात मेरे विरूद्ध पांति बान्धे हैं। 18O 6 5 जब बनैले गदहे को घास मिलती, तब क्या वह रेंकता है? और बैल चारा पाकर क्या डकारता है? 18O 6 6 जो फीका है वह क्या बिना नमक खाया जाता है? क्या अणडे की सफेदी में भी कुछ स्वाद होता है? 18O 6 7 जिन वस्तुओं को मैं छूना भी नहीं चाहता वही मानो मेरे लिये घिनौना आहार ठहरी हैं। 18O 6 8 भला होता कि मुझे मुंह मांगा वर मिलता और जिस बात की मैं आशा करता हूँ वह ईश्वर मुझे दे देता ! 18O 6 9 कि ईश्वर प्रसन्न होकर मुझे कुचल डालता, और हाथ बढ़ाकर मुझे काट डालता ! 18O 6 10 यही मेरी शान्ति का कारण; वरन भारी पीड़ा में भी मैं इस कारण से उछल पड़ता; क्योंकि मैं ने उस पवित्रा के वचनों का कभी इनकार नहीं किया। 18O 6 11 मुझ में बल ही क्या है कि मैं आशा रखूं? और मेरा अन्त ही क्या होगा, कि मैं धीरज धरूं? 18O 6 12 क्या मेरी दृढ़ता पत्थरों की सी है? क्या मेरा शरीर पीतल का है? 18O 6 13 क्या मैं निराधार नहीं हूँ? क्या काम करने की शक्ति मुझ से दूर नहीं हो गई? 18O 6 14 जो पड़ोसी पर कृपा नहीं करता वह सर्वशक्तिमान का भय मानना छोड़ देता है। 18O 6 15 मेरे भाई नाले के समान विश्वासघाती हो गए हैं, वरन उन नालों के समान जिनकी धार सूख जाती है; 18O 6 16 और वे बरफ के कारण काले से हो जाते हैं, और उन में हिम छिपा रहता है। 18O 6 17 परन्तु जब गरमी होने लगती तब उनकी धाराएं लोप हो जाती हैं, और जब कड़ी धूप पड़ती है तब वे अपनी जगह से उड़ जाते हैं 18O 6 18 वे घूमते घूमते सूख जातीं, और सुनसान स्थान में बहकर नाश होती हैं। 18O 6 19 तेमा के बनजारे देखते रहे और शबा के काफिलेवालों ने उनका रास्ता देखा। 18O 6 20 वे लज्जित हुए क्योंकि उन्हों ने भरोसा रखा था और वहां पहुचकर उनके मुंह सूख गए। 18O 6 21 उसी प्रकार अब तुम भी कुछ न रहे; मेरी विपत्ति देखकर तुम डर गए हो। 18O 6 22 क्या मैं ने तुम से कहा था, कि मुझे कुछ दो? वा उपनी सम्पत्ति में से मेरे लिये घूस दो? 18O 6 23 वा मुझे सतानेवाले के हाथ से बचाओ? वा उपद्रव करनेवालों के वश से छुड़ा लो? 18O 6 24 मुझे शिक्षा दो और मैं चुप रहूंगा; और मुझे समझाओ, कि मैं ने किस बान में चूक की है। 18O 6 25 सच्चाई के वचनों में कितना प्रभाव होता है, परन्तु तुम्हारे विवाद से क्या लाभ होता है? 18O 6 26 क्या तुम बातें पकड़ने की कल्पना करते हो? निराश जन की बातें तो वायु की सी हैं। 18O 6 27 तुम अनाथों पर चिट्ठी डालते, और अपने मित्रा को बेचकर लाभ उठानेवाले हो। 18O 6 28 इसलिये अब कृपा करके मुझे देखो; निश्चय मैं तुम्हारे साम्हने कदापि झूठ न बोलूंगा। 18O 6 29 फिर कुछ अन्याय न होने पाए; फिर इस मुक़ मे में मेरा धर्म ज्यों का त्यों बना है, मैं सत्य पर हूँ। 18O 6 30 क्या मेरे वचनों में कुछ कुटिलता है? क्या मैं दुष्टता नहीं पहचान सकता? 18O 7 1 क्या मनुष्य को पृथ्वी पर कठिन सेवा करनी नहीं पड़ती? क्या उसके दिन मजदूर के से नहीं होते? 18O 7 2 जैसा कोई दास छाया की अभिलाषा करे, वा मजदूर अपनी मजदूरी की आशा रखे; 18O 7 3 वैसा ही मैं अनर्थ के महीनों का स्वामी बनाया गया हूँ, और मेरे लिये क्लेश से भरी रातें ठहराई गई हैं। 18O 7 4 जब मैं लेट लाता, तब कहता हूँ, मैं कब उठूंगा? और रात कब बीतेगी? और पौ फटने तक छटपटाते छटपटाते उकता जाता हूँ। 18O 7 5 मेरी देह कीड़ों और और मिट्टी के ढेलों से ढकी हुई है; मेरा चमड़ा सिमट जाता, और फिर गल जाता है। 18O 7 6 मेरे दिन जुलाहे की धड़की से अधिक फुत से चलनेवाले हैं और निराशा में बीते जाते हैं। 18O 7 7 याद कर कि मेरा जीवन वायु ही है; और मैं अपनी आंखों से कल्याण फिर न देखूंगा। 18O 7 8 जो मुझे अब देखता है उसे मैं फिर दिखाई न दूंगा; तेरी आंखें मेरी ओर होंगी परन्तु मैं न मिलूंगा। 18O 7 9 जैसे बादल छटकर लोप हो जाता है, वैसे ही अधोलोक में उतरनेवाला फिर वहां से नहीं लौट सकता; 18O 7 10 वह अपने घर को फिर लौट न आएगा, और न अपने स्थान में फिर मिलेगा। 18O 7 11 इसलिये मैं अपना मुंह बन्द न रखूंगा; अपने मन का खेद खोलकर कहूंगा; और अपने जीव की कड़ुवाहट के कारण कुड़कुड़ाता रहूंगा। 18O 7 12 क्या मैं समुद्र हूँ, वा मगरमच्छ हूँ, कि तू मुझ पर पहरा बैठाता है? 18O 7 13 जब जब मैं सोचता हूं कि मुझे खाट पर शान्ति मिलेगी, और बिछौने पर मेरा खेद कुछ हलका होगा; 18O 7 14 तब तब तू मुझे स्वप्नों से घबरा देता, और दर्शनों से भयभीत कर देता है; 18O 7 15 यहां तक कि मेरा जी फांसी को, और जीवन से मृत्यु को अधिक चाहता है। 18O 7 16 मुझे अपने जीवन से घृणा आती है; मैं सर्वदा जीवित रहना नहीं चाहता। मेरा जीवनकाल सांस सा है, इसलिये मुझे छोड़ दे। 18O 7 17 मनुष्य क्या है, कि तू उसे महत्व दे, और अपना मन उस पर लगाए, 18O 7 18 और प्रति भोर को उसकी सुधि ले, और प्रति क्षण उसे जांचता रहे? 18O 7 19 तू कब तक मेरी ओर आंख लगाए रहेगा, और इतनी देर के लिये भी मुझे न छोड़ेगा कि मैं अपना थूक निगल लूं? 18O 7 20 हे मनुष्यों के ताकनेवाले, मैं ने पाप तो किया होगा, तो मैं ने तेरा क्या बिगाड़ा? तू ने क्यों मुझ को अपना निशाना बना लिया है, यहां तक कि मैं अपने ऊपर आपही बोझ हुआ हूँ? 18O 7 21 और तू क्यों मेरा अपराध क्षमा नहीं करता? और मेरा अधर्म क्यों दूर नहीं करता? अब तो मैं मिट्टी में सो जाऊंगा, और तू मुझे यत्न से ढूंढ़ेगा पर मेरा पता नहीं मिलेगा। 18O 8 1 तब शूही बिलदद ने कहा, 18O 8 2 तू कब तक ऐसी ऐसी बातें करता रहेगा? और तेरे मुंह की बातें कब तक प्रचणड वायु सी रहेगी? 18O 8 3 क्या ईश्वर अन्याय करता है? और क्या सर्वशक्तिमान धर्म को उलटा करता है? 18O 8 4 यदि तेरे लड़केबालों ने उसके विरूद्ध पाप किया है, तो उस ने उनको उनके अपराध का फल भुगताया है। 18O 8 5 तौभी यदि तू आप ईश्वर को यत्न से ढूंढ़ता, और सर्वशक्तिमान से गिड़गिड़ाकर बिनती करता, 18O 8 6 और यदि तू निर्मल और धम रहता, तो निश्चय वह तेरे लिये जागता; और तेरी धर्मिकता का निवास फिर ज्यों का त्यों कर देता। 18O 8 7 चाहे तेरा भाग पहिले छोटा ही रहा हो परन्तु अन्त में तेरी बहुत बढती होती। 18O 8 8 अगली पीढ़ी के लोगों से तो पूछ, और जो कुछ उनके पुरखाओं ने जांच पड़ताल की है उस पर ध्यान दे। 18O 8 9 क्योंकि हम तो कल ही के हैं, और कुछ नहीं जानते; और पृथ्वी पर हमारे दिन छाया की नाई बीतते जाते हैं। 18O 8 10 क्या वे लोग तुझ से शिक्षा की बातें न कहेंगे? क्या वे अपने मन से बात न निकालेंगे? 18O 8 11 क्या कछार की घास पानी बिना बढ़ सकती है? क्या सरकणडा कीच बिना बढ़ता है? 18O 8 12 चाहे वह हरी हो, और काटी भी न गई हो, तौभी वह और सब भांति की घास से पहिले ही सूख जाती है। 18O 8 13 ईश्वर के सब बिसरानेवालों की गति ऐसी ही होती है और भक्तिहीन की आशा टूट जाती है। 18O 8 14 उसकी आश का मूल कट जाता है; और जिसका वह भरोसा करता है, वह मकड़ी का जाला ठहराता है। 18O 8 15 चाहे वह अपने घर पर टेक लगाए परन्तु वह न ठहरेगा; वह उसे दृढ़ता से थांभेगा परन्तु वह स्थ्रि न रहेगा। 18O 8 16 वह चूप पाकर हरा भरा हो जाता है, और उसकी डालियां बगीचे में चारों ओर फैलती हैं। 18O 8 17 उसकी जड़ कंकरों के ढेर में लिपटी हुई रहती है, और वह पत्त्र के स्थान को देख लेता है। 18O 8 18 परन्तु जब वह अपने स्थान पर से नाश किया जाए, तब वह स्थान उस से यह कहकर मुंह मोड़ लेगा कि मैं ने उसे कभी देखा ही नहीं। 18O 8 19 देख, उसकी आनन्द भरी चाल यही है; फिर उसी मिट्टी में से दूसरे उगेंगे। 18O 8 20 देख, ईश्वर न तो खरे मनुष्य को निकम्मा जानकर छोड़ देता है, और न बुराई करतेवालों को संभालता है। 18O 8 21 वह तो तुझे हंसमुख करेगा; और तुझ से जयजयकार कराएगा। 18O 8 22 तेरे वैरी लज्जा का वस्त्रा पहिनेंगे, और दुष्टों का डेरा कहीं रहने न पाएगा। 18O 9 1 तब अरयूब ने कहा, 18O 9 2 मैं निश्चय जानता हूं, कि बात ऐसी ही है; परन्तु मनुष्य ईश्वर की दृष्टि में क्योंकर धम ठहर सकता है? 18O 9 3 चाहे वह उस से मुक़ मा लड़ना भी चाहे तौभी मनुष्य हजार बातों में से एक का भी उत्तर न दे सकेगा। 18O 9 4 वह बुध्दिमान और अति सामथ हैे उसके विरोध में हठ करके कौन कभी प्रबल हुआ है? 18O 9 5 वह तो पर्वतों को अचानक हटा देता है और उन्हें पता भी नहीं लगता, वह क्रोध में आकर उन्हें उलट पुलट कर देता है। 18O 9 6 वह पृथ्वी को हिलाकर उसके स्थान से अलग करता है, और उसके खम्भे कांपने लगते हैं। 18O 9 7 उसकी आज्ञा बिना सूर्य उदय होता ही नहीं; और वह तारोंपर मुहर लगाता है; 18O 9 8 वह आकाशमणडल को अकेला ही फैलाता है, और समुद्र की ऊंची ऊंची लहरों पर चलता है; 18O 9 9 वह सप्तर्षि, मृगशिरा और कचपचिया और दक्खिन के नक्षत्रों का बनानेवाला है। 18O 9 10 वह तो ऐसे बड़े कर्म करता है, जिनकी थाह नहीं लगती; और इतने आश्चर्यकर्म करता है, जो गिने नहीं जा सकते। 18O 9 11 देखो, वह मेरे साम्हने से होकर तो चलता है परन्तु मुझको नहीं दिखाई पड़ता; और आगे को बढ़ जाता है, परन्तु मुझे सूझ ही नहीं पड़ता है। 18O 9 12 देखो, जब वह छीनने लगे, तब उसको कौन रोकेगा? कोन उस से कह सकता है कि तू यह क्या करता है? 18O 9 13 ईश्वर अपना क्रोध ठंडा नहीं करता। अभिमानी के सहायकों को उसके पांव तले झुकना पड़ता है। 18O 9 14 फिर मैं क्या हूं, जो उसे उत्तर दूं, और बातें छांट छांटकर उस से विवाद करूं? 18O 9 15 चाहे मैं निदष भी होता परन्तु उसको उत्तर न दे सकता; मैं अपने मु ई से गिड़गिड़ाकर बिनती करता। 18O 9 16 चाहे मेरे पुकारने से वह उत्तर भी देता, तौभी मैं इस बात की प्रतीति न करता, कि वह मेरी बात सुनता है। 18O 9 17 वह तो आंधी चलाकर मुझे तोड़ डालता है, और बिना कारण मेरे चोट पर चोट लगाता है। 18O 9 18 वह मुझे सांस भी लेने नहीं देता है, और मुझे कड़वाहट से भरता है। 18O 9 19 जो सामर्थ्य की चर्चा हो, तो देखो, वह बलवान हैे और यदि न्याय की चर्चा हो, तो वह कहेगा मुझ से कौन मुक़ मा लड़ेगा? 18O 9 20 चाहे मैं निदष ही क्यों न हूँ, परन्तु अपने ही मुंह से दोषी ठहरूंगा; खरा होने पर भी वह मुझे कुटिल ठहराएगा। 18O 9 21 मैं खरा तो हूँ, परन्तु अपना भेद नहीं जानता; अपने जीवन से मुझे घृण आती है। 18O 9 22 बात तो एक ही है, इस से मैं यह कहता हूँ कि ईश्वर खरे और दुष्ट दोनों को नाश करता है। 18O 9 23 जब लोग विपत्ति से अचानक मरने लगते हैं तब वह निदष लोगों के जांचे जाने पर हंसता है। 18O 9 24 देश दुष्टों के हाथ में दिया गया है। वह उसके न्यायियों की आंखों को मून्द देता है; इसका करनेवाला वही न हो तो कौन है? 18O 9 25 मेरे दिन हरकारे से भी अधिक वेग से चले जाते हैं; वे भागे जाते हैं और उनको कल्याण कुछ भी दिखाई नहीं देता। 18O 9 26 वे वेग चाल से नावों की नाई चले जाते हैं, वा अहेर पर झपटते हुए उक़ाब की नाई। 18O 9 27 जो मैं कहूं, कि विलाप करना झूल जाऊंगा, और उदासी छोड़कर अपना मन प्रफुल्लित कर दूंगा, 18O 9 28 तब मैं अपने सब दुखों से डरता हूँ। मैं तो जानता हूँ, कि तू मुझे निदष न ठहराएगा। 18O 9 29 मैं तो दोषी ठहरूंगा; फिर व्यर्थ क्यों परिश्रम करूं? 18O 9 30 चाहे मैं हिम के जल में स्नान करूं, और अपने हाथ खार से निर्मल करूं, 18O 9 31 तैभी तू मुझे गड़हे में डाल ही देगा, और मेरे वस्त्रा भी मुझ से घिनाएंगे। 18O 9 32 क्योंकि वह मेरे तुल्य मनुष्य नहीं है कि मैं उस से वादविवाद कर सकूं, और हम दोनों एक दूसरे से मुक़ मा लड़ सकें। 18O 9 33 हम दोनों के बीच कोई बिचवई नहीं है, जो हम दोंनों पर अपना हाथ रखे। 18O 9 34 वह अपना सोंटा मुझ पर से दूर करे और उसकी भय देनेवाली बात मुझे न घबराए। 18O 9 35 तब मैं उस से निडर होकर कुछ कह सकूंगा, क्योंकि मैं अपनी दृष्टि में ऐसा नहीं हूँ। 18O 10 1 मेरा प्राण जीवित रहने से उकताता है; मैं स्वतंत्राता पूर्वक कुड़कुड़ाऊंगा; और मैं अपने मन की कड़वाहट के मारे बातें करूंगा। 18O 10 2 मै ईश्वर से कहूंगा, मुझे दोषी न ठहरा; मुझे बता दे, कि तू किस कारण मूझ से मुक़ मा लड़ता है? 18O 10 3 क्या तुझे अन्धेर करना, और दुष्टों की युक्ति को सुफल करके अपने हाथों के बनाए हुए को निकम्मा जानना भला लगता है? 18O 10 4 क्या तेरी देश्धारियों की सी बांखें है? और क्या तेरा देखना मनुष्य का सा है? 18O 10 5 क्या तेरे दिन मनुष्य के दिन के समान हैं, वा तेरे वर्ष पुरूष के समयों के तुल्य हैं, 18O 10 6 कि तू मेरा अधर्म ढूंढ़ता, और मेरा पाप पूछता है? 18O 10 7 तुझे तो मालूम ही है, कि मैं दुष्ट नहीं हूँ, और तेरे हाथ से कोई छुड़ानेवाला नहीं ! 18O 10 8 तू ने अपने हाथों से मुझे ठीक रचा है और जोड़कर बनाया है; तौभी मुझे नाश किए डालता है। 18O 10 9 स्मरण कर, कि तू ने मुझ को गून्धी हुई मिट्टी की नाई बनाया, क्या तू मुझे फिर धूल में मिलाएगा? 18O 10 10 क्या तू ने मुझे दूध की नाई उंडेलकर, और दही के समान जमाकर नहीं बनाया? 18O 10 11 फिर तू ने मुझ पर चमड़ा और मांस चढ़ाया और हडि्डयां और नसें गूंथकर मुझे बनाया है। 18O 10 12 तू ने मुझे जीवन दिया, और मुझ पर करूणा की है; और तेरी चौकसी से मेरे प्राण की रक्षा हई है। 18O 10 13 तौभी तू ने ऐसी बातों को अपने मन में छिपा रखा; मैं तो जान गया, कि तू ने ऐसा ही करने को ठाना था। 18O 10 14 जो मैं पाप करूं, तो तू उसका लेखा लेगा; और अधर्म करने पर मुझे निदष न ठहराएगा। 18O 10 15 जो मैं दुष्टता करूं तो मुझ पर हाय ! और जो मैं धम बनूं तौभी मैं सिर न उठाऊंगा, क्योंकि मैं अपमान से भरा हुआ हूं और अपने दु:ख पर ध्यान रखता हूँ। 18O 10 16 और चाहे सिर उठाऊं तौभी तू सिंह की नाई मेरा अहेर करता है, और फिर मेरे विरूद्ध आश्चर्यकर्म करता है। 18O 10 17 तू मेरे साम्हने अपने नये नये साक्षी ले आता है, और मुझ पर अपना क्रोध बढ़ाता है; और मुझ पर सेना पर सेना चढ़ाई करती है। 18O 10 18 तू ने मुझे गर्भ से क्यों निकाला? नहीं तो मैं वहीं प्राण छोड़ता, और कोई मुझे देखने भी न पाता। 18O 10 19 मेरा होना न होने के समान होता, और पेट ही से क़ब्र को पहुंचाया जाता। 18O 10 20 क्या मेरे दिन थोड़े नहीं? मुझे छोड़ दे, और मेरी ओर से मुंह फेर ले, कि मेरा मन थोड़ा शान्त हो जाए 18O 10 21 इस से पहिले कि मैं वहां जाऊं, जहां से फिर न लौटूंगा, अर्थात् अन्धियारे और धोर अन्धकार के देश में, जहां अन्धकार ही अन्धकार है; 18O 10 22 और मृत्यु के अन्धकार का देश जिस में सब कुछ गड़बड़ है; और जहां प्रकाश भी ऐसा है जैसा अन्धकार। 18O 11 1 तब नामाती सोपर ने कहो 18O 11 2 बहुत सी बातें जो कही गई हैं, क्या उनका उत्तर देना न चाहिये? क्या बकवादी मनुष्य धम ठहराया जाए? 18O 11 3 क्या तेरे बड़े बोल के कारण लोग चुप रहें? और जब तू ठट्ठा करता है, तो क्या कोई तुझे लज्जित न करे? 18O 11 4 तू तो यह कहता है कि मेरा सिठ्ठान्त शुठ्ठ है और मैं ईश्वर की दृष्टि में पवित्रा हूँ। 18O 11 5 परन्तु भला हो, कि ईश्वर स्वयं बातें करें, और तेरे विरूद्ध मुंह खोले, 18O 11 6 और तुझ पर बुध्दि की गुप्त बातें प्रगट करे, कि उनका मर्म तेरी बुध्दि से बढ़कर है। इसलिये जान ले, कि ईश्वर तेरे अधर्म में से बहुत कुछ भूल जाता है। 18O 11 7 क्या तू ईश्वर का गूढ़ भेद पा सकता है? और क्या तू सर्वशक्तिमान का मर्म पूरी रीति से चांच सकता है? 18O 11 8 वह आकाश सा ऊंचा है; तू क्या कर सकता है? वह अधोलोक से गहिरा है, तू कहां समझ सकता है? 18O 11 9 उसकी माप पृथ्वी से भी लम्बी है और समुद्र से चौड़ी है। 18O 11 10 जब ईश्वर बीच से गुजरकर बन्द कर दे और अदालत में बुलाए, तो कौन उसको रोक सकता है। 18O 11 11 क्योंकि वह पाखणडी मनुष्यों का भेद जानता है, और अनर्थ काम को बिना सोच विचार किए भी जान लेता है। 18O 11 12 पनन्तु मनुष्य छूछा और निर्बुध्दि होता है; क्योंकि मनुष्य जन्म ही से जंगली गदहे के बच्चे के समान होता है। 18O 11 13 यदि तू अपना मन शुठ्ठ करे, और ईश्वर की ओर अपने हाथ फैलाए, 18O 11 14 और जो कोई अनर्थ काम तुझ से होता हो उसे दूर करे, और अपने डेरों में कोई कुटिलता न रहने दे, 18O 11 15 तब तो तू निश्चय अपना मुंह निष्कलंक दिखा सकेगा; और तू स्थ्रि होकर कभी न डरेगा। 18O 11 16 तब तू अपना दु:ख भूल जाएगा, तू उसे उस पानी के समान स्मरण करेगा जो बह गया हो। 18O 11 17 और तेरा जीवन दोपहर से भी अधिक प्रकाशमान होगा; और चाहे अन्धेरा भी हो तौभी वह भोर सा हो जाएगा। 18O 11 18 और तुझे आशा होगी, इस कारण तू निर्भय रहेगा; और अपने चारों ओर देख देखकर तू निर्भय विश्राम कर सकेगा। 18O 11 19 और जब तू लेटेगा, तब कोई तुझे डराएगा नहीं; और बहुतेरे तुझे प्रसन्न करते का यत्न करेंगे। 18O 11 20 परन्तु दुष्ट लोगों की आंखें रह जाएंगी, और उन्हें कोई शरूण स्थान न मिलेगा और उनकी आशा यही होगी कि प्राण निकल जाए। 18O 12 1 तब अरयूब ने कहा; 18O 12 2 निेसन्देह मनुष्य तो तुम ही हो और जब तुम मरोगे तब बुध्दि भी जाती रहेगी। 18O 12 3 परन्तु तुम्हारी नाई मुझ में भी समझ है, मैं तुम लोगों से कुछ तीचा नहीं हूँ कौन ऐसा है जो ऐसी बातें न जानता हो? 18O 12 4 मैं ईश्वर से प्रार्थना करता था, और वह मेरी सुन दिया करता था; परन्तु अब मेरे पड़ोसी मुझ पर हंसते हैं; जो धम और खरा मनुष्य है, वह हंसी का कारण हो गया है। 18O 12 5 दु:खी लोग तो सुखियों की समझ में तुच्छ जाने जाते हैं; और जिनके पांव फिसला चाहते हैं उनका अपमान अवश्य ही होता है। 18O 12 6 डाकुओं के डेरे कुशल क्षेम से रहते हैं, और जो ईश्वर को क्रोध दिलाते हैं, वह बहुत ही निडर रहते हैं; और उनके हाथ में ईश्वर बहुत देता है। 18O 12 7 पशुओं से तो पूछ और वे तुझे दिखाएंगे; और आकाश के पक्षियों से, और वे तुझे बता देंगे। 18O 12 8 पृथ्वी पर ध्यान दे, तब उस से तुझे शिक्षा मिलेगी; ओर समुद्र की मछलियां भी तुझ से वर्णन करेंगी। 18O 12 9 कौन इन बातों को नहीं जानता, कि यहोवा ही ने अपने हाथ से इस संसार को बनाया है। 18O 12 10 उसके हाथ में एक एक जीवधारी का प्राण, और एक एक देहधारी मनुष्य की आत्मा भी रहती है। 18O 12 11 जैसे जीभ से भोजन चखा जाता है, क्या वैसे ही कान से वचन नहीं परखे जाते? 18O 12 12 बूढ़ां में बुध्दि पाई जाती है, और लम्बी आयुवालों में समझ होती तो है। 18O 12 13 ईश्वर में पूरी बुध्दि और पराक्रम पाए जाते हैं; युक्ति और समझ उसी में हैं। 18O 12 14 देखो, जिसको वह ढा दे, वह फिर बनाया नहीं जाता; जिस मनुष्य को वह बन्द करे, वह फिर खोला नहीं जाता। 18O 12 15 देखो, जब वह वर्षा को रोक रखता है तो जल सूख जाता है; फिर जब वह जल छोड़ देता है तब पृथ्वी उलट जाती है। 18O 12 16 उस में सामर्थ्य और खरी बुध्दि पाई जाती है; धोख देनेवाला और धोखा खानेवाला दोनों उसी के हैं। 18O 12 17 वह मंत्रियों को लूटकर बन्धुआई में ले जाता, और न्यायियों को मूर्ख बना देता है। 18O 12 18 वह राजाओं का अधिकार तोड़ देता है; और उनकी कमर पर बन्धन बन्धवाता है। 18O 12 19 वह याजकों को लूटकर बन्धुआई में ले जाता और सामर्थियों को उलट देता है। 18O 12 20 वह विश्वासयोेग्य पुरूषों से बोलने की शक्ति और पुरनियों से विवेक की शक्ति हर लेता है। 18O 12 21 वह हाकिमों को अपमान से लादता, और बलवानों के हाथ ढीले कर देता है। 18O 12 22 वह अन्धियारे की गहरी बातें प्रगट करता, और मृत्यु की छाया को भी प्रकाश में ले आता है। 18O 12 23 वह जातियों को बढ़ाता, और उनको नाश करता है; वह उनको फैलाता, और बन्धुआई में ले जाता है। 18O 12 24 वह पृथ्वी के मुख्य लोगों की बुध्दि उड़ा देता, और उनको निर्जन स्थानों में जहां रास्ता नहीं है, भटकाता है। 18O 12 25 वे बिन उजियाले के अन्धेरे में टटोलते फिरते हैं; और वह उन्हें ऐसा बना देता है कि वे मतवाले की नाई डगमगाते हुए चलते हैं। 18O 13 1 सुनो, मैं यह सब कुछ अपनी आंख से देख चुका, और अपने कान से सुन चुका, और समझ भी चुका हूँ। 18O 13 2 जो कुछ तुम जानते हो वह मैं भी जानता हूँ; मैं तुम लोगों से कुछ कम नहीं हूँ। 18O 13 3 मैं तो सर्वशक्तिमान से बातें करूंगा, और मेरी अभिलाषा ईश्वर से वादविवाद करने की है। 18O 13 4 परन्तु तुम लोग झूठी बात के गढ़नेवाले हो; तुम सबके सब निकम्मे वैद्य हो। 18O 13 5 भला होता, कि तुम बिलकुल चुप रहते, और इस से तुम बुध्दिमान ठहरते। 18O 13 6 मेरा विवाद सुनो, और मेरी बहस की बातों पर कान लगाओ। 18O 13 7 क्या तुम ईश्वर के निमित्त टेढ़ी बातें कहोगे, और उसके पक्ष में कपट से बोलोगे? 18O 13 8 क्या तुम उसका पक्षपात करोगे? और ईश्वर के लिये मुक मा चलाओगे। 18O 13 9 क्या यह भला होगा, कि वह तुम को जांचे? क्या जैसा कोई मनुष्य को धोखा दे, वैसा ही तुम क्या उसको भी धेखा दोगे? 18O 13 10 जो तुम छिपकर पक्षपात करो, तो वह निश्चय तुम को डांटेगा। 18O 13 11 क्या तुम उसके माहात्म्य से भय न खाओगे? क्या उसका डर तुम्हारे मन में न समाएगा? 18O 13 12 तुम्हारे स्मरणयोग्य नीतिवचन राख के समान हैं; तुम्हारे कोट मिट्टी ही के ठहरे हैंे 18O 13 13 मुझ से बात करना छोड़ो, कि मैं भी कुछ कहने पाऊं; फिर मुझ पर जो चाहे वह आ पड़े। 18O 13 14 मैं क्यों अपना मांस अपने दांतों से चबाऊं? और क्यों अपना प्राण हथेली पर रखूं? 18O 13 15 वह मुझे घात करेगा, मुझे कुछ आशा नहीं; तौभी मैं अपनी चाल चलन का पक्ष लूंगा। 18O 13 16 और यह भी मेरे बचाव का कारण होगा, कि भक्तिहीन जन उसके साम्हने नहीं जा सकता। 18O 13 17 चित्त लगाकर मेरी बात सुनो, और मेरी बिनती तुम्हारे कान में पड़े। 18O 13 18 देखो, मैं ने अपने बहस की पूरी तैयारी की है; मुझे निश्चय है कि मैं निदष ठहरूंगा। 18O 13 19 कौन है जो मुझ से मुक मा लड़ सकेगा? ऐसा कोई पाया जाए, तो मैं चुप होकर प्राण छोडूंगा। 18O 13 20 दो ही काम मुझ से न कर, तब मैं तुझ से नहीं छिपूंगो 18O 13 21 अपनी ताड़ना मुझ से दूर कर ले, और अपने भय से मुझे भयभीत न कर। 18O 13 22 तब तेरे बुलाने पर मैं बोलूंगा; नहीं तो मैं प्रश्न करूंगा, और तू मुझे उत्तर दे। 18O 13 23 मुझ से कितने अधर्म के काम और पाप हुए हैं? मेरे अपराध और पाप मुझे जता दे। 18O 13 24 तू किस कारण अपना मुंह फेर लेता है, और मुझे अपना शत्रु गिनता है? 18O 13 25 क्या तू उड़ते हुए पत्ते को भी कंपाएगा? और सूखे डंठल के पीछे पड़ेगा? 18O 13 26 तू मेरे लिये कठिन दु:खों की आज्ञा देता है, और मेरी जवानी के अधर्म का फल मुझे भुगता देता है। 18O 13 27 और मेरे पांवों को काठ में ठोंकता, और मेरी सारी चाल चलन देखता रहता है; और मेरे पांवों की चारों ओर सीमा बान्ध लेता है। 18O 13 28 और मैं सड़ी गली वस्तु के तुल्य हूं जो नाश हो जाती है, और कीड़ा खाए कपड़े के तुल्य हूँ। 18O 14 1 मनुष्य जो स्त्री से उत्मन्न होता है, वह थेड़े दिनों का और दुख से भरा रहता है। 18O 14 2 वह फूल की नाई खिलता, फिर तोड़ा जाता हे; वह छाया की रीति पर ढल जाता, और कहीं ठहरता नहीं। 18O 14 3 फिर क्या तू ऐसे पर दृष्टि लगाता है? क्या तू मुझे अपने साथ कचहरी में घसीटता है? 18O 14 4 अशुठ्ठ वस्तु से शुठ्ठ वस्तु को कौन निकाल सकता है? कोई नहीं। 18O 14 5 मनुष्य के दिन नियुक्त किए गए हैं, और उसके महीनों की गिनती तेरे पास लिखी है, और तू ने उसके लिये ऐसा सिवाना बान्धा है जिसे वह पार नहीं कर सकता, 18O 14 6 इस कारण उस से अपना मुंह फेर ले, कि वह आराम करे, जब तक कि वह मजदूर की नाई अपना दिन पूरा न कर ले। 18O 14 7 वुक्ष की तो आशा रहती है, कि चाहे वह काट डाला भी जाए, तौभी फिर पनपेगा और उस से नर्म नर्म डालियां निकलती ही रहेंगी। 18O 14 8 चाहे उसकी जड़ भूमि में पुरानी भी हो जाए, और उसका ठूंठ मिट्टी में सूख भी जाए, 18O 14 9 तौभी वर्षा की गन्ध पाकर वह फिर पनपेगा, और पौधे की नाई उस से शाखाएं फूटेंगी। 18O 14 10 परन्तु पुरूष मर जाता, और पड़ा रहता है; जब उसका प्राण छूट गया, तब वह कहां रहा? 18O 14 11 जैसे नील नदी का जल घट जाता है, और जैसे महानद का जल सूखते सूखते सूख जाता है, 18O 14 12 वैसे ही मनुष्य लेट जाता और फिर नहीं उठता; जब तक आकाश बना रहेगा तब तक वह न जागेगा, और न उसकी नींद टूटेगी। 18O 14 13 भला होता कि तू मुझे अधोलोक में छिपा लेता, और जब तक तेरा कोप ठंढा न हो जाए तब तक मुझे छिपाए रखता, और मेरे लिये समय नियुक्त करके फिर मेरी सुधि लेता। 18O 14 14 यदि मनुष्य मर जाए तो क्या वह फिर जीवित होगा? जब तक मेरा छूटकारा न होता तब तक मैं अपनी कठिन सेवा के सारे दिन आशा लगाए रहता। 18O 14 15 तू मुझे बुलाता, और मैं बोलता; तुझे अपने हाथ के बनाए हुए काम की अभिलाषा होती। 18O 14 16 परन्तु अब तू मेरे पग पग को गिनता है, क्या तू मेरे पाप की ताक में लगा नहीं रहता? 18O 14 17 मेरे अपराध छाप लगी हुई थैली में हैं, और तू ने मेरे अधर्म को सी रखा है। 18O 14 18 और निश्चय पहाड़ भी गिरते गिरते नाश हो जाता है, और चट्टान अपने स्थान से हट जाती है; 18O 14 19 और पत्थर जल से घिस जाते हैं, और भूमि की धूलि उसकी बाढ़ से बहाई जाती है; उसी प्रकार तू मनुष्य की आशा को मिटा देता है। 18O 14 20 तू सदा उस पर प्रबल होता, और वह जाता रहता है; तू उसका चिहरा बिगाड़कर उसे निकाल देता है। 18O 14 21 उसके पुत्रों की बड़ाई होती है, और यह उसे नहीं सूझता; और उनकी घटी होती है, परन्तु वह उनका हाल नहीं जानता। 18O 14 22 केवल अपने ही कारण उसकी देी को दु:ख होता है; और अपने ही कारण उसका प्राण अन्दर ही अन्दर शोकित रहता है। 18O 15 1 तब तेमानी एलीपज ने कहा, 18O 15 2 क्या बुध्दिमान को उचित है कि अज्ञानता के साथ उत्तर दे, वा उपने अन्तेकरण को पूरबी पवन से भरे? 18O 15 3 क्या वह निष्फल वचनों से, वा व्यर्थ बातों से वादविवाद करे? 18O 15 4 वरन तू भय मानना छोड़ देता, और ईश्वर का ध्यान करना औरों से छुड़ाता है। 18O 15 5 तू अपने मुंह से अपना अधर्म प्रगट करता है, और धूर्त्त लोगों के बोलने की रीति पर बोलता है। 18O 15 6 मैं तो नहीं परन्तु तेरा मुंह ही तुझे दोषी ठहराता है; और तेरे ही वचन तेरे विरूद्ध साक्षी देते हैं। 18O 15 7 क्या पहिला मतुष्य तू ही उत्पन्न हुआ? क्या तेरी उत्पत्ति पहाड़ों से भी पहिले हुई? 18O 15 8 क्या तू ईश्वर की सभा में बैठा सुनता था? क्या बुध्दि का ठीका तू ही ने ले रखा है? 18O 15 9 तू ऐसा क्या जानता है जिसे हम नहीं जानते? तुझ में ऐसी कौन सी समझ है जो हम में नहीं? 18O 15 10 हम लोगों में तो पक्के बालवाले और अति पुरनिये मनुष्य हैं, जो तेरे पिता से भी बहुत आयु के हैं। 18O 15 11 ईश्वर की शान्तिदायक बातें, और जो वचन तेरे लिये कोमल हैं, क्या ये तेरी दृष्टि में तुच्छ हैं? 18O 15 12 तेरा मन क्यों तुझे खींच ले जाता है? और तू आंख से क्यों सैन करता है? 18O 15 13 तू भी अपनी आत्मा ईश्वर के विरूद्ध करता है, और अपने मुंह से व्यर्थ बातें निकलने देता है। 18O 15 14 मनुष्य है क्या कि वह निष्कलंक हो? और जो स्त्री से उत्पन्न हुआ वह है क्या कि निदष हो सके? 18O 15 15 देख, वह अपने पवित्रों पर भी विश्वास नहीं करता, और स्वर्ग भी उसकी दृष्टि में निर्मल नहीं है। 18O 15 16 फिर मनुष्य अधिक घिनौना और मलीन है जो कुटिलता को पानी की नाई पीता है। 18O 15 17 मैं तुझे समझा दूंगा, इसलिये मेरी सुन ले, जो मैं ने देखा है, उसी का वर्णन मैं करता हूँ। 18O 15 18 (वे ही बातें जो बुध्दिमानों ने अपने पुरखाओं से सुनकर बिना छिपाए बताया है। 18O 15 19 केवल उन्हीं को देश दिया गया था, और उनके मध्य में कोई विदेशी आता जाता नहीं था।) 18O 15 20 दुष्ट जन जीवन भर पीड़ा से तड़पता है, और बलात्कारी के वष की गिनती ठहराई हुई है। 18O 15 21 उसके कान में डरावना शब्द गूंजता रहता है, कुशल के समय भी नाशक उस पर आ पड़ता है। 18O 15 22 उसे अन्ध्यिारे में से फिर निकलने की कुछ आशा नहीं होती, और तलवार उसकी घात में रहती है। 18O 15 23 वह रोटी के लिये मारा मारा फिरता है, कि कहां मिलेगी। उसे निश्चय रहता है, कि अन्धकार का दिन मेरे पास ही है। 18O 15 24 संकट और दुर्घटना से असको डर लगता रहता है, ऐसे राजा की नाई जो युठ्ठ के लिये तैयार हो, वे उस पर प्रबल होते हैं। 18O 15 25 उस ने तो ईश्वर के विरूद्ध हाथ बढ़ाया है, और सर्वशक्तिमान के विरूद्ध वह ताल ठोंकता है, 18O 15 26 और सिर उठाकर और अपनी मोटी मोटी ढालें दिखाता हुआ घमणड से उस पर धावा करता है; 18O 15 27 इसलिये कि उसके मुंह पर चिकनाई छा गई है, और उसकी कमर में चब जमी है। 18O 15 28 और वह उजाड़े हुए नगरों में बस गया है, और जो घर रहने योग्य नहीं, और खणडहर होने को छोड़े गए हैं, उन में बस गया है। 18O 15 29 वह धनी न रहेगा, और न उसकी सम्पत्ति बनी रहेगी, और ऐसे लोगों के खेत की उपज भूमि की ओर न भुकने पाएगी। 18O 15 30 वह अन्धियारे से कभी न निकलेगा, और उसकी डालियां आग की लपट से झुलस जाएंगी, और ईश्वर के मुंह की श्वास से वह उड़ जाएगा। 18O 15 31 वह अपने को धोखा देकर व्यर्थ बातों का भरोसा न करे, क्योंकि उसका बदला धोखा ही होगा। 18O 15 32 वह उसके नियत दिन से पहिले पूरा हो जाएगा; उसकी डालियां हरी न रहेंगी। 18O 15 33 दाख की नाई उसके कच्चे फल झड़ जाएंगे, और उसके फूल जलपाई के वृक्ष के से गिरेंगे। 18O 15 34 क्योंकि भक्तिहीन के परिवार से कुछ बन न पड़ेगा, और जो घूस लेते हैं, उनके तम्बू आग से जल जाएंगे। 18O 15 35 उनके उपद्रव का पेट रहता, और अनर्थ उत्पन्न होता हैे और वे अपने अन्तेकरण में छल की बातें गढ़ते हैं। 18O 16 1 तब अरयूब ने कहा, 18O 16 2 ऐसी बहुत सी बातें मैं सुन चुका हूँ, तुम सब के सब निकम्मे शान्तिदाता हो। 18O 16 3 क्या व्यर्थ बातों का अन्त कभी होगा? तू कौन सी बात से झिड़ककर उत्तर देता। 18O 16 4 जो तुम्हारी दशा मेरी सी होती, तो मैं भी तुम्हारी सी बातें कर सकता; मैं भी तुम्हारे विरूद्ध बातें जोड़ सकता, और तुम्हारे विरूद्ध सिर हिला सकता। 18O 16 5 वरन मैं अपने वचनों से तुम को हियाव दिलाता, और बातों से शान्ति देकर तुम्हारा शोक घटा देता। 18O 16 6 चाहे मैं बोलूं तौभी मेरा शोक न घटेगा, चाहे मैं चुप रहूं, तौभी मेरा दु:ख कुछ कम न होगा। 18O 16 7 परन्तु अब उस ने पुझे उकता दिया है; उस ने मेरे सारे परिवार को उजाड़ डाला है। 18O 16 8 और उस ने जो मेरे शरीर को सुखा डाला है, वह मेरे विरूद्ध साक्षी ठहरा है, और मेरा दुबलापन मेरे विरूद्ध खड़ा होकर मेरे साम्हने साक्षी देता है। 18O 16 9 उस ने क्रोध में आकर मुझ को फाड़ा और मेरे पीछे पड़ा है; वह मेरे विरूद्ध दांत पीसता; और मेरा वैरी मुझ को आंखें दिखाता है। 18O 16 10 अब लोग मुझ पर मुंह पसारते हैं, और मेरी नामधराई करके मेरे गाल पर थपेड़ा मारते, और मेरे विरूद्ध भीड़ लगाते हैं। 18O 16 11 ईश्वर ने मुझे कुटिलों के वश में कर दिया, और दुष्ट लोगों के हाथ में फेंक दिया है। 18O 16 12 मैं सुख से रहता था, और उस ने मुझे चूर चूर कर डाला; उस ने मेरी गर्दन पकड़कर मुझे टुकड़े टुकड़े कर दिया; फिर उस ने पुझे अपना निशाना बनाकर खड़ा किया है। 18O 16 13 उसके तीर मेरे चारों ओर उड़ रहे हैं, वह निर्दय होकर मेरे गुद को बेधता है, और मेरा मित्त भूमि पर बहाता है। 18O 16 14 वह शूर की नाई मुझ पर धावा करके मुझे चोट पर चोट पहुंचाकर घायल करता है। 18O 16 15 मैं ने अपनी खाल पर टाट को सी लिया है, और अपना सींग मिट्टी में मैला कर दिया है। 18O 16 16 रोते रोते मेरा मुंह सूज गया है, और मेरी आंखों पर घोर अन्धकार छा गया है; 18O 16 17 तौभी मुझ से कोई उपद्रव नहीं हुआ है, और मेरी प्रार्थना पवित्रा है। 18O 16 18 हे पृथ्वी, तू मेरे लोहू को न ढांपना, और मेरी दोहाई कहीं न रूके। 18O 16 19 अब भी स्वर्ग में मेरा साक्षी है, और मेरा गवाह ऊपर है। 18O 16 20 मेरे मित्रा मुझ से घृणा करते हैं, परन्तु मैं ईश्वर के साम्हने आंसू बहाता हूँ, 18O 16 21 कि कोई ईश्वर के विरूद्ध सज्जन का, और आदमी का मुक़ मा उसके पड़ोसी के विरूद्ध लड़े। 18O 16 22 क्योंकि थोड़े ही वष के बीतने पर मैं उस मार्ग से चला जाऊंगा, जिस से मैं फिर वापिस न लौटूंगा। 18O 17 1 मेरा प्राण नाश हुआ चाहता है, मेरे दिन पूरे हो चुके हैं; मेरे लिये कब्र तैयार है। 18O 17 2 निश्चय जो मेरे संग हैं वह ठट्ठा करनेवाले हैं, और उनका झगड़ा रगड़ा मुझे लगातार दिखाई देता है। 18O 17 3 जमानत दे अपने और मेरे बीच में तू ही जामिन हो; कौन है जो मेरे हाथ पर हाथ मारे? 18O 17 4 तू ने इनका मन समझने से रोका है, इस कारण तू इनको प्रबल न करेगा। 18O 17 5 जो अपने मित्रों को चुगली खाकर लूटा देता, उसके लड़कों की आंखें रह जाएंगी। 18O 17 6 उस ने ऐसा किया कि सब लोग मेरी उपमा देते हैं; और लोग मेरे मुंह पर थूकते हैं। 18O 17 7 खेद के मारे मेरी आंखों में घुंघलापन छा गया है, और मेरे सब अंग छाया की नाई हो गए हैं। 18O 17 8 इसे देखकर सीधे लोग चकित होते हैं, और जो निदष हैं, वह भक्तिहीन के विरूद्ध उभरते हैं। 18O 17 9 तौभी धम लोग अपना मार्ग पकड़े रहेंगे, और शुठ्ठ काम करनेवाले सामर्थ्य पर सामर्थ्य पाते जाएंगे। 18O 17 10 तुम सब के सब मेरे पास आओ तो आओ, परन्तु मुझे तुम लोगों में एक भी बुध्दिमान न मिलेगा। 18O 17 11 मेरे दिन तो बीत चुके, और मेरी मनसाएं मिट गई, और जो मेरे मन में था, वह नाश हुआ है। 18O 17 12 वे रात को दिन ठहराते; वे कहते हैं, अन्धियारे के निकट उजियाला है। 18O 17 13 यदि मेरी आश यह हो कि अधोलोक मेरा धाम होगा, यदि मैं ने अन्धियारे में अपना बिछौना बिछा लिया है, 18O 17 14 यदि मैं ने सड़ाहट से कहा कि तू मेरा पिता है, और कीड़े से, कि तू मेरी मां, और मेरी बहिन है, 18O 17 15 तो मेरी आशा कहां रही? और मेरी आशा किस के देखने में आएगी? 18O 17 16 वह तो अधोलोक में उतर जाएगी, और उस समेत मुझे भी मिट्टी में विश्राम मिलेगा। 18O 18 1 तब शूही बिल्दद ने कहा, 18O 18 2 तुम कब तक फन्दे लगा लगाकर वचन पकड़ते रहोगे? चित्त लगाओ, तब हम बोलेंगे। 18O 18 3 हम लोग तुम्हारी दृष्टि में क्यों पशु के तुल्य समझे जाते, और अशुठ्ठ ठहरे हैं। 18O 18 4 हे अपने को क्रोध में फाड़नेवाले क्या तेरे निमित्त पृथ्वी उजड़ जाएगी, और चट्टान अपने स्थान से हट जाएगी? 18O 18 5 तौभी दुष्टों का दीपक बुझ जाएगा, और उसकी आग की लौ न चमकेगी। 18O 18 6 उसके डेरे में का उजियाला अन्धेरा हो जाएगा, और उसके ऊपर का दिया बुझ जाएगा। 18O 18 7 उसके बड़े बड़े फाल छोटे हो जाएंगे और वह अपनी ही युक्ति के द्वारा गिरेगा। 18O 18 8 वह अपना ही पांव जाल में फंसाएगा, वह फन्दों पर चलता है। 18O 18 9 उसकी एड़ी फन्दे में फंस जाएगी, और वह जाल में पकड़ा जाएगा। 18O 18 10 फन्दे की रस्सियां उसके लिये भूमि में, और जाल रास्ते में छिपा दिया गया है। 18O 18 11 चारों ओर से डरावनी वस्तुएं उसे डराएंगी और उसके पीछे पड़कर उसको भगाएंगी। 18O 18 12 उसका बल दु:ख से घट जाएगा, और विपत्ति उसके पास ही तैयार रहेगी। 18O 18 13 वह उसके अंग को खा जाएगी, वरन काल का पहिलौठा उसके अंगों को खा लेगा। 18O 18 14 अपने जिस डेरे का भरोसा वह करता है, उस से वह छीन लिया जाएगा; और वह भयंकरता के राजा के पास पहुंचाया जाएगा। 18O 18 15 जो उसके यहां का नहीं है वह उसके डेरे में वास करेगा, और उसके घर पर गन्धक छितराई जाएगी। 18O 18 16 उसकी जड़ तो सूख जाएगी, और डालियां कट जाएंगी। 18O 18 17 पृथ्वी पर से उसका स्मरण मिट जाएगा, और बाज़ार में उसका नाम कभी न सुन पड़ेगा। 18O 18 18 वह उजियाले से अन्धियारे में ढकेल दिया जाएगा, और जगत में से भी भगाया जाएगा। 18O 18 19 उसके कुटुम्बियों में उसके कोई पुत्रापौत्रा न रहेगा, और जहां वह रहता था, वहां कोई बचा न रहेगा। 18O 18 20 उसका दिन देखकर पूरबी लोग चकित होंगे, और पश्चिम के निवासियों के रोएं खड़े हो जाएंगे। 18O 18 21 निेसन्देह कुटिल लोगों के निवास ऐसे हो जाते हैं, और जिसको ईश्वर का ज्ञान नहीं रहता उसका स्थान ऐसा ही हो जाता है। 18O 19 1 तब अरयूब ने कहा, 18O 19 2 तुम कब तक मेरे प्राण को दु:ख देते रहोगे; और बातों से मुझे चूर चूर करोगे? 18O 19 3 इन दसों बार तुम लोग मेरी निन्दा ही करते रहे, तुम्हें लज्जा नहीं आती, कि तुम मेरे साथ कठोरता का बरताव करते हो? 18O 19 4 मान लिया कि मुझ से भूल हुई, तौभी वह भूल तो मेरे ही सिर पर रहेगी। 18O 19 5 यदि तुम सचमुच मेरे विरूद्ध अपनी बड़ाई करते हो और प्रमाण देकर मेरी तिन्दा करते हो, 18O 19 6 तो यह जान लो कि ईश्वर ने मुझे गिरा दिया है, और मुझे अपने जाल में फंसा लिया है। 18O 19 7 देखो, मैं उपद्रव ! उपद्रव ! यों चिल्लाता रहता हूँ, परन्तु कोई नहीं सुनता; मैं सहायता के लिये दोहाई देता रहता हूँ, परन्तु कोई न्याय नहीं करता। 18O 19 8 उस ने मेरे मार्ग को ऐसा रूंधा है कि मैं आगे चल नहीं सकता, और मेरी डगरें अन्धेरी कर दी हैं। 18O 19 9 मेरा विभव उस ने हर लिया है, और मेरे सिर पर से मुकुट उतार दिया है। 18O 19 10 उस ने चारों ओर से मुझे तोड़ दिया, बस मैं जाता रहा, और मेरा आसरा उस ने वृक्ष की नाई उखाड़ डाला है। 18O 19 11 उस ने मुझ पर अपना क्रोध भड़काया है और अपने शत्रुओं में मुझे गिनता है। 18O 19 12 उसके दल इकट्ठे होकर मेरे विरूद्ध मोर्चा बान्धते हैं, और मेरे डेरे के चारों ओर छावनी डालते हैं। 18O 19 13 उस ने मेरे भाइयों को मुझ से दूर किया है, और जो मेरी जान पहचान के थे, वे बिलकुल अनजान हो गए हैं। 18O 19 14 मेरे कुटुंबी मुझे छोड़ गए हैं, और जो मुझे जानते थे वह मुझे भूल गए हैं। 18O 19 15 जो मेरे घर में रहा करते थे, वे, वरन मेरी दासियां भी मुझे अनजाना गिनने लगीं हैं; उनकी दृष्टि में मैं परदेशी हो गया हूँ। 18O 19 16 जब मैं अपने दास को बुलाता हूँ, तब वह नहीं बोलता; मुझे उस से गिड़गिड़ाना पड़ता है। 18O 19 17 मेरी सांस मेरी स्त्री को और मेरी गन्ध मेरे भाइयों की दृष्टि में घिनौनी लगती है। 18O 19 18 लड़के भी मुझे तुच्छ जानते हैं; और जब मैं उठने लगता, तब वे मेरे विरूद्ध बोलते हैं। 18O 19 19 मेरे सब परम मित्रा मुझ से द्वेष रखते हैं, और जिन से मैं ने प्रेम किया सो पलटकर मेरे विरोधी हो गए हैं। 18O 19 20 मेरी खाल और मांस मेरी हडि्डयों से सट गए हैं, और मैं बाल बाल बच गया हूं। 18O 19 21 हे मेरे मित्रो ! मुझ पर दया करो, दया, क्योंकि ईश्वर ने मुझे मारा है। 18O 19 22 तुम ईश्वर की नाई क्यों मेरे पीछे पड़े हो? और मेरे मांस से क्यों तृप्त नहीं हुए? 18O 19 23 भला होता, कि मेरी बातें लिखी जातीं; भला होता, कि वे पुस्तक में लिखी जातीं, 18O 19 24 और लोहे की टांकी और शीशे से वे सदा के लिये चट्टान पर खोदी जातीं। 18O 19 25 मुझे तो निश्चय है, कि मेरा छुड़ानेवाला जीवित है, और वह अन्त में पृथ्वी पर खड़ा होगा। 18O 19 26 और अपनी खाल के इस प्रकार नाश हो जाने के बाद भी, मैं शरीर में होकर ईश्वर का दर्शन पाऊंगा। 18O 19 27 उसका दर्शन मैं आप अपनी आंखों से अपने लिये करूंगा, और न कोई दूसरा। यद्यपि मेरा हृदय अन्दर ही अन्दर चूर चूर भी हो जाए, 18O 19 28 तौभी मुझ में तो धर्म का मूल पाया जाता है ! और तुम जो कहते हो हम इसको क्योंकर सताएं ! 18O 19 29 तो तुम तलवार से डरो, क्योंकि जलजलाहट से तलवार का दणड मिलता है, जिस से तुम जान लो कि न्याय होता है। 18O 20 1 तब नामाती सोपर ने कहा, 18O 20 2 मेरा जी चाहता है कि उत्तर दूं, और इसलिये बोलने में फुत करता हूँ। 18O 20 3 मैं ने ऐसी चितौनी सुनी जिस से मेरी निन्दा हुई, और मेरी आत्मा अपनी समझ के अनुसार तुझे उत्तर देती है। 18O 20 4 क्या तू यह नियम नहीं जानता जो प्राचीन और उस समय का है, जब मनुष्य पृथ्वी पर बसाया गया, 18O 20 5 कि दुष्टों का ताली बजाना जल्दी बन्द हो जाता और भक्तिहीनों का आनन्द पल भर का होता है? 18O 20 6 चाहे ऐसे मनुष्य का माहात्म्य आकाश तक पहुंच जाए, और उसका सिर बादलों तक पहुंचे, 18O 20 7 तौभी वह अपनी विष्ठा की नाई सदा के लिये नाश हो जाएगा; और जो उसको देखते थे वे पूछेंगे कि वह कहां रहा? 18O 20 8 वह स्वप्न की नाई लोप हो जाएगा और किसी को फिर न मिलेगा; रात में देखे हुए रूप की नाई वह रहने न पाएगा। 18O 20 9 जिस ने उसको देखा हो फिर उसे न देखेगा, और अपने स्थान पर उसका कुछ पता न रहेगा। 18O 20 10 उसके लड़केबाले कंगालों से भी बिनती करेंगे, और वह अपना छीना हुआ माल फेर देगा। 18O 20 11 उसकी हडि्डयों में जवानी का बल भरा हुआ है परन्तु वह उसी के साथ मिट्टी में मिल जाएगा। 18O 20 12 चाहे बुराई उसको मीठी लगे, और वह उसे अपनी जीभ के नीचे छिपा रखे, 18O 20 13 और वह उसे बचा रखे और न छोड़े, वरन उसे अपने तालू के बीच दबा रखे, 18O 20 14 तौभी उसका भोजन उसके पेट में पलटेगा, वह उसके अन्दर नाग का सा विष बन जाएगा। 18O 20 15 उस ने जो धन निगल लिया है उसे वह फिर उगल देगा; ईश्वर उसे उसके पेट में से निकाल देगा। 18O 20 16 वह नागों का विष चूस लेगा, वह करैत के डसने से मर जाएगा। 18O 20 17 वह नदियों अर्थात् मधु और दही की नदियों को देखने न पाएगा। 18O 20 18 जिसके लिये उस ने परिश्रम किया, उसको उसे लौटा देना पड़ेगा, और वह उसे निगलने न पाएगा; उसकी मोल ली हुई वस्तुओं से जितना आनन्द होना चाहिये, उतना तो उसे न मिलेगा। 18O 20 19 क्योंकि उस ने कंगालों को पीसकर छोड़ दिया, उस ने घर को छीन लिया, उसको वह बढ़ाने न पाएगा। 18O 20 20 लालसा के मारे उसको कभी शान्ति नहीं मिलती थी, इसलिये वह अपनी कोई मनभावनी वस्तु बचा न सकेगा। 18O 20 21 कोई वस्तु उसका कौर बिना हुए न बचती थी; इसलिये उसका कुशल बना न रहेगा 18O 20 22 पूरी सम्पत्ति रहते भी वह सकेती में पड़ेगा; तब सब दु:खियों के हाथ उस पर उठेंगे। 18O 20 23 ऐसा होगा, कि उसका पेट भरने के लिये ईश्वर अपना क्रोध उस पर भड़काएगा, और रोटी खाने के समय वह उस पर पड़ेगा। 18O 20 24 वह लोहे के हथियार से भागेगा, और पीतल के धनुष से मारा जाएगा। 18O 20 25 वह उस तीर को खींचकर अपने पेट से निकालेगा, उसकी चमकीली नोंक उसके पित्ते से होकर निकलेगी, भय उस में समाएगा। 18O 20 26 उसके गड़े हुए धन पर घोर अन्धकार छा जाएगा। वह ऐसी आग से भस्म होगा, जो मनुष्य की फूंकी हुई न हो; और उसी से उसके डेरे में जो बचा हो वह भी भस्म हो जाएगा। 18O 20 27 आकाश उसका अथर्म प्रगट करेगा, और पृथ्वी उसके विरूद्ध खड़ी होगी। 18O 20 28 उसके घर की बढ़ती जाती रहेगी, वह उसके क्रोध के दिन बह जाएगी। 18O 20 29 परमेश्वर की ओर से दुष्ट मनुष्य का अंश, और उसके लिये ईश्वर का ठहराया हुआ भाग यही है। 18O 21 1 तब अरयूब ने कहा, 18O 21 2 चित्त लगाकर मेरी बात सुनो; और तुम्हारी शान्ति यही ठहरे। 18O 21 3 मेरी कुछ तो सहो, कि मैं भी बातें करूं; और जब मैं बातें कर चुकूं, तब पीछे ठट्ठा करना। 18O 21 4 क्या मैं किसी मनुष्य की दोहाई देता हूँ? फिर मैं अधीर क्यों न होऊं? 18O 21 5 मेरी ओर चित्त लगाकर चकित हो, और अपनी अपनी उंगली दांत तले दबाओ। 18O 21 6 जब मैं स्मरण करता तब मैं घबरा जाता हूँ, और मेरी देह में कंपकंपी लगती है। 18O 21 7 क्या कारण है कि दुष्ट लोग जीवित रहते हैं, वरन बूढ़े भी हो जाते, और उनका धन बढ़ता जाता है? 18O 21 8 उनकी सन्तान उनके संग, और उनके बालबच्चे उनकी आंखों के साम्हने बने रहते हैं। 18O 21 9 उनके घर में भयरहित कुशल रहता है, और ईश्वर की छड़ी उन पर नहीं पड़ती। 18O 21 10 उनका सांड़ गाभिन करता और चूकता नहीं, उनकी गायें बियाती हैं और बच्चा कभी नहीं गिरातीं। 18O 21 11 वे अपने लड़कों को झुणड के झुणड बाहर जाने देते हैं, और उनके बच्चे नाचते हैं। 18O 21 12 वे डफ और वीणा बजाते हुए गाते, और बांसुरी के शब्द से आनन्दित होते हैं। 18O 21 13 वे अपने दिन सुख से बिताते, और पल भर ही में अधोलोक में उतर जाते हैं। 18O 21 14 तौभी वे ईश्वर से कहते थे, कि हम से दूर हो ! तेरी गति जानने की हम को इच्छा नहीं रहती। 18O 21 15 सर्वशक्तिमान क्या है, कि हम उसकी सेवा करें? और जो हम उस से बिनती भी करें तो हमें क्या लाभ होगा? 18O 21 16 देखो, उनका कुशल उनके हाथ में नहीं रहती, दुष्ट लोगों का विचार मुझ से दूर रहे। 18O 21 17 कितनी बार दुष्टों का दीपक बुझ जाता है, और उन पर विपत्ति आ पड़ती है; और ईश्वर क्रोध करके उनके बांट में शोक देता है, 18O 21 18 और वे वायु से उड़ाए हुए भूसे की, और बवणडर से उड़ाई हुई भूसी की नाई होते हैं। 18O 21 19 ईश्वर उसके अधर्म का दणड उसके लड़केबालों के लिये रख छोड़ता है, वह उसका बदला उसी को दे, ताकि वह जान ले। 18O 21 20 दुष्ट अपना नाश अपनी ही आंखों से देखे, और सर्वशक्तिमान की जलजलाहट में से आप पी ले। 18O 21 21 क्योंकि जब उसके महीनों की गिनती कट चुकी, तो अपने बादवाले घराने से उसका क्या काम रहा। 18O 21 22 क्या ईश्वर को कोई ज्ञान सिखाएगा? वह तो ऊंचे पद पर रहनेवालों का भी न्याय करता है। 18O 21 23 कोई तो अपने पूरे बल में बड़े चैन और सुख से रहता हुआ मर जाता है। 18O 21 24 उसकी दोहनियां दूध से और उसकी हडि्डयां गूदे से भरी रहती हैं। 18O 21 25 और कोई अपने जीव में कुढ़ कुढ़कर बिना सुख भोगे मर जाता है। 18O 21 26 वे दोनों बराबर मिट्टी में मिल जाते हैं, और कीड़े उन्हें ढांक लेते हैं। 18O 21 27 देखो, मैं तुम्हारी कल्पनाएं जानता हूँ, और उन युक्तियों को भी, जो तुम मेरे विषय में अन्याय से करते हो। 18O 21 28 तुम कहते तो हो कि रईस का घर कहां रहा? दुष्टों के निवास के डेरे कहां रहे? 18O 21 29 परन्तु क्या तुम ने बटोहियों से कभी नहीं पूछा? क्या तुम उनके इस विषय के प्रमाणों से अनजान हो, 18O 21 30 कि विपत्ति के दिन के लिये दुर्जन रखा जाता है; और महाप्रलय के समय के लिये ऐसे लोग बचाए जाते हैं? 18O 21 31 उसकी चाल उसके मुंह पर कौन कहेगा? और उस ने जो किया है, उसका पलटा कौन देगा? 18O 21 32 तौभी वह क़ब्र को पहुंचाया जाता है, और लोग उस क़ब्र की रखवाली रिते रहते हैं। 18O 21 33 नाले के ढेले उसको सुखदायक लगते हैं; और जैसे पूर्वकाल के लोग अनगिनित जा चुके, वैसे ही सब मनुष्य उसके बाद भी चले जाएंगे। 18O 21 34 तुम्हारे उत्तरों में तो झूठ ही पाया जाता है, इसलिये तुम क्यों मुझे व्यर्थ शान्ति देते हो? 18O 22 1 तब तेमानी एलीपज ने कहा, 18O 22 2 क्या पुरूष से ईश्वर को लाभ पहुंच सकता है? जो बुध्दिमान है, वह अपने ही लाभ का कारण होता है। 18O 22 3 क्या तेरे धम होने से सर्वशक्तिमान सुख पा सकता है? तेरी चाल की खराई से क्या उसे कुछ लाभ हो सकता है? 18O 22 4 वह तो तुझे डांटता है, और तुझ से मुक मा लड़ता है, तो क्या इस दशा में तेरी भक्ति हो सकती है? 18O 22 5 क्या तेरी बुराई बहुत नहीं? तेरे अधर्म के कामों का कुछ अन्त नहीं। 18O 22 6 तू ने तो अपने भाई का बन्धक अकारण रख लिया है, और नंगे के वस्त्रा उतार लिये हैं। 18O 22 7 थके हुए को तू ने पानी न पिलाया, और भूखे को रोटी देने से इनकार किया। 18O 22 8 जो बलवान था उसी को भूमि मिली, और जिस पुरूष की प्रतिष्ठा हुई थी, वही उस में बस गया। 18O 22 9 तू ने विधवाओं को छूछे हाथ लौटा दिया। और अनाथों की बाहें तोड़ डाली गई। 18O 22 10 इस कारण तेरे चारों ओर फन्दे लगे हैं, और अचानक डर के मारे तू घगरा रहा है। 18O 22 11 क्या तू अन्धियारे को नहीं देखता, और उस बाढ़ को जिस में तू डूब रहा है? 18O 22 12 क्या ईश्वर स्वर्ग के ऊंचे स्थान में नहीं है? ऊंचे से ऊंचे तारों को देख कि वे कितने ऊंचे हैं।। 18O 22 13 फिर तू कहता है कि ईश्वर क्या जानता है? क्या वह घोर अन्धकार की आड़ में होकर न्याय करेगा? 18O 22 14 काली घटाओं से वह ऐसा छिपा रहता है कि वह कुछ नहीं देख सकता, वह तो आकाशमणडल ही के ऊपर चलता फिरता है। 18O 22 15 क्या तू उस पुराने रास्ते को पकड़े रहेगा, जिस पर वे अनर्थ करनेवाले चलते हैं? 18O 22 16 वे अपने समय से पहले उठा लिए गए और उनके घर की नेव नदी बहा ले गई। 18O 22 17 उन्हों ने ईश्वर से कहा था, हम से दूर हो जा; और यह कि सर्वशक्तिमान हमारा क्या कर सकता है? 18O 22 18 तौभी उस ने उनके घर अच्छे अच्छे पदाथसे भर दिए-- परन्तु दुष्ट लोगों का विचार मुझ से दूर रहे। 18O 22 19 धम लेग देखकर आनन्दित होते हैं; और निदष लोग उनकी हंसी करते हैं, कि 18O 22 20 जो हमारे विरूद्ध उठे थे, निेसन्देह मिट गए और उनका बड़ा धन आग का कौर हो गया है। 18O 22 21 उस से मेलमिलाप कर तब तुझे शान्ति मिलेगी; और इस से तेरी भलाई होगी। 18O 22 22 उसके मुंह से शिक्षा सुन ले, और उसके वचन अपने मन में रख। 18O 22 23 यदि तू सर्वशक्तिमान की ओर फिरके समीप जाए, और अपने डेरे से कुटिल काम दूर करे, तो तू बन जाएगा। 18O 22 24 तू अपनी अनमोल वस्तुओं को धूलि पर, वरन ओपीर का कुन्दन भी नालों के पत्थरों में डाल दे, 18O 22 25 तब सर्वशक्तिमान आप तेरी अनमोल वस्तु और तेरे लिये चमकीली चान्दी होगा। 18O 22 26 तब तू सर्वशक्तिमान से सुख पाएगा, और ईश्वर की ओर अपना मुंह बेखटके उठा सकेगा। 18O 22 27 और तू उस से प्रार्थना करेगा, और वह तेरी सुनेगा; और तू अपनी मन्नतों को पूरी करेगा। 18O 22 28 जो बात तू ठाने वह तुझ से बन भी पड़ेगी, और तेरे माग पर प्रकाश रहेगा। 18O 22 29 चाहे दुर्भाग्य हो तौभी तू कहेगा कि सुभाग्य होगा, क्योंकि वह नम्र मनुष्य को बचाता है। 18O 22 30 वरन जो निदष न हो उसको भी वह बचाता है; तेरे शुठ्ठ कामों के कारण तू छुड़ाया जाएगा। 18O 23 1 तब अरयूब ने कहा, 18O 23 2 मेरी कुड़कुड़ाहट अब भी नहीं रूक सकती, मेरी मार मेरे कराहने से भारी है। 18O 23 3 भला होता, कि मैं जानता कि वह कहां मिल सकता है, तब मैं उसके विराजने के स्थान तक जा सकता ! 18O 23 4 मैं उसके साम्हने अपना मुक़ मा पेश करता, और बहुत से प्रमाण देता। 18O 23 5 मैं जान लेता कि वह मुझ से उत्तर में क्या कह सकता है, और जो कुछ वह मुझ से कहता वह मैं समझ लेता। 18O 23 6 क्या वह अपना बड़ा बल दिखाकर मुझ से मुक़ मा लड़ता? नहीं, वह मुझ पर ध्यान देता। 18O 23 7 सज्जन उस से विवाद कर सकते, और इस रीति मैं अपने न्यायी के हाथ से सदा के लिये छूट जाता। 18O 23 8 देखो, मैं आगे जाता हूँ परन्तु वह नहीं मिलता; मैं पीछे हटता हूँ, परन्तु वह दिखाई नहीं पड़ता; 18O 23 9 जब वह बाई ओर काम करता है तब वह मुझे दिखाई नहीं देता; वह तो दहिनी ओर ऐसा छिप जाता है, कि मुझे वह दिखाई ही नहीं पड़ता। 18O 23 10 परन्तु वह जानता है, कि मैं कैसी चाल चला हूँ; और जब वह मुझे ता लेगा तब मैं सोने के समान निकलूंगा। 18O 23 11 मेरे पैर उसके माग में स्थिर रहे; और मैं उसी का मार्ग बिना मुड़े थामे रहा। 18O 23 12 उसकी आज्ञा का पालन करने से मैं न हटा, और मैं ने उसके वचन अपनी इच्छा से कहीं अधिक काम के जानकर सुरक्षित रखे। 18O 23 13 परन्तु वह एक ही बात पर अड़ा रहता है, और कौन उसको उस से फिरा सकता है? जो कुछ उसका जी चाहता है वही वह करता है। 18O 23 14 जो कुछ मेरे लिये उस ने ठाना है, उसी को वह पूरा करता है; और उसके मन में ऐसी ऐसी बहुत सी बातें हैं। 18O 23 15 इस कारण मैं उसके सम्मुख घबरा जाता हूँ; जब मैं सोचता हूँ तब उस से थरथरा उठता हूँ। 18O 23 16 क्योंकि मेरा मन ईश्वर ही ने कच्चा कर दिया, और सर्वशक्तिमान ही ने मुझ को असमंजस में डाल दिया है। 18O 23 17 इसलिये कि मैं इस अन्धयारे से पहिले काट डाला न गया, और उस ने घोर अन्धकार को मेरे साम्हने से न छिपाया। 18O 24 1 सर्वशक्तिमान ने समय क्यों नहीं ठहराया, और जो लोग उसका ज्ञान रखते हैं वे उसके दिन क्यों देखने नहीं पाते? 18O 24 2 कुछ लोग भूमि की सीमा को बढ़ाते, और भेड़ बकरियां छीनकर चराते हैं। 18O 24 3 वे अनाथों का गदहा हांक ले जाते, और विधवा का बैल कन्धक कर रखते हैं। 18O 24 4 वे दरिद्र लोगों को मार्ग से हटा देते, और देश के दीनों को इकट्ठे छिपना पड़ता है। 18O 24 5 देखो, वे जंगली गदहों की नाई अपने काम को और कुछ भोजन यत्न से ढूंढ़ने को निकल जाते हैं; उनके लड़केबालों का भोजन उनको जंगल से मिलता है। 18O 24 6 उनको खेत में चारा काटना, और दुष्टों की बची बचाई दाख बटोरना पड़ता है। 18O 24 7 रात को उन्हें बिना वस्त्रा नंगे पड़े रहना और जाड़े के समय बिना ओढ़े पड़े रहना पड़ता है। 18O 24 8 वे पहाड़ों पर की झड़ियों से भीगे रहते, और शरण न पाकर चट्टान से लिपट जाते हैं। 18O 24 9 कुछ लोग अनाथ बालक को मा की छाती पर से छीन लेते हैं, और दीन लोगों से बन्धक लेते हैं। 18O 24 10 जिस से वे बिना वस्त्रा नंगे फिरते हैं; और भूख के मारे, पूलियां ढोते हैं। 18O 24 11 वे उनकी भीतों के भीतर तेल पेरते और उनके कुणडों में दाख रौंदते हुए भी प्यासे रहते हैं। 18O 24 12 वे बड़े नगर में कराहते हैं, और घायल किए हुओं का जी दोहाई देता है; परन्तु ईश्वर मूर्खता का हिसाब नहीं लेता। 18O 24 13 फिर कुछ लोग उजियाले से बैर रखते, वे उसके माग को नहीं पहचानते, और न उसके माग में बने रहते हैं। 18O 24 14 खूनी, पह फटते ही उठकर दीन दरिद्र मनुष्य को घात करता, और रात को चोर बन जाता है। 18O 24 15 व्यभिचारी यह सोचकर कि कोई मुझ को देखने न पाए, दिन डूबने की राह देखता रहता है, और वह अपना मुंह छिपाए भी रखता है। 18O 24 16 वे अन्धियारे के समय घरों में सेंध मारते और दिन को छिपे रहते हैं; वे उजियाले को जानते भी नहीं। 18O 24 17 इसलिये उन सभों को भोर का प्रकाश घोर अन्धकार सा जान पड़ता है, क्योंकि घोर अन्धकार का भय वे जानते हैं। 18O 24 18 वे जल के ऊपर हलकी वस्तु के सरीखे हैं, उनके भाग को पृथ्वी के रहनेवाले कोसते हैं, और वे अपनी दाख की बारियों में लौटने नहीं पाते। 18O 24 19 जैसे सूखे और घाम से हिम का जल सूख जाता है वैसे ही पापी लोग अधोलोक में सूख जाते हैं। 18O 24 20 माता भी उसको भूल जाती, और कीड़े उसे चूसते हें, भवीष्य में उसका स्मरण न रहेगा; इस रीति टेढ़ा काम करनेवाला वृक्ष की राई कट जाता है। 18O 24 21 वह बांझ स्त्री को जो कभी नहीं जनी लूटता, और विधवा से भलाई करना नहीं चाहता है। 18O 24 22 बलात्कारियों को भी ईश्वर अपनी शक्ति से खींच लेता है, जो जीवित रहने की आशा नहीं रखता, वह भी फिर उठ बैठता है। 18O 24 23 उन्हें ऐसे बेखटके कर देता है, कि वे सम्भले रहते हैं; और उसकी कृपादृष्टि उनकी चाल पर लगी रहती है। 18O 24 24 वे बढ़ते हैं, तब थोड़ी बेर में जाते रहते हैं, वे दबाए जाते और सभों की नाई रख लिये जाते हैं, और अनाज की बाल की नाई काटे जाते हैं। 18O 24 25 क्या यह सब सच नहीं ! कौन मुझे झुठलाएगा? कौन मेरी बातें निकम्मी ठहराएगा? 18O 25 1 तब शूही बिल्दद ने कहा, 18O 25 2 प्रभुता करना और डराना यह उसी का काम है; वह अपने ऊंचे ऊंचे स्थानों में शान्ति रखता है। 18O 25 3 क्या उसकी सेनाओं की गिनती हो सकती? और कौन है जिस पर उसका प्रकाश नहीं पड़ता? 18O 25 4 फिर मनुष्य ईश्वर की दृष्टि में धम क्योंकर ठहर सकता है? और जो स्त्री से उत्पन्न हुआ है वह क्योंकर निर्मल हो सकता है? 18O 25 5 देख, उसकी दृष्टि में चन्द्रमा भी अन्धेरा ठहरता, और तारे भी निर्मल नहीं ठहरते। 18O 25 6 फिर मनुष्य की क्या गिनती जो कीड़ा है, और आदमी कहां रहा जो केंचुआ है ! 18O 26 1 तब अरयूब ने कहा, 18O 26 2 निर्बल जन की तू ने क्या ही बड़ी सहायता की, और जिसकी बांह में सामर्थ्य नहीं, उसको तू ने कैसे सम्भाला है? 18O 26 3 निर्बुध्दि मनुष्य को तू ने क्या ही अच्छी सम्मति दी, और अपनी खरी बुध्दि कैसी भली भांति प्रगट की है? 18O 26 4 तू ने किसके हित के लिये बातें कही? और किसके मन की बातें तेरे मुंह से निकलीं? 18O 26 5 बहुत दिन के मरे हुए लोग भी जलनिधि और उसके निवासियों के तले तड़पते हैं। 18O 26 6 अधोलोक उसके साम्हने उधड़ा रहता है, और विनाश का स्थान ढंप नहीं सकता। 18O 26 7 वह उत्तर दिशा को निराधार फैलाए रहता है, और बिना अेक पृथ्वी को लटकाए रखता है। 18O 26 8 वह जल को अपनी काली घटाओं में बान्ध रखता, और बादल उसके बोझ से नहीं फटता। 18O 26 9 वह अपने सिंहासन के साम्हने बादल फैलाकर उसको छिपाए रखता है। 18O 26 10 उजियाले और अन्धियारे के बीच जहां सिवाना बंधा है, वहां तक उस ने जलनिधि का सिवाना ठहरा रखा है। 18O 26 11 उसकी घुड़की से आकाश के खम्भे थरथराकर चकित होते हैं। 18O 26 12 वह अपने बल से समुद्र को उछालता, और अपनी बुध्दि से घपणड को छेद देता है। 18O 26 13 उसकी आत्मा से आकाशमणडल स्वच्छ हो जाता है, वह अपने हाथ से वेग भागनेवाले नाग को मार देता है। 18O 26 14 देखो, ये तो उसकी गति के किनारे ही हैं; और उसकी आहट फुसफुसाहट ही सी तो सुन पड़ती है, फिर उसके पराक्रम के गरजने का भेद कौन समझ सकता है? 18O 27 1 अरयूब ने और भी अपनी गूढ़ बात उठाई और कहा, 18O 27 2 मैं ईश्वर के जीवन की शपथ खाता हूँ जिस ने मेरा न्याय बिगाड़ दिया, अर्थात् उस सर्वशक्तिमान के जीवन की जिस ने मेरा प्राण कड़ुआ कर दिया। 18O 27 3 क्योंकि अब तक मेरी सांस बराबर आती है, और ईश्वर का आत्मा मेरे नथुनों में बना है। 18O 27 4 मैं यह कहता हूँ कि मेरे मुंह से कोई कुटिल बात न निकलेगी, और न मैं कपट की बातें बोलूंगा। 18O 27 5 ईश्वर न करे कि मैं तुम लोगों को सच्चा ठहराऊं, जब तक मेरा प्राण न छूटे तब तक मैं अपनी खराई से न हटूंगा। 18O 27 6 मैं अपना धर्म पकड़े हुए हूँ और उसको हाथ से जाने न दूंगा; क्योंकि मेरा मन जीवन भर मुझे दोषी नहीं ठहराएगा। 18O 27 7 मेरा शत्रु दुष्टों के समान, और जो मेरे विरूद्ध उठता है वह कुटिलों के तुल्य ठहरे। 18O 27 8 जब ईश्वर भक्तिहीन मनुष्य का प्राण ले ले, तब यद्यपि उस ने धन भी प्राप्त किया हो, तौभी उसकी क्या आशा रहेगी? 18O 27 9 जब वह संकट में पड़े, तब क्या ईश्वर उसकी दोहाई सुनेगा? 18O 27 10 क्या वह सर्वशक्तिमान में सुख पा सकेगा, और हर समय ईश्वर को पुकार सकेगा? 18O 27 11 मैं तुम्हें ईश्वर के काम के विषय शिक्षा दूंगा, और सर्वशक्तिमान की बात मैं न छिपाऊंगा 18O 27 12 देखो, तुम लोग सब के सब उसे स्वयं देख चुके हो, फिर तुम व्यर्थ विचार क्यों पकड़े रहते हो? 18O 27 13 दुष्ट पनुष्य का भाग ईश्वर की ओर से यह है, और बलात्कारियों का अंश जो वे सर्वशक्तिमान के हाथ से पाते हैं, वह यह है, कि 18O 27 14 चाहे उसके लड़केबाले गिनती में बढ़ भी जाएं, तौभी तलवार ही के लिये बढ़ेंगे, और उसकी सन्तान पेट भर रोटी न खाने पाएगी। 18O 27 15 उसके जो लोग बच जाएं वे मरकर क़ब्र को पहुंचेंगे; और उसके यहां की विधवाएं न रोएंगी। 18O 27 16 चाहे वह रूपया धूलि के समान बटोर रखे और वस्त्रा मिट्टी के किनकों के तुल्य अनगिनित तैयार कराए, 18O 27 17 वह उन्हें तैयार कराए तो सही, परन्तु धम उन्हें पहिन लेगा, और उसका रूपया निदष लोग आपस में बांटेंगे। 18O 27 18 उस ने अपना घर कीड़े का सा बनाया, और खेत के रखवाले को झोपड़ी की नाई बनाया। 18O 27 19 वह धनी होकर लेट जाए परन्तु वह गाड़ा न जाएगा; आंख खोलते ही वह जाता रहेगा। 18O 27 20 भय की धाराएं उसे बहा ले जाएंगी, रात को बवणडर उसको उड़ा ले जाएगा। 18O 27 21 पुरवाई उसे ऐसा उड़ा ले जाएगी, और वह जाता रहेगा और उसको उसके स्थान से उड़ा ले जाएगी। 18O 27 22 क्योंकि ईश्वर उस पर विपत्तियां बिना तरस खाए डाल देगा, उसके हाथ से वह भाग जाने चाहेगा। लोग उस पर ताली बजाएंगे, 18O 27 23 और उस पर ऐसी सुसकारियां भरेंगे कि वह अपने स्थान पर न रह सकेगा। 18O 28 1 चांदी की खानि तो होती है, और सोने के लिये भी स्थान होता है जहां लोग ताते हैं। 18O 28 2 जोहा मिट्टी में से निकाला जाता और पत्थर पिघलाकर पीतल बनाया जाता है 18O 28 3 मनुष्य अन्धियारे को दूर कर, दूर दूर तक खोद खोद कर, अन्धियारे ओर घोर अन्धकार में पत्थर ढूंढ़ते हैं। 18O 28 4 जहां लोग रहते हैं वहां से दूर वे खानि खोदते हैं वहां पृथ्वी पर चलनेवालों के भूले बिसरे हुए वे मनुष्यों से दूर लटके हुए झूलते रहते हैं। 18O 28 5 यह भूमि जो है, इस से रोटी तो मिलती है, परन्तु उसके नीचे के स्थान मानो आग से उलट दिए जाते हैं। 18O 28 6 उसके पत्थ्र नीलमणि का स्थान हैं, और उसी में सोने की धूलि भी है। 18O 28 7 उसका मार्ग कोई मांसाहारी पक्षी नहीं जानता, और किसी गिठ्ठ की दृष्टि उस पर नहीं पड़ी। 18O 28 8 उस पर अभिमानी पशुओं ने पांव नहीं धरा, और न उस से होकर कोई सिंह कभी गया है। 18O 28 9 वह चकमक के पत्थर पर हाथ लगाता, और पहाड़ों को जड़ ही से उलट देता है। 18O 28 10 वह चट्टान खोदकर नालियां बनाता, और उसकी आंखों को हर एक अनमोल वस्तु दिखाई पड़ती है। 18O 28 11 वह नदियों को ऐसा रोक देता है, कि उन से एक बूंद भी पानी नहीं टपकता और जो कुछ छिपा है उसे वह उजियाले में निकालता है। 18O 28 12 परन्तु बुध्दि कहां मिल सकती है? और समझ का स्थान कहां है? 18O 28 13 उसका मोल मनुष्य को मालूम नहीं, जीवनलोक में वह कहीं नहीं मिलती ! 18O 28 14 अथाह सागर कहता है, वह मुझ में नहीं है, और समुद्र भी कहता है, वह मेरे पास नहीं है। 18O 28 15 चोखे सोने से वह मोल लिया नहीं जाता। और न उसके दाम के लिये चान्दी तौली जाती है। 18O 28 16 न तो उसके साथ ओपीर के कुन्दन की बराबरी हो सकती है; और न अनमोल सुलैमानी पत्थर वा नीलमणि की। 18O 28 17 न सोना, न कांच उसके बराबर ठहर सकता है, कुन्दन के गहने के बदले भी वह नहीं मिलती। 18O 28 18 मूंगे और स्फटिकमणि की उसके आगे क्या चर्चा ! बुध्दि का मोल माणिक से भी अधिक है। 18O 28 19 कूश देश के पद्मराग उसके तुल्य नहीं ठहर सकते; और न उस से चोखे कुन्दन की बराबरी हो सकती है। 18O 28 20 फिर बुध्दि कहां मिल सकती है? और समझ का स्थान कहां? 18O 28 21 वह सब प्राणियों की आंखों से छिपी है, और आकाश के पक्षियों के देखने में नहीं आती। 18O 28 22 विनाश ओर मृत्यु कहती हैं, कि हमने उसकी चर्चा सुनी है। 18O 28 23 परन्तु परमेश्वर उसका मार्ग समझता है, और उसका स्थान उसको मालूम है। 18O 28 24 वह तो पृथ्वी की छोर तक ताकता रहता है, और सारे आकाशमणडल के तले देखता भालता है। 18O 28 25 जब उस ने वायु का तौल ठहराया, और जल को नपुए में नापा, 18O 28 26 और मेंह के लिये विधि और गर्जन और बिजली के लिये मार्ग ठहराया, 18O 28 27 तब उस ने बुध्दि को देखकर उसका बखान भी किया, और उसको सिठ्ठ करके उसका पूरा भेद बूझ लिया। 18O 28 28 तब उस न मनुष्य से कहा, देख, प्रभु का भय मानना यही बुध्दि हैे और बुराई से दूर रहना यही समझ है। 18O 29 1 अरयूब ने और भी अपनी गूढ़ बात उठाई और कहा, 18O 29 2 भला होता, कि मेरी दशा बीते हुए महीनों की सी होती, जिन दिनों में ईश्वर मेरी रक्षा करता था, 18O 29 3 जब उसके दीपक का प्रकाश मेरे सिर पर रहता था, और उस से उजियाला पाकर मैं अन्धेरे में चलता था। 18O 29 4 वे तो मेरी जवानी के दिन थे, जब ईश्वर की मित्राता मेरे डेरे पर प्रगट होती थी। 18O 29 5 उस समय तक तो सर्वशक्तिमान मेरे संग रहता था, और मेरे लड़केबाले मेरे चारों ओर रहते थे। 18O 29 6 तब मैं अपने पगों को मलाई से धोता था और मेरे पास की चट्टानों से तेल की धाराएं बहा करती थीं। 18O 29 7 जब जब मैं नगर के फाटक की ओर चलकर खुले स्थान में अपने बैठने का स्थान तैयार करता था, 18O 29 8 तब तब जवान मुझे देखकर छिप जाते, और पुरनिये उठकर खड़े हो जाते थे। 18O 29 9 हाकिम लोग भी बोलने से रूक जाते, और हाथ से मुंह मूंदे रहते थे। 18O 29 10 प्रधान लोग चुप रहते थे और उनकी जीभ तालू से सट जाती थी। 18O 29 11 क्योंकि जब कोई मेरा समाचार सुनता, तब वह मुझे धन्य कहता था, और जब कोई मुझे देखता, तब मेरे विषय साक्षी देता था; 18O 29 12 क्योंकि मैं दोहाई देनेवाले दीन जन को, और असहाय अनाथ को भी छुड़ाता था। 18O 29 13 जो नाश होने पर था मुझे आशीर्वाद देता था, और मेरे कारण विधवा आनन्द के मारे गाती थी। 18O 29 14 मैं धर्म को पहिने रहा, और वह मुझे ढांके रहा; मेरा न्याय का काम मेरे लिये बागे और सुन्दर पगड़ी का काम देता था। 18O 29 15 मैं अन्धों के लिये आंखें, और लंगड़ों के लिये पांव ठहरता था। 18O 29 16 दरिद्र लोगों का मैं पिता ठहरता था, और जो मेरी पहिचान का न था उसके मुक़ मे का हाल मैं पूछताछ करके जान लेता था। 18O 29 17 मैं कुटिल मनुष्यों की डाढ़ें तोड़ डालता, और उनका शिकार उनके मुंह से छीनकर बचा लेता था। 18O 29 18 तब मैं सोचता था, कि मेरे दिन बालू के किनकों के समान अनगिनत होंगे, और अपने ही बसेरे में मेरा प्राण छूटेगा। 18O 29 19 मेरी जड़ जल की ओर फैली, और मेरी डाली पर ओस रात भर पड़ी, 18O 29 20 मेरी महिमा ज्यों की त्यों बनी रहेगी, और मेरा धनुष मेरे हाथ में सदा नया होता जाएगा। 18O 29 21 लोग मेरी ही ओर कान लगाकर ठहरे रहते थे और मेरी सम्मति सुनकर चुप रहते थे। 18O 29 22 जब मैं बोल चुकता था, तब वे और कुछ न बोलते थे, मेरी बातें उन पर मेंह की ताई बरसा करती थीं। 18O 29 23 जैसे लोग बरसात की वैसे ही मेरी भी बाट देखते थे; और जैसे बरसात के अन्त की वर्षा के लिये वैसे ही वे मुंह पसारे रहते थे। 18O 29 24 जब उनको कुछ आशा न रहती थी तब मैं हंसकर उनको प्रसन्न करता था; और कोई मेरे मुंह को बिगाड़ न सकता था। 18O 29 25 मैं उनका मार्ग चुन लेता, और उन में मुख्य ठहरकर बैठा करता था, और जैसा सेना में राजा वा विलाप करनेवालों के बीच शान्तिदाता, वैसा ही मैं रहता था। 18O 30 1 परन्तु अब जिनकी अवस्था मुझ से कम है, वे मेरी हंसी करते हैं, वे जिनके पिताओं को मैं अपनी भेड़ बकरियों के कुत्तों के काम के योग्य भी न जानता था। 18O 30 2 उनके भुजबल से मुझे क्या लाभ हो सकता था? उनका पौरूष तो जाता रहा। 18O 30 3 वे दरिद्रता और काल के मारे दुबले पड़े हुए हैं, वे अन्धेरे और सुनसान स्थानों में सुखी धूल फांकते हैं। 18O 30 4 वे झाड़ी के आसपास का लोनिया साग तोड़ लेते, और झाऊ की जड़ें खाते हैं। 18O 30 5 वे मनुष्यों के बीच में से निकाले जाते हैं, उनके पीछे ऐसी पुकार होती है, जैसी जोर के पीछे। 18O 30 6 डरावने नालों में, भूमि के बिलों में, और चट्टानों में, उन्हें रहना पड़ता है। 18O 30 7 वे झाड़ियों के बीच रेंकते, और बिच्छू पौधों के नीचे इकट्ठे पड़े रहते हैं। 18O 30 8 वे मूढ़ों और नीच लोगों के वंश हैं जो मार मार के इस देश से निकाले गए थे। 18O 30 9 ऐसे ही लोग अब मुझ पर लगते गीत गाते, और मुझ पर ताना मारते हैं। 18O 30 10 वे मुझ से घिन खाकर दूर रहते, वा मेरे मुंह पर थूकने से भी नहीं डरते। 18O 30 11 ईश्वर ने जो मेरी रस्सी खोलकर मुझे देख दिया है, इसलिये वे मेरे साम्हने मुंह में लगाम नहीं रखते। 18O 30 12 मेरी दहिनी अलंग पर बजारू लोग उठ खड़े होते हैं, वे मेरे पांव सरका देते हैं, और मेरे नाश के लिये अपने उपाय बान्धते हैं। 18O 30 13 जिनके कोई सहायक नहीं, वे भी मेरे रास्तों को बिगाड़ते, और मेरी विपत्ति को बढ़ाते हैं। 18O 30 14 मानो बड़े नाके से घुसकर वे आ पड़ते हैं, और उजाड़ के बीच में होकर मुझ पर धावा करते हैं। 18O 30 15 मुुझ में घबराहट छा गई है, और मेरा रईसपन मानो वायु से उड़ाया गया है, और मेरा कुशल बादल की नाई जाता रहा। 18O 30 16 और अब मैं शोकसागर में डूबा जाता हूँ; दु:ख के दिनों ने मुझे जकड़ लिया है। 18O 30 17 रात को मेरी हडि्डयां मेरे अन्दर छिद जाती हैं और मेरी नसों में चैन नहीं पड़ती 18O 30 18 मेरी बीमारी की बहुतायत से मेरे वस्त्रा का रूप बदल गया है; वह मेरे कुत्तें के गले की नाई मुझ से लिपटी हुई है। 18O 30 19 उस ने मुझ को कीचड़ में फेंक दिया है, और मैं मिट्टी और राख के तुल्य हो गया हूँ। 18O 30 20 मैं तेरी दोहाई देता हूँ, परन्तु तू नहीं सुनता; मैं खड़ा होता हूँ परन्तु तू मेरी ओर घूरने लगता है। 18O 30 21 18O 30 22 तू बदलकर मुझ पर कठोर हो गया है; और अपने बली हाथ से मुझे सताता हे। 18O 30 23 तू मुझे वायु पर सवार करके उड़ाता है, और आंधी के पानी में मुझे गला देता है। 18O 30 24 हां, मुझे निश्चय है, कि तू मुझे मृत्यु के वश में कर देगा, और उस घर में पहुंचाएगा, जो सब जीवित प्राणियों के लिये ठहराया गया है। 18O 30 25 तौभी क्या कोई गिरते समय हाथ न बढ़ाएगा? और क्या कोई विपत्ति के समय दोहाई न देगा? 18O 30 26 क्या मैं उसके लिये रोता नहीं था, जिसके दुर्दिन आते थे? और क्या दरिद्र जन के कारण मैं प्राण में दुखित न होता था? 18O 30 27 जब मैं कुशल का मार्ग जोहता था, तब विपत्ति आ पड़ी; और जब मैं उजियाले का आसरा लगाए था, तब अन्धकार छा गया। 18O 30 28 मेरी अन्तड़ियां निरन्तर उबलती रहती हैं और आराम नहीं पातीं; मेरे दु:ख के दिन आ गए हैं। 18O 30 29 मैं शोक का पहिरावा पहिने हुए मानो बिना सूर्य की गम के काला हो गया हूँ। और सभा में खड़ा होकर सहायता के लिये दोहाई देता हूँ। 18O 30 30 मैं गीदड़ों का भाई और शुतुर्मुग का संगी हो गया हूँ। 18O 30 31 मेरा चमड़ा काला होकर मुझ पर से गिरता जाता है, और तप के मारे मेरी हडि्डयां जल गई हैं। 18O 30 32 इस कारण मेरी वीणा से विलाप और मेरी बांसुरी से रोने की ध्वनि निकलती है। 18O 31 1 मैं ने अपनी आंखों के विषय वाचा बान्धी है, फिर मैं किसी कुंवारी पर क्योंकर आंखें लगाऊं? 18O 31 2 क्योंकि ईश्वर स्वर्ग से कौन सा अंश और सर्वशक्तिमान ऊपर से कौन सी सम्पत्ति बांटता है? 18O 31 3 क्या वह कुटिल मनुष्यों के लिये विपत्ति और अनर्थ काम करनेवालों के लिये सत्यानाश का कारण नहीं है? 18O 31 4 क्या वह मेरी गति नहीं देखता और क्या वह मेरे पग पग नहीं गिनता? 18O 31 5 यदि मैं व्यर्थ चाल चालता हूं, वा कपट करने के लिये मेरे पैर दौड़े हों; 18O 31 6 (तो मैं धर्म के तराजू में तौला जाऊं, ताकि ईश्वर मेरी खराई को जान ले)। 18O 31 7 यदि मेरे पग मार्ग से बहक गए हों, और मेरा मन मेरी आंखो की देखी चाल चला हो, वा मेरे हाथों को कुछ कलंक लगा हो; 18O 31 8 तो मैं बीज बोऊं, परन्तु दूसरा खाए; वरन मेरे खेत की उपज उखाड़ डाली जाए। 18O 31 9 यदि मेरा हृदय किसी स्त्री पर मोहित हो गया है, और मैं अपने पड़ोसी के द्वार पर घात में बैठा हूँ; 18O 31 10 तो मेरी स्त्री दूसरे के लिये पीसे, और पराए पुरूष उसको भ्रष्ट करें। 18O 31 11 क्योंकि वह तो महापाप होता; और न्यायियों से दणड पाने के योग्य अधर्म का काम होता; 18O 31 12 क्योंकि वह ऐसी आग है जो जलाकर भस्म कर देती है, और वह मेरी सारी उपज को जड़ से नाश कर देती है। 18O 31 13 जब मेरे दास वा दासी ने मुझ से झगड़ा किया, तब यदि मैं ने उनका हक मार दिया हो; 18O 31 14 तो जब ईश्वर उठ खड़ा होगा, तब मैं क्या करूंगा? और जब वह आएगा तब मैं क्या उत्तर दूंगा? 18O 31 15 क्या वह उसका बनानेवाला नहीं जिस ने मुझे गर्भ में बनाया? क्या एक ही ने हम दोनों की सूरत गर्भ में न रची थी? 18O 31 16 यदि मैं ने कंगालों की इच्छा पूरी न की हो, वा मेरे कारण विधवा की आंखें कभी रह गई हों, 18O 31 17 वा मैं ने अपना टुकड़ा अकेला खाया हो, और उस में से अनाथ न खाने पाए हों, 18O 31 18 (परन्तु वह मेरे लड़कपन ही से मेरे साथ इस प्रकार पला जिस प्रकार पिता के साथ, और मैं जन्म ही से विधवा को पालता आया हूँ); 18O 31 19 यदि मैं ने किसी को वस्त्राहीन मरते हुए देखा, वा किसी दरिद्र को जिसके पास ओढ़ने को न था 18O 31 20 और उसको अपनी भेड़ों की ऊन के कपड़े न दिए हों, और उस ने गर्म होकर मुझे आशीर्वाद न दिया हो; 18O 31 21 वा यदि मैं ने फाटक में अपने सहायक देखकर अनाथों के मारने को अपना हाथ उठाया हो, 18O 31 22 तो मेरी बांह पखौड़े से उखड़कर गिर पडे, और मेरी भुजा की हड्डी टूट जाए। 18O 31 23 क्योंकि ईश्वर के प्रताप के कारण मैं ऐसा नहीं कर सकता था, क्योंकि उसकी ओर की विपत्ति के कारण मैं भयभीत होकर थरथराता था। 18O 31 24 यदि मैं ने सोने का भरोसा किया होता, वा कुन्दन को अपना आसरा कहा होता, 18O 31 25 वा अपने बहुत से धन वा अपनी बड़ी कमाई के कारण आनन्द किया होता, 18O 31 26 वा सूर्य को चमकते वा चन्द्रमा को महाशोभा से चलते हुए देखकर 18O 31 27 मैं मन ही मन मोहित हो गया होता, और अपने मुंह से अपना हाथ चूम लिया होता; 18O 31 28 तो यह भी न्यायियों से दणड पाने के योग्य अधर्म का काम होता; क्योंकि ऐसा करके मैं ने सर्वश्रेष्ठ ईश्वर का इनकार किया होता। 18O 31 29 यदि मैं अपने बैरी के नाश से आनन्दित होता, वा जब उस पर विपत्ति पड़ी तब उस पर हंसा होता; 18O 31 30 (परन्तु मैं ने न तो उसकी शाप देते हुए, और न उसके प्राणदणड की प्रार्थना करते हुए अपने मुंह से पाप किया है); 18O 31 31 यदि मेरे डेरे के रहनेवालों ने यह न कहा होता, कि ऐसा कोई कहां मिलेगा, जो इसके यहां का मांस खाकर तृप्त न हुआ हो? 18O 31 32 (परदेशी को सड़क पर टिकना न पड़ता था; मैं बटोही के लिये अपना द्वार खुला रखता था); 18O 31 33 यदि मैं ने आदम की नाई अपना अपराध छिपाकर अपने अधर्म को ढांप लिया हो, 18O 31 34 इस कारण कि मैं बड़ी भीड़ से भय खाता था, वा कुलीनों से तुच्छ किए जाने से डर गया यहां तक कि मैं द्वार से बाहर न निकला--- 18O 31 35 भला होता कि मेरा कोई सुननेवाला होता ! (सर्वशक्तिमान अभी मेरा त्याय चुकाए ! देखो मेरा दस्तखत यही है)। भला होता कि जो शिकायतनामा मेरे मु ई ने लिखा है वह मेरे पास होता ! 18O 31 36 निश्चय मैं उसको अपने कन्धे पर उठाए फिरता; और सुन्दर पगड़ी जानकर अपने सिर में बान्धे रहता। 18O 31 37 मैं उसको अपने पग पग का हिसाब देता; मैं उसके निकट प्रधान की नाई निडर जाता। 18O 31 38 यदि मेरी भूमि मेरे विरूद्ध दोहाई देती हो, और उसकी रेघारियां मिलकर रोती हों; 18O 31 39 यदि मैं ने अपनी भूमि की उपज बिना मजूरी दिए खई, वा उसके मालिक का प्राण लिया हो; 18O 31 40 तो गेहूं के बदले झड़बेड़ी, और जव के बदले जंगली घास उगें! अरयूब के वचन पूरे हुए हैं। 18O 32 1 तब उन तीनों पुरूषों ने यह देखकर कि अरयूब अपनी दृष्टि में निदष है उसको उत्तर देना छोड़ दिया। 18O 32 2 और बूजी बारकेल का पुत्रा एलीहू जो राम के कुल का था, उसका क्रोध भड़क उठा। अरयूब पर उसका क्रोध इसलिये भड़क उठा, कि उस ने परमेश्वर को नहीं, अपने ही को निदष ठहराया। 18O 32 3 फिर अरयूब के तीनों मित्रों के विरूद्ध भी उसका क्रोध इस कारण भड़का, कि वे अरयूब को उत्तर न दे सके, तौभी उसको दोषी ठहराया। 18O 32 4 एलीहू तो अपने को उन से छोटा जानकर अरयूब की बातों के अन्त की बाट जोहता रहा। 18O 32 5 परन्तु जब एलीहू ने देखा कि ये तीनों पुरूष कुछ उत्तर नहीं देते, तब उसका क्रोध भड़क उठा। 18O 32 6 तब बूजी बारकेल का पुत्रा एलीहू कहने लगा, कि मैं तो जवान हूँ, और तुम बहुत बूढ़े हो; इस कारण मैं रूका रहा, और अपना विचार तुम को बताने से डरता था। 18O 32 7 मैं सोचता था, कि जो आयु में बड़े हैं वे ही बात करें, और जो बहुत वर्ष के हैं, वे ही बुध्दि सिखाएं। 18O 32 8 परन्तु मनुष्य में आत्मा तो है ही, और सर्वशक्तिमान अपनी दी हुई सांस से उन्हें समझने की शक्ति देता है। 18O 32 9 जो बुध्दिमान हैं वे बड़े बड़े लोग ही नहीं और न्याय के समझनेवाले बूढ़े ही नहीं होते। 18O 32 10 इसलिये मैं कहता हूं, कि मेरी भी सुनो; मैं भी अपना विचार बताऊंगा। 18O 32 11 मैं तो तुम्हारी बातें सुनने को ठहरा रहा, मैं तुम्हारे प्रमाण सुनने के लिये ठहरा रहा; जब कि तुम कहने के लिये शब्द ढूढ़ते रहे। 18O 32 12 मैं चित्त लगाकर तुम्हारी सुनता रहा। परन्तु किसी ने अरयूब के पक्ष का खणडन नहीं किया, और न उसकी बातों का उत्तर दिया। 18O 32 13 तुम लोग मत समझो कि हम को ऐसी बुध्दि मिली है, कि उसका खणडन मनुष्य नहीं ईश्वर ही कर सकता है। 18O 32 14 जो बातें उस ने कहीं वह मेरे विरूद्ध तो नहीं कहीं, और न मैं तुम्हारी सी बातों से उसको उत्तर दूंगा। 18O 32 15 वे विस्मित हुए, और फिर कुछ उत्तर नहीं दिया; उन्हों ने बातें करना छोड़ दिया। 18O 32 16 इसलिये कि वे कुछ नहीं बोलते और चुपचाप खड़े हैं, क्या इस कारण मैं ठहरा रहूं? 18O 32 17 परन्तु अब मैं भी कुछ कहूंगा मैं भी अपना विचार प्रगट करूंगा। 18O 32 18 क्योंकि मेरे मन में बातें भरी हैं, और मेरी आत्मा मुझे उभार रही है। 18O 32 19 मेरा मन उस दाखमधु के समान है, जो खोला न गया हो; वह नई कुप्पियों की नाई फटा चाहता है। 18O 32 20 शान्ति पाने के लिये मैं बोलूंगा; मैं मुंह खोलकर उत्तर दूंगा। 18O 32 21 न मैं किसी आदमी का पक्ष करूंगा, और न मैं किसी मनुष्य को चापलूसी की पदवी दूंगा। 18O 32 22 क्योंकि मुझे तो चापलूसी करना आता ही नहीं नहीं तो मेरा सिरजनहार क्षण भर में मुझे उठा लेता। 18O 33 1 तौभी हे अरयूब ! मेरी बातें सुन ले, और मेरे सब वचनों पर कान लगा। 18O 33 2 मैं ने तो अपना मुंह खोला है, और मेरी जीभ मुंह में चुलबुला रही है। 18O 33 3 मेरी बातें मेरे मन की सिधाई प्रगट करेंगी; जो ज्ञान मैं रखता हूं उसे खराई के साथ कहूंगा। 18O 33 4 मुझे ईश्वर की आत्मा ने बनाया है, और सर्वशक्तिमान की सांस से मुझे जीवन मिलता है। 18O 33 5 यदि तू मुझे उत्तर दे सके, तो दे; मेरे साम्हने अपनी बातें क्रम से रचकर खड़ा हो जा। 18O 33 6 देख मैं ईश्वर के सन्मुख तेरे तुल्य हूँ; मैं भी मिट्टी का बना हुआ हूँ। 18O 33 7 सुन, तुझे मेरे डर के मारे घबराना न पड़ेगा, और न तू मेरे बोझ से दबेगा। 18O 33 8 निेसन्देह तेरी ऐसी बात मेरे कानों में पड़ी है और मैं ने तेरे वचन सुने हैं, कि 18O 33 9 मैं तो पवित्रा और निरपराध और निष्कलंक हूँ; और मुझ में अर्ध्म नहीं है। 18O 33 10 देख, वह मुझ से झगड़ने के दांव ढूंढ़ता है, और मुझे अपना शत्रु समझता है; 18O 33 11 वह मेरे दोनों पांवों को काठ में ठोंक देता है, और मेरी सारी चाल की देखभाल करता है। 18O 33 12 देख, मैं तुझे उत्तर देता हूँ, इस बात में तू सच्चा नहीं है। क्योंकि ईश्वर मनुष्य से बड़ा है। 18O 33 13 तू उस से क्यों झगड़ता है? क्योंकि वह अपनी किसी बात का लेखा नहीं देता। 18O 33 14 क्योंकि ईश्वर तो एक क्या वरन दो बार बोलता है, परन्तु लोग उस पर चित्त नहीं लगाते। 18O 33 15 स्वप्न में, वा रात को दिए हुए दर्शन में, जब मनुष्य घोर निद्रा में पड़े रहते हैं, वा बिछौने पर सोते समय, 18O 33 16 तब वह मनुष्यों के कान खोलता है, और उनकी शिक्षा पर मुहर लगाता है, 18O 33 17 जिस से वह मनुष्य को उसके संकल्प से रोके और गर्व को मनुष्य में से दूर करे। 18O 33 18 वह उसके प्राण को गढ़हे से बचाता है, और उसके जीवन को खड़ग की मार से बचाता हे। 18O 33 19 उसे ताड़ना भी हेती है, कि वह अपने बिछौने पर पड़ा पड़ा तड़पता है, और उसकी हड्डी हड्डी में लगातार झगड़ा होता है 18O 33 20 यहां तक कि उसका प्राण रोटी से, और उसका मन स्वादिष्ट भोजन से घृणा करने लगता है। 18O 33 21 उसका मांस ऐसा सूख जाता है कि दिखाई नहीं देता; और उसकी हडि्डयां जो पहिले दिखाई नहीं देती थीं निकल आती हैं। 18O 33 22 निदान वह कबर के निकट पहुंचता है, और उसका जीवन नाश करनेवालों के वश में हो जाता है। 18O 33 23 यदि उसके लिये कोई बिचवई स्वर्ग दूत मिले, जो हजार में से एक ही हो, जो भावी कहे। और जो मनुष्य को बताए कि उसके लिये क्या ठीक है। 18O 33 24 तो वह उस पर अनुग्रह करके कहता है, कि उसे गढ़हे में जाने से वचा ले, मुझे छुड़ौती मिली है। 18O 33 25 तब उस मनुष्य की देह बालक की देह से अधिक स्वस्थ और कोमल हो जाएगी; उसकी जवानी के दिन फिर लौट आएंगे। 18O 33 26 वह ईश्वर से बिनती करेगा, और वह उस से प्रसन्न होगा, वह आनन्द से ईश्वर का दर्शन करेगा, और ईश्वर मनुष्य को ज्यों का त्यों धम कर देगा। 18O 33 27 वह मनुष्यों के साम्हने गाने ओर कहने लगता है, कि मैं ने पाप किया, और सच्चाई को उलट पुलट कर दिया, परन्तु उसका बदला मुझे दिया नहीं गया। 18O 33 28 उस ने मेरे प्राण क़ब्र में पड़ने से बचाया है, मेरा जीवन उजियाले को देखेगा। 18O 33 29 देख, ऐसे ऐसे सब काम ईश्वर पुरूष के साथ दो बार क्या वरन तीन बार भी करता है, 18O 33 30 जिस से उसको क़ब्र से बचाए, और वह जीवनलोक के उजियाले का प्रकाश पाए। 18O 33 31 हे अरयूब ! कान लगाकर मेरी सुन; चुप रह, मैं और बोलूंगा। 18O 33 32 यदि तुझे बात कहनी हो, तो मुझे उत्तर दे; बोल, क्योंकि मैं तुझे निदष ठहराना चाहता हूँ। 18O 33 33 यदि नहीं, तो तु मेरी सुन; चुप रह, मैं तुझे बुध्दि की बात सिखाऊंगा। 18O 34 1 फिर एलीहू यों कहता गया; 18O 34 2 हे बुध्दिमानो ! मेरी बातें सुनो, और हे ज्ञानियो ! मेरी बातों पर कान लगाओ; 18O 34 3 क्योंकि जैसे जीभ से चखा जाता है, वैसे ही वचन कान से परखे जाते हैं। 18O 34 4 जो कुछ ठीक है, हम अपने लिये चुन लें; जो भला है, हम आपस में समझ बूझ लें। 18O 34 5 क्योंकि अरयूब ने कहा है, कि मैं निदष हूँ, और ईश्वर ने मेरा हक़ मार दिया है। 18O 34 6 यद्यपि मैं सच्चाई पर हूं, तौभी झूठा ठहरता हूँ, मैं निरपराध हूँ, परन्तु मेरा घाव असाध्य है। 18O 34 7 अरयूब के तुल्य कौन शूरवीर है, जो ईश्वर की निन्दा पानी की नाई पीता है, 18O 34 8 जो अनर्थ करनेवालों का साथ देता, और दुष्ट मनुष्यों की संगति रखता है? 18O 34 9 उस ने तो कहा है, कि मनुष्य को इस से कुछ लाभ नहीं कि वह आनन्द से परमेश्वर की संगति रखे। 18O 34 10 इसलिऐ हे समझवालो ! मेरी सुनो, यह सम्भव नहीं कि ईश्वर दुष्टता का काम करे, और सर्वशकितमान बुराई करे। 18O 34 11 वह मनुष्य की करनी का फल देता है, और प्रत्येक को अपनी अपनी चाल का फल भुगताता है। 18O 34 12 निेसन्देह ईश्वर दुष्टता नहीं करता और न सर्वशक्तिमान अन्याय करता है। 18O 34 13 किस ने पृथ्वी को उसके हाथ में सौंप दिया? वा किस ने सारे जगत का प्रबन्ध किया? 18O 34 14 यदि वह मनुष्य से अपना मन हटाये और अपना आत्मा और श्वास अपने ही में समेट ले, 18O 34 15 तो सब देहधारी एक संग नाश हो जाएंगे, और मनुष्य फिर मिट्टी में मिल जाएगा। 18O 34 16 इसलिये इसको सुनकर समझ रख, और मेरी इन बातों पर कान लगा। 18O 34 17 जो न्याय का बैरी हो, क्या वह शासन करे? जो पूर्ण धम है, क्या तू उसे दुष्ट ठहराएगा? 18O 34 18 वह राजा से कहता है कि तू नीच है; और प्रधानों से, कि तुम दुष्ट हो। 18O 34 19 ईश्वर तो हाकिमों का पक्ष नहीं करता और धनी और कंगाल दोनों को अपने बनाए हुए जानकर उन में कुछ भेद नहीं करता। 18O 34 20 आधी रात को पल भर में वे मर जाते हैं, और प्रजा के लोग हिलाए जाते और जाते रहते हैं। और प्रतापी लोग बिना हाथ लगाए उठा लिए जाते हैं। 18O 34 21 क्योंकि ईश्वर की आंखें मनुष्य की चालचलन पर लगी रहती हैं, और वह उसकी सारी चाल को देखता रहता है। 18O 34 22 ऐसा अन्धियारा वा घोर अन्धकार कहीं नहीं है जिस में अनर्थ करनेवाले छिप सकें। 18O 34 23 क्योंकि उस ने मनुष्य का कुछ समय नहीं ठहराया ताकि वह ईश्वर के सम्मुख अदालत में जाए। 18O 34 24 वह बड़े बड़े बलवानों को बिना मुछपाछ के चूर चूर करता है, और उनके स्थान पर औरों को खड़ा कर देता है। 18O 34 25 इसलिये कि वह उनके कामों को भली भांति जानता है, वह उन्हें रात में ऐसा उलट देता है कि वे चूर चूर हो जाते हैं। 18O 34 26 वह उन्हें दुष्ट जानकर सभों के देखते मारता है, 18O 34 27 क्योंकि उन्हों ने उसके पीछे चलना छोड़ दिया है, और उसके किसी मार्ग पर चित्त न लगाया, 18O 34 28 यहां तक कि उनके कारण कंगालों की दोहाई उस तक पहुंची और उस ने दीन लोगों की दोहाई सुनी। 18O 34 29 जब वह चैन देता तो उसे कौन दोषी ठहरा सकता है? और जब वह मुंह फेर ले, तब कौन उसका दर्शन पा सकता है? जाति भर के साथ और अकेले मनुष्य, दोनों के साथ उसका बराबर व्यवहार है 18O 34 30 ताकि भक्तिहीन राज्य करता न रहे, और प्रजा फन्दे में फंसाई न जाए। 18O 34 31 क्या किसी ने कभी ईश्वर से कहा, कि मैं ने दणड सहा, अब मैं भविष्य में बुराई न करूंगा, 18O 34 32 जो कुछ मुझे नहीं सूझ पड़ता, वह तू मुझे सिखा दे; और यदि मैं ने टेढ़ा काम किया हो, तो भविष्य में वैसा न करूंगा? 18O 34 33 क्या वह तेरे ही मन के अनुसार बदला पाए क्योंकि तू उस से अप्रसन्न है? क्योंकि तुझे निर्णय करना है, न कि मुझे; इस कारण जो कुछ तुझे समझ पड़ता है, वह कह दे। 18O 34 34 सब ज्ञानी पुरूष वरन जितले बुध्दिमान मेरी सुनते हैं वे मुझ से कहेंगे, कि 18O 34 35 अरयूब ज्ञान की बातें नहीं कहता, और न उसके वचन समझ के साथ होते हैं। 18O 34 36 भला होता, कि अरयूब अन्त तब परीक्षा में रहता, क्योंकि उस ने अनर्थियों के से उत्तर दिए हैं। 18O 34 37 और वह अपने पाप में विरोध बढ़ाता है; ओर हमारे बीच ताली बजाता है, और ईश्वर के पिरूठ्ठ बहुत सी बातें बनाता है। 18O 35 1 फिर एलीहू इस प्रकार और भी कहता गया, 18O 35 2 कि क्या तू इसे अपना हम समझता है? क्या तू दावा करता है कि तेरा धर्म ईश्वर के धर्म से अधिक है? 18O 35 3 जो तू कहता है कि मुझे इस से क्या लाभ? और मुझे पापी होने में और न होने में कौन सा अधिक अन्तर है? 18O 35 4 मैं तुझे और तेरे साथियों को भी एक संग उत्तर देता हूँ। 18O 35 5 आकाश की ओर दृष्टि करके देख; और आकाशमणडल को ताक, जो तुझ से ऊंचा है। 18O 35 6 यदि तू ने पाप किया है तो ईश्वर का क्या बिगड़ता है? यदि तेरे अपराध बहुत ही बढ़ जाएं तौभी तू उसके साथ क्या करता है? 18O 35 7 यदि तू धम है तो उसको क्या दे देता है; वा उसे तेरे हाथ से क्या मिल जाता है? 18O 35 8 तेरी दुष्टता का फल तुझ ऐसे ही पुरूष के लिये है, और तेरे धर्म का फल भी मनुष्य मात्रा के लिये है। 18O 35 9 बहुत अन्धेर होने के कारण वे चिल्लाते हैं; और बलवान के बाहुबल के कारण वे दोहाई देते हैं। 18O 35 10 तौभी कोई यह नहीं कहता, कि मेरा सृजनेवाला ईश्वर कहां है, जो रात में भी गीत गवाता है, 18O 35 11 और हमें पृथ्वी के पशुओं से अधिक शिक्षा देता, और आकाश के पक्षियों से अधिक बुध्दि देता है? 18O 35 12 वे दोहाई देते हैं परन्तु कोई उत्तर नहीं देता, यह बुरे लोगों के घमणड के कारण होता है। 18O 35 13 निश्चय ईश्वर व्यर्थ बातें कभी नहीं सुनता, और न सर्वशक्तिमान उन पर चित्त लगाता है। 18O 35 14 तो तू क्यों कहता है, कि वह मुझे दर्शन नहीं देता, कि यह मुक़ मा उसके साम्हने है, और तू उसकी बाट जोहता हुआ ठहरा है? 18O 35 15 परन्तु अभी तो उस ने क्रोध करके दणड नहीं दिया है, और अभिमान पर चित्त बहुत नहीं लगाया; 18O 35 16 इस कारण अरयूब व्यर्थ मुंह खोलकर अज्ञानता की बातें बहुत बनाता है। 18O 36 1 फिर एलीहू ने यह भी कहा, 18O 36 2 कुछ ठहरा रह, और मैं तुझ को समझाऊंगा, क्योंकि ईश्वर के पक्ष में मुझे कुछ और भी कहना है। 18O 36 3 मैं अपने ज्ञान की बात दूर से ले आऊंगा, और अपने सिरजनहार को धम ठहराऊंगा। 18O 36 4 निश्चय मेरी बातें झूठी न होंगी, वह जो तेरे संग है वह पूरा ज्ञानी है। 18O 36 5 देख, ईश्वर सामथ है, और किसी को तुच्छ नहीं जानता; वह समझने की शक्ति में समर्थ है। 18O 36 6 वह दुष्टों को जिलाए नहीं रखता, और दीनों को उनका हक देता है। 18O 36 7 वह धर्मियों से अपनी आंखें नहीं फेरता, वरन उनको राजाओं के संग सदा के लिये सिंहासन पर बैठाता है, और वे ऊंचे पद को प्राप्त करते हैं। 18O 36 8 ओर चाहे वे बेड़ियों में जकड़े जाएं और दु:ख की रस्सियों से बान्धे जाए, 18O 36 9 तौभी ईश्वर उन पर उनके काम, और उनका यह अपराध प्रगट करता है, कि उन्हों ने गर्व किया है। 18O 36 10 वह उनके कान शिक्षा सुनने के लिये खोलता है, और आज्ञा देता है कि वे बुराई से परे रहें। 18O 36 11 यदि वे सुनकर उसकी सेवा करें, तो वे अपने दिन कल्याण से, और अपने वर्ष सुख से पूरे करते हैं। 18O 36 12 परन्तु यदि वे न सुनें, तो वे खड़ग से नाश हो जाते हैं, और अज्ञानता में मरते हैं। 18O 36 13 परन्तु वे जो मन ही मन भक्तिहीन होकर क्रोध बढ़ाते, और जब वह उनको बान्धता है, तब भी दोहाई नहीं देते, 18O 36 14 वे जवानी में मर जाते हैं और उनका जीवन लूच्चों के बीच में नाश होता है। 18O 36 15 वह दुख्यिों को उनके दु:ख से छुड़ाता है, और उपद्रव में उनका कान खोलता है। 18O 36 16 परन्तु वह तुझ को भी क्लेश के मुंह में से निकालकर ऐसे चौड़े स्थान में जहां सकेती नहीं है, पहुचा देता है, और चिकना चिकना भोजन तेरी मेज पर परोसता है। 18O 36 17 परन्तु तू ने दुष्टों का सा निर्णय किया है इसलिये निर्णय और न्याय तुझ से लिपटे रहते है। 18O 36 18 देख, तू जलजलाहट से उभर के ठट्ठा मत कर, और न प्रायश्चित्त को अधिक बड़ा जानकर मार्ग से मुड़। 18O 36 19 क्या तेरा रोना वा तेरा बल तुझे दु:ख से छुटकारा देगा? 18O 36 20 उस रात की अभिलाषा न कर, जिस में देश देश के लोग अपने अपने स्थान से मिटाए जाते हैं। 18O 36 21 चौकस रह, अनर्थ काम की ओर मत फिर, तू ने तो देख से अधिक इसी को चुन लिया है। 18O 36 22 देख, ईश्वर अपने सामर्ध्य से बड़े बड़े काम करता है, उसके समान शिक्षक कौन है? 18O 36 23 किस ने उसके चलने का मार्ग ठहराया है? और कौन उस से कह सकता है, कि तू ने अनुचित काम किया है? 18O 36 24 उसके कामों की महिमा और प्रशंसा करने को स्मरण रख, जिसकी प्रशंसा का गीत मनुष्य गाते चले आए हैं। 18O 36 25 सब मनुष्य उसको ध्यान से देखते आए हैं, और मनुष्य उसे दूर दूर से देखता है। 18O 36 26 देख, ईश्वर महान और हमारे ज्ञान से कहीं परे है, और उसके वर्ष की गिनती अनन्त है। 18O 36 27 क्योंकि वह तो जल की बूंदें ऊपर को खींच लेता है वे कुहरे से मेंह होकर टपकती हैं, 18O 36 28 वे ऊंचे ऊंचे बादल उंडेलते हैं और मनुष्यों के ऊपर बहुतायत से बरसाते हैं। 18O 36 29 फिर क्या कोई बादलों का फैलना और उसके मणडल में का गरजना समझ सकता है? 18O 36 30 देख, वह अपने उजियाले को चहुँओर फैलाता है, और समुद्र की थाह को ढांपता है। 18O 36 31 क्योंकि वह देश देश के लोगों का न्याय इन्हीं से करता है, और भोजनवस्तुएं बहुतायत से देता है। 18O 36 32 वह बिजली को अपने हाथ में लेकर उसे आज्ञा देता है कि दुश्मन पर गिरे। 18O 36 33 इसकी कड़क उसी का समाचार देती है पशु भी प्रगट करते हैं कि अन्धड़ चढ़ा आता है। 18O 37 1 फिर इस बात पर भी मेरा हृदय कांपता है, और अपने स्थान से उछल पड़ता है। 18O 37 2 उसके बोलने का शब्द तो सुनो, और उस शब्द को जो उसके मुंह से निकलता है सुनो। 18O 37 3 वह उसको सारे आकाश के तले, और अपनी बिजली को पृथ्वी की छोर तक भेजता है। 18O 37 4 उसके पीछे गरजने का शब्द होता है; वह अपने प्रतापी शब्द से गरजता है, और जब उसका शब्द सुनाई देता है तब बिजली लगातार चमकने लगती है। 18O 37 5 ईश्वर गरजकर अपना शब्द अदभ़ुत रीति से सुनाता है, और बड़े बड़े काम करता है जिनको हम नहीं समझते। 18O 37 6 वह तो हिम से कहता है, पृथ्वी पर गिर, और इसी प्रकार मेंह को भी और मूसलाधार वर्षा को भी ऐसी ही आज्ञा देता है। 18O 37 7 वह सब मनुष्यों के हाथ पर मुहर कर देता है, जिस से उसके बनाए हुए सब मनुष्य उसको पहचानें। 18O 37 8 तब वनपशु गुफाओं में घुस जाते, और अपनी अपनी मांदों में रहते हैं। 18O 37 9 दक्खिन दिशा से बवणडर और उतरहिया से जाड़ा आता है। 18O 37 10 ईश्वर की श्वास की फूंक से बरफ पड़ता है, तब जलाशयों का पाट जम जाता है। 18O 37 11 फिर वह घटाओं को भाफ़ से लादता, और अपनी बिजली से भरे हुए उजियाले का बादल दूर तक फैलाता है। 18O 37 12 वे उसकी बुध्दि की युक्ति से इधर उधर फिराए जाते हैं, इसलिये कि जो आज्ञा वह उनको दे, उसी को वे बसाई हुई पृथ्वी के ऊपर पूरी करें। 18O 37 13 चाहे ताड़ना देने के लिये, चाहे अपनी पृथ्वी की भलाई के लिये वा मनुष्यों पर करूणा करने के लिये वह उसे भेजे। 18O 37 14 हे अरयूब ! इस पर कान लगा और सुन ले; चुपचाप खड़ा रह, और ईश्वर के आश्चर्यकम का विचार कर। 18O 37 15 क्या तू जानता है, कि ईश्वर क्योंकर अपने बादलों को आज्ञा देता, और अपने बादल की बिजली को चमकाता है? 18O 37 16 क्या तू घटाओं का तौलना, वा सर्वज्ञानी के आश्चर्यकर्म जानता है? 18O 37 17 जब पृथ्वी पर दक्खिनी हवा ही के कारण से सन्नाटा रहता है तब तेरे वस्त्रा गर्म हो जाते हैं? 18O 37 18 फिर क्या तू उसके साथ आकाशमणडल को तान सकता है, जो ढाले हुए दर्पण के तुल्य दृढ़ है? 18O 37 19 तू हमें यह सिखा कि उस से क्या कहना चाहिये? क्योंकि हम अन्धियारे के कारण अपना व्याख्यान ठीक नहीं रच सकते। 18O 37 20 क्या उसको बनाया जाए कि मैं बोलना चाहता हूँ? क्या कोई अपना सत्यानाश चाहता है? 18O 37 21 अभी तो आकाशमणडल में का बड़ा प्रकाश देखा नहीं जाता जब वायु चलकर उसको शुठ्ठ करती है। 18O 37 22 उत्तर दिशा से सुनहली ज्योति आती है ईश्वर भययोग्य तेज से आभूषित है। 18O 37 23 सर्वशक्तिमान जो अति सामथ है, और जिसका भेद हम पा नहीं सकते, वह न्याय और पूर्ण धर्म को छोड़ अत्याचार नहीं कर सकता। 18O 37 24 इसी कारण सज्जन उसका भय मानते हैं, और जो अपनी दृष्टि में बुध्दिमान हैं, उन पर वह दृष्टि नहीं करता। 18O 38 1 तब यहोवा ने अरयूब को आँधी में से यूं उत्तर दिया, 18O 38 2 यह कौन है जो अज्ञानता की बातें कहकर युक्ति को बिगाड़ना चाहता है? 18O 38 3 पुरूष की नाई अपनी कमर बान्ध ले, क्योंकि मैं तुझ से प्रश्न करता हूँ, और तू मुझे उत्तर दे। 18O 38 4 जब मैं ने पृथ्वी की नेव डाली, तब तू कहां था? यदि तू समझदार हो तो उत्तर दे। 18O 38 5 उसकी नाप किस ने ठहराई, क्या तू जानता है उस पर किस ने सूत खींचा? 18O 38 6 उसकी नेव कौन सी वस्तु पर रखी गई, वा किस ने उसके कोने का पत्थर लिठाया, 18O 38 7 जब कि भोर के तारे एक संग आनन्द से गाते थे और परमेश्वर के सब पुत्रा जयजयकार करते थे? 18O 38 8 फिर जब समुद्र ऐसा फूट निकला मानो वह गर्भ से फूट निकला, तब किस ने द्वार मूंदकर उसको रोक दिया; 18O 38 9 जब कि मैं ने उसको बादल पहिनाया और घोर अन्धकार में लमेट दिया, 18O 38 10 और उसके लिये सिवाना बान्धा और यह कहकर बेंड़े और किवाड़े लगा दिए, कि 18O 38 11 यहीं तक आ, और आगे न बढ़, और तेरी उमंडनेवाली लहरें यहीं थम जाएं? 18O 38 12 क्या तू ने जीवन भर में कभी भोर को आज्ञा दी, और पौ को उसका स्थान जताया है, 18O 38 13 ताकि वह पृथ्वी की छोरों को वश में करे, और दुष्ट लोग उस में से झाड़ दिए जाएं? 18O 38 14 वह ऐसा बदलता है जैसा मोहर के नीचे चिकनी मिट्टी बदलती है, और सब वस्तुएं मानो वस्त्रा पहिने हुए दिखाई देती हैं। 18O 38 15 दुष्टों से उनका उजियाला रोक लिया जाता है, और उनकी बढ़ाई हुई बांह तोड़ी जाती है। 18O 38 16 क्या तू कभी समुद्र के सोतों तक पहुंचा है, वा गहिरे सागर की थाह में कभी चला फिरा है? 18O 38 17 क्या मृत्यु के फाटक तुझ पर प्रगट हुए, क्या तू घोर अन्धकार के फाटकों को कभी देखन पाया है? 18O 38 18 क्या तू ने पृथ्वी की चौड़ाई को पूरी रीति से समझ लिया है? यदि तू यह सब जानता है, तो बतला दे। 18O 38 19 उजियाले के निवास का मार्ग कहां है, और अन्धियारे का स्थान कहां है? 18O 38 20 क्या तू उसे उसके सिवाने तक हटा सकता है, और उसके घर की डगर पहिचान सकता है? 18O 38 21 निेसन्देह तू यह सब कुछ जानता होगा ! क्योंकि तू तो उस समय उत्पन्न हुआ था, और तू बहुत आयु का है। 18O 38 22 फिर क्या तू कभी हिम के भणडार में पैठा, वा कभी ओलों के भणडार को तू ने देखा है, 18O 38 23 जिसको मैं ने संकट के समय और युठ्ठ और लड़ाई के दिन के लिये रख छोड़ा है? 18O 38 24 किस मार्ग से उजियाला फैलाया जाता है, ओर पुरवाई पृथ्वी पर बहाई जाती है? 18O 38 25 महावृष्टि के लिये किस ने नाला काटा, और कड़कनेवाली बिजली के लिये मार्ग बनाया है, 18O 38 26 कि निर्जन देश में और जंगल में जहां कोई मनुष्य नहीं रहता मेंह बरसाकर, 18O 38 27 उजाड़ ही उजाड़ देश को सींचे, और हरी घास उगाए? 18O 38 28 क्या मेंह का कोई पिता है, और ओस की बूंदें किस ने उत्पन्न की? 18O 38 29 किस के गर्भ से बर्फ निकला है, और आकाश से गिरे हुए पाले को कौन उत्पन्न करता है? 18O 38 30 जल पत्थर के समान जम जाता है, और गहिरे पानी के ऊपर जमावट होती है। 18O 38 31 क्या तू कचपचिया का गुच्छा गूंथ सकता वा मृगशिरा के बन्धन खोल सकता है? 18O 38 32 क्या तू राशियों को ठीक ठीक समय पर उदय कर सकता, वा सप्तर्षि को साथियों समेत लिए चल सकता है? 18O 38 33 क्या तू आकाशमणडल की विधियां जानता और पृथ्वी पर उनका अधिकार ठहरा सकता है? 18O 38 34 क्या तू बादलों तक अपनी वाणी पहुंचा सकता है ताकि बहुत जल बरस कर तुझे छिपा ले? 18O 38 35 क्या तू बिजली को आज्ञा दे सकता है, कि वह जाए, और तुझ से कहे, मैं उपस्थित हूँ? 18O 38 36 किस ने अन्तेकरण में बुध्दि उपजाई, और मन में समझने की शक्ति किस ने दी है? 18O 38 37 कौन बुध्दि से बादलों को गिन सकता है? और कौन आकाश के कुप्पों को उणडेल सकता है, 18O 38 38 जब धूलि जम जाती है, और ढेले एक दूसरे से सट जाते हैं? 18O 38 39 क्या तू सिंहनी के लिये अहेर पकड़ सकता, और जवान सिंहों का पेट भर सकता है, 18O 38 40 जब वे मांद में बैठे हों और आड़ में घात लगाए दबक कर बैठे हों? 18O 38 41 फिर जब कौवे के बच्चे ईश्वर की दोहाई देते हुए निराहार उड़ते फिरते हैं, तब उनको आहार कौन देता है? 18O 39 1 क्या तू जानता है कि पहाड़ पर की जंगली बकरियां कब बच्चे देती हैं? वा जब हरिणियां बियाती हैं, तब क्या तू देखता रहता है? 18O 39 2 क्या तू उनके महीने गिन सकता है, क्या तू उनके बियाने का समय जानता है? 18O 39 3 जब वे बैठकर अपने बच्चों को जनतीं, वे अपनी पीड़ों से छूट जाती हैं? 18O 39 4 उनके बच्चे हृष्टपुष्ट होकर मैदान में बढ़ जाते हैं; वे निकल जाते और फिर नहीं लौटते। 18O 39 5 किस ने बनैले गदहे को स्वाधीन करके छोड़ दिया है? किस ने उसके बन्धन खोले हैं? 18O 39 6 उसका घर मैं ने निर्जल देश को, और उसका निवास लोनिया भूमि को ठहराया है। 18O 39 7 वह नगर के कोलाहल पर हंसता, और हांकनेवाले की हांक सुनता भी नहीं। 18O 39 8 पहाड़ों पर जो कुछ मिलता है उसे वह चरता वह सब भांति की हरियाली ढूंढ़ता फिरता है। 18O 39 9 क्या जंगली सांढ़ तेरा काम करने को प्रसन्न होगा? क्या वह तेरी चरनी के पास रहेगा? 18O 39 10 क्या तू जंगली सांढ़ को रस्से से बान्धकर रेघारियों में चला सकता है? क्या वह नालों में तेरे पीछे पीछे हेंगा फेरेगा? 18O 39 11 क्या तू उसके बड़े बल के कारण उस पर भरोसा करेगा? वा जो परिश्रम का काम तेरा हो, क्या तू उसे उस पर छोड़ेगा? 18O 39 12 क्या तू उसका विश्वास करेगा, कि वह तेरा अनाज घर ले आए, और तेरे खलिहान का अन्न इकट्ठा करे? 18O 39 13 फिर शुतुरमुग अपने पंखों को आनन्द से फुलाती है, परन्तु क्या ये पंख और पर स्नेह को प्रगट करते हैं? 18O 39 14 क्योंकि वह तो अपने अणडे भूमि पर छोड़ देती और धूलि में उन्हें गर्म करती है; 18O 39 15 और इसकी सुधि नहीं रखती, कि वे पांव से कुचले जाएंगे, वा कोई वनपशु उनको कुचल डालेगा। 18O 39 16 वह अपने बच्चों से ऐसी कठोरता करती है कि मानो उसके नहीं हैं; यद्यपि उसका कष्ट अकारथ होता है, तौभी वह निश्चिन्त रहती है; 18O 39 17 क्योंकि ईश्वर ने उसको बुध्दिरहित बनाया, और उसे समझने की शक्ति नहीं दी। 18O 39 18 जिस समय वह सीधी होकर अपने पंख फैलाती है, तब घोड़े और उसके सवार दोनों को कुछ नहीं समझती है। 18O 39 19 क्या तू ने घोड़े को उसका बल दिया है? क्या तू ने उसकी गर्दन में फहराती हुई अयाल जमाई है? 18O 39 20 क्या उसको टिड्डी की सी उछलने की शक्ति तू देता है? उसके कुंक्कारने का शब्द डरावना होता है। 18O 39 21 वह तराई में टाप मारता है और अपने बल से हर्षित रहता है, वह हथियारबन्दों का साम्हना करने को निकल पड़ता है। 18O 39 22 वह डर की बात पर हंसता, और नहीं घबराता; और तलवार से पीछे नहीं हटता। 18O 39 23 तर्कश और चमकता हुआ सांग ओर भाला उस पर खड़खड़ाता है। 18O 39 24 वह रिस और क्रोध के मारे भूमि को निगलता है; जब नरसिंगे का शब्द सुनाई देता है तब वह रूकता नहीं। 18O 39 25 जब जब नरसिंगा बजता तब तब वह हिन हिन करता है, और लड़ाई और अफसरों की ललकार और जय- जयकार को दूर से सूंध लेता हे। 18O 39 26 क्या तेरे समझाने से बाज़ उड़ता है, और दक्खिन की ओर उड़ने को अपने पंख फैलाता है? 18O 39 27 क्या उकाब तेरी आज्ञा से ऊपर चढ़ जाता है, और ऊंचे स्थान पर अपना घोंसला बनाता है? 18O 39 28 वह चट्टान पर रहता और चट्टान की चोटी और दृढ़स्थान पर बसेरा करता है। 18O 39 29 वह अपनी आंखों से दूर तक देखता है, वहां से वह अपने अहेर को ताक लेता है। 18O 39 30 उसके बच्चे भी लोहू चूसते हैं; और जहां घात किए हुए लोग होते वहां वह भी होता है। 18O 40 1 फिर यहोवा ने अरयूब से यह भी कहो 18O 40 2 क्या जो बकवास करता है वह सर्वशक्तिमान से झगड़ा करे? जो ईश्वर से विवाद करता है वह इसका उत्तर दे। 18O 40 3 तब अरयूब ते यहोवा को उत्तर दियो 18O 40 4 देख, मैं तो तुच्छ हूँ, मैं तुझे क्या उत्तर दूं? मैं अपनी अंगुली दांत तले दबाता हूँ। 18O 40 5 एक बार तो मैं कह चुका, परन्तु और कुछ न कहूंगो हां दो बार भी मैं कह चुका, परन्तु अब कुछ और आगे न बढ़ूंगा। 18O 40 6 तब यहोवा ने अरयूब को आँधी में से यह उत्तर दियो 18O 40 7 पुरूष की नाई अपनी कमर बान्ध ले, मैं तुझ से प्रश्न करता हूँ, और तू मुझे बता। 18O 40 8 क्या तू मेरा न्याय भी व्यर्थ ठहराएगा? क्या तू आप निदष ठहरने की मनसा से मुझ को दोषी ठहराएगा? 18O 40 9 क्या तेरा बाहुबल ईश्वर के तुल्य है? क्या तू उसके समान शब्द से गरज सकता है? 18O 40 10 अब अपने को महिमा और प्रताप से संवार और ऐश्वरर्य और तेज के वस्त्रा पहिन ले। 18O 40 11 अपने अति क्रोध की बाढ़ को बहा दे, और एक एक घमणडी को देखते ही उसे नीचा कर। 18O 40 12 हर एक घमणडी को देखकर झुका दे, और दुष्ट लोगों को जहां खड़े हों वहां से गिरा दे। 18O 40 13 उनको एक संग मिट्टी में मिला दे, और उस गुप्त स्थान में उनके मुंह बान्ध दे। 18O 40 14 तब मैं भी तेरे विषय में मान लूंगा, कि तेरा ही दहिना हाथ तेरा उद्वार कर सकता है। 18O 40 15 उस जलगज को देख, जिसको मैं ने तेरे साथ बनाया है, वह बैल की नाई घास खाता है। 18O 40 16 देख उसकी कटि में बल है, और उसके पेट के पट्ठों में उसकी सामर्थ्य रहती है। 18O 40 17 वह अपनी पूंछ को देवदार की नाई हिलाता है; उसकी जांधों की नसें एक दूसरे से मिली हुई हैं। 18O 40 18 उसकी हटि्टयां मानो पीतल की नलियां हैं, उसकी पसुलियां मानो लोेहे के बेंड़े हैं। 18O 40 19 वह ईश्वर का मुख्य कार्य है; जो उसका सिरजनहार हो उसके निकट तलवार लेकर आए ! 18O 40 20 निश्चय पहाड़ों पर उसका चारा मिलता है, जहां और सब वनपशु कालोल करते हैं। 18O 40 21 वह छतनार वृक्षों के तले नरकटों की आड़ में और कीच पर लेटा करता है 18O 40 22 छतनार वृक्ष उस पर छाया करते हैं, वह नाले के बेंत के वृक्षों से घिरा रहता है। 18O 40 23 चाहे नदी की बाढ़ भी हो तौभी वह न घबराएगा, चाहे यरदन भी बढ़कर उसके मुंह तक आए परन्तु वह निर्भय रहेगा। 18O 40 24 जब वह चौकस हो तब क्या कोई उसको पकड़ सकेगा, वा फन्दे लगाकर उसको नाथ सकेगा? 18O 41 1 फिर क्या तू लिब्यातान अथवा मगर को बंसी के द्वारा खींच सकता है, वा डोरी से उसकी जीभ दबा सकता है? 18O 41 2 क्या तू उसकी नाक में नकेल लगा सकता वा उसका जबड़ा कील से बेध सकता है? 18O 41 3 क्या वह तुझ से बहुत गिड़गिड़ाहट करेगा, वा तुझ से मीठी बातें बोलेगा? 18O 41 4 क्या वह तुझ से वाचा बान्ध्ेगा कि वह सदा तेरा दास रहे? 18O 41 5 क्या तू उस से ऐसे खेलेगा जैसे चिड़िया से, वा अपनी लड़कियों का जी बहलाने को उसे बान्ध रखेेगा? 18O 41 6 क्या मछुओं के दल उसे बिकाऊ माल समझेंगे? क्या वह उसे व्योपारियों में बांट देंगे? 18O 41 7 क्या तू उसका चमड़ा भाले से, वा उसका सिर मछुवे के तिरशूलों से भर सकता है? 18O 41 8 तू उस पर अपना हाथ ही धरे, तो लड़ाई को कभी न भूलेगा, और भविष्य में कभी ऐसा न करेगा। 18O 41 9 देख, उसे पकड़ने की आशा निष्फल रहती है; उसके देखने ही से मन कच्चा पड़ जाता है। 18O 41 10 कोई ऐसा साहसी नहीं, जो उसको भड़काए; फिर ऐसा कौन है जो मेरे साम्हने ठहर सके? 18O 41 11 किस ने पुझे पहिले दिया है, जिसका बदला मुझे देना पड़े ! देख, जो कुछ सारी धरती पर है सो मेरा है। 18O 41 12 मैं उसके अंगों के विषय, और उसके बड़े बल और उसकी बनावट की शोभा के विषय चुप न रहूंगा। 18O 41 13 उसके ऊपर के पहिरावे को कौन उतार सकता है? उसके दांतों की दोनों पांतियों के अर्थात् जबड़ों के बीच कौन आएगा? 18O 41 14 उसके मुख के दोनों किवाड़ कौन खोल सकता है? उसके दांत चारों ओर से डरावने हैं। 18O 41 15 उसके छिलकों की रेखाएं घमण्ड का कारण हैं; वे मानो कड़ी छाप से बन्द किए हुए हैं। 18O 41 16 वे एक दूसरे से ऐसे जुड़े हुए हैं, कि उन में कुछ वायु भी नहीं पैठ सकती। 18O 41 17 वे आपस में मिले हुए और ऐसे सटे हुए हैं, कि अलग अलग नहीं हो सकते। 18O 41 18 फिर उसके छींकने से उजियाला चमक उठता है, और उसकी आंखें भोर की पलकों के समान हैं। 18O 41 19 उसके मुंह से जलते हुए पलीते निकलते हैं, और आग की चिनगारियां छूटती हैं। 18O 41 20 उसके नथ्ुानों से ऐसा धुआं निकलता है, जैसा खौलती हुई हांड़ी और जलते हुए नरकटों से। 18O 41 21 उसकी सांस से कोयले सुलगते, और उसके मुंह से आग की लौ निकलती है। 18O 41 22 उसकी गर्दन में सामर्थ्य बनी रहती है, और उसके साम्हने डर नाचता रहता है। 18O 41 23 उसके मांस पर मांस चढ़ा हुआ है, और ऐसा आपस में सटा हुआ है जो हिल नहीं सकता। 18O 41 24 उसका हृदय पत्थर सा दृढ़ है, वरन चक्की के निचले पाट के समान दृढ़ है। 18O 41 25 जब वह उठने लगता है, तब सामथ भी डर जाते हैं, और डर के मारे उनकी सुध बुध लोप हो जाती है। 18O 41 26 यदि कोई उस पर तलवार चलाए, तो उस से कुछ न बन पड़ेगा; और न भाले और न बछ और न तीर से। 18O 41 27 वह लोहे को पुआल सा, और पीतल को सड़ी लकड़ी सा जानता है। 18O 41 28 वह तीर से भगाया नहीं जाता, गोफन के पत्थर उसके लिये भूसे से ठहरते हैं। 18O 41 29 लाठियां भी भूसे के समान गिनी जाती हैं; वह बछ के चलने पर हंसता है। 18O 41 30 उसके निचले भाग पैने ठीकरे के समान हैं, कीच पर मानो वह हेंगा फेरता है। 18O 41 31 वह गहिरे जल को हंडे की नाई मथ्ता हैे उसके कारण नील नदी मरहम की हांडी के समान होती है। 18O 41 32 वह अपने पीछे चमकीली लीक छोड़ता जाता है। गहिरा जल मानो श्वेत दिखाई देने लगता है। 18O 41 33 धरती पर उसके तुल्य और कोई नहीं है, जो ऐसा निर्भय बनाया गया है। 18O 41 34 जो कुछ ऊंचा है, उसे वह ताकता ही रहता है, वह सब घमणिडयों के ऊपर राजा है। 18O 42 1 तब अरयूब यहोवा को उत्तर दिया; 18O 42 2 मैं जानता हूँ कि तू सब कुछ कर सकता है, और तेरी युक्तियों में से कोई रूक नहीं सकती। 18O 42 3 तू कौन है जो ज्ञान रहित होकर युक्ति पर परदा डालता है? परन्तु मैं ने तो जो नहीं समझता था वही कहा, अर्थात् जो बातें मेरे लिये अधिक कठिन और मेरी समझ से बाहर थीं जिनको मैं जानता भी नहीं था। 18O 42 4 मैं निवेदन करता हूं सुन, मैं कुछ कहूंगा, मैं तुझ से प्रश्न करता हूँ, तू मुझे बता दे। 18O 42 5 मैं कानों से तेरा समाचार सुना था, परन्तु अब मेरी आंखें तुझे देखती हैं; 18O 42 6 इसलिये मुझे अपने ऊपर घृणा आती है, और मैं धूलि और राख में पश्चात्ताप करता हूँ। 18O 42 7 और ऐसा हुआ कि जब यहोवा ये बातें अरयूब से कह चुका, तब उस ने तेमानी एलीपज से कहा, मेरा क्रोध तेरे और तेरे दोनों मित्रों पर भड़का है, क्योंकि जैसी ठीक बात मेरे दास अरयूब ने मेरे विषय कही है, वैसी तुम लोगों ने नहीं कही। 18O 42 8 इसलिये अब तुम सात बैल और सात मेढ़े छांटकर मेरे दास अरयूब के पास जाकर अपने निमित्त होमबलि चढ़ाओ, तब मेरा दास अरयूब तुम्हारे लिये प्रार्थना करेगा, क्योंकि उसी की मैं ग्रहण करूंगा; और नहीं, तो मैं तुम से तुम्हारी मूढ़ता के योग्य बर्ताव करूंगा, क्योंकि तुम लोगों ने मेरे विषय मेरे दास अरयूब की सी ठीक बात नहीं कही। 18O 42 9 यह सुन तेमानी एलीपज, शूही बिल्दद और नामाती सोपर ने जाकर यहोवा की आज्ञा के अनुसार किया, और यहोवा ने अरयूब की प्रार्थना ग्रहण की। 18O 42 10 जब अरयूब ने अपने मित्रों के लिये प्रार्थना की, तब यहोरवा ने उसका सारा दु:ख दूर किया, और जितना अरयूब का पहिले था, उसका दुगना यहोवा ने उसे दे दिया। 18O 42 11 तब उसके सब भाई, और सब बहिनें, और जितने पहिले उसको जानते पहिचानते थे, उन सभों ने आकर उसके यहां उसके संग भोजन किया; और जितनी विपत्ति यहोवा ने उस पर डाली थी, उस सब के विषय उन्हों ने विलाप किया, और उसे शान्ति दी; और उसे एक एक सिक्का ओर सोने की एक एक बाली दी। 18O 42 12 और यहोवा ने अरयूब के पिछले दिनों में उसको अगले दिनों से अधिक आशीष दी; और उसके चौदह हजार भेंड़ बकरियां, छेहजार ऊंट, हजार जोड़ी बैल, और हजार गदहियां हो गई। 18O 42 13 और उसके सात बेटे ओर तीन बेटियां भी उत्पन्न हुई। 18O 42 14 इन में से उस ने जेठी बेटी का नाम तो यमीमा, दूसरी का कसीआ और तीसरी का केरेन्हप्पूक रखा। 18O 42 15 और उस सारे देश में एंसी स्त्रियां कहीं न थीं, जो अरयूब की बेटियों के समान सुन्दर हों, और उनके पिता ने उनको उनके भाइयों के संग ही सम्पत्ति दी। 18O 42 16 इसके बाद अरयूब एक सौ चालीस वर्ष जीवित रहा, और चार पीढ़ी तक अपना वंश देखने पाया। 18O 42 17 निदान अरयूब वृद्धावस्था में दीर्घायु होकर मर गया। 19O 1 1 क्या ही धन्य है वह पुरूष जो दुष्टों की युक्ति पर नहीं चलता, और न पापियों के मार्ग में खड़ा होता; और न ठट्ठा करनेवालों की मण्डली में बैठता है! 19O 1 2 परन्तु वह तो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता; और उसकी व्यवस्था पर रात दिन ध्यान करता रहता है। 19O 1 3 वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है। और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिये जो कुछ वह पुरूष करे वह सफल होता है।। 19O 1 4 दुष्ट लोग ऐसे नहीं होते, वे उस भूसी के समान होते हैं, जो पवन से उड़ाई जाती है। 19O 1 5 इस कारण दुष्ट लोग अदालत में स्थिर न रह सकेंगे, और न पापी धर्मियों की मण्डली में ठहरेंगे; 19O 1 6 क्योंकि यहोवा धर्मियों का मार्ग जानता है, परन्तु दुष्टों का मार्ग नाश हो जाएगा।। 19O 2 1 जाति जाति के लोग क्यों हुल्लड़ मचाते हैं, और देश देश के लोग व्यर्थ बातें क्यों सोच रहे हैं? 19O 2 2 यहोवा के और उसके अभिषिक्त के विरूद्ध पृथ्वी के राजा मिलकर, और हाकिम आपस में सम्मति करके कहते हैं, कि 19O 2 3 आओ, हम उनके बन्धन तोड़ डालें, और उनकी रस्सियों को अपने ऊपर से उतार फेंके।। 19O 2 4 वह जो स्वर्ग में विराजमान है, हंसेगा, प्रभु उनको ठट्ठों में उड़ाएगा। 19O 2 5 तब वह उन से क्रोध करके बातें करेगा, और क्रोध में कहकर उन्हें घबरा देगा, कि 19O 2 6 मैं तो अपने ठहराए हुए राजा को अपने पवित्रा पर्वत सिरयोन की राजगद्दी पर बैठा चुका हूं। 19O 2 7 मैं उस वचन का प्रचार करूंगा: जो यहोवा ने मुझ से कहा, तू मेरा पुत्रा है, आज तू मुझ से उत्पन्न हुआ। 19O 2 8 मुझ से मांग, और मैं जाति जाति के लोगों को तेरी सम्पत्ति होने के लिये, और दूर दूर के देशों को तेरी निज भूमि बनने के लिये दे दूंगा। 19O 2 9 तू उन्हें लोहे के डण्डे से टुकड़े टुकड़े करेगा। तू कुम्हार के बर्तन की नाईं उन्हें चकना चूर कर डालेगा।। 19O 2 10 इसलिये अब, हे राजाओं, बुद्धिमान बनो; हे पृथ्वी के न्यायियों, यह उपदेश ग्रहण करो। 19O 2 11 डरते हुए यहोवा की उपासना करो, और कांपते हुए मगन हो। 19O 2 12 पुत्रा को चूमो ऐसा न हो कि वह क्रोध करे, और तुम मार्ग ही में नाश हो जाओ; क्योंकि क्षण भर में उसका क्रोध भड़कने को है।। धन्य है वे जिनका भरोसा उस पर है।। 19O 3 1 हे यहोवा मेरे सतानेवाले कितने बढ़ गए हैं! वह जो मेरे विरूद्ध उठते हैं बहुत हैं। 19O 3 2 बहुत से मेरे प्राण के विषय में कहते हैं, कि उसका बचाव परमेश्वर की आरे से नहीं हो सकता। 19O 3 3 परन्तु हे यहोवा, तू तो मेरे चारों ओर मेरी ढ़ाल है, तू मेरी महिमा और मेरे मस्तिष्क का ऊंचा करनेवाला है। 19O 3 4 मैं ऊंचे शब्द से यहोवा को पुकारता हूं, और वह अपने पवित्रा पर्वत पर से मुझे उत्तर देता है। 19O 3 5 मैं लेटकर सो गया; फिर जाग उठा, क्योंकि यहोवा मुझे सम्हालता है। 19O 3 6 मैं उन दस हजार मनुष्यों से नहीं डरता, जो मेरे विरूद्ध चारों ओर पांति बान्धे खड़े हैं।। 19O 3 7 उठ, हे यहोवा! हे मेरे परमेश्वर मुझे बचा ले! क्योंकि तू ने मेरे सब शत्रुओं के जबड़ों पर मारा है और तू ने दुष्टों के दांत तोड़ डाले हैं।। 19O 3 8 उद्धार यहोवा ही की ओर से होता है; हे यहोवा तेरी आशीष तेरी प्रजा पर हो।। 19O 4 1 हे मेरे धर्ममय परमेश्वर, जब मैं पुकारूं तब तू मुझे उत्तर दे; जब मैं सकेती में पड़ा तब तू ने मुझे विस्तार दिया। मुझ पर अनुग्रह कर और मेरी प्रार्थना सुन ले।। 19O 4 2 हे मनुष्यों के पुत्रों, कब तक मेरी महिमा के बदले अनादर होता रहेगा? तुम कब तक व्यर्थ बातों से प्रीति रखोगे और झूठी युक्ति की खोज में रहोगे? 19O 4 3 यह जान रखो कि यहोवा ने भक्त को अपने लिये अलग कर रखा है; जब मैं यहोवा को पुकारूंगा तब वह सुन लेगा।। 19O 4 4 कांपते रहो और पाप मत करो; अपने अपने बिछौने पर मन ही मन सोचो और चुपचाप रहो। 19O 4 5 धर्म के बलिदान चढ़ाओ, और यहोवा पर भरोसा रखो।। 19O 4 6 बहुत से हैं जो कहते हैं, कि कौन हम को कुछ भलाई दिखाएगा? हे यहोवा तू अपने मुख का प्रकाश हम पर चमका! 19O 4 7 तू ने मेरे मन में उस से कहीं अधिक आनन्द भर दिया है, जो उनको अन्न और दाखमधु की बढ़ती से होती थी। 19O 4 8 मैं शान्ति से लेट जाऊंगा और सो जाऊंगा; क्योंकि, हे यहोवा, केवल तू ही मुझ को एकान्त में निश्चिन्त रहने देता है।। 19O 5 1 हे यहोवा, मेरे वचनों पर कान लगा; मेरे ध्यान करने की ओर मन लगा। 19O 5 2 19O 5 3 हे मेरे राजा, हे मेरे परमेश्वर, मेरी दोहाई पर ध्यान दे, क्योंकि मैं तुझी से प्रार्थना करता हूं। 19O 5 4 हे यहोवा, भोर को मेरी वाणी तुझे सुनाई देगी, मैं भोर को प्रार्थना करके तेरी बाट जोहूंगा। 19O 5 5 क्योंकि तू ऐसा ईश्वर नहीं जो दुष्टता से प्रसन्न हो; बुराई तेरे साथ नहीं रह सकती। 19O 5 6 घमंडी तेरे सम्मुख खड़े होने न पांएगे; तुझे सब अनर्थकारियों से घृणा है। 19O 5 7 तू उनको जो झूठ बोलते हैं नाश करेगा; यहोवा तो हत्यारे और छली मनुष्य से घृणा करता है। 19O 5 8 परन्तु मैं तो तेरी अपार करूणा के कारण तेरे भवन में आऊंगा, मैं तेरा भय मानकर तेरे पवित्रा मन्दिर की ओर दण्डवत् करूंगा। 19O 5 9 हे यहोवा, मेरे शत्रुओं के कारण अपने धर्म के मार्ग में मेरी अगुवाई कर; मेरे आगे आगे अपने सीधे मार्ग को दिखा। 19O 5 10 क्योंकि उनके मुंह में कोई सच्चाई नहीं; उनके मन में निरी दुष्टता है। उनका गला खुली हुई कब्र है, वे अपनी जीभ से चिकनी चुपड़ी बातें करते हैं। 19O 5 11 हे परमेश्वर तू उनको दोषी ठहरा; वे अपनी ही युक्तियों से आप ही गिर जाएं; उनको उनके अपराधों की अधिकाई के कारण निकाल बाहर कर, क्योंकि उन्हों ने तुझ से बलवा किया है।। 19O 5 12 परन्तु जितने तुझ पर भरोसा रखते हैं वे सब आनन्द करें, वे सर्वदा ऊंचे स्वर से गाते रहें; क्योंकि तू उनकी रक्षा करता है, और जो तेरे नाम के प्रेमी हैं तुझ में प्रफुल्लित हों। 19O 5 13 क्योंकि तू धर्मी को आशिष देगा; हे यहोवा, तू उसको अपने अनुग्रहरूपी ढाल से घेरे रहेगा।। 19O 6 1 हे यहोवा, तू मुझे अपने क्रोध में न डांट, और न झुंझलाहट में मुझे ताड़ना दे। 19O 6 2 हे यहोवा, मुझ पर अनुग्रह कर, क्योंकि मैं कुम्हला गया हूं; हे यहोवा, मुझे चंगा कर, क्योंकि मेरी हडि्डयों में बेचैनी है। 19O 6 3 मेरा प्राण भी बहुत खेदित है। और तू, हे यहोवा, कब तक? 19O 6 4 लौट आ, हे यहोवा, और मेरे प्राण बचा अपनी करूणा के निमित्त मेरा उद्धार कर। 19O 6 5 क्योंकि मृत्यु के बाद तेरा स्मरण नहीं होता; अधोलोक में कौन तेरा धन्यवाद करेगा? 19O 6 6 मैं कराहते कराहते थक गया; मैं अपनी खाट आंसुओं से भिगोता हूं; प्रति रात मेरा बिछौना भीगता है। 19O 6 7 मेरी आंखें शोक से बैठी जाती हैं, और मेरे सब सतानेवालों के कारण वे धुन्धला गई हैं।। 19O 6 8 हे सब अनर्थकारियो मेरे पास से दूर हो; क्योंकि यहोवा ने मेरे रोने का शब्द सुन लिया है। 19O 6 9 यहोवा ने मेरा गिड़गिड़ाना सुना है; यहोवा मेरी प्रार्थना को ग्रहण भी करेगा। 19O 6 10 मेरे सब शत्रु लज्जित होंगे और बहुत घबराएंगे; वे लौट जाएंगे, और एकाएक लज्जित होंगे।। 19O 7 1 हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मेरा भरोसा तुझ पर है; सब पीछा करनेवालों से मुझे बचा और छुटकारा दे, 19O 7 2 ऐसा न हो कि वे मुझ को सिंह की नाई फाड़कर टुकड़े टुकड़े कर डालें; और कोई मेरा छुड़ानेवाला न हो।। 19O 7 3 हे मेरे परमेश्वर यहोवा, यदि मैं ने यह किया हो, यदि मेरे हाथों से कुटिल काम हुआ हो, 19O 7 4 यदि मैं ने अपने मेल रखनेवालों से भलाई के बदले बुराई की हो, (वरन मैं ने उसको जो अकारण मेरा बैरी था बचाया है) 19O 7 5 तो शत्रु मेरे प्राण का पीछा करके मुझे आ पकड़े, वरन मेरे प्राण को भूमि पर रौंदे, और मेरी महिमा को मिट्टी में मिला दे।। 19O 7 6 हे यहोवा क्रोध करके उठ; मेरे क्रोधभरे सतानेवाले के विरूद्ध तू खड़ा हो जा; मेरे लिये जाग! तू ने न्याय की आज्ञा तो दे दी है। 19O 7 7 देश देश के लोगों की मण्डली तेरे चारों ओर हो; और तू उनके ऊपर से होकर ऊंचे स्थानों पर लौट जा। 19O 7 8 यहोवा समाज समाज का न्याय करता है; यहोवा मेरे धर्म और खराई के अनुसार मेरा न्याय चुका दे।। 19O 7 9 भला हो कि दुष्टों की बुराई का अन्त हो जाए, परन्तु धर्म को तू स्थिर कर; क्योंकि धर्मी परमेश्वर मन और मर्म का ज्ञाता है। 19O 7 10 मेरी ढाल परमेश्वर के हाथ में है, वह सीधे मनवालों को बचाता है।। 19O 7 11 परमेश्वर धर्मी और न्यायी है, वरन ऐसा ईश्वर है जो प्रति दिन क्रोध करता है।। 19O 7 12 यदि मनुष्य न फिरे तो वह अपनी तलवार पर सान चढ़ाएगा; वह अपना धनुष चढ़ाकर तीर सन्धान चुका है। 19O 7 13 और उस मनुष्य के लिये उस ने मृत्यु के हथियार तैयार कर लिए हैं: वह अपने तीरों को अग्निबाण बनाता है। 19O 7 14 देख दुष्ट को अनर्थ काम की पीड़ाएं हो रही हैं, उसको उत्पात का गर्भ है, और उस से झूठ उत्पन्न हुआ। उस ने गड़हा खोदकर उसे गहिरा किया, 19O 7 15 और जो खाई उस ने बनाई थी उस में वह आप ही गिरा। 19O 7 16 उसका उत्पात पलट कर उसी के सिर पर पडेगा; और उसका उपद्रव उसी के माथे पर पड़ेगा।। 19O 7 17 मैं यहोवा के धर्म के अनुसार उसका धन्यवाद करूंगा, और परमप्रधान यहोवा के नाम का भजन गाऊंगा।। 19O 8 1 हे यहोवा हमारे प्रभु, तेरा नाम सारी पृथ्वी पर क्या ही प्रतापमय है! तू ने अपना विभव स्वर्ग पर दिखाया है। 19O 8 2 तू ने अपने बैरियों के कारण बच्चों और दूध पिउवों के द्वारा सामर्थ्य की नेव डाली है, ताकि तू शत्रु और पलटा लेनेवालों को रोक रखे। 19O 8 3 जब मैं आकाश को, जो तेरे हाथों का कार्य है, और चंद्रमा और तरागण को जो तू ने नियुक्त किए हैं, देखता हूं; 19O 8 4 तो फिर मनुष्य क्या है कि तू उसका स्मरण रखे, और आदमी क्या है कि तू उसकी सुधि ले? 19O 8 5 क्योंकि तू ने उसको परमेश्वर से थोड़ा ही कम बनाया है, और महिमा और प्रताप का मुकुट उसके सिर पर रखा है। 19O 8 6 तू ने उसे अपने हाथों के कार्यों पर प्रभुता दी है; तू ने उसके पांव तले सब कुछ कर दिया है। 19O 8 7 सब भेड़- बकरी और गाय- बैल और जितने वनपशु हैं, 19O 8 8 आकाश के पक्षी और समुद्र की मछलियां, और जितने जीव- जन्तु समुद्रों में चलते फिरते हैं। 19O 8 9 हे यहोवा, हे हमारे प्रभु, तेरा नाम सारी पृथ्वी पर क्या ही प्रतापमय है।। 19O 9 1 हे यहोवा परमेश्वर मैं अपने पूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूंगा; मैं तेरे सब आश्चर्य कर्मों का वर्णन करूंगा। 19O 9 2 मैं तेरे कारण आनन्दित और प्रफुल्लित होऊंगा, हे परमप्रधान, मैं तेरे नाम का भजन गाऊंगा।। 19O 9 3 जब मेरे शत्रु पीछे हटते हैं, तो वे तेरे साम्हने से ठोकर खाकर नाश होते हैं। 19O 9 4 क्योंकि तू ने मेरा न्याय और मुक मा चुकाया है; तू ने सिंहासन पर विराजमान होकर धर्म से न्याय किया। 19O 9 5 तू ने अन्यजातियों को झिड़का और दुष्ट को नाश किया है; तू ने उनका नाम अनन्तकाल के लिये मिटा दिया है। 19O 9 6 शत्रु जो है, वह मर गए, वे अनन्तकाल के लिये उजड़ गए हैं; और जिन नगरों को तू ने ढा दिया, उनका नाम वा निशान भी मिट गया है। 19O 9 7 परन्तु यहोवा सदैव सिंहासन पर विराजमान है, उस ने अपना सिंहासन न्याय के लिये सिद्ध किया है; 19O 9 8 और वह आप ही जगत का न्याय धर्म से करेगा, वह देश देश के लोगों का मुक मा खराई से निपटाएगा।। 19O 9 9 यहोवा पिसे हुओं के लिये ऊंचा गढ़ ठहरेगा, वह संकट के समय के लिये भी ऊंचा गढ़ ठहरेगा। 19O 9 10 और तेरे नाम के जाननेवाले तुझ पर भरोसा रखेंगे, क्योंकि हे यहोवा तू ने अपने खोजियों को त्याग नहीं दिया।। 19O 9 11 यहोवा जो सिरयोन में विराजमान है, उसका भजन गाओ! जाति जाति के लोगों के बीच में उसके महाकर्मों का प्रचार करो! 19O 9 12 क्योंकि खून का पलटा लेनेवाला उनको स्मरण करता है; वह दीन लोगों की दोहाई को भूलता।। 19O 9 13 हे यहोवा, मुझ पर अनुग्रह कर। तू जो मुझे मृत्यु के फाटकों के पास से उठाता है, मेरे दु:ख को देख जो मेरे बैरी मुझे दे रहे हैं; 19O 9 14 ताकि मैं सिरयोन के फाटकों के पास तेरे सब गुणों का वर्णन करूं, और तेरे किए हुए उद्धार से मगन होऊं।। 19O 9 15 अन्य जातिवालों ने जो गड़हा खोदा था, उसी में वे आप गिर पड़े; जो जाल उन्हों ने लगाया था, उस में उन्हीं का पांव फंस गया। 19O 9 16 यहोवा ने अपने को प्रगट किया, उस ने न्याय किया है; दुष्ट अपने किए हुए कामों में फंस जाता है। 19O 9 17 दुष्ट अधोलोक में लौट जाएंगे, तथा वे सब जातियां भी जा परमेश्वर को भूल जाती है। 19O 9 18 क्योंकि दरिद्र लोग अनन्तकाल तक बिसरे हुए न रहेंगे, और न तो नम्र लोगों की आशा सर्वदा के लिये नाश होगी। 19O 9 19 उठ, हे परमेश्वर, मनुष्य प्रबल न होने पाए! जातियों का न्याय तेरे सम्मुख किया जाए। 19O 9 20 हे परमेश्वर, उनको भय दिला! जातियां अपने को मनुष्यमात्रा ही जानें। 19O 10 1 हे यहोवा तू क्यों दूर खड़ा रहता है? संकट के समय में क्यों छिपा रहता है? 19O 10 2 दुष्टों के अहंकार के कारण दी मनुष्य खदेड़े जाते हैं; वे अपनी ही निकाली हुई युक्तियों में फंस जाएं।। 19O 10 3 क्योंकि दुष्ट अपनी अभिलाषा पर घमण्ड करता है, और लोभी परमेश्वर को त्याग देता है और उसका तिरस्कार करता है।। 19O 10 4 दुष्ट अपने अभिमान के कारण कहता है कि वह लेखा नहीं लेने का; उसका पूरा विचार यही है कि कोई परमेश्वर है ही नहीं।। 19O 10 5 वह अपने मार्ग पर दृढ़ता से बना रहता है; तेरे न्याय के विचार ऐसे ऊंचे पर होते हैं, कि उसकी दृष्टि वहां तक नहीं पहुंचती; जितने उसके विरोधी हैं उन पर वह फुंकारता है। 19O 10 6 वह अपने मन में कहता है कि मैं कभी टलने का नहीं: मैं पीढ़ी से पीढ़ी तक दु:ख से बचा रहूंगा।। 19O 10 7 उसका मुंह शाप और छल और अन्धेर से भरा है; उत्पात और अनर्थ की बातें उसके मुंह में हैं। 19O 10 8 वह गांवों के घतों में बैठा करता है, और गुप्त स्थानों में निर्दोष को घात करता है, उसकी आंखे लाचार की घात में लगी रहती है। 19O 10 9 जैसा सिंह अपनी झाड़ी में वैसा ही वह भी छिपकर घात में बैठा करता है; वह दीन को पकड़ने के लिये घात लगाए रहता है, 19O 10 10 वह दीन को अपने जाल में फंसाकर घसीट लाता है, तब उसे पकड़ लेता है। 19O 10 11 वह झुक जाता है और वह दबक कर बैठता है; और लाचार लोग उसके महाबली हाथों से पटके जाते हैं। 19O 10 12 वह अपने मन में सोचता है, कि ईश्वर भूल गया, वह अपना मुंह छिपाता है; वह कभी नहीं देखेगा।। 19O 10 13 उठ, हे यहोवा; हे ईश्वर, अपना हाथ बढ़ा; और दीनों को न भूल। 19O 10 14 परमेश्वर को दुष्ट क्यों तुच्छ जानता है, और अपने मन में कहता है कि तू लेखा न लेगा? 19O 10 15 तू ने देख लिया है, क्योंकि तू उत्पात और कलपाने पर दुष्टि रखता है, ताकि उसका पलटा अपने हाथ में रखे; लाचार अपने को तेरे हाथ में सौंपता है; अनाथों का तू ही सहायक रहा है। दुष्ट की भुजा को तोड़ डाल; 19O 10 16 यहोवा अनन्तकाल के लिये महाराज है; उसके देश में से अन्यजाति लोग नाश हो गए हैं।। 19O 10 17 हे यहोवा, तू ने नम्र लोगों की अभिलाषा सुनी है; तू उनका मन तैयार करेगा, तू कान लगाकर सुनेगा 19O 10 18 कि अनाथ और पिसे हुए का न्याय करे, ताकि मनुष्य जो मिट्टी से बना है फिर भय दिखाने न पाए।। 19O 11 1 मेरा भरोसा परमेश्वर पर है; तुम क्योंकि मेरे प्राण से कहते हो कि पक्षी की नाई अपने पहाड़ पर उड़ जा? 19O 11 2 क्योंकि देखो, दुष्ट अपना धनुष चढ़ाते हैं, और अपना तीर धनुष की डोरी पर रखते हैं, कि सीधे मनवालों पर अन्धियारे में तीर चलाएं। 19O 11 3 यदि नेवें ढ़ा दी जाएं तो धर्मी क्या कर सकता है? 19O 11 4 परमेश्वर अपने पवित्रा भवन में है; परमेश्वर का सिंहासन स्वर्ग में है; उसकी आंखें मनुष्य की सन्तान को नित देखती रहती हैं और उसकी पलकें उनको जांचती हैं। 19O 11 5 यहोवा धर्मीं को परखता है, परन्तु वह उन से जो दुष्ट हैं और उपद्रव से प्रीति रखते हैं अपनी आत्मा में घृणा करता है। 19O 11 6 वह दुष्टों पर फन्दे बरसाएगा; आग और गन्धक और प्रचण्ड लूह उनके कटोरों में बांट दी जाएंगी। 19O 11 7 क्योंकि यहोवा धर्मी है, वह धर्म के ही कामों से प्रसन्न रहता है; धर्मीजन उसका दर्शन पाएंगे।। 19O 12 1 हे परमेश्वर बचा ले, क्योंकि एक भी भक्त नहीं रहा; मनुष्यों में से विश्वासयोग्य लाग मर मिटे हैं। 19O 12 2 उन में से प्रत्येक अपने पड़ोसी से झूठी बातें कहता है; वे चापलूसी के ओठों से दो रंगी बातें करते हैं।। 19O 12 3 प्रभु सब चापलूस ओठों को और उस जीभ को जिस से बड़ा बोल निकलता है काट डालेगा। 19O 12 4 वे कहते हैं कि हम अपनी जीभ ही से जीतेंगे, हमारे ओंठ हमारे ही वश में हैं; हमार प्रभु कौन है? 19O 12 5 दी लोगों के लुट जाने, और दरिद्रों के कराहने के कारण, परमेश्वर कहता है, अब मैं उठूंगा, जिस पर वे फुंकारते हैं उसे मैं चैन विश्राम दूंगा। 19O 12 6 परमेश्वर का वचन पवित्रा है, उस चान्दि के समान जो भट्टी में मिट्टी पर ताई गई, और सात बार निर्मल की गई हो।। 19O 12 7 तू ही हे परमेश्वर उनकी रक्षा करेगा, उनको इस काल के लोगों से सर्वदा के लिये बचाए रखेगा। 19O 12 8 जब मनुष्यों में नीचपन का आदर होता है, तब दुष्ट लोग चारों ओर अकड़ते फिरते हैं।। 19O 13 1 हे परमेश्वर तू कब तक? क्या सदैव मुझे भूला रहेगा? तू कब तक अपना मुखड़ा मुझ से छिपाए रहेगा? 19O 13 2 मैं कब तक अपने मन ही मन में युक्तियां करता रहूं, और दिन भर अपने हृदय में दुखित रहा करूं, कब तक मेरा शत्रु मुझ पर प्रबल रहेगा? 19O 13 3 हे मेरे परमेश्वर यहोवा मेरी ओर ध्यान दे और मुझे उत्तर दे, मेरी आंखों में ज्योति आने दे, नहीं तो मुझे मृत्यु की नींद आ जाएगी; 19O 13 4 ऐसा न हो कि मेरा शत्रु कहे, कि मैं उस पर प्रबल हो गया; और ऐसा न हो कि जब मैं डगमगाने लगूं तो मेरे शत्रु मगन हों।। 19O 13 5 परन्तु मैं ने तो तेरी करूणा पर भरोसा रखा है; मेरा हृदय तेरे उद्धार से मगन होगा। 19O 13 6 मैं परमेश्वर के नाम का भजन गाऊंगा, क्योंकि उस ने मेरी भलाई की है।। 19O 14 1 मूर्ख ने अपने मन में कहा है, कोई परमेश्वर है ही नहीं। वे बिगड़ गए, उन्हों ने घिनौने काम किए हैं, कोई सुकर्मी नहीं। 19O 14 2 परमेश्वर ने स्वर्ग में से मनुष्यों पर दृष्टि की है, कि देखे कि कोई बुद्धिमान, कोई परमेश्वर का खोजी है या नहीं। 19O 14 3 वे सब के सब भटक गए, वे सब भ्रष्ट हो गए; कोई सुकर्मी नहीं, एक भी नहीं। 19O 14 4 क्या किसी अनर्थकारी को कुछ भी ज्ञान नहीं रहता, जो मेरे लोगों को ऐसे खा जाते हैं जैसे रोटी, और परमेश्वर का नाम नहीं लेते? 19O 14 5 वहां उन पर भय छा गया, क्योंकि परमेश्वर धर्मी लोगों के बीच में निरन्तर रहता है। 19O 14 6 तुम तो दीन की युक्ति की हंसी उड़ाते हो इसलिये कि यहोवा उसका शरणस्थान है। 19O 14 7 भला हो कि इस्राएल का उद्धार सिरयोन से प्रगट होता! जब यहोवा अपनी प्रजा को दासत्व से लौटा ले आएगा, तब याकूब मगन और इस्राएल आनन्दित होगा।। 19O 15 1 हे परमेश्वर तेरे तम्बू में कौन रहेगा? तेरे पवित्रा पर्वत पर कौन बसने पाएगा? 19O 15 2 वह जो खराई से चलता और धर्म के काम करता है, और हृदय से सच बोलता है; 19O 15 3 जो अपनी जीभ से निन्दा नहीं करता, और न अपने मित्रा की बुराई करता, और न अपने पड़ोसी की निन्दा सुनता है; 19O 15 4 वह जिसकी दृष्टि में निकम्मा मनुष्य तुच्छ है, और जो यहोवा के डरवैयों का आदर करता है, जो शपथ खाकर बदलता नहीं चाहे हानि उठाना पड़े; 19O 15 5 जो अपना रूपया ब्याज पर नहीं देता, और निर्दोष की हानि करने के लिये घूस नहीं लेता है। जो कोई ऐसी चाल चलता है वह कभी न डगमगाएगा।। 19O 16 1 हे ईश्वर मेरी रक्षा कर, क्योंकि मैं तेरा ही शरणागत हूं। 19O 16 2 मैं ने परमेश्वर से कहा है, कि तू ही मेरा प्रभु है; तेरे सिवाए मेरी भलाई कहीं नहीं। 19O 16 3 पृथ्वी पर जो पवित्रा लोग हैं, वे ही आदर के योग्य हैं, और उन्हीं से मैं प्रसन्न हूं। 19O 16 4 जो पराए देवता के पीछे भागते हैं उनका दु:ख बढ़ जाएगा; मैं उनके लोहूवाले तपावन नहीं तपाऊंगा और उनका नाम अपने ओठों से नहीं लूंगा।। 19O 16 5 यहोवा मेरा भाग और मेरे कटोरे का हिस्सा है; मेरे बांट को तू स्थिर रखता है। 19O 16 6 मेरे लिये माप की डोरी मनभावने स्थान में पड़ी, और मेरा भाग मनभावना है।। 19O 16 7 मैं यहोवा को धन्य कहता हूं, क्योंकि उस ने मुझे सम्मत्ति दी है; वरन मेरा मन भी रात में मुझे शिक्षा देता है। 19O 16 8 मैं ने यहोवा को निरन्तर अपने सम्मुख रखा है : इसलिये कि वह मेरे दहिने हाथ रहता है मैं कभी न डगमगाऊंगा।। 19O 16 9 इस कारण मेरा हृदय आनन्दित और मेरी आत्मा मगन हुई; मेरा शरीर भी चैन से रहेगा। 19O 16 10 क्योंकि तू मेरे प्राण को अधोलोक में न छोड़ेगा, न अपने पवित्रा भक्त को सड़ने देगा।। 19O 16 11 तू मुझे जीवन का रास्ता दिखाएगा; तेरे निकट आनन्द की भरपूरी है, तेरे दहिने हाथ में सुख सर्वदा बना रहता है।। 19O 17 1 हे यहोवा परमेश्वर सच्चाई के वचन सुन, मेरी पुकार की ओर ध्यान दे। मेरी प्रार्थना की ओर जो निष्कपट मुंह से निकलती है कान लगा। 19O 17 2 मेरे मुक में का निर्णय तेरे सम्मुख हो! तेरी आंखें न्याय पर लगी रहें! 19O 17 3 तू ने मेरे हृदय को जांचा है; तू ने रात को मेरी देखभाल की, तू ने मुझे परखा परन्तु कुछ भी खोटापन नहीं पाया; मैं ने ठान लिया है कि मेरे मुंह से अपराध की बात नहीं निकलेगी। 19O 17 4 मानवी कामों में मैं तेरे मुंह के वचन के द्वारा क्रूरों की सी चाल से अपने को बचाए रहा। 19O 17 5 मेरे पांव तेरे पथों में स्थिर रहे, फिसले नहीं।। 19O 17 6 हे ईश्वर, मैं ने तुझ से प्रार्थना की है, क्योंकि तू मुझे उत्तर देगा। अपना कान मेरी ओर लगाकर मेरी बिनती सुन ले। 19O 17 7 तू जो अपने दहिने हाथ के द्वारा अपने शरणगतों को उनके विरोधियों से बचाता है, अपनी अद्भुत करूणा दिखा। 19O 17 8 अपने आंखो की पुतली की नाई सुरक्षित रख; अपने पंखों के तले मुझे छिपा रख, 19O 17 9 उन दुष्टों से जो मुझ पर अत्याचार करते हैं, मेरे प्राण के शत्रुओं से जो मुझे घेरे हुए हैं।। 19O 17 10 उन्हों ने अपने हृदयों को कठोर किया है; उनके मुंह से घमंड की बातें निकलती हैं। 19O 17 11 उन्हों ने पग पग पर हमको घेरा है; वे हमको भूमि पर पटक देने के लिये घात लगाए हुए हैं। 19O 17 12 वह उस सिंह की नाई है जो अपने शिकार की लालसा करता है, और जवान सिंह की नाई घात लगाने के स्थानों में बैठा रहता है।। 19O 17 13 उठ, हे यहोवा उसका सामना कर और उसे पटक दे! अपनी तलवार के बल से मेरे प्राण को दुष्ट से बचा ले। 19O 17 14 अपना हाथ बढ़ाकर हे यहोवा, मुझे मनुष्यों से बचा, अर्थात् संसारी मनुष्यों से जिनका भाग इसी जीवन में है, और जिनका पेट तू अपने भण्डार से भरता है। वे बालबच्चों से सन्तुष्ट हैं; और शेष सम्पति अपने बच्चों के लिये छोड़ जाते हैं।। 19O 17 15 परन्तु मैं तो धर्मी होकर तेरे मुख का दर्शन करूंगा जब मैं जानूंगा तब तेरे स्वरूप से सन्तुष्ट हूंगा।। 19O 18 1 हे परमेश्वर, हे मेरे बल, मैं तुझ से प्रेम करता हूं। 19O 18 2 यहोवा मेरी चट्टान, और मेरा गढ़ और मेरा छुड़ानेवाला है; मेरा ईश्वर, मेरी चट्टान है, जिसका मैं शरणागत हूं, वह मेरी ढ़ाल और मेरी मुक्ति का गढ़ है। 19O 18 3 मैं यहोवा को जो स्तुति के योग्य है पुकारूंगा; इस प्रकार मैं अपने शत्रुओं से बचाया जाऊंगा।। 19O 18 4 मृत्यु की रस्सियों से मैं चारो ओर से घिर गया हूं, और अधर्म की बाढ़ ने मुझ को भयभीत कर दिया; 19O 18 5 पाताल की रस्सियां मेरे चारो ओर थीं, और मृत्यु के फन्दे मुझ पर आए थे। 19O 18 6 अपने संकट में मैं ने यहोवा परमेश्वर को पुकारा; मैं ने अपने परमेश्वर को दोहाई दी। और उस ने अपने मन्दिर में से मेरी बातें सुनी। और मेरी दोहाई उसके पास पहुंचकर उसके कानों में पड़ी।। 19O 18 7 तब पृथ्वी हिल गई, और कांप उठी और पहाड़ों की नेवे कंपित होकर हिल गई क्योंकि वह अति क्रोधित हुआ था। 19O 18 8 उसके नथनों से धुआं निकला, और उसके मुंह से आग निकलकर भस्म करने लगी; जिस से कोएले दहक उठे। 19O 18 9 और वह स्वर्ग को नीचे झुकाकर उतर आया; और उसके पांवों तले घोर अन्धकार था। 19O 18 10 और वह करूब पर सवार होकर उड़ा, वरन पवन के पंखों पर सवारी करके वेग से उड़ा। 19O 18 11 उस ने अन्धियारे को अपने छिपने का स्थान और अपने चारों ओर मेघों के अन्धकार और आकाश की काली घटाओं का मण्डप बनाया। 19O 18 12 उसकी उपस्थिति की झलक से उसकी काली घटाएं फट गई; ओले और अंगारे। 19O 18 13 तब यहोवा आकाश में गरजा, और परमप्रधान ने अपनी वाणी सुनाई, ओले ओर अंगारे।। 19O 18 14 उस ने अपने तीर चला चलाकर उनको तितर बितर किया; वरन बिजलियां गिरा गिराकर उनको परास्त किया। 19O 18 15 तब जल के नाले देख पड़े, और जगत की नेवें प्रगट हुई, यह तो यहोवा तेरी डांट से, और तेरे नथनों की सांस की झोंक से हुआ।। 19O 18 16 उस ने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थांम लिया, और गहिरे जल में से खींच लिया। 19O 18 17 उस ने मेरे बलवन्त शत्रु से, और उन से जो मुझ से घृणा करते थे मुझे छुडाया; क्योंकि वे अधिक सामर्थी थे। 19O 18 18 मेरी विपत्ति के दिन वे मुझ पर आ पडे। परन्तु यहोवा मेरा आश्रय था। 19O 18 19 और उस ने मुझे निकालकर चौड़े स्थान में पहुंचाया, उस ने मुझ को छुड़ाया, क्योंकि वह मुझ से प्रसन्न था। 19O 18 20 यहोवा ने मुझ से मेरे धर्म के अनुसार व्यवहार किया; और मेरे हाथों की शुद्धता के अनुसार उस ने मुझे बदला दिया। 19O 18 21 क्योंकि मैं यहोवा के मार्गों पर चलता रहा, और दुष्टता के कारण अपने परमेश्वर से दूर न हुआ। 19O 18 22 क्योंकि उसके सारे निर्णय मेरे सम्मुख बने रहे और मैं ने उसकी विधियों को न त्यागा। 19O 18 23 और मैं उसके सम्मुख सिद्ध बना रहा, और अधर्म से अपने को बचाए रहा। 19O 18 24 यहोवा ने मुझे मेरे धर्म के अनुसार बदला दिया, और मेरे हाथों की उस शुद्धता के अनुसार जिसे वह देखता था।। 19O 18 25 दयावन्त के साथ तू अपने को दयावन्त दिखाता; और खरे पुरूष के साथ तू अपने को खरा दिखाता है। 19O 18 26 शुद्ध के साथ तू अपने को शुद्ध दिखाता, और टेढ़े के साथ तू तिर्छा बनता है। 19O 18 27 क्योंकि तू दी लोगों को तो बचाता है; परन्तु घमण्ड भरी आंखों को नीची करता है। 19O 18 28 हां, तू ही मेरे दीपक को जलाता है; मेरा परमेश्वर यहोवा मेरे अन्धियारे को उजियाला कर देता है। 19O 18 29 क्योंकि तेरी सहायता से मैं सेना पर धावा करता हूं; और अपने परमेश्वर की सहायता से शहरपनाह को लांघ जाता हूं। 19O 18 30 ईश्वर का मार्ग सच्चाई; यहोवा का वचन ताया हुआ है; वह अपने सब शरणागतों की ढाल है।। 19O 18 31 यहोवा को छोड़ क्या कोई ईश्वर है? हमारे परमेश्वर को छोड़ क्या और कोई चट्टान है? 19O 18 32 यह वही ईश्वर है, जो सामर्थ से मेरा कटिबन्ध बान्धता है, और मेरे मार्ग को सिद्ध करता है। 19O 18 33 वही मेरे पैरों को हरिणियों के पैरों के समान बनाता है, और मुझे मेरे ऊंचे स्थानों पर खड़ा करता है। 19O 18 34 वह मेरे हाथों को युद्ध करना सिखाता है, इसलिये मेरी बाहों से पीतल का धनुष झुक जाता है। 19O 18 35 तू ने मुझ को अपने बचाव की ढाल दी है, तू अपने दहिने हाथ से मुझे सम्भाले हुए है, और मेरी नम्रता ने महत्व दिया है। 19O 18 36 तू ने मेरे पैरों के लिये स्थान चौड़ा कर दिया, और मेरे पैर नहीं फिसले। 19O 18 37 मैं अपने शत्रुओं का पीछा करके उन्हें पकड़ लूंगा; और जब तब उनका अन्त न करूं तब तक न लौटूंगा। 19O 18 38 मैं उन्हें ऐसा बेधूंगा कि वे उठ न सकेंगे; वे मेरे पांवों के नीचे गिर पड़ेंगे। 19O 18 39 क्योंकि तू ने युद्ध के लिये मेरी कमर में शक्ति का पटुका बान्धा है; और मेरे विरोधियों को मेरे सम्मुख नीचा कर दिया। 19O 18 40 तू ने मेरे शत्रुओं की पीठ मेरी ओर फेर दी, ताकि मैं उनको काट डालूं जो मुझ से द्वेष रखते हैं। 19O 18 41 उन्हों ने दोहाई तो दी परन्तु उन्हें कोई भी बचानेवाला न मिला, उन्हों ने यहोवा की भी दोहाई दी, परन्तु उस ने भी उनको उत्तर न दिया। 19O 18 42 तब मैं ने उनको कूट कूटकर पवन से उड़ाई हुई धूलि के समान कर दिया; मैं ने उनको गली कूचों की कीचड़ के समान निकाल फेंका।। 19O 18 43 तू ने मुझे प्रजा के झगड़ों से भी छुड़ाया; तू ने मुझे अन्यजातियों का प्रधान बनाया है; जिन लोगों को मैं जानता भी न था वे मेरे अधीन हो गये। 19O 18 44 मेरा नाम सुनते ही वे मेरी आज्ञा का पालन करेंगे; परदेशी मेरे वश में हो जाएंगे। 19O 18 45 परदेशी मुर्झा जाएंगे, और अपने किलों में से थरथराते हुए निकलेंगे।। 19O 18 46 यहोवा परमेश्वर जीवित है; मेरी चट्टान धन्य है; और मेरे मुक्तिदाता परमेश्वर की बड़ाई हो। 19O 18 47 धन्य है मेरा पलटा लेनेवाला ईश्वर! जिस ने देश देश के लोगों को मेरे वंश में कर दिया है; 19O 18 48 और मुझे मेरे शत्रुओं से छुड़ाया है; तू मुझ को मेरे विरोधियों से ऊंचा करता, और उपद्रवी पुरूष से बचाता है।। 19O 18 49 इस कारण मैं जाति जाति के साम्हने तेरा धन्यवाद करूंगा, और तेरे नाम का भजन गाऊंगा। 19O 18 50 वह अपने ठहराए हुए राजा का बड़ा उद्धार करता है, वह अपने अभिषिक्त दाऊद पर और उसके वंश पर युगानुयुग करूणा करता रहेगा।। 19O 19 1 आकाश ईश्वर की महिमा वर्णन कर रहा है; और आकशमण्डल उसकी हस्तकला को प्रगट कर रहा है। 19O 19 2 दिन से दिन बातें करता है, और रात को रात ज्ञान सिखाती है। 19O 19 3 न तो कोई बोली है और न कोई भाषा जहां उनका शब्द सुनाई नहीं देता है। 19O 19 4 उनका स्वर सारी पृथ्वी पर गूंज गया है, और उनके वचन जगत की छोर तक पहुंच गए हैं। उन में उस ने सूरर्य के लिये एक मण्डप खड़ा किया है, 19O 19 5 जो दुल्हे के समान अपने महल से निकलता है। वह शूरवीर की नाई अपनी दौड़ दौड़ने को हर्षित होता है। 19O 19 6 वह आकाश की एक छोर से निकलता है, और वह उसकी दूसरी छोर तक चक्कर मारता है; और उसकी गर्मी सबको पहुंचती है।। 19O 19 7 यहोवा की व्यवस्था खरी है, वह प्राण को बहाल कर देती है; यहोवा के नियम विश्वासयोग्य हैं, साधारण लोगों को बुद्धिमान बना देते हैं; 19O 19 8 यहोवा के उपदेश सिद्ध हैं, हृदय को आनन्दित कर देते हैं; यहोवा की आज्ञा निर्मल है, वह आंखों में ज्योति ले आती है; 19O 19 9 यहोवा का भय पवित्रा है, वह अनन्तकाल तक स्थिर रहता है; यहोवा के नियम सत्य और पूरी रीति से धर्ममय हैं। 19O 19 10 वे तो सोने से और बहुत कुन्दन से भी बढ़कर मनोहर हैं; वे मधु से और टपकनेवाले छत्ते से भी बढ़कर मधुर हैं। 19O 19 11 और उन्हीं से तेरा दास चिताया जाता है; उनके पालन करने से बड़ा ही प्रतिफल मिलता है। 19O 19 12 अपनी भूलचूक को कौन समझ सकता है? मेरे गुप्त पापों से तू मुझे पवित्रा कर। 19O 19 13 तू अपने दास को ढिठाई के पापों से भी बचाए रख; वह मुझ पर प्रभुता करने न पाएं! तब मैं सिद्ध हो जाऊंगा, और बड़े अपराधों से बचा रहूंगा।। 19O 19 14 मेरे मुंह के वचन और मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहण योग्य हों, हे यहोवा परमेश्वर, मेरी चट्टान और मेरे उद्धार करनेवाले! 19O 20 1 संकट के दिन यहोवा तेरी सुन ले! याकूब के परमेश्वर का नाम तुझे ऊंचे स्थान पर नियुक्त करे! 19O 20 2 वह पवित्रास्थान से तेरी सहायता करे, और सिरयोन से तुझे सम्भाल ले! 19O 20 3 वह तेरे सब अन्नबलियों को स्मरण करे, और तेरे होमबलि को ग्रहण करे। 19O 20 4 वह तेरे मन की इच्छा को पूरी करे, और तेरी सारी युक्ति को सुफल करे! 19O 20 5 तब हम तेरे उद्धार के कारण ऊंचे स्वर से हर्षित होकर गाएंगे, और अपने परमेश्वर के नाम से झण्डे खड़े करेंगे। यहोवा तुझे मुंह मांगा बरदान दे् 19O 20 6 अब मैं जान गया कि यहोवा अपने अभिषिक्त का उद्धार करता है; वह अपने दहिने हाथ के उद्धार करनेवाले पराक्रम से अपने पवित्रा स्वर्ग पर से सुनकर उसे उत्तर देगा। 19O 20 7 किसी को रथों को, और किसी को घोड़ों का भरोसा है, परन्तु हम तो अपने परमेश्वर यहोवा ही का नाम लेंगे। 19O 20 8 वे तो झुक गए और गिर पड़े परन्तु हम उठे और सीधे खड़े हैं।। 19O 20 9 हे यहोवा, बचा ले; जिस दिन हम पुकारें तो महाराजा हमें उत्तर दे।। 19O 21 1 हे यहोवा तेरी सामर्थ्य से राजा आनन्दित होगा; और तेरे किए हुए उद्धार से वह अति मगन होगा। 19O 21 2 तू ने उसके मनोरथ को पूरा किया है, और उसके मुंह की बिनती को तू ने अस्वीकार नहीं किया। 19O 21 3 क्योंकि तू उत्तम आशीषें देता हुआ उस से मिलता है और तू उसके सिर पर कुन्दन का मुकुट पहिनाता है। 19O 21 4 उस ने तुझ से जीवन मांगा, ओर तू ने जीवनदान दिया; तू ने उसको युगानुयुग का जीवन दिया है। 19O 21 5 तेरे उद्धार के कारण उसकी महिमा अधिक है; तू उसको विभव और ऐश्वर्य से आभूषित कर देता है। 19O 21 6 क्योंकि तू ने उसको सर्वदा के लिये आशीषित किया है; तू अपने सम्मुख उसको हर्ष और आनन्द से भर देता है। 19O 21 7 क्योंकि राजा का भरोसा यहोवा के ऊपर है; और परमप्रधान की करूणा से वह कभी नहीं टलने का।। 19O 21 8 तेरा हाथ तेरे सब शत्रुओं को ढूंढ़ निकालेगा, तेरा दहिना हाथ तेरे सब बैरियों का पता लगा लेगा। 19O 21 9 तू अपने मुख के सम्मुख उन्हें जलते हुए भट्टे की नाई जलाएगा। यहोवा अपने क्रोध में उन्हें निगल जाएगा, और आग उनको भस्म कर डालेगी। 19O 21 10 तू उनके फलों को पृथ्वी पर से, और उनके वंश को मनुष्यों में से नष्ट करेगा। 19O 21 11 क्योंकि उन्हों ने तेरी हाति ठानी है, उन्हों ने ऐसी युक्ति निकाली है जिसे वे पूरी न कर सकेंगे। 19O 21 12 क्योंकि तू अपना धुनष उनके विरूद्ध चढ़ाएगा, और वे पीठ दिखाकर भागेंगे।। 19O 21 13 हे यहोवा, अपनी सामर्थ्य में महान हो! और हम गा गाकर तेरे पराक्रम का भजन सुनाएंगे।। 19O 22 1 हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया? तू मेरी पुकार से और मेरी सहायत करने से क्यों दूर रहता है? मेरा उद्धार कहां है? 19O 22 2 हे मेरे परमेश्वर, मैं दिन को पुकारता हूं परन्तु तू उत्तर नहीं देता; और रात को भी मैं चुप नहीं रहता। 19O 22 3 परन्तु हे तू जो इस्राएल की स्तुति के सिहांसन पर विराजमान है, तू तो पवित्रा है। 19O 22 4 हमारे पुरखा तुझी पर भरोसा रखते थे; वे भरोसा रखते थे, और तू उन्हें छुड़ाता था। 19O 22 5 उन्हों ने तेरी दोहाई दी और तू ने उनको छुड़ाया वे तुझी पर भरोसा रखते थे और कभी लज्जित न हुए।। 19O 22 6 परन्तु मैं तो कीड़ा हूं, मनुष्य नहीं; मनुष्यों में मेरी नामधराई है, और लोगों में मेरा अपमान होता है। 19O 22 7 वह सब जो मुझे देखते हैं मेरा ठट्ठा करते हैं, और ओंठ बिचकाते और यह कहते हुए सिर हिलाते हैं, 19O 22 8 कि अपने को यहोवा के वश में कर दे वही उसको छुड़ाए, वह उसको उबारे क्योंकि वह उस से प्रसन्न है। 19O 22 9 परन्तु तू ही ने मुझे गर्भ से निकाला; जब मैं दूधपिउवा बच्च था, तब ही से तू ने मुझे भरोसा रखना सिखलाया। 19O 22 10 मैं जन्मते ही तुझी पर छोड़ दिया गया, माता के गर्भ ही से तू मेरा ईश्वर है। 19O 22 11 मुझ से दूर न हो क्योंकि संकट निकट है, और कोई सहायक नहीं। 19O 22 12 बहुत से सांढ़ों ने मुझे घेर लिया है, बाशान के बलवन्त सांढ़ मेरे चारों ओर मुझे घेरे हुए है। 19O 22 13 वह फाड़ने और गरजनेवाले सिंह की नाईं मुझ पर अपना मुंह पसारे हुए है।। 19O 22 14 मैं जल की नाईं बह गया, और मेरी सब हडि्डयों के जोड़ उखड़ गए: मेरा हृदय मोम हो गया, वह मेरी देह के भीतर पिघल गया। 19O 22 15 मेरा बल टूट गया, मैं ठीकरा हो गया; और मेरी जीभ मेरे तालू से चिपक गई; और तू मुझे मारकर मिट्टी में मिला देता है। 19O 22 16 क्योंकि कुत्तों ने मुझे घेर लिया है; कुकर्मियों की मण्डली मेरी चरों ओर मुझे घेरे हुए है; वह मेरे हाथ और मेरे पैर छेदते हैं। 19O 22 17 मैं अपनी सब हडि्डयां गिन सकता हूं; वे मुझे देखते और निहारते हैं; 19O 22 18 वे मेरे वस्त्रा आपस में बांटते हैं, और मेरे पहिरावे पर चिट्ठी डालते हैं। 19O 22 19 परन्तु हे यहोवा तू दूर न रह! हे मेरे सहायक, मेरी सहायता के लिये फुर्ती कर! 19O 22 20 मेरे प्राण को तलवार से बचा, मेरे प्राण को कुत्ते के पंजे से बचा ले! 19O 22 21 मुझे सिंह के मुंह से बचा, हां, जंगती सांढ़ों के सींगो में से तू ने मुझे बचा लिया है।। 19O 22 22 मैं अपन भाइयों के साम्हने तेरे नाम का प्रचार करूंगा; सभा के बीच में तेरी प्रशंसा करूंगा। 19O 22 23 हे यहोवा के डरवैयों उसकी स्तुति करो! हे याकूब के वंश, तुम उसका भय मानो! 19O 22 24 क्योंकि उस ने दु:खी को तुच्छ नहीं जाना और न उस से घृणा करता है, ओर न उस से अपना मुख छिपाता है; पर जब उस ने उसकी दोहाई दी, तब उसकी सुन ली।। 19O 22 25 बड़ी सभा में मेरा स्तुति करना तेरी ही ओर से होता है; मैं अपने प्रण को उस से भय रखनेवालों के साम्हने पूरा करूंगा 19O 22 26 नम्र लोग भोजन करके तृप्त होंगे; जो यहोवा के खोजी हैं, वे उसकी स्तुति करेंगे। तुम्हारे प्राण सर्वदा जीवित रहें! 19O 22 27 पृथ्वी के सब दूर दूर देशों के लोग उसको स्मरण करेंगे और उसकी ओर फिरेंगे; और जाति जाति के सब कुल तेरे साम्हने दण्डवत् करेंगे। 19O 22 28 क्योंकि राज्य यहोवा की का है, और सब जातियों पर वही प्रभुता करता है।। 19O 22 29 पृथ्वी के सब हृष्टपुष्ट लोग भोजन करके दण्डवत् करेंगे; वह सब जितने मिट्टी में मिल जाते हैं और अपना अपना प्राण नहीं बचा सकते, वे सब उसी के साम्हने घुटने टेकेंगे। 19O 22 30 एक वंश उसकी सेवा करेगा; दूसरा पीढ़ी से प्रभु का वर्णन किया जाएगा। 19O 22 31 वह आएंगे और उसके धर्म के कामों को एक वंश पर जो उत्पन्न होगा यह कहकर प्रगट करेंगे कि उस ने ऐसे ऐसे अद्भुत काम किए।। 19O 23 1 यहोवा मेरा चरवाहा है, मुझे कुछ घटी न होगी। 19O 23 2 वह मुझे हरी हरी चराइयों में बैठाता है; वह मुझे सुखदाई जल के झरने के पास ले चलता है; 19O 23 3 वह मेरे जी में जी ले आता है। धर्म के मार्गो में वह अपने नाम के निमित्त अगुवाई करता है। 19O 23 4 चाहे मैं घोर अन्धकार से भरी हुई तराई में होकर चलूं, तौभी हानि से न डरूंगा, क्योंकि तू मेरे साथ रहता है; तेरे सोंटे और तेरी लाठी से मुझे शान्ति मिलती है।। 19O 23 5 तू मेरे सतानेवालों के साम्हने मेरे लिये मेज बिछाता है; तू ने मेरे सिर पर तेल मला है, मेरा कटोरा उमण्ड रहा है। 19O 23 6 निश्चय भलाई और करूणा जीवन भर मेरे साथ साथ बनी रहेंगी; और मैं यहोवा के धाम में सर्वदा वास करूंगा।। 19O 24 1 पृथ्वी और जो कुछ उस में है यहोवा ही का है; जगत और उस में निवास करनेवाले भी। 19O 24 2 क्योंकि उसी ने उसकी नींव समुद्रों के ऊपर दृढ़ करके रखी, और महानदों के ऊपर स्थिर किया है।। 19O 24 3 यहोवा के पर्वत पर कौन चढ़ सकता है? और उसके पवित्रास्थान में कौन खड़ा हो सकता है? 19O 24 4 जिसके काम निर्दोष और हृदय शुद्ध है, जिस ने अपने मन को व्यर्थ बात की ओर नहीं लगाया, और न कपट से शपथ खाई है। 19O 24 5 वह यहोवा की ओर से आशीष पाएगा, और अपने उद्धार करनेवाले परमेश्वर की ओर से धर्मी ठहरेगा। 19O 24 6 ऐसे ही लोग उसके खोजी है, वे तेरे दर्शन के खोजी याकूबवंशी हैं।। 19O 24 7 हे फाटकों, अपने सिर ऊंचे करो। हे सनातन के द्वारों, ऊंचे हो जाओ। क्योंकि प्रतापी राजा प्रवेश करेगा। 19O 24 8 वह प्रतापी राजा कौन है? परमेश्वर जो सामर्थी और पराक्रमी है, परमेश्वर जो युद्ध में पराक्रमी है! 19O 24 9 हे फाटकों, अपने सिर ऊंचे करो हे सनातन के द्वारों तुम भी खुल जाओ! क्योंकि प्रतापी राजा प्रवेश करेगा! 19O 24 10 वह प्रतापी राजा कौन है? सेनाओं का यहोवा, वही प्रतापी राजा है।। 19O 25 1 हे यहोवा मैं अपने मन को तेरी ओर उठाता हूं। 19O 25 2 हे मेरे परमेश्वर, मैं ने तुझी पर भरोसा रखा है, मुझे लज्जित होने न दे; मेरे शत्रु मुझ पर जयजयकार करने न पाएं। 19O 25 3 वरन जितने तेरी बाट जोहते हैं उन में से कोई लज्जित न होगा; परन्तु जो अकारण विश्वासघाती हैं वे ही लज्जित होंगे।। 19O 25 4 हे यहोवा अपने मार्ग मुझ को दिखला; अपना पथ मुझे बता दे। 19O 25 5 मुझे अपने सत्य पर चला और शिक्षा दे, क्योंकि तू मेरा उद्वार करनेवाला परमेश्वर है; मैं दिन भर तेरी ही बाट जाहता रहता हूं। 19O 25 6 हे यहोवा अपनी दया और करूणा के कामों को स्मरण कर; क्योंकि वे तो अनन्तकाल से होते आए हैं। 19O 25 7 हे यहोवा अपनी भलाई के कारण मेरी जवानी के पापों और मेरे अपराधों को स्मरण न कर; अपनी करूणा ही के अनुसार तू मुझे स्मरण कर।। 19O 25 8 यहोवा भला और सीधा है; इसलिये वह पापियों को अपना मार्ग दिखलाएगा। 19O 25 9 वह नम्र लोगों को न्याय की शिक्षा देता, हां वह नम्र लोगों को अपना मार्ग दिखलाएगा। 19O 25 10 जो यहोवा की वाचा और चितौनियों को मानते हैं, उनके लिये उसके सब मार्ग करूणा और सच्चाई हैं।। 19O 25 11 हे यहोवा अपने नाम के निमित्त मेरे अधर्म को जो बहुत हैं क्षमा कर।। 19O 25 12 वह कौन है जो यहोवा का भय मानता है? यहोवा उसको उसी मार्ग पर जिस से वह प्रसन्न होता है चलाएगा। 19O 25 13 वह कुशल से टिका रहेगा, और उसका वंश पृथ्वी पर अधिकारी होगा। 19O 25 14 यहोवा के भेद को वही जानते हैं जो उस से डरते हैं, और वह अपनी वाचा उन पर प्रगट करेगा। 19O 25 15 मेरी आंखे सदैव यहोवा पर टकटकी लगाए रहती हैं, क्योंकि वही मेरे पांवों को जाल में से छुड़ाएगा।। 19O 25 16 हे यहोवा मेरी ओर फिरकर मुझ पर अनुग्रह कर; क्योंकि मैं अकेला और दीन हूं। 19O 25 17 मेरे हृदय का क्लेश बढ़ गया है, तू मुझ को मेरे दु:खों से छुड़ा ले। 19O 25 18 तू मेरे दु:ख और कष्ट पर दृष्टि कर, और मेरे सब पापों को क्षमा कर।। 19O 25 19 मेरे शत्रुओं को देख कि वे कैसे बढ़ गए हैं, और मुझ से बड़ा बैर रखते हैं। 19O 25 20 मेरे प्राण की रक्षा कर, और मुझे छुड़ा; मुझे लज्जित न होने दे, क्योंकि मैं तेरा शरणागत हूं। 19O 25 21 खराई और सीधाई मुझे सुरक्षित रखें, क्योंकि मुझे तेरे ही आशा है।। 19O 25 22 हे परमेश्वर इस्राएल को उसके सारे संकटों से छुड़ा ले।। 19O 26 1 हे यहोवा, मेरा न्याय कर, क्योंकि मैं खराई से चलता रहा हूं, और मेरा भरोसा यहोवा पर अटल बना है। 19O 26 2 हे यहोवा, मुझ को जांच और परख; मेरे मन और हृदय को परख। 19O 26 3 क्योंकि तेरी करूणा तो मेरी आंखों के साम्हने है, और मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलता रहा हूं।। 19O 26 4 मैं निकम्मी चाल चलनेवालों के संग नहीं बैठा, और न मैं कपटियों के साथ कहीं जाऊंगा; 19O 26 5 मैं कुकर्मियों की संगति से घृणा रखता हूं, और दुष्टों के संग न बैठूंगा।। 19O 26 6 मैं अपने हाथों को निर्दोषता के जल से धोऊंगा, तब हे यहोवा मैं तेरी वेदी की प्रदक्षिणा करूंगा, 19O 26 7 ताकि मेरा धन्यवाद ऊंचे शब्द से करूं, 19O 26 8 और तेरे सब आश्चर्यकर्मों का वर्णन करूं।। हे यहोवा, मैं तेरे धाम से तेरी महिमा के निवासस्थान से प्रीति रखता हूं। 19O 26 9 मेरे प्राण को पापियों के साथ, और मेरे जीवन को हत्यारों के साथ न मिला। 19O 26 10 वे तो ओछापन करने में लगे रहते हैं, और उनका दहिना हाथ घूस से भरा रहता है।। 19O 26 11 परन्तु मैं तो खराई से चलता रहूंगा। तू मुझे छुड़ा ले, और मुझ पर अनुग्रह कर। 19O 26 12 मेरे पांव चौरस स्थान में स्थिर है; सभाओं में मैं यहोवा को धन्य कहा करूंगा।। 19O 27 1 यहोवा परमेश्वर मेरी ज्योति और मेरा उद्धार है; मैं किस से डरूं? यहोवा मेरे जीवन का दृढ़ गढ़ ठहरा है, मैं किस का भय खाऊं? 19O 27 2 जब कुकर्मियों ने जो मुझे सताते और मुझी से बैर रखते थे, मुझे खा डालने के लिये मुझ पर चढ़ाई की, तब वे ही ठोकर खाकर गिर पड़ें।। 19O 27 3 चाहे सेना भी मेरे विरूद्ध छावनी डाले, तौभी मैं न डरूंगा; चाहे मेरे विरूद्ध लड़ाई ठन जाए, उस दशा में भी मैं हियाव बान्धे निशिजित रहूंगा।। 19O 27 4 एक वर मैं ने यहोवा से मांगा है, उसी के यत्न में लगा रहूंगा; कि मैं जीवन भर यहोवा के भवन में रहने पाऊं, जिस से यहोवा की मनोहरता पर दृष्टि लगाए रहूं, और उसके मन्दिर में ध्यान किया करूं।। 19O 27 5 क्योंकि वह तो मुझे विपत्ति के दिन में अपने मण्डप में छिपा रखेगा; अपने तम्बू के गुप्तस्थान में वह मुझे छिपा लेगा, और चट्टान पर चढ़ाएगा। 19O 27 6 अब मेरा सिर मेरे चारों ओर के शत्रुओं से ऊंचा होगा; और मैं यहोवा के तम्बू में जयजयकार के साथ बलिदान चढ़ाऊंगा; और उसका भजन गाऊंगा।। 19O 27 7 हे यहोवा, मेरा शब्द सुन, मैं पुकारता हूं, तू मुझ पर अनुग्रह कर और मुझे उत्तर दे। 19O 27 8 तू ने कहा है, कि मेरे दर्शन के खोजी हो। इसलिये मेरा मन तुझ से कहता है, कि हे यहोवा, तेरे दर्शन का मैं खोजी रहूंगा। 19O 27 9 अपना मुख मुझ से न छिपा।। अपने दास को क्रोध करके न हटा, तू मेरा सहायक बना है। हे मेरे उद्धार करनेवाले परमेश्वर मुझे त्याग न दे, और मुझे छोड़ न दे! 19O 27 10 मेरे माता पिता ने तो मुझे छोड़ दिया है, परन्तु यहोवा मुझे सम्भाल लेगा।। 19O 27 11 हे यहोवा, अपने मार्ग में मेरी अगुवाई कर, और मेरे द्रोहियों के कारण मुण् को चौरस रास्ते पर ले चल। 19O 27 12 मुझ को मेरे सतानेवालों की इच्छा पर न छोड़, क्योंकि झूठे साक्षी जो उपद्रव करने की धुन में हैं मेरे विरूद्ध उठे हैं।। 19O 27 13 यदि मुझे विश्वास न होता कि जीवितों की पृथ्वी पर यहोवा की भलाई को देखूंगा, तो मैं मूच्छित हो जाता। 19O 27 14 यहोवा की बाट जोहता रह; हियाव बान्ध और तेरा हृदय दृढ़ रहे; हां, यहोवा ही की बाट जोहता रह! 19O 28 1 हे यहोवा, मैं तुझी को पुकारूंगा; हे मेरी चट्टान, मेरी सुनी अनसुनी न कर, ऐसा न हो कि तेरे चुप रहने से मैं कब्र में पड़े हुओं के समान हो जाऊं जो पाताल में चले जाते हैं। 19O 28 2 जब मैं तेरी दोहाई दूं, और तेरे पवित्रास्थान की भीतरी कोठरी की ओर अपने हाथ उठाऊं, तब मेरी गिड़गिड़ाहट की बात सुन ले। 19O 28 3 उन दुष्टों और अनर्थकारियों के संग मुझे न घसीट; जो अपने पड़ोसियों से बातें तो मेल की बोलते हैं परन्तु हृदय में बुराई रखते हैं। 19O 28 4 उनके कामों के और उनकी करनी की बुराई के अनुसार उन से बर्ताव कर, उनके हाथों के काम के अनुसार उन्हें बदला दे; उनके कामों का पलटा उन्हें दे। 19O 28 5 वे यहोवा के कामों पर और उसके हाथों के कामों पर ध्यान नहीं करते, इसलिये वह उन्हें पछाड़ेगा और फिर न उठाएगा।। 19O 28 6 यहोवा धन्य है; क्योंकि उस ने मेरी गिड़गिड़ाहट को सुना है। 19O 28 7 यहोवा मेरा बल और मेरी ढ़ाल है; उस पर भरोसा रखने से मेरे मन को सहायता मिली है; इसलिये मेरा हृदय प्रफुल्लित है; और मैं गीत गाकर उसका धन्यवाद करूंगा। 19O 28 8 यहोवा उनका बल है, वह अपने अभिषिक्त के लिये उद्धार का दृढ़ गढ़ है। 19O 28 9 हे यहोवा अपनी प्रजा का उद्धार कर, और अपने निज भाग के लोगों को आशीष दे; और उनकी चरवाही कर और सदैव उन्हें सम्भाले रह।। 19O 29 1 हे परमेश्वर के पुत्रों यहोवा का, हां यहोवा की का गुणानुवाद करो, यहोवा की महिमा और सामर्थ को सराहो। 19O 29 2 यहोवा के नाम की महिमा करो; पवित्राता से शोभायमान होकर यहोवा को दण्डवत् करो। 19O 29 3 यहोवा की वाणी मेघों के ऊपर सुन पड़ती है; प्रतामी ईश्वर गरजता है, यहोवा घने मेघों के ऊपर रहता है। 19O 29 4 यहोवा की वाणी शक्तिशाली है, यहोवा की वाणी प्रतापमय है। 19O 29 5 यहोवा की वाणी देवदारों को तोड़ डालती है; यहोवा लबानोन के देवदारों को भी तोड़ डालता है। 19O 29 6 वह उन्हें बछड़े की नाई और लबानोन और शिर्योन को जंगली बछड़े के समान उछालता है।। 19O 29 7 यहोवा की वाणी आग की लपटों को चीरती है। 19O 29 8 यहोवा की वाणी वन को हिला देती है, यहोवा कादेश के वन को भी कंपाता है।। 19O 29 9 यहोवा की वाणी से हरिणियों का गर्भपात हो जाता है। और अरण्य में पतझड़ होती है; और उसके मन्दिर में सब कोई महिमा ही महिमा बोलता रहता है।। 19O 29 10 जलप्रलय के समय यहोवा विराजमान था; और यहोवा सर्वदा के लिये राजा होकर विराजमान रहता है। 19O 29 11 यहोवा अपनी प्रजा को बल देगा; यहोवा अपनी प्रजा को शान्ति की आशीष देगा।। 19O 30 1 हे यहोवा मैं तुझे सराहूंगा, क्योंकि तू ने मुझे खींचकर निकाला है, और मेरे शत्रुओं को मुझ पर आनन्द करने नहीं दिया। 19O 30 2 हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मैं ने तेरी दोहाई दी और तू ने मुझे चंगा किया है। 19O 30 3 हे यहोवा, तू ने मेरा प्राण अधोलोक में से निकाला है, तू ने मुझ को जीवित रखा और कब्र में पड़ने से बचाया है।। 19O 30 4 हे यहोवा के भक्तों, उसका भजन गाओ, और जिस पवित्रा नाम से उसका स्मरण होता है, उसका धन्यवाद करो। 19O 30 5 क्योंकि उसका क्रोध, तो क्षण भर का होता है, परन्तु उसकी प्रसन्नता जीवन भर की होती है। कदाचित् रात को रोना पड़े, परन्तु सबेरे आनन्द पहुंचेगा।। 19O 30 6 मैं ने तो चैन के समय कहा था, कि मैं कभी नहीं टलने का। 19O 30 7 हे यहोवा अपनी प्रसन्नता से तू ने मेरे पहाड़ को दृढ़ और स्थिर किया था; जब तू ने अपना मुख फेर लिया तब मैं घबरा गया।। 19O 30 8 हे यहोवा मैं ने तुझी को पुकारा; और यहोवा से गिड़गिड़ाकर यह बिनती की, कि 19O 30 9 जब मैं कब्र में चला जाऊंगा तब मेरे लोहू से क्या लाभ होगा? क्या मिट्टी तेरा धन्यवाद कर सकती है? क्या वह तेरी सच्चाई का प्रचार कर सकती है? 19O 30 10 हे यहोवा, सुन, मुझ पर अनुग्रह कर; हे यहोवा, तू मेरा सहायक हो।। 19O 30 11 तू ने मेरे लिये विलाप को नृत्य में बदल डाला, तू ने मेरा टाट उतरवाकर मेरी कमर में आनन्द का पटुका बान्धा है; 19O 30 12 ताकि मेरी आत्मा तेरा भजन गाती रहे और कभी चुप न हो। हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मैं सर्वदा तेरा धन्यवाद करता रहूंगा।। 19O 31 1 हे यहोवा मेरा भरोसा तुझ पर है; मुझे कभी लज्जित होना न पड़े; तू अपने धर्मी होने के कारण मुझै छुड़ा ले! 19O 31 2 अपना कान मेरी ओर लगाकर तुरन्त मुझे छुड़ा ले! 19O 31 3 क्योंकि तू ने मेरे लिये चट्टान और मेरा गढ़ है; इसलिये अपने नाम के निमित्त मेरी अगुवाई कर, और मुझे आगे ले चल। 19O 31 4 जो जाल उन्हों ने मेरे लिये बिछाया है उस से तू मुझ को छुड़ा ले, क्योंकि तू ही मेरा दृढ़ गढ़ है। 19O 31 5 मैं अपनी आत्मा को तेरे ही हाथ में सौंप देता हूं; हे यहोवा, हे सत्यवादी ईश्वर, तू ने मुझे मोल लेकर मुक्त किया है।। 19O 31 6 जो व्यर्थ वस्तुओं पर मन लगाते हैं, उन से मैं घृणा करता हूं; परन्तु मेरा भरोसा यहोवा ही पर है। 19O 31 7 मैं तेरी करूणा से मगन और आनन्दित हूं, क्योंकि तू ने मेरे दु:ख पर दृष्टि की है, मेरे कष्ट के समय तू ने मेरी सुधि ली है, 19O 31 8 और तू ने मुझे शत्रु के हाथ में पड़ने नहीं दिया; तू ने मेरे पांवों को चौड़े स्थान में खड़ा किया है।। 19O 31 9 हे यहोवा, मुझ पर अनुग्रह कर क्योंकि मैं संकट में हूं; मेरी आंखे वरन मेरा प्राण और शरीर सब शोक के मारे घुले जाते हैं। 19O 31 10 मेरा जीवन शोक के मारे और मेरी अवस्था कराहते कराहते घट चली है; मेरा बल मेरे अधर्म के कारण जाता रह, ओर मेरी हडि्डयां घुल गई।। 19O 31 11 अपने सब विरोधियों के कारण मेरे पड़ोसियों में मेरी नामधराई हुई है, अपने जानपहिचानवालों के लिये डर का कारण हूं; जो मुझ को सड़क पर देखते है वह मुझ से दूर भाग जाते हैं। 19O 31 12 मैं मृतक की नाई लोगों के मन से बिसर गया; मैं टूटे बासन के समान हो गया हूं। 19O 31 13 मैं ने बहुतों के मुंह से अपना अपवाद सुना, चारों ओर भय ही भय है! जब उन्हों ने मेरे विरूद्ध आपस में सम्मति की तब मेरे प्राण लेने की युक्ति की।। 19O 31 14 परन्तु हे यहोवा मैं ने तो तुझी पर भरोसा रखा है, मैं ने कहा, तू मेरा परमेश्वर है। 19O 31 15 मेरे दिन तेरे हाथ में है; तू मुझे मेरे शत्रुओं और मेरे सतानेवालों के हाथ से छुडा। 19O 31 16 अपने दास पर अपने मुंह का प्रकाश चमका; अपनी करूणा से मेरा उद्धार कर।। 19O 31 17 हे यहोवा, मुझे लज्जित न होने दे क्योंकि मैं ने तुझ को पुकारा है; दुष्ट लज्जित हों और वे पाताल में चुपचाप पड़े रहें। 19O 31 18 जो अंहकार और अपमान से धर्मी की निन्दा करते हैं, उनके झूठ बोलनेवाले मुंह बन्द किए जाएं।। 19O 31 19 आहा, तेरी भलाई क्या ही बड़ी है जो तू ने अपने डरवैयों के लिये रख छोड़ी है, और अपने शरणागतों के लिये मनुष्यों के साम्हने प्रगट भी की है! 19O 31 20 तू उन्हें दर्शन देने के गुप्तस्थान में मनुष्यों की बुरी गोष्ठी से गुप्त रखेगा; तू उनको अपने मण्डप में झगड़े- रगड़े से छिपा रखेगा।। 19O 31 21 यहोवा धन्य है, क्योंकि उस ने मुझे गढ़वाले नगर में रखकर मुझ पर अद्धभुत करूणा की है। 19O 31 22 मैं ने तो घबराकर कहा था कि मैं यहोवा की दृष्टि से दूर हो गया। तौभी जब मैं ने तेरी दोहाई दी, तब तू ने मेरी गिड़गिड़ाहट को सुन लिया।। 19O 31 23 हे यहोवा के सब भक्तों उस से प्रेम रखो! यहोवा सच्चे लोगों की तो रक्षा करता है, परन्तु जो अहंकार करता है, उसको वह भली भांति बदला देता है। 19O 31 24 हे यहोवा पर आशा रखनेवालों हियाव बान्धों और तुम्हारे हृदय दृढ़ रहें! 19O 32 1 क्या ही धन्य है वह जिसका अपराध क्षमा किया गया, और जिसका पाप ढ़ापा गया हो। 19O 32 2 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म का यहोवा लेखा न ले, और जिसकी आत्मा में कपट न हो।। 19O 32 3 जब मैं चुप रहा तक दिन भर कहरते कहरते मेरी हडि्डयां पिघल गई। 19O 32 4 क्योंकि रात दिन मैं तेरे हाथ के नीचे दबा रहा; और मेरी तरावट धूप काल की सी झुर्राहट बनती गई।। 19O 32 5 जब मैं ने अपना पाप तुझ पर प्रगट किया और अपना अधर्म न छिपाया, और कहा, मैं यहोवा के साम्हने अपने अपराधों को मान लूंगा; तब तू ने मेरे अधर्म और पाप को क्षमा कर दिया।। 19O 32 6 इस कारण हर एक भक्त तुझ से ऐसे समय में प्रार्थना करे जब कि तू मिल सकता है। निश्चय जब जल की बड़ी बाढ़ आए तौभी उस भक्त के पास न पहुंचेगी। 19O 32 7 तू मेरे छिपने का स्थान है; तू संकट से मेरी रक्षा करेगा; तू मुझे चारों ओर से छुटकारे के गीतों से घेर लेगा।। 19O 32 8 मैं तुझे बुद्धि दूंगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूंगा; मैं तुझ पर कृपादृष्टि रखूंगा और सम्मत्ति दिया करूंगा। 19O 32 9 तुम घोड़े और खच्चर के समान न बनो जो समझ नहीं रखते, उनकी उमंग लगाम और बाग से रोकनी पड़ती है, नहीं तो वे तेरे वश में नहीं अपने के।। 19O 32 10 दुष्ट को तो बहुत पीड़ा होगी; परन्तु जो यहोवा पर भरोसा रखता है वह करूणा से घिरा रहेगा। 19O 32 11 हे धर्मियों यहोवा के कारण आनन्दित और मगन हो, और हे सब सीधे मनवालों आनन्द से जयजयकार करो! 19O 33 1 हे धर्मियों यहोवा के कारण जयजयकार करो् क्योंकि धर्मी लोगों को स्तुति करनी सोहती है। 19O 33 2 वीणा बजा बजाकर यहोवा का धन्यवाद करो, दस तारवाली सारंगी बजा बजाकर उसका भजन गाओ। 19O 33 3 उसके लिये नया गीत गाओ, जयजयकार के साथ भली भांति बजाओ।। 19O 33 4 क्योंकि यहोवा का वचन सीधा है; और उसका सब काम सच्चाई से होता है। 19O 33 5 वह धर्म और न्याय से प्रीति रखता है; यहोवा की करूणा से पृथ्वी भरपूर है।। 19O 33 6 आकाशमण्डल यहोवा के वचन से, और उसके सारे गण उसके मुंह ही श्वास से बने। 19O 33 7 वह समुद्र का जल ढेर की नाई इकट्ठा करता; वह गहिरे सागर को अपने भण्डार में रखता है।। 19O 33 8 सारी पृथ्वी के लोग यहोवा से डरें, जगत के सब निवासी उसका भय मानें! 19O 33 9 क्योंकि जब उस ने कहा, तब हो गया; जब उस ने आज्ञा दी, तब वास्तव में वैसा ही हो गया।। 19O 33 10 यहोवा अन्यअन्यजाथियो की युक्ति को व्यर्थ कर देता है; वह देश देश के लोगों की कल्पनाओं को निष्फल करता है। 19O 33 11 यहोवा की युक्ति सर्वदा स्थिर रहेगी, उसके मन की कल्पनाएं पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहेंगी। 19O 33 12 क्या ही धन्य है वह जाति जिसका परमेश्वर यहोवा है, और वह समाज जिसे उस ने अपना निज भाग होने के लिये चुन लिया हो! 19O 33 13 यहोवा स्वर्ग से दृष्टि करता है, वह सब मनुष्यों को निहारता है; 19O 33 14 अपने निवास के स्थान से वह पृथ्वी के सब रहनेवालों को देखता है, 19O 33 15 वही जो उन सभों के हृदयों को गढ़ता, और उनके सब कामों का विचार करता है। 19O 33 16 कोई ऐसा राजा नहीं, जो सेना की बहुतायत के कारण बच सके; वीर अपनी बड़ी शक्ति के कारण छूट नहीं जाता। 19O 33 17 बच निकलने के लिये घोड़ा व्यर्थ है, वह अपने बड़े बल के द्वारा किसी को नहीं बचा सकता है।। 19O 33 18 देखो, यहोवा की दृष्टि उसके डरवैयों पर और उन पर जो उसकी करूणा की आशा रखते हैं बनी रहती है, 19O 33 19 कि वह उनके प्राण को मृत्यु से बचाए, और अकाल के समय उनको जीवित रखे।। 19O 33 20 हम यहोवा का आसरा देखते आए हैं; वह हमारा सहायक और हमारी ढाल ठहरा है। 19O 33 21 हमारा हृदय उसके कारण आनन्दित होगा, क्योंकि हम ने उसके पवित्रा नाम का भरोसा रखा है। 19O 33 22 हे यहोवा जैसी तुझ पर हमारी आशा है, वैसी ही तेरी करूणा भी हम पर हो।। 19O 34 1 मैं हर समय यहोवा को धन्य कहा करूंगा; उसकी स्तुति निरन्तर मेरे मुख से होती रहेगी। 19O 34 2 मैं यहोवा पर घमण्ड करूंगा; नम्र लोग यह सुनकर आनन्दित होंगे। 19O 34 3 मेरे साथ यहोवा की बड़ाई करो, और आओ हम मिलकर उसके नाम की स्तुति करें। 19O 34 4 मैं यहोवा के पास गया, तब उस ने मेरी सुन ली, और मुझे पूरी रीति से निर्भय किया। 19O 34 5 जिन्हों ने उसकी ओर दृष्टि की उन्हों ने ज्योति पाई; और उनका मुंह कभी काला न होने पाया। 19O 34 6 इस दीन जन ने पुकारा तब यहोवा ने सुन लिया, और उसको उसके सब कष्टों से छुड़ा लिया।। 19O 34 7 यहोवा के डरवैयों के चारों ओर उसका दूत छावनी किए हुए उनको बचाता है। 19O 34 8 परखकर देखो कि यहोवा कैसा भला है! क्या ही धन्य है वह पुरूष जो उसकी शरण लेता है। 19O 34 9 ृहे यहोवा के पवित्रा लोगो, उसका भय मानो, क्योंकि उसके डरवैयों को किसी बात की घटी नहीं होती! 19O 34 10 जवान सिहों को तो घटी होती और वे भूखे भी रह जाते हैं; परन्तु यहोवा के खोजियों को किसी भली वस्तु की घटी न होवेगी।। 19O 34 11 हे लड़कों, आओ, मेरी सुनो, मैं तुम को यहोवा का भय मानना सिखाऊंगा। 19O 34 12 वह कौन मनुष्य है जो जीवन की इच्छा रखता, और दीर्घायु चाहता है ताकि भलाई देखे? 19O 34 13 अपनी जीभ को बुराई से रोक रख, और अपने मुंह की चौकसी कर कि उस से छल की बात न निकले। 19O 34 14 बुराई को छोड़ और भलाई कर; मेल को ढूंढ और उसी का पीछा कर।। 19O 34 15 यहोवा की आंखे धर्मियों पर लगी रहती हैं, और उसके कान भी उसकी दोहाई की ओर लगे रहते हैं। 19O 34 16 यहोवा बुराई करनेवालों के विमुख रहता है, ताकि उनका स्मरण पृथ्वी पर से मिटा डाले। 19O 34 17 धर्मी दोहाई देते हैं और यहोवा सुनता है, और उनको सब विपत्तियों से छुड़ाता है। 19O 34 18 यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्वार करता है।। 19O 34 19 धर्मी पर बहुत सी विपत्तियां पड़ती तो हैं, परन्त यहोवा उसको उन सब से मुक्त करता है। 19O 34 20 वह उसकी हड्डी हड्डी की रक्षा करता है; और उन में से एक भी टूटने नहीं पाती। 19O 34 21 दुष्ट अपनी बुराई के द्वारा मारा जाएगा; और धर्मी के बैरी दोषी ठहरेंगे। 19O 34 22 यहोवा अपने दासों का प्राण मोल लेकर बचा लेता है; और जितने उसके शरणागत हैं उन में से कोई भी दोषी न ठहरेगा।। 19O 35 1 हे यहोवा जो मेरे साथ मुक मा लड़ते हैं, उनके साथ तू भी मुक मा लड़; जो मुझ से युद्व करते हैं, उन से तू युद्व कर। 19O 35 2 ढाल और भाला लेकर मेरी सहायता करने को खड़ा हो। 19O 35 3 बर्छी को खींच और मेरा पीछा करनेवालों के साम्हने आकर उनको रोक; और मुझ से कह, कि मैं तेरा उद्वार हूं।। 19O 35 4 जो मेरे प्राण के ग्राहक हैं वे लज्जित और निरादर हों! जो मेरी हाति की कल्पना करते हैं, वह पीछे हटाए जाएं और उनका मुंह काला हो! 19O 35 5 वे वायु से उड़ जानेवाली भूसी के समान हों, और यहोवा का दूत उन्हें हांकता जाए! 19O 35 6 उनका मार्ग अन्धियारा और फिसलाहा हो, और यहोवा का दूत उनको खदेड़ता जाए।। 19O 35 7 क्योंकि अकारण उन्हों ने मेरे लिये अपना जाल गड़हे में बिछाया; अकारण ही उन्हों ने मेरा प्राण लेने के लिये गड़हा खोदा है। 19O 35 8 अचानक उन पर विपत्ति आ पड़े! और जो जाल उन्हों ने बिछाया है उसी में वे आप ही फंसे; और उसी विपत्ति में वे आप ही पड़ें! 19O 35 9 परन्तु मैं यहोवा के कारण अपने मन में मगन होऊंगा, मैं उसके किए हुए उद्वार से हर्षित होऊंगा। 19O 35 10 मेरी हड्डी हड्डी कहेंगी, हे यहोवा तेरे तुल्य कौन है, जो दी को बड़े बड़े बलवन्तों से बचाता है, और लुटेरों से दीन दरिद्र लोगों की रक्षा करता है? 19O 35 11 झूठे साक्षी खड़े होते हैं; और जो बात मैं नहीं जानता, वही मुझ से पूछते हैं। 19O 35 12 वे मुझ से भलाई के बदले बुराई करते हैं; यहां तक कि मेरा प्राण ऊब जाता है। 19O 35 13 जब वे रोगी थे तब तो मैं टाट पहिने रहा, और उपवास कर करके दु:ख उठाता रहा; और मेरी प्रार्थना का फल मेरी गोद में लौट आया। 19O 35 14 मैं ऐसा भाव रखता था कि मानो वे मेरे संगी वा भाई हैं; जैसा कोई माता के लिये विलाप करता हो, वैसा ही मैं ने शोक का पहिरावा पहिने हुए सिर झुकाकर शोक किया।। 19O 35 15 परन्तु जब मैं लंगड़ाने लगा तब वे लोग आनन्दित होकर इकट्ठे हुए, नीच लोग और जिन्हें मैं जानता भी न था वे मेरे विरूद्व इकट्ठे हुए; वे मुझे लगातार फाड़ते रहे; 19O 35 16 उन पाखण्डी भांड़ों की नाई जो पेट के लिये उपहास करते हैं, वे भी मुझ पर दांत पीसते हैं।। 19O 35 17 हे प्रभु तू कब तक देखता रहेगा? इस विपत्ति से, जिस में उन्हों ने मुझे डाला है मुझ को छुड़ा! जवान सिहों से मेरे प्राण को बचा ले! 19O 35 18 मैं बड़ी सभा में तेरा धन्यवाद करूंगा; बहुतेरे लोगों के बीच में तेरी स्तुति करूंगा।। 19O 35 19 मेरे झूठ बोलनेवाले शत्रु मेरे विरूद्व आनन्द न करने पाएं, जो अकारण मेरे बैरी हैं, वे आपस में नैन से सैन न करने पांए। 19O 35 20 क्योंकि वे मेल की बातें नहीं बोलते, परन्तु देश में जो चुपचाप रहते हैं, उनके विरूद्व छल की कल्पनाएं करते हैं। 19O 35 21 और उन्हों ने मेरे विरूद्व मुंह पसारके कहा; आहा, आहा, हम ने अपनी आंखों से देखा है! 19O 35 22 हे यहोवा, तू ने तो देखा है; चुप न रह! हे प्रभु, मुझ से दूर न रह! 19O 35 23 उठ, मेरे न्याय के लिये जाग, हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे प्रभु, मेरे मुक मा निपटाने के लिये आ! 19O 35 24 हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू अपने धर्म के अनुसार मेरा न्याय चुका; ओश्र उन्हें मेरे विरूद्व आनन्द करने न दे! 19O 35 25 वे मन में न कहने पाएं, कि आहा! हमारी तो इच्छा पूरी हुई! वह यह न कहें कि हम उसे निगल गए हैं।। 19O 35 26 जो मेरी हाति से आनन्दित होते हैं उनके मुंह लज्जा के मारे एक साथ काले हों! जो मेरे विरूद्ध बड़ाई मारते हैं वह लज्जा और अनादर से ढ़ंप जाएं! 19O 35 27 जो मेरे धर्म से प्रसन्न रहते हैं, वह जयजयकार और आनन्द करें, और निरन्तर करते रहें, यहोवा की बड़ाई हो, जो अपने दास के कुशल से प्रसन्न होता है! 19O 35 28 तब मेरे मुंह से तेरे धर्म की चर्चा होगी, और दिन भर तेरी स्तुति निकलेगी।। 19O 36 1 दुष्ट जन का अपराण मेरे हृदय के भीतर यह कहता है कि परमेश्वर का भय उसकी दृष्टि में नहीं है। 19O 36 2 वह अपने अधर्म के प्रगट होने और घृणित ठहरने के विषय अपने मन में चिकनी चुपड़ी बातें विचारता है। 19O 36 3 उसकी बातें अनर्थ और छल की हैं; उस ने बुद्धि और भलाई के काम करने से हाथ उठाया है। 19O 36 4 वह अपने बिछौने पर पड़े पड़े अनर्थ की कल्पना करता है; वह अपने कुमार्ग पर दृढ़ता से बना रहता है; बुराई से वह हाथ नहीं उठाता।। 19O 36 5 हे यहोवा तेरी करूणा स्वर्ग में है, तेरी सच्चाई आकाशमण्डल तक पहुंची है। 19O 36 6 तेरा धर्म ऊंचे पर्वतों के समान है, तेरे नियम अथाह सागर ठहरे हैं; हे यहोवा तू मनुष्य और पशु दोनों की रक्षा करता है।। 19O 36 7 हे परमेश्वर तेरी करूणा, कैसी अनमोल है! मनुष्य तेरे पंखो के तले शरण लेते हैं। 19O 36 8 वे तेरे भवन के चिकने भोजन से तृप्त होंगे, और तू अपनी सुख की नदी में से उन्हें पिलाएगा। 19O 36 9 क्योंकि जीवन का सोता तेरे ही पास है; तेरे प्रकाश के द्वारा हम प्रकाश पाएंगे।। 19O 36 10 अपने जाननेवालों पर करूणा करता रह, और अपने धर्म के काम सीधे मनवालों में करता रह! 19O 36 11 अहंकारी मुझ पर लात उठाने न पाए, और न दुष्ट अपने हाथ के बल से मुझे भगाने पाए। 19O 36 12 वहां अनर्थकारी गिर पड़े हैं; वे ढकेल दिए गए, और फिर उठ न सकेंगे।। 19O 37 1 कुकर्मियों के कारण मत कुढ़, कुटिल काम करनेवालों के विषय डाह न कर! 19O 37 2 क्योंकि वे घास की नाई झट कट जाएंगे, और हरी घास की नाई मुर्झा जाएंगे। 19O 37 3 यहोवा पर भरोसा रख, और भला कर; देश में बसा रह, और सच्चाई में मन लगाए रह। 19O 37 4 यहोवा को अपने सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथों को मूरा करेगा।। 19O 37 5 अपने मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड़; और उस पर भरोसा रख, वही पूरा करेगा। 19O 37 6 और वह तेरा धर्म ज्योति की नाई, और तेरा न्याय दोपहर के उजियाले की नाई प्रगट करेगा।। 19O 37 7 यहोवा के साम्हने चुपचाप रह, और धीरज से उसका आस्त्रा रख; उस मनुष्य के कारण न कुढ़, जिसके काम सुफल होते हैं, और वह कुरी युक्तियों को निकालता है! 19O 37 8 क्रोध से परे रह, और जलजलाहट को छोड़ दे! मत कुढ़, उस से बुराई ही निकलेगी। 19O 37 9 क्योंकि कुकर्मी लोग काट डाले जाएंगे; और जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वही पृथ्वी के अधिकारी होंगे। 19O 37 10 थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं; और तू उसके स्थान को भलीं भांति देखने पर भी उसको न पाएगा। 19O 37 11 परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे। 19O 37 12 दुष्ट धर्मी के विरूद्ध बुरी युक्ति निकालता है, और उस पर दांत पीसता है; 19O 37 13 परन्तु प्रभु उस पर हंसेगा, क्योंकि वह देखता है कि उसका दिन आनेवाला है।। 19O 37 14 दुष्ट लोग तलवार खींचे और धनुष बढ़ाए हुए हैं, ताकि दीन दरिद्र को गिरा दें, और सीधी चाल चलनेवालों को वध करें। 19O 37 15 उनकी तलवारों से उन्हीं के हृदय छिदेंगे, और उनके धनुष तोड़े जाएंगे।। 19O 37 16 धर्मी को थोड़ा से माल दुष्टों के बहुत से धन से उत्तम है। 19O 37 17 क्योंकि दुष्टों की भुजाएं तो तोड़ी जाएंगी; परन्तु यहोवा धर्मियों को सम्भालता है।। 19O 37 18 यहोवा खरे लोगों की आयु की सुधि रखता है, और उनका भाग सदैव बना रहेगा। 19O 37 19 विपत्ति के समय, उनकी आशा न टूटेगी और न वे लज्जित होंगे, और अकाल के दिनों में वे तृप्त रहेंगे।। 19O 37 20 दुष्ट लोग नाश हो जाएंगे; और यहोवा के शत्रु खेत की सुथरी घास की नाई नाश होंगे, वे धूएं की नाई बिलाय जाएंगे।। 19O 37 21 दुष्ट ऋण लेता है, और भरता नहीं परनतु धर्मीं अनुग्रह करके दान देता है; 19O 37 22 क्योंकि जो उस से आशीष पाते हैं वे तो पृथ्वी के अधिकारी होंगे, परन्तु जो उस से शापित होते हैं, वे नाश को जाएंगे।। 19O 37 23 मनुष्य की गति यहोवा की ओर से दृढ़ होती है, और उसके चलन से वह प्रसन्न रहता है; 19O 37 24 चाहे वह गिरे तौभी पड़ा न रह जाएगा, क्योंकि यहोवा उसका हाथ थांभे रहता है।। 19O 37 25 मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक देखता आया हूं; परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, और न उसके वंश को टुकड़े मांगते देखा है। 19O 37 26 वह तो दिन भर अनुग्रह कर करके ऋण देता है, और उसके वंश पर आशीष फलती रहती है।। 19O 37 27 बुराई को छोड़ भलाई कर; और तू सर्वदा बना रहेगा। 19O 37 28 क्योंकि यहोवा न्याय से प्रीति रखता; और अपने भक्तों को न तजेगा। उनकी तो रक्षा सदा होती है, परन्तु दुष्टों का वंश काट डाला जाएगा। 19O 37 29 धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।। 19O 37 30 धर्मी अपने मुंह से बुद्धि की बातें करता, और न्याय का वचन कहता है। 19O 37 31 उसके परमेश्वर की व्यवस्था उसके हृदय में बनी रहती है, उसके पैर नहीं फिसलते।। 19O 37 32 दुष्ट धर्मी की ताक में रहता है। और उसके मार डालने का यत्न करता है। 19O 37 33 यहोवा उसको उसके हाथ में न छोड़ेगा, और जब उसका विचार किया जाए तब वह उसे दोषी न ठहराएगा।। 19O 37 34 यहोवा की बाट जोहता रह, और उसके मार्ग पर बना रह, और वह तुझे बढ़ाकर पृथ्वी का अधिकारी कर देगा; जब दुष्ट काट डाले जाएंगे, तब तू देखेगा।। 19O 37 35 मैं ने दुष्ट को बड़ा पराक्रमी और ऐसा फैलता हुए देखा, जैसा कोई हरा पेड़ अपने निज भूमि में फैलता है। 19O 37 36 परन्तु जब कोई उधर से गया तो देखा कि वह वहां है ही नहीं; और मैं ने भी उसे ढूंढ़ा, परन्तु कहीं न पाया।। 19O 37 37 खरे मनुष्य पर दृष्टि कर और धर्मी को देख, क्योंकि मेल से रहनेवाले पुरूष का अन्तफल अच्छा है। 19O 37 38 परन्तु अपराधी एक साथ सत्यानाश किए जाएंगे; दुष्टों का अन्तफल सर्वनाश है।। 19O 37 39 धर्मियों की मुक्ति यहोवा की ओर से होती है; संकट के समय वह उनका दृढ़ गढ़ है। 19O 37 40 और यहोवा उनकी सहायता करके उनको बचाता है; वह उनको दुष्टों से छुड़ाकर उनका उद्वार करता है, इसलिये कि उन्हों ने उस में अपनी शरण ली है।। 19O 38 1 हे यहोवा क्रोध में आकर मुझे झिड़क न दे, और न जलजलाहट में आकर मेरी ताड़ना कर! 19O 38 2 क्योंकि तेरे तीर मुझ में लगे हैं, और मैं तेरे हाथ के नीचे दबा हूं। 19O 38 3 तेरे क्रोध के कारण मेरे शरीर में कुछ भी आरोग्यता नहीं; और मेरे पाप के कारण मेरी हडि्डयों में कुछ भी चैन नहीं। 19O 38 4 क्योंकि मेरे अधर्म के कामों में मेरा सिर डूब गया, और वे भारी बोझ की नाई मेरे सहने से बाहर हो गए हैं।। 19O 38 5 मेरी मूढ़ता के कारण से मेरे कोड़े खाने के घाव बसाते हैं और सड़ गए हैं। 19O 38 6 मैं बहुत दुखी हूं और झूक गया हूं; दिन भर मैं शौक का पहिरावा पहिने हुए चलता फिरता हूं। 19O 38 7 क्योंकि मेरी कमर में जलन है, और मेरे शरीर में आरोग्यता नहीं। 19O 38 8 मैं निर्बल और बहुत ही चूर हो गया हूं; मैं अपने मन की घबराहट से कराहता हूं।। 19O 38 9 हे प्रभु मेरी सारी अभिलाषा तेरे सम्मुख है, और मेरा कराहना तुझ से छिपा नहीं। 19O 38 10 मेरा हृदय धड़कता है, मेरा बल घटता जाता है; और मेरी आंखों की ज्योति भी मुझ से जाती रही। 19O 38 11 मेरे मित्रा और मेरे संगी मेरी विपत्ति में अलग हो गए, और मेरे कुटुम्बी भी दूर जा खड़े हुए।। 19O 38 12 मेरे प्राण के ग्राहक मेरे लिये जाल बिछाते हैं, और मेरी हाति के यत्न करनेवाले दुष्टता की बातें बोलते, और दिन भर छल की युक्ति सोचते हैं। 19O 38 13 परन्तु मैं बहिरे की नाई सुनता ही नहीं, और मैं गूंगे के समान मूंह नहीं खोलता। 19O 38 14 वरन मैं ऐसे मनुष्य के तुल्य हूं जो कुछ नहीं सुनता, और जिसके मुंह से विवाद की कोई बात नहीं निकलती।। 19O 38 15 परन्तु हे यहोवा, मैं ने तुझ ही पर अपनी आशा लगाई है; हे प्रभु, मेरे परमेश्वर, तू ही उत्तर देगा। 19O 38 16 क्योंकि मैं ने कहा, ऐसा न हो कि वे मुझ पर आनन्द करें; जो, जब मेरा पांव फिसल जाता है, तब मुझ पर अपनी बड़ाई मारते हैं।। 19O 38 17 क्योंकि मैं तो अब गिरने ही पर हूं, और मेरा शोक निरन्तर मेरे साम्हने है। 19O 38 18 इसलिये कि मैं तो अपने अधर्म को प्रगट करूंगा, और अपने पाप के कारण खेदित रहूंगा। 19O 38 19 परन्तु मेरे शत्रु फुर्तीले और सामर्थी हैं, और मेरे विरोधी बैरी बहुत हो गए हैं। 19O 38 20 जो भलाई के बदले में बुराई करते हैं, वह भी मेरे भलाई के पीछे चलने के कारण मुझ से विरोध करते हैं।। 19O 38 21 हे यहोवा, मुझे छोड़ न दे! हे मेरे परमेश्वर, मुझ से दूर न हो! 19O 38 22 हे यहोवा, हे मेरे उद्वारकर्त्ता, मेरी सहायता के लिये फुर्ती कर! 19O 39 1 मैं ने कहा, मैं अपनी चालचलन में चौकसी करूंगा, ताकि मेरी जीभ से पाप न हो; जब तक दुष्ट मेरे साम्हने है, तब तक मैं लगाम लगाए अपना मुंह बन्द किए रहूंगा। 19O 39 2 मैं मौन धारण कर गूंगा बन गया, और भलाई की ओर से भी चुप्पी साधे रहा; और मेरी पीड़ा बढ़ गई, 19O 39 3 मेरा हृदय अन्दर ही अन्दर जल रहा था। सोचते सोचते आग भड़क उठी; तब मैं अपनी जीभ से बोल उठा; 19O 39 4 हे यहोवा ऐसा कर कि मेरा अन्त मुझे मालुम हो जाए, और यह भी कि मेरी आयु के दिन कितने हैं; जिस से मैं जान लूं कि कैसा अनित्य हूं! 19O 39 5 देख, तू ने मेरे आयु बालिश्त भर की रखी है, और मेरी अवस्था तेरी दृष्टि में कुछ है ही नहीं। सचमुच सब मनुष्य कैसे ही स्थिर क्यों न हों तौभी व्यर्थ ठहरे हैं। 19O 39 6 सचमुच मनुष्य छाया सा चलता फिरता है; सचमुच वे व्यर्थ घबराते हैं; वह धन का संचय तो करता है परन्तु नहीं जानता कि उसे कौन लेगा! 19O 39 7 और अब हे प्रभु, मैं किस बात की बाट जोहूं? मेरी आशा तो तेरी ओर लगी है। 19O 39 8 मुझे मेरे सब अपराधों के बन्धन से छुड़ा ले। मूढ़ मेरी निन्दा न करने पाए। 19O 39 9 मैं गूंगा बन गया और मुंह न खोला; क्योंकि यह काम तू ही ने किया है। 19O 39 10 तू ने जो विपत्ति मुझ पर डाली है उसे मुझ से दूर कर दे, क्योंकि मैं तो तरे हाथ की मार से भस्म हुआ जाता हूं। 19O 39 11 जब तू मनुष्य को अधर्म के कारण दपट दपटकर ताड़ना देता है; तब तू उसकी सुन्दरता को पतिंगे की नाई नाश करता है; सचमुच सब मनुष्य वृथाभिमान करते हैं।। 19O 39 12 हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन, और मेरी दोहाई पर कान लगा; मेरा रोना सुनकर शांत न रह! क्योंकि मैं तेरे संग एक परदेशी यात्री की नाई रहता हूं, और अपने सब पुरखाओं के समान परदेशी हूं। 19O 39 13 आह! इस से पहिले कि मैं यहां से चला जाऊं और न रह जाऊं, मुझे बचा ले जिस से मैं प्रदीप्त जीवन प्राप्त करूं! 19O 40 1 मैं धीरज से यहोवा की बाट जोहता रहा; और उस ने मेरी ओर झुककर मेरी दोहाई सुनी। 19O 40 2 उस ने मुझे सत्यानाश के गड़हे और दलदल की कीच में से उबारा, और मुझ को चट्टान पर खड़ा करके मेरे पैरों को दृढ़ किया है। 19O 40 3 और उस ने मुझे एक नया गीत सिखाया जो हमारे परमेश्वर की स्तुति का है। बहुतेरे यह देखकर डरेंगे, और यहोवा पर भरोसा रखेंगे।। 19O 40 4 क्या ही धन्य है वह पुरूष, जो यहोवा पर भरोसा करता है, और अभिमानियों और मिथ्या की ओर मुड़नेवालों की ओर मुंह न फेरता हो। 19O 40 5 हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू ने बहुत से काम किए हैं! जो आश्चर्यकर्म और कल्पनाएं तू हमारे लिये करता है वह बहुत सी हैं; तेरे तुल्य कोई नहीं! मैं तो चाहता हूं की खोलकर उनकी चर्चा करूं, परन्तु उनकी गिनती नहीं हो सकती।। 19O 40 6 मेलबलि और अन्नबलि से तू प्रसन्न नहीं होता तू ने मेरे कान खोदकर खोले हैं। होमबलि और पापबलि तू ने नहीं चाहा। 19O 40 7 तब मैं ने कहा, देख, मैं आया हूं; क्योंकि पुस्तक में मेरे विषय ऐसा ही लिखा हुआ है। 19O 40 8 हे मेरे परमेश्वर मैं तेरी इच्छा पूरी करने से प्रसन्न हूं; और तेरी व्यवस्था मेरे अन्त:करण में बनी है।। 19O 40 9 मैं ने बड़ी सभा में धर्म के शुभ समाचार का प्रचार किया है; देख, मैं ने अपना मुंह बन्द नहीं किया हे यहोवा, तू इसे जानता है। 19O 40 10 मैं ने तेरा धर्म मन ही में नहीं रखा; मैं ने तेरी सच्चाई और तेरे किए हुए उधार की चर्चा की है; मैं ने तेरी करूणा और सत्यता बड़ी सभा से गुप्त नहीं रखी।। 19O 40 11 हे यहोवा, तू भी अपनी बड़ी दया मुझ पर से न हटा ले, तेरी करूणा और सत्यता से निरन्तर मेरी रक्षा होती रहे! 19O 40 12 क्योंकि मैं अनगिनत बुराइयों से घिरा हुआ हूं; मेरे अधर्म के कामों ने मुझे आ पकड़ा और मैं दृष्टि नहीं उठा सकता; वे गिनती में मेरे सिर के बालों से भी अधिक हैं; इसलिये मेरा हृदय टूट गया।। 19O 40 13 हे यहोवा, कृपा करके मुझे छुड़ा ले! हे यहोवा, मेरी सहायता के लिये फुर्ती कर! 19O 40 14 जो मेरे प्राण की खोज में हैं, वे सब लज्जित हों; और उनके मुंह काले हों और वे पीछे हटाए और निरादर किए जाएं जो मेरी हाति से प्रसन्न होते हैं। 19O 40 15 जो मुझ से आहा, आहा, कहते हैं, वे अपनी लज्जा के मारे विस्मित हों।। 19O 40 16 परन्तु जितने तुझे ढूंढ़ते हैं, वह सब तेरे कारण हर्षित औश्र आनन्दित हों; जो तेरा किया हुआ उद्धार चाहते हैं, वे निरन्तर कहते रहें, यहोवा की बड़ाई हो! 19O 40 17 मैं तो दीन और दरिद्र हूं, तौभी प्रभु मेरी चिन्ता करता है। तू मेरा सहायक और छुड़ानेवाला है; हे मेरे परमेश्वर विलम्ब न कर।। 19O 41 1 क्या ही धन्य है वह, जो कंगाल की सुधि रखता है! विपत्ति के दिन यहोवा उसको बचाएगा। 19O 41 2 यहोवा उसकी रक्षा करके उसको जीवित रखेगा, और वह पृथ्वी पर भाग्यवान होगा। तू उसको शत्रुओं की इच्छा पर न छोड़। 19O 41 3 जब वह व्याधि के मारे सेज पर पड़ा हो, तब यहोवा उसे सम्भालेगा; तू रोग में उसके पूरे बिछौने को उलटकर ठीक करेगा।। 19O 41 4 मैं ने कहा, हे यहोवा, मुझ पर अनुग्रह कर; मुझ को चंगा कर, क्योंकि मैं ने तो तेरे विरूद्ध पाप किया है! 19O 41 5 मेरे शत्रु यह कहकर मेरी बुराई करते हैं: वह कब मरेगा, और उसका नाम कब मिटेगा? 19O 41 6 और जब वह मुझ से मिलने को आता है, तब वह व्यर्थ बातें बकता है, जब कि उसका मन अपने अन्दर अधर्म की बातें संचय करता है; और बाहर जाकर उनकी चर्चा करता है। 19O 41 7 मेरे सब बैरी मिलकर मेरे विरूद्ध कानाफूसी करते हैं; मे मेरे विरूद्ध होकर मेरी हानि की कल्पना करते हैं।। 19O 41 8 वे कहते हैं कि इसे तो कोई बुरा रोग लग गया है; अब जो यह पड़ा है, तो फिर कभी उठने का नहीं। 19O 41 9 मेरा परम मित्रा जिस पर मैं भरोसा रखता था, जो मेरी रोटी खाता था, उस ने भी मेरे विरूद्ध लात उठाई है। 19O 41 10 परन्तु हे यहोवा, तु मुझ पर अनुग्रह करके मुझ को उठा ले कि मैं उनको बदला दूं! 19O 41 11 मेरा शत्रु जो मुझ पर जयवन्त नहीं हो पाता, इस से मैं ने जान लिया है कि तू मुझ से प्रसन्न है। 19O 41 12 और मुझे तो तू खराई से सम्भालता, और सर्वदा के लिये अपने सम्मुख स्थिर करता है।। 19O 41 13 इस्राएल का परमेश्वर यहोवा आदि से अनन्तकाल तक धन्य है आमीन, फिर आमीन।। 19O 42 1 जैसे हरिणी नदी के जल के लिये हांफती है, वैसे ही, हे परमेश्वर, मैं तेरे लिये हांफता हूं। 19O 42 2 जीवते ईश्वर परमेश्वर का मैं प्यासा हूं, मैं कब जाकर परमेश्वर को अपना मुंह दिखाऊंगा? 19O 42 3 मेरे आंसू दिन और रात मेरा आहार हुए हैं; और लोग दिन भर मुझ से कहते रहते हैं, तेरा परमेश्वर कहां है? 19O 42 4 मैं भीड़ के संग जाया करता था, मैं जयजयकार और धन्यवाद के साथ उत्सव करनेवाली भीड़ के बीच में परमेश्वर के भवन को धीरे धीरे जाया करता था; यह स्मरण करके मेरा प्राण शोकित हो जाता है। 19O 42 5 हे मेरे प्राण, तू क्यों गिरा जाता है? और तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्वर पर आशा लगाए रह; क्योंकि मैं उसके दर्शन से उद्धार पाकर फिर उसका धन्यवाद करूंगा।। 19O 42 6 हे मेरे परमेश्वर; मेरा प्राण मेरे भीतर गिरा जाता है, इसलिये मैं यर्दन के पास के देश से और हर्मोन के पहाड़ों और मिसगार की पहाड़ी के ऊपर से तुझे स्मरण करता हूं। 19O 42 7 तेरी जलधाराओं का शब्द सुनकर जल, जल को पुकारता है; तेरी सारी तरंगों और लहरों में मैं डूब गया हूं। 19O 42 8 तौभी दिन को यहोवा अपनी शक्ति और करूणा प्रगट करेगा; और रात को भी मैं उसका गीत गाऊंगा, और अपने जीवनदाता ईश्वर से प्रार्थना करूंगा।। 19O 42 9 मैं ईश्वर से जो मेरी चट्टान है कहूंगा, तू मुझे क्यों भूल गया? मैं शत्रु के अन्धेर के मारे क्यों शोक का पहिरावा पहिने हुए चलता फिरता हूं? 19O 42 10 मेरे सतानेवाले जो मेरी निन्दा करते हैं मानो उस में मेरी हडि्डयां चूर चूर होती हैं, मानो कटार से छिदी जाती हैं, क्योंकि वे दिन भर मुझ से कहते रहते हैं, तेरा परमेश्वर कहां है? 19O 42 11 हे मेरे प्राण तू क्यों गिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्वर पर भरोसा रख; क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्वर है, मैं फिर उसका धन्यवाद करूंगा।। 19O 43 1 हे परमेश्वर, मेरा न्याय चुका और विधर्मी जाति से मेरा मुक मा लड़; मुझ को छली और कुटिल पुरूष से बचा। 19O 43 2 क्योंकि हे परमेश्वर, तू ही मेरी शरण है, तू ने क्यों मुझे त्याग दिया है? मैं शत्रु के अन्धेर के मारे शोक का पहिरावा पहिने हुए क्यों फिरता रहूं? 19O 43 3 अपने प्रकाश और अपनी सच्चाई को भेज; वे मेरी अगुवाई करें, वे ही मुझ को तेरे पवित्रा पर्वत पर और तेरे निवास स्थान में पहुंचाए! 19O 43 4 तब मैं परमेश्वर की वेदी के पास जाऊंगा, उस ईश्वर के पास जो मेरे अति आनन्द का कुण्ड है; और हे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर मैं वीणा बजा बजाकर तेरा धन्यवाद करूंगा।। 19O 43 5 हे मेरे प्राण तू क्यों गिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्वर पर भरोसा रख, क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्वर है; मैं फिर उसका धन्यवाद करूंगा।। 19O 44 1 हे परमेश्वर हम ने अपने कानों से सुना, हमारे बापदादों ने हम से वर्णन किया है, कि तू ने उनके दिनों में और प्राचीनकाल में क्या क्या काम किए हैं। 19O 44 2 तू ने अपने हाथ से जातियों को निकाल दिया, और इनको बसाया; तू ने देश देश के लोगों को दु:ख दिया, और इनको चारों ओर फैला दिया; 19O 44 3 क्योंकि वे न तो अपनी तलवार के बल से इस देश के अधिकारी हुए, और न अपने बाहुबल से; परन्तु तेरे दहिने हाथ और तेरी भुजा और तेरे प्रसन्न मुख के कारण जयवन्त हुए; क्योंकि तू उनको चाहता था।। 19O 44 4 हे परमेश्वर, तू ही हमारा महाराजा है, तू याकूब के उद्धार की आज्ञा देता है। 19O 44 5 तेरे सहारे से हम अपने द्रोहियों को ढकेलकर गिरा देंगे; तेरे नाम के प्रताप से हम अपने विरोधियों को रौंदेंगे। 19O 44 6 क्योंकि मैं अपने धनुष पर भरोसा न रखूंगा, और न अपनी तलवार के बल से बचूगा। 19O 44 7 परन्तु तू ही ने हम को द्रोहियों से बचाया है, और हमारे बैरियों को निराश और लज्जित किया है। 19O 44 8 हम परमेश्वर की बड़ाई दिन भर करते रहते हैं, और सदैव तेरे नाम का धन्यवाद करते रहेंगे।। 19O 44 9 तौभी तू ने अब हम को त्याग दिया और हमारा अनादर किया है, और हमारे दलों के साथ आगे नहीं जाता। 19O 44 10 तू हम को शत्रु के साम्हने से हटा देता है, और हमारे बैरी मनमाने लूट मार करते हैं। 19O 44 11 तू ने हमें कसाई की भेडों के समान कर दिया है, और हम को अन्य जातियों में तित्तर बित्तर किया है। 19O 44 12 तू अपनी प्रजा को सेंतमेंत बेच डालता है, परन्तु उनके मोल से तू धनी नहीं होता।। 19O 44 13 तू हमारे पड़ोसियों से हमारी नामधराई कराता है, और हमारे चारों ओर से रहनेवाले हम से हंसी ठट्ठा करते हैं। 19O 44 14 तू हम को अन्यजातियों के बीच में उपमा ठहराता है, और देश देश के लेग हमारे कारण सिर हिलाते हैं। दिन भर हमें तिरस्कार सहना पड़ता है, 19O 44 15 और कलंक लगाने और निन्दा करनेवाले के बोल से, 19O 44 16 और शत्रु और बदला लेनेवालों के कारण, बुरा- भला कहनेवालों और निन्दा करनेवालों के कारण। 19O 44 17 यह सब कुछ हम पर बीता तौभी हम तुझे नहीं भूले, न तेरी वाचा के विषय विश्वासघात किया है। 19O 44 18 हमारे मन न बहके, न हमारे पैर तरी बाट से मुड़े; 19O 44 19 तौभी तू ने हमें गीदड़ों के स्थान में पीस डाला, और हम को घोर अन्धकार में छिपा दिया है।। 19O 44 20 यदि हम अपने परमेश्वर का नाम भूल जाते, वा किसी पराए देवता की ओर अपने हाथ फैलाते, 19O 44 21 तो क्या परमेश्वर इसका विचार न करता? क्योंकि वह तो मन की गुप्त बातों को जानता है। 19O 44 22 परन्तु हम दिन भर तेरे निमित्त मार डाले जाते हैं, और उन भेड़ों के समान समझे जाते हैं जो वध होने पर हैं।। 19O 44 23 हे प्रभु, जाग! तू क्यों सोता है? उठ! हम को सदा के लिये त्याग न दे! 19O 44 24 तू क्यों अपना मुंह छिपा लेता है? और हमारा दु:ख और सताया जाना भूल जाता है? 19O 44 25 हमारा प्राण मिट्टी से लग गया; हमारा पेट भूमि से सट गया है। 19O 44 26 हमारी सहायता के लिये उठ खड़ा हो! और अपनी करूणा के निमित्त हम को छुड़ा ले।। 19O 45 1 मेरा हृदय एक सुन्दर विषय की उमंग से उमण्ड रहा है, जो बात मैं ने राजा के विषय रची है उसको सुनाता हूं; मेरी जीभ निपुण लेखक की लेखनी बनी है। 19O 45 2 तू मनुष्य की सन्तानों में परम सुन्दर है; तेरे ओठों में अनुग्रह भरा हुआ है; इसलिये परमेश्वर ने तुझे सदा के लिये आशीष दी है। 19O 45 3 हे वीर, तू अपनी तलवार को जो तेरा विभव और प्रताप है अपनी कटि पर बान्ध! 19O 45 4 सत्यता, नम्रता और धर्म के निमित्त अपने ऐश्वर्य और प्रताप पर सफलता से सवार हो; तेरा दहिना हाथ तुझे भयानक काम सिखलाए! 19O 45 5 तेरे तीर तो तेज हैं, तेरे साम्हने देश देश के लोग गिरेंगे; राजा के शत्रुओं के हृदय उन से छिदेंगे।। 19O 45 6 हे परमेश्वर, तेरा सिंहासन सदा सर्वदा बना रहेगा; तेरा राजदण्ड न्याय का है। 19O 45 7 तू ने धर्म से प्रीति और दुष्टता से बैर रखा है। इस कारण परमेश्वर ने हां तेरे परमेश्वर ने तुझ को तेरे साथियों से अधिक हर्ष के तेल से अभिषेक किया है। 19O 45 8 तेरे सारे वस्त्रा, गन्धरस, अगर, और तेल से सुगन्धित हैं, तू हाथीदांत के मन्दिरों में तारवाले बाजों के कारण आनन्दित हुआ है। 19O 45 9 तेरी प्रतिष्ठित स्त्रियों में राजकुमारियां भी हैं; तेरी दहिनी ओर पटरानी, ओपीर के कुन्दन से विभूषित खड़ी है।। 19O 45 10 हे राजकुमारी सुन, और कान लगाकर ध्यान दे; अपने लोगों और अपने पिता के घर को भूल जा; 19O 45 11 और राजा तेरे रूप की चाह करेगा। क्योंकि वह तो तेरा प्रभु है, तू उसे दण्डवत् कर। 19O 45 12 सोर की राजकुमारी भी भेंट करने के लिये उपस्थित होगी, प्रजा के धनवान लोग तुझे प्रसन्न करने का यत्न करेंगे।। 19O 45 13 राजकुमारी महल में अति शोभायमान है, उसके वस्त्रा में सुनहले बूटे कढ़े हुए हैं; 19O 45 14 वह बूटेदार वस्त्रा पहिने हुए राजा के पास पहुंचाई जाएगी। जो कुमारियां उसकी सहेलियां हैं, वे उसके पीछे पीछे चलती हुई तेरे पास पहुंचाई जाएंगी। 19O 45 15 वे आनन्दित और मगन होकर पहुंचाई जाएंगी, और वे राजा के महल में प्रवेश करेंगी।। 19O 45 16 तेरे पितरों के स्थान पर तेरे पुत्रा होंगे; जिनको तू सारी पृथ्वी पर हाकिम ठहराएगा। 19O 45 17 मैं ऐसा करूंगा, कि तेरी नाम की चर्चा पीढ़ी से पीढ़ी तक होती रहेगी; इस कारण देश देश के लोग सदा सर्वदा तेरा धन्यवाद करते रहेंगे।। 19O 46 1 परमेश्वर हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलनेवाला सहायक। 19O 46 2 इस कारण हम को कोई भय नहीं चाहे पृथ्वी उलट जाए, और पहाड़ समुद्र के बीच में डाल दिए जाएं; 19O 46 3 चाहे समुद्र गरजे और फेन उठाए, और पहाड़ उसकी बाढ़ से कांप उठे।। 19O 46 4 एक नदी है जिसकी नहरों से परमेश्वर के नगर में अर्थात् परमप्रधान के पवित्रा निवास भवन में आनन्द होता है। 19O 46 5 परमेश्वर उस नगर के बीच में है, वह कभी टलने का नहीं; पौ फटते ही परमेश्वर उसकी सहायता करता है। 19O 46 6 जाति जाति के लोग झल्ला उठे, राज्य राज्य के लोग डगमगाने लगे; वह बोल उठा, और पृथ्वी पिघल गई। 19O 46 7 सेनाओं का यहोवा हमारे संगे है; याकूब का परमेश्वर हमारा ऊंचा गढ़ है।। 19O 46 8 आओ, यहोवा के महाकर्म देखो, कि उस ने पृथ्वी पर कैसा कैसा उजाड़ किया है। 19O 46 9 वह पृथ्वी की छोर तक लड़ाइयों को मिटाता है; वह धनुष को तोड़ता, और भाले को दो टुकड़े कर डालता है, और रथों को आग में झोंक देता है! 19O 46 10 चुप हो जाओ, और जान लो, कि मैं ही परमेश्वर हूं। मैं जातियों में महान् हूं, मैं पृथ्वी भर में महान् हूं! 19O 46 11 सेनाओं का यहोवा हमारे संग है; याकूब का परमेश्वर हमारा ऊंचा गढ़ है।। 19O 47 1 हे देश देश के सब लोगों, तालियों बजाओ! ऊंचे शब्द से परमेश्वर के लिये जयजयकार करो! 19O 47 2 क्योंकि यहोवा परमप्रधान और भययोग्य है, वह सारी पृथ्वी के ऊपर महाराजा है। 19O 47 3 वह देश के लोगों को हमारे सम्मुख नीचा करता, और अन्यजातियों को हमारे पांवों के नीचे कर देता है। 19O 47 4 वह हमारे लिये उत्तम भाग चुन लेगा, जो उसके प्रिय याकूब के घमण्ड का कारण है।। 19O 47 5 परमेश्वर जयजयकार सहित, यहोवा नरसिंगे के शब्द के साथ ऊपर गया है। 19O 47 6 परमेश्वर का भजन गाओ, भजन गाओ! हमारे महाराजा का भजन गाओ, भजन गाओ! 19O 47 7 क्योंकि परमेश्वर सारी पृथ्वी का महाराजा है; समझ बूझकर बुद्धि से भजन गाओ 19O 47 8 परमेश्वर जाति जाति पर राज्य करता है; परमेश्वर अपने पवित्रा सिंहासन पर विराजमान है। 19O 47 9 राज्य राज्य के रईस इब्राहीम के परमेश्वर की प्रजा होने के लिये इकट्ठे हुए हैं। क्योंकि पृथ्वी की ढालें परमेश्वर के वश में हैं, वह तो शिरोमणि है! 19O 48 1 हमारे परमेश्वर के नगर में, और अपने पवित्रा पर्वत पर यहोवा महान् और अति स्तुति के योग्य है! 19O 48 2 सिरयोन पर्वत ऊंचाई में सुन्दर और सारी पृथ्वी के हर्ष का कारण है, राजाधिराज का नगर उत्तरीय सिरे पर है। 19O 48 3 उसके महलों में परमेश्वर ऊंचा गढ़ माना गया है। 19O 48 4 क्योंकि देखो, राजा लोग इकट्ठे हुए, वे एक संग आगे बढ़ गए। 19O 48 5 उन्हों ने आप ही देखा और देखते ही विस्मित हुए, वे घबराकर भाग गए। 19O 48 6 वहां कपकपी ने उनको आ पकड़ा, और जच्चा की सी पीड़ाएं उन्हें होने लगीं। 19O 48 7 तू पूर्वी वायु से तर्शीश के जहाजों को तोड़ डालता है। 19O 48 8 सेनाओं के यहोवा के नगर में, अपने परमेश्वर के नगर में, जैसा हम ने सुना था, वैसा देखा भी है; परमेश्वर उसको सदा दृढ़ और स्थिर रखेगा।। 19O 48 9 हे परमेश्वर हम ने तेरे मन्दिर के भीतर तेरी करूणा पर ध्यान किया है। 19O 48 10 हे परमेश्वर तेरे नाम के योग्य तेरी स्तुति पृथ्वी की छोर तक होती है। तेरा दहिना हाथ धर्म से भरा है; 19O 48 11 तेरे न्याय के कामों के कारण सिरयोन पर्वत आनन्द करे, और यहूदा के नगर की पुत्रियां मगन हों! 19O 48 12 सिरयोन के चारों ओर चलो, और उसकी परिक्रमा करो, उसके गुम्मटों को गिन लो, 19O 48 13 उसकी शहरपनाह पर दृष्टि लगाओ, उसके महलों को ध्यान से देखो; जिस से कि तुम आनेवाली पीढ़ी के लोगों से इस बात का वर्णन कर सको। 19O 48 14 क्योंकि वह परमेश्वर सदा सर्वदा हमारा परमेश्वर है, वह मृत्यु तक हमारी अगुवाई करेगा।। 19O 49 1 हे देश देश के सब लोगों यह सुनो! हे संसार के सब निवासियों, कान लगाओ! 19O 49 2 क्या ऊंच, क्या नीच क्या धनी, क्या दरिद्र, कान लगाओ! 19O 49 3 मेरे मुंह से बुद्धि की बातें निकलेंगी; और मेरे हृदय की बातें समझ की होंगी। 19O 49 4 मैं नीतिवचन की ओर अपना कान लगाऊंगा, मैं वीणा बजाते हुए अपनी गुप्त बात प्रकाशित करूंगा।। 19O 49 5 विपत्ति के दिनों में जब मैं अपने अड़ंगा मारनेवालों की बुराइयों से घिरूं, तब मैं क्यों डरूं? 19O 49 6 जो अपनी सम्पत्ति पर भरोसा रखते, और अपने धन की बहुतायत पर फूलते हैं, 19O 49 7 उन में से कोई अपने भाई को किसी भांति छुड़ा नहीं सकता है; और न परमेश्वर को उसकी सन्ती प्रायश्चित्त में कुछ दे सकता है, 19O 49 8 (क्योंकि उनके प्राण की छुड़ौती भारी है वह अन्त तक कभी न चुका सकेंगे)। 19O 49 9 कोई ऐसा नहीं जो सदैव जीवित रहे, और कब्र को न देखे।। 19O 49 10 क्योंकि देखने में आता है, कि बुद्धिमान भी मरते हैं, और मूर्ख और पशु सरीखे मनुष्य भी दोनों नाश होते हैं, और अपनी सम्पत्ति औरों के लिये छोड़ जाते हैं। 19O 49 11 वे मन ही मन यह सोचते हैं, कि उनका घर सदा स्थिर रहेगा, और उनके निवास पीढ़ी से पीढ़ी तक बने रहेंगे; इसलिये वे अपनी अपनी भूमि का नाम अपने अपने नाम पर रखते हैं। 19O 49 12 परन्तु मनुष्य प्रतिष्ठा पाकर भी स्थिर नहीं रहता, वह पशुओं के समान होता है, जो मर मिटते हैं।। 19O 49 13 उनकी यह चाल उनकी मूर्खता है, तौभी उनके बाद लोग उनकी बातों से प्रसन्न होते हैं। 19O 49 14 वे अधोलोक की मानों भेड़- बकरियां ठहराए गए हैं; मृत्यु उनका गड़ेरिया ठहरी; और बिहान को सीधे लोग उन पर प्रभुता करेंगे; और उनका सुन्दर रूप अधोलोक का कौर हो जाएगा और उनका कोई आधार न रहेगा। 19O 49 15 परन्तु परमेश्वर मेरे प्राण को अधोलोक के वश से छुड़ा लेगा, क्योंकि वही मुझे ग्रहण कर अपनाएगा।। 19O 49 16 जब कोई धनी हो जाए और उसके घर का विभव बढ़ जाए, तब तू भय न खाना। 19O 49 17 क्योंकि वह मर कर कुछ भी साथ न ले जाएगा; न उसका विभव उसके साथ कब्र में जाएगा। 19O 49 18 चाहे वह जीते जी अपने आप को धन्य कहता रहे, (जब तू अपनी भलाई करता है, तब वे लोग तेरी प्रशंसा करते हैं) 19O 49 19 तौभी वह अपने पुरखाओं के समाज में मिलाया जाएगा, जो कभी उजियाला न देखेंगे। 19O 49 20 मनुष्य चाहे प्रतिष्ठित भी हों परन्तु यदि वे समझ नहीं रखते, तो वे पशुओं के समान हैं जो मर मिटते हैं।। 19O 50 1 ईश्वर परमेश्वर यहोवा ने कहा है, और उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक पृथ्वी के लोगों को बुलाया है। 19O 50 2 सिरयोन से, जो परम सुन्दर है, परमेश्वर ने अपना तेज दिखाया है। 19O 50 3 हमारा परमेश्वर आएगा और चुपचाप न रहेगा, आग उसके आगे आगे भस्म करती जाएगी; और उसके चारों ओर बड़ी आंधी चलेगी। 19O 50 4 वह अपनी प्रजा का न्याय करने के लिये ऊपर से आकाश को और पृथ्वी को भी पुकारेगा: 19O 50 5 मेरे भक्तों को मेरे पास इकट्ठा करो, जिन्हों ने बलिदान चढ़ाकर मुझ से वाचा बान्धी है! 19O 50 6 और स्वर्ग उसके धर्मी होने का प्रचार करेगा क्योंकि परमेश्वर तो आप ही न्यायी है।। 19O 50 7 हे मेरी प्रजा, सुन, मैं बोलता हूं, और हे इस्राएल, मैं तेरे विषय साक्षी देता हूं। परमेश्वर तेरा परमेश्वर मैं ही हूं। 19O 50 8 मैं तुझ पर तेरे मेलबलियों के विषय दोष नहीं लगाता, तेरे होमबलि तो नित्य मेरे लिये चढ़ते हैं। 19O 50 9 मैं न तो तेरे घर से बैल न तेरे पशुशालों से बकरे ले लूंगा। 19O 50 10 क्योंकि वन के सारे जीवजन्तु और हजारों पहाड़ों के जानवर मेरे ही हैं। 19O 50 11 पहाड़ों के सब पक्षियों को मैं जानता हूं, और मैदान पर चलने फिरनेवाले जानवार मेरे ही हैं।। 19O 50 12 यदि मैं भूखा होता तो तुझ से न कहता; क्योंकि जगत् और जो कुछ उस में है वह मेरा है। 19O 50 13 क्या मैं बैल का मांस खाऊं, वा बकरों का लोहू पीऊं? 19O 50 14 परमेश्वर को धन्यवाद ही का बलिदान चढ़ा, और परमप्रधान के लिये अपनी मन्नतें पूरी कर; 19O 50 15 और संकट के दिन मुझे पुकार; मैं तुझे छुड़ाऊंगा, और तू मेरी महिमा करने पाएगा।। 19O 50 16 परन्तु दुष्ट से परमेश्वर कहता है: तुझे मेरी विधियों का वर्णन करने से क्या काम? तू मरी वाचा की चर्चा क्यों करता है? 19O 50 17 तू तो शिक्षा से बैर करता, और मेरे वचनों को तुच्छ जातना है। 19O 50 18 जब तू ने चोर को देखा, तब उसकी संगति से प्रसन्न हुआ; और परस्त्रीगामियों के साथ भागी हुआ।। 19O 50 19 तू ने अपना मुंह बुराई करने के लिये खोला, और तेरी जीभ छल की बातें गढ़ती है। 19O 50 20 तू बैठा हुआ अपने भाई के विरूद्ध बोलता; और अपने सगे भाई की चुगली खाता है। 19O 50 21 यह काम तू ने किया, और मैं चुप रहा; इसलिये तू ने समझ लिया कि परमेश्वर बिलकुल मेरे साम्हने है। परन्तु मैं तुझे समझाऊंगा, और तेरी आंखों के साम्हने सब कुछ अलग अलग दिखाऊंगा।। 19O 50 22 हे ईश्वर को भूलनेवालो यह बात भली भांति समझ लो, कहीं ऐसा न हो कि मैं तुम्हें फाड़ डालूं, और कोई छुडानेवाला न हो! 19O 50 23 धन्यवाद के बलिदान का चढ़ानेवाला मेरी महिमा करता है; और जो अपना चरित्रा उत्तम रखता है उसको मैं परमेश्वर का किया हुआ उद्धार दिखाऊंगा! 19O 51 1 हे परमेश्वर, अपनी करूणा के अनुसार मुझ पर अनुग्रह कर; अपनी बड़ी दया के अनुसार मेरे अपराधों को मिटा दे। 19O 51 2 मुझे भलीं भांति धोकर मेरा अधर्म दूर कर, और मेरा पाप छुड़ाकर मुझे शुद्ध कर! 19O 51 3 मैं तो अपने अपराधों कों जानता हूं, और मेरा पाप निरन्तर मेरी दृष्टि में रहता है। 19O 51 4 मैं ने केवल तेरे ही विरूद्ध पाप किया, और जो तेरी दृष्टि में बुरा है, वही किया है, ताकि तू बोलने में धर्मी और न्याय करने में निष्कलंक ठहरे। 19O 51 5 देख, मैं अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ, और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ में पड़ा।। 19O 51 6 देख, तू हृदय की सच्चाई से प्रसन्न होता है; और मेरे मन ही में ज्ञान सिखाएगा। 19O 51 7 जूफा से मुझे शुद्ध कर, तो मैं पवित्रा हो जाऊंगा; मुझे धो, और मैं हिम से भी अधिक श्वेत बनूंगा। 19O 51 8 मुझे हर्ष और आनन्द की बातें सुना, जिस से जो हडि्डयां तू ने तोड़ डाली हैं वह मगन हो जाएं। 19O 51 9 अपना मुख मेरे पापों की ओर से फेर ले, और मेरे सारे अधर्म के कामों को मिटा डाल।। 19O 51 10 हे परमेश्वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा नये सिरे से उत्पन्न कर। 19O 51 11 मुझे अपने साम्हने से निकाल न दे, और अपने पवित्रा आत्मा को मुझ से अलग न कर। 19O 51 12 अपने किए हुए उद्धार का हर्ष मुझे फिर से दे, और उदार आत्मा देकर मुझे सम्भाल।। 19O 51 13 जब मैं अपराधियों को तेरा मार्ग सिखाऊंगा, और पापी तेरी ओर फिरेंगे। 19O 51 14 हे परमेश्वर, हे मेरे उद्धारकर्ता परमेश्वर, मुझे हत्या के अपराध से छुड़ा ले, तब मैं तेरे धर्म का जयजयकार करने पाऊंगा।। 19O 51 15 हे प्रभु, मेरा मुंह खोल दे तब मैं तेरा गुणानुवाद कर सकूंगा। 19O 51 16 क्योकि तू मेलबलि में प्रसन्न नहीं होता, नहीं तो मैं देता; होमबलि से भी तू प्रसन्न नहीं होता। 19O 51 17 टूटा मन परमेश्वर के योग्य बलिदान है; हे परमेश्वर, तू टूटे और पिसे हुए मन को तुच्छ नहीं जानता।। 19O 51 18 प्रसन्न होकर सिरयोन की भलाई कर, यरूशलेम की शहरपनाह को तू बना, 19O 51 19 तब तू धर्म के बलिदानों से अर्थात् सर्वांग पशुओं के होमबलि से प्रसन्न होगा; तब लोग तेरी वेदी पर बैल चढ़ाएंगे।। 19O 52 1 हे वीर, तू बुराई करने पर क्यों घमण्ड करता है? ईश्वर की करूणा तो अनन्त है। 19O 52 2 तेरी जीभ केवल दुष्टता गढ़ती है; सारे धरे हुए अस्तुरे की नाईं वह छल का काम करती है। 19O 52 3 तू भलाई से बढ़कर बुराई में और अधर्म की बात से बढ़कर झूठ से प्रीति रखता है। 19O 52 4 हे छली जीभ तू सब विनाश करनेवाली बातों से प्रसन्न रहती है।। 19O 52 5 हे ईश्वर तुझे सदा के लिये नाश कर देगा; वह तुझे पकड़कर तेरे डेरे से निकाल देगा; और जीवतों के लोक में तुझे उखाड़ डालेगा। 19O 52 6 तब धर्मी लोग इस घटना को देखकर डर जाएंगे, और यह कहकर उस पर हंसेंगे, कि 19O 52 7 देखो, यह वही पुरूष है जिस ने परमेश्वर को अपनी शरण नहीं माना, परन्तु अपने धन की बहुतायत पर भरोसा रखता था, और अपने को दुष्टता में दृढ़ करता रहा! 19O 52 8 परन्तु मैं तो परमेश्वर के भवन में हरे जलपाई के वृक्ष के समान हूं। मैं ने परमेश्वर की करूणा पर सदा सर्वदा के लिये भरोसा रखा है। 19O 52 9 मैं तेरा धन्यवाद सर्वदा करता रहूंगा, क्योंकि तू ही ने यह काम किया है। मैं तेरे ही नाम की बाट जोहता रहूंगा, क्योंकि यह तेरे पवित्रा भक्तों के साम्हने उत्तम है।। 19O 53 1 मूढ़ ने अपने मन में कहा है, कि कोई परमेश्वर है ही नहीं। वे बिगड़ गए, उन्हों ने कुटिलता के घिनौने काम किए हैं; कोई सुकर्मी नहीं।। 19O 53 2 परमेश्वर ने स्वर्ग पर से मनुष्यों के ऊपर दृष्टि की ताकि देखे कि कोई बुद्धि से चलनेवाला वा परमेश्वर को पूछनेवाला है कि नहीं।। 19O 53 3 वे सब के सब हट गए; सब एक साथ बिगड़ गए; कोई सुकर्मी नहीं, एक भी नहीं।। क्या उन सब अनर्थकारियों को कुछ भी ज्ञान नहीं 19O 53 4 जो मेरे लोगों को ऐसे खाते हैं जैसे रोटी और परमेश्वर का नाम नहीं लेते? 19O 53 5 वहां उन पर भय छा गया जहां भय का कोई कारण न था। क्योंकि यहोवा न उनकी हडि्डयों को, जो तेरे विरूद्ध छावनी डाले पड़े थे, तितर बितर कर दिया; तू ने तो उन्हें लज्जित कर दिया इसलिये कि परमेश्वर ने उनको निकम्मा ठहराया है।। 19O 53 6 भला होता कि इस्राएल का पूरा उद्धार सिरयोन से निकलता! जब परमेश्वर अपनी प्रजा को बन्धुवाई से लौटा ले आएगा तब याकूब मगन और इस्राएल आनन्दित होगा।। 19O 54 1 हे परमेश्वर अपने नाम के द्वारा मेरा उद्वार कर, और अपने पराक्रम से मेरा न्याय कर। 19O 54 2 हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना सुन ले; मेरे मुंह के वचनों की ओर कान लगा।। 19O 54 3 क्योंकि परदेशी मेरे विरूद्व उठे हैं, और बलात्कारी मेरे प्राण के ग्राहक हुए हैं; उन्हों ने परमेश्वर को अपने सम्मुख नहीं जाना।। 19O 54 4 देखो, परमेश्वर मेरा सहायक है; प्रभु मेरे प्राण के सम्भालनेवालों के संग है। 19O 54 5 वह मेरे द्रोहियों की बुराई को उन्हीं पर लौटा देगा; हे परमेश्वर, अपनी सच्चाई के कारण उन्हें विनाश कर।। 19O 54 6 मैं तुझे स्वेच्छाबलि चढ़ाऊंगा; हे यहोवा, मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूंगा, क्योंकि यह उत्तम है। 19O 54 7 क्योंकि तू ने मुझे सब दुखों से छुड़ाया है, और मैं अपने शत्रुओं पर दृष्टि करके सन्तुष्ट हुआ हूं।। 19O 55 1 हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा; और मेरी गिड़गिड़ाहट से मुंह न मोड़! 19O 55 2 मेरी ओर ध्यान देकर, मुझे उत्तर दे; मैं चिन्ता के मारे छटपटाता हूं और व्याकुल रहता हूं। 19O 55 3 क्योंकि शत्रु कोलाहल और दुष्ट उपद्रव कर रहें हैं; वे मुझ पर दोषारोपण करते हैं, और क्रोध में आकर मुझे सताते हैं।। 19O 55 4 मेरा मन भीतर ही भीतर संकट में है, और मृत्यु का भय मुझ में समा गया है। 19O 55 5 भय और कंपकपी ने मुझे पकड़ लिया है, और भय के कारण मेरे रोंए रोंए खड़े हो गए हैं। 19O 55 6 और मैं ने कहा, भला होता कि मेरे कबूतर के से पंख होते तो मैं उड़ जाता और विश्राम पाता! 19O 55 7 देखो, फिर तो मैं उड़ते उड़ते दूर निकल जाता और जंगल में बसेरा लेता, 19O 55 8 मैं प्रचण्ड बयार और आन्धी के झोंके से बचकर किसी शरण स्थान में भाग जाता।। 19O 55 9 हे प्रभु, उनको सत्यानाश कर, और उनकी भाषा में गड़बड़ी डाल दे; क्योंकि मैं ने नगर में उपद्रव और झगड़ा देखा है। 19O 55 10 रात दिन वे उसकी शहरपनाह पर चढ़कर चारों ओर घूमते हैं; और उसके भीतर दुष्टता और उत्पात होता है। 19O 55 11 उसके भीतर दुष्टता ने बसेरा डाला है; और अन्धेर, अत्याचार और छल उसके चौक से दूर नहीं होते।। 19O 55 12 जो मेरी नामधराई करता है वह शत्रु नहीं था, नहीं तो मैं उसको सह लेता; जो मेरे विरूद्व बड़ाई मारता है वह मेरा बैरी नहीं है, नहीं तो मैं उस से छिप जाता। 19O 55 13 परन्तु वह तो तू ही था जो मेरी बराबरी का मनुष्य मेरा परममित्रा और मेरी जान पहचान का था। 19O 55 14 हम दोनों आपस में कैसी मीठी मीठी बातें करते थे; हम भीड़ के साथ परमेश्वर के भवन को जाते थे। 19O 55 15 उनको मृत्यु अचानक आ दबाए; वे जीवित ही अधोलोक में उतर जाएं; क्योंकि उनके घर और मन दोनों में बुराइयां और उत्पात भरा है।। 19O 55 16 परन्तु मैं तो परमेश्वर को पुकारूंगा; और यहोवा मुझे बचा लेगा। 19O 55 17 सांझ को, भोर को, दोपहर को, तीनों पहर मैं दोहाई दूंगा और कराहता रहूंगा। और वह मेरा शब्द सुन लेगा। 19O 55 18 जो लड़ाई मेरे विरूद्व मची थी उस से उस ने मुझे कुशल के साथ बचा लिया है। उन्हों ने तो बहुतों को संग लेकर मेरा साम्हना किया था। 19O 55 19 ईश्वर जो आदि से विराजमान है यह सुनकर उनको उत्तर देगा। ये वे है जिन में कोई परिवर्तन नहीं और उन में परमेश्वर का भय है ही नहीं।। 19O 55 20 उस ने अपने मेल रखनेवालों पर भी हाथ छोड़ा है, उस ने अपनी वाचा को तोड़ दिया है। 19O 55 21 उसके मुंह की बातें तो मक्खन सी चिकनी थी परन्तु उसके मन में लड़ाई की बातें थीं; उसके वचन तेल से अधिक नरम तो थे परन्तु नंगी तलवारें थीं।। 19O 55 22 अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा; वह धर्मी को कभी टलने न देगा।। 19O 55 23 परन्तु हे परमेश्वर, तू उन लोगों को विनाश के गड़हे में गिरा देगा; हत्यारे और छली मनुष्य अपनी आधी आयु तक भी जीवित न रहेंगे। परन्तु मैं तुझ पर भरोसा रखे रहूंगा।। 19O 56 1 हे परमेश्वर, मुझ पर अनुग्रह कर, क्योंकि मनुष्य मुझे निगलना चाहते हैं। वे दिन भर लड़कर मुझे सताते हैं। 19O 56 2 मेरे द्रोही दिन भर मुझे निगलना चाहते हैं, क्योंकि जो लोग अभिमान करके मुझ से लड़ते हैं वे बहुत हैं। 19O 56 3 जिस समय मुझे डल लगेगा, मैं तुझ पर भरोसा रखूंगा। 19O 56 4 परमेश्वर की सहायता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूंगा, परमेश्वर पर मैं ने भरोसा रखा है, मैं नहीं डरूंगा। कोई प्राणी मेरा क्या कर सकता है? 19O 56 5 वे दिन भर मेरे वचनों को, उलटा अर्थ लगा लगाकर मरोड़ते रहते हैंद्ध उनकी सारी कल्पनाएं मेरी ही बुराई करने की होती है। 19O 56 6 वे सब मिलकर इकट्ठे होते हैं और छिपकर बैठते हैं; वे मेरे कदमों को देखते भालते हैं मानों वे मेरे प्राणों की घात में ताक लगाए बैठें हों। 19O 56 7 क्या वे बुराई करके भी बच जाएंगे? हे परमेश्वर, अपने क्रोध से देश देश के लोगों को गिरा दे! 19O 56 8 तू मेरे मारे मारे फिरने का हिसाब रखता है; तू मेरे आंसुओं को अपनी कुप्पी में रख ले! क्या उनकी चर्चा तेरी पुस्तक में नहीं है? 19O 56 9 जब जिस समय मैं पुकारूंगा, उसी समय मेरे शत्रु उलटे फिरेंगे। यह मैं जानता हूं, कि परमेश्वर मेरी ओर है। 19O 56 10 परमेश्वर की सहायता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूंगा, यहोवा की सहायता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूंगा। 19O 56 11 मैं ने परमेश्वर पर भरोसा रखा है, मैं न डरूंगा। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है? 19O 56 12 हे परमेश्वर, तेरी मन्नतों का भरा मुझ पर बना है; मैं तुझ को धन्यवाद बलि चढ़ाऊंगा। 19O 56 13 क्योंकि तू ने मुझ को मृत्यु से बचाया है; तू ने मेरे पैरों को भी फिसलने से न बचाया, ताकि मैं ईश्वर के साम्हने जीवतों के उजियाले में चलूं फिरूं? 19O 57 1 हे परमेश्वर, मुझ पर अनुग्रह कर, मुझ पर अनुग्रह कर, क्योंकि मैं तेरा शरणागत हूं; और जब तक ये आपत्तियां निकल न जाएं, तब तक मैं तेरे पंखों के तले शरण लिए रहूंगा। 19O 57 2 मैं परम प्रधान परमेश्वर को पुकारूंगा, ईश्वर को जो मेरे लिये सब कुछ सिद्ध करता है। 19O 57 3 ईश्वर स्वर्ग से भेजकर मुझे बचा लेगा, जब मेरा निगलनेवाला निन्दा कर रहा हो। परमेश्वर अपनी करूणा और सच्चाई प्रगट करेगा।। 19O 57 4 मेरा प्राण सिंहों के बीच में है, मुझे जलते हुओं के बीच में लेटना पड़ता है, अर्थात् ऐसे मनुष्यों के बीच में जिन के दांत बर्छी और तीर हैं, और जिनकी जीभ तेज तलवार है।। 19O 57 5 हे परमेश्वर तू स्वर्ग के ऊपर अति महान और तेजोमय है, तेरी महिमा सारी पृथ्वी के ऊपर फैल जाए! 19O 57 6 उन्हों ने मेरे पैरों के लिये जाल लगाया है; मेरा प्राण ढला जाता है। उन्हों ने मेरे आगे गड़हा खोदा, परन्तु आप ही उस में गिर पड़े।। 19O 57 7 हे परमेश्वर, मेरा मन स्थिर है, मेरा मन स्थिर है; मैं गाऊंगा वरन भजन कीर्तन करूंगा। 19O 57 8 हे मेरी आत्मा जाग जा! हे सारंगी और वीणा जाग जाओ। मैं भी पौ फटते ही जाग उठूंगा। 19O 57 9 हे प्रभु, मैं देश के लोगों के बीच तेरा धन्यवाद करूंगा; मैं राज्य राज्य के लोगों के बीच में तेरा भजन गाऊंगा। 19O 57 10 क्योंकि तेरी करूणा स्वर्ग तक बड़ी है, और तेरी सच्चाई आकाशमण्डल तक पहुंचती है।। 19O 57 11 हे परमेश्वर, तू स्वर्ग के ऊपर अति महान है! तेरी महिमा सारी पृथ्वी के ऊपर फैल जाए! 19O 58 1 हे मनुष्यों, क्या तुम सचमुच धर्म की बात बोलते हो? और हे मनुष्यवंशियों क्या तुम सीधाई से न्याय करते हो? 19O 58 2 नहीं, तुम मन ही मन में कुटिल काम करते हो; तुम देश भर में उपद्रव करते जाते हो।। 19O 58 3 दुष्ट लोग जन्मते ही पराए हो जाते हैं, वे पेट से निकलते ही झूठ बालते हुए भटक जाते हैं। 19O 58 4 उन में सर्प का सा विष है; वे उस नाम के समान हें, जो सुनना नहीं चाहता; 19O 58 5 और सपेरा कैसी ही निपुणता से क्यों न मंत्रा पढ़े, तौभी उसकी नहीं सुनता।। 19O 58 6 हे परमेश्वर, उनके मुंह में से दांतों को तोड़ दे; हे यहोवा उन जवान सिंहों की दाढ़ों को उखाड़ डाल! 19O 58 7 वे घुलकर बहते हुए पानी के समान हो जाएं; जब वे अपने तीर चढ़ाएं, तब तीर मानों दो टुकड़े हो जाएं। 19O 58 8 वे घोंघे के समान हो जाएं जो घुलकर नाश हो जाता है, और स्त्री के गिरे हुए गर्भ के समान हो जिस ने सूरज को देखा ही नहीं। 19O 58 9 उस से पहिले कि तुम्हारी हांबियों में कांटों की आंच लगे, हरे व जले, दोनों को वह बवंडर से उड़ा ले जाएगा।। 19O 58 10 धर्मी ऐसा पलटा देखकर आनन्दित होगा; वह अपने पांव दुष्ट के लोहू में धोएगा।। 19O 58 11 तब मनुष्य कहने लगेंगे, निश्चय धर्मी के लिये फल है; निश्चय परमेश्वर है, जो पृथ्वी पर न्याय करता है।। 19O 59 1 हे मेरे परमेश्वर, मुझ को शत्रुओं से बचा, मुझे ऊंचे स्थान पर रखकर मेरे विरोधियों से बचा, 19O 59 2 मुझ को बुराई करनेवालों के हाथ से बचा, और हत्यारों से मेरा उद्वार कर।। 19O 59 3 क्योंकि देख, वे मेरी घात में लगे हैं; हे यहोवा, मेरा कोई दोष वा पाप नहीं है, तौभी बलवन्त लोग मेरे विरूद्ध इकट्ठे होते हैं। 19O 59 4 वह मुझ निर्दोष पर दौड़े दौड़कर लड़ने को तैयार हो जाते हैं।। मुझ से मिलने के लिये जाग उठ, और यह देख! 19O 59 5 हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, हे इस्राएल के परमेश्वर सब अन्यजातिवालों को दण्ड देने के लिये जाग; किसी विश्वासघाती अत्याचारी पर अनुग्रह न कर।। 19O 59 6 वे लागे सांझ को लौटकर कुत्ते की नाईं गुर्राते हैं, और नगर के चारों ओर घूमते हैं। देख वे डकारते हैं, 19O 59 7 उनके मुंह के भीतर तलवारें हैं, क्योंकि वे कहते हैं, कौन सुनता है? 19O 59 8 परन्तु हे यहोवा, तू उन पर हंसेगा; तू सब अन्य जातियों को ठट्ठां में उड़ाएगा। 19O 59 9 हे मेरे बल, मुझे तेरी ही आस होगी; क्योंकि परमेश्वर मेरा ऊंचा गढ़ है।। 19O 59 10 परमेश्वर करूणा करता हुआ मुझ से मिलेगा; परमेश्वर मेरे द्रोहियों के विषय मेरी इच्छा पूरी कर देगा।। 19O 59 11 उन्हें घात न कर, न हो कि मेरी प्रजा भूल जाए; हे प्रभु, हे हमारी ढाल! अपनी शक्ति के उन्हें तितर बितर कर, उन्हें दबा दे। 19O 59 12 वह अपने मुंह के पाप, और ओठों के वचन, और शाप देने, और झूठ बोलने के कारण, अभिमान में फंसे हुए पकड़े जाएं। 19O 59 13 जलजलाहट में आकर उनका अन्त कर, उनका अन्त कर दे ताकि वे नष्ट हो जाएं तब लोग जानेंगे कि परमेश्वर याकूब पर, वरन पृथ्वी की छोर तक प्रभुता करता है।। 19O 59 14 वे सांझ को लौटकर कुत्ते की नाईं गुर्राएं, और नगर के चारों ओर घूमें। 19O 59 15 वे टुकड़े के लिये मारे मारे फिरें, और तृप्त न होन पर रात भर वहीं ठहरे रहें।। 19O 59 16 परन्तु मैं तेरी सामर्थ्य का यश गाऊंगा, और भोर को तेरी करूणा का जय जयकार करूंगा। क्योंकि तू मेरा ऊंचा गढ़ है, और संकट के समय मेरा शरणस्थान ठहरा है। 19O 59 17 हे मेरे बल, मैं तेरा भजन गाऊंगा, क्योंकि हे परमेश्वर, तू मेरा ऊंचा गढ़ और मेरा करूणामय परमेश्वर है।। 19O 60 1 हे परमेश्वर तू ने हम को त्याग दिया, और हम को तोड़ डाला है; तू क्रोधित हुआ; फिर हम को ज्यों का त्यों कर दे। 19O 60 2 तू ने भूमि को कंपाया और फाड़ डाला है; उसके दरारों को भर दे, क्योंकि वह डगमगा रही है। 19O 60 3 तू ने अपनी प्रजा को कठिन दु:ख भुगताया; तू ने हमें लड़खड़ा देनेवाला दाखमधु पिलाया है।। 19O 60 4 तू ने अपने डरवैयों को झण्डा दिया है, कि वह सच्चाई के कारण फहराया जाए। 19O 60 5 तू अपने दहिने हाथ से बचा, और हमारी सुन ले कि तेरे प्रिय छुड़ाए जाएं।। 19O 60 6 परमेश्वर पवित्राता के साथ बोला है मैं प्रफुल्लित हूंगा; मैं शकेम को बांट लूंगा, और सुक्कोत की तराई को नपवाऊंगा। 19O 60 7 गिलाद मेरा है; मनश्शे भी मेरा है; और एप्रैम मेरे सिर का टोप, यहूदा मेरा राजदण्ड है। 19O 60 8 मोआब मेरे धोने का पात्रा है; मैं एदोम पर अपना जूता फेंकूंबा; हे पलिश्तीन मेरे ही कारण जयजयकार कर।। 19O 60 9 मुझे गढ़वाले नगर में कौन पहुंचाएगा? एदोम तक मेरी अगुवाई किस ने की है? 19O 60 10 हे परमेश्वर, क्या तू ने हम को त्याग नही दिया? हे परमेश्वर, तू हमारी सेना के साथ नहीं जाता। 19O 60 11 द्रोही के विरूद्ध हमारी सहायता कर, क्योंकि मनुष्य का किया हुआ छुटकारा व्यर्थ होता है। 19O 60 12 परमेश्वर की सहायता से हम वीरता दिखाएंगे, क्योंकि हमारे द्रोहियों को वही रौंदेगा।। 19O 61 1 हे परमेश्वर, मेरा चिल्लाना सुन, मेरी प्रार्थना की ओर घ्यान दे। 19O 61 2 मूर्छा खाते समय मैं पृथ्वी की छोर से भी तुझे पुकारूंगा, जो चट्टान मेरे लिये ऊंची है, उस पर मुझ को ले चला; 19O 61 3 क्योंकि तू मेरा शरणस्थान है, और शत्रु से बचने के लिये ऊंचा गढ़ है।। 19O 61 4 मै तेरे तम्बू में युगानुयुग बना रहूंगा। 19O 61 5 क्योंकि हे परमेश्वर, तू ने मेरी मन्नतें सुनीं, जो तेरे नाम के डरवैये हैं, उनका सा भाग तू ने मुझे दिया है।। 19O 61 6 तू राजा की आयु को बहुत बढ़ाएगा; उसके वर्ष पीढ़ी पीढ़ी के बराबर होंगे। 19O 61 7 वह परमेश्वर के सम्मुख सदा बना रहेगा; तू अपनी करूणा और सच्चाई को उसकी रक्षा के लिये ठहरा रख। 19O 61 8 और मैं सर्वदा तेरे नाम का भजन गा गाकर अपनी मन्नतें हर दिन पूरी किया करूंगा।। 19O 62 1 सचमुच मैं चुपचाप होकर परमेरश्वर की ओर मन लगाए हूं; मेरा उद्धार उसी से होता है। 19O 62 2 सचमुच वही, मेरी चट्टान और मेरा उद्धार है, वह मेरा गढ़ है; मैं बहुत न डिगूंगा।। 19O 62 3 तुम कब तक एक पुरूष पर धावा करते रहोगे, कि सब मिलकर उसका घात करो? वह तो झुकी हुई भीत वा गिरते हुए बाड़े के समान है। 19O 62 4 सचमुच वे उसको, उसके ऊंचे पद से गिराने की सम्मति करते हैं; वे झूठ से प्रसन्न रहते हैं। मुंह से तो वे आशीर्वाद देते पर मन में कोसते हैं।। 19O 62 5 हे मेरे मन, परमेश्वर के साम्हने चुपचाप रह, क्योंकि मेरी आशा उसी से है। 19O 62 6 सचमुच वही मेरी चट्टान, और मेरा उद्धार है, वह मेरा गढ़ है; इसलिये मैं न डिगूंगा। 19O 62 7 मेरा उद्धार और मेरी महिमा का आधार परमेश्वर है; मेरी दृढ़ चट्टान, और मेरा शरणस्थान परमेश्वर है। 19O 62 8 हे लोगो, हर समय उस पर भरोसा रखो; उस से अपने अपने मन की बातें खोलकर कहो; परमेश्वर हमारा शरणस्थान है। 19O 62 9 सचमुच नीच लोग तो अस्थाई, और बड़े लोग मिथ्या ही हैं; तौल में वे हलके निकलते हैं; वे सब के सब सांस से भी हलके हैं। 19O 62 10 अन्धेर करने पर भरोसा मत रखो, और लूट पाट करने पर मत फूलो; चाहे धन सम्पति बढ़े, तौभी उस पर मन न लगाना।। 19O 62 11 परमेश्वर ने एक बार कहा है; और दो बार मैं ने यह सुना है: कि सामर्थ्य परमेश्वर का है। 19O 62 12 और हे प्रभु, करूणा भी तेरी है। क्योंकि तू एक एक जन को उसके काम के अनुसार फल देता है।। 19O 63 1 हे परमेश्वर, तू मेरा ईश्वर है, मैं तुझे यत्न से ढूंढूंगा; सूखी और निर्जल ऊसर भूमि पर, मेरा मन तेरा प्यासा है, मेरा शरीर तेरा अति अभिलाषी है। 19O 63 2 इस प्रकार से मैं ने पवित्रास्थान में तुझ पर दृष्टि की, कि तेरी सामर्थ्य और महिमा को देखूं। 19O 63 3 क्योंकि तेरी करूणा जीवन से भी उत्तम है मैं तेरी प्रशंसा करूंगा। 19O 63 4 इसी प्रकार मैं जीवन भर तुझे धन्य कहता रहूंगा; और तेरा नाम लेकर अपने हाथ उठाऊंगा।। 19O 63 5 मेरा जीव मानो चर्बी और चिकने भोजन से तृप्त होगा, और मैं जयजयकार करके तेरी स्तुति करूंगा। 19O 63 6 जब मैं बिछौने पर पड़ा तेरा स्मरण करूंगा, तब रात के एक एक पहर में तुझ पर ध्यान करूंगा; 19O 63 7 क्योंकि तू मेरा सहायक बना है, इसलिये मैं तेरे पंखों की छाया में जयजयकार करूंगा। 19O 63 8 मेरा मन तेरे पीछे पीछे लगा चलता है; और मुझे तो तू अपने दहिने हाथ से थाम रखता है।। 19O 63 9 परन्तु जो मेरे प्राण के खोजी हैं, वे पृथ्वी के नीचे स्थानों में जा पडेंगे; 19O 63 10 वे तलवार से मारे जाएंगे, और गीदड़ों का आहार हो जाएंगे। 19O 63 11 परन्तु राजा परमेश्वर के कारण आनन्दित होगा; जो कोई ईश्वर की शपथ खाए, वह बड़ाई करने पाएगा; परन्तु झूठ बोलनेवालों का मुंह बन्द किया जाएगा।। 19O 64 1 हे परमेश्वर, जब मैं तेरी दोहाई दूं, तब मेरी सुन; शत्रु के उपजाए हुए भय के समय मेरे प्राण की रक्षा कर। 19O 64 2 कुकर्मियों की गोष्ठी से, और अनर्थकारियों के हुल्लड़ से मेरी आड़ हो। 19O 64 3 उन्हों ने अपनी जीभ को तलवार की नाईं तेज किया है, और अपने कड़वे बचनों के तीरों को चढ़ाया है; 19O 64 4 ताकि छिपकर खरे मनुष्य को मारें; वे निडर होकर उसको अचानक मारते भी हैं। 19O 64 5 वे बुरे काम करने को हियाव बान्धते हैं; वे फन्दे लगने के विषय बातचीत करते हैं; और कहते हैं, कि हम को कौन देखेगा? 19O 64 6 वे कुटिलता की युक्ति निकालते हैं; और कहते हैं, कि हम ने पक्की युक्ति खोजकर निकाली है। क्योंकि मनुष्य का मन और हृदय अथाह हैं! 19O 64 7 परन्तु परमेश्वर उन पर तीर चलाएगा; वे अचानक घायल हो जाएंगे। 19O 64 8 वे अपने ही वचनों के कारण ठोकर खाकर गिर पड़ेंगे; जितने उन पर दृष्टि करेंगे वे सब अपने अपने सिर हिलाएंगे 19O 64 9 तब सारे लोग डर जाएंगे; और परमेश्वर के कामों का बखान करंगे, और उसके कार्यक्रम को भली भांति समझेंगे।। 19O 64 10 धर्मी तो यहोवा के कारण आनन्दित होकर उसका शरणागत होगा, और सब सीधे मनवाले बड़ाई करेंगे।। 19O 65 1 हे परमेश्वर, सिरयोन में स्तुति तेरी बाट जोहती है; और तेरे लिये मन्नतें पूरी की जाएंगी। 19O 65 2 हे प्रार्थना के सुननेवाले! सब प्राणी तेरे ही पास आएंगे। 19O 65 3 अर्धम के काम मुझ पर प्रबल हुए हैं; हमारे अपराधों को तू ढांप देगा। 19O 65 4 क्या ही धन्य है वह; जिसको तू चुनकर अपने समीप आने देता है, कि वह तेरे आंगनों में बास करे! हम तेरे भवन के, अर्थात् तेरे पवित्रा मन्दिर के उत्तम उत्तम पदार्थों से तृप्त होंगे।। 19O 65 5 हे हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर, हे पृथ्वी के सब दूर दूर देशों के और दूर के समुद्र पर के रहनेवालों के आधार, तू धर्म से किए हुए भयानक कामों के द्वारा हमारा मुंह मांगा वर देगा; 19O 65 6 तू जो पराक्रम का फेंटा कसे हुए, अपनी सामर्थ्य के पर्वतों को स्थिर करता है; 19O 65 7 तू जो समुद्र का महाशब्द, उसकी तरंगो का महाशब्द, और देश देश के लोगों का कोलाहल शन्त करता है; 19O 65 8 इसलिये दूर दूर देशों के रहनेवाले तेरे चिन्ह देखकर डर गए हैं; तू उदयाचल और अस्ताचल दोनों से जयजयकार कराता है।। 19O 65 9 तू भूमि की सुधि लेकर उसको सींचता हैं, तू उसको बहुत फलदायक करता है; परमेश्वर की नहर जल से भरी रहती है; तू पृथ्वी को तैयार करके मनुष्यों के लिये अन्न को तैयार करता है। 19O 65 10 तू रेघारियों को भली भांति सींचता है, और उनके बीच की मिट्टी को बैठाता है, तू भूमि को मेंह से नरम करता है, और उसकी उपज पर आशीष देता है। 19O 65 11 अपनी भलाई से भरे हुए वर्ष पर तू ने मानो मुकुट धर दिया है; तेरे मार्गों में उत्तम उत्तम पदार्थ पाए जाते हैं। 19O 65 12 वे जंगल की चराइयों में पाए जाते हैं; और पहाड़ियां हर्ष का फेंटा बान्धे हुए है।। 19O 65 13 चराइयां भेड़- बकरियों से भरी हुई हैं; और तराइयां अन्न से ढंपी हुई हैं, वे जयजयकार करतीं और गाती भी हैं।। 19O 66 1 हे सारी पृथ्वी के लोगों, परमेश्वर के लिये जयजयकार करो; 19O 66 2 उसके नाम की महिमा का भजन गाओ; उसकी स्तुति करते हुए, उसकी महिमा करो। 19O 66 3 परमेश्वर से कहो, कि तेरे काम क्या ही भयानक हैं! तेरी महासामर्थ्य के कारण तेरे शत्रु तेरी चापलूसी करेंगे। 19O 66 4 सारी पृथ्वी के लोग तुझे दण्डवत् करेंगे, और तेरा भजन गाएंगे; वे तेरे नाम का भजन गाएंगे।। 19O 66 5 आओ परमेश्वर के कामों को दखो; वह अपने कार्यों के कारण मनुष्यों को भययोग्य देख पड़ता है। 19O 66 6 उस ने समुद्र को सूखी भूमि कर डाला; वे महानद में से पांव पावं पार उतरे। वहां हम उसके कारण आनन्दित हुए, 19O 66 7 जो पराक्रम से सर्वदा प्रभुता करता है, और अपनी आंखों से जाति जाति को ताकता है। हठीले अपने सिर न उठाएं।। 19O 66 8 हे देश देश के लोगो, हमारे परमेश्वर को धन्य कहो, और उसकी स्तुति में राग उठाओ, 19O 66 9 जो हम को जीवित रखता है; और हमारे पांव को टलने नहीं देता। 19O 66 10 क्योंकि हे परमेश्वर तू ने हम को जांचा; तू ने हमें चान्दी की नाईं ताया था। 19O 66 11 तू ने हम को जाल में फंसाया; और हमारी कटि पर भारी बोझ बान्धा था; 19O 66 12 तू ने घुड़चढ़ों को हमारे सिरों के ऊपर से चलाया, हम आग और जल से होकर गए; परन्तु तू ने हम को उबार के सुख से भर दिया है।। 19O 66 13 मैं होमबलि लेकर तेरे भवन में आंऊंगा मैं उन मन्नतों को तेरे लिये पूरी करूंगा, 19O 66 14 जो मैं ने मुंह खोलकर मानीं, और संकट के समय कही थीं। 19O 66 15 मैं तुझे मोटे पशुओं के होमबलि, मेंढ़ों की चर्बी के धूप समेत चढ़ऊंगा; मैं बकरों समेत बैल चढ़ाऊंगा।। 19O 66 16 हे परमेश्वर के सब डरवैयों आकर सुनो, मैं बताऊंगा कि उस ने मेरे लिये क्या क्या किया है। 19O 66 17 मैं ने उसको पुकारा, और उसी का गुणानुवाद मुझ से हुआ। 19O 66 18 यदि मैं मन में अनर्थ बात सोचता तो प्रभु मेरी न सुनता। 19O 66 19 परन्तु परमेश्वर ने तो सुना है; उस ने मेरी प्रार्थना की ओर ध्यान दिया है।। 19O 66 20 धन्य है परमेश्वर, जिस ने न तो मेरी प्रार्थना अनसुनी की, और न मुझ से अपनी करूणा दूर कर दी है! 19O 67 1 परमेश्वर हम पर अनुग्रह करे और हम को आशीष दे; वह हम पर अपने मुख को प्रकाश चमकाए 19O 67 2 जिस से तेरी गति प्थ्वी पर, और तेरा किया हुआ उद्वार सारी जातियों में जाना जाए। 19O 67 3 हे परमेश्वर, देश देश के लोग तेरा धन्यवाद करें; देश देश के सब लोग तेरा धन्यवाद करें।। 19O 67 4 राज्य राज्य के लोग आनन्द करें, और जयजयकार करें, क्योंकि तू देश देश के लोंगों का न्याय धर्म से करेगा, और पृथ्वी के राज्य राज्य के लोगों की अगुवाई करेगा।। 19O 67 5 हे परमेश्वर, देश देश के लोग तेरा धन्यवाद करें; देश देश के सब लोग तेरा धन्यवाद करें।। 19O 67 6 भूमि ने अपनी उपज दी है, परमेश्वर जो हमारा परमेश्वर है, उस ने हमें आशीष दी है। 19O 67 7 परमेश्वर हम को आशीष देगा; और पृथ्वी के दूर दूर देशों के सब लोग उसका भय मानेंगे।। 19O 68 1 परमेश्वर उठे, उसके शत्रु तित्तर बितर हों; और उसके बैरी उसके साम्हने से भाग जाएं। 19O 68 2 जैसे धुआं उड़ जाता है, वैसे ही तू उनको उड़ा दे; जैसे मोम आग की आंच से पिघल जाता है, वैसे ही दुष्ट लोग परमेश्वर की उपस्थिति से नाश हों। 19O 68 3 परन्तु धर्मी आनन्दित हों; वे परमेश्वर के साम्हने प्रफुल्लित हों; वे आनन्द से मगन हों! 19O 68 4 परमेश्वर का गीत गाओ, उसके नाम का भजन गाओ; जो निर्जल देशों में सवार होकर चलता है, उसके लिये सड़क बनाओ; उसका नाम याह है, इसलिये तुम उसके साम्हने प्रफुल्लित हो! 19O 68 5 परमेश्वर अपने पवित्रा धाम में, अनाथों का पिता और विधवाओं का न्यायी है। 19O 68 6 परमेश्वर अनाथों का घर बसाता है; और बन्धुओं को छुड़ाकर भाग्यवान करता है; परन्तु हठीलों को सूखी भूमि पर रहना पड़ता है।। 19O 68 7 हे परमेश्वर, जब तू अपनी प्रजा के आगे आगे चलता था, जब तू निर्जल भूमि में सेना समेत चला, 19O 68 8 तब पृथ्वी कांप उठी, और आकाश भी परमेश्वर के साम्हने टपकने लगा, उधर सीनै पर्वत परमेश्वर, हां इस्राएल के परमेश्वर के साम्हने कांप उठा। 19O 68 9 हे परमेश्वर, तू ने बहुत से वरदान बरसाए; तेरा निज भाग तो बहुत सूखा था, परन्तू तू ने उसको हरा भरा किया है; 19O 68 10 तेरा झुण्ड उस में बसने लगा; हे परमेश्वर तू ने अपनी भलाई से दीन जन के लिये तैयारी की है। 19O 68 11 प्रभु आज्ञा देता है, तब शुभ समाचार सुनानेवालियों की बड़ी सेना हो जाती है। 19O 68 12 अपनी अपनी सेना समेत राजा भागे चले जाते हैं, और गृहस्थिन लूट को बांट लेती है। 19O 68 13 क्या तुम भेड़शालों के बीच लेट जाओगे? और ऐसी कबूतरी के समान होगे जिसके पंख चान्दी से और जिसके पर पीले सोने से मढ़े हुए हों? 19O 68 14 जब सर्वशक्तिमान ने उस में राजाओं को तित्तर बितर किया, तब मानो सल्मोन पर्वत पर हिम पड़ा।। 19O 68 15 बाशान का पहाड़ परमेश्वर का पहाड़ है; बाशान का पहाड़ बहुत शिखरवाला पहाड़ है। 19O 68 16 परन्तु हे शिखरवाले पहाड़ों, तुम क्यों उस पर्वत को घूरते हो, जिसे परमेश्वर ने अपने वास के लिये चाहा है, और जहां यहोवा सदा वास किए रहेगा? 19O 68 17 परमेश्वर के रथ बीस हजार, वरन हजारों हजार हैं; प्रभु उनके बीच में है, जैसे वह सीनै पवित्रास्थान में है। 19O 68 18 तू ऊंचे पर चढ़ा, तू लोगों को बन्धुवाई में ले गया; तू ने मनुष्यों से, वरन हठीले मनुष्यों से भी भेंटें लीं, जिस से याह परमेश्वर उन में वास करे।। 19O 68 19 धन्य है प्रभु, जो प्रति दिन हमारा बोझ उठाता है; वही हमारा उद्धारकर्ता ईश्वर है। 19O 68 20 वही हमारे लिये बचानेवाला ईश्वर ठहरा; यहोवा प्रभु मृत्यु से भी बचाता है।। 19O 68 21 निश्चय परमेश्वर अपने शत्रुओं के सिर पर, और जो अधर्म के र्माग पर चलता रहता है, उसके बाल भरे चोंडें पर मार मार के उसे चूर करेगा। 19O 68 22 प्रभु ने कहा है, कि मैं उन्हें बाशान से निकाल लाऊंगा, मैं उनको गहिरे सागर के तल से भी फेर ले आऊंगा, 19O 68 23 कि तू अपने पांव को लोहू में डुबोए, और तेरे शत्रु तेरे कुत्तों का भाग ठहरें।। 19O 68 24 हे परमशॆवर तेरी गति देखी गई, मेरे ईश्वर, मेरे राजा की गति पवित्रास्थान में दिखाई दी है; 19O 68 25 गानेवाले आगे आगे और तारवाले बाजों के बजानेवाले पीछे पीछे गए, चारों ओर कुमारियां डफ बजाती थीं। 19O 68 26 सभाओं में परमेश्वर का, हे इस्राएल के सोते से निकले हुए लोगों, प्रभु का धन्यवाद करो। 19O 68 27 वहां उनको अध्यक्ष छोटा बिन्यामीन है, वहां यहूदा के हाकिम अपने अनुचरों समेत हैं, वहां जबूलून और नप्ताली के भी हाकिम हैं।। 19O 68 28 तेरे परमेश्वर ने आज्ञा दी, कि तुझे सामर्थ्य मिले; हे परमेश्वर जो कुछ तू ने हमारे लिये किया है, उसे दृढ़ कर। 19O 68 29 तेरे मन्दिर के कारण जो यरूशलेम में हैं, राजा तेरे लिये भेंट ले आएंगे। 19O 68 30 नरकटों में रहनेवाले बनैले पशुओं को, सांड़ों के झुण्ड को और देश देश के बछड़ों को झिड़क दे। वे चान्दी के टुकड़े लिये हुए प्रणाम करेंगे; जो लोगे युद्ध से प्रसन्न रहते हैं, उनको उस ने तितर बितर किया है। 19O 68 31 मि से रईस आएंगे; कूशी अपने हाथों को परमेश्वर की ओर फुर्ती से फैलाएंगे।। 19O 68 32 हे पृथ्वी पर के राज्य राज्य के लोगों परमेश्वर का गीत गाओ; प्रभु का भजन गाओ, 19O 68 33 जो सब से ऊंचे सनातन स्वर्ग में सवार होकर चलता है; देखो वह अपनी वाणी सुनाता है, वह गम्भीर वाणी शक्तिशाली है। 19O 68 34 परमशॆवर की सामर्थ्य की स्तुति करो, उसका प्रताप इस्राएल पर छाया हुआ है, और उसकी सामर्थ्य आकाशमण्डल में है। 19O 68 35 हे परमेश्वर, तू अपने पवित्रास्थानों में भययोग्य है, इस्राएल का ईश्वर ही अपनी प्रजा को सामर्थ्य और शक्ति का देनेवाला है। परमेश्वर धन्य है।। 19O 69 1 हे परमेश्वर, मेरा उद्धार कर, मैं जल में डूबा जाता हूं। 19O 69 2 मैं बड़े दलदल में धसा जाता हूं, और मेरे पैर कहीं नहीं रूकते; मैं गहिरे जल में आ गया, और धारा में डूबा जाता हूं। 19O 69 3 मैं पुकारते पुकारते थक गया, मेरा गला सूख गया है; अपने परमेश्वर की बाट जोहते जोहते, मेरी आंखे रह गई हैं।। 19O 69 4 जो अकारण मेरे बैरी हैं, वे गिनती में मेरे सिर के बालों से अधिक हैं; मेरे विनाश करनेवाले जो व्यर्थ मेरे शत्रु हैं, वे सामर्थीं हैं, इसलिये जो मैं ने लूटा नहीं वह भी मुझ को देना पड़ा है। 19O 69 5 हे परमेश्वर, तू तो मेरी मूढ़ता को जानता है, और मेरे दोष तुझ से छिपे नहीं हैं।। 19O 69 6 हे प्रभु, हे सेनाओं के यहोवा, जो तेरी बाट जोहते हैं, उनकी आशा मेरे कारण न टूटे; हे इस्राएल के परमेश्वर, जो तुझे ढूंढते हैं उनका मुंह मेरे कारण काला न हो। 19O 69 7 तेरे ही कारण मेरी निन्दा हुई है, और मेरा मुंह लज्जा से ढंपा है। 19O 69 8 मैं अपने भाइयों के साम्हने अजनबी हुआ, और अपने सगे भाइयों की दृष्टि में परदेशी ठहरा हूं।। 19O 69 9 क्योंकि मैं तेरे भवन के निमित्त जलते जलते भस्म हुआ, और जो निन्दा वे तेरी करते हैं, वही निन्दा मुझ को सहनी पड़ी है। 19O 69 10 जब मैं रोकर और उपवास करके दु:ख उठाता था, तब उस से भी मेरी नामधराई ही हुई। 19O 69 11 और जब मैं टाट का वस्त्रा पहिने था, तब मेरा दृष्टान्त उन में चलता था। 19O 69 12 फाटक के पास बैठनेवाले मेरे विषय बातचीत करते हैं, और मदिरा पीनेवाले मुझ पर लगता हुआ गीत गाते हैं। 19O 69 13 परन्तु हे यहोवा, मेरी प्रार्थना तो तेरी प्रसन्नता के समय में हो रही है; हे परमेश्वर अपनी करूणा की बहुतायात से, और बचाने की अपनी सच्ची प्रतिज्ञा के अनुसार मेरी सुन ले। 19O 69 14 मुझ को दलदल में से उबार, कि मैं धंस न जाऊं; मैं अपने बैरियों से, और गहिरे जल में से बच जाऊं। 19O 69 15 मैं धारा में डूब न जाऊं, और न मैं गहिरे जल में डूब मरूं, और न पाताल का मुंह मेरे ऊपर बन्द हो।। 19O 69 16 हे यहोवा, मेरी सुन ले, क्योंकि तेरी करूणा उत्तम है; अपनी दया की बहुतायत के अनुसार मेरी ओर ध्यान दे। 19O 69 17 अपने दास से अपना मुंह न मोड़; क्योंकि मैं संकट में हूं, फुर्ती से मेरी सुन ले। 19O 69 18 मेरे निकट आकर मुझे छुड़ा ले, मेरे शत्रुओं से मुझ को छुटकारा दे।। 19O 69 19 मेरी नामधराई और लज्जा और अनादर को तू जानता है: मेरे सब द्रोही तेरे साम्हने हैं। 19O 69 20 मेरा हृदय नामधराई के कारण फट गया, और मैं बहुत उदास हूं। मैं ने किसी तरस खानेवाले की आशा तो की, परन्तु किसी को न पाया, और शान्ति देनेवाले ढूंढ़ता तो रहा, परन्तु कोई न मिला। 19O 69 21 और लोगों ने मेरे खाने के लिये इन्द्रायन दिया, और मेरी प्यास बुझाने के लिये मुझे सिरका पिलाया।। 19O 69 22 उनको भोजन उनके लिये फन्दा हो जाए; और उनके सुख के समय जाल बन जाए। 19O 69 23 उनकी आंखों पर अन्धेरा छा जाए, ताकि वे देख न सकें; और तू उनकी कटि को निरन्तर कंपाता रह। 19O 69 24 उनके ऊपर अपना रोष भड़का, और तेरे क्रोध की आंच उनको लगे। 19O 69 25 उनकी छावनी उजड़ जाए, उनके डेरों में कोई न रहे। 19O 69 26 क्योंकि जिसको तू ने मारा, वे उसके पीछे पड़े हैं, और जिनको तू ने घायल किया, वे उनकी पीड़ा की चर्चा करते हैं। 19O 69 27 उनके अधर्म पर अधर्म बढ़ा; और वे तेरे धर्म को प्राप्त न करें। 19O 69 28 उनका नाम जीवन की पुस्तक में से काटा जाए, और धर्मियों के संग लिखा न जाए।। 19O 69 29 परन्तु मैं तो दु:खी और पीड़ित हूं, इसलिये हे परमेश्वर तू मेरा उद्धार करके मुझे ऊंचे स्थान पर बैठा। 19O 69 30 मैं गीत गाकर तेरे नाम की स्तुति करूंगा, और धन्यवाद करता हुआ तेरी बड़ाई करूंगा। 19O 69 31 यह यहोवा को बैल से अधिक, वरन सींग और खुरवाले बैल से भी अधिक भाएगा। 19O 69 32 नम्र लोग इसे देखकर आनन्दित होंगे, हे परमेश्वर के खोजियों तुम्हारा मन हरा हो जाए। 19O 69 33 क्योंकि यहोवा दरिद्रों की ओर कान लगाता है, और अपने लोगों को जो बन्धुए हैं तुच्छ नही जानता।। 19O 69 34 स्वर्ग और पृथ्वी उसकी स्तुति करें, और समुद्र अपने सब जीव जन्तुओं समेत उसकी स्तुति करे। 19O 69 35 क्योंकि परमेश्वर सिरयोन का उद्धार करेगा, और यहूदा के नगरों को फिर बसाएगा; और लोग फिर वहां बसकर उसके अधिकारी हो जाएंगे। 19O 69 36 उसके दासों को वंश उसको अपने भाग में पाएगा, और उसके नाम के प्रेमी उस में वास करेंगे।। 19O 70 1 हे परमेश्वर मुझे छुड़ाने के लिये, हे यहोवा मेरी सहायता करने के लिये फुर्ती कर! 19O 70 2 जो मेरे प्राण के खोजी हैं, उनकी आशा टूटे, और मुंह काला हो जाए! जो मेरी हानि से प्रसन्न होते हैं, वे पीछे हटाए और निरादर किए जाएं। 19O 70 3 जो कहते हैं, आहा, आहा, वे अपनी लज्जा के मारे उलटे फेरे जाएं।। 19O 70 4 जितने तुझे ढूंढ़ते हैं, वे सब तेरे कारण हर्षित और आनन्दित हों! और जो तेरा उद्धार चाहते हैं, वे निरन्तर कहते रहें, कि परमेश्वर की बड़ाई हो। 19O 70 5 मैं तो दीन और दरिद्र हूं; हे परमेश्वर मेरे लिये फुर्ती कर! तू मेरा सहायक और छुडानेवाला है; हे यहोवा विलम्ब न कर! 19O 71 1 हे यहोवा मैं तेरा शरणागत हूं; मेरी आशा कभी टूटने न पाए! 19O 71 2 तू तो धर्मी है, मुझे छुड़ा और मेरा उद्धार कर; मेरी ओर कान लगा, और मेरा उद्धार कर! 19O 71 3 मेरे लिये सनातन काल की चट्टान का धाम बन, जिस में मैं नित्य जा सकूं; तू ने मेरे उद्धार की आज्ञा तो दी है, क्योंकि तू मेरी चट्टान और मेरा गढ़ ठहरा है।। 19O 71 4 हे मेरे परमेश्वर दुष्ट के, और कुटिल और क्रूर मनुष्य के हाथ से मेरी रक्षा कर। 19O 71 5 क्योंकि हे प्रभु यहोवा, मैं तेरी ही बाट जोहता आया हूं; बचपन से मेरा आधार तू है। 19O 71 6 मैं गर्भ से निकलते ही, तुझ से सम्भाला गया; मुझे मां की कोख से तू ही ने निकाला; इसलिये मैं नित्य तेरी स्तुति करता रहूंगा।। 19O 71 7 मैं बहुतों के लिये चमत्कार बना हूं; परन्तु तू मेरा दृढ़ शरणस्थान है। 19O 71 8 मेरे मुंह से तेरे गुणानुवाद, और दिन भर तेरी शोभा का वर्णन बहुत हुआ करे। 19O 71 9 बुढ़ापे के समय मेरा त्याग न कर; जब मेरा बल घटे तब मुझ को छोड़ न दे। 19O 71 10 क्योंकि मेरे शत्रु मेरे विषय बातें करते हैं, और जो मेरे प्राण की ताक में हैं, वे आपस में यह सम्मति करते हैं, कि 19O 71 11 परमेश्वर ने उसको छोड़ दिया है; उसका पीछा करके उसे पकड़ लो, क्योंकि उसका कोई छुड़ानेवाला नहीं।। 19O 71 12 हे परमेश्वर, मुझ से दूर न रह; हे मेरे परमेश्वर, मेरी सहायता के लिये फुर्ती कर! 19O 71 13 जो मेरे प्राण के विरोधी हैं, उनकी आशा टूटे और उनका अन्त हो जाए; जो मेरी हानि के अभिलाषी हैं, वे नामधराई और अनादर में गड़ जाएं। 19O 71 14 मैं तो निरन्तर आशा लगाए रहूंगा, और तेरी स्तुति अधिक अधिक करता जाऊंगा। 19O 71 15 मैं अपने मुंह से तेरे धर्म का, और तेरे किए हुए उद्धार का वर्णन दिन भर करता रहूंगा, परन्तु उनका पूरा ब्योरा जाना भी नहीं जाता। 19O 71 16 मैं प्रभु यहोवा के पराक्रम के कामों का वर्णन करता हुआ आऊंगा, मैं केवल तेरे ही धर्म की चर्चा किया करूंगा।। 19O 71 17 हे परमेश्वर, तू तो मुझ को बचपन ही से सिखाता आया है, और अब तक मैं तेरे आश्चर्य कर्मों का प्रचार करता आया हूं। 19O 71 18 इसलिये हे परमेश्वर जब मैं बूढ़ा हो जाऊं और मेरे बाल पक जाएं, तब भी तू मुझे न छोड़, जब तक मैं आनेवाली पीढ़ी के लोगों को तेरा बाहुबल और सब उत्पन्न होनेवालों को तेरा पराक्रम सुनाऊं। 19O 71 19 और हे परमेश्वर, तेरा धर्म अति महान है।। तू जिस ने महाकार्य किए हैं, हे परमेवर तेरे तुल्य कौन है? 19O 71 20 तू ने तो हम को बहुत से कठिन कष्ट दिखाए हैं परन्तु अब तू फिर से हम को जिलाएगा; और पृथ्वी के गहिरे गड़हे में से उबार लेगा। 19O 71 21 तू मेरी बड़ाई को बढ़ाएगा, और फिरकर मुझे शान्ति देगा।। 19O 71 22 हे मेरे परमेश्वर, मैं भी तेरी सच्चाई को धन्यवाद सारंगी बजाकर गाऊंगा; हे इस्राएल के पवित्रा मैं वीणा बजाकर तेरा भजन गाऊंगा। 19O 71 23 जब मैं तेरा भजन गाऊंगा, तब अपने मुंह से और अपने प्राण से भी जो तू ने बचा लिया है, जयजयकार करूंगा। 19O 71 24 और मैं तेरे धर्म की चर्चा दिन भर करता रहूंगा; क्योंकि जो मेरी हानि के अभिलाषी थे, उनकी आशा टूट गई और मुंह काले हो गए हैं।। 19O 72 1 हे परमेश्वर, राजा को अपना नियम बता, राजपुत्रा को अपना धर्म सिखला! 19O 72 2 वह तेरी प्रजा का न्याय धर्म से, और तेरे दी लोगों का न्याय ठीक ठीक चुकाएगा। 19O 72 3 पहाडों और पहाड़ियों से प्रजा के लिये, धर्म के द्वारा शान्ति मिला करेगी 19O 72 4 वह प्रजा के दीन लोगों का न्याय करेगा, और दरिद्र लोगों को बचाएगा; और अन्धेर करनेवालों को चूर करेगा।। 19O 72 5 जब तक सूर्य और चन्द्रमा बने रहेंगे तब तक लोग पीढ़ी- पीढ़ी तेरा भय मानते रहेंगे। 19O 72 6 वह घास की खूंटी पर बरसनेवाले मेंह, और भूमि सींचनेवाली झाड़ियों के समान होगा। 19O 72 7 उसके दिनों में धर्मी फूले फलेंगे, और जब तक चन्द्रमा बना रहेगा, तब तक शान्ति बहुत रहेगी।। 19O 72 8 वह समुद्र से समुद्र तक और महानद से पृथ्वी की छोर तक प्रभुता करेगा। 19O 72 9 उसके साम्हने जंगल के रहनेवाले घुटने टेकेंगे, और उसके शत्रु मिट्टी चाटेंगे। 19O 72 10 तर्शीश और द्वीप द्वीप के राजा भेंट ले आएंगे, शेबा और सबा दोनों के राजा द्रव्य पहुंचाएंगे। 19O 72 11 सब राजा उसको दण्डवत् करेंगे, जाति जाति के लोग उसके अधीन हो जाएंगे।। 19O 72 12 क्योंकि वह दोहाई देनेवाले दरिद्र को, और दु:खी और असहाय मनुष्य का उद्धार करेगा। 19O 72 13 वह कंगाल और दरिद्र पर तरस खाएगा, और दरिद्रों के प्राणो को बचाएगा। 19O 72 14 वह उनके प्राणों को अन्धेर और उपद्रव से छुड़ा लेगा; और उनका लोहू उसकी दृष्टि में अनमोल ठहरेगा।। 19O 72 15 वह तो जीवित रहेगा और शेबा के सोने में से उसको दिया जाएगा। लोग उसके लिये नित्य प्रार्थना करेंगे; और दिन भर उसको धन्य कहते हरेंगे। 19O 72 16 देश में पहाड़ों की चोटियों पर बहुत से अन्न होगा; जिसकी बालें लबानोन के देवदारूओं की नाईं झूमेंगी; और नगर के लोग घास की नाई लहलहाएंगे। 19O 72 17 उसका नाम सदा सर्वदा बना रहेगा; जब तक सूर्य बना रहेगा, तब तक उसका नाम नित्य नया होता रहेगा, और लोग अपने को उसके कारण धन्य गिनेंगे, सारी जातियां उसको भाग्यवान कहेंगी।। 19O 72 18 धन्य है, यहोवा परमेश्वर जो इस्राएल का परमेश्वर है; आश्चर्य कर्म केवल वही करता है। 19O 72 19 उसका महिमायुक्त नाम सर्वदा धन्य रहेगा; और सारी पृथ्वी उसकी महिमा से परिपूर्ण होगी। आमीन फिर आमीन।। 19O 72 20 यिशै के पुत्रा दाऊद की प्रार्थना समाप्त हुई।। 19O 73 1 सचमुच इस्त्राएल के लिये अर्थात् शुद्ध मनवालों के लिये परमेश्वर भला है। 19O 73 2 मेरे डग तो उखड़ना चाहते थे, मेरे डग फिसलने ही पर थे। 19O 73 3 क्योंकि जब मैं दुष्टों का कुशल देखता था, तब उन घमण्डियों के विषय डाह करता था।। 19O 73 4 क्योंकि उनकी मृत्यु में बेधनाएं नहीं होतीं, परन्तु उनका बल अटूट रहता है। 19O 73 5 उनको दूसरे मनुष्यों की नाईं कष्ट नहीं होता; और और मनुष्यों के समान उन पर विपत्ति नहीं पड़ती। 19O 73 6 इस कारण अहंकार उनके गले का हार बना है; उनका ओढ़ना उपद्रव है। 19O 73 7 उनकी आंखें चर्बीं से झलकती हैं, उनके मन की भवनाएं उमण्डती हैं। 19O 73 8 वे ठट्ठा मारते हैं, और दुष्टता से अन्धेर की बात बोलते हैं; 19O 73 9 वे डींग मारते हैं। वे मानों स्वर्ग में बैठे हुए बोलते हैं, और वे पृथ्वी में बोलते फिरते हैं।। 19O 73 10 तौभी उसकी प्रजा इधर लौट आएगी, और उनको भरे हुए प्याले का जल मिलेगा। 19O 73 11 फिर वे कहते हैं, ईश्वर कैसे जानता है? क्या परमप्रधान को कुछ ज्ञान है? 19O 73 12 देखो, ये तो दुष्ट लोग हैं; तौभी सदा सुभागी रहकर, धन सम्पत्ति बटोरते रहते हैं। 19O 73 13 निश्चय, मैं ने अपने हृदय को व्यर्थ शुद्ध किया और अपने हाथों को निर्दोषता में धोया है; 19O 73 14 क्योंकि मैं दिन भर मार खाता आया हूं और प्रति भोर को मेरी ताड़ना होती आई है।। 19O 73 15 यदि मैं ने कहा होता कि मैं ऐसा ही कहूंगा, तो देख मैं तेरे लड़कों की सन्तान के साथ क्रूरता का व्यवहार करता, 19O 73 16 जब मैं सोचने लगा कि इसे मैं कैसे समझूं, तो यह मेरी दृष्टि में अति कठिन समस्या थी, 19O 73 17 जब तक कि मैं ने ईश्वर के पवित्रा स्थान में जाकर उन लोगों के परिणाम को न सोचा। 19O 73 18 निश्चय तू उन्हें फिसलनेवाले स्थानों में रखता है; और गिराकर सत्यानाश कर देता है। 19O 73 19 अहा, वे क्षण भर में कैसे उजड़ गए हैं! वे मिट गए, वे घबराते घबराते नाश हो गए हैं। 19O 73 20 जैसे जागनेहारा स्वप्न को तुच्छ जानता है, वैसे ही हे प्रभु जब तू उठेगा, तब उनको छाया से समझकर तुच्छ जानेगा।। 19O 73 21 मेरा मन तो चिड़चिड़ा हो गया, मेरा अन्त:करण छिद गया था, 19O 73 22 मैं तो पशु सरीखा था, और समझता न था, मैं तेरे संग रहकर भी, पशु बन गया था। 19O 73 23 तौभी मैं निरन्तर तेरे संग ही था; तू ने मेरे दहिने हाथ को पकड़ रखा। 19O 73 24 तू सम्मति देता हुआ, मेरी अगुवाई करेगा, और तब मेरी महिमा करके मुझ को अपने पास रखेगा। 19O 73 25 स्वर्ग में मेरा और कौन है? तेरे संग रहते हुए मैं पृथ्वी पर और कुछ नहीं चाहता। 19O 73 26 मेरे हृदय और मन दोनों तो हार गए हैं, परन्तु परमेश्वर सर्वदा के लिये मेरा भाग और मेरे हृदय की चट्टान बना है।। 19O 73 27 जो तुझ से दूर रहते हैं वे तो नाश होंगे; जो कोई तेरे विरूद्ध व्यभिचार करता है, उसको तू विनाश करता है। 19O 73 28 परन्तु परमेश्वर के समीप रहना, यही मेरे लिये भला है; मैं ने प्रभु यहोवा को अपना शरणस्थान माना है, जिस से मैं तेरे सब कामों को वर्णन करूं।। 19O 74 1 हे परमेश्वर, तू ने हमें क्यों सदा के लिये छोड़ दिया है? तेरी कोपाग्नि का धुआं तेरी चराई की भेंड़ों के विरूद्ध क्यों उठ रहा है? 19O 74 2 अपनी मण्डली को जिसे तू ने प्राचीनकाल में मोल लिया था, और अपने निज भाग का गोत्रा होने के लिये छुड़ा लिया था, और इस सिरयोन पर्वत को भी, जिस पर तू ने वास किया था, स्मारण कर! 19O 74 3 अपने डग सनातन की खंडहर की ओर बढ़ा; अर्थात् उन सब बुराइयों की ओर जो शत्राृ ने पवित्रास्थान में किए हैं।। 19O 74 4 तेरे द्रोही तेरे सभास्थान के बीच गरजते रहे हैं; उन्हों ने अपनी ही ध्वजाओं को चिन्ह ठहराया है। वे उन मनुष्यों के समान थे 19O 74 5 जो घने वन के पेड़ों पर कुल्हाड़े चलाते हैं। 19O 74 6 और अब वे उस भवन की नक्काशी को, कुल्हाडियों और हथौड़ों से बिलकुल तोड़े डालते हैं। 19O 74 7 उन्हों ने तेरे पवित्रास्थान को आग में झोंक दिया है, और तेरे नाम के निवास को गिराकर अशुद्ध कर डाला है। 19O 74 8 उन्हों ने मन में कहा है कि हम इनको एकदक दबा दें; उन्हों ने इस देश में ईश्वर के सब सभास्थानों कों फूंक दिया है।। 19O 74 9 हम को हमारे निशान नहीं देख पड़ते; अब कोई नबी नहीं रहा, न हमारे बीच कोई जानता है कि कब तक यह दशा रहेगी। 19O 74 10 हे परमेश्वर द्रोही कब तक नामधराई करता रहेगा? क्या शत्रु, तेरे नाम की निन्दा सदा करता रहेगा? 19O 74 11 तू अपना दहिना हाथ क्यों रोके रहता है? उसे अपने पांजर से निकाल कर उनका अन्त कर दे।। 19O 74 12 परमेश्वर तो प्राचीनकाल से मेरा राजा है, वह पृथ्वी पर उद्धार के काम करता आया है। 19O 74 13 तू ने अपनी शक्ति से समुद्र को दो भाग कर दिया; तू ने जल में मगरमच्छों के सिरों को फोड़ दिया। 19O 74 14 तू ने तो लिव्यातानों के सिर टुकड़े टुकड़े करके जंगली जन्तुओं को खिला दिए। 19O 74 15 तू ने तो सोता खोलकर जल की धारा बहाई, तू ने तो बारहमासी नदियों को सुखा डाला। 19O 74 16 दिन तेरा है रात भी तेरी है; सूर्य और चन्द्रमा को तू ने स्थिर किया है। 19O 74 17 तू ने तो पृथ्वी के सब सिवानों को ठहराया; धूपकाल और जाड़ा दोनों तू ने ठहराए हैं।। 19O 74 18 हे यहोवा स्मरण कर, कि शत्रु ने नामधराई ही है, और मूढ़ लोगों ने तेरे नाम की निन्दा की है। 19O 74 19 अपनी पिण्डुकी के प्राण को वनपशु के वश में न कर; अपने दी जनों को सदा के लिये न भूल 19O 74 20 अपनी वाचा की सुधि ले; क्योंकि देश के अन्धेरे स्थान अत्याचार के घरों से भरपूर हैं। 19O 74 21 पिसे हुए जन को निरादर होकर लौटना न पड़े; दीन दरिद्र लोग तेरे नाम की स्तुति करने पाएं।। 19O 74 22 हे परमेश्वर उठ, अपना मुक मा आप ही लड़; तेरी जो नामधराई मूढ़ से दिन भर होती रहती है, उसे स्मरण कर। 19O 74 23 अपने द्रोहियों का बड़ा बोल न भूल, तेरे विरोधियों को कोलाहल तो निरन्तर उठता रहता है। 19O 75 1 हे परमेश्वर हम तेरा धन्यवाद करते, हम तेरा नाम धन्यवाद करते हैं; क्योंकि तेरा नाम प्रगट हुआ है, तेरे आश्चर्यकर्मों का वर्णन हो रहा है।। 19O 75 2 जब ठीक समय आएगा तब मैं आप ही ठीक ठीक न्याय करूंगा। 19O 75 3 पृथ्वी अपने सब रहनेवालों समेत गल रही है, मैं ने उसके खम्भों को स्थिर कर दिया है। 19O 75 4 मैं ने घमंडियों से कहा, घमंड मत करो, और दुष्टों से, कि सींग ऊंचा मत करो; 19O 75 5 अपना सींग बहुत ऊंचा मत करो, न सिर उठाकर ढिठाई की बात बोलो।। 19O 75 6 क्योंकि बढ़ती न तो पूरब से न पच्छिम से, और न जंगल की ओर से आती है; 19O 75 7 परन्तु परमेश्वर ही न्यायी है, वह एक को घटाता और दूसरे को बढ़ाता है। 19O 75 8 यहोवा के हाथ में एक कटोरा है, जिस में का दाखमधु झागवाला है; उस में मसाला मिला है, और वह उस में से उंडेलता है, निश्चय उसकी तलछट तक पृथ्वी के सब दृष्ट लोग पी जाएंगे।। 19O 75 9 परन्तु मैं तो सदा प्रचार करता रहूंगा, मैं याकूब के परमेश्वर का भजन गांऊगा। 19O 75 10 दुष्टों के सब सींगों को मैं काट डालूंगा, परन्तु धर्मी के सींग ऊंचे किए जाएंगे। 19O 76 1 परमेश्वर यहूदा में जाना गया है, उसका नाम इस्राएल में महान हुआ है। 19O 76 2 और उसका मण्डप शालेम में, और उसका धाम सिरयोन में है। 19O 76 3 वहां उस ने चमचमाते तीरों को, और ढाल ओर तलवार को तोड़कर, निदान लड़ाई ही को तोड़ डाला है।। 19O 76 4 हे परमेश्वर तू तो ज्योतिमय है; तू अहेर से भरे हुए पहाड़ों से अधिक उत्तम और महान है। 19O 76 5 दृढ़ मनवाले लुट गए, और भरी नींद में पड़े हैं; 19O 76 6 और शूरवीरों में से किसी का हाथ न चला। हे याकूब के परमेश्वर, तेरी घुड़की से, रथों समेत घोड़े भारी नींद में पड़े हैं। 19O 76 7 केवल तू ही भययोग्य है; और जब तू क्रोध करने लगे, तब तेरे साम्हने कौन खड़ा रह सकेगा? 19O 76 8 तू ने स्वर्ग से निर्णय सुनाया है; पृथ्वी उस समय सुनकर डर गई, और चुप रही, 19O 76 9 जब परमेश्वर न्याय करने को, और पृथ्वी के सब नम्र लोगों का उद्धार करने को उठा।। 19O 76 10 निश्चय मनुष्य की जलजलाहट तेरी स्तुति का कारण हो जाएगी, और जो जलजलाहट रह जाए, उसको तू रोकेगा। 19O 76 11 अपने परमेश्वर यहोवा की मन्नत मानो, और पूरी भी करो; वह जो भय के योग्य है, उसके आस पास के सब उसके लिये भेंट ले आएं। 19O 76 12 वह तो प्रधानों का अभिमान मिटा देगा; वह पृथ्वी के राजाओं को भययोग्य जान पड़ता है।। 19O 77 1 मैं परमेश्वर की दोहाई चिल्ला चिल्लाकर दूंगा, मैं परमेश्वर की दोहाई दूंगा, और वह मेरी ओर कान लगाएगा। 19O 77 2 संकट के दिन मैं प्रभु की खोज में लगा रहा; रात को मेरा हाथ फैला रहा, और ढीला न हुआ, मुझ में शांति आई ही नहीं। 19O 77 3 मैं परमेश्वर का स्मरण कर करके कहरता हूं; मैं चिन्ता करते करते मूर्छित हो चला हूं। (सेला) 19O 77 4 तू मुझे झपकी लगने नहीं देता; मैं ऐसा घबराया हूं कि मेरे मुंह से बात नहीं निकलती।। 19O 77 5 मैं प्राचीनकाल के दिनों को, और युग युग के वर्षों को सोचा है। 19O 77 6 मैं रात के समय अपने गीत को स्मरण करता; और मन में ध्यान करता हूं, और मन में भली भांति विचार करता हूं: 19O 77 7 क्या प्रभु युग युग के लिये छोड़ देगा; और फिर कभी प्रसन्न न होगा? 19O 77 8 क्या उसकी करूणा सदा के लिये जाती रही? क्या उसका वचन पीढ़ी पीढ़ी के लिये निष्फल हो गया है? 19O 77 9 क्या ईश्वर अनुग्रह करना भूल गया? क्या उस ने क्रोध करके अपनी सब दया को रोक रखा है? (सेला) 19O 77 10 मैने कहा यह तो मेरी दुर्बलता ही है, परन्तु मैं परमप्रधान के दहिने हाथ के वर्षों को विचारता हूं।। 19O 77 11 मैं याह के बड़े कामों की चर्चा करूंगा; निश्चय मैं तेरे प्राचीनकालवाले अद्भुत कामों को स्मरण करूंगा। 19O 77 12 मैं तेरे सब कामों पर ध्यान करूंगा, और तेरे बड़े कामों को सोचूंगा। 19O 77 13 हे परमेश्वर तेरी गति पवित्राता की है। कौन सा देवता परमेश्वर के तुल्य बड़ा है? 19O 77 14 अद्भुत काम करनेवाला ईश्वर तू ही है, तू ने अपने देश देश के लोगों पर अपनी शक्ति प्रगट की है। 19O 77 15 तू ने अपने भुजबल से अपनी प्रजा, याकूब और यूसुफ के वंश को छुड़ा लिया है।। (सेला) 19O 77 16 हे परमेश्वर समुद्र ने तुझे देखा, समुद्र तुझे देखकर ड़र गया, गहिरा सागर भी कांप उठा। 19O 77 17 मेघों से बड़ी वर्षा हुई; आकाश से शब्द हुआ; फिर तेरे तीर इधर उधर चले। 19O 77 18 बवणडर में तेरे गरजने का शब्द सुन पड़ा था; जगत बिजली से प्रकाशित हुआ; पृथ्वी कांपी और हिल गई। 19O 77 19 तेरे मार्ग समुद्र में है, और तेरा रास्ता गहिरे जल में हुआ; और तेरे पांवों के चिन्ह मालम नहीं होते। 19O 77 20 तू ने मूसा और हारून के द्धारा, अपनी प्रजा की अगुवाई भेड़ों की सी की।। 19O 78 1 हे मेरे लागो, मेरी शिक्षा सुनो; मेरे वचनों की ओर कान लगाओ! 19O 78 2 मैं अपना मूंह नीतिवचन कहने के लिये खोलूंगा; मैं प्राचीकाल की गुप्त बातें कहूंगा, 19O 78 3 जिन बातों को हम ने सुना, ओर जान लिया, और हमारे बाप दादों ने हम से वर्णन किया है। 19O 78 4 उन्हे हम उनकी सन्तान से गुप्त न रखेंगें, परन्तु होनहार पीढ़ी के लोगों से, यहोवा का गुणानुवाद और उसकी सामर्थ और आश्चर्यकर्मों का वर्णन करेंगें।। 19O 78 5 उस ने तो याकूब में एक चितौनी ठहराई, और इस्त्राएल में एक व्यवस्था चलाई, जिसके विषय उस ने हमारे पितरों को आज्ञा दी, कि तुम इन्हे अपने अपने लड़केवालों को बताना; 19O 78 6 कि आनेवाली पीढ़ी के लोग, अर्थात जो लड़केवाले उत्पन्न होनेवाले हैं, वे इन्हे जानें; और अपने अपने लड़केवालों से इनका बखान करने में उद्यत हों, जिस से वे परमेश्वर का आस्त्रा रखें, 19O 78 7 और ईश्वर के बड़े कामों को भूल न जाएं, परन्तु उसकी आज्ञाओं का पालन करते रहें; 19O 78 8 और अपने पितरों के समान न हों, क्योंकि उस पीढ़ी के लोग तो हठीले और झगड़ालू थे, और उन्हों ने अपना मन स्थिर न किया था, और न उनकी आत्मा ईश्वर की ओर सच्ची रही।। 19O 78 9 एप्रेमयों ने तो शस्त्राधारी और धनुर्धारी होने पर भी, युठ्ठ के समय पीठ दिखा दी। 19O 78 10 उन्हो ने परमेश्वर की वाचा पूरी नहीं की, और उसकी व्यवस्था पर चलने से इनकार किया। 19O 78 11 उन्हो ने उसके बड़े कामों को और जो आश्चर्यकर्म उस ने उनके साम्हने किए थे, उनको भुला दिया। 19O 78 12 उस ने तो उनके बापदादों के सम्मुख मिस्त्रा देश के सोअन के मैदान में अद्भुत कर्म किए थे। 19O 78 13 उस ने समुद्र को दो भाग करके उन्हे पार कर दिया, और जल को ढ़ेर की नाई खड़ा कर दिया। 19O 78 14 और उस ने दिन को बादल के खम्भों से और रात भर अग्नि के प्रकाश के द्धारा उनकी अगुवाई की। 19O 78 15 वह जंगल में चट्टानें फाड़कर, उनको मानो गहिरे जलाशयों से मनमाने पिलाता था। 19O 78 16 उस ने चट्टान से भी धाराएं निकालीं और नदियों का सा जल बहाया।। 19O 78 17 तौभी वे फिर उसके विरूद्ध अघिक पाप करते गए, और निर्जल देश में परमप्रधान के विरूद्ध उठते रहे। 19O 78 18 और अपनी चाह के अनुसार भोजन मांगकर मन ही मन ईश्वर की परीक्षा की। 19O 78 19 वे परमेश्वर के विरूद्ध बोले, और कहने लगे, क्या ईश्वर जंगल में मेज लगा सकता है? 19O 78 20 उस ने चट्टान पर मारके जल बहा तो दिया, और धाराएं उमण्ड़ चली, परन्तु क्या वह रोटी भी दे सकता है? क्या वह अपनी प्रजा के लिये मांस भी तैयार कर सकता? 19O 78 21 यहोवा सुनकर क्रोध से भर गया, तब याकूब के बीच आग लगी, और इस्त्राएल के विरूद्ध क्रोध भड़का; 19O 78 22 इसलिए कि उन्हों ने परमेश्वर पर विश्वास नहीं रखा था, न उसकी उठ्ठार करने की शक्ति पर भरोसा किया। 19O 78 23 तौभी उस ने आकाश को आज्ञा दी, और स्वर्ग के ठ्ठारों को खोला; 19O 78 24 और उनके लिये खाने को मान बरसाया, और उन्हे स्वर्ग का अन्न दिया। 19O 78 25 उनको शूरवीरों की सी रोटी मिली; उस ने उनको मनमाना भोजन दिया। 19O 78 26 उस ने आकाश में पुरवाई को चलाया, और अपनी शक्ति से दक्खिनी बहाई; 19O 78 27 और उनके लिये मांस धूलि की नाई बहुत बरसाया, और समुद्र के बालू के समान अनगिनित पक्षी भेजे; 19O 78 28 और उनकी छावनी के बीच में, उनके निवासों के चारों ओर गिराए। 19O 78 29 और वे खाकर अति तृप्त हुए, और उस ने उनकी कामना पूरी की। 19O 78 30 उनकी कामना बनी ही रही, उनका भोजन उनके मुंह ही में था, 19O 78 31 कि परमेश्वर का क्रोध उन पर भड़का, और उस ने उनके हष्टपुष्टों को घात किया, और इस्त्राएल के जवानों को गिरा दिया।। 19O 78 32 इतने पर भी वे और अधिक पाप करते गए; और परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों की प्रतीति न की। 19O 78 33 तब उस ने उनके दिनों को व्यर्थ श्रम में, और उनके वर्षों को धबराहट में कटवाया। 19O 78 34 जब जब वह उन्हे घात करने लगता, तब तब वे उसको पूछते थे; और फिरकर ईश्वर को यत्न से खोजते थे। 19O 78 35 और उनको स्मरण होता था कि परमेश्वर हमारी चट्टान है, और परमप्रधान ईश्वर हमारा छुड़ानेवाला है। 19O 78 36 तौभी उन्हों ने उस से चापलूसी की; वे उस से झूठ बोले। 19O 78 37 क्योंकि उनका ह्यदय उसकी ओर दृढ़ न था; न वे उसकी वाचा के विषय सच्चे थे। 19O 78 38 परन्तु वह जो दयालु है, वह अधर्म को ढांपता, और नाश नहीं करता; वह बारबार अपने क्रोध को ठण्डा करता है, और अपनी जलजलाहट को पूरी रीति से भड़कने नहीं देता। 19O 78 39 उसको स्मरण हुआ कि ये नाशमान हैं, ये वायु के समान हैं जो चली जाती और लौट नहीं आती। 19O 78 40 उन्हों ने कितनी ही बार जंगल में उस से बलवा किया, और निर्जल देश में उसको उदास किया! 19O 78 41 वे बारबार ईश्वर की परीक्षा करते थे, और इस्त्राएल के पवित्रा को खेदित करते थे। 19O 78 42 उन्होने न तो उसका भुजबल स्मरण किया, न वह दिन जब उस ने उनको द्रोही के वश से छुड़ाया था; 19O 78 43 कि उस ने क्योंकर अपने चिन्ह मिस्त्रा में, और अपने चमत्कार सोअन के मैदान में किए थे। 19O 78 44 उस ने तो मिस्त्रियों की नहरों को लोहू बना डाला, और वे अपनी नदियों का जल पी न सके। 19O 78 45 उस ने उनके बीच में डांस भेजे जिन्हों ने उन्हे काट खाया, और मेंढक भी भेजे, जिन्हों ने उनका बिगाड़ किया। 19O 78 46 उस ने उनकी भूमि की उपज कीड़ों को, और उनकी खेतीबारी टिड्डयों को खिला दी थी। 19O 78 47 उस ने उनकी दाखलताओं को ओेलों से, और उनके गूलर के पेड़ों को बड़े बड़े पत्थ्र बरसाकर नाश किया। 19O 78 48 उस ने उनके पशुओं को ओलों से, और उनके ढोरों को बिजलियों से मिटा दिया। 19O 78 49 उस ने उनके ऊपर अपना प्रचणड क्रोध और रोष भड़काया, और उन्हे संकट में डाला, और दुखदाई दूतों का दल भेजा। 19O 78 50 उस ने अपने क्रोध का मार्ग खोला, और उनके प्राणों को मृत्यु से न बचाया, परन्तु उनको मरी के वश में कर दिया। 19O 78 51 उस ने मिस्त्रा के सब पहिलौठों को मारा, जो हाम के डेरों में पौरूष के पहिले फल थे; 19O 78 52 परन्तु अपनी प्रजा को भेड़- बकरियों की नाई पयान कराया, और जंगल में उनकी अगुवाई पशुओं के झुण्ड की सी की। 19O 78 53 तब वे उसके चलाने से बेखटके चले और उनको कुछ भय न हुआ, परन्तु उनके शत्रु समुद्र में डूब गए। 19O 78 54 और उस ने उनको अपने पवित्रा देश के सिवाने तक, इसी पहाड़ी देश में पहुंचाया, जो उस ने अपने दहिने हाथ से प्राप्त किया था। 19O 78 55 उस ने उनके साम्हने से अन्यजातियों को भगा दिया; और उनकी भूमि को डोरी से माप मापकर बांट दिया; और इस्त्राएल के गोत्रों को उनके डेरों में बसाया।। 19O 78 56 तौभी उन्होने परमप्रधान परमेश्वर की परीक्षा की और उस से बलवा किया, और उसकी चितौनियों को न माना, 19O 78 57 और मुड़कर अपने पुरखाओं की नाई विश्वासघात किया; उन्हों ने निकम्मे धनुष की नाई धोखा दिया। 19O 78 58 क्योंकि उन्हों ने ऊंचे स्थान बनाकर उसको रिस दिलाई, और खुदी हुई मुर्तियों के द्वारा उस में जलन उपजाई। 19O 78 59 परमेश्वर सुनकर रोष से भर गया, और उस ने इस्त्राएल को बिलकुल तज दिया। 19O 78 60 उस ने शीलो के निवास, अर्थात् उस तम्बु को जो उस ने मनुष्यों के बीच खडा किया था, त्याग दिया, 19O 78 61 और अपनी सामर्थ को बन्धुआई में जाने दिया, और अपनी शोभा को द्रोही के वश में कर दिया। 19O 78 62 उस ने अपनी प्रजा को तलवार से मरवा दिया, और अपने निज भाग के लोगों पर रोष से भर गया। 19O 78 63 उन के जवान आग से भस्म हुए, और उनकी कुमारियों के विवाह के गीत न गाए गए। 19O 78 64 उनके याजक तलवार से मारे गए, और उनकी विधवाएं रोने न पाई। 19O 78 65 तब प्रभु मानो नींद से चौंक उठा, और ऐसे वीर के समान उठा जो दाखमधु पीकर ललकारता हो। 19O 78 66 और उस ने अपने द्रोहियों को मारकर पीछे हटा दिया; और उनकी सदा की नामधराई कराई।। 19O 78 67 फिर उस ने यूसुफ के तप्बु को तज दिया; और एप्रैम के गोत्रा को न चुना; 19O 78 68 परन्तु यहूदा ही के गोत्रा को, और अपने प्रिय सिरयोन पर्वत को चुन लिया। 19O 78 69 उस ने अपने पवित्रास्थान को बहुत ऊंचा बना दिया, और पृथ्वी के समान स्थिर बनाया, जिसकी नेव उस ने सदा के लिये डाली है। 19O 78 70 फिर उसने अपने दास दाऊद को चुनकर भेड़शालाओं में से ले लिया; 19O 78 71 वह उसको बच्चेवाली भेड़ों के पीछे पीछे फिरने से ले आया कि वह उसकी प्रजा याकूब की अर्थात उसके निज भाग इस्त्राएल की चरवाही करे। 19O 78 72 तब उस ने खरे मन से उनकी चरवाही की, और अपने हाथ की कुशलता से उनकी अगुवाई की।। 19O 79 1 हे परमेश्वर अन्यजातियां तेरे निज भग में घुस आई; उन्हों ने तेेरे पवित्रा मन्दिर को अशुठ्ठ किया; और यरूशलेम को खंडहर कर दिया है। 19O 79 2 उन्हों ने तेरे दासों की लोथों को आकाश के पक्षियों का आहार कर दिया, और तेरे भक्तों का मांस वनपशुओें को खिला दिया है। 19O 79 3 उन्हों ने उनका लोहू यरूशलेम के चारों ओर जल की नाई बहाया, और उनको मिट्टी देनेवाला कोई न था। 19O 79 4 पड़ोसियों के बीच हमारी नामधराई हुई; चारों ओर के रहनेवाले हम पर हंसते, और ठट्ठा करते हैं।। 19O 79 5 हे यहोवा, तू कब तक लगातार क्रोध करता रहेगा? तुझ में आग की सी जलन कब तक भड़कती रहेगी? 19O 79 6 जो जातियां तुझ को नहीं जानती, और जिन राज्यों के लोग तुझ से प्रार्थना नहीं करते, उन्ही पर अपनी सब जलजलाहट भड़का! 19O 79 7 क्योंकि उन्हों ने याकूब को निगल लिया, और उसके वासस्थान को उजाड़ दिया है। 19O 79 8 हमारी हानि के लिये हमारे पुरखाओं के अधर्म के कामों को स्मरण न कर; तेरी दया हम पर शीघ्र हो, क्योंकि हम बड़ी दुर्दशा में पड़े हैं। 19O 79 9 हे हमारे उठ्ठारकर्त्ता परमेश्वर, अपने नाम की महिमा के निमित हमारी सहायता कर; और अपने नाम के निमित हम को छुड़ाकर हमारे पापों को ढांप दे। 19O 79 10 अनयजातियां क्यों कहने पाएं कि उनका परमेश्वर कहां रहा? अन्यजातियों के बीच तेरे दासों के खून का पलटा लेना हमारे देखते उन्हें मालूम हो जाए।। 19O 79 11 बन्धुओं का कराहना तेरे कान तक पहुंचे; घात होनेवालों को अपने भुजबल के द्वारा बचा। 19O 79 12 और हे प्रभु, हमारे पड़ोसियों ने जो तेरी निन्दा की है, उसका सातगुणा बदला उनको दे! 19O 79 13 तब हम जो तेरी प्रजा और तेरी चराई की भेड़ें हैं, तेरा धन्यवाद सदा करते रहेंगे; और पीढ़ी से पीढ़ी तक तेरा गुणानुवाद करते रहेंगें।। 19O 80 1 हे इस्त्राएल के चरवाहे, तू जो यूसुफ की अगुवाई भेड़ों की सी करता है, कान लगा! तू जो करूबों पर विराजमान है, अपना तेज दिखा! 19O 80 2 एप्रैम, बिन्यामीन, और मनश्शे के साम्हने अपना पराक्रम दिखाकर, हमारा उठ्ठार करने को आ! 19O 80 3 हे परमेश्वर, हम को ज्यों के त्यों कर दे; और अपने मुख का प्रकाश चमका, तब हमारा उठ्ठार हो जाएगा! 19O 80 4 हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, तू कब तक अपनी प्रजा की प्रार्थना पर क्रोधित रहेगा? 19O 80 5 तू ने आंसुओं को उनका आहार कर दिया, और मटके भर भरके उन्हें आंसु पिलाए हैं। 19O 80 6 तू हमें हमारे पड़ोसियों के झगड़ने का कारण कर देता है; और हमारे शत्रु मनमाने ठट्ठा करते हैं।। 19O 80 7 हे सेनाओं के परमेश्वर, हम को ज्यों के त्यों कर दे; और अपने मुख का प्रकाश हम पर चमका, तब हमारा उठ्ठार हो जाएगा।। 19O 80 8 तू मि से एक दाखलता ले आया; और अन्यजातियों को निकालकर उसे लगा दिया। 19O 80 9 तू ने उसके लिये स्थान तैयार किया है; और उस ने जड़ पकड़ी और फैलकर देश को भर दिया। 19O 80 10 उसकी छाया पहाड़ों पर फैल गई, और उसकी डालियां ईश्वर के देवदारों के समान हुई; 19O 80 11 उसकी शाखाएं समुद्र तक बढ़ गई, और उसके अंकुर महानद तक फैल गए। 19O 80 12 फिर तू ने उसके बाड़ों को क्यों गिरा दिया, कि सब बटोही उसके फलों को तोड़ते है? 19O 80 13 वनसूअर उसको नाश किए डालता है, और मैदान के सब पशु उसे चर जाते हैं।। 19O 80 14 हे सेनाओं के परमेश्वर, फिर आ! स्वर्ग से ध्यान देकर देख, और इस दाखलता की सुधि ले, 19O 80 15 ये पौधा तू ने अपने दहिने हाथ से लगाया, और जो लता की शाखा तू ने अपने लिये दृढ़ की है। 19O 80 16 वह जल गई, वह कट गई है; तेरी घुड़की से वे नाश होते हैं। 19O 80 17 तेरे दहिने हाथ के सम्भाले हुअ पुरूष पर तेरा हाथ रखा रहे, उस आदमी पर, जिसे तू ने अपने लिये दृढ़ किया है। 19O 80 18 तब हम लोग तुझ से न मुड़ेंगे: तू हम को जिला, और हम तुझ से प्रार्थना कर सकेंगे। 19O 80 19 हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, हम को ज्यों का त्यों कर दे! और अपने मुख का प्रकाश हम पर चमका, तब हमारा उठ्ठार हो जाएगा! 19O 81 1 परमेश्वर जो हमारा बल है, उसका गीत आनन्द से गाओ; याकूब के परमेश्वर का जयजयकार करो! 19O 81 2 भजन उठाओ, डफ और मधुर बजनेवाली वीणा और सारंगी को ले आओ। 19O 81 3 नये चाँद के दिन, और पूणमासी को हमारे पर्व के दिन नरसिंगा फुको। 19O 81 4 क्योंकि यह इस्त्राएल के लिये विधि, और याकूब के परमेश्वर का ठहराया हुआ नियम है। 19O 81 5 इसको उस ने यूसुफ में चितौनी की रीति पर उस समय चलाया, जब वह मिस्त्र देश के विरूद्ध चला।। वहां मैं ने एक अनजानी भाषा सुनी; 19O 81 6 मैं ने उनके कन्धों पर से बोझ को उतार दिया; उनका टोकरी ढोना छुट गया। 19O 81 7 तू ने संकट में पड़कर पुकारा, तब मैं ने तुझे छुड़ाया; बादल गरजने के गुप्त स्थान में से मैं ने तेरी सुनी, और मरीबा नाम सोते के पास तेरी परीक्षा की। (सेला) 19O 81 8 हे मेरी प्रजा, सुन, मैं तुझे चिता देता हूं! हे इस्त्राएल भला हो कि तू मेरी सुने! 19O 81 9 तेरे बीच में पराया ईश्वर न हो; और न तू किसी पराए देवता को दणडवत् करना! 19O 81 10 तेरा परमेश्वर यहोवा मैं हूं, जो तुझे मिस्त्र देश से निकाल लाया है। तू अपना मुंह पसार, मैं उसे भर दूंगा।। 19O 81 11 परन्तु मेरी प्रजा ने मेरी न सुनी; इस्त्राएल ने मुझ को न चाहा। 19O 81 12 इसलिये मैं ने उसको उसके मन के हठ पर छोड़ दिया, कि वह अपनी ही युक्तियों के अनुसार चले। 19O 81 13 यदि मेरी प्रजा मेरी सुने, यदि इस्त्राएल मेरे मार्गों पर चले, 19O 81 14 तो क्षण भर में उनके शत्रुओं को दबाऊं, और अपना हाथ उनके द्रोहयों के विरूद्ध चलाऊं। 19O 81 15 यहोवा के बैरी तो उस के वश में हो जाते, और वे सदाकाल बने रहते हैं। 19O 81 16 और वह उनको उत्तम से उत्तम गेहूं खिलाता, और मैं चट्टान में के मधु से उनको तृप्त करूं।। 19O 82 1 परमेश्वर की सभा में परमेश्वर ही खड़ा है; वह ईश्वरों के बीच में न्याय करता है। 19O 82 2 तुम लोग कब तक टेढ़ा न्याय करते और दुष्टों का पक्ष लेते रहोगे? 19O 82 3 कंगाल और अनाथों का न्याय चुकाओ, दीन दरिद्र का विचार धर्म से करो। 19O 82 4 कंगाल और निर्धन को बचा लो; दुष्टों के हाथ से उन्हें छुड़ाओ।। 19O 82 5 वे न तो कुछ समझते और न कुछ बूझते हैं, परन्तु अन्धेरे में चलते फिरते रहते हैं; पृथ्वी की पूरी नीव हिल जाती है।। 19O 82 6 मैं ने कहा था कि तुम ईश्वर हो, और सब के सब परमप्रधान के पुत्रा हो; 19O 82 7 तौभी तुम मनुष्यों की नाई मरोगे, और किसी प्रधान के समान गिर जाओगे।। 19O 82 8 हे परमेश्वर उठ, पृथ्वी का न्याय कर; क्योंकि तू ही सब जातियों को अपने भाग में लेगा! 19O 83 1 हे परमेश्वर मौन न रह; हे ईश्वर चुप न रह, और न शांत रह! 19O 83 2 क्योंकि देख तेरे शत्रु धूम मचा रहे हैं; और तेरे बैरियों ने सिर उठाया है। 19O 83 3 वे चतुराई से तेरी प्रजा की हानि की सम्मति करते, और तेरे रक्षित लोगों के विरूद्ध युक्तियां निकालते हैं। 19O 83 4 उन्हों ने कहा, आओ, हम उनको ऐसा नाश करें कि राज्य भी मिट जाए; और इस्त्राएल का नाम आगे को स्मरण न रहे। 19O 83 5 उन्हों ने एक मन होकर युक्ति निकाली है, और तेरे ही विरूद्ध वाचा बान्धी है। 19O 83 6 ये तो एदोम के तम्बूवाले और इश्माइली, मोआबी और हुग्री, 19O 83 7 गबाली, अम्मोनी, अमालेकी, और सोर समेत पलिश्ती हैं। 19O 83 8 इनके संग अश्शूरी भी मिल गए हैं; उन से भी लोतवंशियों को सहारा मिला है। 19O 83 9 इन से ऐसा कर जैसा मिद्यानियों से, और कीशोन नाले में सीसरा और याबीन से किया था, जो एन्दोर में नाश हुए, 19O 83 10 और भूमि के लिये खाद बन गए। 19O 83 11 इनके रईसों को ओरेब और जाएब सरीखे, और इनके सब प्रधानों को जेबह और सल्मुन्ना के समान कर दे, 19O 83 12 जिन्हों ने कहा था, कि हम परमेश्वर की चराइयों के अधिकारी आप ही हो जाएं।। 19O 83 13 हे मेरे परमेश्वर इनको बवन्डर की धूलि, वा पवन से उड़ाए हुए भूसे के समान कर दे। 19O 83 14 उस आग की नाई जो वन को भस्म करती है, और उस लौ की नाई जो पहाड़ों को जला देती है, 19O 83 15 तू इन्हे अपनी आंधी से भाग दे, और अपने बवन्डर से घबरा दे! 19O 83 16 इनके मुंह को अति लज्जित कर, कि हे यहोवा ये तेरे नाम को ढूंढ़ें। 19O 83 17 ये सदा के लिये लज्जित और घबराए रहें इनके मुंह काले हों, और इनका नाश हो जाए, 19O 83 18 जिस से यह जानें कि केवल तू जिसका नाम यहोवा है, सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है।। 19O 84 1 हे सेनाओं के यहोवा, तेरे निवास क्या ही प्रिय हैं! 19O 84 2 मेरा प्राण यहोवा के आंगनों की अभिलाषा करते करते मूर्र्छित हो चला; मेरा तन मन दोंनो जीवते ईश्वर को पुकार रहे।। 19O 84 3 हे सेनाओं के यहोवा, हे मेरे राजा, और मेरे परमेश्वर, तेरी वेदियों मे गौरैया ने अपना बसेरा और शूपाबेनी ने घोंसला बना लिया है जिस में वह अपने बच्चे रखे। 19O 84 4 क्या ही धन्य हैं वे, जो तेरे भवन में रहते हैं; वे तेरी स्तुति निरन्तर करते रहेंगे।। 19O 84 5 क्या ही धन्य है, वह मनुष्य जो तुझ से शक्ति पाता है, और वे जिनको सिरयोन की सड़क की सुधि रहती है। 19O 84 6 वें रोने की तराई में जाते हुए उसको सोतों का स्थान बनाते हैं; फिर बरसात की अगली वृष्टि उसमें आशीष ही आशीष उपजाती है। 19O 84 7 वे बल पर बल पाते जाते हैं; उन में से हर एक जन सिरयोन में परमेश्वर को अपना मुंह दिखाएगा।। 19O 84 8 हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन, हे याकूब के परमेश्वर, कान लगा! 19O 84 9 हे परमेश्वर, हे हमारी ढ़ाल, दृष्टि कर; और अपने अभिषिक्ति का मुख देख! 19O 84 10 क्योंकि तेरे आंगनों में का एक दिन और कहीं के हजार दिन से उत्तम है। दुष्टों के डेरों में वास करने से अपने परमेश्वर के भवन की डेवढ़ी पर खड़ा रहना ही मुझे अधिक भावता है। 19O 84 11 क्योंकि यहोवा परमेश्वर सूर्य और ढाल है; यहोवा अनुग्रह करेगा, और महिमा देगा; और जो लोग खरी चाल चलते हैं; उन से वह कोई अच्छा पदार्थ रख न छोड़ेगा। 19O 84 12 हे सेनाओं के यहोवा, क्या ही धन्य वह मनुष्य है, जो तुझ पर भरोसा रखता है! 19O 85 1 हे यहोवा, तू अपने देश पर प्रसन्न हुआ, याकूब को बन्धुआई से लौटा ले आया है। 19O 85 2 तू ने अपनी प्रजा के अधर्म को क्षमा किया है; और उसके सब पापों को ढांप दिया है। 19O 85 3 तू ने अपने रोष को शान्त किया है; और अपने भड़के हुए कोप को दूर किया है।। 19O 85 4 हे हमारे उठ्ठारकर्त्ता परमेश्वर हम को फेर, और अपना क्रोध हम पर से दूर कर! 19O 85 5 क्या तू हम पर सदा कोपित रहेगा? क्या तू पीढ़ी से पीढ़ी तक कोप करता रहेगा? 19O 85 6 क्या तू हम को फिर न जिलाएगा, कि तेरी प्रजा तुझ में आनन्द करे? 19O 85 7 हे यहोवा अपनी करूणा हमें दिखा, और तू हमारा उठ्ठार कर।। 19O 85 8 मैं कान लगाए रहूंगा, कि ईश्वर यहोवा क्या कहता है, वह तो अपनी प्रजा से जो उसके भक्त है, शान्ति की बातें कहेगा; परन्तु वे फिरके मूर्खता न करने लगें। 19O 85 9 निश्चय उसके डरवैयों के उठ्ठार का समय निकट है, तब हमारे देश में महिमा का निवास होगा।। 19O 85 10 करूणा और सच्चाई आपस में मिल गई हैं; धर्म और मेल ने आपस में चुम्बन किया हैं। 19O 85 11 पृथ्वी में से सच्चाई उगती और स्वर्ग से धर्म झुकता है। 19O 85 12 फिर यहोवा उत्तम पदार्थ देगा, और हमारी भूमि अपनी उपज देगी। 19O 85 13 धर्म उसके आगे आगे चलेगा, और उसके पांवों के चिन्हों को हमारे लिये मार्ग बनाएगा।। 19O 86 1 हे यहोवा कान लगाकर मेरी सुन ले, क्योंकि मैं दीन और दरिद्र हूं। 19O 86 2 मेरे प्राण की रक्षा कर, क्योंकि मैं भक्त हूं; तू मेरा परमेश्वर है, इसलिये अपने दास का, जिसका भरोसा तुझ पर है, उठ्ठार कर। 19O 86 3 हे प्रभु मुझ पर अनुग्रह कर, क्योंकि मैं तुझी को लगातार पुकारता रहता हूं। 19O 86 4 अपने दास के मन को आनन्दित कर, क्योंकि हे प्रभु, मैं अपना मन तेरी ही ओर लगाता हूं। 19O 86 5 क्योंकि हे प्रभु, तू भला और क्षमा करनेवाला है, और जितने तुझे पुकारते हैं उन सभों के लिये तू अति करूणामय है। 19O 86 6 हे यहोवा मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा, और मेरे गिड़गिड़ाने को ध्यान से सुन। 19O 86 7 संकट के दिन मैं तुझ को पुकारूंगा, क्योंकि तू मेरी सुन लेगा।। 19O 86 8 हे प्रभु देवताओं में से कोई भी तेरे तुल्य नहीं, और ने किसी के काम तेरे कामों के बराबर हैं। 19O 86 9 हे प्रभु जितनी जातियों को तू ने बनाया है, सब आकर तेरे साम्हने दणडवत् करेंगी, और तेरे नाम की महिमा करेंगी। 19O 86 10 क्योंकि तू महान् और आश्चर्यकर्म करनेवाला है, केवल तू ही परमेश्वर है। 19O 86 11 हे यहोवा अपना मार्ग मुझे दिखा, तब मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलूंगा, मुझ को एक चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूं। 19O 86 12 हे प्रभु हे मेरे परमेश्वर मैं अपने सम्पूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूंगा, और तेरे नाम की महिमा सदा करता रहूंगा। 19O 86 13 क्योंकि तेरी करूणा मेरे ऊपर बड़ी है; और तू ने मुझ को अधोलोक की तह में जाने से बचा लिया है।। 19O 86 14 हे परमेश्वर अभिमानी लोग तो मेरे विरूद्ध उठे हैं, और बलात्कारियों का समाज मेरे प्राण का खोजी हुआ है, और वे तेरा कुछ विचार नहीं रखते। 19O 86 15 परन्तु प्रभु दयालु और अनुग्रहकारी ईश्वर है, तू विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करूणामय है। 19O 86 16 मेरी ओर फिरकर मुझ पर अनुग्रह कर; अपने दास को तू शक्ति दे, और अपनी दासी के पुत्रा का उठ्ठार कर।। 19O 86 17 मुझे भलाई का कोई लक्षण दिखा, जिसे देखकर मेरे बैरी निराश हों, क्योंकि हे यहोवा तू ने आप मेरी सहायता की और मुझे शान्ति दी है।। 19O 87 1 उसकी नेव पवित्रा पर्वतों में है; 19O 87 2 और यहोवा सिरयोन के फाटकों को याकूब के सारे निवासों से बढ़कर प्रीति रखता है। 19O 87 3 हे परमेश्वर के नगर, तेरे विषय महिमा की बातें कही गई हैं। 19O 87 4 मैं अपने जान- पहचानवालों से रहब और बाबेल की भी चर्चा करूंगा; पलिश्त, सोर और कूश को देखो, यह वहां उत्पन्न हुआ था। 19O 87 5 और सिरयोन के विषय में यह कहा जाएगा, कि अमुक अमुक मनुष्य उस में उत्पन्न हुआ था; और परमप्रधान आप ही उसको स्थिर रखेगा। 19O 87 6 यहोेवा जब देश देश के लोगों के नाम लिखकर गिन लेगा, तब यह कहेगा, कि यह वहां उत्पन्न हुआ था।। 19O 87 7 गवैये और नृतक दोनों कहेंगे कि हमारे सब सोते तुझी में पाए जाते हैं।। 19O 88 1 हे मेरे उठ्ठारकर्त्ता परमेश्वर यहोवा, मैं दिन को और रात को तेरे आगे चिल्लाता आया हूं। 19O 88 2 मेरी प्रार्थना तुझ तक पहुंचे, मेरे चिल्लाने की ओर कान लगा! 19O 88 3 क्योंकि मेरा प्राण क्लेश में भरा हुआ है, और मेरा प्राण अधोलोक के निकट पहुंचा है। 19O 88 4 मैं कबर में पड़नेवालों में गिना गया हूं; मैं बलहीन पुरूष के समान हो गया हूं। 19O 88 5 मैं मुर्दों के बीच छोड़ा गया हूं, और जो घात होकर कबर में पड़े हैं, जिनको तू फिर स्मरण नहीं करता और वे तेरी सहायता रहित हैं, उनके समान मैं हो गया हूं। 19O 88 6 तू ने मुझे गड़हे के तल ही में, अन्धेरे और गहिरे स्थान में रखा है। 19O 88 7 तेरी जलजलाहट मुझी पर बनी हुई है, और तू ने अपने सब तरंगों से मुझे दु:ख दिया है; 19O 88 8 तू ने मेरे पहिचानवालों को मुझ से दूर किया है; और मुझ को उनकी दृष्टि में घिनौना किया है। मैं बन्दी हूं और निकल नही सकता; 19O 88 9 दु:ख भोगते भोगते मेरी आंखे धुन्धला गई। हे यहोवा मैं लगातार तुझे पुकारता और अपने हाथ तेरी ओर फैलाता आया हूं। 19O 88 10 क्या तू मुर्दों के लिये अदभुत् काम करेगा? क्या मरे लोग उठकर तेरा धन्यवाद करेंगे? 19O 88 11 क्या कबर में तेरी करूणा का, और विनाश की दशा में तेरी सच्चाई का वर्णन किया जाएगा? 19O 88 12 क्या तेरे अदभुत् काम अन्धकार में, वा तेरा धर्म विश्वासघात की दशा में जाना जाएगा? 19O 88 13 परन्तु हे यहोवा, मैं ने तेरी दोहाई दी है; और भोर को मेरी प्रार्थना तुझ तक पहुंचेगी। 19O 88 14 हे यहोवा, तू मुझ को क्यों छोड़ता है? तू अपना मुख मुझ से क्यों छिपाता रहता है? 19O 88 15 मैं बचपन ही से दु:खी वरन अधमुआ हूं, तुझ से भय खाते मैं अति व्याकुल हो गया हूं। 19O 88 16 तेरा क्रोध मुझ पर पड़ा है; उस भय से मैं मिट गया हूं। 19O 88 17 वह दिन भर जल की नाई मुझे घेरे रहता है; वह मेरे चारों ओर दिखाई देता है। 19O 88 18 तू ने मित्रा और भाईबन्धु दोनों को मुझ से दूर किया है; और मेरे जान- पहिचानवालों को अन्धकार में डाल दिया है।। 19O 89 1 मैं यहोवा की सारी करूणा के विषय सदा गाता रहूंगा; मैं तेरी सच्चाई पीढ़ी पीढ़ी तक जताता रहूंगा। 19O 89 2 क्योंकि मैं ने कहा है, तेरी करूणा सदा बनी रहेगी, तू स्वर्ग में अपनी सच्चाई को स्थिर रखेगा। 19O 89 3 मैं ने अपने चुने हुए से वाचा बान्धी है, मैं ने अपने दास दाऊद से शपथ खाई है, 19O 89 4 कि मैं तेरे वंश को सदा स्थिर रखूंगा; और तेरी राजगद्दी को पीढ़ी पीढ़ी तक बनाए रखूंगा। 19O 89 5 हे यहोवा, स्वर्ग में तेरे अद्भुत काम की, और पवित्रों की सभा में तेरी सच्चाई की प्रशंसा होगी। 19O 89 6 क्योंकि आकाशमण्डल में यहोवा के तुल्य कौन ठहरेगा? बलवन्तों के पुत्रों में से कौन है जिसके साथ यहोवा की उपमा दी जाएगी? 19O 89 7 ईश्वर पवित्रों की गोष्ठी में अत्यन्त प्रतिष्ठा के योग्य, और अपने चारों ओर सब रहनेवालों से अधिक भययोग्य है। 19O 89 8 हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, हे याह, तेरे तुल्य कौन सामर्थी है? तेरी सच्चाई तो तेरे चारों ओर है! 19O 89 9 समुद्र के गर्व को तू ही तोड़ता है; जब उसके तरंग उठते हैं, तब तू उनको शान्त कर देता है। 19O 89 10 तू ने रहब को घात किए हुए के समान कुचल डाला, और अपने शत्रुओं को अपने बाहुबल से तितर बितर किया है। 19O 89 11 आकाश तेरा है, पृथ्वी भी तेरी है; जगत और जो कुछ उस में है, उसे तू ही ने स्थिर किया है। 19O 89 12 उत्तर और दक्खिन को तू ही ने सिरजा; ताबोर और हेर्मोन तेरे नाम का जयजयकार करते हैं। 19O 89 13 तेरी भुजा बलवन्त है; तेरा हाथ शक्तिमान और तेरा दहिना हाथ प्रबल है। 19O 89 14 तेरे सिंहासन का मूल, धर्म और न्याय है; करूणा और सच्चाई तेरे आगे आगे चलती है। 19O 89 15 क्या ही धन्य है वह समाज जो आनन्द के ललकार को पहिचानता है; हे हयोवा वे लोग मेरे मुख के प्रकाश में चलते हैं, 19O 89 16 वे तेरे नाम के हेतु दिन भर मगन रहते हैं, और तेरे धर्म के कारण महान हो जाते हैं। 19O 89 17 क्योंकि तू उनके बल की शोभा है, और अपनी प्रसन्नता से हमारे सींग को ऊंचा करेगा। 19O 89 18 क्योंकि हमारी ढाल यहोवा की ओर से है हमारा राजा इस्राएल के पवित्रा की ओर से है।। 19O 89 19 एक समय तू ने अपने भक्त को दर्शन देकर बातें की; और कहा, मैं ने सहायता करने का भार एक वीर पर रखा है, और प्रजा में से एक को चुनकर बढ़ाया है। 19O 89 20 मैं ने अपने दास दाऊद को लेकर, अपने पवित्रा तेल से उसका अभिषेक किया है। 19O 89 21 मेरा हाथ उसके साथ बना रहेगा, और मेरी भुजा उसे दृढ़ रखेगी। 19O 89 22 शत्रु उसको तंग करने न पाएगा, और न कुटिल जल उसको दु:ख देने पाएगा। 19O 89 23 मैं उसके द्रोहियों को उसके साम्हने से नाश करूंगा, और उसके बैरियों पर विपत्ति डालूंगा। 19O 89 24 परन्तु मेरी सच्चाई और करूणा उस पर बनी रहेंगी, और मेरे नाम के द्वारा उसका सींग ऊंचा हो जाएगा। 19O 89 25 मैं समुद्र को उसके हाथ के नीचे और महानदों को उसके दहिने हाथ के नीचे कर दूंगा। 19O 89 26 वह मुझे पुकारके कहेगा, कि तू मेरा पिता है, मेरा ईश्वर और मेरे बचने की चट्टान है। 19O 89 27 फिर मैं उसको अपना पहिलौठा, और पृथ्वी के राजाओं पर प्रधान ठहराऊंगा। 19O 89 28 मैं अपनी करूणा उस पर सदा बनाए रहूंगा, और मेरी वाचा उसके लिये अटल रहेगी। 19O 89 29 मैं उसके वंश को सदा बनाए रखूंगा, और उसकी राजगद्दी स्वर्ग के समान सर्वदा बनी रहेगी। 19O 89 30 यदि उसके वंश के लोग मेरी व्यवस्था को छोड़ें और मेरे नियमों के अनुसार न चलें, 19O 89 31 यदि वे मेरी विधियों का उल्लंघन करें, और मेरी आज्ञाओं को न मानें, 19O 89 32 तो मैं उनके अपराध का दण्ड सोंटें से, और उनके अधर्म का दण्ड कोड़ों से दूंगा। 19O 89 33 परन्तु मैं अपनी करूणा उस पर से हटाऊंगा, और न सच्चाई त्यागकर झूठा ठहरूंगा। 19O 89 34 मैं अपनी वाचा न तोडूंगा, और जो मेरे मुंह से निकल चुका है, उसे न बदलूंगा। 19O 89 35 एक बार मैं अपनी पवित्राता की शपथ खा चुका हूं; मैं दाऊद को कभी धोखा न दूंगा। 19O 89 36 उसका वंश सर्वदा रहेगा, और उसकी राजगद्दी सूर्य की नाई मेरे सम्मुख ठहरी रहेगी। 19O 89 37 वह चन्द्रमा की नाईं, और आकाशमण्डल के विश्वासयोग्य साक्षी की नाई सदा बना रहेगा। 19O 89 38 तौभी तू ने अपने अभिषिक्त को छोड़ा और उसे तज दिया, और उस पर अति क्रोध किया है। 19O 89 39 तू अपने दास के साथ की वाचा से घिनाया, और उसके मुकुट को भूमि पर गिराकर अशुद्ध किया है। 19O 89 40 तू ने उसके सब बाड़ों को तेड़ डाला है, और उसके गढ़ों को उजाड़ दिया है। 19O 89 41 सब बटोही उसको लूट लेते हैं, और उसके पड़ोसियों से उसकी नामधराई होती है। 19O 89 42 तू ने उसके द्रोहियों को प्रबल किया; और उसके सब शत्रुओं को आनन्दित किया; और उसके सब शत्रुओं को आनन्दित किया है। 19O 89 43 फिर तू उसकी तलवार की धार को मोड़ देता है, और युद्ध में उसके पांव जमने नहीं देता। 19O 89 44 तू ने उसका तेज हर लिया है और उसके सिंहासन को भूमि पर पटक दिया है। 19O 89 45 तू ने उसकी जवानी को घटाया, और उसको लज्जा से ढांप दिया है।। 19O 89 46 हे यहोवा तू कब तक लगातार मूंह फेरे रहेगा, तेरी जलजलाहट कब तक आग की नाईं भड़की रहेगी।। 19O 89 47 मेरा स्मरण कर, कि मैं कैसा अनित्य हूं, तू ने सब मनुष्यों को क्यों व्यर्थ सिरजा है? 19O 89 48 कौन पुरूष सदा अमर रहेगा? क्या कोई अपने प्राण को अधोलोक से बचा सकता है? 19O 89 49 हे प्रभु तेरी प्राचीनकाल की करूणा कहां रही, जिसके विषय में तू ने अपनी सच्चाई की शपथ दाऊद से खाई थी? 19O 89 50 हे प्रभु अपने दासों की नामधराई की सुधि कर; मैं तो सब सामर्थी जातियों का बोझ लिए रहता हूं। 19O 89 51 तेरे उन शत्रुओं ने तो हे यहोवा तेरे अभिषिक्त के पीछे पड़कर उसकी नामधराई की है।। 19O 89 52 यहोवा सर्वदा धन्य रहेगा! आमीन फिर आमीन।। 19O 90 1 हे प्रभु, तू पीढ़ी से पीढ़ी तक हमारे लिये धाम बना है। 19O 90 2 इस से पहिले कि पहाड़ उत्पन्न हुए, वा तू ने पृथ्वी और जगत की रचना की, वरन अनादिकाल से अनन्तकाल तक तू ही ईश्वर है।। 19O 90 3 तू मनुष्य को लौटाकर चूर करता है, और कहता है, कि हे आदमियों, लौट आओ! 19O 90 4 क्योंकि हजार वर्ष तेरी दृष्टि में ऐसे हैं, जैसा कल का दिन जो बीत गया, वा रात का एक पहर।। 19O 90 5 तू मनुष्यों को धारा में बहा देता है; वे स्वप्न से ठहरते हैं, वे भोर को बढ़नेवाली घास के समान होते हैं। 19O 90 6 वह भोर को फूलती और बढ़ती है, और सांझ तक काटकर मुर्झा जाती है।। 19O 90 7 क्योंकि हम तेरे क्रोध से नाश हुए हैं; और तेरी जलजलाहट से घबरा गए हैं। 19O 90 8 तू ने हमारे अधर्म के कामों से अपने सम्मुख, और हमारे छिपे हुए पापों को अपने मुख की ज्योति में रखा है।। 19O 90 9 क्योंकि हमारे सब दिन तेरे क्रोध में बीत जाते हैं, हम अपने वर्ष शब्द की नाई बिताते हैं। 19O 90 10 हमारी आयु के वर्ष सत्तर तो होते हैं, और चाहे बल के कारण अस्सी वर्ष के भी हो जाएं, तौभी उनका घमण्ड केवल नष्ट और शोक ही शोक है; क्योंकि वह जल्दी कट जाती है, और हम जाते रहते हैं। 19O 90 11 तेरे क्रोध की शक्ति को और तेरे भय के योग्य रोष को कौन समझता है? 19O 90 12 हम को अपने दिन गिनने की समझ दे कि हम बुद्धिमान हो जाएं।। 19O 90 13 हे यहोवा लौट आ! कब तक? और अपने दासों पर तरस खा! 19O 90 14 भोर को हमें अपनी करूणा से तृप्त कर, कि हम जीवन भर जयजयकार और आनन्द करते रहें। 19O 90 15 जितने दिन तू ने हमें दु:ख देता आया, और जितने वर्ष हम क्लेश भोगते आए हैं उतने ही वर्ष हम को आनन्द दे। 19O 90 16 तेरी काम तेरे दासों को, और तेरा प्रताप उनकी सन्तान पर प्रगट हो। 19O 90 17 और हमारे परमेश्वर यहोवा की मनोहरता हम पर प्रगट हो, तू हमारे हाथों का काम हमारे लिये दृढ़ कर, हमारे हाथों के काम को दृढ़ कर।। 19O 91 1 जो परमप्रधान के छाए हुए स्थान में बैठा रहे, वह सर्वशक्तिमान की छाया में ठिकाना पाएगा। 19O 91 2 मैं यहोवा के विषय कहूंगा, कि वह मेरा शरणस्थान और गढ़ है; वह मेरा परमेश्वर है, मैं उस पर भरोसा रखूंगा। 19O 91 3 वह तो मुझे बहेलिये के जाल से, और महामारी से बचाएगा; 19O 91 4 वह तुझे अपने पंखों की आड़ में ले लेगा, और तू उसके पैरों के नीचे शरण पाएगा; उसकी सच्चाई तेरे लिये ढाल और झिलम ठहरेगी। 19O 91 5 तू न रात के भय से डरेगा, और न उस तीर से जो दिन को उड़ता है, 19O 91 6 न उस मरी से जो अन्धेरे में फैलती है, और न उस महारोग से जो दिन दुपहरी में उजाड़ता है।। 19O 91 7 तेरे निकट हजार, और तेरी दहिनी ओर दस हजार गिरेंगे; परन्तु वह तेरे पास न आएगा। 19O 91 8 परनतु तू अपनी आंखों की दृष्टि करेगा और दुष्टों के अन्त को देखेगा।। 19O 91 9 हे यहोवा, तू मेरा शरणस्थान ठहरा है। तू ने जो परमप्रधान को अपना धाम मान लिया है, 19O 91 10 इसलिये कोई विपत्ति तुझ पर न पड़ेगी, न कोई दु:ख तेरे डेरे के निकट आएगा।। 19O 91 11 क्योंकि वह अपने दूतों को तेरे निमित्त आज्ञा देगा, कि जहां कहीं तू जाए वे तेरी रक्षा करें। 19O 91 12 वे तुझ को हाथों हाथ उठा लेंगे, ऐसा न हो कि तेरे पांवों में पत्थर से ठेस लगे। 19O 91 13 तू सिंह और नाग को कुचलेगा, तू जवान सिंह और अजगर को लताड़ेगा। 19O 91 14 उस ने जो मुझ से स्नेह किया है, इसलिये मैं उसको छुड़ाऊंगा; मैं उसको ऊंचे स्थान पर रखूंगा, क्योंकि उस ने मेरे नाम को जान लिया है। 19O 91 15 जब वह मुझ को पुकारे, तब मैं उसकी सुनूंगा; संकट में मैं उसके संग रहूंगा, मैं उसको बचाकर उसकी महिमा बढ़ाऊंगा। 19O 91 16 मैं उसको दीर्घायु से तृप्त करूंगा, और अपने किए हुए उद्धार का दर्शन दिखाऊंगा।। 19O 92 1 यहोवा का धन्यवाद करना भला है, हे परमप्रधान, तेरे नाम का भजन गाना; 19O 92 2 प्रात:काल को तेरी करूणा, और प्रति रात तेरी सच्चाई का प्रचार करना, 19O 92 3 दस तारवाले बाजे और सारंगी पर, और वीणा पर गम्भीर स्वर से गाना भला है। 19O 92 4 क्योंकि, हे यहोवा, तू ने मुझ को अपने काम से आनन्दित किया है; और मैं तेरे हाथों के कामों के कारण जयजयकार करूंगा।। 19O 92 5 हे यहोवा, तेरे काम क्या ही बड़े है! तेरी कल्पनाएं बहुत गम्भीर है! 19O 92 6 पशु समान मनुष्य इसको नहीं समझता, और मूर्ख इसका विचार नहीं करता: 19O 92 7 कि दुष्ट जो घास की नाईं फूलते- फलते हैं, और सब अनर्थकारी जो प्रफुल्लित होते हैं, यह इसलिये होता है, कि वे सर्वदा के लिये नाश हो जाएं, 19O 92 8 परन्तु हे यहोवा, तू सदा विराजमान रहेगा। 19O 92 9 क्योंकि ये यहोवा, तेरे शत्रु, हां तेरे शत्रु नाश होंगे; सब अनर्थकारी तितर बितर होंगे।। 19O 92 10 परन्तु मेरा सींग तू ने जंगली सांढ़ का सा ऊंचा किया है; मैं टटके तेल से चुपड़ा गया हूं। 19O 92 11 और मैं अपने द्रोहियों पर दृष्टि करके, और उन कुकर्मियों का हाल मेरे विरूद्ध उठे थे, सुनकर सन्तुष्ट हुआ हूं।। 19O 92 12 धर्मी लोग खजूर की नाई फूले फलेंगे, और लबानोन के देवदार की नाई बढ़ते रहेंगे। 19O 92 13 वे यहोवा के भवन में रोपे जाकर, हमारे परमेश्वर के आंगनों में फूले फलेंगे। 19O 92 14 वे पुराने होने पर भी फलते रहेंगे, और रस भरे और लहलहाते रहेंगे, 19O 92 15 जिस से यह प्रगट हो, कि यहोवा सीधा है; वह मेरी चट्टान है, और उस में कुटिलता कुछ भी नहीं।। 19O 93 1 यहोवा राजा है; उस ने माहात्म्य का पहिरावा पहिना है; यहोवा पहिरावा पहिने हुए, और सामर्थ्य का फेटा बान्धे है। इस कारण जगत स्थिर है, वह नहीं टलने का। 19O 93 2 हे यहोवा, तेरी राजगद्दी अनादिकाल से स्थिर है, तू सर्वदा से है।। 19O 93 3 हे यहोवा, महानदों का कोलाहल हो रहा है, महानदों का बड़ा शब्द हो रहा है, महानद गरजते हैं। 19O 93 4 महासागर के शब्द से, और समुद्र की महातरंगों से, विराजमान यहोवा अधिक महान है।। 19O 93 5 तेरी चितौनियां अति विश्वासयोग्य हैं; हे यहोवा तेरे भवन को युग युग पवित्राता ही शोभा देती है।। 19O 94 1 हे यहोवा, हे पलटा लेनेवाले ईश्वर, हे पलटा लेनेवाले ईश्वर, अपना तेज दिखा! 19O 94 2 हे पृथ्वी के न्यायी उठ; और घमण्ड़ियों को बदला दे! 19O 94 3 हे यहोवा, दुष्ट लोग कब तक, दुष्ट लोग कब तक डींग मारते रहेंगे? 19O 94 4 वे बकते और ढ़िठाई की बातें बोलते हैं, सब अनर्थकारी बड़ाई मारते हैं। 19O 94 5 हे यहोवा, वे तेरी प्रजा को पीस डालते हैं, वे तेरे निज भाग को दु:ख देते हैं। 19O 94 6 वे विधवा और परदेशी का घात करते, और बपमूओं को मार डालते हैं; 19O 94 7 और कहते हैं, कि याह न देखेगा, याकूब का परमेश्वर विचार न करेगा।। 19O 94 8 तुम जो प्रजा में पशु सरीखे हो, विचार करो; और हे मूर्खों तुम कब तक बुद्धिमान हो जाओगे? 19O 94 9 जिस ने कान दिया, क्या वह आप नहीं सुनता? जिस ने आंख रची, क्या वह आप नहीं देखता? 19O 94 10 जो जाति जाति को ताड़ना देता, और मनुष्य को ज्ञान सिखाता है, क्या वह न समझाएगा? 19O 94 11 यहोवा मनुष्य की कल्पनाओं को तो जानता है कि वे मिथ्या हैं।। 19O 94 12 हे यहा, क्या ही धन्य है वह पुरूष जिसको तू ताड़ना देता है, और अपनी व्यवस्था सिखाता है, 19O 94 13 क्योंकि तू उसको विपत्ति के दिनों में उस समय तक चैन देता रहता है, जब तक दुष्टों के लिये गड़हा नहीं खोदा जाता। 19O 94 14 क्योंकि यहोवा अपनी प्रजा को न तजेगा, वह अपने निज भाग को न छोड़ेगा; 19O 94 15 परन्तु न्याय फिर धर्म के अनुसार किया जाएगा, और सारे सीधे मनवाले उसके पीछे पीछे हो लेंगे।। 19O 94 16 कुकर्मियों के विरूद्ध मेरी ओर कौन खड़ा होगा? मेरी ओर से अनर्थकारियों का कौन साम्हना करेगा? 19O 94 17 यदि यहोवा मेरा सहायक न होता, तो क्षण भर में मुझे चुपचाप होकर रहना पड़ता। 19O 94 18 जब मैं ने कहा, कि मेरा पांव फिसलने लगा है, तब हे यहोवा, तेरी करूणा ने मुझे थाम लिया। 19O 94 19 जब मेरे मन में बहुत सी चिन्ताएं होती हैं, तब हे यहोवा, तेरी दी हुई शान्ति से मुझ को सुख होता है। 19O 94 20 क्या तेरे और दुष्टों के सिंसाहन के बीच सन्धि होगी, जो कानून की आड़ में उत्पात मचाते हैं? 19O 94 21 वे धर्मी का प्राण लेने को दल बान्धते हैं, और निर्दोष को प्राणदण्ड देते हैं। 19O 94 22 परन्तु यहोवा मेरा गढ़, और मेरा परमेश्वर मेरी शरण की चट्टान ठहरा है। 19O 94 23 और उस ने उनका अनर्थ काम उन्हीं पर लौटाया है, और वह उन्हें उन्हीं की बुराई के द्वारा सन्यानाश करेगा; हमारा परमेश्वर यहोवा उनको सत्यानाश करेगा।। 19O 95 1 आओ हम यहोवा के लिये ऊंचे स्वर से गाएं, अपने उद्धार की चट्टान का जयजयकार करें! 19O 95 2 हम धन्यवाद करते हुए उसके सम्मुख आएं, और भजन गाते हुए उसका जयजयकार करें! 19O 95 3 क्योंकि यहोवा महान ईश्वर है, और सब देवताओं के ऊपर महान राजा है। 19O 95 4 पृथ्वी के गहिरे स्थान उसी के हाथ में हैं; और पहाड़ों की चोटियां भी उसी की हैं। 19O 95 5 समुद्र उसका है, और उसी ने उसको बनाया, और स्थल भी उसी के हाथ का रख है।। 19O 95 6 आओ हम झुककर दण्डवत् करें, और अपने कर्ता यहोवा के साम्हने घुटने टेकें! 19O 95 7 क्योंकि वही हमारा परमेश्वर है, और हम उसकी चराई की प्रजा, और उसके हाथ की भेड़ें हैं।। भला होता, कि आज तुम उसकी बात सुनते! 19O 95 8 अपना अपना हृदय ऐसा कठोर मत करो, जैसा मरीबा में, वा मस्सा के दिन जंगल में हुआ था, 19O 95 9 जब तुम्हारे पुरखाओं ने मुझे परखा, उन्हों ने मुझ को जांचा और मेरे काम को भी देखा। 19O 95 10 चालीस वर्ष तक मैं उस पीढ़ी के लोगों से रूठा रहा, और मैं ने कहा, ये तो भरमनेवाले मन के हैं, और इन्हों ने मेरे मार्गों को नहीं पहिचाना। 19O 95 11 इस कारण मैं ने क्रोध में आकर शपथ खाई कि ये मेरे विश्रामस्थान में कभी प्रवेश न करने पाएंगे।। 19O 96 1 यहोवा के लिये एक नया गीत गाओ, हे सारी पृथ्वी के लोगों यहोवा के लिये गाओ! 19O 96 2 यहोवा के लिये गाओ, उसके नाम को धन्य कहो; दिन दिन उसके किए हुए उद्धार का शुभसमाचार सुनाते रहो। 19O 96 3 अन्य जातियों में उसकी महिमा का, और देश देश के लोगों में उसके आश्चर्यकर्मों का वर्णन करो। 19O 96 4 क्योंकि यहोवा महान और अति स्तुति के योग्य है; वह तो सब देवताओं से अधिक भययोग्य है। 19O 96 5 क्योंकि देश देश के सब देवता तो मूरतें ही हैं; परन्तु यहोवा ही ने स्वर्ग को बनाया है। 19O 96 6 उसके चारों और विभव और ऐश्वर्य है; उसके पवित्रास्थान में सामर्थ्य और शोभा है। 19O 96 7 हे देश देश के कुलों, यहोवा का गुणानुवाद करो, यहोवा की महिमा और सामर्थ्य को मानो! 19O 96 8 यहोवा के नाम की ऐसी महिमा करो जो उसके योग्य है; भेंट लेकर उसके आंगनों में आओ! 19O 96 9 पवित्राता से शोभायमान होकर यहोवा को दण्डवत करो; हे सारी पृथ्वी के लोगों उसके साम्हने कांपते रहो! 19O 96 10 जाति जाति में कहो, यहोवा राजा हुआ है! और जगत ऐसा स्थिर है, कि वह टलने का नहीं; वह देश देश के लोगों का न्याय सीधाई से करेगा।। 19O 96 11 आकाश आनन्द करे, और पृथ्वी मगन हो; समुद्र और उस में की सब वस्तुएं गरज उठें; 19O 96 12 मैदान और जो कुछ उस में है, वह प्रफुल्लित हो; उसी समय वन के सारे वृक्ष जयजयकार करेंगे। 19O 96 13 यह यहोवा के साम्हने हो, क्योंकि वह आनेवाला है। वह पृथ्वी का न्याय करने को आने वाला है, वह धर्म से जगत का, और सच्चाई से देश देश के लोगों का न्याय करेगा।। 19O 97 1 यहोवा राजा हुआ है, पृथ्वी मगन हो; और द्वीप जो बहुतेरे हैं, वह भी आनन्द करें! 19O 97 2 बादल और अन्धकार उसके चारों ओर हैं; उसके सिंहासन का मूल धर्म और न्याय है। 19O 97 3 उसके आगे आगे आग चलती हुइ उसके द्रोहियों को चारों ओर भस्म करती है। 19O 97 4 उसकी बिजलियों से जगल प्रकाशित हुआ, पृथ्वी देखकर थरथरा गई है! 19O 97 5 पहाड़ यहोवा के साम्हने, मोम की नाई पिघल गए, अर्थात् सारी पृथ्वी के परमेश्वर के साम्हने।। 19O 97 6 आकाश ने उसके धर्म की साक्षी दी; और देश देश के सब लोगों ने उसकी महिमा देखी है। 19O 97 7 जितने खुदी हुई मूत्तियों की उपासना करते और मूरतों पर फूलते हैं, वे लज्जित हों; हे सब देवताओं तुम उसी को दण्डवत् करो। 19O 97 8 सिरयोन सुनकर आनन्दित हुई, और यहूदा की बेटियां मगन हुई; हे यहोवा, यह तेरे नियमों के कारण हुआ। 19O 97 9 क्योंकि हे यहोवा, तू सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है; तू सारे देवताओं से अधिक महान ठहरा है। 19O 97 10 हे यहोवा के प्रेमियों, बुराई से घृणा करो; वह अपने भक्तों के प्राणो की रक्षा करता, और उन्हें दुष्टों के हाथ से बचाना है। 19O 97 11 धर्मी के लिये ज्योति, और सीधे मनवालों के लिये आनन्द बोया गया है। 19O 97 12 हे धर्मियों यहोवा के कारण आनन्दित हो; और जिस पवित्रा नाम से उसका स्मरण होता है, उसका धन्यवाद करो! 19O 98 1 यहोवा के लिये एक नया गीत गाओ, क्योंकि उस ने आश्चर्यकर्म किए है! उसके दहिने हाथ और पवित्रा भुजा ने उसके लिये उद्धार किया है! 19O 98 2 यहोवा ने अपना किया हुआ उद्धार प्रकाशित किया, उस ने अन्यजातियों की दृष्टि में अपना धर्म प्रगट किया है। 19O 98 3 उस ने इस्राएल के घराने पर की अपनी करूणा और सच्चाई की सुधि ली, और पृथ्वी के सब दूर दूर देशों ने हमारे परमेश्वर का किया हुआ उद्धार देखा है।। 19O 98 4 हे सारी पृथ्वी के लोगों यहोवा का जयजयकार करो; उत्साहपूर्वक जयजयकार करो, और भजन गाओ! 19O 98 5 वीणा बजाकर यहोवा का भजन गाओ, वीणा बजाकर भजन का स्वर सुनाओं। 19O 98 6 तुरहियां और नरसिंगे फूंक फूंककर यहोवा राजा का जयजयकार करो।। 19O 98 7 समुद्र औश्र उस में की सब वस्तुएं गरज उठें; जगत और उसके निवासी महाशब्द करें! 19O 98 8 नदियां तालियां बजाएं; पहाड़ मिलकर जयजयकार करें। 19O 98 9 यह यहोवा के साम्हने हो, क्योंकि वह पृथ्वी का न्याय करने को आनेवाला है। वह धर्म से जगत का, और सीधाई से देश देश के लोगों का न्याय करेगा।। 19O 99 1 यहोवा राजा हुआ है; देश देश के लोग कांप उठें! वह करूबों पर विराजमान है; पृथ्वी डोल उठे! 19O 99 2 यहोवा सिरयोन में महान है; और वह देश देश के लोगों के ऊपर प्रधान है। 19O 99 3 वे तेरे महान और भययोग्य नाम का धन्यवाद करें! वह तो पवित्रा है। 19O 99 4 राजा की सामर्थ्य न्याय से मेल रखती है, तू ही ने सीधाई को स्थापित किया; न्याय और धर्म को याकूब में तू ही ने चालू किया है। 19O 99 5 हमारे परमेश्वर यहोवा को सराहो; और उसके चरणों की चौकी के साम्हने दण्डवत् करो! वह पवित्रा है! 19O 99 6 उसके याजकों में मूसा और हारून, और उसके प्रार्थना करनेवालों में से शमूएल यहोवा को पुकारते थे, और वह उनकी सुन लेता था। 19O 99 7 वह बादल के खम्भे में होकर उन से बातें करता था; और वे उसी चितौनियों और उसकी दी हुई विधियों पर चलते थे।। 19O 99 8 हे हमारे परमेश्वर यहोवा तू उनकी सुन लेता था; तू उनके कामों का पलटा तो लेता था तौभी उनके लिये क्षमा करनेवाला ईश्वर था। 19O 99 9 हमारे परमेश्वर यहोवा को सराहो, और उसके पवित्रा पर्वत पर दण्डवत् करो; क्योंकि हमारा परमेश्वर यहोवा पवित्रा है! 19O 100 1 ृहे सारी पृथ्वी के लोगों यहोवा का जयजयकार करो! 19O 100 2 आनन्द से यहोवा की आराधना करो! जयजयकार के साथ उसके सम्मुख आओ! 19O 100 3 निश्चय जानो, कि यहोवा की परमेश्वर है। उसी ने हम को बनाया, और हम उसी के हैं; हम उसकी प्रजा, और उसकी चराई की भेड़ें हैं।। 19O 100 4 उसके फाटकों से धन्यवाद, और उसके आंगनों में स्तुति करते हुए प्रवेश करो, उसका धन्यवाद करो, और उसके नाम को धन्य कहो! 19O 100 5 क्योंकि यहोवा भला है, उसकी करूणा सदा के लिये, और उसकी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।। 19O 101 1 मैं करूणा और न्याय के विषय गाऊंगा; हे यहोवा, मैं तेरा ही भजन गाऊंगा। 19O 101 2 मैं बुद्धिमानी से खरे मार्ग में चलूंगा। तू मेरे पास कब आएगा! मैं अपने घर में मन की खराई के साथ अपनी चाल चलूंगा; 19O 101 3 मैं किसी आछे काम पर चित्त न लगाऊंगा।। मैं कुमार्ग पर चलनेवालों के काम से घिन रखता हूं; ऐसे काम में मैं न लगूंगा। 19O 101 4 टेढ़ा स्वभाव मुझ से दूर रहेगा; मैं बुराई को जानूंगा भी नहीं।। 19O 101 5 जो छिपकर अपने पड़ोसी की चुगली खाए, उसको मैं सत्यानाश करूंगा; जिसकी आंखें चढ़ी हों और जिसका मन घमण्डी है, उसकी मैं न सहूंगा।। 19O 101 6 मेरी आंखें देश के विश्वासयोग्य लोगों पर लगी रहेंगी कि वे मेरे संग रहें; जो खरे मार्ग पर चलता है वही मेरा टहलुआ होगा।। 19O 101 7 जो छल करता है वह मेरे घर के भीतर न रहने पाएगा; जो झूठ बोलता है वह मेरे साम्हने बना न रहेगा।। 19O 101 8 भोर ही भोर को मैं देश के सब दुष्टों को सत्यानाश किया करूंगा, इसलिये कि यहोवा के नगर के सब अनर्थकारियों को नाश करूं।। 19O 102 1 हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन; मेरी दोहाई तुझ तक पहुंचे! 19O 102 2 मेरे संकट के दिन अपना मुख मुझ से न छिपा ले; अपना कान मेरी ओर लगा; जिस समय मैं पुकारूं, उसी समय फुर्ती से मेरी सुन ले! 19O 102 3 क्योंकि मेरे दिन धुएं की नाईं उड़े जाते हैं, और मेरी हडि्डयां लुकटी के समान जल गई हैं। 19O 102 4 मेरा मन झुलसी हुई घास की नाईं सूख गया है; और मैं अपनी रोटी खाना भूल जाता हूं। 19O 102 5 कहरते कहरते मेरा चमड़ा हडि्डयों में सट गया है। 19O 102 6 मैं जंगल के धनेश के समान हो गया हूं, मैं उजड़े स्थानों के उल्लू के समान बन गया हूं। 19O 102 7 मैं पड़ा पड़ा जागता रहता हूं और गौरे के समान हो गया हूं जो छत के ऊपर अकेला बैठता है। 19O 102 8 मेरे शत्रु लगातार मेरी नामधराई करते हैं, जो मेरे विराध की धुन में बावले हो रहे हैं, वे मेरा नाम लेकर शपथ खाते हैं। 19O 102 9 क्योंकि मैं ने रोटी की नाईं राख खाईं और आंसू मिलाकर पानी पीता हूं। 19O 102 10 यह तेरे क्रोध और कोप के कारण हुआ है, क्योंकि तू ने मुझे उठाया, और फिर फेंक दिया है। 19O 102 11 मेरी आयु ढलती हुई छाया के समान है; और मैं आप घास की नाईं सूख चला हूं।। 19O 102 12 परन्तु हे यहोवा, तू सदैव विराजमान रहेगा; और जिस नाम से तेरा स्मरण होता है, वह पीढ़ी से पीढ़ी तक बना रहेगा। 19O 102 13 तू उठकर सिरयोन पर दया करेगा; क्योंकि उस पर अनुग्रह करने का ठहराया हुअ समय आ पहुंचा है। 19O 102 14 क्योंकि तेरे दास उसके पत्थरों को चाहते हैं, और उसकी धूलि पर तरस खाते हैं। 19O 102 15 इसलिये अन्यजातियां यहोवा के नाम का भय मानेंगी, और पृथ्वी के सब राजा तेरे प्रताप से डरेंगे। 19O 102 16 क्योंकि यहोवा ने सिरयोन को फिर बसाया है, और वह अपनी महिमा के साथ दिखाई देता है; 19O 102 17 वह लाचार की प्रार्थना की ओर मुंह करता है, और उनकी प्रार्थना को तुच्छ नहीं जानता। 19O 102 18 यह बात आनेवाली पीढ़ी के लिये लिखी जाएगी, और एक जाति जो सिरजी जाएगी वही याह की स्तुति करेगी। 19O 102 19 क्योंकि यहोवा ने अपने ऊंचे और पवित्रा स्थान से दृष्टि करके स्वर्ग से पृथ्वी की ओर देखा है, 19O 102 20 ताकि बन्धुओं का कराहना सुने, और घात होनवालों के बन्धन खोले; 19O 102 21 और सिरयोन में यहोवा के नाम का वर्णन किया जाए, और यरूशलेम में उसकी स्तुति की जाए; 19O 102 22 यह उस समय होगा जब देश देश, और राज्य राज्य के लोग यहोवा की उपासना करने को इकट्ठे होंगे।। 19O 102 23 उस ने मुझे जीवन यात्रा में दु:ख देकर, मेरे बल और आयु को घटाया। 19O 102 24 मैं ने कहा, हे मेरे ईश्वर, मुझे आधी आयु में न उठा ले, मेरे वर्ष पीढ़ी से पीढ़ी तक बने रहेंगे! 19O 102 25 आदि में तू ने पृथ्वी की नेव डाली, और आकाश तेरे हाथों का बनाया हुआ है। 19O 102 26 वह तो नाश होगा, परन्तु तू बना रहेगा; और वह सब कपड़े के समान पुराना हो जाएगा। तू उसको वस्त्रा की नाई बदलेगा, और वह तो बदल जाएगा; 19O 102 27 परन्तु तू वहीं है, और तेरे वर्षों का अन्त नहीं होने का। 19O 102 28 तेरे दासों की सन्तान बनी रहेगी; और उनका वंश तेरे साम्हने स्थिर रहेगा।। 19O 103 1 हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह; और जो कुछ मुझ में है, वह उसके पवित्रा नाम को धन्य कहे! 19O 103 2 हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह, और उसके किसी उपकार को न भूलना। 19O 103 3 वही तो तेरे सब अधर्म को क्षमा करता, और तेरे सब रोगों को चंगा करता है, 19O 103 4 वही तो तेरे प्राण को नाश होने से बचा लेता है, और तेरे सिर पर करूणा और दया का मुकुट बान्धता है, 19O 103 5 वही तो तेरी लालसा को उत्तम पदार्थों से तृप्त करता है, जिस से तेरी जवानी उकाब की नाईं नई हो जाती है।। 19O 103 6 यहोवा सब पिसे हुओं के लिये धर्म और न्याय के काम करता है। 19O 103 7 उस ने मूसा को अपनी गति, और इस्राएलियों पर अपने काम प्रगट किए। 19O 103 8 यहोवा दयालु और अनुग्रहकरी, विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करूणामय है। 19O 103 9 वह सर्वदा वादविवाद करता न रहेगा, न उसका क्रोध सदा के लिये भड़का रहेगा। 19O 103 10 उस ने हमारे पापों के अनुसार हम से व्यवहार नहीं किया, और न हमारे अधर्म के कामों के अनुसार हम को बदला दिया है। 19O 103 11 जैसे आकाश पृथ्वी के ऊपर ऊंचा है, वैसे ही उसकी करूणा उसके डरवैयों के ऊपर प्रबल है। 19O 103 12 उदयाचल अस्ताचल से जितनी दूर है, उस ने हमारे अपराधों को हम से उतनी ही दूर कर दिया है। 19O 103 13 जैसे पिता अपने बालकों पर दया करता है, वैसे ही यहोवा अपने डरवैयों पर दया करता है। 19O 103 14 क्योंकि वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही है।। 19O 103 15 मनुष्य की आयु घास के समान होती है, वह मैदान के फूल की नाईं फूलता है, 19O 103 16 जो पवन लगते ही ठहर नहीं सकता, और न वह अपने स्थान में फिर मिलता है। 19O 103 17 परन्तु यहोवा की करूणा उसके डरवैयों पर युग युग, और उसका धर्म उनके नाती- पोतों पर भी प्रगट होता रहता है, 19O 103 18 अर्थात् उन पर जो उसकी वाचा का पालन करते और उसके उपदेशों को स्मरण करके उन पर चलते हैं।। 19O 103 19 यहोवा ने तो अपना सिंहासन स्वर्ग में स्थिर किया है, और उसका राज्य पूरी सृष्टि पर है। 19O 103 20 हे यहोवा के दूतों, तुम जो बड़े वीर हो, और उसके वचन के मानने से उसको पूरा करते हो उसको धन्य कहो! 19O 103 21 हे यहोवा की सारी सेनाओं, हे उसके टहलुओं, तुम जो उसकी इच्छा पूरी करते हो, उसको धन्य कहो! 19O 103 22 हे यहोवा की सारी सृष्टि, उसके राज्य के सब स्थानों में उसको धन्य कहो। हे मेरे मन, तू यहोवा को धन्य कह! 19O 104 1 हे मेरे मन, तू यहोवा को धन्य कह! हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू अत्यन्त महान है! तू विभव और ऐश्वर्य का वस्त्रा पहिने हुए है, 19O 104 2 जो उजियाले को चादर की नाई ओढ़े रहता है, और आकाश को तम्बू के समान ताने रहता है, 19O 104 3 जो अपनी अटारियों की कड़ियां जल में धरता है, और मेघों को अपना रथ बनाता है, और पवन के पंखों पर चलता है, 19O 104 4 जो पवनों को अपने दूत, और धधकती आग को अपने टहलुए बनाता है।। 19O 104 5 तू ने पृथ्वी को उसकी नीव पर स्थिर किया है, ताकि वह कभी न डगमगाए। 19O 104 6 तू ने उसको गहिरे सागर से ढांप दिया है जैसे वस्त्रा से; जल पहाड़ों के ऊपर ठहर गया। 19O 104 7 तेरी घुड़की से वह भाग गया; तेरे गरजने का शब्द सुनते ही, वह उतावली करके बह गया। 19O 104 8 वह पहाड़ों पर चढ़ गया, और तराईयों के मार्ग से उस स्थान में उतर गया जिसे तू ने उसके लिये तैयार किया था। 19O 104 9 तू ने एक सिवाना ठहराया जिसको वह नहीं लांघ सकता है, और न फिरकर स्थल को ढांप सकता है।। 19O 104 10 तू नालों में सोतों को बहाता है; वे पहाड़ों के बीच से बहते हैं, 19O 104 11 उन से मैदान के सब जीव- जन्तु जल पीते हैं; जंगली गदहे भी अपनी प्यास बुझा लेते हैं। 19O 104 12 उनके पास आकाश के पक्षी बसेरा करते, और डालियों के बीच में से बोलते हैं। 19O 104 13 तू अपनी अटारियों में से पहाड़ों को सींचता है तेरे कामों के फल से पृथ्वी तृप्त रहती है।। 19O 104 14 तू पशुओं के लिये घास, और मनुष्यों के काम के लिये अन्नादि उपजाता है, और इस रीति भूमि से वह भोजन- वस्तुएं उत्पन्न करता है, 19O 104 15 और दाखमधु जिस से मनुष्य का मन आनन्दित होता है, और तेल जिस से उसका मुख चमकता है, और अन्न जिस से वह सम्भल जाता है। 19O 104 16 यहोवा के वृक्ष तृप्त रहते हैं, अर्थात् लबानोन के देवदार जो उसी के लगाए हुए हैं। 19O 104 17 उन में चिड़ियां अपने घोंसले बनाती हैं; लगलग का बसेरा सनौवर के वृक्षों में होता है। 19O 104 18 ऊंचे पहाड़ जंगली बकरों के लिये हैं; और चट्टानें शापानों के शरणस्थान हैं। 19O 104 19 उस ने नियत समयों के लिये चन्द्रमा को बनाया है; सूर्य अपने अस्त होने का समय जानता है। 19O 104 20 तू अन्धकार करता है, तब रात हो जाती है; जिस में वन के सब जीव जन्तु घूमते फिरते हैं। 19O 104 21 जवान सिंह अहेर के लिये गरजते हैं, और ईश्वर से अपना आहार मांगते हैं। 19O 104 22 सूर्य उदय होते ही वे चले जाते हैं और अपनी मांदों में जा बैठते हैं। 19O 104 23 तब मनुष्य अपने काम के लिये और सन्ध्या तक परिश्रम करने के लिये निकलता है। 19O 104 24 हे यहोवा तेरे काम अनगिनित हैं! इन सब वस्तुओं को तू ने बुद्धि से बनाया है; पृथ्वी तेरी सम्पत्ति से परिपूर्ण है। 19O 104 25 इसी प्रकार समुद्र बड़ा और बहुत ही चौड़ा है, और उस में अनगिनित जलचरी जीव- जन्तु, क्या छोटे, क्या बड़े भरे पड़े हैं। 19O 104 26 उस में जहाज भी आते जाते हैं, और लिब्यातान भी जिसे तू ने वहां खेलने के लिये बनाया है।। 19O 104 27 इन सब को तेरा ही आसरा है, कि तू उनका आहार समय पर दिया करे। 19O 104 28 तू उन्हें देता हे, वे चुन लेते हैं; तू अपनी मुट्ठी खोलता है और वे उत्तम पदार्थों से तृप्त होते हैं। 19O 104 29 तू मुख फेर लेता है, और वे घबरा जाते हैं; तू उनकी सांस ले लेता है, और उनके प्राण छूट जाते हैं और मिट्टी में फिर मिल जाते हैं। 19O 104 30 फिर तू अपनी ओर से सांस भेजता है, और वे सिरजे जाते हैं; और तू धरती को नया कर देता है।। 19O 104 31 यहोवा की महिमा सदा काल बनी रहे, यहोवा अपने कामों से आन्दित होवे! 19O 104 32 उसकी दृष्टि ही से पृथ्वी कांप उठती है, और उसके छूते ही पहाड़ों से धुआं निकलता है। 19O 104 33 मैं जीवन भर यहोवा का गीत गाता रहूंगा; जब तक मैं बना रहूंगा तब तक अपने परमेश्वर का भजन गाता रहूंगा। 19O 104 34 मेरा ध्यान करना, उसको प्रिय लगे, क्योंकि मैं तो याहेवा के कारण आनन्दित रहूंगा। 19O 104 35 पापी लोग पृथ्वी पर से मिट जाएं, और दुष्ट लोग आगे को न रहें! हे मेरे मन यहोवा को धन्य कह! याह की स्तुति करो! 19O 105 1 यहोवा का धन्यवाद करो, उस से प्रार्थना करो, देश देश के लोगों में उसके कामों का प्रचार करो! 19O 105 2 उसके लिये गीत गाओ, उसके लिये भजन गाओ, उसके सब आश्चर्यकर्मों पर ध्यान करो! 19O 105 3 उसके पवित्रा नाम की बढ़ाई करो; यहोवा के खोजियों का हृदय आनन्दित हो! 19O 105 4 यहोवा और उसकी सामर्थ को खोजो, उसके दर्शन के लगातार खोजी बने रहो! 19O 105 5 उसके किए हु आश्चर्यकर्म स्मरण करो, उसके चमत्कार और निर्णय स्मरण करो! 19O 105 6 हे उसके दास इब्राहीम के वंश, हे याकूब की सन्तान, तुम तो उसके चुने हुए हो! 19O 105 7 वही हमारा परमेश्वर यहोवा है; पृथ्वी भर में उसके निर्णय होते हैं। 19O 105 8 वह अपनी वाचा को सदा स्मरण रखता आया है, यह वही वचन है जो उस ने हजार पीढ़ीयों के लिये ठहराया है; 19O 105 9 वही वाचा जो उस ने इब्राहीम के साथ बान्धी, और उसके विषय में उस ने इसहाक से शपथ खाई, 19O 105 10 और उसी को उस ने याकूब के लिये विधि करके, और इस्राएल के लिये यह कहकर सदा की वाचा करके दृढ़ किया, 19O 105 11 कि मैं कनान देश को तुझी को दूंगा, वह बांट में तुम्हारा निज भाग होगा।। 19O 105 12 उस समय तो वे गिनती में थोड़े थे, वरन बहुत ही थोड़े, और उस देश में परदेशी थे। 19O 105 13 वे एक जाति से दूसरी जाति में, और एक राज्य से दूसरे राज्य में फिरते रहे; 19O 105 14 परन्तु उस ने किसी मनुष्य को उन पर अन्धेर करने न दिया; और वह राजाओं को उनके निमित्त यह धमकी देता था, 19O 105 15 कि मेरे अभिषिक्तों को मत छुओं, और न मेरे नबियों की हानि करो! 19O 105 16 फिर उस ने उस देश में अकाल भेजा, और अन्न के सब आधार को दूर कर दिया। 19O 105 17 उस ने यूसुफ नाम एक पुरूष को उन से पहिले भेजा था, जो दास होने के लिये बेचा गया था। 19O 105 18 लोंगों ने उसके पैरों में बेड़ियां डालकर उसे दु:ख दिया; वह लोहे की सांकलों से जकड़ा गया; 19O 105 19 जब तक कि उसकी बात पूरी न हुई तब तक यहोवा का वचन उसे कसौटी पर कसता रहा। 19O 105 20 तब राजा के दूत भेजकर उसे निकलवा लिया, और देश देश के लोगों के स्वामी ने उसके बन्धन खुलवाए; 19O 105 21 उस ने उसको अपने भवन का प्रधान और अपनी पूरी सम्पत्ति का अधिकारी ठहराया, 19O 105 22 कि वह उसके हाकिमों को अपनी इच्छा के अनुसार कैद करे और पुरनियों को ज्ञान सिखाए।। 19O 105 23 फिर इस्राएल मि में आया; और याकूब हाम के देश में परेदशी रहा। 19O 105 24 तब उस ने अपनी प्रजा को गिनती में बहुत बढ़ाया, और उसके द्रोहियो से अधिक बलवन्त किया। 19O 105 25 उस ने मिस्त्रियों के मन को ऐसा फेर दिया, कि वे उसकी प्रजा से बैर रखने, और उसके दासों से छल करने लगे।। 19O 105 26 उस ने अपने दास मूसा को, और अपने चुने हुए हारून को भेजा। 19O 105 27 उन्हों ने उनके बीच उसकी ओर से भांति भांति के चिन्ह, और हाम के देश में चमत्कार दिखाए। 19O 105 28 उस ने अन्धकार कर दिया, और अन्धियारा हो गया; और उन्हों ने उसकी बातों को न टाला। 19O 105 29 उस ने मिस्त्रियों के जल को लोहू कर डाला, और मछलियों को मार डाला। 19O 105 30 मेंढक उनकी भूमि में वरन उनके राजा की कोठरियों में भी भर गए। 19O 105 31 उस ने आज्ञा दी, तब डांस आ गए, और उनके सारे देश में कुटकियां आ गईं। 19O 105 32 उस ने उनके लिये जलवृष्टि की सन्ती ओले, और उनके देश में धधकती आग बरसाई। 19O 105 33 और उस ने उनकी दाखलताओं और अंजीर के वृक्षों को वरन उनके देश के सब पेड़ों को तोड़ डाला। 19O 105 34 उस ने आज्ञा दी तब अनगिनत टिडि्डयां, और कीड़े आए, 19O 105 35 और उन्हों ने उनके देश के सब अन्नादि को खा डाला; औश्र उनकी भूमि के सब फलों को चट कर गए। 19O 105 36 उस ने उनके देश के सब पहिलौठों को, उनके पौरूष के सब पहिले फल को नाश किया।। 19O 105 37 तब वह अपने गोत्रियों को सोना चांदी दिलाकर निकाल लाया, और उन में से कोई निर्बल न था। 19O 105 38 उनके जाने से मिस्त्रि आनन्दित हुए, क्योंकि उनका डर उन में समा गया था। 19O 105 39 उस ने छाया के लिये बादल फैलाया, और रात को प्रकाश देने के लिये आग प्रगट की। 19O 105 40 उन्हों ने मांगा तब उस ने बटेरें पहुंचाई, और उनको स्वर्गीय भोजन से तृप्त किया। 19O 105 41 उस ने चट्टान फाड़ी तब पानी बह निकला; और निर्जल भूमि पर नदी बहने लगी। 19O 105 42 क्योंकि उस ने अपने पवित्रा वचन और अपने दास इब्राहीम को स्मरण किया।। 19O 105 43 वह अपनी प्रजा को हर्षित करके और अपने चुने हुओं से जयजयकार करोके निकाल लाया। 19O 105 44 और उनको अन्यजातियों के देश दिए; और वे और लोगों के श्रम के फल के अधिकारी किए गए, 19O 105 45 कि वे उसकी विधियों को मानें, और उसकी व्यवस्था को पूरी करें। याह की स्तुति करो! 19O 106 1 याह की स्तुति करो! यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करूणा सदा की है! 19O 106 2 यहोवा के पराक्रम के कामों का वर्णन कौन कर सकता है, न उसका पूरा गुणानुवाद कौन सुना सकता? 19O 106 3 क्या ही धन्य हैं वे जो न्याय पर चलते, और हर समय धर्म के काम करते हैं! 19O 106 4 हे यहोवा, अपनी प्रजा पर की प्रसन्नता के अनुसार मुझे स्मरण कर, मेरे उद्धार के लिये मेरी सुधि ले, 19O 106 5 कि मैं तेरे चुने हुओं का कल्याण देखूं, और तेरी प्रजा के आनन्द में आनन्दित हो जाऊं; और तेरे निज भाग के संग बड़ाई करने पाऊं।। 19O 106 6 हम ने तो अपने पुरखाओं की नाईं पाप किया है; हम ने कुटिलता की, हम ने दुष्टता की है! 19O 106 7 मि में हमारे पुरखाओं ने तेरे आश्चर्यकर्मों पर मन नहीं लगाया, न तेरी अपार करूणा को स्मरण रखा; उन्हों ने समुद्र के तीर पर, अर्थात् लाल समुद्र के तीर पर बलवा किया। 19O 106 8 तौभी उस ने अपने नाम के निमित्त उनका उद्धार किया, जिस से वह अपने पराक्रम को प्रगट करे। 19O 106 9 तब उस ने लाल समुद्र को घुड़का और वह सूख गया; और वह उन्हें गहिरे जल के बीच से मानों जंगल में से निकाल ले गया। 19O 106 10 उस ने उन्हें बैरी के हाथ से उबारा, और शत्रु के हाथ से छुड़ा लिया। 19O 106 11 और उनके द्रोही जल में डूब गए; उन में से एक भी न बचा। 19O 106 12 तब उनहों ने उसके वचनों का विश्वास किया; और उसकी स्तुति गाने लगे।। 19O 106 13 परन्तु वे झट उसके कामों को भूल गए; और उसकी युक्ति के लिये न ठहरे। 19O 106 14 उन्हों ने जंगल में अति लालसा की और निर्जल स्थान में ईश्वर की परीक्षा की। 19O 106 15 तब उस ने उन्हें मुंह मांगा वर तो दिया, परन्तु उनके प्राण को सुखा दिया।। 19O 106 16 उन्हों ने छावनी में मूसा के, और यहोवा के पवित्रा जन हारून के विषय में डाह की, 19O 106 17 भूमि फट कर दातान को निगल गई, और अबीराम के झुण्ड को ग्रस लिया। 19O 106 18 और उनके झुण्ड में आग भड़क उठी; और दुष्ट लोग लौ से भस्म हो गए।। 19O 106 19 उन्हों ने होरब में बछड़ा बनाया, और ढली हुई मूत्ति को दण्डवत् की। 19O 106 20 यों उन्हों ने अपनी महिमा अर्थात् ईश्वर को घास खानेवाले बैल की प्रतिमा से बदल डाला। 19O 106 21 वे अपने उद्धारकर्ता ईश्वर को भूल गए, जिस ने मि में बड़े बड़े काम किए थे। 19O 106 22 उस ने तो हाम के देश में आश्चर्यकर्म और लाल समुद्र के तीर पर भयंकर काम किए थे। 19O 106 23 इसलिये उस ने कहा, कि मैं इन्हें सत्यानाश कर डालता यदि मेरा चुना हुआ मूसा जोखिम के स्थान में उनके लिये खड़ा न होता ताकि मेरी जलजलाहट को ठण्डा करे कहीं ऐसा न हो कि मैं उन्हें नाश कर डालूं।। 19O 106 24 उन्हों ने मनभावने देश को निकम्मा जाना, और उसके वचन की प्रतीति न की। 19O 106 25 वे अपने तम्बुओं में कुड़कुड़ाए, और यहोवा का कहा न माना। 19O 106 26 तब उस ने उनके विषय में शपथ खाई कि मैं इनको जंगल में नाश करूंगा, 19O 106 27 और इनके वंश को अन्यजातियों के सम्मुख गिरा दूंगा, और देश देश में तितर बितर करूंगा।। 19O 106 28 वे पोरवाले बाल देवता को पूजने लगे और मुर्दों को चढ़ाए हुए पशुओं का मांस खाने लगे। 19O 106 29 यों उन्हों ने अपने कामों से उसको क्रोध दिलाया और मरी उन में फूट पड़ी। 19O 106 30 तब पीहास ने उठकर न्यायदण्ड दिया, जिस से मरी थम गई। 19O 106 31 और यह उसके लेखे पीढ़ी से पीढ़ी तक सर्वदा के लिये धर्म गिना गया।। 19O 106 32 उन्हों ने मरीबा के सोते के पास भी यहोवा का क्रोध भड़काया, और उनके कारण मूसा की हानि हुई; 19O 106 33 क्योंकि उन्हों ने उसकी आत्मा से बलवा किया, तब मूसा बिन सोचे बोल उठा। 19O 106 34 जिन लोगों के विषय यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी थी, उनको उन्हों ने सत्यानाश न किया, 19O 106 35 वरन उन्हीं जातियों से हिलमिल गए और उनके व्यवहारों को सीख लिया; 19O 106 36 और उनकी मूत्तियों की पूजा करने लगे, और वे उनके लिये फन्दा बन गई। 19O 106 37 वरन उन्हों ने अपने बेटे- बेटियों को पिशाचों के लिये बलिदान किया; 19O 106 38 और अपने निर्दोष बेटे- बेटियों का लोहू बहाया जिन्हें उन्हों ने कनान की मूत्तियों पर बलि किया, इसलिये देश खून से अपवित्रा हो गया। 19O 106 39 और वे आप अपने कामों के द्वारा अशुद्ध हो गए, और अपने कार्यों के द्वारा व्यभिचारी भी बन गए।। 19O 106 40 तब यहोवा का क्रोध अपनी प्रजा पर भड़का, और उसको अपने निज भाग से घृणा आई; 19O 106 41 तब उस ने उनको अन्यजातियों के वश में कर दिया, और उनके बैरियो ने उन पर प्रभुता की। 19O 106 42 उनके शत्रुओं ने उन पर अन्धेर किया, और वे उनके हाथ तले दब गए। 19O 106 43 बारम्बार उस ने उन्हें छुड़ाया, परन्तु वे उसके विरूद्ध युक्ति करते गए, और अपने अधर्म के कारण दबते गए। 19O 106 44 तौभी जब जब उनका चिल्लाना उसके कान में पड़ा, तब तब उस ने उनके संकट पर दृष्टि की! 19O 106 45 और उनके हित अपनी वाचा को स्मरण करके अपनी अपार करूणा के अनुसार तरस खाया, 19O 106 46 औश्र जो उन्हें बन्धुए करके ले गए थे उन सब से उन पर दया कराई।। 19O 106 47 हे हमारे परमेश्वर यहोवा, हमारा उद्धार कर, और हमें अन्यजातियों में से इकट्ठा कर ले, कि हम तेरे पवित्रा नाम का धन्यवाद करें, और तेरी स्तुति करते हुए तेरे विषय में बड़ाई करें।। 19O 106 48 इस्राएल का परमेश्वर यहोवा अनादिकाल से अनन्तकाल तक धन्य है! और सारी प्रजा कहे आमीन! याह की स्तुति करो।। 19O 107 1 यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करूणा सदा की है! 19O 107 2 यहोवा के छुड़ाए हुए ऐसा ही कहें, जिन्हें उस ने द्रोही के हाथ से दाम देकर छुड़ा लिया है, 19O 107 3 और उन्हें देश देश से पूरब- पश्चिम, उत्तर और दक्खिन से इकट्ठा किया है।। 19O 107 4 वे जंगल में मरूभूमि के मार्ग पर भटकते फिरे, और कोई बसा हुआ नगर न पाया; 19O 107 5 भूख और प्यास के मारे, वे विकल हो गए। 19O 107 6 तब उन्हों ने संकट में यहोवा की दोहाई दी, और उस ने उनको सकेती से छुड़ाया; 19O 107 7 और उनको ठीक मार्ग पर चलाया, ताकि वे बसने के लिये किसी नगर को जा पहुंचे। 19O 107 8 लोग यहोवा की करूणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मों के कारण, जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें! 19O 107 9 क्योंकि वह अभिलाषी जीव को सन्तुष्ट करता है, और भूखे को उत्तम पदार्थों से तृप्त करता है।। 19O 107 10 जो अन्धियारे और मृत्यु की छाया में बैठे, और दु:ख में पड़े और बेड़ियों से जकड़े हुए थे, 19O 107 11 इसलिये कि वे ईश्वर के वचनों के विरूद्ध चले, और परमप्रधान की सम्मति को तुच्छ जाना। 19O 107 12 तब उसने उनको कष्ट के द्वारा दबाया; वे ठोकर खाकर गिर पड़े, और उनको कोई सहायक न मिला। 19O 107 13 तब उन्हों ने संकट में यहोवा की दोहाई दी, और उस न सकेती से उनका उद्धार किया; 19O 107 14 उस ने उनको अन्धियारे और मृत्यु की छाया में से निकाल लिया; और उनके बन्धनों को तोड़ डाला। 19O 107 15 लोग यहोवा की करूणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें! 19O 107 16 क्योंकि उस ने पीतल के फाटकों को तोड़ा, और लोहे के बेण्डों को टुकड़े टुकड़े किया।। 19O 107 17 मूढ़ अपनी कुचाल, और अधर्म के कामों के कारण अति दु:खित होते हैं। 19O 107 18 उनका जी सब भांति के भोजन से मिचलाता है, और वे मृत्यु के फाटक तक पहुंचते हैं। 19O 107 19 तब वे संकट में यहोवा की दोहाई देते हैं, और व सकेती से उनका उद्धार करता है; 19O 107 20 वह अपने वचन के द्वारा उनको चंगा करता और जिस गड़हे में वे पड़े हैं, उस से निकालता है। 19O 107 21 लोग यहोवा की करूणा के कारण और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें! 19O 107 22 और वे धन्यवादबलि चढ़ाएं, और जयजयकार करते हुए, उसके कामों का वर्णन करें।। 19O 107 23 जो लोग जहाजों में समुद्र पर चलते हैं, और महासागर पर होकर व्योपार करते हैं; 19O 107 24 वे यहोवा के कामों को, और उन आश्चर्यकर्मों को जो वह गहिरे समुद्र में करता है, देखते हैं। 19O 107 25 क्योंकि वह आज्ञा देता है, वह प्रचण्ड बयार उठकर तरंगों को उठाती है। 19O 107 26 वे आकाश तक चढ़ जाते, फिर गहराई में उतर आते हैं; और क्लेश के मारे उनके जी में जी नहीं रहता; 19O 107 27 वे चक्कर खाते, और मतवाले की नाई लड़खड़ाते हैं, और उनकी सारी बुद्धि मारी जाती है। 19O 107 28 तब वे संकट में यहोवा की दोहाई देते हैं, और वह उनको सकेती से निकालता है। 19O 107 29 वह आंधी को थाम देता है और तरंगें बैठ जाती हैं। 19O 107 30 तब वे उनके बैठने से आनन्दित होते हैं, और वह उनको मन चाहे बन्दर स्थान में पहुंचा देता है। 19O 107 31 लोग यहोवा की करूणा के कारण, और वह उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें। 19O 107 32 और सभा में उसको सराहें, और पुरतियों के बैठक में उसकी स्तुति करें।। 19O 107 33 वह नदियों को जंगल बना डालता है, और जल के सोतों को सूखी भूमि कर देता है। 19O 107 34 वह फलवन्त भूमि को नोनी करता है, यह वहां के रहनेवालों की दुष्टता के कारण होता है। 19O 107 35 वह जंगल को जल का ताल, और निर्जल देश को जल के सोते कर देता है। 19O 107 36 और वहां वह भूखों को बसाता है, कि वे बसने के लिये नगर तैयार करें; 19O 107 37 और खेती करें, और दाख की बारियां लगाएं, और भांति भांति के फल उपजा लें। 19O 107 38 और वह उनको ऐसी आशीष देता है कि वे बहुत बढ़ जाते हैं, और उनके पशुओं को भी वह घटने नहीं देता।। 19O 107 39 फिर अन्धेर, विपत्ति और शोक के कारण, वे घटते और दब जाते हैं। 19O 107 40 और वह हाकिमों को अपमान से लादकर मार्ग रहित जंगल में भटकाता है; 19O 107 41 वह दरिद्रों को दु:ख से छुड़ाकर ऊंचे पर रखता है, और उनको भेड़ों के झुंड सा परिवार देता है। 19O 107 42 सीधे लोग देखकर आनन्दित होते हैं; और सब कुटिल लोग अपने मुंह बन्द करते हैं। 19O 107 43 जो कोई बुद्धिमान हो, वह इन बातों पर ध्यान करेगा; और यहोवा की करूणा के कामों पर ध्यान करेगा।। 19O 108 1 हे परमेश्वर, मेरा हृदय स्थ्रि है; मैं गाऊंगा, मैं अपनी आत्मा से भी भजन गाऊंगा। 19O 108 2 हे सारंगी और वीणा जागो! मैं आप पौ फटते जाग उठूंगा! 19O 108 3 हे यहोवा, मैं देश देश के लोगों के मध्य में तेरा धन्यवाद करूंगा, और राज्य राज्य के लोगों के मध्य में तेरा भजन गाऊंगा। 19O 108 4 क्योंकि तेरी करूणा आकाश से भी ऊंची है, और तेरी सच्चाई आकाशमण्डल तक है।। 19O 108 5 हे परमेश्वर, तू स्वर्ग के ऊपर हो! और तेरी महिमा सारी पृथ्वी के ऊपर हो! 19O 108 6 इसलिये कि तेरे प्रिय छुड़ाए जाएं, तू अपने दहिने हाथ से बचा ले और हमारी बिनती सुन ले! 19O 108 7 परमेश्वर ने अपनी पवित्राता में होकर कहा है, मैं प्रफुल्लित होकर शेकेम को बांट लूंगा, और सुक्कोत की तराई को नपवाऊंगा। 19O 108 8 गिलाद मेरा है, मनश्शे भी मेरा है; और एप्रैम मेरे सिर का टोप है; यहूदा मेरा राजदण्ड है। 19O 108 9 मोआब मेरे धोने का पात्रा है, मैं एदोम पर अपना जूता फेंकूंगा, पलिश्त पर मैं जयजयकार करूंगा।। 19O 108 10 मुझे गढ़वाले नगर में कौन पहुंचाएगा? ऐदोम तक मेरी अगुवाई किस ने की हैं? 19O 108 11 हे परमेश्वर, क्या तू ने हम को नहीं त्याग दिया, और हे परमेश्वर, तू हमारी सेना के साथ पयान नहीं करता। 19O 108 12 द्रोहियों के विरूद्ध हमारी सहायता कर, क्योंकि मनुष्य का किया हुआ छुटकारा व्यर्थ है! 19O 108 13 परमेश्वर की सहायता से हम वीरता दिखाएंगे, हमारे द्रोहियों को वही रौंदेगा।। 19O 109 1 हे परमेश्वर तू जिसकी मैं स्तुति करता हूं, चुप न रह। 19O 109 2 क्योंकि दुष्ट और कपटी मनुष्यों ने मेरे विरूद्ध मुंह खोला है, वे मेरे विषय में झूठ बोलते हैं। 19O 109 3 और उन्हों ने बैर के वचनों से मुझे चारों ओर घेर लिया है, और व्यर्थ मुझ से लड़ते हैं। 19O 109 4 मेरे प्रेम के बदले में वे मुझ से विरोध करते हैं, परन्तु में तो प्रार्थना में लवलीन रहता हूं। 19O 109 5 उन्हों ने भलाई के पलटे में मुझ से बुराई की और मेरे प्रेम के बदले मुझ से बैर किया है।। 19O 109 6 तू उसको किसी दुष्ट के अधिकार में रख, और कोई विरोधी उसकी दहिनी ओर खड़ा रहे। 19O 109 7 जब उसका न्याय किया जाए, तब वह दोषी निकले, और उसकी प्रार्थना पाप गिनी जाए! 19O 109 8 उसके दिन थोड़े हों, और उसके पद को दूसरा ले! 19O 109 9 उसक लड़केबाले अनाथ हो जाएं और उसकी स्त्री विधवा हो जाए! 19O 109 10 और उसके लड़के मारे मारे फिरें, और भीख मांगा करे; उनको उनके उजड़े हुए घर से दूर जाकर टुकड़े मांगना पड़े! 19O 109 11 महाजन फन्दा लगाकर, उसका सर्वस्व ले ले; और परदेशी उसकी कमाई को लूट लें! 19O 109 12 कोई न हो जो उस पर करूणा करता रहे, और उसके अनाथ बालकों पर कोई अनुग्रह न करे! 19O 109 13 उसका वंश नाश हो जाए, दूसरी पीढ़ी में उसका नाम मिट जाए! 19O 109 14 उसके पितरों का अधर्म यहोवा को स्मरण रहे, और उसकी माता का पाप न मिटे! 19O 109 15 वह निरन्तर यहोवा के सम्मुख रहे, कि वह उनका नाम पृथ्वी पर से मिटा डाले! 19O 109 16 क्योंकि वह दुष्ट, कृपा करना भूल गया वरन दी और दरिद्र को सताता था और मार डालने की इच्छा से खेदित मनवालों के पीछे पड़ा रहता था।। 19O 109 17 वह शाप देने में प्रीति रखता था, और शाप उस पर आ पड़ा; वह आशीर्वाद देने से प्रसन्न न होता था, सो आर्शीवाद उस से दूर रहा। 19O 109 18 वह शाप देना वस्त्रा की नाई पहिनता था, और वह उसके पेट में जल की नाई और उसकी हडि्डयों में तेल की नाई समा गया। 19O 109 19 वह उसके लिये ओढ़ने का काम दे, और फेंटे की नाईं उसकी कटि में नित्य कसा रहे।। 19O 109 20 यहोवा की ओर से मेरे विरोधियों को, और मेरे विरूद्ध बुरा कहनेवालों को यही बदला मिले! 19O 109 21 परन्तु मुझ से हे यहोवा प्रभु, तू अपने नाम के निमित्त बर्ताव कर; तेरी करूणा तो बड़ी है, सो तू मुझे छुटकारा दे! 19O 109 22 क्योंकि मैं दी और दरिद्र हूं, और मेरा हृदय घायल हुआ है। 19O 109 23 मैं ढलती हुई छाया की नाई जाता रहा हूं; मैं टिड्डी के समान उड़ा दिया गया हूं। 19O 109 24 उपवास करते करते मेरे घुटने निर्बल हो गए; और मुझ में चर्बी न रहने से मैं सूख गया हूं। 19O 109 25 मेरी तो उन लोगों से नामधराई होती है; जब वे मुझे देखते, तब सिर हिलाते हैं।। 19O 109 26 हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मेरी सहायता कर! अपनी करूणा के अनुसार मेरा उद्धार कर! 19O 109 27 जिस से वे जाने कि यह तेरा काम है, और हे यहोवा, तू ही ने यह किया है! 19O 109 28 वे कोसते तो रहें, परन्तु तू आशीष दे! वे तो उठते ही लज्जित हों, परन्तु तेरा दास आनन्दित हो! 19O 109 29 मेरे विरोधियों को अनादररूपी वस्त्रा पहिनाया जाए, और वे अपनी लज्जा को कम्बल की नाईं ओढ़ें! 19O 109 30 मैं यहोवा का बहुत धन्यवाद करूंगा, और बहुत लोगों के बीच में उसकी स्तुति करूंगा। 19O 109 31 क्योंकि वह दरिद्र की दहिनी ओर खड़ा रहेगा, कि उसको घात करनेवाले न्यायियों से बचाए।। 19O 110 1 मेरे प्रभु से यहोवा की वाणी यह है, कि तू मेरे दहिने हाथ बैठ, जब तक मैं तेरे शत्रुओं को तेरे चरणों की चौकी न कर दूं।। 19O 110 2 तेरे पराक्रम का राजदण्ड यहोवा सिरयोन से बढ़ाएगा। तू अपने शत्रुओं के बीच में शासन कर। 19O 110 3 तेरी प्रजा के लोगर तेरे पराक्रम के दिन स्वेच्छाबलि बनते हैं; तेरे जवान लोग पवित्राता से शोभायमान, और भोर के गर्भ से जन्मी हुई ओस के समान तेरे पास हैं। 19O 110 4 यहोवा ने शपथ खाई और न पछताएगा, कि तू मेल्कीसेदेक की रीति पर सर्वदा का याजक है।। 19O 110 5 प्रभु तेरी दहिनी ओर होकर अपने क्रोध के दिन राजाओं को चूर कर देगा। 19O 110 6 वह जाति जाति में न्याय चुकाएगा, रणभूमि लोथों से भर जाएगी; वह लम्बे चौड़े देश के प्रधान को चूर चूर कर देगा। 19O 110 7 वह मार्ग में चलता हुआ नदी का जल पीएगा इस कारण वह सिर को ऊंचा करेगा।। 19O 111 1 याह की स्तुति करो। मैं सीधे लोगों की गोष्ठी में और मण्डली में भी सम्पूर्ण मन से यहोवा का धन्यवाद करूंगा। 19O 111 2 यहोवा के काम बड़े हैं, जितने उन से प्रसन्न रहते हैं, वे उन पर ध्यान लगाते हैं। 19O 111 3 उसके काम का विभवमय और ऐश्वरर्यमय होते हैं, और उसका धन सदा तक बना रहेगा। 19O 111 4 उस ने अपने आश्चर्यकर्मों का स्मरण कराया है; यहोवा अनुग्रहकारी और दयावन्त है। 19O 111 5 उस ने अपने डरवैयों को आहार दिया है; वह अपनी वाचा को सदा तक स्मरण रखेगा। 19O 111 6 उस ने अपनी प्रजा को अन्यजातियों का भाग देने के लिये, अपने कामों का प्रताप दिखाया है। 19O 111 7 सच्चाई और न्याय उसके हाथों के काम हैं; उसके सब उपदेश विश्वासयोग्य हैं, 19O 111 8 वे सदा सर्वदा अटल रहेंगे, वे सच्चाई और सिधाई से किए हुए हैं। 19O 111 9 उस ने अपनी प्रजा का उद्धार किया है; उस ने अपनी वाचा को सदा के लिये ठहराया है। उसका नाम पवित्रा और भययोग्य है। 19O 111 10 बुद्धि का मूल यहोवा का भय है; जितने उसकी आज्ञाओं को मानते हैं, उनकी बुद्धि अच्छी होती है। उसकी स्तुति सदा बनी रहेगी।। 19O 112 1 याह की स्तुति करो। क्या ही धन्य है वह पुरूष जो यहोवा का भय मानता है, और उसकी आज्ञाओं से अति प्रसन्न रहता है! 19O 112 2 उसका वंश पृथ्वी पर पराक्रमी होगा; सीधे लोगों की सन्तान आशीष पाएगी। 19O 112 3 उसके घर में धन सम्पत्ति रहती है; और उसका धर्म सदा बना रहेगा। 19O 112 4 सीधे लोगों के लिये अन्धकार के बीच में ज्योति उदय होती है; वह अनुग्रहकारी, दयावन्त और धर्मी होता है। 19O 112 5 जो पुरूष अनुग्रह करता और उधार देता है, उसका कल्याण होता है, वह न्याय में अपने मुक में को जीतेगा। 19O 112 6 वह तो सदा तक अटल रहेगा; धर्मी का स्मरण सदा तक बना रहेगा। 19O 112 7 वह बुरे समाचार से नहीं डरता; उसका हृदय यहोवा पर भरोसा रखने से स्थिर रहता है। 19O 112 8 उसका हृदय सम्भला हुआ है, इसलिये वह न डरेगा, वरन अपने द्रोहियों पर दृष्टि करके सन्तुष्ट होगा। 19O 112 9 उस ने उदारता से दरिद्रों को दान दिया, उसका धर्म सदा बना रहेगा और उसका सींग महिमा के साथ ऊंचा किया जाएगा। 19O 112 10 दुष्ट उसे देखकर कुढेगा; वह दांत पीस- पीसकर गल जाएगा; दुष्टों की लालसा पूरी न होगी।। 19O 113 1 याह की स्तुति करो हे यहोवा के दासों स्तुति करो, यहोवा के नाम की स्तुति करो! 19O 113 2 यहोवा का नाम अब से लेकर सर्वदा तक धन्य कहा जाय! 19O 113 3 उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक, यहोवा का नाम स्तुति के योग्य है। 19O 113 4 यहोवा सारी जातियों के ऊपर महान है, और उसकी महिमा आकाश से भी ऊंची है।। 19O 113 5 हमारे परमेश्वर यहोवा के तुल्य कौन है? वह तो ऊंचे पर विराजमान है, 19O 113 6 और आकाश और पृथ्वी पर भी, दृष्टि करने के लिये झुकता है। 19O 113 7 वह कंगाल को मिट्टी पर से, और दरिद्र को घूरे पर से उठाकर ऊंचा करता है, 19O 113 8 कि उसको प्रधानों के संग, अर्थात् अपनी प्रजा के प्रधानों के संग बैठाए। 19O 113 9 वह बांझ को घर में लड़कों की आनन्द करनेवाली माता बनाता है। याह की स्तुति करो! 19O 114 1 जब इस्राएल ने मि से, अर्थात् याकूब के घराने ने अन्य भाषावालों के बीच में कूच किया, 19O 114 2 तब यहूदा यहोवा का पवित्रास्थान और इस्राएल उसके राज्य के लोग हो गए।। 19O 114 3 समुद्र देखकर भागा, यर्दन नदी उलटी बही। 19O 114 4 पहाड़ मेढ़ों की नाईं उछलने लगे, और पहाड़ियां भेड़- बकरियों के बच्चों की नाईं उछलने लगीं।। 19O 114 5 हे समुद्र, तुझे क्या हुआ, कि तू भागा? और हे यर्दन तुझे क्या हुआ, कि तू उलठी बही? 19O 114 6 हे पहाड़ों तुम्हें क्या हुआ, कि तुम भेड़ों की नाईं, और हे पहाड़ियों तुम्हें क्या हुआ, कि तुम भेड़- बकरियों के बच्चों की नाईं उछलीं? 19O 114 7 हे पृथ्वी प्रभु के साम्हने, हां याकूब के परमेश्वर के साम्हने थरथरा। 19O 114 8 वह चट्टान को जल का ताल, चकमक के पत्थर को जल का सोता बना डालता है।। 19O 115 1 हे यहोवा, हमारी नहीं, हमारी नहीं, वरन अपने ही नाम की महिमा, अपनी करूणा और सच्चाई के निमित्त कर। 19O 115 2 जाति जाति के लोग क्यों कहने पांए, कि उनका परमेश्वर कहां रहा? 19O 115 3 हमारा परमेश्वर तो स्वर्ग में हैं; उस ने जो चाहा वही किया है। 19O 115 4 उन लोगों की मूरतें सोने चान्दी ही की तो हैं, वे मनुष्यों के हाथ की बनाई हुई हैं। 19O 115 5 उनक मुंह तो रहता है परन्तु वे बोल नहीं सकती; उनके आंखें तो रहती हैं परन्तु वे देख नहीं सकतीं। 19O 115 6 उनके कान तो रहते हैं, परन्तु वे सुन नहीं सकतीं; उनके नाक तो रहती हैं, परन्तु वे सूंघ नहीं सकतीं। 19O 115 7 उनके हाथ तो रहते हैं, परन्तु वे स्पर्श नहीं कर सकतीं; उनके पांव तो रहते हैं, परन्तु वे चल नहीं सकतीं; और उनके कण्ठ से कुछ भी शब्द नहीं निकाल सकतीं। 19O 115 8 जैसी वे हैं वैसे ही उनके बनानेवाले हैं; और उन पर भरोसा रखनेवाले भी वैसे ही हो जाएंगे।। 19O 115 9 हे इस्राएल यहोवा पर भरोसा रख! तेरा सहायक और ढाल वही है। 19O 115 10 हे हारून के घराने यहोवा पर भरोसा रख! तेरा सहायक और ढाल वही है। 19O 115 11 हे यहोवा के डरवैयो, यहोवा पर भरोसा रखो! तुम्हारा सहायक और ढाल वही है।। 19O 115 12 यहोवा ने हम को स्मरण किया है; वह आशीष देगा; वह इस्राएल के घराने को आशीष देगा; वह हारून के घराने को आशीष देगा। 19O 115 13 क्या छोटे क्या बड़े जितने यहोवा के डरवैये हैं, वह उन्हें आशीष देगा।। 19O 115 14 यहोवा तुम को और तुम्हारे लड़कों को भी अधिक बढ़ाता जाए! 19O 115 15 यहोवा जो आकाश और पृथ्वी का कर्ता है, उसकी ओर से तुम अशीष पाए हो।। 19O 115 16 स्वर्ग तो यहोवा का है, परन्तु पृथ्वी उस ने मनुष्यों को दी है। 19O 115 17 मृतक जितने चुपचाप पड़े हैं, वे तो याह की स्तुति नहीं कर सकते, 19O 115 18 परन्तु हम लोग याह को अब से लेकर सर्वदा तक धन्य कहते रहेंगे। याह की स्तुति करो! 19O 116 1 मैं प्रेम रखता हूं, इसलिये कि यहोवा ने मेरे गिड़गिड़ाने को सुना है। 19O 116 2 उस ने जो मेरी ओर कान लगाया है, इसलिये मैं जीवन भर उसको पुकारा करूंगा। 19O 116 3 मृत्यु की रस्सियां मेरे चारों ओर थीं; मैं अधोलोक की सकेती में पड़ा था; मुझे संकट और शोक भोगना पड़ा। 19O 116 4 तब मैं ने यहोवा से प्रार्थना की, कि हे यहोवा बिनती सुनकर मेरे प्राण को बचा ले! 19O 116 5 यहोवा अनुग्रहकारी और धर्मी है; और हमारा परमेश्वर दया करनेवाला है। 19O 116 6 यहोवा भोलों की रक्षा करता है; जब मैं बलहीन हो गया था, उस ने मेरा उद्धार किया। 19O 116 7 हे मेरे प्राण तू अपने विश्रामस्थान में लौट आ; क्योंकि यहोवा ने तेरा उपकार किया है।। 19O 116 8 तू ने तो मेरे प्राण को मृत्यु से, मेरी आंख को आंसू बहाने से, और मेरे पांव को ठोकर खाने से बचाया है। 19O 116 9 मैं जीवित रहते हुए, अपने को यहोवा के साम्हने जानकर नित चलता रहूंगा। 19O 116 10 मैं ने जो ऐसा कहा है, इसे विश्वास की कसौटी पर कस कर कहा है, कि मैं तो बहुत की दु:खित हुआ; 19O 116 11 मैं ने उतावली से कहा, कि सब मनुष्य झूठें हैं।। 19O 116 12 यहोवा ने मेरे जितने उपकार किए हैं, उनका बदला मैं उसको क्या दूं? 19O 116 13 मैं उद्धार का कटोरा उठाकर, यहोवा से प्रार्थना करूंगा, 19O 116 14 मैं यहोवा के लिये अपनी मन्नतें सभों की दृष्टि में प्रगट रूप में उसकी सारी प्रजा के साम्हने पूरी करूंगा। 19O 116 15 यहोवा के भक्तों की मृत्यु, उसकी दृष्टि में अनमोल है। 19O 116 16 हे यहोवा, सुन, मैं तो तेरा दास हूं; मैं तेरा दास, और तेरी दासी का पुत्रा हूं। तू ने मेरे बन्धन खोल दिए हैं। 19O 116 17 मैं तुझ को धन्यवादबलि चढ़ाऊंगा, और यहोवा से प्रार्थना करूंगा। 19O 116 18 मैं यहोवा के लिये अपनी मन्नतें, प्रगट में उसकी सारी प्रजा के साम्हने 19O 116 19 यहोवा के भवन के आंगनों में, हे यरूशलेम, तेरे भीतर पूरी करूंगा। याह की स्तुति करो! 19O 117 1 हे जाति जाति के सब लोगों यहोवा की स्तुति करो! हे राज्य राज्य के सब लोगो, उसकी प्रशंसा करो! 19O 117 2 क्योंकि उसकी करूणा हमारे ऊपर प्रबल हुई है; और यहोवा की सच्चाई सदा की है याह की स्तुति करो! 19O 118 1 यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करूणा सदा की है! 19O 118 2 इस्राएल कहे, उसकी करूणा सदा की है। 19O 118 3 हारून का घराना कहे, उसकी करूणा सदा की है। 19O 118 4 यहोवा के डरवैये कहे, उसकी करूणा सदा की है। 19O 118 5 मैं ने सकेती में परमेश्वर को पुकारा, परमेश्वर ने मेरी सुनकर, मुझे चौड़े स्थान में पहुंचाया। 19O 118 6 यहोवा मेरी ओर है, मैं न डरूंगा। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है? 19O 118 7 यहोवा मेरी ओर मेरे सहायकों में है; मैं अपने बैरियों पर दृष्टि कर सन्तुष्ट हूंगा। 19O 118 8 यहोवा की शरण लेनी, मनुष्य पर भरोसा रखने से उत्तम है। 19O 118 9 यहोवा की शरण लेनी, प्रधानों पर भी भरोसा रखने से उत्तम है।। 19O 118 10 सब जातियों ने मुझ को घेर लिया है; परन्तु यहोवा के नाम से मैं निश्चय उन्हें नाश कर डालूंगा! 19O 118 11 उन्हों ने मुझ को घेर लिया है, नि:सन्देह घेर लिया है; परन्तु यहोवा के नाम से मैं निश्चय उन्हें नाश कर डालूंगा! 19O 118 12 उन्हों ने मुझे मधुमक्खियों की नाईं घेर लिया है, परन्तु कांटों की आग की नाईं वे बुझ गए; यहोवा के नाम से मैं निश्चय उन्हें नाश कर डालूंगा! 19O 118 13 तू ने मुझे बड़ा धक्का दिया तो था, कि मैं गिर पडूं परन्तु यहोवा ने मेरी सहायता की। 19O 118 14 परमेश्वर मेरा बल और भजन का विषय है; वह मेरा उद्धार ठहरा है।। 19O 118 15 धर्मियों के तम्बुओं में जयजयकार और उद्धार की ध्वनि हो रही है, यहोवा के दहिने हाथ से पराक्रम का काम होता है, 19O 118 16 यहोवा का दहिना हाथ महान हुआ है, यहोवा के दहिने हाथ से पराक्रम का काम होता है! 19O 118 17 मैं न मरूंगा वरन जीवित रहूंगा, और परमेश्वर परमेश्वर के कामों का वर्णन करता रहूंगा। 19O 118 18 परमेश्वर ने मेरी बड़ी ताड़ना तो की है परन्तु मुझे मृत्यु के वश में नहीं किया।। 19O 118 19 मेरे लिये धर्म के द्वार खोलो, मैं उन से प्रवेश करके याह का धन्यवाद करूंगा।। 19O 118 20 यहोवा का द्वार यही है, इस से धर्मी प्रवेश करने पाएंगे।। 19O 118 21 हे यहोवा मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, क्योंकि तू ने मेरी सुन ली है और मेरा उद्धार ठहर गया है। 19O 118 22 राजमिस्त्रियों ने जिस पत्थर को निकम्मा ठहराया था वही कोने का सिरा हो गया है। 19O 118 23 यह तो यहोवा की ओर से हुआ है, यह हमारी दृष्टि में अद्भुत है। 19O 118 24 आज वह दिन है जो यहोवा ने बनाया है; हम इस में मगन और आनन्दित हों। 19O 118 25 हे यहोवा, बिनती सुन, उद्धार कर! हे यहोवा, बिनती सुन, सफलता दे! 19O 118 26 धन्य है वह जो यहोवा के नाम से आता है! हम ने तुम को यहोवा के घर से आशीर्वाद दिया है। 19O 118 27 यहोवा ईश्वर है, और उस ने हम को प्रकाश दिया है। यज्ञपशु को वेदी के सींगों से रस्सियों से बान्धो! 19O 118 28 हे यहोवा, तू मेरा ईश्वर है, मैं तेरा धन्यवाद करूंगा; तू मेरा परमेश्वर है, मैं तुझ को सराहूंगा।। 19O 118 29 यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करूणा सदा बनी रहेगी! 19O 119 1 क्या ही धन्य हैं वे जो चाल के खरे हैं, और यहोवा की व्यवस्था पर चलते हैं! 19O 119 2 क्या ही धन्य हैं वे जो उसकी चितौनियों को मानते हैं, और पूर्ण मन से उसके पास आते हैं! 19O 119 3 फिर वे कुटिलता का काम नहीं करते, वे उसके मार्गों में चलते हैं। 19O 119 4 तू ने अपने उपदेश इसलिये दिए हैं, कि वे यत्न से माने जाएं। 19O 119 5 भला होता कि तेरी विधियों के मानने के लिये मेरी चालचलन दृढ़ हो जाए! 19O 119 6 तब मैं तेरी सब आज्ञाओं की ओर चित्त लगाए रहूंगा, और मेरी आशा न टूटेगी। 19O 119 7 जब मैं तेरे धर्ममय नियमों को सीखूंगा, तब तेरा धन्यवाद सीधे मन से करूंगा। 19O 119 8 मैं तेरी विधियों को मानूंगा: मुझे पूरी रीति से न तज! 19O 119 9 जवान अपनी चाल को किस उपाय से शुद्ध रखे? तेरे वचन के अनुसार सावधान रहने से। 19O 119 10 मैं पूरे मन से तेरी खोज मे लगा हूं; मुझे तेरी आज्ञाओं की बाट से भटकने न दे! 19O 119 11 मैं ने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है, कि तेरे विरूद्ध पाप न करूं। 19O 119 12 हे यहोवा, तू धन्य है; मुझे अपनी विधियां सिखा! 19O 119 13 तेरे सब कहे हुए नियमों का वर्णन, मैं ने अपने मुंह से किया है। 19O 119 14 मैं तेरी चितौनियों के मार्ग से, मानों सब प्रकार के धन से हर्षित हुआ हूं। 19O 119 15 मैं तेरे उपदेशों पर ध्यान करूंगा, और तेरे मार्गों की ओर दृष्टि रखूंगा। 19O 119 16 मैं तेरी विधियों से सुख पाऊंगा; और तेरे वचन को न भूलूंगा।। 19O 119 17 अपने दास का उपकार कर, कि मैं जीवित रहूं, और तेरे वचन पर चलता रहूं। 19O 119 18 मेरी आंखें खोल दे, कि मैं तेरी व्यवस्था की अद्भुत बातें देख सकूं। 19O 119 19 मैं तो पृथ्वी पर परदेशी हूं; अपनी आज्ञाओं को मुझ से छिपाए न रख! 19O 119 20 मेरा मन तेरे नियमों की अभिलाषा के कारण हर समय खेदित रहता है। 19O 119 21 तू ने अभिमानियों को, जो शापित हैं, घुड़का है, वे तेरी आज्ञाओं की बाट से भटके हुए हैं। 19O 119 22 मेरी नामधराई और अपमान दूर कर, क्योंकि मैं तेरी चितौनियों को पकड़े हूं। 19O 119 23 हाकिम भी बैठे हुए आपास में मेरे विरूद्ध बातें करते थे, परन्तु तेरा दास तेरी विधियों पर ध्यान करता रहा। 19O 119 24 तेरी चितौनियां मेरा सुखमूल और मेरे मन्त्री हैं।। 19O 119 25 मैं धूल में पड़ा हूं; तू अपने वचन के अनुसार मुझ को जिला! 19O 119 26 मैं ने अपनी चालचलन का तुझ से वर्णन किया है और तू ने मेरी बात मान ली है; तू मुझ को अपनी विधियां सिखा! 19O 119 27 अपने उपदेशों का मार्ग मुझे बता, तब मैं तेरे आश्यर्चकर्मों पर ध्यान करूंगा। 19O 119 28 मेरा जीवन उदासी के मारे गल चला है; तू अपने वचन के अनुसार मुझे सम्भल! 19O 119 29 मुझ को झूठ के मार्ग से दूर कर; और करूणा करके अपनी व्यवस्था मुझे दे। 19O 119 30 मैं ने सच्चाई का मार्ग चुन लिया है, तेरे नियमों की ओर मैं चित्त लगाए रहता हूं। 19O 119 31 मैं तेरी चितौनियों में लवलीन हूं, हे यहोवा, मेरी आशा न तोड़! 19O 119 32 जब तू मेरा हियाव बढ़ाएगा, तब मैं तेरी आज्ञाओ के मार्ग में दौडूंगा।। 19O 119 33 हे यहोवा, मुझे अपनी विधियों का मार्ग दिखा दे; तब मैं उसे अन्त तक पकड़े रहूंगा। 19O 119 34 मुझे समझ दे, तब मैं तेरी व्यवस्था को पकड़े रहूंगा और पूर्ण मन से उस पर चलूंगा। 19O 119 35 अपनी आज्ञाओं के पथ में मुझ को चला, क्योंकि मैं उसी से प्रसन्न हूं। 19O 119 36 मेरे मन को लोभ की ओर नहीं, अपनी चितौनियों ही की ओर फेर दे। 19O 119 37 मेरी आंखों को व्यर्थ वस्तुओं की ओर से फेर दे; तू अपने मार्ग में मुझे जिला। 19O 119 38 तेरा वचन जो तेरे भय माननेवालों के लिये है, उसको अपने दास के निमित्त भी पूरा कर। 19O 119 39 जिस नामधराई से मैं डरता हूं, उसे दूर कर; क्योंकि तेरे नियम उत्तम हैं। 19O 119 40 देख, मैं तेरे उपदेशों का अभिलाषी हूं; अपने धर्म के कारण मुझ को जिला। 19O 119 41 हे यहोवा, तेरी करूणा और तेरा किया हुआ उद्धार, तेरे वचन के अनुसार, मुझ को भी मिले; 19O 119 42 तब मैं अपनी नामधराई करनेवालों को कुछ उत्तर दे सकूंगा, क्योंकि मेरा भरोसा, तेरे वचन पर है। 19O 119 43 मुझे अपने सत्य वचन कहने से न रोक क्योंकि मेरी आशा तेरे नियमों पर है। 19O 119 44 तब मैं तेरी व्यवस्था पर लगातार, सदा सर्वदा चलता रहूंगा; 19O 119 45 और मैं चोड़े स्थान में चला फिरा करूंगा, क्योंकि मैं ने तेरे उपदेशों की सुधि रखी है। 19O 119 46 और मैं तेरी चितौनियों की चर्चा राजाओं के साम्हने भी करूंगा, और संकोच न करूंगा; 19O 119 47 क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं के कारण सुखी हूं, और मैं उन से प्रीति रखता हूं। 19O 119 48 मैं तेरी आज्ञाओं की ओर जिन में मैं प्रीति रखता हूं, हाथ फैलाऊंगा और तेरी विधियों पर ध्यान करूंगा।। 19O 119 49 जो वचन तू ने अपने दास को दिया है, उसे स्मरण कर, क्योंकि तू ने मुझे आशा दी है। 19O 119 50 मेरे दु:ख में मुझे शान्ति उसी से हुई है, क्योंकि तेरे वचन के द्वारा मैं ने जीवन पाया है। 19O 119 51 अभिमानियों ने मुझे अत्यन्त ठट्ठे में उड़ाया है, तौभी मैं तेरी व्यवस्था से नहीं हटा। 19O 119 52 हे यहोवा, मैं ने तेरे प्राचीन नियमों को स्मरण करके शान्ति पाई है। 19O 119 53 जो दुष्ट तेरी व्यवस्था को छोड़े हुए हैं, उनके कारण मैं सन्ताप से जलता हूं। 19O 119 54 जहां मैं परदेशी होकर रहता हूं, वहां तेरी विधियां, मेरे गीत गाने का विषय बनी हैं। 19O 119 55 हे यहोवा, मैं ने रात को तेरा नाम स्मरण किया और तेरी व्यवस्था पर चला हूं। 19O 119 56 यह मुझ से इस कारण हुआ, कि मैं तेरे उपदेशों को पकड़े हुए था।। 19O 119 57 यहोवा मेरा भाग है; मैं ने तेरे वचनों के अनुसार चलने का निश्चय किया है। 19O 119 58 मैं ने पूरे मन से तुझे मनाया है; इसलिये अपने वचन के अनुसार मुझ पर अनुग्रह कर। 19O 119 59 मैं ने अपनी चालचलन को सोचा, और तेरी चितौनियों का मार्ग लिया। 19O 119 60 मैं ने तेरी आज्ञाओं के मानने में विलम्ब नहीं, फुर्ती की है। 19O 119 61 मैं दुष्टों की रस्सियों से बन्ध गया हूं, तौभी मैं तेरी व्यवस्था को नहीं भूला। 19O 119 62 तेरे धर्ममय नियमों के कारण मैं आधी रात को तेरा धन्यवाद करने को उठूंगा। 19O 119 63 जितने तेरा भय मानते और तेरे उपदेशों पर चलते हैं, उनका मैं संगी हूं। 19O 119 64 हे यहोवा, तेरी करूणा पृथ्वी में भरी हुई है; तू मुझे अपनी विधियां सिखा! 19O 119 65 हे यहोवा, तू ने अपने वचन के अनुसार अपने दास के संग भलाई की है। 19O 119 66 मुझे भली विवेक- शक्ति और ज्ञान दे, क्योंकि मैं ने तेरी आज्ञाओं का विश्वास किया है। 19O 119 67 उस से पहिले कि मैं दु:खित हुआ, मैं भटकता था; परन्तु अब मैं तेरे वचन को मानता हूं। 19O 119 68 तू भला है, और भला करता भी है; मुझे अपनी विधियां सिखा। 19O 119 69 अभिमानियों ने तो मेरे विरूद्ध झूठ बात गढ़ी है, परन्तु मैं तेरे उपदेशों को पूरे मन से पकड़े रहूंगा। 19O 119 70 उनका मन मोटा हो गया है, परन्तु मैं तेरी व्यवस्था के कारण सुखी हूं। 19O 119 71 मुझे जो दु:ख हुआ वह मेरे लिये भला ही हुआ है, जिस से मैं तेरी विधियों को सीख सकूं। 19O 119 72 तेरी दी हुई व्यवस्था मेरे लिये हजारों रूपयों और मुहरों से भी उत्तम है।। 19O 119 73 तेरे हाथों से मैं बनाया और रचा गया हूं; मुझे समझ दे कि मैं तेरी आज्ञाओं को सीखूं। 19O 119 74 तेरे डरवैये मुझे देखकर आनन्दित होंगे, क्योंकि मैं ने तेरे वचन पर आशा लगाई है। 19O 119 75 हे यहोवा, मैं जान गया कि तेरे नियम धर्ममय हैं, और तू ने अपने सच्चाई के अनुसार मुझे दु:ख दिया है। 19O 119 76 मुझे अपनी करूणा से शान्ति दे, क्योंकि तू ने अपने दास को ऐसा ही वचन दिया है। 19O 119 77 तेरी दया मुझ पर हो, तब मैं जीवित रहूंगा; क्योंकि मैं तेरी व्यवस्था से सुखी हूं। 19O 119 78 अभिमानियों की आशा टूटे, क्योंकि उन्हों ने मुझे झूठ के द्वारा गिरा दिया है; परन्तु मैं तेरे उपदेशों पर ध्यान करूंगा। 19O 119 79 जो तेरा भय मानते हैं, वह मेरी ओर फिरें, तब वे तेरी चितौनियों को समझ लेंगे। 19O 119 80 मेरा मन तेरी विधियों के मानने में सिद्ध हो, ऐसा न हो कि मुझे लज्जित होना पड़े।। 19O 119 81 मेरा प्राण तेरे उद्धार के लिये बैचेन है; परन्तु मुझे तेरे वचन पर आशा रहती है। 19O 119 82 मेरी आंखें तेरे वचन के पूरे होने की बाट जोहते जोहते रह गईं है; और मैं कहता हूं कि तू मुझे कब शान्ति देगा? 19O 119 83 क्योंकि मैं धूएं में की कुप्पी के समान हो गया हूं, तौभी तेरी विधियों को नहीं भूला। 19O 119 84 तेरे दास के कितने दिन रह गए हैं? तू मेरे पीछे पड़े हुओं को दण्ड कब देगा? 19O 119 85 अभिमानी जो तरी व्यवस्था के अनुसार नहीं चलते, उन्हों ने मेरे लिये गड़हे खोदे हैं। 19O 119 86 तेरी सब आज्ञाएं विश्वासयोग्य हैं; वे लोग झूठ बोलते हुए मेरे पीछे पड़े हैं; तू मेरी सहायता कर! 19O 119 87 वे मुझ को पृथ्वी पर से मिटा डालने ही पर थे, परन्तु मैं ने तेरे उपदेशों को नहीं छोड़ा। 19O 119 88 अपनी करूणा के अनुसार मुझ को जिला, तब मैं तेरी दी हुई चितौनी को मानूंगा।। 19O 119 89 हे यहोवा, तेरा वचन, आकाश में सदा तक स्थिर रहता है। 19O 119 90 तेरी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है; तू ने पृथ्वी को स्थिर किया, इसलिये वह बनी है। 19O 119 91 वे आज के दिन तक तेरे नियमों के अनुसार ठहरे हैं; क्योंकि सारी सृष्टि तेरे अधीन है। 19O 119 92 यदि मैं तेरी व्यवस्था से सुखी न होता, तो मैं दु:ख के समय नाश हो जाता। 19O 119 93 मैं तेरे उपदेशों को कभी न भूलूंगा; क्योंकि उन्हीं के द्वारा तू ने मुझे जिलाया है। 19O 119 94 मैं तेरा ही हूं, तू मेरा उद्धार कर; क्योंकि मैं तेरे उपदेशों की सुधि रखता हूं। 19O 119 95 दुष्ट मेरा नाश करने के लिये मेरी घात में लगे हैं; परन्तु मैं तेरी चितौनियों पर ध्यान करता हूं। 19O 119 96 जितनी बातें पूरी जान पड़ती हैं, उन सब को तो मैं ने अधूरी पाया है, परन्तु तेरी आज्ञा का विस्तार बड़ा है।। 19O 119 97 अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है। 19O 119 98 तू अपनी आज्ञाओं के द्वारा मुझे अपने शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान करता है, क्योंकि वे सदा मेरे मन में रहती हैं। 19O 119 99 मैं अपने सब शिक्षकों से भी अधिक समझ रखता हूं, क्योंकि मेरा ध्यान तेरी चितौनियों पर लगा है। 19O 119 100 मैं पुरनियों से भी समझदार हूं, क्योंकि मैं तेरे उपदेशों को पकड़े हुए हूं। 19O 119 101 मैं ने अपने पांवों को हर एक बुरे रास्ते से रोक रखा है, जिस से मैं तेरे वचन के अनुसार चलूं। 19O 119 102 मैं तेरे नियमों से नहीं हटा, क्योंकि तू ही ने मुझे शिक्षा दी है। 19O 119 103 तेरे वचन मुझ को कैसे मीठे लगते हैं, वे मेरे मुंह में मधु से भी मीठे हैं! 19O 119 104 तेरे उपदेशों के कारण मैं समझदार हो जाता हूं, इसलिये मैं सब मिथ्या मार्गों से बैर रखता हूं।। 19O 119 105 तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। 19O 119 106 मैं ने शपथ खाई, और ठाना भी है कि मैं तेरे धर्मपय नियमों के अनुसार चलूंगा। 19O 119 107 मैं अत्यन्त दु:ख में पड़ा हूं; हे यहोवा, अपने वचन के अनुसार मुझे जिला। 19O 119 108 हे यहोवा, मेरे वचनों को स्वेच्छाबलि जानकर ग्रहण कर, और अपने नियमों को मुझे सिखा। 19O 119 109 मेरा प्राण निरन्तर मेरी हथेली पर रहता है, तौभी मैं तेरी व्यवस्था को भूल नहीं गया। 19O 119 110 दुष्टों ने मेरे लिये फन्दा लगाया है, परन्तु मैं तेरे उपदेशों के मार्ग से नहीं भटका। 19O 119 111 मैं ने तेरी चितौनियों को सदा के लिये अपना निज भाग कर लिया है, क्योंकि वे मेरे हृदय के हर्ष का कारण है। 19O 119 112 मैं ने अपने मन को इस बात पर लगाया है, कि अन्त तक तेरी विधियों पर सदा चलता रहूं। 19O 119 113 मैं दुचित्तों से तो बैर रखता हूं, परन्तु तेरी व्यवस्था से प्रीति रखता हूं। 19O 119 114 तू मेरी आड़ और ढ़ाल है; मेरी आशा तेरे वचन पर है। 19O 119 115 हे कुकर्मियों, मुझ से दूर हो जाओ, कि मैं अपने परमेश्वर की आज्ञाओं को पकड़े रहूं। 19O 119 116 हे यहोवा, अपने वचन के अनुसार मुझे सम्भाल, कि मैं जीवित रहूं, और मेरी आशा को न तोड़! 19O 119 117 मुझे थांभ रख, तब मैं बचा रहूंगा, और निरन्तर तेरी विधियों की ओर चित्त लगाए रहूंगा! 19O 119 118 जितने तेरी विधियों के मार्ग से भटक जाते हैं, उन सब को तू तुच्छ जानता है, क्योंकि उनकी चतुराई झूठ है। 19O 119 119 तू ने पृथ्वी के सब दुष्टों को धातु के मैल के समान दूर किया है; इस कारण मैं तेरी चितौनियों में प्रीति रखता हूं। 19O 119 120 तेरे भय से मेरा शरीर कांप उठता है, और मैं तेरे नियमों से डरता हूं।। 19O 119 121 मैं ने तो न्याय और धर्म का काम किया है; तू मुझे अन्धेर करनेवालों के हाथ में न छोड़। 19O 119 122 अपने दास की भलाई के लिये जामिन हो, ताकि अभिमानी मुझ पर अन्धेर न करने पांए। 19O 119 123 मेरी आंखें तुझ से उद्धार पाने, और तेरे धर्ममय वचन के पूरे होने की बाट जोहते जोहते रह गई हैं। 19O 119 124 अपने दास के संग अपनी करूणा के अनुसार बर्ताव कर, और अपनी विधियां मुझे सिखा। 19O 119 125 मैं तेरा दास हूं, तू मुझे समझ दे कि मैं तेरी चितौनियों को समझूं। 19O 119 126 वह समय आया है, कि यहोवा काम करे, क्योंकि लोगों ने तेरी व्यवस्था को तोड़ दिया है। 19O 119 127 इस कारण मैं तेरी आज्ञाओं को सोने से वरन कुन्दन से भी अधिक प्रिय मानता हूं। 19O 119 128 इसी कारण मैं तेरे सब उपदेशों को सब विषयों में ठीक जानता हूं; और सब मिथ्या मार्गों से बैर रखता हूं।। 19O 119 129 तेरी चितौनियां अनूप हैं, इस कारण मैं उन्हें अपने जी से पकड़े हुए हूं। 19O 119 130 तेरी बातों के खुलने से प्राकाश होता है; उस से भोले लोग समझ प्राप्त करते हैं। 19O 119 131 मैं मुंह खोलकर हांफने लगा, क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं का प्यासा था। 19O 119 132 जैसी तेरी रीति अपने नाम की प्रीति रखनेवालों से है, वैसे ही मेरी ओर भी फिरकर मुझ पर अनुग्रह कर। 19O 119 133 मेरे पैरों को अपने वचन के मार्ग पर स्थिर कर, और किसी अनर्थ बात को मुझ पर प्रभुता न करने दे। 19O 119 134 मुझे मनुष्यों के अन्धेर से छुड़ा ले, तब मैं तेरे उपदेशों को मानूंगा। 19O 119 135 अपने दास पर अपने मुख का प्रकाश चमका दे, और अपनी विधियां मुझे सिखा। 19O 119 136 मेरी आंखों से जल की धारा बहती रहती है, क्योंकि लोग तेरी व्यवस्था को नहीं मानते।। 19O 119 137 हे यहोवा तू धर्मी है, और तेरे नियम सीधे हैं। 19O 119 138 तू ने अपनी चितौनियों को धर्म और पूरी सत्यता से कहा है। 19O 119 139 मैं तेरी धुन में भस्म हो रहा हूं, क्योंकि मेरे सतानेवाले तेरे वचनों को भूल गए हैं। 19O 119 140 तेरा वचन पूरी रीति से ताया हुआ है, इसलिये तेरा दास उस में प्रीति रखता है। 19O 119 141 मैं छोटा और तुच्छ हूं, तौभी मैं तेरे उपदेशों को नही भूलता। 19O 119 142 तेरा धर्म सदा का धर्म है, और तेरी व्यवस्था सत्य है। 19O 119 143 मैं संकट और सकेती में फंसा हूं, परन्तु मैं तेरी आज्ञाओं से सुखी हूं। 19O 119 144 तेरी चितौनियां सदा धर्ममय हैं; तू मुझ को समझ दे कि मैं जीवित रहूं।। 19O 119 145 मैं ने सारे मन से प्रार्थना की है, हे यहोवा मेरी सुन लेना! मैं तेरी विधियों को पकड़े रहूंगा। 19O 119 146 मैं ने तुझ से प्रार्थना की है, तू मेरा उद्धार कर, और मैं तेरी चितौनियों को माना करूंगा। 19O 119 147 मैं ने पौ फटने से पहिले दोहाई दी; मेरी आशा तेरे वचनों पर थी। 19O 119 148 मेरी आंखें रात के एक एक पहर से पहिले खुल गईं, कि मैं तेरे वचन पर ध्यान करूं। 19O 119 149 अपनी करूणा के अनुसार मेरी सुन ले; हे यहोवा, अपनी रीति के अनुसार मुझे जीवित कर। 19O 119 150 जो दुष्टता में धुन लगाते हैं, वे निकट आ गए हैं; वे तेरी व्यवस्था से दूर हैं। 19O 119 151 हे यहोवा, तू निकट है, और तेरी सब आज्ञाएं सत्य हैं। 19O 119 152 बहुत काल से मैं तेरी चितौनियों को जानता हूं, कि तू ने उनकी नेव सदा के लिये डाली है।। 19O 119 153 मेरे दु:ख को देखकर मुझे छुड़ा ले, क्योंकि मैं तेरी व्यवस्था को भूल नहीं गया। 19O 119 154 मेरा मुक मा लड़, और मुझे छुड़ा ले; अपने वचन के अनुसार मुझ को जिला। 19O 119 155 दुष्टों को उद्धार मिलना कठिन है, क्योंकि वे तेरी विधियों की सुधि नहीं रखते। 19O 119 156 हे यहोवा, तेरी दया तो बड़ी है; इसलिये अपने नियमों के अनुसार मुझे जिला। 19O 119 157 मेरा पीछा करनेवाले और मेरे सतानेवाले बहुत हैं, परन्तु मैं तेरी चितौनियों से नहीं हटता। 19O 119 158 मैं विश्वासघातियों को देखकर उदास हुआ, क्योंकि वे तेरे वचन को नहीं मानते। 19O 119 159 देख, मैं तेरे नियमों से कैसी प्रीति रखता हूं! हे यहोवा, अपनी करूणा के अनुसार मुझ को जिला। 19O 119 160 तेरा सारा वचन सत्य ही है; और तेरा एक एक धर्ममय नियम सदा काल तक अटल है।। 19O 119 161 हाकिम व्यर्थ मेरे पीछे पड़े हैं, परन्तु मेरा हृदय तेरे वचनों का भय मानता है। 19O 119 162 जैसे कोई बड़ी लूट पाकर हर्षित होता है, वैसे ही मैं तेरे वचन के कारण हर्षित हूं। 19O 119 163 झूठ से तो मैं बैर और घृणा रखता हूं, परन्तु तेरी व्यवस्था से प्रीति रखता हूं। 19O 119 164 तेरे धर्ममय नियमों के कारण मैं प्रतिदिन सात बेर तेरी स्तुति करता हूं। 19O 119 165 तेरी व्यवस्था से प्रीति रखनेवालों को बड़ी शान्ति होती है; और उनको कुछ ठोकर नहीं लगती। 19O 119 166 हे यहोवा, मैं तुझ से उद्धार पाने की आशा रखता हूं; और तेरी आज्ञाओं पर चलता आया हूं। 19O 119 167 मैं तेरी चितौनियों को जी से मानता हूं, और उन से बहुत प्रीति रखता आया हूं। 19O 119 168 मैं तेरे उपदेशों और चितौनियों को मानता आया हूं, क्योंकि मेरी सारी चालचलन तेरे सम्मुख प्रगट है।। 19O 119 169 हे यहोवा, मेरी दोहाई तुझ तक पहुंचे; तू अपने वचन के अनुसार मुझे समझ दे! 19O 119 170 मेरा गिड़गिड़ाना तुझ तक पहुंचे; तू अपने वचन के अनुसार मुझे छुड़ा ले। 19O 119 171 मेरे मुंह से स्तुति निकला करे, क्योंकि तू मुझे अपनी विधियां सिखाता है। 19O 119 172 मैं तेरे वचन का गीत गाऊंगा, क्योंकि तेरी सब आज्ञाएं धर्ममय हैं। 19O 119 173 तेरा हाथ मेरी सहायता करने को तैयार रहता है, क्योंकि मैं ने तेरे उपदेशों को अपनाया है। 19O 119 174 हे यहोवा, मैं तुझ से उद्धार पाने की अभिलाषा करता हूं, मैं तेरी व्यवस्था से सुखी हूं। 19O 119 175 मुझे जिला, और मैं तेरी स्तुति करूंगा, तेरे नियमों से मेरी सहायता हो। 19O 119 176 मैं खोई हुई भेड़ की नाईं भटका हूं; तू अपने दास को ढूंढ़ ले, क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं को भूल नहीं गया।। 19O 120 1 संकट के समय मैं ने यहोवा को पुकारा, और उस ने मेरी सुन ली। 19O 120 2 हे यहोवा, झूठ बोलनेवाले मुंह से और छली जीभ से मेरी रक्षा कर।। 19O 120 3 हे छली जीभ, तुझ को क्या मिले? और तेरे साथ और क्या अधिक किया जाए? 19O 120 4 वीर के नोकीले तीर और झाऊ के अंगारे! 19O 120 5 हाय, हाय, क्योंकि मुझे मेशेक में परदेशी होकर रहना पड़ा और केदार के तम्बुओं में बसना पड़ा है! 19O 120 6 बहुत काल से मुझ को मेल के बैरियों के साथ बसना पड़ा है। 19O 120 7 मैं तो मेल चाहता हूं; परन्तु मेरे बोलते ही, वे लड़ना चाहते हैं! 19O 121 1 मैं अपनी आंखें पर्वतों की ओर लगाऊंगा। मुझे सहायता कहां से मिलेगी? 19O 121 2 मुझे सहायता यहोवा की ओर से मिलती है, जो आकाश और पृथ्वी का कर्त्ता है।। 19O 121 3 वह तेरे पांव को टलने न देगा, तेरा रक्षक कभी न ऊंघे। 19O 121 4 सुन, इस्राएल का रक्षक, न ऊंघेगा और न सोएगा।। 19O 121 5 यहोवा तेरा रक्षक है; यहोवा तेरी दहिनी ओर तेरी आड़ है। 19O 121 6 न तो दिन को धूप से, और न रात को चांदनी से तेरी कुछ हाति होगी।। 19O 121 7 यहोवा सारी विपत्ति से तेरी रक्षा करेगा; यह तेरे प्राण की रक्षा करेगा। 19O 121 8 यहोवा तेरे आने जाने में तेरी रक्षा अब से लेकर सदा तक करता रहेगा।। 19O 122 1 जब लोगों ने मुझ से कहा, कि हम यहोवा के भवन को चलें, तब मैं आनन्दित हुआ। 19O 122 2 हे यरूशलेम, तेरे फाटकों के भीतर, हम खड़े हो गए हैं! 19O 122 3 हे यरूशलेम, तू ऐसे नगर के समान बना है, जिसके घर एक दूसरे से मिले हुए हैं। 19O 122 4 वहां याह के गोत्रा गोत्रा के लोग यहोवा के नाम का धन्यवाद करने को जाते हैं; यह इस्राएल के लिये साक्षी है। 19O 122 5 वहां तो न्याय के सिंहासन, दाऊद के घराने के लिये धरे हुए हैं।। 19O 122 6 यरूशलेम की शान्ति का वरदान मांगो, तेरे प्रेमी कुशल से रहें! 19O 122 7 तेरी शहरपनाह के भीतर शान्ति, और तेरे महलों में कुशल होवे! 19O 122 8 अपने भाइयों और संगियों के निमित्त, मैं कहूंगा कि तुझ में शान्ति होवे! 19O 122 9 अपने परमेश्वर यहोवा के भवन के निमित्त, मैं तेरी भलाई का यत्न करूंगा।। 19O 123 1 हे स्वर्ग में विराजमान मैं अपनी आंखें तेरी ओर लगाता हूं! 19O 123 2 देख, जैसे दासों की आंखें अपने स्वामियों के हाथ की ओर, और जैसे दासियों की आंखें अपनी स्वामिनी के हाथ की ओर लगी रहती है, वैसे ही हमारी आंखें हमारे परमेश्वर यहोवा की ओर उस समय तक लगी रहेंगी, जब तक वह हम पर अनुग्रह न करे।। 19O 123 3 हम पर अनुग्रह कर, हे यहोवा, हम पर अनुग्रह कर, क्योंकि हम अपमान से बहुत ही भर गए हैं। 19O 123 4 हमारा जीव सुखी लोगों के ठट्ठों से, और अहंकारियों के अपमान से बहुत ही भर गया है।। 19O 124 1 इस्राएल यह कहे, कि यदि हमारी ओर यहोवा न होता, 19O 124 2 यदि यहोवा उस समय हमारी ओर न होता जब मनुष्यों ने हम पर चढ़ाई की, 19O 124 3 तो वे हम को उसी समय जीवित निगल जाते, जब उनका क्रोध हम पर भड़का था, 19O 124 4 हम उसी समय जल में डूब जाते और धारा में बह जाते; 19O 124 5 उमड़ते जल में हम उसी समय ही बह जाते।। 19O 124 6 धन्य है यहोवा, जिस ने हम को उनके दातों तले जाने न दिया! 19O 124 7 हमार जीव पक्षी की नाईं चिड़ीमार के जाल से छूट गया; जाल फट गया, हम बच निकले! 19O 124 8 यहोवा जो आकाश और पृथ्वी का कर्त्ता है, हमारी सहायता उसी के नाम से होती है। 19O 125 1 जो यहोवा पर भरोसा रखते हैं, वे सिरयोन पर्वत के समान हैं, जो टलता नहीं, वरन सदा बना रहता है। 19O 125 2 जिस प्रकार यरूशलेम के चारों ओर पहाड़ हैं, उसी प्रकार यहोवा अपनी प्रजा के चारों ओर अब से लेकर सर्वदा तक बना रहेगा। 19O 125 3 क्योंकि दुष्टों का राजदण्ड धर्मियों के भाग पर बना न रहेगा, ऐसा न हो कि धर्मी अपने हाथ कुटिल काम की ओर बढ़ाएं।। 19O 125 4 हे यहोवा, भलों का, और सीधे मनवालों का भला कर! 19O 125 5 परन्तु जो मुड़कर टेढ़े मार्गों में चलते हैं, उनको यहोवा अनर्थकारियों के संग निकाल देगा! इस्राएल को शान्ति मिले! 19O 126 1 जब यहोवा सिरयोन से लौअनेवालों को लौटा ले आया, तब हम स्वप्त देखनेवाले से हो गए। 19O 126 2 तब हम आनन्द से हंसने और जयजयकार करने लगे; तब जाति जाति के बीच में कहा जाता था, कि यहोवा ने, इनके साथ बड़े बड़े काम किए हैं। 19O 126 3 यहोवा ने हमारे साथ बड़े बड़े काम किए हैं; और इस से हम आनन्दित हैं।। 19O 126 4 हे यहोवा, दक्खिन देश के नालों की नाईं, हमारे बन्धुओं को लौटा ले आ! 19O 126 5 जो आंसू बहाते हुए बोते हैं, वे जयजयकार करते हुए लवने पाएंगे। 19O 126 6 चाहे बोनेवाला बीज लेकर रोता हुआ चला जाए, परन्तु वह फिर पूलियां लिए जयजयकार करता हुआ निश्चय लौट आएगा।। 19O 127 1 यदि घर को यहोवा न बानाए, तो उसके बनानेवालों को परिश्रम व्यर्थ होगा। यदि नगर की रक्षा यहोवा न करे, तो रखवाले का जागना व्यर्थ ही होगा। 19O 127 2 तुम जो सवेरे उठते और देर करके विश्राम करते और दु:ख भरी रोटी खाते हो, यह सब तुम्हारे लिये व्यर्थ ही है; क्योंकि वह अपने प्रियों को योंही नींद दान करता है।। 19O 127 3 देखे, लड़के यहोवा के दिए हुए भाग हैं, गर्भ का फल उसकी ओर से प्रतिफल है। 19O 127 4 जैसे वीर के हाथ में तीर, वैसे ही जवानी के लड़के होते हैं। 19O 127 5 क्या ही धन्य है वह पुरूष जिस ने अपने तर्कश को उन से भर लिया हो! वह फाटक के पास शत्रुओं से बातें करते संकोच न करेगा।। 19O 128 1 क्या ही धन्य है हर एक जो यहोवा का भय मानता है, और उसके मार्गों पर चलता है! 19O 128 2 तू अपनी कमाई को निश्चय खाने पाएगा; तू धन्य होगा, और तेरा भला ही होगा।। 19O 128 3 तेरे घर के भीतर तेरी स्त्री फलवन्त दाखलता सी होगी; तेरी मेज के चारों ओर तेरे बालक जलपाई के पौधे से होंगे। 19O 128 4 सुन, जो पुरूष यहोवा का भय मानता हो, वह ऐसी ही आशीष पाएगा।। 19O 128 5 यहोवा तुझे सिरयोन से आशीष देवे, और तू जीवन भर यरूशलेम का कुशल देखता रहे! 19O 128 6 वरन तू अपने नाती- पोतों को भी देखने पाए! इस्राएल को शान्ति मिले! 19O 129 1 इस्राएल अब यह कहे, कि मेरे बचपन से लोग मुझे बार बार क्लेश देते आए हैं, 19O 129 2 मेरे बचपन से वे मुझ को बार बार क्लेश देते तो आए हैं, परन्तु मुझ पर प्रबल नहीं हुए। 19O 129 3 हलवाहों ने मेरी पीठ के ऊपर हल चलाया, और लम्बी लम्बी रेखाएं कीं। 19O 129 4 यहोवा धर्मी है; उस ने दुष्टों के फन्दों को काट डाला है। 19O 129 5 जितने सिरयोन से बैर रखते हैं, उन सभों की आशा टूटे, ओर उनको पीछे हटना पड़े! 19O 129 6 वे छत पर की घास के समान हों, जो बढ़ने से पहिले सूख जाती है; 19O 129 7 जिस से कोई लवैया अपनी मुट्ठी नहीं भरता, न पूलियों का कोई बान्धनेवाला अपनी अंकवार भर पाता है, 19O 129 8 और न आने जानेवाले यह कहते हैं, कि यहोवा की आशीष तुम पर होवे! हम तुम को यहोवा के नाम से आशीर्वाद देते हैं! 19O 130 1 हे यहोवा, मैं ने गहिरे स्थानों में से तुझ को पुकारा है! 19O 130 2 हे प्रभु, मेरी सुन! तेरे कान मेरे गिड़गिड़ाने की ओर ध्यान से लगे रहें! 19O 130 3 हे याह, यदि तू अधर्म के कामों का लेखा ले, तो हे प्रभु कौन खड़ा रह सकेगा? 19O 130 4 परन्तु तू क्षमा करनेवाला है? जिस से तेरा भय माना जाए। 19O 130 5 मैं यहोवा की बाट जोहता हूं, मैं जी से उसकी बाट जोहता हूं, और मेरी आशा उसके वचन पर है; 19O 130 6 पहरूए जितना भोर को चाहते हैं, हां, पहरूए जितना भोर को चाहते हैं, उस से भी अधिक मैं यहोवा को अपने प्राणों से चाहता हूं।। 19O 130 7 इस्राएल यहोवा पर आशा लगाए रहे! क्योंकि यहोवा करूणा करनेवाला और पूरा छुटकारा देनेवाला है। 19O 130 8 इस्राएल को उसके सारे अधर्म के कामों से वही छुटकारा देगा।। 19O 131 1 हे यहोवा, न तो मेरा मन गर्व से और न मेरी दृष्टि घमण्ड से भरी है; और जो बातें बड़ी और मेरे लिये अधिक कठिन हैं, उन से मैं काम नहीं रखता। 19O 131 2 निश्चय मैं ने अपने मन को शान्त और चुप कर दिया है, जैसे दूध छुड़ाया हुआ लड़का अपनी मां की गोद में रहता है, वैसे ही दूध छुड़ाए हुए लड़के के समान मेरा मन भी रहता है।। 19O 131 3 हे इस्राएल, अब से लेकर सदा सर्वदा यहोवा ही पर आशा लगाए रह! 19O 132 1 हे यहोवा, दाऊद के लिये उसकी सारी दुर्दशा को स्मरण कर; 19O 132 2 उस ने यहोवा से शपथ खाई, और याकूब के सर्वशक्तिमान की मन्नत मानी है, 19O 132 3 कि निश्चय मैं उस समय तक अपने घर में प्रवेश न करूंगा, और ने अपने पलंग पर चढूंगा; 19O 132 4 न अपनी आंखों में नींद, और न अपनी पलकों में झपकी आने दूंगा, 19O 132 5 जब तक मैं यहोवा के लिये एक स्थान, अर्थात् याकूब के सर्वशक्तिमान के लिये निवास स्थान न पाऊं।। 19O 132 6 देखो, हम ने एप्राता में इसकी चर्चा सुनी है, हम ने इसको वन के खेतों में पाया है। 19O 132 7 आओ, हम उसके निवास में प्रवेश करें, हम उसके चरणों की चौकी के आगे दण्डवत् करें! 19O 132 8 हे यहोवा, उठकर अपने विश्रामस्थान में अपनी सामर्थ्य के सन्दूक समेत आ। 19O 132 9 तेरे याजक धर्म के वस्त्रा पहिने रहें, और तेरे भक्त लोग जयजयकार करें। 19O 132 10 अपने दास दाऊद के लिये अपने अभिषिक्त की प्रार्थना की अनसुनी न कर।। 19O 132 11 यहोवा ने दाऊद से सच्ची शपथ खाई है और वह उस से न मुकरेगा: कि मैं तेरी गद्दी पर तेरे एक निज पुत्रा को बैठाऊंगा। 19O 132 12 यदि तेरे वंश के लोग मेरी वाचा का पालन करें और जो चितौनी मैं उन्हें सिखाऊंगा, उस पर चलें, तो उनके वंश के लोग भी तेरी गद्दी पर युग युग बैठते चले जाएंगे। 19O 132 13 क्योंकि यहोवा ने सिरयोन को अपनाया है, और उसे अपने निवास के लिये चाहा है।। 19O 132 14 यह तो युग युग के लिये मेरा विश्रामस्थान हैं; यहीं मैं रहूंगा, क्योंकि मैं ने इसका चाहा है। 19O 132 15 मैं इस में की भोजनवस्तुओं पर अति आशीष दूंगा; और इसके दरिद्रों को रोटी से तृप्त करूंगा। 19O 132 16 इसके याजकों को मैं उद्धार का वस्त्रा पहिनाऊंगा, और इसके भक्त लोग ऊंचे स्वर से जयजयकार करेंगे। 19O 132 17 वहां मैं दाऊद के एक सींग उगाऊंगा; मैं ने अपने अभिषिक्त के लिये एक दीपक तैयार कर रखा है। 19O 132 18 मैं उसे शत्रुओं को तो लज्जा का वस्त्रा पहिनाऊंगा, परन्तु उसी के सिर पर उसका मुकुट शोभायमान रहेगा।। 19O 133 1 देखो, यह क्या ही भली और मनोहर बात है कि भाई लोग आपस में मिले रहें! 19O 133 2 यह तो उस उत्तम तेल के समान है, जो हारून के सिर पर डाला गया था, और उसकी दाढ़ी पर बहकर, उसके वस्त्रा की छोर तक पहुंच गया। 19O 133 3 वह हेर्मोन् की उस ओस के समान है, जो सिरयोन के पहाड़ों पर गिरती है! यहोवा ने तो वहीं सदा के जीवन की आशीष ठहराई है।। 19O 134 1 हे यहोवा के सब सेवको, सुनो, तुम जो रात रात को यहोवा के भवन में खड़े रहते हो, यहोवा को धन्य कहो। 19O 134 2 अपने हाथ पवित्रास्थान में उठाकर, यहोवा को धन्य कहो। 19O 134 3 यहोवा जो आकाश और पृथ्वी का कर्ता है, वह सिरयोन में से तुझे आशीष देवे।। 19O 135 1 याह की स्तुति करो, यहोवा के नाम की स्तुति करो, हे यहोवा के सेवको तुम स्तुति करो, 19O 135 2 तुम जो यहोवा के भवन में, अर्थात् हमारे परमेश्वर के भवन के आंगनों में खड़े रहते हो! 19O 135 3 याह की स्तुति करो, क्योंकि यहोवा भला है; उसके नाम का भजन गाओ, क्योंकि यह मनभाऊ है! 19O 135 4 याह ने तो याकूब को अपने लिये चुना है, अर्थात् इस्राएल को अपने निज धन होने के लिये चुन लिया है। 19O 135 5 मैं तो जानता हूं कि हमारा प्रभु यहोवा सब देवताओं से महान है। 19O 135 6 जो कुछ यहोवा ने चाहा उसे उस ने आकाश और पृथ्वी और समुद्र और सब गहिरे स्थानों में किया है। 19O 135 7 वह पृथ्वी की छोर से कुहरे उठाता है, और वर्षा के लिये बिजली बनाता है, और पवन को अपने भण्डार में से निकालता है। 19O 135 8 उस ने मि में क्या मनुष्य क्या पशु, सब के पहिलौठों को मार डाला! 19O 135 9 हे मि , उस ने तेरे बीच में फिरौन और उसके सब कर्मचारियों के बीच चिन्ह और चमत्कार किए। 19O 135 10 उस ने बहुत सी जातियां नाश की, और सामर्थी राजाओं को, 19O 135 11 अर्थात् एमोरियों के राजा सीहोन को, और बाशान के राजा ओग को, और कनान के सब राजाओं को घात किया; 19O 135 12 और उनके देश को बांटकर, अपनी प्रजा इस्राएल के भाग होने के लिये दे दिया।। 19O 135 13 हे यहोवा, तेरा नाम सदा स्थिर है, हे यहोवा जिस नाम से तेरा स्मरण होता है, वह पीढ़ी- पीढ़ी बना रहेगा। 19O 135 14 यहोवा तो अपनी प्रजा का न्याय चुकाएगा, और अपने दासों की दुर्दशा देखकर तरस खाएगा। 19O 135 15 अन्यजातियों की मूरतें सोना- चान्दी ही हैं, वे मनुष्यों की बनाई हुई हैं। 19O 135 16 उनके मुंह तो रहता है, परन्तु वे बोल नहीं सकतीं, उनके आंखें तो रहती हैं, परन्तु वे देख नहीं सकतीं, 19O 135 17 उनके कान तो रहते हैं, परन्तु वे सुन नहीं सकतीं, न उनके कुछ भी सांस चलती है। 19O 135 18 जैसी वे हैं वैसे ही उनके बनानेवाले भी हैं; और उन पर सब भरोसा रखनेवाले भी वैसे ही हो जाएंगे! 19O 135 19 हे इस्राएल के घराने यहोवा को धन्य कह! हे हारून के घराने यहोवा को धन्य कह! 19O 135 20 हे लेवी के घराने यहोवा को धन्य कह! हे यहोवा के डरवैयो यहोवा को धन्य कहो! 19O 135 21 यहोवा जो यरूशलेम में वास करता है, उसे सिरयोन में धन्य कहा जावे! याह की स्तुति करो! 19O 136 1 यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है, और उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 2 जो ईश्वरों का परमेश्वर है, उसका धन्यवाद करो, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 3 जो प्रभुओं का प्रभु है, उसका धन्यवाद करो, उसकी करूणा सदा की है।। 19O 136 4 उसको छोड़कर कोई बड़े बड़े अशचर्यकर्म नहीं करता, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 5 उस ने अपनी बुद्धि से आकाश बनाया, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 6 उस ने पृथ्वी को जल के ऊपर फैलाया है, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 7 उस ने बड़ी बड़ी ज्योतियों बनाईं, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 8 दिन पर प्रभुता करने के लिये सूर्य को बनाया, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 9 और रात पर प्रभुता करने के लिये चन्द्रमा और तारागण को बनाया, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 10 उस ने मिस्त्रियों के पहिलौठों को मारा, उसकी करूणा सदा की है।। 19O 136 11 और उनके बीच से इस्राएलियों को निकाला, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 12 बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा से निकाल लाया, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 13 उस ने लाल समुद्र को खण्ड खण्ड कर दिया, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 14 और इस्राएल को उसके बीच से पार कर दिया, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 15 और फिरौन को सेना समेत लाल समुद्र में डाल दिया, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 16 वह अपनी प्रजा को जंगल में ले चला, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 17 उस ने बड़े बड़े राजा मारे, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 18 उस ने प्रतापी राजाओं को भी मारा, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 19 एमोरियों के राजा सीहोन को, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 20 और बाशान के राजा ओग को घात किया, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 21 और उनके देश को भाग होने के लिये, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 22 अपने दास इस्राएलियों के भाग होने के लिये दे दिया, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 23 उस ने हमारी दुर्दशा में हमारी सुधि ली, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 24 और हम को द्रोहियों से छुड़ाया है, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 25 वह सब प्राणियों को आहार देता है, उसकी करूणा सदा की है। 19O 136 26 स्वर्ग के परमेश्वर का धन्यवाद करो, उसकी करूणा सदा की है। 19O 137 1 बाबुल की नहरों के किनारे हम लोग बैठ गए, और सिरयोन को स्मरण करके रो पड़े! 19O 137 2 उसके बीच के मजनू वर्क्षों पर हम ने अपनी वीणाओं को टांग दिया; 19O 137 3 क्योंकि जो हम को बन्धुए करके ले गए थे, उन्हों ने वहां हम से गीत गवाना चाहा, और हमारे रूलानेवलों ने हम से आनन्द चाहकर कहा, सिरयोन के गीतों में से हमारे लिये कोई गीत गाओ! 19O 137 4 हम यहोवा के गीत को, पराए देश में क्योंकर गाएं? 19O 137 5 हे यरूशलेम, यदि मैं तुझे भूल जाऊं, तो मेरा दहिना हाथ झूठा हो जाए! 19O 137 6 यदि मैं तुझे स्मरण न रखूं, यदि मैं यरूशलेम को अपने सब आनन्द से श्रेष्ठ न जानूं, तो मेरी जीभ तालू से चिपट जाए! 19O 137 7 हे यहोवा, यरूशलेम के दिन को एदोमियों के विरूद्ध स्मरण कर, कि वे क्योंकर कहते थे, ढाओ! उसको नेव से ढा दो। 19O 137 8 हे बाबुल तू जो उजड़नेवाली है, क्या ही धन्य वह होगा, जो तुझ से ऐसा बर्ताव करेगा जैसा तू ने हम से किया है! 19O 137 9 क्या ही धन्य वह होगा, जो तेरे बच्चों को पकड़कर, चट्टान पर पटक देगा! 19O 138 1 मैं पूरे मन से तेरा धन्यवाद करूंगा; देवताओं के साम्हने भी मैं तेरा भजन गाऊंगा। 19O 138 2 मैं तेरे पवित्रा मन्दिर की ओर दण्डवत् करूंगा, और तेरी करूणा और सच्चाई के कारण तेरे नाम का धन्यवाद करूंगा; क्योंकि तू ने अपने वचन को अपने बड़े नाम से अधिक महत्व दिया है। 19O 138 3 जिस दिन मैं ने पुकारा, उसी दिन तू ने मेरी सुन ली, और मुझ में बल देकर हियाव बन्धाया।। 19O 138 4 हे यहोवा, पृथ्वी के सब राजा तेरा धन्यवाद करेंगे, क्योंकि उन्होंने तेरे वचन सुने हैं; 19O 138 5 और वे यहोवा की गति के विषय में गाएंगे, क्योंकि यहोवा की महिमा बड़ी है। 19O 138 6 यद्यपि यहोवा महान है, तौभी वह नम्र मनुष्य की ओर दृष्टि करता है; परन्तु अहंकारी को दूर ही से पहिचानता है।। 19O 138 7 चाहे मैं संकट के बीच में रहूं तौभी तू मुझे जिलाएगा, तू मेरे क्रोधित शत्रुओं के विरूद्ध हाथ बढ़ाएगा, और अपने दहिने हाथ से मेरा उद्धार करेगा। 19O 138 8 यहोवा मेरे लिये सब कुछ पूरा करेगा; हे यहोवा, तेरी करूणा सदा की है। तू अपने हाथों के कार्यों को त्याग न दे।। 19O 139 1 हे यहोवा, तू ने मुझे जांच कर जान लिया है।। 19O 139 2 तू मेरा उठना बैठना जानता है; और मेरे विचारों को दूर ही से समझ लेता है। 19O 139 3 मेरे चलने और लेटने की तू भली भांति छानबीन करता है, और मेरी पूरी चालचलन का भेद जानता है। 19O 139 4 हे यहोवा, मेरे मुंह में ऐसी कोई बात नहीं जिसे तू पूरी रीति से न जानता हो। 19O 139 5 तू ने मुझे आगे पीछे घेर रखा है, और अपना हाथ मुझ पर रखे रहता है। 19O 139 6 यह ज्ञान मेरे लिये बहुत कठिन है; यह गम्भीर और मेरी समझ से बाहर है।। 19O 139 7 मैं तेरे आत्मा से भागकर किधर जाऊं? वा तेरे साम्हने से किधर भागूं? 19O 139 8 यदि मैं आकाश पर चढूं, तो तू वहां है! यदि मैं अपना बिछौना अधोलोक में बिछाऊं तो वहां भी तू है! 19O 139 9 यदि मैं भोर की किरणों पर चढ़कर समुद्र के पार जा बसूं, 19O 139 10 तो वहां भी तू अपने हाथ से मेरी अगुवाई करेगा, और अपने दहिने हाथ से मुझे पकड़े रहेगा। 19O 139 11 यदि मैं कहूं कि अन्धकार में तो मैं छिप जाऊंगा, और मेरे चारों ओर का उजियाला रात का अन्धेरा हो जाएगा, 19O 139 12 तौभी अन्धकार तुझ से न छिपाएगा, रात तो दिन के तुल्य प्रकाश देगी; क्योंकि तेरे लिये अन्धियारा और उजियाला दोनों एक समान हैं।। 19O 139 13 मेरे मन का स्वामी तो तू है; तू ने मुझे माता के गर्भ में रचा। 19O 139 14 मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इसलिये कि मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूं। तेरे काम तो आश्चर्य के हैं, और मैं इसे भली भांति जानता हूं। 19O 139 15 जब मैं गुप्त में बनाया जाता, और पृथ्वी के नीचे स्थानों में रचा जाता था, तब मेरी हडि्डयां तुझ से छिपी न थीं। 19O 139 16 तेरी आंखों ने मेरे बेड़ौल तत्व को देखा; और मेरे सब अंग जो दिन दिन बनते जाते थे वे रचे जाने से पहिले तेरी पुस्तक में लिखे हुए थे। 19O 139 17 और मेरे लिये तो हे ईश्वर, तेरे विचार क्या ही बहुमूल्य हैं! उनकी संख्या का जोड़ कैसा बड़ा है।। 19O 139 18 यदि मैं उनको गिनता तो वे बालू के किनकों से भी अधिक ठहरते। जब मैं जाग उठता हूं, तब भी तेरे संग रहता हूं।। 19O 139 19 हे ईश्वर निश्चय तू दुष्ट को घात करेगा! हे हत्यारों, मुझ से दूर हो जाओ। 19O 139 20 क्योंकि वे तेरी चर्चा चतुराई से करते हैं; तेरे द्रोही तेरा नाम झूठी बात पर लेते हैं। 19O 139 21 हे यहोवा, क्या मैं तेरे बैरियों से बैर न रखूं, और तेरे विरोधियों से रूठ न जाऊं? 19O 139 22 हां, मैं उन से पूर्ण बैर रखता हूं; मैं उनको अपना शत्रु समझता हूं। 19O 139 23 हे ईश्वर, मुझे जांचकर जान ले! मुझे परखकर मेरी चिन्ताओं को जान ले! 19O 139 24 और देख कि मुझ में कोई बुरी चाल है कि नहीं, और अनन्त के मार्ग में मेरी अगुवाई कर! 19O 140 1 हे यहोवा, मुझ को बुरे मनुष्य से बचा ले; उपद्रवी पुरूष से मेरी रक्षा कर, 19O 140 2 क्योंकि उन्हों ने मन में बुरी कल्पनाएं की हैं; वे लगातार लड़ाइयां मचाते हैं। 19O 140 3 उनका बोलना सांप का काटना सा है, उनके मुंह में नाग का सा विष रहता है।। 19O 140 4 हे यहोवा, मुझे दुष्ट के हाथों से बचा ले; उपद्रवी पुरूष से मेरी रक्षा कर, क्योंकि उन्हों ने मेरे पैरों के उखाड़ने की युक्ति की है। 19O 140 5 घमण्डियों ने मेरे लिये फन्दा और पासे लगाए, और पथ के किनारे जाल बिछाया है; उन्हों ने मेरे लिये फन्दे लगा रखे हैं।। 19O 140 6 हे यहोवा, मैं ने तुझ से कहा है कि तू मेरा ईश्वर है; हे यहोवा, मेरे गिड़गड़ाने की ओर कान लगा! 19O 140 7 हे यहोवा प्रभु, हे मेरे सामर्थी उद्धारकर्ता, तू ने युद्ध के दिन मेरे सिर की रक्षा की है। 19O 140 8 हे यहोवा दुष्ट की इच्छा को पूरी न होने दे, उसकी बुरी युक्ति को सफल न कर, नहीं तो वह घमण्ड करेगा।। 19O 140 9 मेरे घेरनेवालों के सिर पर उन्हीं का विचारा हुआ उत्पात पड़े! 19O 140 10 उन पर अंगारे डाले जाएं! वे आग में गिरा दिए जाएं! और ऐसे गड़हों में गिरें, कि वे फिर उठ न सकें! 19O 140 11 बकवादी पृथ्वी पर स्थिर नहीं होने का; उपद्रवी पुरूष को गिराने के लिये बुराई उसका पीछा करेगी।। 19O 140 12 हे यहोवा, मुझे निश्चय है कि तू दीन जन का और दरिद्रों का न्याय चुकाएगा। 19O 140 13 नि:सन्देह धर्मी तेरे नाम का धन्यवाद करने पाएंगे; सीधे लोग तेरे सम्मुख वास करेंगे।। 19O 141 1 हे यहोवा, मैं ने तुझे पुकारा है; मेरे लिये फुर्ती कर! जब मैं तुझ को पुकारूं, तब मेरी ओर कान लगा! 19O 141 2 मेरी प्रार्थना तेरे साम्हने सुगन्ध धूप, और मेरा हाथ फैलाना, संध्याकाल का अन्नबलि ठहरे! 19O 141 3 हे हयोवा, मेरे मुख का पहरा बैठा, मेरे हाठों के द्वार पर रखवाली कर! 19O 141 4 मेरा मन किसी बुरी बात की ओर फिरने न दे; मैं अनर्थकारी पुरूषों के संग, दुष्ट कामों में न लगूं, और मै उनके स्वादिष्ट भोजनवस्तुओं में से कुछ न खाऊं! 19O 141 5 धर्मी मुझ को मारे तो यह कुपा मानी जाएगी, और वह मुझे ताड़ना दे, तो यह मेरे सिर पर का लेत ठहरेगा; मेरा सिर उस से इन्कार न करेगा।। लोगों के बुरे काम करने पर भी मैं प्रार्थना में लवलीन रहूंगा। 19O 141 6 जब उनके न्यायी चट्टान के पास गिराए गए, तब उन्हों ने मेरे वचन सुन लिए; क्योंकि वे मधुर हैं। 19O 141 7 जैसे भूमि में हल चलने से ढेले फूटते हैं, वैसे ही हमारी हडि्डयां अधोलोक के मुंह पर छितराई हुई हैं।। 19O 141 8 परन्तु हे यहोवा, प्रभु, मेरी आंखे तेरी ही ओर लगी हैं; मैं तेरा शरणागत हूं; तू मेरे प्राण जाने न दे! 19O 141 9 मुझे उस फन्दे से, जो उन्हों ने मेरे लिये लगाया है, और अनर्थकारियों के जाल से मेरी रक्षा कर! 19O 141 10 दुष्ट लोग अपने जालों में आप ही फंसें, और मैं बच निकलूं।। 19O 142 1 मैं यहोवा की दोहाई देता, मैं यहोवा से गिड़गिड़ाता हूं, 19O 142 2 मैं अपने शोक की बातें उस से खोलकर कहता, मैं अपना संकट उसके आगे प्रगट करता हूं। 19O 142 3 जब मेरी आत्मा मेरे भीतर से व्याकुल हो रही थी, तब तू मेरी दशा को जानता था! जिस रास्ते से मैं जानेवाला था, उसी में उन्हों ने मेरे लिये फन्दा लगाया। 19O 142 4 मैं ने दहिनी ओर देखा, परन्तु कोई मुझे नहीं देखता है। मेरे लिये शरण कहीं नहीं रही, न मुझ को कोई पूछता है।। 19O 142 5 हे यहोवा, मैं ने तेरी दोहाई दी है; मैं ने कहा, तू मेरा शरणस्थान है, मेरे जीते ही तू मेरा भाग है। 19O 142 6 मेरी चिल्लाहट को ध्यान देकर सुन, क्योंकि मेरी बड़ी दुर्दशा हो गई है! जो मेरे पीछे पड़े हैं, उन से मुझे बचा ले; क्योंकि वे मुझ से अधिक सामर्थी हैं। 19O 142 7 मुझ को बन्दीगृह से निकाल कि मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूं! धर्मी लोग मेरे चारों ओर आएंगे; क्योंकि तू मेरा उपकार करेगा।। 19O 143 1 हे यहोवा मेरी प्रार्थना सुन; मेरे गिड़गिड़ाने की ओर कान लगा! तू जो सच्चा और धर्मी है, सो मेरी सुन ले, 19O 143 2 और अपने दास से मुक मा न चला! क्योंकि कोई प्राणी तेरी दृष्टि में निर्दोष नहीं ठहर सकता।। 19O 143 3 शत्रु तो मेरे प्राण का गाहक हुआ है; उस ने मुझे चूर करके मिट्टी में मिलाया है, और मुझे ढेर दिन के मरे हुओं के समान अन्धेरे स्थान में डाल दिया है। 19O 143 4 मेरी आत्मा भीतर से व्याकुल हो रही है मेरा मन विकल है।। 19O 143 5 मुझे प्राचीनकाल के दिन स्मरण आते हैं, मैं तेरे सब अद्भुत कामों पर ध्यान करता हूं, और तेरे काम को सोचता हूं। 19O 143 6 मैं तेरी ओर अपने हाथ फैलाए हूए हूं; सूखी भूमि की नाईं मैं तेरा प्यासा हूं।। 19O 143 7 हे यहोवा, फुर्ती करके मेरी सुन ले; क्योंकि मेरे प्राण निकलने ही पर हैं मुझ से अपना मुंह न छिपा, ऐसा न हो कि मैं कबर में पड़े हुओं के समान हो जाऊं। 19O 143 8 अपनी करूणा की बात मुझे शीघ्र सुना, क्योंकि मैं ने तुझी पर भरोसा रखा है। जिस मार्ग से मुझे चलना है, वह मुझ को बता दे, क्योंकि मैं अपना मन तेरी ही ओर लगाता हूं।। 19O 143 9 हे हयोवा, मुझे शत्रुओं से बचा ले; मैं तेरी ही आड़ में आ छिपा हूं। 19O 143 10 मुझ को यह सिखा, कि मैं तेरी इच्छा क्योंकर पूरी करूं, क्योंकि मेरा परमेश्वर तू ही है! तेरा भला आत्मा मुझ को धर्म के मार्ग में ले चले! 19O 143 11 हे यहोवा, मुझे अपने नाम के निमित्त जिला! तू जो धर्मी है, मुझ को संकट से छुड़ा ले! 19O 143 12 और करूणा करके मेरे शत्रुओं को सत्यानाश कर, और मेरे सब सतानेवालों का नाश कर डाल, क्योंकि मैं तेरा दास हूं।। 19O 144 1 धन्य है यहोवा, जो मेरी चट्टान है, वह मेरे हाथों को लड़ने, और युद्ध करने के लिये तैयार करता है। 19O 144 2 वह मेरे लिये करूणानिधान और गढ़, ऊंचा स्थान और छुड़ानेवाला है, वह मेरी ढ़ाल और शरणस्थान है, जो मेरी प्रजा को मेरे वश में कर देता है।। 19O 144 3 हे यहोवा, मनुष्य क्या है कि तू उसकी सुधि लेता है, या आदमी क्या है, कि तू उसकी कुछ चिन्ता करता है? 19O 144 4 मनुष्य तो सांस के समान है; उसके दिन ढलती हुई छाया के समान हैं।। 19O 144 5 हे यहोवा, अपने स्वर्ग को नीचा करके उतर आ! पहाड़ों को छू तब उन से धुंआं उठेंगा! 19O 144 6 बिजली कड़काकर उनके तितर बितर कर दे, अपने तीर चलाकर उनको घबरा दे! 19O 144 7 अपने हाथ ऊपर से बढ़ाकर मुझे महासागर से उबार, अर्थात् परदेशियों के वश से छुड़ा। 19O 144 8 उनके मुंह से तो व्यर्थ बातें निकलती हैं, और उनके दहिने हाथ से धोखे के काम होते हैं।। 19O 144 9 हे परमेश्वर, मैं तेरी स्तुति का नया गीत गाऊंगा; मैं दस तारवाली सारंगी बजाकर तेरा भजन गाऊंगा। 19O 144 10 तू राजाओं का उद्धार करता है, और अपने दास दाऊद को तलवार की मार से बचाता है। 19O 144 11 तू मुझ को उबार और परदेशियों के वश से छुड़ा ले, जिन के मुंह से व्यर्थ बातें निकलती हैं, और जिनका दहिना हाथ झूठ का दहिना हाथ है।। 19O 144 12 जब हमारे बेटे जवानी के समय पौधों की नाईं बढ़े हुए हों, और हमारी बेटियां उन कोनेवाले पत्थरों के समान हों, जो मन्दिर के पत्थरों की नाईं बनाए जाएं; 19O 144 13 जब हमारे खत्ते भरे रहें, और उन में भांति भांति का अन्न धरा जाए, और हमारी भेड़- बकरियों हमारे मैदानों में हजारों हजार बच्चे जनें; 19O 144 14 जब हमारे बैल खूब लदे हुए हों; जब हमें न विध्न हो और न हमारा कहीं जाना हो, और न हमारे चौकों में रोना- पीटना हो, 19O 144 15 तो इस दशा में जो राज्य हो वह क्या ही धन्य होगा! जिस राज्य का परमेश्वर यहोवा है, वह क्या ही धन्य है! 19O 145 1 हे मेरे परमेश्वर, हे राजा, मैं तुझे सराहूंगा, और तेरे नाम को सदा सर्वदा धन्य कहता रहूंगा। 19O 145 2 प्रति दिन मैं तुझ को धन्य कहा करूंगा, और तेरे नाम की स्तुति सदा सर्वदा करता रहूंगा। 19O 145 3 यहोवा महान और अति स्तुति के योग्य है, और उसकी बड़ाई अगम है।। 19O 145 4 तेरे कामों की प्रशंसा और तेरे पराक्रम के कामों का वर्णन, पीढ़ी पीढ़ी होता चला जाएगा। 19O 145 5 मैं तेरे ऐश्वर्य की महिमा के प्रताप पर और तेरे भांति भांति के आश्चर्यकर्मों पर ध्यान करूंगा। 19O 145 6 लोग तेरे भयानक कामों की शक्ति की चर्चा करेंगे, और मैं तेरे बड़े बड़े कामों का वर्णन करूंगा। 19O 145 7 लोग तेरी बड़ी भलाई का स्मरण करके उसकी चर्चा करेंगे, और तेरे धर्म का जयजयकार करेंगे।। 19O 145 8 यहोवा अनुग्रहकारी और दयालु, विलम्ब से क्रोध करनेवाला और अति करूणामय है। 19O 145 9 यहोवा सभों के लिये भला है, और उसकी दया उसकी सारी सृष्टि पर है।। 19O 145 10 हे यहोवा, तेरी सारी सृष्टि तेरा धन्यवाद करेगी, और तेरे भक्त लाग तुझे धन्य कहा करेंगे! 19O 145 11 वे तेरे राज्य की महिमा की चर्चा करेंगे, और तेरे पराक्रम के विषय में बातें करेंगे; 19O 145 12 कि वे आदमियों पर तेरे पराक्रम के काम और तेरे राज्य के प्रताप की महिमा प्रगट करें। 19O 145 13 तेरा राज्य युग युग का और तेरी प्रभुता सब पीढ़ियों तक बनी रहेगी।। 19O 145 14 यहोवा सब गिरते हुओं को संभालता है, और सब झुके हुओं को सीधा खड़ा करता है। 19O 145 15 सभों की आंखें तेरी ओर लगी रहती हैं, और तू उनको आहार समय पर देता है। 19O 145 16 तू अपनी मुट्ठी खोलकर, सब प्राणियों को आहार से तृप्त करता है। 19O 145 17 यहोवा अपनी सब गति में धर्मी और अपने सब कामों मे करूणामय है। 19O 145 18 जिनते यहोवा को पुकारते हैं, अर्थात् जितने उसको सच्चाई से पुकारते हें; उन सभों के वह निकट रहता है। 19O 145 19 वह अपने डरवैयों की इच्छा पूरी करता है, ओर उनकी दोहाई सुनकर उनका उद्धार करता है। 19O 145 20 यहोवा अपने सब प्रेमियों की तो रक्षा करता, परन्तु सब दुष्टों को सत्यानाश करता है।। 19O 145 21 मैं यहोवा की स्तुति करूंगा, और सारे प्राणी उसके पवित्रा नाम को सदा सर्वदा धन्य कहते रहें।। 19O 146 1 याह की स्तुति करो। हे मेरे मन यहोवा की स्तुति कर! 19O 146 2 मैं जीवन भर यहोवा की स्तुति करता रहूंगा; जब तक मैं बना रहूंगा, तब तक मैं अपने परमेश्वर का भजन गाता रहूंगा।। 19O 146 3 तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर, क्योंकि उस में उद्धार करने की भी शक्ति नहीं। 19O 146 4 उसका भी प्राण निकलेगा, वही भी मिट्टी में मिल जाएगा; उसी दिन उसकी सब कल्पनाएं नाश हो जाएंगी।। 19O 146 5 क्या ही धन्य वह है, जिसका सहायक याकूब का ईश्वर है, और जिसका भरोसा अपने परमेश्वर यहोवा पर है। 19O 146 6 वह आकाश और पृथ्वी और समुद्र और उन में जो कुछ है, सब का कर्ता है; और वह अपना वचन सदा के लिये पूरा करता रहेगा। 19O 146 7 वह पिसे हुओं का न्याय चुकाता है; और भूखों को रोटी देता है।। यहोवा बन्धुओं को छुड़ाता है; 19O 146 8 यहोवा अन्धों को आंखें देता है। यहोवा झुके हुओं को सीधा खड़ा करता है; यहोवा धर्मियों से प्रेम रखता है। 19O 146 9 यहोवा परदेशियों की रक्षा करता है; और अनाथों और विधवा को तो सम्भालता है; परन्तु दुष्टों के मार्ग को टेढ़ा मेढ़ा करता है।। 19O 146 10 हे सिरयोन, यहोवा सदा के लिये, तेरा परमेश्वर पीढ़ी पीढ़ी राज्य करता रहेगा। याह की स्तुति करो! 19O 147 1 याह की स्तुति करो! क्योंकि अपने परमेश्वर का भजन गाना अच्छा है; क्योंकि वह मनभावना है, उसकी स्तुति करनी मनभावनी है। 19O 147 2 यहोवा यरूशलेम को बसा रहा है; वह निकाले हुए इस्राएलियों को इकट्ठा कर रहा है। 19O 147 3 वह खेदित मनवालों को चंगा करता है, और उनके शोक पर मरहम- पट्टी बान्धता है। 19O 147 4 वह तारों को गिनता, और उन में से एक एक का नाम रखता है। 19O 147 5 हमारा प्रभु महान और अति सामर्थी है; उसकी बुद्धि अपरम्पार है। 19O 147 6 यहोवा नम्र लोगों को सम्भलता है, और दुष्टों को भूमि पर गिरा देता है।। 19O 147 7 धन्यवाद करते हुए यहोवा का गीत गाओ; वीणा बजाते हुए हमारे परमेश्वर का भजन गाओ। 19O 147 8 वह आकाश को मेघों से छा देता है, और पृथ्वी के लिये मेंह की तैयारी करता है, और पहाड़ों पर घास उगाता है। 19O 147 9 वह पशुओं को और कौवे के बच्चों को जो पुकारते हैं, आहार देता है। 19O 147 10 न तो वह घोड़े के बल को चाहता है, और न पुरूष के पैरों से प्रसन्न होता है; 19O 147 11 यहोवा अपने डरवैयों ही से प्रसन्न होता है, अर्थात् उन से जो उसकी करूणा की आशा लगाए रहते हैं।। 19O 147 12 हे यरूशलेम, यहोवा की प्रशंसा कर! हे सिरयोन, अपने परमेश्वर की स्तुति कर! 19O 147 13 क्योंकि उस ने तेरे फाटकों के खम्भों को दृढ़ किया है; और तेरे लड़के बालों को आशीष दी है। 19O 147 14 और तेरे सिवानों में शान्ति देता है, और तुझ को उत्तम से उत्तम गेहूं से तृप्त करता है। 19O 147 15 वह पृथ्वी पर अपनी आज्ञा का प्रचार करता है, उसका वचन अति वेग से दौड़ता है। 19O 147 16 वह ऊन के समान हिम को गिराता है, और राख की नाईं पाला बिखेरता है। 19O 147 17 वह बर्फ के टुकड़े गिराता है, उसकी की हुई ठण्ड को कौन सह सकता है? 19O 147 18 वह आज्ञा देकर उन्हें गलाता है; वह वायु बहाता है, तब जल बहने लगता है। 19O 147 19 वह याकूब को अपना वचन, और इस्राएल को अपनी विधियां और नियम बताता है। 19O 147 20 किसी और जाति से उस ने ऐसा बर्ताव नहीं किया; और उसके नियमों को औरों ने नहीं जाता।। याह की स्तुति करो। 19O 148 1 याह की स्तुति करो! यहोवा की स्तुति स्वर्ग में से करो, उसकी स्तुति ऊंचे स्थानों में करो! 19O 148 2 हे उसके सब दूतों, उसकी स्तुति करो: हे उसकी सब सेना उसकी स्तुति कर! 19O 148 3 हे सूर्य और चन्द्रमा उसकी स्तुति करो, हे सब ज्योतिमय तारागण उसकी स्तुति करो! 19O 148 4 हे सब से ऊंचे आकाश, और हे आकाश के ऊपरवाले जल, तुम दोनों उसकी स्तुति करो। 19O 148 5 वे यहोवा के नाम की स्तुति करें, क्योंकि उसी ने आज्ञा दी और ये सिरजे गए। 19O 148 6 और उस ने उनको सदा सर्वदा के लिये स्थिर किया है; और ऐसी विधि ठहराई है, जो टलने की नहीं।। 19O 148 7 पृथ्वी में से यहोवा की स्तुति करो, हे मगरमच्छों और गहिरे सागर, 19O 148 8 हे अग्नि और ओलो, हे हिम और कुहरे, हे उसका वचन माननेवाली प्रचण्ड बयार! 19O 148 9 हे पहाड़ों और सब टीलो, हे फलदाई वृक्षों और सब देवदारों! 19O 148 10 हे वन- पशुओं और सब घरैलू पशुओं, हे रेंगनेवाले जन्तुओं और हे पक्षियों! 19O 148 11 हे पृथ्वी के राजाओं, और राज्य राज्य के सब लोगों, हे हाकिमों और पृथ्वी के सब न्यायियों! 19O 148 12 हे जवनों और कुमारियों, हे पुरनियों और बालकों! 19O 148 13 यहोवा के नाम की स्तुति करो, क्योंकि केवल उसकी का नाम महान है; उसका ऐश्वर्य पृथ्वी और आकाश के ऊपर है। 19O 148 14 और उस ने अपनी प्रजा के लिये एक सींग ऊंचा किया है; यह उसके सब भक्तों के लिये अर्थात् इस्राएलियों के लिये और उसके समीप रहनेवाली प्रजा के लिये स्तुति करने का विषय है। याह की स्तुति करो। 19O 149 1 याह की स्तुति करो! यहोवा के लिये नया गीत गाओ, भक्तों की सभा में उसकी स्तुति गाओ! 19O 149 2 इस्राएल अपने कर्त्ता के कारण आनन्दित को, सिरयोन के निवासी अपने राजा के कारण मगन हों! 19O 149 3 वे नाचते हुए उसके नाम की स्तुति करें, और डफ और वीणा बजाते हुए उसका भजन गाएं! 19O 149 4 क्योंकि यहोवा अपनी प्रजा से प्रसन्न रहता है; वह नम्र लोगों का उद्धार करके उन्हें शोभायमान करेगा। 19O 149 5 भक्त लोग महिमा के कारण प्रफुल्लित हों; और अपने बिछौनों पर भी पड़े पड़े जयजयकार करें। 19O 149 6 उनके कण्ठ से ईश्वर की प्रशंसा हो, और उनके हाथों में दोधारी तलवारें रहें, 19O 149 7 कि वे अन्यजातियों से पलटा ले सकें; और राज्य राज्य के लोगों को ताड़ना दें, 19O 149 8 और उनके राजाओं को सांकलों से, और उनके प्रतिष्ठित पुरूषों को लोहे की बेड़ियों से जकड़ रखें, 19O 149 9 और उनको ठहराया हुआ दण्ड दें! उसके सब भक्तों की ऐसी ही प्रतिष्ठा होगी। याह की स्तुति करो। 19O 150 1 याह की स्तुति करो! ईश्वर के पवित्रास्थान में उसकी स्तुति करो; उसकी सामर्थ्य से भरे हुए आकाशमण्डल में उसी की स्तुति करो! 19O 150 2 उसके पराक्रम के कामों के कारण उसकी स्तुति करो; उसकी अत्यन्त बड़ाई के अनुसार उसकी स्तुति करो! 19O 150 3 नरसिंगा फूंकते हुए उसकी स्तुति करो; सारंगी और वीणा बजाते हुए उसकी स्तुति करो! 19O 150 4 डफ बजाते और नाचते हुए उसकी स्तुति करो; तारवाले बाजे और बांसुली बजाते हुए उसकी स्तुति करो! 19O 150 5 ऊंचे शब्दवाली झांझ बाजाते हुए उसकी स्तुति करो; आनन्द के महाशब्दवाली झांझ बजाते हुए उसकी स्तुति करो! 19O 150 6 जिते प्राणी हैं सब के सब याह की स्तुति करें! याह की स्तुति करो! 20O 1 1 दाऊद के पुत्रा इस्राएल के राजा सुलैमान के नीतिवचन: 20O 1 2 इनके द्वारा पढ़नेवाला बुद्धि और शिक्षा प्राप्त करे, और समझ की बातें समझे, 20O 1 3 और काम करने में प्रवीणता, और धर्म, न्याय और सीधाई की शिक्षा पाए; 20O 1 4 कि भोलों को चतुराई, और जवान को ज्ञान और विवेक मिले; 20O 1 5 कि बुद्धिमान सुनकर अपनी विद्या बढ़ाए, और समझदार बुद्धि का उपदेश पाए, 20O 1 6 जिस से वे नितिवचन और दृष्टान्त को, और बुद्धिमानों के वचन और उनके रहस्यों को समझें।। 20O 1 7 यहोवा का भय मानना बुद्धि का मूल है; बुद्धि और शिक्ष को मूढ़ ही लोग तुच्छ जानते हैं।। 20O 1 8 हे मेरे पुत्रा, अपने पिता की शिक्षा पर कान लगा, और अपनी माता की शिक्षा को न तज; 20O 1 9 क्योंकि वे मानो तेरे सिर के लिये शोभायमान मुकुट, और तेरे गले के लिये कन्ठ माला होगी। 20O 1 10 हे मेरे पुत्रा, यदि पापी लोग तुझे फुसलाए, तो उनकी बात न मानना। 20O 1 11 यदि वे कहें, हमारे संग चल कि, हम हत्या करने के लिये घात जगाएं हम निर्दोषों की ताक में रहें; 20O 1 12 हम अधोलोक की नाईं उनको जीवता, कबर में पड़े हुओं के समान समूचा निगल जाएं; 20O 1 13 हम को सब प्रकार के अनमोल पदार्थ मिलेंगे, हम अपने घरों को लूट से भर लेंगे; 20O 1 14 तू हमारा साझी हो जा, हम सभों का एक ही बटुआ हो, 20O 1 15 तो, हे मेरे पुत्रा तू उनके संग मार्ग में न चलना, वरन उनकी डगर में पांव भी न धरना; 20O 1 16 क्योंकि वे बुराई की करने को दौड़ते हैं, और हत्या करने को फुर्ती करते हैं। 20O 1 17 क्योंकि पक्षी के देखते हुए जाल फैलाना व्यर्थ होता है; 20O 1 18 और ये लोग तो अपनी ही हत्या करने के लिये घात लगाते हैं, और अपने ही प्राणों की घात की ताक में रहते हैं। 20O 1 19 सब लालचियों की चाल ऐसी ही होती है; उनका प्राण लालच ही के कारण नाश हो जाता है।। 20O 1 20 बुद्धि सड़क मे ऊंचे स्वर से बोलती है; और चौकों में प्रचार करती है; 20O 1 21 वह बाजारों की भीड़ में पुकारती है; वह फाटकों के बीच में और नगर के भीतर भी ये बातें बोलती है: 20O 1 22 हे भोले लोगो, तुम कब तक भोलेपन से प्रीति रखोगे? और हे ठट्ठा करनेवालो, तुम कब तक ठट्ठा करने से प्रसन्न रहोगे? और हे मूर्खों, तुम कब तक ज्ञान से बैर रखोगे? 20O 1 23 तुम मेरी डांट सुनकर मन फिराओ; सुनो, मैं अपनी आत्मा तुम्हारे लिये उण्डेल दूंगी; मैं तुम को अपने वचन बताऊंगी। 20O 1 24 मैं ने तो पुकारा परन्तु तुम ने इनकार किया, और मैं ने हाथ फैलाया, परन्तु किसी ने ध्यान न दिया, 20O 1 25 वरन तुम ने मेरी सारी सम्मति को अनसुनी किया, और मेरी ताड़ना का मूल्य न जाना; 20O 1 26 इसलिये मैं भी तुम्हारी विपत्ति के समय हंसूंगी; और जब तुम पर भय आ पड़ेगा, 20O 1 27 वरन आंधी की नाई तुम पर भय आ पड़ेगा, और विपत्ति बवण्डर के समान आ पड़ेगी, और तुम संकट और सकेती में फंसोगे, तब मैं ठट्ठा करूंगी। 20O 1 28 उस समय वे मुझे पुकारेंगे, और मैं न सुनूंगी; वे मुझे यत्न से तो ढूंढ़ेंगे, परन्तु न पाएंगे। 20O 1 29 क्योंकि उन्हों ने ज्ञान से बैर किया, और यहोवा का भय मानना उनको न भाया। 20O 1 30 उन्हों ने मेरी सम्पत्ति न चाही वरन मेरी सब ताड़नाओं को तुच्छ जाना। 20O 1 31 इसलिये वे अपनी करनी का फल आप भोगेंगे, और अपनी युक्तियों के फल से अघा जाएंगे। 20O 1 32 क्योंकि भोले लोगों का भटक जाना, उनके घात किए जाने का कारण होगा, और निश्चिन्त रहने के कारण मूढ़ लोग नाश होंगे; 20O 1 33 परन्तु जो मेरी सुनेगा, वह निडर बसा रहेगा, और बेखटके सुख से रहेगा।। 20O 2 1 हे मेरे पुत्रा, यदि तू मेरे वचन ग्रहण करे, और मेरी आज्ञाओं को अपने हृदय में रख छोड़े, 20O 2 2 और बुद्धि की बात ध्यान से सुने, और समझ की बात मन लगाकर सोचे; 20O 2 3 और प्रवीणता और समझ के लिये अति यत्न से पुकारे, 20O 2 4 ओर उसको चान्दी की नाईं ढूंढ़े, और गुप्त धन के समान उसी खोज में लगा रहे; 20O 2 5 तो तू यहोवा के भय को समझेगा, और परमेश्वर का ज्ञान तुझे प्राप्त होगा। 20O 2 6 क्योंकि बुद्धि यहोवा ही देता है; ज्ञान और समझ की बातें उसी के मुंह से निकलती हैं। 20O 2 7 वह सीधे लोगों के लिये खरी बुद्धि रख छोड़ता है; जो खराई से चलते हैं, उनके लिये वह ढाल ठहरता है। 20O 2 8 वह न्याय के पथों की देख भाल करता, और अपने भक्तों के मार्ग की रक्षा करता है। 20O 2 9 तब तू धर्म और न्याय, और सीधाई को, निदान सब भली- भली चाल समझ सकेगा; 20O 2 10 क्योंकि बुद्धि तो तेरे हृदय में प्रवेश करेगी, और ज्ञान तुझे मनभाऊ लगेगा; 20O 2 11 विवेक तुझे सुरक्षित रखेगा; और समझ तेरी रक्षक होगी; 20O 2 12 ताकि तुझे बुराई के मार्ग से, और उलट फेर की बातों के कहने वालों से बचाए, 20O 2 13 जो सीधाई के मार्ग को छोड़ देते हैं, ताकि अन्धेरे मार्ग में चलें; 20O 2 14 जो बुराई करने से आनन्दित होते हैं, और दुष्ट जन की उलट फेर की बातों में मगन रहते हैं; 20O 2 15 जिनकी चालचलन टेढ़ी मेढ़ी और जिनके मार्ग बिगड़े हुए हैं।। 20O 2 16 तब तू पराई स्त्री से भी बचेगा, जो चिकनी चुपड़ी बातें बोलती है, 20O 2 17 और अपनी जवानी के साथी को छोड़ देती, और जो अपने परमेश्वर की वाचा को भूल जाती है। 20O 2 18 उसका घर मृत्यु की ढलान पर है, और उसी डगरें मरे हुओं के बीच पहुंचाती हैं; 20O 2 19 जो उसके पास जाते हैं, उन में से कोई भी लौटकर नहीं आता; और न वे जीवन का मार्ग पाते हैं।। 20O 2 20 तू भले मनुष्यों के मार्ग में चल, और धर्मियों की बाट को पकड़े रह। 20O 2 21 क्योंकि धर्मी लोग देश में बसे रहेेंगे, और खरे लोग ही उस में बने रहेंगे। 20O 2 22 दुष्ट लोग देश में से नाश होंगे, और विश्वासघाती उस में से उखाड़े जाएंगे।। 20O 3 1 हे मेरे पुत्रा, मेरी शिक्षा को न भूलना; अपने हृदय में मेरी आज्ञाओं को रखे रहना; 20O 3 2 क्योंकि ऐसा करने से तेरी आयु बढ़ेगी, और तू अधिक कुशल से रहेगा। 20O 3 3 कृपा और सच्चाई तुझ से अलग न होने पाएं; वरन उनको अपने गले का हार बनाना, और अपनी हृदयरूपी पटिया पर लिखना। 20O 3 4 और तू परमेश्वर और मनुष्य दोनों का अनुग्रह पाएगा, तू अति बुद्धिमान होगा।। 20O 3 5 तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। 20O 3 6 उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वे तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा। 20O 3 7 अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न होना; यहोवा का भय मानना, और बुराई से अलग रहना। 20O 3 8 ऐसा करने से तेरा शरीर भला चंगा, और तेरी हडि्डयां पुष्ट रहेंगी। 20O 3 9 अपनी संपत्ति के द्वारा और अपनी भूमि की पहिली उपज दे देकर यहोवा की प्रतिष्ठा करना; 20O 3 10 इस प्रकार तेरे खत्ते भरे और पूरे रहेंगे, और तेरे रसकुण्डों से नया दाखमधु उमण्डता रहेगा।। 20O 3 11 हे मेरे पुत्रा, यहोवा की शिक्षा से मुंह न मोड़ना, और जब वह तुझे डांटे, तब तू बुरा न मानना, 20O 3 12 क्योंकि यहोवा जिस से प्रेम रखता है उसको डांटता है, जैसे कि बाप उस बेटे को जिसे वह अधिक चाहता है।। 20O 3 13 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो बुद्धि पाए, और वह मनुष्य जो समझ प्राप्त करे, 20O 3 14 क्योंकि बुद्धि की प्राप्ति चान्दी की प्राप्ति से बड़ी, और उसका लाभ चोखे सोने के लाभ से भी उत्तम है। 20O 3 15 वह मूंगे से अधिक अनमोल है, और जितनी वस्तुओं की तू लालसा करता है, उन में से कोई भी उसके तुल्य न ठहरेगी। 20O 3 16 उसके दहिने हाथ में दीर्घायु, और उसके बाएं हाथ में धन और महिमा है। 20O 3 17 उसके मार्ग मनभाऊ हैं, और उसके सब मार्ग कुशल के हैं। 20O 3 18 जो बुद्धि को ग्रहण कर लेते हैं, उनके लिये वह जीवन का वृक्ष बनती है; और जो उसको पकड़े रहते हैं, वह धन्य हैं।। 20O 3 19 यहोवा ने पृथ्वी की नेव बुद्धि ही से डाली; और स्वर्ग को समझ ही के द्वारा स्थिर किया। 20O 3 20 उसी के ज्ञान के द्वारा गहिरे सागर फूट निकले, और आकाशमण्डल से ओस टपकती है।। 20O 3 21 हे मेरे पुत्रा, ये बातें तेरी दृष्टि की ओट न हाने पाएं; खरी बुद्धि और विवेक की रक्षा कर, 20O 3 22 तब इन से तुझे जीवन मिलेगा, और ये तेरे गले का हार बनेंगे। 20O 3 23 और तू अपने मार्ग पर निडर चलेगा, और तेरे पांव में ठेस न लगेगी। 20O 3 24 जब तू लेटेगा, तब भय न खाएगा, जब तू लेटेगा, तब सुख की नींद आएगी। 20O 3 25 अचानक आनेवाले भय से न डरना, और जब दुष्टों पर विपत्ति आ पड़े, तब न घबराना; 20O 3 26 क्योंकि यहोवा तुझे सहारा दिया करेगा, और तेरे पांव को फन्दे में फंसने न देगा। 20O 3 27 जिनका भला करना चाहिये, यदि तुझ में शक्ति रहे, तो उनका भला करने से न रूकना।। 20O 3 28 यदि तेरे पास देने को कुछ हो, तो अपने पड़ोसी से न कहना कि जा कल फिर आना, कल मैं तुझे दूंगा। 20O 3 29 जब तेरा पड़ोसी तेरे पास बेखटके रहता है, तब उसके विरूद्ध बुरी युक्ति न बान्धना। 20O 3 30 जिस मनुष्य ने तुझ से बुरा व्यवहार न किया हो, उस से अकारण मुक मा खड़ा न करना। 20O 3 31 उपद्रवी पुरूष के विषय में डाह न करना, न उसकी सी चाल चलना; 20O 3 32 क्योंकि यहोवा कुटिल से घृणा करता है, परन्तु वह अपना भेद सीधे लोगों पर खोलता है।। 20O 3 33 दुष्ट के घर पर यहोवा का शाप और धर्मियों के वासस्थान पर उसकी आशीष होती है। 20O 3 34 ठट्ठा करनेवालों से वह निश्चय ठट्ठा करता है और दीनों पर अनुग्रह करता है। 20O 3 35 बुद्धिमान महिमा को पाएंगे, और मूर्खों की बढ़ती अपमान ही की होगी।। 20O 4 1 हे मेरे पुत्रो, पिता की शिक्षा सुनो, और समझ प्राप्त करने में मन लगाओ। 20O 4 2 क्योंकि मैं ने तुम को उत्तम शिक्षा दी है; मेरी शिक्षा को न छोड़ो। 20O 4 3 देखो, मैं भी अपने पिता का पुत्रा था, और माता का अकेला दुलारा था, 20O 4 4 और मेरा पिता मुझे यह कहकर सिखाता था, कि तेरा मन मेरे वचन पर लगा रहे; तू मेरी आज्ञाओं का पालन कर, तब जीवित रहेगा। 20O 4 5 बुद्धि को प्राप्त कर, समझ को भी प्राप्त कर; उनको भूल न जाना, न मेरी बातों को छोड़ना। 20O 4 6 बुद्धि को न छोड़, वह तेरी रक्षा करेगी; उस से प्रीति रख, वह तेरा पहरा देगी। 20O 4 7 बुद्धि श्रेष्ठ है इसलिये उसकी प्राप्ति के लिये यत्न कर; जो कुछ तू प्राप्त करे उसे प्राप्त तो कर परन्तु समझ की प्राप्ति का यत्न घटने न पाए। 20O 4 8 उसकी बड़ाई कर, वह तुझ को बढ़ाएगी; जब तू उस से लिपट जाए, तब वह तेरी महिमा करेगी। 20O 4 9 वह तेरे सिर पर शोभायमान भूषण बान्धेगी; और तुझे सुन्दर मुकुट देगी।। 20O 4 10 हे मेरे पुत्रा, मेरी बातें सुनकर ग्रहण कर, तब तू बहुत वर्ष तब जीवित रहेगा। 20O 4 11 मैं ने तुझे बुद्धि का मार्ग बताया है; और सीधाई के पथ पर चलाया है। 20O 4 12 चलने में तुझे रोक टोक न होगी, और चाहे तू दौड़े, तौभी ठोकर न खाएगा। 20O 4 13 शिक्षा को पकड़े रह, उसे छोड़ न दे; उसकी रक्षा कर, क्योंकि वही तेरा जीवन है। 20O 4 14 दुष्टों की बाट में पांव न धरना, और न बुरे लोगों के मार्ग पर चलना। 20O 4 15 उसे छोड़ दे, उसके पास से भी न चल, उसके निकट से मुड़कर आगे बढ़ जा। 20O 4 16 क्योंकि दुष्ट लोग यदि बुराई न करें, तो उनको नींद नहीं आती; और जब तक वे किसी को ठोकर न खिलाएं, तब तक उन्हें नींद नहीं मिलती। 20O 4 17 वे तो दुष्टता से कमाई हुई रोटी खाते, और उपद्रव के द्वारा पाया हुआ दाखमधु पीते हैं। 20O 4 18 परन्तु धर्मियों की चाल उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक अधिक बढ़ता रहता है। 20O 4 19 दुष्टों का मार्ग घोर अन्धकारमय है; वे नहीं जानते कि वे किस से ठोकर खाते हैं।। 20O 4 20 हे मेरे पुत्रा मेरे वचन ध्यान धरके सुन, और अपना कान मेरी बातों पर लगा। 20O 4 21 इनको अपनी आंखों की ओट न होने दे; वरन अपने मन में धारण कर। 20O 4 22 क्योंकि जिनकों वे प्राप्त होती हैं, वे उनके जीवित रहने का, और उनके सारे शरीर के चंगे रहने का कारण होती हैं। 20O 4 23 सब से अधिक अपने मन की रक्षा कर; क्योंकि जीवन का मूल द्दॊत वही है। 20O 4 24 टेढ़ी बात अपने मुंह से मत बोल, और चालबाजी की बातें कहना तुझ से दूर रहे। 20O 4 25 तेरी आंखें साम्हने ही की ओर लगी रहें, और तेरी पलकें आगे की ओर खुली रहें। 20O 4 26 अपने पांव धरने के लिये मार्ग को समथर कर, और तेरे सब मार्ग ठीक रहें। 20O 4 27 न तो दहिनी ओर मुढ़ना, और न बाईं ओर; अपने पांव को बुराई के मार्ग पर चलने से हटा ले।। 20O 5 1 हे मेरे पुत्रा, मेरी बुद्धि की बातों पर ध्यान दे, मेरी समझ की ओर कान लगा; 20O 5 2 जिस से तेरा विवेक सुरक्षित बना रहे, और तू ज्ञान के वचनों को थामें रहे। 20O 5 3 क्योंकि पराई स्त्री के ओठों से मधु टपकता है, और उसकी बातें तेल से भी अधिक चिकनी होती हैं; 20O 5 4 परन्तु इसका परिणाम नागदौना सा कडुवा और दोधारी तलवार सा पैना होता है। 20O 5 5 उसके पांव मृत्यु की ओर बढ़ते हैं; और उसके पग अधोलोक तक पहुंचते हैं।। 20O 5 6 इसलिये उसे जीवन का समथर पथ नहीं मिल पाता; उसके चालचलन में चंचलता है, परन्तु उसे वह आप नहीं जानती।। 20O 5 7 इसलिये अब हे मेरे पुत्रों, मेरी सुनो, और मेरी बातों से मुंह न मोड़ो। 20O 5 8 ऐसी स्त्री से दूर ही रह, और उसकी डेवढ़ी के पास भी न जाना; 20O 5 9 कहीं ऐसा न हो कि तू अपना यश औरों के हाथ, और अपना जीवन क्रूर जन के वश में कर दे; 20O 5 10 या पराए तेरी कमाई से अपना पेट भरें, और परेदशी मनुष्य तेरे परिश्रम का फल अपने घर में रखें; 20O 5 11 और तू अपने अन्तिम समय में जब कि तेरा शरीर क्षीण हो जाए तब यह कहकर हाय मारने लगे, कि 20O 5 12 मैं ने शिक्षा से कैसा बैर किया, और डांटनेवाले का कैसा तिरस्कार किया! 20O 5 13 मैं ने अपने गुरूओं की बातें न मानी और अपने सिखानेवालों की ओर ध्यान न लगाया। 20O 5 14 मैं सभा और मण्डली के बीच में प्राय: सब बुराइयों में जा पड़ा।। 20O 5 15 तू अपने ही कुण्ड से पानी, और अपने ही कूंए से सोते का जल पिया करना। 20O 5 16 क्या तेरे सोतों का पानी सड़क में, और तेरे जल की धारा चौकों में बह जाने पाए? 20O 5 17 यह केवल तेरे ही लिये रहे, और तेरे संग औरों के लिये न हो। 20O 5 18 तेरा सोता धन्य रहे; और अपनी जवानी की पत्नी के साथ आनन्दित रह, 20O 5 19 प्रिय हरिणी वा सुन्दर सांभरनी के समान उसके स्तन सर्वदा तुझे संतुष्ट रखे, और उसी का प्रेम नित्य तुझे आकर्षित करता रहे। 20O 5 20 हे मेरे पुत्रा, तू अपरिचित स्त्री पर क्यों मोहित हो, और पराई को क्यों छाती से लगाए? 20O 5 21 क्योंकि मनुष्य के मार्ग यहोवा की दृष्टि से छिपे नहीं हैं, और वह उसके सब मार्गों पर ध्यान करता है। 20O 5 22 दुष्ट अपने ही अधर्म के कर्मों से फंसेगा, और अपने ही पाप के बन्धनों में बन्धा रहेगा। 20O 5 23 वह शिक्षा प्राप्त किए बिना मर जाएगा, और अपनी ही मूर्खता के कारण भटकता रहेगा।। 20O 6 1 हे मरे पुत्रा, यदि तू अपने पड़ोसी का उत्तरदायी हुआ हो, अथवा परदेशी के लिये हाथ पर हाथ मार कर उत्तरदायी हुआ हो, 20O 6 2 तो तू अपने ही मूंह के वचनों से फंसा, और अपने ही मुंह की बातों से पकड़ा गया। 20O 6 3 इसलिये हे मेरे पुत्रा, एक काम कर, अर्थात् तू जो अपने पड़ोसी के हाथ में पड़ चुका है, तो जा, उसको साष्टांग प्रणाम करके मना ले। 20O 6 4 तू ने तो अपनी आखों में नींद, और न अपनी पलकों में झपकी आने दे; 20O 6 5 और अपने आप को हरिणी के समान शिकारी के हाथ से, और चिड़िया के समान चिड़िमार के हाथ से छुड़ा।। 20O 6 6 हे आलसी, च्यूंटियों के पास जा; उनके काम पर ध्यान दे, और बुद्धिमान हो। 20O 6 7 उनके न तो कोई न्यायी होता है, न प्रधान, और न प्रभुता करनेवाला, 20O 6 8 तौभी वे अपना आहार धूपकाल में संचय करती हैं, और कटनी के समय अपनी भोजनवस्तु बटोरती हैं। 20O 6 9 हे आलसी, तू कब तक सोता रहेगा? तेरी नींद कब टूटेगी? 20O 6 10 कुछ और सो लेना, थोड़ी सी नींद, एक और झपकी, थोड़ा और छाती पर हाथों रखे लेटे रहना, 20O 6 11 तब तेरा कंगालपन बटमार की नाई और तेरी घटी हथियारबन्द के समान आ पड़ेगी।। 20O 6 12 ओछे और अनर्थकारी को देखो, वह टेढ़ी टेढ़ी बातें बकता फिरता है, 20O 6 13 वह नैन से सैन और पांव से इशारा, और अपनी अगुंलियों से सकेंत करता है, 20O 6 14 उसके मन में उलट फेर की बातें रहतीं, वह लगातार बुराई गढ़ता है और झगड़ा रगड़ा उत्पन्न करता है। 20O 6 15 इस कारण उस पर विपत्ति अचानक आ पड़ेगी, वह पल भर में ऐसा नाश हो जाएगा, कि बचने का कोई उपाय न रहेगा।। 20O 6 16 छ: वस्तुओं से यहोवा बैर रखता है, वरन सात हैं जिन से उसको धृणा है' 20O 6 17 अर्थात् घमण्ड से चढ़ी हुई आंखें, झूठ बोलनेवाली जीभ, और निर्दोष का लोहू बहानेवाले हाथ, 20O 6 18 अनर्थ कल्पना गढ़नेवाला मन, बुराई करने को वेग दौड़नेवाले पांव, 20O 6 19 झूठ बोलनेवाला साक्षी और भाइयों के बीच में झगड़ा उत्पन्न करनेवाला मनुष्य। 20O 6 20 हे मेरे पुत्रा, मेरी आज्ञा को मान, और अपनी माता की शिक्षा का न तज। 20O 6 21 इन को अपने हृदय में सदा गांठ बान्धे रख; और अपने गले का हार बना ले। 20O 6 22 वह तेरे चलने में तेरी अगुवाई, और सोते समय तेरी रक्षा, और जागते समय तुझ से बातें करेगी। 20O 6 23 आज्ञा तो दीपक है और शिक्षा ज्योति, और सिखानेवाले की डांट जीवन का मार्ग है, 20O 6 24 ताकि तुझ को बुरी स्त्री से बचाए और पराई स्त्री की चिकनी चुपड़ी बातों से बचाए। 20O 6 25 उसकी सुन्दरता देखकर अपने मन में उसकी अभिलाषा न कर; वह तुझे अपने कटाक्ष से फंसाने न पाए; 20O 6 26 क्योंकि वेश्यागमन के कारण मनुष्य टुकड़ों का भिखारी हो जाता है, परन्तु व्यभिचारिणी अनमोल जीवन का अहेर कर लेती है। 20O 6 27 क्या हो सकता है कि कोई अपनी छाती पर आग रख ले; और उसके कपड़े न जलें? 20O 6 28 क्या हो सकता है कि कोई अंगारे पर चले, और उसके पांव न झुलसें? 20O 6 29 जो पराई स्त्री के पास जाता है, उसकी दशा ऐसी है; वरन जो कोई उसको छूएगा वह दण्ड से न बचेगा। 20O 6 30 जो चारे भूख के मारे अपना पेट भरने के लिये चोरी करे, उसके तो लोग तुच्छ नहीं जानते; 20O 6 31 तौभी यदि वह पकड़ा जाए, तो उसको सातगुणा भर देना पड़ेगा; वरन अपने घर का सारा धन देना पड़ेगा। 20O 6 32 परनतु जो परस्त्रीगमन करता है वह निरा निर्बुद्ध है; जो अपने प्राणों को नाश करना चाहता है, वह ऐसा करता है।। 20O 6 33 उसको घायल और अपमानित होना पड़ेगा, और उसकी नामधराई कभी न मिटेगी। 20O 6 34 क्योंकि जलन से पुरूष बहुत ही क्रोधित हो जाता है, और पलटा लेने के दिन वह कुछ कोमलता नहीं दिखाता। 20O 6 35 वह घूस पर दृष्टि न करेगा, और चाहे तू उसको बहुत कुछ दे, तौभी वह न मानेगा।। 20O 7 1 हे मेरे पुत्रा, मेरी बातों को माना कर, और मेरी आज्ञाओं को अपने मन में रख छोड़। 20O 7 2 मेरी आज्ञाओं को मान, इस से तू जीवित रहेगा, और मेरी शिक्षा को अपनी आंख की पुतली जान; 20O 7 3 उनको अपनी उंगलियों में बान्ध, और अपने हृदय की पटिया पर लिख ले। 20O 7 4 बुद्धि से कह कि, तू मेरी बहिन है, और समझ को अपनी साथिन बना; 20O 7 5 तब तू पराई स्त्री से बचेगा, जो चिकनी चुपड़ी बातें बोलती है।। 20O 7 6 मैं ने एक दिन अपने घर की खिड़की से, अर्थात् अपने झरोखे से झांका, 20O 7 7 तब मैं ने भोले लोगों में से एक निर्बुद्धि जवान को देखा; 20O 7 8 वह उस स्त्री के घर के कोने के पास की सड़क पर चला जाता था, और उस ने उसके घर का मार्ग लिया। 20O 7 9 उस समय दिन ढल गया, और संध्याकाल आ गया था, वरन रात का घोर अन्धकार छा गया था। 20O 7 10 और उस से एक स्त्री मिली, जिस का भेष वेश्या का सा था, और वह बड़ी धूर्त थी। 20O 7 11 वह शान्तिरहित और चंचल थी, और अपने घर में न ठहरती थी; 20O 7 12 कभी वह सड़क में, कभी चौक में पाई जाती थी, और एक एक कोने पर वह बाट जोहती थी। 20O 7 13 तब उस ने उस जवान को पकड़कर चूमा, और निर्लज्जता की चेष्टा करके उस से कहा, 20O 7 14 मुझे मेलबलि चढ़ाने थे, और मैं ने अपनी मन्नते आज ही पूरी की हैं; 20O 7 15 इसी कारण मैं तुझ से भेंट करने को निकली, मैं तेरे दर्शन की खोजी थी, सो अभी पाया है। 20O 7 16 मैं ने अपने पलंग के बिछौने पर मि के बेलबूटेवाले कपड़े बिछाए हैं; 20O 7 17 मैं ने अपने बिछौने पर गन्घरस, अगर और दालचीनी छिड़की है। 20O 7 18 इसलिये अब चल हम प्रेम से भोर तक जी बहलाते रहें; हम परस्पर की प्रीति से आनन्दित रहें। 20O 7 19 क्योंकि मेरा पति घर में नहीं है; वह दूर देश को चला गया है; 20O 7 20 वह चान्दी की थैली ले गया है; और पूर्णमासी को लौट आएगा।। 20O 7 21 ऐसी ही बातें कह कहकर, उस ने उसको अपनी प्रबल माया में फंसा लिया; और अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से उसको अपने वश में कर लिया। 20O 7 22 वह तुरन्त उसके पीछे हो लिया, और बैल कसाई- खाने को, वा जैासे बेड़ी पहिने हुए कोई मूढ़ ताड़ना पाने को जाता है। 20O 7 23 अन्त में उस जवान का कलेजा तीर से बेधा जाएगा; वह उस चिड़िया के समान है जो फन्दे की ओर वेग से उड़े और न जानती हो कि उस में मेरे प्राण जाएंगे।। 20O 7 24 अब हे मेरे पुत्रों, मेरी सुनो, और मेरी बातों पर मन लगाओ। 20O 7 25 तेरा मन ऐसी स्त्री के मार्ग की ओर न फिरे, और उसकी डगरों में भूल कर न जाना; 20O 7 26 क्योंकि बहुत लोग उस से मारे पड़े हैं; उसके घात किए हुओं की एक बड़ी संख्या होगी। 20O 7 27 उसका घर अधोलोक का मार्ग है, वह मृत्यु के घर में पहुंचाता है।। 20O 8 1 क्या बुद्धि नहीं पुकारती है, क्या समझ ऊंचे शब्द से नहीं बोलती है? 20O 8 2 वह तो ऊंचे स्थानों पर मार्ग की एक ओर ओर तिर्मुहानियों में खड़ी होती है; 20O 8 3 फाटकों के पास नगर के पैठाव में, और द्वारों ही में वह ऊंचे स्वर से कहती है, 20O 8 4 हे मनुष्यों, मैं तुम को पुकारती हूं, और मेरी बात सब आदमियों के लिये है। 20O 8 5 हे भोलो, चतुराई सीखो; और हे मूर्खों, अपने मन में समझ लों 20O 8 6 सुनो, क्योंकि मैं उत्तम बातें कहूंगी, और जब मुंह खोलूंगी, तब उस से सीधी बातें निकलेंगी; 20O 8 7 क्योंकि मुझ से सच्चाई की बातों का वर्णन होगा; दुष्टता की बातों से मुझ को घृणा आती है।। 20O 8 8 मेरे मुंह की सब बातें धर्म की होती हैं, उन में से कोई टेढ़ी वा उलट फेर की बात नहीं निकलती है। 20O 8 9 समझवाले के लिये वे सब सहज, और ज्ञान के प्राप्त करनेवालों के लिये अति सीधी हैं। 20O 8 10 चान्दी नहीं, मेरी शिक्षा ही को लो, और उत्तम कुन्दन से बढ़कर ज्ञान को ग्रहण करो। 20O 8 11 क्योंकि बुद्धि, मूंगे से भी अच्छी है, और सारी मनभावनी वस्तुओं में कोई भी उसके तुल्य नहीं है। 20O 8 12 मैं जो बुद्धि हूं, सो चतुराई में वास करती हूं, और ज्ञान और विवेक को प्राप्त करती हूं। 20O 8 13 यहोवा का भय मानना बुराई से बैर रखना है। घमण्ड, अंहकार, और बुरी चाल से, और उलट फेर की बात से भी मैं बैर रखती हूं। 20O 8 14 उत्तम युक्ति, और खरी बुद्धि मेरी ही है, मैं तो समझ हूं, और पराक्रम भी मेरा है। 20O 8 15 मेरे ही द्वारा राजा राज्य करते हैं, और अधिकारी धर्म से विचार करते हैं; 20O 8 16 मेरे ही द्वारा राजा हाकिम और रईस, और पृथ्वी के सब न्यायी शासन करते हैं। 20O 8 17 जो मुझ से प्रेम रखते हैं, उन से मैं भी प्रेम रखती हूं, और जो मुझ को यत्न से तड़के उठकर खोजते हैं, वे मुझे पाते हैं। 20O 8 18 धन और प्रतिष्ठा मेरे पास है, वरन ठहरनेवाला धन और धर्म भी हैं। 20O 8 19 मेरा फल चोखे सोने से, वरन कुन्दन से भी उत्तम है, और मेरी उपज उत्तम चान्दी से अच्छी है। 20O 8 20 मैं धर्म की बाट में, और न्याय की डगरों के बीच में चलती हूं, 20O 8 21 जिस से मैं अपने प्रेमियों को परमार्थ के भागी करूं, और उनके भण्डारों को भर दूं। 20O 8 22 यहोवा ने मुझे काम करते के आरम्भ में, वरन अपने प्राचीनकाल के कामों से भी पहिले उत्पन्न किया। 20O 8 23 मैं सदा से वरन आदि ही से पृथ्वी की सृष्टि के पहिले ही से ठहराई गई हूं। 20O 8 24 जब न तो गहिरा सागर था, और न जल के सोते थे तब ही से मैं उत्पन्न हुई। 20O 8 25 जब पहाड़ वा पहाड़ियां स्थिर न की गई थीं, 20O 8 26 जब यहोवा ने न तो पृथ्वी और न मैदान, न जगत की धूलि के परमाणु बनाए थे, इन से पहिले मैं उत्पन्न हुई। 20O 8 27 जब उस ने अकाश को स्थिर किया, तब मैं वहां थी, जब उस ने गहिरे सागर के ऊपर आकाशमण्डल ठहराया, 20O 8 28 जब उस ने आकाशमण्डल को ऊपर से स्थिर किया, और गहिरे सागर के सोते फूटने लगे, 20O 8 29 जब उस ने समुद्र का सिवाना ठहराया, कि जल उसकी आज्ञा का उल्लंघन न कर सके, और जब वह पृथ्वी की नेव की डोरी लगाता था, 20O 8 30 तब मैं कारीगर सी उसके पास थी; और प्रति दिन मैं उसकी प्रसन्नता थी, और हस समय उसके साम्हने आनन्दित रहती थी। 20O 8 31 मैं उसकी बसाई हुई पृथ्वी से प्रसन्न थी और मेरा सुख मनुष्यों की संगति से होता था।। 20O 8 32 इसलिये अब हे मेरे पुत्रों, मेरी सुनो; क्या ही धन्य हैं वे जो मेरे मार्ग को पकड़े रहते हैं। 20O 8 33 शिक्षा को सुनो, और बुद्धिमान हो जाओ, उसके विषय में अनसुनी न करो। 20O 8 34 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो मेरी सुनता, वरन मेरी डेवढ़ी पर प्रति दिन खड़ा रहता, और मेरे द्वारों के खंभों के पास दृष्टि लगाए रहता है। 20O 8 35 क्योंकि जो मुझे पाता है, वह जीवन को पाता है, और यहोवा उस से प्रसन्न होता है। 20O 8 36 परन्तु जो मेरा अपराध करता है, वह अपने ही पर उपद्रव करता है; जितने मुझ से बैर रखते वे मृत्यु से प्रीति रखते हैं।। 20O 9 1 बुद्धि ने अपना घर बनाया और उसके सातों खंभे गढ़े हुए हैं। 20O 9 2 उस ने अपने पशु वध करके, अपने दाखमधु में मसाला मिलाया है, और अपनी मेज़ लगाई है। 20O 9 3 उस ने अपनी सहेलियां, सब को बुलाने के लिये भेजी है; वह नगर के ऊंचे स्थानों की चोटी पर पुकारती है, 20O 9 4 जो कोई भोला हे वह मुड़कर यहीं आए! और जो निर्बुद्धि है, उस से वह कहती है, 20O 9 5 आओ, मेरी रोटी खाओ, और मेरे मसाला मिलाए हुए दाखमधु को पीओ। 20O 9 6 भोलों का संग छोड़ो, और जीवित रहो, समझ के मार्ग में सीधे चलो। 20O 9 7 जो ठट्ठा करनेवाले को शिक्षा देता है, सो अपमानित होता है, और जो दुष्ट जन को डांटता है वह कलंकित होता है।। 20O 9 8 ठट्ठा करनेवाले को न डांट ऐसा न हो कि वह तुझ से बैर रखे, बुद्धिमान को डांट, वह तो तुझ से प्रेम रखेगा। 20O 9 9 बुद्धिमान को शिक्षा दे, वह अधिक बुद्धिमान होगा; धर्मी को चिता दे, वह अपनी विद्या बढ़ाएगा। 20O 9 10 यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है, और परमपवित्रा ईश्वर को जानना ही समझ है। 20O 9 11 मेरे द्वारा तो तेरी आयु बढ़ेगी, और तेरे जीवन के वर्ष अधिक होंगे। 20O 9 12 यदि तू बुद्धिमान हो, ते बुद्धि का फल तू ही भोगेगा; और यदि तू ठट्ठा करे, तो दण्ड केवल तू ही भोगेगा।। 20O 9 13 मूर्खतारूपी स्त्री हौरा मचानेवाली है; वह तो भोली है, और कुछ नहीं जानती। 20O 9 14 वह अपने घर के द्वार में, और नगर के ऊंचे स्थानों में मचिया पर बैठी हुई 20O 9 15 जो बटोही अपना अपना मार्ग पकड़े हुए सीधे चले जाते हैं, उनको यह कह कहकर पुकारती है, 20O 9 16 जो कोई भोला है, वह मुड़कर यहीं आए; जो निर्बुद्धि है, उस से वह कहती है, 20O 9 17 चोरी का पानी मीठा होता है, और लुके छिपे की रोटी अच्छी लगती है। 20O 9 18 और वह नहीं जानता है, कि वहां मरे हुए पड़े हैं, और उस स्त्री के नेवतहारी अधोलोक के निचले स्थानों में पहुंचे हैं।। 20O 10 1 सुलैमान के नीतिवचन।। बुद्धिमान पुत्रा से पिता आनन्दित होता है, परन्तु मूर्ख पुत्रा के कारण माता उदास रहती है। 20O 10 2 दुष्टों के रखे हुए धन से लाभ नही होता, परन्तु धर्म के कारण मृत्यु से बचाव होता है। 20O 10 3 धर्मी को यहोवा भूखों मरने नहीं देता, परन्तु दुष्टों की अभिलाषा वह पूरी होने नहीं देता। 20O 10 4 जो काम में ढिलाई करता है, वह निर्धन हो जाता है, परन्तु काममाजु लोग अपने हाथों के द्वारा धनी होते हैं। 20O 10 5 जो बेटा धूपकाल में बटोरता है वह बुद्धि से काम करनेवाला है, परन्तु जो बेटा कटनी के समय भारी नींद में पड़ा रहता है, वह लज्जा का कारण होता है। 20O 10 6 धर्मी पर बहुत से आर्शीवाद होते हैं, परन्तु उपद्रव दुष्टों का मुंह छा लेता है। 20O 10 7 धर्मी को स्मरण करके लोग आशीर्वाद देते हैं, परन्तु दुष्टों का नाम मिट जाता है। 20O 10 8 जो बुद्धिमान है, वह आज्ञाओं को स्वीकार करता है, परन्तु जो बकवादी और मूढ़ है, वह पछाड़ खाता है। 20O 10 9 जो खराई से चलता है वह निडर चलता है, परन्तु जो टेढ़ी चाल चलता है उसकी चाल प्रगट हो जाती है। 20O 10 10 जो नैन से सैन करता है उस से औरों को दुख मिलता है, और जो बकवादी और मूढ़ है, वह पछाड़ खाता है। 20O 10 11 धर्मी का मुंह तो जीवन का सोता है, परन्तु उपद्रव दुष्टों का मुंह छा लेता है। 20O 10 12 बैर से तो झगड़े उत्पन्न होते हैं, परन्तु प्रेम से सब अपराध ढंप जाते हैं। 20O 10 13 समझवालों के वचनों में बुद्धि पाई जाती है, परन्तु निर्बुद्धि की पीठ के लिये कोड़ा है। 20O 10 14 बुद्धिमान लोग ज्ञान को रख छोड़ते हैं, परन्तु मूढ़ के बोलने से विनाश निकट आता है। 20O 10 15 धनी का धन उसका दृढ़ नगर है, परन्तु कंगाल लोग निर्धन होने के कारण विनाश होते हैं। 20O 10 16 धर्मी का परिश्रम जीवन के लिये होता है, परन्तु दुष्ट के लाभ से पाप होता है। 20O 10 17 जो शिक्षा पर चलता वह जीवन के मार्ग पर है, परन्तु जो डांट से मुंह मोड़ता, वह भटकता है। 20O 10 18 जो बैर को छिपा रखता है, वह झूठ बोलता है, और जो अपवाद फैलाता है, वह मूर्ख है। 20O 10 19 जहां बहुत बातें होती हैं, वहां अपराध भी होता है, परन्तु जो अपने मुंह को बन्द रखता है वह बुद्धि से काम करता है। 20O 10 20 धर्मी के वचन तो उत्तम चान्दी हैं; परन्तु दुष्टों का मन बहुत हलका होता है। 20O 10 21 धर्मी के वचनों से बहुतों का पालनपोषण होता है, परन्तु मूढ़ लोग निर्बुद्धि होने केस्रारण मर जाते हैं। 20O 10 22 धन यहोवा की आशीष ही से मिलता है, और वह उसके साथ दु:ख नहीं मिलाता। 20O 10 23 मूर्ख को तो महापाप करना हंसी की बात जान पड़ती है, परन्तु समझवाले पुरूष में बुद्धि रहती है। 20O 10 24 दुष्ट जन जिस विपत्ति से डरता है, वह उस पर आ पड़ती है, परन्तु धर्मियों की लालसा पूरी होती है। 20O 10 25 बवण्डर निकल जाते ही दुष्ट जन लोप हो जाता है, परन्तु धर्मी सदा लों स्थिर है। 20O 10 26 जैसे दांत को सिरका, और आंख को धूंआ, वैसे आलसी उनको लगात है जो उसको कहीं भेजते हैं। 20O 10 27 यहोवा के भय मानने से आयु बढ़ती है, परन्तु दुष्टों का जीवन थोड़े ही दिनों का होता है। 20O 10 28 धर्मियों को आशा रखने में आनन्द मिलता है, परन्तु दुष्टों की आशा टूट जाती है। 20O 10 29 यहोवा खरे मनुष्य का गढ़ ठहरता है, परन्तु अनर्थकारियों का विनाश होता है। 20O 10 30 धर्मी सदा अटल रहेगा, परन्तु दुष्ट पृथ्वी पर बसने न पाएंगे। 20O 10 31 धर्मी के मुंह से बुद्धि टपकती है, पर उलट फेर की बात कहने वाले की जीभ काटी जायेगी। 20O 10 32 धर्मी गहणयोग्य बात समझ कर बोलता है, परन्तु दुष्टों के मुंह से उलट फेर की बातें निकलती हैं।। 20O 11 1 छल के तराजू से यहोवा को घृणा आती है, परन्तु वह पूरे बटखरे से प्रसन्न होता है। 20O 11 2 जब अभिमान होता, तब अपमान भी होता है, परन्तु नम्र लोगों में बुद्धि होती है। 20O 11 3 सीधे लोग अपनी खराई से अगुवाई पाते हैं, परन्तु विश्वासघाती अपने कपट से विनाश होते हैं। 20O 11 4 कोप के दिन धन से तो कुछ लाभ नहीं होता, परन्तु धर्म मृत्यु से भी बचाता है। 20O 11 5 खरे मनुष्य का मार्ग धर्म के कारण सीधा होता है, परन्तु दुष्ट अपनी दुष्टता के कारण गिर जाता है। 20O 11 6 सीधे लोगों को बचाव उनके धर्म के कारण होता है, परन्तु विश्वासघाती लोग अपनी ही दुष्टता में फंसते हैं। 20O 11 7 जब दुष्ट मरता, तब उसकी आशा टूट जाती है, और अधर्मी की आशा व्यर्थ होती है। 20O 11 8 धर्मी विपत्ति से छूट जाता है, परन्तु दुष्ट उसी विपत्ति में पड़ जाता है। 20O 11 9 भक्तिहीन जन अपने पड़ोसी को अपने मुंह की बात से बिगाड़ता है, परन्तु धर्मी लोग ज्ञान के द्वारा बचते हैं। 20O 11 10 जब धर्मियों का कल्याण होता है, तब नगर के लोग प्रसन्न होते हैं, परन्तु जब दुष्ट नाश होते, तब जय- जयकार होता है। 20O 11 11 सीधे लोगों के आशीर्वाद से नगर की बढ़ती होती है, परन्तु दुष्टों के मुंह की बात से वह ढाया जाता है। 20O 11 12 जो अपने पड़ोसी को तुच्छ जानता है, वह निर्बुद्धि है, परन्तु समझदार पुरूष चुपचाप रहता है। 20O 11 13 जो लुतराई करता फिरता वह भेद प्रगट करता है, परन्तु विश्वासयोग्य मनुष्य बात को छिपा रखता है। 20O 11 14 जहां बुद्धि की युक्ति नहीं, वहां प्रजा विपत्ति में पड़ती है; परन्तु सम्मति देनेवालों की बहुतायत के कारण बचाव होता है। 20O 11 15 जो परदेशी का उत्तरदायी होता है, वह बड़ा दु:ख उठाता है, परन्तु जो उत्तरदायित्व से घृणा करता, वह निडर रहता है। 20O 11 16 अनुग्रह करनेवाली स्त्री प्रतिष्ठा नहीं खोती है, और बलात्कारी लाग धन को नहीं खोते। 20O 11 17 कृपालु मनुष्य अपना ही भला करता है, परन्तु जो क्रूर है, वह अपनी ही देह को दु:ख देता है। 20O 11 18 दुष्ट मिथ्या कमाई कमाता है, परन्तु जो धर्म का बीज बोता, उसको निश्चय फल मिलता है। 20O 11 19 जो धर्म में दृढ़ रहता, वह जीवन पाता है, परन्तु जो बुराई का पीछा करता, वह मृत्यु का कौर हो जाता है। 20O 11 20 जो मन के टेढ़े है, उन से यहोवा को घृणा आती है, परन्तु वह खरी चालवालों से प्रसन्न रहता है। 20O 11 21 मैं दृढ़ता के साथ कहता हूं, बुरा मनुष्य निर्दोष न ठहरेगा, परन्तु धर्मी का वंश बचाया जाएगा। 20O 11 22 जो सुन्दर स्त्री विवेक नहीं रखती, वह थूथन में सोने की नत्थ पहिने हुए सूअर के समान है। 20O 11 23 धर्मियों की लालसा तो केवल भलाई की होती है; परन्तु दुष्टों की आशा का फल क्रोध ही होता है। 20O 11 24 ऐसे हैं, जो छितरा देते हैं, तौभी उनकी बढ़ती ही होती है; और ऐसे भी हैं जो यर्थाथ से कम देते हैं, और इस से उनकी घटती ही होती है। 20O 11 25 उदार प्राणी हृष्ट पुष्ट हो जाता है, और जो औरों की खेती सींचता है, उसकी भी सींची जाएगी। 20O 11 26 जो अपना अनाज रख छोड़ता है, उसकी लोग शाप देते हैं, परन्तु जो उसे बेच देता है, उसको आशीर्वाद दिया जाता है। 20O 11 27 जो यत्न से भलाई करता है वह औरों की प्रसन्नता खोजता है, परन्तु जो दूसरे की बुराई का खोजी होता है, उसी पर बुराई आ पड़ती है। 20O 11 28 जो अपने धन पर भरोसा रखता है वह गिर जाता है, परन्तु धर्मी लोग नये पत्ते की नाई लहलहाते हैं। 20O 11 29 जो अपने घराने को दु:ख देता, उसका भाग वायु ही होगा, और मूढ़ बुद्धिमान का दास हो जाता है। 20O 11 30 धर्मी का प्रतिफल जीवन का वृक्ष होता है, और बुद्धिमान मनुष्य लोगों के मन को मोह लेता है। 20O 11 31 देख, धर्मी को पृथ्वी पर फल मिलेगा, तो निश्चय है कि दुष्ट और पापी को भी मिलेगा।। 20O 12 1 जो शिक्षा पाने में प्रीति रखता है वह ज्ञान से प्रीति रखता है, परन्तु जो डांट से बैर रखता, वह पशु सरीखा है। 20O 12 2 भले मनुष्य से तो यहोवा प्रसन्न होता है, परन्तु बुरी युक्ति करनेवाले को वह दोषी ठहराता है। 20O 12 3 कोई मनुष्य दुष्टता के कारण स्थिर नहीं होता, परन्तु धर्मियों की जड़ उखड़ने की नहीं। 20O 12 4 भली स्त्री अपने पति का मुकुट है, परन्तु जो लज्जा के काम करती वह मानो उसकी हडि्डयों के सड़ने का कारण होती है। 20O 12 5 धर्मियों की कल्पनाएं न्याय ही की होती हैं, परन्तु दुष्टों की युक्तियां छल की हैं। 20O 12 6 दुष्टों की बातचीत हत्या करने के लिये घात लगाने के विषय में होती है, परन्तु सीधे लोग अपने मुंह की बात के द्वारा छुड़ानेवाले होते हैं। 20O 12 7 जब दुष्ट लोग उलटे जाते हैं तब वे रहते ही नहीं, परन्तु धर्मियों का घर स्थिर रहता है। 20O 12 8 मनुष्य कि बुद्धि के अनुसार उसकी प्रशंसा होती है, परन्तु कुटिल तुच्छ जाना जाता है। 20O 12 9 जो रोटी की आस लगाए रहता है, और बड़ाई मारता है, उस से दास रखनेवाला तुच्छ मनुष्य भी उत्तम है। 20O 12 10 धर्मी अपने पशु के भी प्राण की सुधि रखता है, परन्तु दुष्टों की दया भी निर्दयता है। 20O 12 11 जो अपनी भूमि को जोतता, वह पेट भर खाता है, परन्तु जो निकम्मों की संगति करता, वह निर्बुद्धि ठहरता है। 20O 12 12 दुष्ट जन बुरे लोगों के जाल की अभिलाषा करते हैं, परन्तु धर्मियों की जड़ हरी भरी रहती है। 20O 12 13 बुरा मनुष्य अपने दुर्वचनों के कारण फन्दे में फंसता है, परन्तु धर्मी संकट से निकास पाता है। 20O 12 14 सज्जन अपने वचनों के फल के द्वारा भलाई से तृप्त होता है, और जैसी जिसकी करनी वैसी उसकी भरनी होती है। 20O 12 15 मूढ़ को अपनी ही चाल सीधी जान पड़ती है, परन्तु जो सम्मति मानता, वह बुद्धिमान है। 20O 12 16 मूढ़ की रिस उसी दिन प्रगट हो जाती है, परन्तु चतुर अपमान को छिपा रखता है। 20O 12 17 जो सच बोलता है, वह धर्म प्रगट करता है, परन्तु जो झूठी साक्षी देता, वह छल प्रगट करता है। 20O 12 18 ऐसे लोग हैं जिनका बिना सोचविचार का बोलना तलवार की नाई चुभता है, परन्तु बुद्धिमान के बोलने से लोग चंगे होते हैं। 20O 12 19 सच्चाई सदा बनी रहेगी, परन्तु झूढ पल ही भर का होता है। 20O 12 20 पुरी युक्ति करनेवालों के मन में छल रहता है, परन्तु मेल की युक्ति करनेवालों को आनन्द होता है। 20O 12 21 धर्मी को हानि नहीं होती है, परन्तु दुष्ट लोग सारी विपत्ति में डूब जाते हैं। 20O 12 22 झूठों से यहोवा को घृणा आती है परन्तु जो विश्वास से काम करते हैं, उन से वह प्रसन्न होता है। 20O 12 23 चतुर मनुष्य ज्ञान को प्रगट नहीं करता है, परन्तु मूढ़ अपने मन की मूढ़ता ऊंचे शब्द से प्रचार करता है। 20O 12 24 कामकाजी लोग प्रभुता करते हैं, परन्तु आलसी बगारी में पकड़े जाते हैं। 20O 12 25 उदास मन दब जाता है, परन्तु भली बात से वह आनन्दित होता है। 20O 12 26 धर्मी अपने पड़ोसी की अगुवाई करता है, परन्तु दुष्ट लोग अपनी ही चाल के कारण भटक जाते हैं। 20O 12 27 आलसी अहेर का पीछा नहीं करता, परन्तु कामकाजी को अनमोल वस्तु मिलती है। 20O 12 28 धर्म की बाट में जीवन मिलता है, और उसके पथ में मृत्यु का पता भी नहीं।। 20O 13 1 बुद्धिमान पुत्रा पिता की शिक्षा सुनता है, परन्तु ठट्ठा करनेवाला घुड़की को भी नहीं सुनता। 20O 13 2 सज्जन अपनी बातों के कारण उत्तम वस्तु खाने पाता है, परन्तु विश्वासघाती लोगों का पेट उपद्रव से भरता है। 20O 13 3 जो अपने मुंह की चौकसी करता है, वह अपने प्राण की रक्षा करता है, परन्तु जो गाल बजाता उसका विनाश जो जाता है। 20O 13 4 आलसी का प्राण लालसा तो करता है, और उसको कुछ नहीं मिलता, परन्तु कामकाजी हृष्ट पुष्ट हो जाते हैं। 20O 13 5 धर्मी झूठे वचन से बैर रखता है, परन्तु दुष्ट लज्जा का कारण और लज्जित हो जाता है। 20O 13 6 धर्म खरी चाल चलनेवाली की रक्षा करता है, परन्तु पापी अपनी दुष्टता के कारण उलट जाता है। 20O 13 7 कोई तो धन बटोरता, परन्तु उसके पास कुछ नहीं रहता, और कोई धन उड़ा देता, तौभी उसके पास बहुत रहता है। 20O 13 8 प्राण की छुड़ौती मनुष्य का धन है, परन्तु निर्धन घुड़की को सुनता भी नहीं। 20O 13 9 धर्मियों की ज्योति आनन्द के साथ रहती है, परन्तु दुष्टों का दिया बुझ जाता है। 20O 13 10 झगड़े रगड़े केवल अंहकार ही से होते हैं, परन्तु जो लोग सम्मति मानते हैं, उनके पास बुद्धि रहती है। 20O 13 11 निर्धन के पास माल नहीं रहता, परन्तु जो अपने परिश्रम से बटोरता, उसकी बढ़ती होती है। 20O 13 12 जब आशा पूरी होने से विलम्ब होता है, तो मन शिथिल होता है, परन्तु जब लालसा पूरी होती है, तब जीवन का वृक्ष लगता है। 20O 13 13 जो वचन को तुच्छ जानता, वह नाश हो जाता है, परन्तु आज्ञा के डरवैये को अच्छा फल मिलता है। 20O 13 14 बुद्धिमान की शिक्षा का जीवन का सोता है, और उसके द्वारा लोग मृत्यु के फन्दों से बच सकते हैं। 20O 13 15 सुबुद्धि के कारण अनुग्रह होता है, परन्तु विश्वासघातियों का मार्ग कड़ा होता है। 20O 13 16 सब चतुर तो ज्ञान से काम करते हैं, परन्तु मूर्ख अपनी मूढ़ता फैलाता है। 20O 13 17 दुष्ट दूत बुराई में फंसता है, परन्तु विश्वासयोग्य दूत से कुशलक्षेम होता है। 20O 13 18 जो शिक्षा को सुनी- अनसुनी करता वह निर्धन होता और अपमान पाता है, परन्तु जो डांट को मानता, उसकी महिमा होती है। 20O 13 19 लालसा का पूरा होना तो प्राण को मीठा लगता है, परन्तु बुराई से हटना, मूर्खों के प्राण को बुरा लगता है। 20O 13 20 बुद्धिमानों की संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा, परन्तु मूर्खों का साथी नाश हो जाएगा। 20O 13 21 बुराई पापियों के पीछे पड़ती है, परन्तु धर्मियों को अच्छा फल मिलता है। 20O 13 22 भला मनुष्य अपने नाती- पोतों के लिये भाग छोड़ जाता है, परन्तु पापी की सम्पत्ति धर्मी के लिये रखी जाती है। 20O 13 23 निर्बल लोगों को खेती बारी से बहुत भोजनवस्तु मिलती है, परन्तु ऐसे लोग भी हैं जो अन्याय के कारण मिट जाते हैं। 20O 13 24 जो बेटे पर छड़ी नहीं चलाता वह उसका बैरी है, परन्तु जो उस से प्रेम रखता, वह यत्न से उसको शिक्षा देता है। 20O 13 25 धर्मी पेट भर खाते पाता है, परन्तु दुष्ट भूखे ही रहते हैं।। 20O 14 1 हर बुद्धिमान स्त्री अपने घर को बनाती है, पर मूढ़ स्त्री उसको अपने ही हाथों से ढा देती है। 20O 14 2 जो सीधाई से चलता वह यहोवा का भय माननेवाला है, परन्तु जो टेढ़ी चाल चलता वह उसको तुच्छ जाननेवाला ठहरता है। 20O 14 3 मूढ़ के मुंह में गर्व का अंकुर है, परन्तु बुद्धिमान लोग अपने वचनों के द्वारा रक्षा पाते हैं। 20O 14 4 जहां बैल नहीं, वहां गौशाला निर्मल तो रहती है, परन्तु बैल के बल से अनाज की बढ़ती हाती है। 20O 14 5 सच्चा साक्षी झूठ नहीं बोलता, परन्तु झूठा साक्षी झूठी बातें उड़ाता है। 20O 14 6 ठट्ठा करनेवाला बुद्धि को ढूंढ़ता, परन्तु नहीं पाता, परन्तु समझवाले को ज्ञान सहज से मिलता है। 20O 14 7 मूर्ख से अलग हो जा, तू उस से ज्ञान की बात न पाएगा। 20O 14 8 चतुर की बुद्धि अपनी चाल का जानना है, परन्तु मूर्खों की मूढ़ता छल करना है। 20O 14 9 मूढ़ लोग दोषी होने को ठट्ठा जानते हैं, परन्तु सीधे लोगों के बीच अनुग्रह होता है। 20O 14 10 मन अपना ही दु:ख जानता है, और परदेशी उसके आनन्द में हाथ नहीं डाल सकता। 20O 14 11 दुष्टों को घर विनाश हो जाता है, परन्तु सीधे लोगों के तम्बू में आबादी होती है। 20O 14 12 ऐसा मार्ग है, जो मनुष्य को ठीक देख पड़ता है, परन्तु उसके अन्त में मृत्यु ही मिलती है। 20O 14 13 हंसी के समय भी मन उदास होता है, और आनन्द के अन्त में शोक होता है। 20O 14 14 जिसका मन ईश्वर की ओर से हट जाता है, वह अपनी चालचलन का फल भोगता है, परन्तु भला मनुष्य आप ही आप सन्तुष्ट होता है। 20O 14 15 भोला तो हर एक बात को सच मानता है, परन्तु चतुर मनुष्य समझ बूझकर चलता है। 20O 14 16 बुद्धिमान डरकर बुराई से हटता है, परन्तु मूर्ख ढीठ होकर निडर रहता है। 20O 14 17 जो झट क्रोध करे, वह मूढ़ता का काम भी करेगा, और जो बुरी युक्तियां निकालता है, उस से लोग बैर रखते हैं। 20O 14 18 भोलों का भाग मूढ़ता ही होता है, परन्तु चतुरों को ज्ञानरूपी मुकुट बान्धा जाता है। 20O 14 19 बुरे लोग भलों के सम्मुख, और दुष्ट लोग धर्मी के फाटक पर दण्डवत् करते हैं। 20O 14 20 निर्धन का पड़ोसी भी उस से घृणा करता है, परन्तु धनी के बहुतेरे प्रेमी होते हैं। 20O 14 21 जो अपने पड़ोसी को तुच्छ जानता, वह पाप करता है, परन्तु जो दीन लोगों पर अनुग्रह करता, वह धन्य होता है। 20O 14 22 जो बुरी युक्ति निकालते हैं, क्या वे भ्रम में नहीं पड़ते? परन्तु भली युक्ति निकालनेवालों से करूणा और सच्चाई का व्यवहार किया जाता है। 20O 14 23 परिश्रम से सदा लाभ होता है, परन्तु बकवाद करने से केवल घटती होती है। 20O 14 24 बुद्धिमानों का धन उनका मुकुट ठहरता है, परन्तु मूर्खों की मूढ़ता निरी मूढ़ता है। 20O 14 25 सच्चा साक्षी बहुतों के प्राण बचाता है, परन्तु जो झूठी बातें उड़ाया करता है उस से धोखा ही होता है। 20O 14 26 यहोवा के भय मानने से दृढ़ भरोसा होता है, और उसके पुत्रों केा शरणस्थान मिलता है। 20O 14 27 यहोवा का भय मानना, जीवन का सोता है, और उसके द्वारा लोग मृत्यु के फन्दों से बच जाते हैं। 20O 14 28 राजा की महिमा प्रजा की बहुतायत से होती है, परन्तु जहां प्रजा नहीं, वहां हाकिम नाश हो जाता है। 20O 14 29 जो विलम्ब से क्रोध करनेवाला है वह बड़ा समझवाला है, परन्तु जो अधीर है, वह मूढ़ता की बढ़ती करता है। 20O 14 30 शान्त मन, तन का जीवन है, परन्तु मन के जलने से हडि्डयां भी जल जाती हैं। 20O 14 31 जो कंगाल पर अंधेर करता, वह उसके कर्ता की निन्द करता है, परन्तु जो दरिद्र पर अनुग्रह करता, वह उसकी महिमा करता है। 20O 14 32 दुष्ट मनुष्य बुराई करता हुआ नाश हो जाता है, परन्तु धर्मी को मृत्यु के समय भी शरण मिलती है। 20O 14 33 समझवाले के मन में बुद्धि वास किए रहती है, परन्तु मूर्खों के अन्त:काल में जो कुछ है वह प्रगट हो जाता है। 20O 14 34 जाति की बढ़ती धर्म ही से होती है, परन्तु पाप से देश के लोगों का अपमान होता है। 20O 14 35 जो कर्मचारी बुद्धि से काम करता है उस पर राजा प्रसन्न होता है, परन्तु जो लज्जा के काम करता, उस पर वह रोष करता है।। 20O 15 1 कोमल उत्तर सुनने से जलजलाहट ठण्डी होती है, परन्तु कटुवचन से क्रोध धधक उठता है। 20O 15 2 बुद्धिमान ज्ञान का ठीक बखान करते हैं, परन्तु मूर्खों के मुंह से मूढ़ता उबल आती है। 20O 15 3 यहोवा की आंखें सब स्थानों में लगी रहती हैं, वह बुरे भले दोनों को देखती रहती हैं। 20O 15 4 शान्ति देनेवाली बात जीवन- वृक्ष है, परन्तु उलट फेर की बात से आत्मा दु:खित होती है। 20O 15 5 मूढ़ अपने पिता की शिक्षा का तिरस्कार करता है, परन्तु जो डांट को मानता, वह चतुर हो जाता है। 20O 15 6 धर्मी के घर में बहुत धन रहता है, परन्तु दुष्ट के उपार्जन में दु:ख रहता है। 20O 15 7 बुद्धिमान लोग बातें करने से ज्ञान को फैलाते हैं, परन्तु मूर्खों का मन ठीक नहीं रहता। 20O 15 8 दुष्ट लोगों के बलिदान से यहोवा धृणा करता है, परन्तु वह सीधे लोगों की प्रार्थना से प्रसन्न होता है। 20O 15 9 दुष्ट के चालचलन से यहोवा को घृणा आती है, परन्तु जो धर्म का पीछा करता उस से वह प्रेम रखता है। 20O 15 10 जो मार्ग को छोड़ देता, उसको बड़ी ताड़ना मिलती है, और जो डांट से बैर रखता, वह अवश्य मर जाता है। 20O 15 11 जब कि अधोलोक और विनाशलोक यहोवा के साम्हने खुले रहते हैं, तो निश्चय मनुष्यों के मन भी। 20O 15 12 ठट्ठा करनेवाला डांटे जाने से प्रसन्न नहीं होता, और न वह बुद्धिमानों के पास जाता है। 20O 15 13 मन आनन्दित होने से मुख पर भी प्रसन्नता छा जाती है, परन्तु मन के दु:ख से आत्मा निराश होती है। 20O 15 14 समझनेवाले का मन ज्ञान की खोज में रहता है, परन्तु मूर्ख लोग मूढ़ता से पेट भरते हैं। 20O 15 15 दुखिया के सब दिन दु:ख भरे रहते हैं, परन्तु जिसका मन प्रसन्न रहता है, वह मानो नित्य भोज में जाता है। 20O 15 16 घबराहट के साथ बहुत रखे हुए धन से, यहोवा के भय के साथ थोड़ा ही धन उत्तम है, 20O 15 17 प्रेम वाले घर में सागपात का भोजन, बैर वाले घर में पाले हुए बैल का मांस खाने से उत्तम है। 20O 15 18 क्रोधी पुरूष झगड़ा मचाता है, परन्तु जो विलम्ब से क्रोध करनेवाला है, वह मुक मों को दबा देता है। 20O 15 19 आलसी का मार्ग कांटों से रून्धा हुआ होता है, परन्तु सीधे लोगों का मार्ग राजमार्ग ठहरता है। 20O 15 20 बुद्धिमान पुत्रा से पिता आनन्दित होता है, परन्तु मूर्ख अपनी माता को तुच्छ जानता है। 20O 15 21 निर्बुद्धि को मूढ़ता से आनन्द होता है, परन्तु समझवाला मनुष्य सीधी चाल चलता है। 20O 15 22 बिना सम्मति की कल्पनाएं निष्फल हुआ करती हैं, परन्तु बहुत से मंत्रियों की सम्मत्ति से बात ठहरती है। 20O 15 23 सज्जन उत्तर देने से आनन्दित होता है, और अवसर पर कहा हुआ वचन क्या ही भला होता है! 20O 15 24 बुद्धिमान के लिये जीवन का मार्ग ऊपर की ओर जाता है, इस रीति से वह अधोलोक में पड़ने से बच जाता है। 20O 15 25 यहोवा अहंकारियों के घर को ढा देता है, परन्तु विधवा के सिवाने को अटल रखता है। 20O 15 26 बुरी कल्पनाएं यहोवा को घिनौनी लगती हैं, परन्तु शुद्ध जन के वचन मनभावने हैं। 20O 15 27 लालची अपने घराने को दु:ख देता है, परन्तु घूस से घृणा करनेवाला जीवित रहता है। 20O 15 28 धर्मी मन में सोचता है कि क्या उत्तर दूं, परन्तु दुष्टों के मुंह से बुरी बातें उबल आती हैं। 20O 15 29 यहोवा दुष्टों से दूर रहता है, परन्तु धर्मियों की प्रार्थना सुनता है। 20O 15 30 आंखों की चमक से मन को आनन्द होता है, और अच्छे समाचार से हडि्डयां पुष्ट होती हैं। 20O 15 31 जो जीवनदायी डांट कान लगाकर सुनता है, वह बुद्धिमानों के संग ठिकाना पाता है। 20O 15 32 जो शिक्षा को सुनी- अनसुनी करता, वह अपने प्राण को तुच्छ जानता है, परन्तु जो डांट को सुनता, वह बुद्धि प्राप्त करता है। 20O 15 33 यहोवा के भय मानने से शिक्षा प्राप्त होती है, और महिमा से पहिले नम्रता होती है।। 20O 16 1 मन की युक्ति मनुष्य के वश में रहती है, परन्तु मुंह से कहना यहोवा की ओर से होता है। 20O 16 2 मनुष्य का सारा चालचलन अपनी दृष्टि में पवित्रा ठहरता है, परन्तु यहोवा मन को तौलता है। 20O 16 3 अपने कामों को यहोवा पर डाल दे, इस से तेरी कल्पनाएं सिद्ध होंगी। 20O 16 4 यहोवा ने सब वस्तुएं विशेष उ :श्य के लिये बनाई हैं, वरन दुष्ट को भी विपत्ति भोगने के लिये बनाया है। 20O 16 5 सब मन के घमण्डियों से यहोवा घृणा करता है करता है; मैं दृढ़ता से कहता हूं, ऐसे लोग निर्दोष न ठहरेंगे। 20O 16 6 अधर्म का प्रायश्चित कृपा, और सच्चाई से होता है, और यहोवा के भय मानने के द्वारा मनुष्य बुराई करने से बच जाते हैं। 20O 16 7 जब किसी का चालचलन यहोवा को भवता है, तब वह उसके शत्रुओं का भी उस से मेल कराता है। 20O 16 8 अन्याय के बड़े लाभ से, न्याय से थोड़ा ही प्राप्त करना उत्तम है। 20O 16 9 मनुष्य मन में अपने मार्ग पर विचार करता है, परन्तु यहोवा ही उसके पैरों को स्थिर करता है। 20O 16 10 राजा के मुंह से दैवीवाणी निकलती है, न्याय करने में उस से चूक नहीं होती। 20O 16 11 सच्चा तराजू और पलड़े यहोवा की ओर से होते हैं, थैली में जितने बटखरे हैं, सब उसी के बनवाए हुए हैं। 20O 16 12 दुष्टता करना राजाओं के लिये घृणित काम है, क्योंकि उनकी गद्दी धर्म ही से स्थिर रहती है। 20O 16 13 धर्म की बात बोलनेवालों से राजा प्रसन्न होता है, और जो सीधी बातें बोलता है, उस से वह प्रेम रखता है। 20O 16 14 राजा का क्रोध मृत्यु के दूत के समान है, परन्तु बुद्धिमान मनुष्य उसको ठण्डा करता है। 20O 16 15 राजा के मुख की चमक में जीवन रहता है, और उसकी प्रसन्नता बरसात के अन्त की घटा के समान होती है। 20O 16 16 बुद्धि की प्राप्ति चोखे सोने से क्या ही उत्तम है! और समझ की प्राप्ति चान्दी से अति योग्य है। 20O 16 17 बुराई से हटना सीधे लोगों के लिये राजमार्ग है, जो अपने चालचलन की चौकसी करता, वह अपने प्राण की भी रक्षा करता है। 20O 16 18 विनाश से पहिले गर्व, और ठोकर खाने से पहिले घमण्ड होता है। 20O 16 19 घमण्डियों के संग लूट बांट लने से, दीन लोगों के संग नम्र भाव से रहना उत्तम है। 20O 16 20 जो वचन पर मन लगाता, वह कल्याण पाता है, और जो यहोवा पर भरोसा रखता, वह धन्य होता है। 20O 16 21 जिसके हृदय में बुद्धि है, वह समझवाला कहलाता है, और मधुर वाणी के द्वारा ज्ञान बढ़ता है। 20O 16 22 जिसके बुद्धि है, उसके लिये वह जीवन का सोता है, परन्तु मूढ़ों को शिक्षा देना मूढ़ता ही होती है। 20O 16 23 बुद्धिमान का मन उसके मुंह पर भी बुद्धिमानी प्रगट करता है, और उसके वचन में विद्या रहती है। 20O 16 24 मनभावने वचन मधुभरे छते की नाईं प्राणों को मीठे लगते, और हडि्डयों को हरी- भरी करते हैं। 20O 16 25 ऐसा भी मार्ग है, जो मनुष्य को सीधा देख पड़ता है, परन्तु उसके अन्त में मृत्यु ही मिलती है। 20O 16 26 परिश्रमी की लालसा उसके लिये परिश्रम करती है, उसकी भूख तो उसको उभारती रहती है। 20O 16 27 अधर्मी मनुष्य बुराई की युक्ति निकालता है, और उसके वचनों से आग लगा जाती है। 20O 16 28 टेढ़ा मनुष्य बहुत झगड़े को उठाता है, और कानाफूसी करनेवाला परम मित्रों में भी फूट करा देता है। 20O 16 29 उपद्रवी मनुष्य अपने पड़ोसी को फुसलाकर कुमार्ग पर चलाता है। 20O 16 30 आंख मूंदनेवाला छल की कल्पनाएं करता है, और ओंठ दबानेवाला बुराई करता है। 20O 16 31 पक्के बाल शोभायमान मुकुट ठहरते हैं; वे धर्म के मार्ग पर चलने से प्राप्त होते हैं। 20O 16 32 विलम्ब से क्रोध करना वीरता से, और अपने मन को वश में रखना, नगर के जीत लेने से उत्तम है। 20O 16 33 चिट्ठी डाली जाती तो है, परन्तु उसका निकलना यहोवा ही की ओर से होता है। 20O 17 1 चैन के साथ सूखा टुकड़ा, उस घर की अपेक्षा उत्तम है जो मेलबलि- पशुओं से भरा हो, परन्तु उस में झगड़े रगड़े हों। 20O 17 2 बुद्धि से चलनेवाला दास अपने स्वामी के उस पुत्रा पर जो लज्जा का कारण होता है प्रभुता करेगा, और उस पुत्रा के भाइयों के बीच भागी होगा। 20O 17 3 चान्दी के लिये कुठाली, और सोने के लिये भट्ठी हाती है, परन्तु मनों को यहोवा जांचता है। 20O 17 4 कुकर्मी अनर्थ बात को ध्यान देकर सुनता है, और झूठा मनुष्य दुष्टता की बात की ओर कान लगाता है। 20O 17 5 जो निर्धन को ठट्ठों में उड़ाता है, वह उसके कर्त्ता की निन्दा करता है; और जो किसी की विपत्ति पर हंसता, वह निर्दोष नहीं ठहरेगा। 20O 17 6 बूढ़ों की शोभा उनके नाती पोते हैं; और बाल- बच्चों की शोभा उनके माता- पिता हैं। 20O 17 7 मूढ़ तो उत्तम बात फबती नहीं, और अधिक करके प्रधान को झूठी बात नहीं फबती। 20O 17 8 देनेवाले के हाथ में घूस मोह लेनेवाले मणि का काम देता है; जिधर ऐसा पुरूष फिरता, उधर ही उसका काम सुफल होता है। 20O 17 9 जो दूसरे के अपराध को ढांप देता, वह प्रेम का खोजी ठहरता है, परन्तु जो बात की चर्चा बार बार करता है, वह परम मित्रों में भी फूट करा देता है। 20O 17 10 एक घुड़की समझनेवाले के मन में जितनी गड़ जाती है, उतना सौ बार मार खाना मूर्ख के मन में नहीं गड़ता। 20O 17 11 बुरा मनुष्य दंगे ही का यत्न करता है, इसलिये उसके पास क्रूर दूत भेजा जाएगा। 20O 17 12 बच्चा- छीनी- हुई- रीछनी से मिलना तो भला है, परन्तु मूढ़ता में डूबे हुए मूर्ख से मिलना भला नहीं। 20O 17 13 जो कोई भलाई के बदले में बुराई करे, उसके घर से बुराई दूर न होगी। 20O 17 14 झगड़े का आरम्भ बान्ध के छेद के समान है, झगड़ा बढ़ने से पहिले उसको छोड़ देता उचित है। 20O 17 15 जो दोषी को निर्दोष, और जो निर्दोष को दोषी ठहराता है, उन दोनों से यहोवा घृणा करता है। 20O 17 16 बुद्धि मोल लेने के लिये मूर्ख अपने हाथ में दाम क्यों लिए हैं? वह उसे चाहता ही नहीं। 20O 17 17 मित्रा सब समयों में प्रेम रखता है, और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है। 20O 17 18 निर्बुद्धि मनुष्य हाथ पर हाथ मारता है, और अपने पड़ोसी के सामने उत्तरदायी होता है। 20O 17 19 जो झगड़े- रगड़े में प्रीति रखता, वह अपराण करने में भी प्रीति रखता है, और जो अपने फाटक को बड़ा करता, वह अपने विनाश के लिये यत्न करता है। 20O 17 20 जो मन का टेढ़ा है, उसका कल्याण नहीं होता, और उलट- फेर की बात करनेवाला विपत्ति में पड़ता है। 20O 17 21 जो मूर्ख को जन्माता है वह उस से दु:ख ही पाता है; और मूढ़ के पिता को आनन्द नहीं होता। 20O 17 22 मन का आनन्द अच्छी औषधि है, परन्तु मन के टूटने से हडि्डयां सूख जाती हैं। 20O 17 23 दुष्ट जन न्याय बिगाड़ने के लिये, अपनी गांठ से घूस निकालता है। 20O 17 24 बुद्धि समझनेवाले के साम्हने ही रहती है, परन्तु मूर्ख की आंखे पृथ्वी के दूर दूर देशों में लगी रहती है। 20O 17 25 ूमूर्ख पुत्रा से पिता उदास होता है, और जननी को शोक होता है। 20O 17 26 फिर धर्मी से दण्ड लेना, और प्रधानों को सिधाई के कारण पिटवाना, दोनों काम अच्छे नहीं हैं। 20O 17 27 जो संभलकर बोलता है, वही ज्ञानी ठहरता है; और जिसी आत्मा शान्त रहती है, सोई समझवाला पुरूष ठहरता है। 20O 17 28 मूढ़ भी जब चुप रहता है, तब बुद्धिमान गिना जाता है; और जो अपना मुंह बन्द रखता वह समझवाला गिना जाता है।। 20O 18 1 जो औरों से अलग हो जाता है, वह अपनी ही इच्छा पूरी करने के लिये ऐसा करता है, 20O 18 2 और सब प्रकार की खरी बुद्धि से बैर करता है। मूर्ख का मन समझ की बातों मे नहीं लगता, वह केवल अपने मन की बात प्रगट करना चाहता है। 20O 18 3 जहां दुष्ट आता, वहां अपमान भी आता है; और निन्दित काम के साथ नामधराई होती है। 20O 18 4 मनुष्य के मुंह के वचन गहिरा जल, वा उमण्डनेवाली नदी वा बुद्धि के सोते हैं। 20O 18 5 दुष्ट का पक्ष करना, और धर्मी का हक मारना, अच्छा नहीं है। 20O 18 6 बात बढ़ाने से मूर्ख मुक मा खड़ा करता है, और अपने को मार खाने के योग्य दिखाता है। 20O 18 7 मूर्ख का विनाश उसकी बातों से होता है, और उसके वचन उसके प्राण के लिये फन्दे होते हैं। 20O 18 8 कानाफूसी करनेवाले के वचन स्वादिष्ट भोजन की नाईं लगते हैं; वे पेट में पच जाते हैं। 20O 18 9 जो काम में आलस करता है, वह खोनेवाले का भाई ठहरता है। 20O 18 10 यहोवा का नाम दृढ़ कोट है; धर्मी उस में भागकर सब दुर्घटनाओं से बचता है। 20O 18 11 धनी का धन उसकी दृष्टि में गढ़वाला नगर, और ऊंचे पर बनी हुई शहरपनाह है। 20O 18 12 नाश होने से पहिले मनुष्य के मन में घमण्ड, और महिमा पाने से पहिले नम्रता होती है। 20O 18 13 जो बिना बात सुने उत्तर देता है, वह मूढ़ ठहरता है, और उसका अनादर होता है। 20O 18 14 रोग में मनुष्य अपनी आत्मा से सम्भलता है; परन्तु जब आत्मा हार जाती है तब इसे कौन सह सकता है? 20O 18 15 समझवाले का मन ज्ञान प्राप्त करता है; और बुद्धिमान ज्ञान की बात की खोज में रहते हैं। 20O 18 16 भेंट मनुष्य के लिये मार्ग खोल देती है, और उसे बड़े लोगों के साम्हने पहुंचाती है। 20O 18 17 मुक में में जो पहिले बोलता, वही धर्मी जान पड़ता है, परन्तु पीछे दूसरा पक्षवाला आका उसे खोज लेता है। 20O 18 18 चिट्ठी डालने से झगड़े बन्द होते हैं, और बलवन्तों की लड़ाई का अन्त होता है। 20O 18 19 चिढ़े हुए भाई को मनाना दृढ़ नगर के ले लेने से कठिन होता है, और झगड़े राजभवन के बेण्डों के समान हैं। 20O 18 20 मनुष्य का पेट मुंह की बातों के फल से भरता है; और बोलने से जो कुछ प्राप्त होता है उस से वह तृप्त होता है। 20O 18 21 जीभ के वश में मृत्यु और जीवन दोनों होते हैं, और जो उसे काम में लाना जानता है वह उसका फल भोगेगा। 20O 18 22 जिस ने स्त्री ब्याह ली, उस ने उत्तम पदार्थ पाया, और यहोवा का अनुग्रह उस पर हुआ है। 20O 18 23 निर्धन गिड़गिड़ाकर बोलता है। परन्तु धनी कड़ा उत्तर देता है। 20O 18 24 मित्रों के बढ़ाने से तो नाश होता है, परन्तु ऐसा मित्रा होता है, जो भाई से भी अधिक मिला रहता है। 20O 19 1 जो निर्धन खराई से चलता है, वह उस मूर्ख से उत्तम है जो टेढ़ी बातें बोलता है। 20O 19 2 मनुष्य का ज्ञानरहित रहना अच्छा नहीं, और जो उतावली से दौड़ता है वह चूक जाता है। 20O 19 3 मूढ़ता के कारण मनुष्य का मार्ग टेढ़ा होता है, और वह मन ही मन यहोवा से चिढ़ने लगता है। 20O 19 4 धनी के तो बहुत मित्रा हो जाते हैं, परन्तु कंगाल के मित्रा उस से अलग हो जाते हैं। 20O 19 5 झूठा साक्षी निर्दोष नहीं ठहरता, और जो झूठ बोला करता है, वह न बचेगा। 20O 19 6 उदार मनुष्य को बहुत से लोग मना लेते हैं, और दानी पुरूष का मित्रा सब कोई बनता है। 20O 19 7 जब निर्धन के सब भाई उस से बैर रखते हैं, तो निश्चय है कि उसके मित्रा उस से दूर हो जाएं। वह बातें करते हुए उनका पीछा करता है, परन्तु उनको नहीं पाता। 20O 19 8 जो बुद्धि प्राप्त करता, वह अपने प्राण को प्रेमी ठहरता है; और जो समझ को धरे रहता है उसका कल्याण होता है। 20O 19 9 झूठा साक्षी निर्दोष नहीं ठहरता, और जो झूठ बोला करता है, वह नाश होता है। 20O 19 10 जब सुख में रहना मूर्ख को नहीं फबता, तो हाकिमों पर दास का प्रभुता करना कैसे फबे! 20O 19 11 जो मनुष्य बुद्धि से चलता है वह विलम्ब से क्रोध करता है, और अपराध को झुलाना उसको सोहता है। 20O 19 12 राजा का क्रोध सिंह की गरजन के समान है, परन्तु उसकी प्रसन्नता घास पर की ओस के तुल्य होती है। 20O 19 13 मूर्ख पुत्रा पिता के लिये विपत्ति ठहरता है, और पत्नी के झगड़े- रगड़े सदा टपकने के समान है। 20O 19 14 घर और धन पुरखाओं के भाग में, परन्तु बुद्धिमती पत्नी यहोवा ही से मिलती है। 20O 19 15 आलस से भारी नींद आ जाती है, और जो प्राणी ढिलाई से काम करता, वह भूखा ही रहता है। 20O 19 16 जो आज्ञा को मानता, वह अपने प्राण की रक्षा करता है, परन्तु जो अपने चालचलन के विषय में निश्चिन्त रहता है, वह मर जाता है। 20O 19 17 जो कंगाल पर अनुग्रह करता है, वह यहोवा को उधार देता है, और वह अपने इस काम का प्रतिफल पाएगा। 20O 19 18 जबतक आशा है तो अपने पुत्रा को ताड़ना कर, जान बूझकर उसका मार न डाल। 20O 19 19 जो बड़ा क्रोधी है, उसे दण्ड उठाने दे; क्योंकि यदि तू उसे बचाए, तो बारम्बार बचाना पड़ेगा। 20O 19 20 सम्मति को सुन ले, और शिक्षा को ग्रहण कर, कि तू अन्तकाल में बुद्धिमान ठहरे। 20O 19 21 मनुष्य के मन में बहुत सी कल्पनाएं होती हैं, परन्तु जो युक्ति यहोवा करता है, वही स्थिर रहती है। 20O 19 22 मनुष्य कृपा करने के अनुसार चाहने योग्य होता है, और निर्धन जन झूठ बोलनेवाले से उत्तम है। 20O 19 23 यहोवा का भय मानने से जीवन बढ़ता है; और उसका भय माननेवाला ठिकाना पाकर सुखी रहता है; उस पर विपत्ती नहीं पड़ने की। 20O 19 24 आलसी अपना हाथ थाली में डालता है, परन्तु अपने मुंह तक कौर नहीं उठाता। 20O 19 25 ठट्ठा करनेवाले को मार, इस से भोला मनुष्य समझदार हो जाएगा; और समझवाले को डांट, तब वह अधिक ज्ञान पाएगा। 20O 19 26 जो पुत्रा अपने बाप को उजाड़ता, और अपनी मां को भगा देता है, वह अपमान और लज्जा का कारण होगा। 20O 19 27 हे मेरे पुत्रा, यदि तू भटकना चाहता है, तो शिक्षा का सुनना छोड़ दे। 20O 19 28 अधम साक्षी न्याय को ठट्ठों में उड़ाता है, और दुष्ट लोग अनर्थ काम निगल लेते हैं। 20O 19 29 ठट्ठा करनेवालों के लिये दण्ड ठहराया जाता है, और मूर्खों की पीठ के लिये कोड़े हैं। 20O 20 1 दाखमधु ठट्ठा करनेवाला और मदिरा हल्ला मचानेवाली है; जो कोई उसके कारण चूक करता है, वह बुद्धिमान नहीं। 20O 20 2 राजा का भय दिखाना, सिंह का गरजना है; जो उस पर रोष करता, वह अपने प्राण का अपराधी होता है। 20O 20 3 मुक में से हाथ उठाना, पुरूष की महिमा ठहरती है; परन्तु सब मूढ़ झगड़ने को तैयार होते हैं। 20O 20 4 आलसी मनुष्य शीत के कारण हल नहीं जोतता; इसलिये कटनी के समय वह भीष मांगता, और कुछ नहीं पाता। 20O 20 5 मनुष्य के मन की युक्ति अथाह तो है, तौभी समझवाला मनुष्य उसको निकाल लेता है। 20O 20 6 बहुत से मनुष्य अपनी कृपा का प्रचार करते हैं; परन्तु सच्चा पुरूष कौन पा सकता है? 20O 20 7 धर्मी जो खराई से चलता रहता है, उसके पीछे उसके लड़केबाले धन्य होते हैं। 20O 20 8 राजा जो न्याय के सिंहासन पर बैठा करता है, वह अपनी दृष्टि ही से सब बुराई को उड़ा देता है। 20O 20 9 कौन सह सकता है कि मैं ने अपने हृदय को पवित्रा किया; अथवा मैं पाप से शुद्ध हुआ हूं? 20O 20 10 घटती- बढ़ती बटखरे और घटते- बढ़ते नपुए इन दोनों से यहोवा घृणा करता है। 20O 20 11 लड़का भी अपने कामों से पहिचाना जाता है, कि उसका काम पवित्रा और सीधा है, वा नहीं। 20O 20 12 सुनने के लिये कान और देखने के लिये जो आंखें हैं, उन दोनों को यहोवा ने बनाया है। 20O 20 13 नींद से प्रीति न रख, नहीं तो दरिद्र हो जाएगा; आंखें खोल तब तू रोटी से तृप्त होगा। 20O 20 14 मोल लेने के समय ग्राहक तुच्छ तुच्छ कहता है; परन्तु चले जाने पर बढ़ाई करता है। 20O 20 15 सोना और बहुत से मूंगे तो हैं; परन्तु ज्ञान की बातें अनमोल मणी ठहरी हैं। 20O 20 16 जो अनजाने का उत्तरदायी हुआ उसका कपड़ा, और जो पराए का उत्तरदायी हुआ उस से बंघक की वस्तु ले रख। 20O 20 17 चोरी- छिपे की रोटी मनुष्य को मीठी तो लगती है, परन्तु पीछे उसका मुंह कंकड़ से भर जाता है। 20O 20 18 सब कल्पनाएं सम्मत्ति ही से स्थिर होती हैं; और युक्ति के साथ युद्ध करना चाहिये। 20O 20 19 जो लुतराई करता फिरता है वह भेद प्रगट करता है; इसलिये बकवादी से मेल जोल न रखना। 20O 20 20 जो अपने माता- पिता को कोसता, उसका दिया बुझ जाता, और घोर अन्धकार हो जाता है। 20O 20 21 जो भाग पहिले उतावली से मिलता है, अन्त में उस पर आशीष नहीं होती। 20O 20 22 मत कह, कि मैं बुराई का पलटा लूंगा; वरन यहोवा की बाट जोहता रह, वह तुझ को छुड़ाएगा। 20O 20 23 घट